इश्क का भूत : सर पर चढ़ा प्यार का खुमार

जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी. शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.

जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.

जब लौटती तो सहेलियों को अपने रोमांस के किस्से बता कर इंप्रैस करती. चूंकि उस की सहेलियां स्टडी में व्यस्त थीं, उन्हें तो अपने रिजल्ट की अधिक फिक्र रहती. वे उस की कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं.

इधर जीत भी पढ़ाई में पिछड़ता चला गया. उस का सारा वक्त शेफाली के बारे में ही सोचसोच कर निकल जाता. शेफाली के दिए गिफ्ट उसे भारी तोहफे नजर आते. वह उसे कभी टीशर्ट देती, कभी ब्रेसलेट तो कभी गौगल्स. वह खुद को हीरो से कम नहीं समझता. वह यही समझता कि शेफाली उस से विवाह करेगी और वह एक उद्योगपति का दामाद बन कर मालामाल हो जाएगा.

इधर शेफाली जीत संग आउटिंग पर थी, उधर उस के पापा अशोक ने प्राइवेट डिटैक्टिव से सारी जानकारी इकट्ठी करवा ली थी कि वह कहां जाती है, क्या करती है.

शेफाली के पापा अशोकजी ने जमाना देखा था. वे पल भर में सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें समझ आ गया कि उन की लाडली महज दिलबहलाव कर रही है. पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा.

जीत जिस तरह से बेझिझक शेफाली से तोहफे ले रहा था, इस से अशोकजी को यह भी समझ में आ गया कि इस लड़के में कोई स्वाभिमान नहीं है वरना वह इस तरह शेफाली की दी वस्तुएं न स्वीकारता. जीत का फंडा समझने में अशोकजी को ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वे तो खुद व्यवसायी थे और जीत के प्रोफैशनल प्रेम को पहचान गए थे.

शेफाली के लिए उन्होंने विदेश से पढ़ाई कर के लौटा एमबीए लड़का विजय तलाश लिया था. शेफाली ने जब विजय को देखा तो देखती ही रह गई. वह स्टाइलिश और अमेरिकन अंगरेजी बोल रहा था. उसे जीत को भुला देने में एक मिनट भी नहीं लगा.

जीत देखता रह गया और शेफाली विजय के साथ शादी कर हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड चली गई.

इश्क का भूत तो धन की चमक के आगे एक पल भी नहीं ठहर पाया. वे आज के युवा ही क्या जो इश्क के लिए जिंदगी बरबाद करें. अलबत्ता जीत को संभलने में एक साल लगा, पर जबकि वह दिल से नहीं मतलब की खातिर शेफाली से जुड़ा था. अब उस के सामने अपनी युवा बहन की जिम्मेदारी थी. वह नहीं चाहता था कि कोई उस के चालचलन का हवाला दे कर उस की बहन के रिश्ते को मना करे. जीत की मां को यही तसल्ली थी कि उस का बेटा एक बेवफा के प्यार में ज्यादा नहीं भटका.

 

विचित्र मांग- संजीव ने अमिता के सामने क्या शर्त रखी थी

“अमिता, एक बात मेरे मन में है, कहूं?” संजीव ने अमिता के होठों पर चुंबन अंकित करते हुए कहा.

“तुम तो मना करते हो इन क्षणों में कुछ बात करने को. इन क्षणों में सिर्फ और सिर्फ ऐसी ही बातें करने के लिए कहते हो,” अमिता ने शोखी से संजीव के पीठ पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए कहा.

“इन क्षणों में जो बातें करने के लिए कहता हूं वही बात है,” संजीव ने कहा.

“कहो,” अमिता ने संजीव को चूमते हुए कहा.

“हम दो के अलावा कोई तीसरा हो तो कैसा रहे…? काफी मजा आएगा. मेरी दिली ख्वाइश है इस की.”

“छीः, कैसी बातें कर रहे हो? मुझे तो शादी के पहले यह सब करना ही उचित नहीं लगता. सिर्फ तुम्हारे कहने से मैं तैयार हो जाती हूं,” अमिता ने कहा.

“तीसरे के जगह पर कोई तीसरी भी हो तो चलेगा. तुम्हारी कोई फ्रेंड हो तो उस से बातें कर सकती हो,” संजीव ने कहा.

अमिता संजीव की बातों से विस्मित हो गई. उसे इस तरह की बात की जरा भी आशा नहीं थी.

वह संजीव के साथ लगभग दो वर्षों से रिलेशनशिप में रह रही थी. वह संजीव से प्यार करती थी और संजीव भी उस से बेइंतिहा प्यार करता था. दोनों शादी करने का विचार रखते थे. शादी के बारे में उन दोनों ने प्लानिंग भी कर रखी थी.
शायद अति उत्साह में आ कर संजीव ने ऐसी बात कह दी थी. यह सोच कर अमिता ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था.

पर, दूसरे दिन उस ने फिर उस से पूछा, “अमिता वो तीन वाली बात पर तुम ने कुछ विचार किया? कहो तो मैं अपने मित्र जीवन से बात करूं.”

“नहीं संजीव. मुझे यह बिलकुल भी पसंद नहीं है. यह मेरे मूल्यों के खिलाफ है,” अमिता ने कहा.

“कम औन अमिता. क्या तुम भी दकियानूसी बातें कर रही हो…? हम आधुनिक समाज में रह रहे हैं. सैक्स भी एक मनोरंजन है. इस का आनंद उठाने में क्या हर्ज है. तुम चाहो तो सपना से बात कर लो. वह तुम्हारे साथ काफी घुलीमिली भी है. मुझे थ्रीसम का कांसेप्ट बहुत भाता है. यह मेरे वर्षों की तमन्ना है. प्लीज अमिता,”
संजीव ने अमिता को समझाने की कोशिश की.

“बिलकुल नहीं,” अमिता ने कहा.

अमिता काफी उलझन में पड़ गई. संजीव से वह प्यार करती थी. उस से शादी करना चाहती थी. उस के कहने पर वह कभीकभार उस के साथ शारीरिक संबंध भी बना लिया करती थी. पर उस की नई मांग अजब थी. यह अमिता के नैतिक मूल्यों के खिलाफ था. उस के नैतिक मूल्यों के खिलाफ तो शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाना भी था. पर सुरक्षात्मक उपाय अपना कर ऐसा वह सिर्फ अपने प्रेमी संजीव के साथ कर सकती थी. और संजीव अब किसी और को भी इस में शामिल करना चाहता था. यहां तक कि कोई लड़की भी हो तो उसे स्वीकार्य था. पहले उसे लगा कि उत्तेजना में उस ने ऐसा कह दिया है. परंतु पिछले कई महीनों से वह इस बात पर जोर दे रहा था. खासकर अंतरंग क्षणों में वह जरूर इस मुद्दे को उठा देता था.

क्या करे उस की समझ में नहीं आ रहा था. वैसे, हर बार उस की इस मांग पर उस ने अपनी असहमति जताई थी. कई बार वह उस के स्थान पर खुद को रख कर उस की मांग के औचित्य को समझने की कोशिश करती थी. उसे यह आइडिया बिलकुल भी पसंद नहीं था. फिर यदि ऐसा करने के लिए वह राजी हो जाती है तो जो तीसरा या तीसरी होगा या होगी, उस के साथ कैसा रिश्ता बनेगा. संजीव हमेशा उसे ओपेन माइंडेड होने की सलाह देता था. पर ओपेन माइंडेड होने का यह मतलब तो नहीं कि नैतिक मूल्यों को ताक पर रख दिया जाए. जो लोग ऐसे कृत्य में खुद को सहज पाते हैं, वे भले ही ऐसा करें. पर वह इस के लिए सहज नहीं हो पा रही थी.

एक दिन वह बैठी अखबार के पन्ने पलट रही थी कि एक स्तंभ पर उस की निगाह गई. इस में पाठक अपनी प्रेम से संबंधित समस्याओं की सलाह विशेषज्ञ से लेते थे. एक बड़ी ही विचित्र समस्या इस में उस ने पढ़ी. इस में एक लड़की ने अपने प्रेमी की कम आय होने के कारण आत्महीनता की भावना से ग्रसित होने के कारण सलाह मांगी थी. विशेषज्ञ ने बड़ा ही व्यावहारिक सुझाव दिया था. उसे उस का सुझाव बहुत ही अच्छा लगा था. उस ने देखा, स्तंभ के नीचे एक ईमेल पता दिया हुआ था और स्पष्ट आमंत्रण था पाठकों से शारीरिक और प्रेम से संबंधित समस्या का हल पाने के लिए.

उस ने ईमेल पता नोट किया और अपनी समस्या को विस्तार से लिख कर ईमेल कर दिया. अखबार औनलाइन उपलब्ध था. दूसरे दिन से ही प्रतिदिन वह अखबार को औनलाइन खोलती और उस कौलम को पढ़ने लगी. इस क्रम में अन्य कई लोगों की समस्याओं से वह रूबरू हुई. उसे आश्चर्य हुआ कि लोगों के पास अलगअलग तरह की समस्याएं हैं, कुछ तो बिलकुल ही विचित्र.

एक सप्ताह के बाद उस ने अपनी समस्या का समाधान अखबार में छपा पाया. समाधान कुछ इस प्रकार था-
“आप का बौयफ्रेंड आप से बहुतकुछ चाह सकता है. लेकिन आप को देखना है कि आप किस बात में सहज हैं. सही रिलेशनशिप वही है, जिस में दोनों पक्ष एकदूसरे का सम्मान करें. आप के बौयफ्रेंड को उस सीमा को मानना चाहिए, जो आप ने अपने लिए और उस के साथ अपने भविष्य के लिए तय कर रखा है. आप स्पष्ट रूप से उस से बात करें. उसे स्पष्ट रूप से बताएं कि आप उस की बात को क्यों नहीं मान सकतीं. ओपेन माइंडेड होने का मतलब यही है कि किसी भी मुद्दे के पक्ष और विपक्ष को समझा जाए और फिर उस पर सोचविचार कर सही निर्णय लिया जाए.”

अमिता को यह सुझाव पसंद आया. पहले उस ने विचार किया कि क्यों उसे उस का तिकड़ी वाला प्रस्ताव स्वीकार नहीं है. सब से पहले तो उस के मन में खयाल आया कि सैक्स सिर्फ दो पार्टनर के बीच होना चाहिए. तीसरा कोई भी बीच में नहीं आना चाहिए. यही कारण है कि सैक्स बिलकुल एकांत में किया जाता है. फिर यदि तीसरा या तीसरी को शामिल किया जाए तो आपसी संबंधों में दरार आ सकती है. हो सकता है कि उस के और संजीव में से कोई तीसरे की ओर आकर्षित हो जाए और फिर पूरा समीकरण बिगड़ जाए. पर ज्यादा महत्वपूर्ण उसे नैतिक आधार ही लगा.

अगली बार जब संजीव ने इस बारे में चर्चा की, तो उस ने स्पष्ट रूप से उसे अपना विचार बता दिया. साथ ही, यह भी बता दिया कि यदि उसे यह आइडिया आजमाना है, तो वह उस का साथ नहीं दे सकती. उसे डर था कि शायद संजीव नाराज हो कर उस का साथ छोड़ देगा. परंतु संजीव समझदार निकला. उस ने उस के तर्क को सुना और बात उस की समझ में आई. उस ने अपनी विचित्र मांग को तज कर अपनी प्रेमिका के साथ जीवन बिताने का निर्णय लिया.

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मिलन: क्या हिमालय और भावना की नई शुरुआत हो पाई

प्रांजल और हिमालय दोनों बचपन से ही दोस्त रहे. नौकरी व विवाह के बाद भी उन की निकटता बनी रही. प्रांजल की पत्नी भावना को हिमालय की पत्नी रचना का साथ भी अच्छा लगता. दोनों मित्रों की पत्नियां जबतब बतियाती रहतीं. प्रांजल की दोनों बेटियां मीता व गीता अपनी पढ़ाई लगभग पूरी कर चुकी थीं और बेटा उज्ज्वल अभी डाक्टरी के तीसरे वर्ष में पढ़ रहा था.

मीता की शादी में हिमालय अपने बेटे सौरभ व बेटी ऋचा के साथ मुंबई यथासमय पहुंच गए थे. दोनों परिवार के बच्चे जब एकदूसरे के साथ रहे तो संबंध और भी पक्के हो गए.

एक दिन अचानक प्रांजल को हिमालय से अत्यंत दुखद समाचार मिला. उस की पत्नी रचना रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर सीढि़यों से फिसल कर गिर जाने के कारण गंभीर रूप से घायल हो गई है. प्रांजल और भावना के मुंबई पहुंचने से पहले ही रचना की मृत्यु हो गई.

बचपन के मित्र के कष्ट को समझते हुए भी प्रांजल और भावना संवेदना के दो शब्द के अलावा कुछ भी समझा नहीं पाए. हिमालय दुखी व नितांत अकेले रह गए थे. उन की बेटी ऋचा ससुराल में थी और सौरभ की भी नौकरी दूसरे शहर में थी. लौटते हुए हिमालय से वे कह कर आए थे, ‘जब भी मन करे हमारे पास आ जाया करना…मन कुछ बदल जाएगा.’

प्रांजल के बेटे उज्ज्वल के विवाह पर हिमालय मित्र के आग्रह पर कुछ पहले आए थे. मीता और गीता के विवाह में वह पत्नी रचना के साथ आए थे…वे दिन आंखों के सामने बारबार आ जाते. प्रांजल और भावना उन के दुख को समझ रहे थे अत: उन्हें हर तरह से व्यस्त रखने का प्रयास करते ताकि मित्र अपनी पीड़ा को कुछ सीमा तक भुला सके.

बाद में हिमालय का मन अपने अकेलेपन से बहुत उचाट होता तो वह प्रांजल के पास ही आ जाते.

मुश्किल से 2 साल गुजरे होंगे कि प्रांजल भी गंभीर रूप से बीमार हो गए और केवल एक माह की बीमारी के बाद भावना अकेली रह गई.

बेटियां और उज्ज्वल भावना को बारीबारी से अपने साथ ले भी गए पर वह 3-4 महीने में घूमफिर कर दोबारा अपने घरौंदे में वापस आ गई…पति के साथ सुखदुख की यादों के बीच.

उसे घर में हर तरफ प्रांजल ही दिखाई पड़ते…कभी ऐसा आभास होता कि प्रांजल किचन में उस के पीछे आ कर खड़े हैं और दूसरे ही क्षण उसे लगता…जैसे प्रांजल उसे समझा रहे हैं कि मैं तुम से दूर नहीं हूं भावना बल्कि तुम्हारे बिलकुल पास हूं…और भावना चौंक पड़ती.

भावना का अपने बच्चों के पास मन नहीं लगा. जब हिमालय ने यह सुना तो हिम्मत कर के कुछ दिन का अवकाश ले कर भावना के पास आए. उन्हें देख कर भावना बिफर पड़ी…प्रांजल की यादें जो ताजा हो गईं…जब रचना नहीं रही…और हिमालय आते तो प्रांजल बारबार भावना से कहते, ‘मैं चाहता हूं जो चीजें नाश्ते व भोजन में हिमालय को पसंद हैं…वही बनें. जब तक वह हमारे साथ है हम उस की ही पसंद का खाना व नाश्ता करेंगे.’

भावना प्रांजल की बात इसलिए नहीं रखती कि हिमालय उस के पति के दोस्त हैं…बल्कि इस का दूसरा कारण भी था कि रचना की मृत्यु से हिमालय के प्रति उसे गहरी सहानुभूति हो गई थी. लेकिन अब? अब सबकुछ परिवर्तित रूप में था…अब भावना किचन में घुसती ही नहीं. हिमालय ही जो कुछ बना सकते थे, बना लेते पर खाते दोनों साथसाथ.

भावना ने काफी समय तक बातें भी न के बराबर कीं. हिमालय कहते तो वह तटस्थ सी सुनती. जवाब नपेतुले शब्दों में देती.

हिमालय स्वयं चोट खाए हुए थे इसलिए भावना की पीड़ा को समझते थे. वह उसे समझाने का प्रयास जरूर करते, ‘‘जीवन मृत्यु में किसी का दखल नहीं चलता. इनसान खुद परिस्थितियों के अनुसार जीवन व्यतीत करने को मजबूर है. घाव कुछ हलका होने पर इनसान स्वयं अपने आसपास छोटीमोटी खुशियां खोजने का प्रयास करे. हमें इस तथ्य को अपना कर ही चलना होगा, भावनाजी.’’

भावना की आंखों से बस, आंसू टपकते रहते…वह बोलती कुछ नहीं. हिमालय जाने लगे तो भावना से यह वादा जरूर लिया कि वह अपने खानेपीने का पूरा ध्यान रखेगी. मन ठीक नहीं है तो क्या तन को स्वस्थ रखना जरूरी है.

समय के मरहम से भावना का घाव भरा तो हिमालय का जबतब आना उसे अच्छा लगने लगा…बातें भी करनी शुरू कर दीं. नाश्ताभोजन भी उन के पसंद का बनाने लगी. हिमालय को भी भावना के यहां आना अच्छा लगता.

मीता, गीता व उज्ज्वल भावना से मिलने आए हुए थे. तभी हिमालय भी आ गए थे. बेटियां चाह रही थीं कि मां उन के साथ या भाई के साथ चलें लेकिन भावना तैयार नहीं हुईं. उन का कहना था कि उन्हें अपने इसी घर में अच्छा लगता है.

बच्चे मां को समझ रहे थे…जहां उन्हें अच्छा लगे वहीं रहें. हां, उन्हें इस बात का अंदाजा जरूर लग गया था कि हिमालय अंकल के यहां रहने से मां के मन को कुछ ठीक लगता है. अंकल बरसों से उन के पारिवारिक मित्र रहे हैं और काफी समय उन लोगों ने साथसाथ गुजारा भी है. मीता और उज्ज्वल सोच रहे थे कि हिमालय अंकल जितना भी मां के साथ रह लेते हैं, कम से कम उतने समय तो वे लोग मां की तरफ से निश्चिंत से रहते हैं.

वैसे बच्चे चाहते कि उन में से कोई एक मां के पास अवश्य रहे लेकिन जब यह संभव नहीं था तो वे हिमालय अंकल पर ही निर्भर होने लगे और साग्रह उन से कहते भी, ‘‘अंकल, हम मां पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डालना चाहते पर आप से आग्रह करते हैं कि उन का हालचाल पूछते रहेंगे. हम लोग भी यथासंभव शीघ्र आने का प्रयास करते रहेंगे.’’

एक दिन हिमालय ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘भावना, मैं समझता हूं कि तुम्हारा कष्ट ऐसा है जिस का भागीदार कोई नहीं हो सकता. फिर भी हिम्मत कर के कह रहा हूं…यदि आप अपने जीवन में किसी हैसियत से मुझे शामिल करना चाहो तो मैं आप की शर्तों के साथ आप को स्वीकार करने को सहर्ष तैयार हूं. इस से न केवल एक को बल्कि दोनों को सहारा और बल मिलेगा.’’

थोड़ा विराम दे कर हिमालय ने पुन: कहा, ‘‘आप के हर निर्णय का मैं सम्मान करूंगा. आप इस बात से भी निश्चिंत रहिए कि हमारी दोस्ती के रिश्ते पर कोई आंच नहीं आएगी.’’

भावना ने पलक उठा कर हिमालय की तरफ देखा. वह मन से यही चाहती थी, हिमालय की बात अपनी जगह सही है. अब वह भी खुद को प्रांजल के अभाव में अकेली और बेसहारा अनुभव करती है. वह कोई गलत अथवा अनुचित कदम उठाना नहीं चाहती…उस के समक्ष उस का परिवार है, बच्चे हैं और सब से बड़ा समाज है. हिमालय की बात का कुछ जवाब दिए बिना वह किचन की तरफ बढ़ गई. हिमालय ने भी फिर कुछ कहा नहीं.

हिमालय के बेटे सौरभ व बेटी ऋचा को यह पता था कि जब से मां मरी हैं पिताजी बहुत दुखी, उदास व नितांत अकेले हैं. यह बात दोनों बच्चे अच्छी तरह जानते थे कि पापा को प्रांजल अंकल और भावना आंटी के यहां जाना हमेशा ही अच्छा लगता रहा, और आज जब आंटी नितांत अकेली व दुखी हो गई हैं, तब भी.

सौरभ ने ही ऋचा से कहा, ‘‘क्यों न हम भावना आंटी के मन का अंदाजा लगाने की कोशिश करें. यदि उन के मन में पापा के लिए कोई जगह होगी तो हम उन से जरूर कुछ कहना चाहेंगे. आंटी का साथ पा कर पापा के दिन भी अच्छे से गुजर सकेंगे.’’

सौरभ और ऋचा ने भावना के पास जाने का निश्चय किया. हिमालय, भावना के यहां ही थे. अचानक सौरभ को फोन से पता चला कि भावना आंटी को सीरियस बीमारी है फिर तो दोनों बहनभाई तुरंत ही वहां के लिए निकल पड़े. मीता, गीता तथा उज्ज्वल का परिवार सब पहुंच चुके थे.

दरअसल, कई दिनों से भावना का मन ठीक नहीं था. उलझन और अनिश्चय से भरा अंतर्मन समुद्र मंथन सा मथ रहा था…कभी हिमालय की बात और अपनत्वपूर्ण व्यवहार उसे अपनी तरफ खींचता तो कभी पति के साथ बिताए दिन यादों को झकझोर देते…तो कभी जीवन में आया अकेलापन भी अपना कोई साथी ढूंढ़ता…सब तरफ से घिरे मन को भावना ने अच्छी तरह से टटोला, परखा तो यही लगा कि पति के अभाव में वह कुछ सीमा तक अकेली और दुखी जरूर है पर उसे किसी और बात का अभाव नहीं है.

दूसरी बात, वह हर कदम अपने बच्चों और परिवार को साथ ले कर ही चलना चाहेगी…सोचती हुई भावना ने अपने मन में निश्चय किया कि हिमालय जैसे अब तक प्रांजल के दोस्त रहे बस, वही दोस्ती का रिश्ता अब भी बना रहेगा.

अपने फैसले से संतुष्ट भावना ने तय किया कि कल सुबह वह हिमालय को उन की उस दिन कही बात के बारे में अपना फैसला जरूर सुना देगी.

लेकिन मन में तनाव के चलते रात को भावना का रक्तचाप काफी बढ़ जाने से उसे जबरदस्त हार्ट अटैक पड़ गया. हिमालय ने फौरन उसे अस्पताल में भरती कराया. डाक्टरों ने 72 घंटे उसे आईसीयू में रखा था. एक सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद ही भावना घर आ सकी.

15 दिनों तक मां के साथ रहने के बाद आफिस व बच्चों के स्कूल के चलते मीता, गीता और उज्ज्वल वापस जाने की तैयारी में लग गए थे. हिमालय के दोनों बच्चे सौरभ व ऋचा तो 2 दिन बाद ही चले गए थे. उज्ज्वल ने मां को ले जाना चाहा लेकिन भावना अभी इस स्थिति में नहीं थी कि सफर कर सके. बच्चे जानते थे कि मां की सेवा में हिमालय अंकल का अहम स्थान रहा, वह अभी भी भावना को अकेली छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं थे.

हिमालय का भावना के प्रति आत्मीयभाव व सहृदयता से की गई सेवा ने सिर्फ भावना के ही नहीं बल्कि दोनों के बच्चों के अंतर्मन को गहराइयों से छू लिया था. और अपनी मां व पिता के प्रति एक सुखद फैसला लेने को प्रेरित किया. जाने से पहले मीता और उज्ज्वल ने सौरभ और ऋचा से फोन पर लंबी बातचीत की. इसी के साथ उन्होंने अपने सोचे फैसले के प्रति मन को पक्का भी कर लिया.

एक दिन भावना ने देखा कि अचानक उस के बच्चों के साथ हिमालय के भी दोनों बच्चे आए हैं. उस ने सब से बेहद अनुनय के साथ कहा, ‘‘तुम सब ने तथा हिमालय अंकल ने मेरी बहुत सेवा की. शायद उन के यहां होने से ही मुझे दूसरा जीवन मिला है. यदि उस दिन हिमालय अंकल यहां न होते तो…’’

मीता ने मां के होंठों पर हाथ रख कर आगे बोलने से रोक दिया. अचानक उसे याद आया जब 11 दिसंबर को उस की शादी में हिमालय अंकल सपरिवार आए थे तो पापा ने उन से मुसकरा कर कहा था, ‘जानते हो हिमालय, मैं ने मीता की शादी के लिए यह दिन चुन कर क्यों रखा? यह बड़ा शुभ दिन है…हमारी भावना का जन्मदिन जो है.’

‘तो यह बात तुम ने आज तक मुझ से छिपा कर क्यों रखी? और साथ में यह भी भूल गए कि 11 दिसंबर को मेरा भी जन्मदिन होता है.’ हिमालय अंकल के इतना कहने के बाद प्रांजल ने खुश हो कर उन को बांहों में भर लिया था. फिर तो हिमालय अंकल और मां को बधाई देने वालों का घर में तांता सा लग गया था.

मीता ने कहा, ‘‘मां, जब से मेरी शादी हुई है मैं अपने विवाह की वर्षगांठ पर कभी आप के पास नहीं रही. इस बार मेरी दिली इच्छा है कि इस शुभ दिन का जश्न मैं और यश आप के साथ मनाएं. और मैं ने तो अपनी शादी की इस सालगिरह के लिए होटल भी बुक करा लिया है. कुछ खासखास मेहमानों के साथ हिमालय अंकल, सौरभ भैया तथा ऋचा भी रहेगी. मां, उस दिन आप का भी तो जन्मदिन होता है…हम दोनों यह दिन सुंदरता से एकसाथ मनाया करेंगे.’’

भावना को बेटी की बात सुन कर अच्छा लगा, इसी बहाने घर में कुछ दिन तो रौनक रहेगी. उसे याद था कि इस दिन हिमालय का भी जन्मदिन होता है, लेकिन उस ने मीता से इस का कोई जिक्र नहीं किया.

निश्चित दिन से एक दिन पहले ही ज्यादातर लोग आ गए, इसीलिए अगले दिन सुबह से ही घर में चहलपहल का माहौल बना हुआ था. जहां मीता और यश को सब बधाई दे रहे थे वहीं भावना और हिमालय भी अपनेअपने जन्मदिन की बधाई स्वीकार कर रहे थे.

संध्या समय घर के सभी लोग होटल पहुंच गए. होटल में आकर्षक सजावट की गई थी. एक तरफ शहनाई वादन की व्यवस्था की गई थी. विवाह की वर्षगांठ के मौके पर मीता और यश की जयमाल होने के साथ ही तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. तभी मुसकराती मीता हिमालय के पास आ कर आग्रह पूर्वक बोली, ‘‘प्लीज अंकल, एक मिनट के लिए उधर मंच पर चलिए.’’

हिमालय भी बिना कुछ सोचेसमझे उस के साथ हो लिए. दूसरी तरफ ऋचा भावना को साथ ले कर मंच पर आई.

मीता और ऋचा ने आमनेसामने खड़े भावना और हिमालय के हाथों में बड़ा सा फूलों का हार पकड़ाते हुए हंस कर कहा, ‘‘जानते हैं अंकल और आंटी, आप इस का क्या करेंगे?’’

‘‘हां, तुम को और यशजी को शादी की वर्षगांठ की खुशी में पहनाना है,’’ हिमालय ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं, आज मम्मी का जन्मदिन है. इस उपलक्ष्य में यह हार आप उन को पहनाएंगे,’’ मीता ने हंस कर कहा.

‘‘और आंटी, आज मेरे पापा का भी जन्मदिन है,’’ मीता के कहने के तुरंत बाद ऋचा ने कहा, ‘‘इस खुशी में आप को हार पापा को पहनाना है.’’

अपनेअपने हाथों में हार पकड़े हिमालय और भावना आश्चर्य से भर कर बच्चों की तरफ देखने लगे. अपने लिए बच्चों की इस खूबसूरत कोशिश पर दोनों का दिल भर आया और उन्होंने बच्चों का मन रखने के लिए एकदूसरे को जयमाला पहना कर रस्म अदा कर दी.

मीता और ऋचा ने तालियां बजाते हुए सब के सामने कहा, ‘‘अब आप दोनों दोस्त से आगे एकदूसरे को स्वीकार कर के एक दूसरे के हो कर रहेंगे. हमारा यह प्रयास बस, आप लोगों को अपनी स्थायी पीड़ा और अकेलेपन से कुछ सीमा तक निजात दिलाने के लिए किया गया है.’’

बच्चों के साहस और प्रयास की सब ने मुक्त कंठ से सराहना की. तालियों की गड़गड़ाहट से होटल का हाल गूंज उठा. हिमालय ने अनुग्रहीत नजरों से बच्चों की तरफ देखा…जिन्होंने अत्यंत खूबसूरती से सब को साक्षी बना कर उन के मिलन को स्वीकार किया था.

आग और धुआं: क्या दूर हो पाई प्रिया की गलतफहमी

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बीच राह में-भाग 3 : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.

‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.

‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझो सा गया. सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी.

पूरे 20 साल में इकट्ठी हुई

यादों को एक रात में जी

लेना संभव नहीं. वक्त अपनी

रफ्तार से चलता रहा और सुबह

हो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’

‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गला

रुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.

बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’

‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’

‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा. मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मु?ो बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं. मु?ो अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’

10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के

साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझो रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझो में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहने

का कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझो जरूर प्रतीत हो

रहा था.जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.

‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.

‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझो सा गया. सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी.

पूरे 20 साल में इकट्ठी हुई

यादों को एक रात में जी

लेना संभव नहीं. वक्त अपनी

रफ्तार से चलता रहा और सुबह

हो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’

‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गला

रुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.

बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’

‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’

‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा. मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मु?ो बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं. मुझे अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’

10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के

साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझो रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझो में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहने

का कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझो जरूर प्रतीत हो रहा था.

बीच राह में-भाग 1 : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

सिस्टरअनिता की नजरें बारबार प्राइवेट कमरा नंबर-1 की तरफ उठ जाती थीं. उस कमरे  में इसी अस्पताल के नामी हार्ट सर्जन डाक्टर आनंद भरती थे.

‘‘अब आप इतनी चिंता क्यों कर रही हैं? डाक्टर आनंद ठीक

हो कर कल सुबह घर जा तो रहे हैं,’’ साथ बैठी सिस्टर शारदा ने अनिता की टैंशन कम करने की कोशिश की.

‘‘मैं ठीक हूं… कई दिनों से नींद पूरी न होने के कारण आंखें लाल हो रही हैं,’’ अनिता बोली.

‘‘कुछ देर रैस्टरूम में जा

कर आराम कर लो, मैं यहां सब संभाल लूंगी.’’

‘‘नहीं, मैं कुछ देर यहीं सुस्ता लेती हूं,’’ कह अनिता ने आंखें बंद कर सिर मेज पर टिका लिया.

डाक्टर आनंद से अनिता का परिचय करीब 20 साल पुराना था. इतने लंबे समय में इकट्ठी हो गई कई यादें उस के स्मृतिपटल पर आंखें बंद करते ही घूमने लगीं…

पहली बार वह डाक्टर आनंद की नजरों में औपरेशन थिएटर में आई थी. उस दिन वह सीनियर सिस्टर को असिस्ट कर रही थी. तब उस ने डाक्टर आनंद का ध्यान एक महत्त्वपूर्ण बात की तरफ दिलाया था, ‘‘सर, पेशैंट का खून नीला पड़ता जा रहा है.’’

डाक्टर आनंद ने डाक्टर

नीरज की तरफ नाराजगी भरे अंदाज में देखा.

डाक्टर नीरज की नजर औक्सीजन सिलैंडर की तरफ गई. पर उस का रैग्यूलेटर ठीक प्रैशर दिखा रहा था.

‘‘यह रैग्यूलेटर खराब है… जल्दी से सिलैंडर चेंज करो,’’ डाक्टर आनंद का यह आदेश सुन कर वहां खलबली मच गई.

जब सिलैंडर बदल दिया गया तब डाक्टर आनंद एक बार

अनिता के चेहरे की तरफ ध्यान से देखने के बाद बोले, ‘‘गुड औब्जर्वेशन, सिस्टर… थैंकयू.’’

औपरेशन समाप्त होने के कुछ समय बाद डाक्टर आनंद ने अनिता को अपने चैंबर में बुला कर प्रशंसा भरी आवाज में कहा, ‘‘आज तुम्हारी सजगता ने एक मरीज की जान बचाई है.’’

‘‘थैंकयू, सर.’’

‘‘बैठ जाओ, प्लीज… चाय पी कर जाना.’’

‘‘थैंकयू, सर,’’ अपने दिल की धड़कनों को काबू में रखने की कोशिश करते हुए अनिता सामने वाली कुरसी पर बैठ गई.

उस दिन के बाद अनिता अपने खाली समय में डाक्टर आनंद के चैंबर में ही नजर आती. वे अपने मरीजों के ठीक होने में आ रही रुकावटों की उस के साथ काफी चर्चा करते. अगर अनिता की समझो में उन की कुछ बातें नहीं भी आतीं तो भी वह अपने ध्यान को इधरउधर भटकने नहीं देती.

सब यह मानते थे कि उन से अनिता बहुत कुछ सीख रही है. उस की गिनती बेहद काबिल नर्सों में होती, पर उस की सहेलियां डाक्टर आनंद के साथ उस के अजीब से रिश्ते को ले कर उस

का मजाक भी उड़ाती थीं, ‘‘अरे, तुम दोनों केस डिस्कस करने के अलावा कुछ मौजमस्ती भी करते हो या नहीं?’’

‘‘वे कमजोर चरित्र के इंसान नहीं हैं,’’ अनिता उन की बातों का बुरा न मान हंस कर जवाब देती.

‘‘चरित्र कमजोर नहीं है तो क्या कुछ और कमजोर है?’’ वे उसे और ज्यादा छेड़तीं.

‘‘मुझो से हर वक्त ऐसी बेकार की बातें न किया करो,’’ कभीकभी अनिता खीज उठती.

‘‘सारे जूनियर डाक्टर जिस हसीना के लिए लार टपकाते हैं, वह फंसी भी तो एक सनकी और सीनियर डाक्टर से… अरी, उन के साथ बेकार समय न बरबाद कर… तेरी रैपुटेशन इतनी अच्छी है कि कोई तेरा दीवाना डाक्टर तुझ से शादी करने को भी तैयार हो जाएगा,’’ उन दिनों अनिता को ऐसी सलाहें अपनी सहेलियों व अन्य सीनियर नर्सों से आए दिन सुनने को मिलती थीं.

अनिता के मन में शादी करने का विचार उठता ही नहीं था. शादी को टालने की बात को ले कर उस के घर वाले भी उस से नाराज रहने लगे थे. उस के लिए किसी भी अच्छे रिश्ते का आना उन के साथ तकरार का कारण बन जाता.

‘‘आप मेरे लिए रिश्ता न ढूंढ़ो… नर्स के साथ हर आदमी नहीं निभा सकता है. जब कोई अच्छा, समझोदार लड़का मुझे मिल जाएगा, मैं उसे आप सब से मिलवाने ले आऊंगी,’’ अनिता की इस दलील को सुन उस का भाई व मातापिता बहुत गुस्सा होते.

‘‘अब तू 23 साल की तो हो गई है… और कितनी देर लगाएगी उस अच्छे लड़के को ढूंढ़ने में?’’ उन सब के ऐसे सवालों को टालने में वह कुशल होती चली गई थी.

अनिता को अच्छा लड़का तो तब मिलता जब वह डाक्टर आनंद के अलावा किसी और को समय देती. अगर उस की सहेलियां उस की दोस्ती किसी डाक्टर या अन्य काबिल युवक

से कराने की कोशिश करतीं तो अनिता बड़े

रूखे से अंदाज में उस युवक के साथ पेश

आती. हार कर वह युवक उस में दिलचस्पी लेना छोड़ देता.

डाक्टर आनंद ने भी एक दिन अपने

चैंबर में उस के साथ

चाय पीते हुए पूछ ही लिया, ‘‘तुम शादी कब कर रही हो?’’

‘‘मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं है, सर.’’

‘‘यह क्या कह रही हो? शादी करने का… मां बनने का तो हर लड़की का मन करता है.’’

‘‘मु?ो नहीं लगता कि मेरा मनभाता लड़का कभी मेरी जिंदगी में आएगा.’’

‘‘जरा मु?ो भी तो बताओ कि कैसा होना चाहिए तुम्हारे सपनों का राजकुमार?’’

‘‘उसे बिलकुल आप के जैसा होना चाहिए, सर,’’ अनिता ने शरारती मुसकान होंठों पर लाते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या मतलब?’’ डाक्टर आनंद चौंक कर उस के चेहरे को ध्यान से पढ़ने लगे.

‘‘मतलब यह कि उसे आप की तरह संवेदनशील, समझोदार, अपने काम के लिए पूरी तरह समर्पित होना चाहिए.’’

‘‘अरे, ज्यादा मीनमेख निकालना छोड़

कर किसी भी अच्छे लड़के से शादी कर लो.

तुम बहुत समझोदार हो… जिस से भी शादी करोगी, उस में ये सब गुण तुम्हारा साथ पा कर पैदा हो जाएंगे.’’

‘‘सौरी सर, मैं इस मामले में रिस्क नहीं ले सकती… वैसे मैं कभीकभी सोचती हूं…’’

‘‘क्या?’’ उसे अपनी बात पूरी न करते देख डाक्टर आनंद ने पूछा.

‘‘यही कि अगर आप शादीशुदा न होते तो मेरे सामने लड़का ढूंढ़ने की समस्या ही नहीं

खड़ी होती.’’

‘‘अनिता, मैं बस तुम्हें इतना याद दिलाना चाहूंगा कि मैं जब जवान हुआ था तब तुम

पैदा भी नहीं हुई थीं,’’ अपने मन की बेचैनी छिपाने को डाक्टर आनंद ने यह बात मुसकराते हुए कही.

‘‘मेरे दिमाग में ही कुछ खोट होगी सर. हमारे बीच उम्र का 20 साल का अंतर होने के बावजूद मैं आप को इस पूरे अस्पताल का सब

से स्मार्ट पुरुष पता नहीं क्यों मानती हूं?’’ अपने चेहरे पर नाटकीय गंभीरता ला कर अनिता ने

यह सवाल पूछा और फिर खिलखिला कर

हंस पड़ी.

‘‘शरारती लड़की, मु?ो ही ढूंढ़ना

पड़ेगा तुम्हारे लिए कोई

अच्छा रिश्ता.’’

‘‘सर, शीशे के सामने खड़े हो कर इस बारे में सोचविचार करोगे तो मेरी पसंद आसानी से पकड़ में आ जाएगी.’’

बीच राह में-भाग 2 : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

अनिता की पहल पर उन के बीच ऐसा हंसीमजाक शुरू हो गया. पर डाक्टर आनंद ने कभी उस का प्रेमी बनने की कोशिश नहीं की. डाक्टर आनंद ने जब अपनी शादी की 25वीं सालगिरह मनाई तब लगभग पूरे अस्पताल को अपनी कोठी पर दावत में बुलाया. वहां जब अनिता नहीं पहुंची, तो सब को बहुत हैरानी हुई. अनिता ने अपने न आने की बात डाक्टर आनंद को पहले ही बता दी थी. ‘‘तुम पार्टी में क्यों नहीं आओगी?’’ डाक्टर आनंद उस की बात सुन कर उलझोन का शिकार बन गए थे.

‘‘सर, मेरी और आप की दोस्ती अस्पताल के अंदर ही ठीक है. यहां आप के सब से ज्यादा नजदीक मैं ही हूं. आप के घर में बात अलग होगी. वहां आप के ऊपर मुझो से ज्यादा अधिकार रखने वाले बहुत लोग होंगे और यह बात मेरा दिल सहन नहीं कर पाएगा,’’ अनिता ने अपने मन की बात साफसाफ बता दी.

‘‘यह तो समझोदारी वाली बात नहीं हुई,’’ डाक्टर आनंद ने सिर्फ इतना ही कहा और

फिर उस पर पार्टी में शामिल होने को जोर

नहीं डाला.

‘‘मैं सिरफिरी लड़की हूं, इतना तो आप मेरे बारे में समझो ही लीजिए,’’ खुल कर मुसकरा रही अनिता की नजरों का सामना नहीं कर पाए थे उस शाम डाक्टर आनंद और सोच में डूबे से वार्ड का राउंड लेने निकल गए.

उन के एक मरीज योगेशजी ने अपने बेटे की शादी में डाक्टर आनंद और अनिता दोनों को बहुत जोर दे कर बुलाया था. वहां से लौटते हुए देर हो गई तो दोनों को अपने घर ले आए थे. उन के रुकने की व्यवस्था उन्होंने 2 गैस्टरूमों में करवा दी थी. उस रात अनिता उन के कमरे में चलीआई. बोली, ‘‘मैं आज आप से दूर नहीं सोना चाहती हूं,’’ और फिर उन की छाती से जा लगी. डाक्टर आनंद कुछ पलों तक पत्थर की मूर्ति से खड़े रहे. फिर जब अनिता ने उन की आंखों में प्यार से झोंका तो उन्होंने उसे अपनी बांहों के मजबूत बंधन में कैद कर लिया. डाक्टर आनंद उस की जिंदगी में आने वाले पहले पुरुष थे. प्यार की वह रात इस का सुबूत छोड़ गई थी.

‘‘आई एम वैरी हैप्पी सर कि आप को मैं वह दे पाई हूं जो दिल के करीबी को ही सौंपना चाहिए. मैं ने जो किया है वह अपनी खुशियों की खातिर किया है,’’ बाद में अनिता ने ऐसा कह कर उन्हें किसी तरह के अपराधबोध में नहीं उलझोने दिया था.

‘‘मुझे फिर भी बहुत अजीब सा लग

रहा है,’’ डाक्टर आनंद काफी बेचैन नजर आ

रहे थे.

‘‘आप अपने को परेशान मत कीजिए, प्लीज.’’

‘‘अनिता, तुम ने मु?ो अपना सब कुछ सौंप दिया है पर मैं बदले में तुम्हें कुछ नहीं दे सकता हूं… न शादी, न समाज में इज्जत… उलटा मैं तुम्हारी बदनामी का कारण…’’

अनिता ने उन के मुंह पर हाथ रख उन्हें आगे नहीं बोलने दिया और खुद भावुक हो कर कहा, ‘‘आप बेकार की बातें सोच कर परेशान मत होइए… जो हुआ है उसे मैं ने चाहा है और तभी वह हुआ है. मैं आप के साथ जुड़ कर बहुत सुखी और खुश हूं. रोज सुबह उठ कर आप के बारे में सोचती हूं तो मन जीने के उत्साह से भर जाता है. आई लव यू, सर.’’

‘‘पता नहीं यह रिश्ता कब तक चलेगा,

कैसे चलेगा?’’ डाक्टर आनंद ने उस का माथा चूमने के बाद अपने मन की चिंता व्यक्त की.

‘‘मेरी दिली इच्छा है कि हमारा यह रिश्ता मेरी आखिरी सांस तक चले,’’ अनिता ने उन की छाती पर सिर टिकाया और संतुष्ट अंदाज में आंखें बंद कर लीं.

‘‘तुम से पहले तो मेरी सांसें बंद होंगी,

माई स्वीटहार्ट.’’

‘‘आप 100 साल और मैं 80 साल तक जिऊंगी, जनाब और फिर हम दोनों एक ही दिन इस दुनिया से विदा लें, तो कैसा रहेगा?’’ अनिता एकाएक हंस पड़ी तो डाक्टर आनंद भी मुसकराने को मजबूर हो गए.

दोनों अब महीने में 1-2 बार योगेशजी की कोठी में ही मिलते. उन के अलावा उन

दोनों के बीच बने प्रेमसंबंध का कोई और राजदार नहींथा. डाक्टर आनंद की पत्नी सीमा भी जब

कभी उस से किसी पार्टी में मिलीं, हमेशा हंस कर मिलीं.

‘‘मेरी पत्नी कहती है कि मैं धीरेधीरे बूढ़ा होता जा रहा हूं. वह समझोती है कि जब तक अंदर ताकत है, मैं उस के साथ खूब मजे कर लूं… मैं क्या बूढ़ा हो गया हूं?’’ एक रात अनिता को जी भर के प्यार करने के बाद डाक्टर आनंद ने उस से हंसते हुए पूछा.

‘‘मु?ो किसी और के साथ सोने का तो अनुभव नहीं है पर जो कुछ सहेलियों से सुना है और इंटरनैट पर देखा है, उस के हिसाब से तो आप जवानों को मात कर देने वाली जवानी के मालिक हो,’’ अनिता ने उन की दिल से तारीफ की तो वे बहुत खुश हुए.

डाक्टर आनंद ने 3 बार नए अस्पतालों में काम करना शुरू किया और तीनों बार 2 महीनों के अंदरअंदर ही अनिता ने भी उन्हीं अस्पताल में नौकरी शुरू कर ली. दिल के औपरेशन के बाद मरीज की देखभाल करने की वह विशेषज्ञा समझो जाती थी, इसलिए अस्पताल वाले उसे खुशी से रख लेते थे.

सीनियर होने के साथ उसे रहने के

लिए फ्लैट मिलने लगा पर

डाक्टर आनंद ने एक रात भी कभी उस के फ्लैट में नहीं गुजारी.

‘‘मैं नहीं चाहता हूं कि मेरे कारण कभी कोई तुम्हारा अपमान करे… अगर कभी ऐसा हुआ तो मु?ो तुम्हारे साथ सारे संबंध तोड़ने पड़ेंगे,’’ डाक्टर आनंद की इस चेतावनी को सुनने के बाद अनिता ने उन पर फिर कभी फ्लैट में आने को दबाव नहीं बनाया.

वह उन के लिए कभीकभी खाने की मनपसंद चीज बना कर ले जाती थी. उन्हें खासकर आलू के परांठे और खीर बहुत पसंद थी. जब भी कोई खास मौका होता तो डाक्टर आनंद के कक्ष में दोनों इन का लुत्फ उठाते.

जिस इंसान को केंद्र मान कर 20 साल से अनिता का सारा जीवन घूम रहा था, उसे

अचानक दिल का तेज दौरा पड़ा था. उन की कोठी से रात के 11 बजे उन्हें ऐंबुलैंस से आईसीयू में लाया गया था. अनिता को जब

यह खबर मिली तो वह फौरन अस्पताल पहुंच

गई थी.

डाक्टर आनंद उस के प्रेरणास्रोत, मागर्दशक, प्रेमी और हमसफर थे. उन्हें असहाय हालत में आईसीयू में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ते देख वह रो पड़ी थी, ‘‘डाक्टर साहब तुम्हें बहुत काबिल मानते हैं, अनिता. उन्हें स्वस्थ कर के

मु?ो सौंपने की जिम्मेदारी तुम्हारी है,’’ आईसीयू के बाहर सीमा भी उस के गले लग कर बहुत

रोई थी.

सीमा की खास प्रार्थना पर उसे डाक्टर आनंद की देखभाल पर लगाया गया था.

जब तक वे खतरे में रहे, तब तक किसी ने अनिता की आंखों में आंसू की 1 बूंद नहीं देखी थी. जिस दिन केस इंचार्ज डाक्टर राजीव ने उन्हें खतरे से बाहर बताया, उस रात वह अपने फ्लैट के एकांत में फूटफूट कर रोई थी.

‘‘डाक्टर आनंद को दिल का दौरा पड़ा था. उन्हें लंबे समय तक आराम करना पड़ेगा. वे अब 60 के तो हो चले हैं. मुझो नहीं लगता कि वे अब ड्यूटी पर कभी लौट सकेंगे,’’ डाक्टर राजीव की ये बातें हथौड़े सी उस के दिमाग में सारी रात पड़ती रही थीं.

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