कौन अपना कौन पराया: अमर ने क्या किया था

कहानी- करुणा कोछर

घुटनों के असहनीय दर्द के चलते मेरे लिए खड़ा होना मुश्किल हो रहा था किंतु मजबूरी थी. इस अनजान जगह पर मुझे दूरदूर तक कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था.

विराट को परसों जबरदस्त हार्ट अटैक पड़ा था और देहरादून में उचित व्यवस्था न होने के कारण वहां के डाक्टरों की सलाह से विराट को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में लाना पड़ा. हालांकि विराट की तबीयत खराब होने की खबर बच्चों को कर दी थी लेकिन उन की सुध लेने कोई नहीं आया. यह सोच कर मेरी आंखें भर आईं कि क्या इसी दिन के लिए लोग औलाद चाहते हैं? दर्द असहनीय होता जा रहा था. चक्कर सा आने लगा कि अचानक किसी ने आ कर थाम लिया और अधिकार के साथ बोला, ‘‘आप हटिए यहां से, मैं पैसे जमा करवा दूंगा,’’ आवाज सुन कर मैं ने चौंक कर ऊपर देखा तो मेरी निगाहें जम सी गईं.

‘‘तुम…तुम यहां कैसे पहुंचे?’’ मैं ने कांपते स्वर में पूछा.

‘‘कैसे भी? पर आप ने तो नहीं बताया न. हमेशा की तरह मुझे गैर ही समझा न,’’ उस के स्वर में शिकायत थी, ‘‘खैर छोडि़ए, आप बाबा के पास जाइए, मैं पैसे जमा करवा कर और डाक्टर से बात कर के अभी आता हूं,’’ वह बोला.

मैं धीरेधीरे चलती हुई विराट के कमरे तक पहुंची. वह आंखें मूंदे लेटे थे. मैं धीरे से पास रखे स्टूल पर बैठ गई. बुद्धि शून्य हुई जा रही थी. थोड़ी देर में वह भी कमरे में आया और विराट के पैर छूने लगा. विराट ने जैसे ही आंखें खोलीं और उसे सामने देखा तो खिल उठे, और अपनी दोनों बांहें फैला दीं तो वह छोटे बच्चे की तरह सुबकता हुआ उन बांहों में सिमट गया. थोड़ी देर बाद सिर उठा कर बोला, ‘‘मैं आप से बहुत नाराज हूं बाबा, आप ने भी मुझे पराया कर दिया. 2 दिन से घर पर घंटी बज रही थी, कोई फोन नहीं उठा रहा था सो मुझ से रहा नहीं गया और मैं घर पहुंचा तो पड़ोसियों से पता चला कि आप बीमार हैं और मैं यहां चला आया.

‘‘बाबा, आप इतने बीमार रहे लेकिन मुझे कभी बताया तक नहीं. क्या मेरा इतना हक भी आप पर नहीं है. बोलो न, बाबा?’’

वह लगातार प्रश्न करता रहा और विराट मुसकराते रहे. उस ने कहा, ‘‘अब आप बिलकुल चिंता न करना बाबा, अब मैं सब संभाल लूंगा.’’

विराट काफी निश्चिंत लग रहे थे. मन ही मन मुझे भी उस के आने से काफी खुशी हो रही थी. फिर वह मेरी तरफ मुड़ा और बोला, ‘‘बाहर मेरा अर्दली खड़ा है. आप उस के साथ मेरे गेस्ट हाउस पर चली जाइए. आप भी थक गई होंगी. थोड़ा आराम कर लीजिए. बाबा की आप बिलकुल चिंता न करें. मैं इन का पूरा खयाल रखूंगा,’’ उस ने कहा और मैं ने शायद जीवन में पहली बार उस की किसी बात की अवहेलना नहीं की. सिर झुका कर अपनी मौन स्वीकृति दे दी.

बाहर आ कर उस ने अपने अर्दली को कुछ निर्देश दिए और मैं उस की जीप में चुपचाप बैठ कर उस के गेस्ट हाउस पहुंच गई. नहाधो कर जब मैं लौन में आ कर बैठी तो अर्दली चाय और बिस्कुट ले आया. चाय पी कर थोड़ी राहत महसूस हुई. अंदर आ कर मैं ने कमरा बंद किया और सोने का उपक्रम करने लगी किंतु नींद मेरी आंखों से कोसों दूर थी. बीता समय मानस पटल पर उजागर होने लगा.

जब मेरी शादी विराट से हुई थी तो वह वकालत में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे. वैसे मेरे ससुरजी एक कामयाब वकील थे. धीरेधीरे विराट भी वकालत के पेशे में पैर जमाने लगे और इन की भी गिनती नामी वकीलों में की जाने लगी. हमारे 2 बेटे हुए जिन्हें हम ने लाड़प्यार से पाला. कुछ समय बाद ससुरजी की मृत्यु हो गई तो उन के एक बहुत पुराने मुंशीजी को विराट ने अपने साथ रख लिया.

मुंशीजी की विश्वसनीयता और कर्मठता के कारण विराट उन पर बहुत निर्भर हो गए. एक दिन अचानक मुंशीजी घबराए हुए आए और एक हफ्ते की छुट्टी मांगने लगे. विराट के पूछने पर उन्होंने बताया कि उन का गांव भूकंप की चपेट में आ गया है और वह अपने परिवार के लिए चिंतित हैं. तब पहली बार मैं ने जाना कि मुंशीजी का अपना परिवार भी है.

करीब 10 दिन बाद मुंशीजी लौटे तो उन के साथ एक 12 साल का लड़का था. विराट को देखते ही मुंशीजी बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगे. रोतेरोते उन्होंने बताया कि भूकंप की चपेट में उन के दोनों बेटेबहुएं और पोतेपोतियों की मृत्यु हो गई है. केवल यही एक बच्चा बच पाया है. चूंकि गांव में अपना कोई बचा नहीं है इसलिए अपने इस छोटे पोते को साथ लेता आया हूं.

विराट एक नरमदिल इनसान हैं सो मुंशीजी को सांत्वना देते हुए बोले, ‘घबराइए मत मुंशीजी, होनी को तो कोई टाल नहीं सकता. हम सब आप के दुख में आप के साथ हैं,’ फिर बच्चे की ओर देख कर विराट बोले, ‘क्या नाम है बेटा?’

‘जी अमर… अमरदीप,’ वह बच्चा हकलाते हुए बोला.

‘अरे वाह, बड़ा अच्छा नाम है. पढ़ते हो?’

उस ने सिर हिला कर ‘हां’ कहा.

‘कौन सी क्लास में?’ विराट ने पूछा.

‘जी, 5वीं में,’ अमर बोला.

‘साहब, आप इस का दाखिला सेंट्रल स्कूल में करवा दीजिए. थोड़ा पढ़लिख जाएगा तो कमा खा लेगा. मेरा क्या भरोसा?’ मुंशीजी लाचारी से बोले.

‘क्यों नहीं, मुंशीजी, पर सेंट्रल स्कूल में क्यों, मैं इस का दाखिला वरुण के स्कूल में करवा दूंगा,’ विराट ने दरियादिली दिखाई, ‘और आप अमर की चिंता न करें, इस की पढ़ाई का सारा खर्चा मेरे जिम्मे होगा.’

हालांकि मुझे यह बात नागवार लगी किंतु मैं चुप रही. बाद में विरोध जताने पर विराट मुझे समझाते हुए बोले, ‘क्या फर्क पड़ता है सुमि, अनाथ बच्चा है, पढ़लिख जाएगा तो तुम्हें दुआ देगा.’

‘नहीं चाहिए मुझे दुआ,’ मैं खीज कर बोली, ‘आप इसे सरकारी स्कूल में ही भरती करवा दें. वहां किताबें और यूनीफार्म भी मुफ्त में मिल जाएगी.’

‘इस की फीस भर कर और साल में एक बार किताबकापियों और यूनीफार्म पर खर्च कर के तुम्हारा खजाना खाली हो जाएगा. है न,’ विराट व्यंग्यात्मक मुसकराहट से बोले तो मैं कुढ़ गई. मुझे यह कतई गवारा न था कि मेरे नौकर का बच्चा मेरे बच्चों की बराबरी में पढ़े.

विराट ने अपने मन की मानी और अमर का दाखिला मेरे बच्चों के स्कूल में ही हो गया और वह भी मेरे बच्चों के साथ गाड़ी में स्कूल आताजाता था.

मुंशीजी अपने परिवार के सदमे से टूट गए थे अत: 6 महीने के भीतर ही उन की भी मृत्यु हो गई. विराट अमर को घर ले आए. उस दिन मैं ने विराट से खूब लड़ाई की. किंतु वह यही तर्क देते रहे कि मुंशीजी उन के पुराने वफादार मुलाजिम थे अत: उन के पोते के प्रति उन का नैतिक कर्तव्य बनता था.

मेरे तर्कवितर्कों का विराट पर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि अब वह अमर पर ज्यादा ध्यान देने लगे. उस की पढ़ाई, उस का खानापीना, उस के कपड़े आदि का खास ध्यान रखते.

हालांकि अमर अपनी पढ़ाई के साथसाथ मेरे कामों में भी मेरी मदद कराता. बाजार के भी काम कर देता. जिस समय मेरे बच्चे कंप्यूटर गेम खेल रहे होते वह उन का होमवर्क भी कर देता. फिर भी मेरी नाराजगी कम न होती. मेरे बच्चे भी जबतब उसे जलील करते रहते किंतु वह उफ तक नहीं करता.

मेरे बच्चों की देखादेखी एक बार मेरे लिए अमर के मुंह से ‘मम्मी’ निकला तो मैं ने उसे झिड़क दिया. फिर एक बार बाजार से आ कर सौदा सौंपते हुए उस ने मुझे ‘मांजी’ कहा तो मैं चिल्ला उठी, ‘खबरदार, मुझे मम्मी या मांजी कहा तो. कहना है तो मालकिन कहो.’

वह सहम गया. उस दिन के बाद से उस ने मुझे कोई भी संबोधन नहीं दिया.

अमर पढ़ाई में बहुत होशियार था. अपनी कक्षा में वह हमेशा प्रथम आता था. इस से विराट बहुत खुश होते थे. 12वीं की परीक्षा समाप्त होने पर एक दिन विराट बोले, ‘मैं सोचता हूं अमर को पी.एम.टी. की परीक्षा में बिठाऊं और…’

विराट अभी बात पूरी भी न कह पाए थे कि मेरे सब्र का बांध टूट गया और उस दिन मेरे क्रोध की भी सीमा न रही.

‘बस कीजिए, अब क्या इस ढोल को सारी जिंदगी मुझे बजाते रहना पड़ेगा. डाक्टरी की पढ़ाई 5-6 साल से कम नहीं और खर्चा बेतहाशा. मैं ने क्या इस का ठेका उठाया है जो अपने बच्चों के हिस्से का पैसा भी इस पर खर्च करूंगी. 12वीं तक पढ़ा दिया अब यह कोई छोटामोटा काम करे और हमारा पीछा छोड़े. मैं अब इसे और बरदाश्त नहीं करूंगी.’

मैं ने गुस्से में यह भी न सोचा कि कहीं अमर ने यह सब सुन लिया तो? और शायद उस ने मेरी बातें सुन ली थीं.

2 दिन बाद विराट के पास जा कर अमर धीरे से बोला, ‘बाबूजी, मैं डाक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहता बल्कि मैं सैनिक बनना चाहता हूं. मैं एन.डी.ए. का फार्म लाया हूं. आप इस पर हस्ताक्षर कर दें.’

विराट ने न चाहते हुए भी उस पर दस्तखत कर दिए. और फिर एक दिन अमर को एन.डी.ए. की परीक्षा में शामिल होने का पत्र भी आ गया. 5 दिन की कड़ी परीक्षा दे कर जब वह देहरादून से लौटा तो उस का चेहरा खुशी से दमक रहा था. उस का चयन हो गया था. जिस दिन वह अपना सामान ले कर टे्रनिंग पर जा रहा था विराट की आंखों में आंसू थे.

‘बेटा, मैं तुम्हारे लिए ज्यादा कर नहीं पाया,’ अमर को गले लगाते हुए विराट बोले.

‘ऐसा न कहें बाबूजी, मैं आज जो भी हूं और भविष्य में जो भी बन पाऊंगा सिर्फ आप की वजह से. मेरा रोमरोम आप का सदा आभारी रहेगा,’ अमर रोते हुए बोला. जब वह मेरे चरणस्पर्श करने आया तो मैं ने बेरुखी से कहा, ‘ठीक है…ठीक है’ और वह चला गया. मैं ने भी चैन की सांस ली.

मेरे दोनों बच्चे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. वरुण ने आई.आई.टी. मुंबई से एम.टेक. किया. उसे विदेश में नौकरी मिल गई. वहीं उस ने एक लड़की से शादी कर ली. उस दिन मैं बहुत रोई थी. छोटे बेटे शशांक को बोकारो, जमशेदपुर में नौकरी मिल गई. उस ने भी एक विजातीय लड़की से प्रेम विवाह किया जिस ने कभी हमें अपना नहीं माना.

अमर के पत्र लगातार विराट के पास आते रहते. टे्रनिंग पूरी कर के उस की लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुई. एक बार हम से मिलने के लिए अमर 2 दिन के लिए आया था. किंतु मेरा व्यवहार उस के प्रति रूखा ही रहा. हां, उन 2 दिनों में मैं ने विराट को कहकहे लगाते देखा था.

फिर विराट को पक्षाघात हुआ तो मैं ने दोनों बच्चों को खबर दी. वे आए भी लेकिन किसी ने भी हमें अपने साथ रखने की बात नहीं की और न ही कोई पैसे से मदद की. उलटे दोनों बेटे नसीहत देने लगे कि हम अपना बंगला बेच दें और एक छोटा सा फ्लैट ले लें. पहली बार मुझे अपनी कोख पर अफसोस हुआ और एक पल को अमर की याद भी आई किंतु मेरा अहम आड़े आ गया.

कभीकभी अमर का फोन आता तो मैं टाल देती. विराट की बीमारी पर काफी पैसा लगा. आमदनी रही नहीं, सिर्फ खर्चे ही खर्चे. रोजरोज पानी उलीचने से तो कुआं भी खाली हो जाता है तो हमारे बैंक में जमा पैसे का क्या. हार कर अपना बंगला मुझे बेचना पड़ा.

देहरादून में पुश्तैनी टूटाफूटा घर था. उसी की मरम्मत करवा कर हम वहां रहने के लिए आ गए. मैं ने गुस्से के मारे अपने बेटों को खबर भी नहीं दी. हां, विराट के बहुत आग्रह पर 2 लाइनें अमर को लिख दीं जिस में अपना नया पता व टेलीफोन नंबर था.

पत्र मिलते ही अमर देहरादून आया. अब वह कैप्टन बन चुका था. सारी बात पता चलने पर उस ने अपने साथ चलने के लिए बहुत जिद की लेकिन विराट ने उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया.

अमर नियमित रूप से पत्र भेजता रहता. हालांकि वह पैसे से भी मदद करना चाहता था लेकिन मेरे अहम को यह गवारा न था.

अमर की शादी का निमंत्रण आया तो मैं ने कार्ड छिपा दिया. किसी कर्नल की बेटी से उस की शादी हो रही थी. उस का फोन भी आया तो मैं ने विराट को नहीं बताया. फिर एक दिन वह अपनी पत्नी को ले कर ही देहरादून आ गया. हालांकि बड़ी प्यारी और संस्कारी लड़की थी लेकिन मैं उन लोगों से खिंचीखिंची ही रही. उन के जाने पर विराट ने मुझ से झगड़ा किया कि मैं ने शादी के बारे में क्यों नहीं बताया.

अब विराट कुछ चुपचुप से रहने लगे थे. एक तो अपनी अपंगता के कारण, दूसरे, बच्चों की बेरुखी से वह आशाहीन से हो गए थे. शायद इसी कारण उन्हें यह अटैक पड़ा था. मैं ने घबराहट में दोनों बच्चों को फोन पर सूचना दी तो दोनों ने ही आने में अपनी असमर्थता जाहिर की. इस बार चाहते हुए भी मैं अमर को मदद के लिए नहीं बुला पाई. हां, दिल्ली आते समय पड़ोसियों को अस्पताल का पता दे कर आई थी एक उम्मीद में और वही हुआ. आखिर अमर पहुंच ही गया.

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक से मेरी तंद्रा भंग हो गई. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने नौकर खड़ा था.

‘‘मांजी, खाना तैयार है. आप खा लीजिए. अस्पताल का खाना भी मैं ने पैक कर लिया है. फिर हम अस्पताल चलेंगे.’’

मैं ने जल्दीजल्दी कुछ कौर निगले और उस अर्दली के साथ अस्पताल पहुंच गई. देखा तो विराट काफी खुश लग रहे थे. मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा. अमर ने बताया 2 दिन बाद आपरेशन है.

आपरेशन कामयाब रहा. सारी भागदौड़ और खर्च अमर ने ही किया. इस बार मैं ने उसे नहीं रोका. जब विराट को अस्पताल से छुट्टी मिली तो अमर ने एक बार फिर अपने साथ उस के घर डलहौजी चलने का आग्रह किया. जब विराट ने प्रश्नसूचक नजरों से मेरी ओर देखा तो मैं ने मुसकराते हुए मौन स्वीकृति दे दी. अमर को तो जैसे कुबेर का खजाना मिल गया. उस ने फौरन फोन कर के अपनी पत्नी भावना को बता दिया.

हम जब डलहौजी में अमर के बंगले पर पहुंचे तो भावना बाहर खड़ी मिली. जीप से उतरते ही उस ने सिर पर आंचल डाल कर मेरे पैर छुए. अमर सहारा दे कर विराट को अंदर ले गया.

विराट काफी खुश नजर आ रहे थे. मुझे भी काफी सुकून सा महसूस हुआ. अपनी बहुओं का तो मैं ने सुख देखा नहीं. पहली बार सास बनने का एहसास हो रहा था.

रात का खाना अमर ने अपने हाथों से अपने बाबूजी को खिलाया. काफी देर तक दोनों गप्पें मारते रहे. भावना बारबार आ कर मेरी जरूरतों के बारे में पूछ जाती.

खाने के बाद जब मैं बिस्तर पर लेटी थी तो अचानक मुझे दरवाजे के बाहर अमर की आवाज सुनाई पड़ी. मैं ने ध्यान से सुना तो वह भावना को मेरे लिए कौफी बनाने को कह रहा था.

मेरा मन भीग गया. उसे अभी भी याद है कि मैं खाने के बाद कौफी पीती हूं. थोड़ी देर में भावना टे्र में कौफी का मग ले कर आई, ‘‘मांजी, आप की कौफी लाई हूं साथ में आप का मीठा पान भी है.’’

अमर को याद रहा कि मीठा पान मेरी कमजोरी है. विराट को मेरा पान खाना पसंद नहीं था सो मैं कभीकभी अमर से ही पान मंगवाया करती थी. मैं द्रवित हो उठी.

2-3 सप्ताह बाद जब विराट की तबीयत में काफी सुधार आ गया तो मैं ने अमर से अपने घर जाने की बात की. अमर उदास हो गया और कहने लगा, ‘‘क्या आप यहां खुश नहीं हैं? क्या आप को कोई तकलीफ है?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है बेटा,’’ मेरे मुंह से अचानक निकल गया.

‘‘बेटा भी कह रही हैं और बेटे का हक भी नहीं दे रही हैं,’’ अमर भावुक हो कर बोला.

‘‘एक शर्त पर बेटे का हक दे सकती हूं, यदि तुम मुझे ‘मां’ कहो तो,’’ अपनी भावनाओं को मैं रोक नहीं पाई और अपनी दोनों बांहें पसार दीं. वह एक मासूम बच्चे की तरह मेरी गोद में समा गया और रोतेरोते बोला, ‘‘मां, अब मैं आप को और बाबूजी को कहीं नहीं जाने दूंगा. अब आप दोनों मेरे पास ही रहेंगे. बोलो मां, रहोगी न?’’ वह लगातार यह पूछता जा रहा था और मैं उस के बालों को सहलाते हुए बोली, ‘‘अपने बच्चों को छोड़ कर कौन मांबाप अकेले रहना चाहते हैं. हम यहीं रहेंगे, अपने बेटे के पास.’’

मैं भावुकता में बोले जा रही थी और मेरी आंखों से गंगायमुना बह रही थी. थोड़ी देर में तालियां बजने लगीं. मैं ने नजर उठा कर देखा तो विराट और भावना तालियां बजा रहे थे और हंस रहे थे.

उस रात मैं ने विराट से कहा, ‘‘अमर मेरी कोख से क्यों न हुआ?’’ तो वह बोले, ‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है. है तो वह मेरा ही बेटा.’’

‘‘मेरा नहीं हमारा बेटा,’’ मैं तुरंत बोली और हम दोनों ठठा कर हंस पड़े.

YRKKH : विद्दा पोद्दार हाउस से अभिरा को निकालेगी बाहर, अपनी मां की बात मानेगा अरमान?

टीवी का चर्चित सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के दर्शकों की संख्या अनगिनत है. यह सीरियल साल 2009 से दिखाया जा रहा है. इन बिते सालों में शो की कहानी में कई उतारचढ़ाव और लीप दिखाए गए. लेकिन दर्शकों का इस शो को लेकर इंट्रैस्ट बढ़ता ही गया. शो में अब तक कई कालाकर बदल चुके हैं. सीरियल में रोजाना एक से बढ़कर एक ट्विस्ट देखने को मिलता है. आज आपको इस सीरियल के नए अपडेट के बारे में बताएंगे.

ये रिश्ता क्या कहलाता है की कहानी में अब तक दिखाया गया है कि शादी से ठीक पहले रूही जमकर आंसू बहाती है और अभिरा से माफी मांगती है. तो दूसरी तरफ अभिरा अरमान के साथ मंडप में बैठ जाती है. दोनों की शादी होती है और वो दोनों परिवार का आशीर्वाद लेते हैं.

yeh rihsta kya kehlata hai

अरमान और अभिरा छोड़ेंंगे अपना घर

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अरमान की मां विद्दा अभिरा और अपने बेटे की बेइज्जती खुद को कमरे में बंद कर लेगी. अरमान अपनी मां की ये हालत देखकर घबरा जाएगा. वह बिना देर किए अपनी मां को मनाने जाएगा. हालांकि विद्या अपने कमरे का दरवाजा खोल देगी, अरमान अपनी मां से माफी मांगेगा लेकिन वह कहेगी कि अगर अरमान अभिरा को छोड़ेगा तभी उसको माफी मिलेगी.

yeh rishta kya kehlata hai

अपनी मां को याद करेगा अरमान

शो में आप आगे देखेंगे कि अरमान अभिरा इसके लिए राजी हो जाएगा, लेकिन वह भी अभिरा के साथ घर छोड़ देगा. पोद्दार हाउस से निकलने के बाद अरमान और अभिरा को काफी संघर्ष करना पड़ेगा और दोनों आम आदमी की तरह जिंदगी जिएंगे. अरमान को अपनी मां की याद आएगी, लेकिन वह कठोर बनकर फैसला करेगा कि वह कभी भी अपने परिवार को अपना चेहरा नहीं दिखाएगा.

अरमान ने रूही को किया जमकर जलील

सीरियल के बिते एपिसोड में आपने देखा था कि शादी के बाद अरमान और अभिरा को कई चैलेंजेस का सामना करना पड़ा. अरमान की मां ही उसकी दुश्मन बन गई. तो दूसरी तरफ अरमान ने रूही को जमकर जलील किया. उसने दावा किया कि रूही उससे प्यार नहीं करती है. रूही को सबक सिखाने के बाद अरमान अभिरा के पास गया और उसने अपने दिल की बात कही. अरमान ने कहा कि वह सिर्फ और सिर्फ अभिरा से प्यार करता है. जिसके बाद दोनों शादी करने के लिए मंडप में गए.

तो इधर अरमान की मां विद्या आगबबूला हो गई और कहा कि कि शादी के बाद अरमान और अभिरा  कभी भी खुश नहीं रहेंगे. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि परिवार से दूर अरमान और अभिरा अपनी नई जिंदगी में आने वाली मुश्किलों का कैसे सामना करेंगे?

अपनाअपना नजरिया : शादी के बाद अदिति और मिलिंद के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

पिछले हफ्ते ही मिलिंद का चेन्नई वाली एडवरटाइजिंग एजेंसी की ब्रांच से नई दिल्ली वाली ब्रांच में ट्रांसफर किया गया था. बचपन से ही मिलिंद चेन्नई में अपने मामा के पास ज्यादा रहा था इसलिए उस की हिंदी भाषा पर ज्यादा पकड़ नहीं थी. दिल्ली में जब औफिस में अदिति से नजदीकियां बढ़ीं तो वह कई बार मजाक में उस की हिंदी सुधारती रहती थी.

जल्द ही दोनों की दोस्ती प्रेमपथ पर चलने लगी और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. कंपनी में दोनों ही सेल्स डिपार्टमैंट में ऐग्जिक्यूटिव थे पर जल्द ही अदिति की रीजनल मैनेजर की पोस्ट पर प्रमोशन हो गई.

हालांकि मिलिंद को इस बात से रती भर भी फर्क नहीं पड़ा था परंतु औफिस में उस के दोस्त और अन्य स्टाफ उस की पीठ पीछे इस बात पर मुंह दबाए हंसना अपना हक सम?ाते थे और मिलिंद को समयसमय पर यह एहसास दिलवाना भूलते नहीं थे कि शादी से पहले ही अब तो अदिति से मिलने की उस की इजाजत लेनी पड़ती है तो शादी के बाद तो उसे जोरू का गुलाम बनने से कोई नहीं रोक सकता.

उन सब की ये बातें मिलिंद एक कान से सुनता था और दूसरे से निकाल देता था. दीवाली की छुट्टियों में उस ने अपने मातापिता को इंदौर से बुलवा लिया और अदिति के मातापिता से मिलवाया.

दोनों के ही मातापिता ने थोड़ी नानुकुर के बाद इस रिश्ते को मंजूरी दे दी. दिसंबर के मध्य में विवाह हुआ तो दोनों नववर्ष की संध्या हनीमून मनाने के बाद वापस लौटे.

जिंदगी रोजमर्रा के ढर्रे पर चलने लगी तो कुछ ही महीनों बाद दोनों के परिवारों में दोनों की सासू मांओं ने अदिति से चुहल करना शुरू कर दिया और कोई गुड न्यूज सुनाओ, खुशखबरी कब दे रही हो? तुम दोनों के बीच सब ठीक तो है? पहले तो अदिति ने इन बातों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि इन बातों को सुन कर हंस दिया करती थी पर साल बीतते न बीतते यही बातें अब तानेबाजी में बदलने लगी थीं.

अदिति पर पद की जिम्मेदारियां अधिक थीं और मिलिंद भी तरक्की चाहता था. हालफिलहाल उसे 1-2 अन्य कंपनियों में भी इंटरव्यू देना था. अत: अभी दोनों ही अपनेअपने कैरियर को ले कर व्यस्त थे इसलिए उन्होंने अभी अभिभावक बनने के फैसले को टाला हुआ था परंतु यह बात उन के परिवार वाले न सम?ा रहे थे और न ही समझना चाहते थे.

मिलिंद की बहन जब कनाडा से भारत आई तो मिलिंद की मां के साथ वह कुछ दिनों के लिए मिलिंद के घर भी रहने आई.

‘‘अरे मम्मी, मन्नू तो कब का औफिस से आ कर कमरे में पड़ा है और तुम्हारी बहुरानी अभी तक नदारद है, लगता है भाई ने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है.’’

‘‘भाई क्या करेगा तेरा, औफिस में भी उस से नीचे काम करता है. हम दोनों भी इंदौर वाला घर किराए पर चढ़ा कर दिल्ली वाले फ्लैट में आ गए कि अब तो इस बच्ची से सेवाभाव पा कर बाकी की जिंदगी आराम से गुजारेंगे पर इन दोनों ने तो अपना अलग ही फ्लैट ले लिया. यह तो तू आई है तो मैं कुछ दिन यहां रहने चली आई वरना तो इस घर में बहू होने के बाद भी खुद ही रसोई में खटना होगा यह सोच कर हम तो यहां रहने आते ही नहीं हैं.’’

‘‘ठीक ही कहती हो मम्मी, मन्नू भी न जाने कैसे आप के हाथ का स्वाद भूल कर यहां कच्चापक्का खा रहा है.’’

मिलिंद की आंख खुल चुकी थी और कानों में उसे रश्मि और मां की बातें अच्छी तरह से सुनाई दे रही थीं. वह बाहर आया और बोला, ‘‘दीदी, कैसी बातें कर रही हो. आप समझ सकती हो कि जब हम दोनों ही नौकरीपेशा है तो घर के कामों में बाहर वालों की मदद तो लेनी होगी न और वैसे भी श्यामा खाना बहुत अच्छा बनाती है और घर का भी काफी अच्छे से ध्यान रखती है. आजकल ऐसी हैल्पर मिलती कहां है.’’

‘‘अब अगर इतनी ही वकालत कर रहा है अपने रिश्ते की तो यह भी बता कि अब तक तेरी बीवी घर क्यों नहीं आई? तू तो उस से पहले का आया हुआ है?’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘उफ मम्मी, जरूरी मीटिंग है, नए प्रोजैक्ट की डैडलाइन सिर पर है, सभी काम में लगे हुए हैं मु?ो भी रुकना था पर सिर इतनी जोर से फट रहा था कि चाह कर भी रुकने की हालत नहीं थी मेरी. अब सोच रहा हूं कि अगर मैं भी औफिस में ही रहता तो ज्यादा अच्छा रहता.’’

‘‘चलो मम्मी, इतनी आजादी तो विदेश में नहीं जितनी यहां देख रही हूं, पर हमें क्या, भविष्य में खुद ही पछताएगा. आज अदिति को कुछ नहीं कह रहा न. कल देखना इस के सिर पर सवार होगी वह.’’

‘‘तभी तो बच्चा भी नहीं कर रही. वह क्या होता है रश्मि आजकल की लड़कियों में कि हमारी फिगर न खराब हो जाए, यही सोच इस की मैडम ने भी पाल रखी होगी.’’

‘‘कोई बात नहीं है मम्मी, बच्चे का पालनपोषण सही तरीके से करने के लिए सिर्फ सही टाइम का वेट है हम दोनों को,’’ मिलिंद चाह कर भी यह बात कभी अपने परिवार वालों को नहीं सम?ा पाता.

‘‘हां, हम ने तो जैसे बच्चे बेवक्त ही पैदा कर दिए. ये सही वक्तजैसी बातें बस आजकल की पीढ़ी के चोंचले भर हैं.’’

‘‘अब मम्मी आप की सोच कैसे बदलू मैं,’’ इतना कह कर मिलिंद वापस अपने कमरे में चला गया.

15 दिन बाद आशा और रश्मि चले गए तो लगभग सप्ताह भर बाद अदिति की मां सुधा और छोटा भाई वरुण 4-5 दिनों के लिए रहने आए.

‘‘अदिति, तू अपने पैसों का हिसाब तो अच्छे से रखती है न, कहीं प्रेम विवाह के चक्कर में अपने दोनों हाथ मत खाली कर लेना, सुधा ने अपनी शिक्षा का पिटारा खोला.

‘‘अरे मम्मी, दीदी को तो आप कुछ भी सम?ाना रहने ही दो, इन्हें सम?ा कर आप अपना टाइम ही बरबाद कर रही हो,’’ वरुण चिप्स चबाता हुआ बोला.

‘‘ऐसा क्यों कहता है. हम नहीं समझाएंगे तो कौन समझाएगा इसे?’’

‘‘इसलिए कह रहा हूं कि पिछले महीने जब मैं ने दीदी से अपने लिए क्रिकेट किट और खंडाला ट्रिप के लिए पैसे मांगे तो इन्होंने साफ मना कर दिया. कहा कि इस महीने कार की आखिरी ईएमआई भरनी है तो पैसे अगले महीने ले लेना पर देख लो उस अगले महीने को 3 महीने बीत चुके हैं अभी तक दीदी ने पैसों के दर्शन भी नहीं करवाए.’’

‘‘हां भई, बेटी को यों ही पराया धन नहीं कहते. पराई भी हो गई और धन भी परायों को ही सौंप रही है,’’ सुधा का ताना सुन कर अदिति का मन कसैला हो उठा.

‘‘मम्मी, ये कैसी बातें कर रही हो? मेरा अपना पति, मेरे ससुराल वाले मेरे लिए पराए कैसे हो सकते हैं? वे भी मेरे लिए उतने ही अपने हैं जितने आप लोग. मुझे कोई दिक्कत नहीं है वरुण को कुछ भी दिलवाने में पर ईएमआई भरनी जरूरी थी और उस के बाद आप जानती हैं कि मिलिंद के पापा की हार्ट सर्जरी हुई थी और कुछ पैसा उन्हें घर के ऊपर लगाने के लिए भी चाहिए था.’’

‘‘हां तो सारी जिम्मेदारियां तू ही निभा, मिलिंद के मातापिता हैं तो क्या उस का उन के प्रति कोई फर्ज नहीं है और रश्मि, उस के पास पैसों की क्या कमी है. वहां बैठी डौलर कमा रही है और यहां कुछ मदद नहीं होती उस से अपने मांबाप की,’’ सुधा तमतमाए स्वर में बोली.

‘‘मम्मी, उन्होंने ने भी मिलिंद के लिए बहुत किया है और अपने मम्मीपापा के लिए भी करती हैं. जबान की थोड़ी कड़वी जरूर हैं पर मैं यह नहीं भूल सकती कि हमारी शादी के लिए उन्होंने ही मम्मीपापा को मनाया था और मम्मी, शादी में यह तेरामेरा नहीं होता बल्कि विवाह तो वह खूबसूरत नैनों की जोड़ी होती है जो साथ ही भोर का सवेरा देखती हैं और एकसाथ ही सपनों में खोती हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा रहता है सदा और क्या मुझे यह याद दिलवाने की जरूरत है कि 7 महीने पहले जब जीजाजी की कंपनी से उन की छंटनी कर दी गई थी तब मिलिंद ने कितनी भागदौड़ कर के उन की दूसरी नौकरी लगवाई थी और दीदी के लाडले का स्कूल में एडमिशन करवाया था?

रही बात रश्मि दीदी की तो अगर इस बार किसी कारणवश वे मदद नहीं कर सकीं तो क्या हम भी मम्मीपापा की तरफ से मुंह मोड लें?’’

‘‘चल वरुण, कल ही घर वापस चलते हैं, अपनी ही औलाद दूसरों का पक्ष ले रही है.’’

अदिति ने भी लैपटौप बंद किया और आंखें मूंद कर सिर पीछे सोफे पर टिका दिया.

आखिरकार मिलिंद की मेहनत रंग लाई. अपने वर्षों के अनुभव और बेहतरीन इंटरव्यू के कारण वह जल्द ही एक नामी कंपनी में मैनेजर बना दिया गया. उस की जौब को 6 महीने हुए थे कि एक दिन उसे औफिस में अदिति का फोन आया.

‘‘हैलो अदिति क्या बात है, घबराई हुई सी क्यों बोल रही हो?’’ मिलिंद उस की भर्राई सी आवाज सुन कर बेचैन हो उठा.

उस दिन अदिति अपनी गर्भ की जांच की रिपोर्ट्स ले कर हौस्पिटल गई थी. वहां उस की सहेली किरण गाइनेकोलौजिस्ट के पद पर नियुक्त हुई थी.

मिलिंद जब तक हौस्पिटल पहुंच नहीं गया वह पूरा रास्ता असहज ही रहा.

डाक्टर के कैबिन में पहुंचा तो उस ने देखा कि अदिति की आंखें भरी हुई थीं और चेहरा मुरझाया हुआ था. मिलिंद को देखते ही उस की रुलाई फूट पड़ी. किसी तरह से मिलिंद ने उसे संभाला और किरण से सारी बात पूछी.

अदिति की फैलोपियन ट्यूब्स बिलकुल खराब हो चुकी थीं जिस वजह से उस का मां बनना अब नामुमकिन था. जब मिलिंद को यह बात पता चली तो वह भी एकबारगी भीतर तक हिल गया पर सब से पहले इस वक्त उसे अदिति को संभालना था इसलिए अपना मन पत्थर समान मजबूत कर लिया था उस ने.

‘‘पर आजकल तो आईवीएफ की मदद से महिलाएं बच्चा पैदा करने में सफल होती हैं न,’’ मिलिंद ने किरण से पूछा.

‘‘हां, आजकल यह काफी नौर्मल है पर अदिति के केस में एक और प्रौब्लम है और वह यह है कि अदिति के पीरियड्स कभी रैग्युलर नहीं रहे और पीसीओडी की वजह से अदिति को ओव्यूलेशन भी नहीं होता.

‘‘ओव्यूलेशन क्या होता है?’’ मिलिंद ने पूछा.

‘‘महिलाओं के शरीर में हर महीने ओवरी से अंडे निकलते हैं जोकि अदिति के केस में नहीं हो रहा.’’

‘‘तो फिर अब क्या हो सकता है?’’

‘‘फिलहाल तुम दोनों इस विषय पर ज्यादा कुछ मत सोचो, कुछ वक्त गुजरने दो, मैं अदिति से मिलती रहूंगी,’’ किरण ने बहुत प्यार और अपनेपन से दोनों को दिलासा दिया.

गाड़ी में घर वापस जाते हुए अदिति के चेहरे पर मायूसी ही मायूसी थी. मिलिंद उसे इस तरह से देख नहीं पा रहा था.

अगले दिन सुधा अदिति से मिलने आई, ‘‘मैं ने तुझे समझाया था न कि अपनी नौकरी के चक्कर में कोई फैमिली प्लानिंग मत करना पर तूने कभी घर वालों की सुनी है? अब कल को मिलिंद का मन तु?ा से भर गया तो?’’

‘‘मम्मी,’’ चीख सी पड़ी अदिति, ‘‘आप जानती भी हैं कि आप क्या कह रही हैं?’’

‘‘हां, अच्छी तरह से जानती समझती हूं कि मैं क्या कह रही हूं. पहले जैसे हालात अब नहीं हैं. जब मिलिंद कुछ नहीं था तब तो तेरे आगेपीछे घूमघूम कर तुझ से शादी कर ली और अब तो मिलिंद भी मैनेजर है, तेरे फ्लैट, तेरी गाड़ी सब की किश्तें पूरी हो चुकी हैं और अब तू मां बन नहीं सकती तो तुझ से पीछा छुड़वाने में उसे कौन सी देर लगेगी?’’

‘‘पर मिलिंद को ऐसा करने की क्या

जरूरत है? बहुत प्यार करता है वह मुझे,’’ सुधा की बातों ने अदिति का मन बिलकुल अशांत कर दिया.

‘‘यह प्यारव्यार सब हवा हो जाएगा जब उस के घर वाले बच्चे के लिए शोर मचाएंगे, तेरी सासननद से तो वैसे ही कुछ खास नहीं बनती.’’

‘‘तो पसंद तो आप लोग भी मिलिंद को नहीं करते,’’ अदिति धीमे स्वर में बोली.

‘‘कुछ कहा क्या तूने?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं मम्मी.’’

इधर मिलिंद अपनी मम्मी से मिलने आया था.

‘‘अब आगे की सोच मन्न, हमें भी मरने से पहले तेरी औलाद देखनी है,’’ आशा अपनी आवाज में मिठास घोलते हुई बोली.

‘‘अब मम्मी जो हो रहा है उस में हम दोनों का तो कोई फाल्ट नहीं है.’’

‘‘कैसी बातें कर रहा है, तुझ में क्या कमी है, कमी तो अदिति में है, तू तो उसे छोड़ दे,’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘अच्छा, फिर उसे छोड़ कर क्या करूं?’’ मिलिंद सब समझते हुए भी आशा से सुनना चाहता था.

‘‘देख यह बात इतनी छोटी नहीं है कि जितना तू इसे इतने हलके में ले रहा है, अपने भविष्य का सोच, क्या तू पापा नहीं बनना चाहता? दूसरी शादी का सोच,’’ आशा जैसे एक ही सांस में यह बोल गई.

यह सुन कर मिलिंद ने कुछ पल आशा को देखा और फिर बोला, ‘‘और अगर कमी मु?ा में होती तो भी क्या आप अदिति को यही एडवाइज देतीं?’’

आशा ने कोई जवाब नहीं दिया

‘‘मम्मी, मैं तो आप के पास आया था कि आप हमारे पास कुछ दिनों के लिए रहने आए, पिछली बार रश्मि दीदी की कुछ बातों की वजह से सब का मूड कुछ बुझ सा गया था. आप और अदिति की मम्मी उसे कुछ हौसला दें क्योंकि इस वक्त उसे प्यार और अपनेपन की बेहद जरूरत है पर आप तो बिलकुल अलग बात कर रही हैं,’’ मिलिंद के स्वर में गुस्सा नहीं दुख झलक रहा था. वह उठ कर जाने को हुआ तो तभी उस के पापा उसे दरवाजे पर मिले.

‘‘अरे मन्नू कितने दिनों बाद आया है, आ बैठ तो सही, जा कहां रहा है,’’ सुनील उसे देख कर खुशी से बोले.

‘‘बस पापा, आज थोड़ी जल्दी है, मैं आता हूं 1-2 दिन में फिर,’’ मिलिंद उदास स्वर में बोलता हुआ घर से बाहर निकल गया.

‘‘कोई अपनी सम?ादारी भरी बात तो

नहीं कर दी अदिति के लिए?’’ सुनील ने आशा से पूछा.

‘‘लो मैं ने भला क्या कहा होगा यही न कि तू दूसरी शादी के बारे में सोच, अब इस में क्या गलत है? क्या अपने बच्चे का भला भी न सोचे एक मां,’’ यह कह कर आशा बिना कुछ सुनील से सुने वहां से उठ कर चली गईं.

सुनील का आशा की बातों पर कोई ध्यान नहीं था. वे बस एक ठंडी सांस ले कर रह गए. मिलिंद घर आया तो अदिति का चेहरा देख कर ही भांप गया कि सवेरे अदिति की मम्मी आई हुई थीं और यह यहां भी उस की गलतफहमी ही साबित हुई कि उन्होंने भी अदिति को प्यार से कुछ सम?ाया होगा, उस से उस के दिल की बातें सुनी होंगी, कुछ उसे दिलासा दिया होगा. जरूर आज उसे हताश करने वाली बातें कर के गई होंगी.

‘‘क्या कहा मम्मी ने? क्यों उदास हो उन की बातें सोचसोच कर?’’  मिलिंद ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

अदिति ने एक पल को चौंक कर उस की तरफ देखा. मिलिंद ने आंखों के हावभाव से ही उस से दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने कहा कि अब तुम मु?ो छोड़ कर दूसरी शादी कर लोगे,’’ इतना कह कर वह रोने लग गई.

यह सुन कर मिलिंद ठहाका लगा कर हंस पड़ा, ‘‘देखो, मु?ो नहीं पता था कि मम्मी वह क्या कहते हैं अंतर्यामी भी हैं.’’

‘‘क्या मतलब, क्या कहना चाह रहे हो?’’ अदिति उलझे से स्वर में बोली.

‘‘मतलब सच में मेरी मम्मी मेरी दूसरी शादी करवाना चाह रही हैं.’’

यह सुन कर तो अदिति और जोर से रोने लग गई.

‘‘और सुनो, मम्मी ने तो लड़की भी देख ली है,’’ मिलिंद पूरी तरह से अदिति के साथ आज मजाक के मूड में था.

‘‘हांहां कर लो, अब तुम्हारा दिल जो भर गया है मु?ा से,’’ कह कर अदिति उस के पास से उठ कर जाने लगी.

‘‘अरेअरे, कहां जा रही हो,’’ मिलिंद ने उस की बांह खींच कर अपने करीब कर लिया.

‘‘अच्छा, अब रोना बंद करो, सुनो अदिति, तुम्हारी मैंटली और फिजिकली सेहत खराब हो इस कीमत पर मम्मीपापा बनना मेरा सपना नहीं है, बच्चे के लिए और भी औप्शंस हैं, हम आईवीएफ ट्राई कर सकते हैं. हम बच्चा गोद

ले सकते हैं, सब ठीक हो जाएगा बस तुम थोड़ा धैर्य रखो.’’

‘‘पर हम दोनों के घर वाले, क्या वे लोग भी…’’ अदिति कुछ आशंकित सी हो कर बोली.

अदिति की बात बीच में ही काट कर मिलिंद बोला, ‘‘देखो अदिति वे अपने हिसाब से लाइफ को देखते हैं. यह चीज हम सिर्फ बदलने की कोशिश कर सकते हैं पर इस में हम पूरी तरह कामयाब होंगे या नहीं इस की गारंटी नहीं है और आखिर में हमें भी अपनी लाइफ अपने तरीके से जीने का हक है, लाइफ के लिए यह मेरा पेस्पैक्टिव है मतलब परिशेप है सम?ा,’’ मिलिंद ने प्यार से उस का चेहरा पकड़ कर कहा.

‘‘परिशेप नहीं परिप्रेक्ष्य,’’ अदिति ने हंसते हुए कहा.

‘‘टीचरजी,’’ मिलिंद भी अपने कान पकड़ कर हंस दिया.

‘‘वैसे नजरिया भी कहा जा सकता है,’’ अब अदिति भी खिले स्वर में बोली.

‘‘बिलकुल, अपनीअपनी सोच,

अपनाअपना नजरिया,’’ मिलिंद अब हर प्रकार से संतुष्ट था.

न्यूज चैनल क्यों करते हैं झूठ का प्रचार

भक्तों को किस तरह छोटीछोटी बातों पर टीवी चैनलों ने पिछले 10 साल बहकाया और भरमाया है, वह इस से साबित होता है कि जब नरेंद्र मोदी ने खुद दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से पहले 8 फिर 12 चीते मंगवा कर मध्य प्रदेश के कूनो नैशनल पार्क अभयारण्य में छोड़े थे. इस तरह का पुण्य काम न प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी थी न उन्होंने यह शुरू किया था. ऐसा वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ हर जगह करते रहते हैं और एक तरह का ऐक्सपैरिमैंट होता है कि क्या एक कौंटीनैंट के लुप्त होने के कगार पर पशुओं को दूसरे कौंटीनैंट में बसाया जा सकता है?

कितने चीते आए, उन का क्या हुआ, अब कितने हैं, वे बच्चे दे पा रहे हैं या नहीं, यह इतना इंपौर्टैंट नहीं है. यह एक सामान्य सी बात थी पर कई दिनों तक नैशनल चैनल चीतामयी हो गए क्योंकि उन्हेें नरेंद्र मोदी को खुश करना था.

अब लगभग 2 साल बाद हालत यह है कि चीते कितने बचे हैं, यहां तक कि मध्य प्रदेश के वाइल्ड लाइफ अफसर बताने को तैयार नहीं हैं और अपने देवताओं की तरह झूठ बोल रहे हैं कि चीतों की संख्या बताना नैशनल सिक्युरिटी या इंटरनैशनल रिलेशंस का गोपनीय मामला है.

जब चैनल लाइव टैलिकास्ट कर रहे थे तो क्या यह नैशनल सिक्युरिटी का मामला नहीं था? क्या तब इंटरनैशनल रिलेशंस की सीक्रेट बातें बाहर नहीं आ रही थीं?

हमारी शिकायत न चैनलों से है, न वाइल्ड लाइफ अफसरों से है, न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है कि उन्होंने क्यों चीतों की अगवानी इस तरह की मानो वे कोई ट्रौफी जीत कर लाएं हैं, हमारी शिकायत तो उन चैनलों को देखने वालों से है जो अपना 8-10 घंटे का समय इस बकवास को देखने में लगाते हैं. ये चैनल आप को न समाचार देते हैं, न जानकारी देते हैं.

ये चैनल ब्रेकिंग न्यूज कहकह कर एक चींटी के हाथी पर चढ़ जाने का लाइव कास्ट शुरू कर देते हैं और दर्शक भरमा जाते हैं कि मानो यही सत्य है, यह अकेला तथ्य है, यही सही बात है. ये चैनल दर्शकों की सोच को कुंद कर रहे हैं क्योंकि ये झूठ का प्रचार उसी तरह कर रहे हैं जैसे धर्म प्रवचक करते हैं. आज का युग विज्ञान का है. हमारे चारों ओर जो कुछ है वह नए विज्ञान की देन है, ऋषियोंमुनियों के ज्ञान की देन नहीं है. स्वयं टीवी भी विज्ञान की देन है. चीतों को भारत उन हवाईजहाजों में लाया गया जो विज्ञान की देन हैं, ऋषियों की गप्पों वाले पुष्पक विमानों में नहीं.

नरेंद्र मोदी ने इन चीतों की अगवानी ऐसे की थी जैसे उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की सब से बड़ी रक्षक संसद के नए भवन के बनाने पर भगवाधारियों की की थी. दोनों का लाइव प्रसारण लगातार करना गलत था, अवैज्ञानिक था. संसद को राष्ट्रपति के हाथों समर्पित कराना था, चीतों का ट्रांसफर वाइल्ड लाइफ ऐक्सपर्ट्स द्वारा ही देखा जाना चाहिए था.

Weight Loss Tips : तेजी से वजन बढ़ने के क्या हैं कारण, ऐक्सपर्ट से जानें कैसे करना है कंट्रोल

Weight Loss Tips : मोटापा आज की एक आम स्वास्थ्य समस्या बन गई है. बेशक शरीर में वसा यानी फैट अपनेआप में कोई बीमारी नहीं है लेकिन जब आप के शरीर में बहुत ज्यादा अतिरिक्त वसा होती है तो यह उस के काम करने के तरीके को बदल सकती है और जिस से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. यही वजह है कि यह न केवल हमारे शरीर को भारी बनाता है बल्कि कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकता है.

 

वयस्कों में 30 या उस से ज्यादा का बीएमआई होना मोटापे की निशानी है जबकि 40 या उस से ज्यादा का बीएमआई गंभीर मोटापा माना जाता है. बचपन के मोटापे को विकास चार्ट के आधार पर मापा जाता है. मोटापा केवल खानेपीने की गलत आदतों के कारण नहीं होता बल्कि इस में जीवनशैली, मानसिक तनाव और अन्य कई कारण जुड़े होते हैं.

मैक्स हौस्पिटल, वैशाली के डा. विवेक बिंदल बता रहे हैं कि इस की सही समय पर पहचान कर कैसे रोकें ताकि हम स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें:

मोटापे के कारण

गलत खानपान: हमारे भोजन में जब ज्यादा कैलोरीज, तलेभुने और जंक फूड्स का अधिक सेवन होता है तो यह हमारे शरीर में फैट को जमा करता है. असंतुलित आहार जैसे अधिक मिठाई, चौकलेट, पिज्जा, बर्गर इत्यादि मोटापे का मुख्य कारण हैं.

व्यायाम की कमी: आजकल की जीवनशैली में ज्यादातर लोग बैठेबैठे काम करते हैं, जिस से शारीरिक गतिविधियों की कमी हो जाती है. यदि हम नियमित रूप से व्यायाम नहीं करते हैं तो शरीर की कैलोरी बर्न नहीं होती और फैट बढ़ता जाता है.

मानसिक तनाव: स्ट्रैस से बचने के लिए लोग अधिक खाने लगते हैं खासकर तलीभुनी चीजों और मिठाइयों का सेवन बढ़ जाता है. तनाव के दौरान हमारा शरीर अधिक फैट स्टोर करता है, जिस से वजन तेजी से बढ़ता है.

पारिवारिक इतिहास (जेनेटिक): यदि परिवार में किसी को मोटापा है तो उस की संभावना बच्चों में भी बढ़ जाती है. यह जेनेटिक कारणों से हो सकता है लेकिन इस में जीवनशैली का भी बहुत बड़ा योगदान होता है.

नींद की कमी: नींद पूरी न होने पर शरीर की ऐनर्जी कम हो जाती है, जिस से हमारा शरीर अधिक खाने की मांग करता है. इस से अनावश्यक कैलोरीज बढ़ती हैं जो मोटापे का कारण बनती हैं.

हारमोनल असंतुलन: कुछ विशेष हारमोनल समस्याएं जैसे थायराइड, पीसीओडी/पीसीओएस भी मोटापे का कारण बन सकती हैं. इन स्थितियों में शरीर का मैटाबौलिज्म धीमा हो जाता है और वजन तेजी से बढ़ने लगता है.

दवाइयों का सेवन: कुछ दवाइयां जैसे ऐंटीडिप्रैशन, स्टेराइड्स आदि का लंबे समय तक सेवन मोटापे का कारण बन सकता है. ये दवाइयां शरीर में पानी और फैट को बढ़ाती हैं, जिस से वजन बढ़ता है.

प्रिवैंशन

संतुलित आहार: सब से पहले यह जरूरी है कि हमारा भोजन संतुलित और पौष्टिक हो. अधिक तलाभुना, जंक फूड और चीनी युक्त खाद्यपदार्थों से दूरी बनाएं. खाने में हरी सब्जियां, फल, अनाज और प्रोटीन युक्त चीजों का अधिक सेवन करें. छोटेछोटे हिस्सों में खाना खाएं और भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं ताकि पेट भरा हुआ महसूस हो और अधिक खाने की इच्छा न हो.

नियमित व्यायाम: मोटापे को कंट्रोल के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना बहुत जरूरी है. रोजाना कम से कम 30 मिनट पैदल चलना, दौड़ना, स्विमिंग, योग या कोई अन्य शारीरिक गतिविधि करनी चाहिए. इस से शरीर की कैलोरी बर्न होती है और वजन कंट्रोल में रहता है.

नींद पूरी करना: दिन में 7-8 घंटे की अच्छी नींद लेना बहुत जरूरी है. पूरी नींद लेने से शरीर का मैटाबोलिज्म सही रहता है और वजन कंट्रोल में रहता है. नींद की कमी से भूख बढ़ाने वाले हारमोन ऐक्टिव हो जाते हैं जो अधिक खाने की इच्छा पैदा करते हैं.

सही समय पर खाना: भोजन को समय पर करना और रात को हलका भोजन लेना वजन को कंट्रोल रखने में मदद करता है. रात को देर से और भारी भोजन करने से पेट में फैट बढ़ने की संभावना रहती है.

पानी अधिक पीना: पानी शरीर से टौक्सिक पदार्थों को बाहर निकालता है और मैटाबोलिज्म को बेहतर बनाता है. दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए. पानी पीने से भूख कम लगती है और अधिक खाने की संभावना कम होती है.

डाक्टर से नियमित जांच: यदि आप को हारमोनल समस्या है तो डाक्टर से नियमित जांच करानी चाहिए. समयसमय पर ब्लड टैस्ट, थायराइड और शुगर की जांच कराएं. सही समय पर बीमारी की पहचान होने से मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता है.

स्वास्थ्य शिक्षा: मोटापे की रोकथाम के लिए लोगों में स्वास्थ्य शिक्षा का प्रसार होना चाहिए. उन्हें सही खानपान, व्यायाम और स्वस्थ जीवनशैली के बारे में जागरूक करना जरूरी है. स्कूलों, कालेजों और औफिसों में भी स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए.

Home Decortaion : फैस्टिव सीजन में अपने आशियाने को दें नया लुक, देखते रह जाएंगे मेहमान

एक खूबसूरत सपनों के आशियाने की (Home Decortaion) चाह सभी को होती है. आप का घर सिर्फ रहने की जगह नहीं है बल्कि यह दर्शाता है कि आप कौन हैं. आप घररूपी इस कैनवस पर अपने व्यक्तित्व, सोच और अनुभवों को व्यक्त कर सकते हैं. यह आप का घर ही है जहां दुनिया की किसी भी जगह से अधिक सुकून मिलता है. घर के बिस्तर पर जो आराम मिलता है वह महंगे होटलों में भी नहीं मिलता.

दरअसल, आप का घर आप के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है. यह एक ऐसी जगह है जहां आप आराम कर सकते हैं, मनोरंजन कर सकते हैं, अपनों के साथ रह सकते हैं और स्थायी यादें बना सकते हैं. आप का घर आप के व्यक्तित्व, सोच, लाइफस्टाइल और यौन जीवन के बारे में बहुत कुछ कहता है. घर कई तरह के हो सकते हैं:

आप का घर आप के व्यक्तित्व को दर्शाता है

सवाल यह है कि आप का घर आप के व्यक्तित्व को कैसे दर्शाता है? अगर आप किसी के व्यक्तित्व के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो बस उस के कार्यालय या बैडरूम में झांकें. ‘ए रूम विद ए क्यू’ नामक एक अध्ययन में मनोवैज्ञानिक सैमुअल डी. गोसलिंग और उन के सहयोगियों ने पाया कि लोग किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत सामान, सजावट के तरीके, साफसफाई और उस के कमरे की व्यवस्था को देख कर काफी सटीक रूप से अनुमान लगा सकते हैं कि वह कितना व्यवस्थित, ओपन माइंडेड और जिम्मेदार है.

आप का घर न केवल यह दर्शाता है कि आप एक व्यक्ति के रूप में कौन हैं बल्कि यह भी कि आप के पास कितना पैसा है, आप का लाइफस्टाइल कैसा है और आप कुछ चीजों को कितना महत्त्व देते हैं. याद रखिए आप के घर का बाहरी हिस्सा अंदर से बहुत अलग हो सकता है. इसलिए जब आप के मित्र या रिश्तेदार आप के घर के अंदर आते हैं तो वे कुछ चीजों पर सब से पहले ध्यान देते हैं. मसलन, घर की सजावट और दूसरा सामान जो एक नजर में दिख जाता है और यही सब देख कर वे आप के बारे में कोई धारणा बनाते हैं.

एक अव्यवस्थित घर आमतौर पर अव्यवस्थित दिमाग का संकेत देता है. अव्यवस्थित दिमाग आगे चल कर कई समस्याओं का कारण बनता है.

यदि कोई पहली बार आप के घर आता है तो आप के घर के बारे में उस की पहली धारणा आप के व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ कह देती है. वह बता पाएंगा कि आप साफसुथरे व्यक्ति हैं या अव्यवस्थित? क्या आप कलात्मक और रचनात्मक किस्म के व्यक्ति हैं या आप ज्यादा रूढि़वादी हैं? क्या आप को अच्छी क्वालिटी की चीजें पसंद हैं या कीमत की ज्यादा परवाह है? क्या आप के लिए मिनिमलिज्म बेहतर है या आप को अव्यवस्था ज्यादा पसंद है? इन सवालों के जवाब आप के घर में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों को देख कर मिल सकते हैं.

दरअसल, लोगों को जन्म से एक खास व्यक्तित्व मिलता है. हम अपने व्यक्तित्व का फैसला नहीं कर सकते. इस के विपरीत घर कैसा रखना है यह हमारी सोच पर निर्भर है. हम उसे अपने अनुसार ढाल सकते हैं. यह वह वातावरण है जिस पर हमारा एक हद तक नियंत्रण होता है. इसलिए हम तय कर सकते हैं कि हमें इस के माध्यम से खुद को किस तरह प्रोजैक्ट करना है.

व्यक्तित्व के कई अलगअलग प्रकार हैं लेकिन 2 को विशेष रूप से आधार माना जाता है- अंतर्मुखी और बहिर्मुखी. ये 2 चरम स्थितियां हैं:

अंतर्मुखी

अंतर्मुखी व्यक्तित्व के लोग बाहरी चीजों के बजाय आंतरिक भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इंटीरियर डिजाइन के संदर्भ में इस का मतलब है कि अंतर्मुखी लोग आमतौर पर एक साफ, अव्यवस्थामुक्त वातावरण में अधिक सहज महसूस करते हैं. अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोग सफेद रंग अधिक पसंद करते हैं तथा विभिन्न रंगों और सामग्री का मिश्रण नहीं करते. इन का घर साफसुथरा होता है. अंतर्मुखी लोग आमतौर पर व्यक्तिगत यानी पर्सनल वस्तुओं को प्रदर्शित नहीं करते हैं. वे उन्हें दरवाजों के पीछे छिपाते हैं या उन्हें अंदर रखते हैं.

ऐसे लोग शांत, सादगीपूर्ण वातावरण पसंद करते हैं. उन्हें अपने घर में एक शांत कोना बनाना चाहिए जहां आप बैठ कर पढ़ सकें, सोच सकें या अपना पसंदीदा पेय पी सकें.

बहिर्मुखी

बहिर्मुखी लोग बहुत बातूनी होते हैं और वे सामाजिक संपर्क से ऊर्जा प्राप्त करते हैं. इस का मतलब यह है कि इंटीरियर डिजाइन में वे अपने आसपास के वातावरण में जान डालने वाली चीजें रखना पसंद करते हैं. उन्हें अव्यवस्थित चीजें पसंद होती हैं. उन्हें अव्यवस्थित कमरे से कोई परेशानी नहीं होती इसलिए इस व्यक्तित्व वाले लोग आसानी से अपने घर को बच्चों की मौजूदगी के हिसाब से ढाल लेते हैं.

इस के विपरीत बच्चों वाले अंतर्मुखी लोगों को हर चीज को साफसुथरा रखने की जरूरत से काफी संघर्ष करना पड़ सकता है. बहिर्मुखी लोग अकसर बोल्ड और ब्राइट रंग पसंद करते हैं.

घर का डैकोरेशन लाइफस्टाइल पर भी डिपैंड करता है. आप की लाइफस्टाइल कैसा है? क्या आप दोनों बहुत ज्यादा दोस्तीयारी रखते हैं? घर में अकसर दोस्त आते रहते हैं, आप पार्टियां करते हैं, दोस्तों या रिश्तेदारों को खाने पर बुलाते रहते हैं? आप को काम के सिलसिले में लोगों के साथ घर में मीटिंग्स रखनी होती हैं या फिर आप अकेला रहना पसंद करते हैं? ज्यादा दोस्तबाजी नहीं करते और सुकून से जीवनसाथी के साथ घर में वक्त बिताते हैं या फिर आप घर में रहते ही बहुत कम समय हैं? आप का ज्यादा समय काम के सिलसिले में बाहर रहने या औफिस में बिताते हैं? इन सब बातों के मद्देनजर भी घर को डैकोरेट किया जाता है.

उदाहरण के लिए ज्यादा पार्टी घर में करते हैं तो उस हिसाब से घर को भी मैंटेन करना होगा. ड्राइंगरूम और किचन को खासतौर पर एक लैवल का बनाना होगा. इस के विपरीत यदि घर में रहते ही कम हैं तो किसी दिखावे की जरूरत नहीं. घर की सेफ्टी और सुविधाजनक होने पर जोर देना होगा.

लाइफस्टाइल के अनुसार घर की सजावट करने से आप का घर न केवल सुंदर दिखता है बल्कि यह आप के जीवन को भी आसान और आरामदायक बनाता है. कुछ टिप्स जिन्हें अपना कर आप अपने लाइफस्टाइल के अनुसार घर की सजावट कर सकते हैं:

आधुनिक और मिनिमलिस्ट: यदि आप एक व्यस्त जीवन जीते हैं और आप के पास बहुत कम समय है तो आधुनिक और मिनिमलिस्ट सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में कम सजावटी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है और अधिक खुली जगह रखी जाती है. घर में जो सामान होता है वह लेटैस्ट टैक्नीक वाला और सुविधाजनक होता है मगर सामान का अंबार नहीं होता.

पारंपरिक और आरामदायक: यदि आप एक परिवारिक व्यक्ति हैं और आप को अपने घर में आराम और सुकून चाहिए तो पारंपरिक और आरामदायक सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में अधिक सजावटी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है और घर को अच्छे से सजा कर रखा जाता है ताकि मेहमानों में धाक जमे.

ईकोफ्रैंडली: यदि आप पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं और ईकोफ्रैंडली जीवन जीना चाहते हैं तो ईकोफ्रैंडली सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में नैचुरल चीजों का अधिक उपयोग होता है. फर्नीचर से ले कर सजावटी सामान तक नैचुरल और ग्रीनिश लुक वाला होता है. ऐनर्जी सेविंग उपकरणों का उपयोग किया जाता है.

मौडर्न और टेकफ्रैंडली: यदि आप एक तकनीक प्रेमी हैं और अपने घर में नवीनतम तकनीक चाहते हैं तो मौडर्न और टेकफ्रैंडली सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में स्मार्ट होम उपकरणों का उपयोग किया जाता है और घर का इंटीरियर भी आधुनिक डिजाइन में होता है.

आर्टिस्टिक: यदि आप एक कलात्मक व्यक्ति हैं और अपने घर में रंग, सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह चाहते हैं तो आर्टिस्टिक और कलरफुल सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में विभिन्न रंगों और कलात्मक सजावटी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है.

फर्नीचर, सजावट और पेंट के रंग भी बहुत कुछ कहते हैं

आप के घर के कमरों के लिए आप के द्वारा चुने गए रंग महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं कि आप वहां समय बिताते समय कैसा महसूस करते हैं. अपने घर के कमरों के रंग की योजना बनाते समय उन का उपयोग यह दर्शाने के लिए करें कि आप कौन हैं और आप के लिए क्या महत्त्वपूर्ण है.

नीला रंग अकसर शांति चाहने वाले लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है, लाल बोल्ड और आत्मविश्वासी प्रवृत्ति को दर्शाता है, हरा प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है, बेज तटस्थ है और किसी भी चीज के साथ जाता है, बैगनी रचनात्मकता या रौयल्टी से जुड़ा होता है, जबकि काला सीक्रेसी लाता है.

कलर डिसाइड करने के लिए उन भावनाओं के बारे में सोचें जो आप उस स्थान में पैदा करना चाहते हैं या वे चीजें जो आप के लिए सब से ज्यादा माने रखती हैं. उदाहरण के लिए यदि आप प्रकृति से प्यार करते हैं तो दीवारों को हरे रंग से रंगना आप को हर दिन उस से जुड़ा हुआ महसूस कराएगा. आप खिड़कियों के चारों ओर पौधे लगा सकते हैं या भूरे और हरे जैसे मिट्टी के रंगों में फर्नीचर चुन सकते हैं.

घर को अपने व्यक्तित्व, उम्र और वर्क प्रोफाइल के हिसाब से डैकोरेट करें. यानी घर की सजावट आप की एज, पर्सनैलिटी और वर्क को जाहिर करे.

यंग और सिंगल

अगर आप यंग और सिंगल हैं तो घर को डैकोरेट करते हुए आप को ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं होगी. आप को बहुत बड़े घर या ज्यादा सामान की आवश्यकता ही नहीं. घर में थोड़ा सामान रखें ताकि उसे संभालने में दिक्कत न आए. आप अपनी पसंद के गैजेट्स और फर्नीचर से घर को सजा सकते हैं. अगर कलाप्रेमी हैं तो कुछ अच्छी पेंटिंग्स और कलाकृतियों से घर को आकर्षक लुक दें. अगर आप नवदंपती हैं और दोनों वर्किंग हैं तो उस स्थिति में भी घर में ज्यादा कुछ भरना उचित नहीं.

यदि आप कलाकार हैं या लेखन करते हैं तो घर में एक शांत कमरा जरूर होना चाहिए जिस में आप अपनी पसंद की किताबें या पेंटिंग्स रखें. यहां आप सुकून से अपना काम कर सकें इस के लिए ज्यादा सामान न हो मगर काम की चीजें जरूर हों. लेखकों या कलाकारों को घर सजाने का शौक नहीं होता मगर प्रकृति आसपास हो यह पसंद आता है. आप चाहें तो घर की सजावट में थोड़ा फेरबदल कर नेचर को करीब रख सकते हैं.

कामकाजी दंपती

अगर पति या पत्नी घर से काम करते हैं तो घर का इंटीरियर कुछ इस हिसाब से हो कि घर का एक अंदर वाला कमरा इसी पर्पज से डिजाइन किया गया हो. एक अलमारी हो जिस में काम की चीजें रखी हों. प्रौपर टेबलकुरसी और कंप्यूटर, प्रिंटर वगैरह सही से अरेंज किए गए हों. उस कमरे में बच्चों का कोई सामान न हो ताकि उन का दखल वहां न हो. बाकी जो कमरे हैं उन्हीं में कपड़े, टीवी, डैक या अन्य जरूरत की चीजें रखी गई हों.

छोटे बच्चों वाली फैमिली

छोटे बच्चों वाली फैमिली का घर अलग तरह का और बड़े बच्चों वालों का अलग होना चाहिए. दरअसल, बच्चे जब छोटे होते हैं तो उन का सामान बहुत ज्यादा होता है. खिलौने, कपड़े, टैडीवियर, किताबें, बस्ते और न जाने क्या क्या. आप अपने बच्चों की हर समय निगरानी भी नहीं कर सकते.

ऐसे में बच्चे जानेअनजाने काफी नुकसान भी करते रहते हैं. इसलिए बच्चे छोटे हों तो एक कमरा उन के नाम का जरूर रखें जिस में उन्हीं का सामान हो. छोटे बच्चों के साथ आप ज्यादा कीमती सजावटी सामान नहीं रख सकते. आप को ऐसे घर की खोज करनी होती है जिस में बहुत सारे दराज या आलमारियां हों ताकि आप अपना कुछ भी सामान खुला न छोड़ें बल्कि अंदर दराजों में रखें वरना बच्चों के हाथ में आई चीज के खराब होते देर नहीं लगती. बच्चों के कारण घर बिखरा हुआ दिखता है इसलिए ज्यादा सौफिस्टिकेटेड डैकोरेशन माने नहीं रखती. आप को बच्चों के हिसाब से कमरे को रंगबिरंगा और खुलाखुला रखना होगा भले ही वह दीवारों और परदों के कलर हों या फिर दूसरा सामान.

छोटे बच्चों के लिए घर का इंटीरियर इस तरह से डिजाइन करना चाहिए जिस से उन की सुरक्षा, आराम और विकास को बढ़ावा मिले. यहां कुछ और खास सुझाव प्रस्तुत हैं:

सुरक्षा

  • उन के कमरे में रखे सामान में नुकीले कोने वाली और धारदार वस्तुएं न हों.
  • इलैक्ट्रिकल आउटलेट और स्विच आदि बच्चों की पहुंच से दूर हों.
  • दरवाजों और खिड़कियों पर सेफ्टी ग्रिल और लोहे की जालियां लगाई जाएं.
  • फर्श पर कारपेट या मैट रखें जो उन्हें फिसलने या चोट लगने से बचाएं.

आराम

  • बच्चों के कमरे में पर्याप्त प्रकाश और हवा की व्यवस्था हो.
  • उन के लिए आरामदायक बिस्तर और गद्दे हों.
  • बच्चों के लिए पर्याप्त खेलने की खुली जगह हो.
  • उन के कमरे की दीवारों और परदों के लिए कूल और कलरफुल रंगों का उपयोग करें.

विकास

  • बच्चों के लिए पढ़ाई की उपयुक्त जगह हो. मेज और कुरसियां अंदर के कमरे में हों जहां वे शांति से बैठ कर पढ़ाई कर सकें.
  • खेलने के लिए उपयुक्त खिलौने और बगीचा हो, हरेभरे पौधे लगे हों.
  • खिलौने और सजावटी वस्तुएं हों.
  • बच्चों की ऊंचाई के अनुसार अलमारी और शैल्फ लगाए जाएं.
  • बच्चों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस हो.

सजावट

  • रंगीन और आकर्षक दीवारें.
  • कमरों में बच्चों के पसंदीदा कार्टून या पात्रों की तसवीरें.

बच्चे बड़े हो जाने के बाद

बच्चे बड़े हो जाने के बाद घर की सजावट और इंटीरियर में बदलाव करना एक अच्छा विचार है क्योंकि उन की जरूरतें और रुचियां बदल जाती हैं.पेश हैं कुछ सुझाव

  • घर की दीवारों या परदों के लिए अधिक सोबर और कूल रंगों का उपयोग करें.
  • अधिक बड़े और आरामदायक बिस्तर हों.
  • अधिक आधुनिक और स्टाइलिश फर्नीचर का उपयोग करें.
  • दीवारों पर कलाकतियां या फोटोफ्रेम्स लगाएं.
  • अधिक बड़ी और व्यवस्थित अलमारी और शैल्फ हों. बच्चों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस बनाएं.
  • घर में एक होम औफिस या स्टडीरूम होना चाहिए जहां जरूरत की सभी चीजें हों.
  • नई टैक्नोलौजी का प्रयोग जरूरी हो जाता है. स्मार्ट होम डिवाइसेज का उपयोग करें. वाईफाई और इंटरनैट की व्यवस्था हो.
  • होम थिएटर या साउंड सिस्टम का उपयोग करें.
  • सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाएं.

जब अकसर गैस्ट आते हों

गैस्ट आएंगे उस समय कैसे उन्हें एडजस्ट किया जाएगा इस पर विचार जरूर करें. घर छोटा हो और अलग कमरा नहीं दे सकते हैं तो भी उन के लिए हलका सा भी सैपरेशन जरूरी है. अगर यंग पतिपत्नी हैं तो ध्यान रखें कि रिश्तेदार उसी शहर में हैं या अलग शहरों में हैं.

घर डिजाइन करते समय गैस्ट के बारे में पहले से सोचना चाहिए. क्या आप के यहां अकसर गैस्ट आते रहते हैं? क्या सारे रिश्तेदार उसी शहर में हैं या बाहर के हैं? अगर आप की हाल ही में शादी हुई है, आप यंग हैं और घर छोटा है तब रिश्तेदारों को कैसे एडजस्ट करेंगे? बच्चों के साथ रिश्तेदारों को अलग जगह कैसे देंगे? इस तरह की बातों के जवाब जरूर ढूंढ़ लें.

अगर आप के यहां रिश्तेदार कभीकभार आते हैं तो आप 1-2 दिन के लिए किसी तरह एडजस्ट कर सकते हैं. मगर यदि सभी रिश्तेदार उसी शहर में हैं और अकसर आनाजाना लगा रहता है तो उन के लिए एक अलग कमरा यानी गैस्टरूम रखना जरूरी हो जाता है. भले ही उस कमरे को आप बच्चों के कमरे का नाम दें और गैस्ट आने पर बच्चों को अपने कमरे में एडजस्ट कर लें मगर कमरा अलग होना सही है.

इसी तरह जरूरी है कि मेहमानों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस बनाएं. अलमारी और शैल्फ को व्यवस्थित रखें. जूतों और कपड़ों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस बनाएं. आरामदायक और स्टाइलिश सोफे और कुरसियां रखें.

अतिरिक्त सीटिंग व्यवस्था करें कई दफा घर छोटा होता है और आप के पास अलग कमरे का विकल्प नहीं होता.

ऐसे में थोड़ा सा भी सैपरेशन बनाने की जिम्मेदारी आप की है. आप को यह पहले से ही डिसाइड करना होगा और उसी हिसाब से घर को डैकोरेट करना होगा कि जरूरत पड़ने पर रिश्तेदारों को अलग स्पेस दे सकें. खासतौर पर अगर आप यंग हैं तो अपनी पर्सनल लाइफ की प्राइवेसी भी बनाए रखनी आवश्यक हो जाता है वरना बाद में आप दोनों के ही बीच कलह शुरू हो जाएगी.

मैं पड़ोस में रहने वाली लड़की को पसंद करता हूं, उसे आई लव यू कैसे कहूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 12वीं कक्षा का छात्र हूं और एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं, वह मेरे पड़ोस में ही रहती है. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि उसे आई लव यू कैसे कहूं? मेरी सहायता करें?

जवाब

वाह भई, आप ने तो पड़ोसिन पर ही नजर गढ़ा ली. खैर, वैसे तो अभी आप को नयनमटक्का की सलाह नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह उम्र आप की कैरियर बनाने की है. पर अब आप ने पड़ोसिन पर नजर गढ़ा ही ली है तो आप को बता दें कि उस से अकसर आप की बातचीत भी होती ही होगी और उस के घर आनाजाना भी होता होगा. आप उस के मम्मीपापा से हायहैलो भी करते होंगे. ऐसे में प्रेम की बात आप की परेशानी बढ़ा सकती है.

फिर भी मिलते रहिए, बातचीत में हंसतेहंसाते, आपसी लेनदेन बढ़ाते हुए नजदीकियां बढ़ाइए और उचित समय आने पर आई लव यू भी कह डालिए. हां, यह जरूर जान लीजिएगा कि उधर भी प्रेम की आग है या नहीं. कहीं वह आप को सिर्फ एक पड़ोसी के तौर पर जानती हो, तो पेरैंट्स में मनमुटाव पैदा करने वाली बात भी बन सकती है.

ये भी पढ़ें…

प्यार में इजहार जरूरी

वैशाली ने एमबीए में ऐडमिशन लिया. पहले दिन जब वह कालेज गई तो अपनी ही क्लास के एक लड़के पर उस की नजर टिक गई. लड़के का नाम रोहित था, जो दिखने में काफी हैंडसम था. वैशाली ने जब से रोहित को देखा तो वह उस की दीवानी हो गई. उस ने रोहित को मन में बसा लिया, लेकिन किसी को मन की बात नहीं बताई. कालेज में कई बार उस का रोहित से आमनासामना होता पर वह प्यार का इजहार न कर पाती. एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में दोनों को एकसाथ काम करने का मौका मिला. वैशाली ने सोचा कि इस दौरान वह अपने मन की बात उस से कह देगी, लेकिन प्रोजैक्ट पूरा होने पर भी वह अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाई. कुछ महीने बाद जब वैशाली को पता चला कि रोहित की सगाई हो रही है, तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उसे लगा वह रोहित के बगैर जी नहीं पाएगी. उसे अपनेआप से कोफ्त होने लगी कि समय रहते उस ने अपने दिल की बात रोहित के सामने बयां क्यों नहीं की?

समय के साथ वैशाली के लिए भी एक रिश्ता आया. परिजनों ने जब इस रिश्ते के लिए उस की प्रतिक्रिया पूछी, तो उस ने शादी से ही इनकार कर दिया. वैशाली की भांति अनेक युवतियां हैं जो किसी से प्यार तो कर बैठती हैं, लेकिन उस के समक्ष प्यार का इजहार नहीं कर पातीं, जिस से उन का प्यार एकतरफा हो जाता है व कभी परवान नहीं चढ़ता. एकतरफा प्यार में मिली असफलता युवतियों को निराश और कुंठाग्रस्त कर देती है. युवतियां अपने पहले प्यार को, भले ही वह एकतरफा ही क्यों न हो, ताउम्र नहीं भूल पातीं. यदि आप भी किसी को अपना दिल दे बैठी हैं और अपने प्यार के प्रति गंभीर हैं तो जल्दी से जल्दी उसे अपने दिल की बात बता दें. हो सकता है सामने वाला इस बारे में सोचेविचारे या उस नजरिए से आप को देखे. यदि उस के दिल में पहले से ही कोई लड़की होगी तो वह स्पष्ट इनकार कर देगा. इस से आप समय रहते अपने कदम पीछे खींच सकती हैं. यदि उस का अफेयर किसी से नहीं हुआ तो वह आप के बारे में गौर कर सकता है. हो सकता है वह भी आप को चाहने लगे. जब आग दोनों ओर बराबर लगी हो, तभी प्यार परवान चढ़ सकता है अन्यथा एकतरफा प्यार चाहे वह किसी भी तरफ से हो, उस का हश्र अच्छा नहीं होता.

याद रखें, आप के किसी को चाहने मात्र से बात नहीं बनती. बात तभी बनती है जब सामने वाला भी आप को उसी शिद्दत से चाहे, लेकिन यह तभी संभव है जब सामने वाले को आप के मन की बात पता हो. फिर देखिए उस का चमत्कार.

यदि आप आमनेसामने हो कर अपने प्यार का इजहार करने में संकोच करती हैं तो इस के लिए अन्य तरीके भी अपना सकती हैं, जैसे उस से मोबाइल पर बात कर सकती हैं या उसे एसएमएस भेज सकती हैं. चाहें तो किसी मध्यस्थ का सहयोग ले सकती हैं जो उस से आप को मिलवा सके. वैसे भी कालेज में बहुत से स्थान और मौके मिलते हैं जहां आप उस से अपने दिल की बात कर सकती हैं. उसे लाइब्रेरी में, कैंटीन में या किसी कौफीशौप में बुला सकती हैं. प्यार हो जाना जितना आसान है, उस का इजहार उतना ही मुश्किल. ऐसा प्राय: एकतरफा प्यार करने वालों के साथ होता है. अपने प्यार का इजहार आप कई अवसरों पर कर सकती हैं जैसे यदि गु्रप में कहीं बाहर घूमने गई हों तो कोशिश करें कि आप उस युवक के आसपास ही रहें और उसे इस बात का एहसास कराएं कि आप के लिए वह खास है

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

आंखों के अलावा फेस Makeup में भी करें आईलाइनर का इस्तेमाल, जानें ये तरीका

आईलाइनर आपके मेकअप (Makeup) का एक बड़ा ही अहम हिस्सा होता है. लेकिन क्या आप जानती हैं कि आईलाइनर का इस्तेमाल आप आंखों को सजाने के अलावा अपने चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने के लिए भी कर सकती हैं. जी हां, आप अपने आईलाइनर को आंखों को शेप देने के लिये तो प्रयोग कर ही सकती हैं, साथ में बिंदी, मस्‍कारा आदि के तौर पर भी प्रयोग कर सकती हैं. आइये जानते हैं इसके बारें में.

 

1 हल्‍की आइब्रो को डार्क करें

अगर आपकी आइब्रो बहुत ही पलती है, तो आप उसे गहरा बनाने के लिये आईलाइनर का प्रयोग करें. इसके लिये आप पेन्‍सिल आईलाइनर का प्रयोग कर सकती हैं. लेकिन इसको हद से ज्‍यादा डार्क ना करें वरना आपकी आइब्रो आपके बालों से ज्‍यादा गहरे लगने लगेंगे.

2 सफेद बाल को करें काला

जिस तरह आप अपनी आइब्रो को काला करने के लिये आईलाइनर का प्रयोग करेंगी, ठीक उसी तरह से आप सफेद हो चुके एकआद बाल को काला कर सकती हैं. इस काम को करने के लिये गीली आईलाइनर का ही प्रयोग करें, इससे आपका काम जल्‍दी होगा.

3 झट से बिन्‍दी लगाएं

कई भारतीय महिलाएं रोजाना आईलाइनर को बिन्‍दी या टीका बना कर लगाती हैं. यह बहुत ही सरल कार्य होता है क्‍योंकि आईलाइनर में बहुत ही पतला ब्रश आता है. इस प्रकार की बिन्‍दी, स्‍टीकर वाली बिन्दी से कहीं बेहतर होती हैं. अगर आपको रंगबिरंगे आईलाइनर का शौक है तो आप अपने कपड़े के रंग के मुताबिक बिंदी लगा सकती हैं.

4 लगाएं मस्‍कारा

वो मंजर याद कीजिये जब शीशी में पूरा पस्‍कारा सूख जाता है और आप उसे यूज नहीं कर पाती. अगर ऐसा हुआ है तो आप अपनी गीली आईलाइनर को मस्‍कारे के रूप में प्रयोग कर के अपनी आंखों को नया लुक दे सकती हैं.

5 ब्‍यूटी स्‍पौट बनाएं

चेहरे पर एक छोटासा तिल कितना खूबसूरत लगता है. अगर आप चाहें तो अपने होठों के नीचे या ठुड्डी पर एक छोटा सा टीका रख सकती हैं. लेकिन यह काम बहुत ही ध्‍यान से करें, ऐसा ना हो कि आईलाइनर फैल जाए.

रत्ना नहीं रुकेगी : क्या रत्ना अपमान बर्दाश्त कर पाई?

रोली और रमण इतने बच्चे भी नहीं हैं कि उन्हें अपनी मां की तकलीफ दिखाई नहीं दे. जब एक नवजात भी संवेदनाओं और स्पर्श की भाषा को समझ सकता है तो ये दोनों तो किशोर बच्चे हैं. ये भला अपनी मां के रोज होने वाले अपमान और तिरस्कार को नहीं पहचानेंगे क्या? कड़वी गोली पर लगी मिठास भला कितनी देर तक उस की असलियत को छिपा सकती है? दादी और पापा भी तो मां को सब के सामने घर की लक्ष्मी कहते नहीं थकते लेकिन रोली और रमण जानते हैं कि उन के घर में इस लक्ष्मी का असली आसन क्या है.

दादी को पता नहीं मां से क्या परेशानी है. मां सुबह जल्दी नहीं उठे तो उन्हें आलसी और कामचोर का तमगा दे दिया जाता है और जल्दी उठ जाए तो नींद खराब करने का ताना दे कर कोसा जाता है. केवल दादी ही नहीं बल्कि पापा भी उनकी हां में हां मिलाते हुए मम्मी को नीचा दिखाने का कोई अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देते. और जब पापा ऐसा करते हैं तो दादी के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी दर्प वाली मुसकान आ जाती है. बहुत बार रोली का मन करता कि वह मां की ढाल बन कर खड़ी हो जाए और दादी को पलट कर जवाब दे लेकिन मां उसे आंखों के इशारे से ऐसा करने से रोक देती है. पता नहीं मां की ऐसी कौनसी मजबूरी है जो वह यह सब बिना प्रतिकार किए सहन करती रहती है.

‘‘मैं तो एक पल के लिए भी नहीं सहन करूं. आप क्यों कभी कुछ नहीं बोलती?’’

कहती हुई रोली अकसर अपनी मां रत्ना को विरोध करने के लिए उकसाती लेकिन रत्ना उस की बात केवल सुन कर रह जाती. कहती कुछ भी नहीं.

ऐसा नहीं है कि रत्ना अनपढ़ या बदसूरत है जिस ने अपनी किसी कमी को ले कर कोई हीनग्रंथि पाल रखी है बल्कि खूबसूरत रत्ना तो इंग्लिश में मास्टर्स के साथसाथ बैचलर इन ऐजुकेशन भी है और उस की इसी योग्यता के कारण ही दादी ने उसे अपने क्लर्क बेटे के लिए चुना था. यह अलग बात है कि रत्ना ने अपनी पढ़ाई का उपयोग अपने बच्चों को स्कूल का होमवर्क करवाने के अलावा कभी अन्यत्र नहीं किया. हां, कभीकभार बच्चों की पीटीएम में जरूर उसे उस के पढ़ेलिखे होने का विशेष सम्मान मिलता था लेकिन वह एक क्षणिक अनुभूति होती थी जो घर जाते ही घर की मुरगी दाल बराबर हो जाती थी.

रोली और रमण अब बड़े हो चुके हैं. दोनों ही हाई स्कूल के विद्यार्थी हैं. जब तक बच्चे थे तब तक उन्हें मां का डांट खाना अजीब नहीं लगता था क्योंकि वे सम?ाते थे कि जिस तरह गलतियां करने पर उन दोनों को डांट या सजा मिलती है, उसी तरह मां को भी उन की किसी गलती के कारण ही प्रताडि़त किया जा रहा होगा लेकिन जैसेजैसे उन की समझ बढ़ती गई वे दोनों सम?ाने लगे कि मां को पड़ने वाली डांट और तिरस्कार का कारण उन की कोई गलती नहीं है बल्कि दादी को ऐसा करने पर एक आत्मिक संतोष मिलता है.

‘‘पता नहीं मां दादी और पापा का विरोध क्यों नहीं कर पाती जबकि वह तो स्वयं बहुत सक्षम है,’’ एक दिन रोली ने रमण से कहा.

‘‘तुझे याद है, बचपन में दादी वह हनुमानजी के समुद्र लांघने वाली कहानी सुनाया करती थी? हनुमानजी को अपनी ताकत का अनुमान नहीं था तब जामवंतजी ने उन्हें याद दिलाया था कि वे चाहें तो क्याक्या कर सकते हैं. मां भी नहीं जानती कि वी क्या कर सकती है,’’ कहते हुए रमण थोड़ा उदास था.

‘‘हां, याद है मुझे भी. लगता है मां को भी उन की शक्ति याद दिलानी पड़ेगी,’’ रोली ने उसे सामान्य करने के लिहाज से हंसते हुए कहा. बढ़ते बच्चे सब समझते हैं. अपनी सामर्थ्य के अनुसार विरोध भी दर्ज करवाते हैं लेकिन छोटा होने के कारण उन के विरोध को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता और फिर रत्ना स्वयं भी तो अपने पक्ष में नहीं खड़ी होती.

पिछले दिनों पड़ोस में एक नया परिवार रहने आया है. परिवार में पति राघव, पत्नी रिया के अलावा 7 वर्ष की एक बच्ची मीनू है. आमनेसामने फ्लैट होने के कारण रत्ना का अकसर रिया से टकराव हो जाता है. साथसाथ सब्जीराशन लातेलाते दोनों में ठीकठाक जानपहचान हो गई. मीनू तो रत्ना के फ्लैट का दरवाजा खुला देखते ही दौड़ कर उन के घर में घुसा जाती थी और फिर जब तक रिया उसे खींच कर वापस नहीं ले जाए तब तक वहीं टिकी रहती थी. अकेले बच्चे भी तो साथ ढूंढ़ते ही हैं और जब नहीं मिलता तो धीरेधीरे अपने अकेलेपन को ही अपना साथी बना लेते हैं. फिर बड़ों को यह शिकायत रहती है कि आजकल के बच्चे सोशल नहीं हैं.

रिया इस जानपहचान को मित्रता में बदलना चाहती थी लेकिन रत्ना अपनी सास और पति की अनुमति के बिना दोस्त बनाने का साहस भी कहां जुटा पाती थी. शादी से पहले कितना बड़ा दोस्तों का सर्किल था उस का. कुछ दोस्त तो शहर छूटने के साथ ही छूट गए लेकिन कुछ ने संपर्क बनाए रखा था. पति का शक्की स्वभाव और सास का बातबात पर ताने देना रत्ना खुद के लिए तो सहन कर भी ले लेकिन दोस्तों की अकारण बेइज्जती वह नहीं देख सकती थी इसलिए न चाहते हुए भी उस ने खुद पर अंकुश लगा रखा था.

मीनू इन सब दुनियावी ?ामेलों से दूर रत्ना के आसपास ही बने रहने की कोशिश करती. धीरेधीरे रत्ना का मन उस के साथ रमने लगा. अब तो मीनू बहुत अधिकार के साथ रत्ना से खाना भी मांग कर खाने लगी थी. रत्ना के लिए भी यह मीनू के बचपन के साथ अपने बच्चों के बचपन को दोबारा जीने का अवसर था जिसे वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. हां, सास को मीनू का व्यवस्थित घर को बिखेरना पसंद नहीं आता था लेकिन रत्ना मीनू के लौटते ही बहुत तत्परता के साथ सब बिखरा हुआ सामान यथास्थान रख कर मीनू को उन की नाराजगी से बचा लेती थी.

‘‘मीनू , चलो होमवर्क कर लो,’’ यह लगभग हर रोज सुनाई देने वाला वाक्य था जिस के बाद का दृश्य रत्ना के परिवार में सब को याद हो गया.

‘‘अब आंटी इस का हाथ पकड़ कर खींचेंगी और इस का गाना शुरू हो जाएगा,’’ कहती हुई रोली अपने मुंह से ऊं…ऊं… की आवाज निकाल कर मीनू की नकल करने लगती और सभी खिलखिला उठते.

एक दिन जब यही दृश्य दोहराया गया तो रत्ना से रहा नहीं गया और उसने मीनू का दूसरा हाथ अपनी तरफ खींच लिया, ‘‘रहने दो रिया, मैं करवा दूंगी इसे होमवर्क’’ रत्ना ने कहा तो रिया आश्चर्य में पड़ गई.

‘‘अरे दीदी, यह पूरी शैतान की नानी है. आप को प्रश्न पूछपूछ कर परेशान कर देगी,’’ रिया उस के प्रस्ताव को सुन कर थोड़ी खिसिया गई थी क्योंकि रत्ना के घर बारबार आनेजाने के कारण इतना अंदाजा तो उसे भी हो ही गया था कि दादी को मीनू का आना एक सीमा तक ही पसंद आता है.

‘‘कोई बात नहीं मैं देख लूंगी. तुम चिंता मत करो,’’ रत्ना ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा तो रिया कुछ देर खड़ी रह कर अपने घर चली गई.

रत्ना मीनू को ले कर बैठ गई और उसे होमवर्क कराने लगी. बीचबीच में रत्ना कोई मजेदार बात सुनाती तो पूरा घर मीनू की खिलखिलाहट से गूंज जाता.

रोली अपनी मां के इस नए रूप से आज पहली बार ही परिचित हो रही थी.

ऐसा नहीं है कि रत्ना ने उन्हें कभी होमवर्क नहीं कराया था लेकिन तब वह उसे केवल मां लगती थी वहीं आज रत्ना उसे एक प्रशिक्षित अध्यापिका लग रही थी.

कुछ ही देर में मीनू ने होमवर्क निबटा कर अपना बैग पैक कर लिया तो रत्ना उसे कल

आने का न्योता दे कर उस के घर के दरवाजे तक छोड़ आई.

‘‘अरे वाह मां. आप तो छिपी रुस्तम निकलीं. हमें तो पता ही नहीं था कि आप इतनी अच्छी तरह पढ़ा सकती है,’’ रमण ने रत्ना की तरफ गर्व से देखते हुए कहा.

‘‘पता क्यों नहीं है? क्या तुम लोगों को बचपन में होमवर्क कोई दूसरा कराता था?’’ रत्ना ने तारीफ को दरकिनार करते हुए कहा.

‘‘तब हम कहां ये सब जानते थे. तब तो किसी तरह काम निबटाओ और खेलने भागो… इतना ही सम?ा में आता था,’’ कहती हुई रोली भी बातों में शामिल हो गई.

‘‘मां, आप बच्चों को ट्यूशन क्यों नहीं पढ़ातीं? जिस समय मीनू को पढ़ाया उस समय तो रोज आप खाली ही रहती हो,’’ रमण भी उत्साह से भरा हुआ था. शायद भीतर कहीं न कहीं अपनी मां को आत्मनिर्भर देखने की चाह सिर उठाने लगी थी.

‘‘नहीं रे. एक दिन की बात अलग है और रोज की बात अलग. मुझे कहां इतनी फुरसत रोज मिलने वाली है,’’ कहते हुए रत्ना ने रमण के आग्रह को अनसुना कर दिया.

मीनू रोज तय समय पर आती और रत्ना के साथ मस्ती करते हुए अपना होमवर्क करती.

एक दिन मीनू ने बताया कि 2 दिन बाद उस के मिड टर्म ऐग्जाम हैं और उसे 5 फलों और सब्जियों के नाम याद कर के ले जाने हैं. बहुत कोशिश करने के बाद भी याद नहीं हो रहे. कभी कोई भूल जाती है तो कभी कोई.

‘‘बस, इतनी सी बात. लो, आप को याद करने का बहुत ही आसान सा तरीका बताते हैं. हम ऐल्फाबेट से शुरू करते हैं. जैसे ऐ फार ऐप्पल, ऐप्रीकाट, बी फार बनाना, सी फार चीकू, चेरी और कोकोनट. ये लो, 3 ऐल्फाबेट में ही सिक्स फू्रट याद हो गए,’’ रत्ना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे वाह आंटी. यह तो बहुत मजेदार है. ऐसे तो मैं सब्जियों के नाम भी याद कर सकती हूं और कलर्स के भी,’’ मीनू खुशी से उछलने लगी.

रोली को भी मां की यह ट्रिक बहुत अच्छी लगी. उसे याद आया कि बचपन में मां द्वारा सिखाई गई इसी तरह की ट्रिक्स के कारण दोनों भाईबहन को कभी पहाड़े और फौर्मूले याद करने में दिक्कत नहीं आई थी.

मीनू बहुत खुश थी और रिया भी. इस बार मीनू  को हर बार से अधिक मार्क्स मिले थे और वे भी बिना किसी मानसिक दबाव के. 2 दिन बाद जब मीनू रत्ना के घर आई तब उस के साथ उस की एक सहेली वन्या भी थी.

‘‘आंटी, आज ये भी मेरे साथ टेबल्स लर्न करेगी,’’ मीनू के स्वर में थोड़ा आग्रह भी था.

रत्ना ने मुसकरा कर इजाजत दे दी. रत्ना ने पहले दोनों बच्चियों से थ्री की टेबल सुनाने के लिए कहा जिसे दोनों ने ही अटकअटक कर सुनाया. अब रत्ना ने उसी पहाड़े को कविता की तरह लय में गा कर सुनाया. 1-2 बार के अभ्यास के बाद मीनू और वन्या ने बहुत आसानी के साथ पहाड़ा याद कर लिया. दोनों के चेहरों पर जीत की खुशी जैसा उजास था.

रात को रत्ना ने सुना, दादी भी धीरेधीरे उसी लय के साथ तीन का पहाड़ा गुनगुना रही थी. रत्ना के होठों पर मुस्कराहट तैर गई.

धीरेधीरे मीनू के दोस्तों की संख्या बढ़ने लगी. अब तो दोपहर बाद 4 बजे मीनू सहित 5 बच्चे रत्ना के पास आ जाते हैं. सब की मम्मियों की जिद के बाद नानुकुर करते हुए रत्ना ने सब से नाममात्र की फीस लेनी शुरू  कर दी. पहली बार जब रिया ने सब बच्चों की फीस के रूप में दस हजार रुपए रत्ना के हाथ में थमाए तो उस के हाथ कांपने लगे. यों तो हर महीने पति उसे घर खर्च के लिए रुपए देते ही हैं लेकिन अपनी कमाई की खुशी क्या होती है यह उसे आज पहली बार महसूस हुआ. रत्ना ने खीर बना कर खुशी सब के साथ साझा की.

‘‘पूरे महीने दिमाग खपा कर यह कमाई की है क्या?’’ सास ने ताना कसा. पति ने भी कोई खास खुशी जाहिर नहीं की. रत्ना उदास होती इस से पहले ही रोली और रमण ने उसे फूलों का एक गुलदस्ता भेंट कर के उस की मुसकराहट को जाया होने से बचा लिया.

रत्ना ने अब विधिवत अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते उस के पास आसपास के बहुत से बच्चे आने लगे. शाम के समय बच्चे अधिक होने के कारण उस ने घर के काम में मदद के लिए एक सहायिका को रख लिया. सास ने कुछ दिन तो मुंह चढ़ाए रखा लेकिन जब देखा कि रत्ना अब रुकने वाली नहीं है तो उन्होंने भी समय के साथ समझौता कर लिया.

सबकुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन रत्ना की सहेली माया उस से मिलने आई. माया की उदास रंगत देख कर रत्ना ने पहचान लिया कि अवश्य कोई गंभीर मसला है. चायपानी के साथ थोड़ा कुरेदने के बाद माया ने जो बताया वह वाकई चिंताजनक था.

‘‘2 साल पहले बेटी की शादी की थी. बेचारी तुम्हारी तरह पूरा दिन घर में खटती है लेकिन उस के किए को जस नहीं. सास तो सास, पति भी खुश नहीं रहता. बिलकुल तेरी सी ही कहानी है,’’ कहते हुए माया ने ठंडी सांस भरी.

‘‘जब कहानी की शुरुआत मेरी जैसी ही है तो घबरा क्यों रही है? इस कहानी का अंत भी मेरे जैसा ही करते हैं न,’’ रत्ना ने मुसकुरा कर कहा.

माया कुछ समझ नहीं. वह उस का चेहरा पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘जैसे मैं अपने पैरों पर खड़ी हुई, वैसे ही उसे भी करते हैं न. तू उसे मेरे पास भेज देना. बहुत से बच्चे आते हैं मेरे पास. बहुतों को मना करना पड़ता था. अब नहीं करना पड़ेगा. बिटिया के हाथ को काम मिल जाएगा और मुझे थोड़ी राहत. आत्मनिर्भर बनेगी तो आत्मविश्वास भी आएगा और तब वह अपने हक में कोई भी कठोर निर्णय ले सकती है. अपने पैरों पर खड़ी स्त्री खुद के लिए भी आदर्श होती है. समझ?’’ रत्ना ने माया को सम?ाया तो माया के चेहरे पर भी भविष्य को ले कर उम्मीद की रोशनी चमकने लगी. रत्ना ने देखा उस की सास उन की बातें सुन रही थीं.

‘‘सही कह रही है रत्ना. भले ही मैं बोल कर नहीं कहती लेकिन जबसे यह अपने पैरों पर खड़ी हुई है, मुझे भी अच्छा लगता है. मेरे मन में इस के लिए इज्जत बढ़ गई है. पहले तो लगता था कि यह मेरे बेटे की कमाई पर पल रही है इसलिए मैं भी इसे 2 बातें सुना दिया करती थी. जानती थी कि बुरा मान भी लेगी तो जाएगी कहां? रहना तो इसे इसी घर में पड़ेगा लेकिन अब तो मैं भी इसे कुछ कहने से पहले 4 बार सोचती हूं. अपने पैरों पर खड़ी है, कहीं गुस्से में आ कर घर छोड़ दिया तो? न बाबा न. बुढ़ापे में मैं अब कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती,’’ सास ने झिझकते हुए अपनी सचाई को स्वीकार किया.

रत्ना उन के इस रूप को आश्चर्य से देख रही थी. तभी मीनू अपने दोस्तों के साथ 7 की टेबल को कविता की तरह गाते हुए अंदर घुसी. बच्चों को इस तरह खेलखेल में पढ़ाई करते हुए देखकर तीनों महिलाएं मुसकरा दीं.

रोली और रमण को आज रत्ना वैसी ही लग रही थी जैसी वे उसे बरसों से देखना चाहते थे.

बहार: क्या पति की शराब की लत छुड़ाने में कामयाब हो पाई संगीता

अपने सास ससुर के रहने आने की खबर सुन कर संगीता का मूड खराब हो गया. यह बात उस के पति रवि की नजरों में भी आ गई.

सप्ताहभर पहले संगीता की बड़ी ननद मीनाक्षी अपने दोनों बच्चों के साथ पूरे 10 दिन उस के घर रह कर गई थी. अब इतनी जल्दी सासससुर का रहने आना उसे बहुत खल रहा था.

‘‘इतना सड़ा सा मुंह मत बनाओ संगीता क्योंकि 10-15 दिनों की ही बात है. पहली बार दोनों अपने छोटे से कसबे में रहने आ रहे हैं, इसलिए मैं टालमटोल नहीं कर सकता था.’’

रवि के इन शब्दों को सुन कर संगीता का मूड और ज्यादा उखड़ गया. बोली, ‘‘मेरी खुद की तबीयत ठीक नहीं रहती है. उन की देखभाल के लिए नौकरानी ला दो, तो मुझे कोई शिकायत नहीं. फिर कितने भी दिन रुकें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ तीखे स्वर में जवाब दे कर संगीता ने चादर से मुंह ढका और लंबी चुप्पी साध ली.

अपने मातापिता के आने से परेशान रवि भी था. मीनाक्षी के सामने संगीता के साथ उस का कई बार झगड़ा हुआ था. उन सब झगड़ों की खबर उस के मातापिता तक निश्चित रूप से मीनाक्षी ने पहुंचा दी होगी. वह जानता था कि मातापिता अपना पुरातनपंथी रवैया नहीं छोड़ेंगे और पूरी सोयायटी में उस की जगहंसाई हो सकती है.

शादी होने के सिर्फ 5 महीने बाद बेटाबहू खूब लड़तेझगड़ने लगे थे. इस तथ्य ने उस के मातापिता का दिल दुखा कर उन्हें चिंता से भर दिया होगा. अब रवि उन का सामना करने का हौसला अपने भीतर जुटा नहीं पा रहा था. वह कोविड-19 का बहाना बना कर उन्हें टालता रहा था पर अब वह बहाना चल नहीं रहा था.

लगभग ऐसी ही मनोस्थिति संगीता की भी थी. काम के बोझ का तो उस ने बहाना बनाया था. वह भी अपने सासससुर की नजरों के सामने खराब छवि के साथ आना नहीं चाहती थी. उन का चिंता करना या समझना उसे अपमानजनक महसूस होगा और वह उस स्थिति का सामना करने से बचना चाहती थी. रवि के मातापिता कोविड-19 के दिनों में अकेले ही रहे थे और अकेलेपन को सहज लेते रहे थे.

अगले दिन शाम को उस के सासससुर उन के घर पहुंच गए. दोनों में से किसी

ने भी रवि और उस के बीच 2 साल से चलने वाले झगड़ों की चर्चा नहीं छेड़ी. उसे 2 सुंदर साडि़यों का उपहार भी मिला. सोने जाने तक का समय इधरउधर की बातें करते हुए बड़ी अच्छी तरह से गुजरा और संगीता ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस करी.

‘‘अपने सासससुर के सामने न मैं आप से उलझंगी, न आप मुझ से झगड़ना,’’ संगीता के इस प्रस्ताव पर रवि ने फौरन अपनी सहमति की मुहर सोने से पहले लगा दी थी.

अगले दिन शाम को जो घटा उस की कल्पना भी उन दोनों ने कभी नहीं करी थी.

रवि अपने दोस्तों के साथ शराब पीने के बाद घर लौटा. वह ऐसा अकसर सप्ताह में

3-4 बार करता था. इसी क ारण उस का संगीता से खूब झगड़ा भी होता.

उस शाम संगीता की नाक से शराब का भभका टकराया, तो उस की आंखों में गुस्से की लपटें फौरन उठीं, पर वह मुंह से एक शब्द नहीं बोली.

रवि के दोस्तों में से ज्यादातर पियक्कड़ किस्म के थे. रवि की जमात के लोगों को ऊंची जाति के लोग दोस्त नहीं बनाते थे और उसे सड़क छाप आधे पढ़े लोगों को अपना दोस्त बनाना पड़ता था जो सस्ती शराब भरभर कर

पीते थे.

उस की मां आरती मुसकराती हुई अपने

बेटे के करीब आईं, तो शराब की गंध उन्होंने

भी पकड़ी.

‘‘रवि, तूने शराब पी रखी है?’’ आरती ने चौंक कर पूछा.

‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी थी. थोड़ी सी जबरदस्ती पिला दी उन लोगों ने,’’ उन से बच कर रवि अपने शयनकक्ष की तरफ बढ़ा.

आरती ने अपने पति रमाकांत की तरफ घूम कर उन से शिकायती लहजे में

कहा, ‘‘मेरे बेटे को यह गंदी लत आप की बदौलत मिली है.’’

‘‘बेकार की बकवास मत करो,’’ रमाकांत ने उन्हें फौरन डपट दिया.

‘‘मैं ठीक कह रही हूं,’’ आरती निडर बनी रहीं, ‘‘जब यह बच्चा था तब इस ने आप को शराब पीते देखा और आज खुद पीने लगा है.’’

‘‘मुझे शराब छोड़े 10 साल हो गए हैं.’’

‘‘जब ब्लडप्रैशर बढ़ गया और लिवर खराब होने लगा, तब छोड़ा आप ने पीना. मैं लगातार शोर मचाती थी कि बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा, पर मेरी कभी नहीं सुनी आप ने. मेरा बेटा अपना स्वास्थ्य अब बरबाद करेगा और उस के जिम्मेदार आप होंगे.’’

‘‘अपनी बेकार की बकबक बंद कर, बेवकूफ औरत.’’

उन की गुस्से से भरी चेतावनी के बावजूद आरती ने चुप्पी नहीं साधी, तो उन के बीच झगड़ा बढ़ता गया. संगीता अपनी सास को दूसरे कमरे में ले जाना चाहती थी, पर असफल रही. रवि ने बारबार रमाकांत से चुप हो जाने की प्रार्थना करी, पर उन्होंने बोलना बंद नहीं किया.

रमाकांत को अचानक इतना गुस्सा आया कि नौबत आरती पर हाथ उठाने की आ गई. तब संगीता अपनी सास को जबरदस्ती खींच कर दूसरे कमरे में ले गई.

रवि देर तक अपने पिता को गुस्सा न करने के लिए समझता रहा. रमाकांत खामोशी से उस की बातें सिर झकाए सुनते रहे

उन के पास से उठने के समय तक रवि का नशा यों गायब हो चुका था जैसे उस ने शराब पी ही नहीं थी. सारा झगड़ा उस के पिता की शराब पीने की पुरानी आदत को ले कर हुआ था. कमाल की बात यह थी कि उसे दिमाग पर बहुत जोर डालने पर भी याद नहीं आया कि उस ने कभी अपने पिता को शराब पीते देखा हो.

शादी के बाद संगीता ज्यादा दिन अपने सासससुर के साथ नहीं रही थी. उन की आपस में लड़नेझगड़ने की क्षमता देख कर उसे अपने रवि के साथ हुए झगड़े बौने लगने लगे थे.

रविवार के दिन आरती और रमाकांत का एक

और नया रूप उन दोनों को देखने के लिए मिला.

संगीता ने आरती द्वारा पूछे

गए एक सवाल के जवाब में

कहा, ‘‘इन्हें घूमने जाने या फिल्म देखने को बिलकुल शौक नहीं है. मुझे फिल्म देखे हुए महीनों बीत गए हैं.’’

‘‘बकवास हिंदी फिल्में सिनेमाहौल पर देखने में 3 घंटे बरबाद करने की क्या तुक है?’’ रवि ने सफाई दी, ‘‘फिर केबल

पर दिनरात फिल्में आती रहती हैं. टीवी पर फिल्में देख कर यह अपना शौक पूरा कर लेती है, मां. नैट विलक्स भी है. बहुत सीरीज हैं, उन्हें देखे न.’’

‘‘असल में तुम बापबेटे दोनों को ही अपनीअपनी पत्नी के शौक पर खर्चा करना अच्छा नहीं लगता है,’’ आरती ने अपनी बहू का हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर शरारती स्वर में टिप्पणी करी.

‘‘तुम हर बात में मुझे क्यों बीच में घसीट लेती हो? अरे, मैं ने तो शादी के बाद तुम्हें पहले साल में कम से कम 50 फिल्में दिखाई होंगी,’’ रमाकांत ने तुनक कर सफाई दी.

‘‘फिल्में देखने का शौक आप को था, मुझे नहीं.’’

‘‘तू तो हौल में आंखें बंद कर के बैठी रहती होगी.’’

अपने पति के कटाक्ष को नजरअंदाज कर आरती ने मुसकराते हुए संगीता से कहा, ‘‘मुझे चाट खाने का शौक था और इन्हें एसिडिटी हो जाती थी बाहर का कुछ खा कर… तुम्हें एक घटना सुनाऊं?’’

‘‘सुनाइए, मम्मी,’’ संगीता ने फौरन उत्सुकता दिखाई.

‘‘तेरे ससुर शादी की पहली सालगिरह पर मुझे आलू की टिक्की खिलाने ले गए. टिक्की की प्लेट मुझे पकड़ाते हुए बड़ी शान से बोले कि जानेमन, आज फिर से करारी टिकियों का आनंद लो. तब मैं ने चौंक कर पूछा कि मुझे आप ने पहले टिक्की कब खिलाई? इस पर जनाब बड़ी अकड़ के साथ बोले कि इतनी जल्दी भूल गई. अरे, शादी के बाद हनीमून मनाने जब मसूरी गए थे, क्या तब नहीं खिलाई थी एक प्लेट टिक्की?’’

आरती की बात पर संगीता और रवि खिलखिला कर हंसे. रमाकांत झेंपेझेंपे अंदाज में मुसकराते रहे. शरारत भरी चमक आंखें में ला कर आरती उन्हें बड़े प्यार से निहारती रहीं.

अचानक रमाकांत खड़े हुए और नाटकीय अंदाज में छाती फुलाते हुए रवि से बोले, ‘‘झठीसच्ची कहानियां सुना कर मेरी मां मेरा मजाक उड़ा रही है यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

‘‘आप को इस बारे में कुछ करना चाहिए, पापा,’’ रवि बड़ी कठिनाई से अपनी आवाज में गंभीरता पैदा कर पाया.

‘‘तू अभी जा और पूरे सौ रुपए की टिक्कीचाट ला कर इस के सामने रखे दे. इसे अपना पेट खराब करना है, तो मुझे क्या?’’

‘‘बात मेरी चाट की नहीं बल्कि संगीता के फिल्म न देख

पाने की चल रही थी, साहब,’’ आरती ने आंखें मटका कर उन्हें याद दिलाया.

‘‘रवि,’’ रमाकांत ने सामने बैठे बेटे को उत्तेजित लहजे में फिर से आवाज दी.

‘‘जी, पिताजी,’’ रवि ने फौरन मदारी के जमूरे वाले अंदाज में जवाब दिया.

‘‘क्या तू जिंदगीभर अपनी बहू से फिल्म न दिखाने के ताने सुन कर अपमानित होना चाहेगा?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘तब 4 टिकट फिल्म के भी ले आ, मेरे लाल.’’

‘‘ले आता हूं, पर 4 टिकट क्यों?’’

‘‘हम दोनों भी इन की खुशी की खातिर 3 घंटे की यातना सह लेंगे.’’

‘‘जी,’’ रवि की आवाज कुछ कमजोर पड़ गई.

‘‘अपने घटिया मुकद्दर पर आंसू वहां लेंगे.’’

‘‘जी.’’

‘‘कभीकभी आंसू बहाना आंखों के लिए अच्छा होता है, बेटे.’’

‘‘जी.’’

‘‘जा फिर चाट और टिकट

ले आ.’’

‘‘लाइए, पैसे दीजिए.’’

‘‘अरे, अभी तू खर्च कर दे. मैं बाद में दे दूंगा.’’

‘‘उधार नहीं चलेगा.’’

‘‘मेरे पास सिर्फ 2-2 हजार के नोट हैं.’’

‘‘मैं तुड़ा देता हूं.’’

‘‘मुझ पर विश्वास नहीं तुझे?’’

रवि मुसकराता हुआ खामोश खड़ा रहा. तभी संगीता और आरती ने ‘‘कंजूस… कंजूस,’’ का नारा बारबार लगाना शुरू कर दिया.

रमाकांत ने उन्हें नकली गुस्से से घूरा, पर उन पर कोई असर नहीं हुआ. तब वे अचानक मुसकराए और फिर अपने पर्स से निकाल कर उन्होंने 5 सौ के 2 नोट रवि को पकड़ा दिए.

संगीता और आरती अपनी जीत पर खुश हो कर खूब जोर से हंसीं. उन की हंसी में रवि और रमाकांत भी शामिल हुए.

उस रात संगीता और रवि एकदूसरे की बांहों में कैद हो कर गहरी नींद सोए. उन का वाह रविवार बड़ा अच्छा गुजरा था. एक लंबे समय के बाद रवि ने दिल की गहराइयों से संगीता को प्रेम किया था. प्रेम से मिली तृप्ति के बाद उन्हें गहरी नींद तो आनी ही थी.

अगले दिन सुबह 6 बजे

के करीब रसोई से आ रही खटपट की आवाजें सुन कर संगीता की नींद टूटी. वह देर तक सोने की आदी थी. नींद जल्दी खुल जाए

तो उसे सिरदर्द पूरा दिन परेशान करता था.

सुबह बैड टी उसे रवि ही

7 बजे के बाद पिलाता था. उसे अपनी बगल में लेटा देख संगीता ने अंदाजा लगाया कि उस के सासससुर रसोई में कुछ कर रहे हैं.

संगीता उठे या लेटी रहे की उलझन को सुलझ नहीं पाई थी कि तभी आरती ने शयनकक्ष का दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खोलने पर उस ने अपनी सास को

चाय की ट्रे हाथ में लिए खड़ा पाया.

‘‘रवि को उठा दो बहू और दोनों चाय पी लो. आज की चाय तुम्हारे ससुर ने बनाई है. वे नाश्ता बनाने के मूड में भी हैं,’’ ट्रे संगीता के हाथों में पकड़ा कर आरती उलटे पैर वापस चली गईं.

संगीता मन ही मन कुढ़ गई. रवि को जागा हुआ देख उस ने मुंह फुला कर कहा, ‘‘नींद टूट जाने से सारा दिन मेरा सिरदर्द से फटता रहेगा. अपने मातापिता से कहो मुझे जल्दी न उठाया करें.’’

रवि ने हाथ बढ़ा कर चाय का गिलास उठाया और सोचपूर्ण लहजे में बोला, ‘‘पापा को तो चाय तब बनानी नहीं आती थी. फिर वे आज नाश्ता बनाएंगे? यह चक्कर कुछ समझ में नहीं आया.’’

संगीता और सोना चाहती थी, पर वैसा कर नहीं सकी. रमाकांत और आरती ने रसोई में खटरपटर मचा कर उसे दबाव में डाल दिया था. बहू होने के नाते रसोई में जाना अब उस की मजबूरी थी.

चाय पीने के बाद जब संगीता रसोई में पहुंची, तब रवि उस के पीछपीछे था.

रसोई में रमाकांत पोहा बनाने की तैयारी में लगे थे. आरती एक तरफ स्टूल पर बैठी अखबार पढ़ रही थीं.

उन दोनों के पैर छूने के बाद संगीता ने जबरन मुसकराते हुए कहा, ‘‘पापा, आप यह क्या कर रहे हैं? पोहा मैं तैयार करती हूं… आप कुछ देर बाहर घूम आइए.’’

रमाकांत ने हंस कर कहा, ‘‘तेरी सास

से मैं ने 2-4 चीजें बनानी

सीखी हैं. ये सब करना मुझे अब बड़ा अच्छा लगता है. बाहर घूमने का काम आज तुम और रवि कर आओ.’’

‘‘मां, पापा ने रसोई के काम कब सीख लिए और उन्हें ऐसा करने की जरूरत क्या आ पड़ी थी?’’ रवि ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘तेरे पिता की जिद के आगे किसी की चलती है क्या? पतिपत्नी को घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां आपस में मिलजुल कर निभानी चाहिए, यह भूत इन के सिर पर अचानक कोविड-19 के लौकडाउन के दौरान चढ़ा और सिर्फ सप्ताहभर में पोहा, आमलेट, उपमा, सूजी की खीर, सादे परांठे और आलू की सूखी सब्जी बनाना सीख कर ही माने,’’ आरती ने रमाकांत को प्यार से निहारते हुए जवाब दिया.

‘‘यह तो कमाल हो गया,’’ रवि की आंखों में प्रशंसा के भाव उभरे.

‘‘जब तक मैं यहां हूं, तुम सब को नाश्ता कराना अब मेरा काम है,’’ रमाकांत ने जोशीले अंदाज में कहा.

‘‘आज पोहा खा कर ही हमें मालूम पड़ेगा कि रोजरोज आप का बनाया नाश्ता हम झेल पाएंगे या नहीं,’’ अपने इस मजाक पर सिर्फ रवि ही खुद हंसा.

‘‘आप रसोई में काम करें, यह ठीक नहीं है,’’ संगीता ने हरीमिर्च काट रहे रमाकांत के हाथ से चाकू लेने की कोशिश करी.

‘‘छोड़ न, बहू,’’ आरती ने उठ कर उस का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘ये रवि करेगा अपने पिता की सहायता. चल तू और मैं कुछ देर सामने वाले पार्क में घूम आएं. बड़ा सुंदर बना हुआ है पार्क.’’

संगीता ‘न… न,’ करती रही, पर आरती उसे घुमाने के लिए घर से बाहर ले ही गईं. इधर रमाकांत ने रवि को जबरदस्ती अपनी बगल में खड़ा कर पोहा बनाने की विधि सिखाई.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें