लेखक- बिकाश गोस्वामी
जानकी के कमरे में आते ही विजय ने कहा, ‘बैठो, तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’
‘एक काम करते हैं, मैं तुम्हारा खाना लगा देती हूं. तुम पहले खाना खा लो, फिर मैं इत्मीनान से बैठ कर तुम्हारी बातें सुनूंगी,’ जानकी ने कहा.
‘नहीं, बैठो. मेरी बातें जरूरी हैं,’ यह कह कर विजय ने जानकी की ओर देखा. जानकी पलंग के एक किनारे पर बैठ गई. विजय ने एक लिफाफा ब्रीफकेस से निकाला, फिर उस में से कुछ कागज निकाल कर जानकी को दे कर कहा, ‘इन कागजों के हर पन्ने पर तुम्हें अपने दस्तखत करने हैं.’
‘दस्तखत? क्यों? ये कैसे कागज हैं?’ जानकी ने पूछा.
विजय कुछ पल खामोश रहने के बाद बोला, ‘जानकी, असल में…देखो, मैं जो तुम से कहना चाह रहा हूं, मुझे पता नहीं है कि तुम उसे कैसे लोगी. देखो, मैं ने बहुत सोचसमझ कर तय किया है कि इस तरह से अब और नहीं चल सकता. इस से तुम्हें भी तकलीफ होगी और मैं भी सुखी नहीं हो सकता. मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे गलत नहीं समझोगी, मुझे तलाक चाहिए.’
‘तलाक!’ जानकी के सिर पर मानो आसमान टूट कर गिर पड़ा हो.
‘हां, देखो, मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे और मेरे बीच जो मानसिक दूरियां हैं वे अब खत्म हो सकती हैं. और यह भी तो देखो कि मैं कितना बड़ा अफसर बन गया हूं. वैसे यह तुम्हारी समझ से परे है. इतना समझ लो कि अब तुम मेरे बगल में जंचती नहीं. यही सब सोच कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस के अलावा अब कोई उपाय नहीं है,’ विजय ने कहा.
‘इस में मेरा क्या कुसूर है? मैं ने इंटर पास किया है. तुम मुझे शहर ले चलो, मैं आगे और पढ़ूंगी, मैं तुम्हारे काबिल बन कर दिखाऊंगी,’ कहतेकहते जानकी का गला भर आया था.
‘मैं मानता हूं कि इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं, पर अब यह मुमकिन नहीं.’
‘फिर मुझे सजा क्यों मिलेगी? मैं मुन्नी को छोड़ कर नहीं रह सकती.’
‘मुन्नी तुम्हारे पास ही रहेगी. मैं तुम्हें हर महीने रुपए भेजता रहूंगा. अगर तुम चाहो तो दोबारा शादी भी कर सकती हो. शादी का सारा खर्चा भी मैं ही उठाऊंगा.’
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जानकी समझ गई कि विजय के साथ उस का रिश्ता अब खत्म हो चुका है, भला कोई पति अपनी पत्नी को दूसरी शादी के लिए कभी कहता है? जो रिश्ते दिल से नहीं बनते, उन्हें जोरजबरदस्ती बना के नहीं रखा जा सकता है. यदि वह इस वक्त दस्तखत नहीं भी करती है तो भी विजय किसी न किसी बहाने से तलाक तो हासिल कर ही लेगा और उस से मन को और ज्यादा चोट पहुंचेगी.
अचानक उसे एहसास हुआ कि विजय ने उस से कभी भी प्यार नहीं किया. उस ने खुद से सवाल किया कि क्या वह विजय से प्यार करती है? दिल से जवाब ‘नहीं’ में मिला. फिर उस ने विजय से पूछा, ‘कहां दस्तखत करने हैं?’
विजय की बताई जगह पर उस ने हर पन्ने पर दस्तखत कर दिए. उस का हाथ एक बार भी नहीं कांपा.
विजय ने नहीं सोचा था कि काम इतनी आसानी से संपन्न हो जाएगा. उस ने सारे कागज समेट कर ब्रीफकेस में डालते हुए कहा, ‘मुझे अभी निकलना पड़ेगा. पहले ही काफी देर हो चुकी है.’
जानकी ने अचानक सवाल किया, ‘वह लड़की कौन है जिस के लिए तुम ने मुझे छोड़ा है? क्या वह मुझ से ज्यादा सुंदर है?’
विजय ठिठक गया. उस ने इस सवाल की उम्मीद नहीं की थी, कम से कम जानकी से तो नहीं ही. अब उसे एहसास हुआ कि जानकी काफी अक्लमंद है. उस ने कहा, ‘उस का नाम नीलम है. हां, वह काफी सुंदर है और सब से बड़ी बात यह है कि वह शिक्षित तथा बुद्धिमान है. वह भी मेरी तरह आईएएस अफसर है. हम दोनों एक ही बैच से हैं. तलाक होते ही हम शादी कर लेंगे.’
जानकी ने बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा. विजय के कमरे से निकलते ही अम्मा ने पूछा, ‘तुम क्या अभी चले जाओगे?’
विजय ने जवाब दिया, ‘हां.’
तब अम्मा ने कहा, ‘छि:, तू इतना स्वार्थी है? तू ने अपने सिवा और किसी के बारे में नहीं सोचा?’
विजय समझ गया कि अम्मा ने उन दोनों की सारी बातें सुन ली हैं. अम्मा के चेहरे पर क्रोध की ज्वाला थी. वे लगातार बोले जा रही थीं, ‘अच्छा, हम लोगों की छोड़, तू ने अपनी लड़की के बारे में एक बार भी नहीं सोचा कि पिता के अभाव में परिवार में यह लड़की कैसे पलेगी? और जानकी का क्या होगा? तू इतना नीच है, इतना कमीना है?’
विजय कुछ कहने जा रहा था. उसे रोक उन्होंने कहा, ‘मुझे तुम्हारी सफाई नहीं चाहिए. याद रहे, आज अगर तुम चले गए तो सारी जिंदगी मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखूंगी. यह जो जायदाद तुम देख रहे हो वह तुम्हारे बाप की नहीं है. यह सारी जायदाद मुझे मेरी मां से मिली है, इस की एक कौड़ी भी तुम्हें नहीं मिलेगी.’
विजय ने एक निगाह अम्मा पर डाली और फिर सिर नीचा कर के चुपचाप घर से चला गया. अम्मा रो पड़ी थीं, लेकिन जानकी नहीं रोई. उस के हावभाव ऐसे थे जैसे कि कुछ हुआ ही न हो.
अम्मा अपनी जबान की पक्की थीं. महीना बीतने से पहले ही वकील बुलवा कर उन्होंने सारी जायदाद अपने छोटे बेटे और बहू जानकी के नाम बराबरबराबर हिस्सों में बांट दी. जानकी के पिता आए थे एक दिन जानकी को अपने साथ अपने घर ले जाने के लिए, लेकिन जानकी की सास ने जाने नहीं दिया. बंद कमरे में दोनों के बीच बातचीत हुई थी. किसी को नहीं पता. लगभग सालभर के बाद जानकी को तलाक की चिट्ठी मिली. उस के कुछ ही दिनों बाद जानकी की सास ने खुद खड़े हो कर अजय के साथ जानकी का विवाह कराया. अजय की बीवी उस के गौना के ठीक एक दिन पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी. उस के बाद अजय ने शादी नहीं की थी. वह बीए पास कर के गांव के ही स्कूल में अध्यापक की नौकरी कर रहा था और साथ ही साथ एक खाद की दुकान भी चला रहा था. उन के समाज में पुनर्विवाह के प्रचलन के कारण उन्हें कोई सामाजिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी. सालभर के भीतर ही उन के बेटे सुजय का जन्म हुआ.
विजय फिर कभी गांव नहीं आया. वादे के अनुसार उस ने जानकी को मासिक भत्ता भेजा था, किंतु जानकी ने मनीऔर्डर वापस कर दिया था.
जानकी गांव की एकमात्र इंटर पास बहू थीं. वे गांव के विकास के कार्यों से जुड़ने लगीं. ताऊजी की मृत्यु के बाद वे गांव की प्रधान चुनी गईं. उसी समय उन की ईमानदारी और दूरदर्शिता की वजह से गांव का खूब विकास हुआ. नतीजा यह हुआ कि वे अपनी पार्टी के नेताओं की निगाह में आईं और उन्हें विधानसभा चुनाव की उम्मीदवारी का टिकट मिल गया. चुनाव में 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत कर वे विधानसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं और मंत्री भी बनाई गईं.
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इन सब कामों में पति अजय का भरपूर सहयोग तो मिला ही, सास का भी समर्थन उन्हें मिलता रहा. मुन्नी की पढ़ाई पहले नैनीताल, फिर दिल्ली और अंत में बेंगलुरु में हुई. सुजय भी अपनी दीदी की तरह देहरादून के शेरवुड एकेडेमी के होस्टल में रह कर पढ़ रहा है.
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