Latest Hindi Stories : नीला आकाश – क्या नीला दूसरी शादी के लिए तैयार हो पाई?

Latest Hindi Stories : पति आकाश की असमय मौत के बाद जब महेश ने नीला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह किस नतीजे तक नहीं पहुंच पा  रही थी. एक तरफ महेश था तो दूसरी तरफ अबोध बेटा रूद्र. क्या महेश उस के साथ उस के बेटे को अपना पाएगा… नीला,वैसे तो औफिस से शाम 7 बजे तक घर आ जाती है, लेकिन कभी मीटिंग वगैरह हो तो बोल कर जाती है कि आज उसे घर आने में थोड़ी देर जाएगी. मगर आज तो 9 बजने को थे और अब तक वह औफिस से घर नहीं आई.

सुबह कुछ बोल कर भी नहीं गई थी कि आज उसे घर आने में देर हो जाएगी. जब उस की मेड मंजु ने उसे फोन लगाया, तो नीला का फोन बिजी आ रहा था. इसलिए उस ने उसे मैसेज किया कि रुद्र, नीला का 4 साल का बेटा, बहुत रो रहा है. चुप ही नहीं हो रहा है और उसे भी तो अपने घर जाना है. उस पर नीला ने उसे मैसेज से ही जवाब दिया कि वह एक जरूरी मीटिंग में बिजी है, आने में देर लगेगी.

इसलिए वह मालती (नीला की मां) को बुला ले. मंजु ने जब मालती को फोन कर के कहा कि आज नीला को औफिस से आने में देर लगेगी. इसलिए वे आ कर कुछ देर के लिए रुद्र को संभाल लें. मालती आ तो गईं लेकिन उन्होंने मंजु को कस कर ?ाड़ लगाते हुए कहा, ‘‘पैसे किस बात की लेती हो, जब बच्चे की ठीक से देखभाल नहीं कर सकती हो और यह नीला पता नहीं क्या सम?ा रखा है मु?ो? अरे, मैं क्या कोई फालतू बैठी हूं, जो उस के बच्चे को संभालती रहूं?’’ मंजु ने उन की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि उसे पता है कि मालती से मुंह लगाने का मतलब है खुद ही पत्थर पर सिर मारना.

दरअसल, नीला एक सिंगल मदर है. साथ में वह बैंक में जौब भी करती है. इसलिए रुद्र की देखभाल के लिए उस ने मंजु को रखा हुआ है. मंजु सुबह 9 बजे से ले कर रात 8 बजे तक रुद्र को संभालती है. उस के बाद तो नीला औफिस से आ ही जाती है. वैसे तो नीला का बैंक 6 बजे तक ही होता है, लेकिन कभी मीटिंग की वजह से या बैंक में औडिट चल रहा हो, तब नीला को घर आने में देर हो जाती है. रात के करीब 10 बजे नीला घर आई. धीरे से दरवाजा खोल कर जब वह अंदर कमरे में गई, तो देखा रुद्र मालती अपनी नानी के सीने से लग कर आराम से सो रहा है. ‘‘आ गई तू?’’ नीला के आने की आहट सुन कर मालती तुरंत उठ बैठीं. ‘‘हां, आ गई मां, लेकिन बहुत थक गई आज तो,’’ बैड पर एक तरफ पर्स रखते हुए नीला ने नजर भर कर रुद्र की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘वह अचानक मीटिंग रख दी, इसलिए मैं ने ही मंजु से कहा था कि वह आप को बुला ले. वैसे रुद्र ने आप को ज्यादा परेशान तो नहीं किया न?’’

मालती ने तलखी से कहा, ‘‘यह बता कि ऐसा कब तक चलता रहेगा? आखिर मैं भी कब तक तुम्हारा साथ दे पाऊंगी? उम्र हो चुकी है मेरी भी. थक जाती हूं यहांवहां करतेकरते,’’ बोलते हुए मालती का चेहरा रूखा हो आया. ‘‘पता है मां, लेकिन मैं ने कहा न अचानक मीटिंग आ गई… अब जौब तो छोड़ नहीं सकती मैं,’’ नीला ने अपनी मजबूरी बताई. ‘‘भले तू अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकती, लेकिन मेरी परिस्थिति भी तो सम?ा. मैं खुद बेटेबहू पर आश्रित हूं. मुझे  उन के हिसाब से चलना पड़ता है. इसलिए कह रही हूं रुद्र को इस की दादी के पास छोड़ आ. लेकिन तू सुनती ही कहां है मेरी.’’ ‘‘आप की बात सही है मां. लेकिन रुद्र अभी बहुत छोटा है. उसे मेरी जरूरत है और फिर कौन सा आप को रोजरोज कष्ट उठाना पड़ता है जो आप इतना सुना रही हो,’’

नीला एकदम से विफर पड़ी क्योंकि एक तो वैसे ही वह थकीमांदी घर आई थी उस पर अपनी मां का परायापन व्यवहार देख कर उस का मन रोने को हो आया. ‘अरे, तो क्या हो गया जो जरा इन्हें यहां आना पड़ गया? आखिर रुद्र भी तो इन का कुछ लगता है कि नहीं? एक बार यह भी नहीं पूछा कि तूने खाना खाया या नहीं? बस लगीं सुनाने. अपने पोतेपोतियों के पीछे पूरा दिन भागती फिरती हैं. कौरेकौर खाना खिलाती हैं उन्हें, तब थकान नहीं होती इन्हें.

लेकिन जरा सा रुद्र को क्या देखना पड़ गया, ताकत ही खत्म हो गई इन की. अरे, यह क्यों नहीं कहतीं कि रुद्र इन के आंखों को खटकता है. देखना ही नहीं चाहतीं ये मेरे बच्चे को,’ मन में सोच नीला कड़वाहट से भर उठी. ‘‘अच्छा ठीक है भई, जो तुम्हें ठीक लगे करो, मुझे क्या है,’’ नीला के मनोभाव को पढ़ते हुए मालती सफाई देते हुए बोलीं, ‘‘मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूं न. वैसे महेश का फोन आया था क्या?’’ मालती की बात पर नीला सिर्फ ‘हूं’ में जवाब दे कर लाइट औफ करने ही लगी कि मालती फिर बोल पड़ीं, ‘‘महेश की मां कह रही थी कि तुम दोनों की शादी जितनी जल्दी हो जाए अच्छा है और मैं भी तो यही चाहती हूं कि मेरे जीतेजी फिर से तुम्हारा घर बस जाए.

अरे, मेरा क्या भरोसा कब अपनी आंखें मूंद लूं,’’ भावनाओं का जाल बिछाते हुए मालती रोने का नाटक करने लगीं ताकि नीला ?ाट से उस महेश से शादी के लिए हां बोल दे. मगर नीला अपनी मां की सारी नौटंकी समझती थी. आखिर, बचपन से जो देखती आई थी. ‘‘अच्छा ठीक है मां, अब मु?ो सोने दो सुबह बात करेंगे,’’ बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर नियंत्रण रख नीला ने अपनी आंखें बंद कर लीं और सोचने लगी कि उस का कहां मन होता है अपने मासूम बच्चे को यों किसी और के भरोसे छोड़ कर जाने का? लेकिन जाना पड़ता है क्योंकि अगर पैसे नहीं कमाएगी तो रुद्र को कैसे पालेगी.

लेकिन मालती तो ‘शादी कर लो शादी कर लो’ बोलबोल कर उस की जान खाए रहती हैं. मगर यह नहीं सम?ातीं कि वह महेश सिर्फ नीला के पैसों की खातिर उस से विवाह करना चाहता है. तभी तो शादी करने के लिए इतना पगला रहा है वह और मालती तो इसलिए नीला की शादी के लिए परेशान हैं ताकि उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्ति मिल जाए. लेकिन वह कौन सा मालती की छाती पर मूंग दल रही है? अरे, अपना कमा खा रही है. इस में भी लोगों को परेशानी है? अपने माथे पर हाथ मारते हुए आंखों से 2 बूंद आंसू टपका कर मालती फिर शुरू हो गईं, ‘‘जो आज मु?ो यह सब देखना पड़ रहा है इस से तो अच्छा होता मैं तुम्हारे बाबूजी के साथ ही ऊपर चली जाती. उधर मेरे बेटेबहू मुझे ?छिडकते रहते हैं और इधर तुम हो कि मेरी कोई बात नहीं समझाती. अरी, महेश जैसा नेक दिल इंसान तुम से शादी करने को राजी हो गया वरना एक विधवा और 1 बच्चे की मां से भला कौन शादी करना चाहेगा?’’ मालती की बात से नीला का मन कसैला हो गया.

मन तो किया बोल दे कि तो कौन मरा जा रहा है उस महेश से शादी करने के लिए और कहने को तो वह भी रंडवा है. लेकिन मर्दों के लिए कौन ऐसी बातें करता है? एक औरत मर जाए, तो मर्द बेचारा कहलाता है. लेकिन वहीं एक पति के मरने पर यही समाज औरत पर क्याक्या जुल्म नहीं ढाता है. उस के खाने, पहनने, हंसने, बोलने से ले कर हर चीज पर पहरा बैठा दिया जाता है क्योंकि वह एक विधवा है. आखिर स्त्रीपुरुष में इतना भेद क्यों है? किस ने बनाए हैं ये नियम जो सदियों से चले आ रहे हैं? लेकिन नीला के इन प्रश्नों के उत्तर देने वाला कोई नहीं था. नीला को तो वैसे भी इस महेश से विवाह करने की कोई इच्छा नहीं थी. वह तो केवल अपनी मांभाई के दबाव में आ कर उस से विवाह करने को राजी हुई थी. लेकिन जब उस महेश ने यह शर्त रखी कि वह रुद्र को नहीं अपनाएगा. तभी नीला ने सोच लिया कि वह महेश से विवाह कभी नहीं करेगी.

लेकिन मालती उस के पीछे पड़ी हैं कि वह रुद्र को उस की दादी के पास छोड़ कर महेश से विवाह कर ले क्योंकि फिर इतना अच्छा लड़का नहीं मिलेगा उसे. मगर एक मां के लिए अपने बच्चे को खुद से दूर करना कितनी बड़ी सजा है यह लोग नहीं समझते. अपने बेटे को सीने से लगा कर नीला देर तक सुबकती रही और फिर पता नहीं कब उसे नींद आ गई. सुबह फिर मालती वही राग अलापने लगीं, तो नीला मन ही मन चिढ़ उठी और एक नफरत भरी नजर अपनी मां पर डालते हुए रुद्र को वहां से ले कर दूसरे कमरे में चली आई. जब देखा मालती ने कि उस की बातों का नीला पर कोई असर नहीं हुआ तो वे अपनी साड़ी का पल्लू समेटे वहां से बड़बड़ाती हुई अपने घर चली गईं.

अपनी मां के व्यवहार से दुखी नीला की आंखें रो पड़ीं. सोचने लगी कि कैसे एकाएक उस की हंसतीखेलती जिंदगी वीरान बन गई. कभी नहीं सोचा था उस ने कि एक दिन आकाश उसे छोड़ कर चला जाएगा. अपने बहते आंसू पोंछ वह 5 साल पीछे चली गई… नीला कालेज से अभी थोड़ी दूर निकली ही थी कि अचानक… नहीं अचानक से कहां बल्कि सुबह से ही मेघराजा बरसने को व्याकुल हो रहे थे और जैसे ही मौका मिला बरस पड़े.

ऐसी मोटीमोटी बूंदें बरसने लगे कि नीला का स्कूटी चलाना मुश्किल हो गया. कहीं भीग न जाए इसलिए वह अपनी स्कूटी सहित एक घने पेड़ के नीचे यह सोच कर खड़ी हो गई कि जैसे ही बारिश रुकेगी स्कूटी से फुर्र हो जाएगी. मगर यह मुई बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. ‘‘अंदर आ जाइए, मैं आप को आप के घर तक छोड़ दूंगा,’’ अचानक एक चमचमाती गाड़ी नीला के सामने आ कर रुकी और खिड़की से झांकते हुए एक सुदर्शन नौजवान बोला तो नीला कुछ पल उसे देखती रह गई.

‘‘हैलो मैडम, कहां खो गईं आप? मैं ने कहा अंदर आ जाइए बारिश तेज है भीग जाएंगी आप,’’ जब उस नौजवान ने फिर वही शब्द दोहराए, तो नीला सचेत हो गई. ‘‘नो थैंक्स, मैं चली जाऊंगी,’’ उड़ती सी नजर उस शख्स पर डाल नीला ऊपर आसमान की तरफ देखने लगी जहां अभी भी कालेकाले बादल मंडरा रहे थे. इस का मतलब था बारिश अभी रुकने वाली नहीं है. एक मन हुआ उस की गाड़ी में बैठ जाए, लेकिन फिर लगा न बाबा भले ही भीगते हुए घर जाना पड़े पर किसी अनजान की गाड़ी में नहीं बैठेगी.

‘‘कहीं आप मु?ो उस टाइप का लड़का तो नहीं सम?ा रहीं?’’ वह नौजवान बोला तो नीला और सतर्क हो गई. ‘‘घबराइए नहीं, मैं आप को जानता हूं. आप महाराजा सयाजी राव यूनिवर्सिटी में पड़ती हैं न? मैं भी वहीं पढ़ता हूं. लेकिन आप से 1 साल सीनियर हूं,’’ बोल कर वह हंसा तो नीला ने उसे गौर से देखा. हां, याद आया. इस ने इसे महाराजा सयाजी राव यूनिर्वसटी में देखा तो है. ‘तो क्या हो गया,’ सोच नीला ने मुंह बनाया. ‘उस यूनिवर्सिटी में कितने ही लड़केलड़कियां पढ़ते हैं तो क्या सब मेरे दोस्त हो गए? और इस का क्या भरोसा, मदद के नाम पर ही यह मेरे साथ कुछ ऐसावैसा कर दे तो? न बाबा न, मैं इस के साथ नहीं जाऊंगी.

अपने मन में ही सोच नीला ने मुंह फेर लिया ताकि वह सम?ा जाए कि उसे उस की गाड़ी में नहीं बैठना. मगर वह लड़का तो नीला के पीछे ही पड़ गया कि वह उस की गाड़ी में आ कर बैठ जाए. ‘‘अरे, अजीब जबरदस्ती है. ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ जब मैं ने कहा मु?ो नहीं बैठना आप की गाड़ी में तो फिर आप जिद क्यों कर रहे हैं? प्लीज, जाइए यहां से. बारिश जब रुकेगी, मैं खुद ही अपने घर चली जाऊंगी,’’ कंधे पर टंगे बैग को ठीक करते हुए नीला ने दो टूक शब्दों में कहा और फिर नजरें फेर लीं. ‘‘जिद मैं कर रहा हूं या आप? बारिश देख रही हैं?’’ बड़े हक से उस ने कहा, ‘‘स्कूटी की चिंता न करें, सुबह आप के घर पहुंच जाएगी,’’ बोल कर उस ने अपने कार का दरवाजा खोल दिया, तो न चाहते हुए भी नीला को उस की गाड़ी में आ कर बैठना पड़ा. लगा, कहीं सच में बारिश न रुकी तो उसे भीगते हुए घर जाना पड़ेगा. ‘‘वैसे अपनी सेफ्टी के लिए आप ने अपने बैग में कटर, चाकू, पेपर स्प्रे वगैरह तो रखा ही होगा न?’’ बोल कर वह हंसा, तो नीला भी मुसकरा पड़ी.

‘‘नहींनहीं, रखना ही चाहिए. इस में क्या है और देख तो रही हैं आज जमाना कितना खराब हो गया है. किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता,’’ बोल कर उस ने नीला को एक भरपूर नजरों से देखा, तो नीला की भी आंखें उस से जा टकराईं. इंसान का चेहरा उस के अच्छेबुरे होने का सुबूत दे ही देता है और इस अजनबी के चेहरे से ही लग रहा था कि इंसान बुरा नहीं है. ‘‘वैसे मेरा नाम आकाश है और आप का नाम?’’ गाड़ी बाईं तरफ मोड़ते हुए आकाश ने पूछा. तो नीला एकदम से बोल पड़ी, ‘‘राइट… राइट.’’ ‘‘अच्छा, तो आप का नाम राइटराइट है,’’ आकाश की हंसी छूट गई तो नीला भी खिलखिला पड़ी. नीला की खिलखिलाती हंसी देख कर आकाश उसे देखता ही रह गया.

लेकिन जब सामने से आती गाड़ी ने हौर्न बजाया तो वह घबरा कर सामने देखने लगा. उस दिन के बाद से आकाश और नीला दोनों दोस्त बन गए. लेकिन इसे सिर्फ दोस्ती कहना सही नहीं होगा क्योंकि जिस तरह से दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए बेचैन हो उठते थे वह सिर्फ दोस्ती तो नहीं हो सकती. कुछ तो था दोनों के बीच पर खुल कर बोल नहीं पा रहे थे. लेकिन उन की आंखें रोज हजारों बातें करतीं. एक रोज बड़ी हिम्मत जुटा कर आकाश ने नीला को एक लव लैटर लिखा. अब कहेंगे, फोन के जमाने में लव लैटर? हां, क्योंकि जो बातें हम बोल कर नहीं कह पाते, लिख कर आसानी से कह देते हैं. आकाश ने भी वही किया. लैटर में उस ने अपने दिल की सारी बातें लिख डालीं और यह भी कि अगर नीला भी उस से प्रेम करती है, तो कल वह पीच कलर की ड्रैस पहन कर यूनिवर्सिटी आएगी.

दूसरे दिन नीला को पीच कलर की ड्रैस में यूनिवर्सिटी आया देख कर आकाश ऐसे बौरा गया कि सब के सामने ही उस ने नीला को अपनी गोद में उठा लिया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘आई लव यू सो मच नीला. विल यू मैरी मी?’’ नीला ने भी शरमाते हुए ‘हां’ बोला, तो वहां खड़े सारे लड़केलड़कियां खुशी से तालियां बजाने लगे. यूनिवर्सिटी में उस दिन से उन का नाम ‘दो हंसों का जोड़ा’ पड़ गया. नीला का परिवार वैसे तो बिहार का रहने वाला है, मगर सालों पहले उस के पापा परिवार सहित गुजरात के वड़ोदरा शहर में आ कर बस गए और तब से यहीं के हो कर रह गए. जहां नीला के पापा रेलवे में गार्ड की नौकरी करते थे, वहीं आकाश के पापा एक बिल्डर थे. वड़ोदरा में उन का अपना बड़ा घर था. इस के अलावा कई दुकानें भी थीं जिन्हें उन्होंने किराए पर लगा रखा था. उन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी.

मगर नीला के पापा के पास सिवा एक सरकारी नौकरी के कुछ भी नहीं था. अपना घर भी नहीं था. वे तो अपने परिवार के साथ रेलवे के दिए क्वार्टर में रहते थे. आर्थिक तौर पर दोनों परिवारों में जमीनआसमान का अंतर तो था ही, उन के खानापान में भी काफी भिन्नता थी. नीला का पूरा परिवार नौनवैजिटेरियन था, आकाश के घर वाले लहसुनप्याज तक को हाथ नहीं लगाते थे. लेकिन इस बात का उन के प्यार पर जरा भी असर नहीं पड़ा क्योंकि प्यार कहां खानपान और अमीरीगरीबी देखता है. प्यार तो सिर्फ प्यार की ही भाषा सम?ा है. खैर, वक्त के साथ दोनों ने जितना एकदूसरे को जाना, उन का प्यार एकदूसरे के लिए उतना ही गहरा होता चला गया. अकसर नीला और आकाश आसमान के नीचे तारों को निहारते हुए सपने बुनते और कहते कि एक दिन इस आकाश के नीचे ‘नीला आकाश’ की अपनी एक अलग दुनिया होगी जहां सिर्फ वे दोनों होंगे और कोई नहीं.’’ आकाश, मैं तुम्हारे लिए खाना पकाऊंगी और तुम पैसे कमा कर लाना,’’ आकाश के गले से झेलती नीला कहती, तो वह सोचने लगता कि क्या उन का प्यार शादी के अंजाम तक पहुंच पाएगा? कहीं उन के परिवार वालों ने इस रिश्ते को इनकार कर दिया तो?’’ ‘‘मैं कुछ पूछ रही हूं आकाश, लेकिन तुम न जाने कहां खोए हुए हो.

बोलो, क्या सोच रहे थे. नीला उसे हिलाते हुए पूछती, तो वह कह देता कि कुछ भी तो नहीं. ‘‘चलो मान लिया? लेकिन एक बात तो बताओ. तुम मु?ा से ही शादी क्यों करना चाहते हो? ऐसा क्या देखा मु?ा में? दुनिया में और भी तो सुंदरसुंदर और पैसे वाली लड़कियां होंगी, फिर मैं ही तुम्हें क्यों भाई?’’ उस की बात पर आकाश मुसकराते हुए कहता है, ‘‘बता दूं? सच में?’’ ‘‘अरे हां, बताओ न?’’ उत्साहित सी नीला बोली. ‘‘क्योंकि मु?ो तुम्हारी छोटी बहन बहुत पसंद आ गई और तुम्हारे ही बहाने मैं उस के साथ भी फ्लर्ट कर सकूंगा. वैसे भी साली आधी घरवाली होती है,’’ बोल कर जब आकाश ठहाके लगा कर हंसा, तो नीला गुस्से से मुंह फुलाते हुए यह बोल कर वहां से जाने लगी कि तो फिर उसी से शादी कर लो न, ‘‘अरे…’’ आकाश उस के पीछे भागा, ‘‘मैं तो तुम्हें केवल छेड़ रहा था सच में. तुम्हें बुरा लगा तो सौरी,’’ बोल कर आकाश अपने दोनों कान पकड़ कर उठकबैठक लगाने लगा. यह देख कर नीला को हंसी आ गई. उस के लिए आकाश और आकाश के लिए नीला हवा की तरह अनिवार्य थे.

दोनों एकदूसरे के बिना जीने की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. आकाश के पापा चाहते थे कि एमबीए के बाद आकाश मास्टर्ड करने के लिए अमेरिका चला जाए और वह अपने पापा की बात टाल नहीं सकता था. नीला को जब यह बात पता चली कि आकाश 2 साल के लिए अमेरिका जा रहा, तो वह बहुत उदास हो गई. उसे लगा कहीं अमेरिका जा कर आकाश उसे भूल न जाए. ‘‘पागल हो,’’ नीला को अपनी बांहों में समेटते हुए आकाश बोला, ‘‘तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें भूल जाऊंगा वहां जा कर? अरे, तुम तो मेरी जान हो,’’ आकाश ने उसे समझाया, ‘‘वह भी तो सरकारी जौब पाना चाहती है. तो क्यों न ये 2 साल वह अपना मन पढ़ाई में लगा दे? देखना, फिर कैसे हवा की तरह 2 साल फुर्र से निकल जाएंगे और फिर हमतुम दोनों मिल कर एक नया इतिहास बनाएंगे,’’ गुनगुनाते हुए आकाश बोला.

यह सुन उदास सी नीला बोल पड़ी, ‘‘और अगर हम न मिल पाएं तो?’’ ‘‘तो… तो मर तो सकते हैं न एकसाथ?’’ उस की बात पर नीला ने उस के होंठों पर अपनी उंगली रख दी कि ऐसी बातें वह अपने मुंह से न निकाले. ‘‘तो फिर खुशीखुशी मुझे विदा करो और हां, रोज हम फोन पर बातें किया करेंगे ओके न?’’ आकाश बोला. अमेरिका जाते समय आकाश ने नीला से यह वादा लिया कि वह कभी दुखी नहीं होगी, पढ़ाई में अपना मन लगाएगी और उसे रोज फोन करेगी. अपनी आगे की पढ़ाई के लिए उधर आकाश 2 साल के लिए अमेरिका चला गया और इधर नीला जौब की तैयारी में जुट गई. नीला ने अब तक अपने घरवालों को अपने प्यार के बारे में कुछ नहीं बताया था और न ही आकाश ने अपने परिवार वालों से नीला के बारे में कुछ कहा था. हमारे समाज में लड़कियों को ले कर घर के अंदर मर्यादा, परंपरा, संस्कृति, सुरक्षा की ऐसी मजबूत दीवार बंधी रहती है कि लड़कियां उसे लांघने के नाम से भी भय खाती हैं. मातापिता जल्द से जल्द दूसरे की अमानत समझ कर बेटी को उस के घर भेज कर गंगास्नान कर लेना चाहते हैं.

उन्हें लगता है जवानी के जोश में कहीं बेटी के पैर फिसल गए, तो अनहोनी हो जाएगी. इसलिए उसे बंद दरवाजों में कैद कर दिया जाता है. लेकिन नीला ने भी सोच लिया था कि उस के मातापिता मानें तो ठीक वरना वह खिड़की से लांघ कर चिडि़या की तरह फुर्र हो जाएगी इस घर से. घर में जब नीला की शादी की बात चलने लगी, तो उस ने यह बहाना बनाया कि पहले वह जौब लेगी, फिर शादी करेगी. लेकिन जब उस के मातापिता को यह बात मालूम पड़ी कि जौब तो सिर्फ एक बहाना है, बल्कि वह तो एक गुजराती लड़के से प्यार करती है और उस से ही शादी करना चाहती है, तो घर में भयंकर तूफान उठ खड़ा हुआ क्योंकि किसी गैरजातबिरादरी के लड़के से वे अपनी बेटी की शादी कैसे होने दे सकते भला? इसलिए उन्होंने ठान लिया कि अब जितनी जल्दी हो सके वे नीला की शादी अपने किसी जातबिरादरी के लड़के से करा देंगे. नीला के लिए लड़का भी ढूंढ़ा जाने लगा. यहां तक कि उस का घर से निकलना भी बंद करवा दिया गया. लेकिन नीला भी कम जिद्दी नहीं थी.

बोल दिया उस ने कि वह शादी करेगी तो सिर्फ आकाश से और अगर उन लोगों ने उस के साथ जबदस्ती करने की कोशिश की, तो वह पंखे से ?ाल जाएगी. नीला की धमकी से उस के मांपिता डर गए कि कहीं बेटी ने सच में कुछ कर करा लिया तो सब की जिंदगी आफत में आ सकती है. इसलिए उन्होंने बेमन से ही इस शादी की अनुमति दे दी. नीला से शादी की बात सुनते ही आकाश के मांपापा विरोध जताते हुए कहने लगे कि एक साधारण परिवार की बिहारी लड़की उन के घर की बहू कभी नहीं बन सकती. लेकिन आकाश ने भी खरीखरी सुना दीया उन्हें कि वह शादी तो नीला से ही करेगा. बेटे की जिद के आगे उन्हें भी ?ाकना पड़ा. पर आकाश की मां ने दिल से इस रिश्ते को नहीं स्वीकारा, बल्कि बेटे की जिद के कारण उसे इस शादी के लिए मानना पड़ा. दोनों परिवारों के आशीर्वाद से नीला और आकाश एक हो गए. जो नीला शादी के पहले एक रेलवे क्वार्टर में रहती थी आकाश से शादी होते ही वह महलों की रानी बन गई. यहां इस घर में नौकरचाकर, गाड़ी सबकुछ तो था,

पर वह सम्मान नहीं था जिस की वह हकदार थी. आकाश की मां हमेशा उसे उस के गरीबी को ले कर ताने मारती और कहती कि उस ने उस के बेटे को अपने रूपजाल में फांस लिया वरना तो उन के बेटे के लिए करोड़पति घरों की लड़कियों की लाइन लगी थी. गरीब घर की लड़की, गरीब घर की लड़की बोलबोल कर वह उस का और उस के मांबाप का अपमान करती और कहती कि सिर्फ पैसों के लिए उस ने आकाश से शादी की है. मगर ऐसा नहीं था. नीला ने कभी आकाश के पैसे और घर के लिए उस से शादी नहीं की बल्कि वह सच में उस से प्यार करती थी और यह बात आकाश भी जानता था. इसलिए तो वह उसे सम?ाता कि मां की बातों को दिल से मत लगाओ. मगर आकाश भी अपनी मां के रूखे व्यवहार से अच्छी तरह से वाकिफ था कि वह जिस के भी पीछे पड़ जाती है उस का सुखचैन छीन लेती है. नीला का भी उस ने सुखचैन छीन लिया था क्योंकि उठतेबैठते वह उसे जलील करती. उस की गरीबी को ले कर ताने मारती. यहां तक कि उस के मांबाप को भिंखमंगा तक बोल देती, जो किसी भी लड़की को अच्छा नहीं लगेगा. मगर आकाश की मजबूरी यह थी कि वह अपने मांबाप का इकलौता बेटा था और उन से अलग हो कर नहीं रह सकता था. समाज और लोग क्या कहेंगे कि शादी होते ही अपने मांबाप से अलग हो गया. इसलिए वह नीला से ही चुप रहने को कहता.

कहता कि धैर्य रखो, एक दिन सब ठीक हो जाएगा. मगर एक दिन जब खुद आकाश ने ही अपने कानों से मां को रिश्तेदारों के सामने नीला की बुराई करते सुना, तो उसे जरा भी अच्छा नहीं लगा. किसी के मांबाप, भाईबहन के लिए इतनी ओछी और गंदी बातें कोई भी लड़की कैसे सहन कर सकती है भला. नीला का बड़प्पन ही था कि इतना सब होने के बाद भी वह यहां रह रही थी, तो सिर्फ अपने आकाश के लिए. लेकिन अब आकाश का भी फर्ज बनता है कि वह उस के लिए कुछ करे. सो वह यहीं वड़ोदरा में ही एक 2 कमरे का फ्लैट ले कर नीला के साथ रहने लगा. इस बात के लिए भी नीला को ही दोषी ठहराया गया कि आते ही उस ने आकाश को उस के मांबाप से अलग कर दिया. मगर आकाश तो अब भी अपनी दोनों जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहा था. एक रोज जब आकाश की मां को यह बात पता चली कि नीला मां बनने वाली है, तो वह दौड़ीदौड़ी यहां पहुंच गई और कहने लगी कि नीला उन के घर साथ आ कर रहे. लेकिन नीला वहां नहीं जाना चाहती थी और इस के लिए आकाश ने भी उसे फोर्स नहीं किया. 9 महीने पूरे होने पर नीला ने जब एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया तो दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई.पोते के जन्म पर आकाश की मां ने अस्पताल से ले कर पूरे शहर में मिठाई बंटवाई. लेकिन यह कहते भी बाज नहीं आई कि नाती भले ही साधारण घर की है, पर पोता तो करोड़पति घर का है न.

आकाश को कंपनी की तरफ से 1 साल के लिए अमेरिका भेजा जा रहा था. मगर उल?ान यह थी कि नीला और रुद्र को अकेले छोड़ कर कैसे जाए क्योंकि रुद्र अभी बहुत छोटा था और नीला उसे अकेले नहीं संभाल पाती. इसलिए वह चाहता था कि जब तक वह अमेरिका से वापस नहीं आ जाता, नीला उस के घर जा कर रहेगी, तो वह निश्चिंत रहेगा. मगर नीला अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती थी. इसलिए रुद्र को ले कर वह अपने मायके आ गई रहने. आकाश की मां का अपनी बहू से लाख मनमुटाव था, मगर पोते के मोह में वह यहां खिंची चली आती थी. इसी तरह 1 साल गुजर गया और आकाश के आने का दिन भी नजदीक आ गया. मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. अमेरिका से वापस आ रहा प्लेन क्रैश हो गया और उस में बैठे सभी यात्रियों की मौत हो गई. आकाश की मौत से दोनों परिवारों पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा.

नीला की तो दुनिया ही लुट गई. उस की होली, दीपावली और सारी खुशियां आकाश के साथ ही चली गईं. उस की सास तो पहले ही नीला को पसंद नहीं करती थी. आकाश के न रहने पर वह और उन की आंखों में चुभने लगी. नीला जीए या मरे, कोई मतलब नहीं था उसे. उसे तो अब सिर्फ अपने पोते से मतलब था, जो उस के खानदान का एकलौता वारिस था. वे लोग अब रुद्र पर अपना पूरा अधिकार जताने लगे थे. कहने लगे कि रुद्र उन का खून है इसलिए अब वह उन के साथ ही रहेगा, परंतु नीला अपने बच्चे को उन्हें देने के लिए हरगिज तैयार नहीं थी. वैसे भी बच्चे पर सब से पहला अधिकार उस की मां का ही होता है. लेकिन यह बात वे लोग समझ ही नहीं रहे थे.

अपनी जिद में अड़े बैठे थे कि रुद्र को वे ले कर ही जाएंगे. जब यह मामला कोर्ट में पहुंचा, तो फैसला नीला की फेवर में आया और वे लोग तिलमिला कर रह गए. आर्थिक तौर पर तो नीला को कोई समस्या नहीं थी क्योंकि पढ़ीलिखी नीला एक बड़े सरकारी बैंक में जौब कर थी और मोटा वेतन पाती थी. लेकिन समस्या समाज और समाज में रह रहे लोगों की थी जो जबतब आ कर नीला के घावों पर यह कह कर नमक छिड़क जाते कि हाय, इतना लंबा जीवन… अकेले कैसे कटेगी… उस पर से एक छोटा बच्चा. अकेले संभाल पाएगी? बेटी की हालत देख कर नीला के मांपापा सोचते कि कैसे कटेगा उन की बेटी का इतना लंबा जीवन? क्या होगा उन की विधवा बेटी का जब वे नहीं होंगे तब? बेटी की चिंता में नीला के पापा डिप्रैशन में रहने लगे और एक रात जो सोए तो फिर उठे ही नहीं. महीनों बाद फिर आकाश के मांपापा नीला के सामने खड़े थे और मिन्नतें कर रहे थे कि वह रुद्र के साथ उन के घर आ कर रहे क्योंकि रुद्र और नीला के सिवा अब उन का है ही कौन. देख रही थी नीला, आकाश के चले जाने से उस के मांपापा एकदम टूट चुके थे. वे दोनों अपने जीवन की संध्याबेला अपने पोते के साथ बिताना चाहते थे, तो इस में गलत क्या है. इसलिए पिछली सारी बातें भुला कर नीला रुद्र के ले कर अपनी ससुराल आ गई रहने. वैसे भी रुद्र इस घर का उत्तराधिकारी था. इस घर का अकेला वारिस.

दिन हंसीखुशी बीत ही रहे थे कि एक दिन रुद्र बीमार पड़ गया. नीला ने उसे डाक्टर को दिखाना चाहा, पर उस की सास अपने गुरुमहाराज, आचार्यजी को अपने घर बुला लाई और कहने लगी कि आचार्यजी में बहुत तेज है, वे रुद्र को तुरंत ठीक कर देंगे. जैसे आचार्यजी के पास कोई जादू की छड़ी हो जिसे घुमाते ही रुद्र ठीक हो जाएगा. वैसे नीला इन पंडितोंपुरोहितों पर बिलकुल विश्वास नहीं करती थी, लेकिन सास के आगे कुछ बोल न सकी और आचार्यजी जैसाजैसा कहते गए, वह वैसावैसा करती गई. मगर फिर भी रुद्र की तबीयत जस की तस बनी हुई थी. जबकि इस पूजा के बहाने ही आचार्यजी इन से लाखों रुपये ऐंठ चुके थे. ये आचार्यजी देखने में भले ही साधारण इंसान लगते हों, पर करोड़पति आदमी थे. इन के वड़ोदरा और अहमदाबाद में अपने मकान थे. गाडि़यां थीं और हों भी क्यों न जब ऐसेऐसे करोड़पति अंधभक्त इन के चरणों में पड़े हों तो. रुद्र की तबीयत में कोई सुधार होता न देख कर आचार्यजी कहने लगे कि अब एक गुप्त पूजा करवानी पड़ेगी तभी रुद्र ठीक हो पाएगा. लेकिन इस गुप्त पूजा में सिर्फ नीला ही बैठ सकती है क्योंकि वह रुद्र की मां है. आचार्यजी ने यह भी कहा कि गुप्त पूजा रात के 12 बजे के बाद शुरू करनी पड़ेगी तभी फलेगा. नीला की सास इस पूजा के लिए तुरंत राजी हो गई.

मगर नीला को कुछ खटका. पता नहीं क्यों उस आचार्यजी के आंखों में उसे एक चालबाज आदमी नजर आता था. मगर उस की सास तो उस आचार्य के पावों में पड़ी होती थी, तो कहां से देख पाती उस की चालाकी. अब सास का हुक्म नीला टाल भी नहीं सकती थी और सब से बड़ी बात कि यह रुद्र की जिंदगी का सवाल था, तो नीला को इस पूजा के लिए मानना पड़ा. लेकिन जैसे ही पूजा शुरू हुई वह आचार्य हरकत में आ गया. गलत तरीके से वह नीला को छूने लगा तो नीला उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हैं आप आचार्यजी? हम तो यहां पूजा के लिए आए हैं न?’’ ‘‘अरे हां तो पूजा ही तो कर रहे हैं,’’ आचार्य अजीब तरह से हंसा और बोला, ‘‘देखो, अभी तुम जवान हो… मन करता होगा तुम्हारा भी, जानता हूं मैं और यहां तो कोई भी नहीं है. इसलिए डरो मत. हम तुम्हें शारीरिक सुख देंगे और तुम मु?ो पैसा. दोनों खुश.’’ आचार्य की बेहूदगी देख कर नीला की आंखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं. ‘‘अरे, ऐसे क्या देख रही हो? कुछ गलत कहा क्या मैं ने? तुम्हारे भले की बात की है.’’ ‘‘छि:, तो आप का असली रूप यह है आचार्यजी? काश, काश मेरी सास आप का यह रूप देख पातीं. लेकिन अब मैं उन्हें दिखाऊंगी आप का यह असली रूप,’’ बोल कर नीला वहां से झटके से निकलने लगी कि उस आचार्य ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘तुम्हारी इतनी हिम्मत.’’ नीला पलटी और एक जोर का थप्पड़ उस आचार्य के कनपट्टी पर जड़ दिया जिस से उस का दिमाग झनझना उठा.

जब तक वह संभल पाता नीला वहां से निकल चुकी थी. आचार्य को लगा अगर नीला ने यह बात अपनी सास को जा कर बता दी, तो उस की वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा. उस का बनाबनाया साम्राज्य ढह जाएगा. इसलिए वह भागा. बेहताहसा भागा और नीला से पहले वहां पहुंच गया. अपनी खुलती पोल देख कर वह कहने लगा कि नीला एक बदचलन औरत है. उस के खराब लक्षण की वजह से ही आकाश की मौत हुई और अब वह अपने बेटे रुद्र को भी खा जाएगी. अपनी बहू को सम?ाने के बजाय उस की सास ने उसे ही उंगली दिखाई और उसे खूब भलाबुरा कहा.

यह भी कहा कि वह कौन सा मनहूस दिन था जिस दिन आकाश से उस की शादी हुई थी. जहां ?ाठ को सच और सच को चरित्रहीन समझ जाता हो, वहां रहने का तो अब कोई मतलब ही नहीं था. सो नीला रुद्र को ले कर अपने बैंक के दिए घर में रहने आ गई. ‘‘क्या हुआ इतनी उदास क्यों बैठी हो? सब ठीक तो है?’’ औफिस में नीला को गुमसुम बैठे देख कर महेश ने पूछा, तो उस ने सिर्फ इतना ही कहा कि नहीं कुछ नहीं, बस यों ही. लेकिन उस से क्या कहे कि वह अपनी मां के व्यवहार से खिन्न है. ‘‘अच्छा चलो हम कैंटीन में चल कर चाय पीते हैं,’’ नीला का हाथ पकड़ कर राहुल बोला, तो वह एकटक उसे देखने लगी. ‘‘अरे, ऐसे क्या देख रही हो, पहली बार देखा है क्या मुझे? चलो न,’’ महेश ने उस का हाथ खींचा तो वह उठ कर उस के पीछे चल दी. महेश नीला का कलीग और दोस्त था. कहें तो दोस्त ज्यादा. दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं. दोनों एक ही बैंक में जौब करते हैं, साथ ही औफिस आतेजाते हैं रोज. ‘‘अब बोलो क्या हुआ? क्यों इतनी गुमसुम हो?’’ चाय का घूंट भरते हुए महेश ने फिर वही बात पूछी तो नीला टाल गई क्योंकि क्या बताती उसे कि उस की मां रुद्र को देखना नहीं चाहती हैं.

चाहती हैं कि उस मासूम को उस की दादी के पास छोड़ दिया जाए. नीला की उदासी थोड़ी कम हो इसलिए महेश अपने परिवार के बारे में उस से बातें करने लगा. फिर राजनीति और फिल्मों पर बातें हुईं, तो नीला को अच्छा लगा. कुछ देर और वहां बैठ कर बातें करने के बाद नीला को उस के घर छोड़ कर महेश भी अपने घर चला गया. रात में फोन कर फिर उस ने नीला का हालचाल लिया और कहा कि कल संडे है तो वे कहीं घूमने चलेंगे. नीला ने भी सोचा काम के चक्कर में वह रुद्र को समय नहीं दे पाती है, इसलिए उस ने महेश के साथ जाने के किए हां बोल दिया. वह देख रही थी रुद्र अब तक महेश से ठीक से घुलमिल नहीं पाया था. उसे देखते ही वह नीला के गोद में छिप जाता और रोने लगता. पूरे रास्ते वह अपनी मां नीला से चिपका रहा. एक बार भी महेश की गोद में नहीं गया. महेश ने भी उस से बहुत ज्यादा प्यार नहीं दिखाया. बस दूर से ही दुलारता रहा. यह बात तो तय थी कि महेश नीला से शादी करना चाहता था, पर नीला पूरी तरह से श्योर नहीं थी अभी. उस दिन अकेले में जब महेश ने नीला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह कुछ बोल नहीं पाई.

घर आ कर वह निढाल सोफे पर पड़ गई और सोचने लगी कि क्या महेश से उस की शादी का फैसला सही होगा? इंसान कुछ भी कहे पर उस के आंखों में सचाई दिख ही जाती है और महेश की आंखों में उस ने रुद्र के लिए कहीं कोई प्यार नहीं देखा था. बस दिखावा ही करता कि वह रुद्र से प्यार करता है. शादी के बाद कहीं महेश को रुद्र अच्छा न लगने लगे और वह उसे नीला से दूर कर दे तो? सोच कर ही नीला कांप उठी. वह सम?ा नहीं पा रही थी कि कौन सा रास्ता चुने? क्या करे? सामने दीवार पर आकाश का फोटो टंगा देख उस की आंखें भीग गईं.

अपने मन में यह बोल कर वह रो पड़ी कि आकाश, तुम मुझे छोड़ कर क्यों चले गए? मां को रोते देख कर तोतली आवाज में जब रुद्र ने पूछा कि क्या हुआ? तो अपने आंसू पोंछते हुए नीला कहने लगी कि वह एक दिन उसे छोड़ कर तो नहीं चला जाएगा? ‘‘नहीं मां, मैं हमेशा आप के साथ रहूंगा. प्रौमिस,’’ बोल कर जब रुद्र ने अपनी मां को चूम लिया तो नीला को लगा आकाश उस के सामने खड़ा मुसकरा रहा है और कह रहा है कि तुम खुद को कमजोर क्यों सम?ाती हो नीला? तुम तो प्रकृति की ऐसी कृति हो, जो हर परिस्थिति संभाल लेती है और फिर मैं हूं न तुम्हारे साथ और हमेशा रहूंगा. नीला ने महसूस किया जैसे अचानक उस का पूरा घर महक उठा हो नीलाआकाश की खुशबू से.

Latest Hindi Stories : विदेशी दामाद – क्या हुआ था सुमन के साथ

Latest Hindi Stories : चिंता की बात तो है. पर ऐसी नहीं कि शांति, सुमन के मामा के साथ मिल कर मुझ पर बमबारी शुरू  कर दे. मेरी निगाहें तो कुमार पर जमी हैं. फंस गया तो ठीक है. वैसे, मैं ने तो एक अलग ही सपना देखा था. शायद वह पूरा होने वाला नहीं.

कल शाम पुणे से सुमन के मामा आए थे. अकसर व्यापार के संबंध में मुंबई आते रहते हैं. व्यापार का काम खत्म कर वह घर अवश्य पहुंचते हैं. आजकल उन को बस, एक ही चिंता सताती रहती है.

‘‘शांति, सुमन 26 पार कर गईर्र्र् है. कब तक इसे घर में बिठाए रहोगे?’’ सुमन  के मामा चाय खत्म कर के चालू हो गए. वही पुराना राग.

‘‘सुमन घर में नहीं बैठी है. वह आकाशवाणी में काम करती है, मामाजी,’’ मैं भी मजाक में सुमन  के मामा को मामाजी कह कर संबोधित किया करता था.

‘‘जीजाजी, आप तो समझदार हैं. 25-26 पार करते ही लड़की के रूपयौैवन  में ढलान शुरू हो जाता है. उस के अंदर हीनभावना घर करने लगती है. मेरे खयाल से तो….’’

‘‘मामाजी, अपनी इकलौती लड़की को यों रास्ता चलते को देने की मूर्खता मैं नहीं करूंगा,’’ मैं ने थोड़े गंभीर स्वर में कहा, ‘‘आप स्वयं देख रहे हैं, हम हाथ पर हाथ रखे तो बैठे नहीं हैं.’’

‘‘जीजाजी, जरा अपने स्तर को  थोड़ा नीचे करो. आप तो सुमन के  लिए ऐसा लड़का चाहते हैं जो शारीरिक स्तर पर फिल्मी हीरो, मानसिक स्तर पर प्रकांड पंडित तथा आर्थिक स्तर पर टाटाबाटा हो. भूल जाइए, ऐसा लड़का नहीं मिलना.  किसी को आप मोटा कह कर, किसी को गरीब खानदान का बता कर, किसी को मंदबुद्धि करार दे कर अस्वीकार कर देते हैं. आखिर आप चाहते क्या हैं?’’ मामाजी उत्तेजित हो गए.

मैं क्या चाहता हूं? पलभर को मैं चुप हो, अपने बिखरे सपने समेट, कुछ कहना ही चाहता था कि मामाजी ने अपना धाराप्रवाह भाषण शुरू कर दिया,

‘‘3-4 रिश्ते मैं ने बताए, तुम्हें एक भी पसंद नहीं आया. मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा. अभी तुम लड़कों को अस्वीकार कर रहे हो, बाद में लड़के सुमन को अस्वीकार करना शुरू कर देंगे. तब देखना, तुम आज की लापरवाही के लिए पछताओगे.’’

‘‘भैया, मैं बताऊं, यह क्या चाहते हैं?’’ शांति ने पहली बार मंच पर प्रवेश किया.

मैं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से शांति को ताका और विद्रूप स्वर में बोला, ‘‘फरमाइए, हमारे मन की बात आप नहीं तो और क्या पड़ोसिन जानेगी.’’

शांति मुसकराईर्. उस पर मेरे व्यंग्य का कोईर्र्र्र् प्रभाव नहीं पड़ा. वह तटस्थ स्वर में बोली, ‘‘भैया, इन्हें विदेशी वस्तुओं  की सनक सवार है. घर में भरे सामान को देख रहे हो. टीवी, वीसीआर, टू इन वन, कैमरा, प्रेस…सभी कुछ विदेशी है. यहां तक कि नया देसी फ्रिज खरीदने के बजाय इन्होंने एक विदेशी के घर से, इतवार को अखबार में प्रकाशित विज्ञापन के माध्यम से पुराना विदेशी फ्रिज खरीद लिया.’’

‘‘भई, बात सुमन की शादी की हो रही थी. यह घर का सामान बीच में कहां से आ गया?’’ मामाजी ने उलझ कर पूछा.

‘‘भैया, आम भारतवासियों की तरह इन्हें विदेशी वस्तुओं की ललक है. इन की सनक घरेलू वस्तुओं तक ही सीमित नहीं.  यह तो विदेशी दामाद का सपना देखते रहते हैं,’’ शांति ने मेरे अंतर्मन के चोर को निर्वस्त्र कर दिया.

इस महत्त्वाकांक्षा को नकारने की मैं ने कोई आवश्यकता महसूस नहीं की. मैं ने पूरे आत्मविश्वास के साथ शांति के द्वारा किए रहस्योद्घाटन का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘इस सपने में क्या खराबी है?  आज अपने हर दूसरे मित्र या रिश्तेदार की बेटी लंदन, कनाडा, अमेरिका या आस्टे्रलिया में  है. जिसे देखो वही अपनी बेटीदामाद से मिलने विदेश जा रहा है औैर जहाज भर कर विदेशी माल भारत ला रहा है,’’ मैं ने गंभीर हो कर कहा.

‘‘विदेश में काम कर रहे लड़कों के बारे में कई बार बहुत बड़ा धोखा हो जाता है, जीजाजी,’’ मामाजी ने चिंतित स्वर में कहा.

‘‘मामाजी, ‘दूध के जले छाछ फूंकफूंक  कर पीते हैं’ वाली कहावत में मैं विश्वास नहीं करता. इधर भारत में क्या रखा है सिवा गंदगी, बेईमानी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के. विदेश में काम करो तो 50-60 हजार रुपए महीना फटकार लो. जिंदगी की तमाम भौतिक सुखसुविधाएं वहां उपलब्ध हैं. भारत तो एक विशाल- काय सूअरबाड़ा बन गया है.’’

मेरी इस अतिरंजित प्रतिक्रिया को सुन कर  मामाजी ने हथियार डाल दिए. एक दीर्घनिश्वास छोड़ वह बोले, ‘‘ठीक है, विवाह तो वहां तय होते हैं.’’

मामाजी की उंगली छत की ओर उठी हुई  थी. मैं मुसकराया. मैं ने भी अपने पक्ष को थोड़ा बदल हलके स्वर में कहा, ‘‘मामाजी, मैं तो यों ही मजाक कर रहा था. सच कहूं, मैं ने सुमन को इस दीवाली तक निकालने का पक्का फैसला कर लिया है.’’

‘‘कब इंपोर्ट कर रहे हो एक अदद दामाद?’’ मामाजी ने व्यंग्य कसा.

‘‘इंपोर्टेड नहीं, देसी है. दफ्तर में मेरे नीचे काम करता है. बड़ा स्मार्ट और कुशाग्र  बुद्धि वाला है. लगता तो किसी अच्छे परिवार का है. है कंप्यूटर इंजीनियर, पर आ गया है प्रशासकीय सेवा में. कहता रहता है, मैं तो इस सेवा से त्यागपत्र दे कर अमेरिका चला जाऊंगा,’’ मैं ने रहस्योद््घाटन कर दिया.

शांति और मामाजी की आंखों में चमक आ गई.

दरवाजे पर दस्तक हुई तो मेरी तंद्रा टूट गई. मैं घर नहीं दफ्तर के कमरे में अकेला बैठा था.

दरवाजा खुला. सुखद आश्चर्र्र्र्य, मैं जिस की कल्पना में खोया हुआ था, वह अंदर दाखिल हो रहा था. मैं उमंग और उल्लास में भर कर बोला, ‘‘आओ कुमार, तुम्हारी बड़ी उम्र है. अभी मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था और तुम आ गए.’’

कुमार मुसकराया. कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘हुक्म कीजिए, सर. कैसे याद कर रहे थे?’’

मैं ने सोचा घुमाफिरा कर कहने की अपेक्षा सीधा वार करना ठीक रहेगा. मैं ने संक्षेप में अपनी इच्छा कुमार के समक्ष व्यक्त कर दी.

कुमार फिर मुसकराया और अंगरेजी में बोला, ‘‘साहब, मैं केवल बल्लेबाज ही नहीं हूं, मैं ने रन भी बटोरे हैं. एक शतक अपने खाते में है, साहब.’’

मैं चकरा गया. आकाश से पाताल में लुढ़क गया. तो कुमार अविवाहित नहीं,  विवाहित है. उस की शादी ही नहीं हुई है, एक बच्चा भी हो गया है. क्रिकेट की भाषा की शालीनता की ओट में उस ने मेरी महत्त्वाकांक्षा की धज्जियां  उड़ा दीं. मैं अपने टूटे सपने की त्रासदी को शायद झेल नहीं पाया. वह उजागर हो गईर्.

‘‘साहब, लगता है आप अपनी बेटी की शादी के बारे में चिंतित हैं. अगर कहें तो…’’ कहतेकहते कुमार रुक गया.

अब कहने के लिए बचा ही क्या है?

मैं मोहभंग, विषादग्रस्त सा बैठा रहा.

‘‘साहब, क्या आप अपनी बेटी का रिश्ता विदेश में कार्य कर रहे एक इंजीनियर से करना पसंद करेंगे?’’ कुमार के स्वर में संकोच था.

अंधा क्या चाहे दो आंखें. कुमार की बात सुन मैं हतप्रभ रह गया. तत्काल कोई             प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सका.

‘‘साहब, कुछ लोग अपनी बेटियों को विदेश भेजने से कतराते हैं. पर आज के जेट युग में दूरी का क्या महत्त्व? आप कनाडा से दिल्ली, मैसूर से दिल्ली की अपेक्षा जल्दी पहुंच सकते हैं.’’

मेरे अंतर के सागर में उल्लास का ज्वार उठ रहा था, परंतु आवेग पर अंकुश रख, मैं ने शांत स्वर में पूछा, ‘‘कोई लड़का तुम्हारी नजर में  है? क्या करता है? किस परिवार का है? किस देश में है?’’

‘‘साहब, मेरे कालिज के जमाने का एक दोस्त है. हम मैसूर में साथसाथ पढ़ते थे. करीब 5 साल पहले वह कनाडा चला गया था. वहीं पढ़ा और आज अंतरिक्ष इंजीनियर है. 70 हजार रुपए मासिक वेतन पाता है. परसों वह भारत आया है. 3 सप्ताह रहेगा. इस बार वह शादी कर के ही लौटना चाहता है.’’

मेरी बाछें खिल गईं. मुझे लगा, कुमार ने खुल जा सिमसिम कहा. खजाने का द्वार  खुला और मैं अंदर प्रवेश कर गया.

‘‘साहब, उस के परिवार के बारे में सुन कर आप अवश्य निराश होंगे. उस के मातापिता बचपन में ही चल बसे थे. चाचाजी ने पालपोस कर बड़ा किया. बड़े कष्ट, अभावों तथा ममताविहीन माहौैल में पला है वह.’’

‘‘ऐसे ही बच्चे प्रगति करते हैं. सुविधाभोगी तो बस, बिगड़ जाते हैं. कष्ट की अग्नि से तप कर ही बालक उन्नति करता है. 70 हजार, अरे, मारो गोली परिवार को. इतने वेतन में परिवार का क्या महत्त्व?’’

इधर कुमार का वार्त्ताक्रम चालू था, उधर मेरे अंतर में विचारधारा प्रवाहित हो रही थी, पर्वतीय निर्झर सी.

‘‘साहब, लगता है आप तो सोच में डूब गए हैं. घर पर पत्नी से सलाह कर लीजिए न. आप नरेश को देखना चाहें तो मैं…’’

बिजली की सी गति से मैं ने निर्णय कर लिया. बोला, ‘‘कुमार, तुम आज शाम को नरेश के साथ चाय पीने घर क्यों नहीं आ जाते?’’

‘‘ठीक है साहब,’’ कुमार ने अपनी स्वीकृति दी.

‘‘क्या तुम्हारे पास ही टिका है वह?’’

‘‘अरे, नहीं साहब, मेरे घर को तो खोली कहता है. वह मुंबई में होता है तो ताज में ठहरता है.’’

मैं हीनभावना से ग्रस्त हो गया. कहीं मेरे घर को चाल या झुग्गी की संज्ञा तो नहीं देगा.

‘‘ठीक  है, कुमार. हम ठीक 6 बजे तुम लोगों का इंतजार करेंगे,’’ मैं ने कहा.

मेरा अभिवादन कर कुमार चला गया. तत्पश्चात मैं ने तुरंत शांति से फोन पर संपर्क किया. उसे यह खुशखबरी सुनाई. शाम को शानदार पार्टी के आयोजन के संबंध में आदेश दिए. हांगकांग से मंगवाए टी सेट को निकालने की सलाह दी.

शाम को वे दोनों ठीक समय पर घर पहुंच गए.

हम तीनों अर्थात मैं, शांति औैर सुमन,  नरेश को देख मंत्रमुग्ध रह गए. मूंगिया रंग का शानदार सफारी सूट पहने वह कैसा सुदर्शन लग रहा था. लंबा कद, छरहरा शरीर, रूखे किंतु कलात्मक रूप से सेट बाल. नारियल की आकृति वाला, तीखे नाकनक्श युक्त चेहरा. लंबी, सुती नाक और सब से बड़ा आकर्षक थीं उस की कोवलम बीच के हलके नीले रंग के सागर जल सी आंखें.

बातों का सैलाब उमड़ पड़ा. चायनाश्ते का दौर चल रहा था. नरेश बेहद बातूनी था. वह कनाडा के किस्से सुना रहा था. साथ ही साथ वह सुमन से कई अंतरंग प्रश्न भी पूछता जा रहा था.

मैं महसूस कर रहा था कि नरेश ने सुमन को पसंद कर लिया है. नापसंदगी का कोईर् आधार भी तो नहीं है. सुमन सुंदर है. कानवेंट में पढ़ी  है. आजकल के सलीके उसे आते हैं. कार्यशील है. उस का पिता एक सरकारी वैज्ञानिक संगठन में उच्च प्रशासकीय अधिकारी है. फिर और क्या चाहिए उसे?

लगभग 8 बजे शांति ने विवेक- शीलता का परिचय देते हुए कहा, ‘‘नरेश बेटे, अब तो खाने का समय हो चला है. रात के खाने के लिए रुक सको तो हमें खुशी होगी.’’

‘‘नहीं, मांजी, आज तो नहीं, फिर कभी सही. आज करीब 9 बजे एक औैर सज्जन होटल में मिलने आ रहे हैं,’’ नरेश ने शांत स्वर में कहा.

‘‘क्या इसी सिलसिले में?’’ शांति ने घबरा कर पूछा.

‘‘हां, मांजी. मेरी समझ में नहीं आता, इस देश में विदेश में बसे लड़कों की इतनी ललक क्यों है? जिसे देखो, वही भाग रहा है हमारे पीछे. जोंक की तरह चिपक जाते हैं लोग.’’

हम लोगों के चेहरे उतर गए. तत्काल नरेश संभल गया. क्षमायाचना करते हुए बोला, ‘‘माफ कीजिएगा, आप लोगों का अपमान करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, फिर आप लोग तो उन में से हैं भी नहीं…वह तो कुमार ने आप को मजबूर  कर दिया वरना आप कब सुमनजी को सात समुंदर पार भेजने वाले थे.’’

हम सहज हो गए, परंतु शांति के अंतर्मन में कोई चोर भावना सिर उठा रही थी. शायद वह नरेश को अधिकांश मुंबइया फिल्मों का वह बेशकीमती हीरा समझ रही थी जिसे हर तस्कर चुरा कर भाग जाना चाहता था. व्यावहारिकता का तकाजा था वह, इसलिए जैसे ही नरेश जाने के लिए उठा, शांति ने फटाक से सीधासीधा प्रश्न उछाल दिया, ‘‘बेटा, सुमन पसंद आई?’’

‘‘इन्हें तो कोई मूर्ख ही नापसंद करेगा,’’ नरेश ने तत्काल उत्तर दिया.

सुमन लाज से लाल हो गई. वह सीधी अपने कमरे में गई और औंधी लेट गई.

‘‘फिर तो बेटे, मुंह मीठा करो,’’ कह कर शांति ने खाने की मेज से रसगुल्ला उठाया और नरेश के मुंह में ठूंस दिया.

घर में बासंती उत्सव सा माहौल छा गया. कुमार के चेहरे पर चमक थी. नरेश के मुख पर संतोष और हम दोनों के मुख दोपहर की तेज धूप से दमक रहे थे.

‘‘अब आगे कैसे चलना है? तुम तो शायद सिर्फ 3 सप्ताह के लिए ही आए हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अब जब लड़की मिल गई तो मैं 2-3 हफ्ते के लिए अपनी छुट्टी बढ़वा लूंगा. हनीमून मैं कनाडा की जगह कश्मीर में मनाना पसंद करूंगा. एक बात और पिताजी, शादी एकदम सादी. व्यर्थ का एक पैसा भी खर्च नहीं होगा. न ही आप कोई दहेज खरीदेंगे. कनाडा में अपना खुद का सुसज्जित मकान है. घरेलू उपकरण खरीदना बेकार है. एक छोटी सी पार्टी दे दें, बस.’’

‘‘पंडितजी से मुहूर्त निकलवा लें?’’

‘‘अभी नहीं, मांजी.’’

हम दोनों अभिभूत थे. नरेश ने हमें मां औैर  पिताजी कह कर पुकारना शुरू कर दिया था. किंतु उस की अंतिम बात ने हमें चौंका दिया.

‘‘क्यों बेटे?’’

‘‘मैं कल बंगलौर जा रहा हूं. जरा अपने चाचाचाची से भी पूछ लूं. बस, औपचारिकता है. बड़े हैं, उन्हीं ने पाला- पोसा है. वे तो यह सब जान कर खुश होंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

और वे दोनों चले गए. पीछे छोड़ गए महान उपलब्धि की भीनीभीनी सुगंध.

सुमन अपने कमरे से निकली. पहली बार उस के मुंह से एक रहस्योद्घाटन हुआ. जब शांति ने सुमन से नरेश के बारे में उस की राय जाननी चाही तो उस ने अपने मन की गांठ खोल दी.

सुमन और एक नवयुवक कुसुमाकर का प्रेम चल रहा था. कुसुमाकर लेखक था. वह रेडियो के लिए नाटक तथा गीत लिखता था. इसी संबंध में वह सुमन के समीप आ गया. सुमन ने तो मन ही मन उस से विवाह करने का फैसला भी कर लिया था, पर अब नरेश को देख उस ने अपना विचार बदल दिया. उस ने शांति के सामने स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया. नरेश जैसे सागर के सामने कुसुमाकर तो गांव के गंदले पानी की तलैया जैसा है.

नरेश मैसूर से लौट आया. उस ने घर आ कर यह खुशखबरी सुनाई कि उस के चाचाचाची इस संबंध  से सहमत हैं. शांति ने शानदार खाना बनाया. नरेश ने डट कर खाया, शादी की तारीख के बारे में बात चली तो नरेश बोला, ‘‘कुमार से सलाह कर के…’’

शांति ने उस की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘उसे छोड़ो. बिचौलियों का रोल लड़के को लड़की पसंद आने तक होता है. उस के बाद तो दोनों पक्षों को सीधी बात करनी चाहिए. मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं.’’

नरेश हंस पड़ा. मैं शांति के विवेक का लोहा मान गया. थोड़े से विचारविमर्श के बाद 20 अक्तूबर की तिथि तय हो गई. सुबह कोर्ट  में शादी, दोपहर को एक होटल में दोनों पक्षों के चुनिंदा व्यक्तियों का भोजन, बस.

हमें क्या आपत्ति होनी थी.

तीसरे  दिन नरेश का फोन आया. उस ने अपने हनीमून मनाने और कनाडा वापस जाने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया था. उस ने बड़ी दबी जबान से 50 हजार रुपए की मांग की. कश्मीर का खर्चा. कनाडा जाने के 2 टिकट और उस के चाचाचाची तथा उन के बच्चों के लिए कपड़े  और उपहार. इन 3 मदों पर इतने रुपए तो खर्च हो ही जाने थे.

मैं थोड़ा सा झिझका तो उस ने तत्काल मेरी शंका का निवारण करते हुए कहा, ‘‘पिताजी, निश्चित नहीं था कि इस ट्रिप में मामला पट जाएगा, इसलिए ज्यादा पैसा ले कर नहीं  चला. कनाडा पहुंचते ही आप को 50 हजार की विदेशी मुद्रा भेज दूंगा. उस से आप कार, स्कूटर या घर कुछ भी बुक करा देना.’’

‘‘ठीक है, बेटे,’’ मैं ने कह दिया.

फोन बंद कर के मैं ने यह समस्या शांति के सामने रखी तो वह तत्काल बोली, ‘‘तुरंत दो उसे 50 हजार रुपए. वह विदेशी मुद्रा न भी भेजे तो क्या है. किसी हिंदुस्तानी लड़के से शादी करते तो इतना तो नकद दहेज में देना पड़ता. दावत, कपड़े, जेवर और अन्य उपहारों पर अलग खर्चा होता. इस से सस्ता सौदा औैर कहां मिलेगा.’’

मैं ने दफ्तर में भविष्यनिधि से रुपए निकाले और तीसरे दिन ताजमहल होटल के उस कमरे में नरेश से मिला और उसे 50 हजार रुपए दे दिए.

उस के बाद मैं ने एक पांचसितारा होटल में 100 व्यक्तियों का दोपहर का भोजन बुक करा दिया. निमंत्रणपत्र भी छपने दे दिए.

सुमन और शांति शादी के लिए थोड़ी साडि़यां और जेवर खरीदने में जुट गईं. बेटी को कुछ तो देना ही था.

लगभग 10 अक्तूबर की बात है. नरेश का फोन आया कि वह 3 दिन के लिए किसी आवश्यक काम से दिल्ली जा रहा है. लौट कर वह भी सुमन के साथ खरीदारी करेगा.

सुमन ने नरेश को मुंबई हवाई अड्डे पर दिल्ली जाने के लिए विदा किया.

2 महीने बीत गए हैं, नरेश नहीं लौटा है. 20 अक्तूबर कभी की बीत गई है. निमंत्रणपत्र छप गए थे किंतु सौभाग्यवश मैं ने उन्हें वितरित नहीं किया था.

मैं ने ताज होटल से पता किया. नरेश नाम का कोई व्यक्ति वहां ठहरा ही नहीं था. फिर उस ने किस के कमरे में बुला कर मुझ से 50 हजार रुपए लिए? एक रहस्य ही बना रहा.

मैं ने कुमार को बुलाया. उसे सारा किस्सा सुनाया तो उस ने ठंडे स्वर में कहा,  ‘‘मैं कह नहीं सकता, मेरे मित्र ने आप के साथ यह धोखा क्यों किया? लेकिन आप लोगों ने एक ही मीटिंग के बाद मेरा पत्ता साफ कर दिया. उसे रुपए देने से पहले मुझ से पूछा तो होता. अब मैं क्या कर सकता हूं.’’

‘‘वैसे मुझे एक बात पता चली है. उस के चाचाचाची कब के मर चुके हैं. समझ में नहीं आया, यह सब कैसे हो गया?’’

मेरे सिर से विदेशी दामाद का भूत उतर चुका है. मैं यह समझ गया हूं कि आज के पढ़ेलिखे किंतु बेरोजगार नवयुवक हम लोगों की इस कमजोरी का खूब फायदा उठा रहे हैं.

आज तक तो यही सुनते थे कि विदेशी दामाद लड़की को ले जा कर कोई न कोई विश्वासघात करते हैं पर नरेश ने तो मेरी आंखें ही खोल दीं.

रही सुमन, सो प्रथम आघात को आत्मसात करने में उसे कुछ दिन लगे. बाद में शांति के माध्यम से मुझे पता चला कि वह और कुसुमाकर फिर से मिलने लगे हैं.

यदि वे दोनों विवाह करने के लिए सहमत हों तो मैं कोई हस्तक्षेप नहीं करूंगा.

कुसुम गुप्ता

Latest Hindi Stories : सासुजी हों तो हमारी जैसी

Latest Hindi Stories :  पत्नीजी का खुश होना तो लाजिमी था, क्योंकि उन की मम्मीजी का फोन आया था कि वे आ रही हैं. मेरे दुख का कारण यह नहीं था कि मेरी सासुजी आ रही हैं, बल्कि दुख का कारण था कि वे अपनी सोरायसिस बीमारी के इलाज के लिए यहां आ रही हैं. यह चर्मरोग उन की हथेली में पिछले 3 वर्षों से है, जो ढेर सारे इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो पाया.

अचानक किसी सिरफिरे ने हमारी पत्नी को बताया कि पहाड़ी क्षेत्र में एक व्यक्ति देशी दवाइयां देता है, जिस से बरसों पुराने रोग ठीक हो जाते हैं.

परिणामस्वरूप बिना हमारी जानकारी के पत्नीजी ने मम्मीजी को बुलवा लिया था. यदि किसी दवाई से फायदा नहीं होता तो भी घूमनाफिरना तो हो ही जाता. वह  तो जब उन के आने की पक्की सूचना आई तब मालूम हुआ कि वे क्यों आ रही हैं?

यही हमारे दुख का कारण था कि उन्हें ले कर हमें पहाड़ों में उस देशी दवाई वाले को खोजने के लिए जाना होगा, पहाड़ों पर भटकना होगा, जहां हम कभी गए नहीं, वहां जाना होगा. हम औफिस का काम करेंगे या उस नालायक पहाड़ी वैद्य को खोजेंगे. उन के आने की अब पक्की सूचना फैल चुकी थी, इसलिए मैं बहुत परेशान था. लेकिन पत्नी से अपनी क्या व्यथा कहता?

निश्चित दिन पत्नीजी ने बताया कि सुबह मम्मीजी आ रही हैं, जिस के चलते मुझे जल्दी उठना पड़ा और उन्हें लेने स्टेशन जाना पड़ा. कड़कती सर्दी में बाइक चलाते हुए मैं वहां पहुंचा. सासुजी से मिला, उन्होंने बत्तीसी दिखाते हुए मुझे आशीर्वाद दिया.

हम ने उन से बाइक पर बैठने को कहा तो उन्होंने कड़कती सर्दी में बैठने से मना कर दिया. वे टैक्सी से आईं और पूरे 450 रुपए का भुगतान हम ने किया. हम मन ही मन सोच रहे थे कि न जाने कब जाएंगी?

घर पहुंचे तो गरमागरम नाश्ता तैयार था. वैसे सर्दी में हम ही नाश्ता तैयार करते थे. पत्नी को ठंड से एलर्जी थी, लेकिन आज एलर्जी न जाने कहां जा चुकी थी. थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद उन्होंने अपने चर्म रोग को मेरे सामने रखते हुए हथेलियों को आगे बढ़ाया. हाथों में से मवाद निकल रहा था, हथेलियां कटीफटी थीं.

‘‘बहुत तकलीफ है, जैसे ही इस ने बताया मैं तुरंत आ गई.’’

‘‘सच में, मम्मी 100 प्रतिशत आराम मिल जाएगा,’’ बड़े उत्साह से पत्नीजी ने कहा.

दोपहर में हमें एक परचे पर एक पहाड़ी वैद्य झुमरूलाल का पता उन्होंने दिया. मैं ने उस नामपते की खोज की. मालूम हुआ कि एक पहाड़ी गांव है, जहां पैदल यात्रा कर के पहुंचना होगा, क्योंकि सड़क न होने के कारण वहां कोई भी वाहन नहीं जाता. औफिस में औडिट चल रहा था. मैं अपनी व्यथा क्या कहता. मैं ने पत्नी से कहा, ‘‘आज तो रैस्ट कर लो, कल देखते हैं क्या कर सकते हैं.’’

वह और सासुजी आराम करने कमरे में चली गईं. थोड़ी ही देर में अचानक जोर से कुछ टूटने की आवाज आइ. हम तो घबरा गए. देखा तो एक गेंद हमारी खिड़की तोड़ कर टीवी के पास गोलगोल चक्कर लगा रही थी. घर की घंटी बजी, महल्ले के 2-3 बच्चे आ गए. ‘‘अंकलजी, गेंद दे दीजिए.’’

अब उन पर क्या गुस्सा करते. गेंद तो दे दी, लेकिन परदे के पीछे से आग्नेय नेत्रों से सासुजी को देख कर हम समझ गए थे कि वे बहुत नाराज हो गईर् हैं. खैर, पानी में रह कर मगर से क्या बैर करते.

अगले दिन हम ने पत्नीजी को चपरासी के साथ सासुजी को ले कर पहाड़ी वैद्य झुमरूलाल के पास भेज दिया. देररात वे थकी हुई लौटीं, लेकिन खुश थीं कि आखिर वह वैद्य मिल गया था. ढेर सारी जड़ीबूटी, छाल से लदी हुई वे लौटी थीं. इतनी थकी हुई थीं कि कोई भी यात्रा वृत्तांत उन्होंने मुझे नहीं बताया और गहरी नींद में सो गईं. सुबह मेरी नींद खुली तो अजीब सी बदबू घर में आ रही थी.

उठ कर देखने गया तो देखा, मांबेटी दोनों गैस पर एक पतीले में कुछ उबाल रही थीं. उसी की यह बदबू चारों ओर फैल रही थी. मैं ने नाक पर रूमाल रखा, निकल कर जा ही रहा था कि पत्नी ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप आ गए.’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’

‘‘कुछ सूखी लकडि़यां, एक छोटी मटकी और ईंटे ले कर आ जाना.’’

‘‘क्यों?’’ मेरा दिल जोरों से धड़क उठा. ये सब सामान तो आखिरी समय मंगाया जाता है?

पत्नी ने कहा, ‘‘कुछ जड़ों का भस्म तैयार करना है.’’

औफिस जाते समय ये सब फालतू सामान खोजने में एक घंटे का समय लग गया था. अगले दिन रविवार था. हम थोड़ी देर बाद उठे. बिस्तर से उठ कर बाहर जाएं या नहीं, सोच रहे थे कि महल्ले के बच्चों की आवाज कानों में पड़ी, ‘‘भूत, भूत…’’

हम ने सुना तो हम भी घबरा गए. जहां से आवाज आ रही थी, उस दिशा में भागे तो देखा आंगन में काले रंग का भूत खड़ा था? हम ने भी डर कर भूतभूत कहा. तब अचानक उस भूतनी ने कहा, ‘‘दामादजी, ये तो मैं हूं.’’

‘‘वो…वो…भूत…’’

‘‘अरे, बच्चों की गेंद अंदर आ गईर् थी, मैं सोच रही थी क्या करूं? तभी उन्होंने दीवार पर चढ़ कर देखा, मैं भस्म लगा कर धूप ले रही थी. वे भूतभूत चिल्ला उठे, गेंद वह देखो पड़ी है.’’ हम ने गेंद देखी. हम ने गेंद ली और देने को बाहर निकले तो बच्चे दूर खड़े डरेसहमे हुए थे. उन्होंने वहीं से कान पकड़ कर कहा, ‘‘अंकलजी, आज के बाद कभी आप के घर के पास नहीं खेलेंगे,’’ वे सब काफी डरे हुए थे.

हम ने गेंद उन्हें दे दी, वे चले गए. लेकिन बच्चों ने फिर हमारे घर के पास दोबारा खेलने की हिम्मत नहीं दिखाई.

महल्ले में चोरी की वारदातें भी बढ़ गई थीं. पहाड़ी वैद्य ने हाथों पर यानी हथेलियों पर कोई लेप रात को लगाने को दिया था, जो बहुत चिकना, गोंद से भी ज्यादा चिपकने वाला था. वह सुबह गाय के दूध से धोने के बाद ही छूटता था. उस लेप को हथेलियों से निकालने के लिए मजबूरी में गाय के दूध को प्रतिदिन मुझे लेने जाना होता था.

न जाने वे कब जाएंगी? मैं यह मुंह पर तो कह नहीं सकता था, क्यों किसी तरह का विवाद खड़ा करूं?

रात में मैं सो रहा था कि अचानक पड़ोस से शोर आया, ‘चोरचोर,’ हम घबरा कर उठ बैठे. हमें लगा कि बालकनी में कोई जोर से कूदा. हम ने भी घबरा कर चोरचोर चीखना शुरू कर दिया. हमारी आवाज सासुजी के कानों में पहुंची होगी, वे भी जोरों से पत्नी के साथ समवेत स्वर में चीखने लगीं, ‘‘दामादजी, चोर…’’

महल्ले के लोग, जो चोर को पकड़ने के लिए पड़ोसी के घर में इकट्ठा हुए थे, हमारे घर की ओर आ गए, जहां सासुजी चीख रही थीं, ‘‘दामादजी, चोर…’’ हम ने दरवाजा खोला, पूरे महल्ले वालों ने घर को घेर लिया था.

हम ने उन्हें बताया, ‘‘हम जो चीखे थे उस के चलते सासुजी भी चीखचीख कर, ‘दामादजी, चोर’ का शोर बुलंद कर रही हैं.’’

हम अभी समझा ही रहे थे कि पत्नीजी दौड़ती, गिरतीपड़ती आ गईं. हमें देख कर उठीं, ‘‘चोर…चोर…’’

‘‘कहां का चोर?’’ मैं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘कमरे में चोर है?’’

‘‘क्या बात कर रही हो?’’

‘‘हां, सच कह रही हूं?’’

‘‘अंदर क्या कर रहा है?’’

‘‘मम्मी ने पकड़ रखा है,’’ उस ने डरतेसहमते कहा.

हम 2-3 महल्ले वालों के साथ कमरे में दाखिल हुए. वहां का जो नजारा देखा तो हम भौचक्के रह गए. सासुजी के हाथों में चोर था, उस चोर को उस का साथी सासुजी से छुड़वा रहा था. सासुजी उसे छोड़ नहीं रही थीं और बेहोश हो गई थीं. हमें आया देख चोर को छुड़वाने की कोशिश कर रहे चोर के साथी ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर सरैंडर कर दिया. वह जोरों से रोने लगा और कहने लगा, ‘‘सरजी, मेरे साथी को अम्माजी के पंजों से बचा लें.’’

हम ने ध्यान से देखा, सासुजी के दोनों हाथ चोर की छाती से चिपके हुए थे. पहाड़ी वैद्य की दवाई हथेलियों में लगी थी, वे शायद चोर को धक्का मार रही थीं कि दोनों हथेलियां चोर की छाती से चिपक गई थीं. हथेलियां ऐसी चिपकीं कि चोर क्या, चोर के बाप से भी वे नहीं छूट रही थीं. सासुजी थक कर, डर कर बेहोश हो गई थीं. वे अनारकली की तरह फिल्म ‘मुगलेआजम’ के सलीम के गले में लटकी हुई सी लग रही थीं. वह बेचारा बेबस हो कर जोरजोर से रो रहा था.

अगले दिन अखबारों में उन के करिश्मे का वर्णन फोटो सहित आया, देख कर हम धन्य हो गए. आश्चर्य तो हमें तब हुआ जब पता चला कि हमारी सासुजी की वह लाइलाज बीमारी भी ठीक हो गई थी. पहाड़ी वैद्य झुमरूलालजी के अनुसार, हाथों के पूरे बैक्टीरिया चोर की छाती में जा पहुंचे थे.

यदि शहर में आप को कोई छाती पर खुजलाता, परेशान व्यक्ति दिखाई दे तो तुरंत समझ लीजिए कि वह हमारी सासुजी द्वारा दी गई बीमारी का मरीज है. हां, चोर गिरोह के पकड़े जाने से हमारी सासुजी के साथ हमारी साख भी पूरे शहर में बन गई थी. ऐसी सासुजी पा कर हम धन्य हो गए थे.

Latest Hindi Stories : आहटें

Latest Hindi Stories : पड़ोस के घर की घंटी की आवाज सुनते ही शिखा लगभग दौड़ती हुई दरवाजे के पास गई और फिर परदे की ओट कर बाहर झांकने लगी. अपने हिसाबकिताब में व्यस्त सुधीर को शिखा की यह हरकत बड़ी शर्मनाक लगी. वह पहले भी कई बार शिखा को उस की इसी आदत पर टोक चुका है, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आती.  ज्यों ही आसपास के किसी के घर की घंटी बजती शिखा के कान खड़े हो जाते. कौन किस से मिलजुल रहा है, किस पतिपत्नी में कैसा बरताव चल रहा है, इस की पूरी जानकारी रखने का मानो शिखा ने ठेका ले रखा हो.

सुधीर ने कभी ऐसी मनोवृत्ति वाली पत्नी की कामना नहीं की थी. अपना दर्द किस से कहे वह… कभी प्रेम से, कभी तलखी से झिड़कता जरूर है, ‘‘क्या शिखा, तुम भी हमेशा पासपड़ोसियों के घरों की आहटें लेने में लगी रहती हो… अपने घर में दिलचस्पी रखो जरा ताकि घर घर जैसा लगे…’’  सुधीर की लाई तमाम पत्रपत्रिकाएं मेज पर पड़ी शिखा का मुंह ताकती रहतीं.. शिखा अपनी आंखें ताकझांक में ही गड़ाए रखती.

मगर आज तो सुधीर शिखा की इस हरकत पर आगबबूला हो उठा और फिर परदा इतनी जोर से खींचा कि रौड सहित गिर गया.  ‘‘लो, अब ज्यादा साफ नजर आएगा,’’ सुधीर गुस्से से बोला.

शिखा अचकचा कर द्वार से हट गई. देखना तो दूर वह तो अनुमान भी न लगा पाई कि जतिन के घर कौन आया और क्योंकर आया.  सुधीर के क्रोध से कुछ सहमी जरूर, पर झेंप मिटाने हेतु मुसकराने लगी. सुधीर का मूड उखड़ चुका था. उस ने अपने कागज समेट कर अलमारी में रखे और तैयार होने लगा.

शिखा उसे तैयार होते देख चुप न रह सकी. पूछा, ‘‘अब इस वक्त कहां जा रहे हो? शाम को मूवी देखने चलना है या नहीं?’’

‘‘तुम तैयार रहना… मैं आ जाऊंगा वक्त पर,’’ कह कर सुधीर कहां जा रहा है, बताए बिना गाड़ी स्टार्ट कर निकल गया.

गुस्से से भरा कुछ देर तो सुधीर यों ही सड़क पर गाड़ी दौड़ाता रहा. वह मानता है कि थोड़ीबहुत ताकझांक की आदत प्राय: प्रत्येक व्यक्ति में होती है पर शिखा ने तो हद कर रखी है. 1-2 बार उसे ताना भी मारा कि इतनी मुस्तैदी से अगर किसी अखबार में न्यूज देती तो प्रतिष्ठित संवाददाता बन जाती. लेकिन शिखा पर किसी शिक्षा का असर ही नहीं पड़ता था.  पिछले हफ्ते की ही बात है. वह शाम को औफिस से काफी देर से लौटा था. वह ज्यों ही घर में घुसा कि कुछ देर में ही शिखा का रिकौर्ड शुरू हो गया. बच्चों को पुलाव खिला कर सुला चुकी थी. उस के सामने भी दही, अचार, पुलाव रख शुरू कर दिया राग, ‘‘आजकल अमनजी औफिस से 1-2 घंटे पहले ही घर आ जाते हैं. मेरा ध्यान तो काफी पहले चला गया था इस बात पर… इधर उन की माताजी प्रवचन सुनने गईं और उधर से उन की गाड़ी गेट में घुसती. दोनों लड़कियां तो स्कूल से सीधे कोचिंग चली जाती हैं और 7 बजे तक लौटती हैं… अमनजी के घर में घुसते ही दरवाजेखिड़कियां बंद…’’

‘‘अरे बाबा मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है दूसरों के दरवाजों में… तुम पापड़ तल कर दे सको तो दे दो.’’  सुधीर की नाराजगी देख शिखा को चुप हो जाना पड़ा वरना वह आगे भी बोलती.

खाना खा कर सुधीर टीवी देखने लगा. शिखा रसोई निबटा कर उस के पास आ कर बैठी तो सुधीर को बड़ा सुखकर लगा. छोटी सी गृहस्थी जोड़ ली है उस ने… शिखा भी पढ़ीलिखी है. अगर यह भी अपने समय का सदुपयोग करना शुरू कर दे तो घर में अतिरिक्त आय तो होगी ही खाली समय में इधरउधर ताकनेझांकने की आदत भी छूट जाएगी.  ‘धीरेधीरे स्वयं समझ जाएगी,’ सोचते हुए सुधीर भावुकता में शिखा को गले लगाने के लिए उठा ही था कि शिखा चहक उठी, ‘‘अरे यार, वह अमनजी का किस्सा तो अधूरा ही रह गया… मैं समझ तो गई थी पर आज पूरा राज खुल गया… खुद उन की पत्नी आशा ने बताया नेहा को कि लड़कियां बड़ी हो गई हैं… तो एकांत पाने का यह उपाय खोजा है अमनजी ने…’’ कह कर शिखा ने ऐसी विजयी मुसकान फेंकी मानो किला जीत लिया हो.

किंतु सुन कर सुधीर ने तो सिर थाम लिया अपना. उस ने ऐसी पत्नी की भी कल्पना नहीं की थी. वह तो आज भी यही चाहता है उस की शिखा परिवार के प्रति समर्पण भाव रखते हुए पासपड़ोसियों का भी खयाल रखे, उन के सुखदुख में शामिल हो. पर यह नामुमकिन था.  नामुमकिन शब्द सुधीर को हथौड़े सा लगा. ‘भरपूर प्रयास करने  पर तो हर समस्या का हल निकल आता है,’ सोच कर सुधीर को कुछ राहत मिली. उस ने घड़ी देखी. शो का वक्त हो चुका था, मगर आज शिखा के नाम से चिढ़ा था…  सुधीर घर न जा कर एक महंगे रेस्तरां में अकेला जा बैठा. रविवार होने की वजह से ज्यादातर लोग बीवीबच्चों के संग थे… उसे अपना अकेलापन कांटे सा चुभा… बैठे या निकल ले सोच ही रहा था कि नजरें कोने की टेबल पर पड़ते ही सकपका गया. उस के पड़ोसी दस्तूर अपनी पत्नी और बेटी के संग बैठे खानेपीने में मशगूल थे. सुधीर तृषित नजरों से क्षण भर उस परिवार को देखता रह गया.

सुधीर और दस्तूर एक ही संस्थान में तो हैं, साथ में पड़ोसी होने की वजह से बातचीत, आनाजाना भी है. मगर शिखा को दस्तूर परिवार फूटी आंख नहीं सुहाता है. दस्तूर की पत्नी अर्चना से तो ढेरों शिकायतें हैं उसे कि क्या पता दिन भर घर में घुसेघुसे क्या करती रहती है… औरतों से भी मिलेगी तब भी एकदम औपचारिक… मजाल उस के अंतरंग क्षणों का एक भी किस्सा कोई उगलवा सके… ऐसी बातों पर एकदम चुप.

इस के विपरीत सुधीर अर्चना का काफी सम्मान करता है. विवाह से पूर्व वे शिक्षिका थीं और आज एक सफल गृहिणी हैं. लेकिन शिखा ने उन्हें भी नहीं छोड़ा. शिखा के खाली और शैतानी दिमाग से सुधीर भीतर ही भीतर कुंठित हो चला था. इसीलिए दस्तूर दंपती से नजरें चुराता वह रेस्तरां से बाहर निकल आया. रात के 9 बज रहे थे पर उस का मन घर जाने को नहीं कर रहा था. करीब 11 बजे घर पहुंचा ही था कि घंटी बजाते ही शिखा ने द्वार खोल प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

सुधीर आज कुछ तय कर के ही लौटा था. अत: चुपचाप कपड़े बदलता रहा. शिखा परेशान सी उस के आगेपीछे घूम रही थी, ‘‘जब कोई और प्रोग्राम था तो मुझे क्यों बहलाया कि शाम को पिक्चर चलेंगे… किस के साथ थे पूरी शाम?’’

‘‘बस यों समझ लो कि अर्चनाजी के संग था पूरी शाम.’’

शिखा उसे अवाक देखती रह गई. सुधीर भी देख रहा था. वह अभी तक सजीसंवरी कीमती साड़ी में ही थी. सुधीर को अच्छा लगा उसे यों तैयार देख कर, पर स्वयं पर नियंत्रण रख वह सोफे पर बैठा रहा.

‘‘शिखा, तुम ने ही तो अर्चना के बारे में इतनी बातें बताईं कि उन्हें पास से देखने का… यानी तुम्हारे मुताबिक उन के लटकेझटके देखने का कई दिनों से बड़ा मन होने लगा था… आज मौका मिल गया तो क्यों छोड़ता. वे सब भी उसी रेस्तरां में थे… वाकई मैं तो उन की सुखी व शालीनता भरी आंखों में खो गया… इतनी देर मैं उन्हीं के सामने की मेज पर बैठा रहा, पर उन्हें अपने पति व बेटी से फुरसत ही नहीं मिली, अगलबगल ताकनेझांकने की… मुझे ही क्या उन्होंने तो किसी को भी नजर उठा कर नहीं देखा… अपने में ही मस्तव्यस्त… मुझे तो बड़ा अजीब लगा. अरे, कम से कम मुझे अकेला बैठा देख पूछतीं तो कि मैं अकेला क्यों? पर मेरी तरफ ध्यान ही नहीं… पर मैं ने खूब ध्यान से देखा उन्हें… अर्चना साड़ी बड़ी खूबसूरती से बांधती हैं… और साड़ी में लग भी बहुत अच्छी रही थीं.’’

सुधीर की बातें सुन शिखा का मन रोने को हो आया. वह दूसरे कमरे में जाने लगी तो सुधीर भी चल पड़ा, ‘‘अब एकाध दिन आशा… शैली… नेहा… इन सब को भी नजदीक से देखना है.’’ जब शिखा की बरदाश्त से बाहर हो गया तो उस ने रोना शुरू कर दिया. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि नितांत एकांत क्षणों में उस के साथ होने के बावजूद सुधीर पराई स्त्रियों के रूपशृंगार की बात कर सकता है. दूसरों के घरों की आहटें लेने में वह इतनी तल्लीन थी कि उसे खयाल ही नहीं रहा कि उस की इस हरकत पर कभी उस के ही घर में इतना बड़ा धमाका हो सकता है. आहटों से अनुमान लगाने में माहिर शिखा फूटफूट कर रो रही थी.

‘‘अब रोगा कर क्या पासपड़ोस को इकट्ठा करोगी… अर्चना से कुछ सबक लो…

उन्हें तो उस रात दस्तूर ने कई चांटे मारे थे फिर भी उफ न की थी उन्होंने,’’ सुधीर ने शिखा को मनाने के बजाय उसी का सुनाया किस्सा उसे याद दिला दिया.

उस रोज तो वह बिस्तर में ही था कि शिखा ने उसे यह खबर दी थी गुड मौर्निंग न्यूज की भांति. सुधीर जानता था कि आज भी दस्तूर को डीजल शेड नाइट इंसपैक्शन जाना है, मगर शिखा यों बता रही थी जैसे वही सब कुछ जानती हो, ‘‘तुम सोते रहो… पता भी है कल रात को क्या हुआ? दस्तूर साहब इंसपैक्शन कर के करीब 2 बजे रात को लौटे. मेरी नींद तो उन की गाड़ी रुकते ही खुल गई… बेचारे खूब हौर्न बजाते रहे… मगर घर में सन्नाटा. फिर देर तक घंटी बजाते रहे… मुझे तो लगता है मेरी क्या पूरे महल्ले की नींद खुल गई होगी, पर तुम्हारी अर्चना पता नहीं कितनी गहरी नींद में थी… क्या कर रही थी? बड़ी देर बाद दरवाजा खोला… मैं ने दरार में से झांक कर देखा था. दस्तूर साहब दरवाजे में ही खूब नाराज हो रहे थे. फिर जब कुछ देर बाद मैं ने अपने बैडरूम की खिड़की से उन के बैडरूम की आहट ली तो दस्तूर साहब के जोरजोर से बड़बड़ाने की आवाजें आ रही थीं और फिर चाटें मारने की आवाजें भी आईं…’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो सुबहसुबह…’’

सुधीर की बात काटते हुए शिखा और ढिठाई से बोली, ‘‘मैं ने खुद अपने कानों से चांटे की स्पष्ट आवाजें सुनी हैं… खुल गई न पोल तुम्हारी अर्चना की… बड़े फिदा हो न उस के सलीके, सुघड़ता और शालीनता पर…’’

सुधीर उस रोज वाकई स्तब्ध रह गया था. यों वह शिखा की बातें कभी गंभीरता से नहीं लेता था पर उस रोज मामला दस्तूर दंपती का था. दस्तूर दंपती जिन्हें वह काफी मानसम्मान देता है उन लोगों के बीच हाथापाई हो जाए चौंकाने वाली बात है. कोई भी सुसंस्कृत, सभ्य पुरुष अपनी पत्नी पर हाथ उठाए… ऐसा कभी हो सकता है और फिर दस्तूर साहब तो अपनी पत्नी व बेटी पर निछावर हैं. उस रोज इसी खलबली में औफिस पहुंचते ही मौका पा कर सुधीर दस्तूरजी के पास जा बैठा. चूंकि एकदम व्यक्तिगत प्रश्न तो किया नहीं जा सकता था, इसलिए औफिस… मौसम आदि की बातें करते हुए गरमी की परेशानी का जिक्र निकाल भेद लेने का पहला प्रयास किया, ‘‘एक बात है दस्तूर साहब… गरमी में नाइट ड्यूटी बढि़या रहती है… मस्त ठंडक… कूलकूल.’’

‘‘नाइट ड्यूटी… अरे नहीं भाई खुद की नींद खराब… फैमिली की नींद हराम… कल रात घर पहुंचा… परेशान हो गया.’’

दस्तूर की बात सुनते ही सुधीर उछल पड़ा, ‘‘क्यों क्या भाभीजी ने घर में नहीं घुसने दिया?’’

‘‘ऐसा होता तो मुझे मंजूर था पर वह भलीमानस एकडेढ़ बजे रात तक मेरा इंतजार करते पढ़ती रही. थक कर उस की झपकी लगी ही होगी कि मैं पहुंचा. दरवाजा देर से खुला तो घबरा ही गया था, क्योंकि बीपी की वजह से आजकल ज्यादा ही परेशान है. उसे सहीसलामत देख कर जान में जान आई.

‘‘खुशीखुशी बैडरूम में पहुंचा तो वहां का नजारा देख बहुत गुस्सा आया मांबेटी पर… बगैर मच्छरदानी लगाए दोनों सोतेजागते मेरी राह देख रही थीं. 10 मिनट तो कमरे में मच्छर मारने पड़े चटाचट… भई बीवीबच्चों को मच्छर काटें… ऐसी ठंडक में काम करने से तो गरमीउमस ही भली…’’

दस्तूर साहब की बातें सुन सुधीर पर घड़ों पानी पड़ गया. शिखा की सोच और अनुमान के आधार पर गढ़े किस्से पर उसे शर्मिंदगी महसूस होनी ही थी. शिखा से वह इतना विरक्त हो चला था कि औफिस से आ कर उस ने बताई तक नहीं यह बात… पर आज बताना ही पड़ा उस चटाचट का रहस्य.

सुन कर शिखा हतप्रभ सी सुधीर को देखती रह गई. वह क्या जवाब देती और किस मुंह से देती? सुधीर एक ही प्रश्न बारबार दोहराए जा रहा था, ‘‘अरे, जो आदमी अपनी पत्नी और बिटिया को मच्छर का काटना बरदाश्त नहीं कर सकता वह अपने हाथों से उन्हें चांटे मारेगा? बोलो शिखा मार सकता है?’’

शिखा अवाक थी. पूरे वातावरण में सन्नाटा पसर गया. दूरदूर तक उसे कोई  आहट सुनाई नहीं दे रही थी. उसे पति द्वारा दिखाए गए आईने में अपनी छवि देख वास्तव में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. उस ने मन ही मन ठान लिया कि अब वह पासपड़ोस की ताकझांक छोड़ कर अपने घर की साजसंभाल पर ही ध्यान देगी.  कुछ दिन तक तो शिखा अपने मन को मारने में कामयाब रही, पर फिर पुन: उसी राह पर चल पड़ी. ज्यों ही पति एवं बच्चे घर से निकलते, वह उन्हें गेट तक छोड़ने जाने के बहाने एक सरसरी निगाह कालोनी के छोर तक डाल ही लेती.

उस की ताकझांक की आदत को इस दीवाली पर एक और सुविधा भी मिल गई. दीवाली पर इस बार उन्हें दोगुना बोनस मिलने से खरीदारी का जोश भी ज्यादा था.  सुधीर और शिखा दोनों ने जम कर खरीदारी की. ड्राइंगरूम की सजावट पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया. सोफा कवर, कुशन, बैडशीट्स तो नए खरीदे ही, शिखा ने स्टोर पर जैसे ही नैट के परदे देखे वह लुभावने परदों पर मर मिटी और परदों का पूरा सैट ले आई. दीवाली पर जिस ने उस के घर की सजावट देखी, तारीफ की. शिखा तो तारीफ सुन कर 7वें आसमान पर थी. एक खासीयत यह थी कि अब शिखा को सड़क का नजारा या पड़ोसियों के गेट की आहट लेने के लिए दरवाजेखिड़की की आड़ में छिपछिप कर उचकउचक कर देखने की मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी, क्योंकि अब खिड़कीदरवाजों पर जालीदार परदे जो डले थे. इन परदों के पीछे खड़े हो कर वह आराम से बाहर देख सकती थी, किंतु बाहर के व्यक्ति को भनक भी नहीं मिल पाती कि परदे की आड़ में खड़ा कोई उन पर निगरानी कर रहा है.

हां, शिखा को इन परदों से रात को थोड़ी असुविधा होती थी, क्योंकि शाम को लाइट जलते ही बाहर से उस के घर के अंदर का दृश्य स्पष्ट हो जाता था. इसीलिए शाम होते ही वह लाइनिंग के परदे भी सरका लेती.  शाम को उसे ताकझांक की फुरसत कम ही मिल पाती. खाना पकाना, बच्चे और सुधीर उसे पूरी तरह व्यस्त कर देते. मगर सुबह होते ही वही दिनचर्या. घर के काम को ब्रेक दे कर कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, सारी जानकारी से अपडेट रहती.  कल ही शिखा मेथी साफ करने के बहाने खिड़की के सामने रखी कुरसी पर बैठी बाहर भी नजर डालती जा रही थी. तभी उस का ध्यान एक कर्कश से हौर्न से भंग हुआ. चौकन्नी तो वह तब हुई जब उसे अनंत साहब के घर का गेट खुलने की आवाज आई.

शिखा तुरंत खड़ी हो कर झांकने लगी कि इतनी दुपहरी में ऐसी खटारा मोटरसाइकिल से कौन आया है?  शिखा ने देखा 3 नवयुवक गेट खुला छोड़ कर बजाय कालबैल बजाने के अनंत साहब के कमरे की खुली खिड़की की तरफ आए और देखते ही देखते खिड़की पर चढ़े और अंदर कमरे में कूद गए.  दृश्य देख कर शिखा के हाथपैर फूल गए. पल भर में अखबार, टीवी में पढ़ीदेखी लूट की सैकड़ों वारदातें उस के दिमाग में घूम गईं.  शिखा अच्छी तरह जानती थी कि इस वक्त रुचि घर में बिलकुल अकेली होती है. अनंत साहब तो बैंक से प्राय: लेट आते हैं. दोनों बेटे होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. ये सब सोचने में शिखा को क्षण भर लगा.  अगले ही पल अगलबगल 2-4 घरों में मोबाइल पर जानकारी देते हुए दरवाजे पर ताला मार वह अनंत साहब के घर की ओर दौड़ी.

शिखा का अनुमान सच निकला. रुचि के चीखने की आवाजें बाहर तक आ रही थीं. शिखा ने उन के द्वार पर लगी कालबैल लगातार बजानी शुरू कर दी. तब तक पासपड़ोस के काफी लोग जमा हो चुके थे.  किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी थी. मगर पुलिस के आने से पूर्व ही लोगों ने खिड़की फांद कर भागते चोरों को धर दबोचा. भीड़ ने उन की मोटरसाइकिल भी गिरा दी और उस पर कब्जा कर लिया.   रुचि ने दरवाजा खोला. तीनों लड़के उन से चाबियां  मांगते हुए जान से मारने की धमकी दे रहे थे. तीनों के पास चाकू थे और उन्हें घर के बारे में पूरी जानकारी थी.

‘‘शिखा, आज तुम ने मेरा घर लुटने से बचा लिया. ये लुटेरे तो मुझे मार ही डालते,’’ कहते हुए रुचि फूटफूट कर रोने लगी.

पूरी कालोनी के लोग शिखा की प्रशंसा कर रहे थे. आहट से अनुमान लगाने की जिस आदत पर वह कई बार सुधीर से डांट खा कर अपमानित हो चुकी थी, आज उस की इसी आदत ने अनंत साहब का परिवार बचा लिया था.  महिला इंस्पैक्टर ने भी शिखा को शाबाशी देते हुए सभी महिलाओं से अपील की, ‘‘यह बहुत अच्छी बात है कि महिलाएं जागरूक रह कर न सिर्फ अपने घर का, बल्कि अपने पासपड़ोस का भी खयाल रखें और जब भी किसी संदिग्ध व्यक्ति को देखें, उस पर कड़ी नजर रख कर उचित कदम उठाने से न घबराएं. एकदूसरे को जानकारी जरूर दें.’’  शाम को घर आने से पूर्व ही सुधीर को बाहर ही शिखा की बहादुरी एवं समझबूझ का किस्सा सुनने को मिल गया.

सुधीर मुसकराते हुए घर में आया और आते ही शिखा को गले से गा लिया, ‘‘शिखा, आहटों से अनुमान लगाने की तुम्हारी इस विशेषता का तो आज मैं भी कायल हो गया.’’

सुन कर शिखा छिटक गई. रोंआसी हो कर बोली, ‘‘आज भी मेरा मजाक उड़ा रहे हैं न?’’

‘‘नहीं, आज मुझे वाकई तुम्हारी इस आदत से खुशी मिली. लेकिन भविष्य की सोच कर चिंतित हूं कि अब तो तुम रोज ही नया किस्सा सुनाओगी तो भी मैं उफ नहीं कर सकूंगा. अब तुम्हारी विशेषता की धाक जो जम गई है,’’ कहते हुए सुधीर ने शिखा को फिर से गले लगा लिया.

शिखा के होंठों पर भी मुसकान खिल उठी.

Latest Hindi Stories : विवाह – विदिशा को किस बात पर यकीन नहीं हुआ

Latest Hindi Stories :  राज आज बहुत खुश था. विदिशा से मिलने के लिए वह पुणे आया था. दोनों गर्ल्स होस्टल के पास ही एक आइसक्रीम पार्लर पर मिले.

‘‘मैं लेट हो गई क्या?’’ विदिशा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं ही जल्दी आ गया था,’’ राज बोला.

‘‘तुम से एक बात पुछूं क्या?’’ विदिशा ने कहा.

‘‘जोकुछ पूछना है, अभी पूछ लो. शादी के बाद कोई उलझन नहीं होनी चाहिए,’’ राज ने कहा.

‘‘तुम ने कैमिस्ट्री से एमएससी की है, फिर भी गांव में क्यों रहते हो? पुणे में कोई नौकरी या कंपीटिशन का एग्जाम क्यों नहीं देते हो?’’‘‘100 एकड़ खेती है हमारी. इस के अलावा मैं देशमुख खानदान का एकलौता वारिस हूं. मेरे अलावा कोई खेती संभालने वाला नहीं है. नौकरी से जो तनख्वाह मिलेगी, उस से ज्यादा तो मैं अपनी खेती से कमा सकता हूं. फिर क्या जरूरत है नौकरी करने की?’’

राज के जवाब से विदिशा समझ गई कि यह लड़का कभी अपना गांव छोड़ कर शहर नहीं आएगा.

शादी का दिन आने तक राज और विदिशा एकदूसरे की पसंदनापसंद, इच्छा, हनीमून की जगह वगैरह पर बातें करते रहे.

शादी के दिन दूल्हे की बरात घर के सामने मंडप के पास आ कर खड़ी हो गई, लेकिन दूल्हे की पूजाआरती के लिए दुलहन की तरफ से कोई नहीं आया, क्योंकि दुलहन एक चिट्ठी लिख कर घर से भाग गई थी.

‘पिताजी, मैं बहुत बड़ी गलती कर रही हूं, लेकिन शादी के बाद जिंदगीभर एडजस्ट करने के लिए मेरा मन तैयार नहीं है. मां के जैसे सिर्फ चूल्हाचौका संभालना मुझ से नहीं होगा. आप ने जो रिश्ता मेरे लिए ढूंढ़ा है, वहां किसी चीज की कमी नहीं है. ऐसे में मैं आप को कितना भी समझाती, मुझे इस विवाह से छुटकारा नहीं मिलता, इसलिए आप को बिना बताए मैं यह घर हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं…’

‘‘और पढ़ाओ लड़की को…’’ विदिशा के पिता अपनी पत्नी पर गुस्सा करते हुए रोने लगे. वर पक्ष का घर श्मशान की तरह शांत हो गया था. देशमुख परिवार गम में डूब गया था. गांव वालों के सामने उन की नाक कट चुकी थी, लेकिन राज ने परिवार की हालत देखते हुए खुद को संभाल लिया.

विदिशा पुणे का होस्टल छोड़ कर वेदिका नाम की सहेली के साथ एक किराए के फ्लैट में रहने लगी. उस की एक कंपनी में नौकरी भी लग गई.

वेदिका शराब पीती थी, पार्टी वगैरह में जाती थी, लेकिन उस के साथ रहने के अलावा विदिशा के पास कोई चारा नहीं था. 4 साल ऐसे ही बीत गए.

एक रात वेदिका 2 लाख रुपए से भरा एक बैग ले कर आई. विदिशा उस से कुछ पूछे, तभी उस के पीछे चेहरे पर रूमाल बांधे एक जवान लड़का भी फ्लैट में आ गया.

‘‘बैग यहां ला, नहीं तो बेवजह मरेगी,’’ वह लड़का बोला.

‘‘बैग नहीं मिलेगा… तू पहले बाहर निकल,’’ वेदिका ने कहा.

उस लड़के ने अगले ही पल में वेदिका के पेट में चाकू घोंप दिया और बैग ले कर फरार हो गया.

विदिशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने तुरंत वेदिका के पेट से चाकू निकाला और रिकशा लेने के लिए नीचे की तरफ भागी. एक रिकशे वाले को ले कर वह फ्लैट में आई, लेकिन रिकशे वाला चिल्लाते हुए भाग गया.

विदिशा जब तक वेदिका के पास गई, तब तक उस की सांसें थम चुकी थीं. तभी चौकीदार फ्लैट में आ गया. पुलिस स्टेशन में फोन किया था. विदिशा बिलकुल निराश हो चुकी थी. वेदिका का यह मामला उसे बहुत महंगा पड़ने वाला था, इस बात को वह समझ चुकी थी. रोरो कर उस की आंखें लाल हो चुकी थीं.

पुलिस पूरे फ्लैट को छान रही थी. वेदिका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. दूसरे दिन सुबह विदिशा को पुलिस स्टेशन में पूछताछ के लिए बुलाया गया. सवेरे 9 बजे से ही विदिशा पुलिस स्टेशन में जा कर बैठ गई. वह सोच रही थी कि यह सारा मामला कब खत्म होगा.

‘‘सर अभी तक नहीं आए हैं. वे 10 बजे तक आएंगे. तब तक तुम केबिन में जा कर बैठो,’’ हवलदार ने कहा.

केबिन में जाते ही विदिशा ने टेबल पर ‘राज देशमुख’ की नेमप्लेट देखी और उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

तभी राज ने केबिन में प्रवेश किया. उसे देखते ही विदिशा खड़ी हो गई.

‘‘वेदिका मर्डर केस. चाकू पर तुम्हारी ही उंगलियों के निशान हैं. हाल में भी सब जगह तुम्हारे हाथों के निशान हैं. खून तुम ने किया है. लेकिन खून के पीछे की वजह समझ नहीं आ रही है. वह तुम बताओ और इस मामले को यहीं खत्म करो,’’ राज ने कहा.

‘‘मैं ने खून नहीं किया है,’’ विदिशा बोली.

‘‘लेकिन, सुबूत तो यही कह रहे हैं,’’ राज बोला.

‘‘कल जो कुछ हुआ है, मैं ने सब बता दिया है,’’ विदिशा ने कहा.

‘‘लेकिन वह सब झूठ है. तुम जेल जरूर जाओगी. तुम ने आज तक जितने भी गुनाह किए हैं, उन सभी की सजा मैं तुम्हें दूंगा मिस विदिशा.’’

‘‘देखिए…’’

‘‘चुप… एकदम चुप. कदम, गाड़ी निकालो. विधायक ने बुलाया है हमें. मैडम, हर सुबह यहां पूछताछ के लिए तुम्हें आना होगा, समझ गई न.’’

विदिशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. शाम को वह वापस पुलिस स्टेशन के बाहर राज की राह देखने लगी.

रात के 9 बजे राज आया. वह मोटरसाइकिल को किक मार कर स्टार्ट कर रहा था, तभी विदिशा उस के सामने आ कर खड़ी हो गई.

‘‘मुझे तुम से बात करनी है.’’

‘‘बोलो…’’

‘‘मैं ने 4 साल पहले बहुत सी गलतियां की थीं. मुझे माफ कर दो. लेकिन मैं ने यह खून नहीं किया है. प्लीज, मुझे इस सब से बाहर निकालो.’’

‘‘लौज में चलोगी क्या? हनीमून के लिए महाबलेश्वर नहीं जा पाए तो लौज ही जा कर आते हैं. तुम्हारे सारे गुनाह माफ हो जाएंगे… तो फिर मोटरसाइकिल पर बैठ रही हो?’’

‘‘राज…’’ विदिशा आगे कुछ कह पाती, उस से पहले ही वहां से राज निकल गया.

दूसरे दिन विदिशा फिर से राज के केबिन में आ कर बैठ गई.

‘‘तुम क्या काम करती हो?’’

‘‘एक प्राइवेट कंपनी में हूं.’’

‘‘शादी हो गई तुम्हारी? ओह सौरी, असलम बौयफ्रैंड है तुम्हारा. बिना शादी किए ही आजकल लड़केलड़कियां सबकुछ कर रहे हैं… हैं न?’’

‘‘असलम मेरा नहीं, वेदिका का दोस्त था.’’

‘‘2 लड़कियों का एक ही दोस्त हो सकता है न?’’

‘‘मैं ने अब तक असलम नाम के किसी शख्स को नहीं देखा है.’’

‘‘कमाल की बात है. तुम ने असलम को नहीं देखा है. वाचमैन ने रूमाल से मुंह बांधे हुए नौजवान को नहीं देखा. पैसों से भरे बैग को भी तुम्हारे सिवा किसी ने नहीं देखा है. बाकी की बातें कल होंगी. तुम निकलो…’’

रोज सुबह पुलिस स्टेशन आना, शाम 3 से 4 बजे तक केबिन में बैठना, आधे घंटे के लिए राज के सामने जाना. वह विदिशा की बेइज्जती करने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था. तकरीबन 2 महीने तक यही चलता रहा. विदिशा की नौकरी भी छूट गई. गांव में विदिशा की चिंता में उस की मां अस्पताल में भरती हो गई थीं. रोज की तरह आज भी पूछताछ चल रही थी.

‘‘रोजरोज चक्कर लगाने से बेहतर है कि अपना गुनाह कबूल कर लो न?’’

विदिशा ने कुछ जवाब नहीं दिया और सिर नीचे कर के बैठी रही.

‘‘जो लड़की अपने मांपिता की नहीं हुई, वह दोस्त की क्या होगी? असलम कौन है? बौयफ्रैंड है न? कल ही मैं ने उसे पकड़ा है. उस के पास से 2 लाख रुपए से भरा एक बैग भी मिला है,’’ राज विदिशा की कुरसी के पास टेबल पर बैठ कर बोलने लगा.

लेकिन फिर भी विदिशा ने कुछ नहीं कहा. उसे जेल जाना होगा. उस ने जो अपने मांबाप और देशमुख परिवार को तकलीफ पहुंचाई है, उस की सजा उसे भुगतनी होगी. यह बात उसे समझ आ चुकी थी.

तभी लड़की के पिता ने केबिन में प्रवेश किया और दोनों हाथ जोड़ कर राज के पैरों में गिर पड़े, ‘‘साहब, मेरी पत्नी बहुत बीमार है. हमारी बच्ची से गलती हुई. उस की तरफ से मैं माफी मांगता हूं. मेरी पत्नी की जान की खातिर खून के इस केस से इसे बाहर निकालें. मैं आप से विनती करता हूं.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा. आप घर जाइए,’’ राज ने कहा.

विदिशा पीठ पीछे सब सुन रही थी. अपने पिता से नजर मिलाने की हिम्मत नहीं थी उस में. लेकिन उन के बाहर निकलते ही विदिशा टेबल पर सिर रख कर जोरजोर से रोने लगी.

‘‘तुम अभी बाहर जाओ, शाम को बात करेंगे,’’ राज बोला.

‘‘शाम को क्यों? अभी बोलो. मैं ने खून किया है, ऐसा ही स्टेटमैंट चाहिए न तुम्हें? मैं गुनाह कबूल करने के लिए तैयार हूं. मुझ से अब और सहन नहीं हो रहा है. यह खेल अब बंद करो.

‘‘तुम से शादी करने का मतलब केवल देशमुख परिवार की शोभा बनना था. पति के इशारे में चलना मेरे वश की बात नहीं है. मेरी शिक्षा, मेरी मेहनत सब तुम्हारे घर बरबाद हो जाती और यह बात पिताजी को बता कर भी कोई फायदा नहीं था. तो मैं क्या करती?’’ विदिशा रो भी रही थी और गुस्से में बोल रही थी.

‘‘बोलना चाहिए था तुम्हें, मैं उन्हें समझाता.’’

‘‘तुम्हारी बात मान कर पिताजी मुझे पुणे आने देते क्या? पहले से ही वे लड़कियों की पढ़ाई के विरोध में थे. मां ने लड़ाईझगड़ा कर के मुझे पुणे भेजा था. मेरे पास कोई रास्ता नहीं था, इसलिए मुझे मंडप छोड़ कर भागना पड़ा.’’

‘‘और मेरा क्या? मेरे साथ 4 महीने घूमी, मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया, उस का क्या? मेरे मातापिता का इस में क्या कुसूर था?’’

‘‘मुझे लगा कि तुम्हें फोन करूं, लेकिन हिम्मत नहीं हुई.’’

‘‘तुम्हें जो करना था, तुम ने किया. अब मुझे जो करना है, वह मैं करूंगा. तुम बाहर निकलो.’’

विदिशा वहां से सीधी अपने गांव चली गई. मां से मिली. ‘‘मेरी बेटी, यह कैसी सजा मिल रही है तुझे? तेरे हाथ से खून नहीं हो सकता है. अब कैसे बाहर निकलेगी?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे साथ जो छल किया?है, उस की सजा मुझे भुगतनी होगी मां.’’

‘‘कुछ नहीं होगा आप की बेटी को, केस सुलझ गया है मौसी. असलम नाम के आदमी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है. वह वेदिका का प्रेमी था. दोनों के बीच पैसों को ले कर झगड़ा था, जिस के चलते उस का खून हुआ.

‘‘आप की बेटी बेकुसूर है. अब जल्दी से ठीक हो जाइए और अस्पताल से घर आइए,’’ राज यह बात बता कर वहां से निकल गया.

विदिशा को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘सर, मैं आप का यह उपकार कैसे चुकाऊं?’’

‘‘शादी कर लो मुझ से.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मजाक कर रहा था. मेरा एक साल का बेटा है मिस विदिशा.’’

Latest Hindi Stories : तुम मेरी हो – क्या शीतल के जख्मों पर मरहम लगा पाया सारांश

 Latest Hindi Stories :  सारांश का स्थानांतरण अचानक ही चमोली में हो गया. यहां आ कर उसे नया अनुभव हो रहा था. एक तो पहाड़ी इलाका, उस पर जानपहचान का कोई भी नहीं. पहाड़ी इलाकों में मकान दूरदूर होते हैं. दिल्ली जैसे शहर में रह कर सारांश को ट्रैफिक का शोर, गानों की आवाजें और लोगों की बातचीत के तेज स्वर सुनने की आदत सी पड़ गई थी. किंतु यहां तो किसी को देखने के लिए भी वह तरस जाता था. जिस किराए के मकान में वह रह रहा था, वह दोमंजिला था. ऊपर के घर से कभीकभी एक बच्चे की मीठी सी आवाज कानों में पड़ जाती थी. पर कभी आतेजाते किसी से सामना नहीं हुआ था उस का.

उस दिन रविवार को नाश्ता कर के वह बाहर लौन में कुरसी पर आ कर बैठ गया. पास ही मेज पर उस ने लैपटौप रखा हुआ था. कौफी के घूंट भरते हुए वह औफिस का काम निबटा रहा था, तभी अचानक मेज पर रखे कौफी के मग में ‘छपाक’ की आवाज आई. सारांश ने एक तरफ जा कर कौफी घास पर उड़ेल दी. इतनी देर में ही पीछे से एक बच्चे की प्यारी सी आवाज सुनाई दी, ‘‘अंकल, मेरा मोबाइल.’’

सारांश ने मुड़ कर बच्चे की ओर देखा और मुसकराते हुए पास रखे टिशू पेपर से कौफी में गिरे हुए फोन को साफ करने लगा.

‘‘लाइए अंकल, मैं कर लूंगा,’’ कहते हुए बच्चे ने अपना नन्हा हाथ आगे बढ़ा दिया.

किंतु फोन सारांश ने साफ कर दिया और बच्चे को थमा दिया. बच्चा जल्दी से फोन को औन करने लगा. लेकिन कईर् बार कोशिश करने के बाद भी वह औन नहीं हुआ. बच्चे का मासूम चेहरा रोंआसा हो गया.

उस की उदासी दूर करने के लिए सारांश बोला. ‘‘अरे, वाह, तुम्हारा फोन तो छलांग मार कर मेरी कौफी में कूद गया था. अभी स्विमिंग पूल से निकला है, थोड़ा आराम करने दो, फिर औन कर के देख लेना. चलो, थोड़ी देर मेरे पास बैठो, नाम बताओ अपना.’’

‘‘अंकल, मेरा नाम प्रियांश है,’’ पास रखी दूसरी कुरसी पर बैठता हुआ वह बोला, ‘‘पर यह मोबाइल औन क्यों नहीं हो रहा, खराब हो गया है क्या?’’ चिंतित हो कर वह सारांश की ओर देखने लगा.

‘‘शायद, पर कोई बात नहीं. मैं तुम्हारे पापा से कह दूंगा कि इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है, अपनेआप छूट गया था न फोन तुम्हारे हाथ से?’’

‘‘हां अंकल, मैं हाथ में फोन को पकड़ कर ऊपर से आप को देख रहा था,’’ भोलेपन से उस ने कहा.

‘‘फिर तो पापा जरूर नया फोन दिला देंगे तुम्हें. हां, एक बात और, तुम इतने प्यारे हो कि मैं तुम्हें चुनमुन नाम से बुलाऊंगा, ठीक है?’’ सारांश ने स्नेह से प्रियांश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘बुला लेना चुनमुन कह कर, मम्मी भी कभीकभी मुनमुन कह देती हैं मु झे. पर मेरे पापा तो बहुत दूर रहते हैं. मु झ से कभी मिलने भी नहीं आते. अब मैं नानी से फोन पर बात कैसे करूंगा?’’ कहते हुए चुनमुन की आंखें डबडबा गईं.

सारांश को चुनमुन पर तरस आ गया. प्यार से उस के गालों को थपथपाता हुआ वह बोला, ‘‘चलो, हम दोनों बाजार चलते हैं, मैं दिला दूंगा तुम को मोबाइल फोन.’’

‘‘पर अंकल, मेरी मम्मी नहीं मानेंगी न,’’ चुनमुन ने नाक चढ़ाते हुए ऊपर अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘अरे, आप की मम्मी को मैं मना लूंगा. हम दोनों तो दोस्त बन गए न, तुम्हारा नाम प्रियांश और मेरा सारांश. चलो, तुम्हारे घर चलते हैं,’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन का हाथ थाम लिया और सीढि़यों पर चढ़ना शुरू कर दिया.

दरवाजे पर नाइटी पहने खड़ी गौरवर्ण की आकर्षक महिला शायद चुनमुन का इंतजार कर रही थी. सारांश को देख कर वह एक बार थोड़ी सकपकाई, फिर मुसकरा कर अंदर आने को कहती हुई आगेआगे चलने लगी. भीतर आ कर सारांश ने अपना परिचय दिया.

उस के बारे में वह केवल इतना ही जान पाया कि उस का नाम शीतल है और पास के ही एक विद्यालय में अध्यापिका है. चुनमुन ने मोबाइल की घटना एक सांस में बता दी शीतल को, और साथ ही यह भी कि अंकल ने उस का नाम चुनमुन रखा है, इसलिए शीतल भी उसे इसी नाम से बुलाया करे, मुनमुन तो किसी लड़की के नाम जैसा लगता है.

शीतल रसोई में चली गई और सारांश चुनमुन से बातें करने लगा. तब तक शीतल फू्रट जूस ले कर आ गई. सारांश ने शाम को बाजार जाने का कार्यक्रम बना लिया. शीतल को भी बाजार में कुछ काम था. पहले तो वह साथ जाने में थोड़ी  िझ झक रही थी, पर सारांश के आग्रह को वह टाल न सकी.

तीनों शाम को सारांश की कार में बाजार गए और रात को बाहर से ही खाना खा कर घर लौटे. बाजार में चुनमुन सारांश की उंगली पकड़े ही रहा. सारांश भी कई दिनों से अकेलेपन से जू झ रहा था. इसलिए उसे भी उन दोनों के साथ एक अपनत्व का एहसास हो रहा था. शीतल के चेहरे पर आई चमक को सारांश साफसाफ देख पा रहा था. वह खुश था कि पड़ोसी एकदूसरे के साथ किस प्रकार एक परिवार की तरह जु

उस दिन के बाद चुनमुन अकसर सारांश के पास आ जाया करता था, सारांश भी कभीकभी उन के घर जा कर बैठ जाता था. सारांश को शीतल ने बताया कि उस के मातापिता हिमाचल प्रदेश में रहते हैं. ससुराल पक्ष के विषय में उस ने कभी कुछ नहीं बताया. सारांश भी अकसर उन को अपने मातापिता व छोटी बहन सुरभि के विषय में बताता रहता था. पिता दिल्ली में एक व्यापारी थे जबकि छोटी बहन एक साल से मिस्र में अपने पति के साथ रह रही थी.

उस दिन सारांश औफिस में बाहर से आए हुए कुछ व्यक्तियों के साथ व्यस्त था. एक महत्त्वपूर्ण बैठक चल रही थी. उस के फोन पर बारबार चुनमुन का फोन आ रहा था. सारांश ने 3-4 बार फोन काट दिया पर चुनमुन लगातार फोन किए जा रहा था. बैठक के बीच में ही बाहर जा कर सारांश ने उस से बात की.

चुनमुन को तेज बुखार था. शीतल ने डाक्टर को दिखा कर दवाई दिलवा दी थी और लगातार उस के पास ही बैठी थी. पर चुनमुन तो जैसे सारांश को ही अपनी पीड़ा बताना चाहता था. सारांश के दुलार से मिला अपनापन वह अपने नन्हे से मन में थाम कर रखना चाहता था.

सारांश ने बैठक में जा कर सब से क्षमा मांगी और अपने स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को बैठा कर औफिस से सीधा चुनमुन के पास आ गया. उसे देखते ही चुनमुन खिल उठा. शीतल भी मन ही मन राहत महसूस कर रही थी. चुनमुन ने सारांश को अपने घर कपड़े बदलने भी तभी जाने दिया जब उस ने रात को चुनमुन के घर ठहरने का वादा किया. शीतल के आग्रह पर सारांश रात का खाना उन के साथ ही खाने को तैयार हो गया.

तेज बुखार के कारण चुनमुन की नींद बारबार खुल रही थी, इसलिए शीतल और सारांश उस के पास ही बैठे थे. अपनेपन की एक डोर दोनों को बांध रही थी. अपने जीवन के पिछले दिन दोनों एकदूसरे के साथ सा झा कर रहे थे. सारांश का जीवन तो कमोबेश सामान्य ही बीता था, पर शीतल एक भयंकर तूफान से गुजर चुकी थी.

कुछ वर्षों पहले वह अपनी दादी के घर हिमाचल के सुदूर गांव में गई थी. उन का गांव मैक्लोडगंज के पास पड़ता था जहां अकसर सैलानी आतेजाते रहते हैं. एक रात वह ठंडी हवा का आनंद लेती हुई कच्ची सड़क पर मस्ती से चली जा रही थी. अचानक एक कार उस के पास आ कर रुकी. पीछे से किसी ने उस का मुंह दबोच लिया और उसे स्त्री जन्म लेने की सजा मिल गई.

अंधेरे में वह उस दानव का चेहरा भी न देख पाई और वह तो अपने पुरुषत्त्व का दंभ भरते हुए चलता बना. उसे तो पता भी नहीं कि एक नन्हा अंकुर वह वहीं छोड़ कर जा रहा है. शीतल का नन्हा चुनमुन. मातापिता ने शीतल पर चुनमुन को अनाथाश्रम में छोड़ कर विवाह करने का दबाव बनाया पर वह नहीं मानी. लोग तरहतरह की बातें कर के उस के मातापिता को तंग न करें, इसलिए उस ने घर से दूर आ कर रहने का निर्णय कर लिया. चुनमुन उस के लिए अपनी जान से बढ़ कर था.

चुनमुन का बुखार कम हुआ तो दोनों थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गए. सारांश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रहरह कर शीतल के बारे में सोच रहा था, ‘कितनी दर्दभरी जिंदगी जी रही हो तुम, जैसे कोई फिल्मी कहानी हो. इतनी पीड़ा सह कर भी चुनमुन का पालनपोषण ऐसा कि यह बाग का खिला हुआ फूल लगता है, टूट कर मुर झाया हुआ नहीं.

पुरुष के इतने वीभत्स रूप को देखने के बाद भी तुम मु झ से अपना दर्द बांट पाई. तुम शायद यह जानती हो कि हर पुरुष बलात्कारी नहीं होता. तुम्हारे इस विश्वास के लिए मैं तुम्हारा जितना सम्मान करूं, वह कम है. स्वयं जीवन की नकारात्मकता में जी रही हो और दूसरों को सकारात्मक ऊर्जा दे रही हो. तुम कितनी अच्छी हो, शीतल.’ शीतल को मन ही मन इस तरह सराहते हुए सारांश उस का सब से बड़ा प्रशंसक बन चुका था.

2-3 दिनों में चुनमुन का बुखार कम होना शुरू हो गया. औफिस के अलावा सारांश अपना सारा समय आजकल चुनमुन के साथ ही बिता रहा था. शीतल ने स्कूल से छुट्टियां ली हुई थीं, इसलिए बाहर से सामान आदि लाने का काम भी सारांश ही कर दिया करता था. उस का सहारा शीतल के लिए एक परिपक्व वृक्ष के समान था, फूलों से लदी बेल सी वह उस के बिना अधूरा अनुभव करने लगी थी स्वयं को. स्त्री एक लता ही तो है जो पुरुष का आश्रय पा कर और भी खिलती है तथा निस्वार्थ हो कर सब के लिए फलनाफूलना चाहती है.

चुनमुन का बुखार उतरा तो कामवाली बाई बीमार पड़ गई. दोनों घरों का काम लक्ष्मी ही देखती थी. उस ने शीतल को फोन पर सूचना दी और यह सूचना जब वह सारांश को देने पहुंची तो वह सिर पकड़ कर बैठ गया. रात को उस की मां नीलम का फोन आया था कि वे सुरभि के साथ 2 दिनों के लिए चमोली आ रही हैं. सिर्फ एक सप्ताह के लिए भारत आई थी सुरभि और सारांश से बिना मिले वापस नहीं जाना चाहती थी.

‘‘लगता है दोनों यहां आ कर काम में ही लगी रहेंगी,’’ सारांश ने निराश हो कर शीतल से कहा.

‘‘तुम क्यों फिक्र करते हो, मैं सब देख लूंगी,’’ शीतल के इन शब्दों से सारांश को कुछ राहत मिली और वह घर की चाबी शीतल को सौंप कर औफिस चला गया. सारांश की मां नीलम और सुरभि दोपहर को पहुंचने वाली थीं. शीतल ने चुनमुन की बीमारी के कारण पहले ही पूरे सप्ताह की छुट्टियां ली हुई थीं विद्यालय से.

सुरभि और मां सारांश की अनुपस्थिति में घर पहुंच गईं. शीतल के रहते उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई. सारांश के आने पर भी वह सारा घर संभाल रही थी. चुनमुन भी सारांश की मां से बहुत जल्दी घुलमिल गया.

2 दिन कैसे बीत गए, किसी को पता ही नहीं लगा. जाने से एक दिन पहले रात का खाना खाने के लिए शीतल ने सब को अपने घर पर बुलाया. घर की साजसज्जा, खाने का स्वाद, रहने का सलीका आदि से सारांश की मां शीतल से प्रभावित हुए बिना न रह सकीं. बैडरूम में पुराने गानों की सीडी और विभिन्न विषयों पर पुस्तकों का खजाना देख कर सुरभि को शीतल के शौक अपने जैसे ही लगे और वह प्रसन्नता से चहकती हुई हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ का आनंद लेने लगी. चुनमुन सारांश की मां से कहानियां सुन रहा था.

देररात भारी मन से वे शीतल के घर से आए. घर आ कर भी वे दोनों सारांश से शीतल और चुनमुन के बारे में ही बातें कर रही थीं. मौका पा कर सारांश ने शीतल की जिंदगी की दुखभरी कहानी दोनों को सुनाई और शीतल को घर की बहू बनाने का आग्रह किया. किंतु उसे जो शंका थी, वही हुआ. मां ने इस रिश्ते के लिए साफ इनकार कर दिया. सारांश के इस फैसले से सुरभि यद्यपि सहमत थी किंतु मां ने विभिन्न तर्क दे कर उस का मुंह बंद कर दिया. अगले दिन दोनों दिल्ली वापस चली गईं.

वापस दिल्ली आ कर सुरभि 3 दिन और रही मां के पास, और फिर वापसी के लिए रवाना हो गई. मां अपनी दिनचर्या शुरू नहीं कर पा रही थीं. एक तो सब से मिलने के बाद अकेलापन और उस पर सुरभि का पहुंच कर फोन न आना. दिन तो जैसेतैसे कट गया, पर रात में चिंता के कारण उन्हें नींद नहीं आ रही थी. ‘सुबह कुछ तो करना ही होगा,’ उन के यह सोचते ही मोबाइल बज उठा. फोन सुरभि का ही था.

‘‘मम्मा, प्रकृति का शुक्रिया अदा करो कि तुम्हारी बेटी और दामाद सलामत है,’’ सुरभि ने डरी पर राहतभरी आवाज में कहा.

‘‘क्यों, क्या हो गया, बेटा?’’ मां का मुंह भय से खुला रह गया.

‘‘हमारे प्लेन में कुछ आतंकवादी घुस गए थे. अपहरण करना चाह रहे थे वे जहाज का. हमारा समय अच्छा था कि अंदर राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के 3 कमांडो भी यात्रा कर रहे थे. उन्होंने उन शैतानों की एक न चलने दी और हम सभी सुरक्षित अपनेअपने ठिकानों पर पहुंच गए,’’ सुरभि ने एक सांस में ही सब कह डाला. मां ने राहत की सांस ली और उसे आराम करने को कह कर फोन काट दिया.

मां की आंखों से तो जैसे नींद पूरी तरह उड़ गई. ‘क्या होता अगर कुछ अनहोनी हो गई होती? वे दरिंदे यात्रियों की जान ले लेते या फिर महिलाओं के साथ कुछ और…’ यह सोच कर मां का कलेजा कांप उठा. उन्हें सहसा शीतल का ध्यान आ गया, ‘कितनी बेबस होगी वह भी उस रात… कौन चाहता है कि उस की इज्जत तारतार हो जाए?

क्या कुसूर है शीतल या चुनमुन का? शीतल को क्यों यह अधिकार नहीं है कि वह भी बुरे समय से निकल कर नई खुशियों को गले लगाए. क्यों वह उस शैतान का दिया हुआ दुख ढोती रहे जीवनभर.’ सोचते हुए मां ने एक फैसला किया और रात में ही फोन मिला दिया सारांश को.

‘‘कहो मम्मा,’’ सारांश ने ऊंघते हुए फोन उठा कर कहा.

‘‘बेटा, सुरभि ठीक से पहुंच गई है. मैं ने सोचा कि तु झे बता दूं, वरना तू चिंता कर रहा होगा. और हां, एक बात और कहनी है. सुरभि 3 महीने बाद फिर आ रही है इंडिया, उस की सहेली की शादी है. तू भी टिकट ले ले अभी से ही यहां आने का. छुट्टियां जरा ज्यादा ले कर आना. जल्दी ही तु झे भी बंधन में बांध देना चाहती हूं मैं. जिस महीने में जन्मदिन होता है उसी महीने में शादी हो तो अच्छा माना जाता है हम लोगों में. जल्दी ही तारीख बता दूंगी तु झे.’’

‘‘अरे मम्मा, क्या हो गया आज आप को? मेरा जन्मदिन तो पिछले महीने ही था न. मैं आप की बात सम झ नहीं पा रहा ठीक से,’’ परेशान सा होता हुआ सारांश बोला.

‘‘तो मैं कब कह रही हूं कि दूल्हे का जन्मदिन ही पड़ना चाहिए उस महीने. दुलहन का भी हो सकता है. शीतल के जन्मदिन के बारे में चुनमुन बता रहा था मु झे उस दिन.’’

सारांश को एक बार तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ मां की बात सुन कर, फिर आश्चर्य और हर्ष से मुसकराते हुए वह बोला, ‘‘पर मम्मा, शीतल से तो पूछने दो मु झे.’’

‘‘मैं ने पढ़ ली थीं उस की आंखें,’’ मां ने छोटे से उत्तर से निरुत्तर कर दिया सारांश को.

सुबह होते ही सारांश शीतल के पास पहुंच गया. चुनमुन सो कर उठा ही था. सारांश को देखते ही उस से लिपट गया.

‘‘आज तुम्हारे स्कूल में पेरैंट्सटीचर मीटिंग है न? क्या मैं चल सकता हूं तुम्हारे साथ पापा बन कर?’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन को स्नेहभरी निगाहों से देखा. चुनमुन प्यार से सारांश के गाल चूमने लगा और शीतल भाग गई वहां से. एक कोने में हाथ जोड़ कर खड़ी शीतल की आंखों से टपटप बहते आंसू सारी सीमाएं तोड़ देना चाहते थे.

शीतल मुड़ कर वापस आई तो सारांश के आगे सिर  झुका लिया अपना. सारांश ने मुसकरा कर उस की ओर देखा मानो कह रहा हो, ‘कह दो आंसुओं से कि दूर चले जाएं तुम्हारी आंखों से, तुम मेरी हो अब, सिर्फ मेरी.’

Latest Hindi Stories : बहुरंगी आस्था

Latest Hindi Stories :  ‘‘ऐ छोकरी… चल, पीछे हट…’’ मंदिर का पुजारी कमली को गणेश की मूर्ति के बहुत करीब देख कर आगबबूला हो उठा. वह अपनी आंखों से अंगारे बरसाते हुए कमली के पास आ गया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘सुनाई नहीं देता… मूर्ति को छू कर गंदा करेगी क्या… चल, पीछे हट…’’

कमली 10 साल की थी. उस समय वह ऊंची जातियों की मेम साहबों की नकल करने के लिए अपनी ही धुन में गणेश की मूर्ति के बिलकुल सामने खड़ी सिद्धि विनायक मंत्र के जाप में मगन थी.

उसे पहली बार ऐसा मौका मिला था, जब वह मंदिर में गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए सब से पहले आ कर खड़ी हो गई थी. अभी तक दर्शन के लिए कोई लाइन नहीं लगी थी. मंदिर के अहाते को रस्सियों से घेरा जा रहा था, ताकि औरत और मर्द अलगअलग लाइनों में खड़े हो कर गणेश के दर्शन कर सकें और किसी तरह की कोई भगदड़ न मचे.

कमली पूजा शुरू होने के बहुत पहले ही चली आई थी और चूंकि मंदिर में भीड़ नहीं थी, इसलिए वह बेझिझक गणेश की मूर्ति के बिलकुल ही सामने बने उस ऊंचे चबूतरे पर भी चढ़ गई, जिस पर खड़े हो कर पुजारी सामने लाइन में लगे श्रद्धालुओं का प्रसाद ग्रहण करते हैं और फिर उन में से थोड़ा सा प्रसाद ले कर मूर्ति की ओर चढ़ाते हुए बाकी प्रसाद श्रद्धालुओं को वापस कर देते हैं.

उस ऊंचे चबूतरे पर खड़े रहने का हक केवल और केवल मंदिर के पुजारियों के पास ही था, इसलिए कमली का उस चबूतरे पर खड़े हो कर गणेश की पूजा करना पुजारी को कतई स्वीकार नहीं था. उस ने फिर चिल्ला कर कहा, ‘‘ऐ लड़की… परे हट…’’ इस बार उस ने कमली की बांह पकड़ कर धक्का दे दिया.

अपनी पूजा में अचानक से आई इस बाधा से कमली ठिठक गई. उस ने खुद को गिरने से बचा कर सामने खड़े पुजारी को देखा और फिर हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘क्या हुआ पंडितजी, आप मुझे धक्का क्यों दे रहे हैं?’’

‘‘तो क्या मैं तेरी यहां आरती उतारूं…?’’ गुस्से से तमतमाते हुए पुजारी के मुंह से आग के गोले फूट पड़े, ‘‘तेरी हिम्मत कैसे हुई इस चबूतरे पर चढ़ने की… प्रभु की मूर्ति को गंदा कर दिया… चल भाग यहां से…’

कमली को अब भी समझ में नहीं आया कि यह पंडितजी को क्या हो गया… अब तक तो हमेशा उस ने इन से ज्ञान की बातें ही सुनी थीं, लेकिन… आज… उस ने फिर कहा, ‘‘गुस्सा क्यों होते हैं आप? सामने कोई लाइन तो थी नहीं, इसलिए मैं ऊपर चढ़ आई. बस, मंत्र खत्म होने ही वाले हैं,’’ कह कर उस ने फिर आंखें बंद कर लीं और मूर्ति के आगे अपने हाथ जोड़ लिए.

‘यह तो सरासर बेइज्जती है… एक लड़की की इतनी हिम्मत… पहले तो चबूतरे तक चढ़ आई और अब… कहने से भी पीछे नहीं हटती…’ सोच कर पुजारी बौखला गया और बादलों सा गरजा, ‘‘कोई है…’’

देखते ही देखते भगवा कपड़ों में 2 लड़के आ कर पुजारी के पास खड़े हो गए. कमली अब भी रटेरटाए मंत्रों को बोलने में ही मगन थी.

पुजारी ने दोनों लड़कों को इशारे में जाने क्या समझाया, दोनों ने कमली को पीछे धक्का देते हुए चबूतरे से नीचे गिरा दिया और फिर दोनों ओर से कमली को जमीन पर घसीटते हुए मंदिर के बाहर ले कर चले गए.

पुजारी ने अपने हाथ की उंगलियों को देखा और फिर अपनी नाक के पास ले जा कर सूंघते हुए नफरत से बोला, ‘‘इतनी सुबहसुबह फिर से दोबारा नहाना पड़ेगा.’’

मंदिर से जबरदस्ती निकाली गई कमली मंदिर के बाहर जमीन पर ही बैठ कर फफक पड़ी. कितने मन से उस ने रातभर जाग कर मां से कह कर गणेश के लिए लड्डू बनाए थे और फिर आज सुबह ही वह नहाधो कर नई फ्रौक पहने पूजा के लिए दौड़ी चली आई थी.

साथ ही, भाई को भी कह आई थी कि जल्दी से नहाधो कर मां से लड्डू व फलफूल की गठरी लिए मंदिर में चले आना. मां ने बड़ी जतन से घी, आटे का इंतजाम किया था.

कमली का भाई सूरज मंदिर के बाहर आ कर ठिठक गया. कमली धूलमिट्टी में अपने दोनों घुटने मोड़ कर बैठी हुई थी. उस की नई फ्रौक भी तो धूल में गंदी हो गई थी. माथे पर हाथ रख कर बैठी कमली ने सामने अपने भाई को देखा तो मानो उसे आसरा मिला.

‘‘क्या हुआ…’’ सूरज ने झट से गठरी उस के पास ही जमीन पर रख दी और उस के कंधे पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘तू तो यहां पूजा करने आई थी… फिर ऐसी हालत कैसे?’’

‘‘वह… पुजारी ने…’’ रोतेरोते कमली की हिचकियां बंध गईं. उस ने वैसे ही रोते हुए सूरज को सारा हाल कह सुनाया.

सबकुछ सुन कर सूरज भी ताव में आ गया और बोला, ‘‘यह पुजारी तो… खुद को भगवान का दूत समझ बैठा है… जो औरत पूरे महल्ले और मंदिर के बाहर की सफाई करती है, उस औरत की बेटी के छूने से मंदिर गंदा हो जाता है… वाह रे पंडित…’’

फिर उस ने कमली को भी फटकारते हुए कहा, ‘‘ऐसे भगवान की पूजा करने के लिए तू इतने दिनों से पगलाई थी, जो मूर्ति बने तेरी बेइज्जती होते देखते रहे… चल उठ यहां से… हमें कोई पूजा नहीं करनी…’’

‘‘लेकिन, ये लड्डू और…’’ कमली को अब अपनी मेहनत का खयाल हो आया. आखिर मां को रातभर जगा कर उस ने गणेश के लिए एक किलो लड्डू बनवाए थे. मेहनत तो थी ही, साथ ही रुपए भी लगे थे… उसे लगा, सबकुछ बरबाद हो गया.

‘‘कमली, मुझे ये लड्डू अब तो खाने को दे दे…’’ सूरज को पूजा से क्या लेनादेना था, वह तो बस अपने लिए ही परेशान था.

‘‘ले, तू सब खा ले…’’ कह कर कमली ने पास रखी पोटली गुस्से से सूरज के आगे कर दी और खुद खड़ी हो कर बोली, ‘‘मेरी तो मेहनत और मां के पैसे दोनों पर पानी फिर गया… बेइज्जती हुई सो अलग…’’ फिर मंदिर की ओर देखते हुए वह सूरज से बोली, ‘‘अब इस मंदिर में मैं कभी पैर न धरूंगी… मां ठीक कहती हैं… बप्पा भी मूर्ति बने सब देखते रहे… मेरा साथ उन्होंने न दिया… वे भी उसी पुजारी और लड़कों से मिले हैं…’’ फिर अपने आंसू पोंछ कर उस ने कहा, ‘‘अगर बप्पा को मेरी जरूरत नहीं है तो मुझे भी उन की जरूरत नहीं है, रह लूंगी मैं उन के बिना…’’ और फिर पैर पटक कर कमली घर की ओर जाने लगी, तो सूरज ने उसे रोकते हुए पूछा, ‘‘इन लड्डुओं का क्या करूं?’’

‘‘जो जी में आए… फेंक दे… जो मन करे वह कर…’’

‘‘गणेश को चढ़वा दूं…’’ सूरज ने अपना सिर खुजाते हुए पूछा.

‘‘बप्पा को… मगर, कैसे… इतनी बेइज्जती के बाद मैं तो अंदर न जाऊंगी और न तुझे जाने दूंगी… फिर कैसे…?’’

‘‘पुजारी ने तुझे गंदा कहा है न… अब यही तेरे हाथ के बने लड्डुओं को वह छुएगा और गणेश को चढ़ाएगा भी…’

‘‘मगर, कैसे…?’’

‘‘बस तू देखती जा…’’ कह कर सूरज मंदिर से थोड़ा आगे बढ़ कर एक ढाबे पर गया और वहां से मिट्टी के कुछ बरतन मांग लाया. फिर उस ने मंदिर के पास लगे नल से सभी बरतनों को धोया और फिर एक साफ पक्की जगह पर गठरी और बरतन ले कर जा बैठा.

मंदिर के बाहर अब श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी थी. सूरज ने गठरी खोल दी और आनेजाने वाले लोगों को देख कर आवाज लगाने लगा, ‘‘बप्पा के लिए घी के लड्डू… फलफूल समेत केवल 21 रुपए में.’’

और फिर क्या था, देखते ही देखते कमली के हाथ के बने लड्डू, फलफूल समेत एक श्रद्धालु और पुजारी के हाथों से होते हुए गणेश की मूर्ति को चढ़ गए. सूरज ने रुपयों का हिसाब किया, लागत से ज्यादा मुनाफा हुआ था.

सूरज ने सारे रुपए कमली के हाथ पर धर दिए और कहा, ‘‘ले… तेरी बेइज्जती का बदला पूरा हो गया. जिस के हाथ के छूने से गणेश मैले हुए जा रहे थे, उसी हाथ के बने लड्डुओं से वे पटे हुए हैं और वह पुजारी… आज तो वह न जाने कितनी बार मैला हुआ होगा…’’

सूरज की बात सुन कर कमली हंस दी और बोली, ‘‘कितनी बेवकूफ थी मैं, जो कितने दिनों से पैसे जमा कर के इन की पूजा करने का जुगाड़ कर रही थी. यही अक्ल पहले आई होती तो अब तक कितने पैसे बच गए होते…’’ फिर कुछ सोच कर वह बोली, ‘‘गणेश चतुर्थी का यह उत्सव तो अभी 3-4 दिन तक चलना है… क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बप्पा पर रोज मेरे ही हाथों का प्रसाद चढ़े…’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता… यहां बेवकूफों की कोई कमी है क्या…’’ फिर कुछ रुक कर सूरज ने आगे कहा, ‘‘तू एक काम कर, घर चली जा… कुछ देर आराम कर ले… मैं लाला से जा कर बेसन, घी, चीनी वगैरह ले आता हूं. कल फिर हम यहीं लड्डू बेचेंगे…’’

उधर मंदिर के अंदर पुजारी अपने साथ के लोगों को बताते नहीं थक रहा था कि कैसे आज एक अछूत लड़की के मलिन स्पर्श से उस ने अपने प्रभु को बचाया. और गणेशजी, उन्हें इस फलफूल, मानअपमान, स्पर्शअस्पर्श से कहां कुछ फर्क पड़ने वाला था. वे अब भी पहले के समान ही जड़ थे.

राइटर – एकता बृजेश गिरि

Latest Hindi Stories : मौडर्न दकियानूसी

Latest Hindi Stories :  घंटी की आवाज सुन कर अलका के दरवाजा खोलते ही नवागुंतक ने कहा, ‘‘नमस्कार, आप मुझे नहीं जानतीं, मेरा नाम पूनम है. मैं इसी अपार्टमैंट में रहती हूं.’’

‘‘नमस्कार, मैं अलका, आइए,’’ कहते हुए अलका ने पूनम को अंदर आने का निमंत्रण दिया.

‘‘फिर कभी, आज जरा जल्दी में हूं. कल गुरुपूर्णिमा है, गुरुजी के आश्रम से गुरुजी के अनुयाई आए हैं. उन के सान्निध्य से लाभ उठाने के लिए गुरुपूर्णिमा के अवसर पर हम ने घर में सत्संग का आयोजन किया है. उस के बाद महाप्रसाद की भी व्यवस्था है. आप सपरिवार आइएगा,’’ पूनम ने अलका से कहा.

‘‘सत्संग…’’ अलका ने वाक्य अधूरा छोड़ते हुए कहा.

‘‘हमारी गुरुमाता हैं, उन का मुंबई में आश्रम है. वे तो देशविदेश धर्म के प्रचारप्रसार के लिए जाती रहती हैं, लेकिन उन के अनुशासित शिष्य उन के काम को आगे बढ़ाते रहते हैं. हम उन के प्रवचन औडियो, वीडियो सीडी के जरिए दिखाते हैं. हम चाहते हैं ज्यादा से ज्यादा लोग गुरुमाई के विचारों को आत्मसात कर धर्मकर्म को अपनाएं. इस से उन के जीवन में सुख व शांति का प्रवाह होने के साथ उन का जीवन सफल होगा. यही नहीं दूसरों को भी उन के विचारों से अवगत करा कर उन के जीवन को भी सफल बनाने में सहयोग दें.’’

अलका इस अपार्टमैंट में कुछ दिनों पहले आई थी. सो, अभी तक उस का किसी से ज्यादा परिचय नहीं हुआ था. पूनम के निमंत्रण पर सोच में पड़ गई. वह कभी सत्संग में नहीं गई थी. उस ने अपनी सासुमां को टीवी पर कई बाबाओं का सत्संग सुनते देखा था. सब की एक ही बातें. एक ही चालें. अपनी करनी के चलते जब आसाराम जेल गए तो सासुमां को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था. बारबार वे यही कहती रहीं कि उन को फंसाया गया है. कई बार उस ने उन्हें सचाई बतानी चाही, तो उन्होंने उसे धर्म, कर्म से विमुख की उपाधि से विभूषित कर उस का मुंह बंद कर दिया था. नतीजा यह हुआ कि वह उन की बातें चुपचाप सुनती रहती थी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती थी. वैसे भी, उस का मानना था जिस ने अपने मनमस्तिष्क के दरवाजे बंद कर रखे हैं, उस को समझा पाना बेहद कठिन है.

अलका को इन बाबाओं पर कोई विश्वास नहीं था, क्योंकि उसे लगता था कि ये आम भोलेभाले इंसानों को फंसा कर उन्हें कर्म से विमुख कर, अकर्मण्य बना कर सिर्फ धर्म की अफीम चटा कर ही जीवनरूपी नाव को वैतरणी पार करने के लिए विवश कर रहे हैं.

साधुसंन्यासियों से सदा दूर रहने वाली अलका को इस समय पूनम के आग्रह को ठुकरा पाना उचित नहीं लग रहा था. अब उसे यहीं रहना है, सो, जल में रह कर मगर से बैर लेना उचित नहीं है. यह सोच कर उस ने जाने का मन बना लिया था. वैसे भी, इस अपार्टमैंट वालों से मेलजोल बढ़ाने का सुनहरा अवसर वह खोना नहीं चाहती थी.

सुबह 10 बजे से ही अपार्टमैंट में गहमागहमी शुरू हो गई. लगभग 11 बजे ढोलमंजीरों की आवाज सुनाई देने लगी. आवाज सुन कर घर का दरवाजा बंद कर वह पूनम के घर गई. वहां पूनम के अतिरिक्त कई अन्य स्त्रियां सुंदरसुंदर परिधानों में उपस्थित थीं, जबकि पुरुष बाहर खड़े थे, साधुओं के दल का इंतजार कर रहे थे.

कुछ ही देर में उस ने एक युवा को हाथ में चरणपादुकाएं तथा उस के पीछे भगवा वस्त्र पहने हुए लगभग 15-20 युवा युवकयुवती आते देखे. सभी लगभग 25 से 40 वर्ष की उम्र के होंगे. उन को देख कर अलका को आश्चर्य हुआ. जो उम्र किसी भी इंसान के कैरियर के लिए अत्यंत मूल्यवान होती है, उस उम्र में संन्यास लेना क्या उचित है? अभी वह सोच ही रही थी कि चरणपादुकाएं पकड़े युवक ने घर में प्रवेश किया. गृहस्वामिनी उस का स्वागत करते हुए उसे उस स्थान तक ले गई जहां गुरुमाई का एक बड़ा सा तैलीय चित्र एक लाल कपड़े वाले आसन पर रखा था. आगे वाले युवक ने चरणपादुकाएं आसन पर चित्र के सामने रख दीं.

दीप प्रज्ज्वलित कर सभी मेहमानों ने गुरुमाई के चित्र तथा चरणपादुका को फूलमालाएं पहना कर पूजा की. इस के बाद सभी लोगों ने अपनेअपने आसन ग्रहण किए. लगभग 2 घंटे तक पूजासत्संग चला. सब से पहले गुरुमाई की औडियो, वीडियो, सीडी द्वारा सभी अनुयाइयों को उन के संदेश सुनाए गए. आधा घंटा भजन चला तथा 10 मिनट का ध्यान व उस के बाद आरती हुई. आरती का थाल 50-100 रुपए के नोटों से भर गया था. आश्चर्य तो यह था कि किसी को 10-20 रुपए देने में आनाकानी करने वाली स्त्रियां थाल में बड़ेबड़े नोट डाल कर गर्वोन्मुक्त हो रही थीं.

आरती के बाद गुरुमाई का भोग लगा कर उन के शिष्यों को प्रसाद दिया गया. फिर दूसरे लोग महाप्रसाद के लिए बैठे. जो महिलाएं अभी आस्था से ओतप्रोत थीं, वही अब कपड़े, गहनों के साथ, सासबहू तो कुछ पतिपुराण पर भी आ गईं.

एक महिला ने अपना परिचय देते हुए अलका का परिचय पूछा. अलका के परिचय देने के बाद उस महिला ने जिस ने अपना नाम अर्चना बताया था, कहा, ‘‘आप यहां नएनए आए हो. गृहप्रवेश की पूजा करा ली होगी. आप ने किसी को बुलाया नहीं?’’

उस की बात सुन कर कई दूसरी महिलाओं के चेहरे अलका की ओर घूमे.

‘‘अर्चना जी, मैं तथा आलोक इन सब में विश्वास नहीं करते. हमारे लिए तो हर दिन एकसमान है. जिस दिन हमें सुविधा लगी, उस दिन हम ने शिफ्ट कर लिया.’’

‘‘अच्छा, विवाह तो शुभ मुहूर्त देख कर ही किया होगा,’’ अर्चना के बगल में बैठी शोभना ने पूछा.

‘‘विवाह का फैसला तो मेरे तथा आलोक के मातापिता का था, किंतु गृहप्रवेश का हमारा अपना,’’ अलका ने शोभना की आंखों में व्यंग्नात्मक मुसकान देख कर कहा.

‘‘क्या गृहप्रवेश में आप के और भाईसाहब के मातापिता नहीं आए थे?’’ शोभना ने फिर पूछा.

‘‘आए थे.’’

‘‘क्या उन्होंने विरोध नहीं किया?’’

‘‘नहीं,’’ कह कर अलका ने बेकार की चलती बहस को खत्म करने की कोशिश की.

‘‘शुभ समय देख कर किया हर काम अच्छा होता है वरना बाद में परेशानी आती है,’’ शोभना की बात सुन कर उस की पड़ोसिन रूचि भी कह उठी.

अलका ने किसी की भी बात का उत्तर देना अब उचित नहीं समझा. वैसे भी, उन लोगों की बात का क्या उत्तर देना जो अपनी सोच में इतने जकड़े हों कि दूसरों की बात व्यर्थ लगे.

पूनम के घर हर सोमवार, शाम को 7 से 8 बजे सत्संग होता था. 10 मिनट के ध्यान के समय वह दरवाजे के बाहर आ कर खड़ी हो जाती, जिस से वह हर आनेजाने वाले पर निगाह रख कर ध्यान करने वालों का ध्यान भंग होने से बचा सके. इस सत्संग में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की भागीदारी होती थी वह भी उन महिलाओं की जो स्वयं को अत्याधुनिक मानती थीं. कुछ तो जौब भी करती थीं. पूनम स्वयं महिला विद्यालय में रसायनशास्त्र की प्रवक्ता थी, इस के बावजूद उस की इतनी अंधभक्ति अलका को आश्चर्यचकित कर रही थी.

इस से अधिक आश्चर्य तो अलका को तब हुआ जब उस की पड़ोसिन रुचि ने उसे अपार्टमैंट में चल रही ‘सुंदरकांड किटी’ में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रण दिया. महिलाओं की सामान्य किटी तो उस ने सुनी थी, पर ‘सुंदरकांड किटी…’ वह सोच ही रही थी कि रुचि ने कहा, ‘‘अलकाजी, इस किटी में सुंदरकांड के पाठ के साथ सामान्य किटी की तरह ही आयोजक को आए अतिथियों के लिए खानपान का भी आयोजन करना होता है. इस बहाने धर्मकर्म के साथ हम महिलाएं अपना मनोरंजन भी कर लेती हैं.’’

अलका ने रुचि को नम्रतापूर्वक मना कर दिया था. लखनऊ में जेठ के महीने का हर मंगल ‘बड़ा मंगल’ माना जाता है. हर मंगल को किसी न किसी के घर से भंडारे का न्योता आ जाता. सुंदरकांड के साथ खानेपीने की अच्छीखासी व्यवस्था रहती थी.

प्रारंभ में अलका सामाजिकता निभाने चली जाती थी, किंतु धीरेधीरे उसे इन आयोजनों में अरुचि होने लगी. आस्था मन की चीज है, न कि दिखाने की. यही कारण था कि हर आयोजन उसे उस के करने वाले की प्रतिष्ठा का द्योतक लगने लगा था. आखिरकार, पहनावे से आधुनिक व विचारों से दकियानूसी महिलाओं का अपनी आस्था का भौंड़ा प्रदर्शन कर दूसरों को नीचा दिखाने को आतुर रहना उसे पसंद न था इसलिए ऐसी महिलाओं से उस ने दूरी बना लेना ही बेहतर समझा.

नतीजा यह हुआ कि धीरेधीरे आस्था के रंग में डूबी महिलाओं ने उसे नास्तिक की उपाधि से विभूषित कर उस का सामाजिक बहिष्कार करना प्रारंभ कर दिया. लेकिन, उस ने उन की इस मनोवृत्ति को भी सहजता से लिया. कम से कम अब उसे ऐसे आयोजनों में सम्मिलित न हो पाने पर बहाना बनाने से मुक्ति मिल गई थी.

Latest Hindi Stories : नीला दीप

Latest Hindi Stories : सुनीला गहरी नींद में थी कि उसे कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं. नींद की बेसुधी में उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह कहां है. फिर उसे हलकेहलके स्वर में ‘नीलानीला’ सुनाई देने लगा तो अचकचा कर नाइट लैंप जला दिया. तब उसे महसूस हुआ कि वह तो गोवा के एक होटल में है घर पर नहीं. पर किस की आवाज थी? कौन रात के 2 बजे थपथप कर रहा है?

मोबाइल में टाइम देखते हुए सुनीला ने सोचा, फिर थपथप की आवाज आई. आवाज की दिशा में उस ने घूम कर देखा कि बड़ी सी कांच की खिड़की को कोई बाहर से ठोक रहा है. सुनीला के बदन में सिहरन सी दौड़ गई जब देखा कि परदे खिसके हुए हैं और उस पार वही लड़का है जो उसे बीच पर मिला था.

‘‘हाऊ डेयर यू?’’ कहती सुनीला अपनी अस्तव्यस्त नाइटी को संभालने लगी, ‘‘गोगो… हैल्पहैल्प,’’ चिल्लाने लगी.

खिड़की के उस पार वह खड़ा कैसे है? यह सोच कर उस की धड़कनें तेज हो गईं. जल्दी से उस ने अपना चश्मा पहना और रिसैप्शन को फोन करने लगी.

इस बीच वह शीशे के पार से कुछ कह रहा था मानो कुछ इशारे भी कर रहा था और वही शौर्ट्स पहने हुए था जो शाम को उस ने पहना था. तभी दरवाजे पर बेल बजी, हलकी आवाज में कोई बोल रहा था, ‘‘आप ठीक तो हैं मैडम?’’

सुनीला ने जल्दी से दरवाजा खोल दिया. होटल का कोई कर्मचारी था. सुनीला ने आंख बंद कर खिड़की की तरफ इशारा किया.

‘‘यहां तो कोई नहीं है मैम, आप को कोई गलतफहमी हुई है. फिर वहां तो किसी के खड़े होने की जगह ही नहीं है,’’ कहते हुए होटल कर्मचारी ने परदे खींच दिए और न डरने की हिदायत दे कर चला गया.

सुनीला की आंखों से नींद उड़ चुकी थी. वह अब भी रहरह कर परदे खींचे खिड़की की तरफ देख रही थी और सहम रही थी. उसे महसूस हो रहा था कि वह अब भी वहीं खड़ा है. फिर चादर खींच, आंखें भींच सोने की असफल कोशिश करने लगी.

आज ही सुबह तो वह रांची से यहां अपनी दोस्त रमणिका के साथ पहुंची थी. गोवा आने का प्रोग्राम भी तो अचानक ही बना था. कुछ ही दिनों पहले रमणिका उस के घर आई हुई थी, घर में बहुत सारे मेहमान आए हुए थे जिन्हें सुनीला जानती भी नहीं थी. रमणिका को देखते ही वह खुश हो उठी.

‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं बिलकुल परेशान थी. न जाने कौनकौन लोग आए हुए हैं

2 दिनों से. बारबार मुझ से पूछ रहे हैं मुझे पहचाना बेटा? तंग हो कर मैं दरवाजा बंद कर बैठी हुई थी.’’

‘‘हां, मुझे तेरी मम्मी का फोन आया था कि तू परेशान है.’’

रमणिका ने कहा, ‘‘चल कहीं घूम कर आते हैं, तेरा मन बहल जाएगा.’’

‘‘हूं, रांची में अब क्या बचा है देखने को, बचपन से कई बार हर स्पौट पर जा चुकी हूं,’’ सुनीला ने रोंआसी हो कर कहा.

‘‘गोवा चलेगी?’’

रमणिका का ऐसा कहना था कि सुनीला खुशी से उछल पड़ी, ‘‘हां, वह तो सपना रहा है कि कभी गोवा जाऊंगी. मेरा तो मन था जब शादी होगी तो हनीमून मनाने वहीं जाऊंगी. चल अब जब शादी होगी तब की तब देखी जाएगी, अभी तो घर के इस दमघोटू माहौल से मुझे रिहाई चाहिए.’’

शाम होतेहोते उसी दिन होटल, हवाई टिकट सब बुक हो गए.

आज सुबह ही दोनों सहेलियां गोवा पहुंची थीं. होटल में सामान रख कर दोनों बीच पर गई ही थीं कि रमणिका को कोई जरूरी फोन आ गया. उस की मम्मी की तबीयत अचानक खराब हो गई और वह तुरंत रांची वापस जाना चाहती थी. सुनीला

का भी चेहरा उतर गया, पर रमणिका भी और सुनीला की मम्मी ने भी समझाया कि वह अकेले ही घूम ले.

‘‘बुकिंग बरबाद हो जाएगी, तू अकेले ही घूम ले. अपनी ही देश में है कोई विदेश में थोड़ी न हो. याद है क्वीन मूवी में तो कंगना ने अकेले ही घूम लिया था,’’ कहती हुई रमणिका वापस चली गई.

सच कहा जाए तो सुनीला को यह पसंद नहीं आया था पर सबकुछ इतनी जल्दीजल्दी हुआ कि वह विमुख सी खड़ी रह गई बीच पर.

कुछ देर समुद्र किनारे टहलने के बाद वह किनारों पर बने एक अच्छे से रेस्तरां की खुली जगह पर लगी कुरसी पर बैठ गई.

वहां से समुद्र का सुंदर नजारा दिख रहा था. उस का सिर अब तक भन्ना रहा था. न जाने कुछ महीनों से उसे क्यों ऐसा ही हर वक्त महसूस हो रहा था जैसे कुछ खो गया हो और दिल बेचैन सा रहता.

‘‘अरे आप अकेली क्यों बैठी हैं?’’ किसी की आवाज आई तो सुनीला ने पलट कर देखा.

एक हैंडसम सा लड़का यों कहें युवा रंगबिरंगे फूलों वाला शौर्ट्स पहन कर बड़ी धृष्टता से सामने की कुरसी खींच बैठ चुका था.

‘‘वह मेरी सहेली… अभीअभी कहीं गई है, आती ही होगी,’’ अचकचाते हुए सुनीला के मुंह से निकल पड़ा, फिर खुद को संभालते हुए बोल्ड फेस बनाते हुए कहा, ‘‘आप कौन हैं? यहां मेरे साथ क्यों बैठ रहे हैं?’’ उस के माथे पर पसीना छलछला गया था.

‘‘अरे आप घबरा क्यों रही हैं, बैठिएबैठिए. दरअसल, मैं आप की फ्रैंड को जानता हूं. मेरा नाम अनुदीप है आप चाहें तो दीप बुला सकती हैं. सुनीला क्या मैं तुम को नीला कह कर पुकारूं?’’

अचानक सुनीला के माथे पर सैकड़ों हथौडि़यां चलने लगीं और वह पीड़ा से छटपटाने लगी. जब होश आया तो खुद को उसी की बांहों में पाया जो पानी के छींटे मारते हुए बदहवास सा, ‘‘नीला… नीला…’’ कह रहा था.

खुद को संभालते हुए सुनीला उठ बैठी और अजनबियत निगाहों से तथाकथित अनुदीप को घूरते हुए अपने को उस से अलग किया और जाने का उपक्रम करने लगी.

‘‘नीला एक कप कौफी तो पीते जाओ, बेहतर महसूस करोगी.’’

सुनीला ने उस की यह बात मान ली. भयभीत हिरनी सी उस की आंखें अब भी सशंकित थीं.

‘‘नीला प्लीज डरो मत, मुझे ध्यान से देखो. क्या हम पहले कभी नहीं मिले हैं, ऐसा तुम्हें नहीं लग रहा?’’

सुनीला नजरें नीची कर कौफी पीती रही, ‘हूं…  बीच पर दारू पी कर खुद के होशहवास गुम हैं जनाब के और मजनूं बन रहे हैं, पर मेरा नाम इसे कैसे पता है? बातें गडमड होने लगीं, कहीं रमणिका ने…’ उस ने मन ही मन सोचा.

शाम की बातें सोचतेसोचते जाने कब वह फिर सो गई. सुबह देर तक सोती रही कौंप्लीमैंट्री ब्रेकफास्ट का वक्त निकल गया था.

रैस्टोरैंट में फिर वही सामने था, ‘‘नीला, लगता है तुम भी देर तक सोती रह गईं मेरी तरह.’’

व्हाइट शर्ट और ब्लू डैनिम में वह वाकई अच्छा दिख रहा था. सुनीला ने कनखियों से देखा. सहसा उसे रात की बात याद आ गई.

‘‘आप रात के वक्त मेरी खिड़की के सामने क्यों खड़े थे? मुझे तो लगा कि…’’ सुनीला ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘मैं तो तुम्हारा हाल पूछने आया था, पर तुम चिल्लाने क्यों लगीं और तुम्हें क्या लगा?’’

‘‘लगे तो तुम मुझे भूत थे और अब भी लग रहा है जैसे कोई भूत पीछे पड़ गया हो… हर जगह दिखाई दे रहे हो,’’ कहतेकहते सुनीला की आंखों में भय के डोरे पड़ने लगे क्योंकि सहसा ही वह वहां से गायब हो चुका था.

अगले कुछ क्षणों में सुनीला होटल के चौकीदार से गोआनी भूतों के किस्से सुन रही थी. डर से उस का रोआंरोआं कांप रहा था, भूतप्रेत पर वह पहले भी विश्वास करती ही थी. जब वह चौकीदार से बातें कर रही थी तो उसे दूर वह फिर फोन पर बाते करते हुए टहलता दिखा. अजीब असमंजस में सुनीला पड़ गई. उस ने चौकीदार से पूछा, ‘‘क्या आप को उधर सफेद शर्ट वाला व्यक्ति दिखाई दे रहा है?’’ उंगलियों से इंगित करते हुए उस ने पूछा, पर तब तक उस की ही आंखों से ओझल हो गया.

उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या करे. इस बीच मम्मी के कई फोन आ चुके थे. दिन में क्या कर रही हो, किधर घूमने जा रही हो?

‘‘याद है न बेटा डाक्टर ने क्या कहा था,’’ मम्मी बोल रही थी.

इधर कुछ दिनों से रांची के कई चिकित्सकों से वह मिल चुकी थी. उस की पैर की हड्डी टूटी थी सो अस्पतालों के कई चक्कर लगे थे. कुछ दिन ऐडिमट भी रही थी, दिनभर तरहतरह के डाक्टर आते और उस से बातें करते. सुनीला कहती भी थी हड्डी टूटने पर इतने डाक्टर की क्या जरूरत. ठीक होने पर एक डाक्टर ने ही कहा था.

‘‘सुनीला कुछ दिन कहीं बाहर घूम आओ, मन को अच्छा लगेगा.’’

‘‘पर डाक्टर मैं कालेज में पढ़ाती हूं, ऐसे कैसे जा सकती हूं?’’

फिर घर में लोगों के जमघट से परेशान हो आखिर निकल ही गई. काश, रमणिका साथ होती.

सुनीला अपने कमरे की तरफ जाने लगी… तभी मैनेजर ने पूछा, ‘‘हमारी एक टूरिस्ट बस नौर्थ गोवा के पुराने पुर्तगाली घर घुमाने जाने वाली है, एक सीट ही खाली है. सोचा आप से पूछ लूं.’’

अनमनी सी सुनीला बस में चढ़ गई. बैठने से पूर्व उस ने अच्छे से मुआयना किया कि कहीं वह तो नहीं. न पा कर तसल्ली से बैठ गई और बाहर के सुंदर दृश्यों का आनंद लेने लगी.

एक के बाद एक कई पुराने पुर्तगाली घर घुमाया गया, हर घर के साथ एक रहस्यमयी रोमांचकारी या कोई भूतिया कहानी जुड़ी हुई थी. वह तो अच्छा था कि ढेरों टूरिस्ट साथ थे वरना सुनीला की हालत पतली ही थी.

एक बंगला घूमते वक्त सुनीला एक आदमकद शीशे के समक्ष खड़ी थी कि पीछे से उसी का अक्स दिखाई दिया. व्हाइट शर्ट और ब्लू डैनिम में. डर के मारे सुनीला चिल्लाने लगी, ‘‘भूतभूत… चेहरा का रंग पीला पड़ गया और थरथर कांपने लगी.

बेचारा गाइड घबरा गया, ‘‘मैडम ये सब कहानियां सुनीसुनाई हैं, पर्यटकों के मनोरंजन के लिए हम इन्हें सुनाते हैं,’’ बेचारा गाइड सफाई देते नहीं थक रहा था.

कुछ महिलाओं की मदद से उसे बस में बैठा दिया गया और फिर सब घूमने लगे. खड़ी बस में वह अकेले सामने वाली सीट पर झुक कर विचारों में मगन हो गई. क्यों वह बारबार उसे दिख रहा? क्या किसी और को भी दिखता है या सिर्फ उसे ही.

‘क्या सचमुच भूत है या पूर्व जन्म का नाता? फिर वह नीलानीला क्यों बोलता है?’

सुनीला जैसे किसी किसी चक्रव्यूह में फंस गई थी. अभी 2 दिन गोवा में और रहना है पर उस का मन ऊब चल था. शादी के बाद ही आना सही रहता, बेकार में घूम भी लिया और उस भूत के चलते मजा भी किरकिरा हो गया. कुछ देर के बाद आंसुओं से सिना चेहरा उस ने ऊपर किया तो उसे जैसे करंट लग गया. वह उस की सीट के बिलकुल सामने उस की ओर देखते हुए नारियल पानी पी रहा था. सुनीला इतनी बेबस कभी नहीं हुई थी. खाली बस वह अकेली, डर से उस का गला भी बंद हो गया. उस ने लगभग घिघयाते हुए बमुश्किल पूछा, ‘‘कौन हो तुम? क्या चाहते हो मुझ से?’’

वह बस मुसकराता रहा. टूरिस्ट बस में आने लगे थे. उस ने कहा, ‘‘मैं बस तुम को देखना चाहता हूं.’’

ड्राइवर से कुछ बात कर वह सुनीला की बगल वाली सीट पर बैठ गया. सुनीला को तो जैसे काटो तो खून नहीं. वह उठ कर जाने लगी तभी बस चल पड़ी.

‘‘यानी यह भूत तो कतई नहीं है, इस ने बातें करी दूसरों से.’’

सुनीला मन ही मन गुथ रही थी. भूतिया डर जाने के बाद उस का मन हलका हो गया था.

‘वैसे है हैंडसम यह,’ उस ने मन ही मन सोचा. फिर तो बातों का सिलसिला ही निकल चला.

‘‘आप मेरी फ्रैंड को कैसे जानते हैं?’’

‘‘क्योंकि वह मेरे ही शहर की है.’’

‘‘यानी आप रांची से हैं? मैं भी तो… ’’

‘‘हां, मैं तुम्हें जानता हूं, तुम्हारे पूरे परिवार को भी.’’

अब चौंकने की बारी सुनीला की थी.

वह 2 दिन जिन्हें काटने में उसे परेशानी हो रही थी जैसे फुर्र हो गए. अपने शहर का लड़का और कई समानताएं उसे आकर्षित कर रही थीं. आखिरी शाम सुनीला ने उस का हाथ थाम कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या मुझ से शादी करोगे अनुदीप?’’

‘‘जरूरजरूर पर कितनी बार मुझ से शादी करोगी?’’ अनुदीप ने हंसते हुए पूछा.

‘‘हर जन्म में,’’ सुनीला ने भावुकता से कहा.

‘‘मैं इसी जन्म की बात कर रहा हूं.’’

सुनीला फिर चकित हो उसे देखने लगी. तभी रमणिका एक फोटो अलबम हाथ में लिए आते दिखी.

‘‘तुम कब आईं?’’ सुनीला ने पूछा.

‘‘मैं गई ही कब थी? मैं तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पर यहां लाई थी. परंतु अब जरा ध्यान से सारी बातें सुनो. तुम्हारी शादी 1 साल पहले अनुदीप से हो चुकी है. यहीं गोवा में तुम ने हनीमून भी मनाया है. पर रांची लौटने के पश्चात पतरातू घाटी में एक दिन तुम्हारा ऐक्सीडैंट हो गया. कार में तुम दोनों ही थे. चोटें तुम दोनों को आईं पर तुम्हें कुछ अधिक आघात पहुंचा जिस में तुम अपनी शादी की बात बिलकुल भूल गई. कहीं गोआ में तुम्हें अपना विगत याद आ जाए, यही सोच हम ने यह प्लान बनाया. यह अलबम देखो,’’ उस ने कहा.

सुनीला पन्ने पलटने लगी, हां यह अनुदीप ही है और यह मैं. वह चकित थी.

घर पर उस दिन आए हुए लोग भी हैं इस में. सामने अश्रुसिक्त नयनों से अनुदीप बैठा था.

‘‘अनुदीप जब अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर लौटा, तब तक वह तुम्हारे लिए अजनबी हो चुका था. वह कई बार तुम से मिला भी, तुम्हारी अजनबियत निगाहें उस का हृदय तोड़ देती थीं. रांची के प्रसिद्ध मनोचिकित्सकों ने तुम्हारा कई महीने इलाज किया. तुम पहले से अब काफी बेहतर हो, अनुदीप ने फिर से तुम्हारे दिल को जीतने के लिए यह ड्रामा रचा.’’

‘‘पर तुम ने तो उसे भूत ही बना दिया. वह अकसर मुझ से या तुम्हारी मम्मी से बातें करने के लिए तुम से अलग होता था. अब तुम जब उस से शादी करने के लिए राजी हो गई तो हम ने सोचा कि अब पटाक्षेप किया जाए. आंटी से बातें करो बहुत कठिन दिन गुजारे हैं उन्होंने’’

सुनीला अपनी मम्मी की बातें सुन रही थी साथ ही साथ सामने बैठे अनुदीप के चेहरे के बनतेबिगड़ते भावों को महसूस कर रही थी.

‘‘याद तो मुझे अब भी नहीं है पर मुझे अनुदीप पसंद है और यही बात मेरे लिए माने रखती है. तुम आधिकारिक तौर पर मेरे पति हो पर तुम ने कभी ऐसा कोई अधिकार नहीं जताया. आई लव यू.’’

‘‘मैं तुम्हें नीला और तुम मुझे दीप कहती थी,’’ भर्राए गले से अनुदीप ने कहा.

‘‘आधी रात को तुम खिड़की पर आखिर लटके कैसे थे, तभी तो तुम्हें भूत समझती रही?’’ हंसती हुई सुनीला ने पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी बगल वाले कमरे में था, दोनों की बालकनी

जुड़ी हुई थी, सिंपल. मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं तुम्हें देखना चाहता था, वह कर्मचारी शायद उनींदा था.’’

फिजां में लाखों दीप जलने लगे और आसमान से नीले फूलों की बरसात होने लगी.

Latest Hindi Stories : प्यार चढ़ा परवान

Latest Hindi Stories : प्रमिला और शंकर के बीच अवैध संबंध हैं, यह बात रामनगर थाने के लगभग सभी कर्मचारियों को पता था. मगर इन सब से बेखबर प्रमिला और शंकर एकदूसरे के प्यार में इस कदर खो गए थे कि अपने बारे में होने वाली चर्चाओं की तरफ जरा भी ध्यान नहीं जा रहा था.

शंकर थाने के इंचार्ज थे तो प्रमिला एक महिला कौंस्टेबल थी. थाने के सर्वेसर्वा अर्थात इंचार्ज होने के कारण शंकर पर किसी इंस्पैक्टर, हवलदार या स्टाफ की उन के सामने चूं तक करने की हिम्मत नहीं होती थी.

थाने की सब से खूबसूरत महिला कौंस्टेबल प्रमिला थाने में शेरनी बनी हुई थी, क्योंकि थाने का प्रभारी उस पर लट्टू था और वह उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी.

जिन लोगों के काम शंकर करने से मना कर देते थे, वे लोग प्रमिला से मिल कर अपना काम करवाते थे.

प्रमिला और शंकर के अवैध रिश्तों से और कोई नहीं मगर उन के परिजन जरूर परेशान थे. प्रमिला 1 बच्चे की मां थी तो शंकर का बड़ा बेटा इस वर्ष कक्षा 10वीं की परीक्षा दे रहा था.

मगर कहते हैं न कि प्रेम जब परवान चढ़ता है तो वह खून के रिश्तों तक को नजरअंदाज कर देता है. प्रमिला के घर में अकसर इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता था मगर प्रमिला हर बार यही दलील देती थी कि लोग उन की दोस्ती का गलत अर्थ निकाल रहे हैं. थाना प्रभारी जटिल केस के मामलों में या जहां महिला कौंस्टेबल का होना बहुत जरूरी होता है तभी उसे दौरों पर अपने साथ ले जाते हैं. थाने की बाकी महिला कौंस्टेबलों को यह मौका नहीं मिलता है इसलिए वे लोग मेरी बदनामी कर रहे हैं. यही हाल शंकर के घर का था मगर वे भी बहाने और बातें बनाने में माहिर थे. उन की पत्नी रोधो कर चुपचाप बैठ जाती थीं.

शंकर किसी न किसी केस के बहाने शहर से बाहर चले जाते थे और अपने साथ प्रमिला को भी ले जाते थे. अपने शहर में वे दोनों बहुत कम बार साथसाथ दिखाई देते थे ताकि उनके अवैध प्रेम संबंधों को किसी को पता न चलें. लेकिन कहते हैं न कि खांसी और प्यार कभी छिपाए नहीं छिपता, इन के साथ भी यही हो रहा था.

एक दिन शाम को प्रमिला अपने प्रेमी शंकर के साथ एक फिल्म देख कर रात देर से घर पहुंची तो उस के पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. दोनों में जम कर हंगामा हुआ.

प्रमिला के घर में घुसते ही अमित ने गुस्से से कहा,”प्रमिला, तुम्हारा चालचलन मुझे ठीक नहीं लग रहा है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारे और डीएसपी शंकर के अवैध संबंधों के चर्चे हो रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. 1 बच्चे की मां हो कर तुम किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो…”

अमित की बात बीच में ही काटती हुई प्रमिला ने शेरनी की दहाड़ती हुई बोली,”अमित, बस करो, मैं अब और नहीं सुन सकती… तुम मेरे पति हो कर मुझ पर ऐसे घिनौने लांछन लगा रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. मेरे और थाना प्रभारी के बीच दोस्ताने रिश्ते हैं. कई बार जटिल और महिलाओं से संबंधित मामलों में जब दूसरी जगह जाना पड़ता है तब वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं, जिस के कारण बाकी के लोग मुझ से जलते हैं और मुझे बदनाम करते हैं.

“अमित, तुम्हें एक बात बता दूं कि तुम्हारी यह दो टके की मास्टर की नौकरी से हमारा घर नहीं चल रहा है. तुम्हारी तनख्खाह से तो राजू के दूध के 1 महीने का खर्च भी नहीं निकलता है…समझे. फिर तुम्हारे बूढ़े मांपिता भी तो हमारी छाती पर बैठे हुए हैं, उन की दवाओं का खर्च कहां सा आता है, यह भी सोचो.

“अमित, पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. थाना प्रभारी के साथ मेरे अच्छे संबंधों की बदौलत मुझे ऊपरी कमाई में ज्यादा हिस्सा मिलता है, फिर मैं उन के साथ अकसर दौरे पर जाती हूं तो तब टीएडीए आदि का मोटा बिल भी बन जाता है. यह सब मैं इस परिवार के लिए कर रही हूं. तुम कहो तो मैं नौकरी छोड़ कर घर पर बैठ जाती हूं, फिर देखती हूं तुम कैसे घर चलाते हो?“

अमित ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि प्रमिला से बहस करना बेकार है. वह प्रमिला को जब तक रंगे हाथों नहीं पकड़ लेता तब तक वह उस पर हावी ही रहेगी. अमित के बुजुर्ग पिता ने भी उसे चुप रहने की सलाह दी. वे जानते थे कि घर में अगर रोजाना कलह होते रहेंगे तो घर का माहौल खराब हो जाता है और घर में सुखशांति भी नहीं रहती है.

उन्होंने अमित को समझाते हुए कहा,”बेटा अमित, बहू से झगड़ा मत करो, उस पर अगर इश्क का भूत सवार होगा तो वह तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनेगी. इस समय उलटा चोर कोतवाल को डांटने वाली स्थिति बनी हुई है. जब उस की अक्ल ठिकाने आएगी तब सबकुछ ठीक हो जाएगा.

“बेटा, वक्त बड़ा बलवान होता है. आज उस का वक्त है तो कल हमारा भी वक्त आएगा.“

अपने उम्रदराज पिता की बात सुन कर अमित ने खामोश रहने का निर्णय ले लिया.

एक दिन जब प्रमिला अपने घर जाने के लिए रवाना हो रही थी, तभी उसे शंकर ने बुलाया.

“प्रमिला, हमारे हाथ एक बहुत बड़ा बकरा लगने वाला है. याद रखना किसी को खबर न हो पाए. कल सुबह 4 बजे हमारी टीम एबी ऐंड कंपनी के मालिक के घर पर छापा डालने वाली है. कंपनी के मालिक सुरेश का बंगला नैपियंसी रोड पर है. हम आज रात उस के बंगले के ठीक सामने स्थित होटल हिलटोन में ठहरेंगे. मैं ने हम दोनों के लिए वहां पर एक कमरा बुक कर दिया है. टीम के बाकी सदस्य सुबह हमारे होटल में पहुंचेंगे, इस के बाद हमारी टीम आगे की काररवाई के लिए रवाना हो जाएगी. तुम जल्दी से अपने घर चली जाओ और तैयारी कर के रात 9 बजे सीधे होटल पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं पर मिलूंगा.“

“यस सर, मैं पहुँच जाऊंगी…” कहते हुए प्रमिला थाने से बाहर निकल गई.

सुबह ठीक 4 बजे सायरन की आवाज गूंज उठी. 2 जीपों में सवार पुलिसकर्मियों ने एबी कंपनी के बंगले को घेर लिया. गहरी नींद में सो रहे बंगले के चौकीदार हडबड़ा कर उठ गए. पुलिस को गेट पर देखते ही उनकी घिग्घी बंध गई. चौकीदारों ने गेट खोल दिया. कंपनी के मालिक सुरेश के घर वालों की समझ में कुछ आता इस से पहले पुलिस ने उन सब को एक कमरे में बंद कर के घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

प्रमिला को सुरेश के परिवार की महिला सदस्यों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया था.

करीब 2 घंटे तक पूरे बंगले की तलाशी जारी रही. छापे के दौरान पुलिस ने बहुत सारा सामान जब्त कर लिया.

कंपनी का मालिक सुरेश बड़ी खामोशी से पुलिस की काररवाई को देख रहा था. वह भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था, उसे पता था कि शंकर एक नंबर का भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है. उसे छापे में जो गैरकानूनी सामान मिला है उस का आधा तो शंकरऔर उस के साथी हड़प लेंगे, फिर बाद में शंकर की थोड़ी जेब गरम कर देगा तो वह मामले को रफादफा भी कर देगा.

बंगले पर छापे के दौरान मिले माल के बारे में सुन कर थाने के अन्य पुलिस वालों के मुंह से लार टपकने लगी. शंकर ने सभी के बीच माल का जल्दी से बंटवारा करना उचित समझा. बंटवारे को ले कर उन के अर्दली और कुछ कौंस्टबलों में झगड़ा भी शुरू हो गया. शंकर ने अपने अर्दली और अन्य कौंस्टबलों को समझाया मगर उन के बीच लड़ाई कम होने के बजाय बढ़ती ही गई.

शंकर ने छापे में मिला हुआ कुछ महंगा सामान उसी होटल के कमरे में छिपा कर रखा था. इधर बंटवारे से नाराज अर्दली और 2 कौंस्टेबल शंकर से बदला लेने की योजना बनाने लगे.

उन्होंने तुरंत अपने इलाके के एसपी आलोक प्रसाद को सारी घटना की जानकारी दी. उन्हें यह भी बताया कि शंकर और प्रमिला हिलटोन होटल में रूके हुए हैं.

उन्हें रंगे हाथ पकड़ने का यह सुनहरा मौका है. एसपी आलोक प्रसाद को यह भी सूचना दी गई कि कंपनी मालिक के घर पर पड़े छापे के दौरान बरामद माल का एक बड़ा हिस्सा शंकर और प्रमिला ने अपने कब्जे में रखा था, जो उसी होटल में रखा हुआ है.

एसपी आलोक प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत होटल हिलटोन पर पहुंच गए. इस मौके पर कंपनी के मालिक के साथसाथ शंकर की पत्नी और प्रमिला के पति को भी होटल पर बुला लिया गया ताकि शंकर और प्रमिला के बीच के अवैध संबंधों का पर्दाफाश हो सके.

एसपी आलोक प्रसाद ने डुप्लीकैट चाबी से होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो कमरे में शंकर और प्रमिला को बिस्तर पर नग्न अवस्था में सोए देख कर सभी हैरान रह गए.

एसपी को सामने देख कर शंकर की हालत पतली हो गई. वह बिस्तर से कूद कर अपनेआप को संभालते हुए उन्हें सैल्यूट करने लगा.

शंकर के सैल्यूट का जवाब देते हुए आलोक प्रसाद ने व्यंग्य से कहा,”शंकर पहले कपड़े पहन लो, फिर सैल्यूट करना. यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे भी कपड़े पहनने के लिए कहो…”

प्रमिला की समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. वह दौड़ कर बाथरूम में चली गई.

कुछ देर के बाद आलोक प्रसाद ने सभी को अंदर बुलाया. शंकर की पत्नी तो भूखी शेरनी की तरह शंकर पर झपटने लगी. वहां मौजूद लोगों ने किसी तरह बीचबचाव किया.

आलोक प्रसाद ने प्रमिला के पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा,”अमित, अपनी पत्नी को बाथरूम से बाहर बुला दो, बहुत देर से अंदर बैठी है, पसीने से तरबतर हो गई होगी…”

“प्रमिला बाहर आ जाओ, अब अपना मुंह छिपाने से कोई फायदा नहीं है, तुम्हारा मुंह तो काला हो चुका है और तुम्हारी करतूतों का पर्दाफाश भी हो चुका है,“ अमित तैश में आ कर कहा.

प्रमिला नजरें और सिर झुकाते हुए बाथरूम से बाहर आई. उसे देखते ही अमित आगबबूला हो उठा और वह प्रमिला पर झपटने के लिए आगे बढ़ा, मगर उसे भी समझा कर रोक दिया गया.

“अमित, अब पुलिस अपना काम करेगी. इन दोनों को इन के अपराधों की सजा जरूर मिलेगी…” कहते हुए आलोक प्रसाद शंकर के करीब पहुंचे  और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,”शंकर, कंपनी मालिक के घर छापे के दौरान जब्त माल कहां है? जल्दी से बाहर निकालो. कोई भी सामान छिपाने की तुम्हारी कोशिश नाकाम होगी, क्योंकि इस वक्त हमारे बीच कंपनी का मालिक भी मौजूद है.”

शंकर ने प्रमिला को अंदर से बैग लाने को कहा. प्रमिला चुपचाप एक बड़ा सूटकेस ले कर आई.

भारीभरकम सूटकेस देख कर आलोक प्रसाद ने एक इंस्पैक्टर से कहा,”सूटकेस अपने कब्जे में ले लो और इन दोनों को पुलिस स्टैशन ले कर चलो. अब आगे की काररवाई वहीं होगी.“

सिर झुकाए हुए शंकर और प्रमिला एक कौंस्टेबल के साथ कमरे से बाहर निकल गए हैं.

एसपी आलोक प्रसाद शंकर और प्रमिला को रोक कर बोले,”आप दोनों एक बात याद रखना, जो आदमी अपने परिवार को धोखे में रख कर उस के साथ अन्याय करता है, अनैतिक संबंधों में लिप्त हो कर अपने परिवार की सुखशांति भंग करता है और जो अपनी नौकरी के साथ बेईमानी करता है, उसे एक न एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.”

वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप खङे थे. उन्हें पता था कि अब आगे न सिर्फ उन की नौकरी छिन जाएगी, बल्कि जेल भी जाना होगा.

लालच और वासना ने दोनों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें