जीवन बीमा क्यों है जरूरी

हमारे देश में आज भी जीवन बीमा को ले कर लोगों में झिक है खासतौर से महिलाओं में. अधिकांश महिलाओं को तो जीवन बीमा के विषय में जानकारी ही नहीं होती. इन सब बातों को वे अपने पति पर छोड़ देती हैं. पति भी पत्नियों को बचत के तरीकों, अपने खातों की जानकारी, विकास पत्र या बीमा पौलिसी के बारे में अधिक जानकारी देने से बचते हैं.

हमारे यहां परिवार का आर्थिक बोझ उठाने की जिम्मेदारी अकसर पुरुषों के कंधों पर होती है. हालांकि अब बड़ी संख्या में  महिलाएं भी नौकरी कर रही हैं और घर की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में अपना योगदान दे रही हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखने का इंतजाम समय रहते कर लें.

घर की आर्थिक गाड़ी खींचने वाला व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष, उस के कंधों पर कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं. बच्चों की शिक्षा, उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को विदेश भेजने की ख्वाहिश, बेटी का अच्छा विवाह, अपना घर बनवाना और रिटायर होने के बाद भी आय का कोई सोर्स हर व्यक्ति चाहता है.

बीमा की उपयोगिता

इन तमाम जिम्मेदारियों को पूरा करने से पहले ही अगर घर के कमाऊ सदस्य के साथ कोई अनहोनी घट जाए तो सोचिए उस के लक्ष्यों का क्या होगा? परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए पैसे कहां से आएंगे? इस का सिर्फ एक इलाज है- जीवन बीमा. इस के जरीए सभी वित्तीय लक्ष्यों के लिए परिवार को सुरक्षा कवच मिल जाता है. जीवन बीमा परिवार के आत्मसम्मान की रक्षा करता है. घर के मुख्य कमाऊ सदस्य की अचानक मृत्यु के बाद परिवार को दूसरों पर आश्रित नहीं होना पड़ता है.

जीवन बीमा के बारे में आज हर व्यक्ति को जानने की जरूरत है. इस के विषय में ज्यादा से ज्यादा सवाल पूछने की जरूरत है. जीवन बीमा की उपयोगिता क्या है? यह कितनी रकम का होना चाहिए? इसे कब लेना चाहिए? ऐसे सभी सवालों के जवाब हम आप को दे रहे हैं.

अगर आप नौकरीपेशा हैं या अपना कोई व्यवसाय करते हैं तो आप को अपनी सालाना आमदनी का कम से कम 10 गुना जीवन बीमा कवर जरूर लेना चाहिए.

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क्यों खरीदें जीवन बीमा पौलिसी

मान लीजिए किसी व्यक्ति ने होम लोन ले कर घर खरीदा है. उस के बच्चे निजी स्कूल में पढ़ रहे हैं. घर के सभी प्रकार के खर्च के लिए परिवार उस व्यक्ति पर निर्भर है. अब यदि किसी बीमारी या दुर्घटना की वजह से उस व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उस के नहीं रहने की स्थिति में उस का परिवार सड़क पर न आ जाए, इस के लिए बीमा पौलिसी खरीदना जरूरी है.

बीमा कवरेज लेने से उस के नहीं होने की स्थिति में उस के आश्रितों को बीमा कंपनी से मुआवजा मिलेगा, जिस से उन का आगे का समय आसानी से कट सकता है. जीवन बीमा पौलिसी व्यक्ति के नहीं रहने की स्थिति में उस के परिवार को वित्तीय जोखिम से सुरक्षा देता है.

जीवन बीमा किसे लेना चाहिए

यदि व्यक्ति के परिवार में पत्नी है, बच्चे हैं और उस के मातापिता वृद्ध हैं तथा उन की अपनी कोई कमाई नहीं है तो उस व्यक्ति को निश्चित रूप से जीवन बीमा पौलिसी खरीदना चाहिए. जीवन बीमा पौलिसी खरीदने की सब से आम वजह किसी अप्रत्याशित घटना से परिवार को संरक्षण प्रदान करना है. जीवन बीमा पौलिसी से मुआवजे के रूप में मिली रकम का उपयोग कर परिवार के आश्रित सदस्यों के अगले कई सालों का खर्च उठाया जा सकता है.

अगर आप पर ऋण या देनदारी है

यदि किसी व्यक्ति ने लोन ले कर खरीदारी यानी घर खरीदा है या अपनी संपत्ति गिरवी रखी है, तो उसे जीवन बीमा पौलिसी अवश्य ले लेनी चाहिए. इस से उस के नहीं रहने की स्थिति में न सिर्फ उस के परिवार को उस कर्ज को चुकाने में मदद मिलेगी, बल्कि परिवार के लिए आमदनी का एक नियमित स्रोत भी बनेगा.

पार्टनरशिप फर्म में भागीदार

यदि आप के साथ पार्टनरशिप फर्म में शामिल कोई व्यक्ति है तो आप दोनों को जीवन बीमा पौलिसी खरीदनी चाहिए. इस प्रकार की पौलिसी आप के पार्टनर की मृत्यु होने की स्थिति में होने वाले किसी प्रकार के वित्तीय नुकसान की स्थिति में आप की फर्म को वित्तीय सुरक्षा देगी.

कब कराना चाहिए जीवन बीमा

नौकरी लगते ही आप को जीवन बीमा पौलिसी खरीद लेनी चाहिए. जीवन बीमा कवरेज लेने के लिए टर्म प्लान कम प्रीमियम में अधिकतम कवरेज हासिल करने का बेहतरीन विकल्प है. आप की उम्र जितनी कम होगी जीवन बीमा पौलिसी में आप का प्रीमियम उतना ही कम होगा.

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बीमा कितने समय के लिए कराना चाहिए

जब तक आप के परिवार के सदस्य अपने खर्च के लिए आप की कमाई पर निर्भर हों, आप को उतने समय का अंदाजा लगा कर ही बीमा पौलिसी खरीदनी चाहिए. आप जब तक अपने परिवार के लिए कमाने वाले महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं तब तक के लिए आप को जीवन बीमा कराना चाहिए.

आमतौर पर यह माना जाता है कि अगर आप की शादी 30 साल की उम्र में हो गई है और 35 साल की उम्र तक आप के 2 बच्चे हैं तो उन की पढ़ाईलिखाई आदि अगले 25 साल में पूरी हो जाएगी और तब तक वे जौब शुरू कर देंगे. इस हिसाब से आप को जीवन बीमा पौलिसी में 60-65 साल तक की उम्र के लिए लेनी चाहिए.

पत्नी की कमाई पर हक किस का

आज के जीवनस्तर और बढ़ती महंगाई को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि पत्नियां भी नौकरी करें. मगर समस्याएं तब खड़ी होती हैं जब वे पति से अलग अपनी पहचान की बात उठाती हैं और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहती हैं. घर का खर्च चलाना आज भी पति की ही जिम्मेदारी मानी जाती है, जबकि पत्नी की कमाई एक बोनस के रूप में ली जाती है. रचना एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर हैं. उन का कहना है, ‘‘रोजीरोटी चलाने लायक मेरे पति कमा ही लेते हैं. मैं घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारी सिर्फ घरखर्च में पैसा झोंकने के लिए ही नहीं उठा रही हूं. मैं यह कहने का अधिकार रखती हूं कि मेरा पैसा कहां और कैसे खर्च होगा. एक अफसर की हैसियत से औफिस में मेरी एक अलग छवि है, जिसे मुझे कायम रखना होता है. उसी तरह घर, पति और बच्चों की इमेज भी बनाए रखनी होती है वरना लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे.’’

लेकिन पति कुछ और ही सोचते हैं. इस संबंध में सोनिया कहती हैं, ‘‘मेरे पति अपनी आर्थिक सुरक्षा को ले कर कुछ ज्यादा ही चिंतित रहते हैं. इसलिए वे अपनी सारी सैलरी निवेश कर मुझ से ही घर का खर्च चलवाना चाहते हैं.’’ सोनिया के पति का तर्क है, ‘‘आखिरकार, मैं घर की भलाई के बारे में ही तो सोचता हूं. ऐसा कर के मैं क्या बुरा करता हूं? क्या परिवार की सुरक्षा, इमेज बनाए रखने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है?’’

यहां पर पतिपत्नी दोनों की प्राथमिकताएं अलगअलग होने के कारण ही उन में टकराव होने की स्थिति उत्पन्न हो गई है. लेकिन वे शरद और ऊषा से इस टकराव से बचने का उपाय जान सकते हैं. आर्किटेक्ट ऊषा एम.ई.एस. में कार्यरत हैं. नईनई शादी और नयानया परिवार. शरद का हुक्म सिरमाथे पर लिए ऊषा शरद की हर बात मान कर खुश थीं. शरद की यह सलाह कि घर का खर्च ऊषा के वेतन से चलेगा और शरद का वेतन बचत खाते में जमा होगा, भी ऊषा ने सहर्ष मान ली, क्योंकि दोनों का पैसा साझा ही तो था. इसलिए कौन सा खर्च हो रहा है, कौन सा जुड़ रहा है, यह बात कोई खास माने नहीं रखती थी

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भविष्य की सुरक्षा

शरद के अत्यंत खर्चीले स्वभाव ने शीघ्र ही ऊषा को अपनी भूल का एहसास करा दिया. शरद अपने वेतन से कुछ भी बचत न कर सारा पैसा कीमती उपहार खरीदने, महंगे होटल व रेस्तरां में खाने पर खर्च कर देते थे. हालांकि वे ऊषा के लिए भी महंगी साडि़यां, कीमती आभूषण तथा कौस्मैटिक्स लाते थे. ऊषा चाहती थीं कि भविष्य की सुरक्षा को ध्यान में रख कर पैसा निवेश किया जाए. वे जानती थीं कि बच्चों के आने पर खर्चे बढ़ेंगे और तब उन्हें ज्यादा पैसों की जरूरत होगी. इसी बात को ले कर शरद और उन के बीच काफी तनाव चलता रहता. ऊषा का कहना था कि शरद अपना आधा वेतन घरखर्च के लिए दिया करें ताकि वे अपना आधा वेतन बचा सकें. वे अपनी बात पर दृढ़ थीं. शरद को उन की बात माननी ही पड़ी. यह स्पष्ट है कि आज की पत्नी अपनी पहचान के प्रति जागरूक है. तब तो और भी ज्यादा जब वह कमाऊ बीवी हो. इसलिए अगर वह अपना अलग बैंक बैलेंस तथा अपने धन का सारा कारोबार साझा रखना चाहती है, तो ऐसा वह स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए ही करती है. कानून किसी भी साझी वैवाहिक संपत्ति को मान्यता नहीं देता.

अहं का टकराव

अनिल और रेहाना का ही उदाहरण लें. अंतर्जातीय विवाह करने के कारण दोनों को ही अपनेअपने घर से कुछ नहीं मिला. चूंकि दोनों अच्छा कमा रहे थे, इसलिए उन्होंने कुछ ही वर्षों में दिल्ली में, जहां वे कार्यरत थे, अपने लिए एक मकान खरीद लिया. लेकिन धीरेधीरे उन का आपसी मतभेद और अहं का टकराव इतना बढ़ा कि बात तलाक तक आ पहुंची. अनिल ने अपना सामान कहीं और शिफ्ट कर लिया. जब उन्होंने पत्नी रेहाना से भी सामान शिफ्ट करने के लिए कहा तो रेहाना को आघात लगना स्वाभाविक था. तब रेहाना ने कारण जानना चाहा. इस बात पर अनिल ने बताया कि उन्होंने मकान बेच दिया है. उस समय रेहाना के पास बैंक में सिर्फ 1 हजार रुपए ही पड़े थे, क्योंकि रेहाना ने अपना सारा रुपया प्रौविडेंट फंड, फिक्स्ड डिपौजिट तथा मकान पर खर्च कर दिया था.

इस स्थिति में रेहाना अपने पति पर ‘बेनामी ट्रांजैक्शन ऐक्ट’ के तहत मुकदमा जरूर दायर कर सकती थीं. लेकिन इस के लिए न तो वे आर्थिक रूप से सक्षम थीं और न ही एक लंबी कानूनी लड़ाई के लिए उन के पास भावनात्मक स्थिरता, धैर्य और समय था. अपनी कमाई के कुछ हिस्से पर अपना अधिकार जता कर स्त्री कुछ गलत या अपराध नहीं करती. पुरुषों के वर्चस्व वाले समाज में स्त्री आज भी असुरक्षित है. अपनी रक्षा और देखभाल उसे स्वयं ही करनी है वरना वह प्रबुद्ध और आधुनिक होने के बावजूद आर्थिक मामले में भी पुरुषों द्वारा दबाई जाती रहेगी.

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7 TIPS: ताकि शिफ्टिंग न बनें सिरदर्द

कुछ कार्डबोर्ड बॉक्स, पैकिंग रोप, बबल रैप और हो गई पैकिंग. पर काश पैकिंग इतनी आसान होती. घर शिफ्ट करना बहुत बड़ा काम है, पर यह उतना भी मुश्किल नहीं है. बस अच्छे मैनेजमेंट से यह पहाड़ जैसा काम आप आराम से कर सकती हैं.

ट्रांसफ्रेबल जॉब हो या न हो पर घर तो बदलना ही पड़ता है. बेचलर्स को घर बदलने में और ज्यादा दिक्कतें आती हैं. पर ये काम आप बिना मूवर्स और पैक्सर्स की सहायता के आसानी कर सकती हैं. कुछ लोग तो मूविंग और पैकिंग को भी आर्ट मानते हैं.

ये टिप्स अपनाकर करें आसानी से शिफ्टिंग-

1. न बनायें सामान का पहाड़ 

अपने सामान को एक जगह इकट्ठा कर पहाड़ न बनायें. ऐसा करने से आप और ज्यादा कन्फ्यूज हो जाएंगी. कौन सी चीज कहां रखी है, यह ढूंढने में ही आपका किमती वक्त बर्बाद होगा.

2. बनायें चीजों की लिस्ट

आप अपने घर में मौजूद चीजों और सामानों की लिस्ट बना लें. इसमें 1 से ज्यादा दिन का वक्त लगेगा, क्योंकि कई बार हम खुद ही भूल जाते हैं कि हमारे घर में क्या है और क्या नहीं है.

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3. अलग कर लें सामान

लिस्ट तैयार होने के बाद आप ये तय करें कि कौन से सामान आपको डोनेट करने हैं, कौन से बेचने हैं और कौन से दोस्तों को देने हैं. आमतौर पर यह काम लोग बाद में करने के लिए टाल देते हैं. पर यह काम सबसे पहले करने में ही समझदारी है. इससे आपके सामान का पहाड़ भी नहीं बनेगा और आपके पास वही सामान रहेगा जो आपको चाहिए. इससे पैकिंग करने में भी आसानी होगी. डोनेट करना एक अच्छा तरीका है, इससे किसी जरूरतमंद की मदद भी हो जाती है और साथ ही आपके पास ज्यादा सामान भी इकट्ठा नहीं होता.

4. शुरुआत हो जल्द से जल्द

पैकिंग की शुरुआत जितनी जल्दी होगी आप उतनी ही आसानी है शिफ्ट कर लेंगी. शिफ्ट करने के 3-4 हफ्ते पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू कर दें. जिस कमरे के सामान को आप कम से कम इस्तेमाल करती हैं, पैकिंग की शुरुआत वहां से करें.

5. बॉक्स पर लगायें लेबल

अगर आप कार्टन में सामान पैक कर रही हैं तो उन पर लेबल लगाना न भूलें. लेबल में कार्टन के अंदर के सामान के बारे में लिखें और ये भी लिखें कि वो सामान कौन से कमरे में रखा जाएगा. इससे अनपैकिंग में सुविधा होगी.

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6. पैकिंग हो सही

पैकिंग के लिए सही कार्टन का चुनाव जरूरी है. टूटने वाली चीजों को बबल रैप कर पैक करें.

7. एक अलग बॉक्स में रखें जरूरी सामान

शिफ्टिंग के बाद नए घर आपको जिन चीजों की तुरंत जरूरत होगा उन्हें एक अलग बॉक्स में रखें. जैसे की बेडशीट्स, कपड़े, कंबल, दवाईयां आदि. इससे आपको जरूरत की चीजें ढूंढने में परेशानी नहीं होगी.

Coronavirus: सावधानी अभी भी जरूरी

लंबे समय तक कोविड-19 की दहशत की वजह से सबकुछ बंद रहा. लोगों की रोजीरोटी पर ताला लग गया. गरीबों के लिए खाने के लाले पड़ गए. बहुतों की नौकरी छूट गई तो कितनों ने अपनों को खोया. जिंदगी जैसे थम सी गई थी. पर फिर समय के साथ लोग रोजगार के लिए घर से निकलने लगे.

इधर कोविड की भयावहता कुछ कम हुई तो सरकार ने भी धीरेधीरे कर लौकडाउन हटा दिया. जिंदगी पुरानी दिनचर्या पर लौट आई. लोगों के दिलों से कोविड का डर चला गया और वे पहले की तरह बेफिक्र घूमने और खानेपीने लगे.

मगर क्या यह सही है? क्या सच में कोविड-19 का संकट चला गया? बिलकुल नहीं. ऐसा सोचना भी बेमानी है वरना कई देशों में पहले की तरह फिर से लौकडाउन न लगाना पड़ता.

आम जनता के लिए यह बात समझनी जरूरी है कि कोविड का संकट खत्म नहीं हुआ है. यह नएनए वैरिएंट्स के साथ अभी भी हमें अपने आगोश में लेने को तत्पर है. हाल ही में इस के नए वैरिएंट ओमीक्रोन का पता चला है. इसलिए हमें अभी भी हर कदम बहुत फूंकफूंक कर चलना चाहिए. जरूरी काम हो तो ही निकलना सही है.

कोविड नियमों की अनदेखी पड़ेगी भारी

लोगों को मौका मिलना चाहिए. कभी त्योहारी सीजन तो कभी रिश्तेदारियां निभाने की जुगत और कभी जरूरी काम का बहाना, लोग कोरोना नियमों के प्रति लापरवाही करते नजर आते हैं, जबकि ये सावधानियां उन के खुद के भले के लिए जरूरी हैं. जिंदगी में स्वस्थ बने रहने से जरूरी कुछ नहीं होता.

मगर लोग कई बार अपनी इसी सेहत को नजरअंदाज कर देते हैं. कभी जान कर और कभी अनजाने में, कभी अज्ञानता में और कभी विवशता में वे ऐसा करते जाते हैं और बाद में पछताते हैं.

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कोरोना के मामलों में कमी को कई लोग इस का समाप्त होना ही मान बैठे हैं. यही वजह है कि यहांवहां लोग बिना मास्क निकल जाते हैं और भीड़ का हिस्सा भी बनते हैं. इस त्योहारी सीजन के दौरान भी लोगों ने घंटों भीड़ में रह कर शौपिंग की. वे यह भूल गए कि बिना मास्क और भीड़ में खड़े हो कर वे कोरोना संक्रमण को फिर से न्योता देने लगे हैं.

याद रखिए वैक्सीन यकीनन कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बड़ा हथियार है, लेकिन कोविड हमें चपेट में नहीं लेगा, यह सोचना बिलकुल गलत है. बस कुछ ऐसी ही सोच के बाद कई लोग वैक्सीन की दोनों डोज ले कर बाजार में बिना मास्क और शारीरिक दूरी बनाए बिना घूम रहे हैं जो अपनी और दूसरों की जान को जोखिम में डाल रहे हैं.

भीड़ में जाने की जरूरत क्या है

शाम से रात तक के समय में बाजारों में भीड़ बहुत ज्यादा रहती है. अभी के समय में उस भीड़ में जा कर खरीदारी करना सुरक्षित नहीं है क्योंकि उस धक्कामुक्की वाली भीड़ में 2 गज क्या 2 इंच की भी दूरी नहीं रह जाती. फिर भी लोग इसी समय घर से निकलते हैं. दरअसल, औफिस जाने वालों को शाम के बाद ही निकलने का समय मिलता है.

जो महिलाएं घर पर रहती हैं वे भी सोचती हैं कि शाम में पति आ जाएं तो मिल कर शौपिंग करेंगे. वैसे भी लोग शाम में ही फ्री होते हैं वरना दिन में कभी बच्चों की पढ़ाई, कभी रिश्तेदारों का आना और कभी घर के कामों में महिलाएं व्यस्त रहती हैं. शाम में मौसम भी अच्छा हो जाता है और बाहर निकलना सुविधाजनक लगता है. यही वजह है कि सब को वही समय सूट करता है. मगर याद रखिए भीड़ में जाना कुछ इस तरह खतरनाक हो सकता है.

महिलाएं अकसर बच्चों को साथ ले कर बाजार जाती हैं. छोटे बच्चे मास्क नीचे खिसका कर इधरउधर चीजें छूते हैं और कई बार उन्हें मुंह में भी डाल लेते हैं. वे अपने हाथों से भी बारबार दुकान के सामान, गेट, दरवाजे या दूसरी चीजों को छूते हैं और फिर उन्हीं हाथों को आंखों या मुंह से लगा लेते हैं.

महिलाएं खुद भी सावधान नहीं रह पातीं. कई दफा वे मास्क भूल जाती हैं तो दुपट्टे से मुंह ढकने का प्रयास करती हैं. कोई सहेली मिल जाए तो दूरी बरकरार रखना छोड़ गले मिल लेती हैं या बारबार दूसरे के हाथों को, कपड़ों या दूसरी चीजों को छूने लगती हैं.

भीड़ में न चाहते हुए भी लोग एकदूसरे से टच होते ही रहते हैं. ऐसे में आप को पता भी नहीं चलता कि किस ने वायरस की सौगात आप को दे दी.

बीमार न कर दे यह शौक

कई महिलाएं बाजार जाती हैं तो गोलगप्पे, समोसे, चाट जैसी आइटम्स खाए बिना नहीं रह पातीं. उन की यह आदत अब भी नहीं छूटी है. भीड़ लगा कर ठेले वालों से गोलगप्पे खाने के चक्कर में वे किस आफत को गले लगा रही है उन्हें इस का एहसास भी नहीं होता.

जब आप भीड़ के समय निकलती हैं तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हालत भी बुरी रहती है. आप के पास अपनी गाड़ी है तब तो ठीक है, मगर जब आप बाजार जाने के लिए बस, मैट्रो औटो आदि का इस्तेमाल करते हैं तो भीड़ के समय खास सावधानी की जरूरत होती है. बाहर खानेपीने का शौक सब को होता है. रैस्टोरैंट्स खुल चुके हैं. दूसरों को बाहर खाता देख आप भी खुद को रोक नहीं पाते. मगर यह शौक आप को बीमार कर सकता है.

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महिलाएं घर की धुरी होती हैं. उन्हें ही सारा घर संभालना होता है. खाना बनाना होता है और बच्चों की देखभाल भी करनी होती है. ऐसे में अगर वे कोविड-19 का शिकार होती हैं तो पूरा घर उस की चपेट में आ जाएगा. इसलिए बहुत जरूरी है कि वे अपना खयाल रखें. ज्यादा बाहर निकलने से बचें और खुद और परिवार को सुरक्षित रखें.

सावधानी रखें

– बेहतर होगा कि भीड़ के समय निकलना अवौइड करें.

– बच्चों को साथ ले कर न जाएं और जितना हो सके अपने वाहन का इस्तेमाल करें. कोविड के डर को अभी अपने मन में जिंदा रखें.

– अगर बच्चे जिद कर रहे हैं तो भी अभिभावक भीड़भाड़ को बिलकुल अनदेखा न करें.

– कोशिश करें कि दोपहर में ही खरीदारी के सारे काम निबटा लें. वैसे भी उस वक्त सारा काम कम समय में आसानी से हो जाता है. देर शाम भीड़भाड़ में न निकलें.

– केवल 1 मास्क पहनना काफी नहीं है बल्कि डबल मास्क का इस्तेमाल करें.

– बाहर निकलते समय साथ में सैनिटाइजर जरूर रखें और समयसमय पर उस का इस्तेमाल जरूर करें.

– खुली जगहों पर जाएं और 1-2 घंटों के भीतर लौट आएं. बच्चों पर विशेष ध्यान दें. 10 साल से नीचे की उम्र के बच्चों को साथ ले कर न जाएं.

– फिलहाल खुली जगह पर खानेपीने से बचें.

– गैरजरूरी चीजों की खरीदारी न करें तो ही बेहतर होगा.

– अलगअलग जगहों से ज्यादा खरीदारी करनी हो तो दस्तानों का इस्तेमाल जरूर करें.

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बुनाई की एबीसीडी

लेखिका-सरिता वर्मा 

निटिंग का मौसम फिर से लौट आया है और इस बार अपने साथ बुनाई के नए ट्रैंड भी साथ लाया है. लेकिन बुनाई शुरू करने से पहले यदि कुछ बुनियादी बातों की जानकारी न हो तो कहीं बुनाई में सफाई नहीं आती तो कहीं किनारा सिकुड़ जाता है. ऐसा न हो, इस से बचने के लिए अगर आप बुनाई की बुनियादी तकनीकी बातें जान लेंगी तो जो भी बुनेंगी, जिस डिजाइन में बुनेंगी उस में जान आ जाएगी.

ऊन की किस्में

जानवरों के बालों से बनने वाला ऊन: प्योर वूल, अंगोरा, मोहार, सिल्क अलपाका.

सब्जियों से बनने वाला ऊन:  कौटन लाइनन.

मैन मेड वूल: नायलौन व एक्रीलिक ऊन कई फाइबर्स से बनता है.

ऊन में एक सिंगल धागे को प्लाई कहते हैं और कई प्लाई को आपस में ट्विस्ट कर के धागा बनता है. धागा जितना मोटा बनाना होता है, उतनी ही प्लाई का प्रयोग होता है.

ऊन खरीदते समय

– हमेशा अच्छी कंपनी का ऊन खरीदें.

– ऊन हमेशा दिन में खरीदें और शेडकार्ड देख कर रंग का चयन करें. रंगों की विशाल रेंज बाजार में मौजूद हैं.

– बच्चों के लिए नरममुलायम बेबी वूल खरीदें, ताकि त्वचा को नुकसान न हो.

– ऊन ज्यादा ही खरीदें ताकि स्वैटर बुनते वक्त वह कम न पड़े. ऊन कम पड़ने पर व दोबारा खरीदने पर रंग में फर्क आ सकता है.

– स्वैटर बनाने के लिए हमेशा अच्छी कंपनी की सलाई लें. मोटे ऊन के लिए मोटी सलाई व पतले ऊन के लिए पतली सलाई का प्रयोग करें.

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बौर्डर व डिजाइन

– 2 प्लाई महीन ऊन, 12 नंबर की सलाई,

11 नंबर की सलाई.

– 3 प्लाई बीच की, 11 नंबर की सलाई, 10 नंबर की सलाई.

– 4 प्लाई सामान्य, 10 नंबर की सलाई, 9 या 8 नंबर की सलाई.

– 6 प्लाई मोटी या डबल निट, 6 या 7 नंबर की सलाई.

बुनाई करने से पहले: बुनाई करने से पहले निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें:

– जिस के लिए स्वैटर बुनना है, उस की उम्र, पसंद व रंग का खयाल रख कर ही ऊन खरीदें.

– यदि स्वैटर बनाते समय सही सलाई का प्रयोग नहीं करेंगी तो स्वैटर अच्छा नहीं बनेगा.

– जब भी 2 रंगों के ऊन का प्रयोग करें, उन की मोटाई और किस्म एक समान होनी चाहिए.

– जब आप एकसाथ कई रंगों के ऊन का प्रयोग करें, तो बुनाई ढीले हाथों से करें.

– जब भी आप हलके रंग, जैसे सफेद, क्रीम या किसी भी ऊन का प्रयोग करें, हाथों में टैलकम पाउडर अवश्य लगा लें.

– स्वैटर हमेशा एक ही व्यक्ति द्वारा बुना जाना चाहिए क्योंकि हर किसी की बुनाई में फर्क होता है.

– जब भी बुनाई करें कभी भी आधी सलाई पर फंदे न छोड़ें, नहीं तो बुनाई में छेद आ जाते हैं. हमेशा सलाई पूरी कर के छोड़ें.

– अगर कोई फंदा गिर गया हो तो क्रौस हुक का प्रयोग करें.

– फंदा हमेशा डबल ऊन से ही डालें.

– हर सलाई शुरू करने से पहले पहला फंदा बिना बुनें उतारें. इस प्रकार स्वैटर के दोनों तरफ एक जाली सी बन जाएगी, जिस से स्वैटर सिलने में आसानी रहेगी.

– स्वैटर बनाते समय गांठ हमेशा किनारे पर लगाएं. इस से स्वैटर पीछे की तरफ साफ रहेगा.

– स्वैटर को एक फंदा सीधा, एक फंदा उलटा बुनते हुए बंद करें.

– स्वैटर की सिलाई हमेशा इकहरे ऊन से करें.

– अपने हाथ के खिंचाव को जांच लें. उसी हिसाब से सलाई का प्रयोग करें.

– सही नाप का स्वैटर बनाने के लिए सही फंदों का पता होना आवश्यक है. जो भी डिजाइन डालना चाहती हैं, उस का 4×4 इंच का चौकोर टुकड़ा बुनें. अगर नमूना साफ नजर आ रहा हो, तो 4 इंच लंबाई में बुनी हुई सलाइयों के अनुसार पूरा स्वैटर बन जाएगा.

सही डिजाइन का चुनाव: डिजाइन का चुनाव व्यक्ति की उम्र को देखते हुए करें. बच्चों के लिए और बड़ों के लिए डिजाइन अलगअलग होती हैं. साथ ही, समय के साथ डिजाइन का चुनाव करें. बहुत पुरानी डिजाइन का स्वैटर न बना कर नए डिजाइनों की तलाश करें. थोड़ी सी सूझबूझ और परिश्रम से आप नए और लेटैस्ट स्वैटर बना सकती हैं.

ऐसे भी कला का कोई अंत नहीं है. आप केबल, कढ़ाई ग्राफ का डिजाइन, बीड्स, सीक्वैंस, मोटिफ लगा कर डिजाइन को नए तरीके से सजा सकती हैं. बस एक बात का ध्यान रखें. बच्चों के स्वैटर हमेशा बेल, जानवर वाले डिजाइन, केबल या ग्राफ से बना कर उन्हें आकर्षक रूप प्रदान करें और बड़ों के स्वैटर में बहुत ज्यादा जाल वाले डिजाइन डालने से बचें. जब केबल डालें तो 10-12 फंदे ज्यादा लें, नहीं तो स्वैटर टाइट बनेगा.

स्वैटर पर कढ़ाई के लिए क्रौस स्टिच, लेजीडेजी, डंडी स्टिच (स्टैम स्टिच) भरवां आदि से कढ़ाई करें. कढ़ाई हमेशा हलके हाथों से करें. कढ़ाई करते समय स्वैटर के नीचे की तरफ कागज या पेपर फोम का इस्तेमाल करें.

इसी तरह स्वैटर पर बीड्स या नग, सीक्वैंस लगाते समय हमेशा बारीक सूई का इस्तेमाल करें. जब भी बीड्स या नग लगाएं, स्वैटर के रंग का धागा इस्तेमाल करें. अगर दूसरे रंग का धागा लगाएंगी तो धागा चमकेगा और स्वैटर की खूबसूरती खराब हो जाएगी.

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गला बनाने के लिए: स्वैटर बना कर गला बनाने के लिए एक तरफ का कंधा सिल कर दूसरी तरफ के फंदा धागे में डाल लें. सलाई पर गला बना कर पहले गले की पट्टी को सिल कर इन फंदा को आपस में जोड़ लें.

‘वी’ गले को 2 सलाइयों पर बनाने के लिए व ‘वी’ शेप देने के लिए जैसे सीधा तरफ से

3 फंदा का 1 करते हैं, वैसे ही उलटी तरफ से भी 3 फंदा का 1 करें. इस से गले में सफाई रहेगी.

– छोटे बच्चों के लिए गोल गले के व सामने से खुले स्वैटर बनाएं, जिस से बच्चों को उन्हें पहनने में आसानी हो.

– टीनएजर्स के लिए बोट नैक, वी नैक, कैमल नैक अच्छे लगते हैं.

– बड़ी उम्र वालों के लिए गोल या वी नैक बनाएं.

– सूट के नीचे पहने जाने वाले स्वैटर ‘वी’ नैक के बनाएं.

– महिलाओं के लिए गोल गले वाले या सामने से खुले स्वैटर सुविधाजनक होते हैं. जिन की गरदन लंबी हो, उन पर पोलोनैक (हाईनैक) अच्छी लगती है.

स्वैटर की सिलाई: सिलाई करते समय निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें:

– जब भी सिलाई करें स्वैटर के दोनों पल्लों को पकड़ कर बखिया सिलाई से सिल लें.

– स्वैटर के दोनों पल्लों को आमनेसामने रख कर सूई से दोनों तरफ का 1-1 फंदा उठाते हुए जोड़ती चली जाएं.

– जब भी स्वैटर बनाएं उस का ऊन संभाल कर रख लें ताकि स्वैटर की सिलाई खुलने पर फिर से सिलने के काम आ सके.

इन बातों को जान कर स्वैटर की बुनाई की बुनियादी बातों से परिचित हो गई होंगी. अब आप जो भी स्वैटर बनाएंगी तारीफ जरूर पाएंगी, तो फिर देर किस बात की, झटपट शुरू हो जाइए.

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फटाफट काम के लिए ऐसे करें किचन तैयार

रसोईघर किसी भी घर का बेहद अहम हिस्सा होता है. त्योहारी मौसम में अपने रसोईघर को किनकिन चीजों से सजाएं आइए जानते हैं.

रसोईघर की सजावट

रंग

अपनी किचन के लिए उपयुक्त कलर का चुनाव करना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस से उस की पूरी छवि निर्धारित होती है. बैगनी या हरे जैसे गहरे और गंभीर रंगों से परहेज करें. मनभावन वातावरण बनाने के लिए इन की जगह पीला, मटमैला, नारंगी आदि तटस्थ रंगों का चयन करें.

टाइल्स

सजावटी टाइल्स किचन की दीवारों को दागधब्बों से बचाने के साथसाथ उन का आकर्षण और ज्यादा बढ़ा देती हैं. इन दिनों औनलाइन और औफलाइन दोनों तरीकों से किचन टाइल्स उपलब्ध हैं. पसंदीदा वैराइटीज हैं- मोजेक, सिरैमिक और प्रिंटेड सिरैमिक, रस्टिक, मैट वाल टाइल्स और ग्लौसी सीरीज डिजिटल वाल टाइल्स आदि. आप फलों एवं अन्य भोजन सामग्री के चित्र उकेरी टाइल्स भी पसंद कर सकती हैं.

खिड़कियां

खिड़कियां किसी भी रसोईघर का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती हैं. इसलिए सर्वोत्तम वैराइटी में ही पैसे लगाएं. विंडोज का किचन में प्राकृतिक रोशनी को प्रवेश देने का महत्त्वपूर्ण काम होता है. आजकल झिलमिल सी दिखने वाली खिड़कियां बहुत पसंद की जा रही हैं. रसोईघर को आकर्षक बनाने के लिए कई इंटीरियर डिजाइनर इन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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चिमनी

किचन चिमनी में हर साल बहुत बदलाव आ रहे हैं और इस की मांग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि यह मौड्यूलर किचन का अनिवार्य हिस्सा बन गई है. किचन चिमनी मुख्यरूप से 3 प्रकार के फिल्टर्स के साथ आ रही हैं- कैसेट फिल्टर, कार्बन फिल्टर और बैफल फिल्टर. इन में बैफल फिल्टर भारतीय किचन के लिए सर्वोत्तम है.

किचन काउंटर टौप: उपयुक्त किचन

टौप का चयन करने से किचन की उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही इस का आकर्षण भी बढ़ जाता है. यों तो ग्रेनाइट किचन टेबल या टौप बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन आप संगमरमर (काला और सफेद) और विभिन्न प्रकार की चीनीमिट्टी का भी पसंद कर सकते हैं. किचन काउंटर टौप्स में अब तो कौंपैक्ट क्वार्ट्ज का भी जलवा है और नए जमाने के लोग इसे खूब पसंद कर रहे हैं.

रोशनी

रसोईघर में प्रकाश की व्यवस्था बेहद अनिवार्य है. इसलिए अपनी किचन के संपूर्ण सौंदर्यीकरण के लिए अच्छी क्वालिटी के लैंप, बल्ब आदि लगाने चाहिए. एलईडी और हैलोजन किचन लाइट्स भी काफी पसंद की जा रही हैं.

किचन कैबिनेट

जब बात स्टोरेज की आती है, तो किचन कैबिनेट्स बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं. प्रीलैमिनेटेड पार्टिकल बोर्ड्स, हार्डवुड, मरीन प्लाई, हाइब्रिड वुड प्लास्टिक कंपोजिट आदि कुछ बेहतरीन किचन कैबिनेट्स हैं.

रसोईघर की सजावट के इन साधनों के अलावा आप किचन केरौसेल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं और जगह बचाने के लिए किचन में काम के लिहाज से ऐडजस्ट होने योग्य टेबल भी खरीद सकती हैं.

रसोईघर का सामान

चलिए अब मौजूदा वक्त में रसोईघर में इस्तेमाल हो रहे विभिन्न प्रकार के सामान की जानकारी देते हैं, जो आप के रसोईघर को और भी आकर्षक बना देंगे.

एअर फ्रायर

यह ऐसा भोजन तैयार करता है, जिस में तेल के जरिए फ्राई किए गए भोजन की तुलना में 80% कम फैट होता है और साथ ही इस के स्वाद में भी कमी नहीं आती है. घर पर एअर फ्रायर होने से पारंपरिक डीप फ्रायर के विपरीत अधिक तेल का इस्तेमाल किए बिना आप पोटैटो चिप्स, चिकन, फिश या पेस्ट्रीज आदि को फ्राई कर सकती हैं.

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जूसर

ताजा जूस पैक्ड जूस की तुलना में बेहतर रहता है. यह आप को न सिर्फ तरोताजा बनाए रखेगा, बल्कि उमस वाले इस मौसम में पानी की कमी से भी बचाए रखेगा.

स्मार्ट कुकी ओवन

10 मिनट के कम से कम वक्त की तैयारी में फ्रैश बेकिंग के लिए स्मार्ट कुकी ओवन शानदार है.

शावरमा ग्रिलर

शावरमा ग्रिलर के साथ घर पर ही शावरमा बनाएं. ये न सिर्फ स्वादिष्ठ होते हैं, बल्कि इन में कई स्वास्थ्यवर्धक गुण भी मौजूद होते हैं. अच्छी तरह से तैयार शावरमा प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के मजबूत स्रोत हैं. इन में स्वस्थ फैट होता है.

सुनील गुप्ता

संस्थापक एवं निदेशक, ऐक्सपोर्ट्स इंडिया डौट कौम

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नन्हे मुन्नों के कपड़ों का रखरखाव

मातापिता जब अपनी नन्ही सी जान को अस्पताल से घर ला रहे होते हैं तो उन की खुशियों की कोई सीमा नहीं होती. बच्चे के आने से पहले ही खूबसूरत रंगबिरंगे क्यूट कपड़ों से घर भरा होता है. मगर इन की खरीदारी और धुलाई करते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि कपड़ों के साथ जुड़ी होती है बच्चे की सेहत और सुरक्षा.

कपड़े खरीदते समय सावधानियां

फैब्रिक: बच्चे के लिए हमेशा मुलायम और आरामदायक कपड़े खरीदें, जिन्हें धोना आसान हो. फैब्रिक ऐसा हो जिस से बच्चे की त्वचा को कोई नुकसान न पहुंचे. बच्चों के लिए कौटन के कपड़े सब से अच्छे रहते हैं. लेकिन ध्यान रहे कि कौटन के कपड़े धुलने के बाद थोड़े सिकुड़ जाते हैं.

साइज: बच्चों के कपड़े 3 माह के अंतराल के आते हैं. ये 0-3 माह, 3-6 माह, 6-9 माह और 9-12 माह के होते हैं. बच्चों को ओवर साइज कपड़े न पहनाएं. ऐसे कपड़े गरदन और सिर पर चढ़ सकते हैं, जिस से दम घुटने का खतरा हो सकता है.

सुरक्षा: बीएल कपूर सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के कंसल्टैंट न्यूनेटोलौजी, डा. कुमार अंकुर कहते हैं कि छोटे बच्चों के लिए हमेशा सिंपल कपड़े खरीदने चाहिए. फैंसी और डैकोरेटिव कपड़े खरीदने से बचें. ऐसे कपड़े खरीदें जिन में बटन, रिबन और डोरियां न हों. बच्चे बटन निगल सकते हैं, जिस से उन का गला चोक हो सकता है. ऐसे कपड़े भी न खरीदें जिन में खींचने वाली डोरियां हों. वे किसी चीज में फंस कर खिंच सकती हैं और बच्चे का गला घुट सकता है.

आराम: ऐसे कपड़े खरीदें जो आसानी से खुल जाएं ताकि कपड़े चेंज कराते वक्त दिक्कत न हो. सामने से खुलने वाले और ढीली आस्तीन के कपड़े अच्छे रहते हैं. ऐसे फैब्रिक के कपड़े लें जो स्ट्रैच हो जाएं ताकि उन्हें पहनाना और उतारना आसान हो, ऐसे कपड़े न खरीदें जिन में जिप लगी हो.

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कपड़े धोने के टिप्स

डा. कुमार अंकुर कहते हैं कि बच्चों की त्वचा संवेदनशील होती है, इसलिए सामान्य डिटर्जैंट का इस्तेमाल न करें. रंगीन और खुशबू वाले डिटर्जैंट तो बिलकुल भी न लगाएं. बेहतर होगा ऊनी कपड़े धोने वाले माइल्ड डिटर्जैंट का इस्तेमाल करें. छोटे बच्चों के कपड़ों को पानी से अच्छी तरह खंगालें ताकि डिटर्जैंट पूरी तरह निकल जाए. अगर बच्चे की त्वचा अधिक संवेदनशील है तो विशेषरूप से छोटे बच्चों के कपड़ों के लिए मिलने वाले डिटर्जैंट का ही इस्तेमाल करें.

बच्चों के कपड़े छोटे और मुलायम होते  हैं, इसलिए उन्हें वाशिंग मशीन के बजाय हाथ  से धोएं तो ज्यादा अच्छा रहता है. अगर आप मशीन में धो रही हैं तो ड्रायर में न सुखाएं. खुले स्थान पर ताजी हवा और सूर्य की रोशनी में सुखाएं. अगर आप फैब्रिक सौफ्टनर का इस्तेमाल करना चाहती हैं तो बेबी स्पैसिफिक सौफ्टनर का प्रयोग करें.

कपड़े धोने के अन्य टिप्स

आइए, जानते हैं कि बच्चों के कपड़ों की साफसफाई किस तरह करें कि उन्हें त्वचा या अन्य किसी तरह का रोग न हो:

  1. कपड़े पर लगे लेबल को ध्यान से पढ़ें. बच्चे के डौलिकेट बेबी क्लोथ्स पर लिखे निर्देशों के हिसाब से चलें.
  2. ज्यादातर कपड़े ज्यादा तापमान से खराब हो जाते हैं. इसलिए कपड़े धोते समय ज्यादा गरम पानी का इस्तेमाल न करें. कुनकुने या ठंडे पानी से ही धोएं.
  3. बच्चों के कपड़ों को रंग, फैब्रिक और दागदब्बों के आधार पर 2-3 हिस्सों में बांट लें. एक तरह के कपड़ों को एकसाथ धोएं. इस से धोने में सुविधा होगी और कपड़े भी सुरक्षित रहेंगे.
  4. बच्चे के कपड़ों में यदि दागधब्बे लग गए हैं तो उन पर बेबी फ्रैंडली माइल्ड डिटर्जैंट लगा कर हलके से रगड़ें, इस से दाग हलके हो जाएंगे. बाद में सामान्य तरीके से धो लें.
  5. डौक्स ऐप की डा. गौरी कुलकर्णी कहती हैं कि जब बच्चे के लिए नए कपड़े खरीदें तो उन्हें पहनाने से पहले धो लें. इस से कपड़े बनाते वक्त काम में लिए गए रसायन शिशु को हानि नहीं पहुंचा पाएंगे. यही नहीं, कपड़ों पर यदि किसी तरह की गंदगी या धूलमिट्टी लगी होगी तो वह भी धुल जाएगी. सिर्फ कपड़े ही नहीं,  केट, चादर, बिस्तर आदि जो शिशु की त्वचा के सीधे संपर्क में आते हैं, प्रयोग से पहले धो लें. ऐसा न करने पर संभव है कि बच्चे की कोमल त्वचा पर खुजली या रैशेज की समस्या पैदा हो जाए.
  6. बच्चे के कपड़ों को कीटाणुओं से मुक्त रखने के लिए कुछ महिलाएं उन्हें ऐंटीसैप्टिक सौल्यूशन में भिगोती हैं. यह उचित नहीं. इस से बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है.
  7. कपड़ों को फर्श पर रख कर रगड़ने के बजाय हाथ या रबड़ शीट अथवा मशीन के ढक्कन पर रख कर साफ करें.
  8. बच्चों के कपड़ों को घर के दूसरे सदस्यों के कपड़ों से अलग धोएं. अकसर बड़ों के कपड़ों में गंदगी ज्यादा होती है. सभी कपड़े साथ धोने पर उन के कीटाणु बच्चों के कपड़ों में आ सकते हैं.
  9. कपड़े सूख जाएं तो उन्हें प्रैस कर लें ताकि रहेसहे कीटाणु भी मर जाएं.
  10. कपड़ों को तह लगा कर कवर में या कौटन के कपड़े में लपेट कर रखें.

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क्या आप ऑनलाइन खरीदती हैं कॉस्मेटिक्स? पढ़ें खबर

कॉस्मेटिक शॉपिंग करते वक्त आपके दिमाग में अपनी त्वचा को लेकर कई सवाल आने लगते हैं जैसे, क्या यह क्रीम मेरी स्किन के लिए सही है, कहीं इस लिप्सटिक से कोई ऐलर्जी तो नहीं हो जाएगी, और फिर अगर ऑनलाइन कॉस्मेटिक शॉपिंग हो तो यह रिस्क और बढ़ जाती है, इस रिस्क को कम करने के लिए इन 4 बातों का ध्यान जरूर रखें.

हमेशा विश्वसनीय ऑनलाइन ब्राण्ड से ही शॉपिंग करें

आप हमेशा अच्छे और विश्वसनीय ऑनलाइन ब्राण्ड से ही कॉस्मेटिक सामान की शॉपिंग करें, हो सकता है कॉस्मेटिक सामान एक अच्छे ऑनलाइन ब्राण्ड की तुलना में किसी और ऑनलाइन साइट पर कम दामों में मिल रहा हो पर, एक अच्छे ऑनलाइन ब्राण्ड की क्वालिटी ही अच्छी और विश्वसनीय होती है.

वही चीजे इस्तेमाल करें जिसे आप पहले इस्तेमाल कर चुके हैं

हर ब्राण्ड के लिप्सटिक, मॉश्चराइजर और ब्लश में अलग अलग कैमिकल इस्तेमाल होते हैं, तो जब आप ऑनलाइन कॉस्मेटिक शॉपिंग करें तो उसी ब्राण्ड का सामान खरीदें, जिसे आप पहले भी लगा चुके हैं और जो आपकी त्वचा के लिए सही और अच्छा है.

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कैसे चुनें सही शेड्स और रंग

ऑनलाइन कॉस्मेटिक शॉपिंग करते वक्त ज्यादातर महिलाओं को यह चिंता होती है कि लिप्सटिक, फाउंडेशन, क्रीम, आईलाइनर का कौनसा रंग और शेड स्किन को सूट करेगा, ऑनलाइन शॉपिंग में टैस्टर भी इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, इसलिए जो सामान आपको लेना है, तो आप किसी दुकान में जाकर उसके अलग अलग शेड आजमाकर देखें, और जो आपको पसंद हो उस चीज का ब्राण्ड और शेड नंबर लिख लें अगर वही सामान आपको ऑनलाइन कम दाम में मिल रहा है, तो उसे ऑनलाइन ऑर्डर करके खरीद लें.

अगर आपका ऑर्डर सील नहीं है, तो उसे रिजेक्ट करें

आप अपना ऑनलाइन कॉस्मेटिक शॉपिंग ऑर्डर लेते समय ध्यान से देखें कि आपका सामान अच्छे से सील है या नहीं, अगर सील खुली है या फिर नहीं है, तो ऑर्डर किया हुआ सामान बिल्कुल न लें.

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सोच समझकर करें फाइनेंशियल प्लैनर का चुनाव

बेहतर और सुरक्षित भविष्य के लिए आज हर कोई अपनी जमापूंजी निवेश करना चाहता है. लेकिन मेहनत की गाढ़ी कमाई का निवेश व प्रबंधन बेहद संवेदनशील मसला है. लिहाजा, इस के लिए एक सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उस का चयन कैसे करें, बता रही हैं ममता सिंह.

निवेश को ले कर लोग काफी जागरूक हो गए हैं. हर व्यक्ति की कोशिश यही रहती है कि वह अपनी मेहनत की कमाई से चार पैसे बचा कर, उस का सही जगह निवेश करे. निवेश के लिए, सही फैसला लेना आसान नहीं है. हर व्यक्ति की परिस्थितियां अलगअलग होती हैं. व्यक्ति को अपनी जरूरत और परिस्थिति के मुताबिक निवेश के विकल्पों का चुनाव करना चाहिए. इस तरह निवेश के लिए हमें सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर की मदद की जरूरत पड़ती है.

सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वह व्यक्ति है जिस के पास फंड का प्रबंधन करने के लिए एक औपचारिक डिगरी और योग्यता होती है. याद रहे, आप की गाढ़ी कमाई से बचाए गए पैसों का प्रबंधन काफी संवेदनशील मुद्दा है. ऐसे में अपने वित्त के प्रबंधन हेतु काफी अच्छी तरह सोचसमझ कर सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर का चुनाव करना चाहिए. फाइनैंशियल प्लानर को चुनने में कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए :

निवेश के आधार पर करें चुनाव

रमेश एक आईटी इंजीनियर के तौर पर कार्यरत है. वह म्यूचुअल फंड के माध्यम से इक्विटी में निवेश करना चाह रहा था और इस के लिए उसे एक अच्छे फाइनैंशियल प्लानर की तलाश थी. इस मौके पर उस के दोस्त अविनाश ने मदद की और रमेश को अपने फाइनैंशियल प्लानर के बारे में बताया. हालांकि, अब रमेश अपने निवेश के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं है. नतीजतन, वह अब किसी और सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर की तलाश में है.

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर रमेश के ऐसा करने की क्या वजह हो सकती है. दरअसल, अविनाश के फाइनैंशियल प्लानर की विशेषज्ञता डेट निवेश में है जबकि रमेश इक्विटी में निवेश करना चाहता था. कहने का मतलब यह है कि केवल किसी के कहने भर से आप को फाइनैंशियल प्लानर का चुनाव नहीं करना चाहिए बल्कि आप को अपनी ऐसेट क्लास के हिसाब से फाइनैंशियल प्लानर के पोर्टफोलियो की जांच करनी चाहिए.

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केवल बातों से प्रभावित न हों

– अपने क्लाइंट को प्रभावित करने के लिए कई बार फाइनैंशियल प्लानर शौर्ट में शब्दों का प्रयोग कर के गुमराह करते हैं. उस के शब्दों से लोगों को लगता है कि वह प्लानर काफी काबिल है.

– जबकि एक अच्छा सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो निवेशक को आसान शब्दों में निवेश के विकल्पों के बारे में समझाए. इस बारे में अर्थशास्त्र कंसल्टिंग की सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर शिल्पी जौहरी कहती हैं कि अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो अपने ग्राहकों के वित्तीय लक्ष्यों का अध्ययन करते हुए उन के लिए निवेश प्रोडक्ट चुनता है.

इस के अलावा ग्राहकों को कुछ और बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :

– फाइनैंशियल प्लानर सब से पहले आप के वित्तीय लक्ष्यों के बारे में आप से पूछेगा.

– वह आप की वित्तीय स्थिति का अध्ययन करेगा. उदाहरण के तौर पर, वह आप से कर्ज, घरेलू खर्च आदि के बारे में पूछेगा.

– यह सब जानने के बाद वह आप के लिए निवेश की एक योजना बनाएगा.

– अगर कोई फाइनैंशियल प्लानर उपरोक्त चरणों का पालन नहीं कर रहा है और ऊंचा मुनाफा कराने का दावा भी कर रहा है तो इस का मतलब है कि वह आप को गुमराह करने की कोशिश में है.

एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर निवेशकों की इच्छाओं का भी खयाल रखता है. मुद्रा मैनेजमैंट के सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर मनीष अग्रवाल बताते हैं कि फाइनैंशियल प्लानिंग एक संवेदनशील मुद्दा है और सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वही बन सकता है जिस ने इस के लिए बाकायदा डिगरी ली हो और प्रैक्टिस कर रहा हो. ऐसे में निवेशकों को फाइनैंशियल प्लानर चुनते समय उस की डिगरी की जांच भी कर लेनी चाहिए.

जोखिम से भी अवगत कराए

किसी तरह का निवेश जोखिम मुक्त नहीं होता है. सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर अनूप गुप्ता के मुताबिक, एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो आप को सभी ऐसेट क्लास में निवेश के फायदे के साथ उन से जुड़े हुए जोखिम के बारे में भी बताए. मान लीजिए कि आप का फाइनैंशियल प्लानर आप से कहे कि आप शेयर बाजार (इक्विटी) में निवेश कर के ज्यादा रिटर्न कमा सकते हैं, तो उसे आप को साथ में यह भी बताना चाहिए कि सभी तरह के ऐसेट क्लास में निवेश की तुलना में सब से ज्यादा जोखिम भी इक्विटी के निवेश में है.

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फाइनैंशियल प्लानर चुनते समय आप को उस का पिछला प्रदर्शन भी देखना चाहिए. उदाहरण के तौर पर जब बाजार ऊपर (बुल मार्केट) जा रहा हो तो सभी अच्छा रिटर्न कमा लेते हैं. हालांकि एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो गिरते हुए बाजार (बेयर मार्केट) में भी अच्छा पैसा कमा के दिखाए. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आप जिस फाइनैंशियल प्लानर को अपनी पूंजी सौंपने वाले हैं उस के पुराने क्लाइंट कितने संतुष्ट हैं. इस तरह, अच्छा फाइनैंशियल प्लानर चुन कर आप पैसों का निवेश करें.

Savings Tips in Hindi: हाउसवाइफ हैं आप तो ध्यान दें…

भारत में ऐसी हाउसवाइव्स की तादाद बहुत ज्यादा है जो पूरी तरह अपने पति पर निर्भर हैं और किसी भी तरह के वित्तीय फैसलों में उनकी भागीदारी न के बराबर हैं. इसके बावजूद वह घर की मैनेजर होती हैं और उनकी जिम्मेदारी अपने घर के बजट को मैनेज करने की होती है.

पिछले कुछ सालों में महंगाई तो बढ़ी है लेकिन उस अनुपात में लोगों की सैलरी नहीं बढ़ी है. लेकिन कई बार जब घर में कोई इमर्जेंसी आती है जैसे, पति की जॉब छूट जाना या कोई हेल्थ प्रॉब्लम तो ऐसे वक्त में महिलाओं को फाइनेंशियल प्लानिंग ही काम आती है.

1. मनी फ्लो मैनेजमेंट

ज्यादातर घरों में हाउसवाइव्स केवल ग्रॉसरी की खरीदारी तक ही सीमित हो जाती हैं. लेकिन हाउसवाइव्स को इसके आगे बढ़ते हुए फाइनेंस को मैनेज करने का तरीका पता होना चाहिेए. इससे पता चलेगा कि कहां आपको ज्यादा खर्च करना है और कहां बचाना है. और यह कोई रॉकेट साइंस नहीं और न ही इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह की जरूरत है. आप इसे खुद से या अपने पति के सलाह से भी कर सकती हैं.

2. खर्च कंट्रोल करना

अब जब आप मनी फ्लो मैनेजमेंट करना जान गईं हैं तो अब बारी है खर्चों पर कंट्रोल करने की, जैसे- अगर आपके घर का बिजली का बिल 2 हजार हर महीने आता है तो आपको सोचने की जरूरत है कि कैसे आप इसे कम कर सकती हैं. अगर आप हर रोज वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल करती हैं तो हफ्ते में 3-4 दिन ही इस्तेमाल करें. ऐसी ही कई चीजों का ध्यान रखकर आप खर्चों में कटौती कर सकती हैं.

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3. बचत, बचत और सिर्फ बचत

हमेशा पैसों की बचत के बारे में सोचें. इसके लिए सबसे पहला कदम है एक अकाउंट खोलना. इसके अलावा आप सरकार की ओर से चलाई जा रही जीवन ज्योति जैसी तमाम तरह की योजनाओं में भी अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर फायदा उठा सकती हैं. आप चाहें तो महंगी ब्रांडेड दवाओं की जगह सस्ती जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल करके भी पैसे बचा सकती हैं.

4. घर बैठे कमाएं पैसे

अगर आप पढ़ी लिखी हैं इसके बावजूद घर की जिम्मेदारियों के चलते आप अपने पति की कोई मदद नहीं कर पा रही हैं तो घर बैठे पैसे कमाने की तरकीब ढूंढना शुरू कर दें. आप फ्रीलांसर की तरह काम कर सकती हैं. इसके अलावा अगर आपकी पेंटिंग, डांसिंग, टीचिंग जैसी कोई हॉबी है तो आप इसके लिए अलग से क्लास चला सकती हैं और घर में क्लास लेकर पैसे कमा सकती हैं.

5. निवेश करें

निवेश की पहली सीढ़ी है बचत. अगर आप हर महीने पैसे बचाती हैं तो आपको सोचना चाहिए कि महंगाई को काटते हुए कैसे आप अपने पैसे को बढ़ा सकती हैं. कभी भी पैसे को अकाउंट में या घर पर भी खाली पड़े नहीं देना चाहिए. उसे फिक्स या फिर रिकरिंग डिपॉसिट में निवेश करना चाहिए. अगर आपका पैसा 10 हजार से बढ़कर 11 हजार भी हो जाता है तो यह एक फायदे का सौदा है.

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