सिंगल मदर ऐसे बढ़ाएं दायरा

सफर में अगर कुछ दोस्त, संगीसाथी मिल जाएं तो रास्ता गुजरते समय नहीं लगता. वहीं अगर कुछ देर भी अकेला चलना पड़ जाए तो मन बोझिल हो जाता है. इसलिए आज के दौर में अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना बहुत जरूरी है. लोगों से मिलेंजुलें और हर वक्त अकेले रहने के बजाय थोड़ा सोशल बनें. इस से आप खुद भी खुश रहेंगी और परिवार को भी खुश रख पाएंगी.

कितना हो सामाजिक दायरा

1. सोशल नैटवर्किंग में एक्टिव हों

सामाजिक दायरा बढ़ाने के लिए सोशल नैटवर्किंग एक अच्छा तरीका है. यह आप के लिए आसान भी होगा और इस से आप एकसाथ बहुत लोगों से ग्रुप में जुड़ कर बातचीत कर सकती हैं. यह एकदूसरे के बर्थडे आदि पर विश करने या फिर अन्य उत्सवों पर बधाई संदेश देने का अच्छा तरीका है, साथ ही अगर कहीं घूमने जाएं तो फोटो आदि अपलोड करने पर भी पता चलता है कि किस की लाइफ में क्या हो रहा है और बिना मिले ही सब एकदूसरे से टच में रहते हैं.

ये भी पढ़ें- बनें एक-दूसरे के राजदार

2. लोगों के साथ बातचीत है जरूरी

वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक, अगर आप रोज 10 मिनट किसी के साथ बात करते हैं, तो इस से आप संवाद की कला में माहिर हो जाते हैं साथ ही याद्दाश्त तेज होती है और बुद्धिमत्ता भी बढ़ने लगती है. इसलिए याद्दाश्त और बुद्धिमत्ता को सक्रिय बनाए रखने के लिए लोगों के साथ बातचीत जरूरी है.

3. बनाएं दोस्त

अगर पुराने फ्रैंड्स से आप टच में नहीं हैं, तो एक बार उन से संपर्क अवश्य करें और उन से मिलने और उन के साथ घूमने का प्रोग्राम बनाएं. उन्हें अपने घर बुलाएं. इस से दोबारा आनाजाना शुरू होगा. इस के अलावा आप चाहें तो कुछ नए दोस्त भी बनाएं अपनी ही सोसाइटी में. अपने बच्चे के दोस्तों की मम्मियों से भी दोस्ती की जा सकती है. इस से कोई प्रौब्लम होने पर मिल कर समाधान निकाला जा सकता है.

4. नए लोगों से मिलें

अगर आप के फ्रैंड्स या रिश्तेदार कम हैं तो उन्हें अपने रिश्तेदारों को लाने के लिए कहें जैसेकि अपनी ननद की ननद को बुलाएं. इस से एक तो आप की ननद खुश होगी दूसरे आप को एक और नई सहेली भी मिल जाएगी. इसी तरह अपने फ्रैंड्स के फ्रैंड्स से मिलना भी नए लोगों से मिलने का अच्छा तरीका है. आप जिस भी नए इंसान से मिलें उसे अपने इस सामाजिक दायरे की एक शुरुआती कड़ी समझने की कोशिश करें.

अगर फ्रैंड के यहां मेहमान आएं हैं तो अपनी पार्टी में उन्हें भी लाने के लिए कहें या फिर अपने फ्रैंड्स के फ्रैंड्स को भी आने के लिए कहें. इन में से कुछ को तो आप जानती ही होंगी. इस तरह आप भी अपने फ्रैंड्स के साथ उन के फ्रैंड्स से मिल सकती हैं. ऐसा करने पर आप को कितने ही अच्छे लोगों से मिलने का अवसर मिल सकता है और कौन जानें इन्हीं में कुछ आप की बैस्टीज बन जाएं.

य़े भी पढ़ें- ऐसे कराएं पति से काम

5. एंटीसोशल नहीं बनें सोशल

अपने औफिस के कामकाज को अपनी सोशल लाइफ से अलग न रखें और सिर्फ वीकैंड पर परिवार के साथ ऐंजौय करने को सोशल होना नहीं कहते, बल्कि अपने औफिस में भी सब से अच्छी तरह मुसकरा कर मिलें. अगर आप एक दिन औफिस न आएं तो लोग आप को मिस करें, आप का हालचाल पूछें, आप का व्यवहार ऐसा होना चाहिए.

एक मिलनसार महिला के रूप में अपनी पहचान बनाएं. काम के समय काम और लंच ब्रेक या फिर जब भी मौका मिले बातचीत करने से न हिचकिचाएं. किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में जाने से बचें नहीं वरना लोग आप पर ऐंटीसोशल होने का तमगा लगा देंगे. अपने औफिस के कार्यक्रमों आदि में बढ़चढ़ कर हिस्सा लें और उन्हें पूरी तरह ऐंजौय करें.

6. रिश्तों को दें समय

माना कि आज के दौर में सभी के पास समय की कमी होती है, लेकिन जो लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए समय नहीं निकालते, एक वक्त के बाद वे खुद बहुत अकेले हो जाते हैं. इसलिए रिश्तेदारों से मिलने का समय निकालिए. उन का वक्तवक्त पर हालचाल पूछते रहें. इस से उन्हें भी लगेगा कि वे आप के लिए कितने खास हैं.

7. तनाव पर विजय पाने के लिए

अगर आप सामाजिक रूप से सक्रिय रहते हैं, तो मानसिक रूप से भी स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं. हालिया शोधों में साबित हो चुका है कि सामाजिक संबंध आप को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु देता है. लोगों के साथ मिलतेजुलते रहने, उन के साथ अपने सुखदुख बांटने से मानसिक स्वास्थ्य बढि़या रहता है. दरअसल, संवाद की कला आप को लोगों से जोड़ने का काम करती है. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी के चलते लोगों का सामाजिक दायरा सिकुड़ता जा रहा है. अपनों से बात करने का वक्त नहीं होता. अपनी परेशानियां किसी के साथ बांटना नहीं चाहते, जिस के चलते अवसाद, ब्लड प्रैशर, तनाव और सिरदर्द जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है.

कैसा हो सामाजिक दायरा

1. शिकायतों के लिए जगह न हो: अगर आप चाहती हैं कि आप का सामाजिक दायरा बड़ा और अच्छा हो तो आप शिकायतें ही न करती रहें. दोस्त गम बांटने में मदद करते हैं पर इस का मतलब यह नहीं होता कि आप पूरा समय रोती ही रहें. अगर आप शिकायतें ही करती रहेंगी तो लोग आप से बचना शुरू कर देंगे.

2. निमंत्रण को स्वीकार करें: यदि लोग आप को मिलने के लिए बुलाते हैं तो आप को उन के बुलावे को यों ही छोड़ने के बजाय उसे स्वीकार करना चाहिए. ऐसा बिलकुल भी न सोचें कि आप उन के साथ सिर्फ इसलिए वक्त नहीं बिताना चाह रही हैं, क्योंकि आप की उन में कोई रुचि नहीं है. एक बार आप उन्हें जौइन कर के तो देखिए. आप का मन भी उन में लगने लगेगा.

वैसे भी अगर आप ऐसे निमंत्रण स्वीकार कर कार्यक्रमों में जाएंगी तो आप को कितने ही अच्छे और नए लोग भी वहां मिल जाएंगे. किसी के निमंत्रण को यों अस्वीकार करना अच्छी बात नहीं है. इस से लोगों के मन में आप के लिए नैगेटिव थौट बन जाएगा. इसलिए हमेशा मना न करें. कभी जाएं कभी मना कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- जब मां बाप ही लगें पराए

अपने जैसे विचार रखने वालों के क्लब में शामिल हों. यदि आप की कोई हौबी या फिर कोई विशेष दिलचस्पी है तो अपने आसपास मौजूद एक ऐसे क्लब में शामिल हो जाएं जो इन्हीं तरह की रुचियों के लिए बना है. अपने आसपास मौजूद किसी स्पोर्ट्स लीग, बुक क्लब, लाइब्रेरी, हाइकिंग गु्रप या फिर साइक्लिंग टीम से जुड़ने के बारे में सोचें. यदि आप की ऐसी कोई हौबी नहीं है, तो फिर एक नई हौबी तलाशें, लेकिन ऐसी हौबी ही चुनें, जिसे आप लोगों के साथ ग्रुप में रह कर पूरी कर पाएं.

3. सोशल वर्क को भी प्रमुखता दें

आप किसी एनजीओ से जुड़ सकती हैं जहां आप चाहें तो हफ्ते में 1 दिन भी जा सकती हैं. अगर एनजीओ से जुड़ने का समय नहीं है तो गरीब बच्चों को घर बुला कर पढ़ा सकती हैं या फिर अगर आप घर से कोई काम करती हैं जैसे सिलाई, ट्यूशन पढ़ाना आदि तो कुछ बच्चों को फ्री में सिखा और पढ़ा सकती हैं. इस से आप के मन को जो संतोष मिलेगा वह पैसे ले कर नहीं मिलेगा. जब भी जरूरत हो किसी के काम आएं. इस से लोग आप को जानेंगे और वे भी आप की मदद के लिए हमेशा तैयार मिलेंगे.

4. सामाजिक दायरे की लिमिट

सम्माननीय महिलाएं गु्रप से जुड़ी हों: जिस भी ग्रुप को जौइन करें पहले देख लें कि उस में जो महिलाएं जुड़ी हैं वे सब ठीक होनी चाहिए यानी सम्माननीय महिलाएं उस में शामिल हों, क्योंकि अब उस गु्रप से आप भी जुड़ रही हैं तो आप का नाम भी उन के साथ अपनेआप जुड़ जाएगा.

बच्चों की अनदेखी न करें: अपना सोशल सर्कल बनाएं अवश्य, लेकिन इस की भी एक लिमिट होनी चाहिए. यह नहीं कि बच्चे घर में भूखे बैठे हैं और आप अपने सर्कल के साथ बिजी हैं, उन्हें पढ़ानेलिखाने का टाइम भी आप किसी और को दे दें. इसलिए पहले अपने घर की देखभाल करें और फिर अन्य किसी चीज में समय लगाएं.

5. परेशानी में साथ दें

किसी भी एक्टिविटी से जुड़ना मात्र टाइम पास करने का तरीका नहीं होना चाहिए, बल्कि इस में सभी के सुखदुख भी जुड़ जाते हैं. इसलिए किसी की परेशानी में साथ देने की जब बात आए तो पीछे न रहें.

6. जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाएं

वहां जुड़ी महिलाओं से अपनी तुलना कर कुछ न करें. यह न सोचें कि आप उन के जैसे ब्रैंडेड कपड़े क्यों नहीं पहनतीं या फिर आप का स्टेटस उन के जैसा क्यों नहीं है. सब का रहनसहन अलगअलग होता है, इसलिए जितनी चादर हो आप की उतने ही पैर फैलाएं.

7. गलत आदतें न पालें

अगर आप का मिलनाजुलना हाई सोसाइटी के उन लोगों से हो रहा हो जो हाई स्टेटस के नाम पर सिगरेट, शराब आदि को प्रमुखता देते हों तो आप जान लें कि आप गलत ट्रैक पर हैं. आप कितना भी इस सब से बचने का प्रयास करें, लेकिन आप को पता भी नहीं चलेगा कि कब आप इस में फंस गईं. इसलिए ऐसे लोगों का साथ छोड़ देने में ही समझदारी है. ऐसा सामाजिक दायरा किसी काम का नहीं है, जिस में आप गलत रास्ते पर चल पड़ें.

ये भी पढ़ें- डबल डेटिंग का डबल मजा

सभी को एक सूत्र में पिरोएं. अपने सोशल वर्क और सोशल सर्कल में इतना भी न उलझ जाएं कि घरपरिवार और सगे नातेरिश्तेदारों के लिए समय ही न बचे. अगर आप उन की उपेक्षा करेंगी तो दूसरे लोगों से संबंध बनाने का कोई फायदा नहीं है. इसलिए सभी को एक सूत्र में पिरो कर समानता से चलें ताकि परिवार भी खुश रहे और आप भी.

अगर आप आज सिंगल हैं, तो यह आप का अपना फैसला और अपनी मजबूरी थी. इस से बाकी लोगों को कोई मतलब नहीं है. इसलिए लोगों को बारबार यह कह कर कि मैं तो अकेली हूं, ब्लैकमेल न करें, क्योंकि ऐसा करना ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा. लोग आप को समझ जाएंगे और आप से दूरी बना लेंगे. कभीकभार दुख शेयर करना ठीक रहता है, लेकिन हर वक्त यह अच्छा नहीं लगता. इस से न आप खुद ऐंजौय कर पाएंगी और न ही दूसरों को करने देंगी.

सिंगल पेरैंटिंग के लिए अपनाएं ये 7 टिप्स

आधुनिक काल में परिवार को किसी एक खास दायरे में बांध कर नहीं देखा जा सकता है. यह हमारे समय की खूबसूरती को बखूबी दर्शाता है. आज हमें ऐसी पेरैंटिंग भी दिखती है जहां मातापिता 2 धर्मों के हो सकते हैं, समान लिंग के हो सकते हैं अथवा सिंगल भी हो सकते हैं. सरोगेसी और एडौप्शन के मामले भी काफी दिखते हैं.

मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कहीं न कहीं अब भी हमारे समाज में एक सिंगल पेरैंट को बेचारा के रूप में ही देखा जाता है. उसे हर कदम पर लोगों के सवालों का सामना भी करना पड़ता है, क्योंकि वे समाज में चल रहे कौमन पेरैटिंग के चलन से अलग जीवन जी रहे होते हैं.

सदियों से यह माना जाता रहा है कि बच्चे शादी के बाद की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होते हैं. मांबाप बन कर हमें समाज और परिवार के प्रति अपना दायित्व निभाना होता है. ऐसे में जाहिर सी बात है कि सिंगल पेरैंटिग के प्रति लोगों की भौंहें तो तनेंगी ही. ऐसे मामलों में लोग पेरैंट की नैतिकता और बच्चे की परवरिश पर भी सवाल उठाते हैं. सिंगल पेरैंट और उन के बच्चे जीवन के हर स्तर पर मानसिक प्रताड़ना का शिकार तो होते ही हैं, एक सिंगल पेरैंट को अपने बच्चे की परवरिश करने में भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. आइए, विस्तार से जानते हैं सिंगल पेरैंटिंग के कुछ मनोवैज्ञानिक पहलुओं और टिप्स के बारे में.

जिम्मेदारियों का एहसास बढ़ जाता है

सिंगल पेरैंट द्वारा बड़े किए जाने वाले बच्चों में जिम्मेदारी का एहसास कहीं अधिक होता है और यह एहसास उन के पेरैंट में भी अधिक होता है. पेरैंट जहां अपने जीवनसाथी पर निर्भर नहीं होते वहीं बच्चे भी कम उम्र में ही ज्यादा समझदार हो जाते हैं और अपनी जिम्मेदारियां महसूस करने लगते हैं. परिस्थितियां उन्हें आत्मनिर्भरता और जवाबदेही का महत्त्व स्वत: सिखा देती हैं. ऐसे गुण सिंगल पेरैंटिंग वाले बच्चों को बाकी बच्चों से अलग बनाते हैं. वे अधिक संतुलित और मैच्योर होते हैं.

ये भी पढ़ें- #lockdown: सोशल डिस्टेंस रखे, मेंटल डिस्टेंस नहीं 

विवाद कम होते हैं

ईमानदारी से कहा जाए तो कोई भी शादी परफैक्ट नहीं होती है और हर पतिपत्नी के बीच कभी न कभी कुछ विवाद होता ही है. कई बार ये इतना भयावह रूप ले लेते हैं कि जोड़ों को अलग भी होना पड़ता है. छोटे बच्चों के लिए ऐसे विवादित माहौल में रहना बड़ा कठिन होता है और जब मातापिता अलग होते हैं तो उन के जीवन में अलग उलझनें पैदा हो जाती हैं. वे मांबाप के सम्मिलित प्यार के लिए तरस जाते हैं. बारबार उन का दिल टूटता है.

सिंगल पेरैंट वाले घर में शादी में आने वाले झगड़े और विवादों के लिए बेहद कम जगह होती है. ऐसे में न सिर्फ पेरैंट, बल्कि बच्चों के लिए भी अधिक स्वस्थ वातावरण उपलब्ध होता है और कठिन व अच्छे दिनों के साथ आगे बढ़ने की राह आसानी से तलाश लेते हैं.

पेरैंट और बच्चों के बीच बेहतर संबंध

एक खूबसूरत घरपरिवार उसे ही कहा जा सकता है जहां परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम, सम्मान और समझ विकसित हो. लेकिन अकसर ऐसा देखा जाता है कि आधुनिक दौर के एकाकी परिवारों में लगाव की बेहद कमी होती है, जिस में बेहद व्यस्त मातापिता बच्चों को पूरा वक्त और दुलार नहीं दे पाते हैं और इस की भरपाई तोहफों से करना चाहते हैं.

वहीं सिंगल पेरैंट वाले परिवार में ऐसा देखा गया है कि पेरैंट और बच्चों के बीच लगाव कहीं अधिक होता है. ऐसे बच्चे अपने हमउम्र अन्य बच्चों की तुलना में अधिक मैच्योर और स्नेहिल होते हैं. पेरैंट और बच्चे दोनों ही एकदूसरे को सब से महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में देखते हैं और हर परिस्थिति में दोनों की एकदूसरे पर निर्भरता भी अधिक होती है.

पेरैंटिंग में सावधानियां

1. पेरैंटिंग अपनेआप में ही एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. पति या पत्नी की मौजूदगी चीजों को आसान बना देती है जबकि सबकुछ अकेले संभालना थोड़ा कठिन होता है. इसी वजह से

2. पेरैंट्स के परिवार को ही एक आदर्श परिवार माना जाता है, जिस में मदर और फादर मिल कर बच्चों की परवरिश करते हैं. दोनों आपस में काम शेयर करते हैं, अपनी फाइनैंशियल कंडीशन स्ट्रौंग रख पाते हैं और बच्चों की देखभाल में एकदूसरे की हैल्प करते हैं. सिंगल पेरैंट को माता और पिता दोनों की कमी पूरी करनी होती है और उस के लिए पर्याप्त समय और शक्ति बनाए रखना जरूरी है.

3. कई बार ऐन्वायरन्मैंट पौजिटिव नहीं मिलता. अविवाहित मांओं के बच्चों को समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया जाए तो बच्चों को कमी महसूस होती है. इसी तरह फाइनैंशियल कंडीशन स्टैबल नहीं है तो भी बच्चों पर नैगेटिव इंपैक्ट पड़ने लगता है. घर में कोई और केयरटेकर उपलब्ध नहीं है तो दिक्कतें आ सकती हैं. बीमारी के वक्त भी अकेला अभिभावक बहुत असहाय महसूस करता है.

ये भी पढ़ें- Ex से भी हो सकती दोस्ती

4. सिंगल पेरैंट्स को और भी कई तरह के तनावों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. कई परिस्थितियां जैसेकि अपने लिए समय न मिल पाना, बच्चों के साथ बहुत अधिक जुड़ाव हो जाना, आर्थिक तंगी आदि की तैयारी कर के रखें.

5.  बच्चे एडजस्टमैंट करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं अथवा अलग तरह के व्यवहार कर सकते हैं. उन में संतुलन स्थापित करने की आदत का अभाव हो सकता है जो आगे चल कर दोनों पेरैंट की मौजूदगी अथवा अन्य बच्चे के आने पर कठिनाई महसूस होने के रूप में सामने आ सकता है.

6. पौजिटिव वातावरण होने पर भी कई बार सिंगल पेरैंट्स बच्चों के लिए ओवरपजैसिव हो जाते हैं. इस तरह ज्यादा प्रोटैक्टिव हो जाना या बच्चों को ज्यादा पैंपर करना ताकि उन्हें दूसरे पेरैंट की कमी महसूस न हो, ऐसा व्यवहार भी बच्चों की पर्सनैलिटी डैवलपमैंट को प्रभावित कर सकता है. बच्चे खुद को स्पैशली प्रिविलिज्ड महसूस करते हैं. ऐसी स्थिति में उन के व्यवहार में नैगेटिव इंपैक्ट आ सकते हैं.

7. जरूरी है कि बच्चों को नैचुरल वातावरण दें ताकि वे बड़े हो कर अपनी जिंदगी को अच्छी तरह हैंडल कर सकें. ध्यान रखें बच्चे अपने भविष्य के लिए प्रिपेयर हो रहे हैं, इसलिए उन्हें ट्रस्टिंग ऐन्वायरन्मैंट मिलना चाहिए जहां वे पौजिटिव इंटरैक्शन देखते हैं, स्ट्रैस को हैंडल करना और संघर्ष करना सीखते हैं.

8. यदि समाज ऐक्सैप्ट नहीं कर रहा है, तो सिंगल मदर को स्ट्रैस होना स्वाभाविक है. उसे लगेगा कि लोग उसे सही नहीं मानते. इस से कहीं न कहीं मां के मन में हीनभावना घर करने लगेगी. उसे लगेगा कि वह बच्चे को सबकुछ नहीं दे पा रही. उस के मन की स्थिति का सीधा असर बच्चों पर पड़ेगा. यदि समाज में बारबार कहा जाए कि इन के तो पापा नहीं हैं, ये कुछ नहीं कर पाएंगे तो उन बच्चों के मन पर गहरा असर पड़ता है. अत: जरूरी है कि बच्चों को संतुलित वातावरण दिया जाए.

ये भी पढ़ें- सहेलियां जब बन जाएं बेड़ियां

9. एक सिंगल पेरैंट और उन के बच्चों के बीच का लगाव, प्रेम और प्रतिबद्धता का एक बेहतरीन उदाहरण होता है, लेकिन इस के साथ कुछ अन्य वास्तविकताएं भी जुड़ी होती हैं. अगर इन के बीच बेहतरीन संतुलन बना रहे तो ये बच्चे बेहद प्रतिभाशाली और मानवता के लिए बेहतरीन उदाहरण बन कर उभर सकते हैं. लेकिन इस के लिए सामाजिक स्तर पर भी कुछ जिम्मेदारियां निभानी होंगी. मसलन, सिंगल पेरैंट और उन के बच्चों के लिए भी प्रेम और सम्मान का माहौल उपलब्ध कराना, उन्हें दिल से स्वीकार करना और उन के संबंधों के जरीए जीवन की खूबसूरती को देखने का प्रयास करना.

-डा. ज्योति कपूर मदान, मनोचिकित्सक, पारस हौस्पिटल गुरुग्राम, से गरिमा पंकज द्वारा की गई बातचीत पर आधारित. 

टिप्स: अगर आप भी हैं सिंगल मदर तो ऐसे मैनेज करें नाइट शिफ्ट

टीवी अभिनेत्री डौली सोही सिंगल मदर हैं. वे 7 सालों से पति से अलग अपने माता-पिता के साथ रह रही हैं. शुरू-शुरू में तो उन्हें लगा था कि अब वे कैसे नाइट शिफ्ट में काम कर पाएंगी, लेकिन परिवार के सहयोग से नाइट शिफ्ट में काम करना मुश्किल नहीं रहा. उन की बेटी अमिलिया धनोवा अभी 8 साल की है. जब बेटी छोटी थी तो कई बार नाइट शिफ्ट करना मुश्किल हो जाता था. इस के लिए डौली को पहले से सारी तैयारी करनी पड़ती थी ताकि सुबह बेटी की देखभाल करने वाले को मुश्किल न हो.

डौली ही नहीं, कई ऐसी मांएं हैं जो या तो डिवोर्सी हैं या फिर सैपरेटेड और उन्हें नाइट शिफ्ट में काम के लिए जाना पड़ता है. ऐसे में बच्चे को अकेले रात भर छोड़ने की कई गुना जिम्मेदारी मां पर आ जाती है. काम के साथ-साथ उसे बच्चे की भी देखभाल करनी पड़ती है. ऐसे में अगर सपोर्ट सिस्टम सही है, तो नाइट शिफ्ट में काम करना मुश्किल नहीं. अगर ऐसा नहीं है तो मां को अच्छी प्लैनिंग करनी पड़ती है ताकि वह आराम से काम कर सके.

ये भी पढ़ें- आप पापा बनने वाले हैं: जब सुनानी हो खुशखबरी, ट्राय करे ये 10 टिप्स

अधिकतर देखा गया है कि नाइट शिफ्ट करने वाली मां के बच्चे मनमानी अधिक करते हैं, क्योंकि मां अपना क्वालिटी टाइम उन के साथ बिता नहीं पाती. ऐसे में सही प्लैनिंग ही बच्चे की सही परवरिश के लिए जरूरी है.

इस बारे में मुंबई की काउंसलर राशिदा कपाडि़या बताती हैं कि सिंगल मदर के लिए नाइट शिफ्ट में काम करना मुश्किल नहीं है. अगर बच्चा छोटा है, तो उसे अलग प्लैनिंग करनी पड़ती है और अगर बड़ा है, तो उसे अलग तरीके से संभालना पड़ता है. 4 साल की उम्र के बाद से मां बच्चे को कुछ-कुछ बातें समझा सकती है जैसेकि उसे नाइट शिफ्ट क्यों करनी पड़ रही है, बच्चे की क्या जिम्मेदारियां हैं बगैरा.

ये भी पढ़ें- रिलेशनशिप सुधारने में ये 5 टिप्स करेंगे आपकी मदद

पेश हैं, इस संबंध में कुछ टिप्स जिन पर गौर कर मां अपने पीछे बच्चे की देख-रेख के प्रति बेफिक्र रह सकती हैं:

1 अगर बच्चा छोटा हो तो सब से पहले मां को अपना मोबाइल हमेशा फुल चार्ज रखना चाहिए ताकि जब भी जरूरत हो कौल कर बच्चे के बारे में जानकारी ले सकें .

2 औफिस पहुंचते ही पहुंचने का संदेश करे ताकि बच्चे को संभालने वाले को मां के बारे में जानकारी हो. संदेश फैमिली मैंबर या पास रहने वाले किसी दोस्त को भी भेज सकती है, ताकि किसी भी जरूरत के समय वे कौल कर सकें.

3 छोटा बच्चा होने पर उस के खानपान की पूरी प्लैनिंग पहले से करे और उसे संभालने वाले को उस के बारे में पूरी जानकारी दे.

4 अगर घर में संभालने के लिए परिवार का कोई सदस्य न हो और बाई रखनी है तो उसे किसी जानकार और पुलिस की जांच करा कर ही रखें, क्योंकि कई बार मेड सर्वेंट अपना बौयफ्रैंड ले कर आती है. ये चोरी-डकैती या फिर किडनैपिंग को अंजाम देते हैं.

5 किसी भी घातक या ज्वलनशील वस्तु को बच्चे की पहुंच से दूर रखें.

6 घर में कोई भी महंगी वस्तु न रखें.

7 कहां और कब जा रही है, कब तक घर आने वाली है किसी भी बात को सोशल मीडिया पर कभी शेयर न करे, क्योंकि सोशल मीडिया पर सबकुछ कैद हो जाता है और ऐेसे बहुत लोग हैं, जो सोशल मीडिया को देख कर चोरी या डकैती करते हैं.

ये भी पढ़ें- अगर आप भी हैं सिंगल मदर तो काम आ सकते हैं ये बेबी केयर टिप्स

8 बच्चे की तस्वीर को भी सोशल मीडिया पर कभी शेयर न करें.

9 अगर बच्चा बड़ा हो तो उसे अपने काम के बारे में जानकारी दे, उसे समझाए कि नाइट शिफ्ट क्यों करनी पड़ती है.

10 बच्चे को सिखाए कि बिना जानकारी के किसी के लिए भी दरवाजा न खोलें.

11 बड़े बच्चे को खाने-पीने से संबंधित जानकारी भी दे, ताकि भूख लगने पर वह कुछ ले या बना कर खा लें. उस के स्कूल जाने से संबंधित सारी तैयारी पहले से कर के रखे.

12 बच्चे को क्या डैंजर है, उस की सही जानकारी दे.

13 मोबाइल में औटो डायल की व्यवस्था डाउनलोड कर ले ताकि किसी भी समस्या को बच्चा या देखभाल करने वाला मां तक जल्दी पहुंचा सके.

14 ‘फर्स्ट ऐड बौक्स’ के बारे में सही जानकारी दे ताकि जरूरत के अनुसार वह दवा का प्रयोग कर सके. काम के दौरान मां को जब भी समय मिले बच्चे के बारे में जानकारी लेती रहे.

15 बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास का भी ध्यान रखे. हमेशा कोशिश करे कि उस के साथ कुछ समय बिताए ताकि उस की किसी भी जिज्ञासा की सही जानकारी उसे मिलती रहे और वह अपने रास्ते से भटके नहीं.

अगर आप भी हैं सिंगल मदर तो काम आ सकते हैं ये बेबी केयर टिप्स

बिना विवाह के मां बनने, मां बनने से पहले पति से अलगाव होने या बच्चे के पैदा होने के समय मां की मृत्यु के कारण बच्चे को अकेले पालने की आवश्यकता हो जाती है. मानसिक, आर्थिक समस्याओं के साथ छोटे बच्चे को अकेले पालना कठिन काम है.

पेश हैं, सिंगल पेरैंटिंग के लिए कुछ सुझाव:

गोद में उठाना: आप का नवजात बहुत नाजुक होता है, लेकिन उसे छूने या गोद में उठाने से घबराएं नहीं. उस की गरदन की पेशियां कमजोर होती हैं, इसलिए उसे गोद में उठाते समय उस की गरदन को सहारा दें. अपने कंधे पर उस का सिर टिकाएं और दूसरे हाथ से गोद में पकड़ें.

दूध पिलाना: बच्चे को दूध पिलाने से जहां एक ओर उस का विकास होता है, वहीं दूसरी ओर आप के और बच्चे के बीच का रिश्ता मजबूत होता चला जाता है. अपने दोस्तों से बात करें, जिन्हें नर्सिंग का अच्छा अनुभव हो. अगर आप सिंगल फादर हैं तो पीडिएट्रिशियन से सलाह ले सकते हैं और लैक्टेशन के विकल्पों के बारे में जान सकते हैं.

बच्चे की मालिश: मालिश करने से बच्चे को आराम मिलता है, उसे अच्छी नींद आती है, वह शांत रहता है. रोजाना अपने हाथ से बच्चे की मालिश करने से आप का बच्चे के साथ रिश्ता भी मजबूत होता है. उसे बिस्तर पर कभी अकेला न छोड़ें ताकि वह गिरे नहीं.

नहलाना: बच्चे को नहलाना नई मां के लिए बहुत मुश्किल काम है. उसे नहलाने का तरीका सीखें. नहलाना शुरू करने से पहले सभी जरूरी चीजें तैयार कर लें ताकि बच्चे को अकेला छोड़ यहां वहां न भागना पड़े. बच्चे के शरीर के नाजुक अंगों को हलके हाथों से साफ करें.

कपड़े सही तरीके से पहनाएं: 6 महीने की उम्र तक बच्चे का शरीर अपने तापमान को नियंत्रित नहीं कर सकता, इसलिए कपड़े पहनाते समय सावधानी बरतें. बच्चे को उतने ही कपड़े पहनाने चाहिए जितनी जरूरत हो. ज्यादा कपड़े पहनाने से उसे ज्यादा पसीना आएगा और उस का शरीर ठंडा पड़ सकता है.

बच्चे के स्वास्थ्य के लिए सुझाव…

बच्चे के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. इस के लिए इन बातों पर गौर करें:

1 जन्म के पहले 3 से 5 दिनों के अंदर पीडिएट्रिशियन से मिलें. इस के बाद जब वह 2 सप्ताह का हो जाए तो उसे एक बार फिर से डाक्टर के पास ले जाएं.

2 जन्म के पहले सप्ताह में बच्चे का वजन 5 से 10 फीसदी कम हो जाता है, पर 2 सप्ताह की उम्र तक वजन फिर से बढ़ कर उतना ही हो जाता है.

3 ध्यान रखें कि बच्चा बहुत लंबे समय तक एक ही स्थिति में न लेटा रहे. उस की स्थिति बदलते रहें अन्यथा उस की पीठ और सिर चपटी शेप ले सकते हैं.

4 बच्चे को धुंए के संपर्क में न आने दें.

जब तक बच्चे का इम्यून सिस्टम मजबूत नहीं हो जाता (कम से कम 2-3 महीने की उम्र तक), उसे भीड़भाड़ भरे स्थानों में न ले कर जाएं. डे केयर, मौल, स्पोर्ट्स इवैंट आदि में न ले कर जाएं. बच्चे को ऐसे दूसरे बच्चे के संपर्क में न आने दें जो किसी संक्रमण से ग्रस्त हों.

बीमारी के लक्षणों को पहचानें. अगर बच्चे का तापमान 100.4 से अधिक है, तो तुरंत उसे डाक्टर के पास ले जाएं. कम से 2-3 महीने तक इस बात का खास खयाल रखें. इस के अलावा भूख में कमी, उलटी, चिड़चिड़ापन, सुस्ती जैसे लक्षण दिखाई दें तो भी पीडिएट्रिशियन से बात करें.

बच्चे को दिए जाने वाले सभी टीकों/वैक्सीन का रिकौर्ड रखें.

खुद की देखभाल के लिए सुझाव….

1 अगर आप गुस्से में या उदास हैं, तो अच्छा होगा अपने थेरैपिस्ट से बात करें. उसे अपनी हताशा, अवसाद या चिंता के बारे में खुल कर बताएं. अपनी दिनचर्या में शारीरिक व्यायाम शामिल करें, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद लें. अकेले या दोस्तों के साथ मिल कर कुछ ऐक्टिविटीज करें.

2 सप्ताह में कम से कम कुछ देर के लिए अपने लिए समय निकालें. इस समय आप बच्चे को उस के केयर टेकर के पास छोड़ सकती हैं.

3 अपने मन को शांत रखें: कई बार ऐसा महसूस होता है कि जीवनसाथी से अलग होना आप का अपना फैसला नहीं था या आप को अतीत में लिए गए इस फैसले पर अफसोस होता है, जिसे अब बदला नहीं जा सकता. इन सब चीजों को भूल कर दिमाग को शांत रखें. अपने बच्चे के साथ समय बिताएं.

उन दोस्तों से मिलेंजुलें जो आप का मनोबल बढ़ाते हों. सकारात्मक सोच वाले दोस्त आप को मजबूती से स्थिति का सामना करने और जीवन को अच्छी तरह से जीने में मदद कर सकते हैं.

अपने लिए समय निकालें: जब आप का बच्चा सो रहा हो, स्कूल गया हो तब अपने लिए कुछ समय निकालें. इस समय आप अपने दोस्त के साथ बात कर सकती हैं या अपनी मनपसंद किताब पढ़ सकती हैं. अपने परिवारजन या दोस्त के पास बच्चे को कुछ देर के लिए छोड़ कर भी आप अपने लिए समय निकाल सकती हैं. इस से आप खुश रहेंगी. आप में ऐनर्जी बनी रहेगी. साथ ही अपने बच्चे को भी खुश रख सकेंगी.

जो आप के बस में नहीं, उसे भूल जाएं: आप का बच्चों को पालने का तरीका दूसरों से अलग हो सकता है. सभी स्थितियां हर समय एकजैसी नहीं रहतीं. हर चीज का बोझ अपने ऊपर न लें. हर कोई अपनी समस्याओं का सामना अपने तरीके से करता है. 2 लोगों का जीवन कभी एक जैसा नहीं हो सकता.

फिटनैस पर ध्यान दें: फिर से बच्चा बन जाएं. गाएं, डांस करें, रस्सी कूदें. इस तरह की चीजों से जहां एक ओर आप की फिटनैस बनी रहेगी, वहीं आप खुश भी महसूस करेंगी.

आराम करें: नींद पूरी न लेने से कई समस्याएं हो सकती हैं. सोने का समय तय करें और इस समय बिना किसी तनाव के अपने बच्चे के साथ सोने चली जाएं.

सकारात्मक रहें: अगर आप मुश्किल दौर से गुजर रही हैं, तो बच्चे के साथ ईमानदार रहें, उसे बताती रहें कि सब ठीक हो जाएगा. रोज की समस्याओं को हल करने के साथ चेहरे पर मुसकान बनाए रखें. अपने बच्चों के साथ नया सफल परिवार बनाने की भरपूर कोशिश करें.

मजबूत बनी रहें: जीवनसाथी से अलग होने के बाद आप अकसर भावनात्मक दबाव महसूस करती हैं. यह असामान्य नहीं है. अपने परिवार या दोस्त से मदद मांगने से न हिचकिचाएं. ऐसे समय में खुद पर ज्यादा बोझ महसूस करना स्वाभाविक है और विचारों में स्थिरता आने में समय लगता है.

अपने जीवन को व्यवस्थित बनाएं: हालांकि अब आप के जीवन में एक व्यक्ति कम है, लेकिन आप को अभी भी काम करना है, बल्कि सभी काम अकेले करने हैं. इस में घर, बच्चों के साथ अपनी देखभाल भी शामिल है. अगर आप के बच्चे थोड़े बड़े हो चुके हैं तो वे

घर के कामों में हाथ बंटा सकते हैं. इस से न केवल आप पर बोझ थोड़ा कम होगा, बल्कि

उन में भी जिम्मेदारी की भावना आएगी. इस तरह से आप बच्चों में सहानुभूति की भावना भी पैदा कर सकेंगी.

-डा. रीनू जैन (सीनियर कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गायनोकोलौजी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा)   

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें