हमें तुम से प्यार कितना

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

मां ने मधु को गले लगा लिया. मधु की खुशी की कोई सीमा नहीं थी. उस ने कहा, ‘‘अब आप दोनों इस रिश्ते के लिए राजी हैं तो मैं आलोक को मोबाइल पर यह खबर दे ही देती हूं खुशी की.’’

मधु आलोक के दिल्ली के रोहिणी इलाके के शेयर मार्केटिंग औफिस में उस से मिलने जाया करती थी. इस का उस से पहला परिचय तब हुआ था जब उस ने कनाट प्लेस से पश्चिम विहार के लिए लिफ्ट मांगी थी. उस ने आलोक को बताया था वह एक पब्लिशिंग हाउस में एडिटर के पद पर कार्यरत थी. लिफ्ट के समय कार में ही दोनों ने एकदूसरे को अपने विजिटिंग कार्ड दे दिए थे. मधु की खूबसूरत छवि आलोक के दिमाग पर अंकित हो गई.

जब आलोक ने अपने बारे में पूरी तरह से बताया तो उस की बातचीत में उस के शादीशुदा और पत्नी सुहानी के निधन की बात शामिल थी.

बड़े ही अच्छे लहजे में मधु ने कहा था ‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम शादीशुदा हो. मेरे मातापिता मेरे लिए वर की तलाश कर रहे हैं. मैं ने तुम्हें अपने वर के रूप में पसंद कर लिया है जो भी थोड़ीबहुत मुलाकातें हुई हैं, उन में मैं जीवन के प्रति तुम्हारी सोच से प्रभावित हूं. तुम ने मुझे यह बताया है कि तुम्हारा एकमात्र मिशन है अपने लड़के अंशू को अच्छी परवरिश देना. दादादादी द्वारा उस का लालनपालन अपनेआप में काफी नहीं जान पड़ता है. यदि हमारा विवाह हो जाता है तो यह मेरे लिए बड़ी चुनौती का काम होगा कि मैं तुम्हारी मदद उस की परवरिश में करूं. मुझे काम करने का शौक है, मैं चाहूंगी कि अपना पब्लिशिंग हाउस का काम जारी रखते हुए घर के कामकाज को सुचारु रूप से चलाऊं.

आलोक ये सब बातें ध्यान से सुन रहा था, बोला, ‘सुहानी की मृत्यु के बाद मुझे ऐसा लगा कि मेरी दुनिया अंशू के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई है. मेरा पूरा ध्यान अंशू को पालने में केंद्रित हो गया. जिंदगी के इस पड़ाव पर जब मेरी तुम से मुलाकात हुई तो मुझे एक उम्मीद दिखी कि चाहे तुम्हारा साथ विवाह के बाद एक मित्र की तरह हो या पत्नी की हैसियत से, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. अगर तुम्हारे जैसी खूबसूरत और समझदार लड़की सारे पहलुओं का जायजा ले कर मेरे घर आती है तो अंशू को मां और परिवार को एक अच्छी बहू मिल जाएगी.’

मधु ने आलोक को यकीन दिलाते हुए कहा था, ‘इस में कोई शक नहीं है कि मुझे कुंआरे लड़के भी विवाह के लिए मिल सकते हैं, लेकिन मुझे विवाह के बाद की समस्याओं से डर लगता है. इसी समाज में लड़कियां शादी के बाद जला दी जाती हैं, दहेज की बलि चढ़ा कर उन्हें तलाक दे दिया जाता है या ससुराल पसंद न आने पर लड़कियों को वापस मायके आ कर रहना पड़ जाता है. तुम से मुलाकात के बाद मुझे लगता है ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला. तुम्हारी तरह अंशू को पालने का चैलेंज मैं स्वीकार करती हूं. तुम्हारे घर आ कर अंशू से मेलजोल बढ़ाने का काम मैं बहुत जल्द शुरू करूंगी. अपनी मम्मी को यकीन में ले कर मेरे बारे में बात कर लो. एक बात और मैं बताना चाहूंगी, मैं ने एमए साइकोलौजी से कर रखा है. उस में चाइल्ड साइकोलौजी का विषय भी था.’

दूसरे दिन शाम को मधु आलोक के घर पहुंची. आलोक की मां ने उस का स्वागत मुसकराते हुए किया और कहा, ‘आओ मधु, तुम्हारे बारे में मुझे आलोक बता चुका है.’ मधु ड्राइंगरूम में सोफे पर आलोक की मां के साथ बैठ गई.

अंशु भी आवाज सुन कर वहां आ गया.

‘आंटी को पहली बार देखा है. कौन हैं, क्या आप दिल्ली में ही रहती हैं?’ अंशू ने पूछा.

‘हां, मैं दिल्ली में ही रहती हूं, मेरा नाम मधु है. अगर तुम्हें अच्छा लगेगा तो मैं तुम से मिलने आया करूंगी,’ अंशू की ओर निहारते हुए बड़े प्यार से मधु ने उस से कहा, ‘तुम अपने बारे में बताओ, कौन से गेम खेलते हो, किस क्लास में पढ़ते हो?’

शरमाते हुए अंशू ने कहा, ‘मैं क्लास थर्ड में पढ़ता हूं. नाम तो आप जानते ही हो. घर में दादादादी हैं, पापा हैं.’ उस की आंखें आंसुओं से भर आई थीं. उस ने आगे कहा, ‘आंटी, मैं मम्मी की फोटो आप को दिखाऊंगा. मेरी मां का नाम सुहानी था जो….’ आगे वह नहीं बोल पाया.

अंशू को मधु ने गले लगा लिया, ‘बेटा, ऐसा मत कहो, मां जहां भी हैं वे तुम्हारे हर काम को ऊपर से देखती हैं. वे हमेशा तुम्हारे आसपास ही कहीं होती हैं. मैं तुम्हें बहुत प्यार करूंगी. तुम्हारी अच्छी दोस्त बन कर रोज तुम्हारे पास आया करूंगी, ढेर सारी चौकलेट, गिफ्ट और गेम्स ला कर तुम्हें दूंगी. बस, तुम रोना नहीं. मुझे तुम्हारी स्वीट स्माइल चाहिए. बोलो, दोगे न?’ एक बार फिर मधु ने अंशू को गले से लगा लिया. आलोक की मम्मी ने चाय बना ली थी. चाय पीने के बाद मधु वापस अपने घर चली गई.

आलोक की मां ने उसे मधु के बारे में बताते हुए कहा, ‘मुझे मधु बहुत अच्छी लगी. अंशू से बातचीत करते समय मुझे उस की आंखों में मां की ममता साफ दिखाई दी.’ इस के जवाब में आलोक ने मां को सुझाव दिया, ‘अभी कुछ दिन हमें इंतजार करना चाहिए. मधु को अंशू से मेलजोल बढ़ाने का मौका देना चाहिए ताकि यह पता चले कि वह मधु को स्वीकार कर लेगा.’

इस के बाद मधु ने स्कूटी पर अंशू के पास जानाआना शुरू कर दिया. वह अच्छाखासा समय उस के साथ बिताती थी. कभी कैरम खेलती थी तो कभी उस के साथ अंत्याक्षरी खेलती थी. उस की पसंद की खाने की चीजें पैक करवा कर उस के लिए ले जाती तो कभी उसे मूवी दिखाने ले जाती थी. एक महीने में अंशू मधु के साथ इतना घुलमिल गया कि उस ने आलोक से कहा, ‘पापा, आप आंटी को घर ले आओ, वे हमारे घर में रहेंगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

मधु और आलोक का विवाह हो गया. विवाह की धूमधाम में अंशू ने हर लमहे को एंजौय किया, जो निराशा और मायूसी पहले उस के चेहरे पर दिखती थी, वह अब मधुर मुसकान में बदल गई थी. वह इतना खुश था कि उस ने सुहानी की तुलना मधु से करनी बंद कर दी. सुहानी की फोटो भी शैल्फ से हटा कर अपनी किताबों वाली अलमारी में कहीं छिपा कर रख दी. आलोक ने महसूस किया जिद्दी अंशू अब खुद को नए माहौल में ढाल रहा था.

मधु ने आलोक का संबोधन तुम से आप में बदल दिया. उस ने आलोक से कहा, ‘‘तुम्हें अंशू के सामने तुम कह कर बुलाना ठीक नहीं लगेगा, इसलिए मैं आज से तुम्हें आप के संबोधन से बुलाऊंगी.’’ अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘हम अपने प्यार और रोमांस की बातें फिलहाल भविष्य के लिए टाल देंगे. पहले अंशू के बचपन को संवारने में जीजान से लग जाएंगे. वह अपनी क्लास में फर्स्ट पोजिशन में आता है, इंटैलीजैंट है. जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि अब वह मानसिक तौर पर मुझे मां के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर चुका है, तब हम हनीमून के लिए किसी अच्छे स्थान पर जाएंगे.’’

यह सुन कर आलोक को अपनी हमसफर मधु पर गर्व महसूस हो रहा था. खुश हो कर उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. वे दोनों शादी के बाद दिल्ली के एक रैस्तरां में कैंडिललाइट में डिनर ले रहे थे. घर लौटते समय उन्होंने कनाट प्लेस से अंशू की पसंद की पेस्ट्री पैक करवा ली थी.

वे दोनों आश्चर्यचकित थे जब वापसी पर अंशू ने मधु से कहा, ‘‘मम्मा, आप ने देर कर दी, मैं कब से आप का इंतजार कर रहा था.’’

मधु ने पेस्ट्री का पैकेट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अंशु, यह लो तुम्हारी पसंद की पेस्ट्री. तुम्हें यह बहुत अच्छी लगेगी.’’ अंशू की खुशी उस के चेहरे पर फैल गई.

अंशू चौथी कक्षा बहुत अच्छे अंकों के साथ पास कर चुका था. मधु की मां की ममता अपने शिखर पर थी. उस ने अपने बगीचे में अंशू की पसंद के फूलों के पौधे माली से कह कर लगवा दिए थे. जैसेजैसे ये पौधे फलफूल रहे थे, मधु को लगता था वह भी माली की तरह अपने क्यूट से बेटे की देखरेख कर रही है. आत्मसंतुष्टि क्या होती है, उस ने पहली बार महसूस किया.

शाम के समय जब आलोक घर आता था तो अंशू उस का फूलों के गुलदस्ते से स्वागत करता था. मधु का ध्यान अंशू की पढ़ाई के साथ उस की हर गतिविधि पर था. उस ने उसे तैयार किया कि वह स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले. अंशू के स्टडीरूम में शैल्फ पर कई ट्रौफियां उस ने सजा कर रख ली थीं. सब खुशियों के होते हुए पिछले 2-3 साल अंशू ने अपना बर्थडे यह कह कर मनाने नहीं दिया कि ऐसे मौके पर उसे सुहानी मां की याद आ जाती है.

दूसरे के बच्चे को पालना कितना मुश्किल होता है, यह महसूस करते हुए उस ने तय किया कि कभी वह अंशू को सुहानी मां के साथ बिताए लमहों के बारे में हतोत्साहित नहीं करेगी. अंशू का विकास वह सामान्य परिस्थिति में करना चाहती थी. जैसेजैसे उस का शोध कार्य प्रगति पर था उसे अभिप्रेरणा मिलती रही कि सब्र के साथ हर बाधा को पार कर वह अंशू के समुचित विकास के काम में विजेता के रूप में उभरे. उसे उम्मीद थी कि जितना वह इस मिशन में कामयाब होगी, उतना ही उसे आलोक और सासससुर का प्यार मिलेगा. दोनों के रिश्ते की बुनियाद दोस्ती थी. प्यार और रोमांस के लिए भविष्य में समय उपलब्ध था.

आलोक मधु की अब तक भूमिका से इतना खुश था कि उस की इच्छा हुई किसी रैस्तरां में शाम को कुछ समय उस के साथ बिताए. कनाट प्लेस की एक ज्वैलरी शौप से उस की पसंद के कुछ जेवर खरीद कर उसे गिफ्ट करते हुए उस ने कहा, ‘‘मधु, वैसे तो तुम्हारे पास काफी गहने हैं लेकिन मैरिज एनिवर्सरी न मना पाने के कारण हम कोई खास खुशी तो मना नहीं पाते हैं, यह गिफ्ट तुम यही समझ कर रख लो कि आज हम ने अपने विवाह की वर्षगांठ मना ली है. मम्मीपापा को इस के विषय में बता सकती हो. हम धूमधाम से तभी एनिवर्सरी मनाएंगे जब अंशू अपना जन्मदिन खुशी के साथ दोस्तों को बुला कर मनाना शुरू कर देगा.’’

रैस्तरां में उन दोनों की बातचीत बड़ी प्यारभरी हुई. डिनर के बाद जब वे रैस्तरां से बाहर निकले तो आलोक ने मधु का हाथ अपने हाथ में ले कर उस का स्पर्श महसूस करते हुए कहा, ‘‘मधु, मैं इंतजार में हूं कि कब हम लोग हनीमून के लिए किसी हिलस्टेशन पर जाएंगे. जब ऐसा तुम भी महसूस करो, मुझे बता देना. हम लोग इसी बहाने अंशू को भी साथ ले चल कर घुमा लाएंगे.’’

मधु को यह बात कभीकभी परेशान करती थी कि अंशू कभी नहीं चाहेगा कि वह एक बच्चे को जन्म दे और वह बच्चा अंशू की ईर्ष्या का पात्र बन जाए. उस ने सोच रखा था कि वह उचित समय पर आलोक से इस विषय पर बात करेगी. वैसे, अंशू ने उसे इतना आदर और प्यार दिया जिस ने उसे भरपूर मां की ममता और सुख का एहसास करा दिया.

दोनों के बीच जो स्नेह और ममता का रिश्ता बन गया था वह बहुत मजबूत था. मधु को लगा, अंशू उसे पूरी तरह मां के रूप में मान चुका है और अगले वर्ष अपना बर्थडे बहुत धूमधाम से मनाना चाहेगा. वह बहुत खुश हुई जब अंशू ने उस से कहा, ‘‘मम्मा, सब बच्चे अपना बर्थडे दोस्तों के साथ हर साल मनाते हैं. मैं भी अपने क्लासमेट के साथ इस साल बर्थडे मनाना चाहता हूं.’’

फिर क्या था, आलोक और मधु ने घर पर ही उस का बर्थडे मनाने का इंतजाम कर दिया. ढेर सारे व्यंजन, डांस के फोटोशूट और केक के साथ बड़ी धूमधाम से उस का बर्थडे मनाया गया.

अंशू का लालनपालन मधु ने उस की हर भावना के क्षणों में अपने को मनोचिकित्सक मान कर किया जिस के सकारात्मक परिणाम ने हमेशा उसे हौसला दिया.

शादी के 6-7 साल पलक झपकते ही मधु के अंशू के साथ इस तरह गुजरे कि वह वैवाहिक जीवन के हर सुख की हकदार बन गई. मां बनने का हर सुख उसे महसूस हो चुका था.  अंशू के नैराश्य और मां की कमी की स्थिति से बाहर आने का श्रेय घर के हर सदस्य को था.

मधु ने आलोक को पति के रूप में स्वीकार करते समय यह सोचा था, आलोक अपनी पत्नी सुहानी को खोने के बाद उसे अपने घर में सम्मान और प्यारभरी जिंदगी जरूर दे सकेगा. उसे अंशू की मां के रूप में उस की सख्त जरूरत है. पहली नजर में, उस से मिलने पर उसे अपने सारे सपने साकार होते हुए जान पड़े. तभी तो उस ने ‘आई लव यू’ कहने के स्थान पर खुश हो कर उस से कहा था, ‘आलोक, तुम हर तरह से मेरे जीवनसाथी बनने के काबिल हो.’ तब वह उस के शादीशुदा होने के बैकग्राउंड से बिलकुल अनभिज्ञ थी.

7 वर्षों बाद, एक दिन जब अंशू स्कूल से घर लौटा तो उस के हाथ में एक बैग था. वह बहुत खुश दिखाई दे रहा था. मधु मां को उस ने गले लगा लिया और बताया, ‘‘मम्मा, मैं क्लास में फर्स्ट आया हूं. कई ऐक्टिविटीज में मुझे ट्रौफियां मिली हैं. पिं्रसिपल सर कह रहे थे यह सब मुझे अच्छी मां के कारण ही मिला है.’’ थोड़ी देर चुप रहने के पश्चात वह भावुक हो गया, बोला, ‘‘मम्मा, मैं एक बार सुहानी मां की फोटो, जो मैं ने छिपा कर रख ली थी, उसे देख लूं.’’

मधु ने कहा, ‘‘हां, क्यों नहीं, ले आओ. हम सब उस फोटो को देखेंगे.’’ मधु की आंखों से आंसू छलक पड़े थे. भावुक हो कर उस ने कहा, ‘‘अंशू, मैं ने कहा था न, तुम्हारी मां सुहानी हर समय तुम्हारे आसपास होती हैं.  अब तुम कभी उदास मत होना. सुहानी मां भी यही चाहती हैं तुम हमेशा खुश रहो.’’

उस रात आलोक ने मधु को अपनी बांहों में ले कर जीभर प्यार किया. इन भावुकताभरे लमहों में मधु ने आलोक को अपना फैसला सुनाते हुए अपील की, ‘‘आलोक, इतना आसान नहीं था मेरे लिए अब तक का सफर तय करना. तुम्हारा साथ मिला तो यह सफर आसान हो गया. मुझ से वादा करोगे कि कमजोर से कमजोर क्षणों में तुम मुझे मां बनाने की कोशिश नहीं करोगे. अंशू से मुझे पूरा मातृत्व सुख हासिल हो चुका है. मैं उस के प्रतिद्वंद्वी के रूप में कोई और संतान पैदा नहीं करना चाहती.’’

शादी के बाद मुझे किसी और से प्यार हो गया है?

सवाल-

मैं कालेज टाइम में किसी लड़के से बहुत प्यार करती थी. मगर कभी उस से अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकी. बाद में मेरी अरेंज्ड मैरिज हो गई. पति काफी अंडरस्टैंडिंग और केयरिंग नेचर के हैं. मैं अपनी जिंदगी में काफी खुश थी, मगर एक दिन अचानक जिंदगी में तूफान आ गया. दरअसल, फेसबुक पर उसी लड़के का मैसेज आया कि वह मु  झ से बात करना चाहता है. मेरे मन में दबा प्यार फिर से जाग उठा. मैं ने तुरंत उस के मैसेज का जवाब दिया. फेसबुक पर हमारी दोस्ती फिर से परवान चढ़ने लगी. मैं अपना खाली समय उस से बातें करने में गुजारने लगी. धीरेधीरे शर्म और संकोच की दीवारें गिरने लगीं. फिर एक दिन उस ने मु  झे अकेले में मिलने बुलाया. मैं उस के इरादों से वाकिफ हूं, इसलिए हिम्मत नहीं हो रही कि इतना बड़ा कदम उठाऊं या नहीं. उधर मन में दबा प्यार मु  झे यह कदम उठाने की जिद कर रहा है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

यह बात सच है कि पहले प्यार को इंसान कभी नहीं भूल पाता, मगर जब जिंदगी आगे बढ़ चुकी हो तो लौट कर उस राह जाना मूर्खता होगी. वैसे भी आप को कोई अपने पति से शिकायत नहीं है. ऐसे में प्रेमी से रिश्ता जोड़ कर नाहक अपनी परेशानियां न बढ़ाएं.

उस लड़के को स्पष्ट रूप से ताकीद कर दें कि आप उस से केवल हैल्दी फ्रैंडशिप की उम्मीद रखती हैं, जो आप के जीवन की एकरसता दूर कर मन को सुकून और प्रेरणा दे. मगर शारीरिक रूप से जुड़ कर आप इस रिश्ते के साथसाथ अपने वैवाहिक रिश्ते के साथ भी अन्याय करेंगी. इसलिए देर न करते हुए बिना किसी तरह की दुविधा मन में लिए अपने प्रेमी से इस बारे में बात कर उसे अपना फैसला सुनाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

चाहत: क्या शोभा अपना सपना पूरा कर पाई?

लेखक- एकता एस दुबे

“थक गई हूं मैं घर के काम से, बस वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर का सारा टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं, अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,”शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं.

एक बार अपनी बोरियत भरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान किया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.

मध्यवर्गीय गृहिणियों को ऐसे रविवार कम ही मिलते हैं, जिस में वे घर वालों पर नहीं बल्कि अपने ऊपर समय और पैसे दोनों खर्च करें, इसलिए इस रविवार को ले कर शोभा का उत्साहित होना लाजिमी था.

यह उत्साह का ही कमाल था कि इस रविवार की सुबह, हर रविवार की तुलना में ज्यादा जल्दी हो गई थी.

उन को जल्दी करतेकरते भी सिर्फ नाश्ता कर के तैयार होने में ही 12 बज गए. शो 1 बजे का था, वहां पहुंचने और टिकट लेने के लिए भी समय चाहिए था. ठीक समय वहां पहुंचने के लिए बस की जगह औटो ही एक विकल्प दिख रहा था और यहीं से शोभा के मन में ‘चाहत और जरूरत’ के बीच में संघर्ष शुरू हो गया. अभी तो आउटिंग की शुरुआत ही थी, तो ‘चाहत’ की विजय हुई.

औटो का मीटर बिलकुल पढ़ीलिखी गृहिणियों की डिगरी की तरह, जिस से कोई काम नहीं लेना चाहता पर हां, जिन का होना भी जरूरी होता है, एक कोने में लटका था. इसलिए किराए का भावताव तय कर के सब औटो में बैठ गए.

शोभा वहां पहुंच कर जल्दी से टिकट काउंटर में जा कर लाइन में लग गईं.

जैसे ही उन का नंबर आया तो उन्होंने अंदर बैठे व्यक्ति को झट से 3 उंगलियां दिखाते हुए कहा,”3 टिकट…”

अंदर बैठे व्यक्ति ने भी बिना गरदन ऊपर किए, नीचे पड़े कांच में उन उंगलियों की छाया देख कर उतनी ही तीव्रता से जवाब दिया,”₹1200…”

शायद शोभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं होता यदि वे साथ में, उस व्यक्ति के होंठों को ₹1200 बोलने वाली मुद्रा में हिलते हुए नहीं देखतीं.

फिर भी मन की तसल्ली के लिए एक बार और पूछ लिया, “कितने?”

इस बार अंदर बैठे व्यक्ति ने सच में उन की आवाज नहीं सुनी पर चेहरे के भाव पढ़ गया.

उस ने जोर से कहा,”₹1200…”

शोभा की अन्य भावनाओं की तरह उन की आउटिंग की इच्छा भी मोर की तरह निकली जो दिखने में तो सुंदर थी पर ज्यादा ऊपर उड़ नहीं सकी और धम्म… से जमीन पर आ गई.

पर फिर एक बार दिल कड़ा कर के उन्होंने अपने परों में हवा भरी और उड़ीं, मतलब ₹1200 उस व्यक्ति के हाथ में थमा दिए और टिकट ले कर थिएटर की ओर बढ़ गईं.

10 मिनट पहले दरवाजा खुला तो हौल में अंदर जाने वालों में शोभा बेटियों के साथ सब से आगे थीं.

अपनीअपनी सीट ढूंढ़ कर सब यथास्थान बैठ गए. विभिन्न विज्ञापनों को झेलने के बाद, मुकेश और सुनीता के कैंसर के किस्से सुन कर, साथ ही उन के बीभत्स चेहरे देख कर तो शोभा का पारा इतना ऊपर चढ़ गया कि यदि गलती से भी उन्हें अभी कोई खैनी, गुटखा या सिगरेट पीते दिख जाता तो 2-4 थप्पड़ उन्हें वहीं जड़ देतीं और कहतीं कि मजे तुम करो और हम अपने पैसे लगा कर यहां तुम्हारा कटाफटा लटका थोबड़ा देखें… पर शुक्र है वहां धूम्रपान की अनुमति नहीं थी.

लगभग आधे मिनट की शांति के बाद सभी खड़े हो गए. राष्ट्रगान चल रहा था. साल में 2-3 बार ही एक गृहिणी के हिस्से में अपने देश के प्रति प्रेम दिखाने का अवसर प्राप्त होता है और जिस प्रेम को जताने के अवसर कम प्राप्त होते हैं उसे जब अवसर मिलें तो वे हमेशा आंखों से ही फूटता है.

वैसे, देशप्रेम तो सभी में समान ही होता है चाहे सरहद पर खड़ा सिपाही हो या एक गृहिणी, बस किसी को दिखाने का अवसर मिलता है किसी को नहीं. इस समय शोभा वीररस में इतनी डूबी हुई थीं कि उन को एहसास ही नहीं हुआ कि सब लोग बैठ चुके हैं और वे ही अकेली खड़ी हैं, तो बेटी ने उन को हाथ पकड़ कर बैठने को कहा.

अब फिल्म शुरू हो गई. शोभा कलाकारों की अदायगी के साथ भिन्नभिन्न भावनाओं के रोलर कोस्टर से होते हुए इंटरवल तक पहुंचीं.

चूंकि, सभी घर से सिर्फ नाश्ता कर के निकले थे तो इंटरवल तक सब को भूख लग चुकी थी. क्याक्या खाना है, उस की लंबी लिस्ट बेटियों ने तैयार कर के शोभा को थमा दीं.

शोभा एक बार फिर लाइन में खड़ी थीं. उन के पास बेटियों द्वारा दी गई खाने की लंबी लिस्ट थी तो सामने खड़े लोगों की लाइन भी कम लंबी न थी.

जब शोभा के आगे लगभग 3-4 लोग बचे होंगे तब उन की नजर ऊपर लिखे मेन्यू पर पड़ी, जिस में खाने की चीजों के साथसाथ उन के दाम भी थे. उन के दिमाग में जोरदार बिजली कौंध गई और अगले ही पल बिना कुछ समय गंवाए वे लाइन से बाहर थीं.

₹400 के सिर्फ पौपकौर्न, समोसे ₹80 का एक, सैंडविच ₹120 की एक और कोल्डड्रिंक ₹150 की एक.

एक गृहिणी जिस ने अपनी शादीशुदा जिंदगी ज्यादातर रसोई में ही गुजारी हो उन्हें 1 टब पौपकौर्न की कीमत दुकानदार ₹400 बता रहे थे.

शोभा के लिए वही बात थी कि कोई सुई की कीमत ₹100 बताए और उसे खरीदने को कहे.

उन्हें कीमत देख कर चक्कर आने लगे. मन ही मन उन्होंने मोटामोटा हिसाब लगाया तो लिस्ट के खाने का ख़र्च, आउटिंग के खर्च की तय सीमा से पैर पसार कर पर्स के दूसरे पौकेट में रखे बचत के पैसों, जोकि मुसीबत के लिए रखे थे वहां तक पहुंच गया था. उन्हें एक तरफ बेटियों का चेहरा दिख रहा था तो दूसरी तरफ पैसे. इस बार शोभा अपने मन के मोर को ज्यादा उड़ा न पाईं और आनंद के आकाश को नीचा करते हुए लिस्ट में से सामान आधा कर दिया. जाहिर था, कम हुआ हिस्सा मां अपने हिस्से ही लेती है. अब शोभा को एक बार फिर लाइन में लगना पड़ा.

सामान ले कर जब वे अंदर पहुंचीं तो फिल्म शुरू हो चुकी थी. कहते हैं कि यदि फिल्म अच्छी होती है तो वह आप को अपने साथ समेट लेती है, लगता है मानों आप भी उसी का हिस्सा हों. और शोभा के साथ हुआ भी वही. बाकी की दुनिया और खाना सब भूल कर शोभा फिल्म में बहती गईं और तभी वापस आईं जब फिल्म समाप्त हो गई. वे जब अपनी दुनिया में वापस आईं तो उन्हें भूख सताने लगी.

थिएटर से बाहर निकलीं तो थोड़ी ही दूरी पर उन्हें एक छोटी सी चाटभंडार की दुकान दिखाई दी और सामने ही अपना गोलगोल मुंह फुलाए गोलगप्पे नजर आए. गोलगप्पे की खासियत होती है कि उन से कम पैसों में ज्यादा स्वाद मिल जाता है और उस के पानी से पेट भर जाता है.

सिर्फ ₹60 में तीनों ने पेटभर गोलगप्पे खा लिए. घर वापस पहुंचने की कोई जल्दी नहीं थी तो शोभा ने अपनी बेटियों के साथ पूरे शहर का चक्कर लगाते हुए घूम कर जाने वाली बस पकड़ी.

बस में बैठीबैठी शोभा के दिमाग में बहुत सारी बातें चल रही थीं. कभी वे औटो के ज्यादा लगे पैसों के बारे में सोचतीं तो कभी फिल्म के किसी सीन के बारे में सोच कर हंस पड़तीं, कभी महंगे पौपकौर्न के बारे में सोचतीं तो कभी महीनों या सालों बाद उमड़ी देशभक्ति के बारे में सोच कर रोमांचित हो उठतीं.

उन का मन बहुत भ्रमित था कि क्या यही वह ‘चेंज’ है जो वे चाहतीं थीं? वे सोच रही थीं कि क्या सच में वे ऐसा ही दिन बिताना चाहती थीं जिस में दिन खत्म होने पर उनशके दिल में खुशी के साथ कसक भी रह जाए?

तभी छोटी बेटी ने हाथ हिलाते हुए अपनी मां से पूछा,”मम्मी, अगले संडे हम कहां चलेंगे?”

अब शोभा को ‘चाहत और जरूरत’ में से किसी 1 को चुनने का था. उन्होंने सब की जरूरतों का खयाल रखते हुए साथ ही अपनी चाहत का भी तिरस्कार न करते हुए कहा,”आज के जैसे बस से पूरा शहर देखते हुए बीच चलेंगे और सनसेट देखेंगे.”

शोभा सोचने लगीं कि अच्छा हुआ जो प्रकृति अपना सौंदर्य दिखाने के पैसे नहीं लेती और प्रकृति से बेहतर चेंज कहीं और से मिल सकता है भला?

शोभा को प्रकृति के साथसाथ अपना घर भी बेहद सुंदर नजर आने लगा था. उस का अपना घर, जहां उस के सपने हैं, अपने हैं और सब का साथ भी तो.

महिलाओं की लाइफ में मोटापे का असर

एक स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा मोटे लोग 25 गुना अधिक सेक्स समस्याओं से जूझते हैं, जिन में इच्छा की कमी, सेक्स के प्रति विरक्ति, सहवास के दौरान संतुष्टि के न होने के अतिरिक्त कई लोगों में तो सेक्स के प्रति एकदम से नफरत तक होने लगती है. उन्हें सेक्स के प्रति कोई रुचि नहीं होती. आधे लोगों को इस बात की शिकायत होती है कि बेडौल और भारी शरीर के कारण उन्हें सेक्स स्थापित करने में परेशानी होती है. इसलिए सेक्स करने में हिचक होती है और वे इस से बचने की कोशिश करते हैं. वैसे मोटे लोग, जो चिकित्सीय सलाह की जरूरत महसूस नहीं करते यानी जिन के लिए मोटापा परेशानी का सबब नहीं बनता है, वे इस तरह की शिकायत नहीं करते. यानी उन का सेक्स जीवन प्रभावित नहीं होता और अपने को संतुष्ट महसूस करते हैं. लेकिन, जिन की सेक्सुअल लाइफ प्रभावित होती है, वे ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें वास्तव में मोटापे के कारण समस्याएं आ रही हैं और इस के लिए इलाज की जरूरत पड़ती है एक सेक्स विशेषज्ञ के शब्दों में, ‘‘ऐसे मरीज आत्मविश्लेषण करते हैं और अपने अंदर तरहतरह की सेक्स समस्याएं महसूस करते हैं. ऐसे लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है.’’

शारीरिक मानसिक परेशानियां

मोटापे का शिकार लोगों का सहवास आनंददायक और पूरी तरह संतुष्टि करने वाला नहीं होता. शरीर में अत्यधिक मात्रा में वसा के जमाव से फिगर के बेडौल होने और भारी हो जाने के कारण कई तरह की परेशानियां होती हैं. पेट के निकल जाने, जांघ, कमर तथा कूल्हों में वसा के जमाव के कारण ऐसे लोग सहजता और सफलतापूर्वक सेक्स स्थपित नहीं कर पाते. ऐसा देखा गया है कि उम्र बढ़ने के बाद यानी 45 से 64 वर्ष की अवस्था के बीच जो लोग मोटापे की गिरफ्त में आते हैं उन में वसा का जमाव कमर के निचले भाग में ज्यादा हो जाता है. फलस्वरूप दैनिक कार्यों के निष्पादन में भी समस्याएं आने लगती हैं. यानी कपड़े पहनने तथा उठनेबैठने और खानेपीने तक में परेशानी होने लगती है. वैसे भी महिलाओं में वसा का जमाव कमर के निचले भाग में और पुरुषों में पेट में ज्यादा होता है, जिस कारण ऐसे पुरुषों का पेट बाहर निकल जाता है. कमर और जांघ में वसा के जमाव के कारण महिलाओं को सामान्य की तुलना में डेढ गुना ज्यादा परेशानी होती है.

महिलाओं में मोटापे के कारण प्रजनन क्षमता तो प्रभावित होती ही है, गर्भावस्था के दौरान कई दूसरी परेशानियों तथा जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है. ऐसी महिलाएं यदि गर्भधारण करती हैं तो बच्चा और जच्चा दोनों को कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां होती हैं. मोटी औरतों के गर्भस्थ शिशु में सामान्य महिलाओं की तुलना में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट संबंधित जन्मजात बीमारियों के होने की संभावना दोगुनी होती है. इतना ही नहीं, ऐसी महिलाओं को इस की संभावनाओं को रोकने के लिए यदि फोलिक एसिड का सेवन कराया जाता है तो भी इस की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

नवजात शिशु भी प्रभावित

ऐसी महिलाओं के नवजात शिशु को नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट में रखने की जरूरत पड़ती है. इसीलिए, ऐसी महिलाएं जब गर्भधारण करने की इच्छा अपने चिकित्सक के सामने प्रकट करती हैं तो उन्हें इस के खतरों के बारे में उसी तरह से सचेत किया जाता है जिस तरह इस दौरान सिगरेट या शराब पीने से होने वाली हानियों के बारे में बताया जाता है. अत: ऐसी महिलाएं, जो गर्भधारण करती हैं या गर्भधारण करने की इच्छा प्रकट करती हैं, उन्हें नियमित रूप से फोलिक एसिड का सेवन करने तथा सिगरेट और शराब को छोड़ने की सलाह दी जाती है. इतना ही नहीं, इस दौरान संतुलित आहार लेने और नियमित रूप से व्यायाम करने की भी सलाह दी जाती है.

मोटापे की शिकार महिलाओं में बांझपन तथा प्रजनन से संबंधित बीमारियों के साथसाथ उच्च रक्तचाप, गेस्टे्रशनल, डायबिटीज, रक्त न जमने जैसी जटिलताओं की भी प्रबल संभावना होती है. सामान्य महिलाओं की अपेक्षा मोटी महिलाओं में प्रसव के लिए सीजेरियन की ज्यादा जरूरत पड़ती है. इसीलिए गर्भधारण की पहले वजन घटाने की सलाह दी जाती है. ऐसी औरतों में हारमोन से संबंधित परिवर्तन होते हैं जिस से इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टरोन नामक हारमोंस का स्राव बाधित हो जाता है, जिस का सीधा प्रभाव सेक्सुअल लाइफ पर पड़ता है. यानी इस परिवर्तन के कारण ऐसी महिलाओं में सेक्स में कमी तथा धीरेधीरे इस के प्रति विरक्ति होने लगती है. इतना ही नहीं, इन हारमोनों के स्राव तथा रक्त में इस के स्तर में परिवर्तन हो जाने के कारण अंडाशय में अंडे के निर्माण की क्रिया भी बाधित हो जाती है और निषेचन नहीं हो पाता है, जिस से आगे चल कर बांझपन जैसी समस्या भी आ घेरती है. इस के साथ मासिकचक्र भी प्रभावित हो जाता है, जिस से मासिक संबंधित तरहतरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिस में या तो मासिक स्राव होता ही नहीं या फिर काफी बढ़ जाता है. मासिक स्राव ज्यादा होने की स्थिति में कई बार महिलाएं रक्ताल्पता का शिकार हो जाती है.

कई तरह की बीमारियां

पेट में वसा के ज्यादा जमाव होने की स्थिति में सेक्स स्थापित करने में ज्यादा कठिनाई होती है. पेट के बाहर निकल जाने की स्थिति में पेट और छाती को विभाजित करने वाली रचना डायफ्राम पर दबाव पड़ने के कारण ऊपर की ओर खिंच जाता है, जिस का सीधा प्रभाव फेफड़े पर पड़ता है. यानी डायफ्राम के कारण फेफड़े पर दबाव बढ़ जाता है, जिस से सांस लेने में कठिनाई होने लगती है और दम फूलने लगता है. फेफड़े की रक्त नलियों में भी रक्त का दबाव काफी बढ़ जाता है. सहवास के क्रम में शारीरिक क्रियाशीलता तथा हारमोन के स्राव में अधिकता के कारण सांस की गति जब स्वत: बढ़ जाती है तो मोटे लोगों का दम फूलने लगता है और सहवास में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है.

मोटे लोगों में दूसरी समस्या आती है हृदय की असामान्य और तेज धड़कन की. शरीर में वसा की अधिकता के कारण रक्त में कोलेस्टरोल की मात्रा काफी बढ़ जाती है. यह कोलेस्टरोल हृदय की धमनियों की भीतरी दीवार में एकत्रित हो कर इन की दीवार को मोटी, संकरी और सख्त बना देता है. ऐसी स्थिति में हृदय की धड़कन तेज और असामान्य हो जाती है. इस के कारण कई बार छाती में दर्द, एंजाइना तथा हृदयाघात की संभावना बनी रहती है. सहवास के दौरान असामान्य धड़कन की वजह से भी परेशानी होती है. मरीज इस बात से भयभीत हो जाता है कि कहीं हार्ट अटैक तो नहीं हो जाएगा. अत: ऐसे लोग हमेशा चिंतित और भयभीत होते हैं. कई बार सेक्स के प्रति विरक्ति और भय भी होने लगता है. तीसरी समस्या, जो आमतौर पर मोटे लोगों में जोड़ों में दर्द और सूजन की देखने को मिलती है. ऐसे लोगों में कमर और घुटनों में दर्द तथा सूजन ज्यादा होती है. इस से सहवास के क्रम में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस कारण घुटनों को मोड़ने में तकलीफ होती है, जिस से आसन में परेशानी होती है. डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और किडनी संबंधी जटिलताओं से पीडि़त मरीजों में सेक्स के प्रति विरक्ति आम बात है. उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने वाली दवाओं में कई ऐसी दवाएं हैं, जिन का सेवन अधिक समय तक करने पर सेक्स समस्याएं तथा परेशानियां होने लगती हैं. इन में बीटा ब्लाकर प्रमुख है. डायबिटीज की वजह से रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है. इस का दुष्परिणाम प्रजनन अंगों पर भी पड़ता है. इन में लिंग में कमजोरी, शीघ्रपतन तथा सेक्स के प्रति विरक्ति मुख्य है.

मानसिक तनाव

मोटे लोगों के साथ सेक्स स्थापित करने के प्रति पति या पार्टनर इच्छुक नहीं होते. वैसे लोगों के प्रति विरक्ति तथा वितृष्णा होने लगती है. ऐसे लोगों की यह भी शिकायत होती है कि उस का पति या पत्नी सेक्स के लिए इच्छुक नहीं होते, हमेशा कटेकटे रहते हैं. ऐसे लोगों का दांपत्य जीवन हमेशा तनावभरा होता है. कई बार तो तलाक तक की नौबत आ जाती है  मोटापे के कारण शारीरिक परेशानियां तो होती ही हैं, सेक्स संबंधित कई तरह की परेशानियां भी होती हैं. यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया और इस से बचने के लिए उचित उपाय नहीं किया गया तो आगे चल कर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

अंगूर के इस्तेमाल से सवारें रूप

अगर आपकी त्वचा भी रूखी, बेजान और बीमार नजर आने लगी है तो घबराने की जरूरत नहीं है.

सूरज की तेज रोशनी, धूल, मिट्टी, गंदगी और दूसरे कई कारणों की वजह से हमारी त्वचा रंगत खो देती है. ऐसे में आप चाहें तो अंगूर के इस्तेमाल से अपनी खोई निखरी-जवां त्वचा वापस पा सकते हैं.

आप चाहें तो अंगूर के अलग-अलग फेस-पैक बना सकते हैं और नेचुरल ग्लो वापस पा सकते हैं.

अंगूर के इन फेस पैक की मदद से निखारे रूप-रंग:

1. अंगूर और पुदीने का फेस पैक

अंगूर को महीन पीस लें और इसमें पुदीने की कुछ पत्तियों को पीसकर मिला लें. आप चाहें तो इसमें नींबू के रस की कुछ बूंदें भी डाल सकते हैं. इन तीनों को अच्छी तरह मिला लीजिए. इस फेस पैक को चेहरे पर लगाकर 10 मिनट के लिए छोड़ दीजिए. उसके बाद चेहरे को हल्के गुनगुने पानी से धो लीजिए. इसके बाद बर्फ के एक टुकड़े को गुलाब जल में डुबोकर पूरे चेहरे पर मलें. इस पैक से चेहरे पर निखार तो आएगा ही साथ ही अगर आपकी त्वचा ऑयली है तो भी ये आपके लिए फायदेमंद रहेगा.

2. अंगूर और गाजर का फेस पैक

अंगूर को इतना पीस लीजिए कि वो एकसार हो जाए. इस पेस्ट में एक चम्मच क्रीम मिला लें. साथ ही एक चम्मच चावल का आटा और एक चम्मच गाजर का जूस मिला लें.

इन सभी को अच्छी तरह मिला लें. इस पैक को चेहरे पर लगाकर छोड़ दें. जब ये सूख जाए तो इसे हल्के गुनगुने पानी से धो लें. इस मास्क के इस्तेमाल से त्वचा में कसाव आता है और ग्लो भी.

3. ऑयली स्क‍िन के लिए अंगूर का फेस पैक

एक छोटी कटोरी में मुल्तानी मिट्टी ले लें. इसमें कुछ बूंदें नींबू के रस की और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिला लें. इसके बाद इसमें अंगूर का पेस्ट अचछी तरह मिला लें. इस पैक को चेहरे पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें. जब ये सूख जाए तो सामान्य पानी से चेहरा धो लें.

दाहिनी आंख: भाग 1- अनहोनी की आशंका ने बनाया अंधविश्वास का डर

लेखिकाइंदिरा दांगी

उस दिन मेरी दाहिनी आंख फड़क रही थी. शकुनअपशकुन मानने वाले हिंदुस्तानी समाज के इस गहरे यकीन पर मुझे कभी भरोसा नहीं कि स्त्री के बाएं अंगों का फड़कना शुभ होता है, दाएं का अशुभ. पुरुषों के लिए विपरीत विधान है, दायां शुभ बायां अशुभ. क्या बकवास है. इस बाईंदाईं फड़कन का मुझ पर कुल प्रभाव बस इतना रहा है कि अपनी गरदन को कुछ अदा से उठा कर, चमकते चेहरे से आसपास के लोगों को बताती रही हूं, मैं इन सब में यकीन नहीं रखती.

जब से मैं ने अपने मातापिता से इस संसार के बारे में जाना तब से खुदमुख्तार सा जीवन जी रही हूं. चलतीफिरती संस्कृति बन चुकी अपनी मां के मूल स्वभाव के ठीक विपरीत मैं ने हर परंपरारिवाज, विश्वासअंधविश्वास के जुए से अपनी गरदन बचाई और सैकड़ों दलीलों के बाद भी मेरा माथा आस्थाओं, अंधविश्वासों के आगे नहीं झुकाया जा सका. कालेज के दिनों में मैं ने ईश्वर के अस्तित्व पर भी उंगलियां उठाईं, उस के बारे में अपनी विचित्र परिभाषाएं दीं. शादी के बाद भी सब ने मुझे आधुनिक गृहिणी के तौर पर ही स्वीकारा. कांच की खनखन चूडि़यों से पति की दीर्घायु का संबंध, बिछियों की रुपहली चमक से सुहाग रक्षा, बिंदीसिंदूर की शोखी से पत्नीत्व के अनिवार्य वास्ते, सजीसंवरी सुहागिन के?रूप में ही मर जाने की अखंड सौभाग्यवती कामनाएं… और भी न जाने कितना कुछ, मैं ने अगर कभी कुछ किया भी तो बस यों ही. हंगामों से अपनी ऊर्जा बचाए रखने के लिए या कभी फैशन के मारे ही निभा लिया, बस.

जब मैं गर्भवती थी, अदृश्य रक्षाओं से तब भी भागती रही, कलाई पर काले कपड़े में हींग बांधने, सफर के दौरान  चाकूमाचिस ले कर चलने और इत्रफुलेल, मेहंदी निषेध की अंधमान्यताएं मुझे बराबर बताई जाती रहीं लेकिन मैं ने सिर्फ अपनी गाइनोकोलौजिस्ट यानी डाक्टर पर भरोसा किया. फिर जब मेरा बेटा हुआ, तावीजगंडों, विचित्रविचित्र टोटकों, नमकमिर्च और राई के धुएं और काले टीके से मैं ने उसे भी बचा लिया.

दिल को विश्वास था कि मैं बस उस का पूरापूरा ध्यान रखूं तो वह स्वस्थ रहेगा और वह रहा भी. हालांकि इस घोर नास्तिकता ने मेरी वृद्ध विधवा सास को इतना आहत किया कि वे सदा के लिए अपने सुदूर पुश्तैनी गांव जा बसीं, जहां कथित देवताओं, पुरखों और रिवाजों से पगपग रचे परिवेश में उन का जीवन ऐसा सुंदर, सहज है जैसे हार में जड़ा नगीना.

हां, तो उस दिन मेरी दाईं आंख फड़क रही थी जो कतई ध्यान देने वाली बात नहीं थी. पति बिजनैस टूर पर एक हफ्ते से बाहर थे और आज शाम लौटने वाले थे. मैं और मेरा 5 साल का बेटा नैवेद्य घर पर थे. हम मांबेटे अपनेअपने में मस्त थे. वह टैलीविजन पर कोई एनीमेशन मूवी देख रहा था और मैं शाम के खाने की तैयारियों में लगी थी. बड़े दिनों बाद घर लौटते पति की शाम को हार्दिकता के रंगों से सजाने की तैयारियां लगभग पूरी होने को थीं. मैं रसोई में थी कि खिड़की से टूटते बादलों को देख मेरे होंठों पर एक गजल खुदबखुद आ गई :

‘तेरे आने की जब खबर महके,

तेरी खुशबू से सारा घर महके…’

कि अचानक, सैलफोन की प्रिय पाश्चात्य रिंगटोन गूंजी :

‘यू एंड आई, इन दिस ब्यूटीफुल वर्ल्ड…’

दूसरे सिरे पर पति थे. हम ने संयत लेकिन अपनत्व भरे स्वर में एकदूसरे का हालचाल जाना. उन्होंने कहा कि उन के बौस ने एक जरूरी फाइल मांगी है जो भूलवश घर पर है, और मुझे वह फाइल अभी उन के दफ्तर पहुंचानी होगी. मुझे ‘हां’ कहना चाहिए था और मैं ने कहा भी. वैसे भी सब्जी लाने, बिजली का बिल जमा करने, गेहूं पिसवाने से ले कर लौकर से जेवर ले आने, रख आने जैसे तमाम घरेलू काम मैं अकेली ही करती रही हूं. मेरे पास एक चमचमाती दुपहिया गाड़ी है और मैं अनुशासित ड्राइवर मानी जाती हूं.

फोन रखते ही मैं जाने की तैयारियां करने लगी. चुस्त जींस और कसी कुरती पहन मैं तैयार हो गई. बेटे नानू यानी नैवेद्य की कोई दिक्कत नहीं थी. ऐसे मौकों पर मिसेज सिंह फायदे और कायदे की पड़ोसी साबित होती हैं. उन के बेटाबहू सुदूर दक्षिण के किसी शहर में इंजीनियर हैं और ऊंचे पैकेज पर कार्यरत उन 2 युवा इंजीनियरों को चूड़ीबिंदी, साड़ी वाली बूढ़ी मां की जरूरत महसूस नहीं होती.

मिसेज सिंह की एक प्रौढ़ बेटी भी है जो विदेश में पतिबच्चों के साथ सैटल है और मातापिता अब उस से पुरानी तसवीरों, सैलफोन और वैबकौम इंटरनैट में ही मिल पाते हैं.

मिस्टर सिंह रिटायर हो चुके हैं और शामसवेरे की लंबी सैर व लाफ्टर क्लब से भी जब उन का वक्त नहीं कटता तो अपनी अनंत ऊब से भागते हुए वे वृद्धाश्रमों, अनाथालयों या रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर घंटों जिंदगी की तलाश में भटकते हैं जबकि मिसेज सिंह पूरा समय घर में रहती हैं.

थायरायड उन की उतनी खतरनाक बीमारी नहीं है जितनी उन की सामाजिकता.

पहले वे पड़ोसियों के यहां घंटों बैठी रहा करती थीं, पर जब लोग उन से ऊबने लगे, काम के बहाने कतराने लगे तो मिसेज सिंह ने यहांवहां बैठना छोड़ दिया. अब वे चढ़ती दोपहरी से ढलती शाम तक बालकनी में बैठी रहती हैं और कभीकभी तो आधी रात के वक्त भी इस एकाकी बूढ़ी को सड़क के सूने अंधकार में ताकते देखा जा सकता है.

 

सिंह दंपती स्वयं से ही नहीं, एकदूसरे से भी ऊबे हुए हैं और इसी भीतरी सूनेपन ने उन के सामाजिक व्यक्तित्व को मधुरतम बना दिया है. आसपड़ोस के हर मालिककिराएदार परिवार के लिए उन की बुजुर्गीयत का झरना कलकल बहता रहता है. मिसेज सिंह जब भी कहीं घूमने जाती हैं, सारी पड़ोसिनों के लिए सिंदूर, चूडि़यां, लोहेतांबे के छल्ले (उन्हें सब के नाप याद हैं) लाना नहीं भूलतीं. यहां के तमाम नन्हे बच्चों की कलाइयों के पीले, तांबई या काले चमकीले मोतियों वाले कड़े किसी न किसी तीर्थस्थान का प्रसाद हैं और निसंदेह मिसेज सिंह के ही उपहार हैं. होली, दीवाली, करवाचौथ जैसे त्योहारों पर मैं भी इस अतृप्ता के पैर छूती हूं. आंटीजी कहती हूं, बच्चे से दादी कहलवाती हूं और बदले में निहाल मिसेज सिंह जरूरत पड़ने पर मेरे बच्चे को इस स्नेहखयाल से संभालती हैं जो एक दादी या नानी ही अपने वंशज के लिए कर सकती है.

 

GHKKPM: मामा ने की घटिया हरकत, क्या भोसले परिवार के सामने आएगा मुकुल का सच?

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin : टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ लव ट्रैंगल का ट्रैक दर्शकों को काफी पसंद आ रहा है. सवि और ईशान की शादी के बाद भी रीवा भोसले परिवार के सुख-दुख में हमेशा साथ देती है. वो और ईशान एक-दूसरे को बेस्ट फ्रेंड मानते हैं और अपनी हर बात शेयर करते हैं. भोसले हाउस में सुरेखा और राव साहब की एनिवर्सी का सेलिब्रेशन चल रहा है. इस दौरान कई ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिलेंगे.

मुकुल मामा ने जीता सबका दिल

इस सीरियल में भाविका शर्मा और शक्ति अरोड़ा लीड रोल निभा रहे हैं, जिनकी जोड़ी को फैंस खूब पसंद करते हैं. अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि आदर्शवादी मुकुल मामा सबका ध्यान अपनी तरफ खिचेंगे. वह सुरेखा के मेहंदी फंक्शन में खूब धमाल मचाएंगे. वह राव साहब से जिद करेंगे कि वो अपने हाथों में सुरेखा का नाम लिखवाए. सवि मामाजी की दिल से तारीफ करेगी, कहेगी कि वो सबका कितना ख्याल रखते हैं, मामाजी बहुत अच्छे हैं.

 

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आदर्शवादी  मामा ने की घटिया हरकत

दूसरी तरफ डरी हई अन्वी भी फंक्शन में आएगी. मुकुल मामा उसे गुड़िया-गुड़िया कह कर लाड़ जताएंग और वह उसके हाथों पर मेहंदी लगाने चलेंगे. ऐसे में अन्वी डर जाएगी. अस्मित उन्हें मेहंदी लगाने से रोकेगी, लेकिन मामाजी नहीं मानेंगे. मुकुल मामा अन्वी के हाथ पर M लिख देंगे और पूछेंगे अच्छा लग रहा है न? इतना ही नहीं वह उसे गलत तरीके से भी टच करने की कोशिश करेंगे. अन्वी वहां से भाग जाएगी और मेहंदी मिटा देगी.

 

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टूटेगा रीवा का दिल

मेहंदी फंक्शन के दौरान सवि और ईशान की नोकझोक होगी. मेहंदी लगाने वाली सवि से उसेक पति का नाम पूछेगी, ऐसे में सवि अपने पति का नाम चिड़िक्या बताएगी, तो दूसरी तरफ मामी सवि से कहेंगी कि लड़ाई-झगडे़ बेडरूम तक ही होना चाहिए, हाथ पर ईशान का नाम लिखवाए. तो दूसरी तरफ ये सब देखकर रीवा का दिल टूट जाएगा और वह अपने हाथ पर मेहंदी से I Love लिखेगी.

अब शो के अपकमिंग में ये देखना दिलचस्प होगा कि मुकुल मामा के घटिया हरकत का खुलासा सवि भोसले परिवार के सामने कैसे करेगी?

 शिक्षा पर भारी अमीरी

तमिलनाडु के सेलम शहर की रहने वाली 46 साल की पप्पाथी इसलिए चलती बस के सामने आ गई क्योंकि उसे किसी ने बताया था कि दुर्घटना में मौत पर मुआवजा मिलता है. उसे अपने बेटे के कालेज की फीस भरने के लिए पैसे चाहिए थे जिस के लिए उस ने इतना बड़ा कदम उठाया. यह वायरल वीडियो बहुत ही हृदयविदारक था कि अपने बेटे की फीस भरने के लिए एक मां बस के नीचे आ गई ताकि उस की मौत के बाद जो मुआवजा मिलेगा उन पैसों से उस के बेटे का कालेज में एडमिशन हो सकेगा.

यह महिला स्थानीय कलैक्टर औफिस में अस्थाई सफाई मजदूर व सिंगल पेरैंट थी. वह महीने के 10 हजार रुपए कमाती थी, जिन से उसे अपने दोनों बच्चों बेटाबेटी की पढ़ाई का खर्चा उठाने में बहुत मुश्किल हो रही थी. वह अपने बेटे के कालेज की 45 हजार रुपए की फीस के लिए पैसे नहीं जुटा पा रही थी तो उसे लगा कि उस की मौत के मुआवजे से बेटे की फीस के पैसों का जुगाड़ हो जाएगा. इस महिला ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए अपनी जान दे दी.

यह सिर्फ एक मां के त्याग की दिल दहलाने वाली कहानी भर नहीं है बल्कि यह देश में लगातार महंगी होती शिक्षा से आम गरीबों और वर्किंग क्लास परिवारों की कड़वी सचाई है.

महंगी होती शिक्षा

आज देश में लोगों के लिए खाना, पीना, रहना और स्वास्थ्य सेवाएं ही महंगी नहीं होती जा रही हैं बल्कि मनुष्य के सर्वांगीण विकास की चाबी शिक्षा भी लगातार महंगी होती जा रही है. हर वर्ष शिक्षा करीब 10 से 12 फीसदी महंगी होती जा रही है. शिक्षा संस्थान हर वर्ष अपनी फीस में बढ़ोतरी कर रहे हैं. जिदगी की बाकी खर्चों के मुकाबले शिक्षा के क्षेत्र में महंगाई दोगुनीतिगुनी गति से बढ़ रही है.

सिर्फ बड़ेबड़े संस्थाओं में पढ़ाई पर ही नहीं बल्कि स्कूलकालेज और कोचिंग की शिक्षा के खर्चों में भी गुणात्मक बढ़ोतरी हो रही है. इंजीनियरिंग, मैडिकल, एमबीए, आईआईटी, एनआईआईटी, आईएमएम का पढ़ाई का खर्च आम मध्यवर्गीय परिवारों की हैसियत से बाहर चला गया है. चाहे पढ़ाई सरकारी स्कूलकालेजों में हो या प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूलों में यह उन करोड़ों गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों की कहानी है, जो अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाने के लिए अपना पेट काट कर, जमीन और घर गिरवी रख कर, लोगों से कर्ज ले कर बच्चों की कालेज की फीस चुकाते हैं. यहां तक कि उस महिला की तरह अपनी जान देने तक को तैयार हो जाते हैं ताकि उन के बच्चों की पढ़ाई न रुके और उन के बच्चे भी काबिल इंसान बन पाएं. लेकिन देश में महंगी होती शिक्षा व्यवस्था बच्चों के साथसाथ उन के अभिभावकों के सपनों को भी कुचल रही है.

इंजीनियरिंग, मैडिकल, आईआईटी जैसे प्रोफैशनल कोर्सेज की फीस दिनप्रतिदिन आसमान छू रही है. ऐसे में महंगी होती शिक्षा आम परिवारों की पहुंच से दूर होती जा रही है. सिर्फ आईआईएम (अहमदाबाद) की फीस 2007 से 2023 के बीच 4 लाख रुपए सालाना से बढ़ कर 27 लाख रुपए सालाना पहुंच गई जोकि 575त्न की बढ़ोतरी है. यही नहीं अशोका, जिंदल, मणिपाल जैसी प्राइवेट यूनिवर्सिटियां, ग्रैजुएशन कोर्स के लिए सालाना 5 से 11 लाख रुपए तक की फीस लेती हैं. हर शिक्षण संस्थान प्रत्येक वर्ष अपनी फीस बढ़ाता जा रहा है.

सरकारी आंकड़े के 75वें चक्र के सर्वेक्षण ‘हाउसहोल्ड सोशल कंजंप्शन औफ ऐजुकेशन इन इंडिया’ (2017-18) की तरफ देखें तो साफ पता चलता है कि आम भारतीय परिवारों के लिए महंगी होती शिक्षा उन की पहुंच से दूर होती जा रही है. यहां तक कि एक बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठाना भी गरीब व मध्यवर्गीय परिवारों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में वे और बच्चों को कैसे और कहां से पढ़ा पाएंगे क्योंकि एक तो कोचिंग की भारीभरकम फीस और उस पर स्कूलकालेज की महंगी पढ़ाई, मातापिता की पहुंच से बाहर होती जा रही है.

लाभ अमीर छात्रों को ही क्यों

यूनिसेफ ने वैश्विक शैक्षिक असमानता को उजागर करते हुए एक रिपोर्ट में कहा है कि सार्वजनिक शिक्षा का केवल 16 फीसदी पन सब से गरीब 20 फीसदी को जाता है, जबकि 28 फीसदी सब से अमीर 20 फीसदी को जाता है. सब से गरीब परिवारों के बच्चों को राष्ट्रीय सार्वजनिक शिक्षा निधि से कम से कम लाभ मिलता है.

एक सचाई है कि अच्छी शिक्षा बेहतर भविष्य का आधार होती है. शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिस से इंसान केवल खुद को ही नहीं बल्कि देशदुनिया को बदलने की भी ताकत रखता है. लेकिन चिंता की बात यह है कि इस सकारात्मक सोच के बावजूद हमारी शिक्षा प्रणाली विपरीत संकेत दे रही है. तमाम प्रयासों के बाद भी देश में अब भी 20 फीसदी से अधिक आबादी निरक्षर है.

सब से चौंकाने वाली बात यह है कि आज भारत में बड़ी संख्या में छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं या आत्महत्या का रास्ता अपना रहे हैं. 2019 से ले कर अभी तक 32 हजार छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई छोड़ चुके हैं, वहीं 5 वर्षों में 98 छात्रों ने खुदकुशी कर ली जहां उन्होंने मेहनत से एडमिशन लिया था. 2023 में ही अब तक आत्महत्या की 24 घटनाएं हो चुकी हैं.

बड़े शिक्षण संस्थाओं से पढ़ाई छोड़ने वाले छात्र ज्यादातर दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के हैं. ये शिक्षण संस्थान कोई सामान्य सरकारी कालेज नहीं बल्कि आईआईटी, एनआईटी और आईआईएसईआर, आईआईएम व केंद्रीय विश्वविद्यालय और उन के जैसे स्तर के हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए इन आंकड़ों से पता चलता है कि शिक्षण संस्थान छात्रों में उम्मीदों की उड़ान पैदा करने के बजाय निराशा और अवसाद का माहौल रच रहे हैं.

पढ़ाई छूटने की वजह

इस सवाल को कोई सीधा जवाब नहीं है. लेकिन शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि आदर्श के रूप में अन्य छात्रों को नामांकन लेने के बाद असफलता का सामना करना पड़ता है. इस से वे हीनभावना के शिकार हो जाते हैं. इस के अलावा कई छात्र अपने साथ भेदभाव और पक्षपात की भी शिकायत करते हैं.

21वीं सदी को ज्ञान की सदी कहा गया है. ज्ञान परंपरा और मातृभाषा में शिक्षा देने की बात खूब जोरशोर से उठी. शिक्षा की पूंजी से गरीब और वंचित छात्रों के लिए उच्च पद, बड़ा उद्योगपति और विश्वस्तरीय तकनीशियन बनने के रास्ते भी खुले, बावजूद इस के शिक्षण संस्थाओं से छात्रों का पलायन और आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं तो यह चिंता का विषय है.

आज सुविधाएं हमारी मुट्ठी में हैं और लक्ष्य अंतरिक्ष में इंसान को बसाने की संभावनाएं तलाश रहा है. ऐसे में शिक्षा से छात्रों का मुंह मोड़ना, मौत को गले लगाना समूची शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है.

कुछ साल पहले केंद्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के छात्र रोहित वेमुला और फिर तमिलनाडु के प्राकृतिक शिक्षा एवं योग विद्यालय की 3 छात्राओं द्वारा एकसाथ आत्महत्या किए जाने का मामला सामने आया था. कोटा और इंदौर से कोचिंग ले रहे छात्रों की खुदकुशी के मामले निरंतर सामने आते रहते हैं.

कोचिंग हब बनता शहर

कोचिंग हब बनते जा रहे शहरों में यह अलग तरह की समस्या सामने आ रही है, जिस में सकारात्मक माहौल बनाने के तमाम प्रयासों के बावजूद कोचिंग छात्रों को निराशा के ऐसे भंवर से निकाल पाना बड़ी चुनौती बनी हुई है. राजस्थान के कोटा शहर में भी अवसाद में आए बच्चों के मौत को गले लगाने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं.

देश की युवाओं के मरने की ये घटनाएं संभावनाओं की मौत हैं. लेकिन फिर भी इन्हें राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है. सरकार ने बताया कि बीच में पढ़ाई छोड़ने का कारण विषय का गलत चुनाव, व्यक्तिगत परफौर्मैंस और स्वास्थ्य समस्या रही है. लेकिन बच्चों के पढ़ाई छोड़ने को जो कारण सरकार ने बताए हैं क्या उन का निदान संभव नहीं है? आमतौर पर दोष मांबाप पर मढ़ दिया जाता है कि वे अपने सपने पूरे कराने के लिए गलत कोर्स कराते हैं.

पूरी दुनिया जानती है कि भारत के इन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा दुनिया की सब से कठिन परीक्षाओं में मानी जाती है. हर साल लगभग 15 लाख बच्चे रातदिन मेहनत कर बड़ीबड़ी फीस दे कर सफलता के इस दरवाजे तक पहुंचते हैं. निश्चित ही वे पढ़ना चाहते होंगे, इतनी मेहनत कर के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के लिए तो यहां एडमिशन नहीं लिया होगा न? बच्चों के पढ़ाई छोड़ने की वजह पैसा या फिर पारिवारिक जिम्मेदारी भी एक वजह हो सकती है, पर यही पूरा सच नहीं है.

2014 में रुड़की आईआईटी में प्रथम वर्ष के लगभग 70 छात्र फेल हुए थे. मामला कोर्ट तक भी पहुंचा और जो मुख्य कारण सामने आया वह था संस्थान, पाठ्यक्रम का अंगरेजी माहौल, विशेषकर गरीब बच्चे जो अपनीअपनी मातृभाषा में पढ़ कर आते हैं वे इन संस्थाओं के अंगरेजी कुलीन माहौल में आसानी से फिट नहीं बैठ पाते हैं, ऊपर से पाठ्यक्रम का दबाव. हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का ढांचा ही ऐसा बनाया गया है कि  यदि आप उस के अनुसार खुद को नहीं ढाल पाते हैं तो पढ़ाई छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है.

2012 में अनिल मीणा नाम के एक छात्र ने दिल्ली एम्स में आत्महत्या कर ली थी. उस ने मरने से पहले एक पत्र लिखा था जिस में लिखा था कि यहां का पाठ्यक्रम जो अंगरेजी में है वह मेरी सम?ा में नहीं आता. शिक्षक और सहपाठियों से भी मु?ो कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है.

अंगरेजी का दबाव

लगभग ऐसा ही पत्र 2015 में इंदौर इंजीनियरिंग कालेज के एक छात्र ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि हमारे संस्थानों में अंगरेजी का दबाव इतना भयानक है कि छात्र न केवल इन उच्च संस्थानों से बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था से ही बाहर हो जाते हैं.

जानेमाने वैज्ञानिक प्रोफैसर यशपाल, जयंत नारलीकर बारबार इन संस्थाओं में भाषा और पद्धति की निर्दयता पर सवाल उठाते रहे हैं पर कोई फायदा नहीं हुआ. विदेशी विश्वविद्यालयों की तरफ रुख करने वाले ज्यादातर छात्रों का कहना है कि हमारे संस्थान पाठ्यक्रम अपडेट के मामले में बहुत पीछे हैं और फकल्टी भी ज्यादातर मामलों में छात्रों को रचनात्मकता की तरफ मोड़ने में बहुत सक्षम नहीं है. ज्यादातर स्टडी भी विदेशी पाठ्यक्रम से ली हुई होती है जिस का भारत की समस्याओं से बहुत कम लेनादेना होता है. ये सब मिल कर एक ऐसी दुनिया का निर्माण करते हैं जिस में अपनी मातृभाषा में पढ़ेलिखे गरीब आदिवासी मेधावी छात्र अपनेआप को अलगथलग पाते हैं.

दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग की जातियों के बच्चे बड़ेबड़े सपने ले कर देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में यह सोच कर दाखिला लेते हैं कि समानता और वैचारिक गहराई की मजबूत नींव रखने वाली संस्थाएं उन्हें ऊंचा उड़ना सिखाएंगी. लेकिन होता इस के विपरीत है. कहा तो यह जाता है कि पिछड़ी जातियां ही हिंदू समाज की रीढ़ हैं लेकिन जमीनी स्तर पर ऊंची जातियां उन के ही पैर खींचने में सब से आगे हैं. भारत में स्वर्ण लोग स्वयं को देश का धर्मरक्षक मानते हैं. शुरू से शिक्षित बनने की प्रक्रिया को अवरुद्ध करने से परिवर्तन की प्रक्रिया को रोका जा सकता है.

जाति आधारित भेदभाव

‘टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज,’ ‘इंडियन इंस्टिट्यूट औफ साइंस बिट्स पिलानी’ और ‘क्राइस्ट यूनिवर्सिटी बैंगलुरु’ के शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार कई विश्वविद्यालयों ने अभी तक यूजीसी द्वारा जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए दिए गए निर्देशों को लागू नहीं किया है.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि किस तरह से उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित और आदिवासी छात्रों के ऊपर ऊंची जातियों के छात्रों व शिक्षकों द्वारा मानसिक दबाव डाला जाता है जबकि यूजीसी द्वारा जाति आधारित भेदभाव के मद्देनजर जारी निर्देशों के अनुसार हर संस्थान द्वारा इस के लिए प्रावधान किया जाना अनिवार्य है ताकि कोई छात्र जातिगत भेदभाव का शिकार न होने पाए. वहीं संस्थानों को स्टूडैंट वैलनैस सैंटर भी स्थापित करने का निर्देश है ताकि कोई छात्र मानसिक दबाव महसूस करे तो उस की मदद की जा सके.

विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ जनवरी, 2023 के अंक में अंकुर पालीवाल के आलेख के अनुसार, भारत के विज्ञान क्षेत्र में ऊंची जातियों का वर्चस्व है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे उच्च संस्थानों में आदिवासी और दलित समुदायों के छात्रों और शिक्षकों का प्रतिनिधित्व कम है. इस आलेख में दिए गए आंकड़े के अनुसार, सरकारी अनुसंधान और शिक्षा संस्थानों में पीएचडी शोधार्थियों में उच्च जाति के 66.34त्न, दलित 8.9त्न व अन्य 24.76त्न के शोधार्थी शामिल हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

सहायक प्रोफैसरों में सवर्णों की हिस्सेदारी 89.69त्न है वहीं दलित व अन्य केवल 3.51त्न और 6.8त्न हैं. यह समानता की एक बड़ी खाई है. 2016 और 2020 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के ‘इंपायर फैक्ल्टी फैलोशिप के डेटा से पता चलता है कि 80त्न लाभार्थी उच्च जातियों से थे, जबकि केवल 16त्न अनुसूचित जाति और 1त्न से कम अनुसूचित जनजाति से थे.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भी देश भर के आईआईटी संस्थानों में केवल 2.81त्न एससी और एसटी शिक्षक हैं.

ये आंकड़े बताते हैं कि उच्च शिक्षण संस्थानों में किस तरह का जातिवाद है. दुखद है कि शिक्षण संस्थानों में भी दलित, आदिवासी और पिछड़े छात्रों को अपमान और बदनामी जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है. आईआईटी, मुंबई में ही दर्शन सोलंकी द्वारा खुदकुशी से पहले अनिकेत अंभोरे नामक छात्र ने 2014 में खुदकुशी कर ली थी. दोनों के मातापिता ने उन्हें प्रताडि़त किए जाने की शिकायत दर्र्ज कराईर् थी. लेकिन उन की शिकायतें बस शिकायतें ही रहीं. कोई ठोस काररवाई नहीं की गई.

ऐसे ही मुंबई के नायर हौस्पिटल में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही डा. पायल तड़वी ने 22 मई, 2019 को प्रताड़ना से तंग आ कर अपनी जान दे दी थी, जिस से पूरे देश में विवाद पैदा हो गया था लेकिन दोषियों पर कोई काररवाई नहीं हुई. भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने 26 फरवरी, 2023 को कहा था कि भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित या आदिवासी छात्रों के उत्पीड़न की समस्या पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन की आत्महत्या की प्रवृत्ति पर सवाल उठाया जाना चाहिए. लेकिन जब सत्ता खामोश है तो असमानता की इस व्यवस्था को कौन सुधारेगा, यह मुख्य प्रश्न है.

कल्पवृक्ष: भाग 1- विवाह के समय सभी व्यंग क्यों कर रहे थे?

छोटी ननद की शादी की बात वैसे तो कई जगह चल रही थी, किंतु एक जगह की बात व संबंध सभी को पसंद आई. लड़की देख ली गई और पसंद भी कर ली गई. परंतु लेनदेन पर आ कर बात अटक गई. नकदी की लंबीचौड़ी राशि मांगी गई और महंगी वस्तुओं की फरमाइश ने तो जैसे छक्के छुड़ा दिए. घर पर कई दिनों से इसी बात पर बहस छिड़ी हुई थी. सब परेशान से बैठे थे. पिता सहित तीनों भाई, दोनों भाभियां तरहतरह के आरोपों से जैसे व्यंग्य कस रहे थे.

लड़का कोई बड़ा अधिकारी भी नहीं था. उन्हीं लोगों के समान मध्यम श्रेणी का विक्रय कर लिपिक था, परंतु मांग इतनी जैसे कहीं का उच्चायुक्त हो. कई लाख रुपए नकद, साथ ही सारा सामान, जैसे स्कूटर, फ्रिज, वाश्ंिग मशीन, रंगीन टैलीविजन, गैस चूल्हा, मशीन, वीसीआर और न जाने क्या क्या.

‘‘बाबूजी, यह संबंध छोडि़ए, कहीं और देखिए,’’ बड़े बेटे मुकेश ने तो साफ बात कह दी. बड़ी बहू ने भी इनकार ही में राय दी. म झले अखिलेश व उस की पत्नी ने भी यही कहा. छोटा निखिलेश तो जैसे तिलमिला ही गया. वह बोला, ‘‘ऐसे लालचियों के यहां लड़की नहीं देनी चाहिए. अपनी विभा किस बात में कम है. हम ने भी तो उस की शिक्षा में पैसे लगाए हैं. शुरू से अंत तक प्रथम आ रही है परीक्षाओं में, और देखना, एमएससी में टौप करेगी, तो क्या वह नौकरी नहीं कर सकेगी कहीं?’’

‘‘ये सब तो बाद की बातें हैं निखिल. अभी तो जो है उस पर गौर करो. कहीं भी बात चलाओ, मांग में कमी होगी क्या. एक यही घर तो सब को सही लगा है. और जगह बात कर लो, मांग तो होगी ही. आजकल नौकरीपेशा लड़के के जैसे सुरखाब के पर निकल आते हैं. यह लड़का सुंदर है, विभा के साथ जोड़ी जंचेगी. परिवार छोटा है, 2 भाईबहन, बहन का विवाह हो गया. बड़ा भाई भी विवाहित है. छोटा होने से छोटे पर अधिक दायित्वभार नहीं होगा. बहन सुखी रहेगी तुम्हारी,’’ पिताजी दृढ़ स्वर में बोले.

‘‘यह तो ठीक है बाबूजी. 2 लाख रुपए नकद, फिर इतना साजोसामान हम कहां से दे सकेंगे. आभा के विवाह से निबटे 2 ही बरस तो हुए हैं, वहां इतनी मांग भी नहीं थी,’’ अनिल बोला.

‘‘अब सब एक से तो नहीं हो सकते. 2 बरस में समय का अंतर तो आ ही गया है. सामान कम कर दें, तो शायद बात बन जाए. रुपए भी एक लाख तक दे सकते हैं. यदि सामान खरीदना न पड़े तो कुछ निखिल की ससुराल का नया रखा है. अभी 6 माह ही तो विवाह को हुए हैं,’’ बाबूजी बोले.

‘‘तो क्या छोटी बहू को बुरा नहीं लगेगा कि उस के मायके का सामान कैसे दे रहे हैं? कई स्त्रियों को मायके का एक तिनका भी प्रिय होता है,’’ बड़ा बेटा मुकेश बोला.

‘‘नहीं.’’ ‘‘बिलकुल नहीं, बाबूजी, फालतू का तनाव न पैदा करें. बहुओं में बड़ी और म झली क्या दे देगी अपना कुछ सामान. कोई नहीं देने वाला है, जानते तो हैं आप, जब छोटी का दहेज देंगे तो क्या वह नहीं चाहेगी कि ये दोनों भी कुछ दें, अपने मायके का कौन देगा, टीवी, फ्रिज, अन्य सामान?’’ अखिल बोला.

‘‘न भैया, मैं खुद नहीं चाहता कि मधु के मायके का सामान दें. जब हमें मिला है तो हम कैसे न उस का उपयोग कर पाएं, यह कहां की शराफत की बात हुई? फिर बड़ी व म झली भाभियों का नया सामान है कहां कि वह दिया जा सके,’’ निखिल उत्तेजित हो खीझ कर बोला.

‘‘रहने दो भैया. कोई कुछ मत दो. मना कर दो कि हम इतने बड़े रईस नहीं हैं, न धन्ना सेठ कि उन की इतनी लंबीचौड़ी फरमाइश पूरी कर सकें. हमें नहीं देनी ऐसी कोई चीज जो बहुओं के मायके की हो. कौन सुनेगा जनमभर ताने और ठेने? इसी से आभा को किसी का कुछ नहीं दिया,’’ मां सरोज बोलीं.

‘‘तब और बात थी. मुकेश की मां, अब रिटायर हो चुका हूं मैं. बेटी क्या, बेटोें के विवाह में भी तो लगती है रकम, और लागत लगाई तो है मैं ने. तीनों बेटों के विवाह में हम ने इतना बड़ा दानदहेज कब मांगा था, बेटों की ससुराल वालों से? अपने बेटे भी तो नौकरचाकर थे. हां, छोटे निखिल के समय अवश्य थोड़ाबहुत मुंह खोला था, परंतु इतना नहीं कि सुन कर देने वाले की कमर ही टूट जाए,’’ बाबूजी गर्व से बोले.

‘‘तो ऐसा करो, छोड़ो सर्विस वाला लड़का, कोई बिजनैस वाला ढूंढ़ो, जो इतना मुंह न फाड़े कि हम पैसे दे न सकें,’’ मां बोलीं.

‘‘लो, अभी तक कहती थीं कि लड़का नौकरीपेशा चाहिए. अब कहती हो कि व्यापारी ढूंढ़ो. लड़की की उम्र 21 बरस पार कर गई है. व्यापारी या कैसा भी ढूंढ़तेढूंढ़ते अधिया जाएगी. समय जाते देर लगती है क्या?’’

‘‘तो कर्ज ले लो कहीं से.’’

बाबूजी खिसिया कर बोले, ‘‘कर्ज ले लो. कौन चुकाएगा कर्ज? तुम चुकाओगी?’’

‘‘मैं चुकाऊंगी, क्या भीख मांगूंगी,’’ वे रोंआसी हो कर बोलीं.

‘‘तुम लोग कितनाकितना दे पाओगे तीनों,’’ वे तीनों बेटों की ओर देख कर बोले.

बाबूजी, आप जानते तो हैं कि क्लर्क, शिक्षकों की तनख्वाह होती कितनी है. तीनों ही भाईर् लगभग एक ही श्रेणी में तो हैं, वादा क्या करें. निखिल को छोड़ तीनों पर 3-3 बच्चों का भार है. पढ़ाईलिखाई आदि से ले कर क्या बचता है, आप जानते तो हैं क्या दे पाएंगे. हिसाब लगाया कहां है. पर जितना बन पड़ेगा देंगे ही. आप अभी तो उन्हीं को साफ लिख दें कि हम केवल 50 हजार नकद और यह सामान दे सकेंगे, यदि उन्हें मंजूर है तो ठीक, वरना मजबूरी है. एक लाख तो नकद किसी प्रकार नहीं दे पाएंगे, न इतना सामान ही,’’ मुकेश ने कहा तो जैसे दोनों भाइयों ने सहमति से सिर हिला दिया. बड़ी व म झली बहू कब से कमरे में घुसी खुसरफुसर कर रही थीं. छोटी मधु रसोई में थी, चारों जनों को गरमगरम रोटियां सेंक कर खिला रही थी. 6 माह हुए जब वह ब्याह कर आई थी. तब से वह रसोई की जैसे इंचार्ज बन गई थी. बच्चों सहित पूरे घर को परोस कर खिलाने में उसे न जाने कितना सुख मिलता था.

उस से छोटी हमउम्र विभा जैसे उस की सगी छोटी बहन सी ही थी. गहरा लगाव था दोनों में. विभा विज्ञान ले कर इस बरस स्नातक होने जा रही थी. घर वालों की अनुमति ले कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, जो विषय उस का था पहले वही ननद विभा का था. इस से वह उसे खुद पढ़ाती, बताती रहती. पूरा घर उस पर जैसे जान छिड़कता.

जब से वह आई थी, बड़ी और म झली की  झड़पें कम हो गईर् थीं. सासननद का मानसम्मान जैसे बढ़ गया था. बातबात पर उत्तेजित होने वाले तीनों भाई शांत पड़ चले थे. रोब गांठने वाले ससुरजी का स्वर धीमा पड़ गया था. सासुमां की ममता बहुओं पर बेटियों के समान लहरालहरा उठती. कटु वाक्यों के शब्द अतीत में खोते चले जा रहे थे. क्रोध तो जैसे उफन चुके दूध सा बैठ गया था.

‘‘छोटी बहू, यह बाबूजी की दूधरोटी का कटोरा लगता है, मेरे आगे भूल से रख गई हो, यह रखा है.’’

‘‘अरे, मेरे पास तो रखा है, शायद भूल गई.’’

तभी मधु गरम रोटी सेंक कर म झले जेठ के लिए लाई, बोली, ‘‘बड़े दादा, यह दूधरोटी आप ही के लिए है.’’

‘‘परंतु मेरे तो अभी पूरे दांत हैं, बहू.’’

‘‘तो क्या हुआ, बिना दांत वाले ही दूधरोटी खा सकते हैं. देखते नहीं हैं, आप कितने दुबले होते जा रहे हैं. अब तो रोज बाबूजी की ही भांति खाना पड़ेगा. तभी तो आप बाबूजी जैसे हो पाएंगे और देखिए न, बाल कैसे सफेद हो चले हैं अभी से.’’

वे जोर से हंसते चले गए. फिर स्नेह से छलके आंसू पोंछ कर बोले, ‘‘पगली कहीं की. यह किस ने कहा कि दूधरोटी खाने से मोटे होते हैं व बाल सफेद नहीं होते.’’

‘‘बाबूजी को देखिए न. उन के तो न बाल इतने सफेद हैं न वे आप जैसे दुबले ही हैं.’’

‘‘तब तो मधु, मु झे भी दूधरोटी देनी होगी. बाल तो मेरे भी सफेद हो रहे हैं,’’ म झला अखिल बोला.

‘‘म झले भैया, आप को कुछ साल बाद दूंगी.’’

‘‘पर छोटी बहू, बच्चों को तो पूरा नहीं पड़ता, तू मु झे देगी तो वहां कटौती

न होगी.’’

‘‘नहीं, बड़े भैया. मैं चाय में से बचा कर दूंगी आप को. अब केवल 2 बार चाय बना करेगी. पहले हम सब दोपहर में पीते थे. फिर शाम को आप सब के साथ. अब हम सब की भी साथ ही बनेगी और आप चुपचाप रोज बाबूजी की तरह ही खाएंगे.’’

आगे पढ़ें- विभा की परीक्षाएं भी हो गईं. फिर सगाई की…

प्यार था या कुछ और

लेखक- ताराचंद मकसाने

प्रमिला और शंकर के बीच अवैध संबंध हैं, यह बात रामनगर थाने के लगभग सभी कर्मचारियों को पता था. मगर इन सब से बेखबर प्रमिला और शंकर एकदूसरे के प्यार में इस कदर खो गए थे कि अपने बारे में होने वाली चर्चाओं की तरफ जरा भी ध्यान नहीं जा रहा था.

शंकर थाने के इंचार्ज थे तो प्रमिला एक महिला कौंस्टेबल थी. थाने के सर्वेसर्वा अर्थात इंचार्ज होने के कारण शंकर पर किसी इंस्पैक्टर, हवलदार या स्टाफ की उन के सामने चूं तक करने की हिम्मत नहीं होती थी.

थाने की सब से खूबसूरत महिला कौंस्टेबल प्रमिला थाने में शेरनी बनी हुई थी, क्योंकि थाने का प्रभारी उस पर लट्टू था और वह उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी.

जिन लोगों के काम शंकर करने से मना कर देते थे, वे लोग प्रमिला से मिल कर अपना काम करवाते थे.
प्रमिला और शंकर के अवैध रिश्तों से और कोई नहीं मगर उन के परिजन जरूर परेशान थे. प्रमिला 1 बच्चे की मां थी तो शंकर का बड़ा बेटा इस वर्ष कक्षा 10वीं की परीक्षा दे रहा था.

मगर कहते हैं न कि प्रेम जब परवान चढ़ता है तो वह खून के रिश्तों तक को नजरअंदाज कर देता है. प्रमिला के घर में अकसर इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता था मगर प्रमिला हर बार यही दलील देती थी कि लोग उन की दोस्ती का गलत अर्थ निकाल रहे हैं. थाना प्रभारी जटिल केस के मामलों में या जहां महिला कौंस्टेबल का होना बहुत जरूरी होता है तभी उसे दौरों पर अपने साथ ले जाते हैं. थाने की बाकी महिला कौंस्टेबलों को यह मौका नहीं मिलता है इसलिए वे लोग मेरी बदनामी कर रहे हैं. यही हाल शंकर के घर का था मगर वे भी बहाने और बातें बनाने में माहिर थे. उन की पत्नी रोधो कर चुपचाप बैठ जाती थीं.

शंकर किसी न किसी केस के बहाने शहर से बाहर चले जाते थे और अपने साथ प्रमिला को भी ले जाते थे. अपने शहर में वे दोनों बहुत कम बार साथसाथ दिखाई देते थे ताकि उनके अवैध प्रेम संबंधों को किसी को पता न चलें. लेकिन कहते हैं न कि खांसी और प्यार कभी छिपाए नहीं छिपता, इन के साथ भी यही हो रहा था.

एक दिन शाम को प्रमिला अपने प्रेमी शंकर के साथ एक फिल्म देख कर रात देर से घर पहुंची तो उस के पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. दोनों में जम कर हंगामा हुआ.

प्रमिला के घर में घुसते ही अमित ने गुस्से से कहा,”प्रमिला, तुम्हारा चालचलन मुझे ठीक नहीं लग रहा है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारे और डीएसपी शंकर के अवैध संबंधों के चर्चे हो रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. 1 बच्चे की मां हो कर तुम किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो…”

अमित की बात बीच में ही काटती हुई प्रमिला ने शेरनी की दहाड़ती हुई बोली,”अमित, बस करो, मैं अब और नहीं सुन सकती… तुम मेरे पति हो कर मुझ पर ऐसे घिनौने लांछन लगा रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. मेरे और थाना प्रभारी के बीच दोस्ताने रिश्ते हैं. कई बार जटिल और महिलाओं से संबंधित मामलों में जब दूसरी जगह जाना पड़ता है तब वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं, जिस के कारण बाकी के लोग मुझ से जलते हैं और मुझे बदनाम करते हैं.

“अमित, तुम्हें एक बात बता दूं कि तुम्हारी यह दो टके की मास्टर की नौकरी से हमारा घर नहीं चल रहा है. तुम्हारी तनख्खाह से तो राजू के दूध के 1 महीने का खर्च भी नहीं निकलता है…समझे. फिर तुम्हारे बूढ़े मांपिता भी तो हमारी छाती पर बैठे हुए हैं, उन की दवाओं का खर्च कहां सा आता है, यह भी सोचो.

“अमित, पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. थाना प्रभारी के साथ मेरे अच्छे संबंधों की बदौलत मुझे ऊपरी कमाई में ज्यादा हिस्सा मिलता है, फिर मैं उन के साथ अकसर दौरे पर जाती हूं तो तब टीएडीए आदि का मोटा बिल भी बन जाता है. यह सब मैं इस परिवार के लिए कर रही हूं. तुम कहो तो मैं नौकरी छोड़ कर घर पर बैठ जाती हूं, फिर देखती हूं तुम कैसे घर चलाते हो?“

अमित ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि प्रमिला से बहस करना बेकार है. वह प्रमिला को जब तक रंगे हाथों नहीं पकड़ लेता तब तक वह उस पर हावी ही रहेगी. अमित के बुजुर्ग पिता ने भी उसे चुप रहने की सलाह दी. वे जानते थे कि घर में अगर रोजाना कलह होते रहेंगे तो घर का माहौल खराब हो जाता है और घर में सुखशांति भी नहीं रहती है.

उन्होंने अमित को समझाते हुए कहा,”बेटा अमित, बहू से झगड़ा मत करो, उस पर अगर इश्क का भूत सवार होगा तो वह तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनेगी. इस समय उलटा चोर कोतवाल को डांटने वाली स्थिति बनी हुई है. जब उस की अक्ल ठिकाने आएगी तब सबकुछ ठीक हो जाएगा.

“बेटा, वक्त बड़ा बलवान होता है. आज उस का वक्त है तो कल हमारा भी वक्त आएगा.“

अपने उम्रदराज पिता की बात सुन कर अमित ने खामोश रहने का निर्णय ले लिया.

एक दिन जब प्रमिला अपने घर जाने के लिए रवाना हो रही थी, तभी उसे शंकर ने बुलाया.

“प्रमिला, हमारे हाथ एक बहुत बड़ा बकरा लगने वाला है. याद रखना किसी को खबर न हो पाए. कल सुबह 4 बजे हमारी टीम एबी ऐंड कंपनी के मालिक के घर पर छापा डालने वाली है. कंपनी के मालिक सुरेश का बंगला नैपियंसी रोड पर है. हम आज रात उस के बंगले के ठीक सामने स्थित होटल हिलटोन में ठहरेंगे. मैं ने हम दोनों के लिए वहां पर एक कमरा बुक कर दिया है. टीम के बाकी सदस्य सुबह हमारे होटल में पहुंचेंगे, इस के बाद हमारी टीम आगे की काररवाई के लिए रवाना हो जाएगी. तुम जल्दी से अपने घर चली जाओ और तैयारी कर के रात 9 बजे सीधे होटल पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं पर मिलूंगा.“

“यस सर, मैं पहुँच जाऊंगी…” कहते हुए प्रमिला थाने से बाहर निकल गई.

सुबह ठीक 4 बजे सायरन की आवाज गूंज उठी. 2 जीपों में सवार पुलिसकर्मियों ने एबी कंपनी के बंगले को घेर लिया. गहरी नींद में सो रहे बंगले के चौकीदार हडबड़ा कर उठ गए. पुलिस को गेट पर देखते ही उनकी घिग्घी बंध गई. चौकीदारों ने गेट खोल दिया. कंपनी के मालिक सुरेश के घर वालों की समझ में कुछ आता इस से पहले पुलिस ने उन सब को एक कमरे में बंद कर के घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

प्रमिला को सुरेश के परिवार की महिला सदस्यों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया था.

करीब 2 घंटे तक पूरे बंगले की तलाशी जारी रही. छापे के दौरान पुलिस ने बहुत सारा सामान जब्त कर लिया.

कंपनी का मालिक सुरेश बड़ी खामोशी से पुलिस की काररवाई को देख रहा था. वह भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था, उसे पता था कि शंकर एक नंबर का भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है. उसे छापे में जो गैरकानूनी सामान मिला है उस का आधा तो शंकरऔर उस के साथी हड़प लेंगे, फिर बाद में शंकर की थोड़ी जेब गरम कर देगा तो वह मामले को रफादफा भी कर देगा.

बंगले पर छापे के दौरान मिले माल के बारे में सुन कर थाने के अन्य पुलिस वालों के मुंह से लार टपकने लगी. शंकर ने सभी के बीच माल का जल्दी से बंटवारा करना उचित समझा. बंटवारे को ले कर उन के अर्दली और कुछ कौंस्टबलों में झगड़ा भी शुरू हो गया. शंकर ने अपने अर्दली और अन्य कौंस्टबलों को समझाया मगर उन के बीच लड़ाई कम होने के बजाय बढ़ती ही गई.

शंकर ने छापे में मिला हुआ कुछ महंगा सामान उसी होटल के कमरे में छिपा कर रखा था. इधर बंटवारे से नाराज अर्दली और 2 कौंस्टेबल शंकर से बदला लेने की योजना बनाने लगे.

उन्होंने तुरंत अपने इलाके के एसपी आलोक प्रसाद को सारी घटना की जानकारी दी. उन्हें यह भी बताया कि शंकर और प्रमिला हिलटोन होटल में रूके हुए हैं.

उन्हें रंगे हाथ पकड़ने का यह सुनहरा मौका है. एसपी आलोक प्रसाद को यह भी सूचना दी गई कि कंपनी मालिक के घर पर पड़े छापे के दौरान बरामद माल का एक बड़ा हिस्सा शंकर और प्रमिला ने अपने कब्जे में रखा था, जो उसी होटल में रखा हुआ है.

एसपी आलोक प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत होटल हिलटोन पर पहुंच गए. इस मौके पर कंपनी के मालिक के साथसाथ शंकर की पत्नी और प्रमिला के पति को भी होटल पर बुला लिया गया ताकि शंकर और प्रमिला के बीच के अवैध संबंधों का पर्दाफाश हो सके.

एसपी आलोक प्रसाद ने डुप्लीकैट चाबी से होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो कमरे में शंकर और प्रमिला को बिस्तर पर नग्न अवस्था में सोए देख कर सभी हैरान रह गए.

एसपी को सामने देख कर शंकर की हालत पतली हो गई. वह बिस्तर से कूद कर अपनेआप को संभालते हुए उन्हें सैल्यूट करने लगा.

शंकर के सैल्यूट का जवाब देते हुए आलोक प्रसाद ने व्यंग्य से कहा,”शंकर पहले कपड़े पहन लो, फिर सैल्यूट करना. यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे भी कपड़े पहनने के लिए कहो…”

प्रमिला की समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. वह दौड़ कर बाथरूम में चली गई.

कुछ देर के बाद आलोक प्रसाद ने सभी को अंदर बुलाया. शंकर की पत्नी तो भूखी शेरनी की तरह शंकर पर झपटने लगी. वहां मौजूद लोगों ने किसी तरह बीचबचाव किया.

आलोक प्रसाद ने प्रमिला के पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा,”अमित, अपनी पत्नी को बाथरूम से बाहर बुला दो, बहुत देर से अंदर बैठी है, पसीने से तरबतर हो गई होगी…”

“प्रमिला बाहर आ जाओ, अब अपना मुंह छिपाने से कोई फायदा नहीं है, तुम्हारा मुंह तो काला हो चुका है और तुम्हारी करतूतों का पर्दाफाश भी हो चुका है,“ अमित तैश में आ कर कहा.

प्रमिला नजरें और सिर झुकाते हुए बाथरूम से बाहर आई. उसे देखते ही अमित आगबबूला हो उठा और वह प्रमिला पर झपटने के लिए आगे बढ़ा, मगर उसे भी समझा कर रोक दिया गया.

“अमित, अब पुलिस अपना काम करेगी. इन दोनों को इन के अपराधों की सजा जरूर मिलेगी…” कहते हुए आलोक प्रसाद शंकर के करीब पहुंचे  और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,”शंकर, कंपनी मालिक के घर छापे के दौरान जब्त माल कहां है? जल्दी से बाहर निकालो. कोई भी सामान छिपाने की तुम्हारी कोशिश नाकाम होगी, क्योंकि इस वक्त हमारे बीच कंपनी का मालिक भी मौजूद है.”

शंकर ने प्रमिला को अंदर से बैग लाने को कहा. प्रमिला चुपचाप एक बड़ा सूटकेस ले कर आई.

भारीभरकम सूटकेस देख कर आलोक प्रसाद ने एक इंस्पैक्टर से कहा,”सूटकेस अपने कब्जे में ले लो और इन दोनों को पुलिस स्टैशन ले कर चलो. अब आगे की काररवाई वहीं होगी.“

सिर झुकाए हुए शंकर और प्रमिला एक कौंस्टेबल के साथ कमरे से बाहर निकल गए हैं.

एसपी आलोक प्रसाद शंकर और प्रमिला को रोक कर बोले,”आप दोनों एक बात याद रखना, जो आदमी अपने परिवार को धोखे में रख कर उस के साथ अन्याय करता है, अनैतिक संबंधों में लिप्त हो कर अपने परिवार की सुखशांति भंग करता है और जो अपनी नौकरी के साथ बेईमानी करता है, उसे एक न एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.”

वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप खङे थे. उन्हें पता था कि अब आगे न सिर्फ उन की नौकरी छिन जाएगी, बल्कि जेल भी जाना होगा.
लालच और वासना ने दोनों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोङा था.

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