Cocktail Hairstyle Tutorial

Hello Girls, Here’s an exciting video for you all. It’s party time & you need the perfect hair. You don’t have every day a lot of time just to arrange your hairstyle. Keep your look fresh and fun by trying some of these. To know more watcht his video. SUBSCRIBE FOR MORE SUCH VIDEOS https://www.youtube.com/GSBoldNBeautiful#sthash.zdbl05Zl.dpuf

न्यूडिटी में वल्गैरिटी नहीं : आमिर खान

49 वर्षीय आमिर खान ने अपने फिल्मी कैरियर में बाल कलाकार से ले कर अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक, गायक आदि सभी में अपना हुनर दिखाया. वे अपनी हर फिल्म को चुनौती मानते हैं. हर किरदार को परदे पर पूरी तरह उतारना चाहते हैं. इसीलिए फिल्म की शूटिंग शुरू होने से 5-6 महीने पहले से पूरी तैयारी करते हैं ताकि सैट पर जाने से पहले हर सीन याद हो जाए.

आमिर खान की एक खूबी यह भी है कि वे फिल्म के प्रमोशन के वक्त फिल्म की कहानी को जरा भी लीक नहीं करते ताकि दर्शकों की फिल्म में रुचि बनी रहे और वे सिनेमाहौल तक जाएं. प्रस्तुत हैं, फिल्म ‘पीके’ को ले कर हुई उन से गुफ्तगू के अहम अंश :

फिल्म ‘पीके’ के पोस्टर को ले कर कई बार कंट्रोवर्सी हुई. क्या आप ने जानबूझ कर ऐसा पोस्टर निकाला? क्या आप इस कंट्रोवर्सी के लिए तैयार थे?

इसे ‘की आर्ट’ कहा जाता है. यह फिल्म के भाव को दिखाता है. किसी भी फिल्म को ‘की आर्ट’ के द्वारा ही दर्शकों को देखने के लिए प्रेरित किया जाता है. ‘तारे जमीं पर’ फिल्म में एक बच्चे को क्लासरूम मेज पर बैठा दिखाया गया और पीछे मैं बैठा था. इस से टीचर और बच्चे की पूरी कहानी का आभास हुआ. ‘पीके’ के इस पोस्टर की आलोचना होगी, यह मुझे पता था पर भरोसा था कि दर्शकों को समझ होगी. पहला इंप्रैशन हमेशा प्रभावशाली होता है. उस के बाद कई पोस्टर निकाले गए पर लोग इसी पोस्टर की आलोचना कर रहे हैं. ऐसा पोस्टर फिल्म की पब्लिसिटी के लिए नहीं, बल्कि कहानी के आभास के लिए निकाला गया.

आप ‘सौ करोड़’ क्लब को किस तरह लेते हैं?

हर फिल्म अलग होती है. फिल्म ‘पिपली लाइव’ की ‘थ्री ईडियट’ के साथ तो फिल्म ‘धोबी घाट’ की ‘गजनी’ के साथ तुलना नहीं की जा सकती. अगर आप ने करोड़ रुपया लगाया है तो उस से अधिक पाने की इच्छा होती है. कलैक्शन के आधार पर फिल्म की गुणवत्ता नहीं आंकी जाती. ‘पीके’ यूनिवर्सल फिल्म है, जो सभी छोटेबड़े गांवों, शहरों, कसबों के दर्शकों के लिए है. कलैक्शन के आंकड़े 99% गलत होते हैं. इन्हें बढ़ाचढ़ा कर लिखा जाता है. इन की प्रामाणिकता को सटीक आंकने के लिए अमेरिका की तरह ‘रेन ट्रैक कंपनी’ भारत में भी होनी चाहिए जिस के आंकड़े सही हों.

मुझे याद नहीं कि पहले की फिल्मों में ऐसी समस्या थी. मेरी पसंदीदा फिल्में ‘प्यासा’ और ‘मुगलेआजम’ हैं. इन का हर सीन मुझे अभी भी याद है. लेकिन तब किसी ने उन के कलैक्शन के बारे में नहीं सोचा था.

फिल्म के चरित्र को सजीव बनाने के लिए किस तरह का प्रयास करते हैं?

हर फिल्म के लिए मेरा प्रयास अलग होता है. मैं रियल लाइफ के औब्जर्वेशन इकट्ठा करता हूं. फिर लोगों से मिल कर उन की प्रवृत्ति को समझने की कोशिश करता हूं. जब मैं ने ‘थ्री ईडियट’ फिल्म में 18 साल के लड़के की भूमिका निभाई तो वह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी. 44 साल का हो कर मैं ने 18 साल के लड़के के हावभाव दर्शाए. इस के लिए मैं ने उस उम्र के बच्चों के साथ समय बिताया. जब फिल्म सैट पर जाती है तब तक मैं पूरी तरह से वैसा ही बन जाता हूं. क्रिएटिव इंसान के मन में जो कुछ होता है अगर वह उसे खुल कर सामने ला पाता है तो ही क्रिएटिविटी दिखती है. मैं प्रैशर में काम नहीं कर सकता. यही वजह है कि टीवी पर धारावाहिक ‘सत्यमेव जयते’ भी हिट रहा. सारे शो मैं ने पूरी रिसर्च के बाद प्रस्तुत किए. फिल्म हो या शो, तभी सफल होता है जब आप ईमानदारी से उस के भाव को दिखा पाएं, दर्शक उसे ठीक से समझ पाएं. आजकल न्यूडिटी और वल्गैरिटी में अंतर कर पाना मुश्किल हो गया है. न्यूडिटी में वल्गैरिटी नहीं होती. क्या आप को बच्चा वल्गर लगता है?

आप को परिवार की तरफ से कितना सहयोग मिलता है?

मेरी अम्मी का असर मुझ पर बचपन से है. वे मेरी हर फिल्म देखती हैं. अगर फिल्म में आलोचना की बात दिखे तो आलोचना भी करती हैं. उन्हें ‘पीके’ फिल्म बहुत पसंद आई. मेरे बच्चे भी मेरी हर फिल्म देखते हैं.

फिल्मों की सफलता में क्रिटिक की क्या अहमियत है?

क्रिटिक की अहमियत होती है, लेकिन कई बार यह भी देखना पड़ता है कि क्रिटिक किस मूड में फिल्म देख रहा है. इस के अलावा हर व्यक्ति फिल्म का टिकट खरीद कर मनोरंजन के लिए जाता है. अगर वह फिल्म उसे पसंद नहीं आती तो गलती हम से हुई है. हम कहानी को ठीक तरह से दर्शकों तक नहीं पहुंचा पाए हैं. क्रिटिक दर्शक है, जो लिख कर हमें बताता है कि फिल्म कैसी लगी. वह कभी सहमत होता है तो कभी नहीं.

स्वच्छता अभियान से जुड़ कर क्या करने की इच्छा है?

स्वच्छता अभियान में शामिल होना मेरे लिए अच्छी बात है. इस से न केवल भारत सुंदर होगा, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी दूर होंगी. फिर इस से कई लोगों को काम भी मिलेगा. आर्थिक लाभ भी होगा.

‘लव जिहाद’ को ले कर कई राज्यों में चर्चा है. आप इस से कितना सहमत हैं?

किसी भी धर्म के 2 बालिग व्यक्ति अपने मनमुताबिक शादी का निर्णय ले सकते हैं. यह संविधान भी चाहता है. किसी धर्म या जाति का इस से कुछ लेनादेना नहीं होना चाहिए.

कुछ समय अपने लिए

आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में आप चाहती हैं आराम के दो पल. हम यहां आप को कुछ ऐसे तरीके बता रहे हैं, जिन के जरीए आप अपने शरीर को इन पलों में पूर्ण आराम दे सकेंगी.

फिश थेरैपी

फिश थेरैपी भारत में कुछ अरसा पहले ही आई है. इस के बारे में सुन कर आप के दिमाग में अजीबोगरीब विचार आ रहे होंगे, लेकिन आप विचारों में न उलझिए, क्योंकि फिश थेरैपी पैरों की मृत त्वचा को अलग कर पैरों को आराम देने और उन्हें खूबसूरत बनाने का एक नया तरीका है. इस में पैरों को गररा रूफा प्रजाति की मछलियों से भरे टब में डुबोया जाता है. ये तुर्की की खास मछलियां हैं, जो मृत त्वचा को खा लेती हैं. ये आप को हलकी सी चुभन के साथ आराम का भी एहसास कराती हैं. इन दांतरहित मछलियों के अटैक के बाद यह एहसास होगा कि पैरों में जान आ गई है. बस इस के बाद पैडीक्योर और फुट मसाज लें ताकि प्रैशर पौइंट्स के जरीए भी आराम मिल सके.

बैंबू मसाज

20 मिनट की नींद के बाद आप को बैंबू मसाज के लिए जगाया जाता है. बांस का नाम सुन कर घबराने की जरूरत नहीं है. इस में शरीर की अच्छी तरह मसाज कर के उस के ऊपर बांस की गोल छड़ों को रोल किया जाता है ताकि मांसपेशियों को आराम मिल सके. बांस की छड़ों को कुछ समय गरम पानी में रखने के बाद उपयोग में लाया जाता है.

वाइन फेशियल

पूरे शरीर का वजन उठाने वाले पैरों को आराम देने के बाद आप चेहरे की अनदेखी कैसे कर सकती हैं. अगर आप की त्वचा तैलीय है, तो वाइन मसाज आप के लिए ही है. इस की क्लींजिंग, स्क्रबिंग और मसाज बिलकुल अलग अनुभव होगा. मसाज के दौरान चेहरे पर वाइन क्रीम के ग्रैन्यूल्स यानी छोटेछोटे दानों को भी आप महसूस कर पाएंगी. सारी प्रक्रिया के बाद 20 मिनट तक पैक लगाए रखने के दौरान ली गई नींद सुकून को चरम देने के लिए काफी है.

कैंडल मसाज

इस में बौडी मसाज के लिए तेल और खुशबूदार स्पा कैंडल का प्रयोग होता है. सोयाबीन कैंडल को पिघला कर उस में पौधे से बना औयल मिलाते हैं. इस के बाद इसे लोशन जैसा चिकना कर बौडी परलगाया जाता है. फिर उचित स्ट्रोक के साथ प्रैशर पौइंट्स पर दबाव देते हुए मसाज की जाती है.

प्रैग्नेंसी मसाज

गर्भवती महिलाओं में पीठ का दर्द और तनाव जैसी समस्याओं में बढ़ोतरी के कारण पै्रग्नेंसी मसाज करवाने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है. इस में बटक मसाज, थाई मसाज व बैक मसाज होती है.

मसाज और्गेनिक औयल व मौइश्चराइजर का प्रयोग कर के हलके हाथों से की जाती है. लेकिन यह मसाज फिजियोथैरेपिस्ट या अपने डौक्टर की सलाह ले कर करवाएं. इस से डिलीवरी के दौरान मांसपेशियों पर पड़ने वाले दबाव को सहन करने की शक्ति भी मिलती है. मसाज आप को आराम देने के साथ ही शरीर में खून के संचार को भी बढ़ा देती है, जिस से आप खुद को पहले से ज्यादा तरोताजा महसूस करेंगी.

व्यंजन गार्निश करें ऐसे

दालसब्जियों की गार्निशिंग

दाल और सब्जियों की गार्निशिंग करते समय उन के कलर का ध्यान रखें. मूंग की दाल को धनियापत्ती, लौंग, इलायची व जीरे के तड़के से सजाएं तो उरद की दाल पर क्रीम डालें अथवा कद्दूकस किया चीज बुरक दें. हरे रंग की ग्रेवी वाली सब्जियों को कद्दूकस किए चीज या पनीर से सजाएं.

ग्रीन व रैड करी वाली सब्जियों को ताजे फेंटे दही या फै्रश क्रीम से भी सजाया जा सकता है.

लंबे कतरे प्याज और लंबाई मेें कटे टमाटरों के कतलों से भी ग्रीन करी को सजाया जा सकता है.

तेल या घी में हींग, जीरा, साबूत मिर्च व लहसुन का तड़का तैयार करें. उसे कढ़ी, व्हाइट ग्रेवी व दाल पर ऊपर से डालें.

पीली दाल को भुने लाल प्याज से भी सजाया जा सकता है.

चावल की गार्निशिंग

तले हुए ड्राइफ्रूट्स जैसे काजू, बादाम आदि को पुलाव पर डालें. देखने में सुंदर और खाने में स्वादिष्ठ लगेगा.

लंबाई में कटे प्याज के कतरों को भूरा होने तक फ्राई कर के रख लें. फिर चावलों के ऊपर डालें और सर्व करें.

टमाटर व शिमलामिर्च के स्लाइसों से भी चावलों को गार्निश कर सकती हैं.

सेम के बीजों को तल कर रख लें. उन्हें उबले चावलों पर बुरकिए, चावल सुंदर लगेंगे.

बेसन के गट्टों से अथवा कटहल के मसालेदार टुकड़ों से भी चावलों को सजाया जा सकता है.

कश्मीरी पुलाव के लिए मीठे चावलों में खूब सारे कटे अंगूर, किशमिश, बादाम व केसर डालें. सुंदर भी लगेंगे और स्वादिष्ठ भी.

मीठी चीजों की गार्निशिंग

स्वीट डिश यानी खीर, कस्टर्ड आदि को अनार के दानों, कटे फलों और गुलाब की पंखुडि़यों से सजाएं.

स्वीट डिश को बारीक कटे ड्राइफ्रूट्स, गुलाबजल में घुटे केसर, पिसी हुई दालचीनी, छोटी इलायची आदि से गार्निश करें.

स्वीट डिश की गार्निशिंग के लिए जैम, जेली, पेठे की रंगबिरंगी टुकडि़यां प्रयोग में लाएं.

ब्रैड क्रंब्स में कांप्लान, हौर्लिक्स, माल्टोवा आदि मिला कर स्वीट डिश को गार्निश करें.

चौकलेट, सौस, स्ट्राबैरी सौस, चौकलेट के टुकड़ों, जैम की गोलियों आदि से भी सजावट की जा सकती है.

हनीमून संजोएं यादों के पल

ख्वाबों के सच होने की रुत, मुहब्बत के एहसास में भीग जाने का मौसम, किसी को पा लेने, किसी के हो जाने का एहसास, काश, हनीमून पर बिताया हर लमहा यादगार बन जाए. कुछ ऐसा ही एहसास होता है जब वक्त बीतता जाता है और मन करता है कि पिया के साथ बिताए उन हसीन लमहों को मुट्ठी में कैद कर लें.

अरे, तो फिर कर लीजिए न कैद, मना कौन करता है? यह इतना मुश्किल भी नहीं है, हनीमून पर जाने वाले दंपती कुछ बातों का खयाल रख और कुछ तरीके अपना कर इस पल को यादगार बना सकते हैं. आइए जानें, इस के लिए कुछ खास टिप्स:

हनीमून के दौरान एकदूसरे को ‘जानू’, ‘जान’, ‘स्वीटू’, ‘हब्बी’ जैसे निक नेम दें. बहुत साल बाद भी जब आप एकदूसरे को इन नामों से पुकारेंगे तो इन नामों के नामकरण का स्थान जरूर याद आएगा.

अपने हनीमून पर कोई चीज, जो आप को पसंद है पर आप के साथी को नहीं, वह छोड़ देने का वादा ले लें या फिर कोई ऐसी कौमन चीज, जो आप नहीं खाते, खानी शुरू कर दें. इस के बाद जब भी आप वह चीज खाएंगे, तो हो न हो, आप को अपना हनीमून जरूर याद आएगा.

एकदूसरे से कुछ वादा करें, लेकिन शादी के बाद किया यह वादा तोड़ने के लिए नहीं बल्कि निभाने के लिए होना चाहिए, क्योंकि हजारों तोड़े गए वादों के बीच यही एक वादा होगा, जो आप के पुराने प्यार की यादें ताजा कर तोड़े गए वादों की कड़वाहट भुला देगा.

स्टेट बैंक में काम करने वाले अशोक का कहना है कि हम अपने हनीमून पर नैनीताल गए थे. वहां मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त बना. आज भी हमारी और उस की फैमिली जब भी मिलते हैं तो नैनीताल की यादें ताजा हो जाती हैं.

आप के हनीमून सुईट्स के पास कुछ और हनीमून कपल भी ठहरे होंगे. उन सभी से भी घुलमिल कर बातें करें. क्या पता वहां आप को कोई ऐसा दोस्त मिल जाए, जिस से आप की गहरी दोस्ती हो जाए. फिर आप चाहें तो भी अपना हनीमून नहीं भूल सकते, क्योंकि वहां आप को अपना सब से प्यारा दोस्त जो मिला था.

यादों को संजोने का एक तरीका मीनाक्षी अग्रवाल ने बताया, ‘‘अगर आप के हसबैंड की मूंछें हैं, तो हनीमून पर उन्हें क्लीन शेव करा दें. जब आप लौट कर घर आएंगे तो आप तो क्या, पूरा घर शायद कभी यह बात न भूल पाए. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ. ऐसी ही कुछ छोटीमोटी यादें होती हैं, जो कई साल बाद भी हमें भीतर तक गुदगुदा जाती हैं.’’

हनीमून को यादगार बनाने के लिए कैमरा साथ ले जाएं. कैमरा ऐसा हो जिस में समय और दिनांक भी सेव हो सके. अपने साथी को बिना बताए उस के कुछ ऐसे खुशनुमा पलों के फोटो खींचें जिन्हें बाद में देख कर वह चौंक जाए.

हनीमून के लिए किसी ऐसी जगह पर जाएं, जहां जाने का ख्वाब आप के साथी ने हमेशा से देखा हो. ऐसा करते समय एक बात अवश्य ध्यान में रखें कि यह हनीमून ट्रिप साथी के लिए सरप्राइज गिफ्ट होनी चाहिए ताकि यह ट्रिप वह जिंदगी भर न भुला सके.

हम तो बराती हैं मेरे भैया

बराती बनना एक कला है तथा हर भारतीय व्यक्ति इस कला का दक्ष कलाकार. बराती बनते ही आम भारतीय का मन हिरन की भांति कुलांचे भरने लगता है और महिलाएं तो चर्चा के दौरान यह कहते हुए कि आज शाम एक बरात में जाना है, अपनेआप को गौरवान्वित महसूस करती हैं. शादी के मौसम में दफ्तरों में तो अनेक बाबुओं/अधिकारियों का लंच टाइम वगैरह तो शहर के रईसों की बरातीय व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन करने और बहसमुबाहिसों में ऐसे मजे से गुजरता है कि यू.पी.ए. सरकार का भी पिछले 4 वर्षों में क्या गुजरा होगा. बराती बनना अर्थात सामान्य से विशिष्ट बनना. घोड़ी के पीछे बरात में विचरण करना तो हर किसी को आम से खास का दर्जा दिलवाता है.

भारतवर्ष में प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं. उन में कुछ अघोषित अधिकार भी हैं. जैसे सड़क पर गंदगी करना, सार्वजनिक स्थान पर पान की पीक मारना, स्वयं की खुशी का इजहार ऐसे करना कि दूसरे दुखी हो जाएं. इसी तर्ज पर हमें एक और मौलिक अधिकार अनाधिकारिक रूप से प्राप्त है और वह है बराती होने का अधिकार. बराती बनना सिखाया नहीं जाता. यह गुण तो व्यक्ति नैसर्गिक रूप से अपने साथ ले कर पैदा होता है.

बराती होने की कुछ अर्हताएं होती हैं, जो या तो जन्मजात होती हैं या फिर अनुभवी बरातियों से सीखी जा सकती हैं. बराती बनने हेतु आप के पास 2 जोड़ी इस्तिरी किए हुए कपड़े होना प्राथमिक शर्त है, तो घोड़ी या बग्घी के सामने अपनी हैसियत से बढ़ कर नाचना बराती बनने की दूसरी शर्त. नागिन नाच नाचने वाले बराती ऊंची किस्म के माने जाते हैं तथा बरात में इन्हें विशिष्ट दर्जा भी प्राप्त होता है.

आजकल बरातियों के सिर पर साफे बांध कर उन्हें उच्च प्रजाति का बराती बनाने का चलन जोरों पर है. जिस मध्यवर्गीय बाबू के जीवन का सूरज टेबल पर पड़ी फाइलों में ही उदय और अस्त होता आया हो और दफ्तर से घर पहुंच जिस व्यक्ति ने रोजर फेडरर के अंदाज में सांझ के समय पाजामेबनियान में रैकेट हाथ में ले सिर्फ मच्छर मारे हों और जो व्यक्ति सब्जीमंडी में लौकी, तुरई वगैरह का मोलभाव करने हेतु प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा हो, ऐसे व्यक्ति के सिर पर यदि गुलाबी रंग का साफा बांध दिया जाए, तो सोचिए उस की स्थिति क्या होती होगी और गुलाबी साफे का बोझ संभालने हेतु उसे अपने व्यक्तित्व से क्याक्या लड़ाई लड़नी पड़ती होगी. सदा कमान की तरह झुकी रहने वाली कमर इस साफे की अहमियत जान कर एकदम सीधी हो जाती है.

सच्चा बराती वह है, जो बरात चलने के दौरान बीचबीच में टै्रफिक कंट्रोल का कार्य भी पूरी निपुणता से करता है. हर बरात में 2-4 ऐसे स्वयंसेवी बराती होते हैं, जो बिना किसी के आदेश के सुचारु आवागमन हेतु निर्देश देते रहते हैं.

आदर्श बरात में पहले होता है बैंड, उस के पीछे घोड़ी, उस पर दूल्हा और उस के पीछे महिला और पुरुषों का इत्रमय हुजूम. इन सब के आगे होता है बरात का महत्त्वपूर्ण बराती, जो पटाखे धारण करने का कार्य करता है तथा महत्त्वपूर्ण अवसरों पर अगरबत्ती की सहायता से पटाखे चलाचला कर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाता रहता है. कुछ बराती सांकेतिक भाषा में भौंहें उचका कर ‘व्यवस्था क्या है’ वाली बात कर लेते हैं तथा बीचबीच में सुरापान हेतु अदृश्य भी होते रहते हैं.

बरात जब लड़की के द्वार पर पहुंचती है तो वहां बराती का बराती गुण अपने शबाब पर होना जरूरी होता है. द्वार पर अधिकाधिक नृत्य प्रदर्शन करना अच्छी बरात होने का प्राथमिक लक्षण माना जाता है. बरात को दरवाजे के भीतर धकेल कर लड़की का बाप यह जान लेता है कि पहली लड़ाई उस ने जीत ली है. अब 7 फेरों से ले कर विदाई तक बरात संभल जाए तो ठीक नहीं तो राम ही राखेगा हमेशा की तरह.

यह तो शिक्षा के सिद्धांत के विरुद्ध है

शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने गुजरात मौडल के तिथि भोजन को देश भर में लागू कराने की योजना बनाई है. इस योजना के अंतर्गत स्कूली बच्चों को लोग किसी खास अवसर पर खाना खिलाते हैं. यह अवसर उन के बच्चों के जन्मदिन व परीक्षा में विशेष स्थान पाने आदि के उपलक्ष्य में हो सकता है. स्मृति ईरानी का कहना है कि यह भोजन बच्चों में आपसी प्रेम, स्कूलों के अभिभावकों में संवाद और बराबरी का एहसास आदि पैदा करता है.

असल में यह मुफ्त का भोजन पंडों को भोजन कराने की परंपरा को और मजबूत बनाना है. खुशी के अवसर पर मित्र संबंधी मिल कर खाना खाएं यह तो ठीक है, क्योंकि खुशी का खाना एकएक कर के हरेक के घर में हो ही जाता है. पर स्कूली बच्चों की भारी संख्या को खाना खिलाना हरेक के बस में नहीं होता. यह काम कुछ लोग करेंगे और बाकी बच्चे गरीब भिखारियों की तरह खाएंगे.

यह धर्मों की संस्कृतियों का कमाल है कि वे भक्तों से खाना ही नहीं कपड़े, ऐश का साधन और आमतौर पर लड़कियां और औरतें भी वसूल लेते हैं. लेकिन फिर भी उन के धर्म गुरु एहसान करते हुए गुर्राते हैं. स्मृति ईरानी इस परंपरा को सरकारी कार्यक्रम की शक्ल दे रही हैं. दोपहर का भोजन जो पिछली सरकारें दे रही थीं, वह पुण्य कमाने का हिस्सा नहीं है. वहां हरेक बच्चे का हक होता है खाना पाने का. उस में कोई दानी या दाता नहीं होता और पाने वाला याचक या भिखारी नहीं होता.

यह मुफ्त का खाना है, जो कई धर्मों में बांटा जाता है पर यह धर्म का काम करने के नाम पर किया जाता है और इस का मतलब ईश्वर को खुश करना होता है ताकि या तो इस जीवन में या अगले जीवन में कुछ अच्छा फल मिले. धर्मों ने यह सब तरहतरह के चमत्कारों की झूठी कहानियां फैला कर कायम किया है.

किट्टी पार्टी में भी एक जना सब को खिलाता है पर चूंकि बारीबारी सब यह खाना खिलाते हैं, यह दान नहीं होता. तिथि भोजन केवल और केवल दान होगा. यह शिक्षा के सर्वमान्य सिद्धांत के विरुद्ध है. यह धार्मिक संस्कृति का अंग है.

भारतीय जनता पार्टी धर्म के रथ पर चढ़ कर जीती है पर जीवन के हर अंश में इसे थोपा जाए यह शर्मनाक है.

वोट के नाम पर यह कैसी चोट

औरतों को किसी भी साधुसंत के प्रवचन में बड़ी संख्या में देखा जा सकता है. घर वालों को पंडेपुजारी, पादरी, मुल्ला समझाते हैं कि धर्म सही शिक्षा देता है, सद्व्यवहार सिखाता है, शांति लाता है. पर असल में होता है उलटा ही. जितना क्लेश धर्म के कारण होता है उतना और किसी वजह से नहीं.

भारी सीटें जीतने के बाद भी नरेंद्र मोदी संसद से घबराए हैं, क्योंकि उन की एक चेली निरंजन ज्योति, जो अपनेआप को साध्वी कहती है भगवा कपड़ों में भजभज मंडली की ओर से उत्तर प्रदेश की एक लोक सभा सीट से जीत कर ही नहीं आई मंत्री पद भी ले गई, ने एक आम चुनावी सभा में असभ्य भाषा का इस्तेमाल किया. यह भाषा है गालियों की, अपशब्दों की, दूसरों को नीचा दिखाने की, धर्म के नाम पर आदमी को आदमी से अलग करने की.

उन्होंने दिल्ली में एक चुनावी सभा में कह डाला कि तय करिए कि अगली दिल्ली विधान सभा रामजादों की बनेगी यानी रामभक्त भाजपाइयों या हरामजादों की. यह शब्द भगवाधारी एक वर्ग विशेष के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिसे लिखना भी अपमानजनक माना जाता है. जिन के हम हिंदू सदियों से गुलाम रहे, उन्हें आज गाली दे कर देश कौन सी भड़ास निकालता है, यह तो नहीं मालूम पर ये शब्द न केवल धर्मों के बीच वैमनस्य पैदा करते हैं, बल्कि जबान पर भी चढ़ जाते हैं और लोग आपस में भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं.

भगवा कपड़ा, काला चोला या सफेद कुरता पहनने से लोगों के काले दिल पवित्र नहीं होते, बल्कि यह जताते हैं कि उन के धर्म की व्यावसायिक पोशाक है, जिसे देख कर भक्त लोग अपनी मुट्ठी तो खोल ही दें, मरनेमारने को भी तैयार हो जाएं. गुरमीत रामरहीम सिंह, रामपाल और आसाराम भी इन्हीं की बिरादरी के हैं और इराक में उत्पात मचा रहे इसलामिक स्टेट के आतंकी भी. इन्हें धर्म के नाम पर लूटना है और लूटने के लिए लोगों की मति भ्रष्ट करनी है.

देश के विपक्षी दलों को मौका मिल गया कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा जा सके.

सवाल यह है कि इस तरह के शब्द धर्म के नाम पर जबान पर आते ही क्यों हैं? स्पष्ट है, धर्म के नाम पर एक झूठी काल्पनिक शक्ति को बेचा जाता है और बेचने वाले हर तरह के प्रपंच रचने में कामयाब हो जाते हैं.

सदियों से धर्म के नाम पर राजाओं को दूसरों की हत्याएं करने के लिए भी उकसाया गया है और अपने तथाकथित काल्पनिक ईश्वर या उस के स्वरूप, पुत्र आदि के भवन, मंडप या स्मारक भी बनवाए गए. अगर दूसरों को, विरोधियों को अथवा प्रतिस्पर्धियों को गालियां न दी जाएं तो भक्तों में जोश पैदा नहीं होता. राम मंदिर के नाम पर लालकृष्ण आडवाणी ने देश भर में धर्म का झंडा फहराया था. उस से पहले इंदिरा गांधी ने विदेशी हाथ कह कर वोट बटोरे थे. लालू यादव जैसे भी उन धर्म स्थलों में जाते हैं, जहां केवल छलफरेब है. मायावती ने स्मारकों के नाम पर मंदिर बनवाने की कोशिश की.

ये सब समयसमय पर विरोधियों को उसी भाषा में संबोधित करते हैं, जो निरंजन ज्योति ने इस्तेमाल की और जो घरघर में औरतें व आदमी प्रयोग करते हैं. जेठानियों, देवरानियों, भाभियों, बहुओं के लिए ही नहीं, बहनों, भाइयों तक के लिए इस तरह की भाषा का प्रयोग हो रहा है.

सड़क छाप लोगों द्वारा, वेश्याघरों, नाइट क्लबों में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना आम है पर यह दोस्तों में होती है. मगर अनजान पर ऐसी भाषा के इस्तेमाल करने पर हंगामा खड़ा हो जाता है. औरतें पड़ोसिनों के लिए ऐसी भाषा इस्तेमाल करती हैं पर बंद कमरों में. धर्म वालों को ही यह छूट है कि वे खुली सभाओं में ये शब्द इस्तेमाल करें, क्योंकि उन्हें सुरक्षा की गारंटी रहती है. भक्तों की भीड़ उन्हें रामरहीम, रामपाल, भिंडरावाले जैसों की सुरक्षा दिलाती है.

समाज में सब से ज्यादा गंद ये गालियां फैलाती हैं. औरतों की सुरक्षा में यही आड़े आती हैं. ‘हरामजादे’ शब्द असल में औरत का अपमान है जिस ने बिना विवाह संतान पैदा की. दोष न बच्चे का है न औरत का, है तो उस आदमी का जो औरत के साथ सोया होता है. लेकिन वह तो साफ बच निकलता है. गालियां औरतों और उन के निर्दोष बच्चों को मिलती हैं.

राजनीति अभी नहीं : अपर्णा यादव

समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का परिवार देश का सब से बड़ा राजनीति परिवार है. एकसाथ विधानसभा, विधानपरिषद, राज्य सभा और लोक सभा में किसी एक परिवार के इतने सदस्य नहीं रहे हैं. मुलायम सिंह के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव ने राजनीति के बजाय समाजसेवा के जरीए जनता की सेवा करने का काम शुरू किया है. वे ‘बी अवेयर’ नामक स्वयंसेवी संगठन के जरीए महिलाओं को उन के अधिकारों और कानूनों की जानकारी देने का काम कर रही हैं. महिलाओं के लिए होने वाले ज्यादातर कार्यक्रमों में पुरुष नहीं दिखते हैं लेकिन जब अपर्णा यादव महिलाओं के लिए कार्यक्रम करती हैं तो महिलाओं के साथसाथ बड़ी संख्या में पुरुष भी शामिल होते हैं.

12 वीं कक्षा तक की पढ़ाई लखनऊ के लोरैटो कौन्वैंट कालेज से और ग्रैजुएशन आईटी कालेज से करने के बाद अपर्णा ने इंटरनैशनल रिलेशनशिप विषय पर इंगलैंड की मैनचैस्टर यूनिवर्सिटी से एमए की डिगरी हासिल की. फिर लखनऊ के भातखंडे संगीत महाविद्यालय से शास्त्रीय संगीत में डिगरी हासिल की. 2010 में उन की शादी मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक के साथ हुई. आज वे डेढ़ साल की बेटी की मां हैं. वे समाजसेवा और स्टेजशोज के जरीए जनता से सीधा संवाद कर रही हैं. वे राजनीति करने के बजाय समाजसेवा से जुड़ कर काम करना चाहती हैं.

साधारण परिवार में पलीबढ़ी अपर्णा ने सब से बड़े राजनीति परिवार के साथ कैसे तालमेल बनाया ऐसे ही और कई सवालों के जवाब अपर्णा ने एक खास मुलाकात के दौरान दिए:

स्कूली शिक्षा के समय आप ने कभी सोचा था कि आप को समाजसेवा के जरीए जनता से जुड़ने का मौका मिलेगा?

मेरे मातापिता ने मुझे डाक्टर बनाने का सपना देखा था. मैं 10वीं कक्षा में जीवविज्ञान विषय से पढ़ाई कर रही थी. इसी दौरान मुझे जीवविज्ञान के प्रैक्टिकल करने पड़े. कई तरह के प्रैक्टिकल थे. एक में मुझे स्लाइड पर अपना ब्लड निकाल कर उस की जांच करनी थी. यह काम करने के बाद मैं बेहोश हो गई. यह बात मेरे मातापिता को पता चली तो उन्होंने फैसला किया कि मुझे आगे की पढ़ाई जीवविज्ञान से नहीं करनी है. फिर 11वीं कक्षा में मैं ने आर्ट्स ले लिया. मेरे पिता ने मुझे बताया कि क्रांतिकारी विचारों के जनक ज्यादातर आर्ट्स के क्षेत्र से ही आए हैं. उसी समय आरक्षण को ले कर जोरदार बहस चल रही थी. केंद्र सरकार में मंत्री रहे दिवंगत अर्जुन सिंह ने आरक्षण को ले कर एक बदलाव किया था. हम सब उस का विरोध कर रहे थे. हम ने पहली बार स्कूल की लड़कियों को साथ ले कर एक बड़ा धरना दिया और नारा दिया ‘गरम जलेबी तेल में अर्जुन सिंह जेल में.’ समाजसेवा के प्रति मेरा रुझान उसी समय से है.

इस समय प्रदेश में आप के परिवार की सरकार है, जो काम आप समाजसेवा के जरीए करना चाहती हैं वह सरकार के जरीए भी तो हो सकता है? अलग रास्ते पर चलने की खास वजह?

एमए की पढ़ाई के दौरान मैं ने महिलाओं की हालत विषय पर अपना रिसर्च पेपर दाखिल किया था. मेरे साथ के कुछ लोगों ने महिलाओं पर एक स्टडी की, जिस में बताया गया कि किसकिस तरह से महिलाओं का समाज में शोषण होता है. उसी समय मैं ने तय किया था कि मैं इस के लिए जागरूकता अभियान शुरू करूंगी. हर काम के लिए हमें सरकार पर आश्रित नहीं होना चाहिए. एनजीओ का काम सरकार और जनता के बीच पुल की तरह काम करने का होता है. मैं 2 माह से कम समय में ही लखनऊ, गोरखपुर, फैजाबाद और लखीमपुर खीरी में महिलाओं के बहुत सारे सेमिनार कर चुकी हूं. महिलाओं का मेरे अभियान के साथ जुड़ना मेरा हौसला बढ़ा रहा है. मैं केवल इतना समझाती हूं कि महिलाएं अपने अधिकारों, कानूनों को जानेंसमझें. जरूरत पड़ने पर कहां जाए और उन की बात न सुनी जाए तो वे क्या करें, इस की जानकारी उन्हें हो.

कुछ लोग सोचते हैं कि आप राजनीति में जाने का रास्ता बना रही हैं?

जो लोग हमारे परिवार को जानतेसमझते हैं, वे ऐसा नहीं सोच सकते. मैं अभी यह तो नहीं कह सकती कि मैं राजनीति नहीं करूंगी, मगर यह जरूर कह सकती हूं कि मैं समाजसेवा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं कर रही. मैं ने राजनीति में जाने को ले कर कोई योजना तैयार नहीं की है. मेरी इच्छा केवल समाजसेवा के जरीए महिलाओं को जागरूक करने की है. मैं इस काम को आगे बढ़ाना चाहती हूं. केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी जाने की योजना बना रही हूं.

आप साधारण परिवार की रही हैं. आप दूसरी बिरादरी से हैं. ऐसे में आप के सामने मुलायम परिवार में शामिल होने में कोई परेशानी का अनुभव हुआ?

मेरे सासससुर और पति सभी बहुत ही सहयोगी स्वभाव के हैं. घर के दूसरे लोगों ने भी मेरा हमेशा सम्मान किया. मैं गायन में रुचि रखती थी. भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से शास्त्रीय संगीत में डिगरी ली. शादी के बाद जब मैं ने स्टेज पर गाने की बात सोची तो मुझे लगा कि शायद मेरे ससुराल पक्ष के लोगों को यह अच्छा न लगे. लेकिन जब यह बात नेताजी (मुलायम सिंह यादव) को पता चली तो उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि सैफई महोत्सव से अच्छा कोई मंच हो ही नहीं सकता. इस के बाद मैं ने लखनऊ महोत्सव और दूसरे मंचों पर भी गाया. मुझे किसी तरह की कभी कोई परेशानी नहीं हुई. लोक सभा चुनाव के समय मेरी आवाज में समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए एक कैसेट भी तैयार कराया गया.

आप ने आज की महिलाओं की क्याक्या परेशानियां अनुभव की हैं?

समाज में अभी भी हर स्तर पर महिलाओं को ले कर मानसिकता बदली नहीं है. मेरा मानना है कि महिलाओं का मान बढ़ाने और उन के खिलाफ होने वाली आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए परिवारों को अपने घरों के पुरुषों और बेटों को समझाना होगा ताकि वे महिलाओं का सम्मान करें. जब तक बेटे नहीं सुधरेंगे तब तक हालात नहीं बदलेंगे. महिलाएं अभी भी अपने खिलाफ होने वाली घटनाओं को छिपाने की कोशिश करती हैं. कई बार उन की बातों को ढंग से सुना भी नहीं जाता. पीडि़ता को ही गुनहगार समझा जाता है. ऐसी तमाम जटिलताएं हैं, जिन्हें दूर कर के ही महिलाओं की परेशानियों को हल किया जा सकता है. हालांकि कुछ समय से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है पर उसे और बढ़ाने की जरूरत है.

आप इतने काम एकसाथ कैसे कर लेती हैं?

मेरे पति और परिवार जिस तरह से मेरा हौसला बढ़ाता है उस से मुझे ताकत मिलती है. दिल से काम करती हूं, जो लोगों को पसंद आता है.

फुरसत के पलों में मन क्या करने को करता है?

मुझे पढ़ने का शौक बचपन से है. मेरे पिता बचपन में मुझे बच्चों की पत्रिका ‘चंपक’ ला कर देते थे. तब वह छोटे साइज में आती थी. मैं ने भी सोच रखा है कि जब मेरी बेटी पढ़नालिखना सीख रही होगी, तो मैं उसे चंपक जरूर ला कर दिया करूंगी. स्कूल के बाद कालेज के दिनों में मेरे घर में ‘सरिता’ और ‘गृहशोभा’ आती थी. हम उन्हें पढ़ते थे. कई बार इन में प्रकाशित महिलाओं के संबंध में लेख मुझे प्रभावित करते थे. मेरा मानना है कि आज महिलाओं को खुद से ज्यादा समय इन पत्रिकाओं को पढ़ने को देना चाहिए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें