सुखी जीवन के लिए सही आसन

आजकल योग फैशन की तरह लोकप्रिय होता जा रहा है. हर गलीमहल्ले में कोई न कोई योगगुरु शिविर चलाता हुआ मिल जाएगा. भू्रण हत्या से देश में गड़बड़ा गए स्त्रीपुरुष अनुपात की तरह योग सिखाने वाले और सीखने वालों का अनुपात भी ऐसा गड़बड़ा गया है कि अब योग सिखाने वाले ज्यादा और सीखने वाले कम पड़ते जा रहे हैं. इसलिए अब सिखाने वाले योगगुरु विदेशों में खपाए जा रहे हैं.

हम भी आप से योगासनों की बात करेंगे लेकिन घबराइए नहीं. हम आप का ऐसे लेटेस्ट योगासनों से परिचय कराएंगे जिन से आप के मुरझाए वैवाहिक जीवन में वसंतबहार आ जाएगी. विश्वास नहीं है तो खुद ही आजमा कर देख लीजिए. आप के मुख से खुदबखुद निकलेगा कि वाह, योगासन हों तो ऐसे.

बेड टी भार्या नमस्कार : सुबह जल्दी उठ कर गरमागरम चाय बना कर पत्नी के बेड पर ले जाएं. पहले शब्दों को अच्छी तरह चाशनी में डुबोएं फिर पत्नीवंदना करें. सुबहसुबह उठने में सब को कष्ट होता है, आप की पत्नी को भी होगा. वह गुस्सा होंगी लेकिन आप धीरज धरें.

जैसे ही सूर्यमुखी आभा कंबल या रजाई से उदय हो, आप दोनों हाथ जोड़ने वाली मुद्रा में मिलाएं, गरदन को झुकाएं. फिर धीरेधीरे कमर को झुकाते हुए दोनों हाथ जमीन पर टिकाएं. पहले दायां पैर पीछे ले जाएं फिर बायां. हाथों की स्थिति दंड लगाने वाली हो. 3 बार नाक को जमीन पर रगडे़ं फिर धीरेधीरे पहले की स्थिति में आ जाएं.

शुरू में यह आसन 1 या 2 बार करें. अभ्यास होने पर इसे बढ़ाएं. तत्पश्चात गरमागरम चाय का प्याला पत्नी के हाथों में थमाएं. इस से पत्नी की खुशी बढ़ेगी और आप के पेट की चर्बी घटेगी. हाथों को बल मिलेगा. सीना मजबूत बनेगा, जिस पर आप बेलन आदि का वार भी आसानी से झेल सकेंगे.

एक टांगासन : इस आसन में आप खडे़ तो अपनी दोनों टांगों पर ही रहेंगे लेकिन आप की श्रीमतीजी को यह लगना चाहिए कि आप उन के हर आदेश का पालन एक टांग पर खडे़ रह कर करते हैं. इधर उन का मुंह खुला और उधर आप ने आदेश का पालन किया.

यह बहुपयोगी आसन है. इसे आप कहीं भी, कभी भी कर सकते हैं. इस से यह लाभ होगा कि आप की श्रीमतीजी सदा प्रसन्न रहेंगी जिस से घर का माहौल खुशहाल बनेगा. आप का रक्तसंचार ठीक रहेगा. शरीर चुस्तदुरुस्त बनेगा और आप इतने थक जाएंगे कि मीठी नींद के रोज भरपूर मजे लेंगे.

मुक्त कंठ प्रशंसा आसन : इस आसन में आप को अपनी पत्नी की मुक्त कंठ से प्रशंसा करनी होती है मसलन, उन की साड़ी, लिपस्टिक, सैंडिल आदि की. याद रखें, आप की पत्नी की पसंद चाहे जितनी घटिया हो और चाहे जितने फूहड़ तरीके से वह सजतीसंवरती हों, इस से आप को कोई मतलब नहीं होना चाहिए. आप को तो बस, प्रशंसा करनी है.

कई लोग शिकायत करते हैं कि हमारी पत्नी तो किसी एंगल से भी खूबसूरत नहीं लगती. ऐसे में भला हम कैसे प्रशंसा करें, हमें बहुत तकलीफ होती है. तो ऐसे लोगों को सलाह है कि शुरू में तकलीफ जरूर होती है लेकिन अभ्यास होने पर सब ठीक हो जाता है.

अंगरेजी में कहते हैं ‘प्रेक्टिस मेक्स ए मैन परफेक्ट.’ यह आसन जितना मुश्किल लगता है, जीवन में इस के उतने ही लाभ हैं. इसे भी आप कहीं भी, कभी भी कर सकते हैं. इस के बहुत आश्चर्यजनक परिणाम आते हैं. इस से आप की पत्नी इतनी प्रसन्न होती हैं कि आप के वारेन्यारे हो जाते हैं. साथ ही आप की वाक्शक्ति बढ़ती है और कंठ मधुर होता है.

उठकबैठक कान पकड़ासन : आप आफिस से आते वक्त सब्जी, पप्पू की चड्डीबनियान, मुनिया का फ्राक लाना भूल गए हों. पत्नी के भाईबहन, मातापिता का जन्मदिन या विवाह की वर्षगांठ विस्मृत कर गए हों और आप को लगता है कि घर की फिजा बिगड़ जाएगी और उस का परिवार के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पडे़गा तो ऐसे में तुरंत इस आसन को करें.

याद रखें, यह आसन तभी लाभदायक है जब पत्नी आप के सामने हों. पहले दोनों हाथ उठा कर कानों की मालिश करें. दोनों पैरों को एकदूसरे के समानांतर रखें तथा कमर सीधी हो. चेहरे पर ऐसे भाव लाएं जैसे आप से बहुत बड़ा अपराध हो गया हो और आप आत्महत्या करने ही वाले हों. फिर गहरी सांस खींच कर सौरी, माफी, क्षमा आदि शब्दों को दोहराएं और धीरेधीरे सांस छोड़ते जाएं. इस के बाद कान पकड़ कर आहिस्ता से पैरों पर बैठें और तुरंत खडे़ हो जाएं. शुरू में यह 11 बार ही करें, बाद में संख्या बढ़ा सकते हैं. इस से यह लाभ होगा कि श्रीमतीजी को लगेगा कि आप को अपने बच्चे और उन के भाईबहन व मातापिता की बहुत चिंता है. क्राकरी टूटने से बच जाएगी, अलमारी के बर्तन खड़खड़ाएंगे नहीं और कलह टल जाएगी.

उठकबैठक से आप का पेट नियंत्रित रहेगा जिस से आप स्मार्ट लुक पाएंगे. टांगें बलशाली होंगी जिस से आप गृहस्थी का बोझ उठा कर ठीक से चल सकेंगे. कानों की खिंचाई से आप की श्रवणशक्ति बढे़गी.

मक्खन लगनासन : यह आसन बहुत नजाकत वाला है. इस में बहुत अभ्यास की जरूरत पड़ती है. थोड़ी सी जबान फिसली कि बड़ा नुकसान हो सकता है. इस का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से तब तक नहीं करना चाहिए जब तक कि इस में पारंगत न हो जाएं. अकसर अपना काम निकालने के लिए इस आसन का उपयोग किया जाता है.

श्रीमतीजी की हथनी जैसी काया को हिरणी जैसी बताना. उन की मिचमिची आंखों को ऐश्वर्या सी दिखाना. भले ही उन की एडि़यां फटी हों लेकिन आप को यह कह कर मक्खन लगाना है, ‘आप के पैर देखे, बडे़ सुंदर हैं. इन्हें जमीन पर मत रखना वरना गंदे हो जाएंगे.’  साथ ही सास और ससुर को महान बताना. सालेसालियों की बढ़चढ़ कर प्रशंसा करना आदि बातें इस आसन में सम्मिलित हैं. इस से ससुराल वाले खुश होंगे और भविष्य में खतरे की आशंका भी टल जाएगी.

कर्ण खोल जबान बंदासन : इस आसन का उपयोग तब लाभकारी होता है जब आप की श्रीमतीजी एंग्री यंग वूमेन का रूप धर लें. आप को लगे कि अब गरम हवा चलेगी और स्थिति बरदाश्त से बाहर हो जाएगी तब तुरंत अपने दोनोें कान खोल कर और चंचला जबान में गांठ लगा कर पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएं.

जब तक धर्मपत्नी अपने शब्दकोष के समस्त कठोर शब्दों का अनुसंधान न कर ले तब तक एकाग्रचित्त हो कर उन के प्रवचन सुनते रहें. ऐसा करने पर अंत में वह प्रसन्न हो जाएंगी कि आप ने उन की बातों को बहुत गंभीरता से कर्णसात किया. बादल बरसने के बाद मौसम ठंडा और ताजगीपूर्ण हो जाएगा. इस से पत्नी का मन हलका होगा और आप के कानोें का मैल साफ होगा, आप की आत्मा धुल जाएगी और जबान पर नियंत्रण रखने की शक्ति उभर कर आएगी.

इस तरह ऊपर बताए हमारे अचूक योगासनों को जो भी अपनाएगा वह सुख- समृद्धि के साथ चैन की बंशी बजाएगा. वैसे तो ये योगासन पतियों के लिए हैं लेकिन शासकीय सेवक और नेता भी अपने बौस या हाईकमान को खुश करने के लिए इन में से कुछ योगासनों का सदुपयोग करें तो ये उन के लिए भी लाभदायी साबित होंगे.

योग की पोल

पिछले 3 दिनों से रतन कुमारजी का सुबह की सैर पर हमारे साथ न आना मुझे खल रहा था. हंसमुख रतनजी सैर के उस एक घंटे में हंसाहंसा कर हमारे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार कर देते थे.

क्या बताएं, जनाब, हम दोनों ही मधुमेह से पीडि़त हैं. दोनों एक ही डाक्टर के पास जाते हैं. सही समय से सचेत हो, नियमपूर्वक दवा, संतुलित भोजन और प्रतिदिन सैर पर जाने का ही नतीजा है कि सबकुछ सामान्य चल रहा है यानी हमारा शरीर भी और हम भी.

बहरहाल, जब चौथे दिन भी रतन भाई पार्क में तशरीफ नहीं लाए तो हम उन के घर जा पहुंचे. पूछने पर भाभीजी बोलीं कि छत पर चले जाइए. हमें आशंका हुई कि कहीं रतन भाई ने छत को ही पार्क में परिवर्तित तो नहीं कर दिया. वहां पहुंच कर देखा तो रतनजी  योगाभ्यास कर रहे थे.

बहुत जोरजोर से सांसें ली और छोड़ी जा रही थीं. एक बार तो ऐसा लगा कि रतनजी के प्राण अभी उन की नासिका से निकल कर हमारे बगल में आ दुबक जाएंगे. खैर, साहब, 10 मिनट बाद उन का कार्यक्रम समाप्त हुआ.

रतनजी मुसकराते हुए बोले, ‘‘आइए, आइए, देखा आप ने स्वस्थ होने का नायाब नुस्खा.’’

मैं ने कहा, ‘‘यार, यह नएनए टोटके कहां से सीख आए.’’

वह मुझे देख कर अपने गुरु की तरह मुखमुद्रा बना कर बोले, ‘‘तुम तो निरे बेवकूफ ही रहे. अरे, हम 2 वर्षों से उस डाक्टर के कहने पर चल, अपनी शुगर केवल सामान्य रख पा रहे हैं. असली ज्ञान तो अपने ग्रंथों में है. योेग में है. देखना एक ही माह में मैं मधुमेह मुक्त हो जाऊंगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘योगवोग अपनी जगह कुछ हद तक जरूर ठीक होगा पर तुम्हें अपनी संतुलित दिनचर्या तो नहीं छोड़नी चाहिए थी. अरे, सीधीसादी सैर से बढ़ कर भी कोई व्यायाम है भला.’’

उन्होंने मुझे घूर कर देखा और बोले, ‘‘नीचे चलो, सब समझाता हूं.’’

नीचे पहुंचे तो एक झोला लिए वह प्रकट हुए. बड़े प्यार से मुझे समझाते हुए बोले, ‘‘मेरी मौसी के गांव में योगीजी पधारे थे. बहुत बड़ा योग शिविर लगा था. मौसी का बुलावा आया सो मैं भी पहुंच गया. वहां सभी बीमारियों को दूर करने वाले योग सिखाए गए. मैं भी सीख आया. देखो, वहीं से तरहतरह की शुद्ध प्राकृतिक दवा भी खरीद कर लाया हूं.’’

मैं सकपकाया सा कभी रतनजी को और कभी उन डब्बाबंद जड़ीबूटियों के ढेर को देख रहा था. मैं ने कहा, ‘‘अरे भाई, कहां इन चक्करों में पडे़ हो. ये सब केवल कमाई के धंधे हैं.’’

रतनजी तुनक कर बोले, ‘‘ऐसा ही होता है. अच्छी बातों का सब तिरस्कार करते हैं.’’

इस के बाद मैं ने उन्हें ज्यादा समझाना ठीक नहीं समझा और जैसी आप की इच्छा कह कर लौट आया.

एक सप्ताह बाद एक दिन हड़बड़ाई सी श्रीमती रतन का फोन आया, ‘‘भाईसाहब, जल्दी आ जाइए. इन्हें बेहोशी छा रही है.’’

मैं तुरंत डाक्टर ले कर वहां पहुंचा. ग्लूकोज चढ़ाया गया. 2 घंटे बाद हालात सामान्य हुए. डाक्टर साहब बोले, ‘‘आप को पता नहीं था कि मधुमेह में शुगर का सामान्य से कम हो जाना प्राणघातक होता है.’’

डाक्टर के जाते ही रतनजी मुंह बना कर बोले, ‘‘देखा, मैं ने योग से शुगर कम कर ली तो वह डाक्टर कैसे तिलमिला गया. दुकान बंद होने का डर है न. हा…हा हा….’’

मैं ने अपना सिर पकड़ लिया. सोचा यह सच ही है कि हम सभी भारतीय दकियानूसी पट्टियां साथ लिए घूमते हैं. बस, इन्हें आंखों पर चढ़ाने वाला चाहिए. उस के बाद जो चाहे जैसे नचा ले.

एक माह तक रतनजी की योग साधना जारी रही. हर महीने के अंत में हम दोनों ब्लड टेस्ट कराते थे. इस बार रतनजी बोले, ‘‘अरे, मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं. कोई परीक्षण नहीं कराऊंगा.’’

अब तो परीक्षा का समय था. मैं बोला, ‘‘दादा, अगर तुम्हारी रिपोर्ट सामान्य आई तो कल से मैं भी योग को पूरी तरह से अपना लूंगा.’’

बात बन गई. शुगर की जांच हुई. नतीजा? नतीजा क्या होना था, रतनजी का ब्लड शुगर सामान्य से दोगुना अधिक चल रहा था.

रतनजी ने तुरंत आश्रम संपर्क साधा. कोई संतोषजनक उत्तर न पा कर  वह कार ले कर चल पड़े और 2 घंटे का सफर तय कर आश्रम ही जा पहुंचे.

मैं उस दिन आफिस में बैठा एक कर्मचारी से किसी दूसरे योग शिविर की महिमा सुन रहा था. रतनजी का फोन आया, ‘‘यार, योगीजी अस्वस्थ हैं. स्वास्थ्य लाभ के लिए अमेरिका गए हैं. 3 माह बाद लौटेंगे.’’

मैं ठहाके मार कर हंसा. बस, इतना ही बोला, ‘‘लौट आओ यार, आराम से सोओ, कल सैर पर चलेंगे.’’

टेलीविजन बच्चों का दुश्मन

मिश्राजी पत्नी के साथ घर लौटे तो देखा कि उन का छोटा बेटा निशांत हाथ में सौस की टूटी बोतल पकड़े अपने बड़े भाई के कमरे के बाहर गुस्से में तन कर खड़ा है. यह देख कर मिश्रा दंपती हैरत में पड़ गए. उन के बारबार आवाज लगाने पर बड़े बेटे प्रशांत ने दरवाजा खोला. पूछताछ करने पर पता चला कि उन की गैरमौजूदगी में दोनों भाइयों में घमासान हुआ था और निशांत मेज पर रखी सौस की बोतल तोड़ कर प्रशांत को मारने के लिए उस के पीछे दौड़ा था.

एक शाम जब अंकित के मातापिता किसी पार्टी में गए थे तो उस ने टेलीविजन पर एक ऐसे हत्यारे पर बना कार्यक्रम देखा जिस ने उस की उम्र के 9 बच्चों का अपहरण कर उन की हत्या कर दी थी. अंकित बुरी तरह डर गया. अब वह अकेले अपने कमरे में सोने के बजाय अपने मातापिता के साथ सोने की जिद करने लगा. उस ने हकलाना शुरू कर दिया और वह लगभग रोज ही बिस्तर गीला करने लगा.

आज निशांत, प्रशांत और अंकित जैसे न जाने कितने बच्चे हैं जो टेलीविजन पर दिखाई जा रही हिंसा, सेक्स और नशे के दृश्यों को देख कर उन से प्रभावित हो रहे हैं. इस प्रकार के कार्यक्रम बच्चों के संवेदनशील दिमाग पर क्या प्रभाव डालेंगे और आगे चल कर किन मानसिक रोगों का वे शिकार होंगे यह सोचना अब बहुत जरूरी हो गया है.

ज्यादातर मातापिता अपने बच्चों की टेलीविजन देखने की लत से परेशान हैं. आमतौर पर हर परिवार में टेलीविजन पर रोक लगाने के लिए जंग छिड़ती रहती है पर क्या हम सब ऐसा कर पाते हैं.

बच्चों को क्या दोष दें. हम खुद भी टीवी पर दिखाए जा रहे बेसिरपैर के धारावाहिकों को देखने के लिए बेचैन रहते हैं और बातें करते हैं सासबहू के उन पैतरों की जिन का कोई अंत ही नहीं है.

मेरी दिली तमन्ना है कि मैं अपने घर से टेलीविजन को हटा दूं या फिर कम से कम ‘केबल’ का तार तो नोच कर फेंक ही दूं. मेरे जैसे सोचने वाले कई समझदार परिवार और भी हैं, लेकिन हम ऐसा कर नहीं पाते हैं, क्योंकि घर में टेलीविजन का न होना हमारी सामाजिक मर्यादा के खिलाफ है. अगर घर में टीवी नहीं होगा तो बच्चे अपने साथियों के बीच बुद्धू नजर आएंगे क्योंकि वे कार्टून चैनल पर दी जा रही अतिउपयोगी जानकारी से वंचित रह जाएंगे.

यह सही है कि कभीकभार टेलीविजन पर दिखाए जा रहे कुछ कार्यक्रम काफी मनोरंजक और शिक्षाप्रद होते हैं लेकिन अधिकतर कार्यक्रम नका- रात्मक ही होते हैं. बच्चे उन्हें न ही देखें तो अच्छा है.

अधिक टेलीविजन देखने वाले बच्चे सृज- नात्मक क्षेत्रों में पिछड़ जाते हैं. उन में सहज स्वाभाविक ढंग से कुछ नए के बारे में जानने और कल्पना करने की शक्ति की कमी होती है तथा वे दिमागी कसरत कराने वाली समस्याओं को सुलझाने में आमतौर पर असमर्थ साबित होते हैं.

टेलीविजन खोलते ही दिमाग का दरवाजा बंद हो जाता है और आप दुनिया से बेखबर स्क्रीन पर आंखें गड़ाए घंटों एक से दूसरे चैनल पर भटकते रहते हैं. ज्यादा टीवी देखने वाले बच्चे, जवान व बूढ़े अपनेआप में सिमट जाते हैं.

पिछले कुछ सालों में बच्चों एवं युवाओं में कई मानसिक विकृतियां बढ़ी हैं. इन में से प्रमुख हैं एकाग्रता की कमी, उत्तेजना, नर्वसनेस, घबराहट और असामाजिक व्यवहार आदि. लगातार टीवी देखने से आंखों पर जोर पड़ता है जिस से सिरदर्द एवं माइग्रेन की शिकायत हो सकती है. नींद पूरी न होने से बच्चों में पढ़ाई के प्रति अरुचि बढ़ती है.

आजकल कई मातापिता यह शिकायत ले कर डाक्टरों के पास आते हैं कि उन के बच्चे ने 2 साल का हो जाने के बावजूद बोलना शुरू नहीं किया. चिकित्सकों का कहना है कि देर से बोलने का कारण मातापिता का उन से कम बोलना है. अगर मातापिता दोनों ही कामकाजी हैं और उन का शाम का सारा समय टीवी के सामने गुजरता है तो बच्चे में ‘स्पीच डिले’ होना कोई अचरज की बात नहीं है.

आप यह बात अच्छी तरह समझ लें कि छोटे बच्चे टेलीविजन देख कर भाषा नहीं सीख सकते. ‘स्पीच डिले’ वाले बच्चों के मातापिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे से अधिकाधिक बोलें, उस से ‘बातचीत’ का कोई भी मौका हाथ से न जाने दें. रंगीन चित्रों वाली किताबों से उसे कहानियां सुनाएं, दुनिया के बारे में जानकारी दें.

बच्चों पर टेलीविजन के दुष्प्रभाव के बारे में अनेक शोध प्रकाशित हो चुके हैं. टेलीविजन पर दिखाए जा रहे हिंसात्मक कार्यक्रमों और नई पीढ़ी में बढ़ रही उद्दंडता व आक्रामक व्यवहार में सीधा रिश्ता है. टीवी कार्यक्रमों की नकल कर अपराध करने के कई मामले प्रकाश में आए हैं.

दूसरी तरफ कुछ बच्चों को टीवी पर दिखाए जा रहे ‘स्टंट्स’ के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी. शक्तिमान की नकल हो या सुपरमैन की तरह उड़ने की चाह, अकारण कई मासूमों ने छतों से कूद कर मौत को गले लगा लिया.

टेलीविजन एक अति प्रभावशाली माध्यम है जोकि शिक्षित भी करता है और भ्रमित भी. इस के जरिए बच्चे उन बातों पर भी सहज भरोसा कर लेते हैं जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इसलिए टीवी जगत की जिम्मेदारी बनती है कि वह अनावश्यक, उत्तेजक, अतिहिंसक और बच्चों को बरगलाने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाए.

आज हकीकत यह है कि आप को टेलीविजन से समझौता करना ही पड़ेगा क्योंकि यह अब आप के घर से बाहर जाने वाला नहीं है. आप चाहें तो भी इसे अपनी जिंदगी से हटा नहीं सकते परंतु टेलीविजन हम सब की जिंदगी चलाए यह भी जरूरी नहीं.

फिर से नहीं: भाग-6

अब तक आप ने पढ़ा:

प्लाक्षा और विवान में गहराई तक दोस्ती थी. बात शादी तक पहुंचती, इस से पहले ही दोनों का ब्रेकअप हो गया. कुछ साल बाद दोनों की फिर से मुलाकात हुई, जो बढ़ती ही गई. अपनीअपनी शादी रुकवाने के लिए दोनों ने एकदूसरे के घर वालों के सामने नाटक किया और कुछ दिनों तक के लिए शादी रुकवा ली. उधर जिस लड़की साक्षी को विवान ने अपनी मंगेतर बताया था, उसे प्लाक्षा के बचपन के एक दोस्त आदित्य ने भी अपनी मंगेतर बता कर प्लाक्षा की उलझनें बढ़ा दी थीं. उन दोनों को एकसाथ प्लाक्षा ने मौल में भी खरीदारी करते देखा था. पर जब इस बात की जानकारी उस ने विवान को दी तो विवान ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्लाक्षा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. जब वह विवान से मिली तो यह सुन कर और भी हैरान रह गई कि यह सब उस ने उसे ही पाने के लिए किया था.

विवान के बारबार झूठ बोलने की वजह से प्लाक्षा का उस से मोहभंग हो चुका था. विवान के बारबार मनाने के बावजूद भी दोबारा जुड़ने और शादी करने को ले कर प्लाक्षा ने साफसाफ मना कर दिया था. आंखों में आंसू लिए विवान वापस लौट गया और फिर कभी उसे फोन नहीं किया.

कुछ दिनों बाद अपने मम्मीपापा की बारबार विवाह करने की जिद पर वह एक लड़के वाले के घर मिलने जाने के लिए तैयार हो गई. एक दिन जब प्लाक्षा अपने मम्मीपापा के साथ लड़के वाले के यहां पहुंची तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. प्लाक्षा के मम्मीपापा उसे जिस लड़के वाले के यहां ले कर आए थे, वह तो विवान का ही घर था. वहां भी विवान उसे अकेले में कमरे में मिला तो रोरो कर उस की आंखें लाल हो गई थीं. विवान अपने किए पर शर्मिंदा था और बारबार प्लाक्षा से माफी मांग रहा था. प्लाक्षा ने शादी के लिए उस वक्त हां कर दी.

– अब आगे पढ़ें:

 

मेरे लिए यह सब किसी सपने से कम नहीं था. उस दिन तो अचानक सारा सच सामने आ जाने के कारण कुछ महसूस नहीं कर पा रही थी. लेकिन आज यह सब मुझे अच्छा लग रहा था. आज लग रहा था कि मैं खास हूं. कोई मुझ से इतना प्यार करता है और सब से बड़ी बात यह कि वह और कोई नहीं बल्कि विवान है, जिस से मैं ने अपनी जिंदगी में सब से ज्यादा प्यार किया है.

‘‘थैंक्यू सो मच प्लाक्षा. अब आखिरी और सब से अहम सवाल,’’ एक पल को चुप्पी छा गई. मेरा दिल बहुत जोरजोर से धड़क रहा था, क्योंकि मुझे पता था कि वह क्या पूछने वाला था. वह उस की आंखों में साफ लिखा था. यह पहली बार नहीं था कि वह मुझ से यह पूछने वाला था, लेकिन उस दिन मैं कोई और ही थी. आज विवान के आंसुओं ने मेरा कड़वापन धो दिया था. आज मैं फिर से उस की पहले वाली प्लाक्षा बन गई थी, जो उस के मुंह से प्यार भरे शब्द सुनने को हर पल बेकरार रहती थी. कई दिनों बाद मेरी आंखों में फिर से वही हसरत थी. आखिरकार उस ने खामोशी तोड़ी.

‘‘तुम तो जानती हो प्लाक्षा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मेरी अब तक की हरकतों से तो शायद तुम्हें समझ आ ही गया होगा,’’ विवान मासूमियत से बोला.

मैं हंस पड़ी. सच में अब उस की हरकतें याद कर के मुझे हंसी आ रही थी. अब गुस्सा कहीं नहीं था. बस यह लग रहा था कि उस ने जो कुछ भी किया मेरे लिए किया. मुझे यह बताने के लिए किया कि मैं उस के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हूं. उस के एकएक शब्द से मेरे शरीर में अजीब सी लहर दौड़ रही थी.

‘‘पहले शायद मैं तुम्हारे प्यार को समझ नहीं पाया, लेकिन जिस दिन से समझ आया तो जीना दुश्वार हो गया. तुम्हें पाने का जनून सा सवार हो गया. उसी जनून में न जाने क्याक्या कर गया.’’

मैं बस मुसकरा रही थी. वह बोलता जा रहा था और आज मैं बस उसे सुनना चाहती थी.

‘‘तुम ने मुझ से बहुत प्यार किया है प्लाक्षा. उस का हिसाब तो मैं जीवन भर नहीं चुका सकता. बस इतनी कोशिश कर सकता हूं कि हमेशा तुम्हें और तुम्हारे प्यार को पूरी अहमियत दे पाऊं. मैं तुम से प्यार करता हूं प्लाक्षा और हमेशा करता रहूंगा.’’

मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े. लेकिन इस बार ये दुख के नहीं, बल्कि खुशी के थे.

‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं विवान. मैं ने हमेशा सिर्फ और सिर्फ तुम से ही प्यार किया है और जिंदगी भर करती रहूंगी,’’ मैं उस से लिपट कर रो पड़ी. आज अपने अंदर का सारा जहर निकाल देना चाहती थी. उस की बांहों का एहसास मुझे सुकून दे रहा था. एक यही वह जगह थी जहां मुझे शांति मिल सकती थी. वह हौलेहौले मेरी पीठ सहला रहा था. धीरेधीरे मेरे आंसुओं का सैलाब थमने लगा. आज सालों बाद उस का स्पर्श पा कर लग रहा था जैसे मैं फिर से जी उठी थी.

‘‘प्लाक्षा, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ उस ने मुझे बांहों में लिए हुए ही पूछा.

‘‘शादी? मम्मीपापा को तो मैं ने शादी के लिए मना कर दिया था. अब फिर से क्या कहूंगी उन से? वे तो किसी और के साथ मेरी बात चला रहे थे,’’ मैं उस की बांहों से निकल कर हकीकत में आ गई, ‘‘क्योंकि मैं ने उन से कह दिया था कि हमारा ब्रेकअप हो गया है.’’

मेरी बात सुन कर वह परेशान होने के बजाय हंस पड़ा.

फिर बोला, ‘‘अरे हां, एक बात बताना तो मैं भूल ही गया. मैं ने तुम से एक और बात छिपाई है.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने संदेह से उस की तरफ देखा.

‘‘मैं तुम्हारे मम्मीपापा से पहले मिल चुका हूं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मेरे साथ ही तो गए थे.’’

मैं उस की बात बीच में ही काट कर बोला, ‘‘उस से भी पहले मैं उन से मिला था, अपने मम्मीपापा के साथ अपनी शादी की बात करने के लिए,’’ वह हलकी मुसकान के साथ डरते हुए मुझे देख रहा था.

‘‘क्या?’’ पिछले कुछ दिनों में क्याक्या कर गया था विवान. और मम्मीपापा ने भी मुझे कुछ नहीं बताया.

‘‘हां बेटा यही है वह लड़का जिसे हम ने तेरे लिए पसंद किया था,’’ मम्मी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा. पापा और विवान के मम्मीपापा भी अंदर आ चुके थे.

‘‘बेटा, पहली बार विवान जब अपने मम्मीपापा के साथ हमारे घर आया तो हमें भी कुछ अटपटा लगा. मैं तो इसे पहले से जानती ही थी, कुछ तुम ने भी इस के बारे में बताया था. इस से बात करने पर पहले तो यह हमें नहीं जंचा. लेकिन खुशी इस बात की थी कि कोई हमारी बेटी से इतना प्यार करता है कि उस के लिए कुछ भी करने को तैयार है. फिर भी हम शंकित तो थे ही. जब तुम ने इसे घर बुलाया तब हम जानते थे कि तुम दोनों नाटक कर रहे हो. उस दिन विवान की बातें सुन कर यकीन हो गया कि वह तुम से कितना प्यार करता है.’’

कितना कुछ हो रहा था मेरी पीठपीछे और मुझे कोई खबर ही नहीं थी. बड़ी होशियार समझती थी खुद को. मगर आज इन सब ने मिल कर कितनी सफाई से मुझे बेवकूफ बना दिया था.

‘‘लेकिन हमारे लिए यह जानना ज्यादा जरूरी था कि तुम्हारे मन में क्या है. मैं ने कई बार तुम्हारे मन को टटोलने की कोशिश की और हर बार यही पाया कि तुम विवान से अपने प्यार को दबाती रही हो.’’

मां मेरे पास आ कर बैठ गईं और मेरा सिर सहलाने लगीं. फिर बोलीं, ‘‘जब तुम ने ब्रेकअप की खबर सुनाई तो मैं घबरा ही गई थी. मैं ने उसी वक्त विवान को फोन लगाया, तो उस ने बताया कि तुम ने साक्षी को देख लिया है. उसे मैं ने हमारे दिल्ली आने के प्लान के बारे में बताया और आगे कुछ भी करने को मना कर दिया. मुझे लगा कि तुम दोनों की आमनेसामने अच्छे से बात कराने से ही सब कुछ ठीक होगा. लेकिन फिर तुम ने साक्षी और आदित्य को साथ देख लिया जिस से मामला और बिगड़ गया.

‘‘विवान तो बिलकुल हिम्मत हार चुका था लेकिन हम ने प्लान में कोई बदलाव नहीं किया. यहां आ कर तुम्हें देखा तो यह भी विश्वास हो गया कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं सही है. हम जानते थे कि तुम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हो. बस कुछ गलतफहमियां और अहं ही बीच में आ रहा है. जब आमनेसामने बैठ कर एकदूसरे की दिल की बात सुनोगे तो सब ठीक हो जाएगा.’’

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया करूं. सब को सब कुछ पता था, एक मैं ही इन सारी बातों से अनजान थी. सब मेरी तरफ देख कर मुसकरा रहे थे. विवान माफी मांगने के अदांज में मेरी तरफ देख रहा था. मैं कुछ कहूं उस से पहले ही पापा बोल पड़े, ‘‘तुझे जितना गुस्सा आ रहा है उसे इस विवान पर निकालना. यही मुजरिम है तेरा. हम बस तुम्हें खुशी देना चाहते थे. इसी ने हमें झूठ बोलने पर मजबूर किया. अब जी भर के इस की पिटाई करो,’’ सब हंस पड़े साथ में मैं भी.

विवान के मम्मीपापा ने भी उन का साथ देते हुए कहा, ‘‘हमारी बातों का कुछ बुरा लगा हो, तो माफ कर देना बेटा. हम तो बस इस के कहे अनुसार चल रहे थे. यही तुम्हारा गुनहगार है. अब तुम ही इस से निबटो,’’ इतना कह कर वे सब बाहर चले गए.

एक बार फिर हम दोनों अकेले थे. विवान मेरे पास आ कर बैठ गया. टेबल से अंगूठी उठा कर मेरे सामने कर दी और बोला, ‘‘अब तो हां कर दो या अब भी कोई ऐतराज है?’’

मैं ने हामी में सिर हिलाया, ‘‘अब क्या, अब तो सब कुछ साफ हो गया न? अब क्या बचा है?’’ वह फिर से नर्वस दिखने लगा.

‘‘वादा करो अब कभी मुझे परेशान नहीं करोगे, झूठ नहीं बोलोगे और…’’ मैं ने गंभीरता से कहा.

‘‘और?’’ उस ने पूछा.

‘‘और रोज मुझे दिन में कम से कम एक बार ‘आई लव यू’ कहोगे. कभी गुस्सा हुए तब भी,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘पक्का,’’ कह कर उस ने मुझे सीने से लगा लिया. अब मुझे कोई डर नहीं था. उस की आंखें, उस का स्पर्श, उस की खुशी सब कुछ एक ही बात कह रहे थे कि वह अब कभी मेरा दिल नहीं दुखाएगा. उस की बांहों का घेरा यही सुकून दे रहा था कि अब फिर से मुझे कभी प्यार के लिए तरसना नहीं पड़ेगा.

रिश्ता कागज का: भाग-2

अब तक आप ने पढ़ा:

आईएएस की कोचिंग के लिए पारुल दिल्ली के एक गर्ल्स होस्टल में रहती थी. एक दिन जब वह कोचिंग के लिए निकली तो तेज बारिश में फंस गई और एक घर के सामने बारिश से बचने के लिए खड़ी हो गई. तभी एक बच्ची गेट पर आई और उस की गोद में जा बैठी. वह बच्ची को छोड़ने घर के अंदर गई तो एक आंटी ने उसे बताया कि यह उस की नातिन है. अब पारुल रोज ही वहां जाने लगी. वहां उस की मुलाकात डाक्टर प्रियांशु से हुई, जिस ने पारुल को अपने साथ शादी करने का प्रस्ताव दे डाला. घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था. अत: दोनों की शादी हो गई. वह चाहती थी कि उस मासूम बच्ची की मां प्रियंवदा तो नहीं रही पर बच्ची के पिता शेखर को उस के प्यार से महरूम न किया जाए. एक दिन शेखर का पता मिला तो उस ने उसे पत्र लिख दिया…

– अब आगे पढ़ें…

करीब 1 माह बाद दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने जा कर देखा तो कोई आदमी खड़ा था. बोला, ‘‘डाक्टर प्रियांशु, श्रीमती पारुल और कमला देवी को बुलाइए, कोर्ट का समन है. मम्मीजी भी तब तक आ गई थीं. हम ने अपने नाम उसे बताए. तब मुझे और मम्मीजी को उस ने कुछ कागज दिए. एक कौपी प्रियांशुजी के लिए थी. हमारे दस्तखत ले कर चला गया. मैं ने जब उन कागजों को देखा तो लगा चक्कर आ जाएगा. शेखर ने हम पर केस किया था कि हम उस के नाम का उपयोग प्रियंवदा की नाजायज बच्ची के लिए करना चाहते हैं और उस को बदनाम कर उस की दौलत ऐंठना चाहते हैं.

और तो और इस में प्रिया को भी जोड़ा था और उस के नाम के आगे जो लिखा था उसे देख कर तो मेरा हृदय चीत्कार कर उठा. लिखा था- प्रतिवादी क्रमांक 4 प्रिया उम्र 7 माह, आत्मजा नामालूम. उफ मैं तो रो पड़ी. मम्मीजी भी चुपचाप आंसू बहाए जा रही थीं. उन कागजों के साथ मेरी चिट्ठी की फोटोकौपी भी लगी थी, जिस को आधार बना कर उस दुष्ट इनसान ने कोर्ट से सहायता मांगी थी कि हम लोगों को प्रिया के

पिता के रूप में उस का नाम लिखने से निषेधित किया जाए और इस बात की घोषणा की जाए कि प्रिया उस की बेटी नहीं है और हम से मानहानि करने के रूप में कुछ हरजाना भी मांगा था. उफ, कोई इतना नीचे गिर सकता है, मेरी सोच के परे था.

तभी मम्मीजी ने फोन कर के प्रियांशुजी को बुला लिया. उस दिन पहली और शायद आखिरी बार मैं ने इन को गुस्सा होते देखा.

मेरे कंधे जोर से पकड़ कर बोले, ‘‘क्या जरूरत थी उस कमीने को कुछ लिखने की? वह इनसान है ही नहीं. पहले प्रियंवदा को फंसाया, फिर जब देखा कि पापा ने उसे नहीं अपनाया तो कुछ मिलने की आशा न देख उसे प्रिया के जन्म के कुछ दिन पहले बेसहारा छोड़ गया. बिना कुछ खाएपीए मेरी बहन बेहोश थी. जब पड़ोसियों ने सरकारी हौस्पिटल में भरती करवाया तो शुक्र था कि मेरा एक साथी उस हौस्पिटल में नौकरी कर रहा था, जिस ने प्रियंवदा को मेरे घर पर कभी देखा था. उस ने मुझे फोन किया. मैं जा कर अपनी बहन को लाया. सोचो जिस का पिता इतना बड़ा डाक्टर, भाई विदेश से डिग्री ले कर आया, पिता का इतना बड़ा हौस्पिटल और वह अनाथों की तरह गंदे कपड़ों में कई दिनों की भूखीप्यासी सरकारी हौस्पिटल में थी. हम लोग जब तक उसे ले कर आए बहुत देर हो चुकी थी. बच्ची को जन्म देते ही उस की मृत्यु हो गई. पापा को भी इस बात का बहुत सदमा लगा कि समय रहते उन्होंने अपनी बेटी की खबर नहीं ली.’’

कुछ देर ठहर कर इन्होंने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘और जब हम प्रियंवदा की मौत की खबर देने के लिए उस के घर मेरठ गए और अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए चलने की प्रार्थना की तब उस कमीने ने साफ मना कर दिया. उस के पिता ने कहा कि देखिए, जो होना था हो गया अब आप लोग इस बात का प्रचार मत करिए. मेरे बेटे के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे हैं. आप की लड़की के चक्कर में वैसे ही वह हम से इतने दिन दूर रहा. उस की शादी हम ने तय कर दी है. दिल्ली के ही पुराने खानदानी लोग हैं. आप लोग जाइए… तमाशा मत करिए… मैं और पापा वापस आ गए और उस सदमे से ही पापा 5 दिन बाद चल बसे,’’ सांस ले कर इन्होंने फिर मुझे गुस्से से देख कर कहा, ‘‘उस कमीने का मैं नाम भी दोबारा सुनना नहीं चाहता था और तुम ने यह क्या कर दिया?’’

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मैं नि:शब्द रोती रही. यह मुझ से क्या अनर्थ हो गया. बहुत देर तक सब यों ही बैठे रहे. फिर मैं ने ही आंसू पोंछ कर प्रियांशु से कहा, ‘‘वकील अंकल से सलाह कर लेते हैं.’’

मम्मीजी ने भी कहा, ‘‘हां बेटा, वकील साहब से मिल लो जा कर. फिर देखेंगे क्या

करना है.’’

ये चुपचाप मेरे साथ चल दिए. हम दोनों वकील अंकल के घर पहुंचे, जिन के घर और औफिस मैं शादी के पहले जाया करती थी. उन के साथ कभीकभी कोर्ट भी जाती थी. अंकल अपने घर के सामने बने औफिस में ही थे. हम दोनों ने उन के सामने सारे पेपर्स रख दिए.

अंकल ने सारे पेपर्स ध्यान से पढ़े और बोले, ‘‘घबराने की बात नहीं. शादी को साबित करना पड़ेगा. शादी का कोई फोटो या प्रमाणपत्र ले आओ. बच्ची का जन्म प्रमाणपत्र तो है ही.’’

यह सुन कर पहली बार प्रियांशुजी ने बोला, ‘‘फोटो तो जो बहन ने भेजा था पापा ने गुस्से में फाड़ दिया था और प्रमाणपत्र भी शायद नहीं है.’’

यह सुन कर अंकल सोच में पड़ गए. बोले, ‘‘यह आदमी बहुत शातिर लगता है. पूरी तैयारी के बाद ही कोर्ट गया होगा. कोई बात नहीं इन

की शादी का कोई गवाह देख लो… कोई दोस्त, पंडित या पड़ोसी. उन की गवाही हम पेश कर सकते हैं.’’

सारी जानकारी ले कर और जरूरी गवाहों की लिस्ट बना कर हम लोग निकल पड़े. लगातार 4-5 दिन प्रियंवदा के दोस्त और पड़ोसियों को ढूंढ़ते रहे. परंतु इतना आसान नहीं था दिल्ली जैसे शहर में ऐसा कोई मंदिर और पंडित ढूंढ़ना. सब जगह तलाश किया, कहीं भी कोई प्रमाण नहीं मिला. प्रियंवदा के जो कुछ दोस्त मिले उन को तो उस की शादी और प्यार के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. सब ने यही कहा कि वह तो बहुत चुपचाप रहती थी और शेखर जैसे लड़के से तो प्यार कर ही नहीं सकती थी. शेखर के कुछ दोस्तों को उन के साथ घूमने की जानकारी थी पर शादी की किसी को खबर नहीं थी. जहां वे लोग रहते थे और जिन पड़ोसियों ने प्रियंवदा को बीमार हालत में हौस्पिटल में भरती करवाया था वे भी घर बदल कर कहीं चले गए थे. 7 दिन तक दिनरात भटकने के बाद हम फिर अंकल के सामने थे. एक भी प्रमाण नहीं था हमारे पास. प्रिया का जन्म प्रमाणपत्र था पर उस के बारे में ही शेखर ने आरोप लगाया था कि प्रियंवदा के पिता और भाई ने जानबूझ कर उस के नाम का उपयोग किया और अपना हौस्पिटल होने का फायदा उठाया. अब क्या करें किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था.

अंकल ने कहा, ‘‘कोर्ट में सुबूत पेश करने होते हैं. शेखर ने तो लिखा ही है कि वह कालेज छोड़ने के बाद मेरठ चला गया था और अपने पापा के साथ व्यापार कर रहा है. दिल्ली आया ही नहीं और जरूर उस ने कुछ झूठे कागज भी बनवा लिए होंगे. उन्हें झूठा साबित करने के लिए हमारे पास कुछ नहीं.’’

प्रियंवदा के सामान में एक फोटो तक नहीं मिला था, जिस में दोनों साथ हों. मुझे तो गुस्सा भी आ रहा था दिल्ली जैसे शहर में पढ़ने वाली लड़की इतनी मूर्ख और नासमझ कैसे हो सकती है कि चुपचाप शादी कर ली. बच्चा भी होने वाला था, फिर भी कुछ नहीं सोचा. खैर, अंकल ने आगे कहा कि हम प्रोटैस्ट तो कर ही सकते हैं. प्रियांशु ने पूछा कि यदि वह जीत गया तब क्या परिणाम हो सकता है? अंकल ने और मैं ने समझाया कि प्रिया को अपने पिता की संपत्ति नहीं मिलेगी और उस के नाम के आगे से शेखर नाम हट जाएगा.

बहुत देर सोचने के बाद प्रियांशुजी ने कहा, ‘‘प्रिया को संपत्ति तो अपनी मां की इतनी मिलेगी कि उस कमीने की संपत्ति की जरूरत नहीं है और अच्छा है उस का नाम प्रिया के नाम से हट जाए.’’

तब अंकल ने कहा कि फिर तो आप कोर्ट में उपस्थित ही मत होइए. तब कोर्ट एकपक्षीय डिक्री उसे दे देगा. मेरा मन इस बात के लिए तैयार नहीं था, पर और कोई चारा भी नहीं था. हम लोग वापस आ गए. मैं जब भी प्रिया को देखती तो कोर्ट के कागज में लिखा आत्मजा नामालूम मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह पड़ने लगता और मेरे आंसू निकल जाते. न मैं वह चिट्ठी शेखर को लिखती न यह सब होता. यह मैं ने क्या कर दिया, यही सोचते हुए मेरे दिनरात निकल रहे थे. एक दिन फिर डाक से 2-3 पत्र आए. एक शेखर का था, जिस के साथ कोर्ट के निर्णय की कौपी थी, जिस में घोषणा की गई थी कि प्रिया, उम्र 7 माह, आत्मजा नामालूम शेखर की पुत्री नहीं है और मुझे प्रियांशु, मम्मीजी और प्रिया को शेखर के नाम का उपयोग प्रिया के पिता के रूप में करने से स्थाई रूप से निषेधित किया गया था. कानून की जानकार होने के बाद भी मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं था कि कोई कोर्ट कैसे रिश्तों की घोषणा कर सकता है और दूसरा पत्र जन्ममृत्यु पंजीकरण औफिस का था कि कोर्ट का और्डर मिलने पर उन्होंने प्रिया के नाम के आगे से उस के पिता के रूप में लिखे शेखर का नाम हटा कर आत्मजा नामालूम लिख दिया.

मैं बहुत देर तक यों ही बैठी रही. समझ ही नहीं आया मम्मीजी को कैसे इन पत्रों के बारे में बताऊं. फिर जब रहा नहीं गया तो प्रिया को गोद में उठाए फिर से अंकल के औफिस पहुंच गई. इस बार अंकल भी मेरी बात से सहमत थे. वापसी में मेरे हाथों में कुछ कागज थे जिन को जा कर प्रियांशुजी और मम्मीजी के सामने रख दिया और उन से उन पर हस्ताक्षर करने को कहा. दोनों ने ही प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी तरफ देखा. मैं ने उन से कहा, ‘‘यह मेरा अनुरोध है कि मैं प्रिया को गोद ले कर अपनी बेटी बनाना चाहती हूं.’’

मम्मीजी ने रोते हुए मुझे गले लगा लिया. प्रियांशुजी भी भीगी आंखों से मुझे देखते रहे. दोनों ने हस्ताक्षर करने में देर नहीं की. फिर तो जैसे मेरे पंख लग गए. अब काम बड़ा आसान था. मम्मीजी को प्रिया का संरक्षक बना कर हम ने गोद लेने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया और किसी को सूचना देने की जरूरत नहीं थी. कोर्ट ने भी 1 माह के अंदर प्रिया को हमारी दत्तक पुत्री घोषित कर दिया.

मेरे मन को कुछ ठंडक तो मिली, परंतु अब एक दूसरा भय मेरे मन में सवार हो गया था कि नौकर और पड़ोसी कहीं प्रिया के बड़े होने पर उसे असलियत न बता दें. तभी प्रियंक के आने की आहट भी मिल गई. मैं खुश रहने के बदले दिन भर सोच में डूबी रहती. मम्मीजी और प्रियांशुजी ने बहुत कोशिश की मुझे समझाने की पर न जाने मुझे क्या हो गया था. हार कर प्रियांशुजी ने पापा को रायपुर से बुलवाया. दोनों मिल कर मुझे मनोचिकित्सक के पास ले गए. उन की सलाह पर प्रियांशु ने दिल्ली से कहीं दूर बसने का निर्णय लिया. फिर पापा के अनुरोध पर वे दिल्ली की सारी संपत्ति बेच कर रायपुर आ गए. पापा के हौस्पिटल को नए ढंग से बनवा लिया था. पापा का घर तो वैसे ही बहुत बड़ा था. उस में कुछ सुधार कर मम्मीजी के दिल्ली के घर की तरह ही साजसज्जा करवा दी. मम्मीजी भी मेरी और प्रिया की खुशी के लिए भारी मन से दिल्ली छोड़ने को राजी हो गई थीं. बस, कुछ ही दिनों में हम लोग छोटे से प्रियंक और उस से थोड़ी बड़ी प्रिया को ले कर रायपुर आ गए.

मेरे मायके में तो कोई बचा नहीं था. चाचाचाची पहले ही अपने बेटे के पास कनाडा शिफ्ट हो गए थे, इसलिए मुझे अब कोई डर नहीं था. मैं ने सब को अपने 2 बच्चे बताए, प्रिया तो पहले ही इन को पापा कहना सीख चुकी थी और मुझ को मम्मी. अब मम्मीजी को दादी कहती और मेरे पापा को नानू. हम लोग जल्दी इस नए माहौल में रम गए. इन का नाम यहां बहुत जल्दी अच्छे डाक्टरों में शुमार हो गया.

जिंदगी आराम से गुजर रही थी. मैं भी भूल गई थी कि प्रिया मेरी अपनी कोख से जन्मी बेटी नहीं है. दोनों बहनभाई बहुत प्यार से रहते. पढ़ने में दोनों बड़े होशियार थे. अचानक एक दिन जब प्रिया शायद 9वीं कक्षा में थी तब उस ने मुझ से पूछा, ‘‘क्यों मम्मा, नानू बता रहे थे आप कलैक्टर बनना चाहती थीं. फिर क्यों नहीं बनीं?’’ मैं ने इन की तरफ देखा ये फौरन बोले, ‘‘बेटे तेरी मम्मी को तुम्हारी मां बनने की जल्दी थी न इसलिए,’’ मैं ने जल्दी से जवाब दिया, ‘‘बेटा, मेरा सपना तो था कलैक्टर बनने का पर तेरे पापा मुझ पर ऐसे फिदा हुए कि शादी के लिए पीछे पड़ गए. फिर तुम मिल गईं और मैं अपने सपने को भूल गई,’’ बोलतेबोलते जैसे मैं पुरानी यादों में खो गई.

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प्रिया ने पता नहीं क्या समझा और फिर मेरे गले लग कर बोली, ‘‘डोंट वरी मां आप के सपने को आप की बेटी पूरा करेगी,’’ फिर अपने भाई का कान पकड़ कर बोली, ‘‘सुन नालायक मैं अब डाक्टर नहीं बनूंगी तू बनेगा और पापा का हौस्पिटल संभालेगा. मैं तो अपनी मम्मा का सपना पूरा करूंगी.’’

उस दिन के बाद से वह जैसे नए जोश में भर गई. तुरंत विज्ञान विषय को बदल कर हिस्ट्री, इंग्लिश और इकौनोमिक्स ले लिया. मेरा मार्गदर्शन तो था ही. जल्दी ही वह दिन आ गया जब एमए करने के बाद उस ने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में कुछ कम नंबर आने पर दोबारा परीक्षा में बैठी. इस बार शुरू के 50 लोगों में नंबर था. मसूरी से ट्रेनिंग करने के बाद उस की रायपुर में ही अतिरिक्त कलैक्टर के पद पर प्रशिक्षु के रूप में नियुक्ति हो गई. उस के बैच के 6 और लड़के थे. उन को हम ने खाने पर बुलाया. सभी बहुत खुशमिजाज थे. खाना खाने के बाद भी बड़ी देर बातचीत चलती रही. मैं ने महसूस किया कि उन में से एक की नजर प्रिया पर ही थी. प्रिया भी उस को अलग नजर से देख रही थी. पूछताछ करने पर पता चला कि वह गुजरात का रहने वाला था. उस के पापा आर्मी में थे. उस का नाम शरद था. मैं लड़की की मां की तरह सोच रही थी कि लड़का अच्छा है. बराबर के पद पर है और सब से बड़ी बात कि प्रिया को पसंद भी कर रहा है. प्रिया भी शायद उसे पसंद करती है. मैं ने इन से बात करनी चाही पर इन्होंने मुझे मीठी झिड़की दी कि अरे कुछ तो सोच बदलो. आजकल का जमाना नया है. लड़केलड़की बराबरी से हंसीमजाक करते हैं. जरूरी नहीं कि वे आपस में प्यार करते हों. मुझे गुस्सा आ गया और मैं करवट बदल कर सो गई. पर मेरा अंदाजा कितना सही था, यह मुझे दूसरे दिन पता लग गया. शाम को जब प्रिया औफिस से आई तब कार में उस के साथ शरद भी था. मैं ने तुरंत चायनाश्ता लगवाया. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने देखा दोनों एकदूसरे को कुछ इशारे कर रहे हैं. मुझे भी हंसी आने लगी. मैं जानबूझ कर औफिस और राजनीति की बातें करती रही.

आखिर प्रिया ने कहा, ‘‘मां, शरद को आप से कुछ कहना है.’’

मेरे कान खड़े हो गए. जब कोई बात मनवानी होती थी तब दोनों बच्चे मुझे मां कहते थे. अत: मैं ने कहा, ‘‘हां, बोलो बेटा क्या बात है?’’

शरद ने धीरेधीरे पर बड़े विश्वास से मुझे अपने और परिवार के बारे में बताया. उस के पापा आर्मी में ब्रिगेडियर थे. वह अकेला लड़का था. प्रिया उस को पसंद थी. मसूरी में ही उन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. उस के मातापिता को शादी पर कोई ऐतराज नहीं. प्रिया को मेरी मंजूरी चाहिए थी.

मुझे इस शादी पर तो कोई ऐतराज था ही नहीं और मैं तो कल रात से ही सपने देख रही थी पर मुझे एहसास हुआ कि शरद को सच बता देना चाहिए. कुछ सोचने के बाद मैं ने कहा कि मैं उस से अकेले में बात करना चाहती हूं. यह सुन कर प्रिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘मम्मी जरूर तुम्हें अपनी लड़की का पीछा छोड़ने के लिए पैसे देने वाली हैं. तुम फिल्मी हीरो की तरह पैसे ठुकरा मत देना. अच्छीखासी रकम मांग लेना. फिर हम दोनों खूब शौपिंग करेंगे.’’

मैं ने उस के इस मजाक का कोई जवाब नहीं दिया. बस उसे वहीं रुकने की बोल शरद को अपने कमरे में ले गई. कमरा बंद कर मैं ने अपनी अलमारी से वे बरसों पुराने कोर्ट के कागज निकाल कर उसे दिखाए और बताया कि प्रिया हमारी अपनी बच्ची नहीं, गोद ली हुई है, पर वह है इसी घर की बच्ची. संक्षेप में उसे प्रिया की कहानी बताई.

अंत में मैं ने कहा, ‘‘हम इस बात को भूल चुके हैं, पर तुम उसे जीवनसाथी बना रहे हो तो इस के लिए यह जरूरी है कि तुम सच जान लो. अब तुम्हारा जो फैसला हो बता दो,’’ कह कर मैं आंखें बंद कर बैठ गई. दिल धकधक कर रहा था कि पता नहीं मैं ने अपने ही हाथों अपनी बेटी का बुरा तो नहीं कर दिया.

थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि शरद मेरे आंसू पोंछ रहा है. शरद ने सारे कागज वापस अलमारी में रखे और मेरे हाथों को अपने माथे से लगाते हुए बोला, ‘‘अब तो किसी भी कीमत पर मैं इस घर से रिश्ता जोड़ कर रहूंगा.’’

बस इस के बाद शरद के मम्मीपापा आए. बड़े ही अच्छे माहौल में सारी बातें तय हुईं और सगाई तय कर दी. प्रियंक भी अमेरिका से अपनी एमएस की पढ़ाई पूरी कर वापस आ गया. शहर के बड़े होटल में हम ने प्रिया की सगाई रखी. पापा के बहुत पुराने दोस्त आर्मी से रिटायर हो कर गवर्नर बन गए थे. पापा ने उन्हें भी बुलाया. वे सहर्ष आए. शहर के कुछ प्रमुख लोग, कुछ परिचित और प्रिया और शरद के औफिस के अधिकारी सब मिला कर करीब सौ मेहमान हो गए थे. गवर्नर साहब के आने से फोटोग्राफर्स ने तो बस मौका ही नहीं छोड़ा. हजारों फोटो ले डाले और उन्हीं में से एक फोटो समाचारपत्रों में छपा था, जिसे मैं उस दिन देख रही थी. तभी वह फोन आया था.

मैं वापस वर्तमान में लौट आई. पता नहीं क्याक्या हुआ होगा. प्रिया को सब पता लग गया क्या? क्या वह मुझ से नाराज हो गई? यदि नहीं तो वह यहां क्यों नहीं दिख रही? मुझे कुछ हो और प्रिया पास न हो ऐसा कभी हो सकता है?

तभी रूम की घड़ी ने सुबह के 6 बजाए. बेटा झटके से उठा और मेरी तरफ बढ़ा. मुझे आंखें खोले देख खुशी से चिल्ला पड़ा, ‘‘ओह मां, आप जाग गईं. पता है तुम्हारी बेटी ने तो मेरा 4 दिन से जीना मुश्किल कर दिया था. कल रात जब मैं ने बोला कि अब मां ठीक हैं सुबह तक ठीक हो जाएंगी तब पापा को घर ले जाने के बहाने उसे घर भेज पाया हूं. दोनों बोल गए थे चाहे कितनी रात को तुम्हें होश आए उन्हें जरूर बुला लूं,’’ फिर दरवाजे की तरफ देख कर बोला, ‘‘लो, आप के देवदास और आप की चमची दोनों हाजिर हैं. बिना बुलाए सुबह 6 बजे आ धमके.’’

मैं ने भी दरवाजे की तरफ देखा. प्रियांशु और प्रिया भागे चले आ रहे थे. दोनों आ कर बैड की एक तरफ खड़े हो गए. प्रिया तो मेरे गले लग कर रोने ही लगी, ‘‘क्या मां, आप ने तो डरा ही दिया. मेरी शादी का इतना दुख है, तो मैं नहीं करती शादी.’’

मेरा बेटा फौरन बोला, ‘‘अरे, जाओ, मम्मी तो खुशी बरदाश्त नहीं कर पाईं… और अटैक तो मुझे आना था खुशी का कि अब कम से कम घर पर मेरा राज होगा.’’

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प्रिया ने तुरंत उस का कान पकड़ा, ‘‘बड़ा आया… विदेश से क्या पढ़ कर आया है. 4 दिन लगा दिए मम्मी को ठीक करने में… पहले डाक्टरी तो ठीक से कर, फिर घर पर राज करना.’’

दोनों की नोकझोंक सुन कर मैं निहाल हुई जा रही थी. प्रिया पहले की तरह ही थी. लगता है वह नहीं आया होगा. मैं ने चैन की सांस ली.

1 सप्ताह बाद मैं अपने घर की राह पर थी. कार में प्रियांशु और शरद आगे बैठे थे. प्रिया मुझे संभाले पीछे थी. अचानक प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे पता है आप को किस बात का सदमा लगा. वह आदमी आया था जिस के कारण आप हौस्पिटल पहुंची.’’

मैं ने चौंक कर उसे देखा. तभी प्रियांशु ने बात संभाली और बोला, ‘‘हां पारुल वह आया था. मुझे तो समझ ही नहीं आया कि क्या करूं पर अच्छा हुआ तुम ने शरद को सब बता दिया था. उस ने ही प्रिया को तुम्हारे कमरे में ले जा कर कोर्ट के सारे कागज दिखाए और फिर बाकी कहानी मैं ने प्रिया को बताई. इन दोनों ने उस का वह हाल किया कि मजा आ गया. मेरी बहन और पापा के मन को भी शांति मिल गई होगी.’’

सारी बात जानने को उत्सुक हो गई तब इन लोगों ने बताया कि प्रिया ने उसे बहुत खरीखोटी सुनाई. उस के बेटे निकम्मे निकले. सारी संपत्ति पहले ही खो चुका था, इसलिए सोचा होगा कि तुम्हें डरा कर कुछ पैसे ऐंठ लेगा, पर तुम तो उस का फोन सुनते ही बेहोश हो गईं. वह जब घर आया तब तुम हौस्पिटल में थीं. उस ने यह नहीं सोचा था कि उस का सामना प्रिया से ही हो जाएगा. वह अपनी बेटी के आधार पर भरणपोषण का दावा करने की सोच रहा था पर प्रिया ने सारे कागज उस के सामने लहरा दिए और धमकी भी दे डाली कि यह सोच कर आए थे कि मेरे मम्मीपापा से पैसे वसूल करोगे? तुम हो कौन? मेरी मां से तो तुम्हारा कोई संबंध ही नहीं, यह तो तुम कई बरस पहले कोर्ट में बता चुके हो. मैं तुम्हारी बेटी नहीं. फिर कैसे मुझ से भरणपोषण मांगने का केस करोगे और केस तो अब मैं करूंगी… मेरे परिवार को तुम ने नुकसान पहुंचाया है. मेरी मां तुम्हारे कारण हौस्पिटल में हैं. अब जाते हो या पुलिस को बुलाऊं?’’ और फिर तुरंत एसपी साहब को फोन भी कर दिया कि एक आदमी धमकी देने आया है. अब वह इस शहर में दिखना नहीं चाहिए. तुरंत पुलिस आ गई और उसे यह कह कर चले जाने को कहा कि दोबारा इस शहर में पैर रखा तो सीधे जेल में दिखोगे.

प्रिया ने मेरे गले लगते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी इतनी कमजोर नहीं मां और न हमारा रिश्ता इतना कमजोर है जो किसी के कुछ कहने से खत्म हो जाए, फिर आप क्यों दिल से लगा कर बैठ गईं उस की धमकी को? उस की तो शक्ल देखने लायक थी… अब पता चलेगा बच्चू को. सुना है भूखे मरने की नौबत आ गई है उस की.’’

मैं ने राहत की सांस ले कर प्रिया को गले लगा लिया. घर आ गया था, पर फिर मेरा भावुक मन यह सोच कर परेशान हो गया कि आखिर है तो प्रिया का पिता ही… भूखों मर रहा है यह तो ठीक नहीं…

प्रिया ने जैसे मेरे मन की बात जान ली. बोली, ‘‘आप चिंता न करो मां. मैं ने और शरद ने मेरठ के कलैक्टर से बात कर के उसे वृद्धाश्रम भेजने का प्रबंध कर लिया है. जब तक जीवित है निराश्रित पैंशन भी उसे मिलती रहेगी. वह भूखा नहीं मरेगा.’’

मैं ने जब नजर भर कर उसे देखा तो मेरे गले लग कर बोली, ‘‘मुझे धरती पर लाने का एहसान तो किया था उस ने वरना इतनी प्यारी मां कैसे मिलतीं, इसलिए वह कर्ज चुका दिया. अब और इस से ज्यादा की आशा मत रखना कि मैं कभी उस से मिलने जाऊंगी या और कुछ करूंगी.’’

मैं ने हंस कर अपनी बेटी को गले लगा लिया. हमारा रिश्ता कागज से बना था पर खून के रिश्ते से ज्यादा गहरा और प्यारा था. मैं ने अपनी प्यारी बिटिया को गले लगाए घर में प्रवेश किया.

रिश्ता कागज का: भाग-1

फोनकी घंटी की आवाज सुन कर आंखें खुलीं तो देखा मैं बैड पर हूं. नजर घुमा कर देखा तो अपने ही हौस्पिटल का रूम लगा. मैं कब और कैसे यहां पहुंची, कुछ याद नहीं आया. तभी फिर से फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी. एक बिजली सी दिमाग में कौंध गई और अचानक सब याद आ गया. मैं दोपहर में सारे समाचारपत्रों को ले कर बैठी थी. सब में मेरी बेटी का फोटो आया था. 2 दिन पहले ही उस की सगाई की थी, जिस में राज्यपाल भी शरीक हुए थे. फोटो उन के साथ का था. नीचे लिखा था कि शहर के लोकप्रिय डाक्टर की बेटी प्रशिक्षु आईएएस प्रिया की सगाई प्रशिक्षु आईएएस शरद के साथ हुई.

फोटो में बेटी और होने वाले दामाद के साथ मैं और मेरे पति भी खड़े थे. मैं गर्व से भर उठी. तभी फोन बज उठा. जैसे ही रिसीवर कान से लगाया एक निहायत कर्कश आवाज सुनाई दी, ‘‘मेरी बेटी को अपना कह कर खुश हो रही हो… वह मेरा खून है और मैं आ रहा हूं उसे सब बताने.’’

बस इतना सुनने के बाद रिसीवर गिरने की आवाज कान में पड़ी और उस के बाद अब होश आ रहा है. पता नहीं कब से यहां हूं. नजर घुमा कर देखा तो मेरा बेटा जिस ने हाल ही में डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर हौस्पिटल जौइन किया है, एक कुरसी पर अधलेटा सा गहरी नींद में दिखा.

बेटी कहीं नजर नहीं आई. उफ, कहीं वह दुष्ट इनसान आ कर उसे सब बता कर तो नहीं चला गया… मेरी बेटी मेरी जान… मेरे जीने का सहारा सब कुछ, पर जो उस ने कहा कि वह तो उस का खून है, क्या सच है?

तभी बारिश की आवाज सुनाई दी और मन यादों के गलियारों में घूमते हुए कई बरस पीछे चला गया…

मैं अपने छोटे शहर से पापा से बहुत लड़झगड़ कर आईएएस की कोचिंग के लिए दिल्ली आई थी. दोपहर को 2 घंटे फ्री मिलते थे. तब पास के एक होटल में लंच कर वापस क्लास में आ जाती थी. उस दिन भी जब होटल जा रही थी, तभी अचानक जोर की बारिश आ गई. एक बड़े से घर का गेट खुला देख मैं भाग कर अंदर गई और पोर्च में खड़ी हो गई. फिर ध्यान आया कि घर वाले पता नहीं क्या कहेंगे. बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. क्या करूं खड़ी रहूं या चल दूं, समझ नहीं आ रहा था.

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तभी धीरेधीरे घर का दरवाजा खुलता दिखा. मैं जब तक कुछ समझ पाती तब तक एक प्यारी सी बच्ची घुटनों के बल चलती बाहर आई, जिस की उम्र मुश्किल से 9-10 माह होगी. मुझे देख कर बच्ची मुसकराने लगी और अपनी बांहें मेरी तरफ फैला दी. मैं ने भी मुसकरा कर उसे गोद में उठा लिया और दरवाजे की तरफ देखने लगी कि उस की मां या कोई नौकर आएगा तो उसे बता दूंगी कि बच्ची पानी की तरफ जा रही थी पर जब बहुत देर तक कोई नहीं आया तब हार कर मैं ने अंदर जाने का फैसला किया. बच्ची को गोद में लिए अंदर प्रवेश किया. सामने दीवार पर एक बहुत ही सुंदर युवती का फोटो लगा था, जिस में फूलों का हार पड़ा था. मैं कुछ सोच पाती, तभी अंदर के कमरे से एक बुजुर्ग महिला ने प्रवेश किया. मैं ने उन को नमस्कार कर बच्ची के बारे में बताया और अपने पोर्च में खड़े होने की वजह बताई.

उन्होंने मुसकरा कर बैठने को कहा. मैं ने बच्ची उन्हें देनी चाही तो बच्ची मुझ से लिपट गई. अपने नन्हे हाथों से उस ने मेरी गरदन जोर से पकड़ ली. मैं असमंजस में पड़ गई.

तब उन महिला ने कहा, ‘‘बेटा थोड़ा बैठ जाओ. तुम खड़ी हो तो यह घूमने के लालच में मेरे पास नहीं आएगी.’’

मुझे क्या आपत्ति होती. मैं बच्ची को लिए सोफे पर बैठ गई. घर बहुत ही सुंदर था. मैं ने देखा कि टेबल पर एक थाली रखी थी, जिस में रखा खाना ठंडा हो गया था. मैं समझ गई कि बच्ची के कारण आंटी खाना नहीं खा पाई होंगी.

मैं ने उन से कहा, ‘‘आंटी, आप खाना खा लो. मैं इसे लिए हूं.’’

आंटी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यह तो रोज का काम है. इस की आया छुट्टी पर है. यह इतनी शरारती है कि रोज खाना ठंडा हो जाता है.’’

अचानक मुझे समझ में आ गया कि फोटो वाली युवती बच्ची की मां होगी और यह दादी या नानी. तभी आंटी की आवाज आई, ‘‘बेटा, यह सो गई. इसे लिटा दो और आराम से बैठ जाओ.’’

मैं ने बच्ची को वहीं रखे झूले में धीरे से लिटा दिया और जाने की इजाजत मांगी.

तब आंटी ने कहा, ‘‘अभी तुम ने बताया था कि तुम लंच के लिए जा रही थीं और बारिश आ गई. मतलब तुम ने भी खाना नहीं खाया. आओ, हम दोनों साथ खाते हैं.’’

मैं ने बहुत मना किया पर फिर उन के प्यार भरे अनुरोध को ठुकरा नहीं पाई और सच में भूख भी जोर से लग रही थी, इसलिए खाने बैठ गई. कई दिन बाद घर का खाना मिला तो कुछ ज्यादा ही खा लिया और तारीफ भी जी भर कर की.

आंटी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब रोज आ जाया करो लंच टाइम पर. प्रिया भी खुश हो जाया करेगी.’’

मैं ने जब आंटी से पूछा कि इस की बाई कब तक छुट्टी पर है, तो उन्होंने बताया कि बाई की सास मर गई है, इसलिए 15 दिन तक नहीं आएगी. दूसरी बाई लगानी चाही पर कोई मिल नहीं रही. खाना बनाने के लिए नौकर है, पर बच्ची का सवाल है, इसलिए कोई महिला ही देख रहे हैं.

मेरे दिमाग में एक विचार आया, तुरंत आंटी से कहा, ‘‘कोई बात नहीं, मैं 15 दिन तक इस टाइम आ जाया करूंगी. आप खाना खा लिया करना तब तक मैं प्रिया के साथ खेल लिया करूंगी.’’

आंटी ने मेरी बात इस शर्त पर मानी कि मैं दोपहर का खाना उन के साथ खाया करूं.

मैं ने आंटी से मजाक भी किया कि किसी अजनबी पर इतना भरोसा करना ठीक नहीं, पर आंटी ने कहा, ‘‘इतनी दुनिया तो मैं ने भी देख रखी है कि किस पर भरोसा किया जाए किस पर नहीं.’’

फिर तो यह मेरा रोज का नियम हो गया. लंच टाइम पर आंटी के घर पहुंच जाती. प्रिया के साथ खेलती और आंटी के साथ खाना खाती. थोड़ाथोड़ा घर वालों के बारे में आंटी बताती थीं कि बेटा डाक्टर है. शादी के लिए तैयार नहीं हो रहा. बच्ची संभालना मुश्किल हो रहा है. मैं भी मन में सोचती कैसे तैयार होगा इतनी सुंदर बीवी थी बेचारे की. कैसे भूल पाएगा?

एक दिन दोपहर को पहुंची तो प्रिया के जोरजोर से रोने की आवाज बाहर से ही सुनाई दी. दौड़ कर अंदर गई तो देखा आंटी किचन के सामने बेहोश पड़ी थीं और प्रिया झूले में जोरजोर से रो रही थी. मैं ने जल्दी से प्रिया को उठा कर नीचे बैठाया और आंटी को पानी के छींटे मार कर होश में लाने की कोशिश की. जल्दी से अपनी सहेली निशा को फोन कर डाक्टर लाने को कहा. डाक्टर के आने के पहले निशा आ गई. जल्दी से हम ने आंटी को बैड पर लिटाया तभी डाक्टर आ गए. उन्होंने देख कर बताया कि ब्लडप्रैशर कम होने की वजह से चक्कर आ गया था. आवश्यक उपचार कर डाक्टर साहब चले गए. निशा को भी मैं ने जाने को कहा. फिर फोन के पास रखी डायरी से नंबर देख कर उन के बेटे को फोन किया. वह भी घबरा गया. तुरंत पहुंचने की बात कही. मैं आंटी के चेहरे को देख रही थी. गोरा चेहरा कुम्हला गया था. आंखें बंद किए वे बहुत कमजोर लग रही थीं. इस उम्र में छोटी बच्ची की जिम्मेदारी निभाना कठिन था. मेरी मां भी बड़ी छोटी उम्र में मुझे छोड़ गई थीं. पापा ने दूसरी शादी नहीं की पर मेरी चाची ने मुझे मां की कमी नहीं खलने दी. उन्होंने अपने बच्चों से ज्यादा मेरा खयाल रखा. शायद इसीलिए प्रिया पर मुझे बहुत प्यार आता था. पर यहां आंटी की उम्र और बीमारी के कारण बात अलग थी. इन के बेटे को शादी कर लेनी चाहिए, यही सोच रही थी कि तभी एक सुदर्शन युवक ने कमरे में प्रवेश किया. फिल्मी हीरो की तरह चेहरा, मैं देखती रह गई, पर वह आते ही पलंग की तरफ दौड़ा. बोला, ‘‘मम्मी क्या हुआ? मुझे फोन क्यों नहीं किया?’’

उस की इस बात पर अचानक मुझे गुस्सा आ गया. बोली, ‘‘अब बड़ी फिक्र हो रही है मां की. तब यह फिक्र कहां थी जब छोटी सी बच्ची की जिम्मेदारी मां पर डाल कर चले गए… क्यों नहीं दूसरी शादी कर लेते? क्या समझते हो कि सब सौतेली मांएं खराब होती हैं? कोई आप की बच्ची को प्यार नहीं करेगी या फिर देवदास बन कर अपनी शान में मां को दुख देते रहना चाहते हैं?’’

डाक्टर साहब का मुंह खुला का खुला रह गया. कालेज के दिनों में धुआंधार भाषण देती थी. वही जोश मेरी आवाज में भर गया, ‘‘बोलिए, क्यों नहीं कर लेते दूसरी शादी?’’

अचानक मैं ने देखा कि डाक्टर साहब का विस्मय चेहरे से गायब होने लगा और एक शरारती मुसकान उन के होंठों पर आ गई. वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे बाबा, दूसरी तब करूंगा जब पहली हो, अभी तो मेरी पहली शादी भी नहीं हुई.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने आश्चर्य से आंटी की तरफ देखा. उन के चेहरे पर भी शरारती मुसकान विराजमान थी.

अब तक आंटी उठ कर बैठ गई थीं. उन्होंने धीरेधीरे समझाया कि प्रिया उन की बेटी प्रियंवदा की बेटी है, जिस का फोटो हौल में मैं ने देखा था. डाक्टर प्रियांशु उन का बेटा है. अब तो मुझे काटो तो खून नहीं. मैं ने वहां से भागने में ही भलाई समझी और आंटी से जाने की इजाजत मांगी.

आंटी ने कहा, ‘‘अब बहुत रात हो गई है. तुम्हें खाना भी नहीं मिलेगा. खाना खा लो फिर मेरा बेटा होस्टल छोड़ देगा.’’

डाक्टर साहब ने भी अपनी मां का समर्थन किया और नौकर को खाना बनाने के लिए जरूरी हिदायत देते हुए कपड़े चेंज करने चले गए. खाना खाते टाइम सब चुप थे. तब प्रियांशु ने कहा, ‘‘वैसे आप ने एक बात ठीक पहचानी कि मुझे डर है कि मेरी शादी के बाद प्रिया का क्या होगा, कोई भी लड़की एक बच्ची और सास की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहेगी.’’

उन का सामान्य व्यवहार देख कर मैं भी सामान्य हुई और कहा, ‘‘क्यों नहीं, कोई भी लड़की इतना अच्छा घर और इतना सुंदर लड़का देख कर तुरंत हां बोल देगी.’’

बोलने के बाद मैं ने देखा कि मांबेटा फिर मुसकरा उठे थे. मेरा ध्यान अपने शब्दों पर गया तो अपनी बेवकूफी पर शर्म महसूस हुई. अत: मैं ने जल्दी से खाना खत्म किया और जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

तभी प्रियांशु ने कहा, ‘‘यदि ऐसा है तो क्या आप तैयार हैं मुझ से शादी करने को?’’

घबराहट के मारे मेरे तो पसीने छूटने लगे. आंटी ने बात संभाली, ‘‘बेटा, जाओ जल्दी इसे छोड़ कर आओ वरना होस्टल में अंदर नहीं जाने दिया जाएगा.’’

प्रियांशुजी ने कार निकाली. मैं चुपचाप उस में बैठ गई. कार चल पड़ी. अचानक मैं ने देखा कि कार एक आइसक्रीम की दुकान के सामने रुक गई.

प्रियांशु ने मेरा दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अभी 9 बजने में टाइम है. चलिए, आइसक्रीम खा लेते हैं. मैं ने बड़े दिनों से नहीं खाई.’’

मैं चुपचाप नीचे उतर गई. हम दोनों जा कर अंदर बैठ गए. प्रियांशु ने पूछा कि कौन सी खानी है तो मैं ने तुरंत कहा कि चौकलेट फ्लेवर वाली. वे 2 आइसक्रीम ले आए. मुझे महसूस हो रहा था कि वे लगातार मुझे देखे जा रहे हैं.

बड़ी देर बाद बोले, ‘‘मेरी बात से आप को बुरा लगा हो तो मैं माफी चाहता हूं पर जितना आप के बारे में मां से सुना था और जब से आप को देख रहा हूं तो लगता है आप बाकी लड़कियों से अलग हैं और मैं अपने शादी के प्रस्ताव को फिर दोहराता हूं. मुझे पता है आप के सपने अलग हैं. आप कलैक्टर बनना चाहती हैं तो वह शादी के बाद भी बन सकती हैं. मेरी सपोर्ट आप को रहेगी पर जिस तरह आप प्रिया को चाहती हैं वैसा प्यार कोई दूसरी लड़की नहीं दे सकती. मुझे आप के जवाब की कोई जल्दी नहीं है. आप आराम से सोच कर बताइएगा. आप का जवाब न भी होगा तो भी कोई बात नहीं. आप प्रिया और मां से पहले की तरह ही मिलती रहना.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोलना चाहिए. वे चुपचाप मुझे होस्टल के गेट पर छोड़ कर चले गए.

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रूम के अंदर जाते ही मैं सीधे बैड पर गिर गई. सारी बातें दिमाग में घूमने लगीं. अभी तक कोई लड़का यदि प्यार की बात कहता था, तो मैं उस की 7 पुश्तों की खबर ले डालती थी. सब के सामने इतना बेइज्जत करती थी कि बेचारा ऐसी हिमाकत सपने में भी नहीं करता होगा, परंतु आज प्रियांशु ने सीधे शादी की बात कह दी और मैं ने चुपचाप सुन ली. एक शब्द भी नहीं कहा. कायदे से तो मुझे गुस्सा आना चाहिए पर मुझे तो शर्म आ रही है. एक अलग सी अनुभूति हो रही थी. बड़ी देर तक सोचती रही. जब सोचतेसोचते थक गई तो पापा को फोन लगा डाला. पापा की आवाज सुनते ही रुलाई निकल गई. बोली, ‘‘पापा, आप तुरंत आ जाओ. मुझे आप की जरूरत है.’’

पापा ने बहुत पूछा पर मैं कुछ बता नहीं पाई.

 

पापा दूसरे दिन मेरे सामने थे. मैं दौड़ कर उन से लिपट गई. पापा ने सारी बात

शांति से सुनी और फिर मुझ से पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो? प्रियांशु मेरे मित्र डाक्टर नीरज का बेटा है. मैं पूरे परिवार को जानता हूं.’’

पापा खुद भी डाक्टर थे. मैं ने पापा से कहा, ‘‘मेरी तो समझ नहीं आ रहा कि क्या

करूं. आप बताओ.’’

पापा बोले, ‘‘बेटा, यदि एक पिता से सलाह मांगोगी तो मेरा कहना है लड़का और घर दोनों अच्छे हैं. मैं खुद भी इतना अच्छा घर नहीं ढूंढ़ पाता और यदि एक दोस्त के रूप में सलाह दूं तो मुझे पता है तुम्हारा सपना कलैक्टर बनने का है तो शादी का विचार छोड़ दो, परंतु जैसा तुम ने बताया कि प्रियांशु ने कहा है कि शादी के बाद भी तुम कोशिश कर सकती हो तो मेरा सोचना है कि तुम्हें हां कह देनी चाहिए.’’

बस इस के 10 दिनों के अंदर ही मैं डाक्टर प्रियांशु के साथ विवाह कर उन के घर आ गई. आंटी अब मम्मी बन गई थीं और प्रिया तो मुझे हर समय पा कर बहुत खुश थी.

 

कई दिन बीत गए. मैं घरपरिवार में कुछ ज्यादा ही रम गई. मम्मी और प्रियांशु

मुझे पढ़ने को कहते भी पर मैं टाल जाती. मेरा काम बस प्रिया को संभालना, घर जमाना और तरहतरह का खाना बनाना रह गया था. पापा के दोस्त दिल्ली में वकालत करते थे. कोचिंग जाते टाइम मैं हर सप्ताह उन के औफिस जाती थी. उन्होंने शादी के बाद भी आते रहने को कहा पर मैं तो अपनी दूसरी दुनिया में मस्त थी. फिर अचानक सारी खुशियां काफूर हो गईं.

हुआ यह कि मैं प्रियंवदा का रूम जमा रही थी. मम्मीजी ने उसे वैसे ही रखा था जैसे उस की शादी के पहले था. तब मुझे कुछ डायरियां मिलीं. मुझे यह तो पता लग चुका था कि प्रिया की मां ने घर वालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी की. उस टाइम प्रियांशु एमएस की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए थे. पापाजी ने शादी की इजाजत नहीं दी तो प्रियंवदा ने घर छोड़ दिया और जब बेटी हुई तब उस के जन्म के समय ही उस की मृत्यु हो गई. तब प्रियांशु प्रिया को अपने साथ ले आए. बेटी के गम में पापाजी भी चल बसे. इस के आगे की जानकारी मुझे प्रियंवदा की डायरी से मिली. एक डायरी उस समय की थी जब प्रिया आने वाली थी. 1-1 दिन की बातें उस में लिखी थीं. उस का पति शेखर उसे कितना प्यार करता था. शेखर चाहता था कि बेटी हो. उस का नाम उन्होंने शिखा तय किया था और प्रियंवदा चाहती थी कि बेटा हो और उस का नाम प्रियंक उस ने सोचा था. उन की प्यारी नोकझोंक पढ़ कर मेरे आंसू बहने लगे और पता नहीं किस भावना के तहत मैं ने यह सोच लिया कि बेचारे शेखरजी अपनी बच्ची को कितना याद करते होंगे. डाक्टर साहब और मम्मीजी कभी उन का नाम भी नहीं लेतीं. अपनी बच्ची को देखने का उन को भी हक है. अपनी कानून की पढ़ाई के कारण हक की बात भी दिमाग में जोर मारने लगी और मैं ने चुपके से एक चिट्ठी शेखरजी को लिख दी कि आप का मन होता होगा बच्ची को देखने का तो कभी भी आ सकते हैं. आखिर वह आप का खून है और इंतजार करने लगी कि जब शेखरजी अपनी बच्ची से मिलने आएंगे तब मैं क्याक्या दलीलें दूंगी.

– क्रमश:

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