हृदय परिवर्तन: क्या सुनंदा अपने सौतेले बच्चों को मां जैसा प्यार दे पाई?

Serial Story: हृदय परिवर्तन (भाग-1)

विनय का फोन आया. सहसा विश्वास नहीं हुआ. अरसा बीत गया था मुझे विनय से नाता तोड़े हुए. तोड़ने का कारण था विनय की आंखों पर पड़ी अहंकार की पट्टी. अहं ने उस के विवेक को नष्ट कर दिया था. तभी तो मेरा मन उस से जो एक बार तिक्त हुआ तो आज तक कायम रहा. न उस ने कभी मेरा हाल पूछा न ही मैं ने उस का पूछना चाहा. दोस्ती का मतलब यह नहीं कि उस के हर फैसले पर मैं अपनी सहमति की मुहर लगाता जाऊं. अगर मुझे कहीं कुछ गलत लगा तो उस का विरोध करने से नहीं चूका. भले ही किसी को बुरा लगे. परंतु विनय को इस कदर भी मुखर नहीं हो जाना चाहिए था कि मुझे अपने घर से चले जाने को कह दे. सचमुच उस रोज उस ने अपने घर से बड़े ही खराब ढंग से चले जाने के लिए मुझ से कहा. वर्षों की दोस्ती के बीच एक औरत आ कर उस पर इस कदर हावी हो गई कि मैं तुच्छ हो गया. मेरा मन व्यथित हो गया. उस रोज तय किया कि अब कभी विनय के पास नहीं आऊंगा. आज तक अपने निर्णय पर कायम रहा.

विनय और मैं एक ही महल्ले के थे. साथसाथ पढ़े, सुखदुख के साथी बने. विनय का पहला विवाह प्रेम विवाह था. उस की पत्नी शारदा को उस की मौसी ने गोद लिया था. देखने में वह सुंदर और सुशील थी. मौसी का खुद का बड़ा मकान था, जिस की वह अकेली वारिस थी. इस के अलावा मौसी के पास अच्छाखासा बैंक बैलेंस भी था जो उन्होंने शारदा के नाम कर रखा था. विनय के मांबाप को भी वह अच्छी लगी. भली लगने का एक बहुत बड़ा कारण था उस की लाखों की संपत्ति, जो अंतत: विनय को मिलने वाली थी. दोनों की शादी हो गई. शारदा बड़ी नेकखयाल की थी. हम दोनों की दोस्ती के बीच कभी वह बाधक नहीं बनी. मैं जब भी उस के घर जाता मेरी आवभगत में कोई कसर न छोड़ती. एक तरह से वह मुझ से अपने भाई समान व्यवहार करती. मैं ने भी उसे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया और न ही मर्यादा की लक्ष्मणरेखा पार की.

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इसी बीच वह 2 बच्चों की मां बनी. विनय की सरकारी नौकरी ऐसी जगह थी जहां ऊपरी आमदनी की सीमा न थी. उस ने खूब रुपए कमाए. पर कहते हैं न कि बेईमानी की कमाई कभी नहीं फलती. जब उस का बड़ा लड़का अमन 10 साल का था तो उस समय शारदा को एक लाइलाज बीमारी ने घेर लिया. उस के भीतर का सारा खून सूख गया. विनय ने उस का कई साल इलाज करवाया. लाखों रुपए पानी की तरह बहाए. एक बार तो वह ठीक हो कर घर भी आ गई, मगर कुछ महीनों के बाद फिर बीमार पड़ गई. इस बार वह बचाई न जा सकी. मुझे उस के जाने का बेहद दुख था. उस से भी ज्यादा दुख उस के 2 बच्चों का असमय मां से वंचित हो जाने का था. पर कहते हैं न समय हर जख्म भर देता है. दोनों बच्चे संभल गए. विनय की एक तलाकशुदा बेऔलाद बहन राधिका ने उस के दोनों बच्चों को संभाल लिया. इस से विनय को काफी राहत मिली.

शारदा के गुजर जाने के बाद राधिका और दूसरे रिश्तेदार विनय पर दूसरी शादी का दबाव बनाने लगे. विनय तब 42 के करीब था. मैं ने भी उसे दूसरी शादी की राय दी. अभी उस के बच्चे छोटे थे. वह अपनी नौकरी देखे कि बच्चों की परवरिश करे. घर का अकेलापल अलग काट खाने को दौड़ता. विनय में थोड़ी हिचक थी कि पता नहीं सौतली मां उस के बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करे? मेरे समझाने पर उस की आंखों में गम के आंसू आ गए. निश्चय ही शारदा के लिए थे. भरे गले से बोला, ‘‘क्यों बीच रास्ते में छोड़ कर चली गई? मैं क्या मां की जगह ले सकता हूं? मेरे बच्चे मां के लिए रात में रोते हैं. रात में मैं उन्हें अपने पास ही सुलाता हूं. भरसक कोशिश करता हूं उस की कमी पूरी करूं. औफिस जाता हूं तो सोचता हूं कि जल्द घर पहुंच कर उन्हें कंपनी दूं. वे मां की कमी महसूस न करें.’’ सुन कर मैं भी गमगीन हो गया. क्षणांश भावुकता से उबरने के बाद मैं बोला, ‘‘जो हो गया सो हो गया. अब आगे की सोच.’’

‘‘क्या सोचूं? मेरा तो दिमाग ही काम नहीं करता. अमन 17 साल का है तो मोनिका 14 साल की. वे कब बड़े होंगे कब उन के जेहन से मां का अक्स उतरेगा, सोचसोच कर मेरा दिल भर आता है.’’ ‘‘देखो, मां की कसक तो हमें भी रहेगी. हां, दूसरी पत्नी आएगी तो हो सकता है इन्हें कुछ राहत मिले.’’ ‘‘हो सकता है लेकिन गारंटेड तो नहीं. कहीं मेरा विवाह का फैसला गलत साबित हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा. बच्चों की नजरों में अपराधी बनूंगा वह अलग.’’

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विनय की शंका निराधार नहीं थी. पर शंका के आधार पर आगे बढ़ने के लिए अपने कदम रोकना भी तो उचित नहीं. भविष्य में क्या होगा क्या नहीं, कौन जानता है? हो सकता है कि विनय ही बदल जाए? बहरहाल, कुछ रिश्ते आए तो राधिका ने इनकार कर दिया. कहने लगी कि सुंदर लड़की चाहिए. बड़ी बहन होने के नाते विनय ने शादी की जिम्मेदारी उसी को सौंप दी थी. लेकिन इस बात को जिस ने भी सुना उसे बुरा लगा. अब इस उम्र में भी सुंदर लड़की चाहिए. विनय के जेहन से धीरेधीरे शारदा की तसवीर उतरने लगी थी. अब उस के तसव्वुर में एक सुंदर महिला की तसवीर थी. ऐसा होने के पीछे राधिका व कुछ और शुभचिंतकों का शादी का वह प्रस्ताव था जिस में उसे यह आश्वासन दिया गया था कि उन की जानकारी में एक विधवा गोरीचिट्टी, खूबसूरत व 1 बच्ची की मां है. अगर वह तैयार हो तो शादी की बात छेड़ी जाए. भला विनय को क्या ऐतराज हो सकता था? अमूमन पुरुष का विवेक यहीं दफन हो जाता है. फिर विनय तो एक साधारण सा प्राणी था. उस विधवा स्त्री का नाम सुनंदा था. सुनने में आया कि उस का पति किसी निजी संस्थान में सेल्स अधिकारी था और दुर्घटना में मारा गया था.

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Serial Story: हृदय परिवर्तन (भाग-3)

दूसरा भाग पढ़ने के लिए- हृदय परिवर्तन- विनय के सुनंदा से शादी के फैसले पर बच्चों ने कैसी थी

सुन कर सुनंदा आगबबूला हो गई, ‘‘तुम्हारे जैसा बेशर्म नहीं देखा. शादी के समय तुम्हीं ने कहा था कि मैं इस को पिता का नाम दूंगा. अब क्या हुआ, आ गए न अपनी औकात पर. मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं.’’ ‘‘हां, आ गया अपनी औकात पर,’’ विनय भी ढिठाई पर उतर आया, ‘‘मेरे पास इस के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं है. भेज दो इसे इस के पिता के पास. वही इस की शादी करेगा. मैं इस का बाप नहीं हूं.’’ सुन कर सुंनदा आंसू बहाने लगी. फिर सुबकते हुए बोली, ‘‘क्या यह भी तुम्हारा तुम्हारा बेटा नहीं है? क्या इस से भी इनकार करोगे?’’ सुनंदा ने अपने बेटे की तरफ इशारा किया. उसे देखते ही विनय का क्रोध पिघल गया. सुनंदा की चाल कामयाब हुई. आखिरकार अमन की ही शर्तों पर मकान बिका. मोनिका रुपए लेने में संकोच कर रही थी. अमन ने जोर दिया तो रख लिए. उस रोज के बाद विनय का मन हमेशा के लिए अमन से फट गया.  रिटायर होने के बाद विनय अकेला पड़ गया. सुनंदा का बेटा अभी 15 साल का था. उस का ज्यादातर लगाव अपनी मां से था. सुनंदा की बेटी भी मां से ही बातचीत करती. वह सिर्फ उन दोनों का नाम का ही पिता था. ऐसे समय विनय को आत्ममंथन का अवसर मिला तो पाया कि उस ने अमन और मोनिका के साथ किए गए वादे ठीक से नहीं निभाए. उसे तालमेल बैठा कर चलना चाहिए था. अपनी गलती सुधारने के मकसद से विनय ने मुझे याद किया. मैं ने उस से कोई वादा तो नहीं किया, हां विश्वास जरूर दिलाया कि अमन को उस से मिलवाने का भरसक कोशिश करूंगा. इसी बीच विनय को हार्टअटैक का दौरा पड़ा. मुझे खबर लगी तो मैं भागते हुए अस्पताल पहुंचा. सुनंदा नाकभौं सिकोड़ते हुए बोली, ‘‘इस संकट की घड़ी में कोई साथ नहीं है. बड़ी मुश्किल से महल्ले वालों ने विनय को  पहुंचाया.’’

मैं ने मन ही मन सोचा कि आदमी जो बोता है वही काटता है. चाहे विनय हो या सुनंदा दोनों की आंख पर स्वार्थ की पट्टी पड़ी रही. विनय कुछ संभला तो अमन को ले कर भावुक हो गया. मोनिका विनय को देखने आई, मगर अमन ने जान कर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई. रात को मैं ने अमन को फोन किया. विनय की इच्छा दुहराई तो कहने लगा,‘‘अंकल, कोई भी संतान नहीं चाहेगी कि उस की मां की जगह कोई दूसरी औरत ले. इस के बावजूद अगर पापा ने शादी की तो इस आश्वासन के साथ कि हमारे साथ नाइंसाफी नहीं होगी. बल्कि नई मां आएगी तो वह हमारा बेहतर खयाल रखेगी. हमें भी लगा कि पापा नौकरी करें कि हमें संभालें. लिहाजा इस रिश्ते को हम ने खुशीखुशी स्वीकार कर लिया. हमें सुनंदा मां से कोई शिकायत नहीं. शिकायत है अपने पापा से जिन्होंने हमें अकेला छोड़ दिया और सुनंदा मां के हो कर रह गए. मोनिका की शादी जैसेतैसे की, वहीं सुनंदा मां की बेटी के लिए पुश्तैनी मकान तक बेच डाला. मुझे संपत्ति का जरा सा भी लोभ नहीं है. मैं तो इसी बहाने पापा की नीयत को और भी अच्छी तरह जानसमझ लेना चाहता था कि वे सुनंदा मां के लिए कहां तक जा सकते हैं. देखा जाए तो उस संपत्ति पर सिर्फ मेरा हक है. पापा ने सुनंदा मां के लिए फ्लैट खरीदा. अपनी सारी तनख्वाह उन्हें दी. तनख्वाह ही क्यों पी.एफ., बीमा और पैंशन सभी के सुख वे भोग रही हैं. बदले में हमें क्या मिला?’’

‘‘क्या तुम्हें रुपयों की जरूरत है?’’

‘‘हमें सिर्फ पापा से भावनात्मक लगाव की जरूरत थी, जो उन्होंने नहीं दिया. वे मां की कमी तो पूरी नहीं कर सकते थे, मगर रात एक बार हमारे कमरे में आ कर हमें प्यार से दुलार तो सकते थे. इतना ही संबल हमारे लिए काफी था,’’ कहतेकहते अमन भावुक हो गया. ‘‘उन्हें अपने किए पर अफसोस है.’’ ‘‘वह तो होगा ही. उम्र के इस पड़ाव पर जब सुनंदा मां ने भी उपेक्षात्मक रुख अपनाया होगा तो जाहिर है हमें याद करेंगे ही.’’ ‘‘तुम भी क्या उसी लहजे में जवाब देना चाहते हो? उस ने प्रतिशोध लेना चाहते हो?’’

‘‘मैं क्या लूंगा, वे अपनी करनी का फल भुगत रहे हैं.’’

‘जो भी हो वे तुम्हारे पिता हैं. उन्होंने जो किया उस का दंड भुगत रहे हैं. तुम तो अपने फर्ज से विमुख न होओ, वे तुम से कुछ मांग नहीं रहे हैं. वे तो जिंदगी की सांध्यबेला में सिर्फ अपने किए पर शर्मिंदा हैं. चाहते हैं कि एक बार तुम बनारस आ जाओ ताकि तुम से माफी मांग कर अपने दिल पर पड़े नाइंसाफी के बोझ को हलका का सकें. मेरे कथन का उस पर असर पड़ा. 2 दिन बाद वह बनारस आया. हम दोनों विनय के पास गए, सुनंदा ने देखा तो मुंह बना लिया. विनय अमन को देख कर भावविह्वल हो गया. भर्राए गले से बोला, ‘‘तेरी मां से किया वादा मैं नहीं निभा पाया. हो सके तो मुझे माफ कर देना,’’ फिर थोड़ी देर में भावुकता से जब वह उबरा तो आगे बोला, ‘‘मां की कमी पूरी करने के लिए मैं ने सुनंदा से शादी की, मगर मैं उस पर इस कदर लट्टू हो गया कि तुम लोगों के प्रति अपने दायित्वों को भूल गया. मुझे सिर्फ अपने निजी स्वार्थ ही याद रहे.’’

‘‘सुनंदा मां को सोचना चाहिए था कि आप ने शादी कर के उन्हें सहारा दिया. बदले में उन्होंने हमें क्या दिया? आदमी को इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए,’’ अमन बोला. सुनंदा बीच में बोलना चाहती थी पर विनय ने रोक दिया. मुझे लगा यही वक्त है वर्षों बाद मन की भड़ास निकालने का सो किचिंत रोष में बोला, ‘‘भाभी, जरूरत इस बात की थी कि आप सब मिल कर एक अच्छी मिसाल बनते. न अमन आप की बेटी में फर्क करता न ही आप की बेटी अमन में. दोनों ऐसे व्यवहार करते मानों सगे भाईबहन हों. मगर हुआ इस का उलटा. आप ने आते ही अपनेपराए में भेद करना शुरू कर दिया. विनय की कमजोरियों का फायदा उठाने लगीं. जरा सोचिए, अगर विनय आप से शादी नहीं करता तब आप का क्या होता? क्या आप विधवा होने के सामाजिक कलंक के साथ जीना पसंद करतीं? साथ में असुरक्षा की भावना होती सो अलग.’’

विधवा कहने पर मुझे अफसोस हुआ. बाद में मैं ने माफी मांगी. फिर मैं आगे बोला,‘‘कौन आदमी दूसरे के जन्मे बच्चे की जिम्मेदारी उठाना चाहता है? विधुर हो या तलाकशुदा पुरुष हमेशा बेऔलाद महिला को ही प्राथमिकता देता है. इस के बावजूद विनय ने न केवल आप की बेटी को ही अपना नाम दिया, बल्कि उस की शादी के लिए अपना पुश्तैनी मकान तक बेच डाला.’’ अपनी बात कह कर हम दोनों अपनेअपने घर लौट आए, एक रोज खबर मिली कि सुनंदा और विनय दोनों दिल्ली अमन से मिलने जा रहे हैं. निश्चय ही अपनी गलती सुधारने जा रहे थे. मुझे खुशी हुई. देर से सही सुनंदा भाभी का हृदयपरिवर्तन तो हुआ.

पहला भाग पढ़ने के लिए- हृदय परिवर्तन भाग-1

Serial Story: हृदय परिवर्तन (भाग-2)

पहला भाग पढ़ने के लिए- हृदय परिवर्तन भाग-1

राधिका को इस रिश्ते में कोई खामी नजर नहीं आई. वजह सुनंदा का खूबसूरत होना था. रही 8 वर्षीय बच्ची की मां होने की बात, तो थोड़ी हिचक के साथ विनय ने इसे भी स्वीकार कर लिया. सुनंदा वास्तव में खूबसूरत थी. मगर पता नहीं क्यों मैं इस रिश्ते से खुश नहीं था. मेरा मानना था कि विनय को एक घर संभालने वाली साधारण महिला से शादी करनी चाहिए थी. मजबूरी न होती तो शायद ही सुनंदा इस रिश्ते के लिए तैयार होती क्योंकि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था. जुगाड़ से क्लर्की की नौकरी पाने वाला विनय कहीं से भी सुनंदा के लायक नहीं था. मुझे सुनंदा पर तरस भी आया कि काश उस का पति असमय न चल बसा होता तो उस का एक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन होता.  विनय मेरा दोस्त था. पर जब मैं मानवता की दृष्टि से देखता था तो लगता था कि कुदरत ने सुनंदा के साथ बहुत नाइंसाफी की. उस की बेटी भी निहायत स्मार्ट व सुंदर थी, जबकि विनय की पहली पत्नी से पैदा दोनों संतानों में वह आकर्षण न था. अकेली स्त्री के लिए जीवन काटना आसान नहीं होता सो सुनंदा के मांबाप ने सामाजिक सुरक्षा के लिए सुनंदा को विनय के साथ बांधना मुनासिब समझा.

सुनंदा ने अतीत को भुला दिया और विनय को अपनाने में ही भलाई समझी. विनय उस के रूपरंग का इस कदर दीवाना हो गया कि न तो उसे बच्चों की सुध रही न ही रिश्तदारों की. सब से कन्नी काट ली. और तो और सुनंदा के रूपसौंदर्य को ले कर इस कदर शंकित हो गया कि उसे छोड़ कर औफिस जाने में भी गुरेज करता. मैं अब उस के घर कम ही जाता. मुझे लगता विनय को मेरी मौजूदगी मुनासिब नहीं लगती. वह हर वक्त सुनंदा के पीछे साए की तरह रहता. उस के रंगरूप को निहारता. सुनंदा अपने पति की इस कमजोरी को भांप  गई. फिर क्या था अपने फैसले उस पर थोपने लगी. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से सब से ज्यादा परेशान अमन और मोनिका थे. वे दोनों एकदम से अलगथलग पड़ गए. विनय कहीं से आता तो सीधे सुनंदा के कमरे में जा कर उसे आलिंगनबद्ध कर लेता. बच्चों का हालचाल लेना महज औपचारिकता होती.

सुनंदा के रिश्ते में शादी थी. विनय व सुनंदा अपनी बेटी के साथ वहां जा रहे थे. अमन भी जाना चाहता था. उस ने दबी जबान से जाने की इच्छा जाहिर की तो विनय ने उसे डांट दिया, ‘‘जा कर पढ़ाई करो. कहीं जाने की जरूरत नहीं.’’ अमन उलटे पांव अपने कमरे में आ कर अपनी मां की तसवीर के सामने सुबकने लगा. तभी राधिका आ गई. उस को समझाबुझा कर शांत किया. विनय वही करता जो सुनंदा कहती. विनय का सारा ध्यान सुनंदा की बेटी शुभी पर रहता. बहाना यह था कि वह बिन बाप की बेटी है. विनय सुनंदा के रंगरूप पर इस कदर फिदा था कि उसे अपने खून से उपजे बच्चों का भी खयाल नहीं था. अमन किधर जा रहा है, क्या कर रहा है, उस की कोई सुध नहीं लेता. बस बच्चों के स्कूल की फीस भर देता, उन की जरूरत का सामान ला देता. इस से ज्यादा कुछ नहीं. अमन समझदार था. पढ़ाईलिखाई में अपना वक्त लगाता. थोड़ाबहुत भावनात्मक सहारा उसे अपनी बूआ राधिका से मिल जाता, जो विनय की उपेक्षा से उपजी कमी को पूरा कर देता.

अब विनय अपने पुश्तैनी मकान को छोड़ कर शारदा के मकान में रहने लगा. यह वही मकान था जिसे शारदा की मां अपने मरने के बाद अपने नाती अमन के नाम कर गई थीं. पुश्तैनी मकान में संयुक्त परिवार था, जहां उस की निजता भंग होती. भाईभतीजे उस के व्यवहार में आए परिवर्तन का मजाक उड़ाते. अब जब वह अकेले रहने लगा तो सुनंदा के प्रति कुछ ज्यादा ही स्वच्छंद हो गया. राधिका कभीकभार बच्चों का हालचाल लेने आ जाती. मुझे अमन से विनय का हालचाल मिलता रहता. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से मैं भी आहत था. सोचता उसे राह दिखाऊं मगर डर लगता कहीं अपमानित न होना पड़े. अमन से पता चला कि सुनंदा मां बनने वाली है तो विश्वास नहीं हुआ. 2 बच्चे पहली पत्नी से तो वहीं सुनंदा से एक 8 वर्षीय बेटी. और पैदा करने की क्या जरूरत थी? अमन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चला गया. मोनिका बी.ए. में थी. वह खुद 45 की लपेट में था. ऐसे में बाप बनने की क्या तुक? यहीं से मेरा मन उस से तिक्त हो गया. मुझे दोनों घोर स्वार्थी लगे. मैं ने राधिका से पूछा. पहले तो उस ने आनाकानी की, बाद में हकीकत बयां कर दी. कहने लगी कि इस में मैं क्या कर सकती हूं. यह उन दोनों का निजी मामला है. उस ने पल्लू झाड़ लिया, जो अच्छा न लगा. कम से कम विनय को समझा तो सकती थी. दूसरी शादी करते वक्त मैं ने उसे आगाह किया था कि यह शादी तुम दोनों सिर्फ एकदूसरे का सहारा बनने के लिए कर रहे हो. तुम्हें अकेलेपन का साथी चाहिए, वहीं सुनंदा को एक पुरुष की सुरक्षा. जहां तुम्हारे बच्चों की देखभाल करने के लिए एक मां मिल जाएगी, वहीं सुनंदा की बेटी को एक बाप का साया. विनय मुझ से सहमत था. मगर अचानक दोनों में क्या सहमति बनी कि सुनंदा ने मां बनने की सोची?

सुनंदा ने एक लड़के को जन्म दिया. वह बहुत खुश थी. विनय की खुशी भी देखने लायक थी मानों पहली बार पिता बन रहा हो. राधिका को सोने की अंगूठी दी. वह बेहद खुश थी. कुछ दिनों के बाद एक होटल में पार्टी रखी गई. मैं भी आमंत्रित था. रिश्तेदार पीठ पीछे विनय की खिल्ली उड़ा रहे थे मगर वह इस सब से बेखबर था. सुनंदा से चिपक कर बैठा अपने नवजात शिशु को खेला रहा था. अमन और मोनिका उदास थे. उदासी का कारण था उन की तरफ से विनय की बेरुखी. रुपयापैसा दे कर बच्चों को बहलाया जा सकता है, मगर उन का दिल नहीं जीता जा सकता. अमन और मोनिका को सिर्फ मांबाप का प्यार चाहिए था. मां नहीं रहीं, मगर पिता तो अपने बच्चों को भावनात्मक संबल दे सकता था. मगर इस के उलट पिता अपनी नई पत्नी के साथ रासरंग में डूबा था. जबकि दूसरी शादी करने के पहले उस ने अमन व मोनिका को विश्वास में लिया था. अब उन्हीं के साथ धोखा कर रहा था. पूछने पर कहता कि मैं ने दोनों की परवरिश में कया कोई कमी रख छोड़ी है? उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाया और अब क्व10 लाख दे कर अमन को इंजीनियरिंग करवा रहा हूं.

अब विनय से कौन तर्क करे. जिस का जितना बौद्धिक स्तर होगा वह उतना ही सोचेगा. राधिका भी दोनों बच्चों की तरफ से स्वार्थी हो गई थी. परित्यक्त राधिका को विनय से हर संभव मदद मिलती रहती सो वह अमन और मोनिका में ही ऐब ढूंढ़ती.मेरे जेहन में एक बात रहरह कर शूल की तरह चुभती कि आखिर सुनंदा ने एक बेटे की मां बनने की क्यों सोची? अमन मौका देख कर मेरे पास आया और व्यथित मन से बोला, ‘‘क्या आप को यह सब देख कर अच्छा लग रहा है? यह मेरे साथ मजाक न हीं कि इस उम्र में मेरे पिता बाप बने हैं.’’ गुस्सा तो मुझे भी आ रहा था. मैं ने उस के मुंह पर विनय पर कोई टीकाटिप्पणी करने से बचने की कोशिश की पर ऐसे समय मुझे शारदा की याद आ रही थी. वह बेचारी अगर यह सब देख रही होती तो क्या बीतती उस पर. किस तरह से उस के बच्चों को बड़ी बेरहमी के साथ उस का ही बाप हाशिये पर धकेल रहा था. कैसे पुरुष के लिए प्यारमुहब्बत महज एक दिखावा होता है. शारदा से उस ने प्रेम विवाह किया था. कैसे इतनी जल्दी उसे भुला कर सुनंदा का हो गया. तभी 2 बुजुर्ग दंपती मेरे पास आ कर खड़े हो गए. उन की बातचीत से जाहिर हो रहा था कि सुनंदा के मांबाप हैं. बहुत खुश सुनंदा की मां अपने पति से बोली, ‘‘अब सुनंदा का परिवार संपूर्ण हो गया. 1 लड़का 1 लड़की.’’

तो इसका मतलब विनय के परिवार से अमन और मोनिका हटा दिए गए, मेरे मन में यह विचार आया. घर आ कर मैं ने गहराई से चिंतनमनन किया तो पाया कि सुनंदा द्वारा एक बेटे की मां बनना विनय के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का जरीया था. ऐसे तो विनय की 2 संतानें और सुनंदा की 1. लेकिन आज तो विनय उस के रूपजाल में फंसा हुआ है, कल जब उस का अक्स उतर जाएगा तब वह क्या करेगी? हो सकता है वह अपने दोनों बच्चों की तरफ लौट जाए तब तो वह अकेली रह जाएगी. यही सब सोच कर सुनंदा ने एक पुत्र की मां बनने की सोची ताकि पुत्र के चलते विनय खून के रिश्ते से बंध जाए. साथ ही पुत्र के बहाने धनसंपत्ति में हिस्सा भी मिलेगा वरना अमन और मोनिका ही सब ले जाएंगे, उस के हिस्से में कुछ नहीं आएगा. औसत बुद्धि का विनय सुनंदा की चाल में आसानी से फंस गया यह सोच कर मुझे उस की अक्ल पर तरस आया.

अमन ने बी.टैक कर के अपने पसंद  की लड़की से शादी कर ली, जान कर विनय ने उस से बात करना छोड़ दिया. वहीं अमन का कहना था, ‘‘जब उन्हें हमारी परवाह नहीं तो हम क्यों उन की परवाह करें. क्या दूसरी शादी उन्होंने हम से पूछ कर की थी? कौन संतान चाहेगी कि उस के हिस्से का प्रेम कोई और बांटे?’’ ‘‘ऐसा नहीं कहते. उन्होंने तुम्हें पढ़ायालिखाया,’’ मैं बोला. ‘‘पढ़ाना तो उन्हें था ही. पढ़ा कर उन्होंने हमारे ऊपर कौन सा एहसान किया है? नानी हमारे नाम काफी रुपयापैसा छोड़ गई थीं. आज भी पापा जिस मकान में रहते हैं वह मेरी नानी का है और मेरे नाम है.’’ ‘आज के लड़के काफी समझदार हो गए हैं. उन्हें बरगलाया नहीं जा सकता,’ यही सोच कर मैं ने ज्यादा तूल नहीं दिया. मोनिका की शादी कर के विनय पूरी तरह सुनंदा का हो कर रह गया. न कभी अमन के बारे में हाल पूछता न ही मोनिका का. समय बीतता रहा. विनय ने सुनंदा के लिए एक फ्लैट खरीदा. फिर वहीं जा कर रहने लगा. अमन को पता चला तो बनारस आया और अपने मकान की चाबी ले कर दिल्ली लौट गया. विनय ने उसे काफी भलाबुरा कहा. खिसिया कर यह भी कहा कि पुश्तैनी मकान में उसे फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. अमन ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह जानता था कि यह उतना आसान नहीं जितना पापा सोचते हैं.

सुनंदा की लड़की भी शादी योग्य हो गई थी. सुनंदा उस की शादी किसी अधिकारी लड़के से करना चाहती थी, जबकि विनय उतना दहेज दे पाने में समर्थ नहीं था. बस यहीं से दोनों में मनमुटाव शुरू हो गया. सुनंदा उसे आए दिन ताने मारने लगी. कहती, ‘‘अमन को पढ़ाने के लिए 10 लाख खर्च कर दिए वहीं मेरी बेटी की शादी के लिए रुपए नहीं हैं?’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है. फ्लैट खरीदने के बाद मेरे पास 10 लाख ही बचे हैं. 35 लाख कहां से लाऊं?’’

‘‘अमन से मांगो,’’ सुनंदा बोली.

‘‘बेमलतब की बात न करो. मैं ने तुम्हारे लिए उस से अपना रिश्ता हमेशा के लिए खत्म कर लिया है.’’

‘‘मेरे लिए?’’ सुनंदा ने त्योरियां चढ़ाईं, ‘‘यह क्यों नहीं कहते दो पैसे आने लगे तो तुम्हारे बेटे के पर निकल आए?’’

‘‘कुछ भी कह लो. मैं उस से फूटी कौड़ी भी मांगने वाला नहीं.’’

‘‘ठीक है न मांगो. पुश्तैनी मकान बेच दो.’’

‘‘विनय को सुनंदा की यह मांग जायज लगी. वैसे भी संयुक्त परिवार के उस मकान में अब रहने को रह नहीं गया था. अमन को भनक लगी तो भागाभागा आया.’’ ‘‘मकान बिकेगा तो सब को बराबरबराबर हिस्सा मिलेगा,’’ अमन विनय से बोला.

‘‘सब का मतलब?’’

‘‘मोनिका को भी हिस्सा मिलेगा.’’

‘‘मोनिका की शादी में मैं ने जो रुपए खर्च किए उस में सब बराबर हो गया.’’ ‘‘आप को कहते शर्म नहीं आती पापा? मोनिका क्या आप की बेटी नहीं थी, जो उस की शादी का हिसाब बता रहे हैं?’’‘‘तुम दोनों के पास मकान है.’’ ‘‘वह मकान मेरी नानी का दिया है. यह मकान मेरे दादा का है. कानूनन इस पर मेरा हक भी है. बिकेगा तो मेरे सामने. हिसाब होगा तो मेरे सामने,’’ अमन का हठ देख कर सामने तो सुनंदा कुछ नहीं बोली, मगर जब विनय को अकेले में पाया तो खूब लताड़ा, ‘‘बहुत पुत्रमोह था. मिल गया उस का इनाम. मेरे बेटेबेटी के मुंह का निवाला छीन कर उसे पढ़ायालिखाया, बड़ा आदमी बनाया. अब वही आंखें दिखा रहा है.’’ ‘‘मैं ने किसी का निवाला नहीं छीना. वह भी मेरा ही खून है.’’

‘‘खून का अच्छा फर्ज निभाया,’’ सुनंदा ने तंज कसा.

‘‘बेटी तुम्हारी है मेरी नहीं,’’ विनय की सब्र का बांध टूट गया.

आगे पढ़िए- क्या सुनंदा अपने सौतेले बच्चों को मां जैसा प्यार दे पाई…

 

Short Story: जब मेरे पति को कोरोना वायरस इंफेक्शन हुआ

भारत में अब तक कोरोना घरघर नहीं फैला है, पर जिन देशों में फैल चुका है, वहां से पता चलता है कि यदि घर के एक जने को हो जाए तो बाकी के लिए उसे घर में झेलना एक चुनौती होता है.

न्यूयार्क के क्वींस इलाके में रहने वाली जैशन इस समस्या को हर पल महसूस कर रही है. उस का 56 साल का पति कई दिन पुराने कपड़ों में कई दिनों से बदली नहीं गई चादर पर सिमटा दोमंजिला मकान की ऊपरी मंजिल पर अकेला पड़ा है…

जैशन… यानी कि मैं अपनी बैठक में ही फोम का गद्दा डाल कर सो रही हूं ताकि अपने पति पर नजर रख सकूं. वह मदद के लिए बुदबुदा रहा है…उस की आवाज कर्कश है… ऊनी शर्ट और ऊपर से स्वेटर पहने होने के बावजूद वह कंपकंपा रहा है.

मैं उसे जगाना नहीं चाहती थी, लेकिन उस के बाथरूम में दवा रखना भूल गई थी मैं…
जिस बोतल से उस की डिश में कैप्सूल डालती हूं, उसे यहां नहीं छोड़ सकती. इसे दूसरे बाथरूम में बिल्कुल अलग रखना है.

‘‘कुछ और चाहिए?’’ मैं उस से पूछती हूं… जो भी उस का छुआ हुआ है, उसे बड़ी सावधानी से किचन तक ले जाती हूं, जहां मेरी 16 साल की बेटी एम्मा खड़ी है.

मैं तब तक बाहर ही खड़ी रहती हूं, जब तक कि वह डिशवाशर नहीं खोल देती… और रेक्स को खींच नहीं देती, ताकि मुझे कुछ भी छूना न पड़े और वह फिर से उन्हें बंद कर दे…
वह मेरे लिए नल खोल देती है और मैं डिस्पोजेबल साबुन को अपनी कोहनी से अपनी ओर खींच कर हाथ धोती हूं.

मेरा पति जेम्स अच्छी कदकाठी का है. वह अकसर ही हमारे ब्रोकलिन एरिया से क्वींस में जमैका घाटी तक 5 घंटे की बाइक चला कर आताजाता रहता है…

आज वह छत को घूरते हुए पीठ के बल लेटा है… कभी करवट बदल लेता है. कई दिनों से वह एक ही पाजामा पहने हुए है… देर तक उस के पास रुक कर कपड़े बदलना एक बहुत ही कठिन काम है… कंबल और चादर की वह अपने नीचे गठरी सी बना लेता है. बाहर बहुत ही ठंड है…

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यह 12 मार्च… यानी 12 दिन पहले की बात है, जब जेम्स सो कर उठा तो उसे बहुत जोर की ठंड लगी.
अगले दिन जब अमेरिका में कोरोना वायरस की खबरें फैल रही थीं… उसे लगा कि वह कुछ अच्छा महसूस कर रहा है, तभी उसे फिर से ठंड लगने लगी… उसे 100 डिगरी बुखार था.

तभी से जेम्स को हमारे बैडरूम तक सीमित कर दिया गया. यहां वह अपार्टमेंट के सामने चैराहे पर निरंतर आते ट्रकों की आवाजों की शिकायत करता है. कुछ ब्लौक्स (रिहायशी क्षेत्र) दूर पश्चिम में स्थित न्यूयार्क बंदरगाह से आने वाली धमाकेदार आवाजों से भी वह परेशान रहता है.बैडरूम का दरवाजा कस कर बंद रखा जाता है, क्योंकि हर समय भीतर जाने की कोशिश करते रहने वाली बिल्ली को फिर रात में बाहर कौन लाएगा…

बीमारी के लक्षण दिखने के 2 दिन बाद जेम्स को हमें सौंपते हुए क्लिनिक से हमें हिदायत देते हुए कहा गया, ‘‘क्या करोगे अगर तुम कोरोना की चपेट में आ गए? निर्देशों को पढ़ो और अपनेआप को घर के अन्य लोगों और जानवरों से अलग कर लो…’’ उस के बाद उसे 101.5 डिगरी बुखार आया और फ्लू का उस का टेस्ट नेगेटिव आया.

कुछ महीने पहले उसे गंभीर अस्थमा का अटैक आया था और उसे एडमिट कराना पड़ा था. इसी वजह से उस का कोरोना वायरस की फैल रही महामारी कोविड 19 का टेस्ट कराया गया. उस के एक दिन बाद ही टेस्ट किट की कमी हो गई थी, साथ ही सख्ती भी और बढ़ा दी गई थी…

तब से हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जो बस जेम्स के चारों ओर घूमती है. डाक्टर से मिल कर हम ने तय किया कि यदि उस की हालत और खराब हो जाती है, तो कौन सा रूम उसे देना चाहिए… बहुत सारे काम थे… उस की दवाएं, जो बारबार स्टाक से बाहर हो जाती थीं… उन्हें वैबसाइट पर ढूंढ़ना… हमारे पास वे सामान भी नहीं थे, जो बहुत बुखार या बहुत पसीना आने पर चाहिए होते हैं.

हम एक उस दुनिया में थे, जहां समाचारों में बस ‘टेस्टिंग, क्वारंटीन, दवाओं की कमी और महामारी के फैलाव की कहानियां थीं और डर भरी रातें तो अभी आने को थीं.

ऐसे में जेम्स के दोस्तों ने दवाएं और वाइन ला कर दे कर मेरी बड़ी मदद की… एक दोस्त पैरासिटामोल छोड़ गया था और एक दूसरा दोस्त पास की ही फार्मेसी से वाइन की बोतल छोड़ गया, जो आगे आने वाली डरावनी रातों में मेरे बड़े काम आई…

3 दिन बाद उस के डाक्टर ने बताया कि टेस्ट पौजिटिव आया है. उस समय जेम्स करवट से लेट कर न्यूयार्क स्टेट में कन्फर्म हुए केसों के बारे में एक लेख पढ़ रहा था. वह उसी वायरस की कहानियां पढ़ रहा था, जिस ने इस समय स्वयं उसी पर हमला कर दिया था. वह लोगों को अस्पताल में भरती करने, उन्हें सांस लेने के लिए वेंटिलेटर पर रखने और उन की मृत्यु की कहानियां पढ़ रहा था.

जिस दिन जेम्स ने पहली बार खुद को बीमार महसूस किया था, उसी दिन मैं ने और एम्मा ने एचबीओ टीवी पर चेरनेबिल सीरीज देखना शुरू किया था. यह सीरीज 1986 में रूस में हुई परमाणु दुर्घटना से संबंधित थी. 3 एपिसोड देखने के बाद ही हम ने उसे देखना बंद कर दिया.

अब वह समय पीछे छूट गया है, जब हम साथ बैठ कर कुछ देखते थे. अब तो बस भागदौड़ रह गई है… उस ने एकाध कटोरी सूप पी लिया है या नहीं, वह सूंघने में असमर्थ है, क्योंकि उस की नाक चोक हो गई है.

अब मेरा सारा समय… उस का बौडी टेंपरेचर लेने, औक्सीटोमीटर से औक्सीजन का स्तर मापने इत्यादि में गुजरता है. एक दोस्त ने डाक्टर की सलाह पर खून में औक्सीजन का स्तर मापने के लिए मौनिटर ला दिया था, जो मेरे बहुत काम आया…
जेम्स को दवा देना, चाय देना, डाक्टर को उस की गिरती हालत के बारे में मैसेज करना… और बारबार हाथ धोना… और जब वह अपने बिस्तर में खांस रहा और पैरों को रगड़ रहा होता तो उस से कुछ दूर खड़े हो कर उसे देखना…
‘‘तुम यहां मत खड़ी हो… मौत मुझे बुला रही है,’’ वह कहता.
‘‘जी.’’
फिर जैसेजैसे रात गहराती जाती, वह डरने लगता.
‘‘बुखार, पसीना, सिरदर्द, बदन दर्द और रात का लंबा समय उसे घबरा देता. यह एक पत्थर कूटने वाली मशीन की तरह मुझे कूट कर रख देता है,’’ वह कहता.
एम्मा का हाईस्कूल 13 मार्च से बंद हो गया था और न्यूयार्क के अन्य स्कूलों की तरह औनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई थी. एम्मा और क्लास के अन्य बच्चों को शिक्षकों ने कड़े निर्देश दिए थे.
‘‘यह छुट्टियां नहीं रेगुलर स्कूल है,’’ उन से कहा गया था. मैं ने प्रिंसिपल और स्कूल को एक मेल लिखा और बताया कि घर में एम्मा किन हालात से गुजर रही है.’’
पूरे समय कभी मैं डाक्टर को मैसेज लिखती, कभी जेम्स के भाईबहनों को…अपने मातापिता, भाई, जेम्स के बिजनेस पार्टनर को… उस के दोस्तों, कर्मचारियों को मैसेज लिखलिख कर जेम्स की हालत के बारे में बताती.

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जेम्स बहुत थका हुआ और कमजोर है और सारा समय इन मैसेज के जवाब नहीं दे सकता है.
‘‘मेरे परिवार से कुछ भी मत छिपाना,’’ जेम्स कहता.
‘‘वह उस ग्रे स्वेटर को मांग रहा है, जो उस के पिता पहनते थे, जब वे जिंदा थे.’’
हमारे चारों ओर जो लोग थे, वे सामान्य जीवन जी रहे थे. हर कोई हमारा सलाहकार बन गया था और अपनेअपने अनुभवों के अनुसार इस महामारी से जुड़े मीम्स शेयर कर रहा था.
‘‘घर से स्कूलिंग कैसे करें… सोशल डिस्टेंस कैसे बनाएं वगैरह…’’ वे नहीं जानते थे कि हमारा घर एक अस्थायी अस्पताल में तबदील हो चुका था. हर आने वाला पल कैसा होगा, हमारे लिए यही महत्वपूर्ण था.
‘‘मैं ने बिल्ली की गंदगी साफ कर दी है,’’ एम्मा कह रही थी.
बाहर कोने में कुछ लोग खड़े थे. मैं उन से बात करना चाहती थी…
‘‘ये परिवार से जुड़ने के लिए एक अच्छा समय है.‘‘ वे कह रहे थे. मैं वापस आ गई… अब मैं उन्हें नहीं देखना चाहती थी.
इस समय एम्मा मेरी मददगार बन गई थी. बाथरूम का आधा हिस्सा हम ने ले लिया था और आधा जेम्स के सामान… उस की गंदगी के लिए था.
‘‘ये गंदे, बुरे सपने भरे जैसे दिन थे…’’
एम्मा हर काम में मेरी मदद कर रही थी. नर्सिंग के काम के अलावा घर को व्यवस्थित करने, रसोई का काम करने, बिल्ली को खाना खिलाने, उस की गंदगी साफ करने, कपड़े तह करने के साथ ही जेम्स के लिए बीचबीच में हलका खाना पकाने, बरतन साफ करने, हर काम में मेरी मदद करती…
इन मुश्किल दिनों में जब मैं जेम्स के कमरे से बिना छुए डिशवाशर में डालने को बरतन लाती और बारबार धोने से रुखे हो गए अपने हाथों को धोती, तब भी वह मेरी मदद करती.
‘‘हम ऐसे बात करते जैसे हम बराबर के हो गए हैं,’’ वह सही ही तो कहती है…
मेरा सारा समय हमें सेफ रखने में बीत रहा था. दरवाजों के हेंडल्स को पोंछना, बिजली के स्विचों, नलों को कीटाणुनाशक से साफ करना मेरा रोज का काम हो गया था. हर रोज अल्कोहल से अपने फोन को साफ करती. रात होते ही दिनभर के इस्तेमाल हुए कपड़ों को धुलने फेंक देती.
जब एम्मा नहाने जाती, तो मैं सारे बाथरूम को अच्छे से साफ करती. हर उस चीज को हटा देती, जो जेम्स ने इस्तेमाल की होती. साथ ही, एम्मा को निर्देश देती कि किसी भी चीज को छुए नहीं और शावर ले कर सीधे अपने कमरे में जाए.
मेरे मन में डर बैठ गया था, उस की सुरक्षा को ले कर…
‘‘अगर एम्मा को भी कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा…’’ यह सोच कर मैं बेहद डर गई थी.
अगर जेम्स कभी हमारे नहाने से पहले बाथरूम इस्तेमाल कर लेता, तो मैं फिर से उसे साफ करती तब हम बाथरूम में जाते.

मैं ने उसे एप्सोम साल्ट से स्नान करवाया. फिर तो वह इतना कमजोर हो गया था कि बाथरूम तक भी नहीं जा पा रहा था और बीच में ही गिर जा रहा था… फिर बस मुंह धुला कर ही काम चलाया जाने लगा.
मैं आगे की संभावनाओं के बारे में विचार करती, ‘‘अगर एम्मा बीमार हो गई तो…’’
‘‘मैं उस की भी देखभाल कर लूंगी.’’ बात तो यह थी कि, ‘‘अगर मैं खुद बीमार हो गई तो…’’
मैं अपनी बेटी को समझा देना चाहती थी कि अगर ऐसी कोई परिस्थिति आ जाए तो वह क्या करेगी.
‘‘क्या होगा, अगर जेम्स को अस्पताल में एडमिट करना पड़ा तो….?’’ और अगर मैं…‘‘
‘‘क्या एक 16 वर्ष की बच्ची को घर में अकेले छोड़ा जा सकता है…..?’’

पर, एक बात मैं अच्छे से जानती हूं कि मैं उसे अपने मातापिता के पास नहीं भेज सकती. वे 78 वर्ष के थे और पास ही लौंग आईलैंड में रहते थे.
हालांकि, वे तो उसे अपने पास बुलाना चाहते थे, पर इस में खतरा था. उन की पोती उन्हें एक अदृश्य, खतरनाक वायरस की चपेट में ले सकती थी.
‘‘नहीं, उसे किसी और के पास भेजना होगा… कोई ऐसा जिस के पास उसे अलग से रखने और देखभाल के लिए एक बाथरूम और बैडरूम हो…’’
रात के 4-4 बजे तक मैं फर्श पर लेटी अवाक सी सोचती, सुनती, जागती रहती.
बुखार में जेम्स बुरी तरह बड़बड़ाता… एम्मा को अपनी 20 साल पुरानी गर्लफ्रैंड के नाम से बुलाता… 3 बार हम ने उसे अस्पताल में भरती कराने की सोचा. एक बार तो डाक्टर से बात करते ही मेरी हिचकी बंध गई और मैं रोने के लिए बाथरूम की तरफ भागी.
हर बार हम ने घर पर ही रहने का निर्णय लिया, क्योंकि उसे सांस लेने में तकलीफ नहीं थी. यदि होती तो उसे अस्पताल में भरती कराना ही पड़ता.
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के इमर्जैंसी रूम की एक डाक्टर से हम ने वीडियो फोन से बात की. डाक्टर 250 से ज्यादा ऐसे मरोजों को देख चुकी थी, जिन्हें फ्लू जैसे लक्षण थे. उन्होंने हम से कहा कि जेम्स को हम घर पर ही रख सकते हैं, बशर्ते उस की औक्सीटोमीटर में औक्सीजन की माप सही बनी रहे और उसे सांस लेने में कोई तकलीफ न हो.

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मैं हलके से बेडरूम का दरवाजा खोलती तो पाती कि जेम्स सो रहा है…उस के पास जा कर देखती कि उस की सांसें चल रही हैं या नहीं. वैसे ही जैसे कभी एम्मा को देखती थी, जब वह छोटी थी और अपने पालने में सोती थी.
ऐसी ही उन बुरी रातों में मैं जेम्स से कुछ दूरी बना कर कंबल में मुड़े हुए उस के पैरों को रगड़ रही थी… दुख के उन पलों में एक क्षण ऐसा आया था, जब मेरे होंठों से वही गीत फूट पड़ा, जो मेरी मां और मेरी दादी मुझे गा कर सुनाया करती थीं. वह एक आयरिश बाल गीत था, जो छोटे बच्चों को सुलाने के लिए गाया जाता था.
मेरी दादी उसे रशियन में गाती थीं. वह मेरे बचपन का गीत था, जो लगभग 40 साल बाद मेरे होठों पर फूटा था, जिसे मैं अपने मृतप्रायः, बीमार पति के समक्ष गुनगुना रही थी.
‘‘हम कितने मनहूस माहौल में रह रहे हैं,’’ मैं रसोई में एम्मा से कह रही थी.
‘‘हमारे जैसे और भी बहुत लोग हैं,’’ एम्मा ने कहा..
दूर से देखने पर जेम्स और भी कमजोर नजर आता. उस की 6 फुट 1 इंच की काया बड़ी ही दीनहीन सी लगती. उस का कमजोर शरीर ढेर सारे कपड़ों में लिपटा हुआ था… जिन में वह अपनी विंटर जैकेट के नीचे एक और जैकेट, जिस के नीचे उस के पापा का ग्रे ऊनी स्वेटर था, जिस के नीचे एक डबल फोल्ड शर्ट थी, जिस के नीचे एक धारीदार बनियान पहने था. उस पर भी वह कहता था कि उसे ठंड लग रही है.
मार्च के चमकते हुए सूरज में भी उस के मुंह पर वही मास्क चढ़ा रहता, जो कि टेस्ट के लिए क्लिनिक जाते समय उसे पहनाया गया था…
हम लोग क्लिनिक जा रहे थे. हम दोनों ने ही ‘डिस्पोजेबल ग्लव्स’ पहन रखे थे. उस से पहले वाला दिन बड़ा ही कठिन था, जब जेम्स को सारा दिन चक्कर और उलटी आती रही. वह अपनेआप खा भी नहीं पा रहा था.चम्मच से खिलाने पर ही थोड़ाबहुत खा पा रहा था. इन्हेलर का इस्तेमाल करने पर भी उसे खांसी आ रही थी.
सुबह पसीने से वह नहाया हुआ था और शाम को लुढ़का पड़ा था. वह डरा हुआ था. उस ने मुझ से कहा, ‘‘उसे खांसी के साथ खून आया था.’’
हम ने उस के डाक्टर से बात की.
‘‘हम सब अंधे के समान काम कर रहे हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘कई मरीज एक सप्ताह के भीतर ही अच्छा महसूस करने लगते हैं, जबकि अन्य ज्यादा गंभीर केसों में उलटा हो जाता है…
‘‘वायरस फेफड़ों पर हमला कर देता है और खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है,’’ डाक्टर ने बताया.
‘‘अगर मरीज की स्थिति नहीं सुधरती है, तो अगली अवस्था निमोनिया की होती है… ऐसा अन्य मरीजों में देखा गया है,’’ डाक्टर ने यह भी बताया.
डाक्टर ने एक फार्मेसी से एंटीबायोटिक लेने को कहा, जो एक घंटे में ही बंद होने वाली थी. मैं ने जेम्स के दोस्त को मैसेज किया. उस ने कहा कि वह दवा ले लेगा…
मैं ने उसे संतरे भी लाने को कहा. जेम्स को संतरे का जूस और उस की फांकें पसंद थीं और हमारे पास घर पर बस एक संतरा बचा था. इस समय संतरे जैसी कई चीजें महंगी हो गई थीं.
डाक्टर ने सुबह हमें सब से पहले आने और आ कर सीने का एक्सरे कराने को कहा. हम धीरेधीरे चल कर आ रहे थे. जेम्स धीरेधीरे खांसते हुए चल रहा था. कुछ और लोग दिखाई दे रहे थे. हालांकि उन की संख्या पहले से काफी कम थी, जबकि न्यूयार्क के गवर्नर एंड्रयू क्योमो ने लोगों से जहां तक हो सके, घरों में ही रहने को कहा था.
कुछ जौगिंग करने वाले भी थे, जैसे कि एक हफ्ते पहले मैं भी उन में से एक होती थी.
मैं ने जेम्स का ध्यान उन की तरफ से हटाने का प्रयास किया और उसे डालियों पर खिलती हुई कलियां दिखाने लगी.
‘‘मुझे महसूस हो रहा था कि वे हमारी तरफ मुड़ कर देखेंगे, तो शायद जेम्स को अच्छा न लगे.’’ पर वे खुद बड़े सावधान थे, ‘‘अपने मास्क पहने हुए वे लोग खुद को हम से बचाते हुए सीधे निकल गए…’’
क्लिनिक पर एक और जोड़ा था, जो मास्क पहने था, और अंदर चला गया.एक आदमी मास्क पहन कर वहीं इंतजार कर रहा था.
जेम्स एक कुरसी पर आंखें बंद कर बैठ गया था. मैं ने परिचारिका से कहा, ‘‘मेरे पति का कोविड 19 टैस्ट पौजिटिव आया है.’’
परिचारिका की आंखें मास्क में से ही हठात एक क्षण को मुझ से मिलीं. उस ने मुझे भी एक मास्क दिया.
आज जेम्स का डाक्टर किसी अन्य क्लीनिक पर था, इसलिए हमें दूसरे डाक्टर को दिखाना था. हमें पूरी जानकारी उसे फिर से देनी थी.
मास्क पहने हम इंतजार कर रहे थे. जेम्स की आंखें अभी भी बंद थीं. मैं अपने पीछे की खिड़की से बाहर देखने लगी…
‘‘गली में लोग और दिनों की तरह ही चल रहे थे, तभी एक आदमी आया, अपने गंजे सिर पर हाथ फेरता हुआ एक छोटे से कैफे में घुस गया.
एक अन्य परिचारिका आई. पहली वाली ने उस के कान में कुछ फुसफुसाया… और उस ने अपना मास्क पहन लिया.
हमें अंदर बुलाया गया. मास्क पहनी हुई एक नर्स ने जेम्स की नब्ज देखी.उसे हलका बुखार था. लगभग 99 डिगरी… शायद उस ने इबुप्रोफेन दवा ली थी, इसलिए बुखार हलका हो गया था. उस का ब्लड प्रेशर ठीक था.नब्ज भी सही थी और औक्सीजन का स्तर भी ठीक था.
हम ने डाक्टर को उस के बुखार, पसीने, मितली, खांसी और खांसी के साथ आए खून के बारे में बताया.
एक बार फिर जेम्स का परीक्षण किया गया. उसे आंखें बंद कर कुरसी पर सिर टिका कर बैठने को कहा गया, वहीं कोई किसी मरीज से कह रहा था, ‘‘वह बहुत बीमार है. उसे 5 ब्लौक्स (रिहाइशी क्षेत्र) दूर अस्पताल में भरती हो जाना चाहिए.’’
डाक्टर अंदर आता है. उस ने चेहरे पर मास्क और हाथों में प्लास्टिक का कवर पहन रखा है. एक पतले से गाउन में जेम्स को एक्सरे के लिए ले जाया जाता है.
‘‘यह बहुत ही कठिन और अजीब था.’’ लौट के आने पर उस ने कहा, ’’अपने सिर के नीचे हाथों को रखे रखना…’’
‘‘यह एक्सरे एक हफ्ते पहले वाले से अलग है,’’ रेडियोलौजिस्ट से सलाह कर डाक्टर ने हम से कहा.
‘‘अब यह बाएं फेफड़े में निमोनिया दिखा रहा है.’’
‘‘पिछली रात डाक्टर ने ठीक ही एंटीबायोटिक लिखी थी.’’

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डाक्टर ने स्टैथोस्कोप से सुना, ‘‘जेम्स के फेफड़े ठीक लग रहे थे, घरघरा नहीं रहे थे. उसे सांस लेने में भी परेशानी नहीं हो रही थी.’’ उस की घर पर रख कर ही देखभाल की जा सकती थी.
‘‘लेकिन, अब तुम्हें और जल्दीजल्दी दिखाने आना होगा,’’ डाक्टर ने कहा. हम क्लिनिक के दरवाजे पर खड़े बाहर की ओर देख रहे थे… 2 बुजुर्ग औरतें दरवाजे के बाहर बातें कर रहीं थी. क्या मैं उन से कहूं कि, ‘‘वे बाहर हैं… घर जाएं… अपने हाथ धोएं और भीतर ही रहें…’’ या फिर, ‘‘जब तक वे चली न जाएं, हम यों ही यहीं खड़े रहें. और जब वे चली जाएं, तब हम यहां सब 3 ब्लौक्स दूर अपने घर को निकलें.’’
मैं ने मैग्नोलिया, फोरसाथिया के खिले हुए फूलों को देखा… जेम्स कह रहा था कि, ‘‘उसे ठंड लग रही थी.’’
‘‘उस की गरदन पर बाल बढ़ गए थे… बड़ी हुई दाढ़ी में से सफेद बाल दिख रहे थे…’’
फुटपाथ पर कुछ लोग हम से आगे निकल रहे थे. वे नहीं जानते कि हम उन के भविष्य के दृष्टा हैं.
एक स्वप्न, एक पूर्वाभास मुझे हो रहा है कि, ‘‘कल वो भी हम जैसे ही होंगे या तो जेम्स की तरह, मास्क पहने हुए, या फिर यदि भाग्यशाली हुए तो मुझ जैसे – उस की सेवा करते हुए.’’

Serial Story: धोखा (भाग-2)

दूसरे दिन सुबह जब सब नाश्ता कर रहे थे तो रश्मि ने रोहन से कहा, ‘‘सुनिए, मेरे खयाल में अब तो काफी दिन हो चुके हैं, अगर शालिनी का काम बाकी है तो वह किसी गर्ल्स होस्टल में इंतजाम कर लेगी?’’

‘‘क्यों ऐसी भी क्या जल्दी है?’’ रोहन ने कहा.

‘‘बात कुछ नहीं बस बच्चों के ऐग्जाम सिर पर हैं… उन की पढ़ाई नहीं हो पा रही… फिर मेहमान कुछ दिन के ही अच्छे होते हैं.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो रश्मि? क्या शालिनी से यह सब कहते ठीक लगेगा? फिर एक तो वह तुम्हारी सहेली है… इस नए शहर में कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए या कहीं भी इंतजाम करे यह हमारी सिरदर्दी नहीं,’’ रश्मि ने कुछ झल्ला कर कहा.

‘‘ठीक है कुछ दिन और देखो या तो वह कोई इंतजाम कर लेगी या फिर मैं  ही उस का कोई इंतजाम कर दूंगा. तुम परेशान न हो,’’ रोहन उसे दिलासा दे कर औफिस चला गया.  रोहन का सारा दिन उधेड़बुन में बीता. अब उसे शालिनी का साथ अच्छा लगने लगा था. वह उस के बिना नहीं रहना चाहता था, परंतु रश्मि का क्या इलाज किया जाए? बहुत सोचने के बाद रोहन ने एक उपाय सोचा. उस ने शहर से बाहर बनी नई कालोनी में एक मकान किराए पर लिया और उस में शालिनी को शिफ्ट कर दिया.

एक बार को शालिनी हिचकिचाई. कहा, ‘‘रोहन, क्या यह ठीक होगा?’’

‘‘देखो शालिनी तुम्हारा कोई नहीं है और अब न ही मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम बताओ क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? इतने दिन साथ गुजारने के बाद क्या हम दोनों को एकदूसरे की आदत नहीं हो गई है?’’

‘‘यह तो ठीक है, परंतु रश्मि और बच्चे. ऊपर से यह समाज क्या हमें जीने देगा?’’ शालिनी कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘देखो शालिनी अब मेरीतुम्हारी बात बहुत बढ़ गई है. अब न तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं और न ही तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम्हारी तो तुम ही जानो पर मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम्हारे विचार भी यही हैं.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, परंतु रश्मि मेरी सहेली है और उस के साथ यह अन्याय होगा.’’

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‘‘तुम्हें अब सिर्फ अपने और मेरे बारे में सोचना है शालिनी,’’ रोहन ने बात खत्म करते हुए कहा, ‘‘अब देखो इस शहर में कितने ही लोगों से तुम्हें मिलवा दूंगा, जिन्होंने न सिर्फ 2-2 शादियां कर रखी हैं वरन दोनों निभा भी रहे हैं.’’

‘‘परंतु लोग क्या कहेंगे?’’ शालिनी बोली.

‘‘देखो शालिनी, अब तुम कुछ मत सोचो. सोचो तो सिर्फ अपनी नई जिंदगी के बारे में.’’  रोहन की बात सुन कर शालिनी ने उस से सोचने के लिए 2 दिन का समय मांगा.

‘‘ठीक है, मैं चलता हूं. तुम्हारी जरूरत का सारा सामान यहां है.’’  रोहन घर पहुंचा तो रश्मि और बच्चे उसे अकेला देख कर बहुत खुश हुए. उन्होंने सोचा कि शालिनी चली गई है अपने शहर.

रश्मि ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आज अकेले? क्या शालिनी वापस चली गई?’’

रोहन चुप रहा और अपने कमरे में कपड़े चेंज करने चला गया. रश्मि कुछ सोचती रह गई. जब वह वापस आया तो रश्मि ने फिर दोहराया, ‘‘आप ने बताया नहीं कि शालिनी वापस चली गई क्या?’’  ‘‘देखो रश्मि, तुम ने चाहा कि शालिनी यहां से चली जाए और वह चली गई. अब वह कहां गई और क्यों गई, इस से तुम्हें मतलब नहीं होना चाहिए. रहा मेरे जल्दी आने का प्रश्न तो आज मैं यह फैसला कर के आया हूं कि अब मैं शालिनी से शादी कर रहा हूं. तुम साथ रहोगी या अलग यह फैसला तुम्हें करना है.’’  रश्मि और बच्चे यह सुन कर हैरान रह गए.

‘‘तुम्हें पता भी है कि तुम क्या कह रहे हो?’’ रश्मि ने लगभग चीखते हुए कहा. दोनों बच्चे शलभ और रीतिका डर गए. तभी रश्मि को लगा कि उन्हें बच्चों के सामने ये सब बातें नहीं करनी चाहिए. अत: उस ने सामान्य होने की कोशिश की और बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, आप अपने कमरे में जा कर पढ़ाई करो.’’

अब बच्चे इतने भी छोटे नहीं थे कि वे अपनी मां की बात न समझ सकें. दोनों  सिर झुकाए अपने कमरे में चले गए.  ‘‘हां, अब बताओ कि तुम क्या कह रहे थे? तुम्हें शालिनी से शादी करनी है? तुम इतनी बड़ी सजा मुझे कैसे दे सकते हो? सिर्फ तुम्हारे कारण मैं अपने मातापिता और घरपरिवार को छोड़ कर आई थी.’’

‘‘हां तुम आई थीं पर यह फैसला भी तुम्हारा था. फिर मैं कब मना कर रहा हूं, क्या बिगड़ जाएगा अगर शालिनी भी हमारे साथ रहे?’’ रोहन ने कहा.  ‘‘यह कभी नहीं हो सकता रोहन, तुम मुझे इतना बड़ा धोखा नहीं दे सकते.’’

‘‘धोखा, जो धोखा करता है उसे धोखा ही तो मिलता है. यही दुनिया का सत्य है. तुम ने भी तो अपने मातापिता को धोखा दिया था. तुम्हारी मां असमय गुजर गईं. वे क्या जी पाईं और पिताजी? वे भी जैसे जी रहे हैं वह जीना नहीं होता. क्या तुम ने उन के लिए सोचा? आज बात करती हो धोखे की.’’

‘‘उस की वजह भी तुम थे रोहन… तुम ने तो मुझे न घर का छोड़ा और न घाट का,’’ रश्मि ने सिर थामते हुए कहा.

‘‘अब यह फैसला तुम्हारा है रश्मि तुम साथ रहो या अलग. हां यह जरूर है कि तुम्हारे और बच्चों के खर्च का पैसा मैं तुम्हें देता रहूंगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘बस करो रोहन… तुम क्या दोगे, जाओ आज मैं ने तुम्हें शालिनी दी, तुम्हारा नया घर, नई पत्नी, तुम्हें मुबारक… मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए. चले जाओ यहां से अभी इसी वक्त,’’ रश्मि ने चिल्ला कर कहा तो रोहन चला गया.  रश्मि की आंखों के सामने सब कुछ घूमने लगा. उस की बनाई दुनिया, उस का घर, उस के सपने सब कुछ भरभरा कर ढह गया.  तभी बिल्ली ने कूद कर फ्लौवर पौट गिरा दिया तो रश्मि की तंद्रा भंग हुई.

‘‘फिरफिर क्या हुआ रश्मि,’’ मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या था रोहन मुझे अधर में छोड़ कर चला गया और आज मैं अपने बच्चों के साथ अकेले जिंदगी गुजार रही हूं. सारे दुख, सारा अकेलापन अपने अंदर समेटे चलती जा रही हूं बस.’’

‘‘परंतु कब तक?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जब तक जीवन है… न मैं हारूंगी, न रोहन के पास जाऊंगी और न ही अपने पिता के पास.’’

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‘‘चल जाने भी दे. जब भी कभी तू अकेलापन महसूस करेगी मुझे अपने करीब पाएगी.’’  उधर रोहन ने शालिनी से शादी कर ली और अपने नए घर में मगन हो गया. धीरेधीरे उन का रिश्ता सभी को मालूम हो गया. सामने तो कोई कुछ नहीं कहता था, परंतु पीठ पीछे सभी उस की बुद्धि पर तरस खाते, ‘‘देखो रोहन ने इस उम्र में अपनी इतनी सुंदर, सुघड़ पत्नी व 2 बच्चों को छोड़ कर नई शादी कर ली,’’ नरेंद्रजी बोले.  ‘‘भई, हम तो रश्मि भाभी के बारे में सोचते हैं… वे अकेली ही हर हालात का सामना कर रही हैं,’’ निरंजन कुछ सोचते हुए बोले.  ऐसा नहीं था कि रोहन को इन सब बातों का पता नहीं था, परंतु वह बड़ी चतुरता से सफाई दे देता था.  एक दिन रोहन लौटा तो उस के हाथ में शिमला के 2 टिकट थे. घर में घुसते ही  चिल्लाया, ‘‘शालिनी… ओ शालू देखो मैं क्या लाया हूं?’’

आगे पढ़ें- उसे सकते में देख कर शालिनी बोली…

Serial Story: धोखा (भाग-4)

दवा चलती रही. रोहन हर संभव कोशिश करता कि शालिनी खुश रहे. पर कहीं न कहीं से कुछ ऐसा हो जाता कि शालिनी को रश्मि का बुझा चेहरा और रितिका के शब्द याद आ जाते. उस की हालत बद से बदतर होती जा रही थी. अब इस बात की चर्चा आसपास भी होने लगी थी. अभी दोपहर को वह बालकनी में खड़ी थी कि रूहेला ने इशारा करते हुए नीलिमा से कहा, ‘‘सुना है शालिनी न्यूरोलौजिस्ट के पास गई थीं. उन्हें कुछ दिमागी बीमारी है.’’  ‘‘अरे भई किसी का बुरा कर के कोई सुखी हुआ है कभी? मुझे तो बेचारी रश्मि पर तरस आता है. इस ने उस का पति छीन कर उसे और उस के 2 बच्चों के साथ बुरा किया. अब भरेगी भी तो यही,’’ नीलिमा बोलीं.

इतना सुन कर शालिनी कमरे में आ गई और आते ही बस्तर पर पड़ गई. जब लंच के लिए रोहन आया तो उस ने देखा और तुरंत उसे ले कर डाक्टर के यहां गया.  डाक्टर साहब चिंतित हो कर बोले, ‘‘रोहन इतनी दवा के बावजूद शालिनी में कोई सुधार नहीं हो रहा है. मुझे लगता है कि इन्हें हौस्पिटीलाइज करना पड़ेगा.’’

‘‘कुछ भी कीजिए डाक्टर साहब, परंतु शालिनी को ठीक कर दीजिए.’’

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उसी समय डाक्टर ने शालिनी को दाखिल कर लिया.  रोहन अब तिहरी मुसीबत में फंस गया. एक तरफ उस का काम, दूसरी तरफ घर और अब अस्पताल भी सुबहशाम जाना. वह बुरी तरह थक चुका था. उस दिन के बारे में सोचता जब वह शालिनी को ले कर घर और बच्चों को छोड़ कर आया था. विवाहेतर संबंधों का सच अब उस की समझ में अच्छी तरह से आ रहा था, परंतु क्या हो सकता था. अब गले पड़े ढोल को बजाने के सिवा कोई चारा नहीं था. न तो वह शालिनी को छोड़ कर वापस रश्मि के पास जा सकता था और शालिनी थी कि वह ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी. खैर जैसेतैसे वह अपनी तीनों जिम्मेदारियां निभाने की कोशिश कर रहा था.  एक दिन रश्मि बाजार गई वहीं उसे कविता मिली. दोनों ही बड़ी गर्मजोशी से मिलीं. तभी कविता बोली, ‘‘चल, बहुत दिनों के बाद मिली हैं कहीं बैठ कर कौफी पीती हैं.’’

‘‘नहीं कविता, जल्दी घर जाना है. बच्चों के पेपर चल रहे हैं,’’ रश्मि ने जवाब दिया.

‘‘चल भी न… कितने दिनों बाद तो मिली हैं… थोड़ी गपशप हो जाएगी,’’ और फिर दोनों एक कैफे हाउस में चली गईं.  बातें करतेकरते बात शालिनी पर आ कर ठहर गई. अचानक कविता बोली, ‘‘सुना है रश्मि आजकल रोहन बहुत परेशानी में है.’’

‘‘क्यों? अब तो उसे खुश रहना चाहिए. उस ने शालिनी से शादी भी कर  ली जो वह चाहता था और मैं भी उस से कोई वास्ता नहीं रखती जिस का उसे डर था…’’

‘‘अरे, यह सब तो ठीक है परंतु सुना है शालिनी डिप्रैशन में आ गई है और आजकल सिटी अस्पताल में दाखिल है.’’

‘‘डिप्रैशन में वह? परंतु उसे तो वह सब प्राप्त है जिस की उस को चाह थी… अब उसे और क्या चाहिए? देखा जाए तो डिप्रैशन में तो मुझे आना चाहिए… मेरा तो सब कुछ उस ने छीन लिया है. खैर, छोड़ो सब समय का खेल है नहीं तो मैं क्यों अपना घर छोड़ कर रोहन के साथ घर बसाती? पर कविता यह तो बता कि तुझे कैसे पता चला कि वह सिटी अस्पताल में दाखिल है?’’

‘‘अरे मैं तो इन के एक दोस्त को देखने गई थी तो वहां रोहन मिले थे. वही बता रहे थे.’’

‘‘अच्छा किस वार्ड में है? रूम नंबर क्या है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘क्यों अब भी तुझे उस से मिलने जाना है?’’ कविता ने पूछा.

‘‘हां, यार सोच रही हूं मिल लेती हूं. कुछ भी हो वह मेरी सहेली है और उस की देखभाल करने वाला कोई भी तो नहीं. उस की करनी उस के साथ और मेरी करनी मेरे साथ,’’ कह रश्मि शालिनी का रूम नंबर ले कर घर आ गई.  शलभ और रितिका ने उस से बहुत मना किया, परंतु उस ने यही कहा कि इस सारे किस्से में जितनी गुनहगार शालिनी है उस से कहीं अधिक गुनहगार रोहन है और इस का खमियाजा अकेली शालिनी उठा रही है.  अकेले दिन वह शालिनी से मिलने अस्पताल पहुंची. वहां उस ने देखा कि शालिनी चीखचिल्ला रही है. तभी डाक्टर आए और उसे नींद का इंजैक्शन लगा दिया. धीरेधीरे शालिनी नींद के आगोश में चली गई. रश्मि वहां रखी कुरसी पर बैठ कर गहरी सोच में डूब गई. उसे शालिनी पर बड़ा तरस आ रहा था.  वह सोच रही थी क्या यह वही शालिनी है, जो उस के पास आई थी तब कितनी निर्मल, कितनी खुशमिजाज और सुंदर थी और आज ऐसे पड़ी है बेचारी… रश्मि का दिमाग कुछ कह रहा था और दिल कुछ और. दिल तो कह रहा था कि यह उस की सहेली है उसे ऐसी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए, मगर दिमाग में तो चल रहा था कि उस ने उस के साथ क्या किया था. वह बड़ी दुविधा में पड़ी थी, परंतु उस के पैर डाक्टर के कैबिन की तरफ चल पड़े.

‘‘डाक्टर साहब मैं अंदर आ सकती हूं?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘यस, कम इन,’’ डाक्टर बोले.

उस ने डाक्टर साहब से शालिनी के बारे में सारी जानकारी ली और उसे डिस्चार्ज करा लिया. अगले दिन जब रोहन शालिनी के कमरे में पहुंचा तो शालिनी वहां नहीं थी. उस ने नर्स से पूछा तो उस ने बताया कि कल कोई मेम साहब आई थीं. अपने को उस का दूर का रिश्तेदार बता रही थीं. वे ही उसे अपने साथ ले गई हैं.  रोहन ने बहुत खोजबीन की, परंतु कुछ हासिल न हुआ. उस ने बहुत हंगामा भी किया, किंतु कुछ हाथ न लगा तो उस ने डाक्टर को धमकी दी कि वह लापरवाही के तहत पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएगा परंतु डाक्टर ने उसे न जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि वह चुपचाप अपने घर चला गया.  रोहन घर पहुंचा तो उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. उस का तो यह हाल हो गया कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. खाली घर उसे काटने को दौड़ रहा था. एक ओर शालिनी जिस का कुछ पता न था तो दूसरी ओर रश्मि उस के पास जाने का उस में साहस न था.

एक डर यह भी रोहन को सता रहा था कि कहीं कोई शालिनी के बारे में न पूछ ले. शालिनी कहां गई कहां नहीं, उसे यह पता नहीं था. कहीं उस का कोई रिश्तेदार न आ धमके. रोहन अपने स्तर पर चुपचाप उस की खोजबीन में लगा था. इसी उधेड़बुन में वह चला जा रहा था. देखा सामने से रश्मि आ रही है. वह उस से बचना चाहता था कि वह सामने आ गई और उसे देख कर बोली, ‘‘कैसे हो रोहन?’’

‘‘ठीक हूं,’’ रोहन ने जवाब दिया.

‘‘और शालिनी कैसी है?’’

‘‘प्रश्न सुन कर रोहन को काटो तो खून नहीं. सारी बातें यहीं पूछोगी…

रश्मि चलो कहीं बैठ कर कौफी पीते हैं,’’ रोहन ने कहा.

‘‘इस की जरूरत नहीं,’’ रश्मि बोली.

‘‘रश्मि सच तो यह है कि शालिनी की तबीयत बहुत खराब थी. उसे मैं ने सिटी अस्पताल में दाखिल कराया था, किंतु पता नहीं उस की कौन सी दूर की रिश्तेदार वहां आई और मेरी गैरमौजूदगी में उसे अपने साथ ले गई.’’

‘‘फिर तुम ने ढूंढ़ा नहीं शालिनी को?’’

‘‘बहुत ढूंढ़ रहा हूं, परंतु कुछ पता नहीं चल रहा,’’ रोहन परेशान सा बोला.

‘‘अब क्या करोगे? पुलिस में रिपोर्ट करोगे?’’

‘‘यही तो नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘क्यों?’’ रश्मि ने पूछा.

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‘‘क्योंकि डाक्टर और उस की अनजानी रिश्तेदार मुझे धमकी दे रहे हैं कि वह मुझे दफा 420 के केस में फंसा देंगे, क्योंकि एक पत्नी  और बच्चों के होते हुए मैं ने दूसरी शादी की. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया… मुझे माफ कर दो रश्मि.’’  ‘‘रोहन तुम तो वह इनसान हो जो किसी का भी सगा नहीं हो सकता न मेरा और न शालिनी का. जानना चाहते हो शालिनी कहां है? वह मेरे पास है और धीरेधीरे स्वास्थ्य लाभ कर रही है. किंतु अब वह तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती. जैसे ही वह ठीक हो जाएगी वापस दिल्ली चली जाएगी… और तुम अपना स्वयं सोच लो.’’  रोहन कोई जवाब देता उस से पहले ही रश्मि उस की नजरों से दूर जा चुकी थी. उस के चेहरे पर संतोष की रेखा थी. जो धोखा रोहन ने उसे दिया था आज उस का जवाब उस ने दे दिया था.

Serial Story: धोखा (भाग-3)

‘‘क्या लाए हैं?’’ शालिनी ने पूछा.

‘‘सोचो क्या हो सकता है?’’

शालू मुसकरा कर बोली, ‘‘क्या होगा सिनेमा के टिकट होंगे या फिर होटल में डिनर का औफर.’’

‘‘नहीं डार्लिंग, हम कल 1 हफ्ते के लिए शिमला जा रहे हैं. क्या नजारा होगा तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं. चलो फटाफट पैकिंग कर लो.’’  दूसरे दिन जब वे शिमला पहुंचे तो लगभग सारे होटल बुक थे और फिर औटो वाले की सहायता से जो होटल मिला उसे देख कर रोहन को जबरदस्त झटका लगा. वही होटल और तो और वही कमरा जहां वह पहली बार रश्मि को ले कर आया था.

उसे सकते में देख कर शालिनी बोली, ‘‘क्या हुआ, आप कहां खो गए?’’

‘‘कुछ नहीं बस यों ही जरा सोच रहा था कि देखो वक्त भी क्याक्या खेल दिखाता है. अभी कुछ दिन की तो बात है. मैं किसी काम से शिमला में आया था और उस वक्त भी यही होटल और तो और यही कमरा था शालिनी,’’ रोहन ने आधा झूठ और आधा सच बोला. वह उसे यह कैसे बताता कि यहां इसी कमरे में उस ने और रश्मि ने अपना हनीमून मनाया था. झूठ तो उस ने कह दिया, किंतु उस का मन उखड़ गया था.  दूसरे दिन दोनों घूमने निकल गए. यह भी अजीब बात थी जिस रश्मि को छोड़ कर शालिनी के लिए वह बेताब था और उस के साथ शादी कर के उस के साथ हनीमून मनाने आया था उसे छोड़ कर हर जगह उसे रश्मि नजर आ रही थी. वह काफी परेशान हो रहा था. उस के अंदर यह बदलाव शालिनी भी महसूस कर रही थी, परंतु उस ने सोचा कि हो सकता है कोई औफिस की बात उसे परेशान कर रही हो. उस ने बहुत पूछा भी परंतु उस ने उसे टाल दिया.  आज उसे लगा कि 2-2 नावों पर सवार होना कितना कठिन है. होटल आ कर वह बिस्तर पर ढेर सा हो गया.

‘‘क्या बात है रोहन, काफी थकेथके से लग रहे हो और काफी परेशान भी?’’

रोहन ने कहा, ‘‘हां थक तो गया हूं… ऐसा करते हैं शालिनी वापस चलते हैं.’’

‘‘क्यों?’’

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‘‘बस, औफिस का एक जरूरी काम याद आ गया… जाना जरूरी है, फिर कभी प्रोग्राम बना लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ शालिनी बोली और फिर पैकिंग करने लगी. दूसरे दिन वापस आ गए. सब काम अपने ढर्रे पर चलने लगे.

एक दिन रोहन व शालिनी शौपिंग के लिए गए तो उन्होंने रितिका को देखा. वह अपनी सहेली के साथ स्कूटी पर जा रही थी. तभी एक बाइक सवार ने उस की स्कूटी में टक्कर मार दी और वे दोनों गिर पड़ीं. रोहन और शालिनी उस की तरफ दौड़े. उसे उठाने के लिए शालिनी ने हाथ बढ़ाया तो उस ने बड़ी नफरत से उस का हाथ झटक दिया.

शालिनी ने कहा, ‘‘रितिका, तुम ठीक तो हो?’’

‘‘तुम तो ठीक हो… मैं ठीक हूं या नहीं इस से तुम्हें क्या फर्क पड़ता है,’’ रितिका ने गुस्से और नफरत से कहा.

‘‘ऐसा न कहो बेटा… मैं तुम्हारी मां के समान हूं,’’ शालिनी ने कुछ मायूसी से कहा.

‘‘आप जानती हैं कि मां क्या होती है? कभी आप ने जाना मां को? मां तो बस देना ही जानती है और आप ने तो बस छीनना ही जाना है… हम से हमारे पापा को छीना, हमारे घर की सुखशांति छीनी, मेरी मां का सुहाग छीना, आप क्या जाने मां और मां के त्याग को.’’  ‘‘रितिका क्या तुम ने बात करने की तमीज छोड़ दी,’’ रोहन ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘पापा, मैं ने तो सिर्फ बात करने की तमीज छोड़ी है, किंतु आप ने तो हम सब को छोड़ दिया,’’ और सिसकते हुए रितिका अपने जख्म को बिना देखे चली गई.  दोनों का मूड खराब हो गया था. दोनों वापस घर आ गए. दूसरे दिन रोहन अपने  औफिस चला गया. शालिनी के कानों में रितिका के कहे शब्द हथौड़े की तरह पड़ रहे थे. ‘जानती हो मां क्या होती है? तुम ने तो बस छीना है… तुम ने मेरे पापा को छीना है, हमारे घर की सुखशांति छीनी है.’

‘‘छीनी है… छीनी है… छीनी है… हां मैं ने अपनी सहेली का घर उजाड़ा है… उसे बरबाद कर दिया है, मैं दोषी हूं,’’ एकाएक शालिनी अपना सिर पकड़ कर जोरजोर से चिल्लाई.

तभी अचानक रोहन आ गया. बोला, ‘‘क्या हुआ शालू, तुम चिल्ला क्यों रही थीं? क्यों परेशान लग रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं बस यों ही कुछ पुरानी यादें याद हो आई थीं. मगर तुम कैसे आ गए?’’

‘‘वे अपने कुछ जरूरी कागजात घर भूल गया था… शालिनी लिफाफे में कुछ कागज थे… तुम ने देखे क्या?’’

‘‘नहीं तो? कहां रखे थे?’’

‘‘अलमारी में थे. जरा देखो तो,’’ रोहन ने कहा और फिर सोफे पर बैठ गया. शालिनी बैडरूम की तरफ थी. थोड़ी दूर ही चली थी कि गिर पड़ी.

‘‘अरे, क्या हुआ?’’ रोहन तेजी से उस की तरफ लपका. शालिनी को उठा कर बैड पर लिटाया और पानी ला कर उस के चेहरे पर छींटे मारने लगा. शालिनी ने धीरे से आंखें खोलीं.

‘‘क्या हुआ शालू? तबीयत खराब थी तो मुझे बताया होता. मैं पहले तुम्हें डाक्टर के पास ले जाता. खैर, कोई बात नहीं, अब चलते हैं.’’

‘‘नहीं रोहन, मुझे नहीं जाना डाक्टर के पास. कोई खास बात नहीं है… मैं ठीक हूं.’’

रोहन उस का माथा सहलाने लगा, ‘‘देखो शालिनी, लगता है अकेलेपन की वजह से तुम्हारी तबीयत खराब हो गई है… कुछ व्यस्त रहा करो.’’

‘‘रोहन मैं ने बहुत गलत काम किया है न… बहुत बड़ी गलती की है.’’

‘‘कौन सी गलती शालू?’’

‘‘मैं ने अपनी सहेली का पति छीना… उस का घर उजाड़ा दिया… उस की हाय लगेगी मुझे.’’

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‘‘हम ने कोई गलत काम नहीं किया है शालू… हम ने प्यार किया है… दोनों एकसाथ जीवन गुजारना चाहते हैं… शादी की है क्या गलत किया है? मैं ने तो रश्मि को भी कहा था कि वह हमारे साथ रहे. क्या 2 पत्नियां एकसाथ नहीं रह सकतीं और यदि नहीं तो हम क्या कर सकते हैं? मैं तो उस का खर्चा भी उठाने को तैयार था, किंतु वह ज्यादा स्वाभिमानी बनना चाहती है तो उस में हमारा क्या दोष?’’  उस के बाद रोहन उसे समझाबुझा कर वापस अपने औफिस चला गया. शालिनी ने एक नौवल उठाया, परंतु उस का मन फिर किसी भी काम में नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन फिर किसी भी काम नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन भी बारबार उसे ही दोषी मान रहा था. जैसेतैसे शाम हुई और रोहन औफिस से आ गया. उस ने चाय बनाई और दोनों अपनाअपना कप ले कर टैरेस में आ गए.

‘‘क्या बात है, आज कुछ परेशान दिखाई दे रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही मन नहीं लग रहा.’’

‘‘चलो तो आज कहीं घूमफिर आते हैं… तुम्हारा मन भी बहल जाएगा,’’ और फिर दोनों तैयार हो कर बाहर निकल गए. पास ही एक पार्क था. दोनों जा कर नर्म घास पर बैठ गए.

अभी कुछ देर ही हुई थी उन्हें वहां बैठे तभी एक तरफ कुछ शोर सा हुआ.  उत्सुकतावश दोनों भी वहां पहुंच गए. बड़ा ही अजीब नजारा था. एक औरत अपने पति के साथ मारपीट कर रही थी. उन्होंने कारण पूछा तो पता चला कि उस ने अपने पति को दूसरी औरत के साथ पकड़ लिया था. यह कहने को तो एक साधारण बात थी, परंतु इस बात ने शालिनी के मनमस्तिष्क पर उलटा प्रभाव डाला. उस के दिमाग में रश्मि का चेहरा घूम गया. उसे और गिल्टी महसूस होने लगी.  अब यह रोज का नियम हो गया था कि शालिनी चुपचाप अपने काम निबटा कर उदास सी रहती. उस की इस हालत से रोहन परेशान रहने लगा. जो जीवन उन्होंने चुना था वह उन्हें बजाय खुशी देने के परेशानी देने लगा और हद तो तब हुई जब शालिनी न सिर्फ डिप्रैशन में, बल्कि आक्रामक भी हो गई. छोटीछोटी बातों पर नाराज हो जाना, गुस्से में कोई भी चीज उठा कर फेंक देना उस का नियम बन गया.  एक दिन तो छोटी सी कहासुनी पर शालिनी ने कप उठा कर रोहन को दे मारा. तब रोहन को लगा कि अब कुछ ठीक नहीं है. वह उसे ले कर न्यूरोलौजिस्ट के पास गया.  डाक्टर ने शालिनी की जांच कर के कहा, ‘‘रोहन, शालिनी के दिमाग को कोई सदमा लगा है, जिस की वजह से इन की यह दशा हुई है,’’ फिर डाक्टर ने कुछ दवाएं लिखीं और कहा, ‘‘इन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखने की कोशिश करें.’’

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Serial Story: धोखा (भाग-1)

हमेशाखुद भी खुश रहने वाली तथा औरों को भी खुश रखने वाली रश्मि को न जाने आजकल क्या हुआ है कि हमेशा खोईखोई सी रहती, पूछने पर टाल जाती.  आखिर जब मुझ से रहा न गया तो एक दिन मैं उसे पकड़ कर बैठ गई और फिर पूछा, ‘‘रश्मि, आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं, बता न आखिर हुआ क्या है?’’

‘‘कुछ भी नहीं कविता, तू तो यों ही परेशान हो रही है.’’

‘‘कुछ तो हुआ है, तू बताती क्यों नहीं? देख आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं.’’

‘‘जाने भी दे… अपने लिए मैं किसी को दुखी नहीं करना चाहती,’’ रश्मि ने कुछ उदास स्वर में कहा.

‘‘रश्मि, तू मुझे अब अपना नहीं मानती, ऐसा लगता है. देख हमारी दोस्ती आज की नहीं है और मरते दम तक हम दोस्त रहेंगे.’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘देख अपना दुख मुझे नहीं बताएगी तो किसे बताएगी?’’ उस के कंधे पर हाथ रखते हुए मैं ने कहा.

‘‘हां, तुझ से तो बताना पड़ेगा वरना मेरा दम घुट जाएगा,’’ रश्मि बोली, ‘‘तू तो जानती है कि क्या कुछ नहीं गुजरा मुझ पर परंतु वक्त का खेल समझ कर सब स्वीकार करती रही. रोहन 2 बच्चे दे कर मुंह मोड़ गया और दूसरी शादी कर ली. मैं ने सह लिया. सब रिश्तेदार 1-1 कर के चले गए. किसी ने भी यह नहीं सोचा कि मैं अपने 2 बच्चों के साथ कैसे जीऊंगी? क्या करूंगी? वह तो भला हो नेहा का जिन्होंने अपने पति से कह कर मुझे यह नौकरी दिलवा दी और मेरे घर की गाड़ी चल पड़ी.’’

‘‘यह तो मैं भी जानती हूं और तेरे साहस की मिसाल मैं ही नहीं, बल्कि जितने भी परिचित हैं, सब देते हैं,’’ मैं ने उसे सहारा देते हुए कहा, ‘‘पर अब जब सब कुछ ठीक हो गया, फिर तेरी उदासी की बात समझ में नहीं आ रही. इतना सब कुछ सहते हुए भी तूने अपना जीवन बड़ी जिंदादिली से जीया ही नहीं, उस के हर पल को महसूस भी किया,’’ मैं ने कहा, ‘‘अपने बच्चों के कैरियर को बहुत ऊपर पहुंचाया. यही नहीं कालोनी में अच्छी इज्जत भी कमाई. अब तो सब ठीक है, फिर क्या बात है?’’

‘‘तू ठीक कह रही है पर एक बात तो है न कि कब्र का हाल मुरदा ही जानता है,’’ उस ने कुछ हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा ऐसा क्या है? देख बहुत देर हो गई अब रुक मत.’’

रश्मि खयालों में खो गई. मानो उस का जीवन उस के सामने चलचित्र की तरह घूम रहा हो…

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रोहन का उस की जिंदगी में आना… वह उस की तरफ यों खिंचती चली गई जैसे पतंग के साथ डोर. दुनिया के रिवाज सब उस के लिए बेमानी हो गए थे. मम्मीपापा ने कितना डांटा था. जमाने की ऊंचनीच सब समझाई थी. पर वह तो जैसे दीवानी हो गई थी जैसे ही मोबाइल की घंटी बजती बस उसे रोहन ही दिखाई देता और वह पागलों की तरह दौड़ी चली जाती. पापा गुस्सा होते, मम्मी अपना वास्ता देतीं, पर उस के लिए सब बेकार था सिवा रोहन के.  एक दिन जब वह रोहन से मिलने जा रही थी तो पापा ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम नहीं मानोगी… क्या है उस आवारा लफंगे में जो तुम्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा?’’

‘‘पापा मैं उस से बहुत प्यार करती हूं और उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘बहुत पछताओगी तुम… बेटा मान जाओ वह अच्छा लड़का नहीं है,’’ पापा ने समझाते हुए कहा.

‘‘पापा वह मेरी जिंदगी है,’’ रश्मि जिद करते हुए बोली.

‘‘तो खत्म कर दो अपनी जिंदगी,’’ झल्लाते हुए पापा बोले.

‘‘क्या कह रहे हो जी? कुछ भी हो रश्मि हमारी इकलौती बेटी है,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘उसी का तो फायदा उठा रही है… पर जीते जी कैसे कुएं में धकेल दें अपनी बेटी को?’’

‘‘पापा कुछ भी हो मैं रोहन से ही शादी करूंगी.’’

‘‘तो फिर अपना चेहरा हमें कभी न दिखाना,’’ पापा क्रोध से बोले.

‘‘ऐसा मत कहो मैं अपनी बेटी के बिना नहीं रह सकूंगी,’’ मम्मी ने सिसकते हुए कहा.

‘‘चुप रहो. तुम्हारे ही लाड़ का नतीजा हमें भुगतना पड़ रहा है,’’ पापा गरजते हुए बोले. और रश्मि सब को अनदेखा कर रोहन के साथ चली गई. बाद में पता चला कि दोनों ने शादी कर ली है और झांसी में बस गए हैं. भानू प्रताप ने अपने सीने पर पत्थर रख लिया परंतु उन की पत्नी चंद्रिका बेटी की याद में बीमार पड़ गईं और एक दिन उस की याद को अपने साथ लिए दुनिया से विदा हो गईं.   उधर रश्मि रोहन के साथ बहुत खुश थी. लेकिन जब उसे अपने मातापिता की  याद आती तो उदास हो जाती. शुरूशुरू में रोहन उस का बहुत ध्यान रखता था. समय के साथ वह 1 बेटी और 1 बेटे की मां बन गई.

कुछ दिनों से रश्मि नोट कर रही थी कि रोहन अब उस का उतना ध्यान नहीं रखता जितना पहले रखता था. कुछ दिन तो इसे हलके में लिया. सोचा शायद काम का बोझ ज्यादा है, परंतु फिर यह रोज का नियम बन गया.

‘‘रोहन, आजकल तुम बहुत व्यस्त रहने लगे हो,’’ रश्मि ने कुछ उदास हो कर कहा.

‘‘भई घर चलाना है तो काम तो करना ही पड़ेगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘काम तो पहले भी होता था, पर आजकल कुछ ज्यादा हो रहा है क्या?’’

रोहन टाल कर चला गया. पर आज रश्मि ने इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लिया. अब तो रात को भी देर से आना रोहन का नियम बन गया था. रश्मि पूछने की कोशिश करती तो झगड़ा होने लगता.  उस दिन तो हद ही हो गई… उस की सहेली आई थी. मुसकराते हुए रश्मि ने पहले तो परिचय कराया, ‘‘रोहन, यह मेरी सहेली है. शिमला से आई है. यहां इसे कुछ काम है. करीब हफ्ता भर रहेगी.’’

‘‘रश्मि यह मेरा घर है कोई धर्मशाला नहीं जो कोई भी यहां आ कर रहे.’’

रश्मि देखती रह गई.

‘‘रोहनजी आप चिंता न करें मैं मैनेज कर लूंगी,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रहा था,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा.  सब ने इसे मजाक में ले लिया, पर रश्मि नहीं जानती थी कि उस ने अपने लिए कितनी

बड़ी खाई खोद ली है. जो रोहन रोज देर रात आता था, वह शाम की चाय घर में ही पीने लगा. शुरू में तो रश्मि खुश हुई. पर फिर धीरेधीरे उसे समझ में आने लगा कि रोहन उस के लिए नहीं बल्कि शालिनी के लिए जल्दी आता है. चाय पीने के बाद दोनों ही किसी न किसी बहाने निकल जाते. कभी बाहर से खाना खा कर आते कभी उसे आदेश दे कर बनवाते.

‘‘मम्मी, ये आंटी और कितने दिन रहने वाली हैं?’’ एक दिन रश्मि के बेटे शलभ ने पूछा.

‘‘क्यों बेटे, आंटी से तुम्हें क्या तकलीफ है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘मम्मी जब देखो आप आंटी की सेवा में लगी रहती हो जैसे वे कोई नवाब हों,’’ शलभ ने कुछ चिढ़ते हुए कहा.

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‘‘हां मम्मी और वे तो कोई काम नहीं करतीं. बस पापा से बातें करती रहती हैं जैसे वे ही इस घर की मालिक हों.’’

‘‘बेटा ऐसा नहीं कहते. वे मेहमान हैं, उन्हें कुछ काम है यहां. जब हो जाएगा तो चली जाएंगी,’’ रश्मि ने बच्चों को तो दिलासा दे दिया, किंतु अपने को न समझा सकी. सारी रात बड़ी बेचैनी में काटी और फैसला किया कि सुबह शालिनी और रोहन से बात करेगी.

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Serial Story: कल पति आज पत्नी (भाग-2)

पूर्व कथा

वैद्यराज दीनानाथ शास्त्री की इकलौती संतान कमलदीप अपनी लड़कियों जैसी हरकतों के कारण उन की चिंता का विषय बना हुआ था. पढ़ाई में तो उस की दिलचस्पी रहती नहीं थी, अलबत्ता नाटकनौटंकियों में वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. जलसों में वह कृष्ण की रासलीला में राधा बनता तो अपने साथियों के बीच सिनेमा की नायिकाओं सा अभिनय करता. बेटे के रंगढंग वैद्यजी और उन की पत्नी सुशीला देवी को अजीब लगते. उसे सुधारने के लिए बड़े जतन कर उन्होंने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कराने अमेरिका भेज दिया. कोर्स पूरा करने के बाद कमलदीप वहीं नौकरी करने लगा और कुछ समय पहले उस ने फोन पर बताया कि उस ने वहां शादी कर ली है. अब वह एक कौन्फ्रैंस में भाग लेने एक हफ्ते के लिए भारत आ रहा था. वैद्यजी पत्नी सहित उसे लेने एअरपोर्ट पहुंच गए, परंतु जब बेटा आया तो पहला वज्रपात तो उस की किन्नरों जैसी चाल, रंगढंग व हुलिया देख कर हुआ और दूसरा यह सुन कर कि बेटा बहू नहीं लाया बल्कि स्वयं किसी की पत्नी बन गया है यानी उस ने समलैंगिक विवाह किया है. कैलिफोर्निया के कानून के अनुसार 6 महीने वह अपने पार्टनर का पति होता है और 6 महीने पत्नी. यह सुन वैद्यजी और सुशीला देवी बुरी तरह बौखला गए.

अब आगे…

भारतीय संस्कृति और अपनी मर्यादा के लिए जब वैद्यजी से नहीं रहा गया तो उन्होंने आव देखा न ताव और बेटे के गाल पर जोर का तमाचा जड़ दिया. ‘व्हाई डिड यू हिट मी’ के साथ कमलदीप जोर से चीखा. चीख सुन कर जैक भी आवेश में बोला कि ‘‘हे मैन, हाऊ डेयर यू टच माई वाइफ एंड व्हाई दिस लेडी इज शाउटिंग एट हिम? यू हैव नो राइट टु स्कोल्ड हिम ऐंड बीट हिम, ही इज माय वाइफ.’’ इसी के साथ वह जोरजोर से चिल्लाने लगा.

शोरगुल में वहां भीड़ इकट्ठा हो गई. भीड़ देख कर एअरपोर्ट सिक्योरिटी प्रोटैक्शन फोर्स की पुलिस भी आ गई. इंस्पैक्टर ने झटपट कार्यवाही शुरू कर दी. भीड़ को तितरबितर किया तो बस 4 ही लोग बचे थे जिन के बीच झगड़ा था.

पूछताछ करने पर पता चला कि एक पक्ष मातापिता हैं जो अपने लड़के को डांट रहे हैं और अपने साथ ले जाना चाहते हैं. दूसरा पक्ष है 2 लड़के, जो विदेश से आए हैं. एक लड़का भारतीय, जिस के माता- पिता मौजूद हैं और दूसरा लड़का विदेशी, जो पहले लड़के को अपनी पत्नी बता रहा है और मातापिता पर जबरदस्ती उस को अपने साथ ले जाने का यानी अपहरण का आरोप लगा रहा है जबकि मातापिता का कहना है कि विदेशी लड़का बहलाफुसला कर उन के बेटे को अपनी पत्नी होने का दावा कर के उसे अपने साथ चलने को मजबूर कर रहा है और उन के बेटे का अपहरण करना चाहता है. बेटा है कि चुप खड़ा, कुछ बोलता ही नहीं.  पुलिस का मानना था कि किसी की पत्नी को जबरदस्ती पति से अलग करना और ले जाना अपहरण (किडनैपिंग) के अंतर्गत संगीन अपराध है. अत: सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और दोनों पक्षों को अलगअलग कोठरी में बंद कर दिया गया. वैद्यजी और पंडिताइन को एक कोठरी में और दोनों लड़कों को अलगअलग दूसरी तथा तीसरी कोठरी में. रात ढल रही थी, बोल दिया गया कि सुबह 10 बजे डीसीपी साहब के सामने सभी को पेश किया जाएगा.

पूछताछ के दौरान बताया गया कि भारतीय कानून की धारा 377 के अधीन एक ही सैक्स के 2 वयस्क चाहे वे 2 लड़के या 2 लड़कियां हों, आपस में संभोग नहीं कर सकते हैं. जैक ने अपना पासपोर्ट और मैरिज सर्टिफिकेट दिखाया और कहा कि हम लोगों ने कैलिफोर्निया में शादी की है और वहां का कानून इस शादी को पूर्णत: मान्यता देता है और वे लोग भारतीय कानून के अंतर्गत नहीं आते.

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जैक का पलड़ा भारी था. डीसीपी ने कमलदीप का अलग से इंटरव्यू लिया, डांटा भी, समझाया भी कि क्यों भारतीय संस्कृति की धज्जियां उड़ा रहे हो? लेकिन उस ने एक न मानी. डीसीपी साहब मजबूर थे. मातापिता को बुला कर साफसाफ बता दिया कि इन दोनों लड़कों पर भारतीय कानून लागू नहीं होता और भारतीय पुलिस को विदेशी नागरिकों को उन के देश के कानून के तहत सुरक्षा देना जरूरी है. अत: वे या तो राजीनामा लिख कर और माफी मांगते हुए अपने घर वापस जाएं अन्यथा सभी को अदालत में  पेश कर के मुकदमा चलाया जाएगा.

मातापिता ने आपस में सलाह की कि जब अपना ही सिक्का खोटा है तो दूसरे का क्या दोष और माफीनामा लिख बेटे को उस के हाल पर छोड़ दिया. लौट आए वापस अपने घर, अपना सा मुंह ले कर, मातम सा माहौल बन गया घर में. शाम के वक्त अपने समाज के कुछ खास मिलने वालों को बेटेबहू से मिलाने के लिए न्योता भी दे चुके थे पर सभी को यह कह कर टाला कि उन का कार्यक्रम रद्द हो गया है. किसी जरूरी काम से उन्हें रुकना पड़ा और वे लोग नहीं आ पाए.

पहली बार वैद्यजी को लगा कि उन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए सचमुच झूठ बोला, झूठ का सहारा लिया. कितना व्याकुल हो रहा था उन का अंतर्मन कि एक सच को छिपाने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ा.

वैसे तो कई मामलों में कई बार झूठ बोलना पड़ता है लेकिन आज का झूठ उन से सहन नहीं हो पा रहा था. बेटे के प्यार और लगाव के कारण अंतर्मन में एक द्वंद्व सा चल रहा था. मातापिता का प्यार रोष में परिवर्तित हो रहा था. एक तरफ था मां का ममत्व और दूसरी तरफ था पिता का प्यार, जो अपने बेटे को अपने से ज्यादा उन्नत तथा प्रगतिशील इंसान के रूप में देखना चाहते थे जिस में खुद की योग्यता के सहारे, अपनेआप से दुनिया में हर तरह की विपदाओं को पार करते हुए समाज में अपना एक अस्तित्व बनाने की क्षमता हो. इसी परेशानी से जूझते हुए मातापिता रात भर सो नहीं पाए.

दोनों सोचते रहे, किसी के मरने पर सिर्फ मौत का ही गम होता है, मगर इज्जत तो नहीं जाती. यहां तो इज्जत का, अपनी संस्कृति का, अपनी मानमर्यादा का बखेड़ा खड़ा हुआ है. अगर शहर में किसी को भी पता चले तो समाज में वे क्या मुंह दिखाएंगे? क्या बहाना करें, कैसे टालें इस बात को, कैसे बचाएं अपनी इज्जत को? बस, यही सोचतेसोचते सवेरा हो गया.

सुबह की दिनचर्या शुरू हुई और दोनों के लिए सुबह की चाय तथा आज के ताजा अखबारों का पुलिंदा बरामदे में चटाई पर रखा था. पंडितजी आ कर बैठ गए. चश्मा लगाया और चाय का प्याला उठाया. अखबारों का पुलिंदा खोलते हुए मुख्य पेज की हैडलाइन पर नजर पड़ी कि धारा 377 के खिलाफ देश के सभी महानगरों में खुद को एल.जी.बी.टी. मानने वाले लोग एकजुट हो कर विशाल प्रदर्शन के साथ रैली निकाल रहे हैं और कल 28 जून, रविवार को भारत की राजधानी दिल्ली में एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया जा रहा है जिस में एल.जी.बी.टी. के सभी सदस्य देश के विभिन्न शहरों तथा विदेशों से भारी संख्या में एकत्रित हो कर विशाल रैली का आयोजन कर रहे हैं. यह रैली इंडिया गेट से चल कर राजपथ, जनपथ होते हुए संसद मार्ग स्थित जंतरमंतर पर आएगी और यहां से संसद भवन के सामने प्रदर्शन होगा और मांगें रखी जाएंगी.  इस ऐतिहासिक रैली का नेतृत्व कैलिफोर्निया से आई युवा जोड़ी करेगी. के.डी. जोकि कैलिफोर्निया में भारतीय प्रवासी हैं और उन के पति जैक जो स्वीडन से हैं. दोनों ने कैलिफोर्निया में शादी की है और पतिपत्नी के रूप में रह रहे हैं.

काफी देर तक पंडितजी अखबारों को उलटपलट कर देखते रहे. तभी पंडिताइन भी आ पहुंचीं और बोलीं कि आज के अखबार में ऐसा क्या ढूंढ़ रहे हैं कि आप को इतनी आवाजें दीं पर आप ने कोई जवाब नहीं दिया.

थोड़ा उत्तेजित हो कर वैद्यजी बोले, ‘‘देखो, तुम्हारा बेटा क्या गुल खिला रहा है. पत्नी बन कर लौटा है विदेश से अपने पति के साथ. बस, इसी का ढिंढोरा पीटने आया है यहां. कल दिल्ली में इन दोनों के नेतृत्व में एक विशाल रैली का आयोजन किया जा रहा है. इन की मांग है कि 2 वयस्कों के बीच चाहे दोनों लड़के हों या लड़कियां, आपस में यौन संबंधों को तथा शादी करने के अधिकारों को मान्यता देनी होगी और धारा 377 को कानून की किताब से हटाना होगा. इन का मानना है कि 2 वयस्कों के बीच किसी भी प्रकार की सैक्स क्रियाएं तथा यौन संबंधों के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए.

‘‘2 जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय में इसी मामले में इन की याचिका पर सुनवाई होगी, जिस के लिए देश के मान्यताप्राप्त वकीलों को इन के हक में पैरवी करने के लिए बुलाया जा रहा है. इन का मानना है कि भारत को अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारते हुए दुनिया के अग्रसर देशों की पंक्ति में खड़े हो कर, दुनिया में अपनी एक नई पहचान बनाते हुए 100 साल से ज्यादा पुरानी कानूनी धारा 377 को मिटाना होगा.

‘‘आधुनिक युग में देश की युवा पीढ़ी पर सैक्स क्रियाएं तथा आपसी यौन संबंधों को ले कर किसी प्रकार के भय के दायरे में रहना बहुत भारी मानसिक दबाव है और यह मानव अधिकार के विरुद्ध भी है तथा देश की उन्नति के लिए बहुत बड़ी रुकावट है. आज की युवा पीढ़ी को चाहिए पूर्ण स्वतंत्रता अपने विचारों की, सोच की, काम करने की, जीने की और आगे बढ़ने की.’’

वैद्यजी घूरती निगाहों से पंडिताइन को देखते हुए आगे बोले, ‘‘देख लो, अपने लाड़ले को. हम ने तो उसे अमेरिका पढ़ने के लिए भेजा था कि यहां आ कर अपना कुछ बड़ा काम करेगा. बड़ा आदमी बनेगा, कुछ नाम रोशन करेगा और हमारा नाम भी रोशन होगा. हां, बड़ा आदमी तो नहीं बन सका, वहां जा कर पत्नी बन कर जरूर आ गया और नाम तो रोशन कर ही रहा है, सारे अखबारों में उस की चर्चा छपी है.’’

सुबहशाम खाली समय में यही चर्चा   का एक मुद्दा था. तरहतरह के  सवाल भी उठते रहे और सारा इतिहास भी चर्चित होता रहा. धीरेधीरे दिमाग से रूढि़वादिता के परदे उठने शुरू हुए जब चर्चा चली कि महाराज दशरथ की 3 रानियां थीं, द्रौपदी के 5 पति, कृष्ण की अनेक प्रेमिकाएं. शादी तो की रुक्मिणी से और अपने साथ रखा राधा को. सारी दुनिया के सामने खुलेआम आज भी चर्चा राधा और कृष्ण की होती है. रुक्मिणी और उन के बच्चों के बारे में किस को कितना मालूम?

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वात्स्यायन का कामसूत्र, अजंताएलोरा की गुफाओं में विभिन्न मुद्राओं में सामूहिक संभोग की विभिन्न क्रियाओं का खुलेआम जनता के लिए सचित्र प्रदर्शन. वेश्यावृत्ति का प्रचलन तो सदियों से चला आ रहा है. वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली, चित्रलेखा, वसंतसेना…आदि न जाने कितने ही नाम लीजिए, जिन्हें राजनर्तकियों का सम्मान प्राप्त था.

समाज तो जनता का समूह है. समाज के कर्ताधर्ता समाज के माननीय कर्णधार जब अपनी हवस मिटाने के लिए किसी भी तरह का कोई असामाजिक काम कर बैठते हैं तो उन के विरुद्ध कौन आवाज उठाने की हिम्मत करे? बल्कि समाज के लिए वही एक नया प्रचलन शुरू हो जाता है और बस, धीरेधीरे समाज के लोग भी उन्हीं पदचिह्नों पर चलते हुए इसे सामाजिक पद्धति का हिस्सा मानने लगते हैं.

यहां तक कि पुराने जमींदार तो किसी मनचाही स्त्री को उठवा लेते थे और बाद में सलामती के साथ उसे घर भेज देते थे. घर वालों को थोड़ा सा मेहनताना दे देते थे और यदि कहीं किसी ने धौंस दिखाई तो तबाही का रास्ता अपना लेते थे. पहले जमाने में क्याक्या जुल्म नहीं होते थे. मजाल थी किसी की कि परदे से बाहर निकले और बोल दे किसी के सामने. भेड़बकरियों की तरह औरतों से भरे होते थे राजामहाराजाओं तथा रईसों के हरम. कानून भी तो जनता के लिए कम, हुकूमत के लिए ज्यादा काम करता है.

गंभीर हो गए दोनों कि बातें कहां से चलीं और क्या मोड़ ले बैठीं. ऐसी ही होती हैं बातें. ज्यादा बातें बस, बाल की खाल. कहीं से शुरू और पता नहीं किसकिस को लपेट लें. खैर, सोचविचार और सभी बातों का निष्कर्ष यही निकला कि आज जो भी कुछ हो रहा है, कोई नया तो है नहीं. ये सब क्रियाएं तो सदियों से चली आ रही हैं. बस, समय और जरूरत के अनुसार तरीके बदल रहे हैं. इसी तरह सामाजिक प्रचलन भी बदलता रहता है.

रोजाना अखबारों में तरहतरह के लेख छपने लगे. जैसे किसी सामाजिक बदलाव के लिए एक अभियान चालू हो गया हो. अलगअलग अखबारों में विज्ञापन तथा समीक्षाएं आती रहीं. वीमन लिबरेशन, फ्री सैक्स, लिव इन रिलेशन- शिप, यूनिसैक्स सैलून तथा ड्रैसेज, गे टूरिज्म, गे-कल्चर आदि. 2 जुलाई को सभी अखबारों में रेडियो और टैलीविजन के लगभग सभी चैनलों पर दिल्ली उच्च न्यायालय के एल.जी.बी.टी. के हक में फैसले की समीक्षा के अलावा इस पर पक्षविपक्ष के वादविवाद भी चलते रहे.

दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार अब किसी भी प्रकार की सैक्स क्रियाएं कानून के दायरे से बाहर हैं. अगले दिन 3 जुलाई के अखबारों में एक ही चर्चा थी. देश के सभी महानगरों में एल.जी.बी.टी. के सदस्य और उन के समर्थक उल्लास प्रदर्शित करते रहे. जगहजगह जुलूस निकाले गए.

एल.जी.बी.टी. की अलगअलग शाखाओं में रात भर उन के सदस्य अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाते रहे. सब से ज्यादा चर्चा का विषय था कमलदीप और उस का पति जैक. सभी अखबारों में इन दोनों के दांपत्य जीवन के बारे में लेख प्रकाशित हुए. इस युवा जोड़ी को सब की सहमति से समाज के इस ऐतिहासिक बदलाव का हीरो मान लिया गया. हर चैनल पर उन दोनों का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था. इन का कहना है कि दुनियाभर के ज्यादातर विकसित देशों ने 2 वयस्कों को चाहे वे दोनों लड़के हों या लड़कियां, आपस में मरजी से साथ रहने की और शादी करने की मान्यता दी हुई है. अत: हमारा अभियान अभी पूरा नहीं हुआ. इस के लिए देश के ब्याहशादी के कानून में बदलाव जरूरी है. अत: इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए एल.जी.बी.टी. के कार्यकर्ता एक घोषणापत्र जारी करेंगे जिस की ड्राफ्ंिटग की जा रही है और शीघ्र ही इस के अनुसार कार्यवाही चालू की जाएगी. सामने बैठे एक चैनल के प्रतिनिधि ने आगे के कार्यक्रम तथा कार्ययोजना पर उन से संक्षिप्त में प्रकाश डालने का आग्रह किया.  कमलदीप और जैक ने एकदूसरे के साथ भाषा तथा विचारों का तालमेल जोड़ते हुए अपनी संस्था की कार्यप्रणाली की समीक्षा कुछ इस प्रकार की :

एल.जी.बी.टी. का पहला कार्यक्रम है, जन जागरूकता अभियान. सभी एल.जी.बी.टी. के सदस्य अपनेअपने क्षेत्रों में सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देते हुए जनता के हृदय से रूढि़वादिता का सामाजिक भय समाप्त करेंगे.

दूसरा प्रोग्राम है, दहेज प्रथा की समाप्ति. सभी महानगरों में एल.जी.बी.टी. हौस्टल बनाए जाएंगे जहां शादी से पहले लिव इन रिलेशन के तहत बाहर से आए लड़के और लड़कियों को अपने मनचाहे साथी के साथ रहने की सुविधा होगी. इस तरह सामाजिक जानकारी तथा आपस में विचारों का आदानप्रदान करते हुए अपने जीवनसाथी का वे स्वयं ही चुनाव कर सकेंगे, बिना किसी रोकटोक अथवा दानदहेज के. संस्था के द्वारा कौंट्रैक्चुअल शादी का प्रयोजन तथा सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी.

तीसरा उद्देश्य है, तलाक के मामलों में कटौती. युवाओं के साथसाथ रहने के बाद भी शादी के गठबंधन को स्वीकार या अस्वीकार करने की छूट. कौंट्रैक्चुअल शादी के प्रचलन से अदालतों के फैसले का जीवन भर इंतजार नहीं करना होगा जिस से वकीलों की भारी फीस तथा जीवन का एक अमूल्य भाग नष्ट होने से रोका जा सकेगा. साथ ही संस्था की काउंसलिंग शाखा द्वारा आपस में मेलजोल व समन्वय का माहौल बना रहेगा. युवा पीढ़ी अपने साथ कामकाज तथा कैरियर की ओर ज्यादा ध्यान देगी. उस पर मानसिक दबाव कम होने से देश की कार्यप्रणाली का विकास होगा.

चौथा उद्देश्य है, हर बड़े शहर में एल.जी.बी.टी. क्लबों की स्थाप. यहां पर आधुनिक सैक्स शिक्षा का प्रावधान होगा. सुरक्षित सैक्स तथा अलगअलग सैक्स क्रियाओं के बारे में वीडियो कौन्फ्रैंस के माध्यम से शिक्षा दी जाएगी.

एड्स या एचआईवी जैसी घातक बीमारियों की रोकथाम तथा एम.एम. सैक्स, डब्ल्यू.एम. सैक्स, डब्ल्यूडब्ल्यू सैक्स, बाई सैक्स और ट्रांस सैक्स के अलावा पी.वी. सैक्स, ऐनल सैक्स, ओरल सैक्स तथा रौबोटिक एवं आर्टीफिशियली असिस्टेड सैक्स आदि के बारे में भी ज्ञानार्जन की सुविधा होगी. इस के साथसाथ हमारे हैड औफिस में एक विंग की स्थापना करते हुए कामसूत्र जैसे ग्रंथों को अपग्रेड किया जाएगा. इस अपग्रेडेशन से आधुनिक सैक्स क्रियाओं का सचित्र विवरण सामने आएगा.

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हमारा पांचवां उद्देश्य, डी.आई.एन.के. यानी ‘डबल इनकम एंड नो किड’ को बढ़ावा देते हुए देश की बढ़ती जनसंख्या की रोकथाम तथा भुखमरी की समाप्ति. ‘फ्री सैक्स’, ‘लिव इन रिलेशनशिप’, ‘गे’ तथा ‘लेस्बियन’ विवाह आदि के प्रचलन से प्राकृतिक प्रजनन में कमी आ जाएगी. ऐसी युवा जोडि़यों की आमदनी दोगुनी होगी और बच्चों का भार भी उन के ऊपर नहीं होगा.

फिर भी ऐसी युवा जोड़ी अगर शादी के बाद या बिना शादी के भी अपना घर बसाने के लिए बच्चे चाहेंगी तो वे अनाथ आश्रमों से अथवा भिखारियों के बच्चों को गोद ले सकेंगे, जिस से गरीब परिवारों का आर्थिक संकट दूर होगा और बिना मांबाप के बच्चों का सही ढंग से लालनपालन तथा उन की पढ़ाईलिखाई ठीक से हो सकेगी. ऐसे बच्चे समाज के साथ देश के सुदृढ़ नागरिक बन सकेंगे. इस तरह देश के भावी कर्णधारों को उच्चस्तर के परिवार में रहनसहन के अवसर प्राप्त होंगे. इस से देश का आध्यात्मिक, आर्थिक, वैज्ञानिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में विकास होगा.

इन सब गतिविधियों को देखते हुए तथा समाज के बदलते हुए चलन को समझते हुए मातापिता यानी पंडिताइन और वैद्यजी का मानसिक दबाव कुछ कम होना शुरू हुआ. शाम तक समाज के लोग उन के घर आने शुरू हो गए और मातापिता को उन के होनहार बेटे के लिए बधाई देते रहे. मातापिता चुपचाप तमाशा देख रहे थे, समझ में नहीं आया कि ये सब उन का मजाक उड़ा रहे हैं या वास्तव में उन का बेटा हीरो बन चुका है.

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