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डाएंड्रा की तो निकल पड़ी

बिग बौस के घर में खूब चर्चाएं बटोरने वाली, डाएंड्रा सोरस को पूजा भट्ट ने अपनी 2 फिल्मों के लिए साइन कर लिया है. एक फिल्म का नाम ‘लव अफेयर होगा जो’ 50 के दशक की एक पीरियड फिल्म होगी. डाएंड्रा  इस फिल्म में एक स्पैशल रोल प्ले कर रही हैं, जो उन्हें सूट भी करता है. इस फिल्म में डाएंड्रा अर्जुन रामपाल के साथ रोमांस करती हुई नजर आएंगी. दूसरी फिल्म के बारे में अभी कुछ डिसाइड नहीं हुआ है. इस बार बिग बौस के घर में गौतम गुलाटी से अपने अफेयर और प्रैगनैंसी की खबरों के बाद डाएंड्रा ने खूब चर्चाएं बटोरी. लगता है फिल्में साइन करने के बाद डाएंड्रा हमेशा खबरों में रहना चाहती हैं.

मेड सर्वेंट कैसे रखें

पिछले साल शाइना आहूजा रेप केस की खबर अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनी. यह केस कहां तक पहुंचा है, इस का पता अभी तक किसी को नहीं चल पाया है. पैसे ऐंठने का यह केस बनावटी भी हो सकता है. कुछ लोगों का मानना है कि उस मेड सर्वेंट का एक बौयफेंड्र है, जो कभीकभी उस से मिलने आया करता था. कहीं यह केस उन दोनों की मिलीभगत तो नहीं, क्योंकि पिछले कुछ सालों से ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जिन में बड़ेबड़े व्यवसायी के बेटे या सेलिब्रिटी इस तरह के ब्लैकमेल के शिकार हो चुके हैं और उन्हें अपनी जान छुड़ानी तक भारी पड़ रही है.

मुंबई के ओशिविरा पुलिस थाने में आए दिन ऐसी बनावटी घटनाएं दर्ज की जाती है. सचाई का परदाफाश होने पर ऐसे लोग पकड़ में तो आ जाते हैं. अन्यथा एक अच्छी खासी रकम उन्हें मिल जाती है. देखा जाए तो फुलटाइम मेड सर्वेंट केवल कुछ नौकरीपेशा लोग ही घरों में रख पाते हैं. घर के बच्चे तो उन के साथ तो मिक्स हो सकते हैं पर घर के मुख्य सदस्य का उन के साथ कुछ संबंध हो, यह अजीब लगता है. लेकिन मेड सर्वेंट का दांव सही लग जाए तो उन्हें अच्छे पैसे मिल जाते हैं, क्योंकि घर का मुख्य सदस्य अपनी बदनामी से छुटकारा पाने के लिए कुछ लाख रुपए आसानी से दे देता है.

इस बारे में मुंबई के अंधेरी स्थित ओशिविरा थाने के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कोई घटना पहले हमारे पास नहीं आती. व्यक्ति जब नौकर रखता है तब हमें पता नहीं होता. जब कोई घटना घट जाती है तो हम जान पाते हैं. ऐसे में हम कुछ अधिक कर नहीं पाते. मुंबई की मेड सर्वेंट प्लेसमेंट संस्था डी.एम. फिनिटी के मालिक मुकेश सिंह कहते हैं कि किसी भी महिला या पुरुष को घरों में रखने से पहले हम उस की पूरी जानकारी लेते हैं. जैसे उस का परिचयपत्र, स्थानीय पता, उस की पारिवारिक स्थिति. इस के बाद उसे प्रशिक्षित किया जाता है. उस के व्यवहार और चालचलन को ठीक किया जाता है. ये लोग कम पढ़ेलिखे और बोलचाल में अच्छे नहीं होते. ये अधिकतर गरीब या कम आयवर्ग से आते हैं. इसलिए इन्हें किसी के घर में रखते वक्त सावधानी बरतनी पड़ती है. अगर हम ने उन्हें कहीं रखा और घर के मालिक को परेशानी होती है तो उसे कोई दूसरा व्यक्ति भेजा जाता है. ये लोग अधिकतर ‘स्लम एरिया’ के होते हैं, जिन में बोरिवली, सायन, मलाड, बिरार, थाणे, डोंबीवलि, कल्याण, गोर बंडी, मानखुर्द, चेंबूर आदि हैं.

सावधानी जरूरी

मुकेश बताते हैं कि मुंबई में अधिकतर लोग नौकरीपेशा और सेलिब्रेटी भी काफी हैं. यहां इन्हें अच्छा काम मिल जाता है. एक बार ऐसी घटना घटित हुई कि 19 साल का एक लड़का एक व्यवसायी के पास रहता था. वह वहां से चोरी कर भाग गया था पर हम ने वर्सोवा पुलिस की मदद से उसे पकड़ लिया. कुछ बातें जो हमेशा हम लोग ध्यान रखते हैं वह है, अगर किसी परिवार में पुरुष अकेला रहता है तो वहां ‘महिला वर्कर’ नहीं भेजते. किसी भी वर्कर को भेजने से पहले उस परिवार के बारे में पूरी जानकारी ली जाती है. इस संस्था के कई सर्वेंट बड़ेबड़े घरों में रहते हैं. प्रियंका चोपड़ा और पर्यटन मंत्री विजय सिंह मोइते पाटिल के यहां भी इसी संस्था द्वारा भेजे गए हैं.

मेड सर्वेंट को कैसे रखना है, उस के साथ कैसा व्यवहार करना है, इस बारे में प्लेबैक सिंगर मधुश्री बताती है, ‘‘हमें अपनी नजर खुली रखनी चाहिए. मैं और मेरे पति रवि मुंबई में अकेले रहते हैं. कई बार मैं बाहर चली जाती हूं. उस समय रवि अकेले रहते हैं. लेकिन किसी भी मेड सर्वेंट का चालचलन 1-2 दिन में ही पता चल जाता है. अगर उस का स्वभाव आप को ठीक न लगे तो उसे उसी वक्त निकाल देना ठीक होता है. अभी मेरे पास फुलटाइम सर्वेंट सिर्फ 18 वर्ष की है, जो बहुत अच्छी है. इस से पहले एक 35 वर्ष की महिला मेरे पास थी. उस का स्वभाव शुरूशुरू में ठीक था पर एक बार जब मेरे पति घर पर अकेले थे तो उस का व्यवहार बड़ा ही बदलाबदला उन्हें लगा था. उन्होंने तुरंत उसे निकाल दिया. मेरे हिसाब से फुलटाइम मेड सर्वेंट घर के सदस्य की तरह होती है. उसे उस का दायरा मालूम होना चाहिए. इस के अलावा वह घर के अलावा कहां आतीजाती है, इस का खयाल रखना भी जरूरी है.’’

हमेशा नजर रखें

इस बारे में अभिनेत्री पल्लवी जोशी कहती है, ‘‘अगर बच्चे छोटे हों तो लड़की मेड सर्वेंट रखना अच्छा होता है. लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि मेड सर्वेंट कब क्या कर रही है या कहां जा रही है, इस का ध्यान रखना चाहिए. घर का कीमती सामान बंद रखना चाहिए, क्योंकि मेड सर्वेंट गरीब घरों से आते हैं. अधिक पैसे या ज्वेलरी इन्हें आकर्षित कर सकती है.’’ अभिनेत्री पूजा बेदी का कहना है, ‘‘मेरे घर में मेड सर्वेंट 11 साल से है और वह 50 साल की है. वह बच्चों की मां के जैसी है. मेरा जब डाइवोर्स हुआ तो मेरे दोनों बच्चों छोटे थे. उन्होंने मेरे बच्चों को बहुत प्यार दिया. उसे पता है कि उस का दायरा क्या है. मैं तो बहुत बिंदास हूं. आए दिन घर में पार्टियां भी होती हैं. वह बच्चों को संभालती है.’’

इस विषय में सायन में रहने वाली मेड सर्वेंट एसोसिएशन की लीडर आशा रोकड़े कहती हैं, ‘‘मेड सर्वेंट के साथ दुर्व्यवहार होने पर हम उसे उस का हक दिलाते हैं पर अगर वह गलत करती है तो हम उस का साथ नहीं देते. क्या गलत, क्या सही है, इस का पता हमें चल जाता है. कई बार गलत तरीके से पैसा ऐंठने का भी केस होता है, पर वह कम होता है. मेरे हिसाब से अगर किसी परिवार को लगे कि सर्वेंट का व्यवहार ठीक नहीं है तो उसे तुरंत निकाल देना उचित होता है. इस के अलावा हमें उस के बारे में पूरी जानकारी उस परिवार वालों से होनी चाहिए ताकि हमें पूरी बात समझ में आ सके. हम उन्हें संरक्षण देते हैं, पर गलत काम पर नहीं.’’

कुछ ध्यान योग्य बातें

अगर घर में पुरुष रहते हैं तो महिला नौकर को अकेला न छोड़े.

अपनी आंखें खुली रखें, उस के हावभाव को परखें.

नौकर के साथियों और आनेजाने के ठिकानों पर नजर रखें.

नौकर रखने से पहले उस की सूचना पास के पुलिस थाने में अवश्य दें.

महिला नौकर पर अधिक भरोसा न करें. बच्चों को अगर उन के पास रखती हो तो बच्चों से दिन भर की कार्यकलापों के बारे में जानें ताकि अगर कुछ बुरा हो रहा हो तो पहले ही आप उसे रोक सकें.

तलाक से पहले फाइनेंशियल जानकारी

अरबों डालर की संपत्ति का सुख उठा रही जे.के. रौलिंग ने अपनी पुस्तक ‘हेरी पौटर’ की सीरीज लिखने से पहले जब अपने पुर्तगाली पति से तलाक लिया था तो उन की आर्थिक स्थिति बिलकुल खराब थी. वे एडिनबर्ग में रहने वाली वे गरीब महिला थीं, जिन के जीने का एक मात्र सहारा उन की बेटी थी. अपनी खराब स्थिति के कारण वे अवसाद में चली गईं और उन्होंने आत्महत्या का विचार बनाया, लेकिन चिकित्सकों की मदद से वे उस स्थिति से बाहर आईं और फिर जो कुछ हुआ वह जगजाहिर है. रौलिंग तो अपनी अर्थिक स्थिति मजबूत बना गईं लेकिन उन आम तलाकशुदा पत्नियों की सोचिए, जो रौलिंग जैसी स्थिति का सामना करते हुए थक जाती हैं और निराशा के गर्त में गिरती जाती हैं. अगर समय पर तलाक से पहले पत्नी को अपनी और अपने पति की फाइनेंशियल जानकारी हो तो वह काफी हद तक इस निराशा से बच सकती है.

चूंकि  विपरीत परिस्थितियों में अकेलेपन से समस्याएं बढ़ती हैं, उस पर हाथ तंग हो तो मुश्किलें बढ़ती ही हैं. एडवोकेट कविता कपिल इस संबंध में कहती हैं, ‘‘अकसर देखने में आता है कि तलाक के बाद महिलाएं भावनात्मक रूप से टूट जाती हैं और जब तक संभल पाती हैं उन के बैंक के संयुक्त खाते में एक पैसा भी नहीं बचता. लिहाजा, उन्हें मुआवजे से मिली रकम पर निर्भर होना पड़ता है या फिर गुजारेभत्ते की छोटी सी रकम को अपनी आय का साधन बनाना पड़ता है. उस पर अगर बच्चे की जिम्मेदारी हो तो परिस्थितियां और विषम बन जाती हैं.’’

तलाक होने से पहले

मैरिज काउंसलर डा. गीतांजलि शर्मा के अनुसार, ‘‘परिवार में किसी भी परिस्थिति से निबटने के लिए महिलाओं का आर्थिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर होना जरूरी है. आमतौर पर महिलाएं अपने छोटे से छोटे काम के लिए भी अपने पतियों पर निर्भर होती हैं, जिस से उन्हें वित्तीय प्रबंधन का जरा भी ज्ञान नहीं होता. वे बैंक, बीमा या दूसरे आर्थिक क्षेत्रों में अपने पति या घर के दूसरे पुरुषों के ऊपर निर्भर रहती हैं.  ‘‘ऐसे में उन्हें इतनी जानकारी भी नहीं होती है कि बैंक डिपोजिट किस के नाम है और उस में कितना पैसा है? अगर मकान है तो वह उन के नाम है या नहीं? बैंक का कौन सा खाता संयुक्त है? पौलिसी में नौमिनी कौन है? प्रीमियम की नियत तारीख क्या है? म्यूचुअल फंड यदि लिया गया है तो फंड में मिलने वाला रिटर्न किस के खाते में जा रहा है?’’ ऐसी परिस्थिति में अगर तलाक की गाज महिला के ऊपर गिरती है, तो वह इस भावनात्मक और आर्थिक दुर्घटना से एकसाथ जूझने से खुद को अक्षम पाती है.

एडवोकेट कविता कपिल कहती हैं, ‘‘जीवन की आपाधापी में तिल का ताड़ बन जाने वाले घरेलू मुद्दों के कारण लोग दांपत्य जीवन में परस्पर तालमेल बैठाने के बजाय अलगाव या विवाहविच्छेद का रास्ता अपनाने लगे हैं. जहां शादी के पहले साल में ही तलाक की अर्जियोें की संख्या तेजी से बढ़ रही है वहीं पिछले दिनों 70 वर्षीय बुजुर्ग ने पत्नी से छुटकारा पाने के लिए दिल्ली की एक अदालत में तलाक की अर्जी डाल कर सब को हैरत में डाल दिया.’’ तलाक लेने से पहले यह विचार आवश्यक बन जाता है कि तलाक के बाद वह अपना भरणपोषण किस प्रकार करेगी? यदि वह तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी लेना चाहती है तो क्या वह भलीभांति बच्चे का पालनपोषण कर सकेगी? अगर तलाक पाने की इच्छुक महिला नौकरीशुदा है तो क्या उस की आय इतनी है, जिस से वह अपने और अपने बच्चे के पालनपोषण की जिम्मेदारी उठा सकेगी? जिस शिक्षण संस्थान में बच्चा शिक्षा ले रहा है उस की फीस भरना क्या उस के लिए आसान होगा? तलाक चाहने वाली महिला को अपना और अपने बच्चे का भविष्य देखते हुए फाइनेंशियल पोजिशन जरूर चेक करनी चाहिए.’’

तलाक की प्रक्रिया के दौरान

मैरिज काउंसलर डा. गीतांजलि कहती हैं कि तलाक की पिटिशन डालने से पहले ही पतिपत्नी के संबंध खासे खराब हो जाते हैं, जिस के कारण दोनों अलगअलग रहते हैं. गैरनौकरीशुदा महिला के लिए यह समय भी भारी पड़ सकता है. अत: इस ओर पहले से वह ध्यान दे तो बेहतर होगा. फिर तलाक प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए पत्नी अपना वकील तय करती है, जिस की फीस की व्यवस्था उसे स्वयं करनी होगी. चूंकि परिवार न्यायालय भी अपेक्षा करता है कि तलाक होने से पहले एक बार फिर पतिपत्नी अपने संबंधों पर गौर फरमाएं, इसलिए वह कुछ समय के लिए तलाक देने पर अपना निर्णय विचाराधीन रखता है. बिना मुआवजे और भरणपोषण भत्ते के यह समय बिताना भी आय का साधन न होने पर महिला को भारी पड़ता है. इन स्थितियों में आने से पहले समझदारी इसी में है कि एक बजट बनाया जाए, जिस में कुल खर्च का हिसाब बना कर यह आकलन किया जाए कि क्या तलाक की इच्छुक महिला की आय उस खर्च के हिसाब से है?

तलाक होने की दशा में

यदि तलाक होना निश्चित हो ही गया हो तो पहले ये महत्त्वपूर्ण कदम होने चाहिए : 

संयुक्त बैंक खातों पर पूर्व पतिपत्नी की सहमति से निर्णय.

संयुक्त बीमा पौलिसी संबंधी निर्णय.

प्रोविडेंट फंड, भूमि, भवन और अन्य संपत्तियों में नामांकन परिवर्तन.

तीनों कदम ही आवश्यक और महत्त्वपूर्ण कदम हैं. एडवोकेट कविता कपिल के मुताबिक, ‘‘तलाक के बाद यदि बैंक खाते में पति का नाम नामांकित है तो जल्दी से जल्दी उसे बदलवा देना आवश्यक है, क्योंकि कई बार जब तक महिला तलाक  के दर्द से उबरती है उस का पूर्व पति संयुक्त बैंक खाते में जमा रकम गायब कर चुका होता है. नौकरीशुदा महिला अपनी बीमा पौलिसियों, प्रोविडेंट फंड आदि के कागजातों में नामांकित पूर्व पति का नाम समय पर हटवा कर कई परेशानियों से बच सकती है.’’

‘‘अगर आर्थिक रूप से तलाकशुदा महिला मुआवजे और गुजारेभत्ते पर ही निर्भर हो तो उसे उस रकम को सुनियोजित निवेश करने की योजना बना लेनी चाहिए और शौर्टटर्म पौलिसी में निवेश कर के निश्चित अंतराल में थोड़ाथोड़ा धन मिलते रहने से आर्थिक सुरक्षा मिल सकती है. यदि तलाक की तैयारी करते समय ही ऐसी बचत योजनाओं में पैसा लगाया जाए, जिन में पति न नौमिनी हो, न संयुक्त दावेदार तो तलाक के बाद महिला को पैसों का मुहताज नहीं होना पड़ेगा.’’

खुद रखें हिसाबकिताब

एडवोकेट कविता कपिल के मुताबिक,  ‘‘आज के दौर में हर महिला को अपने वित्तीय फैसले खुद लेने चाहिए. कहां कितना पैसा बचाना है और कहां लगाना है, इस का हिसाब खुद भी रखना चाहिए. चूंकि महिलाएं अपने वित्तीय फैसले भावनात्मक आधार पर लेती हैं, इसलिए पीछे रह जाती हैं, जबकि पुरुष भावनात्मक आधार पर वित्तीय फैसले कम लेते हैं. इसलिए अच्छे इनवेस्टमेंट प्लानर होते हैं. ‘‘दूसरी ओर यह भी देखने में आता है कि जो महिलाएं दिखावे में पड़ कर अनापशनाप खर्च करती हैं वे भी वित्त संबंधी निवेशों से अनजान रहती हैं, जबकि इन सब से बचे पैसे को वे समझदारी से निवेश कर के परेशानी से बच सकती हैं. ‘‘यदि तलाक के बाद जीवन निर्वाह करने की बात आती है तो मुआवजे से मिलने वाली जमापूंजी को खर्च न कर उसे उन वित्तीय निवेशों में निवेश करना चाहिए, जिन से मिलने वाले ब्याज से उन का काम आसानी से चल सकता है.’’

मैं कपड़े नहीं उतार सकती

अमृता राव का मानना है कि सफलता का शौर्ट कट बोल्ड सीन करना नहीं है. आज की नवोदित से ले कर स्थापित अभिनेत्रियां तक यह काम जम कर कर रही हैं, लेकिन मैं ने इंडस्ट्री में यह सोच कर कदम नहीं रखा कि यहां बने रहने के लिए कुछ भी करूंगी. मेरी ख्वाहिश है कि लोग मुझे अलग किस्म की भूमिकाओं के लिए याद रखें. मुझे आज भी सब से ज्यादा खुशी तब होती है, जब मेरे काम की तुलना जया बच्चन से की जाती है. फिल्म ‘वैलकम टु सज्जनपुर’ में भी मैं सीधीसादी युवती के रोल में ही लोगों को स्वाभाविक लगी. आज इंडस्ट्री में ऐसी कोई हीरोइन नहीं है, जिस में लोग जया बच्चन का अक्स ढूंढ़ पाएं. हालांकि लोगों के कहने पर मैं ने उस इमेज से निकलने की कोशिश की, पर सफल नहीं रही. वैसे भी आजकल अमृता के पास कोई ढंग की फिल्म नहीं है. पिछले दिनों आई फिल्म ‘सुलेमानी कीड़ा’ भी बौक्स औफिस पर अपना कमाल दिखा नहीं पाई.

महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों की कहानी

देश में निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए बड़ेबड़े वादे किए गए थे. पर आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं. हुआ तो यह है कि महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में कमी आने के बजाय उन की संख्या बढ़ गई है. प्रोड्यूसर जीतेंद्र सोनी और निर्देशक मयंक श्रीवास्तव महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को फिल्म ‘काला सच द ब्लैक ट्रुथ’ के माध्यम से सामने लाए हैं. यह फिल्म एक वास्तविक घटना पर आधारित है और इस फिल्म की शूटिंग झारखंड, दिल्ली और यूपी में की गई है. कम बजट और कम समय में तैयार की गई इस फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह और न्यूयार्क फिल्म समारोह के शुरुआती चरणों में चुन लिया गया है.

मटर का निमोना

सामग्री

1 कटोरी हरे मटर के दाने दरदरे पीसे हुए

2 आलू बारीक कटे

1 छोटा चम्मच तेल

1 टमाटर

4-5 हरी मिर्चें

1/2 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटा

एक चुटकी हींग

1/2 छोटा चम्मच साबूत जीरा

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

थोड़ी सी धनियापत्ती बारीक कटी

नमक स्वादानुसार.

विधि

टमाटर और हरी मिर्चों का पेस्ट तैयार कर लें. कड़ाही में तेल गरम कर उस में कटे हुए आलू सुनहरा होने तक फ्राई करें और अलग निकाल कर रख लें. बचे हुए तेल में हींग और जीरा डाल कर भूनें. अब इस में धनिया पाउडर, अदरक, टमाटरहरीमिर्च का पेस्ट डाल कर अच्छी तरह भूनें. फिर पिसा हुआ मटर डाल कर चलाते हुए भूनें. अब इस में फ्राइड आलू, लालमिर्च, नमक और जरूरतानुसार पानी डाल कर उबाल आने तक पकाएं. तैयार निमोने को गैस से उतार कर इस में गरममसाला बुरकें और गरमगरम सर्व करें.

रिश्तों में दरार

छोटे परदे के हौट कपल्स करण और जेनिफर विंग्नेट के अलग होने की खबर गरम है. फिलहाल इस बात में कितनी सचाई है यह कहना मुश्किल है लेकिन इस राज से परदा उठाने के लिए मीडिया ने करण और जेनिफर से संपर्क करने की कोशिश की. तब दोनों ने ही बात करने या सामने आने से इनकार कर दिया. जहां दोनों मीडिया की नजरों से बचने की कोशिश कर रहे हैं वहीं अचानक जेनिफर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक पोस्ट किया जिस में उन्होंने लिखा कि उन के और करण के बीच सब कुछ ठीक चल रहा है और शादी टूटने जैसी कोई बात नहीं है. लेकिन इन दिनों करण बिपाशा के साथ इश्क फरमा रहे हैं. हाल ही में दोनोें को जुहू में साथ देखा गया.

काश धर्म न होता

साल 2014. बच्चों की हत्याएं, वे भी इतनी बेरहमी से कि सदियों से शायद न हुई हों, खासतौर पर एक ही दिन में खुलेआम, सोचीसमझी साजिश के तहत. हिटलर ने बहुतों को अपने गैस चैंबरों में मरवाया था पर उस ने भी शायद यह वहशीपन नहीं दिखाया था, जो अपने ही धर्म के कट्टर सिरफिरों ने पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में दिखाया. जिस में 135 बच्चे तो मारे गए पर 1,100 में से बाकी बचे बच्चे, जिन्होंने इस कांड को आंखों से देखा होगा, वे सामान्य जीवन जी भी पाएंगे, कह नहीं सकते.

सिर्फ यह दिखाने के लिए धर्म के कट्टर लोगों की बात मानें वरना वे नरसंहार कहीं भी, कैसे भी कर डालेंगे, पाकिस्तानी तालिबानियों ने न केवल पाकिस्तान की जनता और शासकों को चेतावनी दे डाली, उस सेना को भी दे डाली जिस ने उन्हें अरसे से पाला था और प्रशिक्षण दिया था. इन धर्म के कट्टरों को उन मांओं, पिताओं, भाइयों, बहनों पर कोई दया नहीं आई, जिन्हें ये रोता छोड़ गए हैं. अनायास दुर्घटना या प्राकृतिक विपदा के दौरान बहुत से लोग एकसाथ मरते हैं पर इस तरह सोचसमझ कर आतंकवादियों का भारी हथियारों से लैस हो कर स्कूल में खुद पर बम लगाए आत्मघाती बन कर घुसना और फिर चुनचुन कर बच्चों और उन की टीचरों को मार डालना सिर्फ धर्म या सिरफिरा तानाशाह ही कर सकता है. धर्म का नाम ले कर जितना नरसंहार मानव समाज ने देखा है उस का अंश भर भी चोरों, लुटेरों, डाकुओं के हाथों न देखा होगा. यहां तक कि फिल्म ‘शोले’ के गब्बर सिंह जैसे वहशी हैं पर वे भी पूरे गांव के लोगों को नहीं मार डालते.

धर्म का नशा इतना जहरीला होता है कि पेशावर नरसंहार के आतंकवादी मुंबई के हमलावरों की तरह अपने को शहीद मान कर स्कूल में घुसे थे कि जिंदा बाहर न निकलेंगे. जब कोई मरने को तैयार हो जाए तो उसे मारने में हिचक नहीं होती पर जिंदा रहने की कोशिश करना हरेक का प्राकृतिक गुण है और धर्म ही ऐसा है, जो बिना वजह मरने को तैयार कर लेता है. अभी हाल में ही भारत के सिरसा में रामपाल नाम के फरेबी संत को बचाने के लिए हजारों औरतें, बच्चे, आदमी मरने को तैयार होते दिखे थे. धर्म की काली पट्टी इस तरह के आतंकवादियों को उन मदरसों में चढ़ाई जा रही है जहां उन से रातदिन केवल यही कहा जा रहा है कि जीना है तो धर्म के लिए, मरना है तो धर्म के लिए. गीता में कृष्ण ने बारबार धर्म के नाम पर मारने और मरने के लिए उकसाया था और उसी को भारत सरकार राष्ट्रीय पुस्तक बनाना चाहती है. क्या इसलिए कि पेशावर की तरह के आतंकवादियों की फौज तैयार की जा सके?

धर्मयुद्धों के लिए तैयार किए गए सैनिक सदियों से एकदूसरे को मारते रहे हैं और हजारों में मरते रहे हैं. पर जो दर्द इन दरिंदों ने दिया वह दहलाने वाला था, क्योंकि इस तूफान के काले बादल पहले नहीं दिख रहे थे. यह आतंक सुनामी या भूकंप की तरह हुआ और कुछ ही घंटों में सैकड़ों परिवारों को रोताबिलखता छोड़ गया. इस का क्या उपाय है, आज दिख नहीं रहा. आज पूरे विश्व में धार्मिक कट्टरपन फिर से सिर उठा रहा है और अब यह इंटरनैट, सैटेलाइट फोन, मोबाइल व रिमोट विस्फोटकों का इस्तेमाल करने लगा है. अब योजना बनानी आसान होने लगी है. धर्मगुरु और उन के चेले सरकार और सेना पर भारी पड़ने लगे हैं, क्योंकि जो बच्चे मरे हैं, उन की मांओं जैसी करोड़ों औरतें और उन के पिताओं जैसे करोड़ों पुरुष धर्म के नाम पर अरबों नहीं खरबों रुपया अपनी जेब से निकाल कर आतंक फैलाने वाले धर्म को खुशीखुशी दे रहे हैं.

इस हमले को कानून व्यवस्था की कमजोरी समझने की भूल न करें. जब तक कट्टरपंथियों के कारखाने खुले हैं तब तक भोपाल गैस कांड जैसी गैसें बनती रहेंगी. मंदिर, आश्रम, मसजिदें, मदरसे, चर्च, कौन्वैंट इस तरह के आतंकवादियों की खेप तैयार करते रहेंगे. हर पैस्टीसाइड बनाने वाली कंपनी की गैस नहीं रिसती, हर परमाणु बिजलीघर से रेडिएशन नहीं निकलता. पर जब संहारक चीज का उत्पादन हो रहा है तो कहीं भी कभी भी उसे साजिश की तरह इस्तेमाल किया ही जा सकता है. इस तरह बच्चों को कसाईखाने में मारने की तरह न मारा जाए उस के लिए जरूरी है कि धर्म के कसाई पैदा ही न हों. क्या दुनिया इन जहर के पौधों को जड़ से निकालने के लिए तैयार है? क्या धर्म का साम्राज्य, जहां कट्टरपन को पनाह दी जाती है, नष्ट हो सकता है?

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