क्रैमिका आप के लिए नए क्रैमिका फू्रट क्रशेज लाया है, जो आप के नाश्ते को और भी स्वादिष्ठ बना देंगे. यह 3 फ्लेवर्स में उपलब्ध है- स्ट्राबैरी, मैंगो और पाइनऐप्पल. इस के एक पैक की कीमत Rs. 125 है.
क्रैमिका आप के लिए नए क्रैमिका फू्रट क्रशेज लाया है, जो आप के नाश्ते को और भी स्वादिष्ठ बना देंगे. यह 3 फ्लेवर्स में उपलब्ध है- स्ट्राबैरी, मैंगो और पाइनऐप्पल. इस के एक पैक की कीमत Rs. 125 है.
अब सिलाई मशीन कंप्यूटराइज्ड हो कर हाईटैक उपकरणों की सूची में नाम दर्ज करा चुकी है. सिलाई मशीन को इस पायदान पर पहुंचाने का काम किया है ऊषा जैनोम ड्रीम मेकर 120 ने. महिलाओं के लिए यूजर फ्रैंडली औटोमैटिक फीचर्स वाली यह सिलाई मशीन खासतौर पर कामकाजी और डिजाइनिंग में रुचि लेने वाली महिलाओं के लिए तैयार की गई है.
इस मशीन में 120 बिल्ट इन स्टिच डिजाइंस, ट्विन नीडल फंक्शन और एकसाथ 2 रंगों के धागों से सिलाई करने का विकल्प उपलब्ध है. साथ ही इस मशीन द्वारा आप अपने मनमाफिक ढेरों डिजाइन तैयार कर सकती हैं. यह मशीन बाजार में 2 साल की वारंटी के साथ क्व32,500 में उपलब्ध है.
किवी फ्रूट उत्पादन की प्रसिद्ध कंपनी जेस्प्री आप के लिए लाई है बेहद स्वादिष्ठ और पोषण से भरपूर सनगोल्ड और ग्रीन किवी फू्रट. ये फू्रट विटामिन सी, पोटैशियम, विटामिन ई, फोलेट और फाइबर जैसे पोषक तत्त्वों से युक्त हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा है. इसे अपने पसंदीदा पेय में मिलाएं और उठाएं लुत्फ एक नए स्वाद का.
होमशौप 18 अब आप के टीवी, लैपटौप और मोबाइल फोन पर शौपिंग करने की सुविधा लाया है. होमशौप 18 में कपड़े, ऐक्सैसरीज, स्वास्थ्य व सौंदर्य प्रोडक्ट्स और घरेलू सजावट व रसोई उपकरणों जैसे शानदार उत्पाद उपलब्ध हैं और आप के घर पर डिलिवर होने का इंतजार कर रहे हैं. आप को बस अपने टीवी पर होमशौप 18 देखना है या अपने लैपटौप या मोबाइल से होमशौप 18 डौट कौम पर जाना है.
कई श्रेणियों में लाखों प्रोडक्ट्स, 1,000 से अधिक ब्रैंड्स और पूरे भारत में 3,000 स्थानों पर लौजिस्टिकल पहुंच के साथ. इस सीजन में होमशौप 18 ही शौपिंग करने की एकमात्र जगह है.
तो किस का इंतजार है? अपना टीवी चालू करें और होमशौप 18 देखें. उस में गरमी को मात देने के लिए दुनिया भर के विकल्प पाएं, जो विभिन्न प्लेटफौर्म- टीवी, वैब और मोबाइल पर विशेष रूप से उपलब्ध हैं. आप को सभी उत्पाद सीधे आप के घर की चौखट पर उपलब्ध कराए जाएंगे.
हेयरकेयर प्रोडक्ट्स के जानेमाने निर्माता इंडोला ने नया इंडोला इनोवा कलर शैंपू और कंडीशनर मार्केट में उतारा है. इंडोला इनोवा कलर कंडीशनर ‘जैमस्टोन ऐक्सट्रैक्ट’, ‘हाईड्रोलाइज्ड कैराटिन’ और ‘ऐपरीकोट करनल औयल’ से भरपूर है, जो बालों की उल?ानों को खोल कर उन्हें बेहतर लुक देगा.
सौंदर्य प्रसाधनों के उत्पादन क्षेत्र में जानीमानी कंपनी लैक्मे द्वारा पेश है लैक्मे ऐब्सोल्यूट ग्लौस रेंज. इस रेंज के सभी उत्पादों लैक्मे स्किन ग्लौस जैल क्रीम, लैक्मे स्किन ग्लौस रिफ्लैक्शन सिरम, लैक्मे स्किन ग्लौस ओवरनाइट मास्क और लैक्मे ऐब्सोल्यूट ग्लौस ऐडिक्ट लिपकलर में वे सारी खूबियां हैं, जो आप की त्वचा को पूरा दिन आकर्षक बनाए रखेंगी.
वैसलीन ने ‘वैसलीन हैल्दी व्हाइट’ की नई रैंज पेश की है. पैट्रोलियम जैली की बूंदों की शक्ति से भरपूर ‘हैल्दी व्हाइट लाइटनिंग लोशन’, ‘हैल्दी व्हाइट एसपीएफ 24 ट्रिपल लाइटनिंग’ और ‘हैल्दी व्हाइट कंप्लीट 10’ प्रोडक्ट्स आप की त्वचा को सूर्य की हानिकारक किरणों से सुरक्षा प्रदान करेंगे. इस की 100 एमएल की बोतल Rs. 85 से ले कर Rs. 100 तक में मिलेगी.
हाजमोला को बाजार में पेश कर के डाबर ने अपने लोकप्रिय ब्रैंड हाजमोला को कन्फैक्शनरी मार्केट में उतार दिया है. क्व2 प्रति सैशे में उपलब्ध चुजकारा की खासीयत है कि यह अपने जोरदार स्वाद के साथ अन्य पारंपरिक कन्फैक्शनरी उत्पादों से बिलकुल अलग है.
29 बांग्ला फिल्मों में अभिनय कर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार के साथसाथ गोल्डन पिकौक अवार्ड भी पा चुकीं अदाकारा पाओली दाम ने खुद को किसी सीमा में नहीं बांधा. वे 2012 में विक्रम भट्ट की असफल हिंदी फिल्म ‘हेट स्टोरी’ में काव्या कृष्णा के अतिबोल्ड किरदार में नजर आई थीं. तब माना जाने लगा था कि वे बौलीवुड में इसी तरह के जिस्म नुमाइश वाले किरदार निभाती नजर आएंगी. लेकिन उस के 1 साल साल बाद ही वे फिल्म ‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’ में ऊपर से ले कर नीचे तक कपड़ों से ढकी काजोली सेन नामक वकील के किरदार में लोगों को चौंका गई.
इन दिनों पाओली एक तरफ इस साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कोंकणी भाषा की फिल्म ‘बागा बीच’ को ले कर चर्चा में हैं, जिस में उन्होंने सब्सटैंस औफ ओमन का जबरदस्त किरदार निभाया है, तो दूसरी तरफ सुभाष सहगल की फिल्म ‘सारा सिल्लीसिल्ली’ को ले कर चर्चा में हैं, जिस में उन्होंने बांग्ला के सुपरस्टार परमब्रता के साथ रोमांटिक किरदार निभाया है. इन दिनों वे मुंबई में एक बांग्ला फिल्म ‘आरोनी ताखोन’ को ले कर भी चर्चा में हैं, जिस में वे एक मुसलिम लड़की का किरदार निभा रही हैं.
पेश हैं, पाओली दाम से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश:
क्या वजह है कि हिंदी फिल्में कम करती हैं?
ऐसा कुछ नहीं है. पर यह तय है कि मैं बांग्ला फिल्मों को कभी अलविदा नहीं कह सकती. मुझे हिंदी या अन्य किसी भी भाषा की अच्छी फिल्म करने से परहेज नहीं है.
आप की हिंदी फिल्म ‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’ बेहतरीन फिल्म है. पर बौक्स औफिस पर नहीं चली. इस से आप को बहुत तकलीफ हुई होगी?
तकलीफ तो होती ही है, क्योंकि हम हर फिल्म में पूरी मेहनत के साथ काम करते हैं. फिर ‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’ तो डाक्टरी लापरवाही पर एक बोल्ड फिल्म है. हम चाहते हैं कि इस तरह के विषयों वाली फिल्में ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंचें. मगर जब यह फिल्म नहीं चली, तो बहुत दुख हुआ. पर मेरी राय में इस फिल्म को सही तरीके से डिस्ट्रीब्यूट नहीं किया गया. इसे बहुत कम थिएटरों में रिलीज किया गया. पब्लिसिटी में भी गड़बड़ थी. आम लोगों को तो पता ही नहीं चला कि फिल्म कब रिलीज हुई. बाद में इस फिल्म को लोगों ने बहुत पसंद किया.
मेरी कोंकणी फिल्म ‘बागा बीच’ भी अभी तक रिलीज नहीं हुई है, जबकि उसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. इस तरह की पुरस्कृत फिल्में जब रिलीज नहीं होतीं, तब तो आप को बहुत तकलीफ होती होगी? हम जिस फिल्म में काम करते हैं, यदि वह दर्शकों तक नहीं पहुंचती है, तो तकलीफ होती ही है. राष्ट्रीय पुरस्कार मिल जाने के बाद यह साफ हो जाता है कि फिल्म अच्छी है. लेकिन मैं उम्मीद करती हूं कि यह फिल्म रिलीज होगी.
फिल्म ‘बागा बीच’ में आप का क्या किरदार है?
इस फिल्म में मैं ने बीड बेचने वाली का किरदार निभाया है, कर्नाटक से आ कर गोवा के बीच पर बीड बेचती है. वह गोवा से नहीं है, इसलिए गोवा के लोग उसे पसंद नहीं करते हैं. इस वजह से उसे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि उस की जिंदगी को भी खतरा होता है.
शायद आप पहली बांग्ला अभिनेत्री है जिन्होंने कोंकणी फिल्म में काम किया?
जी हां, वास्तव में 2011 में कांस फिल्म फैस्टिवल में मेरी मुलाकात फिल्मकार लक्ष्मीकांत शेटगांवकर से हुई थी. वहां से आते ही उन्होंने मुझे एक स्क्रिप्ट सुनाई जो मुझे बहुत पसंद आई. फिर मुझे बताया गया कि वे इसे कोंकणी, हिंदी व अंगरेजी भाषा में बनाने जा रहे हैं. मुझे किसी भी भाषा की फिल्म करने से परहेज नहीं था. लिहाजा मैं ने यह फिल्म की. फिल्म बहुत अच्छी बनी. इसलिए इसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. मगर अफसोस कि अब तक यह रिलीज नहीं हो पाई है. यह फिल्म गोवा की पृष्ठभूमि पर बनी है और पूरी फिल्म गोवा में ही फिल्माई गई है. इस में गोवा को आम गोवा की तरह नहीं दिखाया गया है, बल्कि लोग इस में एक कलरफुल गोवा देख सकेंगे.
फिल्म ‘आरोनी ताखोन’ में आप का क्या किरदार है?
मेरा रूना रेजा नामक एक मुसलिम लड़की का किरदार है. जैसे आम लड़कियां होती हैं, वैसी ही फुल औफ लाइफ लड़की है. उसे एक हिंदू लड़के से प्यार हो जाता है. कहानी की पृष्ठभूमि 1990 है, जब कुछ धार्मिक दंगे हुए थे. उसी दौरान यह लड़की अपने प्रेमी के साथ किसी दंगे में फंस जाती है. फिर उन की जिंदगी में क्याक्या होता है, वह देखने लायक है. यह एक वंडरफुल किरदार है. मेरी राय में इस तरह के किरदार फिल्मों में बहुत कम नजर आते हैं. इस में हमारे साथ इंद्रनील, प्रतीक, प्रसन्नोजीत चटर्जी सहित कई दूसरे कलाकार भी हैं.
फिल्म ‘आरोनी ताखोन’ में जिस तरह से धार्मिक दंगों की बात की जा रही है, क्या निजी जिंदगी में कभी आप का इस तरह के दंगों से सामना हुआ?
नहीं. आम आदमी जिन का इन दंगों से कोई लेनादेना नहीं होता है, वह कैसे प्रभावित होता है, उस की जिंदगी कैसे प्रभावित होती है, उसी की कहानी है. निजी स्तर पर मुझे कभी इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. इसलिए इस किरदार को निभाना मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि जिन चीजों का सामना मैं ने निजी जिंदगी में नहीं किया है, उन्हीं से इस किरदार को गुजरना है. इस में रूना रेजा की जिंदगी बहुत रोचक है.
फिल्म के निर्देशक सौरव चक्रवर्ती को ले कर क्या कहेंगी?
सौरव चक्रवर्ती की स्वतंत्र निर्देशक के रूप में यह पहली फिल्म है. पर वे इस से पहले आशुतोष गोवरीकर के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम कर चुके हैं. वे बहुत ही फोकस्ड निर्देशक हैं. जब उन्होंने स्क्रिप्ट सुनाई, तभी मेरी समझ में आ गया था कि उन्होंने इस विषय पर कितनी बड़ी तैयारी कर रखी है.
जब भी दंगों पर आधारित फिल्में बनती हैं, तो उन में प्रेम कहानी को ही भुनाया जाता है. ऐसा क्यों?
हमारी इस फिल्म में दूसरे ऐंगल भी हैं. फिल्म में कई ऐलीमैंट हैं. यह कोई आम फिल्म नहीं है.
धीरेधीरे आप ग्लैमरस व बोल्ड अदाकारा की ईमेज से दूर होती जा रही हैं?
मैं ने कभी कोई भी किरदार किसी खास ईमेज में बंधने के लिए नहीं निभाया. मैं ने हमेशा स्क्रिप्ट व किरदार की मांग को ही पूरा करने का प्रयास किया. मेरे अंदर अभिनय क्षमता कूटकूट कर भरी हुई है. मुझे ड्रामैटिक किरदार निभाने में ज्यादा मजा आता है. मैं ने अपने अब तक के कैरियर में अलगअलग तरह की फिल्में और अलगअलग तरह के किरदार निभाए हैं. यदि मैं ने कुछ फिल्मों में सिर्फ डांस किया है, तो वहीं कुछ फिल्मों में चुनौतीपूर्ण अभिनय भी किया और राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किए.
बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री और बौलीवुड में बहुत फर्क है. आप अपनेआप को कहां सहज महसूस करती हैं?
मैं हर जगह सहज हूं. मुझे हर जगह काम करना है. हर तरह व हर भाषा की फिल्में करनी हैं, क्योंकि मुझे अच्छा सिनेमा करना है. जब मैं ‘बागा बीच’ कर रही थी. तब मैं पूरा 1 माह गोवा में थी. अलगअलग लोगों से मिलना, अलगअलग फिल्म की यूनिट से मिलना अच्छा लगता है. हम हर इंसान से कुछ न कुछ सीखते हैं.
इन दिनों हर कलाकार हौलीवुड की फिल्मों में काम करने के लिए जोड़तोड़ कर रहा है. आप भी ऐसा कुछ करना चाहती हैं?
मैं ने कोई योजना नहीं बनाई है. पर मैं भी हौलीवुड की फिल्म करना चाहूंगी. एक कलाकार के तौर पर मैं अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाना चाहती हूं.
मल्टीप्लैक्स के आने के बाद हौलीवुड की फिल्में भारतीय भाषाओं में डब हो कर रिलीज होने लगी हैं. इस से भारतीय सिनेमा को चुनौती मिल रही है?
मुझे तो लगता है कि लोग धीरेधीरे इस का विरोध करने लगे हैं. हौलीवुड की फिल्मों के भारत में रिलीज होने से भारतीय फिल्मों के लिए नई चुनौती पैदा हो रही है.
जब हिंदी फिल्में क्षेत्रीय भाषा में डब कर के दिखाई जाती है, तो लोग उस का विरोध करते हैं. हर क्षेत्रीय भाषा में न सिर्फ कलाकार, बल्कि तकनीशियन भी काम करते हैं. आप जब डब कर के फिल्म रिलीज करते हैं, तो इस का असर उन पर पड़ता है, मैं डब फिल्मों या रीमेक फिल्मों को कभी सही नहीं मानती.
पाओली दाम अभी भी सिंगल हैं?
मैं सिंगल कहां हूं. मेरे ढेर सारे दोस्त हैं.
70वर्षीय पंकज साहा कोलकाता के एक गरीब परिवार का है. आज से 10 साल पहले जब उस की हृदयगति धीमी पड़ गई, तो डाक्टर ने उसे पेसमेकर लगवाने की सलाह दी. उस ने परिवार वालों की मदद से पैसे इकट्ठा कर पेसमेकर लगवाया. 10 साल बाद जब पेसमेकर ने काम करना बंद कर दिया तो नया लगवाने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह बहुत परेशान था. तभी उसे किसी व्यक्ति ने मैडिकल बैंक की जानकारी दी. पंकज साहा वहां गया तो उसे वहां से मुफ्त में पेसमेकर मिल गया. अभी वह फिर से नौर्मल जिंदगी जी रहा है.
दरअसल, 1980 के शुरू में 24 वर्षीय डी. आशीष ने 4-5 लोकल छात्रों के साथ मिल कर कोलकाता के हाटखोजा में मैडिकल बैंक की स्थापना की. पहले इस बैंक में उन दवाओं को इकट्ठा किया जाता था. जिन्हें लोग बिना खाए फेंक देते थे. वे दवाएं इकट्ठा कर के उन मरीजों में बांटी जाने लगीं जो गरीब थे. इस काम में उन्हें लोगों की मदद काफी मिली जिस से गरीबों का इलाज संभव होने लगा. इस के साथसाथ उन्होंने चश्मे भी इकट्ठा करने शुरू किए. इन चश्मों में सही पावर डाल कर उन्हें जरूरतमंद गरीबों को दिया जाने लगा. ऐसे ही समाजसेवा करतेकरते उन की नजर पेसमेकर पर पड़ी.
मुफ्त इलाज
उन की संस्था में 50 डाक्टर भी अलगअलग क्षेत्र और विभाग के हैं. ये सभी डाक्टर गरीबों का मुफ्त में इलाज करते हैं. उन की मदद से पेसमेकर उन अमीर मरीजों से इकट््ठा किया जाने लगा, जो पेसमेकर लगाने के बाद अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहते. उन की मृत्यु के बाद पेसमेकर को या तो पानी में बहा दिया जाता है या मिट्टी में गाड़ दिया जाता है.
डी. आशीष ने इस काम के लिए श्मशान, अस्पताल आदि सभी स्थानों से संपर्क किया और अब जब भी ऐसी डैडबौडी श्मशान आती है, तो वहां के लोग उन्हें सूचित करते हैं. इस के अलावा अस्पतालों में भी मृत व्यक्ति के परिवारजनों को समझा कर डाक्टर उस का पेसमेकर निकाल लेते हैं और डी. आशीष को दे देते हैं.
डी. आशीष ऐसे पेसमेकर्स की जांच करा उन्हें जरूरतमंदों को देते हैं. अभी तक उन बैंक में करीब 600 पेसमेकर आए हैं, जिन में से 200 लोगों को लग चुके हैं. इसे लगवाने वाले लोग अधिकतर 24 परगना, बीरभूम, बांकुड़ा, हावड़ा, हुगली और कोलकाता के हैं.
डाक्टरों का सहयोग
इसे लगवाने से पहले मरीज को अपनी आर्थिक कमजोरी का प्रमाणपत्र किसी डाक्टर, पंचायत, प्रमुख या जनप्रतिनिधि से लिखवा कर मैडिकल बैंक को देना पड़ता है. इस के बाद मैडिकल बैंक उसे पेसमेकर मुफ्त में देता है. इसे लगवाने में लगने वाले खर्चे को भी मैडिकल बैंक स्पौंसर करवाने की कोशिश करता है, जो 10 से 12 हजार होता है.
डी. आशीष दिल्ली, झारखंड, असम और बिहार में मैडिकल बैंक खोलने की योजना बना रहे हैं. मुंबई के ग्लोबल हौस्पिटल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण कुलकर्णी कहते हैं कि इस अभियान की हर प्रदेश में होने की जरूरत है, क्योंकि एक पेसमेकर का मूल्य क्व60 से 70 हजार होता है. इसे लगवाने की फीस मिला कर इस पर करीब 1 लाख का खर्चा आता है, जो गरीब व्यक्ति नहीं कर सकता.
सरकार भी इस दिशा में कोई काम नहीं करती. मुंबई में के ई.एम. में ऐसा बैंक खोला गया था पर उपयुक्त व्यवस्था न होने की वजह से वह बंद पड़ा है. डा. कुलकर्णी कहते हैं कि मीडिया और एनजीओ को भी इस दिशा में काम करना चाहिए, ताकि पेसमेकर देने वाले और लेने वाले दोनों आपस में जुड़ सकें.
कोलकाता का मैडिकल बैंक पेसमेकर सेवा के अलावा वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा भी मुहैया करवाता है और थैलिसीमिया और हीमोफीलिया से पीडि़त गरीब बच्चों के लिए ब्लड की व्यवस्था करता है.