Short Story: साधु बने स्वादु

फी ता कटा, फ्लैशगनें चमकीं, तालियां बजीं. मेजबान ने स्वामीजी के चरण छुए और आशीर्वाद प्राप्त किया. बाद में उन्हें ले कर आभूषणों का अपना आलीशान शोरूम दिखाने लगा.  आजकल यह दृश्य आम हो गया है. अब दुकानों, शोफीता कटा, फ्लैशगनें चमकीं, तालियां बजीं. मेजबान ने स्वामीजी के चरण छुए और आशीर्वाद प्राप्त किया. बाद में उन्हें ले कर आभूषणों का अपना रूमों का उद्घाटन करने के लिए झक सफेद कपड़ों वाले नेताजी या मंत्रीजी की जरूरत नहीं रह गई है बल्कि यह काम गेरुए वस्त्रों में लिपटा साधु करता है. दुनिया भर को मोहमाया से दूर रहने के कड़वे उपदेश पिलाने वाले बाबा इन दिनों दुकानों, पार्लरों के फीते काट रहे हैं. हंसहंस कर फोटो खिंचवा रहे हैं. धनिकों को साधु रखने का शौक होता है. जैसे चौकीदार रखा, रसोइया रखा, माली रखा उसी तर्ज पर एक स्वामी भी रख लिया. बस, उसे डांटते नहीं हैं, उस पर हुक्म नहीं चलाते.

उधर दुनियादारी को त्याग चुका साधु भी इन दुनियादारों के यहां पड़ा रहता है. उन के खर्चे से सैरसपाटे करता रहता है. आखिर अनमोल प्रवचनों का पारिश्रमिक तो उसे वसूलना ही है. साधु कभी भी गरीबों के यहां निवास नहीं करते. इस की वजह वे बताते हैं कि गरीबों पर आर्थिक बोझ न पड़े इसलिए. पर वे तो साधारण आर्थिक स्थिति वालों के यहां भी नहीं रुकते. दरअसल, साधारण आदमी उन की फाइवस्टार सेवा नहीं कर सकता. साधुओं का यह मायाप्रेम नहीं तो और क्या है?

‘‘भक्त का अनुरोध मानना ही पड़ता है,’’ साधुओं का जवाब होता है, ‘‘वह दिनरात हमारी सेवा करता है, हमारी सुखसुविधा का खयाल रखता है. क्या हम उस के लिए एक फीता नहीं काट सकते? हमारा काम ही आशीर्वाद देना है.’’

‘‘पर आप तो जनता से मोहमाया से मुक्त होने का आह्वान करते हैं.’’

‘‘करते हैं न. तब भी करते हैं जब किसी शोरूम का उद्घाटन करने जाते हैं.’’

‘‘जो भक्त माया इकट्ठी करने में लगा हो उसे आप अपरिग्रह का उपदेश क्यों नहीं देते?’’

‘‘देते हैं. जब उस के पास उस की आवश्यकताओं से अधिक धन हो जाए तभी वह अपरिग्रह की ओर मुड़ेगा. हर एक की तृप्ति का स्तर अलगअलग होता है. जब उस की इच्छाएं तृप्त हो जाएंगी तो वह अपनी सारी दौलत रास्ते में लुटा देगा.’’

‘‘और आप की तरह दीक्षा ले लेगा. पर संन्यास लेने से पहले इस तरह का वैभव प्रदर्शन करने के बजाय क्या वह इस धन से कोई स्कूल या अस्पताल नहीं बनवा सकता?’’

साधु के पास इस का जवाब कभी नहीं होता है.

जो लोग भूखे को रोटी देने के बजाय कुत्ते को देते हैं वे संन्यास लेने से पहले लोगोें को अपने लुटाए हुए हीरेजवाहरातों पर कुत्तों की तरह टूटते देख कर फूले नहीं समाते. यह मानवता का अपमान नहीं तो क्या है?  जब चातुर्मास का मौसम आता है तो मोहमाया से मुक्त ये साधु बैंडबाजे सहित मोहमाया की दुनिया में आते हैं और तड़कभड़क भरे हौल में अपने भक्तों से सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का आह्वान करते हैं.

क्या इन बैरागियों को इतना भी नहीं मालूम कि जिन भक्तों को उन के प्रवचनों से लाभ उठाना होगा, वे  खुद चल कर उन के आश्रम में आएंगे?

हां, इन्हें इतना तो मालूम है कि न तो इन के उपदेशों में ताकत है और न ही इन के भक्त इतने बेवकूफ हैं कि अपनी मोटी कमाई छोड़ कर इन के नीरस प्रवचन सुनें, इसलिए कुआं खुद ही सांसारिक सुखों से तर गले वालों के पास चला आता है. भक्त लोग भी इन के भाषण सिनेमा या नाटक देखने की तर्ज पर सुनने चले आते हैं.  ऐसे ही मोहमाया के संसार में घुसने   को छटपटा रहे एक साधु से मैं ने  बातचीत की. मैं ने उसे सिर्फ नमस्कार किया, चरण नहीं छुए. मैं ने देखा कि उस के चेहरे पर नाराजगी  के भाव थे. उस के चेलेचपाटे भी खुश नहीं दिखे बातचीत के दौरान मैं ने

उस से पूछ ही लिया, ‘‘आप मेरे अभिवादन के तरीके से खुश नजर नहीं आए?’’

‘‘हां, बडे़ेबड़े उद्योगपति, राजनेता मेरे पैर छूते हैं और तुम ने ऐसे नमस्कार किया जैसे किसी दोस्त को हैलोहाय कर रहे हो. यह तो भारतीय परंपरा नहीं है किसी आदरणीय व्यक्ति का अभिवादन करने की.’’

‘‘आप तो संन्यासी हैं. आप ने सांसारिक विकृतियों पर विजय पाई है. आप को क्रोध क्यों आया?’’ मैं ने तड़ाक से सवाल किया जिसे सुन कर उन के चेलों ने मुझे बदतमीज, पापी कहा.

‘‘आप जब अपने शिष्यों को क्रोध पर विजय प्राप्त करना नहीं सिखा सके तो दुनिया को क्या सिखा पाएंगे?’’

‘‘बदतमीज, इतने बड़े स्वामीजी से बोलने का यह कोई तरीका है? जानता नहीं, बड़ेबड़े लोग इन के पैर छूते हैं?’’ एक शिष्य भड़का.

‘‘यानी इन्हें घमंड है कि बड़ेबड़े लोग इन के पैर छूते हैं. इसे ही शायद मद कहते हैं.’’

‘‘पापी, जानता नहीं कि ये सांसारिक मोहमाया से परे हैं? हजारों लोग इन के चरणों में चांदी, सोना, हीरे चढ़ाते हैं, देखा नहीं? चलो हटो, दूसरों को आने दो,’’ और भक्तों ने मुझे चढ़ावे में आया धन बताया.

‘‘नहीं, आप के ये स्वामीजी मद, लोभ और क्रोध से मुक्त नहीं हुए हैं. बारबार ये समाज में लौटते हैं. इस का मतलब यह है कि ये मोह से मुक्त नहीं हुए हैं. क्या जरूरत है इन्हें समाज में आने की, जिसे इन्होंने त्याग दिया है?’’

‘‘आप यहां से चले जाइए वरना किसी ने कुछ कर दिया तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे,’’ मुझे चेतावनी दी गई.

मैं कहना चाहता था कि जब आप क्रोध, लोभ, मद और मोह से मुक्त नहीं हैं तो काम से भी मुक्त नहीं होंगे. फिर यह साधु का मेकअप क्यों? पर मुझे धक्के मार कर निकाल दिया गया. मेरा विश्वास है कि सब से ज्यादा सांसारिक सुखों में लीन ये साधुस्वामी ही हैं. बिना कुछ किए, सिर्फ गैरव्यावहारिक भाषण झाड़ कर ये ऐशोआराम से रहते हैं. इन के आश्रम सभी सुखसुविधाओं से युक्त रहते हैं. भोग और संभोग की पूरी व्यवस्था रहती है. इसीलिए तो जिनजिन आश्रमों पर पुलिस के छापे पड़े हैं,आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई है. एक साधु के आश्रम में शराब, ब्लू फिल्में और लड़कियां मिलने का क्या मतलब है? ये पाखंडी लोग दुनिया की कठिनाइयों से नहीं लड़ सकते और समाज से पलायन कर जाते हैं. पर एकांत में सांसारिक सुख और भी याद आते हैं इसलिए किसी न किसी बहाने ये समाज में लौटते हैं. कभी चातुर्मास के बहाने या किसी दुकान का उद्घाटन करने या किसी भक्त के विवाह में आशीर्वाद देने के बहाने.

इन के आश्रम अपराधियों के क्लब होते हैं. राजनेता, तस्कर, मिलावट- बाज, काला बाजारिए, सट्टेबाज इन के यहां आपस में मिलते हैं और अपने भावी कार्यक्रम तय करते हैं. क्या जरूरत है किसी मंत्री को इन के आश्रम में जाने की और इन का आशीर्वाद पाने की? आम आदमी को तो ये साधु कभी आश्रम में बुला कर आशीर्वाद नहीं देते.  इन के आश्रम सिर्फ पूंजीपतियों, राजनेताओं के लिए ही खुले होते हैं. आम आदमी को ये सिर्फ दर्शन देते हैं.  इन के आश्रम में सिर्फ पूंजीपतियों की एयरकंडीशंड कारें तैनात रहती हैं. ये पाखंडी स्वामी यों तो समाजसुधार का ढिंढोरा पीटते रहते हैं पर आज तक कोई साधु किसी समस्याग्रस्त झोपड़पट्टी में नहीं गया है, बाढ़पीडि़त क्षेत्र में नहीं गया है, महामारी प्रभावित क्षेत्र में कदम तक नहीं रखा है. और तो और इन्होंने कभी किसी मलिन बस्ती में अपना प्रवचन भी नहीं दिया है क्योंकि वहां ग्लैमर नहीं है, प्रसिद्धि नहीं है, माल नहीं है, माया नहीं है जिस के लिए ये मरे जाते हैं.

Family Drama In Hindi- अब पता चलेगा: राधा क्या तोड़ पाई बेटी संदली की शादी

28दुबई से संदली उत्साह से भरे स्वर में अपने पापा विकास और मम्मी राधा को बता रही थी,”पापा, मैं आप को जल्दी ही आर्यन से मिलवाउंगी. बहुत अच्छा लड़का है. मेरे साथ उस का एमबीए भी पूरा हो रहा है. हम दोनों ही इंडिया आ कर आगे का प्रोग्राम बनाएंगे.”

विकास सुन कर खुश हुए, कहा,”अच्छा है,जल्दी आओ, हम भी मिलते हैं आर्यन से. वैसे कहां का है वह?”

”पापा, पानीपत का.”

”अरे वाह, इंडियन लड़का ही ढूंढ़ा तुम ने अपने लिए. तुम्हारी मम्मी को तो लगता था कि तुम कोई अंगरेज पसंद करोगी.‘’

संदली जोर से हंसी और कहा,”मम्मी को जो लगता है, वह कभी सच होता है क्या? फोन स्पीकर पर है पर मम्मी कुछ क्यों नहीं बोल रही हैं?”

”शायद उसे शौक लगा है आर्यन के बारे में जान कर.”

राधा का मूड बहुत खराब हो चुका था. वह सचमुच जानबूझ कर कुछ नहीं बोलीं.

जब विकास ने फोन रख दिया तो फट पड़ीं,”मुझे तो पता ही था कि यह लड़की पढ़ने के बहाने से ऐयाशियां करेगी. अब पता चलेगा पढ़ने भेजा था या लड़का ढूंढ़ने.”

”क्या बात कर रही हो, जौब भी मिल ही जाएगा. अब अपनी पसंद से लड़का ढूंढ़ लिया तो क्या गलत किया? संदली समझदार है, जो फैसला करेगी, अच्छा ही होगा.”

“अब पता चलेगा कि इस लड़की की किसी से निभ नहीं सकती, न किसी काम की अकल है, न कोई तमीज.और जो यह लोन ले रखा है, शादी कर के बैठ जाएगी तो कौन उतारेगा लोन? मुझे पता ही था कि यह लड़की कभी किसी को चैन से नहीं रहने दे सकती,” राधा जीभर कर संदली को कोसती रहीं.

विकास को उन पर गुस्सा आ गया, बोले,”तुम्हें तो सब पता रहता है. बहुत अंतरयामी समझती हो खुद को.पता नहीं कैसे इतना ज्ञानी समझती हो खुद को.

“आसपड़ोस की अपनी जैसी हर समय कुड़कुड़ करने वाली लेडीज की बातों के अलावा कुछ भी पता है कि क्या हो रहा है दुनिया में?”

हर बार की तरह दोनों का गुस्स्सा रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था.

विकास ने जूते पहनते हुए कहा, “मैं ही जा रहा हूं थोड़ी देर बाहर, अकेली बोलती रहो.”

यह कोई पहली बार तो हुआ नहीं था. बातबेबात किचकिच करने वाली राधा का तकियाकलाम था,’अब पता चलेगा.’

बड़ी बेटी प्रिया कनाडा में अपनी फैमिली के साथ रहती थी, संदली फिलहाल दुबई में थी. कोई भी कैसी भी बात करता, राधा हमेशा यही कहतीं कि उन्हें सब पता था. उन का कहना था कि उन्होंने इतनी दुनिया देखी है, उन्हें हर बात का इतना ज्ञान है कि कोई भी बात उन से छिपी नहीं रहती, फिर चाहे कुकिंग की बात हो या फैशन की.

यहां तक कि राजनीति की हलचल पर भी कोई बात होती तो उन का कहना होता कि उन्हें तो पता ही था कि फलां पार्टी यह करेगी. 1-2 दिन पहले वे किसी से कह रहीं थीं कि उन्हें तो पता ही था कि अब किसान आंदोलन होगा.

उन की बात सुनते हुए विकास ने बाद में टोका था,”ऐसी हरकतें क्यों करती हो, राधा? किसान आंदोलन होगा, यह भी तुम्हें पता था, कुछ तो सोच कर बोला करो.”

”अरे,मुझे पता था कि कुछ ऐसा होगा.”

विकास चुप हो गए, पता नहीं कौन सी ग्रंथि है राधा के मन में जो वह हर बात में घर में किसी न किसी बात में हावी होने की कोशिश करती थी. कई बार विकास अपने रिश्तेदारों के सामने राधा की बातों से शर्मिंदा भी हो जाते थे. बेटियां भी इस बात से हमेशा बचती रहीं कि राधा के सामने उन की फ्रैंड्स आएं.

विकास अंधेरी में एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थे. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी पर राधा कंजूस भी थी और बहुत तेज भी, साथ ही उन्हें अपने उस ज्ञान पर भी बहुत घमंड था जो ज्ञान दूसरों की नजर में मूर्खता में बदल चुका था. अजीब सी आत्ममुग्ध इंसान थीं.

घर में उन के व्यवहार से सब हमेशा दुखी रहते. राधा ने संदली को अगले दिन फोन किया और सीधे पूछा,”अभी शादी कर लोगी तो तुम्हारा लोन कौन चुकाएगा?”

”मैं इंडिया आ कर जौब करूंगी, लोन उतार दूंगी. अभी हम दोनों सीधे मुंबई ही आ रहे हैं, आर्यन को आप लोगों से मिलवा दूं?”

राधा ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. संदली ने उदास हो कर फोन रख दिया. संदली और आर्यन को एअरपोर्ट से लेने विकास खुद जा रहे थे.

प्रोग्राम यह तय हुआ कि विकास औफिस से सीधे एअरपोर्ट चले जाएंगे. देर रात सब घर पहुंचे तो राधा ने सब के लिए डिनर तैयार कर रखा था. आर्यन उन्हें पहली नजर में ही बहुत अच्छा लगा पर बेटी से मन ही मन नाराज थीं कि पढ़ने भेजा था, लड़का पसंद कर के घर ले आई है.

उन्हें विकास पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था कि अभी से कैसे आर्यन को दामाद समझ रहे हैं. संदली फोन पर पहले ही बता चुकी थी कि पानीपत में आर्यन के पिता का बहुत लंबाचौड़ा बिजनैस है. बहुत धनी, आधुनिक परिवार है. 2 ही भाई हैं, आर्यन बड़ा है, छोटा भाई अभय अभी पढ़ रहा है.

आर्यन से मिलने, उस से बातें करने के बाद कोई कारण ही नहीं था कि राधा कुछ कमी निकालती पर यह बात हजम ही नहीं हो रही थी कि बेटी ने अपने लिए लड़का खुद पसंद कर लिया है.

विकास को भी आर्यन बहुत पसंद आया था. वह ऐसे घुलमिल गया था कि जैसे कब से इस परिवार का ही सदस्य है.

डिनर करते हुए संदली ने कहा,”मम्मी, हम दोनों अब कल ही दिल्ली जा रहे हैं. वहां आर्यन के पेरैंट्स हमें एअरपोर्ट पर लेने आ जाएंगे. मुझे भी उन से मिलना है. मैं जल्दी ही वापस आ जाउंगी.”

राधा ने कहा,”मुझे तो पता ही था कि तुम हम से पूछोगी भी नहीं, खुद ही होने वाले ससुराल पहुंच जाओगी.अब पता चलेगा.’’

विकास ने आर्यन की उपस्थिति को देखते हुए मुसकरा कर बात संभाली,”यह तो अच्छा ही है न कि तुम अपनी बेटी को जानती हो, तुम्हें पता था, अच्छा है.”

संदली ने मां की बात पर ध्यान ही नहीं दिया. युवा मन अपने सपनों में खोया था, प्यार से बीचबीच में एकदूसरे को देखते संदली और आर्यन विकास को बड़े अच्छे लगे.

रात को अकेले में राधा भुनभुनाती ही रहीं. विकास ने टोका,”कभी तो किसी बात पर खुश रहना सीखो, राधा. इतना अच्छा लड़का पसंद किया है संदली ने. बेटी बहुत समझदार है हमारी, सब देखसुन कर ही मिलवाने लाई होगी.”

”यह शादी कर के बहुत पछ्ताएगी.देखना, इस की किसी से नहीं निभ सकती, कुछ नहीं आता है, बस सैरसपाटा, आराम करना आता है.अब पता चलेगा, यह शादी के बाद बैठ कर रोएगी.”

विकास को गुस्सा आ गया,”कैसी मां हो, बेटी के लिए बुरा सोचती हो, शेम औन यू,राधा.”

संदली को मां का मन अच्छी तरह पता था. वह अंदर से दुखी भी थी पर आर्यन से बहुत प्यार करने लगी थी, अब विवाह करना चाहती थी पर मां इस विषय पर उस के लिए अच्छा नहीं सोचेंगी, पता था उसे.

अगले दिन आर्यन और संदली चले गए. फिर एक दिन प्रिया का फोन आया, वह संदली के लिए खुश थी.

कहने लगी,”आर्यन बहुत अच्छे परिवार से है, संदली ने नेट पर देख लिया है, उन के बिजनैस के बारे में वह सब जानती है, सब देख कर ही उस ने आर्यन से शादी का मन बनाया है. ऐसा लड़का तो हम भी उस के लिए नहीं ढूंढ़ सकते थे.”

राधा बिफरी,”मुझे पता था तुम उस की ही साइड लोगी.”

”ओह मां, यह जो आप को हर बात पता होती है न, बड़े परेशान हैं हम इस से, कभी तो कोई बात आराम से सुन लिया करो.”

थोड़ी देर बाद फोन रख दिया गया. संदली ने वहां से आर्यन के पेरैंट्स अनिल और मधु से भी विकास और राधा की बात करवा दी. विकास को दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा लगा, दोनों संदली से मिल कर खुश थे. अब जल्दी से जल्दी उसे अपनी बहू बनाना चाहते थे.

विकास ने भी इस विवाह के लिए सहमति दे दी तो उन्होंने कहा,”आप भी आ कर हमारा घर देख लीजिए, तसल्ली कर लीजिए कि संदली हमेशा खुश रहेगी. यह बात विकास को बहुत अच्छी लगी.

उन्होंने कहा,”हम भी जल्दी ही आते हैं.”

दोनों परिवार अब आगे का प्रोग्राम बनाने लगे. संदली 2 दिन में वापस आ गई.

बैग खोलते हुए ढेरों गिफ्ट्स दिखाते हुए बोली,”पापा, मम्मी, देखो उन लोगों ने तो गिफ्ट्स की बौछार कर दी. इतने प्यार से मिले कि क्या बताऊं. पापा, मैं बहुत खुश हुई वहां जा कर.”

राधा ने सब सामान देखा, कहा कुछ नहीं, उठ कर अपने काम में लग गईं. 10 दिन बाद संदली चली गई. कोर्स पूरा हो चुका था. संदली को वहीं नई नौकरी जौइन करनी थी.

आर्यन अब पानीपत में फैमिली का बिजनैस ही संभालने वाला था. अनिल और मधु मुंबई आए. होटल में ठहरे और विकास और राधा से मिलने घर आए. गजब के खुशमिजाज, सुंदर दंपत्ति को देख कर राधा हैरान थीं. वे दोनों विकास और राधा के लिए बहुत सारे गिफ्ट्स भी लाए.

राधा के हाथ का बना खाना खा कर उन की कुकिंग की खूब तारीफ की तो राधा ने कहा,”पर संदली को कुछ भी बनाना नहीं आता. पहले इसलिए बता रही हूं कि आप लोग हमें बाद में यह न कहें कि आप लोगों को बताया नहीं.”

मधु ने खुल कर हंसते हुए कहा,”बेटी बहुत प्यारी है आप की. उस ने मुझे खुद ही बता दिया कि उसे कोई काम नहीं आता और उसे हमारे यहां कुकिंग की जरूरत पड़ेगी भी नहीं. हमारे यहां 2 कुक हैं, किचन में तो मैं ही जल्दी नहीं घुसती, आजकल की लड़कियां कैरियर बनाने में मेहनत करती हैं, जब जरूरत होती है सब कर लेती हैं और वहां अकेली रह ही रही है न, बहुत कुछ अपनेआप करती भी होगी.”

राधा चुप रहीं. अनिल और मधु ने अच्छा समय साथ बिताया. जाते हुए उन्हें भी गिफ्ट्स दे कर विदा किया गया.

अब अगले हफ्ते विकास और राधा को दिल्ली जाना था. तय हुआ कि अब सगाई भी कर देते हैं और संदली को भी बुला लेते हैं.

यह सुनते ही राधा को गुस्सा आ गया, विकास से कहा,”अब फिर उस के आने का खर्चा उठाना है?अभी तो गई है.”

संदली ने यह बात सुन कर कहा,”मम्मी, आप टिकट की चिंता न करो, सरप्राइज में आर्यन ने मुझे टिकट भेज दिए हैं.”

राधा ने कहा,”मुझे पता है कोई गड़बड़ जरूर है जो वे शादी के लिए इतनी जल्दी मचा रहे हैं. इतना अच्छा परिवार संदली को बहू बनाने के लिए क्यों मरा जा रहा है? कोई बात तो है.अब पता चलेगा.’’

विकास ने कहा,”गड़बड़ तुम्हारे दिमाग में है, बस.”

संदली सीधे दिल्ली पहुंची. विकास और राधा भी पहुंच गए.

प्रिया ने कहा था कि वह सीधे शादी में ही आएगी. पानीपत में आर्यन का विशाल घर, नौकरचाकर देख कर राधा दंग रह गईं. उस पर सब का स्वभाव इतना सहज, कोई घमंड नहीं. पर आदत से मजबूर, कमी ढूंढ़ती ही रहीं, जो मिली नहीं.

राधा यह देख कर हैरान हुईं कि मधु और संदली ने फोन पर ही एकदूसरे के टच में रह कर सगाई के कपड़ों की जबरदस्त तैयारी कर रखी है. अभय संदली से खूब हंसीमजाक कर रहा था, विकास और मधु के लिए बेहद आरामदायक गेस्टरूम था, अनिल और मधु के करीब 100 लोगों के परिचितों के मौजूदगी में सगाई का फंक्शन हुआ.

विकास ने खर्चे बांटने की बात कही तो अनिल ने हाथ जोड़ दिए,”हमें कुछ नहीं चाहिए. संदली इस घर में आ रही है तो हमें खुशी से यह सब करने दें. हमें कुछ भी नहीं चाहिए.”

राधा ने अकेले में विकास से कहा,”इतना अच्छा बन कर दिखा रहे हैं, मुझे पता है ऐसे लोग बाद में रंग दिखाते हैं. अब पता चलेगा.‘’

संदली भी उन के पास ही बैठी थी.गुस्सा आ गया उसे, कहा,”मम्मी, हद होती है, इतने अच्छे लोग हैं फिर भी आप ऐसे कह रही हैं, सब कुछ उन्होंने आज मेरी पसंद का किया है, मेरी ड्रैस, ज्वैलरी सब आर्यन की मम्मी ने ली, मुझे कुछ भी लेने से मना कर दिया था, अब शादी की भी पूरी शौपिंग मुझे करवाने के लिए तैयार हैं, पर आप की बातें…उफ…”

”मुझे पता है तुम्हारी जैसी लड़कियां बाद में खूब रोती हैं.”

संदली को रोना आ गया. उस के आंसू बह निकले तो विकास ने उसे गले से लगा लिया,”संदली बेटा, मत दुखी हो, तुम्हारी मम्मी को कुछ ज्यादा ही पता रहता है.‘’

विकास और संदली दोनों राधा से नाराज थे पर राधा पर न कभी पहले कोई असर हुआ था, न अब हो रहा था.

फंक्शन से फ्री हो कर जब सब साथ बैठे, मधु ने कहा,”मुझे आप लोगों से कुछ जरूरी बात करनी है.”

सुनते ही राधा ने विकास को इशारा किया, “देखो, मैं ने कहा था न…”

राधा ने कहा,”जी कहिए.”

”देखिए, पैसे की हमारे यहां कोई कमी है नहीं, बस मेरा मन तो अपने बच्चों की खुशी में खुश होता है, मेरी इच्छा है कि शादी अब जल्दी ही कर दें, घर में रौनक हो, हमारी बेटी कोई है नहीं और मुझे संदली के साथ रहने की बहुत इच्छा है, मुझ से अब इंतजार नहीं होगा, शादी अब बहुत जल्दी हो जाए, बस यही मान लीजिए.

“तैयारी भी मैं सब कर लूंगी और हां, संदली ने जो लोन लिया है, वह भी हम चुका देंगे, अब संदली यहां फैमिली बिजनैस संभाल लेगी. उसे वहां अकेली रह कर जौब करने की जरूरत है ही नहीं. अब बच्चे मिल कर बिजनैस संभालें, हमारे पास रहें और क्या…”

विकास ने हाथ जोड़ दिए,”आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा, हम तैयार हैं. लोन चुकाने की बात आप न सोचें प्लीज, हमारा एक फ्लैट किराए पर चढ़ा है, उसे संदली को देने के लिए ही इन्वेस्ट किया था. अब उसे बेच देंगे तो लोन चुक जाएगा, कोई प्रौब्लम नहीं है. शादी जब आप कहें, हो जाएगी.”

मधु ने खुश हो कर उठ कर संदली को गले लगा लिया. खूब प्यार करते हुए बोलीं,”बस मेरी बहू अब जल्दी घर आ जाए. संदली, अब एक बार जाना और वहां से अपना सब सामान ले आओ, बस अब तो आर्यन के साथ ही घूमने जाना.”

आगे का प्रोग्राम तय होने लगा था. राधा हैरान थी कि इतनी जल्दी यह सब… ये कैसे लोग हैं? कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?

मुंबई लौटते हुए संदली ने पूछा,”मम्मी, सब ठीक लगा न आप को?”

”देखते हैं, कुछ ज्यादा ही अच्छा परिवार लग रहा है. देखते हैं कि तुम कितना खुश रहती हो इन के साथ.अब पता चलेगा…’’

संदली चुप ही रही. राधा ने फिर विकास से कहा,”आप ने सब बात खुद ही कर ली उन से, मुझ से कुछ पूछा ही नहीं.”

”पूछना क्या था, सब अच्छा ही लग रहा था, अच्छे लोग हैं.”

दोनों तरफ शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. 2 महीने बाद ही शादी थी. प्रिया भी सपरिवार आने वाली थी. संदली ने रिजाइन कर दिया और वहां से सब क्लियर कर लौट आई. मधु फोन पर ही उस से पूछपूछ कर उस की पसंद की तैयारी करने लगीं. मधु एक से बढ़ कर एक चीजें उस की पसंद से बनवा रही थीं.

राधा ने कहा,”मुझे पता ही है कि इन अमीरों के 4 दिन के चोंचले हैं, थोड़े ही दिनों में असलियत सामने आएगी, पहले तो सब अच्छा ही दिखता है.”

संदली मन ही मन बहुत उदास थी. शादी का समय था उस पर भी मां की अजीबोगरीब बातें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. जो भी तैयारी राधा कर रही थीं, बोझ समझ कर कर रही थीं, उस में बेटी को अच्छा परिवार मिलने की कोई खुशी नहीं थी. हर समय किसी न किसी बात पर आर्यन के परिवार को ले कर कुछ ऐसा कह देतीं कि संदली का चेहरा मुरझा जाता.

विकास सब समझ रहे थे पर क्या करते, राधा को कुछ कह कर घर का माहौल खराब नहीं करना चाहते थे. प्रिया भी आ चुकी थी, उस के पति विशाल और दोनों बच्चे सोनू,पिंकी मौसी की शादी को ले कर बहुत उत्साहित थे.

सब खुश थे पर राधा का स्वभाव अकसर रंग में भंग डाल देता. विकास ने अपने बजट के अनुसार सारा पैसा अनिल के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया था. सब इंतजाम आर्यन का परिवार ही देख रहा था.

शादी से 4 दिन पहले संदली अपने परिवार के साथ दिल्ली पहुंची तो आर्यन की तरफ से कई गाड़ियां उन्हें लेने आई हुई थीं.

अनिल और मधु ने खुद एअरपोर्ट पर सब का स्वागत किया और उन्हें पानीपत के ही एक होटल में ले गए, जहां सारा इंतजाम बहुत शानदार था.

रस्में बहुत खुशी से पूरी की गईं. विवाह का आयोजन शानदार रहा. सबकुछ अच्छी तरह से संपन्न हुआ. राधा परिवार सहित मुंबई लौट आईं. कुछ दिन बाद प्रिया भी वापस चली गई.

विकास औफिस के काम में व्यस्त हो गए. राधा का पुराना रवैया चलता रहा. हर बात में अब भी अपने को ही सही ठहरातीं. संदली जब फोन करती, राधा खोदखोद कर पूछतीं कि ससुराल का क्या हाल है?

संदली तारीफ करती तो कहतीं,”मुझे पता है, यह सब प्यारव्यार थोड़े दिनों की बात है. आगे पता चलेगा.”

संदली ने घर का बिजनैस संभालना शुरू कर दिया था. एक नया शोरूम खोला जा रहा था जिस की देखरेख संदली और आर्यन पर छोड़ दी गई थी, उस के लिए एक कार और ड्राइवर हमेशा रहता. वह बहुत खुश रहती. उसे सारी सुविधाएं और ढेर सारा प्यार मिल रहा था.

कुछ ही दिनों में अभय की शादी भी उस की गर्लफ्रैंड तारा के साथ तय हो गई.

राधा ने सुनते ही कहा,”संदली, अब पता चलेगा तुम्हें जब देवरानी घर आएगी और प्यार बंटेगा.”

संदली चुप रही. अभय के विवाह में राधा और विकास भी गए. अब की बार भी उन्हें बहुत सम्मान दिया गया. सब कुछ पहले की तरह अच्छी तरह से हुआ. संदली की अपनी देवरानी तारा से खूब जम रही थी. दोनों खूब मस्ती कर रही थीं.

राधा ने मुंबई आने के बाद संदली से देवरानी के हाल पूछे तो वह खूब उत्साह से तारा और अपनी खूब अच्छी दोस्ती के बारे में बताने लगी. संदली और तारा का आपस में बहनों जैसा प्यार हो गया था.

राधा ने कहा,”बेटा, मैं ने देखे हैं ऐसे रिश्ते, अब पता चलेगा थोड़े दिनों में जब यही प्यार तकरार में बदलेगा, देखना.”

आज संदली का धैर्य जवाब दे गया. विकास भी वहीं बैठे थे, फोन स्पीकर पर था, संदली फट पड़ी थी आज,”हां, मुझे पता चल चुका है कि आप के लिए हर रिश्ता बेकार है. आप को कहां किसी रिश्ते में प्यार दिखता है? मम्मी, पता नहीं क्यों आप के लिए सब बुरा ही होने वाला होता है. मुझे तो इस घर में आने के बाद यह पता चला है कि शांति से रहना कितना आसान है, प्यार दो, प्यार लो, काश कि आप को भी यह पता रहता.

“बस, यहां जो मुझे पता चला है, वह सब आप के साथ रह कर कभी पता ही नहीं चला. आप मुझे अब कभी मत बताना कि मुझे क्या पता चलेगा? मुझे जो पता चलना था, चल चुका. इतना प्यार है यहां पर, मैं कितनी खुश हूं,आगे भी खुश ही रहूंगी, मुझे तो यह पता है.”

राधा का चेहरा देखने लायक था. संदली ने कभी इस तरह बात नहीं की थी. आज अपनी बात कह कर फोन ऐसे रखा था कि राधा शर्मिंदा सी बैठी रह गई थीं. विकास तो अपनी हंसी रोकने की कोशिश में आज चुपचाप वहां से उठ कर दूसरे रूम में जा चुके थे.

Hindi Kahani : कानूनी बीड़ी का बंडल: दादा ने कैसे निबटाया केस

मुकदमा साधारण था मगर कचहरी के चक्कर लगातेलगाते सोमेश को महीनों हो चले थे. उस के पिताजी भी कई पेशियों मेें साथ गए थे. मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. विरोधी पक्ष वाले चंटचालाक थे. हर बार जोड़तोड़ कर या तो तारीख डलवा लेते या फिर कोई नया पेंच फंसा देते थे. लिहाजा, साधारण सा दिखने वाला मुकदमा खासा लंबा समय ले गया था.

शहर में सोमेश के दादा लाहौरी राम के कई मकान और दुकानें थीं. वे पटवारी के पद पर तैनात हो कर कानूनगो के पद से रिटायर हुए थे. ऊपरी कमाई से खासी बरकत थी. सस्ते जमाने में जमीनजायदाद खासी सस्ती थी. आजकल के जमाने के मुकाबले तब आम लोगों की कमाई काफी कम थी. मकान, दुकान खरीदने, बनाने का रुझान लोगों में कम ही था.

अनेक मकानों, दुकानों से किराया आ रहा था.

कभीकभार मकान या दुकान खाली करवाने या किराया वसूलने के लिए मुकदमा डालना पड़ता था.

मगर अब धीरेधीरे उन की सक्रियता कम हो चली थी. उन्होंने सब लेनदेन अपने बेटे संतराम और जवान होते पोते सोमेश को संभलवा दिया था.

संतराम भी सरकारी मुलाजिम था मगर उस में अपने रिटायर्ड कानूनगो बाप जितनी जोड़तोड़ की प्रतिभा और चालाकी न थी.

लाहौरी राम ने गरीबी और अभाव के दिनों में मेहनतमशक्कत की थी जिस से उन में स्वाभाविक तौर पर दृढ़ इच्छाशक्ति, हर स्थितिपरिस्थिति से निबटने की क्षमता विकसित हो गई थी.

वहीं संतराम जैसे मुंह में चांदी का चम्मच ले कर पैदा हुआ था. इसलिए उस मेें अपने पिता समान दृढ़ता और मजबूती न थी.

तीसरी पीढ़ी के सोमेश में हालांकि आज के जमाने का चुस्त दिमाग था. वह एम.ए. तक पढ़ा था. एक कंपनी में कनिष्ठ प्रबंधक था मगर उस में भी अपने दादा की तरह बुद्धि का कौशल दिखाने की प्रतिभा न थी.

विरोधी पक्ष यानी किराएदार पहले के किराएदारों की तुलना में चंटचालाक था.

उस की तुलना में सोमेश और उस के पिता एक तरह से अनाड़ी थे.

‘‘क्यों सोमेश, क्या हुआ मकान वाले मुकदमे में?’’ एक सुबह दादाजी ने नाश्ता करते हुए पूछा.

‘‘जी, हर पेशी पर वह तारीख बढ़वा लेता है.’’

‘‘वह किस तरह? अपना वकील क्या करता है?’’

‘‘दादाजी, पुराने वकील तो रहे नहीं. उन का लड़का इतना ध्यान नहीं देता.’’

लाहौरी राम सोचने लगे. समय सचमुच बदल गया है. उन के हमउम्र ज्यादातर तो गुजर चुके थे या फिर उन के समान रिटायर हो एकाकी जीवन बिता रहे थे.

‘‘अगली पेशी कब की है?’’

‘‘इसी महीने 19 तारीख की है.’’

‘‘ठीक है, इस पेशी पर मैं चलूंगा तेरे साथ.’’

पेशी वाले दिन दादाजी ने अपना स्थायी पहरावा सफेद धोतीकुरता पहना और सिर पर साफा बांध लिया. कलाई पर पुराने समय की आयातित घड़ी बांध ली और अपना पढ़ने का चश्मा जेब में डाल लिया.

सोमेश की मां को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘संते की बहू, जरा छोटेबड़े कुछ नोट देना, कचहरी में चायपानी देना पड़ता है.’’

‘‘दादाजी, मेरे पर्स में हैं.’’

‘‘तू अपना पर्स अपने पास रख.’’

सोमेश की मां ने 5-10 के नोटोें का एक छोटा सा पुलिंदा अपने ससुर को थमा दिया. दादाजी सारी उम्र कोर्टकचहरी आतेजाते रहे थे. वे सभी सरकारी मुलाजिमों की मानसिकता से परिचित थे. बिना चायपानी दिए कहीं कोई काम नहीं होता था. इसलिए छुट्टा रुपया जेब में रखना पड़ता था. बड़े नोट का ‘खुल्ला’ कचहरी में कभी नहीं मिलता था.

सोमेश पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर आया. दादाजी अपने पुराने वकील शंभू दयाल का तख्त ढूंढ़ने लगे.

वरिष्ठ वकील शंभू दयाल अब रिटायर हो कर घर पर आराम करते थे. उन का लड़का अवतार शरण ही अब वकालत करता था.

‘‘नमस्ते, लाहौरी रामजी, सुनाइए क्या हालचाल हैं?’’ अवतार शरण ने व्यवसायसुलभ स्वर में कहा.

‘‘सब ठीक है. बड़े बाबूजी कहां हैं?’’

‘‘वे इन दिनों घर पर आराम करते हैं जी.’’

‘‘हमारे मुकदमे की क्या पोजीशन है?’’

‘‘ठीक है, जी.’’

‘‘पेशियां बहुत पड़ चुकी हैं.’’

‘‘ऐसा है जी, पहले के मुकाबले अब मुकदमे काफी ज्यादा हैं, जज साहब हर मुकदमा लंबी पेशी पर ही डालते हैं.’’

लाला लाहौरी राम खामोश हो सब सुन रहे थे. पुराने वकील शंभू दयाल कभी इस तरह की टालने की बात नहीं करते थे. कचहरी का समय हो चला था. दादाजी अपने पोते के साथ नियत कोर्ट रूम के बाहर बरामदे में बनी बैंच पर जा बैठे.

दादाजी ने अपने कुरते की जेब से एक बीड़ी का बंडल निकाला. उन को बीड़ी का बंडल निकालते देख सोमेश बोलने को हुआ कि दादाजी, अब सार्वजनिक स्थान पर बीड़ी पीना जुर्म है, मगर जब और कई लोगों को बीड़ी पीते देखा तो चुप रह गया.

दादाजी ने एक नजर चारों तरफ घुमाई. उन की अनुभवी निगाहों ने आसपास बैठे लोगों को ताड़ा. उन में से कई ऐसे थे जिन का कोर्टकचहरी में कोई मुकदमा न था, मगर उन का रोजाना आना पक्का था.

ऐसे लोगोें में अभीलाल नाम का एक आदमी भी था जो एक पेशेवर गवाह था. ऐसे पेशेवर गवाह तो हर जगह खासकर थाना, तहसील, सरकारी दफ्तर, खजाना या कचहरी में आम मिलते थे. इन का काम अपनी फीस या चायपानी ले गवाही देना होता था.

इन की जेब में बीड़ी का बंडल तो नहीं मगर माचिस जरूर मिलती थी. किसी आसामी के मांगने पर तपाक से माचिस पेश कर देते थे. माचिस के एहसान के बदले में बीड़ी का आफर मिलना स्वाभाविक था जिसे सहर्ष कबूल कर लेते थे. कभीकभी तो बढि़या सिगरेट भी मिल जाती थी. मगर ज्यादातर व्यवहार बीड़ी के बंडल का था.

‘‘क्यों जी, माचिस है क्या?’’

अभीलाल जैसे उसी पुकार की इंतजार में था. उस ने झट से माचिस जेब से निकाली और डबिया खिसका तीली निकाली और जलाने को हुआ.

दादाजी ने बंडल से 2 बीडि़यां निकालीं. एक अपनी उंगलियों में दबाई और दूसरी अभीलाल को थमा दी. अभीलाल ने तीली जलाई और पहले दादाजी की बीड़ी सुलगाई और फिर तीली बुझा कर फर्श पर डाल दी.

मामूली बातों से आरंभ कर दादाजी ने बात का रुख वर्तमान की स्थिति पर मोड़ दिया.

‘‘आजकल लोकअदालत का बड़ा शोर है, यह क्या है?’’

‘‘लालाजी, नए जमाने का चलन है, जहां दोनों पार्टियों को राजी कर मुकदमा जल्दी खत्म किया जाता है.’’

‘‘इस मामले से सारे मुकदमे खत्म हो जाएंगे तब तेरे जैसे गवाहों की रोजीरोटी का क्या होगा?’’

इस पर अभीलाल हंसने लगा. आसपास बैठे सभी लोग भी हंसने लगे. हंसने का कारण समझ आने पर दादाजी हंसने लगे. कितना भी परिवर्तन किया जाए, कितने ही सुधार किए जाएं, क्या कभी मुकदमे, लड़ाईझगड़े समाप्त हो सकते हैं?

‘‘अपना नंबर कब आएगा?’’ दादाजी ने सोमेश से पूछा.

‘‘पिछली बार तो दोपहर बाद आवाज पड़ी थी.’’

‘‘ठीक है, तब तक मैं जरा टहल आऊं.’’

‘‘आओ भई, एकएक कप चाय हो जाए,’’ दादाजी के साथ अभीलाल भी उठ खड़ा हुआ.

चायसमोसे के दौरान दादाजी ने अभीलाल से अपनी वांछित जानकारी ले ली. मसलन, जज कैसा है? लेता है तो कितनी रिश्वत लेता है? उस का संपर्क सूत्र कौन है? आदि.

उस दिन भी तारीख पड़ गई थी मगर उस से अविचलित दादाजी अपनी हासिल जानकारी पर अमल करने में जुट गए थे. संपर्क सूत्र के जरिए जज साहब से मामला तय हो गया था. किसी को फल, किसी को ड्राईफ्रूट का टोकरा, किसी को शराब की पेटी पहुंच गई थी.

अगली 3 पेशियों के बाद मुकदमे का फैसला दादाजी के हक में हो गया था. एम.ए. तक पढ़े बापबेटा पुराने मिडल पास कानूनगो की बुद्धि की चतुराई को नहीं छू पाए थे.

Online Hindi Story : विनविन सिचुएशन

‘‘विनविनसिचुएशन वह होती है जिस में सभी पक्ष फायदे में रहें. जैसे हम ने किसी सामान को बनाने में 50रुपए लगाए और उसे 80 रुपए में बेच दिया, तो यह हमारे लिए फायदे का सौदा हुआ. लेकिन अगर वही सामान कोई व्यक्ति पहले

क्व90 में खरीदता था और अब हमारी कंपनी उसे क्व80 में दे रही है, तो यह उस का भी फायदा हुआ यानी दोनों पक्षों का फायदा हुआ. इसे कहते हैं विनविन सिचुएशन,’’ सोमेश कंपनी के नए स्टाफ को समझा रहा था.

12 साल हो गए सोमेश को इस कंपनी में काम करते हुए. अब नए लोगों को ट्रेनिंग देने का काम वही संभालता था. 12 सालों में पद, कमाई के साथसाथ परिवार भी बढ़ गया था उस का. हाल ही में वह दूसरी बार बाप बनने के गौरव से गर्वित हुआ था, लेकिन खुशी से ज्यादा एक नई जिम्मेदारी बढ़ने का एहसास हुआ था उसे. सालोंसाल वही जिंदगी जीतेजीते उकता गया था वह. उस की पत्नी रूमी बच्चों में ही उलझी रहती थी.

लंच टाइम में सोमेश जब खाना खाने बैठा, तो टिफिन खोलते ही उस ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘‘लगता है आज फिर भाभीजी ने टिंडों की सब्जी बनाई है,’’ नमनजी के मजाक में कहे ये शब्द उसे तीर की तरह चुभ गए, क्योंकि सचमुच रूमी ने टिंडों की ही सब्जी दी थी टिफिन में.

कुछ खीजता हुआ सोमेश यों ही कैंटीन के काउंटर की ओर बढ़ गया.

‘‘सर, आप अपना टिफिन खुला ही भूल आए मेज पर,’’ एक खनकती हुई आवाज पर

उस ने मुड़ कर देखा. कंपनी में नई आई हुई लड़की रम्या उस का टिफिन उठा कर उस

के पास ले आई थी. यों कंपनी में और भी लड़कियां थीं, लेकिन सोमेश उन सब पर

थोड़ा रोब बना कर ही रखता था. इतने बेबाक तरीके से कोई लड़की उस से कभी बात नहीं करती थी.

‘‘सर, यह लीजिए मैं इसी टेबल पर आप का टिफिन रख देती हूं.’’

‘‘सर, आप अगर बुरा न मानें तो मैं भी इधर ही खाना खा लूं? उस बड़ी वाली मेज पर तो जगह ही नहीं है.’’

सोमेश ने बड़ी टेबल की ओर नजर दौड़ाई. सचमुच नए लोगों के आ जाने से बड़ी टेबल पर खाली जगह नहीं बची थी. उस ने सहमति में सिर हिलाया.

टिफिन रखते हुए रम्या के मुंह से निकल गया, ‘‘वाह, मेरी पसंदीदा टिंडों की सब्जी,’’

और फिर सोमेश की ओर देख कर कुछ ठिठक गई और चुपचाप अपना टिफिन खोल कर खाना खाने लगी.

बरबस ही सोमेश की नजर भी रम्या के टिफिन में रखे आलू के परांठों पर पड़ गई. रम्या बेमन से आलू के परांठे खा रही थी और सोमेश भी किसी तरह सूखी रोटियां अचार के साथ निगल रहा था.

‘‘सर, आप सब्जी नहीं खा रहे?’’ आखिरकार रम्या बोल ही पड़ी.

‘‘मुझे टिंडे पसंद नहीं, सोमेश ने बेरुखी से कहा तो रम्या ने उस की ओर आश्चर्य से देखा.’’

रम्या की निगाहों से साफ जाहिर था कि उस की पसंदीदा सब्जी की बुराई सुन कर उसे अच्छा नहीं लगा.

‘‘खाना फेंकना नहीं चाहिए सर,’’ रम्या ने किसी दार्शनिक की तरह कहा तो सोमेश को हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, तो तुम ही खा लो यह टिंडों की सब्जी.’’

‘‘सच में ले लूं सर?’’ रम्या को जैसे मनचाही मुराद मिल गई.

‘‘हांहां, ले लो और तुम क्या मुझे आलू का परांठा दोगी?’’ रम्या की बेफिक्री से सोमेश भी थोड़ा बेतकल्लुफ हो गया था.

‘‘अरे बिलकुल सर, मैं तो बोर हो गई हूं आलू के परांठे खाखा कर. सुबह जल्दी में ये आसानी से बन जाते हैं. सब्जी बनाने के चक्कर में देर होने लगती है.’’

‘‘तुम खुद ही खाना बनाती हो क्या?’’

‘‘जी सर, अकेली रहती हूं तो खुद ही बनाना पड़ेगा न.’’

‘‘तुम अकेली रहती हो?’’

‘‘जी सर, मां को इलाज के लिए मामाजी के पास छोड़ा हुआ है.’’

सोमेश रम्या से अनेक सवाल पूछना चाहता था, लेकिन तभी कैंटीन में लगी बड़ी सी घड़ी की ओर उस का ध्यान गया. लंच टाइम खत्म होने वाला था. लंच के बाद उस की मैनेजर के साथ मीटिंग थी. उस ने अपना टिफिन रम्या की ओर खिसका दिया. बदले में रम्या ने भी 4 परांठों का डब्बा उस की ओर बढ़ा दिया.

लंच के बाद मीटिंग में मैनेजर ने उस से नए स्टाफ की जानकारी ली और पूछा कि इन में से किस नए मैंबर को तुम अपनी टीम में शामिल करना चाहते हो. चूंकि सभी नए लोगों की योग्यता एक सी ही थी और किसी को भी काम करने का पुराना अनुभव नहीं था, इसलिए उसे किसी के भी अपनी टीम में जुड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

‘‘जैसा आप ठीक समझें सर,’’ सोमेश ने औपचारिक अंदाज में कहा.

‘‘तो फिर मैं रम्या को तुम्हारी टीम में दे रहा हूं, क्योंकि नमनजी ने दीपक को लिया है, जो उन का कोई दूर का रिश्तेदार लगता है. और देवेंद्र का स्वभाव तो तुम जानते ही हो कि उस के साथ कोई लड़की काम करना ही नहीं चाहती,’’ मैनेजर साहब ने जैसे पहले से ही सोच रखा था.

‘‘ठीक है सर,’’ सोमेश ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

अगले दिन से रम्या सोमेश की टीम से जुड़ गई. थोड़ा और बेतकल्लुफ होते हुए अब रम्या उस के टिफिन से मांग कर खाना खाने लग गई.

‘‘आज शाम को जल्दी आ जाना, छोटे बेटे को टीका लगवाने जाना है,’’ औफिस के लिए निकलते हुए सोमेश को पीछे से रूमी की आवाज सुनाई दी. आज्ञाकारी पति की तरह सिर हिलाते हुए सोमेश ने गाड़ी स्टार्ट की.

शाम को औफिस से निकलते समय बारिश हो रही थी. सोमेश जल्दी से पार्किंग में खड़ी गाड़ी की ओर बढ़ा, लेकिन कुछ बूंदें उस पर पड़ ही गईं. गाड़ी में बैठ कर वह थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर सामने एक दुकान के पास बारिश से बचने की कोशिश में किनारे खड़ी रम्या पर पड़ी.

इंसानियत के नाते उस ने गाड़ी उधर रोक दी और अंदर बैठे हुए ही रम्या को आवाज लगाई, ‘‘गाड़ी में आ जाओ वरना भीग जाओगी. अकेली रहती हो, बीमार हो गई तो देखभाल कौन करेगा?’’

बारिश से बचतीबचाती रम्या आ कर उस की गाड़ी में उस की बगल में बैठ गई. उस के सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘ओह तुम तो काफी भीग गई हो,’’ सोमेश ने संवेदना दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा घर कहां है?’’

‘‘पास ही है सर, पैदल ही आ जाती हूं. आज बारिश हो रही थी वरना आप को कष्ट नहीं देती.’’

बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे को अपने परिवार के बारे में बता डाला. सोमेश को यह जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पिता के होते हुए भी अपनी बीमार मां की देखभाल का जिम्मा रम्या के ऊपर है.

‘‘क्या तुम्हारे पिताजी साथ में नहीं रहते?’’ सोमेश को रम्या के प्रति गहरी संवेदना हो आई.

‘‘नहीं सर, पिताजी मां के पूर्व सहपाठी उमेश अंकल को उन का प्रेमी मान कर उन पर शक करते हैं.’’

‘‘अच्छा, अगर रिश्तों में इतनी कड़वाहट है, तो वे तलाक क्यों नहीं ले लेतीं? कम से कम उन्हें अपने खर्च के लिए कुछ पैसे तो मिलेंगे.’’

‘‘वही तो सर, मां की इसी दकियानूसी बात पर तो मुझे गुस्सा आता है. पति साथ न दे तब भी वे उन्हें परमेश्वर ही मानेंगी.’’

बातोंबातों में वे रम्या के घर से आगे निकल गए. इसी बीच रूमी का फोन आ गया, ‘‘सुनो, बाहर बारिश हो रही है, ऐसे में बच्चे को बाहर ले कर जाना ठीक नहीं. हम कल चलेंगे उसे टीका लगवाने’’ जल्दीजल्दी बात पूरी कर रूमी ने फोन काट दिया.

‘‘सर, आप को वापस मोड़ना पड़ेगा, मेरा घर पीछे रह गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, कह कर सोमेश ने गाड़ी मोड़ ली. वैसे भी अब घर जल्दी जा कर करना ही क्या था.’’

तभी रम्या को जोर की छींक आई.

‘‘बारिश में बहुत भीग गई हो, लगता है तुम्हें जुकाम हो गया है,’’ सोमेश को रम्या की चिंता होेने लगी.

रम्या का घर आ गया था. उस ने शिष्टाचारवश कहा, ‘‘सर, 1 कप चाय पी कर जाइए.’’

ऐसी बारिश में सोमेश को भी चाय की तलब हो आई थी. अत: रम्या के पीछे उस के छोटे से कमरे वाले घर में चला गया.

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर रम्या सामने लगे दरवाजों में एक के अंदर चली गई. कुछ देर तक वापस नहीं आई तो सोमेश खुद ही उधर जाने लगा. कुछ आगे जाने पर उसे दरवाजे की दरार में से रम्या नजर आई. अचानक ही रम्या की निगाहें भी उस से टकरा गईं. उस ने जल्दी से दरवाजा बंद किया, लेकिन कपड़े बदलती रम्या की एक झलक सोमेश को मिल चुकी थी.

‘‘माफ कीजिएगा सर, दरवाजे की चिटकनी खराब है… अकेली रहती हूं, इसलिए सही करवाने का समय ही नहीं मिलता.’’

फिर नजरें झुकाए हुए ही वह चाय बना कर ले आई. चाय का कप लेते हुए एक बार फिर सोमेश की निगाहें रम्या से चार हो गईं. इस बार रम्या ने नजरें नहीं झुकाईं, बल्कि खुद को आवेश के पलों में बहक जाने दिया.

अरसे का तरसा सोमेश रम्या का खुला निमंत्रण पा कर पागल ही हो बैठा.

कुछ पलों को वह यह भी भूल गया कि वह शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे भी हैं.

जब तक वह कुछ सोचसमझ पाता, तीर कमान से निकल चुका था. वह खुद से नजरें नहीं मिला पा रहा था. रम्या ने उसे संयत किया. ‘‘इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है सर, यह तो शरीर की स्वाभाविक जरूरत है. मेरा पहले भी एक बौयफ्रैंड था… आज का अनुभव मेरे लिए कोई नया नहीं है. आप कहें तो मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

रम्या की बात सुन कर सोमेश ने किसी तरह खुद को संभाला और बिना कुछ कहे अपने घर का रास्ता लिया.

अब सोमेश हर पल बेचैन रहने लगा.

रम्या की उपस्थिति में उस की यह बेचैनी और भी बढ़ जाती जबकि रम्या बिलकुल सामान्य रहती. वह रम्या के सान्निध्य के बहाने ढूंढ़ता रहता.

घर छोड़ने के बहाने वह कई बार रम्या के घर गया. रम्या बड़ी सहजता से उस की ख्वाहिश पूरी करती रही. बदले में सोमेश भी उसे कंपनी में तरक्की पर तरक्की देता रहा और देता भी क्यों नहीं? रम्या पूरी तरह से  विनविन सिचुएशन का मतलब जो समझ चुकी थी.

Best Hindi Story : क्या आप का बिल चुका सकती हूं

Best Hindi Story : नीलगिरी की गोद में बसे ऊटी में राशा के साथ मैं झील के एक छोर पर एकांत में बैठी थी. ‘‘तुम्हारा चेहरा आज ज्यादा लाल हो रहा है,’’ राशा ने मेरी नाक को पकड़ कर हिलाया और बोली, ‘‘कुछ लाली मुझे दे दो और घूरने वालों को कुछ मुझ पर भी नजरें इनायत करने दो.’’

इतना कह कर राशा मेरी जांघ पर सिर रख कर लेट गई और मैं ने उस के गाल पर चिकोटी काट ली तो वह जोर से चिल्लाई थी.

‘‘मेरी आंखों में अपना चौखटा देख. एक चिकोटी में तेरे गाल लाल हो गए, दोचार में लालमलाल हो जाएंगे और तब बंदरिया का तमाशा देखने के लिए भीड़ लग जाएगी,’’ मैं ने मजाक करते हुए कहा.

उस ने मेरी जांघ पर जरा सा काट लिया तो मैं उस से भी ज्यादा जोर से चीखी. सहसा बगल के पौधों की ओट से एक चेहरा गरदन आगे कर के हमें देखने को बढ़ा. मेरी नजर उस पर पड़ी तो राशा ने भी उस ओर देखा.

‘‘मैं सोच रही थी कि ऊटी में पता नहीं ऊंट होते भी हैं कि नहीं,’’ राशा के मुंह से निकला.

‘‘चुप,’’ मैं ने उसे रोका.

मेरी नजरों का सामना होते ही वह चेहरा संकोच में पड़ता दिखाई दिया. उस ने आंखों पर चश्मा चढ़ाते हुए कहा, ‘‘आई एम सौरी…मुझे मालूम नहीं था कि आप लोग यहां हैं…दरअसल, मैं सो रहा था.’’

फिर मैं ने उसे खड़ा हो कर अपने कपड़ों को सलीके से झाड़ते हुए देखा. एक युवा, साधारण पैंटशर्ट. गेहुंए चेहरे पर मासूमियत, शिष्टता और कुछ असमंजस. हाथ में कोई मोटी किताब. शायद यहां के कालेज का कोई पढ़ाकू लड़का होगा.

‘‘सौरी…हम ने आप के एकांत और नींद में खलल डाला…और आप को…’’

‘‘और मैं ने आप को ऊंट कहा,’’ राशा ने दो कदम उस की ओर बढ़ कर कहा, ‘‘रियली, आई एम वैरी सौरी.’’

वह सहज ढंग से हंसा और बोला, ‘‘मैं ने तो सुना नहीं…वैसे लंबा तो हूं ही…फिर ऊटी में ऊंट होने में क्या बुराई है? थैंक्स…आप दोनों बहुत अच्छी हैं…मैं ने बुरा नहीं माना…इस तरह की बातें हमारे जीवन का सामान्य हिस्सा होती हैं. अच्छा…गुड बाय…’’

मैं हक्कीबक्की जब तक कुछ कहती वह जा चुका था.

‘‘अब तुम बिना चिकोटी के लाल हो रही हो,’’ मैं ने राशा के गाल थपथपाए.

‘‘अच्छा नहीं हुआ, यार…’’ वह बोली.

‘‘प्यारा लड़का है, कोई शाप नहीं देगा,’’ मैं ने मजाक में कहा.

अगले दिन जब राशा अपने मांबाप के साथ बस में बैठी थी और बस चलने लगी तो स्टैंड की ढलान वाले मोड़ पर बस के मुड़ते ही हम ने राशा की एक लंबी चीख सुनी, ‘‘जोया…इधर आओ…’’

ड्राइवर ने डर कर सहसा बे्रक लगाए. मैं भाग कर राशा वाली खिड़की पर पहुंची. वह मुझे देखते ही बेसाख्ता बोली, ‘‘जोया, वह देखो…’’

मैं ने सामने की ढलान की ऊपरी पगडंडी पर नजर दौड़ाई. वही लड़का पेड़ों के पीछे ओझल होतेहोते मुझे दिख गया.

‘‘तुम उस से मिलना और मेरा पता देना,’’ राशा बोली.

उस के मांबाप दूसरी सवारियों के साथसाथ हैरान थे.

‘‘अब चलो भी…’’ बस में कोई चिल्लाया तो बस चली.

मैं ने इस घटना के बारे में जब अपनी टोली के लड़कों को बताया तो वे मुझ से उस लड़के के बारे में पूछने लगे. तभी रोहित बोला, ‘‘बस, इतनी सी बात? राशा इतनी भावुक तो है नहीं…मुझे लगता है, कोई खास ही बात नजर आई है उसे उस लड़के में…’’

मेरे मुंह से निकला, ‘‘खास नहीं, मुझे तो वह अलग तरह का लड़का लगा…सिर्फ उस का व्यवहार ही नहीं, चेहरे की मासूम सजगता भी… कुछ अलग ही थी.’’

‘‘तुम्हें भी?’’ नीलेश हंसी, ‘‘खुदा खैर करे, हम सब उस की तलाश में तुम्हारी मदद करेंगे.’’

मैं ने सब की हंसी में हंसना ही ठीक समझा.

‘‘ऐ प्यार, तेरी पहली नजर को सलाम,’’ सब एक नाजुक भावना का तमाशा बनाते हुए गाने लगे. राशा का जाना मेरे लिए अकेलेपन में भटकने का सबब बन गया.

एक रोज ऊपर से झील को देखतेदेखते नीचे उस के किनारे पहुंची. खुले आंगन वाले उस रेस्तरां में कोने के पेड़ के नीचे जा बैठी. आसपास की मेजें भरने लगी थीं. मैं ने वेटर से खाने का बिल लाने को कहा. वह सामने दूसरी मेज पर बिल देने जा रहा था.

सहसा वहां से एक सहमती आवाज आई, ‘‘क्या आप का बिल चुका सकता हूं?’’

मैं चौंकी. फिर पहचाना… ‘‘ओ…यू…’’ मैं चहक उठी और उस की ओर लपकी. वह उठा तो मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाया, ‘‘आई एम जोया…द डिस्टर्बिंग गर्ल…’’

‘‘मी…शेषांत…द ऊंट.’’

सहसा हम दोनों ने उस नौजवान वेटर को मुसकरा कर देखा जो हमारी उमंग को दबी मुसकान में अदब से देख रहा था. मन हुआ उसे भी साथ बिठा लूं.

शेषांत ने अच्छी टिप के साथ बिल चुकाया. मैं उसे देखती रही. उस ने उठते हुए सौंफ की तश्तरी मेरी ओर बढ़ाई और पूछा, ‘‘वाई आर यू सो ऐलोन?’’

‘‘दिस इज माई च्वाइस. अकेलेपन की उदासी अकसर बहुत करीबी दोस्त होती है हमारी. हां, राशा तो वहां से अगले दिन घर लौट गई थी. हमारी एक सैलानी टोली है, पर मैं उन के शोर में ज्यादा देर नहीं टिक पाती.’’

हम दोनों कोने में लगी बेंच पर जा बैठे. झील में परछाइयां फैल रही थीं.

मैं ने उस दिन राशा की विदाई वाला किस्सा उसे सुनाया तो वह संजीदा हो उठा, ‘‘आप लोग बड़ी हैं तो भी इतना सम्मान देती हैं…वरना मैं तो बहुत मामूली व्यक्ति हूं.’’

‘‘क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप करते क्या हैं?’’ ‘‘इस तरह की जगहों के बारे में लिखता हूं और उस से कुछ कमा कर अपने घूमने का शौक पूरा करता हूं. कभीकभी आप जैसे अद्भुत लोग मिल जाते हैं तो सैलानी सी कहानी भी कागज पर रवानी पा लेती है.’’

‘‘वंडरफुल.’’

मैंने उसे राशा का पता नोट करने को कहा तो वह बोला, ‘‘उस से क्या होगा? लेट द थिंग्स गो फ्री…’’ मैं चुप रह गई.

‘‘पता छिपाने में मेरी रुचि नहीं है…’’ वह बोला, ‘‘फिर मैं तो एक लेखक हूं जिस का पता चल ही जाता है.’’

‘‘फिर…पता देने में क्या हर्ज है?’’

‘‘बंधन और रिश्ते के फैलाव से डरता हूं… निकट आ कर सब दूर हो जाते हैं…अकसर तड़पा देने वाली दूरी को जन्म दे कर…’’

‘‘उस रोज भी शायद तुम डरे थे और जल्दी से भाग निकले थे.’’

‘‘हां, आप के कारण.’’

मैं बुरी तरह चौंकी.

‘‘उस रोज आप को देखा तो किसी की याद आ गई.’’

‘‘किस की?’’

‘‘थी कोई…मेरे दिल व दिमाग के बहुत करीब…दूरदूर से ही उसे देखता रहा और उस के प्रभामंडल को…’’ कहतेकहते वह कहीं खो गया.

मैं हथेलियों पर अपना चेहरा ले कर कुहनियों के बल मेज पर झुकी रही.

‘‘कुछ लोग बाहर से भी और भीतर से भी इतने सुंदर क्यों होते हैं…और साथ में इतने अद्भुत कि हर पल उन का ही ध्यान रहता है? और इतने अपवाद क्यों?…कि या तो किताबों में मिलें या ख्वाबों में…या मिल ही जाएं तो बिछड़ जाने को ही मिलें?’’ वह बोला.

मैं उस की आंखों में उभरती तरलता को देखती रही. वह कहता रहा…

‘‘हम जब किसी से मिलते हैं तो उस मिलन की उमंग को धीरेधीरे फीका क्यों कर देते हैं? जिंदा रहते भी उसे मार क्यों देते हैं?’’

‘‘अधिक निकटता और अधिक दूरी हमें एकदूसरे को समझने नहीं देती…’’ मैं उस से एक गहरा संवाद करने के मूड में आ गई, ‘‘हमें एक ऐसा रास्ता बने रहने देना होता है, जो खत्म नहीं होता, वरना उस के खत्म होते ही हम भी खत्म हो जाते हैं और हमारा वहम टूट जाता है.’’

उस ने मेरी आंखों में देखा और कहना शुरू किया, ‘‘जिन्हें जीना आता है वे किसी रास्ते के खत्म होने से नहीं डरते, बल्कि उस के सीमांत के पार के लिए रोमांचित रहते हैं. भ्रम तब तक बना रहता है जब तक हम आगे के दृश्यों से बचना चाहते हैं…सच तो यह है कि रास्ते कभी खत्म नहीं होते…न ही भ्रम…अनदेखे सच तक जाने के लिए भ्रम ही तो बनते हैं. किश्तियों के डूबने से पता नहीं हम डरते क्यों हैं?’’

मैं उसे ध्यान से सुनने लगी.

‘‘सुखी, संतुष्ट बने रहने के लिए हम औसत व्यक्ति बन जाते हैं, जबकि चाहतें अनंत हैं…दूरदूर तक.’’

‘‘कभीकभी हम सहमत हो कर भी अलग तलों पर नजर आते हैं…मैं तुम्हारी इस बात को शह दूं तो कहूंगी कि मैं वहां खत्म नहीं होना चाहती जहां मैं ‘मुझ’ से ही मिल कर रह जाऊं…मुझे अपनी हर हद से आगे जाना है. अपने कदमों को नया जोखिम देने के लिए अपनी हर पिछली पगडंडी तोड़नी है…’’

वह हंसा. कहने लगा, ‘‘पर इस लड़खड़ाती खानाबदोशी में हम जल्दबाज हो कर अपने को ही चूक जाते हैं. इसी में हमारी बेचैनियां आगे दौड़ने की लत पाल लेती हैं. क्या ऐसा नहीं?’’

मैं सोचने लगी कि अब हम एकदूसरे के साथ भी हैं और नहीं भी.

मुझे चुप देख कर उस ने पूछा, ‘‘विवाह को आप कैसे देखती हैं?’’

‘‘अनचाही चीज का पल्ले पड़ जाने वाली एक वाहियात रस्म.’’

वह फिर हंस कर बोला, ‘‘विवाहित या अविवाहित होना मुझे बाहर की नहीं, भीतर की घटना लगती है. जीना नहीं आता हो तो सारी इच्छाएं पूरी हो जाने पर भी बेमतलब के साथ से हम नहीं बच पाते. ज्यादातर लोग विवाहित हो कर ही इस से बच सकते हैं…या दूसरे को बचा सकते हैं, ऐसे ही किसी संबंध में आ कर. हालांकि मैं नहीं मानता कि मनुष्य नामक स्थिति की अभी रचना हो भी सकी है…मनुष्य जिसे कहा जाता है वह शायद भविष्य के गर्भ में है, वरना विवाह की या किसी भी स्थापित संबंध की जरूरत कहां है? हम अकसर अपने से ही संबंधित हो कर आकाश खोजते रह जाते हैं…’’

फिर हम झील में बदलते नजारों में डूबने का अभिनय सा करते रहे.

चुप्पी लंबी हो गई तो मैं ने कहा, ‘‘उस रोज तुम ने मेरी पुकार नहीं सुनी और चले गए…मुझ से बचना चाहा तुम ने…मगर आज क्यों तुम ने मुझे पुकारा?’’

वह मेरे चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘आप अकेली बैठी थीं. कितनी ही देर से आप के चेहरे पर अकेलेपन की मायूसी देखता रहा, कैसे न पुकारता? पुकारने से बचना और किसी मायूस से बच कर भागना एक ही बात है. कैसी विडंबना है…अब सोच रहा हूं, आप से यह भी नहीं पूछा कि आप करती क्या हैं?’’

मैं यह सोच कर हंसी कि फंस गए बच्चू, इस दुनिया में बहुत कुछ तय नहीं किया जा सकता. अगर किया भी जा सके तो अगले ही पल वह होता है जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

वह चुप रहा. काफी देर के बाद उस ने पूछा, ‘‘घर से निकलते वक्त आप के मन में क्या होता है?’’

‘‘अज्ञात ऐडवैंचर. मैं लगातार घूमती हूं. अपना खुद का तकिया और चादर भी साथ रखती हूं, ताकि देह जहां तक हो, बनी रहे लेकिन जानती हूं कि मेरे हाथ में कल नहीं है.’’

वह मुसकराया, ‘‘इस क्षण मेरे लिए क्या सोचती हैं आप?’’

मैं हंसी, ‘‘इतना तो तय हो ही सकता है कि मैं अपने खाएपिए के अपने हिस्से का हिसाब चुकता करूं…तुम्हें ‘आप’ कह कर तुम से मिला हुआ परिचय तुम्हें लौटाऊं और हम अपनाअपना रास्ता लें.’’

‘‘ऐसा रास्ता है क्या, जिस पर सामने ठिठक जाने वाले लोग मिलते ही नहीं? ऐसा परिचय होता है क्या जिसे समूचा पोंछा जा सके? और अनाम रिश्तों में ‘तुम’ से ‘आप’ हो जाने से क्या होता है?’’

‘‘बातें तो बहुत बड़ीबड़ी कर रहे हो…तुम्हारी उम्र क्या है?’’

‘‘दुनिया से दफा हो जाने तक की तो नहीं जानता, पर अगली 1 जून को 30 का हो रहा हूं.’’

मैं चौंकी, ‘‘तुम तो मुझ से बड़े निकले… लगते तो छोटे हो.’’

‘‘हां, अकसर इसी धोखे में बच्चा ही बना रह जाता हूं बड़ों में…’’

‘‘जैसा दिखते हो वैसा स्वभाव भी है तुम्हारा…इसे चलनेफलने दो.’’

‘‘ऐसा मैं भी सोचता रहा, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ मैं बीच में बोल पड़ी, ‘‘यही न कि अगर मेरे जैसी कोई तुम्हें पसंद आए तो तुम ज्यादा बचाव न कर उस पर हक जमा सको.’’

‘‘नहीं…ऐसा तो नहीं, क्योंकि मैं स्वयं नहीं चाहता अपने पर किसी का ऐसा अधिकार…फिर जो भीतरबाहर से सुंदर और बहुत हट कर होते हैं, उन का मेरे जैसे घुमक्कड़ व्यक्ति के लिए सुलभ रहना संभव नहीं है.’’

‘‘अगर तुम्हें पता चले कि राशा कुछ महीने की मेहमान है तो?’’

‘‘मुझे ऐसा मजाक पसंद नहीं.’’

‘‘लेकिन मौत ऐसे मजाक पसंद करती है.’’

‘‘क्या राशा को कुछ हुआ है?’’

‘‘किस को कब क्या नहीं हो सकता? मैं इतना जानती हूं कि अगर अभी राशा को यह पता चल जाए कि तुम मेरे साथ हो तो वह हमें अपने पास बुला लेगी या खुद यहां चली आएगी.’’

‘‘मिलन को बुनती ज्यादातर बातें सच तो होती हैं पर झूठ हो जाने के लिए ही. सच तभी बनता है जब किसी आकस्मिक घटना पर सहसा हम कुछ करने को बेचैन हो उठते हैं. जैसे कि हमारा उस रोज का मिलना और अचानक आज मिलना…आप जिंदगी को वाक्यसूत्रों में नहीं पिरो सकतीं.’’

‘‘ओह…मैं भूल ही गई थी…मुझे जल्दी होटल पहुंचना है…’’ कह कर मैं काउंटर पर बिल देने के लिए जाने लगी तो वह मुझे रोक कर बोला, ‘‘आज का दिन मेरा है. प्लीज, यह बिल भी मुझे चुकाने दीजिए न.’’

‘‘किसी पर अधिकार जताने के मौके हमारे हाथ कितनी खूबसूरती से लग जाते हैं,’’ मेरे मुंह से निकला और हम दोनों हंस पड़े.

वह काउंटर पर जा कर लौटा तो मैं ने उस की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा, ‘‘चलती हूं…कभी सहसा संयोग बना तो फिर मिलेंगे…बहुत अच्छे हो तुम…अच्छे यानी जैसे भी हो…’’

उस ने मेरे बढ़े हुए हाथ को देखा… मुसकरा कर हाथ जोड़े और बोला, ‘‘हाथ नहीं मिलाऊंगा.’’

उस ने मेरे लौटते हुए हाथ को अपने हाथ में सहेज लिया और मेरे साथ चल पड़ा. हम आगे तक निकल गए.

‘‘क्या करती हैं आप?’’ बहुत देर बाद मेरा हाथ छोड़ कर उस ने पूछा.

‘‘गलती से साइकिएट्रिस्ट हूं. मनोविद या मनोचिकित्सक कहलाना बहुत आसान है. इस दुनिया में जीने के लिए फलसफे और मन के विज्ञान नहीं, अनाम प्रेम चाहिए…या मजबूरी में कोई मौलिक जुगाड़.’’

वह मेरे होटल तक आया और चुपचाप खड़ा हो गया. मैं सहसा हंस पड़ी. वह भी हंसा.

‘‘अब क्या करें?’’ मेरे मुंह से निकला.

‘‘अलविदा और क्या?’’ उस ने हाथ बढ़ाया.

‘‘मैं मन में उस लड़की की तसवीर बनाने की कोशिश करूंगी, जिसे उस रोज मुझे देख कर तुम ने याद किया था…’’ मैं ने उस का हाथ बहुत आहिस्ता से छोड़ते हुए कहा.

‘‘कोई जरूरत नहीं…तिल भर का भी फर्क नहीं है. आप के पास आईना नहीं है क्या?’’ कह कर वह चला गया.

मैं देर तक ठगी सी खड़ी रह गई.

5 साल बीते होंगे अस्पताल की तीसरी मंजिल पर अपने दफ्तर में बैठी थी. दूसरे एक विभाग की इंचार्ज डा. सविता मेरे साथ थी. तभी उस की एक सहयोगी आ कर बोली, ‘‘डाक्टर…आप की वह 14 नंबर की मरीज…उसे आज डिस्चार्ज करना है, मगर उस के बिल अभी तक जमा नहीं हुए…आपरेशन के बाद से अब तक 25 हजार की पेमेंट बकाया है.’’

‘‘ओह, इतनी नहीं होनी चाहिए. 30 हजार रुपए तो जमा कर चुके हैं बेचारे. बड़ा नाम सुन कर आए थे इस अस्पताल का…और ये लोग मजबूर मरीजों को लूट रहे हैं. उस का पति क्या कहता है?’’

‘‘कह रहा है कि उस ने अपनी जानपहचान वालों को फोन किए हैं…शायद कुछ उपाय हो जाएगा.’’

‘‘अभी कहां है?’’

‘‘बीवी के लिए फल लेने बाजार गया है…कुछ देर पहले उस से गजल सुन रहा था…’’

‘‘गजल?’’ मैं ने हैरत से पूछा.

‘‘हां…’’ डा. सविता बोली, ‘‘वह लड़की बंद आंखों में लेटेलेटे बहुत प्यारी गजलें गुनगुनाती रहती है. शायद अपने पति की लाचारी को व्यक्त करती है… और क्या तो गजब की किताबें पढ़ती है. चलो, देखते हैं…उस की फाइनल रिपोर्ट भी डा. प्रिया से साइन करानी है…’’

उन दोनों के साथ मैं भी नीचे आ गई. फिर हम सामने की बड़ी इमारत की ओर बढ़ीं और वहां एक अधबने कमरे में पहुंचीं.

देखा, एक युवती बेहद कमजोर हालत में बेड पर पड़ी छत की ओर देख रही है. कमजोरी में भी वह सुंदर लग रही थी. हमें देख कर वह किसी तरह उठ कर बैठने की कोशिश करने लगी.

‘‘लेटी रहो,’’ मैं ने उस के सिरहाने बैठते हुए कहा और पास रखी ‘बुक औफ द हिडन लाइफ’ को हाथ में ले कर पलटने लगी. जीवन और मौत के रिश्ते को अटूट बताने वाली अनोखी किताब.

मैं उस से बतियाने लगी. थकी हुई सांसों के बीच उस ने बताया कि साल भर पहले एक हादसे में उस के घर के सब लोग मारे गए थे और उस के बचपन के एक साथी ने उस से शादी कर ली… ‘‘तभी पता चला कि मेरे अंदर तो भयंकर रोग पल रहा है…अगर मुझे पता होता तो मैं कभी उस से शादी न करती…बेचारा तब से जाने कहांकहां दौड़भाग कर के मेरा इलाज करा रहा है…साल होने को आया…’’

‘‘अब तुम रोग मुक्त हो,’’ मैं ने उस के सिर पर हाथ रखा, ‘‘सब ठीक हो जाएगा.’’

उस ने कातरता से मुझे देखा और आंखें बंद कर लीं. इसी में उस की आंखों में से कुछ बूंदें बाहर निकल आईं और कुछ शब्द भी… ‘‘हां, होता तो सब ठीक ही होगा…पर मुझे अपना जिंदा रहना ठीक नहीं लगता…हालांकि दिमागी तौर पर बिलकुल तंदुरुस्त हूं…जीना भी चाहती हूं…’’

डा. सविता उस की जांच कर के जा चुकी थीं. उसे स्पर्श की एक और तसल्ली दे कर मैं भी उठी. अभी कुछ ही कदम आगे निकली थी कि मेरे कानों में एक गुनगुनाहट पहुंची. देखा, वह आंखें बंद कर के गा रही है :

‘धुआं बना के फिजा में उड़ा दिया मुझ को,

मैं जल रहा था, किसी ने बुझा दिया मुझ को…

खड़ा हूं आज भी रोटी के चार हर्फ लिए,

सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को…’

मैं खड़ी रही. उस की गुनगुनाहट धीमी होती चली गई और फिर उसे नींद आ गई. मुझे वे दिन याद आए जब मां के न रहने पर मैं बहुत अकेली पड़ गई थी और नींद में उतरने के लिए इसी तरह अपने दर्द को लोरी बना लेती थी.

रिसेप्शन पर पहुंची. वहां से अस्पताल के प्रबंध निदेशक को फोन कर के बिल के पेमेंट का जिम्मा लिया और लौट आई.

देखा, उस के सिरहाने बैठा एक युवक सेब काट कर प्लेट में रख रहा है. पुरानी पैंटशर्ट के भीतर एक दुबली काया. सिर पर उलझे हुए बाल. युवती शायद सो रही थी.मैं धीमे कदमों से उस के निकट पहुंची.

वह युवक कह रहा था, ‘‘अब दोबारा मत कहना कि तुम से शादी कर के मैं बरबाद हो गया. नाउ यू आर ओ.के. …मेरे लिए तुम्हारा ठीक होना ही महत्त्वपूर्ण है…पैसों का इंतजाम नहीं हुआ…बट आई एम ट्राइंग माई बेस्ट…’’ उस की आवाज में पस्ती भी थी और उम्मीद भी.

मैं ने देखा, आंखें बंद किए पड़ी वह युवती उस की बात पर धीरेधीरे सिर हिला रही थी. अचानक मेरा हाथ उस युवक की ओर बढ़ा और उस के कंधे पर चला गया. इसी के साथ मेरे मुंह से निकला :

‘‘कैन आइ पे फौर यू?…आप का बिल चुका सकती हूं मैं?’’

वह चौंक कर पलटा और खड़ा हो गया, ‘‘आप?’’

अब मैं ने उस का चेहरा देखा… ‘‘ओह…शेषांत…तुम?’’

एक तूफान उमड़ा और उस ने हमें अपने में ले लिया.

मेरे कंधे से लगा वह सिसकता रहा और मेरे हाथ उस के सिर और पीठ पर कांपते रहे. मेरी आंखें सामने उस लड़की की आंखों से झरते आनंद को देखती रहीं. पता नहीं, कब से चट्टान हो चुकी मेरी आंखों में से कुछ बाहर आने को मचलने लगा.

‘‘राशा…ये हैं…जोया…’’ शेषांत ने मेरे कंधे से हट कर चश्मा उतारते हुए उस से कहा तो मैं चौंकी, ‘‘राशा?’’

वह लड़की अपनी खुशी को समेटती हुई बोली, ‘‘मेरा नाम राशि है…इन्होंने आप लोगों के बारे में बताया था तो मैं ने जिद की थी कि मुझे राशा ही कहा करें.’’

मैं चुप रही…सोचती रही…‘राशा तो अब नहीं है…पर तुम दोनों ने उसे सहेज लिया…बहुत अच्छे हो तुम दोनों.’

हम तीनों अपनीअपनी आंखें पोंछ रहे थे कि सामने से एक नर्स आई. उस ने हंस कर मेरे हाथ में बिलों के भुगतान की रसीद और राशि के डिस्चार्ज की मंजूरी थमाई और चली गई.

मेरी राशा तो खो गई थी पर उस बिल की रसीद के साथ एक और राशा मिल गई. लगा कि जिंदगी अब इतनी वीरान, अकेली न रहेगी. राशा, शेषांत और मैं…एक पूरा परिवार…

Short Story In Hindi : सब दिन रहत न एक समान

Short Story In Hindi  : बात कोरोना के आने के एक साल पहले की है. हम अपने एटीएम कार्ड का पिन सेट करने के लिए भटक रहे थे. बैंकों में दौड़दौड़ कर, सरकारी बैंक के नखरे उठाउठा कर थक गए थे. डिजिटल इंडिया कहने और व्यावहारिक रूप से होने में जरा फर्क होता है. दिन को समय मिल नहीं पाता था, सो रात को हम 2 सहेलियां और हमारे 2 पुरुष सहयोगी एटीएम में पहुंचे.

उस समय रात के करीब 8 बजे होंगे. पर एटीएम का सिक्योरिटी गार्ड अपनी कुरसी पर लुढ़का हुआ खर्राटे मार रहा था.

मेरी सहेली और एक पुरुष सहयोगी बाहर खड़े थे, जबकि मैं और दूसरा पुरुष सहयोगी एटीएम के भीतर आ गए थे.

यह कोरोना काल तो नहीं, परंतु पराली काल जरूर था और दिल्ली में पराली के कहर से तो हर कोई वाकिफ है. सो, वायु में घुले पौल्यूशन के कहर और पराली के जहर से बचने के लिए हम ने अपनी नाक पर स्कार्फ बांधा हुआ था. डब्ल्यू के फैशनेबल स्कार्फ को सिर्फ नाक पर बांधना उस के ब्रांड और खूबसूरती का अपमान करना है. सो, मैं ने अपने स्कार्फ को हिजाब स्टाइल में सिर पर भी बांध रखा था, जिस से केवल मेरा फोरहेड और आंखें ही हिजाब की जद से बाहर थे, जहरीली हवा और जहरीली नजर से बचाव के लिए प्रदूषण पीड़ित शहरों में स्कार्फ का यह स्टाइल काफी पोपुलर है.

खैर, चूंकि हम औफिस से ही इस तरफ आ गए थे, सो मेरे सहयोगी के हाथ में एक बैग था, जिसे उन्होंने साइड में रखा और इसी के साथ सिक्योरिटी गार्ड की नींद खुल गई. आंखें खुलते ही उस की नजर हम पर पड़ी. डर, संशय और विस्मय के मिलेजुले भावों के साथ वह कुरसी से कूद कर खड़ा हो गया. तनिक कांपती हुई आवाज में यत्नपूर्वक गरजते हुए वह हम से स्कार्फ हटाने के लिए कहने लगा. मुंह और नाक से स्कार्फ हटाने पर भी उस की तसल्ली नहीं हुई और इतनी मेहनत से नेट पर से सीख कर बांधा हुआ हिजाब मुझे उस डरपोक सिक्योरिटी गार्ड की वजह से हटाना पड़ा.

खैर, जिस काम के लिए एटीएम गए थे, वह काम नहीं हुआ और अगले दिन फिर हमें सरकारी बैंक जाना पड़ा. सुबह के सवा दस बज रहे थे और धूप ऐसी चिलचिला रही थी मानो समूचे ओजोन परत को खुरच कर सारी दुनिया की बिजली आसमान पर टांग दी गई हो. मौसम का तकाजा था, सो सनग्लास जरूरी था.

हां, रात वाले हादसे की वजह से स्कार्फ को मैं ने पहले ही पर्स में मोड़ कर रख दिया था. पर उस से क्या, सरकारी जगहों पर पब्लिक को परेशान करने वाले फालतू के चोंचले न हों, तो उस के सरकारी होने पर शक होने लगता है. वही हुआ भी, ज्यों ही हम गेट पर पहुंचे, सिक्योरिटी गार्ड ने घड़ी दिखा कर कहा कि आधे घंटे बाद बैंक खुलेगा. हमें उस चिलचिलाती धूप में खड़ा कर के वह गार्ड पूरी तन्मयता के साथ चेयर से सोफे और सोफे से चेयर पर तशरीफ रखता रहा. ठीक 11 बजे ग्रिल सरका कर आंखों में सरकारी काम को पूरी मुस्तैदी से अंजाम देने के लिए खुद को ही शाबाशी देने का भाव लिए अहसान करने वाली आवाज में उस ने हमें भीतर आने को कहा. अभी हम ने पांव बढ़ाए भी नहीं थे कि उस ने सनग्लास उतार कर आंखें देखने की इच्छा जाहिर कर दी. क्योंकि ऐसे में हम कुछ और नहीं कर सकते. सो, हम ने वह भी किया. अब वह कुछ और फरमाता, उस के पहले ही हम जल्दी से भीतर की तरफ हो लिए और कई घंटों तक इस टेबल से उस टेबल, उस टेबल से इस टेबल, को होते रहे और सरकारी व्यवस्था के अत्याचार पर मन ही मन रोते रहे.

इस दौड़भाग का अंत फिर वही हुआ, जो हम सब के साथ होता है कि निरंकुश नौकरशाही भ्रष्टाचरण में आम पब्लिक केवल रोता है. पब्लिक को जितनी ज्यादा परेशानी हो, सरकारी मुलाजिम उतनी गहरी नींद सोता है. सच तो यह है कि जब तक चार दिन न दौड़ो, यहां कोई काम नहीं होता है.

और अब जरा एक नज़र कोरोना काल पर – हमें पैसे निकालने उसी एटीएम में जाना पड़ा, जहां सिक्योरिटी गार्ड ने स्कार्फ उतरवाया था. हम ने स्कार्फ, मास्क, ग्लव्स सबकुछ डाला हुआ था थैले में, सैनिटाइजर भी था, सारे सीन वही थे, पर सिक्योरिटी गार्ड न डरा, न घबड़ाया, अपनी कुरसी पर पड़ेपड़े सोता रहा. अपनी ड्यूटी के महत्त्व पर मूल्यहीनता के खर्राटे बोता रहा. हम ने बिना किसी रोकटोक के अपना काम किया और मन ही मन सोचा कि कोरोना ने चाहे जितनी तकलीफ दी हो, पर कई लोगों को निडर जरूर बना दिया. कितने आम को खास, कितने खास को आम बना दिया… कहीं पर जीवन मुश्किल तो कहीं पर आसान बना दिया.

Hindi Story : पन्नूराम का पश्चात्ताप

सांप के आकार वाली पहाड़ी सड़क ढलान में घूमतेघूमते रूपीन और सुपीन नदियों के संगम पर बने पुल को पार करते हुए एक मोड़ पर पहुंचती है. वहां सदानंद की चाय की दुकान है, जहां आतेजाते पथिक बैठ कर चाय पीते हुए दो पल का विश्राम ले लेते हैं. दुकान पर आने वाले ग्राहकों के लिए पन्नूराम दिनभर बैंच पर बैठा रहता. उस के बाएं हाथ की कलाई से हथेली और पांचों उंगलियां गायब थीं.

चाय पीते राहगीर पन्नूराम से उस के बाएं हाथ के बारे में पूछते तो वह अपने पर घटी दुर्घटना की आपबीती सुनाता.

दोनों नदियों के संगम से निकला हुआ सोता चट्टानों के बीच तंग हो कर नीचे की तरफ बहता है. उसी के बाएं किनारे पर खड़े सेमल के पेड़ की ओर इशारा करते हुए पन्नूराम बोलता :

‘‘उस सेमल के नीचे बैठ कर मैं कंटिया से दिनभर मछली पकड़ता था. तरहतरह की मछलियां, महाशीर, टैंगन, शोल, काली ट्राउट आदि सोते के पानी की विपरीत दिशा में आती थीं. दिनभर कंटिया में मछलियों का चारा लगा कर बैठा रहता और मछलियों का अच्छाखासा शिकार कर लेता था. परिवार वाले बहुत प्रसन्न थे. रूपीन व सुपीन नदियों की मछलियों का स्वाद ही कुछ अलग था.’’

एक हाथ से पकड़ी चाय की प्याली से घूंट भरते हुए पन्नूराम अपनी कहानी जारी रखता :

‘‘तब गांव में आबादी काफी कम थी. आहिस्ताआहिस्ता सभी को रूपीन व सुपीन नदियों की मछलियों के अनोखे स्वाद के बारे में पता लग चुका था. चूंकि वर्षाकाल आते ही मछलियों के पेट अंडे से भर जाते थे और वर्षा ऋतु की समाप्ति तक मछलियां पानी के अंदर उगे घास, पत्ते व पत्थरों के बीच अंडे देती थीं, इसलिए उन दिनों गांव के लोग मछलियों के वंश की रक्षा के लिए उन्हें खाना बंद रखते थे. मैं भी मछली का शिकार बंद कर देता था.’’

गले की खराश को बाहर थूकते हुए पन्नूराम अपनी कहानी जारी रखता…

‘‘5 साल पहले मल्ला गांव के ऊपरी ढलान पर, जहां रूपीन नदी का स्रोत ढलान से बहते हुए झरने के रूप में गिरता है, वहां पनबिजली संयंत्र लगाने के लिए सरकारी योजना बनी. पहाडि़यों के ऊपर कृत्रिम जलाशय बनाने के लिए चीड़ के जंगल की कटाई शुरू हो गई तो इलाके में लकड़ी के ठेकेदार, लकडि़यों की ढुलाई के लिए ट्रक चालकों और लकड़ी काटने व चीरने में लगे मजदूरों की चहलपहल बढ़ती गई. बाहरी लोगों को भी स्थानीय लोगों से रूपीन व सुपीन नदियों की मछलियों के अनोखे स्वाद के बारे में जानकारी मिली.

‘‘अब आएदिन पकड़ी हुई मछलियों का सौदा करने के लिए लोग मेरे पास आने लगे. अपनी जरूरत से अधिक पकड़ी हुई मछलियों को मैं ने बेचना शुरू कर दिया. कुछ पैसे मिले तो घर की आमदनी बढ़ने लगी. इस तरह हर रोज मछलियों की मांग बढ़ती गई. कंटिया से पकड़ी मछलियों से मांग पूरी नहीं हो पाती थी. अच्छीखासी कमाई होने की संभावना को देखते हुए मैं अधिक मछली पकड़ने के उपाय की तलाश में था.’’

इसी बीच रामानंद ने कहानी सुनने वाले ग्राहकों के आदेश पर उन्हें और पन्नूराम को गरम चाय की एकएक प्याली और थमाई. गरम चाय की चुस्की लगाते हुए पन्नूराम ने अपनी कहानी जारी रखी…

‘‘एक दिन लकड़ी के ट्रकों में आतेजाते एक ठेकेदार ने कंटिया के बजाय जाल का इस्तेमाल करने की सलाह दी. यही नहीं उस ठेकेदार ने मछली पकड़ने का जाल भी शहर से ला दिया. जाल देते समय उस की शर्त यह थी कि मैं रोजाना उस को मुफ्त की मछली खिलाता रहूं.

‘‘जहां पर चट्टानों के बीच संकरा रास्ता था वहां मैं ने संगम से निकले सोते में खूंटों के सहारे जाल को इस प्रकार से डाला जिस से पानी से कूदती हुई मछलियां जाल में फंस जाएं. यह तरीका अपनाने के बाद पहले से दोगुनी मछलियां पकड़ में आने लगीं. परिवार की कमाई भी बढ़ गई.’’

चाय के प्याले से अंतिम घूंट लेते हुए पन्नूराम ने फिर से कहना शुरू किया :

‘‘जाल से मछली पकड़ना आसान हो गया. परिवार का कोई भी सदस्य बीचबीच में जा कर फंसी हुई मछलियों को पकड़ लाता. रोजगार बढ़ाने की इच्छा से पहाडि़यों के ऊपर डायनामाइट से पत्थरों को तोड़ कर मैं रूपीन नदी में कृत्रिम जलाशय बनाने के काम में लग गया. धीरेधीरे विद्युत परियोजना के कार्यों के लिए मल्लागांव में लोगों की भीड़ जमा होती गई और इसी के साथ रूपीन व सुपीन की स्वादिष्ठ मछलियों की मांग बढ़ती गई. मछलियों की मांग इतनी बढ़ी कि उसे जाल से पूरा करना संभव नहीं था.

‘‘मैं और अधिक मछली पकड़ने के तरीके की तलाश में था. इसी बीच जल विद्युत परियोजना के लिए बड़ेबड़े ट्रकों और संयंत्रों के आवागमन, पहाड़ी सड़क की चौड़ाई बढ़ाने और डामरीकरण में लगे पूरब से आए मजदूरों में से रामदीन के साथ मेरी दोस्ती हो गई. बातोंबातों में एक दिन मैं ने रामदीन को अपनी समस्या बताई. सब सुन कर वह बोला, ‘यार, यह तो काफी आसान कार्य है. जाल से नहीं… डायनामाइट से मछली मारो. देखना, मछली का शिकार कई गुना अधिक हो जाएगा.’

‘‘रामदीन की बात सुनते ही मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी होने लगी. मैं डायनामाइट से पत्थर तोड़ने के काम में लगा ही था. अत: एकआध डायनामाइट चुरा कर मछली मारना मुझे खासा आसान लगा था. फिर एक दिन शाम को काम से छुट्टी के बाद मैं रामदीन के साथ चुराए हुए डायनामाइट को ले कर मछली के शिकार के लिए चल पड़ा.

‘‘एक समतल जगह पर चट्टानों के बीच नदी का पानी फैल कर तालाब सा बन गया था. वहां किनारे पर खड़े हम मछलियों के झुंड की प्रतीक्षा कर रहे थे. तालाब का पानी इतना स्वच्छ था कि तलहटी तक सबकुछ साफ दिखाई दे रहा था. जैसे ही मछलियों का एक झुंड बहते पानी से स्रोत के विपरीत दिशा में तैरता हुआ दिखाई दिया रामदीन ने डायनामाइट में लगी हुई सुतली में आग लगाई और झुंड के नजदीक आने का इंतजार करने लगा. मुझे तो डर लग रहा था कि डायनामाइट कहीं हाथ में ही न फट जाए लेकिन रामदीन ने ठीक समय पर जलते हुए डायनामाइट को पानी में फेंका और देखते ही देखते एक विकट सी आवाज के साथ ऊपर की ओर पानी को उछालते हुए डायनामाइट फटा.

‘‘धमाका इतना तेज था कि चट्टानों के पत्थरों के बीच से कंपन का अनुभव होने लगा. तालाब में छोटी, बड़ी और मझोली सभी तरह की मछलियां, यहां तक कि पानी की तलहटी में रहने वाले केकड़े, घोंघा आदि भी पानी की सतह पर तड़पते नजर आने लगे. तालाब में तड़पती मछलियों का ढेर देख कर मैं खुशी से भर उठा. रामदीन की सहायता से तड़पती हुई मछलियों को पकड़ लिया. उस दिन मछलियों से आमदनी पहले की अपेक्षा दस गुना अधिक हो गई.’’

एक लंबी सांस लेने के बाद पन्नूराम ने कहना शुरू किया :

‘‘रामदीन भी अच्छा मछुआरा था. उस को मछलियों की काफी जानकारी थी. मछली मारने के लिए नईनई जगह की तलाश करना तथा मछलियों के आवागमन के प्रति नजर रखने का काम रामदीन ही करता था. मैं डायनामाइट ले कर रामदीन के इशारे का इंतजार करता था और इशारा मिलते ही सुलगते हुए डायनामाइट को ऐसा फेंकता कि पानी की सतह स्पर्श करते ही फट जाए. बहुत खतरनाक कार्य था, लेकिन अधिक पैसा कमाने के इरादे से खतरे को नजरअंदाज कर दिया.

‘‘उन दिनों जब मछलियां गर्भधारण से ले कर प्रजनन का कार्य करती हैं, उन का शिकार बंद नहीं किया. इस से मछलियों के छोटेछोटे बच्चे समाप्त होते गए. एक बार काफी बड़ी महाशीर मछली डायनामाइट से घायल हो कर पकड़ी गई. मैं ने जब उसे उठाया तो उस का पेट अंडों से भरा था. मुझे लगा कि मछली मुझे बताने की कोशिश कर रही थी, ‘मेरे साथसाथ हजारों बच्चों का भी तुम लोग विनाश कर रहे हो. हम तो उजड़ ही जाएंगे, तुम्हारा भविष्य भी खतरे में है.’ तब मैं मन ही मन सोच रहा था कि महाशीर के स्वादिष्ठ अंडों से भी अच्छीखासी कमाई हो जाएगी.’’

दुकान पर बैठे ग्राहकों की ओर तिरछी नजरों से देखते हुए पन्नूराम ने महसूस किया कि वे मछलियों के कत्लेआम से कातर हो रहे थे. अपने द्वारा मछलियों पर किए गए अत्याचार को सही साबित करते हुए पन्नूराम कहता, ‘‘क्या करें, हमें भी तो पेट पालना था. गांव में रोजीरोजगार का दूसरा कोई भी जरिया नहीं था जिस से हम मछलियों के ऊपर रहम करते हुए जीविका का कोई और साधन अपना लें. मछली मारने से हुई मेरी आर्थिक तरक्की को देख कर अन्य गांव वालों ने भी डायनामाइट के जरिए मछली मारना शुरू कर दिया. देखते ही देखते रूपीन व सुपीन नदियां रणक्षेत्र बन गईं. मछलियां कम होती गईं. अंत में तो ऐसा हुआ कि स्रोतों में कीड़े तक नहीं दिखाई देते थे. मछली से आमदनी कम होती गई तो मैं चिंतित हो उठा. अब घर चलाने का जरिया क्या होगा? मछलियों के झुंड ढूंढ़ने के लिए नदी के किनारेकिनारे मुझे मीलों तक जाना पड़ता था. कमाई कम होते ही रामदीन अपने गांव वापस चला गया.

‘‘सावन के महीने में एक दिन बारिश की धारा अनवरत बह रही थी. दिनभर की खोज के बाद शाम के समय काफी दूर से मछलियों का एक झुंड आता दिखाई दिया. अपनी उत्तेजना को वश में रखने के लिए मैं दाएं हाथ में जलती बीड़ी से कश मारते हुए बाएं हाथ में सुलगता डायनामाइट पकड़े मौके का इंतजार करता रहा. महीनों बाद पानी के स्रोत में तैरती मछलियों का झुंड देख कर मैं इतना खुश हुआ था कि मानो खुली आंख से कोई सपना देख रहा हूं. हिसाब लगा रहा था कि इतने बड़े झुंड से कितनी कमाई होगी. परिवार की आवश्यकताएं तो पूरी हो जाएंगी साथ ही कुछ पैसा भविष्य के लिए भी बच जाएगा. थोड़ी देर में जब देखा तो मछली का झुंड आ चुका है. मैं ने त्वरित गति से अपनी कार्यवाही की… लेकिन डायनामाइट का धमाका नहीं निकला. परेशान हो कर अपनी बंद आंखें खोल कर जब देखा तब तक डायनामाइट मेरे बाएं हाथ को धम से उड़ा कर ले जा चुका था. सपने में लीन मैं अपने दाहिने हाथ की सुलगती हुई बीड़ी को फेंक कर समझ रहा था कि मैं ने डायनामाइट फेंक दिया.’’

अपनी पूरी कहानी सुनाने के बाद स्वाभाविक होने पर पन्नूराम दोहराता, ‘‘मछलियों की आंसू भरी कातर आखें मुझे सताती रहती हैं. मैं अपने सीने में एक असहनीय पीड़ा अनुभव करते हुए आज भी मूर्छित हो जाता हूं. अपराधबोध से अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए रोजाना मैं सहृदय पथिक को आपबीती कहानी सुना कर पश्चात्ताप करता रहता हूं…कम से कम सुनने वाला पथिक ऐसे कुकृत्य से बचा रहे.’’

सदानंद को पन्नूराम की कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उस के फायदे की बात यह थी कि सुनने वाले राहगीर कहानी सुनतेसुनते एक के बजाय कई प्याली चाय पी जाया करते थे…पन्नूराम की कहानी से सदानंद की आमदनी में बढ़ोतरी होती रही और…सदानंद ने पन्नूराम की दिनभर की चाय मुफ्त कर दी.

Online Hindi Story- रैड लाइट: क्या बिगड़े बेटे को सुधार पाई मां

Online Hindi Story : शाम की क्लासेज और शाम भी जाड़े की. बर्फ नहीं पड़ रही थी वरना और मुसीबत होती. अमेरिका के विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते ही दिल में धुकधुकी इतनी तेज हो जाती है कि ड्राइविंग पर ध्यान बनाए रखना दूभर हो जाता है. ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का इलाका रैड लाइट एरिया कहलाया जाने लगा है. रैड लाइट एरिया का खौफ सुमि के मन में बालपन से ही बैठा हुआ है. सुमि के पापा के दूर के कुछ रिश्तेदार पुरानी दिल्ली में दशकों पुराने जमेजमाए कारोबार के चलते वहीं हवेलियों में रहते रहे हैं. मां बताती थीं कि वहां के बड़े चावड़ी बाजार के पास एक इलाका वेश्याओं और गुंडों की वजह से बदनाम ‘रैड लाइट’ एरिया हुआ करता था जिस के आसपास महल्लों में पलक झपकते लड़कियां गायब किए जाने की वारदातें सुनने में आया करती थीं. इस कारण वहां रहने वाले परिवारों की औरतें अपने घरों से बहुत कम निकलती थीं. मजबूरी में जब भी उन्हें बड़े चावड़ी बाजार के पास से गुजरना पड़ता तो उस ओर देखे बिना झट कन्नी काट कर बच्चों, विशेषकर बच्चियों को अपनी लंबी चादर के भीतर दबोचे ऐसे लंबे डग भरतीं मानो कोई चोरउचक्का पीछे पड़ा हो.

अमेरिका के शहर मिडवैस्टर के बीचोंबीच डाउनटाउन इलाके में देश की प्रख्यात और महंगी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के तेज रफ्तार रिफ्रैशर इवनिंग कोर्स के लिए फुल स्कौलरशिप का मौका विरलों को मिलता है. सुमि इसे हर हाल में पूरा करने को कटिबद्ध है. रैग्युलर कोर्स की गुंजाइश  नहीं, दिन की नौकरी छोड़े तो गुजारा कैसे हो?

जितनी प्रख्यात यूनिवर्सिटी है डाउनटाउन का यह इलाका उतना ही बदनाम होता जा रहा है. वहां की समृद्ध फार्मर्स (किसान) पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है और उन की संतानों को सीधा उत्तराधिकार प्राप्त नहीं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उन के वृहद् फार्म्स खरीद कर डैवलपर्स वहां आलीशान घर, मौल और आधुनिक सुविधाओं से लैस उपनगर बनाते जा रहे हैं. नतीजतन, शहरी आबादी वहीं उमड़ी जा रही है. बीच शहर में बंद दुकानें, खाली घर ड्रग डीलर्स और बदनाम पेशों के अड्डे हो गए हैं जिस के चलते महंगी यूनिवर्सिटी में प्रवेशातुर रईस परिवारों की संतानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है. 5 मील के घेरे के भीतर रहने वाले सभी छात्रों के लिए सुबह 7 बजे से रात के 12 बजे तक निशुल्क वैन सर्विस है. इस के अलावा, यूनिवर्सिटी ने पूरे इलाके के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है और इस के पुनर्वास के लिए नियत फैडरल सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है. जरूरतमंदों के लिए उदार छात्रवृत्तियां, डैंटिस्ट्री और नर्सिंग डिपार्टमैंट्स की ओर से फ्री क्लीनिक्स, लौ डिमार्टमैंट की ओर से मुफ्त कानूनी सलाह के सैशंस की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कोर्स के एक असाइनमैंट के लिए अन्य सहपाठियों ने सामयिक घटनाओं को चुना जिन के लिए तथ्य रेडियो, टीवी और पत्रपत्रिकाओं से जुटाना सहज होता है. भारत की प्रमुख पत्रिकाओं, पत्रों में प्रकाशित सुमि का शौकिया लेखन मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण भोगा हुआ यथार्थ ही रहा था. ऐसी 2 प्रविष्टियों और प्रमाणित पूर्व प्रकाशनों के बल पर ही इस तेज रफ्तार कोर्स में उसे प्रवेश मिला जिस के पूर्ण होने पर स्थानीय अखबार के फीचर सैक्शन में उस की सह संपादक की नियुक्ति की संभावना बन सकती थी.

ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट के खस्ताहाल इलाके पर सुमि के ह्यूमन इंटै्रस्ट स्टोरी के चयन पर प्रोफैसर को आश्चर्य था पर मौन अनुमोदन दे दिया शायद इसलिए कि यह यूनिवर्सिटी की वर्तमान नीति के अनुरूप हो. बहरहाल, इलाके के गली, महल्ले छानने और इंटरव्यूज कर के तथ्य बटोरने के लिए वहां वीकेंड पर दिन का समय ही सुरक्षित होगा. यह उन्होंने पहले ही बता दिया. सिटी गजट अखबार की पुरानी प्रतियों में डाउनटाउन के इतिहास में ऐतिहासिक घरों, इमारतों का प्रचुर विवरण है. हैरत की बात यह कि ऐसे कुछ घर ठीक ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट पर हैं. हिस्टौरिकल सोसाइटी से संपर्क कर के सुमि ने गृहस्वामियों के नामपते लिए और फोन कर के इंटरव्यू का समय तय किया. नियत समयानुसार मिस्टर गौर्डन रैल्फ के पते पर ठिठक कर अपनी लिस्ट फिर पढ़नी पढ़ती है. गलीचे से लौन के आगे संतरी सरीखे खड़े ऊंचे दरख्तों और तराशी हुई झाडि़यों से घिरे छोटे मगर शानदार मैन्शन का इस इलाके में क्या काम? ईंटपत्थर के मकान पुराने स्थापत्य शिल्प के नामलेवा भर रह गए हैं. रैल्फ मैन्शन का एकएक पत्थर जैसे समय के बहाव को रोके अविचल खड़ा. सामने की दीवार पर खूबसूरत स्टैंड ग्लास की बड़ी गोल खिड़की जैसे उन्नत भाल पर टीका हो. हस्तनिर्मित ऐसी नायाब कृतियां तो यूरोप के पुरातन गिरजाघरों में ही मिलें.

पूर्वनियत इंटरव्यू की औपचारिकता परे रख गृहस्वामी गौर्डन चाव से सुमि को घर दिखाते हैं, अपने बारे में बताते हैं. पत्नी का देहांत हो चुका है, बेटेबेटियां सुदूर प्रांतों और देशों में हैं. दशकों पूर्व जरमनी से अमेरिका आए उद्यमियों को लेक मिशिगन के तट पर बसा शहर बियर उद्योग की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा था. बे्रवरीज लगाई गईं, रिहाइश के लिए घर बनाए गए. शहरी इलाकों में भी तब सड़कें कच्ची हुआ करती थीं जिन पर घोड़े और बग्घियां चलती थीं. गैराज के बजाय घरों के आगे घोड़े या छोटीबड़ी बग्घी के लिए शेड होते थे.

जरमन बियर और इंजीनियरिंग का दुनिया में आज भी मुकाबला नहीं. उन  के घरों की पुख्ता नींवें बहुत गहरी हैं और सारी प्लंबिंग तांबे की. समयोपरांत ब्रेवरीज के रईस मालिक लेकड्राइव का रुख करते गए और बीच शहर में उन के घर ब्रेवरीज के इंजीनियर और ब्रियूमास्टर्ज खरीदते गए. मिशिगन लेक को छूती एकड़ों जमीन पर आज भी खड़े कुछ आलीशान मैन्शंज और उन के अपने गैस्टहाउस, केयरटेकर्ज कौटेजेज, ग्रीनहाउस, अस्तबल, बग्घीखाने उस युग के प्रतीक हैं. आज के युग में ऐसी इमारतों का रखरखाव लगभग असंभव है. जिन मैन्शंज के मालिक या वारिस नहीं रहे और जो नींवों में लेक का पानी रिसने से खंडहर हो चले, उन्हें डैवलपर्ज ने ढहा कर आधुनिक बंगले, बहुमंजिले मकान जिन्हें यहां कौन्डोज कहा जाता, बना डाले. गौर्डन के परनाना ब्रियूमास्टर थे और शहर के भीतर पुराने घर का विस्तार कर के उसे छोटे मैन्शन का रूप दिया था. उन्नत भाल पर टीके सी खूबसूरत खिड़की का अलग ही एक किस्सा सुनाते हैं.

गौर्डन के नाना इकलौती संतान थे और मैन्शन के उत्तराधिकारी. मैन्शन का विस्तार किया लेकिन उन के पुत्र यानी गौर्डन के मामा ने पादरी बनने का निर्णय ले लिया. मैन्शन पुत्री को मिला और उन के बाद नाती गौर्डन को. ईंटपत्थर की दोहरी दीवारों के बीच एअर स्पेस, लकड़ी के फर्श, मजबूत लकड़ी के डबल फ्रेम वाली खिड़कियां, दरवाजे और हर कमरे में फायर प्लेस व रेडिएटर हीटर्ज भीषण जाड़े में भी घर को आरामदेह रखते हैं. खुले, हवादार घर में एअरकंडीशनिंग की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन बैठक की एक दीवार गरमी में बेहद गरम हो जाती थी. अधिक आराम के लिए गौर्डन ने एअरकंडीशनर भी लगाए. दीवार फिर भी गरम रहती. एअरकंडीशनर को कई बार जांचने पर भी कारण समझ नहीं आया तो प्लास्टर तोड़ा गया. नीचे दीवार में जड़ी मिली स्टैंडग्लास ही हस्तनिर्मित नायाब गोल खिड़की जिस से तेज धूप अंदर आती रही थी इसीलिए वहां पर प्लास्टर मढ़ दिया गया होगा. गौर्डन ने शीशे की वह खूबसूरत खिड़की निकाल कर घर में ऊपर के बैडरूम को जाती सीढि़यों में लैंडिंग की उस दीवार में फिर जड़वा दी जिस तरफ धूप का रुख नहीं रहता.

वही खिड़की खूबसूरती और ऐंटीक वैल्यू की वजह से उन के घर की पहचान बन गई. रैल्फ मैन्शन यदि लेक के निकट और इलाके में होता तो हैरिटेज होम्ज में शुमार किया जाता जिन की सालाना नुमाइश यानी परैड औफ होम्ज की महंगी टिकटें समाज कल्याण के कई कार्यों के लिए हजारों डौलर जुटाती हैं. अपनी स्टोरी में लगाने के लिए सुमि रैल्फ मैन्शन और खिड़की की फोटो लेती है. खूबसूरती से तराशी झाडि़यों से घिरे लौन में टहलते हुए गौर्डन अगलबगल के  घरों की खस्ता हालत के बारे में पूछने पर बताते हैं कि उन के वृद्ध मालिक या तो नर्सिंग होम में हैं या कब्रगाह में. जो वारिस नौकरियों के सिलसिले में अन्य शहरों में हैं वे घरों को किराए पर चढ़ा गए. मैन्यूफैक्चरिंग का सारा काम चीन क्या गया कि डाउनटाउन का खुशहाल इलाका अब खस्ताहाल है. बढ़ती गुंडागर्दी के कारण किराएदार घर छोड़ कर जाने लगे हैं. खाली घर खुराफात के अड्डे बन रहे हैं. कितने घर तो सरकार ने तालाबंद करवा दिए हैं. नोट्स लेने के साथसाथ सुमि उन की भी फोटोज लेती चलती है.

तालाबंद घरों को फिर आबाद करने की एक स्कीम के तहत मेहनतकश लोग केवल एक डौलर में ऐसे घर खरीद सकते हैं, बशर्ते कि वे उन की मरम्मत कर के कम से कम 5 वर्ष तक अमनचैनपूर्वक उन में खुद रहने और नियम से प्रौपर्टी टैक्स भरने का कौंट्रैक्ट साइन करें. उद्यमी और साहसी नए प्रवासियों के लिए सुनहरा अवसर. ऐसे आबाद घरों से कानून और व्यवस्था में बेहतरी की भी उम्मीद है. संभ्रांत इलाकों में तो घरों को झाडि़यों वगैरा से घेरना लगभग अशिष्टता समझा जाता है लेकिन गौर्डन मजबूर हैं. नशाखोरों की टोलियां ऊंची आवाज में शोरशराबे के साथ किसी के भी घर के आगे हुल्लड़ मचाती मंडराती हैं. पुलिस बुलाओ, उन्हें भगाओ लेकिन अगली रात फिर वही तमाशा. झाडि़यों की सीमा खुराफातियों को कुछ हद तक थोड़ी दूर रखती है. गौर्डन अपने मैन्शन के आगे झाडि़यों की कतार का रोज सुबहसवेरे मुआयना करते हैं. चरसियों, नशाखोरों की रातभर की कारस्तानियों की निशानियां सिरिंजेज, सुइयां, कंडोम बीनते हैं वरना पड़ोस के छोटे बच्चे उन से डाक्टरडाक्टर खेलते हैं. कंडोम को नन्हे गुब्बारे समझ कर फुलाते हैं, उन में पानी भरभर कर एकदूसरे पर फेंकते हैं.

जर्जर हालत में कुछ घरों में सिंगल मदर्स अलगअलग बौयफ्रैंड्स से अपने बच्चों के साथ रह रही हैं. यह वह तबका है जो सरकार को दुधारी गाय मान कर उसे दुहे जाता है. ब्याह, शादी कर के तो आम गृहस्थी की तरह मेहनतमशक्कत से रोटी कमानी पड़ेगी. कोई बौयफ्रैंड अपनी संतान की परवरिश के लिए नियमित राशि दे तो भला, वरना अविवाहित मातापिता संतान को सरकार से मिलने वाले फूड स्टैंप्स और अन्य सहायता के सहारे पालते हैं. ऐसी मानसिकता वालों के कारण इलाके की छवि धूमिल होती है. गौर्डन अपनी दृष्टि घुमा कर सड़कपार कुछ दूरी पर उन घरों की ओर इशारा करते हैं जिन का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. एक घर के दोमंजिले पोर्च में स्विंगसोफे  या आरामकुरसी पर बैठी कुछ युवतियां मैगजीन पढ़ने या बातचीत करने में तल्लीन दिखती हैं. घर के मालिक अधेड़ आयु के निसंतान दंपती हैं, टायरोल और ऐग्नेस कार्सन. सोशल डैवलपमैंट कमीशन उन के घर की ऊपर मंजिल को किराए पर ले कर जरूरतमंदों के अस्थायी आवास के रूप में इस्तेमाल करता है. फिलहाल वहां रह रही युवतियां यूनिवर्सिटी के सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्कौलरशिप स्टूडैंट्स हैं जो पार्टटाइम काम भी करती हैं, जिस की वजह से उन्हें वक्तबेवक्त जानाआना पड़ता है. यूनिवर्सिटी जानेआने के लिए वैन सर्विस है और काम के लिए वे बस से जातीआती हैं.

सुमि कुछ कहती नहीं, लेकिन उस ने अलग से यह भी सुना है कि उस इलाके में गाडि़यां दिन में कई चक्कर मारती हैं. उन में ‘जौन्ज’ यानी ग्राहक होते होंगे. इसी कारण इस इलाके के रैड लाइट एरिया होने की अफवाह धुएं से चिंगारी बनने लगी है. गौर्डन सुमि को महल्ले के दौरे पर ले चलते हैं. 100 गज ही आते हैं कि बस से उतर कर एक अधेड़ महिला थैलों से लदीफंदी सामने से आती दिखती है. गौर्डन आगे बढ़ कर कुछ थैले पकड़ लेते हैं और उन्हें उन के दरवाजे तक छोड़ आते हैं. बारबार थैंक्स कहतीकहती जब वे अंदर चली जाती हैं तब नीची आवाज में सुमि को उन के बारे में गौर्डन बताते हैं कि हो न हो, खून बेच कर आई हैं तभी खरीदारी के थैले अकेले पकड़े थीं. सरकारी फूड स्टैंप्स से ग्रोसरी खरीदने या फूड बैंक से मुफ्त सामान लाने के लिए वे बच्चों को साथ ले जाती हैं. ड्रग ऐडिक्ट बेटी डीटौक्स सैंटर में है. बेटी का बौयफ्रैंड फरार है. उस से और पिछले एकदो बौयफ्रैंड्स से बेटी के 5 बच्चे हैं जिन्हें ये पाल रही हैं. सब को नियम से स्कूल की बस पर चढ़ा कर आती हैं, तीसरे पहर बस स्टौप से लिवा कर लाती हैं और घर में अनुशासित रखती हैं ताकि अच्छी अभिभावक होने का सुबूत दे सकें और बच्चों को अलगअलग फौस्टर होम्ज में न भेजा जाए. इन का पति नशेबाज था, सो उस से तलाक लिया और घरों, दफ्तरों की सफाई के सहारे गुजारा किया. टूटीफूटी हालत में छोटा घर एक डौलर में मिल गया जिसे हैबिटैट वालों ने रहने लायक बना दिया.

बेटी इकलौती संतान है और उसी के बच्चों की वजह से इन्हें कई जगह काम छोड़ना पड़ा. सब से बड़ी नातिन 12 साल की हो जाए तब उस की निगरानी में उस के भाईबहन को कुछ समय के लिए छोड़ कर सफाई वगैरह का ज्यादा काम पकड़ लेंगी. फिलहाल तो स्टेट इमदाद पर गुजारा कर रही हैं लेकिन मजबूरीवश. वे जानती हैं कि इस तरह से पलने वाले बच्चे जीवनभर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं. जैसे और जितना बन पड़े बिन ब्याही मां के नाजायज बच्चों का भविष्य गर्त में जाने से बचाए रखना चाहती हैं गौर्डन और सुमि टहलतेटहलते आगे निकल आते हैं, तो एक पुराना दोमंजिला मकान दिखता है जिस का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. पोर्च में खड़ी एक अफ्रीकन अमेरिकी वृद्धा मुसकरा कर हाथ हिलाती हैं.

‘‘हाय,’’ गौर्डन गर्मजोशी से अभिवादन का उत्तर देतेदेते उन की तरफ बढ़ते हैं, ‘‘मीट माय न्यू फैं्रड,’’ कहते हुए सुमि का परिचय मिल्ड्रेड से करवाते हैं, ‘‘शी इज डूइंग अ स्टोरी औन अवर नेबरहुड.’’

मिल्ड्रेड की निगाहें अनायास उन घरों की तरफ जाती हैं जिन के कारण महल्ले की छवि धूमिल है, ‘ओहओह’ कहते ही तुरंत संभल जाती हैं.

‘‘कम इन, कम इन,’’ कहते हुए मिल्ड्रेड गौर्डन और सुमि के स्वागत में अपने पोर्च से नीचे उतर आती हैं. उन के साथ भीतर जाते हुए सुमि देखती है कि पोर्च में एक बैंच पर सामान से भरे कागज के खाकी थैले सजे हैं और उन के आगे गत्ते के टुकड़े पर लिखा है, ‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय.’’

‘‘आह, सो यू फाउंड गुड डील्ज ऐट द फार्मर्स मार्केट.’’

सुमि की ओर मुड़ कर गौर्डन समझाते हैं कि घर के पीछे अपने छोटे से किचन गार्डन में सागसब्जी उगाना और फार्मर्स मार्केट जा कर खेत से आई ताजी सागसब्जी, फल खरीदना मिल्ड्रेड की हौबी है. खुद तो पकातीखाती हैं ही, बुजुर्ग पड़ोसियों को भी भिजवाने के अलावा कागज के खाकी थैलों में डाल कर पोर्च में रख देती हैं ताकि कोई भी जरूरतमंद ले जाए.मिल्ड्रेड हारपोल रिटायर्ड नर्स हैं. इराक के साथ औपरेशन डेजर्ट स्टौर्म में पति की शहादत के बाद 7 बेटों और 2 बेटियों के पालनपोषण की

जिम्मेदारी अकेले नर्सिंग के सहारे संभालना कठिन था. पति की मृत्यु के बाद मिली राशि और मामूली पैंशन में  भी गुजारा न होता, सो सिलाई, बुनाई, कपड़ों पर इस्तरी और छोटीमोटी कैंटरिंग का काम भी ढूंढ़ा. ड्राईक्लीनिंग की दुकान खोली.

राशनपानी, सागसब्जी की भरसक उम्दा खरीदारी के हुनर के साथ मिल्डे्रड ने गृहस्थी सुचारु रूप से चलाई. बड़ बच्चों ने पढ़ाई के साथसाथ बिजनैस संभालने में हाथ बंटाना सिखाया. 50 साल से महल्ले के बच्चों की क्रौसिंग गार्ड हैं. सुबहशाम स्कूल बसस्टौप तक जिन बच्चों को सावधानी से सड़क पार करवा पहुंचाने/लाने जाती हैं उन में से एक भी कम होता है तो उस की कुशलक्षेम पूछने उस के घर पहुंच जाती हैं. यदि बच्चे की गैरहाजिरी का कारण अभिभावक का देर रात तक नशे में धुत रहने के बाद सुबह समय से न उठ पाना या ऐसी ही कोई गफलत होती है तो अभिभावक की भी अच्छी खबर लेती हैं. आज 7 बेटों में से एक आर्मी के ट्रांसपोर्ट डिवीजन का हैड इंजीनियर है, एक फिजिकल मैडिसन का डाक्टर. शेष 5 में कोई डैंटिस्ट है, कोई कंप्यूटर स्पैशलिस्ट, कोई म्यूजिक सिम्फनी का डायरैक्टर और कोई फुटबौल टीम का हैड कोच. सब से छोटे अविवाहित बेटे ने इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने के बाद किसी नामी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी में नौकरी के बजाय हाईस्कूल में फिजिक्स और मैथ्स पढ़ाना और स्पोर्ट्स कोचिंग करना पसंद किया है. मिल्ड्रेड की बहुएं भी प्रोफैशनल्स हैं. 2 सीनियर नर्सेज हैं, एक पब्लिक स्कूल सिस्टम में सीनियर पिं्रसिपल, एक म्यूजियम में सीनियर क्यूरेटर, एक स्पोर्ट्स मैडिसिन में थैरेपिस्ट व पति के साथ हैल्थ फिटनैस क्लीनिक की मालिक है और एक पुलिस औफिसर है.

मिल्ड्रेड की आयु के 75 वर्ष पूरे होने पर उन की प्लैटिनम ऐनिवर्सरी के सम्मानस्वरूप सब बेटों ने मिल कर उन के पुराने जर्जर घर का पुनरुद्धार किया. बड़ी बेटी वीरता पदक प्राप्त आर्मी मेजर की विधवा है और आर्मी हौस्पिटल में औपरेशन रूम नर्स. उसे इंटीरियर डैकोरेशन का शौक है और उस ने घरों की रंगाईपुताई का प्रोफैशनल कोर्स भी कर रखा है. अपने युवा बेटेबेटी सहित वह मां के घर की ऊपरी मंजिल में बाकायदा किराया दे कर रहती है. कौन्सर्ट पियानिस्ट सब से छोटी, अविवाहित बेटी और सब से छोटा बेटा भी मां के साथ रहते हैं. बड़ी और छोटी, दोनों बेटियों, छोटे बेटे और नातीनातिन ने दोमंजिले पूरे घर के रखरखाव की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है. बड़ी बेटी ने बहुत शौक से घर के अंदरबाहर की पूरी पेंटिंग खुद की. छोटे बेटे और नाती ने छत की खपरैलें बदलीं. गरमी में घर के आगेपीछे लौन की घास काटना, पतझड़ में आसपास से उड़ कर जमा पत्तों के ढेर उठाना और जाड़ों में बर्फ साफ करना, ये सब वे लोग ही करते हैं. बेटियों, बहुओं की लाख कोशिशों के बावजूद घर की रोजमर्रा सफाई और थोड़ीबहुत बागबानी मिल्डे्रड स्वयं करती हैं.

जो बेटे अपनेअपने बीवीबच्चों सहित अलग रहते हैं वे भी रविवार को मिल्डे्रड के घर पर इकट्ठे हो कर एकसाथ घूमने जाते हैं जिस के बाद पूरा परिवार साथ बैठ कर लंच करता है. सारी खरीदफ रोख्त खुद ही कर के पूरा खाना मिल्ड्रेड अकेले बनाती हैं और खाने की मेज भी बिलकुल फौर्मल तरीके से सुबहसुबह सजा कर तैयार करती हैं. सालों के अपने नियम में सिर्फ इतनी ढील देने लगी हैं कि बेटियां, बहुएं खाने के बाद मेज और खाना समेटें और कौफी सर्व करें.फार्मर्स मार्केट से ताजे फल, सब्जी खरीदते समय मिल्ड्रेड बखूबी याद रखती हैं कि परिवार में किस को क्या पसंद है. कभी कच्ची, कभी पका कर पहुंचा भी आती हैं. उन की पैनी निगाहें भांप लेती हैं कि अत्यधिक व्यस्तता के  कारण किस के यहां धुला ई के कपड़ों का ढेर हो गया है, किस का फ्रिज साफ कर के चीजें ला कर स्टौक करना है. लाख मना करने पर भी नखशिख से सब दुरुस्त कर के ही लौटती हैं.

‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय’’ लिखे गत्ते के टुकड़े के पीछे खड़ी मिल्ड्रेड पर कैमरा क्लिक कर के सुमि उन से विदा लेती है.

लगभग 2 सप्ताह बाद मुलाकात में गौर्डन सुमि को अपने महल्ले में उसी उत्साह से फिर घुमाते हैं जितने चाव से पहली भेंट में अपना रैल्फ मैन्शन दिखाया था. अपनी रनिंग कमैंट्री के साथ टहलते हुए वे इस बार उसे इलाके के उस हिस्से में ले जाते हैं जहां अधिकांश घर तालाबंद हैं और एकाध में मरम्मत चल रही है. मिल्ड्रेड के घर जैसे तो नहीं लेकिन रहने काबिल बनाए गए एकमंजिले घर के दरवाजे पर गौर्डन दस्तक देते हैं. गौरवर्ण एक वृद्धा द्वार खोलती हैं और गौर्डन को देख कर खिल उठती हैं.

‘‘मीट कौंस्टेंस स्टेहमायेर,’’ गौर्डन सुमि से कहते हैं और गृहस्वामिनी से मिलवाते हैं. वृद्धा बड़े प्रेम से स्वागत करती हैं.

कौंस्टेंस को सुमि के प्रोजैक्ट के बारे में समझा कर गौर्डन पूछते हैं, ‘‘हाउ इज माय पिं्रसैस?’’ वृद्धा घर के पीछे लौन में पेड़ पर बंधे हैमौक की तरफ इशारा करती हैं, ‘‘लौस्ट इन हर म्यूजिक, ऐज औलवेज बट शी विल बी डिलाइटेड टू सी यू, औल्सो ऐज औल्वेज.’’ हैमौक के निकट खड़ी उसे हलकेहलके झोटे देती एक युवती का चेहरा सुमि को जानापहचाना सा लगता है.

‘‘आय विल लीव यू लेडीज टु टौक व्हाइल आई जौइन माय यंग फ्रैंड,’’ कहते हुए गौर्डन पीछे की तरफ बढ़ जाते हैं. कौंस्टेंस तलाकशुदा हैं, वयस्क पुत्रों और पुत्री की मां. ‘पिं्रसैस’ कौंस्टेंस की 25 वर्षीया बेटी है, गे्रटा, जो मानसिक तौर पर बाधित है. पति रिचर्ड स्टेहमायेर एक औल अमेरिकन ट्रक कंपनी के सीनियर ड्राइवर हैं जिस कारण उन्हें दूरदराज शहरोें तक जाना पड़ता था. कौंस्टेंस एक छोटे बिजनैस के लिए अकाउंटिंग करती थीं. हर महीने 2-2, 3-3 हफ्तों की पति की लंबी गैरहाजिरियों की वजह से घर का सारा दायित्व भी उन्हें अकेले ही संभालना पड़ता था. पिता का अंकुश न होने के कारण बेटे उद्दंड हो गए थे.

दोनों के जन्म के वर्षों बाद शरीर से स्वस्थ और बेहद खूबसूरत बेटी के आगमन की खुशी पर तुषारापात हुआ जब डाक्टरों ने बताया कि वह आजन्म मंदबुद्धि ही रहेगी. सब से बड़ा सदमा तो तब लगा जब रिचर्ड ने साफ इल्जाम लगाया कि मंदबुद्धि बच्ची उन की संतान हो ही नहीं सकती बल्कि उन की लंबी गैरहाजिरी में किसी के साथ कौंस्टेंस के अफेयर का नतीजा है. उन्हें तलाक चाहिए. उस समय डीएनए जैसे प्रमाण की जानकारी नहीं थी. बेटों को सदमे से बचाने के लिए कौंस्टेंस ने तलाक की कार्यवाही को लंबा नहीं खींचा. मामूली से सैटलमैंट में उन्हें घर तो मिला लेकिन बाधित बच्ची की चौबीसों घंटे देखभाल के लिए कौंस्टेंस को नौकरी छोड़नी पड़ी. खर्चे की किल्लत की वजह से आखिरकार घर भी बेचना पड़ा और फूड स्टैंप्स पर गुजर की नौबत आ गई. वैलफेयर हाउसिंग कौंप्लैक्स के तंग अपार्टमैंट में शरण लेनी पड़ी. वैलफेयर हाउसिंग यानी सबस्टैंडर्ड लिविंग कंडीशंस. दीवारों से पपड़ी बन उतरता पेंट, नलों से लीक होता पानी, आए दिन चोक होती नालियां. बदबूदार गलियारों में चूहे, काक्रोच, गालीगलौज वाला पड़ोस. गंदी गुडि़या सी ग्रेटा बावली घूमती, दीवारों से उतरती पपडि़यां चाटती और जहांतहां गंदगी करती. दलदल में फंसी कौंस्टेंस डिप्रैशन में डूबती गई थीं और खैरात पर पलने वालों की मानसिकता उन पर हावी होती गई. बिना मेहनत सरकार से जो भी खींच सको, भला. डिप्रैशन के लिए गोलियां लेतेलेते नौबत नशे तक आ गई थी.

हाउसिंग कौंप्लैक्स में मुद्दा उठा कि मकानमालिक सरकार से बस पैसे ऐंठते हैं और अपार्टमैंट्स के रखरखाव पर धेला नहीं खर्च करते. एक शातिर वकील ने मुद्दे को तूल दिया कि अपार्टमैंट्स की दीवारों पर मकानमालिक सस्ता पेंट करवाता है जिस में सीसा मिला होता है. घटिया पेंट बहुत जल्दी पपडि़यां बन कर उतरता है जिसे गे्रटा जैसे छोटे बच्चे अकसर मुंह में रख लेते हैं और बहुतों को मिरगी के दौरे पड़ने लगे हैं. ऐसे दौरे गे्रटा को भी पड़ने लगे तो कौंस्टेंस के दिमाग में खयाल कौंधा. वे शिकायती दल की प्रतिनिधि बन गईं और वकील की मदद से मकानमालिक व पेंट कंपनी, दोनों पर सामूहिक मुकदमा ठोंक दिया. अखबारों ने मामले को खूब उछाला. नतीजतन दावेदारों को भारी मुआवजा मिला जिस का लगभग आधा भाग वकील की जेब में गया. इलाके में सक्रिय राजनीतिक दल और सोशल डैवलपमैंट कमीशन ने हस्तक्षेप कर के सब दावेदारों को मकानमालिक के बेहतर हाउसिंग कौंप्लैक्स में अपार्टमैंट्स दिलवाए. पेंट कंपनी से भी भारी हर्जाना वसूल कर गे्रटा जैसे बाधित बच्चों के ताउम्र इलाज के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया.

मां की अत्यधिक व्यस्तता और तंगदस्ती की वजह से बेटे बिलकुल बेकाबू हो गए. वयस्क होते ही बड़ा बेटा अलग रहने लगा. कद्दावर शरीर के बल पर उसे एक नाइट क्लब में बाउंसर यानी दंगाफसाद करने वालों से निबटने की नौकरी मिल गई. कुछ समय बाद वह कैलिफोर्निया चला गया जहां वह फिल्मों में स्टंटमैन है. अपनी डांसर बीवी के साथ एक  छोटीमोटी टेलैंट एजेंसी चला रहा है जो फिल्म और टीवी की दुनिया में मौका पाने को आतुर भीड़ के लिए छोटेमोटे रोल जुटाती है. छोटे बेटे ने जैसेतैसे हाईस्कूल पास किया और कम्युनिटी कालेज से अकाउंटिंग और कंप्यूटर कोर्सेज पूरे कर के एक कार डीलर के यहां अकाउंटैंट बन गया. काम में होशियार था. अच्छा वेतन और बोनस कमाने लगा तो मां और बहन को छोड़ कर वह भी अलग हो लिया. जो भी कमाता वह गर्लफ्रैंड्स, कैसीनो और पब में उड़ा देता. खर्चीली आदतें बढ़ती गईं तो कर्ज लेने लगा और आखिरकार गबन करते पकड़ा गया.

कौंस्टेंस को जबरदस्त झटका लगा. रिचर्ड को खबर की. वे मिलने तो आए लेकिन जमानत से हाथ खींच लिया. बड़े बेटे से मदद मांगी तो उस ने मां को खरीखरी सुनाईं कि यदि खैरात के बजाय ईमानदारी व इज्जत से बेटे पाले होते तो ऐसी नौबत ही क्यों

बेटों के दिए सदमे से उबरने का अप्रत्याशित अवसर भी प्रकृति ने दिया. बड़े बेटेबहू के यहां लंबे इंतजार के बाद संतान हुई जिस के बारे में उन्हें बहुत समय बाद पता लगा. वह भी तब जब बरसों बाद रिचर्ड को अचानक अपने सामने पाया. उन से जाना के दोनों का पहला पौत्र मंदबुद्धि जन्मा है. कौंस्टेंस पर लगाए लांछन के लिए शर्मिंदा रिचर्ड स्वयं को क्षमा नहीं कर पा रहे थे. बडे़ बेटे ने भी कहलवाया कि मां को घोर विपत्ति से अकेले जूझने को छोड़ देने के लिए वह उन्हें अपना मुंह दिखाने के काबिल नहीं है. बापबेटे ने मिल कर प्रायश्चित करने की याचना की और गौर्डन के महल्ले में एक तालाबंद घर कौंस्टेंस को खरीदवा कर उस का पुनरुद्धार कर डाला जिस में वे रहती हैं. संबंधों के बीच बरसों पुरानी गहरी दरार पटनी मुश्किल है लेकिन रिचर्ड अब लगभग हर महीने मिलने आते हैं. बड़े बेटे ने भी पत्नी और बच्चे के साथ आने की इच्छा प्रकट की है. पिता और दोनों भाई ग्रेटा के हितचिंतक बने रहें, कौंस्टेंस इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहतीं. गुजारे लायक कमा लेती हैं. बढ़ती आयु के कारण गे्रटा की पूरी देखभाल अकेले करने में कठिनाई होने लगी तो उसे स्पैशल नीड्ज वालों के होम में डाल दिया जिस का खर्च ट्रस्ट उठाता है. बेटी की मैडिकल और रिक्रिएशनल जरूरतों के प्रति अब बेफिक्री है लेकिन वीकेंड पर उसे घर ले आती हैं और पड़ोस में रहने वाली सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स में से किसी न किसी को मदद के लिए बुला लेती हैं. सुमि सोचती है कि तभी गे्रटा को झोटे देती युवती का चेहरा जानापहचाना लगा.

छोटे बेटे ने भी जिंदगी से सबक सीखा. जेलयाफ्ताओं को मिलने वाली शैक्षणिक सुविधा का लाभ उठा कर उस ने कंप्यूटर सौफ्टवेयर डैवलपमैंट में मास्टर्स कर लिया. अच्छे आचरण के लिएउस की सजा की मियाद घटा दी गई है और जल्दी ही रिहाई के बाद उसे वहीं जेल में एजुकेटर की नौकरी भी मिल जाएगी. भाई और पिता की तरह वह भी अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा है. पिछली विजिट में वे उसे अपने साथ आ कर रहने के लिए लगभग राजी कर आई हैं. सुमि सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स से भेंट करने के बारे में गौर्डन से मशविरा करती है तो वे उसे कौंस्टेंस की मदद लेने की सलाह देते हैं. एक फोटो लेने और इंटरव्यू के लिए सुमि कौंस्टेंस से पूछती है तो वे चौंक कर पीछे लौन पर नजर डालती हैं, ‘‘अनेदर टाइम,’’ कह कर टाल देती हैं. असमंजस से भरी सुमि उन से विदा ले कर गौर्डन के साथ बाहर आ जाती है.

असाइनमैंट सबमिट करने की डैडलाइन से पहले सुमि गौर्डन को फोन करती है कि स्टोरी लगभग पूरी है, सिर्फ सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स से इंटरव्यू और एकाध फोटो लेना बाकी है. वे कौंस्टेंस से मशविरा कर के वापस फोन करने का आश्वासन देते हैं. 2 दिन बाद वे सुमि को रैल्फ मैन्शन बुलाते हैं.वहां पहुंचने पर कौंस्टेंस भी मिलती हैं. गंभीर मुद्रा में वे सुमि से वचन लेती हैं कि जो कुछ भी उसे बताया जाएगा उसे वह अपने तक सीमित रखेगी, असाइनमैंट सबमिट करने से पहले उन्हें दिखाएगी और ऐसा भी हो सकता है कि वे स्टोरी के किसी अंश को सैंसर करना चाहें.

कौंस्टेंस बहुत मुलायम स्वर में कहना शुरू करती हैं कि मामला एक पुराने संभ्रांत महल्ले का है जो समय की मार से बुरी तरह घायल हुआ. उस के अच्छे समय की स्मृतियां संजोए गौर्डन, टायरोल और ऐग्नेस, मिल्ड्रेड और कौंस्टेंस जैसे कुछ लोग इलाके को रैड लाइट एरिया के नाम से बदनाम किए जाने से तिलमिलाए हुए हैं. इसीलिए समाज उद्धार पर कटिबद्ध सोशल डैवलपमैंट कमीशन से जुड़े हैं. सुमि की स्टोरी उन के प्रयास को बल देगी, इस आस्थावश सब ने उसे पूर्ण सहयोग दिया. अपने जीवन के अंतरंग पक्ष उस के साथ साझा किए. टायरोल और ऐग्नेस सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स के महज मकानमालिक ही नहीं, सोशल डैवलपमैंट कमीशन द्वारा नियुक्त उन के अभिभावक भी हैं. वे युवतियां वयस्क हैं लेकिन उन के अतीत को एक रहस्य ही रहना होगा. वे बस बहुत कच्ची आयु से ही घोर प्रताड़ना और त्रासदी के भंवर में घिर कर आत्महत्या के कगार तक पहुंच गई थीं.

अवैध तरीकों से देश में लाई गई उन जैसी लड़कियां वेश्यावृत्ति करवाने वाले गिरोहों के चंगुल में फंसी गर्त में गिरती जाती हैं. कई मार दी जाती हैं या नशाखोरी अथवा एड्स की शिकार हो कर दर्दनाक मौत का शिकार बनती हैं. अलगअलग शहरों में पुलिस के छापों में पकड़ी गई ऐसी युवतियों को इमिग्रेशन वालों की सहायता से तत्काल नया रूपरंग, नई पहचान दे कर दूर भेज दिया जाता है और समाजसेवी संस्थाएं उन का पुनर्वास करती हैं.कौंस्टेंस के यहां पीछे बगीचे में गे्रटा को झूला झुलाती जो युवती सुमि को पहचानी सी लगी, वह प्योनी है. गौर्डन के साथ महल्ले में घूमते हुए सुमि ने दोमंजिले पोर्च में बैठी, बतियाती युवतियों के बीच उसे देखा होगा.

सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स पूरा होते ही इन युवतियों को फिर रीलोकेट कर दिया जाएगा ताकि उन के पिछले पदचिह्न मिटते रहें जब तक पिछला कोई भी सुराग बाकी न बचे. कार्सन दंपती का घर उन का स्थायी पुनर्वास नहीं, बल्कि एक कड़ी मात्र है. कुछ अन्यत्र कहीं नर्सिंग कालेज में डिगरी कोर्स पूरा करेंगी और आर्मी में जाएंगी. कुछ की अलगअलग शहरों में वृद्धों के नर्सिंग होम्स में नौकरी लगभग पक्की है. अन्य को शहरशहर घूमतेघूमते कोई ठिकाना मिल ही जाएगा जिस में वे बेखौफ रह सकेंगी. जिस घर में 10 युवतियां रहती हों उस का असामाजिक तत्त्वों की नजरों से बचना मुश्किल होता है. टायरोल और ऐग्नेस के घर के चक्कर लगाने वाली बिना पहचान की गाडि़यां पुलिस के विशेष सुरक्षा दस्ते की हैं. सुमि की स्टोरी को डिस्टिंक्शन ग्रेड मिलता है. स्टोरी में सुमि ने यूनिवर्सिटी और सोशल डैवलपमैंट कमीशन के साझे इनीशिएटिव का संक्षिप्त वर्णन ही दिया जिस के तहत जरूरतमंद वर्ग छात्रवृत्तियों और रिहाइश जैसी अन्य सुविधाओं का लाभ उठा कर अपना भविष्य संवार रहा है. निष्ठावान निवासियों द्वारा इलाके की धूमिल छवि को सुधारने के लिए किए गए अथक प्रयासों के सजीव चित्रण के लिए जर्नलिज्म डिपार्टमैंट का अखबार उसे मुख्य फीचर बनाता है. शहर के प्रमुख दैनिक में उस का प्रचुर विवरण छपता है.

सुमि अखबार की कई प्रतियां गौर्डन, कौंस्टेंस, मिल्डे्रड और टायरोल के यहां पोस्ट कर देती है. यूनिवर्सिटी और सोशल डैवलपमैंट कमीशन की ओर से जर्नलिज्म डिपार्टमैंट का अखबार शहर के मुख्य दैनिक के साथ मुफ्त वितरित किया जाता है. ग्रैजुएशन डे पर सुमि को बधाई देने वालों में गौर्डन, कौंस्टेंस, मिल्ड्रेड, टायरोल और ऐग्नेस के साथ प्योनी और उस की साथिनें भी आती हैं. सब के साथ फोटो सुमि को बैस्ट अवार्ड लगता है. स्थानीय अखबार में सह संपादक सुमि अब डाउनटाउन के चप्पेचप्पे से वाकिफ हो चुकी है. विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फ ोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते हुए सुमि पुराने भय को याद कर के हंसे बिना नहीं रह पाती. उस इलाके में प्रौपर्टी डैवलपमैंट जोर पकड़ने लगा है और जमीन के भाव बढ़ रहे हैं

आती? सजायाफ्ता बेटे से मिलने जेल गई तो उस ने मुंह फेर लिया और कड़वे शब्दों में आइंदा मिलने आने के लिए मना कर दिया. मां ने बेटे से मिलने जाना नहीं छोड़ा. भले ही वह बात न करता था लेकिन दूर बैठ उसे जीभर देख कर वे लौट आती थीं.अपने ही खून से ऐसे घोर अपमान से कौंस्टेंस हिल गईं. उन्होंने अपनी शेष जिंदगी का रुख मोड़ने का निश्चय किया और विपन्न स्थिति में अपने जैसे हताश लोगों की मानसिकता बदलने के इरादे से सोशल डैवलपमैंट कमीशन के प्रयासों से जुड़ने की ठान  ली. आर्थिक सहायता के दावेदारों को सही और वाजिब अर्जियां दाखिल करने में मदद करने लगीं. अब अपने हाउसिंग कौंप्लैक्स की मुखिया हैं और इलाके में सक्रिय राजनीतिक दल की कार्यकर्त्ता.

Hindi Story- पतझड़ में झांकता वसंत: कैसे गुजरी थी रूपा की जिंदगी

‘‘हैलो सर, आज औफिस नहीं आ पाऊंगी, तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है,’’ रूपा ने बुझीबुझी सी आवाज में कहा. ‘‘क्या हुआ रूपाजी, क्या तबीयत ज्यादा खराब है?’’ बौस के स्वर में चिंता थी.

‘‘नहींनहीं सर, बस यों ही, शायद बुखार है.’’ ‘‘डाक्टर को दिखाया या नहीं? इस उम्र में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, टेक केयर.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं सर,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया. 55 पतझड़ों का डट कर सामना किया है रूपा सिंह ने, अब हिम्मत हारने लगी है. हां, पतझड़ का सामना, वसंत से तो उस का साबका नहीं के बराबर पड़ा है. जब वह 7-8 साल की थी, एक ट्रेन दुर्घटना में उस के मातापिता की मृत्यु हो गई थी. अपनी बढ़ती उम्र और अन्य बच्चों की परवरिश का हवाला दे कर दादादादी ने उस की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया. नानी उसे अपने साथ ले आई और उसे पढ़ायालिखाया. अभी वह 20 साल की भी नहीं हुई थी कि नानी भी चल बसी. मामामामी ने जल्दी ही उस की शादी कर दी.

पति के रूप में सात फेरे लेने वाला शख्स भी स्वार्थी निकला. उस के परिवार वाले लालची थे. रोजरोज कुछ न कुछ सामान या पैसों की फरमाइश करते रहते. वे उस पर यह दबाव भी डालते कि नानी के घर में तुम्हारा भी हिस्सा है, उन से मांगो. मामामामी से जितना हो सका उन्होंने किया, फिर हाथ जोड़ लिए. उन की भी एक सीमा थी. उन्हें अपने बच्चों को भी देखना था. उस के बाद उस की ससुराल वालों का जुल्मोसितम बढ़ता गया. यहां तक कि उन लोगों ने उसे जान से मारने की भी प्लानिंग करनी शुरू कर दी. श्वेता और मयंक अबोध थे. रूपा कांप उठी, बच्चों का क्या होगा. वे उन्हें भी मार देंगे. उन्हें अपने बेटे की ज्यादा दहेज लेने के लिए दोबारा शादी करनी थी. बच्चे राह में रोड़ा बन जाते. एक दिन हिम्मत कर के रूपा दोनों बच्चों को ले कर मामा के यहां भाग आई. ससुराल वालों का स्वार्थ नहीं सधा था. वे एक बार फिर उसे ले जाना चाहते थे, लेकिन उस घर में वह दोबारा लौटना नहीं चाहती थी. मामा और ममेरे भाईबहनों ने उसे सपोर्ट किया और उस का तलाक हो गया.

उसे ससुराल से छुटकारा तो मिल गया लेकिन अब दोनों बच्चों की परवरिश की समस्या मुंहबाए खड़ी थी. बस, रहने का ठिकाना था. उस के लिए यही राहत की बात थी. मामा ने एक कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. उस के जीवन का एक ही मकसद था, श्वेता और मयंक को अच्छे से पढ़ानालिखाना. दोनों बच्चों को वह वैल सैटल करना चाहती थी. वह जीतोड़ मेहनत करती, कुछ मदद ममेरे भाईबहन भी कर देते. उस के मन में एक ही बात बारबार उठती थी कि जैसी जिंदगी उसे गुजारनी पड़ी है, बच्चों पर उस की छाया तक न आए. रूपा ने दोनों बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूल में करवा दिया. उन्हें हमेशा यही समझाती रहती कि पढ़लिख कर अच्छा इंसान बनना है. बच्चे होनहार थे. हमेशा कक्षा में अव्वल आते. वक्त सरपट दौड़ता रहा. मयंक ने आईआईटी में दाखिला ले लिया. श्वेता ने फैशन डिजाइनिंग में अपना कैरियर बनाया. श्वेता बैंगलुरु में ही जौब करने लगी थी. उस ने अपने जीवनसाथी के रूप में देवेश को चुना. दोनों ने साथसाथ कोर्स किया और साथसाथ स्टार्टअप भी किया. रूपा और मयंक को भी देवेश काफी पसंद आया. मयंक ने भी अपने पसंद की लड़की से शादी की. रूपा काफी खुश थी कि उस के दोनों बच्चों की गृहस्थी अच्छे से बस गई. उन्हें मनपसंद जीवनसाथी मिले. मयंक पहले हैदराबाद में कार्यरत था. पिछले साल कंपनी ने उसे अमेरिका भेज दिया. वह कहता, ‘मम्मा, यदि मैं यहां सैटल हो गया, तो फिर तुम्हें भी बुला लूंगा.’

रूपा हंस कर कहती, ‘बेटा, मैं वहां आ कर क्या करूंगी भला. तुम लोग लाइफ एंजौय करो. मामामामी की भी उम्र काफी हो गई है. ऐसे में उन्हें छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी.’

मयंक भी इस बात को समझता था लेकिन फिर भी वीडियो चैटिंग में यह बात हमेशा कहता. मामामामी भी रूपा से कहते, ‘अब हमारी उम्र हो गई. जाने कब बुलावा आ जाए. इसलिए तुम मयंक के पास चली जाओ.’ श्वेता और देवेश बीचबीच में आते और बेंगलुरु में सैटल होने के लिए कहते. बच्चों को हमेशा मां की चिंता सताती रहती. उन्होंने बचपन से मां को कांटों पर चलते, चुभते कांटों से लहूलुहान होते और सारा दर्द पीते हुए देखा था. वे चाहते थे कि अब मां को खुशी दें. उन्हें अब काम करने की क्या जरूरत है. लेकिन वह कहती, ‘जब तक यहां हूं, काम करने दो. इसी काम ने हम लोगों को सहारा दिया और हमारा जीवन जीने लायक बनाया है. जब थक जाऊंगी, देखा जाएगा.’

कुछ समय बाद मामामामी की मृत्यु हो गई. रूपा अब निपट अकेली हो गई. इधर कुछ दिनों से बारबार उस की तबीयत भी खराब हो रही थी. इस वजह से वह थोड़ी कमजोर हो गई थी. 6 महीने पहले उस के औफिस में नए बौस आए थे, रूपेश मिश्रा. वे कर्मचारियों से बहुत अच्छे से पेश आते, उन के साथ मिल कर काम करते. उन की उम्र 60 साल के आसपास होगी. कुछ साल पहले एक लंबी बीमारी से उन की पत्नी का साथ छूट गया था. 2 बेटियां थीं, दोनों की शादी हो गई थी. वे अकेलेपन से जूझते हुए खुद को काम में लगाए रहते. कर्मचारियों में अपनापन ढूंढ़ते रहते. वे उदार और खुशदिल थे. कभीकभी रूपा से अपने दिल की बात शेयर करते थे. जब वे अपनी पत्नी की बीमारी का जिक्र करते तब उन की आंखें भर आतीं. वे पत्नी को बेहद प्यार करते थे. वे कहते, ‘हम ने रिटायरमैंट के बाद की जिंदगी की प्लानिंग कर रखी थी, लेकिन वह बीच में ही छोड़ कर चली गई. मेरी बेटियां बहुत केयरफुल हैं, लेकिन इस मोड़ पर तनहा जीवन बहुत सालता है.’

तनहाई का दर्द तो रूपा भी झेल रही थी. उसे भी रूपेश से दिल की बात करना अच्छा लगता था. जल्दी ही दोनों अच्छे दोस्त बन गए. वे दोनों जब अपनी आगे की जिंदगी के बारे में सोचते, तब मन कसैला हो जाता. यह भी कि यदि कभी बीमार पड़ गए तो कोई एक गिलास पानी पिलाने वाला भी न होगा. उस पर आएदिन अकेले बुजुर्गों की मौत की खबर उन में खौफ पैदा करती. जब भी ऐसी खबर पढ़ते या टीवी पर ऐसा कुछ देखते कि मौत के बाद कईकई दिनों तक अकेले इंसान की लाश घर में सड़ती रही, तो उन के रोंगटे खड़े हो जाते. मौत एक सच है. यदि उस की बात छोड़ भी दें तो भी शेष जीवन अकेले बिताना आसान नहीं था. न कोई बात करने वाला, न कोई दुखदर्द बांटने वाला. बंद कमरा और उस की दीवारें. कैसे गुजरेंगे उन के दिन? रात की तनहाई में जब वे सोचते, सन्नाटा राक्षस बन कर उन्हें निगलने लगता. रूपा ने बातोंबातों में मयंक और श्वेता को अपने बौस रूपेश मिश्रा के बारे में बता दिया था. यह भी कि वे एक अच्छे इंसान हैं और सब के सुखदुख में काम आते हैं. वह बच्चों से वैसे भी कुछ नहीं छिपाती थी. बच्चों के साथ शुरू से ही उस का ऐसा तारतम्य है कि वह जितना बताती उस से ज्यादा वे दोनों समझते.

रूपा बिस्तर पर लेटीलेटी जिंदगी के पन्ने पलट रही थी. एकएक दृश्य चलचित्र बन उस की आंखों में उभर आए थे. उस की बीती जिंदगी पर लगाम तब लगी जब कौलबैल बजी. उस ने घड़ी देखी तो शाम के साढ़े 6 बज रहे थे. इस वक्त कौन होगा? वह अनमनी सी बालों का जूड़ा बनाते हुए उठी. की-होल से देखा, सामने रूपेश मिश्रा खड़े थे. उस ने झटपट दरवाजा खोल दिया, ‘‘अरे आप?’’

‘‘आप की तबीयत कैसी है? मुझे फिक्र हो रही थी, इसलिए चला आया’’, रूपेश ने खुशबूदार फूलों का बुके उस की तरफ बढ़ाया. बहुत दिनों बाद कमरा भीनाभीना महक उठा. इस महक ने रूपा को भी सराबोर कर दिया, ‘‘सर, बैठिए न मैं ठीक हूं.’’ उस के होंठों पर प्यारी सी मुसकराहट आ गई.

‘‘आप ने डाक्टर को दिखाया?’’ ‘‘अरे, बस यों ही मामूली बुखार है, ठीक हो जाएगा.’’

‘‘देखिए, ऐसी लापरवाही ठीक नहीं होती. चलिए, मैं साथ चलता हूं,’’ रूपेश मोबाइल निकाल कर डाक्टर का नंबर लगाने लगा. ‘‘नहीं सर, मैं ठीक हूं. यदि बुखार कल तक बिलकुल ठीक नहीं हुआ, तो मैं चैकअप करा लूंगी.’’ उस की समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे. उसे इस बात का थोड़ा भी अंदाजा नहीं था कि रूपेश घर आ जाएंगे.

‘‘यह सरसर क्या लगा रखा है आप ने, यह औफिस नहीं है,’’ उस ने प्यार से झिड़की दी, ‘‘मैं कुछ नहीं सुनूंगा, डाक्टर को दिखाना ही होगा. बस, आप चलिए.’’ यह कैसा हठ है. रूपा असमंजस में पड़ गई. उसी समय मयंक का वीडियोकौल आया. उसे जैसे एक बहाना मिल गया. उस ने कौल रिसीव कर लिया. मयंक ने भी वही सवाल किया, ‘‘मम्मी, तुम ने डाक्टर को दिखाया? तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि तुम सारा दिन कष्ट सहती रही.’’

‘‘अब तुम मुझे डांटो. तुम लोग तो मेरे पीछे ही पड़ गए. अरे, कुछ नहीं हुआ है मुझे.’’ ‘‘मम्मी, तुम अपने लिए कितनी केयरफुल हो, यह मैं बचपन से जानता हूं. अरे, अंकल आप, नमस्ते,’’ मयंक की नजर वहीं सोफे पर बैठे रूपेश पर पड़ी.

‘‘देखो न बेटे, मैं भी यही कहने आया हूं, पर ये मानती ही नहीं. वैसे तुम ने मुझे कैसे पहचाना?’’ ‘‘मम्मी से आप के बारे में बात होती रहती है. अंकल, आप आ गए हो तो मम्मी को डाक्टर के पास ले कर ही जाना. आप को तो पता ही है कि अगले महीने हम लोग आ रहे हैं, फिर मम्मी की एक नहीं चलेगी.’’

मयंक ने रूपेश से भी काफी देर बात की. ऐसा लगा जैसे वे लोग एकदूसरे को अच्छे से जानते हों. दोनों ने मिल कर रूपा को राजी कर लिया. मयंक ने कहा, ‘‘अब आप लोग जल्दी जाइए. आने के बाद फिर बात करता हूं.’’ साढ़े 8 बजे के करीब वे लोग डाक्टर के यहां से लौटे. रूपेश ने उसे दरवाजे तक छोड़ जाने की इजाजत मांगी, लेकिन रूपा ने उन्हें अंदर बुला लिया. इस भागदौड़ में चाय तक नहीं पी थी किसी ने. वह 2 कप कौफी ले आई. साथ में ब्रैड पीस सेंक लिए थे. अब वीडियोकौल पर श्वेता थी, अपने बिंदास अंदाज में, ‘‘चलो मम्मी, तुम ने किसी की बात तो मानी. मयंक ने मुझे सब बता दिया है. मम्मी और अंकल, हम लोगों ने आप दोनों के लिए कुछ सोचा है…’’

दोनों आश्चर्य में पड़ गए. अब ये दोनों क्या गुल खिला रहे हैं? श्वेता ने बिना लागलपेट के दोनों की शादी का प्रस्ताव रख दिया. उन लोगों की समझ में नहीं आया कि कैसे रिऐक्ट करें, गुस्सा दिखाएं, इग्नोर करें या…दोनों ने कभी इस तरह सोचा ही नहीं था. लेकिन बात यह भी थी कि दोनों को एकदूसरे की जरूरत और फिक्र थी. श्वेता देर तक मां और दोस्त की भूमिका में रही. आखिर, उस ने कहा कि आप लोगों को अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का पूरा हक है. अगर आप दोनों दोस्त हो तो क्या साथसाथ नहीं रह सकते. हमारा समाज इस दोस्ती को बिना शादी के कुबूल नहीं करेगा और इस से ज्यादा की परवा करने की हमें जरूरत भी नहीं. आप की शादी के गवाह हम बनेंगे. रूपेश के मन में हिचक थी, बोले, ‘‘मेरी बेटियों को भी रूपा के बारे में पता है, लेकिन उतना नहीं जितना तुम दोनों भाईबहनों को.’’ ‘‘अंकल, आप फिक्र मत कीजिए. उन लोगों का नंबर मुझे दे दीजिए. मैं बात करूंगी. सब ठीक हो जाएगा. और मम्मी ब्रैड से काम नहीं चलेगा. आप खाना और्डर कर दो. अंकल को खाना खिला कर ही भेजना. और हां, डाक्टर ने जो दवा लिखी है, उसे समय पर लेना और कल सारा चैकअप करवा लेना.’’

दोनों अवाक थे. बच्चों को यह क्या हो गया है? उन के दिल में कब से कुछ घुमड़ रहा था, वह आंखों के रास्ते छलक आया. रूपेश ने रूपा का हाथ थाम लिया, ‘‘और कुछ नहीं तो उम्र के इस पड़ाव पर हमें सहारे की जरूरत तो है ही.’’

रूपा ने उस के कंधे पर सिर रख दिया. इतना सुकून शायद जीवन में उसे पहली बार महसूस हुआ. वह सोच रही थी, जब वसंत की उम्र थी, उस ने पतझड़ देखे. अब पतझड़ के मौसम में वसंत आया है…लकदक लकदक.

Golden Woman : फैशन मौडल कैसे बनी दुल्हन

दिल्ली के होटल ताज के बाहर काले रंग की एक चमचमाती कार आ कर रुकती है. लेटैस्ट मौडल की इस कार का दरवाजा खुलता है और उस में से हाई हील्स और स्टाइलिश पार्टीवियर ड्रैस में साधना बाहर निकलती है. उस के बालों में गोल्डन कलरिंग की हुई है. डायमंड जड़े सुनहरे पर्स और गौगल्स को संभालती साधना होटल के अंदर प्रवेश करती है.

रिसैप्शन एरिया में ही उस की सहेली निभा उस का इंतजार कर रही थी. साधना को गौर से देखते हुए उस ने कहा,”हाय साधना, न्यू हेयरस्टाइल. नाइस यार… तेरी तो ड्रैस भी नायाब है.”

“अरे निभा, तुझे याद नहीं पिछली दफा जब पार्टी के बाद मैं तन्वी के साथ बाजार गई थी, वहीं यह ड्रैस मुझे पसंद आ गई थी. जानती है इस के किनारों पर गोल्ड का काम है. इस ड्रैस के फ्रंट पर भी सीक्वैंस, स्टोंस, बीड्स और गोल्ड का काम किया हुआ है.”

“गौर्जियस यार. वैसे भी यू आर अ गोल्डन वूमन. गोल्ड बहुत पसंद हैं न तुझे. तेरी ज्यादातर ड्रैस में गोल्ड का काम जरूर होता है. वैसे कितने की है यह ड्रैस ?”

“ज्यादा की नहीं है यार. बस यही कोई ₹1 लाख की है. बट आई मस्ट से, इट्स वैरी कंफरटेबल. फील ही नहीं हो रहा कि कुछ पहना भी है,” कह कर साधना हंस पड़ी, फिर निभा की तरफ देखती हुई बोली,” वैसे तुम्हारी ड्रैस भी बहुत प्रिटी है यार.”

इसी तरह बातें करतीं एकदूसरे का हाथ थामे दोनों आगे बढ़ गईं.

साधना अपनी 20-25 क्लोज फ्रैंड्स के साथ शाम तक शानदार पार्टी का मजा लेती रही. पार्टी साधना की तरफ से ही थी. दरअसल, साधना ने अपने बेटे अभिनव की 10वीं में बेहतरीन प्रदर्शन की खुशी में अपनी सहेलियों को दावत दी थी. दावत भी ऐसीवैसी नहीं थी. इस दावत में सर्व किए गए 1-1 प्लेट की कीमत हजारों रूपए थी.

दरअसल, साधना एक अरबपति इंडस्ट्रियलिस्ट सुधाकर की पत्नी थी. देशविदेश में इन के खानदान के चर्चे थे. सुधाकर के पिता भी नामी इंडस्ट्रियलिस्ट थे और उन्हीं से विरासत में सुधाकर को यह साम्राज्य मिला था. वैसे, सुधाकर के 2 बड़े भाई और हैं. समय के साथ भाइयों में मनमुटाव हुआ तो संपत्ति और कारोबार का बंटवारा कर दिया गया. सुधाकर ने बंटवारे में अपनी पसंद की इंडस्ट्री हासिल की और अब वह स्वतंत्र रूप से पूरे परिश्रम के साथ कारोबार बढ़ाने के प्रयासों में जुटा हुआ था.

सलाहकारों और सहयोगियों का हुजूम हमेशा उस के साथ चलता था. इधर कुछ दिनों से सुधाकर कुछ परेशान रहने लगा था. साधना समझती थी कि इस की वजह कारोबार में आ रही समस्याएं होंगी. सुधाकर कभी भी साधना से अपनी बिजनैस संबंधित समस्याएं शेयर नहीं करता था और साधना कभी उस के काम में कोई दखल देती भी नहीं थी.

साधना ने सुधाकर से लव मैरिज की थी. दरअसल, साधना एक मौडल थी और राजस्थानी परिवार से जुड़ी थी. वहीँ सुधाकर भी मूल रूप से राजस्थानी ही था. दोनों के ही परिवार वाले अब दिल्ली में बसे हुए थे. साधना का फैशन सैंस और स्टाइलिश लुक सुधाकर के मन में समा गया था.

एक फैशन शो ईवेंट के दौरान उस ने साधना से अपने दिल की बात पूरे राजस्थानी अंदाज में कही और वहीं दोनों ने एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुन लिया.

वैसे सुधाकर के घर वालों ने साधना को सहजता से स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे एक मौडल को बहू बनाने के पक्ष में नहीं थे. मगर जब उन्होंने करीब से उस के मृदुल स्वभाव और परिपक्व सोच को परखा तो तुरंत तैयार हो गए.

दोनों अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. साधना के 2 बच्चे थे. पहला बेटा अभिनव था जो 10वीं पास कर चुका था जबकि बेटी अभी छोटी थी.

साधना अपने पैशन को जिंदा रखना चाहती थी मगर शादी के बाद अपनी जिम्मेदारियां देखते हुए उस ने फैशन मौडल के बजाय फैशन इंफ्लुऐंसर और फैशन मोटीवेटर के रूप में घर से ही काम करना शुरू किया था.

पार्टी खत्म कर साधना ने अपनी सभी सहेलियों से विदा ली और अपने शानदार बंगले में कदम रखा तो यह देख कर दंग रह गई की ड्राइंगरूम में बहुत से लोग मौजूद हैं. पति सामने मुंह लटकाए एक अपराधी की तरह खड़े हैं. घर के सभी नौकरचाकर भी एक कोने में दुबके हुए हुए हैं.

घबराते हुए साधना अंदर दाखिल हुई और पति के पास जाती हुई बोली,”क्या हुआ सुधाकर और ये लोग कौन हैं? ”

सुधाकर टूट गया और साधना के कंधे पर सिर रख कर रोता हुआ बोला,”सब खत्म हो गया साधना. हम कंगाल हो गए. ये बैंक वाले हैं और अपनी लोन की रकम उगाहने के लिए आए हैं. ये हमारे मकान और गाड़ियों पर कब्जा लेने के लिए खड़े हैं.”

साधना सन्न रह गई मगर पति को दिलासा देती हुई बोली,”परेशान मत हो सुधाकर, सब ठीक हो जाएगा.”

“मैं भी अब तक यही तो सोचता रहा कि सब ठीक हो जाएगा. एक के बाद एक बिजनैस डूबते रहे मगर मैं लोन लेले कर नए सपने बुनता रहा. तुम्हें भी कभी एहसास नहीं होने दिया कि आजकल हमारी कंपनियां नफा देने के बजाय नुकसान दे रही हैं. मेरे बैंक लोन इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि अब मैं सब कुछ गंवा देने की हालत में पहुंच गया हूं. बस मुझे एक साइन करना है और फिर यह बंगलागाड़ी, यह शानोशौकत सबकुछ खत्म हो जाएगा.”

“तो क्या हुआ सुधाकर, अब हम एक सामान्य जीवन जी लेंगे. सालों शानोशौकत का अनुभव किया है तो कुछ समय साधारण जीवन का भी अनुभव होना चाहिए न और कौन जाने तुम बहुत जल्द ही सब कुछ वापस खड़ा कर लोगे. मुझे पूरा विश्वास है तुम पर. कर दो साइन सुधाकर ज्यादा मत सोचो.”

मनमसोस कर सुधाकर ने सबकुछ बैंक वालों को सौंप दिया और इस तरह एक झटके में अरबपति दंपत्ति का परिवार साधारण मध्यवर्गीय परिवार में तबदील हो गया. सुधाकर और साधना ने तो फिर भी परिस्थितियों से समझौता कर लिया मगर असल मुसीबत बच्चों की थी जिन्होंने बचपन से एक लग्जीरियस लाइफ जी थी और अब अचानक आए इस बदलाव से वे हतप्रभ थे.

बेटी पायल तो इस छोटे से नए घर में आ कर फफकफफक कर रो पड़ी थी. बेटा अभिनव भी समान्य नहीं रह पाया. वह अपने दोस्तों से कतराने लगा क्योंकि वे लोग उस से हजारों सवाल करने लगे थे. साधना खुद भी अंदर से बहुत परेशान थी मगर उसे पति और बच्चों को इस सदमे से उबारना था. साधना ने पहले अपने मन को समझाया और फिर शांत मन से बच्चों को समझाने में जुट गई.

बेटी को अपने पास बैठा कर साधना ने पूछा,”आप क्यों रो रहे हो?”

“मम्मा हम गरीब हो गए. अब हमें बहुत कठिन दिन गुजारने होंगे न. हम अपने मन का कुछ नहीं कर पाएंगे…”

“ऐसा क्यों कह रही हो मेरी बच्ची? अमीरीगरीबी तो जिंदगी में लगी ही रहती है. यह जिंदगी का एक हिस्सा है, एक फेज की तरह है बिलकुल वैसे ही जैसे रोज सुबह होती है, शाम होती है फिर रात हो जाती है. अगला दिन आता है और फिर से सुबह हो जाती है. यह सब तो चलता रहता है. अब देखो न, कभी ठंड, कभी गरमी और कभी बारिश. मौसम बदलते रहते हैं न. जानते हो गरमी के बाद बारिश न आए तो फसलें सूख जाएंगी और हमें खाने की चीजें नहीं मिलेंगी. इसी तरह जिंदगी भी रंग बदलती है.”

“पर मम्मा, यह फेज अच्छा नहीं है न?”

“किस ने कहा बेटे? हर फेज अच्छा होता है. हमें कुछ सिखा कर जाता है. कोशिश करो तो जिंदगी के इस फेज से बहुत कुछ सीख सकते हो.”

“वह क्या मम्मा?”

“देखो बेटे, जीवन में कठिनाइयां आती हैं तभी इंसान उस से लड़ना सीखता है, मजबूत बनता है. जो लोग हमेशा अमीरी में जीते हैं उन के अंदर कठिन परिस्थितियों से निबटने की ताकत नहीं आ पाती. अमीर बच्चों को सब कुछ आसानी से मिल जाता है. इसलिए उन के अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं आती. मगर साधारण लोग सबकुछ अपनी मेहनत के बल पर हासिल करते हैं. इसी में असली खुशी है.”

पायल मां को देखती रही. वह कोशिश कर रही थी कि मां के तर्कों को मान ले मगर बच्ची के मन अंदर कुछ टूट गया था. अभिनव भी काफी गुमसुम रहने लगा था.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. बच्चे अभी भी इस नई जिंदगी में सामान्य नहीं थे.

एक दिन बेटा जब स्कूल से वापस लौटा तो साधना हैरान रह गई. उस के कपड़े कई जगह से फटे हुए थे. बाल बिखरे थे और कई जगह चोट भी लगी थी. उस के साथ आए लड़के ने बताया कि स्कूल में दूसरे लड़कों से मारपीट की वजह से यह हालत हुई है. उस लड़के के जाने के बाद साधना ने जल्दीजल्दी पहले तो बेटे को नहलाया और फिर उस की मरहमपट्टी की. सिर पर ठंडे पानी की फुहारें पड़ीं तो अभिनव थोड़ा सामान्य हुआ.

अब बेटे को पास बैठा कर और उस की आंखों में देखते हुए साधना ने पूछा,”यह सब क्या है अवि? अपने दोस्तों से लड़ने की वजह क्या थी? ऐसा क्या हो गया जो तुम ने मारपीट की?”

अभिनव अचानक रोता हुआ उस की गोद में सिर रख कर लेट गया और बोला,”मां, स्कूल का एक लड़का पापा को कंगाल और दिवालिया कह रहा था. उस ने मुझे कंगला का बेटा कहा. इसी बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं सह नहीं सका और उस पर टूट पड़ा.”

“बेटे, ऐसा क्या गलत कह दिया था उस ने? और यदि गलत कहा भी तो तुम्हें क्या फर्क पड़ता है जबकि बात ही गलत है? देखो बेटा, तुम्हारे पापा दिवालिया हुए थे. उन की संपत्ति जब्त कर ली गई थी. इस की खबर न्यूज चैनल और अखबारों में भी आई थी. ऐसे में संभव है कि उस लड़के के घर में भी इस बात पर चर्चा हुई होगी. वह लड़का किसी बात पर तुम से नाराज होगा इसलिए उस ने तुम्हें उकसाने के लिए इस बात को गलत तरीके से कहा और तुम सचमुच भड़क उठे.

“तुम ने उस की योजना को सफल बना दिया. यह रवैआ सही नहीं है बेटे. खुद को कमजोर नहीं मजबूत बनाओ. कोई कुछ भी कहे तुम्हें फर्क नहीं पड़ना चाहिए.”

“पर मौम, वह सब के सामने ऐसी बातें कर रहा था तो मैं भला क्या करता? चुपचाप आगे बढ़ जाता?”

“या तो चुपचाप आगे बढ़ जाते या फिर मुसकरा कर कहते कि डोंट वरी हम फिर से पहले जैसे बन जाएंगे,” साधना ने समझाया.

सुन कर अभिनव को हंसी आ गई. वह मां के हाथ चूमता हुआ बोला,”मौम यू आर ग्रेट. कहां से लाते हो आप इतना पैशेंस?”

साधना ने हंस कर कहा,” यह पैशेंस अब तुम्हें भी अपने अंदर पैदा करना है बेटे. तभी तुम जिंदगी की हर जंग जीत सकोगे.”

“ओके मौम मैं ऐसा कर के दिखाऊंगा.”

बेटे का माथा प्यार से सहलाते हुए साधना एक खुशनुमा भविष्य की उम्मीद में खो गई.

2-3 साल इसी तरह बीत गए. साधना अपने बच्चों को कम में जीने का प्रशिक्षण देती रहती. जब बेटा दोस्तों को पार्टी देने की बात कर रूपए मांगता तो वह अपने दोस्तों को घर पर बुला लेने की बात करती और अपने हाथों का बना खाना खिलाती. जब वह जिम जौइन करने की बात करता तो साधना उसे घर पर ही योगा और व्यायाम कर के फिट रहने के उपाय समझाती. उसे बेवजह के स्कूल टूअर या फंक्शन में शामिल होने के बजाय उस समय का उपयोग पढ़ाई करने और भविष्य संवारने में लगाने को कहती. वह अपनी बिटिया को भी पैसे बरबाद करने के बजाय बचत करने के तरीके समझाती.

उस दिन साधना की बेटी पायल का बर्थडे था. साधना के कहने पर पायल इस बार अपनी बर्थडे पार्टी साधारण तरीके से मनाने की बात तो मान गई मगर एक खूबसूरत नई ड्रैस के लिए अड़ गई. साधना ने उस का मन रखने के लिए ड्रैस खरीद दी.

3-4 दिन बाद ही पायल फिर से एक नई ड्रैस के लिए मिन्नतें करने लगी.

“मगर क्यों? अभी तो लाई थी मैं नई ड्रैस,” साधना ने पूछा तो वह बोली,”मम्मा, मेरी बैस्ट फ्रैंड का बर्थडे है. उस के बर्थडे पर मैं अपनी बर्थडे वाली ड्रैस रिपीट कैसे करूं? इस के अलावा कोई नई ड्रैस है भी नहीं मेरे पास.”

“ओके बेटा. परेशान न हो. आप शाम को स्कूल से आओगे तब तक आप की नई ड्रैस आ चुकी होगी.”

“थैंक यू मम्मा,” कह कर पायल हंसतीमुसकराती चली गई.

पायल के जाने के बाद साधना सोचने लगी कि बेटी के लिए एक नई पार्टीवियर ड्रैस का इंतजाम कैसे किया जाए. तभी उस के दिमाग में एक आईडिया आया. उस ने बेटी की एक पुरानी ड्रैस निकाली और उस पर अपने फैशन डिजाइनर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए सितारे, स्टोंस, बीड्स और नेट आदि का काम कर और स्टाइलिश कटिंग दे कर उस ड्रैस को एक खूबसूरत पार्टीवियर ड्रैस बना दिया. शाम को जब पायल लौटी और मम्मी के हाथों में प्यारी सी ड्रैस देखी तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

रात में जब साधना ने सुधाकर को सारी बात बताई तो साधना का हाथ पकड़ कर वह बोला,”मैं हमेशा कहता था न यू आर अ गोल्डन वूमन. आज तुम ने यह साबित कर दिया. तुम्हारे गोल्डन कलर्ड हेयर, गोल्डन ड्रैस, गोल्डन ऐक्सेसरीज ही तुम्हें गोल्डन नहीं बनाते बल्कि तुम्हारा दिल भी गोल्डन है. सच सोने का दिल रखती हो तुम. मेरी जिंदगी में इतनी तकलीफें आईं मगर तुम ने अपनी समझदारी और धैर्य से न केवल मुझे हिम्मत दी बल्कि बच्चों को भी हर हाल में खुश हो कर जीना सिखा दिया. थैंक्स साधना.”

साधना ने मुसकराते हुए कहा,”मैं तुम्हारी जीवनसाथी हूं. सुख हो या दुख हो, सम्पन्नता हो या परेशानी, मुझे तुम्हारे साथ हौसला बन कर चलना है. मैं न खुद टूटूंगी और न तुम्हें टूटने दूंगी.”

सुधाकर के चेहरे पर मुसकान और आंखों में प्यार झलक उठा था.

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