नया खिलौना: श्रुति ने क्या किया था

आज श्रुति की खुशी का ठिकाना न था. स्कूल से आते समय उस लड़के ने मुसकरा कर उसे फ्लाइंग किस जो दी थी. 16 साल की श्रुति के दिल की धड़कनें बेकाबू हो उठी थीं. वह पल ठहर सा गया था. वैसे उस लड़के के साथ श्रुति की नजरें काफी दिनों पहले ही चार हो चुकी थीं. आतेजाते वह उसे निहारा करता. श्रुति को भी ऊंचे और मजबूत कदकाठी का करीब 18 साल का वह लड़का पहली नजर में भा गया था. लड़का श्रुति के घर से कुछ दूर मेन रोड पर बाइक सर्विसिंग सैंटर में काम करता था.

श्रुति की एक सहेली उस लड़के को जानती थी. उसी सहेली ने बताया था कि जतिन नाम का एक लड़का अपने घर का इकलौता बेटा है और 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद कुछ घरेलू परेशानियों के कारण काम करने लग गया है.

घर में सब के होने के बावजूद श्रुति बारबार बरामदे में आ कर खड़ी हो जाती ताकि उस लड़के को एक नजर फिर से देख सके. श्रुति के दिल की यह हालत करीब 2 महीने से थी पर  आज इस प्रेम की गाड़ी को रफ्तार मिली जब उस लड़के ने उस से साफ तौर पर अपनी चाहत जाहिर की.

अब श्रुति का ध्यान पढ़ाई में जरा सा भी नहीं लग रहा था. उस की नजरों के आगे बारबार वही चेहरा घूम जाता. हाथ में मोबाइल थामे वह लगातार यही सोच रही थी कि उस लड़के का मोबाइल नंबर कैसे हासिल करे.

बहन की उलझन भाई ने तुरंत भांप ली. श्रुति को भी तो कोई राजदार चाहिए ही था. उस ने अपने मन की हर बात खुद से 2 साल छोटे भाई गुड्डू से कह दी. भाई ने भी अपना फर्ज अच्छी तरह निभाते हुए झट श्रुति का फोन नंबर एक कागज पर लिखा और उस लड़के के पास पहुंच गया.

‘यह क्या है?’ उस के सवाल पूछने पर गुड्डू ने बड़ी तेजी से जवाब दिया, ‘खुद समझ जाओ.’

कागज थमा कर वह घर चला आया और श्रुति मोबाइल हाथ में ले कर बड़ी बेचैनी से कौल का इंतजार करने लगी. मोबाइल की घंटी बजते ही वह दौड़ कर छत पर चली जाती ताकि अकेले में उस से बातें कर सके. मगर नंबर दिए हुए 3 घंटे बीत गए, पर उस लड़के की कोई कौल नहीं आई.

उदास सी श्रुति छत पर टहलती रही. उस की निगाहें लगातार उस लड़के पर टिकी थीं जो अपने काम में मशगूल था. थक कर वह किचन में मम्मी का हाथ बंटाने लगी कि मोबाइल पर छोटी सी रिंग हुई. श्रुति फोन के पास तक पहुंचती तब तक मोबाइल खामोश हो चुका था. गुस्से में  वह फोन पटकने ही वाली थी कि फिर उसी नंबर से कौल आई. पक्का वही होगा, सोचती हुई वह कूदती हुई छत पर पहुंच गई. अपनी बढ़ी धड़कनों पर काबू करते हुए हौले से ‘हैलो’ कहा तो उधर से ‘आई लव यू’ सुन कर उस का चेहरा एकदम से खिल उठा.

‘‘मैं भी आप को बहुत पसंद करती हूं. मुझे आप की हाइट बहुत अच्छी लगती है,’’ श्रुति ने चहक कर कहा.

‘‘बस हाइट और कुछ नहीं,’’ कह कर जतिन हंसने लगा. श्रुति शरमा गई फिर तुनक कर बोली, ‘‘फोन करने में इतनी देर क्यों लगाई?’’

‘‘अच्छा, इतना इंतजार था मेरी कौल का?’’ वह भी मजे ले कर बातें करने लगा.

श्रुति और जतिन देर तक बातें करते रहे. रात में श्रुति ने फिर से उसे कौल लगा दी. अब तो यह रोज की कहानी हो गई. श्रुति जब तक दिन में 10 बार उस से बातें नहीं कर लेती, उस का दिल नहीं भरता. एग्जाम आने वाले थे पर श्रुति का ध्यान पढ़ाई में कहां लग रहा था. वह तो खयालों की दुनिया में उड़ रही थी.

अकसर वह जतिन से मिलने जाती. जतिन श्रुति को चौकलेट्स और शृंगार का सामान ला कर देता तो वह फूली नहीं समाती. उस से बातें करते समय वह सबकुछ भूल जाती. ठीक उसी प्रकार जैसे बचपन में अपने खिलौने से खेलते हुए दुनिया भूल जाती थी.

उस लड़के का प्यार एक तरह से श्रुति के लिए खिलौने जैसा लुभावना था जिसे वह दुनिया से छिपा कर रखना चाहती थी. उसे डर था कि कहीं किसी को पता लग गया तो वह प्यार उस से छीन लिया जाएगा. पापा से वह खासतौर पर डरती थी. पापा ने एक बार गुस्से में उस का सब से पहला खिलौना तोड़ दिया था. तब से वह उन से खौफजदा रहने लगी थी. अपनी जिंदगी में जतिन की मौजूदगी की भनक तक नहीं लगने देना चाहती थी.

और फिर वही हुआ जिस का डर था. उस का 9वीं कक्षा का फाइनल रिजल्ट अच्छा नहीं आया. पापा ने रिजल्ट देखा तो बौखला गए. चिल्ला कर बोले, ‘‘बंद करो इस की पढ़ाईलिखाई. बहुत पढ़ लिया इस ने. अब शादी कर देंगे.’’

श्रुति सहम गई. कहीं यह खिलौना भी पापा छीन न लें. यह सोच कर रोने लगी. अब वह 10वीं कक्षा में आ गई थी. फाइनल एग्जाम में किसी भी तरह उसे अच्छे नंबर लाने थे. वह मन लगा कर पढ़ने लगी ताकि एग्जाम तक उस की परफौर्मैंस सुधर जाए. इधर जतिन भी दूसरी जौब करने लगा था. अब वह श्रुति को हर समय नजर नहीं आ सकता था. वह कभीकभार ही मिलने आ पाता. श्रुति भी उस से कम से कम बातें करती. एग्जाम में वह अच्छे नंबर ले कर पास हो गई. समय धीरेधीरे बीतता गया और अब श्रुति उस लड़के से बातचीत भी बंद कर चुकी थी. देखतेदेखते वह 12वीं की भी परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर गई. अच्छे अंकों से पास करने से उसे अच्छे कालेज में दाखिला भी मिल गया.

कालेज के पहले दिन वह बहुत अच्छे से तैयार हुई. कुछ दिनों पहले ही बालों में रिबौंडिंग भी करा चुकी थी. जींस और टीशर्ट के साथ डैनिम की जैकेट और खुले बालों में काफी स्मार्ट लग रही थी. उस ने खुद को मिरर में निहारा और इतराती हुई सहेली के साथ निकल पड़ी.

कालेज गेट के पास अचानक वह सामने से आते एक लड़के से टकरा गई. सौरी कहते हुए उस लड़के ने श्रुति के हाथ से गिरा हैंडबैग उसे थमाया और एकटक उसे निहारने लगा. श्रुति का दिल तेजी से धड़कने लगा. बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाला वह लड़का श्रुति को पहली नजर में भा गया था. वह दूर तक पलटपलट कर उस लड़के को देखती रही.

कालेज में पूरे दिन श्रुति की नजरें उसी लड़के को ढूंढ़ती रहीं. लंच में वह कैंटीन में दिखा तो श्रुति मुसकरा उठी. वह लड़का भी हैलो कहता हुआ उस के पास आ गया. दोनों ने देर तक बातें कीं और एकदूसरे का फोन नंबर भी ले लिया. घर जा कर भी उन के बीच बातें होती रहीं. कालेज के पहले दिन हुई दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई.

श्रुति के पास जब से आकाश नाम का यह नया खिलौना आया वह पुराना खिलौना यानी जतिन को भूल गई. अब कभी जतिन उसे फोन कर बात करने की कोशिश भी करता तो वह उसे इग्नोर कर देती, क्योंकि वह अपना सारा समय अब अपने बिलकुल नए और आकर्षक खिलौने यानी आकाश के साथ जो बिताना चाहती थी.

इतिहास चक्र- भाग 3: सूरजा ने कैसे की सहेली की मदद

कमल के चेहरे पर कालिमा सी उतर आई थी, ‘‘चांदनी चलो, अब कल खेलना.’

‘‘चांदनी, कल पर भरोसा कायर करते हैं,’’ अब की बार सूरजा बोली, ‘‘अभी भी वक्त है, तुम चाहो तो हारी हुई बाजी जीत सकती हो, एक ही दांव में सबकुछ तुम्हारा हो सकता है.’’

‘‘मगर अब दांव लगाने को मेरे पास है ही क्या दीदी,’’ चांदनी के होंठों पर फीकी मुसकान उभर आई.

‘‘चांदनी… अभी भी तुम्हारे पास एक ऐसी चीज है जिस का औरों के लिए चाहे कोई मूल्य न हो मगर मेरे लिए उस की काफी कीमत है. बोलो, लगाओगी दांव.’’

‘‘मगर मैं समझी नहीं दीदी… वह चीज…’’

‘‘उस चीज का नाम है कमल,’’ सूरजा की मुसकराती नजरें कमल पर टिक गईं.

‘‘सूरजा,’’ कमल चीख कर खड़ा हो गया.

‘‘बोलो, लगाओगी एक दांव, एक तरफ कमल होगा दूसरी तरफ ये हजारों रुपएगहने, यहां तक कि बाहर खड़ी मेरी कार भी… मैं सबकुछ दांव पर लगा दूंगी, बोलो है मंजूर.’’

‘‘सूरजा इस से पहले कि मेरी सहनशक्ति जवाब दे दे अपनी बकवास बंद कर लो,’’ कमल चीखा.

‘‘मैं आप से बात नहीं कर रही मिस्टर कमल, एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को खेलने के लिए उकसा रहा है और यह कोई जुर्म नहीं. जवाब दो चांदनी.’’

‘‘चांदनी, चलो यहां से,’’ कमल ने चांदनी का हाथ पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश की.

‘‘सोच लो चांदनी, मैं अपनी एक फैक्ट्री भी तुम्हारे लिए दांव पर लगा रही हूं, यदि तुम जीत गई तो रानी बन जाओगी और यदि हार भी गई तो तुम्हारे दुखदर्द का प्रणेता तुम्हारे काले अंधेरे का सूरज तुम से दूर हो जाएगा.’’

‘‘चांदनी, इस की बकवास पर मत ध्यान दो. यह बहुत गंदी जगह है, चलो यहां से,’’ कमल ने हाथ पकड़ लिया था.

चांदनी ने हाथ खींचा और एक पल को उस ने कमल को भरपूर नजरों से देखा और फिर बोल पड़ी, ‘‘ठीक है दीदी, मुझे आप का दांव मंजूर है… दीदी, मैं अपने दांव पर अपने पति, अपने सुहाग अपने कमल को लगा रही हूं,’’ चांदनी का स्वर बर्फ कीमानिंद और सर्द हो गया.

‘चांदनी,’’ कमल चीख पड़ा, ‘‘तुम पागल हो गई हो… तुम… तुम मुझे दांव पर… अपने पति… अपने सुहाग को दांव पर लगाओगी.’’

‘‘जुए का जनून सोचनेसमझने की शक्ति छीन लेता है कमल, मुझे एक दांव खेलना ही है. हो सकता है मैं दांव जीत जाऊं. जुए के तराजू में रिश्तेनाते नहीं देखे जाते कमल, जीत और हार देखी जाती है.’’

‘‘चांदनी,’’ कमल विस्फारित नेत्रों से चांदनी को देखता चला गया, उस की आंखों में खून उतर आया था, ‘‘तुम भूल गई कि मैं सूरजा से नफरत करता हूं. तुम से वह मुझे छीनना चाहती है. अरी पगली, तू अपने सुहाग को इस डायन को सौंपना चाहती है. सोच चांदनी, क्या अपने पति को उस के हाथ सौंपना चाहती है.’’

‘‘यह तो सिर्फ एक गेम है कमल, जुआरी कभी अपनी हार के बारे में सोचता ही नहीं.’’

‘‘और अगर तुम दांव हार गई तो,’’ कमल का चेहरा स्याह हो गया.

‘‘चाल चलने से पहले जुआरी सिर्फ जीतने के लिए सोचता है कमल… और यह भी तो सोचो एक तरफ तुम हो और दूसरी तरफ अथाह संपत्ति है, सोचो, अगर हम जीत गए तो तुम्हें कमाने के बारे में सोचना ही नहीं पड़ेगा. हम दोनों ऐश करेंगे, इसलिए मैं यह गेम जरूर खेलूंगी.’’

‘‘चांदनी, उफ, तुम इतनी खुदगर्ज हो गई, तुम्हें अपना पति, अपना सुहाग भी नजर नहीं आ रहा है,’’ कमल का स्वर भर्रा उठा था, ‘‘जुए के दांव को जीतने के लिए अपने पति को दांव पर लगा रही हो.’’

‘‘तो क्या हुआ कमल, अगर एक पति अपनी पत्नी को दांव पर लगा सकता है तो एक पत्नी को यह हक क्यों नहीं है और यह भी तो सोचो कमल, जीवन हम दोनों का है, मेरी जीत भी तो तुम्हारी ही होगी न.’’

‘‘और यदि हार गई तो?’’ कमल बोला.

‘‘अरे, नहीं प्राणनाथ, मैं तो यह सोच भी नहीं सकती.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो चांदनी, तुम इतना गिर सकती हो ऐसा मैं ने सोचा भी नहीं था. मैं तुम से अथाह प्यार करता था, लेकिन आज तो मैं तुम से सिर्फ घृणा ही कर सकता हूं. एक सुहागन के नाम पर तुम कलंक हो. तुम सिर्फ दौलत की चाह में अपने पिता को दांव पर लगा रही हो. इतिहास तुम जैसी सुहागनों को कभी माफ नहीं करेगा और कोई भी पतिव्रता तुम जैसों से घृणा करेगी. तू एक बदनुमा धब्बा है चांदनी,’’ कमल का हृदय घृणा से भर उठा था और आंखों में खून उतर आया था मगर आंसू भी गिर रहे थे.

‘‘इतिहास…’’ अचानक चांदनी की आवाज तेज हो गई, ‘‘हुंह, किस इतिहास की बात कर रहे हो कमल, उस इतिहास के बारे में सोचो, जब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने राज्य को पाने के लिए द्रोपदी को दांव पर लगा दिया था. तुम किस इतिहास चक्र की बात कर रहे हो कमल, इतिहास अतीत का आईना होता है और वक्त उसी को वर्तमान में बदल देता है. याद है जबजब तुम जुए में फड़ पर बैठ जाते थे और मैं तुम्हारे पैरों में गिरती थी. तुम अपने परिवार, अपने बच्चों के भविष्य के बारे में भूल जाते थे. आज तुम्हें वर्तमान दिख रहा है.

‘‘कमल, जिस इतिहास की तुम गवाही दे रहे हो क्या उस में वर्तमान और भविष्य के अंधेरे नहीं देख पा रहे हो, हमारी औलाद क्या जुए के फड़ पर बैठ कर भविष्य के उजाले बिखेरगी. तुम्हारी जुआरी प्रवृत्ति क्या बच्चों की उंगली पकड़ कर काली रोशनी में बिखर नहीं जाएगी.’’

कमल का सिर झुक गया था.

‘‘इतिहास चक्र के आईने में कभी तुम ने भविष्य की तसवीर देखी है, बोलो, जवाब दो,’’ चांदनी फूटफूट कर रो पड़ी थी.

कमल का सिर झुकता चला गया था, ‘‘हां चांदनी, आज अपनी गलती को मैं महसूस कर रहा हूं. तुम ने इतिहास चक्र के हर पन्ने को वर्तमान में बदल दिया. यह एक उदाहरण बन जाएगा. शायद सारे पतियों के लिए तुम ठीक कह रही हो. चांदनी, मैं जुए के दांव के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर रहा हूं. तुम ठीक कह रही हो चांदनी.’’

‘‘कमल,’’ अभी तक चुप बैठी सूरजा उठ कर कमल के पास आ बैठी थी, ‘‘आज जो आप ने महसूस किया है यही चांदनी की जीत है. लोग अपने परिवार का भविष्य जुए के दांवों पर लगा देते हैं. चांदनी भी फूटफूट कर रोती रहती थी मगर कभी भीआप को अपना दुख नहीं बता पाई. अपने दुख को सिर्फ मुझ से बांटती थी. जरा ध्यान से देखिए क्या एक पत्नी अपने पति के गलत कृत्यों का विरोध नहीं कर सकती है.’’

‘‘नहीं सूरजा, मैं तुम से भी क्षमा चाहती हूं. चलो, जुए की चाल को आगे बढ़ाओ, मैं इस इतिहास चक्र का एक अंग बनना चाहता हूं.’’

‘‘बस, यह इतिहास चक्र ही तो जीत है कमल, तुम्हारा सारा सामान तुम्हारी चांदनी सबकुछ तुम्हारे पास है. चलो, चांदनी का हाथ पकड़ो और सभी मिल कर दीवाली की मिठाइयां खाएं, क्यों चांदनी.’’

तभी अपनेआप को समेटे चांदनी फूटफूट कर रो पड़ी और कमल ने उसे अपने सीने में समेट लिया.

‘‘चांदनी, आज तुम ने सिर्फ मेरे ही नहीं बहुत से अंधेरे में डूबे हुए घरों में उजाला फैला दिया है. मैं विश्वास दिलाता हूं चांदनी, हम दोनों मिल कर जुए के खिलाफ एक जंग लड़ेंगे और इतिहास चक्र एक नई कहानी लिख देगा, आओ, घर चलते हैं और मिल कर दीवाली की रोशनी हर जगह बिखेर देंगे.’’

‘‘और सूरजा दीदी वह भी आ सकती हैं,’’ चांदनी ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हां पगली, मैं भी उस का एक अच्छा दोस्त बन कर दिखा दूंगा,’’ कमल ने कहा.-

इतिहास चक्र- भाग 2: सूरजा ने कैसे की सहेली की मदद

‘‘जिंदगी इतनी कमजोर नहीं कमल, और दीवाली के दिन की खुशी जुआ ही नहीं है. सोचो कमल, साल में एक बार आने वाला यह त्योहार सब के लिए खुशियों के दीप जलाता है और तुम्हारी चांदनी दुख के गहरे काले अंधेरे में पड़ी सिसकती रहती है. तुम्हें उस पर जरा भी दया नहीं आती. बोलो, क्या अपनी चांदनी के लिए भी तुम यह जुएबाजी बंद नहीं कर सकते?’’

‘‘उफ, चांदनी. तुम समझती क्यों नहीं, मैं हमेशा तो खेलता नहीं हूं, साल में अगर एक दिन मनोरंजन कर भी लिया तो कौन सी आफत आ गई. मेरे औफिस के सारे दोस्त खेलते हैं, उन की बीवियां खेलती हैं. तुम्हें तो यह पसंद नहीं और यदि मैं पीछे

हट जाऊं तो अपने दोस्तों की नजरों में गिर जाऊंगा. नहीं चांदनी, मैं ऐसा नहीं कर सकता.’’

चांदनी कुछ जवाब न दे सकी. कुछ पल की चुप्पी के बाद उस ने कहा, ‘‘कमल, पतिपत्नी का रिश्ता न केवल तन को एक डोर से बांधने वाला होता है बल्कि इस में मन भी बंध जाता है. हम दोनों एकदूसरे के पूरक हैं… हैं न.’’

कमल कुछ पल उस का चेहरा देखता रहा, ‘‘यह भी कोई कहने वाली बात है.’’

चांदनी कुछ पल शून्य में घूरती रही, ‘‘सोचती हूं कमल, पतिपत्नी को एकदूसरे के सुखदुख का हिस्सेदार ही नहीं बल्कि एकदूसरे की आदत, बुराइयों और शौक का भी हिस्सेदार होना चाहिए. जिंदगी की गाड़ी लगातार चलती रहे, यह जरूरी है न.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो चांदनी?’’ कमल उस के चेहरे को ध्यान से पढ़ रहा था.

‘‘कमल, जुए से मुझे सख्त नफरत है, यह भी सच है कमल कि अच्छेखासे घरपरिवार जुए से बरबाद हो जाते हैं. फिर भी मैं तुम्हारी खुशी के लिए सबकुछ करूंगी. कमल मैं जुआ नहीं खेलती, इस के लिए तुम्हें दोस्तों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है लेकिन आइंदा यह नहीं होगा. मुझ से वादा करो कमल, आज से तुम अकेले कहीं नहीं जाओगे. अगर डूबना है तो दोनों साथ डूबेंगे.’’

‘‘सच चांदनी,’’ कमल ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘ओह चांदनी, तुम नहीं जानतीं तुम ने मुझे क्या दे दिया है. तुम तो मेरी पार्टनर हो, तुम्हारे साथ रह कर तो हर बाजी की जीत पर सिर्फ मेरा नाम लिखा होगा. पक्का वादा है न,’’ कमल ने हाथ फैला दिए थे.

चांदनी ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था, ‘‘तुम नहीं जानते कमल, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, तुम्हारी खुशी पाने के लिए यही सही.’’

‘‘सिर्फ इतना ही नहीं चांदनी सबकुछ ठीक रहा तो एक दिन हम दोनों करोड़पति होंगे. इतिहास गवाह है कि इसी जुए ने जाने कितनों को मालामाल कर दिया और अब हमारी बारी है,’’ कमल खुश होते हुए बोला.

‘‘एक बात कहूं कमल, मानोगे,’’ चांदनी ने प्यार से पूछा.

‘‘बोलो मेरे प्यार, एक नहीं सैकड़ों बातें मानूंगा, कह कर तो देखो, जान हाजिर है.’’

‘‘जानते हो, वह जो कुसुम है न… वही मिसेज रमन… मेरी सहेली, आज उन के घर दीवाली की पूर्व संध्या पर पार्टी है. कुसुम ने कई बार बुलाया लेकिन हम उन के घर कभी नहीं गए, उन के यहां गेम भी बड़े पैमाने पर होता है. मेरे साथ चलोगे वहां.’’

‘‘लेकिन… मेरे… दोस्त,’’ कमल बोला.

‘‘लेकिन नहीं कमल, क्या मेरी इतनी सी बात नहीं मानोगे. चलो न प्लीज,’’ चांदनी ने प्यार से उस का हाथ थाम कर कहा.

‘‘अच्छा, चलो आज दोस्तों की दावत कैंसिल. आज तो हम अपनी चांदनी की जीत की चांदनी में नहाएंगे. अच्छा तो फटाफट खाना बना लो ताकि चल सकें.’’

‘‘ओके…’’ चांदनी ने कहा और कमल के गाल पर एक प्यार भरा चुंबन जड़ते हुए किचन की तरफ बढ़ गई. कानों में तब भी कमल के शब्द गूंज रहे थे… इतिहास गवाह है… इतिहास गवाह है.

दोनों खाना खा कर कुसुम के घर पहुंचे.

‘‘अरे, चांदनी और कमल बाबू, कल दीवाली है यह तो मालूम है न. आइए, स्वागत है ईद के चांद का,’’ कुसुम ने चांदनी को सीने से लगा लिया, ‘‘आप तो यहां का रास्ता ही भूल गए कमल बाबू.’’

‘‘नहीं भाभी, काम में कुछ ऐसा व्यस्त रहा कि चाह कर भी वक्त नहीं निकाल पाया,’’ कमल बोला.

तभी मिस्टर रमन आ गए. वे वित्त मंत्रालय में जौइंट सैके्रटरी के पद पर कार्यरत थे. इन के काफी अच्छे ठाटबाट थे. औपचारिकता और बातचीत में काफी समय निकल गया. धीरेधीरे लोग आते जा रहे थे. करीब 11 बजे असली पार्टी शुरू हुई. बड़े हौल में 5 मेज लग गई थीं. लोग अपनेअपने ग्रुप में बैठ गए.

‘‘आइए कमल साहब, एक बाजी हो जाए,’’ कुसुम ने कहा, ‘‘चांदनी तो खेलेगी नहीं.’’

‘‘नहीं, आज मैं नहीं चांदनी ही खेलेगी, क्यों पार्टनर,’’ कमल ने उस की तरफ देखा.

‘‘अरे वाह, फिर तो मजा ही आ जाएगा. आओ चांदनी.’’

‘‘जाओ चांदनी, आज की रात मेरी चांदनी के जीतने की रात है.’’

चांदनी एकटक कमल को देखती रह गई, ‘‘सच कहते हो कमल, आज की रात पर ही चांदनी की जीत और हार का फैसला टिका है. चलो कमल, तुम भी वहीं बैठो, तुम्हारे बिना मैं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘पगली, मैं तो हर पग पर तेरे साथ हूं, अच्छा चलो,’’ कमल भी आगे बढ़ गया.

गेम शुरू हो गया. इस मेज पर पांचों महिलाएं थीं. मिस्टर रमन ने कमल से भी खेलने का अनुरोध किया, मगर कमल हंस कर टाल गया. शुरू की कुछ बाजियां कुसुम ने जीतीं, फिर चांदनी जीतती चली गई.

कमल के होंठों पर विजयी मुसकान थिरक रही थी. तभी हाल में सूरजा ने प्रवेश किया और वह सीधी उसी मेज पर आई जहां चांदनी बैठी थी.

‘‘अरे सूरजा, आ यार… आतेआते बहुत देर कर दी,’’ कुसुम ने शायराना अंदाज में कहा, मगर कमल के होंठ घृणा से सिकुड़ गए.

‘‘आ बैठ, एकाध बाजी तो खेलेगी न,’’ मिसेज सिंह बोलीं.

‘‘क्यों नहीं, अगर चांदनी को एतराज न हो तो.’’

‘‘मुझे क्यों एतराज होगा दीदी, आइए आप के साथ खेल कर मुझे खुशी होगी.’’

‘‘चांदनी चलो, रात बहुत हो गई है,’’ कमल उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘कमल, प्लीज,’’ चांदनी ने उस का हाथ पकड़ कर दबा दिया, उस की आंखों में याचना थी मानो कह रही हो मेरा अपमान न करो.

‘‘बैठिए न कमल बाबू, आज आप का इम्तिहान है. इम्तिहान अधूरा रह गया तो फैसला कैसे होगा?’’ कुसुम बोली.

‘‘बैठो न कमल, प्लीज, मेरे लिए न सही चांदनी के लिए तो बैठ जाओ,’’ सूरजा ने ऐसी मुसकान फेंकी कि कमल का दिल जलभुन गया.

एक बार फिर गेम शुरू हो गया. अब की बार बाजी पलट गई, एकाध गेम तो चांदनी जीती थी मगर फिर लगातार हारती चली गई.

‘‘बस भई,’’ चांदनी ने पत्ते फेंकते हुए कहा, ‘‘हम तो हार गए सूरजा दीदी, आप को जीत मुबारक हो. चलो, कमल चलें.’’

‘‘अरे वाह, अभी तो कमल बाबू का पर्स बाकी है. कमल बाबू निकालिए न पर्स,’’ कुसुम चहकते हुए बोली.

कमल की जुआरी प्रवृत्ति जाग उठी थी, फिर वह दांव पर दांव लगाता गया. यहां तक कि कमल का भी पर्स खाली हो गया.

‘‘छोड़ो कुसुम, अब जाने भी दो. बहुत हो चुका,’’ चांदनी फिर से उठने लगी.

‘‘अरे वाह, अभी तो बहुत कुछ बाकी है,’’ मिसेज सिंह बोलीं, ‘‘कमल बाबू की घड़ी, अंगूठी, तेरा टौप्स भई चांदनी क्या पता सब वापस आ जाए, बैठ न.’’

‘‘नहींनहीं, अब रात भी बहुत हो गई है. चलो कमल.’’

‘‘बैठो चांदनी, मिसेज सिंह ठीक कहती हैं क्या पता बाजी पलट जाए,’’ कमल ने उसे बैठा दिया.

‘‘नहीं कमल, पागल न बनो, आओ चलें, जुए की आग में सबकुछ जल जाता है, चलो चलें.’’‘‘नहीं चांदनी यों बाजी अधूरी छोड़ कर उठना गलत है, बैठ जाओ,’’ कमल ने उसे मानो आदेश दिया था. उस के जेहन में फिर जुआरियों की मानसिकता का काला परदा खिंच गया, जिस पर 3 शब्द खिले रहते हैं शायद… इस बार… और इस बारके चक्कर में एकएक कर सारी चीजें यहां तक कि बाहर खड़ी स्कूटी भी सूरजा के कब्जे में चली गई.

क्लब क्रोलिंग: कौनसे सरप्राइज से चौंक गई ऐमली

शुक्रवार की शाम थी. बर्मिंघम के अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समारोह के खत्म होने में 10 मिनट बाकी थे. लेकिन ऐश चिंतित था. वह समय पर सिंफनी हाल के बीयर बार में पहुंच भी पाएगा या नहीं, जहां उस के मित्र उस का इंतजार कर रहे होंगे. नृत्य शो के बाद उसे कम से कम 15 मिनट तो चाहिए ही, कपड़े बदलने तथा मेकअप साफ करने के लिए. उस ने सोच लिया था कितनी भी देर क्यों न लगे, इस बार तो वह मेकअप अच्छी तरह साफ कर के ही जाएगा. पिछली बार की तरह नहीं. यह सोच वह खुद ही मुसकरा उठा.

ऐश एक सरल, सुशील और मेहनती नौजवान है. उस के मातापिता का दिया नाम तो आशीष है किंतु अंगरेजों की सहूलियत के लिए उस ने अपना नाम ऐश रख लिया है. वह एक सफल नृत्यकार है. सदा ही अपने अच्छे व्यवहार से सभी को प्रभावित कर लेता है. उस की उम्र 26-27 वर्ष के करीब होगी. उस के चेहरे का भोलापन साफ झलकता है. अकसर सुना है कि कलाकार भावुक तथा संवेदनशील होते हैं. वह भी कुछ ऐसा ही है. तभी तो उस ने प्रेमबद्ध हो कर एक मुसलिम लड़की से विवाह कर लिया.

कपड़े बदल कर ऐश ड्रैसिंगरूम से बाहर निकलने ही वाला था कि उस के मोबाइल की घंटी बजी. ‘‘हाय ऐश, भूलना मत. ठीक 10 बजे बीयर बार में पहुंच जाना. तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है.’’

‘‘सरप्राइज, कैसा सरप्राइज, कर्ण?’’

‘‘बता दिया तो सरप्राइज थोड़े ही रहेगा. वहीं मिलते हैं,’’ इतना कह कर उस ने फोन बंद कर दिया.

सरप्राइज का नाम सुन कर ऐश की टांगें कांपने लगीं. मन ही मन सोचने लगा, इस बार पिछले 6 महीने जैसा सरप्राइज न हो. उस की आंखों के सामने वही पुराना दृश्य घूमने लगा. जब इन्हीं तीनों दोस्तों कर्ण, थौमस और जस्सी ने उसे क्लबिंग के चक्कर में अविस्मरणीय अचंभे में डाल दिया था. अभी तक भूल नहीं पाया. बीता वक्त चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूम गया…

उस दिन हम पब में ही खाना खाने वाले थे. कर्ण ने प्रस्ताव रखा, ‘चलो आज क्लबिंग करते हैं.’ (क्लबिंग का मतलब यूके में जवान लड़केलड़कियां एक क्लब में 1 घंटा बिता कर फिर दूसरे क्लब में जाते हैं, फिर तीसरे में. रात के 3-4 बजे तक यही सिलसिला चलता रहता है. इसे क्लब क्रोलिंग भी कहते हैं.)

‘क्लबिंग? यार फिर तो बहुत देर हो जाएगी?’ ऐश ने चिंतित स्वर से कहा.

‘भूल गया क्या? आज हमारी पत्नियों की भी गर्ल्ज नाइटआउट का दिन है. वे चारों खाने के बाद थिएटर में ‘फैंटम औफ द औपेरा’ शो देखने जा रही हैं,’ थौमस ने बताया.

‘क्यों न हमें भी कभी पब, क्लब की जगह थिएटर, सिनेमा या प्ले के शो देखने जाना चाहिए,’ ऐश ने सुझाव देते हुए कहा.

‘तू भी न सिस्सी (लड़कियों) सी बातें करता है,’ जस्सी ने ऐश को छेड़ा. कर्ण उन्हें क्लब फौग में ले गया. फौग एक अपमार्केट क्लब है. तीनों जानते थे, जब कर्ण साथ है तो चिंता की कोई बात नहीं. कर्ण अमीर मातापिता का बिगड़ा नवाब है. 6 फुट का लंबा हट्टाकट्टा नौजवान, उस के शरीर पर कायदे से पहनी वेशभूषा, उस पर डिजाइनर अरमानी की जैकेट, दर्पण जैसे चमकते जूते, टौप मौडल की बीएमडब्लू, उस के रंगढंग, बोलचाल से उस के मातापिता की अमीरी की झलक साफ दिखाई देती है. यों कहिए, कर्ण पूर्वपश्चिम सभ्यता का इन्फ्यूजन है. ऐश एक परंपरावादी हिंदू गुजराती परिवार से है. कई वर्ष पहले उस के मातापिता अफ्रीका से आ कर यूके में बस गए हैं. वह लड़कियों जैसा नाजुक और शांत स्वभाव का है. कथक नृत्यकार होने के साथसाथ वह पिता के कारोबार में हाथ भी बंटाता है.

जसविंदर…अंगरेजों की सहूलियत के लिए उसे जस्सी नाम से पुकारा जाता है. वह एक वर्किंग क्लास से है. उस के मातापिता पढ़ेलिखे तो नहीं हैं पर बहुत मेहनती हैं. थौमस एक मध्यवर्गीय रूढि़वादी अंगरेज परिवार से है. उसे अपनी संस्कृति और मान्यताओं पर गर्व है. पिता चर्च के मान्य हैं. उपरोक्त चारों की दोस्ती नर्सरी स्कूल से चली आ रही है. नौकरी के अतिरिक्त वे एकदूसरे के बिना कोई काम नहीं करते. उन का बस चलता तो वे शादी भी एक ही लड़की से करते. पब में थौमस, ऐश तथा जस्सी ने तो आधाआधा लिटर बीयर ली. कर्ण, जो स्वयं को सब से अलग समझता था, ने एक गिलास रैडवाइन ली. ऐश और कर्ण तो बैठ कर गपें मारते रहे. थौमस तथा जस्सी क्लब के धुएं के अंधेरे में डांस में लीन हो गए.

डांस करतेकरते जस्सी एक अफ्रीकन महिला के संग चुटकियां लेने लगा. वह आयु में जस्सी से करीब 20 साल बड़ी थी. वजन उस का 100 किलो से कम नहीं होगा. जस्सी को उस के साथ मसखरियां करते 1 घंटा हो गया. सब बोर होने लगे तो ऐश बोला, ‘चलो, अब कहीं और चलते हैं.’ जस्सी छैलछबीले बाबू ने सुनाअनसुना कर दिया. इतने में वह अफ्रीकन महिला जस्सी की कमर में हाथ डाले उसे बाहर ले गई. शायद कुछ कहने की कोशिश कर रही थी. डांस फ्लोर पर बहुत शोर हो रहा था. जैसे ही जस्सी उस महिला के संग बाहर निकला, महिला जस्सी के गले में बांहें डालते हुए बोली, ‘बैब, वुड यू लाइक टु कम माई प्लेस टुनाइट, लव.’

इतना सुनते ही जस्सी के होशोहवास गुम हो गए. वह हवा की गति से भागा. अंदर पहुंचते ही बोला, ‘चलो, जल्दी यहां से चलो.’

‘बात क्या है?’

‘नहीं, कुछ नहीं, बाहर चल कर बताता हूं. चलो प्लीज,’ जस्सी ने घबराते हुए कहा.

‘कहां चलना है?’ थौमस ने पूछा.

‘कहीं भी, यहां से निकलो.’

जस्सी एक लापरवाह सा हिप्पी टाइप का था. घिसीपिटी जींस, कानों में बालियां, नाक में नथनी, लंबेलंबे बाल, यह उस की पहचान थी. बिलकुल नारियल की भांति, बाहर से ब्राउन अंदर से सफेद. वह एक सफल चित्रकार होने के साथसाथ एक संगीतकार भी था किंतु था बिलकुल डरपोक कबूतर. सब हैरान थे, ऐसा क्या हो गया है? चारों दोस्त एक और पब की ओर चल पड़े ‘औल नाइट लौंग क्लब.’ वहां सब एकएक बीयर ले कर बैठ गए. थौमस और कर्ण डांस करने में लीन हो गए. जस्सी की अभी तक हवाइयां उड़ी थीं. थौमस मिस्टर कन्फ्यूज अपने में ही मस्त. सदा औरतों का अभिनय करकर सब को हंसाता रहता. शायद इसीलिए अपनी टोली में बहुत लोकप्रिय था.

डांस करतेकरते कर्ण थक चुका था, बोला, ‘यहां बहुत शोर है. चलो, कहीं और चलते हैं.’ इतने में थौमस, मिस्टर कन्फ्यूज बोले, ‘आज कुछ नई जगह आजमाते हैं.’

‘कौन सी ऐसी जगह है जो हम ने नहीं देखी,’ जस्सी ने पूछा?

‘गे क्लब.’

गे क्लब का नाम सुनते ही सब के कान खड़े हो गए.

‘तजरबे के लिए,’ थौमस ने सकपकाते हुए कहा.

‘तजरबा ही सही. देयर इज औलवेज अ फर्स्ट टाइम, हर्ज ही क्या है?’

इतना सुनते ही तीनों के हंसी के फौआरे छूट पड़े.

‘हंस क्यों रहे हो? मजाक नहीं कर रहा.’

थोड़ी हिचकिचाहट के बाद तीनों बड़ी उत्सुकता से गे क्लब की ओर चल पड़े. ऐश थका हुआ था क्योंकि अभीअभी वह नाट्य प्रदर्शन कर के आया था. गे क्लब पहुंचते ही वे हक्केबक्के रह गए. पुरुष महिलाओं के भेष में और महिलाएं पुरुषों के भेष में. पूरे मेकअप और विग के साथ, उन के हावभाव और व्यवहार से स्त्रीपुरुष के भेद का अनुमान लगाना कठिन था. अंगरेज, अफ्रीकन, चीनी, भारतीय सभी स्त्रीपुरुष गे थे. कर्ण, ऐश और जस्सी का यह पहला अनुभव था.

‘देख कर्ण, थौमस कैसे सब से घुलमिल कर बातें कर रहा है,’ ऐश ने कहा, ‘मुझे तो लगता है कि वह यहां पहले भी आ चुका है.’

‘ऐश, मेरा तो यहां दम घुट रहा है. लगता है हम किसी दूसरे लोक में आ पहुंचे हैं,’ कर्ण ने घबराते हुए कहा.

‘देखदेख कर्ण, वह लगातार मुझे निहार रही है. मुझे डर लग रहा है,’ ऐश ने घबरा कर कहा.

‘निहार रही नहीं, निहार रहा है. उस की दाढ़ी देख, उस के हाथ देखे हैं, एक थप्पड़ मारा तो मुंह दूसरी तरफ मुड़ जाएगा. उस की मोटीमोटी टांगें देख, जिस ने गुलाबी टाइट्स डाली हैं. वह देख, नीली स्कर्ट वाली. पिछले आधे घंटे से उस की नजरें तुझ पर टिकी हैं. देखदेख, कितने प्यार से तुझ पर फ्लाइंग किसेज फेंक रही है,’ जस्सी ने मुलायम सी मुसकान फेंकते हुए कहा.

‘यार, कहां फंसा दिया थौमस ने. कोई आदमी आंख मारता है, कोई चुंबन फेंकता है, कोई इशारों से बुलाता है. सभी की नजरें हम पर टिकी हैं. जैसे हम अजायबघर से भाग कर आए हों. ऐश, तैयार हो जा, वह तेरी तरफ आ रहा है. लगता है तुझ

पर उस का दिल…’

‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया?’

‘यह तेरे मेकअप का कमाल है,’ जस्सी ने कहा.

‘हाय, आय एम रौबर्ट,’ उस ने मटकतेमटकते हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘वुड यू लाइक अ डिं्रक?’ उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही रौबर्ट दोस्तों के लिए बीयर ले आया. 1 नहीं, 2 नहीं, 3 बार. हर बार वह ऐश के करीब आने की कोशिश करता रहा. आखिर में उस ने ऐश की ओर अपना हाथ डांस के लिए बढ़ा ही दिया. ऐश कांप रहा था. रौबर्ट उन पर पैसा लुटाए जा रहा था. यहां तक कि उस ने बीयर बार के काउंटर पर कह दिया था कि इन्हें जो भी चाहिए, दे देना. पैसे मेरे खाते में डाल देना. रात का 1 बज चुका था.

‘मेरा दम घुट रहा है, चलो घर चलते हैं,’ ऐश ने कहा.

‘नाइट इज स्टिल यंग, वाय डोंट यू कम टू माई प्लेस, फौर ए डिं्रक,’ रौबर्ट ने खुशी से उन्हें आमंत्रित करते हुए कहा.

अब तक वे चारों रौबर्ट की इतनी शराब पी चुके थे कि मना करने की गुंजाइश ही नहीं रही. ऐश मन ही मन दुखी हो रहा था. थौमस ने किसी से बिना पूछे ही हां कर दी. क्लब से निकलतेनिकलते उन्हें करीब 2 बज गए. जैसे ही ‘गे क्लब’ से बाहर निकले तो रौबर्ट की काले रंग की लेटेस्ट रजिस्ट्रेशन की लिमोजीन शोफर के साथ खड़ी थी. यह देख कर चारों के मुंह खुले के खुले रह गए.

जस्सी के मुंह से निकला, ‘वाओ.’

चारों चुपचाप गाड़ी में बैठ गए. लिमोजीन हवा में ऐसे भाग रही थी मानो सारथी रथ को खींचे ले जा रहा हो. जैसे ही लिमोजीन रौबर्ट के पेंटहाउस के सामने रुकी, सब की आंखें चौंधिया गईं. रौबर्ट ने पेंटहाउस बड़े सलीके और शौक से सजाया था. एकएक कमरा अपनी सजावट की व्याख्या कर रहा था. छत पर हराभरा बगीचा, तारों की छांव में हलकेहलके रंगबिरंगे फूलों की महक वातावरण को महका रही थी. धीमीधीमी चांदनी पत्तों की ओट से झांक रही थी. सबकुछ होते हुए भी एक अजीब सी शून्यता थी वहां. एक खोखलापन, खालीपन. उन्होंने इतना भव्य पेंटहाउस जीवन में पहली बार देखा था. रौबर्ट की नजरें निरंतर ऐश पर टिकी हुई थीं. वह बारबार किसी न किसी बहाने ऐश के निकट आ ही जाता, अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने की ताक में. ऐश की स्थिति एक हवाई जहाज में बैठे यात्री की तरह थी, जिस के हवाई जहाज में कोई तकनीकी खराबी हो गई हो. उस की सांस अंदर की अंदर, बाहर की बाहर. रौबर्ट विनतीपूर्वक बोला, ‘ऐश, क्यों न हम दोनों यहां मिल कर रहें. मैं तुम्हें बहुत खुश रखूंगा.

ऐश कभी कोई बहाना बना कर बाथरूम में जाता, कभी कर्ण और कभी जस्सी से बातें करने लगता. ऐश पिंजरे में बंद पंछी की भांति वहां से उड़ जाना चाहता था. रौबर्ट गिड़गिड़ाए जा रहा था. ‘प्लीज ऐश, केवल एक रात.’

ऐश पर उस की याचना का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. ऐश को रौबर्ट का प्रस्ताव बड़ा अटपटा सा लगा. कर्ण तथा जस्सी ने रौबर्ट को समझाने का बहुत प्रयत्न किया. थौमस ने भी ऐश को समझाया, ‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा.’

‘क्या खाक ठीक हो जाएगा?’

‘रौबर्ट अच्छा आदमी है. आज थोड़ी ज्यादा पी ली है,’ थौमस ने रौबर्ट की पैरवी करते हुए कहा.

‘तुझे हमदर्दी है तो बिता ले रात इस नामर्द के साथ,’ कर्ण क्रोध में बोला.

‘लेकिन उसे तो ऐश चाहिए,’ थौमस ने कहा.

‘सब तेरा ही कुसूर है, तू ने ही डाला है इस मुसीबत में. अब तू ही निकाल इस का हल. बाय द वे, तू क्यों नहीं सो जाता?’

‘ठीक है, तुम कहते हो तो मैं ही…नो प्रौब्लम.’

इतना सुनते ही तीनों के होश उड़ गए. उन्हें यकीन ही नहीं हुआ. तीनों सोच में थे कि क्या वे सचमुच थौमस को जानते हैं?

‘मान गए थौमस, बड़ी चतुराई से छिपाया है यह राज तुम ने,’ कर्ण ने कहा.

‘तुम ने क्या सोचा था अगर बता देते तो क्या हम तुम्हारे दोस्त न रहते? यार, हम लोगों ने स्कूल से अब तक का सारा सफर साथसाथ तय किया है. अब यह लुकाछिपी शोभा नहीं देती. मेरे दोस्त, मेरा दिल तेरे लिए रोता है. मैं तो नृत्य के शो में कुछ घंटों में मुखौटा चढ़ा कर दुखी हो जाता हूं और तू इतने वर्षों से… कब तक जिएगा दोहरा जीवन? उगल डाल जो मन में है,’ ऐश ने उसे समझाते हुए कहा.सब की आंखें भर आईं.

हमदर्दी के दो बोल सुनते ही थौमस रोतेरोते कपड़े की तह की भांति खुलता गया, बोला, ‘बचपन से ही अलग सी भावनाओं से जूझता रहा. गुडि़यों से खेलना, चोरीछिपे बहन के कपड़ों और उस के मेकअप को देखना, छूना व सूंघना आदि. पहले तो दूसरे लिंग के प्रति जिज्ञासा होना स्वाभाविक सा लगा, जैसेजैसे उम्र बढ़ती गई, मैं लड़कों की ओर आकर्षित होने लगा. यूनिवर्सिटी में भी चला गया, पर अभी तक किसी गर्लफ्रैंड को घर नहीं लाया. घर वालों को चिंता होने लगी. लड़कियां मेरी ओर आकर्षित होतीं जबकि मैं लड़कों की ओर. मैं करता भी क्या? बेबस था. ‘मातापिता को लगा, शायद उन की परवरिश में कोई कमी रह गई है. आप लोग सोचते होंगे, अंगरेज हूं, घरवालों ने सरलता से स्वीकार कर लिया होगा. नहीं, ऐसा नहीं है. अंगरेजों की भी मान्यताएं हैं, सीमाएं हैं, संस्कार हैं. इन्हीं संस्कारों के कारण कभी किसी का पूछने का साहस नहीं हुआ. मेरी इस स्थिति को अनदेखीअनसुनी करते रहे. मैं अपनी व्यथा समेटे ककून में घुसता गया. नौकरी मिलते ही अपना फ्लैट लेने की ठान ली.

‘मातापिता अप्रत्यक्ष रूप से गर्लफ्रैंड को घर लाने का संकेत देते रहे. परदाफाश तब हुआ जब मैं अपनी बहन के बौयफ्रैंड की ओर आकर्षित होने लगा. मेरी पीड़ा असहनीय हो चुकी थी. दर्द बढ़ता जा रहा था. मैं ने भी सोच लिया, अब जो भी पहली लड़की मेरी ओर आकर्षित होगी, मैं उसी के सामने शादी का प्रस्ताव रख दूंगा. ऐसा ही हुआ, 6 महीने पहले ऐमली उस का शिकार हुई. यों कहूं कि बलि चढ़ी. जिसे मैं ने वैवाहिक सुख से वंचित रखा. इंसान ही हूं न, गलती हो गई. और नहीं जी सकता दोहरा जीवन. दोषभावना की गुठली गले में अटकी रहती है.’

‘ऐमली जानती है क्या?’ कर्ण ने पूछा.

‘शक तो है उसे, सामना करने से डरती है.’

‘अच्छा किया तुम ने, मन का बोझ हलका कर लिया,’ तीनों ने एक स्वर में कहा.

जस्सी ने मन ही मन प्रण किया कि आगे से कभी लड़कियों जैसी हरकत नहीं करेगा. अब रौबर्ट के साथ रात बिताने की समस्या तो हल हो गई. अब जुगाड़ यह लगाना था कि कैसे ऐश का बुखार रौबर्ट के सिर से उतारा जाए.चारों ने बैठ कर रौबर्ट को पूरी तरह से धुत करने की ठान ली. जब नशे में धुत रौबर्ट को विश्वास हो गया कि आज ऐश उसी के साथ रहने वाला है, ऐश ने रौबर्ट से कपड़े बदलने को कहा. जैसे ही रौबर्ट बाथरूम में कपड़े बदलने गया तो बिस्तर पर थौमस ने ऐश का स्थान ले लिया.अब तीनों को घर पहुंचते ऐमली का सामना करना था. घर पहुंचते ही ऐमली ने पूछा, ‘थौमस कहां है?’

‘वह रौबर्ट के साथ है. सुबह आएगा,’ तीनों ने दबे स्वर में कहा.

ऐमली मन ही मन बड़बड़ाई, ‘आई न्यू इट, आई न्यू इट.’

सुबह होने को आई थी, तीनों अपनेअपने घर चले गए. ऐमली की रात भारी गुजरी. सुबह थौमस के घर पहुंचने से पहले ऐमली काम पर जा चुकी थी. घर की दिनचर्या सामान्य रूप से चलती रही. ऐमली के व्यवहार में कोई परिवर्तन न पा कर थौमस थोड़ा चिंतित हुआ. एक सप्ताह बाद नाश्ते की मेज पर थौमस के लिए एक पत्र पड़ा था.

‘स्नेही थौमस,

मैं तुम्हारा दर्द समझती हूं. आज मैं तुम्हें अनचाहे बंधन में बंधे शादीरूपी पिंजरे से आजाद करती हूं. मैं चाहती हूं कि आप अपने जीवन की वास्तविकता से आगे बढ़ें तथा खुश रहें.

शुभकामनाओं सहित
तुम्हारी दोस्त-ऐमली.’

थौमस ने भारमुक्त हो, राहत की सांस ली और अपना सामान बांधना शुरू कर दिया. आज थौमस खुश है. काफी वक्त बाद चारों दोस्तों ने आज फिर मिलने का प्रोग्राम बनाया है. आज क्या सरप्राइज देना चाहते हैं. बस पिछली बार की तरह चौंका देने का सरप्राइज न मिले. अच्छा सोचते हुए ऐश के कदम सिंफनी हाल की ओर उठ गए.

करवा चौथ 2022: करवाचौथ- भय व प्रीत का संगम

  कहानी का अर्थात प्रीत पैदा करने की कथा:

एक समय की बात है. एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे गांव में रहती थी. एक दिन उस का पति नदी में स्नान करने गया.

पति की आवाज सुन कर पत्नी करवा भागी चली आई और आ कर मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया. मगरमच्छ को बांध कर वह यमराज के पास पहुंच कर कहने लगी, ‘‘हे भगवन, मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है. उसे पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नर्क में ले जाओ.’’

यमराज बोले, ‘‘अभी मगर की आयु शेष है, अत: मैं उसे नहीं मार सकता.’’

इस पर करवा बोली, ‘‘अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप दे कर नष्ट कर दूंगी.’’

यह सुन कर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आ कर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी.

हे करवा माता, जैसे तुम ने अपने पति की रक्षा की वैसे सब के पतियों की रक्षा करना.

इस कथा को मूल बता कर अगली कड़ी में कहानी का पार्ट-2 अर्थात भय पैदा करने की कथा सुनाई जाती है ताकि पति की दीर्घायु के लिए जो व्रत किया है उसे अगर हलके में लिया तो पति को खो दोगी.

एक बार एक ब्राह्मण लड़की मायके में थी, तब करवाचौथ का व्रत पड़ा. उस ने व्रत को विधिपूर्वक किया. पूरा दिन निर्जला रही. कुछ खायापीया नहीं. उस के सातों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी.

भाइयों से रहा नहीं गया. उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया. एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी ले कर चढ़ गया और दीपक जला कर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी. तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी, ‘‘देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो.’’

बहन ने भोजन ग्रहण कर लिया. भोजन ग्रहण करते ही उस के पति की मृत्यु हो गई. अब वह दुखी हो विलाप करने लगी. तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं. उन से उस का दुख न देखा गया. ब्राह्मण कन्या ने उन के पैर पकड़ लिए और पति के मरने का कारण पूछा.

तब इंद्राणी ने बताया, ‘‘तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवाचौथ का व्रत तोड़ दिया, इसलिए यह कष्ट मिला. अब तू वर्षभर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तब तेरा पति जीवित हो जाएगा.’’

उस ने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किए तो पुन: सौभाग्यवती हो गई. इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए. द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर लौट आए. तभी से हिंदू महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवाचौथ का व्रत करती हैं.

अब आप ही बताएं कौन पत्नी होगी जो अपने पति की दीर्घायु न चाहती हो? इसलिए कहानी का पार्ट-1 प्रीत पैदा कर ही देता है. कौन पत्नी होगी जो अपने पति को मारना चाहती है?

भय दिखा कर हलके में न लेने की नसीहत देता है.

अब आप ही बताएं कि यह सांप का फन जो हाथ में पकड़ाया गया है उसे कैसे छोड़ा जाए? छोड़ दिया तो सांप काट नहीं लेगा?

औरत की गुलामी के एहसास का दिन

करवाचौथ का व्रत पत्नी को गुलामी का एहसास दिलाने का एक और दिन है. क्या महिला के उपवास रखने से पुरुष की उम्र बढ़ सकती है? क्या धर्म का कोई ठेकेदार इस बात की गारंटी लेने को तैयार होगा कि करवाचौथ जैसा व्रत कर के पति की लंबी उम्र हो जाएगी? दूसरे देश नहीं मानते. और तो और भारत में ही दक्षिण या पूर्व में नहीं मनाते, लेकिन इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि इन तमाम जगहों पर पति की उम्र कम होती हो और मनाने वालियों के पति की ज्यादा.

यह व्रत ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित है. दक्षिण भारत में इस का महत्त्व न के बराबर है. क्या उत्तर भारत की महिलाओं के पति की उम्र दक्षिण भारत की महिलाओं के पतियों की उम्र से कम है? क्या इस व्रत को रखने से उन के पतियों की उम्र अधिक हो जाएगी? यह व्रत उन की परंपरागत मजबूरी है.

उपवास महिलाओं के लिए ही क्यों

ऐसा क्यों है कि सारे व्रत, उपवास पत्नी, बहन और मां के लिए ही हैं? पति, भाई और पिता के लिए क्यों नहीं? इसलिए कि धर्म की नजर में महिलाओं की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है. अगर महिलाओं को आप ने सदियों से घरों में कैद रख कर उन की चिंतनशक्ति को कुंद कर दिया है, तो क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता कि आप पहल कर के उन्हें इस मानसिक कुंदता से आजाद कराएं.

क्या आज के युग में सब पति पत्निव्रता हैं? आज की अधिकतर महिलाओं की जिंदगी घरेलू हिंसा के साथ चल रही हैं, जिस में उन के पतियों का हाथ है. ऐसी महिलाओं को करवाचौथ का व्रत रखना कैसा रहेगा? भारत का पुरुषप्रधान समाज केवल नारी से ही सबकुछ उम्मीद करता है परंतु नारी का सम्मान करने की कब सोचेगा? इस व्रत की शैली को बदलना चाहिए ताकि महिलाएं दिनभर भूखीप्यासी न रहें.

अनेक महिलाओं को करवाचौथ के दिन भी विधवा होते देखा गया है, जबकि वे दिनभर करवाचौथ का उपवास किए थीं.

2 साल पहले मेरा मित्र जिस की नईनई शादी हुई थी और पहली करवाचौथ के दिन ही घर जाने की जल्दी में एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गई, उन की पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिए करवाचौथ का व्रत किए थी, तो ऐसा क्यों हुआ?

करवाचौथ कुप्रथा है. मर्द लोग अपनी पत्नियों से खुद की पूजा करवाते हैं और खुद कभी पत्नियों की पूजा नहीं करते. सुप्रीम कोर्ट को करवाचौथ को असंवैधानिक करार देना चाहिए, क्योंकि करवाचौथ से महिलाओं के संविधानसम्मत समानता के मूल अधिकार का हनन होता है. तीन तलाक पर कुलांचें भरती सरकार तो कुछ नहीं करेगी, क्योंकि असल में तो वह औरतों को गुलाम बनाए रखने के पौराणिक विधान में विश्वास रखती है.

एक सकारात्मक पहल

‘‘देखो बेवकूफी मत करो, खांसीजुकाम, ऊपर से बुखार में बदन तप रहा है, फिर भी व्रत रखने का फुतूर सवार है,’’ अपनी पत्नी गौरी को समझाते हुए आकाश बोला.

गौरी बोली, ‘‘आकाश यह मेरा पहला करवाचौथ का व्रत है. प्लीज रखने दो मैं कर लूंगी. तुम चिंता मत करो…’’

आकाश, ‘‘तुम्हें पता है करवाचौथ का व्रत क्यों रखा जाता है?’’

गौरी, ‘‘हां पता है, पति की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए.’’

आकाश, ‘‘सही कहा. और ऐसे बीमार रह कर इतनी तकलीफ झेल कर, खुद की तबीयत खराब कर के मेरी लंबी उम्र के लिए भगवान को कैसे कन्विंस करोगी? मतलब ‘चैरिटी बिगिन्स ऐट होम’ में तो भगवान विश्वास रखते होंगे… है न…?’’

गौरी, ‘‘कैसी बातें करते हो? लोग क्या सोचेंगे?’’

आकाश, ‘‘लोग क्या सोचेंगे, इस से मुझे फर्क नहीं पड़ता. औल आई केयर अबाउट इज योर हैल्थ और कोई बहस नहीं. यह ब्रेकफास्ट लो और दवा खाओ चुपचाप वरना मुझ से बुरा कोई नहीं.’’

गौरी, ‘‘पर आकाश करवाचौथ…’’

आकाश, ‘‘वह मैं रख रहा हूं न तुम्हारी सेहत और लंबी उम्र के लिए… प्लीज गैट वैल सून.’’

गौरी, ‘‘करवाचौथ तुम रखोगे, यार लोग क्या कहेंगे?’’

आकाश, ‘‘यही कि गौरी का पति कितना केयरिंग है खासकर तुम्हारी सहेलियां. काश, हमारा पति भी इतना केयरिंग होता.’’

गौरी हंस कर, ‘‘यार, हर बार ऐसे मजाक कर के मुझे मना लेते हो.’’

आकाश, ‘‘अच्छा सुनो, शाम को वक्त से छत पर आ जाना. मैं छलनी ले कर इंतजार करूंगा.’’

गौरी हंसते हुए, ‘‘आ जाऊंगी. कोई और सेवा?’’

आकाश, ‘‘हूं, अच्छा सुनो. आई लव यू.’’

गौरी, ‘‘आई लव यू टू. अच्छा सुनो न तुम्हें यह करवाचौथ का व्रत रखने की जरूरतहै. मुझे पता है तुम मुझे बहुत प्यार करते हो. प्यार करते रहो, यही जरूरी है. व्रतों से कुछ नहीं होता.’’

आकाश, ‘‘तुम ठीक रहोगी, लंबी उम्र तक जीओगी तभी तो मैं भी जिंदा रहूंगा, है न?’’

दोनों गले लग कर हंसने लगे, दोनों की आंखों में आंसू आने लगे सच्चे प्यार के. यही है सच्चा प्यार, जिस में एक पति पत्नी की और पत्नी पती की हर परेशानी को हंसतेखेलते दूर करते हुए, खुश रह कर एकदूसरे के साथ सुखदुख में साथ जिंदगी बिताते हैं.

इतिहास चक्र- भाग 1: सूरजा ने कैसे की सहेली की मदद

गली के मोड़ पर हांफता हुआ कमल पल भर को ठिठक गया. इतनी दूर से स्कूटर घसीटतेघसीटते उस की सांस फूल गई थी. दफ्तर आते हुए जब एहसास हुआ कि गाड़ी में पैट्रोल कम है, तो उस ने स्कूटर को पैट्रोल पंप की ओर मोड़ दिया. मगर पैट्रोल पंप पर ‘तेल नहीं है’ की तख्ती ने उसे मायूस कर दिया और घर से 1 किलोमीटर पहले ही जब स्कूटर झटका ले कर बंद हो गया तो कमल झल्ला उठा, क्योंकि उसे इतनी दूर तक स्कूटर घसीट कर जो लाना पड़ा था.

‘उफ,’ कमल ने माथे का पसीना पोंछा. उसे एहसास भी नहीं हुआ कि उसी गली से कब लाल रंग की मारुति कार निकली और उस के बगल में आ कर रुक गई.

‘‘कमल,’’ ड्राइविंग सीट पर बैठी एक सुंदर युवती ने उसे पुकारा.

कमल उसे देख कर चौंक गया. उस के चेहरे पर घृणा की रेखा तैर गई, ‘‘तुम?’’

‘‘आज तुम्हें इस हालत में देख कर अफसोस हो रहा है कमल. मैं अभी तुम्हारे घर गई थी. चांदनी भी अपनी रोशनी बिखेर कर चुकती जा रही है,’’ सूरजा ने कहा.

‘‘सूरजा,’’ कमल का स्वर कड़वा हो उठा था, ‘‘मैं ने तुम से कई बार कहा है कि मैं तुम्हारी सूरत से नफरत करता हूं. चांदनी की सहेली होने के नाते मैं तुम्हें घर आने से नहीं रोक सकता. तुम्हें मेरे हालात पर अफसोस करने की कोई जरूरत नहीं, समझी.’’

‘‘जरूरत है कमल, मगर मुझे नहीं तुम्हें. सोचो कमल, सूरजा सदा तुम्हें प्यार करती आई है. तुम ने मेरे प्यार को ठुकरा कर चांदनी और उस की गरीबी का जो कफन ओढ़ा है एक दिन वह तुम्हें मार डालेगा.’’

‘‘मैं मर भी जाऊं तो क्या, सूरजा, अपने हालात से मैं ने शिकवा कभी नहीं किया, रहा प्यार का सवाल तो ये अमीरी के चोंचले किसी और को दिखाना. मैं तुम्हारे इस दिखावटी प्यार को पसंद नहीं करता.’’

‘‘मैं तुम्हारी इस नफरत से भी प्यार करती हूं कमल, और तुम तो जानते ही हो सूरजा कितनी जिद्दी है, तुम मेरा प्यार ही नहीं मेरा अभिमान भी हो. यह अभिमान मैं टूटने नहीं दूंगी. मैं ने प्यार किया है कमल और मैं अपने प्यार को मरता नहीं देख सकती. कमल, गरीबी के फांके तुम्हें मेरी बांहों में आने को मजबूर कर देंगे.’’

‘‘उस दिन से पहले कमल आत्महत्या कर लेगा सूरजा, मगर तेरे दर पर झांकने तक नहीं आएगा,’’ कमल का स्वर घृणा और अपमान से भर उठा. वह तेजी से वहां से आगे बढ़ गया.

‘‘जा रहे हो कमल, लेकिन एक बात तो सुनते जाओ. कमल चांदनी की चमकीली किरणों से नहीं खिलता. उस के लिए सूरज की रोशनी की जरूरत पड़ती है और सूरजा अपने जीतेजी अपने कमल को मुरझाने नहीं देगी. मैं तुम्हें मिटने नहीं दूंगी कमल. कभी नहीं, मैं तुम से दिल से प्रेम करती हूं और सदा करती रहूंगी,’’ और एक झटके से कार स्टार्ट कर वह तेजी से आगे बढ़ गई.

कमल ने घृणा से सिर झटका. सूरजा की बातों से उस का रोमरोम सुलग रहा था, ‘‘बड़ी आई प्रेम करने वाली,’’ घर में घुसते ही उस का आक्रोश भड़क उठा, ‘‘चांदनी… चांदनी…’’

‘‘अरे, आप आ गए, आज बड़ी देर कर दी. आप हाथमुंह धोइए, मैं चाय बनाती हूं,’’ कहती हुए चांदनी कमरे में घुसी, मगर कमल की भावभंगिमा देख कर ठिठक गई, ‘‘क्या बात है बहुत परेशान लग रहे हैं?’’ आगे बढ़ कर उस ने कमल के माथे पर हाथ रखा, ‘‘सचसच बता दो, क्या बात है?’’ चांदनी ने उसे अपनी बांहों में भरना चाहा लेकिन कमल ने तेजी से उस का हाथ झटक दिया, ‘‘सूरजा यहां क्यों आई थी?’’

‘‘सूरजा दीदी,’’ चांदनी पल भर को चकित रह गई. उस ने कमल का गुस्सा कई बार देखा था मगर यह रूप नहीं देखा था.

‘‘हां, तुम्हारी सूरजा दीदी… वही सूरजा दीदी जिस से तुम्हारा कमल नफरत करता है. वह इस घर में क्यों आई थी?’’ कमल बोला.

‘‘सुनिए, अभी आप गुस्से में हैं, सोचिए, इस घर में आने वाले किसी को भी मैं कैसे रोक सकती हूं और फिर सूरजा दीदी तो कालेज से ही हम दोनों को जानती हैं. मैं जानती हूं कि उन का आना आप को अच्छा नहीं लगता मगर मैं उन्हें घर से निकाल भी तो नहीं सकती.’’

दीवाली के कुछ दिन पहले सूरजा फिर मिलने आ गई.

चांदनी ने आंचल से जल्दी से कुरसी को साफ किया, ‘‘कई दिन हो गए आप आई नहीं, दीदी.’’

‘‘हां, इधर दीवाली की खरीदारी चल रही थी न इसलिए चाह कर भी नहीं आ सकी. कमल कहीं गया है क्या?’’

‘‘हां, दफ्तर में कुछ काम था न सो दफ्तर गए हैं,’’ कहतेकहते चांदनी की आंखें झुक गईं.

‘‘चांदनी,’’ सूरजा उठ कर पास आ गई थी, ‘‘मुझ से झूठ बोल रही है न… अपनी दीदी से… मैं जानती हूं आज सारे दफ्तर बंद हैं और मैं बता भी सकती हूं कि कमल कहां गया होगा, वहीं ताश के 52 पत्तों के बीच बैठा होगा.’’

‘‘दीदी,’’ चांदनी की आंखें भर गई थीं.

सूरजा ने उस के आंसुओं को प्यार से पोंछ दिया, ‘‘रो मत चांदनी, मैं जानती हूं, कमल जिस दलदल में फंसा है वहां बरबादी के सिवा कुछ भी नहीं है. तू उसे समझाती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं क्या समझाऊं दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी, ‘‘अपने घर, अपने प्यार और अपने भविष्य को बरबाद करने वाला और कोई नहीं स्वयं उस का निर्माता है. दीदी, दीवाली की काली रातों का यह अंधेरा कभी छंटने वाला नहीं है.’’

‘‘नहीं पगली, अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, सूरज के उगते ही भाग जाता है. मैं कमल को समझाऊंगी.’’

‘‘नहीं दीदी, आप का तो नाम लेते ही वह नफरत से भर जाते हैं, आप कुछ मत कहिएगा वरना…’’

‘‘जानती हूं चांदनी, कमल मुझ से नफरत करता है,  मगर मैं उस की नफरत को भी प्यार करती हूं. मेरा प्यार खुदगर्ज नहीं है, मैं अब कमल को एक दोस्त के रूप में देखती हूं और तू… तू तो मेरी छोटी बहन है… चांदनी, तुम दोनों की खुशियों से मुझे प्यार है. मैं जानती हूं मेरी बहन मुझे गलत नहीं समझती है, इस का मुझे गर्व है. मैं कमल को छेड़ देती हूं सिर्फ इसलिए कि वह जोश में आ कर अपनेआप में सुधार कर ले, मगर अब लगता है कोई दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा. अच्छा, सुन, तू दीवाली की तैयारियां कर. इस बार दीवाली दोनों प्रेम से मनाना.’’

‘‘कमल मेरे बस में नहीं है दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी.

‘‘देख चांदनी, तुझे अपने कमल को इस दलदल से खींच कर लाना होगा. मैं तेरा साथ दूंगी. अच्छा, सुन तुझे कुसुम की याद है न,’’ सूरजा बोली.

‘‘हां, सुना है. उस की भी शादी यहीं चौक में हुई है रमन के साथ. काफी बड़ा आदमी है.’’

‘‘सुन चांदनी, आज रात तुम दोनों को कुसुम के यहां आना है, समझीं और देख मैं जैसा कहूं वैसा ही करना,’’ इस के बाद देर तक सूरजा ने चांदनी को समझाया.

उस के जाने के बाद चांदनी ने एक लंबी सांस ली. आंखें आने वाली विजय के प्रति आश्वस्त हो चमक उठी थीं और वह कमल की प्रतीक्षा करने लगी.

शाम को 4 बजे जब कमल घर आया तो उस का चेहरा खिला हुआ था. आते ही उस ने चांदनी का चेहरा चूमा और बोला, ‘‘क्या बात है, मेरी चांदनी उदास क्यों है?’’

चांदनी कुछ बोल नहीं पाई. उस की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी.

‘‘चांदनी, ओ चांदनी,’’ कमल ने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया था, ‘‘क्या बात है, बोलो न, वर्ष भर में तो यह त्योहार आता है और तू मुंह लटकाए बैठी है.’’

‘‘एक बात पूछूं, सचसच बताइएगा,’’ चांदनी ने अपने आंसू पोंछ कर कहा, ‘‘आज आप का दफ्तर बंद था न,’’ कमल का चेहरा मुरझा गया, ‘‘वह… चांदनी…’’

‘‘मैं जानती हूं, आज फिर दोस्तों के साथ बैठे थे न.’’

‘‘चांदनी, तुम तो जानती हो दीवाली के दिन हैं, ऐसे में दोस्त जब घसीट कर ले जाते हैं तो इनकार नहीं कर सकते,’’ कमल बोला.

कूल फूल: क्या हुआ था राजन के साथ

राजेश, विक्रम, सरिता, पिंकी और रश्मि कालेज के बाहर खड़े बातचीत में व्यस्त थे कि तभी एक बाइक तेजी से आ कर उन के पास रुक गई. वे सब एक तरफ हट गए. इस से पहले वे बाइक सवार को कुछ कहते उस ने हैलमैट उतारते हुए कहा, ‘‘क्यों कैसी रही ’’

वे फक्क रह गए, ‘‘अरे, राजन तुम,’’ सभी एकसाथ बोले.

‘‘बाइक कब ली यार ’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘बस, इस बार जन्मदिन पर डैड की ओर से यह तोहफा मिला है,’’ कहते हुए वह सब को बाइक की खासीयतें बताने लगा.

राजन अमीर घर का बिगड़ा हुआ किशोर था. हमेशा अपनी लग्जरीज का घमंड दिखाता और सब पर रोब झाड़ता, लेकिन वे तब भी साथ खातेपीते और उस से घुलेमिले ही रहते. रश्मि को राजन का इस तरह बाइक ला कर बीच में खड़ी करना और रोब झाड़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वे सभी कालेज के फर्स्ट ईयर के विद्यार्थी थे. लेकिन रश्मि 12वीं तक स्कूल में राजन के साथ पढ़ी थी इसलिए वह अच्छी तरह उस के स्वभाव से वाकिफ थी. सरिता व पिंकी तो हमेशा उस से खानेपीने के चक्कर में रहतीं, अत: एकदम बोल पड़ीं, ‘‘कब दे रहे हो पार्टी बाइक की ’’

‘‘हांहां, बस, जल्दी ही दूंगा. ऐग्जाम्स खत्म होते ही खाली होने पर करते हैं पार्टी,’’ राजन लापरवाही से बोला और बाइक स्टार्ट कर घरघराता हुआ चला गया. रश्मि सरिता व पिंकी से बोली, ‘‘मुझे तो बिलकुल अच्छा नहीं लगा इस का यह व्यवहार, हमेशा रोब झाड़ता रहता है अपनी अमीरी का. उस पर तुम लोग उस से पार्टी की उम्मीद करते हो. याद है, पिछली बार उस ने फोन की पार्टी देने के नाम पर क्या किया था.’’

‘‘हां…हां, याद है,’’ पास खड़ी सरिता बोली, ‘‘उस ने पार्टी के नाम पर बेवकूफ बनाया था, यही न. लेकिन तुम्हें पता है न अचानक उस के मामा की तबीयत खराब हो गई थी जिस कारण वह पार्टी नहीं दे सका था.’’

दरअसल, राजन का जन्मदिन 20 मार्च को होता था और पिछले वर्ष उसे जन्मदिन पर स्मार्टफोन मिला था. उस ने सब को दिखाया. फिर पार्टी का वादा भी किया, लेकिन आया नहीं. बाद में सब ने पूछा तो कह दिया कि मामाजी की तबीयत खराब हो गई थी, जबकि रश्मि जानती थी कि ऐसा कुछ नहीं था. बस, वह सब को मूर्ख बना रहा था. अब तो बाइक मिलने पर राजन का घमंड और बढ़ गया था. वह तो पहले ही अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था. अत: राजन ने सब को कह दिया, ‘‘ऐग्जाम्स के बाद मैं सभी को एसएमएस कर के बता दूंगा कि कहां और कब पार्टी दूंगा.’’

शाम को सरिता घर में बैठी अगले दिन के पेपर की तैयारी कर रही थी कि रश्मि का फोन आया. बोली, ‘‘राजन का मैसेज आया है. 1 तारीख को दोपहर 1 बजे शिखाजा रैस्टोरैंट में पार्टी दे रहा है. जाओगी क्या ’’

‘‘हां, यार, मैसेज तो अभीअभी मुझे भी आया है. जाना भी चाहिए. तुम बताओ ’’ सरिता ने जवाब दिया.

‘‘मुझे तो उस पर रत्तीभर भरोसा नहीं है. सुबह वह कह रहा था ऐग्जाम्स के बाद पार्टी देगा और अब यह मैसेज. फिर मैं तो पिछली बार की बात भी नहीं भूली,’’ रश्मि साफ मना करती हुई बोली, ‘‘मैं तो नहीं जाऊंगी.’’

तभी राजेश का भी फोन आया और उस ने भी रश्मि को बताया कि राजन ने उसे व विक्रम को भी मैसेज किया है. सब चलेंगे दावत खाने. रश्मि बोली, ‘‘भई, पहले कन्फर्म कर लो, कहीं अप्रैल फूल तो नहीं बना रहा सब को  मैं तो जाने वाली नहीं.’’

पहली तारीख को सभी इकट्ठे हो रश्मि के घर पहुंच गए और उसे भी चलने को कहने लगे. रश्मि के लाख मना करने के बावजूद वे उसे साथ ले गए. शिखाजा रैस्टोरैंट पहुंच कर सभी राजन का इंतजार करने लगे, लेकिन राजन का कहीं अतापता न था. वेटर 2-3 बार और्डर हेतु पूछ गया था. जब उन्होंने फोन पर राजन से संपर्क किया तो उस का फोन स्विचऔफ आ रहा था. काफी देर इंतजार के बाद उन्होंने रैस्टोरैंट में अपनेअपने हिसाब से और्डर दिया और थोड़ाबहुत खापी कर वापस आ गए. उन्हें न चाहते हुए भी अपनी जेब ढीली करनीपड़ी. जब वे सभी घर पहुंच गए तो राजन का मैसेज सभी के पास आया, ‘‘कैसी रही पार्टी अप्रैल फूल की ’’ सभी अप्रैल फूल बन कर ठगे से रह गए थे. ‘राजन ने हमें अप्रैल फूल बनाया’ सभी सोच रहे थे, ‘और हम लालच में फंस गए.’

रश्मि बारबार उन्हें कोस रही थी, ‘‘मैं तो मना कर रही थी पर तुम ही मुझे ले गए. खुद तो मूर्ख बने मुझे भी बनाया.’’

घर आ कर रश्मि ने अपनी मां को सारी बात बताई और राजन को कोसने लगी. मां ने उस की पूरी बात सुनी और बोलीं, ‘‘कूल रश्मि कूल.’’

‘‘कूल नहीं मां, फूल कहो फूल, हम तो जानतेसमझते मूर्ख बने,’’ रश्मि गुस्से से बोली.

‘‘रश्मि, अगर अप्रैल फूल बने हो तो गुस्सा कैसा  यह दिन तो है ही एकदूसरे को मूर्ख बनाने का. तुम भी तो कई बार झूठमूठ डराती हो मुझे इस दिन. कभी कहती हो तुम्हारी साड़ी पर छिपकली है तो कभी गैस जली छोड़ देने का झूठ. फिर जब मुझे पता चलता है तो तुम गाना गाती हो और मुझे चिढ़ाती हो, ‘अप्रैल फूल बनाया…’

‘‘अगर फूल बन ही गए हो तो कुढ़ने से कुछ होने वाला नहीं. सोचो, कैसे राजन को भी तुम अप्रैल फूल बना सकते हो,’’ मां ने सुझाया. अब रश्मि शांत हो गई और कुछ सोचने लगी. फिर उस ने सभी दोस्तों को फोन कर अपने घर बुलाया और राजन को फूल बनाने की तरकीब सोचने को कहा. सभी राजन को भी मूर्ख बना कर बदला लेना चाहते थे. फिर उन्होंने भी राजन को मूर्ख बनाने की तरकीब सोचनी शुरू की. थोड़ी देर बाद रश्मि ही बोली, ‘‘मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. हम राजन को कूल फूल बनाएंगे. उस ने हमें फोन पर एसएमएस कर मूर्ख बनाया है, हम भी उसे फोन के जरिए मूर्ख बनाएंगे. सुनो…’’ कहते हुए उस ने अपनी योजना बताई.

शाम को राजन घर के अहाते में फोन पर बातचीत कर रहा था. उस की बाइक आंगन में खड़ी थी. तभी रश्मि उस के घर पहुंची. उसे देखते ही राजन बोला, ‘‘आओआओ रश्मि, कैसे आना हुआ ’’ रश्मि सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘वाह राजन, आज तो तुम ने सभी को अच्छा मूर्ख बनाया. अच्छा हुआ मैं तो गई ही नहीं थी,’’ उस ने झूठ बोला.

‘‘अरे भई, तुम्हारी पार्टी तो ड्यू है ही. यह तो वैसे ही मैं ने मजाक किया था. बैठो, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाता हूं,’’ कह कर राजन घर के अंदर गया. वह अपना फोन मेज पर ही छोड़ गया था. रश्मि तो थी ही मौके की तलाश में. उस ने झट से राजन का फोन उठाया और भाग कर आंगन में जा कर राजन की बाइक का फोटो खींच कर उसी के फोन से ओएलएक्स डौट कौम पर बेचने के लिए डाल दिया. कीमत भी सिर्फ 10 हजार रुपए रखी. फिर वापस वैसे ही फोन रख दिया. राजन रश्मि के लिए खानेपीने को लाया. रश्मि ने 2 बिस्कुट लिए और बोली, ‘‘चलती हूं, तुम्हें फूल डे की कूल शुभकामनाएं. अच्छा है अभी तक तुम्हें किसी ने फूल नहीं बनाया और तुम ने सब दोस्तों को एकसाथ बना दिया,’’ और मुसकराती हुई चल दी.

अभी रश्मि घर के गेट तक ही पहुंची थी कि राजन के मोबाइल की घंटी बज उठी, ‘‘आप अपनी बाइक बेचना चाहते हैं न, मैं खरीदना चाहता हूं क्या अभी आ जाऊं ’’

‘‘क्या ’’ राजू सकपकाता हुआ बोला, ‘‘कौन हैं आप  किस ने कहा कि मैं ने अपनी बाइक बेचनी है. अरे, अभी चार दिन पहले ही तो खरीदी है मैं ने. मैं क्यों बेचूंगा ’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया. रश्मि अपनी योजना सफल होती देख मुसकराई और तेजी से घर की ओर चल दी. गुस्से में राजन ने फोन काटा ही था कि एक एसएमएस आ गया. ‘मैं आप की बाइक खरीदने में इंट्रस्टेड हूं. आप के घर आ जाऊं ’ राजन इस अनजान बात से बहुत आहत हुआ. आखिर थोड़ी ही देर में ऐसा क्या हुआ कि इतने फोन व एसएमएस आने लगे. उस ने तो कुछ भी ओएलएक्स पर नहीं डाला. उस के पास अब लगातार एसएमएस और फोन आ रहे थे. वह अभी एसएमएस के बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक एसएमएस आया. वह मैसेज देखना नहीं चाहता था. लेकिन उस ने स्क्रीन पर देखा तो चौंका, मैसेज रश्मि का था.

‘अरे, रश्मि का मैसेज,’ सोच उस ने जल्दी से इनबौक्स में देखा तो पढ़ कर दंग रह गया. लिखा था, ‘क्यों, कैसा रहा हमारा रिटर्न अप्रैल फूल बनाना. तुम ने हमें रैस्टोरैंट में बुला कर फूल बनाया और हम ने तुम्हें तुम्हारे ही घर आ कर.’ राजन का गुस्सा सातवें आसमान पर था. उस ने आननफानन में बाइक उठाई और रश्मि के घर चल दिया. रश्मि के घर पहुंचा तो उस के घर सभी दोस्तों को इकट्ठा देख कर दंग रह गया. फिर तमतमाता हुआ बोला, ‘‘तुम मुझे मूर्ख समझते हो. मुझे फूल बनाते हो.’’

‘‘कूल बच्चे कूल. हम ने तुम्हें फूल बनाया है इसलिए गुस्सा थूक दो और सोचो तुम ने हमें रैस्टोरैंट में एकत्र कर मूर्ख नहीं बनाया क्या. तब हमें कितना गुस्सा आया होगा ’’

‘‘हां, पर तुम ने तो मेरी प्यारी बाइक ही बिकवाने की प्लानिंग कर दी.’’

तभी सभी दोस्त हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और बोले, ‘‘कूल यार कूल… हमारा मकसद तुम्हें गुस्सा दिलाना नहीं था बल्कि तुम्हें एहसास दिलाना था कि तुम ऐसी हरकत न करो. पिछले साल भी तुम ने मूर्ख दिवस पर पार्टी रख हमें मूर्ख बनाया था. तब तो हम तुम्हारा बहाना भी सच मान गए थे पर इस बार फिर तुम ने ऐसा किया… क्या हम हर्ट नहीं होते ’’ ‘‘हां, लेकिन तुम ने यह सब किया कैसे  मैं तो तुम से पूरे दिन मिला भी नहीं,’’ राजन ने दोस्तों से पूछा.

‘‘तुम नहीं मिले तो क्या. रश्मि तो मिली थी तुम्हें तुम्हारे घर पर,’’ सरिता बोली.

फिर रश्मि ने उसे सारी बात बता दी. ‘‘रश्मि तुम…’’ दांत भींचता हुआ राजन अभी बोला ही था कि अंदर से रश्मि की मां पकौडे़ की प्लेट लेती हुई आईं और बोलीं, ‘‘कूल…फूल…कूल. इस तरह झगड़ते नहीं. अगर मजाक करते हो तो मजाक सहना भी सीखो. मुझे रश्मि ने सब बता दिया है. आओ, पकौड़े खाओ. मैं चाय लाती हूं,’’ कहती हुई मां किचन की ओर मुड़ गईं.

‘‘आंटी, आप भी मुझे फूल कह रही हैं,’’ राजन आगे कुछ बोलता इस से पहले ही रश्मि ने उस के मुंह में पकौड़ा ठूंस दिया और बोली, ‘‘कूल यार फूल… कूल.’’ यह देख सब हंसने लगे और ठहाकों के बीच पकौड़े खाते पार्टी का आनंद उठाने लगे. राजन पकौड़े खातेखाते अपने फोन से बाइक का स्टेटस डिलीट करने लगा.

बताएं कि हम बताएं क्या: मनोज ने क्या किया था

‘उई मां, मैं लुट गई’ के आर्तनाद के साथ वह दीवार के साथ लग कर फर्श पर बैठ गई.

कई दिनों से मुझे बुखार ने अपने लपेटे में ले रखा था और लीना आज डाक्टर के पास मेरी ब्लड रिपोर्ट लेने गई थी. मैं ने सोचा रास्ते में जाने उस ने किस रिश्तेदार के बारे में कौन सी मनहूस खबर सुन ली कि घर आते ही दुख को बरदाश्त न कर पाई और बिलख पड़ी.

तभी मेरे दिमाग की घंटियां बजीं कि अपने हाथों की चूडि़यां तोड़ना तो सीधे अपने सुहाग पर अटैक है. मैं ने जल्दी से अपने दिल की धड़कन को जांचा फिर नब्ज टटोली तो मुझे अपने जीवित होने पर कोई शक न रहा.

पलंग से उतर कर मैं लीना के पास पहुंचा और शब्दों में शहद घोल कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘दूर रहिए मुझ से,’’ लीना खुद ही थोड़ी दूर सरक गई और बोली, ‘‘आप को एड्स है.’’

‘‘मुझे… और एड्स…’’ मैं ने जल्दी से दीवार का सहारा लिया और गिरतेपड़ते बड़ी मुश्किल से अपने को संभाल कर पलंग तक ले गया.

‘‘हांहां, आप को एड्स है,’’ लीना ने सहमे स्वर में कहा, ‘‘मै

डा. गुप्ता के रूम में आप की ब्लड रिपोर्ट लेने बैठी थी. उन्होंने रिपोर्ट देखी और कहा कि पोजिटिव है. तभी उन का कोई विदेशी दोस्त आ गया. मुझे बाहर भेज कर वे दोनों आप के केस के बारे में विचार विमर्श करने लगे. बाहर बैठेबैठे मैं ने सुना कि वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आप को एड्स है.’’

‘‘लीनाजी, मगर मुझे एड्स कैसे हो सकता है?’’ मैं ने थोड़ा संभल कर कहा, ‘‘मैं न तो बाहर दाढ़ी बनवाता हूं कि मुझे किसी एड्स रोगी के ब्लेड से कट लगा है. न ही आज तक किसी को अपना खून दियालिया कि किसी एड्स रोगी का खून मेरे शरीर में गया. यहां तक कि वर्षों से मुझे इंजेक्शन भी नहीं लगा है और वैसे भी आजकल डिसपोजेबल इंजेक्शन इस्तेमाल किए जाते हैं. यहां तक कि मेरे परिवार में भी किसी को यह बीमारी नहीं थी.’’

‘‘हूं,’’ हिंदी फिल्मों की खलनायिका की तरह लीना ने लंबी सांस छोड़ी, ‘‘फिर वह कौन थी?’’

‘‘वह कौन थी?’’ मैं ने दोहराया और उस की आंखों में इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने लगा.

‘‘हां, मैं पूछती हूं, वह कौन थी?’’

‘‘वह कौन थी…ओ, वह कौन थी? तो भई ‘वह कौन थी’ एक फिल्म का नाम है, जिस में मनोज कुमार और साधना थे और कोई आत्मा…’’ मैं ने बतलाना चाहा.

मेरी इस हरकत पर आज लीना की आंखों में प्यार का सागर लहराने के बजाय लाल डोरे उभर आए और वह गुस्से में बोली, ‘‘मैं पूछती हूं कि वह कौन थी जिस से आप यह सौगात ले कर आए हैं?’’ लीना मेरे सामने आ खड़ी हुई.

‘‘लीनाजी, आप जो समझ रही हैं वैसी कोई बात नहीं है,’’ मैं ने लीना के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘मत छुओ मुझे,’’ इतना कहते हुए लीना ने मेरा हाथ झटक दिया और फिर मोबाइल थामे वह दूसरे कमरे में चली गई.

थोड़ी देर बाद देखता क्या हूं कि 2 युवतियां कमरे के अंदर आ गईं. उन में से एक के गले में फ्लैश लगा कैमरा था. वह लड़की सुर्ख रंग की बिना बाजू की मिनी शर्ट और नीले रंग की स्लैक्स में थी. दूसरी लड़की ने सफेद सलवारकमीज पर काले रंग की जैकेट पहन रखी थी. उस के कंधे पर एक बैग लटका हुआ था.

अपने नाम की पुकार सुन लीना कमरे में आ गई और सिसकते हुए बारीबारी से दोनों के गले लगी.

‘‘घबराओ नहीं, हम सब संभाल लेंगे,’’ कैमरे वाली लड़की ने लीना की पीठ थपकते हुए कहा, ‘‘तो यह हैं तुम्हारे एड्स पीडि़त पति,’’ और इसी के साथ लड़की ने मुझे फोकस में ले कर 3-4 बार फ्लैश चमकाए.

‘‘मेरे फोटो क्यों ले रही हो?’’ यह कहते हुए मैं ने अपने चेहरे को हाथ से छिपाने का असफल प्रयास किया.

‘‘आप के फोटो कल समाचार- पत्रों में छापे जाएंगे ताकि जनता को पता चले कि इस शहर में भी कोई एड्स का मरीज है और तुम्हें देखते ही लोग पहचान जाएं,’’ उस ने मुझे बताया और फिर लीना से बोली, ‘‘दीदी, तुम तनिक इन के साथ लग कर बैठ जाओ ताकि मैं दुनिया को बता सकूं कि किस तरह एक आदर्श पत्नी, अपने एड्स रोगी पति की सेवा, अपनी सलामती की परवा किए बिना कर रही है.’’

लीना पलंग पर मुझ से सट कर ऐसे बैठी मानो हम स्टूडियो में बैठे हों और मेरे बालों में अपनी उंगलियों से कंघी करने लगी.

कैमरे वाली लड़की ने हमें फोकस में लिया और फ्लैश का झपाका हुआ.

इस के बाद लीना पलंग से मेढक की तरह कूद कर अपनी दोनों सहेलियों के पास पहुंच गई.

अब जैकेट वाली लड़की ने अपने कंधे पर लटके बैग से एक कागज निकाला जिस पर कोर्ट का टिकट लगा था.

‘‘लो, वकालतनामे पर दस्तखत करो, तुम्हारे तलाक का मुकदमा मैं

लड़ं ूगी. एड्स के रोगी के साथ तुम्हारी शादी पहली पेशी पर ही टूट जाएगी.’’

लीना ने अपनी सहेली के हाथ से पैन ले कर वकालतनामे पर दस्तखत घसीटे.

‘‘हां जनाब, अब आप अपनी उस ‘गर्लफ्रैंड’ का नाम बताएं जिस से आप को यह तोहफा मिला ताकि उस की तसवीरें और नामपता भी अखबार में छाप कर हम दूसरे भोलेभाले मर्दों को एड्स का शिकार होने से बचा सकें,’’ कैमरे वाली लड़की ने चुभती नजरों से मुझे देखा.

‘‘मगर मैं ऐसी किसी औरत को नहीं जानता और न ही मैं किसी दूसरी औरत के पास गया हूं.’’

‘‘ए मिस्टर,’’ जैकेट वाली लड़की बोली, ‘‘सीधी तरह बताएं कि वह कौन थी?’’

‘‘फिर वही ‘वह कौन थी?’ मैं ने कहा न मैं किसी ‘वह कौन थी’ को नहीं जानता,’’ मैं ने प्रोटेस्ट किया.

बाहर किसी ट्रक की गड़गड़ाहट को अनसुना कर मैं ने कहा, ‘‘आप मेरा विश्वास कीजिए, मैं किसी ‘वह कौन थी’ को नहीं जानता हूं.’’

‘‘विश्वास और तुम्हारा?’’ लीना के ताऊजी का गुस्से से भरा स्वर कानों में गूंजा.

मैं ने दरवाजे की ओर देखा तो लीना के ताऊजी, बलदेव भैया और 4 हट्टेकट्टे मजदूर अंदर आ गए. एक मजदूर के कंधे से रस्सी का गुच्छा लटक रहा था.

लीना अपने ताऊजी के गले लग कर रोने लगी और हिचकियों के बीच बोली, ‘‘ताऊजी, मैं लुट गई. बरबाद हो गई.’’

‘‘घबरा मत मेरी बच्ची, अब हम मनोज को लूटेंगे,’’ ताऊजी ने लीना के सिर पर हाथ फेर कर उसे पुचकारा. फिर वह मजदूरों की ओर पलटे, ‘‘घर का सामान उठा कर बाहर खड़े ट्रक में भर लो.’’

2 मजदूर फ्रिज और 2 सोफे की ओर बढे़. तभी मैं चिल्लाया और पलंग से उठ कर उन के बीच जा कर खड़ा हो गया कि किसी भी सामान को हाथ मत लगाना.

‘‘सामान हमारी बेटी का है और अब वह यहां नहीं रहेगी,’’ ताऊजी ने झाग छोड़ते हुए मुझ से कहा, ‘‘एक तरफ हट जाओ.’’

‘‘बलदेव भैया,’’ मैं ने उन की दुहाई दी, तो वह हाथी की तरह चिंघाड़े, ‘‘मुझे भैया कहा तो जबान खींच लूंगा,’’ और इसी के साथ उन्होंने अपना हाथ मेरे मुंह की ओर बढ़ाया. फिर जल्दी से हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘आप लोग ऐसा नहीं कर सकते,’’ मैं ने ताऊजी को कहा.

‘‘हम क्याक्या कर सकते हैं यह हम तुम्हें अभी बताते हैं,’’ इतना कह कर ताऊजी मजदूरों की ओर मुडे़ और बोले, ‘‘अरे, तुम लोग देखते क्या हो, इसे इस पलंग पर डाल कर बांध दो.’’

3 मजदूरों ने मुझे बकरे की तरह गिरा कर दाब लिया और रस्सी वाले मजदूर ने मुझे पलंग से बांधना शुरू किया. एक तो बुखार की कमजोरी उस

पर हट्टेकट्टे मजदूरों की ताकत… मिनटों में पलंग के साथ जकड़ा बेबस पड़ा था.

चारों मजदूर जल्दीजल्दी घर का सामान बाहर ले जाने लगे.

लीना और उस की सहेलियां भी बाहर निकल गईं.

थोड़ी देर में ही खाली कमरे में वह पलंग रह गया जिस के ऊपर मैं बंधा पड़ा था.

‘‘अब इस को पलंग समेत उठाओ और बाहर ले चलो,’’  ताऊजी ने मजदूरों को आदेश सुनाया, ‘‘बलदेव बेटा, घर को ताला लगा कर चाबी साथ ले चलो.’’

मजदूरों ने मुझे पलंग समेत उठा लिया और दरवाजे की तरफ ले गए. पलंग चौड़ा होने से दरवाजे की चौखट में किसी अडि़यल नेता की तरह अड़ गया.

‘‘पलंग को थोड़ा तिरछा कर लो जी,’’ बलदेव ने मजदूरों को राय दी.

मजदूरों ने उन के बताए अनुसार पलंग को तिरछा कर उठाएउठाए ही दरवाजा पार कर लिया. उसे ले जा कर सड़क के किनारे रख दिया.

मैं पलंग से बंधा बेबस अपने सामान को देख रहा था जो ट्रक में बेतरतीब ढंग से रखा गया था. ट्रक के पास लीना, उस की दोनों सहेलियां, बलदेव भैया, ताऊजी और मजदूर खड़े थे. आसपड़ोस के कुछ लोग भी थे मगर वे घटनास्थल से काफी दूर खड़े थे. उन के चेहरों पर डर के भाव थे और वे सहमीसहमी निगाहों से मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह का प्राणी हूं. कुछ एक ने तो अपनी नाक पर रूमाल ही टिका रखा था.

अब ताऊजी ने फरमान जारी किया कि इसे यहां से उठा कर सामने पार्क में किसी पेड़ के नीचे डाल दो.

चारों मजदूर पलंग की ओर बढ़े तो मैं बचाव में चिल्लाया और अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगा.

तभी मेरे घर के सामने एक कार आ कर रुकी तो मैं ने अपनी गरदन घुमा कर देखा.

कार में से डा. गुप्ता और एक लंबा, सुर्ख सफेद आदमी बाहर निकले.

सामान से भरे ट्रक पर एक नजर डालने के बाद डा. गुप्ता बोले, ‘‘लीनाजी, क्या मकान शिफ्ट कर रही हैं? तभी जल्दी में आप मनोजजी की रिपोर्ट भी क्लिनिक में छोड़ आईं,’’ फिर मेरी ओर देख कर डाक्टर बोले. ‘‘मनोजजी को ऐसे क्यों बांध रखा है? क्या बुखार सिर को चढ़ गया है?’’

‘‘नहीं, डाक्टर साहब, मुझे पार्क में डालने की तैयारी है,’’ लीना से पहले मैं बोल पड़ा.

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे  एड्स है,’’ मैं ने रुंधे गले से कहा.

‘‘किस ने बताया कि तुम्हें एड्स है?’’

‘‘आप ही ने तो लीना को बताया था कि मुझे एड्स है.’’

‘‘मैं ने…कब,’’ डा. गुप्ता लीना की ओर देखने लगे.

‘‘आज जब मैं आप के क्लिनिक में गई थी तो आप ने बताया था कि पोजिटिव रिपोर्ट आई है. तभी आप के यह दोस्त आ गए और आप ने मुझे बाहर भेज दिया और अपने कमरे में बैठ कर आप इन के साथ इस केस पर विचारविमर्श करने लगे. मैं ने बाहर बैठ कर सुना था. आप के मित्र ने कहा था कि इन को एड्स है,’’ इतना कह कर लीना सिसकने लगी.

‘‘मिस्टर लाल, हम ने कब इन के केस को ले कर डिसकस किया था?’’ डा. साहब ने अपने मित्र से पूछा.

कुछ सोचते हुए मिस्टर लाल बोले, ‘‘डा. गुप्ता, मैं ने आप के अस्पताल के लिए जो चैक विदेश से ला कर दिए और बताया कि यह ‘ऐड’ है उसे ही इन्होंने एड्स तो नहीं समझ लिया?’’ मिस्टर लाल ने डा. गुप्ता से प्रश्न किया.

‘‘तो आप लोग इन को एड्स होने की बात नहीं कह रहे थे?’’ लीना ने डरतेडरते पूछा, ‘‘और वह पोजिटिव रिपोर्ट?’’

‘‘वह तो इन के मलेरिया की रिपोर्ट थी,’’ डा. साहब ने बताया, ‘‘मैं इधर से निकल रहा था तो मैं ने सोचा कि मनोजजी की रिपोर्ट देता चलूं और दवाइयां भी लिख दूंगा.’’

डा. गुप्ता ने मेरी ओर देखने के बाद लीना की ओर मुंह फेरा और चुभते शब्दों में बोले, ‘‘किसी एड्स के मरीज को यों जकड़ कर पार्क में डालने की क्या तुक है?’’

‘‘चाहिए तो यह कि एड्स के मरीज को इस बात का एहसास न होने दिया जाए कि वह मौत की ओर खिसक रहा है,’’ मिस्टर लाल कहते गए, ‘‘उस के साथ तो ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि वह जीवन का आखिरी रास्ता सुकून से अपने हमदर्दों के बीच तय कर पाए और आप लोग तो जानते हैं कि यह बीमारी छूत की नहीं है फिर भी आप ने ऐसा बेवकूफी का काम किया?’’

डाक्टर के तेवर को देख कर ताऊजी बोले, ‘‘अरे, तुम लोग खडे़खडे़ मुंह क्या देख रहे हो. जाओ, जल्दी से जंवाई राजा के सामान को घर के अंदर पहुंचाओ’’.

ताऊजी ने बलदेव के हाथ से मकान की चाबी छीन कर घर का दरवाजा खोल दिया.

डेढ़ घंटे बाद कमरे में सामान के ढेर के पास मैं पलंग पर अधलेटे बैठा था. ट्रक जा चुका था. ताऊजी, बलदेव और लीना की दोनों सहेलियां बाहर से ही खिसक चुके थे और लीना?

लीना, अपनी नई कांच की चूडि़यां शृंगार बाक्स से निकाल, कलाइयों में पहने, डे्रसिंग टेबल के सामने बैठी अपनी कलाइयां घुमा कर चूडि़यां खनका रही थी.

दूर कहीं से गाने की आवाज आ रही थी :

‘‘मेरे हाथों में नौनौ चूडि़यां हैं…’’

बेहाल मध्यमवर्गीय परिवार

आपदा के समय रमेशचंद्र के मध्यमवर्गीय परिवार के भूखों मरने की नौबत आ गई. सरकार की तरफ से भी किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में उन्होंने देश में आपदा के हालात चल रहे थे, इस स्थिति में लोग न जाने कैसेकैसे अपने परिवार का पेट भर रहे थे. सरकार भी ऐसी स्थिति में जरूरतमंदों की यथासंभव सहायता कर रही थी. लेकिन एक परिवार ऐसा था जिसे खाने के लाले पड़े थे. सरकार से भी उसे कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसी स्थिति में रमेशचंद्र ने आपदा राहत कंट्रोल रूम में फोन किया, ‘‘नमस्कार जी, क्या आप आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहे हैं?’’

‘‘हां जी बोलिए, मैं आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.
तभी रमेशचंद्र ने लड़खड़ाती जुबान से कहा, ‘‘साहब, हमारे घर के पास झुग्गियों में कुछ बेहद लाचार किस्मत के मारे मजदूर रहते हैं, जोकि अपना राशन खत्म होने के कारण कई दिनों से भूख से तड़प रहे हैं. इन बेचारों की तुरंत मदद कर के उन की जान बचा लो साहब.’’औफिसर ने रमेशचंद्र को हड़काते हुए कहा, ‘‘उन लोगों ने मदद के लिए फोन क्यों नहीं किया और तुम क्यों कर रहे हो?’’‘‘साहब, गुस्सा मत होइए. वो बेचारे भूख से बहुत परेशान हैं. बात करने तक की स्थिति में नहीं हैं.’’ रमेशचंद्र ने प्यार से कहा.
‘‘ठीक है एड्रेस बताओ, कहां मदद पहुंचवानी है और कितने लोग हैं?’’

औफिसर ने पूछा. ‘‘जी साहब, लिखो. मकान नबंर 1008, सेक्टर 27, सिटी सेंटर. यहां 2 बच्चे व 4 लोग बड़े लोग हैं.’’ रमेशचंद्र ने बताया. यह सुनते ही उस अफसर ने गुस्से में भर कर रमेशचंद्र को डांटते हुए कहा, ‘‘तेरा दिमाग खराब है क्या, अभी तो झुग्गी बता रहा था और अब मकान का पता लिखवा रहा है, इस सेक्टर में तो सब पैसे वाले लोग रहते हैं.’’रमेशचंद्र ने बड़ी लाचारी से कहा, ‘‘जी साहब, दिमाग भी खराब है और आजकल किस्मत भी खराब चल रही है. आप ठीक कह रहे हैं कि इस सेक्टर में पैसे वाले लोग रहते हैं.

लेकिन साहब झुग्गी का कोई नंबर तो होता नहीं और अगर आप की टीम झुग्गी ढूंढने में इधरउधर भटकती रही और उन को मदद देर से पहुंची तो उन मुसीबत के मारों पर भूख के चलते पहाड़ टूट सकता है. साहब, उन की जान जा सकती है. इसलिए मैं ने अपने घर का पता लिखवा दिया है.’’‘‘तुम्हारी बातों से लगता है कि उन लोगों की बहुत गंभीर स्थिति है. चलो ठीक है, हम तुरंत मदद भिजवा रहे हैं, लेकिन तुम को जरा भी इंसान व इंसानियत की फिक्र नहीं है, एक टाइम रोटी बनवा कर तुम भी उन बेचारों को खिलवा सकते थे.

‘‘ऐसा कर के तुम्हारा कुछ बिगड़ तो नहीं जाता. खैर, मैं तुरंत मदद करने वाली जिला राहत टीम को आप के पास भेज रहा हूं. टीम आधे घंटे में तुम्हारे पास उन लोगों के लिए खाना व एक महीने का राशन ले कर पहुंच रही है.’’ ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद साहब. मैं हमेशा आप का बहुत एहसानमंद रहूंगा, वो लाचार भूखे लोग आप को हमेशा दिल से दुआ देंगे साहब.’’ रमेशचंद्र ने कहा.‘‘ठीक है, मैं ने इस काम के लिए टीम के वरिष्ठ अधिकारी विजय की ड्यूटी लगा दी. वो खाना व राशन ले कर निकलने वाले हैं. तुम उन का इंतजार करना.’’

‘‘जी साहब, मैं उन का इंतजार करूंगा, आप चिंता न करें.’’ लगभग आधे घंटे बाद रमेशचंद्र के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने उन से कहा, ‘‘मैं जिला राहत टीम से विजय बोल रहा हूं, घर के बाहर आ जाओ. ‘‘जी साहब, अभी आया.’’ कहते हुए रमेशचंद्र घर से बाहर निकले तो देखा कि एक जीप में 2 लोग खाना व सामान ले कर इंतजार कर रहे थे, वह पास घबराते हुए उन के पहुंचे और बोले, ‘‘साहब नमस्कार, मैं रमेशचंद्र हूं.’’ ‘‘ठीक है, बताओ कौन सी झुग्गी है जिन लोगों की खाने और राशन से मदद करनी है?’’ विजय ने कहा.

‘‘आप क्यों परेशान होते हैं, आप खाना व सामान मुझे दे दो, मैं उन की झुग्गी पर खुद ही पहुंचा दूंगा.’’ रमेशचंद्र बोले. ‘‘नहीं, मैं खुद दे कर आऊंगा. साहब का आदेश है कि उन मुसीबत के मारे लोगों से मिल कर जरूर आना और उन की कोई और जरूरत हो तो उन से पूछ लेना. तुम मुझे उन से मिलवाओ, जिस से मैं समय से अपना काम कर के किसी दूसरे व्यक्ति की मदद करने जा सकूं.’’ यह सुन कर रमेशचंद्र पसीने से तरबतर हो घबराते हुए बोले, ‘‘जी ठीक है, जैसा आप का आदेश, चलिए.’’

वह विजय को अपने छोटे से अव्यवस्थित घर के अंदर ले जाने लगे. ‘‘तुम आपदा के समय में मेरा टाइम खराब नहीं करो, हमें और भी जरूरतमंदों की सहायता करनी है. इसलिए हमारे पास आप के यहां बैठने का समय नहीं है. हमें जल्दी से उन झुग्गियों पर ले चलो.’’ रमेशचंद्र उस से नजरें छिपा कर बोले, ‘‘साहब मैं आप का टाइम खराब नहीं कर रहा बल्कि आप को जरूरतमंद लोगों के पास ही ले जा रहा हूं.’’
‘‘मैं तुम्हारे खिलाफ कानूनी काररवाई करूंगा, तुम ने इस भयंकर आपदा काल में झूठ बोल कर हमारा टाइम खराब किया. तुम इंसानियत के दुश्मन हो, जिस घर में तुम चलने के लिए बोल रहे हो, उस घर के लोगों को मदद की आवश्यकता नहीं हो सकती. कोई भी इस बात का अंदाजा घर और गाड़ी देख कर लगा सकता है. मैं फोन कर के पुलिस को बुलाता हूं.’’

विजय गुस्से से लाल हो कर मोबाइल से कोई नंबर मिलाने लगा तो रमेशचंद्र घबरा गए. उन्होंने मानमनौव्वल कर के जैसेतैसे उसे रोका तो वह बेहद गुस्से में वापस अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा.
रमेशचंद्र उसे रोकते हुए बोले, ‘‘साहब, अगर आप खाना और राशन दे जाएं तो आप का बहुत एहसान होगा. हम लोगों की जान बच जाएगी. मुझे और मेरे घर वालों को खाने व राशन की बहुत सख्त जरूरत है.’’

‘‘क्यों झूठ बोल रहे हो, तुम को जरूरतमंद लोगों का अधिकार मारते हुए शर्म नहीं आती. तुम्हारे घर के लोगों को मदद की क्या जरूरत है. तुम तो स्वयं सक्षम हो. तुम क्यों लाचार, मजबूर गरीबों का हक मारना चाहते हो, भयावह आपदा के काल में इतना बड़ा अपराध मत करो और वैसे भी तुम ने मदद झूठ बोल कर किसी अन्य व्यक्ति के लिए मंगवाई है.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘साहब, कुछ तो रहम करो मुझ पर और मेरे परिवार पर. हम लोग सक्षम नहीं हैं. आप एक बार घर के अंदर जा कर देखो तो सही, हमें मदद की बहुत सख्त जरूरत है साहब.’’

‘‘अगर तुम्हारी बात झूठ निकली तो मैं तुम्हें जेल भिजवा कर ही दम लूंगा. ठीक है, चलो तुम्हारे घर के अंदर चल कर देखते हैं.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र घबराते, लड़खड़ाते हुए विजय को अपने घर के अंदर ले गए.घर के अंदर की हालत देख कर जैसे विजय के पैरों तले की जमीन खिसक गई, उस की आंखें फटी रह गईं. वहां पर भूख से बिलखते 12 व 15 साल के 2 बच्चे और रमेशचंद्र के बुजुर्ग मातापिता और उन की 40 वर्षीय पत्नी मौजूद थी. उन सभी की स्थिति बेहद दयनीय थी.

यह देख कर विजय कुछ नहीं बोल पाया. उस ने तुरंत उन लोगों की जांच के लिए डाक्टर को बुलाने के लिए फोन किया और साथ आए आदमी से गाड़ी से खाना व राशन घर के अंदर रखने के लिए कहा.
यह सब देख कर रमेशचंद्र की आंखों से आंसू की धारा फूट पड़ी और कहा, ‘‘साहब, आज आप ने मेरे परिवार की जान बचा कर मुझ को हमेशा के लिए अपना ऋणी बना लिया. साहब, मेरा परिवार एक हफ्ते से भूखा है और मुझ को कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. इसलिए आज मैं ने परिवार की जान बचाने की खातिर झुग्गियों के नाम पर झूठ बोल कर राहत सामग्री मंगवाई थी.’’

रमेशचंद्र जमीन पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगे.विजय ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘जब तक डाक्टर साहब आते हैं, तब तक जरा मुझे अपने बारे में विस्तार से बताओ. यह घर और गाड़ी तो तुम्हारी ही है ना?’’‘‘हां साहब, यह घर भी मेरा है यह गाड़ी भी मेरी है. अभी साल भर पहले अपनी व मातापिता की ताउम्र की कमाई व बैंक से लोन ले कर दोनों खरीदे थे. लेकिन यह पता नहीं था कि लोन लेने के एक साल बाद ही आपदा के चक्कर में एकाएक मेरी नौकरी चली जाएगी और दरदर ठोकर खाने की स्थिति आ जाएगी.

‘‘साहब, हमारी कमाई तो बैंक का लोन भरने व बच्चों की पढ़ाई में ही खत्म हो जाती है. घर का खर्चा पिताजी की पेंशन से बड़ी ही मुश्किल से चल पाता है. हमारे पास किसी तरह की कोई भी बचत हो ही नहीं पाती. लेकिन अब तो खाने के भी लाले पड़ गए हैं. हम मध्यमवर्गीय तो आज के व्यावसायिक दिखावे वाले दौर में केवल कर्ज चुकाने के लिए जिंदा हैैं.’’ रमेशचंद्र ने अपनी व्यथा सुनाई. ‘‘लेकिन तुम अपने पड़ोसियों, परिचितों, रिश्तेदारों व यारदोस्तों से तो मदद मांग सकते थे.’’ विजय ने कहा.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं साहब, मैं ने मदद के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन हर कोई मदद की बात को मजाक मान कर टाल देता था. यह उधार की गाड़ी व मकान आज मेरी व मेरे परिवार की जान का दुश्मन बन गया है, इस के चलते कोई भी मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है. ‘‘कई बार मदद के लिए आपदा राहत कंट्रोल रूम भी फोन किया, लेकिन उन्होंने भी परिचय सुनते ही मुझे झिड़क दिया और दुत्कारते हुए कहा कि तुम गरीबों का हक मारना चाहते हो.

‘‘मैं खुद कई बार सामाजिक संगठनों द्वारा बंटने वाले भोजन व राशन भी लेने गया, पर वहां पर वो लोग मदद करते समय फोटो खींच रहे थे, इसलिए शर्म व बच्चों के भविष्य के बारे में सोच कर मैं बारबार वहां से वापस आ जाता था.’’ रमेश की दयनीय स्थिति समझने के बाद विजय की आंखों में आंसू आ गए. वह नि:शब्द हो गया. वह सोचने लगा कि एक मध्यमवर्गीय परिवार भी इतने गंभीर आर्थिक संकट में हो सकता है, आज उस की समझ में आ गया.

इतने में घर के गेट पर डाक्टर की गाड़ी आ कर रुकी, तो विजय उस गाड़ी के पास पहुंचा और डाक्टर को घर के अंदर ले गया. डाक्टर ने घर के सभी लोगों का चैकअप किया. चैकअप करने के बाद डाक्टर ने बताया, ‘‘भूख के चलते इन लोगों की हालत बहुत खराब है अगर इन को आज समय पर भोजन और चिकित्सा नहीं मिलती तो इन की जान जा सकती थी. अब मैं ने इन को एक हफ्ते की दवाई व विटामिन की गोलियां दे दी हैं. अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया है अगर कोई दिक्कत होगी तो मुझे फोन कर के बुला लेंगे.’’ ‘‘वैसे एक हफ्ते बाद मैं खुद इन को देखने आ जाऊंगा. खाना खाने के बाद ये एकएक खुराक दवा ले लेंगे. और बाकी कैसे खानी है, वह भी समझा दिया है. सुबह तक ये लोग अपने आप को काफी ठीक महसूस करने लगेंगे.’’ डाक्टर फिर वहां से चला जाता है.

विजय ने भी रमेशचंद्र को अपना पर्सनल नंबर देते हुए कहा, ‘‘आज सच में तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, शासन, प्रशासन व जिला राहत टीम ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि एक मध्यमवर्गीय परिवार पर भी आपदा के कारण इतनी भयंकर मार पड़ सकती है. मैं अभी औफिस जा कर अपने सीनियरों को स्थिति से अवगत करवाऊंगा और उन से भविष्य में मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद का भी प्रावधान करने की बात कहूंगा.’’‘‘साहब, मेरा भी आप से एक यही निवेदन है कि सरकार को अब मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद के लिए भी ध्यान देना चाहिए. क्योंकि सामाजिक संस्थाओं द्वारा मदद करते समय फोटो खींचने की वजह से कई लोग चाहते हुए भी उन से मदद नहीं ले पाते.

यह मजबूरी व लाचारी उन के जीवन पर बहुत भारी पड़ सकती है, इसलिए सरकार को उन का ध्यान रखना चाहिए.’’ रमेशचंद्र ने कहा. ‘‘बिलकुल. तुम ने हमारी आंखें खोल दी हैं और हम मध्यमवर्गीय परिवारों के सहयोग के लिए भी हरसंभव प्रयास करेंगे.’’विजय ने अपनी जेब में रखे 5 हजार रुपए निकाल कर रमेश को दिए तो रमेश ने पैसे लेने से इनकार कर दिया. बहुत इनकार करने के बाद भी विजय ने अधिकार के साथ जबरन पैसे देते हुए कहा, ‘‘सब का ध्यान रखना, कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन करना. अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’ इस के बाद वह गाड़ी में बैठ कर आंखों में आंसू लिए अपने औफिस की तरफ यह सोचता हुआ चल दिया कि धनवान लोगों के पास दौलत की कोई कमी नहीं. वह आपदा में भी साधन इकट्ठा कर के जीवन जी लेंगे. गरीब की मदद सरकार व समाजसेवी और धनवान लोग करते हैं.

लेकिन एक मध्यमवर्गीय परिवार के पास न तो दौलत है न वो गरीब है, जो कोई उस की मदद करे. ऐसे में वो आपदा के वक्त कैसे अपना और अपने परिवार का गुजारा करेगा. सरकारी तंत्र को भी इस तरह के हालात बनने से पहले ही मध्यमवर्गीय परिवारों की इस समस्या का समाधान करना चाहिए.
हमारे देश के सिस्टम को ध्यान रखना चाहिए कि मजबूरी, लाचारी किसी भी वक्त किसी भी व्यक्ति के सामने आ सकती है, इसलिए हमेशा मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं के आधार पर मदद का प्रावधान करना चाहिए.

मानसिकता का एक दृष्टिकोण

‘‘क्या मैं आप को आगे कहीं छोड़ सकता हूं?’’ उस ने कार ठीक उस के करीब रोक कर आवाज में भरपूर मिठास घोलते हुए अपनी बात कही.‘‘नेकी और पूछपूछ,’’ एक पल के लिए उसे देख वह हिचकिचाई, लेकिन अगले ही पल मुसकराते हुए वह कार के खुले दरवाजे से आगे की सीट पर जा बैठी.

हाईवे नंबर एक पर ठीक फ्लाईओवर से नीचे उतरते हुए एक ओर वह अकसर खड़े अंगूठे के इशारे से लिफ्ट मांगती नजर आती थी. हालांकि उस का वास्तविक नाम कोई नहीं जानता था लेकिन उस की हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती सुंदरता और उस के नितनए आधुनिक पहनावों पर कमर तक लहराते लंबे बाल सहज ही उस में एक परी की कल्पना को साकार करते थे. शायद इसीलिए उस का नाम औफिस में परी पड़ गया था.

औफिस के ही कई साथियों के अनुसार, फ्लाईओवर पर खड़े हो कर अपने लिए नितनए साथी ढूंढ़ने का उस का यह सटीक तरीका था. हालांकि यह कहना कठिन था कि औफिस के कितने लोगों ने उस की सचाई परखी थी लेकिन आज सागर ने औफिस से निकल कर जब कार फ्लाईओवर के रास्ते पर डाली थी तभी से वह उस के बारे में सोचने लगा था.

पति-पत्नी दोनों के कामकाजी होने के कारण अकसर औफिस से घर लौटते समय पत्नी के साथ होने की वजह से सागर चाहते हुए भी कभी उसे लिफ्ट देने की नहीं सोच पाया था. लेकिन आज इत्तफाक से पत्नी की औफिस से छुट्टी होने से वह अकेला था और वह इस अवसर को खोना नहीं चाहता था.

‘‘कहां तक जाएंगी आप?’’ उस की ओर देख मुसकराते हुए उस ने कार खाली रास्ते पर आगे बढ़ा दी. शामका सूरज ढलती रात का आभास देने लगा था.

‘‘अब जहां तक आप साथ दे देंगे,’’ अब तक अपनी हिचकिचाहट पर वह भी काबू पा चुकी थी और सहज ही मुसकरा रही थी.

‘‘तो क्या आप कुछ घंटों के लिए मेरा साथ पसंद करेंगी?’’ कहते हुए सागर को उस की मुसकराहट कुछ रहस्यमय लगी लेकिन उस के बारे में लोगों की व्यक्त राय उसे एकदम सही लगने लगी थी.

‘‘ओह, तो आप मेरे साथ समय गुजारना चाहते हैं?’’ अनायास ही वह हलकी हंसी हंसने लगी.‘‘अगर आप को एतराज न हो, तो?’’‘‘मुझे क्या एतराज हो सकता है, भला,’’ उस की रहस्यमयी मुसकान पहले से अधिक गहरी हो गई थी.

कार टोल पार कर अब खुले हाईवे पर आ चुकी थी. वह चाहता तो कार की स्पीड बढ़ा सकता था, लेकिन उस ने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया और कार को धीमा ही चलाता रहा. बीचबीच में उस के हसीन चेहरे को देखना सागर को बहुत अच्छा लग रहा था. वह उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहता था. आपस में नजर मिलते ही उस का मुसकरा देना सागर के लिए जैसे गरमी के मौसम में भी ठंडी हवा का झोंका बन कर आ रहा था.

ऐसा नहीं था कि उस का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था या उस की पत्नी सुंदरता व आधुनिकता के मामले में किसी से कम थी लेकिन न जाने क्यों जब से उस ने परी की कहानियां सुनी थीं और उसे एक नजर देखा था, तब से ही वह एक बार उस का साथ पा लेने के लिए बेचैन सा हो उठा था. और आज उस के पहलू में बैठी परी मानो उस की इच्छाओं को पूरा करने के रास्ते पर उस के साथ जा रही थी.

इधर, दूसरी ओर ‘परी’ यानी कामना जो अपनी आधुनिक जीवनशैली व खुलेअंदाज के कारण मौडल, हीरोइन, लैला और परी जैसे कितने नामों से कथित पुरुष समाज में जानी जाने लगी थी, आज सामने आई इस परिस्थिति में सहज मुसकराते हुए खुद को नौर्मल रखने का हर संभव प्रयत्न कर रही थी, लेकिन उस का मन उसे पीछे कहीं पुरानी यादों में जबरन खींच कर ले जा रहा था. उस रोज पति के साथ हुई बातें उस के जेहन में फिर से ताजा होने लगी थीं.

‘हां, मुझे एतराज है तुम्हारे इस आधुनिक पहनावे और गैरों से खुलेव्यवहार पर,’ अजय की आवाज अपेक्षाकृत ऊंची थी.

‘लेकिन, कभी मेरी यही खूबियां तुम्हें अच्छी भी लगती थीं अजय. अब ऐसा क्या हो गया जो तुम्हें ये सब बुरा लगने लगा,’ वह भी पलट कर जवाब देने से नहीं चूकी थी, ‘कहीं ऐसा तो नहीं, जिन नजरों से तुम मेरी सहेलियों को देखते हो, वही मानसिकता तुम्हें हर पुरुष की लगने लगी है?’

‘कामना,’ अजय एकाएक गुस्से से चिल्ला पड़ा था, ‘तुम्हें कोई हक नहीं मुझ पर इस तरह आरोप लगाने का.’‘मैं आरोप नहीं लगा रही, बल्कि तुम्हें सच का आईना दिखा रही हूं, जो मेरी सहेली भावना ने मुझे तुम्हारी आवाज की रिकौर्डिंग के साथ व्हाट्सऐप किया है. चाहो तो तुम स्वयं इसे सुन सकते हो,’ कहते हुए उस ने अजय के सामने अपना मोबाइल फेंक दिया था.

‘ओह शिट, योर ईडियट फ्रैंड,’ अजय बदतमीजी से बोला, दो बातें तारीफ करते हुए कह भी दीं तो क्या गुनाह कर दिया, आखिर ये औरतें मौडर्न बनने का इतना ढोंग क्यों करती हैं जब मानसिकता उन्नीसवीं सदी की ही रखती हैं.’‘क्योंकि तुम मर्दों की मानसिकता में अपने घर की औरत और बाहर की

औरत के  लिए हमेशा विरोधाभास रहता है.’‘कामना, शटअप, ऐंड कीप क्वाइट नाऊ.’‘हां, हो जाऊंगी मैं चुप,’ कामना उस को जवाब दिए बिना चुप नहीं होना चाहती थी, ‘लेकिन अच्छा होगा कि सुधर जाओ, वरना…’

‘‘हैलो, हैलो, कहां खो गईं आप? अरे, मैं कुछ कह रहा हूं, कहां खो गईं आप?’’ सागर के बारबार उस को पुकारने पर वह अनायास ही वर्तमान में लौट आई.

‘‘जी, नहीं, कहीं नहीं. बस, यों ही कुछ सोचने लगी थी, कुछ कह रहे आप?‘‘मैं कह रहा था कि यहीं पास में एक अच्छा रैस्टोरैंट है, अगर आप को एतराज न हो तो…’’ अपनी बात अधूरी ही छोड़ कर सागर मुसकराने लगा था.’’

‘‘नहीं, मुझे भला क्या एतराज हो सकता है,’’ जवाब देते हुए वह भी मुसकराने लगी.सागर ने कार रैस्टोरैंट की ओर मोड़ दी, स्टेरिंग के साथसाथ उस का दिमाग भी आगे के बारे में गोलगोल सोचने लगा था. इधर कामना फिर अतीत की गहराइयों में जा पहुंची जहां अब समयसमय पर अजय की बातों से समाज में कुछ न कुछ सुनाई पड़ ही जाता था. ऐसा नहीं था कि अजय उस के प्रति कभी लापरवाह रहा हो या उन के आपसी प्रेम में कोई कमी दिखाई देती हो, लेकिन इस तरह की घटनाएं अकसर उसे विचलित कर देती हैं और फिर उस दिन घर की कामवाली सोनाबाई के अजय पर सीधा अटैम्पट टू रेप का आरोप लगाने के बाद तो सबकुछ खत्म हो गया था. पीछे शेष रह गई थी सिर्फ आरोपप्रत्यारोप और उस के दामन तक पहुंचने वाले छींटे. पति ही नहीं, पत्नी भी दोषी है क्योंकि यदि पत्नी समर्पित होती तो मतलब ही नहीं कि पति बाहर मुंह लगाने की सोचे…’

‘‘ट्रिन…न…न…’’ की तेज आवाज से वह एक बार फिर अतीत छोड़ वर्तमान में आ गई. कार रैस्टोरैंट के पास खड़ी थी और सागर उसे नीचे उतरने के लिए कहना चाह रहा था.एक क्षण के लिए वह जड़ हो गई,

लेकिन जल्दी ही उस ने खुद को संभाल लिया. ‘‘हां, हमें उतरना चाहिए. पर क्या मैं इस से पहले आप के मोबाइल से एक कौल कर सकती हूं.’’

‘‘हां, जरूर, क्यों नहीं.’’ कहते हुए सागर ने आंखों में असमंजस का भाव लिए अपना आईफोन उसे थमा दिया.‘‘टिं्रग…टिं्रग…टिं्रग…’’

‘‘मेरी प्रिय सखी, इस नंबर को देख कर तुम यह तो समझ ही गई होगी कि मैं इस समय किस के साथ हूं, मिलाए गए नंबर पर जवाब मिलते ही वह बात शुरू कर चुकी थी.’’

‘‘ज्यादा हैरान मत होना, सखी. बस, कुछ देर बात करना चाहती हूं तुम से.’’अनायास ही सागर को आभास होने लगा था कि आज वह एक बड़ी गलती कर बैठा है, परी उसे बखूबी जानती है और दूसरी ओर फोन पर अवश्य ही उस की कोई जानकार है जिस से वह इस समय बात कर रही है.

‘‘तुम्हें याद है न, सखी,’’ वह अपना वार्त्तालाप जारी रखे हुए थी और अनायास ही उस ने फोन को स्पीकर मोड पर कर दिया था, ‘‘तुम ने मुझ से कहा था कि यदि पत्नी समर्पित और सच्चरित्र हो तो कोई कारण नहीं कि पति के कदम भटक जाएं. और मैं तुम्हारी इस बात का कोई जवाब नहीं दे पाई थी क्योंकि मैं खुद भी नहीं समझ पाई थी कि मेरा पति क्या वास्तव में भटका हुआ था या सिर्फ मेरी कामवाली का उस पर लगाया गया आरोप महज एक हादसा था.’’

‘‘पहले मुझे यह बताओ कि सागर कहां है?’’ स्पीकर पर पत्नी की आवाज सुन एक क्षण के लिए वह सिहर गया. इस बदलते घटनाक्रम को देख कर वह कार को रास्ते के एक ओर रोक कर पूरा माजरा समझने का प्रयास करने लगा. फोन पर पत्नी की मनोस्थिति महसूस कर वह अब खुद को निष्क्रिय सा महसूस करने लगा था.

‘‘चिंता मत करो, भावना. तुम्हारा पति मेरे साथ है और हां, मैं ऐसा कुछ नहीं करने जा रही जैसा कि लोग मेरे बारे में सोचते हैं.’’ उस के शब्द जैसे सागर का उपहास उड़ा रहे थे जो अपने कई कथित साथियों की तरह उस के बारे में एक गलत राय बना बैठा था. ‘‘और हां, न ही मैं तुम्हारी निष्ठा और समर्पण पर कोई सवाल उठा रही हूं. बस, मैं तो…’’ अपनी बात कहते हुए उस ने एक जलती नजर पास बैठे सागर पर गड़ा दी थी, ‘‘मैं तो उस सवाल के बारे में सोच रही हूं जिस का उत्तर मुझे उस दिन भी नहीं मिला था और आज भी नहीं मिला है. यदि पत्नी हर तरह से समर्पित है और उस के बाद भी पति के कदम भटकते हैं तो यह महज उन की कामनाओं की दुर्बलता है या सदियों से नारी को भोग्या मान लेने की नरमानसिकता.’’

कामना अपनी सखी भावना से बात खत्म कर, कार का दरवाजा खोल, जा चुकी थी और सागर पत्थर बना मोबाइल की ओर देख रहा था जिस पर अभी भी पत्नी की हैलोहैलो गूंज रही थी. दूर कहीं शाम का ढलता सूरज रात में बदल चुका था.

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