डा. सुभाष के ट्रीटमैंट तथा शुचि के साथ के कारण निधि में काफी परिवर्तन आ रहा था. कक्षा में भी वह अच्छा प्रदर्शन कर रही थी. देखते ही देखते 4 वर्ष बीत गए. निधि को खुश देख कर हम भी बेहद प्रसन्न थे. आखिर हमारी बच्ची उस दु:स्वप्न को भूल कर जीवन में आगे बढ़ रही थी.
एक दिन शाम के समय हम सब बैठे टीवी देख रहे थे कि एकाएक निधि ने पूछा, ‘‘ममा, रेप क्या होता है?’’
उस का प्रश्न सुन कर निशा और दीपक चौंके. ध्यान दिया तो पाया कि न्यूज चैनल में एक गैंगरेप की घटना को पूरे जोरशोर से दिखाया जा रहा था. दीपक ने तुरंत चैनल चेंज कर दिया.
‘‘ममा रेप क्या होता है?’’ उस ने पुन: अपना प्रश्न दोहराया.
‘‘निशा खाना लगा दो… कल मुझे औफिस जल्दी जाना है,’’ दीपक ने निधि का ध्यान हटाने के लिए कहा.
‘‘ओके,’’ कह कर वह उठ गई.
निधि का बारबार प्रश्न पूछना उसे आतंकित करने लगा था, पर उत्तर तो देना ही था. अंतत: उस ने कहा, ‘‘जब कोई किसी को परेशान करता है, तो उसे रेप कहते हैं.’’
‘‘जैसे उन अंकल ने मुझे किया था?’’
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‘‘नहीं बेटा,’’ कहते हुए उसे सीने से लगा लिया. वह समझ गई थी कि निधि के मन का घाव अभी भरा नहीं है. उन्हें बहुत सावधानी बरतनी होगी पर इन टीवी वालों का क्या करें. इन की तो कोई न्यूज इस तरह की घटनाओं के बिना समाप्त ही नहीं होती. नित्य ऐसी घटनाओं को देख कर उसे न जाने ऐसा क्यों महसूस होने लगा था जैसे कि हमारे समाज में चारों ओर अमानुष ही अमानुष अपना डेरा जमाए हैं, जिन्होंने न केवल हमारा जीना हराम कर रखा है वरन अराजकता भी फैला रखी है. अकसर लड़कों के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है, क्योंकि उन से वंश चलता है, उन्हें समाज का रक्षक माना जाता है पर संस्कार देने में कहां चूक हो जाती है जो वे नर से राक्षस बन जाते हैं?
अपनी मांबहन समान नारियों पर दरिंदगी करते समय उन का मन उन्हें नहीं कचोटता? हम अपनी लड़कियों को तो ‘यह न करो वह न करो के बंधन में बांधते हैं पर लड़कों को क्यों नहीं? हमें अपने लड़कों को नैतिकता की शिक्षा देने का प्रयास करना होगा, क्योंकि जब तक व्यक्ति की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक अपराध कम नहीं होंगे. इस के साथ ही अपनी लड़कियों को ऐसे शातिर अपराधियों से बचाने के उपाय भी बताने होंगे.
निशा के मन के दर्द ने उस के मन में ऐसी ऊहापोह मचा रखी थी कि उस के तनमन की शांति भंग हो गई थी. कहते हैं कड़वे अतीत को भूल कर आगे बढ़ने में ही भलाई है पर अगर अतीत बारबार दिल पर दस्तक दे तो इनसान क्या करे? घरबाहर का काम करने के बावजूद कुछ ऐसा था जो उस के मन की ज्वाला को शांत नहीं होने दे रहा था.
उस दिन निशा को अपनी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. अत: औफिस से छुट्टी ले ली. दीपक के औफिस और निधि के स्कूल जाने के बाद वह पेपर ले कर बैठी ही थी कि एक समाचार पर उस की नजर ठहर गई. दिव्या खन्ना की मौत. पुलिस छानबीन में लगी है. इनसैट में फोटो देख कर चौंक गई कि अरे, यह तो उस की ननद विभा की जेठानी रमा की लड़की है. पिछले वर्ष ही इस का विवाह तय हुआ था पर दहेज की मांग सुन कर इस ने स्वयं ही उस लड़के के साथ विवाह करने से इनकार कर दिया था.
उस के इस निर्णय की समाज तथा मीडिया में काफी चर्चा हुई थी. अब वह सिविल सर्विसेज के लिए कोचिंग ले रही थी. ऐसी साहसी और दृढ़निश्चयी युवती के साथ ऐसा हादसा?
निशा से आगे पढ़ा नहीं गया. उस ने गाड़ी निकाली तथा विभा के घर की ओर चल दी. वह पहुंची ही थी कि विभा अपनी जेठानी रमा के घर खाना ले कर जाने की तैयारी कर रही थी. उसे देख कर विभा ने कहा, ‘‘निशा कल से किसी के मुंह में अन्न का एक ग्रास भी नहीं गया है, कुछ ले कर जा रही हूं, शायद कुछ खा लें.’’
‘‘मुझे तो आज पेपर से पता चला, कम से कम सूचना तो दे देती,’’ उस ने कह तो दिया पर तुंरत ही अपने प्रश्न पर यह सोच कर संकुचित हो उठी कि ऐसे समय में उलाहना देना उचित नहीं है.
‘‘निशा परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हो गई थीं कि दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था.’’
‘‘मैं समझ सकती हूं… चलो, मैं गाड़ी ले कर आई हूं.’’
विभा के साथ वह रमा के घर पहुंची. रमा का बुरा हाल था. उन की आंखें रोरो कर सूज गई थीं. बारबार यही कह रही थीं कि मेरी फूल सी बेटी ने उस का क्या बिगाड़ा था जो उस दरिंदे ने उसे ऐसी मौत दी.
समझ में नहीं आ रहा था कि रमा को क्या कह कर सांत्वना दे… विभा ने उन्हें खिलाने का प्रयास किया पर उन के मुंह से निकला कि जिस की बेटी का अभी तक अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ उस के मुंह में अन्न कैसे जा सकता है.
रमा का प्रलाप कठोर से कठोर मन को भी द्रवित कर रहा था. आखिर जवान इकलौती बेटी की दुर्दांत मृत्यु से किस का दिल नहीं उबलेगा पर चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर सकता था… इस दर्द को सहने के अतिरिक्त कोई चारा भी तो न था.
इसी बीच इंस्पैक्टर ने हाल में प्रवेश किया. उसे देखते ही रमा ने पूछा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, अपराधी का पता चला?’’
‘‘अभी तो नहीं पर क्या दिव्या से किसी की कोई दुश्मनी थी?’’
‘‘नहीं, मेरी बेटी तो बहुत मृदुभाषी थी. उस का किसी से कोई बैर नहीं था,’’ रमा रुंधे गले से बोली.
‘‘आप याद कीजिए विशाल साहब, बिना दुश्मनी के कोई किसी के साथ बलात्कार कर उसे इतनी बेरहमी से मौत के घाट नहीं उतारता,’’ इंस्पैक्टर ने रमा के पति से पूछा.
‘‘मुझे तो याद नहीं है, सिवा इस के कि उस ने विवाह के लिए संजीव नामक युवक से इसलिए मना कर दिया था कि वे दहेज मांग रहे थे.’’
‘‘आप मुझे उस का पता दीजिए. उस से भी पूछताछ कर के देखते हैं. वैसे हम ने इस काम के लिए खोजी कुत्ते भी लगाए हैं… दिव्या की कौल्स भी खंगाल रहे हैं. उस समय एक नंबर से उसे कौल आई थी. उस नंबर को तलाशने का प्रयास कर रहे हैं… खोजी कुत्ते ने जिस स्पौट की ओर हमारा ध्यान केंद्रित किया वहां पर सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं. उन की फुटेज बाइक के पीछे चेहरा ढके किसी लड़की को बैठा तो दिखा रही हैं पर हैलमेट लगा होने के कारण न तो आदमी को पहचान पा रहे हैं न ही चेहरा ढका होने के कारण लड़की को. आश्चर्य तो इस बात का है कि जिस रूट से वह बाइक गई है, उस रूट पर सीसीटीवी कैमरे लगे होने के बावजूद हमें न बाइक का नंबर दिखा और न ही उस लड़के का पता चल पा रहा है. पर आप चिंता न करें, कानून के हाथ बहुत लंबे हैं… अपराधी पकड़ा अवश्य जाएगा.’’
‘‘सर, बुरा न मानें तो एक बात कहूं?’’ निशा ने पूछा.
‘‘जी, कहिए.’’
‘‘जैसे मूवी में पुलिस सायरन बजाती आती है ताकि अपराधी को भागने का अवसर मिल जाए ठीक वैसे ही जगहजगह लगे आप के सीसीटीवी कैमरे हैं… जहांजहां कैमरे लगे हैं वहांवहां ‘आप कैमरे की नजर में हैं’ लिखी वार्निंग क्या अपराधी को उस की कैद में आने देगी? आशा है मेरे इस प्रश्न पर आप और आप की सरकार अवश्य ध्यान देगी.
‘‘‘आप कैमरे की नजर में हैं’ के बोर्ड जगहजगह मिल जाएंगे. कहीं कैमरे चल रहे होते हैं तो कहीं बंद पड़े होते हैं, उन्हें ठीक कराने की भी किसी को फुरसत नहीं होती है. चाहे हम कितने भी उपाय कर लें, अगर अपराधी को अपराध करना है तो उस का शातिर दिमाग कोई न कोई उपाय खोज ही लेगा,’’ काफी दिनों से मन में उमड़तीघुमड़ती बात कह देने से जहां निशा के मन का बोझ कम हो गया था, वहीं उस की बात सुन कर सन्नाटा भी छा गया था. निधि के स्कूल से आने का समय हो गया था. अत: वह क्षमा मांगते हुए घर लौट आई.
रोज घटती ये घटनाएं उसे चैन नहीं लेने दे रही थीं. 7 वर्षीय बच्ची हो या वयस्क लड़की. क्या लड़की सिर्फ देह भर ही है, जिसे जब चाहा, जैसे चाहा रौंदा और चलते बने? अगर किसी ने विरोध करने का प्रयास किया तो उसे रास्ते से हटाने में भी संकोच नहीं किया… निधि और दिव्या दोनों ही केसों में अपराधी अनजान नहीं थे. अगर जानपहचान वाले ही धोखा करें तो एक स्त्री क्या करे? जीवन को चलना है सो वह तो चलता ही जाता है, चाहे आंधी आए या तूफान…
धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. कभी पुलिस की खोज दिव्या के फेसबुक फ्रैंड की ओर घूमती, तो कभी उस के क्लास के लड़कों पर… निशा के मतानुसार, ‘आप कैमरे की नजर में हैं’ के वार्निंग साइन बोर्ड के कारण अपराधी अभी तक पकड़ में नहीं आ पाया था. 6 महीने बाद भी पुलिस अंधेरे में हाथपैर मार रही थी. निशा को लग रहा था कि अगर यही हाल रहा तो शायद एक दिन कोई क्लू न मिलने के कारण केस ही बंद न हो जाए. उस से भी बुरा उसे यह सोच कर लग रहा था कि सारे सुबूत पेश करने के बावजूद भी निधि के आरोपी को सजा नहीं मिल पाई है… तारीख पर तारीख लगती जा रही है… अगर न्याय में ऐसे ही देरी होती रही तो अपराधी को अपराध करने से शायद ही कोई रोक पाए.
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अमानुषों द्वारा दिल में लगाई गई इस आग में उस जैसे लोगों का तिलतिल जलना नियति बनती जा रही है. निशा ने निश्चय कर लिया था कि उसे इन आग की लपटों से अपनी बेटी को बचाना है.. वह निधि को जूडोकराटे की शिक्षा देने के साथसाथ उस की उम्र के अनुसार शारीरिक संरचना में होते परिवर्तनों व सैक्स ऐजुकेशन देने का भी भरपूर प्रयास करेगी ताकि दोबारा ऐसी अनहोनी उस के जीवन में न आए. वह इस हादसे को अपने जीवन पर हावी नहीं होने देगी… उस की इस सोच ने उस के मन में छाए अंधेरे को दूर करने का प्रयास शुरू कर दिया.