सीक्रेट: रौकी और शोमा के बीच क्या था रिश्ता

आज सुबह वह रोज से जरा जल्दी जाग गई. उस ने झट से दरवाजा खोला और बाहर पड़े अखबार को उठा लाई. अखबार के एकएक पन्ने को वह बारीकी से देखने लगी. तभी एक कुटिल सी मुसकान उस के होंठों पर तैर गई.

उस की मां रसोई से पुकार रही थी, ‘‘शोमा…शोमा, तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है. रसोई में आ कर ले जाओ. ’’

पर शोमा तो खबर पढ़ने में मशगूल थी. पूरी खबर पढ़ कर बोली, ‘‘मां, क्यों शोर मचा रही हो? मेरे तो कान पक गए.’’

‘‘तुम्हारे कान पक गए और मेरी जीभ में छाले न पड़े तुम्हें पुकारपुकार कर? उलटा चोर कोतवाल को डांटे… इतनी जोर से पुकारा तो तुम्हें अब सुनाई दिया,’’ शोमा की मां ने उलाहना देते हुए कहा.

‘‘मां, क्यों नाराज होती हो. अखबार पढ़ रही थी और तुम हो कि लगातार बोलबोल कर खबरों का मजा किरकिरा कर रही थीं.’’

‘‘लो जी, यह भी मेरा ही दोष? क्या मिलेगा इन खबरों से? एक तो भरी सर्दी में गरमगरम चाय बना कर दो ऊपर से इन का खबरों का मजा किरकिरा हो गया…ऐसी कौन सी खास खबर आ गई आज अखबार में कि तुम मुंह अंधेरे उठ कर सब से पहले अखबार टटोलने लगीं?’’

‘‘खबरें तो खास ही होती हैं मां. तुम मुझे बोलने का मौका दो तो मैं तुम्हें बताऊं. मुझे जल्दी से बाहर जाना है. अब तुम सुनो तो मैं आगे की कहानी कहूं?’’

‘‘हां, कहो जल्दी से.’’

‘‘मां, मेरा वह क्लासमेट है न रौकी, जो हीरो जैसा दिखता है और तुम अकसर जिस के बालों का मजाक बनाया करती हो…’’

‘‘कौन रौकी?… अरे, वह बाइक वाला? जो पहले तुम पर कुछ खास मेहरबान था?’’

‘‘हां मां, वही जो मुझ पर बहुत फिदा था. उस का ऐक्सीडैंट हो गया. अखबार में अभी खबर पढ़ी. शायद शराब पी कर बाइक चला रहा था. उस से मिलने अस्पताल जाना होगा. सोचा कालेज जाने से पहले यह काम पूरा कर दूं, वरना उस से मिलने के लिए कालेज बंक करना पड़ेगा.’’

‘‘ओह, तो क्या इतना जरूरी है तुम्हारा अस्पताल जाना? अब तो तुम से

उस की कुछ खास बोलचाल भी नहीं…’’

‘‘इसलिए तो जरूरी है मां, वरना मेरे दूसरे दोस्त सोचेंगे कि मैं मन ही मन उस से चिढ़ती हूं. जबकि मेरे मन में तो उस के लिए कुछ बुरे भाव हैं ही नहीं? मां, दुनियादारी निभाने के लिए यह सब करना पड़ता है.’’

‘‘बात तो तुम ठीक कहती हो… ठीक है तुम नहा लो मैं तुम्हारा टिफिन पैक कर देती हूं.

शोमा तैयार हो कर अस्पताल पहुंची. वहां पहले से ही कई मित्रों का जमावड़ा लगा हुआ था. रौकी ने जैसे ही शोमा को देखा, तो बिस्तर से उठने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘अरे, शोमा तुम.’’

‘‘लेटे रहो रौकी,’’ इतना कह वह उसके बैड के पास पहुंच गई. हाथ में फूलों का गुलदस्ता थमाया और पूछा, ‘‘कैसे हो गया यह सब?’’

‘‘क्या बताऊं…’’ इससे पहले कि रौकी कुछ बताता दूसरा दोस्त चुटकी लेते हुए बोला, ‘‘शायद बड़ी पार्टी की थी इस ने. ज्यादा ही पी ली थी. उड़ाउड़ा फील कर रहा था. बिलकुल लाइट…’’ और सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘तुम्हें पहले भी कितनी बार कहा रौकी, शराब पी कर बाइक मत चलाया करो.’’

शोमा की बात बीच में काटते हुए उस की दोस्त बोली, ‘‘अब नहीं चलाएगा. एक बार प्रसाद तो चख लिया. असल में अक्ल ठोकर खाने से ही आती है. समझाने से कौन समझता है भला,’’ उस ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

फिर से सब जोर का ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘शर्म नहीं आ रही तुम सब को? मैं यहां अस्पताल में बिस्तर पर पड़ा दर्द से तड़प रहा हूं और तुम ठहाके लगा रहे हो…कैसे मित्र हो तुम सब मेरे?’’

‘‘मित्र ऐसे ही होते हैं, जो दर्द में पड़े दोस्त को ठहाके लगालगा कर उस का दर्द ही भुला दें,’’ और फिर अस्पताल के कमरे में जोर का ठहाका गूंज उठा.

‘‘ओके बाय, टेक केयर रौकी. मैं चलती हूं. कुछ हैल्प चाहिए हो तो बोलना,’’ शोमा ने अपना हाथ वेव करते हुए कहा, तो रौकी ने भी मुसकराते हुए उसे वेव कर दिया. सभी दोस्त एकसुर में बोले, ‘‘बाय शोमा.’’

वहां से निकल उस ने अपनी स्कूटी कालेज के रास्ते पर दौड़ा दी. अचानक ही उस के चेहरे के भाव बदल गए. भवें कुछ तन गईं और मुंह से निकला, ‘‘बेचारा. अब कर मजा अस्पताल में 1 महीना तो रहना ही पड़ेगा बच्चू.’’

शाम को जब वह घर पहुंची तो बहुत रिलैक्स फील कर रही थी… रोज की तरह उस के चेहरे पर परीक्षा के लिए तैयारी करने की चिंता रेखाएं नहीं थीं.

उस ने कौफी बनाई और बालकनी में जा कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी.

‘‘आज जिम नहीं जाओगी क्या?’’ मां ने शोमा को बैठे देख कर पूछा.

‘‘नहीं मां.’’

‘‘क्यों?’’ मां ने ऐनक चढ़ाते हुए तिरछी नजरों से देखा. रोज तो उड़नतश्तरी बनी भागीभागी कहती हो कि कौफी बना दो मां मैं लेट हो जाऊंगी. फिर ट्रेनर चला जाता है. आज क्या खास हो गया कि इतनी बेफिक्र हो?’’

‘‘अब मैं परफैक्ट फिट हो गई हूं मां. ट्रेनर ने ही बोला. अब मैं बिना उस की ट्रेनिंग ही अपनेआप को फिट रख सकती हूं, फिजिकली और मैंटली भी.’’

‘‘फिजिकली और मैंटली भी?’’

‘‘फिजिकली तो समझ आया पर मैंटली कैसे?’’

‘‘मां तुम नहीं समझोगी. जाने दो.’’

‘‘अरे, कैसे नहीं समझूंगी? पर तुम मुझे कुछ बताओ तो समझूं न. क्या जमाना आ गया बच्चे अपने मांबाप से कुछ शेयर ही नहीं करना चाहते.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो तुम मां. सब कुछ तो शेयर करती हूं मैं तुम से.’’

‘‘फिर बताती क्यों नहीं कि आज क्या खास बात है? तुम्हारे रोज के व्यवहार और आज के व्यवहार में बहुत फर्क है.’’

‘‘कैसा फर्क मां? रोज जैसे ही तो हूं.’’

‘‘तेरी मां हूं मैं. तुम्हारी नसनस पहचानती हूं. आज तुम्हारे चेहरे पर निश्ंिचतता के भाव हैं. रोज की तरह खामोशी नहीं. क्या रौकी से सुलह हो गई? तुम सुबह उस से मिलने अस्पताल गई थी न? क्या बात हुई? कैसा है वह अब? जब से उस से तुम्हारी दूरियां बढ़ीं तुम्हारे चेहरे की रंगत तो जैसे ढल ही गई… वह तो अच्छा हुआ तुम ने पत्रिकाएं व अच्छा साहित्य पढ़ना शुरू किया और जिम जा कर अपनेआप को फिट रखना शुरू किया.’’

शोमा अपनी मां की बात सुनते हुए बिलकुल खामोश थी. भावशून्य उस का चेहरा. न जाने उस की आंखें कहां खोई हुई थीं.

‘‘बेटा, बताती क्यों नहीं… क्या बात हुई रौकी से?’’ तुम्हारी मां हूं मैं और सिर्फ मां ही नहीं तुम्हारी दोस्त भी हूं.’’

‘‘मां तुम से क्या छिपाना… तुम तो मेरी धड़कन, मेरी नब्ज सब पढ़ लेती हो.’’

‘‘तुम्हें याद है मां पिछले वर्ष नए साल की पार्टी में मैं उस के साथ गई थी और पार्टी खत्म होने पर वह मुझे घर छोड़ने आया था.’’

पिछला भाग पढ़ने के लिए- सीक्रेट भाग-1

लेखक- रोचिका अरुण शर्मा

‘‘लेकिन घर छोड़ने से पहले रास्ते में उस ने एक जगह बाइक रोकी और मुझ से बोला कि मेरे दोस्त को कुछ खास पेपर देने हैं. सिर्फ 5 मिनट का काम है. वह मुझे अपने दोस्त के घर अंदर ले गया. टेबल पर कुछ कागजात रख वह रसोई में गया. उस ने स्वयं फ्रिज से निकाल कर पानी पीया और मुझे भी दिया. जब मैं ने पूछा कि तुम्हारा दोस्त कहां है रौकी तो उस ने बिना कुछ जवाब दिए पानी का गिलास मेरी तरफ बढ़ा दिया. पार्टी में हम भारी खाना खा कर, खूब नाचकूद कर आए थे. प्यास मुझे भी लगी थी, इसलिए मैं ने भी पानी पी लिया. उस के बाद मुझे चक्कर सा आने लगा.’’

‘‘जब मैं होश में आई, मेरे कपड़े खुले हुए थे और रौकी मेरे पास लेटा हुआ था. मैं ने होश में आते ही उस से खूब झगड़ा किया. खूब रोई भी पर कोई असर नहीं हुआ. और तो और उस ने मुझ से माफी मांगने की भी जरूरत नहीं समझी. उस ने मुझे नशीली ड्रिंक पिला कर मुझ से बलात्कार किया था मां.’’

‘‘क्या? और तुम मुझे अब बता रही हो?’’ मां की आंखें फटी की फटी रह गई थीं.

‘‘हां मां… उस के बाद सुबह वह मुझे घर छोड़ गया.’’

‘‘तुम ने उसी दिन क्यों नहीं बताया यह सब? मां तिलमिला उठी थी.’’

‘‘क्या फायदा मां. तुम परेशान होतीं. ’’

‘‘मैं जानती थी कि यदि मैं तुम्हें बताऊंगी तो सब से पहले तो तुम स्वयं डर जाओगी और फिर समाज, इज्जत का वास्ता दे कर मुझे भी डराओगी. लेकिन मैं इस दुर्घटना के बाद डरी नहीं मां. मैं ने रौकी से बोलचाल बंद कर दी.’’

‘‘अच्छा किया. ऐसे दोस्त का क्या फायदा?’’

‘‘मां, मुझे किताबें पढ़ने की आदत तो थी ही. सस्पैंस स्टोरीज पढ़पढ़ कर मेरे दिमाग में एक दिन खयाल आया, ‘जैसे को तैसा’ और बस मैं ने मन ही मन एक योजना बना डाली.’’

‘‘मैं ने जिम जौइन किया. वहां वेट ट्रेनिंग ले कर अपनेआप को मानसिक व शारीरिक रूप से मजबूत बनाया.’’

‘‘जिम का ट्रेनर ऐक्सरसाइज शुरू करवाने के पहले व बाद में

अकसर स्ट्रैचिंग कराया करता था. कई बार वह मेरी दोनों बांहों को पीछे मोड़ कर हाथ जुड़वाता. शुरू में मुझे तकलीफ होती थी, क्योंकि मेरे शरीर में लचक नहीं थी. वह मुझे रोज धीरेधीरे उस की प्रैक्टिस करवाता और कहता कि एक बार में जोर से स्ट्रैच न करना वरना कंधे की हड्डियां टूट जाएंगी. इस स्ट्रैचिंग के लिए हड्डियों में लाचीलापन होना जरूरी है.’’

‘‘मैं ने अपनी पहली योजना में फिर कुछ और नया जोड़ दिया. पिछले पूरे 1 वर्ष में मैं ने मन ही मन उस बलात्कार के दंश को झेला है. कैसे एक दोस्त पुरुष अपनी महिला दोस्त का बलात्कार कर सकता है, मैं तो रौकी पर पूरा भरोसा किया करती थी. तभी तो उस के साथ रात के समय पार्टी के लिए चली गई थी.’’

‘‘वही तो सोचने की बात है. देखनेबोलने में इतना सभ्य, सलीकेदार रौकी इतनी घिनौनी हरकत करेगा, सोच भी नहीं सकती थी,’’ मां ने नाकमुंह सिकोड़ कर कहा.

‘‘मां, उस ने मेरा भरोसा तोड़ा है. और न सिर्फ भरोसा, बल्कि मैं किसी और का भरोसा कर सकूं इस लायक भी न छोड़ा. अपने साथ पढ़ने वाले हर लड़के को अब मैं उसी नजर से देखती हूं. कई बार सोचती हूं कि यदि एक लड़का ऐसा है तो इस का मतलब यह नहीं कि सभी ऐसे ही होंगे. पर बारबार समझाने पर भी मन के किसी कोने में एक डर तो बैठ ही गया और इस का जिम्मेदार सिर्फ रौकी है. जिस दिन जिम ट्रेनर ने स्ट्रैचिंग के गुर सिखाए मेरा इरादा पक्का होता चला गया.’’

‘‘मैं ने रौकी से फिर से बोलचाल शुरू की. उसे व्हाट्सऐप पर फिर से मैसेज करने लगी. शुरू में तो वह आश्चर्यचकित हो गया कि मैं फिर से उस से बोलने लगी लेकिन धीरेधीरे सब नौर्मल होने लगा. मैं अपने लड़की होने के गुणों का इस्तेमाल करने लगी और उसे अपनी और आकर्षित करने के सब नुसखे अपना डाले. जब मुझे भरोसा हो गया कि अब वह मेरे प्रेम जाल में फंस गया है तब एक दिन उसे एक हौट मैसेज भेज दिया. उस मैसेज को पढ़ कर वह फिर से मुझ से अकेले मिलने को आतुर हो उठा और मैं भी यही चाहती थी. मैं ने कालेज में उस से मिल कर उस के साथ डेट फिक्स की और एक एकांत सी जगह पर पूरे दिन की पिकनिक का प्लान बना लिया. वह बहुत खुश हो गया.

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‘‘नियत दिन हम दोनों पिकनिक के लिए गए. एकांत में खूब सारी बातें की. साथ में खायापीया. नशे का शौकीन तो वह है ही सो मैं ने उसे ड्रिंक औफर किया. वह गटागट पीता गया और मेरे करीब आने लगा. मैं ने उसे अपने करीब आने से रोका भी नहीं. कुछ देर के बाद उसे अपनेआप पर कंट्रोल न रहा और मैं तो इसी वक्त का इंतजार कर रही थी. मैं ने उसे पेट के बल उलटापटका. उस के हाथ पीछे को घुमाए और पूरी ताकत के साथ जोर से घुमा दिए. कड़ककड़क की आवाज के साथ उस की हड्डियां टूट चुकी थीं.

‘‘उस के बाद मैं ने उस की बाइक उठाई, स्टार्ट की और पीछे की तरफ ले गई. वह जंगल का सुनसान रास्ता था. वहां कोई आवाजाही भी नहीं थी. मैं ने बाइक को चलती हालत में छोड़ दिया. थोड़ी देर बाइक सीधे चली और फिर घिसटती हुई सड़क के किनारे जा गिरी. उस के बाद मैं रोडवेज की बस में बैठ कर अपने घर आ गई.’’

‘‘ओह! तो तुम इसीलिए रात घर पर देर से आई थी और मैं पूरा दिन तेरी चिंता करती रही. तुझे फोन भी किया तो वह स्विच औफ दिखाता रहा.’’

‘‘हां मां, तुम ने ठीक समझा.’’

‘‘पर बेटी यह तो गुनाह है,’’ मां सिर पकड़ कर बोलीं.

‘‘हां, मां जो मैं ने किया वह गुनाह है और जो उस ने किया क्या वह धर्म था? शोमा तुनक कर बोली. उस के नथुने फूल गए थे. आंखें आग उगल रही थीं.’’

‘‘उस ने जो किया उसे वही मिला.’’

‘‘पर बेटी फिर जब तुम उस से अस्पताल मिलने गई तब वह कुछ बोला नहीं तुम से?’’

‘‘किस मुंह से बोलेगा मां? मैं सब के सामने उस से मुसकरा कर मिली.

जैसे पहले मिलती थी. सब को यह मालूम है कि हमारी सुलह हो चुकी है और जब वह अस्पताल पहुंचा वह नशे की हालात में था. आसपास के गांव के लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया था. उस की बाइक रगड़ खाती हुई गिरी थी, जिस से साफ जाहिर था कि वह नशे की हालत में बाइक चला रहा था,उस का बैलेंस बिगड़ा और ऐक्सीडैंट हो गया. अखबार की खबर भी तो यही बताती है. यह देखो मां,’’ उस ने अखबार दिखाते हुए कहा.

‘‘उस के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं कि जिस से वह कह सके कि मैं उस दिन उस से मिली भी थी. इस मुलाकात को मैं ने उसे सीक्रेट रखने को कहा था. अपने दोस्तों को मैं ने बताया कि मैं 2 दिन कालेज नहीं आउंगी, क्योंकि अपने रिश्तेदार के यहां पास के गांव मे ंजा रही हूं. बाकायदा मैं ने बस के आने और जाने के टिकट भी खरीदे और उसी टिकट से मैं बस में बैठ कर वापस आई. सब से बड़ी बात तो यह है कि रौकी सब जानते हुए भी मुंह नहीं खोल सकता, क्योंकि इस से उसी की इज्जत का कचरा होने वाला है. यदि उस ने अपना मुंह खोला तो मैं उस की बलात्कार वाली पोलपट्टी खोल दूंगी. बलात्कार वाले दिन के कपड़े मैं ने संभाल कर रखे हैं मां.’’

‘‘पर बेटी तुम में ये सब करने की हिम्मत कहां से आ गई?’’

‘‘क्या करती मां, सारी जिंदगी घुटघुट कर इस दंश को झेलती? यदि यह बात किसी और से साझा करती तो दुनिया भर के ताने सुनती. लोग मुझे ही दोष देते कि आखिर इतनी रात गए मैं उस के साथ गई ही क्यों थी.

‘‘मैं जानती थी मुझे सहानुभूति तो कहीं से मिलेगी नहीं, बल्कि इस दुर्घटना का जिम्मेदार भी मुझे ही ठहराया जाएगा. सिर्फ चेहरे की ही रंगत नहीं मां, मेरी आत्मा को भी लहूलुहान किया था रौकी ने. आज मुझे उस पुराने दर्द से मुक्ति मिली है.

‘‘न जाने कितनी मासूम बच्चियां और महिलाएं इस दंश को झेलती होंगी और न जाने कितनी अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेती होंगी? तो फिर मैं भी उन्हीं महिलाओं के नक्शेकदम पर चलूं? जिस ने पाप किया फल भी वही भुगते. सो जैसा उस ने किया वैसा उस ने पाया. मैं अपनेआप को इस में दोषी नहीं समझती हूं मां और तुम भी मुझ पर दोष मढ़ने की कोशिश न करना. हां, एक बात और… यह बात मेरे और आप के बीच रहनी चाहिए.’’

इस के बाद जो होगा मैं उस से भी निबट लूंगी. बस तुम्हारा दिया हौसला चाहिए.’’

मां ने उसे सीने से लगा लिया था और वह आंसू बहाती हुई मुसकरा रही थी.

‘‘शोमा का हौट मैसेज पढ़ कर रौकी उस से अकेले में मिलने को आतुर हो उठा…’’

चरित्र: क्यों देना पड़ा मणिकांत को अपने चरित्र का प्रमाण

लेखक- अनिल के. माथुर

‘‘उफ, इसे भी अभी ही बजना था,’’ आटा सने हाथों से ही मधु ने दरवाजा खोला. सामने मणिकांत खड़ा था, जो उसी के कालिज में लाइब्रेरी का चपरासी था.

‘‘तुम…’’ बात अधूरी छोड़ मधु रोते विशू को उठाने लपकी मगर अपने आटा सने हाथ देख कर ठिठक गई. परिस्थिति को भांपते हुए मणिकांत ने अपने हाथ की पुस्तकें नीचे रखीं और विशू को गोद में उठा कर चुप कराने लगा.

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर मधु हाथ धोने रसोई में चली गई. एक मिनट बाद ही तौलिए से हाथ पोंछते हुए वह फिर कमरे में आई और मणिकांत की गोद से विशू को ले लिया.

‘‘मैडम, आप ये पुस्तकें लाइब्रेरी में ही भूल आई थीं,’’ पुस्तकों की ओर इशारा करते हुए मणिकांत ने कुछ इस तरह से कहा मानो वह अपने आने के मकसद को जाहिर कर रहा हो.

मधु को याद आया कि पुस्तकें ढूंढ़ कर जब वह उन्हें लाइब्रेरियन से अपने नाम इश्यू करवा रही थी तभी उस का मोबाइल बज उठा था. लाइब्रेरी की शांति भंग न हो इसलिए वह बात करती हुई बाहर आ गई थी. पति सुमित का फोन था. वह आफिस के कुछ महत्त्वपूर्ण लोगों को डिनर पर ला रहे थे. मधु को जल्दी

घर पहुंचना था. जल्दबाजी में वह अंदर से पुस्तकें लेना भूल गई और सीधे घर आ गई थी.

‘‘अरे, यह तो मैं कल ले लेती, पर तुम्हें मेरे घर का पता कैसे चला?’’

‘‘जहां चाह वहां राह. किसी से पूछ लिया था. लगता है आप खाना बना रही हैं. बच्चे को तब तक मैं रख लेता हूं,’’ मणिकांत ने विशू को गोद में लेने के लिए दोनों हाथ आगे बढ़ाए तो मधु पीछे हट गई.

‘‘नहीं…नहीं, मैं सब कर लूंगी. मेरा तो यह रोज का काम है. तुम जाओ,’’ दरवाजा बंद कर वह विशू को सुलाने का प्रयास करने लगी. विशू को थपकी देते हाथ मानो उस के दिमाग को भी थपथपा रहे थे.

उस की जिंदगी कितनी भागम- भाग भरी हो गई है. बाई तो बस, बंधाबंधाया काम करती है, बाकी सब तो उसे ही देखना पड़ता है. सुबह जल्दी उठ कर लंच पैक कर सुमित को आफिस रवाना करना, विशू को संभालना, खुद तैयार होना, विशू को रास्ते में क्रेच छोड़ना, कालिज पहुंचना, लौटते समय विशू को लेना, घर पहुंच कर सुबह की बिखरी गृहस्थी समेटना और उबासियां लेते हुए सुमित का इंतजार करना.

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थकेहारे सुमित रात को कभी 10 तो कभी 11 बजे लौटते. कभी खाए और कभी बिना खाए ही सो जाते. मधु जानती थी, प्राइवेट नौकरी में वेतन ज्यादा होता है तो काम भी कस कर लिया जाता है. यद्यपि पहले स्थिति ऐसी नहीं थी. सुमित 8 बजे तक घर लौट आते थे और शाम का खाना दोनों साथ खाते थे. लेकिन जब से सुमित की कंपनी के मालिक की मृत्यु हुई थी और उन की विधवा ने सारा काम संभाला था तब से सुमित की जिम्मेदारियां भी बहुत बढ़ गई थीं और उस ने देरी से आना शुरू कर दिया था.

मधु शिकायत करती तो सुमित लाचारी से कहते, ‘‘क्या करूं डियर, आना तो मैं भी जल्दी चाहता हूं पर मैडम को अभी काम समझने में समय लगेगा. उन्हें बताने में देर हो जाती है.’’

एक विधवा के प्रति सहज सहानुभूति मान कर मधु चुप रह जाती.

शादी से पहले की प्रवक्ता की अपनी नौकरी वह छोड़ना नहीं चाहती थी. उस का पढ़ने का शौक शादी के बाद तक बरकरार था. इसलिए अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से समय निकाल कर वह लाइब्रेरी से पुस्तकें लाती रहती थी और देर रात सुमित का इंतजार करते हुए उन्हें पढ़ती रहती. हालात से अब उस ने समझौता कर लिया था. पर कभीकभी कुछ बेहद जरूरी मौकों पर उसे सुमित की गैरमौजूदगी खलती भी थी.

उस दिन भी वह आटो में गृहस्थी का सारा सामान ले कर 2 घंटे बाद घर लौटी तो थक कर चूर हो चुकी थी. गोद में विशू को लिए उस ने दोनों हाथों में भरे  हुए थैले उठाने चाहे तो लगा चक्कर खा कर वहीं न गिर पड़े. तभी जाने कहां से मणिकांत आ टपका था.

तुरतफुरत मणिकांत ने मधु को मय सामान और विशू के घर के अंदर पहुंचा दिया था. शिष्टतावश मधु ने उसे चाय पीने के लिए रोक लिया. वह चाय बनाने रसोई में घुसी तो विशू ने पौटी कर दी. मधु उस के कपड़े बदल कर लाई तब तक देखा मणिकांत 2 प्यालों में चाय सजाए उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘अरे, तुम ने क्यों तकलीफ की? मैं तो आ ही रही थी,’’ मधु को संकोच ने आ घेरा था.

‘‘तकलीफ कैसी, मैडम? आप को इतना थका देख कर मैं तो वैसे भी कहने वाला था कि चाय मुझे बनाने दें, पर…’’

‘‘अच्छा, बैठो. चाय पीओ,’’ मधु ने सामने के सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘अच्छा, तुम इधर कैसे आए?’’

‘‘इधर मेरा कजिन रहता है. उसी से मिलने जा रहा था कि आप दिख गईं,’’ चाय पीते हुए मणिकांत ने पूछा, ‘‘मैडम, साहब कहीं बाहर नौकरी करते हैं?’’

‘‘अरे, नहीं. इसी शहर में हैं पर दफ्तर में बहुत व्यस्त रहते हैं इसलिए घर देर से आते हैं. सबकुछ मुझे ही देखना पड़ता है,’’ मधु कह तो गई पर फिर बात बदलते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘मांपिताजी हैं, जो गांव में रहते हैं. शादी अभी हुई नहीं है. थोड़ा पढ़ालिखा हूं इसलिए शहर आ कर नौकरी करने लगा. पढ़नेलिखने का शौक है इसलिए पुराने मालिक ने यहां लाइब्रेरी में लगवा दिया,’’ कहते हुए मणिकांत उठ खड़ा हुआ. मधु उसे छोड़ने बाहर आई. उसे वापस उसी दिशा में जाते देख मधु ने टोका, ‘‘तुम अपने कजिन के यहां जाने वाले थे न?’’

‘‘हां…हां. पर आज यहीं बहुत देर हो गई है. फिर कभी चला जाऊंगा.’’

उस का रहस्यमय व्यवहार मधु की समझ में नहीं आ रहा था. उसे तो यह भी शक होने लगा था कि वह अपने कजिन से नहीं बल्कि उसी से मिलने आया था.

रात को मधु ने सुमित को मणिकांत के बारे में सबकुछ बता दिया.

‘‘भई, कमाल है,’’ सुमित बोले, ‘‘एक तो बेचारा तुम्हारी इतनी मदद कर रहा है और तुम हो कि उसी पर शक कर रही हो. खुद ही तो कहती रहती हो कि मैं गृहस्थी और विशू को अकेली ही संभालतेसंभालते थक जाती हूं. कोई हैल्पिंगहैंड नहीं है. अब यदि यह हैल्पिंग- हैंड आ गया है तो अपनी शिकायतों को खत्म कर दो. चाहो तो उसे काम के बदले पैसे दे दिया करो ताकि तुम्हें उस से काम लेने में संकोच न हो.’’

‘‘हूं, यह भी ठीक है,’’ मधु को सुमित की बात जंच गई.

अब मधु गाहेबगाहे मणिकांत की मदद ले लेती. वह तो हर रोज आने को तैयार था पर मधु का रवैया भांप कम ही आता था. हां, जब भी मणिकांत आता मधु के ढेरों काम निबटा जाता. कभी बिना कहे ही शाम को ढेरों सब्जियां ले कर पहुंच जाता. मधु उसे हिसाब से कुछ ज्यादा ही पैसे पकड़ा देती. फिर वह देर तक विशू को खिलाता रहता, तब तक मधु सारे काम निबटा लेती. फिर मधु उसे खाना खिला कर ही भेजती थी.

पैसे लेने में शुरू में तो मणिकांत ने बहुत आनाकानी की पर जब मधु ने धमकी दी कि फिर यहां आने की जरूरत नहीं है तो वह पैसा लेना मान गया. विशू भी अब उस से बहुत हिलमिल गया था. मधु को भी उस की आदत सी पड़ गई थी.

मणिकांत का पढ़ने का शौक भी मधु के माध्यम से पूरा हो जाता था क्योंकि वह लाइब्रेरी से अच्छी पुस्तकें चुनने में उस की मदद करती थी. किसी पुस्तक के बारे में उसे घंटों समझाती. इस तरह अपनी नीरस जिंदगी में अब मधु को कुछ सार नजर आने लगा था.

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वह मणिकांत को छोटे भाई की तरह स्नेह करने लगी थी. मणिकांत के मुंह से भी अब उस के लिए मैडम की जगह दीदी संबोधन निकलने लगा था जिसे सुन कर मधु का मन बड़ी बहन के बड़प्पन से फूल उठता. सुमित भी खुश था क्योंकि अब उस के देर से लौटने पर भी मधु खुशी मन से उस का स्वागत करती थी. वरना पहले तो वह शिकायतों का अंबार लगा देती थी. लेकिन आश्चर्य की बात थी कि इतने लंबे समय में भी सुमित और मणिकांत का अभी तक आमनासामना नहीं हुआ था. कारण, एक तो वह छुट्टी वाले दिन नहीं आता था. दूसरे, वह कभी देर रात तक नहीं रुकता था.

सुमित को मणिकांत से मिलवाने के लिए मधु ने एक रविवार मणिकांत को लंच के समय आने को कहा. नियत समय पर मणिकांत तो पहुंच गया लेकिन आफिस से जरूरी फोन आ जाने के कारण सुमित उस के आने से पहले ही निकल गए. देर तक इंतजार कर आखिर मणिकांत बिना मिले ही चला गया जिस का मधु को भी बहुत अफसोस रहा.

इस घटना के कुछ दिन बाद मधु एक दिन कालिज पहुंची तो उसे लगा कि आज कालिज की फिजा कुछ बदली- बदली सी है. विद्यार्थी से ले कर साथी अध्यापक तक उसे विचित्र नजरों से घूर रहे थे. किसी अनहोनी की आशंका से पीडि़त मधु स्टाफरूम में जा कर बैठी ही थी कि एक चपरासी ने आ कर सूचित किया कि मैडम, प्रिंसिपल साहब आप को बुला रहे हैं. अनमनी सी वह चुपचाप उस के पीछेपीछे चल दी.

‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप जैसी जिम्मेदार और गंभीर व्यक्तित्व वाली प्रवक्ता ने इतना घटिया कदम क्यों उठाया?’’ बिना किसी भूमिका के प्रिंसिपल ने अपनी बात कह दी.

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‘‘जी?’’ मधु बौखला उठी, ‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘कालिज के एक अदने से चपरासी मणिकांत के संग नाजायज संबंध रखते हुए आप को शरम नहीं आई? विद्यार्थियों के सम्मुख यह कैसा आदर्श प्रस्तुत कर रही हैं आप?’’

‘‘आप होश में तो हैं? इतना गंदा आरोप लगाने से पहले आप ने कुछ सोचा तो होता,’’ क्रोध के आवेश में मधु थरथर कांप रही थी.

‘‘पूरी तहकीकात करने के बाद ही मैं आप से रूबरू हुआ हूं. आप के साथी अध्यापकों और विद्यार्थियों ने कई बार आप दोनों को अकेले बातचीत करते भी देखा है.’’

‘‘क्या किसी से बात करना गुनाह है?’’

‘‘आप के पड़ोसियों ने भी पूछताछ में बताया है कि वह अकसर आप के यहां आता है और आप के पति की गैरमौजूदगी में काफी वक्त वहां गुजारता है.’’

‘‘हां, तो इस से आप जो आरोप लगा रहे हैं वह तो सिद्ध नहीं होता. मणि मेरे छोटे भाई की तरह है और हम दोनों बहनभाई की तरह ही एकदूसरे का खयाल रखते हैं,’’ मधु गुस्से में बोली, ‘‘आप मणिकांत को बुलवाइए. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’

‘‘वह आज कालिज नहीं आया है. घर पर भी नहीं मिला. शायद भेद खुल जाने के भय से शहर छोड़ कर भाग गया है.’’

‘‘जब कोई भेद है ही नहीं तो खुलेगा क्या? हमारा रिश्ता शीशे की तरह पाकसाफ है. मेरे पति को भी मुझ पर पूरा विश्वास है. आज तक हमारे संबंधों को ले कर उन्होंने कभी कोई शक नहीं किया.’’

प्रिंसिपल मधु को ऐसे देखने लगे मानो सामने कोई पागल खड़ा हो.

‘‘क्या आप नहीं जानतीं कि आप पर चरित्रहीन होने का आरोप आप के पति ने ही लगाया है?’’

‘‘क्या?’’ मधु के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था.

‘‘वह आप से तलाक चाहते हैं,’’ प्रिंसिपल साहब बोले, ‘‘इसी बारे में साक्ष्य जुटाने सुमितजी कल कालिज आए थे. आप तब तक घर जा चुकी थीं. उन्होंने मणिकांत से आप के अवैध संबंधों के बारे में पूछताछ की. आप की चरित्रहीनता विद्यार्थियों पर गलत प्रभाव डाले, इस से पहले मैं चाहूंगा कि आप त्यागपत्र दे दें.’’

मधु किंकर्तव्यविमूढ़ बैठी रही. उसे गहरा मानसिक आघात लगा था.

‘‘मैं आप की मनोदशा समझ रहा हूं पर मजबूर हूं. अब आप जा सकती हैं.’’

लड़खड़ाते कदमों से मधु कैसे कालिज से निकली और कैसे घर पहुंची उसे खुद होश न था. उस की दुनिया उजड़ चुकी थी. अपने केबिन में बैठ कर कंपनी की उन्नति के लिए स्ट्रेटजी रचने वाला उस का पति उस के खिलाफ इतनी बड़ी स्ट्रेटजी रचता रहा और उसे भनक तक नहीं लगी. लेकिन सुमित ने यह सब किया क्यों? क्या मणिकांत उसी का आदमी था? सोचसोच कर मधु का भेजा घूम रहा था.

लाइब्रेरी और आफिस आदि में फोन से पूछताछ करने पर मधु को पता चला कि किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के सुमित साहब ने उसे कालिज लाइब्रेरी में लगवाया था. मधु का अगला दिन भी आंसू बहाने और तहकीकात करने में बीत गया. न मणिकांत मिला और न सुमित ही घर लौटे. सुमित के मोबाइल पर घंटी जाती रहती और फिर फोन कट जाता.

मधु की भूखप्यास गायब हो चुकी थी. आंखों से नींद उड़ चुकी थी. वह छत की ओर टकटकी लगाए लेटी थी. तभी दरवाजे पर ठकठक हुई.

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‘जरूर सुमित होंगे,’ सोच कर मधु ने लपक कर दरवाजा खोला. लेकिन सामने मणिकांत को देख वह एकबारगी स्तब्ध रह गई. फिर उस का कालर पकड़ कर 2-3 थप्पड़ जमा दिए.

‘‘आस्तीन के सांप, मेरी जिंदगी बरबाद कर देने के बाद अब यहां क्या लेने आए हो?’’

‘‘दीदी वो…’’

‘‘खबरदार जो अपनी गंदी जबान से मुझे दीदी कहा…’’

‘‘दीदी, प्लीज, मेरी बात तो सुनिए. मुझे खुद नहीं पता था कि सुमित साहब के इरादे इतने भयानक हैं.’’

‘‘कब से जानते हो तुम सुमित को?’’

‘‘मैं पहले उन्हीं के आफिस में काम करता था. उन के बारे में बहुत ज्यादा तो नहीं जानता था. बस, इतना पता था कि मालिक की मौत के बाद अब साहब ही कंपनी के कर्ताधर्ता हैं. मालकिन भी उन्हीं के इशारों पर नाचती हैं.

‘‘मैं अकसर आफिस में खाली समय में पुस्तकें पढ़ा करता था. सुमित साहब मेरे इस शौक से वाकिफ थे. उन्होंने मुझे इस के लिए कभी नहीं टोका जिस के लिए मैं उन का शुक्रगुजार था. एक दिन उन्होंने मुझे अकेले में बुलाया और कहा कि मुझे उन का एक काम करना होगा. आफिस में व्यस्तता की वजह से वह अपनी बीवी यानी आप की पर्याप्त मदद नहीं कर पाते जिस से आप काफी तनाव में रहती हैं. वह मुझे आप के कालिज में लगवा देंगे. मुझे धीरेधीरे आप को विश्वास में ले कर घर और विशू की देखभाल का काम संभालना होगा. लेकिन आप को कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

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‘‘ऐसा क्यों?’’ मधु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मुझे भी उन की यह बात समझ में नहीं आई थी. इसीलिए मैं ने भी यही सवाल किया था. तब उन्होंने बताया कि आप नौकर या आया रखने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि एक अनजान आदमी से आप को हमेशा घर और विशू की सुरक्षा की चिंता सताती रहेगी. इसलिए मुझे पहले जानेअनजाने आप की मदद कर आप का विश्वास जीतना होगा. इस कार्य में साहब ने मेरी पूरी मदद करने का भरोसा भी दिया क्योंकि वह आप को परेशान नहीं देख सकते थे.

‘‘उस रोज रविवार के दिन जब आप ने मुझे लंच पर साहब से मिलवाने की बात कही थी तो मुझे लगा शायद आज साहब आप के सामने अपने सरप्राइज का खुलासा करेंगे, लेकिन वह तो मेरे आने से पहले ही चले गए थे. सरप्राइज तो उन्होंने मुझे कल बुला कर दिया.

‘‘वह कंपनी की विधवा मालकिन से शादी रचा कर कंपनी के एकछत्र मालिक बनना चाहते हैं लेकिन इस के लिए उन्हें पहले आप से तलाक लेना होगा और इस के लिए उन के पास आप के खिलाफ ठोस साक्ष्य होने चाहिए. आप पर चरित्रहीनता का लांछन लगाने के लिए उन्होंने मुझे मोहरा बनाया. मैं तो यह सोच कर उन के इशारों पर चलता रहा कि एक नेक काम में मैं उन की मदद कर रहा हूं. पर छी, थू है ऐसे आदमी पर जो पैसे के लालच में इतना गिर गया है कि अपनी बीवी के चरित्र पर ही कीचड़ उछाल रहा है.’’

‘‘लेकिन उन्होंने तुम्हें कल क्यों बुलाया?’’

‘‘वह नीच आदमी चाहता है कि सचाई जानने के बाद भी मैं उस के इशारों पर काम करूं. उस ने 50 हजार रुपए निकाल कर मेरे सामने रख दिए और कहा कि वह और भी देने को तैयार है लेकिन मुझे अदालत में उस की हां में हां मिलानी होगी. बयान देना होगा कि आप चरित्रहीन हैं और आप मेरे संग…’’ शरम से मणिकांत ने गरदन झुका ली.

‘‘तो अब तुम क्या…’’ मधु ने थूक गटकते हुए बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘मेरा चरित्र उस नीच आदमी के चरित्र जितना सस्ता नहीं है, दीदी,’’ मणिकांत बोला, ‘‘पैसा होते हुए भी और पैसे के लालच में वह इतना गिर गया कि अपनी बीवी के चरित्र का सौदा करने लगा. ऐसा पैसा पा कर भी मैं क्या करूंगा जिस से इनसान इनसान न रहे, हैवान बन जाए. हालांकि बात न मानने पर उस ने मुझे जान से मारने की धमकी दी है पर मैं उसे उस के कुटिल मकसद में कामयाब नहीं होने दूंगा. इस के लिए चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े.’’

‘‘तुम्हें अपनी जान देने की जरूरत नहीं है, भाई,’’ मधु भावुक स्वर में बोली, ‘‘मुझे अब न उस आदमी की चाह है और न उस के पैसे की. इसलिए तलाक हो या न हो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं अपने विशू को ले कर यहां से बहुत दूर चली जाऊंगी. तुम भी उस की बात मान लो. पैसा सबकुछ तो नहीं होता लेकिन बहुतकुछ होता है. उस पैसे से एक नई जिंदगी शुरू करो.’’

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‘‘थूकता हूं मैं ऐसी नई जिंदगी पर. और आप यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हैं? अन्याय सहने वाला भी उतना ही दोषी है जितना कि अन्याय करने वाला. दीदी, यह पाठ भी आप ही ने तो मुझे पढ़ाया था. आप कुछ भी करें लेकिन मैं दुनिया को आप के चरित्र की सचाई बता कर रहूंगा और उस चरित्रहीन को समाज के सामने नंगा कर दूंगा.’’

आवेश से तमतमाते मणिकांत की बातों ने मधु को झकझोर कर रख दिया. उस के मानसपटल में बिजली कौंध रही थी और उस में एक ही वाक्य उभरउभर कर आ रहा था. करोड़ों की संपत्ति का स्वामी सुमित इस सद्चरित के स्वामी मणिकांत के सम्मुख कितना दीनहीन है.

Top 10 Best Crime Story In Hindi: धोखे और जुर्म की टॉप 10 बेस्ट क्राइम की कहानियां हिन्दी में

Crime Story in Hindi. इस लेख में आज हम आपको गृहशोभा की Top 10 Crime Story in Hindi 2022 की कहानियां बताएंगे. इन Crime Story में आपको समाज, परिवार और रिश्तों की आड़ में हुए धोखे और जुर्म की कहानी के बारे में बताएंगे, जिसे पढ़कर आपको थ्रिलर का एहसास होगा. साथ ही रिश्तों को लेकर सीख मिलेगी. इन Crime Stories को पढ़कर आप जीवन के कई पहलुओं से परिचित होंगे. तो अगर आप भी Crime Stories पढ़ने के शौकिन हैं तो पढ़िए गृहशोभा की Top 10 Crime Story in Hindi 2022.

1. सही रास्ता: आखिर चोर कौन था

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मुन्ना के पिता गरीब थे. उस पर जेब से इतनी बड़ी रकम के गायब होने से घर में हाहाकार मच गया. शक की सूईयां कभी मुन्ना पर तो कभी उस की अम्मा पर जातीं लेकिन चोर तो कोई और ही था.

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2. बड़ा जिन्न: क्या हुआ था सकीना के साथ

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सकीना के मां न बन पाने का कारण उस के ससुराल वाले एक जिन्न को समझ रहे थे. उस काल्पनिक जिन्न को भगाने के लिए उसे पीर साहब के पास भेजा गया. लेकिन वहां पर सकीना का सामना काल्पनिक जिन्न के बजाय एक जीतेजागते शैतान से हुआ.

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3. पिपासा: कैसे हुई थी कमल की मौत

crime story in hindi

मदन की जिंदगी में चमेली का आना किसी सुनहरी धूप से कम न था. उस पर कमल ने उस की जिंदगी को खुशियों से भर दिया था. पर कमल की रहस्यमयी मौत क्या उसे अशांत कर पाई?

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4. संपत्ति के लिए साजिश: क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

crime story in hindi

मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई थी कि भड़ोले से बच जाने वाला बच्चा आज कितना सुंदर जवान, बिलकुल अपने बाप गुलनवाज की तरह लग रहा था.

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5. महबूबा के प्यार ने बना दिया बेईमान: पुष्पक ने क्या किया था

crime story in hindi

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता.

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6. बदले की आग: क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

crime story in hindi

इकबाल को इस बात का एहसास था कि कि उसी की गलती से उसकी पत्नी और बेटी हुस्न के बाजार में पहुंची हैं. शायद इसी वजह से वह उन्हें वापस घर ले जाने आया था, लेकिन वे नहीं मानीं. इसके बाद जो हुआ, वह बहुत बुरा था…

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7. घुंघरू: राजा के बारे में क्या जान गई थी मौली

crime story in hindi

मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला, तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

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8. बहन का सुहाग: क्या रिया अपनी बहन का घर बर्बाद कर पाई

crime story in hindi

आनंद रंजन ने बड़ी बेटी निहारिका का बीए प्रथम वर्ष में एडमिशन बडे़ शहर लखनऊ में करा दिया, जहां उस की मुलाकात राजवीर सिंह से हुई. यही मुलाकात बाद में शादी में तबदील हो गई. जब रिया अपनी बहन निहारिका के घर आई तो जीजाजी की शानोशौकत देख वैसा ही पति चाहने लगी.

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9. माहौल: क्या 10 साल बाद सुलझी सुमन की आत्महत्या की गुत्थी

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सुमन की आत्महत्या की गुत्थी ने मुझे ऐसे उलझाया कि मैं मन ही मन कई तरह के कयास लगाता रहा कि आखिर सुमन ने आत्महत्या क्यों की? लेकिन सवाल ज्यों का त्यों बना रहा. आज 10 साल बाद यह गुत्थी सुलझ पाई और मैं यह जान कर अवाक रह गया.

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10. ठूंठ से लिपटी बेल : रूपा को किसका मिला साथ

crime story in hindi

33 वसंत देखने के बाद भी रूपा अविवाहित थी. सहारे की तलाश में भटकती रूपा को साथ मिला भी तो एक ऐसे अधेड़ ठूंठ का जिसे सिर्फ बेल से लिपटने की चाह थी.

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कातिल फिसलन: भाग 3- दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस

सलोनी की बात सुनते ही पास खड़ी महिला सिपाही ने उसे मारने के लिए हाथ ऊपर किया, लेकिन राम सिंह ने उसे रोक दिया और सलोनी से पूछा, ‘‘तो तुम्हारी उंगलियों के निशान उस छड़ पर कैसे आए?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम साहब… मुझे नहीं मालूम,’’ कहते हुए सलोनी फूटफूट कर रोने लगी. दारोगा राम सिंह बाहर निकला तो उस ने सुधीर को बच्चों के साथ थाने की बैंच पर बैठा पाया.

दारोगा राम सिंह ने सुधीर से कहा, ‘‘तुम अपने वकील से बात कर लो. अगर वकील रखने में पैसों की समस्या आ रही है तो कोर्ट में अर्जी दे देना. कोर्ट तुम को वकील मुहैया कराएगा.’’

दारोगा राम सिंह को उन लोगों से हमदर्दी होने लगी थी, क्योंकि उस ने सुखलाल का असली रूप वीडियो में देख लिया था, लेकिन सुधीर गुस्से में चिल्ला उठा, ‘‘मुझे कोई वकील नहीं करना साहब. मैं क्यों परेशान होऊं उस के लिए, जो उस सुखलाल के साथ गुलछर्रे उड़ाती थी और मुझे ही जेल भिजवा दिया था. हो गया होगा दोनों में पैसों को ले कर झगड़ा और यह खून हो गया.’’

‘‘ऐसा नहीं है सुधीर…’’ दारोगा राम सिंह ने उसे समझाया, ‘‘गैरकानूनी हथियार रखने के जुर्म में तुम्हारी जो गिरफ्तारी पहले हुई थी, वह सुखलाल ने केवल तुम्हारी बीवी को पाने के लिए साजिशन कराई थी. इस में तुम्हारी बीवी का कोई कुसूर नहीं था. वह बेचारी तो बस तुम्हारे लिए उस के आगे झुकती चली गई. वह तुम से और केवल तुम से ही प्यार करती है.’’

सुधीर हैरानी से दारोगा राम सिंह का मुंह ताकने लगा. राम सिंह ने सुखलाल के मोबाइल फोन में मिला वही वीडियो उस के आगे चला दिया.

‘‘नहींनहीं… बंद कीजिए इसे दारोगा बाबू,’’ वीडियो देखता हुआ सुधीर चिल्लाया. सलोनी के शरीर पर सुखलाल का हाथ लगने वाला सीन वह नहीं देख पाया और वहीं बैठ कर रोने लगा. सलोनी के प्रति उस का शक आंसुओं से बाहर निकल चुका था.

सुधीर बोला, ‘‘मैं तो उसी रात सुखलाल को मारने उस के कमरे में गया था साहब, जिस के अगले दिन उस की लाश मिली. उस समय वह सो रहा था, लेकिन कानूनी बंधन का डर मुझे रोकने में कामयाब हो गया और मैं घर से निकल कर पूरी रात तनाव में इधरउधर भटकता रहा.

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‘‘कल दोपहर को घर लौटने पर उस हैवान के मरने की खुशखबरी मिली. खैर, चाहे उसे मेरी सलोनी ने मारा हो या जिस ने भी, मैं उस का शुक्रगुजार हूं.’’

पिता को यों रोते देख साथ खड़े बच्चे और भी सहम गए. राम सिंह ने सुधीर को उठाया और लौकअप की ओर इशारा किया. उस का संकेत समझ कर सुधीर बेतहाशा सलोनी से मिलने भागा. सलोनी भी उसे देखते ही उस की ओर दौड़ी, लेकिन दीवार बनी सलाखों ने उस के पैर रोक दिए.

सुधीर उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘चिंता मत करना. चाहे जैसे भी हो, तुम को यहां से मैं छुड़ा कर ले जाऊंगा, वरना अपनी भी जान दे दूंगा,’’ इतना कह कर वह वहां से चल दिया.

कुछ दिन बीत गए. दारोगा राम सिंह का बचपन एक अनाथ के रूप में बीता था. मांबाप के बिना बच्चों की क्या हालत होती है, वह अच्छी तरह जानता था. सलोनी थाने में बंद थी और सुधीर वकील खोजने में. ऐसे में उस के बच्चे किस हाल में होंगे?

दारोगा राम सिंह को चिंता हुई तो वह अपनी पत्नी के साथ खानेपीने का कुछ सामान ले कर सुधीर के घर आया. उस का सोचना सही निकला और बच्चे बेसहारा जैसे घर में बैठे मिले.

दारोगा राम सिंह ने उन से पूछा, ‘‘पापा कहां हैं बेटा?’’

‘‘वे तो सुबह से बाहर गए हैं… हम को भूख लगी है, लेकिन पास वाली आंटी ने अभी तक खाना नहीं दिया,’’ बड़े वाले बेटे ने कहा.

दारोगा राम सिंह का कलेजा भर आया. उस ने अपनी बीवी की ओर देखा. राम सिंह की बीवी ने दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठाया और बोली, ‘‘मैं भी तो तुम्हारी आंटी हूं. देखो, मैं लाई हूं खाना.’’

वह उन को खाना खिलाने लगी. कुछ देर सकुचाने के बाद बच्चे उस से घुलनेमिलने लगे.

तभी छोटा वाला बेटा बोल पड़ा, ‘‘आंटीआंटी, मेरे भैया बहुत बहादुर हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या किया है भैया ने?’’

‘‘भैया ने उस विलेन अंकल को नीचे गिरा दिया, जो मम्मी को आएदिन परेशान करता था.’’

दारोगा राम सिंह को उस की यह बात सुन कर झटका लगा. उस ने तुरंत उस की ओर देखा, लेकिन फिर समझदारी से काम लेते हुए बड़े वाले बेटे से पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया जो तुम्हारा यह प्यारा सा छोटा भाई बता रहा है?’’

बड़ा वाला बेटा मुसकरा कर बोला, ‘‘अंकल, मम्मी कहती हैं कि मच्छर मारने वाली दवा पीने से आदमी मर जाता है, इसलिए मैं ने वही दवा उस विलेन अंकल के जूस में मिला दी थी. छोटे भाई ने तो मेरा फोटो भी लिया था.’’

दारोगा राम सिंह के कानों में जैसे बम फूट रहे थे. बड़े वाले बेटे ने उसे मोबाइल फोन में अपना वह फोटो भी दिखाया, जिस में वह सुखलाल के शराब की बोतल को जूस की बोतल समझ के उस में लिक्विडेटर मिला रहा था.

दारोगा राम सिंह कुछ और पूछता, इस से पहले ही छोटा वाला बेटा बोला, ‘‘रात को हम ने चुपके से सीढ़ी पर कंचे रख दिए थे… विलेन अंकल रोज की तरह बाथरूम जाने के लिए बाहर आए और फिसल कर नीचे गिर गए. इस का मैं ने वीडियो भी बनाया है. मेरे भैया… बहुत बहादुर…’’ कह कर वह ताली बजाने लगा.

दारोगा राम सिंह ने वीडियो लिस्ट से जल्दी से वह वीडियो खोजा. सचमुच उस में बड़ा वाला बेटा सीढ़ी पर कंचे रखता दिख रहा था और उस के तुरंत बाद सुखलाल अपना पेट पकड़े वहां आया क्योंकि लिक्विडेटर मिली शराब पी कर सोने के बाद शायद उस की तबीयत बिगड़ रही थी. उस का पैर इसी जल्दी में कंचों पर पड़ा और वह नीचे गिर गया, जहां जमीन पर पड़ी छड़ पेट में धंस गई होगी और वह मर गया.

चूंकि छड़ों के वे टुकड़े सलोनी ने ही उधर फेंके थे, सो उन पर उस की उंगलियों के निशान भी मिल गए, इस घटना का समय बिलकुल वही था जो पोस्टमार्टम में सुखलाल की मौत का बताया गया था.

‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया?’’ दारोगा राम सिंह ने बड़े बेटे से पूछा.

वह लड़का बोला, ‘‘वे विलेन अंकल मम्मी को हमेशा परेशान करते थे. मैं ने बहुत बार छिप कर देखा था. उस दिन मम्मी के सिर में उन्होंने ही चोट लगा दी थी. जब मैं स्कूल से आया तो पता चला और मुझे बहुत गुस्सा आया.’’

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‘‘और यह मोबाइल फोन कहां से मिला तुम को?’’

‘‘यह नानाजी ने हम को दिया है वीडियो गेम खेलने के लिए,’’ बड़े बेटे के कहने के बाद वे दोनों बच्चे फिर खाना खाने लगे.

दारोगा राम सिंह ने अपनी पत्नी की ओर देखा. वह भी हैरान थी. उस ने पूछा, ‘‘बचपन को क्या सजा दी जाएगी?’’

‘‘बचपन किलकने के लिए होता है…’’ दारोगा राम सिंह का चेहरा अब तनाव मुक्त दिखने लगा था. वह हंसते हुए बोला, ‘‘यह केस कानून के लिए एक हादसा माना जाएगा. इन बच्चों की मां भी कुछ दिनों में घर आ जाएगी.’’

कातिल फिसलन: भाग 2- दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस

तफतीश पूरी होने तक के लिए सुखलाल के कमरे को सील कर दारोगा राम सिंह वहां से चला गया.

दोपहर को अचानक सुधीर लौट आया. सलोनी भाग कर उस से लिपट गई और पूछा, ‘‘कहां चले गए थे आप अचानक आधी रात से?’’

‘‘दुकान के लिए निकलना है मुझे…’’ सुधीर ने बेरुखी से उसे खुद से अलग करते हुए कहा.

सलोनी उसे देखती रह गई. उस ने फिर बातों का सिलसिला शुरू करना चाहा, ‘‘अरे, पुलिस आई थी यहां. सुखलाल की मौत हो गई न आज…’’

‘‘हां, मुझे पता चला है पड़ोसियों से इस बारे में,’’ सुधीर ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘तुम को पैसे की तंगी हो जाएगी, फिर अब तो…’’

सलोनी उस की बात सुन कर सन्न रह गई. सुधीर तीखे लहजे में आगे बोला, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि हम को अब किराया नहीं मिल सकेगा न.’’

इतना कह कर सुधीर अपना थैला ले कर दुकान के लिए निकल गया. सलोनी उस के कहे का मतलब अच्छी तरह समझ रही थी. वह बच्चों को अपनी बांहों में भर कर उदास मन से फिर वहीं बैठ गई.

कुछ दिन ऐसे ही बीतते रहे. उधर सुखलाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. दारोगा राम सिंह उसे पढ़ने में लगा था. सुखलाल की मौत की वजह पेट में लोहे की छड़ धंसना बताई गई थी. बाकी शरीर पर लगी चोटें जानलेवा नहीं थीं. इस के अलावा एक बात जिस ने राम सिंह को चौंका दिया, वह थी सुखलाल के शरीर में मिली जहरीली चीज की मात्रा. जहरीली चीज भी क्या थी, घरों में मच्छर भगाने के लिए काम में आने वाला लिक्विडेटर उस की शराब में मिलाया गया था.

दारोगा राम सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या मतलब है? लिक्विडेटर इतना ज्यादा जहरीला नहीं होता कि कोई उस का इस्तेमाल किसी को जहर दे कर मारने के लिए करे. और सुखलाल खुद उसे पीएगा नहीं, फिर यह क्या चक्कर है? फोरैंसिक और फिंगर प्रिंट रिपोर्टें भी उस के सामने थीं. उन के मुताबिक जो छड़ सुखलाल के पेट में धंसी थी, उस पर सुखलाल के अलावा एक और आदमी की उंगलियों के निशान मिले थे.

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सुखलाल पर एकसाथ इतने सारे हमले कैसे हुए? पहले शराब में जहरीली चीज दी गई, उस के बाद पेट में छड़ घोंपी गई. मारने वाले को इतने से भी संतोष नहीं मिला तो उस ने उस को ऊपर से नीचे गिरा दिया और सुखलाल ने अपने बचाव के लिए किसी को कोई आवाज क्यों नहीं दी?

दारोगा राम सिंह को समझ आने लगा कि सुखलाल की मकान मालकिन सलोनी उस से झूठ बोल रही है. उस ने गुप्त रूप से उस के पड़ोसियों से पूछताछ शुरू कर दी. बाकियों ने तो कुछ खास बात नहीं बताई लेकिन सुखलाल के कमरे की खिड़की के ठीक सामने रहने वाले छात्र विवेक ने कहा, ‘‘सर, उस

रात मैं रोज की तरह जाग कर अपने कंपीटिशन के इम्तिहान की तैयारी में जुटा था तो मैं ने सुधीर भैया को सीढि़यों से ऊपर सुखलाल चाचा के कमरे में जाते देखा था, पर वे बाहर कब आए, इस का मुझे ध्यान नहीं.’’

‘‘अच्छा,’’ राम सिंह को ऐसी ही किसी बात का शक तो पहले से था. उस ने आगे पूछा, ‘‘सुखलाल और सुधीर

की कोई दुश्मनी? वह तो किराएदार था उस का.’’

‘‘सर… वह…’’ विवेक खुल कर कुछ बोलने से बचता दिखा. राम सिंह ने उसे भरोसा दिलाया कि केस में उस का नाम नहीं आएगा.

विवेक ने डरतेडरते कहा, ‘‘सर, सुधीर भैया को शक था सुखलाल चाचा और सलोनी भाभी को ले कर…’’

दारोगा राम सिंह मुसकरा उठा कि यहां भी वही चक्कर. वह वहां से चल पड़ा. गैरकानूनी हथियार रखने के केस में सुधीर के पहले भी गिरफ्तार होने की जानकारी तो उसे अपने थाने के रिकौर्ड से मिल ही चुकी थी. वह चाहता तो सुधीर को सीधे गिरफ्तार कर सकता था, मगर वह अपने महकमे के दूसरे पुलिस वालों सा नहीं था. किसी भी केस को बिना किसी पक्षपात के हल करना उस की पहचान थी.

दारोगा राम सिंह को अब सुखलाल के मोबाइल फोन की तलाश थी. उसे वह न तो सुखलाल के कमरे में मिला था और न ही उस के कपड़ों में. अचानक उस की छठी इंद्रिय ने उस से कुछ कहा और वह उसी जगह आया जहां सुखलाल की लाश पड़ी मिली थी.

दारोगा राम सिंह ने इधरउधर खोजना शुरू किया और आखिर एक पौधे के पीछे छिपा पड़ा सुखलाल का मोबाइल फोन उसे मिल गया.

थाने आ कर दारोगा राम सिंह उसे खंगालने लगा और जल्दी ही अपने

काम की चीज उसे नजर आ गई. उस में सुखलाल और सलोनी का एक वीडियो था जो शायद सुखलाल ने चोरीछिपे बनाया था. उस में सुखलाल अपने कपड़े उतारते हुए कह रहा था, ‘बस, मुझे खुश करो, तुम्हारा पति तुरंत थाने से बाहर आ जाएगा.’

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वहीं सलोनी उस के आगे गिड़गिड़ा रही थी, ‘मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं… मुझे ऐसा काम करने को मजबूर मत कीजिए.’

लेकिन सुखलाल ने उस की एक न सुनी और अपने दिल की कर के ही उसे बिस्तर पर लिटा दिया. वीडियो को आगे देखना राम सिंह को सही नहीं लगा. वह हर औरत की इज्जत करता था. उस ने ऐसे भी कई केस देखे थे जहां औरत

ने अपने साथ हुए इस तरह के जुल्मों

का बदला खुद लिया था. उस ने अपनी इसी सोच के साथ एक बार फिर सलोनी से मिलने का फैसला किया और उस के घर पहुंचा.

‘‘दारोगा बाबू, आप यहां,’’ सलोनी उसे देख कर ठिठक गई.

‘‘डरिए नहीं… बस, आप से कुछ जानकारियां चाहिए थीं,’’ दारोगा राम सिंह उसे सहज करने के लिए बोला और सामान्य तरीके से इसी केस के सिलसिले में बातें करने लगा.

इसी बीच दारोगा राम सिंह ने अपना मोबाइल फोन सलोनी के हाथ में दिया जिस से उस की उंगलियों के निशान उस पर आ जाएं और उन का मिलान छड़ पर मिले निशानों से हो सके.

सलोनी उस की यह चालाकी समझ नहीं सकी. राम सिंह ने वापस आ कर उन निशानों की जांच कराई और इस बार फिर उस का सोचना सही निकला. छड़ पर सुखलाल के अलावा सलोनी की

ही उंगलियों के निशान थे. उस ने तुरंत सलोनी को गिरफ्तार कर लिया.

लौकअप में सलोनी दारोगा राम सिंह के सामने रोरो कर कहने लगी, ‘‘दारोगा साहब, मैं ने किसी का खून नहीं किया है. जिंदगी तो मेरी उस सुखलाल ने बरबाद की थी. मैं अकेली उस भारीभरकम आदमी को कैसे मार सकती हूं? मैं ने तो अपने घर की साफसफाई में कुछ दिनों पहले ही लोहे की छड़ों के सारे टुकड़े पास की उसी खाली जमीन में फेंक दिए थे.’’

आगे पढ़ें- दारोगा राम सिंह ने सुधीर से…

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कातिल फिसलन: भाग 1- दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस

‘‘देखिए… मैं अभी नहा कर आई हूं,’’ सुखलाल से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए सलोनी किसी तरह बोली, लेकिन वह शराबी कहां मानने वाला था. वह बेशर्मी से बोला, ‘‘इसीलिए तो अभी खासतौर से तुम को प्यार करने आया हूं. तरोताजा फल का स्वाद ही अलग होता है.’’

इसी पकड़धकड़ में सलोनी का सिर टेबल के कोने से जा टकराया और उस की चीख निकल गई, ‘‘आह…’’

लेकिन सलोनी की कमजोरी तो जिस्मानी से ज्यादा दिमागी थी. वह कसमसा कर रह गई और सुखलाल उस के ऊपर छा गया.

तकरीबन 15 मिनट बाद सलोनी के जलते दिल पर अपने जहर की बरसात करने के बाद संतुष्टि की सांसें भरता सुखलाल उठा और कहने लगा, ‘‘बस, हो तो गया. कोई ज्यादा समय थोड़े ही लगता है हम को काम करने में. तुम्हीं बेकार में टैंशन ले लेती हो और हम को भी दे देती हो,’’ इस के बाद वह बाहर चला गया.

सलोनी ने भरी आंखों से घड़ी देखी तो बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो रहा था. बुझे मन से वह दोबारा नहाने चली गई. बाहर आ कर अपने माथे की चोट पर एंटीसैप्टिक क्रीम लगा ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी.

सलोनी ने दरवाजा खोला. उस के दोनों बेटे स्कूल से आ चुके थे.

बड़े बेटे की नजर अपनी मां के माथे पर गई तो वह पूछ बैठा, ‘‘मम्मी, यह चोट कैसे लगी?’’

‘‘वह जरा टेबल से सिर टकरा गया. तुम दोनों फ्रैश हो लो. मैं आलू के परांठे बना रही हूं,’’ सलोनी ने जल्दी से उसे टाला और रसोईघर में चली गई.

सलोनी के साथ इस तरह की घटनाओं की भूमिका तो उसी दिन से शुरू हो गई थी जब तकरीबन 6 महीने पहले उस के पति सुधीर ने पैसे की तंगी कम करने के लिए सुखलाल को ऊपर का कमरा किराए पर दिया था. उन को तब पता नहीं था कि कि 50 साल का सुखलाल किस कदर काइयां आदमी है. उस के तार इलाके के कुछ बड़े दबंगों से जुड़े थे और पुलिस से भी.

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टीवीकूलरपंखे वगैरह की रिपेयरिंग की दुकान चलाने वाला सुधीर सीधासादा आदमी था. सुखलाल की गंदी नजरें यहां आते ही खुद से 10 साल छोटी सलोनी पर टिक गई थीं. पहली मुलाकात में ही वह उस के हुस्न को देखता रह गया था, जब वह उस के लिए चाय ले कर आई थी. इस के बाद तो सुखलाल ने उस पर लगातार डोरे डालने शुरू कर दिए थे.

जब सलोनी ने सुखलाल की दाल नहीं गलने दी तो उस ने एक दिन अपना गैरकानूनी कट्टा चुपके से सुधीर की दुकान में रखवा कर इलाके के अपने परिचित दारोगा से उस को गिरफ्तार

करा दिया.

अपने पति को दिलोजान से चाहने वाली सलोनी ने हर मुमकिन कोशिश कर ली लेकिन सुधीर को छुड़ा नहीं पाई. तब एक रात इसी सुखलाल ने सलोनी को अपने कमरे में इस बारे में बात करने के लिए बुलाया और अपने मन की कर ली. सुबह उस ने अपने नशे में होने का बहाना बनाया और सुधीर की रिहाई का लालच दे कर उसे किसी से कुछ भी न बताने के लिए राजी कर लिया.

रोजरोज थाने में थर्ड डिगरी झेल रहा बेकुसूर सुधीर अगले दिन ही रिहा कर दिया गया. सलोनी उस की हालत देख कर रो पड़ी.

सुखलाल ने उस के इलाज के लिए कुछ पैसे दे कर सलोनी की रहीसही हिम्मत भी तोड़ दी. उस ने सोचा कि अपनेआप को एक बार दागदार कर के उस ने अपना घर और सुहाग बचा लिया है, लेकिन उस का यह सोचना गलत निकला.

सुखलाल पर सलोनी का स्वाद लग चुका था. अब वह अकसर उस को मौका पाते ही दबोच लेता था.

आज भी सलोनी के साथ वही हुआ. वह बारबार सोचती कि सुधीर को सबकुछ बता दे, लेकिन सुखलाल का डर उस की जबान सिल देता.

शाम को सुधीर दुकान से आया और सलोनी के माथे पर लगी चोट देख कर शंका भरी आवाज में सवाल करने लगा.

दरअसल, सुधीर को यह सारा मामला किसी और ही नजरिए से दिखने लगा था. वह सोचता था कि सलोनी और सुखलाल के बीच कुछ है और उस का खमियाजा पति होने के नाते थाने में गिरफ्तार हो कर उसे भुगतना पड़ा.

सलोनी ने सुधीर से भी अपनी चोट का वही बहाना बनाया जो उस ने अपने बच्चों से बनाया था. सुधीर उस का जवाब सुन कर चुपचाप वहां से चला तो गया, लेकिन आज उस की आंखों में सलोनी ने एक ऐसी आग की झलक देखी जो उस ने पहले कभी महसूस नहीं की थी.

अगली सुबह बाहर हो रहे शोर से सलोनी जागी तो उस ने सुधीर को अपने पास नहीं पाया. वह हड़बड़ी में अपने बाल बांधती बाहर भागी. उस के घर के बगल वाली खाली जमीन के सामने लोगों की भीड़ लगी थी. कोई आदमी कह रहा था, ‘‘जिंदा है कि मर गया?’’

ये शब्द सुनते ही सलोनी को बेहोशी आने लगी. कहीं सुधीर ने तनाव में आ कर खुदकुशी तो…

घबराहट में वह बेतहाशा लोगों को धकियाती आगे बढ़ी तो पाया कि सामने सुखलाल खून से लथपथ गिरा पड़ा था. उस के पेट में लोहे की एक छड़ धंसी थी और जिस्म शांत हो चुका था.

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इसी बीच पुलिस भी आ गई. नए दारोगा राम सिंह ने कुछ ही दिनों पहले इस इलाके का चार्ज लिया था और सुखलाल उस से भी मेलजोल बढ़ाने में लगा रहता था लेकिन राम सिंह की ईमानदारी के चलते वह कामयाब नहीं हो सका था.

सलोनी घर वापस आई और सुधीर को पूरे घर में तलाशा. उसे नहीं पा कर उस को फोन मिलाया. वह भी बंद मिला.

सलोनी सिर पकड़ कर रोने लगी कि आखिर वही हुआ जिस से बचने के लिए उस ने अपना सबकुछ लुटा दिया था… आखिरकार सुधीर कानून का मुजरिम बन ही गया.

सुखराम की लाश को कस्टडी में लेने के बाद दारोगा राम सिंह सलोनी

के घर आया क्योंकि सुखलाल उसी का किराएदार था. उस ने सुखलाल के कमरे की तलाशी ली. सीढ़ीघर के बाहर

की तरफ दीवार नहीं बनी थी जिस के चलते वहां से नीचे गिरने का खतरा बना रहता था.

दारोगा राम सिंह ने अंदाजा लगा लिया कि यहीं से सुखलाल भी नीचे गिरा है. उस के कमरे में रखी शराब की बोतलों को आगे की जांच के लिए जब्त कर उस ने सलोनी से सवाल किया, ‘‘आप के पति कहां हैं?’’

‘‘ज… जी, वे मेरे मायके गए हैं, कल रात को… मेरे चाचाजी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी तो उन को ही देखने,’’ सलोनी ने झूठ बोल दिया ताकि राम सिंह का शक सुधीर पर न जाए. अपनी बात की तसदीक तो वह अपने मायके वालों को समझा कर करा ही सकती थी.

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संपत्ति के लिए साजिश: भाग 1- क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

यह कहानी तब की है, जब मैं थाना मठ, जिला खुशाब में थानाप्रभारी था. सुबह मैं अपने एएसआई कुरैशी से एक केस के बारे में चर्चा कर रहा था, तभी एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि गांव रोड़ा मको का नंबरदार कुछ लोगों के साथ आया है और मुझ से मिलना चाहता है.

मैं नंबरदार को जानता था. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि उन के लिए ठंडे शरबत का इंतजाम करे और उन्हें आराम से बिठाए, मैं आता हूं. शरबत को इसलिए कहा था, क्योंकि वे करीब 20 कोस से ऊंटों की सवारी कर के आए थे. कुछ देर बाद मैं ने नंबरदार गुलाम मोहम्मद से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि वह एक रिपोर्ट लिखवाने आया है. मैं ने उन से जबानी बताने को कहा तो उन्होंने जो बताया, वह काफी रोचक और अनोखी घटना थी. उन के साथ एक 60 साल का आदमी बख्शो था, जिस की ओर से यह रिपोर्ट लिखी जानी थी.

बख्शो डेरा गांजा का बड़ा जमींदार था. उस के पास काफी जमीनजायदाद थी. उस का एक बेटा गुलनवाज था, जो विवाहित था. उस की पत्नी गर्भवती थी. 2 महीने पहले उस का बेटा घर से ऊंट खरीदने के लिए निकला तो लौट कर नहीं आया. थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई और अपने स्तर से भी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.

बख्शो के छोटे भाई के 5 बेटे थे, जो उस की जमीन पर नजर रखे थे. वे तरहतरह के बहाने बना कर उस की जायदाद पर कब्जा करने की फिराक में थे. उन से बख्शो के बेटे गुलनवाज को भी जान का खतरा था. शक था कि उन्हीं लोगों ने गुलनवाज को गायब किया है. पूरी बिरादरी में उन का दबदबा था. उन के मुकाबले बख्शो और उस की पत्नी की कोई हैसियत नहीं थी.

यह 2 महीने पहले की घटना थी, जो उस ने मुझे सुनाई थी. उस समय थाने का इंचार्ज दूसरा थानेदार था. बख्शो ने मुझे जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. उस ने बताया कि 2-3 दिन पहले उस की बहू को प्रसव का दर्द हुआ तो उस की पत्नी ने गांव की दाई को बुलवाया. बख्शो के भाई की बेटियां और उस के बेटों की पत्नियां भी आईं.

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उन्होंने किसी बहाने से बख्शो की पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा. कुछ देर बाद कमरे से रोने की आवाजें आने लगीं. पता चला कि बच्चा पैदा होने में बख्शो की बहू और बच्चा मर गया है. वे देहाती लोग थे, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रसव में बच्चे की मां कैसे मर गई.

उन के इलाके में अकसर ऐसे केस होते रहते थे. उस जमाने में शहरों जैसी सहूलियतें नहीं थीं. पूरा इलाका रेगिस्तानी था. मरने वाली के कफनदफन का इंतजाम किया गया. जनाजा कब्रिस्तान ले गए. जब मृतका को कब्र में उतारा जाने लगा तो अचानक मृतका ने कब्र में उतारने वाले आदमी की बाजू बड़ी मजबूती से पकड़ ली.

वह आदमी डर गया और चीखने लगा कि मुरदे ने उस की बाजू पकड़ ली है. यह देख कर जनाजे में आए लोग डर गए. जिस आदमी का बाजू पकड़ा था, वह डर के मारे बेहोश हो कर गिर गया. इतनी देर में मुर्दा औरत उठ कर बैठ गई. सब लोगों की चीखें निकल गईं. उन्होंने अपने जीवन में कभी मुर्दे को जिंदा होते नहीं देखा था.

बख्शो की बहू ने कहा कि वह मरी नहीं थी, बल्कि बेहोश हो गई थी. बहू ने अपने गुरु एक मौलाना को बुलाया. वह काफी दिलेर था. वह उस के पास गया तो औरत ने बताया कि उस का बच्चा गेहूं रखने वाले भड़ोले में पड़ा है. यह कह कर उस ने मौलाना का हाथ पकड़ा और कफन ओढ़े ही मौलाना के साथ चल दी. बाकी सब लोग उस के पीछेपीछे हो लिए. जो भी यह देखता, हैरान रह जाता.

घर पहुंच कर भड़ोले में देखा तो गेहूं पर लेटा बच्चा अंगूठा मुंह में लिए चूस रहा था. मां ने झपट कर बच्चे को सीने से लगाया और दूध पिलाया. इस तरह बख्शो का पोता मौत के मुंह से निकल आया और उस की बहू भी मर कर जिंदा हो गई.

बख्शो ने बताया कि उस की बहू नूरां ने उसे बताया था कि उसे उमरां और भागभरी ने जान से मारने की कोशिश की थी. बख्शो अपनी बहू और पोते को मौलाना की हिफाजत में दे कर नंबरदार के साथ रिपोर्ट लिखवाने आया था. उस ने यह भी कहा कि उस के बेटे गुलनवाज को भी बरामद कराया जाए.

मैं ने धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और गुलनवाज के गुम होने की सूचना सभी थानों को भेज दी, साथ ही उसी समय बख्शो के गांव डेरा गांजा स्थित घटनास्थल पर जाने का इरादा भी किया. एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर मैं ऊंटों पर सवार हो कर डेरा गांजा रवाना हो गया.

ये ऊंट हमें सरकार की ओर से इसलिए मिले थे, क्योंकि वह एरिया रेगिस्तानी था. ऊंटों के रखवाले भी हमें मिले थे, जिन्हें सरकार से तनख्वाह मिलती थी. डेरा गांजा पहुंच कर हम ने जांच शुरू की. सब से पहले मैं ने नूरां को बुलाया और उस के बयान लिए.

नूरां के बताए अनुसार, बच्चा होने का समय आया तो उस के सासससुर ने गांव से दाई रोशी को बुलाया. वह अपने काम में बहुत होशियार थी. रोशी बीबी के साथ बख्शो की भतीजियां उमरां और भागभरी भी कमरे में आ गईं. रोशी ने अपना काम

शुरू किया, लेकिन उसे लगा कि उमरां और भागभरी उस के काम में रुकावट डालने की कोशिश के साथसाथ एकदूसरे के कान में कुछ कानाफूसी भी कर रही हैं.

बच्चे के पैदा होते ही नूरां की नाक पर एक कपड़ा रख दिया गया. उस कपड़े से अजीब सी गंध आ रही थी. नूरां धीरेधीरे बेहोश होने लगी. वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं हुई थी, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकती थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सपना देख रही हो. उसे ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई कह रहा हो कि मां के साथ बच्चे को भी मार दो. असली झगड़े की जड़ यही बच्चा है. यह मर गया तो बख्शो लावारिस हो जाएगा.

इस के बाद उस ने सुना कि उस के बच्चे को अनाज वाले भड़ोले में डाल दिया है. नूरां पर बेहोशी छाई रही. उस के बाद हुआ यह कि जल्दबाजी में उस के कफनदफन का इंतजाम किया गया. बख्शो की भतीजियां और भतीजे इस काम में आगे रहे. वे हर काम को जल्दीजल्दी कर रहे थे.

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जब नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा. जब उसे चारपाई पर डाल कर कब्रिस्तान ले जाने लगे तो उसे पूरी तरह होश आ गया. उस का जीवन बचना था, इसलिए वह हाथपैर हिलाने लायक हो गई. उस के बाद कब्र में रखते समय उस ने एक आदमी का हाथ पकड़ लिया, जिस से वह डर कर भागा तो नूरां मोहल्ले के मौलवी साहब का हाथ पकड़ कर घर आई और भड़ोले से अपना बच्चा निकाला. बख्शो का एक दोस्त गांव की दूसरी दाई को ले आया. उस ने बच्चे को नहलाधुला कर साफ किया.

‘‘कुदरत ने मेरे और मेरे बच्चे पर रहम किया और हमें नई जिंदगी दी.’’ नूरां ने आसमान की ओर देख कर कहा, ‘‘अब मुझे और मेरे बच्चे को रांझे वगैरह से खतरा है. मेरे पति गुलनवाज को भी इन्हीं लोगों ने गायब किया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘इन लोगों पर शक करने का कोई कारण?’’

उस ने कहा, ‘‘यह सब मेरे ससुर की जायदाद का चक्कर है. उन्होंने जायदाद के लिए मेरे पति को गायब कर दिया और मुझे तथा मेरे बच्चे को मारने की कोशिश की.’’

नूरां ने यह भी बताया कि डेरा गांजा के अलावा भी मठ टवाना में उस के ससुर की काफी जमीन है. उस जमीन से होने वाली फसल का हिस्सा बख्शो के भतीजे उस तक पहुंचने नहीं देते.

मैं ने उस से कुछ बातें और पूछी और मन ही मन तुरंत काररवाई करने का फैसला कर लिया. मैं ने अपने एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर रांझा वगैरह के घरों पर छापा मारा. वहां से मैं ने रांझा, उस के भाई दत्तो और रमजो को गिरफ्तार कर लिया. उन के 2 भाई घर पर नहीं थे. उन के घर की तलाशी ली तो 2 बरछियां और कुल्हाड़ी बरामद हुई. उन हथियारों की लिस्ट बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद मैं ने दाई रोशी, भागभरी और उमरां को भी गिरफ्तार कर लिया. मैं ने महसूस किया कि वहां के लोग पुलिस के आने से खुश नहीं थे. वे पुलिस को किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं थे. मैं ने मसजिद के लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करा दिया कि गांव के लोग इस केस में पुलिस का सहयोग करें और कोई बात न छिपाएं.

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महबूबा के प्यार ने बना दिया बेईमान: पुष्पक ने क्या किया था

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

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पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

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फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

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