आई इन्वाइटेड ट्रबल

शादी से पहले लगभग हर लड़की अपने भावी जीवन के बारे में कुछ सपने देखती है. उन सपनों में दुख नाम मात्र को भी नहीं होते. मैं भी उन्हीं लड़कियों में से एक थी.

शादी से पहले जब मैं ये सपने देखती तो उन में एक सपना मु?ो बारबार आता और वह

था मेरे भावी पति के पास एक एसयूवी का होना, जिस में 7 जने बैठ सकें. ऐसा सपना देखते

समय आंखों के सामने वही फिल्मी दृश्य आते, जिन में नायक और नायिका तथा 2 लड़के और

3 लड़कियां एक कार में मस्ती करते या गाते हुए जा रहे होते या नायिका स्वयं कार चला रही होती. मन के एक कोने में स्वयं कार चलाने की इच्छा भी दबी हुई थी.

संयोग से जिस व्यक्ति से मेरा रिश्ता तय हुआ उस का वेतन अच्छा था. मेरी बड़ी बहन खुशी से बोली, ‘‘अब मेरी बहन गहनों से लदी रहेगी.’’

मैं ने मन ही मन कहा कि क्या दकियानूसी बात कर दी. गहने लादने से क्या लाभ. यह क्यों नहीं कहती कि एसयूवी में घूमूंगी.

शादी के बाद पहली ही रात पति ने बड़े उत्साह से बताया कि उन की बुक कराई मारुति की आई-10 कार शीघ्र ही आने वाली है. मेरा सारा उत्साह ठंडा हो गया और सपने टूटने लगे.

मेरी चिरकाल से संजोई इच्छा को जान कर पति ने तसल्ली दी कि दोनों की अगली पदोन्नति पर एसयूवी भी आ जाएगी. सपने फिर से शुरू हो गए.

मै हर समय यही सोचती रहती कि कौन सी कार लेनी ठीक रहेगी, कौन सा रंग अच्छा होगा इत्यादिइत्यादि. जब किसी महिला को एसयूवी भी चलाते देखती तो उसे बहुत स्मार्ट मानती. कभी किसी ऐसी महिला से परिचय कराया जाता, जो पुराने फैशन की और सादी सी लगती तो मैं नाक सिकोड़ लेती पर मु?ो जैसे ही पता चलता कि वह एसयूवी भी चलाती है तो उस के प्रति मेरे विचार तुरंत बदल जाते. मु?ो वह बड़ी बोल्ड, आधुनिक व स्मार्ट नजर आती. सोचने लगती, वह दिन कब आएगा जब मैं भी ऐसी महिलाओं की श्रेणी में

आ जाऊंगी.

एक बार किसी विशेष स्थान पर टैक्सी कर के जाना पड़ा. रास्ते में एक  लड़की कार चला कर जा रही थी. मु?ो ऐसा लगा मानो वह आधुनिक व स्वतंत्र हो और मु?ो एकदम फूहड़ और परतंत्र सम?ा रही हो. उसे क्या पता, थोड़े समय पश्चात मैं भी उस की तरह कार चलाऊंगी.

आखिर कुछ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद वह दिन भी आया जब हम ने एसयूवी खरीदी. पर इस खुशी के साथ मन में एक कसक थी. हमारी सारी जमापूंजी उस में लग गईर् थी. आई-10 तो बेचनी ही पड़ी, साथ ही कुछ रुपए भी उधार लेने पड़े. हमारे वर्ग के दूसरे लोग तो बड़े खुश नजर आते थे. क्या उन के दिलों में भी ऐसी कोई कसक थी?

मैं ने एसयूवी भी चलानी शुरू कर दी. अब जब भी 4 महिलाओं के बीच होती, घुमाफिरा कर बात इस बिंदु पर ले आती कि मैं भी एसयूवी चलाती हूं और किसी को भी छोड़ दूंगी हालांकि अभी स्टेयरिंग व्हील के आगे बैठने पर दिल इतने जोर से धड़कता था कि इंजन की आवाज उस के आगे मंद लगती.

एक दिन मैं मुख्य सड़क पर एसयूवी चला रही थी. एक बस मेरे आगे थी और एक पीछे. मेरे हौर्न बजाने पर अगली बस ने बड़ी तमीज से मु?ो आगे जाने की राह दे दी. पिछली आदरपूर्वक धीमी हो गई. मैं साथ बैठे पति से बोली, ‘‘लोग यों ही दिल्ली के बस चालकों को बदनाम करते हैं कि अंधाधुंध गाड़ी चलाते हैं. देखो न कैसे सलीके वाले चालक हैं.’’

 

पति से रहा न गया और बोले, ‘‘देवीजी, आप की कार के बाहर मैं ने 2 बड़े डैंटों के निशान लगे देखे हैं. आखिर उन्हें भी तो अपनी जान व नौकरी प्यारी. ये आप ने पिछले सप्ताह ही मारे थे. डैंटरपैंटर 3 हजार का ऐस्टीमेट दे रहा है. ये लोग ठुकी गाड़ी को ठीक कर आप की पहली ठुकाई का इंश्योरैंस नहीं देना चाहते.

एक बार मैं अकेली कहीं कार चला कर जा रही थी. चौराहे पर लालबत्ती थी और मैं सब से आगे थी. पता नहीं, किस सोच में थी कि अचानक अपने पीछे कारों की लाइन की पोंपों सुन कर चौंक गई. हरी बत्ती हो चुकी थी और मैं ने ध्यान ही नहीं दिया था. आगे बढ़ी तो एक टैक्सी वाला फर्र से पास से गुस्से से बकता हुआ निकल गया कि मैडम, तुसीं तो स्कूटी ले लो.

सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती व दोपहर को उन्हें वापस लाती तो अधिक ध्यान इसी ओर रहता कि कोई जानपहचान का मिल जाए तो देख ले कि मैं भी भारीभरकम कार चला लेती हूं. सुबह जाते समय कोई पड़ोसी न देख रहा होता तो लगता क्या सुस्त लोग हैं, अभी तक बिस्तरों पर पसरे हुए हैं.

एक बार हरीश बाबू शाम को मिलने आए तो बोले, ‘‘भाई साहब, दोहरी बधाई हो, एक तो एसयूवी खरीदने की, दूसरी भाभीजी के कार चलाना सीख लेने की. इतनी पावरफुल गाड़ी संभालना आसान नहीं है.’’

‘‘भई, जल्द ही तीसरी मुबारक भी देने आओगे… मेरे साइकिल खरीदने की नौबत जल्द ही आने वाली है क्योंकि तुम्हारी भाभी तो एसयूवी छोड़ती ही नहीं.’’

मेरा छोटा भाई विदेश से आया तो अगले ही दिन बड़े चाव व शान से अपना मोबाइल कैमरा दिखाते हुए बोला, ‘‘दीदी, चलिए आपका वीडियो बना लूं. किंतु इस के लिए आप को थोड़ा ऐक्शन में होना पड़ेगा.’’

‘‘अरे, यहां ऐक्शन की क्या कमी है,’’ मैं शान से बोली, ‘‘चलो, मैं एसयूवी चलाती हूं, तुम वीडियो बना लेना.’’

भाई ने अचकचा कर देखा. उस समय अपनी धुन में मस्त मैं ने सोचा कि इतनी जल्दी एसयूवी चलानी सीख ली है, शायद इसीलिए हैरान हो रहा है. थोड़ी देर बाद मैं एक भड़कीला टौप व जींस पहन तैयार हो कर उंगली में चाबी का गुच्छा घुमाती हुई आ गई तो उस बेचारे के लिए वीडियो खींचने के अलावा और कोई चारा न रहा.

ओहो, कार को भी आज ही नखरा

दिखाना था. नई कार और ?ाटक?ाटक कर चले, वह भी वीडियो खिंचवाने के समय. खैर,

जैसेतैसे एक सुंदर मोड़ से धीरेधीरे एसयूवी चलाती हुई, मुसकराती हुई, कैमरे के आगे से निकली तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी फिल्म की शूटिंग हो रही हो और मेरा पुराना सपना साकार हो गया हो.

मु?ो एसयूवी कंट्रोल करना आता है, इस प्रचार के लिए रिश्तेदारों से भी मिलने जाती. महिला क्लब जाना होता तो रास्ते में

6-7 सहेलियों को लेती जाती. कोई घर मिलने आता तो उसे मैट्रो स्टेशन तक एसयूवी में छोड़ने जरूर जाती.

एक दिन पतिदेव ने हिसाब लगा कर बताया कि डीजल के खर्चे के कारण घर का बजट डगमगाने लगा है और सुना है डीजल अभी और महंगा होने वाला है. बात तो बिलकुल ठीक थी, पर मेरी सहेलियों को क्या पता था. कहीं आनाजाना होता तो औपचारिकता को ताक में रख कर कह देतीं, ‘‘भई मनीषा, जाते समय हमें भी घर से लेती जाना.’’

 

अब तो आन का प्रश्न था, ले जाना पड़ता. वैसे भी अब मेरे पास सब से ज्यादा

गौसिप होतीं क्योंकि जब मेरे पास चाबी होती तो 6-7 नईपुरानी फ्रैंड्स अपनी कार छोड़ कर साथ चलने को तैयार हो जातीं.

20 मील की दूरी पर रहते एक दूर के रिश्तेदार के यहां शादी पर गए तो उन्होंने शिकायत की, ‘‘एसयूवी तुम्हारे पास है, फिर भी तुम कल दोपहर महिला संगीत पर नहीं पहुंचीं, कितनी बुरी बात है. हम तो सोच रहे थे कि तुम पीहू (होने वाली ब्राइड) को लहंगे सहित एसयूवी में तो लाओगी तो वह खिल उठेगी.’’

अब तो कार अधिक चलाने से पीठ अधिक दुखने लगती है. मुसीबत लगती है कि सुबह सारे काम छोड़ कर पूरी सोसायटी के बच्चों को स्कूल छोड़ने जाओ और दोपहर को आराम के समय उन्हें लेने जाओ. डीजल की महंगाई देखते हुए स्कूल बस ही ठीक रहेगी और मेरा सिरदर्द भी दूर होगा. बच्चों को भी मजा आता क्योंकि उन की कैब में एयरकंडीशनर तो था नहीं.

मेरी मौसी मेरे पास आईं तो बीमार पड़ गईं. अकसर डाक्टर के पास जाने को मु?ो ही एसयूवी के साथ हाजिर होना पड़ता क्योंकि उन के साथ उन की आया और मेरा मौसेरा भाई भी होता और फिर भला एसयूवी किसलिए सीखी थी. यदि ऐसे समय किसी की सेवा न कर सकी तो एसयूवी होेने का फायदा ही क्या. उबेर न ले लेते वे.

 

एक दिन सुबह पतिदेव ने फरमाया, ‘‘आज शाम किसी को जल्दी मिलने जाना है.

दफ्तर की बस से आते देर लग जाएगी, तुम एसयूवी ले कर शाम को दफ्तर पहुंच जाना.’’

वहां मेरी गाड़ी को पार्किंग ही नहीं मिली और पूरे 20 मिनट मैं इधरउधर भीड़ में उसे चलाती रही. छोटी गाडि़यां आराम से निकल भी रही थीं और पार्क भी हो रही थीं.

पैट्रोल और महंगा हो गया है. कहीं जाना हो तो पहला विचार यह आता है कि दूरी कितनी है, कितने का पैट्रोल फुंकेगा. क्या जाना इतना जरूरी है.

अब रिश्तेदार मिलने आते हैं 1-2 नहीं 4-5 आ जाते हैं. जब वे लौटने लगते हैं तो मुझे कहना पड़ता, ‘‘चलिए, मैट्रो स्टेशन तक मैं भी आप के साथ चलती हूं. मेरी भी सैर हो जाएगी. (चाहे धूप ही चमक रही हो.)’’

हालत यह है कि हम तो खाली पेट चल सकते हैं, पर एसयूवी को खाली पेट लाख धक्के मारिए, वहीं अड़ी रहेगी, गुर्राती रहेगी.

उस दिन दोपहर के भोजन पर 5-6 मेहमान आए. उन के जाने तक थक कर चूर हो चुकी थी, पर बच्चों की छुट्टी का समय हो रहा था, उन्हें लाना था. भरी दोपहरी में कार चला रही थी.

2-4 डैंट पड़ जाने के कारण उस में कुछ न कुछ खराबी का खटका भी लगा रहता है. कितनी सुखी थी मैं, जब मु?ो एसयूवी चलानी नहीं आती थी और आई-10 ही ठीक थी.

तभी तेजी से एक उबेर गुजरी, जिस में एक महिला बैठी थी. मु?ो लगा, क्या रानियों की तरह ठाट से पीछे बैठी है. न कार की खराबी का खटका, न पैट्रोल की सूई का ध्यान. मु?ो अब वह महिला अधिक आधुनिक, शांत व स्मार्ट लग रही थी.

मोल सच्चे रिश्तों का: क्या रिया से दूर हुआ परिवार

ट्रिंग ट्रिंग..

‘सुबह सुबह फ़ोन..ओह..जरूर रिया होगी’

आरव ने कहा.

‘हा..रिया..यार टैक्सी बुक कर के आ जाओ ना, मैं रीति को छोड़ कर एयरपोर्ट नही आ सकता’

‘हेलो..सर, मैं इंस्पेक्टर राठौड़ बोल रहा हूं, आपकी वाइफ मिसेज रिया को एयरपोर्ट मेडिकल ऑथिरिटी ने क्वारंटाइन के लिए स्टैम्प किया है इन्हें हम शहर से थोड़ी दूर बनाये गए वार्ड में पंद्रह दिन रखेंगे, पंद्रह दिन के बाद टेस्ट किया जाएगा..सब ठीक रहा तो घर जाएंगी नही तो आइसुलेशन में रखा जाएगा’

इंस्पेक्टर एक साँस में बोल गया.

ये सुन कर मेरे होश उड़ गए, हाथ से मोबाइल गिरते गिरते बचा.

‘सर..क्या मैं एक मिनट अपनी पत्नी से बात कर सकता हूं’

‘यस..श्योर’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘हेलो..रिया..डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा..मैं रीति को तुम्हारी माँ के पास छोड़ कर आता हूं’

‘नो..आरव, तुम्हें अभी मुझसे मिलने की परमिशन नही मिलेगी, तुम रीति के पास रहो, मैं वार्ड पहुंच कर तुमसे बात करती हूं, अभी मुझे कुछ समझ नही आ रहा’ रिया ने रोते हुए कहा.

ये क्या हो गया?

मैं कैसे संभालूंगा इधर पांच साल की छोटी बेटी उधर पत्नी जो इस समय जिस अवस्था में है उसकी कल्पना भी करना आत्मा झिंझोड़ कर रखने वाली है.

मेरी पत्नी रिया जो एक मल्टीनेशनल कंपनी की मार्केटिंग हेड है, अक़्सर अपने कंपनी के काम से विदेश यात्रा करती है,आज करीब बीस दिनों के बाद लंदन से वापस घर आ रही थी.

‘क्या करू..मुझे वहाँ जाना तो होगा ही, रिया को मैं ऐसे अकेले नही छोड़ सकता’ खुद से बात करते हुए मैंने रिया की माँ को फ़ोन किया, पता चला वो ख़ुद कुछ दिनों से बीमार है ऐसे में रीति को संभालना उनके लिए मुश्किल है, उसके भाई,भाभी से कभी आत्मीयता थी ही नही तो उनसे कोई उम्मीद नही है.

सिर पकड़ कर वही बैठ गया, मेरी रीति..वो मेरे साथ रहने की इतनी आदी है और किसी के पास रहना उसके लिए वैसे भी मुश्किल है, ऐसे में किसी अपने के पास ही रीति को छोड़ सकता हूं…

‘माँ या भाभी को फ़ोन करू’

किस मुँह से उनसे सहयोग के लिए कहूँ जब ख़ुद मैंने और रिया ने उन लोगो से सारे रिश्ते तोड़ दिए थे, रीति पांच साल की हो गयी उसने शायद एक बार अपनी दादी की शक़्ल देखी होगी और आज मैं मुसीबत में हुं तो दादी को उनका फ़र्ज़ याद दिलाऊँ?

मानव कि प्रवृति है….अपने द्वारा बनाये गए झूठ, स्वार्थ,अभिमान के खूबसूरत जाल में ऐश करता है, जब परेशानी उसके दरवाज़े पर आती है तो वो अतीत में झाँकता है..’आख़िर उससे ऐसा क्या गुनाह हुआ था जो इस मुसीबत में पड़ा’ आज मैं भी इसी परिस्थिति में हूं, कोरोना बीमारी अभी तक मेरे लिए महज़ एक खबर थी, और आज मेरे साथ है.

रीति सो रही थी, मैं भी उसके पास जा कर लेट गया.

अतीत के पन्ने आंखों के सामने एक एक कर के खुल रहे थे, उच्चवर्गीय आधुनिक विचार की लड़की रिया से मैंने प्रेमविवाह किया था, मेरे मध्यमवर्गीय परिवार में उसकी तालमेल कभी नही बनी,भाभी और माँ को हेय दृष्टि से देखती थी और ठीक उसके विपरीत वो दोनो रिया को पलकों पर बिठा कर रखे थे, रिया की माँ चाहती थी हम दोनो परिवार से अलग हो जाये, उन्होंने ने द्वारिका में 3बीएचके का एक बड़ा फ़्लैट रिया के नाम से ले लिया.

पिता जी के गुज़रने के बाद भैया ने मुझे पढ़ाया लिखाया, एम टेक करने के लिए मुझे बाहर जाने का मौका मिला लेकिन पैसे की कमी के कारण मैंने घर में बताया नही, ना जाने भैया को कैसे पता चल गया, उन्होंने भाभी के सारे ज़ेवर गिरवी रख कर मुझे विदेश भेज दिया,वही पहली बार रिया से मिला था.

भाभी भी बहुत अमीर घराने की उच्चशिक्षित बेटी है,पर उनका रहन सहन सादा था अमीरी के चोंचले से दूर रहती थी, पैसे रुपये से ज़्यादा उनके लिए रिश्तों की अहमियत थी, उनके दिल में सब के लिए प्रेम है..इस कारण वो सबकी चहेती है, रिश्तेदार, पास पड़ोस, सभी भाभी की तारीफ़ करते ना थकते, ये सब देख रिया ईर्ष्या से भर जाती … उस दिन भी भाभी ने बड़प्पन दिखाया… घर छोड़ते समय रिया ने उनका कितना अपमान किया था उनको भला बुरा कहा लेकिन वो चुप थी आंखों से गंगा जमुना की धार बह रही थी, तटस्थ खड़ी रिया की बक़वास सुन रही थी.

शायद रिया से ज़्यादा उन्हें मुझसे तकलीफ़ हुई थी, वो पराई थी मैं तो उनके लिए उनके अपने बच्चों से बढ़ कर था उस समय मेरी चुप्पी सिर्फ़ भाभी को नही पूरे घर को खली थी, मेरी चुप्पी रिया के ग़लत व्यवहार को सही ठहरा गए थे, मेरा मुँह रिया के प्यार और हाईक्लास लाइफस्टाइल ने बंद कर रखा था.

उस दिन के बाद रीति के जन्म के समय माँ हमसे मिलने आयी थी उस दिन भी उनके प्रति हमारा ठंडा रैवया उन्हें समझ आ गया था इसलिये जल्दी ही बिना किसी को अपना परिचय दिए निकल गयी थी.

उनके दर्द को उनके आंखों में मैं साफ़ देख रहा था पर सो कॉल्ड हाई स्टेटस फ्रेंड सामने बैठे थे तो माँ के प्यार को अनदेखा कर दिया.

आज पापा की बहुत याद आ रही थी उनके दिए संस्कारो की तिलांजलि देकर मैंने सच्चे रिश्ते खो दिया, आज जब मुसीबत पड़ी तो अपने याद आ रहे है..कितना स्वार्थी हो गया हूं मैं जिनके त्याग और प्यार को ठुकरा कर आगे बढ़ गया था, मुश्किल वक्त आया तो मुझे उनकी जरूरत महसूस हो रही है…अतीत के पन्नों को बंद करना ही बेहतर होगा.

रीति भी उठ गयी थी, सोचा..उसको प्ले स्कूल में डाल कर रिया से मिलने की कोशिश करता हूं.

‘साहब, रीति बेबी का स्कूल तो बंद हो गया है’ सुनीता ने कहा

‘ओह..हा, मैं भूल गया था’

‘क्या हुआ साहब, आप की तबियत तो ठीक है’

‘हा हा..मैं बिल्कुल ठीक हूं, ऐसा करो..रीति के लिए कुछ खाने को बना दो, मुझे भूख नही है’

‘साहब, और मैडम के लिए..वो भी तो आज आएंगी’

मैं चुप..क्या जवाब दूं?

‘नही, आज नही आएगी..तबियत ख़राब है इसलिए डॉक्टर के यहाँ है’

‘साहब..टीवी देखो..क्या क्या दिखा रहा है, कोई बीमारी उन चीनियों ने भेजी है, सब मर रहे है..मेरा आदमी भी बोला..अब मैं काम पर ना जाऊ’ सुनीता ने कहा.

‘कोई नही मर रहा..सब ठीक हो जाएगा, तुम अपना काम ख़त्म करो’मैंने खींझ कर कहा.

अकबक सी खड़ी थोड़ी देर देखती रही फ़िर काम में लग गयी.

सुनीता की बातों ने मुझे और व्यथित कर दिया था, मैं कमरे में चला आया ‘रिया को कुछ नही होना चाहिए..हे प्रभु..हमारी गलतियों की सज़ा मेरी बेटी को ना देना’ अब तक काबू रखा दिल अकेले में चीख पड़ा.

‘डैडी..डैडी’ रीति की आवाज़ सुन खुद को सयंत किया.

सभी करीबी दोस्तो को फ़ोन किया, हर किसी ने अलग अलग मज़बूरियां बताई..किसी को रीति की जिम्मेदारी नही लेनी थी इसके लिए रीति नही भय था कोरोना बीमारी.

सभी संक्रमित हुए किसी भी परिवार से दूरी बनाये रखना चाहेंगे…इसके लिए मैं उनको ग़लत भी नही कह सकता.

‘साहब, मैं घर जा रही..सब ठीक रहा तो शाम में आऊंगी नही तो आज से मेरी भी छुट्टी समझो’ सुनीता ने जाते हुए कहा.

रिया को फ़िर फ़ोन किया..

‘ रिया..कैसी हो, मैं कुछ करता हूं..थोड़ा इंतजार कर लो’

‘आरव..प्लीज़ डोंट वरी..आई एम फाइन, मैं अभी इंफेक्शन के फर्स्ट स्टेज़ पर हूं, डॉक्टर ने कहा है कुछ दिन मैं यहाँ रहूं तो मैं पूरी तरह ठीक जाऊंगी’ रिया की आवाज़ से लग रहा था वो संतुष्ट है.

‘मैं तुम्हें इस हालात में ऐसे कैसे अकेले छोड़ सकता हूं’ मैं बेसब्र था

‘आरव..प्लीज़ अंडरस्टैंड, यहाँ किसी से मिलने की परमिशन नही है, मेरे पास फ़ोन, लैपटॉप, इंटरनेट सब है मैं अपना काम करती रहूंगी और तुम दोनो से वीडियो चैट भी’ रिया ने हँसते हुए कहा.

मैं जानता था उसकी हँसी सिर्फ़ मुझे

तसल्ली देने के लिए है.

दिन बहुत भारी था, किसी तरह बीता..रात तो वक़्त की पाबंद होती है अगले दिन सूरज की रौशनी के साथ नया दिन..परेशानी वही की वही

सुबह सुबह रिया ने वीडियो कॉल किया..रीति बहुत ख़ुश थी, रिया देखने में स्वास्थ्य लग रही थी, बीमारी के ज़्यादा कुछ लक्षण नही थे, हल्की खांसी थी, बुख़ार अब नही था.

‘आरव..क्या मुझे मम्मी जी का नंबर दोगे?’ रिया ने कहा.

‘मम्मी..मेरी मम्मी का नंबर ?’ मैंने चौंक कर कहा.

रिया के आंखों में आंसू थे, मेरी तरह शायद वो भी अतीत में कि गयी अपनी ग़लतियो के पश्चताप से जूझ रही थी.

‘रिया, नंबर तो है..हिम्मत नही है’ मैंने कहा.

शाम के चार बज़ रहे थे, रीति खेलने में व्यस्त थी, लैपटॉप लेकर मैं भी वही बैठ गया..

डोरबेल बज़ी

माँ, भाई और भाभी सामने खड़े थे.

मैं अवाक खड़ा था.

‘आरव..रिया कैसी है ? बेटा, कुछ ख़बर मिली, आज टीवी पर देखा उसे, तो पता चला’ माँ ने कहा.

‘हा माँ..वो ठीक है, आप लोग बाहर क्यों खड़े है, अंदर आइए’ मैं सामने से हटते हुए कहा.

‘भैया, इतनी परेशानी अकेले सह रहे हो, एक बार फ़ोन तो कर दिया होता,क्या इतने पराए हो गए हम’? भाभी ने रीति को गोद में उठाते हुए उलाहना दिया.

‘नही भाभी..ऐसी बात नही’ मैं ख़ुद की नज़रों में  बहुत छोटा महसूस कर रहा था.

भाभी ने आते ही, घर की सफ़ाई के साथ साथ बढ़िया खाना भी तैयार कर दिया.

रिया का वीडियो कॉल आया.

भाभी की गोद में रीति को देख रिया फुट फुट कर रोने लगी.

‘माँ, भाभी, भैया प्लीज़ मुझे माफ़ कर दे..दो दिनों की अकेलेपन की सज़ा ने मुझे मेरी गुनाहों का अहसास करा दिया है.

‘अब ज़्यादा कुछ सोचो नही, हम सब उस दिन से तुम्हारे है जिस दिन तुमने आरव का हाथ थामा था, गलतियां सभी करते है, अपनी ग़लती से सबक ले कर आगे बढ़ना ही ज़िन्दगी है’ भाभी ने कहा ‘बेटी रोना नही, रीति और आरव की फ़िक्र मत करो, ख़ुश रहो..मुश्किल वक़्त है निकल जाएगा, शीघ्र स्वस्थ्य हो कर घर आओ,तब तक मैं यहीं रहूंगी’? माँ ने बड़ी ही आत्मीयता से कहा.

‘मम्मी जी, भाभी, भैया.. मेरी एक विश है’ रिया ने कहा.

‘हा, बोलो..बताओ हमें..क्या चाहिए’?  भैया ने कहा.

‘भैया..जब मैं घर आऊं तो क्या आप मुझे मेरा परिवार वापस देंगे’ रिया ने हाथ जोड़ कर कहा .

‘रिया..बेटा,तुम्हारा परिवार तुमसे कभी दूर नही गया था, जो हुआ उसे भूल जाओ और आगे बढ़ो, स्वास्थ्य पर ध्यान दो, घर आओ..हम सब बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रहे है ‘ भैया ने कहा.

कभी कभी बुरा वक़्त भी अपने पीछे तमाम खुशियां ले कर आती है..मैं ख़ुश था..हम सब ख़ुश थे.

कृष्णा: कायरा क्यूं सब कुछ छोड़ कर चली गई- भाग 3

नंदिनी कायरा की बात सुन कर सोच में पड़ गई थी. क्या कायरा की लापरवाही इस के लिए जिम्मेदार है या फिर आरव का बड़ी उम्र की महिलाओं के प्रति रुझान या फिर नंदिनी ने ही आरव को इतनी ढील दे रखी है कि वह नंदिनी को सास नहीं, एक दोस्त समझता हैं.

नंदिनी जब अपने मन की टोह नहीं ले पा रही थी तो उस ने अपनी सब से अच्छी दोस्त श्वेता को फ़ोन लगा दिया था. श्वेता बेहद बिंदास और मस्तमौला इंसान थी. जिंदगी को भरपूर जीती थी और कभी किसी को जज नहीं करती थी.

फ़ोन पर श्वेता चहकती हुई बोली, ‘भई, तुम ने तो इंस्टा पर अपनी नई तसवीरों से आग लगा रखी है. तुम्हारा दामाद आरव अभी भी तुम से उतना ही  इंफैचुएटेड है जितना शादी की रात को था!’

नंदिनी ने छूटते ही बोला, ‘तुम्हें कैसे पता?’

श्वेता हंसती हुइ बोली, ‘अरे, उसे देख कर कोई भी बता सकता हैं?’

नंदिनी अनमनी सी बोली, ‘श्वेता, मुझे भी अच्छा लगता है आरव का अपने आगेपीछे घूमना.’

श्वेता बोली, ‘तो क्या हुआ, तुम एक खूबसूरत औरत हो और तारीफ़ किसे पसंद नहीं हैं, यार.’

नंदिनी बोली, ‘पर यार, मैं आरव से रिश्ते में, गरिमा में और उम्र में बड़ी हूं.’

श्वेता ने कहा, ‘नंदिनी, तुम जितना खुद को रोक कर रखोगी उतना  ही बंधा हुआ महसूस करोगी. यह कुछ गलत नहीं है, यह प्राकृतिक है. तुम्हारा इसे नकारना तुम्हें ग्लानि से भर देता है.’  नंदिनी बोली, ‘क्या करूं मैं, यार? मैं बहुत परेशान हूं’

श्वेता बोली, ‘आरव तुम्हारा दामाद होने से पहले एक इंसान भी है. क्या ग़लत है अगर वह तुम्हें पसंद करता है? अगर तुम दोनों को एकसाथ मित्रों की तरह बात करना पसंद हैं तो इस में गलत क्या है? मेरी और मेरी बहू में बहुत दोस्ती है तो अगर तुम्हारी अपने दामाद से दोस्ती है तो इस में कुछ गलत नही हैं. हां, अगर तुम उस की कुछ बातों को ले कर असहज हो तो एक मित्र होने के नाते क्यों नहीं तुम उसे सही दिशा दिखा सकती हो. कुछ भी गलत नही है, बस, तुम्हारी सोच गलत है.’

नंदिनी को अपनी बात का उत्तर मिल गया था. उसे समझ आ गया था कि उसे क्या करना है.

शनिवार का दिन था. आरव ने बाहर लंच का प्रोग्राम बनाया था. नंदिनी ने कायरा के लिए प्याजी रंग की शिफ्फोन साड़ी और मेल खाती हुई ज्वैलरी निकाली. मन ही मन वह सोच रही थी कि इस लापरवाह लड़की को तो अपने ऊपर ध्यान देने की भी फुरसत नहीं हैं.  तैयार हो कर कायरा वाक़ई में बेहद खूबसूरत लग रही थी. वहीं, नंदिनी ने पिस्ता रंग की साड़ी डाल ली थी जो उस की गोरी रंगत में मिलजुल गई थी.  लंच पर हंसीखुशी का माहौल था. तभी कायरा के दफ़्तर से कौल आई और वह बीच में ही सब छोड़ कर चली गई.

आराव झुंझलाहट के साथ बोला, ‘देखा आप ने, मैं  उस के साथ हो कर भी अकेला हूं.   अगर मैं उस से कुछ कहूंगा तो फिर ये हो जाएगा कि मैं अपनी बीवी की नौकरी करने के ख़िलाफ़ हूं. नंदिनी जी, आप मुझे जिस तरह समझती हैं वैसा वह क्यों नहीं कर पाती है.’

नंदिनी बोली, ‘आरव, मैं अपनी बेटी की तरफदारी नहीं कर रही हूं पर क्या तुम ने कायरा से  उस के दफ़्तर के प्रोग्राम के बारे में पूछा था पहले?’

आरव बोला, ‘अरे, शनिवार को सब की छुट्टी होती है.’

नंदिनी बोली, ‘पर उस की नहीं थी. फिर भी वह तैयार हो कर तुम्हारे कारण आई. अकसर जब हम एकसाथ रहने लगते हैं तो एकदूजे को टेकेन फौर ग्रांटेड लेने लगते हैं, जीवन की आपाधापी में हम यह बात अपने जीवनसाथी को बताना भूल जाते हैं कि वह हमारे लिए कितना ख़ास है. कायरा तुम से बहुत प्यार करती है. जानते हो, वह मुझे क्यों रोक कर रखे हुए है?’

आरव बोला, ‘क्यों?’

‘क्योंकि मेरे आने के बाद से तुम खुश रहते हो. कायरा तुम पर बहुत विश्वास करती है. वह लापरवाह हो सकती है मगर प्यार तुम से बहुत करती है. होगी कोई ऐसी बीवी जो इस बात का बिलकुल भी बुरा नहीं मानती है कि उस का पति उस से ज्यादा उस की मां को अहमियत देता हैं.’

आराव बोला, ‘आप को लगता है, सारी गलती मेरी है?’

नंदिनी बोली, ‘नहीं, गलती तुम्हारी नहीं हैं मगर एकदूसरे को समझने में समय लगता हैं.’

आराव बोला, ‘आप मदद करोगी मेरी कायरा को समझने में.’

नंदिनी बोली, ‘हां, इस के लिए सब से पहले तुम लोग अपने घर और दफ़्तर के तनाव से दूर कहीं घूमने जाओ.’

आराव बोला, ‘ठीक है मगर आप प्रौमिस करो कि आप एक दोस्त की  तरह मेरा ऐसे ही मार्गदर्शन करती रहोगी.’

नंदिनी बोली, ‘जरूर करूंगी अगर मेरा यह दोस्त अपनी सीमारेखा का ध्यान रखेगा.’

आरव बोला, ‘तभी तो मुझे आप इतनी अच्छी लगती हैं क्योंकि आप को सब पता है. कभीकभी लगता है कि आप मेरी ज़िंदगी की कृष्णा हो, मेरी हर समस्या का समाधान होता है आप के पास.’

नंदिनी बोली, ‘लगता है इस कृष्णा को अपनी जीवन पहेली का भी समाधान मिल गया है  आज.’

नंदिनी बिना किसी आत्मग्लानि के आरव से बात कर रही थी. उस के मन में जो पिछले कुछ माह से मंथन चल रहा था, आज वह समाप्त हो गया था.

Holi 2023: सदमा- आखिर कैसा रिश्ता था नेहा और शलभ का? भाग 3

तीसरे दिन जब पीयूष का बुखार उतर गया तो वह औफिस पहुंची. आधा दिन

बीत गया, मगर शलभ ने कोई खोजखबर नहीं ली. पैंडिंग काम ज्यादा होने की वजह से लंच तक वह भी अपनी सीट से उठ नहीं पाई. लंच में जब वह शलभ के कमरे में पहुंची तो वह गायब था. उस के स्टाफ ने बताया कि वह किसी गैस्ट के साथ बाहर गया है. नेहा उदास सी वापस अपनी सीट पर लौट आई. शाम को उस ने शलभ को फोन किया तो उस ने बताया कि वह अभी भी बाहर है सो बात नहीं कर सकता. इसी तरह

2-3 दिन तक वह नेहा को इग्नोर करता रहा. अंत में एक दिन नेहा सुबहसुबह उस के कैबिन में पहुंच कर उस का वेट करने लगी.

शलभ उसे देख कर हौले से मुसकराते हुए हालचाल पूछने लगा. तभी चपरासी 2 कप चाय रख गया.

चाय पीते हुए नेहा ने सवाल किया, ‘‘शलभ याद है उस दिन तुम मु?ो अपने पेरैंट्स से मिलवाने की बात कर रहे थे. आज मेरे पास समय है. शाम वाली मीटिंग कैंसिल हो गई. तुम्हारा भी आज कोई इंगेजमैंट नहीं. कहीं बाहर चलते हैं. मु?ो तुम्हें अपने बारे में कुछ बताना भी था. फिर तुम्हारे पेरैंट्स से भी मिल लूंगी.’’

‘‘सौरी यार पर अब मु?ो तुम्हें अपने पेरैंट्स से मिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं.’’

‘‘मगर क्यों?’’ चौंकते हुए नेहा ने पूछा.

‘‘मैं जिस मकसद से मिलवाना चाहता था वह मकसद ही खत्म हो चुका है,’’ शलभ ने सपाट सा जवाब दिया.

‘‘क्या मैं जान सकती हूं शलभ, तुम मु?ो इस तरह ट्रीट क्यों कर रहे हो? कई दिन से नोटिस कर रही हूं, तुम मु?ो इग्नोर कर रहे हो.’’

‘‘तुम ने मु?ो चीट किया है. मेरे जज्बातों से खेला है. जो बात तुम्हें मु?ो बहुत पहले बता देनी चाहिए थी वह बात मु?ो तुम्हारी सहेली से पता चली…’’ शलभ ने गुस्से में कहा.

‘‘लगता है तुम्हें मेरे बच्चे की बात पता चली है. मगर वह मैं तुम्हें आज खुद बताने वाली थी. जब मैं ने देखा कि तुम मु?ो ले कर सीरियस हो तो मैं खुद…’’

‘‘नहीं नेहा तुम खुद मु?ो कभी नहीं बताती. वैसे भी एक शादीशुदा और बच्चे वाली औरत के साथ मु?ो इस तरह का कोई संबंध नहीं रखना.’’

‘‘शलभ मैं तलाक ले चुकी हूं. मेरी वह शादी बहुत कम उम्र में हुई थी. शादी करने की मेरी उम्र अब है,’’ नेहा ने कहा.

‘‘आप बताएंगी आप के पति ने तलाक क्यों लिया?’’ शलभ का सवाल था.

‘‘क्योंकि मेरा बेटा एक स्पैशल चाइल्ड है और वह उस की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था,’’ नेहा ने सचाई बताई.

‘‘तो क्या तुम्हें यह लगता है कि मैं इतना मूर्ख हूं कि जिस बच्चे को उस के अपने बाप ने ठुकरा दिया, उस बीमार बच्चे की जिम्मेदारी का बो?ा मैं ढोऊंगा?’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. शलभ मेरा पति कायर था इसलिए अपने ही बच्चे को अपना नहीं सका. रही बात तुम्हारी तो तुम मूर्ख तो हो ही नहीं सकते. जो इंसान इतना गुणाभाग कर किसी रिश्ते को देखता है वह मूर्ख कैसे हो सकता है. मूर्ख तो मैं हूं. मैं ही जज्बातों में बह गई. सच्चे प्यार की उम्मीद करने लगी…’’  कहतेकहते नेहा की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘ये आंसुओं का खेल मु?ा से मत खेलो नेहा. मैं एक प्रैक्टिकल इंसान हूं. किसी और का बो?ा उठाना मेरी फितरत नहीं. अपने पेरैंट्स को मैं किसी दूसरे शख्स का बीमार बच्चा नहीं सौंप सकता. याद रखना आज के बाद हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं. हम दोनों केवल कुलीग हैं और कुछ नहीं,’’ शलभ ने स्पष्ट किया.

‘‘हमारे बीच और कुछ हो भी नहीं सकता. इतना स्वार्थी आदमी मेरे प्यार का हकदार हो ही नहीं सकता…’’ आंखों के आंसू छिपाती नेहा अपने कैबिन में लौट आई.

आज शलभ ने उस का दिल ही नहीं तोड़ा था बल्कि प्यार पर से उस का

विश्वास भी तोड़ दिया था. जिस तरह अचानक शलभ ने उस से हर रिश्ता खत्म कर लिया वह उस के लिए बहुत शौकिंग था. उस से फिर औफिस में बैठा नहीं गया.

नेहा घर आ कर अपना कमरा बंद कर बैठ गई. पीयूष उसे आवाज देता रहा, सूजी उस के लिए चाय बना कर दरवाजा नौक करती रही, फोन बजता रहा, मगर उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. उस के दिमाग में सिर्फ शलभ की कही बातें गूंज रही थीं. उसे सारी दुनिया उन कुछ पलों में सिमटी नजर आ रही थी. वह एक गहरे सदमे में थी.

कृष्णा: कायरा क्यूं सब कुछ छोड़ कर चली गई- भाग 2

नंदिनी सकपका गई, कैसे बोलती कि वह आरव, जोकि उस का दामाद है, के प्रति खिंचाव महसूस कर रही है.  बस, प्रशांत से यह ही बोल पाई, ‘कुछ नहीं, आप भी चलते मेरे साथ तो मुझे तसल्ली रहती. वह यह बात प्रशांत को कैसे बता सकती थी कि वह अपनी बेटी के घर जाते हुए एक किशोरी की तरह महसूस कर रही है, उस का दिल तेज़ी से धड़क रहा है ठीक वैसे ही जैसे किशोरावस्था में धड़कता था.

जब नंदिनी एयरपोर्ट से बाहर निकली तो आरव बाहर ही खड़ा था. नांदिनी को देखते ही वह बोला, ‘आप को नहीं पता, मैं कितना खुश हूं कि अब आप मेरे साथ रहोगी. कितनी अच्छी लग रही हो आप इस पस्टेल कलर के सूट में. जरा मेरी बीवी को भी कुछ सिखा दीजिए.’

नांदिनी चुप रही, बस मुसकराती रही. रास्ते में आरव और वह एक नई किताब पर चर्चा करते रहे थे.

जब नंदिनी आरव के साथ घर पहुंची तो घर का और कायरा का हाल देख कर नंदिनी चकरा गई थी. नंदिनी को आरव का अपने प्रति झुकाव का कारण आज समझ आ गया था.  नहा कर जब नंदिनी बाहर आई तो देखा कायरा ने चाय बना ली थी. चाय एकदम बेस्वाद  बनी थी. नंदिनी को बहुत भूख लगी  हुई थी, इसलिए चाय के बाद उस ने कायरा से कहा- ‘कायरा, लाओ मैं नाश्ता बना देती हूं.’ रसोई का भी बुरा हाल था लेकिन फिर भी किसी तरह जुगाड़ कर के नंदिनी ने बेसनी परांठे और आलू की सब्जी बना दी. कायरा ने जल्दीजल्दी नाश्ता खाया लेकिन आरव की तो तारीफ़ ही ख़त्म नहीं हो रही थी.  कायरा नाश्ते के बाद अपने कमरे में बंद हो गई थी.  आरव और  नंदिनी  ‘माया मेमसाहब’ मूवी देख रहे थे.

अचानक से आरव बोला, ‘आप को पता है, बचपन से मुझे आंटी लोग बहुत अच्छी लगती थीं.   मेरी पड़ोस में रहने वाली नीरा आंटी मेरा क्रश थीं.  एक बात बोलूं, अगर आप बुरा न मानो?’

नंदिनी का दिल तेज़ी से धड़क रहा था पर फिर भी बोली हां बोलो.

‘जब मैं कायरा से मिलने आया था तो मुझे कायरा से ज्यादा आप पसंद आ गई थीं.’ नंदिनी पसीनापसीना हो गई थी.  आरव बिना रुके बोल रहा था, ‘आप के साथ मैं रिलेट कर पाता हूं पर कायरा के साथ मैं चाह कर भी इस तरह से नहीं कर पाता.’

नंदिनी को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस बात का क्या जवाब दे. पर नंदिनी के रोमरोम में सिहरन हो रही थी. नंदिनी बिना कोई जवाब दिए बाहर बालकनी में आ कर बैठ गई थी.  उस ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह कभी ऐसी दुविधा में फंसेगी.  आरव का साथ उसे अच्छा लगता था, उस से बात कर के वह तरोताज़ा महसूस करती थी पर फिर बीच में उस के और आरव के रिश्ते की मर्यादा आ खड़ी होती थी.

सुबह नंदिनी की आंखें हमेशा की तरह जल्दी खुल गई थीं.  जब वह फ्रैश हो कर बाहर निकली तो देखा, आरव रसोई में चाय बना रहा था. नंदिनी आरव को हटाते हुए बोली, ‘अरे, चलो, तुम हटो, मैं बना देती हूं.’ आरव बोला, ‘अरे, मैं तो तैयार हूं, आप जल्दी से ट्रैक सूट पहन लो, फिर जौगिंग करने चलेंगे.’

बाहर की ठंडी हवा में नंदिनी तरोताज़ा महसूस कर रही थी. जब आरव और नंदिनी घूम कर वापस आए तो कायरा बासी सा चेहरा लिए उन दोनों की प्रतीक्षा कर रही थी.  कायरा हंसती हुई बोली, ‘चलो, बेटी न सही तो मां ही सही. मम्मी, आप तो धीरेधीरे आरव की सारी शिकायतें दूर कर दोगी जो उसे मुझ से हैं.’

नंदिनी सकपकाती हुई बोली, ‘भला तुम क्यों नहीं जाती उस के साथ?’

कायरा बोली, ‘अरे, मुझे औफिस से समय मिले तो यह सब करूं न.’

आरव के औफिस जाने के बाद नंदिनी ने कायरा को आड़े हाथों लिया. ‘अगर तुम्हारा हाल यह ही रहा तो जल्द ही आरव किसी और की बांहों में झूल रहा होगा.’

कायरा हंसती हुई बोली, ‘अरे, आरव को तो आप से ही फ़ुरसत नहीं जो वह किसी और की तरफ देखे.’

नंदिनी गुस्से में बोली, ‘क्या मतलब?’

कायरा बोली, ‘अरे, मेरी भोली मम्मी, आप का दामाद तो बुद्धू हैं, आप चिंता न करो.’

नंदिनी किस मुंह से बोलती कि उस का बुद्धू पति अपनी सास को अपनी पत्नी से अधिक पसंद करता है. आरव अब रोज़ शाम को आ कर नंदिनी के साथ किसी न किसी साहित्यिक विचारविमर्श में व्यस्त रहता था और बाद में नंदिनी की रसोई में मदद करता था. नंदिनी को ये ही सब तो प्रशांत में चाहिए था.  10 दिन बीत गए थे पर जब भी नंदिनी जाने का नाम लेती तो कायरा मना कर देती थी.

एक रोज़ शाम को कायरा नंदिनी की गोद में लेटी हुई बोल रही थी, ‘मम्मी, आप जब से आई हो, आरव बदल गया है, वरना वह घर की तरफ रुख भी नहीं करता था. न जाने किस के साथ फ़ोन पर व्यस्त रहता था? मम्मी क्या सभी पति ऐसे ही होते हैं? तभी तो मेरा मन नही है कि आप वापस जाओ, घर घर जैसा लग रहा है.’

Holi 2023: सदमा- आखिर कैसा रिश्ता था नेहा और शलभ का? भाग 2

डाक्टर से पीयूष के बारे में जरूरी डिस्कशन कर वह बेटे को दवा की अगली खुराक देने लगी. पीयूष बेचैन था और रहरह कर रो रहा था. देर रात तक वह पीयूष का सिर गोद में लिए बैठी रही. फिर उसी की बगल में सो गई.

दरअसल, पीयूष नेहा का 10 साल का बेटा था. नेहा एक तलाकशुदा महिला थी. उस का पति विपुल हैदराबाद में मैनेजर था. विपुल से नेहा ने लव मैरिज की थी. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. घर वालों के खिलाफ जा कर नेहा ने यह शादी कर ली थी. दोनों ने एक खूबसूरत शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत भी की. उन के प्यार का प्रतीक जब नेहा के गर्भ में आया तो विपुल खुशी से पागल हो गया. उसे बच्चों से बहुत लगाव था. वह अपने भाई के बच्चों को भी हर समय गोद में लिए रहता. यही वजह थी कि जब नेहा के प्रैगनैंट होने की खबर मिली तो उस ने अपने पूरे औफिस में मिठाई बंटवाई.

निश्चित समय पर नेहा ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया. उस दिन विपुल ने अपने महल्ले में ढोलनगारे बजवाए. नाचगाने का प्रोग्राम करवाया. नेहा और बच्चे के स्वागत में पूरे घर को सजाया. खिलौनों से पूरा कमरा भर दिया. बहुत प्यार से दोनों ने बच्चे का नाम पीयूष रखा. पीयूष बड़ा होने लगा मगर जल्द ही दोनों को यह बात सम?ा आने लगी कि वह एक नौर्मल चाइल्ड नहीं है.

डाक्टर से चैकअप के बाद पता चला कि वह डाउन सिंड्रोम की समस्या से ग्रस्त है. डाक्टर ने यह भी बताया कि डाउन सिंड्रोम की समस्या जेनेटिक होती है. विपुल को याद आया कि नेहा के सगे चाचा को भी यह समस्या रही है. डाक्टर से मिलने और सब जान लेने के बाद विपुल का व्यवहार नेहा और उस के बच्चे से एकदम बदल गया. वह बहुत चिड़चिड़ा रहने लगा. उस ने फिर एक और डाक्टर से बात की. इस डाक्टर ने भी वही बातें बताईं.

विपुल को इस तरह परेशान देख कर नेहा उसे सम?ाने लगी, ‘‘देखो विपुल

बच्चे की बीमारी पर हमारा वश नहीं. हमें कुदरत ने जैसी भी संतान दी है उसे ही हम अपना सारा प्यार देंगे. बहुत से लोगों के साथ ऐसा होता है. इस सच को ऐक्सैप्ट कर लो विपुल तभी खुश रह पाओगे.’’

‘‘नहीं मैं न इस सच को ऐक्सैप्ट कर सकता हूं और न ही इस बच्चे को. यह मेरा फाइनल डिसिजन है.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो? इसे ऐक्सैप्ट नहीं करोगे? क्या मतलब है तुम्हारा?’’ नेहा ने परेशान स्वर में पूछा.

‘‘यही मतलब है कि मु?ो यह बच्चा नहीं चाहिए,’’ मुंह फेरते हुए विपुल ने कहा.

‘‘नहीं चाहिए तो क्या जान से मारोगे इस नन्ही सी जान को? देखो कैसे मुसकरा रहा है. इस पर तुम्हें प्यार नहीं आता विपुल?’’

‘‘नहीं नेहा मु?ो इस पर प्यार नहीं आता. मैं इस की शक्ल भी देखना नहीं चाहता. मैं एक स्पैशल चाइल्ड का बाप कहलाना पसंद नहीं करता. हम इसे किसी अनाथालय में छोड़ आएंगे.’’

‘‘नहीं मैं ऐसा नहीं करने दूंगी. यह मेरा बच्चा है. मैं ने इसे 9 महीने कोख में रखा है. अपने खून से सींचा है.’’

‘‘तो ठीक है तुम इसे या मु?ो किसी एक को चुन लो. वैसे भी तुम इसी तरह के बीमार बच्चों को जन्म दोगी. तुम्हारे खानदान में ही दोष है. मैं तुम से अलग होना चाहता हूं.’’

विपुल के मुंह से इतने कड़वे शब्द सुनने और उस के प्यार की असलियत सम?ाने के बाद नेहा कुछ नहीं कह पाई. उस ने फैसला कर लिया. वह विपुल से अलग हो गई और बच्चे के साथ नई जिंदगी की शुरुआत की. कुछ ही दिनों में उस ने एक अच्छी कंपनी में जौब भी शुरू कर दी. वैसे भी वह एमबीए की पढ़ाई कर रही थी, इसलिए नौकरी मिलने में दिक्कत नहीं हुई.

इस बात को आज 8 साल बीत चुके थे. पीयूष पढ़ाई करने लगा था. नेहा उसे

समयसमय पर थेरैपी के लिए ले जाती. नेहा ने अपनी मेहनत और लगन से औफिस में भी

अच्छा रुतबा बना लिया था. उसे बहुत तेजी से तरक्की मिली थी और उस ने अपना 3 बीएचके का फ्लैट ले लिया था. पीयूष की देखभाल के लिए उस ने सूजी नाम की फुलटाइम मेड लगा रखी थी. वह पीयूष का पूरा खयाल रखती और घर के सदस्य की तरह रहती. यही वजह थी

कि नेहा को औफिस संभालने में दिक्कत नहीं आती थी.

हाल ही में कंपनी की तरफ से उसे तरक्की दे कर नई ब्रांच में भेजा गया था जहां उस की मुलाकात शलभ से हुई. कहीं न कहीं अब वह शलभ के साथ एक खूबसूरत जीवन की कल्पना करने लगी थी. मगर जिंदगी उसे कुछ और ही सच दिखाने वाली थी.

दरअसल, उस दिन औफिस से नेहा के जाते ही शलभ के दोस्त और कुलीग अरुण एवं शालिनी ने प्रवेश किया. उन्होंने शलभ के कमरे से नेहा को हड़बड़ाए हुए निकलते देख लिया था.

आते ही अरुण ने शलभ से पूछा, ‘‘क्या हुआ, नेहा इतनी जल्दी कहां चली गई?’’

‘‘पता नहीं यार. अचानक कोई फोन कौल आई और वह परेशान सी चली गई. कुछ बताया भी नहीं.’’

‘‘आई गैस, उस के बेटे की तबीयत खराब होगी.’’

‘‘बेटा?’’ शलभ ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां, एक दिन बताया था उस ने. उस दिन भी वह परेशान थी. मेरे पूछने पर कहने लगी कि बेटे की तबीयत ठीक नहीं और उसे मेड के भरोसे छोड़ कर आना पड़ा है.’’

‘‘क्यों घर में और कोई नहीं बच्चे को संभालने के लिए?’’ अरुण ने सवाल किया.

‘‘नहीं वह अकेली रहती है.’’

‘‘मगर उसे बेटा है, ऐसा कैसे? क्या वह शादीशुदा है?’’ शलभ को एक ?ाटका सा लगा.

‘‘फिलहाल उस का स्टेटस डिवोर्सी का है. उस ने पति से कई साल पहले तलाक ले लिया था. अकेली ही बच्चे को पाल रही है.’’

‘‘पर उस ने मु?ो तो कुछ नहीं बताया,’’ शलभ की आंखों में कई सवाल थे.

 

‘‘इस औफिस में ये सब बातें केवल मु?ो ही पता हैं. दरअसल मैं और नेहा पिछले

औफिस में भी साथ काम करते थे. वहां हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. मैं तो उस के घर भी गई हूं. बहुत बड़ा और सुंदर घर है उस का.’’

‘‘और बच्चा? बच्चा कितना बड़ा है?’’ शलभ ने सवाल किया.

‘‘बच्चा वैसे तो 8-10 साल का होगा मगर वह स्पैशल चाइल्ड है न सो अब भी संभालना कठिन होता है उसे.’’

‘‘स्पैशल चाइल्ड?’’

‘‘हां. उस का बेबी जन्म से ही डाउन सिंड्रोम की समस्या से पीडि़त है. मैं तो उस की हिम्मत की दाद देती हूं. इतनी बड़ी जिम्मेदारी वह

अकेली उठा रही है. सुना है उस के पति ने भी इस बच्चे की वजह से ही उसे तलाक दिया था. वह इस बच्चे को किसी अनाथालय में छोड़ने को तैयार नहीं हुई और अकेले ही उसे पालने का फैसला लिया.’’

नेहा के बारे में ये सारी जानकारी पाने के बाद शलभ खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगा. जिस लड़की को वह अपना पहला प्यार सम?ा रहा था वह तो शादीशुदा और एक बच्चे की मां निकली. बच्चा भी साधारण नहीं बल्कि एक स्पैशल चाइल्ड. वह पूरी रात सो नहीं सका. उसे इस बात का भी अफसोस था कि ये सारी बातें उसे दूसरों से पता चलीं. खुद नेहा ने उसे कुछ नहीं बताया. जिस रिश्ते को वह इतना सीरियसली लेने लगा था वह रिश्ता तो ?ाठ की बुनियाद पर टिका निकला. उसे नेहा से नफरत सी होने लगी. वैसे भी एक तलाकशुदा बीमार बच्चे की मां को वह अपना सारा जीवन नहीं सौंप सकता. बात ज्यादा बड़ी नहीं थी सो उस के लिए कदम पीछे करना आसान था. उस ने फैसला ले लिया था कि वह अब नेहा से दूरी बढ़ा लेगा.

नेहा 2 दिन औफिस नहीं आई. पहले अगर नेहा एक दिन भी औफिस नहीं आती थी तो शलभ 4 बार फोन कर डालता था. मगर इस बार उस ने हालचाल भी नहीं पूछा. यह बात नेहा को खटक रही थी.

कृष्णा: कायरा क्यूं सब कुछ छोड़ कर चली गई- भाग 1

नंदिनी के पास आज कायरा का फ़ोन आया था. कायरा बिना रुके धाराप्रवाह बोले जा रही थी, ‘मम्मी, अगर आप नहीं आईं तो मेरे हाथों से यह प्रोजैक्ट निकल जाएगा.’  नंदिनी बोलना चाहती थी कि वह नहीं आ सकती है. न जाने क्यों नंदिनी अपने दामाद आरव का सामना नहीं करना चाहती थी. पर हमेशा की तरह मन की बात मन में ही रह गई और उधर से कायरा ने फ़ोन काट दिया था.

रात को जब प्रशांत आए तो मुसकराते हुए बोले, ‘लगता है मेरी आज़ादी के दिन नज़दीक हैं, तुम्हारी लाड़ली ने तुम्हारा बेंगलुरु जाने का टिकट बुक करा लिया है. अगले रविवार की तैयारी कर लो.’

नंदिनी थोड़े गुस्से में बोली, ‘तुम ने या उस ने मुझ से पूछने की भी जरूरत नहीं समझी?’

प्रशांत हैरान होते हुए बोले, ‘अजीब मां हो तुम, मुझे क्या है, मत जाओ तुम.’

नंदिनी प्रशांत से कहना चाहती थी कि आरव की मौजूदगी उसे परेशान करती है पर वह क्या और कैसे कहे. ऐसा नही है कि आरव ने नंदिनी के साथ बदतमीज़ी की हो पर न जाने क्यों नंदिनी को आरव के साथ कुछ अलग सा लगता है.

आरव का नंदिनी को कंप्लीमैंट्स देना, उस के सलीके की तारीफ करना सबकुछ नंदिनी को आरव की तरफ खींचता हैं. इस कारण भी नंदिनी आरव का सामना नहीं करना चाहती थी.  एक 52 वर्ष की महिला, एक 27 वर्ष के खूबसूरत लड़के के बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकती है वह भी जब वो उस का दामाद हो.

नंदिनी भारी मन से तैयारी कर रही थी. वह एक अजीब सी उलझन में घिर गई थी. किस से बात करे, उसे समझ नहीं आ रहा था.  अभी कायरा की शादी को दिन ही कितने हुए हैं, बस 7 महीने ही तो हुए हैं पर आज भी नंदिनी की आंखों के आगे वह होली आ जाती है जब आरव नंदिनी को रंग लगाते हुए कह रहा था- ‘कौन कहेगा कि आप कायरा की मम्मी हो, आप अभी भी कितनी फिट हो’ और यह कहते हुए आरव शरारत से मुसकरा रहा था. नंदिनी शर्म से पानीपानी हो उठी पर न जाने क्यों उस का मन आरव की तारीफ़ से खिल उठता था.

उस शाम को भी नंदिनी ने जानबूझ कर साड़ी न पहन कर स्कर्ट व टौप पहन लिया था. वह आरव के मुंह से अपनी और तारीफ सुनना चाहती थी. आरव ने भी उस पूरी शाम को नांदिनी के नाम कर दिया था. यहां तक की नांदिनी की छोटी बहन सुरुचि भी बोली, ‘आराव बेटा, नंदिनी तुम्हारी सास हैं और कायरा बीवी, कहीं भूल तो नहीं गए.’ वह अलग बात हैं कि नंदिनी के पति प्रशांत को इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था और कायरा भी आरव की बातों को हलकेफुलके तरीके से ही लेती थी.  पर नांदिनी का आकर्षण था जो आरव के प्रति कम ही नहीं हो रहा था. उसे नहीं पता था कि आरव के मन में क्या है या वह उस का मजाक उड़ा रहा है. पर वह खुद को रोक नहीं पाती थी.

आरव और कायरा होली पर पूरे 4 दिन रुके पर इन 4 दिनों में आरव, बस, नंदिनी के ही आगेपीछे घूमता रहता था. नंदिनी के पति प्रशांत बेहद शांतप्रिय जीव थे. वे अपने परिवार से प्यार तो करते थे पर जाहिर नहीं कर पाते थे. उन्हें नंदिनी बेहद खूबसूरत लगती थी पर उन्हें यह बोलने की कभी जरूरत महसूस नहीं हुई.

उधर, नंदिनी अपनी तारीफ़ सुनने के लिए तरस गई थी. ऐसे में आरव का उसे इतना महत्त्व देना उसे बहुत भाता था. अपनी 25 वर्ष की बेटी से ही वह अनजाने में प्रतियोगिता करने लगी थी. आरव को जो पसंद है वह कायरा से ज्यादा नंदिनी को मालूम था. नांदिनी की तरह आरव भी हैल्थफ्रीक था और दोनो की ही साहित्य में असीम रुचि थी.  होली के बाद भी आरव नंदिनी को लगभग रोज ही फ़ोन करता था. न जाने क्यों नंदिनी यह बात कायरा और प्रशांत से छिपा लेती थी.  उसे पता था कि किसी को यह समझ नहीं आएगा.

उधर, आरव को कायरा से कोई शिकायत नहीं थी पर जो सुकून उसे  नंदिनी के साथ मिलता था वह कायरा के साथ नहीं मिल पाता था. कायरा आजकल की लड़कियों की तरह पार्टी, नाचगाने और ट्रिप्स तक सीमित थी. ऐक्सरसाइज करने से वह भागती थी और किताबों से उसे एलर्जी थी, इसलिए आरव को नंदिनी के साथ बात कर के आनंद आता था.

आरव आज के ज़माने का युवक था, इसलिए नंदिनी के साथ अपनी दोस्ती को ले कर उसे जरा भी गिल्ट नहीं था. उस के जीवन का एक ही मूलमंत्र था कि जिस राह पर भी खुशी मिले उसे अपना लो. नंदिनी को रातभर नींद नहीं आई तो सुबह प्रशांत प्यार से बोला, ‘क्या बात है नंदिनी, अगर कोई बात परेशान कर रही हो तो मुझे बताओ.’

Holi 2023: सदमा- आखिर कैसा रिश्ता था नेहा और शलभ का? भाग 1

शलभआज औफिस लेट पहुंचा था. तेजी से अपने कैबिन की तरफ बढ़ा तो ऐसा लगा जैसे बगल से मदमस्त खुशबू का ?ांका गुजरा हो. शलभ ने तुरंत मुड़ कर देखा. वह एक लड़की थी जिस के काले घुंघराले लंबे बाल नागन की तरह उस की पीठ पर लहरा रहे थे. वह लिफ्ट की तरह बढ़ गई थी. उसे पीछे से देख कर ही शलभ सम?ा गया था कि लड़की बेहद खूबसूरत है और औफिस में नई आई है.

अभी अपनी सीट पर बैठ कर उस ने 2-4 मेल ही किए थे कि वही लड़की दरवाजा नौक करने लगी. शलभ ने उसे अंदर आने का इशारा किया. हलके पीले टौप और ब्लू जींस में उस का सुनहरा रंग खिल उठा था. ऐसा लगा जैसे कमरे में रोशनी फैल गई हो.

हौले से मुसकराती हुई वह शलभ के सामने बैठ गई और बोली, ‘‘दरअसल मैं इस कंपनी की नई ब्रैंड मैनेजर हूं और कुछ औफिशियल डिस्कशन के लिए आई थी.’’

‘‘जरूर मगर पहले हम एकदूसरे का नाम जान लेते तो बेहतर होता…’’ शलभ ने एकटक उस की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘जी हां, सौरी मैं नाम बताना भूल गई. मेरा नाम नेहा है और आप का नाम मैं जानती हूं. काफी तारीफ भी सुनी है आप की.’’

‘‘रियली. वैसे बहुत प्यारा है आप का नाम.’’

‘‘थैंक्स.’’

फिर दोनों देर तक डिस्कशन करते रहे. शलभ को नेहा पहली नजर में ही पसंद आ गई. जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता बन गया. 1-2 महीने के अंदर ही वे लंच एकसाथ करने लगे और शाम में घर के लिए भी एकसाथ ही निकलते. शलभ अपनी कार में नेहा को उस के घर के पास ड्रौप करता और फिर आगे बढ़ जाता. न कभी नेहा ने उसे घर आने का न्योता दिया और न ही शलभ ने इस के लिए कोई इंटरैस्ट दिखाया. नेहा भी कभी शलभ के घर नहीं गई. वे एकदूसरे की पर्सनल लाइफ के बारे में कभी डिस्कशन नहीं करते थे. एक डिस्टैंस मैंटेन करते हुए भी दोनों एकदूसरे का साथ ऐंजौय कर रहे थे.

एक दिन शलभ ने बताया कि उसे औफिशियल मीटिंग के लिए हैदराबाद

जाना है. उस ने नेहा को भी साथ चलने की सलाह दी. नेहा ने अपने टीम हैड से बात की और इस ट्रिप को बिजनैस मीटिंग के रूप में अप्रूव करा लिया. हैदराबाद में दोनों अलगअलग कमरे में रुके. औफिशियल काम निबटाने के बाद दोनों ने हैदराबाद में बहुत अच्छा समय साथ बिताया. खास जगहों की सैर की. मार्केट जा कर शौपिंग भी की.

अब तो अकसर दोनों औफिशियल मीटिंग के लिए साथ जाने लगे. कई दफा औफिस से जल्दी फ्री हो कर भी घूमने निकल जाते. कोई नई फिल्म लगती तो दोनों फिल्म देखने भी जाते. नेहा को कुछ शौपिंग करनी होती तो भी वह शलभ को ही साथ लेती. शलभ कहीं न कहीं अब नेहा को ले कर गंभीर होने लगा था. वह उसे अपनी जीवनसाथी बनाने के बारे में भी सोचने लगा था. मगर वह नेहा के दिल की बात नहीं जानता था. इधर नेहा भी शलभ के साथ दिल से जुड़ चुकी थी. शलभ के बिना रहने की वह कल्पना भी नहीं करना चाहती थी.

एक दिन नेहा शलभ के साथ बैठी कौफी पी रही थी. आज शलभ उस से अपने दिल की बात कहने का बहाना ढूंढ़ रहा था. काफी सोचविचार कर शलभ ने कहा, ‘‘यार नेहा मैं सोच रहा था कि अब तुम्हें अपने पेरैंट्स से मिलाने का समय आ गया है. आर यू कंफर्टेबल?’’

‘‘श्योर,’’ प्यार से नेहा ने जवाब दिया. उस के चेहरे पर हया की लाली फैल गई थी.

तभी अचानक उस का मोबाइल बजा. उस

ने जैसे ही कौल रिसीव किया कि उस का चेहरा बन गया. वह काफी परेशान दिखने लगी. तुरंत कुरसी से उठती हुई बोली, ‘‘यार शलभ कुछ इमरजैंसी है मु?ो तुरंत घर जाना पड़ेगा. मैं निकलती हूं.’’

‘‘मगर बात क्या है नेहा मु?ो बताओ? कोई परेशानी है? मैं ड्रौप कर देता हूं तुम्हें.’’

‘‘नहीं कोई ऐसी बात नहीं. मैं चली जाऊंगी. वैसे भी तुम्हारी एक मीटिंग है, इसलिए तुम परेशान मत हो. आई विल मैनेज,’’ कह कर वह तेजी से निकल गई.

नेहा ने एक कैब की और जल्द घर पहुंच गई. सूजी बरामदे में बहुत बेचैनी के साथ चहलकदमी कर रही थी. नेहा को देखते ही वह दरवाजा खोलते हुए बोली, दीदी पता नहीं पीयूष को क्या हो गया है. दोपहर से ही तेज बुखार है. आज तो उस ने खाना भी नहीं खाया.

‘‘मगर तुम ने पहले फोन क्यों नहीं किया?’’ पीयूष का माथा छूते हुए नेहा ने कहा.

‘‘दीदी मु?ो लगा डाक्टर अभिषेक की दवा से वह ठीक हो जाएगा. फिर आज आप की कोई अर्जेंट मीटिंग भी थी न.’’

‘‘पर मैं ने कहा हुआ है न सूजी कि पीयूष से बढ़ कर मेरे लिए कुछ नहीं. अच्छा यह बता डाक्टर अभिषेक आए थे चैकअप के लिए तो बीमारी क्या बताई उन्होंने?’’

‘‘कह रहे थे वायरल ही लग रहा है.’’

‘‘ठीक है तुम जाओ और जल्दी से जूस ले कर आओ,’’ सूजी को किचन में भेज कर वह डाक्टर को फोन लगाने लगी.

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