लेखक – पुष्कर पुष्प
इधर ढोलक पर मानू की थाप पड़ी और उधर मौली के पैर थिरके. पलभर में समां बंध गया. मौली उस दिन ऐसा नाची, जैसे वह उस का अंतिम नृत्य हो. लोगों के दिल धड़कधड़क कर रह गए. अंग्रेज रेजीडेंट बेहद खुश हुआ. उस ने नृत्य, गायन और वादन का ऐसा अनूठा समन्वय पहली बार देखा था. राजा समर सिंह का जो मकसद था, पूरा हुआ. महफिल समाप्त हुई, तो मौली ने मानू से हमेशा की तरह घुंघरू खुलवाने चाहे, लेकिन राजा ने इस की इजाजत नहीं दी.
अंग्रेज अधिकारी वापस चला गया, तो मानू को महल के बाहर कर दिया गया. मौली अपने कक्ष में चली गई. उस ने कसम खा ली कि उस के पैरों के घुंघरू खुलेंगे, तो मानू के हाथों से ही.
झील किनारे वाला महल तैयार होने में एक वर्ष लगा. छोटे से इस महल में राजा समर सिंह ने मौली के लिए सारी सुविधाएं जुटाई थीं. मौली की इच्छानुसार एक परकोटा भी बनवाया गया था, जहां खड़ी हो कर वह झील के उस पार स्थित अपने गांव को निहार सके.
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मौली और मानू एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं. प्यार में वे दोनों किसी भी हद तक जा सकते थे. इसी बात को ध्यान में रख कर राजा समर सिंह ने महल से सौ गज दूर झील के पानी में पत्थरों की एक ऐसी अदृश्य दीवार बनवाई, जिस के आरपार पानी तो जा सके, पर जीवों का जाना संभव न हो. दीवार के इस पार उन्होंने पानी में 2 मगरमच्छ छुड़वा दिए. यह सब उन्होंने इसलिए किया था, ताकि मानू झील में तैर कर इस पार न आ सके. आए, तो मगरमच्छों का शिकार बन जाए.
पूरी तैयारी हो गई, तो मौली को झील किनारे निर्मित महल में भेज दिया गया. जिस दिन मौली को महल में ले जाया गया, उस दिन महल को खूब सजाया गया. राजा समर सिंह की उस दिन वर्ष भर पुरानी आरजू पूरी होनी थी.
वादे के अनुसार मौली ने राजा के सामने स्वयं को समर्पित कर दिया. उस दिन उस ने अपना श्रृंगार खुद किया था, बेहद खूबसूरत लग रही थी वह. समर सिंह की बाहों में सिमटते हुए उस ने सिर्फ इतना कहा था, ‘‘आज से मेरा तन आप का है, पर मन को आप कभी नहीं छू पाएंगे. मन पर मानू का ही अधिकार रहेगा.’’
राजा को मौली के मन से क्या लेनादेना था. उन की जिद भी पूरी हो गई और हवस भी. उस दिन के बाद मौली स्थाई रूप से उसी महल में रहने लगी. सेवा में दासदासियां और सुरक्षा के लिए सैनिकों की व्यवस्था थी. महीने में 6-7 दिन मौली के साथ गुजारने के लिए राजा समर सिंह झीलवाले महल में आते रहते थे. वहीं रह कर वह पास वाले जंगल में शिकार भी खेलते थे.
मौली का रोज का नियम था. हर शाम वह महल के परकोटे पर खड़ी हो कर अपनी वही चुनरी हवा में लहराती, जो गांव से ओढ़ कर आई थी.
मानू को मालूम था कि मौली झीलवाले महल में आ चुकी है. वह हर रोज झील के किनारे बैठा मौली की चुनरी को देखा करता. इस से उस के मन को काफी तसल्ली मिलती. कई बार उस का दिल करता भी, कि वह झील को पार कर के मौली के पास जा पहुंचे, लेकिन मौली की कसम उस के पैर बांध देती थी.
देखतेदेखते एक वर्ष और गुजर गया. मौली को गांव छोड़े दो वर्ष होने को थे. तभी एक दिन राजा समर सिंह को अंग्रेज रेजीडेंट का संदेश मिला कि वह उन की रियासत के मुआयने पर आ रहे हैं और उसी नर्तकी का नृत्य देखना चाहते हैं, जो पिछली यात्रा में उन के सामने पेश की गई थी.
राजा समर सिंह ने जब यह बात मौली को बताई, तो उस ने अपनी शर्त रखते हुए कहा, ‘‘यह तभी संभव है, जब मानू मेरे साथ हो. उस के बिना नृत्य का कोई भी आयोजन मेरे बूते में नहीं है.’’
समर सिंह ने मौली को समझाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. फलस्वरूप राजा समर सिंह को झुकना पड़ा. मौली ने राजा से कहा कि वह चंदनगढ़ जाने के बजाय उसी महल में नृत्य करेगी और मानू को भी वहीं बुलाना होगा.
राजा समर सिंह नहीं चाहते थे कि मानू किसी भी रूप में मौली के सामने आए. जबकि अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करना भी उन की मजबूरी थी. सोचविचार कर राजा ने झील में बनी अदृश्य दीवार (पानी के नीचे) पर ठीक महल के परकोटे के सामने पत्थरों का एक बड़ा सा गोल चबूतरा बनवा कर उस पर प्रकाश स्तंभ स्थापित कराया. इस चबूतरे और महल के बीच ही वह कुंड था, जिस में मगरमच्छ थे. मगरमच्छों को भोजन चूंकि उसी कुंड में डाला जाता था, अत: वे वहीं मंडराते रहते थे. महल के परकोटे से 2 मजबूत रस्सियां इस प्रकार प्रकाश स्तंभ में बांधी गईं, कि आदमी एक रस्सी के द्वारा स्तंभ तक जा सके और दूसरी से आ सके.
अंग्रेज रेजीडेंट के आने का दिन तय हो चुका था. उसी हिसाब से राजा ने झीलवाले महल में मेहमानवाजी की तैयारियां कराईं. जिस दिन रेजीडेंट को आना था, उस दिन 2 सैनिक इस आदेश के साथ राखावास भेजे गए कि वे झील के रास्ते मानू को प्रकाश स्तंभ तक भेजेंगे. मौली ने मानू को झील में न उतरने की कसम दे रखी थी, यह बात समर सिंह नहीं जानते थे.
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तयशुदा दिन जब अंग्रेज रेजीडेंट चंदनगढ़ पहुंचा, राजा समर सिंह यह कह कर उसे झीलवाले महल में ले गए, कि उन्होंने इस बार उन के मनोरंजन की व्यवस्था प्रकृति की गोद में की है. राजा का झीलवाला महल अंग्रेज रेजीडेंट को खूब पसंद आया.
मौली भी उस दिन खूब खुश थी. मानू से मिलने की खुशी उस के चेहरे से फूटी पड़ रही थी. उसे क्या मालूम था कि मानू को उस के सामने झीलवाले रास्ते से लाया जाएगा और वह ठीक से उस की सूरत भी नहीं देख पाएगी.
जब सारी तैयारियां हो गईं और अंग्रेज रेजीडेंट भी आ गया, तो महल के परकोटे से मौली की चुनरी से राखावास की ओर वहां मौजूद सैनिकों को इशारा किया गया. सैनिकों ने मानू से झील के रास्ते प्रकाश स्तंभ तक तैर कर जाने को कहा, तो उस ने इनकार कर दिया कि वह मौली की कसम नहीं तोड़ सकता. इस पर सैनिकों ने उस से झूठ बोला कि मौली ने अपनी कसम तोड़ दी है, वह अपनी चुनरी लहरा कर उसे बुला रही है. मानू ने महल के परकोटे पर चुनरी लहराते देखी, तो उसे सैनिकों की बात सच लगी. उस ने बिना सोचेसमझे मौली के नाम पर झील में छलांग लगा दी.
जिस समय मानू झील को पार कर प्रकाश स्तंभ तक पहुंचा, उस समय तक राजा समर सिंह का एक कारिंदा रस्सी के सहारे ढोलक लेकर वहां जा पहुंचा था. उसी ने मानू को बताया कि महल और प्रकाश स्तंभ के बीच मगरमच्छ हैं. उसे उसी स्तंभ पर बैठ कर ढोलक बजानी होगी और मौली उसी धुन पर परकोटे पर नाचेगी. कारिंदा राजा का हुक्म सुना कर दूसरी रस्सी के सहारे वापस लौट आया.
मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला, तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. उस ने मन ही मन फैसला किया कि आज वह अंतिम बार राजा की महफिल में नाचेगी और नाचतेगाते ही हमेशाहमेशा के लिए अपने मानू से जा मिलेगी.
राजा की महफिल छत पर सजी थी. प्रकाश स्तंभ और महल की छत पर विशेष प्रकाश व्यवस्था कराई गई थी. जब अंधेरा घिर आया और चारों ओर निस्तब्ध्ता छा गई, तो मौली को महफिल में बुलाया गया. उस समय उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. सजीधजी मौली घुंघरू खनकाती महफिल में पहुंची, तो लोगों के दिल धड़क उठे. मौली ने परकोटे पर खड़े हो कर श्वेत ज्योत्सना में नहाई झील को देखा. प्रकाश स्तंभ के पास सिकुड़ेसिमटे बैठे मानू को देखा और फिर आकाश के माथे पर टिकुली की तरह चमकते चांद को निहारते हुए बुदबुदाई, ‘‘हे मालिक, तुम से कभी कुछ नहीं मांगा, पर आज मांगती हूं. इस नाचीज को एक बार, सिर्फ एक बार उस के प्यार के गले जरूर लग जाने देना.’’
मन की मुराद मांग कर मौली ने एक बार जोर से पुकारा, ‘‘मानू…’’
उस की आवाज के साथ ही मानू के हाथ ढोलक पर चलने लग. ढोलक की आवाज वादियों में गूंजने लगी और उस के साथ ही मौली के पैरों के घुंघरू भी. पल भर में समां बंध गया. सभा में मौजूद लोग दिल थामे मौली की कला का आनंद लेने लगे. अभी महफिल जमे ज्यादा देर नहीं हुई थी.
मौली का पहला नृत्य पूरा होने वाला था. लोग वाहवाह कर रहे थे. तभी मौली तेजी से पीछे पलटी और कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही मानू का नाम ले कर चीखते हुए परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक जानेवाले रस्से को पकड़ कर झूल गई. मौली का यह दुस्साहसिक रूप देख पूरी सभा सन्न रह गई.
महल के परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक आनेजाने वाले कारिंदे रस्सों में विशेष प्रकार के कुंडे में बंध झूला डाल कर आतेजाते थे. काम के बाद कुंडे और झूला निकाल कर रख दिए जाते थे. मौली चूंकि रस्से को यूं ही पकड़ कर झूल गई थी, फलस्वरूप रस्से की रगड़ से उस के हाथ बुरी तरह घायल हो गए. वह ज्यादा देर तक अपने आप को संभाल नहीं पाई और झटके के साथ कुंड में जा गिरी.
हतप्रभ मानू यह दृश्य देख रहा था. मौली के गिरने की छपाक की आवाज उभरी, तो मानू ने भी कुंड में छलांग लगा दी. अंग्रेज रेजीडेंट, राजा और उस की महफिल इस भयावह दृश्य को देखती रह गई. कुछ देर मानू और मौली पानी में डूबतेउतराते दिखाई दिए भी, लेकिन थोड़ी देर में वे आंखों से ओझल हो गए.
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