ज़िन्दगी – एक पहेली: भाग 1   

यह कहानी है एक जाने माने और प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे अविरल के बारे में .अविरल का जन्म एक बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था .उसके पापा शहर के जाने माने बिज़नेस मैन  थे. अपने शहर से बाहर भी उनकी बहुत इज्जत थी. सभी की एक नॉर्मल सी  दिनचर्या थी. पिता राजनीति से थे. इसलिए वह अपने राजनीतिक कामों में लग जाते थे. मां ग्रहणी थी तो घर का सारा काम काज देखती थी. उनकी एक लड़की थी जिसे वह बहुत प्यार करते थे .लेकिन दादी दादा को लगता था कि लड़का होना चाहिए जिससे कि परिवार पूरा हो जाए. समय बीतता गया  और एक नन्ही किलकारी के साथ एक बच्चे ने जन्म लिया. उसकी बहन ने उसका नाम अविरल रखा .

अविरल  बचपन से ही देखने में बहुत सुंदर था. सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. उसकी बड़ी बहन उसे रात दिन लिए लिए घूमती थी. उसके लिए तो उसका भाई उसकी पूरी दुनिया था. वो एक पल को भी उसे अपनी आँखों के सामने से ओझल नहीं होने देती थी.लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नही चली. धीरे-धीरे सारी खुशी एक चिंता में बदलने लगी. अविरल 2  साल का हो चुका था  लेकिन वह कुछ बोलता नहीं था. घरवालों को चिंता होने लगी कि कहीं हमारा बच्चा गूंगा तो नहीं है. आसपास के लोगों ने भी बोलना शुरू कर दिया ,”कि लगता है आपका बच्चा गूंगा है”.कुछ लोगों ने कहा की हो सकता है बच्चा थोड़ी देर से बोले.

सभी लोग दुखी रहने लगे लेकिन उसकी बहन उसे ऐसे ही खुश होकर प्यार करती रहती.उसके लिए तो उसके भाई से ज्यादा प्यारा कुछ भी नहीं था. देखते-देखते 3 साल और निकल गए लेकिन अविरल  नहीं बोला. मां-बाप और भी परेशान रहने लगे. वह अविरल  को लेकर डॉक्टर के पास ले गए. डॉक्टर ने कहा,” इसका बोलना मुश्किल है. आप भगवान से दुआ कीजिये . अगर ये कुछ समय में नहीं बोलता है तो ऑपरेशन करना होगा. लेकिन उसमे भी बच्चे की जान का रिस्क है क्योंकि बच्चा छोटा है.”

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उसके मम्मी -पापा भगवान से प्रार्थना करने लगे कि भगवान ने हमें इतना सुंदर बच्चा दिया लेकिन यह कमी क्यूँ दे दी. घर के सभी लोग हिम्मत हार चुके थे लेकिन उसकी बहन हमेशा बोलती कि मेरा भैया एक  दिन जरूर बोलेगा. वह  रात दिन उससे बातें करती रहती.

पूरा परिवार मन ही मन उदास रहने लगा उन्होंने मान लिया था कि हमारा बच्चा गूंगा है. अंत में उसके घर वालों ने ऑपरेशन का डिसीजन  लिया. उसकी बहन ने रो-रोकर मम्मी पापा से कहा  कि जब भैया की जान को खतरा है तो ऑपरेशन क्यूँ? ऑपरेशन की डेट पास आ रही थी. सभी की चिंता बढ़ती जा रही थी.

पर उसकी बहन ने हिम्मत नहीं हारी वो अब उससे और बातें करने लगी और कोशिश करती कि भैया  कुछ बोले. एक  दिन आया जब भगवान भी बहन कि ममता के आगे पिघल गए और बच्चे के मुह से पहला शब्द निकला – ‘बिट्ठ’ क्यूँ कि घर वाले सभी उसकी बहन को बिट्टी कहकर बुलाते थे.

बहन दौड़कर मम्मी पापा के पास भागी और बोली “पापा भैया बोला”. किसी को विश्वास नहीं हुआ लेकिन बच्ची के बार- बार जिद करने पर सभी लोग बच्चे के पास गए. बहन को पास देखकर बच्चा बहुत तेजी से पास आया और बहन से चिपक कर फिर से “बिट्ठ” बोला. सभी के मुह बंद थे और आँखों में आँसू थे लेकिन केवल एक  आवाज गूंज रही थी “बिट्ठ”.

तुरंत ही उसके पापा ने  हवन और भोज के लिए पूरे शहर को आमंत्रण दिया. सभी समझ रहे थे कि भगवान ने उनके मन कि सुन ली लेकिन उन्हे क्या पता था कि भगवान उस छोटी बच्ची कि ममता के आगे हार गये थे.

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बच्चा धीरे – धीरे बड़ा होने लगा . सभी बहुत खुश थे . 2-3 साल और बीत गए. अब बच्चा बोलने तो लगा था लेकिन लगता है अविरल  और परेशानियों का चोली दामन का साथ था. अविरल बोलने तो लगा था पर  बड़े होने के साथ- साथ उसको नई परेशानियों ने घेर लिया.

अगले भाग में जानेंगे अविरल के जीवन में  आने वाले संघर्ष के बारे में-

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-2)

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शिखा ने दादू को देखा उस का एकमात्र मजबूत आश्रय. ‘‘दादू, आप के मन में यह आशंका जब आई है तब कोई कारण तो होगा? किसी पर संदेह? कोई स्टाफ?’’

‘‘ठीक से नहीं कह सकता पर… यह बात सच है. यह बहुत बड़ी विदेशी पार्टी है और आर्डर भी छोटामोटा नहीं. इस कौंट्रैक्ट के लिए बहुत सारी कंपनियां हाथ धो पीछे पड़ी थीं. बाजी हम ने मार ली, इस से ईर्ष्या बढ़ेगी. आज नहीं तो कल पता तो वो लगा ही लेंगे. उन लोगों में ‘मेहता एंड सन’ का नाम भी है.’’

चौंकी शिखा, ‘‘मतलब बंटी.’’

‘‘वो तुम्हारा मंगेतर है घर या आफिस अबाध गति से उस का आनाजाना है. उस पर तुम रोक भी नहीं लगा सकती.’’

‘‘पर दादू, उन की तो अपनी ही चलती कंपनी है.’’

जानकीदास ने सिर हिलाया, ‘‘यह गलत है. ऊपर से यह चाहें कितना भी दिखावा क्यों ना करें, सब जानते हैं अंदर से खोखले हो गए हैं. गले तक डूबे बैठे हैं कर्ज में. किसी भी दिन सब कुछ समाप्त हो सकता है. दोनों बापबेटे इस समय बचाव के चक्कर में घूम रहे हैं. और…’’

‘‘और क्या?’’

‘‘इन में न विवेक है न मानवता, न दया. यह लोग इस समय डेसपरेट हैं कंपनी और गिरवी रखे घर को बचाने के लिए, कुछ भी कर सकते हैं कुछ भी, हां कुछ भी…’’

शिखा स्तब्ध सी हो गई.

‘‘मैं बंटी से आजकल बहुत कम मिलती हूं.’’

‘‘पर तुम्हारी मां जो गलती कर गई है तुम्हारे जीवन के लिए वो एक जहरीला कांटा है. उन की नजर तुम्हारी कंपनी पर शुरू से थी और है.’’

‘‘मेरी मंगनी नहीं हुई दादू. मुंह की बात भर है.’’

‘‘वही एकमात्र आशा की किरण है. लो घर आ गया. जा कर आराम करो. चिंता मत करना.’’

‘‘बात तो चिंता की ही है.’’

‘‘हां है पर कभीकभी इंसान को कुछ उलझनों को वक्त के भरोसे भी छोड़ना पड़ता है.’’

शिखा ने अपने कमरे में आ कर सब से पहले सूट उतार फेंका. यह औपचारिक ड्रेस उसे एकदम पसंद नहीं. खुला दिन था, धूप थी दिनभर अब उमस है. पसीने वाली उमस. नहा कर उस ने एक फूल सी हलकी और नरम लंबी मैक्सी पहनी. मौसी लस्सी दे गई उस का घूंट भर वो खिड़की पर आई. वर्षा से धुले पेड़पौधे चमक गए हैं. नरम हरियाली की ओढ़नी ओढ़ सब मुसकरा रहे हैं उन पर ढलते सूरज की किरण. अनमनी हो गई वो, पापा का चेहरा सामने आ गया. स्नेह छलकती आंखें, भावुक चेहरा. यह बगीचा भरा है सुंदरसुंदर फूल और फलों के पेड़ों से. पापा ने ही बेनाम इस घर का नामकरण किया था.

‘कुंजवन’ पहले तो यह बस पचपन नंबर कोठी थी. पापा के साथ ही साथ एक और चेहरा सामने आ जा रहा है. पता नहीं क्यों आज गाड़ी से उतरते समय अचानक दादू ने पूछा,

‘‘बेबी, सुकुमार कहां है तुझे पता है कुछ?’’

गिरतेगिरते संभली थी वो, ‘‘नहीं तो…मुझे कैसे पता होगा?’’

‘‘संपर्क नहीं है?’’

‘‘क्यों होगा? मैं ने ही तो मना किया था.’’

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‘‘हां बात तो सही है. मैं ही सठिया गया हूं कुछ याद नहीं रहता.’’

पर वह दादू को कैसे कहे कि सुकुमार से संपर्क भले न हो पर वो उस से दूर नहीं है. उस के लिए मनप्रण से वो आज भी समर्पित है. इसी गेट से उसे शिखा ने चरम अपमान के साथ बाहर निकाल दिया था. कभी भी अपना मुंह उसे ना दिखाए यह भी कहा था. मां को खुश करने, मां की आज्ञा का पालन करने के लिए अपना पहला प्यार, बचपन का प्यार, आने वाले जीवन के सारे के सारे सपनों को अपने हाथों बलि चढ़ा दिया. मां को प्रसन्न करने को, वो भी उस मां के लिए जिस का विरोध करना ही उस के जीवन का सब से बड़ा उद्देश्य था, जिस के विरुद्ध ही वो हर काम को करती आई है. पापा का देहांत हो चुका था पर दादू थे. अवाक हो वो पोती का मुख देखते रह गए. सुकुमार जैसे शांत सौम्य लड़के के साथ यह क्या किया शिखा ने. मां के हाथ की कठपुतली तो वो कभी नहीं थी, तो फिर आज क्या हो गया उसे?

एक गहरी सांस ली शिखा ने. उस दिन के बाद फिर कभी उस ने सुकुमार को नहीं देखा इतने वर्ष हो गए. उस से इतनी बड़ी चोट खा क्या वो दिल्ली छोड़ चला गया था या संसार छोड़? सिहर उठी. ना…ना…जहां हो सकुशल हो. स्वस्थ हो.

सुबह नाश्ते के मेज पर दादू ने बैठते ही कहा, ‘‘बेबी, काम आज से ही शुरू करवाना है. जितनी जल्दी हो काम निबटाना होगा.’’

‘‘वो तो है पर अभी तीन महीने हाथ में है तो.’’

‘‘मुझे डर है कोई अंतरघात ना करे.’’

‘‘पर यह बात किसी को क्या पता?’’

‘‘तू अभी बच्ची है नहीं समझेगी. तेरी मां थी जन्मजात पक्की बिजनैस लेडी. बात अब तक विरोधी पक्षों के कानों में जा कर उन को बेचैन भी कर रही होगी.’’

चौंकी शिखा, ‘‘हैं…पर दादू, कैसे?’’

‘‘कल ही तो कहा था बातों के पर होते हैं तो सावधान और जल्दी काम पूरा करवा कर सप्लाई भेजनी है.’’

थोड़ी देर चुपचाप नाश्ता करने के बाद शिखा ने पूछा, ‘‘दादू, कल इतने वर्षों के बाद आप ने सुकुमार के विषय में पूछा. कोई विशेष कारण?’’

जानकीदास का प्याला छलक गया, ‘‘अरे नहीं…नहीं…बस…अचानक याद आ गया.’’

‘‘याद तो पहले भी आना चाहिए था, उस के अपमान दुख, व्यथा और सबकुछ खो जाने के चश्मदीद गवाह आप ही थे दादू.’’

‘‘मैं तेरी बात समझ रहा हूं बेटी पर इस घर में तो तू जानती ही है तेरी मां का फैसला ही अंतिम फैसला होता था पर…’’

‘‘पर क्या दादू?’’

‘‘तू तो हमेशा मां के विरोध में तन कर खड़ी होती थी. सच तो यह है कि इधर तेरी मां तुझ से थोड़ा घबराने लगी थी. वही तू ने मां के अन्याय का विरोध करना तो दूर उस के सुर में सुर मिला उस सीधेसादे बच्चे को अपमान कर के घर से निकाला तो निकाला कभी अपनी सूरत न दिखाने का कड़ा आदेश भी दे दिया. क्यों बेटी?’’

शिखा झुक गई चाय की प्याली के ऊपर. बुझे गले से बोली, ‘‘कारण था दादू…’’

‘‘ऐसा भी क्या कारण जो उस लड़के को इतना बड़ा यातनामय कष्ट जीवनभर के लिए दे डाला.’’

‘‘था दादू. समय आने पर आप को सब से पहले बताऊंगी.’’

‘‘क्या लाभ बता कर? उस बच्चे में तेरे लिए निश्छल और एकनिष्ठ प्यार था. उस की मूर्खता थी कि अपना स्तर भूल गया था उस की सजा भी मिल गई. पर जाने दे जो समाप्त हो गया उस की ओर मुड़ कर नहीं देखा जाता.’’

अरे हां, ‘‘मेहता ने फोन किया था वो जल्दी में हैं बंटी से तेरी शादी के लिए पूछ रहे थे, मंगनी की रसम कब करेंगे.’’

माथे पर बल पड़ गए शिखा के, ‘‘मंगनी तक बात आई कैसे?’’

आगे पढ़ें- इस बार जानकीदास चौंके, ‘‘क्या कह रही है? यह शादी तो…

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लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-1)

भोर में गरज चमक के साथ सारे बादल एकसाथ बरस पड़े मानो धरती पर फिर से सुनामी लाने का इरादा हो.

शिखा की नींद भी खुली थी मेघों की गड़गड़ाहट से. उसे रात के अंधेरे में प्रकृति का ऐसा तांडव आनंद देता है और लड़कियों की तरह डराता नहीं है. ऐसे में उसे बड़ी अच्छी नींद आती है. आज भी पैरों के पास से मोटी चादर खींच वो दोबारा सो गई, बरखा की लोरी सुनतेसुनते.

दिल्ली की धरती पर ऐसी वर्षा बहुत कम ही होती है. अब हो रही है तो शिखा उस का पूरा लाभ उठाएगी. नींद में डूबने से पहले ही उस ने निर्णय ले लिया कि आज कुछ भी हो आफिस नहीं जाएगी. घर में रह कर मौसी से पकौड़े, चीले, कचौड़ी बनवा कर दिन भर चाटती रहेगी. पर वह जो चाहती है वो भला हुआ है आज तक?

घड़ी की सूई और लच्छो मौसी का मजबूत गठबंधन है. ठीक 6 बजे पहली चाय ले कर हाजिर, ‘‘ उठो बेबी रानी, आज आफिस जल्दी जाना है न?’’

झुंझला कर आंख खोली तो मौसी सामने खड़ी नजर आईं. उन्होंने खिड़की के सारे परदे हटा दिए. बादल जाने कहां भाग गए थे. हवा में नमी तो है पर नीला आकाश, सूरज की सुनहरी किरण धरती को चूमने उतर पड़ी है. वह झुंझलाई, ‘क्या है मौसी. सोने दो. आज मुझे कहीं नहीं जाना.’ वो धम्म से फिर लेट गई.

लच्छो ने दुलारा, ‘‘बेबी बिटिया, बाबूजी ने कहा है आज जरूरी काम है.’’

बाबूजी अर्थात दादू उन के नाम से ही जरूरी काम याद आ गया शिखा को. एक विदेशी कंपनी से गठबंधन की बात चल रही थी. बहुत दिनों से अब जा कर दोनों पक्षों की सहमति हुई है. उन के प्रतिनिधि आए हैं अमेरिका से. थोड़ा सा मतभेद अभी भी है वो अगर आज की मीटिंग में दूर हो जाए तो साईन हो जाएंगे. करोड़ों का लाभ होगा शिखा की कंपनी को अर्थात् शिखा को क्योंकि कंपनी की मालकिन शिखा है, दादू हैं जीएम. हड़बड़ा कर उठ बैठी. चाय गटकने लगी.

‘‘गुड मौर्निंग, मालकिन साहिबा.’’

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दरवाजे पर दादू, सैर कर के, नहाधो कर आए हैं. 6 फुट लंबा शरीर साठ के पार कर भी ना टूटा है, ना झुका है. गोरा रंग, सौम्य दर्शन. पापा भी ऐसे ही सुदर्शन और सौम्य स्वभाव के थे पर कितनी जल्दी सब को छोड़ कर चले गए. दादू शिखा को ‘मालकिन साहिब’ कहते हैं. कभी चिड़ा कर कभी मजाक में. वो उठ खड़ी हुई.

‘‘दादू, मीटिंग का टाइम क्या है?’’

‘‘लंबी चलेगी लगता है. ग्यारह बजे का समय दिया है तो बीच में लंच ब्रेक… विदेशी लोगों में पंकचुएलिटी होती है. 10 बजे आफिस पहुंच डौक्यूमेंट देख लेना है.’’

‘‘दादू, बात बनेगी क्या?’’

‘‘लगता तो है. एक वर्ष हो गए बात करते दो चक्कर तो हम भी लगा कर आए हैं उन के यहां.’’

‘‘बात बन गई तो पैसा ही नहीं अपने क्षेत्र में नाम भी बढ़ेगा.’’

‘‘वो तो है ही पर बेटा अब जल्दी करो.’’

‘‘जी दादू.’’

वैसे शिखा सभी प्रकार की ड्रैस पहनती है, साड़ी छोड़. मम्मा की साडि़यों का अंबार है उस के पास. वे साड़ी छोड़ और कुछ नहीं पहनती थीं. देशविदेश में बिजनैस टूअर पर जाते समय भी साड़ी ही पहनती. पहले शिखा मां की इस भारतीय रुचि के आगे मन ही मन नतमस्तक होती थी, गर्व भी अनुभव करती थी पर फिर उस के समझ में आया कि मां की यह रुचि भारतीय स्त्री की पोशाक के प्रति आदर न था, आकर्षण भी नहीं था, यह भी एक लाभ का सौदा था. साड़ी का रिवाज देशविदेशों में आज भी है.

इस साड़ी के कारण उन को हर क्षेत्र में कुछ विशेष सुविधा मिल जाती. पक्की बिजनैस लेडी थीं मम्मा, एक सूई का साथ मिल जाए तो भी लेने से नहीं चूकती थी. तभी तो अपने साधारण से व्यापार को बढ़ा कर विशाल व्यापार साम्राज्य गढ़ लिया था. उन के छोड़े व्यापार का टर्न ओवर 50 करोड़ को पार कर चुका है पर हां दादू ने भी इस को मजबूत हाथों से थाम कर इसे और फैलाया है. मम्मा को गए तीन वर्ष हो गए. इन तीन वर्षों में कंपनी का टर्नओवर कई करोड़ बढ़ गया है. कुछ नई योजनाएं भी हैं जिन में से एक पर आज मीटिंग है अमेरिकन पार्टी के साथ. उन के यहां से तीन सदस्यों की टीम आई थी.

नहाधो कर आज शिखा ने पूरी तरह से वेस्टर्न ड्रेस उठाया, शर्ट, सूट के साथ बालों का टाइट जूड़ा शीशे के सामने खड़ी हो फिनिशिंग टच देतेदेते अचानक ही पापा का चेहरा सामने आ गया. 6 वर्ष हो गए उन के देहांत को पर आज भी उन का स्पर्श, उन का दुलार, उन के प्यार की गुनगुनाहट को वह अनुभव करती हैं. इतनी बड़ी ‘सोनी एंड कंपनी’ की मालकिन कर्णधार शिखा सोनी तब वही छोटी सी बच्ची बन जाती है इस 26 वर्ष की उम्र में. पापा और मम्मा की बेमेल जोड़ी थी. मम्मा पूरी तरह मनप्राण से बिजनैस को समर्पित लोहे जैसी कठोर एक ऐसी स्त्री थी जो स्वार्थ और सफलता के लिए सबकुछ बलि चढ़ा सकती थी. उन के अंदर कोमल भावनाओं के लिए तिलमात्र स्थान नहीं था, जो रास्ते में सामने आए उसे दोनों पैरों से रौंद कर आगे बढ़ो चाहे वो कोई हो. कोई भी संतान या पति.

पापा एकदम विपरीत थे भावुक, कोमल हृदय, कविता व प्रकृति प्रेमी, संवेदनशील एक उदार हृदय पुरुष. वह कभी नहीं चाहते थे कि फूल सी बेटी को बिजनैस के दलदल में धकेला जाए. वो एक राजकुमार खोज रहे थे जो उन की लाड़ली को सपनों की दुनिया में ले जाए, वो मिल भी गया था पर नियति के मन में कुछ और ही होगा.

सजग हुई शिखा…सामने… जल्दीजल्दी सीढि़यों को पार कर नीचे उतर आई और देखा प्रत्येक बार की तरह दादू ने इस बार भी उसे हरा दिया. वह तैयार हो उस की प्रतीक्षा पहले से ही कर रहे हैं.

मीटिंग सफल रही. 6 हजार लैदर जैकेट सप्लाई देना है उन की समयसीमा है 3 महीने. मम्मा के जाने के बाद ही गारमैंट फैक्टरी डाली गई है. ठीकठाक चल रही है पर इतना बड़ा आर्डर पहली बार मिला वह भी विदेश से. हस्ताक्षर हो गए. बढि़या लंच करा उन को एअरपोर्ट छुड़वा कर दोनों ने जब चैन की सांस ली तब 4 बज रहे थे.

‘‘दादू, आप ने 3 महीने का समय ले ही लिया अब तो सप्लाई देने की कोई चिंता नहीं.’’

जानकीदास ने सिर हिलाया, ‘‘चिंता है मालकिन साहिबा.’’

शिखा अवाक, ‘‘क्यों दादू, तीन महीने तो बहुत हैं.’’

‘‘6 हजार की संख्या भी बहुत बड़ी है, मतलब महीने में दो हजार. बेबी काम में हजारों अड़चनें आ सकती हैं जैसे बिजली, लेबर और भी दिक्कतें हैं…’’

‘‘और भी…वो क्या?’’

‘‘मशीन में गड़बड़ी या विरोधी पक्षों का उपद्रव.’’

‘‘विरोधी पक्ष… पर दादू इस कौंट्रैक्ट के विषय में किसी को क्या पता.’’

‘‘बातों के पर होते हैं उड़ जाते हैं सही ठिकानों पर क्योंकि पैसा सब का ईमान खरीद लेता है बड़ी ताकत है उस में.’’

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सोनी कंपनी अब दूसरी कंपनियों की सिरदर्द बन गई है. मम्मी थी पक्की व्यापारी. हीरे की परख की अनुभवी जौहरी. पापा के साथ उन्होंने विवाह किया था किसी कोमल भावना या आकर्षण के कारण नहीं बल्कि पापा की जांचपरख कर उन को कच्चा हीरा पा कर. नाना उस समय हार्ट अटैक के बाद पूरे बैड रैस्ट पर थे. पापा तभी नएनए उन की कंपनी में एकाउंटैंट हो कर आए थे. उन को पहचानते देर नहीं लगी थी बापबेटी को. उम्र कम, इतने बड़े कंपनी की अकेली वारिस इस समय उन्हें ऐसा कोई चाहिए था जो ईमानदार हो, भरोसे का हो साथ ही साथ अपना भी हो जो उन्हें छोड़ कर जा न सके. संयोगवश पापा भी अविवाहित थे तो विवाह हो गया. दादू को भी बुला लिया क्योंकि वे योजना आयोग में बड़ी कुशलता से काम कर रहे थे. पापा के साथ बंधन को मजबूत करने के लिए मम्मा ने एक खेल और खेला विवाह के वर्ष भर के अंदर ही उस को जन्म दे बंधन को अटूट कर दिया. पापा के प्राण अटक गए शिखा में, शायद दादू के भी.

‘‘वैसे घबराने की कोई बात नहीं. मैं हूं. बेबी तुम चिंता मत करो.’’

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Serial Story: उड़ान (भाग-3)

आखिर एक दिन उस का मन इतना विरक्त हुआ कि उस ने तय कर लिया कि वह अपने केश उतरवा देगी.

घर में उत्सव जैसा माहौल था. नाई आया. आंगन में एक पीढ़े पर वह बैठी. नाई ने अपना उस्तरा तेज किया और उस के सिर पर फेरना शुरू किया. केशगुच्छ जमीन पर गिरते गए. नाई के जाने के बाद घर की बड़ीबूढि़यां आईं और बोलीं, ‘‘चलो बेटी, अब नहा लो.’’

अरुणा उठ खड़ी हुई. नहा कर उस ने एक कोरी रेशम की साड़ी पहनी जो विधवाओं का लिबास था. अब उस की दिनचर्या बिलकुल बदल गई थी. उस के हिस्से में आए जप, तप, पूजापाठ, व्रतउपवास और संयमी जीवन.

उस के गांव से कुछ स्त्रियां तीर्थयात्रा पर जा रही थीं. अरुणा भी उन के साथ हो ली.

घर लौटी तो हमेशा की तरह उस के भाई उसे बसस्टैंड पर लेने आए थे.

‘‘कहो अक्का, तुम्हारी यात्रा सुखद रही न?’’ केशव ने पूछा.

‘‘हां,’’ वह बताने लगी, ‘‘मैं ने चारों धाम के दर्शन कर लिए. मेरा जीवन सार्थक हो गया.’’

उस ने देखा राघव कुछ अनमना सा था.

‘‘क्या बात है राघव, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, अक्का.’’

नागमणि द्वार पर खड़ी उस का रास्ता देख रही थी.

‘‘भाभी, मैं तुम सब के लिए उपहार लाई हूं,’’ अरुणा बोली, ‘‘तुम्हारे और जया के लिए चंदेरी साडि़यां…’’

कहतेकहते उस की निगाह अंदर सहन में झूले पर बैठी जया पर पड़ी तो वह ठिठक गई.

‘‘अरे, यह क्या?’’ उस के मुंह से निकला.

जया का गला व माथा सूना था. सारे सुहाग के चिह्न नदारद. एक मैली सी साड़ी लपेटे वह शून्य में ताकती अनमनी सी बैठी थी.

‘‘भाभी,’’ अरुणा ने अस्फुट चीत्कार किया, ‘‘यह क्या देख रही हूं मैं? यह कब और कैसे हुआ?’’

नागमणि ने रोरो कर बताया कि जया का पति उसे मायके छोड़ने आया था. सुबह नदी में नहाने गया. हेमावती नदी में बाढ़ आई हुई थी. सुरेश तैरते हुए एक भंवर में फंस गया और तुरंत डूब गया.

‘‘ओह, इतना बड़ा हादसा हो गया और आप लोगों ने मुझे खबर तक न की.’’

‘‘यही नहीं,’’ नागमणि रो कर बोली, ‘‘पति की मृत्यु की खबर से जया को इतना गहरा सदमा लगा कि उसी शाम उसे प्रसव वेदना हुई और एक सतमासा बच्चा पैदा हुआ, वह भी मरा हुआ. इस दोहरे आघात से लड़की एकदम विक्षिप्त सी हो गई है. न किसी से बोलतीचालती है न ठीक से खातीपीती है. बस, दिनभर गुमसुम सी इस झूले पर बैठी रहती है.’’

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‘‘लेकिन आप लोगों ने इस के गहने क्यों उतरवा दिए? यह तो बड़ी ज्यादती है.’’

‘‘हम ने नहीं, इस ने खुद उतार फेंके हैं. मुझे तो डर है कि यह कहीं दुख से पागल न हो जाए.’’

‘‘ओह,’’ अरुणा ने ठंडा निश्वास छोड़ा. इस भतीजी से उसे बहुत लगाव था. पलभर में उस का सुखी संसार उजड़ गया था.

कुछ दिन बाद बैठक में भाई राघव, भाभी नागमणि, भतीजे श्रीधर और भतीजी जया के साथ अरुणा बैठी हुई थी. अचानक भाई ने प्रसंग छेड़ा.

‘‘स्वामीजी ने कहा था कि जया मांगलिक है इसलिए उस का एक वटवृक्ष से गठबंधन करा कर बाद में उस का विवाह करना चाहिए. हम ने वह भी किया. फिर भी पता नहीं क्यों यह हादसा हो गया? स्वामीजी के अनुसार तो यदि एक नवग्रह जाप करा कर ग्रहशांति के लिए एक छोटा सा यज्ञ करा दिया गया होता तो यह अनर्थ न होता.’’

‘‘उन की छोड़ो, आगे की सोचो. अब जया के बारे में क्या इरादा है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘उसे यों मझधार में तो छोड़ा नहीं जा सकता. तुम लोग उस की दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते?’’

‘‘दूसरी शादी?’’

नागमणि भौचक उस का मुंह ताकने लगी. उस के होंठ कांपे और आंखों से आंसू ढुलकने लगे, ‘‘अक्का, क्या यह संभव है?’’

‘‘क्यों नहीं.’’

‘‘लेकिन लोग क्या कहेंगे? समाज इस की अनुमति देगा?’’ राघव ने टोका.

‘‘राघव, तुम किस समाज की बात कर रहे हो? हम लोग भी तो समाज का अंग हैं और तुम तो गांव के मुखिया हो. सब के अगुआ हो. तुम्हें यह क्रांतिकारी कदम उठाना ही होगा. तुम्हें एक दृष्टांत कायम करना होगा. आखिर किसी को तो पहल करनी चाहिए तभी तो इन कुरीतियों का अंत होगा.’’

‘‘लेकिन बिरादरी वाले हमें जीने नहीं देंगे.’’

‘‘न सही, पर बेटी पहले है या बिरादरी? जरा सोचो, जया के पति की अकाल मृत्यु हुई है, पर तुम लोग जया को जीतेजी मार रहे हो. क्षति उस की हुई और सजा भी वही भुगते. यह कहां का न्याय है?’’

‘‘अक्का ठीक कह रही हैं,’’ केशव ने कहा.

‘‘लेकिन मेरा मन इस की गवाही नहीं देता. हमारे हिंदू धर्म में विधवा विवाह वर्जित है.’’

‘‘अन्य धर्मों में विधवा विवाह की छूट है. मुसलमानों और ईसाइयों में विधवा विवाह होते रहते हैं. पता नहीं, हम हिंदू ही नारी के प्रति इतने बर्बर क्यों हैं? पुरुष एक छोड़ दस शादियां कर सकता है. एक पत्नी के मरने पर दोबारा कुंआरी कन्या से विवाह कर सकता है. ये सारे कायदेकानून, सारे प्रतिबंध स्त्रियों के लिए ही हैं. क्यों न हों, ये नियम पुरुषों ने ही तो बनाए हैं. लेकिन अब सारे देश में बदलाव की लहर बह रही है.

‘‘स्त्रियों के हित में नित नए कानून बन रहे हैं. स्त्रियां अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, पर अफसोस, हमारा गांव वहीं का वहीं है. वही संकीर्ण मानसिकता, वही पिछड़ापन. कुप्रथाओं के मकड़जाल में फंसा, तंत्रमंत्र, छुआछूत, टोनाटोटका, झाड़फूंक और अंधविश्वासों से घिरा है हमारा ग्रामीण समाज. ऊपर से हमारे धर्म के ठेकेदार हमें धर्म की दुहाई दे कर तिगनी का नाच नचाते रहते हैं. मैं यह सब इसलिए कह रही हूं कि हमें जया को आजीवन रोने व कलपने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए. उस का भविष्य संवारने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.’’

‘‘मैं अक्का से सहमत हूं,’’ केशव बोला, ‘‘हमें जया की दूसरी शादी कर देनी चाहिए. मेरी नजर में एक अति उत्तम लड़का है. वह सुलझे विचारों वाला है. उस की सोच नई है. मैं उस से बात करूंगा.’’

‘‘ठीक है, पर एक बात, जातपांत को ले कर कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए. जया को इस माहौल से निकालो. उसे शहर भेजो. वहां के उन्मुक्त वातावरण में उसे सांस लेने दो. उस के पंख मत कतरो. उस पर अंकुश मत लगाओ. उसे उड़ान भरने दो. उसे स्वच्छंद विचरने दो. उस के  व्यक्तित्व को विकसित होने दो.’’

‘‘अक्का, तुम ने भी तो कम उम्र में अपने पति को गंवाया था. तुम ने भी तो सारी उम्र निष्ठा से वैधव्य धर्म का पालन किया.’’

‘‘राघव, उस समय मेरे सामने और कोई विकल्प नहीं था. मुझ में मातापिता के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं थी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि जया का हश्र मेरे जैसा हो. उस में और मुझ में एक पीढ़ी का फर्क है. हमारे समय में लड़कियों को पढ़ायालिखाया नहीं जाता था. उसे पहले पिता फिर पति और फिर पुत्र का आश्रित हो कर रहना पड़ता था. विधवा होना तो उस के लिए एक बड़ा अभिशाप था.

अपनी इच्छाओं का दमन कर, रूखासूखा खा कर, मोटाझोटा पहन कर वह एक उपेक्षित की जिंदगी गुजारती थी. उसे मनहूस, कुलच्छिनी माना जाता था और उस की दशा जानवरों से भी बदतर होती थी. तुम तो जानते हो कि हमारी तमिल भाषा में ‘मुंडे’ यानी ‘विधवा’ गाली है. ‘मुंडेदे’ यानी विधवा की अवैध संतान भी एक गाली है. लेकिन अब हम विधवा के प्रति सदय हैं. हम में जागरूकता आई है. हम ने कई पुरानी कुप्रथाओं का त्याग किया है. एक समय था कि हमारे देश में सती का चलन था. बालविवाह और देवदासी की प्रथा थी. हमारे दक्षिण भारत के गांवों में नवजात बच्चियों को दूध के गागर में डुबो कर मार दिया जाता था. अब जमाना बदल रहा है. हमें जमाने के साथ चलना चाहिए. जया पढ़ीलिखी है, सबल है, सक्षम है. उसे स्वावलंबी बनने दो. उसे नया जीवनदान दो.’’

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नागमणि अरुणा के पैरों पर गिर पड़ी, ‘‘अक्का, मुझे क्षमा कर दो. मैं ने आप को बहुत जलीकटी सुनाई है. आप को बहुत दुख पहुंचाया है.’’

‘‘वह सब भूल जाओ. अब हमारे सामने जया की ज्वलंत समस्या है. इस का समाधान ढूंढ़ना है. जिंदगी जीने के लिए है, घुटघुट कर मरने के लिए नहीं.’’

वह उठ कर जया की बगल में जा बैठी. उस की पीठ पर हाथ फेरते हुए उस ने कहा, ‘‘क्यों बिटिया, मैं ने ठीक कहा न?’’

जया के निस्पंद शरीर में तनिक हरकत हुई. उस ने सिर घुमा कर अरुणा को देखा और बिना कुछ बोल अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया.

जवाब ब्लैकमेल का

कहानी- विनय कुमार पाठक

रमासन्न रह गई. उस के मोबाइल पर व्हाट्सऐप पर किसी ने उस के अंतरंग क्षणों का वीडियो भेजा था और साथ में यह संदेश भी कि यदि वह इस वीडियो तथा इस तरह के और वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड होते नहीं देखना चाहती तो उस के साथ उसे हमबिस्तर होना पड़ेगा और वह सबकुछ करना पड़ेगा जो वह

उस वीडियो में बड़े प्यार और कुशलता से कर रही है.

वह घर में फिलहाल अकेली थी. प्रकाश औफिस जा चुका था. वह शाम 7 बजे के बाद

ही घर लौटता है. क्या करे, वह समझ नहीं पा रही थी. ‘प्रकाश को फोन करूं क्या?’ उस ने सोचा.

नहीं, पहले समझ तो ले मामला क्या है मानो उस ने खुद से कहा. उस ने वीडियो क्लिप को ध्यान से देखा. कहीं यह वीडियो डाक्टर्ड तो नहीं? किसी पोर्न साइट में उस के चेहरे को फिट कर दिया गया हो शायद. पर नहीं. यह डाक्टर्ड वीडियो नहीं था. वीडियो में साफसाफ वही थी. दृश्य भी उस के बैडरूम का ही था

और उस के साथ जो पुरुष था वह भी प्रकाश ही था. बैडशीट भी उस की थी. इतनी कुशलता से कोई कैसे पोर्न वीडियो में तबदीली कर सकता है?

प्रकाश ओरल सैक्स का दीवाना था. वह तो पहले संकोच करती थी पर धीरेधीरे उस की झिझक भी मिट गई थी. अब वह भी इस का भरपूर आनंद लेने लगी थी. साथ ही प्रकाश उन क्षणों का आनंद रोशनी में ही लेना चाहता था. फ्लैट में और कोई था नहीं. अत: अकसर वे रोशनी में ही यौन सुख का आनंद लेते थे.

वीडियो में वह प्रकाश के साथ थी और बैडरूम के ठीक सामने स्विचबोर्ड भी साफसाफ दिख रहा था. पर ऐसा कैसे हो सकता है? यह दृश्य तो लगता है किसी ने जैसे कमरे में सामने खड़े हो कर फिल्माया है. उस का सिर चकराने लगा. उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था.

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तभी उस के दिमाग में एक विचार कौंधा. ट्रूकौलर पर उस ने उस नंबर को सर्च किया, जिस से वीडियो क्लिप भेजा गया था. देवेंद्र महाराष्ट्र. ट्रूकौलर पर यही सूचना थी. देवेंद्र कौन हो सकता है? क्या इस नंबर पर कौल कर पता करे या फिर प्रकाश से बोले. वह कोई निर्णय कर पाती उस के पहले ही उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो.’’

‘‘भाभीजी नमस्कार, आशा है वीडियो आप को पसंद आया होगा. ऐसे कई वीडियो हैं हमारे पास आप के. कम से कम 25. कहो तो इन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दूं?’’

‘‘कौन हो तुम और क्या चाहते हो?’’

‘‘बहुत सुंदर प्रश्न किया है आप ने. कौन हूं मैं और क्या चाहता हूं? कौन हूं यह तो सामने आने पर पला चल जाएगा और क्या चाहता हूं

यह तो वीडियो क्लिप के साथ मैं ने बता दिया है आप को. सच पूछो भाभीजी तो आप के वीडियो का मैं इतना दीवाना हूं कि मैं ने तो पोर्न साइट देखना ही छोड़ दिया है. आप तो पोर्न सुपर स्टार को भी मात कर देती हैं. आप ने मुझे अपना दीवाना बना लिया है.’’

रमा समझ नहीं पाई कि क्या किया जाए. गुस्सा तो उसे बहुत आ रहा था पर उस से ज्यादा उसे डर लग रहा था कि कहीं सचमुच उस ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड कर दिया तो वह क्या करेगी. फिर उस

ने एक उपाय सोचा और उस के अनुसार उसे जवाब दिया, ‘‘देखो, मैं तैयार हूं पर इस के लिए सुरक्षित जगह होनी चाहिए.’’

‘‘आप के घर से सुरक्षित जगह और क्या होगी? प्रकाशजी तो रात में ही वापस आते हैं न?’’

रमा चौंक पड़ी. मतलब वीडियो भेजने वाला प्रकाश का नाम भी जानता है और वह कब आता है यह भी उसे पता है.

‘‘आते तो 7 बजे के बाद ही हैं पर औफिस तो इसी शहर में है. कहीं बीच में आ गए तो फिर मेरी क्या हालत होगी? 2 दिनों के बाद वे अहमदाबाद जाने वाले हैं 1 सप्ताह के लिए. इस बीच में आप की बात मान सकती हूं.’’

‘‘अरे, वाह आप तो बड़ी समझदार निकलीं. मैं तो सोच रहा था आप रोनाधोना शुरू कर देंगी.’’

‘‘बस, आप वीडियो किसी को मत दिखाइए और मेरे मोबाइल पर कोई वीडियो मत भेजिए. ये कहीं देख न लें… इसे मैं डिलीट कर रही हूं.’’

‘‘जैसे 1 डिलीट करेंगें वैसे ही 5 भी डिलीट कर सकती हैं. मैं कुछ और वीडियो भेजता हूं. देख तो लीजिए आप कितनी कुशलतापूर्वक काम को अंजाम देती हैं. देख कर आप डिलीट कर दीजिएगा. इन वीडियोज ने तो मेरी नींद उड़ा दी है. इंतजार रहेगा 2 दिन बीतने का. हां, कोईर् चालाकी मत कीजिएगा. मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि दुनिया आप की इस कलाकारी को देखे. रखता हूं.’’

फोन डिसकनैक्ट हो गया. कुछ ही देर में एक के बाद एक कई क्लिप उस के मोबाइल पर आते गए. उस ने 1-1 क्लिप को देखा. ऐसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य हो कर उन के क्रीड़ारत वीडियोज बना रहा था. शाम को प्रकाश आया तो रमा का चेहरा उतरा हुआ था. ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ प्रकाश ने टाई की नौट ढीली करते हुए पूछा. ‘‘तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है, बड़ी मुसीबत में हूं. दिनभर सोचतेसोचते दिमाग भन्ना गया है,’’ रमा ने तौलिया और पाजामा उस की ओर बढ़ाते हुए कहा. ‘‘कितनी बार तुम्हें सोचने के लिए मना किया है. छोटा सा दिमाग और सोचने जैसा भारीभरकम काम,’’ कपड़े बदलते हुए प्रकाश ने चुटकी ली.

‘‘पहले फ्रैश हो लो, चायनाश्ता कर लो, फिर बात करती हूं,’’ रमा ने कहा और फिर रसोई की ओर चल दी.

प्रकाश फ्रैश हो कर बाथरूम से आ कर नाश्ता कर चाय पीने लगा. रमा चाय का कप हाथ में लिए उदास बैठी थी.

‘‘हां, मुहतरमा, बताइए क्या सोच कर अपने छोटे से दिमाग को परेशान कर रही हैं?’’ प्रकाश ने यों पूछा मानो वह उसे किसी फालतू बात के लिए परेशान करेगी.

जवाब में रमा ने अपना मोबाइल फोन उठाया, स्क्रीन को अनलौक किया और उस वीडियो क्लिप को चला कर उसे दिखाया.

वीडियो देख प्रकाश भौचक्का रह गया, ‘‘यह… क्या है?’’

‘‘कोई देवेंद्र है, जिस ने मुझे यह क्लिप भेजा है. इसे सोशल साइट पर अपलोड करने की धमकी दे रहा था. अपलोड न करने के लिए वह मेरे साथ वही सब करना चाहता है जो वीडियो में मैं तुम्हारे साथ कर रही हूं. मैं ने उस से 2 दिन की मोहलत मांगी है. उस से कहा है कि 2 दिन बाद तुम अहमदाबाद जा रहे हो. उस दौरान उस की मांग पूरी की जाएगी.’’

प्रकाश 1-1 क्लिप को देख रहा था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि कैसे कोई इतना स्पष्ट वीडियो बना सकता है. उस ने अपने बैड के पास जा कर देखा. कहीं कोई गुप्त कैमरा लगाने की गुंजाइश नहीं थी और कोई गुप्त कैमरा लगाता कैसे. घर में तो किसी अन्य के प्रवेश करने का प्रश्न ही नहीं है. अपार्टमैंट में सिक्युरिटी की अनुमति के बिना कोई आ ही नहीं सकता. उस के प्लैट के सामने अपार्टमैंट का ही दूसरा फ्लैट था जो काफी दूर था. ‘‘हमें पुलिस को खबर करनी होगी,’’ प्रकाश ने कहा, ‘‘पर पहले एक बार खुद भी समझने की कोशिश की जाए कि मामला क्या है.’’ दोनों काफी तनाव में थे. खाना खा कर कुछ देर तक टीवी देखते रहे पर किसी चीज में मन नहीं लग रहा था. रात के 11 बजे दोनों सोने बैड पर गए, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. पतिपत्नी दोनों की ही इच्छा नहीं थी और दिनों की तरह रतिक्रिया में रत होने की. और दिन होता तो प्रकाश कहां मानता. मगर आज तनाव ने सबकुछ बदल दिया था.

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प्रकाश की बांहों में लेटी रमा कुछ सोच रही थी. प्रकाश छत को निहार रहा था. एकाएक प्रकाश को खिड़की के पास कोई संदेहास्पद वस्तु दिखाई दी. वह झपट कर खिड़की के पास गया. उस ने देखा सैल्फी स्टिक की सहायता से सामने वाले फ्लैट की खिड़की से कोई मोबाइल से उन की वीडियोग्राफी कर रहा था. प्रकाश तुरंत बाहर निकल कर उस फ्लैट में गया और डोरबैल बजाई. पर मोबाइल में शायद उस ने उसे बाहर निकलते हुए देख लिया था. काफी देर डोरबैल बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो प्रकाश वापस आ गया. उस ने इंटरकौम से सोसाइटी के सचिव को फोन कर मामले की जानकारी दी. सचिव ने बताया कि उस में कोई देवेंद्र नाम का व्यक्ति रहता है और किसी प्राइवेट फर्म में काम करता है. इस तरह की घटना से सभी हैरान थे.

काफी कोशिश की गई देवेंद्र से बात करने की. पर न तो उस ने फोन उठाया न ही दरवाजा खोला. हार कर सिक्युरिटी को ताकीद कर दी गई कि उस व्यक्ति को सोसाइटी से बाहर न निकलने दिया जाए.

दूसरे दिन सुबह थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई और फिर देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया. ‘‘तुम ने बहुत अच्छा निर्णय लिया कि वीडियो के बारे में मुझे बता दिया. यदि उस के ब्लैकमेल के झांसे में आ जाती तो काफी मुश्किल होती और फिर वह न जाने कितने लोगों को इसी तरह ब्लैकमेल करते रहता,’’ प्रकाश ने बिस्तर पर लेटेलेटे रमा की कमर में हाथ डालते हुए कहा. रमा ने उस के हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘पहले खिड़की के परदे ठीक करो, बत्ती बुझाओ फिर मेरे करीब आओ.’’ प्रकाश खिड़की के परदे ठीक करने के लिए उठ गया.

3 सखियां: भाग-7

पिछला भाग- 3 सखियां: भाग-6

‘‘मैं आप के साथ हूं.’’ फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली. उस ने लिखा था, ‘तुम्हारा नाम फेसबुक पर देखा तो तुम से फिर संपर्क करने की तमन्ना हुई. युगों बीत गए तुम से बात किए या मिले हुए. अपना हालचाल बताना.’ आभा खुशी से उछल पड़ी. इतने सालों बाद अपनी सखी का संदेश पा कर वह भावुक हो गई. उस ने फौरन रितिका को फोन लगाया.

‘‘रितिका,’’ वह फोन पर चीखी.

‘‘आभा माई डियर, मैं बयान नहीं कर सकती कि मुझे तुम से बात कर के कितनी खुशी हो रही है. मैं ने सुना कि तू इंडिया आ गई है.’’

‘‘हां, और तू कहां है? इटली में?’’

‘‘अरे नहीं यार, इटली तो छूट चुका.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘यह एक लंबी कहानी है, ऐंटोनियो बड़ा फरेबी निकला.’’

‘‘क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां आभा. उस ने मुझे बड़ा धोखा दिया.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘वह बड़ा झूठा था. वह गले तक कर्ज में डूबा हुआ था. उस का महल भी गिरवी पड़ा था.’’

‘‘तो उस का काम कैसे चलता था?’’

‘‘पता नहीं. उस ने मुझे अपने महल में टिका दिया. शुरूशुरू में वह मुझ से बहुत प्यार जताता था. पर जब उसे पता चला कि मैं इंडियन हूं पर किसी रियासत की राजकुमारी नहीं और न ही मेरे पास अगाध दौलत है जिसे वह हथिया सके, तो उस ने मेरी ओर से आंखें फेर लीं. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला. वह महीनों घर से गायब रहता. न मेरा हाल पूछता न अपने बारे में कुछ बताता. धीरेधीरे मुझे उस की असलियत मालूम हुई. उस के पास आमदनी का कोई जरीया नहीं था. वह अमीर औरतों को अपने जाल में फांसता था और उन से पैसे ऐंठता था. यही उस की जीविका का आधार था और यही उस का पेशा था. दरअसल, वह एक जिगोलो था. वह पैसे के लिए अपना तन बेचता था. भला ऐसे आदमी के साथ मैं कैसे रह सकती थी? उस ने तो मुझे भी धंधे में झोंकने की कोशिश की.’’

‘‘ओह नो.’’

‘‘हां. जब मुझे उस के नापाक इरादों की भनक मिली तो मैं चौकन्नी हो गई. मैं ने वहां से भागने का प्लान बनाया. हालांकि यह काम इतना आसान नहीं था. फिर भी मैं ने घर की एक बुढि़या नौकरानी को अपने कुछ गहने दिए और उस की मदद से मैं ने एक नाव किराए पर ली और नदी पार की. रोम पहुंच कर मैं सीधे इंडियन ऐंबैसी की शरण में गई. वहां अपनी राम कहानी सुनाई और फिर भारत वापस पहुंची. अब मैं अपनी मां के साथ रहती हूं, बिलकुल अकेली. न कोई संगी न साथी,’’ उस ने बुझे स्वर में कहा. ‘‘रितिका तेरी कहानी सुन कर तो रोना आता है. अभी तेरी उम्र ही क्या है. ये पहाड़ जैसी जिंदगी किस के सहारे काटेगी? बुरा न मान तो एक बात कहूं, तू दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती?’’

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‘‘दूसरी शादी? राम भजो. 2 बार कर के तो पछता रही हूं. नहीं, शादी का सुख मेरी जिंदगी में नहीं है और इत्तफाक से बच्चे भी नहीं हुए, नहीं तो उन के लिए ही जी लेती. जब तक मां हैं हम दोनों एकदूसरे के सहारे दिन काट रही हैं. आगे की देखी जाएगी.’’

‘‘तब तेरा समय कैसे कटता है?’’

रितिका ने एक आह भरी और कहा, ‘‘कट ही जाता है किसी तरह. सुबह होती है शाम होती है, जिंदगी यों ही तमाम होती है. दरअसल, हालात ही कुछ ऐसे बने कि मेरी कायापलट हो गई. वैसे कहते हैं कि शादी एक जुआ है. पर मैं तो कहूंगी कि जिंदगी एक जुआ है. किसी को बैठेबिठाए, अनायास ही जीवन की हर खुशी मिल जाती है. उस के सिर पर जीत का सेहरा लग जाता है और कोई आजीवन झींकता रहता है, संघर्ष करता रहता है पर उस के मन की एक भी मुराद पूरी नहीं होती. कभीकभी लगता है कि दुनिया हमारी मुट्ठी में है पर दूसरे ही क्षण पारे की तरह सब हाथ से फिसल जाता है. हम सब एक कठपुतली समान हैं और कोई अदृश्य शक्ति हमें नचाती रहती है. खैर छोड़ न यार, कोई और बात कर. हां, अपनी सखी शालिनी की सुना. उस के क्या हालचाल हैं?’’

‘‘उस की कुछ न पूछ,’’ आभा ने एक आह भर कर कहा.

‘‘भला क्यों?’’

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं है.’’

‘‘ये क्या कह रही है आभा? क्या हुआ था उसे?’’

‘‘कोई बीमारी नहीं थी उसे. उस के पति ने बहलाफुसला कर उसे वापस इंडिया भेजा और उस के लौटने के तुरंत बाद उसे तलाक के कागजात भेज दिए. उस के मांबाप तलाक देने के पक्ष में नहीं थे. पर शालिनी ने कागजात पर दस्तखत कर दिए. इस के बाद वह बिलकुल टूट सी गई. पार्थ को वह बहुत चाहती थी. वह बहुत गुमसुम रहने लगी. वह डिप्रैशन का शिकार हो गई और ड्रग्स भी लेने लगी. उस के मांबाप ने उस के लिए वर ढूंढ़ना शुरू कर दिया और एक अधेड़, दुहाजू वर तलाश भी कर लिया. फिर शालिनी को समझाबुझा कर शादी के लिए राजी भी कर लिया. पर शादी के एक दिन पहले शालिनी ने किसी ड्रग का ओवरडोज ले लिया. रात को सोई तो सोई ही रह गई.’’

‘‘हायहाय ये तो बहुत बुरा हुआ. बेचारी शालिनी.’’ ‘‘हां, समझ में नहीं आता कि उस की असमय मौत के लिए किसे दोष दें. उस के मांबाप की दकियानूसी सोच को, जो ये सोचते हैं कि शादी के बिना एक स्त्री का निस्तार नहीं है या उस के कू्रर पति को जिस ने उस के साथ वहशियाना बरताव किया और उस का जीना दूभर कर दिया या अपने समाज के संकीर्ण दृष्टिकोण को जो लड़कियों के प्रति हमेशा असहिष्णु रहा है और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझता है. खैर यह तो हुई शालिनी की कहानी. अब किसी दिन तुझे फुरसत से अपने बारे में बताऊंगी. अब फोन रखती हूं.’’

‘‘ठीक है. पर तू मुझे जबतब फोन करती रहना. इस से मुझे बहुत आत्मबल मिलता है.’’

‘‘अवश्य,’’ कह कर आभा ने फोन रख दिया.

उस की नजर बाहर बैठे राम पर पड़ी जो बड़ी लगन से बच्चों को पढ़ा रहे थे. वह मुग्ध भाव से उन का सौम्य मुखमंडल ताकती रही. यदि सहचर मन मुताबिक मिले तो एक स्त्री का जीवन सफल हो जाता है. अगर शादी के जुए में उस का पांसा सही पड़ गया तो समझो उस के पौबारह हैं, उस ने भावविभोर हो कर सोचा.

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3 सखियां: भाग-6

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लंबाचौड़ा, भूरी आंखें, घनी बरौनियां, घुंघराले बाल और जब वह अपनी टूटीफूटी अंगरेजी में बात करता है तो और भी प्यारा लगता है.’’ आभा उसे एकटक देखती रही. फिर बोली, ‘‘ओह, रितिका तेरा क्या होगा? तू तो बचकानी हरकत कर रही है. तेरे इस प्यार का क्या अंजाम होगा कुछ सोचा भी है? जब निरंजन को इस बारे में पता चलेगा तो वे क्या कहेंगे?’’

आगे पढ़ें- ऐंटोनियो के बिना मेरा जीना मुश्किल है. निरंजन जब…

‘‘पता नहीं, लेकिन मैं बस इतना जानती हूं कि ऐंटोनियो के बिना मेरा जीना मुश्किल है. निरंजन जब मेरे जीवन में आए तो वह महज एक समझौता था. वह शादी मैं ने सिर्फ पैसे के लिए की थी. लेकिन ऐंटोनियो के लिए मेरा प्यार एक जनून है, एक पागलपन है.’’

‘‘और तेरा ऐंटोनियो इस बारे में क्या कहता है?’’

‘‘वह भी मुझे जीजान से चाहता है. मुझ से शादी करना चाहता है.’’

‘‘शादी?’’ आभा चौंक पड़ी, ‘‘रितिका, शादी एक बहुत बड़ा कदम है. कहीं तू कुएं से निकल कर खाई में न गिर जाए. आखिर वह शख्स तेरे लिए अजनबी ही तो है. तू उस के बारे में कुछ भी तो नहीं जानती.’’ ‘‘जानती हूं. मैं ने सब पता लगा लिया है. ऐंटोनियो खानदानी रईस है. उस की रगों में शाही खून दौड़ रहा है. उस के पास बेशुमार दौलत है. इटली में रोम के पास ही एक टापू पर उस का महल है और वह अपने मातापिता का अकेला वारिस है. उस ने मुझे न्योता दिया है कि मैं इटली आऊं और उस के घर को देखूं, उस के परिवार से मिलूं.’’

‘‘और निरंजन का क्या होगा?’’

‘‘निरंजन को छोड़ना ही पड़ेगा. मैं ने तय कर लिया है कि मैं क्विक डाइवोर्स ले लूंगी जो फौरन मिल जाता है. फिर मैं इटली जाऊंगी और ऐंटोनियो से ब्याह कर लूंगी.’’ ‘‘देख रितिका जो भी करना जरा सोचसमझ कर करना और मुझ से वादा कर कि तू मुझे अपने बारे में खबर देती रहेगी.’’

‘‘अवश्य. तुझे नहीं बताऊंगी तो और किसे बताऊंगी? तू मेरी बैस्ट फ्रैंड है.’’ समय गुजरता रहा. आभा के यहां 2 प्यारेप्यारे बच्चे हो गए. वह अपनी घरगृहस्थी में पूरी तरह रम गई. अब उसे दम मारने की भी फुरसत नहीं थी. कभीकभी वह बुरी तरह थक जाती. जब राम घर आता तो वह शिकायत करती, ‘‘ओह, आज मेरा पैर बहुत दर्द कर रहा है पूरे 3 घंटे किचन में खड़ी रही.’’

‘‘ओहो, किस ने कहा था तुम्हें इतने सारे और्डर लेने को? लाओ मैं तुम्हारे पैर दबा दूं.’’

‘‘हटो कोई देखेगा तो कहेगा कि मैं अपने पति से पैर दबवा रही हूं.’’ क्या हुआ? आज बराबरी का युग है. तुम मेरे पैर दबाओगी तो मुझे भी तुम्हारे पैर दबाने पड़ेंगे.’’ क्या राम जैसे पुरुष भी इस संसार में होते हैं? उस ने सोचा. यदि राम ने उस की भावनाओं को न समझा होता, यदि वह उस के प्रति संवेदनशील न हुआ होता तो क्या आभा अपने सगेसंबंधियों से दूर अमेरिका में इतने दिनों रह पाती? पर राम के साथ ये चंद साल पलक झपकते बीत गए थे. एक दिन वह किचन में खड़ी खाना बना रही थी. उस ने चूल्हे पर कड़ाही चढ़ा कर उस में तेल उड़ेल दिया और अपनी एक सहेली से फोन पर बातें करने लगी. तेल गरम हो गया तो अचानक उस में आग लग गई. रसोईघर की छत तक लपटें उठने लगीं. लकड़ी की छत धूधू कर के जलने लगी और स्मोक अलार्म बजने लगा. आभा की चीख निकल गई. वह अपने बच्चों को ले कर घर से बाहर भागी. उस ने राम को फोन किया तो फौरन वह घर आया. फिर दमकल की गाडि़यां आईं और आग पर काबू पा लया गया.

‘‘बस बहुत हुआ,’’ राम ने उसे झिड़का, ‘‘अब तुम्हारा घरेलू व्यापार बंद. इस के चलते हमारा आशियाना जल कर खाक हो गया होता. शुक्र है कि घर जलने से बच गया.’’

‘‘और मेरे पास इतने सारे जो और्डर हैं उन का क्या होगा?’’

‘‘वे सब कैंसल…और एक खुशखबरी है तुम्हारे लिए.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘मेरा प्रमोशन हो गया. अब मैं अपनी कंपनी का वाइस प्रैसिडैंट हूं.’’

‘‘अरे वाह. यह तो बड़ी अच्छी खबर है.’’

‘‘हां. इस का मतलब है कि अब तुम्हें इतनी मेहनत करने की जरूरत नहीं. यह काम बंद करो और जरा बच्चों पर ध्यान दो. वे बड़े हो रहे हैं.’’ ‘‘ठीक है. पर अब किचन की मरम्मत कराने का उपाय करो नहीं तो वहां खाना बनाना मुश्किल होगा.’’

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‘‘वह सब छोड़ो. आज हम होटल में खाना खाऐंगे और अब हम नए घर में शिफ्ट होंगे. तुम्हारे लिए नई कार आएगी.’’ ‘‘सच? ओह राम तुम कितने अच्छे हो,’’ वह पति के गले से झूल गई, ‘‘पर पहले अपने लिए नई गाड़ी ले लो. तुम्हारी कार एकदम खटारा हो रही है.’’

‘‘नहीं, पहले मेमसाहब की गाड़ी खरीदी जाएगी.’’

‘‘लेकिन वाइस प्रैसिडैंट तो तुम बने हो.’’

‘‘वह ओहदा, रुतबा सब बाहर वालों के लिए. उन के लिए मैं मिस्टर राम कुमार हूं. अपनी कंपनी का कर्ताधर्ता. घर में तो तुम्हारा राज चलता है…मुझे यह बात कहने में जरा भी संकोच नहीं होता कि मेरी नकेल तुम्हारे हाथों में है. अगर तुम इस घर की बागडोर को कस कर नहीं पकड़तीं तो सब बिखर जाता. मैं भलीभांति जानता हूं कि इस घरपरिवार को सहेज कर रखने का और बच्चों की सही परवरिश का श्रेय तुम्हें ही जाता है. तुम सही अर्थों में मेरी सहधर्मिणी साबित हुईं और तुम्हारे इस सहयोग के लिए मैं हमेशा तुम्हारा आभारी रहूंगा.’’ आभा का तनमन पति के प्यार की ऊष्मा से ओतप्रोत हो गया. साल पर साल गुजरते गए.

एक दिन राम ने दफ्तर से लौट कर उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है.’’

‘‘एक और प्रमोशन?’’ आभा चहकी.

‘‘नहीं, तुम तो जानती हो कि हम हिंदुस्तानियों को योग्य होने पर भी कंपनी का प्रैसिडैंट नहीं बनाया जाता. इस मामले में अमेरिकन बड़े घाघ होते हैं. खुशखबरी यह है कि हम इंडिया वापस जा रहे हैं.’’

‘‘अरे अचानक?’’

‘‘हां बहुत दिन वनवास काट लिया. अब अपनों के बीच दिन गुजारने की इच्छा हो रही है. मैं ने तय कर लिया है कि मैं रिटायरमैंट ले लूंगा. इतने दिनों अपने लिए खटता रहा अब दूसरों के लिए काम करूंगा.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि अब मैं अपने देशवासियों के लिए काम करूंगा. समाजसेवा. क्या समझीं? हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं. अच्छा पढ़लिख रहे हैं. उन के बारे में हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं. हम उन्हें यहां छोड़ कर वापस घर जाएंगे. मेरे गांव में अपनी पुश्तैनी जमीन है, एक जीर्णशीर्ण घर है, वहां बस जाएंगे. मैं सोच रहा हूं कि उस जमीन में बच्चों के लिए एक छोटा सा प्राइमरी स्कूल खोल देंगे. मुझे हमेशा पढ़ाने का शौक रहा है. मैं उन्हें पढ़ाऊंगा.’’

‘‘और मैं क्या करूंगी?’’

‘‘तुम उन बच्चों के लिए दोपहर का खाना बना कर भेजना. मैं विद्यादान करूंगा, तुम अन्नदान करना. इस से बढ़ कर पुण्य का काम और कोई नहीं है. क्यों, क्या कहती हो?’’

आगे पढ़ें- फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली…

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3 सखियां: भाग-5

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अब तक आप ने पढ़ा:

तीनों सहेलियों में एक आभा ही थी,  जो अपने जीवन और परिवार से खुश थी. एक दिन आभा को शालिनी ने फोन पर बताया कि उस के पति पार्थ उस पर बेइंतहा जुल्म करते हैं, तो उस ने पार्थ को समझाना चाहा. पर वह उलटे ही आभा से लड़ पड़ा. उधर रितिका का भी अपने पति से रिश्ता सामान्य नहीं था. रितिका एक दिन गहरी मुसीबत में फंसी तो उस ने आभा से मदद मांगी.

अब आगे पढ़ें:

मैं ने तय कर लिया है कि मैं निरंजन से क्विक डाइवोर्स ले लूंगी. फिर इटली जाऊंगी और ऐंटोनियो से शादी कर लूंगी… फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली.जबशालिनी का पति वापस लौटा तो आभा ने उसे फोन किया.

आप फिर हमें परेशान करने लगीं,’’ पार्थ का स्वर तीखा हुआ.

‘हां और ये मेरी आखिरी वार्निंग है. अगर मैं ने यह सुना कि आप ने फिर अपनी पत्नी को मारापीटा है तो मैं सीधे पुलिस के पास जाऊंगी. और मैं शालिनी के मांबाप को भी आप के बरताव के बारे में बताने वाली हूं.’’

‘‘शौक से. मैं तो यही चाहता हूं कि उन्हें मेरे बारे में पता चले और वे शालिनी को वापस बुला लें. मैं खुद उस औरत से पिंड छुड़ाना चाहता हूं.’’

आभा सकते में आ गई.

‘‘तो आप ने उस से शादी क्यों की?’’ उस ने सवाल किया.

‘‘यही तो मेरे जीवन की सब से बड़ी भूल है.’’ आभा निरुत्तर हो गई. एक दिन अचानक रितिका उस के यहां आ पहुंची.

‘‘अरे तू?’’ आभा हर्ष से चीखी.

‘‘हां मैं. कह रही थी न कि तुझ से मिलने आऊंगी सो देख आ धमकी.’’

आभा उस की ओर मंत्रमुग्ध सी देखती बोली, ‘‘तेरा रंग तो और भी निखर गया. खूबसूरत तो तू थी ही पर अब तो और ज्यादा आकर्षक हो गई है.’’ रितिका हंस दी.

आभा ने उसे बैठा कर उस की पसंद का खाना खिलाया. फिर दोनों सखियां बैडरूम में बैठ कर गपशप करने लगीं.

‘‘अब सुना तेरी कैसी निभ रही है?’’ आभा ने पूछा.

‘‘अब तक तो सब अच्छा ही चल रहा था पर आगे की नहीं कह सकती,’’ रितिका ने अपने कंधे उचकाए.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मुझे मेरे पति से कोई शिकायत नहीं थी सिवाए इस के कि वे अपने काम को ले कर बहुत व्यस्त रहते थे. उन के पास मेरे लिए बिलकुल समय नहीं था. पर इस बात को ले कर मैं ज्यादा परेशान नहीं थी, क्योंकि उन का काम ही ऐसा था. एक दिन में लाखों के वारेन्यारे होते थे. जब उन के पास पैसे होते थे तो वे मुझे नोटों की गड्डी पकड़ा कर कहते थे कि लो ऐश करो. पर अब अचानक एक नई समस्या खड़ी हुई है. निरंजन के ऊपर केस चलने वाला है.’’

‘‘ये क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां, निरंजन ने जल्द से जल्द पैसा कमाने की जुगत में कुछ गलत काम कर दिया. क्या कहते हैं उसे…‘इनसाइडर ट्रेडिंग तू समझती है न? उन्हें पहले से खबर लग जाती थी कि किस शेयर का भाव बढ़ने या गिरने वाला है और वे चुपचाप अपने लिए शेयर खरीद या बेच लेते थे. इस तरह उन्होंने अच्छीखासी रकम खड़ी कर ली. पर आखिरकार पकड़े गए. चूंकि ऐसा करना कानूनन जुर्म है, वे कानून के शिकंजे में आ गए हैं. उन पर मुकदमा चलेगा?’’ आभा स्तंभित हुई, ‘‘यह तो बड़ा बुरा हुआ. अब क्या होगा?’’

‘‘निरंजन पर मुकदमा चलेगा. हार गए तो उन्हें जेल हो सकती है.’’

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‘‘क्या कहती है तू?’’

‘‘सच कह रही हूं.’’

‘‘रितिका ये तो बड़ी बुरी खबर सुनाई तू ने. कितने मजे में तेरी जिंदगी गुजर रही थी. क्या इस मुसीबत से बचने का कोई रास्ता नहीं है?’’

‘‘लगता तो नहीं है.’’

रितिका उदास मुद्रा में बैठी कौफी के कप में चम्मच डुलाती रही.

‘‘अब तू क्या करेगी?’’

‘‘समझ में नहीं आता कि क्या करूं. सोचती हूं निरंजन को उन के हाल पर छोड़ दूं, उन्हें तलाक दे दूं और अपने घर का रास्ता नापूं.’’

‘‘क्या कह रही है तू? अपने पति को इस हालत में छोड़ देगी?’’

‘‘और मैं कर ही क्या सकती हूं, तू ही बता? जब वे सजा काटेंगे तो मैं अकेले कैसे निर्वाह करूंगी? मैं ने यहां आज तक नौकरी नहीं की है और कोशिश भी करूं तो मुझे एक मेड की नौकरी से अधिक कुछ नहीं मिलेगा.’’

‘‘तो?’’

‘‘मुझे लगता है कि घर ही लौटना पड़ेगा. इस के सिवा कोई चारा नहीं है. मेरे पिताजी का देहांत हो चुका है. मां बिलकुल अकेली पड़ गई हैं.’’ पहली बार आभा ने अपनी सखी को इतना उदास और मायूस देखा था. वह उस के लिए चिंतित हो गई.

थोड़ी देर बाद रितिका ने अपने आंसू पोंछे.

‘‘छोड़ भी यार,’’ उस ने अपने पहले वाले बिंदास अंदाज में कहा, ‘‘जो भी होगा देखा जाएगा. जब तक सांस तब तक आस. अभी से रोरो कर क्यों हलकान होऊं. चल जरा बाहर घूम कर आते हैं.’’ बाहर एक रेस्तरां में दोनों बैठ कर आपस में बतियाने लगीं. रितिका बोलने लगी, ‘‘तुझे एक भेद की बात बताऊं, मेरा एक नया दोस्त बन गया है.’’

‘‘अरे?’’ आभा उस का मुंह ताकने लगी.

‘‘हां, एक रोज मैं मौल के बाहर सड़क पर अपने खरीदे हुए सामानों से लदी खड़ी थी और टैक्सी की खोज में थी कि एक लाल रंग की स्पोर्ट्स कार मेरे पास आ कर रुकी. उस में बैठे युवक ने मुझ से पूछा कि मैडम आप को कहां जाना है? क्या मैं आप को कहीं ड्रौप कर सकता हूं?’’

‘‘मैं एक क्षण को चकरा  ई. फिर सोचा कि इस में हरज ही क्या है. वह नौजवान इतालवी बड़ा हैंडसम था और उस का नाम ऐंटोनियो था. उस ने मुझे घर छोड़ा और मैं ने शिष्टाचारवश उसे एक कप कौफी पीने का न्योता दिया. फिर हमारी बाकायदा मुलाकातें होने लगीं.’’

‘‘और तेरे पति को यह बात मालूम है?’’

‘‘नहीं, उन्हें ऐंटोनियो के बारे में कुछ नहीं मालूम. वे तो वकीलों और कोर्टकचहरी के चक्कर लगा रहे हैं. उन्हें खुद की भी सुध नहीं है. लेकिन मुझे ऐंटोनियो अच्छा लगने लगा था. वह करीब रोज ही मेरे यहां पहुंच जाता और अपनी कार में मुझे लौंग ड्राइव पर ले जाता. मेरा समय अच्छा गुजरता था. धीरेधीरे मुझे लगने लगा कि मैं और ऐंटोनियो एकदूसरे के करीब आ रहे हैं और अब ऐसा लगता है कि मैं उस के बिना रह नहीं सकती. ’’

‘‘अरे?’’

‘‘हां आभा, मैं उसे प्यार करने लगी हूं. पहली नजर में ही वह मुझे भा गया. तू उसे देखेगी तो गश खा जाएगी, इतना हैंडसम है वह.

आगे पढ़ें- आभा उसे एकटक देखती रही. फिर बोली…

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3 सखियां: भाग-4

आप जैसी स्त्रियों से मेरी पत्नी की निकटता मुझे गवारा नहीं.’’

आभा अवाक रह गई.

‘‘ए मिस्टर, आप अपने होशोहवास में तो हैं न?’’ उस ने कड़क कर कहा, ‘‘यह क्या ऊलजलूल बकते जा रहे हैं? मेरा मुंह न खुलवाइए. आप का पूरा कच्चाचिट्ठा मुझे मालूम है. आप अपनी पत्नी के साथ जैसा व्यवहार कर रहे हैं उस की मुझे खबर है. यदि मैं पुलिस में शिकायत कर दूं तो आप को जेल की हवा खानी पड़ेगी…’’

‘‘मुझे इस का अधिकार है कि मैं अपनी पत्नी के साथ जैसा चाहे सुलूक करूं. यह हमारा आपस का मामला है. आप अपने काम से काम रखिए और हमारे निजी मामलों में दखल देना बंद कीजिए. नहीं तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

‘‘अच्छा, अब आप मुझे धमकी देने पर उतर आए. आप मेरा क्या कर लेंगे?’’

‘‘मैं क्या कर लूंगा… मैं आप पर तेजाब फेंक कर आप का हुलिया बिगाड़ दूंगा. आप को गुंडों से पिटवा दूंगा. आप को अगवा करवा दूंगा.’’

जब आभा के पति राम ने यह सब सुना तो उस ने आभा को आगाह किया, ‘‘आभा, तुम क्यों दूसरों के पचड़े में पड़ती हो. बेकार में लेने के देने पड़ सकते हैं. जाहिर है कि वह आदमी पागल है. उस से उलझना ठीक नहीं.’’

‘‘लेकिन मैं चुप कैसे बैठी रह सकती हूं. यह लड़की मेरी अंतरंग सहेली है. इस का इस परदेश में और कौन है?’’

‘‘माना कि वह तुम्हारी प्रिय सहेली है पर मुझे डर है कि कहीं उस की मदद करतेकरते तुम किसी मुसीबत में न फंस जाओ. और मुझे यह भी फिक्र हो रही है डार्लिंग कि तुम हमेशा दूसरों की सोचोगी, तो यह जो बेचारा पति नाम का प्राणी है उस का क्या होगा? कुछ हमारा भी खयाल करो जानेमन,’’ उस ने आभा को अपनी बांहों में लेते हुए कहा.

आभा हंस पड़ी और राम के आगोश में सिमट गई.

जब वह नईनई अमेरिका आई थी तो रोज अपने घर वालों को याद कर के आंसू बहाती थी. उसे अमेरिका बिलकुल नहीं सुहाता था. और राम जब भी उस का उतरा हुआ चेहरा देखता तो वह उस का मन बहलाने का प्रयत्न करता. वह उस के लिए सिनेमा के टिकट लाता. उसे बाहर घुमाने ले जाता. उस ने आग्रह कर के उसे एक क्लब में भरती करवा दिया था. अब आभा रोज सुबह घर से निकल जाती, क्लब में टैनिस खेलती, तैरती और ऐरोबिक्स करती. उस का समय अच्छी तरह कट जाता था.

राम उस के प्रति संवेदनशील था. उस ने उसे कालेज में कोई कोर्स करने के लिए प्रेरित किया. उसे कोई छोटीमोटी नौकरी कर लेने का सुझाव दिया.

‘‘घर में खाली बैठी रहोगी तो मायके की याद और सताएगी. इस से तो अच्छा है कि तुम कुछ करती रहो. अपनेआप को व्यस्त रखो.’’

‘‘एक दिन आभा इंडियन स्टोर में गई तो उस ने दुकानदार से पूछा, ‘‘क्या आप के यहां सेल्सगर्ल की जगह खाली है?’’

‘‘हमारी दुकान छोटी सी है इसलिए मेरा परिवार ही मेरी मदद कर देता है. मेरी पत्नी कैश काउंटर पर बैठती है और मेरा बेटा सामान बेचने में मेरी मदद करता है. पर हमारे पास हमेशा घर के बने अचार, रोटी व परांठों की डिमांड आती है. क्या आप इन्हें सप्लाई कर सकती हैं?’’

‘‘हां क्यों नहीं, अपने घर के लिए तो बनाती ही हूं.’’

‘‘तो आप हमें हर हफ्ते 2 सौ परांठे और 2 सौ रोटियां बना कर दीजिए. इस का मैं आप को उचित मेहनताना दूंगा.’’ आभा खुश हुई कि चलो घर बैठे कुछ आमदनी हो जाएगी और उस का समय भी कटेगा. धीरेधीरे उस के बनाए व्यंजनों की मांग बढ़ने लगी. उस का घरेलू व्यापार जोरों से चल निकला. अन्य दुकानों से भी उस के बनाए खाने की फरमाइश होने लगी. आभा को सिर उठाने की भी फुरसत नहीं थी.

लेकिन आभा को शालिनी की चिंता सताती रहती थी. एक दिन अचानक शालिनी का फोन आया तो वह खुशी से नाच उठी.

‘‘वाह शालू, आज तू ने पहली बार मुझे फोन किया है.’’

‘‘हां,’’ शालिनी की आवाज बुझीबुझी सी थी.

‘‘क्या बात है शालू, तू कुछ परेशान लगती है. सब ठीक तो है न?’’

‘‘कुछ भी ठीक नहीं,’’ शालिनी रो उठी.

‘‘यह क्या शालिनी,’’ आभा विचलित हो गई, ‘‘तू रो क्यों रही है? कुछ बताएगी भी या रोए चली जाएगी?’’

‘‘आभा मेरे पति मुझे यहां अकेला छोड़ कर आस्ट्रेलिया घूमने गए हैं.’’

‘‘तो?’’

‘‘जाते वक्त मुझे एक डौलर भी नहीं दे कर गए. और तो और उन्होंने टैलीफोन का बिल नहीं भरा था तो मैं ने पाया कि मेरा फोन कट गया है. इधर वाशिंगटन में बड़े जोर का बर्फीला तूफान आया है. बाहर निकलना मुश्किल है. हफ्ते भर से मैं घर में कैद हूं. घर में खाने का एक दाना भी नहीं है. 2-3 दिन मैं ने पौपकौर्न खा कर गुजारे. अब भूखों मरने की नौबत आ गई है. मैं तो सोच रही थी कि शीघ्र ही मेरी मौत हो जाएगी पर इत्तफाक से आज अचानक तेरा भेजा हुआ फोन हाथ लग गया. शायद पार्थ इसे तुझे वापस भेजना भूल गए थे.’’

‘‘तू ने किसी से मदद क्यों नहीं मांगी?’’

‘‘किस से मांगती? और इस मौसम में बाहर परिंदा भी पर नहीं मार रहा. घुटनों तक बर्फ जमी है.’’

‘‘शालिनी, तू पुलिस में फोन कर. यह तेरी जिंदगी और मौत का सवाल है.’’

‘‘पुलिस?’’ शालिनी कांपती आवाज में बोली.

‘‘अरी पगली, पहले अपनी जान बचाने की फिक्र कर बाद की बाद में सोचेंगे. अब बात हद से बाहर हो गई है. हम चुप बैठे नहीं रह सकते. तुझे यों घुटघुट कर मरते नहीं देख सकते. हां एक बात तो बता, अब तेरे पति महाशय का रवैया कुछ बदला है कि नहीं?’’

‘‘कहां, अभी भी वे मुझे मारते हैं. पर अब होशियार हो गए हैं. मेरे सर पर धौल लगाते हैं ताकि बदन पर कोई बाहरी चोट या घाव के निशान न दिखे और किसी को कुछ पता न लगे.’’

‘‘देख शालू हिम्मत न हार. 1 गिलास पानी में नमक और चीनी डाल कर 1-1 घूंट पीती रह. मैं भी यहां से तेरी मदद करने की कोशिश करती हूं और जैसे ही बर्फबारी रुके, तो बाहर निकल कर किसी से मदद मांग.’’

‘‘किस से मांगूं? सड़क पर तो कोई नहीं दिखाई दे रहा है.’’

‘‘तू बाहर निकल कर एक चीख मार. बस इतना ही काफी है. इस देश के वासियों में एक यही बड़ी खासीयत है. वैसे वे किसी के व्यक्तिगत जीवन में दखल नहीं देते, अलगथलग रहते हैं. पर जब वे किसी के ऊपर जुल्म होते देखते हैं, तो फौरन सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं. यहां के कायदेकानून बहुत कड़े हैं. कोई अपने बच्चों पर भी हाथ नहीं उठा सकता. पुलिस आ कर फौरन धर लेती है.’’

यह रिश्ता प्यार का: भाग-3

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फिर मुसकराते हुए शरारती लहजे में बोली, ‘‘कांतजी, मैं ने आज बहुत दिनों बाद तुम्हें घर बुला ही लिया. उमेश किसी काम से शहर से बाहर गए हुए हैं. हमें एकांत में बिताने के लिए पर्याप्त समय मिला है. बैठो मैं कुछ बना कर लाती हूं फिर ढेर सारी बातें करेंगे, प्यार भी…’’ मैं गुमसुम बैठा था. मन में विचार था कहीं वीना के प्रति नाइंसाफी तो नहीं है, जो चोरीछिपे मैं किरण से मिलने आया हूं. फिर सोचा जब मैं कुछ गलत नहीं कर रहा हूं तो पछतावा कैसा? बेशक हम दोनों एकांत में हैं, लेकिन आज हम रोमांस का कोई कृत्य नहीं करेंगे. मैं इन खयालों में खोया था कि पता ही नहीं चला कि कब वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने बैडरूम में ले गई. बैड पर मुझे बैठाते हुए बडे़ प्यार भरे शब्दों में बोली, ‘‘आज तुम्हें मेरे साथ सोने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए.’’ मैं किंकर्तव्यविमूढ़ बिस्तर पर लेटा शून्य में देख रहा था. तभी किरण के मोबाइल पर फोन आया. उस ने अपने होंठों पर उंगली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया, ‘‘वीना भाभी का फोन है.’’

‘‘किरण, कांत किसी काम से बाहर गए हैं. मैं उन की गैरमौजूदगी में बोर हो रही थी, इसलिए तुम से बात करने का मन किया,’’ वीना ने कहा.

जवाब में किरण बोली, ‘‘उमेशजी बाहर गए हुए हैं. मैं बस रात का खाना बनाने में व्यस्त थी.’’

‘‘ऐसा करो रात का खाना हमारे यहां ही खा लेना. कांत भी 8 बजे तक लौट आएंगे. थोड़ी गपशप भी हो जाएगी.’’

किरण खुश थी कि थोड़ा और वक्त कांत के साथ बिताने को मिल जाएगा. अत: उस ने हामी भर दी. किरण और मेरे नजरिए में आधारभूत फर्क यह था कि उसे प्यार के साथ दैहिक आनंद की तलाश थी जबकि मैं मन के मिलन का सुख चाहता था. वीना के साथ वैवाहिक सुख अपनी चरम सीमा तक मुझे उपलब्ध हो चुका था. वीना की बेपनाह मुहब्बत के चलते मेरे मन में यह विचार प्रबल हो रहा था कि मुझे किरण के दिल को कोई चोट नहीं पहुंचानी है. थोड़ा प्यार उसे भी दे दूं और वीना के प्रति ईमानदारी भी रहूं. इस में वीना का भी हित है, क्योंकि किरण वीना को बहुत चाहती. मेरे प्यार द्वारा किरण जितनी खुश होगी उतना ही वीना और किरण का संबंध गहरा होगा. अपने इस विचार पर क्षण भर को मुझे हंसी भी आई. एक दिन औफिस से घर आ कर मैं ने अनायास वीना को अपने बाहुपाश में ले कर चूम लिया. वीना के लिए यह अप्रत्याशित था. बोली, ‘‘क्या बात है, आज बहुत प्यार आ रहा है?’’

‘‘तुम ने फोन पर बताया था आज किरण तुम्हारे साथ काफी समय बिता कर शाम को गई है. तुम बहुत खुश दिखाई दे रही हो… मेरी पसंद की साड़ी पहन रखी है. मेकअप भी अच्छा किया है. तुम्हें इतना सुंदर देख कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. ऐसे ही हर शाम को सजीसंवरी और प्रसन्न मूड में मिला करो,’’ मैं ने अपने बाहुपाश से उसे मुक्त करते हुए कहा. वीना भी बहुत खुश दिखाई दे रही थी. बोली, ‘‘इतनी तैयारी इसलिए की है कि आज हमारी शादी की सालगिरह है. शायद तुम भूल गए हो. मार्केट जा कर हम दोनों एकदूसरे के लिए गिफ्ट खरीदेंगे. वहीं चायकौफी भी पी लेंगे.’’

‘‘नहीं, मैं भूला नहीं था. मैं ने भी सोच रखा था कि कुछ ऐसा ही करेंगे. मार्केट जा कर कुछ सामान सैलिब्रेट करने के लिए ले आएंगे. किरण को फोन कर लो. अगर वह भी साथ चलना चाहे तो उसे भी साथ ले लेते हैं,’’ मैं ने कहा तो वीना ने तुरंत किरण को फोन कर दिया. तीनों ने रात का भोजन साथ बाहर कर के सालगिरह सैलिब्रेट की. अगले रविवार वीना ने डिनर पर उमेश और किरण को आमंत्रित करते हुए उमेशजी से फोन पर कहा, ‘‘उमेशजी, शादी की सालगिरह वाले दिन हम लोगों ने आप को बहुत मिस किया. वह कमी पूरी करने के लिए आज रात आप किरण के साथ हमारे घर डिनर के लिए आएंगे. हां, कोई गिफ्ट लाने की जरूरत नहीं है. किरण गिफ्ट दे चुकी है.’’ शाम को उमेशजी और किरण जल्दी ही मेरे घर पहुंच गए. पहले की तरह किरण मजैंटा साड़ी में पूरे मेकअप के साथ प्रसन्न मुद्रा में थी. वीना के सामने मैं ने उस की तारीफ करना उचित नहीं समझा. फिर भी किरण ने पूछ ही लिया, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं इस साड़ी में?’’ मन नहीं था फिर भी दबे स्वर में मैं ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो.’’

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मेरे कुतूहल की सीमा नहीं थी जब दफ्तर से आने पर मैं ने वीना को एक सुंदर साड़ी में पूरे शृंगार के साथ देखा. इस विषय में मैं ने फिलहाल चुप रहना ही बेहतर समझा. उमेश और किरण के घर पहुंचने पर वीना ने कहा, ‘‘उमेशजी, आज का विशेष शृंगार मैं ने आप के लिए किया है, आशा है आप को मैं सुंदर लग रही हूं. बताइए न… मैं चाहती हूं दो शब्द आप मेरी तारीफ में कहें.’’ उमेशजी को यह सब अजीब लग रहा था. मगर वीना के अनुरोध को अनसुना करना भी ठीक न था. अत: बोले, ‘‘भाभी आप बिना मेकअप किए भी और मेकअप किए भी बहुत सुंदर लगती हैं.’’

‘‘बस यही तारीफ आप किरण की भी करने की आदत डाल लीजिए,’’ कह कर उस ने उमेश का हाथ पकड़ लिया और किचन की तरफ ले जाते हुए कहा, ‘‘देवरजी, मैं ने आप के लिए खीर बनाई है. आइए, उस का स्वाद चखाती हूं.’’ किरण और मैं मौन और आश्चर्यचकित हो यह देखते रहे. जब दोनों किचन से वापस आए तो सब ने एकसाथ खाना खाया. चलते समय वीना ने उमेश से बहुत आदर के साथ कहा, ‘‘उमेशजी, स्त्री प्यार की भूखी होती है. उसे प्यार की अभिव्यक्ति होने पर बहुत सुख मिलता है. व्यापार की समृद्धि अपनी जगह और पत्नीपरिवार का सुख अपनी जगह. मेरा कहना मानो आज से किरण की तारीफ करने की आदत डाल लो. आखिर कब तक कांतजी किरण की तारीफ करते रहेंगे. यह काम तो अब आप को ही करना होगा.’’

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