मिनी, एडजस्ट करो प्लीज: क्या हुआ था उसके साथ

देखते ही देखते गुबार उठा और आंधी चलने लगी. भाभी ने ड्राइंगरूम से आवाज दी, ‘मिनी, दरवाजेखिड़कियां बंद कर लेना, नहीं तो गर्द अंदर आ जाएगी.’ उस ने कहना चाहा, भाभी, तूफानी अंधड़ ने तो पहले ही से मेरे मन के दरवाजेखिड़कियों को बंद कर रखा है और मुझे अंधेरे कमरे में कैद कर रखा है.

कुछ देर बाद बारिश शुरू हो गई, तो बाहर का तूफान थम गया पर उस के मन के तूफान की रफ्तार वैसी ही थी. वह जानती थी, भैयाभाभी ड्राइंगरूम में मैट्रोमोनियल के जवाब में आई चिट्ठियां पढ़ रहे होंगे. 6 माह पहले जब भैया ने मैट्रोमोनियल विज्ञापन की बात कही थी तो मैं पत्थर हो गईर् थी. मैं दोबारा किसी के साथ जुड़ने की बात सोच भी नहीं सकती थी. पर भैया ने कहा था, ‘मिनी, सोच कर जवाब देना, सारी जिंदगी पड़ी है आगे.’

भैया ने तो ठीक ही कहा था पर अगले दिन जब उन्होंने मुझे अपनी डिगरियां निकालते देखा तो वे खामोश हो गए.2 कमरों के इस फ्लैट में मैं, भैया और भाभी 3 लोग ही थे पर वक्त ने जैसे हमें अजनबी बना दिया था.

यह अजनबियत पहले नहीं थी. मात्र एक साल ही तो गुजारा था नरेश के घर में. फिर मैं अपनी सूनी मांग ले कर भैया के घर वापस आ गई. नरेश के बाद किसी दूसरे के साथ जुड़ने का खयाल भी मन को झकझोर देता था.

फिर मैं अपनी डिगरियों के सहारे नौकरी की तलाश में लग गई. पर एक विधवा के प्रति लोगों का रुख देख कर मन कांप उठता था. एक विधवा, जवान और खूबसूरत कितने अवगुण थे मुझ में. आखिर, मैं ने हथियार डाल दिए. भैया ठीक ही कहते हैं. अकेले सारी जिंदगी गुजारना सचमुच मुश्किल था.

भैया ने फिर विज्ञापन देखने शुरू कर दिए. चिट्ठियां फिर से आने लगीं. मैं समझ गईर् कि एक न एक दिन मुझे इस घर से जाना ही होगा. इसी बीच एक दिन एक शख्स का पत्र आया. कोठी, कार, अच्छी नौकरी, अकेला घर सबकुछ था उस के पास, और क्या चाहिए किसी औरत को. हां, खलने वाली एक ही बात थी, कि उस की पत्नी जीवित थी और उस के साथ उस का बाकायदा तलाक अभी तक नहीं हुआ था. पर इस से क्या होता है, पत्नी का उस से कोई सरोकार नहीं था.

भैया ने उस शख्स को फोन कर घर आने को कह दिया. वह आया. भैया ने अपनी शंकाएं उस से जाहिर कीं. बदले में उस ने आश्वासनों का ढेर लगा दिया. भैया उस की बातों से संतुष्ट हुए और मुझे उस के हवाले कर दिया.

उस के गंभीर और गरिमामय व्यक्तित्व ने मुझे भी प्रभावित किया था. मुझे मालूम था कि किसी न किसी के गले बांध दी ही जाऊंगी, तो फिर तुम ही सही.

वह मुझे अपने घर ले गया. घर क्या था, पूरी हवेली थी. इस हवेलीनुमा घर के वैभव को छोड़ कर उस की पत्नी क्यों चली गई होगी, यह खयाल मेरे दिल में रहा. मेरे साथ रहते हुए तुम्हें अरसा बीत गया. अब तक तुम मुझे क्यों तड़पाती रहीं, ऐसा क्यों किया तुम ने?

उस के यह पूछने के जवाब में मैं ने पूरी कहानी सुना दी. ‘‘दरअसल, अपने हवेलीनुमा घर में ला कर तुम ने कहा, ‘अपना घर तुम्हें कैसा लगा, मिनी?’ इस के साथ तुम ने मुझे अपनी बांहों के घेरे में कैद कर लिया. मैं ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, तो तुम ने कहा, ‘क्यों, क्या बात है, अब तो तुम मेरी हो, मेरी पत्नी, यह घर तुम्हारा ही है?’

‘‘‘बिना किसी संस्कार के मैं तुम्हारी पत्नी कैसे हो गई,’ मैं ने प्रतिरोध करते हुए कहा. तुम्हारी बांहों का घेरा कुछ और तंग हो गया और तुम ने हंसते हुए कहा, ‘ओह, तो तुम उस औपचारिकता की बात करती हो, उस की कोई वैल्यू नहीं है, तुम्हारे भी बच्चे होगें, उन्हें मेरा नाम मिलेगा, प्यार मिलेगा, जायदाद में पूरा हिस्सा मिलेगा.’

‘‘कितनी आसानी से तुम ने मुझे सारा कुछ समझा दिया था पर तुम जिसे औपचारिकता कहते हो वही तो एक सूत्र होता है जिस के दम पर एक औरत रानी बन कर राज करती है मर्द के घर और उस के दिल पर.

‘‘महाराज चाय बना कर ले आया था. चाय के साथ उस ने ढेर सारी प्लेटें मेज पर लगा दी थीं. चाय पीने के बाद तुम औफिस के लिए तैयार हुए और जातेजाते मुझे बांहों में भरा. तुम्हारी बांहों में मैं मछली सी तड़प उठी. तुम कुछ समझे, कुछ नहीं समझे और औफिस चले गए. पर मैं अपने औरत होने की शर्मिंदगी में टूटतीबिखरती रही.

‘‘मैं क्या कहती, मुझे तो यह भी नहीं पता था कि तुम्हें क्याक्या पसंद था. मैं ने यह कह कर मुक्ति पा ली, ‘कुछ भी बना लो.’ तभी वीरो आ गई, घर की मेडसर्वेंट. महाराज ने चुपके से उसे मेरे बारे में बताया. वीरो ने कहा, ‘अच्छा तो ये हैं,’ और काम में लग गई. बीचबीच में वह मुझे कनखियों से तोलती रही.

‘‘शाम को तुम औफिस से लौटे तो काफी खुश थे. महाराज तुम्हारी गाड़ी में से कई बैग निकाल कर लाया और सोफे पर रख दिया. तुम ने कई खूबसूरत साडि़यां मेरे सामने फैला दीं, ‘मिनी, ये सब तुम्हारे लिए हैं.’ पर तुम्हारे स्वर का अपनत्व मेरे अंदर की जमी हुई बर्फ को पिघला नहीं सका. तुम्हारी इच्छा से मैं ने आसमानी रंग की साड़ी पहन ली. फिर तुम महाराज और वीरो के जाने का इंतजार करने लगे. उन के जाते ही तुम बेसब्रे हो गए और मुझे बिस्तर पर खींच लिया. तुम्हारे बिस्तर पर बैठते ही मुझे लगा जैसे हजारों बिच्छुओं ने मुझे डंक मार दिया हो. मैं तड़पने लगी. फिर कुछ समझते हुए तुम मेरी पीठ सहलाने लगे.

‘‘‘मिनी, नरेश को क्या हुआ था?’ तुम ने पहली बार इतने प्यार से पूछा कि तुम मुझे आत्मीय से लगने लगे. पिछले

6 महीनों से जो गुबार मन में रुका हुआ था वह अचानक फूट पड़ा. मैं तुम्हारे कंधे पर झुक गई. तुम मेरे आसुंओं से भीगते रहे. फिर मैं ने तुम्हें बताया कि नरेश के साथ मैं ने कितने खुशहाल दिन बिताए थे. लेकिन सुख के दिन ज्यादा देर न रहे और एक दिन औफिस से लौटते समय नरेश का ऐक्सिडैंट हो गया. उस की रीढ़ की हड्डी टूट गई जो इलाज के बावजूद ठीक से जुड़ नहीं पाई.

‘‘नरेश ने जो एक बार बिस्तर पकड़ा तो उठ नहीं पाया. जबजब वह मेरी ओर हाथ बढ़ाता तो उस की हड्डी में कसक उठती. कभीकभी तो वह दर्द से चीखने लगता.

‘‘नरेश अब बिस्तर पर पड़ापड़ा मुझे दयनीय नजरों से देखता रहता और मैं आहत हो जाती. नरेश के इलाज पर बहुत पैसा खर्च हो गया था. धीरेधीरे नरेश को लगने लगा कि उस के कारण मेरी जवान उमंगों का खून हो रहा है. यह अपराधबोझ उस के दिल में घर करने लगा. मैं ने हालात को अपनी नियति मान कर स्वीकार कर लिया था पर नरेश ने नहीं किया.

‘‘नरेश को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी. हम उसे घर ले आए थे. पर अब हालात काफी बदल चुके थे. परिवार वालों की नजर में मैं अपशकुनी थी. नरेश अपने मन की हलचलों से ज्यादा लड़ नहीं सका और न ही अपनी शारीरिक तकलीफ को झेल सका. एक दिन उस ने अपनी कलाई की नस काट ली और चला गया मुझे अकेला छोड़ कर.

‘‘नरेश के परिवार वालों को अब मैं कांटे सी खटकने लगी और एक दिन भैया मुझे घर ले आए.‘‘तुम ने ठंडी सांस ली और कहा, ‘मिनी, ऐडजस्ट करने का प्रयास करो.’ मैं तुम्हारे सीने पर फफक पड़ी. कैसे भूलूं उस सब को. नरेश की आंखें मेरा पीछा करती हैं. मैं ने उसे तिलतिल कर मरते हुए देखा है. उस की आंखों में छलकती प्यास मुझे जीने नहीं देती.

‘‘तुम देर तक मेरी पीठ सहलाते रहे. फिर बत्ती बुझाई और सो गए. पर मैं रातभर जागती रही. मुझे लगा जैसे मैं अंगारों पर लेटी हुई हूं. अगले दिन तुम एक पिंजड़ा ले आए. उस में एक तोता था. तुम ने हंसते हुए कहा, ‘मिनी, इस तोते को बातें करना सिखाना, तुम्हारा मन लगा रहेगा.’ महाराज ने तोते के लिए कटोरी में पानी और हरीमिर्च रख दी.

‘‘तोते ने कुछ भी छुआ नहीं. वह अपनी दुम में ही सिमटा रहा. तुम ने कहा, ‘मिनी, नई जगह आया है न, एकदो दिन में ऐडजस्ट कर लेगा.’

‘‘सचमुच 2 दिनों बाद तोते ने खानापीना शुरू कर दिया. अब वह पिंजड़े में उछलकूद करने लगा था. बीचबीच में आवाजें भी निकालने लगा था. तुम औफिस से आते ही तोते से बातें करते, फिर मुझ से कहते, ‘देखा, तोता अब हम से हिलनेमिलने लगा है.’

‘‘मैं तुम्हें कैसे बताती कि इंसान और पंछी में फर्क होता है. इंसान की अपनी ही कुंठाएं उसे खाती रहती हैं. मैं भावनात्मक रूप से नरेश से जुड़ी हुई थी. मुझ में और तोते में फर्क है.

‘‘तुम ने मुझे गहरी नजर से देखा और गले से लगा लिया. फिर गंभीर स्वर में कहा, ‘मिनी, मैं सरकारी नौकरी में हूं. एक पत्नी के जिंदा रहते दूसरी शादी करना कानूनन जुर्म है. मुझे जेल भी हो सकती है. पर मैं भी इंसान हूं. तनहा नहीं रह सकता. मेरी भी कुछ जिस्मानी जरूरतें हैं. मैं ने कई लड़कियां देखीं, पर कोई पसंद नहीं आई. फिर तुम्हारे भैया का निमंत्रण आया. तुम मुझे बेहद मासूम लगीं. मुझे लगा कि तुम्हारे साथ जीवन आसान हो जाएगा. क्या मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती की है?’

‘नहींनहीं, तुम भला क्यों जबरदस्ती करते. पर मैं भैया के लिए एक भार ही थी न. बड़ी मुश्किल से उन्होंने मेरी शादी की थी. पर नरेश…’

‘‘‘उस सब को भूल जाओ, मिनी. गया वक्त कभी लौट कर नहीं आता. ऐडजस्ट करने की कोशिश करो.’

‘‘पर मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं आता. जानवर नहीं हूं, न ही पूंछी हूं, फिर भी जानती हूं आज नहीं तो कल, ऐडजस्ट करना ही होगा.

‘‘तुम्हारे साथ बिस्तर पर लेटते ही नींद आंखों से उड़ जाती. रातभर सोचती रहती, कितनी निष्ठुर होगी तुम्हारी पत्नी जो तुम्हें छोड़ कर चली गई. सोचतेसोचते जब ध्यान तुम्हारी ओर जाता तो लगता, तुम भी सोए नहीं हो. मेरे दिल और दिमाग में तूफानी कशमकश चलने लगती पर समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं.

‘‘अगले दिन तुम औफिस से आए तो काफी उदास थे. पर मैं तो अभी तक तुम्हारे साथ मन से जुड़ नहीं पाई थी. सो, कुछ पूछ नहीं पाई. खाना खा कर तुम पलंग पर लेट गए. तुम बहुत खामोश थे. मैं भी चुपचाप लेट गई. मेरे अंदर की जमी हुई बर्फ अब तुम्हारे व्यवहार से कुछकुछ पिघलने लगी थी. मैं ने देखा, तुम सो नहीं पा रहे थे. अचानक तुम्हारे मुंह से एक गहरी सांस निकली. मैं ने तुम्हारे कंधे पर हाथ रख दिया. तुम ने आंखें खोल कर मेरी ओर देखा और हाथ बढ़ा कर मुझे अपने करीब खींच लिया. मैं ने कोई विरोध नहीं किया.

‘‘मैं ने देखा, तुम्हारी आंखों में वही आदम भूख जाग उठी थी. तुम्हारी नजरों ने मुझे आहत कर दिया. मुझे लगा, मेरी नजदीकी ने बिस्तर पर लेटे नरेश को भी बहुत तड़पाया था और अब तुम्हें…

‘‘‘नहीं, मुझे कोई हक नहीं था तुम्हें तड़पाने का.’ मैं फफक पड़ी. तुम ने मुझे सहलाते हुए कहा, ‘क्या बात है मिनी, क्यों परेशान हो?’

‘‘मैं सरक कर तुम्हारे करीब आ गई. तुम्हारी सांसें अब मेरी सांसों से टकराने लगी थीं. मैं ने अपनी बांहें तुम्हारे गले में डाल दीं. तुम स्पर्श के इस भाव को समझ गए और तुम ने मुझे और अधिक कस कर सीने से लगा लिया और मैं ने अपने अंदर की औरत को समझाया कि आखिर कब तक एक पंछी और इंसान के फर्क में उलझी रहोगी. और मैं ने अपनेआप को तुम्हारे साथ ऐडजस्ट कर ही लिया.’’

कल्याण : क्या थी चांदनी की कहानी

जब पति चुनाव लड़ता है तो उस की पत्नी को उस से अधिक श्रम करना पड़ता है. चुनाव क्षेत्र में जा कर मतदाताओं से मत देने के लिए हाथ जोड़ने पड़ते हैं, घर में कार्यकर्ताओं आदि के भोजन का भी प्रबंध करना पड़ता है. पत्नी के चुनाव लड़ने पर पति महोदय दौड़धूप तो करते हैं, पर उन की ओर कोई ध्यान नहीं देता. लोग यही समझते हैं कि बेचारा कार्यकर्ता है.

अगर वह खादी के कपड़े पहने होता है तो उसे दल का कार्यकर्ता समझा जाता है. अगर आम कपड़ों में होता है तो फिर भाड़े का प्रचारक समझ लिया जाता है. न वह किसी से यह कह पाता है कि वह प्रत्याशी का पति है और न लोग उस से पूछते हैं कि आप हैं कौन. पत्नी तो शान से कह देती है कि वह प्रत्याशी की पत्नी है. यह जान कर लोग उसे भी आदरसम्मान दे देते हैं. जो रिश्ता बता ही नहीं पाता उसे कोई सम्मान दे भी कैसे?

पति महोदय जब किसी पद पर आसीन होते हैं तो पत्नी को भी विशेष सम्मान प्राप्त होता है. लोग उसे भी उतना ही मान देते हैं जितना कि उस के पति को. पत्नी जब कोई पद प्राप्त करती है तो उस के पति को कोई महत्त्व नहीं मिलता. किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष अथवा शासनाध्यक्ष की पत्नी उस देश की प्रथम महिला होती है. अगर नारी उस पद पर आसीन हो जाए तो उस का पति कुछ नहीं होता. उदाहरण के लिए ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ और प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को ही लीजिए.

एलिजाबेथ के पति प्रिंस फिलिप माउंटबेटन को तो कुछ लोग जानते भी हैं पर मार्गरेट थैचर का पति कौन है, यह जानने वाला इक्कादुक्का ही होगा. पुरुष सत्तात्मक समाज भी खूब है. राजा की पत्नी रानी होती है पर रानी का पति राजा नहीं कहलाता. लगता है कि नारी के पद पर आसीन होते ही लोग मातृ सत्तात्मक समाज में आ जाते हैं. उस समाज में पुरुष का कोई मूल्य नहीं होता.

चांदनीजी के नाम निमंत्रणपत्र भी आते हैं. अधिकतर में माननीय चांदनीजी, उपमंत्री लिखा होता है. लेकिन उन के पुरुष सहयोगियों को निमंत्रणपत्र आते हैं तो उन पर श्रीमान एवं श्रीमती फलां लिखा होताहै.

चांदनीजी को शपथग्रहण समारोह में जाना था. बच्चों की उत्सुकता स्वाभाविक थी. दोनों बच्चे मां को सबकुछ खाते देख चुके थे पर शपथ खाते कभी नहीं देखाथा. वह इस लालच में गए कि अगर खाने में अच्छी वस्तु हुई तो मां उन्हें भी खिलाएगी. पतिदेव भी उत्सुक हो उठे. उन्हें ज्ञात था कि अन्य मंत्रियों की पत्नियां भी जाएंगी. वह उपमंत्री के पति हैं, इसलिए उन्हें भी जाना चाहिए. समारोह और खासकर पत्नी का शपथग्रहण देख कर छाती शीतल करनी चाहिए.

कार पर चले पतिदेव चंद्रवदन ने चालक का स्थान ग्रहण किया. बच्चे व चांदनीजी पीछे बैठीं. साथ में अगली सीट पर राजेश नाम का एक कार्यकर्ता भी, जो चांदनीजी के चुनाव का संचालक था, जम गया.

पतिदेव सफारी सूट में थे. राजेश टिनोपाल के पानी से खंगाली गई खादी की पोशाक में था. सिर पर नुकीली गांधी टोपी सुशोभित थी.

राजभवन के सामने कार रुकी. पिंकी को पेशाब आया. बच्चे आखिर बच्चे ही हैं. कहीं भी जाएं, सतर्क रहना ही पड़ता है. किसी भी क्षण पेशाब आ सकता है और किसी भी पल भूख लग सकती है.

चांदनीजी कार से उतरीं. राजेश उतर कर आगे हो लिया. लोगों ने उस के वस्त्रों का स्वागत किया. पुलिस वाले सलाम दागने लगे.

पिंकी ने मां का हाथ झकझोरा, ‘‘मां…’’

शपथग्रहण का समय अति निकट था, अत: चांदनीजी झुंझला पड़ीं, ‘‘क्या है?’’

पिंकी सहम उठी, ‘‘मां, बाथरूम…’’

चांदनीजी ने इधरउधर देखा. राजेश आगे खड़ा लोगों को माननीय उपमंत्री के आगमन की सूचना दे रहा था. कार निश्चित स्थान पर खड़ी कर के पतिदेव चंद्रवदन भी आ गए.

‘‘देखिए, शपथग्रहण में कुल 2 मिनट बाकी हैं. मेरा पहुंचना जरूरी है. आप जानते हैं कि राजनीति क्षणों में बदलती है. आप पिंकी को पेशाब करा दीजिए, उस के उपरांत आ जाइए,’’ चांदनीजी की निगाहों में कातरता थी.

पतिदेव ने कोई उत्तर नहीं दिया. उत्तर के नाम पर उन के पास था भी क्या? पिंकी को ले कर पेशाब कराने का स्थान तलाशने लगे. चांदनीजी अंदर चली गईं. पीछेपीछे राजेश भी घुस गया.

एक पुलिस वाले ने राजेश की ओर इंगित किया, ‘‘लगता है चांदनीजी के पति भी बड़ी पहुंच वाले नेता हैं.’’

पिंकी को पेशाब कराने के स्थान को तलाशने में कुछ समय लगा. उस के बाद आए तो शपथग्रहण समारोह शुरू हो चुका था.

टे्रन में यात्रा करते वक्त भी बड़ी मुसीबत होती है. बच्चों के लिए हर स्टेशन पर पतिदेव को ही उतरना पड़ता है. उन की मां सीट से ही चिपकी रहती है. अकेली मां के साथ यात्रा करने में बालगोपालों को इतनी जरूरतें महसूस नहीं होतीं जितनी कि पिता के साथ यात्रा करने में होती हैं.

चंद्रवदन अंदर घुसे. फाटक पर ही खडे़ एक दारोगा ने टोका, ‘‘कहां घुसे चले आ रहे हो? आम लोगों के अंदर जाने पर मनाही है.’’

हकला उठे चंद्रवदन, ‘‘मैं…मैं… मैं…’’

‘‘मैं जानता हूं कि आप उपमंत्री चांदनीजी के ड्राइवर हैं. आप अंदर नहीं जा सकते. देखते नहीं, सब के ड्राइवर बाहर खड़े हैं,’’ उसी पुलिस वाले ने चेतावनी दी.

बौखला गए चंद्रवदन, ‘‘देखिए, यह मंत्रीजी की पुत्री है.’’

‘‘तो यहीं खिलाइए इसे. मंत्रीजी और उन के साहब अंदर जा चुके हैं,’’ दारोगा ने सूचित कर दिया.

साथ में खड़े भयंकर मूंछों वाले हवलदार ने मूंछों पर हाथ फेरा, ‘‘हुजूर दारोगाजी, मंत्रीजी का बड़ा मुंहलगा ड्राइवर मालूम होता है.’’

पिंकी ने चंद्रवदन की ओर देखा, ‘‘चाचा, मां कहां है?’’

चंद्रवदन के भतीजों की तरह पिंकी भी उन्हें बजाय पिता के चाचा शब्द से संबोधित करती थी. उन के भतीजे उम्र में बड़े थे. पुत्रपुत्री छोटे थे, इसलिए अपने चचेरे भाइयों की तरह उन्हें चाचा ही कहने लगे थे.

दारोगाजी मुसकरा पड़े, ‘‘जितनी शालीन चांदनीजी हैं उतने ही उन के बच्चे भी. देखो, बच्चे ड्राइवर तक को चाचा कहते हैं.’’

चंद्रवदन के काटो तो खून नहीं वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी. पिंकी को ले कर वह कार में जा कर बैठ गए.

चांदनीजी बाहर आईं तो उन पर उपमंत्रित्व लदा था, ‘‘आप यहां बैठे हैं? अंदर क्यों नहीं आए?’’

उत्तर मिला, ‘‘यों ही. अधिक भीड़ में मन घबरा जाता है.’’

चांदनीजी उपमंत्री के पद पर आसीन हो गईं. टेलीफोन मिला, सरकारी बंगला मिला, सरकारी कार मिली. इस के साथ ही ड्राइवर, चपरासी व व्यक्तिगत सहायक भी प्राप्त हो गए. सब से मजेदार विभाग सहकारिता प्राप्त हुआ.

विभाग से संबंधित लोगों ने चांदनीजी के स्वागत में समारोह आयोजित किया. साथ में रात्रिभोज भी रख दिया. माननीय सहकारिता मंत्री भी आमंत्रित थे.

चांदनीजी तैयार हो कर बाहर निकलीं तो पतिदेव को देख कर बोलीं, ‘‘आप अभी तैयार नहीं हुए? समय का ध्यान रखना चाहिए. भारतीयों की तरह लेटलतीफ होना ठीक नहीं है.’’

आज पतिदेव को यह ज्ञात हो गया कि चांदनीजी भारतीय तो हैं पर भारतीयों की तरह नहीं हैं. भारतीय हो कर गद्दी पर पहुंचने वाला स्वयं को भारतीयों की तरह नहीं मानता. किस की तरह मानता है, यह वही जाने.

उत्तर मिला, ‘‘मेरा मन नहीं है, तुम हो आओ,’’ लगा कि चंद्रवदनजी में पुराना अनुभव कसमसा रहा था.

तुनक पड़ीं चांदनीजी, ‘‘आप हमेशा नखरे करते हैं. मंत्रीजी आएंगे. उन की पत्नी भी आएंगी, पर आप हैं कि मेरे साथ नहीं जा सकते. पुरुष समाज नारी की प्रगति से अब भी जलता है. उसे आगे बढ़ते नहीं देख सकता.’’

चंद्रवदन को तैयार होना ही पड़ा. इस बार बच्चों को घर में ही रोक दिया गया.

कार अभिनंदनस्थल पर जा कर रुकी. चपरासी आननफानन पगड़ी संभालता हुआ दाहिनी ओर उतरा. गाड़ी के पीछे से

घूम कर बाईं ओर

का दरवाजा खोल दिया गया, क्योंकि चांदनीजी उधर ही बैठी थीं. बाद में दाईं ओर का दरवाजा खोलने बढ़ा, पर तब तक चंद्रवदन स्वयं दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. उन्हें चपरासी की उपेक्षा खली, पर कुछ कह न सके.

पंडाल के अंदर पहुंचे. मुख्य मंच पर 4 कुरसियां रखी थीं. एक मंत्रीजी की, दूसरी उन की पत्नी मंत्राणीजी की, तीसरी चांदनीजी की और चौथी समारोह के मेजबान की.

चंद्रवदन एक ओर अग्रिम पंक्ति में बैठने चले तो एक ने टोका, ‘‘ये कुरसियां महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं. आप पीछे जाइए.’’

पुरुषों वाली पंक्तियां भरी थीं. बड़ी कठिनाई से 10वीं कतार में जगह मिली. दुख तब हुआ जब देखा कि महिलाओं वाली जो अग्रिम पंक्ति सुरक्षित थी वहां आ कर मंत्रीजी के परिवार वाले डट गए. उन को आयोजकों ने बजाय रोकने के बड़े आदर से बैठा दिया. वे उन से यह न कह सके कि ये सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं. सच है, मंत्री के परिवार के सामने महिलाओं की क्या बिसात?

चंद्रवदन अनमने से देखतेसुनते रहे. भोजन के समय तक ड्रमों मक्खन उड़ेला गया. तारीफों के पुल बांधे गए. आगतों को यकीन दिलाया गया कि भविष्य में सहकारिता की पागल और बिगड़ैल हथिनी को यही माननीय अतिथिगण नियंत्रण में कर लेंगे, गाय सी सीधी हो जाएंगी.

भोजन के समय चांदनीजी ने एक कुरसी रोक ली. चपरासी को इंगित किया, ‘‘वह कहां हैं?’’

चपरासी तलाशने चल दिया. मंत्रीजी पूछ बैठे, ‘‘किन्हें पूछ रही हैं?’’

लाजभरी मुसकान उभर आई चांदनीजी के होंठों पर, ‘‘मेरे वह.’’

‘‘अच्छा…अच्छा, चंद्रवदनजी हैं,’’ कहते हुए मंत्रीजी का मुख कुछ उपेक्षायुक्त हो गया. ऐसा लग रहा था कि मानो कह रहे हों, कहां ले आईं उस उल्लू की दुम को, भला यहां उस की क्या जरूरत?

अचानक गहरा शृंगार प्रसाधन किए एक महिला आ कर खाली कुरसी पर डट गई, ‘‘कहो, चांदनी, कैसी हो? बहुत- बहुत बधाई हो.’’

मंत्रीजी के इशारे पर एक मेज और लगा दी गई. चंद्रवदन उस पर बैठे. अकेले न रहें, इसलिए मंत्रीजी एवं चांदनीजी के निजी सहायक भी वहीं बैठा दिए गए.

1-2 और बैठ गए.

अधिकतर परोसने वाले मंत्रीजी एवं उपमंत्री के ही आसपास मंडराते रहे. खाद्यसामग्री लाने में होड़ लगी थी. आग्रह कर के खिलाया जा रहा था.

चंद्रवदन वाली मेज पर कोई पूछने वाला न था. जो परोस गया बस, परोस गया. मुख्य मेजबान तो मंत्रीजी के साथ बैठे हर व्यंजन को उदरस्थ करने में लगे हुए थे.

एक ने एक कार्यकर्ता को इंगित किया, ‘‘उस मेज पर भी सामान पहुंचाते रहें.’’

‘‘उस पर कौन है?’’ उस ने जानना चाहा.

‘‘मंत्रीजी और उपमंत्रीजी के निजी सहायक हैं. काम के आदमी हैं.’’

उस कार्यकर्ता ने आदेश निभाया, पर ऐसी हिकारत से जैसे बरात में आए बैंड बाजे वालों को परोस रहा हो.

भोजन के उपरांत मंत्रीजी अपनी इंपाला के पास पहुंचे, ‘‘आइए, चांदनीजी, मैं आप को आप के बंगले पर छोड़ दूंगा.’’

चांदनीजी झिझकीं, ‘‘माननीय मंत्रीजी. हमारे वह…’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ मंत्रीजी ने उन्हें अपनी इंपाला में घुसने का इशारा किया, ‘‘आप की एंबेसेडर तो है ही. वह उस में आ जाएंगे.’’

इंपाला जब चली तो पिछली सीट पर बाईं ओर मंत्राणीजी, बीच में मंत्रीजी और दाहिनी ओर चांदनीजी थीं. निजी सहायक एवं चपरासी ड्राइवर के साथ अगली सीट पर थे.

मंत्रीजी ने सलाह दी, ‘‘चांदनीजी, आप में अभी बहुत लड़कपन है. अब आप घरेलू नहीं बल्कि सार्वजनिक हैं. अगर राजनीति में आगे बढ़ना चाहती हैं तो हमारे वह के स्थान पर हर वाक्य में हमारे मुख्यमंत्री और हमारे प्रधानमंत्री कहना सीखिए, तभी कल्याण है.’’

एक सवाल: शीला और समीर के प्यार का क्या था अंजाम

शीना और समीर दोनों ही किसी कौमन दोस्त के विवाह में आए थे. जब उस दोस्त ने उन्हें मिलवाया तो वे एकदूसरे से बहुत प्रभावित हुए. वैसे तो यह उन की पहली मुलाकात थी, लेकिन दोनों ही जानीमानी हस्तियां थीं. रोज अखबारों में फोटो और इंटरव्यू आते रहते थे दोनों के. सो, ऐसा भी नहीं था कि कुछ जानना बाकी हो.

समीर सिर्फ व्यवसायी ही नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक पार्टी का सदस्य भी था. उधर, शीना बड़ी बिजनैस वूमन थी. अच्छे दिमाग की ही नहीं, खूबसूरती की भी धनी. सो, दोनों का आंखोंआंखों में प्यार होना स्वाभाविक था. दोस्त की शादी में ही दोनों ने खूब मजे किए और दिल में मीठी यादें लिए अपनेअपने घरों को चल दिए.

शीना सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपने बिजनैस का विस्तार कर रही थी. नाम, पैसा और ऊपर से हुस्न. भला ऐसे में कौन उस का दीवाना न हो जाए. सो, समीर ने उस से अपनी मुलाकातें बढ़ाईं. शीना को भी उस से एतराज नहीं था. अपने पति की मृत्यु के बाद वह भी तो कितनी अकेली सी हो गईर् थी. ऐसे में मन किसी न किसी के प्यार की चाहत तो रखता ही है. और सिर्फ मन ही नहीं, तन की प्यास भी तो सताती है.

शीना भी समीर को मन ही मन चाहने लगी थी. बातों बातों में मालूम हुआ समीर भी शादीशुदा है लेकिन उस का पहली पत्नी से तलाक हो चुका था. दोनों अभी अर्ली थर्टीज में थे.

कई दिनों बाद समीर अपने व्यवसाय के सिलसिले में आस्ट्रेलिया गया और शीना भी उस वक्त वहीं किसी जरूरी मीटिंग के लिए गईर् थी.

दोनों को मिलने का जैसे फिर एक बहाना मिल गया. समीर अपना काम खत्म कर जब शीना से उस के होटल में डिनर पर मिला तो उस ने अपने मन की बात शीना से कह ही डाली, ‘‘शीना, आज जिंदगी के जिस पड़ाव पर तुम और मैं हूं, क्या ऐसा नहीं लगता कि कुदरत ने हमें एकदूसरे के लिए बनाया है? क्यों न हम दोनों विवाह के बंधन में बंध जाएं?’’

शीना को लगा समीर ठीक ही तो कह रहा है. उसे भी तो पुरुष के सहारे की जरूरत है. सो, उस ने समीर को इस रिश्ते की रजामंदी दे दी.

बस, फिर क्या था, दोनों ने भारत लौट कर दोस्तों को बुला कर अपने प्यार को दुनिया के साथ साझा किया और साथ ही विवाह की घोषणा भी. रातोंरात सारे जहां में उन का प्यार दुनिया की सब से बड़ी खबर बन गया था. सारे विश्व में फैले उन के सहयोगी उन्हें बधाइयां दे रहे थे. दोनों ने ट्विटर पर अपने दोस्तों व फौलोअर्स की बधाइयां स्वीकारते हुए धन्यवाद किया.

बस, अगले ही महीने दोनों ने शादी की रस्म भी पूरी कर ली. हनीमून के लिए मौरिशस का प्लान तो पहले ही बना रखा था, सो, विवाह के अगले दिन ही हनीमून को रवाना हो गए.

शीना कहने लगी, ‘‘समीर, जीवन में सबकुछ तो था, शायद एक तुम्हारी ही कमी थी. और वह कमी अब पूरी हो गई है. ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं दुनिया की सब से खुशहाल औरत हूं.’’

समीर ने भी अपना मन शीना के सामने खोल कर रख दिया था, बोला, ‘‘सेम हियर शीना, तुम बिन जिंदगी अधूरीअधूरी सी थी.’’

दोनों ने अपने हनीमून के फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर किए. इतनी सुंदर तसवीरें थीं कि शायद कोई भी न माने कि यह उन दोनों का दूसरा विवाह था. शायद ईर्ष्या भी होने लगे उन तसवीरों को देख कर.

खैर, हनीमून खत्म हुआ और दोनों भारत लौट आए. और फिर से अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. दोनों खूब पैसा कमा रहे थे. पैसे के साथ नाम और शोहरत भी. 2 वर्ष बीते, शीना ने एक बेटे को जन्म दिया. अब ऐसा लग रहा था जैसे उन का परिवार पूरा हो गया हो.

शीना अपनी जिंदगी में भरपूर खुशियां समेट रही थी और अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाती जा रही थी. समीर और उस के विवाह के 10 वर्ष कैसे बीत गए, उन्हें कुछ मालूम ही न हुआ. बेटा भी होस्टल में पढ़ने के लिए चला गया था.

समीर अब व्यवसाय से ज्यादा राजनीति में सक्रिय हो गया था. एकदो बार किसी घोटाले में फंस भी गया. लेकिन, उस ने सारा पैसा शीना के अकाउंट में जमा किया था, जिस से बारबार बच जाता. वैसे तो शीना इन घोटालों को खूब सम?ाती थी लेकिन अकसर व्यवसाय में थोड़ाबहुत तो इधरउधर होता ही है. इसलिए उसे भी कुछ फर्क नहीं पड़ता था.

शौकीनमिजाज समीर जनता के पैसों से अपने सारे शौक पूरे कर रहा था. साथ में शीना भी. अब वे स्पोर्ट्स टीम के मालिक भी बन चुके थे. कभी दोनों साथ में रेसकोर्स में, तो कभी स्पोर्ट्स टीम को चीयर्स करते नजर आते थे. दोनों को साथ मौजमस्ती करते देख भला किस की नीयत खराब न हो जाए.

अंधेरे आसमान में चांदनी फैलाने वाले चांद में भी कभी तो ग्रहण लगता ही है. शीना को अपने पति के रंगढंग कुछ बदलेबदले लगने लगे थे. उसे लगने लगा कि आजकल समीर पहले की तरह उसे दिल से नहीं चाहता है. जैसे, वह उस के साथ हो तो भी उस का मन कहीं और होता है. वैसे तो वह 50 वर्ष की उम्र पार कर रहा था, लेकिन दौलतमंद लोग अपने जीवन को जीभर कर जी लेना चाहते हैं. उन के शौक तो हर दिन बढ़ते जाते हैं और साथ ही साथ, वे उन्हें पूरा भी कर ही लेते हैं.

शीना को महसूस होने लगा था कि अब समीर उस से दूरियां बनाने लगा है. न तो वह पहले की तरह उसे वक्त देता है और न ही उस की तारीफ करता है. जहां शीना को देख समीर के चेहरे पर मुसकराहट खिल जाती थी वहीं अब वह काम का बहाना कर उस से नजरें तक नहीं मिलाना चाहता था. वह समझने लगी थी कि जरूर समीर के जीवन में कोई और औरत आई है.

अब वह उस की ज्यादा से ज्यादा खबर रखने लगी थी. जैसे, बैंक अकाउंट में कितने पैसे हैं, वह कहां और कितने पैसे खर्च कर रहा है आदि. इस बार जब शीना के बिजनैस अकाउंट से समीर ने कुछ पैसे निकालने चाहे तो उस ने समीर को साफ न कह दिया. वह बोली, ‘‘समीर, तुम्हारी मौजमस्ती के लिए नहीं कमाती मैं. तुम्हारे पास मेरे लिए फुरसत के दो क्षण नहीं, अकेले मौजमस्ती के लिए वक्त है? अगर ऐसा ही है तो वह मौजमस्ती तुम अपने पैसों से करो.’’

यह बात समीर को चुभ गई थी. उस ने तो घोटाले के पैसों से शीना को बहुत ऐश करवाईर् थी. खैर, इतना अनापशनाप पैसा था दोनों के पास कि पैसे का झगड़ा तो मामूली ही बात थी.

शीना अब समीर की दूसरी गतिविधियों पर भी नजर रखने लगी थी. जैसे, अपनी फेसबुक वौल पर वह किसे ज्यादा तवज्जुह देता है, किस के फोटो ज्यादा शेयर करता है, किस महिला मित्र को ज्यादा कमैंट करता है आदि.

कुछ ही दिनों में वह समीर की बेरुखी की तह तक पहुंच गई. उस की फेसबुक वौल पर किसी जवान लड़की के ऐसे कमैंट दिखे कि उसे लगा कि समीर के उस लड़की से संबंध हैं. ट्विटर पर भी उस ने नजर गड़ा रखी थी कि समीर किस के नाम पर क्या ट्वीट करता है.

तभी उस का ध्यान पड़ा कि जो लड़की समीर से काम के सिलसिले में अकसर मिलती जुलती है उस के और समीर के मैसेज कुछ साधारण नहीं. उसे कहीं से उन संदेशों में प्यार की गंध आने लगी थी. वह सब समझ गई थी कि शौकीनमिजाज समीर क्यों उस से किनारा कर रहा है, क्यों उस के खर्चे बढ़ गए हैं. समीर इतना बड़ा व्यापारी और शख्सियत है, कौन लड़की उस के साथ उठनेबैठने और मौजमस्ती करने से इनकार करेगी. और फिर इतनी बड़ी हस्तियों पर प्रैस और मीडिया तो जैसे नजर गड़ाए ही रहते हैं. अखबारों और मनोरंजक मैगजींस में समीर व उस लड़की के संबंध के बारे में खुल्लमखुल्ला छपने लगा था.

शीना को यह सब बहुत अखरने लगा. एक तो पति की उस से दूरी, ऊपर से जगहंसाई भी. जो पैसा वह दिनरात मेहनत कर के कमाती रही और पति के जिस पैसे पर उस का हक है, उस पर कोई और मौज करे, यह बरदाश्त करना क्या आसान बात है और तो और, जब कभी पार्टी में जाती, समीर साथ न होता तो वह अन्य महिलाओं की हंसी का पात्र बन कर रह जाती. उसे ऐसा महसूस होता जैसे किसी ने उस के जले पर नमक छिड़क दिया हो.

सबकुछ उस की बरदाश्त से बाहर होने लगा था. सो, एक दिन उस ने गुस्से में आ कर ट्वीट कर डाला, ‘‘मेरे पति समीर के दूसरी लड़की से संबंध हैं, यह मैं आप सब के साथ साझा कर रही हूं क्योंकि मैं दुनिया के ताने सुनसुन कर परेशान हो गई हूं. बेहतर है मैं स्वयं ही इसे स्वीकार लूं.’’

यह ट्वीट तो ऐसा था जैसे मीडिया के हाथ गड़ा खजाना लग गया हो. समीर इसे बरदाश्त न कर पाया और उस रात दोनों में खूब ? झगड़ा हुआ. समीर ने कहा, ‘‘क्यों तुम हमारी जिंदगी बरबाद करने पर तुली हो? तुम भी चैन से रहो और मुझे भी रहने दो. यदि मेरे किसी और लड़की से संबंध हैं तो तुम्हें क्या? तुम से पहले भी तो मैं तलाकशुदा था. तब तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं हुई, फिर अब क्यों?’’

शीना बिफर कर बोली, ‘‘क्योंकि अब मैं तुम्हारी पत्नी हूं. तुम्हारे पैसे और तुम पर मेरा हक है. तुम उसे किसी और से बांटो और मेरी जगहंसाई करवाओ, मैं कैसे बरदाश्त करूं? सारी मीडिया आज तुम्हारी और उस लड़की की ही बातें कर रही है. मैं ने अपने मुंह से स्वीकार लिया, तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.’’

‘‘कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? मैं बताता हूं, अगले एक महीने बाद फिर से इलैक्शन आ रहे हैं. तुम्हारे इस ट्वीट से मेरी कितनी छवि खराब होगी तुम ने सोचा? कौन टिकट देगा मुझे और इस राजनीति में मैं जो अपने पैर जमा रहा हूं वह कल को हमारे बेटे के लिए ही तो अच्छा होगा. चलो, जो भी हुआ भूल जाओ. और अब हम अच्छे पतिपत्नी की तरह प्यारभरी जिंदगी जिएंगे.’’

शीना को लगा उस के जीवन में लगा ग्रहण हट गया है. उसे लगा जैसे उस का खोया प्यार उसे फिर से मिल गया है. सो, उस ने अगले दिन ही समीर से कहा, ‘‘समीर, चलो न हम एक कौमन ट्वीट फिर से कर देते हैं.’’

समीर कहां मना करने वाला था. दोनों ने मिल कर अगले ही दिन ट्वीट किया, ‘‘हम दोनों अपने जीवन से बहुत खुश हैं, और उस लड़की के बारे में जो भी कहा, वह मात्र एक गलतफहमी थी.’’

मीडिया में फिर से यह बात फैल गईर् थी. समीर की छवि एक बार फिर अच्छे राजनेता की बन गई.

एक महीना बीता. चुनाव हुए और समीर को कुरसी हासिल हो गई. अब समीर के तेवर फिर से बदल गए थे. शीना ने लाख कोशिशें कीं कि समीर गैर महिलाओं से संबंध न रखे, किंतु फितरत से शौकीन समीर को वह रोक न पाई. खूब जगहंसाई हुई. पति, प्यार, पैसा सब ही तो बंट गया था.

वह समझ गई थी कि वह दोबारा अपने ही पति द्वारा छली गई है. इस झटके को वह सहन न कर पाई और एक दिन अपने ही घर में मृत पाई गई. पुलिस आई, उसे लगा कहीं यह हत्या तो नहीं. लेकिन नहीं, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि उस ने जहर खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी.

वह तो चली गई, लेकिन जातेजाते एक सवाल छोड़ गई. एक पत्नी कैसे अपने पति के प्यार को बांट ले और कैसे रोजरोज जगहंसाई करवाए? दूसरी महिला उस के हक को छीन ले, उस के पैसे पर मौज करे, जिसे बदनामी और इज्जत की परवा ही नहीं. लेकिन एक पत्नी के लिए तो वह उस की इज्जत पर जैसे बड़ा प्रहार है, वह कैसे उसे सह सकती थी.

बौयफ्रैंड हो या बैस्ट फ्रैंड कितना करें भरोसा

बी कौम औनर्स की पढ़ाई कर रही 23 साल की निष्ठा तिवारी के साथ घटी घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है. महिला सशक्तीकरण के बीच इस तरह की घटनाएं घरपरिवार और समाज को सचेत करती हैं कि लड़कियों को अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखना पड़ेगा. जैसेजैसे लड़कियां सशक्त हो रही हैं वैसेवैसे उन के खिलाफ अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं. पुलिस, कानून और समाज से पहले लड़कियों को अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़ेगी. इस के लिए उन्हें मानसिक रूप से जागरूक होना पड़ेगा. बौयफ्रैंड हो या बैस्ट फ्रैंड के इमोशन में पड़ कर कोई फैसला लेने से पहले सावधानी बरतनी होगी.

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले की ही सदर कोतवाली निवासी 23 साल की निष्ठा तिवारी बीकौम औनर्स की पढ़ाई करने लखनऊ आई थी. यहां की बीबीडी यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया. उस के पिता संतोष तिवारी यूपी सहकारी ग्राम विकास बैंक में सीनियर मैनेजर के रूप में काम करते हैं. निष्ठा तिवारी कुछ समय तक कालेज  के होस्टल में रही. इस के बाद होस्टल छोड़ कर 2 महीने पहले ही पारस नाथ सिटी में किराए पर रहने लगी.

यहां निष्ठा के साथ 2 लड़कियां और रहती थीं. 4 दिन पहले ही निष्ठा तिवारी अपने घर से 25 दिन की छुट्टी बिता कर लखनऊ आई थी. गणेश उत्सव चल रहा था. गणेश उत्सव में हिस्सा लेने की बात कह कर निष्ठा अपने दोस्त आदित्य पाठक के दयाल रैजीडैंसी स्थित फ्लैट पर पहुंच गई. वहां दोस्तों के साथ पार्टी चल रही थी. इसी दौरान गोली लगने से उस की मौत हो गई.

अस्पताल में छोड़ भाग गए दोस्त

पुलिस ने जब छानबीन शुरू की तो पता चला कि गोली जानबूझ कर मारी गई थी. इस के बाद गंभीर हालत में घायल निष्ठा को उस के दोस्त लोहिया अस्पताल ले गए. लोहिया में छात्रा और उस के परिवार के बारे में लिखापढ़ी करा कर दोस्त भाग लिए. डाक्टरों ने निष्ठा को मृत घोषित कर दिया. सुबह करीब 3 बजे हौस्पिटल स्टाफ ने पुलिस को सूचना दी.

पुलिस ने निष्ठा तिवारी के पिता को फोन पर यह सूचना दी. हरदोई से लखनऊ पहुंचे पिता ने चिनहट थाने में उस के दोस्त आदित्य पाठक पर हत्या का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया. पुलिस ने आरोपी आदित्य को गिरफ्तार कर लिया.

निष्ठा तिवारी को जिस फ्लैट में गोली लगी, वह पुलिसकर्मी हिमांशु श्रीवास्तव का था. इस में आदित्य पाठक किराए पर रहता है. किचन में खाने का सामान और दारू की बोतलें मिलीं जिस से पता लगा कि यहां पार्टी हुई थी. इसी दौरान किसी बात पर विवाद पर गोली चलने से युवती की मौत हो गई.

अपराधी किस्म के दबंग दोस्तों से रहें दूर

निष्ठा के पिता संतोष तिवारी कस कहना है, मेरी बेटी को धोखे से गोली नहीं लगी, उस की हत्या हुई है. पढ़ने वाले बच्चों के पास पिस्टल कैसे पहुंची? इस से साफ है कि आदित्य पाठक क्रिमिनल माइंडेड है, उस ने मेरी बेटी को किसी गलत इरादे से मार डाला.

आदित्य पिछले 7 दिनों से निष्ठा को इंस्ट्राग्राम पर मैसेज कर के परेशान कर रहा था, जिस की शिकायत बेटी ने की थी. उस के बाद उस का नंबर ब्लौक करने को कहा था. पता होता कि वह बेटी को अपनी बातों में फंसा या धमका कर अपने फ्लैट पर ला कर मार देगा तो मैं उसे घर से ही नहीं आने देता.’’

एडीसीपी पूर्वी लखनऊ अली अब्बास ने बताया कि छात्रा की गोली लगने से मौत हुई है. जांच और दोनों के इंस्ट्राग्राम के मैसेज से सामने आया है कि इन लोगों ने पिछले 5 दिनों में ही मिलनाजुलना शुरू किया था. हालांकि दोनों की कई महीने पहले अपने कौमन फ्रैंड के माध्यम से मुलाकात हुई थी. कुछ अलग किस्म की जानकारी में यह बात सामने आ रही कि बाथरूम में वीडियो बनाने को ले कर हुए विवाद में गोलीकांड हो गया.

आदित्य ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि वह काफी दिनों से निष्ठा को आतेजाते देखता था. इसी दौरान पहचान दोस्ती में बदली. उस के बाद इंस्ट्राग्राम पर मैसेज के बाद पिछले हफ्ते ही मिलना शुरू हुआ.

आदित्य मूलरूप से बलिया का रहने वाला है. इलाके में दबदबा बनाने और रंगदारी वसूलने के लिए पिस्टल लगा कर घूमता था. वह रंगदारी के मामले में करीब 3 माह बाद जेल से 31 अगस्त को ही छूट कर आया था.

आदित्य ने पुलिस को बताया, ‘‘जब रात को दोस्तों के साथ फ्लैट पर पहुंचा तो निष्ठा वहीं थी. उस की रूम पार्टनर अमीषा पेपर खत्म होने के चलते घर चली गई. वहीं दूसरी पार्टनर कीर्ति डेंगू के चलते घर गई है. इसी दौरान निष्ठा ने अलमारी में रखी पिस्टल देख ली और उस से खेलने लगी. पिस्टल छीनने के दौरान गोली चल गई.’’

अगर आदित्य की बात को सही मान लिया जाए तो इन लोगों को निष्ठा को अस्पताल में छोड़ कर भागना नहीं चाहिए था. इस के साथ ही साथ घटना के तुरंत बाद निष्ठा के घर वालों को सूचना देनी चाहिए थी.

लड़कियों के सामने बढ़ रही चुनौतियां

पढ़ाई, कोचिंग और जौब करने के दौरान लड़कियों का घर से दूर रहना कोई नई बात नहीं है. पहले लड़कियां केवल होस्टल में ही रहती थीं. वहां सुरक्षा व्यवस्था होती है. समयबेसमय आनेजाने पर रोकटोक होती है. इस के अलावा कई होस्टल में खानेपीने की सुविधाएं अच्छी नहीं होती है. इस के अलावा होस्टल में घरपरिवार के लोग आनेजाने पर रह नहीं सकते. ऐसे में कई बार लड़कियां किराए के फ्लैट ले कर रहती हैं.

इन का किराया क्व10 से क्व12 हजार के करीब होता है, जिस में एकसाथ 2 या फिर 3 लड़कियां रह लेती है. जिस से यह बजट में आ जाता है.

कई बार लड़कियां यहां आजादी का लाभ उठाने लगती हैं. वे अपनी सुरक्षा का भी ध्यान नहीं रखतीं और गलत संगत में पड़ जाती हैं. सोशल मीडिया के जरीए वे बाहरी लड़कों के संपर्क में आ जाती हैं जो पहले फ्रैंडलिस्ट में जगह बनाते हैं और फिर बैस्ट फ्रैंड और बौयफ्रैंड बन जाते हैं. लड़कियां अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना इन के इमोशन में पड़ जाती हैं. इस के बाद कई बार इन्हें धोखा मिलता है.

जरूरी है अपना बचाव

असिस्टैंट प्रोफैसर डाक्टर जयंती श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘महिलाओं और लड़कियों ने आर्थिक बराबरी हासिल कर ली है. आज वे उच्च शिक्षा हासिल कर रहीं, नौकरी कर रहीं, दूर शहरों में अकेले रह रहीं, अपने परिवार का बोझ उठा रही हैं.

मगर अब लड़कियों को अपनी सुरक्षा की चिंता करनी है क्योंकि वे समाज में हर जगह काम कर रहीं. उन पर तमाम लोगों की निगाहें हैं. ऐसे में यह जरूरी जान लें कि कौन सी नजर कैसे उन्हें देख रही है? कहीं भी आनेजाने से पहले यह जरूर सोचें कि आप कितना सुरक्षित हैं? अगर अचानक वहां असमान्य हालत पैदा हो जाएं तो खुद को कैसे बचाएंगी?’’

आंख बंद कर के भरोसा न करें. कहीं भी जा रही हों कितनी ही गोपनीय जगह पर जा रही हों इस बात को हमेशा अपने करीबी लोगों के साथ शेयर करें. किस के साथ जा रही हैं यह भी बताएं. जहां पार्टी हो और लड़कों की ही संख्या हो वहां कभी भी न जाएं. भले ही आप का दोस्त कितना ही भरोसेमंद क्यों न हो.

जब लड़के गु्रप और नशे में रहते हैं तो अपराध की संभावना और साहस हमेशा बढ़ जाता है. दोस्त की अपराधिक छवि हो तो उस से दूर रहने में ही भलाई होती है. अगर सवधानी नहीं बरतेंगी तो अपनी जान से हाथ धोना पडे़गा. बदनामी होगी. घरपरिवार को रोने के लिए छोड़ जाएंगी. दूसरी लडकियों पर बंदिशें बढ़ेंगी जिस से लड़कियों का आगे बढ़ना मुशिकल हो जाएगा.

ईस्टर्न डिलाइट: आखिर क्यों उड़े समीर के होश?

सीमा रविवार की सुबह देर तक सोना चाहती थी, लेकिन उस के दोनों बच्चों ने उस की यह इच्छा पूरी नहीं होने दी.

‘‘आज हम सब घूमने चल रहे हैं. मुझे तो याद ही नहीं आता कि हम सब ने छुट्टी का कोई दिन कब एकसाथ गुजारा था,’’ उस के बेटे समीर ने ऊंची आवाज में शिकायत की.

‘‘बच्चो, इतवार आराम करने के लिए बना है और…’’

‘‘और बच्चो, हमें घूमनेफिरने के लिए अपने मम्मी पापा को औफिस से छुट्टी दिलानी चाहिए,’’ शिखा ने अपने पिता राकेशजी की आवाज की बढि़या नकल उतारी तो तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े.

‘‘पापा, आप भी एक नंबर के आलसी हो. मम्मी और हम सब को घुमा कर लाने की पहल आप को ही करनी चाहिए. क्या आप को पता नहीं कि जिस परिवार के सदस्य मिल कर मनोरंजन में हिस्सा नहीं लेते, वह परिवार टूट कर बिखर भी सकता है,’’ समीर ने अपने पिता को यह चेतावनी मजाकिया लहजे में दी.

‘‘यार, तू जो कहना चाहता है, साफसाफ कह. हम में से कौन टूट कर परिवार से अलग हो रहा है?’’ राकेशजी ने माथे पर बल डाल कर सवाल किया.

‘‘मैं ने तो अपने कहे में वजन पैदा करने के लिए यों ही एक बात कही है. चलो, आज मैं आप को मम्मी से ज्यादा स्मार्ट ढंग से तैयार करवाता हूं,’’ समीर अपने पिता का हाथ पकड़ कर उन के शयनकक्ष की तरफ चल पड़ा.

सीमा को आकर्षक ढंग से तैयार करने में शिखा ने बहुत मेहनत की थी. समीर ने अपने पिता के पीछे पड़ कर उन्हें इतनी अच्छी तरह से तैयार कराया मानो किसी दावत में जाने की तैयारी हो.

‘‘आज खूब जम रही है आप दोनों की जोड़ी,’’ शिखा ने उन्हें साथसाथ खड़ा देख कर कहा और फिर किसी छोटी बच्ची की तरह खुश हो कर तालियां बजाईं.

‘‘तुम्हारी मां तो सचमुच बहुत सुंदर लग रही है,’’ राकेशजी ने अपनी पत्नी की तरफ प्यार भरी नजरों से देखा.

‘‘अगर ढंग से कपड़े पहनना शुरू कर दो तो आप भी इतना ही जंचो. अब गले में मफलर मत लपेट लेना,’’ सीमा की इस टिप्पणी को सुन कर राकेशजी ही सब से ज्यादा जोर से हंसे थे.

कार में बैठने के बाद सीमा ने पूछा, ‘‘हम जा कहां रहे हैं?’’

‘‘पहले लंच होगा और फिर फिल्म देखने के बाद शौपिंग करेंगे,’’ समीर ने प्रसन्न लहजे में उन्हें जानकारी दी.

‘‘हम सागर रत्ना में चल रहे हैं न?’’ दक्षिण भारतीय खाने के शौकीन राकेशजी ने आंखों में चमक ला कर पूछा.

‘‘नो पापा, आज हम मम्मी की पसंद का चाइनीज खाने जा रहे हैं,’’ समीर ने अपनी मां की तरफ मुसकराते हुए देखा.

‘‘बहुत अच्छा, किस रेस्तरां में चल रहे हो?’’ सीमा एकदम से प्रसन्न हो गई.

‘‘नए रेस्तरां ईस्टर्न डिलाइट में.’’

‘‘वह तो बहुत दूर है,’’ सीमा झटके में उन्हें यह जानकारी दे तो गई, पर फौरन ही उसे यों मुंह खोलने का अफसोस भी हुआ.

‘‘तो क्या हुआ? मम्मी, आप को खुश रखने के लिए हम कितनी भी दूर चल सकते हैं.’’

‘‘तुम कब हो आईं इस रेस्तरां में?’’ राकेशजी ने उस से पूछा.

‘‘मेरे औफिस में कोई बता रहा था कि रेस्तरां अच्छा तो है, पर बहुत दूर भी है,’’ यों झूठ बोलते हुए सीमा के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

‘‘वहां खाना ज्यादा महंगा तो नहीं होगा?’’ राकेशजी का स्वर चिंता से भर उठा था.

‘‘पापा, हमारी खुशियों और मनोरंजन की खातिर आप खर्च करने से हमेशा बचते हैं, लेकिन अब यह नहीं चलेगा,’’ समीर ने अपने दिल की बात साफसाफ कह दी.

‘‘भैया ठीक कह रहे हैं. हम लोग साथसाथ कहीं घूमने जाते ही कहां हैं,’’ शिखा एकदम से भावुक हो उठी, ‘‘आप दोनों हफ्ते में 6 दिन औफिस जाते हो और हम कालेज. पर अब हम भाईबहन ने फैसला कर लिया है कि हर संडे हम सब इकट्ठे कहीं न कहीं घूमनेफिरने जरूर जाया करेंगे. अगर हम ने ऐसा करना नहीं शुरू किया तो एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अजनबी से हो जाएंगे.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम सब समझते क्यों नहीं हो कि यों बेकार की बातों पर ज्यादा खर्च करना ठीक नहीं है. अभी तुम दोनों की पढ़ाई बाकी है. फिर शादीब्याह भी होने हैं. इंसान को पैसा बचा कर रखना चाहिए,’’ राकेशजी ने कुछ नाराजगी भरे अंदाज में उन्हें समझाने की कोशिश की.

‘‘पापा, ज्यादा मन मार कर जीना भी ठीक नहीं है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, मम्मी?’’ समीर बोला.

‘‘ये बातें तुम्हारे पापा को कभी समझ में नहीं आएंगी और न ही वे अपनी कंजूसी की आदत बदलेंगे,’’ सीमा ने शिकायत की और फिर इस चर्चा में हिस्सा न लेने का भाव दर्शाने के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

‘‘प्यार से समझाने पर इंसान जरूर बदल जाता है, मौम. हम बदलेंगे पापा को,’’ समीर ने उन को आश्वस्त करना चाहा.

‘‘बस, आप हमारी हैल्प करती रहोगी तो देखना कितनी जल्दी हमारे घर का माहौल हंसीखुशी और मौजमस्ती से भर जाएगा,’’ शिखा भावुक हो कर अपनी मां की छाती से लग गई.

‘‘अरे, मैं क्या कोई छोटा बच्चा हूं, जो तुम सब मुझे बदलने की बातें मेरे ही सामने कर रहे हो?’’ राकेशजी नाराज हो उठे.

‘‘पापा, आप घर में सब से बड़े हो पर अब हम छोटों की बातें आप को जरूर माननी पड़ेंगी. भैया और मैं चाहते हैं कि हमारे बीच प्यार का रिश्ता बहुतबहुत मजबूत हो जाए.’’

‘‘यह बात कुछकुछ मेरी समझ में आ रही है. मेरी गुडि़या, मुझे बता कि ऐसा करने के लिए मुझे क्या करना होगा?’’

उन के इस सकारात्मक नजरिए को देख कर शिखा ने अपने पापा का हाथ प्यार से पकड़ कर चूम लिया.

इस पल के बाद सीमा तो कुछ चुपचुप सी रही पर वे तीनों खूब खुल कर हंसनेबोलने लगे थे. ईस्टर्न डिलाइट में समीर ने कोने की टेबल को बैठने के लिए चुना. अगर कोई वहां बैठी सीमा के चेहरे के भावों को पढ़ सकता, तो जरूर ही उस के मन की बेचैनी को भांप जाता.

वेटर के आने पर समीर ने सब के लिए और्डर दे दिया, ‘‘हम सब के लिए पहले चिकन कौर्न सूप ले आओ, फिर मंचूरियन और फिर फ्राइड राइस लाना. मम्मी, हैं न ये आप की पसंद की चीजें?’’

‘‘हांहां, तुम ने जो और्डर दे दिया, वह ठीक है,’’ सीमा ने परेशान से अंदाज में अपनी रजामंदी व्यक्त की और फिर इधरउधर देखने लगी.

सीमा ने भी सब की तरह भरपेट खाना खाया, लेकिन उस ने महसूस किया कि वह जबरदस्ती व नकली ढंग से मुसकरा रही थी और यह बात उसे देर तक चुभती रही.

रेस्तरां से बाहर आए तो समीर ने मुसकराते हुए सब को बताया, ‘‘आप सब को याद होगा कि फिल्म ‘ब्लैक’ मम्मी को बहुत पसंद आई थी. इन के मुंह से इसे दोबारा देखने की बात मैं ने कई बार सुनी तो इसी फिल्म के टिकट कल शाम मैं ने अपने दोस्त मयंक से मंगवा लिए, जो यहां घूमने आया हुआ था. मम्मी, आप यह फिल्म दोबारा देख लेंगी न?’’

‘‘हांहां, जरूर देख लूंगी. यह फिल्म है भी बहुत बढि़या,’’ अपने मन की बेचैनी व तनाव को छिपाने के लिए सीमा को अब बहुत कोशिश करनी पड़ रही थी.

फिल्म देखते हुए अगर सीमा चाहती तो लगभग हर आने वाले सीन की जानकारी उन्हें पहले से दे सकती थी. अगर कोई 24 घंटों के अंदर किसी फिल्म को फिर से देखे तो उसे सारी फिल्म अच्छी तरह से याद तो रहती ही है.

फिल्म देख लेने के बाद वे सब बाजार में घूमने निकले. सब ने आइसक्रीम खाई, लेकिन सीमा ने इनकार कर दिया. उस का अब घूमने में मन नहीं लग रहा था.

‘‘चलो, अब घर चलते हैं. मेरे सिर में अचानक दर्द होने लगा है,’’ उस ने कई बार ऐसी इच्छा प्रकट की पर कोई इतनी जल्दी घर लौटने को तैयार नहीं था.

समीर और शिखा ने अपने पापा के ऊपर दबाव बनाया और उन से सीमा को उस का मनपसंद सैंट, लिपस्टिक और नेलपौलिश दिलवाए.

घर पहुंचने तक चिंतित नजर आ रही सीमा का सिर दर्द से फटने लगा था. उस ने कपड़े बदले और सिर पर चुन्नी बांध कर पलंग पर लेट गई. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इस के लिए उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

उसे पता भी नहीं लगा कि कब उस की आंखों से आंसू बहने लगे. फिर अचानक ही उस की रुलाई फूट पड़ी और वह तकिए में मुंह छिपा कर रोने लगी.

तभी बाहर से समीर ने दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे आराम करने दो.’’

‘‘मम्मी, आप कुछ देर जरूर आराम कर लो. शिखा पुलाव बना रही है, तैयार हो जाने पर मैं आप को बुलाने आ जाऊंगा,’’ समीर ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘मैं सो जाऊं तो मुझे उठाना मत,’’ सीमा ने उसे रोआंसी आवाज में हिदायत दी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद समीर का जवाब सीमा के कानों तक पहुंचा, ‘‘मम्मी, हम सब आप को बहुत प्यार करते हैं. पापा में लाख कमियां होंगी पर यह भी सच है कि उन्हें आप के सुखदुख की पूरी फिक्र रहती है. मैं आप को यह विश्वास भी दिलाता हूं कि हम कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिस के कारण आप का मन दुखे या कभी आप को शर्म से आंखें झुका कर समाज में जीना पड़े. अब आप कुछ देर आराम कर लो पर भूखे पेट सोना ठीक नहीं. मैं कुछ देर बाद आप को जगाने जरूर आऊंगा.’’

‘तू ने मुझे जगा तो दिया ही है, मेरे लाल,’ उस के दूर जा रहे कदमों की आवाज सुनते हुए सीमा होंठों ही होंठों में बुदबुदाई और फिर उस ने झटके से उठ कर उसी वक्त मोबाइल फोन निकाल कर अपने सहयोगी नीरज का नंबर मिलाया.

‘‘स्वीटहार्ट, इस वक्त मुझे कैसे याद किया है?’’ नीरज चहकती आवाज में बोला.

‘‘तुम से इसी समय एक जरूरी बात कहनी है,’’ सीमा ने संजीदा लहजे में कहा.

‘‘कहो.’’

‘‘समीर को उस के दोस्त मयंक से पता लग गया है कि कल दिन में मैं तुम्हारे साथ घूमने गई थी.’’

‘‘ओह.’’

‘‘आज वह हमें उसी रेस्तरां में ले कर गया, जहां कल हम गए थे और खाने में वही चीजें मंगवाईं, जो कल तुम ने मंगवाई थीं. वही फिल्म दिखाई, जो हम ने देखी थी और उसी दुकान से वही चीजें खरीदवाईं, जो कल दिन में तुम ने मेरे लिए खरीदवाई थीं.’’

‘‘क्या उस ने तुम से इस बात को ले कर झगड़ा किया है?’’

‘‘नहीं, बल्कि आज तो सब ने मुझे खुश रखने की पूरी कोशिश की है.’’

‘‘तुम कोई बहाना सोच कर उस के सवालों के जवाब देने की तैयारी कर लो, स्वीटहार्ट. हम आगे से कहीं भी साथसाथ घूमने जाने में और ज्यादा एहतियात बरतेंगे.’’

कुछ पलों की खामोशी के बाद सीमा ने गहरी सांस खींची और फिर दृढ़ लहजे में बोली, ‘‘नीरज, मैं अकेले में काफी देर रोने के बाद तुम्हें फोन कर रही हूं. जिस पल से आज मुझे एहसास हुआ है कि समीर को हमारे प्रेम संबंध के बारे में मालूम पड़ गया है, उसी पल से मैं अपनेआप को शर्म के मारे जमीन में गड़ता हुआ महसूस कर रही हूं.

‘‘मैं अपने बेटे से आंखें नहीं मिला पा रही हूं. मुझे हंसनाबोलना, खानापीना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है. बारबार यह सोच कर मन कांप उठता है कि अगर तुम्हारे साथ मेरे प्रेम संबंध होने की बात मेरी बेटी और पति को भी मालूम पड़ गई, तो मुझे जिंदगी भर के लिए सब के सामने शर्मिंदा हो कर जीना पड़ेगा.

‘‘आज एक झटके में ही मुझे यह बात अच्छी तरह से समझ आ गई है कि अपने बड़े होते बच्चों की नजरों में गिर कर जीने से और दुखद बात मेरे लिए क्या हो सकती है नीरज. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मेरे गलत, अनैतिक व्यवहार के कारण वे समाज में शर्मिंदा हो कर जिएं.

‘‘यह सोचसोच कर मेरा दिल खून के आंसू रो रहा है कि जब समीर के दोस्त मयंक ने उसे यह बताया होगा कि उस की मां किसी गैरमर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाती घूम रही थी, तो वह कितना शर्मिंदा हुआ होगा. नहीं, अपने बड़े हो रहे बच्चों के मानसम्मान की खातिर आज से मेरे और तुम्हारे बीच चल रहे अवैध प्रेम संबंधों को मैं हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर रही हूं.’’

‘‘मेरी बात तो…’’

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना है, क्योंकि मैं ने इस मामले में अपना अंतिम फैसला तुम्हें बता दिया है,’’ सीमा ने यह फैसला सुना कर झटके से फोन का स्विच औफकर दिया.

सीमा का परेशान मन उसे और ज्यादा रुलाना चाहता था, पर उस ने एक गहरी सांस खींची और फ्रैश होने के लिए गुसलखाने में घुस गई.

हाथमुंह धो कर वह समीर के कमरे में गई. अपने बेटे के सामने वह मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाल पाई. बस, अपने समझदार बेटे की छाती से लग कर खूब रोई. इन आंसुओं के साथ सीमा के मन का सारा अपराधबोध और दुखदर्द बह गया.

जब रो कर मन कुछ हलका हो गया, तो उस ने समीर का माथा प्यार से चूमा और सहज मुसकान होंठों पर सजा कर बोली, ‘‘देखूं, शिखा रसोई में क्या कर रही है… मैं तेरे पापा के लिए चाय बना देती हूं. मेरे हाथों की बनी चाय हम दोनों को एकसाथ पिए एक जमाना बीत गया है.’’

‘‘जो बीत गया सो बीत गया, मम्मी. अब हम सब को अपनेआप से यह वादा जरूर करना है कि एकदूसरे के साथ प्यार का मजबूत रिश्ता बनाने में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे,’’ समीर ने उन का माथा प्यार से चूम कर अपने मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘हां, जब सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते हैं,’’ सीमा ने मजबूत स्वर में उस की बात का समर्थन किया और फिर अपने पति के साथ अपने संबंध सुधारने का मजबूत इरादा मन में लिए ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

ग्लोइंग स्किन की है चाहत, तो डाइट में शामिल करें ये फूड्स

हमारी त्वचा बहुत ही नाजुक और संवेदनशील होती है. इस पर पर्यावरण का सीधा प्रभाव पड़ता है इसलिए हम को इस को स्वस्थ, साफ, चमकदार और जवान बनाए रखने के लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है. इस के लिए हम लोशन, क्रीम आदि का उपयोग करते हैं, लेकिन अपने खानेपीने की आदतों में बदलाव नहीं लाते जिस के कारण त्वचा को स्वस्थ और जवां रखने में असमर्थ रहते हैं और असमय ही त्वचा पर झुर्रियां आ जाती हैं. ऐसे में इन परेशानियों से बचने के लिए स्किन को डिटौक्सीफाई करना जरूरी है.

इन सब्जियों और फलों को इस्तेमाल कर आप अपनी स्किन यानी त्वचा को चमकदार बना सकती हैं और चेहरे पर असमय आने वाली झुर्रियों से बच सकती हैं:

  1. ऐलोवेरा

चमकदार त्वचा के लिए ऐलोवेरा का उपयोग करना फायदेमंद होता है. यह झुर्रियों को कम कर मुहांसों की समस्या को ठीक करता है, साथ ही यह त्वचा को स्वस्थ और कोमल बना कर उसे नई चमक भी प्रदान करता है.

2. हल्दी

त्वचा के लिए हल्दी का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है, साथ ही इस में ऐंटीबैक्टीरियल, ऐंटीसैप्टिक और ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण होते हैं, जो मुंहासों को ठीक कर चेहरे की चमक को बरकरार रखने में मदद करते हैं.

3. पानी

चमकती त्वचा के लिए रोजाना कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पीना फायदेमंद माना जाता है. यह शरीर से विषैले पदार्थोें को बाहर निकालने में मदद करता है, जिस से त्वचा में निखार आता है.

3. फल

फलों का सेवन भी त्वचा की चमक को बरकरार रख सकता है. विटामिन सी से युक्त फलों को अपने आहार में शामिल कर त्वचा की रक्षा कर सकती हैं और उसे चमकदार बना सकती है. फलों में ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं जो त्वचा को जवान बनाए रखने में मददगार होते हैं.

4. दही

दही कई प्रकार के गुणों से समृद्ध होता है. यही वजह है कि इस का सेवन न केवल स्वास्थ्य बल्कि त्वचा को भी फायदा पहुंचाता है. दही स्किन की इलास्टिसिटी को बूस्ट करता है, साथ ही आप चाहे तो दही का इस्तेमाल फेस पैक के तौर पर भी कर सकती हैं. यह त्वचा की  डिटौक्सीफिकेशन की प्रक्रिया में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और स्किन ग्लो करने लगती है.

5. ब्रोकली

ब्रोकली की गिनती सुपरफूड के रूप में की जाती है. यह न केवल ऐंटीऔक्सीडैंट बल्कि विटामिन सी से भी समृद्ध होती है. इस में जिंक और कौपर भी अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं. इस में मौजूद सभी पोषक तत्त्व त्वचा को हैल्दी बनाए रखते हैं. शरीर में कैल्सियम, आयरन और प्रोटीन की कमी पूरा करने के लिए ब्रोकली को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए. इस के अलावा ब्रोकली में संक्रमण से भी लड़ने की क्षमता होती है और यह इम्यूनिटी भी बढ़ाती है.

6. अनार

अनार को स्वास्थ्यवर्धक तो माना ही जाता है, साथ ही यह त्वचा में निखार लाने में भी मदद करता है. अनार में हाइपरपिगमैंटेशन के साथसाथ दागधब्बों को रोकने की क्षमता होती है. इस का ऐंटीऐजिंग गुण चेहरे की झुर्रियों को कम करने में मदद करता है. इस के अलावा शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में अनार का जूस लाभकारी होता है जिस का स्किन टोन पर भी प्रभाव पड़ता है.

7. करेला

करेला भले ही स्वाद में कड़वा हो, लेकिन स्किन के ग्लो को बढ़ाने में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट व ऐंटीपिगमैंटेशन प्रभाव मौजूद होता है, जो त्वचा की रक्षा करता है और जो स्किन के ग्लो को बनाए रखने में मदद करता है.

8. खीरा

खीरे का इस्तेमाल शुरू से ही स्किन के ग्लो को बढ़ाने और उसे टाइट करने के लिए किया जाता रहा है. इस का रस सिलिका से भरपूर होता है, जो रंगत निखारने और त्वचा में चमक लाने के लिए जाना जाता है. पानी से भरपूर खीरा त्वचा की नमी को भी बनाए रखता है.

9. ग्रीन टी

वजन घटाने के अलावा त्वचा की चमक निखारने के लिए भी ग्रीन टी का नियमित सेवन किया जा सकता है. इस में पौलीफेनोल्स नामक कंपाउंड मौजूद होता है, जो त्वचा में ब्लड सर्कुलेशन और औक्सीजन को बढ़ाने में मदद करता है. यह एक अच्छा ऐंटीऔक्सीडैंट्स भी है जो त्वचा को जवान बनाए रखता है.

10. नियमित व्यायाम करें

  •  नियमित व्यायाम शरीर को डिटौक्सीफाई करने में मदद करता है.
  • व्यायाम के कारण आने वाला पसीना टौक्सिन और इंप्यूरिटी को बाहर निकालता है.
  •  पसीना स्किन को डिटौक्सीफाई करने का अच्छा विकल्प है.
  • चेहरे की चमक को बढ़ाने के लिए हैल्दी डाइट के साथसाथ योगासन करना भी जरूरी है  इसलिए रोजाना सुबह उठ कर कपालभाति व अनुलोमविलोम जैसे प्राणायाम जरूर करें.

11. भरपूर नींद लें

  •  रात में ज्यादा देर तक फोन का उपयोग न करें क्योंकि यह आप को सोने के समय को खराब करता है.
  •  अपनी पसंद की किताब पढ़ें ताकि अच्छी नींद आ सके.
  • देर रात तक जागने से भी चेहरे की चमक फीकी पड़ सकती है. अगर ग्लोइंग या चमकदार स्किन पानी है तो कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें.
  • किसी भी तनाव से बचें.ऐसे करें स्किन डिटौक्सीफाई
  • स्किन को डिटौक्स करने और शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का सब से अच्छा तरीका नियमित रूप से ढेर सारा पानी पीना है. पानी की बोतल हमेशा अपने साथ रखें ताकि पूरा दिन पानी पी कर

12. खुद को हाइड्रेट कर सकें

  •  किसी भी खट्टे फल या खीरे के कुछ स्लाइस काट सकती हैं और इसे अपनी पानी की बोतल में  मिला सकती हैं ताकि पानी में हलका स्वाद घोल या जोड़ सकें और आप को विटामिन भी मिल सके, जो डिटौक्सीफाइंग प्रक्रिया में और मदद करता है.
  • अपने दिन की शुरूआत ग्रीन जूस से कर सकती हैं जिस में केला, खीरा और अनान्नास शामिल हैं.द्य रात में सोने से पहले और सुबह उठने के बाद अपने चेहरे और त्वचा को साफ करना जरूरी है ताकि सोते समय स्किन पर मौजूद गंदगी को दूर किया जा सके.
  • शरीर को स्वस्थ और जवान रखने के लिए शरीर को सिर्फ बाहर से ही साफ नहीं बल्कि अंदर की गंदगी को भी दूर करने के लिए शरीर को डिटौक्स करने की आवश्यकता होती है. इस के लिए कुछ खाद्य और पेयपदार्थों का सेवन करना, ज्यादा पानी पीना और हरी सब्जियां खाना बहुत जरूरी होता है एवं कुछ पदार्थों का त्याग करना पड़ता है जैसे शराब, तले पदार्थ, चीनी, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोसैस्ड फूड आदि क्योंकि विषैले पदार्थों के कारण तनाव बढ़ जाता है.
  • स्किन के ग्लो को बढ़ाने के लिए चेहरे पर अधिक मात्रा में कैमिकल युक्त पदार्थों का इस्तेमाल न करें क्योंकि इन से त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है.

 

क्या है पोस्टपार्टम डिप्रैशन, न्यू मौम्स के लिए खुद का रखें इस तरह ख्याल

विश्व में प्रसव के बाद लगभग 13% महिलाओं को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें परेशान कर देता है. प्रसव के तुरंत बाद होने वाले डिप्रैशन को पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहा जाता है. भारत और अन्य विकासशील देशों में यह संख्या 20% तक है.  2020 में सीडीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार यह सामने आया है कि 8 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार होती है. विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में  पोस्टपार्टम डिप्रैशन होने के चांसेज ज्यादा होते है.

इस संबंध में बैंगलुरु के मणिपाल हौस्पिटल की कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स व गायनेकोलौजिस्ट डाक्टर हेमनंदीनी जयरामन बताती हैं कि महिलाओं में मानसिक समस्याएं होने पर वे अंदर से टूट जाती हैं. इन्हें परिवार के लोग भी समझ नहीं पाते हैं, जिस से वे खुद को बहुत ही असहाय महसूस करती हैं.

पोस्टपार्टम का मतलब बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का समय होता है. प्रसव के तुरंत बाद महिलाओं में शारीरिक, मानसिक व व्यवहार में जो बदलाव आते हैं, उन्हें पोस्टपार्टम कहा जाता है. पोस्टपार्टम की अवस्था में पहुंचने से पहले 3 चरण होते हैं जैसे इंट्रापार्टम यानी प्रसव से पहले का समय और एंट्रेपार्टम यानी प्रसव के दौरान का समय तथा पोस्टपार्टम बच्चे के जन्म के बाद का समय होता है.

भले ही बच्चे के जन्म के बाद एक अनोखी खुशी होती है, लेकिन इस सब के बावजूद कई महिलाओं को पोस्टपार्टम का सामना करना पड़ता है. इस समस्या का इससे कोई संबंध नहीं होता है कि प्रसव नौर्मल डिलिवरी से हुआ है या फिर औपरेशन से. पोस्टपार्टम की समस्या महिलाओं में प्रसव के दौरान शरीर में होने वाले सामाजिक, मानसिक व हारमोनल बदलावों की वजह से होती है.

डिप्रैशन की वजह

पोस्टपार्टम मां व बच्चे दोनों को भी हो सकता है. न्यू मौम्स में कई हारमोनल व शारीरिक बदलाव देखे जाते हैं, जिस के कई लक्षण हैं- बारबार रोने को दिल करना, ज्यादा सोने का मन करना, कम खाने की इच्छा होना, बच्चे के साथ ठीक से संबंध बनाने में खुद को असमर्थ महसूस करना इत्यादि. इस डिप्रैशन की वजह से कई बार मां खुद को व बच्चे को भी नुकसान पहुंचा देती है. ऐसी स्थिति में मरीज के मस्तिष्क में कई बदलाव होते हैं, जिस से एन्सिएंटी के दौरे भी पड़ने लगते हैं.

प्रसव के बाद महिलाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस के लिए जरूरी है कि उन्हें बच्चे के साथसाथ खुद की भी खास तौर पर केयर करने की जरूरत होती है क्योंकि इस दौरान शरीर के कमजोर होने के साथ शरीर पर स्ट्रैच मार्क्स दिखना, बढ़ते तनाव की वजह से पीठ में दर्द होना, लगातार बालों का झड़ना, स्तनों के आकार में बदलाव होना जैसे बदलावों से मां को गुजरना पड़ता है. इस के साथ ही अगर वह वर्किंग है, तो उसे अपने कैरियर को जारी रखने की भी चिंता सताती रहती है.

परिवार का सहयोग

ऐसे में न्यू मौम्स की लाइफ में एक ही व्यक्ति पौजिटिविटी ला सकता है और वह है बच्चे का पिता क्योंकि जब न्यू मौम का शरीर कमजोर होता है और वह अपने नए जीवन के साथ जूझ रही होती है, तब आप का हैल्पफुल पार्टनर आप को हर तरह से सपोर्ट देने का काम करता है. जैसे सब हो जाएगा, मैं और मेरा पूरा परिवार तुम्हारे साथ है. ऐसी स्थिति में पोस्टपार्टम से जूझ रही महिला पार्टनर की बातों से पौजिटिव होने लगती है और उसे लगने भी लगता है कि अब वह बच्चे का ठीक से खयाल भी रख पाएगी यानी पार्टनर व परिवार के सहयोग से वह इस प्रौब्लम से उभर जाती है.

ऐक्सपर्ट डाक्टर्स की टीम महिलाओं को इस स्थिति से पूरी समझदारी व परिपक्वता से निबटने की सलाह देते हैं. विशेष रूप से जिन महिलाओं को जुड़वां या फिर दिव्यांग बच्चे होते हैं उन पर ऐक्सपर्ट डाक्टर्स के साथसाथ परिवारजनों को भी विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत होती है ताकि उन्हें इस स्थिति से उबरने में आसानी हो.

कई महिलाओं को यह पता भी नहीं होता कि वे डिप्रैशन से गुजर रही हैं. ऐसे में हमें उन्हें इस स्थिति से अवगत करवाना पड़ता है. पोस्टपार्टम डिप्रैशन का समय पर उपचार करना जरूरी होता है क्योंकि अगर इस स्थिति का समय रहते उपचार न किया जाए तो इस से महिला खुद के साथसाथ बच्चे पर वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती है. इस के अलावा वह बच्चे की जरूरतों को भी समझने में असमर्थ होती है, जबकि जन्म के बाद बच्चे को मां की ही सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए समय पर ट्रीटमैंट जरूरी है.

मेरे पति का औफिस में अफेयर चल रहा है, मुझे क्या करना चाहिए?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं शादीशुदा गृहिणी हूं. पति स्मार्ट व हैंडसम हैं और अपनी उम्र से काफी छोटे दिखते हैं. वे सरकारी महकमे में अधिकारी हैं. 2 बेटे हैं जो अपनेअपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं. मेरी समस्या यह है कि पिछले 1 साल से पति ने मेरे साथ सैक्स नहीं किया, हालांकि हमारे में कोई विवाद नहीं है. 1-2 लोगों ने मुझे बताया है कि उन के अपनी सहकर्मी से संबंध हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

जैसाकि आप ने बताया कि आप दोनों के बीच कोई विवाद नहीं है पर पति सैक्स में दिलचस्पी नहीं लेते तो आप को इस की वजह जानने की कोशिश करनी होगी.

संभव है कि वे बतौर अधिकारी काम के बो झ तले दबे हों और तनाव में रहते हों या फिर उन्हें कोई अंदरूनी परेशानी हो. वक्त और मूड देख कर आप को पति से बात करनी चाहिए.

रही बात उन का अपनी सहकर्मी से संबंध की, तो बातों पर भरोसा करना दांपत्य जीवन में जहर ही घोलता है. दूसरों की कही बातों पर भरोसा न करें.

वैसे भी विवाहेतर संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं टिकते. देरसवेर इस रिश्ते पर विराम लग ही जाता है.

बावजूद इस के अगर आप अपने रिश्ते में जान फूंकना चाहती हैं तो पति के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं, उन्हें भरपूर प्यार दें, कामकाज के बारे में पूछें, साथ घूमने जाएं.

हां, अगर उन में किसी शारीरिक विकार के लक्षण दिखें तो डाक्टर से परामर्श लें.

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रात के 10 बज रहे थे. 10वीं फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट से सोम कभी इस खिड़की से नीचे देखता तो कभी उस खिड़की से. उस की पत्नी सान्वी डिनर कर के नीचे टहलने गई थी. अभी तक नहीं आई थी. उन का 10 साल का बेटा धु्रव कार्टून देख रहा था. सोम अभी तक लैपटौप पर ही था, पर अब बोर होने लगा तो घर की चाबी ले कर नीचे उतर गया.

सोसाइटी में अभी भी अच्छीखासी रौनक थी. काफी लोग सैर कर रहे थे. सोम को सान्वी कहीं दिखाई नहीं दी. वह घूमताघूमता सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में भी चक्कर लगा आया. अचानक उसे दूर जहां रोशनी कम थी, सान्वी किसी पुरुष के साथ ठहाके लगाती दिखी तो उस का दिमाग चकरा गया. मन हुआ जा कर जोर का चांटा सान्वी के मुंह पर मारे पर आसपास के माहौल पर नजर डालते हुए सोम ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर उन दोनों के पीछे चलते हुए आवाज दी, ‘‘सान्वी.’’

सान्वी चौंक कर पलटी. चेहरे पर कई भाव आएगए. साथ चलते पुरुष से तो सोम खूब परिचित था ही. सो उसे मुसकरा कर बोलना ही पड़ा, ‘‘अरे प्रशांत, कैसे हो?’’

प्रशांत ने फौरन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम सुनाओ, क्या हाल है?’’

सोम ने पूरी तरह से अपने दिलोदिमाग पर काबू रखते हुए आम बातें जारी रखीं. सान्वी चुप सी हो गई थी. सोम मौसम, सोसाइटी की आम बातें करने लगा. प्रशांत भी रोजमर्रा के ऐसे विषयों पर बातें करता हुआ कुछ दूर साथ चला. फिर ‘घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे’ कह कर चला गया.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अबोला नहीं : बेवजह के शक ने जया और अमित के बीच कैसे पैदा किया तनाव

क्यारियों में खिले फूलों के नाम जया याद ही नहीं रख पाती, जबकि अमित कितनी ही बार उन के नाम दोहरा चुका है. नाम न बता पाने पर अमित मुसकरा भर देता.

‘‘क्या करें, याद ही नहीं रहता,’’ कह कर जया लापरवाह हो जाती. उसे नहीं पता था कि ये फूलों के नाम याद न रखना भी कभी जिंदगी को इस अकेलेपन की राह पर ला खड़ा करेगा.

‘‘तुम से कुछ कहने से फायदा भी क्या है? तुम फूलों के नाम तक तो याद नहीं रख पातीं, फिर मेरी कोई और बात तुम्हें क्या याद रहेगी?’’ अमित कहता.

छोटीछोटी बातों पर दोनों में झगड़ा होने लगा था. एकदूसरे को ताने सुनाने का कोई भी मौका वे नहीं छोड़ते थे और फिर नाराज हो कर एकदूसरे से बोलना ही बंद कर देते. बारबार यही लगता कि लोग सही ही कहते हैं कि लव मैरिज सफल नहीं होती. फिर दोनों एकदूसरे पर आरोप लगाने लगते.

‘‘तुम्हीं तो मेरे पीछे पागल थे. अगर तुम मेरे साथ नहीं रहोगी, तो मैं अधूरा रह जाऊंगा, बेसहारा हो जाऊंगा. इतना सब नाटक करने की जरूरत क्या थी?’’ जया चिल्लाती.

अमित भी चीखता, ‘‘बिना सहारे की  जिंदगी तो मेरी ही थी और जो तुम कहती थीं कि मुझे हमेशा सहारा दिए रहना वह क्या था? नाटक मैं कर रहा था या तुम? एक ओर मुझे मिलने से मना करतीं और दूसरी तरफ अगर मुझे 15 मिनट की भी देरी हो जाता तो परेशान हो जाती थीं. मैं पागल था तो तुम समझदार बन कर अलग हो जाती.’’

जया खामोश हो जाती. जो कुछ अमित ने कहा था वह सही ही था. फिर भी उस पर गुस्सा भी आता. क्या अमित उस के पीछे दीवाना नहीं था? रोज सही वक्त पर आना, साथ में फूल लाना और कभीकभी उस का पसंदीदा उपहार लाना और भी न जाने क्याक्या. लेकिन आज दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं, दोषारोपण कर रहे हैं. कभीकभी तो दोनों बिना खाएपिए ही सो जाते हैं. मगर इतनी किचकिच के बाद नींद किसे आ सकती है. रात का सन्नाटा और अंधेरा पिछली बातों की पूरी फिल्म दिखाने लगता.

जया सोचती, ‘अमित कितना बदल गया है. आज सारा दोष मेरा हो गया जैसे मैं ही उसे फंसाने के चक्कर में थी. अब मेरी हर बात बुरी लगती है. उस का स्वाभिमान है तो मेरा भी है. वह मर्द है तो चाहे जो करता रहे और मैं औरत हूं, तो हमेशा मैं ही दबती रहूं? अमितजी, आज की औरतें वैसी नहीं होतीं कि जो नाच नचाओगे नाचती रहेंगी. अब तो जैसा दोगे वैसा पाओगे.’

उधर अमित सोचता, ‘क्या होता जा रहा है जया को? चलो मान लिया मैं ही उस के पीछे पड़ा था, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि वह हर बात में अपनी धौंस दिखाती रहे. मेरा भी कुछ स्वाभिमान है.’

फिर भी दोनों कोई रास्ता नहीं निकाल पाते. आधी रात से भी ज्यादा बीतने तक जागते रहते हैं, पिछली और वर्तमान जिंदगी की तुलना करते हुए मन बुझता ही जाता और चारों ओर अंधेरा हो जाता. फिर रंगबिरंगी रेखाएं आनेजाने लगती हैं, फिर कुछ अस्पष्ट सी ध्वनियां, अस्पष्ट से चेहरे. शायद सपने आने लगे थे. उस में भी पुराना जीवन ही घूमफिर कर दिखता है. वही जीवन, जिस में चारों ओर प्यार ही प्यार था, मीठी बातें थीं, रूठनामनाना था, तानेउलाहने थे, लेकिन आज की तरह नहीं. आज तो लगता है जैसे दोनों एकदूसरे के दुश्मन हैं फिर नींद टूट जाती और भोर गए तक नहीं आती.

सुबह जया की आंखें खुलतीं तो सिरहाने तकिए पर एक अधखिला गुलाब रखा होता. शादी के बाद से ही यह सिलसिला चला आ रहा था. आज भी अमित अपना यह उपहार देना नहीं भूला. जया फूल को चूम कर ‘कितना प्यारा है’ सोचती.

अमित ने तकिए पर देखा, फूल नहीं था, समझ गया, जया ने अपने जूड़े में खोंस लिया होगा. उस के दिए फूल की बहुत हिफाजत करती है न.

तभी जया चाय की ट्रे लिए आ गई. उस के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. सब कुछ सामान्य लग रहा था. अमित भी सहज हो कर मुसकराया है. जया के केशों में फूल बहुत प्यारा लग रहा था. अमित चाहता था कि उसे धीरे से सहला दे, फिर रुक गया, कहीं जया नाराज न हो जाए.

अमित को मुसकराते देख जया मन ही मन बोली कि शुक्र है मूड तो सही लग रहा है.

तैयार हो कर अमित औफिस चला गया. जया सारा काम निबटा कर जैसे ही लेटने चली, फोन की घंटी बजी. जया ने फोन उठाया. अमित का सेक्रेटरी बोल रहा था, ‘‘मैडम, साहब आज आएंगे नहीं क्या?’’

जया चौंक गई, अजीब सी शंका हुई. कहीं कोई ऐक्सीडैंट… अरे नहीं, क्या सोचने लगी. संभल कर जवाब दिया, ‘‘यहां से तो समय से ही निकले थे. ऐसा करो मिस कालिया से पूछो कहीं कोई और एप्वाइंटमैंट…’’

सेक्रेटरी की आवाज आई, ‘‘मगर मिस कालिया भी तो नहीं आईं आज.’’

जया उधेड़बुन में लग गई कि अमित कहां गया होगा. सेक्रेटरी बीचबीच में सूचित करता रहा कि साहब अभी तक नहीं आए, मिस कालिया भी नहीं.

बहुत सुंदर है निधि कालिया. अपने पति से अनबन हो गई है. उस की बात तलाक तक आ पहुंची है. उसे जल्द ही तलाक मिल जाएगा. इसीलिए सब उसे मिस कालिया कहने लगे हैं. उस का बिंदास स्वभाव ही सब को उस की ओर खींचता है. कहीं अमित भी…

सेके्रटरी का फिर फोन आया कि साहब और कालिया नहीं आए.

यह सेके्रटरी बारबार कालिया का नाम क्यों ले रहा है? कहीं सचमुच अमित मिस कालिया के साथ ही तो नहीं है? सुबह की शांति व सहजता हवा हो चुकी थी.

शाम को अमित आया तो काफी खुश दिख रहा था. वह कुछ बोलना चाह रहा था, मगर जया का तमतमाया चेहरा देख कर चुप हो गया. फिर कपड़े बदल कर बाथरूम में घुस गया. अंदर से अमित के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी. जया किचन में थी. जया लपक कर फिर कमरे में आ गई. फर्श पर सिनेमा का एक टिकट गिरा हुआ था. उस के हाथ तेजी से कोट की जेबें टटोलने लगे. एक और टिकट हाथ में आ गया. जया गुस्से से कांपने लगी कि साहबजी पिक्चर देख रहे थे कालिया के साथ और अभी कुछ कहो तो मेरे ऊपर नाराज हो जाएंगे. अरे मैं ही मूर्ख थी, जो इन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई. यह तो रोज ही किसी न किसी से कहता होगा कि तुम्हारे बिना मैं बेसहारा हो जाऊंगा.

तभी अमित बाथरूम से बाहर आया. जया का चेहरा देख कर ही समझ गया कि अगर कुछ बोला तो ज्वालामुखी फूट कर ही रहेगा. अमित बिना वजह इधरउधर कुछ ढूंढ़ने लगा. जया चुपचाप ड्राइंगरूम में चली गई. धीरेधीरे गुस्सा रुलाई में बदल गया और उस ने वहीं सोफे पर लुढ़क कर रोना शुरू कर दिया.

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, फिर अब दोनों के बीच उतनी सहजता तो रह नहीं गई थी कि जा कर पूछता क्या हुआ है. वह भी बिस्तर पर आ कर लेट गया. कैसी मुश्किल थी. दोनों ही एकदूसरे के बारे में जानना चाहते थे, मगर खामोश थे. जया वहीं रोतेरोते सो गई. अमित ने जा कर देखा, मन में आया इस भोले से चेहरे को दुलार ले, उस को अपने सीने में छिपा कर उस से कहे कि जया मैं सिर्फ तेरा हूं, सिर्फ तेरा.

मगर एक अजीब से डर ने उसे रोक दिया. वहीं बैठाबैठा वह सोचता रहा, ‘कितनी मासूम लग रही है. जब गुस्से से देखती है तो उस की ओर देखने में भी डर लगने लगता है.’

तभी जया चौंक कर जग गई. अमित ने सहज भाव से पूछा, ‘‘जया, तबीयत ठीक नहीं लग रही है क्या?’’

‘‘जी नहीं, मैं बिलकुल अच्छी हूं.’’

तीर की तरह जया ड्राइंगरूम से निकल कर बैडरूम में आ कर बिस्तर पर निढाल हो गई. अमित भी आ कर बिस्तर के एक कोने में बैठ गया. सारा दिन कितनी हंसीखुशी से बीता था, लेकिन घर आते ही… फिर भी अमित ने सोच लिया कि थोड़ी सी सावधानी उन के जीवन को फिर हंसीखुशी से भर सकती है और फिर कुछ निश्चय कर वह भी करवट बदल कर सो गया.

दोनों के बीच दूरियां दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थीं, लेकिन वे इन दूरियों को कम करने की कोई कोशिश ही नहीं करते. कोशिश होती भी है तो कम होने के बजाय बढ़ती ही जाती है. यह नाराज हो कर अबोला कर लेना संबंधों के लिए कितना घातक होता है. अबोला की जगह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेना ही सही होता है. लेकिन ऐसा हो कहां पाता है. जरा सी नोकझोंक हुई नहीं कि बातचीत बंद हो जाती है. इस मौन झगड़े में गलतफहमियां बढ़ती हैं व दूरी बढ़ती जाती है.

लगभग 20-25 दिन हो गए अमित और जया में अबोला हुए. दोनों को ही अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन पहल कौन करे. दोनों का ही स्वाभिमान आड़े आ जाता.

उस दिन रविवार था. सुबह के 9 बज रहे होंगे कि दरवाजे की घंटी बजी.

‘कौन होगा इस वक्त’, यह सोचते हुए जया ने दरवाजा खोला तो सामने मिस कालिया और सुहास खड़े थे.

‘‘मैडम नमस्ते, सर हैं क्या?’’ कालिया ने ही पूछा.

बेमन से सिर हिला कर जया ने हामी भरी ही थी कि कालिया धड़धड़ाती अंदर घुस गई, ‘‘सर, कहां हैं आप?’’ कमरे में झांकती वह पुकार रही थी.

सुहास भी उस के पीछे था. तभी अमित

ने बालकनी से आवाज दी, ‘‘हां, मैं यहां हूं. यहीं आ जाओ. जया, जरा सब के लिए चाय बना देना.’’

नाकभौं चढ़ाती जया चाय बनाने किचन में चली गई. बालकनी से अमित, सुहास और कालिया की बातें करने, हंसने की आवाजें आ रही थीं, लेकिन साफसाफ कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. जया चायबिस्कुट ले कर पहुंची तो सब चुप हो गए. किसी ने भी उसे साथ बैठने के लिए नहीं कहा. उसे ही कौन सी गरज पड़ी है. चाय की टे्र टेबल पर रख कर वह तुरंत ही लौट आई और किचन के डब्बेबरतन इधरउधर करने लगी.

मन और कान तो उन की बातों की ओर लगे थे.

थोड़ी देर बाद ही अमित किचन में आ कर बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर के लिए इन लोगों के साथ बाहर जा रहा हूं,’’ और फिर शर्ट के बटन बंद करते अमित बाहर निकल गया.

कहां जा रहा, कब लौटेगा अमित ने कुछ भी नहीं बताया. जया जलभुन गई. दोनों के बीच अबोला और बढ़ गया. इस झगड़े का अंत क्या था आखिर?

हफ्ते भर बाद फिर कालिया और सुहास आए. कालिया ने जया को दोनों कंधों से थाम लिया, ‘‘आप यहां आइए, सर के पास बैठिए. मुझे आप से कुछ कहना है.’’

बुत बनी जया को लगभग खींचती हुई वह अमित के पास ले आई और उस की बगल में बैठा दिया. फिर अपने पर्स में से एक कार्ड निकाल कर उस ने अमित और जया के चरणों में रख दिया और दोनों के चरणस्पर्श कर अपने हाथों को माथे से लगा लिया.

‘‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो, कालिया? सदा खुश रहो, सुखी रहो,’’ अमित बोला तो जया की जैसे तंद्रा भंग हो गई.

कैसा कार्ड है यह? क्या लिखा है इस में? असमंजस में पड़ी जया ने कार्ड उठा लिया. सुहास और निधि कालिया की शादी की 5वीं वर्षगांठ पर होने वाले आयोजन का वह निमंत्रणपत्र था.

निधि कालिया चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम, यह सब सर की मेहनत और आशीर्वाद का परिणाम है. सर ने कोशिश न की होती तो आज 5वीं वर्षगांठ मनाने की जगह हम तलाक की शुरुआत कर रहे होते. हम ने लव मैरिज की थी, लेकिन सुहास के मम्मीपापा को मैं पसंद नहीं आई. मेरे मम्मीपापा भी मेरे द्वारा लड़का खुद ही पसंद कर लेने के कारण अपनेआप को छला हुआ महसूस कर रहे थे. बिना किसी कारण दोनों परिवार अपनी बहू और अपने दामाद को अपना नहीं पा रहे थे. उन्होंने हमारे छोटेमोटे झगड़ों को खूब हवा दी, उन्हें और बड़ा बनाते रहे, बजाय इस के कि वे लोग हमें समझाते, हमारी लड़ाइयों की आग में घी डालते रहे. छोटेछोटे झगड़े बढ़तेबढ़ते तलाक तक आ पहुंचे थे.

‘‘सर को जब मालूम हुआ तो उन्होंने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया ताकि हमारी शादी न टूटे. 1-2 महीने पहले उन्होंने हमें अलगअलग एक सिनेमा हाल में बुलाया और एक फिल्म के 2 टिकट हमें दे कर यह कहा कि चूंकि आप नहीं आ रहीं इसलिए वे भी फिल्म नहीं देखना चाहते. टिकटें बेकार न हों, इसलिए उन्होंने हम से फिल्म देखने का आग्रह किया. भले ही मैं और सुहास अलग होने वाले थे, लेकिन हम दोनों ही सर का बहुत आदर करते हैं, इसलिए दोनों ही मना नहीं कर पाए.

‘‘फिल्म शुरू हो चुकी थी इसलिए कुछ देर तो हमें पता नहीं चला. थोड़ी देर बाद समझ में आया कि सिनेमाहाल करीबकरीब खाली ही था. लेकिन सिनेमाहाल के उस अंधेरे में हमारा सोया प्यार जाग उठा. फिल्म तो हम ने देखी, सारे गिलेशिकवे भी दूर कर लिए. हम ने कभी एकदूसरे से अपनी शिकायतें बताई ही नहीं थीं, बस नाराज हो कर बोलना बंद कर देते थे. जितनी देर हम सिनेमाहाल में थे सर ने हमारे मम्मीपापा से बात की, उन्हें समझाया तो वे हमें लेने सिनेमाहाल तक आ गए. फिर हम सब एक जगह इकट्ठे हुए एकदूसरे की गलतफहमियां, नाराजगियां दूर कर लीं. मैं ने और सुहास ने भी अपनेअपने मम्मीपापा और सासससुर से माफी मांग ली और भरोसा दिलाया कि हम उन के द्वारा पसंद की गई बहूदामाद से भी अच्छे साबित हो कर दिखा देंगे.

‘‘उस के बाद से कोर्ट में चल रहे तलाक के मुकदमे को सुलहनामा में बदलने में सर ने बहुत मदद की. आज इन की वजह से ही हम दोनों फिर एक हो गए हैं, हमारा परिवार भी हमारे साथ है, सब से बड़ी खुशी की बात तो यही है. परसों हम अपनी शादी की 5वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाने जा रहे हैं, केवल सर के आशीर्वाद और प्रयास से ही. आप दोनों जरूर आइएगा और हमें आशीर्वाद दीजिएगा.’’

निधि की पूरी बात सुन कर जया का तो माथा ही घूमने लगा था कि कितना उलटासीधा सोचती रही वह, निधि कालिया और अमित को ले कर. लेकिन आज सारा मामला ही दूसरा निकला. कितना गलत सोच रही थी वह.

‘‘हम जरूर आएंगे. कोई काम हो तो हमें बताना,’’ अमित ने कहा तो निधि और सुहास ने झुक कर उन के पांव छू लिए और चले गए.

जया की नजरें पश्चात्ताप से झुकी थीं, लेकिन अमित मुसकरा रहा था.

‘आज भी अगर मैं नहीं बोली तो बात बिगड़ती ही जाएगी,’ सोच कर जया ने धीरे से कहा, ‘‘सौरी अमित, मुझे माफ कर दो. पिछले कितने दिनों से मैं तुम्हारे बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

अमित ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘नहीं जया, गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है. मैं समझ रहा था कि तुम सब कुछ गलत समझ रही हो, फिर भी मैं ने तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं समझी. न बताने के पीछे एक कारण यह भी था कि पता नहीं तुम पूरी स्थिति को ठीक ढंग से समझोगी भी या नहीं. अगर मैं ने तुम्हें सारी बातें सिलसिलेवार बताई होतीं, तो यह समस्या न खड़ी होती.

‘‘दूसरे का घर बसातेबसाते मेरा अपना घर टूटने के कगार पर खड़ा हो गया था. लेकिन उन दोनों को समझातेसमझाते मुझे भी समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच सारी बातें स्पष्ट होनी चाहिए. कुछ भी हो जाए, लेकिन अबोला नहीं होना चाहिए. जो भी समस्या हो, एकदूसरे से शिकायतें हों, सभी आपसी बातचीत से सुलझा लेनी चाहिए वरना बिना बोले भी बातें बिगड़ती चली जाती हैं. पहले भी हमारे छोटेमोटे झगड़े इसी अबोले के कारण विशाल होते रहे हैं. वादा करो आगे से हम ऐसा नहीं होने देंगे,’’ अमित ने कहा तो जया ने भी स्वीकृति में गरदन हिला दी.

इन महिलाओं के बेहद करीब थे Mahatma Gandhi, ‘सरला देवी’ को माना था आध्यात्मिक पत्नी

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ऐसी शख्सियत हैं, जिनके बारे में सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी उनके बारे में अध्ययन किया जाता है. दुनियाभर में गांधीजी बापू के नाम से प्रसिद्ध हैं. इस दुनिया में जीवित न रहते हुए भी गांधीजी हमेशा के लिए अमर हैं. कल देशभर में महात्मा गांधी का जन्मदिन गांधी जयंती के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन हर साल पूरे देश में सार्वजनिक अवकाश रहता है.

किसी से ये बात छिपी नहीं है कि देश को आजाद कराने में महात्मा गांधी का कितना बड़ा योगदान था. देश की आजादी के लिए सत्य और अहिंसा को भी हथियार बनाया जा सकता है, ये बात कोई इस महापुरुष से सिखें. अंग्रेजों के चंगुल से देश को आजाद कराने में गांधीजी ने जो भूमिका निभाई, इस बात को भारत कभी नहीं भुला सकता है.

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में हुआ था. 78 साल की उम्र में नाथूराम गोडसे ने गोली चलाकर उन्हें मार दिया. बताया जाता है कि जब उनकी हत्या हुई तो उनके साथ कुछ महिलाएं भी थीं. महात्मा गांधी हमेशा अपने करीबियों से घिरे रहते थे. इस भींड़ में कुछ महिलाएं भी शामिल थीं. जो गांधीजी की विचारों से बेहद प्रभावित थीं. इनकी जिंदगी में महात्मा गांधी के विचारों ने गहरा असर किया. ये महिलाएं भी गांधीजी के उसी रास्ते पर चलीं. आइए जानते हैं. गांधी जयंती के मौके पर बापू के जीवन से जुड़ी महिलाओं के बारे में…

मनु गांधी

कहा जाता है कि बहुत कम उम्र में ही मनु महात्मा गांधी के रास्ते पर चल पड़ी थीं. वह बापू के दूर की रिश्तेदार थीं. जब मनु उनके पास गई थीं तो महात्मा गांधी काफी बूढ़े हो चुके थे. तब मनु ने बापू के बूढ़े शरीर को सहारा दिया. उन दिनों बापू मनु के कंधे का सहारा लेकर चलते थे. गांधीजी के साथ मनु साल 1928 से लेकर उनके आखिरी दिनों में भी साथ रही थीं.

मीराबेन

मेडेलीन यानी मीराबेन ब्रिटिश एडमिरल सर एडमंड स्लेड की बेटी थीं. एक अफसर की बेटी होने के नाते उनकी जिंदगी अनुशासन में गुजरी. उनका संगीत में बहुत दिलचस्पी था. उन्होंने कई संगीतकारों पर लिखा. वह महात्मा गांधी से इतनी प्रभावित थीं कि उन्होंने बायोग्राफी भी लिख डाली.

मेडलीन ने महात्मा गांधी को चिट्ठी लिखकर अपने अनुभवों के बारे में बताया और गांधीजी के आश्रम जाने की इच्छा जाहिर की. वह अक्टूबर 1925 में मुंबई के रास्ते अहमदाबाद पहुंचीं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेडेलीन ने गांधीजी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में इस तरह बताया- ‘जब मैं वहां दाखिल हुई तो सामने से एक दुबला शख्स सफेद गद्दी से उठकर मेरी तरफ बढ़ रहा था. मैं जानती थी कि ये शख्स बापू थे. मैं हर्ष और श्रद्धा से भर गई थी. मुझे बस सामने एक दिव्य रौशनी दिखाई दे रही थी. मैं बापू के पैरों में झुककर बैठ जाती हूं. बापू मुझे उठाते हैं और कहते हैं- तुम मेरी बेटी हो.’ मेडेलिन को नाम मीराबेन के नाम से जाना जाता है.

सरला देवी चौधरानी

सरला देवी रविंद्रनाथ टैगोर की भतीजी भी थी. वह भी गांधीजी के बेहद करीब थीं. सरला देवी संगीत और लेखन प्रेमी थीं. गांधी और सरला ने खादी के प्रचार के लिए देशा का दौरा किया. एक रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि लाहौर में गांधीजी सरला के घर पर रुके थे. उस समय सरला के स्वतंत्रता सेनानी पति रामभुज दत्त चौधरी जेल में थे. ये वो दौर था जब गांधीजी और सरला दोनों एकदूसरे के बेहद करीब रहें. लेकिन बाद गांधीजी ने सरला से खुद दूरी बना ली. दोनों के रिश्तों की खबर बाहर आने लगी. गांधी सरला को अपनी ‘आध्यात्मिक पत्नी’ भी बताते थे. सरला गांधीजी के साथ 1872 से लेकर 1945 तक रहीं थीं.
सुशीला प्यारेलाल की बहन थीं. महादेव देसाई के बाद गांधी के सचिव बने प्यारेलाल पंजाबी परिवार से थे.

डा सुशीला नय्यर

महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई के बाद प्यारेलाल बने. जो पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखते थे. सुशीला प्यारेलाल की बहन थीं. दोनों भाईबहन गांधीजी के बहुत बड़े समर्थक थे. उनकी मां ने इस बात को लेकर विरोध भी किया था लेकिन इसके बावजूद भी दोनों महात्मा गांधी के पास आए थे. बाद में इनकी मां भी गांधीजी से जुड़ गई.

सुशीला ने डौक्टरी की पढ़ाई की थीं. इसके बाद वह महात्मा गांधी की निजी डौक्टर बनीं. गांधीजी के आखिरी दिनों में सुशीला भी उनके साथ रहीं थीं. मनु और आभा के अलावा अक्सर गांधी जिसके कंधे पर अपने बूढ़े हाथ रखकर सहारा लेते, उनमें सुशीला भी शामिल थीं.

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