निधिकी शादी को 5 वर्ष हो चुके थे. सासससुर और पति नितिन के साथ उस ने बेहतर सामंजस्य बैठा लिया था, लेकिन उस की नकचढ़ी ननद निकिता अब भी मानती नहीं थी कि निधि उन के घर की परंपरा को निभा पा रही है.
अकसर निकिता किसी न किसी बात पर मुंह बना कर बोल ही देती, ‘‘भाभी, हमारे यहां ऐसा ही होता है.’’
उस की यही बात निधि को चुभती थी. शुरूशुरू में अपने कमरे में जा कर रोती भी थी. पति नितिन को भी बताया तो उन्होंने भी यह कह कर टाल दिया, ‘‘उस की बात को दिल से मत लगाओ, घर में सब से छोटी है, सब की प्यारी होने से थोड़ी मुंहफट हो गई है. अनसुना कर
दिया करो.’’
निधि को सम झ नहीं आता कि कोई उसे कुछ कहता क्यों नहीं है. क्या उसे दूसरे घर नहीं जाना है. परंतु सब ऐसे ही चलता रहा. न निधि ने बुरा मानना छोड़ा न ही निकिता ने उसे घर के रिवाज सिखाना.
आज निधि का बेटा पहली बार अपने स्कूल जा रहा था. सभी ऐसे उत्साहित थे जैसे कोई त्योहार हो. निधि ने उसे स्कूल यूनिफौर्म पहना कर तैयार कर दिया. उस के बाल कंघी कर रही थी तभी निकिता कटोरी में कुछ ले कर आई और चम्मच से उसे खिलाने लगी. धु्रव नानुकर कर रहा था. निधि ने भी बोल दिया, ‘‘दीदी बच्चा है, नहीं मन है उस का, स्कूल से आ कर खा लेगा.’’
निकिता तुनक गई, ‘‘भाभी, हमारे यहां ऐसा ही होता है. जब कोई पहली बार घर से बाहर किसी काम के लिए जाता है, मीठा दही खा कर ही जाता है.’’
निधि कुछ बोलती उस से पहले ही नितिन ने आ कर धु्रव को गोद में उठा लिया और अपनी उंगली में लगा कर मीठा दही उस के होंठों पर लगा दिया, ‘‘स्कूल को लेट हो रहा है,’’ कह कर धु्रव को ले कर चला गया.
निधि अपने कमरे में चली गई. निकिता अब भी बोले जा रही थी, ‘‘मैं ने क्या गलत कर दिया. भाई तो अब सबकुछ भूल गए हैं. पहली बार औफिस गए थे तब भी मीठा दही मु झ से ही मांग कर खा कर गए थे. उन का बेटा मेरा भी तो भतीजा है, क्या मैं उसे दही नहीं खिला सकती?’’
पापाजी ने उसे आवाज लगाई तब जा कर वह चुप हुई. निधि इन घटनाओं से बहुत आहत होती थी, परंतु कोई हल नहीं निकाल पाती.
संयोग से उसी दिन उस की मम्मी का
फोन आया. उन्होंने बताया कि उस का भाई और भाभी विदेश से वापस आने वाले हैं. भाई विदेश में ही नौकरी करता था. उस ने वहीं पर भारतीय मूल की एक लड़की से विवाह कर लिया था. शादी के बाद वे दोनों पहली बार घर वापस आ रहे थे.
मां चाहती थी कि पूरे रीतिरिवाज के साथ नई बहू का स्वागत किया जाए. इसीलिए उन्होंने निधि को घर बुलाया था. घर उसी शहर में था इसलिए नितिन उसी दिन शाम को निधि को उस के घर छोड़ आया.
अगले दिन भाईभाभी आ गए. दरवाजे पर उस के भाई विकास के साथ खड़ी
लड़की को देख कर निधि दंग रह गई. उस ने लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी, सिर पर पल्लू ले रखा था और माथे पर लाल रंग की बड़ी सी बिंदी लगा रखी थी. किसी भी तरह से वह विदेशी लड़की नहीं दिख रही थी. मम्मीपापा तो उस की एक झलक पर ही गदगद हो गए. निधि भी उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई.
विकास बोला, ‘‘अरे भई अब घर के अंदर भी तो आने दो. क्या बाहर ही खड़े रखोगे.’’
निधि ने मुसकरा कर दोनों को अंदर आने का इशारा किया. घर की देहरी के अंदर रंगोली बना कर, चावलों से भरा एक कलश रखा था.
नई बहू ने पैर अंदर रखने से पहले उसे हाथ में उठा लिया.
निधि तुरंत उस के हाथ से कलश ले कर वापस उसी स्थान पर रख कर बोली, ‘‘भाभी हमारे यहां कलश को पैर से गिरा कर तब घर के अंदर प्रवेश करते हैं.’’
नई बहू ने मुसकरा कर वैसा ही किया और विकास के साथ अंदर आ गई. बाकी की रस्में पूरी करने के बाद सब ने खाना खाया और निधि मां के कमरे में सोने चली गई. मां अभी बाहर ही थीं. तभी भाभी कमरे में आईं. निधि के इशारा करने पर उस के पास ही बैठ गई. निधि का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘थैंक्यू, दीदी आप ने मु झे बताया कि घर के अंदर आने की रस्म कैसे की जाती है. मैं तो उलटा ही कर रही थी.’’
निधि हैरान थी कि भाभी इतनी अच्छी हिंदी भी बोल लेती हैं. भाभी ने निधि का हाथ पकड़ा तो उस की चेतना वापस आई, ‘‘दीदी जब तक मैं यहां हूं, आप को रुकना पड़ेगा. मु झे और भी बहुत कुछ जानना है आप के घर के रिवाजों के बारे में. अब यही मेरा भी घर है.’’
भाभी की बात से निधि को कुछ याद आया. उस का व्यवहार… जब निकिता उसे अपने घर
के बारे में कुछ बोलती थी तब उस ने कभी भी भाभी की तरह निकिता की बातों को सहजता से नहीं लिया.
निधि ने भाभी के हाथ पर हाथ रख कर कहा, ‘‘पूरी कोशिश करूंगी भाभी, आप के
जाने तक रुकने की. वैसे तो आप खुद बहुत सम झदार हो. कुछ दिन यहां रहोगी तो देख कर ही सब सीख जाओगी. अभी आप सो जाओ, कल बात करेंगे.’’
भाभी गुड नाइट बोल कर चली गई. निधि की आंखों में नींद नहीं थी. उस के सामने वे सभी घटनाएं घूम रही थीं जब उस की और निकिता की बहस होती थी.
अगले दिन निधि उठते ही फिर से आगे की रस्मों के विषय में मां से बात कर रही थी. तभी फोन की घंटी बज उठी. उस ने फोन अटैंड किया, निकिता का फोन था. निकिता कुछ बोलती उस से पहले ही निधि शुरू हो गई, ‘‘दीदी, मैं जानती हूं हमारे घर में बहुएं अधिक समय तक मायके में नहीं रुकती हैं पर 2 दिन नई भाभी के पास रुक रही हूं. आप वहां हो इसलिए मु झे अपने घर की चिंता नहीं है.’’
उधर से निकिता की खनकती हंसी सुनाई दी, ‘‘मैं कल आ रही हूं भाई के साथ आप को लाने के लिए. कोई बहाना नहीं चलेगा भाभी, हमारे यहां ऐसा ही होता है.’’
निधि भी हंसे जा रही थी, शायद 5 वर्ष में पहली बार खुल कर हंसी थी. निधि का पूरा दिन हंसते हुए ही बीता. अगले दिन नितिन, निकिता और धु्रव उसे घर वापस ले जाने के लिए आ गए. भाभी ने बहुत जल्दी की लेकिन नितिन निधि को साथ ले कर ही गए. इस बार पहली बार ससुराल जाते हुए निधि के मन पर कोई बो झ नहीं था. रास्ते में कार में बाते करते हुए सब खुश थे. निकिता बड़ी उत्सुकता से नई बहू की बातें सुन रही थी. निधि ने उसे छेड़ा, ‘‘अब शादी का अगला नंबर आप का ही है, निकिता दीदी. तभी इतने ध्यान से सब सुन रही हो.’’
‘‘ऐसा नहीं है भाभी, कुछ सोच रही थी,’’ निकिता ने निधि की बात का जवाब दिया.’’
हमें भी बताओ ऐसी कौन सी बात है,’’ निधि ने फिर छेड़ा.
निकिता ने बात को टालते हुए कहा, ‘‘अरे छोड़ो न भाभी. आप इन सब बातों को नहीं
मानती हो.’’
अब तो निधि की उत्सुकता और भी बढ़ गई, ‘‘आप बता कर तो देखो,’’ वह हंसते हुए बोली.
धु्रव कुछ खाने की जिद कर रहा था. नितिन ने कार को किनारे रोक दिया और धु्रव को ले कर सामने दुकान पर चला गया.
निकिता और निधि भी कुछ देर के लिए कार से बाहर आ गए. सामने देख कर निकिता अचानक बच्चे की तरह उछल पड़ी, ‘‘अरे भाभी यही वह जगह है जहां परसों सत्संग होने वाला है. 2 साल बाद देवीजी पधार रही हैं.
निधि को याद आ गया, ‘‘अच्छा वही, जिन से धु्रव के पहले जन्मदिन पर घर में सत्संग करवाया था.’’
निकिता ने आश्चर्य से निधि की ओर देख कर कहा, ‘‘आप को याद है? इस बार आप भी साथ में आना.’’
निधि ने बेमन से हां बोल दिया.
मम्मीजी की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए निधि को ही निकिता के साथ सत्संग में जाना पड़ा. निकिता सक्रियता से सब व्यवस्था देख रही थी. शहर के दूसरे लोग भी थे आयोजन में. सत्संग खत्म होने ही वाला था कि तेज आंधी चलने लगी. प्रवचन सुनने आए लोगों में अफरातफरी मच गई. सब जल्दी से निकलना चाहते थे. देखतेदेखते पंडाल पूरा खाली हो गया. आयोजक भी चले गए. नितिन कार ले कर बाहर ही खड़े थे इसलिए निकिता और निधि भी कार में बैठ कर घर आ गए.
थोड़ी देर बाद ही पुलिस स्टेशन से फोन आया कि कई औरतों के गहने और
आदमियों के पर्स गायब हो गए. सुबह होते ही पुलिस स्टेशन बुलाया. रात जैसेतैसे गुजरी. सुबह पुलिस स्टेशन में सभी आयोजक थे. निधि का नाम भी आयोजकों में था. पुलिस लगातार पूछताछ कर रही थी. उस का कहना था कि या तो देवीजी और उन के लोग या फिर आयोजक दोनों में से कोई इस लूट में शामिल है.
‘‘देवीजी कभी ऐसा नहीं कर सकती हैं. उन्होंने तो अपनी संपत्ति भी आश्रम को ही दे रखी है,’’ निधि ऊंचे स्वर में बोली.
पुलिस इंस्पैक्टर ने उसे शांत रहने की हिदायत देते हुए बताया कि देवीजी एक लंबी सजा काट चुकी औरत है. ठगी के केस में कई साल जेल में थी. जेल से छूट कर उस ने भगवान के प्रवचन दे कर ठगी शुरू कर दी थी. पुलिस को सूचना मिली थी, इसलिए सत्संग परिसर में पुलिसकर्मी साधारण कपड़े पहने घूम रहे थे.
सारा सामान देवीजी के शिष्यों के पास से ही बरामद कर लिया गया. निकिता घर पंहुची
तो मम्मीपापा की नजरों का सामना नहीं कर पा रही थी. उसे सामान्य होने में कई दिन लगे.
निधि पूरा समय उस के साथ थी और एक बदलाव महसूस कर रही थी कि निकिता अब बातबात पर बोलना भूल गई है कि भाभी हमारे यहां ऐसा ही होता है