12 साल बाद: भाग-2

पढ़ी-लिखी तन्वी भी सुखशांति, मायके की इज्जत और छोटी बहनों के भविष्य के बारे में सोचसोच कर वर्षों तक अजीत की ज्यादतियां बरदाश्त करती रही और अपमान के कड़वे घूंट पी कर भी चुप रही, पर अब सब कुछ असहनीय हो गया था. तन्वी को लगने लगा कि अब वह और नहीं बरदाश्त कर पाएगी और अंतत: उसे अपना घर छोड़ने जैसा कदम उठाना पड़ गया.

अपना अपमान और तिरस्कार तो तन्वी कैसे भी बरदाश्त कर रही थी, पर आस्था के साथ भी अजीत का वही रवैया उस से बरदाश्त न हो पाया. कुछ दिन पहले ही आस्था की तबीयत खराब होने पर अजीत का जो व्यवहार था, उसे देख कर भविष्य में अजीत के सुधरने की जो एक छोटी सी उम्मीद थी, वह भी जाती रही.

उस ने सुना था कि बच्चा होने के बाद पतिपत्नी में प्यार बढ़ता है, क्योंकि बच्चा दोनों को आपस में बांध देता है. इसी उम्मीद पर उस ने 10 वर्ष तक संयम रखा कि शायद पिता बनने के बाद अजीत के अंदर कुछ परिवर्तन आ जाए, पर ऐसा कुछ भी न हुआ. शादी के 10 साल बाद इतनी मुश्किलों से हुई बेटी से भी अजीत का कोई लगाव नहीं झलकता था. आस्था के प्रति अजीत का उस दिन का रवैया सोच कर आज भी तन्वी की आंखें नम हो जाती हैं.

उस दिन सुबह जब तन्वी ने आस्था को गोद में उठाया, तो उसे ऐसा लगा कि उस का शरीर कुछ गरम है. थर्मामीटर लगाया तो 102 बुखार था. दिसंबर का महीना था और बेमौसम बारिश से गला देने वाली ठंड पड़ रही थी. ऐसे में आटोरिकशा में आस्था को डाक्टर के पास ले कर जाना तन्वी को ठीक नहीं लगा. अत: उस ने औफिस फोन कर के अजीत को आने को कहा तो उस ने थोड़ी देर में आने के लिए कहा.

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तन्वी इंतजार करती रही थी पर शाम तक न ही अजीत आया और न ही उस का फोन. आस्था का बुखार बढ़ता गया और शाम होतेहोते उसे लूज मोशन के साथसाथ उलटियां भी होने लगीं. घबरा कर उस ने दोबारा अजीत को फोन किया, तो उस ने बताया कि वह अपने बौस के यहां बर्थडे पार्टी में है और 2 घंटे में घर पहुंचेगा.

तन्वी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जिस की बेटी बुखार में तप रही हो वह उसे डाक्टर को दिखाने के बजाय बर्थडे पार्टी अटैंड कर रहा है. बाहर का मौसम और आस्था की हालत देखते हुए तन्वी के हाथपैर ठंडे हो गए और उस की आंखों से बेबसी के आंसू निकल पड़े.

उस ने किसी तरह खुद को संयत किया और पड़ोस में रहने वाली अपनी एक सहेली को फोन कर के उस से मदद मांगी. संयोग से उस के पति औफिस से आ चुके थे. वे अपनी गाड़ी से आस्था और तन्वी को डाक्टर के पास ले गए. वहां डाक्टर ने आस्था की हालत देख कर तन्वी को खूब डांट लगाई कि बच्चे को अब तक घर पर रख कर उस की हालत इतनी बिगाड़ दी. अपने आवेगों पर नियंत्रण रख बुखार में तपती बेसुध आस्था को ले कर जब तन्वी घर पहुंची तो घर के बाहर अजीत को खड़ा पाया. हड़बड़ी में ताला लगा कर तन्वी चाबी पड़ोस में देना भूल गई थी.

तन्वी को देखते ही अजीत उस पर बरस पड़ा, ‘‘चाबी दे कर नहीं जा सकती थीं? घंटे भर से बाहर खड़ा इंतजार कर रहा हूं मैं.’’

हालांकि अजीत का ऐसा अमानवीय व्यवहार तन्वी के लिए कोई आश्चर्यजनक नहीं था, फिर भी साथ में खड़ी सहेली और उस के पति की वजह से तन्वी का चेहरा अपमान से लाल हो गया. लेकिन उस ने अपने सारे संवेगों को दबाते हुए बात को सहज बनाते हुए कहा, ‘‘आस्था की हालत देख कर मैं इतनी घबरा गई कि हड़बड़ी में चाबी देना याद ही नहीं रहा.’’

‘‘बुखार ही तो था कोई मर तो नहीं रही थी, जो सुना रही हो कि हालत बिगड़ रही थी,’’ कहते हुए उस ने तन्वी के हाथ से चाबी ली और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

बाहर खड़ी तन्वी की सहेली और उस के पति को धन्यवाद के शब्द कहना तो दूर उन की ओर नजर उठा कर देखने तक की जहमत नहीं उठाई उस ने. अपमान से लाल हुई तन्वी मुंह से कुछ न कह सकी, बस हाथ जोड़ कर अपनी डबडबाई आंखों से उन के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर दी.

अजीत की अमानवीयता पर आश्चर्यचकित वे दोनों तन्वी को आंखों से ही हौसला बंधाते हुए वहां से चले गए. तन्वी अंदर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि अजीत का अगला बाण चल निकला, ‘‘यारों के साथ ही जाना था, तो मुझे फोन करने का नाटक करने की क्या जरूरत थी?’’

उस समय तन्वी का मन किया था कि पास पड़ा गुलदस्ता उठा कर अजीत के सिर पर दे मारे, पर आस्था की मम्मीमम्मी की आवाज सुन उस ने स्वयं को रोक लिया और ‘तुम जैसा गंदी मानसिकता वाला इंसान इस से ज्यादा और सोच ही क्या सकता है?’ कहते हुए स्वयं को आस्था के साथ कमरे में बंद कर लिया.

उस रात तन्वी बहुत आहत हुई थी. ऐसा नहीं था कि अजीत ने पहली बार उस के साथ इतना संवेदनहीन व्यवहार किया था, पर इस बार बात केवल तन्वी के दिल को पहुंची चोट तक ही सीमित नहीं थी. बेटी का तिरस्कार और उस के लिए ‘मर तो नहीं रही थी’ जैसे शब्द, पड़ोसियों का अपमान, पड़ोसियों के सामने उस की बेइज्जती और फिर उस के चरित्र पर कसा हुआ फिकरा, सब कुछ एकसाथ मिल कर उस के मस्तिष्क में कुलबुलाहट पैदा कर रहा था और सब्र को तारतार कर रहा था.

इस तरह का व्यवहार करना इंसान की कायरता की पहली निशानी होती है. कायर इंसान ही अपनी गलती को छिपाने के लिए अनायास दूसरों पर चीखते और चिल्लाते हैं. वे समझते हैं कि चीख और चिल्ला कर, अपनी गलती दूसरे पर थोप कर वे सब के सामने निर्दोष सिद्ध हो जाएंगे, पर वे बहुत गलत सोचते हैं.

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उन के ऐसे व्यवहार से दूसरों के मन में उन के लिए नफरत के अलावा और कुछ उत्पन्न नहीं होता. अजीत ने भी वही किया. उस के समय पर न पहुंचने के लिए उसे तन्वी या कोई और कुछ कह न सके, इस से बचने के लिए उस ने पहले ही तन्वी पर आरोपों की झड़ी लगा कर खुद की गलती ढकने की एक तुच्छ कोशिश की. अजीत की बातों से आहत तन्वी की वह सारी रात रोतेरोते ही गुजर गई.

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12 साल बाद: भाग-1

आज पूरे 12 साल बाद आखिर तन्वी के सब्र का बांध टूट ही गया. वह अपनी 2 साल की बेटी को गोद में उठाए अपना घर छोड़ कर निकलने को मजबूर हो गई. घर से सीधे रेलवे स्टेशन जा कर उस ने अपने मायके के शहर का टिकट लिया और टे्रन में चढ़ गई. गुस्से के मारे उस का शरीर उस के वश में नहीं था.

बेटी आस्था को सीट पर लिटा कर वह खुद खिड़की से सिर टिका कर बैठ गई. टे्रन ज्योंही स्टेशन छोड़ कर आगे बढ़ी, घंटों से रोका हुआ उस का आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा और वह अपनी हथेलियों से मुंह छिपा कर रो पड़ी. आसपास के सहयात्रियों की कुतूहल भरी निगाहों का एहसास होते ही उस ने अपनेआप को संभाला और आंसू पोंछ कर खुद को संयत करने की कोशिश करने लगी. थोड़ी ही देर में वह ऊपर से तो सहज हो गई पर भीतर का भयंकर तूफान उमड़ताघुमड़ता रहा.

आसान नहीं होता है किसी औरत के लिए अपना बसाबसाया घरसंसार अपने ही हाथों से बिखेर देना. पर जब अपने ही संसार में सांस लेना मुश्किल हो जाए, तो खुली हवा में सांस लेने के लिए बाहर निकलने के अलावा कोई चारा ही नहीं रह जाता. रहरह कर तन्वी की आंखें गीली होती जा रही थीं. सब कुछ भूलना और नई जिंदगी की शुरुआत कर पाना दोनों ही बहुत मुश्किल थे, पर अजीत के साथ पलपल मरमर कर जीना अब उस के बस की बात नहीं रह गई थी.

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टे्रन अपनी पूरी गति से भागी जा रही थी और उसी गति से तन्वी के विचार भी चल रहे थे. आगे क्या होगा कुछ पता नहीं था. उसे इस तरह आया देख पता नहीं मायके में सब की प्रतिक्रिया कैसी होगी? शादी के बाद अपने पति का घर छोड़ कर मायके में लड़की कितने दिन इज्जत से रह पाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. अपना तो कुछ नहीं पर आस्था के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे जल्दी से जल्दी अपना जीवन व्यवस्थित करना पड़ेगा और अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा. तन्वी सोच रही थी कि सब कुछ जानने के बाद शुरू के कुछ दिन तो सब का रवैया सहानुभूतिपूर्ण और सहयोगात्मक रहेगा, पर धीरेधीरे वह सब पर बोझ बन जाएगी. वहां लोग उसे अपने पर बोझ समझें, इस से पहले ही उसे अपने पैरों पर हर हाल में खड़ा हो जाना होगा और अपना एक किराए का घर ले कर अलग रहने का इंतजाम करना होगा.

नौकरी और पैरों पर खड़े होने की बात दिमाग में आते ही तन्वी का ध्यान फिर से अजीत की तरफ चला गया. शादी से पहले अच्छीभली नौकरी कर रही थी तन्वी, पर अजीत की ही वजह से उसे वह नौकरी छोड़नी पड़ी थी.

तन्वी देखने और बातव्यवहार दोनों में ही अजीत से कहीं ज्यादा अच्छी थी और इसी वजह से औफिस से ले कर घर तक हर जगह उस की तारीफ हुआ करती थी. शुरू में तो इस का कोई खास असर नहीं पड़ा था अजीत पर, लेकिन शादी के बाद 3 साल के अंदर ही तन्वी को

2 प्रमोशन मिल गए और अजीत को 1 भी नहीं, तो धीरेधीरे अजीत के मन की हीनभावना बढ़ती चली गई और उस ने अलगअलग बहानों से घर में क्लेश करना शुरू कर दिया. उस का एक ही समाधान वह निकालता था कि तन्वी तुम नौकरी छोड़ दो. हार कर घर की सुखशांति के नाम पर तन्वी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया.

उस समय तो तन्वी को इतना नहीं खला था, पर अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा है. अजीत की याद आते ही तन्वी फिर से असहज होने लगी. उस के द्वारा दी गई मानसिक यंत्रणाएं तन्वी के विचारों को मथने लगीं.

तन्वी सोचने लगी, ‘मैं और कितना बरदाश्त कर सकती थी. बरदाश्त की भी एक सीमा होती है. घरपरिवार की सुखशांति के नाम पर आखिर कोई औरत कब तक अपमान और तिरस्कार के घूंट पीती रह सकती है? सामने वाला किसी को हर पल यह एहसास दिलाता रहे कि हमारे जीवन में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं है, तो क्या साथ रहना आत्मसम्मान को चोट नहीं पहुंचाता है? मानसिक यंत्रणाओं को आखिर कब तक मैं घर की सुखशांति और मानमर्यादा के नाम पर सहती और चुप रहती कि कम से कम मेरी चुप्पी से मेरी गृहस्थी तो बची रहेगी. घर का कलह बाहर वालों के सामने तो नहीं आएगा.’

अजीत को तो किसी की भी परवाह नहीं ?थी कि लोग क्या कहेंगे. उस की दुनिया तो उस से शुरू हो कर उस पर ही खत्म हो जाती थी. अपनेआप को किसी शहंशाह से कम नहीं समझता था अजीत.

अपना अतीत जैसेजैसे तन्वी को याद आता जा रहा था उस का मन और कसैला हुआ जा रहा था. उसे खुद पर आश्चर्य होता जा रहा था कि आखिर इतने सालों तक वह सब कुछ क्यों और कैसे बरदाश्त करती रही? उसे लगने लगा कि शायद पति के अत्याचार बरदाश्त करते रहना पत्नियों की आदत में ही शुमार होता है.

औरतों का एक तबका ऐसा होता है, जो रोज पति के लातघूंसे खाता है. ऐसी औरतें बिरादरी के सामने पति को गालियां देती हैं, लेकिन सब कुछ भूल कर दूसरे ही दिन पति के साथ हंसतीखिलखिलाती नजर आती हैं.

दूसरा तबका वह होता है, जो पति की एक धौंस भी बरदाश्त नहीं करता. ऐसी औरतें रातोंरात पति के अस्तित्व को ठोकर मार कर अपनी एक अलग दुनिया बसा लेती हैं. औरतों के ये दोनों तबके खुश रहते हैं.

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सब से अधिक मजबूर होती हैं संतुलित परिवारों की महिलाएं, जो न तो इतनी सक्षम होती हैं कि रातोंरात पति से अलग हो कर एक अलग दुनिया बसा सकें और न ही इतनी आत्मसम्मानविहीन कि पति की ज्यादतियों को रात गई बात गई की तर्ज पर भुला सकें.

वे तो बस सहती हैं और चुप रहती हैं. कभी पड़ोसियों के कानों तक बात न पहुंचे यह सोच कर, तो कभी बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा यह सोच कर. कभी उन्हें यह भय सताता है कि अगर वे पति का घर छोड़ कर मायके चली गईं तो उन की छोटी बहनों के विवाह में दिक्कतें आएंगी, तो कभी यह डर सताता है कि उन के मातापिता इतना बड़ा सदमा बरदाश्त न कर सके तो?

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एक कप कौफी: भाग-2

गौतमी अब भी शांत थी. उस के चेहरे पर शिकन का नामोनिशान नहीं था. उस ने अनुप्रिया की ओर देख कर पूछा, ‘‘अगर तुम्हें एतराज न हो तो क्या मैं तुम से एक सवाल पूछ सकती हूं?’’ अनुप्रिया के स्वीकृति देने पर उस ने प्रश्न किया, ‘‘तुम तलाकशुदा हो न?’’

‘‘मेरी निजी जिंदगी से जुड़े सवाल पूछने का तुम्हें कोई हक नहीं है गौतमी,’’ अनुप्रिया ने गुस्से में कहा. ‘‘मुझे पूरा हक है अनुप्रिया. तुम ने मेरी निजी जिंदगी में दखल दे कर मेरे पति को मुझ से छीनने की ठान रखी है. फिर मैं तो सिर्फ सवाल ही पूछ रही हूं.’’

अनुप्रिया के पास गौतमी के इस तर्क की कोई काट नहीं थी. उस ने मन मार कर उत्तर दिया, ‘‘हां.’’ ‘‘तुम्हारा तलाक क्यों हुआ?’’

‘‘इस बात का मेरे और पराग के रिश्ते से कोई संबंध नहीं है.’’ ‘‘प्लीज अनुप्रिया…कुछ देर के लिए कड़वाहट भुला कर मेरे प्रश्नों के उत्तर दो. संबंध का पता तुम्हें खुद ही चल जाएगा. बदले में तुम जो चाहो मुझ से पूछ सकती हो.’’

अनुप्रिया गौतमी के सवालों के जवाब नहीं देना चाहती थी. उसे महसूस हो रहा था कि उस ने यहां आ कर गलती कर दी. पर अब यहां आ ही गई थी तो करती भी क्या? अगर वह चाहती तो यहां से उठ कर जा सकती थी, पर ऐसा कर के वह गौतमी के सामने खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी. इसलिए उस ने अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताना शुरू किया, ‘‘मेरे पति तरुण का किसी निदा नाम की लड़की के साथ अफेयर था. जब मुझे पता चला तो मैं ने उन से तलाक लेने का फैसला कर लिया.’’ ‘‘उफ, तुम्हारी शादी कितने समय तक चली थी?’’ ‘‘लगभग डेढ़ साल. 2 साल पहले तलाक के बाद मैं दिल्ली आ गई थी.’’

‘‘दिल्ली आने के बाद तुम पराग से मिलीं और तुम दोनों का अफेयर शुरू हो गया,’’ गौतमी बोली.

‘‘हां…’’ ‘‘क्या तुम्हें शुरू से पता था कि पराग शादीशुदा हैं और उन का 1 बेटा भी है?’’

‘‘हां, मैं ने उन के दफ्तर में आप तीनों की तसवीर देखी थी.’’ गौतमी कुछ क्षण चुप रही. फिर अनुप्रिया की ओर गंभीरता से देख कर पूछा, ‘‘क्या तुम ने कभी तरुण को वापस पाने की कोशिश

नहीं की? उसे इतनी आसानी से तलाक क्यों दे दिया?’’ अनुप्रिया समझ रही थी कि गौतमी उसे अपनी बातों के जाल में फंसाना चाह रही है, पर उस ने यह सवाल पूछ कर अनुप्रिया को अपनी बात ऊपर रखने का बहुत अच्छा मौका दे दिया. उस ने बिना वक्त गंवाए उत्तर दिया, ‘‘नहीं, क्योंकि ऐसे आदमी के साथ रहने का कोई फायदा नहीं है जो किसी और से प्यार करता हो. इसलिए मैं ने उसे तलाक दे दिया. तुम्हें भी पराग को तलाक दे कर आजाद कर देना चाहिए.’’

‘‘स्मार्ट मूव,’’ गौतमी ने हंसते हुए कहा, ‘‘पर तुम में और मुझ में बहुत फर्क है. मैं पीठ दिखा या मैदान छोड़ भागने वालों में से नहीं हूं.’’ ‘इस औरत पर तो किसी बात का कोई असर ही नहीं हो रहा है. पता नहीं किस मिट्टी की बनी है,’ सोच कर अनुप्रिया मन ही मन खीज उठी. फिर तलखीभरे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारे सवालों के जवाब दे दिए. अब सवाल पूछने की बारी मेरी है.’’

‘‘ठीक है, पूछो.’’ अनुप्रिया ने गौतमी की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हारा पति मेरे साथ रिलेशनशिप में है, यह जानते हुए भी तुम यहां बैठ कर मेरे साथ कौफी पी रही हो. ऐसा क्यों?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब तो मैं ने यहां आते ही दे दिया था. मैं तुम्हें यह बताने आई हूं कि पराग तुम से शादी नहीं करेगा.’’ ‘‘और मैं भी तुम्हें बता चुकी हूं कि पराग तुम से नहीं मुझ से प्यार करता है. वह बहुत जल्दी मुझ से शादी करेगा.’’

‘‘अगला सवाल,’’ गौतमी ने कौफी का घूंट भरते हुए पूछा.’’ ‘‘क्या तुम्हें मुझ से डर नहीं लगता है?’’ अनुप्रिया को लगा कि अब मुसकराने की बारी उस की है.

‘‘बिलकुल नहीं. डरता वह है जो गलत होता है. तुम अपने पति से धोखा खा कर तलाक ले चुकी हो और अब खुद दूसरी औरत बन कर पराग की जिंदगी में पड़ी हो. अब तुम्हें दूसरी बार भी धोखा ही मिलने वाला है, डरना तो तुम्हें चाहिए अनुप्रिया.’’ अनुप्रिया के चेहरे से मुसकान के साथ रंग भी उड़ गया. वह दांत पीसते हुए बोली, ‘‘हाऊ डेयर यू?’’

गौतमी ने सीधे बैठते हुए कहा, ‘‘बस इतनी बात पर तुम्हें गुस्सा आ गया? मैं तुम पर कटाक्ष नहीं कर रही हूं, बल्कि तुम्हें सच का आईना दिखा रही हूं और सच तो सब को मीठा नहीं लगता है न?’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है मैं तुम्हारी बातों से डर जाऊंगी?’’ अनुप्रिया ने आंखें तरेरी.

गौतमी ने हौले हंस कर कहा, ‘‘तुम्हें डराने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है. यह तुम भी जानती हो कि तुम ने मेरे साथ बहुत गलत किया है पर क्या मैं ने अभी तक तुम से बदला लेने के लिए कुछ भी किया है? तुम पर चीखीचिल्लाई या इलजाम लगाए? अगर मैं ऐसा कुछ भी करूं तो तुम्हें भी पता है कि कितने लोग तुम्हें गलत कहेंगे और कितने मुझे सही कहेंगे.’’ अनुप्रिया चुप हो गई तो गौतमी ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं जब से यहां आई हूं तुम ने बस एक ही रट लगा रखी है कि पराग तुम से शादी करेगा पर कब करेगा क्या तुम बस मुझे इतना बता सकती हो?’’

‘‘जल्द ही…’’ ‘‘जल्द ही कब अनुप्रिया? अगर पराग मुझे तलाक ही नहीं देगा तो तुम से शादी कैसे करेगा? कभी तुम ने यह सोचा है?’’

अनुप्रिया कुछ कहती उस से पहले ही गौतमी फिर बोल पड़ी, ‘‘पराग ने तुम से यही कहा होगा न कि वह मेरे साथ खुश नहीं है. मैं ने उस की जिंदगी नर्क बना रखी है और वह बस अपने बेटे की खातिर मुझे बरदाश्त कर रहा है?’’ ‘‘आप को यह सब कैसे पता है?’’ अनुप्रिया ने हैरानी प्रकट की.

‘‘तुम दिखने में तो समझदार लगती हो. जिंदगी में इतना कुछ देख चुकी हो. फिर इतना भी नहीं जानतीं कि पराग जैसे आदमी इसी तरह की बातों से पहले तुम जैसी लड़कियों की हमदर्दी और फिर प्यार हासिल करते हैं.

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एक कप कौफी: भाग-1

मेजपर रखी कौफी ठंडी हो रही थी. अनुप्रिया ने कौफी मंगा तो ली थी पर उठा कर पीने की हिम्मत नहीं हो रही थी. दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था मानो बाहर ही आ जाएगा. कई बार कलाई पर बंधी घड़ी में समय देख चुकी थी. 5 बजने में अभी 10 मिनट बाकी थे. यानी पराग की पत्नी के वहां आने में ज्यादा समय बाकी नहीं था. पराग की पत्नी के बारे में सोच कर अनुप्रिया फीकी सी हंसी हंस दी. उसे पराग की पत्नी का नाम तक मालूम नहीं था और वह उस का एक फोन आने पर उस से यहां मिलने के लिए तैयार हो गई थी. 5 बजे मिलने का समय तय कर के 4 बजे से यहां बैठ कर उस का इंतजार कर रही थी. कभी कैफे के दरवाजे को तो कभी कौफी मग पर बने स्माइली को निहार रही थी.

तभी कैफे का दरवाजा खुला और एक सुंदर महिला ने अंदर प्रवेश किया. कुछ क्षणों तक इधरउधर देखने के बाद वह महिला अनुप्रिया की ओर आने लगी. मेज के पास आ कर रुक गई और फिर पूछा, ‘‘आप अनुप्रिया हैं?’’ अनुप्रिया कुरसी से उठ खड़ी हुई, ‘‘जी हां और आप?’’

‘‘हैलो, मैं गौतमी. पराग की वाइफ.’’ ‘‘हैलो, प्लीज बैठिए,’’ कह कर अनुप्रिया ने सामने रखी कुरसी की ओर इशारा किया.

‘‘थैंक्स,’’ गौतमी ने कुरसी पर बैठ अपना पर्स मेज पर रख दिया और अनुप्रिया की ओर देख कर मुसकराई, ‘‘मुझ से यहां मिलने के लिए आप का शुक्रिया.’’ अनुप्रिया ने उस की बात को अनसुना कर पूछा, ‘‘आप क्या लेंगी?’’

‘‘कौफी और्डर करने के बाद कुछ पलों तक दोनों खामोश बैठी रहीं.

अनुप्रिया तिरछी नजरों से गौतमी की ओर देख रही थी. उस ने जैसा सोचा था गौतमी उस से बिलकुल उलट थी. वह अच्छीखासी स्मार्ट थी और बड़े ही शांत भाव से उस के सामने बैठी थी. लेकिन वह कैफे में इतने सारे लोगों के सामने और करती भी क्या. उस पर चिल्लाती, इलजाम लगाती कि उस ने उस के पति को अपने प्रेमजाल में क्यों फंसा रखा है या फिर उस के आगे रोती, गिड़गिड़ाती कि वह उस के पति की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर चली जाए?’’ अनुप्रिया से गौतमी की चुप्पी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वह चाहती थी कि उसे जो भी कहना हो कहे और यहां से चली जाए. तभी कौफी आ गई. अनुप्रिया ने हिम्मत कर पूछ ही लिया, ‘‘आप मुझ से क्यों मिलना चाहती थीं?’’

गौतमी ने मुसकरा कर कप हाथ में उठा लिया, ‘‘चलिए, आप ने मुझ से यह सवाल तो पूछा. मैं तो इंतजार कर रही थी कि आप मेरा निरीक्षण कर चुकी हों तो आप से बातें करना शुरू करूं.’’ अनुप्रिया सकपका गई. गौतमी के भीतर तेज दिमाग के साथ आत्मविश्वास भी कूटकूट कर भरा था. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘देखिए, मेरे पास अधिक समय नहीं है. आप मुद्दे की बात कीजिए. आप ने मुझे यहां क्यों बुलाया है?’’

‘‘आप ने औफिस से छुट्टी ली हुई है और पराग 3 दिनों के लिए शहर से बाहर गए हैं. जहां तक मेरी जानकारी है आजकल वे आप से मिलना तो दूर आप का फोन तक नहीं उठा रहे हैं. फिर आज आप के पास वक्त की कमी तो नहीं होनी चाहिए. खैर छोडि़ए, मैं सीधे मुद्दे पर ही आ जाती हूं. मैं आप को यह बताने आई हूं कि आप पराग के साथ सिर्फ अपना वक्त बरबाद कर रही हैं. वह मुझे छोड़ कर आप से शादी नहीं करेगा.’’ अनुप्रिया इसी बात की उम्मीद कर रही थी. उसे पता था कि गौतमी कुछ ऐसा ही कहेगी, इसलिए वह भी पूरी तैयारी के साथ आई थी. वह कम से कम इस औरत से तो हार नहीं मानने वाली थी. अत: उस ने चेहरे पर आत्मविश्वास लाते हुए कहा, ‘‘अच्छा…तो फिर वह आप के साथ शादीशुदा होते हुए भी मेरे साथ रिलेशनशिप में क्यों है?’’

‘‘क्योंकि वह एक कमजोर व बेवकूफ व्यक्ति है जो फिलहाल रास्ता भटक गया है, पर लौट कर अपने ही घर आएगा.’’ ‘‘आप का वह बेवकूफ आदमी दिन में 10 बार मुझे आई लव यू कहता है.’’ ‘‘तो क्या हुआ? पराग चौबीस घंटों में 48 बार मुझे व अपने बेटे सिद्धार्थ को आई लव यू कहता है.’’ ‘‘उस ने मुझ से वादा किया है कि वह जल्दी तुम्हें तलाक दे कर मुझ से शादी करेगा.’’

‘‘तुम्हारी और पराग की रिलेशनशिप को कितना वक्त हुआ है?’’ ‘‘करीब 2 साल.’’

‘‘तो फिर उस ने अब तक अपने खोखले वादे पूरे करने की दिशा में कदम क्यों नहीं बढ़ाया? मैं आज भी उस की पत्नी क्यों हूं?’’ ‘‘मैं जानती हूं कि तुम क्या कर रही हो…तुम मेरे और पराग के रिश्ते में दरार डालना चाहती हो. तुम चाहती हो कि पराग मुझे छोड़ कर वापस तुम्हारे पास आ जाए,’’ अनुप्रिया ने गौतमी को घूरते हुए कहा.

‘‘पराग मुझे छोड़ कर तुम्हारे पास गया ही कब था जो मुझे उसे वापस बुलाना पड़े. वह तो आज भी मेरे साथ, मेरे पास ही है.’’ ‘‘तो मैं इस मुलाकात का क्या मतलब समझूं कि मेरे सामने एक बेबस पत्नी बैठी है, जो मुझ से अपने पति को वापस पाने की मिन्नतें कर रही है?’’

‘‘और मेरे सामने जिंदगी से हारी हुई औरत बैठी है जो इतनी हताश हो चुकी है कि किसी और के पति को उस से छीन कर दूसरी औरत कहलाने के लिए भी तैयार है.’’ अनुप्रिया भड़क उठी, ‘‘तुम आखिर चाहती क्या हो? तुम ने मुझे यहां मेरी बेइज्जती करने के लिए बुलाया है?’’

‘‘तुम बताओ, तुम मेरे बुलाने पर यहां क्यों आई हो? क्या तुम मेरे हाथों बेइज्जत होना चाहती हो?’’ गौतमी ने मुसकराते हुए कहा. अनुप्रिया खौल उठी. फिर भी उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘मैं यहां तुम से यह पूछने आई हूं कि तुम पराग को तलाक देने के लिए तैयार हो या नहीं?’’

‘‘पराग ने मुझ से तलाक मांगा ही कब?’’ ‘‘नहीं मांगा तो अब मांग लेगा. हम दोनों जल्दी शादी करने वाले हैं.’’

‘‘सपने देखना बहुत अच्छी बात है अनुप्रिया. पर इतना याद रखना कि सपनों के टूटने पर कई बार तकलीफ भी बहुत होती है.’’ ‘‘किस के सपने टूटेंगे यह तो वक्त बताएगा,’’ अनुप्रिया ने गौतमी को घमंडभरी नजरों से देखते हुए कहा.

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उजली परछाइयां:  भाग-3

कहानी- महिमा दीक्षित

‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’ किट्टू गुस्से में घूरते हुए कहा.

‘‘जरूरी बात करनी है, तुम्हारे पापा से रिलेटेड है,’’ धरा ने शांत स्वर में कहा. 2 दिनों बाद तुम्हारे पापा का बर्थडे है, मैं चाहती हूं कि तुम उस दिन उन के पास रहो…’’

‘‘और मैं तुम्हारी बात क्यों सुनूं?’’ उस की बात पूरी होने से पहले ही किट्टू ने चिढ़ कर जवाब दिया.

‘‘क्योंकि वे भी इतने सालों से तुम्हें उतना ही मिस कर रहे हैं जितना कि तुम करते हो. यह उन की लाइफ का बैस्ट गिफ्ट होगा क्योंकि तुम उन के लिए सब से बढ़ कर हो,’’ धरा ने किट्टू से कहा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ कल देहरादून चलोगे?’’

किट्टू का कोल्डड्रिंक जैसा ठंडा स्वर उभरा, ‘‘इतना ही कीमती हूं तो मुझे वे छोड़ कर क्यों गए थे? मैं उन से नहीं मिलना चाहता. वे कभी मेरे बर्थडे पर नहीं आए…या…या फिर तुम्हारी वजह से नहीं आए. मुझे तुम से बात ही नहीं करनी. तुम गंदी औरत हो.’’ अपना बैग उठाते हुए लगभग सुबकने वाला था किट्टू.

‘‘तुम जाना चाहते हो तो चले जाना लेकिन, बस, एक बार ये देख लो,’’ कह कर धरा ने सारे पुराने मैसेज और चैट के प्रिंट किट्टू के सामने रख दिए जिन में घूमफिर कर एक ही तरह के शब्द थे अंबर के कि ‘किट्टू से बात करा दो,’ या ‘मैं मिलने आना चाहता हूं’ या ‘डाइवोर्स मत दो.’ और रोशनी के भी शब्द थे, ‘मैं तुम्हारे परिवार के साथ नहीं रह सकती,’ या ‘शादी जल्दबाजी में कर ली लेकिन तुम्हारे साथ और नहीं रहना चाहती,’ ‘किट्टू से तुम्हें नहीं मिलने दूंगी…’ ऐसा ही और भी बहुतकुछ था.

किट्टू की तरफ देखते हुए धरा ने कहा, ‘‘मेरे पास कौल रिकौर्डिंग्स भी हैं. अगर तुम सुनना चाहो तो. तुम्हारे पापा कभी नहीं चाहते कि तुम अपनी मां के बारे में थोड़ा सा भी बुरा सोचो या सच जान कर तुम्हारा दिल दुखे. इसलिए आज तक उन्होंने तुम्हें सच नहीं बताया. लेकिन मैं उन्हें इस तरह और घुटता हुआ नहीं देख सकती. और हां, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन हम ने कभी शादी नहीं की. जानते हो क्यों? क्योंकि तुम्हारे पापा को लगता था कि शादी करने पर तुम उन्हें और भी गलत समझोगे.  क्या अब भी तुम मेरे साथ कल देहरादून नहीं चलोगे?’’ यह कह कर धरा ने हौले से किट्टू के सिर पर हाथ फेरा.

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‘‘चलो, चल कर मम्मी को बोलते हैं कि पैकिंग कर दें,’’ किट्टू को जैसे अपनी ही आवाज अजनबी लगी.

जब धरा के साथ किट्टू घर पहुंचा तो सभी की आंखें फैल गईं. नानी की तरफ देखते हुए किट्टू ने अपनी मां से कहा, ‘‘मैं पापा के बर्थडे पर धरा के साथ 2-3 दिनों के लिए देहरादून जा रहा हूं, मेरी पैकिंग कर दो.’’

रोशनी और बाकी सब समझ गए थे कि किट्टू अभी किसी की नहीं सुनेगा. सुबह उसे लेने आने का बोल धरा होटल के लिए निकल गई. पूरे रास्ते धरा सोचती रही कि आगे न जाने क्या होगा, किट्टू न जाने कैसे रिऐक्ट करेगा. वह अंबर से कैसे मिलेगा और अब क्या सबकुछ ठीक होगा? सुबह दोनों देहरादून की फ्लाइट में थे. किट्टू ने धरा से कोई बात नहीं की.

अगली सुबह का सूरज अंबर के लिए दुनियाजहान की खुशियां ले कर आया. किट्टू को सामने देख एकबारगी तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ और अगले ही पल अंबर ने अपने बेटे को गोद में उठा कर कुछ घुमाया. जैसे वह अभी भी 14 साल का नहीं, बल्कि उस का 4 साल का छोटा सा किट्टू हो. पूरे 9 साल बाद आज वह अपने बच्चे को अपने पास पा कर निहाल था और घर में सभी नम आंखों से बापबेटे के इस मिलन को देख रहे थे.

अंबर का इतने सालों का इंतजार आज पूरा हुआ था, अंबर के साथ आज धरा को भी अपना अधूरापन पूरा लग रहा था. शाम में किट्टू ने बर्थडे केक अपने हाथ से कटवाया था और सब से पहला टुकड़ा अंबर ने किट्टू के मुंह में रखा, तो एक बार फिर अंबर और किट्टू दोनों की आंखें नम हो गईं. तभी किट्टू ने अंबर की बगल में खड़ी धरा को अजीब नजरों से देखा तो वह वहां से जाने लगी. अचानक उसे किट्टू की आवाज सुनाई दी, ‘‘पापा, केक नहीं खिलाओगे धरा आंटी को?’’ और धरा भाग कर उन दोनों से लिपट गई.

अगली सुबह धरा जल्दी ही निकल गई थी. उस ने बताया था कि कोई जरूरी काम है बस जाते हुए 2 मिनट को किट्टू से मिलने आई थी. दोपहर में अंबर को धरा का मैसेज मिला, ‘तुम्हें तुम्हारा किट्टू मिल गया. मैं कल आखिरी बार तुम से उस जगह मिलना चाहती हूं जहां हम ने चांदनी रात में साथ जाने का सपना देखा था.’

अंबर जानता था धरा ने उसे जबलपुर में धुआंधार प्रपात के पास बुलाया है. उस ने पढ़ा था कि शरद पूर्णिमा की रात चांद की रोशनी में प्रकृति धुआंधार में अपना अलौकिक रूप दिखाती है. तब से उस का सपना था कि चांदनी रात में नर्मदा की सफेद दूधिया चट्टानों के बीच तारों की छांव में वह अंबर के साथ वहां हो. अगली शाम में जब अंबर भेड़ाघाट पहुंचा तो किट्टू भी साथ था. वहां उन्हें एक लोकल गाइड इंतजार करता मिला जिस ने बताया कि वह उन लोगों को धुआंधार तक छोड़ने के लिए आया है.

करीब 9 बजे जब अंबर वहां पहुंचा तो धरा दूर खड़ी दिखाई दी. चांद अपने पूरे रूप में खिल आया था और संगमरमर की चट्टानों के बीच धरा, यह प्रकृति,? सब उसे अद्भुत और सुरमई लग रहे थे. वह धरा के पास पहुंचा और उस का हाथ पकड़ कर बेचैनी से बोला, ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ, धरा. मैं नहीं रह सकता तुम्हरे बिना. अब तो सब ठीक हो चुका है. देखो, किट्टू भी तुम से मिलने आया है.’’

धरा ने धीरे से अपना हाथ अंबर के हाथ से छुड़ाया, तो अंबर के चेहरे पर हताशा फैल गई. किट्टू ने धरा की तरफ देखा और दोनों शरारत से मुसकराए. दूर क्षितिज में आसमान के तारे और शहर की लाइट्स एकसाथ झिलमिला रही थीं. तभी धरा ने एक गुलाब निकाला और घुटने पर बैठ कर कहा, ‘‘मुझे भी अपने परिवार का हिस्सा बना लो, अम्बर. क्या अब से रोज सुबह मेरे हाथ की चाय पीना चाहोगे?’’

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खुशी और आंसुओं के बीच अंबर ने धरा को जोर से गले लगा लिया था और किट्टू अपने कैमरे से उन की फोटो खींच रहा था.

उन का इतने सालों का इंतजार आज खत्म हुआ था. अंबर के साथसाथ धरा का अधूरापन भी हमेशा के लिए पूरा हो गया था. आज उसे उस का वह क्षितिज मिल गया था जहां अतीत की गहरी परछाइयां वर्तमान का उजाला बन कर जगमगा रही थीं, वह क्षितिज जहां 10 साल के लंबे इंतजार के बाद अंबरधरा भी एक हो गए थे.

उजली परछाइयां: भाग-2

कहानी- महिमा दीक्षित

धरा के दिल में अंबर ने अनजाने में जगह बना ली थी वहीं धरा जिस तरह सब का खयाल रखती और खुश रहती, वह अंबर के घर वालों को अपना बना रही थी. उस की ये आदतें सब के साथ अंबर को भी उस की तरफ खींच रही थीं. जब कोई चीज हमारे पास न हो तो उस की कमी ज्यादा ही लगती है, घर में भी सब को धरा को देख कर बहू की कमी कुछ ज्यादा ही अखरने लगी थी.

अंबर अकसर धरा को तंग करता रहता, कभी उलझे हुए बालों को खींचता तो कभी गालों पर हलकी चपत लगा देता. दोनों के दिलों में अनकही मोहब्बत जन्म ले चुकी थी जिस का एहसास उन्हें जल्दी ही हुआ. एक दिन धरा ने अंबर को छेड़ते हुए कहा, ‘मुझे तंग क्यों करते रहते हो, सब के लिए आप के दिल में प्यार है, फिर मुझ से ही क्या झगड़ा है?’ इस पर अंबर की मां ने जवाब दिया, ‘वह इसलिए गुस्सा करता है कि तू हमें पहले क्यों नहीं मिली.’ इन चंद शब्दों ने सब के दिलों का हाल बयां कर दिया था.

वह अचानक यह सुन कर बाहर भाग गई थी, बाहर बालकनी में रेलिंग पकड़ कर खड़ी थी. सांसें ऊपरनीचे हो रही थीं. अंबर ने पास आ कर कहा, ‘मैं ने और मेरे घर वालों ने तुम्हारी जैसी पत्नी और बहू का सपना देखा था.’ अंबर ने आगे कहा, ‘पता नहीं कब से, लेकिन मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. हां, मगर मैं तुम से शादी नहीं कर सकता क्योंकि अगर मैं ने ऐसा किया तो अपने बेटे को हमेशा के लिए खो सकता हूं.’

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धरा का सुर्ख होता चेहरा सफेद पड़ गया था. उस ने नजरें उठा कर अंबर को देखा, तो अंबर की आंखों में आंसू थे, ‘मेरे पास जीने की वजह सिर्फ यह है कि कभी मेरा बेटा मुझे मिलेगा. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता लेकिन अपना बुढ़ापा जरूर सिर्फ तुहारे साथ बिताना चाहूंगा. सुबहसुबह तुम्हारे हाथ की चाय पिया करूंगा,’ उस वक्त दोनों की सांसें महसूस कर सकती थी धरा जब अंबर ने ये शब्द कहे थे जिन्होंने एक पल में ही उस को आसमान पर ले जा कर वापस नीचे धरातल पर पटक दिया था.

एक पल को धरा को लगा यह कैसा प्यार है और कैसी बेतुकी बात कही है अंबर ने, लेकिन दूसरे ही पल उसे भविष्य में अंबर में एक हारा और टूटा हुआ पिता नजर आया जिस का बेटा उसे कह रहा था कि तुम ने दूसरी शादी के लिए मुझे और मेरी मां को छोड़ा. शायद सही भी थी अंबर की बात. 4 साल का बच्चा जब मां के साथ रहता है तो वह उतना ही सच समझेगा जितना उसे बताया जाएगा.

जिस से प्यार करती है उसे अपनी वजह से ही टूटा हुआ कैसे देखती धरा. अगर अंबर बेटे के लिए उस का इंतजार कर सकता है तो धरा भी तो अंबर का इंतजार कर सकती है. फिर अंबर मान भी जाता लेकिन अपने ही घर वालों को मनाना भी तो धरा के लिए आसान नहीं था.

अंबर का हाथ पकड़ कर धरा बोली, ‘अगर सच में हमारे बीच प्यार है तो एक दिन हम जरूर मिलेंगे. मैं इंतजार करूंगी उस दिन का जब सबकुछ सही होगा और रही शादी की बात, तो राधाकृष्णा की भी शादी नहीं हुई थी लेकिन आज भी उन का नाम साथ ही लिया जाता है.’

लेकिन शर्तें तो दिमाग लगाता है, दिल नहीं और सब हालात को जानतेसमझते भी उन दोनों के तनमन भी दूर नहीं रह सके. शादी की बात तो दोबारा नहीं हुई, लेकिन दोनों के ही घर वालों को उन के बीच पनपे रिश्ते का अंदाजा हो गया था. ऐसे ही साथ रहते 2 साल निकल गए थे. अब भी अंबर अपने बेटे किट्टू से बात करने को तरसता था. सबकुछ वैसा ही चल रहा था.

धरा ने जौब जौइन कर ली और एक फ्रैंड की शादी में गई थी. वहां से आ कर एक बार फिर उस के दिल में अंबर से शादी करने की चाहत करवट लेने लगी. बहुत मुश्किल था उस का अंबर के इतने पास होते हुए भी दूर होना और इसीलिए उस का प्यार और उस की छुअन को अपने एहसासों में बसा कर धरा देहरादून छोड़ मुंबई आ गई थी. अब एक ही धुन थी उसे, टीवी इंडस्ट्री में नाम की और बहुत सारे पैसे कमाने की जिस से शादी न सही कम से कम सफल हो कर अपने घर वालों के प्रति कर्तव्य निभा सके.

उस के बाद के अब तक के साल कैसे बीते, यह धरा और अंबर दोनों ही जानते हैं. दूर रह कर भी न तो दूर रह सके, न साथ रह सके दोनों. वे महीनों के अंतराल में मिलते, किट्टू के बड़े होने और साथ जीने के सपने देखते और एकदूसरे की हिम्मत बढ़ाते. लेकिन कभी उन की नजदीकियां ही जब उन्हें कमजोर बनातीं तो दोनों खुद ही टूटने भी लगते और फिर संभलते. रिश्तेदारों, पड़ोस, महल्ले वालों सब से क्या कुछ नहीं सुनना और सहना पड़ा था दोनों को. लेकिन, उन्होंने हर पल हर कदम एकदूसरे को सपोर्ट किया था. बस, कभी शादी की बात नहीं की.

धरा के घर वाले कुछ सालों तक शादी के लिए बोलते रहे. लेकिन बाद में उस ने अपने घर वालों को समझा लिया था कि वे जिस इंडस्ट्री में हैं, वहां शादी इतना माने नहीं रखती है और उस के सपने अलग हैं.  इस बीच, उस ने न कभी अंबर और उस के घर वालों का साथ छोड़ा, न किसी और से रिश्ता जोड़ा. वह अंबर से ले कर उस के बेटे किट्टू तक के बारे में सब खबर रखती थी.

‘‘छुट्टी का टाइम हो गया, मैडमजी,’’ चपरासी की आवाज से धरा की तंद्रा टूटी.

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कुछ मिनटों बाद किट्टू को आता देख धरा ने उसे पुकारा, तो किट्टू के चेहरे पर गुस्से और नफरत के भाव उभर आए. फेसबुक पर देखा है उस ने धरा को. यही है वह जिस से शादी करने के लिए पापा हमें छोड़ कर चले गए, ऐसा ही कुछ सुनता आया है वह इतने सालों से मां और नानी से और जब बड़ा हुआ तो उस की नफरत और गुस्सा भी उतना ही बढ़ता गया. अंबर से कभीकभार फोन पर बात होती, तो, बस, हांहूं करता रहता था.

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उजली परछाइयां:  भाग-1

कहानी- महिमा दीक्षित

बीकानेर के सैंट पौल स्कूल के सामने बैठी धरा बहुत नर्वस थी. उसे वहां आए करीब 1 घंटा हो रहा था. वह स्कूल की छुट्टी होने और किट्टू के बाहर आने का इंतजार कर रही थी. किट्टू से उस का अपना कोई रिश्ता नहीं था, फिर भी उस की जिंदगी के बीते हुए हर बरस में किट्टू के निशान थे. अंबर का 14 साल का बेटा, जो अंबर के अतीत और धरा के वर्तमान के 10 लंबे सालों की सब से अहम परछाईं था. उसी से मिलने वह आज यहां आई थीं. आज वह सोच कर आई थी कि उस की कहानी अधूरी ही सही, लेकिन बापबेटे का अधूरापन वह पूरा कर के रहेगी.

करीब 10 साल पहले धरा का देहरादून में कालेज का सैकंड ईयर था जब धरा मिली थी मिस आभा आहलूवालिया से, जो उस के और अंबर के बीच की कड़ी थी. उस से कोई 4-5 साल बड़ी आभा कालेज की सब से कूल फैकल्टी बन के आई थी. वहीं, धरा में शैतानी और बेबाकपन हद दर्जे तक भरा था. लेकिन धीरेधीरे आभा और धरा टीचरस्टूडैंट कम रह गई थीं, दोस्त ज्यादा बन गईं. लेकिन शायद इस लगाव का एक और कारण था, वह था अम्बर, आभा का बड़ा भाई, जिस की पूरी दुनिया उस के इर्दगिर्द बसी थी और उसे वह अकसर याद करती रहती थी.

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आभा ने बताया था कि अंबर ने करीब 5 साल पहले लवमैरिज की थी, बीकानेर में अपनी पत्नी रोशनी व 4 साल के बेटे किट्टू के साथ रह रहा था और 3-4 महीने में अपने घर आता था. आभा अकसर धरा से कहती कि उस की आदतें बिलकुल उस के भाई जैसी हैं.

ग्रेजुएशन खत्म होतेहोते आभा और धरा एकदूसरे की टीचर और स्टूडैंट नहीं रही थीं, अब वे एक परिवार का हिस्सा थीं. इन बीते महीनों में धरा उस के घर भी हो आई थी, भाई अंबर और बड़ी बहन नीरा से फेसबुक पर कभीकभार बातें भी होने लगी थीं और छुट्टियां उस के मम्मीपापा के साथ बीतने लगी थीं.

एग्जाम हो गए थे लेकिन मास्टर्स का एंट्रैंस देना बाकी था, इसलिए धरा उस समय आभा के घर में ही रह रही थी. तब अंबर घर आया था. बाहर से शांत लेकिन अंदर से अपनी ही बर्बादी का तूफान समेटे, जिस की आंधियों ने उस की हंसतीखेलती जिंदगी, उस का प्यार, सबकुछ तबाह कर दिया था. आभा के साथ रहते धरा को यह मालूम था कि अंबर की शादी के 2 साल तक सब ठीक था, फिर अचानक उस की बीवी रोशनी अपने मम्मी के घर गई, तो आई ही नहीं.

इस बार जब अंबर आया तो उस के हमेशा मुसकराते रहने वाले चेहरे से पुरानी वाली मुसकान गायब थी. धरा के लिए वह सिर्फ आभा का भाई था, जो केवल उतना ही माने रखता था जितना बाकी घरवाले. लेकिन 1-2 दिन में ही न जाने क्यों अंबर की उदास आंखों और फीकी मुसकान ने उसे बेचैन कर दिया.

करीब एक सप्ताह बाद अंबर ने बताया कि वह अपनी जौब छोड़ कर आया है क्योंकि उस के ससुराल वालों और पत्नी को लगता है कि वह पैसे के चलते वहां रहता है. अब वह यहीं जौब करेगा और कुछ महीनों के बाद पत्नी और बेटा भी आ जाएंगे. यह सब के लिए खुश होने की बात थी. लेकिन फिर भी, कुछ था जो नौर्मल नहीं था.

अंबर ने नई जौब जौइन कर ली थी. कितने ही महीने निकल गए, पत्नी नहीं आई. हां, तलाक का नोटिस जरूर आया. रोशनी ने अंबर से फोन पर भी बात करनी बंद कर दी थी और बेटे से भी बात नहीं कराती थी. इन हालात ने सभी को तोड़ कर रख दिया था. अंबर के साथ बाकी घर वालों ने भी हंसना छोड़ दिया.  उन के एकलौते बेटे की जिंदगी बरबाद हो रही थी. वह अपने बच्चे से बात तक नहीं कर पाता था. परिवार वाले कुछ नहीं कर पा रहे थे.

धरा सब को खुश रखने की कोशिश करती. कभी सब की पसंद का खाना बनाती तो कभी अंबर को पूछ कर उस की पसंद का नाश्ता बनाती. उसे देख कर अंबर अकसर सोचता कि यह मेरी और मेरे घर की कितनी केयर करती है. धरा आज की मौडर्न लड़की थी. लेकिन घरपरिवार का महत्त्व वह अच्छी तरह समझती थी. घर के काम करना उसे अच्छा लगता था. मन साफ सच्चा हो तो सूरत को भी हसीन बना देता है. धरा के चेहरे की खूबसूरती में गजब का आकर्षण था. अभी 23 वर्ष की पिछले महीने ही तो हुई थी. दूसरी ओर धरा जबजब अंबर को देखती तो सोचती थी कि कितना प्यार करता है अपनी बीवी को. काश, मुझे भी ऐसा ही कोई मिले. तलाक की बात सुन कर पहली बार अंबर को रोते देखा था धरा ने और उस के शब्द कानों में अब तक गूंज रहे थे कि ‘मर जाऊंगा लेकिन तलाक नहीं दूंगा. मैं नहीं रह सकता उस के बिना.’

अंबर की गहरी भूरी आंखों में दर्द भरा रहता था. 30 की उम्र हो गई थी लेकिन पर्सनैलिटी उस की ऐसी थी कि देखने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. धरा समझ नहीं पाती थी कि रोशनी को अंबर में ऐसी क्या कमी नजर आई थी जो उसे छोड़ गई.

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जुलाई में धरा की दीदी देहरादून घूमने आई थी और उस की खूब खातिर की गई. देहरादून का मौसम खुशगवार था. इसलिए घूमनेफिरने का अलग मजा था. अंबर भी उसे पूछ कर ही सारे प्रोग्राम बना रहा था. प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मसूरी, सहस्रधारा, चकराता, लाखामंडल तथा डाकपत्थर देखने का प्रोग्राम अंबर ने झटपट बना डाला. अंबर का किसी और को इंपौर्टेंस देते देख न जाने क्यों धरा के मन में जलन हुई और उसे पहली बार एहसास हुआ कि अनजाने में ही वह अंबर को चाहने लगी है. लेकिन क्यों, कब, कैसे, इस की वजह वह खुद नहीं जानती थी. इस की वजह शायद अंबर का इतना प्यारा इंसान होना था या फिर शायद इतनी गहराई से अपनी बीवी के लिए प्यार था कि धरा खुद उस के प्यार में पड़ गई थी.

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रिश्ता कागज का: भाग-3

प्रिया ने पता नहीं क्या समझा और फिर मेरे गले लग कर बोली, ‘‘डोंट वरी मां आप के सपने को आप की बेटी पूरा करेगी,’’ फिर अपने भाई का कान पकड़ कर बोली, ‘‘सुन नालायक मैं अब डाक्टर नहीं बनूंगी तू बनेगा और पापा का हौस्पिटल संभालेगा. मैं तो अपनी मम्मा का सपना पूरा करूंगी.’’

उस दिन के बाद से वह जैसे नए जोश में भर गई. तुरंत विज्ञान विषय को बदल कर हिस्ट्री, इंग्लिश और इकौनोमिक्स ले लिया. मेरा मार्गदर्शन तो था ही. जल्दी ही वह दिन आ गया जब एमए करने के बाद उस ने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में कुछ कम नंबर आने पर दोबारा परीक्षा में बैठी. इस बार शुरू के 50 लोगों में नंबर था. मसूरी से ट्रेनिंग करने के बाद उस की रायपुर में ही अतिरिक्त कलैक्टर के पद पर प्रशिक्षु के रूप में नियुक्ति हो गई. उस के बैच के 6 और लड़के थे. उन को हम ने खाने पर बुलाया. सभी बहुत खुशमिजाज थे. खाना खाने के बाद भी बड़ी देर बातचीत चलती रही. मैं ने महसूस किया कि उन में से एक की नजर प्रिया पर ही थी. प्रिया भी उस को अलग नजर से देख रही थी. पूछताछ करने पर पता चला कि वह गुजरात का रहने वाला था. उस के पापा आर्मी में थे. उस का नाम शरद था. मैं लड़की की मां की तरह सोच रही थी कि लड़का अच्छा है. बराबर के पद पर है और सब से बड़ी बात कि प्रिया को पसंद भी कर रहा है. प्रिया भी शायद उसे पसंद करती है. मैं ने इन से बात करनी चाही पर इन्होंने मुझे मीठी झिड़की दी कि अरे कुछ तो सोच बदलो. आजकल का जमाना नया है. लड़केलड़की बराबरी से हंसीमजाक करते हैं. जरूरी नहीं कि वे आपस में प्यार करते हों. मुझे गुस्सा आ गया और मैं करवट बदल कर सो गई. पर मेरा अंदाजा कितना सही था, यह मुझे दूसरे दिन पता लग गया. शाम को जब प्रिया औफिस से आई तब कार में उस के साथ शरद भी था. मैं ने तुरंत चायनाश्ता लगवाया. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने देखा दोनों एकदूसरे को कुछ इशारे कर रहे हैं. मुझे भी हंसी आने लगी. मैं जानबूझ कर औफिस और राजनीति की बातें करती रही.

आखिर प्रिया ने कहा, ‘‘मां, शरद को आप से कुछ कहना है.’’

मेरे कान खड़े हो गए. जब कोई बात मनवानी होती थी तब दोनों बच्चे मुझे मां कहते थे. अत: मैं ने कहा, ‘‘हां, बोलो बेटा क्या बात है?’’

शरद ने धीरेधीरे पर बड़े विश्वास से मुझे अपने और परिवार के बारे में बताया. उस के पापा आर्मी में ब्रिगेडियर थे. वह अकेला लड़का था. प्रिया उस को पसंद थी. मसूरी में ही उन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. उस के मातापिता को शादी पर कोई ऐतराज नहीं. प्रिया को मेरी मंजूरी चाहिए थी.

मुझे इस शादी पर तो कोई ऐतराज था ही नहीं और मैं तो कल रात से ही सपने देख रही थी पर मुझे एहसास हुआ कि शरद को सच बता देना चाहिए. कुछ सोचने के बाद मैं ने कहा कि मैं उस से अकेले में बात करना चाहती हूं. यह सुन कर प्रिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘मम्मी जरूर तुम्हें अपनी लड़की का पीछा छोड़ने के लिए पैसे देने वाली हैं. तुम फिल्मी हीरो की तरह पैसे ठुकरा मत देना. अच्छीखासी रकम मांग लेना. फिर हम दोनों खूब शौपिंग करेंगे.’’

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मैं ने उस के इस मजाक का कोई जवाब नहीं दिया. बस उसे वहीं रुकने की बोल शरद को अपने कमरे में ले गई. कमरा बंद कर मैं ने अपनी अलमारी से वे बरसों पुराने कोर्ट के कागज निकाल कर उसे दिखाए और बताया कि प्रिया हमारी अपनी बच्ची नहीं, गोद ली हुई है, पर वह है इसी घर की बच्ची. संक्षेप में उसे प्रिया की कहानी बताई.

अंत में मैं ने कहा, ‘‘हम इस बात को भूल चुके हैं, पर तुम उसे जीवनसाथी बना रहे हो तो इस के लिए यह जरूरी है कि तुम सच जान लो. अब तुम्हारा जो फैसला हो बता दो,’’ कह कर मैं आंखें बंद कर बैठ गई. दिल धकधक कर रहा था कि पता नहीं मैं ने अपने ही हाथों अपनी बेटी का बुरा तो नहीं कर दिया.

थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि शरद मेरे आंसू पोंछ रहा है. शरद ने सारे कागज वापस अलमारी में रखे और मेरे हाथों को अपने माथे से लगाते हुए बोला, ‘‘अब तो किसी भी कीमत पर मैं इस घर से रिश्ता जोड़ कर रहूंगा.’’

बस इस के बाद शरद के मम्मीपापा आए. बड़े ही अच्छे माहौल में सारी बातें तय हुईं और सगाई तय कर दी. प्रियंक भी अमेरिका से अपनी एमएस की पढ़ाई पूरी कर वापस आ गया. शहर के बड़े होटल में हम ने प्रिया की सगाई रखी. पापा के बहुत पुराने दोस्त आर्मी से रिटायर हो कर गवर्नर बन गए थे. पापा ने उन्हें भी बुलाया. वे सहर्ष आए. शहर के कुछ प्रमुख लोग, कुछ परिचित और प्रिया और शरद के औफिस के अधिकारी सब मिला कर करीब सौ मेहमान हो गए थे. गवर्नर साहब के आने से फोटोग्राफर्स ने तो बस मौका ही नहीं छोड़ा. हजारों फोटो ले डाले और उन्हीं में से एक फोटो समाचारपत्रों में छपा था, जिसे मैं उस दिन देख रही थी. तभी वह फोन आया था.

मैं वापस वर्तमान में लौट आई. पता नहीं क्याक्या हुआ होगा. प्रिया को सब पता लग गया क्या? क्या वह मुझ से नाराज हो गई? यदि नहीं तो वह यहां क्यों नहीं दिख रही? मुझे कुछ हो और प्रिया पास न हो ऐसा कभी हो सकता है?

तभी रूम की घड़ी ने सुबह के 6 बजाए. बेटा झटके से उठा और मेरी तरफ बढ़ा. मुझे आंखें खोले देख खुशी से चिल्ला पड़ा, ‘‘ओह मां, आप जाग गईं. पता है तुम्हारी बेटी ने तो मेरा 4 दिन से जीना मुश्किल कर दिया था. कल रात जब मैं ने बोला कि अब मां ठीक हैं सुबह तक ठीक हो जाएंगी तब पापा को घर ले जाने के बहाने उसे घर भेज पाया हूं. दोनों बोल गए थे चाहे कितनी रात को तुम्हें होश आए उन्हें जरूर बुला लूं,’’ फिर दरवाजे की तरफ देख कर बोला, ‘‘लो, आप के देवदास और आप की चमची दोनों हाजिर हैं. बिना बुलाए सुबह 6 बजे आ धमके.’’

मैं ने भी दरवाजे की तरफ देखा. प्रियांशु और प्रिया भागे चले आ रहे थे. दोनों आ कर बैड की एक तरफ खड़े हो गए. प्रिया तो मेरे गले लग कर रोने ही लगी, ‘‘क्या मां, आप ने तो डरा ही दिया. मेरी शादी का इतना दुख है, तो मैं नहीं करती शादी.’’

मेरा बेटा फौरन बोला, ‘‘अरे, जाओ, मम्मी तो खुशी बरदाश्त नहीं कर पाईं… और अटैक तो मुझे आना था खुशी का कि अब कम से कम घर पर मेरा राज होगा.’’

प्रिया ने तुरंत उस का कान पकड़ा, ‘‘बड़ा आया… विदेश से क्या पढ़ कर आया है. 4 दिन लगा दिए मम्मी को ठीक करने में… पहले डाक्टरी तो ठीक से कर, फिर घर पर राज करना.’’

दोनों की नोकझोंक सुन कर मैं निहाल हुई जा रही थी. प्रिया पहले की तरह ही थी. लगता है वह नहीं आया होगा. मैं ने चैन की सांस ली.

1 सप्ताह बाद मैं अपने घर की राह पर थी. कार में प्रियांशु और शरद आगे बैठे थे. प्रिया मुझे संभाले पीछे थी. अचानक प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे पता है आप को किस बात का सदमा लगा. वह आदमी आया था जिस के कारण आप हौस्पिटल पहुंची.’’

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मैं ने चौंक कर उसे देखा. तभी प्रियांशु ने बात संभाली और बोला, ‘‘हां पारुल वह आया था. मुझे तो समझ ही नहीं आया कि क्या करूं पर अच्छा हुआ तुम ने शरद को सब बता दिया था. उस ने ही प्रिया को तुम्हारे कमरे में ले जा कर कोर्ट के सारे कागज दिखाए और फिर बाकी कहानी मैं ने प्रिया को बताई. इन दोनों ने उस का वह हाल किया कि मजा आ गया. मेरी बहन और पापा के मन को भी शांति मिल गई होगी.’’

सारी बात जानने को उत्सुक हो गई तब इन लोगों ने बताया कि प्रिया ने उसे बहुत खरीखोटी सुनाई. उस के बेटे निकम्मे निकले. सारी संपत्ति पहले ही खो चुका था, इसलिए सोचा होगा कि तुम्हें डरा कर कुछ पैसे ऐंठ लेगा, पर तुम तो उस का फोन सुनते ही बेहोश हो गईं. वह जब घर आया तब तुम हौस्पिटल में थीं. उस ने यह नहीं सोचा था कि उस का सामना प्रिया से ही हो जाएगा. वह अपनी बेटी के आधार पर भरणपोषण का दावा करने की सोच रहा था पर प्रिया ने सारे कागज उस के सामने लहरा दिए और धमकी भी दे डाली कि यह सोच कर आए थे कि मेरे मम्मीपापा से पैसे वसूल करोगे? तुम हो कौन? मेरी मां से तो तुम्हारा कोई संबंध ही नहीं, यह तो तुम कई बरस पहले कोर्ट में बता चुके हो. मैं तुम्हारी बेटी नहीं. फिर कैसे मुझ से भरणपोषण मांगने का केस करोगे और केस तो अब मैं करूंगी… मेरे परिवार को तुम ने नुकसान पहुंचाया है. मेरी मां तुम्हारे कारण हौस्पिटल में हैं. अब जाते हो या पुलिस को बुलाऊं?’’ और फिर तुरंत एसपी साहब को फोन भी कर दिया कि एक आदमी धमकी देने आया है. अब वह इस शहर में दिखना नहीं चाहिए. तुरंत पुलिस आ गई और उसे यह कह कर चले जाने को कहा कि दोबारा इस शहर में पैर रखा तो सीधे जेल में दिखोगे.

प्रिया ने मेरे गले लगते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी इतनी कमजोर नहीं मां और न हमारा रिश्ता इतना कमजोर है जो किसी के कुछ कहने से खत्म हो जाए, फिर आप क्यों दिल से लगा कर बैठ गईं उस की धमकी को? उस की तो शक्ल देखने लायक थी… अब पता चलेगा बच्चू को. सुना है भूखे मरने की नौबत आ गई है उस की.’’

मैं ने राहत की सांस ले कर प्रिया को गले लगा लिया. घर आ गया था, पर फिर मेरा भावुक मन यह सोच कर परेशान हो गया कि आखिर है तो प्रिया का पिता ही… भूखों मर रहा है यह तो ठीक नहीं…

प्रिया ने जैसे मेरे मन की बात जान ली. बोली, ‘‘आप चिंता न करो मां. मैं ने और शरद ने मेरठ के कलैक्टर से बात कर के उसे वृद्धाश्रम भेजने का प्रबंध कर लिया है. जब तक जीवित है निराश्रित पैंशन भी उसे मिलती रहेगी. वह भूखा नहीं मरेगा.’’

मैं ने जब नजर भर कर उसे देखा तो मेरे गले लग कर बोली, ‘‘मुझे धरती पर लाने का एहसान तो किया था उस ने वरना इतनी प्यारी मां कैसे मिलतीं, इसलिए वह कर्ज चुका दिया. अब और इस से ज्यादा की आशा मत रखना कि मैं कभी उस से मिलने जाऊंगी या और कुछ करूंगी.’’

मैं ने हंस कर अपनी बेटी को गले लगा लिया. हमारा रिश्ता कागज से बना था पर खून के रिश्ते से ज्यादा गहरा और प्यारा था. मैं ने अपनी प्यारी बिटिया को गले लगाए घर में प्रवेश किया.

यादों का अक्स: भाग 2

वह तो दवा ले कर गहरी नींद सो गया था पर मैं रवि की याद में तड़प कर रह गई थी. बारबार सोचती कि काश, आज समीर की जगह रवि होता तो इस हनीमून का, इस बारिश का मजा ही कुछ और होता.

वैसे समीर ने हनीमून पर मुझे पूरा मजा दिया था, लेकिन मैं चाह कर भी पूरे मन से उस का साथ नहीं दे पाई थी. में

जब भी समीर मेरे पास होता मुझे ऐसा लगता मानो मेरा शरीर तो समीर के पास है, लेकिन मन कहीं पीछे छूट गया है, रवि के पास.

मुझे हमेशा ऐसा लगता कि हम दोनों के बीच रवि का वजूद आज भी बरकरार है, जो मुझ से रहरह कर अपना हक मांगता है.

यह शायद रवि के वजूद का ही असर था कि मैं चाह कर भी समीर से खुल नहीं पाई. मेरे मन का एक कोना अभी भी रवि की याद में तड़पता रहता था.

जब भी बादल बरसते समीर बारिश में भीगते हुए उस का आनंद लेता, मगर मैं दरवाजे की ओट में खड़ी रवि को याद कर रोती.

तब अचानक समीर का चेहरा रवि का रूप ले लेता और फिर मेरी यह बेचैनी तड़प में बदल जाती. तब मैं सोचने लगती कि काश, मेरी इस तड़प में रवि भी मेरा हिस्सेदार बन पाता तो कितना अच्छा होता.

बारिश की ठंडी फुहारों के बीच अगर मैं अपनी इस तड़प से रवि को अपना दीवाना बना देती और टूट कर उसे प्यार करती तो शायद मेरा मन भी इस मौसमी ठंडक से सराबोर हो उठता.

वैसे मैं ने अपने मन की सारी बातें अपने मन के किसी कोने में छिपा रखी थीं तो भी समीर की पारखी नजरों ने मेरे मन की बेचैनी को भांप लिया था.

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‘‘घर से बाहर निकलो, नएनए दोस्त बनाओ. घर की चारदीवारी में कैद हो कर क्यों बैठी रहती हो?’’ एक दिन समीर मुझे समझाते हुए बोला.

समीर की बात मुझे जंच गई और मैं अपनी सोसाइटी की किट्टी पार्टी की सदस्य बन गई.

नएनए लोगों से मिलने से मेरा अकेलापन कम होने लगा, जिस कारण मन में छाई निराशा आशा में बदलने लगी.

अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव से मैं खुश थी. धीरेधीरे मुझे ऐसा लगने लगा शायद अब मेरी जिंदगी में एक ठहराव आ गया है.

पर यह ठहराव ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया, क्योंकि शांत नदी में अचानक रवि ने आ कर अपने प्यार का पत्थर जो फेंक दिया था, जिस कारण मेरी जिंदगी में फिर से तूफान आ गया.

मैं उस दिन अकेली पिक्चर देखने गई थी. वैसे समीर भी मेरे साथ आने वाला था, लेकिन अचानक जरूरी काम आने से वह नहीं आ आ सका. अत: अकेली पिक्चर देखने आई थी. लेकिन पिक्चर शुरू होने से पहले ही अचानक रवि से मुलाकात हो गई.

जब हम एकदूसरे के सामने आए तब न जाने कितनी देर तक हम दोनों एकदूसरे को बिना कुछ बोले निहारते रहे.

‘‘मैं कोई सपना देख रही हूं क्या?’’ मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा.

‘‘हां, शायद यह सपना ही है,’’ कहतेकहते रवि का गला भर आया.

फिर हम दोनों भीड़ से दूर एक तरफ ओट में जा कर खड़े हो गए.

‘‘कहां थे? न कोई फोन…जाओ, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी,’’ मैं लगभग रो पड़ी थी.

‘‘नेहा, आज तक कोई पल ऐसा नहीं बीता होगा, जब मैं ने तुम्हें याद न किया हो. बस यह समझ लो कि मेरा तन मेरे पास था पर मन हमेशा तुम्हारे पास रहा है,’’ रवि भरे गले से बोला.

इस से पहले कि मैं कुछ और बोल पाती, रवि ही बोल पड़ा, ‘‘अच्छा, अब ये गिलेशिकवे छोड़ो और अंदर चलो, आज की पिक्चर में मेरा हीरो का रोल तो नहीं है नैगेटिव है पर हीरो के रोल से ज्यादा दमदार है,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और दोनों हौल के अंदर चले गए.

वाकई रवि का अभिनय दमदार था. इतने सालों की उस की मेहनत नजर आ रही थी. जब वह हौल से बाहर निकला तो उस के प्रशंसकों की भीड़ ने उस का रास्ता रोक लिया.

उस के बाद से तो रवि का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. अब मुझे न दिन की सुध थी और न रात की.

मेरा अब ज्यादा समय रवि के साथ ही बीतने लगा था. कभीकभी तो मैं शूटिंग के समय भी उस के साथ होती. मैं ने कई बार उस से कहा कि वह चल कर समीर से मिल ले पर हर बार टाल जाता.

जब भी मैं उस के सामने समीर का जिक्र करती, वह गमगीन हो उठता और तड़पते हुए कहता, ‘‘मेरे उस दुश्मन का नाम मेरे सामने ले कर मेरे जख्मों को हरा मत किया करो.

‘‘नेहा, बस यह समझ लो कि तुम से मेरी शादी न हो पाना मेरी सब से बड़ी हार है, जिसे मैं एक दिन जीत में बदल कर ही रहूंगा.’’

तब मेरा मन करता कि मैं उस से लिपट जाऊं और अपना सर्वस्व उसे सौंप दूं पर लोकलाज के भय से अपने बढ़े कदम रोक लेती.

कई बार मेरे मन में आया कि उस से पूछूं कि वह मेरी शादी के समय कहां था, पर यह सोच कर चुप रह जाती कि इस से रवि को दुख पहुंचेगा और मैं उसे दुखी नही करना चाहती.

एक दिन शाम के 5 बजे थे जब मेरे पास रवि का फोन आया.

‘‘क्या कर रही हो जान?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’

‘‘तो चली आओ, आलीशान होटल में,’’

‘‘पर अचानक…’’

‘‘ज्यादा सवाल न पूछो एक सरप्राइज है.’’

रवि का इतना कहना था कि मैं उस के प्यार में खिंची होटल के लिए निकल पड़ी. उस दिन समीर टूअर पर था और मैं ने अपने बेटे बंटू को अपनी सहेली राधिका के यहां छोड़ दिया.

जब रवि के पास पहुंची तो देखा वह एक सजे कमरे में मेरी प्रतीक्षा कर रहा है.

‘‘जान, बहुत देर कर दी आने में…’’

‘‘यह सब क्या है?’’ मैं अचकचाते हुए उस से पूछ बैठी.

‘‘आज मुझे एक बहुत बड़ा रोल मिला है. अगर यह पिक्चर हिट हुई तो समझो मैं रातोंरात स्टार बन जाऊंगा,’’ कहतेकहते उस ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘यह सही नहीं है, रवि,’’ मैं ने खुद को उस से छुड़ाते हुए कहा.

‘‘प्यार में कुछ भी सही या गलत नहीं होता. प्यार तो सिर्फ प्यार होता है जो कुरबानी मांगता है. वैसे भी तुम्हारा और मेरा प्यार तो सच्चा प्यार है जो न जाने कब से एकदूसरे का साथ पाने को तड़प रहा है,’’ यह कह उस ने मुझे पैकेट थमा दिया.

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जब मैं ने पैकेट खोला तो हैरान रह गई, उस में एक गुलाबी रंग की झीनी नाइटी थी.

इधर मैं कपड़े बदलने चली गई तो उधर रवि सारे बिस्तर पर लाल गुलाबों की बरसात करने लगा.

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यादों का अक्स: भाग 1

पहला प्यार तो सावन की उस पहली बारिश के समान होता है, जिस की पहली फुहार से ऐसा लगता है मानो मन की सारी तपिश दूर हो गई हो.

मेरा पहला प्यार रवि जब मुझे अचानक मिला तो ऐसा लगा जैसे मैं ने उस क्षितिज को पा लिया, जहां धरती व आसमान के सिरे एक हो जाते हैं. वैसे मैं चाहती नहीं थी कि रवि और मेरे बीच शारीरिक संबंध स्थापित हों पर जब सारे हालात ही ऐसे बन जाएं कि आप अपने प्यार के लिए सब कुछ लुटाने के लिए तैयार हो जाएं तब यह सब हो ही जाता है.

सच, रवि से एकाकार होने के बाद ही मैं ने जाना कि सच्चा प्यार क्या होता है. रवि के स्पर्श मात्र से ही मेरा दिल इतनी जोरजोर से धड़कने लगा मानो निकल कर मेरे हाथ में आ जाएगा.

रवि से मिलने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि अब तक की जितनी भी रातें मैं ने अपने पति समीर के साथ बिताई हैं वह मात्र एक शारीरिक उन्माद था या फिर हमारे वैवाहिक संबंध की मजबूरी.

शादी से ले कर आज तक जबजब भी समीर मेरे नजदीक आया, तबतब मेरा शरीर ठंडी शिला की तरह हो गया. वह अपना हक जताता रहता, लेकिन मैं मन ही मन रवि को याद कर के तड़पती रहती.

यह शायद रवि के प्यार का ही जादू था कि शादी के इतने साल बाद भी मैं उसे भुला नहीं पाई थी. तभी तो मेरे मन का एक कोना आज भी रवि की एक झलक पाने को तरसता था.

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‘‘मैं शादी करूंगी तो सिर्फ रवि से वरना नहीं,’’ शादी से पहले मैं ने यह ऐलान कर दिया था.

‘‘हां, वह तो ठीक है, पर जनाब मिलने आएं तो पता चले कि वे भी यह चाहते हैं या नहीं,’’ भैया के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘हांहां, मैं जानती हूं कि आप का इशारा किस तरफ है? वह हीरो बनना चाहता है, इसीलिए तो दिनरात स्टूडियो के चक्कर काटता है. बस एक ब्रेक मिला नहीं कि उस की निकल पड़ेगी. इसीलिए वह मुंबई चला गया है.’’

‘‘न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी,’’ भैया न हंसते हुए कहा और बाहर चले गए.

‘‘देखो मां, भैया कैसे रवि का मजाक उड़ाते रहते हैं. देख लेना वह एक दिन बहुत बड़ा आदमी बन कर दिखाएगा,’’ मैं यह कहतेकहते रो पड़ी थी.

‘‘बेटी, वह हीरो जब बनेगा तब बनेगा, असली बात तो यह है कि वह अभी कर क्या रहा है?’’ पापा ने चाय पीते हुए मुझ से पूछा.

अब उन से क्या कहती. मैं खुद नहीं जानती कि वह आजकल मुंबई में क्या कर रहा है. मुझे तो बस इतना मालूम था कि शायद अभी फिर से विज्ञापन की शूटिंग कर रहा है.

जब सब कुछ धुंधला सा था तब भला कोई सटीक निर्णय कैसे लिया जाता? फिर मैं ने हथियार डाल दिए यानी समीर से शादी के लिए हामी भर दी.

मेरे इस निर्णय से घर के सभी लोग बहुत खुश थे पर मेरे भीतर अवश्य कुछ दरक कर टूट गया था.

मैं ने न जाने कितनी बार रवि को फोन किया पर वह शायद मुंबई से बाहर था. एक बार तो मैं ने भावावेश में मुंबई जाने का मन भी बना लिया पर तब मातापिता के रोते चेहरे मेरी आंखों के आगे घूम गए और तब मैं ने हथियार डाल दिया. वैसे भी रवि मुंबई में कहां है, यह पता तो मुझे नहीं था.

समीर से शादी हुई तो मैं उस के जीवन की महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गई. समीर ने मुझे वह सब दिया, जिस पर मेरा हक था. पर शायद मैं समीर के साथ पूरी तरह न्याय न कर पाई.

जिस मन पर किसी और का अधिकार हो, उस मन पर किसी और के अरमानों का महल बनना मुश्किल ही था.

मैं जब भी अकेली होती रवि को याद कर के रो पड़ती. मुझे उस की ज्यादा याद तब आती जब बारिश आती. मुझे आज भी याद है वह दिन जब बहुत ज्यादा उमस के बाद अचानक काले बादल घिर आए थे और देखते ही देखते मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी. उस समय रवि और मैं पिक्चर देख कर मोटरसाइकिल पर लौट रहे थे.

बारिश तेज होती देख कर रवि मोटरसाइकिल रोक कर सड़क की दूसरी ओर मैदान में जा कर बारिश का मजा लेने लगा.

उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत अजीब लगा. मैं एक पेड़ के नीचे खड़ी बारिश का मजा ले रही थी. तभी अचानक वह आया और मुझे खींच कर मैदान में ले गया.

‘‘नेहा, अपनी दोनों बांहें खोल कर इस रिमझिम का मजा लो. इन बूंदों में भीगने का मजा लोगी तभी तुम्हें लगेगा कि शरीर की तपिश कम हो रही है और तुम्हारा तनमन हवा की तरह हलका हो गया है.’’

पहले तो मुझे रवि का ऐसे भीगना अजीब लगा पर फिर मैं भी उस के रंग में रंग गई.

जब मैं ने अपने दोनों हाथ फैला कर बारिश की ठंडी बूंदों को अपने में आत्मसात करने की कोशिश की तो ऐसा लगा मानो मैं किसी जन्नत में पहुंच गई हूं. बहुत देर तक बारिश में भीगने के बाद मुझे हलकी ठंड लगने लगी और मैं कांपने लगी.

तब रवि मेरा हाथ पकड़ मुझे सड़क किनारे बने एक छोटे टीस्टाल में ले गया. रिमझिम बारिश के बीच गरमगरम चाय पीते हुए हम ने अपने कपड़े सुखाए और फिर अपनेअपने घर चले गए.

उस के बाद न जाने कितनी बारिशों में मैं और रवि साथसाथ थे. भीगे बदन पर जबजब रवि के हाथों का स्पर्श हुआ तबतब मैं एक नवयौवना सी चहक उठी.

समीर को भी रवि की तरह तेज बारिश में भीगना पसंद है. मुझे याद है जब हम लोग हनीमून के लिए मसूरी गए थे. मालरोड पर घूमते हुए अचानक बारिश शुरू हो गई. समीर तो वहीं खड़ा हो कर बारिश का मजा लेने लगा पर मैं एक पेड़ की ओट में खड़ी हो गई.

‘‘नेहा, आओ मेरे साथ इस बारिश में भीगो. देखो, कितना मजा आ रहा है.’’

‘‘न बाबा न, ठंड लग गई तो? तुम भी यहां आ जाओ,’’ मैं अपना छाता खोलते हुए बोली.

‘‘जानेमन, ठंड लगने के बाद मैं तुम्हें ऐसी गरमी दूंगा कि मेरे प्यार में पिघलपिघल जाओगी.’’

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समीर की इस बात पर आसपास खड़े लोग हंस रहे थे पर मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी. हिल स्टेशन की बारिशों में देर तक भीगने से समीर को ठंड लग गई थी और फिर वह 3 दिन तक बिस्तर से नहीं उठ पाया था.

आगे पढ़ें- मैं रवि की याद में तड़प कर रह गई थी….

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