परिवार और दोस्तों के साथ मनाता हूं होली : वरुण धवन

सहायक निर्देशक से करियर की शुरुआत करने वाले वरुण धवन ने फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर से अभिनय की शुरुआत की. वे एक अच्छे डांसर हैं और गोविंदा को अपना आदर्श मानते हैं. वे हर फिल्म में अपना सौ प्रतिशत कमिटमेंट देते हैं और चाहते हैं कि फिल्म सफल हो. लेकिन अगर फिल्म नहीं चलती तो उन्हें दुःख भी होता है.

उन्हें क्लब और पार्टी में अधिक जाना पसंद नहीं. वे स्कूल और कॉलेज के दोस्तों के साथ घर पर ही अधिकतर पार्टी करते हैं, जहां उन्हें बहुत सुकून मिलता है. यहां तक पहुंचने में वे अपने मां को श्रेय देते हैं जिन्होंने हमेशा उनको काम की बारीकियां समझायी है. स्वभाव से बिंदास और हंसमुख वरुण से बात करना बेहद रोचक था पेश है अंश.

आप सच्चे दोस्त किसे मानते हैं? क्या वे आपके आलोचक हैं?

मुझे हंसी आती है कि मेरा एक दोस्त मुझे बद्री कहकर ही बुलाता था और आज मैंने फिल्म भी उसी  नाम से किया है. वे सब मेरे अच्छे क्रिटिक हैं. मेरे तीन दोस्त काफी अच्छे हैं. अंकित, कविश और अमन ये मेरे बचपन के दोस्त हैं. किसी भी फिल्म के सेट पर जाने से पहले मैं उनसे थोड़ी बात कर लेता हूं. सीन्स की चर्चा भी कर लेता हूं. वे गलत और सही बताते हैं. मेरे कजिन भाई आदित्य पूरी ने भी मेरी फिल्म स्टूडेंट ऑफ द इयर को देखकर कहा था कि मेरा वॉइस वीक है. ’हम्टी शर्मा की दुल्हनियां’ में मैंने अपनी आवाज पर काफी मेहनत की थी. अभी भी फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनियां’ में किया है. मैंने अपने ‘वोकल कॉड’ को ठीक करने के लिए कई तकनीक सीखे हैं.

फिल्म में मनोरंजन के साथ मेसेज भी हो इस पर आप कितना ध्यान देते है?

ये जरुरी नहीं कि हमेशा ही मेसेज हो, ये बड़े और स्टैब्लिश कलाकार के साथ होता है कि वे डायरेक्ट मेसेज देकर फिल्में बनाते हैं, जिसमें अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि कोई मेसेज मेरे फिल्म में भी हो. ‘बद्रीनाथ की दुल्हनियां’ में महिला और पुरुष के समान अधिकार को मनोरंजक रूप में दिखाया गया है. मेरी सोच फिल्म में कैसे बदली, एक पारंपरिक समाज और परिवार से निकलकर कैसे एक व्यक्ति अलग सोच सकता है. ये देखने लायक है.

क्या रियल लाइफ में आपने कभी ऐसे हालात देखे हैं जहां महिलाओं का अनादर हो रहा हो? इस तरह की घटनाओं के जिम्मेदार आप किसे मानते हैं, परिवार समाज या धर्म?

मैंने देखा है कि शादीशुदा कपल अगर एक दूसरे को इज्जत ना करें, तो उनका रिश्ता टूट जाता है. पहले ऐसा नहीं था, सामंजस्य न बैठा पाने की परिस्थिति में भी पत्नी, पति को स्वीकार कर लेती थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वह उसे छोड़ देगी, तो उसके खुद के बच्चों का क्या होगा? वह कहां रहेगी? आजकल महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं और वह पति के बिना अकेले रह सकती हैं. आज  परिवार में महिला को इज्जत देना बहुत जरुरी है.

मैं समाज को ही सबसे अधिक जिम्मेदार मानता हूं. अभी थोड़ा परिवर्तन हुआ है, पर वह बहुत कम है. मुझे पश्चिम की ये बातें अच्छी लगती है कि ‘डोमेस्टिक वॉयलेंस’ होने पर वे तुरंत पुलिस को बुला लेते हैं. मुझे याद आता है कि 12 वर्ष की उम्र में मेरे बिल्डिंग के एक फ्लैट में पति पत्नी के झगड़े में मैंने पुलिस को बुला लिया था.

बचपन से हमेशा आपको कैसी सीख मिली है?

मुझे बचपन से महिलाओं को आदर करना सिखाया गया है. मेरी मां की 6 बहने हैं. वहां मैं हमेशा जाता था. कजिन बहनों के बीच में मैं बड़ा हुआ हूं. अभी जो खबरें आये दिन महिलाओं को लेकर अखबार की सुर्खियां बनती हैं इसे देखकर मैं बहुत हैरान होता हूं कि आखिर इनकी सोच ऐसी क्यों है? मेरी मां हमेशा मेरे पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती रहीं. वह एक डिजाइनर हैं. मैं मां से काफी क्लोज हूं. उन्होंने मुझे पूरी तरह से गाइड किया है, क्योंकि पिता हमेशा व्यस्त रहते थें. मैंने अपनी जिंदगी में एक स्ट्रॉन्ग महिला को नजदीक से देखा है. मेरे पिता ने हमेशा मेरी मां को बहुत सम्मान दिया है.

आपको फिल्मों में एंट्री मिली कामयाब भी हुए, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है?

हर फिल्म सफल हो ये जरुरी नहीं. ये सोचकर मैं काम नहीं करता. इतना जरुर है कि ब्रांड वैल्यू को देखना पड़ता है. अलिया के साथ मेरी ये तीसरी फिल्म है, लोगों ने पहले हमें पसंद किया. इस बार भी वैसा ही हो, उसे बनाये रखने के लिए प्रेशर है. फिल्म ‘बदलापुर’ से पहले लोग कहते थे कि मुझे एक्टिंग नहीं आती, मुझे प्रूव करना पड़ा. उसके बाद मसाला फिल्में भी आई और चली भी, लेकिन दर्शकों को अभी भी मुझपर विश्वास नहीं है कि मेरी फिल्म हमेशा ही अच्छी होगी, उसके लिए ही मेहनत कर रहा हूं.

इंडस्ट्री में फीमेल एक्ट्रेस को मेल एक्टर्स से कम पारिश्रमिक मिलती है, आप अगर फिल्म बनाये तो क्या आप इस बात पर विचार करेंगे?

मेरे हिसाब से अलिया भट्ट, सोनम कपूर, कंगना रनौत, अनुष्का शर्मा, श्रद्धा कपूर, प्रियंका चोपड़ा आदि ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने सोलो एक्टिंग कर फिल्म को सफल बनाया है. ऐसे में आगे चलकर वे और बेहतर काम कर पाएंगी, क्योंकि उनमें बहुत टैलेंट है. समय बदल रहा है और ये एक व्यवसाय है जहां पैसे काफी महत्व रखते है. कोई भी फिल्म अगर अच्छा व्यवसाय करेगी, तो उस कलाकार की मांग बढ़ेगी.

आप के बारें में कहा जाता है कि आप गोविंदा की नकल करते हैं, ऐसी बातों को आप कैसे लेते है?

आलोचना को हमेशा सकारात्मक रूप से लेना चाहिए. इससे आपको सुधरने का मौका मिलता है, क्योंकि इंडस्ट्री में बनावटी अधिक हैं. मैं गोविंदा की तरह बन नहीं सकता, क्योंकि वे बहुत ही बेहतर कलाकार हैं. मैं हमेशा उनके काम की सराहना करता हूं.

क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?

मुझे ‘सोल्जर’ की एक्टिंग करने की इच्छा है.

आप की रियल लाइफ दुल्हनियां कैसी होनी चाहिए?

वह आत्मनिर्भर, साहसी और समझदार होनी चाहिए.

होली कैसे मनाते हैं? इस बार क्या करना है?

होली रंगों का त्यौहार है, इसे परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मनाता हूं. मेरी फिल्म में भी होली पर गीत है. मुझे अमिताभ का ‘रंग बरसे… गीत  और अक्षय कुमार की लेट्स प्ले होली… गाना पसंद है. होली पर सूखे रंगों का अधिक प्रयोग करें, जिससे पानी कम खर्च हो.

शोले के इस सीन को शूट करने में लगे थे तीन साल

मुंबई यूनिवर्सिटी कैम्पस में निर्देशक-निर्माता रमेश सिप्पी ने सिनेमा और मनोरंजन की एक अकैडमी की शुरुआत की है. इस खास मौके पर मुख्य मेहमान बने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने मुंबई यूनिवर्सिटी और रमेश सिप्पी को बधाई दी.

अमिताभ बच्चन ने रमेश सिप्पी की काम के प्रति उनकी खासियत बताते हुए फिल्म ‘शोले’ से जुड़ा हुआ एक किस्सा बताया. अमिताभ बताते हैं, ‘फिल्म ‘शोले’ का एक सीन शूट करने में 3 साल लगे थे. यह वह सीन था जिसमें जया बच्चन शाम के समय रामगढ़ के घर के पहले मंजिल की गैलरी में लालटेन जलाने जाती हैं. इसी सीन में दूसरी तरफ मैं माउथ ऑर्गन बजा रहा हूं. उस सीन के लिए रमेश जी ने 3 साल लिए क्योंकि हर बार कुछ न कुछ हो जाता था. दरअसल उस सीन के लिए जिस प्रकार की लाइट की जरुरत थी वह नहीं मिल रही थी क्योंकि सूरज ढल जाता था. रमेश जी ने कहा जब तक मुझे वह लाइट नहीं मिलेगी मैं वह सीन शूट नहीं करूंगा. हमें उस लाइट में उस सीन को शूट करने में 3 साल लगे.’

बिग बी आगे कहते हैं, ‘आज से 50-60 साल पहले अच्छे घरों के बच्चों को फिल्मों में काम करने जी इजाजत नहीं थी. जब मैं किशोर था मेरे माता-पिता पहले खुद फिल्म देखते थे बाद में मुझे फिल्म देखने की परमिशन मिलती थी. यह बेहद खुशी की बात है कि आज सिनेमा और मनोरंजन पढ़ाई का हिस्सा बन गया है. मैं इस बात के लिए मुंबई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और रमेश सिप्पी जी को बधाई देता हूं’

अमिताभ बच्चन इन दिनों अपनी फिल्म ‘सरकार 3’ के पोस्ट प्रॉडक्शन में जुटे हैं. यह फिल्म 7 अप्रैल को रिलीज होगी. फिल्म का निर्देशन रामगोपाल वर्मा ने किया है.

बारह साल के इंतजार के बाद आई ‘पानी’

निसंदेह शेखर कपूर एक बेहतरीन फिल्म निर्देशक हैं. पर ये बात तो सभी जानते हैं कि वे बेहद धीमी गति से अपना काम करते हैं और मजे की बात ये है कि उनके द्वारा बनाई गई फिल्मों से ज्यादा तो उनके द्वारा निरस्त की गई फिल्मों की संख्या है. पिछले 12 सालों से ‘पानी’ उनका ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है.

12 वर्ष पहले उन्होंने फिल्म ‘पानी’ बनाने की बात की थी, लेकिन जाहिर तौर पर ये फिल्म अब तक नहीं बन पाई है. पहले शेखर कपूर इसे पश्चिम के कलाकारों के साथ बनाना चाहते थे, लेकिन यह फिल्म नहीं बन पाई. खबरों के अनुसार कुछ वर्ष पहले आदित्य चोपड़ा ने इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी जरूर ली थी और वे शेखर की इस महत्वाकांक्षी फिल्म में पैसा लगाने के लिए भी तैयार हो गए थे.

अब खबरें आ रही हैं कि सुशांत सिंह राजपूत को इस फिल्म का लीड रोल निभाने के लिए भी चुन लिया गया है. और आपको जानकर हैरानी होगी कि इस फिल्म ‘पानी’ के लिए अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने कई फिल्में ठुकरा दीं हैं.

अब दो वर्ष बाद भी फिल्म के बजट को लेकर आदित्य चोपड़ा और शेखर में सहमति नहीं बन पाई और दोनों अलग हो गए और इसका खामियाजा सुशांत को भुगतना पड़ा है. उनके भी दो वर्ष बेकार हो गए. अब खबरें आ रही हैं कि शेखर फिर पश्चिम की ओर मुड़े हैं. खबरों की माने तो उन्हें फाइनेंसर भी मिल गए हैं. अब दो हॉलीवुड कलाकारों के साथ शेखर यह फिल्म बनाएंगे.

यह फिल्म आने वाले समय में ‘पानी’ की कमी से होने वाली मुसीबतों को रेखांकित करती है और ऐसा संभव है कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही हो. ये बात तो सच है कि पानी की कमी दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है. शेखर कहते हैं कि 12 वर्ष पहले जब उन्होंने अपने इस आइडिया के बारे में लोगों को बताया तो सभी ने इसकी हंसी उड़ाई थी लेकिन अब सभी इससे सहमत हैं.

ये हैं गुपचुप शादी करने वाले कलाकार

अभी हाल ही में खबर आयी थी की बॉलीवुड अभिनेत्री ऋषिता भट्ट ने 4 मार्च को यूनाइटेड नेशन के सीनियर डिप्लोमेट आनंद तिवारी के साथ गुपचुप शादी कर ली है. 6 महीने डेटिंग के बाद फैमिली और क्लोज फ्रैंड्स की मौजूदगी में शादी के बंधन में बंधीं. ऋषिता के अलावा बहुत से ऐसे बॉलीवुड सैलेबस है जिन्होंने गुपचुप तरीके से शादी की.

प्रिटी जिंटा

एक्ट्रैस प्रिटी जिंटा ने ब्वॉयफ्रेंड जीन गुडइनफ से 41 साल की उम्र में शादी की थी. जीन से 10 साल बड़ी प्रिटी ने गुपचुप तरीके से उनसे शादी की थी.

रानी मुखर्जी 

रानी मुखर्जी ने 21 अप्रैल, 2014 को फिल्ममेकर आदित्य चोपड़ा से इटली में शादी की थी. 34 साल की रानी की यह पहली शादी थी. और आदित्य चोपड़ा ने रानी के साथ दूसरी शादी की थी. 

2 साल के रिलेशनशिप के बाद 49 साल की उम्र में संजय दत्त ने मान्यता से शादी की थी. सेरेमनी गोवा में 11 फरवरी, 2008 को हुई थी. यह मान्यता की दूसरी तो संजय की तीसरी शादी थी.

मनोज वाजपेयी

मनोज वाजपेयी ने 37 साल की उम्र में एक्ट्रैस नेहा से चुपचाप शादी की थी. दोनों ने शादी करने का डिसीजन इतनी जल्दी में लिया था कि परिवार वाले तक शामिल नहीं हो पाए थे.

धर्मेंद्र और हेमा मालिनी

धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने खंडाला में भाग के शादी की थी. 1980 में धर्मेंद्र ने धर्म बदलकर हेमा का हाथ थामा था. उस दौरान धर्मेंद्र की उम्र 36 साल थी.

जॉन अब्राहम

बिपाशा बसु से ब्रेकअप के बाद जॉन अब्राहम ने जनवरी 2014 में प्रिया रुंचाल से शादी का खुलासा कर सभी को चौंका दिया था. जॉन ने प्रिया रुंचाल से यूएस में  एक समारोह में शादी की थी.

श्रीदेवी

एक्ट्रैस श्रीदेवी ने साल 1996 में अपने फैन्स और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को चौंकाते हुए अपने से उम्र 8 साल बड़े बॉलीवुड प्रोड्यूसर बोनी कपूर के साथ शादी कर ली.

कुणाल कपूर 

38 साल की उम्र में कुणाल कपूर ने अमिताभ बच्चन की भतीजी नैना बच्चन से गुपचुप तरीके से सेशेल्स आइलैंड में शादी की थी. इसमें सिर्फ परिवार के लोग ही शामिल हुए थे.

किम शर्मा 

किम शर्मा ने साल 2010 में जल्दबाजी में बिजनेस टाइकून अली पुंजानी से शादी की. अली केन्या के बिजनेसमैन हैं और शादी भी वहीं हुई थी.

आफताब

जून 2014 में 36 साल के आफताब ने गर्लफ्रेंड निन दुसांज से शादी की थी. इस शादी की भी किसी को कोई खबर नहीं थी.

शाही अंदाज में हैदराबाद का सुहाना सफर

पिछले साल मई जून में हम हैदराबाद घूमने गए थे. तपते सुलगते वे दिन आंध्रप्रदेश की राजधानी में जा कर इतने मनोरम बन जाएंगे, कल्पना भी नहीं की थी. राजीव गांधी इंटरनैशनल एअरपोर्ट से बाहर आते ही हरेभरे वृक्षों और फूलों से सरोकार हुआ तो तनबदन में ताजगी भर गई. एक तरफ पुराना शहर अपने बेजोड़ स्थापत्य से हमें लुभा रहा था, वहीं दूसरी ओर हाईटैक सिटी दिग्भ्रमित कर रही थी.

हैदराबाद 500 साल पहले बसा था. आज यह आंध्रप्रदेश की राजधानी है. मूसी नदी के किनारे बसे हैदराबाद और सिकंदराबाद को ट्विन सिटीज के नाम से जाना जाता है. यहां रेल मार्ग, सड़क मार्ग व हवाई मार्ग से जाया जा सकता है. यह तीनों रूट से वैलकनैक्टेड है.

गोलकुंडा फोर्ट

पहला कदम रखा हम ने गोलकुंडा फोर्ट पर. हैदराबाद के इस किले को कुतुबशाही शासकों ने बनवाया था. हम ने प्रवेश किया मुख्य दरवाजे से. इस का नाम फतेह दरवाजा है. यह इतना बड़ा है कि हाथी पर बैठा हुआ आदमी आराम से निकल जाए. ऊंची दीवारों और कई दरवाजों वाला यह किला अनूठा है. किले में 87 परकोटे हैं जिन पर खड़े हो कर सुरक्षाप्रहरी पहरा देते थे.

गोलकुंडा की दास्तान हो और उस में कोहिनूर की चर्चा न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि विश्वविख्यात कोहिनूर हीरे का असली घर गोलकुंडा किला है. यह दुनिया का सब से दुर्लभ और सब से बेशकीमती हीरा है, जो अब ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा हुआ है.

चारमीनार

हैदराबाद का नाम सुनते ही चारमीनार जेहन में आती है. ढलती शाम में चारमीनार का सौंदर्य देखते ही बनता है. हैदराबाद के व्यस्ततम बाजार लाड बाजार के बीचो बीच खड़ी यह इमारत कुतुबशाह द्वारा 1591 में बनवाई गई थी. चारमीनार के एक कोने पर स्थित देवी का मंदिर कौमी एकता को दर्शाता है.

लाड बाजार

चारमीनार के आसपास बहुत सारी दुकानों से बना है यह बाजार. यहां की रौनक सुबहशाम देखते ही बनती है. तंग गलियों में दुकानों और दुकानों में टूरिस्ट व लोकलाइट्स. समूचा बाजार नायाब हैदराबादी मोतियों और चूडि़यों से अटा पड़ा है. जम कर होने वाले मोलभाव में कभी सैलानी बाजी मार ले जाते हैं तो कभी दुकानदार.

हुसैन सागर लेक

हैदराबाद जिस तालाब के किनारे बसा हुआ है वह है हुसैन सागर लेक. हजरत हुसैन शाह वली ने 1562 में मूसी नदी की सहायक नदी पर इसे बनवाया था. तालाब के बीचोबीच एक पत्थर से बनी विशालकाय गौतम बुद्ध की मूर्ति ध्यान खींचती है. हुसैन सागर में बोटिंग, वाटर स्पोर्ट्स होते हैं. यहां आसपास के गार्डन में बच्चों के लिए झूले, टौयट्रेन, म्यूजिकल फाउंटेन आदि चीजें देखने लायक हैं. शाम को यहां पर रोज लाइट एवं साउंड शो होता है जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.

बिड़ला मंदिर

हुसैन सागर तालाब के दक्षिणी कोने में स्थित काला पहाड़ के कोने पर बिड़ला मंदिर बना है. 1976 में बिड़ला ग्रुप द्वारा इसे बनवाया गया था. मंदिर का स्थापत्य दक्षिण भारतीय है.

सलारजंग संग्रहालय

मूसा नदी के उत्तरी तट पर भारत का तीसरा सब से बड़ा म्यूजियम सलारजंग संग्रहालय है. यह लाजवाब है. एक पूरा दिन भी इसे देखने के लिए कम पड़ता है.

जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1951 में उद्घाटित यह संग्रहालय अपनी नायाब और अनमोल चीजों के लिए प्रसिद्ध है. अगर आप हैदराबाद गए और आप ने यह म्यूजियम नहीं देखा तो आप बहुत कुछ खोएंगे. सेमी सरक्युलर शेप में बने इस भवन में 38 गैलरियां हैं. इस दोमंजिले संग्रहालय के हर कमरे पर नंबर लिखा है. एकएक कर के आप हर कमरे का अवलोकन कर सकते हैं. संग्रहालय को बड़े प्यार और जतन से नवाब यूसुफ अली खान ने बनवाया था.

नवाब का संग्रहालय

सलारजंग के पास ही है नवाब का संग्रहालय. यह संग्रहालय सलारजंग से छोटा होते हुए भी आप को बांधे रखेगा. सलारजंग से यहां तक आने के लिए आप रिकशा या आटो ले सकते हैं. पुरानी हवेली में बने इस म्यूजियम में आखिरी निजाम की व्यक्तिगत चीजों का अच्छा संकलन है. 1930 की बनी रौल्स रौयस, मार्क जगुआर कारों को देख कर आप रोमांचित हो उठेंगे. निजाम का हीरों व सोने का कलैक्शन आंखें चुंधिया देता है.

एक बड़े हौल में रखी उन की पोशाकें देखते ही बनती हैं. प्राचीन वैभव, रईसी और शान देख कर आंखें विस्मित सी हो जाती हैं. कुछ देर के लिए बाहरी दुनिया से आप कट कर इतिहास की बांहों में समा जाते हैं.

चौमहला पैलेस

नवाब के महल से थोड़ी दूरी पर ही चौमहला पैलेस स्थित है. लगभग 200 वर्ष पूर्व बना चौमहला पैलेस 4 महलों से मिल कर बना है. इन में आफताब महल सब से आलीशान है. यहां का स्थापत्य व सौंदर्य अनूठा है.

नेहरू जूलौजिकल पार्क

यों तो हैदराबाद में कई पार्क हैं लेकिन नेहरू जूलौजिकल पार्क का जवाब नहीं. 1,300 एकड़ क्षेत्र में फैला यह पार्क पशुपक्षियों की असंख्य प्रजातियों से भरा है. लौयन सफारी पार्क, नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम और बच्चों की टे्रन इस जूलौजिकल पार्क की दूसरी विशेषताएं हैं. 1963 में खुला यह पार्क अपनी बोट राइड और माइग्रेटरी बर्ड्स के लिए भी प्रसिद्ध है.

हाईटैक सिटी

हैदराबाद के प्राचीन वैभव को चुनौती देता इस का हाईटैक सिटी का हिस्सा गगनचुंबी इमारतों का है. आधुनिक हैदराबाद को देख कर ऐसा लगता ही नहीं कि आप भारत में हैं. पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के द्वारा स्थापित शहर के इस हिस्से में आईटी कंपनियों के औफिस हैं. कुछ पार्क व रैस्टोरैंट भी हैं. आधुनिकता के इस सम्मिश्रण को देख कर आंखें चुंधिया जाती हैं.

क्या खरीदें : हैदराबाद प्रसिद्ध है अपने मोतियों के लिए. जांचनेपरखने का तरीका भी दुकानदार ही बताते हैं. हैंडीक्राफ्ट आइटमों, मोती और कीमती रत्नों के जेवर, यहां के राईस पर्ल और बसरा पर्ल सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं. कांच की हैदराबादी चूडि़यां मन मोह लेती हैं. यहां की कढ़ाई की गई हैंडीक्राफ्ट आप लोगों को तोहफे में दे सकते हैं.

भाषा : अधिकांश लोग स्थानीय भाषाओं के अतिरिक्त हिंदी व अंगरेजी समझते व बोलते हैं, इसलिए भाषा की कोई खास दिक्कत नहीं है.

इतिहास : हैदराबाद का इतिहास कुतुबशाही कुल की स्थापना से शुरू हुआ. 1518 में बहमनी राज्य से कुली कुतुबशाह ने सत्ता छीन कर गोलकुंडा का राज्य बसाया. कालांतर में यहां का वैभव देख कर औरंगजेब ने आक्रमण किया और कब्जा कर लिया. औरंगजेब के बाद आसफ शाह प्रथम ने स्वयं को निजाम घोषित किया और फिर हैदराबाद उन्नति करता गया.

शहर में आनेजाने के लिए : हैदराबाद के भ्रमण के लिए आप टैंपो, आटो, साइकिल रिकशा, सिटी बस और कैब का इस्तेमाल कर सकते हैं.

..तो त्वचा पर नहीं होगा रंगों का असर

होली की मस्ती और रंगों को देखकर कोई भी खुद को होली खेलने से रोक नहीं पाता. लेकिन होली के बाद बाल रुखे हो जाते हैं, झड़ने लगते हैं, स्किन ड्राई हो जाती है और आंखों में जलन होने लगती है. आज हम आपको बता रहे हैं कि होली के बाद इन सबसे बचने के लिए क्या करें.

– होली खेलने के बाद त्वचा और बालों पर जमे रंगों को हटाना काफी मुश्किल कार्य है. उसके लिए सबसे पहले चेहरे को बार-बार साफ पानी से धोएं और इसके बाद क्लेन्जिंग क्रीम या लोशन लगाएं. कुछ समय बाद इसे गीले कॉटन से साफ करें.

– आंखों के आसपास की स्किन को हल्के से साफ करें. घरेलू क्लेन्जर बनाने के लिए आधा कप ठंडे दूध में तिल, जैतून, सूर्यमुखी या कोई भी वनस्पति तेल मिला लीजिए. कॉटन वूल पैड को इस मिश्रण में डूबोकर त्वचा को साफ करने के लिए उपयोग में लाएं. शरीर से रसायनिक रंगों को हटाने में तिल के तेल की मालिश महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. इससे न केवल रसायनिक रंग हट जाएंगे बल्कि त्वचा को अतिरिक्त सुरक्षा भी मिलेगी.

– नहाते समय शरीर को लूफ या कपड़े की मदद से स्क्रब कीजिए और नहाने के तत्काल बाद शरीर और चेहरे पर मॉइस्चराइजर का उपयोग कीजिए. इससे शरीर में नमी बनाए रखने में मदद मिलेगी.

– यदि त्वचा में खुजली है तो पानी के मग में दो चम्मच सिरका मिलाकर उसे त्वचा पर उपयोग करें. इसके बाद भी त्वचा में खुजली जारी रहती है या त्वचा पर लाल चकत्ते या दाने उभर आते हैं, तो आपकी त्वचा को रंगों से एलर्जी हो गई तथा इसके लिए आपको डॉक्टर से आवश्यक सलाह लेनी चाहिए.

– बालों को साफ करने के लिए सबसे पहले बाल को बार-बार ताजे पानी से धोते रहिए. इसके बाद बालों को हल्के हर्बल शैंपू से धोएं और उंगलियों की मदद से शैंपू को पूरे सिर पर फैला लें. अब पानी से अच्छी तरह से धोएं.

– बालों की अंतिम धुलाई के लिए बीयर को अंतिम हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. बीयर में नींबू का जूस मिलाकर शैंपू के बाद सिर पर उड़ेल लें. इसे कुछ मिनट बालों पर लगा रहने के बाद साफ पानी से धो डालें.

– होली के अगले दिन दो चम्मच शहद को आधा कप दही में मिलाकर थोड़ी सी हल्दी मिलाएं और इस मिश्रण को चेहरे, बाजू और सभी खुले अंगों पर लगा लें. इसे 20 मिनट लगा रहने दें तथा बाद में साफ पानी से धो डालें. इससे त्वचा से कालापन हट जाएगा और त्वचा मुलायम हो जाएगी.

– होली के अगले दिन स्किन और बालों को पोषक तत्वों की जरूरत होती है. एक चम्मच शुद्ध नारियल तेल में एक चम्मच अरंडी का तेल मिलाकर इसे गर्म करके अपने बालों पर लगा लीजिए. एक तौलिए को गर्म पानी में भिगोंकर पानी को निचोड़ दीजिए तथा तौलिए को सिर पर लपेट लीजिए और इसे 5 मिनट तक पगड़ी की तरह सिर पर बंधा रहने दीजिए. इस प्रक्रिया को 4-5 बार दोहराइए. इससे स्काल्प पर तेल को जमने में मदद मिलती है. एक घंटे बाद बालों को साफ पानी से धो डालिए.

इस शादी सीजन इन परिधानों को आजमाइये

जब आपके आसपास शादी सीजन चल रहा हो और बात पहनावे की ना हो, ऐसा नहीं हो सकता. एक शादी में कई कार्यक्रम होते हैं जैसे मेहंदी, संगीत, रिसेप्शन, फेरे आदि-आदि. अब आपको उतने ही परिधानों की आवश्यकता होती है, जितने फंक्शन्स होंते हैं. तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शादी के अलग-अलग फंक्शन्स में पहन सकने वाली अलग-अलग तरह की स्टाइलिश ड्रेसेज.

1. संगीत पर : अनारकली लहंगा या सूट पहनें

संगीत से ही शादी के सारे कार्यक्रमों की शुरुआत हो जाती है. इस दिन आपको आपके नाचने व गाने में जोर लगाने के साथ-साथ नहीं अपनी पोशाक से भी यह दिखाना होता है कि आप किसी से कम नहीं हैं. तो संगीत के मौके पर पहनने के लिए आप कोई खूबसूरत सा अनारकली लहंगा या सूट चुन सकती हैं. उस पर अगर कढ़ाई या फीते का काम किया गया हो तो और भी अच्छी बात है.

2. मेहंदी पर : स्टाइलिश सलवार कमीज

मेहंदी का फंक्शन खास औरतों के लिए होता है और इस दिन ज्यादा धूम-धड़ाका भी नहीं होता है. महिलाएं अपनी हथेलियों पर मेहंदी लगाने में व्यस्त होती हैं. यदि आप इस दिन कोई भारी भरकम सी पोशाक पहनेंगी तो आपकी मेहंदी का डिजाइन भी खराब हो सकता है और आप असहज भी महसूस कर सकती हैं. इसलिए आपको इस दिन कोई सुंदर सा और कम वजनदार सलवार कमीज सूट पहनना चाहिए.

3. शादी के दिन : ट्रेडिशनल ड्रेस

वैसे तो आप हमेशा अपनी पसंद के अनुसार पहनावे का चयन कर सकती हैं, लेकिन शादियों में सबसे ज्यादा चलन तो लहंगे या अन्य ट्रेडिशनल ड्रेसेज का होता है. आपको ये बात भी याद रखनी चाहिए कि आपके लहंगे का रंग ज्यादा भड़कीला ना हो. आपकी पोशाक हल्के रंग की होनी चाहिए.

4. रिसेप्शन पर : गाउन

आज के समय पर हमारे कई पारंपरिक लिबास बड़े ही क्लासी व स्टाइलिश हो चुके हैं. पहले महिलाओं के पास साड़ी या लहंगे के बीच चुनने का विकल्प हुआ करता था, पर अब उनके लिए साड़ी गाउन व इंडो-वेस्टर्न शैली के कई कपड़े बाजार में उपलब्ध होते जा रहे हैं. ऐसी पोशाकों से आप अपना एक अलग स्टाइल स्टेटमेंट बना सकती हैं.

कहानी : सेठजी की पत्रिका

मैं अपनी खटिया पर बैठा सुबह की धूप का आनंद ले रहा था और अपने हाथों से पूरे शरीर पर सरसों का तेल मल रहा था.

पिछले 1 माह से कोई काम था नहीं और निकम्मा शरीर कभी भी दर्द करने लगता. धूप लेने के लिए बैठे अभी 1 घंटा भी नहीं बीता था कि अचानक हमारे नाम को खोजता एक कनखजूरेनुमा व्यक्ति आ धमका. उस ने हम से पूछा,

‘‘श्री कबरबिज्जू जी का मकान यही है?’’

हम उघाड़े बदन किसी कबरबिज्जू की तरह ही दिखाई दे रहे थे. हम ने अपनी फटी लुंगी से शरीर को ढंका और उस की तरफ नजर कर के पूछा, ‘‘कहिए, क्या काम है?’’

‘‘सेठजी ने बुलाया है.’’

‘‘कौन से सेठजी ने?’’ हम ने सवाल किया, क्योंकि हमारा जीवन सेठों के इर्दगिर्द ही गुजरा था. पिछले महीने हम एक सेठजी के यहां से बड़ी बेइज्जती के साथ निकाले गए थे और आज 1 माह बाद फिर किस सेठजी ने पीले चावल ले कर इस कनखजूरे को भेज दिया.

उस ने पूरे अदबकायदे से हमें बताया, ‘‘सेठ सेवडिया लालजी ने याद किया है, लेने के लिए गाड़ी भी भेजी है.’’

हम ने सिर खुजला कर कहा, ‘‘हमें तैयार होने में 1 घंटे का समय लगेगा.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं इंतजार कर लेता हूं.’’

मेरे लिए यह सब किसी सुखद सपने जैसा था. उसे बैठने के लिए हम ने एक टूटी कुरसी दे दी और खुद तैयार होने चल पड़े.

हमारा दिमाग बड़ी तेजी से चलने लगा कि आखिर सेठजी ने हमें क्यों बुलवाया है? सजधज कर हम जब बाहर निकले तब तक हमारी घरवाली ने घर आए मेहमान को चाय और 3 दिन पुरानी बासी रोटी का चूरमा बना कर खिला दिया था और पता भी लगा लिया कि सेठजी ने क्यों बुलाया है? घरवाली ने ही हमें बताया कि सेठजी एक साहित्यिक पत्रिका निकालना चाहते हैं, उसी का संपादक या सलाहकार बनाने के लिए बुलाया है.

हम अपनी घरवाली की जासूसी से बेहद खुश हुए और खुशीखुशी सेठजी की पुरानी खटारा गाड़ी में बैठने को घर से निकल पड़े. गाड़ी ने ढेर सा धुआं निकाल कर वातावरण को प्रदूषित किया तो जरूर, लेकिन हमारे घर से गाड़ी दूर खड़ी थी इसलिए हमें बहुत खुशी हो रही थी कि आज आसपास के घर वाले लोग परेशान होंगे. किसी को खुशी दे कर खुशी मिलती है तो किसी को दुख दे कर भी खुशी मिलती है. हमें सेठों ने क्या दिया? हमेशा अपमान. सो, हम भी दूसरों को दुखी देख कर बहुत खुश थे.

गाड़ी चली जा रही थी और अतीत किसी सिनेमा की तरह हमारी आंखों के सामने चल रहा था. 1 महीने पहले ही हमारे दुश्मनों ने हमारी शिकायतें कर के हमें निकलवा दिया था. बात केवल इतनी भर थी कि हम ने शहर के दर्जनभर लेखकों, कवियों और कवयित्रियों का एक गुट बना लिया था. हम प्रत्येक रविवार उन की ही रचनाएं छापते थे. इन लेखकों से हम कुछ रिश्वत नहीं लेते थे, केवल एक अतिरिक्त समझौता यह होता था कि वे माह में 1 दिन होटल में भोजन करवाएंगे. छपास के भूखे ये लेखक हमें जबरदस्ती होटल ले जाते थे.

दूसरे क्रम में वे महिला लेखिकाएं और कवयित्रियां थीं जो मुझे ‘भाईसाहब’ पुकार कर मेरे जीजाजी से मेरी भेंट करवाती थीं. अपने हाथों से बनी रसोई से मुझे तृप्त करती थीं. इस तरह महीने में तीसों दिन किसी न किसी का निमंत्रण होता था. यह बात हमारे सेठजी को किसी ने पहुंचा दी थी. सो, उन के केबिन में हमारा बुलावा आ गया. हम पहुंचे तो 3 लौंडेनुमा लड़के बैठे थे. हम ने आदरपूर्वक नमस्कार किया, तब सेठजी ने तिरछी नजर हम पर डालते हुए कहा, ‘क्या कहानियों के लिए अपने समाचारपत्र में जगह नहीं है?’

‘क्यों नहीं है श्रीमान, है और जरूर है.’

‘ये मेरे साले बैठे हैं, इन की रचनाएं तब वापस क्यों कर दीं?’

‘श्रीमान, जैसे एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने कविताएं लेने से ही इनकार कर दिया, क्योंकि 2050 तक के लिए कविताएं उस के पास हैं, उसी तरह हमारे पास 2047 तक के लिए कथाएं मौजूद हैं,’ हम ने सफाई दी, ‘यदि उस पर भी रचना अच्छी हो तो हम प्रतीक्षा नहीं करते, उसे छाप देते हैं.’

सेठजी थोड़े झल्ला गए, कहने लगे, ‘ये देखो, इन की रचनाएं तुम ने वापस कर दीं, बिना लिफाफे खोले.’

‘श्रीमान, कविताएं होंगी?’

‘तुम्हें कैसे मालूम कि अंदर कविताएं हैं?’

‘श्रीमान, लिफाफे पर प्रेषक के रूप में कवि या वरिष्ठ कवि लिखा होता है,’ हम ने थूक निगलते हुए कहा.

‘भविष्य में ध्यान रखना.’

‘जी, श्रीमान.’

‘और हर दिन होटल में भोजन करने जाते हो, यह मामला कुछ समझ नहीं आया?’

हम समझ गए कि हम पर जासूसी खींच कर हुई है. हम ने सफाई देते हुए कहा, ‘श्रीमानजी, जब हमारे मित्र व जीजाजी जैसे लोग भोजन के लिए आग्रह करते हों, तब भला कैसे मना किया जा सकता है?’

‘ठीक है, ठीक है. बाद में बातें करेंगे. हां, हमारे साले की ये कविताएं, कथाएं जो भी हैं, ले जाओ. ठीकठाक कर के छाप देना.’

हम मन मसोस कर लिफाफा ले आए. रचना क्या थी, कचरा थी. हम ने उस में संशोधन कर के उसे छाप दिया.

 

अगले दिन वह 1 दर्जन कविताएं और दे गया. इन कविताओं में नयापन था. हमें पसंद भी आईं, लेकिन तभी दिमाग का लाल बल्ब जल गया और हम ने रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं की पुस्तकें निकालीं. ये तो पूरी की पूरी नकल थीं. रचना और पुस्तक ले कर सेठजी के कमरे में गया. सेठजी ने पुस्तक देखी, रचना देखी और हम पर गुर्रा कर कहने लगे, ‘इसे आधार बना कर सुधार नहीं सकते थे? तुम किसी लायक नहीं हो. तुम्हारी बहुत शिकायतें हैं. अपना हिसाब लो और जाओ.’

हमें बहुत अपमानित होना पड़ा. थोड़ी देर में यह खबर दूरदूर फैल गई.

उस रोज जिन के घर खाना खाने जाना था उन का फोन आया. कहने लगे कि ‘उन्हें बाहर जाना है.’

हम दिनभर भूखेप्यासे घूमे और अपने घर में कैद हो गए. किसी ने भी नहीं पूछा. यह दुनिया बड़ी जालिम है.

हमारी सोच पर ब्रेक तब लगा जब हम सेठजी की कोठी पर उतरे. सेठजी ने विनम्रता से हमारा स्वागत किया. हमारे अनुभव का लाभ लेने की बात कही और हमें संपादक के पद का औफर दिया. प्रधान संपादक वे रहेंगे यह भी तय हो गया. वेतन भी तय हो गया. सेठजी ने हम से प्रश्न किया, ‘‘एकदम टौप क्लास की साहित्यिक पत्रिका की श्रेणी में कैसे आएंगे, इसे बताएं.’’

हम ने अपनी नाक पर चश्मा ठीक किया और कहा, ‘‘रचनाकारों की सब रचनाएं लौटाना प्रारंभ कर दें व प्रत्येक प्रकाशित रचना पर 5 हजार पारिश्रमिक दिए जाने की घोषणा कर दें.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो, भाया? ऐसे में तो हम बरबाद हो जाएंगे.’’

‘‘बिलकुल नहीं होंगे. जितनी रचनाएं जो पत्रिकाएं वापस करती हैं वे उतनी ही श्रेष्ठ होती हैं. ऐसे में लेखकों, कवियों को उन की औकात भी मालूम रहती है,’’ हम ने सलाह देते हुए कहा.

‘‘भाया, फिर पत्रिका में छापेंगे क्या?’’

‘‘उस का भी इंतजाम है.’’

‘‘क्या है?’’

‘‘जो मरखप गए, ऐसे रचनाकारों की रचनाएं छापेंगे. न रुपया देना होगा न ही पत्रिका का स्तर गिरेगा. जो वरिष्ठ मर गए उन की रचना पर किसी प्रकार की आलोचना भी नहीं होगी और हमारी पत्रिका प्रतिष्ठित पत्रिका कहलाने लगेगी,’’ हम ने पूरा ज्ञान उन के खाली दिमाग में उड़ेलते हुए कहा. वे भी खुश हुए और अगले दिन से जौइन करने का प्रस्ताव रखा.

आप को जान कर खुशी होगी कि इस वर्ष की श्रेष्ठ पत्रिका का सम्मान हमारे सेठजी की पत्रिका को मिलने वाला है जिसे लेने मैं नहीं सेठजी जाएंगे. नींव का पत्थर जमीन के भीतर होता है, कभी दिखाई देता है क्या?

योग के नाम पर भोग

गोवा में पढ़ी-लिखी, समझदार 2 विदेशी औरतों के साथ एक गैरब्राह्मण योग गुरु का बलात्कार करना कोई नई बात नहीं. तांत्रिक अनुष्ठानों के बहाने सदियों से धर्म के नाम पर औरतों को बहकाया जाता रहा है कि उन का शरीर तो क्षणभंगुर है. काया के ऊपर पहुंचने और चरम आनंद को प्राप्त करने के लिए तांत्रिक प्रक्रियाएं ईश्वर प्रदत्त हैं और जिस गुरु के पास यह ज्ञान है उसे पूजो, पैसा दो भले ही वह शरीर से खिलवाड़ करे.

अब इस प्रकार स्वयंभू गुरु औनलाइन अवतरित होने लगे हैं और एक अमेरिकन व एक कैनेडियन औरत ऐसे ही एक गुरु 38 वर्षीय प्रतीक कुमार अग्रवाल के झांसे में आ गईं और 7 दिन के ट्रेनिंग कोर्स के लिए आ पहुंचीं.

योग का प्रचार इस तरह हो रहा है कि देशविदेश में इसे हर रोग के इलाज के लिए बता दिया जाता है और भेड़चाल में हजारों लोग योग गुरुओं के चरणों में बिछे चले जाते हैं.

इन औरतों को भी किसी तरह की मानसिक परेशानियां रही होंगी और फिर से वे भी योग के नाम पर आकर्षित हो धूर्त के हाथों में पड़ गई होंगी. इन्होंने बलात्कार का आरोप तो लगाया ही है इन का पैसा भी गया होगा, यह भी पक्की बात है.

पुलिस ऐसे मामलों में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि प्रमुखतया शिकार स्वयं शिकारी के फंदे में पड़े थे. उन के साथ जोरजबरदस्ती की गई थी, यह साबित करना कठिन होगा. बलात्कार में शारीरिक भय दिखाया गया था, यह औरतों के लिए साबित करना मुश्किल होगा. सफाई में इस तरह के संबंध से इनकार करा जाए या उसे सहमति से बने संबंध कहा जाए तो गलत ठहराना काफी कठिन होगा.

योग क्रियाओं के नाम पर हमारे देश में ही नहीं दुनिया भर में न जाने क्याक्या किया जा रहा है. इसे रोगों के उपचार का पक्का तरीका साबित करा जा चुका है और हाल यह है कि अच्छेभले अस्पताल भी योग का लेबल चिपका कर मनचाहा पैसा पाने लगे हैं.

इस शातिर ने जो किया वह तो मामूली सा लगता है. जो तेज होते हैं वे तो योग के नाम पर मजे में भोग करते हैं.

फिल्म रिव्यू : बद्रीनाथ की दुल्हनिया

लगभग तीन साल बाद फिल्म ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ फ्रेंचाइजी की नई फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ लेकर आए हैं निर्माता करण जोहर और निर्देशक शशांक खेतान. यदि आप दिमाग या तर्क की कसौटी पर बिना कसे फिल्म देखेंगें तो मनोरंजन पा सकते है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है झांसी के मशहूर साहूकार अंबरनाथ (रितुराज सिंह) से जिनके दो बेटे हैं. आलोक (यष सिन्हा) व बद्रीनाथ (वरुण धवन). अंबरनाथ दिल के मरीज हैं. ऑक्सीजन का सिलेंडर हमेशा अपने पास रखते हैं. उन्होंने बड़े बेटे आलोक की शादी अपनी मर्जी से पढ़ी लिखी लड़की उर्मिला (श्वेता बसु प्रसाद) से कराई थी. बदले में उन्हें उर्मिला के पिता ने गाड़ियों के दो शो रूम दहेज में दिए थे. बेचारे आलोक को मजबूरन अपने प्यार साक्षी को भुलाना पड़ा. अब बद्री की शादी के लिए लड़की देखी जा रही है. बद्री का काम है पिता ने जिन्हें कर्ज दिया है, उनसे वसूली करते रहना.

उधर बद्री के दोस्त सोमदेव (साहिल वैद्य) ने ‘चुटकी शादी डॉट काम’ शुरू की है. एक दिन प्रकाष से जब बद्री कर्ज का पैसा लेने जाता है, तो पता चलता है कि उसकी शादी तय हो गयी. तब बद्री व उसका दोस्त सोम भी प्रकाष की शादी में बराती बनकर कोटा जाते हैं. जहां उनकी मुलाकात त्रिवेदी परिवार की दो बेटियों कृतिका और वैदेही (आलिया भट्ट) से होती है. कृतिका ने रितिक रोशन जैसा पति पाने के सपने के चलते तीस लड़के ठुकराए हैं.

उधर वैदेही का प्रेमी सागर उसके साथ सैलून खोलने के नाम पर उनके पिता के पी एफ के साढ़े बारह लाख रूपए लेकर चंपट हो चुका है. अब वैदेही का सपना जिंदगी में कुछ बनना है. वह एयर होस्टेस बनकर हवा में उड़ना चाहती है. पहली मुलाकात में ही दसवीं पास बद्री, वैदेही को दिल दे बैठता है. पर वैदेही साफ साफ कह देती है कि वह उससे शादी नहीं करना चाहती.

अपनी शादी वैदही से हो जाए, इसके लिए बद्री अपने भाई आलोक की मदद मांगता है. भाई व उसकी भाभी मदद करने को तैयार है. पता चलता है कि आलोक की पत्नी उर्मिला की सलाह के चलते उनका व्यापार काफी बढ़ चुका है. सोमदेव, वैदेही का रिश्ता लेकर अंबरनाथ के पास पहुंचता है. ब्रदी के माता पिता को वैदेही पसंद आ जाती है. पर मसला दहेज का है. सोमदेव कहता है कि त्रिवेदी सब कुछ संभाल लेंगे. इधर बद्री बार बार सोमदेव के साथ कोटा जाता रहता है. वैदेही के माता पिता तो सोमदेव की बातों से प्रभावित हैं. मगर वैदेही साफ साफ बद्री से कहती है कि वह उससे शादी नहीं करेगी. पर पिता के गम को देखकर वैदही, बद्री को बुलाकर कहती है कि पहले उसकी बड़ी बहन कृतिका की शादी करायी जाए. अब सोमदेव व बद्री प्रयास शुरू करते हैं.

कृतिका देश विदेश में माता की चैकी करने वाले भूषण के नाम पर समझौता कर लेती है. पर भूषण के पिता को दहेज में लंबी रकम चाहिए. बद्री अपने भाई व भाभी की मदद से कृतिका की शादी में दहेज की आधी रकम खुद देता है और अपने पिता की मांग को भी पूरी करने की योजना बना लेता है. तय होता है कि एक ही मंडप में एक ही दिन कृतिका की भूषण और वैदेही की बद्री से शादी होगी. पर जयमाल के वक्त पता चलता है कि वैदेही भाग गयी है. एक माह बाद पता चलता है कि वैदेही मुंबई में एयर होस्टेस की ट्रेनिंग ले रही है. तो बद्री के पिता बद्री से कहते हैं कि वह मुंबई जाकर वैदही को पकड़कर लाए.

फिर वह उसे बीच चैराहे पर अपने अपमान की सजा उसे देंगे. बद्री जाने लगता है तो आलोक व उसकी भाभी उसे समझाते हैं. जब बद्री व उसका मित्र सोमदेव मुंबई पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि वैदेही तो सिंगापुर गयी. बद्री व सेामदेव सिंगापुर पहुंचते हैं. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. इस बीच वैदेही व बद्री को फिर से अहसास होता है कि वह दोनों प्यार करते हैं. पर वैदेही के सपनों को पूरा होने से रोकने की बजाय बद्री खुद बिना बताए सोमदेव के साथ वापस झांसी पहुंच जाता है और पिता से कह देता है कि वह वैदही को नहीं ढूढ़ पाए.

अब बद्री के पिता अंबरनाथ एक पूजा का आयोजन करते हैं, जिससे आलोक की पत्नी बेटे को जन्म दे. उसी पूजा में वह बद्री की शादी का ऐलान करने वाले हैं. इस मौके पर वैदही के माता पिता को अपमानित करने के मकसद से बुलाया गया है. बद्री शराब पीकर सारी भड़ास निकाल देता है और पिता को गलत ठहराते हुए कहता है कि वह वैदेही को नहीं भूल सकता. तभी वहां वैदेही पहुंच जाती है. वैदेही शादी के लिए हां कह देती है. फिर वैदेही दो साल के लिए सिंगापुर चली जाती है. उसके बाद वापस आकर झांसी में ही एयर होस्टेस ट्रेनिंग स्कूल खोलती है.

यूं तो फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है. कहानी के स्तर पर यह फिल्म कई फिल्मों की कहानियों का मुरब्बा है. फिल्म में सदियों से चली आ रही कुरीति दहेज प्रथा पर ध्यान खींचा गया है. इस पर हजारों फिल्में बन चुकी हैं. कानून बन चुके हैं. पर समस्या ज्यों का त्यों बरकरार है. लड़के व लड़कियों के बीच हर परिवार व समाज में जो अंतर किया जाता है, उस पर भी यह फिल्म कुछ संदेश देती है. पर इस मुद्दे को भी कई फिल्मों में उठाया जा चुका है. फिल्म के लेखक व निर्देशक शशांक खेतान इन मुद्दो को प्रभावशाली ढंग से फिल्म में नहीं उठा सके.

दर्शकों के मनोरंजन का ख्याल रखते हुए रोमांस, हल्के फुल्के हास्य के क्षण, मस्ती आदि भी है, मगर यह दृश्य फिल्म को मजबूती प्रदान करने की बजाय कमजोर बनाते हैं. मगर कहानी में कई जगह भटकाव भी है. फिल्म की लंबाई कम की जानी चाहिए थी. होली का त्योहार आ गया है, इसलिए फिल्म के अंत में जबरन होली का एक गाना ठूंसा गया है. कुछ दृश्य अति बनावटी लगते हैं. सिंगापुर के ज्यादातर दृश्य बनावटी लगते हैं.

इंटरवल के बाद की फिल्म देखते समय लगता है कि यह फिल्म सिंगापुर टूरिज्म के प्रचार के लिए बनायी गयी है. फिल्म के कई घटनाक्रम तर्क या दिमाग की कसौटी पर खर उतरने की बजाय बचकाने दिमाग की उपज लगते हैं. यानी कि फिल्म के कुछ हिस्से उन हास्य फिल्मों की तरह हैं, जिनके निर्देशक कहते हैं कि उनकी हास्य फिल्म देखने के लिए दिमाग घर पर रखकर आएं. फिल्म का क्लायमेक्स तो बहुत घटिया है. बद्री की भड़ास के बाद उसके पिता की प्रतिक्रिया को न दिखाकर फिल्म का संदेश दर्शक तक पहुंचता ही नहीं है. लगता है कि निर्देशक शायद समझ ही नही पाया कि उसे फिल्म का अंत किस तरह से करना है.

फिल्म में छोटे शहरों की भाषा, रहन सहन आदि को भी यथार्थ रूप में पेश करने का सराहनीय प्रयास है. निर्देशक के तौर पर शशांक खेतान ने सराहनीय काम किया है. कैमरामैन ने भी झांसी व कोटा को उनकी खूबसूरती के साथ अपने कैमरे में कैद किया है. गीत संगीत ठीक ठाक है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो आलिया भट्ट ने अपने किरदार के साथ भरपूर न्याय किया है. मगर वरुण धवन कुछ दृश्यों में मात खा गए. शराबी के रूप में वह एकदम असफल रहे. पर फिल्म में दोनों की केमिस्ट्री जबरदस्त है. दर्शक इनकी जोड़ी का लुत्फ उठाने के लिए यह फिल्म देख सकते हैं.

दो घंटे 19 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ का निर्माण ‘धर्मा प्रोडक्शन’ के बैनर तले हीरू जोहर, करण जोहर व अपूर्वा मेहता ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक शशांक खेतान, कैमरामैन नेहा परती मटियानी, संगीतकार अमाल मलिक, तनिष्क बागची व अखिल सचदेव तथा कलाकार हैं- वरुण धवन, आलिया भट्ट व अन्य.

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