Hindi Story : कुहराभरीशाम के 6 बजे ही अंधेरा गहरा गया था. रसिका औफिस से थकी हुई घर में घुसी ही थी कि उस की छोटीछोटी दोनों बेटियां भागती हुई मम्मा… मम्मा कहती उस से लिपट गईं. छोटी काव्या सुबक रही थी.
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मम्मा, यहां सब लोग मुझे बेचारी कहते हैं. आज नानी के पास एक आंटी आई थीं. वे मुझे प्यार करती जा रही थीं और रोरो कर कह रही थीं कि हायहाय बिन बाप की बेटियों का कौन अपने लड़के से ब्याह करेगा.
‘‘मम्मा, मेरे पापा तो हैं. वे ऐसे क्यों कह रही थीं?’’
8 साल की नन्ही काव्या के प्रश्न पर रसिका समझ नहीं पा रही थी कि इस मासूम को कैसे समझाए. फिर उसे प्यार से गले से लगाते हुए बोली, ‘‘इन बातों को मत सुना करो. तुम तो मेरी राजकुमारी हो,’’ और फिर पर्स से चौकलेट निकाल कर उस की हथेली पर रख दी. वह खुश हो कर उछलती हुई चली गईर्.
मान्या 10 साल की थी. वह कुछकुछ समझने लगी थी कि अब पापा से उन का रिश्ता खत्म हो गया है, इसलिए घर या बाहर कोई भी बेचारी या उस की मम्मा के लिए बुरा बोलता तो वह उस से लड़ने को तैयार हो जाती थी.
इस कारण सब उस की शिकायत करते, ‘‘रसिका, अपनी बेटी को कुछ अदबकायदा सिखाओ. सब से लड़ने पर आमादा हो जाती है.’’
रसिका अकसर मान्या को समझाती, ‘‘बेटी, इन लोगों से बेकार में क्यों बहस करती हो… तुम वहां से हट जाया करो.’’
मगर उस का रोज किसी न किसी से पंगा हो ही जाता. कभी घर में तो कभी स्कूल में.
रसिका जानती थी कि दोपहर में मां के पास महिलाओं का जमघट लगता है और वे दोनों बच्चियों को सुनासुना कर बातें करतीं, ‘‘हाय, बुढ़ापे में गायत्री बहनजी की मुसीबत आ गई है. रसिका तो सजधज कर औफिस चली जाती और इन बिटियों के लिए खाना बनाओ, टिफिन तैयार करो, कितना काम बढ़ गया है बहनजी के लिए.’’
‘‘चुप रहो मीरा. मान्या सुन लेगी तो आ कर लड़ने लगेगी,’’ गायत्रीजी ने कहा तो सब चुप हो गईं.
मीराजी को अपनी हेठी लगी तो वे उठ खड़ी हुईं. बोलीं, ‘‘गायत्री बहन,
?जरा सी लड़की से आप डरती क्यों हैं? हमारी नातिन ऐसा बोले तो मैं तो 2 थप्पड़ रसीद कर दूं.’’
फिर मान्या के घर में घुसते ही सब अपनेअपने घर चली गईं.
नानी के कराहने की आवाज सुन कर मान्या उन के पास आई, ‘‘नानी, आप रहते दो.मैं माइक्रोवेव में खाना गरम कर लूंगी. आप आराम करो.’’
‘‘रहने दे छोरी, अपनी अम्मां से कह देगी कि नानी ने खाना भी नहीं दिया.’’
मान्या का मूड खराब हो गया, लेकिन मम्मी की बात याद कर के चुपचाप खाने बैठ गई.
संडे का दिन था. रसिका अपने कपड़े धो रही थी. तभी रोती हुई काव्या घर में घुसी.
‘‘क्या हुआ? क्यों रो रही हो?’’
‘‘मम्मा, रिचा आंटी कह रही थीं कि तुम मेरे घर खेलने मत आया करो. तुम्हारी मम्मी तलाकशुदा हैं. तुम्हारे पापा से लड़ाई कर के आ गई हैं.’’
रसिका परेशान थी. सुबह मां से बहस हो चुकी थी. अत: गुस्से में बेटी को गाल पर थप्पड़ लगा चीख कर बोली, ‘‘क्यों जाती हो उन केघर खेलने?’’
‘‘मम्मा तलाकशुदा क्या होता है?’’
बेटी के मासूम प्रश्न पर रसिका की आंखें छलछला उठीं. आंसू नहीं रोक पाई. अपने कमरे में जा कर चुपचाप आंसू बहाती रही. मां की निगाहें भी अब बदल गई थीं. उन को भी शायद अब रसिका का यहां रहना अच्छा नहीं लग रहा था. हर समय मुंह फुलाए रहती हैं. बच्चों से भी ढंग से बात नहीं करतीं.
रसिका के किचन में घुसते ही कहने लगती हैं, ‘‘मैं कर तो रही हूं. यह यहां क्यों रख दिया?’’
यदि रसिका कुछ बना देती तो खुद उसे छूती भी नहीं. उस में मीनमेख निकालतीं. रसिका को उलटासीधा बोलतीं. बच्चों को डांटतीं.
मान्या स्कूल से कोई फार्म लाईर् थी भरने के लिए. उस में पापा का नाम सुरेश चंद्र लिखवाते हुए रसिका को हलक में कुछ अटकता महसूस हुआ. पति का नाम लेते ही उस की आंखें क्रोध से लाल हो उठीं.
पति के अत्याचारों की याद आते ही मुंह कसैला हो उठा. सुरेश के साथ रसिका ने अपने जीवन के कीमती पल बिताए थे. वह उसे प्यार तो करता था, परंतु गुस्सैल स्वभाव का होने के कारण किस पल नाराज हो कर गालीगलौज और मारपीट पर उतर आए, पता नहीं. इसलिए रसिका हर समय डरीसहमी सी रहती थी.
जब काव्या की डिलिवरी के वक्त रसिका मायके में थी तो अकेलेपन में सुरेश इमली के गदराए बदन पर आसक्त हो गया और उस ने उस के दिल में जगह बना ली. उसी की संगत में उसे पीने का शौक लग गया. बस वह इंसान से जानवर बन बैठा.
जब एक दिन अबोध काव्या को ज्यादा रोने पर उसे उठा कर जमीन पर पटकने को तैयार हो गया, तब रसिका दुर्गा बन कर उस से बेटी को छुड़ा पाईर् थी. उसी क्षण उस ने उस नर्क से निकल भागने का निश्चय कर लिया.
अगले दिन जब सुरेश का नशा उतर गया तो उस के रोने, माफी मांगने का रसिका पर कोई असर नहीं हुआ. फिर 2-4 दिन के अंदर ही मौका देख कर वह वहां से निकल ली.
रसिका ने केवल पति के खूनी पंजों से मुक्ति चाही थी. पैसे की कोई चाहत नहीं की थी. इसलिए आपसी सहमति से जल्दी तलाक हो गया था. उस के शरीर के जख्मों को देख कर ससुराल वालों के पास भी कहने को कुछ नहीं था एवं अपने बेटे के गुस्से के कारण वे लोग स्वयं ही परेशान थे.
रसिका अपनी मां के पास रहने लगी थी. उन्होंने भी दिल खोल कर उस का साथ दिया था.
पिता की प्रतिष्ठा के कारण उसे औफिस में परीक्षा देने का अवसर मिल गया और पास हो जाने पर नौकरी भी मिल गई.
जीवननैया सुचारु रूप से चल पड़ी थी. वे बेटियों को मां को सौंप कर निश्चिंत हो गई थी. मां को पैसे दे कर या घर का सामान ला कर अपना काम पूरा हो गया समझती थी.
रसिका को न ही बच्चों के टिफिन की कभी फिकर हुई न ही अपने टिफिन की. उसे भी मां के हाथों का खाना और नाश्ता मिलता रहा. व्यवस्था चल निकली थी.
रसिका औफिस में अपनी खुशियां तलाश कर ठहाके लगाती. वैभव उस का बौस था. दोनों के बीच दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. वह औफिस से अकसर ओवरटाइम कह कर देर से आने लगी थी. छुट्टी वाले दिन भी वैभव के पास किसी न किसी बहाने पहुंच जाती.
समस्या तब खड़ी हो गई जब उस के और वैभव के अफेयर के चर्चे मां के कानों तक पहुंचे. फिर तो उन की निगाहें और बोलचाल सब बदल गया.
मान्या 24 साल की हो गई थी और काव्या 22 की. रसिका औफिस से वैभव की बाइक पर लौट रही थी. गली के नुक्कड़ पर मां और मान्या दोनों ने वैभव को रसिका को किस करते हुए देख लिया. फिर तो घर में हंगामा होना स्वाभाविक था. मां को अपनी बेइज्जती बरदाश्त नहीं हुई. कहासुनी में बात इतनी बढ़ गई कि अगले 2 दिनों के अंदर ही वैभव ने उन के लिए 2 कमरों का फ्लैट ढूंढ़ लिया.
वैभव की मदद से रसिका की नई गृहस्थी आसानी से जम गई. घरेलू कामों के लिए विमला को भी वैभव ने ही भेजा था. सबकुछ सुचारु रूप से व्यवस्थित हो गया था.
वैभव के सन्निध्य से रसिका के जीवन को पूर्णता मिल गई थी. उस का जीवन पूरी तरह उलटपुलट गया था. वैभव रसिका के साथ ही रहने लगा था.
वैभव का साथ मिलने से रसिका के जीवन में सुरक्षा, खुशी, प्यार और जीवन का जो अधूरापन था, वह सब दूर हो कर खुशियों का एहसास होता. लेकिन यह समाज किसी को जीने नहीं देना चाहता.
मान्या हो या काव्या दोनों की आंखों में प्रश्नचिह्न देख रसिका अपनी आंखें चुराने के लिए मजबूर हो जाती थी.
वैभव ने तो बता ही दिया था कि उस के 2 बेटे हैं और पत्नी गांव में रहती है. उन की जिम्मेदारी उसी की है.
रसिका वैभव को अपना सर्वस्व मान बैठी थी. कब ये सब हुआ, उसे स्वयं मालूम न था.
उस दिन रसिका के सिर में दर्द था, इसलिए औफिस से जल्दी आ गई थी.
काव्या को रोता देख उस ने रोने का कारण पूछा तो काव्या ने बताया, ‘‘मम्मी, मैं सोनी आंटी के घर खेल रही थी, तो उन की दादी बोलीं कि तुम मेरे घर में मत आया करो. तुम्हारी मम्मी पराए मर्द के साथ रहती हैं.’’
रसिका गुस्से से तमतमा उठी, ‘‘तुम क्यों जाती हो उन के घर?’’
बेटी को तो रसिका ने डांट दिया, लेकिन उस की स्वयं की आंखें छलछला उठी थीं.
‘‘मम्मी पराया मर्द क्या होता है?’’
इस मासूम को वह क्या उत्तर देती. वह चुपचाप बाथरूम में जा कर सिसक उठी.
मान्या चुपचुप रहती. पर वैभव अंकल का घर पर रहना उसे भी अच्छा नहीं लगता. इसलिए न तो वह पार्क में खेलने जाती और न ही पड़ोस में किसी से बात करती.
मगर सुजाता आंटी अकसर आतेजाते उसे बुला कर फालतू पूछताछ करती रहती थीं.
‘‘इधर आओ मान्या,’’ एक बुजुर्ग आंटी ने उसे बुलाया, जिन्हें वह जानती नहीं थी.
‘‘ये तुम्हारे पापा नहीं हैं,’’ उसी आंटी ने कहा.
मान्या आंखों में आंसू भर कर अपने दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी. घर पहुंच कर वह सूने घर में फूटफूट कर रोती रही. तब छोटी काव्या ने उसे गिलास में पानी ला कर दिया और उस के आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘क्यों रो रही हो दीदी?’’
उस ने सिसकते हुए कहा, ‘‘तुम नहीं समझोगी काव्या.’’
‘‘दीदी, तुम रोया मत करो. समझ लिया करो मैं ने सुना ही नहीं.’’
मान्या को काव्या पर बहुत प्यार आया. फिर खाना निकाल कर दोनों ने साथ खाया.
काव्या बोली, ‘‘दीदी, वहां नानी अपने हाथों से कैसे प्यार से खाना खिलाती थीं. वहां सब लोग कितना प्यार भी करते थे… दीदी, चलो टीवी देखते हैं.’’
‘‘नहीं काव्या मुझे होमवर्क करना है नहीं तो मम्मी आ कर डांट लगाएंगी.’’
काव्या के बहुत कहने पर दोनों बहनें कार्टून फिल्म लगा कर बैठ गईं. फिर सब भूल गईं.
रसिका 6 बजे औफिस से घर लौट आई. आज उस का मूड खराब था. वैभव ने अपने बेटे पार्थ का कृष्णा कोचिंग में एडमिशन करवा दिया था, इसलिए अब 6 महीने वह यहीं उन के साथ ही रहेगा.
बेटियों को टीवी देखते देख उस का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया, ‘‘तुम लोगों को केवल टीवी देखना है… पढ़नेलिखने से कोई मतलब नहीं है?’’
डांट के डर से दोनों ने जल्दी से टीवी बंद कर दिया और अपनीअपनी किताबें खोल कर बैठ गईं.
स्कूल का सालाना फंक्शन था. सब बच्चों के मम्मीपापा अपने बच्चों का प्रोग्राम देखने आए थे. मान्या ने भी डांस में भाग लिया था. उस की आंखें भी दूरदूर तक मां को तलाश रही थीं. लेकिन मम्मी के लिए पार्क का टैस्ट ज्यादा महत्त्वपूर्ण था. वह मायूस हो गई.
दिन बीतते रहे. मौम की प्राथमिकता वैभव अंकल और पार्थ थे. मां के लिए उन दोनों को खुश रखना ज्यादा जरूरी था.
घर की बात स्कूल तक सहेलियों और कैब के ड्राइवर के माध्यम से पहुंच जाती थी. वह स्कूल में अपनी सहेलियों की निगाहों में ही ‘अछूत कन्या’ बन गई थी. उन के मार्मिक प्रश्न कई बार उस के दिल को दुखा देते थे.
‘‘क्यों मान्या, तुम्हें अपने पापा की शक्ल याद है कि नहीं?’’
‘‘ये अंकल तुम्हें मारते होंगे?’’
‘‘प्लीज, घर की बात यहां मत किया करो,’’ वह झुंझला उठी थी.
रसिका ने फ्लैट खरीदने के लिए फंड से रुपए निकाले. कुछ रुपए वैभव ने अपने भी लगाए थे, इसलिए स्वाभाविक था कि रजिस्ट्री में उस का नाम भी हो. अकाउंट भी साझा हो गया था.
मान्या कालेज में पहुंच गई थी. उस का स्वभाव बदलता जा रहा था. अब वह रसिका की एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. फैशनेबल कपड़े, स्कूटी, कोचिंग और ट्यूशन के बहाने घर से गायब रहती. यदि रसिका कुछ कहती तो तुरंत जवाब देती कि आप अपनी दुनिया में व्यस्त रहो. मेरी अपनी दुनिया है. आप बस अंकल और पार्थ का खयाल रखें.
मान्या ने बचपन में अपने आसपास पड़ोसियों के द्वारा इतना तिरस्कार और अपमान झेला था कि अब वह उस अपमान का बदला अपने पैसे और नित नए फैशन के बलबूते दूसरों को आकर्षित कर के अपना प्रभुत्व बढ़ा कर लेती थी.
मान्या औनलाइन तरहतरह की डिजाइनर ड्रैसें और्डर करती रहती. यदि कभी रसिका उसे टोक दे, तो तुरंत उस के मुंह पर जवाब दे देती, ‘‘आप से तो कम ही खर्च करती हूं… आप को औफिस जाना होता है, तो मुझे भी कालेज जाना होता है.’’
रसिका बेटी के सामने अपनेआप को मजबूर पा रही थी. उसे सुधारने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.
मान्या ने अपने स्कूल के समय में बहुत अपमान झेला था. लड़कियां उस से दोस्ती नहीं करती थीं. उसे अपने गु्रप में शामिल नहीं करती थीं. उसे अजीब निगाहों से देखती थीं.
सब अपनेअपने पापा के प्यार की बातें करतीं, कोई पिक्चर जाती, कोई घूमने जाती. सब फेसबुक पर फोटो शेयर करतीं. ये सब देखसुन कर मान्या की आंखें छलछला उठतीं. वह दूसरी तरफ मुंह घुमा कर उन की बातें सुनती, क्योंकि यदि उन की तरफ नजरें घुमाती तो वे बोलतीं, ‘‘तुम क्या जानो… तुम्हारे पापा को तो तुम्हारी मम्मी छोड़ कर पराए मर्द के साथ रह रही हैं.’’
यह कड़वा सच था. इस वजह से उस का मन घायल हो उठता था. वह बमुश्किल अपने आंसू रोक पाती थी.
उस के पड़ोस में रहने वाली रेनू उस के घर की 3-3 बात स्कूल में पहुंचा देती और फिर उन लोगों को चटखारे ले कर बातें बनाने का मौका मिल जाता.
कालेज में आने के बाद मान्या की समझ में आ गया कि रोने से कुछ नहीं होगा. अब उसे बिंदास हो कर जीना होगा.
मान्या को कुकिंग का शौक हो गया था. एक दिन खाने के शौकीन वैभव अंकल के लिए यूट्यूब पर देख कर मलाईकोफ्ते बनाए. अंकल ने खुश हो कर उस की जरूरत को समझते हुए उसे स्कूटी दिलवा दी.
वैभव ने उसे अपना एटीएम कार्ड भी दे दिया. अब तो उस के पंख निकल आए थे. कालेज कैंटीन और लड़कों के साथ दोस्ती के कारण उस का तो लाइफस्टाइल ही बदल गया था. एटीएम कार्ड से औनलाइन शौपिंग, फैशनेबल ड्रैसेज, नएनए हेयर कट में उस की दुनिया बदल गई.
वैभव को खुश रखने में उस का फायदा था. इसलिए वह उस के लिए हर संडे
कुछ स्पैशल बनाती और वह प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर अपने पास बैठा लेता और फिर खुश हो कर खाता. लेकिन मां को यह पसंद नहीं आता.
वह उसे कोई काम बता कर वहां से उठा देती.
कालेज में ढेरों दोस्त बन गए थे. वह सब को कैफेटेरिया में अकसर ट्रीट देती. उस की कुंठा पैसों के रास्ते बह गई थी.
वंश की बड़ी सी गाड़ी और उस के आकर्षक व्यक्तित्व में वह खो गई. उस का फाइनल ईयर था.
उधर काव्या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने बैंगलुरु चली गई थी.
अब मान्या वैभव का काम आगे बढ़ कर देती. फिर चाहे वह सुबह की बैड टी हो या ब्रेकफास्ट. वह प्यार से उसे अपनी बांहों में भर लेता. रसिका ये सब देख कर सुलग उठती. लेकिन वैभव के सामने कुछ बोल नहीं पाती. दोनों के बीच वैभव का काम करने के लिए कंपीटिशन सा रहता.
रसिका मान्या को घूर कर देखती और फिर बोलती, ‘‘क्यों, किचन में घुसी रहती है? अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. काम करने के लिए विमला है तो?’’
मान्या वैभव की प्लेट में प्यार से पिज्जा रखते हुए बोली, ‘‘अंकल खा कर बताइए कैसा बना है? मैं ने यूट्यूब से देख कर टौपिंग करी है.’’
पिज्जा का एक टुकड़ा खुद खाने से पहले वैभव ने मान्या को खिलाया. फिर रसिका की घूरती आंखों से डर कर उस के मुंह में भी रखा और फिर खुश हो कर बोला, ‘‘लाजवाब, वैरी टेस्टी. मान्या कमाल है.’’
जबकि रसिका को पिज्जा स्वादहीन लग रहा था.
कुछ दिनों से रसिका देख रही थी कि वैभव औफिस में रोशनी को अपने कैबिन में बारबार बुलाता था कई बार उस ने झांक कर भी देखा. दोनों ठहाके लगाते हुए कौफी की चुसकियां ले रहे होते.
रसिका ने महसूस किया कि वैभव उस के हाथ से फिसलता जा रहा है. एक क्षण को उस के हाथपैर ठंडे हो गए. अब वह हैरानपरेशान रहने लगी थी. डिप्रैशन होने लगता था… आत्मविश्वास कम होता जा रहा था.
उन की मेड विमला अपने गुरूजी की महिमा का दिनभर बखान करती थी.
रसिका पति से तलाक लेने के बाद उसे पूरी तरह भूल चुका थी, क्योंकि वैभव ने उस के जीवन में रंग भर दिए थे. उसे पति जैसा ही सहारा मिल गया था.
रसिका ने जीजान से वैभव को खुश करने के लिए, उस के बेटे को भी अपने पास रखा, उसे पढ़ायालिखाया, उस की सारी सुखसुविधाओं का खयाल रखा. बीमार पड़ने पर पूरी देखभाल की. फिर भी वैभव उस से निगाहें फेर कर कभी रोशनी, तो कभी पूर्वा को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए कौफी पीता, लौंग ड्राइव पर जाता है. रसिका के लिए ये सब जीतेजी मरने वाली बात हो गई थी, इसलिए वह गुरू की शरण में जाने के बारे में बारबार सोचती रहती.
विमला अपनी मालकिन से संवेदना रखती थी. वह उस की कशमकश को देखसमझ रही थी.
रोजरोज उस का महिमामंडन सुनतेसुनते वह विमला के साथ उस के
गुरू के पास जाने को तैयार हो गई.
विमला अपनी मालकिन को अपने गुरू के पास ले जाने से पहले ही उस की पूरी कहानी सुना चुकी थी.
गुरू ने विमला को आशीर्वाद दिया था कि इस साल यकीनन उस के बेटा पैदा होगा. वह खुशी से कल्पनालोक में बेटे को गोद में खिलाती हुई महसूस कर रही थी.
रसिका के पहुंचने की खबर मिलते ही गुरू ने आंखें बंद कर ध्यान में लीन होने का नाटक किया.
आधे घंटे के इंतजार के बाद रसिका को अंदर बुलाया गया. वह कुछ कहती, उस से पहले ही गुरू ने उस की जन्मपत्रिका पढ़ कर सुना डाली.
गुरूजी पर अंधभक्ति के लिए उस का एक नाटक ही काफी था. रसिका की आंखों से धाराप्रवाह अश्रु बह निकले थे और उस ने आगे बढ़ कर गुरू के चरणों पर झुकना चाहा.
‘‘नहीं… नहीं… बेटी मेरा ब्रह्मचर्य मत भंग करो. मैं तो बालब्रह्मचारी हूं. मैं तो इस दुनिया में लोगों को कष्ट और संकट दूर करने के लिए ही आया हूं.
‘‘मैं तो हिमालय की कंदरा में जाने कितने बरसों से तपस्या करता रहा हूं. न ही मेरा कोई नाम है, न ही मुझे अपने जन्म का पता है.’’
रसिका नतमस्तक थी. बोली, ‘‘गुरूजी, अब आप ही मुझे बचाइए… वैभव दूसरी स्त्री के चक्कर में न पड़े.’’
‘‘बच्चा, मैं ने दिव्य दृष्टि से देख लिया है. वह रोशनी तुम्हारी जिंदगी में अंधेरा करना चाहती है.
‘‘यह भभूत ले जाओ… वैभव को खिलाती रहना. वह रोशनी की ओर अपनी नजरें भी नहीं उठाएगा.’’
रसिका खुशीखुशी क्व4 हजार का नोट उस के चरणों में रख कर ऐसा महसूस कर रही थी जैसे सारा जहां उस की मुट्ठी में आ गया हो.
फिर तो कभी कलावा, कभी ताबीज तो कभी हवनपूजा. धीरेधीरे उस का विश्वास गुरूजी पर बढ़ता गया क्योंकि रोशनी यह कंपनी छोड़ दूसरी में चली गई थी और वैभव फिर से उस के पास लौट आया था.
रसिका खुश हो कर गुरू की सेवा में अपनी तनख्वाह का 40वां भाग तो निश्चित रूप से देने लगी थी. उस के अतिरिक्त समयसमय पर अलग से चढ़ावा चढ़ाती.
रसिका अपना भविष्य सुधारने में व्यस्त थी. उधर बेटी मान्या और वंश की दोस्ती प्यार में बदल गई थी.
वंश रईस परिवार का इकलौता चिराग था. वह रंगबिरंगी तितलियों की खोज में रहता था. वह देखने में स्मार्ट था. उस के पिता का लंबाचौड़ा डायमंड का बिजनैस था. कनाट प्लेस में बड़ा शोरूम था. इसलिए उस के डिगरी का कोई खास माने नहीं था. कालेज तो लिए मौजमस्ती की जगह थी. वह फाइनल ईयर में थी और कैंपस भी हो गया था.
मान्या वंश के घर भी जाती रहती थी. उस की मां और पापा से मिल चुकी थी.
मां सोना और सत्येंद्र को मान्या पसंद थी, इसलिए उस के हौसले और भी बढ़ गए थे.
एक दिन मान्या वंश को ले कर घर आई और
रसिका से मिलवाया.
रसिका भी वंश के आकर्षक व्यक्तित्व और नामीगिरामी परिवार का चिराग है, जान कर खुशी से फूल कर कुप्पा हो गई. उस ने बेटी को शादी के लिए वंश पर जोर डालने की सलाह दी.
वंश उसे अपना भावी दामाद लगने लगा था, इसलिए मान्या को उस के संग घूमनेफिरने की पूरी आजादी थी. दोनों अंतरंग रिश्ते की डोर से बंध गए थे.
रसिका ने एक दिन वंश और उस के परिवार को अपने घर पर लंच के लिए बुलाया ताकि वे लोग उन के बारे में अच्छी तरह से जानकारी ले लें और उन का घर और रहनसहन भी देख लें. वैभव उस दिन गांव गया था.
वंश के पिता ने उसी समय उन दोनों के रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी. उन्हें मान्या पसंद थी.
एक बार में ही सबकुछ इतनी जल्दी तय हो जाएगा, रसिका ने सपने में भी नहीं सोचा था.
रसिका खुशी से गद्गद हो कर गुरू के चरणों में गिर गई, ‘‘आप की महिमा अपरंपार है. आप की वजह से ही इतने बड़े परिवार में मेरी बेटी का रिश्ता तय होने जा रहा है.’’
सगाई समारोह पांचसितारा होटल में संपन्न हुआ. मान्या के परिवार से तो कोई था नहीं, केवल औफिस की मित्रमंडली थी.
वंश के नातेरिश्तेदारों का पूरा हुजूम था. उसी दिन शादी की तारीख भी तय कर दी गई.
यद्यपि वंश की मां ने आ कर मान्या के दादीनानी वगैरह के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन रसिका ने गोलमोल जवाब दे कर बात संभालने का प्रयास किया था.
वंश की कोठी देख वह बेटी की खुशी के लिए पैसा पानी की तरह बहा रही थी. वह अपने फंड से पैसे निकाल कर दिनरात शौपिंग और बुकिंग में जुटी थी.
वैभव कुछ उखड़ाउखड़ा सा रहता. शादी की तैयारी में कोई रुचि नहीं ले रहा था.
मेहंदी और संगीत का फंक्शन था. कल शादी थी. रसिका लोगों की आवभगत में लगी थी. सभी लोग उसे बधाई दे रहे थे. उस की निगाहें वैभव को चारों ओर ढूंढ़ रही थी. लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उस का फोन भी बंद था. वैभव को तो उस ने शादी के कई कामों की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. वह इतना गैरजिम्मेदार तो कभी नहीं था.
इतना बड़ा फंक्शन. लोगों की भीड़भाड़ थी. वंश के परिवार वालों के आने का समय हो चुका था. वैभव का फोन बंद आ रहा था.
किसी अनिष्ट की आशंका से रसिका का तनमन सिहर उठा. उस का चेहरा विवर्ण हो उठा. तभी उस का मोबाइल बज उठा. वंश की मां सोना का फोन था.
उन्होंने उखड़े अंदाज में उन्हें अपने घर बुलाया था.
मां के चेहरे को देखते ही मान्या समझ गई कि कुछ अघटित घट चुका है. उस ने वंश को फोन लगाया तो उस का फोन बंद आया.
सब तरफ मौन पसर गया. अकेली रसिका अपनेआप को संभाल नहीं पाई. उस का चेहरा आंसुओं से भीग गया. क्षणभर में सब को सांप सूंघ गया. जितने लोग उतनी बातें. माहौल में मौन के साथसाथ फुसफुसाहट भी हो रही थी. सब अपनेअपने अनुसार कयास लगा रहे थे.
मानसिक व्यथा के उन कठिन क्षणों में अनेक झंझावातों को झेलते हुए अनेकानेक हां और नहीं के विचारमंथन के बाद रसिका ने साहस जुटा कर सब के चेहरों के प्रश्नचिह्न के समाधान के लिए वंश के मातापिता के साथ उन की गलतफहमी को दूर करने की बात कही.
सब के चेहरे उम्मीद की किरण की रोशनी से नहा उठे.
‘‘मम्मी, आप को उन के सामने रोनेगिड़गिड़ाने की कोई जरूरत नहीं है,’’ मान्या ने कहा.
रसिका बेटी को डांट कर चुप रहने को कह कर अकेली गाड़ी में बैठ कर वंश के घर की ओर चल दी.
कुछ पलों के लिए रसिका के यहां सन्नाटा पसर गया था. कुछ लोगों के चेहरों पर
आशा की किरण जगमगा रही थी कि रसिका अपनी वाक्पटुता से सारी गलतफहमी को दूर कर देगी. तो कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन के चेहरों पर कुटिल मुसकान दिखाई दे रही थी कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे? जैसा करा है वैसा भरो. किसी का घर तोड़ा है तो उस का फल तो यहीं मिलना है. अब बेटी की शादी टूटेगी तो पता लगेगा कि किसी के घर में आग लगाने का नतीजा क्या होता है.
रसिका वंश की कोठी में पहुंची तो वहां पर वैभव और उस की पत्नी राधिका को देखते ही सबकुछ शीशे की तरह साफ हो चुका था.
वह उन लोगों के सामने रोई, गिड़गिड़ाई, राधिका के सामने हाथ जोड़े, माफी मांगी. वैभव मूक बैठा रहा.
वंश की मां के सामने अपनी बेटी की खुशियों की भीख झोली फैला कर मांगती रही. लेकिन वह टस से मस न हुई. बोली, ‘‘मैं ऐसी मां की बेटी से अपने बेटे की शादी नहीं कर सकती, जिस ने अपने जीवन में रिश्ते निभाना नहीं सीखा.’’
वह रोतीबिलखती रही. काफी देर इंतजार करने के बाद दोनों बेटियां भी वहां पहुंच गईं, ‘‘उठो मां, वंश जैसे कायर लड़के के साथ मैं खुद शादी नहीं करूंगी.’’
काव्या बोली, ‘‘दीदी, तू तो बच गई ऐसे कायर, कमजोर जीवनसाथी से.’’
‘‘मां, आप समझो बच गईं, क्योंकि इन फरेबियों का असली चेहरा शादी से पहले ही सामने आ गया.’’
‘‘मां, एक बार जोर से मुसकराओ…हम सब इन धोखेबाजों के चंगुल से बच गए.यह सैलिब्रेशन का समय है. आंसू बहाने का नहीं.’’
रसिका अपनी बेटियों के चेहरे देखती रह गई. उस का तन और मन दोनों जैसे शून्य और शक्तिहीन हो चुके थे. उस के लिए यह आघात सहना कठिन हो रहा था.
रसिका की आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी. वह मन ही मन घुट रही थी कि इतनी बड़ी दुनिया में उस का अपना कोई नहीं है. उस ने रिश्ता भी जोड़ा तो स्वार्थी वैभव से, जिस ने बीच मंझधार में छोड़ दिया.
रसिका ने अपनी बेटियों को गहरी नजर से देखा और फिर बोली, ‘‘मेरी प्यारी बेटियो सच में यह समय तो सैलिब्रेशन का ही है.’’
रसिका का चेहरा उस के साहस की रोशनी से जगमगा उठा था.
‘‘मान्या आंखों में आंसू भर कर अपने दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी. घर पहुंच कर वह सूने घर में फूटफूट कर रोती रही…’’
‘‘सब तरफ मौन पसर गया. अकेली रसिका अपनेआप को संभाल नहीं पाई. उस का चेहरा आंसुओं से भीग गया. क्षणभर में सब को सांप सूंघ गया…’’