सावित्री देवी के घरआंगन में शहनाई की मधुर ध्वनि गूंज रही थी. सारे घर में उल्लास का वातावरण था. नईनवेली दुलहन शुचि व दूल्हा अभय ऐसे लग रहे थे जैसे वे एकदूसरे के लिए ही बने हों.
अभय का साथ पा कर शुचि प्रसन्न थी. परंतु दिन बीतने के साथ शुचि को यह एहसास होने लगा था कि एक असमानता उस के व अभय के बीच है. शुचि जहां एक प्रगतिशील परिवार की मेधावी लड़की थी, वहीं अभय का परंपरागत रूढिवादी परिवार था. यहां तक कि इंजीनियर होते हुए भी अभय के व्यक्तित्व में परिवार में व्याप्त अंधविश्वास की झलक शुचि को स्पष्ट दिखाई देने लगी थी.
शुचि को याद है कि शादी के बाद पहली बार जब वह अभय के साथ बाहर घूमने जा रही थी तो बड़ी जेठानी ने उसे टोक दिया था, ‘‘शुचि, नई दुलहन तब तक घर से बाहर नहीं निकलती जब तक पंडितजी शुभ मुहूर्त नहीं बताते. यह इस घर की परंपरा है.’’ और फिर एक सरसरी निगाह शुचि व अभय पर डाल कर वे चली गई थीं.
शुचि तब और दुखी हो गई, जब अभय ने भी उन की बात मान कर घूमने जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया.
हर रोज इसी तरह की कोई न कोई घटना होती. शुचि का मन विद्रोह करने को आतुर हो उठता, परंतु नई बहू की लज्जा उसे रोक देती. हर कार्य के लिए सावित्री देवी को पंडित से सलाह लेना जरूरी था. घर का हर सदस्य पंडित की बताई बातों को ही मानता था. इस के लिए पता
नहीं कितने रुपए पंडितों के घर पहुंच जाते.
दिन बीतने लगे. अभय को शुचि सम झाती पर बचपन के संस्कार और जो अंधविश्वास उस में भर दिए गए थे उन से वह मुक्त नहीं हो पा रहा था. तभी एक दिन जब घर के सदस्यों को शुचि के पांव भारी होने की खबर मिली तो सारे घर में खुशी की लहर दौड़ गई. जल्दी से शुचि की सास सावित्री देवी मंदिर में प्रसाद चढ़ा आईं. उधर खबर मिलते ही पंडित रामधन शास्त्री अपने पोथेपत्रियों को ले कर आ धमके.
भरपेट जलपान करने के बाद अपनी भारीभरकम तोंद पर हाथ फेरते हुए पंडित सावित्री देवी से बोले, ‘‘देखो पुत्री, अब तुम्हें बहू का खास ध्यान रखना होगा. पूरे
9 महीने बहू को मुहूर्त देख कर ही घर से बाहर निकलने देना होगा. और हां, कोई ऊंचीनीच न हो, इस के लिए भी उपाय करने होंगे.’’
‘‘क्या उपाय हैं पंडितजी? मैं आने वाले बच्चे की भलाई के लिए सब करूंगी,’’ सावित्री देवी पंडित रामधन शास्त्री के चरणों में झुक कर बोलीं.
मुसकराते रामधन शात्री मन ही मन प्रसन्न थे कि चलो अब साल भर तक तो मुफ्त का चढ़ावा मिलेगा. फिर बोले, ‘‘देखो पुत्री, अभीअभी बहू के पांव भारी हुए हैं, इसलिए अभी तुम्हें हवन कराना होगा ताकि शुरू का महीना ठीक से बीते.’’
‘‘कितना खर्च आएगा पंडितजी?’’ सावित्री देवी ने पूछा.
‘‘यही कोई 5 हजार रुपए. हवन की सामग्री मंगानी होगी और मेरे साथ हवन संपन्न
कराने 4 ब्राह्मण और आएंगे,’’ पंडित बोले.
सावित्री देवी पैसे ले आईं,
‘‘लीजिए पंडितजी, अब सब जिम्मेदारी आप की है और हां, हवन शीघ्र करवाइए.’’
‘‘चिंता न करो पुत्री सब भला होगा,’’ अपनी पोथी उठा कर शास्त्रीजी उठ खड़े हुए.
शुचि यह सब देख कर
दुखी हो उठी. हिम्मत कर के सावित्री देवी के पास जा कर बोली, ‘‘मांजी, विज्ञान के इस
युग में पंडितों की बात का विश्वास नहीं करना चाहिए.
ये हवनपूजन सब अंधविश्वास
है मांजी.’’
‘‘देखो बहू, माना तुम नए जमाने की हो पर हम ने भी दुनिया देखी है. ये केश धूप में सफेद नहीं हुए हैं हमारे. और हां, आइंदा हमारे काम में दखल नहीं देना,’’ सावित्री देवी बोलीं.
शुचि चुप हो गई. वह सम झ गई कि मांजी उस की बात नहीं सम झेंगी. मांजी क्या, इस परिवार का कोई भी सदस्य नहीं सम झेगा.
कुछ दिन बीतने के बाद पंडित रामधन शास्त्री अपने
साथी पंडितों के साथ हवन
कराने आ पहुंचे. सावित्री देवी ने उन्हें आदरपूर्वक बैठा कर उन के चरण स्पर्श किए. फिर परिवार के सभी सदस्यों ने भी उन के चरण स्पर्श किए.
‘‘पंडितजी, हवन करने से सब बाधाएं दूर हो जाएंगी न?’’ सावित्री देवी बोलीं.
‘‘हां पुत्री, सब कुशल होगा,’’ पंडितजी बोले.
शुचि को भी अभय के साथ हवन में बैठना पड़ा. मन ही मन इन ढोंगी पंडितों को देख कर शुचि दुखी थी पर परिवार के सभी सदस्यों के मन पर छाए अंधविश्वास ने जो चक्रव्यूह शुचि के इर्दगिर्द रचा था, उसे वह तोड़ नहीं पा रही थी.
हवन की समाप्ति के बाद पंडितजी और उन के साथियों ने जलपान किया और दानदक्षिणा ले कर विदा ली.
रात में शुचि ने अभय को सम झाने की कोशिश की, ‘‘अभय, देखो यह अंधविश्वास है. हवनपूजन में इतना समय और पैसा खर्च करना गलत है. आजकल डाक्टर ही यह बता सकते हैं कि बच्चा स्वस्थ होगा या नहीं. पंडित तो सिर्फ ग्रहों के झूठे हेरफेर में फंसा कर अपनी रोजीरोटी चलाते हैं.’’
‘‘देखो शुचि, मां और परिवार के बाकी सदस्य तुम्हारे भले के लिए ही सोच रहे हैं. हमारे घर में हमेशा ही पंडितों
से पूछ कर सारे शुभ कार्य होते हैं, इसलिए तुम चुप रहो यही अच्छा होगा,’’ अभय गुस्से से बोला.
दिन बीतने लगे. शुचि स्वयं को
असहाय महसूस करने लगी. पर वह डा. सीमा के पास जब भी चैकअप के लिए जाती उसे यह सुन कर तसल्ली मिलती कि सब
ठीक है.
2 महीने बाद एक दिन दोपहर को दरवाजे की घंटी
बजने पर सावित्री देवी ने दरवाजा खोला तो सामने एक पंडितजी खड़े थे. रामनामी धोती, माथे
पर बड़ा सा टीका लगाए जनेऊ पहने पंडितजी के हाथों में पोथीपत्रियां थीं. अंदर आने
को आतुर पंडितीजी से
सावित्री देवी बोलीं, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं पंडितजी?’’
पंडितजी इधरउधर नजरें घुमाते हुए बोले, ‘‘घोर संकट. पुत्री, घोर संकट. मैं इस घर के सामने से गुजर रहा था तभी मु झे महसूस हुआ कि इस घर में एक नया मेहमान आने वाला है और उस पर ग्रहों का भारी संकट है. उन का उपाय जरूरी है पुत्री.’’
‘‘पर पंडितजी…’’ सावित्री देवी की बात बीच में ही काट कर पंडितजी बोल पड़े, ‘‘कुछ न कहो पुत्री, तुम ने पंडित दीनानाथ शर्मा का नाम नहीं सुना? मैं वही हूं. मेरी बात कभी न टालना वरना अनर्थ हो जाएगा.’’
घबरा कर सावित्री देवी बोलीं, ‘‘जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा पंडितजी.’’
यह सब देख कर शुचि तिलमिला उठी. अब फिर वही सब होगा. राह चलता कोई भी घर आ कर पूजापाठ के बहाने पैसे ऐंठ ले, यह कैसी विडंबना है. वह कुछ कहने ही वाली थी कि तुरंत सावित्री देवी ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शुचि, जाओ स्वामीजी के लिए जलपान ले कर आओ.’’
शुचि मन ही मन दुखी थी. चुपचाप वह अंदर चली गई. उसे सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.
उधर पंडितजी पंचांग निकाल कर ग्रहों की गणना कर रहे थे.
‘‘तुम्हारी बहू का चौथा महीना चल रहा है न पुत्री? क्या राशि है बहू की?’’ उन्होंने पूछा,
‘‘जी तुला राशि है बहू की,’’ सावित्री देवी ने कहा.
‘‘बहुत भारी ग्रह है पुत्री. बच्चे
व मां की रक्षा के लिए उपाय आवश्यक है.’’
‘‘कुछ दानदक्षिणा दो, उपाय हम स्वयं कर देंगे,’’ मन ही मन मुसकराते हुए पंडितजी सावित्री देवी से बोले. जलपान कर के पूरे 1,100 रुपए दक्षिणा ले कर पंडितजी विदा हुए.
तभी अभय भी घर आ गया. पूरी बात जानने के बाद वह बहुत प्रसन्न हुआ, ‘‘चलो मां, राह चलते ही सही, उन्होंने इस घर का भला तो सोचा.’’
शुचि जानती थी कि इन को सम झाना बेकार है.
इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे. किसी
को भी यह पता नहीं था कि वह राह चलता पंडित, जो उन का भला करने की कह गया था पंडित रामधन शास्त्री का ही भेजा गया था. उसे पहले से शुचि और सावित्री देवी परिवार के बारे में जानकारी थी. सब खुश थे कि अब उन का कुछ नहीं बिगड़ सकता.
एक दिन शुचि रसोई में थी. तभी पंडित रामधन शास्त्री की आवाज सुनी तो सम झ गई कि एक बार फिर वही सब दोहराया जाएगा.
शुचि का 9वां महीना चल रहा था. उस की सास ने ही पंडितजी को बुलवाया था. अपनी सास व पंडितजी की बात सुन कर शुचि सन्न रह गई. इतना अधिक अंधविश्वास इतनी रूढिवादिता. शुचि की सास उस की जन्मपत्री पंडितजी को दिखा कर यह पूछ रही थीं कि वह कौन सा शुभ मुहूर्त है, जिस में बच्चे का जन्म होने पर वह तेजस्वी, प्रतिभावान व
दीर्घायु होगा?
पंडितजी पत्री देख कर गणना कर रहे थे. उधर शुचि सकते में थी. वह सोच रही थी कि यह कैसा अंधविश्वास है, यह कैसा इंसाफ है कि प्रकृति के बनाए नियमों में भी इंसान ने अपना दखल देना शुरू कर दिया है?
एक बच्चे का जन्म, जो पूर्णतया प्रकृति के हाथ में है उस पर भी ग्रहनक्षत्रों का तानाबाना बुन दिया गया है और पढ़ेलिखे व्यक्ति दिग्भ्रमित होने लगे हैं.
परंतु यह सब सुन कर उस ने निश्चय कर लिया था कि उसे ही इस अंधविश्वास का अंत करना है. इस सोच के साथ ही शुचि अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए तत्पर हो उठी. वह इस योजना में डा. सीमा को भी शामिल करना चाहती थी, क्योंकि उन के सहयोग के बिना यह असंभव था.
2 दिन बाद ही शुचि को डा. सीमा के यहां चैकअप के लिए जाना पड़ा. चैकअप के बाद उस ने डा. सीमा को शुभ मुहूर्त में बच्चे के जन्म करवाने की अपनी सास की इच्छा के विषय में बताया और साथ ही यह भी कहा कि वह ऐसा नहीं चाहती है, इसलिए उन्हें उस की योजना में उस का साथ देना होगा.
डा. सीमा शुचि की बात सुन कर बोलीं, ‘‘शुचि, आजकल समाज के हर वर्ग में शुभ मुहूर्त देख कर औपरेशन द्वारा बच्चे का जन्म करवाना प्रचलन में है. यह काम जो पूर्णतया प्रकृति के वश में था, उस पर भी अब पंडितों ने ग्रहनक्षत्रों का लेबल लगा दिया है.’’
कुछ विशेष परिस्थितियों में तो औपरेशन कर के बच्चे का जन्म कराया जाता है, परंतु अब पंडितों के साथसाथ कुछ नर्सिंगहोम्स में भी डाक्टर पैसों के लिए लोगों द्वारा बताए गए समय पर ही बच्चों का जन्म कराने लगे हैं. पर तुम चिंता न करो, क्योंकि किसी न किसी को तो पहल करनी ही होगी. मैं तुम्हारे साथ हूं.
डा. सीमा के कैबिन से बाहर निकल कर शुचि ने महसूस किया कि अब वह निश्चिंत
थी कि उस का बच्चा अंधविश्वास की बलि
नहीं चढ़ेगा.
बड़ी जेठानी नेहा पूछती रहीं कि शुचि तुम्हें अंदर बहुत देर लग गई, परंतु शुचि ने उन की बात टाल दी.
उधर 9वां महीना पूरा होने के पश्चात शुचि
की सास पंडितजी द्वारा बताए मुहूर्त पर शुचि को ले कर नर्सिंगहोम पहुंचीं. डा. सीमा ने उन्हें शुचि का चैकअप कर के बताया, ‘‘इसे ऐडमिट करना होगा, क्योंकि रक्तचाप बहुत बढ़ा हुआ है.’’
‘‘पर डा. साहब, कल ही तो वह शुभ मुहूर्त है, जिस में बच्चे का जन्म होना चाहिए. मैं आप को मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हूं ताकि शुभ मुहूर्त पर ही बच्चे का जन्म हो,’’ सावित्री देवी बोलीं.
‘‘हद करती हैं आप मांजी. बढ़े हुए रक्तचाप में मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती. पहले शुचि की शारीरिक स्थिति ठीक होने दीजिए. और हां, यह कीमत अपने पास ही रखिए, क्योंकि मु झे शुचि व उस के बच्चे की जान ज्यादा प्यारी है,’’ डा. सीमा क्रोध से बोलीं.
सावित्री देवी गुमसुम सी एक तरफ बैठ गईं. परिवार के सभी सदस्य एकएक कर के नर्सिंगहोम पहुंच चुके थे. शायद सभी शुभ मुहूर्त पर होने वाले बच्चे को देखना चाहते थे पर शुचि की हालत की बात जान कर सभी चुप हो गए.
उधर शुचि मन ही मन प्रसन्न थी, क्योंकि वह डा. सीमा के साथ अपने मकसद में कामयाब हो रही थी.
उधर सावित्री देवी फिर से पंडित रामधन शास्त्री के पास पहुंचीं और उन्हें बहू की हालत बताई. पंडितजी तो लालची थे ही. अत: उन्होंने तुरंत उन्हें 1 हफ्ते बाद का मुहूर्त बता दिया और आसानी से 501 रुपए दक्षिणा में प्राप्त कर लिए. अब सावित्री देवी खुश थीं. वे 1 हफ्ते के लिए चिंतामुक्त जो हो गई थीं.
उधर 2 दिन बाद शुचि ने एक स्वस्थ व सुंदर बालक को जन्म दिया. जहां अपने पोते को देख सावित्री देवी व परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न थे, वहीं उस के शुभ मुहूर्त में न होने को ले कर उस के भविष्य को ले कर शंकित भी थे. तभी डा. सीमा ने वहां प्रवेश किया.
‘‘डाक्टर साहिबा, पंडितजी ने तो 1 हफ्ते बाद का मुहूर्त निकाला था पर बच्चे का जन्म तो आज ही हो गया. आप देख लीजिए यह स्वस्थ तो है या नहीं? मैं अभी पंडितजी को बुलवाती हूं,’’ घबराए स्वर में सावित्री देवी बोलीं.
‘‘मांजी, कैसी बात कर रही हैं आप. इस का जन्म तो प्रकृति के विधान के अनुसार ही हुआ है. इसीलिए तो यह पूर्णतया स्वस्थ है. और हां, आज मैं आप को एक राज की बात बताना चाहती हूं. वास्तव में यह मेरी और शुचि की योजना थी. शुचि बिलकुल स्वस्थ थी, पर हम आप के पंडित द्वारा बताए मुहूर्त पर इसलिए बच्चे का जन्म नहीं कराना चाहते थे, क्योंकि हम आप के दिल व दिमाग पर छाए अंधविश्वास को हटाना चाहते थे.
‘‘आज शुचि ने एक स्वस्थ एवं सुंदर बालक को प्रकृति द्वारा निश्चित समय पर जन्म दिया है और इस से यह बात साबित हो गई है कि शुभअशुभ कुछ नहीं होता. ये सब अंधविश्वास हैं, जो पंडितों द्वारा फैलाए गए हैं. शुचि ने ही इस अंधविश्वास को दूर करने की पहल की है, इसलिए यह बधाई की पात्र है.’’
डा. सीमा की बात सुन कर सभी सन्न
थे मानो उन्होंने सब की आंखों से परदा हटा दिया हो.
सभी आने वाले कल की कल्पना कर के मुसकरा उठे.