उसे किस ने मारा: क्या हुआ था आकाश के साथ

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उसे किस ने मारा- भाग 3: क्या हुआ था आकाश के साथ

इसी की आशंका जाहिर करते हुए मैं ने जबजब दीपाली को समझाना चाहा तबतब एक ही उत्तर मिलता, ‘यह बात मैं भी समझती हूं वसुधा, पर केवल दालरोटी से ही तो काम नहीं चलता. अभी बच्चे छोटे हैं, बड़े होंगे तो उन की पढ़ाई, शादीविवाह में भी तो खर्चा होगा, अगर अभी से कुछ बचत नहीं कर पाए तो आगे कैसे होगा.

रोधो कर जिंदगी घिसटती ही गई. पहला झटका आकाश को तब लगा जब उस के पिताजी को हार्ट अटैक आया. डाक्टर ने आकाश से पिता की बाईपास सर्जरी करवाने की सलाह दी. उस समय आकाश के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह खुद के खर्चे पर उन का इलाज करवा पाता. उस के पिताजी उस पर ही आश्रित थे, अत: कानून के अनुसार उन की बीमारी का खर्चा आकाश को कंपनी से मिलना था. उस ने एडवांस के लिए आवेदन कर दिया, पर कागजी खानापूर्ति में ही लगभग 2 महीने निकल गए.

आकाश पिताजी को ले कर अपोलो अस्पताल गया. आपरेशन के पूर्व के टेस्ट चल रहे थे कि उन्हें दूसरा अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका. डाक्टरों ने सिर्फ इतना ही कहा कि इन्हें लाने में देर हो गई.

मां पिताजी से बिछड़ने का दुख सह नहीं पाईं और कुछ ही महीनों के अंतर पर उन की भी मृत्यु हो गई.

आकाश टूट गया था. उसे इस बात का ज्यादा दर्द था कि पैसों के अभाव में वह अपने पिता का उचित उपचार नहीं करा पाया. जबजब इस बात से उस का मन उद्वेलित होता, पिताजी की सीख उस के इरादों को और मजबूत कर देती. अंगरेजी की एक कहावत है ‘ग्रिन एंड बियर’ यानी सहो और मुसकराओ, यही उस के जीने का संबल बन गई थी.

मांपिताजी को तो वह खो चुका था. पल्लव तो अभी छोटा था पर अब बड़ी होती अपनी बेटी की ठीक से परवरिश न कर पाने का दोष भी उस पर लगने लगा था. डोनेशन की मोटी मांग के लिए रकम वह न जुटा पाने के कारण उस स्कूल में बेटी स्मिता का दाखिला नहीं करा पाया जिस में कि दीपाली चाहती थी.

जिस राह पर आकाश चल रहा था उस पर चलने के लिए उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही थी, दुख तो इस बात का था कि उस के अपने ही उसे नहीं समझ पा रहे थे. तनाव के साथ संबंधों में आती दूरी ने उसे तोड़ कर रख दिया. मन ही मन आदर्श और व्यावहारिकता में इतना संघर्ष होने लगा कि वह हाई ब्लडप्रेशर का मरीज बन गया.

अपने ही अंत:कवच में आकाश ने खुद को कैद कर लिया पर दीपाली ने उस की न कोई परवा की और न ही पति को समझना चाहा. उसे तो बस, अपने आकांक्षाओं के आकाश को सजाने के लिए धन चाहिए था. वह रोकताटोकता तो दीपाली सीधे कह देती, ‘अगर तुम अपने वेतन से नहीं कर पाते हो तो लोन ले लो. जिस समाज में रहते हैं उस समाज के अनुसार तो रहना ही होगा. आखिर हमारा भी कोई स्टेटस है या नहीं, तुम्हारे जूनियर भी तुम से अच्छी तरह रहते हैं पर तुम तो स्वयं को बदलना ही नहीं चाहते.’

यह वही दीपाली थी जिस ने मधुयामिनी की रात साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, सुखदुख में साथ निभाने का वादा किया था. पर जमाने की कू्रर आंधी ने उन्हें इतना दूर कर दिया कि जब मिलते तो लगता अपरिचित हैं. बस, एहसास भर ही रह गया था. बच्चे भी सदा मां का ही पक्ष लेते. मानो वह अपने ही घर में परित्यक्त सा हो गया था.

अपनी लड़ाई आकाश स्वयं लड़ रहा था. प्रमोशन के लिए इंटरव्यू काल आया. इंटरव्यू भी अच्छा ही रहा. पैनल में उस का नाम है, यह पता चलते ही कुछ लोगों ने बधाई देनी भी शुरू कर दी पर जब प्रमोशन लिस्ट निकली तो उस में उस का नाम नहीं था, देख कर वह तो क्या पहले से बधाई देने वाले भी चौंक गए. पता चला कि उस का नाम विजीलेंस से क्लीयर नहीं हुआ है.

उस पर एक सप्लायर कंपनी को फेवर करने का आरोप लगा है, इस के लिए चार्जशीट दायर कर दी गई है. वैसे तो आकाश फाइल पूरी तरह पढ़ कर साइन किया करता था पर यहां न जाने कैसे चूक हो गई. रेट और क्वालिटी आदि की स्कू्रटनी वह अपने जूनियर से करवाया करता था. उन के द्वारा पेश फाइल पर जब वह साइन करता तभी आर्डर प्लेस होता था.

इस फाइल में कम रेट की उपेक्षा कर अधिक रेट वाले को सामान की गुणवत्ता के आधार पर उचित ठहराते हुए आर्डर प्लेस करने की सिफारिश की गई थी. साइन करते हुए आकाश यह भूल गया था कि वह किसी प्राइवेट कंपनी में नहीं एक सरकारी कंपनी में काम करता है जहां सामान की क्वालिटी पर नहीं सामान के रेट पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.

नियम तो नियम है. इसी बात को आधार बना कर कम रेट वाले कांटे्रक्टर ने आकाश को दोषी ठहराते हुए एक शिकायती पत्र विजीलेंस को भेज दिया था.

नियमों के अनुसार तो गलती उन से हुई थी क्योंकि उन्होंने नियमों की अनदेखी की थी पर उस में उन का अपना कोई स्वार्थ नहीं था वह तो सिर्फ बनने वाले सामान की क्वालिटी में सुधार लाना चाहता था.

आफिस में कानाफूसी प्रारंभ हो गई, ‘बड़े ईमानदार बनते थे. आखिर दूध का दूध पानी का पानी हो ही गया न.’

‘अरे, भाई ऐसे ही लोगों के कारण हमारा विभाग बदनाम है. करता कोई है, भरता कोई है.’

दीपाली के कानों तक जब यह बात पहुंची तो वह तिलमिला कर बोली, ‘तुम तो कहते थे कि मैं किसी का फेवर नहीं करता. जो ठीक होता है वही करता हूं, फिर यह गलती कैसे हो गई. कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम मुझ से छिपा कर पैसा कहीं और रख रहे हो.’

उस के बाद उस से कुछ सुना नहीं गया, उसी रात उसे जो हार्ट अटैक आया. हफ्ते भर जीवनमृत्यु से जूझने के बाद आखिर उस ने दम तोड़ ही दिया.

खबर सुन कर वसुधा एवं सुभाष, आकाश के साथ बिताए खुशनुमा पलों को आंखों में संजोए आ गए. सदा शिकायतों का पुलिंदा पकड़े दीपाली को इस तरह रोते देख कर, आंखें नम हो आई थीं. पर बारबार मन में यही आ रहा था कि सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया?

मां को रोते देख कर मासूम बच्चे अलग एक कोने में सहमे से दुबके खड़े थे, शायद उन की समझ में नहीं आ रहा कि मां रो क्यों रही हैं तथा पापा को हुआ क्या है. मां को रोता देख कर बीचबीच में बच्चे भी रोने लगते. उन्हें ऐसे सहमा देख कर, दीपाली स्वयं को रोक नहीं पाई तथा उन्हें सीने से चिपका कर रो पड़ी. उसे रोता देख कर नन्हा पल्लव बोला, ‘आंटी, ममा भी रो रही हैं और आप भी लेकिन क्यों. पापा को हुआ क्या है, वह चुपचाप क्यों लेटे हैं, बोलते क्यों नहीं हैं?’

उस की मासूमियत भरे प्रश्न का मैं क्या जवाब देती पर इतना अवश्य सोचने को मजबूर हो गई थी कि बच्चों से उन की मासूमियत छीनने का जिम्मेदार कौन है? एक जिंदादिल, उसूलों के पक्के इनसान को किस ने मारा.

उसे किस ने मारा- भाग 2: क्या हुआ था आकाश के साथ

‘स्वयं देख लीजिए सर.’

पैकेट खोला तो उस के अंदर रखी रकम देख कर आकाश का खून जम गया.

‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, यह रकम मुझे पकड़ाने की.’

‘सर, आप नए हैं, इसलिए जानते नहीं हैं, यह आप का हिस्सा है.’

‘पर मैं इसे नहीं ले सकता.’

‘यह आप की मर्जी सर, पर ऐसा कर के आप बहुत बड़ी भूल करेंगे. आखिर घर आई लक्ष्मी को कोई ऐसे ही नहीं लौटाता है.’

‘अब तुम यहां से जाओ वरना मैं पुलिस को बुलवा कर तुम्हें रिश्वत देने के आरोप में गिरफ्तार करवा दूंगा.’

‘ऐसी गलती मत कीजिएगा. यह आरोप तो मैं आप पर भी लगा सकता हूं,’ निर्लज्जता से मुसकराते हुए वह बोला.

अगले दिन आकाश ने अपने सहयोगी से बात की तो वह बोला, ‘इस में तुम या मैं कुछ नहीं कर सकते. यह तो वर्षों से चला आ रहा है. जो भी इस में अड़ंगा डालने का प्रयत्न करता है उस का या तो स्थानांतरण करवा देते हैं या फिर झूठे आरोप में फंसा कर घर बैठने को मजबूर कर देते हैं, वैसे भी घर आई लक्ष्मी को दुत्कारना मूर्खता है.’

उस ने उसी समय निर्णय लिया था कि लोग चाहे जो भी करें पर वह इस पाप की कमाई को हाथ नहीं लगाएगा. वैसे भी पहली बार नौकरी पर जाने से पहले जब वह पिताजी से आशीर्वाद लेने गया था, तो उन्होंने कहा था, ‘बेटा, जिंदगी की डगर बड़ी कठिन है, जो कठिनाइयों को पार कर के आगे बढ़ता जाता है निश्चय ही सफल होता है. कामनाओं की पूर्ति के लिए ऐसा कोई काम मत करना जिस के लिए तुम्हें शर्मिंदा होना पड़े. जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाना.’

वह उन की बातों को दिल में उतार कर जीवन की नई डगर पर नई आशाओं के साथ चल पड़ा था. अपनी पत्नी दीपाली को अपना फैसला सुनाया तो उस ने भी उस की बात का समर्थन कर दिया. तब उसे लगा था कि जीवनसाथी का सहयोग जीवन की कठिन से कठिन राहों पर चलने की प्रेरणा देता है.

काम को आकाश ने बोझ समझ कर नहीं बल्कि अपनी जिम्मेदारी समझ कर अपनाया था, इसलिए काम को संपूर्ण करने के लिए वह ऐसे जुट जाता था कि न दिन देखता न ही रात, इस के लिए उसे अपने परिवार से भी भरपूर सहयोग मिला.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. ऊंचा ओहदा, सम्मान, सुंदर पत्नी, पल्लव और स्मिता जैसे प्यारे 2 बच्चे, बूढ़े मांबाप का सान्निध्य. अपने काम के साथ मातापिता की जिम्मेदारी भी वह सहर्ष निभा रहा था. आखिर उन्होंने ही तो उसे इस मुकाम पर पहुंचने में मदद की थी.

दीपाली और वसुधा साथसाथ पढ़ी थीं. यही कारण था कि विवाह हो जाने के बाद भी हमेशा वे एकदूसरे के संपर्क में रहीं. यहां तक कि वर्ष में एक बार दोनों परिवार मिल कर एकसाथ कहीं घूमने चले जाते. वसुधा के पति सुभाष को भी आकाश का साथ अच्छा लगता. जी भर कर बातें होतीं. लगता, समय यहीं ठहर जाए पर समय कभी किसी के लिए रुका है?

जैसेजैसे खर्चे बढ़ने लगे दीपाली अपने वादे से मुकरने लगी. महीने का अंत होता नहीं था कि हाथ खाली होने लगता था, उस पर बूढ़े मातापिता के साथ 2 बच्चों का खर्चा अलग से बढ़ गया था. दीपाली अकसर अपनी परेशानी का जिक्र वसुधा से करती तो वह उसे संयम से काम लेने के लिए कहती, पर उस पर तो जैसे कोई जनून ही सवार हो गया था, आकाश की बुराई करने का.

यह वही दीपाली है जो एक समय आकाश की तारीफ करते नहीं थकती थी और अब बुराई करते नहीं थकती है. इनसान में इतना परिवर्तन कब, क्यों और कैसे आ जाता है, समझ नहीं पा रही थी वसुधा. आखिर कोई औरत अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए पति से वह सबकुछ क्यों करवाना चाहती है जो वह करना नहीं चाहता. दीपाली और आकाश के बीच की दूरी बढ़ती जा रही थी और वसुधा चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रही थी.

दीपाली कहती, ‘वसुधा, आखिर इन की ईमानदारी से किसी को क्या फर्क पड़ता है. जो इन की सचाई पर विश्वास करते हैं वह इन्हें गलत प्रोफेशन में आया कह कर इन का मजाक बनाते हैं और जो नहीं करते वे भी कह देते हैं कि भई, हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और. भला आज के जमाने में ऐसा भी कहीं हो सकता है.’

बाहर तो बाहर आकाश घर में भी शिकस्त खाने लगा था. पत्नी और बच्चों के चेहरे पर छाई असंतुष्टि अकसर सोचने को मजबूर करती कि कहीं वह गलत तो नहीं कर रहा है, पर आकाश के अपने संस्कार उस को कुछ भी गलत करने से सदा रोक देते.

वह बच्चों की किसी मांग को अगले महीने के लिए टाल देने को कहता तो उस की 5 वर्षीय बेटी स्मिता ही कह देती, ‘इस का मतलब आप खरीदवाओगे नहीं. अगले महीने फिर अगले महीने पर टाल दोगे.’

आकाश कभी दीपाली को उस का वादा याद दिलाता तो वह कह देती,  ‘वह तो मेरी नादानी थी पर अब जब दुनिया के रंगढंग देखती हूं तो लगता है कि तुम्हारे इस खोखले दंभ के कारण हम कितना सफर कर रहे हैं. तुम्हारे जैसे लोग जहां आज नई गाड़ी खरीदने में जरा भी नहीं सोचते, वहीं हमें रोज की जरूरतों को पूरा करने के लिए अगले महीने का इंतजार करना पड़ता है. कार भी खरीदी तो वह भी सेकंड हैंड. मुझे तो उस में बैठने में भी शर्म आती है.’

‘दीपाली, इच्छाओं की तो कोई सीमा नहीं होती. वैसे भी घर सामानों से नहीं उस में रहने वालों के आपसी प्यार और विश्वास से बनता है.’

‘प्यार और विश्वास भी वहीं होगा, जहां व्यक्ति संतुष्ट होगा, उस की सारी इच्छाएं पूरी हो रही होंगी.’

‘तो क्या तुम सोचती हो जिन्हें तुम संतुष्ट समझ रही हो, उन में कोई असंतुष्टि नहीं है. वहां जा कर देखो तो पता चलेगा कि वे हम से भी ज्यादा असंतुष्ट हैं.’

‘बस, रहने भी दीजिए…कोरे आदर्शों के सहारे दुनिया नहीं चलती.’

‘अगर ऐसा है तो तुम आजाद हो, अपनी नई दुनिया बसा सकती हो, जैसे चाहे रह सकती हो.’

तब तिलमिला कर उस ने कहा था, ‘बस, अब यही तो सुनने को रह गया था.’

यह कह कर दीपाली तो चली गई पर आकाश वहीं बैठाबैठा अपने सिर के बाल नोंचने लगा. उस बार उन दोनों के बीच लगभग हफ्ते भर अबोला रहा. उन के झगड़े अब इतने बढ़ गए थे कि बच्चे भी सहमने लगे थे, कभीकभी लगता कहीं इन दोनों की तकरार के कारण बच्चे अपना स्वाभाविक बचपन न गंवा बैठें.

उसे किस ने मारा- भाग 1: क्या हुआ था आकाश के साथ

आज आकाश चला गया…लोग कहते हैं, उस की मौत हार्ट अटैक से हुई है पर मैं कहती हूं कि उसे जमाने ने मौत के आगोश में धकेला है, उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया है. हां, आत्महत्या… आप लोग समझ रहे होंगे कि आकाश की मृत्यु के बाद मैं पागल हो गई हूं…हां…हां मैं पागल हो गई हूं…आज मुझे लग रहा है, इस दुनिया में जो सही है, ईमानदार है, कर्मठ है, वह शायद पागल ही है…यह दुनिया उस के रहने लायक नहीं है.

आज भी ऐसे पागल इस दुनिया में मौजूद हैं, जो अपने उसूलों पर चलते हुए शायद वे भी आकाश की तरह ही सिसकतेसिसकते मौत को गले लगा लें, इस से दुनिया को क्या फर्क पड़ने वाला है. वह तो यों ही चलती जाएगी. सिसकने के लिए रह जाएंगे उस बदनसीब के घर वाले.

दीपाली का प्रलाप सुन कर वसुधा चौंकी थी. दीपाली उस की प्रिय सखी थी. उस के जीवन का हर राज उस का अपना था. यहां तक कि उस के घर अगर एक गमला भी टूटता तो उस की खबर भी उसे लग ही जाती. उन में इतनी अंतरंगता थी.

लेकिन क्या आकाश की हालत के लिए वह स्वयं जिम्मेदार नहीं थी. वह आकाश की जीवनसाथी थी. उस के हर सुखदुख में शामिल होने का हक ही नहीं, उस का कर्तव्य भी था पर क्या वह उस का साथ दे पाई? शायद नहीं, अगर ऐसा होता तो इतनी कम उम्र में आकाश का यह हश्र न होता.

आकाश एक साधारण किसान परिवार से था. पढ़ने में तेज, धुन का पक्का, मन में एक बार जो ठान लेता उसे कर के ही रहता था. अच्छा खातापीता परिवार था. अभाव था तो सिर्फ शिक्षा का…उस के पिताजी ने उस की योग्यता को पहचाना. गांव में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने घर वालों के विरोध के बावजूद बेटे को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेजा, तो शहर की चकाचौंध से कुछ पलों के लिए आकाश भ्रमित हो गया था.

यहां की तामझाम, गिटरपिटर अंगरेजी बोलते बच्चों के बीच उसे लगा था कि वह सामंजस्य नहीं बिठा पाएगा पर धीरेधीरे अपने आत्मविश्वास के कारण अपनी कमियों पर आकाश विजय प्राप्त करता गया और अव्वल आने लगा. जहां पहले उस के शिक्षक और मित्र उस के देहातीपन को ले कर मजाक बनाते रहते थे, अब उस की योग्यता देख कर कायल होने लगे. हायर सेकंडरी में जब वह पूरे राज्य में प्रथम आया तो पेपर में नाम देख कर घर वालों की छाती गर्व से फूल उठी.

उसी साल उस का इंजीनियरिंग कालिज इलाहाबाद में चयन हो गया. पिता ने अपनी सारी जमापूंजी लगा कर उस का दाखिला करवा दिया. बस, यही बात उस के बड़े भाइयों को खली, कुछ सालों से फसल भी अच्छी नहीं हो रही थी. भाइयों को लग रहा था, मेहनत वे करते हैं पर उन की कमाई पर मजा वह लूट रहा है.

कहते हैं न कि ईर्ष्या से बड़ा जानवर कोई नहीं होता. वह कभीकभी इनसान को पूरा निगल जाता है. उस के भाइयों का यही हाल था और उन के वहशीपन का शिकार उस के मातापिता बन रहे थे. छुट्टियों में जब आकाश घर गया तो उस की पारखी नजरों से घर में फैला विद्वेष तथा मां और पिताजी के चेहरे पर छाई दयनीयता छिप न सकी. मां ने अपने कुछ जेवर छिपा कर उसे देने चाहे तो उस ने लेने से मना कर दिया.

एक दृढ़ निश्चय के साथ आकाश इलाहाबाद लौट गया था. कुछ ट्यूशन कर ली, साथ ही इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में प्रथम आने के कारण उसे स्कालरशिप भी मिलने लगी. अब उस का अपना खर्चा निकलने लगा. इंजीनियरिंग करते ही उसे सरकारी नौकरी मिल गई.

नौकरी मिलते ही वह अपने मातापिता को साथ ले आया. भाइयों ने भी चैन की सांस ली. पर पानी होते रिश्तों को देख कर आकाश का मन रोने लगा था.

सरकारी नौकरी मिली तो शादी के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए. वैसे आकाश अभी कुछ दिन विवाह नहीं करना चाहता था पर मां की आंखों में सूनापन देख कर उस ने बेमन से ही विवाह की इजाजत दे दी.

मातापिता के साथ रहने की बात जान कर कुछ लोगों ने आगे बढ़ अपने कदम पीछे खींच लिए थे. रिश्तों में आती संवेदनहीनता को देख कर उस का मन बहुत आहत हुआ था. मातापिता को इस बात का एहसास हुआ तो वे खुद को दोषी समझने लगे, तब आकाश ने उन को दिलासा देते हुए कहा था, ‘आप स्वयं को दोषी क्यों समझ रहे हैं, यह तो अच्छा ही हुआ कि समय रहते उन की असलियत खुल गई, जो रिश्तों का सम्मान करना नहीं जानते. वे भला अन्य रिश्ते कैसे निभा पाएंगे. रिश्तों में स्वार्थ नहीं समर्पण होना चाहिए.’

आखिर एक ऐसा परिवार मिल ही गया. मातापिता के साथ में रहने की बात सुन कर लड़की का भाई विवेक बोला, ‘हम ने मातापिता का सुख नहीं भोगा. पर मुझे उम्मीद है कि आप के सान्निध्य में मेरी बहन को यह सुख नसीब हो जाएगा.’

विवेक और दीपाली के मातापिता बचपन में ही मर गए थे. उन के चाचाचाची ने उन्हें पाला था पर धीरेधीरे रिश्तों में आती कटुता ने उन्हें अलग रहने को मजबूर कर दिया. विवेक ने जैसेतैसे एक नौकरी तलाशी तथा बहन को ले कर अलग हो गया. नौकरी करतेकरते ही उस ने अपनी पढ़ाई जारी रखी, बहन को पढ़ाया और आज वह स्वयं एक अच्छी जगह नौकरी कर रहा था.

दीपाली आकाश को अच्छी लगी. अच्छे संस्कारिक लोग पा कर विवाह के लिए वह तैयार हो गया. दीपाली ने घर अच्छी तरह से संभाल लिया था. मातापिता भी बेहद खुश थे. घर में सुकून पा कर आफिस के कामों में भी मन रमने लगा. अभी तक तो उसे काम सिखाया जा रहा था पर अब स्वतंत्र विभाग उस को दे दिया गया.

आकाश ने जब अपने विभाग की फाइलों को पढ़ा और स्टोर में जा कर सामान का मुआयना किया तो सामान की खरीद में हेराफेरी को देख कर वह सिहर उठा. पेपर पर दिखाया कुछ जाता, खरीदा कुछ और जाता. कभीकभी आवश्यकता न होने पर भी सामान खरीद लिया जाता. सरप्लस स्टाक इतना था कि उस को कहां खपाया जाए, वह समझ नहीं पा रहा था. अपने सीनियर से इस बात का जिक्र किया तो उन्होंने कहा, ‘अभी नएनए आए हो, इसलिए परेशान हो. धीरेधीरे इसी ढर्रे पर ढलते जाओगे. जहां तक सरप्लस सामान की बात है, उसे पड़ा रहने दो, कुछ नहीं होगा.’

एक दिन आकाश अपने आवास पर आराम कर रहा था कि एक सप्लायर आया और उसे एक पैकेट देने लगा. उस ने पूछा, ‘यह क्या है?’

मायूस मुसकान: आजिज का क्या था फैसला

लेखिका- रोचिका अरुण शर्मा

 

ममता का आंगन: मां के लिए कैसे बदली निशा की सोच

विदाई की बेला… हर विवाह समारोह का सब से भावुक कर देने वाला पल. सुंदर से लहंगे में आभूषणों से लदी निशा धीरेधीरे आगे कदम बढ़ा रही थी. आंसुओं से उस का चेहरा भीगा जा रहा था. सहेलियां और भाभियां उलाहना दे रहीं थीं, “अरे इतना रोओगी तो मेकअप धुल जाएगा.” इसी तरह की चुहलबाजी हो रही थी.

मगर वह चाह कर भी अपने आंसू नहीं रोक पा रही थी. खुद को दोराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी आज वह.

सजीधजी सुंदर सी कार उसे पिया के घर ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. अजय कार में बैठ चुका था. निशा ने कनखियों से देखा तो लगा कि अजय बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था, मानो कह रहा हो, “अब बस भी करो निशा… नए घर में भी लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.”

वह एक कदम आगे बढ़ती तो दो कदम पीछे वाली स्थिति थी. पापाभैया पास में ही खड़े थे. निशा पलट कर पापा के गले लग कर रोने लगी. भाई उसे प्यार से सहला रहा था, मानो पापा से छुड़ाना चाह रहा हो और कह रहा हो,” दीदी, एक नई सुंदर सी दुनिया तुम्हारी प्रतीक्षा में है. उस का स्वागत करो.”

तभी उस ने देखा कि मां किसी अपराधिनी सी दूर खड़ी अपने ढुलकते आंसुओं को छिपाने का असफल प्रयास कर रही थी. दोनों तरफ से स्थिति कमोबेश एक सी ही थी.

मां आगे बढ़ कर उसे गले लगाने का साहस नहीं कर पा रही थी क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं निशा नाराज ना हो जाए. ये अधिकार निशा ने उन्हें आज तक दिया ही नहीं था.

इधर, निशा भी चाहते हुए ममत्व की प्यास को सहलाने में नाकाम साबित हो रही थी. बड़ी ही मुश्किल से मां धीरेधीरे आगे आ कर खड़ी हो गई. मौसी, बुआ सभी से निशा प्रेम से गले मिल रही थी, तभी अचानक मां के दिल में गहरा दर्द का सैलाब उमड़ पड़ा और उसे जोर की रुलाई आ गई.

यह देख कर निशा से रहा नहीं गया. वह मां की तरफ बढ़ी. दोनों मांबेटी इस तरह गले मिलीं जैसे दोनों को एकदूसरे से कोई शिकवाशिकायत ही ना हो. शब्द साथ नहीं दे रहे थे. बस कुछ देर एकदूसरे से लिपट कर दोनों पूर्ण हो गई थी. अब निशा को जाना ही था, क्योंकि कार काफी देर से स्टार्ट हो कर खड़ी थी.

नए घर में पहुंच कर निशा को बहुत प्यारसम्मान मिला. शुरू के कुछ दिनों में उसे किसी भी काम में हाथ नहीं लगाने दिया. उस की छोटी प्यारी सी ननद अपनी मां के हर काम में हाथ बंटाती. धीरेधीरे हाथों की मेहंदी का रंग छूटने के साथसाथ नेहा भी घरपरिवार की जिम्मेदारियों में शामिल हो गई. जबकि मां के घर में वह कोई भी काम नहीं करती थी, मगर ससुराल तो ससुराल ही होता है. शुरुआत में कुछ कठिनाई भी आई. कई बार वह रो पड़ती थी कि अपनी समस्या किसे बताए.. क्योंकि अपनी मां को तो उस ने पूर्ण रूप से तिरस्कृत किया हुआ था

मां ने कई बार प्रयास किया था कि निशा घर के थोड़े बहुत काम सीख ले, परंतु ढाक के वही तीन पात. जब कुछ छोटी थी तो पापा के लाड़प्यार की वजह से और फिर बड़ी होने पर मां से एक अनकही रंजिश होने के नाते. यूं निशा को काम करने में कोई परेशानी नहीं थी, परंतु वह मां से कुछ नहीं सीखना चाहती थी. न जाने क्यों उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी थी वह.

विवाह को लगभग 20 दिन बीत चुके थे. निशा की सास उसे एक बड़ा सा डब्बा देते हुए बोली, “बेटा, यह बौक्स तुम्हारी मां ने तुम्हें सरप्राइस के तौर पर दिया है. तुम्हीं इसे खोलना और देखना कि इस में क्या है. अपने सारे जेवर डब्बे में रख देना. लौकर में रखवा देंगे. घर में रखना सुरक्षित नहीं होगा.”

शाम को जब निशा अपने जेवर डब्बे में करीने से संभाल रही थी, तो उस ने वह बौक्स भी खोला. वह देख कर अवाक रह गई. डब्बे में सुंदर से सोने और हीरे के जेवरात थे और साथ में एक पत्र भी.

यह पत्र उस की मां रीता ने लिखा था, “प्यारी निशा, तुम्हारे पापा का मुझ से शादी करने का मकसद सिर्फ इतना था कि उन की अनुपस्थिति में मैं तुम्हारी देखभाल कर सकूं. अब तुम्हारा विवाह हो चुका है. समय के साथ धीरेधीरे समझ जाओगी कि एक पिता के लिए अकेले संतान को पालना कितना मुश्किल होता है. मां तो सिर्फ मां होती है. यह सौतेला शब्द तो हमारे समाज ने ही गढ़ा है. पूर्वाग्रह से ग्रसित यह भावना किसी स्त्री को जाने समझे बगैर ही खलनायिका बना देती है. तुम्हारा विदाई के समय मुझ से लिपटना मुझे उम्रभर की खुशी दे गया.

“मेरा बचपन भी कुछ तुम्हारी ही तरह बीता है. सदा सुखी रहना.

“और हां, अपनी मां से मिलने कब आ रही हो?”

वह सोच में पड़ गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. उसे इन गहनों में से ममत्व की सुगंध आने लगी. वह काफी देर तक उन्हें देखती रही. इन में से कुछ गहने उस की अपनी मां के थे और अधिकतर नई मां के, जिसे उस ने मां तो कभी माना ही नहीं.

दरअसल, निशा के जीवन में दुखद मोड़ तब आया, जब 12 साल की उम्र में उस की मां की मृत्यु हो गई थी. लाड़प्यार से पली एकलौती संतान कुदरत के इस अन्याय को सहने की समझ भी नहीं रखती थी. पिता राजेश भी परेशान. एक तो पत्नी की असमय मृत्यु का गम, दूसरा 12 साल की बिटिया को पालने की जिम्मेदारी. ऐसी कच्ची उम्र में जब बच्चे कई तरह के शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से गुजरते हैं, एक पिता के लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है, ऐसे में खासकर बिटिया का लालनपालन करना.

कुछ लोगों ने सलाह दी कि वह निशा की मौसी से विवाह कर ले. क्योंकि अपनी बहन की संतान को जितने प्यार से वह पालेगी, ऐसा कोई दूसरी महिला नहीं कर सकती. परंतु निशा की मौसी उस के पिता से उम्र में बहुत छोटी थी, इसलिए राजेश को यह मंजूर नहीं था. खैर, समय की मांग को देखते हुए रीता के साथ निशा के पिता राजेश का पुनर्विवाह सादे समारोह में हो गया.

मां को गए अभी सिर्फ एक ही साल हुआ था. निशा की यादों में मां की हर बात जिंदा थी. इकलौती संतान होने की वजह से मातापिता का संपूर्ण प्यार उसी पर निछावर था.

राजेश ने रीता के साथ विवाह तो किया, परंतु निशा को किसी भी मनोवैज्ञानिक संकट में वह नहीं डालना चाहते थे. रीता भी खुद बहुत समझदार थी. इधर निशा भावनात्मक मानसिक और शारीरिक तौर पर आने वाले बदलावों से गुजर रही थी.

मां उसे भावनात्मक सहारा देने का भरसक प्रयास करती, परंतु निशा हर बार मां को ठुकरा देती है. अकेलीअकेली उदास सी रहती थी वह. नई मां कभी पिता से हंस कर, खिलखिला कर बात करती, तो निशा परेशान हो उठती. उसे लगता कि इस महिला ने आ कर उस की मां की जगह ले ली है.

निशा की मां की साड़ियां राजेश के कहने पर अगर रीता ने पहन लीं, तो निशा आगबबूला हो उठती. यह सब देख कर रीता ने अपनेआप को बहुत संयमित कर लिया था. वह नहीं चाहती थी कि किशोरावस्था में किसी बच्चे के दिमाग पर कोई गलत असर पड़े. समय के साथसाथ निशा का अकेलापन दूर करने के लिए एक छोटा भाई आ चुका था. आश्चर्य कि छोटे भाई से निशा को कोई शिकायत नहीं थी. वह उस के साथ खेलती और अब थोड़ा खुश रहने लगी थी. लेकिन मां के प्रति अपने व्यवहार को वह नहीं बदल पाई थी.

22 साल की उम्र पूरी होने पर घर वालों से विचारविमर्श के बाद निशा का विवाह तय कर दिया गया. निशा ने भी कोई अरुचि नहीं दिखाई. वह तो मानो नई मां से छुटकारा पाना चाहती थी.

आज इन गहनों को संभालते वक्त वह सोचने लगी कि अपनी मां की साड़ी तक वह नई मां को नहीं पहनने देती थी और इस अनचाही मां ने तो उसे खूब लाड़प्यार से पाला. कभी अपने बेटे और उस में कोई फर्क नहीं किया.

विवाह के समय अपनी सुंदर कीमती साड़ियां और भारी गहने सब उसी को सौंप दिए, जैसा कोई असली मां करती है.

तभी सासू मां ने उसे आवाज दे कर दरवाजे पर अपनी उपस्थिति का एहसास कराया. निशा का उदासीन चेहरा देख कर वह बोली, “अरे बेटा, क्या बात है…? मैं ने लौकर वाली बात कह कर तुम्हारा दिल तो नहीं दुखाया… दरअसल, घर में इतना कीमती सामान रखना असुरक्षित है इसीलिए मैं ने ऐसा कह दिया.”

“अरे नहीं मम्मी, ऐसी बात नहीं है,” कह कर वह रुक गई. आगे और कहती भी क्या..? कैसे कह देती कि जिस मां ने अपना सर्वस्व उस के लालनपालन में लुटा दिया, उस से वह इतनी नफरत करती थी कि पश्चाताप करने की भी कोई राह ही नहीं सूझ रही है.

खैर, सासू मां समझदार थी. सब जानते हुए भी वे अनजान ही बनी रहीं. इधर निशा के अंदर उधेड़बुन चलती रही.

शाम को अजय आ कर बोला,”अगले 2-3 दिन में हम तुम्हारे घर मम्मीपापा से मिलने चल रहे हैं.”

दरअसल, अजय की मां ने ही उसे निशा को मां के घर ले जाने की सलाह दी थी. वह धीरे से बोली, “ठीक है.” मगर मन ही मन बड़ी शर्मिंदा हो रही थी कि कैसे सामना करूंगी मां का.

अगले दिन सुबह मौसी का फोन आया. निशा आत्मग्लानि से भरी हुई थी. उस ने मौसी से मां का जिक्र किया. तब मौसी ने ही उसे बताया कि अजय के साथ उस का विवाह उस की मां रीता ने ही तय किया था. दरअसल, अजय की मां रीता की बचपन की सहेली थी. अजय की मां का विवाह तो समय से हो गया, परंतु यह रीता का दुर्भाग्य था कि बहुत ही छोटी उम्र में उस की मां की मृत्यु हो गई. पिता ने दूसरा विवाह नहीं किया. पारिवारिक सदस्यों के साथ मिल कर खुद ही अपनी बेटी को पालने की जिम्मेदारी ली. परिवार के बीच में रीता की परवरिश तो ठीकठाक हो गई, परंतु उस के विवाह में देरी होती रही, क्योंकि दादादादी की मृत्यु हो चुकी थी. ताऊताई अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए थे. अब रह गए थे रीता और उस के पिता. वह पिता को छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहती थी.

अधिक उम्र हो जाने पर भी लड़की के लिए लड़का मिलना कभीकभी मुश्किल काम साबित हो जाता है. इसीलिए जब राजेश की पहली पत्नी की मृत्यु हुई, तब रीता का विवाह उन के साथ इस शर्त पर हुआ कि उन की बेटी निशा को अपनी बेटी की तरह मान कर पालेगी. और रीता ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई. कुछ साल बाद अपना बेटा होने के बावजूद भी उस ने दोनों बच्चों में कभी कोई फर्क नहीं किया. और आज भी यह रीता ही थी, जिस ने निशा का रिश्ता अपनी सहेली के बेटे अजय से करवाया था, ताकि वह स्वयं अपनी बेटी के भविष्य को ले कर आशान्वित रहे. परंतु यह बात परिवार के किसी भी सदस्य ने निशा को नहीं बताई थी, क्योंकि उसे तो नई मां से अत्यधिक बैर था. फिर वह ये बात कैसे बरदाश्त करती…?

यह जान कर निशा अत्यधिक दुखी और शर्मिंदा थी. उस ने साहस कर के मां को फोन मिलाया.

उधर से मां की प्यारी सी आवाज आई,” बेटा, रिश्तों को सहेजने की कोई उम्र नहीं होती. जब भी अवसर मिले, इन्हें संवार लो.”

शायद मां इस से आगे कुछ नहीं बोल पाई और इधर निशा मायके जाने की तैयारी में जुट गई, क्योंकि उधर ममता का आंगन बांह पसारे उस के इंतजार में था.

मुखौटा: समर का सच सामने आने के बाद क्या था संचिता का फैसला

भारतीयलड़कियों की किसी अमेरिकन या अंगरेज लड़के से शादी करने के बाद क्या हालत होती है इस का वर्णन करना आसान नहीं है. वे धोखा केवल इसलिए खाती हैं क्योंकि उन के परिवार वाले शादी से पहले लड़के की ठीक से तहकीकात नहीं करते.

निर्मला पुणे की रहने वाली हैं. उन की माता और महिला मंडल में आने वाली वत्सलाजी से अच्छी जानपहचान थी. एक दिन बातोंबातों में संचिता की शादी का जिक्र किया तब वत्सलाजी ने उन्हें अपने अमेरिका में रहने वाले भतीजे समर के बारे में बताया जो शादी के लायक हो गया था.

फिर दोनों अपनेअपने घर में इस बारे में बात करती हैं. संचिता अमेरिका में रहने वाले लड़के से शादी के लिए तैयार हो जाती है. वत्सलाजी भी समर को फोन कर के उस की राय मांगती है. तब वह भी शादी के लिए राजी हो जाता है. दोनों वीडियो चैट करते हैं तो सब ठीकठाक लगता है.

समर 2 महीनों के लिए भारत आ गया और झट मंगनी पट ब्याह हो गया. समर की

कोई भी तहकीकात किए बिना सिर्फ वत्सलाजी के भरोसे संचिता के मातापिता उस का ब्याह समर से कर दिया. वैसे वत्सलाजी पर भरोसा करने के पीछे एक वजह और थी और वह यह कि समर को वत्सलाजी ने ही पालपोस कर बड़ा किया था. समर  जब छोटा था तब उस के मातापिता की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी.

समर की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई तैयार नहीं था. पर जब समर के अमीर मातापिता की प्रौपर्टी में से समर का पालनपोषण करने

वाले व्यक्ति क ो हर महीने 25 हजार रुपए देने की बात सामने आई, जोकि उन की प्रौपर्टी के पैसों के ब्याज में दिए जाने थे, वत्सलाजी उसे संभालने के लिए आगे आ गईं. वत्सलाजी विधवा थीं, उन्हें बच्चे भी नहीं थे और उन्हें मिलने वाली पैंशन से वे सिर्फ अपना ही गुजारा कर सकती थीं, इसलिए वे पहले समर को पालने के लिए मना पर 25 हजार रुपए महीने मिलने की बात सुन कर वे समर को पालने के लिए राजी हो गई.

वत्सलाजी ने समर के पालनपोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ायालिखाया. उसे सौफ्टवेयर इंजीनियर बनाया. समर के 18 बरस का होने के बाद उस की प्रौपर्टी उस के नाम कर दी गई और 21 साल का होने के बाद उस के हाथों सौंप दी गई. पर पैसा मिलते ही समर की ख्वाहिशें बढ़ने लगीं और वह अमेरिका में बसने के सपने देखने लगा और फिर उस ने वैसा ही किया.

सौफ्टवेयर इंजीनियर बनते ही वह एक कंपनी में नौकरी के जरीए अमेरिका चला गया और वहीं पर बस गया. अब शादी के सिलसिले में वह भारत आया और संचिता के साथ शादी कर के उसे भी अमेरिका ले गया. समर के साथ खुशीखुशी कब 2 साल बीत गए संचिता को पता ही नहीं चला. उसे लगने लगा था मानो समर के साथ उसे दुनिया के सारे सुख मिल रहे हैं. ऐसे में ही उसे अपने गर्भवती होने का एहसास हुआ. डाक्टर के पास चैकअप करा कर इस बात की तसल्ली कर ली और फिर समर के आने की राह देखने लगी. वह जल्द से जल्द यह खुशखबरी समर को बताना चाहती थी.

शाम को समर के घर आते ही उस ने सब से पहले उसे यही खुशखबरी दी. पर उस के चेहरे पर खुशी की जगह और ही भाव नजर

आने लगे. उस का बदला रूप देख कर संचिता पलभर के लिए कांप गई. लेकिन कुछ ही क्षणों में समर संभल गया और संचिता को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है मैं बाप बनने वाला हूं. सच कहूं तो तुम ने जब यह खुशखबरी दी तब मुझे कुछ सूझा ही नहीं. अब तुम आराम करो. कल हम अपनी अच्छी पहचान वाली लेडी डाक्टर के पास जाएंगे ताकि वह अच्छी तरह तुम्हारा चैकअप करें.’’

दूसरे दिन संचिता ने जब आंखें खोली तब उसे अपनी कमर के नीचे का भाग कुछ भारीभारी सा लग रहा था. उस ने कमरे का निरीक्षण किया तब उसे ऐसा लगा कि वह किसी अस्पताल के कमरे में है. उस ने उठने की कोशिश की तो उस से उठा भी नहीं जा रहा था. तब एक नर्स दौड़ती हुई उस के पास आई और बोली, ‘‘अब थोड़ी देर और आराम करो. 2-3 तीन घंटे बाद तुम उठ सकती हो.’’

संचिता ने जब उस से पूछा कि उसे क्या हुआ तब नर्स ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा कि तुम्हारा अबौर्शन हुआ है. सुनते ही संचिता के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई क्योंकि वह तो सिर्फ चैकअप के लिए आई थी. डाक्टर ने

उसे कोलड्रिंक पीने के लिए दिया था. उस के बाद उसे गहरी नींद आने लगी और वह सो गई. पर अब उसे सब पता चल गया था. कुछ घंटों बाद समर आ कर उसे ले गया. घर जाने के

बाद उस ने शाम को संचिता से बस इतना ही कहा कि अभी वह बच्चे के लिए तैयार नहीं है. उसे अभी बहुत कुछ करना है. अगर वह उसे गर्भपात कराने को कहता तो शायद वह कभी तैयार नहीं होती, इसलिए उस ने यह रास्ता अपनाया.

अब संचिता के पास झल्लाने के सिवा कुछ नहीं बचा था. उस ने समर से बात करना छोड़ दिया. पहले समर के प्रति उस के मन में जो प्यार और आदर की भावना थी उस की जगह अब उस पर घृणा, तिरस्कार और चिड़ आने लगी थी. पर यहां विदेश में समर से बैर लेना उस ने उचित नहीं समझ क्योंकि यहां उस का कोई नहीं था. न कोई दोस्त न रिश्तेदार न पड़ोसी. अपना दर्द वह किसे सुनाती.

तभी एक दिन दोपहर को वत्सला बूआ का फोन आया. उन्होंने उसे बताया कि पिछले 15 दिनों में समर का 3 बार फोन आ चुका है और वह हर बार 25 लाख रुपए उस के अमेरिका के खाते में जमा करने की बात कह रहा है. उस ने बूआ को यह कहा कि  उस ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और खुद का कोई कारखाना शुरू करना चाहता है, जिस के लिए उसे पैसों की सख्त जरूर है. पर बूआ को दाल में कुछ काला नजर आया, इसलिए उन्होंने संचिता से इस बारे में पूछना चाहा. पर संचिता को तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. उलटा उस ने जब समर द्वारा धोखे से उस का गर्भपात कराने की बात वत्सला बूआ को बताई तब वे और भी हैरान रह गईं.

अब तो संचिता को समर से डर लगने लगा था. उस की सारी सचाई सामने आने लगी थी. विदेश में उस से बैर लेना मुनासिब नहीं था और मामापिता को सचाई बता कर वह उन्हें मुश्किल में नहीं डालना चाहती थी.

दूसरे दिन अब आगे क्या करना है, इस कशमकश में डूबी संचिता भारतीय

भूल के अमेरिका में रह रहे लोगों के लिए निकाले जा रहे अखबार के पन्ने पलट रही थी. तब एक तसवीर देख कर उस के हाथ रुक गए और उस ने वह खबर पढ़ी. प्रणोती, क्राइम विभाग की पत्रकार ने अपनी हिम्मत और दिमाग से बड़े सैक्स रैकेट का परदाफाश किया और सफेदपोश कहे जाने वाले भारत और पाकिस्तान के काले दरिंदों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उस ने 2-3 बार वह खबर पढ़ी. उसे आशा की किरण नजर आने लगी. उस ने तुरंत अखबार के कार्यालय में फोन लगाया और प्रणोती के घर का पता और फोन नंबर ले लिया. प्रणोती उस की सहपाठी निकली. दोनों पूना में एकसाथ पढ़ा करती थीं. उस के पिताजी नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गए और उस की मां को भी साथ ले गए और फिर हमेशा के लिए अमेरिका में ही बस गए.

संचिता ने फोन कर के प्रणोती से संपर्क किया और उस से मिलने की इच्छा जाहिर की. प्रणोती ने उसे तुरंत अपने घर बुला लिया. अमेरिका में भी उस का अपना कोई है यह जान कर संचिता को बहुत अच्छा लगा. प्रणोती से मिल कर उस ने उस के साथ जो कुछ घटा और वत्सला बूआ ने 25 लाख रुपयों के बारे में जो कुछ कहा वह सब बताया.

प्रणोती ध्यान से उस की बातें सुनती रही. लगभग 2 घंटे दोनों में इस बात पर चर्चा चली. फिर प्रणोती से विदा ले कर संचिता अपने घर चली गई. प्रणोती ने उसे आश्वासन दिया कि वह मामले की तह तक जाएगी.

इधर संचिता रातभर समर की राह देखती रही पर वह घर नहीं आया. फिर कब उस की आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला. पर सुबह भी वह नहीं आया. उस ने झट से चाय बना कर पी और नहाधो कर प्रणोती से मिलने जाने की तैयारी की. उस की गैरहाजिरी से समर घर आ सकता था, इसलिए उसे जाते एक चिट्ठी छोड़ दी कि वह मार्केट जा रही है.

प्रणोती के घर जाते ही प्रणोती ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘आज मैं जो बताने जा रही हूं उसे धैर्य से सुनना. तुम ने मुझे समर के औफिस का पता और उस के बारे में जो जरूरी जानकारी दी थी उस के आधार पर मैं ने कल ही उस की तहकीकात शुरू कर दी थी. संचिता, कल रात समर को खून के मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. वह शबर के पुलिस लौकअप में बंद है. दूसरी बात उस ने नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया बल्कि उसे नौकरी से निकाला गया है क्योंकि उस ने औफिस में भारतीय मुद्रा के रूप में 25 लाख रुपयों का गबन किया था. वत्सला बूआ से उस ने सब झठ कहा था. कल सुबह उस के खाते में पैसे जमा होते ही उस ने वे पैसे कंपनी में भर कर खुद को छुड़ा लिया.

‘‘फिर दिनभर यहांवहां भटक कर शराब के नशे में धुत्त हो कर वह देर रात को कैसिनो में पहुंचा. वह हमेशा का ग्राहक था इसलिए कैसिनो के मालिक ने उसे जुआ खोलने के लिए 2 लाख रुपए उधार दिए, पर समर घंटेभर में ही सारे

पैसे हार गया और उस ने कैसिनो के मालिक से फिर से पैसों की मांग की. पर कैनो के मालिक ने उसे पहले के दो लाख रुपए 24 घंटों के अंदर वापस करने की बात कहते हुए और

पैसे देने से मना कर दिया. तब दोनों में इस बात को ले कर झगड़ा हो गया और झगड़ा बढ़तेबढ़ते लड़ाई में बदल गया जिस में समर के हाथों कैसिनो के मालिक का खून हो गया. वह वहां

से भागने की फिराक में था पर कैसिनो के बाउसरों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया.

‘‘और अब मैं जो कहने जा रही हूं वह सुन कर तुम्हारे पांवों तले की जमीन खिसक जाएगी. तुम्हारी शादी से 6 महीने पहले उस ने एक जरमन लड़की से शादी की पर उस लड़की ने समर की चालढाल देख कर उसे छोड़ दिया. दोनों का अब तक कानूनी तौर पर तलाक भी नहीं हुआ है. इसलिए तुम्हारी शादी गैरकानूनी मानी जा सकती है. तुम्हारा गर्भपात कराने के पीछे भी शायद यही मंशा थी कि तुम्हारी और तुम्हारे बच्चे की वजह से वह मुश्किल में पड़ सकता था.

‘‘संचिता, समर पूरी तरह फ्रौड निकला. उस पर दया करने की कोई जरूरत नहीं है. तू जैसे भी हो अपनेआप को उस के चंगुल से छुड़ा ले. मैं अपने वकील से बात करती हूं. देखते हैं वे क्या सलाह देते हैं. कल दोपहर को समर को कोर्ट में हाजिर किया जाएगा. हम वहां अपने वकील के साथ जाएंगे. अभी तुम अपने घर जाओ और तुम्हारा जितना सामान, जेवरात और पैसे हैं उन्हें ले कर मेरे घर आ जाओ. यहां तुम्हारी सारी चीजें बिलकुल महफूज रहेंगी और मामला पूरी तरह से निबटने तक तुम मेरे घर मेरी सहेली, मेरी बहन बन कर रह सकती हो.’’

संचिता ने आंसू पोंछे और प्रणोती के हाथों पर हाथ रख कर हां में सिर हिलाते हुए चली गई. घर पहुंचते ही संचिता ने तुरंत अपनी बैग निकाला और सारे कपड़े उस में भर दिए.

अपने जेवर सहीसलामत देख कर उसे राहत महसूस हुई. उस ने जेवर, नकद रुपए, अपने सारे कागजात और पासपोर्ट व वीजा भी बैग में रखा. फिर पूरे घर पर एक नजर डाल कर अपना बैग उठा कर प्रणोती के घर चल दी.

दूसरे दिन समर को कोर्ट में हाजिर किया गया. संचिता प्रणोती के साथ वहीं खड़ी थी. कोर्ट से बाहर आने के बाद संचिता ने समर का कौलर पकड़ कर उस से पूछा कि उस ने

ऐसा क्यों किया, पर समर ने कोई जवाब नहीं दिया और पुलिस की गाड़ी में जा बैठा. संचिता प्रणोती के साथ मिल कर उस जरमन लड़की से भी मिली जिसे समर ने धोखा दिया था. समर के कारनामे सुन कर वह लड़की हैरान रह गई. उस ने संचिता से सहानुभूति दिखाई और कहा कि समर से छुटकारा पाने के लिए अगर उसे उस से कोई मदद चाहिए तो वह उस की जरूर मदद करेगी.

अब संचिता को विश्वास हो गया कि वह समर से आसानी से छुटकारा पा लेगी. लेकिन समर का केस पूरे डेढ़ साल तक चला. समर को 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई. इस बार संचिता ने उस के सामने तलाक के कागजात रख दिए और समर ने भी बिना कुछ कहे उन पर साइन कर दिए. संचिता आजाद हो चुकी थी. उस ने प्रणोती को बहुतबहुत धन्यवाद दिया.

समर के काले कारनामों की पूरी जानकारी संचिता ने वत्सला बूआ और अपने मातापिता को दे दी. उन सभी को गहरा आघात लगा. वत्सला बूआ ने संचिता के मातापिता से माफी मांगी. लेकिन इस में वत्सला बूआ की कोई गलती नहीं थी और वे भी समर के धोखे की शिकार हुई थीं, इसलिए संचिता के मातापिता ने उन्हें माफ कर दिया.

अगले हफ्ते संचिता मुंबई के सहारा हवाईअड्डे पर उतर रही थी. उस के मातापिता और वत्सला बूआ उस के स्वागत के लिए खड़े थे, उस ने समर के चेहरे पर लगा झठ का मुखौटा जो निकाल फेंका था और उस का असली चेहरा दुनिया के सामने लाया था. ऐसे और भी कितने समर इस दुनिया में मौजूद हैं, जिन के चेहरे पर चढ़ा झठ का मुखौटा निकाल फेंकने के लिए खुद महिलाओं को ही आगे आना होगा.

विश्वास: बेटी शिखा ने क्यों किया मां अंजलि और कमल अंकल के रिश्तों पर शक

फोन पर ‘हैलो’ सुनते ही अंजलि ने अपने पति राजेश की आवाज पहचान ली.

राजेश ने अपनी बेटी शिखा का हालचाल जानने के बाद तनाव भरे स्वर में पूछा, ‘‘तुम यहां कब लौट रही हो?’’

‘‘मेरा जवाब आप को मालूम है,’’ अंजलि की आवाज में दुख, शिकायत और गुस्से के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘तुम अपनी मूर्खता छोड़ दो.’’

‘‘आप ही मेरी भावनाओं को समझ कर सही कदम क्यों नहीं उठा लेते हो?’’

‘‘तुम्हारे दिमाग में घुसे बेबुनियाद शक का इलाज कर ने को मैं गलत कदम नहीं उठाऊंगा…अपने बिजनेस को चौपट नहीं करूंगा, अंजलि.’’

‘‘मेरा शक बेबुनियाद नहीं है. मैं जो कहती हूं, उसे सारी दुनिया सच मानती है.’’

‘‘तो तुम नहीं लौट रही हो?’’ राजेश चिढ़ कर बोला.

‘‘नहीं, जब तक…’’

‘‘तब मेरी चेतावनी भी ध्यान से सुनो, अंजलि,’’ उसे बीच में टोकते हुए राजेश की आवाज में धमकी के भाव उभरे, ‘‘मैं ज्यादा देर तक तुम्हारा इंतजार नहीं करूंगा. अगर तुम फौरन नहीं लौटीं तो…तो मैं कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे दूंगा. आखिर, इनसान की सहने की भी एक सीमा…’’

अंजलि ने फोन रख कर संबंधविच्छेद कर दिया. राजेश ने पहली बार तलाक लेने की धमकी दी थी. उस की आंखों में अपनी बेबसी को महसूस करते हुए आंसू आ गए. वह चाहती भी तो आगे राजेश से वार्तालाप न कर पाती क्योंकि उस के रुंधे गले से आवाज नहीं निकलती.

शिखा अपनी एक सहेली के घर गई हुई थी. अंजलि के मातापिता अपने कमरे में आराम कर रहे थे. अपनी चिंता, दुख और शिकायत भरी नाराजगी से प्रभावित हो कर वह बिना किसी रुकावट के कुछ देर खूब रोई.

रोने से उस का मन उदास और बोझिल हो गया. एक थकी सी गहरी आस छोड़ते हुए वह उठी और फोन के पास पहुंच कर अपनी सहेली वंदना का नंबर मिलाया.

राजेश से मिली तलाक की धमकी के बारे में जान कर वंदना ने उसे आश्वासन दिया, ‘‘तू रोनाधोना बंद कर, अंजलि. मेरे साहब घर पर ही हैं. हम दोनों घंटे भर के अंदर तुझ से मिलने आते हैं. आगे क्या करना है, इस की चर्चा आमने- सामने बैठ कर करेंगे. फिक्र मत कर, सब ठीक हो जाएगा.’’

वंदना उस के बचपन की सब से अच्छी सहेली थी. उस का व उस के पति कमल का अंजलि को बहुत सहारा था. उन दोनों के साथ अपने सुखदुख बांट कर ही पति से दूर वह मायके में रह रही थी. अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए अंजलि जो बात अपने मातापिता से नहीं कह पाती, वह इन दोनों से बेहिचक कह देती.

राजेश से फोन पर हुई बातचीत का ब्योरा अंजलि से सुन कर वंदना चिंतित हो उठी तो उस के पति कमल की आंखों में गुस्से के भाव उभरे.

‘‘अंजलि, कोई चोर कोतवाल को उलटा नहीं धमका सकता है. राजेश को तलाक की धमकी देने का कोई अधिकार नहीं है. अगर वह ऐसा करता है तो समाज उसी के नाम पर थूथू करेगा,’’ कमल ने आवेश भरे लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘मेरी समझ से हमें टकराव का रास्ता छोड़ कर राजेश से बात करनी चाहिए,’’ चिंता के मारे अपनी उंगलियां मरोड़ते हुए वंदना ने अपने मन की बात कही.

‘‘राजेश से बातचीत करने को अगर अंजलि उस के पास लौट गई तो वह अपने दोस्त की विधवा के प्रेमजाल से कभी नहीं निकलेगा. उस पर संबंध तोड़ने को दबाव बनाए रखने के लिए अंजलि का यहां रहना जरूरी है.’’

‘‘अगर राजेश ने सचमुच तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी तो क्या करेंगे हम? तब भी तो अंजलि

को मजबूरन वापस लौटना पडे़गा न.’’

‘‘मैं नहीं लौटूंगी,’’ अंजलि ने सख्त लहजे में उन दोनों को अपना फैसला सुनाया, ‘‘मैं 2 महीने अलग रह सकती हूं तो जिंदगी भर को भी अलग रह लूंगी. मैं जब चाहूं तब अध्यापिका की नौकरी पा सकती हूं. शिखा को पालना मेरे लिए समस्या नहीं बनेगा. एक बात मेरे सामने बिलकुल साफ है. अगर राजेश ने उस विधवा सीमा से अपने व्यक्तिगत व व्यावसायिक संबंध बिलकुल समाप्त नहीं किए तो वह मुझे खो देंगे.’’

वंदना व कमल कुछ प्रतिक्रिया दर्शाते, उस से पहले ही बाहर से किसी ने घंटी बजाई. अंजलि ने दरवाजा खोला तो सामने अपनी 16 साल की बेटी शिखा को खड़ा पाया.

‘‘वंदना आंटी और कमल अंकल आए हुए हैं. तुम उन के पास कुछ देर बैठो, तब तक मैं तुम्हारे लिए खाना लगा लाती हूं,’’ भावुकता की शिकार बनी अंजलि ने प्यार से अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘मेरा मूड नहीं है, किसी से खामखां सिर मारने का. जब भूख होगी, मैं खाना खुद ही गरम कर के खा लूंगी,’’ बड़ी रुखाई से जवाब देने के बाद साफ तौर पर चिढ़ी व नाराज सी नजर आ रही शिखा अपने कमरे में जा घुसी.

अंजलि को उस का अचानक बदला व्यवहार बिलकुल समझ में नहीं आया. उस ने परेशान अंदाज में इस की चर्चा वंदना और कमल से की.

‘‘शिखा छोटी बच्ची नहीं है,’’ वंदना की आंखों में चिंता के बादल और ज्यादा गहरा उठे, ‘‘अपने मातापिता के बीच की अनबन जरूर उस के मन की सुखशांति को प्रभावित कर रही है. उस के अच्छे भविष्य की खातिर भी हमें समस्या का समाधान जल्दी करना होगा.’’

‘‘वंदना ठीक कह रही है, अंजलि,’’ कमल ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम शिखा से अपने दिल की बात खुल कर कहो और उस के मन की बातें सहनशीलता से सुनो. मेरी समझ से हमारे जाने के बाद आज ही तुम यह काम करना. कोई समस्या आएगी तो वंदना और मैं भी उस से बात करेंगे. उस की टेंशन दूर करना हम सब की जिम्मेदारी है.’’

उन दोनों के विदा होने तक अपनी समस्या को हल करने का कोई पक्का रास्ता अंजलि के हाथ नहीं आया था. अपनी बेटी से खुल कर बात करने के  इरादे से जब उस ने शिखा के कमरे में कदम रखा, तब वह बेचैनी और चिंता का शिकार बनी हुई थी.

‘‘क्या बात है? क्यों मूड खराब है तेरा?’’ अंजलि ने कई बार ऐसे सवालों को घुमाफिरा कर पूछा, पर शिखा गुमसुम सी बनी रही.

‘‘अगर मुझे तू कुछ बताना नहीं चाहती है तो वंदना आंटी और कमल अंकल से अपने दिल की बात कह दे,’’  अंजलि की इस सलाह का शिखा पर अप्रत्याशित असर हुआ.

‘‘भाड़ में गए कमल अंकल. जिस आदमी की शक्ल से मुझे नफरत है, उस से बात करने की सलाह आज मुझे मत दें,’’  शिखा किसी ज्वालामुखी की तरह अचानक फट पड़ी.

‘‘क्यों है तुझे कमल अंकल से नफरत? अपने मन की बात मुझ से बेहिचक हो कर कह दे गुडि़या,’’ अंजलि का मन एक अनजाने से भय और चिंता का शिकार हो गया.

‘‘पापा के पास आप नहीं लौटो, इस में उस चालाक इनसान का स्वार्थ है और आप भी मूर्ख बन कर उन के जाल में फंसती जा रही हो.’’

‘‘कैसा स्वार्थ? कैसा जाल? शिखा, मेरी समझ में तेरी बात रत्ती भर नहीं आई.’’

‘‘मेरी बात तब आप की समझ में आएगी, जब खूब बदनामी हो चुकी होगी. मैं पूछती हूं कि आप क्यों बुला लेती हो उन्हें रोजरोज? क्यों जाती हो उन के घर जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं? पापा बारबार बुला रहे हैं तो क्यों नहीं लौट चलती हो वापस घर.’’

शिखा के आरोपों को समझने में अंजलि को कुछ पल लगे और तब उस ने गहरे सदमे के शिकार व्यक्ति की तरह कांपते स्वर में पूछा, ‘‘शिखा, क्या तुम ने कमल अंकल और मेरे बीच गलत तरह के संबंध होने की बात अपने मुंह से निकाली है?’’

‘‘हां, निकाली है. अगर दाल में कुछ काला न होता तो वह आप को सदा पापा के खिलाफ क्यों भड़काते? क्यों जाती हो आप उन के घर, जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं?’’

अंजलि ने शिखा के गाल पर थप्पड़ मारने के लिए उठे अपने हाथ को बड़ी कठिनाई से रोका और गहरीगहरी सांसें ले कर अपने क्रोध को कम करने के प्रयास में लग गई. दूसरी तरफ तनी हुई शिखा आंखें फाड़ कर चुनौती भरे अंदाज में उसे घूरती रहीं.

कुछ सहज हो कर अंजलि ने उस से पूछा, ‘‘वंदना के घर मेरे जाने की खबर तुम्हें उन के घर के सामने रहने वाली रितु से मिलती है न?’’

‘‘हां, रितु मुझ से झूठ नहीं बोलती है,’’ शिखा ने एकएक शब्द पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया.

‘‘यह अंदाजा उस ने या तुम ने किस आधार पर लगाया कि मैं वंदना की गैर- मौजूदगी में कमल से मिलने जाती हूं?’’

‘‘आप कल सुबह उन के घर गई थीं और परसों ही वंदना आंटी ने मेरे सामने कहा था कि वह अपनी बड़ी बहन को डाक्टर के यहां दिखाने जाएंगी, फिर आप उन के घर क्यों गईं?’’

‘‘ऐसा हुआ जरूर है, पर मुझे याद नहीं रहा था,’’ कुछ पल सोचने के बाद अंजलि ने गंभीर स्वर में जवाब दिया.

‘‘मुझे लगता है कि वह गंदा आदमी आप को फोन कर के अपने पास ऐसे मौकों पर बुलाता है और आप चली जाती हो.’’

‘‘शिखा, तुम्हें अपनी मम्मी के चरित्र पर यों कीचड़ उछालते हुए शर्म नहीं आ रही है,’’ अंजलि का अपमान के कारण चेहरा लाल हो उठा, ‘‘वंदना मेरी बहुत भरोसे की सहेली है. उस के साथ मैं कैसे विश्वासघात करूंगी? मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारे पापा बसते हैं, और कोई नहीं.’’

‘‘तब आप उन के पास लौट क्यों नहीं चलती हो? क्यों कमल अंकल के भड़काने में आ रही हो?’’ शिखा ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बेटी, तेरे पापा के और मेरे बीच में एक औरत के कारण गहरी अनबन चल रही है, उस समस्या के हल होते ही मैं उन के पास लौट जाऊंगी,’’ शिखा को यों स्पष्टीकरण देते हुए अंजलि ने खुद को शर्म के मारे जमीन मेें गड़ता महसूस किया.

‘‘मुझे यह सब बेकार के बहाने लगते हैं. आप कमल अंकल के कारण पापा के पास लौटना नहीं चाहती हो,’’ शिखा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘‘तुम जबरदस्त गलतफहमी का शिकार हो, शिखा. वंदना और कमल मेरे शुभचिंतक हैं. उन दोनों का बहुत सहारा है मुझे. दोस्ती के पवित्र संबंध की सीमाएं तोड़ कर कुछ गलत न मैं कर रही हूं न कमल अंकल. मेरे कहे पर विश्वास कर बेटी,’’ अंजलि बहुत भावुक हो उठी.

‘‘मेरे मन की सुखशांति की खातिर आप अंकल से और जरूरी हो तो वंदना आंटी से भी अपने संबंध पूरी तरह तोड़ लो, मम्मी. मुझे डर है कि ऐसा न करने पर आप पापा से सदा के लिए दूर हो जाओगी,’’ शिखा ने आंखों में आंसू ला कर विनती की.

‘‘तुम्हारे नासमझी भरे व्यवहार से मैं बहुत निराश हूं,’’ ऐसा कह कर अंजलि उठ कर अपने कमरे में चली आई.

इस घटना के बाद मांबेटी के संबंधों में बहुत खिंचाव आ गया. आपस में बातचीत बस, बेहद जरूरी बातों को ले कर होती. अपने दिल पर लगे घावों को दोनों नाराजगी भरी खामोशी के साथ एकदूसरे को दिखा रही थीं.

शिखा की चुप्पी व नाराजगी वंदना और कमल ने भी नोट की. अंजलि उन के किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकी. वह कैसे कहती कि शिखा ने कमल और उस के बीच नाजायज संबंध होने का शक अपने मन में बिठा रखा था.

करीब 4 दिन बाद रात को शिखा ने मां के कमरे में आ कर अपने मन की बातें कहीं.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं कि मेरी सहेली रितु ने अन्य सहेलियों को सब बातें बता कर मेरे लिए इज्जत से सिर उठा कर चलना ही मुश्किल कर दिया है. अपनी ये सब परेशानियां मैं आप के नहीं, तो किस के सामने रखूं?’’

‘‘मुझे तुम्हारी सहेलियों से नहीं सिर्फ तुम से मतलब है, शिखा,’’ अंजलि ने शुष्क स्वर में जवाब दिया, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन क्यों मान लिया? मुझ से ज्यादा तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास क्यों है?’’

‘‘मम्मी, बात विश्वास करने या न करने की नहीं है. हमें समाज में मानसम्मान से रहना है तो लोगों को ऊटपटांग बातें करने का मसाला नहीं दिया जा सकता.’’

‘‘तब क्या दूसरों को खुश करने के लिए तुम अपनी मां को चरित्रहीन करार दे दोगी? उन की झूठी बातों पर विश्वास कर के अपनी मां को उस की सब से प्यारी सहेली से दूर करने की जिद पकड़ोगी?’’

‘‘मुझ पर क्या गुजर रही है, इस की आप को भी कहां चिंता है, मम्मी,’’ शिखा चिढ़ कर गुस्सा हो उठी, ‘‘मैं आप की सहेली नहीं बल्कि सहेली के चालाक पति से आप को दूर देखना चाहती हूं. अपनी बेटी की सुखशांति से ज्यादा क्या कमल अंकल के साथ जुडे़ रहना आप के लिए जरूरी है?’’

‘‘कमल अंकल मेरे लिए तुम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कैसे हो सकते हैं, शिखा? मुझे तो अफसोस और दुख इस बात का है कि मेरी बेटी को मुझ पर विश्वास नहीं रहा. मैं पूछती हूं कि तुम ही मुझ पर विश्वास क्यों नहीं कर रही हो?  अपनी सहेलियों की बकवास पर ध्यान न दे कर मेरा साथ क्यों नहीं दे रही हो? मेरे मन में खोट नहीं है, इस बात को मेरे कई बार दोहराने के बावजूद तुम ने उस पर विश्वास न कर के मेरे दिल को जितनी पीड़ा पहुंचाई है, क्या उस का तुम्हें अंदाजा है?’’ बोलते हुए अंजलि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

‘‘यों चीखचिल्ला कर आप मुझे चुप नहीं कर सकोगी,’’ गुस्से से भरी शिखा उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘चित भी मेरी और पट भी मेरी का चालाकी भरा खेल मेरे साथ न खेलो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अंजलि फौरन उलझन का शिकार बन गई.

‘‘मतलब यह कि पापा ने अपनी बिजनेस पार्टनर सीमा आंटी को ले कर आप को सफाई दे दी तब तो आप ने उन की एक नहीं सुनी और यहां भाग आईं, और जब मैं आप से कमल अंकल के साथ संबंध तोड़ लेने की मांग कर रही हूं तो किस आधार पर आप मुझे गलत और खुद को सही ठहरा रही हो?’’

अंजलि को बेटी का सवाल सुन कर तेज झटका लगा. उस ने अपना सिर झुका लिया. शिखा आगे एक भी शब्द न बोल कर अपने कमरे में लौट गई. दोनों मांबेटी ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रात का खाना नहीं खाया. शिखा के नानानानी को उन दोनों के उखडे़ मूड का कारण जरा भी समझ में नहीं आया.

उस रात अंजलि बहुत देर तक नहीं सो सकी. अपने पति के साथ चल रहे मनमुटाव से जुड़ी बहुत सी यादें उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा रही थीं. शिखा द्वारा लगाए गए आरोप ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया था.

राजेश ने कभी स्वीकार नहीं किया था कि अपने दोस्त की विधवा के साथ उस के अनैतिक संबंध थे. दूसरी तरफ आफिस में काम करने वाली 2 लड़कियों और राजेश के दोस्तों की पत्नियों ने इस संबंध को समाप्त करवा देने की चेतावनी कई बार उस के कानों में डाली थी.

तब खूबसूरत सीमा को अपने पति के साथ खूब खुल कर हंसतेबोलते देख अंजलि जबरदस्त ईर्ष्या व असुरक्षा की भावना का शिकर रहने लगी.

राजेश ने उसे प्यार से व डांट कर भी खूब समझाया पर अंजलि ने साफ कह दिया, ‘मेरे मन की सुखशांति, मेरे प्यार व खुशियों की खातिर आप को सीमा से हर तरह का संबंध समाप्त कर लेना होगा.’

‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से अपनी नजरों में गिर जाऊं. मैं कुसूरवार हूं ही नहीं, तो सजा क्यों भोगूं? अपने दिवंगत दोस्त की पत्नी को मैं बेसहारा नहीं छोड़ सकता हूं. तुम्हारे बेबुनियाद शक के कारण मैं अपनी नजरों में खुद को गिराने वाला कोई कदम नहीं उठाऊंगा,’ राजेश के इस फैसले को अंजलि किसी भी तरह से नहीं बदलवा सकी.

पहले अपने पति और अब अपनी बेटी के साथ हुए टकरावों में अंजलि को बड़ी समानता नजर आई. उस ने सीमा को ले कर राजेश पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया था और शिखा ने कमल को ले कर खुद उस पर.

वह अपने को सही मानती थी, जैसे अब शिखा अपने को सही मान रही थी. वहां राजेश अपराधी के कटघरे में खड़ा हो कर सफाई देता था और आज वह अपनी बेटी को सफाई देने के लिए मजबूर थी.

अपने दिल की बात वह अच्छी तरह जानती थी. उस के मन में कमल को ले कर रत्ती भर भी गलत तरह का आकर्षण नहीं था. इस मामले में शिखा पूरी तरह गलत थी.

तब सीमा व राजेश के मामले में क्या वह खुद गलत नहीं हो सकती थी? इस सवाल से जूझते हुए अंजलि ने सारी रात करवटें बदलते हुए गुजार दी.

अगली सुबह शिखा के जागते ही अंजलि ने अपना फैसला उसे सुना दिया, ‘‘अपना सामान बैग में रख लो. नाश्ता करने के बाद हम अपने घर लौट रहे हैं.’’

‘‘ओह, मम्मी. यू आर ग्रेट. मैं बहुत खुश हूं,’’ शिखा भावुक हो कर उस से लिपट गई.

अंजलि ने उस के माथे का चुंबन लिया, पर मुंह से कुछ नहीं बोली. तब शिखा ने धीमे स्वर में उस से कहा, ‘‘गुस्से में आ कर मैं ने जो भी पिछले दिनों आप से उलटासीधा कहा है, उस के लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं. आप का फैसला बता रहा है कि मैं गलत थी. प्लीज मम्मा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

अंजलि ने उसे अपने सीने से लगा लिया. मांबेटी दोनों की आंखों में आंसू भर आए. पिछले कई दिनों से बनी मानसिक पीड़ा व तनाव से दोनों पल भर में मुक्त हो गई थीं.

उस के बुलावे पर वंदना उस से मिलने घर आ गई. कमल के आफिस चले जाने के कारण अंजलि के लौटने की खबर कमल तक नहीं पहुंची.

वंदना को अंजलि ने अकेले में अपने वापस लौटने का सही कारण बताया, ‘‘पिछले दिनों अपनी बेटी शिखा के कारण राजेश और सीमा को ले कर मुझे अपनी एक गलती…एक तरह की नासमझी का एहसास हुआ है. उसी भूल को सुधारने को मैं राजेश के पास बेशर्त वापस लौट रही हूं.

‘‘सीमा के साथ उस के अनैतिक संबंध नहीं हैं, मुझे राजेश के इस कथन पर विश्वास करना चाहिए था, पर मैं और लोगों की सुनती रही और हमारे बीच प्रेम व विश्वास का संबंध कमजोर पड़ने लगा.

‘‘अगर राजेश निर्दोष हैं तो मेरा झगड़ालू रवैया उन्हें कितना गलत और दुखदायी लगता होगा. बिना कुछ अपनी आंखों से देखे, पत्नी का पति पर विश्वास न करना क्या एक तरह का विश्वासघात नहीं है?

‘‘मैं राजेश को…उन के पे्रम को खोना नहीं चाहती हूं. हो सकता है कि सीमा और उन के बीच गलत तरह के संबंध बन गए हों, पर इस कारण वह खुद भी मुझे छोड़ना नहीं चाहते. उन के दिल में सिर्फ मैं रहूं, क्या अपने इस लक्ष्य को मैं उन से लड़झगड़ कर कभी पा सकूंगी?

‘‘वापस लौट कर मुझे उन का विश्वास फिर से जीतना है. हमारे बीच प्रेम का मजबूत बंधन फिर से कायम हो कर हम दोनों के दिलों के घावों को भर देगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है.’’

अंजलि की आंखों में दृढ़निश्चय के भावों को पढ़ कर वंदना ने उसे बडे़ प्यार से गले लगा लिया.

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मायूस मुसकान: भाग 3- आजिज का क्या था फैसला

मुसकान फफकफफक कर रो रही थी. ऐशा भी आज उसे खुल कर रो  लेने देना चाहती थी. फिर भी यह चाहती थी कि वह अपनी मां से बात करे, उस की खामियां न खोजे. ‘‘तुम तो उफनती नदी सी हो गई हो, जिस का बहाव सिर्फ तबाही मचा सकता है. मुसकान एक बार शांत हो जाओ वरना न जाने अपनी मां से क्या भलाबुरा कह बैठोगी आज. फिर मुंह से निकली बात कभी वापस तो नहीं ली जाती न? तुम्हारे अंदर के ज्वार को एक बार शांत हो जाने देना जरूरी है. मुसकान तुम कहती जाओ मैं सुनती जाऊंगी बगैर कोई उपदेश दिए,’’ ऐशा बोली.

मुसकान जब रो कर थक जाती फिर कहने लगती. अंत में जब वह खास मुद्दे पर आई तो ऐशा गहरे सोच में पड़ गई.

‘‘मुसकान पर यह तो हर मांबाप की ख्वाहिश होती है कि वह अपने बच्चों को विवाहित देखे, उन की संतान को देखे. तुम क्यों ताउम्र कुंआरी रहना चाहती हो? क्यों संतान पैदा नहीं करना चाहती? तुम तो अपने प्यार की बगिया सजा सकती हो. देखो रोहित है न तुम्हारे जीवन में, तुम्हारी हां होने की राह देख रहा है बस, उस के मातापिता भी तुम से मिल चुके हैं, तुम्हें कितना पसंद करते हैं. उस से विवाह कर तुम दोनों रोज साथ में दफ्तर आनाजाना प्रेम की फुहारों का आनंद लेना. यह तो तुम्हारा प्रेमविवाह होगा. न कोई बंदिश न ही कोई घुटन.’’

‘‘हां लेकिन अपनी मां का क्या करूं? कहती हैं अरेंज्ड मैरिज करनी है वरना लोग क्या कहेंगे? आज भी उन्हें रिश्तेदारों और समाज की पड़ी है, मु  झ से कोई वास्ता नहीं. भैया की तो अरेंज्ड मैरिज ही थी, क्या परिणाम निकला? पापा व हमारी विधवा बूआ ने उसे व उस की पत्नी को कभी एक न होने दिया. भैया और भाभी उन्हें अपने साथ कैसे रखते जब वे बातबात पर भाभी पर कोई न कोई तोहमत लगाते. हम दोनों भाईबहन कभी उन के सामने अपनी बात तो रख ही न पाए. आखिर भाभी ने ही भैया से तलाक ले लिया. अब भैया ने अपने साथ काम करने वाली लड़की से दूसरी शादी कर ली है और मेरे मातापिता से अलग घर ले कर रह रहे हैं.

‘‘अब भी मां नहीं सम  झीं. जो जिंदगी स्वयं जी, वही हमें देना चाहती हैं. सिर्फ    झूठे दिखावे और मानप्रतिष्ठा को बचाने के लिए मेरी अरेंज्ड मैरिज कर देना चाहती हैं, सारे रिश्तेदारों को जमा कर रीतिरिवाजों को ढोना चाहती हैं और उन का बो  झ मु  झ पर भी लाद देना चाहती हैं, जबकि हमारे स्वयं के परिवार और रिश्तेदारों में ही एका नहीं. फिर दूसरी तरफ से रोहित के रिश्तेदार होंगे. आज ब्याह के गवाह बनेंगे कल से आरोपप्रत्यारोप और फिर हम

दोनों की सारी जिंदगी तेरे रिश्ते मेरे रिश्ते करते बीत जाएगी.

‘‘आज भी मां पापा को सपोर्ट कर रही हैं, हमें नहीं. जबकि दोनों कभी सुख से न रह सके, कभी एकदूसरे को देख कर मुसकराए नहीं. ऐसा महसूस होता है कि हम प्रेम की पैदाइश नहीं, एक बलात्कार का प्रतिफल हैं. स्वयं बीमार रहती हैं, मु  झे भी शायद मानसिक रूप से बीमार कर देंगी. स्वयं तो अपने लिए आवाज उठा न पाईं, जब देखो पापा की शिकायत  मु  झ से करती हैं, मैं क्या करूं किस रिश्ते को छोड़ूं और किस को निभाऊं?’’

‘‘उफ तो यह बात है, फिर तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘मैं अविवाहित रहना मंजूर करूंगी, किंतु अपने मातापिता की तरह विवाहित नहीं. यदि मैं विवाह करूं तो हमारा विवाह हमारे लिए होगा,’’ मुसकान की उंगलियां लैपटौप के कीबोर्ड पर चल रही थीं और आंखें स्क्रीन पर कुछ ढूंढ़ रही थीं.

करीब 5 मिनट बाद उस ने लैपटौप शट डाउन किया और मुसकरा कर बोली, ‘‘मां को फोन कर अपना फैसला सुनाने जा रही हूं, शादी अपने हिसाब से और जब, जहां मेरा मन चाहेगा वहां करूंगी.’’

ऐशा ने उसे मुसकरा कर देखा. मुसकान भी मुसकराई शायद आज बरसों की मायूसी दूर हुई थी.

उस ने मां को फोन किया, ‘‘मां मैं और रोहित कोर्ट मैरिज कर रहे हैं, हमें आप के और आप के रिश्तेदारों, रीतिरिवाजों में कोई दिलचस्पी नहीं. मेरे दोस्त इस विवाह के गवाह बन अपने हस्ताक्षर कर देंगे.’’

‘‘यह तुम बहुत गलत कर रही हो. एक तो हमें अपने हिसाब से लड़का देखने न दिया, विवाह की सूचना भी नहीं दी और न ही हमें आमंत्रित किया. क्या इसीलिए तुम्हें बेटे के समान पालापोसा, पढ़ायालिखाया?’’

‘‘आप और पापा ने सिर्फ अपना फर्ज निभाया, मेरे लिए स्पैशली कुछ नहीं किया. इसलिए मु  झ पर एहसान जताने की कोशिश मत करो. जकड़ी रहो पापा और दादी द्वारा दी गई रूढि़यों में. मैं चाहती थी कि तुम अब तो अपनी बेटी को सपोर्ट कर घर में और स्वयं में बदलाव लाओ. आखिर अब आप को किस का डर है? आप के बच्चे आप के साथ हैं. लेकिन नहीं आप को तो उन्हीं ढकोंसलों में जीने की आदत हो चुकी है. लेकिन मैं आप सभी के इस बंधन में और ज्यादा रहने वाली नहीं, बाय.’’

‘‘पर मुसकान सुनो तो…’’ दूसरी तरफ से आवाज आई, लेकिन मुसकान फोन काट चुकी थी.

मां ने कई बार उसे फोन किया, लेकिन मुसकान ने उठाया ही नहीं और न ही वह अपनी मां के व्हाट्सऐप संदेशों के जवाब दे रही थी.

15 दिन मानो पलक   झपकते ही बीत गए, मुसकान ने यह पूरा समय शौपिंग में बिताया.

आखिर वह दिन आ ही गया जब उसे कोर्ट में दुलहन के लिबास में पहुंचना था. वह पहले से ही बुक्ड ब्यूटीपार्लर गई. ब्यूटीशियन उस का मेकअप कर रही थी. मुसकान मन ही मन अति प्रसन्न महसूस कर रही थी मानो बरसों की गुलामी से नजात पाई हो. उस के मन की खुशी चेहरे पर परीलक्षित हो रही थी. कभीकभी वह सामने लगे आईने में स्वयं को देख मुसकरा उठती. उसे बेसब्री से इंतजार था कि कब वह और रोहित एक हो जाएं और प्यार की दुनिया बसाएं. जहां सिर्फ वह और रोहित हों, मीनमेख, खामियां देखने और ढूंढ़ने वाला कोई न हो.

‘‘आप की आखों में आई लाइनर बहुत उभर कर आया है मुसकान मैम. जरा अपनी आंखें आईने में देखिए तो,’

’ ब्यूटीशियन ने अपने हाथ से आंखों का मेकअप पूरा करते हुए कहा.

जैसे ही उस ने आईना देखा, सुर्ख लिपस्टिक लगे उस के होंठ मुसकरा उठे. उसे तो मालूम ही न था कि वह कभी इतनी सुंदर भी दिखाई दे सकती है.

‘‘सचमुच मन की खुशी चेहरे की रंगत निखार देती है,’’ वह धीरे से बुदबुदाई.

‘‘जी मैम, आप ने कुछ कहा?’’

‘‘नहीं कुछ नहीं, तुम अपना काम जारी रखो.’’

बीच में उस का फोन बज उठा. शायद रोहित का फोन होगा, सोचते हुए उस ने फोन   की स्क्रीन को देखा. स्क्रीन पर ‘मौम’ ब्लिंक हो रहा था. उसने फोन स्विचऔफ कर दिया. फिर से ब्यूटीशियन से अपना मेकअप करवाने लगी.

3 घंटे में मुसकान दुलहन के लिबास में तैयार हुई. ऐशा सैलून से बाहर उस की प्रतीक्षा कर रही थी.

‘‘वाऊ, लवली… कितनी सुंदर लग रही हो तुम मुसकान,’’ ऐशा ने मोबाइल से उस की तसवीरें खींच ली.

थोड़ी ही देर में रोहित दूल्हा बना कुछ दोस्तों के साथ गाड़ी से वहां पहुंचा.

कोर्ट तक पहुंचते हुए दोनों के करीब 25 मित्र जमा हो चुके थे.

रजिस्ट्रार औफिस में जैसे ही उन का नंबर एवं नाम पुकारा गया दोनों कमरे के अंदर गए. कुछ कागजों पर दोनों ने दस्तखत किए. विवाह अधिकारी ने भी उन घोषणापत्रों पर दस्तखत किए और 3 गवाहों के भी दस्तखत लिए गए जो उन के दफ्तर के कलीग एवं मित्र ही थे.

अब मुसकान एवं रोहित कानूनन पतिपत्नी बन चुके थे. विवाह अधिकारी समेत उन के मित्रों ने उन्हें खूब बधाइयां एवं शुभकामनाएं दीं.

वहां से रवाना हो कर दोनों नए घर में पहुंचे जहां उन्होंने सब से अलग अपनी नई दुनिया बसाई थी. हां, रोहित ने विवाहपूर्व एक छोटा सा सेमीफर्निश्ड फ्लैट खरीद लिया था. सभी मित्र उन्हें वहां छोड़ अपने घरों को विदा हो गए थे. रोहित और मुसकान आलिंगनबद्ध हो एकदूसरे को निहार रहे थे. कमरे में मधुर संगीत बज रहा था. नए घर और विवाह की खुशी में रात कब बीत गई मालूम ही न हुआ. सुबह की चाय बना मुसकान ने बाल बांध कर काम के लिए कमर कस ली थी. रोहित भी उस के काम में हाथ बंटाने लगा था. दोनों को मिलजुल कर उस मकान को आशियाना जो बनाना था.

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