Health Tips : क्या आप का बच्चा है जरूरत से ज्यादा ऐक्टिव, तो इस बीमारी का शिकार तो नहीं?

Health Tips : अकसर कई पेरैंट्स या टीचर बच्चे को मजाकमजाक में ही बोल देते हैं कि तुम थकते नहीं हो, तुम्हारे पैरों में क्या हिरन की हड्डी है जो पूरा दिन उछलते रहते हो…इस बात को बच्चा तो नहीं समझ पाता लेकिन बच्चे की ऐसी गतिविधियों पर मातापिता को जरूरत है थोड़ी जागरूकता की ताकि वे समझ सकें कि एक जगह शांति से न बैठ पाना भी एक बीमारी ही है जिसे मैडिकल भाषा में एडीएचडी कहते हैं.

जानें क्या है एडीएचडी

एडीएचडी (अटैंशन डैफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऔर्डर) यह एक न्यूरोडैवलपमैंटल डिसऔर्डर है जोकि बच्चों में एक कौमन डिसऔर्डर के रूप में देखा जाता है.

शुरुआत में ही सही इलाज मिल जाए तो बच्चा जल्दी ही स्वस्थ हो जाता है अन्यथा बड़े होने पर भी यह समस्या बनी रह सकती है. इस के 3 मुख्य प्रकार हैं- संयुक्त प्रस्तुति, अतिसक्रिय/आवेगपूर्ण प्रस्तुति और असावधानीपूर्ण प्रस्तुति.

लक्षण

किसी भी काम में ध्यान केंद्रित कर पाने में असमर्थ होना, अपने खिलौने या चीजें खो देना, किसी बात को ध्यान से न सुनना, पढ़ाई हो या खेल छोटेछोटे कामों को पूरा कर पाना भी इन के लिए बड़ी चुनौती बन जाता है और मन हमेशा विचलित रहता है.

अत्यधिक ऊर्जा से भरे रहना, अपनी बारी का इंतजार न कर पाना, बिना वजह चिल्लाना इन के स्वभाव का हिस्सा बन जाता है.

इलाज

एडीएचडी का निदान एक योग्य चिकित्सक या मनोचिकित्सक ही कर सकता है. निदान करने के लिए डीएसएम-5 (DSM-5) या आईसीडी ICD-11 के मापदंडों का उपयोग करते हैं. इस के लिए डाक्टर को परिवार का इतिहास, गर्भावस्था और प्रसव के दौरान की जानकारी, शुरुआती विकास, शिक्षा, सामाजिक संबंध और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की जानकारी होना आवश्यक है.

इस के इलाज के तौर पर बिहेवियर थेरैपी दी जाती है. इस के जरीए बच्चा आत्मनियंत्रण, सकरात्मकता का गुण सीखता है, जिस से बच्चा सामाजिक और शैक्षिक समस्याओं का सामना कर पाने में समर्थ बने.ऐसे बच्चों को छोटेछोटे ब्रेक और गतिविधियों के साथ सिखाया जाता है.

ध्यान योग्य बातें

* मातापिता को बच्चे के सकारात्मक पहलुओं को प्रोत्साहित करना चाहिए और धैर्यपूर्वक उस के व्यवहार को समझने की कोशिश करनी चाहिए.

* शिक्षकों का इस के इलाज में बहुत अच्छा रोल है. वह बच्चे को छोटेछोटे टास्क के जरीए पढ़ा सकते हैं व किसी भी बच्चे का व्यवहार यदि एडीएचडी जैसा लगता है तो जरूरी है कि बच्चे के पेरैंट्स से बात करें, जिस से समय रहते सही इलाज मिल सके.

पति करियर को लेकर परेशान हैं, मैं क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरे मायके में सब बिजनैसमैन हैं पर मेरे पति नौकरीपेशा हैं. मेरी लव मैरिज है. मैं चाहती हूं कि पति भी मेरे भाइयों की तरह कोई बिजनैस करें. भाई आर्थिक मदद सहित हर तरह का सहयोग देने को तैयार हैं पर पति नहीं मान रहे. कहते हैं कि वे अपनी नौकरी से खुश हैं. शादी से पहले मैं ने सोचा था कि उन्हें मना लूंगी, क्योंकि तब वे मेरी हर बात मानते थे. वैसे शादी के बाद भी बदले नहीं हैं. सिर्फ कैरियर को ले कर अडिग हैं. बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब-

आप ने प्रेम विवाह किया है और मानती हैं कि पति अब भी आप की परवाह करते हैं तो आप को भी उन की इच्छाअनिच्छा का खयाल रखना चाहिए. कैरियर को ले कर उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए.

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अगर आपने हाल में ही 10 वीं या 12वीं पास की है या पहले से ही ग्रेजुएट हैं.लेकिन नौकरी न मिलने से परेशान हैं तो यह लेख आपके लिए ही है.यूं तो कहा जा सकता है कि इस भीषण बेरोजगारी के दौर में नौकरी मिलने की गारंटी किसी भी डिग्री या डिप्लोमा में नहीं है और यह सच भी है है.लेकिन इस बड़े सच के परे भी एक सच है.वह यह कि अगर आपने अपरेंटिस की हुई है तो समझिये नौकरी की गारंटी है.दूसरे शब्दों में अगर गारंटीड नौकरी चाहिए तो 10 वीं के बाद कभी भी किसी अपरेंटिस प्रोग्राम का हिस्सा बन जाइए नौकरी हर हाल में मिलेगी.

बेरोजगारी के इस भीषण दौर में भी अपरेंटिस किये लोगों को 100 फीसदी रोजगार मिल रहा है. 24 जून 2021 तक रेलवे में करीब 4000 अपरेंटिस की भर्ती होने जा रही है.एक रेलवे ही नहीं मई और जून के महीने में ऐसी दर्जनों सरकारी, गैर सरकारी, सार्वजनिक उपक्रम और मल्टीनेशनल कंपनियां तक अपरेंटिसशिप की रिक्तियां निकालती हैं. अपरेंटिसशिप का मतलब होता है एक किस्म का ट्रेनिंग प्रोग्राम.इस कार्यक्रम के तहत बिल्कुल नये लोगों को किसी क्षेत्र विशेष के काम की ट्रेनिंग दी जाती है.

लेकिन यह ट्रेनिंग विद्यार्थियों के सरीखे नहीं मिलती. यह ट्रेनिंग दरअसल ट्रेंड लोगों के साथ पूरे समय नियमित कर्मचारियों की तरह किये जाने वाले काम के रूप में मिलती है.यहां इन ट्रेनीज से पूरे समय एक नियमित कामगार के तौरपर काम कराया जाता है. जिस संस्थान में अपरेंटिसशिप होती है वहां इन ट्रेनीज पर वही नियम लागू होते हैं,जो नियमित कामगारों पर लागू होते हैं सिवाय वेतनमान के.अपरेंटिस संस्थान के नियमित कर्मचारियों की तरह ही भीकाम में आते हैं और उन्हीं की तरह उनकी भी छुट्टी होती है.

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रोशन गलियों का अंधेरा: नानी किस सोच में खो गई

“अरी ओ चंचल… सुन क्यों नहीं रही हो? कब से गला फाड़े जा रही हूं मैं और तुम हो कि चुप बैठी हो. आ कर खा लो न…” 60 साल की रमा अपनी 10 साल की नातिन चंचल को कब से खाने के लिए आवाज लगा रही थीं, लेकिन चंचल है कि जिद ठान कर बैठ गई है, नहीं खाना है तो बस नहीं खाना है.
“ऐ बिटिया, अब इस बुढ़ापे में मुझे क्यों सता रही हो? चल न… खा लें हम दोनों,” दरवाजे पर आम के पेड़ के नीचे मुंह फुला कर बैठी चंचल के पास आ कर नानी ने खुशामद की.
“नहीं, मुझे भूख नहीं है. तुम खा लो नानी,” कह कर चंचल ने मुंह फेर लिया.
“ऐसा भी हुआ है कभी? तुम भूखी रहो और मैं खा लूं?” कहते हुए नानी ने उसे पुचकारा.
“तो फिर मान लो न मेरी बात. मम्मी से बोलो, यहां आएं.”
“अच्छा, बोलूंगी मैं. चल, अब खा ले.”
“10 दिन से तो यही बोल कर बहला रही हो, लेकिन मम्मी से नहीं कहती हो. अभी फोन लगाओ और मेरी बात कराओ. मैं खुद ही बोलूंगी आने के लिए. बोलूंगी कि यहीं कोई काम कर लें. कोई जरूरत नहीं शहर में काम करने की.
“मुझे यहां छोड़ कर चली जाती हैं और 3-4 महीने में एक बार आती हैं, वह भी एक दिन के लिए. ऐसा भी होता है क्या? सब की मां तो साथ में रहती हैं. लगाओ न फोन…” चंचल मन की सारी भड़ास निकालने लगी.
“तुम जरा भी नहीं समझती हो बिटिया. मम्मी काम पर होगी न अभी. अभी फोन करेंगे तो उस का मालिक खूब बिगड़ेगा और पैसा भी काट लेगा. फिर तेरे स्कूल की फीस जमा न हो पाएगी इस महीने की. जब फुरसत होगी, तब वह खुद ही करेगी फोन,” नानी ने उसे समझाने की कोशिश की.
“ठीक है, मत करो. अब उन से बात ही नहीं करनी मुझे कभी. जब मन होता है बात करने का तो मैं कर ही नहीं सकती. वे जब भी करेंगी तो 4 बजे भोर में ही करेंगी. नींद में होती हूं तब में… आंख भी नहीं खुलती है ठीक से, तो बात कैसे कर पाऊंगी? तुम ही बताओ नानी, यह क्या बात हुई…”
“अच्छाअच्छा, ठीक है. इस बार आने दो उसे, जाने ही नहीं देंगे,” नानी ने उस का समर्थन किया.
“हां, अब यहीं रहना पड़ेगा उन्हें हमारे साथ. चलो नानी, अब खा लेते हैं… भूख लगी है जोरों की.”
“हांहां, मेरी लाडो रानी. 12 बज गए हैं, भूख तो लगेगी ही. चल…”
चंचल उछलतीकूदती नानी के साथ चली गई. दोनों साथसाथ खाने बैठीं. चंचल भूख के मारे दनादन दालभात के कौर मुंह में ठूंसती जा रही थी.
“ओह हो, शांति से खा न. ऐसे खाएगी तो हिचकी आ जाएगी,” नानी ने टोका.
लेकिन वह कहां सुनने वाली थी. मुंह में दालभात ठूंसती जा रही थी.
“आने दो हिचकी. पानी है, पी लूंगी,” चंचल लापरवाही से बोली.
नानी मुसकराईं और उसे देखते हुए पुरानी यादों में खो गईं…
बेचारी नन्ही सी जान. इसे क्या पता कि इस की मम्मी इस के लिए कैसे कलेजे पर पत्थर रख कर दूर रह रही है. आह, दिसंबर की वह सर्द रात… जब वह 8 दिन की इस परी को मेरी झोली में डाल गई थी.
पेट दर्द की न जाने कैसी बीमारी लगी थी मुझे. गांवघर के वैद्यहकीम से दवादारू कर के हार गई थी, लेकिन पेट दर्द जाने का नाम ही नहीं ले रहा था. रहरह कर दर्द उभर आता था.
कुछ पढ़ेलिखे लोगों ने कहा कि शहर में अच्छे डाक्टर से दिखा लो. दिखा तो लेती, लेकिन अकेली कैसे जाती? न पति, न कोई औलाद. बाप की एकलौती बेटी थी मैं. मां मेरे बचपन में ही गुजर गई थीं. मेरी शादी के 2 साल ही तो हुए थे और कोई बच्चा भी नहीं हुआ था. तीसरे साल में पति को जानलेवा बीमारी खा गई. बापू भी बूढ़े हो कर एक दिन परलोक सिधार गए.
रह गई मैं अकेली. दूसरी शादी भी नहीं की, मन ही उचट गया था. हाथ में हुनर था सिलाईबुनाई का तो कुछ काम मिल जाता और घर के पिछवाड़े 3 कट्ठा जमीन में सागसब्जी उगा लेती. जो आमदनी होती उसी से गुजरबसर होती रही.
पेट दर्द अब असहनीय होने लगा था. बड़ी खुशामद के बाद पड़ोसी सहदेव का बेटा मुरली तैयार हुआ साथ में शहर जाने के लिए. शहर तो चली गई, लेकिन मुरली के मन में न जाने कौन सा खोट पैदा हुआ कि मुझे डाक्टर के यहां छोड़ कर बहाने से भाग निकला.
वह तो अच्छा था कि मैं ने पैसा उस को नहीं थमाया था, वरना…
खैर, मैं ने डाक्टर को दिखा तो लिया, लेकिन जब परचे पर जांचपड़ताल के लिए कुछ लिख कर दिया तो अक्कबक्क कुछ न सूझ रहा था. भला हो उस कंपाउंडर बाबू का, जिस ने सब काम करा दिया.
रिपोर्ट 4 बजे के बाद मिलने वाली थी तो मैं वहीं बरामदे पर बैठ कर रिपोर्ट और मुरली दोनों का इंतजार करने लगी. सोचा कि किसी काम से इधरउधर गया होगा, आ जाएगा. लेकिन यह क्या… 4 बज गए, रिपोर्ट भी आ गई, लेकिन मुरली का कोई अतापता नहीं. मन में चिंता हुई कि ठंड का मौसम है, 4 बज गए मतलब अब कुछ ही देर में अंधेरा घिर आएगा. घर कैसे जाऊंगी?
तभी कंपाउंडर बाबू ने रिपोर्ट ले कर बुलाया, तो मैं झोला उठाए चल दी.
डाक्टर साहब ने बताया, “जांच में कुछ गंभीर नहीं निकला है. ठीक हो जाओगी अम्मां. चिंता की कोई बात नहीं. ये सब दवाएं ले लेना,” कह कर डाक्टर ने एक और परचा थमाया.
मन को शांति मिली. पास ही दवा की दुकान थी, वहीं से दवा ले ली. अब घर जाने की चिंता होने लगी. बसअड्डा किधर है? किस बस पर बैठूं? इतनी देर हो गई, अभी बस खुलेगी भी कि नहीं? कुछ समझ नहीं आ रहा था.
कुछ ही देर में अंधेरा घिर आया तो मैं ने वहीं बरामदे के एक कोने में अपने झोले से चादर निकाली और ओढ़ कर यह सोच कर बैठ गई कि रात यहीं गुजार लेती हूं किसी तरह. सुबह कुछ उपाय सोचूंगी.
घर से लाई हुई रोटी और आलू की भुजिया रखी ही थी. भूख भी लग रही थी तो निकाल कर खा ली. 8 बजे वहां मरीजों की आवाजाही सी खत्म हो गई.
तभी गार्ड बाबू आ कर कड़क कर बोला, “ऐ माई, इधर सब बंद होगा अब. चलो, निकलो यहां से.”
“बाबू, रातभर रहने दीजिए न. अकेली हूं और घर भी दूर है. सुबहसवेरे निकल जाऊंगी,” मैं न जाने कितना गिड़गिड़ाई, लेकिन पता नहीं किस मिट्टी का बना था वह. अड़ा रहा अपनी बात पर.
क्या करती मैं भी. झोला उठा कर ठिठुरते हुए सड़क पर निकल पड़ी. भटकती रही घंटों, पर कहीं कोई आसरा न मिला. ठंड भी इतनी कि सब लोगबाग घरों में दुबके थे.
चलतेचलते पैर थक गए तो एक मकान के छज्जे के नीचे सीढ़ी पर रात गुजारने की सोच कर झोला रखा ही था कि 2-4 कुत्ते एकसाथ टूट पड़े.
तभी अचानक से किसी ने जोर से मुझे अपनी तरफ खींचा और धर्रर… से एक ट्रक गुजरा. मुझे कुछ देर होश ही नहीं रहा. जब होश आया तो देखा कि मैं एक पेड़ के नीचे लेटी थी और 22-23 साल की एक खूबसूरत युवती, जिस की गोद में नवजात बच्चा था, मेरा सिर सहला रही थी. तब सब समझ में आ गया कि अगर यह मुझे नहीं खींचती तो ट्रक मेरा काम तमाम कर देता.
“ऐसे बेखबर चलती हो… पता भी है रात के 12 बज रहे हैं, ऊपर से इतनी ठंड. और तो और आंख बंद कर के सड़क पर चलती जा रही हो. अभी ट्रक के नीचे आती और सारा किस्सा खत्म…” वह युवती मुझ पर बरसती जा रही थी, लेकिन उस का बरसना मन को सुकून दे रहा था.
पलभर में हमारे बीच न जाने कौन सी डोर बंध गई कि हम ने एकदूसरे के सामने अपने दिल खोल के रख दिए. उस के दर्द को जान कर कलेजा कांप गया मेरा.
उस का नाम मनीषा था. उसे उस की सौतेली मां ने 14 साल की उम्र में ही एक दलाल के हाथों बेच दिया था और यह बात फैला दी कि वह किसी के साथ भाग गई है.
दलाल ने उसे एक कोठे पर पहुंचा दिया और उस का नाम मोहिनी रख दिया गया. वह न चाहते हुए भी मालिक के इशारे पर नाचती. हर रात अलगअलग मर्द उस के जिस्म से खेलते. कई बार भागने की भी कोशिश की, लेकिन हर बार वह पकड़ी जाती और फिर दोगुनी मार सहती.
एक बार तो वह घर भी पहुंच गई थी, लेकिन सब ने अपनाने से इनकार कर दिया. खूब जलीकटी सुनाई. समंदर भर का दर्द ले कर वह लौट आई फिर उसी अंधेरी गली में.
8 दिन पहले ही उस ने बेटी को जन्म दिया था. पेट से तो वह पहले भी 2 बार रही थी, लेकिन जैसे ही पता चलता कि पेट में लड़का है, फौरन पेट गिरा दिया जाता, क्योंकि लड़कों के जिस्म से कमाई नहीं होती न. इस बार लड़की थी तो उस का मालिक खुश था .
लेकिन मोहिनी हर हाल में अपनी बच्ची को इस दलदल से, इस अंधेरी दुनिया से बाहर निकालना चाहती थी. यही सोच कर वह आज छिपतेछिपाते बाहर निकली थी कि या तो कहीं भाग जाएगी या फिर बेटी के साथ नदी में कूद कर जान दे देगी.
“तुम जान देने की बात कैसे कर सकती हो बेटी, जबकि तुम ने मेरी जान बचाई है. नहींनहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकती,” मुझे जान देने की बात बिलकुल भी पसंद नहीं आई.
“तो फिर मैं क्या करूं अम्मां? तुम ही बताओ भाग कर कहां जाऊं? लोग न मुझे चैन से जीने देंगे, न इस नन्ही सी जान को. ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी से अच्छा है कि हम दोनों मर ही जाएं.”
उस के मुंह से ‘अम्मा’ शब्द सुन कर मेरी छाती में ममता की धार फूट पड़ी.
“तुम ने मेरी जान बचाई है तो मेरी जिंदगी तुम्हारी हुई न. अभीअभी तुम ने अम्मां बुलाया मुझे और मैं ने तुम्हें बेटी… है कि नहीं? तो एक मां के रहते बेटी को किस बात की चिंता? मेरी बेटी और नातिन मेरे साथ रहेंगी, मेरे घर,” नन्ही सी बच्ची को चादर में लपेट कर अपनी छाती से लगा लिया था मैं ने.
“नहीं अम्मां, मैं तुम्हें किसी मुसीबत में नहीं डाल सकती,” मोहिनी ने एकदम से इनकार कर दिया.
“कैसी मुसीबत? बच्चे मां के लिए मुसीबत नहीं होते हैं. तू चल मेरे साथ. मेरा गांव शहर से दूर है, कोई खोज भी नहीं पाएगा,” मैं ने खूब मनुहार की.
लेकिन वह थी कि मान ही नहीं रही थी. सुबकसुबक कर कहने लगी, “अम्मा, तुझे कुछ नहीं पता… नहीं पता कि इन चकाचौंध वाली गलियों के सरदार की पहुंच कितनी दूर तक है. बड़ेबड़े नेता, मंत्री, अफसर और भी न जाने कितने रसूखदारों को अपनी सेवा देते हैं ये लोग. ऐसी कई हस्तियों के हाथों लुट चुकी हूं मैं भी. मोहिनी का नाम और चेहरा सब का जानपहचाना है. फौरन ढूंढ़ लेंगे ये भेड़िए…
“अम्मा… अब इस नरक की आदी हो चुकी हूं मैं. अब तक कोई मलाल नहीं था, लेकिन अब इस नन्ही जान के लिए कलेजा मुंह को आ जाता है. इसे किसी भी कीमत पर इस नरक में न झोंकने दूंगी उस जालिम को, चाहे जान ही क्यों न देनी पड़े.”
“तो क्या सोचा है तुम ने ?” मुझ से रहा नहीं गया.
“अम्मां, एक एहसान करोगी मुझ पर?” वह कातर स्वर में बोली.
“तू बोल तो सही,” मैं ने आश्वासन दिया तो वह बोली, “तू इसे रख ले अपने पास. पाल ले इसे. मैं खर्च भेजती रहूंगी. खूब पढ़ानालिखाना. और हां, मैं कभीकभी मिलने भी आती रहूंगी सब से छिप कर. लेकिन मेरी सचाई मत बताना कभी, वरना नफरत हो जाएगी इसे. जब पढ़लिख कर समझदार हो जाएगी तो सही समय पर सब सच बता देंगे. बोल अम्मां, तू करेगी यह एहसान मुझ पर?”
मैं ने उसे गले से लगा लिया और हामी भर दी.
“अम्मां, तुम्हारे गांव की तरफ जाने वाली पहली बस सुबह 5 बजे खुलती है. मैं बिठा दूंगी, तुम चली जाना. अभी तो 2 ही बज रहे हैं और ठंड भी इतनी है. चलो, कोई कोने वाली जगह ढूंढ़ लें, कम से कम ठंडी हवा से तो राहत मिले. नींद तो वैसे भी नहीं आएगी,” कह कर उस ने मेरा झोला उठाया और चल पड़ी.
बच्ची मेरी गोद में थी. थोड़ी दूर चलने पर बसअड्डा आ गया. यात्री ठहराव के लिए बने हालनुमा बरामदे पर एक खाली कोने में हम ने रात काटी. वह रातभर बच्ची को अपनी छाती से लगाए रही.
हम दोनों सुबह मुंह अंधेरे उठ गईं. उस ने चादर से मुंह ढक लिया और टिकट ले आई. मुझे बस में बिठा कर उस ने अपने कलेजे के टुकड़े को सौंप दिया.
इस के बाद उस ने मेरे गांव का नामपता एक कागज पर लिख लिया, फिर बोली, “अम्मां, किसी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए. आज से यह तुम्हारी है. मैं वहां सब से कह दूंगी कि ठंड लगने से मर गई तो फेंक आई नदी में…” उस की आंखें नम थीं, लेकिन एक अलग ही चमक भी थी. बस खुलने ही वाली थी. वह बच्ची को चूम कर तेजी से नीचे उतर गई.
तब से यह मेरे साथ ही है. मोहिनी 2-4 महीने पर आ जाती है मिलने. अब तो फोन खरीद कर दे दिया है, तो जब मौका मिलता है बात भी कर लेती है…
“अरी ओ नानी, हाथ क्यों रुक गया तुम्हारा? खाओ न. मैं इतना सारा नहीं खा पाऊंगी न,” चंचल ने हाथ पकड़ कर अपनी नानी को झकझोरा तो वे वर्तमान में लौट आईं.
“अरे हां, खा ही तो रही हूं. हो गया तुम्हारा तो तुम उठ जाओ,” नानी हड़बड़ा कर बोलीं.
“तुम भी न नानी बैठेबैठे सो जाती हो,” चंचल हंसते हुए बोली और चांपाकल की ओर भागी.

लाल साया: आखिर क्या था लाल साये को लेकर लोगों में डर?

सफेद रंग की वह कोठी उस दिन खुशियों से चहक रही थी. होती भी क्यों ना, घर का इकलौता बेटा विशेष अपने दोस्तों के साथ आज आ रहा था.

‘‘भैया आ गए, भैया आ गए,” महेश ने उद्घोष सा किया. सेठ मदन लाल और उन की धर्मपत्नी विमला देवी तेजी से बाहर की ओर लपके. कार से उतर कर विशेष ने मातापिता के पैर छुए, तो मां ने अपने लाल को गले लगा लिया. उन की आंखें रो रही थीं.

‘‘क्या मां, आप मुझे देख कर हमेशा रोने क्यों लगती हैं? आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता क्या?” विशेष लाड़ लड़ाते हुए बोला.

‘‘चल पागल,” मां ने नकली गुस्से के साथ हलकी सी चपत लगाई.

अब तक उमेश के साथ रिचा और उदय भी गाड़ी से उतर आए थे. उन के बैठक में बैठते ही महेश एक के बाद एक नाश्ते की प्लेटें लगाने लगा.

‘‘अरे भैया, एक हफ्ते का नाश्ता हमें आज ही करा दोगे क्या?” उदय आंखें फैला कर बोला.

‘‘उदय यार, मां को लगता है न, जब मैं उन के पास नहीं होता हूं, तब मैं शायद भूखा ही रहता हूं, इसलिए जब आता हूं तो बस खिलाती ही जाती हैं. बच नहीं सकते हो, इसलिए चुपचाप खा लो.”

रिचा जो मां के साथ सोफे पर बैठी थी, मां के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘मां तो होती ही ऐसी हैं.”

विमला देवी प्यार से उस का गाल थपथपाने लगीं.

‘‘उमेश बेटा, तुम क्या कर रहे हो?” समोसा उठाते हुए सेठ मदन लाल ने पूछा.

‘‘अंकल मेरी दिल्ली में इलेक्ट्रिकल सामान की शौप है. अच्छी चलती है,” उस के स्वर में सफलता की ठसक थी.

‘‘और शादी…?” मां ने पूछा.

‘‘बस अब शादी का ही इरादा है आंटी. चाहता हूं कि पत्नी को अपने ही मकान में विदा करा कर लाऊं. एक फ्लैट देखा है. पच्चीस लाख का है. लोन अप्लाई किया है. बस मिलते ही अगला कदम शादी होगा. आप लोगों को आना होगा.”

‘‘हां… हां, जरूर आएंगे. और उदय तुम क्या कर रहे हो?” सेठजी उदय की ओर घूमे.

‘‘बस अंकल, अभी तो हाथपैर ही मार रहा हूं. बिजनेस करना चाहता हूं, पर पूंजी नहीं है. व्यवस्था में लगा हूं. अब देखिए ऊंट किस करवट बैठता है,” कहते हुए उदय ने कंधे उचकाए.

‘‘मन छोटा क्यों करते हो बेटा. ऊपर वाला सब रास्ता बना देते हैं. अब चलो ऊपर के कमरे में जा कर तुम सब आराम कर लो,” मां स्नेह से बोलीं.

चारों बच्चों की चुहलबाजी से घर भर गया था. चारों रात का खाना खा कर ऊपर चले गए.

विमला देवी बोलीं, ‘‘यह 2 दिन तो पता ही नहीं चले, पर आप ने उन्हें ऊपर क्यों भेज दिया? बच्चे तो अभी गपें मार रहे थे?”

‘‘अरे भाग्यवान, बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन्हें थोड़ी प्राइवेसी चाहिए होती है. तो हम उन के आनंद में रोड़ा क्यों बनें?”

‘‘हां, यह तो सही कह रहे हैं,” कहते हुए विमला देवी मेज पर से प्लेटें उठाने लगीं.

‘‘अरे, तुम क्यों उठा रही हो? महेश कहां है?‘‘

‘‘उस के गांव से फोन आया था कि मां बीमार है उस की, तो मैं ने छुट्टी दे दी.‘‘

‘‘अरे, फिर कैसे होगा? अभी तो ये बच्चे हैं.‘‘

‘‘आप चिंता मत करिए. सब हो जाएगा.‘‘

‘‘मैं कल दूसरे खानसामे का पता करता हूं,‘‘ चिंतित स्वर में सेठजी बोले.

गोली की आवाज से सेठजी की नींद टूट गई. वे समझ नहीं पा रहे थे, यह कैसी आवाज है और कहां से आई. वे फिर से सोने की कोशिश करने लगे, तभी आंगन के पीछे के बगीचे में किसी भारी चीज के गिरने की आवाज आई.

उन्होंने पलट कर पत्नी की ओर देखा. वे गहरी नींद में थीं, तभी सीढ़ियों पर से कदमों की आवाजें आने लगी. वे सधे कदमों से उठे और आंगन में आ गए. आंगन का दरवाजा पूरा खुला हुआ था. वे दबे कदमों से धीरेधीरे दरवाजे की ओर बढ़े. बाहर झांका तो एकदम घबरा गए. तीन आकृतियां अंधेरे में भी स्पष्ट दिखाई दे रही थीं. तभी एक आकृति ने लाइटर जलाया और सेठजी की आंखें फटी रह गईं.

यह तो विशेष, उदय और उमेश थे, पर अंधेरे में ये तीनों यहां क्या कर रहे हैं. सोचते हुए सेठजी ने कड़क कर पूछा, ‘‘कौन है वहां?”

उमेश लपक कर उन के पास आ गया और फुसफुसाया, ‘‘अंकल, आवाज मत करिए. बहुत गड़बड़ हो गई है.”

‘‘क्या हुआ?”

‘‘नशे में, विशेष ने रिचा को धक्का दे दिया… और वह ऊपर से गिर कर मर गई.”

‘‘क्या…?” सदमे से उन की आंखें फैल गईं. वे वहीं बैठ गए.

‘‘अंकल, आप खुद को संभालिए और विशेष को भी. मैं कुछ करता हूं,‘‘ उमेश सेठजी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘ठीक से देखो, शायद डाक्टर उसे बचा पाए,‘‘ डूबते स्वर में वे बोले.

‘‘नहीं अंकल, मैं देख चुका हूं… अंकल, यहां कहीं फावड़ा है क्या?‘‘

बिना कुछ बोले सेठजी ने एक ओर इशारा किया.

‘‘आप यहीं बैठिए अंकल,‘‘ कहता हुआ उमेश वापस दोस्तों के पास चला गया और नशे में धुत्त विशेष को सहारा दे कर सेठजी के पास ले आया. विशेष बडबडाए जा रहा था, ‘‘मैं ने मार दिया. मैं ने मार दिया.‘‘

बेटे का यह हाल देख कर सेठजी की आंखें बरसने लगीं.

उमेश ने उदय की मदद से बड़ा सा गड्ढा खोद कर उस में रिचा को गाड़ कर समतल कर दिया. फिर अंदर जा कर एक आदमकद स्त्री की मूर्ति जो कमर पर घड़ा लिए हुई थी उठा लाया और उस को घुटने तक उसी में गाड़ दिया. 5-6 गमले भी उस के अगलबगल सजा दिए.

पौ फटने लगी थी. विशेष वहीं जमीन पर सो गया था. सेठजी स्वयं को संभाल चुके थे. रातभर की कड़ी मेहनत से थके हुए उमेश व उदय उन के पास आए.

‘‘बेटा…” सेठजी के पास शब्द नहीं थे.

‘‘अंकल, आप चिंता मत कीजिए. विशेष हमारा बहुत प्रिय मित्र है. हम उसे किसी संकट में नहीं पड़ने देंगे. यह बात बस हम चारों के बीच में ही रहेगी.”

‘‘हम तुम्हारे आभारी रहेंगे बेटा,” सेठजी की रोबीली आवाज की जगह एक पिता की निरीहता ने ले ली थी.

‘‘अंकल, आप को अपना माली बदलना पड़ेगा,‘‘ उमेश मूर्ति की ओर देख कर बोला.

‘‘ठीक है.‘‘

‘‘और अंकल, हम विशेष को ऊपर ले जा रहे हैं. आज आप किसी को ऊपर मत आने दीजिएगा, नहीं तो रिचा की अनुपस्थिति को छुपाना मुश्किल हो जाएगा.‘‘

‘‘महेश तो आज छुट्टी पर है. गांव गया है.‘‘

‘‘फिर तो बहुत अच्छा है. हम दोनों आज शाम तक निकल जाते हैं. सब को लगेगा कि हम तीनों चले गए.‘‘

‘‘ठीक है, मैं ड्राइवर को बोल दूंगा.”

‘‘नहीं, नहीं, अंकल, आप के ड्राइवर के साथ नहीं.”

‘‘हां, ठीक कह रहे हो. मैं टैक्सी बुला दूंगा.‘‘

‘‘जी.”

दोपहर में तीनों लड़के नीचे आए तो विमला देवी की सूजी आंखें उन के दिल का भेद खोल रही थीं.

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए. मैं आज के बाद कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा,” कहते हुए विशेष पिता के पैरों में गिर पड़ा. वह फूटफूट कर रो रहा था.

निशब्द उन्होंने उठा कर बेटे को गले लगा लिया.

‘‘रिचा… पापा रिचा… मुझे कुछ याद नहीं है…” वह हिचकियों के साथ बोला.

‘‘मैं हूं ना बेटा… सब संभाल लूंगा… और फिर तुम इतने भाग्यशाली हो कि तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं.”

‘‘अंकल, हम दोनों दिन में ही निकल जाते हैं. हम ने ऊपर सब ठीक कर दिया है.”

‘‘मैं ने दूसरा ड्राइवर बुला रखा है. वह तुम्हें छोड़ आएगा. और हां बेटा, जैसे विशेष वैसे ही तुम लोग. इसलिए यह छोटी सी भेंट है. तुम्हारे मकान के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है. और तुम्हारे बिजनेस के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है.‘‘

‘‘अरे अंकल…‘‘

‘‘बस रख लो बेटा, मुझे खुशी होगी,‘‘ बिना आंखें मिलाए सेठजी बोले.

कालोनी में इस बात की चर्चा जाने कैसे फैल गई कि सेठ मदन लाल के घर रात में गोली चली थी. सफाई देदे कर दोनों परेशान थे. विमला देवी ने तो सब से मिलना ही बंद कर दिया. सेठ मदन लाल तनाव में रहने लगे. ऊपर से रिचा की गुमशुदगी की रिपोर्ट के चलते पुलिस जांच करने उन के घर आ धमकी. बड़ी मुश्किल से लेदे कर सेठजी ने मामला निबटाया.

इस घटना को 4-6 महीने बीत गए थे. एक दिन विमला देवी बोलीं, ‘‘सुनिएजी, कहीं विशेष की शादी की बात चलाइए. अब उस की शादी तो करनी ही है ना…‘‘

‘‘देखो, थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. जल्दबाजी ठीक नहीं. देख तो रही हो जितने शादी के प्रस्ताव थे, सभी कोई ना कोई बहाना कर पीछे हट गए. पता नहीं कैसे समाज में हमारे परिवार को ले कर नकारात्मक माहौल बन गया है. तो अब थोड़ी प्रतीक्षा ही करनी होगी.”

‘‘मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है.”

‘‘मां, मुझे शादी नहीं करनी है. कितनी बार तो कह चुका हूं. फिर वही विषय ले कर बैठ जाती हैं आप,” विशेष अचानक कमरे में आ गया था.

तभी मदन लाल जी का फोन घनघनाया.

‘‘हां उमेश, बेटा.‘‘

‘‘अरे, पिछले हफ्ते ही तो 10 लाख तुम्हारे अकाउंट में डाले थे. नहीं, अब मैं और नहीं दे सकता,’’ कह कर उन्होंने गुस्से से फोन काट दिया.

‘‘उमेश… आप से पैसे मांग रहा है?” चकित सा विशेष पिता को देख रहा था.

‘‘पैसे नहीं मांग रहा है… ब्लैकमेल कर रहा है. 10-10 लाख दो बार ले चुका है और अब फिर…‘‘ गुस्से से वे हांफने लगे थे.

‘‘मुझे कुछ नहीं बताया उस ने,” विशेष के स्वर में हैरानी थी.

‘‘अरे, आप को क्या हो रहा है?” विमला देवी उठ कर पति के सीने पर हाथ फेरने लगीं, जिसे वे कस कर दबा रहे थे. उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, परंतु बचाया नहीं जा सका.

हंसताखिलखिलाता घर बिखर गया. घर में जैसे मुर्दनी छा गई थी. विशेष पिता की जगह अपनी शर्राफे की दुकान पर बैठने लगा था. दिन जैसेतैसे कट रहे थे.

‘‘विशेष, छुटकी की शादी का न्योता आया है. जाना पड़ेगा,” मां विशेष के आते ही बोलीं.

‘‘ठीक है मां, मैं मामाजी के यहां आप के जाने की व्यवस्था कर देता हूं.”

‘‘नहीं बेटा तुझे भी चलना होगा.”

‘‘आप जानती तो हैं मां…”

‘‘जानती हूं, तू कहीं नहीं जाना चाहता. परंतु मीरा की शादी में भी तू पढ़ाई के कारण नहीं जा पाया था. उन्हें लगेगा, उन की गरीबी के कारण तू उन के घर नहीं आता.”

‘‘यह सच नहीं है मां. मेरे लिए रिश्ते महत्व रखते हैं. गरीबीअमीरी तो मैं सोचता भी नहीं. मैं मामाजी की बहुत इज्जत करता हूं,‘‘ विशेष ने प्रतिवाद किया.

‘‘जानती हूं, इसीलिए चाहती हूं कि तू मेरे साथ चल. दो दिन की ही तो बात है,‘‘ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए वे बोलीं.

‘‘ठीक है मां, जैसा आप चाहे.‘‘

गांव में उन की गाड़ी के रुकते ही धूम मच गई ‘‘बूआजी आ गईं, बूआजी आ गईं.”

भाईभाभी के साथ छुटकी भी दौड़ी आई और उस के साथ में थी उस की प्यारी सहेली रजनी. विशेष पर नजर पड़ते ही अपनी सुधबुध खो बैठी. सब एकदूसरे को दुआसलाम कर रहे थे और रजनी अपलक विशेष को निहारे जा रही थी.

‘‘रजनी, भैया को ऐसे क्यों  घूर रही हो?‘‘ छुटकी ने कोहनी मारी.

सब उधर ही देखने लगे. रजनी के साथसाथ विशेष भी झेंप गया, ‘‘नहीं… कुछ नहीं…‘‘ कहते हुए रजनी बूआजी का सामान निकलवाने लगी.

‘‘आप रहने दीजिए, मैं निकलवा दूंगा,’’ विशेष ने उसे टोका.

‘‘आप तो पाहुन हैं,” वो खिलखिलाई और बैग उठा कर अंदर भाग गई.

‘‘बहुत ही प्यारी बच्ची है बीबीजी. अपनी छुटकी की सब से पक्की सहेली है. जान छिड़कती हैं दोनों एकदूसरे पर,” स्नेह से भौजाई बोलीं.

जब तक सब लोग आ कर बैठे, रजनी सब के लिए शरबत ले कर हाजिर थी. बूआजी सब से बोलतीबतियाती रहीं, पर निगाह उन की हर पल रजनी पर ही टिकी रही. एक आशा की किरण दिखाई दी थी उन्हें. रजनी का स्पष्ट झुकाव उन के सुदर्शन बेटे पर दिखाई दे रहा था. और कितने महीनों बाद विशेष भी खुश दिखाई दे रहा था. शाम को जब ढोलक की थाप पर रजनी नाची तो विमला देवी लट्टू ही हो गईं.

‘‘भाभी, रजनी तो वाकई बहुत अच्छा नाचती है.”

‘‘हां बीबीजी, बहुत भली और गुणी लड़की है. पढ़ने में भी अव्वल आती है. वजीफा पाती है. लगन की ऐसी पक्की कि जाड़ा, गरमी, बरसात साइकिल से कसबे तक पढ़ने जाती है,” स्नेह पगे स्वर में भौजाई बोलीं.

‘‘अपने विशेष के लिए कैसी रहेगी?” वे सीधे भाभी की आंखों में देख रही थीं.

‘‘बीबीजी, लड़की तो बहुत ही अच्छी है. लाखों में एक. जोड़ी भी बहुत अच्छी लगेगी, लेकिन…‘‘ बात अधूरी ही छोड़ दी उन्होंने.

‘‘लेकिन क्या…?‘‘

‘‘लेकिन, बहुत गरीब परिवार से है. आप की हैसियत की तो छोड़ दीजिए. साधारण शादी भी नहीं कर सकेंगे वे लोग.‘‘

‘‘क्या करते हैं इस के पिता?‘‘

‘‘खेतों में मजदूरी करते हैं. बहुत नेक इनसान हैं दोनों. ये उन की इकलौती संतान है.”

‘‘आप उन से बात कराइए.”

‘‘आप मजदूर परिवार से बहू लाएंगी?”

‘‘इतनी योग्य बहू मिल रही है, तो क्यों नहीं?”

‘‘बीबीजी, एक बार विशेष से तो पूछ लीजिए.”

‘‘वो देखिए भाभी, डांस कर के सीधे विशेष के पास खड़ी है. कैसे दोनों हंसहंस कर बातेें कर रहे हैं. आप को पूछने की जरूरत लग रही है क्या?” मुसकरा कर विमला देवी ने पूछा.

रजनी के लिए आए इस प्रस्ताव से छुटकी की शादी की खुशी दुगुनी हो गई. विशेष ने मौका देख रजनी को किनारे बुलाया और बोला, ‘‘मुझे तुम्हें कुछ बताना है.‘‘

‘‘अब जो भी बताना, शादी के बाद ही बताना,” कहती हुई रजनी मंडप में जा कर छुटकी के पास बैठ गई.

दो दिन के आगेपीछे दोनों सहेलियां एक ही शहर में विदा हो कर आ गईं. गाड़ी से उतर कर रजनी अपनी कोठी को देख कर खुद ही अपने भाग पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. धीरेधीरे रजनी अपने इस नए घर में रचनेबसने लगी. परंतु उसे जाने क्यों किसी तीसरे के होने का एहसास लगातार होता. विशेष भी सपने में लगातार किसी से माफी मांगता रहता. कभीकभी अचानक वह डर कर उठ जाता. पूछने पर वह कहता, ‘‘कुछ नहीं, सो जाओ.‘‘

एक दिन उसे आंगन में एक लड़की लाल सूट में दिखाई दी. जब रजनी उस के पीछे भागी, तो वह आंगन से पीछे की बगिया की ओर चली गई. रजनी उस के पीछेपीछे वहां पहुंची तो उसे लगा कि वह लाल साया उस घड़े वाली मूर्ति में समा गया है.

यह देख रजनी बुरी तरह डर गई. सास से कहा, तो उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हारा भ्रम है बहू.‘‘

कई दिनों से रजनी देख रही थी कि विशेष के फोन पर किसी उमेश का फोन बारबार आ रहा था. परंतु वह उठा नहीं रहा था. पर उस फोन के बाद विशेष बहुत विचलित हो जाता था. रजनी समझ नहीं पा रही थी कि समस्या क्या है. पूछने पर विशेष टाल दे रहा था.

रजनी ने इस समस्या की तह में जाने का फैसला किया. रसोई में जा कर वह बोली, ‘‘महेश भैया चाय बन गई क्या?‘‘

‘‘हां, हां, बस बनी ही समझो बहूरानी. आज आप जल्दी जाग गए.‘‘

‘‘हां, अच्छा यह बताइए कि आप के भैया के दोस्त कौनकौन हैं?‘‘

‘‘काहे?‘‘

‘‘ऐसे ही, कोई आता ही नहीं है ना, इसीलिए पूछा. कोई काम नहीं था. जाने दीजिए.‘‘

‘‘बहूरानी, भैया के ज्यादा दोस्त नहीं हैं. घर पर तो केवल दो ही दोस्त देखे हैं हम ने. एक उदय और एक उमेश. बहुत समय पहले आए रहे,” चाय पकड़ता हुआ महेश बोला. पता नहीं, क्या सोच कर उस ने रिचा का नाम नहीं लिया.

दिन में रजनी अपनी सहेली छुटकी के घर चली गई. वहां लंच पर आए उस के पति सबइंस्पेक्टर विजय से भी मुलाकात हो गई.

‘‘जीजाजी, आप की थोड़ी मदद चाहिए थी.”

‘‘अरे साली साहिबा, आप आदेश दीजिए.”

‘‘मुझे लगता है कि मेरे पति को कोई परेशान कर रहा है.”

‘‘कौन…?”

‘‘यह मैं नहीं जानती, पर मुझे दो पर शक है.‘‘

‘‘अच्छा, किस पर…?‘‘

‘‘एक मेरे पति का दोस्त है उमेश, उस पर और एक आत्मा है.”

‘‘आत्मा…? पागल हुई है क्या रजनी तू?” छुटकी हड़बड़ा कर बोली.

‘‘एक मिनट छुटकी, उसे अपनी बात कहने दो.”

कमरे में मौन पसर गया.
‘‘तो साली साहिबा, आप को वह आत्मा कभी दिखाई दी क्या?”

‘‘जी, आज सपने में आ कर मुझसे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रही थी. न्याय दिलाने की गुहार लगा रही थी.”

‘‘सपने में…?”

‘‘हां, आज सपने में आई थी. वैसे दो बार घर के आंगन में लाल सूट पहन कर घूमते हुए देखा है मैं ने उसे. पर उस के पीछे जाने पर वह बगीचे में लगी मूर्ति में समा जाती है.‘‘

अपने पर्स में से रजनी ने एक कागज का टुकड़ा निकाला, ‘‘यह उमेश का नंबर है. मैं आप की सुविधा के लिए ले आई थी.”

‘‘यह आप ने बहुत अच्छा किया. आप मुझे विशेष का नंबर भी दे दीजिए. मुझे थोड़ा समय दीजिएगा. मैं इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश करता हूं. आप का एरिया मेरे थाने में ही आता है.”

हफ्ता भी नहीं बीता था कि सुबहसुबह विनय रजनी के घर आ गए.

‘‘अरे रजनी देखो तो सही, तुम्हारी सहेली के पति आए हैं,” स्वयं को संयत रखते हुए विशेष ने पत्नी को आवाज दी और विनय को बैठक में ले आया.

‘‘मुझे आप से कुछ बात करनी थी?”

‘‘मुझ से…?‘‘ आश्चर्य और घबराहट दोनों थी विशेष की आवाज में.

‘‘आप को कोई ब्लैकमेल कर रहा है?‘‘ विजय ने सीधेसीधे पूछा.

‘‘ज्ज ज जी म म मेरा मतलब है क्या?” विशेष बुरी तरह घबरा गया.

‘‘देखिए विशेष, हम रिश्तेदार हैं. मेरी हमदर्दी आप के साथ है. मैं एक ब्लैकमेल के केस को हल करने की जांच में लगा हुआ हूं. उसी सिलसिले में आप का नंबर भी मिला. उमेश एक ब्लैकमेलर है. उसे तो खैर हम पकड़ ही लेंगे, परंतु वह आप को बारबार फोन क्यों कर रहा है. यही जानने के लिए मैं आया हूं,‘‘ विजय शांत स्वर में बोले.

विशेष सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया. उस के नेत्र बरस रहे थे. पत्नी और मां भी आ गए थे. रजनी का हाथ पकड़ कर वह बोला, ‘‘रजनी ये ही वो बात है, जो मैं शादी से पहले तुम्हें बताना चाहता था, पर तब तुम ने सुना नहीं. बाद में इसे बताने, ना बताने का कोई अर्थ नहीं था. तुम्हारे पूछने पर भी नहीं बताया.

‘‘काश, वह काली रात मेरे जीवन में ना आई होती. उस रात हम छत पर पार्टी कर रहे थे. मैं पीता नहीं हूं. परंतु दोस्तों ने मुझे बहुत पिला दी थी. शायद इसीलिए मुझे चढ़ गई थी. मुझे कुछ होश नहीं था. दोस्तों ने बताया कि नशे में मैं ने रिचा को छत से धक्का दे दिया था. वह सिर के बल गिर कर मर गई.

‘‘मुझे तो होश नहीं था. उन दोनों ने ही रिचा की लाश को ठिकाने लगाया और इस राज को अपने तक सीमित रखने का वादा कर चले गए. पिताजी ने दोनों को पच्चीसपच्चीस लाख रुपए दिए थे. थोड़े समय बाद उमेश पिताजी को ब्लैकमेल करने लगा. एक दिन पिताजी को बहुत गुस्सा आ गया. उसी में हार्ट अटैक से उन की मृत्यु हो गई. दस महीने वह शांत रहा और अब फिर से वह मुझे फोन कर रहा है. मैं जवाब नहीं दे रहा. जानता हूं कि एक बार दे दूंगा तो इस का कोई अंत नहीं होगा. कोई रास्ता भी नहीं सूझ रहा. ऊपर से मुझे और रजनी को रिचा लाल सूट में आंगन में घूमती दिखाई देती है. उस दिन उस ने यही लाल सूट पहना था,” विशेष ने विजय की ओर देखा.

‘‘रास्ता तो एक ही है विशेष, आप को आत्मसमर्पण करना होगा,” विजय बोले.

‘‘लेकिन जीजाजी, ये तो वो दोस्त कह रहे हैं न कि धक्का विशेष ने दे दिया था. क्या पता, उन में से ही किसी ने दिया हो?‘‘

‘‘हां, यह संभव है, पर जब तक सिद्ध नहीं होता, तब तक तो…”

‘‘क्या हम उस लाश की फौरेंसिक जांच नहीं करा सकते? उस से तो पता चल जाएगा ना?” रजनी ने पूछा.

‘‘हां, उस से पता चल जाएगा. और यह मैं करा भी दूंगा. फिलहाल तो आप को समर्पण करना होगा. मेरा एक दोस्त है, बहुत अच्छा वकील है. मैं उस से बात कर लूंगा. वह आप का केस लड़ेगा. उदय और उमेश को पकड़ने के लिए दो टीमें जा चुकी हैं.”

फौरेंसिंक टीम ने कंकाल को जब निकाला तो उस के नीचे एक रिवौल्वर भी दबी मिली. और जब रिपोर्ट आई, तो सब चकित रह गए. रिपोर्ट हूबहू वही कह रही थी, जो उदय ने कोर्ट में बयान दिया था. रिचा की मौत गिरने से नहीं गोली लगने से हुई थी. रिवौल्वर पर उमेश के फिंगरप्रिंट्स भी मिले थे.

मजिस्ट्रेट के सामने इकबालिया स्टेटमैंट में उदय ने बयान दिया, ‘‘उस रात उमेश ने रिचा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे उस ने मना कर दिया. गुस्से में उमेश ने गोली चला दी और वो रिचा के सिर के पार हो गई. विशेष नशे में धुत्त पड़ा था. उदय डर कर चिल्लाने लगा, तो उस ने उसे शांत कराया और समझाया कि जो हो गया, वह हो गया. विशेष के पिता बहुत अमीर हैं. हम रिचा को गिरा कर कहेंगे कि विशेष ने नशे में उसे धक्का दे कर मार डाला और इस राज के बदले उन से पैसे वसूल लेंगे. और यही हुआ. अंकल ने बिना मांगे हमें पच्चीस-पच्चीस लाख रुपए दे दिए. उस के बाद का मुझे कुछ पता नहीं. हम ने एकदूसरे से कोई संपर्क नहीं किया.”

फौरेंसिक रिपोर्ट और चश्मदीद की गवाही के आधार पर विशेष को कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया.

पत्नी व मां के साथ कोर्ट से बाहर आ कर इंस्पेक्टर विजय से हाथ मिलाते हुए विशेष बोला, ‘‘आप ने और रजनी ने मिल कर मुझे जेल से ही नहीं, बल्कि लाल साए के आतंक से भी मुक्त करा दिया है. इतने समय बाद आज मैं सुकून से सो सकूंगा.”

लाल साए का राज अब राज नहीं था. वह असल में उमेश ही था, जो खिड़की से लाल ओढ़नी में घुस कर झलक दिखा कर भाग जाता था. उदय के साथ मिल कर उस ने यह नाटक इन फालतू बातों में विश्वास करने वाले परिवार को पैसे देते रहने के लिए रचा था.

रजनी ने पहले ही दिन पैरों के निशान से भांप लिया था कि वे मर्द के निशान हैं किसी आत्मावात्मा के नहीं.

हर फैट नहीं बढ़ाता है वजन, जानें Healthy Fats क्यों है जरूरी और इसके फूड्स सोर्स

Healthy Fats : आजकल लोग अपने हैल्थ को लेकर इतने सतर्क हो गए हैं कि कुछ भी खाते समय उन्हें फैट्स और कैलोरीज की चिंता सताती है. लोग वजन कंट्रोल करने के लिए बेस्वाद चीजें भी खाते हैं, कई बार तो इतना सबकुछ करने के बाद भी वजन कंट्रोल नहीं होता है.

आप औयली मसालेदार कुछ भी फूड्स खाएं, लेकिन इसके मात्रा का ध्यान रखें, सीमित मात्रा में खाएंगे तो आपका वजन नहीं बढ़ेगा और फिजिकल एक्टिविटी भी करते रहें, जिससे आप फिट रहेंगे.

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कुछ लोग तो अपने वेट को लेकर इतने कौन्सियस रहते हैं कि वो लोग मोटे होने के डर से फैटी फूड्स को खाने से बचते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोग तैलीय चीजें छोड़ने के बाद नेचुरल फैट्स वाले फूड्स भी खाने से परहेज करते हैं. जबकि शरीर में विटामिन्स को डाइजेस्ट करने के लिए फैट की जरूरत होती है. इसलिए खाने में हैल्दी फैट भी शामिल करना जरूरी है. जो आपके शरीर को फायदा पहुंचा सके. आइए जानते हैं कुछ फूड्स के बारे में जिनके फैट्स शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं.

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अंडे

शायद ही कोई हो, जिसे अंडे खाना पसंद न हो, कुछ लोग अकसर ब्रैकफास्ट में उबले अंडे खाते हैं, तो वहीं कुछ लोग अंडे का इस्तेमाल कर कई तरह की रेसिपी बनाते हैं. इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक पायी जाती है, साथ ही यह हैल्दी फैट का भी सोर्स है. जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है.

ड्राई फ्रूट्स

ड्राई फ्रूट्स यानी बादाम और अखरोट में मोनोअनसैचुरेटेड और पालीअनसैचुरेटेड फैट्स पाए जाते हैं. जो शरीर के लिए काफी फायदे पहुंचाते हैं, ये दिल को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं. इसके अलावा दिमाग के लिए भी लाभदायक होते हैं.

बीज

अलसी के बीज हैल्दी फैट्स से भरपूर होते हैं, ये वेजिटेरियन लोगों के लिए अच्छा औप्शन है. जिन लोगों को बैड कोलेस्ट्रौल की समस्या होती है, उन्हें अलसी के बीज खाने की सलाह दी जाती है. इसके अलावा अलसी के बीजों को बीपी के मरीजों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है.

इसके अलावा कद्दू के बीज भी स्वस्थ वसा, विशेष रूप से ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं. ये प्रोटीन, फाइबर और आवश्यक पोषक तत्व भी प्रदान करते हैं. चिया और अलसी के बीज ओमेगा-3 के लिए जाने जाते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है और सूजन को कम करता है. इनमें मौजूद फाइबर पाचन में सहायता करता है. बीजों को स्मूदी, दही, दलिया या सलाद में मिला कर खा सकते हैं या इन्हें बेकिंग में या कई व्यंजनों के लिए टौपिंग के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

फैटी फिश

फैटी फिश में शामिल सैल्मन, मैकेरल और सार्डिन जैसी मछलियां ओमेगा-3 फैटी एसिड,  हाई प्रोटीन और बी12 और डी जैसे आवश्यक विटामिन से भरपूर होते हैं. ओमेगा-3 फैटी एसिड हार्ट के लिए फायदेमंद होता है. कहा जाता है कि इन फैटी फिश को नियमित रूप से सीमित मात्रा में खाने से  पुरानी बीमारियों का जोखिम कम हो सकता है. आप अपनी डाइट में हफ्ते एक-दो बार फैटी फिश खा सकते हैं.

नारियल का तेल

नारियल या नारियल के तेल में भी हैल्दी फैट्स शामिल होते हैं. जो आसानी से पचने वाले वसा होते हैं. जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं. इससे मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है. इसके अलावा फाइबर से भरपूर नारियल पाचने के लिए हैल्दी माना जाता है.

डीपफेक की शिकार हुईं Rashmika Mandanna, साइबर क्राइम के खिलाफ आवाज उठाने का लिया बड़ा फैसला

सोशल मीडिया और डिजिटल आज के समय में जितना प्रसिद्ध हो रहा है उतना ही इससे जुड़े अपराधों का बोलबाला बढ़ रहा है. रश्मिका मंदाना ने इस अपराध के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया. जिसमें उन्हें सरकार का भी साथ मिला. रश्मिका खुद भी हाल ही में साइबर क्राइम का शिकार हुई थी. जिसके तहत उनका डीपफेक वीडियो वायरल हुआ था.

जिसकी वजह से रश्मिका ट्रोलर का भी निशाना बनी. जिसके बाद रश्मिका ने साइबर क्राइम जैसे जघन्य अपराध को दूर करने का बीड़ा उठाया है. रश्मिका 14c की ब्रांड एंबेसडर बनी हैं जिसके तहत वह साइबर क्राइम के खिलाफ जारी एक नई पहल का हिस्सा है. रश्मिका के अनुसार साइबर क्राइम बहुत ज्यादा बढ़ रहा है. जिससे बचने के लिए सख्त उपाय करना बहुत जरूरी हो गया है. यही वजह है कि ऐक्ट्रैस इंडियन साइबर क्राइम के को और्डिनेशन केंद्र की ब्रांड एंबेसडर बन गई है.

रश्मिका ने भारत के लोगों से अपील की है कि साइबर क्राइम से परेशान लोग 1930 पर काल करके साइबर क्राइम की रिपोर्ट दर्ज कर सकते हैं और इसके खिलाफ आवाज उठा सकते हैं. वर्क फ्रंट की बात करें रश्मिका जहां फिल्म पुष्पा की वजह से चर्चा में आई, वही रणबीर कपूर अभिनीत एनिमल में भी उनका काम काफी पसंद किया गया.

इसके बाद रश्मिका के पास कई सारी बड़ी फिल्में हैं, जैसे अल्लू अर्जुन के साथ पुष्पा 2, सलमान खान के साथ सिकंदर, विकी कौशल के साथ छावा और इसके अलावा द गर्लफ्रैंड, रेनबो , कुबेरा और एनिमल पार्क आदि बड़ी फिल्मो की लंबी चेन है.

Amitabh Bachchan के नाम पर उनके नाती अगस्त्य ने खाया 2 साल तक फ्री में खाना, केबीसी में सुनाया ये किस्सा

अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan ) के नाती और श्वेता बच्चन के बेटे अगस्त्य ने अपने नाना अमिताभ बच्चन के नाम पर न्यूयार्क के एक होटल में 2 साल तक फ्री यानी कि मुफ्त में खाना खाया. अमिताभ बच्चन के नाती अगस्त्य नंदा जो फिलहाल फिल्मों में अभिनय के लिए तैयार हैं और जोया अख्तर की फिल्म आर्चीज में अभिनय भी कर चुके हैं.

अगस्त्य नंदा न्यूयार्क में पढ़ाई करके वापस लौटे हैं. अपने इसी नाती अगस्त्य का किस्सा अमिताभ बच्चन ने हाल ही में कौन बनेगा करोड़पति में सुनाया. जिसके तहत उनके नाती न्यूयार्क के एक होटल में खाना खाने गए तो वहां पर अमिताभ बच्चन के नाम की एक खाने का एक आइटम था.

अगस्त्य ने पहले वह आइटम खा लिया और बाद में उन्होंने दुकान वाले से कहा कि अमिताभ बच्चन मेरे नाना है. जिनके नाम पर तुमने ये आइटम रखा है. पहले तो उस होटल के मालिक ने यह बात मानने से ही इनकार कर दिया लेकिन जब अगस्त्य ने अपने नाना की फोटो अपने साथ मोबाइल पर दिखाई.

तो वह होटल मालिक इतना खुश हो गया कि उसने अगस्त्य को दो साल तक अपने होटल में फ्री में खाना खिलाया. अमिताभ बच्चन ने यह बात बहुत ही मजाकिया अंदाज में सुनाई और अपने नाति को बहुत शाड़ा अर्थात चालक बोल कर उसकी खिंचाई भी की. यानी कि अगर नाना प्रसिद्ध हो तो उसका फायदा सिर्फ बच्चों को नहीं बच्चों के बच्चों को भी मिलता है.

Dalljiet Kaur ने दो बार कीं शादी, लेकिन दूसरे पति से भी मिला धोखा

Dalljiet Kaur : फिल्मी दुनिया, टीवी इंडस्ट्री या आम लोग आजकल तलाक कौमन होता जा रहा है.पहली शादी टूटने के बाद  लोग दूसरी शादी करते हैं, पर कई बार दूसरी या तीसरी शादी भी सफल नहीं हो पाती है. टीवी ऐक्ट्रैस दलजीत कौर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. कुछ दिनों पहले ही वह दूसरे तलाक को लेकर चर्चे में थीं.आज दलजीत अपना बर्थडे मना रही हैं. वह लंबे समय से टीवी से जुड़ी हुईं हैं. आज आपको ऐक्ट्रैस के जीवन से जुड़े कुछ खास किस्से बताते हैं.

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दलजित और शालिन का बर्थ डेट है सेम

दलजित कौर के पहले पति शालिन भनोट भी टीवी का पौपुलर चेहरा हैं. क्या आप जानते हैं, दोनों अपना बर्थडे 15 नवंबर को ही मनाते हैं. हालांकि कपल का तलाक हो चुका है, लेकिन एक समय था जब दोनों साथ ही अपना बर्थडे सेलिब्रैट करते थे.

लंबे समय तक डेट करने के बाद कपल ने की शादी

ये दोनों टीवी के सेट पर मिले थे. दोनों कलाकारों के दिल मिले और लंबे समय तक डेट किया. दलजीत और शलीन की जोड़ी काफी चर्चे में रहती थी. 2009 में इनकी शादी हुई थी. कपल ने नच बलिए सीजन 4 भी जीता था. शादी के 5 साल बाद दलजीत मां बनीं लेकिन इसके बाद दोनों के बीच दूरियां भी पैदा होने लगी.

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शादी के 6 साल बाद हुआ तलाक

2015 में दलजीत कौर और शालिन भनोट का तलाक हो गया. दरअसल, दलजीत ने शालिन और उनकी फैमिली पर मारपीट का आरोप लगाया था. तलाक के बाद दोनों अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए.

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दलजीत ने निखिल पटेल से की दूसरी शादी

शालिन से तलाक के बाद दलजीत की जिंदगी फिर से पटरी पर आने लगी थी और वह केन्या बेस्ड बिजनेसमैन निखिल पटेल से मार्च 2023 में शादी कर लीं. निखिल भी पहले से तलाकशुदा थे और उनकी पहली शादी से दो बेटियां हैं. हालांकि निखिल और दलजीत की ये शादी भी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई और 10 महीने के अंदर रिश्ते में दरार आने लगी, कपल का तलाक हो गया.

दो बेटियों का पिता कभी गलत नहीं कर सकता

एक इंटरव्यू के अनुसार, दलजीत ने निखिल से शादी करने की वजह बताई, उनका दो बेटियों का बाप होना. दलजीत ने कहा कि उनका मानना था कि दो बेटियों का पिता कभी गलत नहीं कर सकता. उसमें इतनी संवेदना होगी कि वह रिश्ते के मायने को समझेगा, खासकर जो बातें उसकी पत्नी से जुड़ी हों,
ऐक्ट्रेस ने आगे बताया कि कैसे उनके पिता घर की तीन बेटियों का सम्मान करते थे. उनकी रिस्पेक्ट करते हुए घर में मेहमानों को शराब सर्व नहीं की जाती थी. ‘

निखिल पटेल के साथ क्यों टूटा रिश्ता

दलजीत कौर ने सोशल मीडिया पर कई क्रिप्टिक पोस्ट शेयर किया था जिसमें उन्होंने बताया था कि निखिल एकस्ट्रा मैरिटल अफेयर चला रहे हैं और शादी को मानने से इनकार कर रहे हैं.

पश्चात्ताप की आग: निशा को कौनसा था पछतावा

बरसों पहले वह अपने दोनों बेटों रौनक और रौशन व पति नरेश को ले कर भारत से अमेरिका चली गई थी. नरेश पास ही बैठे धीरेधीरे निशा के हाथों को सहला रहे थे. सीट से सिर टिका कर निशा ने आंखें बंद कर लीं. जेहन में बादलों की तरह यह सवाल उमड़घुमड़ रहा था कि आखिर क्यों पलट कर वह वापस भारत जा रही थी. जिस ममत्व, प्यार, अपनेपन को वह महज दिखावा व ढकोसला मानती थी, उन्हीं मानवीय भावनाओं की कद्र अब उसे क्यों महसूस हुई? वह भी तब, जब वह अमेरिका के एक प्रतिष्ठित फर्म में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर थी. साल के लाखों डालर, आलीशान बंगला, चमचमाती कार, स्वतंत्र जिंदगी, यानी जो कुछ वह चाहती थी वह सबकुछ तो उसे मिला हुआ था, फिर यह विरक्ति क्यों? जिस के लिए निशा ससुराल को छोड़ कर आत्मविश्वास और उत्साह से भर कर सात समंदर पार गई थी, वही निशा लुटेपिटे कदमों से मन के किसी कोने में पछतावे का भाव लिए अपने देश लौट रही थी.

उद्घोषिका की आवाज सुन कर नरेश ने निशा की सीटबेल्ट बांध दी. आंखें खोल कर निशा ने देखा तो पाया कि नरेश कुछ अधिक ही उत्साही नजर आ रहे थे. एकदम बच्चों की तरह बारबार किलक कर हंस रहे थे. इतने खुश इन 20 सालों में वह पहले कभी नहीं दिखे.

अमेरिका की धरती पर तो नरेश ने एक लंबी चुप्पी ही साध ली थी. और उन की चुप्पी को कमजोरी समझ कर निशा अब तक अपनी मनमानी करती रही थी.

आंखों ही आंखों में नरेश बारबार निशा को भरोसा दिला रहे थे कि देखना हवाईअड्डे पर हमें लेने बाबूजी जरूर आएंगे. मेरे रिश्तों की नींव इतनी कमजोर नहीं कि जरा से भूकंप से हिल जाए.

सामान ले कर बाहर आने के बाद भी जब कोई घर का सदस्य नजर नहीं आया तो नरेश थोड़ा परेशान हो गए पर तभी पीछे से आवाज आई, ‘‘मुन्ना.’’ पलट कर देखा तो शीतल, गरिमामय व्यक्तित्व के स्वामी बाबूजी खडे़ थे. मां के अंतिम संस्कार में न आ सकने के कारण शरम से गडे़ जा रहे नरेश को आगे बढ़ कर बाबूजी ने हृदय से लगा लिया. बहू निशा, जो भारत की धरती पर उतरने से पहले तक चरणस्पर्श को ‘अति विनम्रता प्रदर्शन’ मानती थी, अनायास ही अपने ससुर के कदमों में झुक गई. बाबूजी की खुशी का कोई ठिकाना न रहा. बचपन और बुढ़ापा एक जैसा होता है, बालक और बूढे़ जितनी जल्दी रूठते हैं, उतनी ही जल्दी मान भी जाते हैं. बाबूजी से स्नेह पाते ही निशा और नरेश दोनों की आंखों से अविरल आंसू बहने लगे और एक पिता के रूप में चौधरी निरंजन दास की अनुभवी आंखें ताड़ गईं कि दाल में जरूर कहीं कुछ काला है. पर वह यह सोच कर खामोश रहे कि बच्चे कितने भी बडे़ क्यों न हो जाएं मांबाप की गोद में अपने को हमेशा महफूज समझते हैं.

इस के बाद 2 सुंदर, सजीले, मजबूत कदकाठी के नौजवान आए और चट से निशा के पैरों में झुक गए. दोनों में से एक ने आंख दबा कर पूछा, ‘‘क्यों चाची, पहचान रही हो कि नहीं?’’ और फिर जोर से ठहाका मार कर हंसने लगा. निशा अपलक दोनों को देखती रह गई.

तो ये बडे़ जेठ के बेटे केशव और यश हैं, सुंदर, सुशील, विनम्र और रोबीले, बिलकुल अपने दादा की प्रतिकृति. जिन्हें कभी निशा देहाती, गंवार और उजड्ड कहा करती थी, जो धूल सने हाथों से कच्ची अमियां तोड़ कर खाते थे और जिन की नाक हमेशा बहती रहती थी, ऐसे दोनों बच्चों के चेहरों से अब विद्वता और शालीनता टपक रही थी. यह सोच कर निशा को शक भी हुआ कि हमेशा घरेलू कामों में व्यस्त रहने वाली जेठानी के हाथों ने कौन से सांचे में ढाल कर इन्हें इतना योग्य बनाया है.

निशा के विचारों की कड़ी अपनी जेठानी रमा की आवाज सुन कर टूटी. साधारण रूपरंग, थुलथुल बदन, चौडे़ किनारे की साड़ी पहने रमा ने भौंहों के बीच बड़ी बिंदिया लगाई थी. बडे़ प्रेम से वह निशा के गले मिली और कान में धीरे से फुसफुसा कर बोली, ‘‘देवरानीजी, कम से कम बिंदिया तो लगाया करो.’’

पहले निशा उन के इस तरह टोकने पर चिढ़ती थी क्योंकि वह उन्हें एक औसत सोच वाली घरेलू महिला भर समझती थी पर आज इस बात पर मन में कोई भाव नहीं आया. रमा के चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव, असीम तेज और आत्मत्याग की पवित्र आभा के दर्शन हुए.

गाड़ी में बैठने के बाद बाबूजी ने कहा कि रौनक और रौशन भी साथ आ जाते तो उन्हें भी नजर भर कर देख लेता और गीली पड़ गई आंखों की कोर को वे कंधे पर पडे़ सफेद गमछे से पोंछने लगे.

रौनक और रौशन का नाम सुनते ही निशा और नरेश दोनों के चेहरों से चमक गायब हो गई. क्या कहे निशा? कैसी परवरिश दे सकी वह अपने बेटों को. एक आज फ्लोरिडा की जेल में बंद है तो दूसरा आजाद जिंदगी के फैशन की तर्ज पर किसी पैसे वाली अमेरिकी महिला के साथ होटल में रह रहा है.

किस गर्व से अभिमानित हो कर वह अपने दोनों बेटों को ससुराल के सामने रखती और कहती कि देखो, तुम लोगों से दूर ले जा कर, उस नई दुनिया का नवीन चलन अपना कर किस कदर मैं ने इन की ंिजंदगी संवारी है.

गाड़ी रुकी तो देखा ससुराल आ गई थी. पुरखों की हवेली 2 हिस्सों में बांट दी गई थी. अंदर कदम रखते ही निशा ने देखा सामने सास की बड़ी तसवीर टंगी थी. तसवीर पर चढ़ाए ताजे फूल इस बात के गवाह थे कि उन के प्रति घर में रहने वालों की संवेदनाएं अभी बासी नहीं हुई थीं.

अतीत के चलचित्र परत दर परत निशा के सामने खुलने लगे. अमेरिका में उस का बड़़ा सा घर, पैसे को ले कर मां और बेटे के बीच बहस, फिर हाथ में हथौड़ा ले कर रौनक  का उस के सिर पर वार करना और पैसे ले कर घर से भागना, फिर पुलिस, हथकड़ी और इस के आगे वह कुछ नहीं सोच सकी और बेहोश हो गई.

होश में आई तो देखा केशव उस के पैरों के तलवे सहला रहा था. यश डाक्टर को लेने गया हुआ था और बाबूजी सिरहाने बैठे थे. वह फूटफूट कर रो पड़ी. बाबूजी उन बहते आंसुओं को देख कर सोच में पड़ गए. बडे़ प्रेम से निशा के सिर पर हाथ फेर कर बोले, ‘‘बिटिया, तू हमेशा मुझ से लड़ती रही पर रोई नहीं, आज विदेश से ऐसा कौन सा दुख हृदय में बसा कर लाई है जो पलकों पर आंसू हैं कि सूखते नहीं.’’

निशा सूनी आंखें लिए बाबूजी को देखती रही.

दूसरे दिन जब निशा की नींद खुली तो देखा नरेश परिवार के साथ बैठ कर हंसहंस कर नाश्ता कर रहे हैं. मक्के की रोटी और सरसों का साग ऐसे उंगली चाटचाट कर खा रहे हैं जैसे इतने सालों तक अमेरिका में ये भूखे ही रहे. अमेरिका में गुमसुम से अकेले मेज पर बैठ कर टोस्ट चबाते थे. आफिस में भी ठंडागरम जैसा भी मिलता था खा लेते थे. तब निशा को ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ कि वह महज पेट भरने के लिए खा रहे हैं. अपने बच्चे थे फिर भी उन से बात इंटरनेट या ईमेल के जरिए होती थी. पैसों की जरूरत क्रेडिट कार्ड पूरी कर देता था. इस अकेलेपन से नरेश अंदर ही अंदर घुटते रहे और मुरझा गए.

निशा को लगा कि नरेश एक ऐसे पौधे की तरह थे जो खुली हवा और स्वतंत्र वातावरण में सांस लेना चाहता था, पर उस ने उस पौधे को सजावट बढ़ाने के लिए फैशनेबल ढंग से ट्रिम किया और गमले में सजा दिया, जिस से वह पौधा खिलने के बजाय मुरझा गया.

वह बिस्तर से उठी और फे्रश होने के बाद जा कर टेबल पर बैठ गई. यश और केशव उस से हंसहंस कर अपने बारे में बताने लगे. पता चला यश कुछ दिन हुए कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक हो कर लौटा है और केशव खानदानी कामधंधे में पिता का हाथ बंटा रहा है. रमा रसोई और खाने की मेज के बीच आ जा रही थी और दोनों बच्चे अपनेअपने सामान के लिए मांमां करते हुए उन के आगेपीछे घूम रहे थे.

यह सब देख कर निशा को लगा, रमा दी ने त्याग, समर्पण और अपनत्व भरे स्वाभिमान के जो बीज कूटकूट कर दोनों बेटों में भरे थे, फलित हो रहे थे.

वहीं निशा ने अपने दोनों बेटों रौनक और रौशन में भर दिया था, अहंकार से भरा लबालब आत्म अभिमान, किसी भी वस्तु को अपनी शर्तों पर पा लेने की लालसा, चाहे कुछ भी दांव पर लग जाए. अमेरिका के एक बहुत बडे़ फर्म की जनसंपर्क अधिकारी भारत की एक साधारण सी गृहस्थ महिला से तीव्र ईर्ष्या का अनुभव करने लगी.

रमा दी को एक बड़ी सी तश्तरी में बाबूजी के लिए गुड़, चना और दूध का गिलास रख ले जाते हुए निशा ने देखा. धीरेधीरे कलेवा लेते हुए ससुर और बहू आज के राजनीतिक, सामाजिक और वैज्ञानिक मामलों पर चर्चा कर रहे थे.

निशा ने रमा को इस बात के लिए कभी चिंतित व असुरक्षित नहीं देखा कि इस अटूट निष्ठा का उसे कैसा प्रतिफल या प्रतिदान मिलेगा, जबकि वह खुद इतनी असुरक्षित थी कि हर पल उसे अपने किए गए हर काम का सीधासीधा फल मिलना बहुत जरूरी था.

निशा व नरेश को अब पूरी तरह से एहसास हो गया कि अंगरेजियत का लबादा ओढे़ उन लोगों के शरीर में एक भारतीय दिल भी है, जो प्रेम व आस्था के प्रति श्रद्घा रखता है. दोनों पतिपत्नी मानसिक रूप से टूट चुके थे. तन से वे कितने ही धनी हो गए पर मन तो प्रेम व प्यार का कंगाल हो गया था.

सुबह ही नरेश और निशा हवेली के पश्चिमी हिस्से की तरफ टहलने निकल पडे़. नरेश उंगली से एक स्थान की ओर इशारा करते हुए निशा से बोले, ‘‘यह वह बैठक है जहां कभी बाबूजी आसन लगा कर बैठते थे और देहातियों की तमाम छोटीबड़ी समस्याओं का निबटारा करते थे. गांव वालों के मेहनत से कमाए धन को बिना किसी लिखापढ़ी के जमा करते और वक्त पड़ने पर उन्हें सूद समेत वापस भी करते थे.’’

किंतु वह बैठक अब एक सहकारी बैंक में बदल गई थी जिस का नाम था, ‘निरंजन दास सहकारी बैंक.’ बैंक में बहीखातों का स्थान कंप्यूटर ने ले लिया था. पास में ही एक निर्माणाधीन ई-सेवा केंद्र था, जहां गांव वाले अपनी शिकायतें दर्ज कराने के साथसाथ, बिजली, टेलीफोन, पानी आदि का बिल भी भर सकते थे. इस प्रगति का श्रेय वे छोटे चौधरी यानी यशराज चौधरी को देते थे, जो कंप्यूटर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने गांव वापस लौटा था.

दोनों कृतज्ञता से गद्गद गांव वालों के चेहरे देखते रह गए. नरेश कहने लगे, ‘‘ठीक है, अपने देश में अमीर देशों की तरह जगमगाहट तो नहीं पर अंधेरा भी तो नहीं है.’’

पति की बातें सुन कर निशा बोली, ‘‘चंद सर्वेक्षणों के आधार पर विकासशील देशों को भ्रष्ट, पिछड़ा हुआ, लाचार और गरीब करार देना अन्याय है. इस से देश के युवावर्ग में देशभक्ति के बदले नफरत और वितृष्णा बढ़ती है और वे अपने देश से पलायन करने में ही अपनी भलाई समझते हैं.’’

तब तक दोनों के आसपास गांव वाले जमा हो गए. सामने से बाबूजी के साथ केशव, यश, रमा दी और बडे़ भाई साहब भी चले आ रहे थे. नरेश ने बाबूजी की ओर चमकती आंखों से देख कर कहा, ‘‘बाबूजी, इस हिस्से में मैं उभरती युवा प्रतिभाओं के लिए एक रिसर्च सेंटर का निर्माण करूंगा. यही मेरी स्वदेश के प्रति सच्ची श्रद्घांजलि होगी.’’

निशा ने बाबूजी की आंखों में खुशी के आंसू देखे. सभी ने इस निर्णय का स्वागत किया. निशा, नरेश के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही थी क्योंकि इस बार वह पश्चात्ताप की आग में नहीं जलना चाहती थी.

संभल कर करें Online Love, बड़े काम के हैं ये टिप्स

Online Love : आज का माहौल देख ऐसा लगता है जैसे चारों ओर प्यारमुहब्बत, प्रेम ही प्रेम बसा हुआ है. प्रेम राधा ने कृष्ण से किया, लैला ने मजनू से किया. सोहनी महीवाल, हीररांझा, रोमियो जूलीएट आदि ऐसे कई सच्चे प्रेम को दर्शाने वाले प्रेमीप्रेमिकाएं इस धरती पर हुए हैं. प्यार सोचने भर से ही हमारी कल्पनाएं प्यार के पंछी की तरह आसमान में उड़ने लगती हैं. लेकिन आज एक ओर जवां दिलों में प्रेम बढ़ रहा है तो दूसरी ओर धोखा, जालसाजी, ब्लैकमेल कर जान से मारने की साजिश भी चल रही है.

इस के बावजूद प्रेम आज अपनी चरम सीमा पर है. आज वर्चुअल आभासी प्रेम अपनी चरम सीमा पर है. आजकल कोई भी लड़केलड़कियां ऐसे नहीं जो सोशल प्लेटफौर्म से न जुड़े हों. अधिकतर सोशल प्लेटफौर्म से ही आज युवाओं के दिलों में प्रेम की चिनगारी सुलग रही है.

कहते हैं ‘प्यार अंधा होता है’ और प्यार करने वाले अंधे कहलाते हैं. क्यों न आज हम यह कहावत थोड़ी सुधार लें. प्रेम करना कोई बुरी बात नहीं है, मानव जन्म लिया है तो प्रेम होना स्वाभाविक ही है. प्रत्येक व्यक्ति को जिंदगी में एक न एक बार प्यार जरूर होता है. आज डिजिटल और सोशल साइट का जमाना है. वर्चुअल प्यार मतलब आभासी जगत से मिलने वाला प्यार. जब जमाना बदल गया है तो क्यों न हम प्यार में जब भी पड़ें तो थोड़ा सतर्क हो जाएं:

जब भी सोशल प्लेटफौर्म से आप किसी युवक से बातचीत करें तो सर्वप्रथम आप उसे स्वयं की पूरी जानकारी न दें.

  • धीरेधीरे बात बढ़ाएं न कि घंटों बात करें.
  • आप के घर में कौनकौन हैं यह शुरू में न बताएं.
  • बात करतेकरते उस के विचारों को जानें, उसे समझने की कोशिश करें.
  • मोबाइल नंबर लेने के बाद आप उसे गुडमौर्निंगगुडनाइट या दिनभर मैसेज न करें.
  • 2-4 दिन की बात में ही मोबाइल नंबर न दें. हो सकता है वह आप का फोन नंबर ले कर परेशान करे.
  • सोशल प्लेटफौर्म पर बात करते समय अगर फ्रैंड आप का फोटो मांगे तो न दें. फोटो को सेव कर के गलत जगह उस का उपयोग कर आप को ब्लैकमेल कर सकता है.
  • जब आप सोशल प्लेटफार्म से बात कर के उस पर विश्वास कर लें उस के बाद ही अपना मोबाइल नंबर दें.
  • नंबर लेने के बाद आप उस से घंटों बात न करें. आप के घंटों बात करने से वह आप को टाइम पास समझने लगेगा.
  • जब उस पर आप को विश्वास होने लगे तब ही आप उस से कहीं कैफे पर मिले वरना नहीं.
  • दोस्ती के बाद प्रेम और शादी का प्लान है तो लड़के के घर की जानकारी अवश्य लें.ॉ
  • मातापिता से मिलें और स्वयं के मातापिता से भी किसी बहाने से प्रेमी को मिलवाएं.
  • किसी दिन अचानक आप अपनी सहेली के साथ घर भी घूम कर आ जाएं.
  • अगर आप उस के घरपरिवार के व्यवहार से संतुष्ट हैं तो ही आगे कदम बढ़ाएं.

शादी बेहद संवेदनशील और जिंदगी का महत्त्वपूर्ण फैसला होता है. इसे जल्दबाजी और भावनाओं में बह कर न लें. सोचसमझ कर विचार कर के शादी करें. सुखमय जीवन का आधार प्रेम होता है.

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