Sad Story : 3बार घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो मोनिका थोड़ा परेशान हुई क्या बात है, जो कुहू दरवाजा नहीं खोल रही है. उसी ने तो फोन कर के बुलाया था कि मोनिका आ जा, आज मैं फ्री हूं. उमंग कंपनी टूर पर मुंबई गया है. बैठ कर कुछ देर गप्पें मारेंगे.
मैं यहां असम में पति के कार्यालय में काम करने वाले सहकर्मियों की पत्नियों के अलावा किसी और को नहीं जानती थी और कुहू को देखो, उस के जानने वालों की कमी नहीं थी. अपनी बातें कहने के लिए उस के पास दोस्त ही दोस्त थे.
मोनिका और कुहू ने बनारस यूनिवर्सिटी के होस्टल के एक कमरे में 3 साल एकसाथ बिताए थे, इसलिए एकदूसरे पर पूरा विश्वास था. जो
3 साल एक कमरे में एकसाथ रहेगा, वह पक्का मित्र होगा ही. मोनिका और कुहू भी पक्की मित्र थीं. शादी के बाद दोनों फोन और ईमेल से लगातार जुड़ी रहीं. बाद में जब मोनिका के पति की नियुक्ति भी असम में उसी शहर में हो गई, जहां कुहू भी उमंग के साथ रह रही थी, तो…
मोनिका इतना ही सोच पाई थी कि उस के विचारों में विराम लगाते हुए कुहू ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर मुसकान खिली थी. मोनिका का हाथ पकड़ कर अंदर खींचते हुए कुहू ने कहा, ‘‘अरे, कब आई तुम? लगता है कई बार बैल बजानी पड़ी होगी. मैं बैडरूम में थी, इसलिए सुनाई नहीं पड़ा.’’
कुहू के चेहरे पर भले मुसकान खिली थी, पर उस की आवाज से मोनिका को समझते देर नहीं लगी कि वह खूब रोई है. उस के चेहरे पर थोड़ी उदासी के साथ एक निश्चित भाव भी था.
मोनिका ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कुहू, एक बात तो उमंग बिलकुल सच कहता है कि रोने के बाद तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हो जाती हैं.’’
कुहू के चेहरे पर हलकी मुसकान के साथ उस की आंखों के कोर हलके भीगते दिखाई दिए, पर उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘चलो मोनिका चाय पीते हैं.’’
मोनिका ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है कुहू?’’
‘‘अरे कुछ नहीं यार, आज मैं ने एक वायरस को निबटा दिया है, जो जिंदगी की विंडो को खा रहा था…’’
बात तो कुहू ने पूरे दिलासे के साथ शुरू की थी, पर पूरी करतेकरते उस का दिल भर आया था.
मोनिका ने पूछा, ‘‘कहीं तुम आरव की बात तो नहीं कर रही हो?’’
उस ने धीरे से स्वीकृति में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां.’’
आरव उस का कौन था अथवा वह आरव की कौन थी, दोनों में से यह कोई नहीं जानता था. फिर भी दोनों एकदूसरे से सालों से जुड़े थे और उस की तो बात ही निराली थी. वह बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी, पर उस की कालीकाली बड़ीबड़ी आंखों में अनोखा आकर्षण था. कोई भी उसे एक बार देख लेता, तो वह उसी में खो जाता. होंठों पर हमेशा मधुर मुसकान, कभी किसी से कोई लड़ाईझगड़ा नहीं, वह एक अच्छी मददगार थी. उस के मन में दूसरों के लिए दया का विशाल सागर था. वह कभी दूसरों के लिए गलत नहीं सोच सकती थी. वह चंचल और हमेशा खुश रहने वालों में थी.
अपने इसी हंसीमजाक वाले स्वभाव की वजह से एक दिन दोपहर को होस्टल का फोन खाली पड़ा था तो कुहू ने रौंग नंबर लगा दिया. इस के बाद तो उस की आदत सी पड़ गई. जब भी वह फोन खाली पाती, रौंग नंबर लगा कर हंसतीहंसाती रहती.
इसी तरह एक दिन जब उस ने रौंग नंबर लगाया तो दूसरी ओर से ऐसी आवाज आई, जो किसी के भी दिल को भा जाए. उस मनमोहक आवाज में मंत्रमुग्ध हो कर कुहू उस आवाज के स्वामी से इस तरह बातें करने लगी जैसे वह उसे अच्छी तरह जानती हो. थोड़ी देर बातें करने के बाद खुश होते हुए उस ने फोन रखने से पहले कहा, ‘‘तुम से बात कर के अच्छा लगा आरव, तुम से फिर बहुत सारी बातें करूंगी.’’
फोन रख कर कुहू पलटी और मोनिका के गले में बांहें डाल कर कहने लगी, ‘‘आज तो बातें करने में मजा आ गया. आज पहली बार किसी ऐसे लड़के से बात की है, जिस से फिर बात करने का मन हो रहा है.’’
‘‘बस, छोड़ो मुझे जाने दो. मुझे पढ़ना है. मैं तुम्हारी तरह होशियार तो हूं नहीं,’’ मोनिका ने कहा और कमरे में आ गई.
उस के पीछेपीछे कुहू भी आ गई. वह इस तरह खुश थी मानो उस ने आईएएस की परीक्षा पास कर ली हो. कुहू बहुत ज्यादा नहीं पढ़ती थी, फिर भी उस के नंबर बहुत अच्छे आते थे, जबकि मोनिका खूब मेहनत करती थी, तब जा कर उस के अच्छे नंबर आते थे.
उस दिन के बाद कुहू आरव से लगभग रोज बातें करने लगी थी. दिन में कभी 1 बार तो कभी 2 बार उस से बातें जरूर करती थी. उस दिन कुहू कुछ ज्यादा ही खुश थी, जिस दिन आरव उस से मिलने होस्टल आ रहा था, पर मन ही मन वह घबरा भी रही थी, क्योंकि इस से पहले वह किसी लड़के से इस तरह नहीं मिली थी और न आमनेसामने बात की थी. मगर अब तो आरव को आना ही था. उस दिन खुश होने के बावजूद वह काफी बेचैन दिखाई दे रही थी.
11 बजे के आसपास होस्टल के गेट पर बैठने वाली सरला ने आवाज लगाई, ‘‘कुहू, आप से कोई मिलने आया है.’’
मोनिका भी कुहू के पीछेपीछे भागी कि देखे तो कुहू का बौयफ्रैंड कैसा है, क्योंकि वह अकसर मुंह टेढ़ा कर के उस के बारे में बताया करती थी.
आरव काफी सुंदर नौजवान था. दोनों होस्टल के पार्क में एकदूसरे के सामने बैठे थे. मोनिका ने देखा तो शायद आरव सोच रहा था कि वह क्या बात करे. वैसे कुहू के बताए अनुसार वह बातूनी नहीं था. पर किसी लड़की से शायद यह उस की पहली मुलाकात थी, वह भी गर्ल्स हौस्टल में. शायद वह रिस्क ले कर वहां आया था बात करने के लिए.
कुहू भी उत्सुक थी. उस से रहा नहीं गया और उस ने आरव के हाथ के एक काले निशान के बारे में पूछ लिया, ‘‘यह क्या है? स्कूटर की ग्रीस लग गई है या जल गए हैं?’’
आरव मुसकराया. अब उसे बातचीत करने का बहाना मिल गया था. अत: उस ने कहा, ‘‘यह मेरा बर्थ मार्क है.’’
थोड़ी देर तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. उस के बाद आरव चला गया.
वह गीतसंगीत का बहुत शौकीन था. यह कुहू को पसंद नहीं था. उसे सोना अच्छा लगता था.
एक दिन वह सो रही थी, तभी सरला ने आवाज दी, ‘‘कुहू तुम्हारा फोन आया है.’’
थोड़ी देर बाद कुहू बातचीत कर के लौटी तो जोरजोर से हंसने लगी. मोनिका उस का मुंह ताक रही थी. हंस लेने के बाद कुहू ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आज तो आरव ने गाना गाया. उस की आवाज तो बहुत अच्छी है.’’
‘‘कौन सा गाना गाया?’’ मोनिका ने पूछा तो कुहू ने कहा, ‘‘बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदियां, ये रैना और तुम. यही नहीं, वह सिनेमा देखने को भी कह रहा था. मैं मना नहीं कर पाई. यार वह कितना भोला है. थोड़ा बुद्धू भी है यार मोनिका. तुम भी साथ चलना. मैं उस के साथ अकेली नहीं जाऊंगी. ठीक नहीं लगता.’’
आरव कुहू को ओपी नैयर की फिल्म दिखाने ले गया, साथ में मोनिका भी थी. लौट कर मोनिका ने मजाक किया, ‘‘अंधेरे में उस ने तेरा हाथ तो नहीं कपड़ लिया था?’’
कुहू एकदम से चौंक कर बोली, ‘‘क्यों? वह कोई डरने वाली फिल्म तो नहीं थी, जो अंधेरे में डर के मारे मेरा हाथ पकड़ लेता.’’
मोनिका को खूब हंसी आई, पर कुहू समझ नहीं पाई. बोली, ‘‘यार मोनिका, आरव की वकालत नहीं चलेगी तो वह अच्छा गायक बन जाएगा. आज उस ने फिर मुझे एक गाना सुनाया था, ‘आप की आंखों में कुछ महके हुए राज हैं, आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज हैं…’’
मोनिका ने हंसते हुए उसे झकझोर कर कहा, ‘‘कहीं उसे तुम से प्यार तो नहीं हो गया है?’’
कुहू थोड़ी ढीली पड़ गई. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘देख मोनिका, यह प्यारव्यार कुछ नहीं होता बस एक कैमिकल असर होता है… यार तू छोड़ इस बात को, चल खाना खाने चलते हैं.’’
इस के बाद हम पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी में लग गए.
कुहू के पेपर पहले खत्म हो गए तो वह घर जाने की तैयारी करने लगी. सुबह 7 बजे की उस की बस थी. उसे पहुंचाने के लिए मेरी सहेली बिंदु भी बस स्टाप पर आई थी. उसे बस पर बैठाने आरव भी आया था. जातेजाते उस ने अलग ही हाथ मारा. उस ने आरव से खुद तो हाथ मिलाया ही, पकड़ कर बिंदु का भी हाथ मिलवाया.
‘‘मोनिका, सही बात तो मैं वहां से जा नहीं सकी, अभी भी उस का हाथ पकड़े वहीं खड़ी हूं. जब मैं ने हाथ बढ़ाते हुए उस की आंखों में झांका तो उन में जो दिखाई दिया, उसे उस समय मैं समझ नहीं सकी. उस की बातें, उस के सुनाए गाने कानों में गूंज रहे थे. उस ने मेरी सगाई की बात सुनी थी तो उस का चेहरा उतर गया था. मेरा शरीर कहीं भी रहा हो, मन अभी भी वहीं है,’’ आंसू पोंछते हुए कुहू ने कहा और चाय बनाने किचन में चली गई.
उस के पीछेपीछे मोनिका भी गई. उस ने पूछा, ‘‘उस के बाद तुम फेसबुक पर आरव के संपर्क में आई थी क्या?’’
कुहू ने हां में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘होस्टल से घर आने के बाद कुछ ही दिनों में उमंग से मेरी शादी हो गई थी. उमंग बहुत ही अच्छे और नेक पति हैं. उन के जीवन का एक ही ध्येय है कि जीयो और जीने दो. पार्टी के शौकीन उमंग को घूमने और घुमाने का शौक था. वे जहां भी जाते, मुझे अपने साथ ले जाते. बेटे की पढ़ाई का नुकसान न हो, इस के लिए उसे होस्टल में डाल दिया, पर मेरा साथ नहीं छोड़ा.’’
बात सच भी थी. कुहू जब भी मोनिका को फोन करती थी, यही कहती थी कि शादी के 15 साल बाद भी उमंग का हनीमून खत्म नहीं हुआ है. कभीकभी हंसती, मस्ती में डूबी कुहू की आंखों के सामने एक जोड़ी थोड़ी भूरी, थोड़ी कोली आंखें आ जातीं तो वह खो जाती.
ऐसे ही एक रोज उमंग ने कहा, ‘‘चलो हम अपना फेसबुक पेज बनाते हैं और अपने पुराने मित्रों को खोजते हैं. अपने पुराने मित्रों से मिलने का यह बहुत बढि़या उपाय है.’’
इस के बाद दोनों ने अपनेअपने मोबाइल फोन में फेसबुक पेज बना लिया.
एक दिन कुहू अकेली थी और अपने मित्रों को खोज रही थी. अचानक उस के मन
में आया, हो सकता है आरव ने भी अपना फेसबुक पेज बनाया हो. वह आरव को खोजने लगी, पर वहां तो तमाम आरव थे. उस का आरव कौन है, कैसे पता चले. तभी उस की नजर एक चेहरे पर पड़ी तो वह चौंकी. शायद यही है उस का आरव. अब उस के पास उस का कोई फोटो तो था नहीं. बस यादें ही थीं. उस ने उस का प्रोफाइल खोल कर देखी. उस की जन्मतिथि और शहर तो वही था. उस ने तुरंत संदेश बौक्स में अपना परिचय दे कर संदेश भेज दिया. अंत में उस ने यह भी लिख दिया था, ‘‘क्या अभी भी मैं तुम्हें याद हूं.’’
बाद में उसे संकोच हुआ कि अगर कोई दूसरा हुआ तो वह उसे कितना गलत समझेगा. कुहू ने एक बार फिर उस का प्रोफाइल चैक किया और उस के फोटो को देखने लगी तो उस का फोटो देख कर उस की आंखें नम हो गईं. यह तो उसी का आरव है. फोटो में उसे उस के हाथ का वह काला निशान यानी ‘बर्थ मार्क’ दिख गया था.
अगले ही दिन आरव का संदेश आया, ‘‘हां.’ अब इस हां का अर्थ 2 तरह से निकाला जा सकता था- एक हां का मतलब मैं आरव ही हूं और दूसरा यह कि तुम मुझे भी याद हो. मगर कुहू को तो दोनों ही अर्थों में हां दिखाई दी.
कुहू ने इस संदेश के जवाब में अपना फोन नंबर दे दिया. थोड़ी देर में आरव औनलाइन दिखाई दिया तो दोनों ही यह भूल गए कि उनकी जिंदगी 15 साल आगे निकल चुकी है. कुहू 1 बच्चे की मां तो आरव 2 बच्चों का बाप बन चुका है. इस के बाद दोनों में बात हुई तो कुहू ने पूछा, ‘‘आरव, तुम ने अपने घर में मेरी बात की
थी क्या?’’
आरव की मां को कुहू के बारे में पता था कि दोनों में खूब बातें होती हैं. जब उस ने अपनी मां से कुहू की सगाई के बारे मं बताया उस ने राहत की सांस ली थी. यह बात आरव ने ही कुहू को बताई थी. इस पर आरव पर क्या असर पड़ा, यह जाने बगैर ही कुहू खूब हंसी थी. आरव सिर्फ उस का मुंह ताकता रह गया था.
हां, तो जब कुहू ने आरव से पूछा कि उस ने उस के बारे में अपने घर में बताया कि नहीं, तो इस पर आरव हंस पड़ा था. हंसी को काबू करते हुए उस ने कहा, ‘‘न बताया है, न बताऊंगा. मां तो अब हैं नहीं, मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है. इसलिए उस से कुछ भी बताने की हिम्मत मैं नहीं कर सकता.’’
दोनों की चैटिंग और बातचीत का सिलसिला चलता रहा. आरव हमेशा शिकायत करता कि वह उसे छोड़ कर चली गई. इस पर कुहू को पछतावा होता.
बारबार आरव के शिकायत करने पर एक दिन उस ने नाराज हो कर कहा, ‘‘क्यों न चली जाती? क्या तुम ने मुझे रोका था? किस के भरोसे रुकती?’’
आरव ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं, पर अब उस का कोई मतलब नहीं और तुम जो जवाब दोगी वह भी मुझे पता है. फिर भी तुम मुझे बताओ कि अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाता तो तुम मना तो न करतीं? पर आज बात कुछ अलग है.’’
सचमुच इस सवाल का कुहू के पास कोई जवाब नहीं था और कोई भी…
एक दिन आरव ने हंस कर कहा, ‘‘कुहू, कोई समय घटाने की मशीन होती तो हम 15 साल पीछे चले जाते.’’
‘‘अरे मैं तो कब से वहीं हूं, पर तुम कहां हो….’’
‘‘मैं तुम्हारे पीछे खड़ा हूं,’’ आरव ने जोर से हंस कर कहा, ‘‘पर तुम बहुत झूठी हो, मुझे दिखाई ही नहीं दे रही हो,’’ और उस ने एक गाना गाया, ‘बंदा परवर थाम लो जिगर…’’
कुहू भी जोर से हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारी यह गाने की आदत अब तक नहीं गई. अब इस आदत का मतलब खूब समझ में आता है, पर अब इस का क्या फायदा.’’
दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई कि वह जो कर रही है वह गलत है. फिर उस ने सबकुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया और रात में खाने के बाद उस ने सारी सचाई बता दी.
अंत में कहा, ‘‘इस में सारी गलती मेरी ही है. मैं ने ही आरव को ढूंढ़ा और अब मुझ से झूठ नहीं बोला जाता. अब आप को जो सोचना है, सोचिए.’’
पहले तो उमंग थोड़ा परेशान हुआ, पर फिर बोला, ‘‘कुहू, तुम झूठ बोल रही हो. तुम मजाक कर रही हो. सच बोलो… मेरे दिल की धड़कन थम रही है.’’
‘‘नहीं उमंग यह सच है.’’ कुहू ने कहा. उस ने सारी बातें तो उमंग को बता दी थी, पर गाने सुनाने और फिल्म देखने वाली बात नहीं बताई थी. शायद हिम्मत नहीं कर सकी.
उमंग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. कहा, ‘‘जाने दो, कोई प्रौब्लम नहीं है. इस तरह तो होता रहता है. जीवन में यह सब चलता रहता है.’’
अगले दिन कुहू ने सारी बात आरव को बताई तो वह हैरान होते हुए बोला, ‘‘कुहू, तुम बहुत खुशहाल हो, जो तुम्हें ऐसा जीवनसाथी मिला है, जबकि सुरभि ने तो मुझे कैद कर रखा है.’’
‘‘इस में गलती तुम्हारी है, जो तुम अपने जीवनसाथी को विश्वास में नहीं ले सके.’’
‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. मैं ने बहुत कोशिश की. सुरभि भी मेरे साथ वकील है… वह पता नहीं ऐसा क्यों करती है.’’
इस के बाद एक दिन आरव ने कुहू की बात सुरभि से करा दी. उस ने कुहू से तो खूब मीठीमीठी बातें कीं, पर इस के बाद आरव का जीना मुहाल कर दिया.
उस ने आरव से स्पष्ट कहा, ‘‘तुम कुहू से संबंध तोड़ लो वरना मैं मौत को गले लगा लूंगी.’’
अगले दिन आरव का संदेश था, ‘कुहू मैं तुम से कोई बात नहीं कर सकता. सुरभि ने सख्ती से मना कर दिया है.’
उस समय कुहू और उमंग खाना खा रहे थे. संदेश पढ़ कर कुहू रो पड़ी. उमंग ने पूछा तो उस ने बेटे की याद आने का बहाना बना दिया. कितने दिनों तक वह संताप में रही. फोन भी किया, पर आरव ने बात नहीं की. हार कर कुहू ने संदेश भेजा कि एक बार तो बात करनी ही पड़ेगी, ताकि मुझे पता चल सके कि क्या हुआ है.
इस के बाद आरव का फोन आया. बोला, ‘‘मेरे यहां कुछ ठीक नहीं है. तीन दिन हो गए, हम सोए नहीं हैं. सुरभि को हमारी निस्स्वार्थ दोस्ती से सख्त ऐतराज है. अब मैं आप से प्रार्थना कर रहा हूं कि मुझे माफ कर दो. मुझे पता है, इन बातों से तुम्हें कितनी तकलीफ हो रही है और मुझे ये सब कहते हुए भी. विधि का विधान भी यही है… हम इस से बंधे हुए जो हैं.’’
कुहू बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना कह पाई, ‘‘कोई प्रौब्लम नहीं, अब मैं तुम से मिलने के लिए 15 साल और इंतजार करूंगी.’’
‘‘ठीक है,’’ कह कर आरव ने फोन काट दिया.
कूहू ने भी उस का नंबर डिलीट कर दिया और उसे अपनी फ्रैंडलिस्ट स निकाल दिया. कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यार मोनिका, मैं ने उस का नंबर तो डिलीट कर दिय, पर जिस नंबर को मैं पिछले 15 सालों से नहीं भूल सकी उसे इस तरह कैसे भूल सकती हूं. वजह मुझे पता नहीं. मुझे उस से प्यार नहीं था, फिर भी मैं उसे नहीं भूल सकी. उस के लिए मेरा दिल दुखी हुआ है और अब मुझे यह पता नहीं कि इस दिल को समझाने के लिए क्या करूं. मेरी समझ में नहीं आता कि उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, जबकि उसे पता था, फिर भी उस ने ऐसा क्यों किया. बस, जब तक उसे अच्छा लगा, मुझ से बातें करता रहा और जब जान पर आ गई तो तुम कौन और मैं कौन वाली बात कह कर किनारा कर लिया.’’
कुहू इसी तरह की बातें कह कर रोती रही और मोनिका ने भी उसे रोने दिया. उसे रोका नहीं. यह समझ कर कि उस के दिल पर जितना बोझ है, वह आंसुओं के रास्ते बह जाए.
अब मोनिका उस से कहती भी क्या, जबकि वह जानती थी कि वह प्यार ही था, जिसे कुहू भुला नहीं सकी थी. एक बार आरव से उस ने खुद कहा था, ‘‘हम औरतों के दिल में 3 कोने होते हैं- एक में उस का घर, दूसरे में उस का मायका और जो दिल का तीसरा कोना होता है उस में उस की अपनी कितनी यादें संजोई रहती हैं, जिन्हें वह फुरसत के क्षणों में निकाल कर धोपोंछ कर रख देती है.’’
मोनिका सोचने लगी, जो लड़की प्यार को कैमिकल रिएक्शन मानती थी और दिल को मात्र रक्त सप्लाई करने का साधन, उस ने दिल की व्याख्या कर दी थी और अब कह रही थी कि उसे आरव से प्यार नहीं है.
मोनिका ने उसे यही समझाया और वह खुद भी समझतीजानती थी कि उसे जो मिला है,
अच्छा ही मिला है, कोई भी विधि का विधान नहीं बदल सकता. ‘‘दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई
कि वह जो कर रही है वह गलत है.
फिर उस ने सबकुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया…’
लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह