ढाई अक्षर प्रेम के : धर्म के नशे में चूर तरन्नुम के साथ क्या हुआ

मुंबई की मल्टीकल्चरल कही जाने वाली किनारा हाउसिंग सोसाइटी आज अचानक कुछ दबंग टाइप लड़कों के चीखनेचिल्लाने से दहल उठी थी. आमतौर पर एकदूसरे की निजी जिंदगी में न झांकने वाले यहां के लोग आज अपनेअपने घर की बालकनियों से ?ांकने पर मजबूर हो गए थे.

लगभग 10-15 लड़कों की भीड़ एक युवक को जिस की उम्र शायद 25 साल रही होगी, को जबरदस्ती उस के कमरे से खींचते हुए बाहर ले आए थे. उस युवक के पीछेपीछे दौड़ती हुई एक लड़की जिस की उम्र भी शायद उस युवक की उम्र जितनी ही रही होगी, भीड़ से उस लड़के को छोड़ देने की याचना कर रही थी.

लड़के को भीड़ से छुड़ाने की गुहार लगाती हुई लड़की की तरफ इशारा करते हुए भीड़ में से एक लड़का जिस का नाम प्रताप था चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘यह लड़की तुम्हें मुसलमान बना देगी. अरे तुम्हारा खतना करवा देगी. हम यह नहीं होने देंगे. अरे इस लड़के की तो मति मारी गई है जो एक मुसलिम लड़की के बहकावे में आ कर अपना धर्म भ्रष्ट करने चला है.’’

‘‘बिल्कुल सही कह रहे हो. यह तो अच्छा हुआ कि हमें वक्त रहते मालूम हो गया और तुम लोगों को खबर कर दी वरना अनर्थ हो जाता,’’ पुनीत ने भी उन सबों की हां में हां मिलाई.

‘‘मैं किस के साथ रहता हूं. किस से शादी करता हूं, यह मेरी मरजी है, मेरी निजी जिंदगी है. धर्म के नाम पर तुम लोगों को दखल देने का हक किस ने दे दिया?’’ वह युवक जिस का नाम जीवन था, उन लड़कों की पकड़ से खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करते हुए बोला.

‘‘कल को यह लड़की तुम्हें गाय का मांस खिलाएगी, तुम्हारा खतना कराएगी इस से क्या

हमें फर्क नहीं पड़ेगा? प्रताप ने एक जोरदार थप्पड़ जीवन के गाल पर लगाते हुए कहा, ‘‘इस से तो अच्छा है कि मैं तुम्हारी जीवनलीला ही खत्म कर दू,’’ कहते हुए प्रताप ने क्रोध में तलवार निकाल ली.

क्रोध ने इन लड़कों को पागल कर दिया था. क्रोध और आवेश में ये लड़के कुछ भी अनर्गल अपशब्द कहे जा रहे थे.

क्रोध और उन्माद में डूबी भीड़ से शांति की अपेक्षा करना व्यर्थ है. मगर क्रोध और उन्माद की यह अवस्था जब किसी धार्मिक अहंकार के वशीभूत हो तो व्यक्ति और भी विवेकहीन हो जाता है.

प्रताप के हाथ में तलवार देख कर तरन्नुम बुरी तरह से घबरा गई. वह जीवन की जिंदगी की भीख मांगते हुए उन के आगे विनती करने लगती है, ‘‘प्लीज. इसे छोड़ दो… अगर किसी की जान लेने से आप लोगों का सिर ऊंचा होता है तो इस की जगह मेरी जान ले लो, मु?ो मार दो लेकिन इसे छोड़ दो, प्लीज.’’

मगर धर्म के नशे में चूर उन्माद में डूबी भीड़ के पास हृदय कहां होता है जो तरन्नुम की इस करुण पुकार को सुन पाती.

‘‘ऐ लड़की, तुम बीच में मत आओ, मैं लड़कियों पर हाथ नहीं उठाता,’’ कहते हुए प्रताप ने उसे धक्का दे दिया. तरन्नुम कुछ दूर जा गिरी.

तरन्नुम को जमीन पर गिरता देख जीवन गुस्से से कांप उठा. वह भीड़ को धक्का देते हुए तरन्नुम की ओर जाने की कोशिश करता है. लेकिन जीवन को ऐसा करता देख प्रताप और भी गुस्से से लाल हो जाता है और वह अपनी तलवार जीवन की ओर लक्ष्य कर देता है. तभी दौड़ती हुई तरन्नुम अचानक वहां पहुंच जाती है. वह भीड़ को चीरती हुई जीवन से जा कर लिपट जाती है. जीवन को लक्ष्य कर के उठी तलवार तरन्नुम को लग जाती है और वह जख्मी हो जाती है. बेहोश हो कर जमीन पर गिर जाती है.

उन्मादी लड़कों की भीड़ तरन्नुम को घायल देख कर घबरा जाती है और 1-1 कर के वे लड़के वहां से खिसकने लगते हैं.

‘‘यह क्या अनर्थ हो गया मुझसे? मैं तो सिर्फ…’’ प्रताप जैसे खुद से ही बातें कर रहा था.

‘‘तरन्नुम को घायल देख कर जीवन अपना आपा खो देता है. वह क्रोध में चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘जो भी कहना चाहते हैं स्पष्ट कहिए.’’

‘‘अ… अ… मेरा मतलब है हम बस तुम लोगों को ड… डरा…’’ पुनीत हकलाने लगा.

‘‘तुम तो चुप ही रहो पुनीत… यह मु?ो मुसलमान बनाती या नहीं या मेरा खतना करवाती या नहीं लेकिन फिर भी मैं इंसान ही रहता, इंसान ही कहलाता. मगर तुम दोनों खुद को देखो धर्म ने तुम्हें किस तरह जानवर बना दिया है. धिक्कार है तुम लोगों पर, धर्म के नशे ने तुम लोगों को जानवर बना दिया है.’’

जीवन और तरन्नुम मुंबई की एक मल्टीनैशनल कंपनी मे करीब 2 साल से साथ काम कर रहे थे. साथसाथ काम करते हुए दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी लेकिन इस सामान्य सी दिखने वाली जानपहचान और दोस्ती की मखमली जमीन पर प्रेमरूपी बीज कब अंकुरित हो गया इस का एहसास उन्हें बहुत बाद में हुआ. प्रेम की इस निर्मल धारा में बहते हुए उन दोनों को एक पल के लिए भी कभी यह एहसास न हुआ कि वे दोनों 2 अलगअलग धर्मों के जत्थेबंदी के कैदी हैं. यह धार्मिक जत्थेबंदी अलगअलग धर्मों में शादी करने की इजाजत नहीं देती लेकिन एकदूसरे के लिए प्रेम तो जीवन और तरन्नुम के रोमरोम में समा चुका था और उन के अगाड़  प्रेम के इस प्रवाह के सामने इन धार्मिक गुटबंदियों के कोई माने नहीं थे. उन दोनों के लिए प्रेम ही उन का सब से बड़ा धर्म था.

दोनों अकसर औफिस से छुट्टी के बाद मरीन ड्राइव पर पहुंच जाते, एकदूसरे के बांहों में बांहें डाले हुए घंटों समुद्र की लहरों को निहारा करते, भविष्य के लिए सुनहरे सपने बुनते हुए उन्हें वक्त का भी अंदाजा न होता. तरन्नुम को मरीन ड्राइव के क्वीन नैकलैस कही जाने वाली उस रंगबिरंगी आकृति को देर तक निहारना काफी अच्छा लगता था. रात के अंधेरे में ?िलमिलाती आकृति रंगबिरंगे प्रकाश में छोटेछोटे रंगीन मोतियों सी प्रतीत होती, जिसे देख न जाने क्यों उस के मन को एक सुखद सी अनुभूति होती. जीवन का साथ पा कर उस की जिंदगी भी तो इन्हीं रंगबिरंगे मोतियों सी चमक उठी थी.

 

जब 2 साल पहले जीवन पुणे से मुंबई आया था तो उसे मुंबई जैसे शहर में अपने लिए

फ्लैट ढूंढ़ने में काफी मुश्किलें हुई थीं. पुणे में तो उस ने अपने चाचा के घर रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली थी. जौब लगने के बाद वह मुंबई आ गया था. लेकिन मुंबई जैसी जगह पर अपने रहने के लिए फ्लैट ढूंढ़ पाना उस के लिए टेड़ी खीर साबित हो रहा था. अत: कुछ दिनों तक तो वह होटल के कमरे में रहा. लेकिन होटल में रहना जब उस की जेब पर भारी पड़ने लगा तब उसी के औफिस में साथ काम करने वाली तरन्नुम ने जब उस की इस समस्या को जाना तो फौरन अपनी फूफी का फ्लैट उसे किराए पर दिलवा दिया. तरन्नुम द्वारा उस के लिए की गई यह निस्वार्थ सहायता उन दोनों की दोस्ती की आधारशिला बनी थी. माहिम में तरन्नुम की फूफी का वह फ्लैट खाली पड़ा था.

‘‘जानते हो जीवन मेरी फूफी जान मु?ो अपनी सगी औलाद से भी बढ़ कर मानती हैं. शादी के कुछ ही साल बाद जब अब्बू मेरी अम्मी को छोड़ कर सऊदी अरब चले गए थे तो वह मेरी फूफी जान ही थीं, जिस ने मु?ो और मेरी अम्मी को सहारा दिया था,’’ बातोंबातों में ही एक दिन तरन्नुम ने जीवन को यह बात बताई, ‘‘अब्बू के जाने के बाद से ही अम्मी काफी बीमार रहने लगी थीं. उन की बीमारी की खबर सुन कर भी अब्बू एक बार भी उन्हें देखने नहीं आए और फिर एक दिन अम्मी हमें हमेशा के लिए अलविदा कह गईं. उन के इंतकाल के बाद मेरी फूफी जान ने ही मेरी परवरिश की, उन की अपनी कोई औलाद नहीं है. फूफी को तो मरे हुए कितने साल हो गए,  मु?ो तो उन का चेहरा भी याद नहीं. मैं और मेरी फूफी जान, यही मेरा छोटा सा संसार और मेरा छोटे से संसार में जीवन आप का स्वागत है,’’ यह कह कर तरन्नुम खिलखिला पड़ी और अपनी हंसी के पीछे अपने बड़े गम को भी छिपा लिया.

तब जीवन चुपचाप तरन्नुम के चेहरे को देखता रह गया और उस के मस्तिष्क में न जाने क्यों किसी शायर की ये पंक्तियां गूंज उठीं, ‘‘गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां जिंदगी को उस मुकाम पर लाता चला गया. हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.’’

ऐसी ही है उस की तरन्नुम बिंदास, जिंदादिल, बड़े से बड़े गम को भी हंसी में उड़ा देने वाली. उस की आवाज में तो ऐसी जादूगरी कि किसी भी सुनने वाले को सम्मोहित कर दे. तरन्नुम के इसी बिंदास अंदाज और जिंदादिली ने जीवन को उस का दीवाना बना दिया था. धीरेधीरे जीवन उस के प्रेम में गिरफ्तार होता चला गया. वह रातदिन, उठतेबैठते, सोतेजागते, बस तरन्नुम के खयालों में ही खोया रहता.

 

ठीक यही हाल तरन्नुम का भी था. तरन्नुम के

लिए जीवन उस के सपनों के राजकुमार से भी कहीं ज्यादा बढ़ कर था. एक जीवनसाथी को ले कर उस ने अपने दिलोदिमाग में जो रेखाएं खींची थीं जीवन बिलकुल उन के अनुकूल था. जीवन की स्पष्टवादिता उस की ईमानदारी तरन्नुम को अपनी ओर खींचने के लिए काफी थी और एक दिन दोनों ने अपने दिल की बात एकदूसरे से कह दी. एकदूसरे के प्रति प्यार का इजहार किया, साथ जीनेमरने के वादे किए.

‘‘तरन्नुम, महीनाभर पहले हम ने शादी के लिए कोर्ट में जो अर्जी दी थी, कोर्ट ने हमारी शादी की डेट दे दी है. हमें इसी हफ्ते बुधवार को मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाना है,’’ तरन्नुम को यह खबर सुनाते हुए जीवन की खुशी का कोई ठिकाना न था.

‘‘हमारे सपने जो हम दोनों ने साथ मिल

कर देखे थे वे सच होने जा रहे हैं. सच में मैं

बहुत खुश हूं. हमारी अपनी छोटी सी दुनिया

होगी. ऐसी दुनिया जहां इस ?ाठमूठ के धर्म, जातपात, रीतिरिवाजों के लिए कोई जगह नहीं होगी. कोई दीवाली नहीं, कोई ईद नहीं, कोई जातधर्म का दिखावा नहीं, हम खुशियां मनाएंगे लेकिन अपनी तरह से,’’ तरन्नुम ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा.

‘‘हां सही कह रही हो हम ईददीवाली की जगह सिर्फ राष्ट्रीय त्योहार मनाएंगे और अपने बच्चों के नाम भी कुछ ऐसे रखेंगे जिन में उन के हिंदू या मुसलिम होने की पहचान न छिपी हो, उन के नाम के साथ किसी भी धर्म की पहचान न जुड़ी हो,’’ जीवन ने भी खुश होते हुए तरन्नुम के इन खयालातों का समर्थन किया.

आज वे दोनों आने वाली इस मुसीबत से बेखबर अपनी शादी के सपने को साकार करने की तैयारी में सुबह से ही जुटे हुए थे. कोर्ट ने उन्हें आज का ही दिन दिया था. वे दोनों मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाने के लिए उत्साहित थे. खुशी ने तो जैसे उन के रोमरोम को पुलकित कर दिया था.

तरन्नुम ने तो अपनी दोनों सहेलियां रवीना और फिजा को सुबह से न जाने कितनी बार कौल कर के उन्हें रजिस्ट्रार के औफिस वक्त पर पहुंच जाने की याद दिलाई थी.

जीवन काफी देर से किसी को कौल करने की कोशिश कर रहा था लेकिन जिसे वह फोन लगा रहा था उस का मोबाइल शायद स्विच्ड औफ आ रहा था, जिस के कारण वह थोड़ा चिंतित हो उठा था, ‘‘पुनीत का डाउट है, कब से फोन ट्राई कर रहा हूं, स्विच्ड औफ बता रहा है, न जाने कल से कहां गायब है,’’ जीवन ने अपनी चिंता व्यक्त की, ‘‘अगर वह नहीं पहुंच सका तो विटनेस के लिए तीसरा व्यक्ति इतनी जल्दी कहां से लाएंगे?’’

‘‘तुम परेशान मत हो मैं अपनी फूफी जान को कह दूंगी विटनैस के लिए वे आ जाएंगी.’’

‘‘मगर हां तुम उन्हें हमारे यहां से निकलने के 1 घंटा पहले बुला लेना, उन्हें इतना वक्त तो लग ही जाएगा यहां आने में.’’

‘‘चिंता मत करो अभी तो सुबह के सिर्फ 9 ही बजे हैं, हमारे पास काफी वक्त है,’’ तरन्नुम अपनी ड्रैस की मैचिंग ज्वैलरी सैट करने में व्यस्त हो गई.

‘‘इतनी तेजतेज डोरबैल कौन बजा रहा है?’’

‘‘मैं देखती हूं,’’ तरन्नुम दरवाजा खोलने चली.

‘‘नहीं तुम रहने दो, मैं देखता हूं, न जाने कौन है जिसे सब्र नहीं.’’

जीवन के दरवाजा खोलते ही लड़कों का एक ?ांड दनदनाता हुआ घर के अंदर घुस आया.

‘‘पुनीत, प्रताप भाई आप दोनों?’’ भीड़ के साथ खड़े उन दोनों लड़कों को देख कर जीवन चौंक उठा.

‘‘हां हम दोनों, तुम जो करने जा रहे हो उसे रोकने आए है. यह तो अच्छा हुआ कि पुनीत ने हमें वक्त पर आ कर सब कुछ बता दिया. अगर सीधेसीधे हम लोगों के साथ नहीं चलोगे तो जबरदस्ती यहां से उठा कर ले जाएंगे भले तुम्हारी टांगें ही क्यों न तोड़नी पड़ें,’’ प्रताप ने क्रोध में फुफकारते हुए कहा.

‘‘किसी से शादी करना अपराध है क्या जो आप इसे रोकने के लिए अपने दलबल के साथ आ गए. आप अपने बजरंग दल की धौंस कहीं और दिखाइए. मैं आप लोगों से डरने वाला नहीं.’’

‘‘लगता है ऐसे नहीं मानेगा, चलो आ

जाओ सब,’’ और तभी अचानक जय श्रीराम के नारे से पूरी सोसाइटी गूंजने और देखते ही देखते लड़कों का वह ?ांड जीवन को जबरदस्ती उस के घर से खींचता हुआ बाहर ले गया. उन के पीछेपीछे बदहवास सी भागती हुई तरन्नुम भी बाहर आ गई.

धर्म के नशे में चूर, जो लड़के कुछ देर पहले दहाड़ रहे थे, तरन्नुम को जख्मी और

बेहोश हो कर जमीन पर गिरता देख उन की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. सारे लड़के वहां से धीरेधीरे खिसक लिए, रह गए सिर्फ पुनीत और प्रताप जो अब अपने कृत्य पर पश्चाताप कर रहे थे.

प्रताप के मन में जीवन द्वारा कही गई ये बाते कि धर्म के नशे ने उसे जानवर बना दिया है, रहरह कर उस के मन को झकझोर रही थीं. आज अगर तरन्नुम बीच में नहीं आई होती तो उस के हाथों कितना बड़ा अनर्थ हो जाता. तरन्नुम के बीच में आ जाने से उस के हाथों से तलवार की पकड़ ढीली पड़ गई. जख्म ज्यादा गहरा नहीं था, घबराहट के कारण तरन्नुम बेहोश हो गई थी. डाक्टर ने हलकी मरहमपट्टी करने के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया.

प्रताप और पुनीत अपने किए पर बेहद शर्मिंदा थे. दोनों बारबार हाथ जोड़ कर जीवन और तरन्नुम से माफी मांग रहे थे.

कुछ घंटों बाद जब जीवन और तरन्नुम मैरिज रजिस्ट्रार औफिस जाने के लिए निकले तो रवीना और फिजा के साथसाथ प्रताप और पुनीत भी विटनैस के लिए वहां पहुंच गए और वापस आ कर नए जोड़े के स्वागत के लिए पूरे घर की सजावट फूलों से इन्हीं दोनों ने की.

यह बात सच है प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं. संसार में जितने भी धर्म हैं उन सब का उद्देश्य किसी न किसी स्वार्थसिद्धि के लिए होता है किंतु प्रेम कभी किसी स्वार्थ की सिद्धि के लिए नहीं होता. मात्र प्रेम ही एक ऐसी चीज है जहां स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं. संसार में जब तक प्रेम कायम रहेगा, जब तक इस का विस्तार होता रहेगा और तब तक मानव का जीवन भी सुख और शांति से परिपूर्ण रहेगा.

दूर रह कर भी रिश्तों को कैसे बनाएं मजबूत, ‘छोटेछोटे पलों को करें सेलिब्रैट’

परिवार हमेशा खास होता है,चाहे वह पास रहे या दूर. लेकिन जब हम अपने जीवनसाथी के परिवार से दूर रहते हैं, जैसे सास, ननद या जेठानी, तो उन से दोस्ताना संबंध बनाए रखना मुश्किल तो हो सकता है लेकिन नामुमकिन नहीं.

रिश्तों में भावनात्मक जुड़ाव भी माने रखता है इसलिए दूर होने के बावजूद रिश्तों को बनाए रखना संभव है, बशर्ते हम समझदारी और संवेदनशीलता से काम लें. दोस्ताना व्यवहार, संवाद और सम्मान इन रिश्तों की नींव को मजबूत बनाए रखते हैं.

ऐसे में, सवाल उठता है कि जब परिवार के सदस्य एकदूसरे से दूर हों, तो रिश्तों में मिठास और जुड़ाव कैसे बनाए रखें. इस के लिए कुछ सरल उपाय अपनाए जा सकते हैं, जो रिश्तों को मजबूत और खुशहाल बनाए रखते हैं.

नियमित बातचीत है जरूरी

कई बार पति की नौकरी के चलते परिवार को छोड़ कर बहू को अपनी नई गृहस्थी बसाने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ता है. ऐसे में परिवार से दूर रहने पर सास, ननद या जेठानी से अपनेपन का जुड़ाव कम हो जाता है लेकिन दूरी होने के बावजूद रिश्तों में गरमाहट बनाए रखने का सब से सरल तरीका है, नियमित बातचीत. परिवार की सभी औरतों के साथ व्हाट्सऐप ग्रुप बना कर बातचीत जारी रखें और आप जो भी कुछ नई डिश बना रही हैं उसे ग्रुप पर शेयर करें, उन से सलाह लें.

इस के अलावा आप फोन कौल, वीडियो कौल के माध्यम से सास, ननद या जेठानी से संपर्क में रह सकती हैं. इस से उन्हें लगेगा कि आप उन के बारे में सोचती हैं और उनवका ध्यान रखती हैं.

छोटेछोटे पलों को खास बनाएं

रिश्तों में प्यार और अपनापन बनाए रखने के लिए छोटेछोटे मौके बहुत अहम होते हैं. जैसे उन की सालगिरह, जन्मदिन या किसी खास अवसर पर शुभकामनाएं भेजना. इस से उन्हें यह एहसास होगा कि आप दूर रह कर भी उन के जीवन के महत्त्वपूर्ण पलों का हिस्सा बन रहे हैं.

छोटीछोटी खुशियों को बांटना रिश्तों में मिठास लाता है. आप विशेष अवसरों पर या बिना किसी विशेष कारण के भी सास, ननद या जेठानी को छोटेछोटे उपहार भेज सकती हैं. इस से उन्हें लगेगा कि आप उन के प्रति स्नेह और प्रेम रखती हैं.

बराबर का समझें

आप अलग शहर में हों या एक ही शहर में, कभी न कभी एकदूसरे के घर जाने क मौका मिलता ही है. ऐसे में बराबरी से ही बात बन सकती है. काम करने में छोटा या बड़ापन न जताएं बल्कि बराबर का समझें.

अगर आप अपनी जेठानी के घर में या ननद के घर में जाएं तो खुद को मेहमान न समझें बल्कि हर काम में उन का हाथ बटाएं और यही बात ननद के लिए भी है कि भाभी को यह एहसास कराएं कि वह ननद है तो क्या पूरी हैल्प करने को तैयार है.

अनुभवों में दिलचस्पी दिखाएं

यदि आप की सास, ननद या जेठानी को किसी खास काम में महारत हासिल है, तो उन के कार्यों के बारे में पूछें और दिलचस्पी दिखाएं. उन के अनुभवों, शौकों और उपलब्धियों के बारे में जानकारी लेना और तारीफ करना आप के रिश्तों को और भी मधुर बना सकता है.

मिलने के मौके ढूंढ़ें

कभीकभी दूरी के कारण मिलने के मौके कम हो सकते हैं, लेकिन जब भी समय मिले परिवार के साथ रहने का मौका न चूकें. छुट्टियों, त्योहारों या किसी खास अवसर पर एकदूसरे से मिलने की योजना बनाएं. परिवार के साथ बिताया गया समय रिश्तों को ताजगी देता है और भावनात्मक रूप से आप को करीब लाता है.
डिस्टैंश बस का हो या रेल का या फिर ओवरनाइट जर्नी ही क्यों न हो, आप उन्हें मिलने जाएं या वे आप से मिलने आएं, उस समय को पूरी तरह से ऐंजौय करें. परिवार के साथ बिताया गया समय, हंसीमजाक, बातचीत और साथ में भोजन करने से रिश्ते और भी मजबूत बनते हैं. ये क्षण दूरी को भरने का काम करते हैं.

एकदूसरे के प्रति सहानुभूति रखें

जब हम अपनों से दूर रहते हैं तो दूरी के कारण कई बार गलतफहमियां पैदा हो सकती हैं. ऐसे में सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है. जब भी कोई समस्या हो या किसी तरह का मतभेद हो, तो धैर्यपूर्वक बात करें और एकदूसरे की भावनाओं को समझने की कोशिश करें. सहानुभूति रिश्तों में मिठास और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करती है.

पारिवारिक परंपराओं को बनाए रखें

परिवार की पुरानी परंपराओं को बनाए रखना रिश्तों को मजबूत करता है. चाहे त्योहार मनाने की परंपरा हो या विशेष अवसरों पर एकदूसरे को बधाई देने की, इन्हें जारी रखना आप के रिश्तों में मिठास घोलता है. यदि परिवार के सदस्य दूर हैं, तो भी आप वर्चुअल तरीकों से इन परंपराओं को निभा सकते हैं.

Eye Makeup के नए ट्रैंड्स, फैस्टिव और वैडिंग सीजन में क्या है हौट

शादी का दिन हर दुलहन के लिए खास होता है, जिस में वह सब से सुंदर दिखना चाहती है और परफैक्ट लुक पाने के लिए परफैक्ट मेकअप भी कराती है. लेकिन हम आप को बता दें कि इस मेकअप में आई मेकअप का रोल सब से ज्यादा होता है क्योंकि यह मेकअप लुक को कंप्लीट करती है.

इस बार आई मेकअप 2024 में कई नए ट्रैंड्स देखने को मिल रहे हैं, जो दुलहनों को उन के खास दिन पर एक अलग और स्टाइलिश लुक देते हैं. आप ग्लैमरस लुक चाहती हों या नैचुरल, इन ट्रैंड्स को फौलो कर के अपने वैडिंग डे पर परफैक्ट ब्राइडल लुक पा सकती हैं :

मोनोटोन आई मेकअप

2024 में मोनोटोन आई मेकअप काफी ट्रैंड में है. इस में आंखों पर सिर्फ एक ही रंग का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अलगअलग शेड्स के साथ इसे डिफाइन किया जाता है. पिंक, कोरल और न्यूड जैसे शेड्स इस लुक के लिए काफी पौपुलर हो रहे हैं. यह लुक सिंपल होने के साथसाथ ऐलीगेंट भी है और हर स्किन टोन पर अच्छा लगता है.

ग्लिटर आईशैडो

दुलहन का लुक बिना ग्लिटर के अधूरा लगता है. 2024 में ग्लिटर आईशैडो ने फिर से धमाल मचाया है, जो आप की आंखों को एक दमकता हुआ लुक देगा. खासतौर पर गोल्ड, सिल्वर और रोज गोल्ड ग्लिटर शेड्स दुल्हन के आउटफिट के साथ बेहतरीन मेल खाते हैं. ग्लिटर को आईलिड्स के सैंटर पर अप्लाई कर आप एक शानदार लुक पा सकती हैं.

स्मोकी आईज

स्मोकी आईज क्लासिक और टाइमलैस आई मेकअप ट्रैंड है, जो इस साल भी फैशन में है. ब्लैक और ग्रे के अलावा अब ब्राउन और बरगंडी शेड्स का इस्तेमाल भी हो रहा है, जो स्मोकी आईज को और भी सौम्य और ग्लैमरस बना रहे हैं. यह लुक खासतौर पर रात की शादी या रिसैप्शन के लिए परफैक्ट होता है.

कलरफुल आईलाइनर

आईलाइनर में भी अब रंगों का ट्रैंड आ गया है. 2024 में ब्लैक की जगह ब्लू, ग्रीन, पर्पल और गोल्ड जैसे कलरफुल आईलाइनर दुलहन के मेकअप में खूब पसंद किए जा रहे हैं. ये कलर्स न केवल आंखों को बड़ा और आकर्षक दिखाते हैं, बल्कि उन्हें एक मौडर्न और फंकी लुक भी देते हैं.

ग्राफिक आई मेकअप

ग्राफिक आई मेकअप इस साल का सब से बोल्ड और यूनिक ट्रैंड है. इस में अलगअलग शेप्स और लाइनिंग स्टाइल्स का उपयोग कर के आंखों को डिफाइन किया जाता है. यह लुक उन दुलहनों के लिए परफैक्ट है जो अपने मेकअप में कुछ अलग और क्रिऐटिव चाहती हैं. विंग्ड और डबल आईलाइनर इस के प्रमुख हिस्से हैं.

कट क्रीज आई मेकअप

कट क्रीज मेकअप तकनीक में आंखों की क्रीज को अलगअलग शेड्स से डिफाइन किया जाता है, जिस से आंखें बड़ी और उभरी हुई नजर आती हैं. यह लुक आप की आंखों को एक नाटकीय और प्रभावशाली अपील देता है और इसे ग्लिटर या मेटैलिक शेड्स के साथ और भी निखारा जा सकता है.

मेटैलिक आईशैडो

मेटैलिक आईशैडो 2024 में दुलहनों के बीच एक बड़ा ट्रैंड है. गोल्ड, सिल्वर और कौपर जैसे मेटैलिक शेड्स आंखों को शाइनी और ग्लैमरस लुक देते हैं. यह लुक दिन और रात दोनों समय की शादी के लिए उपयुक्त है और यह हर तरह के वैडिंग आउटफिट के साथ मैच करता है.

नैचुरल आई मेकअप

जो दुलहनें एक सटल और ऐलिगेंट लुक चाहती हैं, उन के लिए नैचुरल आई मेकअप परफैक्ट है. इस में न्यूड और सौफ्ट पिंक जैसे शेड्स का उपयोग किया जाता है, जो आंखों को नैचुरल ग्लो देता है. साथ ही, इसे हलके मस्कारा और लाइट काजल के साथ कंप्लीट किया जाता है.

फेदर लैशेज

आंखों को बड़ा और आकर्षक दिखाने के लिए फेदर लैशेज का ट्रैंड भी इस साल काफी फेमस हो रहा है. ये लैशेज आप की पलकें घनी और लंबी दिखाती हैं और साथ ही आप को एक सौफ्ट, फेमिनिन लुक देती हैं. इसे नैचुरल आईशैडो और हलके आईलाइनर के साथ पेयर किया जा सकता है.

आई मेकअप में स्टोन्स और पर्ल्स

2024 की एक और नई प्रवृत्ति है, आई मेकअप में स्टोन्स और पर्ल्स का इस्तेमाल. दुलहनों के बीच यह काफी लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि यह आंखों को एक शाही और यूनिक लुक देता है. छोटेछोटे स्टोन्स या पर्ल्स को आईलिड्स या आईलाइन के पास लगा कर इसे और भी खूबसूरत बनाया जा सकता है.

इंटीमैट सीन्स में मिस्ट्री जरूरी है : अपेक्षा पोरवाल

मुंबई में जन्मीं खूबबसूरत, मृदुभाषी अभिनेत्री अपेक्षा पोरवाल (Apeksha Porwal) को बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी. उन्होंने जेफ गोल्डबर्ग स्टूडियो में मेथड ऐक्टिंग का कोर्स किया है। इस के बाद कौमेडी थिएटर प्रोडक्शन ‘डिरैंज्ड मैरिज’ में मुख्य कलाकार के तौर पर काम किया.

अपेक्षा पोरवाल ने कई सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है. वे साल 2015 में ‘मिस इंडिया दिल्ली’ की विजेता रहीं. इस के बाद वर्ष 2017 को ‘मिस यूनिवर्स इंडिया’ की सैकंड रनरअप रही हैं.

उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य कत्थक में प्रशिक्षण लिया है. वे एक बहुत ही शौकीन पाठक हैं और फिक्शन और क्लासिक से ले कर आत्मकथाओं तक सबकुछ पढ़ती हैं. अपेक्षा पोरवाल ने अरबी शो ‘स्लेव मार्केट’ से अपना अंतर्राष्ट्रीय डैब्यू किया है। 1900 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित इस सीरीज में अपेक्षा एक भारतीय राजकुमारी के रूप में अभिनय किया है. वैब सीरीज ‘इंपरफैक्ट’ (2018) में भी अपेक्षा नजर आई थीं.

अभिनय के अलावा अपेक्षा मार्शल आर्ट्स, हौर्सराइडिंग, नंचाक, रीडिंग, ट्रैवलिंग आदि की शौक रखती हैं. अपेक्षा गृहशोभा भी पढ़ती हैं. उन्हें इस के सभी लेख बेहद पसंद आते हैं. उन्होंने गृहशोभा के लिए खासतौर पर बातचीत की.

जियोसिनेमा पर उन की वैब सीरीज ‘हनीमून फोटोग्राफर’ रिलीज हो चुकी है, जिसे ले कर वे बहुत खुश हैं। पेश हैं, बातचीत के कुछ खास अंश :

इस सीरीज में अपेक्षा की भूमिका के बारे में पूछने पर वे बताती हैं कि मैं ने ऐसा किरदार पहले कभी किया नहीं है. इस में मैं ने जोया ईरानी की भूमिका निभाई है, जो अधीर ईरानी की पत्नी है और फिटनैस इंस्ट्रक्टर है. इस चरित्र में अभिनय के कई लेयर्स हैं, जो 6 एपिसोड तक चलता रहता है. मैं ने हर एपिसोड में नईनई भूमिका को ऐक्स्प्लोर किया है, जो बहुत उत्साहवर्धक रहा.

फिटनैस है पसंद

अपेक्षा फिल्मी भूमिका के अलावा रियल लाइफ में भी फिटनैस को पसंद करती हैं. वे कहती हैं कि मैं हफ्ते में 5 दिन जिम जाना पसंद करती हूं, इस के अलावा मैं मार्शल आर्ट्स और सोर्ड फिटिंग जैसे अलगअलग फिटनैस के तरीके को ऐंजौय करती हूं. यही समानता जोया और अपेक्षा में है, बाकी सब अलग हैं. इस में मुझे अपने चरित्र को समझना थोड़ा मुश्किल था. चरित्र के अलगअलग भाव को दिखाना मेरे लिए बहुत कठिन रहा.

मिली प्रेरणा

अभिनय में आने की प्रेरणा के बारे में पूछने पर अपेक्षा बताती हैं कि मुझे मिस इंडिया बनने का सपना बचपन से था, लेकिन इकोनौमिक्स में औनर्स करने के बाद मैं ने स्टार्टअप्स कंपनी में 2 साल तक काम भी किया है, फिर मैं मिस इंडिया के लिए गई और वर्ष 2017 की विजेता बनी, तो मुझे ऐक्टिंग वर्कशौप में जाने की एक इच्छा हुई। लेकिन मैं ने ऐक्टिंग के बारे में नहीं सोचा था. मैं ने 2 वर्कशौप 9 महीने का किया, जिस में मैं ने मैथड ऐक्टिंग, डिप्लोमा और प्रोग्राम किया, फिर मुझे लगने लगा कि मैं अभिनय को भी अपना कैरियर बना सकती हूं. मैं ने थिएटर जौइन किया ताकि ऐक्टिंग सीख सकूं. मिस इंडिया यूनिवर्स बनने की वजह से मैं अभिनय में आई, ऐसा मैं नहीं कह सकती, क्योंकि यह एक आसान फील्ड नहीं है.

परिवार का सहयोग

परिवार का सहयोग अपेक्षा को हमेशा मिला है। उन का कहना है कि मिस इंडिया बनने का सपना मेरे पूरे परिवार का था. मुझे याद आता है कि मिस इंडिया प्रतियोगिता को मैं पूरे परिवार के साथ देखती थी. पेरैंट्स को लगता था कि मैं एक दिन मिस इंडिया बनूंगी. इस बेहतरीन सपने को उन्होंने मेरे अंदर स्थापित कर दिया था.

वे कहती हैं,”अभिनय में आना प्लान में नहीं था, लेकिन उन के सकरात्मक सहयोग ने मुझे अभिनय को चुनने में मदद की है. मेरे हिसाब से किसी बच्चे की कैरियर को संवारने वाले पेरैंट्स ही होते हैं.”

रहा संघर्ष

मिस इंडिया बनने की वजह से काम मिलना अपेक्षा के लिए आसान नहीं था। कई सारी चुनौतियां रही हैं. वे कहती हैं कि मिस इंडिया का ऐक्टिंग से दूरदूर तक कोई रिश्ता नहीं होता है. आज से 20 साल पहले शायद उन्हें काम मिलता था, क्योंकि वे मिस इंडिया के जरीए विजिबल हो जाती थीं, लेकिन आज कई प्रतियोगिताएं होती रहती हैं, ऐसे में कहीं कोई अच्छा काम नहीं मिलता, क्योंकि इस टाइटल के बाद एक ग्लैमरस वाली भूमिका मिलती है, जिसे मुझे तोड़ना था क्योंकि मैं खुद को एक ऐक्टर के तौर पर स्थापित करना चाहती थी, जो मैं ने किया.

अपेक्षा कहती हैं कि ‘अनदेखी’ में मैं ने कोयल की भूमिका निभाई, जो एक आदिवासी लड़की की भूमिका थी, जिस में न तो कोई मेकअप था और न ही ग्लैमर. मैं ने इस भूमिका को एक ऐक्टर के रूप में किया न कि एक मिस इंडिया के रूप में. इस के बाद मैं ने एक इंटरनैशनल भूमिका, अरेबिक सीरीज के लिए किया किया, जिसे सभी ने पसंद किया. मैं खुश हूं कि अभी तक अच्छी भूमिका ही मुझे मिल रही है.

देखना नहीं पसंद

अपेक्षा हंसती हुई आगे कहती हैं कि इंटीमैट सीन्स को मैं कम देखना पसंद करती हूं, क्योंकि अंतरंग दृश्य में थोड़ी मिस्ट्री होने की जरूरत होती है. खुद के परफौर्मेंस की बात करूं, तो अगर उस कहानी में ऐसे दृश्य की जरूरत है, तो मैं कर सकती हूं, जबरदस्ती डालने वाले सीन्स को करने में मैं सहज नहीं. अगर ऐसी सीन्स मुझे करना पड़ा, तो मैं लेखक, निर्देशक के साथ बैठ कर बात करना चाहूंगी और उस कहानी की जरूरत को परखना चाहूंगी। अगर जरूरत है तो करने में कोई हरज नहीं.

रिजैक्शन को दिल से नहीं लिया

अपेक्षा कहती हैं कि रिजैक्शन को मैं ने सहजता से लिया है, क्योंकि किसी भी चरित्र के लिए औडिशन देने पर उस से एक लगाव होता है और न मिलने पर दिल टूटता है. यह भी सही है कि हर चरित्र में आप फिट नहीं हो सकते, ऐसे में किसी रिजैक्शन को दिल से न लेना भी मैं ने सीखा है। ऐसा कई बार वे अलग लुक या पर्सनैलिटी बता कर रिजैक्ट कर देते हैं, इस से मुझे अधिक अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है.

अच्छी ऐक्टिंग करना है मकसद

अपेक्षा अलगअलग भूमिका करने की इच्छा रखती हैं। उन के हिसाब से उन के अंदर हजारों चरित्र हैं, जिसे वे पोट्रे करना चाहती हैं.

वे कहती हैं,”बायोपिक बनाने की इच्छा है, जिस में राजमाता गायत्री देवी, अमृता प्रीतम जैसी आकर्षक व्यक्तित्व वाली महिला को परदे पर लाना मेरे लिए बड़ी बात होगी. इस के अलावा मेरा सपना दिवंगत अभिनेता इरफान खान के साथ अभिनय करना था, जो अब नहीं संभव. मैं किसी भी कोस्टार के साथ अभिनय कर सकती हूं.”

शिक्षा जरूरी

अपेक्षा को सुपर पावर मिलने पर वे देश में कई बदलाव करना चाहती हैं. वे कहती हैं,”मैं हर एक बच्चे को सही शिक्षा देना चाहती हूं, ताकि वे अपने अंदर की क्षमता को समझ सकें और आगे बढ़ने में उन्हें समस्या न हो.”

किसी भी त्योहार को अपेक्षा परिवार के साथ मनाना पसंद करती हैं. उन का कहना है कि मैं बहुत फिल्मी हूं इसलिए इंडियन आउटफिट पहनना, रंगोली बनाना, अलगअलग डिश बनाना, सब से मिलना आदि पसंद करती हूं.

कितना जरूरी है किसी का साथ

वह जमाना गया जब प्रेम को वासना कहा जाता था और किसी का मधुर स्पर्श कोई वर्जित अपराध जैसा हुआ करता था. आज तो मनोवैज्ञानिक सलाहकार अपने हर सुझाव में यही बात कहते हैं कि कोई साथी होना चाहिए जो आप को प्रेम करे.

तकनीक, वैज्ञानिक सोच, पूंजीवाद आदि ने मानव को ऐसा व्याकुल किया है कि समाज किसी सुकून देते हुए स्पर्श की तरफ झुका चला जाता है.

भागदौड़ करती और आत्मनिर्भर बनती नई पीढ़ी को अब यह बिलकुल डरावना नहीं लगता कि किसी की मधुर संगति में रहने से कुछ गलत हो जाएगा. अकेलेपन से जूझतेजूझते जब मन किसी की जरूरत महसूस करता है तो इस में कौन सी बुराई है कि वह कोई अपना बिलकुल नजदीक ही बैठा हो. महानगरीय जीवन में रोज 15 घंटे तक खपने वाली युवा पीढ़ी अब ऐसा दर्शन बिलकुल नहीं समझना चाहती कि तनहाई में जिस की आस लगाए बैठे हैं वह न मिले तो ऐसी दशा में हम क्या करें? निराश हो जाएं? यह तक तय नहीं है कि जीवन कल या परसों कौन सा मोड़ लेने वाला है. प्रकृति का मिजाज भी ठीकठाक मालूम नहीं.

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि इस जीवन का मूल उद्देश्य आनंद की खोज ही है और यह आनंद प्रयोजनातीत है. किसी के पास बैठ कर मनचाही सुंदर बातें करनेसुनने से हमें आनंद प्राप्त होता है और उस से हमारा मन संतोष ही नहीं पाता बल्कि दिल को गहराई तक एक अपूर्व शांति भी प्राप्त होती है.

तो हमें यह जरूरी क्यों लगता है? इस का कोई कारण नहीं बताया जा सकता. वह केवल अनुभव ही किया जा सकता है. ‘ज्यों गूंगे मीठे फल को रस अंतर्गत ही भावै,’ आनंद का भाव वाणी और मन की पहुंच के बिलकुल अतीत है. ‘यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह पर प्रेम, स्नेह, मधुर छुअन इन सब का संबंध मन के साथ है. मन बिना साथी के, आनंद के सहज भाव को ग्रहण नहीं करना चाहता.

उस को एक साक्षात प्रेमी चाहिए जिस के साथ वह कुछ देर मौन भी रह सकता है पर उस का आनंद बना रहता है. बावरा मन अपना बैंक बैलेंस देख कर भी कुछ अतृप्त ही रहता है. मन ही मन वह खोज में लग जाता है कि कहीं कोई ऐसा हो जिस के पास जा कर स्वर्ग सा सुख मिले. वह यह नहीं समझना चाहता कि इस में आनंद का जो अमिश्रित रस है वह समय मांग रहा है या कोई मूल्य. पर जो लोग इस बेचैन मन को समझ लेने में समर्थ होते हैं, वे एक प्रिय के पास जा कर आनंद के ‘आनंदरूपमृतम’ का अनुभव कर लेते हैं.

अब यह तो एक अकाट्य सत्य है ही कि प्यार इस जीवन की प्राण वायु है. किसी प्रिय संग बैठना, बतियाना यह सब तो मानव सभ्यता के आरंभ में भी रहा है. हमारे समाज में वही कथा बारबार कहीसुनी जाती है जिस में प्यार का  किस्सा हो, ऐसा कोई जिक्र हो. मनुष्य कहीं भी हो, कैसा भी हो वह हर हाल में सहज हो कर ही जीना चाहता है. अगर उसे बहुत दिनों तक प्रेम न मिले तो उस की मानसिक दशा पर कुप्रभाव पड़ता ही है.

दूसरों को अपना बनाएं

दो मीठे बोल और किसी के आसपास रहने  की जो खूबसूरती है वह सौ फीसदी एक टौनिक का काम करती है. इसीलिए प्रेम सामान्य रूप से हर किसी को आकर्षित करता है. यही कारण है कि देशविदेश में ऐसे लोगों का आंकड़ा हर दिन बढ़ रहा है जो कुछ देर प्रीत से लबालब गपशप करना चाहते हैं या किसी से मिल कर उसे देख कर अपना दैहिक, मानसिक दुख भूल ही जाते हैं.

मनोविज्ञान के अनुसार किसी विपरीतलिंगी के पास होना शरीर में सकारात्मक परिवर्तन शुरू कर देता है यह एक प्राकृतिक मांग है जो जीवन की निशानी और सेहत का प्रतीक भी है. किसी की मनभावन या मनपसंद संगति को औषधि का प्रतीक मान कर उस पर कायम रहना चाहिए. इस से न केवल पागलपन तथा अवसाद कम होता है बल्कि आत्महत्या जैसे मामले भी रुकने लगते हैं. समाज में लोग जब किसी के साथ मनपसंद वार्त्तालाप का सुख पा लेते हैं तो समाज में जातिधर्मों के बीच भी प्रेम बढ़ता है, नफरत कम होती है और सहानुभूति का खयाल ही बारबार आता है.

बहुत से लोग अपनी इच्छा को दबाने लगते हैं या अपनेआप को घर में कैद कर के फिल्म या धारावाहिक में मन लगाते हैं या फिर घर की दीवार पर कुछ तसवीरें लगाते हैं ताकि जो बेचैनी है वह कम होने लगे. मगर मनोविज्ञान कहता है कि इस तरह की तसवीरें और घर पर अकेले कैद हो जाना पागलपन को बढ़ाता है.

यह समझदारी नहीं

इस का कारण यह है कि समाज इस तरह की चीजों, ऐसे साथियों पर प्रश्न उठाता है और यह एक धारणा बन गई है कि किसी मनचाहे की  संगति चरित्रहीनता है. यह समाज की दृष्टि में पतन  को दर्शाता है. समाज के मामले में आदमी जितना विनम्र, सौम्य होगा वह चरित्रवान होगा भले ही  यह उस इंसान की मानसिक खुशहाली के लिए कभी बेहतर नहीं होता.

बस एक अच्छी छवि बनी रहे और सब परिचय देते हुए अच्छा ही कहें यह तो मूर्खता है. सामाजिक तालमेल के लिए खुद को तकलीफ में रखना, दुख पहुंचाना यह सम?ादारी नहीं है.

उथलपुथल से उबर कर संपूर्ण शांति, शांत मन, भावनाओं में तरंग और हलकापन, स्वस्थ शरीर, सदा सहयोग के लिए तैयार हृदय और हमारे व्यवहार में संतुष्टि को इंगित करता है. यह संतुष्टि तभी आती है जब प्रेम भरपूर मिल रहा हो. आज समय का पहिया कुछ इस तरह चल रहा है कि आजीविका के लिए अपनों से, अपने गांव, शहर, कसबे से दूर रहना ही पड़ता है.

ऐसे में हरकोई अपने परिवार, समूह या संबंधियों के साथ नहीं रह पाता. अब समय ऐसा है कि अपने मन की दुनिया को एक सुंदर आकार देने के लिए जीवन ऊर्जा की ओर बढ़ने का समय है जो किसी भी मानसिक सेहत का आधार है.

आंतरिक संतोष से ही बाहरी शांति संभव है. यही आंतरिक चैन और सुकून लंबी आयु की कुंजी भी है. यह जागरूकता कि जीवन का सब सुख  एक साथी के पास जा कर पल दो पल बतिया कर सौगुना होने जा रहा है, तो यह काम मन की चिंतात्मक प्रवृत्ति को मिटा सकता है. अकेलेपन से दिल में बहुत सी दुखदाई चीजें हो जाती हैं.

क्या है सही तरीका

मन को मन की विविधता पसंद है. एक अकेले और संतोषी आदमी का मन भी हमेशा गतिशील और चंचल रहता है. अत: मन को किसी घबराहट में ही सीमित नहीं करना चाहिए. स्नेह और प्रेम कर के सृजन की विविधता का आनंद लेना एक ईमानदार लेनदेन है.

हम अकसर मन का आराम शब्द का उपयोग करते रहे हैं. यही है उस का सही तरीका. यही आज स्वस्थ समाज की निशानी और जरूरत दोनों है.

मेरी मां का अफेयर चल रहा है, क्या इस बारे में मुझे सवाल करना चाहिए?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 15 वर्षीय छात्र हूं. आजकल बहुत तनाव में जी रहा हूं. दरअसल, मुझे अपनी मां की उच्छृंखलता देख कर उन से नफरत होने लगी है. हमारे एक अंकल जो मेरे पापा के अच्छे दोस्त हैं, उन से मेरी मां की नजदीकियां दिनोंदिन बढ़ रही हैं. वे अंकल अकसर मेरे पापा की गैरमौजूदगी में घर आते हैं और घंटों मां के साथ गप्पबाजी करते हैं. भद्देभद्दे मजाक सुन कर मेरा खून खौलने लगता है, जबकि मां खूब मजा लेती हैं. कई बार दोनों ऐसे चिपक कर बैठे होते हैं जैसे पति पत्नी हों. उन्हें लगता है कि मैं उन की हरकतों से अनजान हूं. बताएं, क्या करूं?

जवाब

आप अच्छे बुरे की समझ रखने वाले विवेकशील युवक हैं. आप को लगता है कि आप की मां और आप के तथाकथित अंकल का व्यवहार अमर्यादित है, तो आप अपनी मां से एतराज जता सकते हैं.

आप उन से साफ शब्दों में कहें कि आप को पिता की गैरमौजूदगी में उस तथाकथित अंकल का रोज आना और घंटों गप्पें लगाना नागवार गुजरता है. इतने से ही वे दोनों सतर्क हो जाएंगे. अगर न हों तो आप कह सकते हैं कि आप पिता से उन की शिकायत करेंगे. इस के बाद आप की समस्या स्वत: हल हो जाएगी.

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‘‘अब आ भी जाओ सुनी, इतनी देर से कंप्यूटर पर क्या कर रही है?’’

सुनील अधीर हो रहा था सुनयना को अपनी बांहों में लेने के लिए, पर सुनयना को उसे तड़पाने में मजा आ रहा था. उस ने एक नजर सुनील को देखा, फिर शरारत से मुसकरा कर वापस कंप्यूटर पर अपना काम करने लगी.

‘‘आ रही हूं, बस अपनी प्रोफाइल पिक्चर लगा दूं.’’

‘‘अरे नहीं, ऐसा मत करना. तुम्हारा यह दीवाना क्या कम है जो अब फेसबुक पर भी अपने दीवानों की फौज खड़ी करना चाहती हो,’’ सुनील परेशान होने का नाटक करता हुआ बोला.

सुनयना ने उस की बात पर ध्यान न देते हुए फोटोगैलरी से एक खूबसूरत सी फोटो ढूंढ़ निकाली, जिस में उस ने पीले रंग की सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी और अपने सुंदर, लंबे, कालेघने बालों को आगे की ओर फैला रखा था. अपनी प्रोफाइल पिक्चर लगाते हुए वह गुनगुनाने लगी, ‘‘ऐ काश, किसी दीवाने को हम से भी मोहब्बत हो जाए…’’

‘‘है वक्त अभी तौबा कर लो अल्लाह मुसीबत हो जाए,’’ सुनील ने गाने की आगे की लाइन को जोड़ा और उसे कंप्यूटर टेबल से अपनी गोद में उठा कर बैड पर ले आया. सुनील की बांहों में सिमटी सुनयना के चेहरे पर आज अजब सी मुसकराहट थी.

‘‘अब पता चलेगा बच्चू को, हर वक्त मुझे चिढ़ाता रहता है.’’

सुदर्शन व्यक्तिव और हंसमुख स्वभाव का धनी सुनील कालेज में सभी लड़कियों के आकर्षण का केंद्र था. उस के पास गर्लफ्रैंड्स की लंबी लिस्ट थी जिन्हें ले कर वह अकसर सुनयना को चिढ़ाया करता था और सुनयना चिढ़ कर रह जाती थी. कभीकभी सोचती कि काश, शादी से पहले उस का भी कम से एक अफेयर तो होता, तो वह भी सुनील को करारा जवाब दे पाती.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मेड मैनेजमैंट: प्रबंधन की एक नई विधा

हमारीभारतीय नारी को, गृहिणी को सब से ज्यादा यदि कोई चीज परेशान करती है, तो वह है… लो अभी हम ने बात पूरी भी नहीं की और आप ने कयास लगाने शुरू कर दिए. यह आदत हम हिंदुस्तानियों की जाती नहीं है. पूरी बात सुनी नहीं कि कयास लगाने शुरू कर दिए कि वह सब से ज्यादा परेशान रहती है. म्यूनिसिपैलिटी वालों से. उन के नल की टोंटी कितनी भी मोटी हो उस से जल समय पर नहीं आता है या फिर असमय आता है. रात को 1 बजे नलजी कलकल कर जल गिराते हैं, तो उत्पन्न होने वाले जलतरंगी संगीत से नींद खुल जाती है. यह नल से जल आने के पूर्व के खर्राटे हैं, जो हमारे खर्राटों पर भारी पड़ जाते हैं.

नहीं यह बात नहीं है. अब आप सोच रहे होंगे कि कचरे वाला कचरा नियमित रूप से नहीं उठाता होगा. नहीं, यह बात भी नहीं है. तो आप सोचने लगे होंगे कि पड़ोसिन पलपल किचकिच करने वाली आ गई होगी? नहीं यह परेशानी भी नहीं है. तो उस की ननद, देवर, सास आदि संताप देते होंगे. नहीं, ये तो दकियानूसी बातें हैं. देखा नहीं आप ने कुछ सीरियलों में कि सासू को बहू मां मानती है.

तो अब आप सोचने लगे होंगे कि दूध वाला पानी मिला कर दूध दे कर परेशान कर रहा होगा. वैसे पानी मिलाना तो दूध वालों का ऋगवेदकाल से चला आ रहा धर्म है. मगर नहीं, यह भी कोई बड़ी परेशानी नहीं है. आजकल पैक्ड दूध आसानी से उपलब्ध है. तो फिर प्रैस वाला परेशान कर रहा होगा. हफ्ते भर से ले गया कपड़ा वापस नहीं ला रहा होगा और इकट््ठे हो गए कपड़े ले जा नहीं रहा होगा या फिर माली परेशान कर रहा होगा. नहीं यह भी नहीं है. तो फिर क्या है? स्त्री को ये सारे के सारे पुरुष प्रजाति के लोग परेशान नहीं कर रहे हैं? तो फिर कौन कर रहा है? क्या स्त्री ही कर रही है? सही पकड़ा. स्त्री को एक स्त्री ही परेशान कर रही है. एक बात और समझ लीजिए कि केवल गृहिणी ही नहीं, कामकाजी स्त्री भी इस समस्या से परेशान है. आखिर दफ्तर से लौटने पर कौन से पति महोदय सारे काम करने के बाद पलकपावड़े बिछाए खड़े रहते हैं. वे तो और कोई न कोई काम ही फैलाए बैठे मिलते हैं. यह आज की स्त्री की ज्वलंत समस्या है. केवल जो स्त्री स्वयं मेड है मतलब ‘सैल्फ मेड’ है अपने इन कामों के लिए वह इस से मुक्त है.

यह मेड सर्वैंट है, जोकि हमारी गृहिणी को टैंशन देती है, आए दिन देती है, रोज देती है. बिना लेट देने में इस का लंबा रिकौर्ड है. यह क्या इस के डीएनए में है? कभी लेट आएगी, तो कभी बिना बताए गायब हो जाएगी. बहाने भी एक से एक नायाब. कभी तबीयत का, तो कभी मेहमान अचानक आ टपकने का, कभी बरसात में छत के टपकने का, तो कभी पानी न आने का, कभी भी कोई भी बेसिरपैर का बहाना. मेड के टैंशन देने के और भी कई तरीके हैं. जैसे काम ठीक से न कर बला टाल देना. यदि झाड़ूपोंछे वाली है, तो किसी दिन पोंछा लगाने का काम चुपचाप गोल कर देना.

एक मेड का नाम ‘कचरा बाई’ था, तो कचरा हर कमरे में थोड़ा सा अपने नाम को सार्थक करते हुए छोड़ ही देती थी. यदि बरतन वाली है, तो बरतन में साबुन लगा छोड़ देना या मौका देख कर पानी से ही साफ कर हाथ की सफाई दिखा देती है. यदि रोटी वाली मेड है

और आने का समय 10 बजे है तो 12 बजे आएगी. मैडम से नाराज है तो खुन्नस निकालने के लिए मिर्चमसाला सब्जी में ज्यादा डाल देगी

या फिर किसी दिन जानबूझ कर नमक डालना भूल जाएगी.

किसी दिन पता चला कि गृहिणी को खुद ही खाना बनाना पड़ा. मेम साहब खूब लेट आ कर केवल किचन साफ करने का काम कर चलती बनी और 2 रोटी व सब्जी भी भूख लगी है कह कर पालथी मार कर ठसके से मार ली. मतलब जिस मेड को खाना बनाने रखा था वह मैडम के हाथ का बना खा गई और उन्हें खून का घूंट पिला गई.

यदि शौकीन परिवार है, तो भी फीका सा खाना बना देना. महीने में 2-3 बार गैस खुली छोड़ देना, सब्जीदाल जला देना. चावलदाल में कंकड़ भी उबाल देना. वैसे ये उबलते नहीं हैं और न ही निगलते बनते हैं. हां, जिस की थाली में आ जाएं, वह जरूर गुस्से में उबलना शुरू हो जाता है.

एक आम लक्षण सभी मेड में होता है और वह यह कि काम करतेकरते 10 बार मोबाइल पर अपने आदमी से या फिर अपनी लड़की अथवा लड़के से बात करना. आग लगे इन सस्ती प्लान्स को. मेड जब चाहे कोई भी लिखापढ़ी का काम ले आएगी और मैडममैडम कर के उन से पूरा करवा लेगी. लेकिन दूसरे दिन से फिर वही हरकतें शुरू. घर में 3-4 मेड हैं, तो आपस में मंडली बना कर मैडम की पीठ पीछे बुराई करना, कानाफूसी कर के मैडम को तनावग्रस्त करना आम बात है. अरे, ये समझती क्यों नहीं कि एक महिला दूसरी महिला की कानाफूसी से परेशान हो जाती है. गृहस्वामिनी को लगता है कि हो न हो उस की घोर तरीके से निंदा हो रही है. भले ही कोई किसी की तारीफ करना चाह रहा हो, ये यह क्यों नहीं समझतीं?

गंगू तो कहता है कि मेड को आज की असली मेम साहब कहना चाहिए.

मेड हुई ही इसलिए है कि मैडम को तंग करे, तनाव दे, 2 पल भी सुकून की जिंदगी न जीने दे. यदि आप मेरी बात से सहमत नहीं हैं, तो अपने सीने पर हाथ रख कर बताएं कि आप का ऐसा सौभाग्य रहा कभी कि मेड ऐसी मिली हो जिस ने आप को अपनी हरकतों से कभी तंगाया न हो, नचाया न हो, उलझाया न हो? इतना तो आप अपने पति को भी नहीं नचा पाती हैं.

यहीं से मैनेजमैंट की एक बिलकुल नई ब्रांच ‘मेड मैनेजमैंट’ का स्कोप शुरू होता है.

गंगू की सलाह है कि सभी गृहिणियां, इन में कामकाजी भी शामिल हैं, इसे जौइन करें. यह एक संपूर्ण पाठ्यक्रम है. इस में यह बताया जाएगा कि मेड सिस्टम का विश्व व भारत में उदय व इतिहास, कितनी तरह की होती हैं, मेडों का स्वभाव, लाइक व डिसलाइक्स, उन से कैसे पेश आएं, क्या बात करें क्या नहीं. ‘मेड मैनेजमैंट’  में एक ‘मेड नीति’ बनाई गई है. उसे पढ़ने से ‘चाणक्य नीति’ की तरफ आप मेड से पार पा सकेंगी, नहीं तो वह आप को इसी तरह आरपार करती रहेगी. मेड मैनेजमैंट के निम्न सिद्धांतों पर गंभीरता से गौर करें:

– यदि आप के यहां एक से अधिक मेड हैं तो कभी भी उन्हें एक ही समय पर न बुलाएं. ‘न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी’. सीधी से सीधी मेड भी दूसरे के सान्निध्य में बिगड़ जाती है. जो पहले दिन अपनी आंखें नीचे जमीन में गड़ाए आप से बात करती थी उसी तरह जैसेकि नईनवेली बहू शुरू में सास से करती है, वह भड़कावे में आ कर अब आंखें मिला कर जोरजोर से ऐसे बात करे जैसेकि आप की सास या बौस हो.

– यदि झाड़ूपोंछा वाली को सुबह 9 बजे बुलाया है, तो बरतन वाली को उस के रुखसत होने के बाद 10 या 11 बजे बुलाएं.

– गंगू यह भलीभांति जानता है और मानता है कि यह भारतीय स्त्री के डीएनए में ही होता है कि वह मेड से जमाने भर की बातें किए बिना रह ही नहीं सकती है. वह यह न करे तो उसे बदहजमी हो जाएगी. जिन्हें बदहजमी हो वे कृपया नोट कर लें कि कहीं उन्होंने मेड से दूरी तो नहीं बना ली है. मेड पैरालाइसिस की पौलिसी ठीक नहीं. और यहीं पर जबान फिसल जाती है. वह कई बातें घरपरिवार की भी कर बैठती है और फिर मेड उन्हें यहां से वहां तक खूब नमकमिर्च लगा कर फैला देती है.

– कभी किसी दूसरे घर या मैडम की बात अगर मेड कर रही हो, तो कितनी भी आप के कानों में खुजली हो रही हो, कान न दें. कारण, आप के यहां की बातें भी वह दूसरे के यहां इसी तरह बताएगी.

– यदि आप को समाजसेवा का शौक है, तो आप सब से पहले जोरआजमाइश मेड के बच्चों पर करें. जैसेकि उस के बच्चों को मुफ्त ट्यूशन दें. वह गद्गद हो जाएगी. और आप के सिर पर तबला नहीं बजाएगी.

– सब से बेहतर है ‘एकल मेड’ या ‘ए टु जैड मेड’ जोकि घर के सभी काम करती हो. यह न किसी से बात कर पाएगी और न ही दूसरा इस से बात कर पाएगा.

– कभी जवान व सुंदर मेड को काम पर न लगाएं. विशेषरूप से तब जब आप के पति दिलफेंक स्वभाव के हों. खूसट मेड को खोजबीन कर लाएं. गंगू को माफ करें कि आप खुद ऐसी हैं, तो फिर तो और सतर्क रहने की जरूरत है कि कहीं सुंदरी मेड के रूप में घर न आ जाए.

– मेड की हस्ती कोई सस्ती नहीं होती. उसे चायनाश्ता जरूर करवा दें वरना वह बुरा मानती है. 10 घरों में आप की बुराई करती है.

– यहां आप अंगरेजों की ‘फूट डालो राज करो’ नीति अपनाएं. यदि एक से अधिक मेड हैं, तो एक की कमियां निकाल कर दूसरी के सामने बताएं. वह फील गुड करेगी. कभी उन्हें एकदूसरे से इस तरह भिड़ा भी दें. इस तरह आप का काम निकलता रहेगा.

– बाजारवाद के इस युग में सारी बातें मुफ्त में नहीं बताई जातीं. ‘मेड मैनेजमैंट’ के बाकी सिद्धांत विस्तार से समझने हैं, तो पत्राचार से इस का कोर्स जौइन कर सकते हैं. यदि यह आप के काम का नहीं निकले तो आप के पैसे वापस की भी गारंटी.

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Diwali Special: परिवार की खुशियों के साथ रखें उनके सेहत का ध्यान

दिवाली के त्योहार में फल, मिठाईयां तथा पकवान का विशेष आनंद लिया जाता है. लेकिन इस दिन खान पान की मिलने वाली आजादी कई बार घातक भी हो जाती है. यदि आप खान-पान संबंधी किसी विशेष प्रकार का डाईट चार्ट को फौलो कर रही हैं तो आपको और भी सतर्क रहने की जरुरत है. यदि आप इस दिवाली बिना स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए इस त्योहार का पूरा आनंद लेना चाहती हैं तो आपको इन बातों का विशेष ध्यान रखना होगा.

मिठाई

आप चाहें जो भी मिठाई खा रही हों, उसको छोटे-छोटे टूकड़ों में खायें तथा उसका पूरा स्वाद लें. इससे आप उस मिठाई की अगली पीस को लेने से आसानी से बच जायेंगी. ज्यादातर कोशिश यह करें कि आप गुड़ तथा सुखे फल की बनी मिठाईयों को ही प्राथमिकता दें. ध्यान रखें कि ज्यादा मीठा खाना आपके लीवर पर असर कर सकता है.

छोटे प्लेट का उपयोग

यह जरुर ध्यान रखें कि खाने में कमी करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप खाने की प्लेट ही छोटी रखें. इससे आप प्लेट में कम खाना लेंगी. इसके अलावा जब भी आप मिठाईयों का उपयोग करें तब यह निश्चित करें कि आपके द्वारा उपयोग में ली गई वस्तु उच्च गुणवत्ता वाली है.

पानी की मात्रा को बनाए रखें

शरीर में हमेशा पानी की मात्रा को बढ़ाकर रखें जिसके लिए आप फलों के ताजा जूस तथा नारियल पानी का उपयोग कर सकती हैं. पानी को सादा पीने के बजाय उसमें नीबूं, मिंट, मिलाकर ही पीयें और पानी के स्तर को बनाए रखने के लिए खीरा, ककड़ी का भी उपयोग कर सकती हैं.

हेल्दी दिवाली गिफ्ट को चुने

दिवाली के अवसर पर आपस में गिफ्ट देने का प्रचलन है. अतः आपस में जब भी गिफ्ट का आदान-प्रदान करें तो उसमें स्वास्थ का ध्यान जरुर रखें. जिसमें काजू, किशमिश, बादाम, अखरोट, सुखे मेवे, किशमिश आदि हो तो अच्छा रहेगा.

खरीदारी करते समय पैदल ही घूमें

जब भी कोई खरीदारी करने या फिर किसी पार्टी में आप जाएं तो उसमें आप पैदल चलने को ही प्राथमिकता दें. यह आपके शरीर के लिए फायदेमंद तो होगा ही साथ में पर्यावरण के लिए भी उपयोगी होगा. इससे आप मिठाईयों को खाने से पैदा हुई एक्स्ट्रा कैलोरी को भी कम कर सकेंगे. त्योहार का दिन होने से आप जिम या रनिंग पर शायद न जा पायें तो चिंता न करें, घर की ही सीढ़ियों पर चढ़ना-उतरना प्रारंभ करें. इसके अलावा घर में मौजूद टेबल, डेस्क का सहारा लेकर स्ट्रेचिंग भी कर सकती हैं.

चीनी और शक्कर की मात्रा को कम करें

ज्यादा चीनी और नमक के सेवन को ना कहें. इससे आपके शरीर में सूजन, मोटापा तथा अन्य प्रकार की बीमारियों के होने की संभावना बढ़ जाती है.

हाथी के दांत: क्या हुआ उमा के साथ

कहानी- रामेश्वर कांबोज

स्वामी गणेशानंद खड़ाऊं पहने खटाकखटाक करते आगे बढ़ते जा रहे थे. उन के पीछे उन के भक्तों की भीड़ चल रही थी. दाएंबाएं उन के शिष्य शिवानंद और निगमानंद अपने चिमटे खड़खड़ाते हुए हल में जुते मरियल बैलों की तरह चल रहे थे. उन्हें पता था कि भीड़ स्वामीजी का अनुसरण कर रही है, उन का नहीं.

शिवानंद ने भभूत में अटे अपने बालों को खुजलाया और पीछे मुड़ कर एक बार भीड़ को देखा. उस की खोजपूर्ण आंखें कुछ ढूंढ़ रही थीं. निगमानंद ने आंख मिचका कर शिवा को संकेत किया. वह पीले दांत दिखा कर मुसकरा पड़ा. इस का अर्थ था कि वह उस का आशय समझ गया.

भीड़ जलाशय के निकट पहुंच गई थी. सब स्वामीजी की जयजयकार कर रहे थे. शिवा और निगम दूसरे किनारे की ओर, जहां औरतें नहा रही थीं, आ कर बैठ गए.

शिवा बोला, ‘‘गुरु, ऐसे क्यों बैठे हो? कुछ हो जाए.’’

‘‘क्या हो जाए बे, उल्लू के चरखे? फिल्मी नाच हो जाए या कालिज का रोमांस हो जाए?’’ निगम गुर्राया.

‘‘अरे, कैसी बातें करता है? देखता नहीं, नाचने वाली छोकरी गोता लगा रही है. गोलमटोल चेहरा, बाढ़ की तरह चढ़ती जवानी. क्या खूबसूरती है. खैर, छोड़ो इन बातों को. बूटी तैयार करो. एकएक लोटा चढ़ाएंगे. राम कसम, इस के नशे में हर चीज, हर औरत मुंहजोर घोड़े की तरह हावी हो जाती है.’’

निगम ने आंखों से कीचड़ पोंछ कर स्वामीजी की तरफ ताका. वह मटमैले पानी में एक टांग पर खड़े कुछ गुनगुना रहे थे. वह चिमटे को धरती में ठोंक कर बोला, ‘‘स्वामीजी जब से बूटी चढ़ाने लगे हैं, उसी दिन से भगतिनियों की गिनती बढ़ने लगी है. कहते हैं भंगेड़ी के चक्कर में औरतें ज्यादा आती हैं.’’

एकाएक दोनों चुप हो गए. गुरुजी सब भक्तों को आशीर्वाद दे रहे थे. निगम चुपचाप बूटी तैयार कर रहा था. बारीबारी से दोनों ने एकएक लोटा गटक लिया. भक्तगण पांव छूते, स्वामीजी भभूत का तिलक लगाते और आशीर्वाद देते. फिर उमा की बारी आई. ऐसा सलोना, कुंआरा सौंदर्य सामने देख कर स्वामीजी ठगे से रह गए. उमा ने चरण छुए तो स्वामीजी ने दोनों हाथों से उस का मुखड़ा ऊपर उठा दिया. तिलक लगाते समय उन का हाथ गालों से हो कर फिसलता हुआ उमा के कंधे पर जा टिका.

वह बोले, ‘‘बेटी, तुझ में माधव का वास है. अभीअभी भगवान ने मेरे दिल में आ कर कहा है. तेरी आत्मा माधव की प्यासी है. मुझे सपने में रात जो देवी दिखाई दी उस का रूप तेरी ही तरह था.

‘‘उस ने मुझे नींद से जगा कर कहा, गणेशानंद, यह मेरा गांव है. मैं यहां  प्रकट होना चाहती हूं. मैं अपने गांव को स्वर्ग बनाना चाहती हूं. तुम जहां पर लेटे हुए हो, यहां से सौ कदम पूरब को चलो. ऊपर से मिट्टी हटाओ. वहां तुम मुझे देखोगे. उस जगह एक मंदिर बनवाना. यह काम तुम्हें ही करना है.

‘‘मैं देवी के चरणों पर गिर पड़ा. मंदिर बनवाने का वचन दे दिया. वह स्थान मैं ने तुम सब के सामने खुदवाया है. अगर तुम लोगों ने मिलजुल कर मंदिर न बनवाया तो न जाने गांव पर कैसी विपदा आ पड़े.’’

उमा चुप बैठी थी. उस की मां की आंखों में आनंद के आंसू चमक रहे थे. सब गांव वालों ने स्वामीजी को सहायता देने का पूरा विश्वास दिलाया. उमा की मां स्वामीजी के चरणों को छू कर बोली, ‘‘महात्माजी, मेरे पल्ले कुछ नहीं है. बस, यह छोकरी है, उमा. मैं क्या दे सकूंगी.’’

‘‘चिंता क्यों करती हो उमा की मां, उमा तुम्हारे घर की ही नहीं, पूरे गांव की देवी है. मैं मंदिर की धूपबाती का काम इसे ही सौंपना चाहता हूं. अगर इस ने भगवान को खुश कर लिया तो तुम्हें मनचाही मुराद मिल जाएगी.’’

‘‘स्वामीजी, मुझे कुछ नहीं चाहिए. इस नासपीटी का बापू घर लौट आए, यही बहुत है. मुझे धनदौलत की इच्छा नहीं है,’’ उमा की मां उदास हो कर बोली.

‘‘घबरा मत. तेरी मनसा जल्दी पूरी हो जाएगी. उमा को हरेक काम में हमारे साथ रहना पड़ेगा. कल भंडारा करेंगे और मंदिर की नींव रखेंगे.’’

अगले दिन भंडारा हुआ. गांव के लोगों ने 10 हजार रुपए इकट्ठे कर के गणेशानंद को भेंट कर दिए. आसपास के गांव वाले भी आए. सूर्यास्त तक बहुत गहमागहमी रही. गणेशानंद ऊंची चौकी पर बैठे थे. शिवानंद और निगमानंद भंडारे की देखरेख के लिए खड़े थे. प्रबंध उमा के हाथ में था. गांव वालों की वाहवाही हो उठी.

रात को खापी कर सब स्वामीजी की धूनी के पास इकट्ठे हो गए. उमा पास ही बैठी थी. उस ने चेहरे पर हलकी सी भभूत लगा रखी थी. भभूत के प्रभाव से वह और अधिक प्यारी लग रही थी. दहकते कोयलों की चमक में उस का मुखमंडल पलाश के फूल सा लग रहा था.

कीर्तन शुरू हुआ. शिवानंद ने करताल संभाली, निगमानंद ने चिमटा. स्वामीजी गाते, फिर उमा दोहराती और तब सब के स्वर में स्वर मिला कर दोनों शिष्य गाते. आधी रात बीत गई. लोग जादू में बंधे से बैठे रहे. अंत में मीरा का पद गाया गया. उस पद की ‘तेरे कारण जोगन हूंगी, करवट लूंगी कासी’ पंक्ति वातावरण में काफी देर तक तैरती रही.  पूरी सभा भावविभोर हो उठी. निगम और शिवा उमा के पास बैठने से ही खुश थे.

शांतिपाठ के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए. वहां रह गई उमा और उस की मां, जो गणेशानंद के पांव दबा रही थीं. तनिक हट कर अंधेरे में चुपचाप बैठा एक व्यक्ति सब बातों का जायजा ले रहा था. वह था अमरेश.

‘‘कल मैं तीर्थभ्रमण करने जाऊंगा. उमा, तुम भी साथ चलना. हृदय पवित्र हो जाएगा. आंखें देवीदेवताओं के

दर्शन कर के निहाल हो जाएंगी,’’ स्वामीजी उमा के चेहरे पर दृष्टि गड़ा कर बोले.

शिवा ने सुल्फे पर कोयले रख

कर कश लिया और फिर स्वामीजी की तरफ बढ़ा दिया. गणेशानंद ने पूरा दम लगाया. सुल्फे की लपट निकली, जिस में उमा का चेहरा उसे सुर्ख दिखाई दिया.

अमरेश अधीर हो उठा. उमा उस की सगी बहन नहीं थी, पर वह उसे बेहद चाहता था. किसी भी कार्य से पराएपन का आभास नहीं होने देता था. उसी की कृपा से वह चिट्ठीपत्री पढ़ने लायक हो गई. उसे उमा के कारण गांव वालों का कोपभाजन भी बनना पड़ा था. वह अपने को संभाल नहीं सका. वहीं बैठेबैठे बोला, ‘‘उमा, इधर आ.’’

उमा इस अप्रत्याशित स्वर से चौंक उठी. वह अमरेश के पास आ कर खड़ी हो गई, ‘‘क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है, जो इस तरह पहरा दे रहे हो?’’

‘‘विश्वास था, अब नहीं रहा,’’ अमरेश के स्वर में आक्रोश था.

‘‘क्यों, अब क्या हो गया?’’

‘‘मैं ने कुछ गलत नहीं कहा. इस भंगेड़ी के चक्कर में तेरी अक्ल मारी गई है. गांव वाले सब जा चुके हैं, तू फिर भी यहां डटी हुई है. अगर तेरी आंख में जरा भी शरम है तो यहां से चलती बन,’’ अमरेश अधिकारपूर्वक बोला.

विवाद सुन कर स्वामीजी और उमा की मां भी उन के पास आ पहुंचे. उमा स्वामीजी की नजरों में अपने को बहुत ऊंचा समझ रही थी. इसीलिए उस ने स्वयं को अपमानित महसूस किया.

वह तैश में आ कर बोली, ‘‘भैया, तुम हद से बाहर पांव रख रहे हो. मैं किसी के चक्कर में नहीं आई. तुम ईश्वर को मानते तो इस तरह की बातें न करते. जिस बात को तुम समझते नहीं हो, उस में टांग न अड़ाओ.’’

‘‘तुम मुझे गलत समझ रही हो. अगर तुम्हें अक्ल होती तो इन सुल्फा पीने वालों के ढोंग में न फंसतीं.’’

‘‘क्या भौंकता है बे बदजात,’’ गणेशानंद ने उस की ओर चिमटा घुमाया.

‘‘जरा होश में बातचीत करो. ऐसे पहुंचे हुए महात्मा होते तो घर बैठे पूजे जाते. यहां दरदर मारे न फिरते. ज्यादा चबरचबर किया तो मारतेमारते भुरकस बना दूंगा,’’ अमरेश ने उमा को बांह पकड़ कर खींचा, ‘‘भला इसी में है कि इस समय यहां से चलती बनो.’’

उमा ने उस का हाथ झटक दिया. वह गिरतेगिरते बचा. संभलने पर उस ने उमा के गाल पर थप्पड़ जमा दिया.

उमा की मां भभक पड़ी, ‘‘लुच्चे कहीं के, चला जा इसी वक्त मेरे आगे से, नहीं तो तेरा खून पी जाऊंगी,’’ इतना कह कर वह उमा को ले कर घर चल पड़ी.

उमा ने आग्नेय नेत्रों से अमरेश की ओर देखा. वह गुस्से में होंठ चबा कर बोली, ‘‘अमरेश, मेरे लिए तुम मर गए. तुम ने अपनी औकात पर ध्यान नहीं दिया. भला इसी में है कि मुझे अपनी घिनौनी सूरत न दिखाना.’’

अमरेश का चेहरा लटक गया. वह ठगा सा वहीं खड़ा रहा. सारी धरती उसे आंखों के सामने घूमती प्रतीत हो रही थी. स्वामीजी उस की ओर क्रूरतापूर्ण दृष्टि से घूर रहे थे. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद स्वामीजी कुटिया में चले गए. अमरेश भी ढीले कदमों से घर की ओर मुड़ गया. उमा के व्यवहार से उस का हृदय बिंधा जा रहा था.

वह उस पर क्रुद्ध होते हुए भी उस का अहित नहीं सोच सकता था. उस ने रूठने पर उमा को न जाने कितनी बार मनाया था, कितनी बार उस की गीली आंखें पोंछी थीं. वह भी उस के तनिक से दुख में बेचैन हो जाती थी. जराजरा सी बात पर उसे कसमें दिलाती. दोनों में कभी ठेस पहुंचाने वाली बातें नहीं हुई थीं.

अगले दिन अमरेश को पता चला कि उमा और उस की मां तीर्थयात्रा के लिए स्वामी गणेशानंद के साथ चली गई हैं. सुन कर उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्या इस दुनिया के सभी संबंध थोथे हैं? यह प्रश्न उस के मन को मथने लगा. उस जैसे अनाथ के लिए उमा और उस की मां सागर में नौका की तरह थीं. उस का समूचा हार्दिक प्रवाह उन्हीं की ओर था.

रिक्तता से उस का हृदय कराह उठा. उमा जो बचपन में उस के कंधे पर सवार रहती थी, उस की घोर उपेक्षा कर बैठी, यह कम दाहक बात न थी. शत्रु का शत्रुतापूर्ण आचरण क्षमा किया जा सकता है, परंतु मित्र का दुर्व्यवहार क्षमा करने पर भी फांस की तरह चुभता रहता है.

2 दिन बाद उमा की मां लौट आई. उस की सूनीसूनी आंखों को देख कर अमरेश सिहर उठा. उस के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी.

आखिर अमरेश ने ही पूछा, ‘‘मांजी, उमा कहां है?’’

वह उत्तर नहीं दे सकी और प्रत्युत्तर में फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘मांजी, बताओ, उमा को क्या हो गया? मेरी उस लाड़ली को कहां छोड़ आईं?’’ अमरेश व्याकुल हो उठा.

‘‘वह ढोंगी स्वामी उसे न जाने कहां उड़ा ले गया. मेरी बच्ची…’’ वह आगे और कुछ नहीं बोल सकी.

‘‘मैं ने कितना समझाया था कि इन लोगों पर भरोसा करना मूर्खता है, पर तुम दोनों ने मेरी एक न सुनी. मुझे पता था कि इन दुष्टों ने रात के समय देवी की एक मूर्ति अपनी कुटिया के पास धरती में दबा दी थी, लेकिन तुम्हारे ऊपर पागलपन सवार था.’’

उमा की मां ने सिर ऊपर नहीं उठाया. धुंधलका छाने लगा. अमरेश खाट  पर बैठा था और उमा की मां लुटीहारी सी उस के सामने भूमि पर. दोनों चुप थे.

इसी बीच अमरेश का ध्यान दरवाजे की ओर गया. एक पगलाई सी परछाईं वहां जड़वत खड़ी थी. ज्यों ही वह खड़ा हुआ, परछाईं उस की ओर बढ़ी और दौड़ कर उस के गले से लिपट गई. वह उमा थी, उस के वस्त्र चिथेड़ेचिथड़े हो रहे थे.

‘‘अमरेश,’’ कह कर वह अचेत हो कर धरती पर गिर पड़ी.

अमरेश का दिल पसीज गया. उस ने उमा को चारपाई पर लिटा दिया. बहुत देर बाद उस की चेतना लौटी तो वह फफक पड़ी, ‘‘अमरेश, मुझे माफ मत करना. मैं ने तुम्हारी बात नहीं मानी. अपने हाथों से मेरा गला घोंट दो. मुझ पर पागलपन सवार था.

‘‘उस भेडि़ए ने मेरी इज्जत लूटी. उस के चेलों ने भी मुंह काला किया. उस के बाद मुझे 8 हजार रुपए में एक वेश्या के हाथ बेच दिया. मैं कहीं की नहीं रही. किसी तरह चकले से भाग आई, सिर्फ तुम्हारी सूरत देखने के लिए. मेरी तरफ एक बार अपना चेहरा तो घुमाओ.’’

अमरेश ने उस के सिर पर हाथ फेर कर सांत्वना देने की कोशिश की. काफी देर तक वह उस की आंखों की ओर टुकुरटुकुर देखती रही. उस समय अमरेश की आंखों में आंसू भर आए.

कुछ देर चुप रहने के बाद उमा जोर से खिलखिला पड़ी. उस ने अपनी मां को एक तरफ धकेल दिया, ‘‘मां, अब मैं ऐसे स्वामियों का खून करूंगी,’’ उस की क्रूर हंसी से दोनों सहम गए.

‘‘तुम ने मुझ को चौपट किया है, मां. तुम्हारी विषैली श्रद्धा मुझे डस गई. मैं तुम्हारा भी खून करूंगी,’’ वह फिर जोर से अट्टहास कर उठी.

उमा की मां सहम कर एक ओर हट गई. अमरेश ने उमा को पकड़ कर चारपाई पर लिटा दिया, ‘‘चुप रहो, उमा. मैं सब संभाल लूंगा.’’

उमा दोनों हाथों में सिर ले कर सुबकने लगी.

17 साल बाद भूल भुलैया 3 में ओजी मंजुलिका के रूप में लौटीं Vidya Balan, दिवाली पर फिल्म होगी रिलीज

बहुमुखी प्रतिभा की धनी और प्रतिभाशाली अभिनेत्री विद्या बालन (Vidya Balan) ‘भूल भुलैया 3’ में ओजी मंजुलिका के रूप में लौटीं. हौररकौमेडी फ्रैंचाइज की तीसरी फिल्म इस दिवाली सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए तैयार है, इस फिल्म के साथ विद्या 17 साल बाद फ्रैंचाइज में लौटीं और उन्होंने ट्रेलर में सबका ध्यान अपनी ओर खींचा.

फिल्म ने मुझे बहुत प्यार दिया

ट्रेलर लौन्च इवेंट के दौरान विद्या बालन ने फ्रैंचाइज़ में अपनी वापसी के बारे में बात की और कहा, “मुझे खुशी है कि मैं 17 साल बाद फ्रैंचाइज में लौटी हूं और पिछले कुछ सालों में इस फिल्म ने मुझे बहुत प्यार दिया है. आज मुझे एहसास हुआ है कि आने वाले 17 सालों में मुझे दर्शकों से और भी ज्यादा प्यार मिलेगा.”

फिल्म में हौरर और रोमांच

ओजी मंजुलिका के रूप में विद्या बालन की जगह कोई नहीं ले सकता और ‘भूल भुलैया 3’ में उनकी मौजूदगी ने फिल्म में हौरर और रोमांच के तत्व जोड़े हैं. दर्शकों ने उनके द्वारा निभाए गए हर किरदार को पसंद किया है, लेकिन मंजुलिका के रूप में उनके अभिनय ने उनके दिलों में खास जगह बनाई है. और अब, माधुरी दीक्षित तीसरी किस्त में विद्या बालन के साथ शामिल हो गई हैं, और उनका सहयोग दर्शकों के लिए एक रोमांचक मुकाबला होने का वादा करता है.

दिवाली पर रिलीज

यह फिल्म सिनेमाघरों में दिवाली पर रिलीज़ के लिए तैयार है और इसमें कार्तिक आर्यन और त्रिप्ति डिमरी मुख्य भूमिकाओं में हैं. अनीस बज्मी द्वारा निर्देशित इस फिल्म का निर्माण टीसीरीज़ द्वारा किया गया है.

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