शक का संक्रमण: आखिर किस वजह से दूर हो गए कृति और वैभव

‘‘मैं मैं इस घर में एक भी दिन नहीं रह सकती. मुझे बस तलाक चाहिए,’’ कृति के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वकील ने मौन साध लिया.

जवाब न सुन कृति का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया, ‘‘आप बोल क्यों नहीं रहे वकील साहब? देखिए मुझे नहीं पता कि कोरोना की क्या गाइडलाइंस हैं. आप ने कहा था कि 1 महीना पूरा होते ही मेरी अर्जी पर कोर्ट फैसला दे देगा,’’ कृति के चेहरे पर परेशानी उभर आई.

‘‘देखिए कृतिजी. कोर्ट बंद हैं और अभी खुलने के आसार भी नहीं तो केस की सुनवाई तो अभी नहीं हो सकती और मैं जज नहीं जो डिसीजन दे कर आप के तलाक को मंजूर कर दूं,’’ वकील ने समझते हुए कहा.

‘‘पर मैं यहां से जाना चाहती हूं. 1 महीने के चक्कर में फंस गई हूं मैं. मुझ से उस आदमी की शक्ल नहीं देखी जा रही जिस ने मुझे धोखा दिया. मैं नहीं रह सकती वैभव के साथ.’’

कृति के शब्दों की झंझलाहट और मन में छिपे दर्द को वकील ने साफ महसूस किया. 2 पल की खामोशी के बाद वह फिर बोला, ‘‘आप अपनी मां के घर चली जाएं.’’

‘‘अरे नहीं जा सकती. इस इलाके को कारोना जोन घोषित कर दिया है. यहां से निकली तो 40 दिन के लिए क्वारंटीन कर दी जाऊंगी,’’ कृति ने हांफते हुए कहा.

‘‘तो बताओ मैं क्या कर सकता हूं?’’ वकील ने कहा.

‘‘आप बस इतना करें कि इस लौकडाउन के बाद मुझे तलाक दिला दें,’’ और कृति ने फोन काट दिया. फिर किचन की ओर मुड़ गई. उस के गले में हलका दर्द था और सिर भारी हो रहा था. एक कप चाय बनाने के लिए जैसे ही उस ने किचन के दरवाजे पर कदम रखा वैभव को अंदर देख कृति के सिर पर गुस्से का बादल जैसे फट पड़ा. पैर पटकते वापस बैडरूम में आ कर लेट गई.

छत पर घूमते पंखे के साथ पिछली यादें उस की आंखों के सामने तैरने लगीं…

दीयाबाती के नाम से मशहूर वैभव और कृति अपने कालेज की सब से हाट जोड़ी थी. दोनों के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर न जाने कितने दिल जल कर खाक हुए जाते थे.

कृति के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए वैभव रोज नए ट्रिक्स अपनाता. दोनों की दीवानगी कोई वक्ती न थी. अपने कैरियर के मुकाम पर पहुंच वैभव और कृति परिवार की रजामंदी से विवाह के बंधन में बंध गए.

सबकुछ बेहद खूबसूरत चल रहा था लेकिन वह एक शाम दोनों की जिंदगी में बिजली बन कर कौंध गई. प्रेम की मजबूत दीवार पर शक के हथौड़े का वार गहरा पड़ा. वैभव ने लाख सफाई दी कि उस का मेघना के साथ सिर्फ मित्रता का संबंध है लेकिन शक की आग में जलती कृति कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. 15 दिन बाद दोनों की शादी को 2 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन कृति उस से पहले ही वैभव से तलाक चाहती थी. कोर्ट ने एक बार दोबारा विचार करने के लिए दोनों को कुछ समय साथ रहने का फैसला सुनाया था.

वैभव के लाख प्रयासों के बाद भी कृति का मन नहीं बदला बल्कि वैभव की हर कोशिश उसे सफाई नजर आती. नफरत और गुस्से से वह वैभव को शब्दबाणों से घायल करती रहती. वैभव का संयम अभी टूटा नहीं था इसलिए उस ने मौन ओढ़ लिया. केस की अगली सुनवाई तक दोनों को साथ ही रहना था इसलिए मजबूरन कृति वैभव को बरदाश्त कर रही थी.

समय बीत रहा था लेकिन अचानक आए कोरोना के वायरस ने जिंदगी की रफ्तार को जैसे थाम लिया. लौकडाउन लग चुका था. चारों ओर डर और अफरातफरी का माहौल था. कृति अपने मायके जाना चाहती थी लेकिन उन की सोसायटी सील कर दी गई थी क्योंकि उस में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे थे. मन मार कर एक ही छत के नीचे रहती कृति अंदर ही अंदर घुल रही थी.

कृति अपने खयालों में खोई कमरे में चहलकदमी कर रही थी कि ऐंबुलैंस की तेज आवाज से उस का ध्यान भटका. वह भाग कर बालकनी की ओर भागी. सामने वाली बिल्डिंग

के नीचे ऐंबुलैंस खड़ी थी. उस के आसपास पीपीई किट पहने 4 लोग खड़े थे. कृति ने ध्यान दिया तो उसे सामने वाली बिल्डिंग के 4 नंबर फ्लैट की बालकनी में सुधा आंटी रोती नजर आई. ऐंबुलैंस के अंदर एक बौडी को डाला जा रहा था. थोड़ी देर में ऐंबुलैंस सायरन बजाते निकल गई. सुधा आंटी के रोने की आवाज अब साफ नजर आ रही थीं.

ऐंबुलैंस में उन के एकलौते बेटे रजत को ले जाया गया था.

‘‘रजत नहीं रहा,’’ बगल की बालकनी में मुंह लपेटे पारुल खड़ी थी. उस की बात सुन कर कृति का दिल धक से रह गया.

‘‘क्या बोल रही हो पारुल. यार एक ही बेटा था आंटी का… कोई नहीं है उन के पास तो… कैसे बरदाश्त करेंगी वे यह दुख,’’ कृति दुखी स्वर में बोली.

‘‘कारोना जाने कितनों को अपने साथ ले जाएगा. तुम ने मास्क नहीं पहना और तुम बाहर खड़ी हो. इतनी लापरवाही ठीक नहीं कृति,’’

कह कर पारुल अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. घबराई कृति कमरे में आ कर अपने चेहरे और हाथों को साबुन से रगड़ने लगी. सुधा आंटी का विलाप चारों तरफ फैले सन्नाटे में डर पैदा कर रहा था. कृति अपने कमरे को सैनिटाइज कर बिस्तर पर लेट गई. सिर में दर्द और गले की खराश मन में भय की तरंगें बनाने लगी. नाक से बहता पानी मस्तिष्क को बारबार झंझड़ रहा था. लेकिन आंटी और रजत के बारे में सोचतेसोचते उसे गहरी नींद आ गई.

कृति को कमरे से बाहर न निकलते देख वैभव को चिंता हो रही थी. कृति कभी इतनी देर नहीं सोती. रात के 8 बज रहे थे और कृति 4 बजे से कमरे के अंदर थी. रजत के जाने का दुख वैभव को अंदर तक हिला गया. उस पर कृति का कमरे में बंद होना वैभव के मन में हजार आशंकाओं को जन्म दे रहा था. घड़ी की सूई बढ़ती जा रही थी. 9 बज चुके थे. अब वैभव उस के कमरे के दरवाजे के पर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘कृति, तुम ठीक हो न? कृतिकृति,’’ दरवाजे को थपथपा कर वह बोला. लेकिन कृति की कोई आवाज नहीं आई. वैभव ने दरवाजे को हलके से धकेला तो कृति को बिस्तर पर बेसुध पाया. उस ने करीब जा कर उस के माथे को छूआ माथा तप रहा था.

‘‘कृतिकृति उठो आंखें खोलो,’’ वैभव उसे झंझड़ कर बोला.

कृति ने अपनी आंखें खोलने की कोशिश की लेकिन खोल नहीं पाई. वैभव तुरंत अपना मास्क चेहरे पर लगा कर ठंडे पानी का कटोरा ले कर उस के सिरहाने बैठ गया. ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रख उस की हथेलियां रगड़ने लगा.

कृति को कुछ होश आया. आंखें खोलीं तो वैभव सामने था. कृति की आंखें लाल थीं. वैभव उसे होश में आया देख तुरंत पैरासिटामोल ले आया और सहारा दे कर दवा उस के मुंह में डाल दी.

कृति को अपना शरीर बिलकुल निष्क्रिय लग रहा था. वह उठ नहीं पा रही थी.

कोरोना उस के शरीर को जकड़ चुका था लेकिन वैभव उस के करीब खड़ा था. यह देख कृति बोली, ‘‘तुम दूर रहो वैभव, मुझे कारोना… तुम भी बीमार हो जाओ,’’ और फिर खांसने लगी. उसे सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई.

‘‘तुम शांत रहो. मुझे कुछ नहीं होगा. मैं ने मास्क और दस्ताने पहने हैं और तुम्हें बस वायरल बुखार है कारोना नहीं. घबराओ नहीं. मैं चाय लाता हूं,’’ कह वैभव रसोई में चला गया. थोड़ी देर में चाय और स्टीमर उस के साथ था. कृति को चाय दे कर वैभव ने स्टीमर का प्लग लगाया और उसे गरम करने लगा. कृति चाय पी कर स्टीम लेने लगी. वैभव वहीं खड़ा था.

‘‘तुम जाओ बीमार हो जाओगे. जाओ प्लीज,’’ कृति ने जोर दे कर कहा.

‘‘मैं ठीक हूं. सुबह कोरोना का टैस्ट होगा हमारा. तुम रिलैक्स रहना कृति,’’ वैभव उसे समझते हुए बोला.

कृति ने हां में सिर हिलाया. थोड़ी देर में वह फिर सो गई. कोरोना के लक्षण अभी इतने नहीं दिखाई दे रहे थे लेकिन वैभव डर गया. कृति के मायके फोन कर खबर देने के बाद वैभव ने सारे घर को सैनिटाइज किया. चाय का कप ले कर कृति के कमरे के बाहर ही बैठ गया.

कृति बीचबीच में खांस रही थी और बेचैनी से अपने सीने को रगड़ रही थी. अस्पताल ले जाना खतरनाक था क्योंकि अस्पताल से आती मौत की खबरों ने दहशत फैला रखी थी. वैभव की आंखों में नींद नहीं थी. वह एकटक कृति को देख रहा था. कृति बारबार अपनी गरदन पर हाथ फेर रही थी. बाहर फैला सन्नाटा कोरोना के साथ मिल कर सब के दिलों से खेल रहा था जैसे.

‘‘पा… पानी,’’ कृति के होंठ बुदबुदाए.

वैभव ने भाग कर कुनकुना पानी ला कर कृति के होंठों से लगा दिया. लिटा कर टेम्प्रेचर लेता है. बुखार कुछ कम हुआ था, लेकिन अब भी 102 पर अटका था.

रात भी जाने कितनी लंबी थी जो सरक ही नहीं रही थी. वह कृति के कमरे के बाहर दरवाजे पर टेक लगाए बैठा था. बीचबीच में पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनाई देती.

सूरज अपने समय पर उगा. खिड़की से आती सूरज की रोशनी कृति के चेहरे पर पड़ने लगी तो वह जाग गई. शरीर में टूटन थी. सहारा

ले बिस्तर से उठ कर बाथरूम में घुस गई. वैभव दरवाजे के पास ही जमीन पर बेखबर सो रहा था. बाथरूम से बाहर आकर कृति की नजर जमीन पर लेटे वैभव पर पड़ी. वह कसमसा कर रह गई.

2 कदम चलने की हिम्मत भी कृति की नहीं हो रही थी. सांस लेने में तकलीफ होने लगी.वह वैभव को बुलाना चाहती थी लेकिन खांसी के तेज उफान से यह नहीं हो सका. उस के खांसने की आवाज से वैभव की नींद टूट गई. वह हड़बड़ा कर उठा तो देखा कि कृति बिस्तर पर सिकुड़ कर लेटी हुई है. वह अपना मास्क ठीक करता है और उस के पास जा कर उसे सीधा करता है. कृति गले में रुकावट का इशारा करती है. वैभव कुनकुना पानी उस के गले में उतार देता है. कृति को कुछ राहत महसूस होती है.

वैभव की घबराहट कृति के लिए बढ़ती जा रही थी. वह लगातार व्हाट्सऐप पर औक्सीजन सिलैंडर के इंतजाम के लिए मैसेज कर रहा था. औक्सीमीटर और्डर कर वैभव कोरोना हैल्पलाइन सैंटर में कौल कर कृति की स्थिति बताई. वहां से वैभव को कुछ निर्देश मिले. कोरोना टैस्ट के लिए पीपीई किट पहने 2 लोग आए और उन के सैंपल ले गए. मौत का भय कैसे मस्तिष्क को शून्य कर देता है यह वैभव और कृति महसूस कर रहे थे.

बिस्तर पर पड़ी कृति वैभव की उस के लिए चिंता साफ महसूस कर रही थी. प्यार जो स्याहीचूस की तरह कहीं सारी भावनाओं को चूस रहा था एक बार फिर वापस तरल होने लगा.

घर के काम और कृति की देखभाल में वैभव भूल गया था कि कृति उस के साथ बस कुछ दिनों के लिए है. औक्सीमीटर से रोज औक्सीजन नापने से ले कर कृति को नहलाने तक का काम वैभव कर रहा था और कृति उस के प्रेम को धीरेधीरे पी रही थी.

मन में अजीब सी ग्लानि महसूस कर कृति अकसर रो पड़ती. लेकिन वैभव के सामने सामान्य बनी रहती. कृति तकलीफ में थी. मन से भी और शरीर से भी. लेकिन उस के अपनों ने उस से दूरी ही रखी. शायद भय था कि कहीं

कृति उन से कोई मदद न मांग ले. वैभव कोरोना को ले कर औनलाइन सर्च करता रहता. कृति के इलाज के साथ सावधानी और उस की डाइट पर वैभव कोई लापरवाही नहीं करना चाहता था. दिन बीत रहे थे और कृति तेजी से रिकवर कर रही थी लेकिन कमजोरी इतनी थी कि वह खुद के काम करने में भी सक्षम महसूस नहीं कर रही थी. बालकनी में कुरसी पर बैठी कृति शहर के सन्नाटे को महसूस कर रही थी. आसपास के फ्लैट्स की बालकनियों के दरवाजे कस कर बंद पड़े थे शायद सब को उस का कोरोना पौजिटिव होना पता चल गया था. इंसानों के बीच आई यह दूरी कितनी पीड़ादायक थी.

कृति अपने खयालों में खोई थी कि रसोई से आती तेज आवाज से उस का ध्यान भंग हुआ. वह दीवार का सहारा ले कर कमरे से बाहर निकली. रसोई में वैभव अपना हाथ झटक रहा था. फर्श पर दूध का बरतन पड़ा था जिस में से भाप उठ रही थी. माजरा सम?ाते उसे देर न लगी.

कृति बेचैनी से चिल्लाई, ‘‘वैभव ठंडा पानी डालो हाथ पर… जल्दी करो वैभव.’’

‘‘ठीक है. लेकिन तुम जाओ आराम करो परेशान न हो,’’ वैभव ने फ्रिज खोलते हुए कहा.

‘‘मेरी चिंता न करो. मैं ठीक हूं. अपना हाथ दिखाओ,’’ वह चिल्लाई.

वैभव का हाथ लाल हो गया था.

‘‘क्या किया तुम ने यह क्या हाथ से बरतन उठा रहे थे? बरतन गरम है यह तो देख लेते?’’ कृति गुस्से से बोली.

‘‘मेरी चिंता मत करो. वैसे भी अकेले ही रहना है मुझे,’’ अपनी हथेली को कृति की हथेलियों से. छुड़ा कर वह बोला.

‘‘तो तुम क्यों चिंता कर रहे थे मेरी? रातदिन मेरे लिए दौड़ रहे थे… मेरे लिए अपनी नींद खो रहे थे… मरने देते मुझे,’’ कृति की आवाज में दर्द था.

‘‘प्यार करता हूं तुम से. तुम्हारे लिए तो जान भी दे सकता हूं,’’ वैभव न कहा.

‘‘तो क्यों नहीं मुझे रोक लेते?’’ सुबकते हुए कृति बोली.

‘‘मैं ने तो कभी तुम से दूर होने की कल्पना नहीं की. तुम ही मुझ से नफरत करती हो,’’ वैभव रसोई के फर्श पर बैठ गया.

‘‘नफरत. तुमतुम वह मेघना… मैं ने तुम्हें उस के साथ… तुम ने मुझे धोखा क्यों दिया वैभव?’’ कृति तड़प उठी.

‘‘मैं तुम्हें धोखा देने की कल्पना भी नहीं कर सकता. उस रात मेघना को अस्थमा का अटैक आया था. मैं सिर्फ उसे गोद में उठा कर पार्किंग में कार में बैठा रहा था लेकिन तुमने सिर्फ यही देख मु?ा पर शक किया. मेघना को भी अपराधी बना दिया जबकि उस समय वह खतरे में थी,’’ वैभव एक सांस में बोल गया.

कृति खामोश हो नीचे बैठ गई. उस की आंखों से बहता पानी अपनी गलती का एहसास करा रहा था. वैभव उस के गालों पर आंसू देख परेशान हो गया.

‘‘तुम रो क्यों रही हो कृति? देखो अभी तुम्हारी तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं.

सांस लेने में दिक्कत हो जायेगी,’’ वैभव बोला.

‘‘कुछ नहीं होगा मुझे. इस कांरोना संक्रमण ने मेरे शक के संक्रमण को मार दिया है वैभव. मुझे माफ कर दो मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. तुम्हें किसी और के करीब देख मेरी चेतना शून्य हो गई थी. मैं जलन में गलती कर गई. तुम्हारा अपमान किया, तुम पर आरोप लगाए. मुझे माफ कर दो वैभव,’’ कृति हाथ जोड़ कर बिलखने लगी.

‘‘तुम्हारी आंखों में अपने लिए नफरत देख मैं कितना तड़पा हूं तुम नहीं समझ सकती. अब ऐसे रो कर मुझे और तड़पा रही हो. कैसे सोच लिया था तुम ने कि तुम्हारे बिना मैं जिंदा रह पाता. मर जाता मैं,’’ कह कर वैभव ने कृति को बांहों में भींच लिया. दोनों की आंखों से बहता पानी प्रेम के सागर को और गहरा करने लगा.

अगली तारीख पर अपना फैसला सुनाने के लिए कृति ने वैभव के सीने पर चुंबन अंकित कर दिया.

Hindi Story Collection : वापसी – तृप्ति अमित के पास वापस क्यों लौट आयी?

Hindi Story Collection : दिल्ली पहुंचने की घोषणा के साथ विमान परिचारिका ने बाहर का तापमान बता कर अपनी ड्यूटी खत्म की, लेकिन वीरा की ड्यूटी तो अब शुरू होने वाली थी. अंडमान निकोबार से आया जहाज जैसे ही एअरपोर्ट पर रुका, वीरा के दिल की धड़कनें यह सोच कर तेज होने लगीं कि उसे लेने क्या विजेंद्र आया होगा?

अपने ही सवालों में उलझी वीरा जैसे ही बाहर आई कि सामने से दौड़ कर आती विपाशा ‘मांमां’ कहती उस से आ कर लिपट गई.

वीरा ने भी बेटी को प्यार से गले लगा लिया.

‘5 साल में तू कितनी बड़ी हो गई,’ यह कहते समय वीरा की आंखें चारों ओर विजेंद्र को ढूंढ़ रही थीं. शायद आज भी विजेंद्र को कुछ जरूरी काम होगा. विपाशा मां को सामान के साथ एक जगह खड़ा कर गाड़ी लेने चली गई. वह सामान के पास खड़ी- खड़ी सोचने लगी.

5 साल पहले उस ने अचानक अंडमान निकोबार जाने का फैसला किया, तो  महज इसलिए कि वह विजेंद्र के बेरुखी भरे व्यवहार से तिलतिल कर मर रही थी.

विजेंद्र ने भरपूर कोशिश की कि अपनी पत्नी वीरा से हमेशा के लिए पीछा छुड़ा ले. उस ने तो कलंक के इतने लेप उस पर चढ़ाए कि कितना ही पानी से धो लो पर लेप फिर भी दिखाई दे.

यही नहीं विजेंद्र ने वीरा के सामने परेशानियों के इतने पहाड़ खड़े कर दिए थे कि उन से घबरा कर वह स्वयं विजेंद्र के जीवन से चली जाए. लेकिन वीरा हर पहाड़ को धीरेधीरे चढ़ कर पार करने की कोशिश में लगी रही.

अचानक ही अंडमान में नौकरी का प्रस्ताव आने पर वह एक बदलाव और नए जीवन की तैयारी करते हुए वहां जाने को तैयार हो गई.

अंडमान पहुंच कर वीरा ने अपनी नई नौकरी की शुरुआत की. उसे वहां चारों ओर बांहों के हार स्वागत करते हुए मिले. कुछ दिन तो जानपहचान में निकल गए लेकिन धीरेधीरे अकेलेपन ने पांव पसारने शुरू कर दिए. इधर साथ काम करने वाले मनचलों में ज्यादातर के परिवार तो साथ थे नहीं, सो दिन भर नौकरी करते, रात आते ही बोतल पी कर सोने का सहारा ढूंढ़ लेते.

छुट्टी होने पर घर और घरवाली की याद आती तो फोन घुमा कर झूठासच्चा प्यार दिखा कर कुछ धर्मपत्नी को बेवकूफ बनाते और कुछ अपने को भी. ऐसी नाजुक स्थिति में वे हर जगह हर किसी महिला की ओर बढ़ने की कोशिश करते, पट गई तो ठीक वरना भाभीजी जिंदाबाद. अंडमान में वीरा अपने कमरे की खिड़की पर बैठ कर अकसर यह नजारे देखती. कई बार बाहर आने के लिए उसे भी न्योते मिलते पर उस का पहला जख्म ही इतना गहरा था कि दर्द से वह छटपटाती रहती.

कंपनी से वीरा को रहने के लिए जो फ्लैट मिला था, उस फ्लैट के ठीक सामने पुरुष कर्मचारियों के फ्लैट थे. बूढ़ा शिवराम शर्मा भी अकसर शराब पी कर नीचे की सीढि़यों पर पड़ा दिख जाता. कैंपस के होटलों में शिवराम खाना कम खाता रिश्ते ज्यादा बनाने की कोशिश करता. उस के दोस्ती करने के तरीके भी अलगअलग होते थे. कभी धर्म के नाते तो कभी एक ही गांव या शहर का कह कर वह महिलाओं की तलाश में रहता था. शिवराम टेलीफोन डायरेक्टरी से अपनी जाति के लोगों के नाम से घरों में भी फोन लगाता. हर रोज दफ्तर में उस के नएनए किस्से सुनने को मिलते. कभीकभी उस की इन हरकतों पर वीरा को गुस्सा भी आता कि आखिर औरत को वह क्या समझता है?

कभीकभी उस का साथी बासु दा मजाक में कह देता, ‘बाबू शिवराम, घर जाने की तैयारी करो वरना कहीं भाभीजी भी किसी और के साथ चल दीं तो घर में ताला लग जाएगा,’ और यह सुनते ही शिवराम उसे मारने को दौड़ता.

3 महीने पहले आए राधू के कारनामे देख कर तो लगता था कि वह सब का बाप है. आते ही उस ने एक पुरानी सी गाड़ी खरीदी, उसे ठीकठाक कर के 3-4 महिलाओं को सुबहशाम दफ्तर लाने और वापस ले जाने लगा था. शाम को भी वह बेमतलब गाड़ी मैं बैठ कर यहांवहां घूमता फिरता.

एक दिन अचानक एक जगह पर लोगों की भीड़ देख कर यह तो लगा कि कोई घटना घटी है लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा था. भीड़ छंटने पर पता चला कि राधू ने किसी लड़की को पटा कर अपनी कार में लिफ्ट दी और फिर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी तो लड़की ने शोर मचा दिया. जब भीड़ जमा हो गई तो उस ने राधू को ढेरों जूते मारे.

वीरा अकसर सोचती कि आखिर यह मर्दों की दुनिया क्या है? क्यों औरत को  बेवकूफ समझा जाता है. दफ्तर में भी वीरा अकसर सब के चेहरे पढ़ने की कोशिश करती. सिर्फ एकदो को छोड़ कर बाकी के सभी एक पल का सुख पाने के लिए भटकते नजर आते.

वीरा की रातें अकसर आकाश को देखतेदेखते कट जातीं. जीने की तलाश में अंडमान आई वीरा को अब धरती का यह हिस्सा भी बेगाना सा लग रहा था. बहुत उदास होने पर वह अपनी बेटी विपाशा से बात कर लेती. फोन पर अकसर विपाशा मां को समझाती रहती, उस को सांत्वना देती.

5 साल बाद विजेंद्र ने बेटी विपाशा के माध्यम से वीरा को वापस आने का न्योता भेजा, तो वह अकसर यही सोचती, ‘आखिर क्या करे? जाए या न जाए. पुरुषों की दुनिया तो हर जगह एक सी ही है.’ आखिरकार बेटी की ममता के आगे वीरा, विजेंद्र की उस भूल को भी भूल गई, जिस के लिए उस ने अलग रहने का फैसला किया था.

वीरा को याद आया कि घर छोड़ने से पहले उस ने विजेंद्र से कहा था कि मैं ने सिर्फ तुम्हें चाहा है, कभी अगर मेरे कदम डगमगाने लगें या मुझे जीवन में कभी किसी मर्द की जरूरत पड़ी तो वापस तुम्हारे पास लौट आऊंगी. आखिर हर जगह के आदमी तो एक जैसे ही हैं. इस राह पर सब एक पल के लिए भटकते हैं और वह भटका हुआ एक पल क्या से क्या कर देता है.

कभी वीरा सोचती कि बेटी के कहने का मान ही रख लूं. आज वह ममता की भूखी, मानसम्मान से बुला रही है, कहीं ऐसा न हो, कल को उसे भी मेरी जरूरत न रहे.

अचानक वीरा के कानों में विपाशा के स्वर उभरे, ‘‘मां, तुम कहां खोई हो जो तुम्हें गाड़ी का हार्न भी नहीं सुनाई पड़ रहा है.’’

वीरा हड़बड़ाती हुई गाड़ी की ओर बढ़ी. घर पहुंच कर विपाशा परी की तरह उछलने लगी. कमला से चाय बनवा कर ढेर सारी चीजों से मेज सजा दी.

सामने से आते हुए विजेंद्र ने एक पल को उसे देखा, उस की आंखों में उसे बेगानापन नजर आया. घर का भी एक अजीब सा माहौल लगा. हालांकि गीतांजलि अब  विजेंद्र के जीवन से जा चुकी थी, फिर भी वीरा को जाने क्यों अपने लिए शून्यता नजर आ रही थी. हां, विपाशा की हंसी जरूर उस के दिल को कुछ तसल्ली दे देती.

वह कई बार अपनेआप से ही बातें करती कि ऊपरी तौर पर वह लोगों के लिए प्रतिभासंपन्न है लेकिन हकीकत में वह तिनकातिनका टूट चुकी थी. जीने के लिए विपाशा ही उस की एकमात्र आशा थी.

विजेंद्र की कुछ मीठी यादों के सहारे वीरा अपना दुख भूलने की कोशिश करती, वह तो बेटी के प्रति मां की ममता थी जिस की खुशी के लिए उस ने अपनी वापसी स्वीकार कर ली थी. वह सोेचती, जब जीना ही है तो क्यों न अपने इस घर के आंगन में ही जियूं, जहां दुलहन बन के आई थी.

वीरा की वापसी से विपाशा की खुशी में जो इजाफा हुआ उसे देख कर काम वाली दादी अकसर कहती, ‘‘बेटा, निराश मत हो. विजेंद्र एक बार फिर से वही विजेंद्र बन जाएगा, जो शादी के कुछ सालों तक था. मैं जानती हूं कि तुम्हें विजेंद्र की जरूरत है और विपाशा को तुम्हारी. क्या तुम विपाशा की खुशी के लिए विजेंद्र की वापसी का इंतजार नहीं कर सकतीं?

‘‘आखिर तुम विपाशा की मां हो और समाज ने जो अधिकार मां को दिए हैं वह बाप को नहीं दिए. तुम्हारी वापसी इस घर के बिखरे तिनकों को फिर से जोड़ कर घोंसले का आकार देगी. खुद पर भरोसा रखो, बेटी.’’

लेखक- बीना बुदकी 

Hindi Story Collection : रब ने बना दी जोड़ी

Hindi Story Collection : डांस एकैडमी से वापस आने पर नमिता ने देखा घर जैसा बिखरा हुआ छोड़ गई थी, उसी तरह पड़ा था. लगता है मेड दुलारी ने आज फिर से छुट्टी मार ली. उफ, अब क्या करूं, कैसे इस बिखरे घर को समेटूं. समेटना तो पड़ेगा उसे ही क्योंकि अभी यहां किसी को ज्यादा जानती भी तो नहीं है, नईनई तो आई है इस सोसायटी में रहने. सारा दिन तो काम की तलाश में ही निकल जाता है. वह तो अच्छा है कि दुलारी उसे मिल गई जो उस के लिए खाना बनाने से ले कर घर की साफसफाई तक मन लगा कर कर देती है.

मगर आज तो घर उसे ही साफ करना पड़ेगा. नमिता ने बड़बड़ाते हुए चाय बना कर पी और फिर ?ाड़ू लगाने लगी, साथ ही म्यूजिक भी औन कर लिया.

म्यूजिक व डांस बस 2 ही तो शौक थे उस के, जिन्हें वह भरपूर जीना चाहती थी, परंतु हमेशा मनचाहा पूरा हो ही जाए ऐसा संभव तो नहीं. वैसे भी उस के डांस व म्यूजिक के शौक को उस के मिडल क्लास मांबाबूजी अहमियत ही कहां देते थे. उस के उम्र के 28 वसंत पूरा करते उन का एक ही टेप चालू रहता, शादी कर के घर बसा लो, इस बेकार की उछलकूद व गानेबजाने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है. डांस ऐकैडमी से जब भी वापस आती, वही घिसापिटा रिकौर्ड चालू हो जाता. बहुत इरिटेट हो चुकी थी यह सब सुनसुन कर, शादीवादी कर के घर बसाने का कहीं दूर तक प्लान नहीं था उस की विश लिस्ट में, उसे तो बस डांस में ऐसा कुछ कर दिखाना था जो शायद अभी तक किसी ने न किया हो.

अपने इन्हीं सपनों को अंजाम देने के लिए ही लखनऊ से मुंबई आने का निर्णय कर लिया था नमिता ने मन में. मांबाबूजी को जब इस फैसले के बारे में बताया तो एकदम भड़क उठे थे कि पगला गई हो क्या, इतने बड़े शहर में अकेली रहोगी? कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो लोगों को क्या मुंह दिखाएंगे हम लोग? घर वालों के विरोध के बावजूद उस ने अपना मुंबई का टिकट बुक कर लिया था. यहां मुंबई में उस की बचपन की दोस्त मिताली रहती थी. वह भी नमिता की तरह अकेली थी लेकिन उस के पास किसी मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी जौब थी. अपने मुंबई आने की खबर नमिता ने मिताली को फोन पर दे दी थी.

मिताली उसे स्टेशन पर रिसीव करने आ गई थी. मिताली ने काफी गरमजोशी से उस का स्वागत किया. कुछ टाइम दोनों सखियों ने अगलीपिछली यादें ताजा कर के खूब मस्ती की.

‘‘अच्छा बता तेरा प्लान क्या है, इस तरह अचानक घर छोड़ कर आने का कुछ तो कारण होगा. मिताली ने पूछा.

‘‘हां प्लान तो एकदम सौलिड है. यू नो, बिना किसी प्लान के तो मैं एक कदम भी आगे नहीं रखती. तु?ो तो याद ही होगा कि स्कूल में जब भी कोई कल्चरल प्रोग्राम होता था तो मैं उस में हमेशा डांस में परफौर्मैंस देती थी और मेरे डांस को टीचर्स बहुत ऐप्रीशिएट भी करती थीं. बस तभी से डांस मेरा पैशन बन गया.

‘‘यहां मुंबई में रह कर एक डांस ऐकैडमी खोलने का विचार है परंतु पहले यहां रह कर इस क्षेत्र में कुछ अनुभव जमा कर लूं.’’

मिताली ने उसे हौसला दिया कि मुंबई में काम हरेक को जरूर मिल जाता है बस हौसला बुलंद होना चाहिए. इतना ही नहीं मिताली ने तो उसे कुछ ऐसे लोगों से भी मिलवा दिया जो उस की मदद कर सकते थे.

मुंबई आने के 2 महीने के बाद ही नमिता को एक डांस ऐकैडमी में डांस सिखाने का औफर मिल गया. पैकेज भी अच्छा था सो नमिता ने तुरंत जौइन कर लिया

आखिर मिताली पर कब तक बोझ बनी रहती. अत: नमिता ने इस बीच अपने लिए एक फ्लैट का भी जुगाड़ कर लिया. पहले जौब फिर फ्लैट का मिलना इन दोनों समस्याओं के दूर होते ही उस के आत्मविश्वास में भी कुछ इजाफा हो गया. वह खुश थी अपने मुंबई आने के निर्णय को ले कर.

बस कुछ ही दिन हुए थे उसे इस फ्लैट में शिफ्ट हुए. दुलारी के मिलने से  घर के काम की समस्या भी सुलझ गई थी.

आज के दिन की शुरुआत भी हर रोज की तरह डांस व म्यूजिक के धूमधड़ाके के साथ ही हुई. नमिता अपना मनपसंद म्यूजिक लगा कर डांस करने में मगन थी कि तभी उस के दरवाजे की घंटी बजी. इस समय कौन डिस्टर्ब करने चला आया बड़बड़ाते हुए दरवाजे तक आई. दरवाजा खोला तो सामने एक छोटा बच्चा खड़ा था जिस की उम्र करीब 3-4 साल के बीच की रही होगी, दरवाजा खुलते ही बोला, ‘‘आंटी प्लीज म्यूजिक का वौल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए.

उस बच्चे के आंटी कहने से नमिता बुरी तरह चिढ़ गई थी, बच्चा झटपट सीढि़यां उतर गया था. नमिता ने अपनी ही धुन में म्यूजिक और तेज कर दिया, तभी डोरबेल फिर से बजी, गुस्से में भुनभुनाती हुई दरवाजे तक आई, दरवाजा खोलते ही उस का मुंह खुला का खुला रह गया, उस के सामने एक 32-35 की उम्र का शख्स खड़ा था.

जी, मैं कल रात को ही आप के नीचे वाले फ्लैट में शिफ्ट हुआ हूं, पूरी रात सामान जमाने में ही बीत गई, अब कुछ देर सोना चाहता हूं, अगर आप को कोई तकलीफ न हो तो म्यूजिक का वौल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए प्लीज.

नमिता ने म्यूजिक तुरंत बंद कर दिया और सोफे पर आ कर बैठ गई, उस सख्स की आवाज अभी तक उस के कानों में गूंज रही थी, उस की आवाज का जादू व चेहरे का आकर्षण उसे अनजाने ही अपनी ओर खींचने लगा गुजरे हुए पल का रीकैप उस के दिमाग में किसी चलचित्र सा घूमने लगा.

पहले वह बच्चा अव यह आदमी, क्या इन के घर में कोई फीमेल मेंबर नहीं है, उस की उत्सुकता इस फैमिली के बारे में जानने की बढ़ती जा रही थी.

फिर दिमाग को झटका, हुंह मुझे क्या? सोफे से उठी, शेष काम निबटाए और एकेडमी जाने को तैयार होने लगी. परंतु उस का मन न जाने क्यों आज अंदर से खुशी महसूस कर रहा था, मन में विचारों की उठापटक बराबर चल रही थी. नमिता ने अपने मन में उठ रहे विचारों को विराम दिया और एकेडमी जाने को सीढि़यां उतरने लगी, सीढि़यां उतरते ही नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचते ही उस के पैरों की रफ्तार थम सी गई, वही सख्स खड़ा अपने दरवाजे को लौक कर रहा था.

तेज म्यूजिक की वजह से आप की नींद डिस्टर्ब हुई, उस के लिए सौरी, एक्चुअली, मुझे पता नहीं था कि इस फ्लोर पर कोई रहने आया है, आगे से ऐसी गलती नहीं होगी. फिर नमिता कुछ देर वहीं खड़ी रही

शायद सामने वाला सख्स कुछ कहे, उस की सौरी के जवाब में, लेकिन कोई जवाब न मिलने पर नमिता ने देखा वह सख्स सीढि़यों की तरफ बढ़ रहा था कि नमिता ने टोका, ‘‘सुनिए आप का नाम जान सकती हूं. वह बिना रूके सीढि़यों की तरफ बढ़ने लगा, हां जातेजाते अपना नाम जरूर बता गया था, निखिल. नमिता को ?ाल्लाहट महसूस हुई, उस ने सोचा अजीव इंसान है, न हाय न हैलो, बस अपनी ही धुन में मगन. जानपहचान बढ़ाने की नमिता की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

नमिता अपनी डांस एकेडमी के लिए निकल गई. डांस क्लास में पैर तो उस के डांस की ताल पर थिरक रहे थे, परंतु उसका मन तो एक नई ताल पर ही थिरक रहा था, उस के मन में उस सख्स को ले कर अजीब सी हलचल मची हुई थी.

शाम को नमिता घर लौटी तो सोसाइटी के नीचे बने कंपाउंड में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे, नमिता कानों में ईयरफोन लगाए गाना सुनते हुए गेट तक पहुंची ही थी कि एक बौल तेजी से आई और उस के हाथ पर लगी. हाथ में पकड़ा उस का मोबाइल गिर कर टूट गया.

नमिता अपना टूटा मोबाइल फोन व बाल हाथ में ले कर जैसे ही बच्चों की तरफ मुड़ी तो सारे बच्चे डर कर भाग गये, बस एक छोटा सा बच्चा डरा सहमा सा हाथ में बैट पकड़े खड़ा था, नमिता ने गुस्से से उसे घूरा, कहां भाग गये तुम्हारे नाटी दोस्त. फिर उस ने ध्यान से उस बच्चे की तरफ देखा, ‘‘अरे, तुम तो वही हो न जो कल मेरे घर म्यूजिक का वौल्यूम कम करवाने आए थे.’’

चलो तुम्हारी मम्मी से तुम्हारी शिकायत करती हूं, नमिता ने उस बच्चे का हाथ पकड़ा और उस के घर ले जाने लगी, डरे सहमे बच्चे ने अचानक जोरजोर से रोना शुरू कर दिया और बैट पटक कर दौड़ता हुआ उसी बिल्डिंग में घुसा जहां नमिता रहती हैं.

जब नमिता पहले फ्लोर पर पहुंची तो देखा बच्चा, निखिल के दरवाजे के पास खड़े हो कर रो रहा था. नमिता को पास आते देख कर वह और जोरजोर से रोने लगा, बच्चे की रोने की आवाज सुन कर जैसे ही निखिल ने दरवाजा खोला बच्चा दौड़ कर उस से लिपट गया.

चिंटू बेटा क्या हुआ, किसी ने तुम को मारा है या किसी ने कुछ कहा है, ‘‘निखिल के बारबार पूछने पर उस ने नमिता की ओर इशारा किया, तब निखिल का ध्यान नमिता की ओर गया जो हाथ में अपना टूटा मोबाइल ले कर खड़ी थी.

माफ कीजिएगा, मैं ने आप को देखा नहीं, क्या आप को मालूम है कि चिंटू क्यों रो रहा है? निखिल ने नमिता से सवाल पूछा, परंतु नमिता तो कहीं और ही खोई हुई थी उस वक्त, शायद अपने दिल को कोस रही थी जो बिना सोचेसमझे एक ऐसे इंसान की ओर खिंचा चला जा रहा था, जो एक बच्चे का पिता था, जाहिर है किसी का पति भी होगा.

आई एम सौरी, आप का मोबाइल टूट गया है, क्या मैं इसे ठीक करने की कोशिश कर सकता हूं, तब तक आप मेरे पास जो एक नया सैट हैं उस से काम चला लीजिए, आप प्लीज बैठिए, हो सकता है मैं इसे अभी ठीक कर के आप को दे दूं.

नमिता ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठ गई, उस की नजर दीवारों पर सजी ढेर सारी फोटोज पर पड़ीं, अधिकतर फोटो चिंटू व उस के पापा की ही थीं. नमिता के दिमाग की उलझन और बढ़ गई, बिना किसी लाग लपेट के उस ने निखिल की तरफ यह प्रश्न उछाल ही दिया, चिंटू आप का ही का बेटा है न और आप की वाइफ  नहीं है, बस निखिल ने छोटा सा जवाब पकड़ा दिया.

ओह, आई एम सौरी, वैसे क्या हुआ था उन्हें ‘‘नमिता, निखिल की पर्सनल लाइफ के पन्ने खंगालने की कोशिश कर रही थी.

नहींनहीं जैसा आप सम?ा रहीं हैं वैसा कुछ भी नहीं है, निखिल ने नमिता की सोच के घोड़ों को वही रोक दिया, ओह, आई एम सौरी अगेन ‘‘मुझे कुछ और ही लगा था, अच्छा शायद मायके गई हैं और चिंटू शायद स्कूल की छुट्टियां न होने के कारण उन के साथ नहीं जा पाया होगा,’’ पता नहीं क्यों नमिता निखिल के बारे में सबकुछ जान लेने को उत्सुक हो रही थी. उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था कि उस का मन निखिल की तरफ क्यों खिंचा चला जा रहा है. शायद इसे ही पहली नजर का प्यार कहते हैं.

तभी निखिल के स्वर ने उसे उस की सोच से बाहर निकाला, ‘‘मैं आप का मोबाइल रिपेयर करवा कर कल आप के पास पहुंचा दूंगा. बस, आप 1 मिनट रुकिए, मैं आप के लिए फोन ले कर आता हूं और चाय भी. चाय का तो टाइम भी हो चला है.’’

निखिल ने नमिता को फोन पकड़ाया और चाय बनाने किचन की ओर जाने लगा.

तभी नमिता की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘जी, फोन के लिए शुक्रिया और परंतु चाय तो मैं सिर्फ अपने हाथ की ही बनाई हुई पीती हूं,’’ और फोन ले कर नमिता दरवाजे की तरफ बढ़ गईं. मगर उस के कदम उस का साथ नहीं दे रहे थे. उस के मन में निखिल के प्रति अजीब सा आकर्षण महसूस हो रहा था.

घर पंहुच घर जैसे ही फ्रैश हुई, मां का फोन आ गया, ‘‘कैसी हो बेटा? कोई जौब मिली या नहीं?’’

‘‘हां मां जौब भी मिल गई है और मैं ने यहां एक फ्लैट भी खरीद लिया है आप लोगों के आशीर्वाद से. सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है मां,’’ नमिता ने चहकते हुए कहा.

‘‘अरे बेटा जब सबकुछ ठीक है तो अब तो शादी के लिए सोचो.’’

‘‘हां मां मैं भी यही सोच रही थी.’’

‘‘तो हम लोग तुम्हारे लिए एक अच्छे घर, वर की तलाश करते हैं.’’

‘‘नहीं मां आप लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है, मुझे लगता है मेरी पसंद का पार्टनर मु?ो मिल गया है.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मुंबई जा कर तुम्हारे अंदर ऐसे कौन से सुरखाब के पर लग गए कि शादी जैसे मुद्दे का फैसला तुम खुद ही करने लगी. लड़का कौन है, किस जाति का है, उस का घर खानदान कैसा है आदिआदि बातें शादी के लिए जाननी जरूरी हैं.’’

‘‘अरे मेरी प्यारी मां, आप किस जमाने में जी रही हैं? आप के कितने सवाल हैं शादी को ले कर… आप की शादी तो नानाजी ने सबकुछ देख कर ही की होगी लेकिन जब से मैं ने होश संभाला है आप व बावूजी में आपसी मतभेद ही पाया है विचारों का. इंसान दिल का अच्छा होना चाहिए, जाति आदि आजकल कुछ माने नहीं रखता. अच्छा मां फोन रखती हूं, शायद चिंटू आ गया है. मुझे उसे ट्यूशन देनी है.’’

‘‘अब यह चिंटू कौन है?’’

‘‘चिंटू निखिल का बेटा है. अब आप पूछोगी कि यह निखिल कौन है? सो आप की जानकारी के लिए बता दूं कि निखिल मेरा होने वाला लाइफ पार्टनर है. हम लोग कई बार एकदूसरे से मिल चुके हैं. सच मां निखिल व चिंटू दोनों ही बहुत प्यारे हैं. आप भी जब उन दोनों से मिलोगी तो आप को भी उन से प्यार हो जाएगा.’’

‘‘तो क्या तुम अब 1 बच्चे के बाप से शादी करने की सोच रही हो?’’

‘‘अरे मां आजकल इंस्टैंट का जमाना है, जब सबकुछ मनचाहा मिल रहा हो तो बेवजह क्यों मीनमेख लिकालना.’’

‘‘जब तुम ने सबकुछ डिसाइड कर ही लिया है तो जो दिल में आए करो. वैसे भी आजकल की नई पीढ़ी के बच्चे बड़ों की सुनते ही कहां हैं.’’

सब से बड़ी बात निखिल बहुत कम बोलता है लेकिन उस की खामोशी उस की आंखों

से झलकती है. मैं ने उस की आंखों में अपने लिए प्यार देखा है.

नमिता निखिल से शादी करने का मन बना चुकी थी, बस उसे इंतजार था तो निखिल की हां का.

मां से बात कर के उस का मन हलका हो गया, जानती थी मांबाबूजी उस की पसंद को जरूर पसंद करेंगे.

1-2 छोटी सी मुलाकातों में ही निखिल उसे सदियों से जानापहचाना सा लग रहा था. उस रात नमिता की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी. पूरी रात वह सिर्फ निखिल के खयालों में ही खोई रही. यह जानते हुए भी कि निखिल शादीशुदा है और उस का 1 बेटा भी है, फिर भी उस के खयालों को अपने मन से दूर नहीं कर पा रही थी.

कई बार कुछ खास पल दिल व दिमाग दोनों को विचारों के ऐसे भंवर में बहां ले जाते हैं कि सहीगलत का ध्यान नहीं रहता.

नमिता भी सहीगलत की भी परवाह किए बिना उन पलों के साथ जीने लगी. नमिता की पूरी रात आंखों में ही बीती थी सो सुबह देर तक सोती रही. डोरबैल की आवाज से उस की नींद टूटी. शायद दुलारी होगी, यह सोचती हुई अलसाई सी उठी और दरवाजा खोला तो सामने निखिल को देखते ही नमिता की अधखुली आंखों में चमक आ गई, ‘‘अरे, गुडमौर्निंग, आप? आइए अंदर आइए,’’ नमिता ने आग्रह करते हुए कहा.

‘‘वह मैं आप का फोन लौटाने आया हूं,’’ निखिल ने साथ लाए मोबाइल को टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘अच्छा अब मैं चलता हूं, दरअसल, मुझे चिंटू के लिए एक ट्यूशन टीचर की तलाश है और औफिस भी जाना है.’’

निखिल वापस जाने को मुड़ा ही था कि नमिता का स्वर उस के कानों में पड़ा, ‘‘यदि मैं आप की यह समस्या हल कर दूं तो? यदि आप चाहें तो चिंटू को ट्यूशन मैं दे सकती हूं, मैं डांस ऐकैडमी से शाम 5 बजे तक वापस आ जाती हूं. उस के बाद खाली समय रहता है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है चिंटू से कह दूंगा, आज शाम से ही आ जाएगा,’’ कह कर दरवाजे की तरफ मुड़ा.

‘‘अरे सुनिए, 1 कप चाय तो पीते जाइए.’’

‘‘जी, शुक्रिया, चाय तो मैं भी सिर्फ अपने हाथ की ही बनाई हुई पसंद करता हूं.’’

चिंटू रोज शाम को ट्यूशन के लिए आने लगा और कुछ ही दिनों में नमिता के साथ घुलमिल भी गया. एक दिन ट्यूशन के बाद नमिता ने चिंटू से पूछ ही लिया, ‘‘क्या तुम्हें अपनी मां की याद नहीं आती?’’

तब चिंटू ने कहा कि उस ने तो अपनी मां को कभी देखा ही नहीं है. यह जान कर नमिता के मन की उल?ान और बढ़ गई.

चिंटू के पास घर की एक चाबी रहती थी. वह नमिता के यहां जाते समय लैच खींच कर दरबाजा बंद कर देता और ट्यूशन से वापस आ कर ताला खोल कर घर के अंदर आ जाता. निखिल ने चिंटू को अच्छी तरह समझा दिया था कि घर से बाहर निकलते समय चाबी हमेशा अपने साथ रखनी है ताकि वापस आने पर दरवाजा खोल सके.

एक दिन चिंटू चाबी साथ लिए बिना ही बाहर निकला और लैच खींच कर दरवाजा बंद कर दिया. ट्यूशन से वापस जब दरवाजा खोलना चाहा तो एहसास हुआ कि चाबी तो आज उस से घर के अंदर ही छूट गई है. वापस नमिता के घर गया और सारी बात बताई.

नमिता ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, जब तक तुम्हारे पापा नहीं आते तुम यहीं मेरे घर पर रहो.’’

उस दिन निखिल को भी औफिस से आने में काफी देर हो गई. साथ ही आज वह अपने पास की चाबी भी औफिस में ही भूल आया. निखिल के औफिस से आ कर कई बार डोरबैल बजाने के वाबजूद जब चिंटू ने दरवाजा नहीं खोला तो उस ने नमिता को फोन किया तो मालूम हुआ कि चिंटू भी आज घर की चाबी घर के अंदर ही भूल गया है. अत: मेरे यहां ही सो गया है.

‘‘नमिता मैं चिंटू को लेने आ रहा हूं, हम आज रात किसी होटल में रुक जाएंगे.’’

चिंटू काफी गहरी नींद में था. निखिल के बहुत कोशिश करने पर भी जब नहीं उठा तो नमिता ने चिंटू को जगाने की कोशिश करते हुए निखिल का हाथ पकड़ लिया और कहा इसे यहीं सोने दीजिए.

‘‘ठीक है मैं भी यहीं टैरस पर सो जाता हूं, वैसे भी ठंड ज्यादा नहीं है,’’ निखिल ने अपना हाथ छुड़ाया और टैरस पर चला आया.

निखिल को नींद नहीं आ रही थी. पता नहीं ठंड के कारण या मन में घुमड़ते नमिता के बारे में सोचते खयालों के कारण. वह टैरस पर ही टहलने लगा. तभी उस ने देखा सामने नमिता खड़ी थी हाथ में चादर ले कर, ‘‘ठंड इतनी भी कम नहीं हैं, इस की जरूरत पड़ेगी,’’ चादर पकड़ा कर नमिता जैसे ही वापस जाने को मुड़ी निखिल के स्वर ने उसे रोक लिया.

निखिल टैरस की जमीन पर बैठ गया. नमिता भी उस से कुछ दूरी पर बैठ गई. निखिल ने बोलना शुरू किया, ‘‘तुम चिंटू की मां के बारे में जानना चाहती थी न, तो सुनो, वह मुझ से उम्र में कई साल बड़ी थी, प्यार हुआ, घर वालों के विरुद्ध जा कर हम दोनों ने शादी कर ली, सबकुछ ठीक ही चल रहा था, हम दोनों बहुत खुश थे, लेकिन जब चिंटू आने वाला था, तब अचानक सबकुछ बदल गया. वह खुश नहीं थी, चिंटू के आने की खबर जान कर, शायद वह तैयार नहीं थी इस सब के लिए. जिंदगी उसे कैद लगने लगी थी. मैं ने उसे बहुत सम?ाया लेकिन नाकाम रहा.

‘‘जिस दिन चिंटू का जन्म हुआ, मैं बहुत खुश था परंतु वह कुछ परेशान सी लग रही थी. जब हौस्पिटल से डिस्चार्ज मिला तो घर आने तक एकदम नौर्मल लग रही थी. औफिस से अर्जेंट कौल आने पर मु?ो कुछ देर के लिए औफिस जाना पड़ा. जब लौट कर आया तो वह घर छोड़ कर जा चुकी थी. हां, जाने से पहले एक पत्र जरूर छोड़ा था कि मुझे वापस लाने की कोशिश मत करना प्लीज. कुछ सालों बाद पता चला कि उस ने शादी कर ली है और विदेश में सैटल है अपने ने पति के साथ.

‘‘उम्र चाहे कितनी भी हो, जीवनसाथी का जाना लाइफ में खालीपन लिख ही जाता है, काम नहीं रुकते, मौसम भी बदलते हैं, दिनरात आतेजाते हैं रोज की तरह लेकिन जिंदगी का सूनापन काटे नहीं कटता.

‘‘हां चिंटू तुम से काफी घुलमिल गया है, हमेशा तुम्हारी ही बातें करता है, शायद आप में वह अपनी मां की छवि महसूस करता है. मैं चिंटू को ले कर कहीं बाहर भी नहीं जा पाता. अब 2 दिनों की छुट्टी आ रही है सोचा है कहीं बाहर घूमने का प्रोग्राम बना लूं, क्या आप भी हमारे साथ चलना पसंद करोगी?’’

‘‘अरे वाह, आप ने तो मेरे दिल की बात कह दी, मैं भी अकेले कहीं नहीं जा पाती हूं.’’

‘‘तो फिर ठीक है हम लोग यहां पास में एक पिकनिक सौपट है वहीं चलते हैं, लंच बाहर से और्डर कर देंगे, शाम तक वापस आ जाएंगे, ठीक रहेगा न?’’

दूसरे दिन चिंटू, निखिल व नमिता सुबह ही निकल गए. घर से बाहर आने पर चिंटू बेहद खुश था. निखिल व नमिता ने भी खूब गप्पों कीं. इस बीच दोनों ने एकदूसरे की पसंदनापसंद के बारे में भी जाना. निखिल ने पूछा, ‘‘अब आगे आप का क्या प्लान है?’’

‘‘हां आप ने एकदम सही प्रश्न किया, मांबाप शादी के लिए दबाव बना रहे हैं. चिंटू से मिलती हूं तो मेरे दिल में भी इस बात का खयाल आता है कि घरपरिवार का सुख अलग ही होता है. पैसे से इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता.’’

मगर परिवार पूरा तो पतिपत्नी व बच्चों से होता है, सोचता हूं चिंटू के लिए नई मां ले ही आऊं. क्या आप इस में मेरी मदद करेंगी?’’

‘‘यह सुन कर नमिता के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए उस ने पूछा, ‘‘मैं भला इस में आप की मदद किस तरह कर सकती हूं?’’

‘‘चिंटू की मां बन कर,’’ कह कर निखिल कुछ देर चुप रहा नमिता के जबाव के इंतजार में.

कुछ पलों के बाद नमिता ने ही चुप्पी तोडी, ‘‘ठंड बढ़ती जा रही है. मेरे हाथों की चाय पीएंगे?’’

‘‘हां अब तो रोज चलेगी तुम्हारे हाथों की चाय,’’ कहते हुए निखिल ने नमिता की हथेली अपने हाथों में भींच ली. नमिता ने भी उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

Hindi Love Stories : लव ट्राइऐंगल

Hindi Love Stories : आज निकिता लाइट पिंक कलर के वनपीस में कमाल की लग रही थी. टपोरी अंदाज में कहूं तो एकदम माल लग रही थी. उसे देखते ही मेरा दिल किया कि मैं एक रोमांटिक सा गाना गाऊं. वह मुसकराती हुई मेरे घर के अंदर घुसी और

मुझे आंख मारते हुए सुषमा के कमरे की तरफ बढ़ गई.

मेरे दिल के अरमान मचल उठे. मैं उस पर फिट बैठता कोई गाना सोचने लगा कि तब तक सुषमा उस का हाथ थामते हुए गुनगुना उठी, ‘‘बड़ी सुंदर लगती हो. बड़ी अच्छी दिखती हो…’’

निकिता ने भी तुरंत गाने की लाइनें पूरी कीं, ‘‘कहते रहो, कहते रहो अच्छा लगता है. जीवन का हर सपना अब सच्चा लगता है…’’

मुझे लगा जैसे मेरे अरमानों की जलती आग पर किसी ने ठंडे पानी की बौछार कर दी हो और मैं अपने मायूस हो चुके मासूम दिल को संभालने की नाकाम कोशिश कर रहा हूं.

दरअसल, निकिता मेरी दोस्त है. दोस्त नहीं बल्कि प्रेमिका है ऐसा वह खुद कई बार कह चुकी है और वह भी मेरी पत्नी सुषमा के आगे. मगर मैं यह देख कर दंग रह जाता हूं कि सुषमा को निकिता से कभी कोई जलन नहीं हुई. उलटा निकिता मुझ से कहीं ज्यादा सुषमा से क्लोज हो चुकी थी यानी हम तीनों का रिश्ता एक तरह का लव ट्राइऐंगल बन गया था जहां एक कोने में मचलते दिल को लिए मैं खड़ा हूं, दूसरे कोने में मेरी बीवी सुषमा और बीच में है हम दोनों की डार्लिंग निकिता. अब आप ही कहिए यह भी भला कोई लव ऐंगल हुआ?

शुरूशुरू में जब निकिता को मैं ने औफिस में देखा था तो एकदम फिदा हो गया था. उस का अपने घुंघराले बालों में बारबार हाथ फेरते हुए लटों को सुलझना, हर समय मुसकराते हुए बातें करना, बड़ीबड़ी आंखों से मस्ती भरे इशारे करना, बेबाक अंदाज से मिलना सबकुछ बहुत अच्छा लगता था.

1-2 मुलाकातों में ही हम काफी फ्रैंडली हो गए थे. उस वक्त मैं ने उसे यह नहीं बताया था कि मैं शादीशुदा हूं. मैं यह बात छिपा कर उस के करीब जाने की कोशिश में था. हमारी वाइब्स मिलती थीं इसलिए बहुत जल्दी वह मेरे साथ बाहर निकलने लगी. हम साथ में मूवी देखने जाते, घूमतेफिरते, बाहर खाना खाते. मेरे लिए वह मेरी प्रेमिका बन गई थी मगर उस के लिए मैं क्या था आज भी सम?ा नहीं आता. मैं अकसर उस से फ्लर्ट करता था. वैसे इस काम में वह खुद मुझ से आगे थी. जानेअनजाने वह अकसर मु?ो हिंट देती कि वह भी मुझे  चाहने लगी है.

उस दिन शाम में वह मेरे कैबिन में आई थी. हाथों में एक गुलाब का फूल और बड़ा सा गिफ्ट पैक लिए. मैं ने उस की तरफ देखा तो मुसकराते हुए उस ने मुझे गुलाब का फूल दिया. मेरा दिल खुशी से बागबाग हो उठा. मैं खयाली पुलाव बनाने लगा कि लगता है यह मुझे वाकई प्यार करने लगी है. मैं सोचने लगा कि क्या इसे सुषमा के बारे में बता दूं या नहीं? क्या शादीशुदा होने की बात सुन कर निकिता मुझ से दूर हो जाएगी?

मैं अभी सोच ही रहा था कि उस ने मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘हैप्पी मैरिज ऐनिवर्सरी माई लव.’’

मेरे दिलोदिमाग में एक धमाका सा हुआ. एक तरफ माई लव सुन कर दिल की कलियां खिलीं तो वहीं मैरिज ऐनिवर्सरी सुन कर समझ आया कि इसे तो सब पता है.

मैं बस इतना ही कह सका, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘पता तो हो ही जाता है मेरी जान. तुम बस यह बताओ कि पार्टी कब दे रहे हो? घर में या बाहर? सुषमा के साथ या उस के बिना?’’

‘‘तो तुम सुषमा से भी मिल चुकी हो?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘अरे नहीं. तुम ने मिलाया कहां अब तक?’’ वह हंसती हुई बोली.

‘‘ओके फिर आज रात घर पर पार्टी.’’

मैं पूरा वाक्य भी नहीं बोल पाया था. शब्द गले में अटक कर रह गए थे. कहां तो मैं प्यारव्यार के सपने देख रहा था और कहां उस ने मुझे हकीकत के फर्श पर ला पटका जहां एक अदद पत्नी मेरा इंतजार कर रही थी. निकिता गिफ्ट पैक थमा कर चली गई और मैं एक वफादार पति की तरह सुषमा को फोन करने लगा. सुबह मैं सुषमा को विश करना जो भूल गया था.

सुषमा से मैं ने निकिता के बारे में बता दिया कि वह शाम में घर आ रही है. सुषमा ने पार्टी की तैयारी कर ली. शाम में निकिता मेरे साथ ही मेरे घर आ गई. यहीं से सुषमा और निकिता की दोस्ती की शुरुआत हुई थी. आज इस दोस्ती ने अपने पर काफी ज्यादा फैला लिए थे.

मैं जब भी सुषमा से निकिता की बात करता तो वह उस की तारीफ करते न थकती. पहले मु?ो लगता था कि सुषमा को मेरी और निकिता की दोस्ती को ले कर मन में सवाल होंगे या शक का कीड़ा कुलबुलाएगा मगर ऐसा कुछ नहीं था. उलटा वह तो कई दफा मजाक के अंदाज में मुझे और निकिता को ले कर बातें भी बनाया करती थी. मसलन, एक बार एक औफिस प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुझे और निकिता को इलाहाबाद जाना पड़ा था. हम दोनों कैब से गए और वहां एक दिन रुके भी थे. वैसे तो हमारे लिए 2 अलगअलग कमरों की व्यवस्था की गई थी मगर उस बात को ले कर बाद में सुषमा ने कई दफा मस्ती में कहा कि क्या पता तुम दोनों उस रात एक ही कमरे में रहे होंगे. कोई और तो वहां था नहीं.. जरूर बात आगे बढ़ी होगी और बढ़नी भी चाहिए. एक खूबसूरत लड़की और एक नौजवान दिल एकसाथ होंगे तो…

वह बात आधी छोड़ कर जाने क्या जताना चाहती थी. मगर उस के चेहरे पर कभी शिकवा नहीं होता था बल्कि प्यार होता था मेरे लिए भी और निकिता के लिए भी.

कई दफा निकिता भी सुषमा के आगे मुझ से फ्लर्ट करने लगती. कभी कहती कि बड़े हौट लग रहे हो. कभी कहती आज रात यहीं तुम्हारे पास रुक जाती हूं तो कभी मेरे बनाए खाने की तारीफ करती हुई कहती कि बस तुम मिल जाओ मुझे पति परमेश्वर के रूप में तो मजा आ जाए. मैं दोनों के बीच बस मुस्कुरा कर रह जाता.

एक दिन तो हद ही हो गई. होली की वजह से 3-4 दिनों की छुट्टी थी. मैं देर तक सोता रहा. फिर सो कर उठा तो देखा सुषमा कहीं बाहर गई हुई थी. मैं घर पर बोर हो रहा था. निकिता हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं रहती. मैं ने सोच क्यों न उसे ही बुला लूं. कुछ हंसीमजाक होगा तो दिल लग जाएगा.

मैं ने उसे कौल की, ‘‘क्या कर रही हो डियर? आज सुषमा नहीं है घर में. तुम आ जाओ बातें करेंगे कुछ इधरउधर की,’’ मेरे दिल में फुलझाडि़यां फूट रही थीं.

वह हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो अभी बहुत व्यस्त हूं. पहले गोलगप्पे और फिर छोलेकुलचे खाने हैं. वैसे आप की मैडम के साथ ही हूं. हम दोनों फुल ऐंजौय कर रहे हैं. अभी शाम तक शौपिंगवौपिंग कर के ही लौटेंगे.’’

‘‘अच्छा मगर तुम लोग हो कहां?’’ मैं ने मन मसोस कर पूछा.

‘‘अरे यार हम सिटी मौल में हैं. मन नहीं लग रहा तो आ जाओ तुम भी. तीनों मिल कर…’’

‘‘नहींनहीं तुम दोनों ऐंजौय करो. मुझे कहीं जाना है,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया और अपना सा मुंह बना कर सोचने लगा कि ये दोनों तो अब एकदूसरे के साथ इतनी क्लोज हो गई हैं कि मैं ही बीच में से निकल गया.

सुषमा भी कम नहीं थी. एक बार 3 छुट्टियां एकसाथ पड़ीं तो हम ने ऋ षिकेश घूमने जाने का प्लान बनाया.

मैं अभी टिकट्स बुक करने की सोच ही रहा था कि सुषमा ने टोका, ‘‘क्या हम दोनों के ही टिकट बुक कर रहे हो?’’

‘‘हां और क्या? तुम्हें किसी और को भी लेना है साथ में?’’ मैं ने पूछा.

वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘निकिता को ले लेते हैं.’’

‘‘क्या? मगर उसे क्यों साथ ले जाना

चाहती हो?’’

‘‘इस में हरज ही क्या है? मजेदार लड़की है. मन लगेगा वरना तुम्हारे साथ तो मैं बोर ही हो जाती हूं.’’

‘‘फिर ऐसा करो, तुम उसी के साथ चली जाओ,’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अरे तुम्हें समस्या क्या है? तुम्हारी भी

तो दोस्त है न और वह भी खास वाली. मुझे तो लगा था तुम्हें खुशी होगी मगर तुम तो नाराज

हो गए.’’

‘‘मेरी खास दोस्त है या नहीं वह मैं नहीं जानता. मगर तुम्हारी कुछ ज्यादा ही खास दोस्त बन चुकी है यह जरूर नजर आता है,’’ मैं ने अपने मन की भड़ास निकालते हुए कहा.

‘‘हां बिलकुल. मुझे इनकार नहीं. अगर वह लड़का होती तो पक्का मेरी डार्लिंग होती,’’ कह कर वह हंस पड़ी.

मुझे समझ नहीं आया कि क्या सुषमा मुझे ताने मार रही है या वाकई वह उसे इतना

पसंद करने लगी है. शायद मुझे यह जलन भी होने लगी थी कि सुषमा और निकिता मेरे लिए आपस में लड़ने के बजाय एकदूसरे की डार्लिंग बन चुकी थीं.

चलिए निकिता की सुषमा से नजदीकियां तो मैं फिर भी सह सकता था मगर आजकल

कोई और भी निकिता पर लाइन मारने लगा था और यह मुझे बरदाश्त नहीं था.

दरअसल, एक नया लड़का तन्मय औफिस में आया था. वह शादीशुदा था मगर उसे निकिता में ज्यादा ही इंटरैस्ट डैवलप होने लगा था. तन्मय वैसे हम दोनों का सीनियर बन कर आया था मगर मेरी

नजर में वह मेरा जूनियर था. एक तो उस की उम्र मु?ा से कम थी, उस पर उस से ज्यादा ऐक्सपीरियंस मेरे पास था. वह बौस के किसी दोस्त का लड़का था इसलिए औफिस में उसे थोड़ी सीनियर पोस्ट दी गई थी.

1-2 दिन मैं ने देखा कि वह निकिता के ज्यादा ही करीब हो कर हंसीमजाक की बातें कर रहा था. सिर्फ निकिता ही नहीं उसे मैं ने औफिस की 1-2 और लड़कियों के साथ भी ज्यादा ही घुलमिल कर बातें करते देखा था.

मैं ने अपना गुस्सा निकिता के आगे निकालते हुए कहा, ‘‘यह तन्मय मुझे सही लड़का नहीं लगता. आते ही सारी लड़कियों से फ्लर्ट करने में लगा है जबकि शादीशुदा है वह.’’

‘‘अरे बाबा मैं सब जानती हूं. तुम क्यों टैंशन ले रहे हो?’’ निकिता ने जवाब दिया.

‘‘बस तुम्हें आगाह कर रहा था. उस के जाल में फंसना नहीं.’’

‘‘अच्छा तो मैं क्या कोई मछली हूं कि वह जाल फेंकेगा और मैं फंस जाऊंगी?’’

‘‘नहीं ऐसी बात नहीं. बस तुम्हें ले कर थोड़ा सैंसिटिव हूं. तुम्हें ?ांसे में ले कर चोट न पहुंचाए इसलिए…’’

मेरी बात बीच में काटते हुए वह बोली, ‘‘अरे यार मुझे उस से कैसे निबटना है, कब

सीमा दिखानी है, क्या बात करनी है, कैसे

हैंडल करना है यह सब मु?ा पर छोड़ दो. मेरी जिंदगी है न,’’ कह कर उस ने मुझे कुछ अजीब नजरों से देखा.

मैं सकपका गया, ‘‘हां बिलकुल. सौरी,’’ कह कर मैं वहां से चला आया.

दिल में देर तक बेचैनी बनी रही. ऐसा लगा जैसे कुछ टूट गया है. शायद मैं ज्यादा ही सोच रहा था. वह तो केवल एक अच्छी दोस्त है. सच में ऐसा ही तो था. वैसे भी आज शायद निकिता ने मुझे मेरी सीमा दिखा दी थी. सही भी है उस की जिंदगी में दखल देने का हक भला मुझे कहां था.

Sad Story : दर्द की सिलवटें

Sad Story : अवंतिका औफिस में बैठी कुछ फाइलों के बीच अपनी आंखें जमाए हुए थी. बौस का आदेश था कि इन फाइलों का निबटारा जल्द से जल्द कर दिया जाए वरना उस की सैलरी यों ही अटकी रहेगी.

‘‘क्या हुआ अवंतिका? मुंह बना कर फाइलों को क्यों निहार रही हो?’’ अवंतिका के पास कुरसी खींच कर बैठते हुए यामिनी बोली. यामिनी उसी औफिस में काम करती थी.

‘‘क्या बोलूं?’’ अवंतिका ने गहरी सांस खींची, ‘‘इन फाइलों का निबटारा तो मैं कर ही नहीं पाई. पता नहीं कैसे दिमाग से उतर गया. बहुत जरूरी हैं. यदि 2 दिन के अंदर इन्हें सही नहीं किया तो बौस का लौस होगा तो होगा, साथ में मु?ो भी पता नहीं कब सैलरी मिले.

‘‘तुम कितनी तेजी से काम का निबटाती हो न. तुम्हारी मेहनत और काबिलीयत को देख कर ही तो बौस ने तुम्हें यह सब दिया था. अब क्या हुआ. सबकुछ ठीक तो है न.’’

‘‘अरे बाबा, सब ठीक है. वह घर में भी तो काम देखना पड़ता है न. दीप की 10वीं कक्षा की परीक्षा चल रही थी. उसी पर ध्यान देने में व्यस्त रही, इसलिए…’’

‘‘अच्छा चलो, जल्दी से अपना काम

निबटा लो,’’ यामिनी वहां से अपने कैबिन की तरफ चल दी.

शाम के समय औफिस से लौटते हुए अवंतिका सब्जियां आदि खरीदते हुए घर पहुंची. निखिल औफिस से आ चुका था. अवंतिका को देखते ही बोला, ‘‘बहुत सही समय पर आई हो. चलो, जल्दी से चाय पिला दो.’’

‘‘निखिल मैं बहुत थकी हुई हूं. बदन में भी खिंचाव महसूस हो रहा है. दीप को कहती हूं चाय बना कर ले आएगा.’’

‘‘अरे नहीं उसे चाय बनानी नहीं आती. कभी चायपत्ती अधिक डाल देता है तो कभी चीनी. चाय पीने का मजा किरकिरा कर देता है,’’  निखिल बोला.

‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है. अब उसे मात्रा आदि समझा दी है. अच्छी चाय बना लेगा,’’ कह कर अवंतिका ने अपने बेटे दीप को चाय बनाने के लिए कहा.

अवंतिका मेहनती और टेलैंटेड महिला थी. उसे कुछ वर्ष ही हुए थे एक मल्टी नैशनल कंपनी में नौकरी करते. निखिल बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत था. अवंतिका के 2 बच्चे थे श्रुति और दीप. श्रुति 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी और दीप 10वीं बोर्ड की परीक्षा दे दी थी. शुरुआती दिनों में सिंगल फैमिली होने के कारण अवंतिका ने एक गृहिणी बने रहना मंजूर किया था. लेकिन बच्चे जब बड़े होने लगे और अपनी पढ़ाई और दोस्तों में उन की व्यस्तता बढ़ने लगी तो अवंतिका को घरगृहस्थी के कामों के बाद खाली समय में अकेलापन महसूस होने लगा. निखिल भी अपने बैंक से लौटने के बाद शाम का समय दोस्तों के बीच ठहाके लगाने में बिताता. बैंक से आने के बाद शाम की चाय पी कर निखिल अपनी मित्र मंडली में जा बैठता. फिर तो उन के ठहाके और मनोरंजन का दौर थमता ही नहीं था. रात के 8-9 के पहले वह घर नहीं आता.

ऐसे में अवंतिका ने एक मल्टी नैशनल कंपनी जौइन कर ली. व्यस्त दिनचर्या के साथ हाथ में सैलरी मिलने से उसे सुखद अनुभूति होने लगी. अब उसे छोटीमोटी जरूरत के लिए भी निखिल पर आश्रित नहीं रहना पड़ता. अपनी मेहनत और कार्यकौशल से उस ने औफिस में खास पहचान बना ली थी. लेकिन इधर कुछ समय से वह अपने कार्य को ले कर पहले जैसी तत्परता और सक्रियता नहीं दिखा पा रही थी. घर की जिम्मेदारी पहले की ही तरह निभा रही थी, उस पर औफिस का काम.

रात का खाना बनाने के बाद अवंतिका टेबल पर खाना लगा रही थी, ‘‘श्रुति, जरा खाना सर्व करो और दीप तुम पीने के लिए पानी ले आओ. आज मैं बहुत थकी हुई महसूस कर रही हूं. ज्यादा देर नहीं बैठ पाऊंगी. जल्दी से खा कर सोने जा रही हूं. तुम लोग खाना खा कर जूठे बरतन सिंक में डाल देना.’’

अगली सुबह फिर से पूरा परिवार अपनेअपने काम में व्यस्त हो गया. श्रुति और दीप अपनी पढ़ाई और दोस्तों के बीच तो निखिल भी दिन में ड्यूटी और शाम में दोस्तों के साथ मस्ती में व्यस्त रहते. अवंतिका समय पर औफिस पहुंच चुकी थी. उसे अभी भी 2 फाइलों के काम निबटाने थे और कल तक बौस की टेबल पर देनी थीं.

‘‘गुड मौर्निंग अवंतिका. और कहो, तुम्हारा पैंडिंग वर्क पूरा हो गया?’’ यामिनी ने पूछा.

‘‘नहीं यार, अभी तो 2 फाइलें बाकी हैं और कल सुबह तक बौस को टेबल पर चाहिए. प्लीज, जरा मेरी हैल्प कर दो न.’’

‘‘यह भारीभरकम उलझी फाइलों में सिर खपाना मेरे वश की बात नहीं, वह भी प्रैशर में. तुम्हें ध्यान नहीं शायद लेकिन यह सब तुम्हारी प्रतिभा के कारण मिला है. और दिखाओ बौस को अपनी प्रतिभा और काबिलीयत,’’ यामिनी टोंट करते हुए हंस दी.

‘‘देखो मजाक का वक्त नहीं है. तुम्हें पता है न बौस ने मु?ो इस महीने की सैलरी नहीं दी है?  वे भी मेरी लापरवाही से नाराज हैं. यदि औफिस का नुकसान हुआ तो पूरी सैलरी खतरे में पड़ जाएगी. अब गंभीर बनो और कुछ रास्ता सुझाओ.’’

‘‘ओके, तुम अतुल की मदद ले लो.’’

‘‘कौन. वह लड़का जिस ने अभी कुछ महीने पहले ही कंपनी जौइन की है? उस नौसिखिए से क्या मदद लूं?’’

‘‘शायद तुम उसे ठीक से जानती नहीं हो. वह भी दिमाग का तेज है और युवा है तो काम के लिए उत्साह भी खूब भरा रहता है. पता है, पिछले महीने उस ने अमन की मदद की थी.’’

यह सुन अवंतिका अतुल से मदद लेने को तैयार हो गई. शाम होने लगी थी. अवंतिका ने अतुल को दोनों फाइलें दे कर काम समझा दिया और अगले दिन ले कर आने को कहा.

घर पहुंचने के बाद अवंतिका अपनी गृहस्थी वाले रूटीन वर्क  में लग गई तभी…

‘‘ऊफ… फिर से पीरियड भी न…’’

पिछले कुछ महीनों से अवंतिका के पीरियड्स थोड़ा असामान्य हो गए थे. इस दौरान वह शारीरिक कष्ट को भी ?ोलने लगी थी. उस ने सोचा कि वर्क लोड और अनियमित खानपान के कारण यह सब हो रहा होगा. वह अपने पीरियड्स को ले कर कुछ विशेष चिंता नहीं करती. वैसे भी लोग कहते हैं कि 40+ की महिलाओं में माहवारी को ले कर कुछनकुछ समस्या रहती ही है.

औफिस का काम तो निबट गया. उसे राहत मिली. लेकिन पीरियड्स के दौरान होने वाले शारीरिक कष्ट शुरू हो गए. इसलिए अवंतिका खाना खा कर जल्दी से बैड पर आराम करने चली गई. हौट फ्लैश और पेड़ू कमर के दर्द से परेशान अवंतिका बिस्तर पर आते ही निढाल हो गई. निखिल भी कुछ देर के बाद बैडरूम में आ चुका था. वह रात की बेला में रूमानियत महसूस कर रहा था. बिस्तर पर लेटी अवंतिका किसी हुस्न परी का एहसास करा रही थी. निखिल अवंतिका के समीप आया है और उसे स्पर्श करते हुए अपने पास खींचने की कोशिश करने लगा.

‘‘नहीं निखिल, तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है. हौट फ्लैश से परेशान हूं. मुझे आराम करने दो.’’

‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें? जब देखो तब तबीयत खराब या थकान का बहाना करती रहती हो. औफिस जाने के लिए तुम तो एकदम तंदुरुस्त हो जाती हो. है न?’’

‘‘तुम कैसी बातें कर रहे हो. मेरी थकान, मेरी खराब तबीयत तुम्हें नाटक लगता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या. मैं देख रहा हूं कि कुछ महीनों से तुम घरपरिवार पर पहले की तरह ध्यान नहीं दे रही हो और मुझ पर तो बिलकुल भी नहीं. कभी तबीयत खराब, कभी थकान, कभी पीरियड्स… तुम मुझ से दूर होती जा रही हो.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो निखिल? मैं दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हूं. घरपरिवार देखते हुए जौब भी कर रही हूं.’’

‘‘जिम्मेदारी? हुंह,’’ कह निखिल बिस्तर पर एक तरफ मुंह घुमा कर सो गया.

मगर अवंतिका की आंखों में नींद गायब हो गई. उसे निखिल की बातें चुभ गईं. वह जौब करने के लिए तब घर से बाहर निकली जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए थे. निखिल भी तो अपनी दुनिया में व्यस्त रहता है. दोस्तों के साथ मस्ती भरे पल बिताता है.

‘‘क्या मेरी जरूरत सिर्फ घर के काम और बिस्तर तक ही सीमित है?’’ अचानक अवंतिका के मन में यह विचार कौंध गया और उस की आंखें डबडबा गईं.

अवंतिका थोड़ी चिड़चिड़ी होने लगी थी. निखिल को अवंतिका से शिकायत रहती. वहीं अवंतिका को निखिल से सम?ादारी की उम्मीद. उस की जिंदगी इसी तरह गुजरते जा रही थी. उस के मातापिता कुछ वर्ष पहले गुजर गए थे. एक भाई था तो वह भी विदेश में सैटल हो चुका था जो उस की कोई खोजखबर नहीं लेता. ससुराल में सासससुर भी नहीं थे. लेकिन ससुराल के नातेरिश्तेदार यदाकदा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते, वह भी निखिल के लिए. अवंतिका को ससुराल पक्ष के रिश्तेदार हेय दृष्टि से देखते.

वे कहते, ‘‘इस का तो न मायका है न भाई पूछने वाला. हम न पूछें तो इसे कोई न पूछे. मरने पर कोई कफन देने वाला भी न मिले.’’

अवंतिका सब की बातों को सुनती और खून का घूंट पी कर रह जाती. मन में सोचती कि सही वक्त पर इस का जवाब देना उचित होगा. यही कारण था कि बच्चों के साथ वह अपने काम के प्रति भी पजैसिव हो गई थी. हालांकि उसे न तो प्रोत्साहन मिलता और न ही सपोर्ट. लेकिन वह खुद को काम में व्यस्त रखती.

औफिस में अवंतिका को यामिनी के रूप में एक अच्छी साथी तो मिली ही. लेकिन अब अतुल के रूप में भी उसे एक समझदार दोस्त मिल गया था. उम्र में वह अवंतिका से छोटा जरूर था मगर था बहुत समझदार और सहयोगी व्यवहार वाला. तभी तो उस ने अवंतिका के बिखरे काम को समेटने में मदद की. अवंतिका ने पैंडिंग फाइलें समय पर पूरी कर बौस को दे दीं.

काम को सही तरीके से करने के लिए बौस ने अवंतिका की तारीफ की, ‘‘वैरी गुड. रियली दैट्स नाइस. मुझे मालूम था कि तुम इसे पूरा कर लोगी. मैं तुम्हारी काबिलीयत को जानता हूं. लेकिन पता नहीं क्यों तुम इधर काम के प्रति थोड़ी लापरवाह होने लगी थी.’’

‘‘थैंक यू सर. दरअसल बेटे का 10वीं कक्षा का ऐग्जाम था तो उस पर ध्यान देने के चक्कर में यह काम दिमाग से उतर गया था. मेरी कोशिश रहेगी कि आइंदा ऐसा न हो.’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं. मैं ने तुम्हारी सैलरी पास कर दी है और साथ में कुछ बोनस भी. अब एक बात ध्यान से सुनो, एक बड़े प्रोजैक्ट पर काम होने वाला है. उस में तुम मेरे साथ रहोगी. यदि तुम ने अपनी मेहनत से अच्छा कर दिखाया तो तुम्हारी प्रमोशन पक्की. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.’’

‘‘थैंक यू वैरी मच सर. मैं हार्ड वर्क से पीछे नहीं हटने वाली. मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं आप की उम्मीदों पर खड़ी उतरूं.’’

अवंतिका नए काम को पा कर बहुत खुश थी. उसे अब पूरी तरह से अपने नए प्रोजैक्ट पर फोकस करना था. उसे अपनी प्रमोशन के सपने खुली आंखों से दिखने लगे थे. लेकिन उस के इस उत्साह में निखिल का साथ बिलकुल नहीं मिल पा रहा था. अवंतिका निखिल से यह उम्मीद करने लगी थी कि घर की जिम्मेदारियों में निखिल थोड़ा सहयोग करे जिस से उसे अपना काम करने में सहूलियत हो. लेकिन निखिल का रवैया पहले जैसा ही था.

उस के रिश्तेदार भी निखिल से कहते, ‘‘देखा, सासससुर के न रहने पर कैसे अपने पंखों को फैला रही है. अब घरपरिवार उसे कहां से रास आएगा. मातापिता के रहते तुम से किसी ने घर में कोई काम करवाया? लेकिन देखो, अब महारानी तुम्हें गृहस्थी के कामों में उलझना चाहती है. सावधान रहना, तुम भी तो नौकरी करते हो.’’

निखिल शुरू से अवंतिका को कम और रिश्तेदारों को अधिक महत्त्व देता रहा. लेकिन अवंतिका सामंजस्य स्थापित कर के रिश्ते को निभाने की कोशिश करती रहती. अभी वह चाहती थी कि निखिल शाम के वक्त घर पर बच्चों को समय दे या सब्जी आदि खरीद कर ले आए.  लेकिन वह अपने दोस्तों के बीच रहना अधिक जरूरी समझौता. कहता, ‘‘मेरी भी तो अपनी लाइफ है. ड्यूटी से आ कर दोस्तों के साथ मन बहलाना भी जरूरी है नहीं तो सारा समय कामकाम और बस काम.’’

‘‘लेकिन निखिल, मेरी स्थिति भी समझ. एक अच्छा अवसर हाथ में आने वाला है. मैं इस गोल्डन मौके को गंवाना नहीं चाहती. मुझे घर के कामों में थोड़ा सहयोग कर दो ताकि इस प्रोजैक्ट को बेहतर मन से कर पाऊं.’’

‘‘तुम ने यह सब क्यों चुना? घरपरिवार ज्यादा जरूरी है. तुम्हें तो पता है, शुरू से मैं स्वच्छंद रहा हूं. मांबाबूजी ने बड़े प्यार से पाला है. ऊपर से किसी भी रिश्तेदार के घर जाता हूं तो बैठेबैठे आवभगत होती है. ऐसे में मुझे घर में कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी. यदि तुम से नहीं हो पा रहा तो प्रोजैक्ट छोड़ दो.’’

‘‘छोड़ दो,’’ अवंतिका को निखिल की बात बुरी लगी. वह मन ही मन सोचने लगी कि क्यों हर बार हर चीज स्त्री को ही छोड़नी पड़ती है ताकि गृहस्थी सुचारु रूप से चल सके. लड़की मायके और वहां से जुड़ी हर बात छोड़ कर आती है ससुराल में. एक नए रूप और अस्तित्व के साथ ससुराल में रहती है. सभी के साथ सामंजस्य स्थापित करने में न जाने कितना कुछ छोड़ती चली जाती है. इस सब के बावजूद क्या वह एक अपनी खुशी या सपने को ले कर आगे नहीं बढ़ सकती? आज जिस काम से उसे खुशी मिल रही है, उस का वजूद निखर रहा है, उसे भी वह छोड़ दे ताकि पारिवारिक जिम्मेदारियां सही से निभा पाए? माना कि निखिल प्यार में पला, कभी कोई जवाबदेही नहीं उठाई. मगर अभिभावक और घर का मुखिया बनने के बाद भी उस में जिम्मेदारी का भाव नहीं आना चाहिए? एक पति और हमसफर के तौर पर क्या उसे अपनी पत्नी का सहयोग नहीं करना चाहिए? आखिर मैं भी तो बचपन से ही जिम्मेदारियां उठाने की आदी नहीं?

तरहतरह की बातें मन में सोचते हुए अवंतिका खुद से ही जाने कितने सवाल पूछ बैठी. फिर भी, मन ही मन सोचा है कि यह मौका हाथ से नहीं जाने दूंगी. जिस को जैसे चलना है चले. मैं भी अपनी मेहनत बढ़ा दूंगी. एक बार प्रमोशन हो जाए बस.’’

अवंतिका निखिल के व्यवहार और दूसरों की सोच को दरकिनार करते हुए अपने काम में लगी रहती. बच्चों से भी कुछ काम में हाथ बंटाने का आग्रह करती ताकि उसे थोड़ा सी सपोर्ट मिल जाए. उस ने अपनी मेहनत बढ़ा दी लेकिन जल्दीजल्दी होने वाले पीरियड्स के कारण परेशान भी होने लगी थी. महीने में एक बार होने वाला कभीकभी 2 बार भी होने लगा. इस दौरान वह शारीरिक, मानसिक कष्ट महसूस करती. उसे बातबात पर गुस्सा भी आने लगा था. लेकिन निखिल उस की परेशानी समझाने के बजाय उस पर बरस पड़ता. इन सब की वजह से अवंतिका का कार्य भी प्रभावित होने लगा.

यामिनी ने अवंतिका की परेशानी को देख कर उसे डाक्टर से मिलने की सलाह दी. डाक्टर ने अवंतिका को बताया कि वह मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. कभीकभी किसी को समय से पहले भी मेनोपौज हो जाता है. ऐसे में चिड़चिड़ापन, नकारात्मक सोच, थकान, कमजोरी आदि शारीरिकमानसिक दिक्कतें होनी सामान्य बात है. उसे अभी अपने सही खानपान के साथ सकारात्मक खुशहाल माहौल बनाए रखना भी जरूरी है. आवश्यक दिशानिर्देश और दवाइयां देने के साथ डाक्टर ने अवंतिका को मेनोपौज के संबंध में विस्तार से समझाया.

अवंतिका ने अपनी परेशानी निखिल से साझा की है. उसे उम्मीद थी कि यह सब जान कर निखिल को अब कोई शिकायत नहीं होगी बल्कि वह अपनी पत्नी की परेशानियों को समझाते हुए उस को मानसिक मजबूती प्रदान करेगा. लेकिन अवंतिका की सोच यहां उलटी पड़ गई. निखिल ने अवंतिका और डाक्टर की बातों को अधिक महत्त्व नहीं दिया.

‘‘यह सब क्या नई बातें ले कर बैठ गई? मासिकचक्र कोई नई बात है क्या? महिलाओं के लिए तो यह आम बात है. अब जा कर तुम्हें मनोवैज्ञानिक पहलू समझ में आने लगा? यह सब ज्यादा पढ़लिख जाने के कारण है. नौटंकी तो ऐसे कर रही हो जैसे कोई बहुत बड़ी बीमारी हो गई है. हुंह.’’

निखिल की बात से अवंतिका एक बार फिर खीझ गई. वह मन ही मन सोचने लगी कि चाहे जो हो मुझे हिम्मत से काम लेना होगा. भावनात्मक सहारा मिले न मिले लेकिन अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा को जरूर भरना होगा. समय के ऊबड़खाबड़ रास्ते पर अवंतिका के जीवन की गाड़ी यों ही बढ़ते जा रही थी. इधर औफिस के साथ घर की जिम्मेदारियां पूरा करते हुए अवंतिका मेनोपौज के दौर से भी गुजर रही थी. निखिल का रूखा व्यवहार पतिपत्नी के रिश्ते में खटास भरने का काम करने लगा था. अवंतिका को ऐसे में अपने मातापिता की बहुत याद आती कि काश वे होते तो उन से कुछ अपना दुख बांट लेती.

यामिनी ने अवंतिका की परेशानियों को समझाते हुए उसे पुन: सलाह दी कि प्रोजैक्ट में अतुल को शामिल कर के उस की मदद ले ले. कुछ तो राहत मिलेगी और यह बात उन तीनों तक ही रहेगी, बौस को जानकारी नहीं होने देंगे.

अवंतिका को यामिनी की बात जंच गई. उस ने इस नए प्रोजैक्ट में अतुल को अपने साथ मिला लिया. अतुल अवंतिका की बड़ी इज्जत करता था. सहयोगी व्यवहार के कारण वह एक बार फिर अवंतिका के काम में सहयोग करने के लिए तैयार हो गया.

अब अवंतिका ने थोड़ी राहत की सांस ली. काम को ले कर अतुल और अवंतिका की बातचीत औफिस के बाद घर पर भी फोन से होने लगी. निखिल को यह बात भी खटकने लगी. अवंतिका निखिल की इस मानसिक सोच से अनभिज्ञ अपनी दिनचर्या में मसरूफ थी. घर आने के बाद भी अतुल का काम के सिलसिले में कभी कौल तो कभी मैसेज आ जाता. इस बार का प्रोजैक्ट बड़ा महत्त्वपूर्ण था और अवंतिका कोई गलती नहीं करना चाहती थी. इसलिए 1-1 बारीकी पर वह अतुल से बात करती.

अतुल के सहयोग से अवंतिका का काम आसान तो हो गया मगर निखिल के साथ रिश्ते कठिन होने लगे.

एक शाम अवंतिका रसोई में खाना बना रही थी कि तभी अतुल का फोन आया. प्रोजैक्ट फाइल में कहीं कुछ मिसिंग था. उस को ले कर वह अवंतिका से कुछ जरूरी चीज पूछने लगा. उस में से मैटर बताने के लिए अवंतिका हौल की तरफ बढ़ गई और वहीं बैठे निखिल को गैस पर चढ़ी सब्जी देखने को बोल दिया.

इधर अवंतिका फाइल समेट कर वापस रसोई में आई तो सब्जी जल चुकी थी. वह निखिल से अपनी बात बोली तो उस ने न सुनने की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया. ऊपर से अवंतिका पर ही बरसने लगा, ‘‘मैं देख रहा हूं कि तुम्हें अब कोई और भाने लगा है. घर की जिम्मेदारी तो छोड़ो अब खाना बनाने में भी मन नहीं लग रहा है. सीधेसीधे बोल दो कि तुम स्वतंत्र होना चाहती हो.’’

‘‘निखिल, तुम यह क्या बोल रहे हो? बच्चे क्या कहेंगे यह सब सुन कर? मैं तुम्हें सब्जी देखने के लिए बोल कर फाइल देखने चली गई थी.’’

‘‘अच्छा, तुम्हें नहीं दिखा कि मैं क्रिकेट मैच देख रहा हूं?’’

‘‘यदि तुम्हें नहीं देखना था तो बोल देते, मैं बच्चों को बोल देती. खैर, बात खत्म करो. आइंदा मैं बच्चों से ही बोल कर कुछ सहयोग ले लिया करूंगी.’’

‘‘हांहां, ले लो बच्चों का सहयोग. तुम नौकरी करो और बच्चों की पढ़ाई छुड़वा कर उन से घर के काम करवाओ.’’

‘‘अब इस में पढ़ाई छुड़वाने की बात कहां से आ गई? घर में छोटेमोटे कुछ काम देख लेने से उन की पढ़ाई छूट जाएगी? कितने बच्चे शहरों में अकेले रह कर पढ़ाई करते हैं. वे अपना काम खुद करते हैं.’’

अवंतिका समझ कर बात खत्म करना चाहती थी. लेकिन निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर था. उस दिन की तकरार से अवंतिका का मन टूट गया. उस ने एक पल को औफिस छोड़ने का मन बना लिया. अगले दिन औफिस में अवंतिका ने अतुल से प्रोजैक्ट पर काम करना बंद करने के लिए कहा. यह सुन कर अतुल चौंक गया. तब अवंतिका ने उसे अपनी पारिवारिक समस्याएं बताईं.

अतुल ने समझाया, ‘‘अवंतिकाजी, बड़ी सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ संघर्ष भी करना पड़ता है. आप संघर्ष करते हुए सफलता के करीब आने वाली हैं. ऐसे में जौब छोड़ने का फैसला गलत होगा.’’

अब तक यामिनी भी अवंतिका के पास आ चुकी थी और सारी बातें जानने के बाद उस ने भी अवंतिका को जौब न छोड़ने की सलाह दी.

एक तो अवंतिका मेनोपौज के दौर से गुजर रही थी उस पर निखिल का व्यवहार. औफिस में महत्त्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस के कैरियर को एक टर्निंग पौइंट देने वाला बन चुका था इसलिए अतुल और यामिनी की बात मान कर अवंतिका अपने काम और पारिवारिक परिस्थितियों में सामंजस्य रखने की सोची. यामिनी और अतुल यह सुन कर मुसकरा दिए.

‘‘दैट्स लाइक ए गुड गर्ल. देखो अवंतिका, मेनोपौज के दौर से गुजर रही महिलाओं की मानसिकशारीरिक स्थिति कुछ अलग होती है, लेकिन बेहतर खानपान और योग के द्वारा इन स्थितियों से निबटा जा सकता है. तुम वादा करो, किसी भी सिचुएशन में खुद को कूल रखोगी.’’

यामिनी की बात सुन कर अवंतिका ने स्वयं को कूल रखने का वादा किया. प्रोजैक्ट को 3-4 दिन में पूरा कर लेना था. निखिल के व्यवहार को देखते हुए अवंतिका ने तय किया कि वह औफिस से 1 घंटा लेट निकलेगी. यहीं अतुल के साथ बैठ कर काम का निबटारा कर लेगी ताकि घर जा कर प्रोजैक्ट वर्क पर बात करने की जरूरत न पड़े. अतुल भी इस बात को सही माना.

2-3 दिन अवंतिका औफिस से घर लेट पहुंची तो निखिल अवंतिका पर शक करने लगा. उस ने औफिस से जानकारी ली तो अतुल और अवंतिका के लेट तक रुकने का पता चला. निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया लेकिन अपने क्रोध को छिपाते हुए उस ने एक शाम अतुल को बहुत जरूरी काम बोल कर बहाने से घर बुलाया.

‘‘अतुल इस आमंत्रण को सम?ा न सका. लेकिन उस ने निखिल के घर जाने का निर्णय लिया. अतुल को घर बुलाने के बाद निखिल ने उस को खूब फटकार लगाई और अवंतिका से दूर रहने की चेतावनी दी.

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? हमारे लिए आप के मन में क्या चल रहा है?’’ अतुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मेरे मन में नहीं तुम्हारे मन में चल रहा है और वह भी अवंतिका के लिए. तुम्हें शर्म नहीं आती किसी की गृहस्थी को बरबाद करते?’’ निखिल गुस्से में बोला.

‘‘निखिलजी आप बहुत गलत सोच रहे हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं अवंतिकाजी की बहुत इज्जत करता हूं,’’ अतुल ने सम?ाने का प्रयास किया.

अवंतिका निखिल के इस रवैए से बहुत गुस्सा हुई. अतुल के सामने ही अवंतिका और निखिल में अच्छीखासी बहस हो गई.

गुस्से में निखिल ने अवंतिका से कहा,  ‘‘ठीक है, तुम दोनों के बीच यदि कुछ भी गलत नहीं है तो अभी मेरे सामने तुम अतुल को राखी बांधो और इसे अपना भाई बना कर दिखाओ.’’

‘‘निखिल तुम इतनी गिरी हुई सोच के हो जाओगे यह मैं ने कभी नहीं सोचा था. मुझे तुम से नफरत हो गई है. क्या एक स्त्री और पुरुष मित्रवत व्यवहार के साथ नहीं रह सकते?’’

‘‘तुम बात घुमाने की कोशिश मत करो. अभी इसे राखी बांध कर इसे अपना भाई मानो.’’

अतुल भी निखिल के व्यवहार से क्रुद्ध हो गया है. लेकिन खुद को सामान्य बनाते हुए बोला, ‘‘अवंतिकाजी, आप इन की बात मान लीजिए. आप मेरी कलाई पर धागा बांध कर मुझे भाई के रूप में स्वीकार कीजिए.’’

अवंतिका अतुल की बात सुन कर कुछ बोलती उस से पहले ही अतुल ने फिर से अपनी बात दोहराई. अवंतिका को माहौल शांत करने का यही एकमात्र रास्ता नजर आया. वह मौली उठा कर ले आई और उसे अतुल की दाहिनी कलाई पर राखी के रूप में बांध दिया.

कलाई पर मौली बंधवाने के बाद अतुल अपने क्रोधावेग को बढ़ाते हुए बोला, ‘‘सुनो निखिल, मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं कि इसी पल से तुम अवंतिका के साथ न तो बुरा बरताव करोगे और न ही उसे किसी प्रकार का मानसिक कष्ट देने की कोशिश करोगे. अभी से यह मेरी बड़ी बहन है और यदि उस की आंखों में तुम्हारी वजह से आंसू आए तो मु?ा से बुरा कोई न होगा. याद रखना यह अवंतिका के भाई की चेतावनी है.’’

निखिल अतुल का यह रूप देख कर अवाक रह गया. वे इस प्रकार के जवाब की बिलकुल उम्मीद नहीं की थी. आगे वह किस बात पर बहस करे?

उस को चुप देख कर अतुल बोला, ‘‘मैं अवंतिकाजी को बड़ी बहन के रूप में ही इज्जत करता था लेकिन आज तुम ने हमारे रिश्ते को इस धागे से मजबूत बना दिया है. अब यह मत सम?ाना कि अवंतिका अकेली है. मैं इस का भाई सदैव इस के लिए खड़ा रहूंगा. चलता हूं अवंतिकाजी अपना खयाल रखिएगा और हां, आप को अपने काम पर पूरा फोकस करना है. यह प्रमोशन का अवसर आप के हाथ से जाने न पाए. अब मैं चलता हूं.’’

अतुल वहां से जा चुका था मगर निखिल के पैर अब भी जस के तस ठिठके थे.

‘‘आज तुम ने विश्वास की आखिरी डोर को भी तोड़ दिया. तुम ने मुझे जो दर्द की सिलवटें दी हैं वे हृदय में जीवनभर चुभती रहेंगी. निखिल, भले ही मैं यहां इस घर में रहूंगी वह भी अपने बच्चों की खातिर मगर मेरे मन में तुम्हारे लिए

न तो पहले जैसी भावना रहेगी और न इज्जत. अपनी गंदी सोच से गृहस्थीरूपी

प्रेमालय को तुम ने मैला कर दिया है. तुम न तो अपनी जिम्मेदारियां समझ सके और न ही अपनी पत्नी को,’’ कह कर अवंतिका गुस्से से कमरे में चली गई और निखिल वहीं खड़ा अपनी सोच पर पछतावा करता रहा.

Famous Hindi Stories : एक बार फिर से

Famous Hindi Stories : “हैलो कैसी हो प्रिया ?”

मेरी आवाज में बीते दिनों की कसैली यादों से उपजी नाराजगी के साथसाथ प्रिया के लिए फिक्र भी झलक रही थी. सालों तक खुद को रोकने के बाद आज आखिर मैं ने प्रिया को फोन कर ही लिया था.

दूसरी तरफ से प्रिया ने सिर्फ इतना ही कहा,” ठीक ही हूं प्रकाश.”

हमेशा की तरह हमदोनों के बीच एक अनकही खामोशी पसर गई. मैं ने ही बात आगे बढ़ाई, “सब कैसा चल रहा है ?”

” बस ठीक ही चल रहा है .”

एक बार फिर से खामोशी पसर गई थी.

“तुम मुझ से बात करना नहीं चाहती हो तो बता दो?”

“ऐसा मैं ने कब कहा? तुम ने फोन किया है तो तुम बात करो. मैं जवाब दे रही हूं न .”

“हां जवाब दे कर अहसान तो कर ही रही हो मुझ पर.” मेरा धैर्य जवाब देने लगा था.

“हां प्रकाश, अहसान ही कर रही हूं. वरना जिस तरह तुम ने मुझे बीच रास्ते छोड़ दिया था उस के बाद तो तुम्हारी आवाज से भी चिढ़ हो जाना स्वाभाविक ही है .”

“चिढ़ तो मुझे भी तुम्हारी बहुत सी बातों से है प्रिया, मगर मैं कह नहीं रहा. और हां, यह जो तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो न कि मैं ने तुम्हें बीच रास्ते छोड़ दिया तो याद रखना, पहले इल्जाम तुमने लगाए थे मुझ पर. तुम ने कहा था कि मैं अपनी ऑफिस कुलीग के साथ…. जब कि तुम जानती हो यह सच नहीं था. ”

“सच क्या है और झूठ क्या इन बातों की चर्चा न ही करो तो अच्छा है. वरना तुम्हारे ऐसेऐसे चिट्ठे खोल सकती हूं जिन्हें मैं ने कभी कोर्ट में भी नहीं कहा.”

“कैसे चिट्ठों की बात कर रही हो? कहना क्या चाहती हो?”

“वही जो शायद तुम्हें याद भी न हो. याद करो वह रात जब मुझे अधूरा छोड़ कर तुम अपनी प्रेयसी के एक फोन पर दौड़े चले गए थे. यह भी परवाह नहीं की कि इस तरह मेरे प्यार का तिरस्कार कर तुम्हारा जाना मुझे कितना तोड़ देगा.”

“मैं गया था यह सच है मगर अपनी प्रेयसी के फोन पर नहीं बल्कि उस की मां की कॉल पर. तुम्हें मालूम भी है कि उस दिन अनु की तबीयत खराब थी. उस का भाई भी शहर में नहीं था. तभी तो उस की मां ने मुझे बुला लिया. जानकारी के लिए बता दूं कि मैं वहां मस्ती करने नहीं गया था. अनु को तुरंत अस्पताल ले कर भागा था.”

“हां पूरी दुनिया में अनु के लिए एक तुम ही तो थे. यदि उस का भाई नहीं था तो मैं पूछती हूं ऑफिस के बाकी लोग मर गए थे क्या ? उस के पड़ोस में कोई नहीं था क्या?

“ये बेकार की बातें जिन पर हजारों बार बहस हो चुकी है इन्हें फिर से क्यों निकाल रही हो? तुम जानती हो न वह मेरी दोस्त है .”

“मिस्टर प्रकाश बात दरअसल प्राथमिकता की होती है. तुम्हारी जिंदगी में अपनी बीवी से ज्यादा अहमियत दोस्त की है. बीवी को तो कभी अहमियत दी ही नहीं तुम ने. कभी तुम्हारी मां तुम्हारी प्राथमिकता बन जाती हैं, कभी दोस्त और कभी तुम्हारी बहन जिस ने खुद तो शादी की नहीं लेकिन मेरी गृहस्थी में आग लगाने जरूर आ जाती है.”

“खबरदार प्रिया जो फिर से मेरी बहन को ताने देने शुरू किए तो. तुम्हें पता है न कि वह एक डॉक्टर है और डॉक्टर का दायित्व बहुत अच्छी तरह निभा रही है. शादी करे न करे तुम्हें कमेंट करने का कोई हक नहीं.”

“हां हां मुझे कभी कोई हक दिया ही कहां था तुम ने. न कभी पत्नी का हक दिया और न बहू का. बस घर के काम करते रहो और घुटघुट कर जीते रहो. मेरी जिंदगी की कैसी दुर्गति बना दी तुम ने…”

कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी. एक बार फिर से दोनों के बीच खामोशी पसर गई थी.

“प्रिया रो कर क्या जताना चाहती हो? तुम्हें दर्द मिले हैं तो क्या मैं खुश हूं? देख लो इतने बड़े घर में अकेला बैठा हुआ हूं. तुम्हारे पास तो हमारी दोनों बच्चियां हैं मगर मेरे पास वे भी नहीं हैं.” मेरी आवाज में दर्द उभर आया था.

“लेकिन मैं ने तुम्हें कभी बच्चों से मिलने से  रोका तो नहीं न.” प्रिया ने सफाई दी.

“हां तुम ने कभी रोका नहीं और दोनों मुझ से मिलने आ भी जाती थीं. मगर अब लॉकडाउन के चक्कर में उन का चेहरा देखे भी कितने दिन बीत गए.”

चाय बनाते हुए मैं ने माहौल को हल्का करने के गरज से प्रिया को सुनाया, “कामवाली भी नहीं आ रही. बर्तनकपड़े धोना, झाड़ूपोछा लगाना यह सब तो आराम से कर लेता हूं. मगर खाना बनाना मुश्किल हो जाता है. तुम जानती हो न खाना बनाना नहीं जानता मैं. एक चाय और मैगी के सिवा कुछ भी बनाना नहीं आता मुझे. तभी तो ख़ाना बनाने वाली रखी हुई थी. अब हालात ये हैं कि एक तरफ पतीले में चावल चढ़ाता हूं और दूसरी तरफ अपनी गुड़िया से फोन पर सीखसीख कर दाल चढ़ा लेता हूं. सुबह मैगी, दोपहर में दालचावल और रात में फिर से मैगी. यही खुराक खा कर गुजारा कर रहा हूं. ऊपर से आलम यह है कि कभी चावल जल जाते हैं तो कभी दाल कच्ची रह जाती है. ऐसे में तीनों वक्त मेगी का ही सहारा रह जाता है.”

मेरी बातें सुन कर अचानक ही प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

“कितनी दफा कहा था तुम्हें कि कुछ किचन का काम भी सीख लो पर नहीं. उस वक्त तो मियां जी के भाव ही अलग थे. अब भोगो. मुझे क्या सुना रहे हो?”

मैं ने अपनी बात जारी रखी,” लॉकडाउन से पहले तो गुड़िया और मिनी को मुझ पर तरस आ जाता था. मेरे पीछे से डुप्लीकेट चाबी से घर में घुस कर हलवा, खीर, कढ़ी जैसी स्वादिष्ट चीजें रख जाया करती थीं. मगर अब केवल व्हाट्सएप पर ही इन चीजों का दर्शन कराती हैं.”

“वैसे तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे घर हलवापूरी, खीर वगैरह मैं ही भिजवाती थी. तरस मुझे भी आता है तुम पर.”

“सच प्रिया?”

एक बार फिर हमारे बीच खामोशी की पतली चादर बिछ गई .दोनों की आंखें नम हो रही थीं.

“वैसे सोचने बैठती हूं तो कभीकभी तुम्हारी बहुत सी बातें याद भी आती हैं. तुम्हारा सरप्राइज़ देने का अंदाज, तुम्हारा बच्चों की तरह जिद करना, मचलना, तुम्हारा रात में देर से आना और अपनी बाहों में भर कर सॉरी कहना, तुम्हारा वह मदमस्त सा प्यार, तुम्हारा मुस्कुराना… पर क्या फायदा ? सब खत्म हो गया. तुम ने सब खत्म कर दिया.”

“खत्म मैं ने नहीं तुम ने किया है प्रिया. मैं तो सब कुछ सहेजना चाहता था मगर तुम्हारी शक की कोई दवा नहीं थी. मेरे साथ हर बात पर झगड़ने लगी थी तुम.” मैं ने अपनी बात रखी.

“झगड़े और शक की बात छोड़ो, जिस तरह छोटीछोटी बातों पर तुम मेरे घर वालों तक पहुंच जाते थे, उन की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते थे, क्या वह सही था? कोर्ट में भी जिस तरह के आरोप तुम ने मुझ पर लगाए, क्या वे सब सही थे ?”

“सहीगलत सोच कर क्या करना है? बस अपना ख्याल रखो. कहीं न कहीं अभी मैं तुम्हारी खुशियों और सुंदर भविष्य की कामना करता हूं क्यों कि मेरे बच्चों की जिंदगी तुम से जुड़ी हुई है और फिर देखो न तुम से मिले हुए इतने साल हो गए . तलाक के लिए कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने में भी हम ने बहुत समय लगाया. मगर आजकल मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी है . तलाक के उन सालों का समय इतना बड़ा नहीं लगा था जितने बड़े लॉकडाउन के ये कुछ दिन लग रहे हैं. दिल कर रहा है कि लौकडाउन के बाद सब से पहले तुम्हें देखूं. पता नहीं क्यों सब कुछ खत्म होने के बाद भी दिल में ऐसी इच्छा क्यों हो रही है.” मैं ने कहा तो प्रिया ने भी अपने दिल का हाल सुनाया.

“कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी है प्रकाश. हम दोनों ने कोर्ट में एकदूसरे के खिलाफ कितने जहर उगले. कितने इल्जाम लगाए. मगर कहीं न कहीं मेरा दिल भी तुम से उसी तरह मिलने की आस लगाए बैठा है जैसा झगड़ों के पहले मिला करते थे.”

“मेरा वश चलता तो अपनी जिंदगी की किताब से पुराने झगड़े वाले, तलाक वाले और नोटिस मिलने से ले कर कोर्ट की चक्करबाजी वाले दिन पूरी तरह मिटा देता. केवल वे ही खूबसूरत दिन हमारी जिंदगी में होते जब दोनों बच्चियों के जन्म के बाद हमारे दामन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट आई थी.”

“प्रकाश मैं कोशिश करूंगी एक बार फिर से तुम्हारा यह सपना पूरा हो जाए और हम एकदूसरे को देख कर मुंह फेरने के बजाए गले लग जाएं. चलो मैं फोन रखती हूं. तब तक तुम अपनी मैगी बना कर खा लो.”

प्रिया की यह बात सुन कर मैं हंस पड़ा था. दिल में आशा की एक नई किरण चमकी थी. फोन रख कर मैं सुकून से प्रिया की मीठी यादों में खो गया.

Hindi Love Stories : वादा रहा प्यार से प्यार का

Hindi Love Stories : आर्या आजकल अजीब ही बिहेव करने लगी है. कुछ पूछो तो कैसे इरिटेट हो कर जबाव देती है. पहले ऐसी नहीं थी वह. पहले तो कितनी हंसमुख और चुलबुली हुआ करती थी. मगर अब तो जैसे वह हंसनामुसकराना ही भूल गई है. न किसी से मिलतीजुलती है, न ही किसी का फोन उठाती है. उस के दिमाग में पता नहीं क्या चलता रहता है. उसे लगता है उस के पीठ पीछे लोग बातें बनाते होंगे. कितना समझाया उसे कि ऐसा कुछ भी नहीं है, तू बेकार में कुछ भी सोचती है. लेकिन कहती है, तू नहीं समझेगी. अब क्या समझूं मैं. हद है अब तो मुझ से भी ठीक से बात नहीं करती. फोन करो तो एक छोटा सा मैसेज छोड़ देती है ‘कुछ अरर्जैंट है?’

अरे, अब अरजैंट होगा तभी कोई किसी से बात करेगा क्या? इसलिए फिर मैं ने भी उसे फोन करना छोड़ दिया. तब एक दिन उस ने खुद ही मुझे कौल की और सौरी बोल कर रोने लगी. दया भी आई उस पर. कहने लगी कि उस के मम्मीपापा भी उस से ठीक से बात नहीं करते. कोई नहीं समझता उसे. कम से कम मैं तो उसे समझूं. लेकिन बहन तूने ही तो किनारा कर लिया हम से, तो कैसे समझूं और समझाऊं तु, मन किया बोल दे. पर लगा जब इंसान का मूड अच्छा नहीं होता है तो अच्छी बातें भी बुरी लगती हैं. इसलिए कुछ नहीं बोला और उस की ही सुनती रही. अरे, वही सब बातें और क्या कि उस ने मेरे साथ ऐसा किया, वैसा किया वगैरहवगैरह.

और क्या मैं आर्या के मम्मीपापा को नहीं जानती? बहुत अच्छे इंसान हैं वे लोग. देखा है मैं ने वे अपनी बेटी को कितना प्यार करते हैं. लेकिन उसे लगता है कि उस के मम्मीपापा भी उसे नहीं समझते. उस का कोई दोस्त भी उसे नहीं समझाता. अरे, पहले तुम खुद को तो समझ लो, खुद से प्यार करो, खुश रहने की कोशिश करो तो खुशियां अपनेआप तुम्हारे दामन में भर जाएंगी. मगर मेरी बात समझाने के बजाय उलटे कहेगी कि लोगों के लिए फिलौसपी झड़ना बहुत आसान है. लेकिन जिस पर गुजरती है वही जानता है.

वैसे कह तो सही ही रही है वह कि जिस पर गुजरती है वही जानता है. बेचारी का समय ही खराब चल रहा है. पहले तो बौयफ्रैंड से उस का ब्रेकअप हो गया और उस के बाद उस की जौब पर भी आफत आ गई. खैर, जौब तो दूसरी लग गई, लेकिन बौयफ्रैंड से ब्रेकअप का दर्द वह भुला नहीं पा रही है. कहती है, बहुत अकेलापन महसूस होता है. कुछ अच्छा नहीं लगता. लगता है मर जाऊं.

‘‘पागल, ऐसे क्यों बोल रही है तू?’’ मैं ने उसे समझने की कोशिश की, ‘‘एक ब्रेकअप ही तो हुआ है. ऐसा कौन सा तूफान आ गया तेरे जीवन में जो तू अपनी जान देने की बात कर रही है? अपने मांपापा के बारे में तो सोच कि तुम्हारे बिना उन का क्या होगा?’’

मेरी बात पर आर्या सिसकने लगी फिर कहने लगी, ‘‘मेरी क्या गलती थी? यही न की मैं ने उस लड़के से प्यार किया? लेकिन उस ने मेरे प्यार के बदले धोखा दिया.’’

‘‘अरे तो अच्छा ही हुआ न जो समय रहते तुझे उस की असलियत मालूम पड़ गई? चल, अब अपने आंसू पोंछ और हंस दे एक बार,’’ लेकिन उस ने तो मेरा फोन ही काट दिया. मैं ने भी फिर उसे यह सोच कर फोन नहीं किया कि रो लेने देते हैं उसे. मन हलका हो जाएगा तो खुद ही फोन करेगी.

मैं खुशी उस के बचपन की दोस्त. हम ने एक ही स्कूल से पढ़ाई पूरी की है और कालेज भी साथ ही कंप्लीट किया. जहां उस ने आर्किट्रैक्चर बनना चुना, वहीं मैं ने ग्रैजुएशन के बाद एमबीए कर एक बड़ी कंपनी में जौब ले ली. आर्या और मेरी दोस्ती इतनी पक्की है कि हम कहीं पर भी रहें पर एकदूसरी के टच में होती हैं. आज भी हम एकदूसरे से अपनी छोटी से छोटी बात भी शेयर करती हैं.

आर्या के प्यार के बारे में भी मुझे 1-1 बात पता है कि वह और उस का बौयफ्रैंड धु्रव कब और कैसे मिले, कैसे उन की दोस्ती हुई और फिर कैसे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. यह भी बताया था आर्या ने कि उस ने नहीं बल्कि ध्रुव ने ही उसे प्रपोज किया था. वैसे इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि किस ने किसे पहले प्रपोज किया. धु्रव कोडिंग में है. महीने के वह डेढ़ से 2 लाख रुपए कमाता है. ऊपर से वह अपने मातापिता का एकलौता बेटा है. बहुत ही अमीर परिवार से है. पैसों की कोई कमी नहीं है उस के पास.यह सब आर्या ने ही मुझे बताया था. वैसे आर्या भी कोई ऐसेवैसे परिवार से नहीं है. उस के पापा एक सफल बिजनैसमैन हैं. आर्या खुद आर्किटैक्ट है. महीने के वह भी लाख रुपए से कम नहीं कमाती है. उस का एक छोटा भाई भी है जो बैंगलुरु में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.

आर्या मुझे फोन पर बताती रहती कि उस की और धु्रव की लवलाइफ कितने मजे से चल रही है. कैसे दोनों छुट्टियों में लौंग ड्राइव पर निकल पड़ते हैं. धु्रव उसे खूब शौपिंग करवाता है. महंगेमहंगे गिफ्ट देता है. वह अपने और धु्रव के फोटो भी शेयर करती मुझ से और मैं ध्रुव को ले कर उसे छेड़ती तो वह शरमा कर ‘धत’ बोल कर फोन रख देती थी. यह भी बताती कि जब कभी उस में और धु्रव में किसी बात को ले कर बहस हो जाती है और वह रूठ कर बैठ जाती है तो धु्रव ही उसे मनाने आता है भले ही गलती आर्या की हो. दीवानों की तरह वह उस के आगेपीछे तब तक डोलता जब तक आर्या उसे माफ नहीं कर देती.

सच कहूं तो कभीकभी तो मुझे आर्या से जलन होने लगती थी कि उसे धु्रव जैसा प्यार करने वाला इतना अच्छा जीवनसाथी मिला. इतने अच्छे पेरैंट्स, जिन्होंने धु्रव और उस के रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी. और क्या चाहिए उसे जीवन में? सबकुछ तो मिल गया उसे.

दिन इसी प्रकार हंसीखुशी बीत रहे थे हमारे. रोज हम फोन पर कुछ देर बात करते और फिर फोन करने का वादा कर अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाते थे. एक रोज रात के 2 बजे आर्या का फोन आया. बहुत परेशान लग रही थी. पूछने पर कहने लगी, ‘‘अब धु्रव उसे पहले जैसा प्यार नहीं करता.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? लड़ाई हुई क्या तुम दोनों के बीच?’’

मेरी बात पर वह बोली, ‘‘नहीं, कोई लड़ाई नहीं हुई. लेकिन इधर कुछ दिनों से बेवजह ही धु्रव मुझ से खीजने, ऊबने लगा है. मेरी जिन अदाओं पर वह कभी री?ा उठता था, वही अब उसे बोरिंग लगने लगी हैं. एक दिन में 20 बार फोन करने वाला धु्रव अब मुझे 2-2 दिनों तक फोन नहीं करता. पूछने पर दोटूक जबाव देता है कि उसे और कोई काम नहीं है क्या? बातबात पर अब मुझे झिड़कने लगा है.’’

‘‘तो तू पूछती क्यों नहीं कि वह ऐसा क्यों कर रहा है?’’

मेरी बात पर वह बोली, ‘‘पूछा तो उस ने सारी बातें खोल कर रख दी और कहा कि उस के औफिस में उस के साथ काम करने वाली एक लड़की कनक से उसे प्यार हो गया और वह उस से शादी करना चाहता है.’’

‘‘क्या ऐसा कहा उस ने तुम से? नहींनहीं यह नहीं हो सकता है वह तुम से मजाक कर रहा होगा.’’

मेरी बात पर वह सिसक पड़ी और कहने लगी, ‘‘नहीं यह कोई मजाक नहीं है. सच में धु्रव की जिंदगी में कोई और लड़की आ गई है और वह उस से शादी करना चाहता है.’’

‘‘अरे, बड़ा ही दोगला इंसान निकला वह,’’ गुस्सा आ गया मुझे कि प्यार किसी और से और शादी किसी और से.

आर्या फिर कहने लगी, ‘‘यह बात सुन कर उसे लगा जैसे किसी ने मेरे दिल पर हजारों मन का पत्थर रख दिया हो. मुझे लगा मैं चक्कर खा कर वहीं पर गिर पड़ूंगी. लेकिन मैं ने खुद को संभाला और सवाल किया कि उसे शादी के सपने दिखाने के बाद आज वह ऐसा कैसे कह सकता है कि उसे किसी और लड़की से प्यार हो गया और वह उस से शादी करना चाहता है? अब मैं ने अपने मांपापा को क्या जबाव दूंगी? क्या कहेगी कि जिस लड़के पर मैं ने खुद से ज्यादा भरोसा  किया, उस ने ही मुझे धोखा दे दिया? उस पर ध्रुव ने पता है क्या कहा? कहा कि वह उसे भी साथ रखना चाहता है, प्रेमिका बना कर. ‘‘प्रेमिका या रखैल?’’ चीख पड़ी थी मैं. उस रोज घिन्न हो आई थी मुझे ध्रुव से. उस के दिए सारे उपहार, कार्ड्स, जला दिए और उस का फोन नंबर भी अपने फोन से डिलीट कर दिया. अपना ट्रांसफर भी दूसरे शहर में करवा लिया ताकि कभी धु्रव का मुंह न देखना पड़े.’’

ब्रेकअप के बाद आर्या बिलकुल ही बदल गई. वह पहले जैसी रही ही नहीं क्योंकि लोगों पर से उस का विश्वास जो उठ गया. सारे रिश्तेनाते, दोस्त उसे छलावा लगने लगे. इसलिए उस ने सब से बात करना ही छोड़ दिया. चिड़चिड़ी और उदास रहने लगी थी वह. कभी चीखतीचिल्लाती, तो कभी रो कर शांत पड़ जाती. सोचती हूं, अगर मैं आर्या की जगह होती न तो बताती उस धु्रव के बच्चे को. ऐसा मजा चखाती उसे कि फिर किसी से प्यार करना ही भूल जाता. ऐसे लोग आखिर समझाते क्या है लड़कियों को? हाथ का खिलौना? जब मन किया खेल लिया वरना फेंक दिया. प्यार का नाटक करता रहा आर्या से और सगाई कर ली किसी और से. ऐसा कैसे कर सकता है कोई किसी के साथ? और यह बेचारी आर्या… उस के साथ शादी के सपने ही देखती रह गई.

अभी परसों जब उस ने मुझ से वीडियो कौल पर बात की, तो उसे देख कर मैं शौक्ड रह गई. उस के चेहरे पर जगहजगह रिंकल्स दिखाई देने लगी थीं. उस का गोरा रंग मलिन पड़ गया था. अभी इतनी तो उम्र नहीं हुई है उस की जो चेहरे पर रिंकल्स दिखाई पड़ने लगें. सिर्फ 25 की तो है अभी. लेकिन टैंशन, डिप्रैशन के कारण उस ने खुद को ऐसा बना लिया है. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपनी दोस्त के लिए ऐसा क्या करूं जिस से उस के चेहरे पर खुशी लौट आए?

फिर मेरे दिमाग में एक आइडिया आया. मैं ने उसी वक्त उसे फोन लगाया और फिर अपने स्कूल के सारे पुराने दोस्तों से भी बात की. प्लान बना कि हम सब किसी हिल स्टेशन पर घूमने चलेंगे और सारी पुरानी यादें ताजा करेंगे? सब के टाइम का खयाल रखते हुए हम ने कहीं अच्छी शांत जगह पर एक बढि़या सा ‘होम स्टे’ कौटेज में छुट्टी मनाने का प्लान बनाया. लेकिन यह बात हम ने आर्या को नहीं बताई अभी क्योंकि पता है वह सीधे न कर देगी.

‘‘हैलो, क्या कर रही हो मैडम?’’ मैं बोली.

‘‘कुछ नहीं, तू बता?’’ अनमने ढंग से आर्या ने जबाव दिया.

‘‘कैसी मरीमरी सी आवाज निकल रही है तेरी. कुछ खायापीया नहीं है क्या सुबह से? आंटी ने कुछ खाने को नहीं दिया क्या तुझे?’’ बोल कर मैं खिलखिला पड़ी, फिर बोली, ‘‘अच्छा छोड़ ये सब. एक खुशखबरी देनी है तुझे. स्कूल के हम सारे दोस्त एक जगह पर मिल रहे हैं, तू भी आ जा. मजे करेंगे. बचपन की यादें ताजा करेंगे.’’

मेरी बात पर वह चुप रही.

‘‘अच्छा, सुन न, वह मोटा अतुल याद है तुझे? जिसे हम अमूल घी की फैक्टरी कह कर चिढ़ाया करते थे? अरे, जिस का कद्दू सा पेट निकला था? लो, महारानी यह भी भूल गई. अरे, वह हमारे स्कूल का दोस्त. याद आया? जो छिपा कर हमारा भी लंच का डब्बा साफ कर दिया करता था? हां, वही. उस की शादी हो गई.’’

मेरी बात पर वह धीरे से बोली, ‘‘अच्छा, लेकिन किस से?’’

‘‘यह तो नहीं पता. लेकिन अब वह पहले की तरह मोटा नहीं रहा. काफी स्मार्ट हो गया है. देखना, पहचान ही नहीं पाएगी तू तो.’’

मेरी बातें वह गौर सुन भी रही थी और जबाव भी दे रही थी. उसे नौर्मली बात करते देख मुझे राहत मिली वरना तो हमेशा ही तनाव में होती है. हम काफी देर तक फोन पर बातें करते रहें. ‘‘अच्छा तो चल, अब मैं फोन रखती हूं और सुन, दिन और जगह तुम्हें फोन पर बता दूंगी, आ जाना.’’

मगर आर्या कहने लगी, ‘‘मैं नहीं आ पाऊंगी. आप लोग ऐंजौय करें.’’

‘‘नहीं आएगी? तो फिर ठीक है, आज से तेरी और मेरी कुट्टी. दोस्ती खत्म समझ हमारी. दोस्त की कोई वैल्यू ही नहीं रह गई तेरी नजर में अब तो.’’

मेरी बात पर वह घबरा उठी. उसे लगा कहीं मैं सच में उस से कुट्टीन कर लूं.

‘‘खुशी, सुन न, गुस्सा मत हो यार. अच्छा मैं आऊंगी. बता कहां और कब आना है?’’

‘‘यह हुई न बात. मेरी क्यूटी पाई,’’ मैं ने फोन पर ही उसे एक प्यारा सा मीठा सा चुम्मा दिया और फोन रख कर सोचने लगी कि इसे क्या पता, मैं ने इस के लिए कितना बड़ा सरप्राइज रखा है. खुश नहीं हो गई, तो कहना. वैसे आप को तो बता ही सकती हूं क्या सरप्राइज है? वह सरप्राइज है शिखर हां वही शिखर, जिस से कभी आर्या प्यार करती थी और दोनों जुदा हो गए.

याद है मुझे. शिखर जब स्कूल से चला गया था तब आया कितना रोई थी. कई दिनों तक स्कूल नहीं आई थी क्योंकि उस स्कूल में अब रखा ही क्या था उस के लिए? शिखर भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जिस में मैं और आर्या. वह भी उसी वैन से स्कूल आताजाता था जिस में मैं और आर्या. बहुत नजदीक से देखा है मैं ने आर्या की आंखों में शिखर के लिए प्यार. आर्या मेरी जितनी ही थी, 15-16 साल की. सपनों और उमंगों के पंख लगा कर इस डाल से उस डाल उड़ती हुई उम्र. जिसे पहली नजर में प्यार हो जाना कहते हैं. वैसा ही प्यार हो गया था आर्या को शिखर से.

पूरे स्कूल में आर्या की आंखें शिखर के पीछेपीछे ही घूमती थीं. शिखर को भी मालूम था कि आर्या की आंखें उस का ही पीछा कर रही हैं क्योंकि उस ने आर्या की आंखों के रास्ते उस के मन की आकुलता को पढ़ लिया था. जैसे ही आर्या से उस की आंखें मिलतीं, वह नजरें झुका लेता और आगे बढ़ जाता. आर्या के लिए कसक तो उस के दिल में भी थी. महसूस किया मैं ने और सिर्फ मैं ने ही क्यों बल्कि क्लास के सारे बच्चों को पता थी उन दोनों की लवस्टोरी. तभी तो पूरे स्कूल में सब उन्हें लैलामजनूं कह कर चिढ़ाते थे. उन का वह मासूम प्यार आज भी याद है मुझे, जब हमारे स्कूल में ड्रामा कंपीटिशन हुआ था. तब आर्या और शिखर हीररांझा बने थे और उस वक्त उन दोनों ने आंखों ही आंखों में अपने दिल की सारी बातें कह डाली थीं एकदूसरे से.

आर्य जब शिखर को ले कर अपनी फिलिंग्स शेयर करती तो मैं उसे सम?ाती, ‘‘देख, यह प्यार नहीं आकर्षण है केवल और यह बात मेरी मम्मी ने मुझे समझाई है. इसलिए कह रही हूं, तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे नहीं तो फेल हो जाएगी और फिर तेरे मम्मीपापा से तुझे डांट पड़ेगी.’’

मेरी बात पर वह मुंह बिचकाती हुए कहती, ‘‘ज्यादा मेरी दादी बनने की कोशिश मत कर समझ ? बड़ी आई मम्मी वाली. सुना नहीं क्या, प्यार पर किसी का जोर नहीं चलता.’’

इतनी छोटी सी उम्र में आर्या बड़ीबड़ी बातें करने लगी थी, प्यार, मुहब्बत की बातें.

16 साल की छोटी सी उम्र में ही आर्या छलांग लगा कर शिखर के साथ प्यार का भी मिलों का सफर तय कर लेना चाहती थी. हर बात की जल्दबाजी थी उस में. लेकिन शिखर स्थिर माइंड का था, बहुत ही शांत. शिखर हमारी तरह दिल्ली का रहने वाला नहीं था. चूंकि उस के पापा आर्मी में थे, इसलिए हर 3-4 साल पर उन का तबादला एक से दूसरी जगह होता रहता था. इस बार उस के पापा का तबादला जम्मू हो गया. 10वीं कक्षा के बाद शिखर भी अपने पापा के पास जम्मू चला गया. शिखर के चले जाने से आर्या का दिल टूट गया. उस ने ठीक से खानापीना यहां तक कि दोस्तों से मिलना भी कम कर दिया. हरदम उदास, खोईखोई सी रहती. उस का उतावलापन, शोखियां सब खत्म हो चुकी थीं.

खैर, स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद कालेज की पढ़ाई भी मैं ने और आर्य ने साथ ही कंप्लीट की. जौब भी लग गई हमारी. फिर आर्या की जिंदगी में एक लड़के धु्रव ने ऐंट्री ली. धु्रव के साथ उसे खुश देख कर मु?ो लगा वह शिखर को भूल गई. लेकिन भूली नहीं थी वह. बल्कि अपने जीवन में थोड़ा आगे बढ़ गई थी. और शिखर भी तो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया था. उस के जीवन में भी एक लड़की आई जिस से उस की सगाई भी हो गई. अपनी सगाई का फोटो भी भेजा था उस ने मुझे. काफी खुश लग रहा था वह. इधर आर्या भी अपने ध्रुव के साथ खुश थी.

एक रोज शिखर का मन टटोलते हुए मैं ने पूछा भी कि क्या उसे कभी आर्या की याद नहीं आती? प्यार तो उसे भी था आर्या से? मेरी बात पर वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला कि हां, आती है, बहुत आती है. तो फिर तुम ने उसे एक बार भी कौल क्यों नहीं किया? मेरी बात पर वह बोला कि इसलिए उसे कौल नहीं किया क्योंकि वह अपने ध्रुव के साथ खुश थी. लेकिन जब मैं ने उसे आर्या का ध्रुव के साथ हुए ब्रेकअप के बारे में बताया तो वह बहुत दुखी हुआ. मिलना चाहता था वह आर्या से पर डरता था कि पता नहीं वह कैसे रिएक्ट करेगी.

अब अकसर मेरी शिखर से बातें होने लगीं और उस की बातों में केवल और केवल आर्या का ही जिक्र होता था. एक दिन उस ने कहा कि उस ने अपने मम्मीडैडी से आर्या और अपने रिश्ते के बारे में सब बता दिया है और उन्हें उन के रिश्ते पर कोई एतराज नहीं है. वह आर्या से मिलने के लिए बहुत उतावला था. इसलिए ही हम ने केरल घूमने का प्रोग्राम बनाया. लेकिन आर्या को यह नहीं बताया कि वहां शिखर भी आने वाला है.

फोन की घंटी से मैं अतीत की यादों से बाहर आ गई. देखा तो शिखर का फोन था. केरल में कौटेज बुक हो चुका था और उस का नाम था ‘अम्मां होम स्टे’ जिस में 24 घंटे रूम सर्विस, कार किराए पर लेने की सुविधा, कार पार्किंग और वैलेट सेवाओं के साथसाथ केरल का घरेलू भोजन, दक्षिण भारतीय व्यंजन, इंटरनैट की सुविधा, परिवहन और गाइड सेवाएं उपलब्ध थीं.

हम सारे दोस्त और आर्या भी केरल पहुंच चुके थे सिवा शिखर के. डर लग रहा था कि शिखर आएगा भी या नहीं क्योंकि वह कह रहा था न कि छुट्टी की बहुत प्रौब्लम चल रही है. लेकिन वह आया. जैसे ही शिखर से आर्या का सामना हुआ वह शौकड रह गई. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस के सामने शिखर, उस का प्यार खड़ा है. वह एकटक शिखर को निहार रही थी और शिखर उसे.

जब शिखर ने अपनी बांहें फैलाईं तो आर्या दौड़ कर उस के सीने से लिपट गई और रो पड़ी. उस के आंखों से ऐसे आंसू बहे जैसे धरती का सीना फोड़ कर अचानक कोई जलस्रोत फूट पड़ा हो. उन के बीच की सारी दूरियां और जो भी गिलेशिकवे थे मिट गए. हम सारे दोस्त भी एकदूसरे से गले मिल कर बहुत खुश हुए. सच कहें तो हम यहां अपना बचपनजी रहे थे. बहुत मजा आ रहा था हमें.

यह कौटेज 2 हिस्सों में बंटा था. आगे के हिस्से में 2 बैडरूम, 1 लिविंगरूम और सामने बरामदा और फूलों से सजा लौन था. पीछे की ओर 1 बैडरूम, 1 लिविंगरूम और छोटा सा बरामदा और सामने लौन था, जिस में फूलों की क्यारियां लगी थीं. और भी बहुत कुछ था जिस का वर्णन करना मुश्किल है. मतलब सुंदरता का खजाना था यहां.

सुबह ब्रेकफास्ट के बाद हम सारे दोस्त एक गाड़ी कर के घूमने निकल पड़े. मुन्नार, वर्कला, फोर्ट कोच्चि, आदि सभी जगहों पर हम घूमें और खूब मस्ती की. मगर आर्या और शिखर ज्यादातर एकदूसरे में ही खोए रहे. हमें तो लग रहा था कि कहीं हम उन्हें कबाब में हड्डी तो नहीं लगने लगे? हम ने मजाक में कहा भी, पर दोनों झेंप गए. खैर, जो भी हो पर हम यहां पर बहुत ऐंजौय कर रहे थे. हम चाय और गरममसाले के बगानों में भी घूमे और वहां से अपनेअपने घर के लिए गरममसाला और तरहतरह की चाय खरीदी. हमारा समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. 2 दिन हवा की तरह निकल गए.

कल 12 बजे की हमारी वापसी की फ्लाइट थी, इसलिए रात 2 बजे तक हम सब ने खूब मस्ती की. 1-2 फिल्में देखीं, बातें कीं. पता नहीं क्याक्या खाया भी. मतलब फुल मस्ती की हम ने. मगर इस बात का दुख भी हो रहा था कि कल हम सब फिर बिछड़ जाएंगे. लेकिन हम ने एकदूसरे से यह वादा लिया कि अपने जीवन में हम कितने भी बिजी क्यों न हों, साल में 1 बार इस तरह जरूर मिला करेंगे.

सुबह जब मेरी नींद खुली तो देखा आर्या अपने शिखर के बांहों में लिपटी हुई चैन की नींद सो रही थी और शिखर उसे एकटक निहारे जा रहा था. जुल्फों से झांक रहा उस का गोरा चेहरा जैसे दूध में ईगुर घोल दिया हो किसी ने. नींद में भी दीप्ति से भरा हुआ. उस की बड़ीबड़ी आंखों के बंद पटों पर झालर सी टंकी बरौनियां. छोटी सी प्यारी सी नाक, गुलाब की पंखुडि़यों से लाललाल होंठ और उस के अधखुले कपड़ों से ?झांकते 2 अमृतकलश देख शिखर सम्मोहन में डूब ही रहा था कि मैं जोर से खांसी तो वह अचकचा गया और आर्या भी उठ बैठी. पीछे से सारे दोस्त ‘हो हो’ कर हंसने लगे तो वे दोनों भी मुसकरा उठे.

‘‘भाई, सब अपनाअपना समान समेट लो. निकलना होगा हमें,’’ कह कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ी देखा दोनों की आंखें एकदूसरे में डूबी हुई थीं जैसे वे एकदूसरे से कह रहे हों कि वादा रहा प्यार से प्यार का… अब हम न होंगे जुदा.

Romantic Story : मुहब्बत हो गई तुम से

Romantic Story : ‘‘अंकल, मैं युवान से शादी नहीं कर पाऊंगी. मैं यह शादी तोड़ रही हूं. प्लीज, युवान को बता दीजिएगा. आप का दिया हार और कंगन मैं अभी आप के औफिस में दे जाऊंगी. नमस्ते.’’

अपने मंगेतर युवान के पिता को फोन पर शादी से इनकार कर भाविषा को यों लग रहा था मानो उस के हाथपैरों से जान निकल गई हो. अतीव घबराहट से उस के हाथ पैर कांप रहे थे. दिल डूबा जा रहा था. वहीं दूसरी ओर उसे राहत का एहसास भी हो रहा था.

इन मिश्रित एहसासों में डूबतीउतराती भाविषा फोन काट कर बैड पर धम्म से बैठ गई. अनायास आंखों के सामने युवान का चेहरा कौंध आया. उस के हृदय में जैसे शूल चुभा.

युवान, उस का सब से प्यारा, अंतरंग दोस्त… प्रेमी… उफ, उस ने उसे क्या समझ और उस की असली फितरत क्या निकली? अनायास उसे खुशनुमा अतीत की रोशन यादों ने अपने आगोश में समेट लिया…

युवान से भविषा की पहली मुलाकात उस की दिल्ली यूनिवर्सिटी के वार्षिक फ्लौवर शो में हुई थी. उसे आज भी अच्छी तरह याद है, वह उन दिनों एमए प्रीवियस में थी और युवान एमए फाइनल में.

उस दिन भाविषा ने एक सफेद रंग की लौंग स्कर्ट और टौप पहना हुआ था. सफेद रंग उस का पसंदीदा रंग था. वह एक जूही के पौधे के पास जा कर पोज दे रही थी और उस की सहेली उस का फोटो खींच रही थी.

भाविषा एक तीखे नैननक्श की गोरीचिट्टी बेहद खूबसूरत युवती थी. सहेली ने उस के कुछ फोटो खींचे ही थे कि उस ने देखा, एक बांका सजीला नौजवान उस के पास आ कर पौधे पर खिलते जूही के फूलों की सुंदर पृष्ठभूमि में सैल्फी लेने लगा.

उसे अपने पास यों फोटो लेते देख भाविषा चिंहुक कर मुंह बनाते हुए वहां से हट गई. उसे यों दूर जाते देख वह मुसकराते हुए उस से बोला, ‘‘ओ… मिस बेला… जूही… कहां चलीं? अपना इंट्रोडक्शन तो देती जाइए. बाय द वे मैं युवान, एमए फाइनल में.’’

उस दिन के बाद से वह गाहेबगाहे उस से टकरा जाता. कभी लाइब्रेरी में तो कभी कैंटीन में, कभी कंप्यूटर लैब में तो कभी यूनिवर्सिटी के गलियारों में. जब भी वह उस से टकराता, उसे एक दिलकश मुसकान देता और उसे ‘मिस बेला जूही’ कह कर पुकारता.

एक दिन यूनिवर्सिटी औडीटोरियम में कोई कल्चरल फंक्शन था. आगेआगे अपनी एक सहेली के साथ प्रोग्राम देख रही थी कि तभी उसे लगा, कोई उस की बगल वाली खाली सीट पर आ कर बैठ गया. उस के कानों में वही चिरपरिचित आवाज पड़ी, ‘‘मिस बेला जूही, आप मुझ से यों इतना दूरदूर क्यों भागती हैं? भई मैं कोई सड़कछाप शोहदा तो नहीं जो आप मुझे देखते ही अपना रास्ता बदल लेती हैं. हम दोनों एक ही डिपार्टमैंट में हैं. मैं बस आप से दोस्ती करना चाहता हूं… जस्ट प्योर फ्रैंडशिप. दैट्स इट.’’

उस दिन उस की बातचीत के शिष्ट और नर्म लहजे ने आखिरकार भाविषा के मन में जगह बना ही ली और दोनों दोस्त बन गए.

वे दोनों यूनिवर्सिटी में कक्षा के बाहर हमेशा साथसाथ देखे जाते. वक्त के साथ आहिस्ताआहिस्ता दोनों के मन में प्रेम की अगन जलने लगी.

महज दोस्ती से शुरू हुआ उन का सफर कई पड़ावों को पार कर प्रेम के मुकाम तक पहुंच गया. दोनों जिंदगी का सफर साथसाथ बिताने के ख्वाब देखने लगे.

उन दोनों की माइक्रोबायलौजी में एमएससी पूरी हो गई थी. दोनों की जौब्स प्राइवेट सैक्टर में लग गई. अब उन के सपने पूरे करने का वक्त आ गया था.

भाविषा ने अपने मातापिता को युवान के मातापिता से शादी की बात करने के लिए भेजा. जहां युवान के पिता एक धनाढ्य उद्योगपति थे, वहीं भाविषा के पिता एक निजी प्रतिष्ठान में छोटे पद पर कार्यरत थे. वे महज एक सुपरवाइजर थे. अपनी सीमित बंधीबंधाई तनख्वाह में उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने 2 बच्चों को पालापोसा था, उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई थी.

भाविषा के मातापिता युवान के घर की शानशौकत देख चकरा गए. मन में असंख्य आशंकाएं फन उठाने लगीं. यदि लड़के वालों की कोई मांग हुई तो क्या होगा? वे इतने रईस लोगों से रिश्ता कैसे निभा पाएंगे?

युवान के घर का ड्राइंगरूम एक रंगारंग प्रदर्शनी से कम न था. विशालकाय हौल में 3 शानदार गद्देदार मखमली सोफे रखे थे. फर्श पर गुदगुदा कालीन बिछा था. दीवारों पर कई आदमकद पेंटिंग्स उन की शोभा बढ़ा रही थीं. हर कोने में मद्धिम रंगीन रोशनी बिखेरते लैंप थे. सीलिंग से बड़ेबड़े कलात्मक गड़ाई वाले फानूस लटक रहे थे.

ऐसे जबरदस्त ड्राइंगरूम में सस्ती सी सिंथैटिक साड़ी और पैंट शर्ट पहने भाविषा के मातापिता बेहद असहज महसूस कर रहे थे. सोच रहे थे, बेटी की जिद पर यहां आ तो गए लेकिन इतने धनाढ्य घर के कुलदीपक से अपनी बेटी के रिश्ते की बात किस दम पर चलाएं. उन की तुलना में तो वे कुछ भी नहीं. उन के पास मात्र उन की नाजों से पली लाखों में एक खूबसूरत लाडली थी लेकिन इस वैभव और आडंबर के बीच क्या उन की कनक छड़ी सी हीरे की कनि बिटिया अपनी पहचान बनाए रख पाएगी? उन्होंने कितने जतन से उसे पढ़ायालिखाया था. क्या उस की पढ़ाईलिखाई, उस की अस्मिता की कद्र उस सोने के संसार में हो पाएगी?

वे दोनों इन विचारों के सैलाब में डूबतेउतराते हुए खयाल मग्न थे कि तभी युवान के मातापिता बेटे के साथ वहां आ गए.

कडककलफ लगे पेस्टल आसमानी कुरतेपाजामे में सुदर्शन, भव्य शख्सियत के स्वामी युवान के पिता को देख भाविषा के पिता ने हकलाते हुए उन्हें नमस्ते की. उन की जीभ तालू से चिपक गई थी.

ठीक यही हाल भाविषा की मां का था. महंगी साड़ी और हीरों के गहनों में युवान की ठसकेदार मां को देख कुछ लमहों तक उन के मुंह से कोई बोल न फूटा. फिर अचकचाते हुए उन्होंने युवान की मां और पिता को नमस्ते की.

युवान के पिता पहले ही बेटे की भाविषा से विवाह की मंशा जान कर उस के माता, पिता और उन के परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में विस्तृत पड़ताल करा चुके थे.

उन के अनुसार भाविषा जैसी गरीब परिवार की लड़की से उन के इकलौते बेटे का विवाह उन के लिए हर तरह से घाटे का सौदा साबित होगा. यह विवाह संबंध मखमल पर टाट के पैबंद सरीखा होगा. उन के उच्च वर्गीय आभिजात परिचय क्षेत्र में इस रिश्ते को ले कर उन की बहुत जगहंसाई होगी. सो वे और उन की पत्नी दृढ़ प्रतिज्ञ थे कि वे हर लिहाज से इस बेमेल शादी को कतई नहीं होने देंगे. पर युवान की भाविषा से विवाह की जिद्द के मद्देनजर वे यह भी जानते थे कि उन्हें इस मुद्दे को बहुत डिप्लोमैटिकली हैंडल करना होगा जिस से युवान को इस रिश्ते से होने वाले नफेनुकसान का जायजा हो जाए और वह स्वत: इस संबंध के लिए न कर दे.

बेटे के सामने युवान के मातापिता भाविषा के पेरैंट्स से बहुत शिष्टता और नरमाई से पेश आए. उन का यथोचित आदरसत्कार किया.

भाविषा के पिता ने डरतेडरते हाथ जोड़ कर भावी समधी से कहा, ‘‘समधीजी, मैं एक नौकरीपेशा ईमानदार इंसान हूं. एक निजी संस्थान में छोटी सी नौकरी करता हूं. किसी तरह पेट काट कर मैं ने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई है. मेरी बेटी यूनिवर्सिटी की गोल्ड मैडलिस्ट है. उस के शील स्वभाव और शिक्षा संस्कार के अलावा आप को और कुछ न दे पाऊंगा. यदि आप को इस से ज्यादा की अपेक्षा हो तो मुझे माफ कीजिएगा.’’

‘‘नहींनहीं समधीजी, देख ही रहे हैं, कुदरत का दिया मेरे पास सबकुछ है. मुझे आप से कुछ भी नहीं चाहिए आप की गुणी बेटी के अलावा. हम अगले संडे आप के घर आते हैं बिटिया से मिलने.’’

‘‘जी मोस्ट वैलकम. आप तीनों अवश्य हमारे घर पधारें. हम आप का वेट करेंगे.’’

अगले रविवार युवान अपने मातापिता के साथ भाविषा के घर पहुंचा. भाविषा का छोटा सा दीनहीन 2 कमरों का दड़बेनुमा फ्लैट देख युवान का चेहरा भी उतर गया. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था, भाविषा का घर इतना फटेहाल होगा. उस के ड्राइंगरूम में महज बेंत की 3 कुरसियां रखी थीं और एक लकड़ी की सस्ती सी चादर से ढका दीवान रखा था. उस के घर की बदहाली देख युवान सोच रहा था, ‘यह वह कहां फंस गया? उसे ताउम्र इस कंगाली के ग्रहण लगे घर में आना होगा?’

अलबत्ता अपनी प्रेयसी भाविषा को देख उस के मन को तनिक सुकून अवश्य मिला. उस की मां श्यामवर्णी स्थूलकाय महिला थीं. नैननक्श भी साधारण थे. उस की बहन भी हूबहू मां जैसी थी. उन दोनों के सामने उस का भोर का उजास फैलाता नाजुक कली सा नमकीन रूपसौंदर्य देख उस ने अपने मन को समझाया, ‘बड़ी, भाविषा का घर जैसा भी हो, वह तो लाखों में एक है न. जो भी उसे देखेगा, उस से रश्क किए बिना न रहेगा. उसे जिंदगी तो उस के साथ बितानी है. उस के घर से उसे क्या लेनादेना.’

भविषा के मातापिता ने अपनी हैसियत से बढ़ कर उन का स्वागतसत्कार किया. घर के बने व्यंजन परोसे लेकिन उन के घर के सस्ते कप और प्लेटें देख तीनों आगंतुकों का मूड बदमजा हो गया.

युवान की मां ने म्लान मुख भाविषा को जगमग हीरे जड़े कंगन और हीरों का हार पहना कर उस का रोका कर दिया.

तीनों ही भाविषा के घर से अंतर्मन में चल रहे द्वंद्व में डूबे लौटे. जहां युवान के मन की मायूसी के बादल प्रिया के मासूम, भोलेभाले खूबसूरत चेहरे को देख कुछ हद तक छंट गए थे, वहीं उस की मां और पिता का इस शादी को किसी भी हालत में नहीं होने देने का संकल्प दृढ़ हो गया था. भाविषा बेशक नायाब हीरा थी लेकिन उस की कंगाल पृष्ठभूमि उन की उन के समाज में खासी जगहंसाई की वजह बनेगी जो वह हरगिजहरगिज नहीं होने देंगे.

रोके के अगले दिन युवान के औफिस जाने के बाद उस के पिता ने भाविषा के पिता को फोन लगाया, ‘‘समधीजी, मुझे आप से एक जरूरी बात करनी थी.’’

‘‘जी… जी… कहिए.’’

‘‘जी ऐसा है, हम 250 लोगों की बरात ले कर आएंगे. जैसाकि मैं ने आप को पहले ही कहा था, दहेज के नाम पर हमें आप से फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए. बस हमें शादी फाइवस्टार होटल में चाहिए. शादी की मिलनी में हर बराती को 10-10 ग्राम का एक सोने का सिक्का चाहिए होगा. हमारे खानदान में आज तक जितनी शादियां हुई हैं, सब में यह रीत निभाई गई है. तो विवश हमें आप के सामने यह मांग रखनी पड़ रही है. उम्मीद है, आप हमारी विवशता समझेंगे. ओके बाय…’’

उफ… यह क्या? हर बराती को 1-1 तोले का सिक्का… मन ही मन उन्होंने हिसाब लगाया. करीब 20 लाख का खर्च. फिर फाइवस्टार होटल में शादी. उस में लाखों का खर्च.

कल तो सबकुछ एक हसीं सपने जैसा बीता था. कल से वे 7वें आसमान में उड़ रहे थे यह सोचसोच कर कि उन की बेटी की शादी एक करोड़पति घर में बिना दानदहेज के एक सर्वगुणसंपन्न सुपात्र से हो रही है और आज अचानक उन की यह मांग.

समधीजी के ये अल्फाज उन के कानों में जैसे पिघले शीशे की मानिंद पड़े. घबराहट से उन के हृदय की धड़कन बढ़ आई. पेशानी पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं. हाथपैरों की जान निकल गई. वे धम्म से सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए.

पिता को भावी ससुर से बात करने के बाद इस हाल में देख भाविषा दौड़ीदौड़ी उन के पास आई और उन्हें झं?ाड़ते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ पापा? अंकल ने क्या कहा?’’

पिता ने कांपते स्वरों में उसे समधीजी की मांग के बारे में बताया. सारी बातें सुन कर भाविषा सन्न रह गई. उस ने पिता को सांत्वना दी, ‘‘पापा, आप चिंता मत करिए. मैं अभी युवान से बात करती हूं. आप सबकुछ नहीं करेंगे. निश्चिंत रहिए. मुझे युवान पर पूरा भरोसा है. वह जरूर इस का कुछ न कुछ तोड़ निकालेगा. आप फिकर मत करिए. मैं अभी उस से बात करती हूं.’’

भाविषा ने युवान को तुरंत एक रैस्टोरैंट में बुलाया और उसे उस के पिता की मांग बताई. फिर बोली, ‘‘युवान, मेरे पापा तुम लोगों की मांग किसी हालत में पूरी नहीं कर पाएंगे. हम न तो फाइवस्टार होटल में शादी अफोर्ड कर पाएंगे, न ही 250 बरातियों को मिलनी में सोने के सिक्के दे पाएंगे. प्लीज, अपने पापा को सम?ाओ.’’

‘‘अरे यार, यह तुम कहां होटल और सोने के सिक्कों की बात ले कर बैठ गई. ये बातें बड़ों के करने की हैं हनी, इन से हम दोनों दूर ही रहें तो अच्छा है. बड़ों की बातें बड़े ही जानें,’’ युवान ने कंधे उचकाते हुए बेहद लापरवाही से जवाब दिया और फिर अपने बिंदास बेपरवाह लहजे में बोला, ‘‘देखो तो मौसम कितना सुहाना हो रहा है, चलो अब औफिस से हाफ डे लिया है तो उस का सदुपयोग ही हो जाए. चलो, लौंग ड्राइव पर चलते हैं.’’

‘‘यहां मेरे पापा सोचसोच कर हलकान हो रहे हैं कि इतना सबकुछ मैनेज कैसे होगा और तुम्हें लौंग ड्राइव की पड़ी है. बात की गंभीरता को समझ  युवान, यह कोई मामूली बात नहीं. अगर तुम ने इस लेनदेन के मुद्दे पर सीरियस स्टैंड नहीं लिया तो सब खत्म हो जाएगा.’’

‘‘भई मैं क्या सीरियस स्टैंड लूं? तुम क्या चाहती हो मैं अपने पेरैंट्स से लड़ूं? अरे, अपने बच्चों की शादीब्याह में हर पेरैंट की कुछ चाहत होती है. भई मैं तो उन से कुछ नहीं बोल सकता. अब बोलो, तुम ड्राइव पर मेरे साथ आ रही हो या नहीं? नहीं तो मैं दोस्तों की तरफ निकल जाता हूं. तुम लड़कियां भी न. अजीब ही होती हैं. हर बात में तुम लोगों को टांग अड़ाने की आदत होती है. अरे बड़े लोग इस समस्या का कुछ न कुछ तोड़ निकाल ही लेंगे. इतनी टैंशन की क्या बात है? चिल यार.’’

‘‘तो तुम इस मसले पर उन से कुछ नहीं बोलोगे? यह तुम्हारा फाइनल डिसीजन है?’’ इस बार भाविषा ने युवान को आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए कहा.

इस पर युवान ने तनिक रोष से कहा, ‘‘नहीं, मैं उन से कुछ नहीं बोलूंगा. वे दोनों उन की मरजी के विरुद्ध तुम से शादी करने की बात पर मुझ से वैसे ही खफा हैं. अब मैं उन्हें और नाराज करने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’

भाविषा ने तनिक देर सोचा और फिर आंखों से चिनगारियां बरसाते हुए गुस्से से दांत भींचते हुए युवान से कहा, ‘‘तो हमारी शादी कैंसिल. मैं तुम जैसे स्पाइनलैस इंसान से कतई शादी नहीं कर सकती. गुड बाय युवान, मु?ा से कौंटैक्ट करने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हें फोन पर ब्लौक कर रही हूं. अपनी लाइफ से भी,’’ कहते हुए भाविषा क्रोध से लंबीलंबी सांसें लेते हुए वहां से पैर पटकते तेज चाल से चली गई.

युवान हैरान उसे जाते देख चिल्लाया, ‘‘भाविषा… सुनो तो, भाविषा…’’ कहते हुए वह उस के पीछेपीछे आया लेकिन वह अपने स्कूटर पर वहां से जा चुकी थी.

वहां से वह सीधी औफिस पहुंची और एक रिपोर्ट बनाने लगी लेकिन आज उस का मन उस के आपे में न था. वह रिपोर्ट के विभिन्न तथ्यों को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित नहीं कर पा रही थी. बारबार गलतियां कर रही थी. मन पखेरू बारबार युवान के साथ बीते खुशनुमा दिनों के सायों में भटकने लगता.

किसी तरह सप्रयास रिपोर्ट बना कर वह उसे अपने युवा बौस अभिजीत के कैबिन में ले गई और उन्हें थमा दी.

‘‘भाविषा, कोई परेशानी हो तो बताइए. आप की रिपोर्ट्स तो हमेशा परफैक्ट होती हैं. मैं पूरे स्टाफ को आप की रिपोर्ट्स का उदाहरण देता हूं. आज आप मुझे बहुत परेशान दिख रही हैं. कोई परेशानी हो तो प्लीज बताइए. शायद मैं आप की कोई मदद कर सकूं?’’

‘‘नहीं… नहीं… सर, ऐसी कोई बात नहीं. दीजिए, मैं इसे ठीक कर के ले आती हूं,’’ यह कहते ही जैसे ही वह सीट से उठी, घोर तनाव से उसे चक्कर आने लगा और वह लड़खड़ाते हुए आंखें बंद कर बैठ गई.

‘‘भाविषा, क्या हुआ? आप ठीक तो हैं?’’

‘‘जी… जी… सर, ठीक हूं.’’

‘‘नहीं… नहीं… आप बिलकुल ठीक नहीं हैं. आप का चेहरा एकदम उतर गया है. आप यहीं बैठिए और मु?ो बताइए क्या परेशानी है. शायद आप के मन का बो?ा हल्का हो जाए,’’ अभिजीत ने उसे जबरदस्ती वहीं बैठा लिया और उस के लिए कौफी मंगवाई.

फिर उस से पूछा, ‘‘हां तो अब बताइए.’’

भाविषा और अभिजीत पिछले 5 वर्षों से साथसाथ काम कर रहे थे. उस नाते दोनों में आप सी अच्छी ट्यूनिंग थी. अभिजीत को भाविषा और युवान के प्रेमप्रसंग के बारे में अच्छी तरह पता था.

भाविषा ने अभिजीत के बहुत आग्रह करने पर उसे पूरा घटनाक्रम विस्तार से बताया जिस के जवाब में उस ने उस से कहा, ‘‘आप ने बिलकुल सही निर्णय लिया. आप को ऐसी डिमांड वाले लालची लोगों में अपना रिश्ता कतई नहीं करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं अभिजीत, मेरा भी यही मानना है. मैं खुद भी ऐसे इंसान से शादी नहीं करना चाहती जो मेरी परेशानी को न समझे.’’

‘‘बिलकुल, अभी आप घर जा कर रैस्ट करिए. आप नौर्मल नहीं लग रहीं.’’

अपने घर पहुंच भाविषा ने पहला काम जो किया वह था युवान के पिता को फोन कर उन्हें शादी के लिए इनकार करना.

यह काम कर के भाविषा बैठी ही थी कि उस के पिता ने उस से कहा, ‘‘यह तूने क्या किया बिटिया? शादी तोड़ दी? अरे बेटा, इतनी जल्दी क्या थी? मैं तो सोच रहा था अपना मकान बैंक के पास गिरवी रख उन से लोन ले लेता. कुछ न कुछ इंतजाम हो ही जाता.’’

पिता के आर्द्र स्वर को सुन भाविषा अतीत से वर्तमान में वापस आई.

‘‘मुझे  एक स्पाइनलैस इंसान से शादी नहीं करनी. युवान ने मेरी कोई मदद नहीं की. मुझे टका सा जवाब दे दिया. मैं ने फैसला कर लिया है पापा, यह शादी नहीं होगी,’’ कहते हुए वह घोर मानसिक संताप से आंखों में उमड़ आए आंसुओं के समंदर को सप्रयास भीतर ही भीतर जज्ब करते हुए भीतर चली गई और फूटफूट कर रो पड़ी. शहनाई की खुशियां मातम में बदल गई थीं.

दिन बीत रहे थे. युवान को भूलना इतना आसान न था. वह भाविषा का पहला प्यार था. उस ने उसे प्यार के खूबसूरत जज्बे से रूबरू कराया था, मुहब्बत की दुरूह राहों पर उंगली थाम कर चलना सिखाया था लेकिन जिंदगी कब किस के लिए रुकी है?

युवान से रिश्ता तोड़े पूरा बरस हो आया था. युवान से दूर हो कर भाविषा का मन मर सा गया था. जिंदगी जीने का उछाह खत्म हो गया था. वह एक मशीनी जिंदगी जी रही थी लेकिन उस मुश्किल समय में अभिजीत ने उस का बहुत साथ दिया. अपनी सहृदयता और मृदु स्वभाव से वह धीमेधीमे उस के दिल में जगह बनाने लगा था. दोनों के मध्य औपचारिकता की दीवार धीरेधीरे टूट गई थी और दोनों बहुत अच्छे और करीबी दोस्त बन गए थे. उस की और मातापिता की गरमाहट भरी सपोर्ट के दम पर भाविषा भी अपने ब्रेकअप के गम से लगभग उबर आई थी.

उस दिन किसी नेता की आकस्मिक मृत्यु के चलते औफिस खुलते ही बंद हो गया. औफिस से निकलतेनिकलते अभिजीत ने भाविषा से कहा, ‘‘भाविषा, मुझे तुम से कुछ बहुत जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहो अभिजीत.’’

‘‘चलो, कहीं बैठ कर कौफी पीते हैं.’’

दोनों एक रैस्टोरैंट में जा कर बैठ गए.

‘‘भाविषा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘क्या… क्या… क्या… शादी?’’ भाविषा अचकचाते हुए बोली.

‘‘हां भाविषा शादी. मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं भाविषा, दिलोजान से चाहने लगा हूं. तुम्हारे साथ जिंदगी का 1-1 लमहा बिताना चाहता हूं. बोलो, मेरी हमसफर बनोगी?’’ अभिजीत ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘मुझे… मुझे थोड़ा समय चाहिए.’’

‘‘ओके… ओके… जितना समय चाहिए ले सकती हो. मुझे कोई जल्दी नहीं.’’

‘‘हां, एक बात, तुम हां कहो उस से पहले मैं तुम्हें अपना घर दिखाना चाहता हूं. आज चलें घर?’’

‘‘हां चलो, आज अपने पास टाइम भी है.’’

दोनों अभिजीत के घर पहुंचे. उस का घर देख भाविषा के चेहरे पर तनिक मायूसी के भाव आ गए.

‘‘मेरा घर बहुत छोटा है भाविषा, शादी के बाद हमें इसी घर में रहना होगा. रह लोगी इतने छोटे घर में?’’

‘‘यह कोई समस्या नहीं. मेरा घर भी बहुत छोटा है, तुम्हारे घर से भी छोटा.’’

भाविषा की बात सुन कर अभिजीत के चेहरे पर राहत के भाव आ गए.

यह देख कर भाविषा मुसकरा दी, ‘‘अगर हम दोनों शादी करें तो हमारे बीच कुछ भी परदे में नहीं होना चाहिए. मैं रिश्तों में ट्रांसपेरैंसी में विश्वास करती हूं.’’

‘‘तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली. बिलकुल सही कहा तुम ने.’’

तभी अभिजीत के पेरैंट्स उन के ड्राइंगरूम में आ गए. अभिजीत ने भाविषा से उन का परिचय कराया.

अभिजीत की मां ने उसे बड़ी गरमाहट से अपने से लगा कर आशीर्वाद दिया. उस के पिता ने भी उसे आशीर्वाद दिया.

तभी उस की मां ने अभिजीत से कहा, ‘‘बेटा, जा अपनी दादी और चाचाचाची को बुला ला.’’

दादी और चाचाचाची को उस के आने की खबर लग गई थी. चाची उन के लिए गरमगरम हलवा ले कर आई. सब से पहले दादी ने भाविषा की बलैयां लेते हुए उस का मुंह मीठा कराया और फिर उसे अपने गले से लगा कर आशीर्वाद दिया.

अभिजीत की मां ने भी उसे अपने हाथ से बड़े प्यार से खिलाते हुए कहा, ‘‘तुम पहली बार हमारे घर आई हो, मुंह मीठा कराना तो बनता है.’’

चाची ने भी यही कहते हुए बड़े स्नेह से उसे हलवा खिलाया.

तभी अभिजीत की 2 बहनें और चाचा के

3 बच्चे वहां आ गए और उस से बड़ी ही गरमजोशी से मिले.

अभिजीत ने अपनी बहनों और कजिंस से कहा, ‘‘चलो, भाविषा को अपना पूरा घर दिखाते हैं.’’

अभिजीत ने उसे 5 छोटेछोटे कमरों का घर दिखाया. फिर अभिजीत उस के कानों में फुसफुसाया, ‘‘मेरी दोनों बहनों की शादी अगले माह ही है. तो बहनों के जाने के बाद उन का यह रूम हमें मिल जाएगा.’’

भाविषा सब के साथ करीब 2 घंटे रही. उसे यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह अभिजीत के घर वालों से पहली बार मिली है. उसे अभिजीत के घर वाले खासकर दादी और उस के पेरैंट्स बेहद अच्छे लगे. अपनी जिंदगी की बेहतरीन दोपहरी उन के साथ बिता वह अपने घर लौटी.

अभिजीत भाविषा को उस के घर ड्रौप करने आया और उस के मातापिता से मिला. वहीं उस ने उन सब को बताया कि उस के ऊपर खुद उस के अपने परिवार और दादी, चाचा, चाची और उन के 3 बच्चों की जिम्मेदारी है. उस के चाचा एक दुर्घटना के बाद से डिप्रैशन में चले गए थे और वे कुछ काम नहीं करते.

अभिजीत के जाने के बाद भाविषा ने अपने पेरैंट्स को उस के विवाह प्रस्ताव के बारे में बताया. अभिजीत के छोटे से घर और उस के घर वालों के सहृदय और मृदु स्वभाव के बारे में बताया.

देर रात तक बहुत सोचविचारने के बाद भाविषा ने फैसला ले लिया कि वह अभिजीत से शादी करेगी. 5 बरसों के साथ में बहुत सोचने पर भी उसे उस की शख्सियत में ढूंढ़े से भी कोई कमी न दिखी.

भाविषा के मातापिता ने उसे समझने की कोशिश की कि अगर वह अभिजीत से शादी करती है तो उसे भी अभिजीत के साथ उस के पूरे घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी, इसलिए वह भावनाओं में न बहे और बहुत सोचविचार कर अभिजीत से शादी का निर्णय ले.

अभिजीत के घर वालों को इतने अपनेपन और प्यार से एक छत के नीचे रहते देख वह उन सब के सोने से खरे मीठे स्वभाव के प्रति आश्वस्त हो गई थी कि जिम्मेदारियों के बावजूद अभिजीत के साथ उस की जिंदगी खासी सुखद होगी.

सुबह औफिस में अभिजीत के कैबिन में जाने पर उस ने भाविषा से कहा, ‘‘मैडम, इस नाचीज को आप ने अधर में लटका रखा है. प्लीज, अपना फैसला सुनाने की जहमत करें.’’

‘‘अरे इतनी जल्दी क्या है जनाबे आली, थोड़ी प्रतीक्षा करें. फैसला भी आ जाएगा,’’

प्यार के मीठे जज्बे से लबालब अपनी आंखों

को शैतानी से गोलगोल घुमाते हुए भाविषा ने जवाब दिया.

‘‘अच्छाजी, तो यह बात है. मुझे मेरा जवाब मिल गया.’’

‘‘मेरे बिना कुछ बोले? हुजूर हम ने अच्छेअच्छों को ओवर कौन्फिडैंस से मात खाते हुए देखा है.’’

‘‘मैडम, इस नाचीज को लिफाफे से उस के मजमून की खबर लग जाती है.’’

‘‘अच्छाजी, इतना भरोसा?’’ भाविषा ने इस बार खिलखिलाते हुए पूछा.

‘‘जी… जी… आप की इन झील सी गहरी आंखों ने आप का राज उगल दिया,’’ कहते हुए अभिजीत ने भाविषा के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. दोनों प्रेमियों के चेहरे शिद्दत की मुहब्बत की रोशनी से दमक उठे.

Best Kahani : प्यारा रिश्ता

Best Kahani :  प्रिया की नजरें बाहर टिकी थीं जहां उस का नया हस्बैंड नीरज उस की बेटी कनु को साइकिल सिखा रहा था. कनु के चेहरे पर डर के साथसाथ एक प्यारी सी मुसकान भी थी. नीरज ने उसे पीछे से पकड़ रखा था और लगातार उस के साथ चल रहा था. तभी कनु की साइकिल डगमगाई और वह साइकिल छोड़ कर नीरज की बांहों में आ गिरी. नीरज उसे संभालता खड़ा हुआ. उस समय कनु बिलकुल नीरज के करीब थी.

नीरज ने कनु की बांहों को कस कर पकड़ा था. इधर प्रिया कसमसाई सी उठी और बेचैनी से ड्राइंगरूम में ही टहलने लगी. कमरे में लगे बड़े से मिरर में उस ने खुद को निहारा. समय और परिस्थितियों की मार ने कहीं न कहीं उस की खूबसूरती में कुछ कमी ला दी थी. उम्र का असर उस की स्किन पर दिखने लगा था, जबकि उस की 15 साल की बेटी कनु बिलकुल नाजुक कली सी कोमल थी. युवावस्था की दहलीज की तरफ कदम बढ़ाता उस का शरीर आकर्षक रूप ले रहा था. नीरज भी कोई कम हैंडसम नहीं था. उस के आकर्षक व्यक्तित्व के जादू में बंध कर ही प्रिया ने दूसरी शादी इतनी जल्दी कर ली थी.

‘‘कनु इधर आ जल्दी. बहुत हो गई मस्ती.  चलो और कमरे में जा कर पढ़ाई करो,’’ प्रिया ने बालकनी में आ कर बेटी को आवाज लगाई फिर पति को संबोधित करती हुई बोली, ‘‘नीरज, मैं ने आप से कहा था न कि आज शौपिंग के लिए जाना है और आप यहां लगे हो कब से.’’

‘‘अरे मैडम अपनी बेटी को साइकिल चलाना सिखाना भी तो जरूरी है न बस वही कर रहा था.’’

प्रिया की सख्त आवाज सुन कर कनु चुपचाप अंदर आ गई और नीरज भी साइकिल रखता हुआ प्रिया से बोला, ‘‘चलो तुम्हारी शौपिंग करा दूं पर तुम तो तैयार भी नहीं.’’

‘‘2 मिनट घर में बैठ कर मु?ा से बात कर लोगे तो कुछ हो नहीं जाएगा. जब देखो कनु में ही लगे रहते हो,’’ प्रिया ने चिढ़ कर कहा.

नीरज ने अचरज से पत्नी की तरफ देखा, ‘‘बेटी से ईर्ष्या?’’

प्रिया ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो और मेरे लिए चाय बनाओ. तब तक मैं तैयार होती हूं,’’ कह कर प्रिया अपने कमरे में तैयार होने चली गई. उसे बारबार नीरज के शब्द चुभ रहे थे. पर अभी नीरज ने जो कहा वह सच ही तो था. उसे अपनी ही बेटी से ईर्ष्या होने लगी थी या कहिए एक तरह का डर लगने लगा था. पर इस डर को वह किसी से शेयर भी नहीं कर सकती थी. खुद अपनी बेटी या पति से भी नहीं.

कनु पिछले महीने ही ऐग्जाम खत्म होने पर घर लौटी थी वरना वह होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थी. अपनी मां के जीवन में आए उतारचढ़ावों से दूर वह अपनी दुनिया में मगन थी. मगर जब एक दिन उस ने सुना कि उस की मां सैकंड मैरिज कर रही हैं तो सौतेले पिता का खौफ उस के दिल में घर कर गया. कुछ दिन वह परेशान सी रही.

इसी बीच एक दिन नीरज उस से मिलने आए और तब उसे महसूस हुआ कि उस के सौतेले पिता तो बहुत अच्छे हैं. इसी वजह से वह छुट्टियों में घर आने की हिम्मत जुटा सकी. वह घर आई तो नीरज ने उसे पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. हमेशा पिता के रूप में उस के साथ खड़ा रहा. समय के साथ दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करने लगे. मगर प्रिया को बापबेटी के इस प्यार में वासना की ?ालक मिल रही थी और इसी वजह से वह परेशान रहती थी.

लता यही वजह है कि उस ने बेटी को छोटे या मौडर्न कपड़े पहनने से यह कह कर रोक दिया था कि तुम अब बड़ी हो गई हो. उस के लिए बड़ी बाजू की बिलकुल लाइट कलर की कुरतियां ला दी थीं. बेटी को मां का यह व्यवहार अजीब लगने लगा था. यही नहीं प्रिया हर समय उसे टोकाटाकी करने लगी थी. कनु जब भी नीरज के साथ होती तो प्रिया उसे किसी न किसी बहाने अपने पास बुला लेती.

‘‘मम्मी मुझे स्वीमिंग सीखनी है. मैं घर में बोर हो जाती हूं,’’ एक दिन कनु ने अपने मन की इच्छा बताई.

प्रिया कुछ कहती उस से पहले नीरज बोल पड़ा, ‘‘अरे वाह बेटे स्वीमिंग तो मुझे भी बहुत पसंद है. ऐसा करो कल से मैं औफिस के बाद तुम्हें स्वीमिंग क्लासेज ले चलूंगा.’’

‘‘औफिस के बाद शाम में कनु को ले जाने की क्या जरूरत? मैं दिन में इसे ले कर चली जाऊंगी. आप औफिस पर ध्यान दो,’’

कह कर प्रिया कनु का हाथ पकड़ कर किचन में ले आई.

‘‘स्वीमिंग, साइकिलिंग, पेंटिंग, डांसिंग के बजाए कभी कभी कुकिंग भी सीखने की कोशिश कर. लड़की है तू पर किचन

में कभी आती नहीं है.

चल चाय बना कर पिला,’’ प्रिया उसे डांट लगाते हुए बोली.

कनु को किचन में छोड़ कर प्रिया नीरज के पास लौटी. उसे घूरते हुए बोली, ‘‘हर समय कनु के आगे पीछे क्यों घुमते हो? क्या मु?ा में कोई कमी है? क्या मैं ने तुम्हें हर खुशी नहीं दी?’’

‘‘कहना क्या चाहती हो प्रिया? कनु बिन बाप की बच्ची है. उसे यह न लगे कि सौतेला पिता खराब होता है इसलिए उसे हर खुशी देना चाहता हूं. उसे हौसला देना चाहता हूं कि वह अकेली नहीं.’’

‘‘इतना भोला बनने की कोशिश मत करो नीरज. क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम कनु के मासूम रूप के पीछे दीवाने हो रहे हो? मधुमक्खी की तरह चिपके रहते हो उस से.’’

‘‘प्रिया खबरदार जो ऐसी बात की,’’ कहते हुए नीरज ने उसे चांटा रसीद कर दिया.

प्रिया को ऐसे रिएक्शन की अपेक्षा नहीं थी. उधर आवाज सुन कर कनु भी किचन से ड्राइंगरूम में आ गई. बेटी को देख कर दोनों चुप हो गए और ऐसी ऐक्टिंग करने लगे जैसे कुछ न हुआ हो.

उस दिन घर का माहौल कुछ सही नहीं था. नीरज रात को अपने कमरे में खामोश बैठा था तो प्रिया की बेचैनी भी खत्म नहीं हो रही थी. उधर कनु भी अपनी उल?ानों में खोई थी.

रात को नीरज को नींद नहीं आ रही थी. उस ने कभी सोचा भी न था कि प्रिया अपनी बेटी को ले कर ऐसा इलजाम लगा सकती है. वह बालकनी में निकल कर टहलने लगा. कनु भी जगी हुई थी. वह पानी लेने के लिए उठी तो पिता को बाहर देख करउधर ही आ गई.

नीरज कनु को देख कर थोड़ा चौंका फिर बोला, ‘‘क्या बात है बेटा आप सोए नहीं?’’

कनु पिता के गले लगती हुई बोली, ‘‘पापा आप बहुत अच्छे हो. मैं ने कभी सोचा नहीं था कि मुझे आप के जैसे पापा मिलेंगे. आई लव यू.’’

नीरज ने भी उस का माथा सहलाते हुए आई लव यू कहा. तभी पीछे से प्रिया वहां आ गई. उन्हें गले लगे देख कर वह अपना आपा खो बैठी और अनापशनाप चिल्लाने लगी.

प्रिया नीरज पर तोहमत लगाती हुई बोली, ‘‘तुम्हें लज्जा नहीं आई अपनी बेटी की उम्र की लड़की से इश्क फरमा रहे हो और कनु तुझे जरा भी एहसास है कि तू क्या कर रही है?’’

अचानक मां के इन इलजामों को सुन कर कनु को समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. वह घबराते हुए पीछे हट गई और उस की आंखों से आंसू बह निकले.

नीरज का पारा चढ़ गया. वह चिल्लाता हुआ बोला, ‘‘तुम कैसी औरत हो प्रिया, अपनी ही मासूम बच्ची पर ऐसी ओछी तोहमत लगा रही हो? कितनी घटिया सोच है तुम्हारी. लानत है तुम पर. बहुत हो गया. मैं तुम्हारे साथ अब नहीं रह सकता. मैं तुम्हें और इस घर को छोड़ कर चला जाऊंगा प्रिया. कनु भी होस्टल चली जाएगी. फिर तुम रहना अकेले. तुम्हारी यही सजा है,’’ कहते हुए वह अपने कमरे में चला गया और

आंखें बंद कर लेट गया. उस की धड़कनें गुस्से में बढ़ी हुई थीं.

तभी कनु का मोबाइल बजा तो गुस्से में प्रिया ने पूछा, ‘‘इतनी रात को तुझे कौन फोन कर रहा है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम मम्मी,’’ कनु ने घबराते हुए कहा.

प्रिया ने उस का फोन औन कर के स्पीकर पर डाल दिया. मोबाइल पर एक क्रूर घटिया सी आवाज गूंजी, ‘‘कनिका डार्लिंग अरे बाबा कनु डार्लिंग सुन रही हो न? मैं हूं तेरी सहेली निभा के भाई का दोस्त और सुन मैं ने कहा था न तेरी एक चीज मेरे पास है… तो अभी मैं ने वही चीज तुझे भेजी है. जरा व्हाट्सऐप खोल और वह वीडियो देख. फिर बाहर निकल के आ जा मैं इंतजार कर रहा हूं.’’

यह सब सुन कर प्रिया की आंखें डर और आश्चर्य से फैल गईं. जल्दी से व्हाट्सऐप खोला. दोनों मांबेटी वीडियो देखते ही घबरा उठीं. उन का दिल धक से रह गया. तब तक फिर से फोन आया तो प्रिया ने उसे स्पीकर पर डाल दिया.

फिर वही घटिया आवाज गूंजी, ‘‘सुन कनु डार्लिंग यह वीडियो मैं ने अभी वायरल नहीं किया है पर किसी भी समय कर सकता हूं. अगर तू चाहती है कि मैं इसे वायरल न करूं तो बाहर आ जा और हमारे साथ एक लौंग ड्राइव पर चल. घर वालों को कुछ मत बताना चुपचाप आ जा बाहर.’’

‘‘यह सब क्या है? कौन बदतमीज हो तुम? मेरी बेटी का ऐसा वीडियो बनाने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई?’’ प्रिया गुस्से में चीखी.

‘‘ओए आंटी ऐसीवैसी बातें न करना. तेरी लाडली की इज्जत मेरे हाथ में है. जरा सा ऊंचनीच बोला न तो वायरल कर दूंगा. धमकी नहीं दे रहा हूं सचाई बता रहा हूं. मुझ से तमीज से बात कर.’’

‘‘तु?ा से तमीज से बात करूं? तेरे जैसे घटिया आदमी से?’’ प्रिया चीख रही थी और कनु रो रही थी. यह सब सुन कर जल्दी से नीरज बाहर आया और पूछने लगा कि क्या हो रहा है.

तब दौड़ती हुई कनु आई और नीरज से लिपट गई, ‘‘पापा वह लड़का मेरा वीडियो बना कर मुझे ब्लैकमेल कर रहा है.’’

‘‘कैसा वीडियो?’’

‘‘पापा वह…’’ कनु से कुछ बोला नहीं

जा रहा था तो प्रिया बोल उठी, ‘‘घटिया लड़केने कनु का कपड़े बदलते हुए वीडियो बना लिया है.’’

तब कनु सारी बात बताते हुए बोली, ‘‘2 दिन पहले मैं अपनी सहेली निभा के घर गई थी. उस का बर्थडे था तो इसी बीच निभा के भाई के दोस्त ने मेरे ऊपर सौस गिरा दी. निभा ने मुझे दूसरे कपड़े दे कर कहा कि तू चेंज कर ले. बस वहां उस के बाथरूम में मैं ने कपड़े चेंज किए और जरूर उस लड़के ने वहां कैमरा छिपा रखा था. उस ने मेरा वीडियो बना लिया.’’

‘‘इतनी गिरी हुई हरकत करने वाले लड़कों को अभी मैं सही कर के आता हूं,’’ कहता हुआ नीरज बाहर निकला.

पीछे से प्रिया पुकारती रह गई, ‘‘अरे नहीं वे गुंडे हैं. उन के पास मत जाना,’’ लेकिन नीरज ने एक न सुनी और बाहर निकल कर उन्हें खोजने लगा.

थोड़ी दूर से आवाज आई, ‘‘अरे अंकल

तू क्यों आ गया? तेरी लड़की कहां है? तुझे किस ने बुलाया?’’

‘‘अभी बताता हूं मुझे किस ने बुलाया कमीनो,’’ कहता हुआ नीरज आगे बढ़ा तो 3 लड़के सामने आ गए. नीरज उन के ऊपर लातघूंसों के साथ टूट पड़ा. बहुत देर तक नीरज अकेले उन से मोबाइल छीनने और उन्हें वश में करने की कोशिश करता रहा. मगर वे 3 थे सो उन का पलड़ा ही भरा था. नीरज को काफी चोटें आ गई थीं. फिर भी वह उन से लगातार जूझ रहा था. तभी एक लड़के ने चाकू निकाला और उस के कंधे पर इतना तेज वार किया कि वह तिलमिला उठा और नीचे गिर पड़ा. तीनों लड़के बाइक ले कर भाग गए.

तब तक प्रिया बाहर आ गई थी. नीरज को संभालते हुए रोने लगी, ‘‘यह सब क्या किया तुम ने नीरज? गुंडों से भिड़ गए.’’

‘‘मैं गुंडो से भिड़ गया और तब तक भिड़ता रहूंगा जब तक इन कमीनों को ऊपर या अस्पताल न पहुंचा दूं. जो मेरी बच्ची की इज्जत से खेले उसे जीने का हक नहीं है. मैं कुछ गलत नहीं कर रहा.’’

‘‘नीरज प्लीज मेरी बात सुनो. चलो अभी तुम्हें अस्पताल ले कर जाना होगा.’’

प्रिया उसे अस्पताल ले कर गई. मरहमपट्टी के बाद शाम तक छुट्टी मिल गई.

प्रिया ने घर पहुंचते ही हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘नीरज, तुम्हें कुछ हो गया तो मैं जी नहीं पाऊंगी प्लीज इन सब में मत पड़ो.’’

‘‘तो क्या करूं बेटी को भेज दूं कमीनों के साथ या फिर उस की इज्जत के साथ खेलने दूं? उस वीडियो को वायरल करने दूं? छोड़ो फिर पुलिस को खबर कर देता हूं.’’

‘‘पर इस से भी कनु की बदनामी होगी.’’

‘‘तो ठीक है फिर मुझे मेरे हिसाब से बदला ले लेने दो. उन्हें चुप करने का मौका दो. मैं तीनों को अस्पताल पहुंचाऊंगा और वह वीडियो अपने हाथ से डैस्ट्रौय करूंगा,’’ नीरज बोला.

‘‘पर इस तरह आमनेसामने लड़ना सही नहीं. कोई और उपाय निकालो,’’ प्रिया ने कहा.

‘‘ठीक है कुछ और सोचता हूं.’’

फिर नीरज ने कनु से लड़के का पता मांगा. कनु ने अपनी सहेली से पूछ कर पिता को पता दे दिया और बताया कि वह सुबहसुबह शहर के दूसरे हिस्से में स्थित जिम जाता है.

अगले दिन सुबह जब सब सो रहे थे तो नीरज ने अपनी कार निकाली और उस की नंबर प्लेट चेंज कर दी. फिर उस लड़के के घर के बाहर छिप कर उस का इंतजार करने लगा. सुबह 8 बजे के करीब वह लड़का अपने दोस्त के साथ बाइक पर बैठ कर निकला तो नीरज उस का पीछा करने लगा. नीरज उस की बाइक के एकदम करीब पहुंचा और पुल के पास सुनसान सड़क देख कर उस की बाइक को अपनी गाड़ी से इतनी तेजी से धक्का मारा कि एक लड़का तो उसी समय कोमा में चला गया और दूसरा बुरी तरह घायल हो गया. नीरज ने दोनों लड़कों की जेब से मोबाइल निकाले और उन्हें बुरी तरह तहसनहस कर के पानी में फेंक दिया.

एक लड़का और जो उन का साथी था वह अभी बचा हुआ था. मगर उस के पास कोई वीडियो नहीं था. वह बस मजे लेने के लिए उन दोनों के साथ आया था. उस से कोई खतरा न देख कर नीरज ने अपनी तरफ से मामले को यहीं खत्म करने का फैसला लिया. अब न तो बांस था और न बांसुरी के बजने का डर क्योंकि मोबाइल के साथ वीडियो समाप्त हो चुका था.

प्रिया नीरज की एहसानमंद थी और समझ चुकी थी कि नीरज कनु को ले कर कितना सैंसिटिव है.

अगले दिन जब सारा मामला शांत हो गया तो प्रिया ने पूछा, ‘‘कनु की इज्जत के पीछे तुम ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की. तुम्हें कुछ हो जाता तो?’’

‘‘तो मुझे कोई गिला न होता. मेरी बेटी मुझ से मदद मांग रही थी. मैं पिता हूं और उसे सुरक्षित रखना, उस की सुरक्षा करना मेरी जिम्मेदारी और मेरा प्यार है. अब तुम इस प्यार को जिस भी नजर से देखो. चाहे तुम्हें हम दोनों के बीच जो रिश्ता नजर आए पर मेरे लिए अपनी बेटी की इज्जत से बढ़ कर कुछ भी नहीं.’’

प्रिया नीरज के गले लग गई और आंसू बहाती हुई बोली, ‘‘नीरज मुझे माफ कर दो. इतने अच्छे पिता और इतनी प्यारी बेटी के बीच के रिश्ते को मैं ने गलत नजर से देखा.’’

कनु भी पिता के सीने से लगती हुई बोली, ‘‘पापा आप के जैसा पापा मैं ने कोई और नहीं देखा. मेरे अपने पापा भी ऐसे नहीं होते जैसे आप हैं.’’

नीरज ने खुशी से बांहें फैला कर दोनों को अपने से लगा लिया.

Love Story : प्रीत का गुलाबी रंग

Love Story : विहान और लता की शादी को कई साल हो गए थे मगर दोनों संतानसुख से विमुख थे. घरपरिवार और रिश्तेदारों से लता को ताने मिलने लगे. विहान और लता ने हर किस्म की इलाज करवाई. आईवीएफ प्रोसेस से भी गुजरे मगर कोई फायदा नहीं हुआ. जब हर दवा नाकामयाब होने लगी तो दोनों ने थकहार कर एक फैसला किया और फिर…

एक बच्चे की चाह में लता ने विहान को कितना गलत समझ लिया था. कैसे उस का विहान पर से भरोसा उठ गया था, वह भी बिना असलियत का आईना देखे. अब क्या करे वह, कहां जाए…

अगले दिन, अगली सुबह लता के लिए अभी भी अमावस की रात समान ही थी. विहान जो उस की जीने की वजह था उसी ने लता को जीतेजागते मौत के मुंह तक पहुंचा दिया. लता के जिस्म का पोरपोर दुख रहा था. वह चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी, बेतहाशा रोना चाहती थी पर उस के तो जैसे आंसू ही सूख गए हों.

पूरी ताकत के साथ लता ने खुद को बेड से उठाया. शौवर के नीचे अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया. न जाने कितनी ही देर पानी की बौछारें उस पर गिरती रहीं पर एक प्रतिशत भी उस के भीतर उठने वाली अग्नि को बुझा ना सकीं.

बड़ी मुश्किल से वो सामान्य दिखने का प्रयास कर रही थी. जैसे ही विहान फैक्टरी के लिए निकला उस के थोड़ी ही देर बाद वह भी कार ले कर निकल गई. आज कार वह खुद ही ड्राइव कर रही थी.

लगभग घंटेभर बाद लता उसी घर के आगे खड़ी थी जहां कल उस की दुनिया वीरान होते लगी थी. वह डोरबैल बजाना चाह रही थी पर उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. उस का दिल इतनी जोर से धड़क रहा था जैसे पसलियां तोड़ कर बाहर आ जाएगा. उस के पांव जैसे उस का साथ छोड़ चुके थे. फिर भी उस ने एक कदम आगे बढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे उस का वह कदम मनों भारी हो गया हो. उस ने डोरबैल बजाने की पूरी कोशिश की पर उस का हाथ ही नहीं उठा.

कौन दरवाजा खोलेगा, कैसे सामना कर पाएगी वह उस औरत का उस बच्चे का.

‘‘नहीं… नहीं… मैं नहीं देख पाऊंगी, उफ यह कैसी दुविधा है.’’

अंत में लता जल्दी से उलटे पांव वापस अपनी कार में आ बैठी. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. कुछ देर बाद उस की रुलाई फूट ही पड़ी. उस ने अपना चेहरा स्टेयरिंग पर टिका दिया.

‘‘उफ, विहान, यह कौन से मोड़ पर खड़ी हूं मैं आज, तुम्हारी वजह से सिर्फ तुम्हारी वजह से, मेरी सांसें घुट रहीं हैं, यह क्या किया तुम ने? ऐसा क्यों किया?’’

कुछ संभली लता तो एक बार फिर उस ने घर के दरवाजे की ओर देखा और एक ठंडी सांस भर कर कार स्टार्ट कर दी.

घर वापस आने पर लता ने अपने कमरे में विहान की अलमारी को बुरी तरह खंगाल डाला. हरेक दराज का 1-1 कोना उस ने बारीकी से छाना. तभी अलमारी के सब से ऊपर वाले खाने के एक कोने में उसे एक वालेट नजर आया. उस ने वालेट को उठा कर अच्छी तरह से देखा तो उसे याद आया कि यह तो वही वालेट है जो विहान के लंदन से छुट्टियों में आने पर मौल में शौपिंग के दौरान लता ने विहान के लिए खरीदा था और पैकिंग करते हुए उस के एक प्यारे से लव नोट के साथ उस के बैग में रख दिया था.

लता ने धीरे से वालेट खोला. उस में उस का लिखा हुआ नोट आज भी रखा हुआ था. लता ने उसे दोबारा खोल कर पढ़ा. नोट में लिखा था, ‘‘सरप्राइज इसे कहते हैं और कभीकभी ऐसे भी दिए जाते हैं, तुम्हारी मैडम लता.’’

विहान तो अकसर मैडम कहता आया था प्यार से लता को और लता को भी उस के मुंह से यह सुनना अच्छा लगता था. पूर्व के वे हंसतेखिलखिलाते पल उस की यादों की पगडंडी से गुजरे तो उस हालत में भी लता के चेहरे पर फीकी सी मुसकान खेल गई.

लता ने फिर वालेट को और खोला तो उस के अंदर कुछ पाउंड्स, एक बिल जो किसी हौस्पिटल का था, 3-4 शौपिंग बिल्स और वालेट के सीक्रेट कंपार्टमैंट में से एक तसवीर मिली जिस ने लता के वजूद को हिला कर रख दिया.

एक तसवीर जिस में विहान एक लड़की के साथ है और लता को पहचानने में एक पल का वक्त नहीं लगा कि यह वही लड़की जो कल विहान के साथ थी. दोनों किसी चर्च के बाहर खड़े थे. वह लड़की आगे खड़ी थी और सफेद गाउन में थी. विहान एकदम उस के पीछे था और उस ने उस लड़की के कंधे पर हाथ रखा हुआ था. अचानक लता ने तसवीर पलटी तो पीछे दोनों के नाम लिखे थे, ‘‘विहान ऐंड तारा.’’

लड़की का नाम तारा था और इसी के साथ एक तारीख लिखी थी और लिखा था, ‘‘वैडिंग डे,’’ पर इस शब्द पर बुरी तरह से पैन चलाया हुआ दिख रहा था.

लता के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया बस आंखों से निरंतर आंसुओं की धारा बहती रही. कुछ देर वह तसवीर को देखती रही फिर उस ने आंसू पोंछे और तसवीर वालेट में वापस रख दी पर इस बार सीक्रेट कंपार्टमैंट में नहीं रखी और वालेट को अलमारी में यथास्थान रख दिया.

‘‘यह कैसी पहेली है? विहान और तारा, क्या दोनों ने लंदन में शादी? नहींनहीं, ये मैं क्या सोचने लग गई पर इस में गलत क्या है. वह तारा का ही बच्चा था और विहान को डैड पुकार रहा था तो ज़ाहिर है कि विहान ही उस का पिता है. उफ, इतना बड़ा धोखा, अगर विहान अपना अलग ही परिवार बसा चुका था तो मु?ा से इस शादी के क्या माने हैं? क्या इसलिए ही वह पिता बनने को इतना आतुर नहीं दिखता क्योंकि संतान सुख से तो केवल मैं वंचित हूं, वह तो पिता होने का सुख भोग ही रहा है.’’

विहान के भोलेभाले से चेहरे के नकाब के पीछे यह घिनौना रूप होगा, यह तो लता सोच भी नहीं सकती थी पर विहान ने ऐसा क्यों किया, बहुत सोचने के बाद भी लता इस सवाल का जवाब नहीं खोज पा रही थी.

तभी लता का मोबाइल बज उठा. उस ने अलमारी बंद की और मोबाइल उठाया. विहान की कॉल थी. उस का उस वक्त बिलकुल दिल नहीं चाह रहा था विहान से बात करने का. उस ने मोबाइल पलंग की साइड टेबल पर रख दिया.

थोड़ी देर बाद मोबाइल फिर बज उठा. इस बार लता ने कुछ पल मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी और विहान की हंसती हुई तसवीर को देखा और कौल अटैंड कर ही ली.

‘‘लता, क्या हुआ, तुम कौल क्यों नहीं पिक कर रही थीं?’’

विहान की आवाज सुन कर लता का दिल जैसे एकदम से पिघल गया हो. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उस की और तारा की वह तसवीर उस की आंखों के आगे घूम गई. वह कुछ कहतेकहते खामोश हो गई.

‘‘लता, क्या हुआ? कुछ बोल नहीं रहीं. तबीयत तो ठीक है?’’ विहान का स्वर अब चिंतित हो उठा था.

‘‘कुछ नहीं विहान, मैं ठीक हूं, हां बोलो, कैसे कौल की?’’ लता ने जैसे समूची ताकत जुटा कर जवाब दिया हो.

‘‘दरअसल, मुझे औफिस से ही मुंबई के लिए निकलना होगा, बहुत जरूरी मीटिंग है, 3-4 दिन लग जाएंगे, सूटकेस पैक कर के यहीं भिजवा देना.’’

लता के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान फैल गई पर ऊपरी तौर पर उस ने कुछ जाहिर नहीं किया. विहान की जरूरी मीटिंग अब वह समझ रही थी.

‘‘ठीक है विहान,’’ उस ने ठंडे से स्वर में कहा.

‘‘हैं, बस ठीक है, कहां तो इतना शोर मचा देती हो मेरे कहीं जाने पर कि वहां से यह लाना, वह लाना, न हो तो मैं भी साथ ही चलती हूं, तुम फाइलें देखना, मैं तुम्हें देखूंगी और आज यह सूखा सूखा सा ठीक है, क्या बात है भई…’’ विहान ने तो प्यारभरी शिकायतों की झड़ी सी लगा दी थी.

इस वक्त लता बिलकुल कमजोर पड़ कर रोना नहीं चाहती थी पर उस का दिल उस का साथ नहीं दे रहा था. उस ने बहुत मुश्किल से अपनेआप को कुछ संभाला और बोली, ‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, बस जरा सा सिर में दर्द था.’’

‘‘सिरदर्द, बुखार तो नहीं? मांजी और मम्मीपापा भी यहां नहीं, तबीयत ज्यादा खराब हो तो कहो, जाना कैंसल कर दूं?’’

‘‘अरे नहीं, बस सिरदर्द है और कुछ नहीं, मैं सूटकेस भिजवाती हूं, तुम बेफिक्र हो कर जाओ, मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

‘‘चलो, ठीक है फिर,’’ इस के साथ ही उधर से कौल कट गई.

विहान मुंबई चला गया तो रात को खाली बैडरूम लता को चुभने लगा. इस वक्त विहान कहां होगा वह इस की कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. उस ने पूरी रात आंखोंआंखों में ही काट दी.

सवेरे उठी तो उस दिन काफी हद तक लता खुद को मानसिक तौर पर तारा से मिलने के लिए तैयार कर चुकी थी. दोपहर होतेहोते लता एक बार फिर उसी घर के आगे खड़ी थी जहां इन दिनों तारा रह रही थी और इस वक्त शायद अंदर विहान भी हो.

लता सधे कदमों से उतरी और धीमे से चलते हुए घर के दरवाजे के सामने पहुंची और डोरबैल बजा दी.

दरवाजा खुलने में लगने वाले कुछ पल भी लता को सदियों समान लग रहे थे. उस ने दोबारा बैल बजानी चाही पर उसी वक्त दरवाजा खुला. सामने वही वृद्ध महिला खड़ी थीं.

‘‘यस, हू आर यू? कौन हो तुम?’’ महिला ने धीरे से पूछा.

‘‘क्या विहानजी यहीं रहते हैं?’’ लता ने कुछ सकुचाते हुए पूछा.

‘‘हाउ डू यू नो विहान? तुम विहान को कैसे जानती हो?’’ महिला अब कुछ परेशान सी नजर आने लगी थी.

लता का दिल तो चाहा अभी उन्हें बता दे कि वह कौन है पर वह शांत ही रही.

‘‘आंटीजी, कल विहानजी का यह पर्स हमारी कैब में छूट गया था,’’ लता ने विहान का वालेट वृद्ध महिला के सामने करते हुए कहा.

महिला कुछ भी न समझने वाली निगाहों से लता को देखती रही.

‘‘दरअसल, आंटी कल विहानजी जिस कैब में आए थे उसे मेरा भाई चलाता है, कल शायद गलती से विहानजी का यह पर्स कैब में ही रह गया. कल मेरे भाई की तबीयत अचानक कुछ खराब हुई तो यहां से सीधा घर ही आ गया और कैब से उतरते समय उस की नजर इस पर्स पर पड़ी तो उस ने इसे उठा कर खोल कर देखा.

अंदर विहानजी का फोटो देख कर वह समझ गया कि उन का पर्स गलती से गिर गया है, उस ने मुझे पता बताया और जिद कि मैं आज ही यह पर्स विहानजी तक पहुंचा दूं. फोटो के पीछे नाम लिखे हुए हैं, उसी से विहानजी का नाम पता चला. आप पर्स देख लीजिए. सब ठीक है न…’’ लता खुद न जान सकी कि वह इतना सब कैसे कह गई.

महिला ने लता के हाथ से वालेट लिया और खोल कर देखा. अंदर विहान और तारा की तसवीर देख कर उन्हें कुछ संतुष्टि सी हुई और उन्होंने लता से अंदर आने के लिए कहा.

लता कुछ झिझकती सी उन के पीछे अंदर चली गई. अंदर पहुंचने पर देखा कि एक बड़ा कमरा है जिस में सामने दीवार पर टीवी स्क्रीन लगी है और एक सोफासैट है और एक कोने में एक टेबलकुरसी रखी थी. एक तरफ परदा था जो उस के पीछे एक और कमरे के होने का एहसास करवा रहा था. इसी बड़े कमरे के एक तरफ झने से हलके हरे रंग के परदे के पीछे से छोटी सी रसोई बनी हुई दिख रही थी.

लता ने चारों तरफ अच्छे से निगाहें घुमा कर देखा पर उसे किसी कोने में विहान और तारा की कोई तसवीर न दिखाई दी.

तभी महिला ने उस की आगे रखी छोटी सी सैंटर टेबल पर पानी का गिलास रखते हुए कहा, ‘‘थैंक यू बेटा, तुमने यह ईमानदारी दिखाई, आजकल तो धोखे का ही टाइम है, किसी से कोई होप नहीं है,’’ यह कहते हुए महिला ने एक गहरी सांस ली फिर लता की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘मेरा नाम शरन है, सौरी, मैं भूल गई, तुम ने क्या नाम बताया बेटा अपना?’’

लता को याद आया कि अभी तक उस ने अपना नाम तो बताया ही नहीं. अत: उस ने जल्दी से कहा, ‘‘रश्मि.’’

लता ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की. उस ने शरन से पूछा, ‘‘आंटी, आप यहां की लगती नहीं, मेरा मतलब है कि आप लोग क्या कहीं भारत के बाहर से…?’’

‘‘लंदन से आए हैं हम लोग,’’ उन्होंने धीमे से जवाब दिया.

इस से पहले कि लता कुछ और पूछती उसे परदे के पीछे वाले कमरे से ग्रैंडमां पुकारते हुए किसी बच्चे की आवाज सुनाई दी. यह शायद उसी बच्चे की आवाज थी जो उस दिन विहान को डैड पुकार रहा था. लता के दिल की धड़कनें तेज हो गईं थीं.

शरन जल्दी अंदर जाना चाह रही थीं कि तभी उन्हें ध्यान आया कि लता उन के सामने बैठी है. वे उठीं और जल्दी से अंदर के कमरे में जाने की कोशिश में लड़खड़ा सी गईं तो लता ने झट से उन्हें सहारा दिया. वे मुसकरा कर रह गईं और उन्होंने लता को बैठने के लिए कहा. वे अंदर गईं और कुछ ही पलों में बाहर आ गईं. लता ने देखा तो उन के हाथ में कुछ नोट थे.

‘‘बेटा, आप का बहुतबहुत थैंक यू, यह बस मेरी तरफ से,’’ उन्होंने लता को वे नोट थमाने चाहे.

‘‘अरे आंटी, यह क्या कर रही है,’’ लता ने उन का हाथ थाम लिया.

तभी अंदर से दोबारा आवाज आई. अब की बार शरन को अंदर जाना ही पड़ा.

लता का दिल चाह रहा था कि अगले ही पल वह भी अंदर पहुंच जाए पर उस के पांव तो जैसे जमीन से जुड़ गए थे. कुछ मिनट बाद शरन बाहर आईं तो लता ने उन से जाने की इजाजत मांगी.

शरन ने एक बार फिर नोट वाला हाथ आगे बढ़ाया तो लता ने न में सिर हिला दिया और तेजी से कमरे के दरवाजे से बाहर चली गई.

घर वापस आई तो उस का सिर फटने को हो रहा था. तेज दर्द उसे बेचैन कर रहा था. सिरदर्द की गोली खा कर उस ने खुद को बैड पर पटक दिया. उसे पता ही नहीं चला कि कब उस की आंखें मुंदती चली गईं.

लता जिस वक्त उठी उस वक्त रात के 9 बज रहे थे. उस ने मोबाइल देखा तो विहान की 3 मिस्ड कौल्स आई थीं. वह उन्हें अनदेखा करती हुई बालकनी में आ खड़ी हुई. ठंडी हवाओं ने उस के चेहरे को सहलाया तो लता ने आंखें बंद कर लीं. कुछ देर वह वहीं खड़ी रही.

वापस अंदर कमरे में आई तो कपड़े बदल कर फिर लेट गई. यह पहेली वह सुल?ा नहीं पा रही थी पर आज उस घर तारा को न पा कर उसे दुख भी बहुत हुआ. उसे उस का शक यकीन में बदलता दिख रहा था. हो सकता था कि आज की तारीख में विहान और तारा एकसाथ ही हों.

यह विहान ने उसे जीवन के किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जो वह इस तरह अपने ही पति की जासूसी जैसा काम करने को मजबूर हो गई है. वह बिलकुल उस घर में दोबारा जाना नहीं चाहती थी पर विहान की इस सचाई से परदा कौन उठाएगा? कौन बताएगा उसे कि जिस जाल में वह खुद को फंसा पा रही है आखिर वह किस ने बुना है?

अगली सुबह गरम चाय का घूंट उस के गले से नीचे उतरा तो उसे लगा जैसे उसे उबकाई आ जाएगी. वह बाथरूम की ओर भागी. बाहर आई तो उसे अपनी तबीयत बिलकुल सही महसूस नहीं हो रही थी. जिस्म निढाल हुआ जा रहा था. उस ने न चाहते हुए भी वर्षा को कौल कर दी.

वर्षा ने उसे आराम करने की हिदायत देने के साथ जल्द ही उस के पास पहुंचने की बात की. दोपहर में कबीर के साथ वर्षा लता के पास आई तो लता ने झट से कबीर को गोद में खींच लिया.

‘‘अरे, क्या कर रही हो भाभी, लेटी रहो न और यह क्या हुआ तुम्हें. चेहरा कैसे पीला पड़ा हुआ है. बुखार है क्या?’’ वर्षा लता को देख कर घबरा सी गई.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है बस बहुत कमजोरी महसूस हो रही है, आराम करूंगी तो बिलकुल ठीक हो जाऊंगी.’’

‘‘अच्छा, फिर मुझे क्यों बुलाया, जानती हूं तुम्हें मैं,जब भी तबीयत खराब होती है ऐसी ही बातें करती हो, डाक्टर के पास जाने के नाम से ही तुम्हारी तबीयत आधी ठीक हो जाती है पर आधी या पूरी, तबीयत जैसी भी हो रही हो, डाक्टर को तो दिखाना ही है, चलो उठो, भैया को फोन करती हूं अभी.’’

‘‘नहींनहीं, विहान को फोन मत करना, आज उन की बहुत जरूरी मीटिंग है, मैं चल रही हूं,’’ लता जल्दी से बोली. वह अभी भी विहान से बात करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी.

‘‘उफ, भैया की इतनी फिक्र, थोड़ा खुद पर भी ध्यान दे लो, चलो जल्दी कपड़े बदलो,’’ वर्षा ने पूरे अधिकार से कहा.

उस का ऐसा प्यार देख कर लता फिर रोने को हो आई. वर्षा, मांजी, सब कितना चाहते हैं उसे. इन लोगों से तो वह अलग होने के बारे में सोच भी नहीं सकती है.

लता को सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या होगा जब सब को विहान की असलियत पता लगेगी. सब के सामने तो वह एक आदर्श बेटा, भाई और पति के रूप में दिखाई देता है. ये लोग तो उस के इस कर्म से बिलकुल अनजान हैं.

‘‘अरे, कहां खो गई, आ जाएंगे भैया भी बस 1-2 दिन की बात तो है,’’ वर्षा ने लता को शून्य में गुम होते देख कहा.

डाक्टर के पास से वापस आने पर लता जहां पहले से ज्यादा खामोश हो गई थी वहीं वर्षा के तो जैसे खुशी से पांव ही जमीन पर न थे.

‘‘भाभी, भाभी, भाभी, यह क्या किया तुम ने, न मुझे मांजी को फोन करने दिया, न भैया को, आखिर इस खबर का हम सभी को कितनी बेचैनी से इंतजार था.’’

लता बस खामोशी से वर्षा को देखे जा रही थी.

‘‘कबीर, अब जल्दी से कबीर का भाईबहन आएगा, वाह, कितना मज़ा आएगा कबीर को अब यहां. है न बोलो, बोलो?’’ वर्षा कबीर को गोद में उठा कर बहुत ज्यादा खुश थी.

लता अब तो जैसे बिलकुल ही सोचनेसमझने की हालत में नहीं थी. जिस घड़ी का उसे और विहान को न जाने कब से इंतजार था वह खुशी की खबर देने का वक्त आया भी तो तब जब लता विहान को खुद से अलग मानने लगी थी. आज अगर सब पहले सा होता तो वह और विहान खुशी से पागल हो गए होते.

तभी वर्षा ने विहान को फोन लगा दिया, ‘‘और भैया, कब वापस आ रहे हो… हांहां, भाभी की तबीयत बिलकुल ठीक है, मैं तो बस ऐसे ही मिलने चली आई थी, क्या आप को अभी 3-4 दिन और लग सकते हैं? ठीक है, लो भाभी से बात करो,’’ वर्षा ने मोबाइल लता के कान से सटा दिया.

मजबूरन लता को भी फीकी मुसकराहट के साथ मोबाइल पकड़ना पड़ा.

वर्षा कबीर के साथ खेलतेखेलते बाहर चली गई.

‘‘हां विहान, कैसे हो? हां तबीयत बिलकुल सही है मेरी, हां अब वर्षा रहेगी मेरे पास, जब तक तुम लौट नहीं आते, ओके बाय,’’ लता ने कौल काट दी और मोबाइल ले कर बाहर आ गई.

‘‘हां भाभी, हो गई बात? क्लीनिक से तो तुम ने बताने नहीं दिया तो यहां से फोन लगा दिया मैं ने. अब तो बता दिया, भैया तो खुशी से झूम गए होंगे, बताओ न?’’

‘‘अभी नहीं बताया,’’ लता उसे मोबाइल देती हुई बोली.

‘‘हैं… अच्छा, सामने ही बताओगी, यह भी सही है. अच्छा देखो, यह अमोल के दोस्त की शादी थी, वहां की तसवीरें,’’ कह वर्षा बीती रात के फंक्शन की तसवीरें दिखाने लगी. तभी कबीर रोने लगा तो वर्षा झट से उठ कर उस के पास चली गई.

मोबाइल की गैलरी खुली हुई थी. लता बेखयाली में तसवीरें स्क्रौल करे जा रही थी. अचानक उस का हाथ जैसे एक तसवीर पर जड़ हो कर रह गया. विहान और तारा की तसवीर. यह तो वही तसवीर है पर यह क्या यह तसवीर पूरी थी. तारा के हाथ में किसी और का हाथ था और वही उस का जीवनसाथी था शायद. तसवीर में वह बहुत प्यार से तारा को देख रहा था और जिस तरह विहान तारा के पीछे था उसी तरह एक और लड़का दूसरी तरफ खड़ा था जिस ने दोनों हाथों से एक खूबसूरत सजा हुआ बोर्ड उठा रखा था. बोर्ड पर लिखा था, ‘‘रिचर्ड वेड्स तारा.’’

वर्षा जैसे ही लता के पास आई, लता ने जल्दी से पूछा, ‘‘वर्षा, यह किस का फोटो है? यह विहान किन लोगों के साथ है?’’ लता बेसब्र हो उठी थी.

‘‘ये, ये लोग तो भैया के दोस्त हैं, यह कैविन, यह रिचर्ड और यह तारा. पता है भाभी तुम्हें रिचर्ड और तारा की लव मैरिज है,’’ वर्षा तसवीर देखती हुई बोली.

उस के बाद वह और भी न जाने कितनी बातें करती रह गई पर लता को जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

तो फिर तारा यहां भारत में क्या कर रही है और रिचर्ड कहां है? अगर यह बच्चा रिचर्ड का है तो फिर वह विहान को डैड क्यों कह रहा था?’’

तभी कबीर पापा पापा कहते हुए उन दोनों के पास चला आया.

‘‘अपने पापा को याद कर रहा है,’’ वर्षा हंसती हुई बोली.

‘‘अरे, बस अभी पापा लेने आ जाएंगे हमारे कबीर को,’’ लता प्यार से बोली.

‘‘अरे नहीं,अमोल आज नहीं आएंगे, अब तो जब भैया आएंगे मैं तभी जाऊंगी, तुम्हारी तबीयत सही नहीं है.’’

‘‘वर्षा रानी, मैं बिलकुल ठीक हूं, क्यों जीजाजी के गुस्से का शिकार हमें बनवा रही हो,’’ लता ने वर्षा से चुहल करते हुए कहा, ‘‘वर्षा, यकीन करो, मेरी तबीयत अब बिलकुल ठीक है.’’

‘‘चली जाऊं, भैया आ रहे हैं क्या?’’ वर्षा उसे छेड़ते हुए बोली.

लता ने भी खुल कर हंसी में उस का साथ दिया.

‘‘अच्छा, वर्षा वह तसवीर सैंड करना जरा मुझे, वह विहान के फ्रैंड्स वाली, विहान ने तो अपना यह ग्रुप कभी मुझे दिखाया ही नहीं, लौटने पर खबर लेती हूं तुम्हारे भैया की,’’ लता ने थोड़े से बनावटी गुस्से से कहा.

अगले दिन सवेरे वर्षा चली गई तो लता एक बार फिर तारा के घर पहुंची.

शरन ने दरवाजा खोला तो लता ने सीधा मोबाइल उन के आगे किया.

शरन ने तारा और रिचर्ड की तस्वीर देखी तो बेहद हैरान हुई.

‘‘यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया? कौन हो तुम?’’ शरन का लहज अब गुस्से में बदल गया था.

‘‘अंदर आ जाइए आंटी, यहां दरवाजे पर खड़े हो कर बात करना सही नहीं है,’’ और लता ही शरन को पकड़ कर धीरेधीरे अंदर ले आई. लता ने उन्हें सोफे पर बैठा दिया.

‘‘अब बताइए आंटी, क्या यह तारा का पति है और अगर यह तारा का पति है तो तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है?’’ लता अब बेझिझक हो कर शरन से सवाल कर रही थी.

‘‘तुम कौन होती हो ये सब जाननेपूछने वाली और सब से पहले यह बताओ कि यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया?’’ शरन अभी भी गुस्से में थी.

‘‘मैं विहान की पत्नी हूं, लता,’’ ये कहने के साथ ही लता भी उन के साथ सोफे पर बैठ गई.

शरन की जैसे समस्त हिम्मत जवाब दे गई हो.

‘‘आंटी, बताइए सच क्या है? अपनी खामोशी तोडि़ए और बताइए कि विहान की जिंदगी में ये सब क्या चल रहा है? वह अकेला नहीं है इस जीवन में, उस के साथ बहुतों की धड़कनें बंधी हैं, उन की मां हैं, उन की बहन और मैं उन की पत्नी. बताइए मुझे क्या रिश्ता है तारा और विहान का? क्या तारा आप की बेटी है? तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है? मुझे सारे सवालों के जवाब चाहिए आंटी,’’ लता शरन को देखती हुई बोली.

‘‘हां, तारा मेरी बेटी है,’’ शरन ने गहरी सांस ली और लता को सब बताना शुरू किया.

‘‘विहान जब लंदन आया था तब वह एक अपार्टमैंट में केविन और रिचर्ड के साथ रहता था. रिचर्ड मेरी फ्रैंड का बेटा था और तारा को भी चाहता था. मैं और रिचर्ड के घरवाले तारा और रिचर्ड की शादी करवाने के बारे में भी हम सोचते थे.’’

लता को बताते हुए लंदन का वह अतीत जैसे शरन की आंखों के आगे उतर आया था…

‘‘रीटा, अब जल्द ही तारा और रिचर्ड की मैरिज हो जाए तो अच्छा है. तारा के फादर की डैथ के बाद मैं बहुत अकेली हो गई हूं इसलिए अपनी ये रिस्पौंसिबिलिटी जल्दी पूरा करना चाहती हूं.’’

‘‘रिचर्ड ने तो जबसे तारा को लीना की पार्टी में देखा है तभी से उसे पसंद करने लगा है, अब बस हमें तो मैरिज की डेट फिक्स करनी है.’’

रीटा की बात सुन कर शरन काफी खुश

हों गई.

शाम में रिचर्ड तारा को ले जाने के लिए घर आया. तारा और रिचर्ड का मूवी जाने का प्लान था. उस दिन तारा बहुत सुंदर लग रही थी. दोनों खुशीखुशी घर से गए.

रात को जब तारा वापस आई तो कुछ चुप सी थी. अगले 3-4 दिन रिचर्ड भी घर नहीं आया तो शरन ने तारा से पूछा, ‘‘तारा व्हाट हैपेंड… तुम्हें क्या हुआ है, कुछ दिनों से इतनी उदास क्यों लग रही हो? क्या रिचर्ड से कोई फाइट हुई है?’’

तारा जवाब में खामोश ही रही.

शरन ने दोबारा पूछा तो तारा कुछ अनमनी और रोंआसी सी हो उठी.

‘‘मौम, जिस दिन मैं रिचर्ड के साथ मूवी देखने गई थी उस दिन वह मुझे एक होटल में ले गया था. वहां पर वह मेरे बहुत पास आने की कोशिश कर रहा था. मैं ने मना किया तो बोला कि अगर यहां रहकर भी तुम्हारे थौट्स इतने बैकवर्ड हैं तो मु तुम में कोई इंट्रैस्ट नहीं है, चलो घर चलें.’’

तारा रिचर्ड की बात सुन कर बहुत हर्ट हुई पर फिर भी उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘फौरन में रहने का यह मतलब तो नहीं न कि हम अपनी लिमिट क्रौस कर दें?’’

‘‘तारा, हमारी मैरिज होने वाली है, क्यों दूर कर रही हो खुद को मु?ा से, देखो खुद को आज कितनी ब्यूटीफुल लग रही हो.’’

रिचर्ड तारा के बहुत करीब आ चुका था. उस ने अपने हाथों में उस का चेहरा थाम लिया. तारा पिघलने लगी.

नदी का बांध टूट गया. बहाव क्षणिक था पर इतना तेज कि कुछ ही पलों में अपने साथ बहुत कुछ बहा कर ले गया.

शरन बहुत दुखी हुई पर तारा का उदास चेहरा देख कर उन्होंने अपने चेहरे के भाव बदले और तारा को अपने सीने से लगा कर प्यार से उसे सम?ाने लगी, ‘‘जो हुआ सो हुआ, मैं आज ही रीटा से तुम दोनों की मैरिज की बात करती हूं, अब तुम दोनों की मैरिज में देर नहीं होनी चाहिए. चलो अब अच्छी सी स्माइल दे दो मम्मी को.’’

अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई पर तारा को जल्द ही रिचर्ड की असलियत पता चल गई. वह एक ऐय्याश किस्म का लड़का था. रातों को नशे में लड़खड़ाता हुआ घर पहुंचता था और 1-2 बार तो तारा पर हाथ भी उठा चुका था. तारा उस के इस बिहेवियर से बहुत परेशान हो चुकी थी.

शरन ने रीटा से बात की तो उस ने दो टूक जवाब दे दिया, ‘‘लुक शरन, मुझे तुम से ऐसी होप नहीं थी, तुम्हारे हसबैंड होंगे पुराने विचारों वाले इंडियन पर तुम तो यहीं की हो, यहां ये सब चलता रहता है. एक तो तुम ने बच्चों की मैरिज की इतनी जल्दी मचा दी और अब चाहती हो कि मेरा बेटा हर टाइम तुम्हारी बेटी का सर्वेंट बना रहे. वह क्या कहते हैं तुम्हारे हसबैंड के देश में… हां… जोरू का गुलाम,’’ रीटा व्यंग्यबाण छोड़ती हुई बोली.

‘‘कुछ बातें हर जगह बुरी लगती हैं फिर चाहे वह देश हो या विदेश, अपने बेटे को उस की गलती पर समझने की जगह उस की साइड ले रही हो जबकि तुम ख़ुद भी एक औरत हो,’’ शरन को रीटा से ऐसी उम्मीद नहीं थी.

अगले महीने पता चला कि तारा प्रैगनैंट है. उन्हीं 2-4 दिनों में रिचर्ड ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं. वह घर पर ही किसी लड़की को ले आया और तारा के सामने ही उस लड़की से करीबियां बढ़ाने लगा. तारा ने उस रात उस से बहुत झगड़ा किया पर रिचर्ड उस की कोई बात सुनने को तैयार न था बल्कि वह तो तारा को ही घर से बाहर निकालने पर आमादा हो गया.

तारा ने उसे बताया कि वह मां बनने वाली है तो रिचर्ड ने उस से कहा कि यह बच्चा उस का नहीं है, अगर वह शादी से पहले उस के साथ सो सकती है तो किसी और के साथ भी संबंध रख सकती है, ऐसे में वह यह मानने को बिलकुल तैयार नहीं था कि यह बच्चा उस का है.’’

‘‘आज के टाइम में यह पता लगाना कि यह बच्चा तुम्हारा है या नहीं, कोई मुश्किल बात नहीं है पर अब मैं खुद नहीं चाहूंगी कि मेरे बच्चे के बाप तुम कहलाओ,’’ तारा ने एक तमाचा उस के चेहरे पर जड़ दिया और रातोंरात घर छोड़ दिया. जल्द ही दोनों का तलाक हो गया. तारा शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो चुकी थी. डाक्टरों को कहना पड़ा कि उस का शरीर बच्चे को जन्म देने की ताकत नहीं रखता. पर तारा हर हाल में यह बच्चा चाहती थी पर अपनी कमजोरी के चलते मजबूर थी. उसे 7वें महीने में लेबर पेन उठ गया.

आधी रात का वक्त था. शरन अकेली तारा को संभाल नहीं पा रही थी और इन हालात में शरन कुछ सू?ा भी नहीं रहा था कि तभी रिचर्ड के अपार्टमैंट के 2 दोस्तों का खयाल आया. तारा की शादी में तो विहान उस का भी बहुत अच्छा दोस्त बन गया था.

शरन ने जल्दी से तारा के मोबाइल से विहान को कौल की. उस के बाद सबकुछ बहुत तेजी से हुआ. विहान केविन के साथ तुरंत तारा के घर पहुंचा और फिर हौस्पिटल ले जाने से ले कर और जौन के जन्म के बाद तारा के डिस्चार्ज होने तक वह साथ ही रहा.

शरन और तारा उस की एहसानमंद हो चुकी थी. इन सब के दौरान विहान और तारा की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी. शरन ने महसूस किया कि तारा विहान को पसंद करने लगी है. एक दिन विहान घर आया तो प्यार से जौन के साथ खेलने लगा कि तभी तारा ने पीछे से विहान के कंधे पर हाथ रख दिया.

विहान ने मुड़ कर देखा तो तारा की आंखें कुछ अनकहा सा बयां कर रही थीं. तारा विहान की ओर मुसकराती हुई देख रही थी. दोनों खामोश थे पर विहान तारा की आंखों की भाषा समझ चुका था.

‘‘नहीं तारा, यह नहीं हो सकता, मैं किसी और से प्यार करता हूं,’’ कहने के साथ ही विहान वहां से चला गया.

कुछ पलों को तो तारा का चेहरा मुर?ा गया पर जल्द ही उसे विहान का स्पष्ट होना बहुत भाया. उसे गर्व हो आया विहान पर जो उस ने कभी किसी भी तरह तारा का फायदा नहीं उठाना चाहा. अपनी एकतरफा मुहब्बत के बदले विहान की दूरी से तो अच्छा था कि वह उस के जैसे साफ दिल वाले मानस की सच्ची दोस्त बनी रहे. कल ही विहान से मिल कर बात करूंगी और उसे सारी बात सम?ाऊंगी, इसी सोच के साथ रात गुजरते ही अगली सुबह जैसे ही तारा विहान से मिलने पहुंची तो केविन ने उसे बताया कि वह तो बीती रात ही इंडिया चला गया है.

तारा ने उसे काफी बार कौल की पर विहान से बात न हो सकी. कई दिनों बाद तारा ने विहान को मैसेज किया.

‘‘डियर विहान,

‘‘क्या मुP से इतनी बड़ी गलती हुई कि तुम मुेेेेझे बिना बताए इंडिया चले गए? विहान, उस दिन वह बस मेरे दिल के जज्बात थे जो मेरी आंखों से झलक गए थे पर मेरा भरोसा करो, तुम मेरे लिए बहुत रिस्पैक्टेबल इंसान हो और सिर्फ मेरे लिए ही नहीं सभी के साथ तुम्हारा व्यव्हार इतना अपनापन और प्यार लिए होता है कि कोई भी तुम्हारी जादू भरी पर्सनैलिटी से दूर नहीं हो पाएगा और उन में से मैं भी एक हूं पर अब तुम्हारा प्यार मुझे दोस्ती के रूप में मिल जाए तो अपनेआप को बहुत खुश समझूंगी. बिलीव मी, मैं दोस्ती के खूबसूरत रिश्ते में हमेशा अपनी लिमिट का ध्यान रखूंगी.’’

तारा नहीं जानती थी कि इस वक्त विहान यह मैसेज पढ़ रहा था तो वह लंदन वापस जाने के लिए एअरपोर्ट ही पहुंचा था.

तारा वहां शरन से कुछ छिपा न सकी और उस ने शरन से यह भी कहा कि शायद मेरी बातों से विहान हर्ट हुआ हो और अब वह मुझ से दोस्ती भी न रखे.

शरन ने उसे समझाया कि ऐसा नहीं होगा. विहान बहुत बड़े दिल का मालिक है. वह उसे दोस्त के रूप में जरूर मिलेगा और शरन की बात सच साबित हुई.

विहान और तारा अच्छे दोस्त बन चुके थे. विहान ने तो तारा को यह भी बताया कि वह नहीं जानता कि लता भी उस से बहुत प्यार करती है और जब एअरपोर्ट पर उस ने आई लव यू कहा तो विहान तो बस जवाब में उसे देखता ही रह गया. वह जिंदगी का इतना प्यारा सच ऐसे अपने सामने आने की उम्मीद नहीं रखता था. उस वक्त वह लता को अपने दिल की बात भी नहीं बता सका कि वह भी उसे उतना ही चाहता है.

मगर विहान ने वर्षा को जरूर यह बात बताई तो वर्षा ने उस से कहा कि अरे भैया, मैं तो शुरू से ही जानती थी कि आप दोनों एकदूजे से बहुत प्यार करते हैं बस इजहार करने में मेरी सहेली बाजी मार गई.

‘‘मांजी और अंकलआंटी मान जाएंगे?’’ विहान ने वर्षा से पूछा.

‘‘सब ठीक होगा भैया, आप बस दिल लगा कर वहां पढ़ाई कीजिए. पर कैसे दिल लगाएंगे वह तो अब यहां है,’’ वर्षा ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा वर्षा,अब जब तक वापस नहीं आ जाता लता से जरा कम ही बात करूंगा. अब वापस लौटने पर ही लता के सामने ही बात करूंगा.’’

‘‘इस के लिए बिना हवाईजहाज के हवाहवाई बन कर मत आ जाइएगा.’’

विहान अकसर तारा और शरन को वर्षा की बातें बताता तो दोनों हंसतीहंसती दोहरी हो जातीं.

तारा अकसर विहान से कहती, ‘‘लता इज सच ए लकी गर्ल.’’

देखते ही देखते विहान के वापस जाने का दिन आ गया. विहान ने दोनों से वादा लिया कि कुछ ही दिनों में वर्षा की शादी है और वे शादी में शामिल होने के लिए इंडिया जरूर आएं.’’

तारा ने कहा कि वह जरूर आएगी वर्षा की शादी में भी और विहान की शादी में भी. जातेजाते तारा ने अपना और विहान का एक फोटो भी विहान को दिया पर शरन की तबीयत सही न होने की वजह से वे लोग शादी में शामिल न हो सके.

विहान और लता शादी के बाद बहुत खुश थे पर बीतते वक्त के साथ संतानसुख न पाने का दर्द लता और विहान को मायूस कर देता था.

एक दिन विहान हैरान रह गया जब तारा ने उसे अपने भारत आने के बारे में बताया. विहान ने महसूस किया कि तारा की आवाज में खुशी का कोई सुर न था. तारा ने उस से कहा कि हो सके तो विहान उस के लिए किसी किराए के घर का इंतजाम कर दे.

‘‘किराए का घर क्यों? किसी होटल में क्यों नहीं?’’ विहान कुछ न समझते हुए बोला.

‘‘मैं आने के बाद तुम्हें सब समझा दूंगी,’’ तारा का स्वर अभी भी उदासी लिए था.

एअरपोर्ट पर जौन ने जब उसे डैड कहा तो विहान ने घोर आश्चर्य के साथ तारा की ओर देखा.

‘‘प्लीज, प्लीज विहान, अभी जौन को कुछ मत कहना, वह वही कह रहा है जो मैं ने उसे बताया है,’’ विहान असमंजस में था.

विहान एक साधारण सा घर किराए पर लिया. वह वहीं सब को ले गया. जौन और शरन को घर छोड़ कर विहान ने तारा से कहा कि वह उस के साथ बाहर चले. तारा बिना किसी सवाल के उसी पल उस के साथ बाहर आ गई.

‘‘तारा, यह सब क्या है? तुम ने जौन को मुझे उस के पिता के रूप में दर्शाया हुआ है… तुम ने ऐसा क्यों किया है… जानती हो इस का रिजल्ट कितना खराब होगा, मेरी फैमिली तबाह हो सकती है…’’ विहान कुछ गुस्से से तारा को यह सब कह रहा था.

‘‘जौन को अपना लो विहान, प्लीज जौन को अपना लो, वह बहुत प्यारा और मासूम है, उसे एक फैमिली की जरूरत है, उसे प्यार की जरूरत है,’’ तारा फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘तारा, क्या हुआ है तुम्हें, क्या बात है, बताओ मुझे?’’ विहान बहुत हैरानपरेशान सा हो रहा था.

‘‘मैं मर रही हूं विहान, मुझे कैंसर है, डाक्टरों ने कहा है कि अब ज्यादा से ज्यादा 3 महीने हैं मेरे पास,’’ तारा बिलकुल खोखले स्वर में बोली.

‘‘तारा, क्या कह रही हो? तुम्हें कैंसर… ये सब कब… कैसे?’’ विहान को अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. हौस्पिटल चैकअप करवाने गई पर बहुत ज्यादा कमजोरी की वजह से मुझे चक्कर आ गया, मैं बेहोश हो गई. होश आया तो मैं हौस्पिटल में ही थी. डाक्टर ने वहीं मेरे कुछ टैस्ट करवाए. अगले कुछ दिनों में रिपोर्ट्स आईं तो पता चला कि मैं कैंसर की गिरफ्त में हूं और अब मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘यह सुन कर जौन का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया. मुझे अपनी नहीं उस की दुनिया वीरान होती नजर आ रही थी. मौम इस हालत में नहीं कि वह अब जौन की परवरिश कर सके. जौन जिस की लाइफ अभी शुरू हुई है वह कैसे जिंदगी जीएगा. उस ने बाप के प्यार को तो कभी महसूस ही नहीं किया था और अब मां का प्यार भी उस से दूर होने वाला था.

‘‘मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था. मैं तो जैसे अपनी सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. दिनरात जैसे हवा बन कर उड़ रहे थे और हाथ से वक्त रेत की तरह फिसल रहा था.

‘‘एक दिन जब तुम्हारा फोन आया तो मैं ने तुम्हारी आवाज में बहुत उदासी महसूस की. ख़ुद से ज्यादा तुम लता के लिए दुखी थे.

‘‘तब मुझे लगा कि अगर आप लोग जौन को अपना लो तो मेरे बच्चे को फैमिली और आप की फैमिली को एक बच्चा मिल जाएगा. विहान, बोलो न विहान, मेरे बच्चे को अपना लो, मुझे पता है मैं स्वार्थी हो रही हूं, पर मैं एक मां हूं, इस वक्त जौन से ज्यादा और उस के आगे कुछ नहीं सोच पा रही हूं. प्लीज विहान, मेरी हालत को समझ,’’ तारा रो रो कर बेहाल हुए जा रही थी.

विहान यह सब सुन कर खुद को बहुत अजीब स्थिति में पा रहा था. तारा के लिए वह बहुत दुखी हुआ पर जो वह चाह रही थी वह किसी भी हालात में किसी के लिए भी आसान परिस्थिति नहीं होने वाली थी. तभी जौन अपने नन्हेनन्हे कदमों से चलता हुआ विहान के पास आया और उस की टांगों को पकड़ लिया.

विहान ने उसे धीरे से अपनी गोद में उठा लिया. जौन का मासूम चेहरा उस का दिल पिघला रहा था कि तभी जौन के मुंह से निकला, ‘‘डैड.’’

विहान का मन जैसे भीग गया. उस ने जौन को गले से लगा लिया. यह देख कर तारा को ऐसा लगा जैसे तपती धूप में उसे किसी पेड़ की छाया मिल गई हो.

शरन खिड़की के एक कोने से खड़ी यह सब देख रही थी. आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘लता, विहान को कभी गलत मत सम?ाना, वह तुम से बहुत प्यार करता है, मैं समझती हूं कि इस वक्त विहान की लाइफ में जो कुछ हो रहा है वह एक बीवी होने के नाते तुम्हारे लिए बहुत तकलीफ देने वाला है पर बेटा इसमें विहान की कोई गलती नहीं है,’’ शरन रो रही थी और लता तो जैसे खुद को अपराधी महसूस कर रही थी.

कितना कुछ गलत सोच लिया था उस ने बिना असलियत का आईना देखे. उस का विहान पर से विश्वास कैसे डगमगाया यह सोच कर लता को खुद पर क्रोध आ रहा था. ऐसा लग रहा था उसे कि वह तो माफी मांगने ले काबिल नहीं रही.

तभी विहान का वहां प्रवेश हुआ, ‘‘लता, तुम यहां?’’ विहान हैरानी से भर उठा.

लता तेजी से उस के सीने से लग गई. कुछ देर तक दोनों के बीच सिर्फ निश्चल प्रेम के आंसुओं की धारा का प्रवाह होता रहा फिर लता ने ही कहा, ‘‘आंटी ने मुझे सब बता दिया है. आज कितने ऊपर उठ गए हो मेरी नजरों में मैं बयां नहीं कर सकती हूं. कल तक प्यार करती थी और अब एक महान इंसान को पूजने का दिल चाह रहा है.’’

‘‘लता, मैं तुम्हें कैसे सब बताऊं, बस बात करने का सही मौका तलाश रहा था और सोच रहा था कि न जाने तुम इसे किस तरीके से स्वीकार करोगी.’’

‘‘जो तुम ने किया और आगे भविष्य में जिस तरह से तुम एक मासूम को एक परिवार का प्यार देना चाहते हो तो तुम्हारी इस सोच से अलग मैं सोच सकती हूं क्या? क्या मुझ पर विश्वास नहीं था? एक बार कह कर तो देखते,’’ लता ने रोते हुए ये सब कहा.

‘‘बच्चा गोद लेने पर कभी तुम ने कोई प्रतिक्रिया नहीं…’’

लता ने उस के होंठों पर अपनी उंगली रख दी.

तभी शरन ने पूछा, ‘‘बेटा तारा कहां है?’’

‘‘हौस्पिटल में ही है आंटी, मैं आप को लेने ही आया था.’’

लता ने घबरा कर विहान की ओर सवालिया निगाहों से देखा.

‘‘तारा को मैं अपने डाक्टर दोस्त के भी दिखा रहा था पर वहां से भी उम्मीद नहीं जगी, तारा अभी उसी के हौस्पिटल में है. 3-4 दिन पहले ही उस ने पूरी तरह से तारा की हालत को देख कर जवाब दे दिया था इसलिए मैं तारा के साथ था.’’

यह सब सुन कर शरन के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. लता ने शरन को गले से लगा लिया.

उस दिन सूर्यास्त के वक्त तारा की जिंदगी का दीया भी सदा के लिए बु?ा गया. जौन को लता ने संभाल लिया था.

अगले वर्ष होली पर वर्षा जब सपरिवार अपने मायके आई तो कबीर आते  ही जौन और आयुषी के साथ खेलने में मस्त हो गया.

विहान और लता की बिटिया आयुषी अभी 3 माह की थी. वर्षा ने तो आयुषी को गोद में ले कर खूब प्यार किया.

तभी वैदेहीजी की आवाज सुनाई दी और सभी उस दिशा में देखने लगे.

‘‘जौन, कबीर इधर आओ,तुम लोगों की पिचकारियां भर गई हैं.’’

बच्चे भागते हुए चले गए. वर्षा भी आयुषी को गोद में ले कर वहीं चली गई. वहां सभी थे. वैदेहीजी, विवेक और अरुणाजी और उन के साथ बैठी थी शरन. बच्चों को देख कर सभी उनके साथ खेलने लगे.

तभी विहान ने लता के गालों को गुलाल से रंग दिया. लता ने हंसते हुए वहां से भागने की कोशिश की तो विहान ने उसे अपने करीब खींच लिया.

‘‘थैंक यू लता, जौन को इतने प्यार से अपनाने के लिए, तुम ने आंटी को भी वापस नहीं जाने दिया. थैंक यू सो मच मेरी मैडमजी हर कदम पर मेरा साथ देने के लिए, मेरी हर उलझन को सुलझाने के लिए, तुम्हारे बिना मेरा यह जीवन बिलकुल अधूरा है,’’ विहान भावुक हो उठा था.

लता की भी आंखें भर आई थीं. उस ने भी विहान के सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. उस के गालों पर प्रीत का गुलाबी रंग और अधिक गहरा हो उठा था.

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