एलीगैंट एंड स्टाइलिश सना मकबूल : ‘बिग बौस’ में एक्ट्रैस ने बताया डिप्रैशन की भी हुई थी शिकार

सना मकबूल बिग बौस 3 की विनर हैं. उन्होंने अपने स्टाइल और एटीट्यूड से फैंस के दिलों में जगह बनाई. कम समय में सना ने कैरियर की लंबी छलांग लगाई है, मगर आगे का रास्ता आसान नहीं है.

हाल ही में हुए बिग बौस ओटीटी 3 से विनर बन कर निकलीं सना मकबूल शुरुआत से ही अपनी जीत को ले कर पूरी तरह कौन्फिडैंट थीं. हौट एंड सैक्सी सना ने शो में एक से बढ़ कर एक आउटफिट पहने. उन्होंने अपने क्यूट डिंपल लुक से सभी को घायल कर दिया था. अब जबकि वे शो जीत गई हैं तो लोग उन के बारे में जानना चाहते हैं.

प्रिटी सना मकबूल खान का जन्म 13 जून, 1993 को महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ. वे मिडिल क्लास फैमिली से आती हैं. उन के पिता बिजनैसमैन हैं और मां हाउसवाइफ. सना का बचपन मुंबई में बीता, जहां उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की. स्कूल के दिनों में सना को ऐक्ंिटग और डांस का शौक था.

स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सना ने कालेज में एडमिशन लिया. उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से बैचलर औफ मास मीडिया की पढ़ाई की. कालेज की पढ़ाई के दौरान ही सना ने मौडलिंग की दुनिया में कदम रख लिया था.

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि सना मकबूल उन का असली नाम नहीं है. पहले उन का नाम सना खान था, बाद में उन्होंने अपना नाम बदल कर सना मकबूल खान कर लिया. तब से दुनिया उन को इसी नाम से जानती है.

कैरियर में छलांग

सना ने अपने कैरियर की शुरुआत मौडलिंग से की. पहले विज्ञापनों के जरिए उन्होंने अपनी छाप दर्शकों पर छोड़ी और फिर उन्होंने टीवी शोज में एंट्री ली. सब से पहले उन्हें साल 2009 में एमटीवी के ‘स्कूटी टीन डीवा’ में काम करने का मौका मिला. फिर वे म्यूजिकल सीरीज ‘ईशान : सपनों को आवाज दे’ में नजर आईं. सना ने मिस इंडिया में भी हिस्सा लिया था. वहां उन्होंने साल 2012 में ‘फेमिना मिस ब्यूटीफुल स्माइल’ का ताज अपने नाम किया था.

सना कई टीवी सीरियल्स में भी काम कर चुकी हैं. उन्होंने ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’, ‘अर्जुन’, ‘विष’, ‘आदत से मजबूर’, खतरा’, ‘बौस क्रिकेट

लीग 1’ एंड 2 और ‘कितनी मोहब्बत है 2’ में भी काम किया है. सना मकबूल खान को इंडस्ट्री में फेम ‘कितनी मोहब्बत है’ से मिला. इस सीरियल में उन्होंने लवण्या का रोल निभाया था. इस के बाद उन्होंने रोहित शेट्टी के शो ‘खतरों के खिलाड़ी’ सीजन 11 में कंटैस्टैंट के तौर पर भाग लिया और सभी को कड़ी टक्कर दी.

वे कुछ म्यूजिक वीडियोज में भी नजर आई हैं जिन में ‘खेलेगी क्या’, ‘एक तू ही तो है’, ‘पागल’, ‘गैलन’ शामिल हैं. सना कुछ फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं. उन्होंने 2014 में तेलुगू फिल्म ‘डिक्कुलू चूडाकु रामय्या’ और 2017 में तमिल फिल्म ‘रंगून’ से साउथ इंडियन फिल्म में काम किया है.

इस के अलावा वे तमिल फिल्म ‘कधल कंडीशंस अफवाई’ और तेलुगू फिल्म ‘मामा ओ चंदामामा’ में भी नजर आईं.

डिप्रैशन का भी किया है सामना

बिग बौस के दौरान सना ने बताया कि एक कुत्ते ने उन के होंठ वाले हिस्से को बुरी तरह से काट लिया था, जिस के बाद उन्हें 120 टांके आए और साथ ही, उन्हें एक सर्जरी भी करवानी पड़ी. इस सर्जरी से उभरने में उन्हें महीना लग गया. उन्होंने यह भी बताया कि इस घटना से वे करीब 9 महीने तक डिप्रैशन में रही थीं.

यह घटना 2020 में घटी थी. जब वे डौग को प्यार करते हुए किस करने जा रही थीं, तभी डौग ने उन्हें काट लिया. एक ऐक्ट्रैस के रूप में यह बहुत बड़ी घटना थी. उन का पूरा फेस बिगड़ गया. इसे ?ोल पाना उन के लिए बिलकुल भी आसान नहीं रहा होगा.

सना के साथ हुई इस घटना ने एक सीख तो दे ही है कि जानवर कब हमला कर दे, यह किसी को नहीं पता. इसलिए इन के ज्यादा नजदीक जाना सही नहीं है.

पर्सनल लाइफ की चर्चाएं

कई बार सना को एक मिस्ट्रीमैन के साथ देखा गया. आखिरकार ‘बिग बौस’ जीतने के बाद सना के इस मिस्ट्रीमैन का पता चल गया. यह मिस्ट्रीमैन और कोई नहीं बल्कि बडीलोन के संस्थापक श्रीकांत बुरेड्डी हैं. बडीलोन, एक पर्सनल लोन देने वाली कंपनी है और सना मकबूल इस की ब्रैंड एंबेसडर हैं. श्रीकांत कई और कंपनियों के भी संस्थापक हैं.

बिग बौस के बाद कैरियर

इतना तो तय है कि बिग बौस जीतने के बाद दीवा सना के पास फिल्ममेकर्स और म्यूजिक डायरैक्टर्स के औफर की लाइन लग गई होगी लेकिन यह इंडस्ट्री ऐसी है जहां हर 6 महीने में 6 नए नैशलन क्रश बनते हैं,

जहां नैपोटिज्म का बोलबाला है, जहां कम्युनल घटना को देख कर तनाव बन जाता है. सो, वहां सना कितना कामयाब हो पाती हैं, कितना सिक्का चलता है उन का, यह आगे पता चलेगा.

जहां ऐक्ट्रैस का कैरियर 15-17 साल का होता है, वहां 31 साल की हो चुकीं सना कितना कैरियर बना पाती हैं, यह भी देखने वाली बात होगी. बिग बौस में जीते विनर्स का कैरियर उतना सफल नहीं रहा जितना कि बिग बौस जीतने के बाद उन के फैंस ने किया था. कहीं सना का भी यही हाल न हो. खैर, यह तो वक्त ही बताएगा कि उन का कैरियर कितना सफल रहेगा. हम तो यही कहेंगे कि वे बैठेबिठाए किसी पचड़े में न पड़ें.

बात बराबरी का हक महिलाओं का भी, ‘स्त्री हो या पुरुष फर्क कहां है’

आज स्त्रियां पढ़लिख कर अपनी काबिलीयत दिखा रही हैं. उन के पास आगे बढ़ने के मौके भी हैं. इसलिए आज हमें समाज और दुनिया की संरचना इस तरह करनी चाहिए कि पुरुष और स्त्री के लिए बराबर की भूमिका हो. अब तकनीक ने बराबरी के मौके ला दिए हैं. अब भोजन लाने के लिए जंगल नहीं बल्कि सुपर स्टोर या मौल जाना होता है. एक स्त्री इस काम को बेहतर तरीके से कर सकती है.

अगर कभी हम अपनी आंखें बंद कर के खाना बनाते किसी शख्स की तसवीर सोचें तो वहां कौन होगा? यकीनन एक मां, एक बहन, एक पत्नी या कुल मिला कर कहें तो एक महिला की तसवीर दिखेगी. हम कभी सोचते हैं कि ऐसा क्यों है? क्यों हमें किचन में पिता, भाई या कोई अन्य पुरुष खाना बनाते हुए नहीं दिखता? वहीं अगर आप होटल, रेस्तरां या ढाबे जैसी जगहों की बात करें तो हमें कभी महिलाएं नहीं दिखतीं या बहुत कम दिखती हैं.

दरअसल, जहां इस काम के लिए पैसे मिलते हैं वहां अमूमन पुरुषों का कब्जा है. समाज के ये पितृसत्तात्मक मानदंड लोगों को जकड़े हुए हैं. पारिवारिक नियमकायदे सब उसी हिसाब से बने हैं.

हमारे घरों में आमतौर पर खाना बनाने का काम महिलाओं का ही रहा है. सदियों से यह रिवाज चलता आ रहा है कि घरेलू काम जैसे साफसफाई, ?ाड़ूपोंछा, कपड़े, बरतन धोना,

खाना बनाना, बच्चों को संभालना आदि महिलाएं करेंगी और घर के बाहर के काम पुरुष करेंगे. पहले कमाने की जिम्मेदारी केवल पुरुषों की होती थी मगर आज अनेक महिलाएं भी नौकरी करने लगी हैं.

वे पूरा दिन औफिस में माथापच्ची करती हैं. इस के बावजूद उन्हें घरेलू काम भी साथ में करने होते हैं. चाहे वे कितनी भी व्यस्त हों, भले ही औफिस जाने में कितनी देर हो रही हो, उन्हें हर काम निबटा कर ही जाना होता है. अगर वे ऐसा नहीं कर पा रहीं तो उन्हें नौकरी छोड़ने की सलाह दी जाती है. बच्चा छोटा है तब भी उन्हीं की नौकरी पर गाज गिरती है, जबकि परिवार पति और पत्नी दोनों का है तो क्या उन्हें मिल कर काम नहीं करने चाहिए?

काम का बंटवारा

हम अकसर स्त्रीपुरुष बराबरी या समानता की बात करते हैं. यह आज की जरूरत भी है और स्त्रियों का हक भी. यहां बराबरी यानी समानता से मतलब है समान मौका, समान इज्जत, सामान दायित्व और एक समान अहमियत. आज परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं और बहुत से क्रियाकलाप पुरुष और स्त्रियां दोनों कर सकते हैं जो पहले के जमाने में संभव नहीं था. हजारोंलाखों साल पहले ज्यादातर लोग गांवों में रहते थे और चारों ओर जंगल होता था. हर जगह जंगली पशु होते थे. उस समय कोई दुकान भी नहीं होती थी जहां से कुछ खरीदा जा सके.

आप को रोजाना शिकार करना होता था या खाने के लिए कहीं से कुछ तोड़ कर लाना होता था. बाहर जा कर यह काम करने के लिए पुरुष निश्चित तौर पर उपयुक्त था. स्त्री के लिए एक प्राकृतिक जिम्मेदारी थी बच्चे पैदा करने की. अगर वह छोटे शिशु को ले कर जंगल जाती तो उसे खाली हाथ लौटना पड़ सकता था. इसलिए बच्चों के कारण स्त्री को घर में रखा जाता था और पुरुष भोजन की तलाश में बाहर जाता था. बच्चों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती थी. इसलिए उस वक्त यह काम का एक आदर्श बंटवारा था.

तकनीक ने बराबरी के मौके दिए हैं

आज वक्त बदल चुका है. आज स्त्रियां पढ़लिख कर अपनी काबिलीयत दिखा रही हैं. उन के पास आगे बढ़ने के मौके भी हैं. इसलिए आज हमें समाज और दुनिया की संरचना इस तरह करनी चाहिए कि पुरुष और स्त्री के लिए बराबर की भूमिका हो. अब तकनीक ने बराबरी के मौके ला दिए हैं. अब भोजन लाने के लिए जंगल नहीं बल्कि सुपर स्टोर या मौल जाना होता है. एक स्त्री इस काम को बेहतर तरीके से कर सकती है. रोजीरोटी कमाने का मतलब अब भाला फेंकना और पशुओं का शिकार करना नहीं रह गया है. अब इस के लिए आप को कीबोर्ड पर टाइप करना होता है, कंप्यूटर पर काम करने होते हैं, कागजकलम का उपयोग करना होता है या फिर अपनी वाकपटुता से काम निकालना होता है.

स्त्री इस तरह के काम को भी बेहतर ढंग से कर सकती है क्योंकि उसे हर घंटे उठ कर बाहर का नजारा लेने, सिगरेट सुलगाने या पान चबाने की आदत नहीं होती. वह काम के लिए बैठती है तो बस काम करेगी. स्त्रियां इन चीजों को पुरुषों से बेहतर करती हैं. यह सब इंसानी दिमाग के विकास या स्त्री की आजादी या पुरुषों की उदारता की वजह से नहीं हुआ है. यह बस तकनीक का विकास है. इस से बराबरी के मौके उत्पन्न हुए हैं.

स्त्री हो या पुरुष फर्क कहां है

जब आप सड़क पर चल रहे हों तो आप को इस बात की चिंता क्यों होनी चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति स्त्री है या पुरुष? यह चीज सिर्फ बाथरूम या बैडरूम में ही माने रखती है बाकी किसी जगह इस बात का कोई महत्त्व नहीं होता. सड़क पर, काम करने की जगह पर या फिर हम कहीं भी हों वहां इस बात का फर्क क्यों पड़ना चाहिए कि कोई व्यक्ति स्त्री है या पुरुष? हम उन्हें सिर्फ इंसान के तौर पर क्यों नहीं देख सकते? और जब बात नौर्मल इंसान की है तो उसे घर के काम भी करने होंगे और बाहर के भी.

यह कहने का कोई औचित्य नहीं कि घर की साफसफाई या किचन के काम स्त्री की जिम्मेदारी हैं और बाहर के काम पुरुष को संभालने होंगे. जब स्त्री कमाने के लिए बाहर जा सकती है तो पुरुष घर में टिक कर किचन और बच्चे क्यों नहीं संभाल सकता?

दरअसल, हम लोगों को उन के लिंग से पहचानते हैं. वह स्त्री है तो उस में स्त्रियोचित गुण होने चाहिए. वह घर की रानी कम और दासी ज्यादा है और इस हकीकत को ठुकरा नहीं

सकती, जबकि वह पुरुष है तो वह घर का मालिक है. स्त्री भला पुरुष से बराबरी कैसे कर सकती है? स्त्री को बाहर जा कर कैरियर बनाने का शौक है तो बनाए मगर घर की जिम्मेदारी निभाने के बाद यानी लोगों को आप उन की

बुद्धि से नहीं, उन की काबिलीयत से नहीं, उनकी क्षमता से नहीं बल्कि उन के लिंग से पहचान रहे हैं.

दुनिया को देखने का यह तरीका ठीक नहीं है. हमारे जीवन के कुछ पहलुओं के लिए लिंगगत पहचान महत्त्वपूर्ण होती है लेकिन जीवन के बाकी हिस्से में ज्यादा अहम यह होता है कि आप के पास दिमाग कितना है, आप कितने योग्य हैं, आप किस काम में ज्यादा निपुण हैं. लिंग से पहचानना जीवन के कुछ खास रिश्तों के लिए जरूरी होता है. बाकी रिश्तों में लिंग से पहचानने की बात तो बीच में आनी ही नहीं चाहिए. केवल तभी दोनों के बीच समानता होगी.

घरेलू काम करना मदद क्यों कहलाता है

समाज के नियमों के अनुसार खाना बनाना सिर्फ महिलाओं का काम है. यह एक सामाजिक धारणा है. पुरुष चाहें तो खाना बनाने में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं. समाज ने कभी महिलाओं को इतना हक नहीं दिया कि वे पुरुषों से पूछ सकें कि अगर खाना वे खा रहे हैं तो

बनाने का जिम्मा सिर्फ घर की स्त्रियों के ऊपर ही क्यों है? क्या पुरुषों की जिम्मेदारी सिर्फ खाना है? बहुत से लोगों से जब पूछा जाता है कि क्या आप घर का काम करते हैं या खाना बनाते हैं तो उन का जवाब होता है कि वे पत्नी या मां की मदद करते हैं यानी काम तो महिलाओं का ही है. वे घरेलू काम को मदद का नाम देते हैं और मदद कर के एहसान जताते हैं. अपने ही घर में कोई काम करना मदद कैसे कहला सकता है?

सोचने वाली बात है कि जब परिवार और बच्चे दोनों के हैं तो पति और पत्नी दोनों को मिल कर काम क्यों नहीं करना चाहिए? खाना भी दोनों को मिल कर बनाना चाहिए. बच्चे भी मिल कर संभालने चाहिए. हमारे घरों में ऐसा कहा जाता है कि अगर महिलाएं स्वस्थ हैं तो घर का काम उन्हें खुद ही करना चाहिए. शादी के बाद अकसर सभी महिलाएं पूरी जिंदगी हर दिन खाना बनाती हैं. इस काम से उन्हें कभी छुट्टी नहीं मिलती.

मन भी लगेगा और भार भी कम होगा

क्या आप को यह नहीं लगता कि मिल कर काम करने का मजा ही अलग होता है? जब पतिपत्नी मिल कर काम कर रहे होते हैं तो उन्हें एक साथ क्वालिटी टाइम बिताने का मौका मिलता है. उन के पास समय होता है जब वे एकदूसरे से दिनभर की बातें शेयर करें. अपने औफिस में क्या चल रहा है इस बारे में डिस्कस करें. किचन ऐसी जगह है जहां आप फोन के साथ नहीं बल्कि जीवनसाथी के करीब रह सकते हैं. एकदूसरे से मीठी छेड़छाड़ और प्यारमनुहार का आनंद ले सकते हैं. कोई और डिस्टर्ब करने वाला नहीं होता.

हंसीमजाक के माहौल में मजेदार खाना बनाने के साथ मजेदार बातें भी कर सकते हैं. इस से आप का मन भी लगेगा और पत्नी का भार भी कम होगा. पति यदि ज्यादा अच्छा खाना बनाना नहीं जानते तो कम से कम पत्नी को प्याज, आलू, लहसुन और दूसरी सब्जियों की कटिंग और चौप्पिंग कर के तो दे ही सकते हैं. रोटी बनाने और खाना परोसने में भी साथ दे सकते हैं. समय के साथ वे खुद भी व्यंजन बनाना सीख ही जाएंगे.

बचपन से ही खाना बनाना सिखाया जाए तो दूसरे शहर में अकेला रहना आसान होगा. पुरुषों द्वारा किचन के काम में भागेदारी करना खुद उन के लिए भी अच्छा है. अगर बचपन से ही घर के लड़कों को किचन में घुसाया जाए और घरेलू काम करने को दिए जाएं तो जब वे पढ़ने या नौकरी करने के लिए अकेले कहीं होस्टल या कमरा ले कर रहेंगे तो सब बहुत आसान हो जाएगा. इस से वे आत्मनिर्भर बनते हैं और अपना खाना खुद बना कर चैन से रहते हैं. किसी के आसरे नहीं रहते कि खाना कोई देगा ला कर तब पेट भरेगा या मजबूरन बाहर होटल वगैरह में खाना पड़ेगा.

खाना बनाना एक आत्मनिर्भरता का गुण है. इसे एक ऐसे कौशल के रूप में देखा जाना चाहिए जो जीवनभर काम आता है. बचपन से किचन के काम की आदत बच्चों को तभी लगेगी जब वे घर के बड़ों यानी पापा, चाचा आदि को ऐसा करते देखेंगे. जब पुरुष खाना बनाते हैं तो यह न केवल उन के जीवनसाथी को सहयोग करता है बल्कि बच्चों के लिए भी एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है. इस से बच्चों में भी यह भावना विकसित होती है कि घर के कामों में सभी को अपनी हिस्सेदारी निभानी चाहिए. यही वजह है कि घरेलू काम और खाना पकाने की जिम्मेदारी पुरुषों को भी उठानी चाहिए.

मजबूत हो सकती है पारिवारिक रिश्तों की नींव

देखा जाए तो खाना बनाने की कला कोई कठिन काम नहीं है. यह एक रचनात्मक और मजेदार प्रक्रिया हो सकती है जिस में पुरुष भी भागीदार बन सकते हैं. खाना बनाने में पुरुषों की भागीदारी से परिवार के सदस्यों को एकदूसरे के और करीब आने का मौका रहता है. जब सब मिल कर काम करते हैं तो आपसी सम?ा और सामंजस्य बढ़ता है. खाने की मेज पर बैठ कर एकसाथ भोजन करना और रसोईघर में मिल कर खाना बनाना पारिवारिक बंधनों को मजबूत कर सकता है. खाना बनाना एक जैंडर न्यूट्रल काम है. इस में पुरुषों की भागीदारी होनी चाहिए. हमारे समाज में पुरुषों को रसोई से दूर रखा जाता है जोकि गलत है. पुरुषों को यह बैरियर तोड़ने की जरूरत है.

बराबरी दूसरे कामों में भी

औरतों को सिर्फ किचन में बराबरी की सोच नहीं रखनी चाहिए. यह बराबरी जीवन के दूसरे पहलुओं में भी नजर आना चाहिए. मसलन, अगर पुरुष घरेलू काम कर सकते हैं तो स्त्रियां भी बाहर के काम कर सकती हैं. बैंक के जुड़े काम हों या बिल भरने का काम, जरूरी सामान की शौपिंग हो या कोई स्विच बदलना हो, नल ठीक करना हो या कील ठोंकनी हो, बिजली के तारों को जोड़ना हो या फिर छत पर जा कर टंकी देखनी हो, महिलाएं अकसर ऐसे छोटेमोटे कामों के लिए पुरुषों का मुंह ताकने लगती हैं. यह उचित नहीं.

आज की नारी इतनी पढ़ीलिखी, सम?ादार और ताकतवर है कि हर तरह के काम कर सकती है. कहीं बाहर जाना है तो खुद कार या स्कूटी ड्राइव कर के जाएं न कि पति के पीछे बैठने की आदत रखें. इसी तरह कोई भी काम हो खुद को पीछे रखने की जरूरत नहीं. स्त्री हो या पुरुष दोनों बराबर हैं. पुरुष अगर दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाने का प्लान बना सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? वह भी अपने ग्रुप के साथ घूम कर आए.

बच्चों के जन्म के समय अकसर औरतों को ही औफिस से छुट्टियां लेनी होती हैं ताकि वे नन्हेमुन्ने की देखभाल कर सकें. कई दफा इस चक्कर में उन्हें नौकरी से हाथ भी धोना पड़ता है. मगर क्या बच्चे केवल स्त्री के हैं? क्या पति का  दायित्व नहीं बनता कि वे भी बच्चे की देखभाल करें और इस के लिए छुट्टी लें. कुछ समय स्त्री घर में रहे तो कुछ समय पुरुष. इस से दोनों को बच्चे के साथ समय बिताने का आनंद तो मिलेगा ही साथ ही स्त्री का कैरियर भी नहीं डूबेगा.

आर्थिक बराबरी

अगर स्त्री कमा रही है तो उस का अपना बैंक अकाउंट होना चाहिए. उस का अपना बैंक बैलेंस होना चाहिए. उसे जहां मन करे वहां इन्वैस्ट करे. जो मन आए वह चीज खरीदे. वह नहीं कमा रही तो भी पति के साथ उस का जौइंट अकाउंट जरूर हो. पति और पत्नी दोनों के नाम मकान हो यानी मकान का मालिक केवल पुरुष क्यों रहे? पत्नी के नाम से भी घर खरीदा जाए.

कोई लोन चुकाना है तो उसे भी दोनों मिल कर चुकाएं. कानून ने भी स्त्रियों को संपत्ति में समान अधिकार दिए हैं. प्रैक्टिकली भी इसी बात को स्वीकारा जाए. हक के साथ स्त्रियां अपने दायित्व भी निभाएं. पेरैंट्स स्त्री के हों या पुरुष के जरूरत पड़ने पर दोनों मिल कर उन की आर्थिक मदद करें, उन का खयाल रखें.

रूढि़वादी नियमों से अलग हो कर भारतीय घरों में पुरुषों को खाना बनाने और घरेलू कामों की जिम्मेदारी महिलाओं के साथ निभानी चाहिए. यह न केवल समानता और सा?ोदारी को प्रोत्साहित करेगा बल्कि घरों में महिलाओं का अवैतनिक काम का बो?ा कम करेगा. खाना बनाने की जिम्मेदारी के साथ ही दूसरे मामलों में भी समानता को बढ़ावा देना चाहिए. हमें ऐसी प्रथाओं को समाप्त करने की जरूरत है जो स्त्री को नीचा दिखाती हैं.

इस की शुरुआत हमारे बचपन से होनी चाहिए. हमारी शिक्षा व्यवस्था को भी बदलने की जरूरत है. भारतीय समाज में घर का कामकाज और खाना बनाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर थोप दी गई है. ऐसा माना जाता है कि महिलाएं स्वाभाविक रूप से इस तरह के कामों में निपुण होती हैं. हमें मिल कर इस सदियों पुरानी सोच को बदलने की जरूरत है और अपने घर में बराबर की जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है

BB और CC क्रीम में क्या है अंतर, स्किन के लिए कौनसी है बैस्ट

क्या आपको मेकअप करना पसंद है और आप हैवी ब्यूटी प्रौडक्ट्स का इस्तेमाल न करके फेस पर कम से कम प्रोडक्ट्स लगा कर झटपट बेस्ट रिजल्ट पाना चाहती हैं तो आप फाउंडेशन की लेयर की जगह बीबी क्रीम या सीसी क्रीम जरूर ट्राई करें. क्योंकि ये आपकी स्किन केयर की जरूरत को ध्यान में रखकर बनाया गया प्रोडक्ट है. बीबी और सीसी क्रीम क्या है, इसमें क्या अंतर है और इसे कैसे लगाए ये सब बता रही है ब्यूटी एक्सपर्ट.

एस स्टूडियो अकेडमी की औनर मेकअप एक्सपर्ट एण्ड एंटरप्रेन्योर सावी बर्तवाल का कहना है, “चुभती-जलती गर्मी की तेज धूप और यू वी-बी किरणों की वजह से स्किन में कई तरह की प्रौबलम्स हो जाती है. इन प्रौबलम्स से बचने के लिए आप बीबी क्रीम या सीसी क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. ये दोनों आपकी स्किन को बेस्ट रिजल्ट देती है. लेकिन आप इसका इस्तेमाल अपनी स्किन टोन, स्किन प्रौब्लम के अनुसार ही करे.”

क्या है बीबी क्रीम-

बीबी क्रीम को ब्लेमिश बाम के नाम से जानते है. कुछ लोग इसे ब्यूटी बाम भी कहते हैं. ब्लेमिश, फेस पर सनबर्न या एक्ने की वजह से पड़ने वाले स्पौट्स और मार्क्स को कहते हैं. इन मार्क्स को छुपाने का काम ब्लेमिश बाम या बीबी क्रीम ही करती है.

क्या है सीसी क्रीम

सीसी क्रीम, कलर करेक्शन या काम्पलेक्शन केयर का शार्ट रूप है. इंडियन लोगों की स्किन की सबसे बड़ी प्रौब्लम है फेस पर पैचीनेस यानी फेस की स्किन का अनइवन कॉम्प्लेक्शन होना, फेस में रेडनेस होना. ये क्रीम आपके फेस की प्रौब्लम को दूर कर काम्प्लेक्शन को एक समान बनाने का काम करती है.

सीसी क्रीम के फायदे

सीसी क्रीम का टेक्स्चर बीबी क्रीम से लाइट होती है. इसलिए इसे लगाने पर स्किन पर सौफ्ट मैट इफैक्ट आता है. अगर आप डेली कंसीलर का इस्तेमाल करती हैं तो सीसी क्रीम आपके लिए एक गुड औप्शन है.

बीबी क्रीम से फायदे

बीबी क्रीम एक ऐसा आल इन वन स्किन केयर ब्यूटी प्रोडक्ट है. जो फेस के स्टेंस और स्पौट्स को इजली कवर करके नेचुरल लुक देता है साथ ही यह स्किन को मौइस्चराइज कर रिंकल्स को कम करके सनस्क्रीन जैसा एसपीएफ प्रोटैक्शन भी देता ही है. जिससे स्किन सौफ्ट रहती है. सिर्फ एक बीबी क्रीम को लगाने भर से स्किन बेस्ट दिखती है आपको कोई और ब्यूटी प्रोडक्ट लगाने की जरूरत महसूस नही होती है. बीबी क्रीम स्किन पर प्रोडक्ट की कोई लेयर नहीं बनाती है जिससे स्किन को सांस लेने का मौका मिलता है.

कैसे लगाएं बीबी और सीसी क्रीम

कम टाइम में बैस्ट रिजल्ट पाने का इजी तरीका है बीबी क्रीम. इसको फिंगर से लेकर पूरे फेस पर लगाएं. फेस और फिंगर की गर्मी से क्रीम मेल्ट हो कर स्किन पर अच्छी तरह से मर्ज हो जाती है. सीसी क्रीम को आप फिंगर या फाउंडेशन ब्रश की सहायता से लगा सकती है.

सीसी क्रीम बीबी क्रीम के बीच अंतर-

सीसी क्रीम

सीसी क्रीम आपकी स्किन को सेमी मैट और नेचुरल लगने वाला इफैक्ट देती है. इसका टैक्स्चर बीबी क्रीम से लाइट होता है. सीसी क्रीम उनके लिए सही है जिनकी स्किन में रेडनेस और अनइवन स्किन टोन हो. इसलिए आप अपनी स्किन की डिमांड के मुताबिक बीबी या सीसी क्रीम का चुनाव कर सकती हैं.

बीबी क्रीम

बीबी क्रीम आपको मैट, मौइश्चराइज और शाइन लुक देती है. बीबी क्रीम गुड बेस का काम करती है और आपके डेली लुक के लिए बेस्ट होती है इसका इस्तेमाल इजी है. बीबी और सीसी दोनों ही क्रीम आपकी स्किन के साथ अच्छी तरह ब्लेंड हो जाती हैं और आपके फेस को सिमिलर, सौफ्ट और ब्राइट काम्प्लेक्शन देती है इसलिए आप इसका इस्तेमाल अपनी आवश्यकता के अनुसार ही करें.

समाधान: क्या थी असीम की कहानी

‘‘मैं ने पहचाना नहीं आप को,’’ असीम के मुंह से निकला.

‘‘अजी जनाब, पहचानोगे भी कैसे…खैर मेरा नाम रूपेश है, रूपेश मनकड़. मैं इंडियन बैंक में प्रबंधक हूं,’’ आगुंतक ने अपना परिचय देते हुए कहा.

‘‘आप से मिल कर बड़ी खुशी हुई. कहिए, आप की क्या सेवा करूं?’’ दरवाजे पर खड़ेखड़े ही असीम बोला.

‘‘यदि आप अंदर आने की अनुमति दें तो विस्तार से सभी बातें हो जाएंगी.’’

‘‘हांहां आइए, क्यों नहीं,’’ झेंपते हुए असीम बोला, ‘‘इस अशिष्टता के लिए माफ करें.’’

ड्राइंगरूम में आ कर वे दोनों सोफे पर आमनेसामने बैठ गए.

‘‘कहिए, क्या लेंगे, चाय या फिर कोई ठंडा पेय?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं, बस आप का थोड़ा सा समय लूंगा.’’

‘‘कहिए.’’

‘‘कुछ दिन पहले आप के बड़े भाई साहब मिले थे. हम दोनों ही ‘सिकंदराबाद क्लब’ के सदस्य थे और कभीकभी साथसाथ गोल्फ भी खेल लेते…’’

‘‘अच्छा…यह तो बहुत ही अच्छी बात है कि आप से उन की मुलाकात हो जाती है वरना वह तो इतने व्यस्त रहते हैं कि हम से मिले महीनों हो जाते हैं,’’ असीम ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘डाक्टरों की जीवनशैली तो होती ही ऐसी है, पर सच मानिए उन्हें आप की बहुत चिंता रहती है. बातोंबातों में उन्होंने बताया कि 3 साल पहले आप की पत्नी का आकस्मिक निधन हो गया था. आप का 4 साल का एक बेटा भी है…’’

‘‘जी हां, वह दिन मुझे आज भी याद है. मेरी पत्नी आभा का जन्मदिन था. टैंक चौराहे के पास सड़क पार करते समय पुलिस की जीप उसे टक्कर मारती निकल गई थी. मेरा पुत्र अनुनय उस की गोद में था. उसे भी हलकी सी खरोंचें आई थीं, पर आभा तो ऐसी गिरी कि फिर उठी ही नहीं…’’

‘‘मुझे बहुत दुख है, आप की पत्नी के असमय निधन का, पर मैं यहां किसी और ही कारण से आया हूं.’’

‘‘हांहां, कहिए न,’’ असीम अतीत को बिसारते बोला.

‘‘जी, बात यह है कि मेरी ममेरी बहन मीता ऐसी ही हालत में विवाह के ठीक 2 माह बाद अपना पति खो बैठी थी. मैं ने सोचा यदि आप दोनों एकदूसरे का हाथ थाम लें तो जीवन में पहले जैसी खुशियां पुन: लौट सकती हैं,’’ कह कर रूपेश तो चुप हो गया, मगर असीम को किंकर्तव्यविमूढ़ कर गया.

‘‘देखिए रूपेश बाबू, मैं ने तो दूसरे विवाह के संबंध में कभी कुछ सोचा ही नहीं. पहले भी कई प्रस्ताव आए पर मैं ने अस्वीकार कर दिए. मैं नहीं चाहता कि मेरे पुत्र पर सौतेली मां का साया पड़े,’’ कहते हुए असीम ने अपना मंतव्य स्पष्ट किया.

‘‘मैं अपनी बहन की तारीफ केवल इसलिए नहीं कर रहा हूं कि मैं उस का भाई हूं बल्कि इसलिए कि उस का स्वभाव इतना मोहक है कि वह परायों को भी अपना बना ले. फिर भी मैं आप पर कोई जोर नहीं डालना चाहता. आप दोनों एकदूसरे से मिल लीजिए, जानसमझ लीजिए. यदि आप दोनों को लगे कि आप एकदूसरे का दुखसुख बांट सकते हैं, तभी हम बात आगे बढ़ाएंगे,’’ कहते हुए रूपेश ने अपनी जेब से एक कागज निकाल कर असीम को थमा दिया, जिस में मीता का जीवनपरिचय था. मीता नव विज्ञान विद्यालय में भौतिकी की व्याख्याता थी.

फिर रूपेश एक प्याला चाय पी कर असीम से विदा लेते हुए बोला, ‘‘आप जब चाहें मुझ से फोन पर संपर्क कर सकते हैं,’’ कह कर वह चला गया.

इस मामले में ज्यादा सोचविचार के लिए असीम के पास समय नहीं था. उसे तैयार हो कर कार्यालय पहुंचना था, इस जल्दी में वह रूपेश और उस की बहन मीता की बात पूरी तरह भूल गया.

कार्यालय पहुंचते ही ‘नीलिमा’ उस के सामने पड़ गई. हालांकि वह उस से बच कर निकल जाना चाहता था.

‘‘कहिए महाशय, कहां रहते हैं आजकल? आज सुबह पूरे आधे घंटे तक बस स्टाप पर लाइन में खड़ी आप का इंतजार करती रही,’’ नीलिमा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘यानी मुझ में और बस में कोई अंतर ही नहीं है…’’ कहते हुए असीम मुसकराया.

‘‘है, बहुत बड़ा अंतर है. बस तो फिर भी ठीक समय पर आ गई थी पर श्रीमान असीम नहीं पधारे थे.’’

‘‘बहुत नाराज हो? चलो, आज सारी नाराजगी दूर कर दूंगा. आज अच्छी सी एक फिल्म देखेंगे और रात का खाना भी अच्छे से एक रेस्तरां में…’’ असीम बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. इंदौर से मेरे मांपिताजी आए हुए हैं. 3 दिन तक यहीं रुकेंगे. उन के जाने के बाद ही मैं तुम्हारे साथ कहीं जा पाऊंगी.’’

‘‘अरे वाह, तुम तो अपने पति और सासससुर तक की परवा नहीं करतीं फिर मांपिताजी…’’ असीम ने व्यंग्य में कहा.

‘‘मांपिताजी की परवा करनी पड़ती है. तुम तो जानते ही हो कि देर से जाने पर सवालों की झड़ी लगा देंगे. परिवार के सम्मान और समाज की दुहाई देंगे. फिर 3 दिन की ही तो बात है, क्यों खिटपिट मोल लेना. पति और सासससुर भी कहतेसुनते रहते हैं, पर सदा साथ ही रहना है, लिहाजा, मैं चिंता नहीं करती,’’ कहती हुई नीलिमा हंसी.

‘‘पता नहीं, तुम्हारे तर्क तो बहुत ही विचित्र होते हैं. पर नीलू आज शाम की चाय साथ पिएंगे, तुम से जरूरी बात करनी है,’’ असीम बोला.

‘‘नहीं, तुम्हारे साथ चाय पी तो मेरी बस निकल जाएगी. दोपहर का भोजन साथ लेंगे. आज तुम्हारे लिए विशेष पकवान लाई हूं.’’

‘‘ठीक है, आशा करता हूं उस समय कोई मीटिंग न चल रही हो.’’

‘‘देर हो भी गई तो मैं इंतजार करूंगी,’’ कहती हुई नीलिमा अपने केबिन की ओर बढ़ गई.

कार्यालय की व्यस्तता में असीम भोजन की बात भूल ही गया था पर भोजनावकाश में दूसरों को जाते देख उसे नीलिमा की याद आई तो वह लपक कर कैंटीन में जा पहुंचा.

‘‘यह देखो, गुलाबजामुन और मलाईकोफ्ता…’’ नीलिमा अपना टिफिन खोलते हुए बोली.’’

‘‘मेरे मुंह में तो देख कर ही पानी आ रहा है. मैं तो आज केवल डबलरोटी और अचार लाया हूं. समय ही नहीं मिला,’’ असीम कोफ्ते के साथ रोटी खाते हुए बोला.

‘‘ऐसा क्या करते रहते हो जो अपने लिए कुछ बना कर भी नहीं ला सकते? सच कहूं, तुम्हें कैंटिन के भोजन की आदत पड़ गई है.’’

‘‘तुम जो ले आती हो रोजाना कुछ न कुछ…पर सुनो, आज बहुत ही अजीब बात हुई. एक अजनबी आ टपका. रूपेश नाम था उस का, उम्र में मुझ से 1-2 साल का अंतर होगा. कहने लगा, मेरे भाई डाक्टर उत्तम से उस का अच्छा परिचय है,’’ असीम ने बताया.

‘‘अरे, तो कह देते तुम्हें कार्यालय जाने को देर हो रही है.’’

‘‘बात इतनी ही नहीं थी नीलू, वह अपनी ममेरी बहन का विवाह प्रस्ताव लाया था. विवाह के कुछ माह बाद ही बेचारी के पति का निधन हो गया था.’’

‘‘तुम ने कहा नहीं कि दोबारा से ऐसा साहस न करें.’’

‘‘नहीं, मैं ने ऐसा कुछ नहीं कहा बल्कि मैं ने तो कह दिया कि विवाह प्रस्ताव पर विचार करूंगा.’’

‘‘देखो असीम, फिर से वही प्रकरण दोहराने से क्या फायदा है. मैं ने कहा था न कि तुम ने दूसरे विवाह की बात भी की तो मैं आत्महत्या कर लूंगी,’’ कहती हुई नीलिमा तैश में आ गई.

‘‘हां, याद है. पिछली बार तुम ने नींद की गोलियां भी खा ली थीं. मैं ने भी तुम से कहा था कि ऐसी हरकतें मुझे पसंद नहीं हैं. तुम्हारा पति है, बच्चे हैं भरापूरा परिवार है. हम मित्र हैं, इस का मतलब यह तो नहीं कि तुम इतनी स्वार्थी हो जाओ कि मेरा जीना ही मुश्किल कर दो…’’ कहते हुए असीम का स्वर इतना ऊंचा हो गया कि कैंटीन में मौजूद लोग उन्हीं को देखने लगे.

‘‘मैं सब के सामने तमाशा करना नहीं चाहती, पर तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे. यदि तुम ने किसी और से विवाह करने का साहस किया तो मुझ से बुरा कोई न होगा,’’ कहती हुई नीलिमा अपना टिफिन बंद कर के चली गई और असीम हक्काबक्का सा शून्य में ताकता बैठा रह गया.

‘‘क्या हुआ मित्र? आज तो नीलिमाजी बहुत गुस्से में थीं?’’ तभी कुछ दूर बैठा भोजन कर रहा उस का मित्र सोमेंद्र उस के सामने आ बैठा.

‘‘वही पुराना राग सोमेंद्र, मैं उस से अपना परिवार छोड़ कर विवाह करने को कहता हूं तो परिवार और समाज की दुहाई देने लगती है, पर मेरे विवाह की बात सुन कर बिफरी हुई शेरनी की तरह भड़क उठती है,’’ असीम दुखी स्वर में बोला.

‘‘बहुत ही विचित्र स्त्री है मित्र, पर तुम भी कम विचित्र नहीं हो,’’ सोमेंद्र गंभीर स्वर में बोला.

‘‘वह कैसे?’’ कहता हुआ असीम वहां से उठ कर अपने कक्ष की ओर जाने लगा.

‘‘उस के कारण तुम्हारी कितनी बदनामी हो रही है, क्या तुम नहीं जानते? अपने हर विवाह प्रस्ताव पर उस से चर्चा करना क्या जरूरी है? ऐसी दोस्ती जो जंजाल बन जाए, शत्रुता से भी ज्यादा घातक होती है…’’ सोमेंद्र ने समझाया.

‘‘शायद तुम ठीक कह रहे हो, तुम ने तो मुझे कई बार समझाया भी पर मैं ही अपनी कमजोरी पर नियंत्रण नहीं कर पाया,’’ कहता हुआ असीम मन ही मन कुछ निर्णय ले अपने कार्य में व्यस्त हो गया.

उस के बाद घटनाचक्र इतनी तेजी से घूमा कि स्वयं असीम भी हक्काबक्का रह गया.

रूपेश ने न केवल उसे मीता से मिलवाया बल्कि उसे समझाबुझा कर विवाह के लिए तैयार भी कर लिया.

विवाह समारोह के दिन शहनाई के स्वरों के बीच जब असीम मित्रों व संबंधियों की बधाइयां स्वीकार कर रहा था, उसे रूपेश और नीलिमा आते दिखाई दिए. एक क्षण को तो वह सिहर उठा कि न जाने नीलिमा क्या तमाशा खड़ा कर दे.

‘‘असीम बाबू, इन से मिलिए यह है मेरी पत्नी नीलिमा. आप के ही कार्यालय में कार्य करती है. आप तो इन से अच्छी तरह परिचित होंगे ही, अलबत्ता मैं रूपेश नहीं सर्वेश हूं. मैं ने आप से थोड़ा झूठ बोला अवश्य था, पर अपने परिवार की सुखशांति बचाने के लिए. आशा है आप माफ कर देंगे,’’ रूपेश बोला.

‘‘कैसी बातें कर रहे हैं आप, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. आप की सुखी गृहस्थी में मेरे कारण ही तो भूचाल आया था,’’ असीम धीरे से बोला.

‘‘आप व्यर्थ ही स्वयं को दोषी ठहरा रहे हैं, असीम बाबू. हमारे पारिवारिक जीवन में तो ऐसे अनगिनत भूचाल आते रहे हैं, पर अपनी संतान के भविष्य के लिए मैं ने हर भूचाल का डट कर सामना किया है. इस में आप का कोई दोष नहीं है. अपना ही सिक्का जब खोटा हो तो परखने वाले का क्या दोष?’’ कहते हुए सर्वेश ने बधाई दे कर अपना चेहरा घुमा लिया. असीम भी नहीं देख पाया था कि उस की आंखें डबडबा आई थीं. वह नीलिमा पर हकारत भरी नजर डाल कर अन्य मेहमानों के स्वागत में व्यस्त हो गया.

फैमिली को परोसें बेसन का चीला, ब्रैकफास्ट के लिए है हेल्दी औप्शन

अगर आप अपने बच्चों के लिए घर पर ही स्नैक्स या ब्रेकफास्ट में कुछ टेस्टी बनाना चाहते हैं तो बेसन चीला की ये रेसिपी आपके काम की है. बेसन चीला आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप कभी बनाकर अपनी फैमिली को परोस सकते हैं.

हमें चाहिए:

– बेसन (200 ग्राम)

– बन्द गोभी (1 कप कद्दूकस की हुई)

– टमाटर (2 मीडियम साइज के)

– हरा धनिया (2 बड़े चम्मच बारीक कटा हुआ)

– हरी मिर्च (1 बारीक कटी हुई)

– अदरक (1 इंच लम्बा टुकड़ा)

– हींग (1 चुटकी)

– लाल मिर्च ( जरा सी)

– धनिया पाउडर (1 छोटा चम्मच)

– नमक  (स्वादानुसार)

बनाने का तरीका:

– सबसे पहले बेसन को छान कर उसमें एक कप पानी डालें और उसे अच्छी तरह से घोल लें.

– इसके बाद अदरक छील कर धो लें, हरी मिर्च के डंठल तोड़ कर हटा दें और उन्हें धो लें.

– इसके साथ ही टमाटर को भी धो लें, फिर तीनों चीजों को मिक्सी में डाल कर बारीक पीस लें.

– अब इस पेस्ट को बेसन के घोल में मिला लें.

– साथ ही कद्दूकस किया हुआ गोभी भी इसमें डालें और अच्छी तरह से मिला लें.

– यदि ज्यादा गाढ़ा हो, तो उसमें जरूरत के हिसाब से पानी मिला सकते हैं.

– अब इसमें लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, नमक, हींग और कटा हुआ हरा धनिया डालें और अच्छी     तरह से फेंट कर दस मिनट के लिए रख दें.

– अब एक नौनस्टिक तवा लेकर उसे गरम करें, गरम होने पर आंच को मध्यम कर दें.

–  इसमें चम्मच तेल डालकर उसे बराबर से फैला दें.

– यदि तेल ज्यादा लग रहा हो, तो उसे चिकने कपड़े से पोंछ सकते हैं.

– अब लगभग दो बड़े चम्मच घोल लेकर उसे तवे पर डालें.

– और इसे चम्मच या किसी छोटी कटोरी की सहायता से तवे पर पतला-पतला फैला दें.

– जैसे ही चीला सिंकने लगे, एक चम्मच तेल लेकर उसे चीले के बाहर की ओर तवे पर गोलाई में डाल दें.

– साथ ही एक छोटा चम्मच तेल लेकर उसे तवे के ऊपर बराबर से फैला दें.

– जैसे ही चीले का निचला हिस्सा हल्का भूरा हो जाए, उसे पलट दें और दूसरी सतह को भी इसी तरह से सेंक लें.

– सेंकने के बाद चीले को पेपर नैपकिन बिछा कर उसपर रख दें और अन्य चीले भी इसी प्रकार से सेंक लें.

लीजिए आपकी बेसन का चीला बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई. अब आपका बेसन का चिल्‍ला भी तैयार है. इसे दही, अथवा अचार के साथ परोसें.

सेक्सुअल प्रौब्लम के कारण मेरी मैरिड लाइफ बर्बाद हो रही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 22 साल का हूं. फोरप्ले के बाद बीवी के ऊपर लेट कर हमबिस्तरी करने पर भी महज 30 सैकंड में मैं पस्त हो जाता हूं. इस नाकामी पर बीवी के ताने सुन कर खुदकुशी करने का मन करता है. मैं क्या करूं?

जवाब

तजरबे की कमी के चलते ऐसा हो रहा होगा. आप एक बार मामला निबटने के बाद फिर से कोशिश करें, तो दूसरी पारी ज्यादा देर तक टिकेगी और धीरेधीरे आप का हौसला बढ़ जाएगा. अगर फिर भी 30 सैकंड में इजाफा न हो, तो किसी माहिर डाक्टर से इलाज कराएं. नीमहकीमों से कतई न मिलें.

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मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

सैक्स जीवन को बेहतर बनाने और रिश्ते में प्यार कायम रखने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? रिश्ते में प्रगाढ़ता कैसे आएगी? हमें कोई बहुत अच्छा क्यों लगने लगता है? किसी की धूर्तता या दीवानगी के पीछे सैक्स की कामुकता के बदलाव का राज क्या है? खुश रहने के लिए कितना सैक्स जरूरी है? सैक्स में फ्लर्ट किस हद तक किया जाना चाहिए?

इन सवालों के अलावा सब से चिंताजनक सवाल अंग के साइज और शीघ्र स्खलन की समस्या को ले कर भी होता है. इन सारे सवालों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा है, जबकि सामान्य पुरुष उन से अनजान बने रह कर भावनात्मक स्तर पर कमजोर बन जाता है या फिर आत्मविश्वास खो बैठता है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बेशरम: क्या टूट गया गिरधारीलाल शर्मा का परिवार

पारिवारिक विघटन के इस दौर में जब भी किसी पारिवारिक समस्या का निदान करना होता तो लोग गिरधारीलाल को बुला लाते. न जाने वह किस प्रकार समझाते थे कि लोग उन की बात सुन कर भीतर से इतने प्रभावित हो जाते कि बिगड़ती हुई बात बन जाती.

गिरधारीलाल का सदा से यही कहना रहा था कि जोड़ने में वर्षों लगते हैं और तोड़ने में एक क्षण भी नहीं लगता. संबंध बड़े नाजुक होते हैं. यदि एक बार संबंधों की डोर टूट जाए तो उन्हें जोड़ने में गांठ तो पड़ ही जाती है, उम्र भर की गांठ…..

गिरधारीलाल ने सनातनधर्मी परिवार में जन्म लिया था पर जब उन की विदुषी मां  ने पंडितों के ढकोसले देखे, छुआछूत और धर्म के नाम पर बहुओं पर अत्याचार देखा तो न जाने कैसे वह अपनी एक सहेली के साथ आर्यसमाज पहुंच गईं. वहां पर विद्वानों के व्याख्यान से उन के विकसित मस्तिष्क का और भी विकास हुआ. अब उन्हें जातपांत और ढकोसले से ग्लानि सी महसूस होने लगी और उन्होंने अपनी बहुओं को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने की कला सिखाई. इसी कारण उन का परिवार एक वैदिक परिवार के रूप में प्रतिष्ठित हो गया था.

आर्ची को अच्छी तरह से याद है कि जब बूआजी को बेटा हुआ था और  उसे ले कर अपने पिता के घर आई थीं तब पता लगातेलगाते हिजड़े भी घर पर आ गए थे. आंगन में आ कर उन्होंने दादाजी के नाम की गुहार लगानी शुरू की और गानेनाचने लगे थे. दादीमां ने उन्हें उन की मांग से भी अधिक दे कर घर से आदर सहित विदा किया था. उन का कहना था कि इन्हें क्यों दुत्कारा जाता है? ये भी तो हाड़मांस के ही बने हुए हैं. इन्हें भी कुदरत ने ही बनाया है, फिर इन का अपमान क्यों?

दादी की यह बात आर्ची के मस्तिष्क में इस प्रकार घर कर गई थी कि जब भी कहीं हिजड़ों को देखती, उस के मन में उन के प्रति सहानुभूति उमड़ आती. वह कभी उन्हें धिक्कार की दृष्टि से नहीं देख पाई. ससुराल में शुरू में तो उसे कुछेक तीखी नजरों का सामना करना पड़ा पर धीरेधीरे सबकुछ सरल, सहज होता गया.

मेरठ में पल कर बड़ी होने वाली आर्ची मुंबई पहुंच गई थी. एकदम भिन्न, खुला वातावरण, तेज रफ्तार की जिंदगी. शादी हो कर दिल्ली गई तब भी उसे माहौल इतना अलग नहीं लगा था जितना मुंबई आने पर. साल में घर के 2 चक्कर लग जाते थे. विवाह के 5 वर्ष बीत जाने पर भी मायके जाने का नाम सुन कर उस के पंख लग जाते.

बहुत खुश थी आर्ची. फटाफट पैकिंग किए जा रही थी. मायके जाना उस के पैरों में बिजलियां भर देता था. आखिर इतनी दूर जो आ गई थी. अपने शहर में होती थी तो सारे त्योहारों में कैसी चटकमटक करती घूमती रहती थी. दादा कहते, ‘अरी आर्ची, जिस दिन तू इस घर से जाएगी घर सूना हो जाएगा.’ ‘क्यों, मैं कहां और क्यों जाऊंगी, दादू? मैं तो यहीं रहूंगी, अपने घर में, आप के पास.’

दादी लाड़ से उसे अपने अंक में भर लेतीं, ‘अरी बिटिया, लड़की का

तो जन्म ही होता है पराए घर जाने के लिए. देख, मैं भी अपने घर से आई हूं, तेरी मम्मी भी अपने घर से आई हैं, तेरी बूआ यहां से गई हैं, अब तेरी बारी आएगी.’

13 वर्षीय आर्ची की समझ में यह नहीं आ पाता कि जब दादी और मां अपने घर से आई हैं तब यह उन का घर कैसे हो गया. और बूआ अपने घर से गई हैं तो उन का वह घर कैसे हो गया. और अब वह अपने घर से जाएगी…

क्या उधेड़बुन है… आर्ची अपना घर, उन का घर सोचतीसोचती फिर से रस्सी कूदने लगती या फिर किसी सहेली की आवाज से बाहर भाग जाती या कोई भाई आवाज लगा देता, ‘आर्ची, देख तो तेरे लिए क्या लाया हूं.’

इस तरह आर्ची फिर व्यस्त हो जाती. एक भरेपूरे परिवार में रहते हुए आर्ची को कितना लाड़प्यार मिला था वह कभी उसे तोल ही नहीं सकती. उस का मन उस प्यार से भीतर तक भीगा हुआ था. वैसे भी प्यार कहीं तोला जा सकता है क्या? अपने 3 सगे भाई, चाचा के 4 बेटे और सब से छोटी आर्ची.

‘‘क्या बात है भई, बड़ी फास्ट पैकिंग हो रही है,’’ किशोर ने कहा.

‘‘कितना काम पड़ा है. आप भी तो जरा हाथ लगाइए,’’ आर्ची ने पति से कहा.

‘‘भई, मायके आप जा रही हैं और मेहनत हम से करवाएंगी,’’ किशोर आर्ची की खिंचाई करने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते थे.

‘‘हद करते हैं आप भी. आप भी तो जा रहे हैं अपने मायके…’’

‘‘भई, हम तो काम से जा रहे हैं, फिर 2 दिन में लौट भी आएंगे. लंबी छुट्टियां तो आप को मिलती हैं, हमें कहां?’’

किशोर को कंपनी की किसी मीटिंग के सिलसिले में दिल्ली जाना था सो तय कर लिया गया था कि दिल्ली तक आर्ची भी फ्लाइट से चली जाएगी. दिल्ली में किशोर उसे और बच्चों को टे्रन में बैठा देंगे. मेरठ में कोईर् आ कर उसे उतार लेगा. एक सप्ताह अपने मायके मेरठ रह कर आर्ची 2-3 दिन के लिए ससुराल में दिल्ली आ जाएगी जबकि किशोर को 2 दिन बाद ही वापस आना था. बच्चे छोटे थे अत: इतनी लंबी यात्रा बच्चों के साथ अकेले करना जरा कठिन ही था.

किशोर को दिल्ली एअरपोर्ट पर कंपनी की गाड़ी लेने के लिए आ गई, सो उस ने आर्ची और बच्चों को स्टेशन ले जा कर मेरठ जाने वाली गाड़ी में बिठा दिया और फोन कर दिया कि आर्ची इतने बजे मेरठ पहुंचेगी. फोन पर डांट भी खानी पड़ी उसे. अरे, भाई, पहले से फोन कर देते तो दिल्ली ही न आ जाता कोई लेने. आजकल के बच्चे भी…दामाद को इस से अधिक कहा भी क्या जा सकताथा.

किशोर ने आर्ची को प्रथम दरजे में बैठाया था और इस बात से संतुष्ट हो गए थे कि उस डब्बे में एक संभ्रांत वृद्धा भी बैठी थी. आर्ची को कुछ हिदायतें दे कर किशोर गाड़ी छूटने पर अपने गंतव्य की ओर निकल गए.

अब आर्ची की अपनी यात्रा प्रारंभहुई थी, जुगनू 2 वर्ष के करीब था और बिटिया एनी अभी केवल 7 माह की थी. डब्बे में बैठी संभ्रांत महिला उसे घूरे जा रही थी.

‘‘कहां जा रही हो बिटिया?’’ वृद्धा ने पूछा.

‘‘जी, मेरठ?’’

‘‘ये तुम्हारे बच्चे हैं?’’

‘‘जी हां,’’ आर्ची को कुछ अजीब सा लगा.

‘‘आप कहां जा रही हैं?’’ उस ने माला फेरती उस महिला से पूछा.

‘‘मेरठ,’’ उस ने छोटा सा उत्तर दिया फिर उसे मानो बेचैनी सी हुई. बोली, ‘‘वे तुम्हारे घर वाले थे?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘रहती कहां हो…मेरठ?’’

‘‘जी नहीं, मुंबई…’’

‘‘तो मेरठ?’’

‘‘मायका है मेरा.’’

‘‘किस जगह?’’

‘‘नंदन में…’’ नंदन मेरठ की एक पौश व बड़ी कालोनी है.

‘‘अरे, वहीं तो हम भी रहते हैं. हम गोल मार्किट के पास रहते हैं, और तुम?’’

‘‘जी, गोल मार्किट से थोड़ा आगे चल कर दाहिनी ओर ‘साकेत’ बंगला है, वहीं.’’

‘‘वह तो गिरधारीलालजी का है,’’ फिर कुछ रुक कर वह वृद्धा बोली, ‘‘तुम उन की पोती तो नहीं हो?’’

‘‘जी हां, मैं उन की पोती ही हूं.’’

‘‘बेटी, तुम तो घर की निकलीं, अरे, मेरे तो उस परिवार से बड़े अच्छे संबंध हैं. कोई लेने आएगा?’’

‘‘जी हां, घर से कोई भी आ जाएगा, भैया, कोई से भी.’’

वृद्धा निश्ंिचत हो माला फेरने लगीं.

‘‘तुम्हारी दादी ने मुझे आर्यसमाज का सदस्य बनवा दिया था. पहले ‘हरे राम’ कहती थी अब ‘हरिओम’ कहने लगी हूं,’’ वह हंसी.

आर्ची मुसकरा कर चुप हो गई.

वृद्धा माला फेरती रही.

गाड़ी की रफ्तार कुछ कम हुई. मुरादनगर आया था. गाड़ी ने पटरी बदली. खटरपटर की आवाज में आर्ची को किसी के दरवाजा पीटने की आवाज आई. उस ने एनी को देखा वह गहरी नींद में सो रही थी. जुगनू भी हाथ में खिलौना लिए नींद के झटके खा रहा था. आर्ची ने उसे भी बर्थ पर लिटा दिया और अपने कूपे से गलियारे में पहुंच कर मुख्यद्वार पर पहुंच गई.

कोई बाहर लटका हुआ था. अंदर से दरवाजा बंद होने के कारण वह दस्तक दे रहा था. आर्ची ने इधरउधर देखा, उसे कोई दिखाई नहीं दिया. सब अपनेअपने कूपों में बंद थे. आर्ची ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया और वह मनुष्य बदहवास सा अंदर आ गया. वृद्धा वहीं से चिल्लाई, ‘‘अरे, क्या कर रही हो? क्यों घुसाए ले रही हो इस मरे बेशरम को, हिजड़ा है.’’

‘‘मांजी, मुझे दूसरे स्टेशन तक ही जाना है, मैं तो गाड़ी धीमी होते ही उतर जाऊंगा, देखो, यहीं दरवाजे के पास बैठ रहा हूं…’’ और वह भीतर से दरवाजा बंद कर वहीं गैलरी में उकड़ूूं बैठ गया.

आर्ची अपने कूपे में आ गई. वृद्धा का मुंह फूल गया था. उस ने आर्ची की ओर से मुंह घुमा कर दूसरी ओर कर लिया और जोरजोर से अपने हाथ की माला घुमाने लगी.

आर्ची को बहुत दुख हुआ. बेचारा गाड़ी से लटक कर गिर जाता तो? कुछ पल बाद ही आर्ची को बाथरूम जाने की जरूरत महसूस हुई. दोनों बच्चे खूब गहरी नींद सो रहे थे.

‘‘मांजी, प्लीज, जरा इन्हें देखेंगी. मैं अभी 2 मिनट में आई,’’ कह कर आर्ची  बाथरूम की ओर गई. उस का कूपा दरवाजे के पास था, अत: गैलरी से निकलते ही थोड़ा मुड़ कर बाथरूम था. जैसे ही आर्ची ने बाथरूम में प्रवेश किया गाड़ी फिर से खटरपटर कर पटरियां बदलने लगी. उसे लगा बच्चे कहीं गिर न पड़ें. जब तक बाथरूम से वह बाहर भागी तब तक गाड़ी स्थिर हो चुकी थी. सीट पर से गिरती हुई एनी को उस ‘बेशरम’ व्यक्ति ने संभाल लिया था.

वृद्धा क्रोधपूर्ण मुद्रा में खूब तेज रफ्तार से माला पर उंगलियां फेर रही थी. जुगनू बेखबर सो रहा था. उस बेशरम व्यक्ति का झुका हुआ एक हाथ जुगनू को संभालने की मुद्रा में उस के पेट पर रखा हुआ था. यह देख कर आर्ची भीतर से भीग उठी. यदि उस ने बच्चे संभाले न होते तो उन्हें गहरी चोट लग सकती थी.

‘‘थैंक्यू…’’ आर्ची ने कहा और एनी को अपनी गोद में ले लिया.

उस बेशरम की आंखों से चमक जैसे अचानक कहीं खो गई. हिचकिचाते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा स्टेशन आ रहा है. बस, 2 मिनट आप की बेटी को गोद में ले लूं?’’

आर्ची ने बिना कुछ कहे एनी को उस की गोद में थमा दिया. वृद्धा के मुंह से ‘हरिओम’ शब्द जोरजोर से बाहर निकलने लगा.

बारबार गोद बदले जाने के कारण एनी कुनमुन करने लगी थी. उस हिजड़े ने एनी को अपने सीने से लगा कर आंखें मूंद लीं तो 2 बूंद आंसू उस की आंखों की कोरों पर चिपक गए. आर्ची ने देखा कैसी तृप्ति फैल गई थी उस के चेहरे पर. एनी को उस की गोदी में देते हुए उस ने कहा, ‘‘यहां गाड़ी धीमी होगी, बस, आप जरा एक मिनट दरवाजा बंद मत करना…’’ और धीमी होती हुईर् गाड़ी से वह नीचे कूद गया. आर्ची ने खुले हुए दरवाजे से देखा, वह भाग कर सामने के टी स्टाल पर गया. वहां से बिस्कुट का एक पैकेट उठाया, भागतेभागते बोला, ‘‘पैसा देता हूं अभी…’’ और पैकेट दरवाजे के पास हाथ लंबा कर आर्ची की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘बहन, इसे अपने बच्चों को जरूर खिलाना.’’

गाड़ी रफ्तार पकड़ रही थी. आर्ची कुछ आगे बढ़ी, उस ने पैकेट पकड़ना चाहा पर गोद में एनी के होने के कारण वह और आगे बढ़ने में झिझक गई और पैकेट हाथ में आतेआते गाड़ी के नीचे जा गिरा. आर्ची का मन धक्क से हो गया. बेबसी से उस ने नजर उठा कर देखा वह ‘बेशरम’ व्यक्ति हाथ हिलाता हुआ अपनी आंखों के आंसू पोंछ रहा था.

बेबी बंप के साथ दीपिका पादुकोण से पहले इन एक्ट्रेस ने कराया था फोटोशूट

बौलीवुड की हर एक्ट्रैस का सपना होता है, वह टौप पर पहुंचे, बिग फैट वेडिंग करे और मां बने. कई एक्ट्रैस मां बनने के इस सफर के लमहों को यादगार बनाने के लिए उसका फोटशूट कराती हैं. एक्ट्रैस दीपिका पादुकोण का ऐसा ही फोटोशूट बेबी बंप के साथ वायरल हो रहा है. इसमें दीपिका बेबी बंप के साथ अलगअलग पोज देते हुए फोटोशूट कर रही हैं. उनके चेहरे पर मां बनने का ग्लो साफ नजर आ रहा है.

दीपिका पादुकोण ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपनी कुछ ऐसी ही खास फोटोज शेयर की है. इसमें वे बेबी बंप के साथ नजर आ रही है. ये सभी फोटोज ब्लैक एंड व्हाइट है. इन फोटोज में दीपिका को हसबैंड रणवीर सिंह के साथ भी दिखा जा सकता है. हालांकि, दीपिका पादुकोण से पहले बौलीवड की कई एक्ट्रैस है जो बेबी बंप के साथ अपनी फोटोज को शेयर कर चुकी हैं, इस लिस्ट में आलिया भट्ट, सोनम कपूर, बिपाशा बसु और करीना कपूर शामिल है एक्टर वरुण धवन की पत्नी नताशा दलाल का भी ऐसा ही शूट काफी पसंद किया गया था.

कैसा था करीना कपूर, सोनम कपूर और आलिया का प्रैगनेंसी फोटोशूट

बौलीवुड एक्ट्रैस करीना कपूर खान दो बच्चों की मां हैं. जब वी मेट के इस एक्ट्रैस की खूबसूरती और उनके फिगर को देख अंदाजा लगाना मुश्किल है कि वह दो बार मां बन चुकी हैं. करीना ने भी बेबी बंप फ्लौन्ट करते हुए फोटोशूट कराया था. सोनम कपूर ने भी बेबी बंप के साथ फोटोशूट कराया था. अब वह अपने बेटे वायु की परवरिश में लगी हुई है. इसलिए वे फिल्मी दुनिया से भी दूर हो गई है. स्टाइल दीवा मानी जाने वाली सोनम कपूर का बेबी बंप फोटो शूट काफी स्टाइलिश था. उन्होंने इन मोमेंट्स के लिए स्पेशल ड्रैसेज चूज की थी.

बौलीवुड की खूबसूरत हसीनाओं में से एक आलिया भट्ट ने भी मां बनने से पहले ऐसी तसवीरें खिंचवाई. बिटिया राहा की मम्मी बन चुकी हाइवे फेम एक्ट्रेस बच्चों की ड्रैस बनाने वाले ब्रांड के साथ भी जुड़ी हुई है. आलिया ने भी फुल बेबी बंप के साथ यह शूट कराया, उनका क्यूट फैस उनको फेअरी का लुक दे रहा था

बेबी बंप को किस करने की फोटो हुई थी वायरल

वरुण धवन और पत्नी नताशा दलाल अब एक बिटिया के पैरेंट्स हैं लेकिन जब नताशा प्रैग्नेंट थी, तो उन्होंने भी फोटोशूट के इस ट्रैंड को फौलो किया था, तब वरुण धवन की पत्नी नताशा के बेबी बंप को किस करते नजर आए थे. ऐसे ही शूट में रणवीर सिंह भी अपनी पत्नी दीपिका को प्यार से गले लगाते दिख रहे हैं

आपको बता दें, कि ओम शांति ओम से डेब्यू करने वाली एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण की एक एक फिल्में हिट रही है. दीपिका पादुकोण की जबरदस्त एक्टिंग लोगों को भी खूब पसंद आती है. दीपिका के लाखों करोड़ो चाहने फैंस है. अब दीपिका की आने वाली फिल्में है ब्रह्मास्त्र 2 और सपना दीदी. जिसमें दीपिका एक बार फिर दर्शकों को अपनी एक्टिंग जलवा बिखेरती नजर आएंगी.

इसके अलावा दीपिका पादुकोण के कई फेक फोटोज बेबी के साथ सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे है. कि उनका एक बेबी बौय हुआ है. कई फोटोज को एडिट करके वायरल किया गया. दीपिका के बेबी की फेक वीडियो और फोटोज काफी सुर्खियों में रही है. जब कि उनके घर नन्हा मेहमान सितंबर में जल्द आने वाला है इसकी जानकरी खुद दीपिका ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर दी. रणवीर सिंह ने भी बेबी से जुड़ा एक पोस्ट अपने सोशल अकाउंट पर डाला था.

‘सिंघम अगेन’ में अर्जुन कपूर की डेंजर खलनायकी, एक्स गर्लफ्रैंड मलाइका ने भी किया रिएक्ट

रोहित शेट्टी की फिल्म सिंघम अगेन की शूटिंग पूरी हो चुकी है. इस फिल्म की रिलीज डेट को लेकर काफी चर्चे हो रहे हैं. दरअसल, इस फिल्म का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है. यह फिल्म दिवाली के अवसर सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

‘सिंघम अगेन’ का विलेन कौन

अब बात करते हैं इस फिल्म के स्टार्स के बारे में. सिंघम अगेन में कई दिग्गज कलाकारों ने काम किया है. अजय देवगन, दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, टाइगर श्राफ और कई सारे स्टार्स ने इस फिल्म में काम किया है. इस फिल्म में विलेन का रोल अर्जुन कपूर ने किया है. दरअसल, कुछ महीनों पहले ही अर्जुन कपूर ने खून से सने हुए चेहरे के साथ एक फोटो शेयर की थी. इसमें वह काफी खूंखार लग रहे थे. एक्टर ने इस फोटो को शेयर करते हुए लिखा भी था कि ‘सिंघम का विलेन’.

क्या अर्जुन कपूर के किरदार से फिल्म में होगी तबाही

एक्टर ने आगे ये भी लिखा था कि हिट मशीन रोहित शेट्टी की काप यूनिवर्स का हिस्सा बनकर मैं तो आसमान में उड़ रहा हूं. मैं वादा करता हूं कि फिल्म में तबाही होगी.’ इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि वह हथियार लेकर बैठे हुए हैं. उस पर तो खून लगा ही हुआ है. साथ ही खून के छींटो से एक्टर का चेहरा और दांत सना हुआ है और वह खलनायकी अंदाज में ठहाके लगा रहे हैं.

अर्जुन कपूर के फिल्मी करियर का सबसे बड़ा रोल

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सिंघम अगेन में अर्जुन कपूर को उनके करियर का सबसे बड़ा रोल मिला है. इस फिल्म में अर्जुन कपूर को लंबे घने बालों और लुंगी में देखने को मिलेगा. यह अर्जुन कपूर के फिल्मी करियर का सबसे शानदार किरदार साबित होने वाला है. देखना ये है कि ये बड़े बजट की फिल्म बौक्स आफिस पर धमाल मचा पाती है या नहीं ? रिलीज होने से पहले ही फिल्म ‘सिंघम अगेन’ सुर्खियों में छायी हुई है.

एक्स गर्लफ्रैंड मलाइका ने किया था रिएक्ट

इस फोटो पर उनकी एक्स गर्लफ्रैंड मलाइका अरोड़ा ने भी रिएक्ट किया था. फायर इमोजी के साथ खुशी जाहिर की थी. मलाइका अरोड़ा और अर्जून कपूर 5 सालों से एकदूसरे को डेट कर रहे थे, लेकिन दोनों का रिश्ता टूट गया. मलाइका-अर्जुन अब साथ नहीं है. दोनों ने अपने रिश्ते को साल 2019 में औफिशियली कंफर्म किया था. अर्जुन-मलाइका अक्सर सोशल मीडिया पर एकदूसरे की पोस्ट पर प्यार लुटाने में कोई मौका नहीं छोड़ते थे.

क्यों हुआ मलाइका-अर्जुन का ब्रेकअप

हालांकि इनका ब्रेकअप क्यों हुआ, इसे लेकर कई तरह की खबरें आई. जिसमें बताया गया कि लंबे समय से कपल के बीच किसी बात को लेकर अनबन चल रही थी, इसलिए दोनों ने रिश्ता को खत्म करने का फैसला किया था. एक ये भी कारण बताया जा रहा था कि दोनों में कोई एक शादी कर के शादी कर के सेटल होना चाहता था, लेकिन कोई दूसरा इसके लिए राजी नहीं था. इस वजह से भी इनका रिश्ता टूटा. खैर अर्जुन-मलाइका के रिश्ता टूटने की क्या वजह है, अब ये दोनों ही जानें.

क्या कुशा कपिल को अर्जुन कर रहे हैं डेट

फिलहाल दोनों अपनीअपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुके हैं. खबरों के अनुसार मलाइका के बाद अर्जुन कपूर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कुशा कपिल को डेट कर रहे हैं. हालांकि दोनों ने कभी इसे पब्लिकली तौर पर एक्सेप्ट नहीं किया है. यह रिलेशनशिप अफवाह है या सच्चाई, ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

मिस्ट्री मैन के साथ मलाइका ने शेयर की थी फोटो

तो वहीं मलाइका अरोड़ा भी किसी मिस्ट्री मैन को डेट कर रही हैं, हालांकि उस शख्स का नाम नहीं पता है कि मलाइका अर्जुन के बाद किसे डेट कर रही हैं. दरअसल, मलाइका स्पेन में वेकेशन मनाने गई थीं. एक्ट्रैस ने बिकिनी में फोटो शेयर की थी. इन फोटोज में मलाइका ने एक और फोटो शेयर की थी. जिसमें एक शख्स नजर आ रहा था लेकिन उसका चेहरा साफ नहीं दिखाई दे रहा था. इसी से चर्चा शुरू हो गई कि मलाइका अरोड़ा मिस्ट्री मैन को डेट कर रही हैं.

क्या गंजेपन का हेयर ट्रांसप्लांट परमानेंट इलाज है? जानें इस कौस्मेटिक सर्जरी का खर्च

Hair Transplant : बदलती लाइफस्टाइल और खानपान के कारण शरीर को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा स्किन और बाल भी प्रभावित होते हैं. पहले उम्र बढ़ने पर लोगों में बाल झड़ने की समस्या होती थी लेकिन आजकल कम उम्र में भी युवाओं के बाल झड़ने लगे हैं. कुछ लोगों में तो यह समस्या इतनी बढ़ जाती है कि उन्हें गंजेपन का शिकार होना पड़ता है. कई लोग इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए घरेलू नुस्खे अपनाते हैं. यहां तक कि कुछ लोग दवाएं भी खाते हैं, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं पड़ता है. ऐसे में आज हम आपको हेयर ट्रांसप्लांट से जुड़ी कुछ जरूरी बातें बताएंगे. जो आपके लिए खास साबित हो सकती हैं.

Adult taking care of their hair

हम सभी जानते हैं कि बाल हमारे कितना जरूरी हैं, ये हमारे स्कैल्प को सुरक्षित रखते हैं. लेकिन अगर आप गंजेपन की समस्या से परेशान हैं, तो हेयर ट्रांसप्लांट के बारे में जरूर जानें.

क्या है हेयर ट्रांसप्लांट

हेयर ट्रांसप्लांट एक तरह का कौस्मेटिक सर्जरी है. इसकी मदद से गंजेपन को दूर किया जा सकता है. एक्सपर्ट के अनुसार, इससे भरे हुए बालों को वापस लाने में मदद मिल सकती है. जिसमें बालों को स्थानांतरित किया जाता है. यानी व्यक्ती के शरीर के अलगअलग हिस्सों से बाल लेकर सिर में उस जगह प्लांट किए जाते हैं, जहां से बाल बिलकुल झड़ चुके होते हैं.

Adult male having balding problems

अमेरिका में इस तकनीक का उपयोग 1950 से ही किया जा रहा है, लेकिन भारत में कुछ ही सालों से हेयर ट्रांसप्लांट काफी पौपुलर हुआ है. इसके तकनीक में भी पहले से बहुत बदलाव आया है. पहले सुनने को मिलता था कि हेयर सिर्फ सेलिब्रिटी ही करवाते हैं, क्योंकि उनके पास इस पर खर्च करने के लिए पैसे होते हैं, लेकिन नई तकनीक आने से हेयर ट्रांसप्लांट पहले से कुछ सस्ता भी हुआ है, जिसकी मदद से आम लोग भी गंजेपन से छुटकारा पा सकते हैं.

हेयर ट्रांसप्लांट करने का क्या है मेथड

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हेयर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में आठ से दस हफ्ते का समय लगता है. इस सर्जरी को हेयर ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट ही करते हैं. इस सर्जरी को करने में 5-6 घंटे की सिटिंग होती है. जिसमें व्यक्ती के सिर में कुछ ही बालों को ट्रांसप्लांट किया जाता है. इस सर्जरी को करने के लिए एक्सपर्ट के साथसाथ कुछ तकनीकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. किसी भी व्यक्ती को हेयर ट्रांसप्लाट कराना है, तो उसे कोई बीमारी है, तो पहले ही एक्सपर्ट से बताना चाहिए. ताकि उसे ध्यान में रखकर हेयर ट्रांसप्लांट किया जाए, जिससे आगे कोई समस्या न हो.

कितने तरह के होते हैं हेयर ट्रांसप्लांट

हेयर ट्रासंप्लांट कई प्रकार से किया जाता है. हालांकि इसके बार में लोगों को जानकारी कम होती है कि वह किस तरह के हेयर ट्रांसप्लांट को चुन सकता है. आप इसके लिए एक्सपर्ट की भी मदद ले सकते हैं.
FUE हेयर लाइन ग्राफ्टिंग यानी फौलिकल, यह हेयर ट्रांसप्लांट का एक पौपुलर तरीका है. अधिकत्तर लोगों के सिर के आगे वाले हिस्से में कम बाल होते हैं, इस तकनीक की मदद से हेयर ट्रांसप्लांट किए जाते हैं. इस सर्जरी में मरीज के सिर पर कोई टांके या निशान नहीं पड़ते. इस सर्जरी को करने में करीब 7-8 घंटे का समय लगता है.

क्या हेयर ट्रांसप्लांट परमानेंट इलाज है?

हेयर ट्रांसप्लांट को परमानेंट बनाने के लिए डिजाइन किया गया है. एक्सपर्ट हेयर ट्रांसप्लांट करने के बाद कहते हैं कि आप इसे नार्मल बालों की तरह धोएं, कंघी करें या ब्रश करें. एक्सपर्ट की सलाह जरूर फौलो करें.

क्या हेयर ट्रांस्‍प्‍लांट में दर्द होता है ?

कई लोगों के मन में ये डर रहता है कि हेयर ट्रांस्‍प्‍लांट कराते समय काफी दर्द होता होगा, लेकिन एक्सपर्ट के अनुसार, ट्रांसप्लांट के दौरान मरीज को लोकल एनेस्‍थीसिया दिया जाता है, जिससे वह जागा रहता है और इस पूरी प्रक्रिया को वह देख सकता है, इस प्रोसेस में उसे दर्द नहीं होता. यहां तक कि व्यक्ती को अहसास भी नहीं होता कि उसके सिर में क्या हो रहा है.

हेयर ट्रांसप्लांट कराने का खर्च

हेयर ट्रांसप्लांट का खर्च इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक पर निर्भर करती है, लेकिन जानकारी के अनुसार हेयर ट्रासंप्लांट करवाने में करीब 50,000 से लेकर 4,00,000 रुपये के बीच होती है.

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