वचन : चिकचिक और शोरशराबे से जब परेशान हुई निशा

निशा ने अपने जन्मदिन के अवसर पर हम सब के लिए बढि़या लंच तैयार किया. छक कर भोजन करने के बाद सब आराम करने के लिए जब उठने को हुए तो निशा अचानक भाषण देने वाले अंदाज में उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं आप सब से आज कुछ मांगना चाहती हूं,’’ कुछ घबराते, कुछ शरमाते अंदाज में उस ने अपने मन की इच्छा प्रकट की.

हम सब हैरान हो कर उसे देखने लगे. उस का यह व्यवहार उस के शांत, शर्मीले व्यक्तित्व से मेल नहीं खा रहा था. वह करीब 3 महीने पहले मेरी पत्नी बन कर इस घर में आई थी. सब बड़ी उत्सुकता से उस के आगे बोलने का इंतजार करने लगे.

‘‘आप सब लोग मुझ से बड़े हैं और मैं किसी की डांट का, समझाने का, रोकनेटोकने का जरा सा भी बुरा नहीं मानती हूं. मुझे कोई समझाएगा नहीं तो मैं सीखूंगी कैसे?’’ निशा इस अंदाज में बोल रही थी मानो अब रो देगी.

‘‘बहू, तू तो बहुत सुघड़ है. हमें तुझ से कोई शिकायत नहीं. जो तेरे मन में है, तू खुल  कर कह दे,’’ मां ने उस की तारीफ कर उस का हौसला बढ़ाया. पापा ने भी उन का समर्थन किया.

‘‘बहू, तुम्हारी इच्छा पूरी करने की हम कोशिश करेंगे. क्या चाहती हो तुम?’’

निशा हिचकिचाती सी आगे बोली, ‘‘मेरे कारण जब कभी घर का माहौल खराब होता है तो मैं खुद को शर्म से जमीन में गड़ता महसूस करती हूं. प्लीज…प्लीज, आप सब मुझे ले कर आपस में झगड़ना बिलकुल बंद कर दीजिए…अपने जन्मदिन पर मैं बस यही उपहार मांग रही हूं. मेरी यह बात आप सब को माननी ही पड़ेगी…प्लीज.’’

मां ने उसे रोंआसा होते देखा, तो प्यार भरी डांट लगाने लगीं, ‘‘इस घर में तो सब का गला कुछ ज्यादा जोर से ही फटता है. बहू, तुझे ही आदत डालनी होगी शोर- शराबे में रहने की.’’

‘‘वाह,’’ अपनी आदत के अनुसार पापा मां से उलझने को फौरन तैयार हो गए, ‘‘कितनी आसानी से सारी जिम्मेदारी इस औरत ने बहू पर ही डाल दी है. अरे, सुबह से रात तक चीखतेचिल्लाते तेरा गला नहीं थकता? अब बहू के कहने से ही बदल जा.’’

‘‘मैं ही बस चीखतीचिल्लाती हूं और बाकी सब के मुंह से तो जैसे शहद टपकता है. कोई ऐसी बात होती है घर में जिस में तुम अपनी टांग न अड़ाते हो. हर छोटी से छोटी बात पर क्लेश करने को मैं नहीं तुम तैयार रहते हो,’’ मां ने फौरन आक्रामक रुख अपना लिया.

‘‘तेरी जबान बंद करने का बस यही इलाज है कि 2-4 करारे तमाचे…’’

गुस्से से भर कर मैं ने कहा, ‘‘कहां की बात कहां पहुंचा देते हैं आप दोनों. इस घर की सुखशांति भंग करने के लिए आप दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं.’’

‘‘मनोज भैया, आप भी चुप नहीं रह सकते हो,’’ शिखा भी झगड़े में कूद पड़ी, ‘‘इन दोनों को समझाना बेकार है. आप भाभी को ही समझाओ कि इन की कड़वी बात को नजरअंदाज करें.’’

हम दोनों के बोलते ही मम्मी और पापा अपना झगड़ा भूल गए. उन का गुस्सा हम पर निकलने लगा. मैं तो 2-4 जलीकटी बातें सुन कर चुप हो गया, पर शिखा उन से उलझी रही और झगड़ा बढ़ता गया.

हमारे घर में अकसर ऐसा ही होता है. आपस में उलझने को हम सभी तैयार रहते हैं. चीखनाचिल्लाना सब की आदत है. मूल मुद्दे को भुला कर लड़नेझगड़ने में सब लग जाते हैं.

अचानक निशा की आंखों से बह कर मोटेमोटे आंसू उस के गालों पर लुढ़क आए थे. सब को अपनी तरफ देखते पा कर वह हाथों में मुंह छिपा कर रो पड़ी. मां और शिखा उसे चुप कराने लगीं.

करीब 5 मिनट रोने के बाद निशा ने सिसकियों के बीच अपने दिल का दर्द हमें बताया, ‘‘जैसे आज झगड़ा शुरू हुआ ऐसे ही हमेशा शुरू हो जाता है…मेरी बात किसी ने भी नहीं सुनी…क्या आप सब मेरी एक छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते? मेरी खुशी के लिए मेरे जन्मदिन पर एक छोटा सा वचन नहीं दे सकते?’’

हम सभी ने फटाफट उसे वचन दे दिया कि उस की इच्छा पूरी करने का प्रयास दिल से करेंगे. उस का आंसू बहाना किसी को भी अच्छा नहीं लग रहा था.

निशा ने आखिरकार अपनी मांग हमें बता दी, ‘‘घर का हर काम कर के मुझे खुशी मिलती है. मेरा कोई हाथ बटाए, वह बहुत अच्छी बात होगी, लेकिन कोई किसी दूसरे को मेरा हाथ बटाने को कहे…सारा काम उसे करने को आदेश दे, यह बात मेरे दिल को दुखाती है. मैं सब से यह वचन लेना चाहती हूं कि कोई किसी दूसरे को मेरा हाथ बटाने को नहीं कहेगा. यह बात खामखा झगड़े का कारण बन जाती है. जिसे मेरी हैल्प करनी हो, खुद करे, किसी और को भलाबुरा कहना आप सब को बंद करना होगा. आप सब को मेरी सौगंध जो आगे कोई किसी से कभी मेरे कारण उलझे.’’

निशा को खुश करने के लिए हम सभी ने फौरन उसे ऐसा वचन दे डाला. वह खुशीखुशी रसोई संभालने चली गई. उस वक्त किसी को जरा भी एहसास नहीं हुआ कि निशा को दिया गया वचन आगे क्या गुल खिलाने वाला था. कुछ देर बाद पापा ने रसोई के सामने से गुजरते हुए देखा कि निशा अकेली ढेर सारे बरतन मांजने में लगी हुई थी.

‘‘शिखा,’’ वह जोर से चिल्लाए, ‘‘रसोई में आ कर बहू के साथ बरतन क्यों नहीं…’’

‘‘पापा, अभीअभी मुझे दिया वचन क्यों भूल रहे हैं आप?’’ निशा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, ‘‘पापा, प्लीज, आप दीदी से कुछ मत कहिए.’’

कुछ पलों की बेचैनी व नाराजगी भरी खामोशी के बाद उन्होंने निर्णय लिया, ‘‘ठीक है, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा, पर तुम्हारे काम में हाथ बटाना तो तेरे हाथ में है. मैं मंजवाता हूं तेरे साथ बरतन.’’

अपने कुरते की बाजुएं ऊपर चढ़ाते हुए वे निशा की बगल में जा खड़े हुए. वे अभी एक तश्तरी पर ही साबुन लगा पाए थे कि मां भागती रसोई में आ पहुंचीं.

‘‘छी…यह क्या कर रहे हो?’’ उन्होंने पापा के हाथों से तश्तरी छीनने की असफल कोशिश की.

मां ने चिढ़ और गुस्से का शिकार हो शिखा को ऊंची आवाज में पुकारा तो निशा ने दबी, घबराई आवाज में उन के सामने भी हाथ जोड़ कर वचन की याद दिला दी.

‘‘क्या मुसीबत है,’’ उन्होंने अचानक पूरी ताकत लगा कर पापा के हाथ से तश्तरी छीन ही ली और उन का हाथ पकड़ कर खींचती हुई रसोई से बाहर ले आईं.

‘‘आप को यह काम शोभा देगा क्या? जाइए, अपने कमरे में आराम कीजिए. मैं करवा रही हूं बहू के साथ काम,’’ मां मुड़ीं और किलसती सी निशा के पास पहुंच कर बरतन साफ कराने लगीं.

गुसलखाने से बाहर आते हुए मैं ने साफसाफ देखा पापा शरारती अंदाज में मुसकरा कर निशा की तरफ आंख मारते हुए जैसे कह रहे हों कि आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे. फिर वे अपने कमरे की तरफ चले गए. मेरे देखते ही देखते शिखा भी रसोई में आ गई.

‘‘इतने से बरतनों को 3-3 लोग मांजें, यह भी कोई बात हुई. मुझे सुबह से पढ़ने का मौका नहीं मिला है. मां, जब भाभी हैं यहां तो तुम ने मुझे क्यों चिल्ला कर बुलाया?’’ शिखा गुस्से से बड़बड़ाने लगी.

‘‘मैं ने इसलिए तुझे बुलाया क्योंकि तेरे पिताजी के सिर पर आज बरतन मंजवाने का भूत चढ़ा था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’ शिखा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मैं सही कह रही हूं. अब सारी रसोई संभलवा कर ही पढ़ने जाना, नहीं तो वे फिर यहां घुस आएंगे,’’ कह कर मां रसोई से बाहर आ गईं.

उस दिन से निशा के वचन व पापा की अजीबोगरीब हरकत के कारण शिखा मजबूरन पहली बार निशा का लगातार काम में हाथ बटाती रही.

इस में कोई शक नहीं कि शादी के कुछ दिनों बाद से ही निशा ने घर के सारे कामों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. हर काम को भागभाग कर करना उस का स्वभाव था. इस कारण शिखा और मम्मी ने धीरेधीरे हर काम से हाथ खींचना शुरू कर दिया था. इस बात को ले कर मैं कभीकभी शोर मचाता, तो मां और शिखा ढकेछिपे अंदाज में मुझे जोरू का गुलाम ठहरा देतीं. झगड़े में इन दोनों से जीतना संभव नहीं था क्योंकि दोनों की जबानें तेज और पैनी हैं. पापा डपट कर शिखा या मां को अकसर काम में लगा देते थे, पर इस का फल निशा के लिए ठीक नहीं रहता. उसे अपनी सास व ननद की ढेर सारी कड़वी, तीखी बातें सुनने को मिलतीं.

अगले दिन सुबह पापा ने झाड़ू उठा कर सुबह 7 बजे से घर साफ करना शुरू किया, तो फिर घर में भगदड़ मच गई.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाती रहो. मैं 15-20 मिनट में सारे घर की सफाई कर दूंगा,’’ कह कर पापा फिर से ड्राइंगरूम में झाड़ू लगाने लगे.

‘‘ऐसी क्या आफत आ रही है, पापा?’’ शिखा ने अपने कमरे से बाहर आ कर क्रोधित लहजे में कहा, ‘‘झाड़ू कुछ देर बाद भी लग सकती है.’’

‘‘घर की सारी सफाई सुबह ही होनी चाहिए,’’ पापा ने कहा.

‘‘लाइए, मुझे दीजिए झाड़ू,’’ शिखा ने बड़े जोर के झटके से उन के हाथ से झाड़ू खींची और हिंसक अंदाज में काम करते हुए सारे घर की सफाई कर दी.

वह फिर अपने कमरे में बंद हो गई और घंटे भर बाद कालेज जाने के लिए ही बाहर निकली. उस दिन जबरदस्त नाराजगी दर्शाते हुए वह बिना नाश्ता किए ही कालेज चली गई. मां ने इस कारण पापा से झगड़ा करना चाहा तो उन्होंने शांत लहजे में बस इतना ही कहा, ‘‘पहले मैं शोर मचाता था और अब चुपचाप बहू के काम में हाथ बटाता हूं क्योंकि हमसब ने उसे ऐसा करने का वचन दिया है. शिखा को मेरे हाथ से झाड़ू छीनने की कोई जरूरत नहीं थी.’’

‘‘रिटायरमैंट के बाद भी लोग कहीं न कहीं काम करने जाते हैं. तुम भी घर में पड़े रह कर घरगृहस्थी के कामों में टांग अड़ाना छोड़ो और कहीं नौकरी ढूंढ़ लो,’’ मां ने बुरा सा मुंह बना कर उन्हें नसीहत दी तो पापा ठहाका लगा कर हंस पड़े.

उस शाम मुझे औफिस से घर लौटने में फिर देर हो गई. पुराने यारदोस्तों के साथ घंटों गपशप करने की मेरी आदत छूटी नहीं थी. निशा ने कभी अपने मुंह से शिकायत नहीं की, पर यों लेट आने के कारण मैं अकसर मां और पिताजी से डांट खाता रहा हूं.

‘‘बहू के साथ कहीं घूमने जाया कर. उसे रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलवाना चाहिए तुझे. यारदोस्तों के साथ शादी के बाद ज्यादा समय बरबाद करना छोड़ दे,’’ बारबार मुझे समझाया जाता, पर मैं अपनी आदत से मजबूर था.

मैं उस दिन करीब 9 बजे घर में घुसा तो मां ने बताया, ‘‘तेरी बहू और पिताजी घूमने गए हुए हैं.’’

‘‘कहां?’’ मैं ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘फिल्म देखने गए हैं.’’

‘‘और खाना भी बाहर खा कर आएंगे,’’ शिखा ने मुझे भड़काया, ‘‘हम ने तो कभी नहीं सुना कि नई दुलहन पति के बजाय ससुर के साथ फिल्म देखने जाए.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और गुस्से से भरा अपने कमरे में आ घुसा. मैं ने खाना खाने से भी इनकार कर दिया.

वे दोनों 10 बजे के बाद घर लौटे. पिताजी ने आवाज दे कर मुझे ड्राइंगरूम में बुला लिया.

‘‘खाना क्यों नहीं खाया है अभी तक तुम ने?’’ पापा ने सवाल किया.

‘‘भूख नहीं है मुझे,’’ मैं ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं बहू को घुमाने ले गया, इस बात से नाराज है क्या?’’

‘‘इसे छोड़ गए, यह नाराजगी पैदा करने वाली बात नहीं है क्या?’’ मां ने वार्त्तालाप में दखल दिया, ‘‘इसे पहले से सारा कार्यक्रम बता देते तो क्या बिगड़ जाता आप का?’’

‘‘देखो भई, बहू के मामलों में मैं ने किसी को भी कुछ बतानासमझाना बंद कर दिया है. जहां मुझे लगता है कि उस के साथ गलत हो रहा है, मैं खुद कदम उठाने लगा हूं उस की सहायता के लिए. अब मेरे काम किसी को अच्छे लगें या बुरे, मुझे परवा नहीं,’’ पापा ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

‘‘मैं आप से कुछ कह रहा हूं क्या?’’ मेरी नाराजगी अपनी जगह कायम रही.

‘‘बहू से भी कुछ मत कहना. मेरी जिद के कारण ही वह मेरे साथ गई थी. आगे भी अगर तुम ने यारदोस्तों के चक्कर में फंस कर बहू की उपेक्षा करनी जारी रखी तो हम फिर घूमने जाएंगे. हाउसफुल होने के कारण आज फिल्म नहीं देखी है हम दोनों ने. कल की 2 टिकटें लाए हैं. तुझे बहू के साथ जाने की फुरसत न हो तो मुझे बता देना. मैं ले जाऊंगा उसे अपने साथ,’’ अपनी बात कह कर पापा अपने कमरे की तरफ बढ़ गए.

निशा को तंग करने के लिए मैं उस रात खाना बिलकुल न खाता पर ऐसा कर नहीं सका. उस ने मुझे बताया कि वह और पापा सीधे चाचाजी के घर गए थे. दोनों बाहर से कुछ भी खा कर नहीं आए थे. इन तथ्यों को जान कर मेरा गुस्सा गायब हो गया और हम दोनों ने साथसाथ खाना खाया.

अगले दिन निशा और मैं ने साथसाथ फिल्म देखी और खाना भी बाहर खा कर लौटे. यों घूमना उसे बड़ा भा रहा था और वह खूब खुल कर मेरे साथ हंसबोल रही थी. उस की खुशी ने मुझे गहरा संतोष प्रदान किया था.

पापा ने एक ही झटका दे कर मेरी देर से घर आने की आदत को छुड़ा दिया था. यारदोस्त मुझे रोकने की कोशिश में असफल रहते थे. मैं निशा को खुश और संतुष्ट रखने की अपनी जिम्मेदारी पापा को कतई नहीं सौंपना चाहता था.

पापा की अजीबोगरीब हरकतों के चलते मां और शिखा भी बदले. ऐसा हुआ भी कि एक दिन पापा को पूरे घर में झाड़ू लगानी पड़ी. शिखा या मां ने उन्हें ऐसा करने से रोका नहीं था.

उस दिन शाम को चाचा सपरिवार हमारे घर आए थे. पापा ने सब के सामने घर में झाड़ू लगाने का यों अकड़ कर बखान किया मानो बहुत बड़ा तीर मारा हो. मां और शिखा उस वक्त तो सब के साथ हंसीं, पर बाद में पापा से खूब झगड़े भी.

‘‘जो सच है उसे क्यों छिपाना?’’ पापा बड़े भोले बन गए, ‘‘तुम लोगों को मेरा कहना बुरा लगा, यह तुम दोनों की प्रौब्लम है. मैं तो बहू का कैसे भी काम में हाथ बटाने से कभी नहीं हिचकिचाऊंगा.’’

‘‘बुढ़ापे में तुम्हारा दिमाग सठिया गया है,’’ मां ने चिढ़ कर यह बात कही, तो पापा का ठहाका पूरे घर में गूंजा और हमसब भी मुसकराने लगे.

इस में कोई शक नहीं कि पापा के कारण निशा की दिनचर्या बहुत व्यवस्थित हो गई थी. वह बहुत बुरी तरह से थकती नहीं थी. मेरी यह शिकायत भी दूर हो गई थी कि उसे घर में मेरे पास बैठने का वक्त नहीं मिलता था. धीरेधीरे मां और शिखा निशा का घर के कामों में हाथ बटाने की आदी हो गईं.

बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे पापा को एक दिन सुबहसुबह मां ने उन्हीं के अंदाज में झटका दिया था.

मां सुबहसुबह रजाई से निकल कर बाहर जाने को तैयार होने लगीं तो पापा ने चौंक कर उन से पूछा, ‘‘इस वक्त कहां जा रही हो?’’

‘‘दूध लाने. ताजी सब्जियां भी ले आऊंगी मंडी से,’’ मां ने नाटकीय उत्साह दिखाते हुए जवाब दिया.

‘‘दूध लाने का काम तुम्हारे बेटे का है और सब्जियां लाने का काम तुम कुछ देर बाद करना.’’

‘‘ये दोनों जिम्मेदारियां मैं ने अब अपने कंधों पर ले ली हैं.’’

‘‘बेकार की बात मत करो, इतनी ठंड में बाहर जाओगी तो सारे जोड़ अकड़ कर दर्द करने लगेंगे. गठिया के मरीज को ठंड से बचना चाहिए. दूध रवि ही लाएगा.’’

पापा ने मुझे आवाज लगाई तो मैं फटाफट उन के कमरे में पहुंच गया. मां ने पिछली रात ही मुझे अपना इरादा बता दिया था. पापा को घेरने का हम दोनों का कार्यक्रम पूरी तरह तैयार था.

‘‘रवि, दूध तुम्हें ही लाना…’’

‘‘नहीं, दूध मैं ही लेने जाया करूंगी,’’ मां ने पापा की बात जिद्दी लहजे में फौरन काट दी.

‘‘मां की बात पर ध्यान मत दे और दूध लेने चला जा तू,’’ पापा ने मुझे आदेश दिया.

‘‘देखो जी, मेरे कारण आप रवि के साथ मत उलझो. मेरी सहायता करनी हो तो खुद करो. मेरे कारण रवि डांट खाए, यह मुझे मंजूर नहीं,’’ मां तन कर पापा के सामने खड़ी हो गईं.

‘‘मैं क्या सहायता करूं तुम्हारी?’’ पापा चौंक पड़े.

‘‘मेरी गठिया की फिक्र है तो दूध और सब्जी खुद ले आइए. रवि को कुछ देर ज्यादा सोने को मिलना ही चाहिए, नहीं तो सारा दिन थका सा नजर आता है. हां, आप को नींद प्यारी है तो लेटे रहो और मुझे अपना काम करने दो. रवि, तू जा कर आराम कर,’’ मां ने गरम मोजे पहनने शुरू कर दिए.

पापा अपने ही जाल में फंस गए. मां मुझे ले कर वही दलील दे रही थीं जो पापा निशा को ले कर देते थे. जैसे निशा ने अपने कारण किसी अन्य से न झगड़ने का वचन हम सब से लिया था कुछ वैसी ही बात मां अब पापा से कर रही थीं.

‘‘तुम कहीं नहीं जा रही हो,’’ पापा ने झटके से रजाई एक तरफ फेंकते हुए क्रोधित लहजे में कहा, ‘‘मेरा आराम तुम्हारी आंखों को चुभता है तो मैं ही दूध लाने जाता हूं.’’

‘‘यह काम आप को ही करना चाहिए. इस से मोटापा, शूगर और बीपी, ये तीनों ही कम रहेंगे,’’ मां ने मुझे देख कर आंख मारी और फिर से रजाई में घुसने को कपड़े बदलने लगीं.

पापा बड़बड़ाते हुए गुसलखाने में घुस गए और मैं अपने कमरे की तरफ चल पड़ा. वैसे एक बात मेरी समझ में उसी समय आई. मां ने जिस अंदाज में मेरी तरफ देखते हुए आंख मारी थी वैसा ही मैं ने पापा को निशा के जन्मदिन पर करते देखा था. यानी कि बहू और ससुर के बीच वैसी ही मिलीभगत चल रही थी जैसी मां और मेरे बीच पापा को फांसने के लिए चली थी. पापा के कारण निशा के ऊपर से गृहकार्यों का बोझ कम हो गया था और अब मां के कारण पापा का सवेरे सैर को जाना शुरू होने वाला था. इस कारण उन का स्वास्थ्य बेहतर रहेगा, इस में कोई शक नहीं था.

अपने मन की बात को किसी के सामने, निशा के भी नहीं, जाहिर न करने का फैसला मन ही मन करते हुए मैं भी रजाई में कुछ देर और नींद का आनंद लेने के लिए खुशीखुशी घुस गया था.

मृगतृष्णा : फैमिली को छोड़ आस्ट्रेलिया गए पुनित के साथ क्या हुआ ?

लेखिका- अर्चना भारद्वाज

‘‘ओह, इट्स टू टायरिंग, सो लौंग ट्रिप,’’ पसीना पोंछते हुए पुनीत ने अपना सूटकेस दरवाजे के सामने रख दिया. घंटी का बटन दबाया और इंतजार करने लगा. मकान में खामोशी थी. कहां गए सब? पुनीत ने प्रश्नवाचक दृष्टि से दरवाजे पर लटके ताले को देखा. फिर जेब से रूमाल निकाल कर पसीना पोंछ अपना एअर बैग सूटकेस पर रख दिया. दोबारा बटन दबाया और दरवाजे से कान सटा कर सुनने लगा. बरामदे के पीछे कोई खिड़की हवा में हिचकोले खा रही थी.

पुनीत थोड़ा पीछे हट कर ऊपर देखने लगा. वह दोमंजिला मकान था. लेन के अन्य मकानों की तरह काली छत, अंगरेजी के वी की शक्ल में दोनों तरफ से ढलुआं और बीच में सफेद पत्थर की दीवार, जिस के माथे पर मकान का नंबर काली बिंदी सा दिख रहा था. ऊपर की खिड़कियां बंद थीं और परदे गिरे थे. ‘कहां जा सकते हैं इस वक्त?’ सोच वह मकान के पिछवाड़े गया. वही लौन, फेंस और झाडि़यां थीं, जो उस ने 3 साल पहले देखी थीं. गैराज खुला था और खाली पड़ा था. वे कहीं गाड़ी ले कर गए थे. संभव है उन्होंने सुबह देर तक प्रतीक्षा की हो और अब वे किसी काम से बाहर चले गए हों. लेकिन कम से कम दरवाजे पर एक चिट तो छोड़ ही सकते थे, जिस से पता चल जाता कि वे कब लौटने वाले हैं.

पुनीत मकान की सीढि़यों पर बैठ गया. शाम के 7 बजने वाले थे. धुंधलका बढ़ने लगा था. उसे चिंता हुई कि इस वक्त वे कहां गए होंगे? पापा को रात में कम दिखाई देता है और मां तो गाड़ी चला ही नहीं सकतीं. भूख भी लगनी शुरू हो गई थी. उस ने बैग से पानी की बोतल निकाल 2-4 घूंट पानी पी भूख को शांत करने की कोशिश की. वह सोचने लगा कि आसपास भी ज्यादा किसी को जानता नहीं है, किस से बात करे. लेदे कर एक शिखा को ही जानता था पर उस के साथ पुनीत ने जो किया था, उस से बात करने की तो गुंजाइश ही नहीं बचती थी.

फ्लाइट लेट होने के कारण पुनीत को घर पहुंचतेपहुंचते देर हो गई थी, पर मांपापा को इंतजार तो करना चाहिए था. उसे थोड़ा गुस्सा भी आया पर जिन स्थितियों में वह घर लौटा है, उस के लिए वह गुस्सा तो क्या उन से आंख मिला कर बात भी नहीं कर सकता था. जिस हाल में वह मांपापा और शिखा को छोड़ कर गया था, उस के बाद कौन उस की प्रतीक्षा करता. वहीं इंतजार करतेकरते उसे याद आने लगा वह 3 साल पुराना मंजर जब उस की मां आंसू बहा रही थीं और पापा सिर झुकाए बैठे थे…

आस्ट्रेलिया जाना पुनीत के लिए कोई नई बात नहीं थी, क्योंकि वह पहले भी वहां जा चुका था और वहां एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत था. पर इस बार जो घोषणा उस ने की इस के लिए कोई भी तैयार नहीं था. वह वहीं की एक लड़की क्रिस्टीना से विवाह करना चाहता था ताकि उसे जल्दी वहां की नागरिकता मिल जाए और वह वहीं सैटल हो जाए. मांपापा अचंभित थे कि उन का संस्कारी बेटा उन की आज्ञा के बिना ऐसा कदम कैसे उठा सकता है? जिसे कभी कपड़े खरीदने तक की अकल नहीं थी, वही विदेश जाते ही अपने रंग बदलने लगा था. मांपापा रूढिवादी नहीं थे पर सिद्धांतवादी जरूर थे. शिखा को धोखा दे कर अपनी खुशियों के लिए किसी और से पुनीत का विवाह करना उन्हें अपने सिद्धांतों के खिलाफ लगा और इस के लिए उन्होंने अपने बेटे का मोह त्यागना उचित समझा.

शिखा पुनीत की मित्र थी और भावी जीवनसंगिनी बनना चाहती थी. दोनों का प्रेम जगजाहिर था और दोनों पक्षों की स्वीकृति भी. ऐसे में विदेशी लड़की से शादी का पुनीत का फैसला मांपापा को कैसे मान्य होता? वह चला गया मांपापा के आशीर्वाद और शिखा की शुभकामनाओं के बिना. शिखा ने पुनीत से कुछ नहीं कहा. अपने उदास मन पर गंभीरता की चादर ओढ़ ली.

पुनीत ने आस्ट्रेलिया में क्रिस्टीना से शादी कर ली और ग्रीन कार्ड होल्डर बन गया पर साल भर में ही उस के सारे सपने धरातल पर आ गए.

क्रिस्टीना मौजमस्ती से भरपूर अपने समाज की अभ्यस्त लड़की थी. भारतीय संस्कृति में औरत को सेवक के काम में देखने वाला पलाबढ़ा लड़का बराबरी की संस्कृति के बोझ तले कब तक दबता? घर पर बीवी के साथ बराबर का हाथ बंटाना पड़ता, तो मां के हाथ के तवे से उतरते गरमगरम फुलके याद आते. बाजार से सामान खरीदने जाना होता, तो पापा का सब्जी का झोला लटकाए घर लौटना याद आता. पर वह विवश था. मांपापा ने उस से कोई सरोकार नहीं रखा था. क्रिस्टीना को औफिस की पार्टी में गैरमर्दों के साथ खुल कर नाचते देखता, तो अनायास ही शिखा की मासूम सी लजाती निगाहें उस की आंखों के सामने तैरने लगतीं. वह चाह कर भी इस ऊहापोह से निकल नहीं पा रहा था. रोजरोज का झगड़ा, रोज की बहस और अब तो मारपिटाई की नौबत भी आ पहुंची थी. भारतीय कट्टरपन का शिकार मन विदेशी खुलेपन व आजादी को सह नहीं पाया.

पुनीत का मोह भंग हो चुका था. उसे लगा जिस सुकून को पाने के लिए वह अपने परिवार को, अपने प्यार को छोड़ कर आया था, क्या वह उसे हासिल हुआ? लंबी कशमकश के बाद वह जिस भ्रमजाल में उलझा हुआ था, उस से एक दिन बाहर आ गया. उस ने क्रिस्टीना को तलाक देने का फैसला किया पर 3 साल लगे उसे इस निर्णय को पूर्ण करने के लिए. उस ने वापस भारत आने का फैसला किया और आज घर के बाहर बैठा है पर घर पर कोई मौजूद नहीं है उस का स्वागत करने को.

पुनीत की तंद्रा टूटी. अंधेरा गहराने लगा था. उसे चिंता हुई कि मांपापा गए कहां हैं? मां को तो उस ने फोन भी किया था यह बताने के लिए कि वह आ रहा है, फिर भी वे घर पर क्यों नहीं हैं? शिखा से बात करने की हिम्मत वह जुटा नहीं पाया. शिखा जैसी सीधीसादी लड़की उस ने आज तक नहीं देखी. उस में इतना भोलापन और सादगी थी कि जो कोई भी उसे देखता मंत्रमुग्ध हो जाता. वाणी में इतनी मिठास, इतनी सचाई थी कि मन का सारा मैल धुल जाए. पुनीत को अपने ऊपर ग्लानि हो रही थी कि असली हीरा पास होते हुए भी उस ने कंकड़ चुन लिया था.

पुनीत अभी उधेड़बुन में ही लगा था कि सामने से पड़ोस में रहने वाले रमेश अंकल आते दिखाई दिए. उन्होंने आते ही पुनीत से पूछा, ‘‘अरे पुनीत, तुम कब पहुंचे?’’

पुनीत रमेश अंकल को नमस्ते कर बोला, ‘‘काफी देर हो गई है… मांपापा सब कहां हैं?’’

‘‘तुम्हारे पापा तो हौस्पिटल में हैं? कल से सांस लेने में तकलीफ थी.’’

‘‘पापा को हौस्पिटल कौन ले कर गया?’’ पुनीत ने हैरानी से पूछा.

‘‘शिखा.’’

‘‘शिखा?’’

पुनीत की प्रश्नवाचक दृष्टि से रमेश अंकल आश्चर्य में पड़ गए. फिर बोले, ‘‘तुम्हें नहीं पता कि शिखा अब यहीं रहती है और एक स्कूल में पढ़ाती है?’’

पुनीत के मौन रहने पर रमेश अंकल ने आगे बताया, ‘‘उस के मम्मीपापा 2 साल पहले एक ऐक्सिडैंट में गुजर गए थे. तब से वह यहीं रहती है और तुम्हारे मांपापा की दिनरात सेवा करती है.’’

सुन कर पुनीत बहुत शर्मिंदा हुआ कि मेरे मांपापा व शिखा को कितने दुख सहना पड़ा… उसे यह भी मालूम नहीं हो सका. उस ने अंकल से पूछा, ‘‘पापा कहां ऐडमिट हैं? मैं वहां जाना चाहता हूं,’’ कह अंकल से हौस्पिटल का पता ले कर अपना सामान उन के यहां रख कर वह हौस्पिटल पहुंच गया.

शिखा और मां कमरे के बाहर बैठी थीं. पुनीत मां के गले लिपट कर रोने लगा. वह इतना भी नहीं पूछ सका कि पापा कैसे हैं.

मां ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, चिंता की कोई बात नहीं है. अब तेरे पापा ठीक हैं. अगर शिखा सही वक्त पर न लाती तो पता नहीं क्या होता? तुम्हारे जाने के बाद हमें संभालने में शिखा ने कोई कसर नहीं छोड़ी.’’

पुनीत ने कृतज्ञता भरी नजरों से शिखा को देखा. वह सकुचाई सी एक कोने में खड़ी थी. उस का मासूम चेहरा देख कर पुनीत द्रवित हो उठा. उसे अपनी गलती का पछतावा होने लगा.

मां ने आगे कहा, ‘‘अपने मम्मीपापा के अचानक निधन के बाद शिखा बिलकुल अकेली हो गई थी. तब हमारा भी कोई सहारा नहीं था, तो हमारे कहने पर शिखा ने हमारे साथ रहने का निश्चय करते हुए कहा कि अब हम तीनों ही एकदूसरे का सहारा बनेंगे. तब से आज तक शिखा एक बेटे की तरह हमारी सेवा कर रही है.’’

पुनीत सिर झुकाए सुनता रहा.

मां थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोलीं, ‘‘तुम जिस अंधी दौड़ में भाग रहे थे उस का कोई अंत नहीं था… तृष्णा कभी खत्म नहीं होती, पर आज तुम अपनेआप को उस से मुक्त कर वापस आ गए हो. यह तुम्हारा ही घर है. अब तुम शिखा के साथ मिल कर अच्छी जिंदगी बिताओ. जाओ, उधर जा कर शिखा से मिलो. तुम्हारे पापा को डाक्टर ने अभी आराम करने के लिए कहा है, इसलिए उन से बाद में मिल लेना.’’

पुनीत हौले से उठा और शिखा के पास जा कर धीरे से उस का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘शिखा, क्या तुम मुझे माफ कर के मेरे साथ नया जीवन शुरू कर सकती हो?’’

शिखा अपने स्वभाववश कुछ न कह सकी और न ही अपना हाथ छुड़ा सकी. पुनीत को उस की मौन सहमति मिल चुकी थी.

पुनीत ने अब शिखा का हाथ और भी मजबूती से पकड़ लिया था कभी न छोड़ने के लिए. उस ने महसूस किया कि जिस मृगतृष्णा की तलाश में वह यहांवहां भटक रहा था, वह मंजिल तो उस के बिलकुल पास थी.

घुटन : मैटरनिटी लीव के बाद क्या हुआ शुभि के साथ?

शुभि ने 5 महीने की अपनी बेटी सिया को गोद में ले कर खूब प्यारदुलार किया. उस के जन्म के बाद आज पहली बार औफिस जाते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर औफिस तो जाना ही था. 6 महीने से छुट्टी पर ही थी.

मयंक ने शुभि को सिया को दुलारते देखा तो हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मन नहीं हो रहा है सिया को छोड़ कर जाने का.’’

‘‘हां, आई कैन अंडरस्टैंड पर सिया की चिंता मत करो. मम्मीपापा हैं न. रमा बाई भी है. सिया सब के साथ सेफ और खुश रहेगी, डौंट वरी. चलो, अब निकलते हैं.’’

शुभि के सासससुर दिनेश और लता ने भी सिया को निश्चिंत रहने के लिए कहा, ‘‘शुभि, आराम से जाओ. हम हैं न.’’

शुभि सिया को सास की गोद में दे कर फीकी सी हंसी हंस दी. सिया की टुकुरटुकुर देखती आंखें शुभि की आंखें नम कर गईं पर इस समय भावुक बनने से काम चलने वाला नहीं था. इसलिए तेजी से अपना बैग उठा कर मयंक के साथ बाहर निकल गई.

उन का घर नवी मुंबई में ही था. वहां से 8 किलोमीटर दूर वाशी में शुभि का औफिस था. मयंक ने उसे बसस्टैंड छोड़ा. रास्ते भर बस में शुभि कभी सिया के तो कभी औफिस के बारे में सोचती रही. अकसर बस में सीट नहीं मिलती थी. वह खड़ेखड़े ही कितने ही विचारों में डूबतीउतरती रही.

शुभि एक प्रसिद्ध सौंदर्य प्रसाधन की कंपनी में ऐक्सपोर्ट मैनेजर थी. अच्छी सैलरी थी. अपने कोमल स्वभाव के कारण औफिस और घर में उस का जीवन अब तक काफी सुखी और संतोषजनक था पर आज सिया के जन्म के बाद पहली बार औफिस आई थी तो दिल कुछ उदास सा था.

औफिस में आते ही शुभि ने इधरउधर नजरें डालीं, तो काफी नए चेहरे दिखे. पुराने लोगों ने उसे बधाई दी. फिर सब अपनेअपने काम में लग गए. शुभि जिस पद पर थी, उस पर काफी जिम्मेदारियां रहती थीं. हर प्रोडक्ट को अब तक वही अप्रूव करती थी.

शुभि की बौस शिल्पी उस की लगन, मेहनत से इतनी खुश, संतुष्ट रहती थी कि वह अपने भी आधे काम उसे सौंप देती थी, जिन्हें काम की शौकीन शुभि कभी करने से मना नहीं करती थी.

शिल्पी कई बार कहती थी, ‘‘शुभि, तुम न हो तो मैं अकेले इतना काम कर ही नहीं पाऊंगी. मैं तो तुम्हारे ऊपर हर काम छोड़ कर निश्चिंत हो जाती हूं.’’

शुभि को अपनी काबिलीयत पर गर्व सा हो उठता. नकचढ़ी बौस से तारीफ सुन मन खुश हो जाता था. शुभि उस के वे काम भी निबटाती रहती थी, जिन से उस का लेनादेना भी नहीं होता था.

औफिस पहुंचते ही शुभि ने अपने अंदर पहली सी ऊर्जा महसूस की. अपनी कार्यस्थली पर लौटते ही कर्तव्य की भावना से उत्साहित हो कर काम में लग गई. शिल्पी से मिल औपचारिक बातों के बाद उस ने अपने काम देखने शुरू कर दिए. 1 महीने बाद ही कोई नया प्रोडक्ट लौंच होने वाला था. शुभि उस के बारे में डिटेल्स लेने के लिए शिल्पी के पास गई तो उस ने सपाट शब्दों में कहा, ‘‘शुभि, एक नई लड़की आई है रोमा, उसे यह असाइनमैंट दे दिया है.’’

‘‘अरे, क्यों? मैं करती हूं न अब.’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो. उस के लिए तो देर तक काम रहेगा. तुम्हें तो अब घर भागने की जल्दी रहा करेगी.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं है. काम तो करूंगी ही न.’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो.’’

शुभि के अंदर कुछ टूट सा गया. सोचने लगी कि वह तो हर प्रोडक्ट के साथ रातदिन एक करती रही है. अब क्यों नहीं संभाल पाएगी यह काम? सिया के लिए घर टाइम पर पहुंचेगी पर काम भी तो उस की मानसिक संतुष्टि के लिए माने रखता है. पर वह कुछ नहीं बोली. मन कुछ उचाट सा ही रहा.

शुभि ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. अचानक कपिल का ध्यान आया कि कहां है. सुबह से दिखाई नहीं दिया. उसे याद करते ही शुभि को मन ही मन हंसी आ गई. दिलफेंक कपिल हर समय उस से फ्लर्टिंग करता था. शुभि को भी इस में मजा आता था. वह मैरिड थी, फिर प्रैगनैंट भी थी. तब भी कपिल उस के आगेपीछे घूमता था. कपिल उसे सीधे लंचटाइम में ही दिखा. आज वह लंच ले कर नहीं आई थी. सोचा था कैंटीन में खा लेगी. कल से लाएगी. कैंटीन की तरफ जाते हुए उसे कपिल दिखा, तो आवाज दी, ‘‘कपिल.’’

‘‘अरे, तुम? कैसी हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं, सुबह से दिखे नहीं?’’

‘‘हां, फील्ड में था, अभी आया.’’

‘‘और सुनाओ क्या हाल है?’’

‘‘सब बढि़या, तुम्हारी बेटी कैसी है?’’

‘‘अच्छी है. चलो, लंच करते हैं.’’

‘‘हां, तुम चल कर शुरू करो, मैं अभी आता हूं,’’ कह कर कपिल एक ओर चला गया.

शुभि को कुछ अजीब सा लगा कि क्या यह वही कपिल है? इतना फौरमल? इस तरह तो उस ने कभी बात नहीं की थी? फिर शुभि पुराने सहयोगियों के साथ लंच करने लगी. इतने दिनों के किस्से, बातें सुन रही थी. कपिल पर नजर डाली. नए लोगों में ठहाके लगाते दिखा, तो वह एक ठंडी सांस ले कर रह गई. सास से फोन पर सिया के हालचाल ले कर वह फिर अपने काम में लग गई.

शाम 6 बजे शुभि औफिस से बसस्टैंड चल पड़ी. पहले तो शायद ही वह कभी 6 बजे निकली हो. काम ही खत्म नहीं होता था. आज कुछ काम भी खास नहीं था. वह रास्ते भर बहुत सारी बातों पर मनन करती रही… आज इतने महीनों बाद औफिस आई, मन क्यों नहीं लगा? शायद पहली बार सिया को छोड़ कर आने के कारण या औफिस में कुछ अलगअलग महसूस करने के कारण. आज याद आ रहा था कि वह पहले कपिल के साथ फ्लर्टिंग खूब ऐंजौय करती थी, बढि़या टाइमपास होता था. उसे तो लग रहा था कपिल उसे इतने दिनों बाद देखेगा, तो खूब बातें करेगा, खूब डायलौगबाजी करेगा, उसे काम ही नहीं करने देगा. इन 6 महीनों की छुट्टियों में कपिल ने शुरू में तो उसे फोन किए थे पर बाद में वह उस के हायहैलो के मैसेज के जवाब में भी देर करने लगा था. फिर वह भी सिया में व्यस्त हो गई थी. नए प्रोडक्ट में उसे काफी रुचि थी पर अब वह क्या कर सकती थी, शिल्पी से तो उलझना बेकार था.

घर पहुंच कर देखा सिया को संभालने में सास और ससुर की हालत खराब थी. वह भी पहली बार मां से पूरा दिन दूर रही थी. शुभि ने जैसे ही सिया कहा, सिया शुभि की ओर लपकी तो वह, ‘‘बस, अभी आई,’’ कह जल्दीजल्दी हाथमुंह धो सिया को कलेजे से लगा लिया. अपने बैडरूम में आ कर सिया को चिपकाएचिपकाए ही बैड पर लेट गई. न जाने क्यों आंखों की कोरों से नमी बह चली.

‘‘कैसा रहा दिन?’’ सास कमरे में आईं तो शुभि ने पूछा, ‘‘सिया ने ज्यादा परेशान तो  नहीं किया?’’

‘‘थोड़ीबहुत रोती रही, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी उसे भी, तुम्हें भी और हमें भी. तुम्हारा औफिस जाना भी तो जरूरी है.’’

अब तक मयंक भी आ गया था. रमा बाई रोज की तरह डिनर बना कर चली गई थी. खाना सब ने साथ ही खाया. सिया ने फिर शुभि को 1 मिनट के लिए भी नहीं छोड़ा.

मयंक ने पूछा, ‘‘शुभि, आज बहुत दिनों बाद गई थी, दिन कैसा रहा?’’

‘‘काफी बदलाबदला माहौल दिखा. काफी नए लोग आए हैं. पता नहीं क्यों मन नहीं लगा आज?’’

‘‘हां, सिया में ध्यान रहा होगा. खैर, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी.’’

अगले 10-15 दिनों में औफिस में जो भी बदलाव शुभि ने महसूस किए, उन से उस का मानसिक तनाव बढ़ने लगा. शिल्पी 35 साल की चिड़चिड़ी महिला थी. उस का पति बैंगलुरु में रहता था. मुंबई में वह अकेली रहती थी. उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी. 15 दिन, महीने में वीकैंड पर उस का पति आता रहता था. उस की आदत थी शाम 7 बजे के आसपास मीटिंग रखने की. अचानक 6 बजे उसे याद आता था कि सब से जरूरी बातें डिस्कस करनी हैं.

शुभि को अपने काम से बेहद प्यार था. वह कभी देर होने पर भी शिकायत नहीं करती थी. मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी शुभि ने यहां पहुंचने तक बड़ी मेहनत की थी. 6 बजे के आसपास जब शुभि ने अपनी नई सहयोगी हेमा से पूछा कि घर चलें तो उस ने कहा, ‘‘मीटिंग है न अभी.’’

शुभि चौंकी, ‘‘मीटिंग? कौन सी? मुझे तो पता ही नहीं?’’

‘‘शिल्पी ने बुलाया है न. उसे खुद तो घर जाने की जल्दी होती नहीं, पर दूसरों के तो परिवार हैं, पर उसे कहां इस बात से मतलब है.’’ शुभि हैरान सी ‘हां, हूं’ करती रही. फिर जब उस से रहा नहीं गया तो शिल्पी के पास जा पहुंची. बोली, ‘‘मैम, मुझे तो मीटिंग के बारे में पता ही नहीं था… क्या डिस्कस करना है? कुछ तैयारी कर लूं?’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो. एक नए असाइनमैंट पर काम करना है.’’

‘‘मैं रुकूं?’’

‘‘नहीं, तुम जाओ,’’ कह कर शिल्पी लैपटौप पर व्यस्त हो गई.

शुभि उपेक्षित, अपमानित सी घर लौट आई. उस का मूड बहुत खराब था. डिनर करते हुए उस ने अपने मन का दुख सब से बांटना चाहा. बोली, ‘‘मयंक, पता है जब से औफिस दोबारा जौइन किया है, अच्छा नहीं लग रहा है. लेट मीटिंग में मेरे रहने की अब कोई जरूरत ही नहीं होती… कहां पहले मेरे बिना शिल्पी मीटिंग रखती ही नहीं थी. मुझे कोई नया असाइनमैंट दिया ही नहीं जा रहा है.’’

फिर थोड़ी देर रुक कर कपिल का नाम लिए बिना शुभि ने आगे कहा, ‘‘जो मेरे आगेपीछे घूमते थे, वे अब बहुत फौरमल हो गए हैं. मन ही नहीं लग रहा है… सिया के जन्म के बाद मैं ने जैसे औफिस जा कर कोई गलती कर दी हो. आजकल औफिस में दम घुटता है मेरा.’’

मयंक समझाने लगा, ‘‘टेक इट ईजी, शुभि. ऐसे ही लग रहा होगा तुम्हें… जौब तो करना ही है न?’’

‘‘नहीं, मेरा तो मन ही नहीं कर रहा है औफिस जाने का.’’

‘‘अरे, पर जाना तो पड़ेगा ही.’’

 

सास खुद को बोलने से नहीं रोक पाईं. बोलीं, ‘‘बेटा, घर के इतने खर्चे हैं. दोनों कमाते हैं तो अच्छी तरह चल जाता है. हर आराम है. अकेले मयंक के ऊपर होगा तो दिक्कतें बढ़ जाएंगी.’’

शुभि फिर चुप हो गई. वह यह तो जानती ही थी कि उस की मोटी तनख्वाह से घर के कई काम पूरे होते हैं. अपने पैरों पर खड़े होने को वह भी अच्छा मानती है पर अब औफिस में अच्छा नहीं लग रहा है. उस का मन कर रहा है कुछ दिन ब्रेक ले ले. सिया के साथ रहे, पर ब्रेक लेने पर ही तो सब बदला सा है. दिनेश, लता और मयंक बहुत देर तक उसे पता नहीं क्याक्या समझाते रहे. उस ने कुछ सुना, कुछ अनसुना कर दिया. स्वयं को मानसिक रूप से तैयार करती रही.

कुछ महीने और बीते. सिया 9 महीने की हो गई थी. बहुत प्यारी और शांत बच्ची थी. शाम को शुभि के आते ही उस से लिपट जाती. फिर उसे नहीं छोड़ती जैसे दिन भर की कमी पूरी करना चाहती हो.

शुभि को औफिस में अपने काम से अब संतुष्टि नहीं थी. शिल्पी तो अब उसे जिम्मेदारी का कोई काम सौंप ही नहीं रही थी. 6 महीनों के बाद औफिस आना इतना जटिल क्यों हो गया? क्या गलत हुआ था? क्या मातृत्व अवकाश पर जा कर उस ने कोई गलती की थी? यह तो हक था उस का, फिर किसी को उस की अब जरूरत क्यों नहीं है?

ऊपर से कपिल की बेरुखी, उपेक्षा मन को और ज्यादा आहत कर रही थी. 1 बच्ची की मां बनते ही कपिल के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर देख कर शुभि बहुत दुखी हो जाती. कपिल तो जैसे अब कोई और ही कपिल था. थोड़ीबहुत काम की बात होती तो पूरी औपचारिकता से करता और चला जाता. दिन भर उस के रोमांटिक डायलौग, फ्लर्टिंग, जिसे वह ऐंजौय करती थी, कहां चली गई थी. कितना सूना, उदास सा दिन औफिस में बिता कर वह कितनी थकी सी घर लौटने लगी थी.

अपने पद, अपनी योग्यता के अनुसार काम न मिलने पर वह रातदिन मानसिक तनाव का शिकार रहने लगी थी. उस के मन की घुटन बढ़ती जा रही थी. शुभि ने घर पर सब को बारबार अपनी मनोदशा बताई पर कोई उस की बात समझ नहीं पा रहा था. सब उसे ही समझाने लगते तो वह वहीं विषय बदल देती.

औफिस में अपने प्रति बदले व्यवहार से यह घुटन, मानसिक तनाव एक दिन इतना बढ़ गया कि उस ने त्यागपत्र दे दिया. वह हैरान हुई जब किसी ने इस बात को गंभीरतापूर्वक लिया ही नहीं. औफिस से बाहर निकल कर उस ने जैसे खुली हवा में सांस ली.

सोचा, थोड़े दिनों बाद कहीं और अप्लाई करेगी. इतने कौंटैक्ट्स हैं… कहीं न कहीं तो जौब मिल ही जाएगी. फिलहाल सिया के साथ रहेगी. जहां इतने साल रातदिन इतनी मेहनत की, वहां मां बनते ही सब ने इतना इग्नोर किया… उस में प्रतिभा है, मेहनती है वह, जल्द ही दूसरी जौब ढूंढ़ लेगी.

उस शाम बहुत दिनों बाद मन हलका हुआ. घर आते हुए सिया के लिए कुछ खिलौने

खरीदे. घर में घुसते ही सिया पास आने के लिए लपकी. अपनी कोमल सी गुडि़या को गोद में लेते ही मन खुश हो गया. डिनर करते हुए ही

उस ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने आज रिजाइन कर दिया.’’

सब को करंट सा लगा. सब एकसाथ बोले, ‘‘क्यों?’’

‘‘मैं इतनी टैंशन सह नहीं पा रही थी. थोड़े दिनों बाद दूसरी जौब ढूंढ़ूगी. अब इस औफिस में मेरा मन नहीं लग रहा था.’’

मयंक झुंझला पड़ा, ‘‘यह क्या बेवकूफी की… औफिस में मन लगाने जाती थी या काम करने?’’

‘‘काम ही करने जाती थी पर मेरी योग्यता के हिसाब से अब कोई मुझे काम ही नहीं दे रहा था… मानसिक संतुष्टि नहीं थी… मैं अब अपने काम से खुश नहीं थी.’’

‘‘दूसरी जौब मिलने पर रिजाइन करती?’’

‘‘कुछ दिन बाद ढूंढ़ लूंगी. मेरे पास योग्यता है, अनुभव है.’’

सास ने चिढ़ कर कहा, ‘‘क्या गारंटी है तुम्हारा दूसरे औफिस में मन लगेगा? मन न लगने पर नौकरी छोड़ी जाती है कहीं? अब एक की कमाई पर कितनों के खर्च संभलेंगे… यह क्या किया? थोड़ा धैर्य रखा होता?’’

ससुर ने भी कहा, ‘‘जब तक दूसरी जौब नहीं मिलेगी, मतलब एक ही सैलरी में घर चलेगा. बड़ी मुश्किल होगी… इतने खर्चे हैं… कैसे होगा?’’

शुभि सिया को गोद में बैठाए तीनों का मुंह देखती रह गई. उस के तनमन की पीड़ा से दूर तीनों अतिरिक्त आय बंद होने का अफसोस मनाए जा रहे थे. अब? मन की घुटन तो पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई थी.

कल पति आज पत्नी: समलैंगिक संबंधों की एक कहानी

25 जून की मध्य रात्रि. समय लगभग साढ़े 3 बजे का था. वैद्यराज दीनानाथ शास्त्री अपनी पत्नी सुशीला देवी के साथ इंदिरा गांधी इंटरनैशनल एअरपोर्ट पर बैठे कैलिफोर्निया से आने वाली उड़ान का इंतजार कर रहे हैं. जहाज के आने का समय 4 बजे का है. अनाउंसमैंट हो चुका है कि फ्लाइट ठीक समय पर आ रही है.

पतिपत्नी अपने इकलौते बेटे कमलदीप और उस की पत्नी के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. बेटा कमलदीप 4 साल पहले कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट औफ फैशन डिजाइनिंग में पढ़ने गया था. पहली बार तो बेटा 6 महीने बाद ही आ गया था. दूसरी बार 1 साल बाद आया तो उस के रंगढंग काफी बदले हुए थे. वह बातें करता तो हिंदी कम और अमेरिकन अंगरेजी का मिश्रण ज्यादा होता. उस पर आधेआधे शब्दों का उच्चारण, जो कम ही समझ में आता. रंगीले भड़कदार अजीबोगरीब सी बनावट के कपड़े, बिना बांहों की शर्ट और कमर के नीचे की जीन्स, घुटनों से नीची और टखनों से ऊपर. सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल, आंखों में काजल तथा कानों में छोटीछोटी बालियां. बात करते हुए हाथों का इशारा, गरदन का हिलाना और आंखों का मटकाना, इसी के साथ चाल में अजीब सी मस्ती.

बेटे का हुलिया और चालढाल देख कर वैद्यजी को कुछ अच्छा नहीं लगा, लेकिन यही सोच कर चुप रह गए कि चलो, एक और साल की ही तो बात है, कोर्स पूरा होने पर जब लौट कर घर आएगा तो धीरेधीरे यहां के रीतिरिवाजों में ढल कर ठीक हो जाएगा.

वैसे भी कमलदीप को मजबूरी में ही बाहर पढ़ने के लिए भेजना पड़ा था. 19 साल की उम्र तक विभिन्न कक्षाओं में 3 बार फेल होने के बाद वह सैकंड डिवीजन से इंटर की परीक्षा पास कर पाया था. मथुरा के आसपास ही नहीं, बल्कि दूरदराज के भी किसी कालेज में उसे दाखिला न मिलने की वजह से वैद्यजी को बेटे के भविष्य की चिंता थी. पढ़ाई में उस की कोई खास दिलचस्पी तो थी नहीं, बस लोकल ड्रामा कंपनियों के साथ रह कर तरहतरह के नाटकों में ज्यादातर लड़कियों की भूमिकाएं करने में उसे मजा आता था.

मथुरावृंदावन के सालाना जलसों में कृष्ण की रासलीला में राधा की भूमिका पर पिछले 3 साल से उस का एकाधिकार था. शहर के लोग वैद्यजी को बधाई देते हुए कमलदीप के अभिनय की तारीफ करते थे. मगर वैद्यजी को बेटे के रंगढंग देखते हुए उस के भविष्य की चिंता बनी रहती थी.

स्कूल में भी कमलदीप खाली समय में अपने साथियों के बीच लड़कियों की सी हरकतें तथा सिनेमा की नायिकाओं की नकल करता. अब तो उस का ज्यादातर समय किसी न किसी नाटक में अभिनय के बहाने रासलीला की रिहर्सल में बीतने लगा था. वैद्यजी का माथा तो तब ठनका जब उन्होंने बेटे को घर के पिछवाड़े  प्रेमिका के रूप में दूसरे लड़के के साथ रासक्रीड़ा की विभिन्न मुद्राओं में मग्न देखा.

उस घटना के बाद से वैद्यजी का मन व्याकुल था. तभी उन्होंने अगले दिन अखबारों में बड़ेबड़े विज्ञापन देखे कि दिल्ली के होटल अशोका में विश्वस्तर के कालेजों तथा विश्वविद्यालयों का मेला लग रहा है जिस में कौन्फ्रैंस, सेमिनार तथा काउंसलिंग के जरिए बच्चों के इंटरव्यू होंगे और उन को विदेशों में उच्च शिक्षा में ऐडमिशन मिलेगा.

वैद्यजी ने सोचा कि बेटा विदेश जा कर कुछ पढ़ाईलिखाई करेगा तो एक तो उस का कैरियर बन जाएगा और वहां उस का यह छिछोरापन भी धीरेधीरे समाप्त हो जाएगा. यही सोच कर वैद्यजी ने तुरंत कमलदीप को साथ ले कर दिल्ली चलने का फैसला किया.

काफी भागदौड़ के बाद कैलिफोर्निया के इंस्टिट्यूट औफ फैशन डिजाइनिंग में एक स्थानीय एजेंट ने उस के ऐडमिशन के लिए हां कर दी. ऐडमिशन की फीस, वीजा, जाने का खर्च और 1 साल की फीस तथा रहनेखाने का खर्च आदि मिला कर लगभग 12 लाख रुपए जमा कराने थे. वैद्यजी को रकम भारी तो लगी, मगर बेटे के भविष्य और उस के कैरियर की खातिर ऐडमिशन की तैयारी शुरू हो गई. डेढ़ महीने बाद बेटा फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने अमेरिका चला गया.

जहाज आ चुका था, अत: दोनों पतिपत्नी बाहर जा कर रेलिंग के सहारे खड़े हो गए. यात्रियों का आना शुरू हो गया था.

वैद्यजी पत्नी के साथ भीड़ में बहूबेटे को टटोल रहे थे कि पंडिताइन कुछ बेचैन सी घबराहट के साथ बोलीं कि आप ही ध्यान रखिए, मैं तो शायद उसे पहचान भी नहीं पाऊंगी. पिछले ढाई साल में अपना कमलदीप कितना बदल गया होगा. पंडितजी थोड़ा कटाक्ष से बोले, ‘‘तुम मां हो. अपने बेटे को नहीं पहचान पाओगी तो और कौन पहचानेगा? फिर भी कोई हिंदुस्तानी लड़का किसी गोरी अंगरेजन के साथ आता दिखाई दे तो समझ लेना कि तुम्हारा कमल ही होगा.’’

6 महीने पहले ही कमलदीप ने मां को बताया था कि वह 1 साल से किसी संस्था के साथ काम कर रहा है और एक घनिष्ठ मित्र के साथ ही एक कमरे के फ्लैट में रहता है. उसी के साथ उस ने पिछले महीने शादी भी कर ली है. उस का नाम जैक है और वह स्वीडन से है. दोनों का पिछले 1 साल में विदेशों में भी काफी आनाजाना रहा है. अभी तक कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्वीडन, स्पेन तथा यूरोप आदि के दौरे कर चुके हैं.

मातापिता भी यह सोच कर संतुष्ट थे कि शायद किसी अच्छे ओहदे पर बेटा काम कर रहा होगा क्योंकि एकडेढ़ साल में उस ने कोई रुपया नहीं मंगाया. अपना खर्च स्वयं चला रहा है और विदेशों में भी उस का काफी घूमनाफिरना रहता है. अत: बेटा अपने पैरों पर खड़ा है और शायद कामकाज की व्यस्तता के कारण ज्यादा बात नहीं कर पाता.

बस, 3 दिन पहले ही उस का टैलीफोन आया था कि एक हफ्ते के लिए वे दोनोें दिल्ली आ रहे हैं. दिल्ली में औल इंडिया कौन्फ्रैंस है तथा जरूरी मीटिंग्स अटैंड करनी हैं. अत: 1 दिन से ज्यादा वह उन के साथ नहीं रह पाएगा. आगे का कार्यक्रम वहीं पर डिसाइड होगा कि उन्हें कहांकहां जाना है और क्याक्या करना है.

आने वाले यात्रियों की जैसेजैसे भीड़ छंट रही थी, मातापिता की बेचैनी भी उसी तरह बढ़ रही थी. पंडिताइन रोंआसी सी आवाज में बोलीं, ‘‘बस जी, बहुत हो चुका, अब नहीं भेजना है उसे वापस. बहुत रह चुका विदेश में, दुनिया घूम चुका है. अब तो शादी भी कर ली है. बस, यहीं रहेगा, बहू के साथ, हमारे पास. आगे बच्चे होंगे, परिवार बढ़ेगा. कैसे संभालेंगे बच्चों को अकेले रह कर विदेश में, यहां किसी चीज की कमी नहीं है हमारे पास. बस, यहीं रहेगा और जो कुछ भी करना है करे, मगर करेगा यहीं रह कर.’’

वैद्यजी भी खामोशी में ऐसा ही कुछ सोच रहे थे कि पंडिताइन की हालत देख कर उन का भी दिल पसीज गया. अपनेआप को संभाला और पंडिताइन को सहारा दिया कि एकाएक 2 लड़के सामने से आते हुए वैद्यजी को दिखाई दिए जो थोड़ी दूर पर हंसते- खिलखिलाते से मस्ती के साथ अजीब से रंगरंगीले पहनावे में थे.

वैद्यजी बड़े उल्लास भरे स्वर में पंडिताइन से बोले, ‘‘लो, देखो, लगता है कि तुम्हारा लाल कमलदीप आ गया,’’ वैद्यजी थोड़ा और रुक कर बोले, ‘‘लेकिन इस के साथ तो कोई अंगरेज लड़का है. बहूरानी जैसी तो कोई उस के साथ दिखाई नहीं दे रही.’’

अपना चश्मा ठीक करती पंडिताइन बोलीं, ‘‘वह क्या कोई साड़ीलहंगा पहन कर आएगी यहां. आजकल तो सारे एक जैसे ही कपड़े पहनते हैं. लड़का हो या लड़की, सब एक जैसे लगते हैं. पहननेओढ़ने में, चालढाल में, बातचीत करने में और फिर उस की बहू तो अंगरेज है. आजकल तो कई बार लड़के और लड़की में कोई फर्क पता ही नहीं लगता.’’

देखते ही देखते दोनों थोड़ा और पास आ गए. कमलदीप ने अपने मातापिता को इंतजार करते हुए देख लिया और भागते हुए उन के पास आ गया. अपने साथी को वहीं छोड़ कर ऊंचे स्वर में कमलदीप दूर से ही चिल्लाया, ‘‘हाय डैड, हाय मौम. व्हाट हैपैंड टू यू, लुक टु बी वैरी सीरियस. आर यू औल राइट मौम. कम औन, आई एम हियर,’’ और कहतेकहते कमलदीप रेलिंग से बाहर आ गया.

पिताजी का आशीर्वाद और मां का प्यार बांधे रहा उसे थोड़ी देर. धीरेधीरे लग रहा था कि कमलदीप कितना बदल गया है. एक सभ्य घराने का लड़का और बोलचाल में, पहनावे में और चालढाल में लड़कियों जैसी हरकत करता है तथा कूल्हे मटकाते हुए हिजड़ों जैसी चाल चलता है. उस का जिप्सियों जैसा पहनावा, अजीबअजीब से रंगीन छोटेबड़े, ऊंचेनीचे कपड़े, कानों में बालियां, हाथों में मोटे कड़े, रंगीन चूडि़यों के साथ और गले में रंगीन रस्सियों की माला जिस में तरहतरह के रंगबिरंगे पत्थर गुथे हुए थे.

पंडिताइन से रहा नहीं गया तो बोलीं कि यह क्या हुलिया बनाया हुआ है तू ने? यह लड़कियों वाला भेष बना कर आया है तू यहां. कमलदीप बोला, ‘‘अरे, क्या मौम आप का वही पुराना घिसापिटा सा कल्चर, यू नो दिस इज द यूनीसैक्स ड्रैस-लेटैस्ट इन फैशन. यानी लड़के हों या लड़कियां अब सभी एक सी ही ड्रैस से काम चला लेते हैं.’’

वैद्यजी कुछ झिझकते हुए से बोले, ‘‘बेटा…लेकिन लेटैस्ट में लड़का लड़की तो नहीं बन जाता या वह भी है?’’

‘‘ओ, डैड यू आर ग्रेट. यू सीम टू अंडरस्टैंड एवरीथिंग वैरी क्विकली.’’

माताजी से रुका नहीं जा रहा था अत: बात बीच में ही काटते हुए कुछ संकुचित सी हो कर बोलीं, ‘‘तू ने तो शादी कर ली है न. कहां है बहू, तू लाने वाला था न अपने साथ.’’

‘‘ओ यैस, आई विल गिव यू ए बिग सरप्राइज. आई एम ट्र ू टू माई वर्ड्स,’’ और कहतेकहते उस ने अपने साथी जैक को आवाज दी, ‘‘कम हियर एंड मीट दैम, शी इज माई मौम एंड मीट माई डैड.’’

पंडिताइन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि बहू के नाम पर यह किस से मिला रहा है उन का बेटा.

सामने जैक खड़ा था. और वह भारतीय सभ्यता की नकल करता हुआ हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘‘हाय, डैड एंड मौम. आई एम जैक, योअर सन इन ला.’’ लेकिन जब उस ने आगे कहा, ‘‘होप यू लाइक मी टु बी द हसबैंड औफ योर सन के.डी.’’ उस की बात को आगे बढ़ाते हुए डिटेल में समझाते हुए कमलदीप ने कहा कि हम ने 6 महीने पहले ही कैलिफोर्निया कोर्ट में शादी की है. इट इज ए कौंट्रैक्चुअल मैरिज और कौंट्रैक्ट के अनुसार, हर 6 महीने बाद हमारे रिश्ते यानी कि हसबैंड और वाइफ के रिश्ते बदल जाते हैं. यानी शादी के समय जैक मेरी पत्नी थी और मैं उस का पति लेकिन पिछले 2 हफ्ते से जैक मेरा पति है और मैं इस की पत्नी.

यह सब कमलदीप एक ही सांस में कह गया, अमेरिकन अंगरेजी के साथ हिंदी में भी. मातापिता को दोनों की बातें सुन कर बड़ा अटपटा सा लगा. क्या बोल रहा है यह, कहीं कोई मजाक तो नहीं कर रहा है? वैद्यजी बड़े असमंजस में थे कि पंडिताइन बोलीं, ‘‘देखा आप ने, कैसा मजाक कर रहा है यह मांबाप के साथ. अमेरिका में क्या रहा कि सारी शर्म, मानमर्यादा, बड़ों का सम्मान सभी कुछ खो दिया इस ने, पता नहीं इस को कि बड़ों से ऐसा मजाक नहीं करते. समझाइए इसे आप ही, मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

वैद्यजी संभलते हुए बोले कि चलो, बहुत हो चुका मजाक, अब बताओ कि यह तुम्हारे साथ जैक कौन है, कहां से आया है और बहूरानी कहां है?

‘‘आई एम सीरियस डैड…आप क्या समझते हैं कि मैं आप से कोई मजाक करूंगा. दिस इज ट्रू, ही इज माई हसबैंड एंड आई एम हिज वाइफ सिंस लास्ट टू वीक्स. बिफोर दैट आई वाज हसबैंड एंड ही यूज्ड टु बी माई वाइफ,’’ कमलदीप यह सब कहता जा रहा था और वैद्यजी का पारा चढ़ता जा रहा था. चेहरा तमतमाने लगा, जिसे देख कर पंडिताइन ने भांप लिया कि कुछ गड़बड़ है जिसे वैद्यजी सहन नहीं कर पा रहे हैं. अत: पंडिताइन अपने पति का साथ देते हुए काफी उत्तेजित स्वर में बोलीं, ‘‘के.डी., ठीठीक क्यों नहीं बताता कि आखिर बात क्या है. पहेलियां बुझाना बंद कर और साफसाफ बता कि माजरा क्या है?’’

के.डी. हक्काबक्का सा सोच रहा था कि किन शब्दों में बताए इन को? पंडितजी के.डी. की बांह पकड़ कर पूरी ताकत से उसे झकझोरते हुए बोले, ‘‘यह नालायक क्या बताएगा तुम्हें, लड़की बन कर आया है तुम्हारे पास. यह कह रहा है कि जैक से उस ने शादी की है, वह इस का पति है और यह तुम्हारा लाड़ला इस की पत्नी.’’

पति के मुंह से यह सुनते ही पंडिताइन भी बौखला गईं और अपनी भरीभरी आवाज में चिल्लाईं, ‘‘बोलता क्यों नहीं कि यह सब झूठ है, क्या तू लड़का हो कर इस गधे की पत्नी बन कर रहेगा.’’

भारतीय संस्कृति और अपनी मर्यादा के लिए जब वैद्यजी से नहीं रहा गया तो उन्होंने आव देखा न ताव और बेटे के गाल पर जोर का तमाचा जड़ दिया. ‘व्हाई डिड यू हिट मी’ के साथ कमलदीप जोर से चीखा. चीख सुन कर जैक भी आवेश में बोला कि ‘‘हे मैन, हाऊ डेयर यू टच माई वाइफ एंड व्हाई दिस लेडी इज शाउटिंग एट हिम? यू हैव नो राइट टु स्कोल्ड हिम ऐंड बीट हिम, ही इज माय वाइफ.’’ इसी के साथ वह जोरजोर से चिल्लाने लगा.

शोरगुल में वहां भीड़ इकट्ठा हो गई. भीड़ देख कर एअरपोर्ट सिक्योरिटी प्रोटैक्शन फोर्स की पुलिस भी आ गई. इंस्पैक्टर ने झटपट कार्यवाही शुरू कर दी. भीड़ को तितरबितर किया तो बस 4 ही लोग बचे थे जिन के बीच झगड़ा था.

पूछताछ करने पर पता चला कि एक पक्ष मातापिता हैं जो अपने लड़के को डांट रहे हैं और अपने साथ ले जाना चाहते हैं. दूसरा पक्ष है 2 लड़के, जो विदेश से आए हैं. एक लड़का भारतीय, जिस के माता- पिता मौजूद हैं और दूसरा लड़का विदेशी, जो पहले लड़के को अपनी पत्नी बता रहा है और मातापिता पर जबरदस्ती उस को अपने साथ ले जाने का यानी अपहरण का आरोप लगा रहा है जबकि मातापिता का कहना है कि विदेशी लड़का बहलाफुसला कर उन के बेटे को अपनी पत्नी होने का दावा कर के उसे अपने साथ चलने को मजबूर कर रहा है और उन के बेटे का अपहरण करना चाहता है. बेटा है कि चुप खड़ा, कुछ बोलता ही नहीं.  पुलिस का मानना था कि किसी की पत्नी को जबरदस्ती पति से अलग करना और ले जाना अपहरण (किडनैपिंग) के अंतर्गत संगीन अपराध है. अत: सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और दोनों पक्षों को अलगअलग कोठरी में बंद कर दिया गया. वैद्यजी और पंडिताइन को एक कोठरी में और दोनों लड़कों को अलगअलग दूसरी तथा तीसरी कोठरी में. रात ढल रही थी, बोल दिया गया कि सुबह 10 बजे डीसीपी साहब के सामने सभी को पेश किया जाएगा.

पूछताछ के दौरान बताया गया कि भारतीय कानून की धारा 377 के अधीन एक ही सैक्स के 2 वयस्क चाहे वे 2 लड़के या 2 लड़कियां हों, आपस में संभोग नहीं कर सकते हैं. जैक ने अपना पासपोर्ट और मैरिज सर्टिफिकेट दिखाया और कहा कि हम लोगों ने कैलिफोर्निया में शादी की है और वहां का कानून इस शादी को पूर्णत: मान्यता देता है और वे लोग भारतीय कानून के अंतर्गत नहीं आते.

जैक का पलड़ा भारी था. डीसीपी ने कमलदीप का अलग से इंटरव्यू लिया, डांटा भी, समझाया भी कि क्यों भारतीय संस्कृति की धज्जियां उड़ा रहे हो? लेकिन उस ने एक न मानी. डीसीपी साहब मजबूर थे. मातापिता को बुला कर साफसाफ बता दिया कि इन दोनों लड़कों पर भारतीय कानून लागू नहीं होता और भारतीय पुलिस को विदेशी नागरिकों को उन के देश के कानून के तहत सुरक्षा देना जरूरी है. अत: वे या तो राजीनामा लिख कर और माफी मांगते हुए अपने घर वापस जाएं अन्यथा सभी को अदालत में  पेश कर के मुकदमा चलाया जाएगा.

मातापिता ने आपस में सलाह की कि जब अपना ही सिक्का खोटा है तो दूसरे का क्या दोष और माफीनामा लिख बेटे को उस के हाल पर छोड़ दिया. लौट आए वापस अपने घर, अपना सा मुंह ले कर, मातम सा माहौल बन गया घर में. शाम के वक्त अपने समाज के कुछ खास मिलने वालों को बेटेबहू से मिलाने के लिए न्योता भी दे चुके थे पर सभी को यह कह कर टाला कि उन का कार्यक्रम रद्द हो गया है. किसी जरूरी काम से उन्हें रुकना पड़ा और वे लोग नहीं आ पाए.

पहली बार वैद्यजी को लगा कि उन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए सचमुच झूठ बोला, झूठ का सहारा लिया. कितना व्याकुल हो रहा था उन का अंतर्मन कि एक सच को छिपाने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ा.

वैसे तो कई मामलों में कई बार झूठ बोलना पड़ता है लेकिन आज का झूठ उन से सहन नहीं हो पा रहा था. बेटे के प्यार और लगाव के कारण अंतर्मन में एक द्वंद्व सा चल रहा था. मातापिता का प्यार रोष में परिवर्तित हो रहा था. एक तरफ था मां का ममत्व और दूसरी तरफ था पिता का प्यार, जो अपने बेटे को अपने से ज्यादा उन्नत तथा प्रगतिशील इंसान के रूप में देखना चाहते थे जिस में खुद की योग्यता के सहारे, अपनेआप से दुनिया में हर तरह की विपदाओं को पार करते हुए समाज में अपना एक अस्तित्व बनाने की क्षमता हो. इसी परेशानी से जूझते हुए मातापिता रात भर सो नहीं पाए.

दोनों सोचते रहे, किसी के मरने पर सिर्फ मौत का ही गम होता है, मगर इज्जत तो नहीं जाती. यहां तो इज्जत का, अपनी संस्कृति का, अपनी मानमर्यादा का बखेड़ा खड़ा हुआ है. अगर शहर में किसी को भी पता चले तो समाज में वे क्या मुंह दिखाएंगे? क्या बहाना करें, कैसे टालें इस बात को, कैसे बचाएं अपनी इज्जत को? बस, यही सोचतेसोचते सवेरा हो गया.

सुबह की दिनचर्या शुरू हुई और दोनों के लिए सुबह की चाय तथा आज के ताजा अखबारों का पुलिंदा बरामदे में चटाई पर रखा था. पंडितजी आ कर बैठ गए. चश्मा लगाया और चाय का प्याला उठाया. अखबारों का पुलिंदा खोलते हुए मुख्य पेज की हैडलाइन पर नजर पड़ी कि धारा 377 के खिलाफ देश के सभी महानगरों में खुद को एल.जी.बी.टी. मानने वाले लोग एकजुट हो कर विशाल प्रदर्शन के साथ रैली निकाल रहे हैं और कल 28 जून, रविवार को भारत की राजधानी दिल्ली में एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया जा रहा है जिस में एल.जी.बी.टी. के सभी सदस्य देश के विभिन्न शहरों तथा विदेशों से भारी संख्या में एकत्रित हो कर विशाल रैली का आयोजन कर रहे हैं. यह रैली इंडिया गेट से चल कर राजपथ, जनपथ होते हुए संसद मार्ग स्थित जंतरमंतर पर आएगी और यहां से संसद भवन के सामने प्रदर्शन होगा और मांगें रखी जाएंगी.  इस ऐतिहासिक रैली का नेतृत्व कैलिफोर्निया से आई युवा जोड़ी करेगी. के.डी. जोकि कैलिफोर्निया में भारतीय प्रवासी हैं और उन के पति जैक जो स्वीडन से हैं. दोनों ने कैलिफोर्निया में शादी की है और पतिपत्नी के रूप में रह रहे हैं.

काफी देर तक पंडितजी अखबारों को उलटपलट कर देखते रहे. तभी पंडिताइन भी आ पहुंचीं और बोलीं कि आज के अखबार में ऐसा क्या ढूंढ़ रहे हैं कि आप को इतनी आवाजें दीं पर आप ने कोई जवाब नहीं दिया.

थोड़ा उत्तेजित हो कर वैद्यजी बोले, ‘‘देखो, तुम्हारा बेटा क्या गुल खिला रहा है. पत्नी बन कर लौटा है विदेश से अपने पति के साथ. बस, इसी का ढिंढोरा पीटने आया है यहां. कल दिल्ली में इन दोनों के नेतृत्व में एक विशाल रैली का आयोजन किया जा रहा है. इन की मांग है कि 2 वयस्कों के बीच चाहे दोनों लड़के हों या लड़कियां, आपस में यौन संबंधों को तथा शादी करने के अधिकारों को मान्यता देनी होगी और धारा 377 को कानून की किताब से हटाना होगा. इन का मानना है कि 2 वयस्कों के बीच किसी भी प्रकार की सैक्स क्रियाएं तथा यौन संबंधों के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए.

‘‘2 जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय में इसी मामले में इन की याचिका पर सुनवाई होगी, जिस के लिए देश के मान्यताप्राप्त वकीलों को इन के हक में पैरवी करने के लिए बुलाया जा रहा है. इन का मानना है कि भारत को अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारते हुए दुनिया के अग्रसर देशों की पंक्ति में खड़े हो कर, दुनिया में अपनी एक नई पहचान बनाते हुए 100 साल से ज्यादा पुरानी कानूनी धारा 377 को मिटाना होगा.

‘‘आधुनिक युग में देश की युवा पीढ़ी पर सैक्स क्रियाएं तथा आपसी यौन संबंधों को ले कर किसी प्रकार के भय के दायरे में रहना बहुत भारी मानसिक दबाव है और यह मानव अधिकार के विरुद्ध भी है तथा देश की उन्नति के लिए बहुत बड़ी रुकावट है. आज की युवा पीढ़ी को चाहिए पूर्ण स्वतंत्रता अपने विचारों की, सोच की, काम करने की, जीने की और आगे बढ़ने की.’’

वैद्यजी घूरती निगाहों से पंडिताइन को देखते हुए आगे बोले, ‘‘देख लो, अपने लाड़ले को. हम ने तो उसे अमेरिका पढ़ने के लिए भेजा था कि यहां आ कर अपना कुछ बड़ा काम करेगा. बड़ा आदमी बनेगा, कुछ नाम रोशन करेगा और हमारा नाम भी रोशन होगा. हां, बड़ा आदमी तो नहीं बन सका, वहां जा कर पत्नी बन कर जरूर आ गया और नाम तो रोशन कर ही रहा है, सारे अखबारों में उस की चर्चा छपी है.’’

सुबहशाम खाली समय में यही चर्चा   का एक मुद्दा था. तरहतरह के  सवाल भी उठते रहे और सारा इतिहास भी चर्चित होता रहा. धीरेधीरे दिमाग से रूढि़वादिता के परदे उठने शुरू हुए जब चर्चा चली कि महाराज दशरथ की 3 रानियां थीं, द्रौपदी के 5 पति, कृष्ण की अनेक प्रेमिकाएं. शादी तो की रुक्मिणी से और अपने साथ रखा राधा को. सारी दुनिया के सामने खुलेआम आज भी चर्चा राधा और कृष्ण की होती है. रुक्मिणी और उन के बच्चों के बारे में किस को कितना मालूम?

वात्स्यायन का कामसूत्र, अजंताएलोरा की गुफाओं में विभिन्न मुद्राओं में सामूहिक संभोग की विभिन्न क्रियाओं का खुलेआम जनता के लिए सचित्र प्रदर्शन. वेश्यावृत्ति का प्रचलन तो सदियों से चला आ रहा है. वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली, चित्रलेखा, वसंतसेना…आदि न जाने कितने ही नाम लीजिए, जिन्हें राजनर्तकियों का सम्मान प्राप्त था.

समाज तो जनता का समूह है. समाज के कर्ताधर्ता समाज के माननीय कर्णधार जब अपनी हवस मिटाने के लिए किसी भी तरह का कोई असामाजिक काम कर बैठते हैं तो उन के विरुद्ध कौन आवाज उठाने की हिम्मत करे? बल्कि समाज के लिए वही एक नया प्रचलन शुरू हो जाता है और बस, धीरेधीरे समाज के लोग भी उन्हीं पदचिह्नों पर चलते हुए इसे सामाजिक पद्धति का हिस्सा मानने लगते हैं.

यहां तक कि पुराने जमींदार तो किसी मनचाही स्त्री को उठवा लेते थे और बाद में सलामती के साथ उसे घर भेज देते थे. घर वालों को थोड़ा सा मेहनताना दे देते थे और यदि कहीं किसी ने धौंस दिखाई तो तबाही का रास्ता अपना लेते थे. पहले जमाने में क्याक्या जुल्म नहीं होते थे. मजाल थी किसी की कि परदे से बाहर निकले और बोल दे किसी के सामने. भेड़बकरियों की तरह औरतों से भरे होते थे राजामहाराजाओं तथा रईसों के हरम. कानून भी तो जनता के लिए कम, हुकूमत के लिए ज्यादा काम करता है.

गंभीर हो गए दोनों कि बातें कहां से चलीं और क्या मोड़ ले बैठीं. ऐसी ही होती हैं बातें. ज्यादा बातें बस, बाल की खाल. कहीं से शुरू और पता नहीं किसकिस को लपेट लें. खैर, सोचविचार और सभी बातों का निष्कर्ष यही निकला कि आज जो भी कुछ हो रहा है, कोई नया तो है नहीं. ये सब क्रियाएं तो सदियों से चली आ रही हैं. बस, समय और जरूरत के अनुसार तरीके बदल रहे हैं. इसी तरह सामाजिक प्रचलन भी बदलता रहता है.

रोजाना अखबारों में तरहतरह के लेख छपने लगे. जैसे किसी सामाजिक बदलाव के लिए एक अभियान चालू हो गया हो. अलगअलग अखबारों में विज्ञापन तथा समीक्षाएं आती रहीं. वीमन लिबरेशन, फ्री सैक्स, लिव इन रिलेशन- शिप, यूनिसैक्स सैलून तथा ड्रैसेज, गे टूरिज्म, गे-कल्चर आदि. 2 जुलाई को सभी अखबारों में रेडियो और टैलीविजन के लगभग सभी चैनलों पर दिल्ली उच्च न्यायालय के एल.जी.बी.टी. के हक में फैसले की समीक्षा के अलावा इस पर पक्षविपक्ष के वादविवाद भी चलते रहे.

दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार अब किसी भी प्रकार की सैक्स क्रियाएं कानून के दायरे से बाहर हैं. अगले दिन 3 जुलाई के अखबारों में एक ही चर्चा थी. देश के सभी महानगरों में एल.जी.बी.टी. के सदस्य और उन के समर्थक उल्लास प्रदर्शित करते रहे. जगहजगह जुलूस निकाले गए.

एल.जी.बी.टी. की अलगअलग शाखाओं में रात भर उन के सदस्य अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाते रहे. सब से ज्यादा चर्चा का विषय था कमलदीप और उस का पति जैक. सभी अखबारों में इन दोनों के दांपत्य जीवन के बारे में लेख प्रकाशित हुए. इस युवा जोड़ी को सब की सहमति से समाज के इस ऐतिहासिक बदलाव का हीरो मान लिया गया. हर चैनल पर उन दोनों का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था. इन का कहना है कि दुनियाभर के ज्यादातर विकसित देशों ने 2 वयस्कों को चाहे वे दोनों लड़के हों या लड़कियां, आपस में मरजी से साथ रहने की और शादी करने की मान्यता दी हुई है. अत: हमारा अभियान अभी पूरा नहीं हुआ. इस के लिए देश के ब्याहशादी के कानून में बदलाव जरूरी है. अत: इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए एल.जी.बी.टी. के कार्यकर्ता एक घोषणापत्र जारी करेंगे जिस की ड्राफ्ंिटग की जा रही है और शीघ्र ही इस के अनुसार कार्यवाही चालू की जाएगी. सामने बैठे एक चैनल के प्रतिनिधि ने आगे के कार्यक्रम तथा कार्ययोजना पर उन से संक्षिप्त में प्रकाश डालने का आग्रह किया.  कमलदीप और जैक ने एकदूसरे के साथ भाषा तथा विचारों का तालमेल जोड़ते हुए अपनी संस्था की कार्यप्रणाली की समीक्षा कुछ इस प्रकार की :

एल.जी.बी.टी. का पहला कार्यक्रम है, जन जागरूकता अभियान. सभी एल.जी.बी.टी. के सदस्य अपनेअपने क्षेत्रों में सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देते हुए जनता के हृदय से रूढि़वादिता का सामाजिक भय समाप्त करेंगे.

दूसरा प्रोग्राम है, दहेज प्रथा की समाप्ति. सभी महानगरों में एल.जी.बी.टी. हौस्टल बनाए जाएंगे जहां शादी से पहले लिव इन रिलेशन के तहत बाहर से आए लड़के और लड़कियों को अपने मनचाहे साथी के साथ रहने की सुविधा होगी. इस तरह सामाजिक जानकारी तथा आपस में विचारों का आदानप्रदान करते हुए अपने जीवनसाथी का वे स्वयं ही चुनाव कर सकेंगे, बिना किसी रोकटोक अथवा दानदहेज के. संस्था के द्वारा कौंट्रैक्चुअल शादी का प्रयोजन तथा सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी.

तीसरा उद्देश्य है, तलाक के मामलों में कटौती. युवाओं के साथसाथ रहने के बाद भी शादी के गठबंधन को स्वीकार या अस्वीकार करने की छूट. कौंट्रैक्चुअल शादी के प्रचलन से अदालतों के फैसले का जीवन भर इंतजार नहीं करना होगा जिस से वकीलों की भारी फीस तथा जीवन का एक अमूल्य भाग नष्ट होने से रोका जा सकेगा. साथ ही संस्था की काउंसलिंग शाखा द्वारा आपस में मेलजोल व समन्वय का माहौल बना रहेगा. युवा पीढ़ी अपने साथ कामकाज तथा कैरियर की ओर ज्यादा ध्यान देगी. उस पर मानसिक दबाव कम होने से देश की कार्यप्रणाली का विकास होगा.

चौथा उद्देश्य है, हर बड़े शहर में एल.जी.बी.टी. क्लबों की स्थाप. यहां पर आधुनिक सैक्स शिक्षा का प्रावधान होगा. सुरक्षित सैक्स तथा अलगअलग सैक्स क्रियाओं के बारे में वीडियो कौन्फ्रैंस के माध्यम से शिक्षा दी जाएगी.

एड्स या एचआईवी जैसी घातक बीमारियों की रोकथाम तथा एम.एम. सैक्स, डब्ल्यू.एम. सैक्स, डब्ल्यूडब्ल्यू सैक्स, बाई सैक्स और ट्रांस सैक्स के अलावा पी.वी. सैक्स, ऐनल सैक्स, ओरल सैक्स तथा रौबोटिक एवं आर्टीफिशियली असिस्टेड सैक्स आदि के बारे में भी ज्ञानार्जन की सुविधा होगी. इस के साथसाथ हमारे हैड औफिस में एक विंग की स्थापना करते हुए कामसूत्र जैसे ग्रंथों को अपग्रेड किया जाएगा. इस अपग्रेडेशन से आधुनिक सैक्स क्रियाओं का सचित्र विवरण सामने आएगा.

हमारा पांचवां उद्देश्य, डी.आई.एन.के. यानी ‘डबल इनकम एंड नो किड’ को बढ़ावा देते हुए देश की बढ़ती जनसंख्या की रोकथाम तथा भुखमरी की समाप्ति. ‘फ्री सैक्स’, ‘लिव इन रिलेशनशिप’, ‘गे’ तथा ‘लेस्बियन’ विवाह आदि के प्रचलन से प्राकृतिक प्रजनन में कमी आ जाएगी. ऐसी युवा जोडि़यों की आमदनी दोगुनी होगी और बच्चों का भार भी उन के ऊपर नहीं होगा.

फिर भी ऐसी युवा जोड़ी अगर शादी के बाद या बिना शादी के भी अपना घर बसाने के लिए बच्चे चाहेंगी तो वे अनाथ आश्रमों से अथवा भिखारियों के बच्चों को गोद ले सकेंगे, जिस से गरीब परिवारों का आर्थिक संकट दूर होगा और बिना मांबाप के बच्चों का सही ढंग से लालनपालन तथा उन की पढ़ाईलिखाई ठीक से हो सकेगी. ऐसे बच्चे समाज के साथ देश के सुदृढ़ नागरिक बन सकेंगे. इस तरह देश के भावी कर्णधारों को उच्चस्तर के परिवार में रहनसहन के अवसर प्राप्त होंगे. इस से देश का आध्यात्मिक, आर्थिक, वैज्ञानिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में विकास होगा.

इन सब गतिविधियों को देखते हुए तथा समाज के बदलते हुए चलन को समझते हुए मातापिता यानी पंडिताइन और वैद्यजी का मानसिक दबाव कुछ कम होना शुरू हुआ. शाम तक समाज के लोग उन के घर आने शुरू हो गए और मातापिता को उन के होनहार बेटे के लिए बधाई देते रहे. मातापिता चुपचाप तमाशा देख रहे थे, समझ में नहीं आया कि ये सब उन का मजाक उड़ा रहे हैं या वास्तव में उन का बेटा हीरो बन चुका है.

दूसरा कदम: रिश्तों के बीच जब आ जाएं रुपए-पैसों

कैसा जमाना आ गया है. यदि कोई प्यार से मिलता है और बारबार मिलना चाहता है तो पता नहीं क्यों हमारी छठी इंद्री हमें यह संकेत देने लगती है कि सामने वाले पर शक किया जाए. यह इंसान क्यों मिलता है? और फिर इतने प्यार से मिलता है कि शक तो होगा ही. वैसे हमारे पास ऐसा है ही क्या जिस पर किसी की नजर हो. एक मध्यमवर्गीय परिवार के पास ऐसी कोई दौलत नहीं हो सकती जिसे कोई चुरा ले जाए. बस, किसी तरह चादर में पैर समेटे अपना जीवन और उस की जरूरतें पूरी कर लेता है एक आम मध्यमवर्गीय मानस. पार्क में सुबह टहलने जाता हूं तो एक 26-27 साल का लड़का हर दिन मिलता है. जौगिंग करता आता है और पास आ कर यों देखने लगता है मानो मेरा ही इंतजार था उसे.

‘‘कैसे हैं आप, कल आप आए नहीं? मैं इंतजार करता रहा.’’

‘‘क्यों?’’ सहसा मुंह से निकल गया और साथ ही अपने शब्दों की कठोरता पर स्वयं ही क्रोध भी आया मुझे.

‘‘नहीं, कोई खास काम भी नहीं था. हां, रोज आप को देखता हूं न. आप अच्छे लगते हैं और सच कहूं तो आप को देख कर दिन अच्छा बीत जाता है.’’

वह भी अपने ही शब्दों पर जरा सा झेंप गया था.

पार्क से आने के बाद पत्नी से बात की तो कहने लगी, ‘‘आप बैंक में ऊंचे पद पर काम करते हैं. कोई कर्जवर्ज उसे लेना होगा इसीलिए जानपहचान बढ़ाना चाहता होगा.’’

‘‘हो सकता है कोई वजह होगी. ऐसा भी होता है क्या कि किसी का चेहरा देख कर दिन अच्छा बीते. अजीब लगता है मुझे उस का व्यवहार. बेकार की चापलूसी.’’

‘‘आप को देख कर कोई खुश होता है तो इस से भला आप को क्या तकलीफ है,’’ पत्नी बोली, ‘‘आप की सूरत देख कर उस का दिन अच्छा निकलता है तो इस का मतलब आप की सूरत किसी की खुशी का कारण है.’’

‘‘हद हो गई, तुम भी ऐसी ही सिरफिरी बातें करने लगी हो.’’

‘‘कई बातें हर तर्कवितर्क से परे होती हैं श्रीमान. बिना वजह आप उसे अच्छे लगते हैं. अगर बिना वजह बुरे लगने लगते तो आप क्या कर लेते. घटना को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए. बिना वजह प्यार से कैसा डर. अच्छी बात है. आप भी उस से दोस्ती कर लीजिए… घर बुलाइए उसे. हमारे बच्चे जैसा ही होगा.’’

‘‘इतना भी छोटा नहीं लगता. हमारे बच्चों से तो उम्र में बड़ा ही है. चलो, छोड़ो किस बखेड़े में पड़ गईं तुम भी.’’

मैं ने पत्नी को टालने का उपक्रम किया, लेकिन पत्नी की बातों की गहराई को पूरी तरह नकार कहां पाया. सच कहती है मेरी पत्नी शुभा. मनोविज्ञान की प्राध्यापिका है न, हर बात को मनोविज्ञान की कसौटी पर ही तोलना उस की आदत है. कहीं न कहीं कुछ तो सच होगा जिसे हम सिर्फ महसूस ही कर पाते हैं.

सच में वह लड़का मुझे देख कर इतना खुश होता है कि उस की आंखों में ठहरा पानी हिलने लगता है. मानो पलकपांवड़े बिछाए वह बस मुझे ही देख लेना चाहता हो. ज्यादा बात नहीं करता. बस, हालचाल पूछ कर चुपचाप लौट जाता है, लेकिन उस का आनाजाना भी धीरेधीरे बहुत अच्छा लगने लगा है. मैं भी जैसे ही पार्क में पैर रखता हूं, मेरी नजरें भी उसे ढूंढ़ने लगती हैं. दूर से ही हाथ हिला कर हंस देना मेरी और उस की दोनों की ही आदत सी बन गई है. शब्दों के बिना हमारे हावभाव बात करते हैं, आंखें बात करती हैं, जिन में अनकहा सा स्नेह और अपनत्व महसूस होने लगा है. एक अनकहा संदेश जो सिर्फ इतना सा है कि आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. शुभा अकसर मुझे समझाती रहती है,

‘‘चिंता करना अच्छी बात है,

क्योंकि अगर हमें हर काम ठीक ढंग से करना है तो जरा सी चिंता करना जरूरी है, इतनी जितनी हम सब्जी में हींग डालते हैं. आप तो इतनी चिंता करते हो जितनी चाय में दूध, पत्ती और चीनी.’’

‘‘तुम्हारे कहने का अर्थ मैं यह निकालूं कि मैं काम कम और चिंता ज्यादा करता हूं. शौक है मुझे चिंता करने का.’’

‘‘जी हां, चिंता को ओढ़ लेना आप को अच्छा लगता है जबकि सच यह है कि जिस काम की आप चिंता कर रहे होते हैं वह चिंता लायक होता ही नहीं. अब कोई प्यार से मिल रहा है तो उस की भी चिंता. जरा सोचिए, इस की कैसी चिंता.’’

मेरी सैर अभी शुरू ही होती थी और उस की समाप्त हो जाती. पार्क के बाहर खड़ी साइकिल उठा कर वह हाथ हिलाता हुआ चला जाता. जहां तक मुझे इंसान की पहचान है, इतना कह सकता हूं कि वह अच्छे घर का लगता है.

मेरे दोनों बेटे बेंगलुरु में पढ़ाई करते हैं. उन के बिना घर खालीखाली लगता है और अकसर उसे देख कर उन की याद आती है. एक सुबह पार्क में सैर करना अभी शुरू ही किया था कि पता नहीं चला कैसे पैर में मोच आ गई. वह मुझे संभालने के लिए बिजली की गति से चला आया था.

‘‘क्या हुआ सर? जरा संभल कर. आइए, यहां बैठ जाइए.’’

उस बच्चे ने मुझे बिठा कर मेरा पैर सीधा किया. थोड़ी देर दबाता रहा.

‘‘आज सैर रहने दीजिए. चलिए, आप को आप के घर छोड़ आऊं.’’

संयोग ऐसा बन जाएगा किस ने सोचा था. पैर में मोच का आना उसे हमारे घर तक ले आया. शुभा हम दोनों को देख कर पहले तो घबराई फिर सदा की तरह सहज भाव में बोली, ‘‘हर पीड़ा के पीछे कोई खुशी होती है. मोच आई तो तुम भी हमारे घर पर आए. रोज तुम्हारी बातें करते हैं हम,’’ मुझे बिठाते हुए शुभा ने बात शुरू की तो वह भी हंस पड़ा.

बातों से पता चला कि वह भी जम्मू का रहने वाला है. हमारे बीच बातों का सिलसिला चला तो दूर तक…हमारे घर तक…हमारे अपने परिवार तक. हमारा परिवार जिस से आज मेरा कोई वास्ता नहीं है. मैं आज दिल्ली में रह रहा हूं.

‘‘जम्मू में आप का घर किस महल्ले में है, सर?’’

मैं बात को टालना चाहता था. मेरी एक दुखती रग है मेरा घर, मेरा जम्मू वाला घर, जिस पर अनायास उस का हाथ जो पड़ गया था. बड़े भाई को लगता था मैं उन का हिस्सा खा जाऊंगा और मुझे लगता था घर में मेरी बातबात पर बेइज्जती होती है. जब भी मैं घर जाता था मेरी मां को भी ऐसा ही लगता था कि शायद मैं अपना हिस्सा ही मांगने चला आया हूं. हम जब भी घर जाते तो मां शुभा पर यों बरस पड़ती थीं मानो सारा दोष उस का ही हो. मेहमान की तरह साल में हमारा 4 दिन जम्मू जाना भी उन्हें भारी लगता. भाईसाहब से मिले सालों बीत चुके हैं. उन का बड़ा लड़का सुना है मुंबई में किसी कंपनी में काम करता है और लड़की की शादी हो गई. किसी ने बुलाया नहीं. हम गए नहीं. जम्मू में है कौन जिस का नाम लूं अब.

‘‘सर, जम्मू में आप का घर कहां है? आप के भाईबहन तो होंगे न? क्या आप उन के पास भी नहीं जाते?’’

‘‘नहीं जाते बेटा, ऐसा है न… कभीकभी कुछ सह लेने की ताकत ही नहीं रहती. जब लगा घर जा कर न घर वालों को सुख दे पाऊंगा न अपनेआप को, तब जाना ही छोड़ दिया. मैं भी खुश और घर वाले भी खुश…

‘‘…अब तो मुझे किसी की सूरत भी याद नहीं. भाईसाहब के बच्चे सड़क पर ही मिल जाएं तो मैं पहचान भी नहीं सकता. उन के नाम तक नहीं मालूम. जम्मू का नाम भी मैं लेना नहीं चाहता. तकलीफ सी होती है. तुम जम्मू से हो शायद इसीलिए अपने से लगते हो. मिट्टी का रिश्ता है इसीलिए तुम्हें मैं अच्छा लगा और मुझे तुम.’’

‘‘आप के बच्चे कहां हैं?’’ वह बोला.

‘‘2 जुड़वां बेटे हैं. दोनों बेंगलुरु में एमबीए कर रहे हैं. इस साल वे पढ़ाई पूरी कर लेंगे. देखते हैं नौकरी कहां मिलती है.’’

‘‘तुम कहां रहते हो बेटा? क्या काम करते हो?’’

‘‘मैं भी एमबीए हूं. अभी कुछ दिन पहले ही मुंबई से ट्रांसफर हो कर दिल्ली आया हूं, राजौरी गार्डन में हमारी कंपनी का गैस्टहाउस है. 3 महीने का प्रोजैक्ट है मेरा.’’

‘‘मेरे बड़े भाई का बेटा भी वहीं है. अब क्या नाम है यह तो पता नहीं पर बचपन में उसे वीनू कहा करते थे.’’

‘‘आप उस की कंपनी का पता और नाम बता दें.’’

‘‘इतना सब पता किसे है. अपना ही बच्चा है पर मैं उसे पहचान भी नहीं सकता. अफसोस होता है मुझे कि हम अपने बच्चों को क्या विरासत दे कर जाएंगे. मेरे दोनों बेटे अपने उस भाई को नहीं पहचानते. बहन की सूरत कैसी है, नहीं पता. आज हम अपने पड़ोसी की परवा नहीं करेंगे तो कल वह भी मेरे काम नहीं आएगा. इस हाथ दे उस हाथ ले की तर्ज पर बड़ा अच्छा निबाह कर लेते हैं क्योंकि हमारी हार्दिक इच्छा होती है उस से निभाने की. दोस्त के साथ भी हमारा साथ लंबा चलता है.

‘‘एक भाई के साथ ही झगड़ा, भाई प्यार भी करे तो दुश्मन लगे. भाई की हमदर्दी भी शक के घेरे में, भाई का ईमान भी धोखा. सिर्फ इसलिए कि वह जमीनजायदाद में हिस्सेदार होता है.’’

‘‘आप फिर से वही सब ले कर बैठ गए,’’ शुभा बोली, ‘‘भाई की बेटी की शादी में न जाने का फैसला तो आप का ही था न.’’

‘‘भाई ने बुलाया नहीं. मैं ने फोन पर बात करनी चाही तो भी जलीकटी सुना दी. क्या करने जाता वहां.’’

‘‘चलो, अब छोड़ो इस किस्से को.’’

‘‘यही तो समस्या है आप लोगों की कि किसी भी समस्या को सुलझा लेना तो आप चाहते ही नहीं हैं. हाथ पकड़ कर भाई से पूछते तो सही कि क्यों नाराज हैं? क्या बिगाड़ा है आप ने उन का? अपनाअपना खानापीना, दूरदूर रहना, न कुछ लेना न कुछ देना फिर भी नाराजगी,’’ इतना कह कर वह लड़का बारीबारी से हम दोनों का चेहरा पढ़ रहा था.

‘‘अब टैंशन ले कर मत बैठ जाना,’’ शुभा बोली थी.

‘‘कोई तमाशा न हो इसीलिए तो जम्मू को छोड़ दिया. मेरी इच्छा तमाशा करने की कभी नहीं रही.’’

शुभा ने किसी तरह बात को टालने का प्रयास किया, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है, बेटा?’’

वह लड़का एकटक हमें निहार रहा था. आंखों में झिलमिल करता पानी जैसे लबालब कटोरों में से छलकने ही वाला हो.

‘‘चाची, मेरा नाम आज भी वीनू ही है. मैं सोनूमोनू का बड़ा भाई हूं. मैं आप का अपना ही हूं. आप के घर का झगड़ा सिर्फ आप के घर का झगड़ा नहीं है. मेरे घर का भी है.’’

ऐसा लगा मानो पवन का ठंडा झोंका हमारे घर में चला आया और हर कोने में समा गया.

‘‘आप हार गए चाचू, इतने दिन से मुझे देख रहे हैं, पर अपना खून आप से पहचाना नहीं गया. सच कहा आप ने अभीअभी. यह कैसी विरासत दे कर जा रहे हैं आप सोनूमोनू को और मुझे. मेरी तो यही कामना है कि पापा और आप लाख वर्ष जिएं, लेकिन जिस दिन आप की अरथी उठानी पड़ी सोनूमोनू तो 2 भाई हैं किसी तरह उठा कर श्मशान तक ले ही जाएंगे पर ऐसी स्थिति में मैं अकेला क्या करूंगा, चाचू. कैसे मैं अकेला पापा की अरथी को खींच पाऊंगा. क्या करूंगा? ये कैसे बीज बो दिए हैं हमारे बुजुर्गों ने जिस की फसल हमें काटनी पड़ेगी.’’

फफकफफक कर रोने लगा वह लड़का. शुभा और मैं यों खड़े थे मानो पैरों के नीचे जमीन ही नहीं रही. विश्वास नहीं हो रहा था हमें कि 6 फुट का यह लंबाचौड़ा प्यारा सा नौजवान मेरा ही खून है जिसे मैं पहचान ही नहीं पाया.

बचपन में यह मुझे घोड़ा बना कर मेरी सवारी किया करता था. आज वास्तव में यह दावा कर सकता है कि मेरा खून भी उस के पिता के खून की तरह सफेद हो चुका है. अगर मेरा खून लाल होता तो मैं अपने बच्चे को पहचान नहीं जाता.

शुभा ने हाथ बढ़ाया तो वीनू उस की गोद में समा कर यों रोने लगा मानो अभी भी 4-5 साल का ही हो. हमारे बच्चे तो शादी के 5 साल बाद जन्मे थे, तब तक वीनू ही तो शुभा का खिलौना था.

‘‘चाची, आप ने भी नहीं पहचाना.’’

क्या कहती शुभा. वीनू का माथा बारबार चूमते हुए उस के आंसू पोंछती रही. क्या उत्तर है शुभा के पास और क्या उत्तर है मेरे पास. जम्मू में 4 कमरों का एक छोटा सा हमारा घर है, जिस पर मैं ने अपना अधिकार छोड़ दिया था और भाई ने उसे कस कर पकड़ लिया था. सोचा जाए तो उस के बाद क्या हुआ. क्या मैं सुखी हो पाया? या भाईसाहब खुश रहे. हाथ तो कुछ नहीं आया. हां, बच्चे जरूर दूरदूर हो गए जो आज हम से प्रश्न कर रहे हैं. सच ही तो पूछ रहे हैं. मकान में कुछ हजार का हिस्सा छोड़ कर क्याक्या छोड़ दिया. लाखोंकरोड़ों से भी महंगा हमारा रिश्ता, हमारा पारिवारिक स्नेह.

पास जा कर मैं ने उसे थपथपाया. देर तक हमारे गिलेशिकवों और शिकायतों का दौर चला. ऐसा लगा सारा संताप चला गया. शुभा ने वीनू की पसंद का नाश्ता बनाया. हमारे घर ही नहायाधोया वीनू और मेरा पाजामाकुरता पहना.

‘‘चाचू, देखो, मैं बड़ा हो गया हूं और आप छोटे,’’ कुरतापाजामा पहन वीनू हंसने लगा.

‘‘बच्चे समझदार हो जाएं तो मांबाप को छोटा बन कर भी खुशी होती है. मेरा तो यह सोचना है कि बेटा अगर कपूत है तो क्यों उस के लिए बचाबचा कर रखना और घर जायदाद को भी किसी के साथ न बांटना. अगर भाईसाहब से मैं ने कुछ नहीं मांगा तो क्या आज सड़क पर बैठा हूं? अपना घर है न मेरा. सोनूमोनू भी अपनाअपना घर बना ही लेंगे, जितनी उन की सामर्थ्य होगी. मैं ने उन्हें भी समझा दिया है. पीछे मुड़ कर मत देखना कि पिता के पास क्या है?

‘‘पिता की दो कौडि़यों के लिए अपना रिश्ता कभी कड़वा मत करना. रुपयों का क्या है, आज इस हाथ कल उस हाथ. जो चीज एक जगह कभी टिकती ही नहीं उस के लिए अपने रिश्तों की बलि दे देना कोरी मूर्खता है. अपनों को छोड़ कर भी हम उन्हें छोड़ पाते हैं ऐसा तो कभी नहीं होता. उन की बुराई ही करने के बहाने हम उन का नाम तो दिनरात जपते हैं. कहां भूला जाता है अपना भाई, अपनी बहन और अपना रूठा रिश्ता. रिश्ते को खोना भी कोई नहीं चाहता और रिश्ते को बचाने के लिए मेहनत भी कोई नहीं करता.’’

मेरे पास आ कर बैठ गया था वीनू. अपलक मुझे निहारने लगा. शुभा का हाथ भी कस कर पकड़ रखा था वीनू ने.

‘‘चाची, अगले महीने मेरी शादी है. आप दोनों के बिना तो होगी नहीं. सोनू व मोनू से भी बात कर चुका हूं मैं, अगले महीने उन के फाइनल हो जाएंगे. यह मैं जानता हूं. शादी उस के बाद ही होगी. अपने भाइयों के बिना क्या मैं अधूरा दूल्हा नहीं लगूंगा.’’

एक और सत्य पर से परदा उठाया वीनू ने. खुशी के मारे हम दोनों की आंखों से आंसू निकल आए. वीनू की आंखें भी भीगी थीं. रोतेरोते हंस पड़ा मैं. भाई साहब द्वारा की गई सारी बेरुखी शून्य में कहीं खो सी गई.

वीनू को कस कर गले से लगा लिया मैं ने. रिश्तों को बचाने के लिए और कितनी मेहनत करेगा यह बच्चा. ताली तो दोनों हाथों से बजती है न. बच्चों के साथ हमें भी तो दूसरा कदम उठाना चाहिए.

वहम: क्या कोई राज छिपा रही थी शैलजा?

सागर का शिप बैंकौक से मुंबई के लिए सेल करने को तैयार था. वह इंजनरूम में अपनी शिफ्ट में था. उस का शिप मुंबई से बैंकौक, सिंगापुर, हौंगकौंग होते हुए टोक्यो जाता था. वापसी में वह बैंकौक तक आ गया था. तभी शिप के ब्रिज (इसे कंट्रोलरूम कह सकते हैं) से आदेश आया रैडी टु सेल.  सागर ने शक्तिशाली एअर कंप्रैसर स्टार्ट कर दिया. जैसे ही ब्रिज से आदेश मिला ‘डैड स्लो अहेड’ उस ने इंजन में कंप्रैस्ड एअर और तेल छोड़ा और जहाज बैंकौक पोर्ट से निकल पड़ा. फिर ऊपर ब्रिज से जैसा आदेश मिलता, जहाज स्लो या फास्ट स्पीड से चलता गया. आधे घंटे के अंदर ही जहाज हाई सी में था. तब और्डर मिला ‘फुल अहेड.’

अब शिप अपनी पूरी गति से सागर की लहरों को चीरता हुआ मुंबई की ओर बढ़ रहा था. सागर निश्चिंत था, क्योंकि सिर्फ 3 हजार नौटिकल मील का सफर रह गया था. लगभग  1 सप्ताह के अंदर वह मुंबई पहुंचने वाला था. उसे मुंबई छोड़े 4 महीने हो चुके थे.

अपनी 4 घंटे की शिफ्ट खत्म कर सागर अपने कैबिन में सोफे पर आराम कर रहा था. मन बहलाने के लिए उस ने फिल्म ‘रुस्तम’ की सीडी अपने लैपटौप में लगा दी. इस फिल्म को वह पूरा देख भी नहीं सका था. उस का मन बहुत बेचैन था. ‘रुस्तम’ से पहले भी उस ने एक पुरानी फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ देखी थी. दोनों की स्टोरी लगभग एक ही थी, जिस में दिखाया गया था कि जब मर्चेंट नेवी का अफसर लंबी यात्रा पर जाता है, तो उस की पत्नी को मौजमस्ती करने का भरपूर मौका मिलता है.  उस के मन में भी शंका हुई कि कहीं उस की पत्नी शैलजा भी ऐसा ही कुछ करती हो. हालांकि तुरंत उस ने मन से यह डर भगाया, क्योंकि शैलजा उसे बहुत प्यार करती थी. पूरी यात्रा में जब भी तट पर होता वह फोन पर उस से कहा करती कि जल्दी लौट आओ, तुम्हें बहुत मिस कर रही हूं. मम्मी भी इलाहाबाद अपने मायके चली गई हैं.

सागर को शादी के 3 महीने के अंदर ही टोक्यो जाना पड़ा था. उस की पत्नी मुंबई में ही एक अपार्टमैंट में रहती थी. बीचबीच में सागर की मां इलाहाबाद से आ कर रहती थीं. उस की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उस ने अपार्टमैंट के दरवाजे पर एक ‘रिंग डोरबैल’ लगा दी थी. इस में एक सैंसर और कैमरा लगा होता है, जो वाईफाई द्वारा अलगअलग चुनिंदा सैल फोन ऐप्स से जुड़ा होता है.

दरवाजे पर कोई भी हरकत होने से या कौलबैल बजने से दरवाजे के बाहर का दृश्य सैल फोन पर देख सकते हैं. इतना ही नहीं टौक बटन दबाने से बाहर खड़े व्यक्ति से बात भी कर सकते हैं. सागर ने पत्नी शैलजा और मां के फोन के अतिरिक्त मुंबई में एक रिश्तेदार के सैल फोन से इस डोरबैल को कनैक्ट कर रखा था.  सागर की पत्नी शैलजा कुछ पार्टटाइम काम करती थी. बाकी टाइम घर में ही रहती थी. कभीकभी बोर हो जाती थी. हालांकि उस की सास से काफी पटती थी पर सभी बातें तो उन से वह शेयर नहीं कर सकती थी और वैसे फिर आजकल वे भी नहीं थीं. सागर ने शैलजा को मुंबई पहुंचने का अनुमानित समय बता दिया था. फ्लैट की एक चाबी सागर के पास होती थी.  शिप अब आधी दूरी तय कर भारतीय समुद्र सीमा में था. सागर 3 दिन से कुछ कम  ही समय में मुंबई पहुंचने वाला था. इधर शिप बंगाल की खाड़ी की लहरों पर हिचकोले खा रहा था उधर उस का मन भी शैलजा से मिलने की आस में बेचैन था. वह कैबिन में आराम कर रहा था कि दरवाजा खटखटा कर उस का सहकर्मी अंदर आया. बोला, ‘‘यार तुम ने ‘रुस्तम’ देख ली हो तो सीडी मुझे देना.’’

दोस्त तो सीडी ले कर चला गया पर एक बार फिर सागर का मन शंकित हो उठा कि कहीं उस की पत्नी भी किसी गैर की बांहों में न पड़ी हो. बहरहाल, उस ने मन को समझाया कि यह मात्र वहम है. मेरी शैलजा वैसी नहीं हो सकती है जैसा मूवी में दिखाया गया है.  सागर का जहाज मुंबई पोर्ट के निकट था पर पोर्ट पर बर्थ खाली नहीं होने के कारण जहाज को थोड़ी दूरी पर लंगर डालना पड़ा. शाम होने वाली थी. उस का वाईफाई काम करने लगा था. उस के फोन पर मैसेज मिला ‘रिंग ऐट योर डोर’. हलकी बारिश हो रही थी.

उस ने अपने फोन में देखा कि फ्लैट के दरवाजे पर जींस पहने छाता लिए कोई खड़ा है. शैलजा ने हंस कर उसे गले लगाया और फिर दरवाजा बंद हो गया. छाते की वजह से वह उस का चेहरा नहीं देख सका. पहले तो उस ने पत्नी को कहा था कि वह जहाज से निकलने से पहले उसे फोन करेगा पर इस दृश्य को देख कर उस ने अपना इरादा बदल लिया.  जहाज के लंगर डालने के थोड़ी देर बाद कंपनी के लौंच से वह तट पर आया. उस ने टैक्सी ली और अपने फ्लैट पर जा पहुंचा. तब तक लगभग मध्य रात्रि हो चुकी थी. उस ने अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा जानबूझ कर धीरे से खोला ताकि कोई आहट न हो. अंदर फ्लोर लाइट का हलका प्रकाश था.

सागर ने अंदर आ कर देखा कि बैडरूम का दरवाजा खुला है. शैलजा झीनी नाइटी में अस्तव्यस्त किसी व्यक्ति के बहुत करीब सोई थी. वह व्यक्ति जींस और टीशर्ट पहने था. उस की कमर पर शैलजा की बांह थी. सागर केवल उस व्यक्ति की पीठ देख सकता था. उस के मन में संदेह हुआ कि यह शैलजा का कोई आशिक ही होगा. वह दबे पांव फ्लैट लौक कर लौट पड़ा. उस ने 3 दिन की छुट्टी ले रखी थी.  वहां से सीधे होटल में जा कर ठहरा. रात काफी हो चुकी थी. फिर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. नींद खुली तो उस ने रूम में ही हलका ब्रेकफास्ट मंगवा लिया. थोड़ी देर बाद सागर ने शैलजा को फोन कर बताया कि वह मुंबई पहुंच गया है. फिर पूछा ‘‘कैसी हो शैलजा?’’

शैलजा बोली, ‘‘अच्छी हूं. पर कल रात बहुत थक गई थी और करीब 12 बजे सोई तो सुबह 7 बजे महरी आई तब नींद खुली. पर बड़ा मजा आया रात में वरना मैं तो बोर हो रही थी. तुम जल्दी आओ न? जहाज तो किनारे लग चुका होगा. कब आ रहे हो?’’

‘‘मैं जहाज से उतरने ही वाला हूं, 2-3 घंटे में आ रहा हूं.’’

सागर के पास सामान के नाम पर एक अटैची भर थी. उस ने टैक्सी ली. अपार्टमैंट पहुंच कर सिक्युरिटी वाले को अटैची रखने को दी और कहा, ‘‘जब मैं फोन करूं  तब इसे मेरे फ्लैट में भेज देना.’’  फ्लैट पहुंच कर उस ने बैल बजाई तो शैलजा ने अपने फोन पर उस का वीडियो देख लिया, दरवाजा खोल कर शैलजा उस के गले से लिपट गई. वह बैडरूम में गया और बोला, ‘‘शैलजा, टौवेल लाना, बाथरूम जाना है.’’

‘‘बाथरूम तो बिजी है. तुम गैस्टरूम वाले बाथ में चले जाओ.’’

‘‘क्यों? कोईर् है अंदर?’’

‘‘हां, कोई है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘देख लेना थोड़ी देर में. इतनी जल्दी  क्या है?’’

‘‘नहीं, मुझे बाथ टब में नहाना है और गैस्टरूम में बाथ टब नहीं है. पर तुम से जरूरी बात भी करनी है.’’

‘‘ठीक है, थोड़ी देर गैस्टरूम में ही आराम करो, मैं चाय ले कर आती हूं. वहां बात कर लूंगी.’’  सागर गैस्टरूम में बैड पर लेट गया. उस ने सिक्युरिटी को फोन कर नीचे से अपना अटैची मंगवा ली. थोड़ी देर में शैलजा चाय दे कर किचन में चली गई.

कुछ देर बाद शैलजा ने कहा ‘‘सागर, बाथरूम खाली हो गया है. अब तुम बैडरूम में जा कर बाथरूम यूज कर सकते हो.’’  सागर बाथरूम में गया. उस ने देखा कि वहां कल रात वाली जींस और टीशर्ट टंगी थी. जब तक वह नहा कर निकला शैलजा की आवाज आई, ‘‘डाइनिंग टेबल पर ही आ जाओ, नाश्ता रैडी है.’’

शैलजा ने जूस ला कर दिया, उस के बाद छोले की सब्जी का बाउल रख कर बोली, ‘‘एक मिनट में गरमगरम कचौरियां ले कर आ रही हूं.’’  ‘‘कचौरियां बाद में आ जाएंगी, पहले तुम यहां बैठो. तुम से जरूरी बात करनी है.’’

तभी किचन से आवाज आई, ‘‘तुम लोग वहीं बैठ कर बातें करो. मैं गरमगरम कचौरियां ले कर आ रही हूं.’’

थोड़ी देर में एक औरत ट्रे में कचौरियां ले कर आई और टेबल के पास बैठ गई.  सागर उसे आश्चर्य से देखने लगा तो वह बोली ‘‘मुझे ही देखते रहोगे तो कचौरियां ठंडी हो जाएंगी.’’  शैलजा बोली, ‘‘यह नीरू है. मेरी ममेरी भाभी. मेरे भैया उम्र में हम से सिर्फ 2 साल बड़े हैं. यह भाभी कम दोस्त ज्यादा है. हम लोग क्लासफैलो भी रहे हैं. आजकल यह नासिक में है. इस के पहले तो गुवाहाटी में थी. कौंटैक्ट तो न के बराबर रहा था. भैया टूअर पर गए हैं, तो यहां चली आई. भैया की शादी में हम लोग नहीं जा सके थे.’’  ‘‘बाथरूम में जींस और टीशर्ट किस की है?’’

‘‘नीरू भाभी की. कल शाम जब यह आई तो हम दोनों अपार्टमैंट के क्लब में चली गईं. वहां काफी देर तक बैडमिंटन खेलती रहीं. दोनों बहुत थक गई थीं. मैं ने इस से कहा था कि कपड़े चेंज कर ले पर यह इन्हीं कपड़ों में सो गई थी.’’

‘‘इतना ही नहीं, उस के बाद हम लोग, ‘रुस्तम’ मूवी देखने लगे. सीडी  पड़ी है, तुम भी देख लेना.’’  तुम लोगों ने भी ‘रुस्तम’ देखी? सागर  ने पूछा.

‘‘हां. इस में ताज्जुब की क्या बात है?’’ नीरू बोली.

‘‘ताज्जुब की बात नहीं है. मैं ने भी शिप में देखी है,’’ और फिर सागर मन ही मन सोचने लगा कि अच्छा हुआ उस ने शैलजा से इस बारे में कोई बात नहीं की. उस के दिल और दिमाग से ‘रुस्तम’ का वहम निकला गया था.

तभी शैलजा बोली, ‘‘तुम कोई जरूरी बात करने वाले थे.’’

सागर ने असली बात को दिल में छिपाते हुए कहा, ‘‘मेरा शिप 10 दिन में फिर टोक्यो के लिए सेल करेगा.’’

‘‘मैं आज शाम को चली जाऊंगी. मेरे सामने थोड़े ही देवरजी जरूरी बात करेंगे,’’ नीरू  बोली.  सभी हंसने लगे, पर असल माजरा तो सिर्फ सागर ही समझ रहा था.

धोखा: जब रश्मि का प्यार रोहन बना शादी के बाद अनजाना

हमेशाखुद भी खुश रहने वाली तथा औरों को भी खुश रखने वाली रश्मि को न जाने आजकल क्या हुआ है कि हमेशा खोईखोई सी रहती, पूछने पर टाल जाती.  आखिर जब मुझ से रहा न गया तो एक दिन मैं उसे पकड़ कर बैठ गई और फिर पूछा, ‘‘रश्मि, आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं, बता न आखिर हुआ क्या है?’’

‘‘कुछ भी नहीं कविता, तू तो यों ही परेशान हो रही है.’’

‘‘कुछ तो हुआ है, तू बताती क्यों नहीं? देख आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं.’’

‘‘जाने भी दे… अपने लिए मैं किसी को दुखी नहीं करना चाहती,’’ रश्मि ने कुछ उदास स्वर में कहा.

‘‘रश्मि, तू मुझे अब अपना नहीं मानती, ऐसा लगता है. देख हमारी दोस्ती आज की नहीं है और मरते दम तक हम दोस्त रहेंगे.’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘देख अपना दुख मुझे नहीं बताएगी तो किसे बताएगी?’’ उस के कंधे पर हाथ रखते हुए मैं ने कहा.

‘‘हां, तुझ से तो बताना पड़ेगा वरना मेरा दम घुट जाएगा,’’ रश्मि बोली, ‘‘तू तो जानती है कि क्या कुछ नहीं गुजरा मुझ पर परंतु वक्त का खेल समझ कर सब स्वीकार करती रही. रोहन 2 बच्चे दे कर मुंह मोड़ गया और दूसरी शादी कर ली. मैं ने सह लिया. सब रिश्तेदार 1-1 कर के चले गए. किसी ने भी यह नहीं सोचा कि मैं अपने 2 बच्चों के साथ कैसे जीऊंगी? क्या करूंगी? वह तो भला हो नेहा का जिन्होंने अपने पति से कह कर मुझे यह नौकरी दिलवा दी और मेरे घर की गाड़ी चल पड़ी.’’

‘‘यह तो मैं भी जानती हूं और तेरे साहस की मिसाल मैं ही नहीं, बल्कि जितने भी परिचित हैं, सब देते हैं,’’ मैं ने उसे सहारा देते हुए कहा, ‘‘पर अब जब सब कुछ ठीक हो गया, फिर तेरी उदासी की बात समझ में नहीं आ रही. इतना सब कुछ सहते हुए भी तूने अपना जीवन बड़ी जिंदादिली से जीया ही नहीं, उस के हर पल को महसूस भी किया,’’ मैं ने कहा, ‘‘अपने बच्चों के कैरियर को बहुत ऊपर पहुंचाया. यही नहीं कालोनी में अच्छी इज्जत भी कमाई. अब तो सब ठीक है, फिर क्या बात है?’’

‘‘तू ठीक कह रही है पर एक बात तो है न कि कब्र का हाल मुरदा ही जानता है,’’ उस ने कुछ हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा ऐसा क्या है? देख बहुत देर हो गई अब रुक मत.’’

रश्मि खयालों में खो गई. मानो उस का जीवन उस के सामने चलचित्र की तरह घूम रहा हो…

रोहन का उस की जिंदगी में आना… वह उस की तरफ यों खिंचती चली गई जैसे पतंग के साथ डोर. दुनिया के रिवाज सब उस के लिए बेमानी हो गए थे. मम्मीपापा ने कितना डांटा था. जमाने की ऊंचनीच सब समझाई थी. पर वह तो जैसे दीवानी हो गई थी जैसे ही मोबाइल की घंटी बजती बस उसे रोहन ही दिखाई देता और वह पागलों की तरह दौड़ी चली जाती. पापा गुस्सा होते, मम्मी अपना वास्ता देतीं, पर उस के लिए सब बेकार था सिवा रोहन के.  एक दिन जब वह रोहन से मिलने जा रही थी तो पापा ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम नहीं मानोगी… क्या है उस आवारा लफंगे में जो तुम्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा?’’

‘‘पापा मैं उस से बहुत प्यार करती हूं और उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘बहुत पछताओगी तुम… बेटा मान जाओ वह अच्छा लड़का नहीं है,’’ पापा ने समझाते हुए कहा.

‘‘पापा वह मेरी जिंदगी है,’’ रश्मि जिद करते हुए बोली.

‘‘तो खत्म कर दो अपनी जिंदगी,’’ झल्लाते हुए पापा बोले.

‘‘क्या कह रहे हो जी? कुछ भी हो रश्मि हमारी इकलौती बेटी है,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘उसी का तो फायदा उठा रही है… पर जीते जी कैसे कुएं में धकेल दें अपनी बेटी को?’’

‘‘पापा कुछ भी हो मैं रोहन से ही शादी करूंगी.’’

‘‘तो फिर अपना चेहरा हमें कभी न दिखाना,’’ पापा क्रोध से बोले.

‘‘ऐसा मत कहो मैं अपनी बेटी के बिना नहीं रह सकूंगी,’’ मम्मी ने सिसकते हुए कहा.

‘‘चुप रहो. तुम्हारे ही लाड़ का नतीजा हमें भुगतना पड़ रहा है,’’ पापा गरजते हुए बोले. और रश्मि सब को अनदेखा कर रोहन के साथ चली गई. बाद में पता चला कि दोनों ने शादी कर ली है और झांसी में बस गए हैं. भानू प्रताप ने अपने सीने पर पत्थर रख लिया परंतु उन की पत्नी चंद्रिका बेटी की याद में बीमार पड़ गईं और एक दिन उस की याद को अपने साथ लिए दुनिया से विदा हो गईं.   उधर रश्मि रोहन के साथ बहुत खुश थी. लेकिन जब उसे अपने मातापिता की  याद आती तो उदास हो जाती. शुरूशुरू में रोहन उस का बहुत ध्यान रखता था. समय के साथ वह 1 बेटी और 1 बेटे की मां बन गई.

कुछ दिनों से रश्मि नोट कर रही थी कि रोहन अब उस का उतना ध्यान नहीं रखता जितना पहले रखता था. कुछ दिन तो इसे हलके में लिया. सोचा शायद काम का बोझ ज्यादा है, परंतु फिर यह रोज का नियम बन गया.

‘‘रोहन, आजकल तुम बहुत व्यस्त रहने लगे हो,’’ रश्मि ने कुछ उदास हो कर कहा.

‘‘भई घर चलाना है तो काम तो करना ही पड़ेगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘काम तो पहले भी होता था, पर आजकल कुछ ज्यादा हो रहा है क्या?’’

रोहन टाल कर चला गया. पर आज रश्मि ने इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लिया. अब तो रात को भी देर से आना रोहन का नियम बन गया था. रश्मि पूछने की कोशिश करती तो झगड़ा होने लगता.  उस दिन तो हद ही हो गई… उस की सहेली आई थी. मुसकराते हुए रश्मि ने पहले तो परिचय कराया, ‘‘रोहन, यह मेरी सहेली है. शिमला से आई है. यहां इसे कुछ काम है. करीब हफ्ता भर रहेगी.’’

‘‘रश्मि यह मेरा घर है कोई धर्मशाला नहीं जो कोई भी यहां आ कर रहे.’’

रश्मि देखती रह गई.

‘‘रोहनजी आप चिंता न करें मैं मैनेज कर लूंगी,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रहा था,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा.  सब ने इसे मजाक में ले लिया, पर रश्मि नहीं जानती थी कि उस ने अपने लिए कितनी

बड़ी खाई खोद ली है. जो रोहन रोज देर रात आता था, वह शाम की चाय घर में ही पीने लगा. शुरू में तो रश्मि खुश हुई. पर फिर धीरेधीरे उसे समझ में आने लगा कि रोहन उस के लिए नहीं बल्कि शालिनी के लिए जल्दी आता है. चाय पीने के बाद दोनों ही किसी न किसी बहाने निकल जाते. कभी बाहर से खाना खा कर आते कभी उसे आदेश दे कर बनवाते.

‘‘मम्मी, ये आंटी और कितने दिन रहने वाली हैं?’’ एक दिन रश्मि के बेटे शलभ ने पूछा.

‘‘क्यों बेटे, आंटी से तुम्हें क्या तकलीफ है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘मम्मी जब देखो आप आंटी की सेवा में लगी रहती हो जैसे वे कोई नवाब हों,’’ शलभ ने कुछ चिढ़ते हुए कहा.

‘‘हां मम्मी और वे तो कोई काम नहीं करतीं. बस पापा से बातें करती रहती हैं जैसे वे ही इस घर की मालिक हों.’’

‘‘बेटा ऐसा नहीं कहते. वे मेहमान हैं, उन्हें कुछ काम है यहां. जब हो जाएगा तो चली जाएंगी,’’ रश्मि ने बच्चों को तो दिलासा दे दिया, किंतु अपने को न समझा सकी. सारी रात बड़ी बेचैनी में काटी और फैसला किया कि सुबह शालिनी और रोहन से बात करेगी.

दूसरे दिन सुबह जब सब नाश्ता कर रहे थे तो रश्मि ने रोहन से कहा, ‘‘सुनिए, मेरे खयाल में अब तो काफी दिन हो चुके हैं, अगर शालिनी का काम बाकी है तो वह किसी गर्ल्स होस्टल में इंतजाम कर लेगी?’’

‘‘क्यों ऐसी भी क्या जल्दी है?’’ रोहन ने कहा.

‘‘बात कुछ नहीं बस बच्चों के ऐग्जाम सिर पर हैं… उन की पढ़ाई नहीं हो पा रही… फिर मेहमान कुछ दिन के ही अच्छे होते हैं.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो रश्मि? क्या शालिनी से यह सब कहते ठीक लगेगा? फिर एक तो वह तुम्हारी सहेली है… इस नए शहर में कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए या कहीं भी इंतजाम करे यह हमारी सिरदर्दी नहीं,’’ रश्मि ने कुछ झल्ला कर कहा.

‘‘ठीक है कुछ दिन और देखो या तो वह कोई इंतजाम कर लेगी या फिर मैं  ही उस का कोई इंतजाम कर दूंगा. तुम परेशान न हो,’’ रोहन उसे दिलासा दे कर औफिस चला गया.  रोहन का सारा दिन उधेड़बुन में बीता. अब उसे शालिनी का साथ अच्छा लगने लगा था. वह उस के बिना नहीं रहना चाहता था, परंतु रश्मि का क्या इलाज किया जाए? बहुत सोचने के बाद रोहन ने एक उपाय सोचा. उस ने शहर से बाहर बनी नई कालोनी में एक मकान किराए पर लिया और उस में शालिनी को शिफ्ट कर दिया.

एक बार को शालिनी हिचकिचाई. कहा, ‘‘रोहन, क्या यह ठीक होगा?’’

‘‘देखो शालिनी तुम्हारा कोई नहीं है और अब न ही मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम बताओ क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? इतने दिन साथ गुजारने के बाद क्या हम दोनों को एकदूसरे की आदत नहीं हो गई है?’’

‘‘यह तो ठीक है, परंतु रश्मि और बच्चे. ऊपर से यह समाज क्या हमें जीने देगा?’’ शालिनी कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘देखो शालिनी अब मेरीतुम्हारी बात बहुत बढ़ गई है. अब न तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं और न ही तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम्हारी तो तुम ही जानो पर मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम्हारे विचार भी यही हैं.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, परंतु रश्मि मेरी सहेली है और उस के साथ यह अन्याय होगा.’’

‘‘तुम्हें अब सिर्फ अपने और मेरे बारे में सोचना है शालिनी,’’ रोहन ने बात खत्म करते हुए कहा, ‘‘अब देखो इस शहर में कितने ही लोगों से तुम्हें मिलवा दूंगा, जिन्होंने न सिर्फ 2-2 शादियां कर रखी हैं वरन दोनों निभा भी रहे हैं.’’

‘‘परंतु लोग क्या कहेंगे?’’ शालिनी बोली.

‘‘देखो शालिनी, अब तुम कुछ मत सोचो. सोचो तो सिर्फ अपनी नई जिंदगी के बारे में.’’  रोहन की बात सुन कर शालिनी ने उस से सोचने के लिए 2 दिन का समय मांगा.

‘‘ठीक है, मैं चलता हूं. तुम्हारी जरूरत का सारा सामान यहां है.’’  रोहन घर पहुंचा तो रश्मि और बच्चे उसे अकेला देख कर बहुत खुश हुए. उन्होंने सोचा कि शालिनी चली गई है अपने शहर.

रश्मि ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आज अकेले? क्या शालिनी वापस चली गई?’’

रोहन चुप रहा और अपने कमरे में कपड़े चेंज करने चला गया. रश्मि कुछ सोचती रह गई. जब वह वापस आया तो रश्मि ने फिर दोहराया, ‘‘आप ने बताया नहीं कि शालिनी वापस चली गई क्या?’’  ‘‘देखो रश्मि, तुम ने चाहा कि शालिनी यहां से चली जाए और वह चली गई. अब वह कहां गई और क्यों गई, इस से तुम्हें मतलब नहीं होना चाहिए. रहा मेरे जल्दी आने का प्रश्न तो आज मैं यह फैसला कर के आया हूं कि अब मैं शालिनी से शादी कर रहा हूं. तुम साथ रहोगी या अलग यह फैसला तुम्हें करना है.’’  रश्मि और बच्चे यह सुन कर हैरान रह गए.

‘‘तुम्हें पता भी है कि तुम क्या कह रहे हो?’’ रश्मि ने लगभग चीखते हुए कहा. दोनों बच्चे शलभ और रीतिका डर गए. तभी रश्मि को लगा कि उन्हें बच्चों के सामने ये सब बातें नहीं करनी चाहिए. अत: उस ने सामान्य होने की कोशिश की और बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, आप अपने कमरे में जा कर पढ़ाई करो.’’

अब बच्चे इतने भी छोटे नहीं थे कि वे अपनी मां की बात न समझ सकें. दोनों  सिर झुकाए अपने कमरे में चले गए.  ‘‘हां, अब बताओ कि तुम क्या कह रहे थे? तुम्हें शालिनी से शादी करनी है? तुम इतनी बड़ी सजा मुझे कैसे दे सकते हो? सिर्फ तुम्हारे कारण मैं अपने मातापिता और घरपरिवार को छोड़ कर आई थी.’’

‘‘हां तुम आई थीं पर यह फैसला भी तुम्हारा था. फिर मैं कब मना कर रहा हूं, क्या बिगड़ जाएगा अगर शालिनी भी हमारे साथ रहे?’’ रोहन ने कहा.  ‘‘यह कभी नहीं हो सकता रोहन, तुम मुझे इतना बड़ा धोखा नहीं दे सकते.’’

‘‘धोखा, जो धोखा करता है उसे धोखा ही तो मिलता है. यही दुनिया का सत्य है. तुम ने भी तो अपने मातापिता को धोखा दिया था. तुम्हारी मां असमय गुजर गईं. वे क्या जी पाईं और पिताजी? वे भी जैसे जी रहे हैं वह जीना नहीं होता. क्या तुम ने उन के लिए सोचा? आज बात करती हो धोखे की.’’

‘‘उस की वजह भी तुम थे रोहन… तुम ने तो मुझे न घर का छोड़ा और न घाट का,’’ रश्मि ने सिर थामते हुए कहा.

‘‘अब यह फैसला तुम्हारा है रश्मि तुम साथ रहो या अलग. हां यह जरूर है कि तुम्हारे और बच्चों के खर्च का पैसा मैं तुम्हें देता रहूंगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘बस करो रोहन… तुम क्या दोगे, जाओ आज मैं ने तुम्हें शालिनी दी, तुम्हारा नया घर, नई पत्नी, तुम्हें मुबारक… मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए. चले जाओ यहां से अभी इसी वक्त,’’ रश्मि ने चिल्ला कर कहा तो रोहन चला गया.  रश्मि की आंखों के सामने सब कुछ घूमने लगा. उस की बनाई दुनिया, उस का घर, उस के सपने सब कुछ भरभरा कर ढह गया.  तभी बिल्ली ने कूद कर फ्लौवर पौट गिरा दिया तो रश्मि की तंद्रा भंग हुई.

‘‘फिरफिर क्या हुआ रश्मि,’’ मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या था रोहन मुझे अधर में छोड़ कर चला गया और आज मैं अपने बच्चों के साथ अकेले जिंदगी गुजार रही हूं. सारे दुख, सारा अकेलापन अपने अंदर समेटे चलती जा रही हूं बस.’’

‘‘परंतु कब तक?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जब तक जीवन है… न मैं हारूंगी, न रोहन के पास जाऊंगी और न ही अपने पिता के पास.’’

‘‘चल जाने भी दे. जब भी कभी तू अकेलापन महसूस करेगी मुझे अपने करीब पाएगी.’’  उधर रोहन ने शालिनी से शादी कर ली और अपने नए घर में मगन हो गया. धीरेधीरे उन का रिश्ता सभी को मालूम हो गया. सामने तो कोई कुछ नहीं कहता था, परंतु पीठ पीछे सभी उस की बुद्धि पर तरस खाते, ‘‘देखो रोहन ने इस उम्र में अपनी इतनी सुंदर, सुघड़ पत्नी व 2 बच्चों को छोड़ कर नई शादी कर ली,’’ नरेंद्रजी बोले.  ‘‘भई, हम तो रश्मि भाभी के बारे में सोचते हैं… वे अकेली ही हर हालात का सामना कर रही हैं,’’ निरंजन कुछ सोचते हुए बोले.  ऐसा नहीं था कि रोहन को इन सब बातों का पता नहीं था, परंतु वह बड़ी चतुरता से सफाई दे देता था.  एक दिन रोहन लौटा तो उस के हाथ में शिमला के 2 टिकट थे. घर में घुसते ही  चिल्लाया, ‘‘शालिनी… ओ शालू देखो मैं क्या लाया हूं?’’

‘‘क्या लाए हैं?’’ शालिनी ने पूछा.

‘‘सोचो क्या हो सकता है?’’

शालू मुसकरा कर बोली, ‘‘क्या होगा सिनेमा के टिकट होंगे या फिर होटल में डिनर का औफर.’’

‘‘नहीं डार्लिंग, हम कल 1 हफ्ते के लिए शिमला जा रहे हैं. क्या नजारा होगा तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं. चलो फटाफट पैकिंग कर लो.’’  दूसरे दिन जब वे शिमला पहुंचे तो लगभग सारे होटल बुक थे और फिर औटो वाले की सहायता से जो होटल मिला उसे देख कर रोहन को जबरदस्त झटका लगा. वही होटल और तो और वही कमरा जहां वह पहली बार रश्मि को ले कर आया था.

उसे सकते में देख कर शालिनी बोली, ‘‘क्या हुआ, आप कहां खो गए?’’

‘‘कुछ नहीं बस यों ही जरा सोच रहा था कि देखो वक्त भी क्याक्या खेल दिखाता है. अभी कुछ दिन की तो बात है. मैं किसी काम से शिमला में आया था और उस वक्त भी यही होटल और तो और यही कमरा था शालिनी,’’ रोहन ने आधा झूठ और आधा सच बोला. वह उसे यह कैसे बताता कि यहां इसी कमरे में उस ने और रश्मि ने अपना हनीमून मनाया था. झूठ तो उस ने कह दिया, किंतु उस का मन उखड़ गया था.  दूसरे दिन दोनों घूमने निकल गए. यह भी अजीब बात थी जिस रश्मि को छोड़ कर शालिनी के लिए वह बेताब था और उस के साथ शादी कर के उस के साथ हनीमून मनाने आया था उसे छोड़ कर हर जगह उसे रश्मि नजर आ रही थी. वह काफी परेशान हो रहा था. उस के अंदर यह बदलाव शालिनी भी महसूस कर रही थी, परंतु उस ने सोचा कि हो सकता है कोई औफिस की बात उसे परेशान कर रही हो. उस ने बहुत पूछा भी परंतु उस ने उसे टाल दिया.  आज उसे लगा कि 2-2 नावों पर सवार होना कितना कठिन है. होटल आ कर वह बिस्तर पर ढेर सा हो गया.

‘‘क्या बात है रोहन, काफी थकेथके से लग रहे हो और काफी परेशान भी?’’

रोहन ने कहा, ‘‘हां थक तो गया हूं… ऐसा करते हैं शालिनी वापस चलते हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस, औफिस का एक जरूरी काम याद आ गया… जाना जरूरी है, फिर कभी प्रोग्राम बना लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ शालिनी बोली और फिर पैकिंग करने लगी. दूसरे दिन वापस आ गए. सब काम अपने ढर्रे पर चलने लगे.

एक दिन रोहन व शालिनी शौपिंग के लिए गए तो उन्होंने रितिका को देखा. वह अपनी सहेली के साथ स्कूटी पर जा रही थी. तभी एक बाइक सवार ने उस की स्कूटी में टक्कर मार दी और वे दोनों गिर पड़ीं. रोहन और शालिनी उस की तरफ दौड़े. उसे उठाने के लिए शालिनी ने हाथ बढ़ाया तो उस ने बड़ी नफरत से उस का हाथ झटक दिया.

शालिनी ने कहा, ‘‘रितिका, तुम ठीक तो हो?’’

‘‘तुम तो ठीक हो… मैं ठीक हूं या नहीं इस से तुम्हें क्या फर्क पड़ता है,’’ रितिका ने गुस्से और नफरत से कहा.

‘‘ऐसा न कहो बेटा… मैं तुम्हारी मां के समान हूं,’’ शालिनी ने कुछ मायूसी से कहा.

‘‘आप जानती हैं कि मां क्या होती है? कभी आप ने जाना मां को? मां तो बस देना ही जानती है और आप ने तो बस छीनना ही जाना है… हम से हमारे पापा को छीना, हमारे घर की सुखशांति छीनी, मेरी मां का सुहाग छीना, आप क्या जाने मां और मां के त्याग को.’’  ‘‘रितिका क्या तुम ने बात करने की तमीज छोड़ दी,’’ रोहन ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘पापा, मैं ने तो सिर्फ बात करने की तमीज छोड़ी है, किंतु आप ने तो हम सब को छोड़ दिया,’’ और सिसकते हुए रितिका अपने जख्म को बिना देखे चली गई.  दोनों का मूड खराब हो गया था. दोनों वापस घर आ गए. दूसरे दिन रोहन अपने  औफिस चला गया. शालिनी के कानों में रितिका के कहे शब्द हथौड़े की तरह पड़ रहे थे. ‘जानती हो मां क्या होती है? तुम ने तो बस छीना है… तुम ने मेरे पापा को छीना है, हमारे घर की सुखशांति छीनी है.’

‘‘छीनी है… छीनी है… छीनी है… हां मैं ने अपनी सहेली का घर उजाड़ा है… उसे बरबाद कर दिया है, मैं दोषी हूं,’’ एकाएक शालिनी अपना सिर पकड़ कर जोरजोर से चिल्लाई.

तभी अचानक रोहन आ गया. बोला, ‘‘क्या हुआ शालू, तुम चिल्ला क्यों रही थीं? क्यों परेशान लग रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं बस यों ही कुछ पुरानी यादें याद हो आई थीं. मगर तुम कैसे आ गए?’’

‘‘वे अपने कुछ जरूरी कागजात घर भूल गया था… शालिनी लिफाफे में कुछ कागज थे… तुम ने देखे क्या?’’

‘‘नहीं तो? कहां रखे थे?’’

‘‘अलमारी में थे. जरा देखो तो,’’ रोहन ने कहा और फिर सोफे पर बैठ गया. शालिनी बैडरूम की तरफ थी. थोड़ी दूर ही चली थी कि गिर पड़ी.

‘‘अरे, क्या हुआ?’’ रोहन तेजी से उस की तरफ लपका. शालिनी को उठा कर बैड पर लिटाया और पानी ला कर उस के चेहरे पर छींटे मारने लगा. शालिनी ने धीरे से आंखें खोलीं.

‘‘क्या हुआ शालू? तबीयत खराब थी तो मुझे बताया होता. मैं पहले तुम्हें डाक्टर के पास ले जाता. खैर, कोई बात नहीं, अब चलते हैं.’’

‘‘नहीं रोहन, मुझे नहीं जाना डाक्टर के पास. कोई खास बात नहीं है… मैं ठीक हूं.’’

रोहन उस का माथा सहलाने लगा, ‘‘देखो शालिनी, लगता है अकेलेपन की वजह से तुम्हारी तबीयत खराब हो गई है… कुछ व्यस्त रहा करो.’’

‘‘रोहन मैं ने बहुत गलत काम किया है न… बहुत बड़ी गलती की है.’’

‘‘कौन सी गलती शालू?’’

‘‘मैं ने अपनी सहेली का पति छीना… उस का घर उजाड़ा दिया… उस की हाय लगेगी मुझे.’’

‘‘हम ने कोई गलत काम नहीं किया है शालू… हम ने प्यार किया है… दोनों एकसाथ जीवन गुजारना चाहते हैं… शादी की है क्या गलत किया है? मैं ने तो रश्मि को भी कहा था कि वह हमारे साथ रहे. क्या 2 पत्नियां एकसाथ नहीं रह सकतीं और यदि नहीं तो हम क्या कर सकते हैं? मैं तो उस का खर्चा भी उठाने को तैयार था, किंतु वह ज्यादा स्वाभिमानी बनना चाहती है तो उस में हमारा क्या दोष?’’  उस के बाद रोहन उसे समझाबुझा कर वापस अपने औफिस चला गया. शालिनी ने एक नौवल उठाया, परंतु उस का मन फिर किसी भी काम में नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन फिर किसी भी काम नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन भी बारबार उसे ही दोषी मान रहा था. जैसेतैसे शाम हुई और रोहन औफिस से आ गया. उस ने चाय बनाई और दोनों अपनाअपना कप ले कर टैरेस में आ गए.

‘‘क्या बात है, आज कुछ परेशान दिखाई दे रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही मन नहीं लग रहा.’’

‘‘चलो तो आज कहीं घूमफिर आते हैं… तुम्हारा मन भी बहल जाएगा,’’ और फिर दोनों तैयार हो कर बाहर निकल गए. पास ही एक पार्क था. दोनों जा कर नर्म घास पर बैठ गए.

अभी कुछ देर ही हुई थी उन्हें वहां बैठे तभी एक तरफ कुछ शोर सा हुआ.  उत्सुकतावश दोनों भी वहां पहुंच गए. बड़ा ही अजीब नजारा था. एक औरत अपने पति के साथ मारपीट कर रही थी. उन्होंने कारण पूछा तो पता चला कि उस ने अपने पति को दूसरी औरत के साथ पकड़ लिया था. यह कहने को तो एक साधारण बात थी, परंतु इस बात ने शालिनी के मनमस्तिष्क पर उलटा प्रभाव डाला. उस के दिमाग में रश्मि का चेहरा घूम गया. उसे और गिल्टी महसूस होने लगी.  अब यह रोज का नियम हो गया था कि शालिनी चुपचाप अपने काम निबटा कर उदास सी रहती. उस की इस हालत से रोहन परेशान रहने लगा. जो जीवन उन्होंने चुना था वह उन्हें बजाय खुशी देने के परेशानी देने लगा और हद तो तब हुई जब शालिनी न सिर्फ डिप्रैशन में, बल्कि आक्रामक भी हो गई. छोटीछोटी बातों पर नाराज हो जाना, गुस्से में कोई भी चीज उठा कर फेंक देना उस का नियम बन गया.  एक दिन तो छोटी सी कहासुनी पर शालिनी ने कप उठा कर रोहन को दे मारा. तब रोहन को लगा कि अब कुछ ठीक नहीं है. वह उसे ले कर न्यूरोलौजिस्ट के पास गया.  डाक्टर ने शालिनी की जांच कर के कहा, ‘‘रोहन, शालिनी के दिमाग को कोई सदमा लगा है, जिस की वजह से इन की यह दशा हुई है,’’ फिर डाक्टर ने कुछ दवाएं लिखीं और कहा, ‘‘इन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखने की कोशिश करें.’’

दवा चलती रही. रोहन हर संभव कोशिश करता कि शालिनी खुश रहे. पर कहीं न कहीं से कुछ ऐसा हो जाता कि शालिनी को रश्मि का बुझा चेहरा और रितिका के शब्द याद आ जाते. उस की हालत बद से बदतर होती जा रही थी. अब इस बात की चर्चा आसपास भी होने लगी थी. अभी दोपहर को वह बालकनी में खड़ी थी कि रूहेला ने इशारा करते हुए नीलिमा से कहा, ‘‘सुना है शालिनी न्यूरोलौजिस्ट के पास गई थीं. उन्हें कुछ दिमागी बीमारी है.’’  ‘‘अरे भई किसी का बुरा कर के कोई सुखी हुआ है कभी? मुझे तो बेचारी रश्मि पर तरस आता है. इस ने उस का पति छीन कर उसे और उस के 2 बच्चों के साथ बुरा किया. अब भरेगी भी तो यही,’’ नीलिमा बोलीं.

इतना सुन कर शालिनी कमरे में आ गई और आते ही बस्तर पर पड़ गई. जब लंच के लिए रोहन आया तो उस ने देखा और तुरंत उसे ले कर डाक्टर के यहां गया.  डाक्टर साहब चिंतित हो कर बोले, ‘‘रोहन इतनी दवा के बावजूद शालिनी में कोई सुधार नहीं हो रहा है. मुझे लगता है कि इन्हें हौस्पिटीलाइज करना पड़ेगा.’’

‘‘कुछ भी कीजिए डाक्टर साहब, परंतु शालिनी को ठीक कर दीजिए.’’

उसी समय डाक्टर ने शालिनी को दाखिल कर लिया.  रोहन अब तिहरी मुसीबत में फंस गया. एक तरफ उस का काम, दूसरी तरफ घर और अब अस्पताल भी सुबहशाम जाना. वह बुरी तरह थक चुका था. उस दिन के बारे में सोचता जब वह शालिनी को ले कर घर और बच्चों को छोड़ कर आया था. विवाहेतर संबंधों का सच अब उस की समझ में अच्छी तरह से आ रहा था, परंतु क्या हो सकता था. अब गले पड़े ढोल को बजाने के सिवा कोई चारा नहीं था. न तो वह शालिनी को छोड़ कर वापस रश्मि के पास जा सकता था और शालिनी थी कि वह ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी. खैर जैसेतैसे वह अपनी तीनों जिम्मेदारियां निभाने की कोशिश कर रहा था.  एक दिन रश्मि बाजार गई वहीं उसे कविता मिली. दोनों ही बड़ी गर्मजोशी से मिलीं. तभी कविता बोली, ‘‘चल, बहुत दिनों के बाद मिली हैं कहीं बैठ कर कौफी पीती हैं.’’

‘‘नहीं कविता, जल्दी घर जाना है. बच्चों के पेपर चल रहे हैं,’’ रश्मि ने जवाब दिया.

‘‘चल भी न… कितने दिनों बाद तो मिली हैं… थोड़ी गपशप हो जाएगी,’’ और फिर दोनों एक कैफे हाउस में चली गईं.  बातें करतेकरते बात शालिनी पर आ कर ठहर गई. अचानक कविता बोली, ‘‘सुना है रश्मि आजकल रोहन बहुत परेशानी में है.’’

‘‘क्यों? अब तो उसे खुश रहना चाहिए. उस ने शालिनी से शादी भी कर  ली जो वह चाहता था और मैं भी उस से कोई वास्ता नहीं रखती जिस का उसे डर था…’’

‘‘अरे, यह सब तो ठीक है परंतु सुना है शालिनी डिप्रैशन में आ गई है और आजकल सिटी अस्पताल में दाखिल है.’’

‘‘डिप्रैशन में वह? परंतु उसे तो वह सब प्राप्त है जिस की उस को चाह थी… अब उसे और क्या चाहिए? देखा जाए तो डिप्रैशन में तो मुझे आना चाहिए… मेरा तो सब कुछ उस ने छीन लिया है. खैर, छोड़ो सब समय का खेल है नहीं तो मैं क्यों अपना घर छोड़ कर रोहन के साथ घर बसाती? पर कविता यह तो बता कि तुझे कैसे पता चला कि वह सिटी अस्पताल में दाखिल है?’’

‘‘अरे मैं तो इन के एक दोस्त को देखने गई थी तो वहां रोहन मिले थे. वही बता रहे थे.’’

‘‘अच्छा किस वार्ड में है? रूम नंबर क्या है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘क्यों अब भी तुझे उस से मिलने जाना है?’’ कविता ने पूछा.

‘‘हां, यार सोच रही हूं मिल लेती हूं. कुछ भी हो वह मेरी सहेली है और उस की देखभाल करने वाला कोई भी तो नहीं. उस की करनी उस के साथ और मेरी करनी मेरे साथ,’’ कह रश्मि शालिनी का रूम नंबर ले कर घर आ गई.  शलभ और रितिका ने उस से बहुत मना किया, परंतु उस ने यही कहा कि इस सारे किस्से में जितनी गुनहगार शालिनी है उस से कहीं अधिक गुनहगार रोहन है और इस का खमियाजा अकेली शालिनी उठा रही है.  अकेले दिन वह शालिनी से मिलने अस्पताल पहुंची. वहां उस ने देखा कि शालिनी चीखचिल्ला रही है. तभी डाक्टर आए और उसे नींद का इंजैक्शन लगा दिया. धीरेधीरे शालिनी नींद के आगोश में चली गई. रश्मि वहां रखी कुरसी पर बैठ कर गहरी सोच में डूब गई. उसे शालिनी पर बड़ा तरस आ रहा था.  वह सोच रही थी क्या यह वही शालिनी है, जो उस के पास आई थी तब कितनी निर्मल, कितनी खुशमिजाज और सुंदर थी और आज ऐसे पड़ी है बेचारी… रश्मि का दिमाग कुछ कह रहा था और दिल कुछ और. दिल तो कह रहा था कि यह उस की सहेली है उसे ऐसी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए, मगर दिमाग में तो चल रहा था कि उस ने उस के साथ क्या किया था. वह बड़ी दुविधा में पड़ी थी, परंतु उस के पैर डाक्टर के कैबिन की तरफ चल पड़े.

‘‘डाक्टर साहब मैं अंदर आ सकती हूं?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘यस, कम इन,’’ डाक्टर बोले.

उस ने डाक्टर साहब से शालिनी के बारे में सारी जानकारी ली और उसे डिस्चार्ज करा लिया. अगले दिन जब रोहन शालिनी के कमरे में पहुंचा तो शालिनी वहां नहीं थी. उस ने नर्स से पूछा तो उस ने बताया कि कल कोई मेम साहब आई थीं. अपने को उस का दूर का रिश्तेदार बता रही थीं. वे ही उसे अपने साथ ले गई हैं.  रोहन ने बहुत खोजबीन की, परंतु कुछ हासिल न हुआ. उस ने बहुत हंगामा भी किया, किंतु कुछ हाथ न लगा तो उस ने डाक्टर को धमकी दी कि वह लापरवाही के तहत पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएगा परंतु डाक्टर ने उसे न जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि वह चुपचाप अपने घर चला गया.  रोहन घर पहुंचा तो उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. उस का तो यह हाल हो गया कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. खाली घर उसे काटने को दौड़ रहा था. एक ओर शालिनी जिस का कुछ पता न था तो दूसरी ओर रश्मि उस के पास जाने का उस में साहस न था.

एक डर यह भी रोहन को सता रहा था कि कहीं कोई शालिनी के बारे में न पूछ ले. शालिनी कहां गई कहां नहीं, उसे यह पता नहीं था. कहीं उस का कोई रिश्तेदार न आ धमके. रोहन अपने स्तर पर चुपचाप उस की खोजबीन में लगा था. इसी उधेड़बुन में वह चला जा रहा था. देखा सामने से रश्मि आ रही है. वह उस से बचना चाहता था कि वह सामने आ गई और उसे देख कर बोली, ‘‘कैसे हो रोहन?’’

‘‘ठीक हूं,’’ रोहन ने जवाब दिया.

‘‘और शालिनी कैसी है?’’

‘‘प्रश्न सुन कर रोहन को काटो तो खून नहीं. सारी बातें यहीं पूछोगी…

रश्मि चलो कहीं बैठ कर कौफी पीते हैं,’’ रोहन ने कहा.

‘‘इस की जरूरत नहीं,’’ रश्मि बोली.

‘‘रश्मि सच तो यह है कि शालिनी की तबीयत बहुत खराब थी. उसे मैं ने सिटी अस्पताल में दाखिल कराया था, किंतु पता नहीं उस की कौन सी दूर की रिश्तेदार वहां आई और मेरी गैरमौजूदगी में उसे अपने साथ ले गई.’’

‘‘फिर तुम ने ढूंढ़ा नहीं शालिनी को?’’

‘‘बहुत ढूंढ़ रहा हूं, परंतु कुछ पता नहीं चल रहा,’’ रोहन परेशान सा बोला.

‘‘अब क्या करोगे? पुलिस में रिपोर्ट करोगे?’’

‘‘यही तो नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘क्यों?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘क्योंकि डाक्टर और उस की अनजानी रिश्तेदार मुझे धमकी दे रहे हैं कि वह मुझे दफा 420 के केस में फंसा देंगे, क्योंकि एक पत्नी  और बच्चों के होते हुए मैं ने दूसरी शादी की. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया… मुझे माफ कर दो रश्मि.’’  ‘‘रोहन तुम तो वह इनसान हो जो किसी का भी सगा नहीं हो सकता न मेरा और न शालिनी का. जानना चाहते हो शालिनी कहां है? वह मेरे पास है और धीरेधीरे स्वास्थ्य लाभ कर रही है. किंतु अब वह तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती. जैसे ही वह ठीक हो जाएगी वापस दिल्ली चली जाएगी… और तुम अपना स्वयं सोच लो.’’  रोहन कोई जवाब देता उस से पहले ही रश्मि उस की नजरों से दूर जा चुकी थी. उस के चेहरे पर संतोष की रेखा थी. जो धोखा रोहन ने उसे दिया था आज उस का जवाब उस ने दे दिया था.

पार्टी, डांस, ड्रिंक: क्या बेटे का शादीशुदा घर टूटने से बचा पाई सोम की मां

अलसाई हुई वाणी के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे उठाया. उधर मम्मीजी थीं.

‘‘वाणी, हैप्पी मैरिज ऐनिवर्सरी.’’

‘‘थैंक्स मम्मीजी.’’

‘‘तुम्हारा प्यारा पिया कहां है?’’

‘‘मम्मीजी वे तो घर पर नहीं हैं.’’

‘‘कहां गया?’’

‘‘मैं तो सो रही थी. वे न जाने कब उठ कर चले गए. मुझे पता ही नहीं चला.’’ ‘‘सोम कभी नहीं सुधरेगा. उसे याद भी नहीं रहा कि आज तुम लोगों की मैरिज ऐनिवर्सरी है.’’

‘‘उन्हें कोई जरूरी काम होगा इसीलिए चले गए होंगे,’’ वाणी ने कहा, लेकिन वह मन ही मन उदास हो उठी थी. सोम को ऐनिवर्सरी भी याद नहीं रही. तभी आहिस्ता से सोम कमरे में आया और फोन हाथ में ले कर बोला, ‘‘थैंक्स मौम.’’

‘‘हम लोग शाम तक तुम्हारे पास पहुंच रहे हैं. आज कुछ पार्टीशार्टी हो जाए.’’

‘‘ओ.के. मौम, लेकिन आप की लाडली बहू जब परमिशन देगी तब तो.’’

‘‘समझ लो मिल गई.’’

‘‘ओ.के. मौम, मैं एअरपोर्ट पर आऊं?’’

‘‘नहीं. तुम पार्टी की तैयारी करो.’’ फिर सोम ने वाणी को अपने आगोश में ले लिया और एक प्यारा सा चुंबन उस के गाल पर अंकित कर उस की कलाइयों में डायमंड के कंगन पहना दिए और बोला, ‘‘डियर, हैप्पी ऐनिवर्सरी. आज तो सैलिब्रेशन का दिन है. आज तो ग्रैंड पार्टी होगी. डांस फ्लोर वाला हौल बुक करेंगे. मौम और डैड को तो डांस के बिना मजा ही नहीं आएगा.’’

‘‘लेकिन एक बात सुन लीजिए. ड्रिंक के लिए नो परमिशन.’’ आज से 5 साल पहले की बात है, जब मंजरी की शादी में उस के सौंदर्य और शालीनता से प्रभावित हो कर मम्मीजी और पापाजी ने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था. वह छोटे शहर के मध्यवर्गीय परिवार की बेटी थी. उस के बाबूजी कृष्णदास सोम के पिता महेंद्रजी के बचपन के दोस्त थे और एक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे. सोम के पिता महेंद्रजी फौज में भरती हो कर बाहर चले गए थे और इस समय बहुत ऊंचे ओहदे पर थे. वे स्वाभाविक रूप से बहुत खुले विचारों के थे और जब से लंदन रह कर आए थे, तब से अपने को आधा अंगरेज समझने लगे थे. इसलिए सोम और वाणी दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बिलकुल अलगअलग थी. सोम अपने पापा से बचपन से डरता था. उसी डर के कारण उस ने मंडप में वाणी के संग फेरे ले कर उसे अपनी जीवनसंगिनी बना तो लिया था, परंतु मन ही मन वह उसे देहाती लड़की ही समझ रहा था.

सोम की जीवनशैली के पाश्चात्य तौरतरीके देख वाणी थोड़ा घबराई थी. परंतु रात के अंधेरे में उस का सान्निध्य पा कर वह दिल से उस की हो गई थी. ससुराल में पहले दिन वाणी की नींद जब प्याजलहसुन की तेज गंध से खुली थी, तो उस का जी मिचला उठा था. वह जल्दीजल्दी तैयार हो कर नीचे आई, तो डाइनिंग टेबल पर सब लोग उस का नाश्ते पर इंतजार कर रहे थे. देर हो जाने की वजह से वह सकुचा उठी थी. टेबल पर एक प्लेट में अंडे की भुरजी देख कर वह सकपका गई थी. फिर भी अपने को सामान्य करती हुई अपनी प्लेट में ब्रैड ले कर कुतरने लगी थी. ‘‘वाणी यह अंडा भुरजी तो लो. इसे सोम ने तुम्हारे लिए विशेष रूप से बनवाया है.’’

वह धीमी आवाज में बोली थी, ‘‘मैं अंडा नहीं खाती हूं.’’ लेकिन सोम ने तेजी से लपक कर अपनी प्लेट से पूड़ी और भुरजी का बड़ा सा कौर बना कर उस के मुंह में रख दिया था. वह घबरा कर तेजी से बाथरूम की तरफ भागी थी. उसे मम्मीजी की आवाज पीछे से सुनाई दी थी, ‘‘सोम, तुम्हें इस तरह से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए थी.’’ इस के बाद वह 2-3 दिन वहां रही तो सोम उस से उखड़ाउखड़ा सा रहा. फिर उस की छुट्टियां समाप्त हो गईं, तो वाणी को उस के साथ मुंबई आना पड़ा. छोटे शहर की वाणी मुंबई की तेज रफ्तार भरी जिंदगी देख सहम सी गई थी. वह हर काम सोम की इच्छानुसार करने के चक्कर में सब उलटापुलटा कर बैठती. एक दिन शाम को सोम घर आते ही बोला, ‘‘तैयार हो जाओ. आज मेरी शादी की पार्टी है, जिस में मेरे कुछ खास दोस्त होंगे. जरा ढंग से तैयार होना.’’ वाणी सोम के साथ आज पहली बार घर से बाहर पार्टी में जा रही थी. इस वजह से वह खुश मन से सजधज कर तैयार हुई तो सोम बुरा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘यह क्या गंवारों की तरह साड़ी पहन ली. कुछ वैस्टर्न पहनतीं.’’

पार्टी में उस के दोस्त रुचिर और भुवन तो उस की सुंदरता पर मर मिटे थे. रुचिर ने हैलो करने को हाथ पकड़ा तो पकड़े ही रह गया. उस ने जबरदस्ती खींच कर अपना हाथ छुड़ाया. भुवन नशे में धुत्त था. वह उसे खींच कर डांस फ्लोर पर ले जा रहा था. उस के मना करते ही सोम सब के सामने नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम ने तो मैनर्स का ककहरा भी नहीं पढ़ा है. डांस कर लोगी तो क्या हो जाएगा?’’ वाणी की आंखों में आंसू आ गए थे. वह कोने में जा कर बैठ गई थी. वहां भुवन की पत्नी निशा बैठी हुई थी. उस को भी इस तरह की पार्टियां पसंद नहीं थीं. सोम के 7-8 दोस्तों और उन की पत्नियों ने जी भर कर बोतलें खाली कीं. फिर किसी को होश नहीं रहा कि कौन किस की बांहों में थिरक रहा है. सब नशे में डूबे हुए थे. उसे यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. सोम को नशे में धुत्त देख वह परेशान हो उठी थी. वाणी ने उस दिन से इस तरह की पार्टियों में न जाने की कसम खा ली थी.जल्द ही वाणी के पैर भारी हो गए. उस की तबीयत ढीली रहने लगी. लेकिन दोनों के संबंध सामान्य नहीं हो पाए. सोम उस पर हावी होता गया. वह झगड़े से बचने के लिए चुप रह जाती. कभीकभी पीने वाला सोम अकसर पी कर आने लगा था.

उस की खराब तबीयत के बारे में सुन कर उस के अम्माबाबूजी आ कर उस को अपने साथ ले गए. वहां कुहू के पैदा होने पर सोम आया और बेटी को लाड़ दिखा कर चला गया. वह सोचती थी कि मेरी प्यारी सी बेटी हम दोनों के रिश्ते सामान्य कर देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सोम की मम्मीजी और पापाजी विदेश में थे. थोड़े दिनों बाद वह सोम के साथ फिर से मुंबई आ गई. वहां नन्ही सी कुहू की देखभाल में उस का समय बीतने लगा. उस की सहायता के लिए एक आया लीला को रख लिया गया. एक दिन सुबह औफिस जाते हुए सोम बोला, ‘‘शाम को 6 बजे तैयार रहना. आज रुचिर की मैरिज ऐनिवर्सरी है. उस ने तुम्हें ले कर आने को कहा है.’’ यह कह कर वह औफिस चला गया, लेकिन वाणी के लिए वहां जाना मुमकिन नहीं था, क्योंकि कुहू को बुखार था. फिर उसे शुरू से ही सोम के दोस्त पसंद नहीं थे. पीना, डांस करना और आपस में भद्देभद्दे मजाक करना. पीनेपिलाने वाली पार्टियों से तो वह कोसों दूर रहना चाहती थी.

शाम 7 बजे आते ही सोम घुड़क कर बोला, ‘‘तुम्हारे कान बंद रहते हैं क्या? सुबह मैं तुम से कुछ कह कर गया था. अभी तक तुम तैयार क्यों नहीं हुई हो?’’

‘‘मैं नहीं जा पाऊंगी. कुहू को बुखार है.’’ सोम नाराज हो कर पैर पटकता हुआ घर से चला गया. लेकिन पार्टी में अकेले जाने के कारण सोम दोस्तों से हायहैलो करने के बाद एक पैग ले कर कोने की एक टेबल पर चुपचाप बैठ गया. उस पर अभी नशे का सुरूर चढ़ा भी नहीं था कि एक सुंदर महिला पर उस की निगाह पड़ी. वह कुछ क्षणों तक उस को अपलक निहारता रह गया. सोम की निगाहें उस महिला से एक क्षण को मिल गईं तो उस ने एक घूंट में ही बड़ा पैग खाली कर दिया. वह महिला भी अकेली बैठी सोम की ओर देख रही थी. अचानक वह तेजी से उठी और उस के पास आ कर कुरसी पर बैठते हुए बोली, ‘‘हाय हैंडसम, माईसैल्फ नैना.’’

उस की सुंदरता में खोए सोम को सब सपना सा लग रहा था, लेकिन वह भी बोला, ‘‘हैलो, माईसैल्फ सोम.’’ दोनों में दोस्ती होते देर न लगी. सोम उस की सुंदरता पर मर मिटा था, तो नैना सोम की स्मार्टनैस और जवानी पर. उन दोनों ने बेखौफ ड्रिंक और डांस का अच्छी तरह आनंद लिया. फोन नंबर का आदानप्रदान हुआ और शुरू हो गया दोनों का मिलनाजुलना. सोम सब कुछ भूल कर नैना के प्यार में खो गया. वह मीटिंग और अधिक काम के बहाने घर देर से पहुंचने लगा. दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते बन चुके थे, इसलिए सोम उस के नशे में डूबा रहता. दोनों अकसर साथ में लंच करते, तो कभी पिक्चर, कभी थिएटर, कभी मौल में घूमते. वाणी को पति के आचरण पर शक होने लगा था. वह कभीकभी उस के फोन काल और एसएमएस चैक करती, परंतु चौकन्ना सोम पत्नी के लिए कोई निशान नहीं छोड़ता था. एक दिन शाम को अचानक सोम बोला, ‘‘वाणी, मैं दिल्ली जा रहा हूं. वहां न्यूयार्क से एक डैलिगेशन आया है. उन के साथ मेरी मीटिंग है. मुझे वहां 2-3 दिन लगेंगे.’’ वाणी ने पति को शक की नजर से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं सिर्फ धीमी आवाज में बाय कह दिया. बाद में उस ने सोम की सेक्रेटरी से पता लगा लिया कि वह छुट्टी ले कर गया हुआ है, तो उस का शक विश्वास में बदल गया.

इधर सोम प्लेन की सीट पर बैठते ही नैना के ख्वाबों में खो गया. उस ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और वह नैना के सान्निध्य के खूबसूरत एहसास को जी रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बज उठी थी. उधर नैना थी. वह बोली, ‘‘डियर, मेरे लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा है. मेरी फ्लाइट में अभी देर है.’’ सोम ने एहतियातन दोनों की अलगअलग फ्लाइट बुक करवाई थी. वह आने वाले कल के रंगीन सपनों में खोया नैना के साथ बिताने वाले समय की रूपरेखा मन ही मन बना रहा था. वह दिल्ली पहुंचा ही था कि फिर से नैना का फोन आ गया, ‘‘डियर, तुम कहां तक पहुंचे?’’

‘‘मैं दिल्ली पहुंच गया हूं. जब तुम्हारी फ्लाइट पहुंचेगी मैं एअरपोर्ट पर तुम्हारा इंतजार करता हुआ मिलूंगा.’’

‘‘तुम बहुत अच्छे हो. तुम मुझे यूज कर के फिर अपनी बीवी के आंचल में तो नहीं लौट जाओगे?’’

‘‘नहीं…’’

नैटवर्क की प्रौब्लम के चलते फोन कट चुका था, लेकिन नैना के नशे में डूबे सोम ने वाणी से तलाक लेने का मन बना लिया था. वह सोच रहा था कि दिल्ली से लौटते ही वह अपने वकील से कागज तैयार करवा लेगा. नैना को लेने वह एअरपोर्ट पर पहुंचा. उस के हाथ में एक बड़ा सा बुके था. आज वह अपने नए जीवन की शुरुआत करने जा रहा था. यहां पर केवल वह होगा और उस की नैना. आज तो नैना शौर्ट स्कर्ट और टौप पहन कर आई थी. सोम उत्तेजनावश उस को निहारता ही रह गया. नैना ने पास आते ही उसे अपने आलिंगन में जकड़ लिया. रात में जिस 5 सितारा होटल में वे ठहरे थे, उस के विशेष कक्ष में दोनों ने डिनर लिया. तभी नैना ने अपने पर्स से एक सुंदर सा ब्रेसलेट निकाल कर सोम की कलाई में पहना दिया.

‘‘डियर सोम, यह ब्रेसलेट मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा है. यह हर समय तुम्हें मेरी याद दिलाता रहेगा.’’ ब्रेसलेट पहन सोम अचकचा उठा. उसे भी तो नैना के लिए कोई महंगा गिफ्ट खरीदना पड़ेगा. यह मस्ती तो उस पर भारी पड़ रही थी. रात में नैना उस को एक नाइट क्लब में ले गई. यह उस के लिए नया अनुभव था, लेकिन शायद नैना इन पार्टियों और क्लबों की अभ्यस्त थी. वहां सहजता से वह एक के बाद एक पैग चढ़ा रही थी, साथ ही सोम को भी पिला रही थी. दोनों मदहोशी में थे और गहरे नशे में डूब चुके थे. होटल में लौटने पर सोम अपने फोन पर कुछ कर रहा था कि नैना उस के हाथ से फोन खींच कर बोली, ‘‘तुम भी खूब हो. मुझ जैसी हसीना के बजाय फोन से खेल रहे हो.’’ फिर वह उस के और करीब खिसक कर बोली, ‘‘मुझे एक लंबे इंतजार के बाद तुम जैसा साथी मिला है. तुम अपनी बीवी से कब तलाक लोगे? बहुत हो गई लुकाछिपी. अब तुम से दूरी मुझ से बरदाश्त नहीं हो रही है.’’

‘‘नैना, यह बताओ कि आज तक तुम्हारे जीवन में कोई और तो नहीं आया?’’

‘‘नहीं यार, मैं सिंगल हूं. तुम्हें देखते ही मुझे जाने क्या हो गया. मैं तुम्हारे प्यार में पड़ कर सारी दुनिया भूल गई. दिन भर तुम्हारे ख्वाबों में खोई रहती हूं. औफिस के काम में भी मेरा मन नहीं लगता,’’ यह सब कहतेकहते उस ने सोम के होंठों पर अपने दहकते हुए होंठ रख दिए. फिर दोनों बेसुध हो कर सो गए. सुबह सोम के पास औफिस से जरूरी मीटिंग के लिए फोन आ गया. वह जाना नहीं चाहता था, क्योंकि अभी नैना के साथ और समय बिताना चाह रहा था, लेकिन उस का लौटना जरूरी था, इसलिए वह नैना से बोला, ‘‘नैना, मुझे औफिस की मीटिंग की वजह से आज ही मुंबई पहुंचना होगा.’’

‘‘ठीक है, तुम चले जाओ. मैं 2 दिन बाद पहुंचूंगी.’’

सोम फ्लाइट से अगले दिन सुबह जब घर पहुंचा तो नैना को छोड़ कर आने की वजह से खिसियाया हुआ था. फिर जब औफिस के लिए तैयार हो रहा था, वाणी किचन में गई. उस ने चायनाश्ता बनाया और डाइनिंग टेबल पर रख दिया. सोम हड़बड़ाता हुआ कमरे से निकला तो कप में चाय देखते ही चिल्लाया, ‘‘बदतमीज औरत, जब तुझे पता है कि मैं इस तरह की चाय नहीं पीता, तो क्यों बना कर रख देती हो?’’ और गुस्से में चाय का कप और नाश्ता दोनों को उठा कर जमीन में फेंक दिया. वाणी किचन से बाहर आई और सोम से बोली, ‘‘सोम मैं आप की पसंद की पौट वाली चाय बना कर लाती हूं, प्लीज रुक जाइए. घर से इस तरह चायनाश्ते के बिना मत जाइए.’’ सोम ने वाणी को सामने से हटाने के लिए धक्का दिया और बिना पीछे देखे गाड़ी स्टार्ट कर के चला गया. वाणी जमीन पर गिर गई और टेबल का कोना माथे पर चुभ जाने से उस के माथे से खून बह निकला. कुछ पलों के लिए वह बेहोश हो गई. फिर होश आने पर उस ने चोट पर दवा लगाई और लेट कर अपने जीवन के बारे में सोचने लगी. वह कब तक इस तरह से अपमानित होहो कर जीती रहेगी? उसे अपने भविष्य के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचना पड़ेगा. सोम उस पर हाथ भी उठाने लगे हैं. वह किस तरह से सोम को सही रास्ते पर लाए.

तभी उस का मोबाइल बज उठा. उधर उस की सासूमां सरिताजी थीं.

‘‘कैसी हो वाणी?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मेरे नालायक बेटे का क्या हाल है?’’

‘‘वे भी ठीक हैं.’’

‘‘तेरा खयाल रखता है मेरा अकड़ू बेटा?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘उसे बता देना कि मैं उसे याद कर रही थी.’’ उन की बात यहीं खत्म हो गई पर मम्मीजी के अकड़ू शब्द ने वाणी की चेतना को जगा दिया. उस ने नैट पर प्राइवेट डिटैक्टिव एजेंसी को ढूंढ़ व उस से संपर्क कर सोम और उस की महिला मित्र के विषय में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए कहा. उस के लिए उस ने मुंहमांगी फीस भी दी. उस के बाद उस ने अपना सामान गैस्टरूम में शिफ्ट कर लिया. शाम को जब सोम आया तो सारे घर में अंधेरा देख उस का माथा ठनका. फिर वाणी को गैस्टरूम में देखा तो बोला, ‘‘यह सब क्या नाटक है?’’

‘‘जो देख रहे हो. जल्दी ही मैं अपनी व्यवस्था कर लूंगी. फिर यहां से हमेशा के लिए आप की नजरों से दूर हो जाऊंगी.’’ अपनी सुबह की गलती का एहसास होते ही उस ने वाणी से आज पहली बार माफी मांग कर समझौता करना चाहा.

 

लेकिन वाणी बोली, ‘‘देखिए सोम, आप का जीने का ढंग मुझे पसंद नहीं और मेरी स्टाइल आप को पसंद नहीं. इसलिए अच्छा यही है कि हम दोनों अलग हो जाएं.’’ मन ही मन खुश होता हुआ सोम बोला, ‘‘वाणी तुम से सौरी बोल तो दिया, अब मान भी जाओ.’’ ‘‘सोम, आज आप ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. यदि कुहू गोद में न होती तो मैं बहुत पहले आप का घर छोड़ चुकी होती. कुहू की ममता के कारण ही इस समय तक मैं आप का अत्याचार झेलती रही.’’

‘‘बहुत दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा, मुझ से जबान लड़ाती हो.’’

‘‘सोम, आज आखिरी बार मैं आप से कह रही हूं कि तमीज से बात करो. नहीं तो मैं क्या करूंगी, इस का आप को अनुमान भी नहीं है. मुझे कमजोर मत समझिएगा. इतने दिन मैं चुप और शांत इसलिए रही कि शायद आप सुधर जाओगे, लेकिन आप ने तो न सुधरने की कसम खा ली है.’’ वाणी का कड़ा रुख देख सोम चुपचाप अपने कमरे में चला गया. परंतु उस की आंखें क्रोध से लाल हो रही थीं. दोनों में बोलचाल बंद थी. घर में शांति छा गई थी. वाणी को सीक्रेट सर्विस वालों की रिपोर्ट का इंतजार था. वह जब उसे मिली तो उस का शक सही निकला था. उन लोगों ने सोम और नैना के रिश्तों की बात सच बताई. साथ ही नैना के अन्य संबंधों की सीडी उस को दे कर गए. अब वह आश्वस्त थी कि अपने और सोम के रिश्ते को या तो बचा लेगी या तोड़ लेगी. तभी मम्मीजी का फोन आ गया कि पापा को हार्टअटैक पड़ा है, इसलिए तुम दोनों तुरंत आओ. सोम और वह दोनों तुरंत वहां पहुंच गए थे. पापाजी एक हफ्ते नर्सिंग होम में रहने के बाद डिस्चार्ज हो कर घर आ गए थे. सोम के पिता महेंद्रजी बहुत जल्दी स्वस्थ हो गए. नैना के नशे में डूबा सोम वाणी को वहीं छोड़ मुंबई चला आया. वाणी के उतरे हुए चेहरे और गुमसुम रहने से सरिताजी का माथा ठनका. उन्होंने पूछा, ‘‘वाणी, तुम्हारे और सोम के बीच सब ठीक तो है न?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘सोम तो तुम्हें फोन भी नहीं करता?’’

‘‘वे काम में बहुत बिजी रहते हैं, इसलिए नहीं कर पाए होंगे.’’

‘‘तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. सचसच बताओ. मैं अपने बेटे के स्वभाव को अच्छी तरह जानती हूं.’’

अब वाणी अपने को रोक न पाई तो एकदम से उबल पड़ी, ‘‘मम्मीजी, मैं सोम से तलाक लेना चाहती हूं. मैं उन के साथ अब नहीं निभा सकती.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘प्लीज, आप पापाजी से कुछ मत कहिएगा. अभी उन की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है.’’ वाणी ने सीक्रेट सर्विस वालों द्वारा दी हुई सीडी उन के हाथ में रख दी और फूटफूट कर रो पड़ी. सरिताजी ने वाणी के आंसू पोछे और बोलीं, ‘‘तुम चुप हो जाओ. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारी समस्या का समाधान मैं करूंगी.’’ सरिताजी ने आहत मन से उस सीडी को देखा. वे वाणी से बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे शरीर में कोई रोग या बीमारी हो जाने पर उस का इलाज करने के लिए कड़वी दवा पीनी पड़ती है, वैसे ही यदि सोम के कदम बहक गए हैं, तो हम सब को मिल कर उसे सही रास्ते पर लाना होगा. तुम्हें मेरा साथ देना होगा. मेरा विश्वास है कि सोम बहुत जल्द तुम्हारे पास होगा. बस थोड़ा धीरज रखो.’’ उन्होंने वाणी को इंगलिश स्पीकिंग और व्यक्तित्व विकास की क्लासेज जौइन करवा दीं. सुंदर तो वह थी ही अब उस का व्यक्तित्व भी निखर उठा था, क्योंकि उस का आत्मविश्वास बढ़ चुका था. सरिताजी वाणी के बदले हुए व्यक्तित्व से बहुत खुश थीं. कुछ दिनों बाद वे बेटे के घर अकेले पहुंच गईं. घर पर नैना की यहांवहां बिखरी चीजें देख वे सोम से बोलीं, ‘‘बेटा, यहां तुम्हारे साथ कौन रहता है?’’

सकपकाया सा सोम बोला, ‘‘कोई नहीं मौम? मेरी एक दोस्त किसी मीटिंग में यहां आई है. उसी का सामान यहांवहां बिखरा हुआ है. 3-4 दिनों से वह यहां है, आज उसे जाना है.’’ ‘‘साफ शब्दों में क्यों नहीं कहते कि मेरी गर्लफ्रैंड मेरे साथ रह रही है. वैसे बेटा यह तुम ने बड़ा अच्छा किया कि अपने लिए एक पार्टनर ढूंढ़ लिया. लेकिन तुम्हें पार्टनर बड़ी जल्दी से मिल गई. अभी तो वाणी को गए 2 महीने भी नहीं हुए. चलो मेरी चिंता समाप्त हुई. मैं सोचती थी कि मेरा इतना मौडर्न बेटा कैसे उस देहाती लड़की के साथ गुजर कर रहा होगा?’’

‘‘नहीं मां, ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन वाणी के साथ रहना तो वास्तव में बहुत मुश्किल है. पक्की घरेलू और देहातिन लड़की है. मैं तो उस के साथ खून का घूंट पी कर रहता हूं.’’

‘‘तो ठीक है, तुम उस से तलाक ले लो.’’

‘‘हां, मैं मन ही मन यह सोचता तो था, लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती थी. अब आप मेरे फेवर में हैं तो मैं कल ही वकील से मिल कर बात करूंगा. लेकिन मौम, आप पापा के सामने अपने कदम पीछे तो नहीं कर लेंगी? मुझे पापा से बहुत डर लगता है.’’ ‘‘हां, तुम्हारे पापा को समझाना तो थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि वाणी ने उन पर न जाने कौन सा जादू कर रखा है. वे तो रातदिन उस की तारीफ करते रहते हैं. चलो देखती हूं, लेकिन अपनी दोस्त से कब मिलवाओगे?’’

‘‘शुभ काम में देरी कैसी डियर मौम. मैं ने तो उसे न आने के लिए मैसेज कर दिया था पर अब उसे आने के लिए बोल देता हूं.’’ ‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन वाणी तो आदर्श हिंदू लड़की है. वह तो मरते दम तक तुम्हें तलाक नहीं देगी और साथ में तुम्हारी बेटी कुहू का जीवन संकट में पड़ जाएगा.’’

‘‘मौम, आज नैना बिजी है, इसलिए वह नहीं आएगी.’’

‘‘रात में वह कहां बिजी रहती है?’’

‘‘मुझे क्या मालूम. किसी क्लाइंट के साथ उस की मीटिंग होगी. हम लोग पर्सनल बातें आपस में डिस्कस नहीं करते.’’

‘‘फिर तो वह अमीर लड़की होगी. चलो अच्छा है तुम्हारी नौकरी चली गई तो वह तुम्हारा खर्च तो उठा लेगी.’’

‘‘मौम, आप तो न जाने क्या कहना चाह रही हैं.’’

‘‘देखो सोम, जब किसी ऐसे काम को करने जा रहे हो, जिस का फैसला कोई दूसरा करने वाला हो, तो उस के नकारात्मक पहलू पर भी विचार करना चाहिए. जरा वह ब्रेसलेट ले आओ.’’ सोम ने ब्रेसलेट ला कर सरिताजी की हथेली पर रखा. उन्होंने ब्रेसलेट को उलटपलट कर और यहांवहां जरा सा घिस कर देखा. फिर बोलीं, ‘‘इस ब्रेसलेट पर तो सोने की पौलिश भी नहीं है. इस की कीमत तो क्व100, क्वडेढ़ 100 होगी. चलो इस को ज्वैलर के यहां परखवा लेते हैं.’’

‘‘छोड़ो मौम, नैना ने शायद मुझ पर इंप्रैशन जमाने के लिए यह नकली ब्रेसलेट दिया होगा.’’

‘‘मेरे लाल, असलीनकली को पहचानना सीखो. कब तक नकली तड़कभड़क के पीछे भागते रहोगे?’’

‘‘आप ने तो जरा सी बात का बतंगड़ बना दिया. दोस्तों के बीच तो यह सब चलता ही रहता है.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं. अब छोड़ो भी ये सब बातें. जरा यह सीडी वीडियो प्लेयर में लगा दो. आते समय तेरे पापा ने यह कह कर दी थी कि इस सीडी को अपने लायक बेटे के साथ ही बैठ कर देखना. जरा देखूं तो इस सीडी में ऐसा क्या है.’’

सोम ने सीडी चालू की. टीवी में सब से पहले नैना का फोटो उस के पूर्व पति के साथ था, जिस में वह साधारण परिवार की वेशभूषा में थी. उस का पति कोई क्लर्क था. उसे छोड़ कर नैना ने किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह रचाया था. उस का भी फोटो था. उसे छोड़ने के बाद किसी अधेड़ रईस के साथ रहने लगी थी. वह उस के पैसे पर ऐश करती रही. जब उस की आर्थिक स्थिति खराब हो गई, उस को पैरालाइसिस हो गया, तो उस को छोड़ कर अब इधरउधर रईस, स्मार्ट लड़कों के संग रोमांस का नाटक कर के उन्हें लूट रही थी. नाइटक्लब के भी कई वीडियो थे, जिस में वह अलगअलग लड़कों के साथ अश्लील नृत्य कर रही थी. सोम ने मां के हाथ से रिमोट ले कर टीवी बंद कर दिया. वह गुमसुम हो गया था. उस की आंखों से आंसू बह निकले थे. ‘‘मौम, मैं भटक गया था. असली हीरे को छोड़ मैं नकली की चमकदमक में भटक गया था. मैं वाणी का गुनहगार हूं. मुझे उस से माफी मांगनी है, कहीं देर न हो जाए.’’ वह सोच रही थी कि मां के इस कदम ने उस की टूटती शादी को बचा लिया था. तभी सोम के दोस्त रुचिर और भुवन के सम्मिलत स्वर से उस की तंद्रा टूटी, ‘‘थैंक्स भाभी. आप के कड़े रुख के कारण सोम ने हम सब के सामने शर्त रख दी थी कि या तो दोस्ती या ड्रिंक. ड्रिंक पर दोस्ती भारी पड़ी.’’

वाणी प्यार भरी निगाहों से सोम को देख कर उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘थैंक्स सोम.’’

हिजाब: क्या चिलमन, आपा की चालों से बच पाई

‘‘आपा,दरवाजा बंद कर लो, मैं निकल रही हूं. और हां, आज आने में थोड़ी देर हो सकती है. स्कूटी सर्विसिंग के लिए दूंगी.’’

‘‘अब्बा ने निगम का टैक्स भरने को भी तो दिया था. उस का क्या करेगी?’’

‘‘भर दूंगी… और भी कई काम हैं. रियाद और शिगुफ्ता की शादी की सालगिरह का गिफ्ट भी ले लूंगी.’’

‘‘ठीक है, जो भी हो, जल्दी आना. 2 घंटे में आ जाना. ज्यादा देर न हो,’’ कह आपा ने दरवाजा बंद कर लिया.

मैं अब गिने हुए चंद घंटों के लिए पूरी तरह आजाद थी. जब भी घर से निकलती हूं मेरी हाथों में घड़ी की सूईयां पकड़ा दी जाती हैं. ये सूईयां मेरे जेहन को वक्तवक्त पर वक्त का आगाह कराती बेधती हैं- अपराधबोध से, औरत हो कर खतरों के बीच घूमने के डर से, खानदान की नाक की ऊंचाई कम हो जाने के खतरे से और मैं दौड़ती होती हूं काम निबटा कर जल्दी दरवाजे के अंदर हो जाने को.

किन दिमागी खुराफातों में उलझा दिया मैं ने… इतने बगावती तेवर तो हिजाब की तौहीन हैं. खैर, क्यों न इन चंद घंटों में लगे हाथ अपने घर वालों से भी रूबरू करा दूं.

ये भी पढ़ें- जलन: क्यों प्रिया के मां बनने की खुशी कोई बांटना नही चाहता था

तो हम कानपुर के बाशिंदे हैं. मेरे अब्बा होम्योपैथी के डाक्टर हैं. 70 की उम्र में भी उन की प्रैक्टिस अच्छी चल रही है. मेरे वालिदान अपनी बिरादरी के हिसाब से बड़े खुले दिलोदिमाग वाले हैं, ऐसा कहा जाता है.

6 बहनों में मैं सब से छोटी. मैं ने माइक्रोबायोलौजी में एमएससी की है. मेरी सारी बहनों को भी अच्छी तालीम की छूट दी गई थी और वे भी बड़ी डिगरियां हासिल करने में कामयाब हुईं. हमें याद है हम सारी बहनें बढि़या रिजल्ट लाने के लिए कितनी जीतोड़ मेहनत करती थीं और पढ़ने से आगे कैरियर भी मेरे लिए माने रखता ही था. मुझे एक प्राइवेट संस्थान में अच्छी सैलरी पर लैक्चरर की जौब मिल रही थी. लेकिन यह बात मेरे अब्बा की खींची गई आजादी की लकीर से उस पार की हो जाती थी.

साहिबा आपा को छोड़ वैसे तो मेरी सारी बहनों ने ऊंची डिगरियां हासिल की थीं, लेकिन दीगर बात यह भी थी कि अब वे सारी अपनीअपनी ससुराल की मोटीतगड़ी चौखट के अंदर बुरके में कैद थीं. हां, मेरे हिसाब से कैद ही. उन्होंने अपने सर्टिफिकेट को दिमाग के जंग लगे कबूलनामे के बक्से में बंद कर राजीखुशी ताउम्र इस तरह बसर करने का अलिखित हुक्म मान लिया था.

वे उन गलतियों के लिए शौक से शौहर की डांट खातीं, जिन्हें उन के शौहर भी अकसर सरेआम किया करते. वे सारी खायतों को आंख मूंद कर मानतीं और लगे हाथों मुझे मेरे तेवर पर कोसती रहतीं.

वालिदान के घर मैं और सब से बड़ी आपा रहती थीं. बाकी मेरी 4 बहनों की कानपुर के आसपास ही शादी हुई थी. ये सभी बहनें पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बाहरी कामकाज में भी स्मार्ट थीं. वैसे अब ये बातें बेजा थीं, ससुराली कायदों के खिलाफ थीं. सब से बड़ी आपा साहिबा की शादी कम उम्र में ही हो गई थी. उन का पढ़ाई में मन नहीं था और शादी के लिए वे तैयार थीं.

बाद के कुछ सालों में उन का तलाक हो गया और वे अपने बेटे रियाद के साथ हमारे पास रहने आ गईं. मेरी दूसरी आपा जीनत की शादी पड़ोस के गांव में हुई थी. उन की बेटी शिगुफ्ता की अच्छी तालीम के लिए अब्बा ने अपने पास रखा. उम्र बढ़ने के साथ रियाद और शिगुफ्ता के बीच ‘गुल गुलशन गुलफाम’ होने लगे तो इन लोगों की शादी पक्की कर दी गई.

अब्बा के बनाए घर में हम सब बड़े प्रेम से रहते थे. हां, प्रेम के बाड़े के अंदर उठापटक तब होती जब अब्बा की दी गई आजादी के निशान से हमारे कदम कुछ कमज्यादा हो जाते.

घर में पूरी तरह इसलामी कानून लागू था. बावजूद इस के अब्बा कुछ हद तक अपने खुले विचारों के लिए जाने जाते थे. मगर यह ‘हद’ जिस से अब मेरा ही हर वक्त वास्ता पड़ता मेरे लिए कोफ्त का सबब बन गया था. मैं चिढ़ी सी रहती कि मैं क्यों न अपनी तालीम को अपनी कामयाबी का जरीया बनाऊं? क्यों वालिदान का घर संभालते ही मैं जाया हो जाऊं?

सारे काम निबटा कर रियाद और शिगुफ्ता के तोहफे ले कर मैं जब अपनी स्कूटी सर्विसिंग में देने पहुंची तो 4 बजने में कुछ ही मिनट बाकी थे. मन में बुरे खयालात आने लगे… घर में फिर वही बेबात की बातें… दिमाग गरम…

मैं स्कूटी दे कर जल्दी सड़क पर आई और औटो का इंतजार करने लगी. अभी औटो के इंतजार में बेचैन ही हो रही थी कि पास खड़ी एक दुबलीपतली सांवली सामान्य से कुछ ऊंची हाइट की लड़की विचित्र स्थिति से जूझती मिली. उस की तुलना में उस की भारीभरकम ड्युऐट ने उसे खासा परेशान किया हुए था.

सर्विस सैंटर के सामने उस की गाड़ी सड़क से उतर गई थी और वह उसे खींच कर सड़क पर उठाने की कोशिश में अपनी ताकत जाया कर रही थी. हाइट वैसे मेरी उस से भले ही कुछ कम थी, लेकिन अपनी बाजुओं की ताकत का जायजा लिया मैं ने तो वे उस से 20 ही लगीं मुझे. मैं ने पीछे से उस की गाड़ी को एक झटके में यों धक्का दिया कि गाड़ी आसानी से सड़क पर आ गई. पीछे से अचानक मिल गई इस आसान राहत पर उसे बड़ी हैरानी हुई. उस ने पीछे मुड़ कर मुझे देख मुझ पर अपनी सवालिया नजर रख दी.

ये भी पढ़ें- Short Story: नैगेटिव से पौजिटिव

मैं ने मुसकरा कर उस का अभिवादन किया. बदले में उस सलोनी सी लड़की ने मुझ पर प्यारी सी मुसकान डाली. मैं पढ़ाई पूरी कर के 3 सालों से घर में बैठी हूं, मेरी उम्र 26 की हो रही. उस की भी कोई यही होगी. उस की शुक्रियाअदायगी से अचानक ऐसा लगा मुझे जैसे कभी हम मिली थीं.

मेरी उम्मीद से आगे उस ने मुझ से पूछ लिया कि मैं कहां जा रही हूं. वह मुझे मेरी मंजिल तक छोड़ सकती है. तब तक औटो को मैं ने रोक लिया था, इसलिए उसे मना करना पड़ा. हां, वह मुझे बड़ी प्यारी लगी थी, इसीलिए मैं ने उस से उस का फोन नंबर मांग लिया.

औटो में बैठ कर मैं उस सलोनी लड़की के बारे में ही सोचती रही…

वह नयनिका थी. छोटीछोटी आंखें, छोटी सी नाक पर मासूम सी सूरत. सांवली त्वचा निखरी ऐसी जैसे चमक शांति और बुद्धि की हो. बारबार मेरे जेहन में एहसास जगता रहा कि इसे मैं कहीं मिली हूं, लेकिन वे पल मुझे याद नहीं आए.

शाम को 4 बजे तक घर लौट आने का हुक्मनामा साथ ले गई थी, लेकिन अब 6 बजने में कुछ ही मिनटों का फासला था.

सूर्य का दरवाजा बंद होते ही एक लड़की बाहर महफूज नहीं रह सकती या तो बेवफाई की कालिख या फिर बिरादरी वालों की तोहमत अथवा औरत पर मंडराता जनूनी काला साया.

कहते हैं हिजाब हट रहा है. हिजाब तो समाज के दिमाग पर पड़ा है. समाज की सोच हिजाब के पीछे चेहरा छिपाए खड़ी है… वह रोशनी से खौफ खाती है. जब तक उस हिजाब को नहीं हटाओगे औरतों के हिजाब हट भी गए तो क्या?

अब्बा अम्मी पर बरस रहे थे, ‘‘लड़की जात को ज्यादा पढ़ालिखा देने से

यही होता है. मैं ही कमअक्ल था जो अपनी बिरादरी के उसूलों के खिलाफ जा कर लड़कियों को इतना पढ़ा डाला.. पैर मैं चटके बांध दिए… उस की सभी बहनें खानदान के रिवाजों की कद्र करते चल रही हैं… उन की कौन सी बेइज्जती हो रही है? वे तो किसी बात का मलाल नहीं करतीं… और इस छोटी चिलमन का यह हाल क्यों? मैं कहे देता हूं, वह कितना भी रोक ले, वाकर अली से उसे निकाह पढ़ना ही है. उस के आपा के बेटेबेटियों की शादी हो गई और यह अभी तक…

‘‘कैरियर बनाएगी… और क्या बनाएगी? इतना पढ़ा दिया… बिन बुरके यूनिवर्सिटी जाती रही… अब भी बुरका नहीं पहनती. मैं भी कुछ कहता नहीं… चलो जमाने के हिसाब से हम भी उसे छूट दें, लेकिन यह तो किसी को कुछ मानना ही नहीं चाहती?’’

ये भी पढ़ें- Short Story: अकेले हम अकेले तुम

अब्बा की पीठ दरवाजे की तरफ थी.

उन्होंने देखा नहीं मुझे. वैसे मुझे और उन्हें इस से फर्क भी नहीं पड़ने वाला था. मुझे जितनी आजादी थमाई गई थी, उस का सारा रस बारबार निचोड़ लिया जाता था और मैं सूखे हुए चारे की जुगाली करती जाती थी. वैसे मेरा मानना तो यह था कि जो दी गई हो वह आजादी कहां? मेरी शादी मेरे खाला के बेटे से तय करने की पहल चल रही थी.

वाकर अली नाम था उस का. वह मैट्रिक पास था. अपनी बैग्स की दुकान थी.

आगे पढ़ें- दिनरात एक कर के ईमानदारी से…दिनरात एक कर के ईमानदारी से कमाई गई मेरी माइक्रोबायोलौजी की एमएससी की डिगरी चुल्लू भर पानी मांग रही थी डूब मरने को… और घर वाले मेरी बहनों का नाम गिना रहे थे. कैसे

वे ऊंची डिगरियां ले कर भी कम पढ़ेलिखे बिजनैस और खेती करने वाले पतियों से बाखुशी निभा रही हैं… वाकई मैं घर वालों की नजरों में उन बहनों जैसी अक्लमंद, गैरतमंद और धीरज वाली नहीं थी.

वाकर अली आज मुझे देखने आया. वैसे देखा मैं ने उसे ज्यादा… मुझ जैसी हाइट 5 फुट

5 इंच से ज्यादा नहीं होगी. सामान्य शक्लसूरत वैसे इस की कोई बात नहीं थी, लेकिन जो बात हुई वह तो जरूर कोई बात थी.

वकौल वाकर अली, ‘‘घर पर रह लेंगी न? हमारे यहां शादी के बाद औरत को घर से बाहर अकेले घूमते रहने की इजाजत नहीं होती… और आप को बुरके की आदत डाल लेनी होगी. आप को बिरादरी का खयाल रखना चाहिए था.’’

मैं अब्बा की इज्जत का खयाल कर चुप रही. मगर मैं चुप नहीं थी. सोच रही थी कि ये इजाजत देने वाले क्याक्या सोच कर इजाजत देते हैं.

ये भी पढ़ें- Short Story: रोमांस के रंग, श्रीमतीजी के संग

जेहन में सवाल थे कि क्याक्या फायदा होता है अगर आप के घर लड़कियां शादी बाद घर से अकेले नहीं निकलें या क्या नुकसान हो जाता है अगर निकलें तो? क्या बीवी पर भरोसे की कमी है या मर्दजात पर…

खानदानी आबरू के नाम पर काले सायों से ढकी रहने वाली औरतों की इज्जत घर में कितनी महफूज है?

वाकर अली मेरे अब्बा की तरह ही कई सारे कानून मुझ पर थोप कर चला गया कि अगर राजी रहूं तो अब्बा उस से बात आगे बढ़ाएं.

अब्बा तो जैसे इस बंदे के गले में मुझे बांधने को बेताब हुए जा रहे थे. घर में 2 दिन से इस बात पर बहस छिड़ी थी कि आखिर मुझे उस आदमी से दिक्कत क्या है? एक जोरू को चाहिए क्या- अपना घरबार, दुकान इतना कमाऊ पति, गाड़ी, काम लेने को घर में 2-3 मददगार हमेशा हाजिर… क्या बताऊं, क्या नहीं चाहिए मुझे? मुझे तो ये सब चाहिए ही नहीं.

मैं ने सोचा एक बार साहिबा आपा से बात की जाए. दीदी हैं कुछ तो समझेंगी मुझे. अभी मैं सोच कर अपने बिस्तर से उठी ही थी कि साहिबा आपा मेरे कमरे का दरवाजा ठेल अंदर आ गईं. बिना किसी लागलपेट के मैं ने कहा, ‘‘आपा, मैं परेशान हूं आप से बात करने को…’’

बीच में टोक दिया आपा ने, ‘‘हम सब भी परेशान हैं… आखिर तू निकाह क्यों नहीं करना चाहती? वाकर अली किस लिहाज से बुरा है?’’

‘‘पर वही क्यों?’’

‘‘हां, वही क्योंकि वह हमारी जिन जरूरतों का खयाल रख रहा है उन का और कोई नहीं रखेगा.’’

मैं उत्सुक हो उठी थी, ‘‘क्या? कैसी मदद?’’

‘‘वह तुझे बुटीक खुलवा देगा, तू घर पर ही रह कर कारीगरों से काम करवा कर पैसा कमाएगी.’’

‘‘पर सिर्फ पैसा कमाना मेरा मकसद नहीं… मैं ने जो पढ़ा वह शौक से पढ़ा… उस डिगरी को बक्से में बंद ही रख दूं?’’

‘‘बड़ी जिद्दी है तू!’’

‘‘हां, हूं… अगर मैं कुछ काम करूंगी तो अपनी पसंद का वरना कुछ नहीं.’’

‘‘निकाह भी नहीं?’’

‘‘जब मुझे खुद कोई पसंद आएगा तब.’’

साहिबा आपा गुस्से में पैर पटकती चली गईं. मैं सोच में पड़ गई कि वाकर अली से ब्याह कराने का बस इतना ही मकसद है कि वह मुझे बुटीक खुलवा देगा. वह बुटीक न भी खुलवाए तो इन लोगों को क्या? बात कुछ हजम नहीं हो रही थी. मन बहुत उलझन में था.

बिस्तर पर करवटें बदलते मेरा ध्यान पुरानी बातों और पुराने दिनों पर चला गया.

अचानक नयनिका याद आ गई. फिर मैं उसे पुराने किसी दिन से मिलान करने की कोशिश करने लगी. अचानक जैसे घुप्प अंधेरे में रोशनी जल उठी…

अरे, यह तो 5वीं कक्षा तक साथ पढ़ी नयना लग रही है… हो न हो वही है… अलग सैक्शन में थी, लेकिन कई बार हम ने साथ खेल भी खेले. उस की दूसरी पक्की सहेलियां उसे नयना बुलाती थीं और इसीलिए हमें भी इसी नाम का पता था. वह मुझे बिलकुल भी नहीं समझ पाई थी. ठीक ही है…

16-17 साल पुरानी सूरत आसान नहीं था समझना. रात के 12 बजने को थे. सोचा उसे एक मैसेज भेज रखूं. अगर कहीं वह देख ले तो उस से बात करूं. संदेश उस ने कुछ ही देर में देख लिया और मुझे फोन किया.

बातों का सिलसिला शुरू हो कर हम ज्यों 5वीं क्लास तक पहुंचे हमारी घनिष्ठता गहरी

होती गई. जल्दी मिलने का तय कर हम ने फोन रखा तो बहुत हद तक मैं शांत महसूस कर

रही थी.

कुछ ही मुलाकातों में विचारों और भावनाओं के स्तर पर मैं खुद को नयनिका के करीब पा रही थी. वह सरल, सभ्य शालीन और कम बोलने वाली लड़की थी. बिना किसी ऊपरी पौलिश के एकदम सहज. उस के घर में पिता सरकारी अफसर थे और बड़ा भाई सिविल इंजीनियर. मां भी काफी पढ़ीलिखी महिला थीं, लेकिन घर की साजसंभाल में ही व्यस्त रहतीं.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: रिश्तों की कसौटी-जब बेटी को पता चले मां के प्रेम संबंध का सच

नयनिका कानपुर आईआईटी से ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिगरी हासिल कर के अब पायलट बनने की नई इबारत लिख रही थी.

इतनी दूर तक उस की जिंदगी भले ही समतल जमीन पर चलती दिख रही हो, लेकिन उस की जिंदगी की उठापटक से मैं भी दूर नहीं रह पा

रही थी.

इधर मेरे घर पर अचानक अब्बा अब वाकर अली से निकाह के लिए जोर देने के साथसाथ बुटीक खोल लेने की बात मान लेने को ले कर मुझ से लड़ने लगे थे. साथ कभीकभार अम्मी भी बोल पड़तीं. हां, आपा सीधे तो कुछ नहीं कहतीं, लेकिन उन का मुझ से खफा रहना मैं साफ समझती थी. अब तो रियाद और शिगुफ्ता भी बुटीक की बात को ले कर मुझ से खफा रहने लगे थे. अलबत्ता निकाह की बात पर वे कुछ न कहते. मैं बड़ी हैरत में थी. दिनोदिन घर का माहौल कसैला होता जा रहा था. आखिर बात थी क्या? मुझे भी जानने की जिद ठन गई.

साहिबा आपा से पूछने की मैं सोच ही रही थी कि रात को किचन समेटते वक्त बगल के कमरे से अब्बा की किसी से बातचीत सुनाई पड़ी. अब्बा के शब्द धीरेधीरे हथौड़ा बन मेरे कानों में पड़ने लगे.

अच्छा, तो यह वाकर अली था फोन पर.

रियाद की प्राइवेट कंपनी में घाटा होने की वजह से उस के सिर पर छंटनी की

तलवार लटक रही थी. इधर शिगुफ्ता को बुटीक का काम अच्छा आता था. रियाद और शिगुफ्ता के लिए एक विकल्प की तलाश थी. मुझ से बुटीक खुलवाना. लगे हाथ मेरे हाथ पीले हो जाएं… रियाद और शिगुफ्ता को मेरे नाम से बुटीक मिल जाए… मालिकाना हक रियाद और शिगुफ्ता का रहे, लेकिन मेरा नाम आगे कर के कामगारों से काम लेने का जिम्मा मेरा रहे. शिगुफ्ता को जब फुरसत मिले वह बुटीक जाए.

आगे पढ़ें- मैं रात को साहिबा आपा के पास जा बैठी…

ये भी पढ़ें- सीमा रेखा: जब भाई के लिए धीरेन भूल गया पति का फर्ज

मैं रात को साहिबा आपा के पास जा बैठी… कहीं उन का मन मेरे लिए पसीजे. मगर वे लगीं उलटा मुझे समझाने, ‘‘वाकर तो अपनी खाला का बेटा है. गैर थोड़े ही है. पहली बीवी बेचारी मर गई थी… दूसरी भी तलाक के बाद चली गई… 38 का जवान जहान लड़का… क्यों न उस का घर बस जाए? शादी तो तुझे करनी ही है… कहीं तेरी शादी से मेरे बच्चों का जरा भला न हो जाए वह तुझे फूटी आंख नहीं सुहा रहा न?’’

‘‘अब आगे इन के बच्चे होंगे, हमारा घर छोटा पड़ेगा… इन का कारोबार जम जाए तो ये फ्लैट ले लें… यहां भी जगह बने. अब्बा फिर इस घर को बड़ा करवा कर किराए पर चढ़ाएं तो हमें भी कुछ आमदनी हो.’’

‘‘घर तोड़ेंगे क्या अब्बा… किस का कमरा?’’

‘‘किस का क्या बाहर वाला?’’

‘‘पर वह तो मेरा कमरा है?’’

‘‘तो तू कौन सी घर में रह जाएगी… वाकर के घर चली तो जाएगी ही न? जरा घर वालों का भी सोच चिलमन.’’

‘‘क्या मतलब? सुबह से ले कर रात तक सब की सेवा में लगी रहती हूं… और क्या सोचूं?’’

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: दर्द- क्या नदीम ने कनीजा बी को छोड़ दिया

‘‘कमाल है… तुझे बिना बुरके के आनेजाने, घूमनेफिरने की आजादी दी गई है… और क्या चाहिए तुझे?’’

हताश हो कर मैं आपा के कमरे से अपने कमरे में बिस्तर पर आ कर लेट गई… सच मैं क्या चाहती हूं? क्या चाहना चाहिए मुझे? एक औरत को खुद के बारे में कभी सोचना नहीं है, यही सीख है परिवार और समाज की?

मुझे एक दोस्त की बेहद जरूरत थी. नयनिका से मिलतेमिलाते सालभर होने को था. बचपन का सूत्र कहूं या हम दोनों की सोच की समानता दोनों ही एकदूसरे की दोस्ती में गहरे उतर रहे थे.

मैं जिस वक्त उस के घर गई वह अपनी पढ़ाई की तैयारी में व्यस्त थी. नयनिका कमर्शियल पायलट के लाइसैंस के लिए तैयारी कर रही थी. हम दोनों उस के बगीचे में आ गए थे. रंगबिरंगे फूलों के बीच जब हम जा बैठे तो कुछ और करीबियां हमारे पास सिमट आईं. उस की आंखों में छिपा दर्द शायद मुझे अपना हाल सुनाने को बेताब था. शायद मैं भी. बरदाश्त की वह लकीर जब तक अंगारा नहीं बन जाती, हम उसे पार करना नहीं चाहतीं, हम अपने प्रियजनों के खिलाफ जल्दी कुछ बुरा कहनासुनना भी

नहीं चाहते.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘उदास क्यों रहती हो हमेशा? तैयारी तो अच्छी चल रही न?’’

उस ने कहा, ‘‘कारण है, तभी तो उदास हूं… कमर्शियल पायलट बनने की कामयाबी मिल भी जाए तो हजारों रुपए लगेंगे इस की ट्रेनिंग में जाने को. बड़े भैया ने तो आदेश जारी कर दिया है कि बहुत हो गया, हवा में उड़ना… अब घरगृहस्थी में मन रमाओ.’’

‘‘हूं, दिक्कत तो है… फिर कर लो शादी.’’

‘‘क्यों, तुम मान रही हो वाकर से शादी और बुटीक की बात? वह तुम्हारे

हिसाब से, तुम्हारी मरजी से अलग है… अमेरिका में हर महीने लाखों कमाने वाले खूबसूरत इंजीनियर से शादी वैसे ही मेरी मंजिल नहीं. जो मैं बनना चाहती हूं, वह बनने न देना और सब की मरजी पर कुरबान हो जाना… यह इसलिए कि एक स्त्री की स्वतंत्रता मात्र उस के सिंदूर, कंगन और घूमनेफिरने के लिए दी गई छूट या रहने को मिली छत पर ही आ कर खत्म हो जाती है.’’

‘‘वाकई तुम प्लेन उड़ा लोगी,’’

मैं मुसकराई.

वह अब भी गंभीर थी. पूछा, ‘‘क्यों? अच्छेअच्छे उड़ जाएंगे, प्लेन क्या चीज है,’’ वह उदासी में भी मुसकरा पड़ी.

‘‘क्या करना चाहती हो आगे?’’

‘‘कमर्शियल पायलट का लाइसैंस मिल जाए तो मल्टीइंजिन ट्रैनिंग के लिए न्यूजीलैंड जाना चाहती हूं. पापा किसी तरह मान भी जाएं तो भैया यह नहीं होने देंगे.’’

‘‘क्यों, उन्हें इतनी भी क्या दिक्कत?’’

‘‘वे एक सामान्य इंजीनियर मैं कमर्शियल पायलट… एक स्त्री हो कर उन से ज्यादा डेयरिंग काम करूं… रिश्तेदारों और समाज में चर्चा का विषय बनूं? बड़ा भाई क्यों पायलट नहीं बन सका? आदि सवाल न उठ खड़े हों… दूसरी बात यह है कि अमेरिका में उन का दोस्त इंजीनियर है. अगर मैं उस दोस्त से शादी कर लूं तो वह अपनी पहचान से भैया को अमेरिका में अच्छी कंपनी में जौब दिलवाने में मदद करेगा. तीसरी बात यह है कि इन की बहन को मेरे भैया पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं, जो अभी अमेरिका में ही जौब कर रही है.’’

‘‘उफ, बड़ी टेढ़ी खीर है,’’ मैं बोल पड़ी.

‘‘सब सधे लोग हैं… पक्के व्यवसायी… मैं तो उस दोस्त को पसंद भी नहीं करती और न ही वह मुझे.’’

‘‘हम ही नहीं सीख पा रहे दुनियादारी.’’

‘‘सीखना पड़ेगा चिलमन… लोग हम जैसों के सिर पर पैर रख सीढि़यां चढ़ते रहेंगे… हम आंसुओं पर लंबीलंबी शायरियां लिख उन पन्नों को रूह की आग में जलाते जाएंगे.’’

‘‘तुम्हें मिलाऊंगी अर्क से… आने ही वाला है… शाम को उस के साथ मुझे डिनर पर जाना पड़ेगा… भैया का आदेश है,’’ नयनिका उदास सी बोली जा रही थी.

मैं अब यहां से निकलने की जल्दी में थी. मेरी मोहलत भी खत्म होने को आई थी.

‘ये सख्श कौन? अर्क साहब तो नहीं? फुरसत से बनाया है बनाने वाले ने,’ मैं मन ही मन अनायास सोचती चली गई.

अर्क ही थे महाशय. 5 फुट 10 इंच लंबे, गेहुंए रंग में निखरे… वाकई खूबसूरत नौजवान. उन्हें देखते मैं पहली बार छुईमुई सी हया बन गई… न जाने क्यों उन से नजरें मिलीं नहीं कि चिलमन खुद आंखों में शरमा कर पलकों के अंदर सिमट गई.

ये भी पढ़ें- Short Story: जिओ जमाई राजा

अर्क साहब मेरे चेहरे पर नजर रख खड़े हो गए. फिर नयनिका की ओर मुखाबित हुए, ‘‘ये नई मुहतरमा कौन?’’

‘‘चिलमन, मेरी बचपन की सहेली.’’

अर्क साहब ने हाथ मिलाने को मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मैं ने हाथ तो मिलाया, पर फिर घर वालों की याद आते ही मैं असहज हो गई. मैं ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं चलूंगी.’’

नयनिका समझ रही थी, बोली, ‘‘हां,

तुम निकलो.’’

अर्क मुझ पर छा गए थे. मैं नयनिका से मन ही मन माफी मांग रही थी, लेकिन इस अनजाने से एहसास को जाने क्यों अब रोक पाना संभव नहीं था मेरे लिए.

कुछ दिनों बाद नयनिका ने खुशखबरी सुनाई. उस की लड़ाई कामयाब हुई थी… उसे मल्टी इंजिन ट्रेनिंग के लिए राज्य सरकार के खर्चे पर न्यूजीलैंड भेजा जाना था.

इस खुशी में उस ने मुझे रात होटल में डिनर पर बुलाया.

उस की इस खबर ने मुझ में न सिर्फ उम्मीद की किरण जगाई, बल्कि काफी हिम्मत भी दे गई. मैं ने भी आरपार की लड़ाई में उतर जाने को मन बना लिया.

होटल में अर्क को देख मैं अवाक थी और नहीं भी.

हलकेफुलके खुशीभरी माहौल में नयनिका ने मुझ से कहा, ‘‘तुम दोनों को यहां साथ बुलाने का मेरा एक मकसद है. अर्क और तुम्हारी बातों से मैं समझने लगी हूं कि यकीनन तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो वरना अर्क माफी मांगते हुए तुम्हारे मोबाइल नंबर मुझ से न मांगते… चिलमन, अर्क जानते हैं मैं किस मिट्टी की बनी हूं… यह घरगृहस्थी का तामझाम मेरे

बस का नहीं है… सब लोग एक ही सांचे में नहीं ढल सकते… मैं अभी न्यूजीलैंड चली जाऊंगी, फिर आते ही पायलट के काम में समर्पण. चिलमन तुम अर्क से आज ही अपने मन की बात कह दो.’’

अर्क खुशी से सुर्ख हो रहे थे. बोले, ‘‘अरे, ऐसा है क्या? मैं तो सोच रहा था कि मैं अकेला ही जी जला रहा हूं.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अर्क फिर बोले, ‘‘नयनिका के पास बड़े मकसद हैं.’’

मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘मेरे पास

भी थे.’’

‘‘तो बताइए न मुझे.’’

नयनिका ने कहा, ‘‘जाओ उस कोने वाली टेबल पर और औपचारिकता छोड़ कर बातें कर लो.’’

अर्क ने पूरी सचाई के साथ मेरा हाथ थाम लिया था… विदेश जा कर मेरे कैरियर को नई ऊंचाई देने का मुझ से वादा किया.

इधर शादी के मामले में अर्क ने नयनिका के घर वालों का भी मोरचा संभाला.

अब थी मेरी बारी. अर्क का साथ मिल गया तो मुझे राह दिख गई.

घर से निकलते वक्त मन भारी जरूर था, लेकिन अब डर, बेचारगी की जंजीरों से अपने पैर छुड़ाने जरूरी हो गए थे.

कानपुर से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी हम ने. फिर वक्त से अमेरिकन एयरवेज में दाखिल

हो गए.

साहिबा आपा को फोन से सूचना दे दी कि अर्क के साथ मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करने अमेरिका जा रही हूं. वहां माइक्रोबायोलौजी ले कर काम करूंगी और अर्क को खुश रखूंगी.’’

साहिबा आपा जैसे आसमान से गिरी हों. हकला कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

हमारी आजादी हिजाब हटनेभर से नहीं है आपा… हमारी आजादी में एक उड़ान होनी चाहिए.

आपा के फोन रख देने भर से हमारी आजादी की नई दास्तां शुरू हो गई थी.

ये भी पढ़ें- एक नई पहल: जब बुढा़पे में हुई एक नए रिश्ते की शुरुआत

भूल: शिखा के ससुराल से मायके आने की क्या थी वजह

मेरीसास सुचित्रा देवी विधवा हैं और स्कूल में पढ़ाती हैं. इकलौती ननद अर्चना मायके में रह रही है. उस की ससुराल में निभी नहीं. पति शराब पी कर मारपीट करता था. उस ने तलाक लेने की प्रक्रिया शुरू कर रखी है.

शिखा के देवर संजीव की शादी अपने बड़े भाई राजीव की शादी के 3 साल बाद हुई. उस की देवरानी रितु के आते ही हम मांबेटी ने उस के घर से अलग होने का अभियान तेज कर दिया.

मुझे अपनी छोटी बेटी की सुंदरता पर नाज है. राजीव उस के रंगरूप का दीवाना है. शादी के साल भर बाद 1 बेटे की मां बनने के बावजूद शिखा गजब की खूबसूरत नजर आती है. घरगृहस्थी तब पनपी जब मैं संयुक्त परिवार से अलग हुई. सच, मनचाहे ढंग से जिंदगी जीने का अपना अलग ही मजा है.

अपनी दोनों बेटियों की खुशियों को ध्यान में रखते हुए मैं ने हमेशा चाहा कि वे भी जल्दी से जल्दी ससुराल से अलग हो कर रहने लगें.

मेरी बड़ी बेटी सविता ने अपनी शादी की पहली वर्षगांठ अपने फ्लैट में मनाई थी. उस की नौकरी अच्छी है, इसलिए अलग होने में उसे ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा.

छोटी बेटी शिखा ज्यादा पढ़ी नहीं है. वह शादी से पहले एक कंपनी में रिसैप्शनिस्ट थी. अपनी सास व पति की इच्छा को ध्यान में रख कर उस ने शादी के बाद नौकरी नहीं की. उस की सास सुचित्रा देवी विधवा हैं और स्कूल में पढ़ाती हैं. इकलौती ननद अर्चना मायके में रह रही है. उस की ससुराल में निभी नहीं. पति शराब पी कर मारपीट करता था. उस ने तलाक लेने की प्रक्रिया शुरू कर रखी है.

शिखा के देवर संजीव की शादी अपने बड़े भाई राजीव की शादी के 3 साल बाद हुई. उस की देवरानी रितु के आते ही हम मांबेटी ने उस के घर से अलग होने का अभियान तेज कर दिया.

मुझे अपनी छोटी बेटी की सुंदरता पर नाज है. राजीव उस के रंगरूप का दीवाना है. शादी के साल भर बाद 1 बेटे की मां बनने के बावजूद शिखा गजब की खूबसूरत नजर आती है.

मेरी चांद सी सुंदर बेटी संयुक्त परिवार में पिसती रहे, यह न उसे स्वीकार था, न मुझे. हम दोनों ने राजीव पर घर से अलग होने के लिए बड़ी होशियारी से दबाव बनाना शुरू कर दिया.

मेरी सलाह पर शिखा ने ससुराल में घर के कामों से हाथ खींचना शुरू कर दिया. सास सुचित्रा ने उसे डांटा, पर वह खामोश रही. जिस दिन उस की ननद अर्चना उस पर चिल्लाई, शिखा उस से खूब झगड़ी और खूब रोई.

ऐसे झगड़े 2-4 बार हुए, तो शिखा तबीयत खराब होने का बहाना बना कर कमरे से नहीं निकली. सास, ननद व देवरानी ने उस की उपेक्षा की, तो वह जिद कर के अपने पति के साथ मायके मेरे पास आ गई. उस के यहां आने के बाद राजीव को किराए के मकान में अलग रहने के लिए राजी करना हम दोनों के लिए आसान हो गया.

‘‘मम्मी, हमारे घर में न जगह की कमी है, न सुखसुविधाओं की. अपनी विधवा मां को छोड़ कर अलग होते हुए मुझे दुख होगा,’’ राजीव की ऐसी दलीलों की काट मुझे अच्छी तरह से मालूम थी.

मेरी जिम्मेदारी थी राजीव को पूरा मानसम्मान देते हुए उस की खूब खातिर करना. शिखा उस के मनोरंजन, सुख और खुशियों का पूरा ध्यान रखती. मेरे घर में उस का बड़ा अच्छा समय व्यतीत होता. इसी कारण वह हर दूसरीतीसरी रात ससुराल में बिताता.

मेरी बड़ी बेटी सविता और उस के पति अरुण ने भी राजीव का मन बदलने में अपना पूरा योगदान दिया. अपने घर में रहने के फायदे गिनाते दोनों की जबान न थकती.

करीब महीना भर मायके में रह कर शिखा ससुराल लौट गई. उस का यह कदम हमारी योजना का ही हिस्सा था. आगामी 3 महीनों में वह लड़ाईझगड़ा कर के 4 बार फिर मायके भाग आई. इस के बाद दोनों तरफ की सहनशक्ति जवाब दे गई.

घर की सुखशांति के लिए सुचित्रा ने अपने बड़े बेटे को किराए के मकान में जाने की इजाजत दे दी. अपने देवर की शादी के मात्र 6 महीनों के बाद शिखा मेरे घर के बहुत नजदीक एक किराए के मकान में रहने आ गई. सिवा शिखा के पिता के हम सब खूब खुश हुए. वे जरा भावुक किस्म के इंसान हैं… आज की दुनिया की चाल को कम समझते हैं.

‘‘हमारी शिखा घरगृहस्थी के कामों में कुशल नहीं है. उसे बस हवा में उड़ना आता है. तुम ने उसे अलग करवा कर ठीक नहीं किया, शोभा,’’ उन्हें यों परेशान देख कर मैं मन ही मन हंस पड़ी थी.

शिखा की घरगृहस्थी अच्छी तरह से जमाने के लिए मैं ने खुशीखुशी अपनी जेब से खर्चा किया. राजीव और नन्हे रोहित को कोई शिकायत या परेशानी न हो, इस का मैं ने विशेष ध्यान रखा. अपनी बेटी का कामकाज में हाथ बंटाने मैं रोज ही उस के घर चली जाती थी.

राजीव कुछ दिनों तक बुझाबुझा और नाराज सा रहा, पर फिर सहज व सामान्य हो गया. अब स्वतंत्र जीवन जी रही शिखा का खिला चेहरा देख मैं खूब प्रसन्न होती.

शिखा ससुराल बहुत कम जाती. उस का अपनी नईपुरानी सहेलियों के साथ ज्यादा समय गुजरता. रोहित को तब मुझे संभालना पड़ता. मैं यह काम खुशीखुशी करती, पर उस का बढ़ता चिड़चिड़ापन कभीकभी मुझे बहुत परेशान कर डालता.

जी भर के घूमनाफिरना कर लेने के बाद शिखा के सिर पर नौकरी करने का भूत सवार हुआ. मैं ने उस के इस कदम का दबी जबान से विरोध किया, पर उस का कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि उस ने राजीव को राजी कर लिया था.

अपने आकर्षक व्यक्तित्व के कारण शिखा फिर से अपनी पुरानी कंपनी में रिसैप्शनिस्ट का पद पा गई. सप्ताह में 6 दिन रोहित को मैं संभालने लगी. अपनी बेटी की खुशी की खातिर मैं ने इस जिम्मेदारी को खुशीखुशी निभाना शुरू कर दिया.

मुझे लग रहा था कि मेरी छोटी बेटी की विवाहित जिंदगी में सब कुछ बढि़या चल रहा है, पर मेरा यह अंदाजा रोहित के तीसरे जन्मदिन की पार्टी के दौरान गलत साबित हुआ.

पार्टी का सारा मजा रोहित के लगातार रोतेकिलसते रहने से किरकिरा हो गया. वह अपनी मां से चिपटा रहना चाहता था, पर शिखा को और भी कई काम थे.

शिखा की ससुराल से सब लोग आए जरूर, पर किसी ने पार्टी के आयोजन में सक्रिय हिस्सा नहीं लिया. सारी देखभाल सविता और मुझे करनी पड़ी. शिखा अपने औफिस के सहयोगियों की देखभाल में बेहद व्यस्त रही.

शिखा की कंपनी के मालिक के बड़े बेटे तरुण विशेष मेहमान के रूप में आए. रोहित के लिए वह छोटी साइकिल का सब से महंगा उपहार दे कर गए. अपने हंसमुख, सहज व्यवहार से उन्होंने सभी का दिल जीत लिया. शिखा और राजीव दोनों ही उन के सामने बिछबिछ जा रहे थे.

तरुण के आने से पहले राजीव और शिखा के बीच में मैं ने अजीब सा तनाव महसूस किया था. मेरे दामाद की आंखों में अपनी पत्नी के लिए भरपूर प्यार के भाव कोई भी पढ़ सकता था, पर शिखा जानबूझ कर उन भावों की उपेक्षा कर रही थी.

अपने पति को देख कर वह बारबार मुसकराती, पर उस की मुसकराहट आंखों तक नहीं पहुंचती. कोई ऐसी बात जरूर थी, जो शिखा को बेचैन किए हुए थी. उस बात की मुझे कोई जानकारी न होना मेरे लिए चिंता का कारण बन रहा था.

तरुण को विदा करने के लिए राजीव और शिखा दोनों बाहर गए. मैं पहली मंजिल की खिड़की से नीचे का सारा दृश्य देख रही थी.

तरुण की कार के पास पहुंचने के बाद शिखा ने राजीव से कहा, तो वह लौट पड़ा.

शिखा कार से सट कर खड़ी हो गई. तरुण उस के नजदीक खड़े थे. दोनो हंसहंस कर बातें कर रहे थे.

उन्हें कोई भी देखता तो किसी तरह के शक का कोई कारण उस के मन में शायद पैदा न होता, लेकिन मेरे मन में कोई शक नहीं रहा कि मेरी बेटी का तरुण के साथ अवैध प्रेम संबंध कायम हो चुका है.

मैं ने साफ देखा कि तरुण का एक हाथ कार से सट कर खड़ी शिखा की कमर व कूल्हों को बड़े मालिकाना अंदाज में सहला रहा था.

तरुण की इस हरकत को सामने से आता इंसान नहीं देख सकता था, पर पहली मंजिल की खिड़की से मुझे सब साफ नजर आया.

कुछ देर बाद राजीव मिठाई का छोटा डब्बा ले कर उन के पास पहुंचा. तरुण ने अपनी गलत हकरत रोक कर अपने हाथ छाती पर बांध लिए. राजीव को उन के गलत रिश्ते का अंदाजा होना असंभव था.

उस रात मैं बिलकुल नहीं सो पाई. राजीव शिखा को बहुत प्यार करता था. शिखा के तरुण के साथ बने अवैध प्रेम संबंध को वह कभी स्वीकार नहीं कर पाएगा, मुझे मालूम था.

अवैध प्रेम संबंध को छिपाए रखना असंभव है. देरसवेर राजीव को भी इस के गलत संबंध की जानकारी होनी ही थी.

‘तब क्या होगा?’ इस सवाल का जवाब सोच कर मेरा कलेजा कांप उठा.

राजीव अपनी जान दे सकता था, तो शिखा की जान ले भी सकता था. कम से कम तलाक तो दोनों के बीच जरूर होगा, अपनी बेटी के घर के बिखरने की यों कल्पना करते हुए मैं रो पड़ी.

शिखा ससुराल से अलग न हुई होती, तो यह मुसीबत कभी न आती. अलग होने के इस बीज के अंकुरित होने में मेरा अहम योगदान था. उस रात करवटें बदलते हुए मैं ने खुद को अपनी उस गलत भूमिका के लिए खूब कोसा. मैं ने कभी नहीं चाहा था कि मेरी बेटी का तलाक हो और वह 40 साल के अमीर विवाहित पुरुष की रखैल के रूप में बदनाम हो.

मेरी मूर्ख बेटी अपनी विवाहित जिंदगी की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे को समझ नहीं रही थी. उसे सही राह पर लाने की जिम्मेदारी मेरी ही थी और इस कार्य को पूरा करने का संकल्प पलपल मेरे मन में मजबूती पकड़ता गया.

मैं ने राजीव की मां से फोन पर बातें कीं, ‘‘बहनजी, मैं ने कल की पार्टी में रोहित को पूरा समय रोते ही देखा. उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता. वह दुबला भी होता जा रहा है,’’ ऐसी इधरउधर की कुछ बातें करने के बाद मैं ने वार्त्तालाप इच्छित दिशा में मोड़ा.

‘‘यह सब तो होना ही था, क्योंकि आप की बेटी के पास उस का उचित पालनपोषण करने के लिए समय ही नहीं है,’’ सुचित्रा की आवाज में फौरन शिकायत के भाव पैदा हो गए.

‘‘उस के पास न समय है और न ही बच्चे को सही ढंग से पालने की कुशलता.’’

‘‘यह बात आप को बड़ी देर से समझ आई,’’ सुचित्रा की आवाज में रोष के साथसाथ हैरानी के भाव भी मौजूद थे.

‘‘ठीक कह रही हैं आप. हम सब की गलती का एहसास मुझे अब है, बहनजी. मेरी एक प्रार्थना आप स्वीकार करेंगी?’’

‘‘कहिए,’’ उन का स्वर कोमल हो उठा.

‘‘मेरी मूर्ख बेटी को वापस अपने पास आने की इजाजत दे दीजिए,’’ अपना गला रुंध जाने पर मुझे खुद को भी काफी हैरानी हुई.

‘‘यह घर उसी का है, पर उस ने लौटने की इच्छा मुझ से जाहिर नहीं की.’’

‘‘वह ऐसा जल्दी करेगी… मैं उसे समझाऊंगी.’’

‘‘उस का यहां हमेशा स्वागत होगा, बहनजी. हम सब को बहुत खुशी होगी,’’ इस बार भावावेश के कारण सुचित्रा का गला रुंध गया.

उस पूरे हफ्ते मैं ने अपनी बेटी की जासूसी की. उस ने 2 बार रेस्तरां में तरुण के साथ कौफी पी. 1 बार लंच के बाद छुट्टी कर के शहर के बाहरी हिस्से में बने सिनेमाहौल में फिल्म देखी. इन अवसरों पर तरुणउसे घर से दूर मुख्य सड़क पर कार से छोड़ गया.

इन 5 दिनों तक रोहित के नाना ने उसे संभाला. मेरे घर से गायब रहने की चर्चा शिखा या राजीव से हम दोनों ने बिलकुल नहीं की.

आगामी सोमवार की सुबह शिखा के औफिस जाने के बाद राजीव जब रोहित को मेरे घर छोड़ने आया, तो मैं ने उसे रोक कर अपने पास बैठा लिया.

‘‘मैं तुम से कुछ जरूरी बात करना चाहती हूं, बेटा,’’ मैं ने गंभीर लहजे में उस से वार्त्तालाप शुरू किया.

राजीव का सारा ध्यान फौरन मुझ पर केंद्रित हो गया.

‘‘मेरी दिली इच्छा है कि तुम दोनों अपने घर लौट जाओ.’’

‘‘शिखा तैयार नहीं होगी लौटने को,’’ अपनी हैरानी को छिपाते हुए राजीव ने जवाब दिया.

‘‘तुम तो लौटना चाहते हो न?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘तब मुझे सहयोग करो. शिखा नौकरी भी छोड़ देगी और लौटने के लिए भी राजी हो जाएगी. मेरी समझ से उसे सारा ध्यान रोहित के उचित पालनपोषण पर लगाना चाहिए.’’

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘मैं जो कहूंगी, वह करोगे?’’

‘‘मुझे क्या करना है?’’

‘‘तुम रोहित को आज चिडि़याघर दिखा लाओ. शाम को लौटना और यहां आने से पहले मुझे फोन कर लेना. ध्यान बस इसी बात का रखना कि तुम्हें शिखा से कोई संपर्क नहीं रखना है. तुम्हारे सारे सवालों के जवाब मैं शाम को दूंगी.’’

कुछ देर खामोश रह कर उस ने सोचविचार किया और फिर मेरी बात मान ली.

कुछ देर बाद बापबेटा चिडि़याघर घूमने निकल गए. उन के जाने के बाद मैं ने शिखा को औफिस में फोन किया और भय से कांपती आवाज से बोली, ‘‘बेटी, तू इसी वक्त घर आ जा. हम सब बड़ी मुसीबत में हैं.’’

‘‘रोहित को कुछ हुआ है क्या?’’ वह फौरन घबरा उठी.

‘‘रोहित को भी… और राजीव को भी… तू फौरन यहां पहुंच और देख, उस तरुण से न इस बात की चर्चा करना, न उस के साथ आना वरना सब बहुत गड़बड़ हो जाएगा. बस, फौरन आ जा,’’ और मैं ने फोन काट दिया. करीब 15 मिनट के अंदर शिखा घर आ गई.

वह मेरे सामने पहुंची, तो मैं ने गुस्से से घूरना शुरू कर दिया.‘‘क्या हुआ है? मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं?’’ उस की घबराहट और बढ़ गई.

‘‘अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार कर तुझे क्या मिला है, बेवकूफ? मैं ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि मेरी बेटी चरित्रहीन निकलेगी,’’ क्रोधावेश के कारण मेरी आवाज कांप उठी.

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’ मन में चोर होने के कारण उस का चेहरा फौरन पीला पड़ गया.

‘‘राजीव को सब पता लग गया है, बेहया…’’

‘‘क्या पता लग गया है उन्हें?’’ पूरा वाक्य मुंह से निकले में वह कई बार अटकी.

‘‘तरुण और तुम्हारे गलत संबंध के बारे में.’’

‘‘हमारे बीच कोई गलत संबंध नहीं है,’’ उस ने आवाज ऊंची कर के अपने इनकार में वजन पैदा करना चाहा.

‘‘तू क्या सोमवार और बुधवार को उस के साथ रेस्तरां में नहीं गई थी?’’

‘‘नहीं… और अगर गई भी थी तो इस से यह साबित नहीं होता कि तरुण और मेरे…’’

‘‘पिछले शुक्रवार को तुम दोनों ने क्या फिल्म नहीं देखी थी?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने झूठ बोला.

मैं ने आगे बढ़ कर एक जोर का तमाचा उस के गाल पर जड़ा और चिल्लाई, ‘‘यों झूठ बोल कर तू अब अपने माथे पर लगा कलंक का टीका साफ नहीं कर पाएगी, मूर्ख लड़की. राजीव रोहित को तुझ से दूर ले गया है. उस ने तुम्हें अपनी व अपने बेटेकी जिंदगी से बाहर निकाल फेंकने का निर्णय ले लिया है… हमारी नाक कटा दी तू ने और अपनी तो जिंदगी ही बरबाद कर ली.’’

मेरे चांटे का फौरन असर हुआ. वह झूठ बोल कर अपना बचाव करना भूल गई. अपने हाथों में उस ने अपना मुंह छिपाया और रो पड़ी.

‘‘अब क्यों रो रही है?’’ मैं ने उस पर चोट करना जारी रखा, ‘‘राजीव से तलाक मिल जाएगा तुझे. जा कर उस तरुण से बात कर कि वह भी अब अपनी पत्नी से तलाक ले कर तुझे अपनाए.’’

‘‘मैं रोहित से दूर नहीं रह सकती हूं,’’ अपनी इच्छा बता कर वह और जोर से रो पड़ी.

‘‘रोहित के पिता को धोखा दे कर… उस के प्रेम को अपमानित कर के तू किस मुंह से रोहित को मांग रही है? अब तू उन्हें भूल जा और उस तरुण के साथ…’’

‘‘उस का नाम मत लो, मां,’’ वह तड़प उठी, ‘‘मैं उस से आगे कोई संबंध नहीं रखूंगी. मैं भटक गई थी… मुझे उन दोनों के साथ ही रहना है, मां.’’

‘‘अब यह नहीं हो सकता, बेटी.’’

‘‘मां, कुछ करो, प्लीज,’’ वह मेरे गले लग कर बिलखने लगी.

मैं ने मन ही मन राहत की सांस ली. शिखा की प्रतिक्रिया से साफ जाहिर था कि तरुण और उस के बीच अवैध संबंध नहीं था.

मेरी मूर्ख बेटी ने ससुराल में मिली आजादी का गलत फायदा उठाया था. अपने पति के प्रेम का नाजायज फायदा उठाते हुए वह नासमझी में भटक गई थी.

मैं बंदर के हाथ उस्तरा देने की कुसूरवार थी. मुझे पता था कि मेरी बेटी सुंदर ज्यादा है और गुणवान कम. ऐसी लड़कियां संयुक्त परिवार की सुरक्षा में ज्यादा सुखी रहती हैं. उसे परिवार से अलग कर मैं ने भारी भूल की थी.

जिस भय, चिंता व तनाव भरी मनोदशा का शिखा शिकार थी, उस के चलते उस से अपनी हर बात मनवाना मेरे लिए कठिन नहीं था. राजीव और रोहित को पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

मैं ने आसानी से उसे फौरन नौकरी छोड़ने व ससुराल लौटने को तैयार कर लिया.

‘‘बेटी, जगह की कमी, ससुराल वालों के दुर्व्यवहार या किसी अन्य मजबूरी के कारण बहुएं संयुक्त परिवार को छोड़ देती हैं, पर तू सिर्फ जिम्मेदारियों से बचने के लिए अलग हुई. तुझे गलत शह देने की कुसूरवार मैं भी हूं. तू ससुराल लौट कर ही सुखी रहेगी, इस में कोई शक नहीं. तू मुझ से एक वादा कर,’’ मैं बहुत गंभीर हो गई.

‘‘कैसा वादा?’’ उस ने आंसू पोंछते हुए पूछा.

‘‘यही कि इस बार लौट कर तुम अपने उत्तरदायित्वों को सही तरह से निभाओगी… अपने संयुक्त परिवार की मजबूत कड़ी बनोगी.’’

‘‘बनूंगी, मां,’’ उस ने जोर से कहा.

मैं ने आगे झुक कर उस का माथा चूमा और भावुक लहजे में बोली, ‘‘अब सच बात सुन. जिस व्यक्ति ने मुझे तरुण और तुम्हारे बारे में बताया है, वह राजीव नहीं है और उस ने भूल सुधार फौरन न होने की स्थिति में सब कुछ राजीव को बताने की धमकी भी दी है.’’

‘‘क…कौन है वह व्यक्ति?’’ उस ने परेशान लहजे में पूछा.

‘‘उस का नाम मत पूछ. बस, अपनेआप को बदल डाल, बेटी और अपने विवाहित जीवन की सुरक्षा व खुशियों को फिर कभी अपनी मूर्खता व नासमझी द्वारा दांव पर मत लगाना. इस बार तुम बच जाओगी, पर भविष्य में…’’

उस ने मेरे मुंह पर हाथ रख कर मजबूत स्वर में जवाब दिया, ‘‘भविष्य में ऐसी भूल कभी नहीं दोहराऊंगी, मां. पर तुम्हें विश्वास है कि सब जानने वाला वह इंसान अपना मुंह बंद रखेगा?’’

‘‘हां, बेटी,’’ मैं ने उसे अपनी छाती से लगाया और मौन आंसू बहाने लगी, क्योंकि अपने द्वारा की गई भूलों का कड़वा पल सामने आया देख मैं खुद को काफी शर्मिंदा महसूस कर रही थी.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें