आखिरी प्यादा: क्या थी मुग्धा की कहानी

लेखिका- कुसुम पारीक

सायरन बजाती हुई एक एम्बुलेंस अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी. वहां की औपचारिकताएं पूरी करने में दोतीन घंटे लग गए थे.

सारी कार्यवाही कर जब वे वापस आए तब घर में केवल राघव और मैं थे.

राघव और ‘मैं’ यानी पड़ोसी कह लीजिए या दोस्त, हम दोनों का व्यवसाय एक था और पारिवारिक रिश्ते भी काफी अच्छे थे.

हम सब मित्रों की संवेदनाएं राघव के साथ थीं कि इस उम्र में पत्नी मुग्धा जी मानसिक असंतुलन खो बैठी हैं और उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा था.

हर कोई राघव की बेचारगी से परेशान था लेकिन ध्यान से देखने पर मैं ने पाया कि वहां असीम शांति थी.

मुझे आश्चर्य जरूर हुआ था लेकिन शक करने की कोई वज़ह मुझे नहीं मिली थी क्योंकि मैं क्या, लगभग हर जानपहचान वाले यही सोचते थे कि यह एक आदर्श जोड़ा है जो अपनी हर जिम्मेदारी बख़ूबी निभाता आया है.

हम सब जानते थे कि राघव की पत्नी बहुत पढ़ीलिखी थी जो घरबाहर के हर काम में निपुण थी.

हम दोस्त लोग बातें किया करते थे कि राघव समय का बलवान है जो इतनी आलराउंडर पत्नी मिली है. कई समस्याएं वह चुटकियों में सुलझा देती थी. राघव को केवल औफिस के काम के अलावा कुछ नहीं करना पड़ता था.

शाम को चाय की चुस्कियों के साथ कई बार हम शतरंज की बिसात बिछा लेते थे. कम बोलने वाला राघव अपनी हर चाल लापरवाही से चलता था. कई बार उस का वज़ीर तक उड़ जाता था लेकिन पता नहीं कैसे अंत में एक प्यादे को अंतिम स्थान पर पहुंचा कर अपने वज़ीर को ज़िंदा करवा लेता था.

यह घटना घटने के बाद मुझे लगने लगा था कि राघव की जीवननैया ठहर जाएगी लेकिन उस का रोज सुबह घूमना वगैरह सब अनवरत जारी था.

बेटी किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेश में फंसी थी, इसलिए उसे आने में थोड़ा समय लगा.

बेटा जौब चेंज करवा कर पापा के पास ही आ गया था. बेटी सीधे अस्पताल गई और अपनी मां के बारे में पूछा. वहां की रिपोर्ट्स देख कर उस का माथा भन्ना गया. वह किसी भी परिस्थिति में मानने को तैयार नहीं थी कि उस की मम्मी अपना मानसिक संतुलन खो चुकी थी.

वह लगातार भागदौड़ में लगी हुई थी कि मम्मी को डिस्चार्ज करवाए व अपने साथ ले कर जाए जिस से यदि उन को मानसिक समस्या है तब भी उन को सहारा दे कर उस का समाधान किया जा सकता है.

मेरी निगाहें भी राघव की बेटी प्राची की गतिविधियों पर लगी रहती थी. मेरा मन मेरे उन अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की कोशिश करने लगा जो इतने दिनों तक अनुत्तरित थे.

मैं ने हमेशा मुग्धा जी को ऊर्जा से भरपूर व्यक्तित्व के रूप में देखा था लेकिन जब कभी वे हम दोस्तों के समूह में कुछ बोलने के लिए मुंह खोलतीं, राघव फटाक से उन्हें चुप करा देता या कोई काम के बहाने अंदर भेज देता.

कई बार मुग्धा जी के चेहरे पर शिकायतों का बवंडर रहता लेकिन वे राघव की एक मिनट की विरह भी बरदाश्त न कर पाती थीं.

हम सब हमारी पत्नियों को कई बार कह भी देते, ‘तुम लोग करती क्या हो? फिर भी परेशानियां सिर उठाए तुम्हें नोंचती रहती है. एक मुग्धा जी को देखो, एक रुपए की दवाई तक नहीं खरीदी अभी तक उन्होंने.’

किताबी कीड़ा थीं वे, आध्यात्म में गहरी रुचि होने के कारण कभीकभी भजनकीर्तन की मंडली घर में होती रहती थी.

अब मेरे बेचैन मन को एक सूत्र मिल गया था प्राची के रूप में.

एक दिन वह अस्पताल जाने के लिए बाहर निकली ही थी कि मैं नीचे मिल गया. मैं ने उसे अपनी गाड़ी में लिफ्ट दे कर उस के साथ अस्पताल चलने की इच्छा जताई.

वह भी आत्मविश्वास में अपनी मां पर गई थी. फिर भी बोली, “अच्छा होगा अंकल, आप मेरे साथ रहेंगे तो मम्मी का केस सुलझाने में मुझे आसानी होगी.”

रास्ते में उस ने मुझे बताया कि मेरी मम्मी जीनियस पर्सन थीं अंकल. वे खुद मानसिक रूप से इतनी मजबूत थीं कि उन्हें ऐसा रोग हो भी नहीं सकता.

मैं बचपन से ही पापामम्मी की बहस देखती आई हूं जिस में मम्मी ने हमेशा तर्कसंगत बात की व पापा पीड़ित को शोषक के रूप में पेश कर देते थे. दोनों में शतरंज की सी बिसात बिछी रहती थी.

मम्मी, पापा से बहुत प्यार करती थीं, उस का पापा ने भरपूर फायदा उठाया.

मम्मी अपनी बात तर्को के साथ रखती थीं. पापा कभी उन से जीत न पाते थे तो उन्हीं के कहे शब्दों के उलटे अर्थ निकाल कर मम्मी को दोषी ठहराने की कवायद शुरू हो जाती थी.

मम्मी भावुक थीं लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में वे भी पीछे न रहती थीं. इस लंबी बहस का परिणाम पापा का लंबे समय तक अबोलापन बन जाता था जो मम्मी को तोड़ देता था.

मम्मी बहुत ही धार्मिक महिला थीं जो हर समय पूजापाठ में लगी रहती थीं. इस के पीछे पापा की सलामती और उन का प्यार पाना मुख्य मुद्दा रहता था.

एक बार जब मैं छोटी थी, मैं ने मम्मी से बोल दिया था कि बिंदी गिर गई है तो गिरने दो, मत लगाओ. तब एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ा था जिस का मतलब मैं काफी वर्षों तक न समझ पाई थी.

मां ने एक भय का घेरा अपने आसपास बना लिया था जिस में से बाहर निकलना उन्हें कभी मंजूर न था.

वे बहुत प्रतिभाशाली और साहसी थीं लेकिन पापा उन की कमजोरी थे. पापा शायद इस बात को भांप चुके थे. उन्होंने इस बात का भरपूर दोहन किया था.

मम्मी को हर क्षेत्र में रुचि होने से जनरल नौलेज बहुत अच्छी थी. और किताबें पढ़ने के शौक के परिणामतया वे किसी भी टौपिक पर पांच-दस मिनट निर्द्वंद बोल सकती थीं.

पापा को उन के इसी बोलने से चिढ़ मचती थी.

वे हमेशा ऐसा रास्ता अपनाने की कोशिश करते कि मां को चुप होना पड़ता.

मां को भी गुस्सा आता था जब बेवज़ह उन को चुप करवाया जाता था.

जब कभी मम्मी इधरउधर होतीं, पापा उन के खिलाफ कुछ न कुछ बोलना शुरू कर देते. लेकिन मैं अपनी मां को अच्छी तरह जानती थी कि वे पापा के प्यार व विश्वास के लिए कितने आंसू बहाती हैं.

मैं उन की बात उसी समय काट देती जिस से मुझ से भी थोड़ेथोड़े खिंचे रहते थे.

मां की जब दूसरे लोग बड़ाई करते तब पापा को सहन न होता था. यह मेरे अलावा अर्णव जानता है, लेकिन वह कम ही बोलता था.

पिछले 6 सालों में मैं पढ़ाई व जौब के चक्कर में बाहर हूं. मैं ने मम्मी को कई बार अपने पास आ कर रहने के लिए कहा. लेकिन मम्मी हर बार मुझ से कहती थीं, ‘तेरे पापा को छोड़ कर कैसे आऊं?’

जब प्राची बोल कर चुप हो गई तब मैं सोचने लगा कि फिर क्या वजह रही होगी कि इतनी बीमार हो गई मुग्धा.

अगले दिन हम दोचार मित्र पार्क में मिले. संजय बोला, “अपनी ज़िंदगी से राघव परेशान तो नहीं दिखता था लेकिन एक बार मुझ से जरूर उस ने कहा था कि बोलने वाली औरतें अच्छी नहीं लगतीं उसे. तब मैं ने कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था.”

कुछ देर बाद मैं और प्राची अस्पताल पहुंचे जहां नर्स ने बताया कि मुग्धा जी ने बहुत परेशान किया था जिस से उन्हें इंजैक्शन दे कर सुला दिया गया था.

हम लोग वहीं पड़ी बैंच पर बैठ गए थे. थोड़ी देर बाद वे उठीं, तब काफ़ी शांत लग रही थीं औऱ ऐसा लग रहा था जैसे हम से कुछ कहना चाह रही हों.

प्राची ने उन से पूछा, “मां, ऐसा क्या हो गया था कि आप को यहां ले कर आए पापा?”

वे पहले थोड़ा सकुचाईं लेकिन मेरी आंखों में आश्वस्ति देख कर बोलीं, “तुम जानती ही हो कि मैं उन के प्रति बहुत पजैसिव थी, इसलिए उन्होंने इस का फायदा उठाया औऱ हमेशा मौका ढूंढ़ते रहे जिस में मेरी बेइज्जती हो.

“तुम थीं वहां जब तक, थोड़ा आराम था. लेकिन जब तुम दोनों भाईबहन बाहर चले गए तब इन की जरूरत भी कम हो गई और इन्होंने अपनी इतने सालों की भड़ांस निकालनी शुरू कर दी.

मुझे हर समय वह दिखाने की कोशिश की जाती जो कभी मैं थी ही नहीं.

एक दिन का वाकेआ है, मैं ने तुम्हारे पापा को एक व्हाट्सऐप मैसेज दिखाया. तब वे बोले, “यह तुम मुझे कल दिखा चुकी हो.”

मैं ने कहा, “यह आज ही आया है मेरे पास.”

फिर बोले, “बस, यही समस्या है तुम्हारी, भूल जाती हो और फिर ज़िद करने लगती हो.”

मैं एकदम सन्न रह गई. मेरे सारे व्हाट्सऐप ग्रुप चैक किए कि कहीं आया हो तो, लेकिन वह मैसेज कहीं नहीं था.

उस के बाद ऐसी बातों की बहस कई बार हो जाती और हर बार मुझे गलत ठहराने की कोशिश की जाती थी.

मैं धीरेधीरे गुमसुम रहने लगी थी. बस, जब तुम लोग आते, तभी घर में रौनक आती. अन्यथा तेरे पापा अपने दोस्तों व औफिस में मस्त जबकि मैं अकेली इस घर में इस संकट से बाहर आने की कवायद करती रहती थी.

अचानक एक दिन तेरे पापा को सपने में बड़बड़ाते हुए देखा. कुछकुछ शब्द समझ भी आ रहे थे. उस समय मैं कुछ न बोली. लेकिन 2 दिनों बाद ऐसे ही मेरी याददाश्त को झूठा ठहराने की कोशिश में वही बहस हुई.

मैं ने बोला, “आप को सपना आया होगा जिस में आप ने कुछ देखा होगा क्योंकि ऐसे ही कुछ शब्द आप सपने में दोहरा रहे थे.” अचानक वे चुप हो गए और वहां से चले गए.

अब मुझे विश्वास हो गया था कि इन को ऐसे सपने आते हैं. लेकिन वे यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

घर में हर समय तनातनी रहने लगी थी.

मैं ने कुछ साक्ष्य जुटाने की कोशिश भी की लेकिन उस से पहले यह सब हो गया.

अब मैं खुद को रोक न पाया और बोल उठा, “क्या हो गया था मुग्धा जी?”

तब प्राची बोली, “मां को एक दिन इतना परेशान किया कि वे चिढ़ गईं व चिल्लाने लगीं.

पापा ने उस का वीडियो बना लिया. उस बात पर मां और ज्यादा परेशान हो गई थीं.

वह वीडियो हम लोगों को भी भेजा था.”

“लेकिन हम दोनों बहनभाइयों ने मम्मी को ही सही ठहराया था.” प्राची के रुकने के बाद मुग्धा जी बोलीं, “बस, वह शतरंज की आखिरी बिसात थी. मुझे लग रहा था कि तेरे पापा को शह दी जा चुकी है लेकिन मैं गलत थी और उन्होंने फिर वही अपने आखिरी प्यादे की चाल चल दी थी.”

वातावरण बहुत बोझिल हो चला था. मैं ने प्राची से कहा, “तुम जो भी कार्यवाही करो, मेरा साथ हमेशा रहेगा.” मुझ से आश्वस्ति पा कर उस ने हलकी सी मुसकान दी और थोड़ी संतुष्ट हो कर चली गई.

अस्पताल से मुग्धा बाहर निकलने को तैयार नहीं हो रही थीं. एकदो बार मैं भी प्राची के साथ उन से मिलने गया. लेकिन वे अधिकतर समय शून्य में ताकती रहती थीं. जबकि प्राची को इस अपराधी को दंड देना ही था. डाक्टर भी अपनी सारी कोशिशें कर चुके थे कि वे कुछ मुंह खोलें तो उन की चुप्पी का रहस्य खुले.

आखिर एक दिन वे डाक्टर को देख कर अचानक पास पड़े नैपकिन को उठा कर मुंह पर रख कर बोलीं, “डाक्टर, आप भी अपनी पत्नी को ऐसे ही पट्टी बांध कर रखते हैं क्या?”

“उस को पट्टी बांध कर क्यों रखूंगा? वह इंसान है और इंसानों की तरह ही रहेगी न.”

“नहीं डाक्टर, स्त्री इंसान नहीं होती, उसे विवेक को किसी कोने में दफना कर केवल कठपुतली बन कर रहना होता है.”

“आप ऐसी बातें क्यों कर रही हैं?” डाक्टर ने कुछ और जानने के उद्देश्य से पूछा.

“डाक्टर, जो स्त्री बोलती है उसे एक प्यादा भी कब घोड़े की तरह ढाई पांव चल कर मार दे, पता भी नहीं लगता.”

एहसानमंद: क्या विवेक अपने मरीज की जान बचा पाया?

लेखक- ब्रजेंद्र सिंह

घड़ी के अलार्म की घंटी बजी और डाक्टर विवेक जागा. साथ में सोती हुई उस की पत्नी सुधा भी उठ रही थी.

‘‘शादी की सालगिरह बहुतबहुत मुबारक हो, डार्लिंग,’’ विवेक ने उस का आलिंगन किया.

‘‘आप को भी बहुतबहुत मुबारक हो,’’ सुधा ने उत्तर दिया.

नहाधो कर जब विवेक नाश्ता खाने बैठा तो सुधा ने उस के सामने उस के मनपंसद गरमागरम बेसन के चीले और पुदीने की चटनी रखी. विवेक बहुत खुश हुआ.

‘‘पत्नी हो तो तुम्हारे जैसी,’’ उस ने सुधा से कहा, ‘‘बोलो, आज तुम्हारे लिए क्या उपहार लाऊं? जो जी चाहे मांग लो.’’

‘‘मुझे कोई उपहार नहीं चाहिए, बस, एक अनुरोध है,’’ सुधा ने कहा.

‘‘अनुरोध क्यों, आदेश दीजिए, डार्लिंग,’’ विवेक ने उदारतापूर्ण स्वर  में कहा.

‘‘मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि कम से कम आज जल्दी घर आने की कोशिश कीजिएगा. आज हमारी शादी की दूसरी सालगिरह है. मैं आप के साथ कहीं बाहर, किसी अच्छे से रैस्टोरैंट में खाना खाने जाना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा,’’ विवेक ने उसे आश्वासन दिया, पर वह जानता था कि घर लौटने का समय उस के हाथ में नहीं था. और वह यह भी जानता था कि सुधा को भी इस बात का पूरी तरह पता था. आखिरकार, वह भी एक डाक्टर की बेटी थी और, पिछले 2 सालों से एक डाक्टर की पत्नी भी.

अस्पताल जाते हुए ट्रैफिक जाम में फंसा विवेक सोचने लगा कि डाक्टरों का जीवन भी कितना विचित्र होता है. अगर उन की जिम्मेदारी का कोई रोगी ठीक हो जाए तो वह और उस के संबंधी आमतौर से डाक्टर के एहसानमंद नहीं होते हैं.

वे सोचते हैं कि मेहनताना दे कर उन्होंने सारा कर्ज चुका दिया है. आखिरकार डाक्टर अपना काम ही तो कर रहा था. पर अगर किसी कारण से रोगी की हालत न सुधरे, उस का देहांत हो जाए, तो गलती हमेशा डाक्टर की ही होती है, चाहे कितनी ही बुरी हालत में रोगी को चिकित्सा के लिए लाया गया हो.

ऐसी स्थिति में मृतक के घर वाले और अन्य रिश्तेदार कई बार डाक्टर को दोष देते हुए मारामारी और तोड़फोड़ करना आरंभ कर देते हैं. और ऐसे हालात में कुछ लोग तो डाक्टर और अस्पताल पर रोगी की अवहेलना का मुकदमा भी ठोक देते हैं.

विवेक को उसी के अस्पताल में डेढ़ साल पहले हुए एक हादसे का खयाल आया. वह उस हादसे को भला कैसे भूल सकता था, जिस का बेहद गंभीर परिणाम निकला था.

एक अमीर घराने का नाबालिग लड़का अपनी 2 करोड़ रुपए की गाड़ी अंधाधुंध रफ्तार से चला रहा था. गाड़ी बेकाबू हो कर सड़क के बीच के डिवाइडर से टकराई. फिर पलट कर सड़क के दूसरी ओर जा गिरी.

उस तरफ एक युवक मोबाइल पर बात करते हुए अपने स्कूटर पर आ रहा था. कलाबाजी मारती हुई कार, उस के ऊपर गिरी. कार चलाने वाले लड़के की वहीं मौत हो गई. स्कूटर चालक बुरी तरह घायल था. जिस से वह बात कर रहा था, वह शायद कोई उस के घर वाला था, क्योंकि पुलिस के आने से पहले लड़के के रिश्तेदार उसे उठा कर विवेक के अस्पताल ले आए. इमरजैंसी वार्ड में विवेक उस समय ड्यूटी कर रहा था.

6-7 लोग घायल लड़के को ले कर अंदर घुस गए. कुछ विवेक को जल्दी करने को कह रहे थे, कुछ आपस में हादसे की बात कर रहे थे. विवेक ने लड़के की जांच की. वह मर चुका था. जब उस ने यह सच उस के रिश्तेदारों को बताना चाहा तो उन्होंने मानने से इनकार किया.

‘पर वह अभी तक तो जीवित था,’ एक ने बहस की, ‘वह एकदम मर कैसे सकता है, तुम उसे बचाने की कोशिश नहीं करना चाहते हो.’

बीच में एक और रिश्तेदार बोलने लगा, ‘आजकल के डाक्टर सब एकजैसे निकम्मे हैं. ये लोग भारी पगार चाहते हैं, पर पूरे कामचोर हैं.’ विवेक ने मुश्किल से अपने गुस्से को संभाला, ‘देखिए मिस्टर…’ तब तक एक नर्स उस के पास आई और बोली, ‘डाक्टर साहब, एक मरीज आया है, लगता है उसे दिल का दौरा पड़ा है. जरा जल्दी चलिए.’

विवेक उस के साथ जाने के लिए घूमा पर तभी लड़के के चाचा ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘पहले मेरे भतीजे की अच्छी तरह जांच करो, फिर तुम यहां से जा सकोगे. मुझे तो लगता है कि मेरा भतीजा अभी जिदा है.’

एक नर्सिंग अरदली ने विवेक का हाथ छुड़ाने की कोशिश की. एक और डाक्टर और कुछ रिश्तेदार बीच में घुसे. देखते ही देखते हाथापाई शुरू हो गई. कई लोगों को चोट लगी. अस्पताल का सामान भी तोड़ा गया. सिक्योरिटी गार्ड बुलाए गए और उन्होंने सब को शांत किया. विवेक के माथे पर, जहां किसी की अंगूठी से चोट लगी थी, 5 टांके लगाए गए.

इस घटना के बाद विवेक के अस्पताल ने एक सख्त नियम बनाया. किसी भी मरीज के साथ 2 से अधिक साथवाले, अस्पताल के अंदर नहीं आ सकते, चाहे वे जो हों. इस नियम को कुछ लोगों ने कानूनी चुनौती दी थी और मामला अब भी अदालत में था.

गाडि़यों के जाम के खुलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी. विवेक की विचारधारा वर्तमान में लौट आई. रहा डाक्टरों का निजी जीवन, वह भी काफी अनिश्चित होता है. कुछ पता नहीं कब किस रोगी की तबीयत अचानक बिगड़ जाए, या किसी हादसे में घायल हुए व्यक्ति को डाक्टर की जरूरत पड़े. ऐसी हालत में डाक्टर होने के नाते, उन्हें सबकुछ छोड़ कर, अपना कर्तव्य निभाने जाना पड़ता है, चाहे पत्नी के साथ सिनेमा देख रहे हों, या बच्चों के साथ उन का जन्मदिन मना रहे हों. डाक्टर बनने से पहले उन को ऐसा व्यवहार करने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है.

जाम आखिर खुलने लगा और विवेक ने गाड़ी बढ़ाई. अस्पताल पहुंच कर विवेक ने डाक्टरों के लौकर में जा कर अपना सफेद कोट निकाल कर पहन लिया. फिर उस ने, हमेशा की तरह, उन 3 वार्डों के चक्कर लगाने लगा, जिन के मरीजों के रोगों के बारे में रिकौर्ड रखने के लिए वह जिम्मेदार था.

हर वार्ड में 10-12 मरीज थे. उन में हर एक की अपनी ही एक खास कहानी थी. पहले वार्ड में उस की मरीज राधा नामक एक विधवा थी. वह पीलियाग्रस्त थी. तकरीबन 1 महीने से वह अस्पताल में पड़ी हुई थी. उस के साथ उस की 5 साल की बेटी भी भरती कराई गई थी क्योंकि घर पर उस की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. लड़की का नाम मीनू था और वह डाक्टर विवेक की दोस्त बन गई थी.

मीनू रोज सुबह एक नर्स के साथ अस्पताल के बगीचे में घूमने जाती थी. और जब विवेक अपने राउंड पर आता, तो पहले मीनू उसे बताती थी कि उस ने बगीचे में क्या देखा, फिर उसे बाकी काम करने देती.

आज वह बहुत उत्तेजित लग रही थी, जैसे उस के पास कोई बड़ी खबर हो. विवेक को देखते ही वह बोलने लगी, ‘‘अंकल अंकल, आप कभी नहीं बता सकेंगे कि मैं ने आज क्या देखा. मैं ने तितली देखी. बड़ी सुंदर रंग वाली. वह इधरउधर उड़ रही थी जैसे कोई परी हो. मैं ने उस से बात करने की कोशिश की, पर वह चली गई. किसी दिन मैं एक तितली से दोस्ती करूंगी.’’

उस की मासूमियत देख कर विवेक ने सोचा, ‘काश, यह बच्ची जीवनभर ऐसी ही रह सकती. पर मतलबी दुनिया में यह संभव नहीं है.’

अगले वार्ड में, एक पलंग पर वृद्ध गेनू लेटा था. वह मौत के द्वार पर खड़ा था और वह यह जानता था कि वह अब केवल मशीनों के जरिए जी रहा है. उस के दोनों बेटे विदेश में बसे हुए थे. गेनू की पत्नी का देहांत कुछ साल पहले हो चुका था. 6 महीने पहले, गेनू को दिल का दौरा पड़ा.

उस का एक पड़ोसी उसे अस्पताल ले आया. जांच के बाद पता चला कि उस के दिल को भारी नुकसान पहुंचा है. उस की उम्र 70 वर्ष से ऊपर थी और वह बहुत कमजोर भी था. सो, डाक्टरों ने औपरेशन करना उचित नहीं समझा और उस के अधिक से अधिक एक साल और जीने की संभावना बताई. उस के बेटों को जब उस की हालत का पता चला और उस के अस्पताल में भरती होने का समाचार मिला, तो वे विदेश से भागेभागे आए. उन्हें यहां आ कर यह मालूम हुआ कि पिताजी के बचने की कोई उम्मीद नहीं है और वे इस दुनिया में अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं.

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दोनों ने आपस में बात की होगी कि पिताजी की मृत्यु तक वे रुकना नहीं चाहते. चूंकि अस्पताल का खर्चा बीमा कंपनी दे रही थी, उन्होंने साथ मिल कर सोचा कि पिताजी को अब पैसों की जरूरत नहीं होगी. सो, पिताजी को दोनों बेटों ने बताया कि उस के घर में काफी लंबीचौड़ी मरम्मत करवा कर उस को बिलकुल नया बनाना चाहते हैं.

काम के लिए काफी पैसे लगेंगे. इस बहाने उन्होंने कोरे कागज और कोरे चैक पर पिताजी के हस्ताक्षर ले लिए. फिर क्या कहना. चंद दिनों में उन्होंने घर भी बेच दिया और पिताजी का खाता भी खाली कर दिया. और तो और, उस के बाद पिताजी को बताए बिना वे विदेश लौट गए. उन की धांधली के बारे में पिताजी को तब पता चला, जब उस के पड़ोस में रहने वाला दोस्त उस से मिलने आया था.

अगले वार्ड में एक शराबी, मीनक पड़ा था. 2 हफ्ते पहले वह नशे की हालत में सीढि़यों से नीचे गिर कर बुरी तरह घायल हो गया था. अस्पताल में भरती होने के बाद वह रोज शाम को ऊंची आवाज में शराब मांगता था और शराब न मिलने पर काफी शोर मचाता था. पूरा स्टाफ उस से दुखी था. इसलिए सब बहुत खुश थे कि अब वह ठीक हो गया था और आज उसे अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी.

पिछली शाम, जब यह खबर उस की पत्नी को दी गई, तो वह खुश होने के बजाय, घबरा गई. वह भागीभागी विवेक के पास गई. उस के सामने वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘डाक्टर साहब, मुझ पर दया कीजिए. मेरे पति कुछ काम नहीं करते हैं. घर को चलाने का और 2 बच्चों को पढ़ाने का पूरा खर्चा मैं संभालती हूं. मेरी अच्छी नौकरी है पर फिर भी हमें पैसों की कमी हमेशा महसूस होती है. अभी महीने की शुरुआत है. मुझे हाल में वेतन मिला है. अगर आप कल मेरे पति को डिस्चार्ज कर देंगे, तो वह घर आ कर मुझे पीटपाट कर, सारे पैसे बैंक से निकलवाएगा. फिर सब पैसा शराब में उड़ा देगा.

‘‘अभी मुझे पिछले महीने का कर्ज भी चुकाना है. इस महीने का खर्च चलाना है. बच्चों की स्कूल की फीस भी देनी है. मैं कैसे काम चलाऊंगी. मैं आप से हाथ जोड़ कर विनती करती हूं, मेरे पति को कम से कम 4-5 दिन और अस्पताल में रख लीजिए.’’

‘‘माफ करना बहनजी,’’ विवेक ने जवाब दिया, ‘‘पर आप के पति को अस्पताल में रखना या न रखना मेरे हाथ में नहीं. वैसे भी, हम किसी रोगी को ठीक होने के बाद यहां रखना नहीं चाहते हैं क्योंकि बहुत और बीमार लोग हैं जो यहां बैड के खाली होने का इंतजार कर रहे हैं.’’ रोगियों की और रिश्तेदारों की कोई कमी नहीं थी. कहीं बेटी मां के बारे में चिंतित थी, कहीं चाचा भतीजे के बारे में. हर रोगी की रिपोर्ट जांचना और उस की आगे की चिकित्सा का आदेश देना आवश्यक था और ऊपर से उस को आश्वासन भी देना होता था कि डाक्टर पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वह जल्द से जल्द पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएगा.

विवेक मैटरनिटी वार्ड के सामने से निकल रहा था कि वार्ड का दरवाजा अचानक खुला और वरिष्ठ डाक्टर प्रशांत बाहर आए. वे काफी चिंतित लग रहे थे पर विवेक को देख कर उन का चेहरा खिल उठा. ‘‘डाक्टर विवेक,’’ वे बोले, ‘‘अच्छा हुआ कि तुम मिल गए. हमारे वार्ड में इस समय कोईर् खाली नहीं है, और एक जरूरी संदेश वेटिंगरूम तक पहुंचाना था. कृपा कर के, क्या तुम यह काम कर दोगे?’’

‘‘कर दूंगा, सर’’ विवेक ने उत्तर दिया, ‘‘संदेश क्या है और किस को पहुंचाना है?’’

‘‘वेटिंगरूम में एक मिस्टर विनोद होंगे,’’ डाक्टर प्रशांत ने कहा, ‘‘उन को यह बताना है कि उन की पत्नी को एक प्रिमैच्योर यानी उचित समय से पहले बच्चा हुआ है और वह लड़का है. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं पर उसे बचाना काफी कठिन लग रहा है. और उन को यह भी कहना कि इस समय वे अपनी पत्नी और बच्चे से नहीं मिल सकेंगे. पर शायद 3-4 घंटे के बाद यह संभव होगा.’’

वेटिंगरूम की ओर जाते हुए विवेक सोचने लगा कि यह क्यों होता है कि बुरा समाचार देने के लिए हमेशा जूनियर डाक्टर को ही जिम्मेदारी दी जाती है. डरतेडरते विवेक ने बच्चे के बाप को अपना परिचय दिया और फिर संदेश सुनाया. बाप कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि आप लोग बच्चे को बचाने के लिए जीजान लगाएंगे.’’

विवेक ने वापस जा कर बच्चे की मां की फाइल निकाली और पढ़ कर उस को पता लगा कि उस औरत को इस से पहले 2 मिसकैरिज यानी गर्भपात हुए थे, और दोनों वक्त बच्चा मृतक पैदा हुआ था. यह उस औरत का तीसरा गर्भ था. डाक्टरों ने बच्चे को बचाने की जितनी कोशिश कर सकते थे, उतनी की. बच्चा 5 दिन जीवित रहा. इस दौरान उस के बाप ने उस का नाम विजय रख दिया. चंद गिनेचुने रिश्तेदार भी उस से मिल सके. विवेक भी दिन में 2-3 बार जा कर बच्चे की हालत पता करता था.

पर 5वें दिन विजय का छोटा सा दिल हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया. विवेक भी उन डाक्टरों में था जिन्होंने अस्पताल के दरवाजे के पास खामोश खड़ेखड़े उस के पिता को विजय का नन्हा मृतक शरीर अपनी छाती से लगा कर बाहर जाते देखा.

कुछ दिनों बाद डाक्टर विवेक के नाम अस्पताल में एक पत्र आया. उस ने लिफाफा खोला और पढ़ा, ‘डाक्टर विवेक, मैं यह पत्र आप को भेज रहा हूं, क्योंकि मुझे सिर्फ आप का नाम याद था, पर यह उन सब डाक्टरों के लिए है जिन्होंने मेरे बेटे विजय की देखभाल की थी.

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‘आप लोगों ने उस को इतनी देर जीवित रखा ताकि हम उस को नाम दे सकें, उस को हम अपना प्यार दे सकें, उस के दादादादी और नानानानी उस से मिल सकें. दवाइयों ने उसे जिंदा नहीं रखा, बल्कि आप लोगों के प्यार ने उसे चंद दिनों की सांसें दीं. धन्यवाद डाक्टर साहब. मैं आप सब का एहसानमंद हूं.’ नीचे हस्ताक्षर की जगह लिखा था, ‘विजय का पिता.’ विवेक की आंखें भर आईं और उस के गाल गीले हो गए. पर उस ने अपने आंसुओं को रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

लाइव शो से भागे प्रियंका चोपड़ा के पति निक जोनस, क्यों महसूस हुआ खतरा?

आजकल सेलिब्रिटी होना भी एक मुसीबत बन गया है. नेता हो या अभिनेता हर किसी को अब मौत का खौफ सताने लगा है. प्रसिद्ध हस्तियों के दिल में अब डर बैठ रहा है कि पता नहीं कब कहां से कोई अनजान हत्यारा गोली चलाकर उनकी हत्या करके भाग जाए. जैसा कि आजकल हिंदुस्तान में देखने को मिल रहा है. यह डर सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी पनपने लगा है. जिसके चलते हाल ही में प्रियंका चोपड़ा के पति जो एक प्रसिद्ध गायक हैं और विदेश में उनके लाखों करोड़ों फैन है वही निक जोनस हाल ही में एक वायरल वीडियो में स्टेज छोड़कर भागते नजर आए. जिसे देखकर उनके प्रशंसक टेंशन में आ गए.

इस जिज्ञासा के साथ कि उसे इवेंट के दौरान जहां निक जोनस अपने भाई केविन और जो जोनस के साथ स्टेज पर परफौर्म कर रहे थे. अचानक स्टेज छोड़कर क्यों भाग गए. और स्टेज से भाग कर जातेजाते उन्होंने सिक्योरिटी की तरफ भी इशारा किया.

खबरों के अनुसार ग्लोबल स्टार निक जोनस जिन्होंने अपनी मधुर और करणप्रिय आवाज के चलते लाखों प्रशंसकों का दिल जीता है जिनके इवेंट ज्यादातर हाउसफुल जाते हैं. वही निक जोनस हाल ही में जब इटली के Prague प्राग मिलन में 15 अक्टूबर की रात एक इवेंट में लाइव परफौर्मेंस दे रहे थे. तभी अचानक उन्हें लेजर लाइट की लाल बिंदु अपने माथे और शरीर पर घूमती नजर आई.

निक को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे कोई लेजर लाईट से निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है. जिसे देखकर निक जोनस को अपनी जान के खतरे का आभास हुआ और वह घबरा कर तुरंत स्टेज छोड़कर भाग गए. इस वायरल वीडियो के बाद प्रशंसक जहां अपने चहेते गायक को लेकर चिंतित हो गए हैं. वही इस वीडियो का सस्पेंस अभी तक सस्पेंस ही है. जिसकी छानबीन जोरों शोरों पर हो रही है.

सलमान, ऋतिक नहीं बल्कि Shahrukh khan हैं दुनिया के दसवें सबसे हैंडसम ऐक्टर

एक समय था जब सलमान खान दुनिया के सबसे हैंडसम एक्टर की लिस्ट में शामिल थे. उसके बाद बेइंतहा खूबसूरती के चलते ऋतिक रोशन को ग्रीक गौड का खिताब दिया गया. लेकिन खबरों के अनुसार दुनिया के सबसे हैंडसम एक्टर के खिताब की शोहरत शाहरुख खान के सिर पर ताज की तरह सजी है. ऐसे में कहना गलत ना होगा कि 59 वर्ष की उम्र में आज भी शाहरुख खान करोड़ों दिलों पर राज कर रहे हैं .

उनकी फैन फौलोइंग इतनी तगड़ी है कि कई सालों से जिंदगी में कई सारे उतार चढ़ाव के बावजूद शाहरुख खान के प्रशंसकों की लिस्ट में कोई कमी नहीं आई है. चाहे शाहरुख खान का नाम कितने ही विवादों से जुड़े लेकिन उनकी एक झलक देखने के लिए मन्नत बंगलो के बाहर हजारों की भीड़ लगती है शाहरुख खान के डिंपल उनकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं सिर्फ देश में ही नहीं विदेश में भी शाहरुख की शोहरत का डंका बजता है उनके आईकौनिक किरदार फिर चाहे वह दिलवाले दुल्हनिया ले जाएं हो पठान हो या जवान ही क्यों ना हो शाहरुख खान को हर बार एक नई शोहरत की तरफ ले जाते है.

शायद इन्हीं सब वजह से 55 वर्ष पार कर चुके शाहरुख खान दुनिया के सबसे हैंडसम एक्टर की लिस्ट में शामिल पाए जाते हैं. शाहरुख खान की 2024 में भले ही एक भी फिल्म रिलीज नहीं हुई लेकिन 2023 में उनकी तीनतीन हिट फिल्में आई फिलहाल शाहरुख खान अपनी लोकप्रियता को लेकर एक बार फिर चर्चा में है.

फेमस सैलिब्रिटी प्लास्टिक सर्जन डा जूलियन डी सिल्वा के किए गए साइंटिफिक स्टडी के आधार पर दुनिया के टौप 10 हैंडसम मेल एक्टर की लिस्ट में शाहरुख खान दसवें नंबर पर शामिल हैं. डौक्टर जूलियन के अनुसार शाहरुख खान दुनिया के सबसे हैंडसम एक्टरों में से एक हैं. शाहरुख इस लिस्ट में एकमात्र इंडियन एक्टर हैं जिनका स्कोर लोकप्रियता के आधार पर 86.76 % फेशियल सिमट्री स्कोर के साथ 10 वें स्थान पर रहा है इसी लिस्ट में पहले नंबर पर विदेशी एक्टर “आरोन टेलर जौनसन का नाम शामिल है.ओर 9 वे नंबर पर ब्रिटिश ऐक्टर इदरीस एल्बा 87.94,% स्कोर के साथ शामिल है.

दुनिया के सबसे खूबसूरत 10 मर्दों की लिस्ट कुछ इस प्रकार है..

डौक्टर जूलियन डी सिलवा ने ग्रीक गोल्डन रेशियो औफ ब्यूटीफाई का इस्तेमाल करके चेहरे की सिमेट्री और परफेक्शन का आकलन किया. डा डी सिल्वा ने इसे मापने के लिए एडवांस्ड फेस मैपिंग सौफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है जो बताता है की विभिन्न सितारों की चेहरे की खासियत गोल्डन रेशियो के कितने अनुरूप है. गोल्डन रेशियो चेहरे की सिमेट्री को मापता है जिस किसी व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं में परफेक्शन का पता चलता है. इसी आधार पर शाहरुख खान जहां सबसे खूबसूरत मर्दों की लिस्ट में दसवें नंबर पर है. वही बाकी सबसे खूबसूरत मर्दों की लिस्ट इस प्रकार है.

1.आरोन टेलर जौनसन दूसरे नंबर पर लूसिएन लविसकाउंट, तीसरे नंबर पर पौल मस्कल और चौथे नंबर पर रौबर्ट पैटिंसन , पांचवे नंबर पर जैक लोडेन , छठवें नंबर पर जौर्ज क्लूनी सातवें नंबर पर निकोलस हूलट , आठवे नंबर पर रायवर्डले स्टार चार्ल्स मेल्टन, नवे नंबर पर इदरीस एल्बा और दसवें नंबर पर शाहरुख खान हैं.

जिस लड़की से मेरी शादी होने वाली है उसका फोन हमेशा बिजी रहता है, कहीं किसी के साथ चक्कर तो नहीं चल रहा ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

कुछ महीनों पहले मेरी शादी तय हुई थी, लेकिन मेरे पिताजी की तबियत खराब हो गई, जिस वजह से शादी की डेट आगे बढ़ानी पड़ी.

दरअसल, मेरी मंगेतर घंटों बातें किया करती थी, लेकिन अब वह मेरा फोन कट कर देती है और कहती है कि बाद में बात करूंगी. दोबारा कौल करने पर उसका नम्बर बिजी बताता है, Whatspp पर भी औनलाइन दिखती है, लेकिन मेरे मैसेज और काल का जवाब नहीं देती है. मुझे लगता है कि उसका किसी के साथ चक्कर चल रहा है. मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं ? आप ही इस समस्या का हल बताएं.

जवाब

जैसा कि आपने बताया आपकी मंगेतर पहले घंटों बातें किया करती थी. शादी टलने की वजह से आपको उसमें कई बदलाव नजर आ रहे हैं. आपके सवाल से लग रहा है कि आपकी शादी नहीं टूटी है. अगर संभव हो, तो आप अपनी मंगेतर से मिल सकते हैं, और आप दोनों के बीच जो भी गलतफहमियां हुई हैं, उसे दूर करें.

आप ये भी कह रहे हैं कि वह अक्सर फोन पर बिजी रहती है, हो सकता है कि वह अपने फ्रैंड्स या काम की वजह से भी बिजी हो. शादी से पहल आप उससे पूछ सकते हैं कि उसके लाइफ में कोई है तो नहीं ? ये नौर्मल बात है.. बात करने से ही पता चलेगा कि आखिर शादी को लेकर उस लड़की के मन में क्या चल रहा है.

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क्या आप भी हैं वन साइडेड रिलेशनशिप में ?

अपने एकतरफा प्यार का इजहार करने में जहां लड़के उतावले रहते हैं वहीं लड़कियों में शर्मझिझक होने से वे इस का इजहार नहीं कर पातीं. आमतौर पर लड़कियां इस की पहल नहीं करतीं या करती भी हैं तो किसी को माध्यम बना कर.

कई बार जब आप किसी के प्रति आकर्षित होते हैं तो उस आकर्षण को ही प्यार समझने लगते हैं. लेकिन ये दोनों अलगअलग बातें हैं. आकर्षण छलावा होता है जबकि प्यार गहराई लिए होता है. प्यार भावनाओं पर आधारित होता है जबकि आकर्षण वासना पर. वासना को प्यार का नाम देना बुद्धिमानी नहीं है.

एकतरफा प्यार में मिली असफलता को धोखे का नाम नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह तो इस बात से अनजान है. जब आप उसे इस बारे में बताते हैं तो उस की प्रतिक्रिया क्या होगी, यह नहीं कह सकते. हो सकता है कि उस का जवाब सकारात्मक हो. यदि आप का प्यार स्वीकार हो जाता है तो आप के मन की इच्छा पूरी हो सकती है वरना सामने वाले को दोष देना ठीक नहीं. इसलिए, प्यार में इतने बेवकूफ न बनें कि आप अपना आपा ही खो दें.

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इस Diwali बाजार से महंगी मिठाई लाने के बजाय घर पर ही इन सस्ती चीजों से बनाएं ये टैस्टी स्वीट्स

बस कुछ ही दिनों बाद दिवाली (Diwali) का त्योहार आने वाला है. लेकिन लोग महीनों पहले से ही इस त्योहार की तैयारी में जुट गए हैं. इन दिनों हर शाम मार्केट में खूब भीड़ देखने को मिलती है. घर की डेकोरेशन से लेकर नए कपड़े तक लोग इस त्योहार को सेलिब्रैट करने के लिए तरहतरह की चीजें खरीदते हैं. इसके अलावा मिठाइयों की दुकान पर सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है. मिठाई लेने के लिए लोग घंटों लाइन में खड़े रहते हैं और त्योहार पर मिठाइयों की महंगाई ज्याद बढ़ जाती है, तो क्यों न इस दिवाली आप घर पर ही खुद से आसान तरीकों से मीठे में कुछ डिशेज बनाएं. आपको इनकी सामग्री भी खरीदने में भी कम पैसे लगेंगे. तो आइए जानते हैं इन स्वीट्स की आसान रेसिपी.

1. बेसन की बर्फी

सामग्री

3 कप बेसन
1 कप देसी घी
2 कप चीनी
7 कटे हुए बादाम
7 कटे हुए काजू

बनाने की विधि

  • एक पैन या ट्रे को घी से अच्छी तरह चिकना कर लें. आप इस पर बटर पेपर या एल्युमिनियम फौयल भी लगा सकते हैं और फिर थोड़ा घी इस पर डाल कर फैला सकते हैं.
  • अब एक पैन गर्म करें, अब इसमें देसी घी डालें और इसे धीमी आंच पर पिघलने दें.
  • घी पिघलने के बाद इसमें बेसन डालें और अच्छी तरह मिलाएं.
  • बेसन का मिश्रण एक पूरी गांठ जैसा हो जाएगा या आप इसे गाढ़ा होने दें. आप इस मिश्रण को चलाते रहें.
  • कुछ मिनट बाद आप देखेंगे कि बेसन का मिश्रण पिघलने लगेगा और किनारों से घी निकलने लगेगा.
  • घी निकलने के बाद भी लगातार चलाते रहें, बेसन अच्छे से भुन जाएगा और उसका रंग हल्का सुनहरा होने दें.
  • एक तरफ चीनी की चाशनी तैयार कर लें और बादाम, काजू को भी बारीक काट लें.
  • बेसन के गाढ़े पेस्ट में चाशनी और ड्राई फ्रूट्स मिक्स करें.
  • इसे अच्छी तरह मिलाएं. अब इस मिश्रण को ट्रे पर रखें.
  • और इसे ट्रे पर पूरा फैलाएं. गर्म मिश्रण हो, तभी क्यूबस के आकार में काट लें. इसे एयर टाइट कंटेनर में स्टोर करें.

2. सूजी के लड्डू

सामग्री
2 कप सूजी
1 कप दूध
3 बड़ा चम्मच देसी घी
3 बड़े चम्मच मलाई
1 बड़े चम्मच ड्राई फ्रूट्स
1 चम्मच इलाइची पाउडर
आवश्यकतानुसार चीनी का बूरा

बनाने की विधि

  • सबसे पहले एक पैन गर्म करें, इसमें घी डालें.
  • जब घी पिघल जाए, तो इसमें सूजी डालकर भून लें.
  • अब इसमें चीनी का बूरा, ड्राई फ्रूट्स और इलाइची पाउडर भी मिला दें. इसे भूनते रहें.
  • अब इस मिश्रण में मलाई डालें. अगर आपको ये मिश्रण थोड़ा सूखा लग रहा है, तो इसमें दूध डालकर थोड़ा गिला कर दें.
  • अब मिश्रण ठंडा होने के लिए रख दें. आप इनसे स्वादिष्ट लड्डू बांध लें.
  • इससे लड्डू आसानी से बन जाएंगे.

3. खोए की बर्फी

सामग्री

2 कप खोया

आधा कप घी

1 चम्मच इलायची पाउडर

1 कप चीनी

बनाने की विधि

  • एक पैन में घी गर्म कर लें, इसमें  खोया डालकर भून लें.
  • इसे हल्की आंच पर चलाते रहें. फिर इसमें चीनी डालें
  • इसे तब तक चलाते रहें, जब तक चीनी अच्छी तरह न घुल जाए.
  • जब इसका रंग पूरी तरह बदल जाए, तो गैस बंद कर दें.
  • एक ट्रे में घी लगाएं, और खोए को इस पर फैला दें.
  • जब ठंडा हो जाए तो, इलायची पाउडर मिलाएं और बर्फी की शेप में इसे काट दें

रूह का स्पंदन: क्या थी दीक्षा के जीवन की हकीकत

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,

हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.

सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.

सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.

अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तो…

सुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.

चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.

ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.

उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.

सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.

दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’

सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.

फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’

‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.

‘‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

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दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

डबल क्रौस : विमला ने इंद्र और सोमेन से क्यों मोटी रकम वसूली

रोज की तरह सिटी पार्क में मौर्निंग वाक करते हुए इंद्र ने सोमेन को देखा तो उन्हें आवाज दी. इंद्र की आवाज सुन कर वह रुक गए. सोमेन कोलकाता के ही रहने वाले थे, जबकि इंद्र बिहार के. केंद्र सरकार की नौकरी होने की वजह से वह प्रमोशन और ट्रांसफर ले कर करीब 20 साल पहले कोलकाता आ गए थे और वहीं सैटल हो गए थे.

इंद्र और सोमेन एक ही औफिस में काम करते थे. सोमेन से इंद्र की जानपहचान हुई तो दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. फिर तो दोनों परिवारों में काफी घनिष्ठता हो गई थी. दोनों इसी साल रिटायर हुए थे. सोमेन की एक ही बेटी थी, जो शादी के बाद पति के साथ अमेरिका चली गई थी.

इंद्र का भी एक ही बेटा था, जो आस्ट्रेलिया में नौकरी कर रहा था. बच्चों के बाहर होने की वजह से दोनों अपनीअपनी पत्नी के साथ रह रहे थे. इंद्र की आवाज सुन कर सोमेन रुके तो नजदीक पहुंच कर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम तो 2 सप्ताह के लिए मसूरी गए थे. अभी तो 4-5 दिन हुए हैं. वहां मन नहीं लगा क्या, जो लौट आए?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. हम लोग वहां पहुंचे ही थे कि अमेरिका से बेटी का फोन आ गया. तुम्हें तो पता ही है कि वह मां बनने वाली है. उस की डिलिवरी में कौंप्लीकेशंस हैं, इसलिए उस ने मां को फौरन बुला लिया.’’ सोमेन ने कहा.

‘‘लेकिन तुम तो कह रहे थे कि अभी डिलीवरी में 3 महीने बाकी हैं. भाभीजी के लिए 2 महीने बाद की टिकट भी बुक करा रखी थी?’’

‘‘हां, लेकिन बेटी के बुलाने पर एजेंट से उस की तारीख चेंज करा कर कल रात को ही उन्हें कोलकाता एयरपोर्ट से भेज दिया. अब तो 6 महीने से पहले आने वाली नहीं है. जरूरत पड़ी तो और भी रुक सकती हैं. ग्रीन कार्ड है न, वीजा का भी कोई चक्कर नहीं था.’’

‘‘तुम क्यों नहीं गए?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘मैं कुछ दिनों पहले ही तो लौटा हूं. अब डिलिवरी के समय जाऊंगा. फिर घर में थोड़ा काम भी लगवा रखा है. एक 2 रूम का सेट बनवा रहा हूं. कुछ किराया आ जाएगा. देखो न, आजकल कितनी महंगाई है.’’

‘‘चलो ठीक है, हम दोनों ही हैं. एकदूसरे से मिल कर मन लगा रहेगा.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘भाई, जरा कामवाली विमला को बता देना कि मैं आ गया हूं, इसलिए मेरे यहां भी काम करने आ जाएगी. उसे तो यही पता है कि मैं 2 हफ्ते बाद आऊंगा. और बताओ, भाभीजी कैसी हैं?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को भी अचानक मायके जाना पड़ा. उस की मां को लकवा मार गया है. वह बिस्तर पर पड़ी हैं. अब तुम्हारी भाभी भी 4-5 महीने से पहले आने वाली नहीं है. चलो, चाय मेरे यहां से पी कर जाना.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘चाय तुम बनाओगे?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘तुम्हें चाय पीने से मतलब. कौन बनाएगा, इस की चिंता क्यों कर रहे हो?’’

वैसे भी मौर्निंग वाक के बाद दोनों दोस्त किसी एक के घर ही चाय पीते थे. सोमेन इंद्र के साथ उस के घर पहुंचा. इंद्र ने ताला खोल कर सोमेन को ड्राइंगरूम में बैठाया. सोमेन को किचन में बरतनों के खटरपटर की आवाज सुनाई दी तो पूछा, ‘‘इंद्र, देखो किचन में बिल्ली है क्या?’’

किचन से विमला की आवाज आई, ‘‘हां, मैं ही बिल्ली हूं.’’

इतना कह कर उस ने 2 कप चाय ला कर मेज पर रख दिया. इंद्र ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘तुम्हारी भाभी मेरे खानेपीने, कपड़े धोने आदि का काम इसे सौंप गई हैं. मैं ने इसे पीछे के दरवाजे की चाबी दे रखी है. मेरे न रहने पर यह पीछे से आ कर अपना काम करने लगती है. इसीलिए तो हमारे आते ही चाय मिल गई.’’ इस के बाद उन्होंने विमला से कहा, ‘‘तुम ने अपनी चाय हमें दे दी, अपने लिए दूसरी बना लेना.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं अपने लिए चाय बना लूंगी.’’ कह कर विमला जाने लगी तो सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, मैं तुम्हें संदेश भिजवाने वाला था कि मेरे यहां भी आ जाना. बरतन, झाड़ू और पोंछा के अलावा मेरा भी खाना बना देना.’’

‘‘यहां के लिए तो मेमसाहब कह कर गई हैं कि साहब के सारे काम कर देना. आप की मेमसाहब के कहे बगैर मैं किचन का काम नहीं कर सकती.’’ विमला ने कहा.

‘‘ठीक है, अभी तो वह रास्ते में होंगी, कल आओगी तो मैं उन से तुम्हारी बात करा दूंगा.’’ सोमेन ने कहा.

इंद्र ने सोमेन को बताया कि उन की पत्नी के कहने पर ही विमला घर के सारे काम करने को तैयार हुई थी. पीछे वाले दरवाजे की चाबी देने का सुझाव भी उन्हीं का था, ताकि मैं घर में न भी रहूं तो यह आ कर काम कर दे. पहले तो इस ने बहुत नखरे दिखाए, पर जब उन्होंने कहा कि इसी के भरोसे साहब को छोड़ कर जा रही हूं, तब जा कर यह तैयार हुई.

अगले दिन सोमेन ने फोन पर वीडियो कालिंग कर के पत्नी की विमला से बात करा दी. सोमेन की पत्नी को भी उस की खुशामद करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि साहब को बाहर का खाना बिलकुल सूट नहीं करता, इसलिए अपना घर समझ कर वह साहब का खयाल रखे.

इस पर विमला ने नखरे दिखाते हुए कहा था, ‘‘ठीक है, आप इतना कह रही हैं तो मैं आप के घर को अपने जैसा ही समझूंगी. आप इत्मीनान रखें, साहब को भूखा नहीं रहने दूंगी. पर इंदरजी के यहां भी सारा काम करना पड़ता है, इसलिए थोड़ी देरसबेर हो सकती है. फिर भी मैं सारे काम कर दूंगी.’’

विमला को दोनों घरों के बैक डोर की चाबी मिल गई. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी, क्योंकि दोनों घरों में जम कर खानेपीने को मिल रहा था. अब वह थोड़ा बनठन कर साफसुथरे कपड़े पहन कर बालों में खुशबूदार तेल डाल कर आने लगी थी. वह हमेशा खुश दिखती थी और इंद्र तथा सोमेन से खूब हंसहंस कर बातें करती थी.

विमला देखने में साधारण थी. उस की उम्र 35 साल के करीब थी. उस का पति शंकर भी दोनों घरों में माली का काम करता था. वह काफी दुबलापतला मरियल सा था. अगर 3-4 लोग एक साथ जोर से फूंक दें तो वह उड़ सकता था. स्वभाव से वह भोलाभाला और एकदम सीधासादा था.

विमला दोनों दोस्तों से खूब चिकनीचुपड़ी बातें करती हुई अपनी अदाओं से उन्हें लुभाती रहती. कभी चायपानी देते वक्त जानबूझ कर पल्लू गिरा कर अपने वक्षस्थल दिखाने की कोशिश करती तो कभी किचन में बौलीवुड के भड़काऊ गीत ‘बीड़ी जलइले जिगर से…जिगर मा बड़ी आग है’ गुनगुनाने लगती. इसी तरह महीना बीत गया.

एक दिन विमला सुबह इंदर के यहां थोड़ा देर से आई. इंद्र ने वजह पूछी तो उस ने कहा, ‘‘कल रात आप के दोस्त के यहां देर हो गई. वह बहुत देर तक बातें करते रहे. कह रहे थे कि एक भूख तो मिट जाती है, लेकिन दूसरी का क्या करूं? यह दूसरी भूख क्या होती है साहब?’’

‘‘बस, यही समझ लो कि शंकर तुम से पेट और देह दोनों की भूख मिटा लेता है. वैसे दूसरी भूख तो सभी को लगती है, मुझे भी लगती है. पर मुझ बूढ़े को कौन पूछता है? क्या सचमुच हम इतने बूढ़े हो गए हैं?’’ इंद्र ने विमला को चाहत भरी नजरों से ताकते हुए कहा.

‘‘नहीं साहब, आप को देख कर तो कोई नहीं कह सकता कि आप रिटायर्ड हैं. रही बात मेरे मर्द की तो उस के शरीर में कहां दम है. फिर रात में पी कर आता है और लुढ़क जाता है. 5 साल हो गए, एक औलाद तक नहीं दे पाया. मैं अपना मर्द और एक बेटा छोड़ कर इस के साथ शहर आई थी कि यह मुझे उस से ज्यादा खुश रखेगा, लेकिन यह उस से भी बेकार निकला.’’

‘‘सचमुच.’’ इंद्र ने विमला को बांहों में भर कर कहा, ‘‘सोमेन से कुछ मत बताना. चलो, कमरे में चलते हैं.’’

इस के बाद जो नहीं होना चाहिए था, वह हो गया. इस के 2 दिनों बाद विमला सोमेन के यहां दिन में न जा कर रात में गई. सोमेन के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘आप के दोस्त के यहां आज बहुत काम था, इसलिए देर होने पर वहीं से अपने घर चली गई थी. मर्द भी तो भूखा बैठा था.’’

‘‘अच्छा चलो, बुड्ढे को दिन भर उपवास करा दिया, जल्दी खाना बना कर पेट की भूख मिटाओ.’’

‘‘बूढ़े हों आप के दुश्मन, आप का तो क्या गठीला बदन है. आप को सिर्फ पेट की ही भूख मिटानी है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब क्या, आप ने ही तो कहा था कि एक और भूख होती है. फिर मेमसाहब ने भी अपने जैसा खयाल रखने को कहा था.’’

‘‘अरे भई, तू तो बड़ी समझदार हो गई है.’’ कह कर सोमेन ने विमला को बांहों में भर कर चूम लिया. उस ने भी कोई ऐतराज नहीं किया तो उन्होंने कहा, ‘‘चलो बैड पर, पेट की भूख की बाद में सोचेंगे.’’

उस दिन विमला सोमेन के साथ भी हमबिस्तर हो गई. रात को जाते समय सोमेन ने कहा, ‘‘देखो, इस बात की चर्चा इंद्र से भूल कर भी मत करना.’’

‘‘बिलकुल नहीं करूंगी, मैं इतनी बेवकूफ नहीं हूं कि इस तरह की बात किसी से कह दूं.’’ कह कर विमला चली गई.

एक दिन विमला ने अपने पति शंकर से कहा, ‘‘हमारे दोनों साहब आजकल कुछ ज्यादा ही रंगीनमिजाज हो रहे हैं. अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं इन दोनों का ठीक से इलाज कर दूं.’’

इस के बाद उस ने शंकर से अपनी योजना बता दी. उस ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ तो अपने दिन सुधर जाएंगे.’’

इस तरह विमला 2 महीने के अंदर ही दोनों दोस्तों की घरवाली बन गई. उधर दोनों की पत्नियां विमला को फोन कर के समझाती रहती थीं कि साहब को किसी तरह की तकलीफ न होने पाए. विमला भी उन्हें निश्चिंत रहने को कहती थी. तीसरा महीना होतेहोते उस ने एक दिन सोमेन से कहा, ‘‘मैं ने सावधानी बरतने को कहा था, पर आप माने नहीं. मुझे गर्भ ठहर गया है.’’

‘‘इस में चिंता की क्या बात है, तुम शादीशुदा हो, यह बच्चा शंकर का होगा.’’

‘‘उस का कहां से होगा, उस नामर्द को तो 5 साल से झेल रही हूं. असली मर्द तो आप मिले हैं. इस में कोई शक नहीं कि मेरे पेट में आप का ही अंश है.’’

‘‘अच्छा चुप रह. यह जिस का भी हो, कहलाएगा तो शंकर का ही. अगर तुम चाहो तो मैं डाक्टर से कह कर इसे गिरवा दूं.’’

‘‘ना बाबा, बड़ी मुश्किल से तो यह दिन देखने को मिला है. आप चिंता न करें, आप का नाम नहीं लूंगी.’’

कुछ दिनों बाद विमला ने अपने गर्भवती होने की बात इंद्र से भी कह दी. उस ने भी कहा, ‘‘घबराती क्यों है, इस का शंकर ही बाप कहलाएगा.’’

विमला ने दोनों दोस्तों को अपने गर्भवती होने की बात बता कर ठगना शुरू कर दिया. अपना फूला हुआ पेट दिखा कर कभी डाक्टर से इलाज और दवादारू के पैसे लेती तो कभी छुट्टी ले कर बैठ जाती. धीरेधीरे उस के पेट का फूलना बढ़ता गया. एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘जरा पूजाघर की सफाई अच्छे से कर दे.’’

विमला ने कहा, ‘‘आज बहुत काम है, बाद में कर दूंगी.’’

एक महीने बाद फिर सोमेन ने पूजाघर साफ करने को कहा तो फिर वही जवाब मिला. सोमेन बेटी की डिलिवरी के समय एक महीने के लिए अमेरिका चला गया. डिलिवरी के बाद डाक्टर ने सलाह दी कि बेबी कमजोर है, इसलिए एक साल तक डे केयर में न दे कर उस की परवरिश घर में ही की जाए.

सोमेन ने इंडिया लौट कर इंद्र को बताया कि पत्नी के लौटने में अभी देर है. उधर इंद्र की पत्नी ने कहा था कि मां के पास किसी न किसी का रहना जरूरी है. उस के भाई का लड़का 12वीं कक्षा में है. बोर्ड की परीक्षा के बाद ही उन की भाभी आ कर संभालेंगी. इंद्र भी कुछ दिनों के लिए अपनी सास से मिलने चला गया था.

दोनों दोस्तों की पत्नियां बारबार फोन कर के विमला को दोनों का खयाल रखने के लिए कहती रहती थीं. विमला को और क्या चाहिए था. उस की तो पांचों अंगुलियां घी में थीं. विमला ने दोनों की पत्नियों से कहा था, ‘‘आप को पता होना चाहिए कि मैं उम्मीद से हूं. डिलिवरी के समय कुछ दिनों तक मैं काम पर नहीं आ सकूंगी. तब कोशिश करूंगी कि कोई कामवाली आ कर काम कर जाए.’’

विमला इंद्र और सोमेन से कहती थी कि डाक्टर ने फल और टौनिक लेने के लिए कहा है, क्योंकि बच्चा काफी कमजोर है. आखिर यह उन का ही तो खून है. भले ही शंकर का कहलाए, लेकिन इसे बढि़या खानापीना मिलते रहना चाहिए. डाक्टर कहते हैं कि पेट चीर कर डिलिवरी होगी. काफी पैसा लगेगा उस में.

इंद्र और सोमेन यही समझ रहे थे कि विमला के पेट में उन्हीं का अंश पल रहा है, इसलिए चुपचाप विमला को बरदाश्त कर रहे थे. हमेशा ही मन में डर बना रहता था कि अगर विमला का मुंह खुल गया तो वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. उन्हें यह भी विश्वास था कि विमला को ज्यादा पैसों का लालच नहीं है, वरना वह चाहती तो और भी हथकंडे अपना कर ब्लैकमेल कर सकती थी.

एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, तेरे मर्द को भी तो बच्चे की चिंता होनी चाहिए न?’’

‘‘वह नशेड़ी कुछ नहीं करेगा. यह बच्चा आप ही का है, आप चाहें तो चल कर टेस्ट करा लें.’’

‘‘नहीं, टेस्ट की कोई जरूरत नहीं है.’’

विमला की डिलिवरी का समय नजदीक आ गया. उस ने इंद्र से कहा, ‘‘डाक्टर ने कहा है कि औपरेशन से बच्चा होगा. काफी खर्च आएगा साहब. हम कहां से इतना पैसा लाएंगे?’’

इसी बहाने विमला ने इंद्र और सोमेन से मोटी रकम वसूली. दोनों से 3 सप्ताह की छुट्टी मांगते हुए उस ने कहा कि वे कहें तो वह एक टेंपरेरी कामवाली का इंतजाम कर दे. रिश्ते में उस की चचिया सास लगती है, पर जरा बूढ़ी है. वह सफाई से भी नहीं रहती, लेकिन उन का काम चल जाएगा.

दोनों ने मना कर दिया कि किसी तरह वे काम चला लेंगे.

दोनों दोस्त अकसर देर तक साथ बैठ कर बातें करते और टोस्ट, खिचड़ी, पोहा आदि खा कर काम चलाते. कभीकभी होटल जा कर खा आते. इसी तरह 3 सप्ताह बीत गए. एक दिन विमला सोमेन के यहां आई. इंद्र भी वहीं बैठा था. उन्होंने कहा, ‘‘चलो भई, आज से अब विमला घर संभालेगी. हम लोग इतने दिनों में बिलकुल थक गए. अरे तेरा बच्चा कैसा है, बेटा हुआ या बेटी?’’

‘‘9 महीने पेट में पाला, मुआ बड़ा बेदर्द निकला. मरा हुआ पैदा हुआ. इतना बड़ा चीरा भी लगा पेट में.’’ विमला रोने का नाटक करते हुए साड़ी में हाथ लगा कर बोली, ‘‘दिखाऊं आप लोगों को?’’

दीवाली पर दिखना चाहती हैं सबसे मौडर्न, तो इन बौलीवुड दीवाज के पर्ल लुक को करें फौलो

दीवाली (Diwali Look) आने में अभी कुछ दिन बाकी है लेकिन इस फैस्टिवल की धूम अभी से सब जगह देखने को मिल रही है. 5 दिन चलने वाले इस बिग सैलिब्रेशन को लोग अपनेअपने तरीके से ऐंजौय करने के मूड में हैं. अगर बात हो दीवाली पार्टी की, तो यही वह टाइम होता है जिस में हम कई पार्टियों में शामिल होते हैं और उन पार्टियों में शामिल होने के लिए हमे कुछ ऐसी ड्रैसेज या ज्वैलरी को सिलैक्ट करना होता है जो यूनिक हो.

अगर आप भी इस बार फैस्टिवल पार्टी पर रौयल और ग्रेसफुल दिखना चाहती हैं तो बौलीवुड दीवाज की तरह पर्ल कोर लुक ट्राई कर सकती हैं. यह आप को ऐलिगेंट लुक तो देंगे ही साथ ही काफी कंफर्टेबल भी होते हैं.

पर्ल लुक्स

अब पर्ल ने भी फैशन की दुनिया में अपनी जगह बना ली है. बौलीवुड की फेमस ऐक्ट्रैस भी इसे खूब पसंद कर रही हैं.

यहां पर हम आप को बौलीवुड की इन 5 ऐक्ट्रैस के पर्ल लुक्स के बारे में बताएंगे जिन्होंने पर्ल लुक स्टाइल में जलवा बिखेरा.

आलिया भट्ट का डिफरेंट पर्ल लुक

सब से पहले बात करेंगे ऐक्ट्रैस आलिया भट्ट की जिन्होंने 2023 के मेट गाला में अपनी ग्रेट ऐंट्री की, जिस में उन्होंने प्रबल गुरुंग का व्हाइट प्रिंसेस बिची वेव्स गाउन पहना, जो डिफरैंट साइज के पर्ल से सजा हुआ था.

स्टाइलिस्ट अनाइता श्रौफ द्वारा स्टाइल किया गया आलिया का लुक बेहतरीन पर्ल के इयररिंग्स, बेतूल फिंगरलेस ग्लव्स और डैलिकेट लार्ज रिंग्स के साथ कंप्लीट किया गया था.

गाउन के साथ उन का सिंपल मेकअप और पर्ल अक्ट्रैटिव लग रहे थे.

जाह्नवी कपूर का स्‍टाइलिश और ग्लैमरस लुक

जाह्नवी कपूर का फैशन सेंस हमेशा स्‍टाइलिश और ग्लैमरस रहा है. एनएमएसीसी लौंच के रैड कार्पेट पर जाह्नवी ने मनीष मल्होत्रा का कस्टम लहंगा पहना.

जाह्नवी ने एक खूबसूरत पर्ल से सजा ब्लाउज पहना और उसे इंट्रीकेट थ्रेड वर्क वाले लहंगे के साथ मिलाया. उन का केप दुपट्टा पर्ल की डिटेलिंग और थ्रेड की कारीगरी का ग्रेट कौंबिनेशन था. उन का लुक नैक में पर्ल के चोकर, छोटे ईयररिंग्स सिंपल क्रिस्टल स्टड्स और स्लीक बैक बन के साथ पूरा हुआ, उस पर उन का ग्लौसी और लाइट मेकअप कंप्लीट लुक दिखा रहा था.

कुब्बरा सैत का पर्ल्स लेयर्स लुक

अपने फैशन ऐक्सपेरिमैंट के लिए जानी जाने वाली ऐक्ट्रैस कुब्बरा सैत, डिजाइनर अभिषेक शर्मा के गाउन में दिखीं जो हजारों पर्ल्स की लेयर्स से बना था. उन्होंने ग्लैमरस मेकअप किया हुआ था. ग्लिटरी आईज मेकअप के साथ प्लम लिप शेड लगाया, हेयर को स्ट्रेट कर ओपन किया और उस पर बड़े हैंगिंग पर्ल इयररिंग्स पहने.

शर्वरी वाघ का पर्ल्स की डिटेलिंग

एनएमएसीसी गाला में शर्वरी वाघ ने अबू जानी संदीप खोसला की खूबसूरत व्हाइट साड़ी पहनी. साड़ी में रफल्स, पंख और दर्जनों पर्ल्स की खूबसूरत डिटेलिंग थी. शर्वरी ने इस साड़ी को एक ओटीटी ब्लाउज के साथ पहना, जिस में स्ट्रक्चर्ड शोल्डर्स थे, जिसे हजारों पर्ल से सजाया गया था.

उन का सिंपल मेकअप और क्लासी ऐक्सेसरीज बैस्ट लग रहे थे. उस पर शर्वरी के क्रिस्टल स्टड और गुलाबी ग्लौसी लिप्स कमाल के लग रहे थे.

कृति सेनन का ऐलिगेंस लुक

कृति सेनन ने मनीष मल्होत्रा की व्हाइट सिल्क सैटिन साड़ी में ऐलिगेंस का प्रदर्शन किया, जिस में पर्ल्स की हलकी डिटेलिंग थी. उन के हाईनेक ब्लाउज में पर्ल की लेयर्ड थी, जो उन के लुक में ग्लैमर का स्पर्श जोड़ रही थीं. कृति के स्ट्रेट हेयर और शाइनी स्मोकी आईज ने इस क्लासिक लुक को पूरा किया.

डैकोरेशन इनोवेटिव आइडियाज के साथ इस दीवाली अपने घर को दें यूनिक लुक

जगमग रोशनी, धूमधड़ाके, खुशी, उत्साह और उमंग का फैस्टिवल है दीवाली. इस दिन लोग न सिर्फ अपने लुक को खूबसूरत बनाते हैं, बल्कि अपने घर को बैस्ट दिखाने के लिए कई दिनों पहले से ही तैयारियां करते हैं.

पूरे घर की साफसफाई के साथ दीवाली का दिन पास आते ही बैस्ट डैकोरेशन से अपने घर को खूबसूरती से सजाने में कोई कसर नही छोड़ते. इस के लिए लोग हमेशा की तरह कलरफुल लाइट्स, कैंडल्स और दीए की जगमग से घर का कोनाकोना रोशन करते हैं.

तो क्यों न इस बार कुछ ऐसा किया जाए जिस से इस दीवाली आप का घर सब से अलग और बेहतर दिखे. इस के लिए हम आप को बता रहे हैं कुछ ऐसे परफैक्ट, यूनिक और अट्रैक्टिव आइडियाज, जिन को अपना कर आप भी घर को यूनिक दिखा सकती हैं :

डैकोरेशन के शानदार आइडियाज

दीवाली के दिनों आप को मार्केट में डैकोरेशन के एक से बढ़ कर एक यूनिक आइटम्स मिल जाएंगे. लेकिन आप अपने घर के अनुसार ही डैकोरेशन आइटम्स को सिलेक्ट करें. कुछ लोग घर को सजाने में बहुत सारे डैकोरेशन आइटम्स खरीद कर घर को सजाते हैं जिस से घर बहुत भराभरा तो लगता है मगर उतना अच्छा नहीं लगता. अगर आप कुछ यूनिक आइडिया को फौलो करेंगी तो आप का घर भी दीवाली की जगमग में अपनी अलग ही चमक बेखेरेगा. तो क्यों न डैकोरेशन की शुरुआत घर के मेनगेट से ही की जाए.

मेन गेट से हो डैकोरेशन की शुरुआत

दीवाली फैस्टिवल पर सब से पहले घर को डैकोरेट करने के लिए मेनगेट यानि घर के मुख्य द्वार से खूबसूरत रंगोली बना कर शुरुआत करें. रंगोली के पैटर्न से अपने घर को सजाना लंबे समय से स्वागत और उत्सव के संकेत के रूप में देखा जाता रहा है. आजकल मार्केट में तरहतरह के डिजाइन वाली स्टीकर वाली रंगोली मिल जाएगी जिसे आप आसानी से मेनगेट की फर्श से चिपका सकती हैं लेकिन इस बार आप कुछ क्रिऐटिव करना चाहती हैं तो आप फ्लोटिंग वाली रंगोली बनाएं जो पानी और फ्रैश फ्लौवर्स से बनती है.

फ्लोटिंग और फ्लोर कौर्नर रंगोली

इस में एक बड़ा खूबसूरत डिजाइन वाला बाउल लें, उस में पानी भर दें. फिर इस में दीए, फ्लौवर्स पेटल्स और अन्य फ्रैगरेंस आइटम्स से सजाएं. इस में पानी की सतह पर डिजाइन बनाया जाता है. यह रंगोली एक यूनिक कला है, जिसे आप अपने घर के बाहर और अंदर कहीं भी सजा सकती हैं. इसे देख कर ही ताजगी का एहसास होता है और फैस्टिवल का वातावरण भी बैस्ट हो जाता है. इस के लिए आप को ज्यादा मेहनत की जरूरत भी नहीं पड़ती है. इस के अलावा आजकल फ्लोर कौर्नर रंगोली डिजाइन काफी चलन में है.

अगर आप के घर में जगह कम है तो अपने घर के कोनों को सजाने के लिए कलरफुल फ्लौवर्स और ग्रीन लीव्स से डिजाइन बना कर सजाएं.

प्रवेशद्वार में तोरण और वंदनवार हो खास

दीवाली के अवसर पर घर के दरवाजे की सजावट का विशेष महत्त्व है. बाहर से ही घर का लुक ऐसा होना चाहिए जिस से आने वाले गेस्ट की निगाहें ठहर जाएं. इस के लिए आप को मार्केट में बनेबनाए तोरण और वंदनवार मिल जाएंगे. लेकिन गेंदे के नैचुरल फ्लौवर्स और आम की हरी पत्तियों से दरवाजे को सजाने से घर का लुक खास होता है. इसे लगाए बिना दीवाली की सजावट और त्योहार की खुशियां अधूरी रह जाती हैं.

मिट्टी की मटकियों से करें डैकोरेट

आप घर के मुख्य दरवाजे को मिट्टी की मटकियों से सजा सकते हैं. इस के लिए आप को मिट्टी की मटकियों को एक के ऊपर एक लगा कर खूबसूरत डिजाइन बनाना है और इसे उस जगह के कोने में लगा कर कलर पेंटिंग, गोटापट्टी, मिररवर्क से डैकोरेट करें. यह स्टाइल सभी को प्रभावित करेगा और लोग आप के डैकोरेशन की तारीफ करते नहीं थकेंगे.

डैकोरेटिव लाइटिंग लैंप

दीवाली में घर के अंदर और बाहर की सजावट के लिए लाइटिंग डिस्प्ले के साथ इंजौय करना न भूलें. इस के लिए टेबल लैंप, हैंगिंग लैंप और फ्लोर लैंप बेहतरीन औप्शन हैं. आप टेबल लैंप को साइड टेबल, शैल्फ या फ्लोर पर रख सकते हैं. डाइनिंग टेबल के ऊपर या घर के प्रवेशद्वार पर हैंगिंग लैंप बहुत अच्छे लगते हैं.

लिविंगरूम या बैडरूम के लिए फ्लोर लैंप बैस्ट लगते हैं. अगर आप अलगअलग प्लेसमेंट के साथ प्रयोग कर के डिफरैंट कलर के बल्ब लगाएंगे तो घर की रोशनी में चार चांद लग जाएगा.

डिजाइनर मिट्टी के लैंप

इस दीवाली आप दीए के अलावा मिट्टी से बने लैंप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. मिट्टी के लैंप के अंदर कैंडल की जलती हुई रोशनी जब लैंप के डिजाइन से छन कर बाहर आती है तो इस की रोशनी में घर और भी खूबसूरत लगता है. इसे आप घर की बालकनी और छत को डैकोरेट कर सकते है. ये मार्केट में आप को आसानी से मिल जाएंगे.

लालटेन और जार स्टाइल दीए

इस दीवाली अगर अपने घर को क्लासी लुक देना चाहते हैं तो आप सिंपल मिट्टी के दीयों की जगह कुछ अलग तरह के दीयों का इस्तेमाल करें. इस के लिए आप लालटेन स्टाइल के दीयों को ले सकती हैं. ये लालटेन स्टाइल लालटेन आप को मार्केट में डिफरैंट कलर के आसानी से मिल जाते हैं जिस में आप दीए जला कर अपने घर को सजा सकते हैं.

इस की रोशनी दूर तक जाती है और घर जगमग हो उठता है. इस के अलावा आप कलरफुल खूबसूरत जार स्टाइल दीए का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. मार्केट में ये जार आसानी से मिल रहे हैं. इन जार के अंदर दीए जला कर आप अपने घर की खूबसूरती को और भी जगमग कर सकते हैं.

कलरफुल लाइटिंग झालर

दीवाली सजावट और रोशनी का फैस्टिवल है. घर को रोशन करने के लिए घर के अंदर भी कलरफ़ुल इलैक्ट्रिक लाइट्स से सजावट की जा सकती है. डिफरैंट डिजाइन और कलर्स वाली झालरें मार्केट में उपलब्ध हैं. जैसे दीए की शेप वाली झालर जो जलने के बाद काफी सुंदर लगती हैं. फेयरी लाइट्स, जिसे घर या बाहर कहीं भी सजा सकते हैं. इस के अलावा पाइप वाली झालर की डैकोरेशन काफी अच्छी लगती है. इसे आप कमरे, खिङकियों और एलईडी के पीछे लगा सकते हैं.आप एलईडी बल्ब में कई तरह के डिजाइन और कलर खरीद कर घर को सजा सकते हैं.

तो फिर, इस दीवाली इन खास आइडियाज से घर को रोशन करें और इस फैस्टिवल का भरपूर मजा लें.

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