Serial Story: क्या वह सच था (भाग-2)

श्रेया को आज भी अच्छी तरह याद है वह शाम जब नेहा थकीहारी और परेशान सी कालेज से घर लौटी थी और फिर सहसा श्रेया के गले लग कर रोने लगी थी. पीछेपीछे विपुल भी आया था. उस ने नेहा को बैठने का इशारा किया और फिर श्रेया से मुखातिब होते हुए बोला, ‘‘श्रेया, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो ठीक है विपुल, मगर पहले नेहा को तो देख लूं… यह रो क्यों रही है?’’

‘‘मैं ही हूं, इस की वजह,’’ विपुल श्रेया के सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘मतलब?’’

श्रेया चौंक उठी.

‘‘मतलब यह कि नेहा मेरी वजह से रो रही है.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ श्रेया कुछ समझ नहीं पाई.

‘‘मैं जानता हूं श्रेया, तुम्हारे लिए समझना कठिन होगा. मगर मैं मजबूर हूं. मैं चुप नहीं रह सकता. मैं नेहा से प्रेम करने लगा हूं और इसी से शादी करूंगा.’’

‘‘क्या? तुम नेहा से प्रेम करते हो? और मैं? मैं क्या थी? तुम्हारे मन बहलाव का जरीया? टाइमपास? नहीं विपुल मैं तुम्हारी इस बात पर कभी यकीन नहीं करूंगी.’’

फिर श्रेया ने तुरंत नेहा के पास जा कर पूछा, ‘‘विपुल क्या कह रहे हैं नेहा? यह सब क्या है? यह सब झूठ है न नेहा? तू सच बता नेहा…’’

‘‘दीदी, मैं स्वयं नहीं जानती कि मेरी जिंदगी में क्या लिखा है. फिर मैं आप को क्या बताऊं?’’

‘‘सिर्फ इतना बता कि क्या तू और विपुल एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते हैं? क्या विपुल ने जो कहा वह सच है?’’

झुकी नजरों से नेहा ने हां में सिर हिलाया तो श्रेया के पास कुछ कहने या सुनने को

नहीं रह गया. एक धक्का सा लगा उस के दिल को. वह बिलकुल अलग जा कर खड़ी हो गई, दिल की सारी हसरतें आंसुओं में बहने लगीं.

इस घटना के बाद विपुल में श्रेया से नजरें मिलाने का भी हौसला नहीं रहा. दबी जबान में जब उस ने श्रेया के पापा से नेहा के साथ शादी की इच्छा जताई तो पूरे घर में कुहराम मच गया. कहां तो श्रेया और विपुल की शादी की तैयारी थी और कहां मामला ही उलट गया. तूफान के बाद जैसे पूरे माहौल में शांति छा जाती वैसे ही घर में नीरवता पसर गई.

ये भी पढ़ें- स्पेनिश मौस: क्या अमेरिका में रहने वाली गीता अपनी गृहस्थी बचा पाई?

उधर श्रेया का मन अभी भी इस हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था. घर वालों के तैयार न होने पर विपुल नेहा को ले कर बहुत दूर निकल गया. उस ने जानबूझ कर ऐसी जगह अपनी पोस्टिंग करा ली जहां जानपहचान वाले आसपास न हों. उस ने अपना नया पता भी बहुत कम लोगों को दिया.

विपुल और नेहा से श्रेया और उस के घर वालों ने हर तरह के संबंध तोड़ लिए थे. विपुल ने भी लौट कर बात करने की कोशिश नहीं की और इस तरह श्रेया की यह प्रेम कहानी उस की बरबादी का सबब बन कर रह गई.

उसी दौरान श्रेया की जिंदगी में प्रेम का सागर बन कर ज्ञान आया. उस के साथ शादी घर वालों ने ही तय की. पर इस के लिए स्वयं को तैयार करना श्रेया के लिए बहुत कठिन था. खुद को काफी समझाना पड़ा उसे. ज्ञान को अपना तो लिया था उस ने, मगर प्यार के प्रति उस के मन में विपुल की वजह से एक तरह की उदासी व दर्द का साम्राज्य कायम था. वह लाख कोशिश करती, मगर दिल का सूनापन जाता नहीं. वर्षों बीत गए थे. अब तो नन्हा सौरभ ही श्रेया के जीवन का आधार बन गया था.

श्रेया सुबह उठी तो मन भारी था. पूरी रात पुरानी बातें याद करते जो गुजरी थी.

सोचा, ज्ञान औफिस और सौरभ स्कूल चला जाएगा, तो थोड़ी देर सो लेगी. काम करतेकरते 12 बज गए थे. वह थक कर लेटने गई ही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी. अनमने से दरवाजा खोला तो दंग रह गई.

सामने विपुल खड़ा था. परेशान, थका हुआ, बीमार सा. एकबारगी तो श्रेया उसे पहचान ही नहीं पाई. काले बालों पर अब सफेदी चढ़ चुकी थी. आंखों के नीचे गहरी कालिमा और चेहरे का रंग भी फक्क पड़ा चुका था.

श्रेया असहज होती हुई बोली, ‘‘तुम यहां? तुम वापस क्यों आए हो विपुल? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी.’’

‘‘ठीक है श्रेया, मैं दोबारा लौट कर नहीं आऊंगा. बस यह पत्र देने आया था,’’ कहतेकहते विपुल की आंखें डबडबा आईं. पत्र थमा कर वह तेज कदमों से लौट गया.

श्रेया काफी देर तक विक्षिप्त सी खड़ी रही. जिस शख्स को वह एक पल को भी याद करना पसंद नहीं करती थी, आज वही शख्स उस के सामने खड़ा था. यों तो वह अनजाने ही चाहती रही थी कि उस के जीवन में आंसू भरने वाला शख्स कभी खुश न रहे, मगर आज अपनी नजरों के आगे उस की आंखों में आंसू देख कर एक बार फिर वह तड़प क्यों रही है? 1-2 घंटे वह यों ही परेशान सी रही. फिर न चाहते हुए भी हिम्मत कर के उस ने वह पत्र खोला. उस के हाथ कांप रहे थे. बहन की हैंडराइटिंग देख मन किया कि पत्र को चूम ले. मगर फिर पुरानी कड़वाहट जेहन में ताजा हो गई. अनमने से उस ने पत्र पढ़ना शुरू किया. लिखा था:

‘‘दीदी, मैं आप की क्षमा की हकदार तो नहीं हूं, फिर भी क्षमा मांग रही हूं. शायद जब तक यह पत्र आप के हाथों में पहुंचे तब तक मैं इस दुनिया से जा चुकी होऊं . इतने दिनों तक आप से बहुत राज छिपाए है हम ने, पर अब और नहीं. हकीकत बता कर चैन से अलविदा कह सकूंगी.’’

‘‘दीदी, मैं आप के विपुल से प्यार नहीं करती थी. वह तो सदा से आप के ही रहे. आप से बेहद प्यार करते हैं. तभी आप की प्रिय बहन की जिंदगी बचाने के लिए उन्होंने यह कुरबानी दी, यानी मुझ से शादी की.

ये भी पढ़ें- अंतिम मुसकान: प्राची क्यों शादी के लिए आनाकानी करने लगी?

‘‘दीदी, किसी लड़के ने धोखे से मेरा इस्तेमाल किया. उस से धोखा खा कर मैं पूरी तरह टूट गई थी. फिर भी हौसला रखा और सोचा कि प्रयास करूंगी, वह शादी के लिए मान जाए. इस से पहले ही वह इस दुनिया से रुखसत हो गया. 2-3 माह बाद जब मुझे अपने अंदर हलचल महसूस हुईर् तो मैं सकते में आ गई. मेरे पेट में उस धोखेबाज का अंश था. डाक्टर ने जांच कर बताया कि अब गर्भपात कराना जिंदगी पर भारी पड़ सकता है.

आगे पढ़ें- पत्र पढ़तेपढ़ते श्रेया की आंखों से आंसुओं की…

Serial Story: क्या वह सच था (भाग-1)

सफाई करते सहसा ही श्रेया के हाथ विपुल की दी वही चमचमाती रिंग आ गई जिसे उस ने वर्षों पूर्व किसी डब्बे में बंद कर एक कोने में पटक दिया था. वह विपुल को बुरे सपने की तरह भुला देना चाहती थी. मगर ऐसा कहां हो पाया. मन के किसी कोने में आज भी उस की यादों का कारवां ठहरा सा था. आज भी एक कसक रहरह कर उसे तड़पाती कि जिसे सब से ज्यादा चाहा था वही उस के सब से बड़े दुख की वजह बन गया.

कैसे भूल सकती है श्रेया अपने 27वें जन्मदिन से एक दिन पहले की उस शाम को जब विपुल के साथसाथ उस ने अपनी बहन को भी सदा के लिए खो दिया था.

वह बहन, जिस के लिए श्रेया हर मोड़ पर खड़ी रही थी, उसी ने विपुल को छीन लिया उस से. मां के गुजरने के बाद अपनी बच्ची की तरह खयाल रखा था उस ने छोटी बहन नेहा का. विपुल से भी तो अकसर जिक्र करती थी वह कि नेहा उस की बहन से कहीं ज्यादा उस की संतान है. बहुत प्यार करती है उस से. तकलीफ में नहीं देख सकती उसे. पर कब सोचा था उस ने कि उसी बहन को जरीया बना कर विपुल उसे ऐसी तकलीफ देगा कि जिंदगी में संभलना तक मुश्किल हो जाएगा.

एक अजीब से कड़वाहट श्रेया के मन में भर गई. हमेशा ऐसा ही होता है. विपुल और नेहा को याद करते ही उस के जेहन में पुरानी यादें ताजा हो उठती हैं.

‘‘श्रेया… श्रेया… कहां हो तुम?’’

पीछे से आती ज्ञान की आवाज ने उस की तंद्रा तोड़ दी. वह वर्तमान में लौट आई. वर्तमान जहां उस का पति ज्ञान और बेटा सौरभ बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे.

‘‘तुम भूल गईं श्रेया कि आज हमें नमन के यहां जाना है,’’ ज्ञान ने कहा.

‘‘अरे हां, मुझे याद नहीं रहा. ठीक है मैं अभी तैयार हो कर आती हूं,’’ कह श्रेया कमरे में तैयार होने चली आई. फिर तैयार होते हुए खुद को कोसने लगी कि आज फिर क्यों उस ने पुरानी यादों के साए को खुद पर हावी होने दिया? क्यों नहीं वह विपुल को पूरी तरह भूल पाती है? वह विपुल, जिस ने उस के जज्बातों की परवाह नहीं की. उस की बहन को शिकार बना कर चलता बना. फिर दोबारा देखा भी नहीं. वह तो ज्ञान था, जिस की वजह से वह स्वयं को संभाल सकी.

ये भी पढ़ें- नया अध्याय: क्या धोखेबाज पति को भूल पाई प्राची?

श्रेया जब भी विपुल की बेवफाई याद करती बरबस ही उस के दिल में ज्ञान के लिए प्रेम उमड़ पड़ता. आज भी वही हुआ. उस ने ज्ञान की पसंद की हलकी नीली साड़ी पहनी. फिर उसी रंग की चूडि़यां, फुटवियर वगैरह पहन कर जल्दी से तैयार हो गई.

ज्ञान ने देखा तो उस के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकान खेल गई. तीनों बहुत दिनों बाद एकसाथ बाहर जा रहे थे. रास्ते भर सौरभ की शैतानियां और ज्ञान की मजेदार बातों ने श्रेया के मन से पुरानी यादों की कड़वाहट दूर कर दी. नमनजी के बेटे की सगाई थी. उस जश्न के माहौल में श्रेया पूरी तरह रंग गई. उस ने ज्ञान के साथ जम कर डांस भी किया.

तभी पीछे से किसी महिला ने श्रेया के कंधे पर हाथ रखा. वह पलटी तो सामने खड़ी उम्रदराज महिला पर नजर पड़ते ही श्रेया के चेहरे का रंग बदल गया. वह हैरान नजरों से उस महिला की तरफ देखती रह गई.

वह महिला कोई और नहीं, विपुल की मां थीं. पहले की ही तरह उन की आंखों से वात्सल्य फूट रहा था. उन्हें सामने पा कर सहसा श्रेया से कुछ कहते न बना. फिर अचानक वर्षों पुराना दबा गुस्सा लावा बन कर आंखों से फूट पड़ा. श्रेया की बड़ीबड़ी आंखें आंसुओं से भर गईं. वह स्वयं को रोक नहीं सकी और विपुल की मां के सीने से लग कर फफकफफक कर रोने लगी.

पहली दफा किसी के आगे खुल कर रो रही थी. मां के स्नेह से भरे हाथ हौलेहौले उस के कंधों को सहलाने लगे थे मानो वे उस का सारा दर्द समझ रही हों. आखिर श्रेया ने ही तो उन से दूरी बनाई थी. सिर्फ उन से ही नहीं, विपुल से जुड़े हर शख्स, हर वस्तु और हर याद से. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे विपुल की याद भी दिलाए. मगर आज जैसे वह उस याद में पूरी तरह डूबी जा रही थी.

सहसा जैसे श्रेया को होश आया. यह क्या कर रही है वह? नहीं. वह किसी के आगे कमजोर नहीं पड़ सकती… पुरानी यादों से दोबारा नहीं जुड़ सकती.

फिर एक झटके से वह अलग खड़ी हो गई. सामने ज्ञान खड़ा उसे ही देख रहा था. आंसू छिपाती श्रेया तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गई. ज्ञान विपुल की मां से बातें करने लगा.

वापस घर लौटते वक्त श्रेया रास्ते भर न चाहते हुए भी विपुल के बारे में ही सोचती रही. उस का दिल अंदर ही अंदर तड़प रहा था. जिस इनसान के लिए वह दुनिया छोड़ने को तैयार थी, उसी को जिंदगी से निकाल कर जी रही थी वह. जब दिल में जज्बा ही न रहे तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि कोई इनसान जिंदगी में है या नहीं.

रात भर श्रेया चाह कर भी उन पुरानी यादों से स्वयं को आजाद नहीं कर पाई. पुराने लमहे उस की आंखों के आगे से गुजरते रहे. कैसे विपुल और वह एकदूसरे का हाथ थामे पूरी दुनिया की सैर करते, भविष्य के सुनहरे सपने. देखते, विपुल मितभाषी और संकोची प्रवृत्ति का इनसान था.

आजतक श्रेया समझ नहीं पाई कि उस ने नेहा के साथ कब इतनी नजदीकियां बढ़ा लीं कि वह उस की जिंदगी बन गई और श्रेया को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका.

ये भी पढ़ें- चमत्कार: क्या पूरा हो पाया नेहा और मनीष का प्यार

श्रेया को तो विपुल पर पूरापूरा भरोसा था. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि कभी वह उस के साथ कुछ गलत करेगा या फिर उस की दुलारी बहन नेहा ही ऐसा दिल तोड़ने वाला कदम उठाएगी. तब नेहा की ग्रैजुएशन की परीक्षा थी और श्रेया ने ही विपुल से कहा था कि नेहा को पढ़ा दिया करें. पर उसे कहां पता था कि वह अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है.

आगे पढ़ें- पीछेपीछे विपुल भी आया था. उस ने नेहा को…

सही समय पर: क्या मनोज की जिंदगी में पत्नी के खालीपन को समझ पाए उसके बच्चे?

कमलेश के साथ मैं ने विवाहित जिंदगी के 30 साल गुजारे थे, लेकिन कैंसर ने उसे हम से छीन लिया. सिर्फ एक रिश्ते को खो कर मैं बेहद अकेला और खाली सा हो गया था.

ऊब और अकेलेपन से बचने को मैं वक्तबेवक्त पार्क में घूमने चला जाता. मन की पीड़ा को भुलाने के लिए कोई कदम उठाना, उस से छुटकारा पा लेने के बराबर नहीं होता है.

आजकल किसी के पास दूसरे के सुखदुख को बांटने के लिए समय ही कहां है. हर कोई अपनी जिंदगी की समस्याओं में पूरी तरह उलझा हुआ है. मेरे दोनों बेटे और बहुएं भी इस के अपवाद नहीं हैं. मैं अपने घर में खामोश सा रह कर दिन गुजार रहा था.

कमलेश से बिछड़े 2 साल बीत चुके थे. एक शाम पापा के दोस्त आलोकजी मुझे हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर नवीन के क्लीनिक में मिले. उन की विधवा बेटी सरिता उन के साथ थी.

बातोंबातों में मालूम पड़ा कि आलोकजी को एक दिल का दौरा 4 महीने पहले पड़ चुका था. उन की बूढ़ी, बीमार आंखों में मुझे जिंदगी खो जाने का भय साफ नजर आया था.

उन्हें और उन की बेटी सरिता को मैं ने उस दिन अपनी कार से घर तक छोड़ा. तिवारीजी ने अपनी जिंदगी के दुखड़े सुना कर अपना मन हलका करने के लिए मुझे चाय पिलाने के बहाने रोक लिया था.

कुछ देर उन्होंने मेरे हालचाल पूछे और फिर अपने दिल की पीड़ा मुझ से बयान करने लगे, ‘‘मेरा बेटा अमेरिका में अपनी पत्नी व बच्चों के साथ ऐश कर रहा है. वह मेरी मौत की खबर सुन कर भी आएगा कि नहीं मुझे नहीं पता. तुम ही बताओ कि सरिता को मैं किस के भरोसे छोड़ कर दुनिया से विदा लूं?

‘‘शादी के साल भर बाद ही इस का पति सड़क दुर्घटना में मारा गया था. मेरे खुदगर्ज बेटे को जरा भी चिंता नहीं है कि उस की बहन पिछले 24 साल से विधवा हो कर घर में बैठी है. उस ने कभी दिलचस्पी…’’

ये भी पढें- चमत्कार: क्या पूरा हो पाया नेहा और मनीष का प्यार

तभी सरिता चायनाश्ते की ट्रे ले कर कमरे में आई और अपने पापा को टोक दिया, ‘‘पापा, भैया के रूखेपन और मेरी जिंदगी की कहानी सुना कर मनोज को बोर मत करो. मैं टीचर हूं और अपनी देखभाल खुद बहुत अच्छी तरह से कर सकती हूं.’’

चाय पीते हुए मैं ने उस से सवाल पूछ लिया था, ‘‘सरिता, तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मेरे जीवन में जीवनसाथी का सुख लिखा होता तो मैं विधवा ही क्यों होती,’’ उस ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘यह तो कोई दलील नहीं हुई. जिंदगी में कोई हादसा हो जाता है तो इस का मतलब यह नहीं कि फिर जिंदगी को आगे बढ़ने का मौका ही न दिया जाए.’’

‘‘तो फिर यों समझ लो कि पापा की देखभाल की चिंता ने मुझे शादी करने के बारे में सोचने ही नहीं दिया. अब किसी और विषय पर बात करें?’’

उस की इच्छा का सम्मान करते हुए मैं ने बातचीत का विषय बदल दिया था.

मैं उन के यहां करीब 2 घंटे रुका. सरिता बहुत हंसमुख थी. उस के साथ गपशप करते हुए समय के बीतने का एहसास ही नहीं हुआ था.

सरिता से मुलाकात होने के बाद मेरी जिंदगी उदासी व नीरसता के कोहरे से बाहर निकल आई थी. मैं हर दूसरेतीसरे दिन उस के घर पहुंच जाता. हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता दिन पर दिन मजबूत होता गया था.

कुछ हफ्ते बाद आलोकजी की बाईपास सर्जरी हुई पर वे बेचारे ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे. हमारी पहली मुलाकात के करीब 6 महीने बाद उन्होंने जब अस्पताल में दम तोड़ दिया तब मैं भी सरिता के साथ उन के पास खड़ा था.

‘‘मनोज, सरिता का ध्यान रखना. हो सके तो इस की दूसरी शादी करवा देना,’’ मुझ से अपने दिल की इस इच्छा को व्यक्त करते हुए उन की आवाज में जो गहन पीड़ा व बेबसी के भाव थे उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकूंगा.

आलोकजी के देहांत के बाद भी मैं सरिता से मिलने नियमित रूप से जाता रहा. हम दोनों ही चाय पीने के शौकीन थे, इसलिए उस से मिलने का सब से अच्छा बहाना साथसाथ चाय पीने का था.

मेरी जिंदगी अच्छी तरह से आगे बढ़ रही थी कि एक दिन मेरे दोनों बेटे गंभीर मुद्रा बनाए मेरे कमरे में मुझ से मिलने आए थे.

‘‘पापा, आप कुछ दिनों के लिए चाचाजी के यहां रह आओ. जगह बदल जाने से आप का मन बहल जाएगा,’’ बेचैन राजेश ने बातचीत शुरू की.

‘‘मुझे तंग होने को उस छोटे से शहर में नहीं जाना है. वहां न बिजली है न पानी. अगर मन किया तो तुम्हारे चाचा के घर कभी सर्दियों में जाऊंगा,’’ मैं ने अपनी राय उन्हें बता दी.

राजेश ने कुछ देर की खामोशी के बाद आगे कहा, ‘‘कोई भी इंसान अकेलेपन व उदासी का शिकार हो गलत फैसले कर सकता है. पापा, हमें उम्मीद है कि आप कभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जो समाज में हमें गरदन नीचे कर के चलने पर मजबूर कर दे.’’

‘‘क्या मतलब हुआ तुम्हारी इस बेसिरपैर की बात का? तुम ढकेछिपे अंदाज में मुझ से क्या कहना चाह रहे हो?’’ मैं ने माथे में बल डाल लिए.

रवि ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘हम मां की जगह किसी दूसरी औरत को इस घर में देखना कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे, पापा.’’

‘‘पर मेरे मन में दूसरी शादी करने का कोई विचार नहीं है फिर तुम इस विषय को क्यों उठा रहे हो?’’ मैं नाराज हो उठा था.

‘‘वह चालाक औरत आप की परेशान मानसिक स्थिति का फायदा उठा कर आप को गुमराह कर सकती है.’’

‘‘तुम किस चालाक औरत की बात कर रहे हो?’’

‘‘सरिता आंटी की.’’

‘‘पर वह मुझ से शादी करने की बिलकुल इच्छुक नहीं है.’’

‘‘और आप?’’ राजेश ने तीखे लहजे में सवाल किया.

‘‘वह इस समय मेरी सब से अच्छी दोस्त है. मेरी जिंदगी की एकरसता को मिटाने में उस ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है,’’ मैं ने धीमी आवाज में उन्हें सच बता दिया.

‘‘पापा, आप खुद समझदार हैं और हमें विश्वास है कि हमारे दिल को दुखी करने वाला कोई गलत कदम आप कभी नहीं उठाएंगे,’’ राजेश की आंखों में एकाएक आंसू छलकते देख मैं ने आगे कुछ कहने के बजाय खामोश रहना ही उचित समझा था.

अगली मुलाकात होने पर जब मैं ने सरिता को अपने बेटों से हुई बातचीत की जानकारी दी तो वह हंस कर बोली थी, ‘‘मनोज, तुम मेरी तरह मस्त रहने की आदत डाल लो. मैं ने देखा है कि जो भी अच्छा या बुरा इंसान की जिंदगी में घटना होता है, वह अपने सही समय पर घट ही जाता है.’’

‘‘तुम्हारी यह बात मेरी समझ में ढंग से आई नहीं है, सरिता. तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ मेरे इस सवाल का जवाब सरिता ने शब्दों से नहीं बल्कि रहस्यपूर्ण अंदाज में मुसकरा कर दिया था.

ये भी पढ़ें- फेसबुक का कारनामा: अंजलि ने अपने पति और बच्चों से कौनसी बात छिपाई थी?

सप्ताह भर बाद मैं शाम को पार्क में बैठा था तब तेज बारिश शुरू हो गई. बारिश करीब डेढ़ घंटे बाद रुकी और मैं पूरे समय एक पेड़ के नीचे खड़ा भीगता रहा था.

रात होने तक शरीर तेज बुखार से तपने लगा और खांसीजुकाम भी शुरू हो गया. 3 दिन में तबीयत काफी बिगड़ गई तो राजेश और रवि मुझे डाक्टर को दिखाने ले गए.

उन्होंने चैकअप कर के बताया कि मुझे निमोनिया हो गया है और उन की सलाह पर मुझे अस्पताल में भरती होना पड़ा.

तब तक दोनों बहुएं औफिस जा चुकी थीं. राजेश और रवि दोनों गंभीर मुद्रा में यह फैसला करने की कोशिश कर रहे थे कि मेरे पास कौन रुके. दोनों को ही औफिस जाना जरूरी लग रहा था.

तब मैं ने बिना सोचविचार में पड़े सरिता को फोन कर अस्पताल में आने के लिए बड़े हक से कह दिया था.

सरिता को बुला लेना मेरे दोनों बेटों को अच्छा तो नहीं लगा पर मैं ने साफ नोट किया कि उन की आंखों में राहत के भाव उभरे थे. अब वे दोनों ही बेफिक्र हो कर औफिस जा सकते थे.

कुछ देर बाद सरिता उन दोनों के सामने ही अस्पताल आ पहुंची और आते ही उस ने मुझे डांटना शुरू कर दिया, ‘‘क्या जरूरत थी बारिश में इतना ज्यादा भीगने की? क्या किसी रोमांटिक फिल्म के हीरो की तरह बारिश में गाना गा रहे थे.’’

‘‘तुम्हें तो पता है कि मैं ट्रेजडी किंग हूं, रोमांटिक फिल्म का हीरो नहीं,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘तुम्हारे पापा से बातों में कोई नहीं जीत सकता,’’ कहते हुए वह राजेश और रवि की तरफ देख कर बड़े अपनेपन से मुसकराई और फिर कमरे में बिखरे सामान को ठीक करने लगी.

‘‘बिलकुल यही डायलाग कमलेश हजारों बार अपनी जिंदगी में मुझ से बोली होगी,’’ मेरी आंखों में अचानक ही आंसू भर आए थे.

तब सरिता भावुक हो कर बोली, ‘‘यह मत समझना कि दीदी नहीं हैं तो तुम अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर सकते हो. समझ लो कि कमलेश दीदी ने तुम्हारी देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है.’’

‘‘तुम तो उस से कभी मिली ही नहीं, फिर यह जिम्मेदारी तुम्हें वह कब सौंप गई?’’

‘‘वे मेरे सपने में आई थीं और अब अपने बेटों के सामने मुझ से डांट नहीं खाना चाहते तो ज्यादा न बोल कर आराम करो,’’ उस की डांट सुन कर मैं ने किसी छोटे बच्चे की तरह अपने होंठों पर उंगली रखी तो राजेश और रवि भी मुसकरा उठे थे.

ये भी पढें- चेहरे की चमक: माता-पिता के लिए क्या करना चाहते थे गुंजन व रवि?

मेरे बेटे कुछ देर बाद अपनेअपने औफिस चले गए थे. शाम को दोनों बहुएं मुझ से मिलने औफिस से सीधी अस्पताल आई थीं. सरिता ने फोन कर के उन्हें बता दिया था कि मेरे लिए घर से कुछ लाने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेरे लिए खाना तो वही बना कर ले आएगी.

मैं 4 दिन अस्पताल में रहा था. इस दौरान सरिता ने छुट्टी ले कर मेरी देखभाल करने की पूरी जिम्मेदारी अकेले उठाई थी. मेरे बेटेबहुओं को 1 दिन के लिए भी औफिस से छुट्टी नहीं लेनी पड़ी थी. सरिता और उन चारों के बीच संबंध सुधरने का शायद यही सब से अहम कारण था.

अस्पताल छोड़ने से पहले मैं ने सरिता से अचानक ही संजीदा लहजे में पूछा था, ‘‘क्या हमें अब शादी नहीं कर लेनी चाहिए?’’

‘‘अभी ऐसा क्या खास घटा है जो यह विचार तुम्हारे मन में पैदा हुआ है?’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर पूछा.

‘‘तुम ने मेरी देखभाल वैसे ही की है जैसे एक पत्नी पति की करती है. दूसरे, मेरे बेटेबहुएं तुम से अब खुल कर हंसनेबोलने लगे हैं. मेरी समझ से यह अच्छा मौका है उन्हें जल्दी से ये बता देना चाहिए कि हम शादी करना चाहते हैं.’’

सरिता ने आंखों में खुशी भर कर कहा, ‘‘अभी तो तुम्हारे बेटेबहुओं के साथ मेरे दोस्ताना संबंधों की शुरुआत ही हुई है, मनोज. इस का फायदा उठा कर मैं पहले तुम्हारे घर आनाजाना शुरू करना चाहती हूं.’’

‘‘हम शादी करने की अपनी इच्छा उन्हें कब बताएंगे?’’

‘‘इस मामले में धैर्य रखना सीखो, मेरे अच्छे दोस्त,’’ उस ने पास आ कर मेरा हाथ प्यार से पकड़ लिया, ‘‘कल तक वे सब मुझे नापसंद करते थे, पर आज मेरे साथ ढंग से बोल रहे हैं. कल को हमारे संबंध और सुधरे तो शायद वे स्वयं ही हम दोनों पर शादी करने को दबाव डालेंगे.’’

‘‘क्या ऐसा कभी होगा भी?’’ मेरी आवाज में अविश्वास के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘जो होना होता है सही समय आ जाने पर वह घट कर रहता है,’’ उस ने मेरा हाथ होंठों तक ला कर चूम लिया था.

‘‘पर मेरा दिल…’’ मैं बोलतेबोलते झटके से चुप हो गया.

‘‘हांहां, अपने दिल की बात बेहिचक बोलो.’’

‘‘मेरा दिल तुम्हें जीभर कर प्यार करने को करता है,’’ अपने दिल की बात बता कर मैं खुद ही शरमा गया था.

पहले खिलखिला कर वह हंसी और फिर शरमाती हुई बोली, ‘‘मेरे रोमियो, अपनी शादी के मामले में हम बच्चों को साथ ले कर चलेंगे. जल्दबाजी में हमें ऐसा कुछ नहीं करना है जिस से उन का दिल दुखे. मेरी समझ से चलोगे तो ज्यादा देर नहीं है जब वे चारों ही मुझे अपनी नई मां का दर्जा देने को खुशीखुशी तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो, सरिता,’’ मैं ने दिल से उस की तारीफ की.

‘‘थैंक यू,’’ उस ने आगे झुक कर मेरे होंठों को पहली बार प्यार से चूमा तो मेरे रोमरोम में खुशी की लहर दौड़ गई थी…

सही समय की शुरुआत हो चुकी थी.

ये भी पढ़ें- मैं स्वार्थी हो गई थी: बसंती के स्वार्थी मन को पक्की सहेली वसुंधरा ने क्यों

नया अध्याय: क्या धोखेबाज पति को भूल पाई प्राची?

Serial Story: नया अध्याय (भाग-1)

लेखिका- सुधा थपलियाल

एयरोप्लेन से बाहर आते ही बेंगलुरु की ठंडी हवा ने जैसे ही प्राची के शरीर का स्पर्श किया, एक सिहरन सी उस के बदन में दौड़ गई. पीहू को ठंडी हवाओं से बचाने के लिए उसे अपने पास खींच लिया.

“मम्मी, मौसी आएंगी न, हमें पिकअप करने?” उत्सुकता से 7 साल की पीहू ने पूछा.

“नहीं, हम औफिस के गैस्टहाउस जाएंगे.” यह सुनते ही पीहू का चेहरा लटक गया.

प्राची ने पीहू को एक बैग पकड़ाया और ट्रौली लेने चली गई. दोनों मांबेटी घूमती पेटी पर अपने सामान का इंतजार करने लगीं. प्राची का बहुत बार आना होता रहा है बेंगलुरु में, कभी औफिस के काम से, तो कभी दीदी के पास. लेकिन आज वह एक अजीब एहसास से भरी हुई थी. अपना लैपटौप ट्राली में रख प्राची ने पेटी से सामान उठा कर रखा. एयरपोर्ट से बाहर औफिस की कार प्राची का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर में दोनों गैस्टहाउस पहुंच गए. प्राची ने अपने लिए कौफी और पीहू के लिए जूस, सैंडविच और्डर किया कमरे में ही. कौफी पीतेपीते प्राची ने एक नजर पीहू पर डाली. वह चुपचाप सैंडविच खा रही थी और जूस पी रही थी. तभी फोन की घंटी बजी, देखा, दीदी का फोन था.

“कहां है तू, तेरे जीजाजी तुझे लेने एयरपोर्ट गए थे. तेरा मोबाइल औफ आ रहा था,” प्राची की दीदी चिंतित स्वर में कह रही थी.

“दीदी, कहीं जाने का मन नहीं था,” धीमे स्वर में प्राची बोली.

“मैं और तेरे जीजाजी आ रहे हैं तुझे लेने.”

“प्लीज, आज नहीं. मैं कल आऊंगी,” यह कह प्राची ने फोन बंद कर दिया.

नहाने के बाद प्राची थोड़ी ताजगी महसूस कर रही थी. पीहू टीवी देखने लगी और प्राची लैपटौप खोल कर ईमेल चैक करने लगी. बहुत सारी बातें थी, जिन के विषय में नए सिरे से सोचना था. जिंदगी एक नए सिरे से शुरू करनी थी. पता नहीं क्यों बहुत सारी चुनौतियों के बाद भी प्राची कहीं न कहीं एक हलकापन महसूस कर रही थी. कभी सोचा न था कि जिंदगी इस तरह भी करवट बदलेगी. ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ का टैग हमेशा उस के साथ चिपका रहा. आज यह टैग उसे खोखला सा प्रतीत हो रहा था. छोटी सी उम्र में कितनाकुछ उस ने हासिल किया. एक अच्छे कालेज से इंजीनियरिंग की डिग्री. एमबीए कालेज की टौपर. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन. पर क्या ये सब एक सुखी जीवन की गारंटी दे सकते हैं?

ये भी पढ़ें- उड़ान: उम्र के आखिरी दौर में अरुणा ने जब तोड़ी सारी मर्यादा

लैपटौप पर चलती उंगलियों को रोक कर देखा, पीहू टीवी देखतेदेखते सोफे पर ही सो गई थी. उस का मन ममत्व के साथ एक दया से भी भर आया. लैपटौप बंद कर, हलकीफुलकी पीहू को उठा कर बिस्तर पर ले आई. उस का सिर अपनी गोदी में रख कर उस के बालों को सहलाने लगी.

क्या दोष था इस बच्चे का? कितने भी अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद करो, वे बातें पीछा छोड़ती ही नहीं हैं. दबेपांव चली आती हैं जख्मों को कुरेदने के लिए.

‘प्राची, पीहू, दरवाजा खोलो,’ मनीष रात के 9 बजे दरवाजा जोरजोर से पीट रहा था.

‘मम्मी, खोला न, देखो, पापा आए हैं,’ पापा से मिलने को बेताब, 3 साल की पीहू मम्मी की बांहों में कसमताते हुए कह रही थी.

प्राची कठोर बनी, पीहू को बांहों में भींच कर, बैडरूम से मनीष को दरवाजा पीटते सुनती रही.

‘देख लूंगा,’ बगल के फ्लैट से जब किसी ने टोका, तो मनीष धमकाते हुए चला गया.

‘कल मनीष फिर आया था रात को, काफी ज्यादा पिए हुए लग रहा था,’ लंच के समय प्राची ने अपनी सहकर्ता सहेली स्नेहा से कहा.

‘फिर से, उस की हिम्मत कैसे हुई?’ दांत भींचती हुई स्नेहा बोली, ‘पुलिस को क्यों नहीं बुलाया?’

‘मुझे बारबार तमाशा नहीं करना.’

‘तमाशा तो उस ने बना दिया तुम्हारी जिंदगी का,’ गुस्से से स्नेहा बोली.

‘समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,’ परेशान सी प्राची सिर पकड़ते हुए बोली.

बहुत देर तक प्राची सिर पकड़ कर बैठी रही. पहले तो स्नेहा उसे चुपचाप देखती रही, फिर अपनी जगह से उठी और एक मूक आश्वासन देती उस की पीठ सहलाने लगी. 3 भाईबहनों में प्राची सब से छोटी थी. शुरू से ही मेधावी रही प्राची पर सभी को फ़ख्र था. उस की उपलब्धियां पूरे परिवार को गौरवांवित कर रही थीं. बड़ी बहन का विवाह भी अच्छी जगह हो गया था. पढ़ाई में साधारण भाई ने बहुत हाथपांव मारे. कहीं ढंग की नौकरी ना मिलने पर, पिता ने उसे एक व्यवसाय में लगा दिया. उसे भी वह ठीक से चला नहीं पा रहा था.

जब बालरोग विशेषज्ञ डाक्टर मनीष का रिश्ता प्राची के लिए आया तो मातापिता की खुशी का ठिकाना न रहा. आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी मनीष से प्राची प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई. विवाह के बाद दोनों हैदराबाद आ गए. अपनीअपनी नौकरी में व्यस्त होने के बावजूद दोनों बहुत खुश थे. 2 साल बाद पीहू के आने से जीवन और गुलजार हो गया था. बस, प्राची को यह ही दुख रहता कि पापा एक बार भी उस के घर आए बिना दुनिया से चले गए.

प्राची की व्यस्तता नौकरी में तरक्की होने के साथसाथ बढ़ती जा रही थी. कई बार दूसरे शहर ही नहीं, विदेश भी जाना पड़ता था. पीहू भी नैनी अनिता के भरोसे ही पल रही थी. कई बार पीहू को देख कर उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. लेकिन घर और गाड़ी के लोन उस को नौकरी छोड़ने नहीं दे रहे थे. और फिर मनीष का अपना नर्सिंग होम खोलने का सपना. मां भाई के परिवार के साथ उलझी हुई रहती थी. सासससुरजी भी अपनीअपनी नौकरियों में व्यस्त होने के कारण नहीं आ पाते थे.

उस दिन रात के एक बजने वाले थे, मनीष घर नहीं पहुंचा. फोन भी नहीं उठा रहा था जबकि रिंग जा रही थी. चिंतित, परेशान प्राची इधर से उधर चक्कर लगा रही थी. रात के 2 बजे मनीष की गाड़ी की आवाज सुन प्राची ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘कहां थे?’

‘एक इमरजैंसी केस आ गया था,’ कह कर मनीष बाथरूम चला गया.

फिर तो इमरजैंसी केस का सिलसिला खत्म ही नहीं हुआ. प्राची को बहुत बार शक भी हुआ. लेकिन उस की स्वयं की व्यस्तता, और मनीष पर अथाह विश्वास ने, उस के विचारों को झटक दिया. आखिर, एक दिन प्राची ने निर्णय लिया कि वह देखने जाएगी कि कौन से इमरजैंसी केस आते हैं हर दूसरे दिन. उस रात प्राची ने अनिता को घर पर रोक लिया और चली गई मनीष को देखने नर्सिंग होम रात के 11 बजे. मनीष का चैंबर बंद था.

रिसैप्शन पर बैठी लड़की से मनीष के विषय में पूछा, तो वह हकलाते हुए बोली, ‘मैम, डाक्टर साहब 7 बजे चले गए थे.’

‘7 बजे, तुम्हारी डूयटी कब से लगी रात की?’ प्राची का मन शंका से भर गया.

‘मैडम, 3 हफ्ते हो गए. डाक्टर साहब शायद…’ बोलतेबोलते वह रुक गई.

‘बोलो,’ धड़कनों को काबू करते हुए प्राची बोली.

‘मैम, प्लीज, मेरा नाम मत लीजिएगा. उन का न, रीना नर्स से चक्कर चल रहा है,’ धीरे से रिसैप्शनिस्ट ने कहा.

‘क्या?’ प्राची कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गई. सारी जगह उसे घूमती सी प्रतीत हुई, फिर संभलती हुई बोली, ‘क्या तुम मुझे उस का पता दे सकती हो?’

ये भी पढ़ें- Short Story: हिंडोला- दीदी के लिए क्या भूल गई अनुभा अपना प्यार?

‘मैम,’ घबराती हुई वह बोली.

‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगी,’ प्राची के आश्वासन पर उस ने एक पेपर पर रीना का पता लिख कर दे दिया.

रात के 12 बजे अकेले कैब में दिमाग में चल रहे तूफान के साथ, वह कब रीना के घर के पास पहुंच गई, पता ही न चला. मनीष की कार सुबूत के तौर पर वहां खड़ी थी. विक्षिप्त सी वह तब तक घंटी बजाती रही, जब तक कि दरवाजा न खुल गया.

एक बड़ी उम्र की महिला ने दरवाजा खोला, ‘आप,’ आंखें मलती हुई वह महिला बोली.

‘मैं, उस आदमी की पत्नी हूं जो इस समय तुम्हारे घर में मौजूद है,’ तमतमाती हुई प्राची बोली.

‘यहां तो कोई नहीं है,’ वह औरत ढीठता से बोली.

‘यह बैग किस का है?’ सोफे पर मनीष के बैग की ओर इशारा करती प्राची ने तल्खी से पूछा.

‘मुझे नहीं पता,’ वह औरत अभी भी अपनी ढीठता पर कायम थी.

‘झूठ बोलती हो?’ प्राची चिल्लाती हुई बोली.

आगे पढ़ें- थोड़ी देर में एक दरवाजा खुलने की आवाज आई. एक…

ये भी पढ़ें-Short Story: प्यार उसका न हो सका

Serial Story: नया अध्याय (भाग-3)

लेखिका- सुधा थपलियाल

औफिस वालों का बहुत सहयोग प्राची को मिल रहा था. शहर से बाहर की मीटिंग में प्राची को वे नहीं भेजते. घर, औफिस और पीहू को अकेले संभालना आसान नहीं था. प्राची शारीरिक रूप से कम मानसिक रूप से ज्यादा थक गई थी. सचाई यह थी कि वह पीहू के साथ नितांत अकेली थी. ऐसा नहीं कि उस को मनीष की कमी नहीं खलती थी. कई बार एक अजीब सा अकेलापन उस को डसने लग जाता. रात को जरा सी आहट से डर और घबराहट से आंख खुल जाती थी. थकाहारा शरीर पुरूष के स्नेहसिक्त स्पर्श और मजबूत बांहों के लिए तरस रहा था जिस के सुरक्षित घेरे में वह एक निश्चिंतताभरी नींद सो सके.

‘मम्मी, मेरे बर्थडे पर पापा आएंगे न?’ प्राची को गैस्ट की लिस्ट बनाते देख पीहू ने उत्सुकता से पूछा.

‘नहीं.’

‘क्यों?’ मायूस सी पीहू ने कहा.

‘मर गए तेरे पापा,’ प्राची के अंदर दबा आक्रोश उमड़ पड़ा.

लेकिन, अब यह मनीष का नशे में धुत, उस के घर का दरवाजा पीटना…पीहू की पापा से मिलने की बेताबी, प्राची की परेशानियों को और बढ़ा रहा था. एक दिन औफिस में व्यस्त प्राची को समय का पता ही नहीं चला. फोन की घंटी बजी, देखा अनिता का फोन था, “क्या बात है अनिता?” लैपटौप पर उंगलियां चलाती हुई प्राची बोली.

‘मैडम, बेबी की तबीयत ठीक नहीं लग रही,’ चिंतित सा अनिता का स्वर गूंजा.

‘क्या हुआ?’ घबराई सी प्राची बोली.

‘शाम तक तो ठीक थी, लेकिन अब…आप जल्दी आ जाओ,’ कह अनिता ने फोन रख दिया.

बदहवास सी प्राची कार चलाती हुई घर पहुंची. देखा, पीहू अचेत सी बिस्तर पर पड़ी हुई थी.

‘पीहू, पीहू.’

‘यह सब कैसे हुआ?’ घबराई सी प्राची ने अनिता से पूछा.

‘पता नहीं मैडम. दिन तक तो ठीक थी,’ फिर अचानक कुछ याद करते हुए बोली, ‘हां, बेबी के स्कूल से फोन आया था कि बेबी गिर गई थी और थोड़े समय के लिए बेहोश हो गई थी. स्कूल वाले आप को भी फोन लगा रहे थे. आप का फोन बंद आ रहा था. लेकिन बेबी जब घर आई तो बिलकुल ठीक थी. खाना भी ठीक से खाया था. लेकिन शाम को दूध पीते ही उलटी कर दी और बेहोश हो गई.’

ये भी पढ़ें- Short Story: एक मुलाकात- अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसी सपना के साथ क्या हुआ?

‘क्या?’ मीटिंग में होने के कारण, मोबाइल को साइलैंट मोड में रखने के अपराधबोध से प्राची भर गई.

उस समय जिस एक व्यक्ति का ध्यान आया प्राची को वह कोई और नहीं, मनीष था, पीहू का पिता. बेटी की ममता उस के प्रतिशोध पर भारी पड़ गई.

‘मनीष, मनीष…पीहू को…मैं आ रही हूं नर्सिंग होम,’ घबराहट में शब्द भी प्राची के गले में अटक गए.

‘क्या हुआ पीहू को?’ बेचैनी से मनीष ने पूछा, लेकिन तब तक प्राची फोन रख चुकी थी.

कैसे वह कार चला पाई, उसे स्वयं ही पता न था. बारबार पीहू को आवाज दे रही थी. पीहू अचेत सी अनिता की गोदी में पड़ी हुई थी. कार पार्किंग में खड़ी कर पीहू को गोदी में उठा बदहवास सी भागी जा रही थी. अचानक एक हाथ उस के कंधे पर किसी ने रखा. प्राची ने मुड़ कर देखा, मनीष सामने खड़ा था. उस की गोदी में पीहू को देती रोती हुई प्राची बोली, ‘मनीष, बचा लो मेरी बेटी को.’

मनीष ने आश्वासनभरा हाथ प्राची के कंधे पर रखा और चिंतित सा पीहू को तुरंत इमरजैंसी में ले गया. एकदम से उपचार शुरू हो गया. दूसरे डाक्टरों से भी सलाह ली जा रही थी. ड्रिप द्वारा दवाई पीहू के शरीर में जाने लगी. प्राची के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. एकएक पल भारी लग रहा था.

2 घंटे बाद जैसे ही पीहू ने हलकी बेहोशी में ‘मम्मा’ बोला, प्राची पागलों की तरह उस को चूमने लगी.

मनीष ने रोका क्योंकि ड्रिप अभी लगी हुई थी.

पापा मनीष को देख कर पीहू की निस्तेज आंखों में चमक सी आ गई. ‘पापा’ बोल कर पीहू फिर से अचेत हो गई.

पीहू के सिर पर प्यार से हाथ फेरतेफेरते मनीष की आंखें नम हो आईं.

‘चिंता मत करो. दवाइयों का असर है,’ प्राची को तसल्ली देते मनीष बोला. कमरे से बाहर निकलते मनीष ने कहा, ‘चूंकि यह गिरी है, इसलिए सारे टेस्ट होंगे. एकदो दिन पीहू को नर्सिंग होम में हमारी निगरानी में रहना होगा. मैं सारी औपचारिकता पूरी कर के आता हूं.’

प्राची को एक राहत सी मिली जब सारे टेस्ट में कुछ नहीं निकला. 2 दिनों बाद पीहू के डिस्चार्ज होने के बाद मनीष स्वयं छोड़ने आया. मनीष जब जाने लगा तो पीहू ने पापा को कस कर पकड़ लिया. बहुत समय के बाद उस को पापा का साथ मिला था. वह अपने पापा को बिलकुल नहीं छोड़ रही थी. मनीष ने एक बार प्राची की ओर देखा.

‘प्लीज, रुक जाओ,’ उस ने पीहू के लिए कहा या स्वयं के लिए, प्राची को खुद ही पता न था.

पहले की तरह पीहू उन दोनों के बीच में इतमीनान से सो गई. अंतर सिर्फ यह था कि पहले जहां पीहू मम्मी का हाथ पकड़ कर सोती थी, आज पापा का हाथ कस के पकड़ कर सो रही थी. पीहू के सोने बाद जैसे ही मनीष के हाथ प्राची की ओर बढ़े, प्राची की सांसों का स्पंदन तेज हो गया. उन पलों में वह मनीष द्वारा दिए गए सारे घावों को भूल, अपने ऊपर से नियंत्रण खो, एक प्यासी नदी के समान मनीष की आगोश में समा गई. इतने दिनों बाद एक पुरूष का स्पर्श उस के तनमन को भिगो रहा था और वह उस में डूबती जा रही थी.

फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. अपने जीवन में आए अकेलेपन से त्रस्त प्राची यह भी भूल गई कि अब वह मनीष की पत्नी नहीं है.

‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’ एक दिन नाराजगी से स्नेहा बोली.

‘थक गई हूं मैं अकेले सब देखतेदेखते,’ बेबसी से प्राची बोली.

‘क्या यह ठीक है?’ स्नेहा की नाराजगी शब्दों में झलक ही आई.

‘पीहू की चमक लौट आई है. मैं, उस को पिता के प्यार से वंचित नहीं कर सकती.’

‘कहां गया तुम्हारा स्वाभिमान? तुम एक सशक्त महिला हो. मनीष ने तुम्हारे साथ सिर्फ बेवफाई ही नहीं की, उस ने तलाक लेने के लिए पलभर भी कुछ नहीं सोचा.’

‘अकेलापन जीवन की सब से बड़ी त्रासदी है. यह सारी नैतिकता, सिद्धांतों, अभिमान, स्वाभिमान सब को तोड़ कर रख देता है,’ कौफी के कप को एकटक देखती हुई, भरे हुए स्वर में प्राची बोली.

‘इस का परिणाम सही नहीं होगा,’ चेतावनी देती स्नेहा उठ खड़ी हुई.

फिर वही हुआ. एक रात रीना ने आ कर तमाशा कर दिया.

‘आप? यहां क्या कर रहे हो इतनी रात में?’ मनीष पर चिल्लाती हुई रीना बोली.

‘मैं…’ मनीष घिघियाया सा बोला.

‘शर्म नहीं आती तुम्हें, दूसरे के पति के साथ रात बिताती हो,’ गुर्राती हुई रीना अब प्राची से बोली.

‘तुम दोनों ने मेरे साथ धोखा किया. ये मेरे पति थे,’ प्राची अपने दिल की भड़ास को निकालती हुई बोली.

‘थे… अब ये मेरे पति हैं, यह मत भूलना,’ फिर मनीष को आदेश देती हुई रीना बोली, ‘चलो, आप को तो मैं घर में देख लूंगी.’

कुछ दिनों बाद मनीष फिर आ जाता, प्राची फिर उस के सामने कमजोर पड़ जाती. फिर रीना का धमकीभरा फोन आता. 7 साल की पीहू भी अब कुछकुछ समझने लगी थी. एक अजीब चक्रव्यूह में प्राची ने अपने को फंसा लिया था. औफिस के लोग और परिजन भी अब प्राची से नाराज रहने लगे. स्नेहा तो सिर्फ काम की बात करती.

अब तो मनीष खुल कर, बेशर्म हो, दबंगता से दोनों को बेबकूफ बना रहा था. उस ने प्राची की कमजोरी पकड़ ली थी.

‘मनीष, क्या तुम उसे छोड़ नहीं सकते?’ बैड पर मनीष की बांहों में समाई प्राची पूछ बैठी.

‘कैसी बात करती हो? वह मेरी पत्नी है और मेरे बेटे की मां,’ मनीष ने प्राची को अपनी बांहों के घेरे में कसते हुए कहा.

‘और मैं?’ मनीष की बांहों की गिरफ्त से निकल, प्राची ने तिलमिलाते हुए कहा.

‘तुम मेरी पत्नी थीं,’ मनीष बोला.

ये भी पढ़ें- Short Story: एक रात का सफर- क्या हुआ अक्षरा के साथ?

मनीष की बातों ने प्राची का कलेजा चीर कर रख दिया. वह हतप्रभ सी उस को देखती रह गई. उस रात को दोनों के बीच जो झगड़ा हुआ, उसे देख कर पीहू सहम गई. मम्मी को विक्षिप्तों की भांति रोते, चिल्लाते, चीजों को पटकते देख पीहू बोली, ‘जाओ पापा यहां से.’

मनीष के जाते ही प्राची बेचैनी से कमरे में इधर से उधर चलने लगी. आखिर रहा नहीं गया और स्नेहा को फोन लगा दिया.

‘हैलो,’ नींद में स्नेहा बोली. फिर प्राची का रोता स्वर सुन कर स्नेहा चौंक कर एकदम से पलंग पर बैठ गई. प्राची रोती हुई कह रही थी, ‘तुम ठीक कहती हो स्नेहा, मेरी जिंदगी एक तमाशा बन कर रह गई है.’

पूरी बातें सुनने के बाद स्नेहा बोली, ‘प्राची, नया अध्याय तभी खुलता है जब हम पिछला अध्याय बंद करते हैं.’

‘क्या मतलब?’ सुबकती हुई प्राची बोली.

‘मनीष तुम्हारे जीवन का एक बुरा अध्याय है, तुम ने उसे अभी तक बंद ही नहीं किया. बंद करो उसे.’

सुबह कमरे की लगातार बजती घंटी से प्राची की नींद टूट गई. दरवाजा खोला तो देखा, दीदी, जीजाजी, रिया और राहुल सामने खड़े थे. प्राची कस कर दीदी के गले लग गई. पीहू भी खुशी से उछल गई रिया और राहुल को देख कर. तीनों बच्चे धमाचौकड़ी मचाने लगे.

“अपना सामान उठाओ और चलो,” दीदी ने सामान को समेटते हुए कहा.

“बहुत अच्छा किया तुम ने जो अपना ट्रांसफर हैदराबाद से यहां बेंगलुरु करवा लिया,” जीजाजी ने गंभीरता से कहा.

प्राची ने कुछ नहीं कहा, बस, हलके से मुसकरा दी. कानूनी रूप से अलग हुए रिश्ते को अब दिल, दिमाग, शरीर से अलग कर एक सुकून सा महसूस कर रही थी वह.

Short Story: प्यार की तलाश- अतीत के पन्नों में खोई क्या थी नीतू की प्रेम कहानी?

Serial Story: नया अध्याय (भाग-2)

लेखिका- सुधा थपलियाल

थोड़ी देर में एक दरवाजा खुलने की आवाज आई. एक लंबी, गौरवर्ण, सुंदर सी लड़की अस्तव्यस्त सी गाउन को पहने हुए बाहर निकली.

‘मम्मी, यह कैसा शोर हो रहा है? मैम, आप?’ प्राची को देखते ही उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

नफरत की निगाहों से रीना को घूरती हुई प्राची उस कमरे की ओर जाने लगी जहां से रीना निकली थी. घबराई सी रीना ने उसे रोकने की असफल कोशिश की. प्राची ने एक ओर उसे धक्का दे कर कमरे में घुस गई. मनीष बिस्तर पर आराम से निर्वस्त्र बेखबर सो रहा था. चादर एक ओर सरकी हुई थी.

‘मनीष,’ पूरी ताकत से प्राची चिल्लाई.

आंखें मलता हुआ मनीष उठा. प्राची को देख कर वह निहायत ही आश्चर्य से भर गया. सकपकाते हुए अपने को ढकने की कोशिश करने लगा.

‘नंगे तो तुम हो ही चुके हो, ढकने के लिए बचा ही क्या है?’ शर्ट उस की तरफ फेंकती हुई हिकारत से प्राची बोली और कमरे से बाहर आ गई.

रीना सिटपिटाई सी खड़ी हुई थी. थोड़ी देर में मनीष भी कपड़े पहन कर बाहर आ कर प्राची का हाथ पकड़ कर बाहर जाने के लिए मुड़ा. प्राची ने गुस्से से अपना हाथ झटक दिया. जातेजाते रीना की मां से प्राची बोली, ‘शर्म नहीं आती तुम्हें, तुम्हारे ही सामने, तुम्हारी बेटी किसी पराए आदमी के साथ सो रही है.’

‘हमारे बारे में क्या बक रही है, अपने आदमी से पूछ,’ बेशर्मी से उस औरत ने जवाब दिया.

‘तो… यह है तुम्हारा स्तर,’ मनीष की ओर देखती व्यंग्य से प्राची कह एक झटके में बाहर निकल गई.

‘प्राची, प्राची,’ मनीष बोलता ही रह गया.

रात की निस्तब्धता और कालिमा कैब में बैठी प्राची के अंतर्मन को भेद कर उस को तारतार कर रही थी. एक आंधी सी उस के अंदर उठ रही थी. जिस में उड़ा चला जा रहा था उस का मानसम्मान, प्रेम और विश्वास. दर्द घनीभूत हो सैलाब बन कर उस की आंखों से बह निकला.

‘मैम,’ ड्राइवर ने कहा.

ये भी पढ़ें- Short Story: लौट आओ अपने वतन- विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

‘ओह,’ भारी आवाज में प्राची ने कहा और पेमेंट कर थके कदमों से घर में प्रवेश किया. आज अपना ही घर कितना पराया सा लग रहा था. थोड़ी देर में मनीष भी पहुंच गया. उस की हिम्मत नहीं हुई प्राची से कुछ बोलने की. वह सीधे बैडरूम में चला गया. प्राची वहीं सोफे पर ढह गई. मस्तिष्क में उठा बवंडर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. मन कर रहा था कि अभी जा कर मनीष को झकझोर कर पूछे ‘क्यों किया मेरे साथ ऐसा’. फिर अनिता का खयाल आते ही खामोश हो गई. आहत मन सोने नहीं दे रहा था. समय बहुत भारी लग रहा था. घड़ी में देखा सुबह के 5 बज रहे थे. दिल, दिमाग से टूटे शरीर को कब नींद ने अपनी आगोश में ले लिया, पता ही न चला.

‘मम्मा,’ पीहू अपने नन्हेंनन्हें हाथों से उसे उठा रही थी. प्राची एकदम से उठी. घड़ी सुबह के 10 बजा रही थी. समय देख कर प्राची हड़बड़ा गई. मनीष नर्सिंग होम जा चुका था. रात की बात याद कर एक बार लगा शायद कोई बुरा सपना देखा. अगले ही पल सचाई का एहसास होते ही पीहू को गोदी में उठा कर अपनी आगोश में भर कर जोरजोर से रोने लगी. किचन में पीहू के लिए कुछ बना रही अनिता एकदम से घबरा गई. पीहू भी ‘मम्मा…मम्मा’ कहते रोने लगी.

‘क्या हुआ मैडम,’ असमंजस से भरी अनिता बोली.

‘कुछ नही,’ आंसूओं को पोंछ्ती हुई प्राची बोली.

अचानक याद आया प्राची को कि 12 बजे औफिस में मीटिंग थी. तुरंत फोन पर सूचित किया कि वह औफिस नहीं आ पाएगी. पीहू को ले कर वह बैडरूम में चली गई. जिस घर में वह औफिस से आने के लिए बेचैन रहती थी, आज वही घर उस को काटने को आ रहा था. मन कर रहा था कि पीहू को ले कर भाग जाए यहां से. मनीष के प्रति मन घृणा से भर गया. मन कर रहा था कि कभी उस की शक्ल न देखे. किस को बताए, मां को… वह तो हार्ट की पेशेंट है. अपने सासससुर को, हां, यह ठीक रहेगा. रोतेरोते प्राची ने उन्हें सारी बातें बता दीं. सासससुर दोनों सन्न रह गए. अपने बेटे को धिक्कारते हुए और स्वयं अपने बेटे के इस कुकृत्य के लिए प्राची से माफी मांगने लगे.

शाम को मनीष जब नर्सिंग होम से वापस आया तो प्राची से माफी मांगने लगा.

‘क्यों किया तुम ने मेरे साथ विश्वासघात?’ मनीष का हाथ पकड़ कर प्राची चीख उठी.

‘तुम तो अपने जौब में इतनी व्यस्त रहती थीं, मेरे लिए तुम्हारे पास समय ही नहीं था,’ बेशर्मी से मनीष बोला.

‘किस के लिए व्यस्त रहती थी, अपने परिवार के लिए. तुम्हारा ही तो सपना था नर्सिंग होम का,’ मनीष के तर्कों से हैरान हो प्राची बोली.

मनीष अपने बचाव में जितना गिरता जा रहा था, प्राची उतना ही आहत होती जा रही थी. दोनों को लड़ते देख पीहू जोरजोर से रोने लगी. फिर तपाक से मनीष उठा और इंसानियत, प्यार, विश्वास सब का गला घोंट कर भड़ाक से दरवाजा खोल कर बाहर चला गया.

उस के बाद तो कुछ भी सामान्य नहीं रहा. अभी वह सोच ही रही थी कि क्या करे कि पता चला कि रीना मां बनने वाली है.

‘निकलो यहां से, मुझे तुम से कोई रिश्ता नहीं रखना,’ प्राची अपना आपा खो चुकी थी.

‘यह मेरा भी घर है,’ मनीष ने भी ऊंची आवाज में कहा.

‘मत भूलना यह गाड़ी और फ्लैट मेरे नाम हैं, और मैं, इन की किस्तें भर रही हूं,’ क्रोध से कांपती हुई प्राची बोली.

मनीष ने बिना वक्त गंवाए अपना सामान पैक किया और बाहर निकल गया. उस के बाद तो मनीष जैसे घर को भूल ही गया. मनीष की बातों से आहत, आक्रोशित प्राची एक घुटन सी महसूस कर रही थी, जो उस को अंदर ही अंदर से तोड़ रही थी. आखिर, उस ने अपनी मां, सासससुर, दीदीजीजा सब को बुला कर अपना निर्णय सुना दिया तलाक लेने का. सब ने बोलना शुरू कर दिया…इतना आसान नहीं यह सब. कैसे रहेगी अकेले. पीहू का क्या होगा? हम समझाएंगे मनीष को…

लेकिन रीना के मोहजाल में फंसा मनीष तो जैसे तलाक लेने के लिए पहले से ही तैयार बैठा था. किसी के समझाने का उस पर कोई असर न प‌ड़ा. आपसी सहमति से तलाक मिलने में ज्यादा समय न लगा. सारे परिजन बेबसी से दर्शक बने खड़े रह गए. वह दिन अच्छे से याद है प्राची को जब कोर्ट ने उन के तलाक पर मुहर लगाई थी. उस दिन रीना भी मौजूद थी. उस के चेहरे पर खिंची विद्रूप विजयी मुसकान आज भी प्राची के दिल को छलनी कर देती है. मनीष उस के पास आया और पीहू को गोदी में उठाने की कोशिश की. प्राची ने एकदम से पीहू को अपनी बांहों में जकड़ कर कठोर शब्दों में बोली, ‘मेरी बेटी को छूने की भी हिम्मत मत करना.’ और तेज कदमों से पीहू को ले कर चली गई. मनीष देखता ही रह गया.

एकएक कर के सब घर वाले प्राची को तसल्ली दे कर चले गए मां को छोड़ कर. मां भी कब तक रहती, एक दिन वह भी चली गई. फिर एक दिन मनीष आया, अपना बाकी सामान, कपड़े बगैरह लेने. प्राची ने अपने को और पीहू को गैस्टरूम में बंद कर लिया. मनीष ‘पीहूपीहू’ बोलता ही रह गया. प्राची को मनीष का पीहू के लिए तड़पना सुकून सा दे रहा था. मनीष ने जो उस के साथ विश्वासघात किया था, बिना उस की किसी गलती के उस को जो वेदना दी थी, उस की यह सजा तो उस को मिलनी ही चाहिए.

आगे पढ़ें- औफिस वालों का बहुत सहयोग प्राची को मिल रहा था…..

ये भी पढ़ें- गुंडा: क्या सच में चंदू बन गया गुंडा?

चमत्कार: क्या पूरा हो पाया नेहा और मनीष का प्यार

ड्राइंगरूम में बैठे पापा अखबार पढ़ रहे थे और उन के पास बैठी मम्मी टीवी देख रही थीं. मैं ने जरा ऊंची आवाज में दोनों को बताया, ‘‘आप दोनों से मिलने मनीष 2 घंटे के बाद आ रहा है.’’

‘‘किसलिए?’’ पापा ने आदतन फौरन माथे पर बल डाल लिए.

‘‘शादी की बात करने.’’

‘‘शादी की बात करने वह हमारे यहां क्यों आ रहा है?’’

‘‘क्या बेकार का सवाल पूछ रहे हैं आप?’’ मम्मी ने भी आदतन तीखे लहजे में पापा को झिड़का और फिर उत्तेजित लहजे में मुझ से पूछा, ‘‘क्या तुम दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया है?’’

‘‘हां, मम्मी.’’

‘‘गुड…वेरी गुड,’’ मम्मी खुशी से उछल पड़ीं.

‘‘बट आई डोंट लाइक दैट बौय,’’ पापा ने चिढ़े लहजे में अपनी राय जाहिर की तो मम्मी फौरन उन से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘मनीष क्यों आप को पसंद नहीं है? क्या कमी है उस में?’’ मम्मी का लहजा फौरन आक्रामक हो उठा.

‘‘हमारी नेहा के सामने उस का व्यक्तित्व कुछ भी नहीं है. जंचता नहीं है वह हमारी बेटी के साथ.’’

‘‘मनीष कंप्यूटर इंजीनियर है. उस के पिताजी आप से कहीं ज्यादा ऊंची पोस्ट पर हैं. वह फ्लैट नहीं बल्कि कोठी में रहता है. मुझे तो वह हर तरह से नेहा के लिए उपयुक्त जीवनसाथी नजर आता है.’’

‘‘तुझे तो वह जंचेगा ही,’’ पापा गुस्से में बोले, ‘‘क्योंकि मैं जो उसे पसंद नहीं कर रहा हूं. मेरे खिलाफ बोलते हुए ही तो तू ने सारी जिंदगी गुजारी है.’’

‘‘पापा, आई लव मनीष. मुझे अपना जीवनसाथी चुनने…’’

ये भी पढ़ें- Short Story: प्यार का रंग- एक मजाक ने भरा निराली की जिंदगी में रंग

मम्मी ने मुझे अपनी बात पूरी नहीं कहने दी और पापा से भिड़ना जारी रखा, ‘‘मैं ने आप के साथ जिंदगी गुजारी नहीं, बल्कि बरबाद की है. रातदिन की कलह, टोकाटाकी और बेइज्जती के सिवा कुछ नहीं मिला है मुझे पिछले 25 साल में.’’

‘‘इनसान जिस लायक होता है उसे वही मिलता है. बुद्धिहीन इनसान को जिंदगी भर जूते ही खाने को मिलेंगे.’’

‘‘आप के पास भी जहरीली जबान ही है, दिमाग नहीं. क्या यह समझदारी का लक्षण है कि बेटी शादी करने की अपनी इच्छा बता रही है और आप क्लेश करने पर उतारू हैं.’’

‘‘मैं अपनी बेटी के लिए मनीष से कहीं ज्यादा बेहतर लड़का ढूंढ़ सकता हूं.’’

‘‘पहली बात तो यह कि आज तक आप ने नेहा के लिए एक भी रिश्ता नहीं ढूंढ़ा है. दूसरी बात कि जब नेहा मनीष से प्रेम करती है तो शादी भी उसी से करेगी या नहीं?’’

‘‘यह प्रेमव्रेम कुछ नहीं होता. जो फैसला बड़े सोचसमझ और ऊंचनीच देख कर करते हैं, वही बेहतर होता है.’’

‘‘प्रेम के ऊपर आप नहीं तो और कौन लेक्चर देगा?’’ मम्मी ने तीखा व्यंग्य किया, ‘‘शादी के बाद भी आप प्रेम के क्षेत्र में रिसर्च जो करते रहे हैं.’’

‘‘मैं किसी भी औरत से हंसूंबोलूं, तो तुझे हमेशा चिढ़ ही हुई है. जिस आदमी की पत्नी लड़झगड़ कर महीने में 15 दिन मायके में पड़ी रहती थी वह अपने मनोरंजन के लिए दूसरी औरतों से दोस्ती करेगा ही.’’

‘‘मेरी गोद में नेहा न आ गई होती तो मैं ने आप से तलाक ले लिया होता,’’ अब मम्मी की आंखों में आंसू छलक आए थे.

‘‘बातबात पर पुलिस बुला कर पति को हथकडि़यां लगवा देने वाली पत्नी को तलाक देने की इच्छा किस इनसान के मन में पैदा नहीं होगी? मैं भी इस नेहा के सुखद भविष्य के कारण ही तुम से बंधा रहा, नहीं तो मैं ने तलाक जरूर…’’

‘‘अब आप दोनों चुप भी हो जाओ,’’ मैं इतनी जोर से चिल्लाई कि मम्मी और पापा जोर से चौंक कर सचमुच खामोश हो गए.

‘‘घर में आप का होने वाला दामाद कुछ ही देर में आ रहा है,’’ मैं ने उन दोनों को सख्त स्वर में चेतावनी दी, ‘‘अगर उसे आप दोनों ने आपस में गंदे ढंग से झगड़ने की हलकी सी झलक भी दिखाई, तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

‘‘मैं बिलकुल चुप रहूंगी, गुडि़या. तू गुस्सा मत हो और अच्छी तरह से तैयार हो जा,’’ मम्मी एकदम से शांत नजर आने लगी थीं.

‘‘मैं भी बाजार से कुछ खानेपीने का सामान लाने को निकलता हूं,’’ नाखुश नजर आ रहे पापा मम्मी को गुस्से से घूरने के बाद बैडरूम की तरफ चले गए.

अपने कमरे में पहुंचने के बाद मेरी आंखों में आंसू भर आए थे. अपने मातापिता को बचपन से मैं बातबात पर यों ही लड़तेझगड़ते देखती आई हूं. अपनी- अपनी तीखी, कड़वी जबानों से दोनों ही एकदूसरे के दिलों को जख्मी करने का कोई मौका नहीं चूकते हैं.

वे दोनों ही मेरे भविष्य का निर्माण अपनेअपने ढंग से करना चाहते थे. अकसर उन के बीच झड़पें मुझे ले कर ही शुरू होतीं.

मम्मी चाहती थीं कि उन की सुंदर बेटी प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी बने. उन्होंने मुझे सदा अच्छा पहनाया, मुझे डांस और म्यूजिक की ट्रेनिंग दिलवाई. मेरी हर इच्छा को पूरी करने के लिए वे तैयार रहती थीं. वे खुद कमाती थीं, इसलिए मुझ पर पैसा खर्च करने में उन्हें कभी दिक्कत नहीं हुई.

पापा का जोर सदा इस बात पर रहता कि मेरा कैरियर बड़ा शानदार बने. वे मुझे डाक्टर या आई.ए.एस. अफसर बनाना चाहते थे. मेरे स्वास्थ्य की भी उन्हें फिक्र रहती. मैं खूब जूस और दूध पिऊं और नियमित रूप से व्यायाम करूं, ऐसी बातों पर उन का बड़ा जोर रहता.

वैसे सचाई यही है कि मेरी मम्मी के साथ ज्यादा अच्छी पटती रही क्योंकि पापा को खुश करना मेरे खुद के लिए टेंशन का काम बन जाता था. पापा की डांट से बचाने के लिए मम्मी मेरी ढाल हमेशा बन जाती थीं.

मुझे ले कर उन के बीच सैकड़ों बार झगड़ा हुआ होगा. जब एक बार  दोनों का मूड बिगड़ जाता तो अन्य क्षेत्रों में भी उन के बीच टकराव और तकरार का जन्म हो जाता. मम्मी ने 5-6 साल पहले ऐसे ही एक झगड़े में पुलिस बुला ली थी. मुझे वह सारी घटना अच्छी तरह से याद है. उस दिन डर कर मैं खूब रोई थी.

मैं न होती तो वे दोनों कब के अलग हो गए होते, ऐसी धमकियां मैं ने हजारों बार उन दोनों के मुंह से सुनी थीं. अब मनीष से शादी कर मैं सिंगापुर जाने वाली थी. मेरी गैरमौजूदगी में कहीं इन दोनों के बीच कोई अनहोनी न घट जाए, इस सोच के चलते मेरा मन कांपना शुरू हो गया था.

मनीष आया तो मम्मी ने प्यार से उसे गले लगा कर स्वागत किया था. पापा भी जब उस से मुसकरा कर मिले तो मैं ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस की थी.

‘‘हम दोनों अगले हफ्ते शादी करना चाहते हैं क्योंकि 15 दिन बाद मुझे सिंगापुर में नई कंपनी जौइन करनी है. अभी शादी नहीं हुई तो मामला साल भर के लिए टल जाएगा,’’ मनीष ने उन्हें यह जानकारी दी, तो मम्मीपापा दोनों के चेहरों पर टेंशन नजर आने लगा था.

‘‘सप्ताह भर का समय तो बड़ा कम है, मनीष. हम सारी तैयारियां कैसे कर पाएंगे?’’ मम्मी चिंतित हो उठीं.

‘‘आंटी, शादी का फंक्शन छोटा ही करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्यों?’’ पापा के माथे में फौरन बल पड़े तो उन्हें शांत रखने को मैं ने उन का हाथ अपने हाथ में ले कर अर्थपूर्ण अंदाज में दबाया.

‘‘सच बात यह है कि मेरे मम्मीपापा इस रिश्ते से बहुत खुश नहीं हैं. मैं ने इसी वजह से कल रात ही उन्हें नेहा से शादी करने की बात तब बताई जब नई कंपनी से मुझे औफर लैटर मिल गया. उन दोनों की नाखुशी के चलते बड़ा फंक्शन करना संभव नहीं है न, अंकल.’’

‘‘मेरी बेटी लाखों में एक है, मनीष. उन्हें तो इस रिश्ते से खुश होना चाहिए.’’

‘‘आई नो, अंकल, पर वे दोनों आप दोनों जितने समझदार नहीं हैं जो अपनी संतान की खुशी को सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानें.’’

मनीष की इस बात को सुन कर मुझे अचानक इतनी जोर से हंसी आई कि मुझे ड्राइंगरूम से उठ कर रसोई में जाना ही उचित लगा था.

उस पूरे सप्ताह खूब भागदौड़ रही. मम्मी व पापा को इस भागदौड़ के दौरान जब भी फुरसत मिलती, वे आपस में जरूर उलझ पड़ते. मैं दोनों पर कई बार गुस्से से चिल्लाई, तो कई बार आंखों से आंसू भी बहाए. जो रिश्तेदार इकट्ठे हुए थे उन्होंने भी बारबार उन्हें लड़ाईझगड़े में ऊर्जा बरबाद न करने को समझाया, पर उन दोनों के कानों पर जूं नहीं रेंगी.

हम ने फंक्शन ज्यादा बड़ा नहीं किया था, पर हर काम ठीक से पूरा हो गया. मेरी ससुराल में मेरे रंगरूप की खूब तारीफ हुई, तो मेरे सासससुर भी खुश नजर आने लगे थे.

हमारा हनीमून 3 दिन का रहा. मनाली के खुशगवार मौसम में अपने अब तक के जीवन के सब से बेहतरीन, मौजमस्ती भरे 3 दिन मनीष के संग बिता कर हम दिल्ली लौट आए.

वापस आने के 2 दिन बाद ही हम ने हवाईजहाज पकड़ा और सिंगापुर चले आए. अपने मम्मीपापा से विदा लेते हुए मैं रो रही थी.

‘‘आप दोनों एकदूसरे का ध्यान रखना, प्लीज. आप का लड़ाईझगड़ा अब भी चलता रहा, तो मेरा मन परदेस में बहुत दुखी रहेगा.’’

मैं ने बारबार उन से ऐसी विनती जरूर की, पर मन में भारी बेचैनी और चिंता समेटे ही मैं ने मम्मीपापा से विदा ली थी.

शुरुआत के दिनों में दिन में 2-2 बार फोन कर के मैं उन दोनों का हालचाल पूछ लेती.

‘‘हम ठीक हैं. तुम अपना हालचाल बताओ,’’ वे दोनों मुझे परेशान न करने के इरादे से यही जवाब देते, पर मेरा मन उन दोनों को ले कर लगातार चिंतित बना रहता था.

मनीष जब भी मुझे इस कारण उदास देखते, तो बेकार की चिंता न करने की सलाह देते. मैं खुद को बहुत समझाती, पर मन चिंता करना छोड़ ही नहीं पाता था.

बीतते समय के साथ मेरा मम्मीपापा को फोन करना सप्ताह में 1-2 बार का हो गया. मनीष की अपने बौस से ज्यादा अच्छी नहीं पट रही थी. इस कारण मुझे जो टेंशन होता, वही मैं फोन पर अपने मम्मीपापा से ज्यादा बांटता था.

मनीष ने कोशिश कर के अपना तबादला बैंकाक में करा लिया. वहां शिफ्ट होने से पहले उन्होंने 1 सप्ताह की छुट्टी ले ली. लगभग 6 महीने बाद इस कारण हमें इंडिया आने का मौका मिल गया था. सारा कार्यक्रम इतनी जल्दी बना कि अपने आने की सूचना मैं ने मम्मीपापा को न दे कर उन्हें ‘सरप्राइज’ देने का फैसला किया था.

मनीष और मैं एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर सीधे पहले मेरे घर पहुंचे. 4 दिन बाद मेरे सासससुर की शादी की 30वीं वर्षगांठ थी, इसलिए पहले 3 दिन मुझे मायके में बिताने की स्वीकृति मनीष ने दे दी थी.

मनीष और मुझे अचानक सामने देख कर मेरे मम्मीपापा भौचक्के रह गए. मम्मी की चाल ने मुझे साफ बता दिया कि उन की कमर में तेज दर्द हो रहा है, पर फिर भी उन्होंने उठ कर मुझे गले से लगाया और खूब प्यार किया.

पापा की छाती से लग कर मैं अचानक ही आंसू बहाने लगी थी. उन को प्रसन्न अंदाज में मुसकराते देख मुझे इतनी राहत और खुशी महसूस हुई कि मेरी रुलाई फूट पड़ी थी.

‘‘आप दोनों को क्या हमारे आने की खबर थी?’’ कुछ संयत हो जाने के बाद मैं ने इधरउधर नजरें घुमाते हुए हैरान स्वर में सवाल किया.

‘‘नहीं तो. क्यों नहीं दी तू ने अपने आने की खबर?’’ मम्मी नकली नाराजगी दिखाते हुए मुसकराईं.

‘‘मुझे आप दोनों को ‘सरप्राइज’ देना था. वैसे पहले यह बताओ कि सारा घर फिर किस खुशी में इतना साफसुथरा… इतना सजाधजा नजर आ रहा है?’’

‘‘घर तो अब ऐसा ही रहता है, नेहा. हां, परदे पिछले महीने बदलवाए थे, सो इस कारण ड्राइंगरूम का रंग ज्यादा निखर आया है.’’

‘‘कमाल है, मम्मी. अपनी कमर दर्द की परेशानी के बावजूद आप इतनी मेहनत…’’

‘‘मेरी प्यारी गुडि़या, यह सारी जगमग तेरी मां की मेहनत का नतीजा नहीं है. आजकल साफसफाई का भूत मेरे सिर पर जरा ज्यादा चढ़ा रहता है,’’ पापा ने छाती चौड़ी कर मजाकिया अंदाज में अपनी तारीफ की तो हम तीनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘आप और घर की साफसफाई…आई कांट बिलीव यू, पापा.’’

‘‘अरे, अपनी मम्मी से पूछ ले.’’

मैं मम्मी की तरफ घूमी तो उन्होंने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने अब इन्हें गृहकार्यों में अच्छी तरह से ट्रेंड कर दिया है, नेहा. कुछ देर में ये हम सब को देखना कितने स्वादिष्ठ गोभी और मूली के परांठे बना कर खिलाएंगे.’’

‘‘गोभी और मूली के परांठे पापा बनाएंगे?’’ मेरा मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘साफसफाई और किचन पापा ने संभाल लिया है, तो घर में आप क्या करती हो?’’ मैं ने आंखें मटकाते हुए मम्मी से सवाल पूछा.

‘‘आजकल जम कर ऐश कर रही हूं,’’ मम्मी ने जब अपने बालों को झटका दे कर बड़ी अदा से पीछे किया तो मैं ने नोट किया कि उन्होंने बाल छोटे करा लिए थे.

‘‘बाल कब कटवाए आप ने? बड़ा सूट कर रहा है आप पर यह नया स्टाइल,’’ मैं ने चारों तरफ घूम कर मम्मी के नए स्टाइल का निरीक्षण किया.

‘‘तेरे पापा को ही मुझे मेम बनाने का शौक चढ़ा और जबरदस्ती मेरे बाल कटवा दिए,’’ मम्मी ने अजीब सी शक्ल बना कर पापा की तरफ बड़े प्यार से देखा था.

ये भी पढ़ें- Short Story: एक झूठ- इकबाल से शादी करने के लिए क्या था निभा का

‘‘चल, बाल तो मैं ने कटवा दिए, पर ज्यादा सुंदर दिखने को ब्यूटीपार्लर और जिम के चक्कर तो तुम अपनी इच्छा से ही लगा रही हो न,’’ पापा ने यह नई जानकारी दी, तो मैं ने मम्मी की तरफ और ज्यादा ध्यान से देखा.

उन्होंने अपना वजन सचमुच कम कर लिया था और उन के चेहरे पर भी अच्छाखासा नूर नजर आ रहा था.

‘‘आप दोनों 6 महीने में कितना ज्यादा बदल गए हो. मम्मी, आप सचमुच बहुत सुंदर दिख रही हो,’’ मैं ने प्यार से उन का गाल चूम लिया.

‘‘स्वीटहार्ट, तुम बेकार ही सिंगापुर में मम्मीपापा की चिंता करती रहती थीं. ये दोनों बहुत खुश नजर आ रहे हैं,’’ मनीष की इस बात को सुन कर मैं झेंप उठी थी.

‘‘हमारी फिक्र न किया करो तुम दोनों, परदेस में तुम तो हमारी गुडि़या का पूरापूरा ध्यान रखते हो न, मनीष?’’ पापा ने अपने दामाद के कंधे पर हाथ रख दोस्ताना अंदाज में सवाल पूछा.

‘‘रखता तो हूं… पर शायद उतना अच्छी तरह से नहीं जितना आप मम्मी का रखते हैं,’’ मनीष की यह बात सुन कर हम सब फिर से हंस पड़े.

‘‘कैसे हो गया यह चमत्कार,’’ मेरी हंसी थमी, तो मैं ने पापा और मम्मी का हाथ प्यार से पकड़ कर हैरान सी हो यह सवाल मानो खुद से ही पूछा था.

 

‘‘मुझे कारण पता है,’’ मनीष किसी स्कूली बच्चे की तरह हाथ उठा कर बोले तो हम तीनों बड़े ध्यान से उन का चेहरा ताकने लगे थे.

हमारे ध्यान का केंद्र अच्छी तरह बन जाने के बाद उन्होंने शरारती अंदाज में मुसकरातेशरमाते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ से इस घर में दामाद के पैरों का पड़ना शुभ साबित हुआ है.’’

फिर हम चारों के सम्मिलित ठहाके से ड्राइंगरूम गूंज उठा.

ये भी पढ़ें- परिंदे को उड़ जाने दो: क्या मां से आजादी पाकर अपनी शर्तों पर जिंदगी जी पाई शीना?

फेसबुक का कारनामा: अंजलि ने अपने पति और बच्चों से कौनसी बात छिपाई थी?

किट्टीपार्टी का थीम इस बार ‘वनपीस’ था. पार्टी निशा के घर थी. निशा ठहरी खूब आधुनिक, स्लिम, स्मार्ट. नएनए थीम उसे ही सूझते थे. पिछली किट्टी पार्टी अमिता के घर थी. वहीं निशा ने कह दिया था, ‘‘मेरी पार्टी का थीम ‘वनपीस’ है.’’

इस पर गोलमटोल नेहा ने तुरंत कहा, ‘‘तेरा दिमाग खराब है क्या? क्यों सोसायटी में हमारा कार्टून बनवाना चाहती है. यह उम्र है क्या हमारी वनपीस पहनने की?’’

अपनी बात पर अड़े रहने वाली, थोड़ी सी जिद्दी निशा ने कहा, ‘‘जो नहीं पहनेगा वह फाइन देगा.’’

नेहा ने घूरा, ‘‘कितना फाइन लेगी? सौ रुपए न? ले लेना.’’

‘‘नहीं, सौ रुपए नहीं. कुछ और पनिशमैंट दूंगी.’’

दोनों की बातें सुनती हुई अंजलि ने प्यार से कहा, ‘‘निशा प्लीज, वनपीस मत रख. कोई और थीम रख ले. क्यों हमारा कार्टून बनवाने पर तुली हो?’’

‘‘नहीं, सब वनपीस पहन कर आएंगे, बस.’’

रेखा, मंजू, दीया, अनीता, सुमन, कविता और नीरा अब अपनाअपना प्रोग्राम बनाने लगीं.

रेखा ने कहा, ‘‘ठीक है, जिद्दी तो तू है ही, पर इतना तो सोच निशा, मेरे सासससुर भी हैं घर पर, पति को तो मैं पटा लूंगी, उन के साथ तो बाहर घूमने जाने पर पहन लेती हूं, सासूमां को कभी पता ही नहीं चला पर उन के सामने घर से ही वनपीस पहन कर कैसे निकलूंगी?’’

‘‘तो ले आना. आ कर मेरे घर तैयार हो जाना. इतना तो कर ही सकती हो न?’’ निशा ने सलाह दी.

‘‘हां, यह ठीक है.’’

मंजू, दीया, अनिता को कोई परेशानी नहीं थी. उन के पास इस तरह की कई ड्रैसेज थीं. वे खुश थीं. अनीता, कविता, सुमन और नीरा ने भी अपनीअपनी मुश्किल बताई थी, ‘‘हमारे पास तो ऐसी ड्रैस है ही नहीं. नई खरीदनी पड़ेगी, निशा.’’

‘‘तो क्या हुआ, खरीद लेना. इस तरह के अपने प्रोग्राम तो चलते ही रहते हैं.’’

वे भी तैयार हो ही गईं.

अंजलि की मनोव्यथा कुछ अलग थी. बोली, ‘‘क्या करूं, मेरे पति अनिल को तो हर मौडर्न ड्रैस भाती है पर मेरे युवा बच्चे कुछ ज्यादा ही रोकटोक करने लगे हैं मेरे पहनावे पर… क्या करूं… वे तो पहनने ही नहीं देंगे.’’

‘‘तो तू भी मेरे घर आ कर तैयार हो जाना.’’

अंजलि ने मन मसोस कर हां तो कर दी थी पर इन सब में सब से ज्यादा परेशान वही थी.

निशा की किट्टी का दिन पास आ रहा था. अंजलि सब के साथ डिनर कर रही थी. वह कुछ चुप सी थी, तो उस की 23 वर्षीय बेटी तन्वी और 21 वर्षीय बेटे पार्थ ने टोका, ‘‘मौम, क्या सोच रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ कह कर अंजलि ने ठंडी सांस भरी.

अनिल ने भी कहा, ‘‘भई, कुछ तो बोलो, हमें कहां इतनी शांति में खाना खाने की आदत है.’’

अंजलि ने घूरा तो तीनों हंस पड़े. अंजलि फिर बोल ही पड़ी, ‘‘अगले हफ्ते निशा के घर हमारी किट्टी पार्टी है.’’

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan 2020: रेतीला सच

‘‘वाह,’’ तन्वी चहकी, ‘‘निशा आंटी तो नएनए थीम रखती हैं न मौम… इस बार क्या थीम है?’’

अंजलि ने धीरे से बताया, ‘‘वनपीस ड्रैस.’’

‘‘क्या?’’ पार्थ को जैसे करंट सा लगा. अनिल को भी तेज झूठी खांसी आई.

पार्थ ने कहा, ‘‘नहीं मौम, आप मत पहनना.’’

‘‘क्यों?’’

तन्वी ने कहा, ‘‘हर चीज की एक उम्र होती है न मौम. निशा आंटी पर तो सब कुछ चलता है, आप पर सूट नहीं करेगी और फिर हमें आप को ऐसे कपड़ों में देखने की आदत भी नहीं है न, मौम. आप साड़ी ही पहनना.’’

‘‘नहीं, मैं सोच रही हूं तुम्हारी ब्लैक ड्रैस ट्राई कर ही लूं.’’

पार्थ चिढ़ कर बोला, ‘‘नो मौम, बिलकुल नहीं. वह घुटनों तक की दीदी की ड्रैस आप कैसे पहन सकती हैं? दीदी भी पहनती हैं, तो मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

इस बात पर तन्वी ने उसे बुरी तरह घुड़का, ‘‘छोटे हो, छोटे की तरह बात करो.’’

अनिल मुसकराते हुए डिनर कर रहे थे.

अंजलि ने कहा, ‘‘आप क्यों चुप हैं? आप भी कुछ बोल ही दीजिए.’’

‘‘तुम सब की बातें सुनने में ज्यादा मजा आ रहा है… वनपीस पर कब फैसला होगा, उसी का इंतजार कर रहा हूं,’’ अनिल कह कर हंसे.

काफी देर तक वनपीस थीम पर बहस होती रही. अगले दिन तन्वी और पार्थ कालेज और अनिल औफिस चले गए. मेड के काम कर के जाने के बाद अंजलि अब घर में अकेली थी. उस ने आराम से तन्वी की अलमारी खोली.

बेतरतीब कपड़े रखने की तन्वी की आदत पर अंजलि को हमेशा की तरह गुस्सा आया पर इस समय गुस्सा करने का समय नहीं था. उस ने तन्वी की ब्लैक ड्रैस खोजनी शुरू की. कुछ देर बाद वह उसे मुड़ीतुड़ी हालत में मिली. ड्रैस हाथ में लेते ही वह मुसकराई. उस ने गुनगुनाते हुए उसे प्रैस किया और फिर पहन कर ड्रैसिंग टेबल के शीशे में खुद को निहारा, तो खुशी से चेहरा चमक उठा, घुटनों तक की इस स्लीवलैस ड्रैस में वह बहुत अच्छी लग रही थी. वाह, शरीर भी उतना नहीं फैला है… देख कर उसे खुशी हुई कि बेटी की ड्रैस उसे इस उम्र में बिलकुल फिट आ रही है. यह कितनी खुशी की बात है यह कोई स्त्री ही समझ सकती है. याद आया तन्वी पहनती है तो उस पर थोड़ी ढीली लगती है. यह एकदम फिट थी. वाह, सुबहशाम की सैर का यह फायदा तो हुआ.

अपनेआप से पूरी तरह संतुष्ट हो कर उस का मन खिल उठा था. हां, वह किट्टी में अच्छी लगेगी, थोड़ी टाइट तो हो रही है पर चलेगा, उसे कौन सा रैंप पर चलना है. अपनी सहेलियों के साथ मस्ती कर के लौट आएगी हमेशा की तरह. बेकार में दोनों बच्चे इतना टोक रहे थे. ठीक है, घर में किसी को बताऊंगी ही नहीं. उस ने निशा को फोन किया, ‘‘निशा, मैं भी तुम्हारे घर थोड़ा पहले आ जाऊंगी. वहीं बदल लूंगी कपड़े.’’

‘‘हां, ठीक है. जल्दी आ जाना.’’

किट्टी पार्टी वाले दिन अनिल, पार्थ और तन्वी के साथ नाश्ता करते हुए अंजलि मन ही मन बहुत उत्साहित थी. उस का चेहरा चमक रहा था.

पार्थ ने पूछा, ‘‘मौम, आज आप की किट्टी पार्टी है न?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर आप क्या पहनोगी?’’

‘‘साड़ी.’’

अनिल ने पूछा, ‘‘कौन सी?’’

‘‘ब्लू वाली, जो पिछले महीने खरीदी थी.’’

‘‘हां मौम, आप साड़ी में अच्छी लगती हैं,’’ तन्वी ने कहा.

पार्थ फिर कहने लगा, ‘‘आप कितनी अच्छी हो मौम, हमारी सारी बातें मान जाती हो. वह वनपीस वाला ड्रामा बाकी आंटियों को करने दो, आप बैस्ट हो, मौम.’’

ये भी पढ़ें- और ‘तोड़’ टूट गई

अंजलि ने मन ही मन कहा कि हुंह, तुम लोगों के साथ क्या करना चाहिए, पता है मुझे. सारे नियम मेरे लिए ही हैं. मुझ पर ही रोब चलता है सब का. मन ही मन अंजलि मुसकरा कर रह गई.

किट्टी पार्टी का टाइम 4 बजे का रहता था. सब घर वापस साढ़े 6 बजे तक आते थे. अंजलि ने सोचा कि इन लोगों को तो खबर ही नहीं लगेगी कि आज मैं ने क्या पहना. घर से ब्लू साड़ी ही पहन कर जाऊंगी, वापस भी साड़ी में ही आ जाऊंगी.

अंजलि इतनी उत्साहित थी कि वह 3 बजे ही निशा के घर पहुंच गई. वह फटाफट तन्वी की ड्रैस पहन कर तैयार हो गई. निशा तो खुद भी एक स्टाइलिश सी छोटी सी ड्रैस पहन कर तैयार थी. उस पर इस तरह के कपड़े लगते भी बहुत अच्छे थे.

निशा ने अंजलि को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर कहा, ‘‘वाह अंजलि, यू आर लुकिंग सो स्मार्ट.’’

अंजलि को अच्छा लगा. बोली, ‘‘पर थोड़ी टाइट है न?’’

‘‘तो क्या हुआ, सब चलता है. अभी सब को देखना, आज बहुत मजा आने वाला है.’’

निशा के घर भी इस समय कोई नहीं था. तभी रेखा भी आ गई. उस ने भी कपड़े वहीं बदले. धीरेधीरे पूरा ग्रुप आ गया. मंजू, दीया और अनिता घर से ही तैयार हो कर आई थीं. सब एकदूसरे की तारीफ करते रहे. फिर जबरदस्त फोटो सैशन हुआ, खूब फोटो खींचे गए, फिर कोल्डड्रिंक्स का दौर शुरू हुआ, गेम्स हुए. फिर सब ने स्नैक्स का आनंद लिया. निशा अच्छी

कुक थी. उस ने खूब सारी चीजें तैयार कर ली थीं. सब ने हमेशा की तरह खूब ऐंजौय किया. पूरा ग्रुप 40 के आसपास की उम्र का था.

साढ़े 6 बज गए तो सब जाने की तैयारी करने लगे. सब ने हंसते हुए घर जाने के कपड़े पहने. इस बात पर खूब हंसीमजाक हुआ.

नीरा ने कहा, ‘‘कोई सोच भी नहीं सकता न कि आज हम ने बच्चों की तरह झूठ बोल कर यहां कपड़े बदले हैं. अब सीधेसच्चे, मासूम सी शक्ल ले कर घर चले जाएंगे.’’

इस बात पर सब खूब हंसीं. सब एक ही सोसायटी में रहती थीं. अंजलि जब घर पहुंची, तीनों आ चुके थे. 7 बज रहे थे. सब के पास घर की 1-1 चाबी रहती थी. अंजलि ने जब डोरबैल बजाई, तो पार्थ ने दरवाजा खोला, ‘‘आप की पार्टी कैसी रही मौम?’’

‘‘बहुत अच्छी,’’ पार्थ मुसकरा रहा था.

तन्वी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मौम, आप साड़ी में कितनी अच्छी लग रही हैं.’’

‘‘थैंक्स,’’ अंजलि ने कहा तो सोफे पर

बैठे मुसकराते हुए अनिल ने कहा, ‘‘और कैसी रही पार्टी?’’

‘‘बहुत अच्छी, भूख लगी होगी तुम लोगों को?’’

‘‘नहीं, अभी तन्वी ने चाय पिलाई है. हम तीनों ने कुछ नाश्ता भी कर लिया है. आओ, बैठो न. अच्छी लग रही हो साड़ी में.’’

अनिल मुसकराए तो अंजलि को कुछ महसूस हुआ. सालों का साथ था, इतना तो पति को पहचानती ही थी कि इस मुसकराहट में कुछ तो खास है. फिर उस ने बच्चों पर नजर डाली. उन दोनों के चेहरों पर भी प्यारी शरारत भरी हंसी थी. वे तीनों पासपास ही सोफे पर बैठे थे.

उन के सामने वाले सोफे पर बैठ कर अंजलि ने तीनों को बारीबारी से देखा और फिर पूछा, ‘‘क्या हुआ? तुम लोग हंस क्यों रहे हो?’’

अनिल ने कहा, ‘‘तुम्हें देख कर?’’

‘‘क्यों? मुझे क्या हुआ?’’ तीनों ने हंसते हुए एकदूसरे को देखा. फिर आंखों ही आंखों में कुछ तय करते हुए अनिल ने कहा, ‘‘कैसी लग रही थीं तुम्हारी सहेलियां वनपीस में?’’

‘‘अच्छी लग रही थीं?’’

‘‘तुम भी तो अच्छी लग रही थीं.’’

अंजलि मुसकराई तो अनिल ने आगे कहा, ‘‘वनपीस में, तन्वी की ब्लैक ड्रैस में.’’

अंजलि को झटका लगा, ‘‘क्या? मैं तो साड़ी पहन कर बैठी हूं न तुम्हारे सामने.’’

‘‘हां, पर वहां वनपीस में अच्छी लग रही थीं, पहनती रहना,’’ कह कर अनिल हंसे तो अंजलि को कुछ समझ नहीं आया, क्योंकि वह तो आज अपनी ड्रैस भी वहीं छोड़ कर आई थी कि कहीं कोई देख न ले. बाद में ले आएगी.

ये भी पढ़ें- अजंता-आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

अनिल बोले, ‘‘अपने फोन में जल्दी से फेसबुक देख लो.’’

अंजलि ने पर्स से फोन निकाला, फेसबुक देखा. फेसबुक पर फोटो डालने की शौकीन निशा सब के घर से निकलते ही किट्टी पार्टी के फोटो फेसबुक पर डाल कर अंजलि को टैग कर चुकी थी.

अंजलि के घर आने से पहले ही अनिल, पार्थ और तन्वी जो उस की फ्रैंड्स लिस्ट में थे ही, सब तसवीरें देख चुके थे और लाइक करने के बाद अच्छे कमैंट भी कर चुके थे. इतना कुछ हो चुका था, अब कुछ भी बाकी नहीं था. अंजलि का चेहरा देखने लायक था. वह दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा कर जोरजोर से हंस पड़ी कि फेसबुक ने तो सारी पोल ही खोल दी.

मैं स्वार्थी हो गई थी: बसंती के स्वार्थी मन को पक्की सहेली वसुंधरा ने क्यों धिक्कारा?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें