जेठानी की मौत के बाद जेठ मुझसे सैक्स करने के लिए दबाव बनाते हैं, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी शादी करीब 4 साल पहले दिल्ली में हुई थी. पति बिजनैसमैन हैं. हमारी अरेंज्ड मैरिज हुई थी. शुरुआत में पति के साथ थोड़ी खटपट रहती थी, मगर फिर धीरेधीरे हम एकदूसरे को समझने लगे और सब ठीक चलने लगा. मगर इसी बीच मेरी जेठानी जो परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहती थीं अचानक चल बसीं. उन के 2 बच्चे हैं जो इतने बड़े हो चुके हैं कि खुद अपनी देखभाल कर सकें. मेरे जेठ की पास में ही कपड़ों की शौप है. वे अकसर मेरे पति के पीछे भी हमारे घर आतेजाते रहते थे. जेठानी की मौत के बाद मेरे मन में उन के लिए सहानुभूति की भावना रहती थी. मगर उन का रवैया कुछ और ही रहने लगा. वे अकसर मेरे करीब आने का प्रयास करने लगे. एक दिन तो खुलेतौर पर मुझ से हमबिस्तर होने का आग्रह करने लगे. मैं ने उस समय तो उन्हें किसी तरह झटक दिया और जाने को कह दिया, मगर अब मुझे डर लगा रहता है कि न जाने कब वे फिर से ऐसे ही इरादे के साथ आ धमकें. मुझे पति से भी इस संदर्भ में बात करने में हिचक हो रही है, क्योंकि वे अपने बड़े भाई को बहुत मानते हैं. मुझे डर है कि कहीं वे मुझे ही दोषी न मान बैठें. बताएं क्या करूं?

जवाब

सब से पहले तो आप को बिना किसी डर या हिचकिचाहट के अपने पति से बात करनी चाहिए. उन्हें अपने विश्वास में ले कर अपना डर जाहिर करना होगा. यदि वे बिलकुल न मानें तो किसी दिन मौका देख कर कोई सुबूत जुटाने का प्रयास करें.

जेठ जब भी दरवाजा खटखटाएं तो आप मोबाइल का वौइस रिकौर्डर औन कर के अपने पास रख लें तब दरवाजा खोलें.

ऐसे में जेठ यदि कोई गलत बात कहते या ऐसीवैसी कोई हरकत करते हैं तो सब रिकौर्ड हो जाएगा और फिर आप अपने पति को बतौर सुबूत उस रिकौर्डिंग को सुना सकती हैं.

वैसे अच्छा होगा कि आप पति से कहीं और घर लेने का आग्रह करें या फिर जेठ की दोबारा शादी कराने का प्रयास करें. उन्हें पत्नी की कमी खल रही है, इसलिए आप की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. नई पत्नी के आ जाने पर संभव है कि वे आप से सामान्य व्यवहार करने लगें.

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रिमझिम फुहारों का मजा लेती दिखीं Hina Khan, बारिश ने कम किया कैंसर का दर्द

टीवी एक्ट्रैस हिना खान अक्षरा के किरदार से दर्शकों के दिल पर राज किया है. उन्होंने फिल्मों और रियलिटी शोज में भी काम कर लोगों का दिल जीता है, लेकिन इन दिनों वह खतरनाक बीमारी ब्रैस्ट कैंसर का दर्द झेल रही हैं, उन्होंने इस दर्द का शिकन अपने चेहरे पर कभी नहीं आने दी. उन्होंने कैंसर को कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दी.

मुश्किल समय में भी पौजिटिव रहने का देती हैं संदेश

हिना खान के हेल्थ अपडेट के बारे में फैंस भी जानने के लिए बेचैन रहते हैं. लोग उनको खूब प्यार देते हैं. सोशल मीडिया पर हिना खान की फैंस फौलोइंग मीलियन में है. हिना खान अपने फैंस को हर परिस्थिति में हमेशा पौजिटिव रहने की सीख दे रही हैं. हिना स्टेज 3 के स्तन कैंसर से जूझ रही हैं, लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी को जीना नहीं छोड़ा है. एक्ट्रैस छोटीछोटी चीजों से कितनी खुश हो जाती है, ये छोटेछोटे पल उनकी जिंदगी को कितनी खुशियों से भर देते हैं.

 

हिना खान को बहुत पसंद है बारिश

हाल ही में उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर कुछ फोटोज शेयर की है, फोटो में हिना खान की खुशी सातवें आसमान पर दिखाई दे रही है. फोटोज में आप देख सकते हैं कि झील पर बने पुल पर छतरी लेकर हिना खान मस्त अंदाज में पोज दे रही हैं. फैंस हिना की तारीफ करते थक नहीं रहे हैं. इन फोटोज को देखकर कोई भी कह सकता है कि हिना को बारिश बहुत पसंद है. हिना खान ने फैंस के साथ इन फोटोज को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि क्योंकि उसे बारिश और बारिश के दिन खूब पसंद है, ये तस्वीरें कैप्शन के साथ खूब जम रही है.

ये तस्वीरें फैंस को काफी पसंद आ रही है. एक यूजर ने लिखा, ऐसे ही ऊर्जा बनाए रखना और जल्दी ठीक हो जाना तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा कि हमारे पूरे परिवार की ओर से आप के लिए दिल से दुआ है कि आप जल्दी से ठीक हो जाएं. इस तरह के फैंस ने ढेर सारें कौमेंट्स किए हैं. एक फैंस ने तो उनके गाने बारिश बन जाना की कुछ पंक्तियां लिखा, इस गाने में हिना वह शाहीर शेख के साथ नजर आ रही थीं. यूजर ने लिखा, “जब मैं बदल जाऊं. तुम भी बारिश बन जाना. जो कम पड़ जाए सांसें, तू मेरा दिल बन जाना.”

मुंबई की बारिश से लोगों को बहुत परेशानी होती है, लेकिन हिना खान की तस्वीरें साबित करती हैं कि अगर आप छुट्टियों पर नहीं गए तो मानसून के मौसम का मजा अधूरा है.

हिना ने अपने कटे हुए बालों से बनवाया विग

कुछ दिनों पहले हिना खान ने अपने इलाज को लेकर एक इमोशनल पोस्ट शेयर किया और उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने कटे हुए बालों को विग के रूप में इस्तेमाल किया. हिना ने एक इंस्टाग्राम पर एक रील शेयर की जिसमें उन्होंने अपने बालों से बनाई गई विग दिखाई। उन्होंने अपनी पोस्ट को कैप्शन दिया, जिस क्षण मुझे पता चला, मुझे पता था कि मेरे बाल झड़ जाएंगे, मैंने अपने हिसाब से उन्हें कटवाने का फैसला किया. जबकि मेरे बाल लंबे और हैल्दी थे. मैंने अपने खुद के बालों से एक विग बनाने का फैसला किया जो मुझे इस कठिन समय में आरामदायक महसूस करावएगा. जब मैं इसे पहनती हूं, तो लगता है कि मैं अपने खोए हुए बालों से जुड़ गई हूं.

हिना ने आगे कहा कि मुझे कहना चाहिए कि यह एक अच्छा फैसला था जिसपर मुझे बहुत गर्व है
अब जब मैं इसका उपयोग कर रही हूं, तो मैंने सोचा कि यह आप सभी के साथ शेयर करने के लिए एक अच्छी कहानी होगी.

सूर्यकिरण: एक शर्त पर की थी मीना ने नितिश से शादी

मीना और नितीश की गृहस्थी में अचानक तूफान आ गया था. दोनों के विवाह को मात्र 1 साल हुआ था. आधुनिक जीवन की जरूरतें पूरी करते हुए दोनों 45 वसंत देख चुके थे. पहले उच्चशिक्षा प्राप्त करने की धुन, फिर ऊंची नौकरी और फिर गुणदोषों की परख व मूल्यांकन करने के फेर में एक के बाद एक प्रस्तावों को ठुकराने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो वह रुकने का नाम ही नहीं लेता था.

मीना के मातापिता जो पहले अपनी मेधावी बेटी की उपलब्धियों का बखान करते नहीं थकते थे. अब अचानक चिंताग्रस्त हो उठे थे.

बड़ी मुश्किल से गुणदोषों, सामाजिक स्तर आदि का मिलान कर के कुछ नवयुवकों को उन्होंने मीना से मिलने को तैयार भी कर लिया था, पर मीना पर तो एक दूसरी ही धुन सवार थी.मीना छूटते ही अजीब सा प्रश्न पूछ बैठती थी, ‘‘आप को बच्चे पसंद हैं या नहीं?’’

ज्यादातर भावी वर, मीना की आशा के विपरीत बच्चों को पसंद तो करते ही थे, अपने परिवार के लिए उन का होना जरूरी भी मानते थे. मगर यही स्वीकारोक्ति मीना को भड़काने के लिए काफी होती थी और संबंध बनने से पहले ही उस के पूर्वाग्रहों की भेंट चढ़ जाता था.

नितीश से अपनी पहली मुलाकात उसे आज भी अच्छी तरह याद हैं. चुस्तदुरुस्त और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले नितीश को देखते ही वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी. पर उच्चशिक्षा और ऊंची नौकरी ने उस के आत्मविश्वास को गर्व की कगार तक पहुंचा दिया था. वैसे भी वह नारी अधिकारों के प्रति बेहद सजग थी. छुईमुई सी बनी रहने वाली युवतियों से उसे बड़ी कोफ्त होती थी. इसलिए नितीश को देखते ही उस ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी.

‘‘आशा है पत्रों के माध्यम से आप को मेरे बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी?’’ मीना अपने खास अंदाज में बोली थी.

‘‘जी, हां,’’ नितीश उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए बोला था.

मीना मन ही मन भुनभुना रही थी कि ऐसे घूर रहा है मानो कभी लड़की नहीं देखी हो, पर मुंह से कुछ नहीं बोली थी.

‘‘आप अपने संबंध में कुछ और बताना चाहती है? मौन अंतत: नितीश ने ही तोड़ा था.

‘‘हां, क्यों नहीं. शायद आप जानना चाहें कि मैं ने अब तक विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘जी हां, अवश्य.’’

‘‘तो सुनिए, मेरे कंधों पर न तो पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ था और न ही कोई अन्य मजबूरी पर अपना भविष्य बनाने के लिए कड़ा परिश्रम किया है मैं ने.’’

‘‘जी हां, सब समझ गया मैं. आप अपने मातापिता की इकलौती संतान हैं. पिता जानेमाने व्यापारी हैं, फिर पारिवारिक समस्याओं का तो प्रश्न ही नहीं उठता. पर मैं इतना खुशहाल नहीं रहा. पिता की लंबी बीमारी के कारण छोटे भाई और बहन के पालनपोषण, पढ़ाईलिखाई, विवाह आदि के बीच इतना समय ही नहीं मिला कि अपने बारे में सोच सकूं.’’

‘‘चलिए जब आप ने स्वयं को मानसिक रूप से विवाह के लिए तैयार कर ही लिया है, तो आप ने यह भी सोच लिया होगा कि आप अपनी भावी पत्नी में किन गुणों को देखना चाहेंगे.’’

‘‘किसी विशेष गुण की चाह नहीं है मुझे. हां, ऐसी पत्नी की चाह जरूर है जो मुझे मेरे सभी गुणोंअवगुणों के साथ अपना सके,’’ नितीश भोलेपन से मुसकराया तो मीना देखती ही रह गई थी. कुछ ऐसा ही व्यक्ति उस के कल्पनालोक में भी था.

‘‘आप के विचार जान कर खुशी हुई पर आप को नहीं लगता कि जीवन साथ बिताने का निर्णय लेने से पहले कुछ और विषयों पर विस्तार से बात करना जरूरी है?’’ मीना कुछ संकुचित स्वर में बोली.

‘‘मैं हर विषय पर विस्तार से बात करने को तैयार हूं. पूछिए क्या जानना चाहती हैं आप?’’

‘‘हम दोनों ने सफलता प्राप्त करने के लिए कड़ा परिश्रम किया है, पर जब 2 सफल व्यक्ति एक ही छत के नीचे रहें तो कई अप्रत्याशित समस्याएं सामने आ सकती है.’’

‘‘शायद.’’

‘‘शायद नहीं, वास्तविकता यही है,’’ मीना झुंझला गई थी.

‘‘मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई समस्या आ सकती है जिसे हम दोनों मिल कर सुलझा न सकें.’’

‘‘सुन कर अच्छा लगा, पर विवाह के बाद घर का काम कौन करेगा?’’

‘‘हम दोनों मिल कर करेंगे. मेरा दृढ़ विश्वास है कि विवाह नाम की संस्था में पतिपत्नी को समान अधिकार मिलने चाहिए,’’ नितीश ने तत्परता से उत्तर दिया.

‘‘और बच्चे?’’

‘‘बच्चे? कौन से बच्चे?’’

‘‘बनिए मत, बच्चों की जिम्मेदारी कौन संभालेगा?’’ ‘‘इस संबंध में तो कभी सोचा ही नहीं मैं ने.’’

‘‘तो अब सोच लीजिए. शतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छिपाने से तो समस्या हल नहीं हो जाएगी.’’

‘‘मैं बहस के लिए तैयार हूं महोदया,’’ नितीश नाटकीय अंदाज में बोल कर हंस पड़ा.

‘‘तो सुनिए मुझे बच्चे बिलकुल पसंद नहीं हैं या यों कहिए कि मैं बच्चों से नफरत करती हूं.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप? उन भोलभाले मासूमों ने आप का क्या बिगाड़ा है.’’

‘‘इन मासूमों की भोली सूरत पर न जाइए. ये मातापिता के जीवन को कुछ इस तरह

जकड़ लेते हैं कि उन्हें जीवन की हर अच्छी चीज को त्याग देना पड़ता है.’’

‘‘मैं आप से सहमत हूं पर फिर भी लोग संतान की कामना करते हैं,’’ नितीश ने तर्क दिया.

‘‘करते होंगे, पर मुझे नहीं लगता कि मैं अपनी नौकरी के साथ आप के बच्चों के पालनपोषण का भार उठा सकूं. मुझे तो उन के नाम से ही झुरझुरी आने लगती है.’’

‘‘आप बोलती रहिए आप की बातों से मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही है.’’

‘‘जरा सोचिए, दोगुनी कमाई और 2 सफल व्यक्ति साथ रहें तो जीवन में आनंद ही आनंद है, पर मैं ने अपने कई मित्रों को बच्चों के चक्कर में रोतेबिलखते देखा है. अच्छा क्या आप बता सकते हैं कि केवल मानव शिशु ही क्यों रोते हैं? मैं ने जानवर या चिडि़या के बच्चों को कभी रोते नहीं देखा,’’ मीना ने अपनी बात समाप्त की.

‘‘आप ठीक कहती हैं. मैं आप से पूर्णतया सहमत हूं, पर परिवार में बच्चे की जगह कोई तोता या कुत्ता नहीं ले सकता.’’

‘‘तो फिर इस समस्या को कैसे सुलझाएंगे आप?’’

‘‘मैं एक समय में एक समस्या सुलझाने में विश्वास करता हूं. पहली समस्या विवाह करने की है. फैसला यह करना है कि हम दोनों एक ही छत के नीचे साथ रह सकते हैं या नहीं. बच्चे जब आएंगे तब देखा जाएगा. अभी से इस झमेले में पड़ने की क्या जरूरत है?’’ नितीश गंभीर स्वर में बोला.

‘‘पर मेरे लिए यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है. मैं किसी भी कीमत पर अपने भविष्य से समझौता नहीं कर सकती. नारीजीवन की सार्थकता केवल मां बनने में है, मैं ऐसा नहीं मानती.’’

‘‘मेरे लिए कोई समस्या नहीं है. अब वह समय तो रहा नहीं जब बच्चे बुढ़ापे की लाठी होते थे. इसलिए यदि आप शादी के बाद परिवार की वृद्धि में विश्वास नहीं करतीं तो मुझे कोई समस्या नहीं है,’’ नितीश ने मानो फैसला सुना दिया.

मीना कुछ देर मौन रही. कोई उस की सारी शर्तों को मान कर उस से विवाह की स्वीकृति देगा ऐसा तो उस ने कभी सोचा भी नहीं था. फिर भी मन में ऊहापोह की स्थिति थी. नितीश सचमुच ऐसा ही है या केवल दिखावा कर रहा है और विवाह के बाद उस का कोई दूसरा ही रूप सामने आएगा.

मगर अनिर्णय की स्थिति अधिक देर तक नहीं रही. सच तो यह था कि उस के विवाह को ले कर घर में पसरा तनाव सारी सीमाएं लांघ गया था. अपने लिए न सही पर मातापिता की खुशी के लिए वह शादी करने को तैयार थी.

मीना की मां ममता तथा पिता प्रकाश बड़ी बेचैनी से मीना और नितीश के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे थे. नितीश के मातापिता भी यही चाहते थे कि किसी तरह वह शादी के लिए हां कर दे तो वे चैन की सांस लें.

जैसे ही नितीश और मीना ने विवाह के लिए सहमति जताई तो घर में मानो नई जान पड़ गई. ममता तो मीना के विवाह की आशा ही त्याग चुकी थीं. उन्हें पहले तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ और जब हुआ तो वे फफक उठीं. ‘‘ये तो खुशी के आंसू है,’’ ममता झट आंसू पोंछ कर अतिथिसत्कार में जुट गई थीं.

दोनों ही पक्ष जल्द शादी के इच्छुक थे. पहले ही इतनी देर हो चुकी थी. अब 1 दिन की देरी भी उन के लिए अंसहनीय थी.

हफ्ते भर के अंदर ही शादी संपन्न हो गई. शादी के बाद मीना और नितीश जिस आनंदमय स्थिति में थे वैसा आमतौर पर किस्सेकहानियों में होता होगा. मधुयामिनी से लौटी मीना के चेहरे पर अनोखी चमक देख कर उस के मातापिता भी पुलकित हो उठे थे.

मगर जीवन सदा सीधी राह पर ही तो नहीं चला करता. अचानक मीना की सेहत बिगड़ने लगी. वह बुझी सी रहने लगी. दूसरों को भी प्रेरित करने वाली ऊर्जा मानो खो सी हो गई थी.

तबीयत सुधरते न देख नितीश उसे डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने जब नए मेहमान के आने का शुभ समाचार सुनाया तो मीना का व्यवहार सर्वथा अप्रत्याशित था. वह अपनी सुधबुध खो बैठी. डाक्टर बड़े प्रयत्न से उसे होश में लाईं तो चीखचिल्ला कर मीना ने पूरा नर्सिंगहोम सिर पर उठा लिया. आसपास के लोग डाक्टर रमोला के कक्ष की ओर कुछ इस तरह दौड़ आए मानो कोई अनहोनी घट गईर् हो.

‘‘इस तरह संयम खोने से कोई भी समस्या हल नहीं होगी मीनाजी. मैं ने तो सोचा था कि आप यह शुभ समाचार सुन कर फूली नहीं समाएंगी. खुद को संभालिए. मैं ने ऐसे व्यवहार की आशा तो सपने में भी नहीं की थी. डाक्टर रमोला मीना को समझाने का प्रयत्न कर रही थीं. मगर मीना तो एक ही रट लगाए थी कि वह किसी भी कीमत पर इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाना चाहती थी.’’

‘‘माफ कीजिए, मैं आप को इस आयु में गर्भपात की सलाह नहीं दूंगी.’’

‘‘मैं आप की सलाह नहीं मांग रही…बहुत नम्रता से कहूं तो अनुरोध कर रही हूं. आप को दोगुनी या तिगुनी फीस भी देने को तैयार हूं.’’

‘‘माफ कीजिए, मैं किसी कीमत पर यह काम कभी न करूंगी और न ही आप को गर्भपात करवाने की सलाह दूंगी.’’

‘‘आप क्या समझती हैं कि शहर में और कोई डाक्टर नहीं है? चलो कहीं और चलते हैं,’’ मीना बड़े तैश में नितीश के साथ डाक्टर रमोला के कक्ष से बाहर निकल गई.

‘‘मेरे विचार से पहले घर चलते है. सोचसमझ कर फैसला करेंगे कि क्या और कैसे करना है? किस डाक्टर के पास जाना है,’’ कार में बैठते ही नितीश ने सुझाव दिया.

‘‘मैं सब समझती हूं. तुम सब की मिलीभगत है. तुम चाहते ही नहीं कि मैं इस मुसीबत से छुटकारा पा सकूं.’’

‘‘क्या कह रही हो मीना? लगता है 1 साल बाद भी तुम मुझे समझ नहीं सकीं. मुझे तुम्हारे स्वास्थ्य की चिंता है. मैं ने तुम्हारे और अपने मातापिता को सूचित कर दिया है. कोई फैसला लेने से पहले सलाह आवश्यक है.’’

‘‘किस से पूछ कर सूचित किया तुम ने? मुझे तो लगता है कि डाक्टर रमोला के कान भी तुम ने ही भरे थे. सब पुरुष एकजैसे होते हैं. साफ क्यों नहीं कहते कि तुम मेरी ग्रोथ से जलते हो. इसीलिए राह में रोड़े अटका रहे हो,’’ मीना एक ही सांस में बोल गई.

मीना का रोनाधोना न जाने कब तक चलता पर तभी उस की मां ममता का फोन आ गया. उन्होंने सख्त हिदायत दी कि वे पहली गाड़ी से पहुंच रही हैं. तब तक धैर्य से काम लो.

मीना छटपटा कर रह गई. वह समझ गई कि इस मुसीबत से निकल पाना आसान नहीं होगा.

दूसरे दिन सवेरे तक घर में मेहमानों की भीड़ लग गई थी. सब ने एकमत से घोषणा कर दी कि कुदरत के इस वरदान को अभिशाप में बदलने का मीना  को कोई अधिकार नहीं.

मीना मनमसोस कर रह गई. फिर भी उस ने निर्णय किया कि अवसर मिलते ही वह इस मुसीबत से छुटकारा अवश्य पा लेगी.

लाख चाहने पर भी मीना को अवसर नहीं मिल रहा था. उस के तथा नितीश के मातापिता एक पल के लिए भी उसे अकेला नहीं छोड़ते थे.

उस की मां ममता ने तो बच्चे को पालने का भार अपने कंधों पर लेने की घोषणा भी कर दी थी. फिर भला नितीश की मां कब पीछे रहने वाली थीं. उन्होंने भी अपने सहयोग का आश्वासन दे डाला था.

अब मीना बेचैनी से उस पल का इंतजार कर रही थी जब बच्चे के जन्म के साथ ही उसे इस शारीरिक तथा मानसिक यातना से छुटकारा मिलेगा. वह अकसर नितीश से परिहास करती कि नारी के साथ तो कुदरत ने भी पक्षपात किया है. तभी तो सारी असुविधाएं नारी के ही हिस्से आई हैं.

समय आने पर बच्चे का जन्म हुआ. सब कुछ ठीकठाक निबट गया तो सब ने राहत की सांस ली.

बच्चे को गोद में लेते हुए ममता तो रो ही पड़ी, ‘‘आज 35-36 साल बाद घर में बच्चे की किलकारियां गूजेंगी. कुदरत इतनी प्रसन्नता देगी, मैं ने तो इस की कल्पना भी नहीं की थी,’’ वे भरे गले से बोलीं.

‘‘यह तो बिलकुल अपने दादाजी पर गया है. वैसे तीखे नैननक्श, वैसा ही रोबीला चेहरा. तुम लोगों ने इस का नाम क्या सोचा है? नितीश की मां बच्चे को दुलारते हुए बोलीं.

‘‘आप लोग ही पालोगे इसे, नाम भी आप ही सोच लेना,’’ नितीश ने शिशु को गोद में ले कर ध्यान से देखा.

मीना कुतूहल से सारा दृश्य देख रही थी. वह बिस्तर पर बैठी थी. नितीश ने बच्चा उस के हाथों में दे दिया.

मीना को लगा मानो पूरे शरीर में बिजली दौड़ गईर् हो. उस ने बच्चे की बंद आंखों पर उंगलियां फेरी, छोटेछोटे हाथों की उंगलियां खोलने का प्रयत्न किया और नन्हे से तलवों को प्यार से सहलाया.

मीना को पहली बार आभास हुआ कि वह इस नन्ही सी जान को स्वयं से दूर करने की बात सोच भी नहीं सकती. उस ने शिशु को कलेजे से लगा लिया. और फिर उस कोमल, मीठे स्पर्शसुख में भीगती चली गई जिसे शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता था. दूर खड़ा नितीश मीना के चेहरे के बदलते भावों को देख कर ही सब कुछ समझ गया था जैसे दूर क्षितिज से पहली सूर्यकिरण अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हो.

गुरुजी का मटका : गुरुजी के प्रवचन से अशोक को मिला कौन सा मूल मंत्र

ड्राइवर की नौकरी करते हुए अशोक ने अपना ड्राइविंग का शौक तो पूरा कर लिया. लेकिन कहीं न कहीं उस के मन में अधिक धन कमाने की लालसा छिपी थी. अखबार में छपे ‘गुरुजी का प्रवचन’ के विज्ञापन को देख कर उस के दिमाग में षड्यंत्र का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

अशोक ने जब आंखें खोलीं तो सुबह के 7 बजने वाले थे. उस ने एक अंगड़ाई ली और उठ कर बैठ गया और बैठेबैठे ही विचारों में खो गया. वह 10 साल पहले एक सैलानी की तरह गोआ आया था. वह ग्रेजुएट होने के बाद से ही नौकरी की तलाश करतेकरते थक गया था. शाम का समय बिताने के लिए उस ने ला में यह सोच कर दाखिला ले लिया कि नौकरी नहीं मिली तो वकालत शुरू कर लेगा. रोपीट कर उस ने कुछ पेपर पास भी कर लिए थे, लेकिन नौकरी न मिलनी थी न मिली. मांबाप भी कब तक खिलाते. रोजरोज के तानों से तंग आ कर एक दिन घर से नाराज हो कर अशोक भाग निकला और गोआ पहुंच गया.

पर्यटकों को आकर्षित करते गोआ के बीच अशोक को भी अच्छे लगे थे लेकिन वे पेट की आग तो नहीं बुझा सकते थे. नौकरी के लिए अशोक ने हाथपैर मारने शुरू किए तो उस का पढ़ालिखा होना और फर्राटे से अंगरेजी बोलना काम आ गया. उसे एक जगह ड्राइवर की नौकरी मिल गई. इस नौकरी से अशोक को कई फायदे हुए, पहला तो उस का ड्राइविंग का शौक पूरा हो गया तथा सफेद कपड़ों के रूप में रोजाना अच्छी डे्रस मिलती थी. टैक्सी मालिक की कई कारें थीं, जोकि कांट्रेक्ट पर होटलों में लगी रहती थीं. उस का टैक्सी मालिक शरीफ आदमी  था. उस को किलोमीटर के हिसाब से आमदनी चाहिए थी. देर रात से मिलने वाले ओवर टाइम का पैसा ड्राइवर को मिलता था.

अशोक की लगन देख कर कुछ ही दिनों में उस के मालिक ने उसे नई लग्जरी कार दे दी थी जिस का केवल विदेशी सैलानी अथवा बड़ेबड़े पैसे वाले इस्तेमाल करते थे. इस का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि अशोक को हमेशा विदेशी अथवा बड़े लोगों के संपर्क में रहने का मौका मिलने लगा. कई विदेशी तो उसे साथ खाना खाने को मजबूर भी कर देते थे, खासकर तब जब वह उन्हें एक बीच से दूसरे बीच घुमाता था. अच्छीखासी टिप भी मिलती थी जो उस की पगार से कई गुना ज्यादा होती थी.

धीरेधीरे अशोक ने एक कमरे का मकान भी ले लिया. विदेशी पर्यटकों की संगत का असर यह हुआ कि अब उस को शराब पीने की आदत पड़ गई. चूंकि वह अकेला रहता था इसलिए अन्य टैक्सी ड्राइवर मदन, आनंद आदि भी उस के कमरे में ही शराब पीते थे.

कल रात भी अशोक तथा उस के दूसरे टैक्सी ड्राइवर दोस्तों का जमघट काफी समय तक उस के कमरे पर लगा रहा. कारण था पर्यटन सीजन का समाप्त होना. बरसात का मौसम आ गया था. इस मौसम में विदेशी पर्यटक अपने देश चले जाते हैं.

हां, स्कूल की छुट्टियां होने से देशी पर्यटक गोआ आते हैं जिन में उन की कोई रुचि नहीं थी. मातापिता से मिलने या अपने शहर जाने का उस का कोई कार्यक्रम नहीं था.

इतने में दरवाजे पर घंटी बजी तो अशोक अपने अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आया. दरवाजा खोल कर देखा तो बाहर अखबार वाला खड़ा था जिस का 2 महीने का बिल बाकी था. अशोक ने उस को 1-2 दिन में पैसा देने को कह कर भेज दिया और स्थानीय अखबार ले कर पढ़ने लगा. अखबार पढ़तेपढ़ते उस की इच्छा चाय पीने को हुई. उस ने कमरे में एक कोने में मेज पर रखे गैस चूल्हे पर अपने लिए चाय बनाई तथा चाय और अखबार ले कर बाथरूम में घुस गया.

यद्यपि स्थानीय समाचारों में अशोक की कोई खास रुचि नहीं थी. वह तो महज मोटीमोटी हैडिंग पढ़ता और कुछ चटपटी खबरों के साथ यह जरूर पढ़ता कि गोआ में कहां क्या कार्यक्रम होने वाले हैं और किस ओर के ट्रैफिक को किस ओर मोड़ा जाना है. चाय समाप्त कर के अशोक अखबार फेंक ही रहा था कि उस की निगाह एक बड़े विज्ञापन पर पड़ी.

विज्ञापन के अनुसार अगले महीने की 10 तारीख की शाम को मीरामार बीच पर गुरु रामदासजी का प्रवचन होना था. बिना किसी प्रवेश शुल्क के सभी लोग सादर आमंत्रित थे.

विज्ञापन से ही उसे पता चला कि गोआ का प्रसिद्ध औद्योगिक घराना ‘खोटके परिवार’ इस कार्यक्रम को आयोजित करा रहा है.

अशोक को ध्यान आया कि कल उस के टैक्सी मालिक भी गुरु रामदास के गुणों का बखान कर रहे थे जिस को उन के परिवार के लोग बड़े ध्यान से सुन रहे थे. तभी उस ने जाना था कि गुरुजी बीमारी ठीक करने के उपाय तथा ‘बेटर लिविंग’ की शिक्षा देने में माहिर हैं, देशविदेश में उन का बड़ा नाम है. लाखों उन के अनुयायी हैं. बंगलौर में गुरुजी का बहुत बड़ा आश्रम है. अशोक को गुरु रामदासजी प्रेरणा स्रोत लगे तथा उस ने भी उन के इस कार्यक्रम में जाने का मन बना लिया.

अशोक तैयार हो कर टैक्सी मालिक के दफ्तर के लिए निकला तो यह देख कर उसे आश्चर्य हुआ कि शहर में जगहजगह गुरुजी की फोटो के साथ बड़ेबड़े होर्डिंग लगे हैं, पोस्टर लगे हैं. उस ने टैक्सी ली और इस उम्मीद से मेरियट होटल की तरफ चल पड़ा कि पांचसितारा होटल में भूलेभटके कोई सवारी मिल ही जाएगी. वैसे भी होटल मैनेजर का कमीशन बंधा होता है. अत: निश्चित था कि यदि कोई सवारी होगी तो उस को ही मिलेगी.

मेरियट होटल मीरामार बीच के साथ ही है. टैक्सी होटल में पार्क कर के अशोक बीच पर चला गया. बारिश रुकी हुई थी. उस को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि कई मजदूर सफाई का काम कर रहे हैं. पूछने पर पता चला कि गुरुजी के कार्यक्रम की तैयारी चल रही है.

होटल पहुंचा तो मैनेजर ने उसे बताया कि 2 सवारी हैं जिन को शहर तथा आसपास के इलाकों को देखने के लिए जाना है. इतने में ही सफेद कपड़ों में 2 व्यक्ति काउंटर पर आ गए. उन के खादी के कपड़ों की सफेदी देखते ही बनती थी.

मैनेजर के इशारे पर अशोक गेट पर टैक्सी ले आया. वे दोनों बैठे तो अशोक ने दरवाजा सैल्यूट के साथ बंद किया. अशोक टैक्सी चला रहा था पर उस का ध्यान उन की बातों की ओर लगा था. उन की बातों से उसे पता चला कि वे दोनों गुरुजी के कार्यक्रम को आयोजित करने के बारे में आए हैं. लंबे व्यक्ति का नाम ओमप्रकाश है जिस को सभी ओ.पी. के नाम से जानते हैं. वह गुरुजी का ‘इवंट’ मैनेजर है तथा कार्यक्रमों को आयोजित करने की जिम्मेदारी गुरुजी ने उसे ही स्थायी रूप से दी हुई है.

दूसरे व्यक्ति का नाम विजय गोयल था जो चार्टर्ड अकाउंटेंट है और आयोजनों में लागत और खर्चों की जिम्मेदारी वह गुरुजी के निर्देश पर निभा रहा है. दोनों ही गुरुजी के 2 हाथ हैं, विश्वासपात्र हैं. दोनों व्यक्तियों ने शहर में लगे पोस्टर, होर्डिंग आदि का जायजा लिया और आवश्यक निर्देश दिए.

समाचारपत्रों में छपे गुरुजी के विज्ञापन को देख कर वे दोनों उन समाचारपत्रों के दफ्तरों में गए और गुरुजी के चमत्कार के किस्से प्रकाशित करने के लिए कहा. इस के बाद वे दोनों ‘खोटके परिवार’ के बंगले पर पहुंचे जहां उन का भरपूर स्वागत हुआ. शाम के समय लान में ही कुरसियां लगी थीं और उस लान के बगल में ही टैक्सी पार्क की गई. जलपान के बाद विजय गोयल ने समाचारपत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों के बिल तथा होर्डिंग आदि के खर्चों का ब्योरा दिया जोकि लगभग 5 लाख रुपए का था.

खोटके परिवार के मुखिया ने सभी बिल अपने पास खड़े मैनेजर को बिना देखे पेमेंट करने के लिए आवश्यक निर्देश दिए. तभी विजय गोयल ने कहा कि सारा भुगतान कैश में होना चाहिए, चेक नहीं और इस पर सभी सहमत थे.

अशोक पास में खड़ा उन की बातें सुन रहा था. ‘खोटके परिवार’ का आग्रह था कि गुरुजी उन्हीं के यहां रुकें तथा व्यवस्था उन्हीं के अनुसार हो जाएगी. मीरामार बीच कार्यक्रम में गुरुजी का स्वागत खासतौर से ‘खोटकेजी ही करेंगे और उन की पत्नी औरतों का प्रतिनिधित्व करेंगी. इस समारोह में. ओ.पी. ने बताया कि गुरुजी के साथ कितने लोग होंगे और उन सब की आवश्यकताएं क्याक्या होंगी. इतने में मैनेजर ने एक मोटा लिफाफा विजय गोयल को पकड़ा दिया जो शायद कैश पेमेंट था.

2 घंटे के बाद वे दोनों वापस होटल की ओर चल दिए. अंधेरा हो चला था लेकिन गोआ की नाइट लाइफ अभी शुरू होनी थी. होटल पहुंचने से पहले विजय गोयल ने अपने साथी ओ.पी. से बोला कि मटकों का कार्यक्रम तो बाकी ही रह गया. इस पर ओ.पी. ने टैक्सी ड्राइवर अशोक से पूछा कि क्या यहां आसपास कुम्हार हैं जो मटका बनाते हैं?

अशोक ने बताया कि मापसा में कुम्हार रहते हैं जो मिट्टी के बरतन बनाते हैं. और मापसा लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर दूसरा शहर है.

ओ.पी. ने विजय से कहा कि यह काम इस ड्राइवर को दे दो. यह 2-3 मटके ले आएगा.

‘‘हमारा काम तो 2 मटकों से ही हो जाएगा,’’ विजय बोला.

‘‘भाई, मैं ने ‘इवेंट मैनेजमेंट’ का कोर्स किया है. तीसरा मटका इमर्जेंसी के लिए रखो,’’ ओ.पी. ने जवाब दिया.

विजय गोयल ने अशोक को समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, तीनों मटके साधारण होने चाहिए जिन को सफेद रंग से पोता जाएगा और उस पर स्वस्तिक का निशान व ‘श्री गुरुजी नम:’ भी लिखाना होगा. उन मटकों की खासीयत यह होगी कि मुंह बंद होगा और जैसे मिट्टी की गोलक में लंबा सा चीरा होता है वैसे ही मटकों के मुंह पर होगा जिस से उस में रुपयापैसा डाला जा सके.’’

यह सबकुछ समझाने के बाद विजय बोले, ‘‘ओ.पी., मैं तो अब थक गया हूं. कल सुबह की फ्लाइट से बंगलौर वापस भी जाना है.’’

ओ.पी. ने अशोक को 2 हजार रुपए दिए और बोले, ‘‘अशोक, इस बात का खास ध्यान रखना कि मटके आकर्षक ढंग से पेंट होने चाहिए.’’

‘‘सर, ये रुपए तो बहुत ज्यादा हैं,’’ अशोक बोला.

‘‘कोई बात नहीं, बाकी तुम रख लेना लेकिन याद रहे कि कार्यक्रम 10 तारीख को है और हम 8 तारीख को आएंगे. तब यह मटके तुम से ले लेंगे. तब तक उन्हें अपने पास ही रखना.’’

रात के 10 बज गए थे. अशोक भी टैक्सी स्टैंड पर छोड़ कर अपने कमरे पर पहुंचा. थकान महसूस हो रही थी साथ ही भूख भी लग रही थी. जेब में 2 हजार रुपए पड़े ही थे इसलिए उस ने मदन को बुला लिया क्योंकि उस का दोस्त आनंद टैक्सी ले कर मुंबई गया था. दोनों एक होटल में गए और खाना मंगा लिया. खाना खाते समय अशोक के दिमाग में एक विचार आया जिस ने एक षड्यंत्र को जन्म दिया. उस ने दोस्तों से कहा कि भाई मदन, मैं ने बहुत पहले कहीं पढ़ा था कि इन महंतोंगुरुओं के पास जो चंदे का पैसा आता है उस का कोई हिसाबकिताब नहीं रखा जाता और इस में हेराफेरी हो तो ये लोग उस की कहीं शिकायत भी नहीं करते हैं और फिर दोनों आपस में बाबाओं के किस्से सुनासुना कर ठहाके लगाते रहे.

रात के 12 बजे मदन अपने घर चला गया और अशोक भी कमरे पर आ कर सो गया. सुबह उस ने अखबार का पूरा पेमेंट कर दिया. इस के बाद तैयार हो कर वह बस पकड़ कर मापसा कुम्हारों की बस्ती में पहुंचा और मुंह बंद लेकिन चीरे के साथ मटकों का आर्डर दे दिया. सौदा 50 रुपए प्रति मटके पर तय हुआ तो कुम्हार ने 3 दिन का समय मांगा. अशोक ने 5 मटकों का आर्डर दिया तथा एडवांस भी 100 रुपए पकड़ा दिए.

अब अशोक पेंटर की तलाश भी वहीं करने लगा क्योंकि वह सारा काम मापसा में ही कराना चाहता था. इधरउधर नजर दौड़ाने पर बाजार की एक गली में उसे पेंटर की दुकान दिखाई दी. अशोक ने पेंटर को मटके पेंट करने के बारे में बताया. पेंटर जितेंद्र होशियार था, वह तुरंत समझ गया और उस ने अशोक को गुरुजी का चित्र भी बनाने का सुझाव दिया. अशोक ने जब उस से यह कहा कि उस के पास गुरुजी का फोटो नहीं है तो वह बोला, ‘‘आप इस के लिए परेशान न हों. अखबार में तो गुरुजी का चित्र छप ही रहा है उसे देख कर बना दूंगा.’’

इस के बाद उस ने अशोक को अपने द्वारा बनाई गई कुछ पेंटिंग भी दिखाईं. अशोक ने उस के काम से संतुष्ट हो कर कीमत तय की. जितेंद्र  ने 100 रुपए प्रति मटका पेंटिंग की कीमत बताई. इस पर अशोक ने कहा कि अगर कार्य संतोषजनक होगा तो वह 200 रुपए अतिरिक्त देगा. इसलिए काम बहुत ही अच्छा करना होगा. जितेंद्र ने भरोसा दिया कि आप मटका दें. 3 दिन में कार्य पूरा हो जाएगा.

अशोक ने 3 दिन बाद मटके कुम्हार से ले कर जितेंद्र की दुकान पर पहुंचा दिए. एडवांस भी दे दिया. इस बीच वह खोटके परिवार के दफ्तर भी गया तथा गुरुजी के कार्यक्रम में रुचि दिखाई. खोटकेजी ने कहा कि वह सेवक के रूप में कार्यक्रम की तैयारी में भाग ले सकता है.

चूंकि आफ सीजन के चलते अशोक बेकार था इसलिए बेकारी से बेगारी भली के सिद्धांत को मानते हुए उस ने हां कर दी. कार्यक्रम में केवल 5 रोज रह गए थे अत: तैयारी जोरशोर से चल रही थी. ड्राइवर होने के कारण खोटकेजी ने सारी भागदौड़ की जिम्मेदारी अशोक को सौंप दी तथा एक कार भी, जिस को अशोक ने जीजान से पूरा किया.

इस दौरान अशोक ने मीरामार बीच समारोह स्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. एक भव्य मंच बनाया गया था जहां पर गुरुजी को विराजमान होना था. मंच पर संगीतकारों सहित लगभग 50 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. कार्यक्रम बड़े पैमाने पर होना था अत: टेलीविजन पत्रकारों, वीडियो आदि के साथ प्रतिष्ठित लोगों के बैठने की भी व्यवस्था की गई थी. मुख्यमंत्री अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ गुरुजी को माला पहना कर गोआ में उन के स्वागत की रस्म अदा करने वाले थे. मंच पर मुख्यमंत्री के साथ खोटकेजी को बैठना था. बाद में सभी को खोटकेजी के बंगले पर गुरुजी के साथ भोजन पर आध्यात्मिक चर्चा में भाग लेने का कार्यक्रम था.

यह सुनहरा अवसर था जिस को खोटकेजी खोना नहीं चाहते थे. बातोंबातों में अशोक को पता चला कि खोटकेजी ने सारा खर्चा इसी खास अवसर के लिए उठाया है वरना गुरुजी के दर्शन तो वह बंगलौर जा कर भी कर सकते थे.

खैर, इस बीच अशोक मटके ले आया. वास्तव में जितेंद्र ने अपने चित्रों से मटके बेहद खूबसूरत बना दिए. सफेद रंग के मटके तथा उन पर गुरुजी का आकर्षक फोटो, स्वस्तिक के निशान के साथ कुछ चित्रकारी भी की गई थी.

आखिर 10 तारीख यानी समारोह का दिन आ गया. गुरुजी दोपहर की फ्लाइट से गोआ आ गए थे तथा खोटकेजी के बंगले में विश्राम कर रहे थे. पिछले 2 दिनों से लगातार गुरुजी के आश्रम के सदस्य समूह में गोआ पहुंच रहे थे. हवाई अड्डे पर विशेष व्यवस्था की गई थी. ओ.पी. तथा विजय गोयल भी कल ही आ गए थे और उन्होंने अशोक की भूरिभूरि प्रशंसा की शानदार मटके बनवाने के लिए. दोनों ही संतुष्ट थे.

शाम को सभी कार्यकर्ता सफेद पोशाक पहने गुरुजी के चित्र, बैच, आई कार्ड लगाए मीरामार बीच पर पहुंच चुके थे. अशोक को भी आईकार्ड लगाए विजयजी ने विशेष जिम्मेदारी सौंप दी. कार्यक्रम शुरू हो गया था. सभास्थल के बीच में लंबा प्लेटफार्म बनाया गया था जिस से सभास्थल 2 भागों में बंट गया था. लाउडस्पीकर पर बारबार घोषणा हो रही थी कि गुरुजी बस, आने ही वाले हैं. इतने में हलकी बरसात होने लगी तो थोड़ी हलचल सी मच गई. लोगों ने अपनेअपने छाते खोल लिए लेकिन भीड़ उठने का नाम नहीं ले रही थी, इस से पता चलता था कि गुरुजी के प्रति लोगों में कितना विश्वास है.

बारिश रुक गई तो गुरुजी बीच के प्लेटफार्म पर चल कर मंच पर आए और भक्तों का अभिवादन स्वीकार कर के उन के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी. लोगों ने फूलमालाएं पहना कर, दे कर तथा दूर से फेंक कर उन का अभिवादन किया. गुरुजी मंच पर पहुंचे तो खोटकेजी, मुख्यमंत्री और अन्य विशिष्ट व्यक्तियों ने परंपरागत तरीके से उन का स्वागत किया.

गुरुजी ने हलकी बारिश का श्रेय लेते हुए मजाक के अंदाज में अपने भाषण की शुरुआत करने से पहले सभी को आदेश दिया कि वे आंखें बंद कर के 2 मिनट का ध्यान लगाएं. बाद में भक्तों को कहा गया कि लंबी सांस लें तथा धीरेधीरे छोड़ें. यह प्रक्रिया अनेक बार दोहराई गई.

इसी दौरान विजयजी ने अशोक को मटका देते हुए मंच की बाईं तरफ श्रद्धालुओं के बीच उसे घुमाने को कहा तथा दूसरा मटका खुद ले कर दाईं तरफ चले गए. ओ.पी. तो मंच पर विराजमान थे.

कार्यक्रम निशुल्क था अत: हर श्रद्धालु ने क्षमतानुसार मटके में अपना योगदान दिया. कम से कम 10 रुपए का नोट तो देना ही था. कुछ ने 500 तो कुछ ने हजार तक का नोट दिया. जब बाईं तरफ बैठे सभी श्रद्धालुओं में मटका घूम चुका तो उस का वजन काफी बढ़ गया था. अशोक मटका ले कर धीरेधीरे पंडाल में बैठे श्रद्धालुओं से निकल कर बाहर की तरफ खड़े श्रद्धालु, पुलिसकर्मी, टैक्सी वालों के बीच चला गया.

अशोक ने बाहर खड़ी मदन की टैक्सी के पास मटका दिखाया तो मदन ने तुरंत झुक कर मटका ले लिया तथा बराबर में खाली रखा मटका अशोक को थमा दिया. अशोक पुन: मटके को ले कर टैक्सी वालों, पुलिस वालों के बीच घुमाने लगा. मंत्रीजी ने भी मटके में योगदान दिया. अशोक धीरेधीरे वापस विजय के पास पहुंचा जोकि दाईं तरफ अभी भी आधे श्रद्धालुओं के बीच मटका घुमा पाए थे. इस बीच उन को स्थानीय महिला कार्यकर्ताओं ने घेर रखा था तथा विजय अपने गुरुजी के साथ घनिष्ठ संबंधों की चर्चा से खुश हो रहे थे.

अशोक ने विजय से कहा, ‘‘सर, उस तरफ से तो पूरा हो गया. इधर मैं करता हूं आप उधर वाला मटका पकड़ लें.’’ विजय ने मटका बदल लिया तथा अशोक ने उस तरफ के लोगों के बीच मटका घुमाना शुरू कर दिया. जब पीछे की तरफ अशोक मटका ले कर गया तो देखा विजय पहले मटके को पकड़े महिला श्रद्धालुओं से हंसहंस कर बातें कर रहे हैं.

अशोक ने बड़े अदब से विजय के पास जा कर पूछा, ‘‘सर, बाहर खड़े श्रद्धालुओं, टैक्सी, ड्राइवर, पुलिस वालों के बीच भी मटका घुमाना है?’’

विजय ने आदेशात्मक लहजे में कहा कि जल्दी करो…गुरुजी का कार्यक्रम अगले 20 मिनट में समाप्त होने वाला है.

अशोक तेज कदमों से मदन की टैक्सी को ढूंढ़ने लगा. मदन की टैक्सी को न पा कर अशोक ने लंबी गहरी संतोष की सांस ली. योजना के अनुसार वह आनंद की टैक्सी की तरफ बढ़ा जिस ने झुक कर मटका अंदर रख लिया तथा खाली मटका अशोक को पकड़ा दिया, जिस को ले कर वह पुन: ड्राइवरों, पुलिसकर्मियों एवं बाहर खडे़ श्रद्धालुओं के बीच घुमाता हुआ विजय के पास पहुंच गया तथा दूसरा मटका भी उन के हवाले कर दिया.

विजयजी ने दोनों मटकों को अपने संरक्षण में ले लिया. इतने में कार्यक्रम समाप्त करने की घोषणा हो चुकी थी. गुरुजी  मंच छोड़ चुके थे. भजनों के द्वारा श्रद्धालुओं  को रोका जा रहा था लेकिन भीड़ भी धीरेधीरे  घटने  लगी थी. तभी  ओ.पी. जी मंच छोड़ कर वहां आ गए.

अशोक ने सफल कार्यक्रम कराने के लिए उन्हें बधाई दी. खुश हो कर ओ.पी. जी ने उस को बंगलौर आने को कहा तथा प्रस्तावित किया कि वह चाहे तो गुरुजी के स्टाफ में शामिल हो सकता है.

अशोक ने तुरंत ओमप्रकाशजी के तथा विजयजी के पांव छुए तथा उन के आशीष वचन प्राप्त किए.

विजय और ओमप्रकाश दोनों को मटके ले कर अशोक की टैक्सी से होटल पहुंचना था जहां से उन्हें खोटकेजी के बंगले पर जाना था.

टैक्सी स्टार्ट करने से पहले अशोक को यह देख कर राहत हुई कि आनंद भी टैक्सी ले कर गायब हो चुका था. अशोक ने विजय से कहा कि वह मटका फोड़ कर देख लें कि कितना कलेक्शन आया है क्योंकि गोआ की जनता पैसे देने के मामले में कंजूस है तथा धार्मिक कामों में कम ही योगदान देती है. ‘‘शराब से पैसे बचते ही नहीं होंगे,’’ ओमप्रकाशजी बोले तो तीनों हंस पड़े.  दोनों मटके कमरे में बंद कर  के, तीनों लोग खोटकेजी के  बंगले की ओर चल पडे़. अशोक ने फिर मटकों के बारे में चर्चा करनी चाही लेकिन विजय ने डांटते  हुए कहा कि मटके गुरुजी के सामने बंगलौर में फोडे़ जाएंगे. ऐसा उन का आदेश है.

‘‘आखिर अपने सुंदर चित्र को नक्काशी  के साथ देख कर गुरुजी प्रसन्न होंगे,’’ ओ.पी. जी ने एक जुमला फिर जड़ दिया. तीनों पुन: हंस पड़े. खोटकेजी के बंगले पर उन दोनों को छोड़ कर अशोक वापस कमरे पर आया जहां उस के दोनों दोस्त मदन व आनंद खानेपीने के सामान के साथ उस की प्रतीक्षा कर रह थे.

तीनों ने अपनेअपने जाम टकराए और बोले, ‘‘जय गुरुजी का मटका.’’

(इस कहानी के लेखक आयकर अपीलीय अधिकरण पणजी के न्यायिक सदस्य हैं)

अंधविश्वास के मकड़जाल में महिलाएं ही क्यों 

कुछ दिनों पूर्व वट सावित्री के अवसर पर सोसाइटी के मंदिर में महिलाओं की काफी भीड़ थी. वे युवा मौडर्न महिलाएं जिन्हें मैं ने अकसर लोअर टीशर्ट और जींसटौप के अलावा अन्य किसी परिधान में नहीं देखा था आज वे सिंदूर से लंबी मांग भरी, हाथों में भरभर चूडि़यां और साड़ी पहने सोलहशृंगार में नजर आ रही थीं. सभी तथाकथित आधुनिकाएं, वट सावित्री की कथा सुना रहे पंडितजी की ओर शांत भाव से देख रही थीं.

पंडितजी कह रहे थे, ‘‘सत्यवान के मरणोपरांत वट वृक्ष ने अपनी विशाल जटाओं में सावित्री के मृत पति सत्यवान के शरीर को सुरक्षित रखा था ताकि कोई उसे हानि न पहुंचा सके और फिर बाद में अपने तप के बल पर सावित्री अपने पति को जीवित करने में सक्षम हो गई इसलिए अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रत्येक महिला को यह व्रत जरूर करना चाहिए.’’

40 वर्षीय आषी पेशे से डाक्टर है परंतु वट सावित्री की पूजा को बड़े ही मनोयोग से करती है. चूंकि घर से बाहर जाना उसे पसंद नहीं है. अत: उस ने अपने घर में ही वरगद का पेड़ लगाया है ताकि पूजा में किसी भी प्रकार का विघ्न न आ सके. इस दिन सुबह जल्दी उठ कर सोलहशृंगार में सज कर वह पूजा करती है. उस के बाद ही क्लीनिक जाती है यह बात दूसरी है कि इस दिन पूजा के चक्कर में शुगर की पेशैंट होने के बाद भी वह पूजा होने तक भूखी रहती है और इसे ले कर हर साल आज के दिन पति अमन से बहस भी हो जाती है.

यह कैसा व्रत

आगरा शहर के जानेमाने सर्जन की 35 वर्षीय पत्नी सुमेधा एक पब्लिक स्कूल में प्रिंसिपल है. हरतालिका व्रत में अपने घर की पूजा का सुखद बयान करते हुए सुमेधा कहती है, ‘‘अपार्टमैंट की सभी महिलाएं हमारे घर पर ही एकसाथ पूजा करती हैं. निर्जल व्रत करने से शरीर रात्रि तक जवाब दे देता है. चूंकि रात्रि जागरण करना इस पूजा में अनिवार्य है इसलिए हम सभी मिल कर भजन करते हैं जिस से जागरण काफी आसान हो जाता है.’’

इस व्रत को जहां महिलाएं अपने सुखद दांपत्य के लिए तो कुंआरी लड़कियां अच्छे वर प्राप्ति के लिए करती हैं ताकि उन्हें भी शंकरजी जैसा वर प्राप्त हो सके.

इन प्रमुख व्रतों के अतिरिक्त बिहार की छठ पूजा, करवाचौथ, सोलह सोमवार, मंकर संक्रांति, अनंत चतुर्दशी, नवरात्रि, संतान सप्तमी, हलछठ और महाशिवरात्रि जैसी अनेक पूजाएं हैं जिन में अधिकांश भारतीय स्त्रियां कभी वरगद, कभी चंद्रमा, कभी सूर्य, कभी बेलपत्र तो कभी शिवपार्वती की पूजा कर के उन से अपने सुखद दांपत्य, पति की दीर्घायु, बेटे के उत्तम स्वास्थ्य और परिवार के कल्याण आदि का वरदान मांगती नजर आती हैं.

यही नहीं सभी सत्संग, धार्मिक स्थलों और मंदिरों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की अधिक संख्या इस बात का प्रमाण है कि इन सब चक्करों में महिलाएं ही अधिक पड़ती हैं.

ये उदाहरण समाज की हर उम्र की तथाकथित महिलाओं की सोच की एक छोटी सी बानगी मात्र हैं. कामकाजी हो या घरेलू अंधविश्वासों से भरे इन पूजापाठ में सभी की मानसिकता एक ही स्तर की होती. अंधविश्वास, पूजापाठ, धर्म की भेड़चाल ऐसे प्लेटफौर्म हैं जहां पर शिक्षित, अशिक्षित, उच्चवर्गीय, मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय सभी महिलाओं की सोच एकसमान हो जाती है.

क्यों पिसती हैं महिलाएं

प्रश्न यह उठता है कि आखिर इन धार्मिक क्रियाकलापों में महिलाएं ही क्यों फंसी रहती हैं? क्यों पूरे परिवार की सलामती का ठेका अपने सिर पर लिए बाबा और मंदिरों के चक्कर लगाती रहती हैं? आइए, एक नजर डालते हैं उन कारणों पर:

स्त्री को कमजोर बनाती भारतीय रस्में

नवरात्रि में बालिकाओं को देवी का दर्जा प्रदान कर के उन के पैर पूजन करना, लड़कियों से घर के बड़ों के पैर नहीं छुआना, कन्यादान, बेटियों के घर का कुछ भी खाने से पाप लगता है और कन्या को देवी का दर्जा देने, मरणोपरांत बेटे के द्वारा मुखाग्नि देने से ही मोक्ष मिलता है जैसी अनेक मान्यताएं और रस्में समाज में व्याप्त हैं जिन के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से स्त्रियों को बाल्यावस्था से ही उन के कमजोर और अबला होने का एहसास कराया जाता है.

इस से बाल्यावस्था से ही एक लडकी के मन में यह एहसास उत्पन्न हो जाता है कि वह पुरुषों से कमजोर और समाज की दोयम दर्जे की नागरिक है और इस के परिणामस्वरूप वह बाल्यावस्था से ही मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर और परिवार के पुरुषों पर आश्रित होती जाती है.

बड़ों का अनुकरण करने की प्रवृत्ति

बाल्यावस्था से ही लड़कियां अपनी मां, दादी या नानी को इस प्रकार की पूजाएं करते देख कर ही बड़ी होती हैं और इतने वर्षों तक निरंतर देखतेदेखते उन के अंदर डर बैठ जाता है कि यदि इन पूजाओं की परंपराओं को आगे नहीं बढ़ाया गया या विधिवत पूजाअर्चना नहीं की गई तो कभी भी परिवार या पति का अहित हो सकता है. बस अपनी इसी मानसिकता के चलते वे अपने परिवार और पति की सलामती के लिए इन्हें करती हैं.

ससुराल में भी सासूमां के द्वारा रस्मोरिवाज के नाम पर ऐसी ही अनगिनत परंपराओं को निभाना सिखाया जाता है. भले ही आज लड़कियां बाहर होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही हैं परंतु दूर रह कर भी माताएं उन्हें अपने अंधविश्वास के जाल से निकलने नहीं देतीं. शिवरात्रि से एक दिन पूर्व ही रेवा ने होस्टल में रहने वाली अपनी इकलौती बेटी को फोन किया, ‘‘याद है न कल शिवरात्रि को व्रत रखना है?’’

‘‘हां मां याद है इतने सालों से तो तुम रखवाती रही हो तो कैसे भूल सकती हूं.’’

माताओं के द्वारा वर्षों से अपनी बेटियों को दी गई अतार्किक शिक्षा के कारण लड़कियां आजीवन इस मकड़जाल से बाहर ही नहीं निकल पातीं और पीढ़ी दर पीढ़ी इन परंपराओं को इच्छाअनिच्छा से ढोती ही रहती हैं.

पंडेपुजारियों का डर

आज भी भारतीय समाज में आमतौर पर महिलाएं धर्मभीरु स्वभाव की होती हैं और परिवार की सुरक्षा तथा जीवन में आने वाली विभिन्न समस्यायों के निराकरण के लिए अंधविश्वासों, चमत्कारों और पंडेपुजारियों का सहारा लिया जाता है. ये पुजारी आम जनमानस के मन में भय उत्पन्न करते हैं कि यदि आप ने पूजा नहीं की तो परिवार को आर्थिक या शारीरिक हानि हो सकती है जिस के कारण महिलाएं भयग्रस्त हो पूजापाठ में व्यस्त रहती हैं.

प्रत्येक व्रतउपवास के लिए धर्म के ठेकेदारों ने एक पुस्तक तय की है. व्रतउपवास के अनुसार उस पुस्तक की कहानी को पढ़ना आवश्यक होता है और उस पुस्तक में महिलाओं को डराने और कमजोर बनाने वाली कथा ही लिखी होती है. इस के अतिरिक्त ये पुजारी अपनी आजीविका के लिए आम जन में धार्मिक भय उत्पन्न कर देते हैं.

ऐसे डराते हैं बाबा

एक लेखिका नीता कुछ वर्षों पूर्व अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहती है, ‘‘हमारे नएनवेले घर में एक पारिवारिक मित्र अपने किसी पुजारी गुरु को ले कर आए. उन पंडितजी ने हमारे यहां कुछ भी नहीं खाया. काफी देर रुकने के बाद जाते समय गेट पर वे मु?ा से बोले कि बेटा मैं ने अपनी नजर से तुम्हारा पूरा घर देखा. सबकुछ बहुत अच्छा है परंतु हाल के एक कोने में एक बुरी आत्मा का वास है. यदि तुम ने उसे ठीक नहीं करवाया तो यह आत्मा इस घर के मुखिया का नाश कर देगी.

‘‘मगर चिंता की कोई बात नहीं है मैं अगली बार आऊंगा तो सब ठीक कर दूंगा और फिर उन्होंने अपने आने तक दीपक जलाने, मंत्रों का जाप करने जैसे कुछ उपाय मु?ो बताए. उन्होंने मु?ो पकड़ा ही इसलिए कि मैं डर जाऊंगी. मगर मैं एक लेखिका हूं और हमेशा दिल के स्थान पर दिमाग से काम लेती हूं. ये पंडितजी भी तो एक इंसान हैं और ये कैसे मेरा भलाबुरा बता सकते हैं? आज इस घटना को 10 साल हो गए हैं और हमारा परिवार पूरी तरह सुरक्षित है.

तार्किक शिक्षा का अभाव

शहरी क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो आज भी पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की शिक्षा का स्तर बेहद कम है जिस के कारण उन के सोचनेसम?ाने की क्षमता बहुत कम हो जाती है. अंगरेजी मीडियम में पढ़ने वाली आज की पीढ़ी को दी जाने वाली शिक्षा में तर्क के स्थान पर रटने वाली शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाता है जिस से युवा पीढ़ी में तार्किक क्षमता का अभाव पाया जाता है. इस कारण से वह किसी भी विषय पर तर्क शक्ति का प्रयोग करने के स्थान पर भेड़चाल में चलना अधिक पसंद करती है.

आज भी अंगरेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ीं और इन स्कूलों में अध्यापन कार्य करने वाली अनेक आधुनिकाएं अपने बच्चों और पति की सलामती के लिए व्रत रखतीं और नमक, तेल, राई, मिर्च से हरदम नजर उतारती पाई जाती हैं.

दीवाली के अगले दिन पढ़ने वाले

सूर्यग्रहण के दौरान 35 वर्षीय एक प्रशासनिक अधिकारी शेफाली ने न तो भोजन बनाया, न खाया और न ही घर से बाहर निकली. यही नहीं सूर्यग्रहण की अवधि के उपरांत शाम को स्नान भी किया जिस से अगले दिन बीमार भी हो गई. इस दौरान शेफाली जैसी अनेक अंगरेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त, घरों में आधुनिकतम

फ्रिज का प्रयोग करने वाली तथाकथित आधुनिकाएं ग्रहण को निष्प्रभावी करने के लिए भोजन में कुश, दूब और तुलसी के पत्ते डालती नजर आईं जबकि सूर्य और चंद्रग्रहण मात्र एक खगोलीय घटना है.

महिलाओं का संकुचित दृष्टिकोण 

हमारे समाज में जहां लड़कियों का पालनपोषण बंधन और वर्जनाओं से युक्त किया जाता है वहीं लड़कों का पालनपोषण स्वच्छंद और उन्मुक्तता से परिपूर्ण होता है. जैसे ही एक बालिका किशोरावस्था में कदम रखती है उस पर परिवार का संरक्षण और पाबंदियां बढ़ा दी जाती हैं. घर से बाहर निकलने, सखियोंसहेलियों से बात करने के लिए कठोर नियम बना दिए जाते हैं वहीं लड़कों पर इस प्रकार का कोई बंधन नहीं होता. उन के बढ़े होने के साथसाथ उन्मुक्तता भी बढ़ती जाती है.

बाहर की दुनिया देख कर वे बहुत कुछ सीखते हैं जिस से लड़कियों की अपेक्षा उन के सोचने का नजरिया अधिक विस्तृत होता है.

भले ही आज अभिभावक अपनी बेटियों को बाहर भेज कर पढ़ा रहे हैं परंतु वहां भी उन पर अप्रत्यक्ष रूप से अनेक पाबंदियां लगाई जाती हैं जिस से उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता और उन का दृष्टिकोण संकुचित रह जाता है.

पुरुषप्रधान समाज

भारतीय समाज पुरुषप्रधान समाज है जहां पर अकसर परिवार का मुखिया पुरुष होता है और अधिकांश घरों में कमाने वाला एकमात्र जरीया भी. सदियों से महिला को भजन, पूजन और सत्संग जैसे अनेक धार्मिक क्रियाकलापों का उत्तरदायित्व सौंप कर पुरुष अपनी मनमाजी करता रहा है और यही परंपरा आज भी चली आ रही है कि धर्म के प्रकोप से अपने परिवार को बचाने के लिए वे इन सब का सहारा लेती है.

कैसे बचें इस जाल से? यह सही है कि सदियों से समाज में चली आ रही इस भेड़चाल को रोकना काफी मुश्किल है परंतु जब तक महिलाएं स्वयं अपने पैरों में पड़ी इन बेडि़यों को नहीं तोड़ेंगी तब तक उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास होना असंभव है और इस के लिए दिल नहीं दिमाग की तार्किक क्षमता का उपयोग करना होगा. समाज की पुरानी पीढ़ी के स्थान पर युवतियों को अपनी सोच को उन्नत बनाने के साथसाथ पुरानी पीढ़ी को भी बदलाव की ओर अग्रसर करना होगा.

दिल नहीं दिमाग का हो सही जगह उपयोग 

दोस्तों के साथ बाहर जाने से मना करने पर या मर्यादित ड्रैस पहनने को कहने जैसी छोटीछोटी सी बातों पर लौजिक की बात करने वाली आज की युवा पीढ़ी धर्म के मामले में भेड़चाल का अंधानुकरण करने में कोई परहेज नहीं करती. एक नामीगिरामी कालेज से एमएमबीबीएस कर रही श्रेया एकादशी पर चावल न खाने का कारण पूछने पर कहती है, ‘‘पता नहीं मां और दादी ऐसा करती हैं तो मैं भी कर रही हूं.’’

वहीं तर्क पर भरोसा करने वाली इंटीरियर डिजाइनर ईवा कहती है, ‘‘मेरे लिए मेरा कर्म ही पूजा है. आम मांओं की तरह मेरी मां भी अकसर मु?ो अंधविश्वासों से भरी अनेक पूजाएं और व्रत करने के लिए कहती हैं. उस के उत्तर में मैं बस मां से यही कहती हूं, ‘‘यदि आप की ये भेड़चाल वाली पूजाएं मु?ो बिना काम किए पैसे दे दें तो मैं सब करने को तैयार हूं,’’ बस यहां पर मां चुप हो जाती हैं.

सोचने की बात है कि कोई भी पूजा, बाबा या मंदिर हमारा भला या बुरा कैसे कर सकता है?

2 युवा और मेधावी बच्चों की मां अनामिका कहती है, ‘‘जब बचपन में मेरे बच्चे बीमार पड़ते थे तो हर इंसान मु?ो नमक मिर्च से इन की नजर उतारने को कहता पर मैं ने कभी उन की नजर नहीं उतारी क्योंकि मेरा मानना है कि बच्चे की परेशानी गैस पर नमकमिर्च जलाने से नहीं बल्कि डाक्टरी इलाज से दूर होगी सो मैं हमेशा डाक्टर के पास ही गई.’’

सही मानों में बनें आधुनिक

महज आधुनिक कपड़ों, आधुनिक तकनीक के मोबाइल, लैपटौप और महंगी गाडि़यों के प्रयोग करने से मौडर्न होने की सोच का परित्याग कर के अपनी सोच और व्यवहार को उन्नत और तार्किक बना कर ही सही मानों में आधुनिक कहलाया जा सकता है.

विचारणीय प्रश्न है कि यदि हमारी मां और दादी के समय के पहनावे में, जीवनजीने के तौरतरीकों में घर के साजोसामान और उपकरणों में समय के अनुसार बदलाव आया है तो हमारी सोच में क्यों नहीं? क्या हम आज भी अपनी दादी, नानी के समान 6 गज की साड़ी लपेट कर, घूंघट निकाल कर चूल्हे पर खाना बना सकते हैं अथवा क्या हम बिना फ्रिज, एसी और टीवी के जीवन की कल्पना कर सकते हैं और यदि इसका उत्तर न में है तो सोचना होगा कि फिर क्यों हम महिलाएं आज भी दादी, नानी के समय की खोखली, परंपराओं, कुरीतियों और अंधविश्वासों को सीने से लगा कर बैठी हैं,

यही नहीं आने वाली पीढ़ी को भी इन्हें हस्तांतरित कर रही हैं. इस धर्मभीरु स्वभाव का परित्याग कर के सही मानों में आधुनिक होने का वक्त है क्योंकि आने वाला युग पूरी तरह तकनीक आधारित युग होगा. ऐसे में हमें अपने बच्चों को उन्नत, तार्किक और व्यावहारिक सोच वाला बनाना होगा. तभी वे समय के साथ चल पाएंगे और यह हम केवल तभी कर सकेंगे जब इन सड़ीगली और जर्जर मान्यताओं और अंधविश्वासों को अपने मनमस्तिष्क से उखाड़ फेंकेंगे.

जानें रिलेशनशिप में इक मोमैंट का क्या है संबंध

रिश्ते न एक दिन में बनते हैं और न ही टूटते. यह एक लंबी प्रक्रिया है. यदि आप दोनों के बीच प्यार और बेहतर तालमेल है तो रिश्तों में आई मुश्किलें दूर की जा सकती हैं. यदि कोई शिकायत है भी तो एकदूसरे के साथ बात करने और सुनने से दूर की जा सकती है.

मन ही मन घुटते रहना, बातबात पर बहस और लड़ाई होना किसी भी रिश्ते खासकर शादीशुदा रिश्ते के लिए घातक हो सकता है. अकसर ऐसा होता है कि जब रिश्ते में बेरुखी आ जाती है तब वे जिस तरह से हंसते हैं या कोई चुटकुला सुनाते हैं या आप पर कोई कमैंट करते हैं वह आप को पूरी तरह परेशान कर सकता है. इसलिए रिश्ते में थोड़ी सी नोकझोंक भी जरूरी है लेकिन यह नोकझोंक अंतहीन झगड़े में न बदले, इस का ध्यान रखना भी आप का ही काम है.

राहुल और सुनीता ने 2 साल पहले ही लव मैरिज की थी, लेकिन अब दोनों को एकदूसरे के साथ रहना मुश्किल हो रहा है क्योंकि राहुल को शादी के पहले सुनीता की जो बातें या आदतें अच्छी लगती थीं वही अब बुरी लग रही हैं.

ठीक ऐसा ही कुछ सुनीता राहुल के साथ महसूस कर रही है जिस के कारण छोटीछोटी बातों को ले कर बहस और लड़ाई?ागड़ा हो रहा है. इस की वजह से अब उन्हें एकदूसरे के साथ रहना थोड़ा मुश्किल हो रहा है और रिश्ते में अचानक बेरुखी आ रही है. वे इस बात पर विचार कर रहे हैं कि रिश्ते को आगे बढ़ाया जाए या ब्रेक कर दिया जाए.

आजकल के भागदौड़ वाले लाइफस्टाइल और समय के अभाव के चलते बहुत सारे कपल्स के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा है. रिश्ते में एक समय के बाद बेरुखी आ रही है जिस के कारण तनाव हो रहा है और वे ब्रेकअप की ओर बढ़ रहे हैं. इसे आजकल इक मोमैंट कहा जा रहा है.

क्या है इक मोमैंट

इक मोमैंट रिश्ते टूटने से पहले का अलार्म है जिसे यदि समय रहते सुना नहीं गया तो यह आप के रिश्ते पर असर डाल सकता है. तब रिश्ते को बचाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.

शादी अपनी पसंद की की जाए यानी लव मैरिज हो या अरेंज्ड मैरिज दोनों ही परिस्थितियों में एक कपल को एकदूसरे के साथ तालमेल बैठाने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है क्योंकि शादी के पहले और शादी के शुरुआत के कुछ वर्ष या दिन हम एकदूसरे के साथ जो भी समय बिताते हैं वह अच्छा समय ही होता है. तब हम रिश्ते को गुलाबी चश्मे से देखते हैं और साथ ही हम ‘हू आर यु’ पर फोकस करते हैं यानी यह जानने में लगे रहते हैं कि आप कौन हैं? लेकिन जैसेजैसे समय बीतता जाता है हम एकदूसरे की आदतों और व्यवहार से परिचित होते जाते हैं.

तब कुछ चीजें बरदाश्त से बाहर हो जाती हैं. तब हम ‘व्हाट आर यु’ पर फोकस करने लगते हैं यानी यह जान लेते हैं कि आप क्या हैं? तब हमें साथी या पार्टनर की कुछ बातें, आदतें और व्यवहार अच्छा नहीं लगता और फिर हमें उस के साथ तालमेल बैठाने में परेशानी होने लगती है और फिर धीरेधीरे रिश्ते में बेरुखी आने लगती है.

तब कपल को ऐसा लगने लगता है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो लंबे समय तक रिश्ता निभाना काफी मुश्किल हो सकता है क्योंकि रोज की चिकचिक, बहस और लड़ाई से हम परेशान होने लगते हैं और इस से बचना चाहते हैं क्योंकि यह कहीं न कहीं रिश्ते में तनाव देने लगता है जिस से कई बार ब्रेकअप की नौबत भी आ जाती है.

यदि इस समय आप अपने रिश्ते को ब्रेकअप से बचाना चाहते हैं तो इन बातों को अपना सकते हैं:

फोकस करें अच्छाइयों पर

जब आप किसी के भी साथ लंबे समय तक रहते हैं तो ऐसी परिस्थितियां आएंगी ही जब आप को एकदूसरे की कोई बात, आदत या व्यवहार अच्छा न लगे. उस समय बेहतर है कि उस की अच्छाइयों पर फोकस किया जाए और बुराइयों को नजरअंदाज किया जाए. तभी आप किसी भी रिश्ते को बिना किसी परेशानी के आगे बढ़ा सकते हैं.

आपस में करें बातचीत

अपनी व्यस्त लाइफ में से थोड़ा सा समय निकालें और आमनेसामने बैठ कर एकदूसरे की बात सुनें, कहां समस्या आ रही है उसे सुल?ाने की कोशिश करें और आपस में तालमेल बैठाएं ताकि बहस और लड़ाईझगड़े से दूर रह कर अपने रिश्ते को लंबे समय तक सहेज सकें.

सही निर्णय लें

कई बार रिश्ते में ऐसी नौबत आ जाती है कि हम चाह कर भी एकदूसरे के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते तब  समय के साथ तनाव और बढ़ता जाता है. उस समय सोचसम?ा कर सही निर्णय लेना ही बेहतर विकल्प है कि रिश्ते को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ाना चाहते हैं या फिर पूरी तरह से पीछे हटना चाहते हैं.

अपनी गलती को स्वीकारें

किसी भी बहस से बचने और रिलेशन को हैल्दी रखने के लिए अपनी गलती को स्वीकार करना एक बेहतर विकल्प है. इस से रिलेशनशिप को रिपेयर करने में मदद मिलती है, साथ ही रिश्ते को लंबे समय तक हैल्दी बनाए रखने के लिए एकदूसरे की छोटीछोटी बातों पर रिएक्ट करने की जगह उन्हें नजरअंदाज करना बहुत जरूरी है. इस से एकदूसरे के लिए लगाव बढ़ने लगता है.

सीमाएं तय कर लें

शादीशुदा रिश्ते में एक समय के बाद बातबात में की जाने वाली दखलंदाजी कई बार घुटनभरा माहौल पैदा करने का काम करती है. इस से बचने और एक हैल्दी रिलेशनशिप मैंटेन रखने के लिए सीमाएं तय कर लेना जरूरी है. इस के लिए एकदूसरे को स्पेस देना और बातबात में दखलंदाजी से बचना जरूरी है. ऐसा करने से आपसी प्यार बना रहता है.

उचित सलाह लें

आप रिश्ते को बचाने के लिए काउंसलर या अपने नजदीकी दोस्तों अथवा परिवार के साथ मिलबैठ कर सलाह लें कि आखिर कैसे रिश्ते को बचाया जा सकता है. हो सकता है कुछ ऐसी बातों पर ये लोग आप का ध्यान फोकस करें जिन के बारे में आप सोच भी न पा रहे हों, इस के लिए हर संभव प्रयास करें.

जल्दबाजी में कोई भी निर्णय न लें. इसबात पर विचार करें कि रिश्ते को सहेजने के क्या फायदे हैं और ब्रेकअप के क्या नुकसान हैं. अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लें.

कैसे बनाया जाता है डीपफेक, क्या है भारत में इसका कानून

इटली की पीएम जार्जिया मेलोनी का डीपफेक वीडियो सामने आया है. जांचकर्ता का दावा है कि आरोपियों ने डीपफेक का इस्तेमाल करते हुए अश्लील पोर्न वीडियो बनाया. इस वीडियो में उन्होंने जार्जिया मेलोनी का चेहरा किसी पोर्न स्टार के चेहरे पर लगा कर उसे औनलाइन पोस्ट कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में 50 साल का एक व्यक्ति और उस का 73 साल का पिता शामिल है.

बताया जा रहा है कि इस वीडियो को अमेरिका की एक पोर्नोग्राफ्री वैबसाइट पर अपलोड किया गया और तब से कई महीनों तक इसे लाखों बार देखा गया.

जार्जिया मेलोनी ने अपने डीपफेक वीडियो के लिए 1 लाख यूरो यानी क्व90 लाख का मुआवजा मांगा है. मुआवजे के रूप में मिलने वाली राशि का इस्तेमाल पुरुष हिंसा की शिकार हुई महिलाओं को राहत देने में किया जाएगा.

पिछले साल सोशल मीडिया पर रश्मि मंदाना का डीपफेक वीडियो वायरल हुआ था. ऐक्ट्रैस का चेहरा एक ब्रिटिश मौडल जारा पटेल के चेहरे पर एडिट किया गया था, जिसे देखने के बाद कई सैलेब्स ने रिएक्शन दिया और उन के फैंस ने भी नाराजगी जाहिर की थी. रश्मि के बाद कई बौलीवुड ऐक्ट्रैस का डीपफेक वीडियो सामने आया. कैटरीना कैफ, आलिया भट्ट, काजोल सहित कई ऐसे शख्सियत भी हैं जो डीपफेक का शिकार हो चुकी हैं और समयसमय पर इन्हें सामने आ कर अपना स्टैंड क्लीयर करना पड़ा है.

सामाजिक छवि को खराब करने की साजिश

राजस्थान विधानसभा से निर्दलीय विधायक डा. ऋतु बनावत भी डीपफेक का शिकार हो चुकी हैं. उन के कुछ आपत्तिजनक फोटो काफी वायरल हुए. महिला विधायक का कहना था कि सोशल मीडिया पर उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. बताया गया कि कुछ एडिटिंग टूल्स की मदद से महिला विधायक के फोटो को क्लब कर अश्लील वीडियो बनाया गया है. अब महिला विधायक ने पुलिस से काररवाई की मांग की है और कहा है कि इन फर्जी वीडियो के जरीए उन की राजनीतिक और सामाजिक छवि को खराब करने की कोशिश की जा रही है.

रोलिंग स्टोन के साथ एक साक्षात्कार में प्रगतिशील न्यूयौर्क कांग्रेस की महिला सदस्य ने बताया कि जब उन्हें अपनी छवि के साथ अश्लील सामग्री देखने को मिली तो उन्हें बहुत आघात लगा. उस महिला ने कहा कि यौन कृत्य करते हुए उन के डीपफेक संस्करण की मानसिक तसवीर पूरे दिन उन के साथ रही और उन्हें परेशान करती रही. उन का कहना है कि यौन रूप से स्पष्ट डीपफेक सामग्री का इस्तेमाल अकसर महिलाओं का शोषण और उत्पीड़न करने के लिए किया जाता है. विशेषरूप से सार्वजनिक हस्तियों, राजनेताओं और मशहूर हस्तियों का.

टैक्नोलौजी की दुनिया ने जहां लोगों के जीवन को आसान बनाया है, वहीं उन के लिए मुसीबतें भी खड़ी की हैं और इस का सब से बड़ा खतरा महिलाओं पर मंडरा रहा है. सोचिए, जब इतने बड़ेबड़े सैलिब्रिटीज, राजनेता डीपफेक से नहीं बच पा रहे हैं तो आम महिलाएं कैसे बच पाएंगी? आज डीपफेक भयावह रूप लेता जा रहा है.

लंबे समय से एडल्ट कंटैंट बनाने के लिए आर्टिफिशियन इंटैलिजैंस का इस्तेमाल किया जा रहा है. नए एआई टूल्स के आने के बाद से डीपफेक पोर्न इंडस्ट्री खूब फूलफल रही है. सैलिब्रिटीज से ले कर आम लोगों की तसवीरों को गलत तरीके से एडिट कर एडल्ट कंटैंट तैयार किया जाता है. यह सारा काम आर्टिफिशियन इंटैलिजैंस के जरीए होता है.

पहला डीपफेक केस

डीपफेक पोर्न का खुलासा कई साल पहले हुआ था जब एक रेडिट यूजर ने एक क्लिप शेयर की थी. इस में पोर्न ऐक्टर्स के साथ फीमेल सेलेब्रिटीज के चेहरे दिखाए गए थे. इस के बाद कई ऐसे वीडियो और तसवीरें सामने आई हैं जिन में इनफ्लुएंसर्स, पत्रकारों और दूसरी मशहूर हस्तियों को शिकार बनाया गया.

ब्लूमबर्ग की खबर की मानें तो रिसरचर्स के मुताबिक, महिलाओं की निर्वस्त्र तसवीरें बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का इस्तेमाल करने वाले ऐप्स और वैबसाइट्स की लोकप्रियता बढ़ रही है. सोशल नैटवर्क विश्लेषण कंपनी के मुताबिक सिर्फ सितंबर, 2023 में 24 मिलियन लोगों ने इस तरह की वैबसाइट्स पर विजिट किया.

इन ऐप्स पर आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के जरीए गैरसहमति वाली पोर्नोग्राफी के विकसित और वितरित करने पर चिंता जताई गई है. इसे फोटो से छेड़छाड़ कर बनाया गया है जो डीपफेक पोर्नोग्राफी कहलाता है. छेड़छाड़ करने के लिए तसवीरें अकसर सोशल मीडिया से ली जाती हैं, जिन के बारे में आमतौर पर महिलाओं को पता तक नहीं होता है और उन के आगे सर्कुलेशन कर दिया जाता है.

चिंताजनक बात

ग्राफिका के मुताबिक, ज्यादातर निर्वस्त्र तसवीरें बनाने वाली वैबसाइट्स मार्केटिंग के लिए लोकप्रिय सोशल नैटवर्किंग का इस्तेमाल करती हैं. उदाहरण के लिए 2023 में ऐक्स और रेडिट समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर अनड्रैसिंग ऐप्स का विज्ञापन करने वाले लिंक की संख्या 2,400त्न से अधिक बढ़ गई है. एक रिसर्च के मुताबिक, इन ऐप्स के जरीए किसी भी तसवीर को एडिट करने के लिए एआई का इस्तेमाल करते हैं ताकि उन तस्वीरों को निर्वस्त्र बनाया जा सके.

ये ऐप्स सिर्फ महिलाओं की तसवीरों पर ही काम करती है. जून, 2019 में डीपन्यूड नामक एक डाउनलोड करने योग्य विंडोज और लिंक्स ऐप्लिकेशन जारी किया गया था जो महिलाओं की छवियों से कपड़े हटाने के लिए जीएएन का उपयोग करता था.

चिंताजनक बात यह है कि इंस्टाग्राम पर 94% महिला व प्रभावशाली लोग डीपफेक पोर्नोग्राफी का शिकार हो जाते हैं तथा प्रत्येक 10 हजार फौलोअर्स बढ़ाने पर यह जोखिम 15.7% बढ़ जाता है. इस के अलावा जैसेजैसे किसी प्रभावशाली व्यक्ति के फौलोअर्स बढ़ते हैं, उस के डीपफेक पोर्नोग्राफी का शिकार होने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है और 100 मिलियन से ज्यादा फौलोअर्स वाले व्यक्तियों में संवेदशीलता की दर 79% होती है.

सोशल मीडिया प्रदाता ट्विक्सी द्वारा दी गई रिपोर्ट में आगे पाया गया कि फैशन जैसे उद्योगों में महिला प्रभावशाली व्यक्तियों को लक्षित किए जाने की संभावना 85% अधिक थी, मनोरंजन में 82% और सौंदर्य में 81% समाचार और राजनीति जैसे उद्योगों में पुरुष प्रभावशाली व्यक्तियों को लक्षित किए जाने की संभावना 70% अधिक थी. कुल मिला कर सोशल मीडिया के 84% प्रभावशाली लोग कथित तौर पर डीपफेक पोर्नोग्राफी के शिकार होते हैं, जिन में से 90% महिलाएं हैं. लोगों पर आधारित डीपफेक पोर्नोग्राफी को लगभग 400 मिलियन बार देखा गया.

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में डीपफेक का दुरुपयोग और बढ़ सकता है क्योंकि टैक्नोलौजी और भी अधिक सौफिस्टिकेटेड और सुलभ होती जा रही है. एबीपी न्यूज ने डीपफेक की तकनीक पर गहराई से रिसर्च की और पाया कि डीपफेक, फेक होने के बाद भी इस कदर मजबूत होता है कि लोग सहीगलत में फर्क नहीं कर पाते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन देशों में छठे स्थान पर है जो डीपफेक एडल्ट कंटैंट के मामले में सब से संवेदनशील हैं.

डीपफेक वीडियो के पीछे कौन

डीपफेक वीडियो कई लोग और संगठन विभिन्न कारणों से बना रहे हैं. कई बार डीपफेक तकनीक का उपयोग फिल्मों, विज्ञापनों और मिम्स में कलाकारों के चेहरे बदलने के उद्देश्य से किया जाता है. मगर कई बार कुछ लोग दूसरों को बदनाम करने या उन पर निजी हमला करने के लिए डीपफेक वीडियो बनाते हैं.

डीपफेक के निशाने पर कौन

डीपफेक के गलत तरीके से इस्तेमाल का पहला मामला पोर्नोग्राफी में सामने आया था. एक औनलाइन आईडी प्रमाणित करने वाली सेनसिटी डौट एआई बैवसाइट के मुताबिक, 96 फीसदी डीपफेक अश्लील वीडियो हैं. इन्हें अकेले अश्लील वैबसाइटों पर 135 मिलियन से अधिक बार देखा गया है.

इंटरनैट पर डीपफेक का कारोबार

अमेरिका की एक होम सिक्योरिज हीरोज की एक रिपोर्ट आई, जिस के मुताबिक 2023 में पूरी दुनिया में 95,820 डीपफेक वीडियो बने, जिन में 98% डीपफेक वीडियो पोर्नोग्राफी वीडियो से संबंधित हैं यानी कि इन वीडियो का कंटैंट अश्लील है. 2% ऐसे फेक वीडियो हैं जो नौनपोर्नोग्राफी वीडियो हैं यानी अश्लील नहीं हैं. इस रिपोर्ट में सब से हैरान करने वाली बात यह है कि 99% डीपफेक पोर्नोग्राफी वीडियोज महिलाओं के हैं और 1% डीपफेक वीडियो पुरुषों के हैं. यह रिपोर्ट बहुत बड़े खतरे के बारे में बता रही है. 2023 में 99% डीपफेक वीडियोज महिलाओं के बनाए गए यानी महिलाओं को टार्गेट किया गया. डीपफेक वीडियो बनाने वालों ने इसे एक कारोबार की तरह इस्तेमाल किया.

कभी सोचा था आप ने कि एक समय ऐसा भी आएगा जब आप का चेहरा और आप की आवाज भी चोरी हो सकती है? हां, यह बात सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगे लेकिन आप की आवाज, आप का चेहरा हूबहू यानी 100% कौपी किया जा सकता है. आज टैक्नोलौजी इतनी तेजी से आगे बढ़ रही है कि इस का अंदाजा भी लगाना मुश्किल है. डीपफेक आज के समय की सब से बड़ी समस्या है जो दुनिया के हर देश और हर नागरिक को प्रभावित कर सकती है लेकिन इस की सब से ज्यादा शिकार महिलाएं हो रही हैं.

डीपफेक से 80% लोग अनजान

80% लोगों को नहीं पता कि डीपफेक होता क्या है? आज बिना सहमति वाले डीपफेक पोर्न के पीडि़तों के लिए कुछ कानूनी विकल्प हैं. अमेरिका में 46 राज्यों में रिवेंज पोर्न पर कुछ हद तक प्रतिबंध है लेकिन केवल वर्जीनिया और कैलिफोर्निया में फेक और डीपफेक मीडिया शामिल है. यूके में रिवेंज पोर्न पर प्रतिबंध.

सर्वे में चौंकने वाले आंकड़े

भारत में डीपफेक कंटैंट का ज्यादातर इस्तेमाल सरबर फ्रौड और अफवाह फैलाने के लिए किया जाता है. एआई जनरेटेड कंटैंट को यूजर सच मान लेते हैं और फिर इस के शिकार हो जाते हैं. एमसीएएफईई द्वारा हाल में किए गए सर्वे के मुताबिक, 2023 के मुकाबले 80% से ज्यादा लोग अब डीपफेक की वजह से चिंचित हैं तो वहीं करीब 64% लोगों का कहना है कि एआई द्वारा होने वाले साइबर फ्रौड में असली और नकली की पहचान बेहद मुश्किल है. हालांकि इस सर्वे में भाग लेने वाले 30% लोगों का कहना है कि वे एआई जनरेटेड कंटैंट की पहचान करने में सक्षम हैं.

डीपफेक तकनीकी रूप से महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गया क्योंकि इस का दुरुपयोग उन की अस्मिता, मन, सार्वजनिक छवि और गोपनीयता को क्षति पहुंचा रही है. डीपफेक का इस्तेमान गलत तरीके से किया जाने लगा है जिस से महिलाओं को सार्वजनिक स्तर पर बदनाम किया जाने लगा है.

डीपफेक को ले कर भारत में क्या है कानून

भारत में डीपफेक को ले कर कड़े कानून हैं. आईटी एक्ट 66ई और आईटी एक्ट 67 में इस तरह के कंटैंट का औनलाइन शेयर करने पर जुरमाना के साथसाथ जेल का भी प्रावधान है. आईटी एक्ट 66ई के मुताबिक, अगर किसी शख्स का फोटो या वीडियो बिना उस की अनुमति के सोशल और औनलाइन प्लेटफौर्म पर पब्लिश किया जाता है तो 3 साल तक की जेल और 2 लाख रुपए तक का जुरमाना लगाया जा सकता है.

डीपफेक कैसे बनाया जाता है

डीपफेक शब्द पहली बार 2017 में यूज किया गया था. तब अमेरिका के सोशल न्यूज एग्रीगेटर रेडिट पर डीपफेक आईडी से कई सैलिब्रिटीज के वीडियो पोस्ट किए गए थे. इस में ऐक्ट्रैस एमा वाटसन, गैल गैडोट, स्कारलेट जोहानसन के कई पोर्न वीडियो थे. किसी रियल वीडियो, फोटो या औडियो में दूसरे के चेहरे, आवाज और ऐक्स्प्रैशन को फिट कर देने को डीपफेक नाम दिया गया है. यह इतनी सफाई से होता है कि फेक, 100त्न सच लगने लगता है और इस पर कोई भी यकीन कर सकता है.

इस में मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का सहारा लिया जाता है. इस में वीडियो और औडियो को टैक्नोलौजी और सौफ्टवेयर की मदद से बनाया जाता है.  ्नढ्ढ और साइबर ऐक्सपर्ट पुनीत पांडे बताते हैं कि अब रैडी टू यूज, टैक्नोलौजी और पैकेज उपलब्ध है. अब इसे कोई भी उपयोग कर सकता है. वर्तमान टैक्नोलौजी में अब आवाज भी इंपू्रव हो गई है. इस में वौइस क्लोनिंग बेहद खतरनाक है.

डीपफेक दुनियाभर में एक बढ़ती समस्या बन गई है क्योंकि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की ताकत अब इंटरनैट पर यूजर के लिए आसानी से उपलब्ध है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस समस्या पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं जब उन्होंने गरबा गाते और नृत्य करते हुए अपना एक डीपफेक वीडियो देखा.

डीपफेक एक ऐसी बीमारी बनती जा रही है जो समाज को दीमक की तरह चाट रही है खासकर यह महिलाओं की इज्जत पर धाबा बोल रहा है, जिस का महिलाओं को कुछ पता भी नहीं है और उन का नग्न वीडियो दुनियाभर में घूम रहा है और यह उन के लिए कितनी दर्दनाक बात है. डीपफेक तकनीक वह घुन है जो अन्य तकनीक को भी बरबाद कर रहा है.

कुछ शातिर लोग बिना कंप्यूटर के मोबाइल से भी डीपफेक वीडियो बनाने लगे हैं जो साइबर अपराधियों का नया हथियार बन गया है. इस का इस्तेमाल ब्लैकमेल व फिरौती वसूलने तक के लिए किया जा रहा है. देश के किसी भी सामाजिक व्यक्ति की छवि को खराब करने के लिए डीपफेक वीडियो को सोशल मीडिया पर डाल कर वे अपने खतरनाक मंसूबे को अंजाम देते हैं. 60 सैकंड का डीपफेक अश्लील वीडियो बनाने में 25 मिनट से भी कम समय लगता है और उस में खर्च एक पैसा भी नहीं आता है.

बढ़ सकते हैं संगठित अपराध

केपिअस की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया के करीब 64.5त्न लोग अलगअलग सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. पिछले साल के आंकड़ों से तुलना करें तो सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या में 3.7त्न की बढ़ोतरी हुई है. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पिछले 12 महीनों में 150 मिलियन यानी लगभग 15 करोड़ लोग सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर आए हैं.

भारत की बात करें तो देश का हर तीसरा व्यक्तिसोशल मीडिया पर ऐक्टिव है. सोशल मीडिया का क्रेज सिर चढ़ कर बोल रहा है. लेटैस्ट रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और टिकटौक जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. करीब 95 फीसदी लोग आमतौर पर अपनी तसवीरें इस प्लेटफौर्म पर शेयर करते हैं. ऐसे में कोई भी शख्स आसानी से किसी यूजर की तसवीर ले कर उसे किसी भी वीडियो में लगा सकता है.

अब जबकि भारत में भी इस तरह के एप प्रचलित हो गए हैं तो ये महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध को अंजाम देने लगे हैं. आम या खास, किसी भी महिला को इस एप के जरीए आसानी से शिकार बनाया जाने लगा है. कोई भी कुंठाग्रस्त शख्स इस एप के जरीए महिलाओं की तसवीरों के साथ छेड़छाड़ कर उन की इज्जत को तारतार करने की कूवत रखने लगा है. देश में बड़ी संख्या में महिलाएं निजी तसवीरों या वीडियो लीक होने पर आत्महत्या करने का कदम तक उठा चुकी हैं.

सदी के महान वैज्ञानिकों में शामिल रहे स्टीफन हाकिंग ने कहा था कि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के सम्पूर्ण विकास से मानव जाति का अंत हो सकता है. वहीं टेस्ला के सीईओ एलन मास्क ने कहा था कि एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे अस्तित्व के लिए सब से बड़ा खतरा है.

2019 में साइबर सुरक्षा की एक कंपनी डीपट्रेस लैब की एक स्टडी के अनुसार, छेड़छाड़़ कर बनाए इस तरह के फेक वीडियो में से 96 फीसदी में अश्लील दृश्य सामने आए थे. इन फेक वीडियो में हौलीवुड की कई सैलेब्स के चेहरे का इस्तेमाल किया गया था.

डीपफेक पोर्नोग्राफी महिलाओं और लड़़कियों के शोषण और उत्पीड़न को और बढ़ावा देने का काम कर रही है. गैरसरकारी संगठन जनरल सैंस द्वारा 2023 में जारी आंकड़ों में पाया गया कि पोर्नोग्राफी देखने वाले 10 में से 8 किशोर स्टार्टअप समूह के लिए ऐसा करते हैं. उन में से 50% से अधिक ने कहा कि उन्होंने लोगों को बलात्कार या शारीरिक उत्पीड़न में ग्राफिक्स पौर्न चित्रित करते देखा है. जब मैनुअल का पौर्न हिंसा और वस्तुकारण का प्रतीक है तो हम युवाओं से सम्मान और सहमति की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है. यह तब तक जारी रहेगा जब तक यौन शिक्षा का अभाव, आक्रामकता, यौन हिंसा और बलात्कार को बढ़ावा दिया जाता रहेगा.

डीपफेक तकनीक सिर्फ महिलाओं के लिए खतरा नहीं है बल्कि इस का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए भी किया जा सकता है, चुनाव में हस्तक्षेप से ले कर युद्ध तक शुरू हो सकता है. डीपफेक तकनीक प्रत्यक्ष वास्तविकता और सत्य की अवधारणा को खतरे में डालने का काम करती है.

वैसे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस बिग डेटा ऐनालिटिक्स और इंटरनैट औफ थिंग्स की प्रमुख सूत्रधार है. लेकिन साथ ही इस की चुनौतियां तथा निजता एवं स्वायत्तता भी सिर उठाए खड़ी है. विशेषज्ञों के अनुसार, एआई के जरीए हेराफेरी कर के विभिन्न राष्ट्रों की संप्रभुता के लिए संकट भी पैदा किया जा रहा है. यह तकनीक मानव की नैसर्गिक सोच एवं स्वाभाविक विचारशील पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है. आशंका व्यक्त की जा रही है कि इस के उपयोग से भविष्य में कई रोजगार के अवसर भी समाप्त हो सकते हैं.

दुनियाभर की 46 आईटी विटैक कंपनियों ने 7,500 से ज्यादा कर्मचारियों को काम से निकाल दिया. इन कंपनियों में स्टार्टअप भी शामिल है. मोटे तौर पर बताया गया कि इस माहौल की बड़ी वजह यह है कि औटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस ऐसी कंपनियों की जगह ले रही है.

डीपफेक रोकने के लिए आईटी मंत्रालय ने नए नियम तैयार किए हैं. इन के मुताबिक, जो सोशल मीडिया प्लेटफौर्म नए नियमों का उल्लंघन करेगा, उस का भारत में कारोबार रोक दिया जाएगा. डीपफेक कंटैंट डालने वालों पर आईपीसी की धाराओं और आईटी एक्ट के तहत केस दर्ज होगा. फेक कंटैंट जहां से अपलोड होगा, उस प्लेटफौर्म को जिम्मेदार माना जाएगा.

ऐसे होंगे नए नियम

डीपफेक कंटेंट मिलते ही कोई भी एफआईआर दर्ज करा सकता है.

सोशल मीडिया प्लेटफौर्म यूजर्स से यह शपथ लेगा कि वह डीपफेक नहीं डालेगा. इस के अलावा प्लेटफौर्म अपने यूजर्स को इस संबंध में अलर्ट मैसेज देंगे. सहमति के बाद ही यूजर अकाउंट ऐक्सैस कर सकेगा.

डीपफेक कंटैंट को 24 घंटे में हटाना होगा. जिस यूजर ने कंटैंट अपलोड किया है उस का अकाउंट बंद कर सूचना दूसरे प्लेटफौर्म को देनी होगी ताकि आरोपी वहां अकाउंट न बना सके.

बच्चे भी कर रहे हैं इन ऐप्स का इस्तेमाल

इलैक्ट्रोनिक फ्रंटीयर फाउंडेशन में साइबर सुरक्षा के निदेशक ईवा गैल्परिन के मुताबिक, इस का दुरुपयोग लोग आम महिलाओं को टार्गेट बनाने के लिए कर रहे हैं. यहां तक कि स्कूल और कालेज में पढ़ने वाले बच्चे भी इन ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई बार ऐसा होता है कि पीडि़त को पता ही नहीं चलता है कि उस की इस तरह की कोई इमेज इंटरनैट पर सर्कुलेट हो रही है और जिन्हें पता चल जाता है उन के लिए कानूनी लड़ाई मुश्किल होती है या शर्मिंदगी के कारण वे आगे नहीं आ पाती हैं.

सतर्कता से रहें सुरक्षित

हमेशा ऐसे कैमरे से तसवीर लें जो उस को एनिकृपटेड कर दे ताकि फोटो को बदला न जा सके. ये फीचर स्मार्ट कैमरे में आते हैं. स्मार्ट मोबाइल में इस के लिए ऐप्स भी मौजूद हैं. सरल शब्दों में सम?ाएं तो क्रिप्टोग्राफी एक प्रक्रिया है जिस में जानकारी जैसे टैक्स्ट, फोटो या वीडियो को सीक्रेट कोड में बदल दिया जाता है. जब हम किसी जानकारी को इस प्रक्रिया की मदद से सामने वाले व्यक्ति को भेजते हैं तो यह एक कोड में बदल जाती है. उस व्यक्ति को मिली जानकारी को देखने के लिए कोड का उपयोग करना होता है यानी सैंडर और रिसीवर दोनों एनिक्रप्श्न की (चाबी) का उपयोग करते हैं. दोनों फाइल को देखने के लिए इस चाबी की जरूरत होती है.

सोशल मीडिया पर अपने ज्यादा फोटो या वीडियो शेयर न करें. अपना अकाउंट प्राइवेट रखें.

एकसाथ 15-20 फोटो शेयर न करें क्योंकि इस से साइबर अटैक की संभावना बढ़ सकती है.

ऐक्सपर्ट के मुताबिक, महिलाएं अपना सोशल मीडिया अकाउंट लौकरखें.

अनजान लोगों को अपने निजी खातों में न जोड़ें और फेक अकाउंट पहचानें.

फोन में लौगिंग अलर्ट और सैटिंग्स में हमेश लैवल टू वैरिफिकेशन औन रखें.

अनजान लिंक्स पर क्लिक न करें.

व्हाट्सऐप पर अपना अथवा अपने परिजनों की तसवीरें, गु्रप में शेयर न करें.

सोशल मीडिया पर लिमिटेड औडियंस के साथ ही तसवीरें या वीडियो शेयर करें.

यदि बहुत जरूरी हो तो वन टाइम व्यू औप्शन के साथ फोटो शेयर या पोस्ट करें.

आलू की सब्जी और पूरी खाने के हैं शौकीन, तो घर पर इस आसान तरीके से करें तैयार

दोस्तों हम चाहे जितने भी स्वादिष्ट भोजन घर या रेस्टोरेंट में खा लें पर जब भंडारे के खाने की बात आती है तो ये सब फीके पड़ जाते है. वैसे तो आलू की बहुत सी रेस्पी बनती हैं , लेकिन भंडारे वाले आलू की सब्जी की बात ही कुछ और है , भंडारे वाली आलू की रसेदार सब्जी बेहद ही स्वादिष्ट होती है.इस सब्‍जी की सबसे ख़ास बात तो यह है की इसमें न तो लहसुन और न ही प्‍याज का इस्‍तेमाल किया जाता है. मगर फिर भी यह काफी टेस्‍टी लगती है।

इस सब्जी को बनाने में बिल्‍कुल भी समय नहीं लगता इसलिये आप इसे ऑफिस में लंच के तौर पर बना कर ले जा सकती हैं.

यह सब्‍जी पूड़ी, रोटी या फिर चावल के साथ सर्व की जा सकती है.इस सब्जी की महक इतनी अच्छी होती है कि भूख न होते हुये भी खाने का मन करने लगता है।

दोस्तों इस स्वाद को आप घर में लाने की काफी कोशिश करते हैं, लेकिन सफल नहीं हो पाते हैं.तो चलिए जानते है की भंडारे वाली आलू की सब्जी कैसे बनाये.

हमें चाहिए-

उबले आलू -400 ग्राम
तेल या घी -3 बड़ा चम्मच
टमाटर -1 कप कटा हुआ
अदरक -1 इंच कटी हुई
हरी मिर्च -2 से 3
हींग-1/2 छोटा चम्मच
जीरा -1 चम्मच
अमचूर पाउडर-1 छोटी चम्मच
धनिया पाउडर -2 टी स्पून
सौंफ पाउडर-1 छोटा चम्मच
हल्दी पाउडर-1/2 छोटा चम्मच
कश्मीरी लाल मिर्च पाउडर -2 चम्मच
गरम मसाला पाउडर-1/2 छोटा चम्मच
तेज़ पत्ता- 1
नमक स्वादानुसार

बनाने का तरीका-
• 1-सबसे पहले कढाई में तेल गर्म करें . तेल गरम होने के बाद उसमें हींग और जीरा डालें और कुछ सेकंड के लिए उन्हें चटकने दें।अब उसमे तेज़ पत्ता डाले.
• 2-अब उसमे हल्दी पाउडर ,धनिया पाउडर, कश्मीरी लाल मिर्च पाउडर और सौंफ पाउडर डाले फिर हल्का सा चलाने के बाद उसमे कटे हुए टमाटर डाल दें.याद रखें मसाला जलना नहीं चाहिए.आप चाहे तो टमाटर का पेस्ट बना कर भी डाल सकते है.
• 3- अब इसे तब तक पकाएं जब तक कि तेल किनारों से अलग न हो जाए।
• 4-अब उबले हुए आलुओं को हाथ से फोड़ कर कढाई में डाल दे.याद रखें आलू को काटना नहीं है .
• 5-अब ऊपर से गरम मसाला डाल दे और इनको अच्छे से कलछी से चला लें.
• 6-2 कप पानी, अमचूर पाउडर और नमक डालें.3-4 मिनट तक पकाएं.आवश्यकता हो तो और पानी डालें.ग्रेवी पतली होनी चाहिए।
• 7-सब्‍जी को अच्‍छी तरह से पकाएं और जब ग्रेवी गाढ़ी हो जाए तब गैस बंद कर दें।याद रखें किसी भी सब्जी को जितना पकाएंगे उसका स्वाद उतना ही अच्छा आयेगा.
• 8- अब धनिया डाल कर गार्निश करें.

दोस्तों ये तो थी आलू की भंडारे वाले आलू की सब्जी.पर अगर इसके साथ भंडारे वाली पूरी भी खाने को मिल जाये तो खाने का मज़ा दुगना हो जायेगा.
दोस्तों वैसे तो भंडारे वाली पूरी को दो बार तेल में छानते है जिससे वो खाने में कुरकुरी हो . पर दोस्तों ज्यादा तेल में छानने से वो बहुत oily हो जाती है.
तो चलिए हम बताते है आपको की बिना ज्यादा तेल इस्तेमाल किये भंडारे जैसी कुरकुरी पूरी कैसे बनाये?

हमें चाहिए-

गेंहू का आटा-2 बड़े कप
रवा या सूजी-1/2 बड़े कप
रिफाइंड -2 छोटे चम्मच

बनाने का तरीका-

• 1-सबसे पहले एक बाउल में आटे और सूजी को डाल कर मिला लें .अब उसमे मोयन के लिए रिफाइंड डालें.
• 2-अब आटे को अच्छे से गूंथ लें.याद रखें आटा थोड़ा कड़ा ही गूथें इससे पूरियां अच्छी बनेंगी.
• 3-अब आटे की बराबर-बराबर लोइयां काट कर रख ले.
• 4-अब पूरी को बेल लें.आप चाहे तो पूरी को पतला या हल्का सा मोटा भी बेल सकती है .
• 5-अब कढाई में रिफाइंड गर्म करें .अब उसमे बिली हुई पूरी को डाल दे.
• 6-दोस्तों एक चीज़ का ध्यान रखियेगा की पूरी को ज्यादा तेज़ या ज्यादा धीमी आंच पर नहीं सेकना है .
• 7-इसको माध्यम आंच पर लाल होने तक सकें.
• 8-तैयार है भंडारे जैसी पूरी .इसको भंडारे वाली आलू की सब्जी के साथ खाए.

फर्ज: नजमा ने अपना फर्ज कैसे निभाया?

जयपुर के सिटी अस्पताल में उस्मान का इलाज चलते 15 दिनों से भी ज्यादा हो गए थे लेकिन उस की तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था.

आईसीयू वार्ड के सामने परेशान सरफराज लगातार इधर से उधर चक्कर लगा रहे थे. बेचैनी में कभी डाक्टरों से अपने बेटे की जिंदगी की भीख मांगते तो कभी फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लग जाते.

उधर, अस्पताल के एक कोने में खड़ी उस्मान की मां फरजाना भी बेटे की सलामती के लिए नर्सों की खुशामद कर रही थी. तभी आईसीयू वार्ड से डाक्टर बाहर निकले तो सरफराज उन के पीछेपीछे दौड़े और उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘डाक्टर साहब, मेरे उस्मान को बचा लो. कुछ भी करो. उस के इलाज में कमी नहीं होनी चाहिए.’’

डाक्टर ने उन्हें उठा कर तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘देखिए अंकल, हम आप के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उस की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है. औपरेशन और दवाओं को मिला कर कुल 5 लाख रुपए का खर्चा आएगा.’’

‘‘कैसे भी हो, आप मेरे बेटे को बचा लो, डाक्टर साहब. मैं 1-2 दिनों में पैसों का इंतजाम करता हूं,’’ सरफराज ने हाथ जोड़ कर कहा.

काफी भागदौड़ के बाद भी जब सरफराज से सिर्फ 2 लाख रुपयों का ही इंतजाम हो सका तो निराश हो कर उस ने बेटी नजमा को मदद के लिए दिल्ली फोन मिलाया. उधर से फोन पर दामाद अनवर की आवाज आई.

‘‘हैलो अब्बू, क्या हुआ, कैसे फोन किया?’’

‘‘बेटा अनवर, उस्मान की हालत ज्यादा ही खराब है. उस के औपरेशन और इलाज के लिए 5 लाख रुपयों की जरूरत थी. हम से 2 लाख रुपयों का ही इंतजाम हो सका. बेटा…’’ और सरफराज का गला भर आया.

इस के पहले कि उन की बात पूरी होती, उधर से अनवर ने कहा, ‘‘अब्बू, आप बिलकुल फिक्र न करें. मैं तो आ नहीं पाऊंगा, लेकिन नजमा कल सुबह पैसे ले कर आप के पास पहुंच जाएगी.’’

दूसरे दिन नजमा पैसे ले कर जयपुर पहुंच गई. आखिरकार सफल औपरेशन के बाद डाक्टरों ने उस्मान कोे बचा लिया. धीरेधीरे 10 साल गुजर गए. इस बीच सरफराज ने गांव की कुछ जमीन बेच कर उस्मान को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई और मुंबई एअरपोर्ट पर उस की नौकरी लग गई. उस ने अपने साथ काम करने वाली लड़की रेणु से शादी भी कर ली और ससुराल में ही रहने लगा.

इस के बाद उस्मान का मांबाप से मिलने आना बंद हो गया. कई बार वे बीमार हुए. उसे खबर भी दी, फिर भी वह नहीं आया. ईद, बकरीद तक पर भी वह फोन पर भी मुबारकबाद नहीं देता

एक दिन सुबह टैलीफोन की घंटी बजी. सरफराज ने फोन उठाया उधर से उस्मान बोल रहा था, ‘‘हैलो अब्बा, कैसे हैं आप सब लोग? अब्बा, मुझे एक परेशानी आ गई है. मुझे 10 लाख रुपयों की सख्त जरूरत है. मैं 1-2 दिनों में पैसे लेने आ जाता हूं.’’

‘‘बेटा, तेरे औपरेशन के वक्त नजमा से उधार लिए 3 लाख रुपए चुकाने ही मुश्किल हो रहा है. ऐसे में मुझ से 10 लाख रुपयों का इंतजाम नहीं हो सकेगा. मैं मजबूर हूं बेटा,’’ सरफराज ने कहा.

इस के आगे सरफराज कुछ बोलते, उस्मान गुस्से से भड़क उठा, ‘‘अब्बा, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मुझे पता था कि आप यही कहोगे. आप ने जिंदगी में मेरे लिए किया ही क्या है?’’ और उस ने फोन काट दिया.

अपने बेटे की ऐसी बातें सुन कर सरफराज को गहरा सदमा लगा. वे गुमसुम रहने लगे. घर में पड़े बड़बड़ाते रहते.

एक दिन अचानक शाम को सीने में दर्द के बाद वे लड़खड़ा कर गिर पड़े तो बीवी फरजाना ने उन्हें पलंग पर लिटा दिया. कुछ देर बाद आए डाक्टर ने जांच की और कहा, ‘‘चाचाजी की तबीयत ज्यादा खराब है, उन्हें बड़े अस्पताल ले जाना पड़ेगा.’’डाक्टर साहब की बात सुन कर घबराई फरजाना ने बेटे उस्मान को फोन कर बीमार बाप से मिलने आने की अपील करते हुए आखिरी वक्त होने की दुहाई भी दी.

जवाब में उधर से फोन पर उस्मान ने अम्मी से काफी भलाबुरा कहा. गुस्से में भरे उस्मान ने यह तक कह दिया, ‘‘आप लोगों से अब मेरा कोई रिश्ता नहीं है. आइंदा मुझे फोन भी मत करना.’’

यह सुन कर फरजाना पसीने से लथपथ हो गई. वो चकरा कर जमीन पर बैठ गई. कुछ देर बाद अपनेआप को संभाल कर उस ने नजमा को दिल्ली फोन किया, ‘‘हैलो नजमा, बेटी, तेरे अब्बा की तबीयत बहुत खराब है. तू अनवर से इजाजत ले कर कुछ दिनों के लिए यहां आ जा. तेरे अब्बा तुझे बारबार याद कर रहे हैं.’’

नजमा ने उधर से फौरन जवाब दिया, ‘‘अम्मी आप बिलकुल मत घबराना. मैं आज ही शाम तक अनवर के साथ आप के पास पहुंच जाऊंगी.’’

शाम होतेहोते नजमा और अनवर जब  घर पर पहुंचे तो खानदान के लोग सरफराज के पलंग के आसपास बैठे थे. नजमा भाग कर अब्बा से लिपट गई. दोनों बापबेटी बड़ी देर तक रोते रहे. ‘‘देखो अब्बा, मैं आ गई हूं. आप अब मेरे साथ दिल्ली चलोगे. वहां हम आप को बढि़या इलाज करवाएंगे. आप बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे,’’ नजमा ने रोतेरोते कहा.

आंखें खोलने की कोशिश करते सरफराज बड़ी देर तक नजमा के सिर पर हाथ फेरते रहे. आंखों से टपकते आंसुओं को पोंछ कर बुझी आवाज में उन्होंने कहा, ‘‘नजमा बेटी, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. अब तू जो आ गई है. मुझे सुकून से मौत आ जाएगी.’’ ‘‘ऐसा मत बोलो, अब्बा. आप को कुछ नहीं होगा,’’ यह कह कर नजमा ने अब्बा का सिर अपनी गोद में रख लिया. अम्मी को बुला कर उस ने कह दिया, ‘‘अम्मी आप ने खूब खिदमत कर ली. अब मुझे अपना फर्ज अदा करने दो.’’ उस के बाद तो नजमा ने अब्बा सरफराज की खिदमत में दिनरात एक कर दिए. टाइम पर दवा, चाय, नाश्ता, खाना, नहलाना और घंटों तक पैर दबाते रहना, सारी रात पलंग पर बैठ कर जागना उस का रोजाना का काम हो गया.

कई बार सरफराज ने नजमा से ये सब करने से मना भी किया पर नजमा यही कहती, ‘‘अब्बा, आप ने हमारे लिए क्या नहीं किया. आप भी हमें अपने हाथों से खिलाते, नहलाते, स्कूल ले जाते, कंधों पर बैठा कर घुमाते थे. सबकुछ तो किया. अब मेरा फर्ज अदा करने का वक्त है. मुझे मत रोको, अब्बा.’’

बेटी की बात सुन कर सरफराज चुप हो गए. इधर, सरफराज की हालत दिनपरदिन गिरती चली गई. उन का खानापीना तक बंद हो गया.

एक दिन दोपहर के वक्त नजमा अब्बा का सिर गोद में ले कर चम्मच से पानी पिला रही थी. तभी घर के बाहर कार के रुकने की आवाज सुनाई दी.

कुछ देर बाद उस्मान एक वकील को साथ ले कर अंदर आया. उस के हाथ में टाइप किए हुए कुछ कागजात थे. अचानक बरसों बाद बिना इत्तला दिए उस को घर आया देख कर सभी खुश हो रहे थे. दरवाजे से घुसते ही वह लपक कर सरफराज के नजदीक जा कर आवाज देने लगा, ‘‘अब्बा, उठो, आंखे खोलो, इन कागजात पर दस्तखत करना है. उठो, उठो,’’ यह कह कर उस ने हाथ पकड़ कर उन्हें पैन देना चाहा.

नजमा ने रोक कर पूछा, ‘‘भाईजान, ये कैसे कागजात हैं?’’

लेकिन वह किसी की बिना सुने अब्बा को आवाजें देता रहा. सरफराज ने आंखें खोलीं. उस्मान की तरफ एक नजर देखा. और अचानक उन के हाथ में दिए कागजात और पैन नीचे गिर पड़े. उन का हाथ बेदम हो कर लटक गया. यह देख नजमा चिल्लाई, ‘‘अब्बा, अब्बा, हमें अकेला छोड़ कर मत जाओ.’’ और घर में कुहराम ?मच गया. नजमा बोली, ‘‘भाईजान जो मकान आप अपने नाम कराना चाहते थे वह तो 10 साल पहले अब्बू ने आप के नाम कर दिया था. आप अब फिक्र न करो.’’

ये सब देख कर उस्मान ने फुरती से अब्बा के बिना दस्तखत रह गए कागजात उठाए और वकील के साथ बिना पीछे देखे बाहर निकल गया. फरजाना, नजमा और अनवर भाग कर पीछेपीछे आए लेकिन तब तक कार रवाना हो गई. तीनों दरवाजे में खड़े कार की पीछे उड़ी धूल के गुबार में चकाचौंधभरी शहरी मतलबपरस्त दुनिया की आंधी में फर्ज और रिश्तों की मजबूत दीवार को भरभरा कर गिरते हुए देखते रह गए.

प्रयास: क्या श्रेया अपने गर्भपात होने का असली कारण जान पाई?

छतपर लगे सितारे चमक रहे थे. असली नहीं, बस दिखाने भर को ही थे. जिस वजह से लगाए गए थे वह तो… खैर, जीवन ठहर नहीं जाता कुछ होने न होने से.

बगल में पार्थ शांति से सो रहे थे. उन के दिमाग में कोई परेशान करने वाली बात नहीं थी शायद. मेरी जिंदगी में भी कुछ खास परेशानी नहीं थी. पर बेवजह सोचने की आदत थी मुझे. मेरे लिए रात बिताना बहुत मुश्किल होता था. इस नीरवता में मैं अपने विचारों को कभी रोक नहीं पाती थी. पार्थ तो शायद जानते भी नहीं थे कि मेरी हर रात आंखों में ही गुजरती है.

मैं शादी से पहले भी ऐसी ही थी. हर बात की गहराई में जाने का एक जनून सा रहता था. पर अब तो उस जनून ने एक आदत का रूप ले लिया था. इसीलिए हर कोई मुझ से कम ही बात करना पसंद करता था. पार्थ भी. जाने कब किस बात का क्या मतलब निकाल बैठूं. वैसे, बुरे नहीं थे पार्थ. बस हम दोनों बहुत ही अलग किस्म के इनसान थे. पार्थ को हर काम सलीके से करना पसंद था जबकि मैं हर काम में कुछ न कुछ नया ढूंढ़ने की कोशिश करती.

उस पहली मुलाकात में ही मैं जान गई थी कि हम दोनों में काफी असमानता है.

‘‘तुम्हें नहीं लगता कि हम घर पर मिलते तो ज्यादा अच्छा रहता?’’ पार्थ असहजता से इधरउधर देखते हुए बोले.

‘‘मुझे लगा तुम मुझ से कहीं अकेले मिलना पसंद करोगे. घर पर सब के सामने शायद हिचक होगी तुम्हें,’’ मैं ने बेफिक्री से कहा.

‘‘तुम? तुम मुझे ‘तुम’ क्यों कह रही हो?’’ पार्थ का स्वर थोड़ा ऊंचा हो गया.

मैं ने इस ओर ज्यादा ध्यान न दे कर एक बार फिर बेफिक्री से कहा, ‘‘तुम भी तो मुझे ‘तुम’ कह रहे हो?’’

उस दिन पार्थ के चेहरे का रंग तो बदला था, लेकिन उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा. मैं भी अपने महिलावादी विचारों में चूर अपने हिसाब से उचित उत्तर दे कर संतुष्ट हो गई.

फेरों के वक्त जब पंडित ने मुझ से कहा कि कभी अकेले जंगल वीराने में नहीं जाओगी, तब इन्होंने हंस कर कहा, ‘‘अकेले तो वैसे भी कहीं नहीं जाने दूंगा.’’

यह सुन कर सभी खिलखिला उठे. मैं ने भी इसे प्यार भरा मजाक समझ कर हंसी में उड़ा दिया. उस वक्त नहीं जानती थी कि वह सिर्फ एक मजाक नहीं था. उस के पीछे पार्थ के मन में गहराई तक बैठी सोच थी. इस जमाने में भी वे औरतों को खुद से कमतर समझते थे.

शादी के बाद हनीमून मना कर जब लौटी तो खुद को हवा में उड़ता पाती थी. लेकिन इस नशे को काफूर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. रविवार की एक खुशनुमा सुबह जब मैं ने पार्थ से फिर से नौकरी जौइन करने के बारे में पूछा तो उन के रूखे जवाब ने मुझे एक और झटका दे दिया.

‘‘क्या जरूरत है नौकरी करने की? मैं तो कमा ही रहा हूं.’’

पार्थ के इस उत्तर को सुन कर मेरी आंखों के सामने पुरानी फिल्मों के खड़ूस पतियों की तसवीरें आ गईं. फिर बोली, ‘‘लेकिन शादी से पहले भी तो मैं नौकरी करती ही थी?’’

‘‘शादी से पहले तुम्हारा खर्च तुम्हारे घर वालों को भारी पड़ता होगा. अब तुम मेरी जिम्मेदारी हो. जैसी मेरी मरजी होगी वैसा तुम्हें रखूंगा. इस बारे में मुझे कोई राय नहीं चाहिए,’’ इन्होंने मुझ पर पैनी नजर डालते हुए कहा.

अपने परिवार पर की गई टिप्पणी तीर की तरह चुभी मुझे. अत: फुफकार उठी, ‘‘मैं नौकरी खर्चा निकालने के लिए नहीं, बल्कि अपनी खुशी के लिए करती थी और अब भी करूंगी. मैं भी देखती हूं मुझे कौन रोकता है,’’ इतना कह कर मैं वहां से जाने लगी.

तभी पीछे से पार्थ का ठंडा स्वर सुनाई दिया, ‘‘ठीक है, करो नौकरी, लेकिन फिर मुझ से एक भी पैसे की उम्मीद मत रखना.’’

एक पल को मेरे पैर वहीं ठिठक गए, लेकिन मैं स्वाभिमानी थी, इसलिए बिना उत्तर दिए कमरे से निकल गई.

अब तक काफी कुछ बदल चुका था हमारे बीच. पार्थ को तो खैर वैसे भी कुछ मतलब नहीं था मुझ से और अब मैं ने भी दिमाग पर जोर डालना काफी हद तक छोड़ दिया था. दोनों अपनेअपने काम में व्यस्त रहते. शाम को थकहार कर खाना खा कर अपनेअपने लैपटौप में खोए रहते. कभीकभी जब पार्थ को अपनी शारीरिक जरूरत पूरा करने का ध्यान आता तो मशीनी तरीके से मैं भी साथ दे देती. उन्हें मेरी रुचि अरुचि से कोई फर्क नहीं पड़ता.

अब तो लड़ने का भी मन नहीं करता था. पहले की तरह अब हमारा झगड़ा कईकई दिनों तक नहीं चलता था, बल्कि कुछ ही मिनटों में खत्म हो जाता. उस का अंत करने में अकसर मैं ही आगे रहती. मुझे अब पार्थ से बहस करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता था. इस का मतलब यह नहीं था कि मैं ने पार्थ के सत्तावादी रवैऐ से हार मान ली थी. उस की हर बात का जवाब देने में अब मुझे आनंद आने लगा था.

उस दिन पार्थ की बहन रितिका के बेटे की बर्थडे पार्टी थी. उन्होंने मुझे शाम को जल्दी घर आने को कहा. वे अपनी बात पूरी कर पाते, उस से पहले ही मैं ने सपाट स्वर में उत्तर दिया, ‘‘मुझे औफिस में देर तक काम है, तुम चले जाना.’’

‘‘अरे, पर मैं अकेले कैसे जाऊंगा? वहां लोग क्या कहेंगे?’’ वे परेशान हो कर बोले.

‘‘वही जो हर बार मेरे अकेले जाने पर मेरे घर वाले कहते हैं,’’ कह कर मैं जोर से दरवाजा बंद कर औफिस के लिए निकल पड़ी.

आंखों में आंसू थे, पर इन के कारण मैं पार्थ के सामने कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. उन्हें कभी एहसास नहीं होता था कि वे क्या गलत कर जाते हैं. उन्हें इस तरह वक्त बेवक्त सुना कर मुझे लगता था कि शायद उन्हें समझा पाऊं कि उन के व्यवहार में क्या कमी है. लेकिन बेरुखी का जवाब बेरुखी से देना, फासला ही बढ़ाता है. कभीकभी लगता कि पार्थ को प्यार से समझाऊं. कई बार कोशिश भी की, लेकिन रिश्ते में मिठास बनाए रखने का प्रयास दोनों ओर से होता है.

एक मौका मिला था मुझे सब कुछ ठीक करने का. तभी आंखें भर आईं. पलक मूंद कर पार्थ के साथ बिताए उन खूबसूरत पलों को फिर से याद करने लगी…

‘‘पा…पार्थ…’’ मैं ने लड़खड़ाते हुए उन्हें पुकारा.

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘पार्थ, मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हां, बोलो. मैं सुन रहा हूं,’’ वे अब भी अपने लैपटौप में खोए थे.

‘‘पार्थ… मैं…,’’ मेरे मुंह से मारे घबराहट के कुछ निकल ही नहीं रहा था कि पता नहीं पार्थ क्या प्रतिक्रिया देंगे.

‘‘बोलो भी श्रेया क्या बात है?’’ आखिरकार उन्होंने लैपटौप से अपनी नजरें हटा कर मेरी तरफ देखा.

‘‘पार्थ मैं मां बनने वाली हूं,’’ मैं ने पार्थ से नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘सच?’’ उन्होंने झटके से लैपटौप को हटाते हुए खुशी से कहा.

मैं ने उन की तरफ देखा. पार्थ के चेहरे पर इतनी खुशी मैं ने कभी नहीं देखी थी.

उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘हमारे लिए यह सब से बड़ी खुशी की बात है, श्रेया. इस बात पर तो मिठाई होनी चाहिए भई,’’ और फिर मेरा माथा चूम लिया. उस रात काफी वक्त के बाद अपने रिश्ते की गरमाहट मुझे महसूस हुई. उस रात पार्थ कुछ अलग थे, रोजाना की तरह रूखे नहीं थे.

मुझे तो लगा था कि पार्थ यह खबर सुन कर खुश नहीं होंगे. हर दूसरे दिन वे पैसे की तंगी का रोना रोते थे, जबकि हम दोनों की जरूरत से ज्यादा पैसा ही घर में आ रहा था. उन की इस परेशानी का कारण मुझे समझ नहीं आता था. उस पर घर में नए सदस्य के आने की बात मुझे उन्हें और अधिक परेशान करने वाली लगी. लेकिन पार्थ की प्रतिक्रिया से मैं खुश थी, बहुत खुश.

ऐसा लगता था कि पार्थ बदल गए हैं. रोज मेरे लिए नएनए उपहार लाते. चैकअप के लिए डाक्टर के पास ले जाते, मेरे खानेपीने का वे खुद खयाल रखते. औफिस के लिए लेट हो जाना भी उन्हें नहीं अखरता. मुझे नाश्ता करा कर दवा दे कर ही औफिस निकलते थे. अकसर मेरी और अपनी मां से मेरी सेहत को ले कर सलाह लेते.

मेरे लिए यह सब नया था, सुखद भी. पार्थ ऐसे भी हो सकते हैं, मैं ने कभी सोचा नहीं था. उन का उत्साह देख कर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता.

‘‘मुझे तुम्हारी तरह एक प्यारी सी लड़की चाहिए,’’ एक रात पार्थ ने मेरे बालों में उंगलियां घुमाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मुझे तो लड़का चाहिए ताकि ससुराल में पति का रोब न झेलना पड़े,’’ मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा.

‘‘अच्छा… और अगर वह घरजमाई बन बैठा तो?’’ पार्थ के इतना कहते ही हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘मजाक तक ठीक है पार्थ, लेकिन मांजी तो बेटा ही चाहेंगी न?’’ मैं ने थोड़ी गंभीरता से पूछा.

‘‘तुम मां की चिंता न करो. उन्होंने ही तो मुझ से कहा है कि उन्हें पोती ही चाहिए.’’

दरअसल, मांजी अपने स्वामी के आदेशों का पालन कर रही थीं. स्वामी का कहना था कि लड़की होने से पार्थ को तरक्की मिलेगी. इस स्वामी के पास 1-2 बार मांजी मुझे भी ले कर गई थीं. मुझे तो वह हर बाबा की तरह ढोंगी ही लगा. उस का ध्यान भगवान में कम, अपनी शिष्याओं में ज्यादा लगा रहता था. वहां का माहौल भी मुझे कुछ अजीब लगा. लेकिन मांजी की आस्था को देखते हुए मैं ने कुछ नहीं कहा.

घर के हर छोटेबड़े काम से पहले स्वामी से पूछना इस घर की रीत थी. अब जब स्वामी ने कह दिया कि घर में बेटी ही आनी चाहिए, मांबेटा दोनों दोहराते रहते. मांजी मेरी डिलिवरी के 3 महीने पहले ही आ गई थीं. उन्हें ज्यादा तकलीफ न हो, इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए मायके जाने की सोच रही थी पर पार्थ ने मना कर दिया.

‘‘तुम्हारे बिना मैं कैसे रहूंगा श्रेया?’’ उन्होंने कहा.

अब मुझे मांबेटे के व्यवहार पर कुछ शक सा होने लगा. मेरा यह शक कुछ ही दिन बाद सही भी साबित हुआ.

‘‘ये सितारे किसलिए पार्थ?’’ पूरा 1 घंटा मुझे इंतजार कराने के बाद यह सरप्राइज दिया था पार्थ ने.

‘‘श्रुति के लिए और किस के लिए जान,’’ श्रुति नाम पसंद किया था पार्थ ने हमारी होने वाली बेटी के लिए.

‘‘और श्रुति की जगह प्रयास हुआ तो?’’ मैं ने फिर चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘हो ही नहीं सकता. स्वामी ने कहा है तो बेटी ही होगी,’’ मैं ने उन की बात सुन कर अविश्वास से सिर हिलाया, ‘‘और हां स्वामी से याद आया कि कल हम सब को उस के आश्रम जाना है. उस ने तुम्हें अपना आशीर्वाद देने बुलाया है,’’ उन्होंने कहा.

मैं चुपचाप लेट गई. मेरे लिए इस हालत में सफर करना बहुत मुश्किल था. स्वामी का आश्रम घर से 50 किलोमीटर दूर था और इतनी देर तक कार में बैठे रहना मेरे बस का नहीं था. पार्थ और उन की मां से बहस करना बेकार था. मेरी कोई भी दलील उन के आगे नहीं चलने वाली थी.

अगले दिन सुबह 9 बजे हम आश्रम पहुंच गए. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जश्न की तैयारी थी.

‘‘स्वामी ने आज हमारे लिए खास पूजा की तैयारी की है,’’ मांजी ने बताया.

कुछ ही देर में हवनपूजा शुरू हो गई. इतनी तड़कभड़क मुझे नौटंकी लग रही थी. पता नहीं पार्थ से कितने पैसे ठगे होंगे इस ढोंगी ने. पार्थ तो समझदार हैं न. लेकिन नहीं, जो मां ने कह दिया वह काम आंखें मूंद कर करते जाना है.

पूजा खत्म होने के बाद स्वामी ने सभी को चरणामृत और प्रसाद दिया. उस के बाद उस के प्रवचन शुरू हो गए. उन बोझिल प्रवचनों से मुझे नींद आने लगी.

मैं पार्थ को जब यह बताने लगी तो मांजी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘नींद आ रही है तो यहीं आराम कर लो न, बहुत शांति है यहां.’’

‘‘नहीं मांजी, मैं घर जा कर आराम कर लूंगी,’’ मैं ने संकोच से कहा.

‘‘अरे, ऐसे वक्त में सेहत के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए. मैं अभी स्वामी से कह कर इंतजाम करवाती हूं.’’

5 मिनट में ही स्वामी की 2 शिष्याएं मुझे विश्रामकक्ष की ओर ले चलीं. कमरे में बिलकुल अंधेरा था. बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला. जब नींद खुली तो सिर भारी लग रहा था. कमरे में मेरे अलावा और कोई नहीं था. मैं ने हलके से आवाज दे कर पार्थ को बुलाया. शायद वे कमरे के बाहर ही खड़े थे, आवाज सुनते ही आ गए.

अभी हम आश्रम से कुछ ही मीटर की दूरी पर आए थे कि मेरे पेट में जोर का दर्द उठा. मुझे बेचैनी हो रही थी. पार्थ के चेहरे पर जहां परेशानी थी, वहीं मांजी मुझे धैर्य बंधाने की कोशिश कर रही थीं. मुझे खुद से ज्यादा अपने बच्चे की चिंता हो रही थी.

कब अस्पताल पहुंचे, उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं. जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया.

शाम को मांजी मुझ से मिलने आईं. लेकिन मेरी नजरें पार्थ को ढूंढ़ रही थीं.

‘‘वह किसी काम में फंस गया है. कल सुबह आएगा तुम से मिलने,’’ मांजी ने झिझकते हुए कहा.

 

मगर पार्थ अगली सुबह नहीं आए. अब तक मैं यह तो जान ही चुकी थी कि मैं अपना बच्चा खो चुकी हूं. लेकिन उस का कारण नहीं समझ पा रही थी. न तो मैं शारीरिक रूप से कमजोर थी और न ही कोई मानसिक परेशानी थी मुझे. कोई चोट भी नहीं पहुंची थी. फिर वह क्या चीज थी जिस ने मुझ से मेरा बच्चा छीन लिया?

2 दिन बाद पार्थ मुझ से मिलने आए. न जाने क्यों मुझ से नजरें चुरा रहे थे. पिछले कुछ महीनों का दुलारस्नेह सब गायब था. मांजी के व्यवहार में भी एक अजीब सी झिझक मुझे हर पल महसूस हो रही थी.

खैर, मुझे अस्पताल से छुट्टी मिलने के कुछ ही दिन बाद मांजी चली गईं, लेकिन मेरे और पार्थ के बीच की खामोशी गायब होने का नाम ही नहीं ले रही थी. शायद मुझ से ज्यादा पार्थ उस बच्चे को ले कर उत्साहित थे. कई बार मैं ने बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कभी अपनी नाराजगी को ले कर मुंह नहीं खोला.

उस दिन से ले कर आज तक कुछ नहीं बदला था. एक ही घर में हम 2 अजनबियों की तरह रह रहे थे. अब न तो पार्थ का गुस्सैल रूप दिखता था और न ही स्नेहिल. अजीब से कवच में छिप गए थे पार्थ.

अचानक आई तेज खांसी ने मेरी विचारशृंखला को तोड़ दिया. पानी पीने के लिए उठी तो छाती में दर्द महसूस हुआ. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जकड़ लिया हो. पानी पीपी कर जैसेतैसे रात काटी. सुबह उठी, तब भी बदन में हरारत हो रही थी. बिस्तर पर पड़े रहने से और बीमार पड़ूंगी, यह सोच कर उठ खड़ी हुई. पार्थ के लिए नाश्ता बनाते वक्त भी मैं खांस रही थी.

‘‘तुम्हें काफी दिनों से खांसी है. पूरी रात खांसती रहती हो,’’ नाश्ते की टेबल पर पार्थ ने कहा.

‘‘उन की आवाज सुन कर मैं लगभग चौंक पड़ी. पिछले कुछ दिनों से उन की आवाज ही भूल चुकी थी मैं.’’

‘‘बस मामूली सी है, ठीक हो जाएगी,’’ मैं ने हलकी मुसकान के साथ कहा.

‘‘कितनी थकी हुई लग रही हो तुम? कितनी रातों से नहीं सोई हो?’’ पार्थ ने माथा छू कर कहा, ‘‘अरे, तुम तो बुखार से तप रही हो. चलो, अभी डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘लेकिन पार्थ…’’ मैं ने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन पार्थ नाश्ता बीच में ही छोड़ कर खड़े हो चुके थे.

गाड़ी चलाते वक्त पार्थ के चेहरे पर फिर से वही परेशानी. मेरे लिए चिंता दिख रही थी. मेरा बीमार शरीर भी उन की इस फिक्र को महसूस कर आनंदित हो उठा.

जांच के बाद डाक्टर ने कई टैस्ट लिख दिए. इधर पार्थ मेरे लिए इधरउधर भागदौड़ कर रहे थे, उधर मैं उन की इस भागदौड़ पर निहाल हुए जा रही थी. सूई के नाम से ही घबराने वाली मैं ब्लड टैस्ट के वक्त जरा भी नहीं कसमसाई. मैं तो पूरा वक्त बस पार्थ को निहारती रही थी.

मेरी रिपोर्ट अगले दिन आनी थी. पार्थ मुझे ले कर घर आ गए. औफिस में फोन कर के 3 दिन की छुट्टी ले ली. मेरे औफिस में भी मेरे बीमार होने की सूचना दे दी.

‘‘कितने दिन औफिस नहीं जाओगे पार्थ? मैं घर का काम तो कर ही सकती हूं,’’ पार्थ को चाय बनाते हुए देख मैं सोफे से उठने लगी.

‘‘चुपचाप लेटी रहो. मुझे पता है मैं क्या कर रहा हूं,’’ उन्होंने मुझे झिड़कते हुए कहा.

‘‘अच्छा बाबा… मुझे काम मत करने दो… मांजी को बुला लो,’’ मैं ने सुझाव दिया.

कुछ देर तक पार्थ ने अपनी नजरें नहीं उठाईं. फिर दबे स्वर में कहा, ‘‘नहीं, मां को बेवजह परेशान करने का कोई मतलब नहीं है. मैं बाई का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘बाई? पार्थ ठीक तो है?’’ मैं ने सोचा.

एक बार जब मैं ने झाड़ूपोंछे के लिए बाई का जिक्र किया था तो पार्थ भड़क उठे थे, ‘‘बाइयां घर का काम बिगाड़ती हैं. आज तक तो तुम्हें घर का काम करने में कोई परेशानी नहीं हुई थी. अब अचानक क्या दिक्कत आ गई?’’

‘‘पार्थ, तुम्हें पता है न मुझे सर्वाइकल पेन रहता है. दर्द के कारण रात भर सो नहीं पाती,’’ मैं ने जिद की.

‘‘देखो श्रेया, अभी हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि घर में बाई लगा सकें,’’ उन्होंने अपना रुख नर्म करते हुए कहा.

मगर मैं ने पूरी प्लानिंग कर रखी थी. अत: बोली, ‘‘अरे, उस की तनख्वाह मैं अपने पैसों से दे दूंगी.’’

मेरी बात सुनते ही पार्थ का पारा चढ़ गया. बोले, ‘‘अच्छा, अब तुम मुझे अपने पैसों का रोब दिखाओगी?’’

‘‘नहीं पार्थ, ऐसा नहीं है,’’ मैं ने सकपकाते हुए कहा.

‘‘इस घर में कोई बाई नहीं आएगी. अगर जरूरत पड़ी तो मां को बुला लेंगे,’’ उन्होंने करवट लेते हुए कहा.

आज वही पार्थ मांजी को बुलाने के बजाय बाई रखने पर जोर दे रहे थे. पिछले कुछ दिनों से पार्थ सिर्फ मुझ से ही नहीं मांजी से भी कटने लगे थे. अब तो मांजी का फोन आने पर भी संक्षिप्त बात ही करते थे.

कहां, क्या गड़बड़ थी मुझे समझ नहीं आ रहा था. अपना बच्चा खोने के कारण मुझे कुसूरवार मान कर रूखा व्यवहार करना समझ आता था, लेकिन मांजी से उन की नाराजगी को मैं समझ नहीं पा रही थी.

अगली सुबह अस्पताल जाने से पहले ही मांजी का फोन आ गया. पार्थ बाथरूम में थे तो मैं ने ही फोन उठाया.

‘‘हैलो, हां श्रेया कैसी हो बेटा?’’ मेरी आवाज सुनते ही मांजी ने पूछा.

‘‘ठीक हूं मांजी. आप कैसी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बस बाबा की कृपा है बेटा. पार्थ से बात कराना जरा.’’

तभी पार्थ बाथरूम से निकल आए, तो मैं ने मोबाइल उन के हाथ में थमा दिया. उन की बातचीत से तो नहीं, लेकिन इन के स्वर की उलझन से मुझे कुछ अंदेशा हुआ, ‘‘क्या हुआ? मांजी किसी परेशानी में हैं क्या?’’ पार्थ के फोन काटने के बाद मैं ने पूछा.

‘‘अरे, उन्हें कहां कोई परेशानी हो सकती है. उन की रक्षा के लिए तो दुनिया भर के बाबा हैं न,’’ उन्होंने कड़वाहट से उत्तर दिया.

‘‘वह उन की आस्था है पार्थ. इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? उन का यह विश्वास तो सालों से है और जहां तक मैं जानती हूं अब तक तुम्हें इस बात से कोई परेशानी नहीं थी. अब अचानक क्या हुआ?’’ मैं ने शांत स्वर में पूछा.

‘‘ऐसी आस्था किस काम की है श्रेया जो किसी की जान ले ले,’’ उन्होंने नम स्वर में कहा.

मैं अचकचा गई, ‘‘जान? मांजी किसी की जान थोड़े ही लेंगी पार्थ. तुम भी न.’’

‘‘मां नहीं, लेकिन उन की आस्था एक जान ले चुकी है,’’ पार्थ का स्वर गंभीर था. वे सीधे मेरी आंखों में देख रहे थे. उन आंखों का दर्द मुझे आज नजर आ रहा था. मैं चुप थी. नहीं चाहती थी कि कई महीनों से जो मेरे दिमाग में चल रहा है वह सच बन कर मेरे सामने आए.

मेरी खामोशी भांप कर पार्थ ने कहना शुरू किया, ‘‘हमारे बच्चे का गिरना कोई हादसा नहीं था श्रेया. वह मांजी की अंधी आस्था का नतीजा था. मैं भी अपनी मां के मोह में अंधा हो कर वही करता रहा जो वे कहती थीं. उस दिन जब हम स्वामी के आश्रम गए थे तो तुम्हें बेहोश करने के लिए तुम्हारे प्रसाद में कुछ मिलाया गया था ताकि जब तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच हो तो तुम्हें पता न चले.

‘‘मां और मैं स्वामी के पास बैठे थे. वहां क्या हो रहा था, उस की मुझे भनक तक नहीं थी. थोड़ी देर बाद स्वामी ने मां से कुछ सामान मंगाने को कहा. मैं सामान लेने बाहर चला गया, जब तक वापस आया, तुम होश में आ चुकी थीं. उस के बाद क्या हुआ, तुम जानती हो,’’ पार्थ का चेहरा आंसुओं से भीग गया था.

‘‘लेकिन पार्थ इस में मांजी कहां दोषी हैं? तुम केवल अंदाज के आधार पर उन पर आरोप कैसे लगा सकते हो?’’ मैंने उन का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए पूछा. मेरा दिल अब भी मांजी को दोषी मानने को तैयार नहीं था.

पार्थ खुद को संयमित कर के फिर बोलने लगे, ‘‘यह मेरा अंदाजा नहीं है श्रेया. जिस शाम तुम अस्पताल में दाखिल हुईं, मैं ने मां को स्वामी को धन्यवाद देते हुए सुना. उन का कहना था कि स्वामी की कृपा से हमारे परिवार के सिर से काला साया हट गया.

‘‘मैं ने मां से इस बारे में खूब बहस की. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मां हमारे बच्चे के साथ ऐसा कर सकती हैं.’’

अब पार्थ मुझ से नजरें नहीं मिला पा रहे थे. मेरी आंखें जल रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर सब कुछ टूट गया हो. लड़खड़ाती हुई आवाज में मैं ने पूछा, ‘‘लेकिन क्यों पार्थ? सब कुछ तो उन की मरजी से हो रहा था? क्या स्वामी के मुताबिक मेरे पेट में लड़की नहीं थी?’’

पार्थ मुझे नि:शब्द ताकते रहे. फिर अपनी आंखें बंद कर के बोलने लगे, ‘‘वह लड़की ही थी श्रेया. वह हमारी श्रुति थी. हम ने उसे गंवा दिया. एक बेवकूफी की वजह से वह हम से बहुत दूर चली गई,’’ पार्थ अब फूटफूट कर रो रहे थे. इतने दिनों में जो दर्द उन्होंने अपने सीने में दबा रखा था वह अब आंसुओं के जरीए निकल रहा था.

‘‘पर मांजी तो लड़की ही चाहती थीं न और स्वामी ने भी यही कहा था?’’ मैं अब भी असमंजस में थी.

‘‘मां कभी लड़की नहीं चाहती थीं श्रेया. तुम सही थीं, उन्होंने हमेशा एक लड़का ही चाहा था. जब से स्वामी ने हमारे लिए लड़की होने की बात कही थी, तब से वे परेशान रहती थीं. वे अकसर स्वामी के पास अपनी परेशानी ले कर जाने लगीं. स्वामी मां की इस कमजोरी को भांप गया था. उस ने पैसे ऐंठने के लिए मां से कह दिया कि अचानक ग्रहों की स्थिति बदल गई है. इस खतरे को सिर्फ और सिर्फ एक लड़के का जन्म ही दूर कर सकता है.

‘‘उस ने मां से एक अनुष्ठान कराने को कहा ताकि हमारे परिवार में लड़के का जन्म सुनिश्चित हो सके. मां को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई. उन्होंने मुझे इस बात की कानोंकान खबर न होने दी.

‘‘पूजा वाले दिन जब मैं आश्रम से बाहर गया तो स्वामी और उस के शिष्यों ने तुम्हारे भ्रूण की जांच की तो पता चला कि वह लड़की थी. अब स्वामी को अपने ढोंग के साम्राज्य पर खतरा मंडराता प्रतीत हुआ. तब उस ने मां से कहा कि ग्रहों ने अपनी चाल बदल ली है. अब अगर बच्चा नहीं गिराया गया तो परिवार को बरबाद होने से कोई नहीं रोक सकता. मां ने अनहोनी के डर से हामी भर दी. एक ही पल में हम ने अपना सब कुछ गंवा दिया,’’ पार्थ ने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया.

मैं तो जैसे जड़ हो गई. वे एक मां हो कर ऐसा कैसे कर सकती थीं? उस बच्चे में उन का भी खून था. वे उस का कत्ल कैसे कर सकती थीं और वह ढोंगी बाबा सिर्फ पैसों के लिए किसी मासूम की जान ले लेगा?

‘‘मां तुम्हें अब भी उस ढोंगी बाबा के पास चलने को कह रही थीं?’’ मैं ने अविश्वास से पूछा.

‘‘नहीं, अब उन्होंने कोई और चमत्कारी बाबा ढूंढ़ लिया है, जिस के प्रसाद मात्र के सेवन से सारी परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है.’’

‘‘तो क्या मांजी की आंखों से स्वामी की अंधी भक्ति का परदा हट गया?’’ मैं ने पूछा.

पार्थ गंभीर हो गए, ‘‘नहीं, उन्हें मजबूरन उस ढोंगी की भक्ति त्यागनी पड़ी. वह ढोंगी स्वामी अब जेल में है. जिस रात मुझे उस की असलियत पता चली, मैं धड़धड़ाता हुआ पुलिस के पास जा पहुंचा. अपने बच्चे के को मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाला था. अगली सुबह पुलिस ने आश्रम पर छापा मारा तो लाखों रुपयों के साथसाथ सोनोग्राफी मशीन भी मिली. उसे और उस के साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उस ढोंगी को उस के अपराध की सजा दिलाने में व्यस्त होने के कारण ही कुछ दिन मैं तुम से मिलने अस्पताल नहीं आ पाया था.’’

‘‘उफ, पार्थ,’’ कह कर मैं उन से लिपट गई. अब तक रोकी हुई आंसुओं की धारा अविरल बह निकली. पार्थ का स्पर्श मेरे अंदर भरे दुख को बाहर निकाल रहा था.

‘‘आप इतने वक्त से मुझ से नजरें क्यों चुराते फिर रहे थे?’’ मैं ने थोड़ी देर बाद सामान्य हो कर पूछा.

‘‘मुझे तुम से नजरें मिलाने में शर्म महसूस हो रही थी. जो कुछ भी हुआ उस में मेरी भी गलती थी. पढ़ालिखा होने के बावजूद मैं मां के बेतुके आदेशों का आंख मूंद पालन करता रहा. मुझे अपनेआप को सजा देनी ही थी.’’

उन के स्वर में बेबसी साफ झलक रही थी. मैं ने और कुछ नहीं कहा, बस अपना सिर पार्थ के सीने पर टिका दिया.

शाम के वक्त हम अस्पताल से रिपोर्ट ले कर लौट रहे थे. मुझे टीबी थी. डाक्टर ने समय पर दवा और अच्छे खानपान की पूरी हिदायत दी थी. कार में एक बार फिर चुप्पी थी. पार्थ और मैं दोनों ही अपनी उलझन छिपाने की कोशिश कर रहे थे.

तभी पार्थ के फोन की घंटी बजी. मां का फोन था. पार्थ ने कार रोक कर फोन स्पीकर पर कर दिया.

मांजी बिना किसी भूमिका के बोलने लगीं, ‘‘मैं यह क्या सुन रही हूं पार्थ? श्रेया को टीबी है?’’

अस्पताल में रितिका का फोन आने पर पार्थ ने उसे अपनी परेशानी बताई थी. शायद उसी से मां को मेरी बीमारी के बारे में पता चला था.

‘‘पहले अपशकुनी बच्चा और अब टीबी… मैं ने तुम से कहा था न कि यह लड़की हमारे परिवार के लिए परेशानियां खड़ी कर देगी.’’

पार्थ का चेहरा सख्त हो गया. बोला, ‘‘मां, श्रेया को मेरे लिए आप ने ही ढूंढ़ा था. तब तो आप को उस में कोई ऐब नजर नहीं आया था. इस दुनिया का कोई भी बच्चा अपने मांबाप के लिए अपशकुनी नहीं हो सकता.’’

मांजी का स्वर थोड़ा नर्म पड़ गया, ‘‘पर बेटा, श्रेया की बीमारी… मैं तो कहती हूं कि उसे एक बार बाबाजी का प्रसाद खिला लाते हैं. सब ठीक हो जाएगा.’’

पार्थ गुस्से में कुछ कहने ही वाले थे, लेकिन मैं ने हलके से उन का हाथ दबा दिया. अत: थोड़े शांत स्वर में बोले, ‘‘अब मैं अपनी श्रेया को किसी ढोंगी बाबा के पास नहीं ले जाने वाला और बेहतर यही होगा कि आप भी इन सब चक्करों से दूर रहो. श्रेया को यह बीमारी उस की शारीरिक कमजोरी के कारण हुई है. इतने वक्त तक वह मेरी उपेक्षा का शिकार रही है. वह आज तक एक बेहतर पत्नी साबित होती आई है, लेकिन मैं ही हर पल उसे नकारता रहा. अब मुझे अपना पति फर्ज निभाना है. उस का अच्छी तरह खयाल रख कर उसे जल्द से जल्द ठीक करना है.’’

मांजी फोन काट चुकी थीं. पार्थ और मैं न जाने कितनी देर तक एकदूसरे को निहारते रहे.

घर लौटते वक्त पार्थ का बारबार प्यार भरी नजरों से मुझे देखना मुझ में नई ऊर्जा का संचार कर रहा था. हमारी जिंदगी में न तो श्रुति आ सकी और न ही प्रयास, लेकिन हमारे रिश्ते में मिठास भरने के प्रयासों की श्रुति शीघ्र ही होगी, इस का आभास मुझे हो रहा था.

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