‘‘मेरेसपनों को हकीकत में बदलने वाले आप क्या हो, आप नहीं समझ सकते. आप के लंबे से घने ब्राउन बालों में उंगलियां फिराना ऐसा है जैसे जंगल की किसी घनेरी शाम में अल्हड़ प्रेमी के साथ रात बिताने का ख्वाब. आप का चेहरा तो जैसे भोर का सूरज. 6 फुट की आप की बलिष्ठ काया मेरे लिए तूफान का रास्ता रोक लेगी. प्रद्युमन, मैं वापस आऊंगी तो आप प्रांजल को एक भाई देंगे वादा करो… आप के शरीर का अंश अपनी देह में सजाना चाहती हूं मैं.’’
‘‘प्रेक्षा, अभी तुम्हारी पढ़ने की उम्र है. इन खयालों को अब दिल से निकाल फेंको. तुम्हें कई सालों से यही समझा रहा हूं मैं… विद्या साधना मांगती है. तुम्हारा ध्यान इतना भटकता क्यों है? क्यों तुम अपने मन को इतनी खुली छूट देती हो? कैरियर बनाने का समय है यह, यह क्यों नहीं समझती?’’
‘‘चलो कुछ भी नहीं कहूंगी आप से फिर कभी, बल्कि बात ही नहीं करूंगी आप से.’’
‘‘प्रेक्षा,’’ वे उसे अपनी ओर खींच आलिंगन में बांध उस के होंठों पर मिठास से भरपूर चुंबन रख देते हैं. फिर कहते हैं, ‘‘तुम्हारा कैरियर से ध्यान न बंटे यही चाहता हूं न मैं.’’
‘‘पर मेरा ध्यान तुम्हारी ओर तब तक रहेगा जब तक तुम मुझ पर पूरी तरह ध्यान नहीं दोगे,’’ मोहपाश में डूबीडूबी सी प्रेक्षा ने प्यार जताया.
‘‘मेरे प्यार को नहीं समझती तुम?’’
‘‘समझती हूं, तभी तो तुम्हारे आगोश में डूबी रहना चाहती.’’
‘‘अब तो तुम 19 साल की हो गई, बड़ी हो गई हो न… अब और ध्यान न भटकने दो… तुम्हें इतनी दूर पिलानी भेज कर मैं कितना चिंतित रहूंगा मैं ही जानता हूं, लेकिन हमेशा रिजल्ट अच्छा करोगी तो ये 4 साल निकाल ही लूंगा.’’
‘‘तुम्हारे ऊपर सालभर के प्रांजल की जिम्मेदारी दे कर जा रही हूं. एक तो पहले तुम्हारा ही खानेपीने और सोने का ठिकाना न था, कोई देखभाल को न था. अब कोचिंग की जिम्मेदारी के साथ मेरी गलती का खमियाजा भी… सौरी प्रद्युमनजी मुझे माफ कर दो.’’
एक बार फिर प्रेक्षा को प्रद्युमन ने कस कर आलिंगन में बांध लिया. प्यार से उस का कान मरोड़ते हुए बोले, ‘‘इस छोटी सी नासमझ बच्ची को अब बड़ीबड़ी बातें करना आ गया है… अब जरूर अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह समझेगी. तुम प्यारी बच्ची हो. तुम्हारे लिए सबकुछ करूंगा, पिलानी से पढ़ाई खत्म कर के आओ तुरंत प्रांजल को एक बहन से नवाजूंगा.’’
प्रेक्षा ने प्रद्युमन का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘हां ठीक है, लेकिन खबरदार जो फिर कभी बच्ची कहा.’’
समंदर सी गहरी और चांद सी शीतल नजर डाल प्यार से निहारते हुए प्रद्युमन ने कहा, ‘‘चलोचलो, ट्रेन का समय हो रहा है?’’
प्रद्युमन प्रांजल को गोद में उठाए सामान सहित प्रेक्षा को लिए स्टेशन की ओर निकल गए.
प्रेक्षा जिस से इतना लाड़ जता रही थी वे प्रद्युमन हैं. 44 साल के नौजवान से दिखते अधेड़. इन का अपना दोमंजिला मकान है, पुराना है. इन के पिता का मकान, जिन्हें अभीअभी इन्होंने नए सिरे से सजा कर कुछ लग्जरी रूप दिया है. वैसे तो वे शौकीनमिजाज ही हैं, लेकिन कारण यह भी है कि इन के घर अब एक परी जो हमेशा के लिए आ गई है उन की प्रेक्षा.
जिंदगी से जूझती बिस्तर पर पड़ी मां के काफी करीब रहे प्रद्युमन. उन का हर काम अपने हाथों से करने के लिए उन्होंने कभी नौकरी की तलाश ही नहीं की, जबकि मैथ बेस्ड साइंस के स्कौलर हैं वे.
इकलौता बेटा और बीमार मां, एकदूसरे को ले कर स्नेह की डोर में
बंधे, एकदूसरे को ले कर असुरक्षित. कभी शादी का खयाल न आतेआते 42 साल के हो चुके थे प्रद्युमन, जब प्रेक्षा से उन का पाला पड़ा. हां, पाला ही. समझ जाएंगे क्यों.
अपनी इच्छाओं और वासनाओं को मार कर मां के प्रति अदम्य सेवा की भावना से ओतप्रोत यह शख्स अपनी कोचिंग में आने वाले बच्चों के प्रति भी बहुत संवेदनशील था. प्रद्युमन हर बच्चे से साल के क्व10 हजार लेते, लेकिन बदले में उन की सफलता के प्रति इस से 10 गुना ज्यादा समर्पित रहते. इन में से कई बच्चे खुद ही अपने कैरियर के प्रति जागरूक थे, लेकिन कई बच्चे ऐसे भी थे, जिन्हें सही दिशा में प्रेरित करने के लिए उन्हें बड़ी जुगत लगानी पड़ती. इन्हीं में एक प्रेक्षा थी. यह 17 साल की 11वीं कक्षा में पढ़ती एक दुबलीपतली बालिका थी. थी तो वह छोटी सी बालिका, लेकिन अब जैसे उस की काया में वसंत का उल्लास बस प्रकट होने ही वाला था. वह पढ़ने में खासकर मैथ में तेज थी, लेकिन उम्र का कच्चापन उस के मन के बालक को हमेशा ही इधरउधर दौड़ा देता. वह भटक जाती… पढ़ाई कम होती. प्रेम विलास के सपने ज्यादा देखे जाते, कैरियर पर फोकस उसे ऊबा देता.
प्रद्युमन की मां का देहांत हो गया. कुछ दूर के रिश्तेदारों का आनाजाना लगा, कई लोग कई तरह की सलाह ले कर आगे आए. उन में से एक मुख्य सलाह थी कि प्रद्युमन की मां के खाली कमरे को वह पेइंग गैस्ट के रहने के लिए दे दे. दरअसल, एक रिश्तेदार के पहचान के लड़के को इस शहर में एक कमरा चाहिए था, जहां पेइंग गैस्ट की तरह रह कर वह 12वीं कक्षा के बाद कोचिंग इंस्टिट्यूट में इंजीनियरिंग की तैयारी कर सके.
रिश्तेदार ने प्रद्युमन को उस की मां के जाने के बाद के अकेलापन भरने के लिए इतना समझाया कि आखिर प्रद्युमन भी इस बात पर राजी हो गए कि उस लड़के को पेइंग गैस्ट की तरह रहने दिया जाए. बुरा भी क्या था अगर कुछ रुपए और आ रहे हैं? सच तो यह भी था कि आजकल मां का खाली कमरा उन्हें बारबार मां की याद दिलाता और वे दुखी हो जाते.
इस विकल्प में प्रद्युमन की सहमति की मुहर लगते ही रिश्तेदार के पहचान के लड़के की समस्या हल हो गई.
गेहुआं रंग, मध्यम हाइट, हाथ में एक सूटकेस, पीठ पर बैग और दूसरे हाथ में गिटार ले कर निर्वाण आ पहुंचा. घर के पीछे की सीढि़यों से ऊपर का कमरा बता दिया प्रद्युमन ने. निर्वाण इस बड़े शहर में इंजीनियरिंग कोचिंग के लिए आया था. उस के छोटे से शहर में इस तरह की अच्छी कोचिंग की सुविधा नहीं थी
और एक नामी इंस्टिट्यूट में कोचिंग के लिए भेजने का मतलब ही था उस के घर वालों का अटैची भर कर सपनों का बोझ साथ भेजना. उसे पूरी तैयारी के साथ जेईई की ऐंट्रेंस परीक्षा में बैठना था.
प्रद्युमन के घर निर्वाण को सारी सुविधाएं थीं. पढ़ाई के साथसाथ वह आसानी से गिटार के रियाज का समय भी निकाल लेता था. गिटार उस का पैशन था. जब वह एक के बाद एक गानों की धुन पर उंगलियां थिरकाता तो नीचे कोचिंग में बैठी प्रेक्षा अपनी सुधबुध खो देती. महीन सपने सतरंगी रथ पर बैठ इंद्रधनुष के पार चले जाते. अनुभूतियां सिहर कर सिर से पांव तक दौड़ जातीं और जब वह चौंक कर देखती तो गणित के सवाल पर उस की कलम मुंह के बल चारों खाने चित्त पड़ी मिलती.प्रद्युमन की सभी बच्चों पर बराबर नजर थी, लेकिन प्रेक्षा पर उन का ध्यान आजकल ज्यादा ही रहता. परीक्षाएं शुरू होने वाली थीं पर इस लड़की का हाल कुछ सही नहीं था. सारा सिखाया हुआ भूलती जा रही थी, स्कूल की कौपी में बारबार खराब प्रदर्शन था. डांटने और चिंता व्यक्त करते रहने से जब प्रेक्षा पर कोई असर नहीं हुआ तो प्रद्युमन ने एक दिन अकेले में उसे रोक लिया. वे कुरसी पर बैठे थे. प्रेक्षा सिर झुकाए सामने खड़ी थी. उन में बातचीत कुछ यों हुई-
‘‘और कितना समझाऊं तुम्हें? क्यों न अब तुम्हारे पापा को खबर करूं? पर वे इतना रुपया खर्च कर रहये हैं… कुछ तो उम्मीद होगी तुम से… मैं यह नहीं कहता कि सौ प्र्रतिशत लाओ, लेकिन कुछ तो रिटर्न दोगी उन्हें.’’
‘‘पापा से न कहना प्लीज.’’
‘‘क्यों? उन्हें पता चलना चाहिए?’’
‘‘पापा को इस कोचिंग के बारे में पता नहीं है.’’
‘‘क्यों क्व10 हजार तुम्हारी मां ने तो दिए नहीं होंगे… नौकरी तो वे करती नहीं.’’
‘‘मां ने ही दिए, अपने कुछ गहने बेच कर.’’
‘‘क्या समस्या है? मुझे बताओ?’’
‘‘हम 3 बहनें हैं, मां चाहती हैं हम तीनों ही खूब पढ़ेलिखें और घर में लड़कों की कमी को पूरा करें, पर पापा को इन बातों से चिढ़ है. खासकर मुझ से… मेरी जगह उन्हें एक लड़के की चाह थी.
‘‘मेरी दीदी मुंबई में नौकरी करती हैं. वे वहां बहुत खुश हैं. वे अपने बौयफ्रैंड से शादी करने वाली हैं, हमें हमेशा ढेरों तसवीरें दिखाती रहती हैं… उन्हें पापा से अब कोई मतलब नहीं और न ही पापा उस की जिंदगी में दखल देते हैं. हम दोनों बहनों की वे जल्द शादी कर देंगे, लेकिन मैं अपनी पसंद की जिंदगी जीना चाहती हूं.’’
प्रद्युमन ने प्रेक्षा के घर वालों से सलाह करने की बात छोड़ दी, लेकिन उन की चिंता दिनोंदिन बढ़ती गई.
चोरीछिपे वैसे तो निर्वाण से प्रेक्षा की नजरें टकरातीं, लेकिन जहां इस की प्रेरणा ही हो वहां रोके से कौन रुका है? तो दोस्ती की शुरुआत कुछ इस तरह हुई-
निर्वाण ऊपर अपने कमरे में गिटार बजा रहा था. उस की धुनों ने प्रेक्षा की
कोमल कल्पनाओं में पंख लगा दिए. एक दिन उस ने जल्द पढ़ाई खत्म कर घर जाने की छुट्टी मांगी और अपना बैग समेट कर बाहर निकल आई. पीछे की सीढि़यों का रास्ता पकड़ा उस ने और सीधे निर्वाण के कमरे के दरवाजे की ओट पकड़ कर लगभग उस के सामने खड़ी हो गई. आंखों में प्रशंसा, होंठों पर सलज्ज मुसकान, कच्ची सी कली का आगे बढ़ कर इस तरह मान प्रदर्शन नए शहर में नई उम्र के लड़के को भला क्यों न अच्छा लगता? इश्क की बग्घी चल पड़ी उन की. अब दोनों को अपनी इस भरी व्यस्तता के बीच प्यार के लिए भी समय निकालना था. दोनों तालमेल बैठाते रहे.
परीक्षाएं शुरू हो चुकी थीं. प्रेक्षा की तबीयत कुछ दुविधा में डालने वाली थी. घबराहट, भय, निर्वाण को खोने की शंका ने उसे परेशान कर दिया था. जैसेतैसे परीक्षा में ध्यान लगाने के बावजूद वह 11वीं कक्षा की परीक्षा में सफल नहीं हो पाई.
प्रद्युमन मर्माहत थे. उन की स्थिति कुछ विकट हो गई. उन्होंने प्रेक्षा की मां से प्रेक्षा की ट्यूशन फीस ली हुई थी. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद प्रेक्षा का प्रदर्शन बचा नहीं पाए. उन्होंने प्रेक्षा से बातचीत बंद कर दी. प्रेक्षा भी अब यहां नहीं आ पा रही थी.
समय कुछ और बीत गया. निर्वाण का जेईई में चयन हो गया और फिर रातोंरात वह प्रद्युमन से हिसाब चुकता कर के ज्यादा कुछ बोले बिना निकल गया.
इस के 10 दिन के बाद प्रेक्षा प्रद्युमन के घर आई और सब से पहले बेचैन सी निर्वाण को मिलने ऊपर गई. अपने अंदेशे को निर्वाण से साझा करना था उसे, लेकिन खाली कमरे की दीवारों ने उस के गाल पर करारा थप्पड़ जड़ दिया. वह हैरान सी हर दीवार को ताकती रही. वह दौड़ती हुई नीचे आई. ट्यूशन वाले बच्चों की आज छुट्टी थी.
वह प्रद्युमन के आगे जा कर खड़ी हो गई. बड़ा रोष था मन में. कहीं प्रद्युमन सर ने ही तो जाने का रास्ता नहीं दिखा दिया उसे? उन्हें पता तो चल ही रहा था उन दोनों के बारे में… सोचते हुए प्रेक्षा की सांसें फूल आईं. वह अपनी परीक्षा और रिजल्ट के बारे में भूल चुकी थी. निर्वाण के साथ उस के भविष्य के सपनों की चिंदीचिंदी बिखर जाना अभी उस का सब से बड़ा सच था और जिस के लिए प्रद्युमन नामक वास्तव के इस कठोर धरातल को वह पहला जिम्मेदार मान चुकी थी.
लुटीपिटी हांफती वह प्रद्युमन से पूछ रही थी, ‘‘निर्वाण क्यों चला गया? रोष से भरी प्रेक्षा लगभग फट पड़ी थी प्रद्युमन पर.’’
प्रद्युमन अचरज से भर गए, लेकिन तुरंत उन्हें प्रेक्षा की स्थिति का भान हुआ और फिर कुछ सहज हो गए. प्रेक्षा का हाथ पकड़ कर सब से पहले तो वे उसे अपने नजदीक लाए और फिर कहा, ‘‘प्रेक्षा, मैं ने निर्वाण से जाने को नहीं कहा. तुम वहम में इतना डूब गई हो कि तुम्हारे सिर के ऊपर से कितने ही युग निकल कर चले गए, तुम्हें पता ही नहीं चला. तुम 11वीं कक्षा में फेल हो चुकी हो. निर्वाण की कोचिंग समाप्त हो चुकी है. उस ने अपने सपने को पकड़ लिया है. उस का इंजीनियरिंग में चयन हो गया है और वह वापस चला गया, तुम्हें कुछ भी बताए बिना. अब तुम भी होश में आओ, उसे लगभग झंझोड़ते हुए प्रद्युमन आवेश में आ गए थे.
प्रेक्षा रोते हुए वहीं जमीन पर बैठ गई. उसे अब सबकुछ लुटपिट जाने का आभास होने लगा था. वह देर तक जमीन पर बैठी रोती रही.
प्रद्युमन वहां से उठ कर अपने कमरे में चले गए. कुछ देर बाद प्रेक्षा अपने चेहरे पर पानी डाल थोड़ा शांत हुई और फिर प्रद्युमन के पास गई. जाते ही सीधे बोल पड़ी, ‘‘निर्वाण ने कहा था वह मुझ से शादी करेगा. उस ने मुझ से वादा किया और मुझे यह अंगूठी भी दी थी.’’
‘‘यह अंगूठी बनावटी है आर्टिफिशियल… उस के वादे की तरह.’’
‘‘मैं ने अंगूठी नहीं, उस की भावना देखी थी?’’
‘‘यह अंगूठी नहीं लाइसैंस था संबंध बनाने का… सब सौंप दिया या कुछ बचा भी? माफ करना मैं मजबूर हूं ये सब पूछने को… तुम ने मुझे बेइज्जत करने का पूरा इंतजाम कर दिया… तुम्हारी मां को क्या कहूंगा मैं?’’
‘‘नहीं पता यह लाइसैंस था या कुछ और… मैं क्या चाहती थी, खुद ही नहीं समझ पाई.’’
‘‘अब क्या? पापा से कहो जा कर अपने.’’
‘‘घर में कह पाती तो आप के पास कहने क्यों आती? आप निर्वाण से कहो न एक बार.’’
‘‘कैसी लड़की हो तुम? जानती हो उस ने तुम्हें बताया नहीं ताकि तुम से संपर्क न रहे, फिर भी… मैं ने उस के दिए नंबर पर पहले ही फोन कर के देख लिया है… सब खत्म है… सब खत्म है… उस का नंबर भी जीवित नहीं है?’’
‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं उस से नहीं तो किस से कहूं?’’ हताश हो कर चीख पड़ी प्रेक्षा.
‘‘मुझ से कहो… मैं ही ले जाऊंगा तुम्हें डाक्टर के पास और कौन है तुम्हारी इन बचकानी हरकतों से निबटने के लिए?’’ प्रद्युमन ने बड़ी सरलता से कहा.
मगर पहले से छली गई कमजोर प्रेक्षा मन ही मन अमरबेल सी प्रद्युमन से लिपट गई. उस पर निर्भर होने की प्रेरणा पैदा होने लगी उस में. बोली, ‘‘ले चलिए डाक्टर के पास जल्दी?’’
‘‘मां को नहीं बताओगी?’’
‘‘शायद नहीं.’’
शक सही ही था प्रेक्षा का, वह 5 महीने के गर्भ से थी. बात सिर्फ अब भविष्य की ही नहीं, बल्कि वर्तमान की भी थी. प्रद्युमन आश्चर्य में थे… प्रेक्षा बुझ गई थी.
निर्वाण तक पहुंचने के लिए अगर रिश्तेदार का सूत्र पकड़ा जाए तो बात को जंगल की आग बनते देर नहीं लगेगी… प्रद्युमन की भी बदनामी होगी सो अलग… गैरजिम्मेदार ठहराया जाना उन के लिए बेहद दुखदाई होगा.
प्रद्युमन की कोचिंग तो चल रही थी, लेकिन आजकल वे बड़े अनमने से रहते. प्रेक्षा के पिता को अगर भनक लगी तो प्रेक्षा के साथसाथ उस की मां और दूसरी बहनों की जिंदगी भी नर्क बन जाएगी. अब तक तो प्रेक्षा के घर में उस के फेल होने तक की ही खबर थी… दूसरी बड़ी खबर तो भूचाल ही ला देगी.
प्रद्युमन ने प्रेक्षा के लिए मंझधार में खेवैया की भूमिका ली और उसे किनारे पर लाने का जिम्मा उठाया. लेडी डाक्टर ने हाथ खींच लिया था. प्रेक्षा की मैडिकल कंडीशन बच्चे को नष्ट करने की इजाजत नहीं देती थी.
मुसीबत दोगुनी हो चुकी थी. असहाय सी प्रेक्षा प्रद्युमन के कमरे में
बैठी थी. वे नीचे कोचिंग में सभी को जल्दी छुट्टी दे कर ऊपर आ गए. कुरसी पर रोनी सी सूरत बना कर बैठी प्रेक्षा के सिर पर उन्होंने हाथ फिराया और अपने पलंग पर आ कर बैठ गए. फिर उसे अपने पास बुलाया, ‘‘मेरे करीब आ कर बैठो.’’
प्रेक्षा यंत्रचालित सी उन के पास पलंग पर जा कर बैठ गई.
‘‘बताओ मैं क्या करूं? न अबौर्शन की गुंजाइश है और न बच्चे को बिना पिता के सामने लाने की. अबौर्शन की स्थिति में तुम्हारी जिंदगी पर बन आए यह तो कभी नहीं चाहूंगा मैं… रही बात बच्चे की, तो अकेली तुम इस हालत में नहीं हो कि इस अजन्मे को बचाने के लिए तुम समाज की पाबंदियों से टकरा सको… कैसे सुलझाऊं प्रेक्षा… जब घर में भी मुश्किलें थीं तो बाहर भटकी क्यों?’’
‘‘घर की मुश्किलों की वजह से ही तो बाहर भटक गई… पर आप बहुत कुछ कर सकते हैं. आप… आप मुझे अपना लीजिए.’’
‘‘क्या कह रही हो? कुछ तो सोच कर बोलो?’’
‘‘आप ने अपना लिया तो मैं आप की खूब सेवा करूंगी, फिर आप को कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी… प्रौमिस.’’
‘‘तुम क्या बोल रही हो प्रेक्षा? मैं 43 साल का हो चुका हूं… तुम अभी 18 साल की हो… उम्र का फर्क नहीं समझती हो? कैरियर भी पड़ा है सामने.’’
‘‘ठीक है, फिर मैं मरने जा रही हूं,’’ प्रेक्षा ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं इस घर से बाहर नहीं जाना चाहती, लोग खा जाएंगे मुझे.’’
प्रद्युमन लगातार उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे, ‘‘प्रेक्षा, शरण एक बात है और शादी दूसरी… मैं तुम्हें शरण दे सकता हूं, तुम्हारे लिए हजार बातें सुन सकता हूं, लेकिन शादी के लिए मेरे हिसाब से प्रेम जरूरी है वरना वह समझौता हो जाता है और समझौते की एक न एक दिन मियाद खत्म होती ही है.’’
‘‘तो आप नहीं कर सकेंगे प्रेम मुझ से? न सही, मैं करती हूं आप से… जब मेरा और आप का कोई नाता नहीं तो फिर आप मुझे ले कर इतना परेशान क्यों रहने लगे. अब शायद आप से दूर जा कर मैं नहीं रह पाऊंगी… जी नहीं पाऊंगी आप के बिना… आदत हो गई है आप की मुझे… और क्या पता उम्र के फासले ने मुझ में इतनी हिम्मत नहीं दी थी कि मैं यह बात स्वीकार पाती कि आप… शायद मैं कहीं और बह गई… इन दिनों जब मुझे खुद के अंदर झांकने का मौका मिला तो धीरेधीरे मेरे दिल में आप की तसवीर साफ होने लगी है,’’ कह प्रेक्षा ने प्रद्युमन के कंधे पर अपना सिर रख दिया और चुप हो गई.
प्रद्युमन अपनी तरफ से उसे छुए बिना दीवारों को ताकते शांत बैठे रहे.
इन दोनों की मैरिज की रजिस्ट्री हो चुकी थी. कुछ गिनेचुने रिश्तेदार, प्रेक्षा के मातापिता और बहनें ही थे उन के विवाह के साक्षी. प्रद्युमन ने सब के सामने स्वीकारा कि प्रेक्षा के प्रति मेरे प्रेम के अतिरेक ने प्रेक्षा को इस स्थिति में डाला, प्रेक्षा बेकुसूर है और हम दोनों का प्रेम सच्चा है. उम्र की खाई भले ही गहरी है, लेकिन प्रेक्षा को एक अभिभावक बन कर सहारा दूंगा मैं ताकि उस का कैरियर फिर से रफ्तार पकड़ सके. प्रेक्षा और बच्चे की जिम्मेदारी अब मेरी है. अब किसी को फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं.
प्रेक्षा को बेटा हुआ. प्रद्युमन ने सारी जिम्मेदारी उठा ली और प्रेक्षा जीजान लगा कर इंजीनियरिंग की परीक्षा पास कर इंजीनियरिंग पढ़ने पिलानी चली गई. दिन दूनी पढ़ाई और चौगुनी सफलता उस के कदम चूम रही थी.
तब प्रेक्षा सैकंड ईयर में पहुंची थी. लास्ट बैच के सीनियर
स्टूडैंट पासआउट हो कर कालेज छोड़ रहे थे. स्टूडैंट और फैकल्टी मैंबर्स की एकसाथ तसवीरें ली गईं.
प्रेक्षा ने यह तसवीर भेजी थी प्रद्युमन को. प्रोफैसरों के पीछे की लाइन में एक किनारे जानापहचाना सा एक चेहरा दिखा. यह निर्वाण था. प्रद्युमन अपने बिस्तर पर बेटे को सुलाने के बाद तसवीर को गौर से देखते रहे. मोबाइल में भेजी गई तसवीर के इस खास चेहरे को जूम कर के कई बार देखा, कई बार प्रेक्षा के चेहरे को भी जूम किया उन्होंने जो सैकेंड ईयर की लाइन में खड़ी थी.
सबकुछ सामान्य था, लेकिन प्रद्युमन का दिल जोर से धड़कने लगा. वे सोच में पड़ गए कि क्यों डर लग रहा है मुझे जब खुद प्रेक्षा ने ही आगे बढ़ कर मेरे दिल में अपना बसेरा बनाया है? क्या पता वक्त की जरूरत थी.
शायद वह अकेली पड़ गई थी और उसे उसी वक्त एक सशक्त संबल की जरूरत थी. क्यों मैं उस का इतना ध्यान रखने लगा था? क्यों उस की परेशानियां मुझे दिनरात बेचैन किए थीं? क्यों प्रेक्षा की ओर से शादी का प्रस्ताव मुझे हास्यास्पद नहीं लगा जबकि यह इतना बेमेल है? क्या पता प्रेक्षा ने भी मुझ को चाहा हो या फिर मैं ठगा गया? नहीं पता कौन सही है?
क्या पता फिर से वहां निर्वाण का मिलना प्रेक्षा को कमजोर कर दे… आखिर निर्वाण के साथ अनगिनत रोमांस की यादें हैं उस की… वह प्रांजल का पिता भी तो है… तीनों साथ हो जाएं तो मेरी क्या जरूरत रह जाएगी प्रेक्षा के लिए?
मोबाइल रख कर प्रद्युमन बेटे को पीछे छोड़ करवट ले कर सो गए. नींद भला कैसे आती? कभी ऐसा किया था उन्होंने? हमेशा तो नन्ही जान को सहलाते हुए ही सोते रहे हैं.
मन उचाट था कि अगर प्रेक्षा के लिए बोझ सा बनने लगा मैं तो देर किए बिना उस की जिंदगी से निकल जाऊंगा.
सुबहसुबह प्रेक्षा का फोन आ गया था. प्रांजल को खिला कर वे खुद के लिए नाश्ता बना रहे थे.
‘‘बहुत दिन हो गए अब एक बार यहां आ जाओ… प्रांजल को कितने दिनों से नहीं देख मैं ने… उसे गोद में नहीं लिया… एक बार दिखाओगे न?’’
‘‘हां, आ जाऊंगा.’’
‘‘कुछ और नहीं कहोगे?’’
‘‘नाश्ता बना रहा हूं?’’
‘‘अच्छाअच्छा… जल्दी आना…’’
फोन रख देने के बाद काम करते हुए प्रद्युमन कुछ यों सोचते रहे कि निर्वाण का कोर्स खत्म, अब जाने वाला होगा वह… बेटे को बुलवा रही है. शायद अब प्रेक्षा मुझे अंतिम सत्य सुनाने के लिए बुला रही है. सही भी तो है, मेरी उम्र उस के लिए दोगुनी से भी ज्यादा है, जब उसे उस का पहला प्यार मिल ही गया है तो मैं इन के बीच क्या कर रहा हूं? कुछ सोचसमझ कर ही उस ने तसवीर भेजी होगी.
तय वक्त पर वे प्रांजल को ले कर प्रेक्षा के पास पहुंचे. इस मिलन में प्रद्युमन के दिलोदिमाग पर विरह का गीत छाया रहा. प्रेक्षा को देख वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे. सोचते तिरिया चरित्र बलिहारी. अंत में एक बार फिर से सब खत्म कर देगी.
प्रेक्षा ने कालेज और होस्टल से 3-4 दिन की छुट्टी ले ली थी. वे होटल में ठहरे थे. यह पहला दिन था. वह दोनों के साथ मौजमस्ती में मग्न रही. प्रद्युमन उस की खुशी में साथ था, लेकिन अपने दुख के साथ.
अंतत: रात को जब प्रांजल सो गया और अंधेरे की घनी सांसें दोनों को बाहुपाश में बांधने लगीं तब प्रद्युमन ने प्रेक्षा से धीरे से पूछा, ‘‘निर्वाण से नहीं मिलवाया तुम ने? वह यहीं पढ़ता रहा इतने दिन?’’
क्यों? उस से हमारा क्या काम? वह तो कोर्स खत्म कर के कब का जा चुका… उस की एक नहीं अब 2-2 गर्लफ्रैंड्स हैं और दोनों ही शादी की आस में बारीबारी से घूम रही हैं उस के इर्दगिर्द. कुछ लोग अपनी बुरी आदतों से ताउम्र बाज नहीं आते. मैं ने तो उसे यहां आते ही देख लिया था, लेकिन कभी उस से मुलाकात नहीं की. उस ने भी दूर ही रहना ठीक समझा… वह मेरी भूल थी. क्यों दोहराऊं भूल को बारबार? तब तुम से कहने का मुझ में साहस नहीं था और निर्वाण की ओर मुड़ गई थी… मुझे लगता था कि तुम से वैसा कुछ कहूंगी तो तुम खफा हो कर मुझे पढ़ाना छोड़ दोगे.’’
प्रद्युमन ने उसे अपनी ओर जोर से खींचते हुए पूछा, ‘‘क्या कुछ कहती, अब कह दो.’’
आंखें बंद हो गई थीं प्रेक्षा की. प्रद्युमन के कसे होंठों की गरमी उस की पलकों पर थी. वे आहिस्ताआहिस्ता प्रेम की गहराई को समझते रहे… उस के पार एक सपनों वाली झील में उन के विश्वास की नैया धीरेधीरे बहती रही. यकीनन.