आजमुझे घर जाने की जल्दी थी. मैं ने अपनी 24 साल पुरानी श्रीमतीजी से मूवी दिखाने का वादा जो किया था. इन 24 सालों में यह मेरा 7वां वादा था जिसे मैं तनमनधन से पूरा करना चाहता था. जल्दीजल्दी सारा काम निबटा कर मैं बौस के कैबिन में गया और उन से घर जाने की अनुमति मांगी.
‘‘क्यों?’’ बौस ने गोली सी दागी.
‘‘जी… पत्नी को मूवी दिखाना है,’’ मैं हकला गया.
‘‘शादी की सालगिरह है क्या?’’
‘‘जी नहीं, शादी की 25वीं सालगिरह आने वाली है. इसलिए…’’
वे ठहाका मार कर के हंसे और फिर मुझे अनुमति मिल गई. मैं ने स्कूटर निकाला और फुल स्पीड पर चलाने लगा. मैं अपनी श्रीमतीजी का प्रसन्न चेहरा (जो कभीकभी ही देखने को मिलता था) मन में बसाए चला जा रहा था कि अचानक मेरी खुशी को बे्रक लग गया. टायर पंक्चर हो चुका था. जैसेतैसे स्कूटर घसीटता वर्कशौप तक लाया.
‘‘कितना समय लगेगा?’’ मैं ने पूछा.
‘‘जी, लगभग 1 घंटा.’’
मेरा सारा जोश ठंडा हो गया. अब हम मूवी नहीं जा सकते थे. मरता क्या न करता, पास की दुकान पर पत्रिकाएं देखने लगा. सोचा अच्छी सी पत्रिका दे कर अपनी श्रीमतीजी को मना लूंगा. मैं ने पत्रिका ली और दुकान पर आ गया. थोड़ी देर में पंक्चर बन गया तो मन ही मन पत्नी को खुश करने के नएनए तरीके सोचता मैं घर चल दिया. घर पहुंचा तो डरतेडरते कमरे में प्रवेश किया. सामने का नजारा देखने लायक था. पलंग की चादर आधी ऊपर आधी नीचे झूल रही थी और तकियों की आधी रुई बाहर निकली हुई थी. इधरउधर नेलपौलिश की बिखरी टूटी शीशियां व लिपस्टिक, पाउडर अपनी कहानी अलग सुना रहे थे. मेरे कपड़े और श्रीमतीजी की साडि़यां भी इधरउधर बिखरी पड़ी थीं.
मेरा मन किसी अनजानी आशंका से कांप उठा. अलमारी खोल कर देखी तो पाया कि बैंक से निकाले गए रुपए सुरक्षित थे. फिर मैं भगताभागता किचन में गया. वहां का तो हाल और भी बुरा था. पूरे किचन में उलटेसीधे पड़े जूठे, साफ बरतन, टूटी प्यालियां, इधरउधर बिखरी सब्जियां और सिंक से टपकता पानी. ऐसा लग रहा था जैसे भूकंप और बाढ़ साजिश रच कर एकसाथ हमारे घर आए हैं. हम बुद्धिमान थे, जल्दी ही समझ गए कि मूवी न देख पाने का क्रोध श्रीमतीजी ने घर पर उतारा है और यह उन के द्वारा किया गया अद्भुत इंटीरियर डैकोरेशन है. हम अपनी पत्नी की इस प्रतिभा के कायल हो गए.
डरतेडरते हम फैले सामान को समेट ही रहे थे कि काली का रूप धारण किए एक महिला मूर्ति ने प्रवेश किया. बिखरे बाल, लाल आंखें, हाथ में बेलन आदि… अभी हम इस दानवी रूप को पूरी तरह निहार भी नहीं पाए थे कि एक भयानक गर्जना सुनाई दी, ‘‘कितने बजे हैं?’’
आप भी पहचान गए न? जी हां ये हमारी प्राणप्रिया ही थीं.
‘‘वह मेरा स्कूटर…’’
‘‘भाड़ में जाओ तुम और साथ में तुम्हारा स्कूटर भी,’’ कहते हुए उन्होंने हमारा कौलर पकड़ कर झटका तो हम जमीन पर और हाथ की पत्रिका पलंग पर. वाह, पत्रिका ने तो कमाल ही कर दिया, हमें छोड़ कर वे पत्रिका पर झपटीं और उस का नाम पढ़ कर उन की आंखें चमक उठीं. वह था- करवाचौथ विशेषांक. वे पलटीं और बोलीं, ‘‘सुनो, हम ने माफ किया.’’
हम उन की इस अदा पर निढाल हो गए, ‘‘तो फिर चाय…’’ हम बोले तो वे बोलीं, ‘‘हांहां बरतन धो कर फटाफट बना लो और पास की दुकान से समोसे भी ले आना. तब तक मैं जरा इस पत्रिका के पन्ने पलट लूं.’’
और वह पत्रिका में ऐसे डूब गईं जैसे चाशनी में रसगुल्ला. अपनी गलती का फल तो मुझे ही भुगतना था, इसलिए शाम की चाय बनाने के साथ घर की सफाई भी मैं ने की और डिनर भी मैं ने ही बनाया. अगली सुबह मैं बिना नाश्ता किए ही औफिस चला गया. वे देर रात तक पत्रिका पढ़ने के कारण सो रही थीं. शाम को श्रीमतीजी हमें दरवाजे पर ही मिल गईं और बोलीं, ‘‘चाय लौट कर पीना अभी हम बाजार चल रहे हैं.’’
‘‘लेकिन क्यों?’’
‘‘पत्रिका में लिखे अनुसार हमें साड़ी, चूड़ी, मेकअप का सामान, ज्वैलरी आदि लानी है.’’
एक ही दिन में हम लुट चुके थे. यही नहीं 2 दिन की छुट्टी ले कर श्रीमतीजी को पार्लर भी ले जाना पड़ा. आखिर करवाचौथ का वह सुहाना दिन आ ही गया. मैं ने सोचा आज के मुख्य अतिथि तो हम ही हैं. लेकिन अपनी ऐसी किस्मत कहां? उस दिन सुबह श्रीमतीजी की आवाज सुनाई दी, ‘‘सुनो, दूध गरम कर लेना और अपनी चाय के साथ मेरी भी बना लेना.’’
‘‘लेकिन तुम्हारा तो निर्जल व्रत है.’’
‘‘इस बार नहीं है. पत्रिका में लिखा है कि शारीरिक रूप से कमजोर होने पर आप चायदूध ले सकते हैं और हां, दोपहर को मुझे दूध गरम कर के दे देना, उस के बाद मैं नहा लूंगी.’’
हम ने अपनी श्रीमतीजी के भारीभरकम कमजोर शरीर को देखा और किचन में चल दिए. लंच के लिए हम बेफिक्र थे कि उसे तो श्रीमतीजी बना ही लेंगी, लेकिन अपनी ऐसी किस्मत कहां? लंच के वक्त श्रीमतीजी दोनों हाथों में मेहंदी लगाए नए फरमान के साथ खड़ी थीं, ‘‘हम पैरों में मेहंदी लगवा रहे हैं, इसलिए लंच में तुम कुछ भी उलटासीधा खा लेना. हम ये सारी मेहनत आप के लिए ही तो कर रहे हैं.’’
कुछ बनाने की हिम्मत अब हमारे अंदर नहीं थी, इसलिए हम ने व्रत रखना ही उचित समझा. अभी पत्रिका के कुछ पन्ने शेष थे, अत: उस के अनुसार हम शाम को श्रीमतीजी को पार्लर ले कर गए. वहां ब्यूटीशियन ने 4,000 का चूना लगा कर श्रीमतीजी को देखने लायक खूबसूरत बना ही दिया. पानी में हाथ डालने से मेहंदी खराब न हो इसलिए डिनर भी बाहर ही किया. गिफ्ट में हमें सोने की अंगूठी भी देनी पड़ी क्योंकि सोना गिफ्ट में देने से पतिपत्नी में प्यार बढ़ता है, यह भी पत्रिका में लिखा था. अब हमें पत्रिका दे कर अपनी श्रीमतीजी प्रसन्न करने के अपने विचार पर बहुत अफसोस हो रहा था और इस के पहले श्रीमतीजी पत्रिका के बाकी पन्ने पढ़ कर हमारी ऐसीतैसी करतीं, हम ने इस प्रण के साथ लाइट बंद कर दी कि गिफ्ट में श्रीमतीजी को जान भले ही दे दूं पर पत्रिका कभी नहीं दूंगा.