यह गब्बर कुछ अलग है

अक्षय कुमार की श्रुति हासन और करीना के साथ आने वाली फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ 1 मई को थिएटर में आने वाली है. यह तमिल फिल्म ‘रमन्ना’ की रीमेक है. इस में अक्षय एक ईमानदार, जागरूक और भ्रष्टाचार विरोधी व्यक्ति की भूमिका में नजर आएंगे. करीना इस ?फिल्म में अक्षय की वाइफ का रोल निभा रही हैं. इस फिल्म के बारे में अक्षय कुमार का कहना है कि यह ‘शोले’ की सीक्वल नहीं है. इस फिल्म में गब्बर खलनायक नहीं, बल्कि नायक है. इस फिल्म का उस फिल्म से कुछ लेनादेना नहीं है. ‘गब्बर इज बैक’ का निर्देशन मशहूर दक्षिण भारतीय फिल्म निर्देशक क्रिश और निर्माण संजय लीला भंसाली और बायकौम18 मोशन पिक्चर्स ने किया है.

मिलिए महान संस्कृति से

भारतीय जनता पार्टी के मंत्री गिरिराज सिंह ने यह सवाल खड़ा कर गलत नहीं कहा कि अगर राजीव गांधी ने नाइजीरियाई लड़की से शादी की होती तो क्या कांगे्रस आज उस काली पत्नी को अपना नेता मान लेती? यह तो जमीनी सत्य है कि इस देश में वर्ण व्यवस्था, मनुस्मृति का राज, ब्राह्मणों को गायों का दान देना, यज्ञहवन कराने और मंदिर बनवाने आदि का संकल्प लिए जीती भारतीय जनता पार्टी के ये नेता एक योजनाबद्ध तरीके से लोगों को याद दिला रहे हैं कि महान हिंदू संस्कृति क्या है.

जैसे महान हिंदू संस्कृति में सभी देवीदेवता, अवतार अपना मतलब गांठने के लिए झूठ, फरेब, अनाचार, अत्याचार, हिंसा का इस्तेमाल करते रहे हैं, वैसे ही गिरिराज सिंह कर रहे हैं, साध्वी निरंजन ज्योति कर रही हैं, साक्षी महाराज कर रहे हैं, प्रवीण तोगडि़या कर रहे हैं और यहां तक कि राजनाथ सिंह भी कर रहे हैं. गिरिराज सिंह ने जो कहा है वह हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार कहा है, जहां त्वचा के रंग का बहुत महत्त्व है, विशेषतया पत्नियों के लिए. मगर गिरिराज ने जो माफी मांगी है, वह दिल से नहीं मांगी. यह तो उस तरह की गाली है जैसी स्वयं कृष्ण अर्जुन से दिलवाते हैं, जो युद्ध के दौरान अपने बड़े भाई कर्ण को मारने को तैयार हो जाता है. अगर अपना काम निकालना हो तो नकली क्षमा मांग लेना हमारी संस्कृति का नियम है और हर रोज घरों में देखा जाता है कि जब किसी के बारे में कहा जाता है कि उस के गुस्से या शब्दों पर न जाओ, वह दिल से साफ है तो यह समझ नहीं आता कि जो दिल से साफ है वह गलत बात कह कैसे सकता है?

यह हमारे समाज की विडंबना है कि हमारे यहां औरतों को कभी नहीं बख्शा जाता. सोनिया गांधी को आज विवाह के 4 दशक बाद भी याद दिलाया जा रहा है कि उन की मूल जगह कहां है. यहां जन्म के गुण महत्त्व के हैं, वर्ण नहीं. इसीलिए एमबीए करे इंजीनियर भी विवाह के समय अपनी कुंडली बगल में दबाए घूमते हैं कि उन के जन्म के समय उन में क्याक्या दोष थे कोई ब्राह्मणनुमा अधपढ़ा बता दे. मंगली कह कर हजारों सुंदर, पढ़ीलिखी, सौम्य लड़कियों को अपनी जाति, अपने वर्ग की होने पर भी रिजैक्ट कर दिया जाता है, क्योंकि साक्षीगिरिराजज्योतिवाद हमारे कणकण में बसा है और नई सरकार हर रोज उसे थोप रही है.

वैसे यहां यह कहना गलत न होगा कि पिछली कांगे्रस सरकार कोई दूध की धुली न थी. 1947 के बाद जो सरकार गांधी, नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद ने दी थी वह आज की भाजपा सरकार से ज्यादा ही कट्टर थी जिस के कारण तमाम आरक्षण, भूमि सुधारों व संशोधित विवाह कानूनों के नाटकों के बावजूद देश और समाज वहीं का वहीं, जाति, वर्ण, अंधविश्वास, गोदान, यज्ञ, हवन, संस्कृति और देवीदेवता की प्रार्थना के चक्रव्यूह में फंसा है. इन सब का शिकार औरतें ज्यादा हैं चाहे वे ब्राह्मणों की हों या दलितों की. उन्हें आज भी सामाजिक परंपराओं के नाम पर पगपग पर अपमानित किया जाता है. उन्हें मंदिरोंमसजिदों की लंबी लाइनों में लगवा दिया जाता है, सप्ताहों तक भूखा रखा जाता है और ऐरेगैरों के गंदे पैर धोने के लिए मजबूर किया जाता है. साक्षीगिरिराजज्योतिवाद जब तक जिंदा है, औरतें अपने को स्वतंत्र न मानें. दीपिका पादुकोण का ‘माई चौइस’ वीडियो तो बस चिडि़यों का एक समूह खाली कराने के प्रयास जैसा है. 

ये छोरा बनेगा डाकू

अर्जुन कपूर ने अपनी पहली फिल्म ‘इश्कजादे’ से ले कर ‘तेवर’ तक सभी फिल्मों में ऐंग्री यंग मैन वाली भूमिका की है. अब अर्जुन डाकू बनने वाले हैं. निर्देशक तिग्मांशु धूलिया डाकू सुल्ताना पर फिल्म बनाना चाह रहे हैं और इस के लिए वे कई महीनों से काम कर रहे हैं. इस के फिल्म निर्माता बोनी कपूर ने ‘द कौन्फेशन औफ सुल्ताना डाकू’ किताब के अधिकार खरीद लिए हैं. सूत्रों के हिसाब से बोनी कपूर एक जमीनी हकीकत पर आधारित फिल्म बनाना चाह रहे हैं, जो उत्तर प्रदेश के डाकू सुल्ताना की जिंदगी से प्रभावित होगी. बोनी और तिग्मांशु दोनों की पहली पसंद अभी अर्जुन ही बने हुए हैं.

ये कैसा प्यार

जब एक औरत किसी विवाहित पुरुष के प्यार में पड़ती है और सुर्खियों में आती है, तो सामान्यतया हर कोई उस स्त्री को गलत नजरों से देखने लगता है कि आखिर उस ने एक विवाहित पुरुष की तरफ देखा ही क्यों? किसी औरत का बसाबसाया घर उजाड़ने की कोशिश क्यों की? उस औरत को वैंप की उपाधि दी जाती है. एक नजर में वह स्त्री वाकई गलत नजर आती है. पर कहते हैं न कि प्यार में कुछ भी गलत नहीं होता. कभी परिस्थितियां तो कभी प्रेम, 2 इंसानों को करीब लाता है. कई दफा पुरुष अपनी जिंदगी की किसी कमी को दूर करने के लिए दूसरी स्त्री के करीब आता है, तो कई स्त्रियां ऐसी भी होती हैं, जो अपना मतलब साधने के लिए किसी की जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं. वजह कुछ भी हो, पर ऐसी औरत जमाने की नजरों में खलनायिका बन जाती है. उसे दोषी ठहराया जाता है. पर वास्तव में देखा जाए तो दूसरी स्त्री किसी से कुछ छीनने के बजाय स्वयं काफी कुछ खोती है. अपने सुकून और चैन के अलावा अपनी इज्जत, अपनी डिगनिटी और कई दफा तो अपने वजूद से भी हाथ धो बैठती है.

आइए, नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ उदाहरणों पर:

मधुमिता अमरमणि

गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली मधुमिता एक नवोदित कवयित्री थी, जिस की 24 साल की उम्र में लखनऊ स्थित घर में गोली मार कर नृशंस हत्या कर दी गई. घटना मई, 2003 की है. उस दिन पहली तारीख थी. अचानक खबर मिली कि यू.पी. की युवा छंदकारा मधु अपने बैड पर मृत पाई गई. हर जबान पर एक ही सवाल था कि ऐसा किस ने और क्यों किया? पुलिस तफतीश शुरू हुई. पंचनामा हुआ, बयान दर्ज हुए. शव का पोस्टमार्टम किया गया और फिर जांचपड़ताल व सुबूतों के आधार पर जो सच सामने आया, वह अप्रत्याशित और रोंगटे खड़े करने वाला था. मधु गर्भवती थी और उस की हत्या के पीछे यू.पी. के विधायक व पूर्व मंत्री, अमरमणि त्रिपाठी का हाथ माना गया, जिस से वह प्रेम करती थी.

शक की सूई उठने पर अमर ने साफ इनकार कर दिया कि उस का मधु से कभी कोई रिश्ता था. मगर डी.एन.ए. टैस्ट में साबित हो गया कि मधु के गर्भ में पल रहे बच्चे का पिता वही है. घटनास्थल से मधु के हाथ का लिखा पत्र भी हासिल हुआ था, जिस के अल्फाज चीखचीख कर अमर को कुसूरवार बता रहे थे. पत्र में लिखा था, 4 माह से मैं मां बनने का सपना देखती रही हूं. तुम इस बच्चे को स्वीकार करने से इनकार कर सकते हो, मगर एक मां के रूप में मैं ऐसा नहीं कर सकती. क्या महीनों इस बच्चे को पेट में रखने के बाद मैं इस की हत्या कर दूं? क्या तुम्हें मेरे दर्द का अंदाजा नहीं है? तुम ने मुझे सिर्फ एक उपभोग की वस्तु समझा है… दरअसल, अमरमणि को शेरोशायरी का शौक था और एक जलसे में उस की मुलाकात मधु से हुई थी. मधु की शायरी के साथ उस की निगाहों ने अमरमणि को घायल कर दिया और दोनों का रिश्ता गहरा होता गया. अमर शादीशुदा था और एक जवान बेटे का बाप था. उस में मधु के बच्चे को अपनाने की हिम्मत नहीं थी. दबाव बना कर उस ने 2 बार मधु का एबौर्शन करा दिया पर तीसरी दफा वह अड़ गई. अपनी परिस्थिति व जमाने की रुसवाइयों से वह परेशान हो गई थी और अमर से शादी करना चाहती थी. बस यही जिद उस की मौत का सबब बन गई. अमर के खिलाफ सब से बड़े सुबूत बने वे तोहफे, जो उस ने मधु को दिए थे. इस के अलावा, टे्रन के टिकटों और हवाई यात्रा के ब्योरे से भी यह स्पष्ट था कि अमर मधु का इस्तेमाल अपनी मौजमस्ती के लिए करता था.

मधु इस पूरी कहानी में वैंप से ज्यादा विक्टिम नजर आती है. भले ही हम उस पर दूसरी औरत का घर तोड़ने के आरोप लगाएं पर यह न भूलें कि इस प्रेम के चक्कर में उस ने न सिर्फ समाज में हासिल अपनी साख दांव पर लगाई, वरन अपना कैरियर और यहां तक कि जिंदगी भी गंवा दी. अपने बच्चे को जन्म देने की ख्वाहिश मधु को बहुत महंगी पड़ी. बात वहीं खत्म नहीं हुई. उस की बहन निधि शर्मा अपराधियों को सजा दिलाने की कोशिश में लगी रही और मधु का परिवार अब भी इस सदमे से उबर नहीं पाया है.

चांद और फिजा

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री, भजनलाल के पुत्र चंदर मोहन, जो हरियाणा के डिप्टी चीफ मिनिस्टर के पद पर कार्यरत थे, को नवंबर, 2008 में औफिस से लंबे समय तक गायब रहने की वजह से डिसमिस कर दिया गया. इस की वजह थी उन के दिलोदिमाग का अनुराधा बाली के प्रेम की गिरफ्त में होना. अनुराधा बाली स्टेट गवर्नमैंट में असिस्टैंट एडवोकेट के पद पर थीं. जनवरी 11, 2009 में वे मीडिया के आगे अनुराधा के साथ उपस्थित हुए और स्वीकारा कि उन्होंने अनुराधा के साथ शादी कर ली है. दोनों ने ही इसलाम स्वीकार कर लिया था और अपने नए नाम चांद मोहम्मद और फिजा रख लिए थे. मगर कुछ दिनों के अंदर ही उन्होंने फिजा को छोड़ दिया और फिर से अपनी पहली पत्नी और परिवार के बीच लौट आए. फिर से धर्मपरिवर्तन भी कर लिया. 14 मार्च, 2009 को चंदर मोहन ने फिजा को तलाक दे दिया. 25 जुलाई, 2012 को फिजा ने अपना 41वां जन्मदिन मनाया मगर अगले माह ही 6 अगस्त को मोहाली स्थित अपने घर में संदिग्ध रूप से मृत पाई गईं. अब बताइए फिजा को चंदर से क्या मिला, सिवा फजीहत और प्रेम से रुखसती के?

एन.टी रामाराव और लक्ष्मी पार्वती

आंध्र प्रदेश के 3 दफा मुख्यमंत्री रह चुके फिल्मकार एन.टी. रामाराव, लक्ष्मी पार्वती के प्रेम में डूब गए थे. लक्ष्मी ने उन की बायोग्राफी लिखी थी. यह वह समय था जब रामाराव अपने कैरियर के ढलान पर थे. 1993 में 70 साल की उम्र में एन.टी. रामाराव ने यह घोषणा की कि वे लक्ष्मी पार्वती से शादी करने वाले हैं. बाद में उन्होंने शादी कर भी ली. पर एन.टी. रामाराव के मरने और चंद्रबाबू द्वारा उन की वसीयत संभालने के बाद लक्ष्मी पार्वती कहीं की नहीं रहीं. राजनीति में  भी वे आगे नहीं बढ़ सकीं. परिवार वालों ने उन्हें कभी स्वीकारा नहीं. यहां तक कि चंद्रबाबू नायडू ने भी कभी उन्हें पसंद नहीं किया और लक्ष्मी की जिंदगी पहेली बन कर रह गई.

शशि और आनंद

यू.पी. के एक मंत्री आनंद सेन की जिंदगी में भी एक लड़की आई. वह स्टूडैंट थी और उस का नाम शशि था. वह अपना ख्वाब पूरा करने के लिए आंनद के करीब होती गई. शशि चाहती थी कि वह विधानसभा में बैठे. शौर्टकट के रूप में उस ने आनंद सेन को चुना. फिर शुरू हुआ वायदों का दौर. वायदे बढ़ते गए, जिस्मानी दूरियां मिटती गईं. 22 अक्टूबर, 2007 को शशि गायब हो गई. लंबी छानबीन और धरपकड़ के बाद पता चला कि वह इस दुनिया से जा चुकी है. उस की हत्या हो गई है.

सालों बाद भी आंच

यू.पी. का सैयद मोदी हत्याकांड भी काफी चर्चा में रहा था. यहां भी मामला प्रेम और दूसरी औरत का ही था. 27 अगस्त, 1988 की शाम अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की हत्या हो गई थी. वजह थी, अमिता और उस वक्त के खेल मंत्री (उत्तर प्रदेश) संजय के बीच का अवैध संबंध. हत्या के लिए संजय को जिम्मेदार माना गया. संजय और अमिता गिरफ्तार हुए पर जमानत मिल गई. बाद में उन दोनों ने शादी कर ली और संजय सिंह ने अपनी पहली पत्नी, गरिमा को तलाक दे दिया. तब वे अमेठी से चली गईं. 26 सालों तक संजय की पहली पत्नी ने कुछ नहीं बोला. उन के बच्चे भी इस दौरान संजय और अमिता के साथ ही रहे. पर अब दोनों बच्चे, अनंत विक्रम सिंह और शैव्या फिर से गरिमा सिंह के साथ हैं. संजय सिंह और अमिता ने बच्चों की शादी भी कर दी और अब तो संजय सिंह दादा भी बन चुके हैं. लेकिन जो सवाल उन से 20 साल पहले पूछे जाने चाहिए थे, वे अब उठ रहे हैं. पत्नी की तरफ से भी और बच्चों की तरफ से भी. उन का कहना है कि सारे विवाद की जड़ अमिता है. गरिमा सिंह का आरोप है कि अमिता सिंह अमेठी राजघराने की संपत्ति को अपने नाम करवा रही है और संजय सिंह पूरी तरह उन के नियंत्रण में हैं.

गरिमा की बेटी, शैव्या ने भी अपनी सौतेली मां पर गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया है कि उन के 7 वर्षीय पुत्र की हत्या की साजिश रची जा रही है. गरिमा सिंह का आरोप है कि अमिता सिंह उन की और उन के परिवारजनों की हत्या करवाना चाहती थी, लेकिन जनता ने उन्हें बचा लिया.

कितना सच्चा है यह प्यार

ये हैं कुछ प्रेम कहानियों के हश्र. इन रिश्तों की हकीकत क्या रही, यह बताना तो कठिन है, पर इतना तय है कि ज्यादातर मामलों में ठगी गई है वह औरत जिस ने दूसरी बन कर यानी दुनिया की नजर में वैंप बन कर कदम रखा और अपनी जिंदगी में तूफान खड़े कर लिए. अपने वजूद के साथसाथ वह और भी बहुत सी चीजें गंवा बैठी. सवाल यह उठता है कि इस तरह के प्यार की वास्तविक उम्र क्या होती है, और कितना सच्चा होता है ऐसा प्यार? यह सच है कि प्रेम इंसान की जिंदगी में नई उमंग और मकसद ले कर आता है. एक ऐसा जनून, जिस पर काबू पाना कठिन होता है. इस का आकर्षण इतना तीव्र होता है कि इस प्रेम में इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता है. पर कभीकभी दोनों में से एक शख्स इस रिश्ते के प्रति उतना गंभीर नहीं होता, जितना कि दूसरा होता है. इस के अलावा दूसरी स्त्री की राह में जमाना भी काफी कांटे बिछाता है. यदि उस पुरुष की पत्नी जिंदा है तो जाहिर है वह कभी नहीं चाहेगी कि कोई उस के बसेबसाए घर को उजाड़ दे.

प्यार मन का बंधन

जाहिर है, अवैध रिश्तों का नतीजा अकसर गलत ही निकलता है. तो फिर क्या जरूरत है, ऐसे रिश्तों के चक्रव्यूह में फंसने की? वास्तव में प्रेम का रिश्ता तो मन से जुड़ा होता है. 2 लोग एकदूसरे के दिलों में रहते हैं और इस के लिए किसी तरह की बंदिश नहीं होती. कुछ लोगों का प्रेम तो ऐसा भी होता है कि सामने वाले को पता ही नहीं चलता कि वे उसे प्रेम करते हैं. प्यार की सच्ची अनुभूति तो यही है और इस पर कभी कोई आंच नहीं आती. ऐसा प्यार न तो किसी से कुछ अपेक्षा रखता है और न ही कोई डिमांड करता है. बस एक एहसास एकदूसरे को आपस में जोड़े रखता है. कई लोग सालों एकदूसरे से नहीं मिलते मगर उन का प्रेम पूर्ववत बरकरार रहता है. ऐसा प्यार करने वाली महिला कभी वैंप नहीं कहला सकती और न ही उस के प्यार को तिरस्कार घृणा या उपहास का उपहार मिलता है.

स्मार्ट शौपर बनें

आजकल हर क्षेत्र में ठगी का धंधा पूरे जोरशोर से चल रहा है. ऐसे में भला उपभोक्ता या शौपिंग करने वाले इस ठगी का शिकार होने से कैसे बच सकते हैं. दुकानदारों व व्यापारियों द्वारा लोगों को खराब सामग्री बेचना, विज्ञापनों की आड़ में ठगना, वस्तु की गुणवत्ता में कमी का पाया जाना व तय कीमत से ज्यादा कीमत मेंवस्तु बेचना आदि कई तरह से आप को बेवकूफ बनाया जा सकता है.

उपभोक्ता के अधिकार

स्मार्ट शौपर वह है, जिसे अपने अधिकारों की पूर्ण जानकारी है और जो किसी भी तरह से दुकानदार द्वारा ठगा नहीं जा सकता. इसलिए आप को अपने उपभोक्ता अधिकारों की पूरी जानकारी होनी चाहिए. पर अधिकारों से महत्त्वपूर्ण कुछ बातों के प्रति सावधानी बरतना भी जरूरी है, जैसे:

कोई भी वस्तु खरीदते समय मूल्य के साथसाथ गुणवत्ता पर भी ध्यान दें.

पैकेट में ली जाने वाली वस्तुओं को खरीदते समय पैकेट पर लिखे विवरण, निर्माण तिथि, उपयोग की सीमा अवधि, अधिकतम मूल्य आदि को ध्यान से पढ़ लें.

खरीदी गई वस्तुओं की रसीद अवश्य लें.

यदि सामान के साथ गारंटी या वारंटी कार्ड की व्यवस्था है तो कार्ड पर दिनांक, वर्ष, हस्ताक्षर व मोहर लगवा कर ही वस्तु खरीदें.

सभी नियम व शर्तें ध्यान से पढ़ लें.

यदि किसी दुकान की रसीद या बिल पर लिखा हो कि बिका हुआ माल वापस नहीं होगा तो यह व्यापार आचार संहिता के खिलाफ है.

भारत में विभिन्न प्रकार के शोषण व ठगी से उपभोक्ताओं की रक्षा करने के लिए विभिन्न अधिनियम जैसे भारतीय दंड संहिता (1860), भारतीय संविदा अधिनियम (1872), खाद्य अपमिश्रण निवारण आवश्यक वस्तु अधिनियम (1955), चोरबाजारी निवारण प्रदाय अधिनियम, बाट और माप मानक अधिनियम (1985) जैसे कई अधिनियम ग्राहकों के हित में बनाए गए हैं. साथ ही ग्राहकों के पूर्ण संरक्षण व उन की शिकायत सुनने हेतु उपभोक्ता समन्वय परिषद और कंज्यूमर कोर्ट्स की व्यवस्था की गई है. जिला फोरम में 1 रुपए से ले कर 20 लाख रुपए तक के मामले निबटाए जाते हैं, स्टेट कमीशन में 20 लाख रुपए से ले कर 1 करोड़ रुपए तक के और नैशनल कमीशन में 1 करोड़ रुपए से ऊपर के मामलों पर कार्यवाही होती है.

सेल का खेल

आजकल बाजार का मूलतंत्र ही सेल हो गया है. पूरे साल बाजार की किसी न किसी दुकान पर सेल का बैनर टंगा मिलेगा. इस सेल के चक्कर में हम न चाहते हुए व यह जानते हुए भी कि फलां चीज की हमें कोई खास जरूरत नहीं है, ढेर सारी शौपिंग कर लेते हैं. आखिर इस की वजह क्या है? दरअसल, किराने के बाजारों या शौपिंग मौल कांप्लेक्स आदि में ढेर सारी मनोवैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है ताकि ग्राहकों की जेब से ज्यादा से ज्यादा पैसा निकलवाया जाए जैसे:

999 का फेर. ऐसी कीमतें मनोवैज्ञानक तौर पर सनसनी पैदा करने वाली होती हैं, जैसे 1,000 का नहीं महज 999 या 989 रुपए का.

मौल में मालिक स्वनिर्मित ब्रांडों को प्रीमियम ब्रांड प्रोडक्ट्स के बीच रखते हैं ताकि ग्राहक उन के यानी सस्ते ब्रांड को चुनें.

जिन चीजों में ज्यादा लाभ होता है, उन्हें ग्राहक की आंखों के सामने रखा जाता है. यह मानी हुई बात है कि उपभोक्ता आमतौर पर उन्हीं चीजों को खरीदता है, जो एक निश्चित दूरी तक उस की नजर के ठीक सामने होती है.

मौल के भीतर ‘रूट’ ऐसे बनाए जाते हैं कि कुछ बड़े और कीमती प्रोडक्ट आप के रास्ते में अवश्य पडें़ और आप रुक कर उन्हें जरूर देखें.

एमआईटी के शोधकर्ताओं ने भी यह सिद्ध किया कि ग्राहक स्टोर या मौल के प्रवेशद्वार पर लगे विज्ञापनों से सब से ज्यादा प्रभावित होता है, इसीलिए हर मौल या दुकान के प्रवेश द्वार पर ही तमाम आफर्स विज्ञापन लगे होते हैं.

मुफ्त की माया

हम हर मुफ्त चीज को पसंद करते हैं, लेकिन कई बार मुफ्त के चक्कर में हम गलत निर्णय ले बैठते हैं. लेकिन इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि मुफ्त वस्तु की कीमत मुख्य उत्पाद से जुड़ी होती है. उदाहरण के लिए एक फोन की कंपनी प्रचार करती है कि उस के फोन के साथ ‘सिम फ्री’ जबकि फोन के साथ हमेशा सिम फ्री ही होता है. इसी तरह किसी फोन के डब्बे पर एक मैमोरी कार्ड की कीमत 750 रुपए लिखी होती है, जबकि उस की वास्तविक कीमत 150 रुपए होती है, पर कंपनी फ्री का लालच दे उस की कीमत 150 रुपए से ज्यादा ही वसूलती है. स्पष्ट है कि ग्राहकों को ठगने के लिए दुकानदार तमाम हथकंडे अपनाते हैं. ऐसे में स्मार्ट विमन वही है, जो अंधाधुंध शौपिंग में पैसे व्यर्थ खर्च न करे बल्कि सही दामों में सही वस्तु खरीदे.

   – मोहिनी चतुर्वेदी, उषा नेगी, दीपा

शौर्ट टेंपर्ड होती महिलाएं

यों तो आज के युग में लगभग सभी के अंदर धैर्य अथवा पैशेंस कम होता जा रहा है, किंतु महिलाएं, जिन से हमेशा से कुछ अधिक सहनशील होने की अपेक्षा की जाती थी, उन में यह भावना बहुत तेजी से घटती जा रही है. कुछ दशक पहले तक महिलाएं परंपराओं, मान्यताओं और संस्कारों में बंधी अपनी निर्धारित परिधि के अंदर बहुत कुछ सहन करती थीं, किंतु आज की आजादखयाल महिलाएं इन मान्यताओं से बहुत दूर जाती दिख रही हैं. परिवार में मांबाप की बात न मानना, ससुराल में सब को फौर ग्रांटेड लेना, पति तथा बच्चों के साथ बातबात में धीरज खोना उन की आदत बनती जा रही है. घर में नौकर, ड्राइवर, रसोइए किसी की भी छोटी सी गलती के लिए उसे एक मौका दिए बिना फौरन निकाल कर दूसरा रख लेती हैं.

आफिस में जहां अपने बौस की बौसिज्म को अधिक बरदाश्त न कर पाने की वजह से एक नौकरी छोड़ कर दूसरी नौकरी तलाशती हैं, वहीं अपने जूनियर कर्मचारियों पर बातबात पर रोब जमाती हैं. यही रवैया दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी है. ‘तू नहीं और सही’ के फार्मूले पर विश्वास करती ये महिलाएं किसी भी रिश्ते के लिए रुकना नहीं जानतीं. वैवाहिक सलाहकार शमिता बैनर्जी के अनुसार, ‘‘आजकल तलाक की बढ़ती तादाद की वजह अकसर महिलाओं का शौर्ट टेंपर्ड होना है.’’ 

बदलाव की वजह

आज शिक्षा और ग्लोबलाइजेशन की वजह से बहुत सी चीजों के माने बदल रहे हैं. महिलाओं का कार्यक्षेत्र विस्तृत हुआ है, जिस की वजह से उन की मानसिकता भी बदलने लगी है. वे अपने कर्तव्यों के साथ ही अपने अधिकारों के लिए भी अधिक जागरूक हो रही हैं. बचपन से ही संपन्न और सुविधाजनक जीवन जीने की आदी आज की पीढ़ी को किसी भी फालतू चीज के लिए टाइम वेस्ट करना बेमानी लगता है. वैज्ञानिक प्रगति ने उन्हें आसान और बिना चुनौतियों के जिंदगी जीने की आदत डाल दी है. आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने से महिलाओं में स्वयं निर्णय लेने की क्षमता बढ़ रही है. वे पुरुषों के वर्चस्व वाले समाज में ‘खुदमुख्तार’ वाली भूमिका अपना रही हैं. अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के चलते वे एक विकल्प साथ रख कर जीने में विश्वास रखती हैं.

क्या करें, दौर ही ऐसा है

यह बात सच है कि आज की महिलाओं पर शौर्ट टेंपर्ड और तुनकमिजाज होने के आरोप लग रहे हैं, किंतु इस के पीछे उन की अपनी भी कुछ मजबूरियां हैं. कुछ समय पहले तक घर की चारदीवारी में बंद बिना किसी चुनौती के लगभग आसान सी जिंदगी जीती हुई महिलाओं को आज बेहद संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ रहा है.

वहीं घर के अंदर अनुशासनहीन होते बच्चे, तो कहीं जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते पति. कहीं बच्चों की परवरिश, पढ़ाई और कैरियर को ले कर भागदौड़ तो कहीं घर और नौकरी के बीच संतुलन बनाए रखने की जद्दोजहद. कहीं चीट करते दुकानदार, फायदा उठाते रिश्तेदार, दोस्त, कहीं चोरी और धोखाधड़ी करते नौकर तो कहीं एहसान फरामोशी करते पड़ोसी. कहीं जरूरत से अधिक काम लेते बौस तो कहीं कामचोरी करते मातहत. ऐसे अनेक कठिन मोरचे हैं, जिन पर एक महिला को आए दिन जूझना पड़ता है. इन हालात में एक संवेदनशील महिला कहां तक संयम बनाए रख सकती है.

दिनप्रतिदिन की प्रतिकूल होती परिस्थितियां और समस्याओं से भरे जटिल जीवन में उस के धैर्य का विस्फोटक होना बहुत अस्वाभाविक भी नहीं है. मनोचिकित्सक डा. राकेश कुमार के अनुसार, ‘‘आज के संघर्षपूर्ण जीवन में महिलाओं को बहुत मानसिक दबाव से गुजरना पड़ता है, जिस की वजह से उन में चिड़चिड़ापन, इम्पैशेंस, फ्रस्टे्रशन तथा डिप्रेशन जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं.’’ महिलाओं को चाहिए कि जिन परिस्थितियों पर उन का वश नहीं है उन पर चिड़चिड़ाने अथवा कुंठित होने के बजाय समझौते से काम लें. जीवन के प्रति सकारात्मक सोच अपनाएं, खुश रहें और दूसरों में खुशी बांटें.

रातें जवां हैं

इसे आम आदमी पार्टी का असर कहिए या राजनीति में नई पीढ़ी के आने का, बाल ठाकरे के पोते व उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे में नया ज्ञान पैदा हुआ है. उस ने शिव सेना के कट्टरपंथी लबादे को उतार फेंक मुंबई के कुछ इलाकों को रात भर चकाचौंध करने की योजना को मंजूर कराया है. मुंबई के बारे में पहले ही कहा जाता था कि यह शहर सोता नहीं है. पर फिर भी कुछ नेता ऐसे होते रहे हैं, जो हिंदू संस्कृति (ईसाई या इसलामी संस्कृति भी ऐसी ही है) के नाम पर मौजमस्ती या चिल होने की इच्छा को दबा कर 10 बजे रात को कर्फ्यू लागू करने की बात करते रहते थे. इन में आर.आर. पाटिल एक हैं, जो कांग्रेस के गृहमंत्री थे.

शिव सेना बदल रही है और आम आदमी पार्टी की वाहवाही भी कर रही है. और अगर ऐसा होता है तो मुंबई को भगवाई दंगाइयों के आतंक से छुटकारा मिल सकता है, जो हिंदू संस्कृति को जाने बिना उसे थोपने के लिए कट्टरपंथी व्यवहार करते रहते थे, जिस का सीधासादा अर्थ था कि लड़कियों व औरतों की आजादी पर पहरा लग जाए और वे शाम को 8 बजे घर में घुस कर मैली नाइटी पहन कर चूल्हेचौके में लग जाएं. रात भर शहर का कुछ इलाका आबाद रहे तो उस का असल आनंद घरवालियों को ही मिलेगा. दिन भर व्यावसायिक गतिविधियों के बीच औरतें अपनेआप को घुटन में महसूस करती हैं. रात को बच्चों को सुला कर और घर बंद कर 12-1 या 3-4 बजे तक सड़कों पर घूमने का जो आनंद है वह बताया नहीं जा सकता. विवाहों में अकसर लड़कियां और औरतें इसी मौके का इंतजार करती हैं जब रात भर वे हंसीठट्ठा कर सकें.

आदित्य ठाकरे का प्लान अगर चला तो घरों व बच्चों को पतियों के हवाले कर गृहिणियां मजे में मैरीन ड्राइव, काला घोड़ा, फीनिक्स मौल पर रात देर तक अपनी किट्टी पार्टी कर सकती हैं. कोई टैंशन नहीं. रात भर अगर सड़कें आबाद रहेंगी तो 16 दिसंबर, 2013 वाली या उबेर कैब वाली घटना भी न होगी क्योंकि सड़कों पर हर समय लोग आतेजाते रहेंगे. रात को छिपने का प्राकृतिक कारण था रोशनी का न होना. आज जब रात में भरपूर बिजली मिल रही है, जो रात में सस्ती रहती है, तो उस का पूरा लाभ क्यों न उठाया जाए? जब अखंड पाठों, रात्रि जागरणों और देर रात तक के विवाहों के  फेरों को खुशीखुशी स्वीकार किया जा सकता है, तो देर रात तक हाथ में हाथ डाले दिल्ली के कनाट प्लेस, पटना के गांधी मैदान, भोपाल के एमपी नगर व लखनऊ के हजरतगंज में घूमना क्यों न हो?

अंधेरे से डर लगता है तो शोर से उसे डरा दो. रात भर शहर को जिंदा रखो. जागते रहो की आवाजें लगानी ही नहीं पड़ेंगी. शिव सेना अगर इस बदलाव को शुरू कर रही है तो यह बहुत ही आश्चर्य भरी खुशी है. यह समाज की परिपक्वता और कानून व्यवस्था पर भरोसे की निशानी है. हां, साक्षी महाराज और साध्वी निरंजन ज्योति को निराशा होगी, क्योंकि अगर रात भर लोग बाहर रहे तो 8-10 बच्चे कैसे पैदा होंगे और बच्चों की चिल्लपों कौन सुनेगा.

कैमरे से कैसी शर्म

यह तो सच है कि आज की ऐक्ट्रैस बोल्ड हो गई हैं, पर बिकनी पहनने पर वे सफाई देती रहती हैं कि उन्होंने फिल्म की मांग पर वह बिकनी सीन किया है. पर इस के उलट एक ऐक्ट्रैस ऐसी भी हैं, जो बड़ी बेबाकी से कहती हैं कि कैमरे के सामने बदन दिखाने में कैसी शर्म? यह बात बेबाकी से बोलने वाली ऐक्ट्रैस अदिति राव हैदरी हैं जो कैमरे के सामने बेशर्म हो जाना चाहती हैं. वे हिंदी फिल्मों में हर तरह के रोल निभाने के लिए तैयार हैं. उन का कहना है कि किसी फिल्म में उन का रोल चाहे कितना भी बोल्ड या सैक्सी क्यों न हो, उसे करना वे जरूर पसंद करेंगी.

मैं अपनी शर्तों पर काम करती हूं

कैरियर की शुरुआत से ले कर अब तक ऐसा कभी नहीं लगा कि अनुष्का का कैरियर ग्राफ नीचे जा रहा है. फिल्म ‘बैंड बाजा बारात’ से ले कर ‘एनएच 10’ तक सभी फिल्मों में उन के काम को सराहा गया है. अपनी कामयाबी में अनुष्का अपने परिवार के सहयोग को अतुलनीय मानती हैं. वे कहती हैं कि वे अपने मातापिता की आभारी हैं क्योंकि उन्होंने हमेशा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. इस के अलावा अनुष्का कहती हैं कि वे एक अच्छी औब्जर्वर हैं, इसलिए हर फिल्म से कुछ न कुछ सीखती हैं. अनुष्का बीते साल यानी 2014 को अपना सफल साल मानती हैं, क्योंकि उन्होंने फिल्म ‘बौंबे वैलवेट’, ‘दिल धड़कने दो’ की शूटिंग की, तो अपनी पहली फिल्म ‘एनएच 10’ प्रोड्यूस की.

अपनी खूबसूरती का राज बताते हुए अनुष्का कहती हैं कि मैं फेशियल नहीं करवाती, न ही ब्यूटी ट्रीटमैंट मुझे पसंद है पर वर्कआउट डेली करती हूं. हमेशा खुश रहना और और दूसरों को खुश रखना मुझे पसंद है. मुझे लगता है कि ऐसी सोच रखने वाले इंसान की ही असली खूबसूरती नजर आती है. अपने बौयफ्रैंड विराट के साथ अपनी दोस्ती पर अनुष्का का कहना है कि हम दोनों ही इस को ले कर सीरियस हैं. अनुष्का निर्देशक नीरज पांडे की फिल्म ‘एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी’ में भी काम कर रही हैं, जिस में धोनी का रोल फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत निभा रहे हैं.

दंगल में ठोकेंगे ताल

आमिर खान को मिस्टर परफैक्शनिस्ट इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे जो भी किरदार निभाते हैं उसी में डूब जाते हैं. फिल्म ‘पीके’ के बाद आमिर फिल्म ‘दंगल’ बना रहे हैं. यह फिल्म हरियाणा के पहलवान महावीर फोगाट, उन की बेटियों गीता, बबीता और उन की कजिन विनेश के संघर्ष की कहानी पर है. गीता राष्ट्रमंडल खेल में स्वर्ण पदक हासिल कर चुकी है. आमिर इस फिल्म में महावीर फोगाट का किरदार निभा रहे हैं और उन की बेटियों का रोल अक्षरा हासन और तपसी पन्नू निभाएंगी. उन की कजिन का रोल दीक्षा सेठ करेंगी. फिल्म का निर्देशन नितेश तिवारी करेंगे. फिल्म में पहलवान वाला लुक लाने के लिए आमिर ने अपना वजन बढ़ा लिया है और वे हरियाणवी भी सीख रहे हैं. फिल्म में 90 किलोग्राम के आमिर खान ऐक्टिंग करते दिखेंगे.

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