कैलेंडर गर्ल: मौडलिंग में करियर बनाने से पीछे क्यों हट गई मोहना

‘‘श्री…मुझे माफ कर दो…’’ श्रीधर के गले लग कर आंखों से आंसुओं की बहती धारा के साथ सिसकियां लेते हुए मोहना बोल रही थी.

मोहना अभी मौरीशस से आई थी. एक महीना पहले वह पूना से ‘स्कायलार्क कलेंडर गर्ल प्रतियोगिता’ में शामिल होने के लिए गई थी. वहां जाने से पहले एक दिन वह श्री को मिली थी. वही यादें उस की आंखों के सामने चलचि की भांति घूम रही थीं.

‘‘श्री, आई एम सो ऐक्साइटेड. इमैजिन, जस्ट इमैजिन, अगर मैं स्कायलार्क कलेंडर के 12 महीने के एक पेज पर रहूंगी दैन आई विल बी सो पौपुलर. फिर क्या, मौडलिंग के औफर्स, लैक्मे और विल्स फैशन वीक में भी शिरकत करूंगी…’’ बस, मोहना सपनों में खोई हुई बातें करती जा रही थी.

पहले तो श्री ने उस की बातें शांति से सुन लीं. वह तो शांत व्यक्तित्व का ही इंसान था. कोई भी चीज वह भावना के बहाव में बह कर नहीं करता था. लेकिन मोहना का स्वभाव एकदम उस के विपरीत था. एक बार उस के दिमाग में कोई चीज बस गई तो बस गई. फिर दूसरी कोई भी चीज उसे सूझती नहीं थी. बस, रातदिन वही बात.

टीवी पर स्कायलार्क का ऐड देखने के बाद उसे भी लगने लगा कि एक सफल मौडल बनने का सपना साकार करने के लिए मुझे एक स्प्रिंग बोर्ड मिलेगा.

‘‘श्री, तुम्हें नहीं लगता कि इस कंपीटिशन में पार्टिसिपेट करने के लिए मैं योग्य लड़की हूं? मेरे पास एथलैटिक्स बौडी है, फोटोजैनिक फेस है, मैं अच्छी स्विमर हूं…’’

श्री ने आखिर अपनी चुप्पी तोड़ी और मोहना की आंखों को गहराई से देखते हुए पूछा, ‘‘दैट्स ओके, मोहना… इस प्रतियोगिता में शरीक होने के लिए जो

25 लड़कियां फाइनल होंगी उन में भी यही गुण होंगे. वे भी बिकनी में फोटोग्राफर्स को हौट पोज देने की तैयारी में आएंगीं. वैसी ही तुम्हारी भी मानसिक तैयारी होगी क्या? विल यू बी नौट ओन्ली रैडी फौर दैट लेकिन कंफर्टेबल भी रहोगी क्या?’’

श्री ने उसे वास्तविकता का एहसास करा दिया. लेकिन मोहना ने पलक झपकते ही जवाब दिया, ‘‘अगर मेरा शरीर सुंदर है, तो उसे दिखाने में मुझे कुछ हर्ज नहीं है. वैसे भी मराठी लड़कियां इस क्षेत्र में पीछे नहीं हैं, यह मैं अपने कौन्फिडैंस से दिखाऊंगी.’’

मोहना ने झट से श्री को जवाब दे कर निरुतर कर दिया. श्री ने उस से अगला सवाल पूछ ही लिया, ’’और वे कौकटेल पार्टीज, सोशलाइजिंग…’’

‘‘मुझे इस का अनुभव नहीं है लेकिन मैं दूसरी लड़कियों से सीखूंगी. कलेंडर गर्ल बनने के लिए मैं कुछ भी करूंगी…’’ प्रतियोगिता में सहभागी होने की रोमांचकता से उस का चेहरा और खिल गया था.

फिर मनमसोस कर श्री ने उसे कहा, ‘‘ओके मोहना, अगर तुम ने तय कर ही लिया है तो मैं क्यों आड़े आऊं? खुद को संभालो और हारजीत कुछ भी हो, यह स्वीकारने की हिम्मत रखो, मैं इतना ही कह सकता हूं…’’

श्री का ग्रीन सिगनल मिलने के बाद मोहना खुश हुई थी. श्री के गाल पर किस करते हुए उस ने कहा, ‘‘अब मेरी मम्मी से इजाजत लेने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी ही है?’’

श्री ने भी ज्यादा कुछ न बोलते हुए हामी भर दी. श्री के समझाने के बाद मोहना की मम्मी भी तैयार हो गईं. मोहना आखिर सभी को अलविदा कह कर मौरीशस पहुंची. यहां पहुंचने के बाद उसे एक अलग ही दुनिया में आने का आभास हुआ था… उस के सदाशिवपेठे की पुणेरी संस्कृति से बिलकुल ही अलग किस्म का यहां का माहौल था. फैशनेबल, स्टाइल में फ्लुऐंट अंगरेजी बोलने वाली, कमनीय शरीर की बिंदास लड़कियां यहां एकदूसरे की स्पर्धी थीं. इन 30 खूबसूरत लड़कियों में से सिर्फ 12 को महीने के एकएक पन्ने पर कलेंडर गर्ल के लिए चुना जाना था.

शुरुआत में मोहना उन लड़कियों से और वहां के माहौल से थोड़ी सहमी हुई थी. लेकिन थोड़े ही दिनों में वह सब की चहेती बन गई.

सब से पहले सुबह योगा फिर हैल्दी बे्रकफास्ट, फिर अलगअलग साइट्स पर फोटोशूट्स… दोपहर को फिर से लाइट लंच… लंच के साथ अलगअलग फू्रट्स, फिर थोड़ाबहुत आराम, ब्यूटीशियंस से सलाहमशवरा, दूसरे दिन जो थीम होगी उस थीम के अनुसार हेयरस्टाइल, ड्रैसिंग करने के लिए सूचना. शाम सिर्फ घूमने के लिए थी.

दिन के सभी सत्रों पर स्कायलार्क के मालिक सुब्बाराव रेड्डी के बेटे युधि की उपस्थिति रहती थी. युधि 25 साल का सुंदर, मौडर्न हेयरस्टाइल वाला, लंदन से डिग्री ले कर आया खुले विचारों का हमेशा ही सुंदरसुंदर लड़कियों से घिरा युवक था.

युधि के डैडी भी रिसौर्ट पर आते थे, बु्रअरी के कारोबार में उन का बड़ा नाम था. सिल्वर बालों पर गोल्डन हाईलाइट्स, बड़ेबड़े प्लोटेल डिजाइन के निऔन रंग की पोशाकें, उन के रंगीले व्यक्तित्व पर मैच होती शर्ट्स किसी युवा को भी पीछे छोड़ देती थीं. दोनों बापबेटे काफी सारी हसीनाओं के बीच बैठ कर सुंदरता का आनंद लेते थे.

प्रतियोगिता के अंतिम दौर में चुनी गईं 15 लड़कियों में मोहना का नाम भी शामिल हुआ है, यह सुन कर उस की खुशी का ठिकाना ही न रहा. आधी बाजी तो उस ने पहले ही जीत ली थी, लेकिन यह खुशी पलक झपकते ही खो गई. रात के डिनर के पहले युधि के डैडी ने उसे स्वीट पर मिलने के लिए मैसेज भेजा था. मोहना का दिल धकधक कर रहा था. किसलिए बुलाया होगा? क्या काम होगा? उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था. लेकिन जाना तो पड़ेगा ही. आखिर इस प्रतियोगिता के प्रमुख का संदेश था. श्री को छोड़ कर किसी पराए मर्द से मोहना पहली बार एकांत में मिल रही थी.

जब वह रेड्डी के स्वीट पर पहुंची थी तब दरवाजा खुला ही था. दरवाजे पर दस्तक दे कर वह अंदर गई. रेड्डी सिल्क का कुरता व लुंगी पहन कर सोफे पर बैठा था. सामने व्हिस्की की बौटल, गिलास, आइस फ्लास्क और मसालेदार नमकीन की प्लेट रखी थी.

‘‘कम इन, कम इन मोहना, माई डियर…’’ रेड्डी ने खड़े हो कर उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठाया.

मोहना अंदर से सहम गई थी. रेड्डी राजकीय, औद्योगिक और सामाजिक सर्कल में मान्यताप्राप्त थे. इतना ही नहीं ‘कलेंडर गर्ल’ में सब से हौट सुपरमौडल का चुनाव तो यही करने वाले थे.

‘‘ड्रिंक,’’ उन्होंने मोहना से पूछा. मोहना ने ‘नो’ कहा, फिर भी उन्होंने दूसरे खाली गिलास में एक पैग बना दिया. थोड़ी बर्फ और सोडा डाल कर उन्होंने गिलास मोहना के सामने रखा.

‘‘कम औन मोहना, यू कैन नौट बी सो ओल्ड फैशंड, इफ यू वौंट टु बी इन दिस फील्ड,’’ उन की आवाज में विनती से ज्यादा रोब ही था.

मोहना ने चुपचाप गिलास हाथ में लिया. ‘‘चिअर्स, ऐंड बैस्ट औफ लक,’’ कह कर उन्होंने व्हिस्की का एक बड़ा सिप ले कर गिलास कांच की टेबल पर रख दिया.

मोहना ने गिलास होंठों से लगा कर एक छोटा सिप लिया, लेकिन आदत न होने के कारण उस का सिर दुखने लगा.

रेड्डी ने उस से उस के परिवार के बारे में कुछ सवाल पूछे. वह एक मध्यवर्गीय, महाराष्ट्रीयन युवती है, यह समझने के बाद तो उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हारी हिम्मत की दाद देता हूं, मोहना… लेकिन अगर तुम्हें सचमुच कलेंडर गर्ल बनना है, तो इतना काफी नहीं है… और एक बार अगर तुम्हारी गाड़ी चल पड़ी, तब तुम्हें आगे बढ़ते रहने से कोई नहीं रोक सकता. सिर्फ थोड़ा और कोऔपरेटिव बनने की जरूरत है…’’

रेड्डी ने व्हिस्की का एक जोरदार सिप लेते हुए सिगार सुलगाई और उसी के धुएं में वे मोहना के चेहरे की तरफ देखने लगे.

रेड्डी को क्या कहना है यह बात समझने के बाद मोहना के मुंह से निकला, ‘‘लेकिन मैं ने तो सोचा था, लड़कियां तो मैरिट पर चुनी जाती हैं…’’

‘‘येस, मैरिट… बट मोर दैन रैंप, मोर इन बैड…’’ रेड्डी ने हंसते हुए कहा और अचानक उठ कर मोहना के पास आ कर उस के दोनों कंधों पर हाथ रखा और अपनी सैक्सी आवाज में कहा, ‘‘जरा सोचो तो मोहना, तुम्हारे भविष्य के बारे में… मौडलिंग असाइनमैंट… हो सकता है फिल्म औफर्स…’’

इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई और वेटर खाने की टे्र ले कर अंदर आया. मोहना उन के हाथ कंधे से दूर करते हुए उठी और उन की आंखों में देख कर उस ने कहा, ‘‘आई एम सौरी, बट आई एम नौट दैट टाइप, रेड्डी साहब,’’ और दूसरे ही पल वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.

उस रात वह डिनर पर भी नहीं गई. रात को नींद भी नहीं आ रही थी. बाकी लड़कियों के हंसने की आवाज रात को देर तक उसे आ रही थी. उस की रूममेट रिया रातभर गायब थी और वह सुबह आई थी.

दूसरे ही दिन उस के हाथ में स्कायलार्क का लैटर था, पहले तो अंतिम दौर के लिए उस का चुनाव हुआ था, लेकिन अब उस का नाम निकाल दिया गया था. वापसी का टिकट भी उसी लैटर के साथ था.

उस के सारे सपने टूट चुके थे. मनमसोस कर मोहना पूना आई थी और श्री के गले में लग कर रो रही थी, ‘‘मेरी… मेरी ही गलती थी, श्री… स्कायलार्क कलेंडर गर्ल बनने का सपना और सुपर मौडल बनने की चाह में मैं ने बाकी चीजों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन यकीन करो मुझ पर, श्री… मैं ने वह लक्ष्मण रेखा कभी भी पार नहीं की… उस के पहले ही मैं पीछे मुड़ गई और वापस लौट आई, अपने वास्तव में, अपने विश्व में तुम्हारा भरोसा है न श्री?’’

श्री ने उसे बांहों में भर लिया…’’ अब 12 महीनों के पन्नों पर सिर्फ तुम्हारे ही फोटोज का कलेंडर मैं छापूंगा, रानी,’’ उस ने हंसते हुए कहा और मोहना रोतेरोते हंसने लगी.

उस की वह हंसी, उस के फोटोशूट की बनावटी हंसी से बहुत ही नैचुरल और मासूमियत भरी थी.

पंछी एक डाल के: रजत का फोन देख कर सीमा क्यों चौंक पड़ी?

‘‘नहीं, नहाने जा रही हूं. इतनी जल्दी फोन? सब ठीक है न?’’

‘‘हां, गुडफ्राईडे की छुट्टी का फायदा उठा कर घर चलते हैं. बृहस्पतिवार की शाम को 6 बजे के बाद की किसी ट्रेन में आरक्षण करवा लूं?’’

‘‘लेकिन 6 बजे निकलने पर रात को फिरोजाबाद कैसे जाएंगे?’’

‘‘रात आगरा के बढि़या होटल में गुजार कर अगली सुबह घर चलेंगे.’’

‘‘घर पर क्या बताएंगे कि इतनी सुबह किस गाड़ी से पहुंचे?’’ सीमा हंसी.

‘‘मौजमस्ती की रात के बाद सुबह जल्दी कौन उठेगा सीमा, फिर बढि़या होटल के बाथरूम में टब भी तो होगा. जी भर कर नहाने का मजा लेंगे और फिर नाश्ता कर के फिरोजाबाद चल देंगे. तो आरक्षण करवा लूं?’’

‘‘हां,’’ सीमा ने पुलक कर कहा.

होटल के बाथरूम के टब में नहाने के बारे में सोचसोच कर सीमा अजीब सी सिहरन से रोमांचित होती रही.

औफिस के लिए सीढि़यां उतरते ही मकानमालिक हरदीप सिंह की आवाज सुनाई पड़ी. वे कुछ लोगों को हिदायतें दे रहे थे. वह भूल ही गई थी कि हरदीप सिंह कोठी में रंगरोगन करवा रहे हैं और उन्होंने उस से पूछ कर ही गुडफ्राईडे को उस के कमरे में सफेदी करवाने की व्यवस्था करवाई हुई थी. हरदीप सिंह सेवानिवृत्त फौजी अफसर थे. कायदेकानून और अनुशासन का पालन करने वाले. उन का बनाया कार्यक्रम बदलने को कह कर सीमा उन्हें नाराज नहीं कर सकती थी.

सीमा ने सिंह दंपती से कार्यक्रम बदलने को कहने के बजाय रजत को मना करना बेहतर सम  झा. बाथरूम के टब की प्रस्तावना थी तो बहुत लुभावनी, अब तक साथ लेट कर चंद्र स्नान और सूर्य स्नान ही किया था. अब जल स्नान भी हो जाता, लेकिन वह मजा फिलहाल टालना जरूरी था.

सीमा और रजत फिरोजाबाद के रहने वाले थे. रजत उस की भाभी का चचेरा भाई था और दिल्ली में नौकरी करता था. सीमा को दिल्ली में नौकरी मिलने पर मम्मीपापा की सहमति से भैयाभाभी ने उसे सीमा का अभिभावक बना दिया था. रजत ने उन से तो कहा था कि वह शाम को अपने बैंक की विभागीय परीक्षा की तैयारी करता है. अत: सीमा को अधिक समय नहीं दे पाएगा, लेकिन असल में फुरसत का अधिकांश समय वह उसी के साथ गुजारता था. छुट्टियों में सीमा को घर ले कर आना तो खैर उसी की जिम्मेदारी थी. दोनों कब एकदूसरे के इतने नजदीक आ गए कि कोई दूरी नहीं रही, दोनों को ही पता नहीं चला. न कोई रोकटोक थी और न ही अभी घर वालों की ओर से शादी का दबाव. अत: दोनों आजादी का भरपूर मजा उठा रहे थे.

सीमा के सु  झाव पर रजत ने शाम को एमबीए का कोर्स जौइन कर लिया था.

कुछ रोज पहले एक स्टोर में एक युवकयुवती को ढेर सारा सामान खरीदते देख कर सीमा ने कहा था, ‘‘लगता है नई गृहस्थी जमा रहे हैं.’’

‘‘लग तो यही रहा है. न जाने अपनी गृहस्थी कब बसेगी?’’ रजत ने आह भर कर कहा.

‘‘एमबीए कर लो, फिर बसा लेना.’’

‘‘यही ठीक रहेगा. कुछ ही महीने तो और हैं.’’

सीमा ने चिंहुक कर उस की ओर देखा. रजत गंभीर लग रहा था. सीमा ने सोचा कि इस बार घर जाने पर जब मां उस की शादी का विषय छेड़ेंगी तो वह बता देगी कि उसे रजत पसंद है.

औफिस पहुंचते ही उस ने रजत को फोन कर के अपनी परेशानी बताई.

‘‘ठीक है, मैं अकेला ही चला जाता हूं.’’

‘‘तुम्हारा जाना जरूरी है क्या?’’

‘‘यहां रह कर भी क्या करूंगा? तुम तो घर की साफसफाई करवाने में व्यस्त हो जाओगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह सीमा ने मम्मी को फोन कर बता दिया कि रंगरोगन करवाने की वजह से वह रजत के साथ नहीं आ रही.

रविवार की शाम को कमरा सजा कर सीमा रजत का इंतजार करने लगी. लेकिन यह सब करने में इतनी थक गई थी कि कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. रजत सोमवार की शाम तक भी नहीं आया और न ही उस ने फोन किया. रात को मम्मी का फोन आया. उन्होंने बताया, ‘‘रजत यहां आया ही नहीं, मथुरा में सुमन के घर है. उस के घर वाले भी वहीं चले गए हैं.’’

सुमन रजत की बड़ी बहन थी. सीमा से भी मथुरा आने को कहती रहती थी. ‘अब इस बार रजत घर नहीं गया है. अत: कुछ दिन बाद महावीर जयंती पर जरूर घर चलना मान जाएगा,’ सोच सीमा ने कलैंडर देखा, तो पाया कि महावीर जयंती भी शुक्रवार को ही पड़ रही है.

लेकिन कुछ देर के बाद ही पापा का फोन आ गया. बोले, ‘‘तेरी मम्मी कह रही है कि तू ने कमरा बड़ा अच्छा सजाया है. अत: महावीर जयंती की छुट्टी पर तू यहां मत आ, हम तेरा कमरा देखने आ जाते हैं.’’

‘‘अरे वाह, जरूर आइए पापा,’’ उस ने चिंहुक कर कह तो दिया पर फिर जब दोबारा कलैंडर देखा तो कोई और लंबा सप्ताहांत न पा कर उदास हो गई.

अगले दिन सीमा के औफिस से लौटने के कुछ देर बाद ही रजत आ गया. बहुत खुश लग रहा था, बोला, ‘‘पहले मिठाई खाओ, फिर चाय बनाना.’’

‘‘किस खुशी में?’’ सीमा ने मिठाई का डब्बा खोलते हुए पूछा.

‘‘मेरी शादी तय होने की खुशी में,’’ रजत ने पलंग पर पसरते हुए कहा, ‘‘जब मैं ने मम्मी को बताया कि मैं बस से आ रहा हूं, तो उन्होंने कहा कि फिर मथुरा में ही रुक जा, हम लोग भी वहीं आ जाते हैं. बात तो जीजाजी ने अपने दोस्त की बहन से पहले ही चला रखी थी, मुलाकात करवानी थी. वह करवा कर रोका भी करवा दिया. मंजरी भी जीजाजी और अपने भाई के विभाग में ही मथुरा रिफायनरी में जूनियर इंजीनियर है. शादी के बाद उसे रिफायनरी के टाउनशिप में मकान भी मिल जाएगा और टाउनशिप में अपने बैंक की जो शाखा है उस में मेरी भी बड़ी आसानी से बदली हो जाएगी. आज सुबह यही पता करने…’’

‘‘बड़े खुश लग रहे हो,’’ किसी तरह स्वर को संयत करते हुए सीमा ने बात काटी.

‘‘खुश होने वाली बात तो है ही सीमा, एक तो सुंदरसुशील, पढ़ीलिखी लड़की, दूसरे मथुरा में घर के नजदीक रहने का संयोग. कुछ साल छोटे शहर में रह कर पैसा जोड़ कर फिर महानगर में आने की सोचेंगे. ठीक है न?’’

‘‘यह सब सोचते हुए तुम ने मेरे बारे में भी सोचा कि जो तुम मेरे साथ करोगे या अब तक करते रहे हो वह ठीक है या नहीं?’’ सीमा ने उत्तेजित स्वर में पूछा.

‘‘तुम्हारे साथ जो भी करता रहा हूं तुम्हारी सहमति से…’’

‘‘और शादी किस की सहमति से कर रहे हो?’’ सीमा ने फिर बात काटी.

‘‘जिस से शादी कर रहा हूं उस की

सहमति से,’’ रजत ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘तुम्हारे और मेरे बीच में शादी को ले कर कोई वादा या बात कभी नहीं हुई सीमा. न हम ने

कभी भविष्य के सपने देखे. देख भी नहीं

सकते थे, क्योंकि हम सिर्फ अच्छे पार्टनर हैं, प्रेमीप्रेमिका नहीं.’’

‘‘यह तुम अब कह रहे हो. इतने उन्मुक्त दिन और रातें मेरे साथ बिताने के बाद?’’

‘‘बगैर साथ जीनेमरने के वादों के… असल में यह सब उन में होता है सीमा, जिन में प्यार होता है और वह तो हम दोनों में है ही नहीं?’’ रजत ने उस की आंखों में देखा.

सीमा उन नजरों की ताब न सह सकी. बोली, ‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो, खासकर मेरे लिए?’’

रजत ठहाका लगा कर हंसा. फिर बोला, ‘‘इसलिए कह सकता हूं सीमा कि

अगर तुम्हें मु  झ से प्यार होता न तो तुम पिछले 4 दिनों में न जाने कितनी बार मु  झे फोन कर चुकी होतीं और मेरे रविवार को न आने के बाद से तो मारे फिक्र के बेहाल हो गई होतीं… मैं भी तुम्हें रंगरोगन वाले मजदूरों से अकेले निबटने को छोड़ कर नहीं जाता.’’

रजत जो कह रहा था उसे   झुठलाया नहीं जा सकता था. फिर भी वह बोली, ‘‘मेरे

बारे में सोचा कि मेरा क्या होगा?’’

‘‘तुम्हारे घर वालों ने बुलाया तो है महावीर जयंती पर गुड़गांव के सौफ्टवेयर इंजीनियर को तुम से मिलने को… तुम्हारी भाभी ने फोन पर बताया कि लड़के वालों को जल्दी है… तुम्हारी शादी मेरी शादी से पहले ही हो जाएगी.’’

‘‘शादी वह भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़की के साथ? मैं लड़की हूं रजत… कौन करेगा मु  झ से शादी?’’

‘‘यह 50-60 के दशक की फिल्मों के डायलौग बोलने की जरूरत नहीं है सीमा,’’ रजत

उठ खड़ा हुआ, ‘‘आजकल प्राय: सभी का ऐसा अतीत होता है… कोई किसी से कुछ नहीं पूछता. फिर भी अपना कौमार्य सिद्ध करने के लिए उस समय अपने बढ़े हुए नाखूनों से खरोंच कर थोड़ा सा खून निकाल लेना, सब ठीक हो जाएगा,’’ और बगैर मुड़ कर देखे रजत चला गया.

रजत का यह कहना तो ठीक था कि उन

में प्रेमीप्रेमिका जैसा लगाव नहीं था, लेकिन उस ने तो मन ही मन रजत को पति मान लिया था. उस के साथ स्वच्छंदता से जीना उस की सम  झ

में अनैतिकता नहीं थी. लेकिन किसी और से शादी करना तो उस व्यक्ति के साथ धोखा होगा और फिर सचाई बताने की हिम्मत भी उस में नहीं थी, क्योंकि नकारे जाने पर जलालत   झेलनी पड़ेगी और स्वीकृत होने पर जीवन भर उस व्यक्ति की सहृदयता के भार तले दबे रहना पड़ेगा.

अच्छा कमा रही थी, इसलिए शादी के लिए मना कर सकती थी, लेकिन रजत के सहचर्य के बाद नितांत अकेले रहने की कल्पना भी असहनीय थी तो फिर क्या करे? वैसे तो सब सांसारिक सुख भोग लिए हैं तो क्यों न आत्महत्या कर ले या किसी आश्रमवाश्रम में रहने चली जाए? लेकिन जो भी करना होगा शांति से सोचसम  झ कर.

उस की चार्टर्ड बस एक मनन आश्रम के पास से गुजरा करती थी. एक दिन उस ने अपने से अगली सीट पर बैठी महिला को कहते सुना था कि वह जब भी परेशान होती है मैडिटेशन के लिए इस आश्रम में चली जाती है. वहां शांति से मनन करने के बाद समस्या का हल मिल जाता है. अत: सीमा ने सोचा कि आज वैसे भी काम में मन नहीं लगेगा तो क्यों न वह भी उस आश्रम चली जाए. आश्रम के मनोरम उद्यान में बहुत भीड़ थी. युवा, अधेड़ और वृद्ध सभी लोग मुख्यद्वार खुलने का इंतजार कर रहे थे. सीमा के आगे एक प्रौढ दंपती बैठे थे.

‘‘हमारे जैसे लोगों के लिए तो ठीक है, लेकिन यह युवा पीढ़ी यहां कैसे आने लगी है?’’ महिला ने टिप्पणी की.

‘‘युवा पीढ़ी को हमारे से ज्यादा समस्याएं हैं, पढ़ाई की, नौकरी की, रहनेखाने की. फिर शादी के बाद तलाक की,’’ पुरुष ने उत्तर दिया.

‘‘लिव इन रिलेशनशिप क्यों भूल रहे हो?’’

‘‘लिव इन रिलेशनशिप जल्दबाजी में की गई शादी, उस से भी ज्यादा जल्दबाजी में पैदा किया गया बच्चा और फिर तलाक से कहीं बेहतर है. कम से कम एक नन्ही जान की जिंदगी तो खराब नहीं होती? शायद इसीलिए इसे कानूनन मान्यता भी मिल गई है,’’ पुरुष ने जिरह की, ‘‘तुम्हारी नजरों में तो लिव इन रिलेशनशिप में यही बुराई है न कि यह 2 लोगों का निजी सम  झौता है, जिस का ऐलान किसी समारोह में नहीं किया जाता.’’

जब लोगों को विधवा, विधुर या परित्यक्तों से विवाह करने में ऐतराज नहीं होता तो फिर लिव इन रिलेशनशिप वालों से क्यों होता है?

तभी मुख्यद्वार खुल गया और सभी उठ कर अंदर जाने लगे. सीमा लाइन में लगने के बजाय बाहर आ गई. उसे अपनी समस्या का हल मिल गया था कि वह उस गुड़गांव वाले को अपना अतीत बता देगी. फिर क्या करना है, उस के जवाब के बाद सोचेगी. कार्यक्रम के अनुसार मम्मीपापा आ गए. उसी शाम को उन्होंने सौफ्टवेयर इंजीनियर सौरभ और उस के मातापिता को बुला लिया.

‘‘आप से फोन पर तो कई महीनों से बात हो रही थी, लेकिन मुलाकात का संयोग आज बना है,’’ सौरभ के पिता ने कहा.

‘‘आप को चंडीगढ़ से बुलाना और खुद फिरोजाबाद से आना आलस के मारे टल रहा था लेकिन अब मेरे बेटे का साला रजत जो दिल्ली में सीमा का अभिभावक है, यहां से जा रहा है, तो हम ने सोचा कि जल्दी से सीमा की शादी कर दें. लड़की को बगैर किसी के भरोसे तो नहीं छोड़ सकते,’’ सीमा के पापा ने कहा.

सौरभ के मातापिता एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराए फिर सौरभ की मम्मी हंसते हुए बोलीं, ‘‘यह तो हमारी कहानी आप की जबानी हो गई. सौरभ भी दूर के रिश्ते की कजिन वंदना के साथ अपार्टमैंट शेयर करता था, इसलिए हमें भी इस के खानेपीने की चिंता नहीं थी. मगर अब वंदना अमेरिका जा रही है. इसे अकेले रहना होगा तो इस की दालरोटी का जुगाड़ करने हम भी दौड़ पड़े.’’

कुछ देर के बाद बड़ों के कहने पर दोनों बाहर छत पर आ गए.

‘‘बड़ों को तो खैर कोई शक नहीं है, लेकिन मु  झे लगता है कि हम दोनों एक ही मृगमरीचिका में भटक रहे थे…’’

‘‘इसीलिए हमें चाहिए कि बगैर एकदूसरे के अतीत को कुरेदे हम इस बात को यहीं खत्म कर दें,’’ सीमा ने सौरभ की बात काटी.

‘‘अतीत के बारे में तो बात यहीं खत्म कर देते हैं, लेकिन स्थायी नीड़ का निर्माण मिल कर करेंगे,’’ सौरभ मुसकराया.

‘‘भटके हुए ही सही, लेकिन हैं तो हम पंछी एक ही डाल के,’’ सीमा भी प्रस्ताव के इस अनूठे ढंग पर मुसकरा दी.

और प्यार जीत गया: क्या देवयानी अपनी बेटी का प्यार दिलवा पाई?

देवयानी को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? जिस दोराहे पर 25 साल पहले वह खड़ी थी, आज फिर वही स्थिति उस के सामने थी. फर्क सिर्फ यह था कि तब वह खुद खड़ी थी और आज उस बेटी आलिया थी. उस का संयुक्त परिवार होने के बावजूद उसे रास्ता सुनने वाला कोई नहीं था. पति सुमित तो परिवार की जिम्मेदारियों के बो?ा से दबे रहने वाले शख्स थे. उन से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार था. शादी के बाद से आज तक उन्होंने कभी एक अच्छा पति होने का एहसास नहीं कराया था.

घंटों कारोबार में डूबे रहना उन की दिनचर्या थी.प्यार के 2 बोल सुनने को तरस गई थी वह. घर के राशन से ले कर अन्य व्यवस्थाओं तक का जिम्मा उस पर था. वह जब भी कोई काम कहती सुमित कहते, ‘‘तुम जानो, रुपए ले लो, मु?ो डिस्टर्ब मत करो.’’संयुक्त परिवार में देवयानी को हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती. भाइयों और परिवार में सुमित के खुद को उच्च आदर्श वाला साबित करने के चक्कर में कई बार देवयानी अपने को कटघरे में खड़ा पाती. तब उस का रोमरोम चीत्कार उठता. 25 वर्षों में उस ने जो ?ोला, उस में स्थिति तो यही थी कि वह खुद कोई निर्णय ले और अपना फैसला घर वालों को सुनाए.

इस वक्त देवयानी के एक तरफ उस का खुद का अतीत था, तो दूसरी तरफ बेटी आलिया का भविष्य.उसे अपना अतीत याद हो गया. वह स्कूल के अंतिम वर्ष में थी कि महल्ले में नएनए आए एक कालेज लैक्चरर के बेटे अविनाश भटनागर से उस की नजरें चार हो गईं. दोनों परिवारों में आनाजाना बढ़ा, तो देवयानी और अविनाश की नजदीकियां बढ़ते लगीं. दोनों का काफी वक्त साथसाथ गुजरने लगा. अत्यंत खूबसूरत देवयानी यौवन की दहलीज पर थी और अविनाश उसकी ओर जबरदस्त रूप से आकर्षित था. वह उस के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता. अत्यंत कुशाग्र अविनाश पढ़ाई में भी देवयानीकी मदद करता और जबतब मौका मिलते हीकोई न कोई गिफ्ट भी देता. वह अविनाश केप्यार में खोई रहने के बावजूद अपनी पढ़ाई में अव्वल आ रही थी. दिन, महीने, साल बीतरहे थे.देवयानी स्कूल से कालेज में आ गई. वह दिनरात अविनाश के ख्वाब देखती. उस के घर वाले इस सब से बेखबर थे.

उन्हें लगता था कि अविनाश सम?ादार लड़का है. वह देवयानी की मदद करता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन उन का यह भ्रम तब टूटा, जब एक रात एक अजीब घटना हो गई. अविनाश ने देवयानी के नाम एक लव लैटर लिखा और एक पत्थर से बांध कर रात में देवयानी के घर की चारदीवारी में फेंका. उसी वक्त देवयानी के पिता वहां बने टौयलेट में जाने के लिए निकले. अचानक पत्थर आ कर गिरने से वे चौंके और देखा तो उस पर कोई कागज लिपटा हुआ था. उन्होंने उसे उठाया और वहीं खड़े हो कर पढ़ने लगे. ज्योंज्यों वेपत्र पढ़ते जा रहे थे. उन की त्योरियां चढ़ती जा रही थीं.देवयानी के पापा ने गली में इधरउधर देखा, कोई नजर नहीं आया. गली में अंधेरा छाया हुआ था, क्योंकि स्ट्रीट लाइट इन दिनों खराब थी. उस वक्त रात का करीब 1 बज रहा था और घर में सभी सदस्य सो रहे थे.

उन्हें अपनी बेटी पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन इतनी रात गए वे कोई हंगामा नहीं करना चाहते थे. वे अपने बैडरूम में आए उन की पत्नी इस सब से बेखबर सो रही थी. वे उस की बगल में लेट गए, लेकिन उन की आंखों में नींद न थी. उन्हें अपनी इस लापरवाही पर अफसोस हो रहा था कि देवयानी की हरकतों और दिनचर्या पर नजर क्यों नहीं रखी? खत में जो कुछ लिखा था, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि देवयानी और अविनाश एकदूसरे के प्यार में डूबे हैं.देवयानी के पापा फिर सो नहीं पाए. रातभर उन्होंने खुद पर नियंत्रण किए रखा, लेकिन जैसे ही देवयानी उठी उन के सब्र का बांध टूट गया. वह अपनी छोटी 2 बहनों और 2 भाइयों के साथ चाय पी रही थी कि उसे पापा का आदेश हुआ कि चाय पी कर मेरे कमरे में आओ.‘‘ये क्या है देवयानी?’’ उस के आते ही अविनाश का खत उस की तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने पूछा.

‘‘क्या है पापा?’’ उस ने कांपती आवाज में पूछा और फोल्ड किए हुए खत को खोल कर देखा, तो उस का कलेजा धक रह गया. अविनाश का खत, पापा के पास. कांप गई वह. गला सूख गया उस का. काटो तो खून नहीं.‘‘क्या है ये…’’ पापा जोर से चिल्लाए.‘‘पा…पा…,’’ उस के गले से बस इतना ही निकला. वह सम?ा गई कि आज घर में तूफान आने वाला है. बुत बनी खड़ी रह गई वह. घबराहट में कुछ बोल नहीं पाई और आंखों से अश्रुधारा बह निकली.‘‘शर्म नहीं आती तु?ो,’’ पापा फिर चिल्लाए तो मां भी कमरे में आ गईं.‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो सुबहसुबह?’’ मां ने पूछा.‘‘ये देख अपनी लाडली की करतूत,’’ पापा ने देवयानी के हाथ से खत छीनते हुए कहा.‘‘क्या है ये?’’‘‘खुद देख ले ये क्याक्या गुल खिला रही है. परिवार की इज्जत, मानमर्यादा का जरा भी खयाल नहीं है इस को.’’मां ने खत पढ़ा तो उन का माथा चकरा गया. वे धम्म से बैड पर बैठ गईं.’’‘‘यह क्या किया बेटी?

तूने बहुत गलत काम किया. तु?ो यह सब नहीं करना चाहिए था. तु?ो पता है तू घर में सब से बड़ी है. तूने यह नहीं सोचा कि तेरी इस हरकत से कितनी बदनामी होगी. तेरे छोटे भाईबहनों पर क्या असर पड़ेगा. उन के रिश्ते नहीं होंगे,’’ मां ने बैड पर बैठेबैठे शांत स्वर में कहा तो देवयानी खुद को रोक नहीं पाई. वह मां से लिपट कर रो पड़ी. पापा के दुकान पर जाने के बाद मां ने देवयानी को अपने पास बैठाया और बोलीं, ‘‘बेटा, भूल जा उस को. जो हुआ उस पर यहीं मिट्टी डाल दे. मैं सब संभाल लूंगी.’’‘‘नहीं मां, हम दोनों एकदूसरे को बहुतप्यार करते हैं,’’ देवयानी ने हिम्मत जुटा कर मां से कहा.‘‘नहीं बेटा, इस प्यारव्यार में कुछ नहीं धरा. वह तेरे काबिल नहीं है देवयानी.’’‘‘क्यों मां, क्यों नहीं है मेरे काबिल? मैं ने उसे 2 साल करीब से देखा है. वह मेरा बहुत खयाल रखता है. बहुत प्यार करता है वह भीमु?ा से.’’‘‘बेटा, वे लोग अलग जाति के हैं. उन का खानपान उन के जिंदगी जीने के तरीके हम से बिलकुल अलग है,’’ मां ने देवयानी को सम?ाने की कोशिश की.‘‘पर मां, अविनाश मेरे लिए सब कुछ बदलने को तैयार है. उस के मम्मीपापा भीबहुत अच्छे हैं,’’ देवयानी मां से तर्कवितर्क कर रही थी.‘‘और तूने सोचा है कि तेरे इस कदम से तेरे छोटेभाई बहनों पर क्या असर पडे़गा? रिश्तेदार, परिवार वाले क्या कहेंगे?

नहीं देवयानी, तुम भूल जाओ उस को,’’ मां ने फैसला सुनाया.पापा ने कड़ा फैसला लेते हुए देवयानीकी शादी दिल्ली के एक कारोबारी के बेटेसुमित के साथ कर दी. लेकिन वह अविनाश को काफी समय तक भुला नहीं पाई. शादी के बाद वह संयुक्त परिवार में आई तो ननदों, जेठानियों और बच्चों के बड़े परिवार में उस का मनलगता गया. एक बेटी आलिया और एक बेटे अंकुश का जन्म हुआ, तो वह धीरेधीरे अपनी जिम्मेदारियों में खो गई. लेकिन अविनाश अबभी उस के दिल के किसी कोने में बसा हुआ था. उसे कसक थी कि वह अपने प्यार से शादी नहीं कर पाई.देवयानी अपने अतीत और वर्तमान में ?ाल रही थी. उस की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने घड़ी में टाइम देखा. 3 बज रहे थे. पौ फटने वाली थी. उस के बगल में पति सुमित सो रहे थे. आलिया और अंकुश अपने रूम में थे.देवयानी को आलिया और तरुण के बीच चल रहे प्यार का एहसास कुछ दिन पूर्व ही हुआ था, आलिया के सहपाठी तरुण का वैसे तो उन के घर आनाजाना था, लेकिन देवयानी ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. वह एक मध्यवर्गीय परिवार से वास्ता रखता था. उस के पापा एक बैंक में मैनेजर थे.

हैसियत के हिसाब से देखा जाए, तो उस का परिवार देवयानी के परिवार के सामने कुछ भी नहीं था. लेकिन आजकल स्कूलकालेज में पढ़ने वाले बच्चे जातपांत और गरीबीअमीरी से ऊपर उठ कर स्वस्थ सोच रखते हैं. तरुण ने आलिया के साथ ही बीकौम किया और एक यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक विभाग में नौकरी लग गया था. जबकि आलिया अभी और आगे पढ़ना चाहती थी. उस दिन आलिया बाथरूम में गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. देवयानी ने देखा मोबाइल स्क्रीन पर तरुण कानाम आ रहा था. उस ने काल को औन कर मोबाइल को कान पर लगाया ही था कि उधरसे तरुण की चहकती हुई आवाज आई,‘‘हैलो डार्लिंग, यार कब से काल कर रहा हूं, कहां थीं?’’देवयानी को सम?ा में नहीं आया कि वह क्या बोले तो बस सुनती रही. तरुण बोले जारहा था.‘‘क्या हुआ जान, बोल क्यों नहीं रहीं, अभी भी नाराज हो? अरे यार, इस तरह के वीडियो चलते हैं आजकल. मेरे पास आया, तो मैं ने तु?ो भेज दिया. मु?ो पता है तुम्हें ये सब पसंद नहीं, सो सौरी यार.’’‘‘हैलो तरुण, मैं आलिया की मम्मी बोल रही हूं. वह बाथरूम में है.’’‘‘ओह सौरी आंटी, वैरी सौरी. मैं ने सोचा. आलिया होगी.’’‘‘बाथरूम से आती है, तो कह दूंगी,’’कहते हुए देवयानी ने काल डिसकनैक्ट कर दी. लेकिन उस के मन में तरुण की काल ने उथलपुथल मचा दी. उस से रहा नहीं गया तोउस ने आलिया के माबोइल में वाट्सएप कोखोल लिया. तो वह आलिया के बाथरूम से निकलने से पहले इसे पढ़ लेना चाहती थी.दोनों ने खूब प्यार भरी बातें लिख रही थीं और आलिया ने तरुण के साथ हुई एकएक बात को लंबे समय से सहेज कर रखा हुआ था. दोनोंबहुत आगे बढ़ चुके थे.

देवयानी को 25 साल पहले का वह दिन याद हो आया, जब उस के पापा ने अविनाशका लिखा लव लैटर पकड़ा था. सब कुछ वही था, जो उस के और अविनाश के बीच था. प्यार करने वालों की फीलिंग शायद कभी नहीं बदलती, जमाना चाहे कितना बदल जाए. एक फर्क यह था कि पहले कागज पर दिल की भावनाएं शब्दों के रूप में आकार लेती थीं, अब मोबाइल स्क्रीन पर. तब लव लैटर पहुंचाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते थे, अब कितना आसान हो गया है.देवयानी कई दिनों से देख रही थी कि आलिया के खानेपीने, सोनेउठने की दिनचर्या बदल गई थी. अब उसे सम?ा आ रहा था कि आलिया और तरुण के बीच जो पक रहा था, उस की वजह से ही यह सब हो रहा था.देवयानी ने फैसला किया कि वह अपनी बेटी की खुशियों के लिए कुछ भी करेगी. उसने आलिया से उसी दिन पूछा, ‘‘बेटी, तुम्हारे और तरुण के बीच क्या चल रहा है?’’‘‘क्या चल रहा है मौम?’’ आलिया ने अनजान बनतेहुए कहा.

‘‘मेरा मतलब प्यारव्यार.’’‘‘नहीं मौम, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’‘‘मु?ा से ?ाठ मत बोलना. मैं तुम्हारी मां हूं. मैं ने तुम्हारे मोबाइल में सब कुछ पढ़ लिया है.’’‘‘क्या पढ़ा, कब पढ़ा? यह क्या तरीका है मौम?’’ ‘‘देखो बेटा, मैं तुम्हारी मां हूं, इसलिए तुम्हारी शुभचिंतक भी हूं. मु?ो मां के साथसाथ अपनी फै्रंड भी सम?ो.’’‘‘ओके,’’ आलिया ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘‘मैं तरुण से प्यार करती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’‘‘लेकिन बेटा क्या तुम उस के साथ ऐडजस्ट कर पाओगी? तरुण तो मुश्किल से20-25 हजार रुपए महीना कमाता होगा. क्या होगा इतने से.’’ ‘‘मौम आप टैंशन मत लें. हम दोनों ऐडजस्ट कर लेंगे. शादी के बाद मैं भी जौब करूंगी,’’ आलिया ने कहा.‘‘तुम्हें पता है जौब क्या होती है, पैसे कहा से, कैसे आते हैं?’’‘‘हां मौम, आप सही कह रही हैं. मु?ो अब तक नहीं पता था, लेकिन अब सीख रही हूं. तरुण भी मु?ो सब बताता है.’’‘‘हम कोई मदद करना चाहें उस की… उस को अच्छा सा कोई बिजनैस करा दें तो…?’’‘‘नहीं मौम, तरुण ऐसा लड़का नहीं है. वह कभी अपने ससुराल से कोई मदद नहीं लेगा. वह बहुत खुद्दार किस्म का लड़का है. मैं ने गहराई से उसे देखासम?ा है.’’‘‘पर बेटा परिवार में सब को मनाना एकएक बात बताना बहुत मुश्किल हो जाएगा. कैसे होगा यह सब…?’’ मां ने आलिया के समक्ष असमर्थता जताते हुए कहा.‘‘मु?ो कोई जल्दी नहीं है मां… मैंवेट करूंगी.’’देवयानी के समक्ष अजीब दुविधा थी.वह बेटी को उस का प्यार कैसे सौंपे? पहली अड़चन पति सुमित ही थे. फिर उन के भाई यानी आलिया के चाचाताऊ कैसे मानेंगे? तरुण व आलिया परिवारों के स्टेटस में दिनरात जैसाअंतर था. फिर भी देवयानी ठान चुकी थी कियह शादी करवा कर रहेगी. उस ने अपने स्तरपर भी तरुण और उस के परिवार के बारे मेंपता लगाया. सब ठीक था.

सब अच्छे वनेकदिल इंसान और उच्च शिक्षित थे. कमी थीतो बस एक ही कि धनदौलत, कोठीबंगलानहीं था.एक रात मौका देख कर देवयानी नेसुमित के समक्ष आलिया की शादी की बातरखी, ‘‘वह शादी लायक हो गई है, आप नेकभी ध्यान दिया? उस की फैं्रड्स की शादियांहो रही हैं.’’ ‘‘क्या जल्दी है, 1-2 साल बाद भी कर सकते हैं. अभी तो 24 की हीहुई है.’’‘‘24 की उम्र कम नहीं होती सुमित.’’‘‘तो ठीक है, लेकिन अब रात को ही शादी कराएंगी क्या उस की? मेरी जेब में लड़का है क्या, जो निकाल कर उस की शादी करवा दूंगा?’’‘‘लड़कातो है.’’‘‘कौन है?’’‘‘तरुण, आलियाका फ्रैंड. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. अच्छी अंडरस्टैंडिंग है दोनों में.’’‘‘वह बैंक मैनेजर का बेटा,’’ सुमित उखड़ गए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या देवयानी?’’‘‘बिलकुल नहीं हुआहै. जो कह रही हूं बहुत सोचसम?ा कर दोनों के हित के लिए कह रही हूं. वह आलिया को खुश रखेगा, बस इतना कह सकती हूृं.’’

देवयानी ने उस रात अपने पति सुमित को तकवितर्क और नए जमाने की आधुनिक सोच का हवाला दे कर अपने पक्ष में कर लिया. उसे लगा एक बड़ी बाधा उस ने पार कर ली है. अब बारी थी परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष दीवार बन कर खड़ा होने की. उस ने अपनी  सास, देवर और जेठानियों के समक्ष अपना मजबूत पक्ष रखा. उस ने यह भी कहा कि अगर आप तैयार न हुए, तो वह घर से भाग कर शादी कर लेगी तो क्या करोगे? फिर तो चुप ही रहना पड़ेगा. और अगर दोनों बच्चों ने कुछ कर लिया तो क्या करोगे? जीवन भर पछताओगे. इस से तो अच्छा है कि हम अपनी सहमति से दोनों की शादी कर दें. और एक एक दिन वह आ गया जब आलिया और तरुण की शादी पक्की हो गई. शादी वाले दिन जब आलिया अग्नि के समक्ष तरुण के साथ फेरे ले रही थी अग्नि से उठते धुएं ने देवयानी की आंखों से अश्रुधारा बहा दी. इस अश्रुधारा में उसे अपने पुराने ख्वाब पूरे होते हुए नजर आए. उसे लगा कि 25 साल बाद उस का प्यार जीत रहा है.

अंतिम मिलन: क्यों जाह्नवी को नहीं मिल पाया वह

“मेरी एक तमन्ना है. वादा करो तुम पूरा करोगे उसे. ” जान्हवी ने मेरे चेहरे पर अपनी निगाहें टिका दी थी .

“बताओ न. कुछ भी हो जाए तुम्हारी हर तमन्ना पूरी करना मेरे जीवन का मकसद है. तुम बोल कर तो देखो.” मैं पूरे जोश में था .

” तो ठीक है मैं बताती हूं. वह मेरे करीब सरक आई थी. उस की आंखों में मेरे लिए प्यार का सागर लहरा रहा था. मैं देख सकता था उस की शांत, खुशनुमा और झील सी नीली आंखों में बस एक ही गूंज थी. मेरे प्यार की गूंज …  मेरी बाहों में समा कर हौले से उस ने मेरे लबों को छू लिया था.

वह पल अदितीय था. जिंदगी का सब से खूबसूरत और कीमती लम्हा जो कुछ देर तक यूं ही ठहरा रहा था हम दोनों की बाहों के दरमियां… और फिर वह खिलखिलाती हुई अलग हो गई और बोली,” बस यह जो लम्हा था न, यही लम्हा अपनी जिंदगी के अंतिम समय में महसूस करना चाहती हूं. वादा करो कभी मैं तुम्हें छोड़ कर जाने वाली होउ तो तुम मेरे करीब रहोगे. तुम्हारी बाहों में ही मेरा दम निकले इसी प्यार के साथ.”

उस की बातों ने मेरी रूह को छू लिया था. तड़प कर कहा था मैं ने,” वादा करता हूं. पर ऐसा समय आने ही नहीं दूंगा. तुम्हारे साथ में भी चलाई जाऊंगा न. अकेला जी कर क्या करूंगा.” मैं ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया था.

उस के जाने के एहसास भर से मेरी रूह कांप उठी थी. बहुत प्यार करता हूं मैं उसे. मेरी जान है मेरी जान्हवी.

कॉलेज में पहले दिन पहली लड़की जिस पर मेरी नजरें गई थी वह जान्हवी ही थी. एक नजर देखा और देखता ही रह गया था. कहते हैं न पहली नजर का प्यार जो अब तक मैं ने फिल्मों में ही देखा था. पर इस बात को मैं हमेशा हंसीमजाक में लेता था . पर जब यह मेरे साथ हुआ तो पता लगा कि आंखोंआंखों में कैसे आप किसी के बन जाते हो हमेशा के लिए . जान्हवी और मेरी दोस्ती पूरे कॉलेज में मशहूर थी. मेरे घर वालों ने भी हमारे प्यार को सहजता से मंजूरी दे दी थी. मैं मेडिकल की पढ़ाई करने न्यूयौर्क चला गया और पीछे से जान्हवी यहीं रह गई दिल्ली में . हम कुछ साल एकदूसरे से दूर रहे थे पर दिल से एक दूसरे से जुड़े रहे थे.

मैं पढ़ाई कर के लौटा तो जल्दी ही एक अच्छे हॉस्पिटल में जॉब मिल गई. जान्हवी ने भी एक कंपनी ज्वाइन कर ली थी . अब हम ने देर नहीं की और शादी कर ली. बड़ी खुशहाल जिंदगी जी रहे थे हम .

एक दिन सुबहसुबह जान्हवी मेरी बाहों में समा गई और धीरे से बोली,” तो मिस्टर आप तैयार हो जाइए. जल्दी ही आप को घोड़ा बनना पड़ेगा.”

उस की ऐसी अजीब सी बात सुन कर मैं चौंक उठा,” ये क्या कह रही हो ? घोड़ा और मैं ? क्यों ?”

“अपने बेटे की जिद पूरी नहीं करोगे?” बोलते हुए शरमा गई थी जान्हवी. मुझे बात समझ में आ गई थी. खुशी से बावला हो कर मैं झूम उठा और उसे माथे पर एक प्यारा सा किस दिया. उस के हाथों को थाम कर मैं ने कहा,” आज तुम ने मुझे दुनिया की सब से बड़ी खुशी दे दी है. आई लव यू .”

इस के बाद तो हम दोनों एक अलग ही दुनिया में पहुंच गए. हमारे बीच अपनी बातें कम और बच्चे की बातें ज्यादा होने लगी थी. बच्चे के लिए क्या खरीदना है, कैसे रखना है, वह क्या बोलेगा, क्या करेगा जैसी बातों में हम घंटों गुजार देते. वैसे डॉक्टर होने की वजह से मेरे पास अधिक समय नहीं होता था फिर भी जब भी मौका मिलता तो मैं आने वाले बेबी के लिए कुछ न कुछ खरीद लाता था. बच्चे के सामानों से एक पूरा कमरा भर दिया था मैं ने . जान्हवी का पूरा ख्याल रखना, उसे सही डाइट और दवाइयां देना, उस के करीब बैठे रह कर भविष्य के सपने देखना, यही सब अच्छा लगने लगा था मुझे .

समय पंख लगा कर उड़ने लगा. जान्हवी की प्रेगनेंसी के 5 महीने बीत चुके थे. हम खुशियों के पल संजोय जा रहे थे. पर हमें कहां पता था कि हमारी खुशियों के सफर को एक बड़ा धक्का लगने वाला है. ऐसा समय आने वाला है जब तिनकेतिनके हमारी खुशियां बिखर जाएंगी.

वह मार्च 2020 का महीना था. सारा विश्व कोरोना के कहर से आक्रांत था . भारत में भी तेजी से कोरोना ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए थे. मैं ने जान्हवी को घर से न निकलने की सख्त हिदायत दी थी. डॉक्टर होने के नाते मुझे हॉस्पिटल में काफी समय गुजारना पड़ रहा था. इसलिए मैं ने उस की मम्मी को अपने यहां बुला लिया था. ताकि वे मेरे पीछे से जान्हवी की देखभाल कर सकें.

इसी बीच एक दिन मुझे पता चला कि दोपहर में जानवी की एक सहेली उस से मिलने आई थी. जान्हवी उस दिन बहुत खुश थी, बचपन की सहेली प्रिया से मिल कर . जान्हवी ने जब बताया कि प्रिया 2 दिन पहले ही वाशिंगटन से लौटी है तो मैं चिंतित हो उठा और बोल पड़ा,” यह ठीक नहीं हुआ जान्हवी. तुम्हें पता है न विदेश से लौट रहे लोग ही बीमारी के सब से बड़े वाहक हैं. तुम्हें उस;के पास नहीं जाना चाहिए था जान्हवी.”

” अच्छा तो तुम यह कह रहे हो कि मेरी सहेली जो मेरी प्रेगनेंसी और शादी की बधाई देने मेरे घर आई उसे मैं दरवाजे पर ही रोक देती कि नहीं तुम अंदर नहीं आ सकती. मुझसे मिल नहीं सकती. ये क्या कह रहे हो अमन.”

“मैं ठीक ही कह रहा हूं जान्हवी.  तुम डॉक्टर की बीवी हो. तुम्हें पता है न हमारे देश में भी कोरोना के मरीज पाए जाने लगे हैं और भारत में यह बीमारी बाहर से ही आ रही है . पर वह वुहान से नहीं वाशिंगटन से आई थी. फिर मैं ने उस के हाथ भी धुलवाए थे.”

“जो भी हो जान्हवी मेरा दिल कह रहा है तुम ने ठीक नहीं किया. तुम प्रेगनेंट हो. तुम्हें ज्यादा खतरा है . वायरस केवल हाथ में ही नहीं कपड़ों में भी होते हैं . उस ने एक बार भी खांसा होगा तो भी वायरस तुम्हें मिलने का खतरा है . देखो आइंदा ऐसी गलती भूल कर भी मत करना मेरी खातिर. ” मैं ने उसे समझाया.

“ओके, अब कभी नहीं.”

उस दिन बात आई गई हो गई. इस बीच मेरा समय पर घर लौटना मुश्किल होने लगा क्यों कि ज्यादा से ज्यादा समय मुझे हॉस्पिटल में ही गुजारना पड़ रहा था.

और फिर अचानक देश में लॉकडाउन हो गया. मैं 5- 7 दिनों तक घर नहीं जा पाया. केवल फोन पर जान्हवी का हालचाल लेता रहा . कोरोना मरीजों के बीच रहने के कारण मैं खुद घर जाने से बच रहा था. क्यों कि मैं नहीं चाहता था कि मुझ से जान्हवी तक यह वायरस पहुंच जाए. इस बीच एक दिन मुझे फोन पर जान्हवी की तबीयत खराब लगी. मैं ने पूछा तो उस ने स्वीकार किया कि 2- 3 दिनों से उसे सूखी खांसी है और बुखार भी चल रहा है . वह बुखार की साधारण दवाईयां खा कर ठीक होने का प्रयास कर रही थी . अब उसे सांस लेने में भी थोड़ी दिक्कत होने लगी थी .

मैं बहुत घबरा गया. ये सारे लक्षण तो कोरोना के थे . मेरे हाथपैर फूल गए थे. एक तरफ जान्हवी प्रेग्नेंट थी और उस पर यह खौफनाक बीमारी. मैं ने उसे तुरंत इमरजेंसी में अस्पताल में एडमिट कराया. जांच कराई तो वह कोरोना पॉजिटिव निकली. 24 घंटे मैं उस पर नजर रख रहा था और उस की देखभाल में लगा हुआ था. मगर हालात बिगड़ते ही जा रहे थे. उस पर कोई भी दवा असर नहीं कर रही थी और फिर एक दिन हमारी मेडिकल टीम ने यह अनाउंस कर दिया कि जान्हवी को बचाना अब संभव नहीं है.

वह पल मेरे लिए इतना सदमा भरा था कि वहीं बैठा हुआ मैं फूटफूट कर रो पड़ा . जान्हवी जो मेरी जान मेरी जिंदगी है, मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती है ? काफी देर तक मैं भीगी पलकों के साथ जुड़वत् बैठा रहा.

शुरू से ले कर अब तक की जान्हवी की हर एक बात मुझे याद आ रही थी और फिर अचानक मुझे वह वादा याद आया जो मुझ से जान्हवी ने लिया था. अंतिम समय में करीब रहने का वादा. बाहों में भर कर विदा करने का वादा.

मैं जानता था कोरोना के कारण मौत होने पर मरीज की बॉडी भी घरवालों को नहीं दी जाती. पेशेंट को मरने से पहले प्लास्टिक कवर से ढक दिया जाता है. मैं जानता था कि वह समय आ गया है जब जान्हवी को मैं कभी देख नहीं सकूंगा. छू नहीं सकूंगा. पर अपना वादा जरुर पूरा करूंगा . मैं ने फैसला कर लिया था.

मैं जान्हवी के बेड से थोड़ी दूरी पर दूसरे डॉक्टरों और नर्सों के साथ खड़ा था. सब परेशान थे . तभी मैं ने अपना गाउन उतारा, ग्लव्स हटाए , आंखों को आजाद किया और फिर मास्क भी हटाने लगा. मुझे ऐसा करने से सभी रोक रहे थे. एक डॉक्टर ने तो मुझे पकड़ भी लिया. मगर मैं रुका नहीं.

मैं जानता था अभी नहीं तो फिर कभी नहीं. मैं आगे बढ़ा . अपनी जान्हवी के करीब उस के बेड पर बैठ गया. मैं ने उस के हाथों को थामा . बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी उनींदी आंखें खोली. 2-4 पल को मैं उसे निहारता रहा और वह मुझे निहारती रही. फिर मैं ने उस के लबों को छुआ और उसे अपनी बाहों का सहारा दिया. हम हम दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे.

तभी जान्हवी एकदम से अलग हो गई और अपनी कमजोर आवाज से इशारे से अपने होठों पर उंगली रख कर कहने लगी,” नो अमन नो . प्लीज गो . गो अमन गो… आई लव यू .”

“आई लव यू टू …” कह कर मैं ने एक बार फिर उसे छुआ और उस की जिद की वजह से उठ कर चला आया.

मेरे साथी डॉक्टरों ने तुरंत मुझे सैनिटाइजर दिया . हाथों के साथ मेरे होठों को भी सैनिटाइज कराया गया. मुझे तुरंत नहाने के लिए भेजा गया.

नहाते हुए मैं फूटफूट कर रो रहा था. क्योंकि मैं जानता था कि जान्हवी के साथ यह मेरा अंतिम मिलन था.

सामंजस्य: क्या रमोला औफिस और घर में सामंजस्य बिठा पाई?

रमोला के हाथ जल्दीजल्दी काम निबटा रहे थे, पर नजरें रसोई की खिड़की से बाहर गेट की तरफ ही थीं. चाय के घूंट लेते हुए वह सैंडविच टोस्टर में ब्रैड लगाने लगी.

‘‘श्रेयांश जल्दी नहा कर निकलो वरना देर हो जाएगी,’’ उस ने बेटे को आवाज दी.

‘‘मम्मा, मेरे मोजे नहीं मिल रहे.’’

मोजे खोजने के चक्कर में चाय ठंडी हो रही थी. अत: रमोला उस के कमरे की तरफ भागी. मोजे दे कर उस का बस्ता चैक किया और फिर पानी की बोतल भरने लगी.

‘‘चलो बेटा दूध, कौर्नफ्लैक्स जल्दी खत्म करो. यह केला भी खाना है.’’

‘‘मम्मा, आज लंचबौक्स में क्या दिया है?’’

श्रेयांश के इस सवाल से वह घबराती थी. अत: धीरे से बोली, ‘‘सैंडविच.’’

‘‘उफ, आप ने कल भी यही दिया था. मैं नहीं ले जाऊंगा. रेहान की मम्मी हर दिन उसे बदलबदल कर चीजें देती हैं लंचबौक्स में,’’ श्रेयांश पैर पटकते हुए बोला.

‘‘मालती दीदी 2 दिनों से नहीं आ रही है. जिस दिन वह आ जाएगी मैं अपने राजा बेटे को रोज नईनई चीजें दिया करूंगी उस से बनवा कर. अब मान जा बेटा. अच्छा ये लो रुपए कैंटीन में मनपसंद का कुछ खा लेना.’’

रेहान की गृहिणी मां से मात खाने से बचने का अब यही एक उपाय शेष था. सोचा तो था कि रात में ही कुछ नया सोच श्रेयांश के लंचबौक्स की तैयारी कर के सोएगी पर कल दफ्तर से लौटतेलौटते इतनी देर हो गई कि खाना बाहर से ही पैक करा कर लेती आई.

खिड़की के बाहर देखा. गेट पर कोई आहट नहीं थी. घड़ी देखी 7 बज रहे थे. स्कूल बस आती ही होगी. बेटे को पुचकारते हुए जल्दीजल्दी सीढि़यां उतरने लगी.

ये बाइयां भी अपनी अहमियत खूब समझती हैं. अत: मनमानी करने से बाज नहीं आती हैं. मालती पिछले 3 सालों से उस के यहां काम कर रही थी. सुबह 6 बजे ही हाजिर हो जाती और फिर रमोला के जाने के वक्त 9 बजे तक लगभग सारे काम निबटा लेती. वह खाना भी काफी अच्छा बनाती थी. उसी की बदौलत लंचबौक्स में रोज नएनए स्वादिष्ठ व्यंजन रहते थे. शाम 6 बजे उस के दफ्तर से लौटते वह फिर हाजिर हो जाती. चाय के साथ मालती कुछ स्नैक्स भी जरूर थमाती.

मालती की बदौलत ही रमोला घर के कामों से बेफिक्र रहती थी और दफ्तर में अच्छा काम कर पाती. नतीजा 3 सालों में 2 प्रमोशन. अब तो वह रोहन से दोगुनी सैलरी पाती थी. परंतु अब मालती के न होने पर काम के बोझ तले उस का दम निकले जा रहा था. बढ़ती सैलरी अपने साथ बेहिसाब जिम्मेदारियां ले कर आ गई थी. हां, साथ ही साथ घर में सुखसुविधाएं भी बढ़ गई थीं. तभी रोहन और रमोला इस पौश इलाके में इतने बड़े फ्लैट को खरीद पाने में सक्षम हुए थे.

मालती के रहते उसे कभी किसी और नौकर या दूसरी कामवाली की जरूरत महसूस नहीं हुई थी. लगभग उसी की उम्र की औरत होगी मालती और काम बिलकुल उसी लगन से करती जैसे वह अपनी कंपनी के लिए करती थी. इसी से रमोला हमेशा उस का खास ध्यान रखती और घर के सदस्य जैसा ही सम्मान देती. परंतु इधर कुछ महीनों से मालती का रवैया कुछ बदलता जा रहा था. सुबह अकसर देर से आती या न भी आती. बिना बताए 2-2, 3-3 दिनों तक गायब रहती. अचानक उस के न आने से रमोला परेशान हो जाती. पर समयाभाव के चलते रमोला ज्यादा इस मामले में पड़ नहीं रही थी. मालती की गैरमौजूदगी में किसी तरह काम हो ही जाता और फिर जब वह आती तो सब संभाल लेती.

श्रेयांश को बस में बैठा रमोला तेजी से सीढि़यां चढ़ते हुए घर में घुसी. बिखरी हुई बैठक को अनदेखा कर वह एक बार फिर रसोई में घुस गई. वह कम से कम 2 सब्जियां बना लेना चाहती थी, क्योंकि आज रात उसे लौटने में फिर देर जो होनी थी.

हाथ भले छुरी से सब्जी काट रहे थे पर उस का ध्यान आज दफ्तर में होने वाली मीटिंग पर अटका था. देर रात एक विदेशी क्लाइंट के साथ एक बड़ी डील के लिए वीडियो कौन्फ्रैंसिंग भी करनी थी. उस के पहले मीटिंग में सारी बातें तय करनी थीं. आधेपौने घंटे में उस ने काफी कुछ बना लिया. अब रोहन को उठाना जरूरी था वरना उसे भी देर हो जाएगी.

रोहन कभी घर के कामों में उस का हाथ नहीं बंटाता था उलटे हजार नखरे करता. कल रात भी वह बड़ी देर से आया था. उलझ कर वक्त जाया न हो, इसलिए रमोला ने ज्यादा सवालजवाब नहीं किए. जबकि रोहन का बैंक 6 बजे तक बंद हो जाता था. वह महसूस कर रही थी कि इन दिनों रोहन के खर्चों में बेहिसाब वृद्धि हो रही है. शौक भी उस के महंगे हो गए थे. आएदिन महंगे होटलों की पार्टियां रमोला को नहीं भातीं. फिर सोचती आखिर कमा किस लिए रहे हैं. घर और दोनों गाडि़यों की मासिक किश्तों और उस पर बढ़ रहे ब्याज के विषय में सोचती तो उस के काम की गति बढ़ जाती.

‘‘आज तुम श्रेयांश को मम्मी के घर से लाने ही नहीं गए, बेचारा इंतजार करता वहीं सो गया था. तुम तो जानते ही हो मम्मी के हार्ट का औपरेशन हुआ है. वह श्रेयांश की देखभाल करने में असमर्थ हैं,’’ रमोला ने बेहद नर्म लहजे में कहा पर मन तो हो रहा था कि पूछे इस बार क्रैडिट कार्ड का बिल इतना अधिक क्यों आया?

मगर रोहन फट पड़ा, ‘‘हां मैं तो बेकार बैठा हूं. मैडम खुद देर रात तक बाहर गुलछर्रे उड़ा कर घर आएं. मैं जल्दी घर आ कर करूंगा क्या? बच्चे की देखभाल?’’

रोहन के इस जवाब से रमोला हैरान रह गई. उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा. सिर झुकाए लैपटौप पर काम करती रही. क्लाइंट से मीटिंग  के पहले यह प्रेजैंटेशन तैयार कर उसे कल अपने मातहतों को दिखानी जरूरी थी. कनखियों से उस ने देखा रोहन सीधे बिस्तर पर ही पसर गया. खून का घूंट पी वह लैपटौप पर तेजी से उंगलियां चलाने लगी.

चाय बन चुकी थी पर रोहन अभी तक उठा नहीं था. अपनी चाय पी वह दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी. अपने बिखरे पेपर्स समेटे, लैपटौप बंद किया. साथसाथ वह नाश्ता भी करती जा रही थी. हलकी गुलाबी फौर्मल शर्ट के साथ किस रंग की पतलून पहने वह सोच रही थी. आज खास दिन जो था.

तभी रोहन की खटरपटर सुनाई देने लगी. लगता है जाग गया है. यह सोच रमोला उस की चाय वहीं देने चली गई.

‘‘गुड मौर्निंग डार्लिंग… अब जल्दी चाय पी लो. मैं बस निकलने वाली हूं,’’ परदे को सरकाते हुए रमोला ने कहा.

‘‘क्या यार जब देखो हड़बड़ी में ही रहती हो. कभी मेरे पास भी बैठ जाया करो,’’ रोहन लेटेलेटे ही उस के हाथ को खींचने लगा.

‘‘मुझे चाय नहीं पीनी, मुझे तो रात से ही भूख लगी है. पहले मैं खाऊंगा,’’ कहते हुए रोहन ने उसे बिस्तर पर खींच लिया.

‘‘रोहन, अब ज्यादा रोमांटिक न बनो, मेरी कमीज पर सलवटें पड़ जाएंगी. छोड़ो मुझे. नाश्ता और लंचबौक्स मैं ने तैयार कर दिया है. खा लेना, 9 बजने को हैं. तुम भी तैयार हो जाओ,’’ कह रमोला हाथ छुड़ा चल दी.

‘‘रोहन, दरवाजा बंद कर लो मैं निकल रही हूं,’’ रमोला ने कहा और फिर सीढि़यां उतर गैराज से कार निकाल दफ्तर चल दी. रमोला मन ही मन मीटिंग का प्लान बनाती जा रही थी.

‘उमेश को वह वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के वक्त अपने साथ रखेगी. बंदा स्मार्ट है और उसे इस प्रोजैक्ट का पूरा ज्ञान भी है. जितेश को मार्केटिंग डिटेल्स लाने को कहा ही है. एक बार सब को अपना प्रेजैंटेशन दिखा, उन के विचार जान ले तो फिर फाइनल प्रेजैंटेशन रचना तैयार कर ही लेगी. सब सहीसही सोचे अनुसार हो जाए तो एक प्रमोशन और पक्की,’ यह सोचते रमोला के अधरों पर मुसकान फैल गई.

दफ्तर के गेट के पास पहुंच उसे ध्यान आया कि लैपटौप, लंचबौक्स सहित जरूरी कागजात वह सब घर भूल आई है. आज इतनी दौड़भाग थी सुबह से कि निकलते वक्त तक मन थक चुका था. रमोला ने कार को घर की तरफ घुमा दिया. कार को सड़क पर ही छोड़ वह तेजी से सीढि़यां चढ़ने लगी. दरवाजा अंदर से बंद न था. हलकी थपकी से ही खुल गया. बैठक में कदम रखते ही उसे जोरजोर से हंसने की आवाजें सुनाई दीं.

‘‘ओह मीतू रानी तुम ने आज मन खुश कर दिया… सारी भूख मिट गई… मीतू यू आर ग्रेट,’’ रोहन की आवाज थी.

‘‘साहबजी आप भी न…’’

‘तो मालती आ चुकी है… रोहन उसे ही मीतू बोल रहा है. पर इस तरह…’ सोच रमोला का सिर मानो घूमने लगा, पैर जड़ हो गए.

जबान तालू से चिपक गई. उस की बचीखुची होश की हवा चूडि़यों की खनखनाहट और रोहन के ठहाकों ने निकाल दी. वह उलटे पांव लौट गई. बिना लैपटौप लिए ही जा कर कार में बैठ गई. उस के तो पांव तले से जमीन खिसक गई थी.

‘मेरी पीठ पीछे ऐसा कब से चल रहा है… मुझे तो कुछ पता ही नहीं चला. रोहन मेरे साथ ऐसी बेवफाई करेगा, मैं सोच भी नहीं सकती. घर संभालतेसंभालते महरी उस के पति को भी संभालने लगी,’ मालती की जुरअत पर वह तड़प उठी कि कब रोहन उस से इतनी दूर हो गया. वह तो हमेशा हाथ बढ़ाता था. मैं ही छिटक देती थी. उस के प्यारइजहार की भाषा को मैं ने खूब अनदेखा किया.

‘रोहन को इस गुनाह के रास्ते पर धकेलने वाली मैं ही हूं. साथसाथ तो चल रहे थे हम… अचानक यह क्या हो गया. शायद साथ नहीं, मैं कुछ ज्यादा तेज चल रही थी, पर मैं तो घर, पति और बच्चे के लिए ही काम कर रही हूं, उन की जरूरतें और शौक पूरा हो इस के लिए दिनरात घरबाहर मेहनत करती हूं. क्या रोहन का कोई फर्ज नहीं? वह अपनी ऐयाशी के लिए बेवफाई करने की छूट रखता है?’ विचारों की अंधड़ में घिरी कार चला वह किधर जा रही थी, उसे होश नहीं था. बगल की सीट पर रखे मोबाइल पर दफ्तर से लगातार फोन आ रहे थे. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की बेहद उच्च पदासीन रमोला अचानक खुद को हारी हुई, लुटीपिटी, असहाय महसूस करने लगी. उसे सब कुछ बेमानी लगने लगा कि कैसी तरक्की के पीछे वह भागी जा रही है. उसे होश ही न रहा कि वह कार चला रही है.

जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. सिरहाने रोहन और श्रेयांश बैठे थे. डाक्टर बता रहे थे कि अचानक रक्तचाप काफी बढ़ जाने से ये बेहोश हो गई थीं. कुछ दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी हो गई. उमेश और जितेश दफ्तर से उस से मिलने आए थे. उन की बातों से लगा कि उस की अनुपस्थिति में दफ्तर में काफी मुश्किलें आ रही हैं. रमोला ने उन्हें आश्वासन दिया कि बेहतर महसूस करते ही वह दफ्तर आने लगेगी, तब तक घर से स्काइप के जरीए वर्क ऐट होम करेगी.

रोहन को देख उसे घृणा हो जाती. उस दिन की हंसी और चूडि़यों की खनखनाहट की गूंज उसे बेचैन किए रहती. रोहन को छोड़ने यानी तलाक की बात भी उस के दिमाग में आ रही थी. पर फिर मासूम श्रेयांश का चेहरा सामने आ जाता कि क्यों उस का जीवन बरबाद किया जाए. उस के उच्च शिक्षित होने का क्या फायदा यदि वह अपनी जिंदगी की उलझनों को न सुलझा सके.

‘हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा’ एक कवि की ये पंक्ति उसे हमेशा उत्साहित करती थी, विपरीत परिस्थितियों में शांतिपूर्वक जूझने के लिए प्रेरणा देती थी. आज भी वह हार नहीं मानेगी और अपने घर को टूटने से बचा लेगी, ऐसा उसे विश्वास था.

रमोला से उस की कालेज की एक सहेली मिलने आई. वह यूएस में रहती थी. बातोंबातों में उस ने बताया कि वहां तो नौकर, दाई मिलते नहीं. अत: सारा काम पतिपत्नी मिल कर करते हैं. रमोला को उस की बात जंच गई कि अपने घर का काम करने में शर्म कैसी.

उस के जाने के बाद कुछ सोचते हुए रमोला ने रोहन से कहा, ‘‘रोहन मैं सोचती हूं कि मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूं. घर पर रह कर तुम्हारी तथा श्रेयांश की देखभाल करूं. तुम्हारी शिकायत भी दूर हो जाएगी कि मैं बहुत व्यस्त रहती हूं, घर पर ध्यान नहीं देती हूं.’’

यह सुनना था कि रोहन मानो हड़बड़ा गया. उसे अपनी औकात का पल भर में भान हो गया. श्रेयांश के महंगे स्कूल की फीस, फ्लैट और गाडि़यों की मोटी किस्त ये सब तो उस के बूते पूरा होने से रहा. कुछ ही पलों में उसे अपनी सारी ऐयाशियां याद आ गईं.

‘‘नहीं डियर, नौकरी छोड़ने की बात क्यों कर रही हो? मैं हूं न,’’ हकलाते हुए रोहन ने कहा.

‘‘ताकि तुम अपनी मीतू के साथ गुलछर्रे उड़ा सको… नहीं मुझे अब घर पर रहना है और किसी महरी को नहीं रखना है,’’ रमोला ने सख्त लहजे में तंज कसा.

रोहन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह घुटनों के बल वहीं जमीन पर बैठ गया और रमोला से माफी मांगने लगा. भारतीय नारी की यही खासीयत है, चाहे वह कम पढ़ीलिखी हो या ज्यादा घर हमेशा बचाए रखना चाहती है. रमोला ने भी रोहन को एक मौका और दिया वरना दूसरे रास्ते तो हमेशा खुले हैं उस के पास.

रमोला ठीक हो दफ्तर जाने लगी. गाड़ी के पहियों की तरह दोनों अपनी गृहस्थी की गाड़ी आगे खींचने लगे. अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए रमोला ने भी तय कर लिया था कि वह घर और दफ्तर दोनों में सामंजस्य बैठा कर चलेगी, भले ही एकाध तरक्की कम हो. नौकरी छोड़ने की उस की धमकी के बाद से रोहन अब घर के कामों में उस का हाथ बंटाने लगा था. इन सब बदलावों के बाद श्रेयांश पहले से ज्यादा खुश रहने लगा था, क्योंकि लंचबौक्स उस की मम्मी खुद तैयार करती और रोज नईनई डिश देती.

वन मिनट प्लीज: क्या रोहन और रूपा का मिलन दोबारा हो पाया

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रूपा रोहन से शादी करना चाहती थी और इस मकसद में वह कामयाब भी हो गई थी. मगर शादी के कुछ ही महीनों बाद हालात ऐसे बन गए कि रोहन उसे छोड़ कर अचानक कहीं चला गया.

आगाज: क्या ज्योति को मिल पाया उसका सच्चा प्यार?

कहानी- प्रेमलता यादु

‘‘क्यातुम मेरे इस जीवनपथ की हमराही बनना चाहोगी? क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति आवाक उसे देखती रही. वह समझ ही नहीं पाई क्या कहे? उस ने कभी सोचा नहीं था कि प्रकाश के मन में उस के लिए ऐसी

कोई भावना होगी. उस के स्वयं के हृदय में प्रकाश के लिए इस प्रकार का खयाल कभी नहीं आया.

कई वर्षों से दोनों एकदूजे को जानते हैं. दोनों ने संग में न जाने कितना ही वक्त बिताया है. जब भी उसे कांधे की जरूरत होती. प्रकाश का कंधा सदैव मौजूद होता. ज्योति अपनी हर छोटी से छोटी खुशी

और बड़े से बड़ा दुख इस अनजान शहर में प्रकाश से ही साझा करती.

उन दोनों की दोस्ती गहरी थी. जबजब ज्योति किसी रिलेशनशिप में आती तो प्रकाश को बताती और जब ब्रेकअप होता तब भी वह प्रकाश से ही दुख जाहिर करती.

उस का यह पहला ब्रेकअप नहीं था. लेकिन दिल तो इस बार भी टूटा था. हां, दर्द जरूर थोड़ा कम था. यह सब जानते हुए प्रकाश का आज इस तरह शादी के लिए प्रपोज करना उसे उलझन में डाल गया. वह अपनी कौफी खत्म किए बिना और प्रकाश से कुछ कहे बगैर औफिस कैंटीन से अपने चैंबर में लौट आई. प्रकाश ने भी उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की. ज्योति विचारों के गिरह में उलझने लगी थी.

मरुस्थल के गरम रेत पर चलते हुए ज्योति के पैरों में फफोले आ चुके थे. मृगतृष्णा की तलाश में न जाने वह कब से अकेली भटक रही थी. जिस अमृतरूपी प्रेम का वह रसपान करना चाहती थी, वह प्रेम उसे हर बार एक विष के रूप में मिला. बचपन में मां को खोने के बाद लाड़प्यार को तरसती रही. सौतेली मां का दुर्व्यवहार और दबाव इतना था कि पिता भी उसे दुलार करने से डरते.

ज्योति का सारा बचपन मातापिता के स्नेह से वंचित रहा. फिर जब उसे जिंदगी को अपने ढंग से जीने का अवसर मिला, वह आंखों में रंगीन सपने लिए इस महानगरी मुंबई में आ पहुंची. यहां उसे लगने लगा उस की सच्चे प्यार और जीवनसाथी की तलाश जरूर पूरी होगी. लेकिन जब भी उसे ऐसा लगा कि उस ने अपना सच्चा प्यार पा लिया है, अगले ही पल वह प्रेम, वासना में तबदील हो गया. यों, आज जब प्रकाश उस के सामने एक सच्चे प्यार के रूप में खड़ा है वह क्यों उसे स्वीकार नहीं करना चाह रही? कारण शायद साफ था कि अब वह टूटना नहीं चाहती.

मन में चल रही उलझनों को सुलझाने के लिए सिगरेट सुलगा वह धुआं उड़ाने लगी. धीरेधीरे पूरा पैकेट खत्म होने लगा लेकिन इस धुएं में गुत्थियां खुलने के बजाय उलझने लगीं तो वह धुआं उड़ाती हुई अतीत की गलियों में मुड़ गई. जब उस ने अपने छोटे शहर पटना से एमबीए कर असिस्टैंट मैनेजिंग डायरैक्टर के पद पर इस जगमगाती कौर्पोरेट दुनिया में अपना पहला कदम रखा था. उस दिन से ही वह प्रकाश को जानती है. लेकिन प्रकाश से प्यार… नहीं. नहीं. प्रकाश उस के दिल के बहुत करीब जरूर है लेकिन वह उस से प्यार नहीं करती. प्रकाश उस का सब से अच्छा और सच्चा मित्र है.

उस का पहला प्यार तो पीयूष है, जिसे वह दिल की गहराइयों से चाहती थी और वह भी तो उस का दीवाना था. पीयूष के प्यार में वह इस कदर पागल थी कि दुनिया की परवा करना छोड़ चुकी थी. पीयूष जैसे लड़के की ही तमन्ना उसे थी. जब उसे देखती तो उस की आंखों में डूब जाती. हमउम्र थे दोनों. उस की हर बात ज्योति को दीवाना कर देती. इस पागलपन में उस ने कब अपना सबकुछ उसे समर्पित कर दिया, उसे पता ही नहीं चला. जब होश आया तब तक सब लुट चुका था और पीयूष का असली चेहरा सामने था.

पीयूष ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा था, ‘ज्योति, मैं तुम से प्यार तो करता हूं लेकिन मैं अपने मातापिता के विरुद्ध जा कर तुम्हारा साथ नहीं निभा सकता.’ यह सुनते ही ज्योति के जीवन में सैलाब आ गया था. पीयूष उस का पहला प्यार था जिसे वह अब खो चुकी थी. उस वक्त एक प्रकाश ही था जिस ने उसे इस हलाहल में डूबने से बचाया था. यह सब सोच ज्योति को घुटन महसूस होने लगी. वह घबरा कर खुली हवा में सांस लेने टैरेस पर जा खड़ी हुई.

रात गहरी और काली थी. इस से पहले उसे रात इतनी डरावनी कभी नहीं लगी. रोड पर इक्कादुक्का वाहनों की आवाजाही थी. दिन में कोलाहल से भरा यह शहर यामिनी की गोद में सो रहा था, लेकिन ज्योति के नयनों में निद्रा कहां? उस के मन में तो हलचल मची हुई थी.

पीयूष से मिली बेवफाई के बाद उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह कभी किसी से प्यार नहीं करेगी, किसी पर विश्वास नहीं करेगी. अपने इन्हीं विचारों के साथ जब वह आगे बढ़ चली तभी उस के दिल के किवाड़ पर आयुष नाम की दस्तक हुई और एक बार फिर उस ने अपने दिल का दरवाजा खुलेमन से खोल दिया. लेकिन इस बार वह पूर्णरूप से सतर्क  थी.

धीरेधीरे उसे लगने लगा आयुष का प्रेम जिस्मानी नहीं. लेकिन यह भी भ्रम मात्र था. असल में आयुष का लक्ष्य भी उस के शरीर को ही पाना था. वह मौके की तलाश में था. ज्योति जब उस की असलियत से रूबरू हुई तो दोनों के रास्ते जुदा हो गए और इस बार फिर दिल ज्योति का ही टूटा.

हलकीहलकी ठंड लगने लगी, परंतु ज्योति टैरेस पर ही खड़ी रही. उसे याद है किस तरह आयुष से ब्रेकअप के बाद अवसाद ने उसे अपनी गिरफ्त में इस प्रकार जकड़ा था कि वह सिगरेट और शराब में अपनेआप को डुबोने लगी. इस वजह से औफिस में उस का परफौर्मैंस ग्राफ गिरने लगा. उस वक्त भी प्रकाश ही था जिस ने उसे इस परिस्थिति से उभारा. तब उस के मन में प्रकाश के लिए सम्मान और बढ़ गया.

साथ ही साथ, मन के एक कोने में प्रेम का बीज भी अंकुरित होने लगा जिसे वह दफना देना चाहती थी क्योंकि वह प्रकाश को खोना नहीं चाहती और न ही वह अपनेआप को उस के काबिल समझती है. यही कारण है कि उस ने अब तक प्रकाश से कुछ नहीं कहा.

आयुष के बाद चिराग पतझड़ में वसंत की बहार बन कर आया, जो उस की सारी सचाई जानते हुए उसे अपनाना चाहता था. लेकिन, उस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि चिराग की यह शर्त थी कि उसे अपने अतीत के साथसाथ प्रकाश को भी हमेशा के लिए भुला उस के संग चलना होगा. ज्योति किसी शर्त के साथ रिश्ते में नहीं बंधना चाहती थी, और फिर मोहब्बत में कैसी शर्त?

वह प्रकाश को किसी भी हाल में खोने को तैयार नहीं थी. फिर आज जब प्रकाश सदा के लिए उस का हो जाना चाहता है तो वह क्यों शादी के लिए हां नहीं कह पाई? बेशक, प्रकाश देखने में साधारण था, लेकिन बोलने में ऐसी कशिश थी कि उस के आगे उस का रंगरूप माने नहीं रखता था.

तभी उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. वह घबरा कर मुड़ी, सामने प्रकाश खड़ा था. प्रकाश उस के हाथों से सिगरेट ले कर फेंकते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें इन सब से दूर रहने को कहा था न, और तुम…,’’ प्रकाश अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि ज्योति उस से लिपट फफकफफक कर रोने लगी. फिर खुद को प्रकाश से अलग कर उस की ओर पीठ करती हुई बोली, ‘‘तुम यहां से चले जाओ, प्रकाश. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. तुम्हारे मुझ पर पहले ही बहुत एहसान हैं. पर बस… अब और नहीं. वैसे भी तुम जानते हो, मैं तुम्हारे लायक नहीं.’’

ज्योति की बातें सुन प्रकाश उसे अपनी ओर खींचते हुए बोला, ‘‘तुम ने ऐसा कैसे सोच लिया कि तुम मेरे लायक नहीं. तुम तो उन सब के साथ पाक दिल से चली थीं, नापाक तो उन के इरादे थे जिन्होंने तुम्हें मलिन किया. शादी के लिए जब लड़के का वर्जिन होना अनिवार्य नहीं, तो लड़की का होना जरूरी कैसे हो सकता है? शादी के लिए जरूरी होता है अपने जीवनसाथी के प्रति दिल से समर्पित होना, वफादार होना, जो तुम हो.’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति प्रकाश की बांहों में सिमट गई. काली अंधेरी रात बीत चुकी थी. ऊषा की पहली सुनहरी किरणें दोनों पर पड़ने लगीं जो नई सुबह का आगाज थीं.

किस्मत बदलवा लो किस्मत

चश्मे के अंदर से झांकती घाघ नजरों से हमारा हाथ देख पहले तो वे मुसकराए फिर भौंहें सिकोड़ीं, तब कहा, ‘‘आप का हाथ तो टैक्निकल  हैंड है. क्या करते हैं आप?’’

‘‘जी, मैं… मैं…’’ मेरी बात को बीच में ही काट कर ज्योतिषी महोदय बोल पड़े, ‘‘आप का हाथ तो बता रहा है जजमान कि आप इंजीनियर या वैज्ञानिक हैं.’’

‘‘जी पंडितजी, मैं तो किरानी हूं,’’ मुझे यह कहते हुए काफी शर्म आई. कि मेरे हाथ में इंजीनियर बनना लिखा है और यह हाथ किरानीगीरी कर रहा है.

अपनी बात गलत होती देख पंडितजी ने फिर चश्मे के अंदर से मेरे हाथों को घूरा. उलटपलट कर देखा. अपनी ज्योतिष विद्या को गलत साबित होता देख कहने लगे, ‘‘यह मैं नहीं बोल रहा हूं श्रीमान, आप के हाथों की रेखाएं कह रही हैं. आप के हाथ के हिसाब से तो आप को इंजीनियर ही होना चाहिए था. पूरी तरह टैक्निकल हैंड है आप का तो.’’

हम ने पूछा, ‘‘लेकिन पंडितजी, हाथ में लिखा आखिर गलत कैसे हो गया?’’

‘‘अच्छा यह बताइए कि कभी इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी की थी क्या?’’

‘‘नहीं, पंडितजी, मैं तो शुरू से आर्ट्स का स्टूडैंट रहा. कभी इंजीनियर बनने की सोची ही नहीं. इस की स्पैलिंग भी याद नहीं की.’’

पंडितजी लैंस के जरिए फिर मेरा हाथ देखने लगे और थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘अरे, घबराते क्यों हो?  किरानी का काम करना भी तो एक टैक्निक है. वही तो मैं सोच रहा था कि गलती कहां हो रही है,’’ पंडितजी अपनी विद्या को सही साबित करने का हथकंडा अपनाने में लग गए. साफ है कि उन्हें दक्षिणा जो लेनी थी. हम ने मन ही मन सोचा, ‘जब हर काम एक टैक्निक है तो हर हाथ भी टैक्निकल है, तो फिर पंडितजी ने मेरे हाथ को टैक्निकल हैंड क्यों बताया?’ दरअसल, यह ज्योतिषियों की आजमाई हुई सफल टैक्निक है. हर हाथ दिखाने वालों को वे कुछ रटेरटाए वाक्य सुना देते हैं जो कमोबेश हर आदमी पर फिट हो जाते हैं. हाथ दिखा कर अपना भविष्य जानने वाले भी आंखें फाड़े पंडितजी की ज्योतिष विद्या के कायल हो जाते हैं या कहिए कि उन के जाल में फंस जाते हैं.

हर ज्योतिषी अपने क्लाइंट से कहेगा, ‘आप टैंशन बहुत लेते हैं, टैंशन मत लिया कीजिए.’ यह बात तो दुनिया के हर आदमी पर फिट बैठ सकती है. किसी को जरूरत से ज्यादा पैसा होने का टैंशन है तो किसी को दो वक्त की रोटी नहीं जुटने का टैंशन है. और टैंशन कोई खेल तो है नहीं कि आदमी सोचविचार कर ले बैठता है. अरे, आदमी के आसपास, घर, दफ्तर के हालात तनावपूर्ण होते हैं तो वह टैंशन में रहेगा ही.

हर किसी पर फिट होने वाला एक और जुमला है, जिसे भविष्य बांचने वाले काफी उपयोग में लाते हैं, ‘आप जो चाहते हैं वह आप को मिल नहीं रहा है.’ यह बात भी हर आदमी पर फिट बैठती होती है. हर आदमी जितना चाहता है उतना उसे कभी नहीं मिलता, क्योंकि समय के साथसाथ पाने की लालसा भी बढ़ती जाती है. चाहे टाटा हो, बिड़ला हो या अंबानी हो, भिखारी हो या किरानी किसी की भी इच्छाएं कभी पूरी हुई हैं क्या?

ज्योतिषियों द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले कुछ और जुमले हैं, जैसे ‘आप को बहुत जल्द गुस्सा आता है’, ‘आप के औफिस में कुछ खटपट चल रही है’, ‘भाई से हमेशा तनातनी रहती है’, ‘घर खरीदना चाह रहे हैं आप’ आदि. इस तरह की गोलमोल बातें भी हर किसी पर फिट बैठ सकती हैं. तोता ज्योतिषी हो या कंप्यूटर ज्योतिषी, हर कोई यह जुमला बोल कर धंधा चला रहा है.

अपनी बातों को सही साबित करने के लिए ज्योतिषी पलटी मारने में माहिर होते हैं. अपनी कही बातों को सही ठहराने के लिए उन के पास कई तर्क या कहिए कुतर्क होते हैं. एक वाकेआ है. हमारे एक मित्र पुलिस अफसर हैं. उन्होंने एक रोज हम से कहा, ‘‘भाई, कमाईधमाई कुछ ठीक नहीं हो रही है, कोई पंडितवंडित है जो हाथ देख कर ग्रहदशा सुधार दे.’’ मैं उन्हें एक ज्योतिषी के पास ले गया. पंडितजी ने पुलिस अफसर के हाथ और कुंडली में कम उन के ओहदे में ज्यादा रुचि दिखाई. पहले तो मीठीमीठी बातें कीं फिर हाथ देख कर बोले, ‘‘1 महीने के अंदर आप के सारे कष्ट दूर होने वाले हैं. बस, एक रुद्राक्ष की माला पहन लें और 5 रत्ती का नीलम धारण कर लें.’  मित्र ने पंडितजी को मोटी दक्षिणा दी और बाजार से रुद्राक्ष और नीलम खरीद लाए. करीब 10 हजार रुपए का चूना लग गया पर फिर भी बेचारे अफसर की पोस्टिंग मलाईदार जगह पर नहीं हो पाई.

दोबारा पंडितजी की शरण में पहुंचे. पंडितजी सारी बातें सुन कर मुसकराए और कहा, ‘‘घबराते क्यों हैं श्रीमान? ग्रहों की दशा तो बदल गई है. अरे, ग्रहों के ट्रांसफरपोस्ंिटग में कुछ समय तो लगेगा ही न. आप लोगों में नहीं होता है क्या? तबादला होने के बाद नई जगह जौइन करने में डेढ़दो माह तो लग ही जाते हैं. यही हाल ग्रहों का भी है. हो सकता है कि कोई ग्रह नई जगह जाने को तैयार नहीं हो रहा हो? ’’

पंडित के इस कुतर्क से अफसर मित्र अवाक् रह गए. मानो ग्रहनक्षत्र न हुआ कोई सरकारी अफसर हो गया, जिसे इधरउधर होने में महीना दो महीना लग जाता है. वहीं कुंडली बनाते समय या भविष्य बांचते समय ये पंडित एकएक सेकंड का हिसाबकिताब मांगते हैं. किसी बच्चे के जन्म के समय में सेकंडों का ध्यान रखने पर जोर देते हैं. एक मित्र का प्रोमोशन नहीं हो रहा था. वह भी अपना जीवन चमकाने एक बाबा के यहां जा पहुंचा. कुंडली देख बाबा बोल पड़े, ‘‘आप को तो राजयोग है.’’ मित्र ने कहा, ‘‘कहां बाबा? एक प्रोमोशन तक नहीं हो रहा है. हम से जूनियर का प्रोमोशन हो गया.  मेरा ही मामला लटका हुआ है.’’

बाबा की पंडिताई जाग उठी, ‘‘वह सब तो दिख रहा है बच्चा,  तुम्हारे भाग्य और इनकम का स्वामी शुक्र है. वह काफी कमजोर है. उसे ताकत देने की जरूरत है.’’

मित्र ने उम्मीद भरी नजरों से बाबा को देखा, ‘‘कोई उपाय बताइए, बाबा?’’

बाबा ने कहा, ‘‘हीरा धारण कर लो तो तुम्हारी किस्मत ही पलट जाएगी.’’

‘‘इतना रुपया कहां से लाएं?’’ मित्र ने अपनी मजबूरी बताई. बाबा अड़े रहे, ‘‘किस्मत पलटने के लिए हीरा पहनना जरूरी है.’’

बेचारा मित्र अपनी किस्मत को ठोकता हुआ घर पहुंचा. मित्रों से सलाह ली. जौहरी के पास जा कर हीरे की कीमत पूछी. पता चला कि 80 हजार लगेंगे. मित्र का मन हुआ कि कुछ फिक्स्ड डिपौजिट है, उसे तुड़वा कर हीरा ले लिया जाए. हम ने उस से कहा कि जो भी थोड़ाबहुत रुपया जमा कर रखा है उसे भी खर्च कर दोगे तो क्या खाक किस्मत पलटेगी? भला हो उस मित्र का जो पंडित के बहकावे में फंसने से बच गया और ऐन वक्त पर बल्ला खींच लिया.

वैसे ज्योतिष विद्या के अधकचरे ज्ञान के फायदे भी खूब हैं. किसी का भी हाथ देख कर कुछ उलटासीधा बता कर अपनी पंडिताई का झंडा आसानी से गाड़ लिया जाता है. बौस ऐसे मुलाजिम के आगे हाथ फैलाए रहता है, ‘‘अरे यार नरेश, सुना है हाथ देखते हो? जरा मेरा भी हाथ देख कर आगापीछा बताओ.’’ नरेशजी भी अकड़ कर कहेंगे, ‘‘जी सर, थोड़ाबहुत जानता हूं. काम से फुरसत मिले तब न.’’

बौस उसे घर आने का न्यौता देता है और फिर उस के बाद बौस की किस्मत चमके या न चमके, नरेश की किस्मत तो वाकई चमक उठती है. बौस का करीबी होने के बेइंतहा फायदे हैं, भई. हर मुलाजिम बौस की चमचई छोड़ उस के आगेपीछे घूमने लगता है. कोई पैरवी हो, तबादला रुकवाना हो, वेतन बढ़वाना हो, ऐसे कामों के लिए नरेश जैसे लोगों की पूछ काफी बढ़ जाती है.

दानदक्षिणा, पत्थरों से किस्मत बदलने का दावा करने वाले पंडितों का एकसूत्री मकसद होता है, क्लाइंटों की जेबें हलकी करना. कभीकभी क्लाइंटों के फेर में ज्योतिषी भी फंस जाते हैं. ये वे क्लाइंट होते हैं जो किस्मत तो बदलवाना चाहते हैं पर उस के एवज में फूटी कौड़ी भी खर्च करना नहीं चाहते. किस्मत का मारा एक आदमी पंडित के पास पहुंचा. सब देखसुन कर पंडित ने कहा, ‘‘बेटा, नीलम धारण कर लो, किस्मत पर लगे ताले खुल जाएंगे.’’

‘‘इतने पैसे कहां हैं, पंडितजी? इतना ही धन रहता तो आप के पास आते ही क्यों?’’ क्लाइंट ने कहा.

‘‘तो लाजवर्द पहन लो, 200-300 रुपए में आ जाएगा.’’

‘‘इतना भी नहीं है, बाबा. कोई और उपाय बताइए?’’

‘‘जा, एक जड़ी देता हूं. 50-60 रुपए में काम हो जाएगा.’’

‘‘50-60 रुपए भी नहीं हैं, बाबा.’’

‘‘इतना भी नहीं है तो जा बेटा, शनि या राहु तेरा क्या बिगाड़ लेगा. जब तेरे पास कुछ है ही नहीं तो खोएगा क्या?’’

पंडितजी अपनी बंसी में चारा लगा कर दरवाजे की ओर देखने लगते हैं, किसी नई मछली को फंसाने की उम्मीद से. मन ही मन हांक लगाते हैं, ‘किस्मत बदलवा लो, किस्मत.’

अपना घर: फ्लैट में क्या हुआ जिया के साथ

औफिस की घड़ी ने जैसे ही शाम के 5 बजाए जिया जल्दी से अपना बैग उठा तेज कदमों से मैट्रो स्टेशन की तरफ चल पड़ी. आज उस का मन एकदम बादलों की तरह उड़ रहा था. उड़े भी क्यों न, आज उसे अपनी पहली तनख्वाह जो मिली थी. वह घर में सब के लिए कुछ न कुछ लेना चाहती थी. रोज शाम होतेहोते उस का मन और तन दोनों थक जाते थे पर आज उस का उत्साह देखते ही बनता था. आइए अब जिया से मिल लेते हैं…

जिया 23 वर्षीय आज के जमाने की नवयुवती है. सांवलासलोना रंग, आम की फांक जैसी आंखें, छोटी सी नाक, बड़ेबड़े होंठ. सुंदरता में उस का कहीं कोईर् नंबर नहीं लगता था पर फिर भी उस का चेहरा पुरकशिश था. घर में सब की लाडली, जीवन से अब तक जो चाहा वह मिल गया. बहुत बड़े सपने नहीं देखती थी. थोड़े में ही खुश थी.

वह तेज कदमों से दुकानों की तरफ बढ़ी. अपने 2 साल के भतीजे के लिए उस ने एक रिमोट से चलने वाली कार खरीदी. पापा के लिए उन की पसंद का परफ्यूम, मम्मी व भाभी के लिए सूट और साड़ी और भैया के लिए जब उस ने टाई खरीदी तो उस ने देखा कि बस उस के पास अब कुछ ही पैसे बचे हैं. अपने लिए वह कुछ न खरीद पाई. अभी पूरा महीना पड़ा था. बस उस के पास कुछ हजार ही बचे थे. उसे उन में ही अपना खर्चा चलाना था. मांपापा से वह कुछ नहीं लेना चाहती थी.

जैसे ही वह शोरूम से निकली, बाजू

वाली दुकान में उसे आसमानी और फिरोजी रंग के बहुत खूबसूरत परदे दिखाई दिए. बचपन से उस का अपने घर में इस तरह के परदे लगाने

का मन था. दुकानदार से जब दाम पूछा तो

उसे पसीना आ गया. दुकानदार ने मुसकराते हुए कहा कि ये चंदेरी सिल्क के परदे हैं, इसलिए दाम थोड़ा ज्यादा है पर ये आप के कमरे को एकदम बदल देंगे.

कुछ देर तक खड़ी वह सोचती रही. फिर उस ने वे परदे खरीद लिए. जब वह दुकान से निकली तो बहुत खुश थी. बचपन से वह ऐसे परदे अपने घर में लगाना चाहती थी, पर मां के सामने जब भी बोला उस की इच्छा घर की जरूरतों के सामने छोटी पड़ गई. आज उसे ऐसा लगा जैसे वह वाकई में स्वतंत्र हो गई है.

जब वह घर पहुंची तो रात हो चुकी थी. सब रात के खाने के लिए उस का इंतजार कर रहे थे. भतीजे को चूम कर उस ने सब के उपहार टेबल पर रख दिए. सब उत्सुकता के साथ उपहार देखने लगे. अचानक मां बोली, ‘‘तुम, अपने लिए क्या लाई हो?’’

जिया ने मुसकराते हुए परदों का पैकेट उन की तरफ बढ़ा दिया. परदे देख कर मां बोलीं, ‘‘यह क्या है…? इन्हें तुम पहनोगी?’’

जिया मुसकुराते हुए बोली, ‘‘मेरी प्यारी मां इन्हें हम घर में लगाएंगे.’’

मां ने परदे वापस पैकेट में रखे और फिर बोलीं, ‘‘इन्हें अपने घर लगाना.’’

जिया असमंजस से मां को देखती रही. उस की समझ में नहीं आया कि इस का क्या मतलब है. उस की भूख खत्म हो गई थी.

भाभी ने मुसकरा कर उस के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘मैं आज तक नहीं समझ पाई, मेरा घर कौन सा है? जिया तुम अपना घर खुद बनाना,’’ और फिर भाभी ने बहुत प्यार से उस के मुंह में एक निवाला डाल दिया.

आज पूरा घर पकवानों की महक से महक रहा था. मां ने अपनी सारी पाककला को निचोड़ दिया था. कचौरियां, रसगुल्ले, गाजर का हलवा, ढोकले, पनीर के पकौड़े, हरी चटनी, समोसे और करारी चाट. भाभी लाल साड़ी में इधर से उधर चहक रही थीं. पापा और भैया पूरे घर का घूमघूम कर मुआयना कर रहे थे. कहीं कुछ कमी न रह जाए. आज जिया को कुछ लोग देखने आ रहे थे. एक तरह से जिया की पसंद थी, जिस पर आज उस के घर वालों को मुहर लगानी थी. अभिषेक उस के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी जिसे अब वे एक रिश्ते का नाम देना चाहते थे.

ठीक 5 बजे एक कार उन के घर के

सामने आ कर रुकी और उस में से 4 लोग

उतरे. सब ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. जिया ने परदे की ओट से देखा. अभिषेक जींस और

लाइट ब्लू शर्ट में बेहद खूबसूरत लग रहा था.

उस की मां लीला आज के जमाने की आधुनिक महिला लग रही थीं. छोटी बहन मासूमा भी बेहद खूबसूरत थी. पिता अजय बेहद सीधेसादे व्यक्ति लग रहे थे.

जिया, अभिषेक की मां और बहन के सामने कहीं भी नहीं ठहरती थी पर उस का भोलापन, सुलझे हुए विचार और सादगी ने अभिषेक को आकर्षित कर लिया था. जिया के किरदार में कहीं भी कोई बनावटीपन नहीं था. जहां अभिषेक को अपनी मां में प्लास्टिक के फूलों की गंद आती थी, वहीं जिया से उसे असली फूलों की महक आती थी.

अपने पिता को उस ने हमेशा एडजस्टमैंट करते हुए देखा था. वह खुद ऐसा नहीं करना चाहता था, इसलिए हर हाल में अपनी मां का लाड़ला, हर बात मानने वाला अभिषेक किसी भी कीमत पर अपनी जीवनसाथी के चुनाव की बागडोर मां को नहीं देना चाहता था.

जिया ने कमरे में प्रवेश किया. जहां अभिषेक प्यारभरी नजरों से उस की तरफ देख रहा था, वहीं लीला और मासूमा उस की तरफ अचरज से देख रही थीं. उन्हें जिया में कोई खूबी नजर नहीं आ रही थी. अजय को जिया एक सुलझे विचारों वाली लड़की नजर आई जो उन के परिवार को संभाल कर रख सकेगी. लीला ने अभिषेक की तरफ देखा पर उस के चेहरे पर खुशी देख कर चुप हो गईं.

जिया को लीला ने अपने हाथों से हीरे

का सैट पहना दिया पर उन के चेहरे पर कहीं कोईर् खुशी नहीं थी. जिया को यह बात समझ आ गई थी कि वह बस अभिषेक की पसंद है. अपने घर में जगह बनाने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

2 माह बाद उस के विवाह की तारीख तय हो गई. दुलहन के लिबास में जिया बेहद खूबसूरत लग रही थी. अभिषेक और उस की जोड़ी पर लोगों की नजरें ही नहीं ठहर रही थीं. लीला भी आज बहुत खुश लग रही थीं. कन्यादान करते हुए जिया के मां और पापा के आंखों में आंसू थे. वह उन के घर की रौनक थी. बिदाई पर अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बहू नहीं बेटी ले कर जा रहे हैं.’’

जिया ने कुछ दिनों में यह तो समझ लिया था कि इस घर में बागडोर लीला के

हाथों में है. यह घर लीला का घर है और वह घर उस के मांपापा का घर था पर उस का घर कहां है? इस सवाल का जवाब उसे नहीं मिल पा रहा था.

अभी कल की ही बात थी, जिया ने ड्राइंगरूम में थोड़ा सा बदलाव करने की कोशिश करी, तो लीला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जिया,

तुम अभिषेक की बीवी हो, इस घर की बहू हो, पर इस घर को मैं ने बनाया है, इसलिए अपने फैसले और अपने अधिकार अपने कमरे तक सीमित रखो.’’

जिया चुपचाप खड़ी सुनती रही. अभिषेक से जब भी उस ने इस बारे में बात करनी चाही, उस ने हमेशा यही जवाब दिया कि जिया उन्हें थोड़ा समय दो. उन्होंने सब कुछ हमारी खुशी के लिए ही करा है.

जिया अपने मनोभावों को चाह कर भी न समझा पाती थी. खुश रहना उस की आदत थी और हारना उस की फितरत में नहीं था.

देखते ही देखते 1 साल बीत गया. आज जिया की शादी की पहली वर्षगांठ थी. उस ने अभिषेक के लिए घर पर पार्टी करने का प्लान बनाया. उस ने अपने सभी दोस्तों को निमंत्रण भेज दिया. तभी दोपहर में जिया ने देखा, लीला की किट्टी पार्टी का गु्रप आ धमका.

जिया ने लीला से कहा, ‘‘मां, आज मैं ने अपने कुछ दोस्तों को आमंत्रित किया है.’’

लीला ने जवाब में कहा, ‘‘जिया तुम्हें पहले मुझ से पूछ लेना चाहिए था…’’ मैं तो अब कुछ नहीं कर सकती हूं. तुम अपने दोस्तों को कहीं और बुला लो.’’

जिया उठ खड़ी हुई. अपने अधिकारों की सीमा रेखा समझती रही. मन ही मन उस ने एक निर्णय ले लिया.

जिया ने शाम की पार्टी के लिए घर के बदले होटल का पता अपने सभी दोस्तों को व्हाट्सऐप कर दिया. अभिषेक को भी वहीं बुला लिया. अभिषेक ने जिया को पीली व लाल कांजीवरम साड़ी और बेहद खूबसूरत झुमके उपहार में दिए, जिया जैसी सुलझे विचारों वाली जीवनसाथी पा कर अभिषेक बेहद खुश था.

जिया को अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी पर फिर भी कभीकभी वह चंदेरी के परदे उसे मुंह चिढ़ाते थे. अभिषेक उसे हर तरह से खुश रखता था पर वह कभी जिया की अपनी घर की इच्छा को नहीं समझ पाया था.

जिया को अपने घर को अपना कहने का या महसूस करने का अधिकार नहीं था. वह उस की जिंदगी का वह खाली कोना था जिसे कोई भी नहीं समझ पाया था. न उस के अपने मातापिता, न अभिषेक और न ही उस के सासससुर. जिया ने धीरेधीरे इस घर में सभी के दिल में जगह बना ली थी. लीला भी अब उस से खिंचीखिंची नहीं रहती थीं. मासूमा की मासूम शरारतों का वह हिस्सा बन गई थी.

आज चारों तरफ खुशी का माहौल था. दीवाली का त्योहार वैसे भी अपने

साथ खुशी, हर्षोल्लास और अनगिनत रंग ले कर आता है. पूरे घर में पेंट चल रहा था, जब अभिषेक परदे बदलने लगा तो अचानक जिया बोली कि रुको और फिर भाग कर चंदेरी के परदे ले आई.

इस से पहले कि अभिषेक कुछ बोलता, लीला बोल उठीं, ‘‘जिया ऐसे परदे मेरे घर पर नहीं लगेंगे.’’

जिया प्रश्नसूचक नजरों से अभिषेक को देख रही थी. उसे लगा वह कुछ बोलेगा कि मां यह जिया का भी घर है पर अभिषेक कुछ न बोला. जिया का खराब मूड देख कर बोला, ‘‘इतना क्यों परेशान हो. परदे ही तो हैं.’’

पहली बार जिया की आंखों में आंसू आए. अभिषेक आंसुओं को देख कर और चिढ़ गया.

आजकल जिया का ज्यादातर समय औफिस में बीतता था. अभिषेक ने महसूस किया कि वह अपने फोन पर ही लगी रहती है और उसे देखते ही घबरा कर मोबाइल रख देती है. अभिषेक जिया को सच में प्यार करता था, वह जिया से पूछना चाहता था पर उसे डर था कहीं सच में जिया के जीवन में उस की जगह किसी और ने तो नहीं ले ली है.

एक शाम को अभिषेक ने जिया से कहा, ‘‘जिया, चलो तुम शुक्रवार की छुट्टी ले लो, कहीं आसपास घूमनेफिरने चलते हैं.’’

जिया ने अनमने से कहा, ‘‘नहीं अभिषेक बहुत काम है औफिस में.’’

चाह कर भी अभिषेक जिया के व्यवहार में जो बदलाव आया है उसे समझ नहीं पा रहा था. वह रात को भी घंटों लैपटौप पर बैठ कर न जाने क्या करती रहती. अभिषेक जैसे ही उसे आवाज देता, वह घबरा कर लैपटौप बंद कर देती. अभिषेक जितना उस के करीब जाने की कोशिश करता वह उतना ही उस से दूर जा रही थी.

न जाने वह क्या था जिस के पीछे जिया पागल हो रही थी. जिया के भाई ने भी उस दिन अभिषेक को फोन पर कहा, ‘‘आजकल जिया घर पर फोन ही नहीं करती. सब ठीक है न?’’

अभिषेक ने कहा, ‘‘नहीं आजकल औफिस में बहुत काम है.’’

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब अभिषेक और जिया दोनों के मातापिता की इच्छा थी कि वे अपने परिवार को आगे बढ़ाएं.

आज फिर से उन की शादी की सालगिरह का जश्न था पर आज लीला ने खुद दावत रखी थी. जिया ने एक बहुत ही खूबसूरत प्याजी रंग की स्कर्ट और कुरती पहनी हुई थी. अभिषेक की नजरें उस से हट ही नहीं रही थी. सब लोग उन्हें छेड़ रहे थे कि वे खुशखबरी कब दे रहे हैं.

रात को एकांत में जब अभिषेक ने जिया से कहा कि जिया मेरा भी मन है, तो जिया

ने अनमने ढंग से कहा कि वह तैयार नहीं है.

रात में भी अभिषेक को ऐसा लगा जैसे उस के पास बस जिया का शरीर है. अभिषेक रातभर सो नहीं पाया.

आज वह हर हाल में जिया से बात करना चाहता था, पर जब वह सुबह उठा, जिया औफिस के लिए निकल चुकी थी. अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था. ऐसा लगता था, जिया उस के साथ हो कर भी उस के साथ नहीं है, वह हर हफ्ते उस के साथ कोई न कोई प्लान बनाता पर जिया को तो रविवार में भी कोई न कोई औफिस का काम हो जाता था. उन दोनों के बीच एक मौन था, जिसे वह चाह कर भी नहीं तोड़ पा रहा था. अभिषेक को अपनी वह पुरानी जिया चाहिए थी पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

देखते ही देखते फिर दीवाली आ गई. पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था. आज अभिषेक को बहुत दिनों बाद जिया का चेहरा रोशनी से खिला दिखा.

जिया ने अभिषेक से कहा, ‘‘अभिषेक, आज मुझे तुम से कुछ कहना है और कुछ दिखाना भी है.’’

अभिषेक उस की तरफ प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘जिया, कुछ भी बोलना बस यह मत बोलना तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है.’’

जिया खिलखिला कर हंस पड़ी और फिर बोली, ‘‘तुम पागल हो क्या, तुम ने ऐसा सोचा

भी कैसे?’’

अभिषेक मुसकरा दिया. बोला, ‘‘लेकिन तुम मुझे पिछले 1 साल से नैगलैक्ट कर रही हो, हम एकसाथ कहीं भी नहीं गए.’’

जिया बोली, ‘‘पता नहीं तुम्हें समझ आएगा या नहीं पर मैं पिछले 1 साल से अपनी पहचान और अपने वजूद, अपनी जड़ें ढूंढ़ रही थी?’’

अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था. जिया ने गुलाबी और नारंगी चंदेरी सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी. साथ में कुंदन का मेल खाता सैट, हीरे के कड़े और ढेर सारी चूडि़यां. आज उस के चेहरे पर ऐसी आभा थी कि सब लोग उस के आगे फीके लग रहे थे. रंगोली

बनाने के बाद जिया ने अभिषेक को उस के साथ चलने को कहा, तो अभिषेक कार की चाबी उठा चल पड़ा.

जिया हंस कर बोली, ‘‘आज मैं तुम्हें अपने साथ अपनी कार में ले कर चलना चाहती हूं.’’

अभिषेक चल पड़ा. थोड़ी ही देर में कार हवा से बातें करने लगी और कुछ देर बाद कार नई बस्ती की तरफ चलने लगी. कार ड्राइव करते हुए जिया बोली, ‘‘अभिषेक, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम ने हमेशा हर तरह से मेरा खयाल रखा पर बचपन से मेरा एक सपना था जो मेरी आंखों में पलता रहा. मांपापा ने कहा कि तुम्हारा घर वह होगा, जहां तुम जा कर एक घर बनाओगी. तुम मिले, तो लगा मेरा सपना पूरा हो गया, पर अभिषेक कुछ दिनों बाद समझ आ गया कि कुछ सपने होते हैं जो साझा नहीं होते. शादी का मतलब यह नहीं कि तुम्हारे सपनों का बोझ तुम्हारा जीवनसाथी भी उठाए. मुझे तुम से या किसी से भी कोई शिकायत नहीं है. पर अभिषेक आज मेरा एक सपना पूरा हुआ है,’’ यह कह उस ने एक नई बनी सोसाइटी के सामने कार रोक दी. अभिषेक चुपचाप उस के पीछे चल पड़ा. एक नए फ्लैट के दरवाजे पर उस के नाम की नेमप्लेट लगी थी.

अभिषेक हैरानी से देख रहा था. छोटा पर बेहद खूबसूरती से सजा हुआ प्लैट. तभी हवा का झोंका आया तो चंदेरी के फीरोजी परदे जिया के अपने घर में लहराने लगे, जहां पर उस का अधिकार घर पर ही नहीं वरन उस की आबोहवा पर भी था.

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