प्यार का है सास-बहू का रिश्ता

अकसर लड़कों को बड़े होते देख मातापिता उन के विवाह के सपने देखने लगते हैं. फिर किसी की बेटी को अपने कुल की शोभा बना कर अपने परिवार में ले आते हैं. इसी तरह लड़की को बड़ी होती देख उस के विवाह की कल्पनामात्र मातापिता को भावुक बना देती है. यही नहीं, स्वयं लड़की भी अपने विवाह की कल्पना में उमंगों से सराबोर रहती है. वह केवल पत्नी नहीं, बहू, भाभी, चाची, ताई, देवरानी, जेठानी जैसे बहुत सारे रिश्ते निभाती है.

शादी के कुछ समय बाद न जाने कौन से बदलाव आते हैं कि ससुराल वालों को बहू में दोष ही दोष नजर आने लगते हैं. उधर लड़की भी ससुराल वालों के प्रति अपनी सोच और रवैया बदल लेती है. कुछ परिवारों में तो 36 का आंकड़ा हो जाता है. लड़की के ससुराल पक्ष के लोग परिवार की हर मुसीबत की जड़ बहू और उस के परिवार वालों को ही मान लेते हैं. एकदूसरे को समझें जरूरी है कि आप एकदूसरे की भावनाओं को समझें. जब हम किसी की बेटी को अपने परिवार में लाते हैं, तो उसे अपने पिता के घर (जहां वह पलीबढ़ी) की अपेक्षा बिलकुल जुदा माहौल मिलता है. बात रहनसहन और खानपान की हो या फिर स्वभाव की, सब अलग होता है.

इस के अलावा पतिपत्नी के संबंधों को समझने में भी उसे कुछ समय लगता है. ऐसे में यदि परिवार के लोग अपेक्षाएं कम रखें और बहू को अपना मानते हुए समझ से काम लें, तो शायद परेशानियां जन्म ही न लें.

बहू के घर आने से पहले ही सासें बहुत सारी अपेक्षाएं रखने लगती हैं जैसे बहू आएगी तो काम का बोझ कम हो जाएगा. वह सब की सेवा करेगी इत्यादि.

दूसरी तरफ शादी के बाद तो लड़के का प्यार घर के अन्य सदस्यों के साथसाथ अपनी पत्नी के लिए भी बंटने लगता है, तो घर वालों को लगता है कि बेटा जोरू का गुलाम हो गया.

बहू का घर के कामों में परफैक्ट न होना या काम कम करना बहुत बड़ा दोष बन जाता है. हर सास यह भूल जाती है कि पहली दफा ससुराल में आने पर जैसे उसे पति का साथ भाता था, वैसा ही बहू के साथ भी होता होगा.

सम्मान दे कर सम्मान पैदा करें

सासबहू के संबंध मधुर बने रहें, इस के लिए सास के व्यवहार में उदारता, धैर्य और त्याग के भाव होने आवश्यक हैं. अपने प्रियजनों को छोड़ कर आई बहू से प्यार भरा व्यवहार ही उसे नए परिवार के साथ जोड़ सकता है, उसे अपनेपन का एहसास करा सकता है और उस के मन में सम्मान और सहयोग की भावना उत्पन्न कर सकता है. बहू को सिर्फ काम करने वाली मशीन न समझ कर परिवार का सदस्य माना जाए.

बहू के विचारों व भावनाओं को महत्त्व दिया जाए. उस से परिवार के हर फैसले में सलाह ली जाए, तो परिवार में सुखशांति बनी रहे और समृद्धि भी हो.

यदि सास घर के सारे काम बहू को न सौंप कर खुद भी कुछ काम करती रहे, तो सास का स्वास्थ्य तो बेहतर रहेगा ही, परिवार का वातावरण भी मधुर बना रहेगा.

दूसरी तरफ शादी के बाद लड़की के भी कुछ फर्ज हैं, जो उसे निभाने चाहिए. लड़की यह नहीं समझ पाती कि किसी भी सदस्य द्वारा समझाया जाना टोकाटाकी नहीं है. घर का थोड़ाबहुत काम भी उसे बोझ लगने लगता है.

उसे लगता है कि पति सिर्फ उस का है. वह किसी और सदस्य को समय देता है, तो वह उसे अपनी अपेक्षा समझती है. दूसरे शब्दों में ससुराल में अधिकार क्या हैं, यह तो उसे मालूम है पर कर्तव्यपालन को बोझ समझने लगती है.

ससुराल में बेटी जैसे अधिकार मिलें, यह तो जरूरी है पर किसी के टोकने पर वह यह भूल जाती है कि मायके में भी तो ऐसी परिस्थितियां आती थीं. डांट तो मायके में भी पड़ जाती थी. माना कि उस का ससुराल में किसी से (अपने बच्चों को छोड़ कर) खून का रिश्ता नहीं है पर इनसानियत और प्यार का रिश्ता तो है.

उसे भी इस सच को दिल से स्वीकार करना चाहिए कि थोड़ी सी मेहनत से सब का मन जीत कर वह सब को अपना बना सकती है. जौब पर जाने वाली लड़कियों को परिवार के साथ रहने का अधिक समय भले ही न मिलता हो, लेकिन समय निकाला तो जा सकता है और फिर परिवार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिए कुछ कर्तव्य तो उस के भी हैं.

परिवार वालों को स्नेह और सम्मान दे कर वह अपने पति के दिल को जीत सकती है.

वर्चस्व की लड़ाई से बचें

दरअसल, वर्चस्व की लड़ाई ही सासबहू के बीच टकराव पैदा करती है. किसी भी संयुक्त परिवार में सास और बहू ज्यादातर समय एकदूसरे के साथ व्यतीत करती हैं. उन के ऊपर ही घर के कामकाज की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में घर में अशांति का मुख्य कारण भी सास और बहू के कटु संबंध होते हैं.

आज टीवी पर अधिकतर धारावाहिक सासबहू के रिश्तों पर मिलते हैं. अधिकांश में दोनों में से कोई एक चालें चल रही होती है, कुछ में रिश्तों को व्यंग्यात्मक तरीके से पेश किया जाता है. विभिन्न सर्वेक्षणों व शोधों में यह बात सामने आई है कि संयुक्त परिवारों में तनाव का 60% कारण सासबहू के बीच का रिश्ता होता है.

जिन घरों में बहुत ही चाव से उन धारावाहिकों को देखा जाता है वहां विवाद ज्यादा होते हैं. वे घंटों उस पर डिस्कस भी करते हैं कि वह सास कितना गलत कर रही है या उस सीरियल की बहू कैसी शातिर है. तभी यह सास और बहू के मन में बैठ जाता है कि धारावाही के पात्रों की तरह ही दूसरी है और टीवी पर जाना जीवन में उतरने लगता है. जब बात खुद पर आती है तो हम भी वैसा ही करते हैं.

हम सभी किसी न किसी फिल्म या धारावाही के पात्रों से स्वयं को जुड़ा महसूस करते हैं और उस के जैसा ही बनना चाहते हैं. आप कैसी सास बनना पसंद करेंगी? ‘कुछ रंग प्यार के’ सीरियल की ईश्वरी देवी जैसी या फिर ‘बालिका वधू’ की दादीसा जैसी?

बहू का कौन सा किरदार आप को सूट करता है? आप सासबहू के किसी भी किरदार के रूप में ढलें, पर एक सवाल अपनेआप से जरूर करें कि क्या घर के किसी भी सदस्य को दुख पहुंचा कर आप खुश रह सकती हैं? क्या परिवार के सदस्यों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने से आप का जमीर आप को धिक्कारता नहीं? परिवार एक माला की तरह है और सदस्य मोती हैं. फिर क्या आप इस माला के बिखरने से खुश रह सकेंगी?

बहुओं के लिए जरूरी है कि वे बुजुर्गों के साथ कभी बहस न करें. किसी भी टकराव की स्थिति से बचें. अपनी बात उन के सामने जरूर रखें पर शांतिपूर्ण तरीके से.

इन सब से ऊपर लड़के की समझदारी भी जरूरी है. समझदारी एक अच्छे पति, बेटे और दामाद के रूप में.

मुंबई में रहने वाली वाणी का कहना है, ‘‘मैं तमिल परिवार से हूं और मेरी शादी एक पंजाबी परिवार में हुई है. मुझे सास का बहुत डर था. मेरी सहेली और रिश्तेदारों ने मुझे सास नाम से डरा दिया था. हमारी शादी अलग धर्म में हुई थी. रहनसहन, खानपान सब अलग था, लेकिन जितना मैं डर रही थी, उस का उलटा ही हुआ.

‘‘मेरी सास ने मुझे प्यार से सब कुछ बनाना सिखाया, हिंदी बोलना सिखाया. वे मुझे सास कम और दोस्त ज्यादा लगीं.’’

दिल्ली की मधु कहती हैं, ‘‘मैं सिर्फ 16 साल की उम्र में खुशीखुशी अपनी ससुराल आ गई. मेरे मन में किसी तरह का डर और पूर्वाग्रह नहीं था. मैं ने सोच रखा था कि कोई उलटा जवाब नहीं दूंगी. फिर कोई मुझ से नाराज क्यों होगा?

‘‘सासूजी वैसे तो बात बड़े प्यार से करती थीं, लेकिन मन ही मन न जाने क्यों उन्हें अपने बेटे के बदल जाने का डर था, जिस की वजह से वे मेरे हर काम में कोई न कोई कमी निकालती रहतीं. मैं कोई वादविवाद नहीं करती, फिर भी बात धीरेधीरे बढ़ने लगी.

‘‘सासूजी अब बाहर के लोगों के सामने भी मेरी बेइज्जती करने लगीं. वे हर समय मेरी बुराई करतीं. मेरी भी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी. मैं उन्हें पलट कर बातें सुनाने लगी. इन सब बातों से घर का वातावरण खराब होने लगा. पति हर समय तनाव में रहते. वे न तो मां को समझा पाते और न ही मुझ को.

‘‘इस बीच मेरी सास बीमार हुईं पर जब मैं ने उन की खूब सेवा की तो उन का मन मेरे प्रति बदल गया और वे मुझे प्यार करने लगीं. मुझे नहीं मालूम कि उन का मन परिवर्तन मेरी सेवा से हुआ या मेरी समझदारी से. महत्त्वपूर्ण यह है कि आज घर का माहौल शांत है.’’

इन 2 मामलों से बिलकुल अलग एक मामला है मोहिनी का. वे बताती हैं, ‘‘मेरी शादी के बाद से ही परेशानियों का दौर शुरू हो गया था. पूरे घर में सास और ननद का वर्चस्व था. कहने को तो ननद शादीशुदा थीं पर शुरू से ही मेरी काट करती रहतीं. मैं सासससुर और ननद के त्रिकोण में फंसी थी.

‘‘पति हमेशा चुप रहते. उन दोनों की कुटिल चालों से हमारे अलग होने तक की नौबत आ गई. फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि हालात ने करवट बदल ली. पति अब समझ गए हैं कि कमी कहां है.

‘‘ननद अपनी हरकतों के कारण मायके में ही है. सासूजी को भी अब मेरी उपयोगिता पता चल गई है. बेटी और बहू के बीच एक बहुत बारीक सी रेखा होती है. जरूरत सिर्फ उसे खत्म करने की होती है. पीछे मुड़ कर देखती हूं तो बहुत दुख होता है, क्योंकि जो गोल्डन पीरियड था वह खत्म हो गया था. फिर भी एक सुकून है कि चलो देर आए दुरुस्त आए.’’

पराई नहीं अपनी बेटी मानें

कुछ घरों में सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है जबकि कुछ घरों में हालात बहुत खराब होते हैं. कमी न मां में होती है न बहू में, कमी तो उन की समझ, उन के प्यार में होती है.

सवाल यह है कि आखिर सास बहू को पराया क्यों मानती है? कहने को अगर घर की बात है तो हम हमेशा यही सुनना पसंद करेंगे कि घर उस का है. लेकिन घर के साथ जिम्मेदारियां भी होती हैं.

वहीं दूसरी ओर कुछ बहुएं ऐसी भी होती हैं, जो सिर्फ अपने पति की या बच्चों की ही जिम्मेदारी उठाना चाहती हैं, सासससुर की नहीं. इसे घर संभालना नहीं कहते.

घर में तो सभी लोग होते हैं. सब के बारे में सोचना चाहिए जैसे वह अपने मायके में सब के लिए सोचती है.

वस्तुत: घर पूरे परिवार का होता है. हर सदस्य को अलगअलग अपनी जिम्मेदारियां उठानी चाहिए. घर को सिर्फ सास का कहना या बेटे और उस की पत्नी का कहना गलत होगा, क्योंकि घर में बाकी लोग भी तो रहते हैं. किसी एक इनसान से घर नहीं बनता. घर तो पूरे परिवार से बनता है.

छोटीछोटी बातों का ध्यान रखा जाए, तो परिवार का वातावरण सहज, सुखद एवं शांतिपूर्ण बन सकता है.

मांएं जो बनीं मिसाल

जुलाई, 2019 की बात है जब कौफी कैफे डे (सीसीडी) जैसी बड़ी कंपनी के मालिक वीजी सिद्धार्थ ने बिजनैस में नुकसान और कर्ज की वजह से आत्महत्या कर ली थी. मीडिया में उन का एक सुसाइड नोट भी मिला था, जिस में सिद्धार्थ एक प्रौफिटेबल बिजनैस मौडल बनाने में मिली असफलता के लिए माफी मांग रहे थे. लैटर में लिखा था कि वे प्राइवेट इक्विटी होल्डर्स व अन्य कर्जदाताओं का दबाव और इनकम टैक्स डिपार्टमैंट का उत्पीड़न बरदाश्त नहीं कर सकते हैं इसलिए आत्महत्या कर रहे हैं.

सिद्धार्थ की इस अचानक मौत के बाद उन की पत्नी मालविका टूट गई थीं. उन की हंसतीखेलती दुनिया उजड़ गई थी. एक तरफ पति की मौत का सदमा तो दूसरी तरफ करोड़ों के कर्ज में डूबी कंपनी. ऊपर से अपने दोनों बेटों के भविष्य की चिंता भी थी. मगर इन बुरी परिस्थितियों में भी मालविका हेगड़े ने हौसला नहीं खोया और पूरे आत्मबल के साथ मोरचा संभाला. कंपनी की बागडोर अपने हाथ में ली और पूरी तरह जुट गईं सब ठीक करने के प्रयास में. उन की मेहनत रंग लाई और 2 साल के अंदर ही कंपनी फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो गई.

31 मार्च, 2019 तक के आंकड़ों के अनुसार कैफे कौफी डे पर करीब क्व7 हजार करोड़ का कर्ज था. दिसंबर, 2020 में मालविका हेगड़े कैफे कौफी डे ऐंटरप्राइजेज लिमिटेड की सीईओ बनीं. जब मालविका ने कमान संभाली तब उन के सामने 4 चुनौतियां थीं- पति वीजी सिद्धार्थ की मौत से उबरना, परिवार को संभालना, कंपनी को कर्ज से उबारना और काम करने वाले हजारों कर्मचारियों के रोजगार को बचाना. विपरीत परिस्थितियों से जू?ाते हुए बहुत ही कम समय में उन्होंने सफलता और नारी शक्ति की अद्भुत मिसाल कायम की.

जो कहा वह कर दिखाया

एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च, 2021 तक सीसीडी कंपनी पर क्व1,779 करोड़ कर्ज रह गया था, जिस में क्व1,263 करोड़ का लौंग टर्म लोन और क्व5,16 करोड़ का शौर्ट टर्म कर्ज शामिल है. मौजूदा समय में सीसीडी भारत के 165 शहरों में 572 कैफे संचालित कर रहा है. 36,326 वैंडिंग मशीनों के साथ सीसीडी देश का सब से बड़ा कौफी सर्विस ब्रैंड है. इस तरह स्थिति में काफी सुधार आया और इस का श्रेय जाता है मालविका की कुशल प्रबंधन क्षमता और कंपनी हित में किए गए उन के कार्यों को.

कंपनी की सीईओ बनने के बाद मालविका ने 25 हजार कर्मियों को एक पत्र लिखा था, जो चर्चा में आया था. कर्मचारियों को सामूहिक तौर पर लिखे पत्र में उन्होंने कहा था कि वे कंपनी के भविष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं और कंपनी को बेहतर स्थिति में लाने के लिए मिल कर काम करेंगी. उन्होंने जो कहा वह कर दिखाया और न केवल कंपनी के कर्मचारियों के बीच विश्वास कायम किया बल्कि उद्योग जगत में एक सशक्त बिजनैस वूमन के तौर पर भी अपनी एक अलग पहचान बनाई. आज वे नारी शक्ति की ताजा उदाहरण बन गई हैं.

मेहनत पर विश्वास

नारी शक्ति का ऐसा ही एक और उदाहरण है उद्यमी राजश्री भगवान जाधव का. महाराष्ट्र के जिला रायगढ़ के मुंगोशी गांव की 39 वर्षीय राजश्री भगवान जाधव फोटोग्राफी का काम करने वाले अपने पति, 2 बेटियों और सास के साथ रह रही थीं. उन का संसार खुशीखुशी चल रहा था क्योंकि प्रशिक्षित नर्स राजश्री खुद भी एक प्राइवेट अस्पताल में काम करती थीं.

लेकिन कुछ समय बाद उसे छोड़ कर वे पंचायत के ‘21 बचत गट अभियान’ में कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन के रूप में शामिल हो गईं.

फिर एक समय ऐसा भी आया जब राजश्री के पति लंग्स कैंसर डायग्नोज हुआ. तब उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. परिवार और पति की बीमारी ने उन्हें अधिक पैसे कमाने पर मजबूर किया. आज राजश्री ने एक छोटा होटल खोल लिया है जिस में वे हर तरह के स्नैक्स, भुझिया, बड़ा पाव, मिसल आदि बनाती हैं.

इस के अलावा त्योहारों में मिठाई और फरसाण के पैकेट बना कर घरघर भी बेचती हैं. वे अब अपने परिवार की एक मात्र कमाने वाली सदस्य हैं जो परिवार और पति के इलाज के लिए पूरा दिन काम करती है.

महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

राजश्री भारी स्वर में कहती हैं कि नर्सिंग का काम छोड़ कर मैं ‘21 बचत गट अभियान’ के काम में जुट गई. ग्राम पंचायत ने मुझे ‘कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन’ की पोस्ट पर नियुक्त किया. मैं उस काम के साथ अपने पति की स्टूडियो में भी बैठने लगी. बचत गट के काम में मु?ो सप्ताह में एक दिन अलगअलग बचत गट में जाना पड़ता था. मेरा गांव ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत आता है.

उस दौरान अलीबाग की महाराष्ट्र ग्रामीण जिवोन्नती अभियान आणि ग्रामीण स्वयं रोजगार प्रशिक्षण संस्था मेरे गांव में फ्री ट्रेनिंग कोर्स महिलाओं को देने के लिए गांव में आई ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें. मैं ने 30 महिलाओं का बैच बना कर ज्वैलरी बनाने की ट्रेनिंग भी खुद ली और उन्हें भी दिलाई.

वहां डेढ़ महीने की ट्रेनिंग के बाद 2 साल तक सरकार के साथ काम करना पड़ता है जिस में उन के द्वारा दी गई ट्रेनिंग से महिलाएं कितना कमा रही है, उस की जांच सरकारी लोग करते हैं. मैं उन सभी महिलाओं को इकट्ठा कर राखी, कंठी और सजावट की वस्तुएं महिलाओं से बनवा कर पति के स्टूडियो के सामने बेचने लगी.

कोविड-19 ने कर दिया सब खत्म

राजश्री आगे कहती हैं कि कोविड की वजह से महिलाओं ने काम करना बंद कर दिया, लेकिन मैं फराल, कंठी और त्योहारों के अनुसार सामान बना कर घर घर बेचने लगी. कोविड-19 के समय भी मैं सामान ला कर गांव में बेचती थी. मेरी अच्छी कमाई होती थी क्योंकि शहर में सब बंद था. मेरे आसपास के 16 गांवों में कुछ भी मिलना मुश्किल हो गया था. उस दौरान मैं खानपान के साथसाथ सैनिटरी नैपकिन, जरूरत की सारी चीजें बेचने लगी थी. होल सेल में सामान ले कर गांवों में बेचती थी. मेरे पास थोड़ी खेती है जिस में मजदूरों को ले कर चावल उगाती हूं जो पूरा साल चलते हैं.

पति हुए कैंसर के शिकार

अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए राजश्री कहती हैं कि इसी बीच पति के लंग कैंसर का पता चला और मेरी दुनिया में सबकुछ बदल गया क्योंकि उन के इलाज पर खर्च बहुत अधिक होने लगा. इसलिए सीजन के अलावा भी काम करने की जरूरत पड़ी. मैं ने ब्याज पर बचत गट और बैंक से पैसा ले कर होटल का व्यवसाय शुरू किया. होटल का नाम मैं ने ‘स्नैक्स कार्नर’ रखा. सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक मैं इसे चलाती हूं. मेरे होटल में मैं बड़ा पाव, मिसल, समोसा, भुझिया, कांदा पोहा, चाय, कौफी आदि सब बनाती हूं.

रात का खाना बनाना अभी शुरू नहीं किया है क्योंकि जगह छोटी है. इस में अच्छी कमाई हो रही है जिस से मेरे पति का इलाज हो रहा है. लेकिन उन की दवा का खर्चा बहुत है. मेरे परिवार वाले भी मेरी सहायता करते हैं.

कीमोथेरैपी की वजह से वे बहुत कमजोर हो गए हैं. मेरी कमाई 40 हजार तक होती है जिस मे आधे से अधिक पैसा पति के इलाज पर खर्च हो जाते हैं. मेरे साथ मेरी भाभी भी काम में हाथ बंटाती है. रसोई का काम मैं करती हूं. मु?ो कर्जा भी चुकाना पड़ता है.

हुईं सम्मानित

राजश्री कहती हैं कि मेरे काम से प्रभावित हो कर राज्य सरकार द्वारा मु?ो आरएसईटीआई में प्रशिक्षण लेने और सभी महिलाओं द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट को बेचने में सहायता करने व कर्ज ले कर होटल चलाने के लिए 8 मार्च, 2022 को पुरस्कार दिया गया है.

समाज में इस तरह के मिसालों की कमी नहीं है जहां एक औरत ने पति के गुजर जाने या लाचार हो जाने के बाद न सिर्फ एक मां और पत्नी का सही अर्थों में दायित्व निभाया बल्कि अपनी आत्मशक्ति और काबिलीयत से सब को हतप्रभ भी कर दिया.

घर की आर्थिक जिम्मेदारी उठा कर ऐसी महिलाओं ने यह साबित कर दिखाया कि वे न सिर्फ घर और बच्चों को अच्छी तरह संभाल सकती हैं बल्कि जरूरत पड़ने पर बाहरी मोरचे की कमान भी अपने हाथों में लेने और कंपनी चलाने से भी नहीं हिचकतीं. इन्हें बस मौका चाहिए. ये अपना रास्ता खुद बना सकती हैं और अपने बल पर पूरे परिवार का बो?ा उठा सकती हैं. बस जरूरत होती है कुछ बातों का खयाल रखने की:

सही प्लानिंग

आप को अपने जीवन में कई तरह की प्लानिंग कर के चलना होगा. आप को अपने परिवार का खयाल रखना है, खुद को देखना है और साथ ही बिजनैस/नौकरी को भी पूरा समय देना है. घरपरिवार और काम के प्रति केवल समर्पण ही काफी नहीं है बल्कि अच्छे से सब कुछ मैनेज करना भी जरूरी होता है खासकर तब जब आप का सहयोग देने के लिए जीवनसाथी मौजूद नहीं है.

एक औरत जिस तरह घर को मैनेज करती है वैसे ही अपना काम भी हैंडल कर सकती है. बस जरूरत है थोड़ी गहराई से सोचने की. किस तरह आगे बढ़ा जा सकता है और किस तरह की समस्याएं आ सकती हैं उन पर पहले से ही विचार कर लेना और फिर तय दिशा में आगे बढ़ना ही प्रौपर प्लानिंग है. इस से आप का आत्मविश्वास बढ़ता है और आप के कंपीटीटर देखते रह जाते हैं.

लोगों से मिलनाजुलना जरूरी

बिजनैस में आगे बढ़ना है तो दूसरे लोगों से मिलनाजुलना जरूरी है. भले ही वे सीनियर कर्मचारी हों, मातहत हों, कंपीटीटर हों या फिर इस फील्ड से जुड़े आप के दोस्त अथवा परिचित. 4 लोगों से बात करने और समय बिताने से एक तो आप का इस फील्ड का ज्ञान बढ़ेगा, नईनई बातें जानने को मिलेंगी साथ ही समय आने पर ये लोग आप की हैल्प भी करने को तैयार होंगे. जितना ज्यादा आप के परिचय का दायरा होगा उतने ही ज्यादा आप के सफल होने के चांसेज बढ़ते हैं.

ज्ञान हासिल करना

ज्ञान हासिल करने की कोई उम्र नहीं होती और फिर जब आप एक जिम्मेदारी भरे पद पर होती हैं तब तो हर वक्त आप का सजग रहना, काम को अंजाम देने के नए तरीकों के बारे में जानना और मार्केट ट्रैंड्स के बारे में जानकारी रखना बहुत जरूरी होता है. काम कोई भी हो आप उसे बेहतर तरीके से तभी कर सकेंगी जब आप उस से जुड़ी तकनीकी जानकारी, नए इक्विपमैंट्स और रिसर्च आदि का ज्ञान रखेंगी. इस से आप कम समय में बेहतर प्रदर्शन कर के मार्केट में अपनी वैल्यू बढ़ा सकेंगी.

सब से बना कर रखना

अकसर लोग जाने अनजाने अपने दुश्मन बनाते रहते हैं मगर लौंग टर्म में यह असफलता और तकलीफ का कारण बन सकता है. खासकर जब आप ने इस फील्ड में नयानया काम शुरू किया हो तो आप कोई रिस्क नहीं ले सकतीं. इसलिए अपने काम पर फोकस करना और बेवजह के विवादों से दूर रहना सीखिए. जितना हो सके सब से बना कर रखिए भले ही वह आप का कंपीटीटर या क्रिटिक ही क्यों न हो.

कर्मचारियों को खुशी देना

मालविका की सफलता की कहानी में कहीं न कहीं मालविका द्वारा कर्मचारियों के दिल में विश्वास और जज्बा कायम करने का बढ़ा योगदान रहा है. कर्मचारियों की संतुष्टि और रिस्पैक्ट आप के आगे बढ़ने के लिए बहुत अहम है. आप बाधारहित काम कर सकें और खुद को बेहतर साबित कर सकें इस के लिए अपने नीचे काम करने वालों की परेशानियां सुनना और उन्हें सुल?ाना जरूरी है.

खराब परिस्थितियों में घबराना नहीं

परिस्थितियां कभी भी बदल सकती हैं. उतारचढ़ाव जीवन का नियम है. इसलिए कोई दिक्कत आने पर एकदम से घबरा जाना या यह सोचना कि आप महिला हैं आप से अब यह नहीं हो पाएगा, गलत है. खुद पर विश्वास रखें और सही रास्ते पर डट कर कदम बढ़ाएं, आप को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकेगा. अपना मनोबल कभी कमजोर न पड़ने दें. आत्मबल का परिचय दें कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा.

सब को साथ ले कर चलें

बिजनैस में आगे बढ़ने के लिए अपने साथ काम करने वालों को सम?ाना और उन के आइडियाज को महत्त्व देना जरूरी है. अपने कुलीग्स से बात करते रहें, उन्हें सम?ों और उन का काम के प्रति जोश और जज्बा बना रहे इस के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते रहें. तारीफ और प्रोत्साहन से आप के एंप्लोइज के काम करने की क्षमता बढ़ेगी.

गलतियों से सबक लें

बिजनैस में नई हों या पुरानी गलतियां तो होगीं ही. अब इन गलतियों से आप सीखती हैं या फिर घबरा जाती हैं यह ऐटीट्यूड आप के आगे का रास्ता बनाता या बिगाड़ता है. जो भी गलतियां हुई हैं उन पर विचार करें और आगे के लिए सबक लें. आप की गलतियां आप को सीखने, सुधरने और जीतने का मौका देती हैं.

सफल बिजनैस वूमन से प्रेरणा

डिजिटल युग में देश हो या विदेश आप कई ऐसी महिलाओं से प्रेरणा ले सकती हैं जिन्होंने कई परेशानियों का सामना कर सफलता पाई है. इन की सक्सैस स्टोरी, बायोग्राफी या औटोबायोग्राफी पढ़  कर आप को मोटिवेशन भी मिलेगा और अपना रास्ता बनाने में भी आसानी होगी.

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Social media आधी हकीकत-आधा फसाना

अंजूजब कहती है कि मु झे तो घर के कामों से फुरसत ही नहीं मिलती जो सोशल मीडिया पर रहूं, मु झे तो शौक ही नहीं है तो उस की सहेलियां रेनू और दीपा हंस रही होती हैं. उस समय तो दोनों चुप रहती हैं पर बाद में दोनों इस बात पर अंजू की जो छीछालेदर करती हैं, अंजू अगर सुन ले तो इन दोनों के सामने कभी भोली बनने का नाटक न करे.

इस समय यही तो हो रहा है, अंजू की बात पर दोनों अकेले में हंस रही हैं. दीपा कह रही है, ‘‘यार, यह किसे बेवकूफ सम झती है, हर समय फेसबुक पर औनलाइन दिखती है. इस से किसी की पोस्ट पर न लाइक का बटन दबता है, न कमैंट करती है, जौब यह करती नहीं, बच्चे बड़े हो गए हैं, पढ़ने का कोई शौक है नहीं, सारा दिन इस के नाम के आगे ग्रीन लाइट जलती रहती है. सोच रही हूं एक स्क्रीनशौट इसी का ले कर इसी को दिखा दूं किसी दिन. तभी इस  झूठ से हमारा पीछा छूटेगा. यार, इसे पता नहीं है कि अब किसी की लाइफ प्राइवेट नहीं रही.’’

रेनू हंसी, ‘‘सोशल मीडिया कमाल की चीज है, भाई. लोग अपनेआप को होशियार सम झ रहे होते हैं. उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन पर कैसी पैनी नजरें रखी जाती हैं. हीररां झा को ही ले लो,’’ इतना कहते ही दोनों फिर हंसहंस कर लोटपोट होती रहीं.

राज खुलने का भय

बात यह है कि रेनू और दीपा दोनों एक ही स्कूल में टीचर्स हैं इन्हीं के स्कूल में लाइब्रेरियन हैं दीपकजी और ड्राइंग टीचर हैं, सपनाजी. दोनों की उम्र 55 के आसपास है. दीपकजी जरा रंगीन तबीयत के इंसान हैं. महिलाओं से बात करना उन्हें खूब भाता है. महिला किसी भी उम्र की हो, कोई फर्क नहीं पड़ता, बस महिला होनी चाहिए. सपनाजी के दोनों बच्चे विदेश में हैं. यहां अपने रिटायर्ड पति के साथ रहती हैं. उम्र तो 55 हो गई पर दिल 20 पर ही अटक गया है.

एक दिन लाइब्रेरी में कोई बुक लेने गईं तो दीपकजी से ऐसे दिल मिला कि आज रेनू और दीपा जैसी शैतान, नटखट टीचर्स ने उन का नाम ही हीररां झा रख दिया है. इन की चोरी सब ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ही तो पकड़ी. अब सब लोग फेसबुक पर तो एकदूसरे के फ्रैंड्स हैं ही.

सपनाजी या दीपकजी बस कोई पोस्ट डाल दें, ऐसा मनोरंजन होता है सब का सारा दिन लोग स्कूल में दोनों की तरफ इशारे करते घूमते हैं. दोनों एकदूसरे की पोस्ट पर इतनी तारीफ भरे लंबेलंबे कमैंट करते हैं कि कुछ दिन तो लोगों ने हलके में लिया पर बात छिपी न रही, सब को सम झ आ गया कि कुछ तो है जिस की परदादारी है. अब तो यह हाल है कि रां झा ओह सौरी दीपकजी अगर एक पोस्ट मिले तो सब इंतजार करते हैं कि अभी देखते हैं. आज ही ओह सौरी सपनाजी क्या लिख कर  झंडे गाड़ेंगी. ऐसा लगता है कि बस लंबे कमैंट लिख कर एक दूसरे के गले में ही लटक जाएंगे किसी दिन.

अगर किसी दिन सपना हीर, यही नाम हो गया है अब इन का. कोई अपना पुराना फोटो डाल दें तो उफ, यह एडल्ट लव स्टोरी… रां झा दीपक के कमैंट पर सारा दिन शैतान जूनियर टीचर्स एकदूसरे को फोन कर के हंसती हैं. अब बेचारे इन दोनों अधेड़ आशिकों को सपने में भी उम्मीद नहीं होगी कि वे कितना बदनाम हो चुके हैं, दोनों अच्छेभले अपने रोमांस पर उम्र का परदा डाले चल रहे थे पर सोशल मीडिया ने सारे भेद खोल दिए.

बेवकूफ बनते लोग

अब बात सीमा की जो एक उभरती सिंगर है, अभी तक तो सोसाइटी और कालेज के प्रोग्राम में गागा कर अपना शौक पूरा कर रही थी पर उस की फ्रैंड नेहा उस से थोड़ी तेज है. नेहा भी सिगिंग में आगे बढ़ना चाहती है. दोनों के 1 ही बेटा है जो अभी छोटे हैं. दोनों के पति फुल सपोर्ट करते हैं. अचानक नेहा ने सीमा को बताया कि मशहूर गायक सुधीर वमास ने उसे मिलने के लिए बुलाया है तो सीमा का दिमाग घूम गया कि इसे कैसे बुला लिया?

यह भी तो मेरे जैसी ही है. इसे कैसे यह मौका मिला? उस ने पूछ ही लिया, ‘‘अरे, पर तु झे ये मिले कहां?’’

‘‘इंस्टाग्राम पर फौलो करती हूं.’’

‘‘तो इस से क्या हुआ? वह तो मैं भी

करती हूं.’’

‘‘बस वे धीरेधीरे मु झे पहचान गए.’’

सीमा को सम झ नहीं आया कि फौलो करने से क्या होता है. अब दोनों अच्छी सहेलियां हैं पर कंपीटिशन भी तो है, आगे भी तो बढ़ना है. अब सब नेहा ही क्यों बताए. सीमा ने घर जाकर सुधीर वर्मा को हर जगह खंगाल डाला, उन की हर पोस्ट पर नेहा के कमैंट्स दिखे. ओह, तो यह बात है. मैडम हर जगह उन्हें अच्छेअच्छे लंबे कमैंट्स कर के अपने बारे में बताती रही हैं. ओह, मैं कितनी बेवकूफ हूं उन का पेज बस लाइक कर के छोड़ दिया. उफ, चलो, अब भी क्या बिगड़ा है.

अभी शुरू कर देती हूं. फिर तो जहां सुधीर वर्मा, वहां सीमा. रियाज एक तरफ, लाइक्स और कमट्ंस एक तरफ. सुधीर वर्मा क्या, सीमा ने और भी सिंगर्स को फौलो करना शुरू कर दिया है. सारी ताकत उन की नजरों में आने के लिए  झोंक दी है. गाने का क्या है, गा तो लेती ही है.

कोई पूछे तो. कोई चांस तो दे. अब ये पैतरे भला नेहा से कैसे छिपे रहते. सीमा हर जगह दिख रही है, उसे भी औरों को फौलो करना होगा. दोनों आजकल काफी व्यस्त हैं.

नकली लोग नकली कमैंट्स

कालेज की कैंटीन में सुजाता उदास सा मुंह लटका कर बैठी थी. दोस्त रीनी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, बौयफ्रैंड भाग गया क्या?’’

‘‘बकवास मत कर.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘यार, मैं कितनी ही अच्छी पोएम फेसबुक पर पोस्ट कर दूं, मेरी पोस्ट को लाइक्स ज्यादा क्यों नहीं मिलते? मेरी कजिन रोमा कितना बेकार लिखती है, उसे कितनी वाहवाही मिलती है.’’

‘‘तु झे नहीं पता?’’

‘‘क्या?’’

‘‘वह अपने कितने फोटो मिलाती है पोएम के साथ, वह भी फिल्टर वाली. सीख कुछ, मूर्ख लड़की. ऐसे ही नहीं मिलता सबकुछ. कुछ अदाएं दिखाओ, अपने जलवे दिखाओ, लिखो चाहे बेकार पोएम पर अपने को दिखाओ. तुम्हारी कजिन को उस की पोएम पर नहीं, उस के नकली फोटो पर लाइक्स मिलते हैं.’’

सुजाता को बात सम झ आई. रीनी का कहा माना, अब वह खुश है.

आशिकी के फसाने

तो बात यह है कि सोशल मीडिया पर आप कितने ही अपनेआप को बुद्धिमान सम झ रहे हों, आप पर नजर रखने वाले आप से ज्यादा होशियार हैं. आप कभी भी बोर हो रहे हों, आप के पास बहुत टाइम हो तो आराम से सोशल मीडिया पर टाइम खराब कर सकते हैं. देखिए, लोग क्याक्या कर रहे हैं, कहीं जाना भी नहीं, ओमीक्रोन का टाइम है, सब से सेफ है सोशल मीडिया पर मनोरंजन करना. बस दूसरों को बैठ कर देखिए, पर अंजू की तरह यह कहने की गलती न कीजिए कि आप सोशल मीडिया पर नहीं रहते, सब को आप की प्रैजेंस का पता रहता है.

घर में बंद बैठ कर थोड़ा मनोरंजन करना आपका हक है. आराम से दूसरों के मामलों में टांग अड़ाइए. सोशल मीडिया बहुत काम की चीज है, जिस के बारे में पता करना हो, खंगाल लिए उसकी लाइफ को और फिर भोले बन कर आशिकी के उन फसानों का आनंद लीजिए जिन में हीर रां झा जैसे लोग एकदूसरे में डूबे हैं.

दोस्तों के साथ हंसी, मस्ती जरूर करें, बस आप के इस मनोरंजन से किसी को कोई नुकसान न पहुंचे, इस बात का ध्यान जरूर रखें.

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Back to Office : ऐसे बैठाएं तालमेल

कोरोना वायरस के कारण औफिस क्या बंद हुए औफिस फ्रैंड्स की आपसी बातचीत ही कम हो गई. अब सिर्फ काम के सिलसिले में ही बात होती थी. औफिस में जो ग्रुप मस्ती होती थी वह अब न तो जूम मीटिंग में थी और न ही मैसेज में वह बात थी. ऐसा एहसास हो रहा था जैसे हम अपनों से काफी दूर हो गए थे. घर से काम होने के कारण वर्कलोड भी काफी बढ़ गया था, जिस कारण औफिस फ्रैंड्स से दिन में कई बार बात जरूर होती थी, लेकिन वह बात सिर्फ काम तक ही सीमित रहती थी. न घूमनाफिरना और न वह मस्ती, हम सभी उसे मिस कर रहे थे. मन ही मन यही सोच रहे थे कि काश फिर से औफिस खुल जाएं ताकि हम वही पुरानी मस्ती फिर से कर सकें.

आखिर फिर से धीरेधीरे जीवन पटरी पर आने लगा और औफिस भी खुलने लगे. एक दिन जूम मीटिंग के जरीए बौस से पता चला कि अगले हफ्ते से औफिस खुल रहे हैं. यह खबर सुन कर ऐसा लगा कि फिर से हमें खुली हवा में सांस लेना का मौका मिल रहा है.

काम के साथसाथ हम अब अपने औफिस फ्रैंड्स के साथ मस्ती भरे पल भी बिता पाएंगे, जोकि वर्क फ्रौम होम में संभव नहीं था. ऐसे में जब फिर लौट रहे हैं औफिस के पुराने दिन तो आपस में ट्यूनिंग बैठाने के लिए फिर से दोहराएं कुछ चीजों को ताकि कुछ सालों की दूरी कुछ ही समय में फिर दूर हो सके. तो जानिए इस के लिए क्या करें:

एकदूसरे को गिफ्ट्स दें

गिफ्ट लेना किसे पसंद नहीं होता है. ऐसे में जब आप इतने लंबे समय के बाद औफिस जा रहे हैं तो मन में ऐक्साइटमैंट तो बहुत होगी ही क्योंकि इतने दिनों बाद औफिस को देखेंगे, औफिस फ्रैंड्स से मिलेंगे, उन के साथ बातें करेंगे. ऐसे में जब आप उन से मिलें तो उन्हें यह कह कर गिफ्ट दें कि यह तेरे बर्थडे का गिफ्ट है, जो मैं तुम्हें दूर रहने के कारण दे नहीं पाई थी.

इस से आप की औफिस दोस्त को एहसास होगा कि अभी भी आप को उस का खयाल है. इस से फिर दोबारा से ट्यूनिंग बैठाने में आसानी होगी या फिर आप उस की पसंद की चीज गिफ्ट में दे कर पुराने दिनों की याद को फिर से ताजा कर सकते हैं.

टी टाइम में करें मस्ती

वर्क फ्रौम होम के दौरान जिस टी टाइम को आप मिस कर रहे थे, अब उसे फिर से जी लेने का समय आ गया है क्योंकि औफिस जो खुल गया है. रामू चाय की दुकान पर औफिस वर्क से ले कर पर्सनल टौपिक्स जो शेयर होते थे. ऐसे में अब जब आप औफिस लौट रहे हैं, तो टी टाइम को ऐंजौय करना न भूलें. यह सोच कर टी टाइम को न छोड़ें कि घर में तो हम ने टी टाइम लेना ही छोड़ दिया था.

जान लें कि टी टाइम से न सिर्फ आप खुद को फ्रैश फील करेंगे बल्कि इस के बहाने औफिस दोस्तों के साथ फिर खुल कर बातचीत होगी, हंसीमजाक होगा, पुराने दिन फिर लौट आएंगे और यह टी टाइम आपस में बौंडिंग को स्ट्रौंग बनाने में मदद करेगा.

लंच टाइम में लंच भी मस्ती भी

घर में तो जब मन करा तब लंच कर लिया और यह लंच भी काम के साथसाथ एक टेबल पर या बैड पर अकेले बैठ कर कर लिया. जो न तो खाने का आनंद लेने दे रहा था और न ही इस ब्रेक में हम मस्ती कर पा रहे थे. अगर थोड़ा रिलैक्स करने का सोचा भी तो भी हाथ में फोन पर या तो फेसबुक देख रहे होते थे या फिर व्हाट्सऐप अथवा कुछ और खंगालने में लगे रहते थे जो औफिस के लंच टाइम से बिलकुल अलग था, जिसे हम घर में मिस करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.

लेकिन अब जब आप का औफिस खुल गया है तो लंच टाइम में पहले की तरह दोस्तों के साथ कुछ ही मिनटों में लंच कर के मस्ती के लिए कभी पास की मार्केट में निकल जाओ या फिर लंच ब्रेक में मस्ती भरे पल स्पैंड करो, पुरानी यादों को बातों से ताजा करो. इस मस्ती से आप फिर से पहले की तरह एकदूसरे से जुड़ पाएंगे.

औफिस के बाद आउटिंग

पहले जब आप का औफिस खत्म हो जाता था और उस के बाद आप कभी औफिस के दोस्तों के साथ खाने के लिए कभी पास की लोकल मार्केट या फिर शौपिंग करने चले जाते थे. याद है न आप को वे दिन. लेकिन बीच में वर्क फ्रौम होम के कारण इस सब पर ब्रेक सा लग गया था.

लेकिन अब जब दोबारा औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो औफिस वर्क के साथसाथ औफिस के बाद आउटिंग या फिर मस्ती जरूर करें. इस से एक तो औफिस के स्ट्रैस से छुटकारा मिलेगा, दूसरा आप अपने औफिस के फ्रैंड्स के साथ दिल खोल कर मस्ती भी कर पाएंगे.

बीचबीच में गौसिप

घर से जब हम काम कर रहे थे तो न तो काम का वह मजा आ रहा था क्योंकि बीचबीच में ऐंटरटेन करने वाले औफिस के दोस्त जो नहीं थे. साथ में बोरियत अलग थी. ऐसे में बैक टू औफिस आप को इस बोरियत से छुटकारा दिलाएगा क्योंकि अब काम के साथसाथ गौसिप, मस्ती, एकदूसरे की टांगखिंचाई जो होगी.

इसलिए खुद को रिफ्रैश करने के लिए काम के बीच में छोटेछोटे ब्रैक जरूर लें ताकि इस से काम के न्यू आइडियाज मिलने के साथसाथ आप थोड़ीथोड़ी देर में खुद को तरोताजा कर सकें क्योंकि सिर्फ और सिर्फ काम करते रहने से बोरियत होने के साथसाथ काम से इंटरैस्ट भी हटता है.

चटपटी बातों के लिए भी समय

वर्क फ्रौम होम जितना शुरू में अच्छा लग रहा था, उतना बाद में उस से ऊबने लगे. ऐसे में बैक टु औफिस इस बोरियत से तो आप को बाहर निकालेगा ही, साथ ही आप को औफिस के दोस्तों के साथ चटपटी बातों के लिए भी समय मिल जाएगा जैसे यार प्रिया छोटी ड्रैस में कितनी हौट लग रही है, देखो रोहन नेहा को इंप्रैस करने के लिए उस के आगेपीछे ही घूमता रहता है.

लग रहा है कि इस बार स्नेहा टारगेट को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक चली जाएगी, वगैरावगैरा. ऐसी बातें भले ही हमें शोभा नहीं देती हैं, लेकिन ऐसी बातें कर के मजा बहुत आता है.

रोमांस का भी मिलेगा मौका

अरे घर में बैठ कर काम करने से हम औफिस में रोमांस को काफी मिस करते थे. अब जब किसी को देख या मिलजुल ही नहीं रहे थे तो किसी पर क्रश होना तो बहुत दूर की बात थी. ऐसे में अब जब औफिस दोबारा से खुल गए हैं तो काम, मस्ती के साथसाथ रोमांस का भी फुल मजा ले सकेंगे जो आप में नई ऊर्जा का संचार करने का काम करेगा. आप जिसे पसंद कर रहे हैं उसे देख कर काम करने का मजा ही अलग होगा. भले ही यह मस्ती के लिए हो, लेकिन आप को ऐसा कर के खुशी बहुत मिलेगी.

नए लोगों को जानने का मौका

इस दौरान बहुत से लोगों ने औफिस छोड़ा होगा व उन के बदले बहुत से नए लोगों ने औफिस जौइन किया होगा, लेकिन वर्क फ्रौम होम के कारण आप की उन नए लोगों से बौंडिंग उतनी स्ट्रौंग नहीं बन पाई होगी, जितनी दूसरे लोगों से. ऐसे में बैक टू औफिस में आप को नए लोगों को जानने, उन्हें सम झने, उन से कुछ नया सीखने का भी मौका मिलेगा, साथ ही आप भी उन्हें काम के बेहतर टिप्स दे पाएंगे जो आप लोगों को एकदूसरे के करीब लाने का काम करेगा.

मोटिवेट करें

भले ही वर्क फ्रौम होम के कारण आप सभी काफी समय तक एकदूसरे से दूर रहे हैं, लेकिन अब जब दोबारा से औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो एकदूसरे को पहले की तरह मोटिवेट करना न भूलें. उन्हें काम में हैल्प भी करें, उन्हें गुड वर्क के लिए मोटिवेट भी करें. इस से आप सब के बीच दोबारा से स्ट्रौंग बौंडिंग बनेगी. यह आप के स्ट्रैस को भी कम करने का काम करेगा क्योंकि जब आप किसी को मोटिवेट करेंगे तो वह भी आप को प्रोत्साहित किए बिना नहीं रहेगा, जो आप की प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने में मददगार साबित होगा. इस तरह आप फिर से बैक टु औफिस में ट्यूनिंग बैठा सकते हैं.

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Entertainment: गैजेट्स बनाम परिवार

आज किशोर अपनों से ज्यादा गैजेट्स के इतने अधिक आदी हो गए हैं कि उन्हें उन के बगैर एक पल भी रहना गवारा नहीं, भले ही अपनों से दूर रहना पड़े या फिर उन की नाराजगी झेलनी पड़े. अब तो आलम यह है कि किशोर सुबह उठते ही भले ही मम्मीपापा, दादादादी, बहनभाई से गुडमौर्निंग न कहें पर स्मार्टफोन पर सभी दोस्तों को विशेज का मैसेज भेजे बिना चैन नहीं लेते.

यह व्याकुलता अगर अपनों के लिए हो तो अच्छी लगती है, लेकिन जब यह वर्चुअल दुनिया के प्रति होती है जो स्थायी नहीं तो ऐक्चुएलिटी में सही नहीं होती. इसलिए समय रहते गैजेट्स के सीमित इस्तेमाल को सीख लेना ही समझदारी होगी.

गैजेट्स परिवार की जगह नहीं ले सकते

स्मार्टफोन से नहीं अपनों से संतुष्टि

आज स्मार्टफोन किशोरों पर इतना अधिक हावी हो गया है कि भले ही वे घर से निकलते वक्त लंच रखना भूल जाएं, लेकिन स्मार्टफोन रखना नहीं भूलते, क्योंकि उन्हें उस पर घंटों चैट जो करनी होती है ताकि पलपल की न्यूज मिलती रहे और उन की खबर भी औरों तक पहुंचती रहे. इस के लिए ऐडवांस में ही नैट पैक डलवा लेते हैं ताकि एक घंटे का भी ब्रेक न लगे.

भले ही किशोर गैजेट्स से हर समय जुड़े रहते हैं, लेकिन इन से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल पाती जबकि अपनों संग अगर हम आराम से आधा घंटा भी बात कर लें, उन की सुनें अपने मन की कहें तो भले ही हम पूरा दिन भी उन से दूर रहें तब भी हम संतुष्ट रहते हैं, क्योंकि उन की कही प्यार भरी बातें हमारे मन में पूरे दिन गूंजती जो रहती हैं.

गैजेट्स भावनाहीन, अपनों से जुड़ीं भावनाएं

चाहे आज अपनों से जुड़ने के लिए ढेरों ऐप्स जैसे वाइबर, स्काइप, व्हाट्सऐप, फेसबुक मौजूद हैं जिन के माध्यम से जब हमारा मन करता है हम दूर बैठे अपने किसी फ्रैंड या रिश्तेदार से बात करते हैं. दुखी होते हैं तो अपना दर्द इमोटिकोन्स के माध्यम से दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं.

भले ही हम ने अपनी खुशी या दर्द इमोटिकोन्स से शेयर कर लिया, लेकिन इस से देखने वाले के मन में वे भाव पैदा नहीं होते जो हमारे अपने हमारी दर्द भरी आवाज को सुन कर या फिर हमारी आंखों की गहराई में झांक कर महसूस कर पाते हैं. उन्हें सामने देख कर हम में दोगुना उत्साह बढ़ जाता है, जो गैजेट्स से हरगिज संभव नहीं.

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इंटरनैट अविश्वसनीय, अपने विश्वसनीय

भले ही हम ने इंटरनैट को गुरु मान लिया है, क्योंकि उस के माध्यम से हमें गूगल पर सारी जानकारी मिल जाती है लेकिन उस पर बिखरी जानकारी इतनी होती है कि उस में से सच और झूठ में फर्क करना मुश्किल हो जाता है, जबकि अपनों से मिली जानकारी भले ही थोड़ी देर से हासिल हो लेकिन विश्वसनीय होती है. इसलिए इंटरनैट के मायाजाल से खुद को दूर रख कर अपने बंद दिमाग के ताले खोलें और कुछ क्रिएटिव सोच कर नया करने की कोशिश करें.

गैजेट से नहीं अपनों से ऐंटरटेनमैंट

अगर आप के किसी अपने का बर्थडे है और आप उस के इस दिन को खास बनाने के लिए अपने फोन से उसे कार्ड, विशेज पहुंचा रहे हैं तो भले ही आप खुद ऐसा कर के संतुष्ट हो जाएं, लेकिन जिसे विशेज भेजी हैं वह इस से कतई संतुष्ट नहीं होगा, जबकि अगर यह बर्थडे वह अपने परिवार संग मनाएगा तो उसे भरपूर मजा आएगा, क्योंकि न सिर्फ गिफ्ट्स मिलेंगे बल्कि ऐंटरटेनमैंट भी होगा व स्पैशल अटैंशन भी मिलेगी.

गैजेट में वन वे जबकि परिवार में टू वे कम्युनिकेशन

जब भी हम फेसबुक या व्हाट्सऐप पर किसी को मैसेज भेजते हैं तो जरूरी नहीं कि उस वक्त रिप्लाई आए ही और अगर आया भी तो थंब सिंबल या स्माइली बना कर भेज दी जबकि आप उस मैसेज पर खुल कर बात करने के मूड में होते हैं. ऐसे में आप सामने वाले को जबरदस्ती बात करने के लिए मजबूर भी नहीं कर पाएंगे.

परिवार में हम जब किसी टौपिक पर चर्चा करते हैं तो हमें उस पर गुड फीडबैक मिलती रहती है, जिस से हमें कम्युनिकेट करने में अच्छा लगता है और सामने होने के कारण फेस ऐक्सप्रैशंस से भी रूबरू हो जाते हैं.

गैजेट्स से बेचैनी, अपनों से करीबी का एहसास

गैजेट्स से थोड़ा दूर रहना भी हमें गवारा नहीं होता, हम बेचैन होने लगते हैं और हमारा सारा ध्यान उसी पर ही केंद्रित रहता है तभी तो जैसे ही हमारे हाथ में स्मार्टफोन आता है तो हमारे चेहरे की मायूसी खुशी में बदल जाती है और हम ऐसे रिऐक्ट करते हैं जैसे हमारा अपना कोई हम से बिछुड़ गया हो.

यहां तक कि फोन की बैटरी खत्म होने पर या उस में कोई प्रौब्लम आने पर हम फोन ठीक करवाने का विकल्प होने के बावजूद अपने पेरैंट्स से जिद कर के नया फोन ले लेते हैं. इस से साफ जाहिर है कि हम गैजेट्स से एक पल भी दूर नहीं रहना चाहते, उन से दूरी हम में बेचैनी पैदा करती है.

हैल्थ रिस्क जबकि परिवार संग फिट ही फिट

हरदम गैजेट्स पर व्यस्त रहने से जहां आंखों पर असर पड़ता है वहीं कानों में लीड लगाने से हमारी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है. यहां तक कि एक सर्वे से पता चला है कि अधिक समय तक स्मार्टफोन और लैपटौप पर बिजी रहने वाले किशोर तनावग्रस्त भी रहने लगते हैं.

जबकि परिवार के साथ यदि हम समय बिताते हैं तो उस से स्ट्रैस फ्री रहने के साथसाथ हमें ज्ञानवर्धक जानकारियां भी मिलती रहती हैं, जो हमारे भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं.

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भारी खर्च जबकि परिवार संग मुफ्त टौक

आज यदि हमें गैजेट्स के जरिए अपना ऐंटरटेनमैंट करना है तो उस के लिए रिचार्ज करवाना पड़ेगा या फिर नैट पैक डलवाना पड़ेगा, जिस का भार हमारी जेब पर पड़ेगा.

जबकि परिवार में बैठ कर अगर हम अंत्याक्षरी खेलें या फिर अपनी बातों से एकदूसरे को गुदगुदाएं तो उस के लिए पैसे नहीं बल्कि अपनों का साथ चाहिए, जिस से हम खुद को काफी रीफ्रैश भी महसूस करेंगे.

इसलिए समय रहते पलभर की खुशी देने वाले गैजेट्स से दूरी बना लें वरना ये एडिक्शन आप को कहीं का नहीं छोड़ेगा साथ ही यह भी मान कर चलें कि जो मजा परिवार संग है वह गैजेट्स संग नहीं.

कामयाबी की पहली शर्त

अगर आप को जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो रास्ता कितना भी कठिन हो आप उसे तय अवश्य कर सकती हैं. एक युवती तभी सफल हो सकती है जब उसे अपनी क्षमता के बारे में पूरी जानकारी हो और अपने काम पर पूरी तरह फोकस्ड हो.

पुरुषों के साथ उद्योग के क्षेत्र में काम करना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता जा रहा हो. अब और ज्यादा युवतियां अपना खुद का काम शुरू कर रही हैं. महिला हो या पुरुष दोनों की जर्नी शुरू में बराबर की होती है, जिस के लिए दोनों को परिवार का सहयोग जरूरी है. कई बार आप ऐसी परिस्थितियों में पड़ जाते हैं जब आप चाह कर भी वह काम नहीं कर पाते क्योंकि पिता या पत्नी या फिर भाईबहन विरोध करते हैं.

ऐसे में युवती को देखना है कि करना क्या है. कई ऐसी युवतियां हैं जिन्हें काम करने की आजादी तो है पर अगर समय से देर तक उन्हें काम करना पड़े तो उन के पति या बच्चे सहयोग नहीं देते. ऐसे में उन्हें सोचना पड़ता है कि आखिर उन के जीवन में क्या जरूरी है परिवार या कैरियर.

डबल इनकम

यही वजह है कि आज की बहुत युवतियां अच्छा कमाती हैं तो शादी नहीं करना चाहतीं जिम्मेदारी नहीं लेना चाहतीं. वे इन सुखों का त्याग अपने कैरियर के लिए करती हैं क्योंकि आज के जमाने में वित्तीय मजबूती उन के लिए परिवार से भी अधिक जरूरी है. इस का फैसला हर युवती को खुद लेना पड़ता है. डबल इनकम उन के जीवन में अच्छा सुख दे सकती है, यह उन्हें अपने पति और परिवार को समझेना पड़ता है. कई बार तो बात बन जाती है पर कई बार उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ती है.

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व्यवसायी परिवार से निकली और व्यवसायी परिवार में शादी हुई युवतियों को यह समस्या कम झेलनी पड़ती है क्योंकि ससुराल वाले समझेते हैं कि सफलता के लिए कितनी मेहनत करनी होती है और मां, सास, बहन या जेठानी साथ दे देते हैं.

अगर कोई युवती किसी अनूठे व्यवसाय में है जिस में कम महिलाएं हैं तो समस्या बढ़ जाती है. उसे पता रखना होता है कि कल क्या करना है और वह उसे करे.

हर कामकाजी युवती को हर उम्र में खूबसूरत दिखना चाहिए. जब भी समय मिले वह ‘स्पा’ में जाए. शारीरिक व मानसिक व्यायाम करे. तनावमुक्त और ऐनर्जेटिक रहे.

ऐसे मिलेगी सफलता

जो अपने खुद के बिजनैस में हैं वे अभी रिटायर्ड नहीं होते. हमेशा आगे काम करते जाना उद्देश्य होना चाहिए. नई जैनरेशन और पुरानी जैनरेशन के बीच तालमेल बैठा कर रखना जरूरी है. नई जैनरेशन हर काम को अलग तरीके से लेती है. पुरानी जेनरेशन की महिलाओं के नामों को धैर्य से सुनना चाहिए.

अपनी विचारधारा में परिवर्तन करना चाहिए ताकि मनमुटाव न हो क्योंकि कई बातें नई जैनरेशन की सही होती है जबकि कुछ बातें पुरानी. दोनों के मिश्रण से जो परिणाम सामने आता है वह हमेशा अच्छा ही होता है.

ध्यान रखें कि सफलता वह है जिस से व्यक्ति को खुशी मिले. जब भी कोई काम करें तो कैसे करना है और कितनी खुशी आप को उस से मिल रही है सोच सकेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी. सफलता एक दिन में कभी नहीं मिलती.

आज की युवतियां उद्योग के क्षेत्र में बहुत सफल हो सकती हैं क्योंकि आज की टैक्नोलौजी जैंडर नहीं पूछती.

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बदला है नजरिया

वैसे भी आज लोगों का नजरिया युवाओं के लिए बदला है. हमारे देश में अगर महिला औथौरिटी के साथ है तो उसे बहुत सम्मान मिलता है. यही वजह है कि भारत की राजनीति में भी ममता बनर्जी और प्रियंका गांधी वाड्रा जैसी महिलाएं काफी संख्या में हैं. आज उद्योगों में भी महिलाएं हैं बहुत बड़े घरानों की और नई पीढ़ी की बेटियां भी लगातार काम पर आ रही हैं.

आम महिला की तरह फैशन, ज्वैलरी, खाना सब पसंद करें. अपना फैमिनिज्म न छोड़ें. संगीत सुनें और किताबें अवश्य पढ़ें. पति और बच्चों के साथ समय अवश्य बिताएं. सासससुर और अपने मांबाप की बराबर देखभाल भी करें. 24 घंटे काम करना सफलता की पहली शर्त है.

बौयफ्रैंड डैडी

कृति औफिस में काम कर रहे अपने पिता को जबतब फोन कर देती है. कभी किसी रेस्तरां में चलने, तो कभी किसी नई फिल्म के लिए फ्रैंड के घर जाने या किसी पार्टी में जाने के लिए. कृति हर जगह अपने डैडी को ले जाना पसंद करती है. इसलिए नहीं कि उस के डैडी बाकी फ्रैंड्स के पिताओं की तुलना में यंग हैं बल्कि इसलिए क्योंकि उसे अपने डैडी की कंपनी काफी पसंद है. कृति के पिता न सिर्फ अपनी इकलौती बेटी की जरूरतों का खयाल रखते हैं बल्कि उस की हर छोटी से बड़ी बात भी उस के बोलने से पहले ही सम  झ जाते हैं.

दरअसल, कृति के पिता चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, अपनी प्यारी बिटिया के लिए हमेशा फ्री रहते हैं. यही वजह है कि स्कूल के टीचर्स से ले कर कृति के फ्रैंड्स तक सब कृति के पिता की मिसाल देते हैं.

बेटी-पिता की दोस्ती

एक वक्त था जब बेटियों को घर की इज्जत मान कर उन्हें पाबंदियों में रखा जाता था. पहननेओढ़ने से ले कर उन की हर चीज पर नजर रखी जाती थी. लेकिन अब फादर काफी बदल गए हैं. वे बेटियों पर लगाम लगाने के बजाय उन की हर इच्छा को अपनी इच्छा सम  झ कर पूरी करते हैं. फिर चाहे बात कपड़ों की हो अथवा घूमने की. बदलते वक्त के साथ अब यह प्यार और ज्यादा गहरा हो चला है.

बेटियों को मिलने लगी है स्पेस

ऐसी नहीं है कि पिता हर वक्त बेटियों पर चिपके ही रहते हैं बल्कि अब बेटियां ही पिता के साथ वक्त बिताना पसंद करने लगी हैं. कृति के स्कूल में कई दोस्त ऐसे भी हैं जो कृति को अकसर चिढ़ाते हैं कि देखों कृति आज अपने बौयफ्रैंड के साथ आई है. लेकिन बजाय इस बात पर चिढ़ने के कृति इसे मजाक के रूप में लेती है और फख्र से सब के सामने बोलती है हां मेरे पापा मेरे बौयफ्रैंड हैं. किसी को कोई दिक्कत? कृति का यह रूप देख कर हरकोई मुसकराए बिना नहीं रह पाता.

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कुछ अलग है यह रिश्ता

पापाबेटी का रिश्ता अलग होता है. कुछ खट्टा होता है तो कुछ मीठा है. कभी बेशुमार प्यार होता है तो कभी खटपट भी होती है. बदलते वक्त के साथ मातापिता में काफी बदलाव आया है. ऐसा नहीं है कि उन की मनमरजियां पूरी कर के वे उन्हें बिगाड़ रहे हैं बल्कि आजकल मातापिता बच्चों के साथ कदमताल करते हुए चल रहे हैं. एक समय था जब मातापिता में जैनरेशन गैप आ जाता था, लेकिन समय के साथ मातापिता ने खुद को काफी हाइटैक कर लिया है. यही वजह है कि बच्चे चाह कर भी मातापिता को नजरअंदाज नहीं कर पाते.

ऐसा नहीं है कि बच्चे मातापिता को कहीं ले कर नहीं जाना चाहते या फिर बच्चे सिर्फ स्कूल मीटिंग तक ही मातापिता को सीमित रखना चाहते हैं बल्कि बेटियां पिता की कंपनी को बखूबी ऐंजौय करती हैं पार्टियों में कृति अकसर अपने पिता के साथ डांस करती नजर आ जाती है. पिता के साथ खिलखिलाती है.

जब रिश्ता न हो अच्छा

कई मातापिता बच्चों पर पाबंदी लगा देते हैं. उन्हें कई आनेजाने नहीं देते, लेकिन ऐसा करने से न सिर्फ बच्चों के विकास पर फर्क पड़ता है बल्कि मातापिता बच्चों का नजरिया भी बदलने लगता है. टीनएज ऐसी उम्र होती है जिस में बच्चे अकसर मातापिता को गलत सम  झने लगते हैं. उन्हें अपना दुश्मन मान बैठते हैं, अत: बच्चों के हमदर्द बनें. उन से उन की तकलीफ पूछें क्योंकि इस ऐज में बच्चे अकसर विद्रोही बन जाते हैं. उन्हें प्यार से समझाएं कि उन के लिए क्या गलत है और क्या सही. उन्हें घुमाने ले जाएं.

हो सकता है कि आप के पास वक्त की कमी हो, लेकिन बच्चों को समय की जरूरत होती है. छुट्टी के दिनों घुमाने ले जाएं, फिल्म दिखाएं, बाहर खाना खिलाएं. इस से धीरेधीरे आप को रिश्ता भी मधुर हो जाएगा.

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जब पत्नी हो कमाऊ

आजकल के विवाह विज्ञापनों से पता चलता है कि नौजवान कमाऊ पत्नी ही चाहते हैं. ऐसे लोग पतिपत्नी की कमाई से शादी के बाद जल्दी साधनसंपन्न होना चाहते हैं. अगर कमाऊ लड़की को शादी करने के बाद अपने पति के परिवार के सदस्यों के साथ रहना पड़े तो संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के विचार और धारणाएं अलगअलग होने की वजह से उस को नए माहौल में ढलना पड़ता है. वह स्वावलंबी होने के साथसाथ अगर स्वतंत्रतापसंद होगी, तो उसे जीवन में नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. कुछ परिवारों में सभी कमाऊ सदस्य अपनीअपनी कमाई घर के मुखिया को सौंपते हैं. मुखिया घरेलू खर्च को वहन करता है. ऐसी स्थिति में कमाऊ नववधू को भी अपनी पूरी कमाई घर के मुखिया को सौंपनी पड़ेगी. लेकिन स्वतंत्र स्वभाव वाली युवती ऐसा नहीं करना चाहेगी. उस अवस्था में नववधू और परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव पैदा होगा. पति और पत्नी के बीच मनमुटाव भी हो सकता है, जो उन के जीवन में जहर घोल देगा. ऐसे जहर को विवाहविच्छेद में परिवर्तित होते देखा गया है.

क्या करे पति

अगर परिवार वाले अपनी कमाऊ बहू से उस की कमाई नहीं लेते तो कमाऊ नववधू खुश रहती है और स्वतंत्ररूप से अपने दोस्तों के साथ घूमती है. अगर पतिपत्नी के विचारों में समन्वय होता है तब तक जीवन की गाड़ी ठीक चलती है, लेकिन अगर कहीं पति अपनी पत्नी को शक की निगाह से देखने लगे तो समस्या गंभीर बन जाती है. शादी के पहले कोई लड़का अपनी होने वाली कमाऊ पत्नी से नहीं पूछता कि वह अपनी कमाई उसे देगी या नहीं. अगर पूछ ले तो शादी के बाद कोई समस्या खड़ी न हो. एक प्राचार्य ने एक लैक्चरर से शादी की. प्राचार्य की इतनी कमाई थी कि घर का खर्च आराम से चलता था. ऐसी स्थिति में लैक्चरर पत्नी ने अपनी कमाई अपने पति को नहीं दी और कहा कि घर का खर्च तो आराम से चल ही रहा है. धीरेधीरे प्राचार्य को शक होने लगा कि उस की पत्नी अपने साथियों को खिलानेपिलाने में खर्च कर रही है और उसे एक नया पैसा नहीं दे रही है. अत: धीरेधीरे मनमुटाव ने विकराल रूप धारण कर लिया और उन दोनों में विवाहविच्छेद हो गया.

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ऐसा भी होता है

कुछ गुलछर्रे उड़ाने के लिए ही कमाऊ पत्नी चाहते हैं. ऐसे लड़के अपनी कमाई और अपनी बीवी की कमाई को मिला कर ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहते हैं. शादी के पहले ऐसे लड़कों का पता नहीं चलता. लेकिन शादी के बाद वे गुल खिलाने लगते हैं. कई बार तो अपनी बीवी की कमाई भी उन के लिए कम पड़ने लगती है. पतिपत्नी के बीच पैसों के लिए झगड़ा होने लगता है. कुछ अधिक संपन्न लड़कियां स्त्रीशासित परिवार बनाने के लिए अपने से कमाई में कमजोर पर प्रसिद्ध पुरुषों को उन की पत्नी से तलाक दिला कर शादियां करती हैं ताकि ऐसा पुरुष उन का जीवन भर कहना मानता रहे. ऐसी लड़कियां दकियानूसी परिवार के सदस्यों के साथ समझौता नहीं कर सकतीं.

होना क्या चाहिए

कमाऊ बहू या तो परिवार के सदस्यों की भावनाओं से समझौता करे या शांति से पतिपत्नी अपने परिवार से अलग रहें. इतना ही नहीं पुरुषशासित समाज में जहां पुरुषों की चलती है वहां कमाऊ बहू नाराज रहेगी इसलिए समाज के बदलते आयाम में कमाऊ बहू को घर के सभी आर्थिक खर्चों में राय देने का अधिकार होना चाहिए. आजकल पति और पत्नी को समान अधिकार है, इसलिए दोनों को अपने परिवार के माहौल में मिलजुल कर रहना चाहिए अन्यथा पारिवारिक परिवेश में अशांति रहेगी. 

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रूठों को मनाए Sorry

सीमा उदास बैठी थी. तभी उस के पति का फोन आया और उन्होंने उसे ‘सौरी’ कहा. सीमा का गुस्सा एक मिनट में शांत हो गया. दरअसल, सुबह सीमा का अपने पति से किसी बात पर झगड़ा हो गया था. गलती सीमा की नहीं थी, इसलिए वह उदास थी. लड़ाईझगड़े हर रिश्ते में होते हैं पर सौरी बोल कर उस झगड़े को खत्म कर के रिश्तों में आई कड़वाहट दूर की जा सकती है. यह इतनी छोटी सी बात है. लेकिन बच्चे तो क्या, बड़ों की समझ में भी यह बात न जाने क्यों नहीं आती.

हर रिश्ते में कभी न कभी मतभेद होता है. अच्छा और बुरा दोनों तरह का समय देखना पड़ता है. कभीकभी रिश्तों में अहंकार हावी हो जाता है और दिन में हुआ विवाद रात में खामोशी की चादर बन कर पसर जाता है. अपने साथी की पीड़ा और उस से नाराजगी के बाद जीवन नरक लगने लगता है. फिर हालात ऐसे हो जाते हैं कि आप समझ नहीं पाते कि सौरी बोलें तो किस मुंह से. पर सौरी बोलने का सही तरीका आप के जीवन में आई कठिनाई और मुसीबत को काफी हद तक दूर कर रिश्तों में आई कड़वाहट को कम कर सकता है. यह तरीका हर किसी को नहीं आता. यह भी एक हुनर है. जब आप अपने रिश्तों के प्रति सतर्क नहीं होते और हमेशा अपनी गलतियों को नजरअंदाज करते रहते हैं, तभी हालात बिगड़ते हैं. आप इस बात से डरे रहते हैं कि आप का सौरी बोलना इस बात को साबित कर देगा कि आप ने गलतियां की हैं. यही बात कई लोग पसंद नहीं करते. अगर आप सौरी नहीं कहना चाहते तो आप के पास और भी तरीके हैं यह जताने कि आप अपने बरताव और अपने कहे शब्दों के लिए कितने दुखी हैं.

कैसे कहें सौरी

शुरुआत ऐसे शब्दों से करें जिन से आप के जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को यह लगे कि आप उस से अपने बरताव के लिए वाकई बहुत शर्मिंदा हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि लोग आपस में हो रहे विवाद या बहस को खत्म करने के लिए वैसे ही सौरी बोल देते हैं. लेकिन उन्हें अपने किए पर कोई भी पश्चात्ताप नहीं होता. अगर आप सच में अपने बरताव के लिए माफी मांग रहे हैं तो यह जरूर तय कर लें कि आप में अपनेआप को बदलने की इच्छा है. दूसरी बात यह है कि आप सौरी बोल कर अपनी सारी गलतियों को स्वीकार रहे हैं न कि सफाई दे कर अपने बरताव के लिए बहस कर रहे हैं. ये सारी बातें आप के साथी को यह एहसास कराएंगी कि आप सच में अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा हैं और उन सब को छोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं. बीती बातों को भूल कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं.

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कई लोगों को सौरी बोलने में काफी असहजता महसूस होती है तो कई लोग सौरी बोलने से कतराते हैं. लेकिन सौरी कह कर आप न केवल मन का बोझ हलका करते हैं, बल्कि सामने वाले व्यक्ति के मन की पीड़ा को भी दूर कर देते हैं. इस के दूरगामी नतीजे सामने आते हैं. आप किसी भी गलती के लिए सौरी बोल कर उसे बड़ी बात बनने से रोक सकते हैं. सौरी एक ऐसा शब्द है, जिसे बोलने से टूट रहे रिश्ते को आप न केवल बचाते हैं, बल्कि उस से और भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. फिर धीरेधीरे पुरानी बातें खत्म हो जाती हैं.

भेंट भी दें

सौरी बोलने के साथ आप अपने साथी को फूल या जो भी उन्हें पसंद हो, वह भेंट कीजिए. अगर डांस करना पसंद है तो उन्हें बाहर डांस के लिए ले जाइए और डांस करतेकरते उन्हें सौरी बोल दीजिए. कौफी हाउस या रेस्तरां में बैठ कर एक नई पहल करते हुए भी अपने किए पर खेद जता सकते हैं. जिस ने भी झगड़ा शुरू किया है या झगड़े की कोई भी वजह रही हो, उस पर कभी तर्कवितर्क नहीं करना चाहिए. पीछे मुड़ कर देखने का कोई फायदा भी नहीं है. आप यह तय कर लें कि आप सच में खेद महसूस कर रहे हैं. तय कर लीजिए कि आप केवल सामने वाले को खुश करने के लिए उसे सौरी नहीं बोल रहे. अपने पार्टनर की भावनाओं की कद्र करें और उन्हें तकलीफ देने की कोशिश न करें. अगर झगड़ा बहुत बढ़ गया है तो थोड़ी देर के लिए उन्हें अकेला छोड़ दें. उन्हें काल कर के या एसएमएस कर के परेशान न करें. 1-2 दिन इंतजार करें, फिर सारी बातें भुला कर अपना और अपने साथी का झगड़ा वहीं खत्म करें. अपनी गलती मान लेना सब से बड़ी बात है. इस से आप का और दुखी साथी का मन निर्मल हो जाता है. इसलिए जहां कहीं भी यह लगे कि आप गलत हैं, अपना जीवनसाथी हो या दफ्तर का साथी या फिर कोई भी रिश्तेदार, उसे सौरी बोल कर गिलेशिकवे दूर कर लीजिए. देर मत कीजिए वरना गांठें बढ़ती जाएंगी. सच मानिए यह सौरी बोलना अपनेआप में जादू से कम नहीं.

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11 टिप्स: रिलेशनशप बनाएं बेहतर

सब से पहले बात करें पारिवारिक रिश्तों की जो हमें विरासत में मिलते हैं और किसी पूंजी से कम नहीं होते. चलिए हम आप को बताते हैं वे कुछ तरीके जिनसे आप बना सकते हैं अपने पारिवारिक रिश्तों को मजबूत:

1. प्रपंच छोड़ें

प्रपंच बड़ा चटपटा शब्द है. लोग इसे चटखारे ले ले कर इस्तेमाल करते हैं. मसलन, बहू के भाई ने इंटरकास्ट मैरिज कर ली. बस फिर तो बहू का ससुराल के लोगों से नजरें मिलाना मुश्किल हो गया. सासूमां अपने दिए संस्कारों की मिसाल देदे कर बहू के मायके के लोगों की धज्जियां उड़ाने में मशगूल हो गईं.

क्यों, भई इसे प्रपंच का मुद्दा बनाने की क्या जरूरत है? इंटरकास्ट मैरिज कोई गुनाह तो नहीं है. हां, यह बात अलग है कि आप के समाज वाले इसे पचा नहीं सकते. लेकिन बहू तो आप के ही घर की है. उस के सुखदुख में शरीक होना आप का कर्तव्य है, जिस को आप प्रपंच में उड़ा रही हैं. आप को क्या लगता है, प्रपंच करने से आप खुद को दूसरों की नजर में महान बना लेते हैं और सामने वाले को दूसरों की नजरों से गिरा देते हैं. नहीं इस से आप की ही साख पर असर पड़ता है. आप के ही परिवार का मजाक बनता है, जिस में आप खुद भी शामिल होते हैं. इसलिए नए वर्ष में तय करिए कि इस रोग से खुद को मुक्त करेंगे और दूसरों को भी सलाह देंगे.

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2. अपना उत्तरदायित्व समझें

उत्तरदायित्व का मतलब सिर्फ मातापिता की सेवा करना ही नहीं, बल्कि अपने बच्चों के प्रति भी आप के कुछ उत्तरदायित्व होते हैं. आजकल के मातापिता आधुनिकता की चादर में लिपटे हुए हैं. बच्चों को पैदा करने और उन्हें सुखसुविधा देने को ही वे अपनी जिम्मेदारी मानते हैं. लेकिन इस से ज्यादा वे अपनी पर्सनल लाइफ को ही महत्त्व देते हैं. इस स्थिति में यही कहा जाएगा कि आप एक आदर्श मातापिता नहीं हैं. लेकिन इस नए वर्ष में आप भी आदर्श होने का तमगा पा सकते हैं यदि आप अपने उत्तरदायित्वों को पूरी शिद्दत से निभाएं.

3. झूठ का न लें सहारा

अकसर देखा गया है कि अपनी जिम्मेदारियों से बचने, अपनी साख बढ़ाने या फिर अपनी गलती छिपाने के लिए लोग झूठ का सहारा लेते हैं. संयुक्त परिवार में झूठ की दरारें ज्यादा देखने को मिलती हैं, क्योंकि एकदूसरे से खुद को बेहतर साबित करने की प्रतिस्पर्धा में लोगों से गलतियां भी होती हैं. लेकिन इन्हें नकारात्मक रूप से लेने की जगह सकारात्मक रूप से लेना चाहिए. जब आप ऐसी सोच रखेंगे तो झूठ बोलने का सवाल ही नहीं उठता. इस वर्ष सोच में सकारात्मकता ले कर आएं. इस से पारिवारिक रिश्तों के साथ आप का व्यक्तित्व भी सुधर जाएगा.

4. आर्थिक मनमुटाव से बचें

आधुनिकता के जमाने में लोगों ने रिश्तों को भी पैसों से तराजू में तोलना शुरू कर दिया है. रिश्तेदारियों में अकसर समारोह के नाम पर धन लूटने का रिवाज है. शादी जैसे समारोह को ही ले लीजिए. यहां शगुन के रूप में लिफाफे देने और लेने का रिवाज है. इन लिफाफों में पैसे रख कर रिश्तेदारों को दिए जाते हैं. जो जितने पैसे देता है उसे भी उतने ही पैसे लौटा कर व्यवहार पूरा किया जाता है. लेकिन ऐसे रिश्तों का कोई फायदा नहीं जो पैसों के आधार पर बनतेबिगड़ते हैं. इस वर्ष तय कीजिए कि रिश्तों में आर्थिक मनमुटाव की स्थिति से बचेंगे, रिश्तों को भावनाओं से मजबूत बनाएंगे.

5. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लेख हमारे देश के संविधान में भी किया गया है, लेकिन परिवार के संविधान में यह हक कुछ लोगों को ही हासिल होता है, जो बेहद गलत है. अपनी बात कहने का हक हर किसी को देना चाहिए. कई बार हम सामने वाले की बात नहीं सुनते या उसे दबाने की कोशिश करते हैं अपने सीधेपन के कारण वह दब भी जाता है, लेकिन नुकसान किस का होता है? आप का, वह ऐसे कि यदि वह आप को सही सलाह भी दे रहा होता है, तो आप उस की नहीं सुनते और अपना ही राग अलापते रहते हैं. ऐसे में सही और गलत का अंतर आप कभी नहीं समझ सकते. इसलिए इस वर्ष से तय करें कि घर में पुरुष हो या महिला, छोटा हो या बड़ा हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जाएगी.

6. सामाजिक रिश्ते

संतुलित और सुखद जिंदगी जीने के लिए पारिवारिक रिश्तों के साथसाथ सामाजिक रिश्तों को भी  मजबूत बनाना जरूरी है. आइए हम आप को बताते हैं सामाजिक रिश्तों को बेहतर बनाने के 5 तरीके

7. ईगो का करें त्याग

ईगो बेहद छोटा लेकिन बेहद खतरनाक शब्द है. ईगो मनुष्य पर तब हावी होता है जब वह अपने आगे सामने वाले को कुछ भी नहीं समझना चाहता. उसे दुख पहुंचाना चाहता हो या फिर उस का आत्मविश्वास कम करने की इच्छा रखता हो. अकसर दफ्तरों में साथ काम करने वाले साथियों के बीच ईगो की दीवार तनी रहती है. इस चक्कर में कई बार वे ऐसे कदम उठा लेते हैं, जो उन के व्यक्तित्व पर दाग लगा देते हैं या कई बार वे सामने वाले को काफी हद तक नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो जाते हैं. लेकिन क्या ईगो आप को किसी भी स्तर पर ऊंचा उठा सकता है? शायद नहीं यह हमेशा आप से गलत काम ही करवाता है. आप को खराब मनुष्य की श्रेणी में लाता है, तो फिर ऐसे ईगो का क्या लाभ जो आप को फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचाता हो? इस वर्ष ठान लीजिए की ईगो का नामोनिशान अपने व्यक्तित्व पर से मिटा देंगे और दूसरों का बुरा करने की जगह अपने व्यक्तित्व को निखारने में समय खर्च करेंगे.

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8. मददगार बनें

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और हमेशा से समूह में रहता चला आया है. इस समूह में कई लोग उस के जानकार होते हैं तो कई अनजान भी. लेकिन मदद एक ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ती है. किसी की तकलीफ में उस का साथ देना या उस की हर संभव मदद करना एक मनुष्य होने के नाते आप का कर्तव्य है.

9. पुण्य नहीं कर्तव्य समझें

धार्मिक ग्रंथों में पुण्य कमाने का बड़ा व्याख्यान है. लोग किसी की मदद सिर्फ इस लालच में करते हैं कि उन्हें इस के बदले में पुण्य कमाने का मौका मिलेगा. लेकिन जहां उन्हें पुण्य कमाने का जरीया नजर नहीं आता वहां वे घास भी नहीं डालते. कहते हैं भूखे और प्यासे आदमी को खाना खिलाने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसे कमाने के लिए लाखों रुपए उड़ा कर लोग भंडारों का आयोजन करते हैं. लेकिन दूसरी तरफ ऐसे ही लोग राह में मिलने वाले गरीब भूखे बच्चे को 2 रोटी देने की जगह दुतकार देते हैं. जबकि किसी भूखेप्यासे को खिलाना पुण्य नहीं बल्कि आप का कर्तव्य है. इस तरह धर्म के नाम पर या उस का सहारा ले कर किसी विशेष दिन का इंतजार कर के कोई कार्य करने की जगह जरूरतमंदों को देखते ही उन्हें सहारा दें और इसे अपना कर्तव्य समझें. तो इस वर्ष प्रतिज्ञा लें कि काम को पुण्य नहीं, बल्कि कर्तव्य समझ कर करेंगे.

10. खुल कर सोचें बड़ा सोचें

इस वर्ष अपनी सोच का विस्तार करें. ऐसा करने पर आप पाएंगे कि आप से ज्यादा संतुष्ट और चिंतामुक्त मनुष्य और कोई नहीं है. ऐसे कई लोग आप को अपने आसपास मिल जाएंगे जो अपना वक्त सिर्फ दूसरों के बारे में सोचने में जाया कर देते हैं. उन्हें हर वक्त यही लगता है कि उन के लिए कोई गलत कर रहा है या कह रहा है. लेकिन जरा सोचें, क्या इस भागतीदौड़ती दुनिया में किसी के पास दूसरे के लिए सोचनेसमझने का समय है? नहीं है. इसलिए आप भी अपने बारे में सोचें और किसी का नुकसान न करते हुए अपने फायदे का काम करें.

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11. सम्मान करें और सम्मान पाएं

कई लोग जब किसी बड़े स्तर पर पहुंच जाते हैं तो वे हमेशा अपने से छोटे स्तर पर खड़े लोगों को हिकारत की नजर से देखने लगते हैं. अकसर दफ्तरों में ऐसा होता है कि खुद को सीनियर कहलवाने की जिद में लोग अपने से नीचे ओहदे वालों का शोषण और अपमान करना शुरू कर देते हैं. लेकिन आप ने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि कीचड़ पर पत्थर फेंको तो खुद पर भी कीचड़ उछल कर आता है. उसी तरह अपमान करने वाले को भी अपमान ही मिलता है. इसलिए इस वर्ष तय कर लीजिए कि हर स्थिति व परिस्थिति में आप सभी से सम्मानपूर्वक ही पेश आएंगे.

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