क्या आप जानते हैं नीबू के ये 12 फायदे

नीबू के लाभ बड़े

चाट हो या दाल, कोई भी व्यंजन इस के प्रयोग से स्वादिष्ठ हो जाता है. यह फल खट्टा होने के साथसाथ बेहद गुणकारी भी है. आइए जानते हैं इस के कुछ प्रयोगों के बारे में:

1.कृमि रोग: 10 ग्राम नीबू के पत्तों के रस (अर्क) में 10 ग्राम शहद मिला कर पीने से 10-15 दिनों में पेट के कीड़े मर जाते हैं. नीबू के बीजों के चूर्ण की फंकी लेने से भी कीड़े मर जाते हैं.

2.सिरदर्द : नीबू के पत्तों का रस निकाल कर अच्छी तरह सूंघें. जिस व्यक्ति को हमेशा सिरदर्द बना रहता है, उसे भी इस से शीघ्र आराम मिलता है.

3.नकसीर : ताजे नीबू का रस निकाल कर नाक में पिचकारी देने से नाक से खून निकलता हो, तो बंद हो जाएगा.

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4.तृष्णा : किसी कारण से बारबार प्यास लगती हो, तो नीबू चूसने या शिकंजी पीने से तुरंत प्यास बंद हो जाती है. इसे तेज बुखार में भी दिया जा सकता है.

5.मिरगी : चुटकी भर हींग को नीबू में मिला कर चूसने से मिरगी रोग में लाभ होगा.

6.दांत व मसूड़ों का दर्द : दांत दर्द होने पर नीबू को 4 टुकड़ों में काट लीजिए, इस के बाद ऊपर से नमक डाल कर सभी टुकड़े गरम कीजिए, फिर 1-1 टुकड़ा दांत व दाढ़ में रख कर दबाते जाएं व चूसते जाएं. दर्द में राहत महसूस होगी. मसूड़े फूलने पर नीबू को पानी में निचोड़ कर कुल्ले करने से अत्यधिक लाभ होगा. पायरिया : नीबू का रस व शहद मिला कर मसूड़ों पर मलते रहने से रक्त व पीप आना बंद हो जाते हैं.

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7.हिचकी : 1 चम्मच नीबू का रस व शहद मिला कर पीने से हिचकी बंद हो जाएगी. इस प्रयोग में स्वादानुसार कालानमक भी मिलाया जा सकता है.

8.खुजली : नीबू में फिटकरी का चूर्ण मिला कर खुजली वाले स्थान पर रगड़ें. खुजली समाप्त हो जाएगी.

9.जोड़ों का दर्द : नीबू के रस को दर्द वाले स्थान पर मलने से दर्द व सूजन समाप्त हो जाएगी.

10.पीड़ारहित प्रसव : गर्भधारण के चौथे माह से प्रसवकाल तक अगर स्त्री 1 नीबू की शिकंजी रोज पिए तो प्रसव बिना कष्ट होता है.

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11.मूत्रावरोध : नीबू के बीजों को महीन पीस कर नाभि पर रख कर ठंडा पानी डालें, रुका हुआ पेशाब खुल कर व साफ आ जाता है.

12.तपोदिक : नीबू के 25 ग्राम रस में 11 तुलसी के पत्ते तथा जीरा, हींग व नमक सब को गरम पानी में मिला कर पीने से तपेदिक रोग में लाभ होगा.

महामारी के दौरान अच्छी नींद के साथ न करें समझौता

अच्छी नींद स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण घटक है. नींद पूरी न होने से शरीर में शारीरिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं जिससे शारीरिक और मानसिक रोगों को बढ़ावा मिल सकता है. नींद की समस्या या अनिद्रा अक्सर कम शारीरिक और/या मनोवैज्ञानिक कारणों की वजह से पैदा होती है. अक्सर तनाव/चिंता/अवसाद या मूड डिसॉर्डर की समस्या कमजोर गुणवत्ता की नींद की वजह से देखने को मिलती है.

इस बारे में बता रहीं हैं गुरुग्राम के पारस अस्पताल की मनोचिकित्सक और सलाहकार डॉक्टर ज्योति कपूर.

कोविड महामारी से विभिन्न स्तरों पर लोग प्रभावित हुए हैं और हम अपने इर्द-गिर्द ज्यादातर लोगों में तनाव में इजाफा देख रहे हैं. लॉकडाउन और वर्क फ्रॉम होम परिवेश से एक मुख्य समस्या अनुशासित रुटीन का अभाव कार्य घंटे लंबी रातों में खिंचना है. वित्तीय दबाव और रोजगार खोने के डर की वजह से कर्मचारी कार्य घंटे सीमित बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं और दुर्भाग्यवश, कई कॉरपोरेट कर्मचारी नियोक्ता की तरफ से प्रबंधन को लेकर असंवेदनशीलता की शिकायत कर रहे हैं. इन सभी समस्याओं ने कामकाजी लोगों के सोने के रुटीन को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है, क्योंकि उनमें तनाव का स्तर बढ़ रहा है.
स्कूल जाने वाले बच्चों में भी, जल्दी उठने की आदत प्रभावित हुई है जिससे सुबह के समय ज्यादा देर तक सोने और देर रात तक इंटरनेट और गेम खेलने की प्रवृत्ति बढ़ी है.

ऑनलाइन पढ़ा रहे शिक्षक भी छात्र की जरूरतें पूरी नहीं होने तक और स्कूल प्रशासन की जरूरतों को देखते हुए अपनी मोबाइल पहुंच समाप्त करने में सक्षम नहीं हैं.

मनोचिकित्सा ओपीडी में कोविड-19, लॉकडाउन से संबंधित सामाजिक अकेलेपन और अनुशासन के अभाव से जुड़ी समस्याओं के कारण नींद से प्रभावित होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है.

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नींद से जुड़ी अनियमितताओं के प्रबंधन के लिए लोगों से जुड़े जैविक, मनो-सामाजिक और पर्यावरण संबंधी कारकों का आकलन करने की जरूरत है. अच्छी नींद सुनिश्चित करने के लिए परिवेश और व्यवहार में बदलाव पहला उपचार है. यह निम्नलिखित नींद स्वच्छता प्रणालियों से जुड़ा हुआ हैः

1. बिस्तर पर सोने का नियमित समय बनाएं और उस पर अमल करें
2. सोने से 3 घंटे पहले तक व्यायाम से परहेज करें
3. रात का भोजन सोने से 2 घंटे पहले कर लें
4. सोने से 3 घंटे पहले चाय, कॉफी, तंबाकू के सेवन से परहेज करें
5. सोने के समय के रुटीन पर पालन करें
6. बेडरूम में आरामदायक वातावरण सुनिश्चित करें
7. दिन के समय में सोने से बचें
8. दिन के दौरान नियमित तौर पर व्यायाम करें
9. सोते समय भावनात्मक रूप से प्रभावित करने वाली गतिविधियों से बचने की कोशिश करें
10. नींद से संबंधित समस्याएं दूर करने के लिए कई अन्य गैर-चिकित्सकीय उपाय भी हैं जो मरीज की परिस्थितियों और जरूरतों के आधार पर अलग अलग हो सकते हैं.

सभी उम्र और पेशों के लोगों को लॉकडाउन संबंधित तनाव दूर करने और लंबे समय स्वास्थ्य संबंधित जटिलताओं से बचने के लिए नींद का रुटीन बनाने की जरूरत है.

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पीरियड्स में रखें अपनी डाइट का ख्याल

पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों और मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है. टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

इन से करें परहेज

  1. व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.
  2. बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.
  3. पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.
  4. कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.
  5. ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.
  6. कैफीन का सेवन भी न करें.

अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-

  •  ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.
  • पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.
  • अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.
  • थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.
  • यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.

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यह भी रहे ध्यान

  • 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.
  • ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.
  • 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.
  • अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.

अन्य सावधानियां

  • पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.
  • भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.
  • पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.
  • पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.
  • अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.

डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.

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कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.

आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.

खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.

विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.

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प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.

अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.

पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.

प्रैगनैंसी में करें ये डाइट फौलो

प्रैगनैंसी से लेकर लैक्टेशन के पीरियड तक मां अनेक शारीरिक और हारमोनल बदलावों से गुजरती है. ऐसे में अगर शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो उस का हैल्थ पर सीधा प्रभाव पड़ता है. जानिए, इस संबंध में डा. वंदना सी शर्मा, एमबीबीएस, एमडी, ओब्सटट्रिशियन ऐंड गाइनोकोलौजिस्ट, इंटीग्रेटेड वैलनैस कंसल्टैंट से:

जब हों गर्भवती

इस दौरान मां को अपनी सेहत के साथसाथ गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत भी सुनिश्चित करनी होती है. इस दौरान डाइट में इन चीजों का ध्यान रखें:

फौलिक ऐसिड: जितना हो सके विटामिन बी युक्त भोजन को अपनी डाइट में शामिल करें. इस के लिए आप हरी पत्तेदार सब्जियां, बींस, साबूत अनाज, दूध, नट्स ज्यादा मात्रा में लें. कई बार शरीर को इस की जितनी मात्रा की जरूरत होती है उस की पूर्ति इन खाद्यपदार्थों से नहीं हो पाती है, जिस के लिए फौलिक ऐसिड के टैबलेट दिए जाते हैं. खासकर प्रैगनैंसी के 3 से 6 महीने पहले से ये टैबलेट दिए जाते हैं.

कैल्सियम: कैल्सियम एक खनिज है, जिस के माध्यम से बच्चे की हड्डियां व दांत मजबूत होते हैं और अगर प्रैगनैंट वूमन इसे भरपूर मात्रा में नहीं लेती है तो बच्चे में इस की कमी रह जाती है. इसलिए इतने महत्त्वपूर्ण समय में हरी पत्तेदार सब्जियां, सोयाबीन, टोफू, नट्स बगैरा खाना न भूलें.

प्रोटीन: प्रैगनैंसी के समय ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन रिच फूड लें, क्योंकि यह बच्चे के शरीर के जरूरी अंगों जैसे ब्रेन और हार्ट के निर्माण में सहायक होता है. इस के लिए आप बींस, मटर, अंडे, नट्स, टोफू को अपने खाने में शामिल करें.

लिक्विड: शरीर में पानी की कमी न होने दें. इस के लिए दिन में 2-3 बार नारियल पानी, पानी, फ्रैश जूस पीएं. इस से शरीर के हाइड्रेट रहने से ताजगी बनी रहती है.

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डेयरी प्रोडक्ट्स: इस समय आप दूध, दही, छाछ, पनीर आदि जितना हो सके लें, क्योंकि इन से शरीर को विटामिन बी-12, कैल्सियम, प्रोटीन भरपूर मात्रा में मिलता है.

नट्स: ओमेगा 3 फैटी ऐसिड व अन्य हैल्दी फैट्स के अच्छे स्रोत होने के कारण बच्चे के मस्तिष्क के विकास में काफी मददगार होते हैं. इसलिए बादाम व अखरोट खूब खाएं.

फ्रूट्स: मौसमी फल खाएं, क्योंकि इस से शरीर हाइड्रेट रहता है. बस ध्यान रखें कि बहुत ज्यादा न खाएं.

गर्भावस्था में आयरन का महत्त्व

इन सभी पोषक तत्त्वों के साथ-साथ महिलाओं के लिए आयरन की सही मात्रा शरीर में बनाए रखना भी जरूरी है. खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को अपनी व गर्भ में पल रहे बच्चे की अच्छी सेहत सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में आयरनयुक्त डाइट लेनी चाहिए.

आइए, जानते हैं कि गर्भवती महिलाओं के लिए आयरन का क्या महत्त्व है:

शरीर में आयरन की भूमिका: आयरन खून में हीमोग्लोबिन का सब से बड़ा धारक होता है, जो शरीर में औक्सीजन पहुंचाने के साथसाथ उसे ऊर्जा देने का भी काम करता है. यही नहीं यह शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है और अगर इस की कमी हो जाती है तो हर समय कमजोरी, थकान बगैरा रहती है.

प्रैगनैंसी के दौरान निम्न तरह की समस्याएं पैदा होने का खतरा रहता है:

हीमोग्लोबिन के स्तर का कम होना: जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में आयरन नहीं होता है, तो हीमोग्लोबिन का स्तर गिरने लगता है. हीमोग्लोबिन लाल रक्तकोशिकाओं में पाया जाता है, जो फेफड़ों के साथसाथ शरीर के विभिन्न अंगों तक भी औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. लेकिन आयरन की कमी के कारण इस प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है और थकान का एहसास होने लगता है.

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फौलेट की मात्रा पर असर: फौलेट एक विटामिन है, जो पोषण व आयरन युक्त खाने से आसानी से प्राप्त हो जाता है. यह नए सैल्स के साथसाथ हैल्दी ब्लड सैल्स को बनाने का भी काम करता है. लेकिन प्रैगनैंसी के दौरान ज्यादा फौलेट की जरूरत होती है जो खाने से पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है. ऐसे में डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट जैसे लिवोजिन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

आयरन की कमी से बच्चे पर प्रभाव: वैसे तो प्रैगनैंसी के दौरान ऐनीमिया की कमी से हर महिला को जूझना पड़ता है, लेकिन जब यह कमी ज्यादा बढ़ जाती है तो अन्य समस्याएं भी ले कर आती है जैसे समय से पहले बच्चे का जन्म, बच्चे का वजन कम होना व उस का विकास धीमी गति से होना.

ऐसे करें आयरन की कमी पूरी

प्रैगनैंसी के दौरान आप जो भी खाएं वह पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर हो, खासकर उस में आयरन की मात्रा भरपूर हो. जानिए, आयरन रिच फूड के बारे में:

टूना फिश: यह स्वादिष्ठ होने के साथसाथ पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होती है. इस में आयरन की मात्रा बहुत अधिक होता है.

पालक: पालक आयरन का बेहतरीन स्रोत होने के साथसाथ यह खून की कमी को दूर करता है. इस में विटामिन सी भी बहुत अधिक मात्रा में होता है जो शरीर में आयरन को अवशोषित करने में मदद करता है.

रैड मीट: रैड मीट पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होता है, साथ ही इस में प्रोटीन, जिंक और विटामिन बी भी पाया जाता है. शोधों के अनुसार, आयरन की कमी उन में नहीं होती जो मीट, मछली आदि खाते हैं.

ब्रोकली: ब्रोकली में आयरन की मात्रा काफी अधिक होती है. ऐंटीऔक्सिडैंट से भरपूर होने के कारण यह शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करती है.

साबूत अनाज: खून की कमी को दूर करने के लिए साबूत अनाज को अपनी डाइट में जरूर शामिल करें, क्योंकि इस में आयरन भरपूर मात्रा में होता है.

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लैक्टैटिंग मदर्स

गर्भवती महिला से अधिक दूध पिलाने वाली मां को ज्यादा पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है. उन के लिए जरूरी है कि वह दूध, दही, दलिया, पनीर, बादाम जरूर खाए. ध्यान रखें कि अकसर डिलिवरी के बाद महिलाएं घी वाले लड्डू, घी की चीजों का सेवन ज्यादा करती हैं. इस से बेहतर है कि आप ज्यादा से ज्यादा हैल्दी चीजें खाएं. थोड़ीथोड़ी देर में फ्रूट, सलाद खाती रहें.

Edited by Neelesh Singh Sisodia 

युवाओं को भी हो सकता है आर्थराइटिस का दर्द

कुछ दिनों तक वह अपनी तकलीफ नजरअंदाज करती रही. समय के साथ उस के हाथों और उंगलियों में सूजन आने लगी. डॉक्टर ने जांच के बाद पाया कि उसे रूमेटॉयड आर्थराइटिस (आरए) है. श्रुति को लगा कि उस के डौक्टर से शायद कोई गलती हुई है क्यों कि आर्थराइटिस होने के लिए उस की उम्र अभी बहुत ही कम है. वह अपने परिवार के कुछ ऐसे लोगों को जानती थी जो आर्थराइटिस से पीडि़त थे लेकिन उन में से किसी की भी उम्र 50 वर्ष से कम नहीं थी.

युवाओं में यह एक आम सोच है कि आर्थराइटिस बुजुर्गों की बीमारी है इसलिए उन में से अधिकांश अपनी हड्डियों की सेहत को ले कर सतर्क नहीं रहते हैं. उन्हें लगता है कि वे अभी यंग हैं. लेकिन अब लोगों को अपनी सोच बदलने का समय आ गया है. उन्हें यह मान लेना चाहिए कि आज के समय में युवाओं को भी किसी भी तरह की बीमारी हो सकती है. जरुरी है कि उस से दूर भागने की जगह समय रहते उपचार करवाएं.

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इस बात का भी ख्याल रखें कि अपनई सेहत अपने हांथों में ही होती है. समयसमय पर जांच और शरीर की देखभाग हर तरह की समस्याओं से बचा सकती है. मूल रूप से ओस्टियोआर्थराइटिस आर्थराइटिस का ही एक रूप है जो कि उम्र के बढऩे पर अधिक पाई जाती है लेकिन रूमेटॉयड आर्थराइटिस किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है.

सच तो यह है कि आर्थराइटिस से पीड़ित युवाओं की संख्या में अचानक ही काफी तेजी आ गई है. यह परेशानी खासकर ऑफिस जाने वाले लोगों में ज्यादा देखी जाती है. वे अक्सर जोड़ों के दर्द, सूजन या कड़ेपन की शिकायत करते हैं. इस के कई कारण हो सकते हैं लेकिन सब से बड़ा कारण है गलत जीवनशैली और कमजोर डाइट. आज के युवा न तो व्यायाम में दिलचस्पी लेते है और न ही उन में खानपान की स्वस्थ आदत का विकास हो पाता है.

क्या है रूमेटौयड आर्थराइटिस

रूमेटौयड आर्थराइटिस एक औटोइम्यून बीमारी है जिस में आप का इम्यून सिस्टम अत्यधिक सक्रिय हो जाता है और आप के शरीर के अंदरूनी जोड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है. यह आप को किसी भी उम्र में प्रभावित कर सकता है. इस के सामान्य लक्षणों में शामिल है जोड़ों में सूजन, सुबह उठने पर उन में कड़ापन, दर्द जो खत्म नहीं होता-या कई हफ्तों तक बना रहता है आदि. हालांकि इस बीमारी से लडऩे के कई तरीके हैं. इस सन्दर्भ में सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर ,गाजियाबाद के डॉ. अखिलेश यादव बचाव के कुछ उपाय बताते हैं;

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हड्डियों को बनाएं मजबूत – हड्डियों की सेहत के लिए सुबह की धूप लेना महत्वपूर्ण है. ज्यादातर युवा जिन का अधिकांश समय कार या ऑफिस के अंदर बीतता है, उन्हें सुबह के समय थोड़ी देर धूप में जरूर बिताना चाहिए. साथ ही उन्हें सेहतमंद जीवनशैली जीने पर जोर देना चाहिए जैसे नियमित रूप से जिम जाना, उछलकूद वाले खेलों में हिस्सा लेना, जॉगिंग, स्वीमिंग, टेनिस खेलना आदि. इस से जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां मजबूत बनी रहती हैं.

हौबी आधारित शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए जैसे डांसिंग, एरोबिक्स, योगा, और टहलना आदि, क्यों कि हड्डियों को दबाव की जरूरत होती है जिस के लिए ये तरीके लाभदायक साबित होते हैं.हर दिन कम से कम दो घंटे अपने पैरों पर थोड़ा दबाव जरूर डालें. आर्थराइटिस के कई मरीजों को ऐसा लगता है कि वे अपने पसंद की काम नहीं कर सकते, जैसे दौडऩा, तेज गति वाले खेल, लेकिन सही इलाज के साथ लोग इस तरह की गतिविधियों के भी लाभ उठा सकते हैं.

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आर्थराइटिस से बचाव के उपाय

  • आर्थराइटिस के प्रभाव को कम करने के लिए युवाओं को अपने भोजन में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम लेना चाहिए.
  • औफिस में घंटों एक जगह बैठ कर या खड़े हो कर काम करने वाले लोगों को हर आधे घंटे पर 5 मिनट का ब्रेक ले कर हांथों और पैरों को स्ट्रेच करना चाहिए.
  • धूम्रपान, उचित रूप से भोजन न करना, शराब पीने जैसी अस्वस्थकर आदतें हड्डियों की कार्यप्रणाली पर विपरीत प्रभाव डालते हैं और इस से उन लोगों में आरए होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए इन आदतों को सुधारें.
  • प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ लें, जिस में वसा की मात्रा कम हो और पर्याप्त मात्रा में खनिज हों.
  • जंक फूड खाने से बचना चाहिए क्यों कि इस से केवल वजन बढ़ता है.
  • यदि किसी को बचपन में मिरगी की समस्या रही हो तो उन के शरीर में कैल्शियम का अवशोषण होने में परेशानी होती है. इस बारे में अपने डॉक्टर से जरूर बात करें.
  • यदि आप के पैरों में एक हफ्ते से अधिक दर्द या कड़ापन महसूस हो तो देर न करें और तुरंत ही रूमेटोलॉजिस्ट से सलाह लें. यदि जरूरत होगी तो वे आप को ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देंगे.

Edited by – Neelesh Singh Sisodia 

साइकिलिंग से रहे सेहतमंद जाने कैसे…

शारीरिक फिटनेस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइकिलिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

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फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइक्लिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

शारीरिक फिटनैस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइक्लिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

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फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइकिलिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग  के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

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साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

 

-शिव इंदर सिंह

एम.डी., फायरफौक्स बाइक्स प्रा.लि.

वर्ल्ड थायराइड डे: जाने क्यों होता है थायराइड

बात करें साल 2018 की तो पूरे भारत में करीब 42 मिलियन भारतीयों में अलग-अलग प्रकार के थायराइड डिसऔर्डर पाए जा चुके हैं. भारत में थायराइड की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं और खासकर महिलाओं में. इसका कारण यह है कि पुरुषों की तुलना में एक महिला के शरीर में हार्मोन असंतुलन की संभावना अधिक होती. महिलाएं हार्मोन संबंधी बदलावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं

थायराइड डिसऔर्डर

यह बीमरी आमतौर पर थायराइड ग्रंथि(Gland)  की अधिक सक्रियता या फिर कम सक्रियता से होते हैं. सर्वाधिक पाए जाने वाले थायराइड डिसऔर्डर हैं – हायपरथायरौइडिज्‍म (थायराइड गतिविधि में असाधारण वृद्धि), हाइपोथायरौइडिज्‍म (थायराइड गतिविधि में असाधारण गिरावट), थायरौइडाइटिस (थायराइड ग्रंथि में सूजन), गोइटर और थायराइड कैंसर. थायराइड की बीमारियों की जांच और इलाज बेहद आसान है.

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 “प्राथमिक उपचार”

अगर थायराइड ग्रंथि (Gland) में थोड़ी सी भी सूजन नज़र आती है तो बिना किसी लापरवाही के इसकी तुरंत जांच करानी चाहिए. जब भी इसके संकेत देखने को मिलें तो तत्काल डॉक्टर की सलाह लेनी ज़रूरी है. थायराइड पर नियंत्रण के लिए इसकी जल्द पहचान और इलाज दोनों ही महत्वपूर्ण है.

गर्भवती महिलाओं को ज्यादा खतरा”

एक गर्भवती महिला को थायराइड डिसऔर्डर का खतरा अधिक होता है, खासकर तब जब उसके शरीर में थायराइड गतिविधि असाधारण रूप से अधिक या कम हो जाती है. महिला के शरीर में हार्मोन स्तर असंतुलित होने से विभिन्न प्रभाव देखने मिलते हैं, जैसे असामान्य माहवारी(Menstruation), असंतुलित या गैर-मौजूद ओव्युलेशन चक्र (Ovulation cycle),मिसकैरेज,समय पूर्व प्रसव,गर्भ में मृत शिशु की डिलीवरी,प्रसव के बाद रक्तस्राव और जल्द रजोनिवृत्ति(Menopause) की शुरुआत भी हो सकती है.

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बचाव-

शरीर में आयोडीन की कमी को आसानी से अपने आहार में नियंत्रण रखे साथ ही नियमित व्यायाम से थायराइड के खतरे को दूर किया जा सकता है. थायराइड की समस्याएं रोकने के लिए व्यस्कों को 150 एमसीजी आयोडीन का प्रतिदिन सेवन करने की सलाह दी जाती है. वहीं, गर्भवती महिलाओं के लिए यह मात्रा अधिक होती है.

लक्षण

1.थकान

2.एकाग्रता में कमी

3.रूखी त्वचा

4.कब्ज़

5.ठंड लगना

6.शरीर में तरल पदार्थों का रुकना / वजन बढ़ना

7.मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द

डिप्रेशन

8.बाल झड़ना

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थायराइड डिसऔर्डर की जांच एवं पुष्टि के लिए शारीरिक जांच के अलावा कुछ विशेष परीक्षण भी किये जाते हैं. आमतौर पर खून की जांच के द्वारा थायराइड हार्मोन और टीएसएच (थायराइड स्टिम्यूलेटिंग हार्मोन्स) स्तर की जांच भी की जाती है. उपरोक्त कोई भी लक्षण महसूस होने पर थायराइड हार्मोन्स स्तर और टीएसएच जांच की सलाह दी जाती है. अधिकतर मामलों में थायराइड डिसऔर्डर को इलाज के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है और इनसे जान को खतरा नहीं होता. हालांकि कुछ स्थितियों के लिए सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है.

क्या आप जानते हैं सेहत से जुड़े इन 5 मिथों का सच

“गोरे पन को बढ़ाना हो या खूबसूरती को निखारना, दाग धब्बे हटाना हो या चेहरे को चमकाना”. हम अक्सर टीवी पर दिखने वाली फैंसी बोतलों और उनपर लिखी चंद पंक्तियों के दावों को सच मानकर दुकानों पर जाकर प्रोडक्ट्स को खरीद लेते हैं. हमारी इस लालसा को और बढ़ाती है उस प्रोडक्ट्स पर छपी तस्वीरें. खूबसूरती को बढ़ाने के चक्कर में हम ये भूल जाते है की त्वचा की देखभाल के लिए सभी प्रोडक्ट्स फिट नहीं बैठते. आपकी स्किन के लिए क्या सही है और क्या गलत, आपकी स्किन के लिए कौनसा प्रोडक्ट्स असर करेगा कौनसा नहीं,आपका बजट और अन्य चीजों की उधेड़बुन में हम अक्सर गलत उत्पादों को खरीद बैठते हैं और कई समस्याओं का शिकार हो जाते हैं. इसलिए आज हम आपको बतायेंगे वो पांच मिथों के बारे में जिसकी सच्चाई जानना आपके लिए बेहद जरूरी है.

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1.“छोटी मात्रा

यह मिथ हमारे बालों से लेकर त्वचा की देखभाल तक के लिए है. आम तौर पर कंपनियों अपने प्रमोशन के दौरान कहती हैं की इस  प्रोडक्ट को छोटी मात्रा में लगाते ही भरपूर निखार और सुंदर त्वचा हो जायेगी तो ये एक भ्रम हैं. इसलिए जब भी आप संदेह की स्थिति में हो तो बोतल के पीछे लिखी मात्रा से थोड़ा ज्यादा प्रयोग करें क्योंकि हर किसी व्यक्ति के चेहरे का आकार अलग होता है और उसके चेहरे द्वारा सोखी जानी वाली मात्रा भी. उदाहरण के ले फेस क्रीम का तो दो बूंदें संतुलित औयली स्किन के लिए बेहद ज्यादा हैं लेकिन जब इसे डिहाइड्रेटेड स्किन पर प्रयोग किया जाएगा तो यह बहुत कम होगी।

2.“टोनर की बिल्कुल जरूरत है

मॉस्चराइजर लगाने से पहले अगर आप स्टैंडर्ड टोनर का प्रयोग करते हैं तो वह त्वचा पर जमा अत्याधित धूल और तेल को हटाता है. ब्रांड पर निर्भर होने के नाते वह आपकी त्वचा को चमक और नरम बनाने में मदद का वादा करते हैं. जबकि एक्सपर्ट का मानना है कि टोनर केवल आपके ब्यूटी रूटिन में सहायता कर सकता है, और हर किसी को इसकी जरूरत नहीं है. बहुत से प्रोडक्ट्स का प्रयोग आपकी त्वचा को खराब कर सकता है.

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3.“चेहरे को हाथों से नहीं छुएं

त्वचा से जुड़े मिथ कहीं से भी आ सकते हैं विशेषकर किसी के भी मुंह से.

आपने अक्सर सुना होगा कि मुंहासों को रोकने के लिए अपने चेहरे को छूना बंद करें लेकिन इन्हें दूर करने के लिए छूना ही एकमात्र रास्ता है. त्वचा विशेषज्ञ कहते हैं कि फोन पर स्क्रॉल करने और फिर बाद में चेहरे को छूने से यह समस्या बढ़ सकती है. जाहिर तौर पर टॉयलेट सीट से अधिक बैक्टीरिया हमारे फोन पर जमा होते हैं. दरअसल इसकी वजह हमारे नाखून हैं, जिनसे अधिकतर बीमारियां फैलती हैं. लंबे नाखूनों में गंद ज्यादा जमा होता है और अगर उसमें बैक्टीरिया है तो यह आपके चेहरे पर फैल सकता है और संक्रमण का कारण बन सकता है.

4.“मेकअप हटाओं बस मेकअप वाइप्स से

अगर आपको हाइपर पिग्मेंटेशन का खतरा है, तो मेकअप वाइप्स वास्तव में रगड़ का कारण बन सकता है और अगर आप रोजाना इनका इस्तेमाल करते हैं तो धीरे-धीरे आपकी त्वचा हार्श हो सकती है. इसके अलावा बहुत सारे मेकअप वाइप्स में अल्कोहल होता है, जो सेंसिटिव स्किन के लिए चुभन का कारण बन सकता है.

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5.“प्राइस बताता है प्रोडक्ट्स अच्छा या बुरा

कभी-कभी एक सस्ता प्रोडक्ट भी महंगे की अपेक्षा ज्यादा कारगर होता है इसका कारण है उसमें मौजूद सामग्री की. ऐसी धारणा रही है कि हर महंगी चीज हमारी सेहत व त्वचा के लिए फायदेमंद होती है जबकि ऐसा नहीं है। चूंकि बाजार में कई कंपनियां है और इस प्रतिस्पर्धी दौर में हर कंपनी अपना सामान बेचने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है इसलिए उत्पादों का मिलान करना बहुत जरूरी है. एक बड़ी कंपनी वहीं सामान अधिक कीमत पर बेच रही है और दूसरी कंपनी कम कीमत पर वह उत्पाद बेच रही है तो यह मत समझिए की कम कीमत वाला उत्पाद खराब या कम प्रभावकारी होगा.  इसलिए किसी भी सामान को खरीदने से पहले उसके पीछे लिखी सामग्री को पढ़िए.

बिजी लाइफस्टाइल में ये 4 टिप्स आपको रखेंगी सेहतमंद

हेल्थ एक्सपर्ट्स और रिसर्च संस्थाओं की माने तो स्वस्थ रहने के लिए हर व्यक्ति को सप्ताह में कम से कम 150 मिनट, यानी रोजाना लगभग 30 मिनट एक्सरसाइज करना जरूरी है. अगर आपके पास सच में जिम जाने का समय नहीं है, तो आप कुछ बातों को अपनाकर फिट रह सकते हैं इन टिप्स से आपका फुल बौडी वर्कआउट भी हो जाएगा और आपको अलग से समय भी नहीं निकलना पड़ेगा.

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20 मिनट वौक, रखे स्वस्थ

खाना खाने के बाद बैठकर आराम करने या लेटकर फेसबुक और सोशल मीडिया चेक करने से बेहतर है कि आप 20 मिनट पैदल चलें. खाने के बाद थोड़ी देर पैदल चलने से आपके पेट में एक्सट्रा फैट नहीं जमा होता है, जिससे आप मोटापे से बचे रहते हैं. पैदल चलने से आपका खाना अच्छी तरह पचता है और आपका मेटाबौलिज्म अच्छा रहता है. रोजाना 20 मिनट स्ट्रेंथ ट्रेनिंग सिर्फ मसल्स बढ़ाने के लिए ही नहीं, बल्कि हड्डियों कों मजबूत बनाने के लिए भी की जाती है. इससे आपके शरीर की फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ती है. साथ ही टीवी देखते समय यदि आप लिफ्ट वेट करेंगे तो ये फायदेमंद होगा.

लिफ्ट का उपयोग करें…

घर, औफिस, शौपिंग मौल और मेट्रो स्टेशन में आप लिफ्ट का प्रयोग करते रहते हैं, पर अगर आप सीढ़ियों का प्रयोग करेंगे तो काफी फायदेमंद होगा. सीढ़ी चढ़ने से आपके पूरे शरीर का अच्छा वर्कआउट होता है. चढ़ने समय आपका हृदय ज्यादा तेज खून पंप करने लगता है, जिससे शरीर के सभी अंगों तक औक्सीजन और पोषक तत्वों का सर्कुलेशन बढ़ जाता है.

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20 मिनट जल्दी उठने से रहेंगी सेहत दुरुस्त

सुबह जल्दी उठना आपके लिए कई तरह से सेहतमंद होता है. जल्दी उठकर आप थोड़ी एक्सरसाइज या मौर्निंग वौक कर सकते हैं, जिससे आपके शरीर को विटामिन डी और ताजी औक्सीजन मिल जाती हैं. इसके अलावा जल्दी उठकर दिन की शुरुआत करने से आप अपने दिन भर के कामों को अच्छी तरह मैनेज कर सकते हैं.

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स्वस्थ रहने के लिए जरुरी है खेल

स्वस्थ रहने का सबसे आसान तरीका है कि जब भी आप दोस्तों या परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना चाहें, तो खाने-पीने की जगह कोई खेल जैसे- टेबल टेनिस, बैडमिंटन आदि खेल सकते हैं या उनके साथ एक छोटी सी वौक पर जा सकते हैं, जहां वौक करते हुए आप बातचीत भी कर सकते हैं. जो आपके रिलेशनशिप को भी स्ट्रोंग रखेंगी. तो इन टिप्स को अपनाकर हेल्दी रखे अपनी सेहत और रिलेशनशिप.

 

पति से ज्यादा कमाने वाली महिलाओं को रहता है डिप्रेशन का खतरा

आजकल जैसी लोगों की जरूरतें हो गई हैं, पति पत्नी दोनों का कमाना बेहद जरूरी हो गया है. खासकर के शहरी रहनसहन में तो ये और ज्यादा जरूरी है कि पति पत्नी दोनों काम करें. महिलाओं के कामकाज को ले कर एक रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक पति से ज्यादा कमाने वाली महिलाओं में डिप्रेशन का खतरा होता है.

ये रिपोर्ट अमेरिका की यूनिवर्सिटी औफ इलिऔइस में हुए एक शोध से सामने आई. शोधकर्ताओं के अनुसार परिवार को सबसे ज्यादा वित्तीय मदद कौन कर रहा है और इसका उनके मनोविज्ञान पर भी असर होता है.

अध्ययन में पाया गया कि अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के मुकाबले महिलाओं की आय जैसे जैसे बढ़ती है, उनमें डिप्रेशन का खतरा बढ़ने लगता है. वहीं दूसरी ओर ये बात भी सामने आई कि पुरुषों में जैसे जैसे आय की बढ़ोत्तरी होती है, उनका जीवन स्तर सुधरता है और मानसिक सेहत पर भी इसका सकारात्मक असर होता है. अमेरिका में हुए इस अध्ययन में 1463 पुरुष और 1769 महिलाओं को शामिल किया गया था. उनके मनोविज्ञान और मानसिक सेहत की जांच की गई.

अध्ययन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जब एक महिला अपने बच्चों की देखभाल के लिए छुट्टी ले कर घर पर रहती है तो उसके मानसिक सेहत पर किसी प्रकार का नकारात्मक बदलाव देखने को नहीं मिलता. इसके विपरीत जब पुरुषों को घर में रहना होता है तो उनकी मानसिक सेहत नकारात्मक तौर पर प्रभावित होती है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के दौरान महिलाओं और पुरुषों में नौकरी और घर की जिम्मेदारियों और उनकी वजह से होने वाले अवसाद में अंतर नजर आया.

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