Famous Hindi Stories : सुगंधाके गले में बांहें डाल बाय मां और वहीं बैठे महेश को हाथ हिला कर बाय पापा कह कर अवनि ने गुनगुनाते हुए अपना औफिस का बैग उठा लिया.
सुगंधा ने कहा, ‘‘अवनि, आज जल्दी आ जाना. अजय की बूआ आ रही हैं, याद रखना.’’
‘‘मां, जल्दी आना तो मुश्किल है… औफिस से 5 बजे निकल भी लूं तो भी घर आतेआते
7 बजेंगे ही… आ कर मिल ही लूंगी. डौंट वरी मां,’’ फिर खुद ही जोर से हंस दी, ‘‘बूआ का क्या है. वे मुझ से मिलने थोड़े ही आ रही हैं. अपने बाबाजी के प्रवचन सुनने आ रही हैं.’’
वहीं बैठे अजय को अपनी नईनवेली पत्नी के कहने के ढंग पर हंसी आ गई, ‘‘बकवास मत करो, अवनि… आ जाना समय से.’’
हंसते हुए अवनि अजय को अदा से बाय कह कर निकल गई.
मां के गंभीर चेहरे को देख अजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ मां? मूड खराब है क्या?’’
‘‘नहीं,’’ संक्षिप्त सा उत्तर पा कर अजय ने पिता को देखा तो महेश ने चुप रहने का इशारा किया. पितापुत्र इशारों में बात कर के मुसकराते रहे.
अजय भी औफिस चला गया तो महेश ने कहा, ‘‘मैं आज औफिस से जल्दी आने की कोशिश करूंगा… जीजी के आने तक तो आ ही जाऊंगा… तुम इतनी चुप क्यों हो?’’
सुगंधा पति के पूछने पर जैसे फट पड़ीं, ‘‘चुप न रहूं तो क्या करूं? कितना एडजस्ट करूं? सुबह से ही छैलछबीली बहू को देखतेदेखते मेरा सिर दुखने लगता है.’’
‘‘छैलछबीली? अवनि? यह क्या बोल
रही हो?’’
‘‘रंगढंग देखते हो न? कहीं से भी बहू लगती है इस घर की? लटकेझटके, बनावशृंगार, नौकरी, इस की बातें, उफ… एक संस्कारी बहू लाने के कितने अरमान थे… कुछ भी कहती हूं हर बात का ऐसा जवाब देती है कि पूछो मत. हर बात को हंसी में उड़ा देती है. अपनी बेटी नीतू को देखा है? उस की ससुराल में सब उस की कैसे तारीफ करते हैं… जो उस की सास कहती है वही करती है और इस अजय ने तो एक छैलछबीली को मेरे सिर पर ला कर बैठा दिया.’’
महेश ने बिफरी पत्नी के कंधों पर हाथ रख कर कहा, ‘‘परेशान क्यों हो रही हो? अवनि को बहू बन कर आए 4 महीने ही हुए हैं. इतनी जल्दी उस के लिए अपने मन में एक इमेज न बना लो. तुम भी पढ़ीलिखी हो, मौडर्न हो, अपनी बहू के जीने के तौरतरीके पर तुम ने उसे छैलछबीली नाम दे दिया है… अजय बहुत समझदार लड़का है. अगर उस ने अवनि को अपने लिए पसंद किया है तो उस के गुण जरूर देखे होंगे.’’
‘‘हां, हैं न गुण. अजय को इन गुणों का गुलाम बना तो रखा है. नालायक सा उस की हर बात पर हंसता है. वह सजीसंवरी सी उस पर फिदा हो कर जोक मारती रहती है और वह हंसता रहता है… मुझे क्यों नहीं दिखते उस के गुण?’’
महेश हंस पड़े. फिर सुगंधा को छेड़ा, ‘‘सास को दिखते हैं कभी अपनी बहू के गुण इतनी आसानी से? फिर तुम इतनी गुणवान थीं, तुम्हारे गुण दिखे कभी तुम्हारी सास को?’’
सुगंधा को इतने गुस्से में भी इस बात पर हंसी आ गई.
महेश बोले, ‘‘अच्छा, अब मैं भी निकलता हूं. तुम गुस्सा मत करो, आराम करना. फिर जीजी भी आ रही हैं, तुम बिजी रहोगी,’’ और फिर वे भी चले गए.
घर के कामों के लिए श्यामा मेड आई तो सुगंधा काम करवाने में व्यस्त हो गईं. सब से फ्री हो कर थोड़ा लेटी ही थीं कि उन की ननद उमा जीजी का फोन आ गया जो आज शाम पुणे से उन के घर आने वाली थीं.
उमा फोन पर कह रही थीं, ‘‘सुगंधा, मैं
6 बजे तक पहुंच जाऊंगी तब तक बहू आ जाएगी न? शादी के समय भी उस से ज्यादा बात नहीं हो पाई थी.’’
‘‘हां, जीजी कोशिश रहेगी.’’
फिर कुछ निर्देश दे कर उमा ने फोन रख दिया. सुगंधा थोड़ी देर के लिए लेट गईं और बहुत कुछ सोचने लगीं… 4 महीने पहले ही उन के बेटे ने अवनि से 3 साल की दोस्ती के बाद प्रेम विवाह किया था. सबकुछ खुशीखुशी हो गया था. अवनि के पेरैंट्स प्रोफैसर थे. वे बैंगलुरु में रहते थे. मौडर्न, सुशिक्षित परिवार था.
अजय को अवनि बहुत पसंद थी, यही सुगंधा के लिए खुशी की बात थी. वे अपने बच्चों की खुशी में, घरपरिवार में खुश रहने वाली हंसमुख महिला थीं पर अवनि के साथ कुछ ही दिन रहने के बाद सुगंधा के मन में अवनि के लिए एक ही शब्द आया था, छैलछबीली.
अवनि सुंदर थी, स्मार्ट थी, खूब सजसंवर कर रहने का शौक था उसे. वह अजय पर दिलोजान से फिदा है, यह सब को साफसाफ दिखता था. उस का औफिस घर से काफी दूर था. अजय से पहले औफिस निकलती. अजय के बाद ही घर पहुंचती.
मुंबई में औफिस आनेजाने में अच्छीखासी परेशानी होने के बावजूद घर आते ही झट से फ्रैश हो कर सब के साथ उठतीबैठती. हमेशा अपने कपड़ों का,चेहरे का, हेयरस्टाइल का, ऐक्सैसरीज का इतना ध्यान रखती कि सुगंधा हैरान सी देखती रह जातीं. घर में ऐसे रहती जैसे सालों से यही उस का घर था. सुगंधा कई बार महेश के सामने भी उसे छैलछबीली कहतीं तो महेश उन्हें हंस कर टोक भी देते. कुकिंग का अवनि को कोई शौक नहीं था.
एक दिन सुगंधा ने प्यार से अवनि से कहा, ‘‘अवनि, छुट्टी वाले दिन थोड़ीथोड़ी कुकिंग भी सीख लो.’’
उस समय चारों साथ बैठे थे. अवनि ने पूछा, ‘‘क्यों मां?’’
‘‘बेटा, भले ही मेड है, पर कुकिंग आनी भी तो चाहिए.’’
‘‘मां मुझे थोड़ीबहुत कुकिंग आती है… उतने से अभी चल जाएगा, फिर कभी सीख लूंगी,’’ और फिर उस ने सुगंधा के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘मां, मुझ से किचन में घुसा नहीं जाता. जब भी आप को जरूरत होगी, हम फुलटाइम कुक रख लेंगे… आप को भी आराम मिलेगा. मैं तो कहती हूं कुक रख ही लेते हैं.’’
सुगंधा कुक के आइडिया से ही मन ही मन घबरा गईं कि कहीं यह छैलछबीली सच में कुक न रख दे. फिर बोलीं, ‘‘ठीक है, जब तुम्हारा मन हो तो सीख लेना. फिलहाल मुझे कोई जरूरत नहीं… श्यामा सब कर ही जाती है.’’
महेश और अजय तो इस चर्चा पर मुसकराते ही रह गए थे. उस दिन सुगंधा ने महेश से कहा, ‘‘देखा, कोई काम नहीं करना चाहती.. जब भी कुछ सीखने के लिए कहती हूं मेरे गले में लटक जाती है. फिर डांटा भी नहीं जाता.’’
उन के कहने के ढंग पर महेश खूब हंसे. बोले, ‘‘जैसे मैं तुम्हें जानता ही नहीं कि तुम कितना डांटने वाली सास हो.’’
शाम को महेश उमा के आने से कुछ पहले ही आ गए ताकि वे कोई शिकायत न करे. चायनाश्ते के दौरान उमा अवनि के हालचाल लेने लगीं कि कैसी बहू है? सेवा क्या करती होगी जब औफिस में ही रहती है?
जवाब महेश ने दिया, ‘‘सेवा किसे करवानी है… कोई बीमार थोड़े ही है. अवनि बहुत अच्छी, समझदार लड़की है, जीजी.’’
अवनि के जिक्र से सुगंधा के चेहरे पर जो एक मायूसी आई, उमा की तेज नजरों ने उसे भांप लिया. बहुत अंदाजे भी लगा लिए. उमा महेश से बड़ी थीं. अब मातापिता रहे नहीं थे. दोनों भाईबहन अपना रिश्ता अच्छी तरह निभाते आए थे.
उमा धार्मिक कर्मकांडों में फंसी एक बहुत ही पारंपरिक विचारधारा की महिला थीं. अपने घर में भी उन का बहुत दबदबा था. स्वामी लोकनाथ की अनुयायी थीं. पूरे देश में स्वामीजी का कहीं भी प्रवचन होता, जा कर जरूर सुनतीं. विशाल शिविर में पूरे भक्तिभाव से 4-5 दिन रह आतीं.
अब मुंबई इसीलिए आई थीं कि शिविर अंधेरी में था. अजय और अवनि भी औफिस से आ गए, उन का चरणस्पर्श किया. अवनि फ्रैश हो कर साथ बैठी. डिनर करते हुए अवनि वैसे ही अपनी मस्ती से बातें कर रही थी जैसे हमेशा करती थी. उमा हैरान थीं. फिर अवनि महेश को नागरिकता बिल के विरोध में अपने विचार बताने लगी. उमा अपने घर में इस बिल के समर्थन में अपने पति के विचार सुनती आई थीं. लगा उन के पति की बात जैसे काट रही हो यह लड़की. गुस्सा तो आया पर खुद को कुछ जानकारी थी नहीं, कहतीं भी तो क्या.
अवनि कह रही थी, ‘‘पापा, मेरे फ्रैंड्स इस बिल के विरोध में बहुत शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं. मेरा भी उन्हें जौइन करने का मन है पर औफिस में जरूरी मीटिंग्स चल रही हैं.’’
उमा ने जैसे चिढ़ कर जानबूझ कर उस की बात काटी, ‘‘मैं सोच रही थी, इस बार सुगंधा भी मेरे साथ चल कर स्वामीजी के शिविर में रह ले. तुम जरा घर देख लेना, बहू.’’
‘‘बूआजी, मां तो नहीं जाएंगी शिविर में.’’
सुगंधा हैरान रह गईं कि यह छैलछबीली बताएगी कि मैं कहां जाऊंगी कहां नहीं. उमा को जैसे करंट लगा. इस कल की आई लड़की ने उन की बात काटी. अत: थोड़ी सख्ती से बोलीं, ‘‘स्वामीजी की बातें सुनता हुआ इंसान सारे दुखदर्द भूल जाता है.’’
अवनि ने ठहाका लगाया, ‘‘ये स्वामीजी बंद करवाएंगे सारे डाक्टर्स के क्लिनिक? नासा वाले न पकड़ कर ले जाएं इन्हें.’’
‘‘बहू, तुम ने कभी ज्ञानध्यान की बातें
नहीं सुनीं शायद… सजसंवर कर सुबहसुबह औफिस जाना एक बात है, आध्यात्म के रास्ते पर चलना दूसरी.’’
इस सख्त सी आवाज पर अवनि का
चेहरा मुरझा सा गया. वह प्यारी लड़की थी, खुशमिजाज, यहां भी उस से कभी कोई ऐसे नहीं बोला था. पर अवनि भी अपनी तरह की एक ही थी. धीरे से बोली, ‘‘बूआजी, ज्ञानध्यान की बातों में मेरी सच में कोई रुचि नहीं.’’
उमा के माथे पर त्योरियां आ गईं. सुगंधा को घूरा, ‘‘साथ चल रही हो?’’
सुगंधा को अपने घर की शांति बहुत प्यारी थी पर जीजी को साफ मना करने की हिम्मत नहीं होती कभी. धीरे से बोल ही दीं, ‘‘जा नहीं पाऊंगी, जीजी… बैठने में मुश्किल होती है.’’
उमा के चेहरे पर झुंझलाहट थी. सुगंधा आज बोलीं तो अजय ने भी कहा, ‘‘हां मां, आप को जाना भी नहीं चाहिए. बूआ, आप ही हो आना.’’
उमा के चेहरे पर नागवारी छाई रही.
रात को जब सब सोने चले गए तो उमा ने सुगंधा को सोफे पर बैठा कर कहा, ‘‘सुगंधा, बहू तो बड़ी तेज लग रही है तुम्हारी.’’
सुगंधा चुप रहीं.
‘‘इस की लगाम कस कर रखो.’’
सुगंधा हंस दीं, ‘‘जीजी, बहू है, घोड़ी थोड़े ही है जो कोई उस की लगाम कसेगा,’’ सुगंधा हंसमुख, शांतिप्रिय महिला थीं, लड़ाईझगड़ा उन के स्वभाव में नहीं था.
उमा ने फिर कहा, ‘‘सुगंधा, यह छम्मकछल्लो जैसी लड़की अजय ने पसंद तो कर ली पर मुझे नहीं लगता यह घर में किसी को शांति से रहने देगी. कैसी सजीसंवरी सी, मेकअप किए रहती है. कैसे पटरपटर किए जा रही थी. यह नहीं कि बड़ों के सामने मुंह बंद रखे.’’
सुगंधा फिर मुसकरा दीं. न चाहते हुए भी बोल ही पड़ीं, ‘‘छम्मकछल्लो? हाहा, जीजी, मैं तो इसे मन ही मन छैलछबीली कहती हूं.’’
उमा को जरा हंसी नहीं आई. बोलीं, ‘‘लटकेझटके देखे? और अजय? उसी को निहारता रहता है… यह रोज रात तक ऐसे ही फ्रैश बैठी रहती है?’’
‘‘हां, जीजी, ढंग से पहननेओढ़ने की बहुत शौकीन है.’’
‘‘कुछ नहीं, पति को रिझा कर अपने पल्लू से बांधने में होशियार है ये लड़कियां आजकल.’’
सुगंधा को बहुत सारा ज्ञान बघार कर उमा अगली सुबह शिविर में रहने चली गईं. वहीं से पुणे लौट जाएंगी.
उन के जाने के बाद अजय ने कहा, ‘‘अवनि, तुम तो बूआजी के सामने काफी बोल लीं… मां तो आज तक इतना नहीं बोलीं.’’
‘‘मां जितनी सीधी हैं न अजय, उतना सीधा बन कर आज के जमाने में काम नहीं चलता है. बोलना पड़ता है,’’ शांत और गंभीर स्वर में कही अवनि की इस बात पर सुगंधा ने अवनि को ध्यान से देखा. वह औफिस के लिए तैयार थी. उस के चेहरे पर हमेशा एक चमक रहती थी, खुश, शांत, सुंदर चेहरा.
अजय से 4 साल बड़ी नीतू अपने दोनों बच्चों यश और रिनी के साथ छुट्टियों में पुणे से मुंबई आई. उस ने आ कर कहा, ‘‘अवनि के साथ रहने से मन ही नहीं भरा था, बड़ी मुश्किल से छुट्टी होते ही आ पाई.’’
नीतू का पति सुधीर साथ नहीं आया था. वह पुणे में अपने सासससुर के साथ रहती थी. नीतू और अवनि की खूब जमी. बच्चे अपनी मामी पर फिदा थे. सुगंधा तब हैरान रह गईं जब अवनि ने किसी के बिना कहे नीतू के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी ले ली. नीतू परंपरावादी सास के कठोर अनुशासन में रह रही बहू थी. नीतू अपने सासससुर के नियमों के कारण खुल कर सांस लेना ही भूल चुकी थी. सुधीर भी मां की ही तरह था. नीतू के हाथों, गले में पता नहीं कितने धागे बंधे हुए थे.
अवनि ने कहा, ‘‘दीदी, आजकल मैचिंग ऐक्सैसरीज पहनने का जमाना है… आप ने यह सब कहां से पहन लिया?’’
नीतू झेंप गई, ‘‘मेरी सास पता नहीं कितने पंडितों, मंदिरों के चक्कर काटती रहती हैं. कुछ भी हो जाए, झट से एक धागा ला कर बांध देती हैं. मेरी तो छोड़ो, सुधीर को देखना, कितने धागों में लिपटे औफिस जाते हैं. मुझे तो यही लगता है कि उन का औफिस में मजाक न बनता हो.’’
अवनि खुल कर हंसी, ‘‘अगर उन के औफिस में कोई मेरे जैसी लड़की होगी तो मजाक जरूर बनता होगा.’’
नीतू भी हंसने लगी. सुगंधा वहीं बैठी थीं. बोलीं, ‘‘अवनि, अपने ननदोई का मजाक उड़ा रही हो?’’
‘‘हां मां, बात ही ऐसी है.’’
सुगंधा अवनि का मुंह देखने लगीं कि क्या करूं इस लड़की का, ननदोई का मजाक खुलेआम उड़ा रही है… जो मन आए बोल देती है.
घूमने जाने का प्रोग्राम बना. अवनि ने नीतू से कहा, ‘‘दीदी, हर समय सूट, साड़ी पहनती हो? वैस्टर्न नहीं पहनतीं?’’
‘‘हां, मांजी को साड़ी ही पसंद है.’’
अवनि को जैसे कुछ याद आया. बोली, ‘‘आप उन से यह क्यों नहीं कहतीं बेबी को बेस पसंद है,’’ गाते हुए सलमान खान का ही स्टैप करने लगी तो कमरे में बैठी नीतू, उस के बच्चे, अजय हंसहंस कर लोटपोट हो गए.
बाहर बैठी सुगंधा ने उन की आवाजें सुनीं तो मन ही
मन कहा कि शायद छैलछबीली को फिर कोई हरकत सूझी होगी. पर अंदर ही अंदर वे नीतू के लिए अवनि का प्यार देख कर खुश भी थीं. बेटी मायके आ कर कभी इतनी खुश नहीं दिखाई दी थी जितनी वह अवनि के साथ थी.
तभी उमा का फोन आ गया. अवनि के बारे में पूछती रहीं. उस पर थोड़ी सख्ती रखने के लिए समझाती रहीं. सुगंधा ने चुपचाप सब सुना.
नीतू 1 हफ्ते के लिए ही आई थी. अभी उसे आए तीसरा ही दिन था. सुगंधा के मोबाइल पर उन के भाई सुनील का फोन आया. उन का बेटा विजय अपनी फैमिली के साथ मुंबई घूमने आ रहा था. सुगंधा इस फोन के बाद काफी गंभीर दिखीं. उन्होंने जब सब को विजय के आने के बारे में बताया, तो महेश और अजय तो सामान्य दिखे पर जब सुगंधा और नीतू ने एकदूसरे को देखा तो दोनों के चेहरों पर छाया तनाव अवनि से छिप न पाया.
उस के बाद अवनि ने पूरा दिन नीतू को उदास और चुप ही देखा. अब तक हंसतीमुसकराती नीतू बिलकुल चुप हो गई थी. उस के बच्चे शांत, आज्ञाकारी बच्चे थे. वे कभी कुछ पढ़ते, कभी कार्टून देख लेते, कभी बाहर बच्चों के साथ खेल आते.
अगले दिन महेश और अजय के जाने के बाद जब बच्चे टीवी देख रहे थे, सुगंधा के कमरे से नीतू की धीमी सी आवाज आई. जानबूझ कर बाहर खड़ी अवनि सुनने की कोशिश करने लगी. वह अब इस घर को अपना घर समझती थी. वह जानना चाह रही थी कि ऐसी क्या बात है जो दोनों के चेहरों का रंग विजय का
नीतू कह रही थी, ‘‘मां, मैं सुबह ही पुणे निकल जाती हूं.’’
‘‘नहीं बेटा, अभी इतनी मुश्किल से तो तेरा आना हुआ है.’’
‘‘नहीं मां, मैं विजय की शकल भी नहीं देखना चाहती.’’
‘‘अपनी फैमिली के साथ आ रहा… तू चिंता मत कर… इग्नोर कर…’’
‘‘मां, आप हमेशा यही कहती रहोगी इग्नोर कर… मुझे नहीं देखनी है उस की शक्ल.’’
बाहर खड़ी अवनि समझ गई. वह अंदर आ कर दोनों के साथ आराम से बैठ गई. फिर बोली, ‘‘दीदी, आप क्यों जाएंगी? यह आप का मायका है, आप का घर है, मैं आप लोगों को अपना मान चुकी हूं, आप के दुख अब मेरे दुख हैं… आप लोग भी मुझे अपना समझ कर अपनी परेशानी शेयर नहीं करेंगे?’’
‘‘जरूर करूंगी अवनि, तुम ने तो मेरा दिल जीत लिया है,’’ कह नीतू जरा नहीं झिझकी. खुल कर बताया, ‘‘विजय मेरे मामा का बेटा है, बदतमीज, चरित्रहीन, मेरी शादी से कुछ दिन पहले यहां आया था. उस ने मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश की. मेरे चिल्लाने, गुस्सा होने पर फौरन चला गया, पर उसे कुछ कहने के बजाय मां ने मुझे ही चुप रह कर इग्नोर करने के लिए कहा… मेरी शादी में नहीं आया था… अब आ रहा है पर मुझे उस की शक्ल भी नहीं देखनी है.’’
‘‘तो आप उस की शक्ल नहीं देखेंगी, दीदी.’’
‘‘पर वह आ रहा है न?’’
सुगंधा चुप थीं. अवनि ने कहा, ‘‘मां, आप ही नहीं, कई मांएं ऐसा करती हैं. बेटी को ही चुप करवा देती हैं… मांओं के चुप करवाने से बेटियों का जख्म और गहरा हो जाता है. आप ने सुन कर उसी समय विजय को 4 थप्पड़ लगा कर निकाल दिया होता तो आज दीदी जाने की बात न करतीं. खैर, दीदी आप चिंता न करो. एक तो मैं यह भी देख रही हूं कि कोई भी मुंबई यानी यहां चला आता है और मां का कितना काम बढ़ जाता है. मां कुछ कहती नहीं, पर थक जाती हैं. मैं भी औफिस में रहती हूं. चाह कर भी मां की हैल्प नहीं कर पाती और दीदी को तो मैं जरा भी परेशान नहीं होने दूंगी,’’ कहते हुए अवनि ने तुरंत अजय को फोन किया, ‘‘अजय, तुम्हें इतना करना है कि अपने मामा को फोन कर के कहो कि हम सब अचानक बाहर घूमने जा रहे हैं. मां को पता नहीं था… तुम ने सरप्राइज देने के लिए पहले ही टिकट्स बुक किए हुए थे.’’
उधर से अजय ने क्या कहा, वह तो किसी को भी पता नहीं चला पर अवनि के होंठों पर एक प्यारी मुसकान दिख रही थी. वह बोल रही थी, ‘‘अभी करो फोन… ओके… लव यू टू बाय.’’
नीतू के चेहरे पर मुसकान फैल गई. सुगंधा भी मुसकराईं तो अवनि उन की गोद में सिर रख कर लेट गई, ‘‘मां, ये सब करना पड़ता है… गऊ टाइप औरत बन कर अब काम नहीं चलता. हमारा तेजतर्रार होना आज की जरूरत है. अजय मुझे आप के सीधेपन के कई किस्से सुना चुका है. पर आप को चिंता करने की जरूरत नहीं. अब मैं आ गई हूं.’’
उस ने यह जिस ढंग से कहा उस पर सुगंधा और नीतू को जोर से हंसी आ गई.
सुगंधा अवनि का सिर सहलाने लगीं तो वह फिर झटके से उठी, ‘‘नहीं मां, बाल नहीं छेड़ने हैं मेरे… अभी स्ट्रेटनिंग की है.’’
सुगंधा ने हंस कर अपने माथे पर हाथ मारा. तभी उन का फोन बज उठा. उमा का नाम देख वे रूम से बाहर चली गईं.
उमा ने हालचाल पूछा. अपने स्वामीजी की तारीफ की. फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी छैलछबीली के क्या हाल हैं?’’
‘‘जीजी, यह छैलछबीली तो मेरे मन को भा गई,’’ कह कर उमा को अवाक कर फोन रख वे वापस नीतू और अवनि के पास चली आईं.
अवनि ने पूछा, ‘‘बूआ क्या कह रही थीं?’’
‘‘कुछ नहीं, बस हालचाल…’’
‘‘क्यों मां, यह नहीं पूछा कि छैलछबीली क्या गुल खिला रही है?’’
सुगंधा को जैसे करंट लगा. उन के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘यह क्या कह रही हो, बेटा?’’
अवनि अब हंस कर लोटपोट हो रही थी, ‘‘डौंट वरी मां, मैं ने अपना यह नाम ऐंजौय किया, आप दोनों जिस दिन ये सब बात कर रही थीं, मैं ने उस दिन भी ऐसे ही सुना था जैसे आज आप की और दीदी की बात सुनी… वह क्या है न मां अभी बताया न कि गऊ टाइप बन कर जीने का जमाना गया. सब पर नजर रखनी पड़ती है, पर मैं सचमुच आप लोगों को प्यार करती हूं,’’ कह कर अवनि सुगंधा के गले लग गई.
नीतू उन्हें घूर रही थी, ‘‘मां, यह क्या किया आप लोगों ने?’’
‘‘सौरी… सौरी, बाबा,’’ कह कर सुगंधा ने नाटकीय ढंग से कान पकड़े तो तीनों हंसने लगीं. अवनि ने फर्जी कौलर ऊपर किया, ‘‘देखा, इस छैलछबीली ने सास को कान पकड़वा दिए.’’
सब की मीठी सी हंसी से कमरा गूंज उठा.