सुधा काजल लगा रही थी. निहार रही थी कि कितनी सुंदर लग रही है मेरी बेटी… काश, सब ठीक हो जाए. वैसे सुधा देखने में सुंदर थी. समय पर सब लोग निकल गए. रैस्टोरैंट में तीन तरफ से बड़ा सोफा और सामने सिंगलसिंगल सोफा थे. बीच में बड़ी टेबल थी. बड़े सोफे पर मां और पापा के बीच सुधा बैठी.
सुधा को अब घबराहट होने लगी. बोली, ‘‘मां डर लग रहा है.’’
‘‘डरने का क्या बात है. यह समय तो हर लड़की की जिंदगी में आता है… सब ठीक हो जाएगा. घबराओ मत आराम से बैठो.’’
तभी हलचल हुई… सुधा को एक बैगनी रंग की साड़ी दिखाई दी. मां ने सुधा की
कुहनी पर स्पर्श कर खडे़ हो कर प्रणाम करने को कहा. सुधा खड़ी हुई. उस ने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और एक बार नजर उठा कर देखा तो उस का मन धक से रह गया. सामने बैठे व्यक्ति को देख उस के होश उड़ चुके थे. ये वही सज्जन थे जो उस दिन ट्रेन में मिले थे और अच्छी सीख दी थी. वह स्तब्ध जड़वत सी रह गई. मां ने उसे पकड़ कर बैठाया. वह महिला सुधा के पास आ कर बैठ गई थी. सुधा का हाथ थाम लिया लगातार सुधा को निहार रही थी. फिर बोली, ‘‘आप की बेटी बड़ी प्यारी है.’’
लीला देवी के होठों पर मुसकान फैल गई. सुधा अभी तक कांप रही थी. लीला देवी को लगा वह नर्वस है इस कारण कांप रही है.
तभी महिला ने पूछा, ‘‘तुम पेंटिंग सीख रही हो?’’
सुधा कुछ बोल नहीं सकी बस सिर हिला कर स्वीकृति दी.
‘‘गौतमजी कहां रह गए.’’ रमाकांत ने पूछा?
‘‘गाड़ी पार्क कर आ रहा है.’’
सुधा को लग रहा था अभी अंकल उठेंगे और कहेंगे हमें अपने बेटे की शादी आप की लड़की से नहीं करनी है हम जा रहे हैं. सुधा ने नजर उठा कर देखा.
रमाकांत अंकल से बात करने में व्यस्त थे और मां उस महिला से बातें कर रही थी.
तभी वह महिला बोली, ‘‘गौतम तुम अगर बात करना चाहते हो तो कर लो.’’
‘‘हांहां जाओ तुम लोग भी आपस में बातें कर लो. वहां टेबल ठीक किया है सुधा जाओ.’’
सुधा चुपचाप उस गौतम के पीछे चल दी.
‘‘आप पेंटिंग सीख रही है?’’
सुधा ने सिर हिला कर स्वीकार किया.
‘‘आगे पढ़ने के बारे में क्या सोचती हो?’’
‘‘इच्छा तो है.’’
‘‘चलो कुछ बोली तो,’’ कह कर वह हंसने लगा.
सुधा ने अब उसे ठीक से देखा. एक नजर में ही वह अच्छा लगा. पर कौन जाने क्या हो? वेटर नाश्ता लिए ले आया था.
‘‘और क्या हौबी हैं आप की?’’ उस ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की.
‘‘पुराने गाने सुनना और खाली वक्त में स्कैचिंग करना.’’
उस के लंबे बालों को देख कर वह बोला, ‘‘आप के बाल बहुत सुंदर है.’’
सुधा शरमा गई. तभी उधर से बुलाया जाने लगा. दोनों जाने लगे. तभी गौरव ने सुधा से मोबाइल नंबर मांगा तो सुधा िझ झकने लगी. तब वह बोला, ‘‘ठीक है रहने दीजिए.’’
रमाकांत ने बताया वे लोग रात में खबर करेंगे. गाड़ी में सभी बहुत खुश लग रहे थे मां ने कहा, ‘‘परिवार तो अच्छा है… स्वभाव भी ठीक लगा. लड़के की मां खूब बातें करती है.’’
सुधा ने भी यह नोट किया कि वह लगातार बात कर रही थी. सभी लोग खुश थे पर सुधा का मन आशंकाओं से घिरा था. एक हलचल मची थी कि सत्य नंगा होता है… सही… सत्य बड़ा कठोर भी होता है… उसे अब सारी बातें मांपापा को बतानी पडे़गी. उन के मन में आशा के लड्डू फूट रहे हैं. कहीं वे टूट गए तब परिणाम बहुत दुखद होगा. रात लीला देवी खाना बनाने गई तो सुधा वहां जा पहुंची और बोली, ‘‘मां सुनो बहुत जरूरी बात बतानी है.’’
‘‘हां बोलो.’’
मां खुश थी सुधा ने ट्रेन की सारी बातें बता दीं. लीला देवी सोच में पड़ गई कि अब क्या होगा… राह दिखाना और बहू बनाना दोनों में बहुत फर्क है. जमाना कितना भी आगे चला जाये पर कोई भी सभ्य परिवार जानबू झ कर एक भागी हुई लड़की से अपने बेटे की शादी नहीं करेगा. अब तो तय है कि उधर से न ही होगा यह बात सुधा के पापा को जल्दी बतानी होगी. यह सोच वह अपने कमरे में चली गई. रमाकांत कमरे में फाइल देख रहे थे.
लीला देवी बोली, ‘‘सुनिए, कुछ कहना है.’’
‘‘हां बोलो,’’ उन्होंने बिना देखे कहा.
लीला देवी ने जैसे कहने के लिए अपना मुंह खोलना चाहा वैसे ही रमाकांत का मोबाइल बज उठा, ‘‘एक मिनट.’’
उन्होंने फोन उठाया फोन जगेश्वर नाथ का था. लीला देवी का दिल जोर से धड़कने लगा. अभी वह उन के बारे में सोच ही रही थी कि उन का फोन आ गया. कहीं वह गश खा कर गिर न पड़े, इसलिए अपने बैड पर बैठ गई और पति का मुंह देखने लगी. पति की मुख मुद्रा तो हर्ष की लग रही थी. चेहरे पर मुसकान भी झलक रही थी. वह उत्तेजना में जा कर पास खड़ी हो गई.
‘‘जी अरे नहीं इतना तो समय लेना ही चाहिए… हांहां आप को भी बहुतबहुत बधाई. हां हम सुधा की मां को बता देंगे. ठीक है जी प्रणाम.’’
रमाकांत का चेहरा बता रहा था सब कुशलमंगल है. वह अपनी पत्नी की ओर लपके. उन्होंने लीला देवी के दोनों कंधे पकड़ कर खुश हो कहा, ‘‘लीला हमारी बेटी का ब्याह पक्का हो गया.’’
सुधा की मां जगेश्वर नाथ का मन ही मन धन्यवाद करने लगी. सच में बहुत सज्जन पुरुष हैं. आजकल कहां ऐसे आदमी मिलते हैं…
जोगेश्वरजी सुधा से ट्रेन में मिल चुके सुधा के पापा को यह बताना अभी ठीक नहीं हैं कितना खुश हैं सब सुन कर… चिंता में पड़ जाएंगे. जब सोने जाएंगे तब आराम से बात कर के बताएंगे.
तभी याद आया सुधा किचन में होगी बेचारी बेकार में परेशान होगी उस को यह खबर भी दे देते हैं. उस के मन का बो झ हट जाएगा.
सुधा का हृदय जोगेश्वर अंकल के लिए श्रद्धा से भर गया. सुधा अच्छा महसूस करने लगी. उसे याद आया कि गौतम ने उस का मोबाइल नंबर मांगा था. उस ने मां को बताया तो वह बोली, ‘‘दे देती दिक्कत की कोई बात नहीं थी. ठहरो हम भिजवा देते हैं.’’
लीला देवी ने अपनी होने वाली समधिन को बधाई देने के लिए उन्होंने फोन किया. तब सुधा की सास ने स्वयं सुधा का मोबाइल नंबर मांग लिया. नंबर देने के दूसरे दिन गौतम का फोन आ गया. वह 2 दिनों के लिए जमशेदपुर जा रहा है. जाने के पहले शाम को सुधा से कैफेटेरिया में मिलना चाहता है. सुधा सोचने लगी थोड़ी देर पहले उसे लगा उस ने जंग जीत ली पर अब उसे गौतम से मिलना है क्या करे. सारी कहानी जानते हुए जोगेश्वर अंकल ने शादी पक्की कर दी… क्या सच में उन्होंने अपने लड़के को नहीं बताया होगा ऐसा हो सकता है क्या? कहीं ऐसा तो नहीं कि गौतम को सब पता हो. वह सुधा के मुंह से सुनना चाहता है?
शायद नहीं अंकल खुद मना नहीं कर पाए. चाहते हैं गौतम मना करे. छी: उन समान आदमी पर वह कैसे शक कर सकती है. यह भी तो हो सकता है कि इन सब बातों को कोई महत्त्व नहीं दिया हो. सुधा सोच में पड गई अपने अतीत को… वह तो उस के जीवन का नासूर बन चुका है. सुधा चाहे न चाहे उस से भाग नहीं सकती है. क्या करे जिंदगी सामने खड़ी पुकार रही है. बस जा कर थाम लेना है पर वह जहां भी जाएगी ये सारी चीजें उस के साथसाथ चलेंगी. चुप रह कर और आगे बढ़ कर जिंदगी को गले लगा ले अथवा जो भी हुआ उसे गौतम को बता दे. वैसे खतरा दोनों में है गौतम मना भी कर सकता है. हो सकता है अपमानित भी करे.