अपने चरित्र पर ही संदेह: भाग 2- क्यों खुद पर शक करने लगे रिटायर मानव भारद्वाज

मानव की चिंता जायज थी. अच्छा पड़ोसी वरदान है क्योंकि अपनों से पहले पड़ोसी काम आता है. खाने की मेज पर सभी जुट गए. वसुधा की मेहनत सामने थी. सभी खाने लगे मगर मानव ने सिर्फ रायता और चावल ही लिए. मंचूरियन में सिरका था, चिली चीज में टोमैटो कैचअप था और अंडाकरी में तो अंडा था ही. सूप में भी अंडा था. आंखें भर आईं वसुधा की. मानव ये सब नहीं खा पाएंगे, उसे नहीं पता था. उसे रोता देख कर मानव ने खाने के लिए हाथ बढ़ा दिया.

‘‘नहीं, चाचाजी, आप बीमार हो जाएंगे. रहने दीजिए.’’

‘‘मैं घर पर भी नमकीन चावल ही बना कर खाता हूं. तुम दुखी मत हो बच्ची. फिर किसी दिन बना लेना.’’

वसुधा का सिर थपथपा कर मानव चले गए. वे मेरे सहकर्मी हैं. वरिष्ठ प्रबंधक हैं, इसलिए शहर की बड़ी पार्टियां उन्हें हाथोंहाथ लेती हैं.

‘‘कोई फायदा नहीं साहब, जब तक आप के सारे कागज पूरे नहीं होंगे आप को लोन नहीं मिल सकता. मेरी चापलूसी करने से अच्छा है कि आप कागज पूरे कीजिए. मेरी सुविधा की बात मत कीजिए. मेरी सुविधा इस में है कि जो बैंक मुझे रोटी देता है कम से कम मैं उस के साथ तो ईमानदार रहूं. मेरी जवाबदेही मेरे अपने जमीर को है.’’

इस तरह की आवाजें अकसर सब सुनते हैं. कैबिन का दरवाजा सदा खुला होता है और मानव क्या कहसुन रहे हैं सब को पता रहता है.

‘‘आज जमाना इतने स्पष्टवादियों का नहीं है, मानव…10 बातें बताने वाली होती हैं तो 10 छिपाने वाली भी.’’

‘‘मैं क्या छिपाऊं और क्यों छिपाऊं. सच सच है और झूठ झूठ. जो काम मुझे नहीं करना उस के लिए आज भी ना है और कल भी ना. कैबिन बंद कर के मैं किसी से मीठीमीठी बातें नहीं करना चाहता. हमारा काम ही पैसे लेनादेना है. छिपा कर सब की नजरों में शक पैदा क्यों किया जाए. 58 का हो गया हूं. इतने साल कोई समस्या नहीं आई तो आगे भी आशा है सब ठीक ही होगा.’’

एक शाम कार्यालय में मानव की लिखी रचना पर चर्चा छिड़ी थी. किसी भ्रष्ट इनसान की कथा थी जिस में उस का अंत बहुत ही दर्दनाक था. मेरी बहू वसुधा मानव की बहुत बड़ी प्रशंसक है. रात खाने के बीच मैं ने पूछा तो सहज सा उत्तर था वसुधा का :

‘‘जो इनसान ईमानदार नहीं उस का अंत ऐसा ही तो होना चाहिए, पापा. ईमानदारी नहीं तो कुछ भी नहीं. सोचा जाए तो आज हम लोग ईमानदार रह भी कहां गए हैं. होंठों पर कुछ होता है और मन में कुछ. कभीकभी तो हमें खुद भी पता नहीं होता कि हम सच बोल रहे हैं या झूठ. मानव चाचा ने जो भी लिखा है वह सच लिखा है.’’

वसुधा प्रभावित थी मानव से. दूसरी दोपहर कोई कैबिन में बात कर रहा था :

‘‘आप ने तो हूबहू मेरी कहानी लिखी है. उस में एक जगह तो सब वैसा ही है जैसा मैं हूं.’’

‘‘तो यह आप के मन का चोर होगा,’’ मानव बोले, ‘‘आप शायद इस तरह के होंगे तभी आप को लगा यह कहानी आप पर है. वरना मैं ने तो आप पर कुछ भी नहीं लिखा. भला आप के बारे में मैं जानता ही क्या हूं. अब अगर आप ही चीखचीख कर सब से कहेंगे कि वह आप की कहानी है तो वह आप का अपना दोष है. पुलिस को देख कर आम आदमी मुंह नहीं छिपाता और चोर बिना वजह छिपने का प्रयास करता है.’’

‘‘आप सच कह रहे हैं, आप ने मुझ पर नहीं लिखा?’’

‘‘हमारे समाज में हजारों लोग इस तरह के हैं जो मेरे प्रेरणास्रोत हैं. हर लेखक अपने आसपास की घटनाओं से ही प्रभावित होता है. इसी दुनिया में हम जीते हैं और यही दुनिया हमें जीनामरना सब सिखाती है. लिखने के लिए किसी और दुनिया से प्रेरणा लेने थोड़े न जाएंगे हम. कृपया आप मन पर कोई बोझ न रखें. मैं ने आप पर कुछ नहीं लिखा.’’

समय बीतता रहा. मानव के पड़ोस में जो वृद्ध दंपती आए उन से भी उन की अच्छी दोस्ती हो गई. बैंक की नौकरी बहुत व्यस्त होती है, इस में इधरउधर की गप मारने का समय कहां होता है. फिर भी कभीकभार उन से मानव की किसी न किसी विषय पर चर्चा छिड़ जाती. अपनी छपी रचनाएं मानव उन्हें थमा देते हैं जिन से उन का समय कटता रहता है.

80-85 साल के दंपती जिंदगी के सारे सुखदुख समेट बस कूच करने की फिराक में हैं. फिर भी जब तक सांस है यह चिंता लगी ही रहती है कि क्या नहीं है जो होना ही चाहिए. मानव उन से 30 साल पीछे चल रहे हैं. कुछ बातें सिर्फ समय ही सिखाता है. मानव को अच्छा लगता है उन के साथ बातें करना. कुछ ऐसी बातें जिन्हें सिर्फ समय ही सिखा सकता है…मानव उन से सीखते हैं और सीखने का प्रयास करते हैं.

2 साल और बीत गए. मानव और मैं दोनों ही बैंक की नौकरी से रिटायर हो गए. अब तो हमारे पास समय ही समय हो गया. बच्चों के ब्याह कर दिए, वे अपनीअपनी जगह पर खुश हैं. जीवन में घरेलू समस्याएं आती हैं जिन से दोचार होना पड़ता है. रिश्तेदारी में, समधियाने में, ससुराल वालों के साथ अकसर मानव के विचार मेल नहीं खाते फिर भी एक मर्यादा रख कर वे सब से निभाते रहते हैं. कभी ज्यादा परेशानी हो तो मुझ से बात भी कर लेते हैं. बेटी की ससुराल से कुछ वैचारिक मतभेद होने लगे जिस वजह से मानव ने उन से भी दूरी बना ली.

‘‘मैं तो वैसे भी मर्यादा से बाहर जाना नहीं चाहता. आजकल लड़की के घर जाने का फैशन है. वहां रह कर खानेपीने का भी. मुझे अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं मीना को भी वहां जाने नहीं देता. ऐसा नहीं कि हमारे वहां बैठ कर खानेपीने से उन के घर में कोई कमी आ जाती है, लेकिन हमें यह अच्छा नहीं लगता कि वे हमें खाने पर बुलाएं और हम वहां डट कर बैठ कर खाएं.

‘‘हमारे बुजुर्गों ने कहा था कि बेटी के घर कम से कम जाओ. जाओ तो खाओ मत, 4 घंटे के बाद इनसान को भूख लग जाती है. भाव यह था कि 4 घंटे से ज्यादा मत टिको. बातचीत में ऐसा न हो कि कोई बात हमारे मुंह से निकल जाए… लाख कोई दावा करे पर लड़की वालों को कोई दोस्ती की नजर से नहीं देखता. लड़की वाला छींक भी दे तो अकसर कयामत आ जाती है.

‘‘मानसम्मान जितना दिया जाना चाहिए उतना अवश्य देता हूं मैं लेकिन मेरे अपने घर की मर्यादा में किसी का दखल मुझे पसंद नहीं. मेरे घर में वही होगा जो मुझे चाहिए. आप के घर में भी वही होगा जो आप चाहें. हम दुनिया को नहीं बदल सकते लेकिन अपने घर में अपने तौरतरीकों के साथ जीने का हमें पूरापूरा हक होना चाहिए.’’

अपने चरित्र पर ही संदेह: भाग 1- क्यों खुद पर शक करने लगे रिटायर मानव भारद्वाज

अकसर बचपन में भी सुनते थे और अब भी सुनते हैं कि गांधीजी ने कहा था कि कोई एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा भी आगे कर देना चाहिए. समय के उस दौर में शायद एक गाल पर चांटा मारने वाले का भी कोई ऐसा चरित्र होता होगा जिसे दूसरा गाल भी सामने पा कर शर्म आ जाती होगी.

आज का युग ऐसा नहीं है कि कोई लगातार वार सहता रहे क्योंकि वार करने वालों की बेशर्मी बढ़ती जा रही है. उस युग में सहते जाना एक गुण था, आज के युग में सहे जाना बीमारी बनता जा रहा है. ज्यादा सहने वाला अवसाद में जाने लगा है क्योंकि उस का कलेजा अब लक्कड़, पत्थर हजम करने वाला नहीं रहा, जो सामने वाले की ज्यादती पर ज्यादती सहता चला जाए.

पलट कर जवाब नहीं देगा तो अपनेआप को मारना शुरू कर देगा. पागलपन की हद तक चला जाएगा और फिर शुरू होगा उस के इलाज का दौर जिस में उस से कहा जाएगा कि आप के मन में जो भी है उसे बाहर निकाल दीजिए. जिस से भी लड़ना चाहते हैं लड़ लीजिए. बीमार जितना लड़ता जाएगा उतना ही ठीक होता जाएगा.

अब सवाल यही है कि इतना सब अपने भीतर जमा ही क्यों किया गया जिसे डाक्टर या मनोवैज्ञानिक की मदद से बाहर निकलना पड़े? पागल होना पड़ा सो अलग, बदनाम हुए वह अलग.

हर इनसान का अपनाअपना चरित्र है. किसी को सदा किसी न किसी का मन दुखा कर ही सुख मिलता है. जब तक वह जेब से माचिस निकाल कर कहीं आग न लगा दे उस के पेट का पानी हजम नहीं होता. इस तरह के इनसान के सामने अगर अपना दूसरा गाल भी कर दिया जाएगा तो क्या उसे शर्म आ जाएगी?

गलत को गलत कहना जरूरी है क्योंकि गलत जब हमें मारने लगेगा तो अपना बचाव करना गलत नहीं. अब प्रश्न यह भी उठता है कि कैसे पता चले कि गलत कौन है? कहीं हम ही तो गलत नहीं हैं? कहीं हम ने ही तो अपने दायरे इतने तंग नहीं बना लिए कि उन में आने वाला हर इनसान हमें गलत लगता है?

हमारे एक सहयोगी बड़ा अच्छा लिखते हैं. अकसर पत्रिकाओं में उन की रचनाओं के बारे में लिखा जाता है कि उन का लिखा अलग ही होता है और प्रेरणादायक भी होता है. सत्य तो यही है कि लेखक के भीतर की दुनिया उस ने स्वयं रची है जिस में हर चरित्र उस का अपना रचा हुआ है. यथार्थ से प्रेरित हो कर वह उन्हें तोड़तामरोड़ता है और समस्या का उचित समाधान भी करता है.

जाहिर है, उन का अपना चरित्र भी उन की लेखनी में शतप्रतिशत होता है क्योंकि काला चरित्र कागज पर चांदनी नहीं बिखेर सकता और न ही कभी संस्कारहीन चरित्र लेखनी में वह असर पैदा कर सकता है जिस में संस्कारों का बोध हो. जो स्वयं ईमानदार नहीं उस की रचना भी भला ईमानदार कैसे हो सकती है.

मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं ‘मानव भारद्वाज’. खुशमिजाज हैं और स्पष्टवादी भी. गले की किसी समस्या से जूझ रहे हैं. जूस, शीतल पेय और बाजार के डब्बाबंद हर सामान को खाने  से उन के गले में पीड़ा होने लगती है, जिस का खमियाजा उन्हें रातरात भर जाग कर भरना पड़ता है. कौफी पीने से भी उन्हें बेचैनी होती है. वे सिर्फ चाय पी सकते हैं. अकसर शादीब्याह में कभी हम साथसाथ जाएं तो मुझे उन्हें देख कर दुख भी होता है. चुपचाप शगुन का लिफाफा थमा कर खिसकने की सोचते हैं.

‘‘कुछ तो ले लीजिए, मानव.’’

‘‘नहीं यार, यहां मेरे लायक कुछ नहीं है. तुम खाओपिओ, मैं यहां रुका तो किसी न किसी की आंख में खटकने लगूंगा.’’

‘‘आप के तो नखरे ही बड़े हैं, चाय आप नहीं पीते, कौफी आप के पेट में लगती है, जूस से गला खराब होता है, इस में अंडा है… उस में यह है, उस में वह है. आप खाते क्या हैं साहब? हर चीज में आप कोई न कोई कमी क्यों निकालते रहते हैं.’’

मुसकरा कर टालना पड़ता है उन्हें, ‘‘पानी पी रहा हूं न मैं. आप चिंता न करें… मुझे जो चाहिए मैं ले लूंगा. आप बेफिक्र रहें. मेरा अपना घर है…मेरी जो इच्छा होगी मैं अपनेआप ले लूंगा.’’

‘‘अरे, मेरे सामने लीजिए न. जरा सा तो ले ही सकते हैं.’’

अब मेजबान को कोई कैसे समझाए कि एक घूंट भी उन्हें उतना ही नुकसान पहुंचाता है जितना गिलास भर कर.

‘‘मेरे घर पर कोई आता है तो मैं उस से पूछ लेता हूं कि वह क्या लेगा. जाहिर है, हर कोई अपने घर से खा कर ही आता है… हर पल हर कोई भूखा तो नहीं होता. आवभगत करना शिष्टाचार का एक हिस्सा है लेकिन कहां तक? वहां तक जहां तक अतिथि की जान पर न बन आए. वह न चाहे तो जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए.’’

‘‘तब तो आप अच्छे मेजबान नहीं हैं. अच्छा मेजबान तो वही है जो मना करने पर भी अतिथि की थाली भरता जाए.’’

इस विषय पर अकसर हम बात करते हैं और उन्हें मुझ से मिलना अच्छा लगता है क्योंकि मैं कोशिश करता हूं कि उन्हें समझ पाऊं. वे कुछ खाना न चाहें तो मेरा परिवार उन्हें खाने को मजबूर नहीं करता. वैसे वे स्वयं ही चाय का कप मांग लेते हैं तो हमें ज्यादा खुशी होती है.

‘‘मानव चाचा के लिए अच्छी सी चाय बना कर लाती हूं,’’ मेरी बहू भागीभागी चाय बनाने चली जाती है और मानव जम कर उस की चाय की तारीफ करते हैं.

‘‘आज मैं ने सोच रखा था कि चाय अपनी बच्ची के हाथ से ही पिऊंगा. मीना घर पर नहीं है न, कल आएगी. उस के पिता बीमार हैं.’’

‘‘चाचाजी, तब तो आप रात का खाना यहीं खाइए. मैं ने आज नईनई चीजें ट्राई की हैं.’’

‘‘क्याक्या बनाया है मेरी बहू ने?’’

मानव का इतना कहना था कि बहू ने ढेरों नाम गिनवा दिए.

‘‘चलो, अच्छा है, यहीं खा लेंगे,’’ मानव की स्वीकृति पर वसुधा उत्साह से भर उठी.

हम बाहर लौन में चले आए. बातचीत चलती रही.

‘‘पड़ोस का घर बिक गया है. सुना है कोई बुजुर्ग दंपती आने वाले हैं. उन की बेटी इसी शहर में हैं. उसी की देखरेख में रहेंगे,’’ मानव ने नई जानकारी दी.

‘‘चलो, अच्छा है. समझदार बुजुर्ग लोगोें के साथ रह कर आप को नए अनुभव होंगे.’’

‘‘आप को क्या लगता है, बुजुर्ग लोग ज्यादा समझदार होते हैं?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. लंबी उम्र का उन के पास अनुभव जो होता है.’’

‘‘अनुभव होता है यह सच है, लेकिन वे समझदारी से उस अनुभव का प्रयोग भी करते होंगे यह जरूरी नहीं. मैं ने 60-70 साल के ऐसेऐसे इनसान देखे हैं जो बहुत ज्यादा चापलूस और मीठे होते हैं और सामने वाले की भावनाओं का कैसे इस्तेमाल करना है…अच्छी तरह जानते हैं. वे ईमानदार भी होें जरूरी नहीं, उम्र भर का अनुभव उन्हें इतना ज्यादा सिखा देता है कि वे दुनिया को ही घुमाने लगते हैं. कौन जाने मेरे साथ उन की दोस्ती हो पाएगी कि नहीं.’’

बिन तुम्हारे: क्या था नीपा का फैसला

‘‘ममा, लेकिन आप यह कैसे कह सकती हो कि आजकल के बच्चे पेरैंट्स के प्रति गैरजिम्मेदार हैं. किसी को चाहने का मतलब यह तो नहीं कि बच्चे पेरैंट्स के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं. लव अफेयर्स उन की जिंदगी का एक हिस्सा है, पेरैंट्स अपनी जगह हैं.

‘‘पेरैंट्स को जिन बातों से दुख पहुंचता है, बच्चे वही करें और कहें कि वे जिम्मेदार हैं.’’

‘‘ममा, पेरैंट्स की पसंदनापसंद पर बच्चे क्या खुद को वार दें? पेरैंट्स को भी हर वक्त अपनी पसंदनापसंद बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए.’’

‘‘अभी तू ने अपनी जिस फ्रैंड की बात की, उसी की सोचो, 19 साल की लड़की और लड़का भी 19 साल का, पेरैंट्स ने उन्हें बड़ी उम्मीदों से होस्टल भेजा कि पढ़ कर वे कैरियर बनाएं. अब दोनों अपने पेरैंट्स से झूठ बोल कर अलग फ्लैट में साथ रह रहे हैं. कोर्स किसी तरह पूरा कर भी लें तो क्या दिलदिमाग के भटकाव की वजह से बढि़या कैरियर बन पाएगा उन का? उम्र का यह आकर्षण एक पड़ाव के बाद जिंदगी के कठिन संघर्ष के सामने हथियार डालेगा ही, उस वक्त बीते हुए ये साल उन्हें बरबाद ही लगेंगे.’’

‘‘लगे भी तो क्या ममा? अभी वे खुश हैं तो क्यों न खुश हो लें? आगे की जिंदगी किस ने देखी है ममा.’’

‘‘यानी जो लोग भविष्य को संवारने के लिए मेहनत करते हैं वे मूर्ख हैं.’’

‘‘हो सकते हैं या नहीं भी, सवाल है किसे क्या चाहिए.’’

नीपा अपनी बेटी रूबी की दलीलों के आगे पस्त पड़ गई थी. बेटी ने अपनी सहेली की घटना सुनाई तो उसे भी रूबी की चिंता सताने लगी. वह भी तो उसी पीजी में रहती है. उस के अनुसार अब ऐसा तो अकसर हो रहा है. जाने क्या इसे लिवइन कह रहे हैं सब. पेरैंट्स बिना जाने बच्चों की फीस, बिल सबकुछ चुकाते जा रहे हैं और बच्चे अपनी मरजी के मालिक हैं.

नीपा को इतना तनाव, इतना भय क्यों सताने लगा है. किस बात की आशंका है, क्यों दिल घबरा रहा है? रूबी अपनी अलग स्ट्रौंग सोच रखती है इसलिए? या इसलिए कि गरमी की छुट्टियों में घर आ कर रूबी ने ममा के दिमाग को भरपूर रिपेयर करने की कोशिश की. नीपा क्यों बेटी के चेहरे को बारबार पढ़ने की कोशिश कर रही है? अपने पति अनादि से वह कुछ कहना चाहती है पर चुप हो जाती है. कहीं रूबी ने खुद की सिचुएशन का ही सहेली के नाम से… नहींनहीं, उस ने अपनी बेटी को बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं, वह अपनी मां को इस तरह दुख नहीं दे सकती.

3-4 दिनों से रूबी से बात नहीं हो पा रही थी. वीडियो कौल तो उस ने बंद ही कर दी थी जाने कितने महीनों से. फोन में गड़बड़ी की बात कह कर टाल जाती. अब इतने दिन खोजखबर न मिलने पर नीपा की बेचैनी बढ़ गई. अनादि से सारी बातें कहनी पड़ीं उसे. उन्होंने पीजी की एक लड़की को फोन किया. पता चला, कालेज में 4 दिनों की छुट्टी देख रूबी दोस्तों के साथ कहीं घूमने गई है, इसलिए फोन पर बात नहीं हो सकती रूबी से.

मामला जटिल देख दोनों दूसरे शहर में रह रही बेटी के पीजी पहुंचे. पर बेटी वहां कहां. वह तो किसी लड़के के साथ एक फ्लैट किराए पर ले कर रहती है. लड़का उसी की क्लास का है.

अनादि स्तब्ध थे और नीपा का सिर चकरा गया. धम्म से नीचे जमीन पर बैठ गई. उबकाई से बेहोशी सी छाने लगी थी उस पर. दिल की धड़कनें चीख रही थीं बेसुध.

अब क्या? बेटी के पास उन्हें जाना था. बेटी के बिना या बेटी के इन कृत्यों के बिना? इकलौती बेटी के बिना जी पाना तो इन दोनों के लिए बहुत मुश्किल था. बेटी की उमंगें अभी आजादी की दलीलों के बीच पंख झपट रही हैं, वह तो पीछे नहीं मुड़ेगी.

ममापापा बेटी के पास पहुंचे तो रूबी ने न ही उन की आंखों में देखा और न ही दिल ने दिल से बात करने की कोशिश की.

नीपा ने खुद को समझाया. वक्त की मांग थी, वरना उन की आंखों की ज्योति आज इस तरह आंखें फेर ले…लड़का निहार भी वहीं था. उन्हें तो उस में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जो रूबी ने उस में देखा था. हो सकता है नीपा न देख पा रही हो. फिर समझाया खुद को उस ने. भविष्य क्या?

‘आगे चल कर शादी करोगे बेटा रूबी से? कुछ सोचा है?’’

‘‘ममा, आगे देखना बंद करें आप. आज में जीना सीखें यही काफी है. अभी हम पढ़ते हुए पार्टटाइम जौब भी करेंगे. आप अगर हमारी मदद करेंगे तो हम आप से जुड़े रहेंगे. निहार ने भी घर वालों को बता दिया है. मजबूरी हो गई तो पढ़ाई छोड़ देंगे. अभी हम साथ ही रहेंगे जब तक जमा. अब आप की मरजी.’’

नीपा की आंखों में धुंधलका सा छाने लगा. ये आंसू थे या दर्द का सैलाब? वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. बस, इतना ही समझ पाई कि बेटी से दोनों को बेइंतहा प्यार है. और इस प्यार के लिए उन्हें किसी शर्त की जरूरत नहीं थी.

चक्कर हारमोंस का: मंजु के पति का सीमा के साथ चालू था रोमांस

कालेज की सहेली अनिता से करीब 8 साल बाद अचानक बाजार में मुलाकात हुई तो हम दोनों ही एकदूसरे को देख कर चौंकीं.

‘‘अंजु, तू कितनी मोटी हो गई है,’’ अनिता ने मेरे मोटे पेट में उंगली घुसा कर मुझे छेड़ा.

‘‘और तुम क्या मौडलिंग करती हो? बड़ी शानदार फिगर मैंटेन कर रखी है तुम ने, यार?’’ मैं ने दिल से उस के आकर्षक व्यक्तित्व की प्रशंसा की.

‘‘थैंक्यू, पर तुम ने अपना वजन इतना ज्यादा…’’

‘‘अरे, अब 2 बच्चों की मां बन चुकी हूं मोटापा तो बढ़ेगा ही. अच्छा, यह बता कि तुम दिल्ली में क्या कर रही हो?’’ मैं ने विषय बदला.

‘‘मैं ने कुछ हफ्ते पहले ही नई कंपनी में नौकरी शुरू की है. मेरे पति का यहां ट्रांसफर हो जाने के कारण मुझे भी अपनी अच्छीखासी नौकरी छोड़ कर मुंबई से दिल्ली आना पड़ा. अभी तक यहां बड़ा अकेलापन महसूस हो रहा था पर अब तुम मिल गई हो तो मन लग जाएगा.’’

‘‘मेरा घर पास ही है. चल, वहीं बैठ कर गपशप करती हैं.’’

‘‘आज एक जरूरी काम है, पर बहुत जल्दी तुम्हारे घर पति व बेटे के साथ आऊंगी. मेरा कार्ड रख लो और तुम्हारा फोन नंबर मैं सेव कर लेती हूं,’’ और फिर उस ने अपने पर्स से कार्ड निकाल कर मुझे पकड़ा दिया. मैं ने सरसरी निगाह कार्ड पर डाली तो उस की कंपनी का नाम पढ़ कर चौंक उठी, ‘‘अरे, तुम तो उसी कंपनी में काम करती हो जिस में मेरे पति आलोक करते हैं.’’

‘‘कहीं वे आलोक तो तेरे पति नहीं जो सीनियर सेल्स मैनेजर हैं?’’

‘‘वही मेरे पति हैं…क्या तुम उन से परिचित हो?’’

‘‘बहुत अच्छी तरह से…मैं उन्हें शायद जरूरत से कुछ ज्यादा ही अच्छी तरह से जानती हूं.’’ ‘‘इस आखिरी वाक्य को बोलते हुए तुम ने अजीब सा मुंह क्यों बनाया अनिता?’’ मैं ने माथे में बल डाल कर पूछा तो वह कुछ परेशान सी नजर आने लगी. कुछ पलों के सोचविचार के बाद अनिता ने गहरी सांस छोड़ी और फिर कहा, ‘‘चल, तेरे घर में बैठ कर बातें करते हैं. अपना जरूरी काम फिर कभी कर लूंगी.’’

‘‘हांहां, चल, यह तो बता कि अचानक इतनी परेशान क्यों हो उठी?’’

‘‘अंजु, कालेज में तुम्हारी और मेरी बहुत अच्छी दोस्ती थी न?’’

‘‘हां, यह तो बिलकुल सही बात है.’’

‘‘उसी दोस्ती को ध्यान में रखते हुए मैं तुम्हें तुम्हारे पति आलोक के बारे में एक बात बताना अपना फर्ज समझती हूं…तुम सीमा से परिचित हो?’’

‘‘नहीं, कौन है वह?’’

‘‘तुम्हारे पति की ताजाताजा बनी प्रेमिका माई डियर फ्रैंड. इस बात को सारा औफिस जानता है…तुम क्यों नहीं जानती हो, अंजु?’’

‘‘तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हो रही है, अनिता. वे मुझे और अपनी दोनों बेटियों से बहुत प्यार करते हैं. बहुत अच्छे पति और पिता हैं वे…उन का किसी औरत से गलत संबंध कभी हो ही नहीं सकता,’’ मैं ने रोंआसी सी हो कर कुछ गलत नहीं कहा था, क्योंकि सचमुच मुझे अपने पति की वफादारी पर पूरा विश्वास था.

‘‘मैडम, यह सीमा कोई औरत नहीं, बल्कि 25-26 साल की बेहद सुंदर व बहुत ही महत्त्वाकांक्षी लड़की है और मैं जो बता रही हूं वह बिलकुल सच है. अब आंसू बहा कर यहां तमाशा मत बनना, अंजु. हर समस्या को समझदारी से हल किया जा सकता है. चल,’’ कह वह मेरा हाथ मजबूती से पकड़ कर मुझे अपनी कार की तरफ ले चली. उस शाम जब आलोक औफिस से घर लौटे तो मेरी दोनों बेटियां टीवी देखना छोड़ कर उन से लिपट गईं. करीब 10 मिनट तक वे दोनों से हंसहंस कर बातें करते रहे. मैं ने उन्हें पानी का गिलास पकड़ाया तो मुसकरा कर मुझे आंखों से धन्यवाद कहा. फिर कपड़े बदल कर अखबार पढ़ने बैठ गए. मैं कनखियों से उन्हें बड़े ध्यान से देखने लगी. उन का व्यक्तित्व बढ़ती उम्र के साथ ज्यादा आकर्षक हो गया था. नियमित व्यायाम, अच्छा पद और मोटा बैंक बैलेंस पुरुषों की उम्र को कम दिखा सकते हैं. उन का व्यवहार रोज के जैसा ही था पर उस दिन मुझे उन के बारे में अनिता से जो नई  जानकारी मिली थी, उस की रोशनी में वे मुझे अजनबी से दिख रहे थे.

‘‘मैं भी कितनी बेवकूफ हूं जो पहचान नहीं सकी कि इन की जिंदगी में कोई दूसरी औरत आ गई है. अब कहां ये मुझे प्यार से देखते और छेड़ते हैं? एक जमाना बीत गया है मुझे इन के मुंह से अपनी तारीफ सुने हुए. मैं बच्चों को संभालने में लगी रही और ये पिछले 2 महीनों से इस सीमा के साथ फिल्में देख रहे हैं, उसे लंचडिनर करा रहे हैं. क्या और सब कुछ भी चल रहा है इन के बीच?’’ इस तरह की बातें सोचते हुए मैं जबरदस्त टैंशन का शिकार बनती जा रही थी. अनिता ने मुझे इन के सामने रोने या झगड़ा करने से मना किया था. उस का कहना था कि मैं ने अगर ये 2 काम किए तो आलोक मुझ से खफा हो कर सीमा के और ज्यादा नजदीक चले जाएंगे. रात को उन की बगल में लेट कर मैं ने उन्हें एक मनघड़ंत सपना संजीदा हो कर सुनाया, ‘‘आज दोपहर को मेरी कुछ देर के लिए आंख लगी तो मैं ने जो सपना देखा उस में मैं मर गई थी और बहुत भीड़ मेरी अर्थी केपीछे चल रही थी,’’ पूरी कोशिश कर के मैं ने अपनी आंखों में चिंता के भाव पैदा कर लिए थे.

‘‘अरे, तो इस में इतनी नर्वस क्यों हो रही हो? सपने सपने होते हैं,’’ मेरी चिंता कम करने को उन्होंने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आप मेरे सपने की बात सुन कर हंसना मत, जी. जिन लोगों ने मेरी अर्थी उठा रखी थी, वे बेचारे कुबड़ों की तरह झुके होने के साथसाथ बुरी तरह हांफ भी रहे थे. आप का छोटा भाई कह रहा था कि भाभी को तो ट्रक में श्मशानघाट ले जाना चाहिए था.

‘‘और आप की आंखों में आंसू कम और गुस्से की लपटें ज्यादा दिख रही थीं. मुझे उस वक्त भी आप ऊंची आवाज में कोस रहे थे कि मैं ने हजार बार इस मोटी भैंस को समझाया होगा कि वजन कम कर ले नही तो तेरी अर्थी उठाने वालों का बाजा बज जाएगा, पर इस ने मेरी कभी नहीं सुनी. भाइयो, हिम्मत न हाराना. मैं तुम सब को 5-5 सौ रुपए इसे ढोने के दूंगा.’’

‘‘आप के मुंह से अपने लिए बारबार मोटी भैंस का संबोधन सुन मैं अर्थी पर लेटीलेटी रो पड़ी थी, जी. फिर झटके से मेरी आंखें खुलीं तो मैं ने पाया कि मेरी पलकें सचमुच आंसुओं से भीगी हुई हैं. अब मुझे आप एक बात सचसच बताओ. मुंह से तो आप ने मुझे कभी मोटी भैंस नहीं कहा है पर क्या मन ही मन आप मुझे मोटी भैंस कहते हो?’’ मैं ने बड़े भावुक अंदाज में पूछा तो वे ठहाका मार कर हंस पड़े. मैं फौरन रोंआसी हो कर बोली, ‘‘मैं ने कहा था न कि मेरी बात सुन कर हंसना मत. आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हो कि मैं दोपहर से मन ही मन कितनी दुखी और परेशान हो रही हूं. लेकिन आज मैं आप से वादा करती हूं कि जब तक अपना वजन 10 किलोग्राम कम न कर लूं, तब तक बच्चों के कमरे में सोऊंगी.’’

‘‘अरे, यह क्या बच्चों जैसी बातें कर रही हो?’’ वे पहले चौके और फिर नाराज हो उठे.

‘‘मुझे झिड़को मत, प्लीज. मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरी कराने में आप को मेरा साथ देना ही पड़ेगा, जी.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज,’’ मैं ने उन के माथे को एक बार प्यार से चूमा और अपना तकिया उठा कर अपनी बेटियों के पास सोने उन के कमरे में चली आई. वजन कम करना आसान काम नहीं है, ये हम सभी मोटे लोग जानते हैं, लेकिन तनमन में आग सी लगी हो तो वजन यकीनन कम हो जाता है. अनिता ने इस मामले में मेरी पूरी सहायता की थी. उस की देखरेख में मेरा वजन कम करो अभियान जोरशोर से शुरू हुआ. वह रोज मुझ से रिपोर्ट लेती और मेरा मनोबल ऊंचा रखने को मुझे खूब समझाती. आलोक के औफिस चले जाने के बाद मैं उस जिम में पहुंची जिस का ट्रेनर अनिता की पहचान का था. उस ने मेरे ऊपर खास ध्यान दिया. मैं ने जीजान से मेहनत शुरू कर दी तो मेरे वजन में हफ्ते भर में ही फर्क दिखने लगा.

‘‘तुम तो कुछकुछ फिट दिखने लगी हो, अंजु,’’ आलोक के मुंह से अपनी तारीफ सुन मेरा मन खुशी से नाच उठा.

‘‘अभी तो कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है, सरकार. आप बस देखते जाओ. मैं ने आप की खातिर अपने को फिल्मी हीरोइन की तरह खूबसूरत न बना लिया, तो कहना,’’ यह डायलौग मैं ने उन की गोद में बैठ कर बोला था. काफी लंबे समय के बाद मैं ने उन की आंखों में अपने लिए वैसे चाहत के भावों की झलक देखी जैसी शादी के शुरू के दिनों में देखी थी. वे मेरा चुंबन लेने को तैयार से दिखे तो मैं उन की गोद से उठ कर शरारती अंदाज में मुसकराती हुई रसोई में चली आई. 2 सप्ताह की मेहनत के बाद मेरा वजन पूरे 3 किलोग्राम कम हो गया. मैं अपने को ज्यादा फिट महसूस कर रही थी, इसलिए मेरा मूड भी अच्छा रहने लगा और आलोक व मेरे संबंध ज्यादा मधुर हो गए. अगले रविवार की शाम हम फिल्म देखने गए. उस के अगले रविवार को हम ने डिनर बाहर किया. फिर उस से अगले रविवार को हम ने फिल्म भी देखी और चाइनीज खाना खाया. वैसे मेरा उन के साथ घूमने जाना बहुत कम हो गया था, क्योंकि घर के कामों से ही मुझे फुरसत नहीं मिलती थी. लेकिन अब मैं किसी भी तरह से उन्हें तैयार कर के हर संडे घूमने जरूर निकल जाती. दोनों बेटियां कभी हमारे साथ होतीं तो कभी मैं उन्हें अपनी पड़ोसिन निशा के पास छोड़ देती. बेटियां उस के यहां आराम से रुक जातीं, क्योंकि उस की बेटी की वे पक्की सहेलियां थीं.

अपने वजन घटाओ अभियान के शुरू होने के डेढ़ महीने भर बाद मैं ने 4 नए सूट सिलवा लिए. जिस दिन शाम को मैं ने पहली बार नया सूट पहना उस दिन मैं ब्यूटीपार्लर भी गई थी. ‘‘वाह, आज तो गजब ढा रही हो,’’ मुझ पर नजर पड़ते ही औफिस से लौटे आलोक का चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘‘सचमुच अच्छी लग रही हूं न?’’

मैं ने छोटी बच्ची की तरह इतराते हुए पूछा तो उन्होंने मुझे अपनी बांहों में कैद कर के चूम लिया.

‘‘सचमुच बहुत अच्छी लग रही हो,’’ मेरे ताजा शैंपू किए बालों में उन्होंने अपना चेहरा छिपा लिया और मस्त तरीके से गहरीगहरी सांसें भरने लगे.

‘‘आज मैं ने आप के पसंदीदा कोफ्ते बनाए हैं. खाना जल्दी खा कर बच्चों के साथ आइसक्रीम खाने चलेंगे.’’

‘‘और उस के बाद क्या करेंगे?’’

‘‘सोएंगे.’’

‘‘करैक्ट, लेकिन आज तुम मेरे पास सोओगी न?’’

‘‘अभी पहले 4 किलोग्राम वजन और कम कर लूं, स्वीटहार्ट.’’

‘‘नहीं, आज तुम बच्चों के कमरे में नहीं जाओगी और यह मेरा हुक्म है,’’ उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भींच लिया. मैं ने उन का हुक्म न मानने का कारण बताया तो वे बहुत झल्लाए पर अंत में उन्होंने अपने साथ सुलाने की जिद छोड़ दी. अनिता के मार्गदर्शन और मेरी मेहनत का कमाल देखिए कि 3 महीने पूरे होने से पहले ही मैं ने अपना 10 किलोग्राम वजन कम कर लिया.

‘‘थैंक्यू वैरी मच, सहेली,’’ अपने घर में रखी वजन करने वाली मशीन से उतर कर जब मैं अनिता के गले लगी तब मेरी आंखों में खुशी के आंसू थे.

‘‘2 दिन बाद यानी शनिवार की रात को तुम आलोक के साथ अपने बैडरूम में सो सकती हो,’’ उस ने मुझे छेड़ा तो मैं शरमा उठी. ‘‘मुझे डर है कि कहीं वह भूखा शेर जोश में कहीं मेरी कोई हड्डीपसली न तोड़ डाले,’’ मेरे इस मजाक पर हम दोनों सहेलियां हंसतीहंसती लोटपोट हो गईं. फिर अचानक गंभीर हो कर उस ने मुझ से पूछा, ‘‘सीमा से मुलाकात करने को पूरी तरह से तैयार हो न?’’

‘‘हां,’’ मेरी मुट्ठियां भिंच गईं.

‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं.’’

‘‘नहीं, उस से मैं अकेली निबट लूंगी.’’

‘‘गुड,’’ मेरी पीठ थपथपा कर वह चली गई. उस गुरुवार की शाम 7 बजे के करीब मैं आलोक की प्रेमिका सीमा से पहली मुलाकात करने उस के फ्लैट पहुंच गई. वह फ्लैट में अपनी विधवा मां के साथ रहती थी. मेरे घंटी बजाने पर दरवाजा उसी ने खोला. मुझे सामने देख कर उस की आंखों में जो हैरानी के भाव उभरे, उन से मैं ने अंदाजा लगाया कि वह मुझे पहचानती है.

‘‘मैं अंजु हूं, तुम्हारे सहयोगी आलोक की पत्नी,’’ मैं ने उसे अपना परिचय दिया तो वह अपनी हैरानी को छिपा कर स्वागत करने वाले अंदाज में मुसकराने लगी.

‘‘आइए, प्लीज अंदर आइए, अंजुजी,’’ उस ने दरवाजे के सामने से हटते हुए मुझे अंदर आने की जगह दे दी. रसोई में काम कर रही उस की मां ने मेरी तरफ कुतूहल भरी निगाहों से देखा जरूर पर हमारे पास ड्राइंगरूम में नहीं आई.

‘‘मैं आज पहली बार तुम्हारे घर आई हूं, लेकिन…’’ मैं ने जानबूझ कर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

‘‘लेकिन क्या, अंजुजी?’’ वह अब पूरी तरह चौकन्नी नजर आ रही थी.

‘‘लेकिन मैं चाहती हूं कि मेरा आज का यहां आना आखिरी बाद का आना बन जाए.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, अंजुजी,’’ उस की आंखों में सख्ती के भाव उभर आए.

‘‘मैं अपनी बात संक्षेप में कहूंगी, सीमा. देखो, मुझे तुम्हारे और आलोक के बीच में कुछ महीनों से चल रहे लव अफेयर के बारे में पता है. मेरी जानकारी बिलकुल सही है, इसलिए उस का खंडन करने की कोशिश बेकार रहेगी.’’ मेरी सख्त स्वर में दी गई चेतावनी को सुन कर सफाई देने को तैयार सीमा ने अपने होंठ सख्ती से भींच लिए. उस के चेहरे की तरफ ध्यान से देखते हुए मैं ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘देखो, मेरे पति के साथ तुम्हारा लव अफेयर अब किसी भी हालत में आगे नहीं चल सकता है. तुम अगर उन की जिंदगी से अपनेआप निकल जाती हो तो बढि़या रहेगा वरना मैं तुम्हें इतना बदनाम कर दूंगी कि तुम घर से बाहर सिर उठा कर नहीं चल सकोगी.’’

‘‘मेरे घर में आ कर मुझे ही धमकी देने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? आप प्लीज इसी वक्त यहां से चली जाएं और आप को मुझ से जो भी बात करनी हो औफिस में आ कर आलोकजी के सामने करना.’’ उस ने मेरे साथ गुस्से से बात करने की कोशिश की जरूर पर मन में पैदा भय के कारण इस कोशिश में ज्यादा सफल नहीं हो पाई. मैं झटके से उठ खड़ी हुई और कू्रर लहजे में बोली, ‘‘मेरे पति की जिंदगी से हमेशा के लिए निकल जाने की मेरी सलाह तुम ने मानी है या नहीं, इस का पता मुझे इसी बात से लगेगा कि तुम हमारी आज की मुलाकात की चर्चा आलोक से करती हो या नहीं.

‘‘अगर तुम में थोड़ी सी भी अक्ल है तो आलोक से मेरे यहां आने की बाबत कुछ मत कहना और एक झटके में उस के साथ अपने प्रेम संबंध को भी समाप्त कर डालो. तब मेरा आज यहां आना पहली और अंतिम बार होगा.’’ ‘‘लेकिन तुम्हें अपनी इज्जत प्यारी न हो, तो जरूर आलोक से मेरी शिकायत कर देना. तब मैं तुम्हारी फजीहत करने के लिए यहां बारबार लौटूंगी, सीमा. हो सकता है कि मैं आलोक को तब सदा के लिए खो दूं, पर मैं तब तक तुम्हें इतना बदनाम कर दूंगी कि फिर कोई अन्य इज्जतदार युवक तुम्हारा जीवनसाथी बनने को कभी तैयार न हो.’’ उसे चेतावनी देते हुए मैं ने मेज पर रखा शीशे का भारी फूलदान हाथ में उठा लिया था. मेरी इस हरकत से डर कर वह झटके से उठ खड़ी हुई. उस के हाथपैर कांपने लगे. मैं ने फूलदान सिर से ऊपर उठाया तो उस की चीख पूरे घर में गूंज गई. उसे जरूर ऐसा लगा होगा कि मैं वह फूलदान उस के सिर पर मार दूंगी. मैं ने उस के सिर को तो बख्शा पर फूलदान जोर से फर्श पर दे मारा. कांच के टूटने की तेज आवाज में सीमा के दोबारा चीखने की आवाज दब गई थी.

‘‘गुड बाय ऐंड गुड लक, सीमा. अगर मुझे फिर यहां आना पड़ा तो तुम्हारी खैर नहीं,’’ मैं ने उसे कुछ पलों तक गुस्से से घूरा और फिर दरवाजे की तरफ बढ़ गई. उस की मां भी ड्राइंगरूम में खड़ी थरथर कांप रही थी. ‘‘अपनी बेटी को समझाना कि वह मेरे रास्ते से हट जाए नहीं तो बहुत पछताएगी,’’ अपनी चेतावनी सीमा की मां के सामने दोहरा कर मैं उन के फ्लैट से बाहर निकल आई. आज हमारी उस पहली मुलाकात को 2 महीने बीत चुके हैं और आलोक ने  कभी इस बाबत कोई जिक्र मेरे सामने नहीं छेड़ा. अनिता का कहना है कि सीमा ने आजकल आलोक से साधारण बोलचाल भी बंद कर रखी है. जब करीब 5 महीने पहले अनिता से मेरी अचानक मुलाकात हुई थी, तो उस ने मुझे उस दिन एक महत्त्वपूर्ण बात समझाई थी, ‘‘अंजु, हर समझदार पत्नी के लिए अपने पति के सैक्स हारमोंस का स्तर ऊंचा रखने के लिए खुद को आकर्षक बनाए रखना बहुत जरूरी है. दांपत्य प्रेम की जड़ें मजबूत बनाने में इन हारमोंस से ज्यादा अहम भूमिका किसी और बात की नहीं होती. तब पति की जिंदगी में किसी सीमा के आने की संभावना भी बहुत कम रहती है.’’ मैं ने उस की वह सीख गांठ बांध ली है. 3 महीने से दूर रहने के कारण आलोक के सैक्स हारमोंस का स्तर जिस ऊंचाई तक पहुंच गया था, मैं ने उसे वहां से रत्ती भर भी गिरने नहीं दिया.

26 January Special: परंपराएं- भाग 2- क्या सही थी शशि की सोच

मेरे मुंह से निकल गया था, ‘‘जूली, मुझे तो खेद इस बात का रहता है कि मेरी बेटी की अभी तक शादी नहीं हुई है. मैं तो उस दिन की बेसब्री से प्रतीक्षा करती हूं जब वह अपने बच्चों को मेरे पास छोड़ कर जाने की स्थिति में हो.’’

‘‘शायद यह संस्कृतियों का अंतर है,’’ जूली ने कहा, ‘‘मैं मानती हूं कि नई पीढ़ी को आगे बढ़ते देखने से बड़ा सुख तो कोई दूसरा नहीं परंतु मार्क और फियोना को भी तो हमारी सुविधा का ध्यान रखना चाहिए. हमेशा यह मान लेना कि हमें किसी भी तरह की कोई कठिनाई नहीं होगी, यह भी तो ठीक नहीं.’’

जूली के उत्तर पर मुझे काफी आश्चर्य हुआ, क्योंकि मैं जानती थी कि यदि उसे सचमुच किसी बात की चिंता है तो यह कि किस तरह सिमोन का भी घर दोबारा बस जाए. वह उसे किसी न किसी तरह ऐसे स्थानों पर भेजती रहती थी जहां उस की मुलाकात किसी अच्छे युवक से हो जाए. वह स्वयं हर मुलाकात में न केवल पूरी रुचि लेती थी बल्कि उस के बारे में मुझे भी आ कर बताती थी.

एक दिन जब जूली काम पर आई तो उसे देखते ही मैं समझ गई कि कुछ गड़बड़ है. पहले तो वह टालमटोल करती रही किंतु अंत में उस ने बताया, ‘‘सिमोन की बात फिर एक बार टूट गई. लगभग 3 सप्ताह पहले सिमोन के बौयफ्रैंड ने उसे एक रौक म्यूजिक कंसर्ट में उस के साथ चलने को कहा था. उसी दिन सिमोन की एक पक्की सहेली का जन्मदिन भी था. वैसे भी सिमोन को रौक म्यूजिक ज्यादा पसंद नहीं. जब सिमोन ने अपनी मजबूरी बताई तो बौयफ्रैंड ने कुछ नहीं कहा. वह अकेला ही चला गया. उस के बाद उस की ओर से कुछ सुनाई नहीं दिया. न फोन, न मैसेज. सिमोन ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की. परंतु कोई उत्तर नहीं.

‘‘गत रविवार को वह हिम्मत कर के उस स्थान पर गई जहां उस का बौयफ्रैंड अकसर शाम बिताता है. वहां उस ने उसे एक लड़की के साथ देखा. सिमोन को गुस्सा तो बहुत आया परंतु कोई हंगामा खड़ा न करने के विचार से वहां से चुपचाप चली आई. शायद बौयफ्रैंड ने उसे देख लिया था. कुछ समय बाद सिमोन के मोबाइल पर संदेश छोड़ दिया, ‘सौरी’.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कोई स्पष्टीकरण?’’

‘‘नहीं. केवल यह कि वह लड़की उस की रुचियों को ज्यादा अच्छी तरह समझती है. शशि, मुझे तब से लगातार ऐसा महसूस हो रहा है कि सिमोन नहीं, मैं अपने लिए जीवनसाथी ढूंढ़ने में असफल हो गई हूं.’’

मेरे अपने परिवार में भी अपनी पुत्री शिवानी के लिए वर ढूंढ़ने की प्रक्रिया जोरशोर से चल रही थी. मैं भी जूली को हर छोटीबड़ी घटना की जानकारी देती रहती थी. किस तरह हम विज्ञापनों में से कुछ नाम चुनते, उन के परिवारों से संपर्क करते और आशा करते कि इस बार बात बन जाए. किस तरह ऐसे परिवारों में से कुछ से 4-5 की टोली हमारे घर आती.

कुछ परिवार लड़कालड़की को सीधा संपर्क करने की सलाह देते. मैं सोचती कि चाहे संपर्क सीधा करें या परिवार के साथ आएं, बात तो आगे बढ़ाएं.

आशानिराशा के हिंडोले में महीनों तक झूलने के बाद, जब आखिरकार शिवानी की स्वीकृति से एक परिवार में उस का संबंध होना निश्चित हो गया तो मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. मैं ने जूली को भी यह शुभ समाचार सुनाया. वह प्रसन्न हो कर बोली, ‘‘बधाई. मैं शिवानी के विवाह में अवश्य सम्मिलित होऊंगी. और याद रहे, मैं तुम्हारी परंपराओं से बहुत प्रभावित हूं. उन के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहती हूं. इसलिए तुम मुझे विवाह के सभी छोटेबड़े कार्यक्रमों के लिए निमंत्रित करती रहना.’’

विवाह के कार्यक्रमों की शृंखला में एक था भात. उस दिन मेरे भाई और भाभी सपरिवार भात ले कर आए थे. मेरी सूचना के आधार पर जूली सुबह से ही हमारे घर आ गई थी. मेरे हर काम में वह साथ रही. वह सबकुछ देखनासमझना चाहती थी. जब भातइयों की टोली को हमारे घर के दरवाजे पर रोक दिया गया तो जूली आश्चर्यचकित उत्सुकता के साथ मुझ से आ सटी थी. उस ने देखा कि किस प्रकार भातइयों को एक पटरे पर खड़ा कर के बारीबारी से उन की आरती उतारी गई और किस प्रकार भात की सामग्री भेंट की गई. उस में वस्त्र, आभूषण और मिठाइयां व अन्य उपहार सम्मिलित थे. अवसर मिलने पर मैं ने जूली को बताया, ‘‘इसी प्रकार बेटी के पिता के भाईबहनों की ओर से भी उपहार आएंगे. ये परंपराएं सभी को साथ ले कर चलने की भावना से विकसित हुई हैं. वृहत परिवार की प्रतिभागिता का एक परिष्कृत रूप तो है ही, साथ में विवाह पर होने वाले खर्चों को बांटने का अनूठा तरीका भी है. दादादादी, नानानानी, चाचाचाची, मामामामी, फूफाफूफी सभी खर्च के बोझ को बांटने के काम में उत्साह के साथ भाग लेते हैं,’’ मेरे इस स्पष्टीकरण से जूली बहुत प्रभावित हुई थी.

शिवानी को चुन्नी चढ़ाने की रस्म के लिए उस के ससुराल से लगभग 30 लोग आए थे. हमारी ओर से भी इतने ही सदस्य रहे होंगे, जिन में से एक जूली थी. हमारा घर विशेष रूप से बड़ा नहीं है. इतने लोग किस तरह उस में समा गए वह जूली के लिए एक अलग ही अनुभव था. परंतु उस से भी अधिक उस के मन को प्रफुल्लित कर डाला था चुन्नी के झीने कपड़े के पीछे छिपे नए परिवार के संरक्षण के भाव ने.

शिवानी के विवाह के कुछ समय बाद जूली ने मुझे सूचना दी कि उस के विवाह की 40वीं वर्षगांठ आने वाली है जिस पर वह एक आयोजन करेगी, ‘‘अभी से डायरी में लिख कर रख लो, 20 अगस्त. तुम्हें अपने पति के साथ आना होगा. स्थान है बुश म्यूज होटल.’’

बुश म्यूज होटल को कौन नहीं जानता. 150 साल पुराना है वह होटल. कहते हैं कि एक समय बड़ी संख्या में घोड़ागाडि़यां खड़ी करने की व्यवस्था उस से ज्यादा किसी अन्य होटल में नहीं थी. समय के साथ हुए परिवर्तनों के कारण अब ग्राहक घोड़ागाडि़यों के बदले कारों में आते थे. जूली ने मुझे बताया कि उस के लिए होटल के मैनेजर ने वही कमरा नंबर101 बुक कर दिया था, जिस में उस ने 40 वर्ष पूर्व अपनी सुहागरात मनाई थी.

यद्यपि वह होटल आबादी वाले क्षेत्र में नहीं था, मैं उस के सामने से अनगिनत बार गुजर चुकी थी. भीतर जाने का वह पहला अवसर था. वह एक भव्य होटल है, इस का आभास इमारत में जाने वाली सड़क पर जाते ही हो गया. होटल का मुख्यद्वार मुख्य सड़क पर नहीं, होटल के पिछवाड़े था. उस तक जाने के लिए एक लंबी, पतली सड़क बनी थी, जो दोनों ओर फूलों की क्यारियों में ढक गई लगती थी. उन क्यारियों के पार मखमली घास के मैदान थे जो टेम्स नदी के तट तक फैले हुए थे. अभी मैं और मेरे पति मानवनिर्मित उस प्राकृतिक सौंदर्य के प्रबल प्रभाव को अपने चारों ओर अनुभव कर ही रहे थे कि जा पहुंचे मुख्यद्वार के सामने. वह एक होटल का नहीं, किसी प्राचीन ग्रीक मंदिर का द्वार लगा.

यह तो पागल है: कौन थी वह औरत

अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’ डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’ पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए. मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा कैसी है मेरी पत्नी क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं ’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. डाक्टर अपना इलाज पूरा कर चुके हैं. उन की सांसें चल रही हैं. लेकिन बेहोश हैं. 72 घंटे औब्जर्वेशन में रहेंगी. होश में आने पर उन के बयान लिए जाएंगे. तब तक आप उन से नहीं मिल सकते. हमें यह भी पता चल जाएगा कि उन को कौन सा जहर दिया गया है,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और मुझे गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘बताएं कि वास्तव में हुआ क्या था ’’ ‘‘दोपहर 3 बजे हम लंच करते हैं. लंच करने से पहले मैं वाशरूम गया और हाथ धोए. सरला, मेरी पत्नी, लंच शुरू कर चुकी थी. मैं ने कुरसी खींची और लंच करने के लिए बैठ गया. अभी पहला कौर मेरे हाथ में ही था कि वह कुरसी से नीचे गिर गई. मुंह से झाग निकलने लगा. मैं समझ गया, उस के खाने में जहर है. मैं तुरंत उस को कार में बैठा कर अस्पताल ले आया.’’

‘‘दोपहर का खाना कौन बनाता है ’’ ‘‘मेड खाना बनाती है घर की बड़ी बहू के निर्देशन में.’’

‘‘बड़ी बहू इस समय घर में मिलेगी ’’ ‘‘नहीं, खाना बनवाने के बाद वह यह कह कर अपने मायके चली गई कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है.’’

‘‘इस का मतलब है, वह खाना अभी भी टेबल पर पड़ा होगा ’’ ‘‘जी, हां.’’

‘‘और कौनकौन है, घर में ’’ ‘‘इस समय तो घर में कोई नहीं होगा. मेरे दोनों बेटों का औफिस ग्रेटर नोएडा में है. वे दोनों 11 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं. छोटी बहू गुड़गांव में काम करती है. वह सुबह ही घर से निकल जाती है और शाम को घर आती है. दोनों पोते सुबह ही स्कूल के लिए चले जाते हैं. अब तक आ गए होंगे. मैं गार्ड को कह आया था कि उन से कहना, दादू, दादी को ले कर अस्पताल गए हैं, वे पार्क में खेलते रहें.’’

इंस्पैक्टर ने साथ खड़े कौंस्टेबल से कहा, ‘‘आप कर्नल साहब के साथ इन के फ्लैट में जाएं और टेबल पर पड़ा सारा खाना उठा कर ले आएं. किचन में पड़े खाने के सैंपल भी ले लें. पीने के पानी का सैंपल भी लेना न भूलना. ठहरो, मैं ने फोरैंसिक टीम को बुलाया है. वह अभी आती होगी. उन को साथ ले कर जाना. वे अपने हिसाब से सारे सैंपल ले लेंगे.’’

‘‘घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं ’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से पूछा. ‘‘जी, नहीं.’’

‘‘सेना के बड़े अधिकारी हो कर भी कैमरे न लगवा कर आप ने कितनी बड़ी भूल की है. यह तो आज की अहम जरूरत है. यह पता भी चल गया कि जहर दिया गया है तो इसे प्रूफ करना मुश्किल होगा. कैमरे होने से आसानी होती. खैर, जो होगा, देखा जाएगा.’’ इतनी देर में फोरैंसिक टीम भी आ गई. उन को निर्देश दे कर इंस्पैक्टर ने मुझ से उन के साथ जाने के लिए कहा.

‘‘आप ने अपने बेटों को बताया ’’ ‘‘नहीं, मैं आप के साथ व्यस्त था.’’

‘‘आप मुझे अपना मोबाइल दे दें और नाम बता दें. मैं उन को सूचना दे दूंगा.’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से मोबाइल ले लिया. फोरैंसिक टीम को सारी कार्यवाही के लिए एक घंटा लगा. टीम के सदस्यों ने जहर की शीशी ढूंढ़ ली. चूहे मारने का जहर था. मैं जब पोतों को ले कर दोबारा अस्पताल पहुंचा तो मेरे दोनों बेटे आ चुके थे. एक महिला कौंस्टेबल, जो सरला के पास खड़ी थी, को छोड़ कर बाकी पुलिस टीम जा चुकी थी. मुझे देखते ही, दोनों बेटे मेरे पास आ गए.

‘‘पापा, क्या हुआ ’’ ‘‘मैं ने सारी घटना के बारे में बताया.’’

‘‘राजी कहां है ’’ बड़े बेटे ने पूछा. ‘‘कह कर गई थी कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है. तुम्हें तो बताया होगा ’’

‘‘नहीं, मुझे कहां बता कर जाती है.’’ ‘‘वह तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है. मैं तुम्हें समझाता रहा कि जमाना बदल गया है. एक ही छत के नीचे रहना मुश्किल है. संयुक्त परिवार का सपना, एक सपना ही रह गया है. पर तुम ने मेरी एक बात न सुनी. तब भी जब तुम ने रोहित के साथ पार्टनरशिप की थी. तुम्हें 50-60 लाख रुपए का चूना लगा कर चला गया.

‘‘तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सबकुछ पता था. मौल में चोरी करते रंगेहाथों पकड़ी गई थी. चोरी की हद यह थी कि हम कैंटीन से 2-3 महीने के लिए सामान लाते थे और यह पैक की पैक चायपत्ती, साबुन, टूथपेस्ट और जाने क्याक्या चोरी कर के अपने मायके दे आती थी और वे मांबाप कैसे भूखेनंगे होंगे जो बेटी के घर के सामान से घर चलाते थे. जब हम ने अपने कमरे में सामान रखना शुरू किया तो बात स्पष्ट होने में देर नहीं लगी. ‘‘चोरी की हद यहां तक थी कि तुम्हारी जेबों से पैसे निकलने लगे. घर में आए कैश की गड्डियों से नोट गुम होने लगे. तुम ने कैश हमारे पास रखना शुरू किया. तब कहीं जा कर चोरी रुकी. यही नहीं, बच्चों के सारे नएनए कपड़े मायके दे आती. बच्चे जब कपड़ों के बारे में पूछते तो उस के पास कोई जवाब नहीं होता. तुम्हारे पास उस पर हाथ उठाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.

‘‘अब तो वह इतनी बेशर्म हो गई है कि मार का भी कोई असर नहीं होता. वह पागल हो गई है घर में सबकुछ होते हुए भी. मानता हूं, औरत को मारना बुरी बात है, गुनाह है पर तुम्हारी मजबूरी भी है. ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता है. ‘‘तुम्हें तब भी समझ नहीं आई. दूसरी सोसाइटी की दीवारें फांदती हुई पकड़ी गई. उन के गार्डो ने तुम्हें बताया. 5 बार घर में पुलिस आई कि तुम्हारी मम्मी तुम्हें सिखाती है और तुम उसे मारते हो. जबकि सारे उलटे काम वह करती है. हमें बच्चों के जूठे दूध की चाय पिलाती थी. बच्चों का बचा जूठा पानी पिलाती थी. झूठा पानी न हो तो गंदे टैंक का पानी पिला देती थी. हमारे पेट इतने खराब हो जाते थे कि हमें अस्पताल में दाखिल होना पड़ता था. पिछली बार तो तुम्हारी मम्मी मरतेमरते बची थी.

‘‘जब से हम अपना पानी खुद भरने लगे, तब से ठीक हैं.’’ मैं थोड़ी देर के लिए सांस लेने के लिए रुका, ‘‘तुम मारते हो और सभी दहेज मांगते हैं, इस के लिए वह मंत्रीजी के पास चली गई. पुलिस आयुक्त के पास चली गई. कहीं बात नहीं बनी तो वुमेन सैल में केस कर दिया. उस के लिए हम सब 3 महीने परेशान रहे, तुम अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारी ससुराल के 10-10 लोग तुम्हें दबाने और मारने के लिए घर तक पहुंच गए. तुम हर जगह अपने रसूख से बच गए, वह बात अलग है. वरना उस ने तुम्हें और हमें जेल भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इतना सब होने पर भी तुम उसे घर ले आए जबकि वह घर में रहने लायक लड़की नहीं थी.

‘‘हम सब लिखित माफीनामे के बिना उसे घर लाना नहीं चाहते थे. उस के लिए मैं ने ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों ने भी ड्राफ्ट बना कर दिए पर तुम बिना किसी लिखतपढ़त के उसे घर ले आए. परिणाम क्या हुआ, तुम जानते हो. वुमेन सैल में तुम्हारे और उस के बीच क्या समझौता हुआ, हमें नहीं पता. तुम भी उस के साथ मिले हुए हो. तुम केवल अपने स्वार्थ के लिए हमें अपने पास रखे हो. तुम महास्वार्थी हो. ‘‘शायद बच्चों के कारण तुम्हारा उसे घर लाना तुम्हारी मजबूरी रही होगी या तुम मुकदमेबाजी नहीं चाहते होगे. पर, जिन बच्चों के लिए तुम उसे घर ले कर आए, उन का क्या हुआ पढ़ने के लिए तुम्हें अपनी बेटी को होस्टल भेजना पड़ा और बेटे को भेजने के लिए तैयार हो. उस ने तुम्हें हर जगह धोखा दिया. तुम्हें किन परिस्थितियों में उस का 5वें महीने में गर्भपात करवाना पड़ा, तुम्हें पता है. उस ने तुम्हें बताया ही नहीं कि वह गर्भवती है. पूछा तो क्या बताया कि उसे पता ही नहीं चला. यह मानने वाली बात नहीं है कि कोई लड़की गर्भवती हो और उसे पता न हो.’’

‘‘जब हम ने तुम्हें दूसरे घर जाने के लिए डैडलाइन दे दी तो तुम ने खाना बनाने वाली रख दी. ऐसा करना भी तुम्हारी मजबूरी रही होगी. हमारा खाना बनाने के लिए मना कर दिया होगा. वह दोपहर का खाना कैसा गंदा और खराब बनाती थी, तुम जानते थे. मिनरल वाटर होते हुए भी, टैंक के पानी से खाना बनाती थी. ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से आशंका व्यक्त की थी कि यह पागल हो गई है. यह कुछ भी कर सकती है. हमें जहर भी दे सकती है. किचन में कैमरे लगवाओ, नौकरानी और राजी पर नजर रखी जा सकेगी. तुम ने हामी भी भरी, परंतु ऐसा किया नहीं. और नतीजा तुम्हारे सामने है. वह तो शुक्र करो कि खाना तुम्हारी मम्मी ने पहले खाया और मैं उसे अस्पताल ले आया. अगर मैं भी खा लेता तो हम दोनों ही मर जाते. अस्पताल तक कोई नहीं पहुंच पाता.’’

इतने में पुलिस इंस्पैक्टर आए और कहने लगे, ‘‘आप सब को थाने चल कर बयान देने हैं. डीसीपी साहब इस के लिए वहीं बैठे हैं.’’ थाने पहुंचे तो मेरे मित्र डीसीपी मोहित साहब बयान लेने के लिए बैठे थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सब से पहले आप की छोटी बहू के बयान लेने हैं. पता करें, वह स्कूल से आ गई हो, तो तुरंत बुला लें.’’

छोटी बहू आई तो उसे सीधे डीसीपी साहब के सामने पेश किया गया. उसे हम में से किसी से मिलने नहीं दिया गया. डीसीपी साहब ने उसे अपने सामने कुरसी पर बैठा, बयान लेने शुरू किए.

2 इंस्पैक्टर बातचीत रिकौर्ड करने के लिए तैयार खड़े थे. एक लिपिबद्ध करने के लिए और एक वीडियोग्राफी के लिए. डीसीपी साहब ने पूछना शुरू किया-

‘‘आप का नाम ’’ ‘‘जी, निवेदिका.’’

‘‘आप की शादी कब हुई कितने वर्षों से आप कर्नल चोपड़ा साहब की बहू हैं ’’ ‘‘जी, मेरी शादी 2011 में हुई थी.

6 वर्ष हो गए.’’ ‘‘आप के कोई बच्चा ’’

‘‘जी, एक बेटा है जो मौडर्न स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ता है.’’ ‘‘आप को अपनी सास और ससुर से कोई समस्या मेरे कहने का मतलब वे अच्छे या आम सासससुर की तरह तंग करते हैं ’’

‘‘सर, मेरे सासससुर जैसा कोई नहीं हो सकता. वे इतने जैंटल हैं कि उन का दुश्मन भी उन को बुरा नहीं कह सकता. मेरे पापा नहीं हैं. कर्नल साहब ने इतना प्यार दिया कि मैं पापा को भूल गई. वे दोनों अपने किसी भी बच्चे पर भार नहीं हैं. पैंशन उन की इतनी आती है कि अच्छेअच्छों की सैलरी नहीं है. दवा का खर्चा भी सरकार देती है. कैंटीन की सुविधा अलग से है.’’ ‘‘फिर समस्या कहां है ’’

‘‘सर, समस्या राजी के दिमाग में है, उस के विचारों में है. उस के गंदे संस्कारों में है जो उस की मां ने उसे विरासत में दिए. सर, मां की प्रयोगशाला में बेटी पलती और बड़ी होती है, संस्कार पाती है. अगर मां अच्छी है तो बेटी भी अच्छी होगी. अगर मां खराब है तो मान लें, बेटी कभी अच्छी नहीं होगी. यही सत्य है. ‘‘सर, सत्य यह भी है कि राजी महाचोर है. मेरे मायके से 5 किलो दान में आई मूंग की दाल भी चोरी कर के ले गई. मेरे घर से आया शगुन का लिफाफा भी चोरी कर लिया, उस की बेटी ने ऐसा करते खुद देखा. थोड़ा सा गुस्सा आने पर जो अपनी बेटी का बस्ता और किताबें कमरे के बाहर फेंक सकती है, वह पागल नहीं तो और क्या है. उस की बेटी चाहे होस्टल चली गई परंतु यह बात वह कभी नहीं भूल पाई.’’

‘‘ठीक है, मुझे आप के ही बयान लेने थे. सास के बाद आप ही राजी की सब से बड़ी राइवल हैं.’’

उसी समय एक कौंस्टेबल अंदर आया और कहा, ‘‘सर, राजी अपने मायके में पकड़ी गई है और उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है. उस की मां भी साथ है.’’ ‘‘उन को अंदर बुलाओ. कर्नल साहब, उन के बेटों को भी बुलाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम सब डीसीपी साहब के सामने थे. राजी और उस की मां भी थीं. राजी की मां ने कहा, ‘‘सर, यह तो पागल है. उसी पागलपन के दौरे में इस ने अपनी सास को जहर दिया. ये रहे उस के पागलपन के कागज. हम शादी के बाद भी इस का इलाज करवाते रहे हैं.’’ ‘‘क्या यह बीमारी शादी से पहले की है ’’

‘‘जी हां, सर.’’ ‘‘क्या आप ने राजी की ससुराल वालों को इस के बारे में बताया था ’’ डीसीपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, बता देते तो इस की शादी नहीं होती. वह कुंआरी रह जाती.’’ ‘‘अच्छा था, कुंआरी रह जाती. एक अच्छाभला परिवार बरबाद तो न होता. आप ने अपनी पागल लड़की को थोप कर गुनाह किया है. इस की सख्त

से सख्त सजा मिलेगी. आप भी बराबर की गुनाहगार हैं. दोनों को इस की सजा मिलेगी.’’

‘‘डीसीपी साहब किसी पागल लड़की को इस प्रकार थोपने की क्रिया ही गुनाह है. कानून इन को सजा भी देगा. पर हमारे बेटे की जो जिंदगी बरबाद हुई उस का क्या हो सकता है, इस के पागलपन का प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़े. उस का कौन जिम्मेदार होगा हमारा खानदान बरबाद हो गया. सबकुछ खत्म हो गया.’’ ‘‘मानता हूं, कर्नल साहब, इस की पीड़ा आप को और आप के बेटे को जीवनभर सहनी पड़ेगी, लेकिन कोई कानून इस मामले में आप की मदद नहीं कर पाएगा.’’

थाने से हम घर आ गए. सरला की तबीयत ठीक हो गई थी. वह अस्पताल से घर आ गई थी. महीनों वह इस हादसे को भूल नहीं पाई थी. कानून ने राजी और उस की मां को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि औरतों के प्रति गुनाह होते तो सुना था लेकिन जो इन्होंने किया उस के लिए 7 साल की सजा बहुत कम है. अगर उम्रकैद का प्रावधान होता तो वे उसे उम्रकैद की सजा देते.

सच्चा प्यार: क्यों जुदा हो जाते हैं चाहने वाले दो दिल

अनुपम और शिखा दोनों इंगलिश मीडियम के सैंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ते थे. दोनों ही उच्चमध्यवर्गीय परिवार से थे. शिखा मातापिता की इकलौती संतान थी जबकि अनुपम की एक छोटी बहन थी. धनसंपत्ति के मामले में शिखा का परिवार अनुपम के परिवार की तुलना में काफी बेहतर था. शिखा के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. उन की ऊपरी आमदनी काफी थी. शहर में उन का रुतबा था. अनुपम और शिखा दोनों पहली कक्षा से ही साथ पढ़ते आए थे, इसलिए वे अच्छे दोस्त बन गए थे. दोनों के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी. शिखा सुंदर थी अनुपम देखने में काफी स्मार्ट था.

उस दिन उन का 10वीं के बोर्ड का रिजल्ट आने वाला था. शिखा भी अनुपम के घर अपना रिजल्ट देखने आई. अनुपम ने अपना लैपटौप खोला और बोर्ड की वैबसाइट पर गया. कुछ ही पलों में दोनों का रिजल्ट भी पता चल गया. अनुपम को 95 प्रतिशत अंक मिले थे और शिखा को 85 प्रतिशत. दोनों अपनेअपने रिजल्ट से संतुष्ट थे. और एकदूसरे को बधाई दे रहे थे. अनुपम की मां ने दोनों का मुंह मीठा कराया.

शिखा बोली, ‘‘अब आगे क्या पढ़ना है, मैथ्स या बायोलौजी? तुम्हारे तो दोनों ही सब्जैक्ट्स में अच्छे मार्क्स हैं?’’

‘‘मैं तो पीसीएम ही लूंगा. और तुम?’’

‘‘मैं तो आर्ट्स लूंगी, मेरा प्रशासनिक सेवा में जाने का मन है.’’

‘‘मेरी प्रशासनिक सेवा में रुचि नहीं है. जिंदगीभर नेताओं और मंत्रियों की जीहुजूरी करनी होगी.’’

‘‘मैं तुम्हें एक सलाह दूं?’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘तुम पायलट बनो. तुम पर पायलट वाली ड्रैस बहुत सूट करेगी और तुम दोगुना स्मार्ट लगोगे. मैं भी तुम्हारे साथसाथ हवा में उड़ने लगूंगी.’’

‘‘मेरे साथ?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पायलट अपनी बीवी को साथ नहीं ले जा सकते, क्या.’’

तब शिखा को ध्यान आया कि वह क्या बोल गई और शर्म के मारे वहां से भाग गई. अनुपम पुकारता रहा पर उस ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा. थोड़ी देर में अनुपम की मां भी वहां आ गईं. वे उन दोनों की बातें सुन चुकी थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शिखा ने अनजाने में अपने मन की बात कह डाली है. शिखा तो अच्छी लड़की है. मुझे तो पसंद है. तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो. अगर तुम्हें पसंद है तो मैं उस की मां से बात करती हूं.’’

अनुपम बोला, ‘‘यह तो बाद की बात है मां, अभी तक हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. पहले मुझे अपना कैरियर देखना है.’’

मां बोलीं, ‘‘शिखा ने अच्छी सलाह दी है तुम्हें. मेरा बेटा पायलट बन कर बहुत अच्छा लगेगा.’’

‘‘मम्मी, उस में बहुत ज्यादा खर्च आएगा.’’

‘‘खर्च की चिंता मत करो, अगर तुम्हारा मन करता है तब तुम जरूर पायलट बनो अन्यथा अगर कोई और पढ़ाई करनी है तो ठीक से सोच लो. तुम्हारी रुचि जिस में हो, वही पढ़ो,’’ अनुपम के पापा ने उन की बात सुन कर कहा.

उन दिनों 21वीं सदी का प्रारंभ था. भारत के आकाशमार्ग में नईनई एयरलाइंस कंपनियां उभर कर आ रही थीं. अनुपम ने मन में सोचा कि पायलट का कैरियर भी अच्छा रहेगा. उधर अनुपम की मां ने भी शिखा की मां से बात कर शिखा के मन की बात बता दी थी. दोनों परिवार भविष्य में इस रिश्ते को अंजाम देने पर सहमत थे.

एक दिन स्कूल में अनुपम ने शिखा से कहा, ‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं पायलट ही बनूंगा. तुम मेरे साथ उड़ने को तैयार रहना.’’

‘‘मैं तो न जाने कब से तैयार बैठी हूं,’’ शरारती अंदाज में शिखा ने कहा.

‘‘ठीक है, मेरा इंतजार करना, पर कमर्शियल पायलट बनने के बाद ही शादी करूंगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम.’’

अब अनुपम और शिखा दोनों काफी नजदीक आ चुके थे. दोनों अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखने लगे थे. देखतेदेखते दोनों 12वीं पास कर चुके थे. अनुपम को अच्छे कमर्शियल पायलट बनने के लिए अमेरिका के एक फ्लाइंग स्कूल जाना था.

भारत में मल्टीइंजन वायुयान और एयरबस ए-320 जैसे विमानों पर सिमुलेशन की सुविधा नहीं थी जोकि अच्छे कमर्शियल पायलट के लिए जरूरी था. इसलिए अनुपम के पापा ने गांव की जमीन बेच कर और कुछ प्रोविडैंट फंड से लोन ले कर अमेरिकन फ्लाइंग स्कूल की फीस का प्रबंध कर लिया था. अनुपम ने अमेरिका जा कर एक मान्यताप्राप्त फ्लाइंग स्कूल में ऐडमिशन लिया. शिखा ने स्थानीय कालेज में बीए में ऐडमिशनले लिया.

अमेरिका जाने के बाद फोन और वीडियो चैट पर दोनों बातें करते. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. देखतेदेखते 3 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका था. अनुपम को कमर्शियल पायलट लाइसैंस मिल गया. शिखा को प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. उस ने अनुपम से कहा कि प्रशासनिक सेवा के लिए वह एक बार और कंपीट करने का प्रयास करेगी.

अनुपम ने प्राइवेट एयरलाइंस में पायलट की नौकरी जौइन की. लगभग 2 साल वह घरेलू उड़ान पर था. एकदो बार उस ने शिखा को भी अपनी फ्लाइट से सैर कराई. शिखा को कौकपिट दिखाया और कुछ विमान संचालन के बारे में बताया. शिखा को लगा कि उस का सपना पूरा होने जा रहा है. एक साल बाद अनुपम को अंतर्राष्ट्रीय वायुमार्ग पर उड़ान भरने का मौका मिला. कभी सिंगापुर, कभी हौंगकौंग तो कभी लंदन.

शिखा को दूसरे वर्ष भी प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. इधर शिखा के परिवार वाले उस की शादी जल्दी करना चाहते थे. अनुपम ने उन से 1-2 साल का और समय मांगा. दरअसल, अनुपम के पिता उस की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज ले चुके थे. अनुपम चाहता था कि अपनी कमाई से कुछ कर्ज उतार दे और छोटी बहन की शादी हो जाए.

वैसे तो वह प्राइवेट एयरलाइंस घरेलू वायुसेवा में देश में दूसरे स्थान पर थी पर इस कंपनी की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं थी. 2007 में कंपनी ने दूसरी घरेलू एयरलाइंस कंपनी को खरीदा था जिस के बाद इस की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी थी. 2010 तक हालत बदतर होने लगे थे. बीचबीच में कर्मचारियों को बिना वेतन 2-2 महीने काम करना पड़ा था.

उधर शिखा के पिता शादी के लिए अनुपम पर दबाव डाल रहे थे. पर बारबार अनुपम कुछ और समय मांगता ताकि पिता का बोझ कुछ हलका हो. जो कुछ अनुपम की कमाई होती, उसे वह पिता को दे देता. इसी वजह से अनुपम की बहन की शादी भी अच्छे से हो गई. उस के पिता रिटायर भी हो गए थे.

रिटायरमैंट के समय जो कुछ रकम मिली और अनुपम की ओर से मिले पैसों को मिला कर उन्होंने शहर में एक फ्लैट ले लिया. पर अभी भी फ्लैट के मालिकाना हक के लिए और रुपयों की जरूरत थी. अनुपम को कभी 2 महीने तो कभी 3 महीने पर वेतन मिलता जो फ्लैट में खर्च हो जाता. अब भी एक बड़ी रकम फ्लैट के लिए देनी थी.

एक दिन शिखा के पापा ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आज अनुपम से फाइनल बात कर लेता हूं, आखिर कब तक इंतजार करूंगा और दूसरी बात, मुझे पायलट की नौकरी उतनी पसंद भी नहीं. ये लोग देशविदेश घूमते रहते हैं. इस का क्या भरोसा, कहीं किसी के साथ चक्कर न चल रहा हो.’’

अनुपम के मातापिता तो चाहते थे कि अनुपम शादी के लिए तैयार हो जाए, पर वह तैयार नहीं हुआ. उस का कहना था कि कम से कम यह घर तो अपना हो जाए, उस के बाद ही शादी होगी. इधर एयरलाइंस की हालत बद से बदतर होती गई. वर्ष 2012 में जब अनुपम घरेलू उड़ान पर था तो उस ने दर्दभरी आवाज में यात्रियों को संबोधित किया, ‘‘आज की आखिरी उड़ान में आप लोगों की सेवा करने का अवसर मिला. हम ने 2 महीने तक बिना वेतन के अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार आप की सेवा की है.’’

इस के चंद दिनों बाद इस एयरलाइंस की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों का लाइसैंस रद्द कर दिया गया. पायलट हो कर भी अनुपम बेकार हो गया.

शिखा के पिता ने बेटी से कहा, ‘‘बेटे, हम ने तुम्हारे लिए एक आईएएस लड़का देखा है. वे लोग तुम्हें देख चुके हैं और तुम से शादी के लिए तैयार हैं. वे कोई खास दहेज भी नहीं मांग रहे हैं वरना आजकल तो आईएएस को करोड़ डेढ़करोड़ रुपए आसानी से मिल जाता है.’’

‘‘पापा, मैं और अनुपम तो वर्षों से एकदूसरे को जानते हैं और चाहते भी हैं. यह तो उस के साथ विश्वासघात होगा. हम कुछ और इंतजार कर सकते हैं. हर किसी का समय एकसा नहीं होता. कुछ दिनों में उस की स्थिति भी अच्छी हो जाएगी, मुझे पूरा विश्वास है.’’

‘‘हम लोग लगभग 2 साल से उसी के इंतजार में बैठे हैं, अब और समय गंवाना व्यर्थ है.’’

‘‘नहीं, एक बार मुझे अनुपम से बात करने दें.’’

शिखा ने अनुपम से मिल कर यह बात बताई. शिखा तो कोर्ट मैरिज करने को भी तैयार थी पर अनुपम को यह ठीक नहीं लगा. वह तो अनुपम का इंतजार भी करने को तैयार थी.

शिखा ने पिता से कहा, ‘‘मैं अनुपम के लिए इंतजार कर सकती हूं.’’

‘‘मगर, मैं नहीं कर सकता और न ही लड़के वाले. इतना अच्छा लड़का मैं हाथ से नहीं निकलने दूंगा. तुम्हें इस लड़के से शादी करनी होगी.’’

उस के पिता ने शिखा की मां को बुला कर कहा, ‘‘अपनी बेटी को समझाओ वरना मैं अभी के तुम को गोली मार कर खुद को भी गोली मार दूंगा.’’ यह बोल कर उन्होंने पौकेट से पिस्तौल निकाल कर पत्नी पर तान दी.

मां ने कहा, ‘‘बेटे, पापा का कहना मान ले. तुम तो इन का स्वभाव जानती हो. ये कुछ भी कर बैठेंगे.’’

शिखा को आखिरकार पिता का कहना मानना पड़ा ही शिखा अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की पत्नी थी. उस के पास सबकुछ था, घर, बंगला, नौकरचाकर. कुछ दिनों तक तो वह थोड़ी उदास रही पर जब वह प्रैग्नैंट हुई तो उस का मन अब अपने गर्भ में पलने वाले जीव की ओर आकृष्ट हुआ.

उधर, अनुपम के लिए लगभग 1 साल का समय ठीक नहीं रहा. एक कंपनी से उसे पायलट का औफर भी मिला तो वह कंपनी उस की लाचारी का फायदा उठा कर इतना कम वेतन दे रही थी कि वह तैयार नहीं हुआ. इस के कुछ ही महीने बाद उसे सिंगापुर के एक मशहूर फ्लाइंग एकेडमी में फ्लाइट इंस्ट्रक्टर की नौकरी मिल गई. वेतन, पायलट की तुलना में कम था पर आराम की नौकरी थी. ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी थी  इस नौकरी में. अनुपम सिंगापुर चला गया.

इधर शिखा ने एक बेटे को जन्म दिया. देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. अनुपम के मातापिता अब उस की शादी के लिए दबाव बना रहे थे. अनुपम ने सबकुछ अपने मातापिता पर छोड़ दिया था. उस ने बस इतना कहा कि जिस लड़की को वे पसंद करें उस से फाइनल करने से पहले वह एक बार बात करना चाहेगा.

कुछ दिनों बाद अनुपम अपने एक दोस्त की शादी में भारत आया. वह दोस्त का बराती बन कर गया. जयमाला के दौरान स्टेज पर ही लड़की लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का बाएं पैर का निचला हिस्सा कृत्रिम था, जो निकल पड़ा था. पूरी बरात और लड़की के यहां के मेहमान यह देख कर आश्चर्यचकित थे.

दूल्हे के पिता ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. आप लोगों ने धोखा दिया है.’’

लड़की के पिता बोले, ‘‘आप को तो मैं ने बता दिया था कि लड़की का एक पैर खराब है.’’

‘‘आप ने सिर्फ खराब कहा था. नकली पैर की बात नहीं बताई थी. यह शादी नहीं होगी और बरात वापस जाएगी.’’

तब तक लड़की का भाई भी आ कर बोला, ‘‘आप को इसीलिए डेढ़ करोड़ रुपए का दहेज दिया गया है. शादी तो आप को करनी ही होगी वरना…’’

अनुपम का दोस्त, जो दूल्हा था, ने कहा, ‘‘वरना क्या कर लेंगे. मैं जानता हूं आप मजिस्ट्रेट हैं. देखता हूं आप क्या कर लेंगे. अपनी दो नंबर की कमाई के बल पर आप जो चाहें नहीं कर सकते. आप ने नकली पैर की बात क्यों छिपाई थी. लड़की दिखाने के समय तो हम ने इस की चाल देख कर समझा कि शायद पैर में किसी खोट के चलते लंगड़ा कर चल रही है, पर इस का तो पैर ही नहीं है, अब यह शादी नहीं होगी. बरात वापस जाएगी.’’

तब तक अनुपम भी दोस्त के पास पहुंचा. उस के पीछे एक महिला गोद में बच्चे को ले कर आई. वह शिखा थी. उस ने दुलहन बनी लड़की का पैर फिक्स किया. वह शिखा से रोते हुए बोली, ‘‘भाभी, मैं कहती थी न कि मेरी शादी न करें आप लोग. मुझे बोझ समझ कर घर से दूर करना चाहा था न?’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसी बात नहीं है. हम तो तुम्हारा भला सोच रहे थे.’’ शिखा इतना ही बोल पाई थी और उस की आंखों से आंसू निकलने लगे. इतने में उस की नजर अनुपम पर पड़ी तो बोली, ‘‘अनुपम, तुम यहां?’’

अनुपम ने शिखा की ओर देखा. मुन्नी और विशेष कर शिखा को रोते देख कर वह भी दुखी था. बरात वापस जाने की तैयारी में थी. दूल्हेदोस्त ने शिखा को देख कर कहा, ‘‘अरे शिखा, तुम यहां?’’

‘‘हां, यह मेरी ननद मुन्नी है.’’

‘‘अच्छा, तो यह तुम लोगों का फैमिली बिजनैस है. तुम ने अनुपम को ठगा और अब तुम लोग मुझे उल्लू बना रहे थे. चल, अनुपम चल, अब यहां नहीं रुकना है.’’

अनुपम बोला, ‘‘तुम चलो, मैं शिखा से बात कर के आता हूं.’’

बरात लौट गई. शिखा अनुपम से बोली, ‘‘मुझे उम्मीद है, तुम मुझे गलत नहीं समझोगे और माफ कर दोगे. मैं अपने प्यार की कुर्बानी देने के लिए मजबूर थी. अगर ऐसा नहीं करती तो मैं अपनी मम्मी और पापा की मौत की जिम्मेदार होती.’’

‘‘मैं ने न तुम्हें गलत समझा है और न ही तुम्हें माफी मांगने की जरूरत है.’’

लड़की के पिता ने बरातियों से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप लोग क्षमा करें, मैं बेटी के हाथ तो पीले नहीं कर सका लेकिन आप लोग कृपया भोजन कर के जाएं वरना सारा खाना व्यर्थ बरबाद जाएगा.’’

मेहमानों ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में हमारे गले के अंदर निवाला नहीं उतरेगा. बिटिया की डोली न उठ सकी इस का हमें भी काफी दुख है. हमें माफ करें.’’

तब अनुपम ने कहा, ‘‘आप की बिटिया की डोली उठेगी और मेरे घर तक जाएगी. अगर आप लोगों को ऐतराज न हो.’’

वहां मौजूद सभी लोगों की निगाहें अनुपम पर गड़ी थीं. लड़की के पिता ने  झुक कर अनुपम के पैर छूने चाहे तो उस ने तुरंत उन्हें मना किया.

शिखा के पति ने कहा, ‘‘मुझे शिखा ने तुम्हारे बारे में बताया था कि तुम दोनों स्कूल में अच्छे दोस्त थे. पर मैं तुम से अभी तक मिल नहीं सका था. तुम ने मेरे लिए ऐसे हीरे को छोड़ दिया.’’

मुन्नी की शादी उसी मंडप में हुई. विदा होते समय वह अपनी भाभी शिखा से बोली, ‘‘प्यार इस को कहते हैं, भाभी. आप के या आप के परिवार को अनुपम अभी भी दुखी नहीं देखना चाहते हैं.’’

मुझे माफ करोगी सुधा: क्या गौरव को पता चला पत्नी और प्रेमिका में फर्क

शादी की धूमधाम में शहनाई के मधुर स्वर हवा में तैर रहे थे. रंग, फूल, सुगंध, कहकहे, रंगबिरंगी रोशनी सब मिला कर एक स्वप्निल वातावरण बना हुआ था. इतने में शोर उठा, ‘बरात आ गई, बरात आ गई.’

सब एकसाथ स्वागत द्वार की ओर दौड़ पड़े. सजीसंवरी दुलहन को उस की कुछ सहेलियां द्वार की ओर ला रही थीं. वरमाला की रस्म अदा हुई, पहली बार वर ने वधू की ओर देखा और जैसे कोई उस के कलेजे पर वार कर गया. सारे रंगीन ख्वाब टूट कर बिखर गए.

दूल्हा सोचने लगा, जिंदगी ने यह कैसा मजाक उस के साथ किया है. सांवला, दुबलापतला शरीर, गड्ढे में धंसी आंखें, रूखे मोटे होंठ, दुलहन का शृंगार भी क्या उस की कुरूपता को ढक पाया था लेकिन अब क्या हो सकता था. यह गले पड़ा ढोल तो उसे बजाना ही था. इस से अब वह बच नहीं सकता था.

पिता के कठोर अनुशासन ने गौरव को अत्यंत लजीला और भीरु बना दिया था. उन के सामने वह मुंह तक नहीं खोल सकता था. जो कुछ वे कहते, वह सिर झुका कर मान लेता.

यह रिश्ता गौरव के लालची पिता ने लड़की वालों की अमीरी देख कर तय किया था. लड़की के पिता की लाखों की संपत्ति, उस पर इकलौती संतान, वे फौरन ही इस रिश्ते के लिए मान गए थे. पैसे से उन का मोह जगत प्रसिद्ध था.

गौरव ने सुधा के स्वभाव के बारे में तो पहले ही धारणा बना ली थी, बड़े बाप की इकलौती, पढ़ीलिखी लड़की घमंडी और बदमिजाज तो होगी ही. उस के पिता को ऐसी बहू मिलेगी जो उस की तरह उन से नहीं दबेगी, उलटा वे ही कुछ न कह सकेंगे, यह सोच कर उस की पिता से बदला लेने की भावना को कहीं संतुष्टि मिली.

लेकिन आशा के विपरीत सुधा बहुत ही मधुरभाषिणी, कम बोलने वाली और संकोची प्रवृत्ति की निकली. बड़ों का आदरसम्मान, बच्चों में प्यार से घुलमिल जाना, हर समय हर किसी को खुश करने के लिए काम में जुटे रहना, अपने इन्हीं गुणों से उस ने धीरेधीरे घर भर का मन मोह लिया था.

गौरव की बहन अरुणा दीदी, जो उम्र में उस से काफी बड़ी थीं, सुधा की तारीफ करते न थकतीं. दीदी, जीजाजी और उन के बच्चे शादी के बाद कुछ दिन उन के पास रुक गए थे. इसी दौरान सुधा उन से यों घुलमिल गई थी मानो बरसों से उन्हें पहचानती हो.

आश्चर्य की बात यह थी कि सिवा गौरव के घर भर में कोई भी सुधा के रूपरंग का जिक्र न करता, सब उस के स्वभाव का ही बखान करते. गौरव पत्नी की तारीफ सुन कर खीज उठता. वह अपने दोस्तों में हमेशा सुधा की कुरूपता की चर्चा करता और अपने से उस की तुलना कर अपने खूबसूरत होने पर गर्व महसूस करता.

सुधा पति को प्रसन्न करने का हर तरह से प्रयत्न करती, उस की छोटीछोटी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखती लेकिन गौरव उस से बात तक न करता. जो कहना होता, मां से या नौकरों से कहता. सुधा धैर्यपूर्वक पलपल उस की बर्फीली बेरुखी सहती. उसे उम्मीद थी कि शायद कभी उस की जिंदगी का सूरज उदय होगा, जिस की आंच में यह बर्फ पिघल जाएगी और उस की कंपकंपाती जिंदगी को प्यार की नरम धूप का सेंक मिलेगा.

इस बीच गौरव का अपने दफ्तर की स्टेनो नंदिनी से मेलजोल बढ़ने लगा. नंदिनी उस पर काफी पहले से ही डोरे डाल रही थी. वह गौरव को फांस कर उस से शादी के सपने देखा करती. सुंदरसजीले गौरव पर बहुत सी लड़कियां मरती थीं, उस से दोस्ती करना चाहती थीं मगर गौरव शरमीले स्वभाव का होने के कारण लड़कियों से बहुत झेंपता, उन से बात करने में भी झिझकता और नजरें बचा कर निकल जाता.

शादी के बाद वही गौरव नारी के मांसल आकर्षण में अजीब खिंचाव और आनंद लेने लगा था. अब वह पहले सा लजीला, रूखा और नीरस युवक नहीं रह गया था. औरत के दैहिक सम्मोहन में आकंठ डूब चला था. सुधा की सूखी देह जब उस की बांहों में होती तो गौरव की कल्पना उसे नंदिनी की मांसल, आकर्षक देह बना देती. मगर वह क्षणिक दैहिक सुख गौरव को तृप्ति न दे पाता और वह प्यासा रह जाता, उस मिलन में उसे एक अधूरापन लगता.

नंदिनी गौरव के दिल की हालत समझ रही थी. उस ने सुन रखा था कि गौरव की पत्नी एक कुरूप नारी है. नंदिनी को अपनी सुंदरता और सुडौल शरीर पर बड़ा अभिमान था. वह रोज तरहतरह से अपने को सजासंवार कर दफ्तर आती और गौरव को रिझाने का प्रयास करती. आखिर गौरव भी कब तक धैर्य रखता. वह दिनोदिन उस की सुंदरता में डूबता जा रहा था.

आर्थिक रूप से गौरव सक्षम हो चुका था. दहेज में मिली लाखों की संपत्ति उस की थी. पिता बूढ़े हो रहे थे. गठिया के रोग से पीडि़त थे, चलफिर नहीं सकते थे, स्वत: ही उन का रोबदाब कम हो चला था. गौरव धीरेधीरे मनमानी पर उतर आया था.

सुधा को गौरव ने पत्नी का दर्जा कभी नहीं दिया था. बस, उस की झोली में एक प्यारा सा बेटा डाल कर उस के प्रति अपने कर्तव्य की इति समझ बैठा था. वह सारा दिन घर के कामकाज एवं सासससुर और बच्चे की देखभाल में जुटी रहती, इधर गौरव रातरात भर गायब रहता. उस के और नंदिनी के संबंध किसी से छिपे न रहे, लेकिन किसी की हिम्मत न थी जो उसे कुछ कह सके, पूरा घर उस से भयभीत रहने लगा था.

भीतर ही भीतर सुधा घुटती रहती मगर ऊपर से खामोश रहती. वह घर में किसी प्रकार की कलह नहीं करना चाहती थी. हीनभावना की गहराई में उस की अपनी अस्मिता कहीं डूब गई थी.

गौरव की ऐयाशी के किस्से जब एक दिन सुधा के मातापिता तक पहुंचे तो वे चुप न रहे. एक दिन जब गौरव नंदिनी के साथ कोई फिल्म देख कर लौटा तो अचानक अपने ससुर को वहां देख चौंक पड़ा.

‘‘कहां से आ रहे हो, गौरव?’’ ससुर कृष्णलाल ने व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा.

एकाएक गौरव से कोई उत्तर न बन पड़ा. धीरे से बोला, ‘‘दोस्तों के साथ फिल्म देखने गया था.’’

सुनते ही उस के ससुर कठोर स्वर में बोले, ‘‘यह मत समझो कि हमें तुम्हारी कारगुजारियों का पता नहीं. सोच रहे थे कि शायद तुम अपनेआप संभल जाओ. सुधा बेचारी ने तो आज तक तुम्हारे खिलाफ एक शब्द नहीं लिखा. हर पत्र में तुम्हारी तारीफ ही लिखती रहती थी. वह तो भला हो तुम्हारे पिताजी का जिन्होंने तार दे कर मुझे बुलवा लिया, अपने बेटे की चरित्रहीनता दिखलाने, उस की ‘कीर्ति’ सुनवाने.’’

फिर कुछ रुक कर वे बोले, ‘‘लेकिन सुधा को मैं अब और अपमानित होने के लिए यहां नहीं रहने दूंगा. मैं उसे ले जा रहा हूं. हम सुबह की गाड़ी से ही आगरा चले जाएंगे. तुम ने अगर अपने रंगढंग नहीं बदले तो मजबूरन हमें सुधा को तुम से तलाक दिलवाना पड़ेगा,’’ इतना कह कर बिना एक पल रुके कृष्णकांत उठ खड़े हुए.

सुधा की बातों और धमकी से गौरव काफी परेशान हो गया. मन ही मन सोचने लगा कि इस समस्या का हल कैसे निकाला जाए. सुधा के जाने से तो पूरा घर अस्तव्यस्त हो जाएगा. बेटे चंदन की देखभाल कौन करेगा? उस की पढ़ाई का क्या होगा?

नंदिनी गौरव के लिए सिर्फ दिल बहलाव का जरिया थी वरना उस के छिछले स्वभाव को गौरव समझता था. वह इतना नासमझ नहीं था जो जानता न हो कि इस तरह की लड़कियां दुख की साथी नहीं होतीं, उन्हें तो अपनी मौजमस्ती चाहिए.

दूसरे दिन लाख मिन्नतें करने के बावजूद गौरव के ससुर बेटी को अपने साथ ले गए. चंदन को उस के दादाजी के कहने पर मजबूरन उन्हें वहीं छोड़ना पड़ा वरना गौरव के कहने से तो वे कदाचित न मानते.

सुधा के जाते ही घर का पूरा नक्शा ही बिगड़ गया. गौरव को दफ्तर से छुट्टी लेनी पड़ी. उस ने नंदिनी से सहायता मांगी तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘गौरव, और कुछ करने को कहो लेकिन घर की देखभाल, न बाबा न, वो मेरा विभाग नहीं.’’

2-3 दिन की लगातार भागदौड़ के बाद उसे अपने एक दोस्त के जरिए एक नौकरानी मिल गई. करीब एक हफ्ते तो उस ने ठीक तरह से काम किया. 8वें दिन पता चला कि सुधा की अलमारी से सब साडि़यां और कुछ गहने ले कर वह चंपत हो गई है. बहुत कोशिश की, लेकिन उस का कुछ पता न चल सका.

चंदन हर वक्त मां को याद करता रहता, ‘‘पिताजी, मां कब आएंगी…कहां गई हैं? मुझे साथ क्यों नहीं ले गईं,’’ वह बारबार पूछता. मां के बगैर उसे खानापीना भी अच्छा न लगता. वह बहुत उदास और गुमसुम रहने लगा था. गौरव से अपने बेटे की यह हालत देखी न जाती. गौरव चाहता था कि सुधा लौट आए. उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा था.

ऐसे में ही एक दिन गौरव को अरुणा दीदी की याद आई. ‘हां, दीदी ही सुधा को वापस ला सकती हैं.’ यह विचार मन में आते ही तुरंत ही वह बेटे चंदन को ले कर मेरठ चल दिया.

दीदी उसे अचानक आया देख हैरान रह गईं. आश्चर्यचकित हर्ष से पूछने लगीं, ‘‘अरे, गौरव, अचानक कैसे आना हुआ. सुधा कहां है?’’ भाई को देख कर उन का चेहरा स्नेह से भीग उठा था. अभी तक उन्हें गौरव की हरकतों का पता न लग पाया था.

गौरव फीकी हंसी से सुधा के न आने की बात टाल गया. दीदी समझ गई थीं कि जरूर कुछ गड़बड़ है वरना गौरव यों चंदन को ले कर अकेला क्यों आता. दीदी ने उस समय ज्यादा कुछ न पूछा.

रात को खाने पर जीजाजी के बारबार पूछने पर आखिर गौरव फूट पड़ा, ‘‘जीजाजी, सुधा अब कभी नहीं आएगी. अपनी ही गलती से मैं ने उसे खो दिया है. मैं ने उस की कद्र नहीं की…क्या मुंह ले कर अब मैं उस के पास जाऊं,’’ गौरव ने उन से कुछ न छिपाया, सारी बातें सचसच कह दीं.

गौरव पश्चात्ताप की आग में जल रहा है, यह देख कर दीदी ने उसे समझाया, ‘‘गौरव, यह तुम तीनों की जिंदगी का सवाल है. जाने को तो मैं जा कर सुधा को ला सकती हूं लेकिन इस तरह तुम्हारा प्रायश्चित्त अधूरा रह जाएगा. सोच लो, सुधा को जो खुशी तुम्हारे जाने से होगी वह मेरे जाने से नहीं, फिर इस बात का क्या भरोसा कि उस के मातापिता सुधा को मेरे साथ भेज ही देंगे.’’

गौरव के ससुराल आने पर सुधा के मातापिता को जरा भी हैरानी न हुई, उन्हें अपनी संकोची स्वभाव की गुणवान बेटी पर बहुत मान था. उन्हें पूरा यकीन था कि उस जैसी आदर्श पत्नी की कद्र गौरव एक दिन जरूर करेगा. इसी भरोसे पर तो वे अपनी बेटी को लिवा लाए थे कि दूर रह कर ही गौरव उस के गुणों को आंक पाएगा और हुआ भी वही.

अपने कमरे में सुधा उत्सुकता से गौरव के आने का इंतजार कर रही थी. गौरव एक क्षण दरवाजे पर ठिठका. फिर उस ने आगे बढ़ कर सुधा को बांहों में भर कर उदास स्वर में पूछा, ‘‘मुझे माफ करोगी, सुधा?’’

सुधा खामोश थी लेकिन उस की आंखों से बहते आंसुओं ने गौरव के सारे अपराध क्षमा कर दिए थे.

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