पिता ने बुआ के कहने पर हमें घर से निकाल दिया है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरे पापा के घर में हमारी बूआ अपने बच्चों के साथ आ कर रहने लगी हैं. उन्होंने हमारे पापा को बहलाफुसला कर प्रौपर्टी के पेपर अपने नाम कर लिए हैं और हम दोनों भाईबहन को घर से निकाल दिया है. हम किराए के घर में रह रहे हैं. हम क्या करें जिस से घर हमें मिल जाए?

जवाब-

आप ने पूरी बात नहीं लिखी है कि पिता ने अपने ही बच्चों को घर से क्यों निकाल दिया. कोई कितना भी भड़काए पिता अपने बच्चों को घर से बेघर नहीं करता. आप ने अपनी मां का भी कोई जिक्र नहीं किया. क्या उन्होंने भी पिता को नहीं समझाया? आप अपने किसी सगेसंबंधी या पारिवारिक मित्र को मध्यस्थ बना कर पिता से बात कर सकते हैं. वे उन्हें समझा सकते हैं बशर्ते उस संबंधी या मित्र की बात को आप के पिता तवज्जो देते हों. यदि किसी भी तरह से बात न बने तो किसी वकील से संपर्क करें. यदि संपत्ति पुश्तैनी है, तो आप के पिता को आप का हिस्सा देना ही होगा.

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बस में बहुत भीड़ थी, दम घुटा जा रहा था. मैं ने खिड़की से बाहर मुंह निकाल कर 2-3 गहरीगहरी सांसें लीं. चंद लमहे धूप की तपिश बरदाश्त की, फिर सिर को अंदर कर लिया. छोटे बच्चे ने फिर ‘पानीपानी’ की रट लगा दी. थर्मस में पानी कब का खत्म हो चुका था और इस भीड़ से गुजर कर बाहर जा कर पानी लाना बहुत मुश्किल काम था. मैं ने उस को बहुत बहलाया, डराया, धमकाया, तंग आ कर उस के फूल से गाल पर चुटकी भी ली, मगर वह न माना.

मैं ने बेबसी से इधरउधर देखा. मेरी निगाह सामने की सीट पर बैठी हुई एक अधेड़ उम्र की औरत पर पड़ी और जैसे जम कर ही रह गई, ‘इसे कहीं देखा है, कहां देखा है, कब देखा है?’

मैं अपने दिमाग पर जोर दे रही थी. उसी वक्त उस औरत ने भी मेरी तरफ देखा और उस की आंखों में जो चमक उभरी, वह साफ बता गई कि उस ने मुझे पहचान लिया है. लेकिन दूसरे ही पल वह चमक बुझ गई. औरत ने अजीब बेरुखी से अपना चेहरा दूसरी तरफ मोड़ लिया और हाथ उठा कर अपना आंचल ठीक करने लगी. ऐसा करते हुए उस के हाथ में पड़ी हुई सोने की मोटीमोटी चूडि़यां आपस में टकराईं और उन से जो झंकार निकली, उस ने गोया मेरे दिमाग के पट खोल दिए.

उन खुले पटों से चांदी की चूडि़यां टकरा रही थीं…सलीमन बूआ…सलीमन बूआ…हां, वे सलीमन बूआ ही थीं. बरसों बाद उन्हें देखा था, लेकिन फिर भी पहचान लिया था. वे बहुत बदल चुकी थीं. अगर मैं ने उन को बहुत करीब से न देखा होता तो कभी न पहचान पाती.

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जब पैरेंट्स लव मैरिज के लिए न हो तैयार, तो इस शादी के लिए मनाएं कैसे?

शादी एक खूबसूरत रिश्ता है जो प्यार और भरोसे की नींव पर टिका रहता है. जब यह शादी दो प्यार करने वाले आपस में करते हैं तो जिंदगी को सारे रंग मिल जाते हैं. अपने प्रेमी के साथ उम्र गुजारने का अहसास ही अलग होता है. मगर अक्सर समाज, परिवार और खासकर रिश्तेदार प्यार के मामले में थोड़े कंजर्वेटिव हो जाते हैं. जहां युवा अपने साथी को चुनने और प्यार के आसमान में ऊंची उड़ान भरने की आज़ादी चाहते हैं वहीं उनके माता पिता अक्सर खुद को समाज, परंपराओं, जाति ,धर्म , हैसियत जैसे मानदंडों में फंसा हुआ पाते हैं और यहीं से असली टकराहट शुरू होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि पैरेंट्स को इस शादी के लिए कैसे मनाया जाए;

आप किसी से दिल से प्यार करती हैं और उस के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती हैं. वह भी आप से बहुत प्यार करता है मगर आप के पेरेंट्स इस प्यार के खिलाफ हैं और वह नहीं चाहते कि आप उस लड़के से शादी करें. पैरेंट्स अपने हिसाब से आप की शादी कराना चाहते हैं. ऐसे में आप क्या करेंगी? चुपचाप अपने सपनों का गला घोटकर पैरेंट्स की बात मान लेंगी या फिर पैरेंट्स को छोड़ कर उस लड़के के साथ अपना घर बसाएंगी?

जैसा कि हम जानते हैं आज के समय में लड़कियां अपने सपनों को और अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीना चाहती है. ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो अपनी जिंदगी के बड़े फैसले खुद करती हैं. उन्हें अगर पैरेंट्स की बात सही नहीं लगती तो वे अपने लिए आवाज उठाती हैं. कई दफा ऐसी हालत में लड़कियों को अपने पैरेंट्स का घर छोड़ने का फैसला लेना पड़ता है. मगर जो भी हो कोई बड़ा फैसला लेने से पहले अपनी तरफ से पैरेंट्स को इस शादी के लिए मनाने कर प्रयास जरूर करना चाहिए.

किन कारणों से तैयार नहीं होते पेरेंट्स

परिवार – लव मैरिज के लिए मना परिवार के कारण भी होता है. लड़की या लड़के के परिवार का कोई आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो या फिर उन्हें गुंडागर्दी के लिए जाना जाता हो तो प्रेम विवाह में अड़चन आ सकती है.

अलग जाति और धर्म – भारत में शादी से पहले जाति और धर्म पर परिवार जरूर गौर करती है. धार्मिक ठेकेदारों और धर्मग्रंथों ने लोगों के दिलों में अलग धर्म या जाति  के लोगों के प्रति कड़वाहट और वैमनस्य की जड़ें इतनी गहरी खोद दी हैं कि ज्यादार लोग एकदूसरे से ही नफरत करने लगे हैं. ऊंच नीच और छुआछूत की दीवारें मजबूती से खड़ी कर दी गईं हैं जिन का खामियाजा युवा प्रेमियों को भुगतना पड़ता है. ऐसे में अलग धर्म और जाति के व्यक्ति से रिश्ते के लिए पेरेंट्स बिल्कुल राजी नहीं होते हैं.

समाज का डर – कई परिवार वालों के लिए अपने बच्चे की खुशी ही सबसे ज्यादा मायने रखती है इसलिए वो जाति, धर्म और परिवार के इतिहास के बारे में ज्यादा नहीं सोचते. लेकिन समाज का डर उनके मन में बना रहता है. सामाजिक बहिष्कार का डर और बदनामी के डर से वो अपने बच्चे के प्रेम विवाह के खिलाफ हो जाते हैं.

आर्थिक स्थिति – अमीर परिवार के लड़के या लड़की खुद से कम पैसे वाले परिवार की लड़की या लड़के से प्यार करता है तो भी पैरेंट्स का लव मैरिज के लिए मानना मुश्किल हो जाता है.

उम्र का अंतर – प्रेम विवाह में एक मुश्किल उम्र भी है. अगर आपकी उम्र का अंतर प्रेम विवाह करने वाले से ज्यादा या कम है तो भी माता-पिता को प्रेम विवाह के लिए राजी करना कठिन हो सकता है.

प्रेम विवाह के लिए अपने पैरेंट्स को कैसे करें तैयार

कुछ समय पहले ‘2 स्टेट्स’ फिल्म आई थी जो चेतन भगत द्वारा लिखित उपन्यास  ‘2 स्टेट्स’ पर आधारित थी. इस फिल्म में भी इसी समस्या को उठाया गया था. आलिया भट्ट और अर्जुन कपूर दो अलग राज्य, अलग संस्कृति और भाषा वाले घरों से थे. आलिया साउथ इंडियन तो अर्जुन पंजाबी. दोनों को अपने पेरेंट्स को मनाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े थे मगर अंत में दोनों परिवारों ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी थी. आप भी कोशिश करें तो संभव है कि आप के पेरेंट्स शादी के लिए तैयार हो जाएं मगर इस के लिए कोशिशें आप को करनी होंगी. अपने माता-पिता को प्रेम विवाह के लिए मनाने के कुछ टिप्स और ट्रिक्स ये हैं;

आर्थिक स्वावलंबन जरूरी

सब से पहले अगर आप आर्थिक रूप से शादी करने मैं सक्षम हैं तो आप को माँ बाप को मनाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी. अक्सर पेरेंट्स किसी बेरोजगार या निठल्ले इंसान को अपनी बेटी देने से कतराते हैं. लड़का कामयाब है तो कोई माँ बाप मना नहीं करेंगे लेकिन अगर लड़का बेरोजगार है कमाता नहीं है तो लड़की वाले रिस्क नहीं उठाना चाहेंगे और आप जैसे तैसे मना भी लेंगे तो भविष्य मैं आप दोनों को आर्थिक संकट से जूझना पड़ेगा. हर माँ बाप चाहते है कि लड़की अच्छे घर मैं जाये उसे आर्थिक संकट का सामना ना करना पड़े. आप दोनों पहले अपना करियर बनाये ताकि आप पूरी हिम्मत के साथ पेरेंट्स के आगे शादी की बात रख सकें.

अपने रिश्ते को लेकर आश्वस्त हो जाएं

प्रेम विवाह जैसे बड़े फैसले के बारे में अपने मातापिता से बात करने से पहले अपने रिश्ते के बारे में पहले से सुनिश्चित होना बहुत जरूरी है. अपने साथी से बात करें और पूछें कि क्या आप दोनों अपने रिश्ते और शादी के बारे में एक ही राय रखते हैं. अगर आप में से कोई भी कमिटमेंट से डरता है तो यह आपके माता पिता को मनाने की सारी कोशिशों को बेकार कर सकता है.

सही समय देख कर अपने मातापिता को उस ख़ास व्यक्ति के बारे में बताएं

अपने साथी को अपने घर बुलाकर और उन्हें अपने दोस्त के रूप में पेश करके अपने माता पिता को प्रेम विवाह के अपने विचार के लिए तैयार करें. त्यौहार और विशेष अवसर हमेशा ऐसे मिलन के लिए मददगार होते हैं. छोटी छोटी मुलाकातें आपके माता पिता और साथी को एक-दूसरे से घुलने मिलने का समय देंगी जिससे असहजता दूर होगी. एक बार जब वे एक दूसरे के साथ घुल मिल जाएंगे तो उनके बीच की उलझन को दूर करना आसान हो जाएगा.

सफल प्रेम विवाह के उदाहरण दें

अगर आप अपने मातापिता को मनाना चाहते हैं तो उन्हें सफल प्रेम विवाह के जीवंत उदाहरण दिखाएं. आप के जिस दोस्त ने ऐसा किया है उस के बारे में बताएं. उन्हें समझाएं कि जब आप विवाह के बारे में सोचते हैं तो आपके लिए सबसे ज़्यादा क्या मायने रखता है जैसे कि उनका स्वभाव, उदारता, शिक्षा, योग्यता, अनुकूलता इत्यादि.

अपने माता पिता के आगे अपनी परिपक्वता साबित करें

अपने माता पिता के लिए हम हमेशा बच्चे ही रहेंगे चाहे हम कितने भी बड़े हो जाएँ. उन्हें यह साबित करने के लिए कि आप अब बच्चे नहीं हैं और परिवार के लिए सही निर्णय और जिम्मेदारी ले सकते हैं. पारिवारिक समस्याओं में शामिल हों और उन्हें हल करने का प्रयास करें. ज़िम्मेदारी और समझदारी से काम लें. ऐसे निर्णय लें जो आपकी परिपक्वता को दर्शाते हों. इससे आपको फायदा होगा और आपके माता पिता को लगेगा कि आप काफी परिपक्व हैं और अपने जीवन के लिए अच्छे निर्णय ले सकते हैं.

अपने माता पिता की बात सुनें

यदि आप चाहते हैं कि आपके मातापिता आपकी बात सुनें तो उन्हें भी अपने विचार आपके साथ साझा करने का मौका दें. उनके विचारों और चिंताओं को सुनें. उन्हें जल्दबाजी में न लें उन्हें पूरी स्थिति को समझने के लिए कुछ समय दें. तार्किक शर्तों पर सहमत होने का प्रयास करें.

उन्हें अपने साथी के अच्छे गुणों के बारे में बताएं

उन्हें अपने साथी के आपके लिए सबसे अच्छे होने के पीछे के कारणों को बताएँ. रिश्ते के प्रति उस की ईमानदारी और कमिटमेंट का जिक्र करें. साथी के सर्वोत्तम गुणों के बारे में बताते हुए समझाएं कि आप और आपका साथी हर तरह से एक-दूसरे के अनुकूल क्यों हैं भले ही आपकी जाति या धर्म अलग हो.

दोस्तों या रिश्तेदारों से मदद मांगें

अपने माता पिता को प्रेम विवाह के लिए राजी करने के लिए आपको किसी ऐसे व्यक्ति की मदद की ज़रूरत है जिसे वे पसंद करते हों और जिस पर भरोसा करते हों. यह आपके परिवार/रिश्तेदारों में से कोई हो . यह आपका कोई दोस्त हो सकता है जो उन्हें बहुत प्रिय हो या आपके परिवार का कोई बुजुर्ग जिसका वे बहुत सम्मान करते हों और जिसे वे ‘ना’ नहीं कह सकते.

कम से कम एक अभिभावक को समझाने का प्रयास करें

यह ध्यान देने और देखने का समय है कि आपके माता पिता में से कौन आप से अधिक ओपन और फ्रेंडली हैं ताकि वे यह माता-पिता आपके चुने हुए साथी के साथ आपके विवाह में मध्यस्थ होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें. अगर आपको लगता है कि आपके माता पिता में से किसी एक को आपके प्रेम विवाह के लिए मनाना आसान है तो उस पैरेंट पर ज्यादा ध्यान दें और उन्हें पूरी तरह से मनाने की कोशिश करें. उन को अपने साथी से मिलने दें और एक-दूसरे को थोड़ा जानने दें. एक बार जब वह राजी हो जाएं तो दूसरे पैरेंट भी जल्द राजी हो ही जाएंगे.

दोनों परिवारों की मीटिंग करवाएं

इससे पहले कि आप दोनों परिवारों के बीच मुलाकात तय करें अपने ससुराल वालों से मिलना, उनकी परंपराओं, संस्कृतियों और मूल्यों के बारे में जानने की कोशिश करना और अपने परिवार की परंपराओं, पारिवारिक पृष्ठभूमि और संस्कृतियों के साथ-साथ अपने माता-पिता के बारे में कुछ विवरण साझा करना ज़रूरी है. इस के बाद दोनों परिवारों को भी मिलाने की कोशिश करें.

 
पैरेंट्स पर दबाव बनाएं

पेरेंट्स पर दबाव बनाने के लिए आप तीन दिन का भूख हड़ताल कर सकती हैं. अपने बच्चे को भूखा देना किसी भी पेरेंट्स के लिए आसान नहीं. इसी तरह आप पेरेंट्स से कह सकती हैं कि इस लड़के से शादी न हुई तो आप किसी और से भी कभी शादी नहीं करेंगी. आप पेरेंट्स से बातचीत करना बंद कर सकती हैं. आप घर से निकलना बंद कर सकती हैं. आप उन पर दबाव डालने के लिए अपनी सहेलियों को बुला सकती हैं.

जल्दबाजी में फैसला न लें

जब आपके माता पिता लाख कोशिशों के बावजूद आप के रिश्ते का समर्थन नहीं करते हैं तो धैर्य न खोएं. यह एक कठिन स्थिति है लेकिन याद रखें कि जल्दबाजी में निर्णय न लें. इस निष्कर्ष पर न पहुंचे कि आपके माता पिता सही हैं और तुरंत अपने साथी से रिश्ता तोड़ दें या तुरंत ही भाग कर शादी करने का फैसला ले लें. हर पहलू पर अच्छे से विचार करें. अपने माता पिता को स्थिति के अनुकूल ढलने के लिए कुछ समय दें. यह उनके लिए भी एक बड़ी बात है इसलिए थोड़ा धैर्य रखना बहुत मददगार हो सकता है. उन्हें आपके नजरिए से चीजों को समझने में कुछ महीने लग सकते हैं. इस दौरान बातचीत करते रहने की कोशिश करें और उन्हें अहसास दिलाएं कि आपका रिश्ता आपके लिए महत्वपूर्ण और सार्थक है.

सुनिश्चित करें कि आप आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं

अगर आप प्रेमी के साथ शादी करने का फैसला करते हैं तो यह जरूरी है कि आप और आपका साथी दोनों ही खुद का खर्च उठाने के लिए तैयार हों. कोई भी फैसला करने से पहले अपनी वित्तीय स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ समय निकालें. अगर आप किराए और राशन जैसे बुनियादी खर्च उठाने में असमर्थ हैं तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आप शादी के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं. अपने साथी के साथ उनकी वित्तीय स्थिति के बारे में ईमानदारी से बातचीत करें. यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि शादी के बाद आप घर खर्च कैसे मैनेज करेंगे.  क्योंकि जब आप भाग कर शादी करते हैं तो पेरेंट्स का आर्थिक सहयोग नहीं मिलेगा. शादी के बाद पैसे के लिए पार्टनर से झगड़े हों और आप टूट जाएं या रिश्ता संभाल न पाएं उस से बेहतर है कि शादी का फैसला तभी लें जब आप एक किराए का घर और जीवन के संभावित  खर्चे उठाने में अच्छी तरह सक्षम हों.

खुद को सही साबित करें

अगर आप के पेरेंट्स अंत तक नहीं मानते और आप को भाग कर या उन की नाराजगी के साथ शादी करनी पड़ती है तो भी निराश न हों. सही समय का इन्तजार करें और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए राजी करने का प्रयास करते रहे. दो एक साल में जब वे देखेंगे कि आप आत्मनिर्भर और खूबसूरत और  जिंदगी जी रही हैं, आप को कोई परेशानी नहीं और आप दोनों ने मिलकर अपनी जिंदगी अच्छी तरह मैनेज कर ली है तो धीरे धीरे उन का रुख भी बदलता जाएगा. उन्हें यह अहसास दिलाएं कि आप का फैसला सही था और आप पार्टनर के साथ बहुत खुश और संतुष्ट हैं. आप की गृहस्थी की गाड़ी बिना किसी परेशानी अच्छे से चल रही है और वाकई आप का पार्टनर आप का बहुत ख़याल रखता है तो कहीं न कहीं आप के पेरेंट्स का दिल भी पिघलने लगेगा और वे ज्यादा समय तक आप से मुंह मोड़ कर नहीं रह पाएंगे.

लड़कियों को खुद चुननी है अपनी राह  

उत्तर प्रदेश के देवरिया से मुंबई आकर रहने वाली सिमरन और उसके परिवार को ये शहर बहुत पसंद आया, क्योंकि यहाँ उन्हें एक अच्छी शहर, साफ सुथरा इलाका, पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था सब मिला. 3 बहनों मे सबसे छोटी सिमरन ने कॉलेज मे पढ़ाई भी पूरी की और जॉब के लिए अप्लाइ किया और उन्हें काम भी मिला, लेकिन सिमरन के पिता को ये आपत्ति थी कि सिमरन कहीं काम न करें, बल्कि घर से कुछ कमाई कर सकती है, तो करें, बाहर जाकर उनके काम करने पर बिरादरी मे उनकी नाक कटेगी. सिमरन कई बार अपने पिता को समझाने की कोशिश करती रही कि उनकी बिरादरी यहाँ नहीं है और जॉब करना गलत नहीं, आज हर किसी को काम करना जरूरी है, उनके सभी दोस्त काम करते है, लेकिन उनके पिता नहीं मान रहे थे.

5 लोगों के परिवार में सिर्फ उनके पिता के साधारण काम के साथ अच्छी लाइफस्टाइल बिताना सिमरन के लिए संभव नहीं था, जिसका तनाव उनके पिता के चेहरे पर साफ सिमरन देख पा रही थी. साथ ही सिमरन काम करना चाह रही थी, क्योंकि वह आज के जमाने की पढ़ी – लिखी लड़की है और आत्मनिर्भर बनना उसका सपना है. इसलिए देर ही सही पर उसने आज अपने पेरेंट्स को मना लिया है और आज एक कंपनी मे काम कर वह खुश है, लेकिन यहाँ तक पहुँचने में उन्हें दो साल का समय लगा है.

आत्मनिर्भर बनना है जरूरी     

असल में आज लड़के हो या लड़की सभी को अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आत्मनिर्भर बनने का उनका सपना होता है, ताकि वे अपने मन की जीवन चर्या बीता सकें. ये सही भी है, क्योंकि हर व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी बात होती है उसकी आत्मसम्मान को बनाए रखना और उसके लिए जरूरी है, आत्मनिर्भर बनना. व्यक्ति चाहे कितना भी बुद्धिमान, सुंदर और बलशाली क्यों ना हो, अगर खुद की खर्चे उठाने के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है, तो आपकी ज्ञान की कोई कीमत नहीं होती.

अंग्रेजी में एक कहावत है. “ There is no free lunch.” ( दुनिया में मुफ्त की रोटी कहीं नहीं मिलती). ये बात बहुत सही है. पश्चिमी देशों में बड़े बड़े अरबपतियों के बच्चे भी पढ़ाई के साथ साथ कहीं न कहीं काम करते हैं, क्योंकि वहां हर एक इन्सान को अपना काम खुद करना और अपने रोटी का इंतजाम खुद करना बचपन से सिखाया जाता है. इसीलिए उन लोगों को पैसों और परिश्रम का मोल बहुत अच्छे तरीके से पता रहता है. भारत में ऐसी उदाहरण बहुत कम देखने को मिलता है, क्योंकि भारत में पेरेंट्स को बच्चों के लिए अपना सबकुछ त्याग देने की एक आदत होती है. हालांकि आज इसमें बदलाव धीरे – धीरे आ रहा है, लेकिन कुछ लोग अभी भी इसे स्वीकार कर पाने में असमर्थ होते है.

इसका एक उदाहरण नासिक की एक मराठी अभिनेत्री की है. उनके पिता ने बेटी के साथ दो साल तक बात नहीं की, क्योंकि वह मुंबई जॉब करने की झूठी बात कहकर ऐक्टिंग के लिए आई थी, हालांकि उनकी माँ को इस बात की जानकारी थी. उनके पिता को ऐक्टिंग की बात, तब मालूम पड़ा, जब उन्होंने टीवी पर बेटी को अभिनय करते हुए देखा और रिश्तेदारों के तारीफ को सुनकर उन्होंने अपनी बेटी से दो साल बाद बात किया.

जिम्मेदारी बेटियों की   

इस बारें में काउन्सलर रशीदा कपाड़िया कहती है कि आज के जेनरेशन की लड़कियां पढ़ी – लिखी है और वे खुद कमाई कर अपना जीवन यापन करना पसंद करती है, उन्हें अपने पेरेंट्स पर बोझ बनना पसंद नहीं, क्योंकि बड़े शहरों में उनके उम्र के सभी यूथ जब जॉब कर रहे होते है, तो उन्हें भी काम करने की इच्छा होती है, क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं कर पाते है, तो खुद को अपने दोस्तों के बीच में कमतर और शर्मिंदगी महसूस करते है, साथ ही उन्हे हताशा, स्ट्रेस आदि भी होती है, ऐसे में अगर उनके परिवार वाले काम करने से मना करते है, तो इसका रास्ता उन्हे खुद ही ढूँढना पड़ता है कि वे अपने पेरेंट्स को कैसे मनाएँ. ये सही है कि छोटे शहर या गाँव से आने वाले लोगों के लिए बड़े शहर को बेटियों के लिए सुरक्षित मानना सहज नहीं होता, क्योंकि वे इतनी बड़ी शहर से अनजान होते है, जबकि गाँव घर में रहने वाले सभी एक दूसरे को जानते और पहचानते है, ऐसे में बच्चों की जिम्मेदारी होती है कि वे इन बड़े शहरों की अच्छाइयों से पेरेंट्स को परिचित करवाएँ. फिर भी वे अगर काम करने से मना करते है, तो उसकी वजह जानने की कोशिश कर उसका हल निकालने चाहिए.

अपने अनुभव के बारें में राशीदा बताती है कि मेरे पास भी बैंक में जॉब करने वाली इंटेलिजेंट लड़की आई थी, उसके पेरेंट्स गाँव के थे. मुंबई में उसके काम से खुश होकर बैंक वालों ने उसे लंदन दो साल के लिए भेजा था, जिसके लिए उसे अपने पेरेंट्स को मनाना मुश्किल हुआ था. यहाँ वापस आने पर उसे अपने प्रेमी और जिम ट्रैनर से शादी करना संभव नहीं हो पा रहा था, क्योंकि उसके ससुराल वाले इतनी स्मार्ट लड़की को घर की बहू बनाना नहीं चाहते थे, लेकिन सबको समझाने पर उसकी शादी हुई और आज वह खुश है.

सुझाव को करें फॉलो

इसलिए जब भी पेरेंट्स, बेटी को जॉब करने से मना करें, तो बेटियों को कुछ बातों से पेरेंट्स को अवश्य अवगत करवाएँ,

  • अपने कार्यस्थल पर उन्हे ले जाए,
  • संभव हो तो, सह कर्मचारियों से मिलवाएँ,
  • उन्हे मोबाईल के जरिए लोकेशन की जानकारी दें,
  • जाने – आने की सुविधा के बारें मे जानकारी दें, क्योंकि आजकल कई ऑफिस में जाने आने की ट्रांसपोर्ट की अच्छी व्यवस्था भी होती है, जो सुरक्षित परिवहन होता है.

इन सभी जानकारी से पेरेंट्स आश्वस्त होकर बेटी को काम करने से मना नहीं कर सकेंगे और अंत में जब पैसे घर आते है, तो पूरा परिवार बेटी की कमाई को अच्छा महसूस करते है, क्योंकि बेटियाँ बेटों से अधिक समझदार होती है. उनके कमाने पर अधिकतर घरों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है

Wedding Special: शादी का हर पल हो स्पैशल

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक ऐसी दुलहन का वीडियो वायरल हुआ जिस ने अपनी शादी में गजब का डांस कर के दूल्हे को भी शरमाने को मजबूर कर दिया. जनवरी, 2023 का यह वीडियो एक शादी समारोह से जुड़ा हुआ था. इस वीडियो में मंच पर मौजूद नवविवाहित दुलहन सब के सामने मस्ती में ऐसा बिंदास डांस करती है कि लोग उसे देखते रह जाते हैं.

दरअसल, वह दुलहन पूरी तरह अपनी शादी को ऐंजौय कर रही थी. इसी वजह से वह खुल कर डांस कर सकी और लोगों की नजरों में आ गई. कुछ ऐसा ही धमाल एक दूल्हे ने भी किया था. वायरल वीडियो में वह स्टेज पर अकेले ही धमाकेदार डांस करते हुए नजर आया था. दूल्हा अपनी ही शादी में इतना धांसू डांस कर रहा था कि सभी की नजरें दूल्हे पर ही टिकी रह गईं. फिर जब स्टेज पर दुलहन की ऐंट्री हुई तो वह भी दूल्हे के साथ ही डांस करना शुरू कर देती है. दूल्हादुलहन के डांस का यह वीडियो भी काफी वायरल हुआ था.

आप को डब्बू अंकल भी बखूबी याद होंगे जो अपने वायरल डांस वीडियो की वजह से रातोंरात देशभर में मशहूर हो गए थे. पेशे से प्रोफैसर डब्बू अंकल यानी संजीव श्रीवास्तव का अपने रिश्तेदार की शादी में डांस करने का वीडियो वायरल हो गया था. वीडियो में संजीव 1987 में आई फिल्म ‘खुदगर्ज’ के गाने ‘आप के आ जाने से…’ पर मस्त अंदाज में ऐंजौय करते हुए डांस करते दिखाई दिए थे. उन्हें इतनी शोहरत मिली कि विदिशा नगर पालिका ने संजीव श्रीवास्तव को अपना ब्रैंड ऐंबैसेडर नियुक्त कर लिया. यही नहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तक ने उन की तारीफ की थी. शादी के वीडियो वायरल होने के बाद उन को एक ऐड में काम करने का मौका भी मिला था.

दरअसल, जब हम शादी के लमहे सही माने में ऐंजौय करते हैं तो हम दिल से नाचते हैं. दिल से खुशियां मनाते हैं और एक खूबसूरत यादों का कारवां दिलोदिमाग में संजो लेते हैं. शादी कोई रोजरोज तो होती नहीं है. जब जिंदगी में शादी एक बार ही करनी है तो इस का लुत्फ भला भरपूर क्यों न उठाया जाए. यदि शादी किसी रिश्तेदार की है तो भी उसी अंदाज में खुशियां बांटनी चाहिए जैसेकि अपनी ही शादी हो.

अपनी शादी को करें दिल से ऐंजौय

अमूमन हर इंसान शादी जिंदगी में एक बार ही करता है. हर किसी की लाइफ में शादी जैसा पल काफी अहम होता है. हरकोई चाहता है कि उस की शादी सब से परफैक्ट हो लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. शादी जैसे अहम मौके हरकोई न कोई चीज अनपरफैक्ट रह ही जाती है. आप वैसी चीजों पर ध्यान न दें जहां कमी रह गई है, बल्कि उन चीजों को ऐंजौय करें जो आप के हिस्से में आई हैं. बेवजह का तनाव न लें और छोटीछोटी बातों को तूल न दें. यह आप के जीवन का बहुत बड़ा दिन है. इस दिन की खुशियों को अपनी नादानी की वजह से भूल कर भी स्पौइल न होने दें. इस खास मौके को भरपूर ऐंजौय करने के लिए हर पल को जीने की कोशिश करें. हर किसी का स्वागत करें और हर लमहे को यादगार बनाएं.

सोशल मीडिया पर फुल मस्ती

शादी एक बार होती है इसलिए इसे यादगार बनाने के लिए हर मौके की ढेरों तसवीरें और वीडिओग्राफी कराएं. यही नहीं कुछ लमहें जिन में केवल आप व पार्टनर हो ऐसे लमहों की पर्सनल तसवीरें अपने फोन से लें. खूब सारी सैल्फी भी लें. सैल्फी के जरीए अपने छोटेछोटे बैस्ट पलों को कैद कर लें. फिर अपनी इस खुशी को सोशल मीडिया के जरीए दूसरों के साथ शेयर करें और लोगों के कमैंट्स को ऐंजौय करें.

शादी को ले कर लड़का हो चाहे लड़की दोनों के ही कई सपने और शौक होते हैं. हालांकि इस की लिस्ट ज्यादा लंबी लड़कियों की होती है. अपनी शादी में हर लड़की को सबकुछ परफैक्ट चाहिए होता है. डैस, ज्वैलरी, मेकअप, डैकोरेशन से ले कर ब्राइडल ऐंट्री तक.

शादी के घर में हंसीखुशी और ऐंजौयमैंट का माहौल होता है. दूल्हा और दुलहन अपनी शादी को ले कर बहुत ऐक्साइटेड होते हैं और जिंदगी की नई शुरुआत के इस दिन को भरपूर जी लेना चाहते हैं. शादी का यह खूबसूरत माहौल ऐसा ही बना रहे इस के लिए इन बातों का खयाल जरूर रखें:

मीनमेख न निकालें

शादी अपनी हो या परिवार में किसी की हो, सब को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि वह शादी सफलता से हंसीखुशी के माहौल में संपन्न हो. शादी की व्यवस्था में मीनमेख निकालना उचित नहीं.

घरपरिवार में किसी की शादी ऐसा अवसर होता है जब घर के बड़ों का तनाव बढ़ जाता है. सबकुछ अच्छे से करने की कोशिश में वे दिन रात हलकान होते रहते हैं. वे खुद एक नए अनजान परिवार के सामने एक अच्छे आयोजन और अच्छे व्यवहार का उदाहरण पेश करने की कोशिश में जुटे होते हैं. ऐसे में अपनी मीनमेख से उन की परेशानी बढ़ाना उचित नहीं.

विवाह 2 जिंदगियों को जोड़ने वाला आयोजन होता है. यह आप की स्मृतियों की दीवार पर सदा के लिए चस्पा हो जाने वाला ऐसा जीवंत फ्रेम होता है जिस में प्यार, सम्मान और अपनेपन का एहसास तथा दिल खुश करने वाली बातें, खूबसूरत तसवीरों की तरह साथ रह जाते हैं. वहीं उलाहने और कमियां खोजने वाली नजरें और नुक्स निकालते बोल मन में कहीं गहरे धंस जाते हैं. जानबू?ा कर कहे गए तीखे शब्द, अनजाने ही दिए गए ताने, सोचसम?ा कर बनाए गए बहाने मन को बेध जाते हैं.

वैसे भी शादी एक बड़ा काम होता है. इसीलिए क्या वह ठीक नहीं है, ऐसा क्यों किया, वैसा क्यों नहीं किया जैसे सवालों और शिकायतों के बजाय सोचिए कि आप क्या कर सकते हैं. मामा, बूआ, चाचा, दोस्त पड़ोसी या आप खुद किसी न किसी रिश्ते की डोर में बंधे हैं और नए बंधन की खुशियों को सैलिब्रेट करने वाले हैं. ऐसे में शिकायतों की झड़ी नहीं बल्कि लगाव और प्यार का माहौल बनाए रखें. हर पल को ऐंजौय करें.

याद रखें यह वक्त लौट कर नहीं आएगा. खुशी के मौके पर आप के शिकायती लहजे का हर शब्द खुद आप की छवि उकेर रहा होता है. आप का व्यवहार पुराने रिश्तों और नए जुड़ रहे संबंधियों को बता रहा होता है कि आप खुशदिल हैं या कमी ढूंढ़ने वाले, असंतुष्ट सोच वाले हैं या सहजता से खुशियों में शामिल होने वाले.

बैचलर पार्टी में होश न खोएं

शादी से पहले होने वाली बैचलर पार्टी में दूल्हा और दुलहन कई बार काफी नशा कर लेते हैं. वहीं नशे में अपने होश खोने के बाद दोनों कुछ गलत या अजीब हरकतें कर सकते हैं, जिस से रिश्तेदारों के सामने आप की इमेज खराब हो सकती है और आप गिल्ट महसूस कर के अपने मूड का बैंड बजा सकते हैं. कई बार ऐसे में शादी भी खतरे में आ सकती है.

ऐक्स से न करें बात

शादी से पहले कुछ लोग ऐक्स से आखिरी बार बात करने या मिलने की कोशिश करते हैं. अंतिम बार गुडबाय करने के लिए मिलने भी जाते हैं. मगर आप की इस हरकत से पार्टनर हर्ट हो सकता है. इसलिए शादी का फैसला लेने से पहले ऐक्स से सारे संबंध तोड़ दें और दोबारा उसे कभी भूल कर भी अप्रोच करने की कोशिश न करें वरना ऐक्स सैंटीमैंटल हो गया तो आप टैंशन में आ जाएंगे और शादी ऐंजौय ही नहीं कर पाएंगे.

शादी के खर्चे डिस्कस करने से बचें

कुछ लोग शादी से पहले या बाद में पार्टनर से बजट डिस्कस करने लगते हैं. ऐसे में पार्टनर आप की बात का गलत मतलब भी निकाल सकता है. आप दोनों के बीच पैसों को ले कर जिरह भी हो सकती है. इसलिए शादी के दौरान पार्टनर से घर के खर्चे और बजट की बातें हरगिज न करें. यह जिम्मेदारी आप अपने बड़ों को दे कर निश्चिंत रहें.

पार्टनर से न करें शिकायत

शादी से पहले लोग अकसर पार्टनर से अलगअलग शिकायत करना शुरू कर देते हैं. ऐसे में न सिर्फ पार्टनर का मूड अपसैट हो सकता है, बल्कि घर वालों की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं. छोटीछोटी बातों पर कुढ़ना या रोनाधोना शादी की सारी खुशियों पर पानी फेर सकता है. इसलिए शादी में ज्यादा से ज्यादा खुश और पौजिटिव रहना बेहतर रहता है.

लोग क्या कहेंगे यह सोचना बंद करें

इस बात को सोचना बंद करें कि लोग क्या कहेंगे. इस की परवाह न करते हुए अपनी लाइफ में देखे सभी सपनों को पूरा करें. आप की शादी से जुड़ी जितनी भी छोटीबड़ी खाव्हिशें हैं उन सब को पूरा करने का समय आ चुका है. अब आप जमाने के बारे में सोचने के बजाय केवल अपने और पार्टनर के बारे में सोचें. आप जिस तरह इन पलों को ऐंजौय करने की तमन्ना रखती हैं वैसे ही इन पलों को जीएं.

उदाहरण के लिए वैडिंग ड्रैस ही लीजिए. शादी में दूल्हादुलहन की वैडिंग ड्रैस के लिए सभी अपनेअपने सु?ाव दे रहे होते हैं, जिस से हमें उन्हीं की पसंद की ड्रैस खरीदनी पड़ती है और अपने सपने धरे के धरे रह जाते हैं. यह आप की शादी है इसलिए अपनी शादी में आप जो कुछ भी पहनें वह आप का हक है. इसी तरह बाकी चीजें भी अपने हिसाब से करें न कि दूसरों के हिसाब से.

हनीमून का प्लान

शादी के दौरान अकसर लोग पूछते हैं कि हनीमून का क्या प्लान है? जरूरी नहीं है आप हर किसी के साथ अपने हनीमून का प्लान शेयर करें और दूसरों की मरजी से हनीमून डैस्टिनेशन चुनें. शादी आप की हुई है इसलिए हनीमून के लिए बैस्ट डैस्टिनेशन आप खुद ही चुनें. वहां क्या ले जाना है, किस तरह जाना है और कहा रहना है यह सब पहले से पार्टनर के साथ मिल कर प्लान बनाएं और साथ में आने वाले रोमानी पलों को महसूस कर इन लमहों को ऐंजौय करें.

फूलों की चादर

फूलों की चादर वाली ऐंट्री वैसे तो थोड़ी कौमन सी है लेकिन फिर भी यह बेहद खूबसूरत लगती है. इसे अलगअलग फूलों से काफी आकर्षक बना सकते हैं. अगर दुलहन ने रैड ड्रैस पहनी है तो सफेद फूलों की चादर जिस में कुछ लाल फूल भी लगा लिए जाएं या फिर अगर उस ने पेस्टल लहंगा पहना है तो रंगबिरंगे फूलों के साथ ऐंट्री परफैक्ट लगती है.

विंटेज कार में ऐंट्री

विंटेज कार में ऐंट्री का कौंसैप्ट काफी कूल कौंसैप्ट है. वैसे भी विंटेज कार को रौयल शादियों की निशानी माना जाता है. ऐसे में इस तरह की ऐंट्री दूल्हे की शान बढ़ाती है तो दुलहन भी कम ऐक्ससाइटेड नहीं होती.

बोट पर ऐंट्री

अगर आप की शादी का वेन्यू ऐसा है जहां पर स्विमिंग पूल भी है तो यह आप के लिए बैस्ट आइडिया है. एक बोट को बहुत सुंदर सा सजाया जाए और दुलहन की ऐंट्री उस बोट में हो तो यह बेहद खूबसूरत और यूनीक लगता है.

डांस ऐंट्री

डांसिंग ब्राइड्स भी इन दिनों काफी ट्रैंड में हैं. वैसे तो दूल्हा बरात के साथ अपनी दुलहन को डांस करते हुए लेने आता है. लेकिन दुलहन भी नाचते हुए ही दूल्हे का स्वागत करे तो यह देखने में मजेदार लगता है और दुलहन इन लमहों को भरपूर ऐंजौय करती है. इसे यादगार और खास बनाने के लिए ऐसे गानों को चुनें जो आप दोनों के दिल के करीब हों या ऐसा गाना जो आप दोनों का ही फैवरिट हो.

पालकी स्टाइल

खूबसूरत सी औटोमूविंग पालकी को सजा कर उस में दुलहन बैठ कर जब आएगी तो मानो चांद धरती पर उतर आया हो वाली फीलिंग आएगी.

भारतीय शादी की कुछ मजेदार रस्में

भारतीय शादियां रंगोंरिवाजों और उत्साह से भरी होती हैं. इन में खुशी होती है, परंपराएं होती हैं, 2 परिवारों का मिलन होता है, खानापीना होता है, उत्सव होता है, हंसी की फुहारें होती हैं. भारतीय शादियां एक दिन में खत्म हो जाने वाला प्रयोजन नहीं बल्कि यह तो 1 हफ्ते तक चलने वाला उत्सव है. कई रिचुअल्स शादी के बाद तक चलते रहते हैं.

मेहंदी की रस्म

मेहंदी की रस्म शादी से 1 दिन पहले होती है. पूरे दिन मेहंदी सैलिब्रेशन चलता है. इस दिन दुलहन के हाथ और पैरों पर तो प्यारी सी मेहंदी लगती ही है साथ ही बाकी घर वाले भी मेहंदी लगवाते हैं. शादी की मेहंदी के रंग के बारे में माना जाता है कि दुलहन के हाथों में मेहंदी का रंग जितना ज्यादा गहरा चढ़ता है उस का पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है. मेहंदी के रंग को प्यार के रंग से जोड़ा जाता है और दुलहन के हाथ में मेहंदी से दूल्हे का नाम लिखा जाता है. मेहंदी वाले दिन दुलहन के घर में जम कर डांस और धमाल होता है. इस दिन डीजे होता है, खानापीना होता है. दुलहन की सहेलियां माहौल में रंग भर देती हैं. कई वैडिंग्स में थीम मेहंदी भी प्लान की जाती है जिस में आउटफिट्स भी उसी हिसाब से होते हैं.

संगीत सेरेमनी

भारतीय शादियों में लेडीज संगीत सेरेमनी अकसर मेहंदी वाले दिन के साथ ही सैलिब्रेट की जाती है. इस सेरेमनी में दोनों परिवार अपनेअपने घर में दिल खोल कर नाचते हैं. कुछ समय पहले तक यह समारोह केवल घर की महिलाओं तक ही सीमित हुआ करता था जिस में ढोलक पर नाचगाना हुआ करता था. लेकिन अब इस दिन के लिए प्रौपर डीजे अरेंजमैंट्स होते हैं. संगीत सेरेमनी में काफी रौनक होती है. इस दिन तक शादी में शामिल होने वाले ज्यादातर रिश्तेदार आ चुके होते हैं इसलिए सब मिल कर ऐंजौय करते हैं.

हल्दी सेरेमनी

शादी से पहले मस्ती से भरपूर हलदी सेरेमनी में दूल्हादुलहन को तेल और हलदी लगाई जाती है. शादी की इस रस्म में भी सारे मेहमान और घर वाले मिल कर खूब मस्ती करते हैं. दोस्त वगैरह भी होते हैं जो दूल्हा और दुलहन को भरभर कर हलदी लगाते और मस्ती करते हैं. बाद में दोनों को नहलाया जाता है.

चूड़ा सेरेमनी

कोई भी पंजाबी दुलहन चूड़ा सेरेमनी के बिना अपनी शादी की कल्पना भी नहीं कर सकती. रैडव्हाइट आइवरी बैंगल सैट से जुड़ी होती है कलीरों की रस्म. दुलहन अपनी सभी अनमैरिड सहेलियों के सिर पर बारीबारी से अपने चूड़ों में बंधे कलीरों को घुमाती है. जिस पर भी कलीरा टूट कर गिरता है माना जाता है कि शादी के लिए अगला नंबर उसका होगा.

दूल्हे की ऐंट्री

अधिकांश भारतीय शादियों में जब दूल्हा शादी वाली जगह प्रवेश करता है तो वधू पक्ष की ओर से दुलहन की बहनों और दोस्तों द्वारा द्वार छिकाई की जाती है. इस रस्म में अंदर आने के ऐवज में दूल्हे को अपनी सालियों को शगुन के रूप में कुछ रुपए देने होते हैं तभी वह ऐंट्री के लिए दरवाजे से हटती हैं. इस दौरान सालियों के साथ दूल्हे की प्यारी सी नोक?ांक और मस्ती होती है. भारत के कई स्थानों पर द्वार प्रवेश में दूल्हे की सास उस की नाक पकड़ कर खींचती है और उस का स्वागत करती है. इस रस्म को सभी बहुत ज्यादा ऐंजौय करते हैं.

जूता छिपाई

‘हम आप के हैं कौन’ फिल्म की जूता छिपाई वाला सीन सब को याद होगा. यह रस्म रिऐलिटी में भी मस्ती से भरपूर होती है. जब दूल्हा शादी की रस्मों को निभाने के लिए मंडप में अपने जूते उतार कर बैठता है तो उस की सालियां, जूता छिपा लेती हैं और फिर मोटी रकम वसूलने के बाद ही जूते वापस करती हैं. इस दौरान सौदेबाजी और मौजमस्ती के बीच दोनों परिवारों के बीच रिश्ते गहरे होते हैं.

विदाई

पूरी शादी का सब से इमोशनल मोमैंट विदाई है. हालांकि आजकल की शादियों में अब उतना रोनाधोना नहीं होता. फिर भी यह क्षण होता आज भी उतना ही इमोशनल है.

विदाई के समय चावल उछालने की रस्म

चावल उछालने की रस्म में दुलहन जब घर से विदा होती है तो अपने परिजनों से विदा लेते समय वह घर की तरफ चावल उछालती जाती है.  ऐसा माना जाता है कि यह दुलहन का अपने परिवार द्वारा दिए गए प्यार के प्रति आभार दिखाने का एक संकेत होता है.

जब दुलहन अपने नए घर में प्रवेश करती है, तो उसे प्रवेश करने से पहले अपने पैरों से चावल से भरा कलश गिराना होता है. यह उस के नए घर और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है.

पोस्ट वैडिंग गेम्स

लंबी और थका देने वाली शादी की रस्मों के बाद दुलहन की ससुराल में होने वाली रस्म स्ट्रैस बस्टर के जैसा काम करती है. दूल्हे के दोस्त, परिवार के सदस्य इस रस्म के लिए एक बड़े बरतन में दूध और पानी को मिला कर एक मिश्रण तैयार करते हैं, जिस में कुछ सिक्के, फूल आदि भी डले रहते हैं. इस में एक चांदी या सोने का गहना डाल कर दूल्हादुलहन को एकसाथ खोजने को कहा जाता है और माना जाता है कि जो पहले ढूंढ़ लेगा, घर में उस का ही हुक्म चलेगा.

जेठानी मुझे परिवार से अलग होने का दबाव डाल रही है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय स्त्री हूं. मेरे विवाह को 2 साल हुए हैं. विवाह के बाद पता चला है कि मेरे पति को साइकोसिस है. वे 1 साल से इस की दवा भी ले रहे हैं. उन का मेरे प्रति व्यवहार मिलाजुला है. कभी तो अच्छी तरह पेश आते हैं, तो कभीकभी छोटीछोटी बातों पर भी बहुत गुस्सा करते हैं. घर वालों से मेरी बिना वजह बुराई करते हैं और मुझे पलपल अपमानित करते रहते हैं. मुझे हर समय घर में बंद कर के रखते हैं. किसी से बात नहीं करने देते क्योंकि बिना वजह मुझ पर शक करते हैं. इस रोजाना के झगड़ेफसाद से छुटकारा पाने के लिए मेरी जेठानी मुझ पर दबाव डाल रही हैं कि मैं उन से अलग रहूं. पर मेरे पति 2 दिन भी मेरे बिना नहीं रह पाते. बताएं मुझे इन हालात में क्या करना चाहिए?

जवाब-

पति के मनोविकार के कारण आप जिस समस्या से आ घिरी हैं उस का कोई आसान समाधान नहीं है. उन के लक्षणों के बारे में जो जानकारी आप ने दी है उस से यही पता चलता है कि उन्हें नियमित साइक्रिएटिक इलाज की जरूरत है. दवा में फेरबदल कर साइकोसिस के लगभग 80 फीसदी मामलों में आराम लाया जा सकता है, पर सचाई यह भी है कि  दवा लेने के बावजूद न तो हर किसी का रोग काबू में आ पाता है और न ही दवा से आराम स्थाई होता है. साइकोसिस के रोगी की संभाल के लिए सभी परिवार वालों का पूरा सहयोग भी बहुत जरूरी होता है. रोग की बाबत बेहतर समझ विकसित करने के लिए परिवार वालों का फैमिली थेरैपी और गु्रप थेरैपी में सम्मिलित होना भी उपयोगी साबित हो सकता है. अच्छा होगा कि आप इस पूरी स्थिति पर अपने मातापिता, सासससुर से खुल कर बातचीत करें. स्थिति की गंभीरता को ठीकठीक समझने के लिए उस साइकिएट्रिस्ट को भी इस बातचीत में शामिल करना ठीक होगा जिसे आप के पति के रोग के बारे में ठीक से जानकारी हो. उस के बाद सभी चीजों को अच्छी तरह समझ लेने के बाद ही कोई निर्णय लें. आप उचित समझें तो अभी आप के सामने तलाक का भी विकल्प खुला है. अगर कोई स्त्री या पुरुष विवाह के पहले से किसी गंभीर मनोविकार से पीडि़त हो और विवाह तक यह बात दूसरे पक्ष से छिपाई गई हो, तो भारतीय कानून में इस आधार पर तलाक मिलने का साफ प्रावधान है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

परिवार से दूर दोस्त क्यों जरूरी है

दोस्ती एक ऐसा मीठा रिश्ता है जो जिंदगी में चाशनी सी घोल जाता है… जब हम अपने परिवार से दूर होते हैं तो वहां पर कोई हमारा अपना होता है तो वो दोस्त ही होते हैं जो हमारा परिवार बनते हैं.अक्सर ऐसा होता है जब पढ़ाई करने या जौब करने के लिए हम घर से बाहर चले जाते हैं और घर से कोसो दूर होते हैं तो उस वक्त वहां दोस्त मिलते हैं जो सुख में दुख में हमारा साथ देते हैं…..

कभी-कभी मन बहुत उदास होता है घर वालों की याद आती है हम उनके बारे में सोचते हैं और रो भी देते हैं ऐसे में दोस्त ही होतें हैं जो हमारा सहारा बनते हैं ,हमें हंसाते हैं,हमारा मूड अच्छा करते हैं.कुछ ऐसी बातें होती हैं जो हम अपने परिवार से नहीं कह सकते हैं लेकिन अपने दोस्तों से शेयर करते हैं और उनसे सलाह भी लेते हैं. अब अगर कौलेज की बात करें तो बहुत सी गॉसिप होती हैं भाई लड़कियों को तो चाहिए वही और वो ये गॉसिप्स अपने दोस्तों से ही शेयर करती हैं.लड़कों का तो लेवल पूछो ही मत भाई उनके तो अपने अलग-अलग कांड ही होते हैं.साथ में मिलकर पार्टी करना दोस्तों के सोथ मिलकर हंसी-मज़ाक करना,और अगर ब्रेकप हो गया तो उसका दुखड़ा भी रोना..कोई पसंद आ गया तो उसकी सेंटिंग करवाना …अब आपको हंसी तो आ ही रही होगी लेकिन आजकल की सच्चाई यही है और होता भी यही है.

जब आप किसी प्रौबलम में होते हैं तो दूसरे दोस्त ही हेल्प करते हैं चाहे पैसे की दिक्कत हो या फिर आप बिमार हैं तो आपका ध्यान भी रखते हैं.या फिर कॉलेज में दोस्त के लिए टीचर से झूठ बोलते हैं या फिर ऑफिस में बॉस…ये सब थोड़ा अजीब भले लगे लेकिन दोस्त होते ही ऐसे हैं और  ये सब खट्टी-मीठी सी यादें होती हैं जब आप अपने दोस्तों से अलग होते हैं तो यही सारी यादें आपके साथ रहती हैं जिन्हें आप अपने घर परिवार या कुछ दूसरे दोस्तों से शेयर करते हो कि अरे हम तो ऐसा किया करते थें..हमने साथ में बहुत मस्तियां की हैं…घर से दूर हमारा परिवार हमारे दोस्त ही होते हैं वरना दुनिया में अकेले रहना बहुत मुश्किल है.अकेले होने पर आपके अंदर चिड़चिड़ापन आ जाता है क्योंकि आप सबकुछ अपने अंदर ही दबा कर रखते हो कुछ भी किसी से शेयर नहीं करते.इसलिए लाइफ में एक ऐसा साथी होना जरूरी है जो हर कदम पर आपके साथ हो अगर बोलो हां तो वो भी बोले हां…मज़े की बात तो ये हैं कि दोस्त एक-दूसरे को छेड़ते भी बहुत है लेकिन उसी में उनका जीना है जिसमें वो बहुत खुश रहते हैं.एक-दूसरे को गाली बिना तो बुला ही नहीं सकते लेकिन उसी गाली में उनका प्यार होता है उनका अपनापन होता है….शायद इसलिए ही कहते हैं कि दोस्ती वो अनमोल तोहफा है जिसे जितनी शिद्दत से निभाओगे उतना ही खुश रहोगे और सभी की जिंदगी में एक ऐसा दोस्त होना जरूरी है…..वो कहते हैं न ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…तोड़ेंगे हम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे.

Father’s day 2023: बुढ़ापे में माता-पिता आखिर किस के सहारे जिएं

समाचारपत्र में हर रोज नकारात्मकता और विकृत सच्चाई से रूबरू होना ही होता है. एक सुबह खेल समाचार पढ़ते हुए पन्ने पर एक समाचार मन खराब करने वाला था. अवकाशप्राप्त निर्देशक का शव बेटे की बाट जोहता रह गया.

एक समय महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन व्यक्ति, जिस की पत्नी मर चुकी थी, आज वृद्धाश्रम में रह रहा था. उन का एकमात्र बेटा विदेश में जा बसा था. उसे खबर ही एक दिन बाद मिली और उस ने तुरंत आने में असमर्थता जाहिर की. देश में बसे रिश्तेदारों ने भी अंतिम क्रियाकर्म करने से इनकार कर दिया. आश्रम के संरक्षक ने शवदहन किया. एक समय पैसा, पावर और पद के मद में जीता  व्यक्ति अंतिम समय में वृद्धाश्रम में अजनबियों के बीच रहा और अनाथों सा मरा.

आखिर लोग कहां जा रहे हैं? बेटे की निष्ठुरता, रिश्तेदारों की अवहेलना ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर जीवन का गणित कहां गलत हुआ जो अंत ऐसा भयानक रहा. दुनिया में खुद के संतान होने के बावजूद अकेलेपन का अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर होना पड़ा. जवानी तो व्यक्ति अपने शारीरिक बल और व्यस्तता में बिता लेता है पर बुढ़ापे की निर्बलता व अकेलापन उसे किसी सहारे के लिए उत्कंठित करता है.

विदेशों से इतर हमारे देश में सामाजिक संरचना ही कुछ ऐसी है कि परिवार में सब एकदूसरे से गुथे हुए से रहते हैं. मांबाप अपने बच्चों की देखभाल उन के बच्चे हो जाने तक करते हैं. अचानक इस ढांचे में चरमराहट की आहट सुनी जाने लगी है. संस्कार के रूप में चले आने वाले व्यवहार में तबदीलियां आने लगी हैं. बच्चों के लिए संपूर्ण जीवन होम करने वाले जीवन के अंतिम वर्ष क्यों अभिशप्त, अकेलेपन और बेचारगी में जीने को मजबूर हो जाते हैं? इस बात की चर्चा देशभर के अलगअलग प्रांतों की महिलाओं से की गई. सभी ने संतान के व्यवहार पर आश्चर्य व्यक्त किया.

लेखक, संपादक, संवाद, व्हाट्सऐप ग्रुप पर व्यक्त विचार इस समस्या पर गहन विमर्श करते हैं. आप भी रूबरू होइए :

अहमदाबाद की मिनी सिंह ने छूटते ही कहा, ‘‘अच्छा है कि उन के कोई बेटा नहीं है, कम से कम कोई आस तो नहीं रहेगी.’’ पटना की रेनू श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘यदि बेटी होती तो शायद ये दिन देखने को न मिलते. बेटे की तुलना में बेटियां संवेदनशील जो होती हैं.’’ वहीं रानी श्रीवास्तव ने इस बात को नकारते हुए कहा, ‘‘बात लड़का या लड़की की नहीं, बल्कि समस्या परिवेश व परवरिश की है. समस्या की जड़ में भौतिकवाद और स्वार्थीपन है.’’

मुंबई की पूनम अहमद ने माना, ‘‘कुछ बेटियां भी केयरलैस और स्वार्थी होती हैं, जबकि कई बहुएं सास के लिए सब से बढ़ कर होती हैं.’’ अपने अंतर्जातीय विवाह का उदाहरण देते हुए वे कहती हैं, ‘‘उन की सास से उन का रिश्ता बहुत ही खास है. बीमार होने पर उन की सास उन के पास ही रहना पसंद करती हैं.’’ पूनम अहमद के एक ऐक्सिडैंट के बाद उन की सास ने ही सब से ज्यादा उन का ध्यान रखा. उन का कहना है, ‘‘पेरैंट्स को प्यार और सम्मान देना बच्चों का फर्ज है चाहे वे लड़के के हों या फिर लड़की के.’’

कौन है जिम्मेदार

सही बात बेटा या बेटी से हट, सोच के बीजारोपण में है. हम बच्चों को शुरू से जीवन की चूहादौड़ में शामिल होने के लिए यही मंत्र बताते हैं कि जीवन में सफल वही होता है जिस के पास अच्छी पदवी, पावर और पैसा है. हम उन्हें भौतिकवाद की शिक्षा देते हैं. बच्चों पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का इतना दबाव होता है कि वे दुनियावी और व्यावहारिक बातों में पिछड़ जाते हैं. किताबी ज्ञान भले ही बढ़ता जाता है पर रिश्तों की डोर थामे रखने की कला में वे अधकचरे रह जाते हैं.

सरिता पंथी पूछती हैं, ‘‘बच्चों को इस दौड़ में कौन धकेलता है? उन के मांबाप ही न, फिर बच्चों का क्या दोष?’’ रेणु श्रीवास्तव सटीक शब्दों में कहती हैं, ‘‘भौतिक सुखों की चाह में मातापिता भी तो बच्चों को अकेलापन देते हैं उन के बचपन में, तो संस्कार भी तो वही रहेगा.’’ वे कटाक्ष करती हैं, ‘‘रोपा पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय.’’ इस पर मुंबई की पूनम अहमद कहती हैं, ‘‘इसी से क्रैच और ओल्डहोम दोनों की संख्या में इजाफा हो रहा है.’’

अजमेर में रहने वाली लीना खत्री कहती हैं, ‘‘हमें अकसर बच्चों की बातें सुनने का वक्त नहीं होता है. यही स्थिति हमारे बूढ़े हो जाने पर होती है जब बच्चे जिंदगी की आपाधापी में उलझ जाते हैं और उन के पास हमारे लिए वक्त नहीं होता है.’’

नीतू मुकुल कहती हैं, ‘‘उक्त घटना हृदयविदारक और चिंतनीय है. मेरे हिसाब से इस समाचार का एक पक्षीय अवलोकन करना सही नहीं. हम बच्चों को पढ़ाने में तो खूब पैसा खर्च करते हैं पर उन के लिए क्या कभी समय खर्च करने की सोचते हैं. केवल अच्छा स्कूल और सुविधाएं देना ही हमारी जिम्मेदारी नहीं है.’’

इंदौर की पूनम पाठक कहती हैं, ‘‘मशीनों के साथ पलता बच्चा मशीन में तबदील हो गया है. उस के पास संवदेनाएं नहीं होती हैं, होता है तो सिर्फ आगे बढ़ने का जनून और पैसा, पावर व सफलता पानी की जिद. इन सब के लिए वह सभी संबंधों की बलि देने को तैयार रहता है.’’

पटना की रेणु अपने चिरपरिचित अंदाज में कहती हैं, ‘‘यह घटना आधुनिक सभ्यता की देन है जहां हृदय संवेदनशून्य हो कर मरुभूमि बनता जा रहा है.’’

ये सभी बातें गौर फरमाने के काबिल हैं. बच्चों के साथ बातें करना, वक्त गुजारना हमें उन के मानस और हृदय से जोड़े रखता है. दिल और मानस को वार्त्तालाप के पुल जोड़ते हैं और उस वक्त हम अपने भावों व संस्कारों को उन में प्रतिरोपित करते हैं. अंधीदौड़ में भागना सिखाने के साथ बच्चों को रिश्तों और जिम्मेदारियों का भी बचपन से ही बोध कराना आवश्यक है. बड़े हो कर वे खुदबखुद सीख जाएंगे, ऐसा सोचना गलत है. पक्के घड़े पर कहीं मिट्टी चढ़ती है भला?

बेरुखी का भाव

बच्चे तो मातापिता के व्यवहार का आईना होते हैं. कई युवा दंपती खुद अपने बुजुर्गों के प्रति बेरुखी का भाव रखते हैं. उन के लिए बुड्ढेबुढि़या या बोझ जैसे अपशब्दों का प्रयोग करते हैं. अपनी पिछली पीढ़ी के प्रति असंवेदनशील और लापरवाह दंपती अपनी संतानों को इसी बेरुखी, संवेदनहीनता और कर्तव्यहीनता की थाती संस्कारों के रूप में सौंपते हैं. फिर जब खुद बुढ़ापे की दहलीज पर आते हैं तो बेचारगी और लाचारी का चोला पहन अपने बच्चों से अपने पालनपोषण के रिटर्न की अपेक्षा करने लगते हैं. हर बूढ़ा व्यक्ति इतना भी दूध का धुला नहीं होता है.

मिनी सिंह पूछती हैं, ‘‘क्या मांबाप अपने बच्चे की परवरिश में भूल कर सकते हैं, तो फिर बच्चों से कैसे भूल हो जाती है?’’

इस पर रायपुर की दीपान्विता राय बनर्जी बिलकुल सही कहती हैं, ‘‘जिंदगी की आपाधापी में निश्चित ही हर बार हम  तराजू में तोल कर बच्चों के सामने खुद को नहीं रख पाते. इंसानी दिमाग गलतियों का पिटारा ज्यादा होता है और सुधारों का गणित कम, एक कारण यह है जो बच्चों को भी अपनी जरूरतों के अनुसार ढलने को मजबूर कर देता है. जो मातापिता जिंदगीभर अपने रिश्तेनातों में स्वार्थ व भौतिकता को तवज्जुह देते हैं, अकसर उन के बच्चों में भी कर्तव्यबोध कम होने के आसार होते हैं.’’

जिम्मेदारी का एहसास

शन्नो श्रीवास्तव ने अपने अनुभवों को सुनाते हुए बताया, ‘‘उन्होंने अपने ससुर की अंतिम समय में अथक सेवा की जिसे डाक्टरों और सभी रिश्तेदारों ने भी सराहा. वे इस की वजह बताती हैं अपने मातापिता द्वारा दी गई शिक्षा व संस्कार और दूसरा, अपने सासससुर से मिला अपनापन.’’

कितना सही है न, जिस घर में बच्चे अपने दादादादी, नानानानी की इज्जत और स्नेहसिंचित होते देखते हैं. कल को हजार व्यस्तताओं के बीच वे अपने बुजुर्गों के प्रति फर्ज और जिम्मेदारियों को अवश्य निभाएंगे, क्योंकि वह बोध हर सांस के साथ उन के भीतर पल्लवित होता है.

पूनम पाठक कहती हैं, ‘‘बात फिर घूमफिर वहीं आती है. उचित शिक्षा और संस्कार बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण तो करते ही हैं, साथ ही उन्हें रिश्तों के महत्त्व से भी परिचित कराते हैं. सो, सही व्यवहार से बेहतर भविष्य व रिश्तों के बीच संवेदनशीलता बनी रहती है.’’

सुधा कसेरा बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कहती हैं, ‘‘हमें स्कूली पढ़ाई से अधिक रिश्तों के विद्यालय में उन्हें पढ़ाने में यकीन करना चाहिए. रिश्तों के विद्यालय में यह पढ़ाया जाता है कि बच्चों के लिए उन के मातापिता ही संसार में सब से महान और उन के सब से अच्छे मित्र होते हैं. दरअसल, रिश्तों को ले कर हमें बहुत स्पष्ट होना चाहिए.

‘‘तथाकथित अंगरेजी सीखने पर जोर देने वाले विद्यालय ने बच्चे को सबकुछ पढ़ा दिया, पर रिश्तों का अर्थ वे नहीं पढ़ा पाए. ऐसे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे, विदेश में नौकरी तो पा लेते हैं और वे विदेश में सैटल भी हो जाते हैं, लेकिन भारत में रहने वाले मातापिता के प्रति वे अपने कर्तव्य को अनदेखा करने से नहीं चूकते. रिटायर्ड बाप और मां किस काम के? विदेश की चमकीली जिंदगी में टूटे दांतों वाला बूढ़ा बाप बेटे के लिए डस्टबिन से अधिक कुछ नहीं रह जाता.’’

‘‘आज खुद मैं आगे पढ़ने के लिए अपने दोनों बच्चों को बाहर भेज रही हूं. अगर उस के बाद मैं यह आस रखूं कि वे मेरी जरूरत के समय वापस भारत आ जाएंगे तो यह मेरी बेवकूफी होगी. हमें उन्हें खुला आकाश देना है तो खुद की सोच में भी परिवर्तन लाना ही होगा,’’ कहना है सरिता पंथी का.

पद्मा अग्रवाल का कहना है, ‘‘मेरे विचार से बच्चों को दोष देने से पहले उन की परिस्थितियों पर भी विचार करना जरूरी है. एक ओर विदेश का लुभावना पैकेज, दूसरी ओर पेरैंट्स के प्रति उन का कर्तव्य, कई बार वे चाहे कर भी कुछ नहीं कर पाते. अपने कैरियर और जिंदगी ले कर भी तो उन की कुछ चाहतें और लक्ष्य होते हैं.’’

‘‘सीमा तय करना हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है. जिस प्रकार मातापिता अपने बच्चे के भविष्यनिर्माण के कारण अपने सुखसंसाधनों का परित्याग करते हैं, उसी प्रकार बच्चों को उन के लिए अपने कैरियर से भी समझौता करना चाहिए. नौकरी विदेश में अधिक पैकेज वाली मिलेगी, तो भारत में थोड़े पैसे कम मिलेंगे, बस इतना ही अंतर है. अधिकतर जो लोग रिश्तों को महत्त्व नहीं देते, वे ही विदेश में बसना पसंद करते हैं. वे यह नहीं सोचते कि उन के बच्चे भी बड़े हो कर उन के साथ नहीं रहेंगे तो उन को कैसा लगेगा,’’ ऐसा मानना है सुधा कसेरा का.

पल्लवी सवाल उठाती हैं, ‘‘क्या हम बच्चे सिर्फ अपनी सुखसुविधाओं के लिए ही पालते हैं? क्या वे हमारे नौकर या औटोमेशन टू बी प्रोग्राम्ड हैं? हर व्यक्ति का नितांत अलग व्यक्तित्व होता है. कोई जीवनभर आप से जुड़ा रहेगा, तो कोई नहीं. क्या पता कल को आप के बच्चे इतना समर्थ ही न हों कि वे आप की देखभाल कर सकें. क्या पता कल को वे किसी बीमारी या मुसीबत के मारे काम ही न कर सकें. कहने का तात्पर्य है कि बच्चों पर निर्भरता की आशा आखिर रखें ही क्यों.’’

पहले संयुक्त परिवार होते थे तो बच्चों का दूर जाना खलता नहीं था. आजकल मांबाप पहले से ही खुद को मानसिक रूप से तैयार करने लगते हैं कि बच्चे अपनी दुनिया में एक दिन अपने भविष्य के लिए जाएंगे ही.

संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों का चलन ने ही इस एकाकीपन को जन्म दिया है. पहले बच्चे भी अधिक होते थे. भाईबहन मिल कर मांबाप के बुढ़ापे को पार लगा लेते थे. एकदो अगर विदेश चले भी गए तो कोई फर्क नहीं पड़ता था. अब जब एक या दो ही बच्चे हैं तो हर बार समीकरण सही नहीं हो पाता है जीवन को सुरक्षित रखने का.

एहसान नहीं, प्यार चाहिए

जोयश्रीजी कहती हैं, ‘‘अगर बच्चों को मनपसंद कैरियर चुनने व जीने का अधिकार है तो सीनियर सिटीजंस को भी इज्जत के साथ जीने व शांतिपूर्वक मरने का हक है. यदि बच्चे देखभाल करने में खुद को असमर्थ पाते हैं तो उन्हें मातापिता से भी किसी तरह की विरासत की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.’’

वास्तविकता के मद्देनजर अगर मातापिता बच्चों को बिना उम्मीद पाले, बिना अपने किए का हिसाब गिनाए कई स्मार्ट विकल्पों पर ध्यान दें, मसलन वृद्धाश्रम या सामाजिक सरोकार वाले आश्रम, तो वे बखूबी अपनी जिंदगी किसी पर थोपने के एहसास से बचा कर अपने ही हमउम्र लोगों के साथ हंसतेमुसकराते कुछ नया करते, सीखते और साझा करते जिंदगी बिता सकते हैं. जब दूसरों को सुधारने की गुंजाइश नहीं रहती है तो खुद को कई बातें सहज स्वीकार करनी होती हैं.

बच्चों को उन के कैरियर और विकास से दूर तो नहीं कर सकते. दूसरी बात, पहले बच्चे अकसर मातापिता के साथ ही रह जाते थे चाहे नौकरी हो या पारिवारिक व्यवसाय. पर अब कैरियर के विकल्प के रूप में पूरा आसमान उन का है. मातापिता कब तक उन के साथ चलें. उन्हें तो थमना ही है एक जगह. बेहतर है कि परिवर्तन को हृदय से स्वीकारें और यह युवा होती पीढ़ी के हम मातापिता अभी से इस के लिए खुद को तैयार कर लें.

Father’s day 2023: एफर्ट से बढ़ाएं पिता का कारोबार

24 वर्षीय रोहन ग्रैजुएशन के अंतिम वर्ष का छात्र है. उस के पिता का टूर ऐंड ट्रैवल का बिजनैस है, लेकिन पिछले 2 साल से यह धंधा मंदा चल रहा था. रोहन को जब यह पता चला तो उस ने आगे बढ़ कर बिजनैस को गति देने की सोची. उस ने कंपनी की वैबसाइट बना कर जगहजगह उस का लिंक भेजना शुरू किया. धीरेधीरे बुकिंग शुरू हो गई. आज आलम यह है कि रोहन की कंपनी के पास कस्टमर की डिमांड के मुताबिक गाडि़यां ही नहीं हैं.

रोहन जैसे न जाने कितने किशोर हैं जिन्होंने आगे बढ़ कर अपने एफर्ट से पिता के बिजनैस का मेकओवर किया है और घाटे में चल रहे बिजनैस को मुनाफे का सौदा बना दिया. दरअसल, समय के साथ परंपरागत तरीके से बिजनैस के बजाय नए जमाने के हिसाब से चलने में मुनाफा है. नोटबंदी के बाद से तो बिजनैस का पूरा परिदृश्य ही बदल गया है. कल तक जहां कैश से सारा काम हो सकता था आज औनलाइन पेमैंट और डिजिटल मार्केटिंग का चलन जोरों पर है. ऐसे में यदि किशोर पिता के कारोबार को ऊंचाई देने की सोच रहे हैं तो इस से जुड़ी तमाम बातों की जानकारी हासिल कर लें. प्रस्तुत हैं कुछ बिंदु जो इस राह में आप की मदद कर सकते हैं :

पेरैंट्स को भरोसे में लें

व्यवसाय या परिवार के हित में आप जो भी करना चाहते हैं, सब से पहले आप को अपने पेरैंट्स को भरोसे में लेना होगा. आप उन्हें विस्तार से समझाइए कि किस तरह से उन की कोशिश सफल होगी. इस के लिए आप के पास सौलिड आइडियाज होने के साथसाथ उस के कुछ कागजी सुझाव भी होने चाहिए.

फायदे नुकसान के बारे में जानें

नई दिल्ली स्थित तारा इंस्टिट्यूट के डायरैक्टर सत्येंद्र कुमार का कहना है कि बिजनैस को बढ़ाने अथवा नया कलेवर देने से पहले जरूरी है कि आप उस के फायदे व नुकसान से भलीभांति अवगत हों, आप को यह चिह्नित करना होगा कि आप के साथ कौनकौन सी दिक्कतें आने वाली हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?

बाजार की डिमांड समझें

गर्ग ग्रुप, दिल्ली के संरक्षक वी के गर्ग का मानना है कि यह समझना अत्यंत जरूरी है कि हम जिस बिजनैस में हाथ आजमाने जा रहे हैं, मौजूदा समय में उस की बाजार में कितनी और किस रूप में डिमांड है. उसी के अनुरूप अपनी प्लानिंग करें और कदम आगे बढ़ाएं.

संबंधित स्किल सीखना भी जरूरी

बिजनैस से जुड़ा कोई हुनर सीखना जरूरी है तो उस से पीछे न हटें. आप को कई ऐसे रास्ते मिलेंगे जहां से आप नई जानकारी हासिल कर सकते हैं. केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई कौशल विकास योजना के अंतर्गत 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को कौशल सिखाया जाना है. इस में बड़ी आबादी युवाओं की होगी, जो कम खर्च में बेहतर स्किल से लैस होंगे.

इंटरनैट से मिलेगी भरपूर मदद

आज युवा पीढ़ी के पास इंटरनैट के रूप में एक ऐसा अस्त्र है जिस की बदौलत वे अपनी हर समस्या का पलभर में समाधान ढूंढ़ सकते हैं. इस के जरिए उपभोक्ताओं तक पहुंच भी आसान हो सकेगी और काम का दायरा किसी सीमा में सीमित न हो कर देशविदेश तक फैल सकता है.

पढ़ाई न होने पाए बाधित

इन सब कोशिशों के बीच यह न भूलें कि आप यदि ग्रैजुएशन के छात्र हैं तो आप की जिम्मेदारी उस परीक्षा को बेहतर अंकों से पास करने की भी है. समय के साथ हर चीज जरूरी होती है. पिता के कारोबार को गति देने में सक्षम साबित हुए हैं तो पढ़ाई के प्लेटफौर्म पर भी आप को खुद को अव्वल साबित करना होगा. शिक्षा से आप का विजन मजबूत होगा.

ये 7 स्किल आएंगे काम

नवीनतम विचार, धैर्य व दृढ़ संकल्प, महत्त्वाकांक्षी, आकलन का कौशल, नई चीज सीखने को तत्पर रहना, निर्णय लेने की क्षमता, प्रतिकूल परिस्थितियों में न डिगना ऐसे स्किल्स हैं जो बिजनैस को गति देने के लिए जरूरी हैं.

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Holi 2023: रिश्तों में उल्लास भरें त्योहार

रिश्तों की डोर बहुत नाजुक होती है. कभीकभी न चाहते हुए भी इन में दूरियां आ जाती हैं. ऐसे में त्योहार रिश्तों में आई दूरियों को मिटाने के लिए बेहतरीन मौका साबित हो सकते हैं और वैसे भी त्योहारों और संबंधियों का रिश्ता गहरा होता है. त्योहारों में संबंधी साथ न हों तो वे बेहद फीके लगते हैं, उन का मजा अधूरा ही रहता है.

रिश्तों में ताजगी लाते त्योहार

त्योहार हमें खुशी मनाने का मौका देते हैं, रूटीन लाइफ से अलग करते हैं. खुशी के ये ऐसे मौके होते हैं जिन्हें सगेसंबंधियों के साथ ऐंजौय करने से रिश्तों की खोई ताजगी को भी वापस लाया जा सकता है. परी अपना अनुभव बताती हैं, ‘‘मेरे पति और मेरे बीच अकसर इस बात को ले कर झगड़ा होता था कि वे अपने परिवार को समय नहीं देते. मैं जब भी उन से यह शिकायत करती कि वे मेरे साथ ऐंजौय क्यों नहीं करते तो हमारी बहस शुरू हो जाती, जिस की वजह से हमारा वैवाहिक जीवन बहुत ही नीरस होता जा रहा था. ‘‘लेकिन दीवाली के दिन तब हमारे सारे गिलेशिकवे दूर हो गए जब उन्होंने मुझे बिना बताए मेरी बहन और भाई को हमारे घर बुलाया और जब मैं सुबह सो रही थी तो उन सभी ने मुसकरा कर मुझे दीवाली की मुबारकबाद दी. मैं ने अपने पति, बहन और भाई के साथ बहुत ऐंजौय किया. उन के इस सरप्राइज ने तो मेरे सारे मूड को ही बदल दिया.’’

करीब लाते हैं त्योहार

समय के अभाव में एकदूसरे के साथ वक्त बिताना आज एक मुश्किल काम है. ऐसे में त्योहार इस का अच्छा उपाय हैं. त्योहारों पर सभी की छुट्टी रहती है, इसलिए इन्हें सगेसंबंधियों के साथ मिलजुल कर मनाना चाहिए. इस से रिश्ते मजबूत होते हैं.

अपनों को न भूलें

अरुण एम.बी.ए. करने के लिए अमेरिका गया था. लेकिन हर त्योहार पर अपने सभी रिश्तेदारों व दोस्तों को बधाई जरूर देता. उन्हें मैसेज और ईमेल भेजता. यानी वह दूर होते हुए भी सभी रिश्तेदारों, मित्रों से जुड़ा रहता. एकदूसरे से मेलमिलाप बढ़ाने का त्योहारों से अच्छा माध्यम और कोई नहीं हो सकता. बस जरूरत है, इन्हें याद रखने की चाहे आप अपनी जिंदगी में कितने भी व्यस्त क्यों न रहते हों अथवा दूर. त्योहारों पर अपनों को याद करने पर आप यकीनन उन के दिलों में एक खास जगह बना लेंगे.

उपहार भेजें

त्योहारों के खास मौकों पर मार्केट में बहुत सुंदरसुंदर उपहार उपलब्ध होते हैं. उपहार छोटा हो या बड़ा, यह माने नहीं रखता. आप को दिखावा नहीं करना है, बल्कि उपहारों के जरिए करीबियों के प्रति अपनी भावनाएं दर्शानी हैं.

बधाई अवश्य दें

यदि आप मिल कर मिठाई या गिफ्ट नहीं दे पाए तो कम से कम बधाई तो अवश्य दें. त्योहार पर किया गया एक मैसेज या फोन भी आप के भावों को दर्शाने का अच्छा तरीका होता है. बधाई भरे मैसेज हर किसी के चेहरे पर मुसकान बिखेर जाते हैं.

सरप्राइज दें

त्योहार के दिन बिना बताए ही संबंधियों व दोस्तों के घर उन की मनपसंद मिठाई ले कर पहुंच जाएं और उन्हें चौंका दें. यह निमंत्रण दे कर बुलाने से कहीं ज्यादा ऐक्साइटिंग तरीका बन जाता है. प्लानिंग से ऐंजौयमैंट करने से ज्यादा मजा चौंकाने में है. 

खुश रहेंगी, तभी दूसरों को खुश रख पाएंगी

गृहिणी हूं और एक लेखिका भी. मैं सुबह 5.30 बजे उठती हूं. पति के लिए चाय बनाती हूं, और फिर हर सुबह एक भाग का काम मैं ब्रेकफास्ट से पहले कर लेती हूँ. 10.30 बजे नाश्ता करने के बाद फिर से काम पर लग जाती हूं.  आप सोच रही होंगी मैं आपको अपनी डेली रूटीन किसलिये बता रही हूं? क्योंकि मैंने दोस्तों को कहते सुना है, कि वे काम और घर में बराबर ध्यान नहीं दे पा रहीं हैं और शायद ये आपकी भी समस्या हो सकती है, इसलिए निराश ना हों.

1. खुद को दोषी मानना बंद करें

अगर काम और घर के बीच सामंजस्य सम्भव नहीं है, तो खुद को अपराधी मानने की जरूरत नहीं. आप काम कर रहे हैं यह कोई गलत बात नहीं है, इसके लिए सबसे पहले आप घर में हो रही समस्याओं के लिए खुद को दोषी मानना बंद करें.

2. बनाएं टाइमटेबल

खुद के लिए एक टाइम टेबल बनाएं. दिन में 24 घंटे होते हैं, और अगर आप सही तरीके से टाइम-टेबल के हिसाब से चलेंगे, तो सारे काम आराम से हो जाएंगे. पर एक समय सीमा के हिसाब से चलना जरूरी है, अगर किसी एक काम पर आप जरुरत से ज्यादा वक्त जाया करेंगे, या सुस्ती दिखाएंगे, तो संतुलंत कभी नहीं बना पाएंगे.

3. आपसी समझ है जरूरी

जो काम ज्यादा जरूरी हैं, उसे पहले करें. अगर सुबह आपको औफिस में प्रोजेक्ट सबमिट करना है, तो पहले उसका काम खत्म करें, क्योंकि आप वर्किंग वुमन हैं, अगर बच्चों को ऐसी स्थिति में आप कम समय दे पा रहीं हैं तो, घर के सदस्यों के मदद लें, और प्यार और सहयोग के साथ अपना कार्य पूर्ण करने के बाद बच्चों और परिवार के साथ समय व्यतीत करें. हां एक बात का ध्यान रखें, कार्य बढ़ने की स्थिति में अपने परिवार के जिम्मेदार लोगों को सूचित करें, और आपसी समझ से घर परिवार की जिम्मेदारी निभाएं.

4. अपने मनपसंद काम को दे ज्यादा समय

आपको क्या चाहिए ये तय करें. ज्यादा पैसों के लिए ज्यादा काम करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में आप जो काम पसंद से कर रही हैं वही करें. अगर घर में ज्यादा वक़्त देने से आप को ख़ुशी मिल रही है, तो उसे अधिक महत्व दें.

5. मन से करें काम

काम से प्रेम होना बहुत ज़रूरी है. कम काम करें लेकिन अच्छा काम करें, तो आप खुश रहेंगी, मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगी.

6. खुद के लिए निकालें समय

खुद के लिए समय रखें. अपने लिए समय होना भी ज़रूरी है, इस वक़्त में आप सिर्फ वह करें, जो आपको अच्छा लगता हो. ये आराम का वक़्त भी हो सकता है. इस समय अन्य कोई कार्य न करें.

7. आसान तरीका ढूंढे

यह ध्यान रखें, की आप वर्किंग होते हुए सभी जिम्मेदारियों को नहीं निभा सकती, ऐसी स्थिति में आप वही जरूरी कार्य करें जो आप के अलावा और दूसरा नहीं कर सकता, आधुनिकता के दौर में औनलाइन शौपिंग का महत्त्व समझें, घर के समान आर्डर करना, कपडे खरीदना, बिल जमा करना आदि कार्य आप औनलाइन भी कर सकती हैं. इससे आप थकेंगी कम, और वही समय आप परिवार को दे सकती हैं.

अगर सोचें, तो ऐसा कोई क्षेत्र  नहीं, जहां महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो.अपनी लगन, मेहनत, और दृढ़ता से महिला खुद में साफ़ सोच लाती हैं, जिससे वह फैसला ले पाती है. तभी आज हमारे बीच इंद्रा नूई (सी इ ओ पेप्सिको),  हेलेन केलर, और बुला चौधरी जैसी महान महिलाएं हैं.

ऐसी महिलाएं हमें भविष्य में भी प्रेरित करती रहेंगी. खुद खुश रहेंगी, तभी दूसरों को खुश रख पाएंगी. अपनी सोच समझ पर टिके रहे. इस तरह से आप अपनी सभी जिम्मेदारियों को सही से निभा पाएंगी.

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