Story in hindi

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यों रमन के साथ उस का रिश्ता निभ ही रहा था लेकिन जिंदगी कोई सीधी सड़क तो है नहीं कि बस मीलोंमील एक ही दिशा में चलते रहो. मोड़ आना तो लाजिम है. रमन हर रोज उसे फोन करता है. उस से ढेर सारी बातें भी करता है. बीमार या अपसेट हो तो उस के हालचाल भी लेता है और अपनी समझ के अनुसार सलाह भी देता है लेकिन क्या इतना सब करने भर से किसी रिश्ते को मुकम्मल माना जा सकता है? शायद नहीं. देखा है उस ने.
2 दिन पौधे को प्यार से न सहलाओ तो उस की भी पत्तियां अपनी सहज चमक खो देती हैं. पालतू जानवर भी लाड़ करवाने के लिए अपने मालिक के पांवों में लोटने लगते हैं. खुद उस की अपनी बिल्ली भी तो अपनी पूंछ को झंडे की तरह ऊपर उठा कर उस की टांगों से रगड़ने लगती है. और तब वह प्यार से उस की पीठ सहला देती है. इस पूरी प्रक्रिया में मात्र कुछ ही मिनट लगते हैं लेकिन बिल्ली के चेहरे पर आए संतुष्टि के भाव छिपे नहीं रह पाते. लेकिन प्यार यदि कह कर करवाया जाए तो फिर प्यार कैसा? यह तो जबरदस्ती हुई न? वह अपने प्रेम में किसी तरह का कोई दबाव नहीं चाहती थी.
लेकिन फिर भी लगभग हरेक धर्म की थ्योरी के अनुसार जीने के लिए प्रेम को अनिवार्य माना जाता है. जब जीने के लिए प्रेम इतना ही जरूरी है तब फिर उसे हर रिश्ते में समभाव से क्यों नहीं देखा जाता? फिर से अनेक अनुत्तरित प्रश्न दिमाग की गहरी खोह में तर्कों की दीवारें टटोलते हुए भटकने लगते. यह दिमाग का भी अलग ही फंडा है, जब शरीर अस्वस्थ होता है तब इस के बेकाबू घोड़े उन अनजानी दिशाओं में बेलगाम दौड़ने लगते हैं जो स्वस्थता के समय आसपास भी नहीं होती. पिछले दिनों से आभा भी तो उन्हीं स्याह कंदराओं में भटक रही है.
पिछले सप्ताह आभा बहुत बीमार रही. मन रमन का स्नेहिल स्पर्श चाहता था. 1-2 बार उसे मैसेज भी भेजा लेकिन ‘गेट वेल सून’ के अतिरिक्त कोई जवाब उसे नहीं मिला. रमन के इसी पलायन ने उसे तोड़ कर रख दिया. हालांकि यह मन भी बहुत स्वार्थी होता है, हमेशा अपने ही पक्ष में तर्क गढ़ता है. लेकिन फिर भी आभा रमन को कटघरे में नहीं खड़ा कर पाई.
आभा ने स्वयं को समझाया कि शायद वह केवल अपना ही दर्द देख रही है. शायद वह तसवीर का दूसरा रुख नहीं देख पा रही लेकिन उस की तसवीर में 2 नहीं बल्कि 4 रुख हैं. स्वयं उस के और रमन के अतिरिक्त दोनों के जीवनसाथी भी तो हैं. उन का पक्ष कौन देखेगा?
आभा ने अपनी हकीकत को कल्पना से जोड़ दिया. अब जो स्थिति उस की स्वयं की है वहां रमन खड़ा है और खुद उस ने रमन की जगह ले ली.
“यदि रमन ऐसी आपातस्थिति में उस का साथ चाहता तो क्या वह उस के पास मौजूद होती? क्या पति उसे किसी गैरमर्द की तीमारदारी करने की इजाजत देते? क्या रमन की पत्नी उसे सहज भाव से स्वीकार कर पाती?”
सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इन सब सवालों का जवाब न ही होता लेकिन मन कब किसी सामाजिक बंधन में बंध पाया है? वैसे भी उस ने रमन से सिवाय प्रेम के कभी कुछ चाहा भी कहां था. न कोई रुपयापैसा चाहा और न ही कभी उस की पत्नी का अधिकार लेने की चेष्टा की. फिर किसी को किस बात का डर? क्या प्रेम इतना असुरक्षित होता है? क्या उस का माथा सहला भर देने से प्रेम अपवित्र हो जाएगा या कि उस की देह नापाक हो जाएगी? प्रश्न ही प्रश्न… जवाब कोई नहीं…
“हां, वह हरेक न के बावजूद रमन के पास होती. उस का माथा सहला रही होती. पति के विरोध के बावजूद वह वहां अवश्य होती,” आभा ने दूसरा पक्ष देखा तो अपनेआप को और भी अधिक मजबूत पाया.
“रमन की पत्नी शायद डरती है कि उस का पति कोई छीन न ले लेकिन उसे आभा को कहां पति चाहिए उस का. पति तो खुद उस के पास है ही. उस के शरीर का मालिक. उस के बच्चों का पिता. दूसरी तरफ पति को भी शायद सामाजिक प्रतिष्ठा का डर भयभीत करता. पत्नी का किसी और से प्रेम उस के पौरुष को भी तो चुनौती देता ही होगा,” आभा का मन फिर से उलझनेभटकने लगा. प्रेम की परिभाषा फिर से अपने माने तलाशने लगी.
“उफ्फ… प्रेम इतना जटिल क्यों है? क्या इस का पलड़ा कभी प्रतिष्ठा से ऊपर नहीं उठ पाएगा?” आभा ने अपना सिर पकड़ लिया. उसे 4 दिन पहले का रमन से हुई बातचीत याद आ गई.
“कल अपने दोस्त की बेटी की शादी में जाना है,” कहा था रमन ने. सुनते ही आभा का चौंकना स्वाभाविक था लेकिन वह प्रत्यक्ष कुछ नहीं बोली बल्कि रमन के लिए उस के मन में एक कड़वाहट भर गई. रमन के लिए नहीं, शायद यह कड़वाहट प्रेम के लिए थी.
आभा ने अपनेआप को इतना भारहीन पहले कभी भी महसूस नहीं किया था. कहना तो यों चाहिए कि अब तक वह अपनी चेतना के ऊपर जो एक दबाव महसूस किया करती थी, आज उस से आजादी पाने का दिन था. आज उस ने रमन को अपना फैसला सुनाने का मन बना लिया था. कंधों पर टनों बोझ लदा हो तो यात्रा करना आसान नहीं होता न? आभा भी अपनी आगे की जीवनयात्रा सुगम करना चाहती थी.
“रमन, कुछ कहना है आप से. समय निकाल कर फोन करना,” आभा ने रमन के मोबाइल पर मैसेज छोड़ा. आशा के अनुकूल 2 दिन बाद रमन का फोन आया,”अरे यार, क्या बताऊं? इन दिनों कुछ ऐसी व्यस्तता चल रही है कि समय ही नहीं मिल रहा. बेटीदामाद आए हुए हैं न. हां, तुम बताओ क्या कहने के लिए मैसेज किया था?” रमन के स्वर में अभी भी एक जल्दबाजी थी. आभा कुछ देर चुप रही मानो खुद को एक बड़े द्वंद्व के लिए तैयार कर रही हो.
“मुझ से अब यह रिश्ता नहीं निभाया जाएगा. मैं थक गई हूं,” आभा एक ही सांस में कह गई.
अब चुप होने की बारी रमन की थी. शायद वह आभा के कहे शब्दों का अर्थ तलाश करने के लिए समय ले रहा था. जैसे ही उसे आभास हुआ कि आभा क्या कहना चाह रही है, वह छटपटा गया,”यह क्या बकवास है? ऐसा क्या हो गया अचानक? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है? मैं ने तुम से पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस से अधिक मैं तुम्हें कुछ नहीं दे पाऊंगा, फिर आज अचानक यह कैसी जिद है?” रमन ने अपने कथन पर जोर दे कर उसे पुष्ट करते हुए कहा. आभा कुछ नहीं बोली. शायद दर्द की अधिकता से गला अवरूद्ध हो गया था.
रमन समाज का एक प्रतिष्ठित चेहरा है. जिम्मेदार प्रशासनिक पद का आभामंडल उस के चेहरे को दिपदिपाता है. एक अच्छा साहित्यकार होना उस की आभा में और अधिक इजाफा करता है. उस के आभामंडल में आभा भी खिंची चली आई थी. हालांकि दोनों के ही अपनेअपने स्वतंत्र परिवार थे, बावजूद इस के आभा ने रमन को अपने प्रेम का पात्र चुना क्योंकि प्रेम को ले कर उस की अवधारण कुछ अलग थी. उसे लगता था कि इस दुनिया में देह नहीं बल्कि नेह का स्थान सर्वोपरि है लेकिन शायद उस की यह धारणा दुनिया की मान्यताओं से मेल नहीं खाती. रमन भी तो अपने प्रेम को सार्वजनिक रूप से कहां स्वीकार करता है? इसी कारण तो वह इतना बड़ा फैसला लेने के लिए मजबूर हुई है.
“क्या प्रेम इतना निकृष्ट भाव, कोई बुरी लत या फिर कोई घृणित काम है जिसे सब के सामने स्वीकार किए जाने पर आप की मानहानि हो सकती है? यदि ऐसा है तो फिर प्रेम की उपस्थिति को खारिज किया जाना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे किसी सामाजिक अपराध को. क्यों फिर ये बड़ेबड़े प्रचारक और धर्मगुरु प्रेम के विस्तार की बातें करते हैं? या तो फिर अवश्य ही प्रेमप्रेम में फर्क होता होगा लेकिन प्रेम को तो शाश्वत सत्य कहा जाता है तो फिर फर्क कैसा?” किसी एक दिन बहुत ही प्रेमिल पलों में आभा ने अपने मन की गुत्थियां हैं जो निरंतर उस के मस्तिष्क में बिलोना करती रहती हैं लेकिन आज तक वह किसी नवनीत की प्राप्ति तक नहीं पहुंच पाई, रमन के सामने रखी.
“तुम तो प्रेम करो न, क्यों इस की व्याख्या के पचड़े में पड़ती हो. आम खाने से मतलब है या पेड़ गिनने से,” कहते हुए शब्दों के जादूगर ने उसे बातों के भंवर में गोलगोल घुमा दिया और आभा की गुत्थियां अनसुलझी ही रह गईं.
रमन के प्रेम में पड़ने से पहले आभा के मन मे भी इतनी उलझनें कहां थीं. तब तक तो उसे भी प्रेम की एक ही व्याख्या एक ही विवेचना समझ में आती थी कि कुदरत ने इस सृष्टि को प्रेम करने के लिए ही रचा है. प्रेम ही अंतिम सत्य है और प्रेम करना मनुष्य होने की पहली शर्त है. खुशीखुशी उस ने रमन को अपना प्रेमी चुना था. बिना किसी धर्म, जाति या संप्रदाय की सीमाओं के. और हां, सामाजिक सीमाओं से भी परे. लेकिन रमन शायद उन सीमाओं को बेध नहीं पाया था या फिर शायद प्रेम पर प्रतिष्ठा का पलड़ा भारी पड़ा होगा.
सही ही होगा, आखिर रमन एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है. भरापूरा परिवार है उस का. कैसे वह टुच्चे से प्रेम के लिए अपनी वर्षों से अर्जित प्रतिष्ठा पर दाग लगा सकता है?
“यानी प्रेम तो दागिल ही साबित हुआ न?” आभा की सोच का चक्र जहां से चला था फिर वहीं वापस आ गया.
रमन का उस की जिंदगी में आना मतलब बहुत सी गुलाबी कलियों का एकसाथ खिलना… शुरुआती समय को याद कर के आज भी उस के गाल गुलाबी हो जाते हैं. उस ने रमन की उपस्थिति से कभी अपने पति के सामने भी इनकार नहीं किया था और यही वह रमन से भी चाहती थी कि कम से कम इतना मान तो वह उस के प्रेम का रखे कि समाज के सामने वे दोनों सहजता से साथ खड़े हो सकें लेकिन रमन इतना भी नहीं कर पाया था.
अजीत ने एक नजर उस प्रौस्टिट्यूट बुनसृ को ऊपर से नीचे तक देखा. वह वाकई बहुत खूबसूरत थी. औसतन थाई लड़कियों से लंबी वह अमेरिकी या पश्चिमी देश की लग रही थी. अजीत को उस के साथ बिताई रात भूले नहीं भूलती थी. अजीत छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, मुंबई से कोलकाता मेल ट्रेन से पत्नी के साथ धनबाद जा रहा था. अभी 2 साल पहले ही उन की शादी हुई थी. अजीत बर्थ के नीचे सूटकेस रख कर उन्हें चेन से बांध रहा था. अंतरा बोली, ‘‘मैं ऊपर सो जाती हूं. तुम तो सुबह 5 बजतेबजते उठ जाते हो. मैं आराम से सोऊंगी 7-8 बजे तक.’’ थोड़ी देर में वह कौफी ले कर आया.
कौफी पीतेपीते ट्रेन भी खुल चुकी थी. कौफी पी कर अंतरा ऊपर की बर्थ पर सोने चली गई. अजीत बैडलाइट औन कर फिर मैगजीन पढ़ने लगा और इसी बीच उस को नींद भी आ गई थी. जब उस की नींद खुली, सवेरा हो चुका था. ट्रेन मुगलसराय प्लेटफौर्म पर खड़ी थी. बाहर चाय, समोसे, पूरी, अंडे व फल वाले वैंडर्स का शोर था. सामने वाली बर्थ के सज्जन उतर गए थे. वह बर्थ खाली थी. अजीत ने घड़ी में समय देखा, 6 बज रहे थे. उस ने अंदाजा लगाया कि ट्रेन लगभग 4 घंटे लेट चल रही थी. उस ने कंडक्टर से पूछा तो वह बोला, ‘‘उत्तर प्रदेश में आतेजाते ट्रेन लेट हो चली है क्योंकि दिसंबर में कोहरे के चलते दिल्ली से आने वाली सभी ट्रेनें लेट चल रही हैं.’’ तभी उस ने देखा कि एक लड़की दौड़ीदौड़ी आई और उसी कोच में घुसी. ठंड के चलते उस ने शौल से बदन और चेहरा ढक रखा था.
सिर्फ आंखें भर खुली थीं. वह लड़की सामने वाली बर्थ पर जा बैठी. तब तक पैंट्री वाला कोच में चाय ले कर आया. अजीत ने उस से एक कप चाय मांगी और सामने वाली लड़की से भी पूछा, ‘‘मैडम, चाय लेंगी?’’ उस लड़की ने अजीत की ओर बहुत गौर से देखा और चाय वाले से कहा, ‘‘हां, एक कप चाय मु झे भी देना.’’ चाय पीने के लिए उस ने अपने चेहरे से शौल हटाई, तो अजीत उसे देर तक देखता रह गया. वह लड़की भी अजीत को देखे जा रही थी. फिर सहमती हुए बोली, ‘‘आप, अजीत सर हैं न. वाय थान, खा (हैलो सर).?’’ ‘‘और तुम बुनसृ? वाय खाप (हैलो)’’ उसे अपनी थाईलैंड यात्रा की यादें तसवीर के रूप में आंखों के सामने दिखने लगीं. वह लगभग 5 साल पहले अपने एक दोस्त के साथ थाईलैंड घूमने गया था. अजीत का थाईलैंड में एक सप्ताह का प्रोग्राम था. 4 दिनों तक दोनों दोस्त बैंकौक और पटाया में साथसाथ घूमे. दोनों ने खूब मौजमस्ती की थी. इस के बाद उस के दोस्त को कोई लड़की मिल गई और वह उस के साथ हो लिया. उस ने अजीत से कहा, ‘हम लोग इंडिया लौटने वाले दिन उसी होटल में मिलते हैं जहां पहले रुके थे.’ थाईलैंड में प्रौस्टिट्यूशन अवैध तो है पर प्रौस्टिट्यूट वहां खुलेआम उपलब्ध हैं.
वहां की अर्थव्यवस्था में टूरिज्म का खासा योगदान है. यहां तक कि लड़कियों की फोटो, जिन में अकसर लड़कियां टौपलैस होती हैं, स्क्रीन पर देख कर मनपसंद लड़की चुनी जा सकती है. इसी के चलते अनौपचारिक रूप से वहां यह धंधा फलफूल रहा है. अजीत के पीछे भी एक लड़की पड़ गई थी. उस ने अजीत से कहा, ‘वाय खा, थान (हाय सर, नमस्कार).’ फिर इंग्लिश में कहा, ‘आप को थाईलैंड की खूबसूरत रातों की सैर कराऊंगी मैं. ज्यादा पैसे नहीं लूंगी, आप को जो ठीक लगे, दे देना.’ ‘नहीं, मु झे कुछ नहीं चाहिए तुम से.’ ‘सर, बहुत जरूरत है पैसों की. वरना आप से इतना रिक्वैस्ट न करती.’ अजीत ने इस बार एक नजर उसे ऊपर से नीचे तक देखा. लड़की वाकई बहुत खूबसूरत थी. औसतन थाई लड़कियों से लंबी, चेहरा भी थाई लड़की जैसा नहीं लग रहा था.
कुछ अमेरिकी या पश्चिमी देश की लड़की जैसी लग रही थी. अजीत को वह लड़की भा गई बल्कि उस पर दया आ गई. उस ने पूछा, ‘तुम्हारा क्या नाम है?’ ‘मेरा नाम बुनसृ है सर. वैसे, नाम में क्या रखा है?’ ‘बुनसृ का अर्थ इंग्लिश में क्या हुआ?’ ‘ब्यूटीफुल,’ उस ने कुछ शरमा कर, कुछ मुसकरा कर कहा. ‘देखा नाम में क्या रखा है. जितनी सुंदर हो वैसा ही सुंदर नाम है. अच्छा, तुम क्या दिखाओगी मु झे? यहां तो लड़कियों की लाइन लगी है.’ ‘आप जैसा चाहें, रात साथ गुजारना या सैरसपाटा या फिर फुल मसाज.’ ‘मु झे यहां के कैसीनो ले चलोगी?’ ‘यहां जुआ गैरकानूनी है पर चोरीछिपे सब चलता है. चलिए, मैं आप को ले चलती हूं.’ अजीत बुनसृ के साथ कैसीनो गया. इत्तफाक से वह जीतने लगा और बुनसृ उसे और खेलने को कहती रही. उस ने करीब 10 हजार भाट जीते. रात के 2 बज चुके थे.
वह बोला, ‘बहुत हुआ, अब चलें?’ ‘हां, अब बाकी रात भी आप की सेवा में हाजिर हूं. कहां चलें, होटल?’ ‘हां होटल जाऊंगा पर सिर्फ मैं. तुम अपने पैसे ले कर जा सकती हो,’ और अजीत ने उसे 200 भाट देते हुए पूछा, ‘इतना ठीक है न?’ बुनसृ ने हां बोल कर फोन पर किसी से बात की, फिर कहा, ‘आधे घंटे में मेरा आदमी आ जाएगा, तब तक आप के साथ रहूंगी.’ ‘वह आदमी कौन था, तुम्हारा दलाल?’ ‘छी, सर, प्लीज. ऐसा न कहें. वह मेरा हसबैंड है. मु झे शाम को छोड़ जाता है और जब फोन करती हूं, आ कर ले जाता है. हम यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव में रहते हैं. मेरे पति को बिजनैस में बहुत घाटा हुआ था. उस का एक पैर भी खराब है. मेरी मां भी बीमार रहती है. हमारे चावल के खेत हैं पर सिर्फ उस से गुजारा नहीं हो पाता है. मजबूरी में उन लोगों की मरजी से यह सब करती हूं.’ थोड़ी देर में बुनसृ का आदमी आ गया. उस ने बुनसृ से कुछ कहा और बुनसृ ने अजीत से कहा, ‘आप का शुक्रिया अदा कर रहा है.
बोलता है, इतनी जल्दी छुट्टी दे दिया सर ने.’ चलतेचलते बुनसृ ने कहा, ‘आज आप का लकी डे था. कल कहें तो आप की सेवा में आ जाऊं. कुछ और आजमा सकते हैं टोटे में.’ ‘वह क्या है?’ ‘हौर्स रेस में बैटिंग.’ ‘ओके, आ जाना, देखें तुम्हारा साथ कितना लकी होता है.’’ दूसरे दिन बुनसृ अजीत को रेस कोर्स ले गई. जिस घोड़े पर अजीत ने बाजी लगाई वह जीत गया. उसे जैकपौट मिला था. उसे 8 हजार भाट मिले. बुनसृ बोली, ‘यू आर वैरी लकी सर.’ ‘पता नहीं मेरा समय अच्छा था या तुम्हारे साथ का असर है यह.’ ‘अब कहां चलें, सर?’ ‘मेरे होटल चलोगी?’ ‘मेरा तो काम ही है यह.’ ‘नहीं, थोड़ी देर साथ बैठेंगे. डिनर के बाद तुम जा सकती हो.’ ‘क्यों सर, मैं अच्छी नहीं लगी आप को, कल भी आप ने यों ही जाने दिया था?’ ‘अरे नहीं, तुम तो बहुत अच्छी हो. अच्छा बताओ, तुम थाई से ज्यादा अमेरिकी क्यों लगती हो?’ ‘यह भी एक कहानी है. विएतनाम वार के समय 1975 तक अमेरिकी फौजें यहां थीं.
हमारी जैसी मजबूर औरतों को पैसा कमाने के लिए उन फौजियों का मन बहलाना पड़ता था. उस के बाद भी हर साल यहां खोरात एयरबेस पर अमेरिकी, थाई, सिंगापुर और जापान से आए मैरीन का सा झा अभ्यास होता है. उस में भी थाई औरतें कुछ कमा ही लेती हैं. मेरी मां भी उन में से एक रही होगी. उस का जीवन भी गरीबी में बीता है. इसीलिए देखने में मैं आम थाई लड़कियों से अलग हूं,’ बुनसृ बेबाक बोली. रास्ते में लौटते समय अजीत ने बुनसृ के लिए कुछ अच्छे ड्रैस खरीद कर उसे गिफ्ट किए. फिर वे होटल पहुंचे. कुछ देर दोनों ऐसे ही बातें करते रहे थे. फिर अजीत ने डिनर रूम में ही लाने का और्डर दिया. इसी बीच उस के दोस्त का फोन आया. उस ने बताया कि देररात वह आ रहा है. ‘अब तुम जाने के लिए फ्री हो,’ डिनर के बाद अजीत ने बुनसृ से कहा. ‘सच, इतनी जल्दी तो कोई ग्राहक मु झे छुट्टी नहीं देता है.’
‘पिछले 2 दिनों से मैं तुम्हारे साथ हूं. कभी मैं ने ग्राहक जैसा बरताव किया है?’ ‘सौरी, सर.’ ‘अच्छा, आज निसंकोच बोलो, तुम्हें कितने पैसे दूं.’ ‘आप जो चाहें दे दें, मु झे सहर्ष स्वीकार होगा. वैसे, मेरा हक तो कुछ भी नहीं बनता है.’ अजीत ने बुनसृ को पूरे 18,000 भाट दिए. बुनसृ आश्चर्य से उसे देखे जा रही थी. ‘ऐसे क्या देखे जा रही हो. ये पैसे मैं इंडिया से नहीं लाया हूं. ये तुम ने मु झे जितवाए हैं. इन्हें तुम ही रख लो. ना मत कहना वरना मैं नाराज हो जाऊंगा.’ बुनसृ अचानक अजीत से लिपट पड़ी और रोने लगी. अजीत ने उसे अलग कर कहा, ‘रोना बंद करो. यहां से हंसते हुए जाओ. और हो सके तो यह पेशा छोड़ देना.’ ‘सर, आप ने मु झे फर्श से अर्श पर बिठा दिया है. इन पैसों से अपना बिजनैस शुरू करूंगी.’ अगले दिन एयरपोर्ट पर बुनसृ अपने पति के साथ अजीत को विदा करने आई थी. उस समय दोनों में से किसी ने एकदूसरे का फोन नंबर लेने की जरूरत न महसूस की होगी शायद. आज कई सालों बाद वह दिखी तो भी भारत में.
चाय टेबल पर रख वह उठ खड़ी हुई और अजीत से लिपट पड़ी थी. कोच में हलचल और अपने पास की आहट सुन कर ऊपर की बर्थ पर अजीत की पत्नी अंतरा की नींद खुल गई थी. दोनों को आलिंगनबद्ध देख कर वह आश्चर्यचकित थी. अंतरा भी नीचे उतर आई. बुनसृ ने अपने को अलग किया. अजीत ने परिचय कराया, ‘‘यह मेरी पत्नी अंतरा है.’’ फिर अंतरा से बोला, ‘‘यह वही थाई लड़की है. मैं ने तुम से कहा था न कि इस के साथ जितने पैसे मैं ने जुए में जीते थे, सब इसी को दे दिए थे.’’ ‘‘वाय, स्वासदी का हम्म (हैलो, गुड मौर्निंग मैडम),’’ बुनसृ ने अंतरा को कहा. बुनसृ ने पैंट्रीबौय से अंतरा को भी चाय देने को कहा. फिर काफी देर तक तीनों में बातें होती रहीं. अजीत ने बुनसृ से पूछा, ‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’ ‘‘मैं पहले बैंकौक से सीधे वाराणसी आई. सारनाथ गई. अब मु झे बोधगया जाना है. मेरे जीवन की यह बड़ी इच्छा थी, आज साकार होने जा रही है.’’ ‘‘और तुम्हारा पति क्यों नहीं आया?’’ ‘‘आप के चलते,’’ और वह हंस पड़ी थी.
अजीत और अंतरा दोनों चकित हो उसे देखने लगे थे. ‘‘हां सर, आप से मिलने के बाद मेरे समय ने गजब का पलटा खाया है. आप के पैसों से हम ने छोटा सा टूरिस्ट सेवा केंद्र खोला था. उस समय बस एक पुरानी कार थी हमारे पास. अब बढ़तेबढ़ते आधा दर्जन कारें हैं हमारे पास. टूरिस्ट सीजन में मैं औरों से भी रैंट पर कार ले लेती हूं. हम दोनों एकसाथ थाईलैंड से बाहर नहीं निकलते हैं ताकि हमारे ग्राहकों को परेशानी न हो. सर, आप के स्नेह से हमारे दिन बदल गए. हम लोगों के पास आप का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं हैं.’’ वे बातें करते रहे. तब तक ट्रेन गया पहुंचने वाली थी. अजीत ने कहा, ‘‘बोधगया के बाद क्या प्रोग्राम है?’’ ‘‘कल शाम कोलकाता से मेरी बैंकौक की फ्लाइट है.’’ ‘‘मेरे यहां धनबाद एक दिन रुक नहीं सकती हो?’’ अंतरा ने पूछा.
‘मु झे खुशी होगी आप लोगों के साथ कुछ समय रह कर. अगली बार कोशिश करूंगी. पर आप लोग एक बार बैंकौक जरूर जाएं और सर. इस बार आप को थाईलैंड-कंबोडिया बौर्डर ले कर चलूंगी.’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘वहां अच्छे कैसिनोज हैं. विदेशियों के लिए गैंबलिंग लीगल है. शायद इस बार फिर लक साथ दे और आप ढेर सारा पैसा जीतें.’’ ‘‘पर इस बार उस में मेरा भी हिस्सा होगा,’’ अंतरा बोली. सभी एकसाथ हंस पड़े थे. ट्रेन गया प्लेटफौर्म पर थी. बुनसृ अपना सामान ले कर उतर पड़ी. अजीत और अंतरा दोनों कोच के दरवाजे पर खड़े थे. अंतरा बोली, ‘‘सुनो, गया में किसी पर आंख मूंद कर भरोसा न करना. प्लेटफौर्म पर ही टूरिज्म डिपार्टमैंट का बूथ है. वे लोग तुम्हारी मदद कर सकते हैं.’’ ‘‘ओके, थैंक्स. मैं आप की बात का खयाल रखूंगी. आप लोग थाईलैंड जरूर आना. बायबाय.’’ 5 मिनट में ट्रेन खुल पड़ी. बुनसृ गीली आंखों से हाथ हिला कर अजीत और अंतरा को विदा कर रही थी. जब तक आखिरी डब्बा आंखों से ओ झल नहीं हुआ, वह हाथ हिलाती रही. फिर अपनी शौल से ही गीली आंखों को पोंछती हुई गेट की ओर चल पड़ी थी.
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‘‘हैलो मिस्टर अनुभव, क्या मैं आप के 2 मिनट ले सकती हूं?’’ मेरे केबिन में अभीअभी दाखिल हुई मोहतरमा के मधुर स्वर ने मुझे एक सुखद अहसास से भर दिया था. फाइलों से आंखें हटा कर चश्मा संभालते हुए मैं ने सामने देखा तो देखता ही रह गया.
लग रहा था जैसे हर तरफ कचनार के फूल बिखर गए हों और सारा आलम मदहोश हो रहा हो. फ्लौवर प्रिंट वाली स्टाइलिश पिंक मिडी और घुंघराले लहराते बालों को स्टाइल से पीछे करती बाला के गुलाबी होंठों पर गजब की आमंत्रणपूर्ण मुसकान थी.
हाल ही में वायरल हुए प्रिया के वीडियो की तरह उस ने नजाकत से अपनी भौंहों को नचाते हुए कुछ कहा, जिसे मैं समझ नहीं पाया, फिर भी बल्लियों उछलते अपने दिल को काबू में करते हुए मैं ने विनम्रता से उसे बैठने का इशारा किया.
‘‘मिस्टर अनुभव, मैं अनुभा. आप का ज्यादा वक्त न लेते हुए अपनी बात कहती हूं. पहले यह बताइए कि आप की उम्र क्या है?’’
ऊपर से नीचे तक मुझ पर निगाहें घुमाते हुए उस ने बड़ी अदा से कहा, ‘‘वैसे आप की कसी हुई बौडी देख कर तो लगता है कि आप 40 से ऊपर नहीं हैं. मगर किसी ने मुझे आप के पास यह कह कर भेजा है कि आप 50 प्लस हैं और आप हमारी पौलिसी का फायदा उठा सकते हैं.’’
वैसे तो मैं इसी साल 55 का हो चुका हूं, मगर अनुभा के शब्दों ने मुझे यह अहसास कराया था कि मैं अब भी कितना युवा और तंदुरुस्त दिखता हूं. भले ही थोड़ी सी तोंद निकल आई हो, चश्मा लग गया हो और सिर के सामने के बाल गायब हो रहे हों, मगर फिर भी मेरी पर्सनैलिटी देख कर अच्छेखासे जवान लड़के जलने लगते हैं.
मैं उस की तरफ देख कर मुसकराता हुआ बोला, ‘‘अजी बस शरीर फिट रखने का शौक है. उम्र 50 की हो गई है. फिर भी रोज जिम जाता हूं. तभी यह बौडीशौडी बनी है.’’
वह भरपूर अंदाज से मुसकराई, ‘‘मानना पड़ेगा मिस्टर अनुभव, गजब की प्लीजैंट पर्सनैलिटी है आप की. मेरे जैसी लड़कियां भी तुरंत फ्लैट हो जाएं आप पर.’’
कहते हुए एक राज के साथ उस ने मेरी तरफ देखा और फिर कहने लगी, ‘‘एक्चुअली हमारी कंपनी 50 प्लस लोगों के लिए एक खास पौलिसी ले कर आई है. जरा गौर फरमाएं यह है कंपनी और पौलिसी की डिटेल्स.’’
उस ने कुछ कागजात मेरी तरफ आगे बढ़ाए और खुद मुझ पर निगाहों के तीर फेंकती हुई मुसकराती रही. मैं ने कागजों पर एक नजर डाली और सहजता से बोला, ‘‘जरूर मैं लेना चाहूंगा.’’
‘‘ओके देन. फिर मैं कल आती हूं आप के पास. तब तक आप ये कागज तैयार रखिएगा.’’
कुरसी से उठते हुए उस ने फिर मेरी तरफ एक भरपूर नजर डाली और पूछा, ‘‘वैसे किस जिम में जाते हैं आप?’’
मैं सकपका गया क्योंकि जिम की बात तो उस पर इंप्रैशन जमाने के लिए कही थी. फिर कुछ याद करते हुए बोला, ‘‘ड्रीम पैलेस जिम, कैलाशपुरी में है ना, वही.’’
‘‘ओह, वाट ए कोइंसीडैंस! मैं भी तो वहीं जाती हूं. किस समय जाते हैं आप?’’
‘‘मैं 8 बजे,’’ मैं ने कहा.
‘‘अच्छा कभी हम मिले नहीं. एक्चुअली मैं 6 बजे जाती हूं ना!’’ इठलाती हुई वह दरवाजे से निकलते हुए उसी मधुर स्वर में बोली, ‘‘ओके देन बाय. सी यू.’’
वह बाहर चली गई और मैं अपने खयालों के गुलशन को आबाद करने लगा. सामने लगे शीशे में गौर से अपने आप को हर एंगल से निहारने लगा. सचमुच मेरी पर्सनैलिटी प्लीजैंट है, इस बात का अहसास गहरा हो गया था. यानी इस उम्र में भी मुझे देख कर बहुतों के दिल में कुछकुछ होता है.
मैं सोचने लगा कि सामने वाले आकाशचंद्र की साली को मैं अकसर उसी वक्त बालकनी में खड़ी देखता हूं जब मैं गाड़ी निकाल कर औफिस के लिए निकल रहा होता हूं. यानी वह इत्तफाक नहीं प्रयास है.
हो न हो मुझे देखने का बहाना तलाशती होगी और फिर पिंकी की दीदी भी तो मुझे देख कितनी खुश हो जाती है. आज जो हुआ वह तो बस दिल को ठंडक ही दे गया था. सीधेसीधे लाइन मार रही थी. बला की अदाएं थीं उस की.
मैं अपनी बढ़ी धड़कनों के साथ कुरसी पर बैठ गया. कुछ देर तक उसी के खयालों में खोया रहा. कल फिर आएगी. ठीक से तैयार हो कर आऊंगा. मैं सोच ही रहा था कि पत्नी का फोन आ गया. मैं ने जानबूझ कर फोन नहीं उठाया. कहीं मेरी आवाज के कंपन से वह अंदाजा न लगा ले और फिर औरतों को तो वैसे भी पति की हरकतों का तुरंत अंदाजा हो जाता है.
अचानक मेरी सोच की दिशा बदली कि मैं यह क्या कर रहा हूं. 55 साल का जिम्मेदार अफसर हूं. घर में बीवी, बच्चे सब हैं और मैं औफिस में किसी फुलझड़ी के खयालों में डूबा हुआ हूं. न…न…अचानक मेरे अंदर की नैतिकता जागी, पराई स्त्री के बारे में सोचना भी गलत है. मैं सचमुच काम में लग गया. बीवी के फोन ने मेरे दिमाग के शरारती तंतुओं को फिर से सुस्त कर दिया. शाम को जब घर पहुंचा तो बीवी कुछ नाराज दिखी.
‘‘मेरा फोन क्यों नहीं उठाया? कुछ सामान मंगाना था तुम से.’’
‘‘बस मंगाने के लिए फोन करती हो मुझे? कभी दिल लगाने को भी फोन कर लिया करो.’’ मेरी बात पर वह ऐसे शरमा कर मुसकराई जैसे वह कोई नई दुलहन हो. फिर वह तुरंत चाय बनाने चली गई और मैं कपड़े बदल कर रोज की तरह न्यूज देखने बैठ गया. पर आज समाचारों में मन ही नहीं लग रहा था? बारबार उस हसीना का चेहरा निगाहों के आगे आ जाता.
अगले दिन वह मोहतरमा नियत समय पर उसी अंदाज में अंदर आई. मेरे दिल पर छुरियां चलाती हुई वह सामने बैठ गई. कागजी काररवाई के दौरान लगातार उस की निगाहें मुझ पर टिकी रहीं. मैं सब महसूस कर रहा था पर पहल कैसे करता? 2 दिन बाद फिर से आने की बात कह कर वह जाने लगी. जातेजाते फिर से मेरे दिल के तार छेड़ती हुए बोली, ‘‘कल मैं 8 बजे पहुंची थी जिम, पर आप नजर नहीं आए.’’
मैं किसी चोर की तरह सकपका गया.
‘‘ओह, कल एक्चुअली बीवी के मायके जाना पड़ गया, सो जिम नहीं जा सका.’’
‘‘…मिस्टर अनुभव, आई डोंट नो, पर ऐसा क्या है आप में जो मुझे आप की तरफ खींच रहा है. अजीब सा आकर्षण है. जैसा मैं महसूस कर रही हूं क्या आप भी…?’’
उस के इस सवाल पर मुझे लगा जैसे कि मेरी सांसें ही थम गई हों. अजीब सी हालत हो गई थी मेरी. कुछ भी बोल नहीं सका.
‘ओके सी यू मैं इंतजार करूंगी.’’ कह कर वह मुसकराती हुई चली गई.
मैं आश्चर्य भरी खुशी में डूबा रहा. वह जिम में मेरा इंतजार करेगी. तो क्या सचमुच वह मुझ से प्यार करने लगी है. यह सवाल दिल में बारबार उठ रहा था.
फिर तो औफिस के कामों में मेरा मन ही नहीं लगा. हाफ डे लीव ले कर सीधा पहुंच गया ड्रीम प्लेस जिम. थोड़ी प्रैक्टिस की और अगले दिन से रोजाना 8 बजे आने की बात तय कर घर आ गया.
बीवी मुझे जल्दी आया देख चौंक गई. मैं बीमारी का बहाना कर के कमरे में जा कर चुपचाप लेट गया. एक्चुअली किसी से बात करने की कोई इच्छा ही नहीं हो रही थी. मैं तो बस डूब जाना चाहता था अनुभा के खयालों में.
अगले दिन से रोजाना 8 बजे अनुभा मुझे जिम में मिलने आने लगी. कभीकभी हम चाय कौफी पीने या टहलने भी निकल जाते. मेरी बीवी अकसर मेरे बरताव और रूटीन में आए बदलाव को ले कर सवाल करती पर मैं बड़ी चालाकी से बहाने बना देता.
जिंदगी इन दिनों बड़ी खुशगवार गुजर रही थी. अजीब सा नशा होता था उस के संग बिताए लम्हों में. पूरा दिन उसी के खयालों की खुशबू में विचरते हुए गुजर जाता.
मैं तरहतरह के महंगे गिफ्ट्स ले कर उस के पास पहुंचता, वह खुश हो जाती. कभीकभी वह करीब आती, अनजाने ही मुझे छू कर चली जाती. उस स्पर्श में गजब का आकर्षण होता. मुझे लगता जैसे मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया हूं.
धीरेधीरे मेरी इस मदहोशी ने औफिस में मेरे परफौर्मेंस पर असर डालना शुरू कर दिया. मेरा बौस मुझ से नाखुश रहने लगा. पारिवारिक जीवन पर भी असर पड़ रहा था. एक दिन मेरे किसी परिचित ने मुझे अनुभा के साथ देख लिया और जा कर बीवी को बता दिया.
बीवी चौकन्नी हो गई और मुझ से कटीकटी सी रहने लगी. वह मेरे फोन और आनेजाने के समय पर नजर रखने लगी थी. मुझे इस बात का अहसास था पर मैं क्या करता? अब अनुभा के बगैर रहने की सोच भी नहीं सकता था.
एक दिन अनुभा मेरे बिलकुल करीब आ कर बोली, ‘‘अब आगे?’’
‘‘आगे क्या?’’ मैं ने पूछा.
‘‘आगे बताइए मिस्टर, मैं आप की बीवी तो बन नहीं सकती. आप के उस घर में रह नहीं सकती. इस तरह कब तक चलेगा?’’
‘तुम कहो तो तुम्हारे लिए एक दूसरा घर खरीद दूं.’’
वह मुसकुराती हुई बोली, ‘‘अच्छे काम में देर कैसी? मैं भी यही कहना चाहती थी कि हम दोनों का एक खूबसूरत घर होना चाहिए. जहां तुम बेरोकटोक मुझ से मिलने आ सको. किसी को पता भी नहीं चलेगा. फिर तो तुम वह सब भी पा सकोगे जो तुम्हारी नजरें कहती हैं. मेरे नाम पर एक घर खरीद दोगे तो मुझे भी ऐतबार हो जाएगा कि तुम मुझे वाकई चाहते हो. फिर हमारे बीच कोई दूरी नहीं रह जाएगी.’’
मेरा दिल एक अजीब से अहसास से खिल उठा. अनुभा पूरी तरह से मेरी हो जाएगी. इस में और देर नहीं होनी चाहिए. मैं ने मन में सोचा. तभी वह मेरे गले में बांहें डालती हुई बोली, ‘‘अच्छा सुनो, तुम मुझे कैश रुपए दे देना. मेरे अंकल प्रौपर्टी डीलर हैं. उन की मदद से मैं ने एक घर देखा है. 40 लाख का घर है. ऐसा करो आधे रुपए मैं लगाती हूं आधे तुम लगा दो.’’
‘‘ठीक है मैं रुपयों का इंतजाम कर दूंगा.’’ मैं ने कहा तो वह मेरे सीने से लग गई.
अगले 2-3 दिनों में मैं ने रुपयों का इंतजाम कर लिया. चैक तैयार कर उसे सरप्राइज देने के खयाल से मैं उस के घर के एडै्रस पर जा पहुंचा. बहुत पहले उस ने यह एडै्रस दिया था पर कभी भी मुझे वहां बुलाया नहीं था.
आज मौका था. बडे़ अरमानों के साथ बिना बताए उस के घर पहुंच गया. दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था. अंदर से 2 लड़कों की बातचीत के स्वर सुनाई पड़े तो मैं ठिठक गया. दोनों किसी बात पर ठहाके लगा रहे थे.
एक हंसता हुआ कह रहा था, ‘‘यार अनुज, अनुभा बन कर तूने उस अनुभव को अच्छे झांसे में लिया. लाखों के गिफ्ट्स लुटा चुका है तुझ पर. अब 20-25 लाख का चेक ले कर आ रहा होगा. यार कई सालों से तू लड़की बन कर लोगों को लूटता आ रहा है पर यह दांव आज तक का सब से तगड़ा दांव रहा…’’
‘‘बस यह चेक मिल जाए मुझे फिर बेचारा ढूंढता रहेगा कहां गई अनुभा?’’ लड़कियों वाली आवाज निकालता हुआ बगल में खड़ा लड़का हंसने लगा. बाल ठीक करता हुआ वह पलटा तो मैं देखता रह गया. यह अनुभा था यानी लड़का जो लड़की बन कर मेरे जज्बातों से खेल रहा था. सामने बिस्तर पर लड़की के गेटअप के कपड़े, ज्वैलरी और लंबे बालों वाला विग पड़ा था. वह जल्दी जल्दी होंठों पर लिपस्टिक लगाता हुआ कहने लगा, ‘‘यार उस तोंदू, बुड्ढे को हैंडसम कहतेकहते थक चुका हूं.’’
उस का दोस्त ठहाके लगाता हुआ बोला, ‘‘लेले मजे यार, लड़कियों की आवाज निकालने का तेरा हुनर अब हमें मालामाल कर देगा.’’
मुझे लगा जैसे मेरा कलेजा मुंह को आ जाएगा. उलटे पैर तेजी से वापस लौट पड़ा. लग रहा था जैसे वह लपक कर मुझे पकड़ लेगा. हाईस्पीड में गाड़ी चला कर घर पहुंचा.
मेरा पूरा चेहरा पसीने से भीग रहा था. सामने उदास हैरान सी बीवी खड़ी थी. आज वह मुझे बेहद निरीह और मासूम लग रही थी. मैं ने बढ़ कर उसे सीने से लगा लिया. वह चिंतातुर नजरों से मेरी तरफ देख रही थी. मैं नजरें चुरा कर अपने कमरे में चला आया.
शुक्र था मेरी इस बेवफाई और मूर्खतापूर्ण कार्य का खुलासा बीवी के आगे नहीं हुआ था. वरना मैं धोबी का वह कुत्ता बन जाता जो न घर का होता है और न घाट का.
बरसातके पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें रिम?िम करके बरस रही थीं. मौसम बड़ा खुशनुमा और प्यारा हो रहा था. पानी की फुहारें मानो ठंडी-ठंडी हवाओं के साथ मन को रि?ा रही थीं. उन्हें देख कर लग रहा था कि जैसे मन की सारी मुरादें पूरी होने वाली हैं. स्वनिल और स्नेहा के प्यार को स्वनिल की मां ने कबूल कर लिया था. स्वनिल एक हाईटेक कंपनी में मैनेजर था और स्नेहा उसकी जूनियर. साथ काम करते-करते न जाने कब दोनों के दिल के तार जुड़ गए और दोस्ती चाहत में बदल गई. स्वनिल के पिताजी उसके बचपन में ही गुजर गए थे, मां ने ही उसे आंखों में सपने लिए बड़ी मेहनत से पाला था. उसने अपनी मां को चिट्ठी लिख कर स्नेहा के बारे में सब बता दिया था और उसकी तसवीर भी भेजी थी. मां का जवाब उसी के पक्ष में आया था. अगले सप्ताह मां खुद आने वाली थीं, अपनी होने वाली बहू से मिलने. ऑफिस से आने के बाद स्वनिल ने जल्दी से स्नेहा को अपने केबिन में बुलाया.
‘‘क्या हुआ स्वनिल,’’ स्नेहा ने आते ही पूछा.
‘‘स्नेहा, तुम्हें तो पता ही था कि मैंने मां को तुम्हारे बारे में बताया है, कल घर जाने के बाद मु?ो उनका खत मिला.’’ स्वनिल ने उदास हो कर कहा, ‘‘क्या लिखा था उस खत में और तुम इतने उदास क्यों हो?’’ स्नेहा ने घबराते हुए पूछा. ‘‘बात ही ऐसी है, स्नेहा मां ने हमेशा के लिए तुम्हें मेरे पल्ले बांधने का फैसला सुनाया है,’’ स्वनिल ने बड़ी गंभीरता से अपनी बात पूरी की. स्वनिल ने यह बात इतनी ज्यादा गंभीरता से कही थी कि पहले तो स्नेहा सम?ा न सकी पर जब सम?ा तो उसका चेहरा खुशी से खिल उठा.
‘‘स्नेहा, अब तो मां ने भी हां कर दीं, तो तुम्हें भी अपने घर वालों से बात कर लेनी चाहिए. मैं वापस आने के बाद उन से मिलता हूं. तुम यह जानती हो न कि आज रात मु?ो टूर के लिए निकलना है और उससे पहले अपने काम जल्दी से निबटाने हैं. अब तुम जाओ,’’ स्वनिल ने वहां से करीब भगाते हुए उससे कहा. स्नेहा भी स्वनिल को रेलवे स्टेशन तक छोड़ने साथ गई. आते समय वह रास्ते भर सोचती रही शायद स्वनिल ही उसके लिए बना है वरना तीन बार पक्की हुई उसकी शादी टूटती नहीं, लेकिन इस बार उसे किसी तरह की अनहोनी का डर नहीं था. उसका प्यार… उसका स्वनिल जो उसके साथ था. पापा और मम्मी से किस तरह बात करें? इस बारे में स्नेहा सोचती रही. उसकी छोटी बहन की शादी हो चुकी थी. छोटे भाई ने भी अपनी पत्नी के साथ दूसरी जगह बसेरा बसा लिया था. अब अगर उसकी शादी भी हो गई, तो मम्मीपापा अकेले रहेंगे या भाई के पास, वह सम?ा नहीं पा रही थी. उसे कुछ पुराने दिन याद आ गए… उन दिनों स्नेहा घर में अकेली कमाने वाली थी, उसे जब कॉलेज की डिगरी मिली थी, उसी साल पापा की कंपनी बंद हो गई थी. वे सालों से उसी कंपनी में काम कर रहे थे. वे यह सदमा बरदाश्त नहीं कर सके. वे दिनभर कमरे की छत को ताकते घर में पड़े रहते. उस समय स्नेहा के दोनों भाईबहन छोटे थे. स्नेहा ने आगे बढ़ कर जिम्मेदारी ली, उसने एक नौकरी पकड़ ली. धीरे-धीरे सब ठीक हो गया. स्नेहा घर की कमाने वाली अकेली सदस्य थी. जाहिर था कि हर बात उससे पूछ कर की जाती. लिहाजा, वह घर के हालात ठीक करने के लिए जीजान से जुट गई. समय बीतता गया. उसके भाई-बहन बड़े हो गए. मम्मी ने स्नेहा से सलाह-मशवरा करके छोटी बेटी की शादी सीधे-सादे अभय से कर दी. पहले तो स्नेहा ने कभी इस बात पर गौर नहीं किया, लेकिन अब जब उसकी छोटी बहन घर आती और अपने पिता और ससुराल वालों के गुण गाती, तो स्नेहा को भी शादी करने की चाहत होती. एक दिन स्नेहा ने शरमाते हुए मम्मी से बात छेड़ी.
पापा पीछे खड़े होकर सब सुन रहे थे. बोले, ‘‘कैसी बात करती हो बेटी? घर में तुम अकेली कमाने वाली हो. अभी तो तुम्हारा भाई पढ़ रहा है, तुम शादी करके चली जाओगी तो हमारा सहारा चला जाएगा. एक-दो साल और रुक जाओ. जब तुम्हारे भाई की नौकरी लगेगी तो हम तुम्हारा भी ब्याह कर देंगे,’’ पापा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
दिन यों ही बीतते रहे. मौसम बदलते रहे. बहारें तो आईं, लेकिन स्नेहा की जिंदगी में नहीं, बल्कि भाई की जिंदगी में. हालात ने अजीब सी करवट ली. घर में रहने वाली पैसों की तंगी के चलते भाई अलग रहना चाहता था. जिस दिन उसे पहली तनख्वाह मिली, उसने मम्मी के सामने एक लड़की लाकर खड़ी कर दी और बोला, ‘‘मम्मी, यह है तुम्हारी होने वाली बहू. मैं अपनी नौकरी लगने तक रुका था. मैं दीदी पर एक और बो?ा नहीं डालना चाहता. हम दोनों अगले महीने कोर्ट मैरिज कर रहे हैं.’’ ‘‘तुम्हारी पसंद अच्छी है, बहू मु?ो अच्छी लगी, लेकिन बेटा तुम्हें पहले अपनी बहन के बारे में सोचना चािहए. उसकी भी तो उम्र हो रही है. पहले उसके हाथ पीले कर दें. बाद में तुम्हारी शादी…’’
‘‘एक मिनट मम्मी, हम, मेरा मतलब है कि मैं और मेरी पत्नी, शादी के बाद अलग रहने वाले हैं.’’
‘‘यह क्या कह रहा है तू?’’ मां ने हैरानी से पूछा.
वसन्त खाडिलकर पटेल रोड पर चला जा रहा था. एक ही विचार उसके मस्तिष्क में कौंध रहा था कि किसी भी तरह से उसे इस अपमान का बदला लेना है, परंन्तु क्यो? एका एक उसके मस्तिष्क में यह प्रश्न कौंध गया.वह ठिठक गया , अरे ये क्या सोचने लगा वह , पूनम का करता कसूर ?”नहीं आखिर पूनम ने ही तो उसे बुलाया,उसका ही अपराध है “, लेकिन वह इतना नीचे क्यो गिरा ,; वह फिर से सोचने लगा.इस तरह सभी घटनाएं उसके सामने स्पष्ट होने लगी. एलीट पार्क में बैठे हुए वह फिर सिगरेट के छल्ले बना रहा था; आज से दो वर्ष पहले वह इसी स्थान पर पूनम से मिला था.
“आजकल तुम इतना खोए क्यो रहते हो ”
” कुछ नही ” वह बुदबुदाता
” पर मुझसे क्या छिपाना ”
” नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ”
वह मुस्कराई और दोनों पटेल रोड पर चल पड़े. फिर एक कैफे में बैठ कर दोनों ने काफी पी. और हंसते हुए उठकर चलने लगे, पर फिर एक बार मौन दोनों के बीच था.तभी एकाएक रमेश, पूनम का पुराना मित्र दिखा “हेलो पूनम ”
“हेलो रमेश”
“अरे भाई तुम तो दूज की चांद हो गयी हो पूनम , दिखाई ही नहीं देती ”
“नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है मेरी तबियत ठीक नहीं रहती” पूनम ने कहा
“अरे तो मुझे खबर क्यो नही दिया ” रमेश बोला “अरे नहीं अब ठीक हूं ” पूनम ने बात को खत्म करने की कोशिश की.
“अच्छा तो यही है आपके——–“रमेश ने बसन्त की ओर इशारा करते हुए कहा”अरे नहीं ये तो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं ” पूनम ने बसन्त की ओर कनखियो से देखते हुए कहा.
“चलो ठीक है वरना मैं भी सोचूं इतना बेमेल तो नहीं ही होना चाहिए “रमेश ने हंसते हुए कहा.
“और———–” आगे बसन्त सुन न पाया क्योंकि वह पूनम से अलग हो कर दूसरी तरफ़ चला गया था.उसका मन विद्वेष से भर गया” ये पूनम भी क्याहै; जहरीली फूल,—तो क्याउसे मुझसे प्रेम नहीं है,मात्र दिखावा करती है, उसे सिर्फ धन से प्यार है” इसी तरह सोचते हुए वह चलता रहा, कि फिर उसे ऐसा लगने लगा कि शायद वह कुछ ग़लत सोच रहा है, आखिर इसमें पूनम का करता कसूर, उसने अपने आप से प्रश्न किया.”नहीं नहीं, पूनम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे ही प्रेम करती है ,—तब दोष किसका? उसका –”
” हां यही ठीक है इसी तरह से उधेड़बुन में सोचते हुए कब घर आगया पता ही नहीं चला. तभी नौकर ने खाना लगा दिया उसे खाने में तनिक भी स्वाद नहीं आ रहा था , उसके दिमाग में रह रह कर रमेश केकहे शब्द गूंज रहे थे.इसके लिए वह खुद को जिम्मेदार मान रहा था.तनाव से उसके मस्तिष्क की शिराओं में दर्द होने लगा था. उसे लगा कि अब वह आगे कुछ भी सोचने की स्थति में नहीं है अब वह सोने की तैयारी कर रहा था तभी अचानक दरवाजे की घंटी बज उठी उसने सोचा कि इतनी रात में कौन हो सकता है फिर भी उसने दरवाजा खोला तो देखा कि पूनम सामने खड़ी थी. “तुम !”आश्चर्य से उसने कहा
“हां मैं “पूनम ने कहा ” तुम इतनी रात में, लौट जाओ मेरे जख्मों पर नमक न लगाओ “” नहीं मैं तुमसे क्षमा मांगने आती हूं” पूनम ने विनम्रता से कहा ” नहीं, नहीं पूनम , तुम मुझे माफ़ कर दो मेरी औकात ही नहीं मेरी वजह से तुम्हें नीचा दिखाना पड़ा “उसने कातर स्वर में कहा
“ऐसा क्यो ,क्या तुम नहीं चाहते कि समाज में मेरा कोई स्थान न हो ?””ऐसा नहीं है पूनम ,तुम एक ऐसे पिता की बेटी हो जो सिर्फ पैसे वाले हीनही है उनका समाज में बहुत बड़ा स्थान है और मैं एक बिन बाप मां का अनाथ कोई भी
कुछ कह सकता है।”बसन्त ने कटाक्षपूर्ण तरीके से कहा”अच्छा,तो क्या मुझे इस रात में थोड़ी सी जगह भी न दोगे .जगह तो मेरा सब कुछ है लेकिन मेरा समाज मुझे इसकी इजाजत नहीं देता है और मैं अनाथ हूं मुझे अपनी हैसियत का अंदाजा हो चुका है.”बसन्त ने बेबसी में कहा
” कुछ लोग कहें कहते रहे, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ” पूनम ने चेयर परबैठते हुए कहा.”हो सकता है कि तुम्हें कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं हो पर मेरे साथ ऐसा नहीं है “बसन्त ने लगभग हारकर कहा
“ठीक है, मैं जा रही हूं पर एक बात याद रखना ,मैं निर्दोष हूं और तुमने मुझे समझने में बहुत भूल की है” पूनम चली आती ,बसन्त अवाक सा तकता रहता रह गया.
न जाने कब तक वह सोया रहता अगर नौकर उसे न जगाता ,आंख खुली तो उसनेे पाया कि नौकर उसे जगा रहा था”, मालिक अभी अभी एक आदमी यह ख़त दे गया है.
बसन्तअवाक सा ख़त पढ़ने लगा, “मेरे देवता, मेरे सर्वस्व,
आशा है आपको रात भर सुख की नींद आती होगी,मैं कल कुछ आपसे कहने आती थी, क्योंकि मुझे कल ऐसा लगाकि प्यार दुनियाका वह अनमोल सच है जिसके लिए कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता. नारी समाज के लिए एक खिलौना है जिसके बारे में पुरुषों ने कभी यह सोचा ही नहीं कि नारी के अंदर भावनाओं का एक सागर होता है लेकिन हया और बहुत कुछ ऐसा भी होता है कि वह खुद को जाहिर नहीकरपाती संवेदनाओं को भी भीतर ही भीतर मरना पड़ता है.मैं सारी दुनियां छोड़ कर आयीथी यह बताने की कोशिश कर रही थी किरमेश एकगुन्डा किस्म आदमी है उसने मेरे पिता को ब्लेकमेल कर के मुझसे जबरदस्ती शादी करना चाहता है मैं इस जीवन में सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करती हूं लेकिन आपने मुझे ठुकराया अब मेरे जीवित रहने का कोई मतलबही नहीं है.मैं जा रही हूं यह पत्र जब तक आप तक पहुंचेगा तब तक मैं जा चुकी होगी अनन्त की ओर
आपकी पूनम
पत्र आंसुओं से भीग चुका था. बसन्त पागलों की तरह पूनम के घर की ओर भागा जैसे उड़ते हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश कर रहा हो.
“बेटा बड़ी देर कर दी आने में, पूनम ने तुम्हारा बहुत इंतजार किया अब तो सब खत्म हो गया.” पूनम के पिता ने रोते हुए कहा ।बसन्त की पथराई आंखें अनन्त मे पूनम को ढूंढ रही थी.
जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी. शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.
जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.
जब लौटती तो सहेलियों को अपने रोमांस के किस्से बता कर इंप्रैस करती. चूंकि उस की सहेलियां स्टडी में व्यस्त थीं, उन्हें तो अपने रिजल्ट की अधिक फिक्र रहती. वे उस की कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं.
इधर जीत भी पढ़ाई में पिछड़ता चला गया. उस का सारा वक्त शेफाली के बारे में ही सोचसोच कर निकल जाता. शेफाली के दिए गिफ्ट उसे भारी तोहफे नजर आते. वह उसे कभी टीशर्ट देती, कभी ब्रेसलेट तो कभी गौगल्स. वह खुद को हीरो से कम नहीं समझता. वह यही समझता कि शेफाली उस से विवाह करेगी और वह एक उद्योगपति का दामाद बन कर मालामाल हो जाएगा.
इधर शेफाली जीत संग आउटिंग पर थी, उधर उस के पापा अशोक ने प्राइवेट डिटैक्टिव से सारी जानकारी इकट्ठी करवा ली थी कि वह कहां जाती है, क्या करती है.
शेफाली के पापा अशोकजी ने जमाना देखा था. वे पल भर में सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें समझ आ गया कि उन की लाडली महज दिलबहलाव कर रही है. पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा.
जीत जिस तरह से बेझिझक शेफाली से तोहफे ले रहा था, इस से अशोकजी को यह भी समझ में आ गया कि इस लड़के में कोई स्वाभिमान नहीं है वरना वह इस तरह शेफाली की दी वस्तुएं न स्वीकारता. जीत का फंडा समझने में अशोकजी को ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वे तो खुद व्यवसायी थे और जीत के प्रोफैशनल प्रेम को पहचान गए थे.
शेफाली के लिए उन्होंने विदेश से पढ़ाई कर के लौटा एमबीए लड़का विजय तलाश लिया था. शेफाली ने जब विजय को देखा तो देखती ही रह गई. वह स्टाइलिश और अमेरिकन अंगरेजी बोल रहा था. उसे जीत को भुला देने में एक मिनट भी नहीं लगा.
जीत देखता रह गया और शेफाली विजय के साथ शादी कर हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड चली गई.
इश्क का भूत तो धन की चमक के आगे एक पल भी नहीं ठहर पाया. वे आज के युवा ही क्या जो इश्क के लिए जिंदगी बरबाद करें. अलबत्ता जीत को संभलने में एक साल लगा, पर जबकि वह दिल से नहीं मतलब की खातिर शेफाली से जुड़ा था. अब उस के सामने अपनी युवा बहन की जिम्मेदारी थी. वह नहीं चाहता था कि कोई उस के चालचलन का हवाला दे कर उस की बहन के रिश्ते को मना करे. जीत की मां को यही तसल्ली थी कि उस का बेटा एक बेवफा के प्यार में ज्यादा नहीं भटका.