फेसबुक: श्वेता और राशी क्या बच पाई इस जाल से

कालेज में फ्री पीरियड में जैसे ही श्वेता ने अपनी सहेली अमिता और राशी को अपने बौयफ्रैंड रोहन के बारे में बताया तो राशी हैरान होते हुए बोली, ‘‘तू बड़ी छिपीरुस्तम निकली, पिछले 6 महीने से तुम दोनों का चक्कर चल रहा है और हमें तू आज बता रही है.’’

‘‘तो तुम ने कौन सा अपने जयपुर वाले बिजनैसमैन बौयफ्रैंड संचित से हमें अभी तक मिलवाया है,’’ श्वेता ने पलट कर जवाब दिया.

‘‘प्लीज, दोनों लड़ो मत. चलो, कैंटीन चलते हैं, बाकी बातें वहीं कर लेना,’’ अमिता दोनों को चुप कराते हुए बोली.तीनों क्लास रूम से उठ कर कैंटीन की तरफ चल दीं.

राशी ने 3 बर्गर और हौट कौफी और्डर करते हुए श्वेता से पूछा, ‘‘चल छोड़, अब यह बता, तुम मिले कहां? रोहन के परिवार में कौनकौन है? हमें उस से कब मिलवा रही है?’’

‘‘क्या एक के बाद एक सवालों की बौछार कर रही है, आराम से एकएक कर के पूछ,’’ अमिता ने राशी को टोका.

‘‘अभी तो मैं ही रोहन से नहीं मिली तो तुम्हें कैसे मिलवाऊं,’’ श्वेता ने मजबूरी जताई.

‘‘तो पिछले 6 महीने से तुम एक बार भी नहीं मिले,’’ राशी ने हैरानी से पूछा.

‘‘तो तुम कौन सा संचित से मिली हो,’’ श्वेता ने उसी लहजे में राशी से पूछा.

‘‘संचित बिजनैस के सिलसिले में अकसर विदेश जाता है, उस ने तो मुझे अपने साथ सिंगापुर चलने के लिए कहा था, पर मैं ने ही मना कर दिया. शादी के बाद उस के साथ दुनिया घूमूंगी,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘चलो, चलो, बर्गर खाओ, ठंडा हो रहा है,’’ अमिता ने कहा.

‘‘अच्छा, यह तो बता रोहन दिखता कैसा है, उस का कोई फोटो तो दिखा,’’ राशी श्वेता का मोबाइल उठाते हुए बोली.

‘‘अभी उस की आर्मी की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई है, इसलिए उस ने कोई फोटो नहीं भेजा,’’ श्वेता ने जवाब दिया, ‘‘सुनो, कल उस का बर्थडे है, मैं तुम सब को ट्रीट दूंगी,’’ उस ने आगे कहा.

‘‘क्या तू ने रोहन के लिए कोई गिफ्ट नहीं भेजा,’’ अमिता ने श्वेता से पूछा.

‘‘क्यों नहीं, मैं ने उस की मनपसंद घड़ी कोरियर से एक हफ्ते पहले ही भेज दी थी,’’ श्वेता बोली.

‘‘पिछले महीने तेरे बर्थडे पर रोहन ने क्या दिया,’’ राशी ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘उस ने कहा कि वह ट्रेनिंग खत्म होते ही दिल्ली आएगा और मुझे मनपसंद शौपिंग कराएगा,’’ श्वेता चहकते हुए बोली.

‘‘ग्रेट,’’ राशी ने कहा.

‘‘एक मिनट, मुझे तो तुम दोनों के बौयफ्रैंड्स में कुछ गड़बड़ लग रही है,’’ अमिता परेशान होते हुए बोली.

‘‘तेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है, इसलिए तू हम से जलती है,’’ राशी तुनक कर बोली.

तीनों कैंटीन से आ कर क्लास रूम में बैठ गईं, पर अमिता का मन पढ़ने में नहीं लग रहा था, वह यही सोचती रही कि जिन लड़कों को इन्होंने देखा नहीं, उन से मिली नहीं, उन के सपनों में खो कर अपना कीमती समय बरबाद कर रही हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इन दोनों को एक ही लड़का बेवकूफ बना रहा हो, लेकिन इन्हें समझाना बहुत मुश्किल है. उस ने मन ही मन एक प्लान बनाया और कालेज की छुट्टी के समय दोनों से बोली, ‘‘सुनो, तुम दोनों संडे को मेरे घर आ जाओ, मैं घर पर अकेली हूं, मम्मीपापा कहीं बाहर जा हे हैं.’’

राशी और श्वेता दोनों संडे को 11 बजे अमिता के घर पहुंच गईं. अमिता दोनों के लिए गरमागरम मैगी बना कर लाई. इसी बीच अमिता अपना लैपटौप भी उठा लाई और दोनों से बोली, ‘‘चलो, आज रोहन और संचित से चैटिंग करते हैं.’’

यह सुन कर श्वेता ने जल्दी से अपना फेसबुक अकाउंट ओपेन किया और रोहन से चैटिंग करने लगी.

‘‘सुन, तू उसे यह मत बताना कि मेरी सहेलियां भी साथ हैं. उस से उस के कुछ फोटो मंगा,’’ अमिता ने श्वेता को सलाह दी.

‘‘6 महीने में रोहन को पूरा विश्वास हो गया था कि श्वेता उस के जाल में पूरी तरह फंस चुकी है, इसलिए उस ने अपने कुछ फोटो उसे भेज दिए.’’

फोटो देखते ही राशी चौंक उठी और बोली, ‘‘ये तो संचित के फोटो हैं.’’

अमिता उसे शांत करते हुए बोली, ‘‘चौंक मत, संचित और रोहन अलग न हो कर एक ही शख्स है, यह न तो आर्मी में है और न ही बिजनैसमैन. यह तुम दोनों को अपने अलगअलग नामों से बेवकूफ बना रहा है.’’

‘‘यह तू क्या कह रही है, क्या तू इसे जानती है?’’ राशी ने अमिता से पूछा.

उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ही सोचो, तुम ने अपने बौयफ्रैंड्स को महंगे गिफ्ट भेजे, लेकिन उन्होंने तुम्हें कुछ नहीं दिया, मिलने के मौकों को टाला, यह तो अच्छा है कि तुम दोनों समय रहते बच गईं.’’

‘‘आजकल सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर आएदिन ऐसे किस्से सुनने को मिल रहे हैं. इसलिए इन सब से सावधान रहना चाहिए,’’ उस ने आगे कहा.

‘‘पर मुझे तो रोहन ने अपना एड्रैस दिया था, जिस पर मैं ने गिफ्ट भेजे हैं,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘मेरी भोली सहेली, जब तक तुम उस का पता करने उस के एड्रैस पर पहुंचोगी तब तक वह शातिर वहां से भाग चुका होगा, ऐसे लोग बहुत शातिर होते हैं, इसलिए कभी भी वे एक एड्रैस पर लंबे समय तक नहीं ठहरते. बस, अपना उल्लू सीधा किया और नौदो ग्यारह हो गए.’’ अमिता ने कहा.ॉ

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‘‘कम औन, पहले अपनी ग्रैजुएशन पूरी करो फिर बौयफ्रैंड बनाना,’’ उस ने दोनों को सुझाव दिया.

‘‘तू ठीक कहती है अमिता, तू ने हमें हकीकत से परिचित करवा कर समय रहते बचा लिया, न जाने यह हमें कितना बेवकूफ बनाता,’’ राशी बोली.

‘‘चलो, तुम दोनों किसी अनहोनी से बच गईं अन्यथा ताउम्र उन्हें इस का खमियाजा भुगतना पड़ता. आओ, इसी बात पर पकौड़े बनाते हैं,’’ कह कर अमिता दोनों सहेलियों को ले कर किचन की ओर बढ़ गई.

आगाज: क्या ज्योति को मिल पाया उसका सच्चा प्यार?

कहानी- प्रेमलता यादु

‘‘क्यातुम मेरे इस जीवनपथ की हमराही बनना चाहोगी? क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति आवाक उसे देखती रही. वह समझ ही नहीं पाई क्या कहे? उस ने कभी सोचा नहीं था कि प्रकाश के मन में उस के लिए ऐसी

कोई भावना होगी. उस के स्वयं के हृदय में प्रकाश के लिए इस प्रकार का खयाल कभी नहीं आया.

कई वर्षों से दोनों एकदूजे को जानते हैं. दोनों ने संग में न जाने कितना ही वक्त बिताया है. जब भी उसे कांधे की जरूरत होती. प्रकाश का कंधा सदैव मौजूद होता. ज्योति अपनी हर छोटी से छोटी खुशी

और बड़े से बड़ा दुख इस अनजान शहर में प्रकाश से ही साझा करती.

उन दोनों की दोस्ती गहरी थी. जबजब ज्योति किसी रिलेशनशिप में आती तो प्रकाश को बताती और जब ब्रेकअप होता तब भी वह प्रकाश से ही दुख जाहिर करती.

उस का यह पहला ब्रेकअप नहीं था. लेकिन दिल तो इस बार भी टूटा था. हां, दर्द जरूर थोड़ा कम था. यह सब जानते हुए प्रकाश का आज इस तरह शादी के लिए प्रपोज करना उसे उलझन में डाल गया. वह अपनी कौफी खत्म किए बिना और प्रकाश से कुछ कहे बगैर औफिस कैंटीन से अपने चैंबर में लौट आई. प्रकाश ने भी उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की. ज्योति विचारों के गिरह में उलझने लगी थी.

मरुस्थल के गरम रेत पर चलते हुए ज्योति के पैरों में फफोले आ चुके थे. मृगतृष्णा की तलाश में न जाने वह कब से अकेली भटक रही थी. जिस अमृतरूपी प्रेम का वह रसपान करना चाहती थी, वह प्रेम उसे हर बार एक विष के रूप में मिला. बचपन में मां को खोने के बाद लाड़प्यार को तरसती रही. सौतेली मां का दुर्व्यवहार और दबाव इतना था कि पिता भी उसे दुलार करने से डरते.

ज्योति का सारा बचपन मातापिता के स्नेह से वंचित रहा. फिर जब उसे जिंदगी को अपने ढंग से जीने का अवसर मिला, वह आंखों में रंगीन सपने लिए इस महानगरी मुंबई में आ पहुंची. यहां उसे लगने लगा उस की सच्चे प्यार और जीवनसाथी की तलाश जरूर पूरी होगी. लेकिन जब भी उसे ऐसा लगा कि उस ने अपना सच्चा प्यार पा लिया है, अगले ही पल वह प्रेम, वासना में तबदील हो गया. यों, आज जब प्रकाश उस के सामने एक सच्चे प्यार के रूप में खड़ा है वह क्यों उसे स्वीकार नहीं करना चाह रही? कारण शायद साफ था कि अब वह टूटना नहीं चाहती.

मन में चल रही उलझनों को सुलझाने के लिए सिगरेट सुलगा वह धुआं उड़ाने लगी. धीरेधीरे पूरा पैकेट खत्म होने लगा लेकिन इस धुएं में गुत्थियां खुलने के बजाय उलझने लगीं तो वह धुआं उड़ाती हुई अतीत की गलियों में मुड़ गई. जब उस ने अपने छोटे शहर पटना से एमबीए कर असिस्टैंट मैनेजिंग डायरैक्टर के पद पर इस जगमगाती कौर्पोरेट दुनिया में अपना पहला कदम रखा था. उस दिन से ही वह प्रकाश को जानती है. लेकिन प्रकाश से प्यार… नहीं. नहीं. प्रकाश उस के दिल के बहुत करीब जरूर है लेकिन वह उस से प्यार नहीं करती. प्रकाश उस का सब से अच्छा और सच्चा मित्र है.

उस का पहला प्यार तो पीयूष है, जिसे वह दिल की गहराइयों से चाहती थी और वह भी तो उस का दीवाना था. पीयूष के प्यार में वह इस कदर पागल थी कि दुनिया की परवा करना छोड़ चुकी थी. पीयूष जैसे लड़के की ही तमन्ना उसे थी. जब उसे देखती तो उस की आंखों में डूब जाती. हमउम्र थे दोनों. उस की हर बात ज्योति को दीवाना कर देती. इस पागलपन में उस ने कब अपना सबकुछ उसे समर्पित कर दिया, उसे पता ही नहीं चला. जब होश आया तब तक सब लुट चुका था और पीयूष का असली चेहरा सामने था.

पीयूष ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा था, ‘ज्योति, मैं तुम से प्यार तो करता हूं लेकिन मैं अपने मातापिता के विरुद्ध जा कर तुम्हारा साथ नहीं निभा सकता.’ यह सुनते ही ज्योति के जीवन में सैलाब आ गया था. पीयूष उस का पहला प्यार था जिसे वह अब खो चुकी थी. उस वक्त एक प्रकाश ही था जिस ने उसे इस हलाहल में डूबने से बचाया था. यह सब सोच ज्योति को घुटन महसूस होने लगी. वह घबरा कर खुली हवा में सांस लेने टैरेस पर जा खड़ी हुई.

रात गहरी और काली थी. इस से पहले उसे रात इतनी डरावनी कभी नहीं लगी. रोड पर इक्कादुक्का वाहनों की आवाजाही थी. दिन में कोलाहल से भरा यह शहर यामिनी की गोद में सो रहा था, लेकिन ज्योति के नयनों में निद्रा कहां? उस के मन में तो हलचल मची हुई थी.

पीयूष से मिली बेवफाई के बाद उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह कभी किसी से प्यार नहीं करेगी, किसी पर विश्वास नहीं करेगी. अपने इन्हीं विचारों के साथ जब वह आगे बढ़ चली तभी उस के दिल के किवाड़ पर आयुष नाम की दस्तक हुई और एक बार फिर उस ने अपने दिल का दरवाजा खुलेमन से खोल दिया. लेकिन इस बार वह पूर्णरूप से सतर्क  थी.

धीरेधीरे उसे लगने लगा आयुष का प्रेम जिस्मानी नहीं. लेकिन यह भी भ्रम मात्र था. असल में आयुष का लक्ष्य भी उस के शरीर को ही पाना था. वह मौके की तलाश में था. ज्योति जब उस की असलियत से रूबरू हुई तो दोनों के रास्ते जुदा हो गए और इस बार फिर दिल ज्योति का ही टूटा.

हलकीहलकी ठंड लगने लगी, परंतु ज्योति टैरेस पर ही खड़ी रही. उसे याद है किस तरह आयुष से ब्रेकअप के बाद अवसाद ने उसे अपनी गिरफ्त में इस प्रकार जकड़ा था कि वह सिगरेट और शराब में अपनेआप को डुबोने लगी. इस वजह से औफिस में उस का परफौर्मैंस ग्राफ गिरने लगा. उस वक्त भी प्रकाश ही था जिस ने उसे इस परिस्थिति से उभारा. तब उस के मन में प्रकाश के लिए सम्मान और बढ़ गया.

साथ ही साथ, मन के एक कोने में प्रेम का बीज भी अंकुरित होने लगा जिसे वह दफना देना चाहती थी क्योंकि वह प्रकाश को खोना नहीं चाहती और न ही वह अपनेआप को उस के काबिल समझती है. यही कारण है कि उस ने अब तक प्रकाश से कुछ नहीं कहा.

आयुष के बाद चिराग पतझड़ में वसंत की बहार बन कर आया, जो उस की सारी सचाई जानते हुए उसे अपनाना चाहता था. लेकिन, उस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि चिराग की यह शर्त थी कि उसे अपने अतीत के साथसाथ प्रकाश को भी हमेशा के लिए भुला उस के संग चलना होगा. ज्योति किसी शर्त के साथ रिश्ते में नहीं बंधना चाहती थी, और फिर मोहब्बत में कैसी शर्त?

वह प्रकाश को किसी भी हाल में खोने को तैयार नहीं थी. फिर आज जब प्रकाश सदा के लिए उस का हो जाना चाहता है तो वह क्यों शादी के लिए हां नहीं कह पाई? बेशक, प्रकाश देखने में साधारण था, लेकिन बोलने में ऐसी कशिश थी कि उस के आगे उस का रंगरूप माने नहीं रखता था.

तभी उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. वह घबरा कर मुड़ी, सामने प्रकाश खड़ा था. प्रकाश उस के हाथों से सिगरेट ले कर फेंकते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें इन सब से दूर रहने को कहा था न, और तुम…,’’ प्रकाश अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि ज्योति उस से लिपट फफकफफक कर रोने लगी. फिर खुद को प्रकाश से अलग कर उस की ओर पीठ करती हुई बोली, ‘‘तुम यहां से चले जाओ, प्रकाश. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. तुम्हारे मुझ पर पहले ही बहुत एहसान हैं. पर बस… अब और नहीं. वैसे भी तुम जानते हो, मैं तुम्हारे लायक नहीं.’’

ज्योति की बातें सुन प्रकाश उसे अपनी ओर खींचते हुए बोला, ‘‘तुम ने ऐसा कैसे सोच लिया कि तुम मेरे लायक नहीं. तुम तो उन सब के साथ पाक दिल से चली थीं, नापाक तो उन के इरादे थे जिन्होंने तुम्हें मलिन किया. शादी के लिए जब लड़के का वर्जिन होना अनिवार्य नहीं, तो लड़की का होना जरूरी कैसे हो सकता है? शादी के लिए जरूरी होता है अपने जीवनसाथी के प्रति दिल से समर्पित होना, वफादार होना, जो तुम हो.’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति प्रकाश की बांहों में सिमट गई. काली अंधेरी रात बीत चुकी थी. ऊषा की पहली सुनहरी किरणें दोनों पर पड़ने लगीं जो नई सुबह का आगाज थीं.

स्वयंवर: मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.

सुलभा ने दीपिका के बारे में अचानक यह घोषणा कर दी थी कि उस के मांबाप को बिना किसी परिश्रम और दानदहेज की शर्त के दीपिका के लिए अच्छाखासा चार्टर्ड अकाउंटैंट वर मिल गया है. दीपिका के तो मजे ही मजे हैं. 10 हजार रुपए वह कमाएगा और 4-5 हजार दीपिका, 15 हजार की आमदनी दिल्ली में पतिपत्नी के ऐशोआराम के लिए बहुत है.

दीपिका के बारे में सुलभा की इस घोषणा ने अचानक ही मीता को अपनी बढ़ती उम्र के प्रति सचेत कर दिया. सब के साथ वह हंसीबोली तो जरूर परंतु वह स्वाभाविक हंसी और चहक अचानक ही गायब हो गई और उस के भीतर एक कशमकश सी जारी हो गई.

जब तक मीता इंस्टिट्यूट में पढ़ रही थी और टेक्सटाइल डिजाइनिंग की डिगरी ले रही थी, मातापिता उस की शादी को ले कर बहुत परेशान थे. लेकिन जब वह दिल्ली की इस फैशन डिजाइनिंग कंपनी में 4 हजार रुपए की नौकरी पा गई और अकेली मजे से यहां एक छोटा सा फ्लैट ले कर रहने लगी, तब से वे लोग भी कुछ निश्ंिचत से हो गए.

मीता जानती है, उस के मातापिता बहुत दकियानूसी नहीं हैं. अगर वह किसी उपयुक्त लड़के का स्वयं चुनाव कर लेगी तो वे उन के बीच बाधा बन कर नहीं खड़े होंगे. परंतु यही तो उस के सामने सब से बड़ा संकट था. नौकरी करते हुए उसे यह तीसरा साल था और उस के साथ की कितनी ही लड़कियां शादी कर चुकी थीं. वे अब अपने पतियों के साथ मजे कर रही थीं या शहर छोड़ कर उन के साथ चली गई थीं. एक मीता ही थी जो अब तक इस पसोपेश में थी कि क्या करे, किसे चुने, किसे न चुने.

ऐसा नहीं था कि कहीं गुड़ रखा हो और चींटों को उस की महक न लगे और वे उस की तरफ लपकें नहीं. अपने इस खयाल पर मीता बरबस ही मुसकरा भी दी, हालांकि आज उस का मुसकराने का कतई मन नहीं हो रहा था.

राखाल बाबू प्राय: रोज ही उसे कंपनी बस से रास्ते में लौटते हुए मिलते हैं. एकदम शालीन, सभ्य, शिष्ट, सतर्क, मीता की परवा करने वाले, उस की तकलीफों के प्रति एक प्रकार से जिम्मेदारी अनुभव करने वाले, बुद्धिजीवी किस्म के, कम बोलने वाले, ज्यादा सुननेगुनने वाले. समाज की हर गतिविधि पर पैनी नजर. आंखों पर मोटे लैंस का चश्मा, गंभीर सा चेहरा, ऊंचा ललाट, कुछ कम होते जा रहे बाल. सदैव सफेद कमीज और सफेद पैंट ही पहनने वाले. जेब में लगा कीमती कलम, हाथ में पोर्टफोलियो के साथ दबे कुछ अखबार, पत्रिकाएं, किताबें.

जब तक मीता आ कर उन की सीट के पास खड़ी न हो जाती, वे बेचैन से बाहर की ओर ताकते रहते हैं. जैसे ही वह आ खड़ी होती है, वे एक ओर को खिसक कर उस के बैठने लायक जगह हमेशा बना देते हैं. वह बैठती है और नरम सी मुसकराहट उस के अधरों पर उभर आती है.

ऐसा नहीं है कि वे हमेशा असामान्य सी बातें करते हैं, परंतु मीता ने पाया है, वे अकसर सामान्य लोगों की तरह लंपटतापूर्ण न व्यवहार करते हैं, न बातें. उन के हर व्यवहार में एक गरिमा रहती है. एक श्रेष्ठता और सलीका रहता है. एक प्रकार की बहुत बारीक सी नफासत.

‘‘कहो, आज का दिन कैसा बीता…?’’ वे बिना उस की ओर देखे पूछ लेते हैं और वह बिना उन की ओर देखे जवाब दे देती है, ‘‘रोज जैसा ही…कुछ खास नहीं.’’

‘‘मीता, कैसी अजीब होती है यह जिंदगी. इस में जब तक रोज कुछ नया न हो, जाने क्यों लगता ही नहीं कि आज हम जिए. क्यों?’’ वे उत्तर के लिए मीता के चेहरे की रगरग पर अपनी पैनी नजरों से टटोलने लगते हैं, ‘‘जानती हो, मैं ने अखबारों से जुड़ी जिंदगी क्यों चुनी…? महज इसी नएपन के लिए. हर जगह बासीपन है, सिवा अखबारों के. यहां रोज नई घटनाएं, नए हादसे, नई समस्याएं, नए लोग, नई बातें, नए विचार…हर वक्त एक हलचल, एक उठापटक, एक संशय, संदेह भरा वातावरण, हर वक्त षड्यंत्र, सत्ता का संघर्ष. अपनेआप को बनाए रखने और टिकाए रखने की जीतोड़ कोशिशें… मित्रों के घातप्रतिघात, आघात और आस्तीनों के सांपों का हर वक्त फुफकारना… तुम अंदाजा नहीं लगा सकतीं मीता, जिंदगी में यहां कितना रोमांच, कितनी नवीनता, कितनी अनिश्चितता होती है…’’

‘‘लेकिन आप के धीरगंभीर स्वभाव से आप का यह कैरियर कतई मेल नहीं खाता…कहां आप चीजों पर विभिन्न कोणों से गंभीरता से सोचने वाले और कहां अखबारों में सिर्फ घटनाएं और घटनाएं…इन के अलावा कुछ नहीं. आप को उन घटनाओं में एक प्रकार की विचारशून्यता महसूस नहीं होती…? आप को नहीं लगता कि जो कुछ तेजी से घट रहा है वह बिना किसी सोच के, बिना किसी प्रयोजन के, बेकार और बेमतलब घटता चला जा रहा है?’’

‘‘यहीं मैं तुम से भिन्न सोचता हूं, मीता…’’

‘‘आजकल की पत्रपत्रिकाओं में तुम क्या देख रही हो…? एक प्रकार की विचारशून्यता…मैं इन घटनाओं के पीछे व्याप्त कारणों को तलाशता हूं. इसीलिए मेरी मांग है और मैं अपनी जगह बनाने में सफल हुआ हूं. मेरे लिए कोई घटना महज घटना नहीं है, उस के पीछे कुछ उपयुक्त कारण हैं. उन कारणों की तलाश में ही मुझे बहुत देर तक सोचते रहना पड़ता है.

‘‘तुम आश्चर्य करोगी, कभीकभी चीजों के ऐसे अनछुए और नए पहलू उभर कर सामने आते हैं कि मैं भी और मेरे पाठक भी एवं मेरे संपादक भी, सब चकित रह जाते हैं. आखिर क्यों…? क्यों होता है ऐसा…?

‘‘इस का मतलब है, हम घटनाओं की भीड़ से इतने आतंकित रहते हैं, इतनी हड़बड़ी और जल्दबाजी में रहते हैं कि इन के पीछे के मूल कारणों को अनदेखा, अनसोचा कर जाते हैं जबकि जरूरत उन्हें भी देखने और उन पर भी सोचने की होती है…’’

राखाल बाबू किसी भी घटना के पक्ष में सोच लेते हैं और विपक्ष में भी. वे आरक्षण के जितने पक्ष में विचार प्रस्तुत कर सकते थे, उस से ज्यादा उस के विपक्ष में भी सोच लेते थे. गजरौला के कानवैंट स्कूल की ननों के साथ घटी बलात्कार और लूट की घटना को उन्होंने महज घटना नहीं माना. उस के पीछे सभ्यता और संस्कृति से संपन्न वर्ग के खिलाफ, उजड्ड, वहशी और बर्बर लोगों का वह आदिम व्यवहार जिम्मेदार माना जो आज भी आदमी को जानवर बनाए हुए है.

मीता राखाल बाबू से नित्य मिलती और प्राय: नित्य ही उन के नए विचारों से प्रभावित होती. वह सोचती रह जाती, यह आदमी चलताफिरता विचारपुंज है. इस के साथ जिंदगी जीना कितना स्तरीय, कितना श्रेष्ठ और कितना अच्छा होगा. कितना अर्थपूर्ण जीवन होगा इस आदमी के साथ. वह महीनों से राखाल बाबू की कल्पनाओं में खोई हुई है. कितना अलग होगा उस का पति, सामान्य सहेलियों के साधारण पतियों की तुलना में. एक सोचनेसमझने वाला, चिंतक, श्रेष्ठ पुरुष, जिसे सिर्फ खानेपीने, मौज करने और बिस्तर पर औरत को पा लेने भर से ही मतलब नहीं होगा, जिस की जिंदगी का कुछ और भी अर्थ होगा.

लेकिन दूसरे क्षण ही मीता को अपनी कंपनी के निर्यात प्रबंधक विजय अच्छे लगने लगते. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, करीने से रखी गई दाढ़ी. चमकदार, तेज आंखें. हर वक्त आगे और आगे ही बढ़ते जाने का हौसला. व्यापार की प्रगति के लिए दिनरात चिंतित. कंपनी के मालिक के बेहद चहेते और विश्वासपात्र. खुला हुआ हाथ. खूब कमाना, खूब खर्चना. जेब में हर वक्त नोटों की गड्डियां और उन्हें हथियाने के लिए हर वक्त मंडराने वाली लड़कियां, जिन में एक वह खुद…

‘‘मीता, चलो आज 12 से 3 वाला शो देखते हैं.’’

‘‘क्यों साहब, फिल्म में कोई नई बात है?’’

मीता के चेहरे पर मुसकराहट उभरती है. जानती है, विजय जैसा व्यस्त व्यक्ति फिल्म देखने व्यर्थ नहीं जाएगा और लड़कियों के साथ वक्त काटना उस की आदत नहीं.

‘‘और क्या समझती हो, मैं बेकार में 3 घंटे खराब करूंगा…? उस में एक फ्रैंच लड़की है, क्या अनोखी पोशाक पहन रखी है, देखोगी तो उछल पड़ोगी. मैं चाहता हूं कि तुम उस में कुछ और नया प्रभाव पैदा कर उसे डिजाइन करो… देखना, यह एक बहुत बड़ी सफलता होगी.’’

कितना फर्क है राखाल बाबू में और विजय में. एक जिंदगी के हर पहलू पर सोचनेविचारने वाला बुद्धिजीवी और एक अलग किस्म का आदमी, जिस के साथ जीवन जीने का मतलब ही कुछ और होगा. नए से नए फैशन का दीवाना. नई से नई पोशाकों की कल्पना करने वाला, हर वक्त पैसे से खेलने वाला…एक बेहद आकर्षक और निरंतर आगे बढ़ते चले जाने वाला नौजवान, जिसे पीछे मुड़ कर देखना गवारा नहीं. जिसे एक पल ठहर कर सोचने की फुरसत नहीं.

तीसरा राकेश है, राजनीति विज्ञान का विद्वान. पड़ोस की चंद्रा का भाई. अकसर जब यहां आता है तो होते हैं उस के साथ उस के ढेर सारे सपने, तमाम तमन्नाएं. अभी भी उस के चेहरे पर न राखाल बाबू वाली गंभीरता है, न विजय वाली व्यस्तता. बस आंखों में तैरते बादलों से सपने हैं. कल्पनाशील चेहरा एकदम मासूम सा.

‘‘अब क्या इरादा है, राकेश?’’ एक दिन उस ने यों ही हंसी में पूछ लिया था.

‘‘इजाजत दो तो कुछ प्रकट करूं…’’ वह सकुचाया.

‘‘इजाजत है,’’ वह कौफी बना लाई थी.

‘‘अपने इरादे हमेशा नेक और स्पष्ट रहे हैं, मीताजी,’’ राकेश ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘पहला इरादा तो आईएएस हो जाना है और वह हो कर रहूंगा, इस बार या अगली बार. दूसरा इरादा आप जैसी लड़की से शादी कर लेने का है…’’

राकेश एकदम ऐसे कह देगा इस की मीता को कतई उम्मीद नहीं थी. एक क्षण को वह अचकचा ही गई, पर दूसरे क्षण ही संभल गई, ‘‘पहले इरादे में तो पूरे उतर जाओगे राकेश, लेकिन दूसरे इरादे में तुम मुझे कच्चे लगते हो. जब आईएएस हो जाओगे और कोरा चैक लिए लड़की वाले जब तुम्हें तलाशते डोलेंगे तो देखने लगोगे कि किस चैक पर कितनी रकम भरी जा सकती है. तब यह 4 हजार रुपल्ली कमाने वाली मीता तुम्हें याद नहीं रहेगी.’’

‘‘आजमा लेना,’’ राकेश कह उठा, ‘‘पहले अपने प्रथम इरादे में पूरा हो लूं, तब बात करूंगा आप से. अभी से खयाली पुलाव पकाने से क्या फायदा?’’

एक दिन दिल्ली में आरक्षण विरोध को ले कर छात्रों का उग्र प्रदर्शन चल रहा था और बसों का आनाजाना रुक गया था. बस स्टाप पर बेतहाशा भीड़ देख कर मीता सकुचाई, पर दूसरे ही क्षण उसे अपनी ओर आते हुए राखाल बाबू दिखाई दिए, ‘‘आ गईं आप…? चलिए, पैदल चलते हैं कुछ दूर…फिर कहीं बैठ कर कौफी पीएंगे तब चलेंगे…’’

एक अच्छे रेस्तरां में कोने की एक मेज पर जा बैठे थे दोनों.

‘‘जीवन में क्या महत्त्वपूर्ण है राखाल बाबू…?’’ उस ने अचानक कौफी का घूंट भर कर प्याले की तरफ देखते हुए उन पर सवाल दागा था, ‘‘एक खूब कमाने वाला आकर्षक पति या एक आला दर्जे का रुतबेदार अफसर अथवा जीवन पर विभिन्न कोणों से हर वक्त विचार करते रहने वाला एक चिंतक…एक औरत इन में से किस के साथ जीवन सुख से बिता सकती है, बताएंगे आप…?’’

एक बहुत ही अहम सवाल मीता ने

राखाल बाबू से पूछ लिया था जिस

सवाल का उत्तर वह स्वयं अपनेआप को कई दिनों से नहीं दे पा रही थी. वह पसोपेश में थी, क्या सही है, क्या गलत? किसे चुने? किसे न चुने?

राखाल बाबू को वह बहुत अच्छी तरह समझ गई थी. जानती थी, अगर वह उन की ओर बढ़ेगी तो वे इनकार नहीं करेंगे बल्कि खुश ही होेंगे. विजय ने तो उस दिन सिनेमा हौल में लगभग स्पष्ट ही कर दिया था कि मीता जैसी प्रतिभाशाली फैशन डिजाइनर उसे मिल जाए तो वह अपनी निजी फैक्टरी डाल सकता है और जो काम वह दूसरों के लिए करता है वह अपने लिए कर के लाखों कमा सकता है. और राकेश…? वह लिखित परीक्षा में आ गया है, साक्षात्कार में भी चुन लिया जाएगा, मीता जानती है. लेकिन इन तीनों को ले कर उस के भीतर एक सतत द्वंद्व जारी है. वह तय नहीं कर पा रही, किस के साथ वह सुखी रह सकती है, किस के साथ नहीं…?

बहुत देर तक चुपचाप सोचते रहे राखाल बाबू. अपनी आदत के अनुसार गरम कौफी से उठती भाप ताकते हुए अपने भीतर कहीं डूबे रहे देर तक. जैसे भीतर कहीं शब्द ढूंढ़ रहे हों…

‘‘मीता…महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि इन में से औरत किस के साथ सुखी रह सकती है…महत्त्वपूर्ण यह है कि इन में से कौन है जो औरत को सचमुच प्यार करता है और करता रहेगा. औरत सिर्फ एक उपभोग की वस्तु नहीं है मीता. वह कोई व्यापारिक उत्पादन नहीं है…न वह दफ्तर की महज एक फाइल है, जिसे सरसरी नजर से देख कर आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा दिया जाए. जीवन में हर किसी को सबकुछ तो नहीं मिल सकता मीता…अभाव तो बने ही रहेंगे जीवन में…जरूरी नहीं है कि अभाव सिर्फ पैसे का ही हो. दूसरों की थाली में अपनी थाली से हमेशा ज्यादा घी किसी न किसी कोण से आदमी को लगता ही रहेगा…ऐसी मृगतृष्णा के पीछे भागना मेरी समझ से पागलपन है. सब को सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ अगर मिल जाए तो हमें संतोष करना सीखना चाहिए.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, आदमी के लिए सिर्फ बेतहाशा भागते जाना ही सब कुछ नहीं है…दिशाहीन दौड़ का कोई मतलब नहीं होता. अगर हमारी दौड़ की दिशा सही है तो हम देरसवेर मंजिल तक भी पहुंचेंगे और सहीसलामत व संतुष्ट होते हुए पहुंचेंगे. वरना एक अतृप्ति, एक प्यास, एक छटपटाहट, एक बेचैनी जीवन भर हमारे इर्दगिर्द मंडराती रहेगी और हम सतत तनाव में जीते हुए बेचैन मौत मर जाएंगे.

‘‘मैं नहीं जानता कि तुम मेरी इन बातों से किस सीमा तक सहमत होगी, पर मैं जीवन के बारे में कुछ ऐसे ही सोचता हूं…’’

और मीता को लगा कि वह जीवन के सब से आसन्न संकट से उबर गई है. उसे वह महत्त्वपूर्ण निर्णय मिल गया है जिस की उसे तलाश थी. एक सतत द्वंद्व के बाद उस का मन एक निश्छल झील की तरह शांत हो गया और जब वह रेस्तरां से बाहर निकली तो अनायास ही उस ने अपना हाथ राखाल बाबू के हाथ में पाया. उस ने देखा, वे उसे एक स्कूटर की तरफ खींच रहे हैं, ‘‘चलो, बस तो मिलेगी नहीं, तुम्हें घर छोड़ दूं.’’

आशिकी: पत्नी की गैरमौजूदगी में क्या लड़कियों से फ्लर्ट कर पाया नमन?

औफिस से आते समय गाना सुनते हुए कार चलाते नमन का मूड बहुत रोमांटिक हो गया. पत्नी तनु का खयाल आया, साथ ही अपनी फ्लोर पर एक फ्लैट शेयर कर के रहने वाली अंजलि, निया, रोली और काजल का भी खयाल आया तो घर जाने का उत्साह और भी बढ़ गया.

5 साल पहले नमन का विवाह तनु से हुआ था. दोनों ही लखनऊ में थे. यहां मुंबई में नमन जौब करता था. चारों लड़कियों से आतेजाते तनु की अच्छी जानपहचान हो गई थी. सब कामकाजी थीं पर छुट्टी के दिन जब भी कोई फ्री होती तो तनु के पास आनाजाना लगा रहता था. तनु कुछ स्पैशल बनाती तो इन के लिए भी रख लेती थी.

नमन और तनु की एक 3 वर्षीय बेटी भी थी सिया. तनु की गोद में प्यारी सी गुडि़या जैसी सिया से बोलते, हंसतेखेलते चारों लड़कियां तनु के भी करीब आती गई थीं. दिलफेंक, आशिकमिजाज नमन इन चारों लड़कियों में बड़ी रुचि लेने लगा था.

रोली एक दिन औफिस नहीं गई थी. नमन शाम को औफिस से आया तो वह तनु के साथ बैठ कर चाय पी रही थी. नमन उसे देखते ही खुश हो गया और उन दोनों के साथ ही बैठ कर चहकचहक कर बातें करने लगा.

रोली ने हंस कर कहा भी, ‘‘लग ही नहीं रहा है आप औफिस से आए हैं. इतने फ्रैश?’’

नमन ने मन ही मन सोचा कि फ्रैश तो तुम्हें देख कर हुआ हूं. नमन यही चाहता था कि इन चारों में से किसी न किसी से मिलनाजुलना होता रहे. चारों सुंदर, स्मार्ट थीं. तनु अकसर सिया के साथ व्यस्त होती. इन चारों में से कोई भी लड़की किसी काम से आ जाती और नमन घर पर होता तो वह आगे बढ़ कर खुद ही उन की आवभगत में लग जाता था. तनु सोचती कि वह सिया के साथ व्यस्त है तो नमन मेहमान की आवभगत कर उस की जिम्मेदारी में हाथ बंटाता है.

नमन का झुकाव इन लड़कियों की तरफ बढ़ता ही जा रहा था. घर में ही नहीं, औफिस में भी नमन का यही हाल था. साथ में काम करने वाली लड़कियों के साथ खूब फ्लर्ट करता था. कभी किसी लड़की को कौफी औफर करता, कभी किसी का घर रास्ते में न पड़ने पर भी उसे घर तक छोड़ देता. तनु अपने पति के इस स्वभाव को गंभीरता से न लेती. वह सोचती, नमन काफी सोशल है, क्या बुरा है इस में. हमारे कौन से रिश्तेदार हैं यहां. ये कुछ दोस्त ही तो हैं.

एक दिन सिया को ले कर तनु किसी बर्थडे पार्टी में गई हुई थी. नमन औफिस से

आया. ताला लगा था. उस के पास चाबी तो रहती थी पर जब उस ने इन लड़कियों का फ्लैट खुला देखा तो मन में कुछ और ही सोच लिया. उन की डोरबैल बजा दी तो दरवाजा काजल ने खोला.

नमन ने भोली सूरत बना कर पूछा, ‘‘सिया और तनु यहां तो नहीं हैं?’’

‘‘नहीं तो?’’

‘‘ओह.’’

‘‘घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘नहीं, मेरे पास चाबी रहती तो है पर आज घर पर ही छोड़ गया था, वह मोबाइल भी नहीं उठा रही है. खैर, आ जाएगी.’’

‘‘आप अंदर आ जाइए, वेट कर लीजिए.’’

नमन यही तो चाहता था. अंदर जा कर चारों तरफ नजर डाली. यहां पहली बार आया था.

काजल से पूछा, ‘‘आज आप औफिसनहीं गईं?’’

‘‘हाफ डे ले कर आ गई थी. तबीयत ठीक नहीं लग रही थी.’’

‘‘अरे, क्या हुआ? चलो, डाक्टर को दिखाते हैं पास ही है.’’

‘‘नहींनहीं, थैंक्स. दवा ले ली है. अभी ठीक हूं. आप के लिए कुछ बना दूं. चाय या कौफी?’’

नमन मन ही मन काजल के साथ समय बिताता हुआ बहुत खुश था. प्रत्यक्षत: गंभीरतापूर्वक बोला, ‘‘नहीं, रहने दें. आप आराम कीजिए.’’

उस के मना करने पर भी काजल कौफी बना ही लाई.

नमन खुश था, एक युवा, सुंदर लड़की की कंपनी में. उस के चेहरे की चमक बढ़ गई थी. कौफी की तारीफ कर काजल से उस के काम, परिवार के बारे में पूछता रहा. काजल सहजता से बात करती रही. नमन के हौसले और बुलंद हो गए. इतने में निया, अंजलि भी आ गईं. दोनों नमन से खुशमिजाजी से मिलीं. नमन इन लड़कियों की संगति में स्वयं को एक हीरो जैसा अनुभव कर रहा था.

फ्लोर पर सिया की आवाज सुन नमन ने कहा, ‘‘तनु आ गई. चलता हूं. आज आप लोगों के साथ टाइम का पता ही नहीं चला. थैंक्स,’’ कहता हुआ नमन उन के फ्लैट से निकल गया. उसे देखते ही तनु चौंकी, ‘‘अरे, तुम कब आए?’’

‘‘तुम कहां थीं?’’

‘‘ऊपर की फ्लोर पर ही एक बच्चे की बर्थडे पार्टी थी. सोचा था तुम्हारे आने तक आ जाऊंगी, पर तुम्हारे पास तो घर की एक चाबी है न?’’

नमन ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, मैं ने अपनी चाबी कहां रख दी. ऐसे ही बाहर खड़ा था तो ये लड़कियां जबरदस्ती अंदर ले गईं.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं, तुम्हारे लिए चाय बना दूं?’’

‘‘नहीं, रहने दो. उन लड़कियों ने ही पिला दी,’’ कहता हुआ नमन अपनी अलमारी में झूठमूठ ही सामान इधरउधर करता हुआ बोला, ‘‘उफ, यहां रख दी थी मैं ने चाबी. बेकार ही उन के घर जाना पड़ा.’’

सुबह ही तनु के भाई का लखनऊ से फोन आ गया. उस की मम्मी की तबीयत खराब थी. तनु घबरा गई.

नमन ने कहा, ‘‘परेशान मत हो, जा कर देख आओ. फ्लाइट की टिकट बुक कर देता हूं,’’ कह नमन ने मन ही मन पता नहीं कितने प्लान बना डाले तनु के जाने के बाद लड़कियों के साथ जी भर कर टाइमपास करेगा. बहुत उत्साहपूर्वक वह सिया और तनु को एअरपोर्ट छोड़ आया.

फ्लोर पर 4 फ्लैट थे. एक फ्लैट में एक साउथइंडियन बुजुर्ग दंपती रहते थे

जो किसी से मतलब नहीं रखते थे. चौथा फ्लैट बंद पड़ा था. नमन ने रात को 8 बजे लड़कियों के फ्लैट की डोरबैल बजाई.

दरवाजा निया ने खोला, ‘‘अरे, नमनजी, आप?’’

‘‘सौरी, पर थोड़ी कौफी है क्या?’’

‘‘क्या हुआ? तनु नहीं हैं?’’

‘‘उस की मम्मी बीमार हैं. उसे आज अचानक लखनऊ जाना पड़ा. मेरे सिर में बहुत दर्द है. सोचा कौफी बना लूं. देखा तो कौफी खत्म थी.’’

‘‘ओके,’’ कह निया अंदर जा 2 पाउच ले कर आई. फिर देते हुए बोली, ‘‘ये लीजिए.’’

जब निया ने अंदर आने के लिए नहीं कहा तो नमन झुंझलाता हुआ घर लौट आया. सोच रहा था, ‘यह तो पहला आइडिया ही फेल हो गया. बेवकूफ लड़की. अंदर ही नहीं बुलाया. कौफी ही औफर कर देती. पैकेट पकड़ा दिए, हुंह.’

अगली सुबह नमन बै्रड बटर खा कर औफिस के लिए निकला तो लिफ्ट में वह और रोली साथ ही घुसे. रोली ने तनु की मम्मी की तबीयत के बारे में पूछा. फिर ऐसे ही मुसकराते हुए पूछा, ‘‘और सब कैसा चल रहा है… अकेले मैनेज करते हैं?’’

नमन के दिल में आशा की एक किरण जगी. फौरन मुंह लटका लिया, ‘‘मुझे तो कुछ बनाना आता भी नहीं है. अभी औफिस की कैंटीन में जा कर नाश्ता करूंगा…’’

लिफ्ट से बाहर निकल कर ‘गुड’ कह मुसकराते हुए रोली यह जा, वह जा. नमन को बड़ा धक्का लगा कि कैसी हैं ये लड़कियां. इतने मैनर्स भी नहीं हैं.

दिन भर फिर मन ही मन सोच रहा था कि किसकिस बहाने से लड़कियों के करीब रहा जा सकता है. तनु पहली बार ही अकेली गई थी. अब तक वह भी साथ ही आताजाता था. अकेले रहने के इस मौके को वह ऐंजौय करना चाहता था.

औफिस में अनमैरिड कुलीग आयुषि से नमन ने लंचटाइम में कहा, ‘‘तनु बाहर गई है, आज टिफिन नहीं लाया हूं. चलो, आज बाहर लंच करते हैं.’’

आयुषि के आसपास वह जानबूझ कर रहा करता था. हाजिरजवाब आयुषि ने हंस कर कहा, ‘‘नहीं भाई, मैरिड आदमी के साथ क्या लंच पर जाना.’’

नमन को उस पर बहुत गुस्सा आया पर कुछ कह नहीं पाया. मगर नमन ने हार नहीं मानी. वह जानता था कि आयुषि अकेली रहती है. उसे मूवी का भी शौक है. एक दिन फिर कहा, ‘‘आयुषि, मूवी देखने चलें?’’

‘‘तनु अभी नहीं आई?’’

‘‘नहीं, बोर हो रहा हूं, चलो न.’’

‘‘सौरी नमन. मूड नहीं है.’’

नमन ने काफी आग्रह किया पर आयुषि नहीं मानी.

तनु को गए 4 दिन हुए थे. कितनी ही बार उस ने घर पर बहानेबहाने से रोली और बाकी लड़कियों से बातें करने, आगे संपर्क बढ़ाने के बहाने ढूंढ़ें पर बुरी तरह असफल रहा. सब उसे देख कर कन्नी काट जातीं. किसी ने भी उसे प्रोत्साहन नहीं दिया.

अब वह हैरान था. अकेली रहती हैं, तनु से अच्छे संबंध हैं, सिया से आतेजाते खेलती हैं, उस से क्या परेशानी है इन्हें. जरा सा भी टाइम उस से बात करने के लिए जैसे होता ही नहीं. अब तो समझ आने लगा है कि उसे नजरअंदाज करती हैं. ‘कोई फालतू बात नहीं’ का संदेश देते हुए आगे बढ़ जाती हैं. कितनी चालाक हैं ये आजकल की लड़कियां… जैसे मेरे मन के भाव पढ़ लिए सब ने.

नमन अकेला बैठा बहुत बोर हो रहा था. आसपास की लड़कियों के साथ फ्लर्ट करने का सपना चकनाचूर हो गया था. सारी आशिकी हवा हो चुकी थी. अचानक तनु को फोन मिला दिया था, ‘‘अगर मम्मी ठीक हैं, तो जल्दी लौट आओ. तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा है.’’

New Year Special: हैप्पी न्यू ईयर- निया को ले कर माधवी की सोच उस रात क्यों बदल गई

निया औफिस के लिए तैयार हो रही थी. माधवी वैसे तो ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ रही थीं पर उन का पूरा ध्यान अपनी बहू निया की ओर ही था. लंबी, सुडौल देहयष्टि, कंधों तक कटे बाल, अच्छे पद पर कार्यरत अत्याधुनिक निया उन के बेटे विवेक की पसंद थी. माधवी को भी इस प्रेमविवाह में आपत्ति करने का कोई कारण नहीं मिला था. इतनी समझ तो वे भी रखती हैं कि इकलौते योग्य बेटे ने यों ही कोई लड़की पसंद नहीं की होगी. उन्होंने मूक सहमति दे दी थी पर पता नहीं क्यों उन्हें निया से दिल से एक दूरी महसूस होती थी. वे स्वयं उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में अकेली रहती थीं. पति श्याम सालों पहले साथ छोड़ गए थे.

विवेक की नौकरी मुंबई में थी. उस ने जब भी साथ रहने के लिए कहा था, माधवी ने यह कह कर टाल दिया था, ‘‘सारा जीवन यहीं तो बिताया है, पासपड़ोस है, संगीसाथी हैं. वहां

मुंबई में शायद मेरा मन न लगे. तुम दोनों तो औफिस में रहोगे दिन भर. अभी ऐसे ही चलने दो, जरूरत हुई तो तुम्हारे पास ही आऊंगी. और कौन है मेरा.’’

साल में एकाध बार वे मुंबई आ जाती हैं पर यहां उन का मन सचमुच नहीं लगता. दोनों दिन भर औफिस रहते, घर पर भी लैपटौप या फोन पर व्यस्त दिखते. साथ बैठ कर बातें करने का समय दोनों के पास अकसर नहीं होता. ऊपर से निया का मायका भी मुंबई में ही था. कभी वह मायके चली जाती तो घर उन्हें और भी खाली लगता.

नया साल आने वाला था. इस बार वे मुंबई आई हुई थीं. निया ने भी फोन पर कहा था, ‘‘यहां आना ही आप के लिए ठीक होगा. मेरठ की ठंड से भी आप बच जाएंगी.’’

निया से उन के संबंध कटु तो बिलकुल भी नहीं थे पर निया उन से बहुत कम बात करती थी. माधवी को लगता था कि शायद विवेक उन्हें जबरदस्ती मुंबई बुला लेता है और निया को शायद उन का आना पसंद न हो. निया की सोच बहुत आधुनिक थी.

‘‘पतिपत्नी दोनों कामकाजी हों तो घरबाहर दोनों के काम दोनों मिल कर ही संभालते हैं,’’ यह माधवी ने निया के मुंह से सुना था तो उस की स्पष्टवादिता पर बड़ी हैरान हुई थीं.

निया को वे मन ही मन खूब जांचतीपरखती और उस की बातों पर मन ही मन हैरान सी रह जातीं. सोचतीं, अजीब मुंहफट लड़की है. आधुनिकता और आत्मनिर्भरता ने इन लड़कियों का दिमाग खराब कर दिया है.

कल ही कह रही थी, ‘‘विवेक, मैं बहुत थक गई हूं. तुम ही सब का खाना लगा लो.’’

उन्हें तो थकेहारे बेटे पर तरस ही आ गया. फौरन कहा, ‘‘अरे, तुम दोनों आराम से फ्रैश हो लो. मैं खाना लगा लूंगी. श्यामा सब बना कर तो रख ही गई है. बस, लगाना ही तो है,’’ और फिर उन्होंने सब का खाना टेबल पर लगाया.

पिछले संडे को सुबह उठते ही कह रही थी, ‘‘विवेक, आज पूरा दिन रैस्ट का मूड है, श्यामा के हाथ के खाने का मूड नहीं है. नाश्ता बाहर से ले आओ और लंच भी और्डर कर देना.’’

माधवी ने पूछ लिया, ‘‘निया, मैं बना दूं कुछ?’’

निया ने हमेशा की तरह संक्षिप्त सा उत्तर दिया, ‘‘नहीं मां, आप रैस्ट कीजिए.’’

मुझ से तो पता नहीं क्यों इतना कम बोलती है यह लड़की. अभी 2 साल ही तो हुए हैं विवाह को. सासबहू वाला कोई झगड़ा भी कभी नहीं हुआ, फिर इतनी गंभीर क्यों रहती है. ऐसा भी क्या सोचसमझ कर बात करना, माधवी अपनी सोच के दायरे में उलझी सी रहतीं.

माधवी को मुंबई आए 10 दिन हो रहे थे. निया नए साल पर सब दोस्तों को घर पर बुला कर पार्टी करने के मूड में थी. विवेक भी खूब उत्साहित था. पर अगले ही पल क्या हो जाए, किसे पता होता है. शाम को अचानक बाथरूम में माधवी का पैर फिसला तो वे चीख पड़ीं. विवेक और निया भागे आए. दर्द की अधिकता से माधवी के आंसू बह निकले थे. उन्हें फौरन हौस्पिटल ले जाया गया. पैर में फ्रैक्चर हो गया था. प्लास्टर चढ़ाया गया.

माधवी को इस बेबसी में रोना आ रहा था. घर आ कर भी 2-3 दिन सो न सकीं. बड़ी बेचैन थीं. डाक्टर को घर पर ही बुलाया गया. उन का ब्लडप्रैशर हाई था, पूर्ण आराम और दवा के लिए निर्देश दे डाक्टर चला गया. विवेक उन्हें आराम करने के लिए कह लैपटौप पर व्यस्त हो गया. माधवी को इस तकलीफ में जीने की आदत डालने में कुछ दिन लग गए. पहले निया के मना करने पर भी कुछ न कुछ इधरउधर करते हुए अपना समय बिता लेती थीं, अब तो अकेलापन और बढ़ता लग रहा था.

एक संडे को वे चुपचाप अपने रूम में लेटी थीं. अचानक उन का मन हुआ कि वाकर की सहायता से ड्राइंगरूम तक जा कर देखें. यह टू बैडरूम फ्लैट था. वे बड़ी हिम्मत से वाकर के सहारे अपने रूम से बाहर निकलीं तो उन्हें बच्चों के रूम से निया का तेज स्वर सुनाई दिया. उन का दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. न चाहते हुए भी उन्होंने निया की बात पर ध्यान दिया.

निया तेज स्वर में कह रही थी, ‘‘मां तुम्हारी है, तुम्हें सोचना चाहिए.’’

माधवी को तेज झटका लगा, मन आहत हुआ कि इस का मतलब मेरा अंदाजा सही था कि निया को मेरा यहां आना पसंद नहीं. अब? इतना स्वाभिमान तो मुझ में भी है कि बेटेबहू के घर अवांछित सी नहीं रहूंगी. फिर फैसला कर लिया कि जल्द ही वापस चली जाएगी. अकेली रह लेंगी पर यहां नहीं आएंगी. इसलिए निया इतनी गंभीर रहती है.

उन की आंखों से मजबूरी और अपमान से आंसू बहने लगे. चुपचाप अपने रूम में आ कर लेट गईं. थोड़ी देर बाद निया उन के लिए शाम की चाय ले कर आई तो उन्होंने उस के चेहरे पर नजर भी नहीं डाली.

निया ने कहा, ‘‘मां, उठिए, चाय लाई हूं.’’

‘‘ले लूंगी, तुम रख दो.’’

निया चाय रख कर चली गई. माधवी का दिल भर आया, कोई उन से पूछने वाला भी नहीं कि वे क्यों उदास, दुखी हैं. थोड़ी देर में उन्होंने ठंडी होती चाय पी ली और विवेक को आवाज दी. विवेक आ कर गंभीर मुद्रा में बैठ गया. उन्हें बेटे पर बड़ा तरस आया. सोचा,पिसते हैं बेटे मां और पत्नी के बीच.बेटा भी क्या करे. नहीं वह बेटे की गृहस्थी में तनाव का कारण नहीं बनेगी, सोच माधवी बोलीं, ‘‘विवेक प्लास्टर कटते ही मेरा टिकट करवा देना.’’

विवेक चौंका, ‘‘क्या हुआ, मां?’’

‘‘बस, जाने का मन कर रहा है.’’

‘‘ठीक हो जाओ, चली जाना. अभी तो टाइम लगेगा,’’ कह कर विवेक चला गया.

ठंडी सांस भर कर माधवी अपने विचारों में डूबतीउतरती रहीं. 27 दिसंबर की शाम को तीनों साथ ही डिनर कर रहे थे. माधवी ने यों ही पूछ लिया, ‘‘बेटा, तुम्हारी न्यू ईयर पार्टी का क्या हुआ?’’

‘‘निया ने कैंसिल कर दी, मां.’’

‘‘क्यों? तुम लोग तो इतने खुश थे?’’

‘‘बस, निया ने मना कर दिया.’’

‘‘पर क्यों, बेटा?’’

‘‘सब आएंगे, शोरशराबा होगा, आप डिस्टर्ब होंगी, आप को आराम की जरूरत है.’’ निया ने जवाब दिया.

‘‘अरे नहीं, मुझे तो अच्छा लगेगा, घर में रौनक होगी, बहुत बोर हो रही हूं मैं तो, तुम लोग आराम से नए साल का स्वागत करो, मजा आएगा.’’

निया बहुत हैरान हुई, ‘‘सच? मां? आप डिस्टर्ब नहीं होंगी?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं.’’

निया ने मुसकरा कर थैंक्स मां कहा तो माधवी को अच्छा लगा.

फिर कहा, ‘‘बस, मेरे जाने का टिकट भी करवा दो अब.’’

निया ने कहा, ‘‘नहीं, अभी तो आप की फिजियोथेरैपी भी होगी कुछ दिन.’’

माधवी उफ, कह कर चुप हो गईं. प्रत्यक्षतया तो सब सामान्य था पर माधवी अनमनी थीं. अब माधवी से दिन नहीं कट रहे थे. कभीकभी बेबस, बेचैन सी हो जातीं. मन रहा था अब. बहू उन्हें रखना नहीं चाहती, बेटा मजबूर है, यह बात दिल को कचोटती रहती थी.

31 दिसंबर की पार्टी की तैयारी में निया व्यस्त हो गई. विवेक भी हर बात, हर काम में यथासंभव साथ दे रहा था. दोनों के करीब 15 दोस्त आने वाले थे. बैठेबैठे जितना संभव था माधवी भी हाथ बंटा रही थीं. खाने की कुछ चीजें बना ली थीं, कुछ और्डर कर दी थीं. दोपहर तक सारी तैयारी के बाद लंच कर के माधवी थोड़ी देर अपने रूम में आ कर लेट गईं. अभी 3 बजे थे. 20 मिनट के लिए उन की आंख भी लग गई. उठी तो चाय की इच्छा हुई. पर फिर सोचा कि बेटाबहू आराम कर रहे होंगे, वे थक गए होंगे. अत: वह खुद ही चाय बना लेंगी.

अपने वाकर के साथ वे धीरे से उठीं तो बेटेबहू के कमरे से तेज आवाजें सुन कर ठिठक गईं, वे सुनने की कोशिश करने लगीं कि क्या फिर मेरी उपस्थिति को ले कर दोनों में झगड़ा हो रहा है? रात को तो पार्टी है और अब यह झगड़ा, वह भी उस के कारण? आंसू बह निकले.

निया की आवाज बहुत स्पष्ट थी, ‘‘मां को कहने दो, तुम कैसे मां को वापस भेजने के लिए तैयार हो? मां इतनी शांत, स्नेहिल हैं, उन से किसी को क्या दिक्कत हो सकती है? वे दिन भर अकेली रहती हैं, उन का मन नहीं लगता होगा. तभी उस दिन अपना टिकट करवाने के लिए कहा होगा. मैं ने अपने औफिस में बात कर ली है. जब तक उन का प्लास्टर नहीं उतरता मैं वर्क फ्रौम होम कर रही हूं. बहुत ही जरूरी होगा किसी दिन तब चली जाऊंगी. तुम बेटे हो कर भी उन्हें भेजने की बात कैसे मान जाते हो? और कौन है उन का? वे अब कहीं नहीं जाएंगी, यहीं रहेंगी हमारे साथ.’’

मन में उठे भावों के उतारचढ़ाव से वाकर पकड़े माधवी के तो हाथ ही कांप गए, चुपचाप आ कर अपने बैड पर धम्म से बैठ गईं कि वह क्या सोच रही थी और सच क्या था.

वह कितना गलत सोच रही थी. क्या उस ने अपने मन के दायरे इतने सीमित कर लिए थे कि निया के गंभीर स्वभाव, उस की आधुनिकता को ही जांचनेपरखने में लगी रही. उस के मन की गहराई तक तो वह पहुंच ही नहीं पाई.

उफ, उस दिन भी तो निया यही कह रही थी कि मां तुम्हारी है, तुम्हें सोचना चाहिए.

सच ही तो है कि कई बार आंखें जो देखती हैं, कान जो सुनते हैं वही सच नहीं होता. वह तो निया के कम बोलने, गंभीर स्वभाव को अपनी उपेक्षा समझती रही पर यह तो निया का स्वभाव है, क्या बुराई है इस में?

उस के दिल में तो उस के लिए इतना अपनापन और प्यार है, आज निया जैसी बहू पा कर तो वह धन्य हो गई. आंखों से अब कुछ स्पष्ट नहीं दिख रहा था, सब कुछ धुंधला सा गया था. खुशी और संतोष के आंसू जो भरे थे आंखों में.

तभी निया चाय ले कर अंदर आ गई. माधवी को विचारमग्न देखा, पूछा, ‘‘क्या सोच रही हैं, मां?’’

माधवी को कुछ समझ नहीं आया तो ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कहते हुए मुसकरा कर अपनी बांहें फैला दीं.

कुछ न समझते हुए भी उन की बांहों में समाते हुए कहा, ‘‘यह क्या मां, अभी से?’’

माधवी खुल कर हंस दीं, ‘‘हां, अचानक अपने दिल में अभी से नववर्ष का उल्लास, उत्साह अनुभव कर रही हूं.’’

नए साल का स्वागत नई उमंग से करने के लिए माधवी अब पूरी तरह से तैयार थीं. निया के सिर पर अपना स्नेहभरा हाथ फिरा कर मुसकराते हुए चाय का आनंद लेने लगीं.

बहारें फिर भी आएंगी

कहानी- रेणु श्रीवास्तव

आ मिर और मल्लिका ने कालेज के स्टेज पर शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक रोमियोजूलियट क्या खेला कि ये पात्र उन के वास्तविक जीवन में भी प्रतिबिंबित हो उठे. महीनेभर की रिहर्सल उन्हें इतना करीब ले आई कि वे एकदूजे की धड़कनों में ही समा गए. स्टेज पर अपने पात्रों में वे इतने जीवंत हो उठे थे कि सभी ने इन दोनों का नाम भी रोमियोजूलियट ही रख दिया था.

कालेज कैंपस हो या बाहर, दीनदुनिया से बेखबर, हाथों को थाम चहलकदमी करते प्यार के हजारों रंगों को बिखराते वे दिख जाते. प्रीत की खुशबू से मदहोश हो कर वे  झूम उठे थे. जाति अलग, धर्म अलग फिर भी कोई खौफ नहीं आंखों में. विरहमिलन की अनगिनत गाथाओं को समेटे इस दीवाने प्रेम को जाति और धर्म से क्या लेनादेना था.

प्रेम ने तो कभी दरिया में, कभी पहाड़ों पर, कभी दीवारों में, कभी मरुस्थलों में दम तोड़ दिया पर प्रियतम का साथ नहीं छोड़ा. एक ही मन, एक ही चुनर, प्रीत के ऐसे पक्के रंग में रंगी विरहबेला में न छीजा न सूखा. दिनोंदिन प्रेमी प्रेमरस में भीगते और भिगोते सूली पर चढ़ गए. पर जातिधर्म की न समाप्त होने वाली सरहदों ने प्रेमीयुगल को शायद ही बख्शा हो. मल्लिका और आमिर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

पहले तो सभी इसे सहजता से लेते रहे लेकिन जैसे ही इश्क के गहराते रंग का अनुभव हुआ दोनों ओर के लोगों की तलवारें तन गईं. फिर प्यार भी कहीं छिपता है? यह तो पलभर में हरसिंगार के फूलों की तरह अपनी आभा बिखेरता है. बेहद सुंदर और प्रतिभा की मालकिन मल्लिका को पाने के लिए प्रोफैसरों से ले कर सजातीयविजातीय लड़कों में एक होड़ सी लगी थी. बहुत दीवाने थे उस के लेकिन सब को अनदेखा कर उन की नादानियों पर हंसती रही.

जिसे भी मल्लिका पलभर को देख लेती वह निहाल हो उठता था. जिधर से गुजर जाती, लोग उस की खूबसूरती के कायल हो जाते थे. कट्टर मानसिकता वाले राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली मल्लिका के लिए अपनी बिरादरी में भी एक से एक सुयोग्य लड़के शादी के लिए आंखें बिछाए कतार में खड़े थे. लेकिन मल्लिका के सपनों का राजकुमार आमिर बन चुका था.

मल्लिका का किसी गैरजाति के लड़के को चाहना जमाना इसे कितने दिनों तक सहन करता. आमिर पर न जाने कितने जानलेवा हमले हुए, मल्लिका को तो एसिड से जला देने की धमकियों से भरी न जाने कितनी गुमनाम चिट्ठियां मिलती रहीं, जो उन के प्रेम को और मजबूत ही करती रहीं. आमिर का एक प्यारभरा स्पर्श, एक स्नेहिल मुसकान उस की राहों में बिछे हर कांटे के डंक को मिटाती रही. आमिर के बारे में पता चलते ही मल्लिका के मातापिता ने अपनी लाड़ली को हर तरह से सम झाया, अपनी जान देने की धमकी तक दी. पर प्यार की इस मेहंदी का रंग लाल ही होता गया. जैसेजैसे समाज के शिकंजे कसते गए वह आमिर के प्यार में और डूबती गई.

एक हिंदू लड़की अपनी जातिबिरादरी के एक से एक होनहार और खूबसूरत नौजवानों को नजरअंदाज कर के मुसलिम से प्यार करे, हिंदू समाज को यह सहन कैसे होता. राजनीति का अखाड़ा बने कालेज परिसर में ही आमिर पर ऐसा जानलेवा हमला हुआ कि उस की जान बालबाल बची. मल्लिका पर भी तेजाबी हमले हुए. गरदन और हाथ ही  झुलसे. चेहरे पर एकाध छींटे पड़े जरूर, पर वे उलटे उस की सुंदरता में चारचांद लगा गए.

पुलिस ने कुछ विरोधी हिंदू आतंकियों को पकड़ा पर जैसा इस तरह के मामलों में होता है, सुबूतों के अभाव में वे छूट गए. मुसलिम समाज क्यों पीछे रहता, वह भी दलबल के साथ आमिर के बचाव में उतर आया. हिंदूमुसलिम दंगा भड़कने ही वाला था कि मल्लिका और आमिर ने कोर्टमैरिज कर के दंगाइयों के मनसूबों पर पानी फेर दिया. मल्लिका के मातापिता ने जीतेजी उसे अपने लिए मरा करार दे दिया, तो आमिर के घरवालों ने उसे अपनाते हुए धूमधाम से अपने घर ले जा कर उस का भरपूर मानसम्मान किया जिसे उन दोनों ने कोई खास तरजीह नहीं दी. धर्म के सौदागरों के शह और मात के खेलों से वे अनजान नहीं थे.

अभी आमिर के घर में मल्लिका के कुछ ही घंटे बीते थे कि बाहर गेट पर पटाखे फूट कर आकाश को छू रहे थे. चेहरे को छिपाए

8-10 आदमियों का समूह चिल्ला रहा था. राजपूत की बेटी इन विधर्मियों के घर में. अकबर का इतिहास दोहरा रहे हो तुम लोग. राजपूतों का वह समाज नपुंसक था जिस ने पैरों पर गिर कर अपनी बहनबेटियों को म्लेच्छों के हवाले कर दिया था. उसे किसी भी हालत में दोहराने नहीं देंगे हम. सुनो विधर्मियो, हमें नीचा दिखाने के लिए बड़ी शान से मुसलिम बना कर जिसे विदा करा लाए हो तुम सभी, उस म्लेच्छ लड़की को घर से निकाल बाहर करो. हम यहीं पर उस के टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.

आज गौमांस खाएगी, कल रोजा रख कर कुरानपाठ करेगी. बुरका ओढ़ कर तुम्हारी बिरादरी में घूमेगी, तुम्हारे गंदे खून से बच्चे पैदा कर के राजपूतों की नाक कटवाएगी. निकालो इसे, नहीं तो इस का अंजाम बहुत भयानक होगा. आज पटाखों से केवल तुम्हारा गेट जला है. कल बम फोड़ कर तुम सब को भून डालेंगे.

उन की गगनभेदी आवाजों से घर के अंदर सभी दहशत से कांप रहे थे. आमिर की बांहों में मल्लिका अर्धमूर्च्छित पड़ी थी. हिंदुओं की कारगुजारी की जानकारी पाते उस के विरोध में मुसलिम समाज भी इकट्ठा होने लगा था. वह तो अच्छा हुआ कि आननफानन में पुलिस पहुंच गई, और दंगों के शोले भड़कने से रह गए.

फिर महीनों तक आमिर को पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी थी. उन का बाहर निकलना मुश्किल था. घात लगाए बैठे राजपूतों का खून खौल रहा था. कुछ अलग हट कर करने की चाह से ये आंखें मूंदे सभीकुछ सहन कर रहे थे. रिजल्ट निकलते ही इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले जाना था. सभी तैयारियां हो चुकी थीं. बची हुई औपचारिकताओं को ये छिपछिपा कर पूरी कर रहे थे. पर मौत का खतरा टला नहीं था. अपने हनीमून को ये दोनों दहशतों के बीच ही मना रहे थे.

इन दोनों का रिजल्ट आ गया. तैयारियां तो थीं ही. जाने के दिन छिपतेछिपते किसी प्रकार से वे इंटरनैशनल हवाईअड्डे तक पहुंचे. रिश्तेदार तो दूर, इन्हें विदा करने कोई संगीसाथी भी नहीं आ सका. उमड़ आए आंसुओं के समंदर को दोनों पलकों से पी रहे थे. बुरके में मल्लिका का दम घुट रहा था तो खुले में आमिर के पसीने छूट रहे थे.

जब तक प्लेन उड़ा नहीं, वे डर के साए में ही रहे. किसी तरह की जांचपड़ताल से वे घबरा उठते थे. 17 घंटे के अंतराल के बाद ही एकदूसरे की बांहें थाम पहुंच गए अमेरिका के न्यूजर्सी में, जहां की गलियों में उन्नत सिर उठाए उन के सपनों की मंजिल, प्रिंसटन कालेज बांहें फैलाए उन का स्वागत कर रहा था. इस की तैयारी वे महीनों से कर रहे थे. बहुत हाईस्कोर के साथ उन्होंने टोफेल आदि को क्लीयर कर रखा था. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने दोनों का लोन सैंक्शन करते हुए पासपोर्ट, वीजा आदि के मिलने में बड़ा ही सहयोग दिया. प्यार के विरोध में उठे स्वरों एवं छलनी दिल के सिवा वे भारत से कुछ भी नहीं लाए थे. सामने चुनौतियों से भरे रास्ते थे, पर उन के पास हौसलों के पंख थे. ख्वाबों की दुनिया उन्हें खुद बनानी थी.

यहां आ कर भी महीनों तक मल्लिका दहशत में जीती रही. किसी भी हिंदू की नजर उसे सहमा कर रख देती थी. कालेज परिसर में रहने वाले विद्यार्थियों के आश्वासन भी उसे सामान्य नहीं बना सके थे. मल्लिका ने कभी पलट कर भी अपनों की खबर नहीं ली. आमिर के मांबाप और छोटी बहन से कभी बात कर लिया करती थी पर उन्हें भी कभी यहां आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया.

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में इंटरनैशनल सिक्योरिटी, जो एक नया विषय था, उस में पीएचडी करने का फैसला मल्लिका और आमिर ने लिया. यह भी अच्छी बात रही कि यूनिवर्सिटी की ओर से ही उन दोनों को रहने के लिए जगह मिली, जिस ने उन के रहने की बड़ी समस्या को हल कर दिया. जैसेजैसे दिन गुजरते गए, उन की राहें आसान होती गईं.

अभी भी उन के रिश्ते पतिपत्नी से ज्यादा प्रेमीप्रेमिका जैसे ही थे. हाथों में हाथ डाले जिधर चाहा निकल गए. न किसी के देख लेने का डर था और न कोई दंगा भड़कने का. अकसर वे दोनों मखमली हरी घास पर लेट कर गरमी का आनंद लेते हुए पढ़ाई किया करते थे. जब? भी थक जाते, आइसक्रीम खा कर तरोताजा हो उठते.

वीकैंड में अकसर चहलकदमी करते हुए प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते दुकानों में जा कर शौपिंग करते. रैस्टोरैंट में हर तरह के कौंटिनैंटल फूड खाते. आमिर को कौफी बहुत पसंद थी तो मल्लिका को टोमैटो सूप और ग्रिल्ड सैंडविच.

इतने लंबे समय में दोनों कभी मंदिरमसजिद नहीं गए. प्यार ही उन का मजहब था. विवरस्पून स्ट्रीट की विशाल प्रिंसटन पब्लिक लाइब्रेरी में जा कर दोनों पढ़ाई करते. समय ने इन के परिश्रम और लगन का भरपूर रिवौर्ड दिया.

युद्ध के कारण, नेचर डेटरैंस, एलाएंस, फौर्मेशन, सिविल मिलिटरी रिलेशन, आर्म्स कंपीटिशन के साथ आर्म्स की रोक आदि पर इन की हर छानबीन को खूब वाहवाही मिली. इन का परफौर्मैंस इतना अच्छा रहा कि दोनों की नियुक्ति प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में ही हो गई. सपनों की मंजिल पर पहुंच कर दोनों अभिभूत थे.

प्रिंसटन के लिंडेन लेन में इन्होंने रहने के लिए एक टाउन हाउस ले लिया था, जिस के गैराज में चमचमाती हुई नई गाड़ी खड़ी थी.

युद्ध के कारणों और निवारणों पर रिसर्च करते हुए उन्होंने करीबकरीब दुनिया के सारे शक्तिशाली देशों की परिक्रमा कर डाली. यह अपनेआप में बहुत खास अनुभव रहा. पढ़तेपढ़ाते विभिन्न देशों की संस्कृति को मानसम्मान देते हुए उन्होंने मेल्ंिटग पौट औफ कल्चर को अपना लिया. दंगा, हिंसा और खूनखराबे के डर से अपने देश से क्या भागे कि सारी दुनिया को ही गले लगा लिया. यही कारण है कि अमेरिका में रह रहे सारे विश्ववासियों को इन्होंने प्यार से एक गुलदस्ते में ही संजो लिया. सभी वर्गों में इन का बड़ा मानसम्मान था.

2 साल में ही सारे लोन चुका कर इन्होंने अपना परिवार बढ़ाने का निर्णय लिया. गर्भावस्था में आमिर ने मल्लिका का बहुत ध्यान रखा. अपने जुड़वां बच्चों का नाम उन्होंने अर्थ और आशी रखा. ऐसे वक्त में गुजरात की रहने वाली पारुल बेन किसी सौगात की तरह उन्हें मिल गईं, जिन्होंने दोनों बच्चों की देखरेख के साथ मल्लिका का भी मां की तरह खयाल रखा. मल्लिका और आमिर ने भी उन्हें कभी नैनी नहीं सम झा.

अपने बच्चों को पारुल बेन को सौंप कर मल्लिका और आमिर पढ़नेपढ़ाने की दुनिया में ख्याति बटोरते रहे. पारुल बेन भी उन की कसौटी पर सब तरह से खरा सोना निकलीं. किसी बात के लिए उन्हें निराश नहीं किया. अर्श और आशी को पारुल बेन ने दोनों संस्कृतियों के सारे संस्कार दिए. घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर आमिर और मल्लिका को ऊंची उड़ान भरने के अवसर मिले. मल्लिका के सौंदर्य और प्रतिभा पर उस के क्षेत्र के लोग मुग्ध थे. ब्यूटी और ब्रेन का अनोखा सामंजस्य था उस में. उन से जुड़ कर सभी लाभान्वित ही होते रहे. अपने आसपास के ही नहीं, बल्कि जिस देश में भी गए वहां की संस्कृति को आत्मसात कर लिया. उन्होंने बहुत बड़ी पहचान को प्राप्त कर लिया था. यह उन के जीवन की बहुत बड़ी विजय थी.

समय पखेरू बन कर उड़ता रहा. अर्थ ने फाइनैंस में एमबीए कर के न्यूयौर्क की प्रतिष्ठित कंपनी को जौइन कर लिया. साल भी नहीं बीता था कि उस ने उसी कंपनी में कार्यरत चाइनीज लड़की से शादी कर ली और 4 महीने बाद ही 2 जुड़वां लड़कियों का पिता बन गया. वहां की खुली संस्कृति के लिए यह बड़ी आम बात थी. वहां बच्चे पहले पैदा होते हैं, शादी बाद में होती है.

आशी ने भी मैडिसिन की पढ़ाई कर के एक अफ्रीकीअमेरिकन से ब्याह रचा लिया. सालभर में वह भी अपने पिता के हमशक्ल जैसे बच्चे की मां बन गई. अपने बच्चों के उठाए इन कदमों की कोई आलोचना मल्लिका और आमिर ने कभी नहीं की. सब तरह से सहयोग देते हुए उन्हें संवारते हुए निखारा था. दोनों अपने बच्चों के बच्चे देख कर अभिभूत थे. सारे जहां की खुशियों को वे बटोर रहे थे.

अपने नानानानी और दादादादी बनने की खुशी में उन्होंने न्यूजर्सी में ही बड़ी शानदार पार्टी रखी थी. महीनेभर पहले सारी नाराजगी को भुलाते हुए दोनों ने अपने परिवारवालों को भी न्योता दिया था. वे आएं या न आएं, उस से उदासीन होते हुए वे अपनी खुशियों में मग्न थे. इतने लंबे समय में मल्लिका ने भूल कर भी अपनों को कभी याद नहीं किया था. उन के सारे रिश्तेनाते एकदूसरे के लिए वे स्वयं ही थे. बाकी कमी पारुल बेन ने आ कर पूरी कर दी थी. किसी अपने की तरह अर्थ और आशी की खुशियों से उन की भी आंखें छलक रही थीं. दोनों में से वे किस के पास जा कर, रह कर बच्चों की देखरेख करें, इस के लिए अर्थ और आशी को विवाद करते देख पारुल बेन भी अपने अस्तित्व के महत्त्व पर, अपनी काबिलीयत पर खुश थीं. 1,800 डौलर मासिक पगार पर काम करने वाली पारुल बेन लाखों डौलर की मालकिन होने के साथ अपना भविष्य संवारते हुए परिवार की बहुत बड़ी स्तंभ बन गई थीं.

भारत से आमिर और मल्लिका दोनों के मातापिताओं के साथ उन के भैयाभाभी भी आए. मिलन की खुशियों में छलकते आंसुओं ने दरिया ही बहा दिया था. फिर आरोपों और प्रत्यारोपों के लिए समय ही कहां था. वर्षों से बिछुड़े बच्चों के लिए नजराने में वे सारा भारत ही उठा लाए थे. उस प्यार के उफनते समंदर में न कोई जाति थी, न कोई धर्म, एक परिवार की तरह सारे भेदभाव को भूल कर सभी एकदूसरे से गले मिल रहे थे.

डर: सेना में सेवा करने के प्रति आखिर कैसा था डर

मैं सुबह की सैर पर था. अचानक मोबाइल की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है, मैं ने खुद से ही प्रश्न किया. देखा, यह तो अमृतसर से कौल आई है.

‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो फूफाजी, प्रणाम, मैं सुरेश

बोल रहा हूं?’’

‘‘जीते रहो बेटा. आज कैसे याद किया?’’

‘‘पिछली बार आप आए थे न. आप ने सेना में जाने की प्रेरणा दी थी. कहा था, जिंदगी बन जाएगी. सेना को अपना कैरियर बना लो. तो फूफाजी, मैं ने अपना मन बना लिया है.’’

‘‘वैरी गुड’’

‘‘यूपीएससी ने सेना के लिए इन्वैंट्री कंट्रोल अफसरों की वेकैंसी निकाली है. कौमर्स ग्रैजुएट मांगे हैं, 50 प्रतिशत अंकों वाले भी आवेदन कर सकते हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है.’’

‘‘फूफाजी, पापा तो मान गए हैं पर मम्मी नहीं मानतीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहती हैं, फौज से डर लगता है. मैं ने उन को समझाया भी कि सिविल में पहले तो कम नंबर वाले अप्लाई ही नहीं कर सकते. अगर किसी के ज्यादा नंबर हैं भी और वह अप्लाई करता भी है तो बड़ीबड़ी डिगरी वाले भी सिलैक्ट नहीं हो पाते. आरक्षण वाले आड़े आते हैं. कम पढ़ेलिखे और अयोग्य होने पर भी सारी सरकारी नौकरियां आरक्षण वाले पा जाते हैं. जो देश की असली क्रीम है, वे विदेशी कंपनियां मोटे पैसों का लालच दे कर कैंपस से ही उठा लेती हैं. बाकियों को आरक्षण मार जाता है.’’

‘‘तुम अपनी मम्मी से मेरी बात करवाओ.’’

थोड़ी देर बाद शकुन लाइन पर आई, ‘‘पैरी पैनाजी.’’

‘‘जीती रहो,’’ वह हमेशा फोन पर मुझे पैरी पैना ही कहती है.

‘‘क्या है शकुन, जाने दो न इसे

फौज में.’’

‘‘मुझे डर लगता है.’’

‘‘किस बात से?’’

‘‘लड़ाई में मारे जाने का.’’

‘‘क्या सिविल में लोग नहीं मरते? कीड़ेमकोड़ों की तरह मर जाते हैं. लड़ाई में तो शहीद होते हैं, तिरंगे में लिपट कर आते हैं. उन को मर जाना कह कर अपमानित मत करो, शकुन. फौज में तो मैं भी था. मैं तो अभी तक जिंदा हूं. 35 वर्ष सेना में नौकरी कर के आया हूं. जिस को मरना होता है, वह मरता है. अभी परसों की बात है, हिमाचल में एक स्कूल बस खाई में गिर गई. 35 बच्चों की मौत हो गई. क्या वे फौज में थे? वे तो स्कूल से घर जा रहे थे. मौत कहीं भी किसी को भी आ सकती है. दूसरे, तुम पढ़ीलिखी हो. तुम्हें पता है, पिछली लड़ाई कब हुई थी?’’

‘‘जी, कारगिल की लड़ाई.’’

‘‘वह 1999 में हुई थी. आज 2018 है. तब से अभी तक कोई लड़ाई नहीं हुई है.’’

‘‘जी, पर जम्मूकश्मीर में हर रोज जो जवान शहीद हो रहे हैं, उन का क्या?’’

‘‘बौर्डर पर तो छिटपुट घटनाएं होती  ही रहती हैं. इस डर से कोईर् फौज में ही नहीं जाएगा. यह सोच गलत है. अगर सेना और सुरक्षाबल न हों तो रातोंरात चीन और पाकिस्तान हमारे देश को खा जाएंगे. हम सब जो आराम से चैन की नींद सोते हैं या सो रहे हैं वह सेना और सुरक्षाबलों की वजह से है, वे दिनरात अपनी ड्यूटी पर डटे रहते हैं.’’

मैं थोड़ी देर के लिए रुका. ‘‘दूसरे, सुरेश इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर के रूप में जाएगा. इन्वैंट्री का मतलब है, स्टोर यानी ऐसे अधिकारी जो स्टोर को कंट्रोल करेंगे. वह सेना की किसी सप्लाई कोर में जाएगा. ये विभाग सेना के मजबूत अंग होते हैं, जो लड़ने वाले जवानों के लिए हर तरह का सामान उपलब्ध करवाते हैं. लड़ाई में भी ये पीछे रह कर काम करते हैं. और फिर तुम जानती हो, जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु तक का रास्ता तय हो जाता है. जीवन उसी के अनुसार चलता है.

‘‘तो कोई डर नहीं है?

‘‘मौत से सब को डर लगता है, लेकिन इस डर से कोईर् फौज में न जाए यह एकदम गलत है. दूसरे, सुरेश के इतने नंबर नहीं हैं कि  वह हर जगह अप्लाई कर सके. कंपीटिशन इतना है कि अगर किसी को एमबीए मिल रहे हैं तो एमए पास को कोई नहीं पूछेगा. एकएक नंबर के चलते नौकरियां नहीं मिलती हैं. बीकौम 54 प्रतिशत नंबर वाले को तो बिलकुल नहीं. सुरेश अच्छी जगहों के लिए अप्लाई कर ही नहीं सकता. तुम्हें अब तक इस का अनुभव हो गया होगा शकुन, इसलिए उसे जाने दो.’’

‘‘जी, वहां नंबरों का चक्कर तो

नहीं पड़ेगा.’’

‘‘अच्छा एकेडैमिक कैरियर हर जगह देखा जाता है. परंतु सेना के अपने मापदंड हैं. उसी के अनुसार सिलैक्शन किया जाता है. वहां कोईर् आरक्षण का चक्कर नहीं होता. वहां उन को औलराउंडर चाहिए जो आत्मविश्वास से भरा हो, तुरंत निर्णय लेने की क्षमता रखता हो, दिमाग और शरीर से स्वस्थ हो. और हर तरह का काम करने में समर्थ हो. फिर वे उन को अपनी ट्रेनिंग से सेना के अनुसार ढाल लेते हैं. मेरी सुरेश से बात करवाओ. मैं उसे बताऊंगा कि कैसे करना है,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, जी.’’

‘‘दिल्ली के एस एन दासगुप्ता कालेज ने अमृतसर में कोचिंग ब्रांच खोली है जो आईएएस, आईपीएस, सेना में अफसर बनने के लिए इच्छुक नौजवानों को कोचिंग देता है. वह यूपीएससी की अन्य परीक्षाओं की भी तैयारी करवाता है. तुम्हें पता है, आजकल सब औनलाइन होता है. वहां चले जाओ. वे इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर के लिए औनलाइन अप्लाई करवा देंगे. वहीं तुम्हें इस की लिखित परीक्षा के लिए कोचिंग लेनी है. अगर लिखित परीक्षा पास कर लेते हो तो वहीं इंटरव्यू की तैयारी की कोचिंग भी लेनी है. वे तुम्हें इस प्रकार तैयारी करवाएंगे कि तुम्हारे 99 प्रतिशत सफल होने के चांस रहेंगे.’’

‘‘पर फूफाजी, मेरे पास उन का पता नहीं है.’’

‘‘यार, आजकल सारी सूचनाएं गूगल पर मिल जाती हैं. गूगल पर सर्च मारो, सब पता चल जाएगा. फिर मुझे बताना कि क्या हुआ.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

कुछ दिनों बाद सुरेश का फोन आया, ‘‘फूफाजी, मुझे पता चल गया था. मैं ने औनलाइन अप्लाई कर दिया है. कोचिंग सैंटर ने अप्लाई और लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए 10 हजार रुपए लिए हैं और साथ में यह गारंटी भी दी है कि लिखित परीक्षा वह अवश्य क्लीयर कर ले.’’

‘‘सुरेश, यह उन का व्यापार है. ऐसा वे सब से कहते होंगे जो उन के पास परीक्षा की तैयारी के लिए जाते हैं. यह औल इंडिया बेस की परीक्षा है. इस में सब से अधिक तुम्हारी खुद की मेहनत रंग लाएगी. तुम से अच्छे भी होंगे और खराब भी. बस, रातदिन तुम्हें मेहनत करनी है बिना यह सोचे कि तुम्हारा एकेडैमिक कैरियर कैसा था. यदि तुम ने लिखित परीक्षा पास कर ली तो समझो 50 प्रतिशत मोरचा फतेह कर लिया.’’

‘‘जी, फूफाजी. मैं ईमानदारी से मेहनत करूंगा. लो एक सैकंड पापा से बात करें.’’

‘‘नमस्कार, जीजाजी.’’

‘‘नमस्कार, कैसे हो विपिन?’’

‘‘ठीक हूं, जीजाजी. यह जो सुरेश के लिए सोचा गया है, क्या वह ठीक रहेगा.’’

‘‘बिलकुल ठीक रहेगा. अगर सुरेश सिलैक्ट हो जाता है तो उस की जिंदगी बन जाएगी. वह लैफ्टिनैंट बन कर निकलेगा. क्लास वन गैजेटेड अफसर. सेना की सारी सुविधाएं उसे प्राप्त होगी. उन सुविधाओं के प्रति आम आदमी सोच भी नहीं सकता. ट्रेनिंग के दौरान ही उसे 20 हजार रुपए भत्ता मिलेगा, रहनाखाना फ्री. पासिंगआटट के बाद इस की

55 हजार रुपए से ऊपर सैलरी होगी. वहीं साथ में कई तरह के भत्ते भी मिलेंगे. सारी उम्र न केवल आप को बल्कि पूरे परिवार के रहनेखाने की चिंता नहीं रहेगी, यानी रोटी, कपड़ा और मकान की चिंता नहीं रहेगी.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, जीजाजी, बस एक ही डर है, बेमौत मारे जाने का.’’

‘‘मैं शकुन को सबकुछ समझा चुका हूं, मानता हूं, यह डर उस समय भी था जब मैं सेना में गया था. सेना की इस सेवा के दौरान मैं ने 2 लड़ाइयां भी लड़ीं. मुझे  कुछ नहीं हुआ. जिस की आई होती है, वही मरता है. मैं आप को अपने जीवन की एक घटना बताना चाहता हूं. 65 की लड़ाई में हम सियालकोट सैक्टर से पाकिस्तान में घुसे थे. सारा स्टोर 2 गाडि़यों में ले कर चल रहे थे. एक गाड़ी में मैं और मेरा ड्राइवर था. दूसरी गाड़ी में एक बंगाली लड़का और उस का ड्राइवर था. पाकिस्तान में हम आसानी से घुसते चले गए. लड़ाई हम से कोई 10 किलोमीटर आगे चल रही थी. हम लोगों को केवल हवाई हमलों का डर था और वही हुआ.

‘‘जैसे ही हम ने पाकिस्तान के चारवा गांव को क्रौस किया, हम पर हवाई हमला हुआ. गाडि़यों से निकल कर जिस को जहां जगह मिली लेट गया. मेरे बराबर में मेरा ड्राइवर और उस के बराबर में वह बंगाली लड़का लेटा था. ऊपर से गन का ब्रस्ट आया और गोलियां ड्राइवर के शरीर से इस प्रकार निकल गईं जैसे कपड़े की सिलाई की गई हो. उस ने चूं भी नहीं की. उसी वह मर गया. हम लोगों पर भी खून और मिट्टी पड़ी थी.

‘‘मैं ने आप को डराने के लिए यह घटना नहीं सुनाई है बल्कि यह बताने के लिए कि जिस की मौत आनी होती है, वही शहीद होता है और यह रिस्क हर जगह रहता है. आप यहां सिविल में भी घर से निकलो तो जिंदगी का कोई भरोसा नहीं होता. फिर भी सब अपनेअपने कामों पर घरों से निकलते हैं. इसलिए उसे जाने दो.’’

‘‘ठीक है जीजाजी, पर सुना है, सेना में वही लोग जाते हैं जो भूखे और गरीब हैं, जिन के पास सेना में जाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.’’

‘‘यह बात सही है विपिन. जिन के घरों में गरीबी है, दालरोटी के लाले पड़े हैं, अकसर वही लोग सेना में जाते हैं और जब तक यह गरीबी रहेगी, दालरोटी के लाले रहेंगे, देश को सैनिकों की कमी नहीं रहेगी.

‘‘किसी नेता या अभिनेता के बच्चे कभी सेना में नहीं जाते हैं. यहां तक कि जम्मूकश्मीर के अलगांववादी नेताओं के बच्चे भी सेना में नहीं जाते. वे भी विदेशों में पढ़ते हैं. यह देश के लिए दुख की बात है. आज की ही खबर है कि 8वीं पास सिपाही चाहिए और उस के लिए दौड़ रहे हैं डाक्टर, इंजीनियर और एमबीए. पर तुम्हें सुरेश को ले कर यह बात नहीं सोचनी है. उस का भविष्य बनने दो. कुछ देर के लिए समझ लो, तुम भी गरीब हो. इस से अधिक और मैं कुछ नहीं कह सकता.’’

‘‘ठीक है, जीजाजी. अब मैं उसे नहीं रोकूंगा.’’

मैं भूल चुका था कि सुरेश किसी परीक्षा की तैयारी कर रहा है. मुझे कुछ देर पहले ही पता चला कि उस ने परीक्षा दे दी है. उस के भी कोई 4 महीने बाद सुरेश का फोन आया कि उस ने इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर की लिखित परीक्षा पास कर ली है. इस की  सूचना मुझे ईमेल और डाक द्वारा दी गई है. अब उसे एसएसबी क्लीयर करनी है.

‘‘बधाई हो, सुरेश, एसएसबी के लिए तुम्हें 2-3 महीने मिलेंगे. कोचिंग सैंटर में ऐडमिशन लो और तैयारी में जुट जाओ. उसे पूरा विश्वास है कि तुम एसएसबी भी क्लीयर कर लोगे.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

फिर 3 महीने बाद उस का फोन आया. वह बहुत खुश था. उस की आवाज में खुशी थी. ‘‘मैं ने एसएसबी क्लीयर कर ली है, फूफाजी. 25 में से 4 लड़के सिलैक्ट हुए थे. वहां भी सभी का मैडिकल हुआ था. सभी ने क्लीयर कर लिया था. अब क्या होगा, फूफाजी?’’

‘‘कुछ नहीं. मार्च में शुरू होगा यह कोर्स.’’

‘‘जी, मार्च के पहले सोमवार से.’’

‘‘ठीक है. देश के सभी एसएसबी केंद्रों से इस कोर्स के लिए चुने गए उम्मीदवारों की लिस्ट सेना मुख्यालय को भेजी जाएगी. वह इसे कंसौलिडेट करेगा. फिर सभी को दिसंबर के पहले हफ्ते तक इस की सूचना ईमेल और डाक द्वारा दी जाएगी. उस सूचना के अनुसार जो प्रमाणपत्र और डौक्युमैंट्स उन को चाहिए होंगे उन की फोटोकौपी अटैस्ट करवा कर जिस पते पर उन्होंने भेजने के लिए लिखा होगा, उस पर भेजनी होगी. ईमेल और डाक द्वारा फिर सारे डौक्युमैंट्स चैक करने के बाद आप का मिलिटरी अस्पताल में डिटेल्ड मैडिकल होगा, इस की सूचना समय रहते आ जाएगी. एक बात बताओ सुरेश, तुम ने अभी दाढ़ीमूंछ रखी हुई है?’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

‘‘मैं तुम्हें बता दूं, सेना के लोग, चाहे वे किसी भी विभाग के हों, मूंछें तो पसंद करते हैं परंतु दाढ़ी बिलकुल नहीं. इसलिए मैडिकल के लिए सेना अस्पताल जाओ तो मूंछें ट्रिम करवा कर जाना और दाढ़ी बिलकुल साफ होनी चाहिए. चिकना बन कर जाना. कटिंग करवा कर जाना. छोटेछोटे बाल होने चाहिए. ऊपर से ले कर नीचे तक साफसुथरा. तुम्हारे शरीर के एकएक अंग का निरीक्षण होगा. मेरे कहे अनुसार चलोगे तो मैडिकल में फेल होने के कम चांस रहेंगे. मैडिकल करने वाले डाक्टरों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा. वे समझेंगे, लड़का सच में अफसर बनने लायक है.’’

एक महीने बाद सुरेश का फोन आया. ‘‘फूफाजी, आज मैं मिलिटरी अस्पताल, अमृतसर मैडिकल के लिए जा रहा हूं. आप के कहे अनुसार चिकना बन गया हूं. वहां से आ कर मैं आप को बताऊंगा.’’

रात को उस का फोन आया, ‘‘फूफाजी, सब ठीक हो गया है. एक अलग से मैडिकल प्रमाणपत्र दिया है जो सेना मुख्यालय के अनुसार है. पूरा दिन लग गया. शाम को 6 बजे तक सारा चैकअप पूरा हुआ. फिर कहीं जा कर उन्होंने प्रमाणपत्र दिया. मैं ने सब की फोटोकौपी ले कर फाइल बना ली है. केवल बीकौम के प्रमाणपत्र अटैस्ट होने बाकी हैं. पर फूफाजी, एक दिक्कत आ रही है. सारे प्रमाणपत्र सर्विंग मिलिटरी अफसर से अटैस्ट होने हैं. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह कैसे होगा?’’

मैं ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘‘तुम्हारे कालेज में एनसीसी है?’’

‘‘है, फूफाजी.’’

‘‘फिर क्या दिक्कत है. अपने कालेज जाओ. एनसीसी के प्रोफैसर को पकड़ो, साथ लो और एनसीसी मुख्यालय पहुंच जाओ. वहां सारे सेना के सर्विंग अफसर मिल जाएंगे. अपने साथ सारी फाइल ले जाना. तुम्हारा काम एक मिनट में हो जाएगा.’’

‘‘यह सही कहा आप ने, एनसीसी के प्रोफैसर रमाकांतजी मेरे अच्छे जानकार भी हैं.’’

‘‘ठीक है फिर, शुभकामनाएं.’’

सुरेश ने फोन बंद कर दिया. 2 दिन बाद फोन आया, ‘‘फूफाजी, सारे प्रमाणपत्र अटैस्ट हो गए हैं. अब सेना मुख्यालय में डौक्युमैंट्स भेजने हैं.’’

‘‘सारे इंस्ट्रक्शन ध्यान से पढ़ना. जिस प्रकार उन्होंने कहा है या लिखा है, उसी के अनुसार भेजना. कोई डौक्युमैंट छूटना नहीं चाहिए और सब की फोटोकौपी लेना न भूलना. वहां स्पीडपोस्ट या कूरियर से आप डौक्युमैंट्स नहीं भेज सकते हैं. आप को रजिस्टर्ड डाक से ही भेजने होंगे और एक कौपी ईमेल से. आप सेना मुख्यालय के इंस्ट्रक्शन फौलो करना.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

एक महीने बाद सुरेश का फोन आया, ‘‘मुझे ट्रेनिंग के लिए आईएमए देहरादून में 5 मार्च को रिपोर्ट करनी है. लिफाफे में मेरा मूवमैंट और्डर और द्वितीय श्रेणी का रेलवे वारंट है और साथ में सामान की लिस्ट है जो साथ ले कर जाना है.’’

‘‘मुबारक हो. तुम्हारी जिंदगी बन गई. सेना में अफसर बनना गर्व की बात है.’’ थोड़ा रुक कर मैं ने कहा, ‘‘रेलवे वारंट और मूवमैंट और्डर के साथ रेलवे स्टेशन पर एमसीओ, मिलिटरी मूवमैंट कंट्रोल औफिस चले जाना. एक नंबर प्लेटफौर्म पर यह औफिस है, वह मिलिटरी कोटे से तुम्हारे रिजर्वेशन का प्रबंध करेगा. बाकी रही तुम्हारी सामान साथ ले जाने वाली बात, अमृतसर कैंट में मस्कटरी की दुकानें हैं. वहां तुम्हें सारा सामान मिल जाएगा. अगर कुछ रह भी जाता है तो वह आईएमए से मिल जाएगा.’’

‘‘जी, फूफाजी. लेकिन देहरादून पहुंच कर आईएमए तक कैसे पहुंचा जाएगा?’’

‘‘सेना का कोई काम पैंडिंग नहीं होता. उन को पहले ही इस की सूचना होगी. वे सुबह शनिवार से रेलवे स्टेशन पर एमसीओ के बाहर टेबलकुरसी ले कर बैठे होंगे और साथ में लिखा होगा कि इस कोर्स के कैंडिडेट यहां रिपोर्ट करें. और यह सिलसिला रविवार शाम तक चलता रहेगा.

‘‘गाडि़यां बाहर खड़ी रहेंगी जिन में बैठा कर वह सब को आईएमए पहुंचाती रहेगी. वहां सिर्फ तुम्हारा कोर्स ही नहीं चल रहा होगा, सभी के लिए अलगअलग टेबल लगी होंगी. तुम्हें अपने मूवमैंट और्डर लिखे कोर्स नंबर की टेबल पर रिपोर्ट करनी है. फिर उन का काम है कि कैसे करना है. तुम्हें उन के अनुसार करते रहना है.’’

4 मार्च की शाम को सुरेश का फोन आया. ‘‘आज रात मैं ट्रेन से आईएमए देहरादून जा रहा हूं. एमसीओ अमृतसर ने इस का रिजर्वेशन किया था. सुबह 10 बजे तक मैं वहां पहुंच जाऊंगा. शाम को 6 बजे तक वहां रिपोर्ट करनी है. मैं तो वहां 10 बजे ही पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘कोई बात नहीं. वहां आप को सैटल होने का समय मिल जाएगा. जिस में हेयरकट से ले कर वरदी लेने तक और सोमवार को शुरू होने वाली टे्रनिंग की तैयारी में सुविधा रहेगी. ट्रेनिंग काफी सख्त रहेगी.

‘‘आईएमए विश्व का सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग संस्थान है. अन्य देशों से भी अफसर यहां टे्रनिंग लेने आते हैं. सबकुछ व्यवस्थित ढंग से चलेगा. जब तुम वहां से पासआउट हो कर निकलोगे तो तुम भारतीय सशस्त्र सेना के अफसर होगे.

‘‘प्रथम श्रेणी के अफसर, जैसे आईएएस, आईपीएस अफसर होते हैं. तुम्हें लगेगा कि तुम औरों से बिलकुल अलग हो. तुम्हारे शरीर पर सेना की सुंदर वरदी होगी. दोनों कंधों पर 2-2 चमकते स्टार होंगे. हवाईजहाज या ट्रेन में प्रथम श्रेणी में सफर करोगे. तुम्हारे नाम के साथ लैफ्टिनैंट जुड़ जाएगा. तुम अपना परिचय लैफ्टिनैंट सुरेश कुमार के रूप में दोगे. उस समय जो तुम्हें गर्व महसूस होगा वह अनुभव जीवन का सर्वश्रेष्ठ अनुभव होगा. मेरी शुभकामनाएं हैं तुम्हें.’’

नो प्रौब्लम: क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

लंच टाइम होते ही रोहित नीरजा के कक्ष में उस से मिलने आ पहुंचा. सामने पड़ी कुरसी पर बैठते ही उस ने अपना फैसला नीरजा को सुना दिया, ‘‘शादी की बात करने मैं कल इतवार की सुबह तुम्हारे मम्मीपापा से मिलने आ रहा हूं.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोशिश मत करो मेरा मन बदलने की, नीरजा. अगर मैं तुम्हारे भरोसे रहा तो दूल्हा बनने का इंतजार करतेकरते बूढ़ा हो जाऊंगा,’’ रोहित ने उसे अपने फैसले के विरोध में कुछ कहने नहीं दिया.

‘‘रोहित, जरा शांत हो कर मेरी बात सुनो. तुम से शादी करने का फैसला अभी मैं ने ही नहीं किया है. मेरे मम्मीपापा इस मामले में जब किसी तरह की रुकावट नहीं डाल रहे हैं तो फिर तुम उन दोनों से मिल कर क्या करोगे?’’

‘‘हम सब मिल कर तुम्हें समझाएंगे कि अकेले जिंदगी काटना न तुम्हारी बेटी महक के लिए अच्छा है, न तुम्हारे लिए. देखो, तुम मुझे एक बात साफसाफ बताओ, मैं जीवनसाथी के रूप में तुम्हें पसंद हूं या नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं पर मेरे लिए दूसरी शादी करने का फैसला करना इतना आसान और सीधा मामला नहीं है.’’

‘‘तुम्हें ‘हां’ कहने में प्रौब्लम क्या है?’’

‘‘मैं कई बार तो तुम्हें समझा चुकी हूं. मेरे ऊपर एक तो अपने मम्मीपापा की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, क्योंकि मैं उन की इकलौती संतान हूं. दूसरी बात यह कि महक की खुशियों के ऊपर… उस के समुचित मानसिक व भावनात्मक विकास पर मेरी शादी से कोई विपरीत प्रभाव पड़े, यह मुझे कभी स्वीकार नहीं होगा.’’

‘‘ये दोनों बातें तो कोई प्रौब्लम हैं ही नहीं, नीरजा. देखो, मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं तो जो भी मेरे दिल के करीब है, उस को मैं कैसे कोई दुखतकलीफ उठाते देख सकता हूं. तीनों का दिल जीत लेना मेरे लिए आसान काम है, मैडम.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस,’’ रोहित ने आत्मविश्वास भरे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मेरे मन की इन 2 चिंताओं को अगर तुम दूर कर दो तो…’’ नीरजा ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ी और उस का हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराई.

‘‘नो प्रौब्लम, लेकिन जब ये तीनों मुझे तुम्हारे जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने को खुशी से तैयार हो जाएंगे, तब तो ‘हां’ कह दोगी न?’’

‘‘श्योर,’’ नीरजा का जवाब सुन कर रोहित खुश हो गया.

शाम को घर लौट कर नीरजा ने अपने मम्मीपापा को अगले दिन सुबह रोहित के घर आने की खबर दी तो उन दोनों की आंखों में आशा भरी चमक उभर आई.

‘‘यह लड़का सचमुच अच्छा है, नीरजा. उस के हावभाव से साफ जाहिर होता है कि वह तुम्हें और महक को खुश और सुखी रखेगा. अब की बार ‘हां’ कह कर हमारे मन की चिंता दूर कर दे, बेटी,’’ अपनी इच्छा जाहिर करते हुए उस की मां सावित्री की आंखें भर आईं.

‘‘मां, मुझे दोबारा शादी करने से कोई ऐतराज नहीं है, पर सिर्फ शादीशुदा कहलाने भर के लिए मैं किसी के साथ सात फेरे नहीं लूंगी. मैं अपने पैरों पर अच्छी तरह से खड़ी हूं और तुम दोनों व महक की बढि़या देखभाल करने में पूरी तरह से सक्षम हूं. अगर मेरा दिल ‘हां’ बोलेगा तो ही मेरी शादी होगी. किसी तरह के दबाव में आ कर मैं दुलहन नहीं बनूंगी,’’ नीरजा का यह जवाब सुन कर सावित्री आगे कोई दलील नहीं दे पाई थीं.

‘‘बेटी, तुम्हारे दिल में महक के दिवंगत पापा की जगह कोई नहीं ले सकता है, यह मैं समझता हूं. लेकिन यह भी ठीक नहीं है कि तुम बिना जीवनसाथी के बाकी की जिंदगी काटो. विवेक जैसे सीधेसच्चे इनसान बारबार नहीं मिलते. अगर तुम रोहित की तुलना विवेक से नहीं करोगी, तो अच्छा रहेगा. बाकी तुम खुद बहुत समझदार हो,’’ नीरजा के पापा उमाकांतजी गला भर आने के कारण आगे नहीं बोल सके थे.

‘‘पापा, आप टैंशन न लो. रोहित ने अगर यह साबित कर दिया कि वह हम सब की देखभाल की जिम्मेदारियां अच्छी तरह से उठा सकता है तो मैं इस शादी के लिए खुशी से ‘हां’ कह दूंगी,’’ नीरजा के इस जवाब से उस के मातापिता काफी हद तक संतुष्ट नजर आए.

अगले दिन रविवार को रोहित सुबह 10 बजे के करीब उन के यहां आ गया. सावित्री, उमाकांत और महक के ऊपर अच्छा प्रभाव जमाने के लिए वह काफी तैयारी के साथ आया था.

वह फल और मिठाई के अलावा महक के लिए उस की मनपसंद ढेर सारी चौकलेट भी ले कर आया था. नीरजा को उस ने फूलों का सुंदर गुलदस्ता भेंट किया. इस में कोई शक नहीं कि उस के आने से घर का माहौल खुशगवार हो उठा था.

‘‘इस प्यारी सी गुडि़या के लिए मैं एक प्यारी सी गुडि़या भी लाया हूं,’’ ऐसा कहते हुए रोहित ने जब महक को जापानी गुडि़या पकड़ाई तो वह खुशी के मारे उछलने लगी.

‘‘नीरजा को आप दोनों की व महक की बहुत फिक्र रहती है. इस मामले में मैं आप दोनों को विश्वास दिलाता हूं कि नीरजा की हर जिम्मेदारी को पूरा करने में मैं उस का पूरा साथ निभाऊंगा,’’ रोहित की ऐसी बातों को सुन कर सावित्री और उमाकांत के दिल खुशी व राहत से भर उठे.

महक के साथ रोहित ने काफी देर तक कैरमबोर्ड खेला. दोनों खेलते हुए बहुत शोर मचा रहे थे. रोहित ने महक के साथ अच्छी दोस्ती करने में ज्यादा वक्त बिलकुल नहीं लिया.

‘‘मेरे आज के प्रदर्शन के लिए मुझे 10 में से कितने नंबर दोगी?’’ बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे रोहित ने अकेले में नीरजा से यह सवाल पूछा था.

‘‘20 नंबर,’’ नीरजा ने हंस कर सवाल का सीधा जवाब देना टाल दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे मम्मीपापा के साथ निभाने में कभी कोई प्रौब्लम नहीं आएगी. वे दोनों बहुत सीधेसच्चे इनसान हैं, नीरजा.’’

‘‘मुझे यह बात सुन कर खुशी हुई, रोहित.’’

‘‘और मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि महक के साथ मैं अपने संबंध कुछ ही दिनों में इतने अच्छे कर लूंगा कि वह मुझे तुम से ज्यादा पसंद करने लगेगी.’’

‘‘तुम्हारे इस दावे ने मेरी खुशियों को और ज्यादा बढ़ा दिया है.’’

‘‘तो फिर मुहूर्त निकलवाने के लिए पंडित से मिल लूं?’’

‘‘जल्दी का काम शैतान का,’’ नीरजा के इस जवाब पर रोहित जोर से हंसा, लेकिन उस की आंखों में उभरे हलकी मायूसी के भाव नीरजा की नजरों से छिपे नहीं रहे.

सावित्री ने खाने में कई चीजें बड़ी मेहनत से बनाई थीं. रोहित ने भरपेट खाना खाया और दिल खोल कर भोजन की तारीफ भी की.

शाम को वह सब को अपनी कार में बाजार घुमाने ले गया. वहां महक की फरमाइश पूरी करते हुए उस ने सब को आइसक्रीम खिलाई. वहां एक शो केस में लगी सुंदर सी फ्राक खरीद कर वह महक को गिफ्ट करना चाहता था, पर नीरजा ने उसे ऐसा नहीं

करने दिया.

‘‘किसी दिन तुम्हारी मम्मी को छोड़ कर यहां आएंगे और खूब सारी चीजें खरीदेंगे,’’ रोहित के इस प्रस्ताव का महक ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.

शाम को विदा होने के समय सावित्री और उमाकांत ने रोहित को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद दिए.

‘‘रोहित अंकल, आप बहुत अच्छे हो. मेरे साथ खेलने के लिए आप जल्दी से फिर

आना,’’ महक से ऐसा निमंत्रण पाने के बाद रोहित ने जब विजयी भाव से नीरजा

की तरफ देखा तो वह प्रसन्न अंदाज में मुसकरा उठी.

आगामी 3 रविवारों को लगातार रोहित इन सब से मिलने आया. उस ने बहुत कम समय में सभी के साथ मधुर संबंध बनाने में अच्छी सफलता प्राप्त की.

‘‘महक बेटे, अगर हम सब साथ रहने लगें तो कैसा रहेगा?’’ रोहित ने खेलखेल में महक से यह सवाल सब के सामने पूछा.

‘‘बहुत मजा आएगा, अंकल,’’ महक की आंखों की खुशी देख कर कोई भी यह कह सकता था कि उसे रोहित अंकल का साथ बहुत अच्छा लगने लगा है. उस दिन जब रोहित अपने घर जाने लगा तो नीरजा ने उस की तारीफ की,

‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी अच्छी तरह से इन तीनों के साथ घुलमिल जाओगे. महक तो तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई है.’’

‘‘अब तुम्हारे मन की सारी चिंताएं खत्म हो गईं न?’’ रोहित ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर पूछा.

‘‘काफी हद तक.’’

‘‘रहीसही कसर भी मैं जल्दी पूरी कर दूंगा, माई डियर. आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारे साथ ढेर सारी बातें करने का मन कर रहा है. चलो, कहीं घूमने चलें.’’

‘‘कहां?’’

‘‘महत्त्व तुम्हारे साथ का है, जगह का नहीं. जहां तुम कहोगी, वहीं चलेंगे.’’

‘‘मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ बड़े अपनेपन से रोहित का हाथ दबाने के बाद नीरजा अपने कमरे की तरफ चली गई.

अपनी मां को बाहर जाने के लिए तैयार होते देख महक साथ चलने के लिए मचल उठी. इस मामले में उस ने न अपने नानानानी की सुनी, न अपनी मां की.

‘‘महक, चलो मैं तुम्हें पहले बाहर घुमा लाता हूं. फिर तो मम्मी को मेरे साथ जाने

दोगी न?’’ रोहित ने उसे लालच दिया पर वह नहीं मानी और साथ चलने की अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘अच्छा, चल. तेरे अंकल ने तुझे जो इतना ज्यादा सिर चढ़ाया हुआ है, तेरा यह जिद्दीपन उसी का नतीजा है,’’ साथ चलने के लिए नीरजा की इजाजत पा कर महक तो खुश हुई पर रोहित का चेहरा यह कह रहा था कि उस का मूड खराब हो गया.

‘‘आई एम सौरी, रोहित. अगली बार मैं पक्का तुम्हारे साथ अकेली घूमने चलूंगी,’’ ऐसा वादा कर नीरजा ने उस का मूड ठीक करने की कोशिश की.

‘‘अगली बार भी महक ऐसे ही झंझट खड़ा करेगी, नीरजा. तुम्हें आज ही उस के साथ सख्ती दिखानी थी,’’ रोहित अभी तक नाखुश नजर आ रहा था.

‘‘सख्ती तो मैं अभी भी दिखा सकती हूं, पर वह रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लेगी.’’

‘‘तो क्या हुआ? बच्चे के रोने के डर से उसे अनुशासनहीन नहीं बनने दिया जा सकता है.’’

‘‘ओ.के. मैं ऐसा ही करती हूं,’’  नीरजा का स्वर सख्त हो गया और उस ने महक को पास बुला कर घर बैठने का हुक्म सुना दिया.

नीरजा का अंदाजा ठीक ही निकला. महक ने खूब जोरजोर से रोना शुरू कर दिया.

‘‘तुम मन कड़ा कर के निकल चलो. हम जल्द ही लौट आएंगे, पर एक बार बाहर जाना महक की सही टे्रनिंग के लिए जरूरी है,’’ रोहित की इस सलाह पर चलते हुए नीरजा अपनी बेटी को रोता छोड़ कर घर से बाहर निकल आई.

इस वक्त शाम के 5 बज रहे थे. रोहित ने किसी रेस्तरां में चल कर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा पर बुझीबुझी सी नजर आ रही नीरजा ने इनकार कर दिया.

‘‘अभी कुछ खानेपीने का दिल नहीं कर रहा है. चलो, किसी पार्क में कुछ देर बैठते

हैं,’’ नीरजा की इच्छा का आदर करते हुए रोहित ने कार एक सुंदर से पार्क के सामने रोक दी.

कुछ देर बाद खामोश और सुस्त नजर आ रही नीरजा ने परेशान लहजे में महक का जिक्र छेड़ा, ‘‘महक मुझ से बहुत ज्यादा अटैच है, रोहित. देखा, आज कितना ज्यादा

रोई है वह साथ आने के लिए. समझ में नहीं आता कि आने वाले समय में यह समस्या कैसे हल होगी?’’

‘‘माई डियर, हर समस्या का समाधान मौजूद है पर इस वक्त तुम महक के बारे में सोचना बंद करो और मुझ से गप्पें मारो,’’

रोहित ने मुसकरा कर अपनी इच्छा बताई तो नीरजा के होंठों पर भी छोटी सी मुसकान उभर आई.

कुछ ही देर में रोहित नीरजा का मूड ठीक करने में सफल हो गया. पार्क में कुछ देर घूमने के बाद वे बाजार आ गए. वहां रोहित ने उसे पसंदीदा सैंट का उपहार दिया. बाद में उन्होंने एक रेस्तरां में कौफी पी. फिर घूमतेटहलते वे बातें करते रहे. उस के साथ बातें करते हुए रोहित का दिल भर ही नहीं रहा था.

तब देर होने लगी तो वे वापस चल पड़े और 9 बजे के बाद घर पहुंचे.

‘‘अब देखना, महक तुम से कितना लड़ेगी,’’ घर में घुसने से पहले तनावग्रस्त नजर आ रही नीरजा ने रोहित को आगाह किया तो वह एकदम से गंभीर हो गया.

‘‘तुम ने शाम को मुझ से जो महक वाली समस्या का हल पूछा था, उस के बारे में मेरे पास एक सुझाव है,’’ रोहित ने गेट के पास नीरजा को रोक कर यह बात कही.

‘‘किस समस्या की बात कर रहे हो?’’ नीरजा ने अपना पूरा ध्यान उसी की तरफ

लगा दिया.

‘‘महक जो तुम से बहुत ज्यादा अटैच है, मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूं.’’

‘‘हां, हां, प्लीज बताओ न कि यह समस्या कैसे हल हो सकती है. आज उसे बुरी तरह रोता देख मैं तो बहुत दुखी हो गई थी.’’

‘‘समस्या का हल तो सीधासादा है पर वह शायद तुम्हें पसंद नहीं आएगा,’’ रोहित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम महक को सचमुच स्वावलंबी बनाना चाहती हो तो उसे होस्टल भेज दो.’’

‘‘वह तो अभी सिर्फ 7 साल की ही है, रोहित,’’ नीरजा चौंक पड़ी.

‘‘तो क्या हुआ? उस से छोटे बच्चे भी होस्टल में जा कर रहते हैं, नीरजा. वहां उस

के व्यक्तित्व का संतुलित विकास होगा और इधर तुम और मैं भी फ्री हो कर हमारी शादी के साथ होने वाली जिंदगी की नई शुरुआत का भरपूर आनंद ले सकेंगे, आपसी संबंधों को मधुर और मजबूत बना सकेंगे,’’ रोहित ने कोमल लहजे में उसे समझाया.

काफी लंबी खामोशी के बाद नीरजा ने धीमे स्वर में उसे अपने मन की चिंता बताई, ‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है पर मेरा दिल बहुत दुखेगा उसे होस्टल भेज कर.’’

‘‘मैं तुम्हें उस से मिलाने के लिए जल्दीजल्दी ले जाया करूंगा.’’

‘‘पक्का वादा करते हो?’’

‘‘बिलकुल पक्का.’’

कुछ लमहों की खामोशी के बाद नीरजा ने कहा, ‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती, नहीं तो एक रास्ता यह भी था कि हमारी शादी होने के बाद कुछ दिनों के लिए महक को उन के पास छोड़ देते. तब उसे होस्टल भेजने की जरूरत भी नहीं रहती.’’

‘‘नहीं, ऐसा करने से यह समस्या हल नहीं होगी, नीरजा. वह आसपास होगी तो उस का रोनाचिल्लाना तुम से सहन नहीं होगा.

शादी के बाद जो एकांत हमें चाहिए, वह नहीं मिल पाएगा, क्योंकि तुम महक को अपने पास बुला लोगी,’’ रोहित को उस का प्रस्ताव जंचा नहीं.

‘‘मुझे लगता है कि मम्मीपापा भी महक को होस्टल भेजने को राजी नहीं होंगे, रोहित,’’ नीरजा और ज्यादा सुस्त हो गई.

‘‘तुम यह क्या कह रही हो,’’ रोहित कुछ नाराज हो उठा, ‘‘उन्हें तुम्हारी बात माननी पड़ेगी. जब मैं भी उन्हें ऐसा करने के फायदे समझाऊंगा तो वे जरूर राजी

हो जाएंगे.’’

‘‘अगर वे फिर भी नहीं माने तो?’’

‘‘बेकार की बात मत करो, नीरजा. अरे, उन्हें तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी. वे तुम्हें नाराज नहीं कर सकते, क्योंकि अपनी देखभाल के लिए वे तुम पर निर्भर करते हैं न कि तुम उन के ऊपर.’’

‘‘उन की देखभाल से याद आया कि हमारी शादी हो जाने के बाद उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहेगा. उन्हें डाक्टर के पास दिखा लाने का काम मैं ही करती हूं. घर का सामान और दवाएं वगैरह मैं ही खरीदती हूं. इस समस्या का भी कोई हल ढूंढ़ना पड़ेगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम, माई डियर. उन दोनों की देखभाल करने वाली सिर्फ एक काबिल मेड हमें ढूंढ़नी पड़ेगी. उस मेड की पगार हम दिया करेंगे तो तुम्हारे पापा की पैंशन भी उन्हें पूरी मिलती रहेगी. कहो, कैसा लगा मेरा सुझाव?’’

‘‘हम दोनों के हिसाब से तो अच्छा है, पर…’’

‘‘परवर के चक्कर में ज्यादा मत घुसो. सिर्फ औरों की ही नहीं, तुम्हें अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए, नीरजा,’’ उसे टोकते हुए रोहित ने सलाह दी.

‘‘क्या अपनी खुशियों के बारे में सोचना स्वार्थीपन नहीं कहलाएगा?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं, अरे, जब मैं खुश नहीं हूं तो किसी अपने की जिंदगी में मैं क्या खाक खुशियां भर सकूंगा?’’ रोहित ने तैश में आ कर यह सवाल पूछा.

‘‘खुशियों के मामले में क्या इतना ज्यादा कुशल हिसाबीकिताबी बनना ठीक रहता है, रोहित?’’

‘‘यार, तुम तो बेकार में बहस किए जा रही हो,’’ रोहित अचानक चिढ़ उठा.

‘‘लो, मैं चुप हो गई,’’ नीरजा ने अपने होंठों पर उंगली रखी और एकाएक ही तनावमुक्त हो कर मुसकराने लगी.

‘‘मेरी बात सुनोगी और मेरे सुझावों पर चलोगी तो हमेशा खुश ही रहोगी.’’

‘‘अब विदा लें?’’

‘‘मैं सब से मिल तो लूं.’’

‘‘आज रहने दो.’’

‘‘ओ.के. गुडनाइट, डियर.’’

‘‘गुडनाइट.’’

नीरजा से हाथ मिलाने के बाद रोहित अपनी कार की तरफ बढ़ गया.

वह उसे विदा कर घर के अंदर आई तो महक उस की छाती से लिपट कर जोरजोर

से रो पड़ी. नीरजा को उसे चुप कराने में काफी देर लगी.

महक के सो जाने के बाद उस ने अपने मम्मीपापा को अपना निर्णय गंभीर स्वर में बता दिया, ‘‘मैं ने रोहित से शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘क्यों?’’ उस के मम्मी व पापा दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘क्योंकि पिछले दिनों जैसे उस ने अपने अच्छे व्यवहार से हम सब का मन जीता था, वह मुझे पाने के लिए किया गया अभिनय भर था. वह अपनी भावनाओं के स्विच को अपने फायदेनुकसान को ध्यान में रख कर खोलने व बंद करने में माहिर है.

‘‘मुझ से शादी हो जाने के बाद वह निश्चित रूप से बदल जाता. तब उसे महक

व आप दोनों बोझ लगने लगते. मैं ने परख लिया है कि हर समस्या को ‘नो प्रौब्लम’

बनाने की कुशलता रोहित के दिमाग को हासिल है. जिस इनसान का दिल उस के दिमाग का पूरी तरह गुलाम हो, मुझे वैसा जीवनसाथी कभी नहीं चाहिए. अब आप दोनों भी उस के साथ मेरी शादी होने के सपने देखना बंद कर देना, प्लीज,’’ अपना यह फैसला सुनाते हुए नीरजा पूरी तरह से तनावमुक्त और शांत नजर आई.

उस ने अपने मम्मीपापा के गले से लग कर प्यार किया. फिर सोफे पर सो रही महक  का माथा कई बार प्यार से चूमने के बाद उस ने उसे गोद में उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी.

जाल: संजीव अनिता से शादी के लिए क्यों मना कर रहा था

बरखा खूबसूरत भी थी और खुशमिजाज भी. पहले ही दिन से उस ने अपने हर सहयोगी के दिल में जगह बना ली. सब से पक्की सहेली वह अनिता की बनी क्योंकि हर कदम पर अनिता ने उस की सहायता की थी. जब भी फालतू वक्त मिलता  दोनों हंसहंस कर खूब बातें करतीं.

उन दिनों अनिता का प्रेमी संजीव 15 दिनों की छुट्टी पर चल रहा था. इन दोनों की दोस्ती की जड़ों को मजबूत होने के लिए इतना समय पर्याप्त रहा.

संजीव के लौटने पर अनिता ने सब से पहले उस का परिचय बरखा से कराया.

‘‘क्या शानदार व्यक्तित्व है तुम्हारा, संजीव,’’ बरखा ने बड़ी गर्मजोशी के साथ जब संजीव से हाथ मिलाया तब ये तीनों अपने सारे सहयोगियों की नजरों का केंद्र बने हुए थे.

‘‘थैंक यू,’’ अपनी प्रशंसा सुन संजीव खुल कर मुसकराया.

‘‘अनिता, इतने स्मार्ट इंसान को जल्दी से जल्दी शादी के बंधन में बांध ले, नहीं तो कोई और छीन कर ले जाएगी,’’ बरखा ने अपनी सहेली को सलाह दी.

‘‘सहेली, तेरे इरादे तो नेक हैं न?’’ नाटकीय अंदाज में आंखें मटकाते हुए अनिता ने सवाल पूछा, तो कई लोगों के सम्मिलित ठहाके से हौल गूंज उठा.

पहले संजीव और अनिता साथसाथ अधिकतर वक्त गुजारते थे. अब बरखा भी इन के साथ नजर आती. इस कारण उन के  सहयोगियों को बातें बनाने का मौका मिल गया.

‘‘ये बरखा बड़ी तेज और चालू लगती है मुझे तो,’’ शिल्पा ने अंजु से अपने मन की बात कह दी थी, ‘‘वह अनिता से ज्यादा सुंदर और आकर्षक भी है. मेरी समझ से भूसे और

चिंनगारी को पासपास रखना अनिता की बहुत बड़ी मूर्खता है.’’

‘मेरा अंदाजा तो यह है कि संजीव को अनिता ने खो ही दिया है. उस का झुकाव बरखा की तरफ ज्यादा हो गया है, यह बात मुझे तो साफ नजर आती है, ’’ अंजु ने फौरन शिल्पा की हां में हां मिलाते हुए बोली.

अनिता से इस विषय पर गंभीरता से बात सुमित्राजी ने एक दिन अकेले में की. तब बरखा और संजीव कैंटीन से समोसे लाने गए हुए थे.

‘‘तुम संजीव से शादी कब कर रही हो?’’ बिना वक्त बरबाद किए सुमित्रा ने मतलब की बात शुरू की.

‘‘आप को तो पता है कि संजीव पहले एम.बी.ए. पूरा करना चाहता है और उस में अभी साल भर बाकी है,’’ अनिता ने अपनी बात पूरी कर के गहरी सांस छोड़ी.

‘‘यही कारण बता कर 2 साल से तुझे लटकाए हुए है. मैं पूछती हूं कि वह शादी कर के क्या आगे नहीं पढ़ सकता है?’’

‘‘मैडम जब मैं ने 2 साल इंतजार कर लिया है तो 1 साल और सही.’’

‘‘बच्चों जैसी बातें मत कर,’’ सुमित्रा तैश में आ गईं, ‘‘मैं ने दुनिया देखी है. संजीव के रंगढंग ठीक नहीं लग रहे हैं मुझे. उसे बरखा के साथ ज्यादा मत रहने दिया कर.’’

‘‘मैडम, आप इस के बारे में चिंतित न हों. मुझे संजीव और बरखा दोनों पर विश्वास है.’’

‘यों आंखें मूंद कर विश्वास करने वाला इंसान ही जिंदगी में धोखा खाता है, मेरी बच्ची.’’

‘उन के आपस में खुल कर हंसनेबोलने का गलत अर्थ लगाना उचित नहीं है, मैडम. बरखा तो अपने को संजीव की साली मानती है. अपने भावी जीवनसाथी या छोटी बहन पर शक करने को मेरा मन कभी राजी नहीं होगा.’’

‘‘देख, साली को आधी घर वाली दुनिया कहती ही है. तुम ध्यान रखो कि कहीं बरखा तुम्हारा पत्ता साफ कर के पूरी घर वाली ही न बन जाए,’’ अनिता को यों आगाह कर के सुमित्रा खामोश हो गईं, क्योंकि संजीव और बरखा कैंटीन से लौट आए थे.

संजीव और बरखा के निरंतर प्रगाढ़ होते जा रहे संबंध को ले कर कभी किसी ने अनिता को चिंतित, दुखी या नाराज नहीं देखा. उस के हर सहयोगी ने हंसीमजाक, व्यंग्य या गंभीरता का सहारा ले कर उसे समझाया, पर कोई भी अनिता के मन में शक का बीज नहीं बो पाया. जो सारे औफिस वालों को नजर आ रहा था, उसे सिर्फ अनिता ही नहीं देख पा रही थी.

पहले पिक्चर देखने, बाजार घूमने या बाहर खाना खाने तीनों साथ जाते थे. फिर एक दिन बरखा और संजीव को मार्केट में घूमते शिल्पा ने देखा. उस ने यह खबर अनिता सहित सब तक फैला दी.

खबर सुनने के बाद अनिता के हावभाव ने यह साफ दर्शाया कि उसे दोनों के साथसाथ घूमने जाने की कोई जानकारी नहीं थी. उस ने सब के सामने ही संजीव और बरखा से ऊंची आवाज में पूछा, ‘‘कल तुम दोनों मुझे छोड़ कर बाजार घूमने क्यों गए?’’

‘‘तेरा बर्थडे गिफ्ट लाने के लिए, सहेली,’’ बरखा ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, ‘‘अब ये बता कि हम सब को परसों इतवार को पार्टी कहां देगी?’’

बरखा का जवाब सुन कर अनिता ने अपने सहयोगियों की तरफ यों शांत भाव से मुसकराते हुए देखा मानो कह रही हो कि तुम सब बेकार का शक करने की गलत आदत छोड़ दो.

अनिता तो फिर सहज हो कर हंसनेबोलने लगी, पर बाकी सब की नजरों में बरखा की छवि बेहद चालाक युवती की हो गई और संजीव की नीयत पर सब और ज्यादा शक करने लगे.

बरखा ने अनिता के जन्मदिन की पार्टी का आयोजन अपने घर में किया.

‘‘आप सब को मैं अपने घर लंच पर बुलाना चाहती ही थी. मेरे मम्मीपापा सब से मिलना चाहते हैं. अनिता के जन्मदिन की पार्टी मेरे घर होने से एक पंथ दो काज हो जाएंगे,’’ ऐसा कह कर बरखा ने सभी सहयोगियों को अपने घर बुला लिया.

बरखा के पिता के बंगले में कदम रखते ही उस के सहयोगियों को उन की अमीरी का एहसास हो गया. बंगले की शानोशौकत देखते ही बनती थी.

बड़े से ड्राइंगहौल में पार्टी का आयोजन हुआ. वहां कालीन हटा कर डांसफ्लोर बनाय गया था. खानेपीने की चीजें जरूरत से ज्यादा थीं. घर के 2 नौकर सब की आवभगत में जुटे हुए थे.

पार्टी के बढि़या आयोजन से अनिता बेहद प्रसन्न नजर आ रही थी. बरखा और उस के मातापिता को धन्यवाद देते उस की जबान थकी नहीं.

‘‘ये मेरे जन्मदिन पर अब तक हुई 24 पार्टियों में बैस्ट है,’’ कहते हुए अनिता को जब भी मौका मिलता वह भावविभोर हो बरखा के गले लग जाती.

इस अवसर पर उन के सहयोगियों की पैनी दृष्टियों ने बहुत सी चटपटी बातें नोट की थीं. यह भी साफ था कि जो ऐसी बातें नोट कर रहे थे. वह सब अनिता की नजरों से छिपा था.

बंगले का ठाठबाट देख कर संजीव की नजरों में उभरे लालच के भाव सब ने साफ पढ़े. बरखा के मातापिता के साथ संजीव का खूब घुलमिल कर बातें करना उन्होंने बारबार देखा.

अनिता से कहीं ज्यादा संजीव बरखा को महत्त्व दे रहा था. वह उसी के साथ सब से ज्यादा नाचा. किसी के कहने का फिक्र न कर वह बरखा के आगेपीछे घूम रहा था.

अनिता से उस दिन किसी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि कोई भी उस की खुशी को नष्ट करने का कारण नहीं बनना चाहता था.

वैसे उस दिन के बाद से किसी को अनिता को समझाने या आगाह करने की जरूरत नहीं पड़ी. संजीव ने सब तरह की लाजशर्म त्याग कर बरखा को खुलेआम फ्लर्ट करना शुरू कर दिया.

बेचारी अनिता ही जबरदस्ती उन दोनों के साथ चिपकी रहती. उस की मुसकराहट सब को नकली प्रतीत होती. वह सब की हमदर्दी की पात्र बनती जा रही थी, लेकिन अब भी क्या मजाल कि उस के मुंह से संजीव या बरखा की शिकायत में एक शब्द भी निकल आए.

‘‘तुम सब का अंदाज बिलकुल गलत है. संजीव मुझे कभी धोखा नहीं देगा, देख लेना,’’ उस के मुंह से ऐसी बात सुन कर लगभग हर व्यक्ति उस की बुद्धि पर खूब तरस खाता.

जन्मदिन की पार्टी के महीने भर बाद स्थिति इतनी बदल गई कि संजीव को बरखा के रूपजाल का पक्का शिकार हुआ समझ लिया गया. अनिता की उपस्थिति की फिक्र किए बिना संजीव खूब खुल कर बरखा से हंसताबोलता. ऐसा लगता था कि उस ने अनिता से झगड़ा कर के संबंधविच्छेद करने का मन बना लिया था.

लेकिन सब की अटकलें धरी की धरी रह गई जब अचानक ही बड़े सादे समारोह में संजीव ने अनिता से शादी कर ली. बरखा उन की शादी में शामिल नहीं हुई. वह अपनी मौसी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए 20 दिन की छुट्टी ले कर मुंबई गई हुई थी.

यों जल्दीबाजी में संजीव का अनिता से शादी करने का राज किसी की समझ में नहीं आया.

लोगों के सीधा सवाल पूछने पर संजीव मुसकान होंठों पर ला कर कहता, ‘‘बरखा से हंसनेबोलने का मतलब यह कतई नहीं था कि मैं अनिता को धोखा दूंगा. आप सब ऐसा सोच भी कैसे सके? अरे, अनिता में तो मेरी जान बसती है और अब मैं उस से दूर रहना नहीं चाहता था.’’

अनिता की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस से कोई बरखा के साथ संजीव का जिक्र करता तो वह खूब हंसती.

‘‘अरे, तुम सब बेकार की चिंता करते थे. देखो, न तो मेरी छोटी बहन जैसी सहेली ने और न ही मेरे मंगेतर ने मुझे धोखा दिया. मुझे अपने प्यार पर पूरा विश्वास था, है और रहेगा.’’

उसे शुभकामनाएं देते हुए लोग बड़ी कठिनाई से ही अपनी हैरानी को काबू में रख पाते. संजीव और बरखा का चक्कर क्यों अचानक समाप्त हो गया, इस का कोई सही अंदाजा भी नहीं लगा पा रहा था.

दोनों सप्ताह भर का हनीमून शिमला में मना कर लौटे. बरखा ने फोन कर के अनिता को बता दिया कि वह शाम को दोनों से मिलने आ रही है.

उस के आने की खबर सुन कर संजीव अचानक विचलित नजर आने लगा. अनिता की नजरों से उस की बेचैनी छिपी नहीं रही.

‘‘किस वजह से टैंशन में नजर आ रहे हो, संजीव?’’ कुछ देर बाद हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपने सामने बैठाते हुए अनिता ने संजीव से सवाल पूछ ही लिया.

बहुत ज्यादा झिझकते हुए संजीव ने उस से अपने मन की परेशानी बयान की.

‘‘देखो, तुम बरखा की किसी बात पर विश्वास मत करना… वह तुम्हें उलटीसीधी बातें बता कर मेरे खिलाफ भड़काने की कोशिश कर सकती है,’’ बोलते हुए संजीव बड़ा बेचैन नजर आ रहा था.

‘‘वह ऐसा काम क्यों करेगी, संजीव? मुझे पूरी बात बताओ न.’’

‘‘वह बड़ी चालू लड़की है, अनिता. तुम उस के कहे पर जरा भी विश्वास मत करना.’’

‘‘पर वह ऐसा क्या कहेगी जिस के कारण तुम इतने परेशान नजर आ रहे हो?’’

‘‘उस दिन उस ने पहले मुझे उकसाया… मेरी भावनाओं को भड़काया और फिर… और फिर…’’ आंतरिक द्वंद्व के चलते संजीव आगे नहीं बोल सका.

‘‘किस दिन की बात कर रहे हो? क्या उस दिन की जब तुम उसे घर छोड़ने गए थे क्योंकि उसे स्टेशन जाना था?’’

‘‘हां.’’

‘‘जब तुम उस के घर पहुंचे, तब उस के मम्मीपापा घर में नहीं थे. तब अपने कमरे में ले जा कर उस ने पहले तुम्हारी भावनाओं को भड़काया और जब तुम ने उसे बांहों में भरना चाहा, तो नाराज हो कर तुम्हें उस ने खूब डांटा, यही बताना चाह रहे हो न तुम मुझे?’’ उस के चेहरे को निहारते हुए अनिता रहस्यमयी अंदाज में हौले से मुसकरा रही थी.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह फोन कर के पहले ही तुम्हें मेरे खिलाफ भड़का चुकी है,’’ गुस्सा दर्शाने का प्रयास कर रहे संजीव का चेहरा पीला भी पड़ गया था.

‘‘मेरे प्यारे पतिदेव, न उस ने मुझे भड़काने की कोशिश की है और न ही मुझे आप से कोई नाराजगी या शिकायत है. सच तो यह है कि मैं बरखा की आभारी हूं,’’ अनिता की मुसकराहट और गहरी हो गई.

‘‘ये क्या कह रही हो?’’ संजीव हैरान हो उठा.

‘‘देखिए, बरखा ने अगर आप के गलत व्यवहार की सारी जानकारी मुझे देने की धमकी न दी होती… और इस कारण आप के मन में मुझे हमेशा के लिए खो देने का भय न उपजा होता, तो क्या यों झटपट मुझ से शादी करते?’’ यह सवाल पूछने के बाद अनिता खिलखिला कर हंसी तो संजीव अजीब सी उलझन का शिकार बन गया.

‘‘मैं ने कभी तुम से शादी करने से इनकार नहीं किया था,’’ संजीव ने ऊंची आवाज में सफाई सी दी.

‘‘मुझे आप के ऊपर पूरा विश्वास है और सदा रहेगा,’’ अनिता ने आगे झुक संजीव के गाल पर प्यार भरा चुंबन अंकित कर दिया.

‘‘मुझ से तुम्हें भविष्य में कभी वैसी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा, अनिता,’’ संजीव ने उस से फौरन वादा किया.

‘‘उस तरफ से मैं बेफिक्र हूं क्योंकि किसी तितली ने कभी तुम्हारे नजदीक आने की कोशिश की तो मैं उस का चेहरा बिगाड़ दूंगी,’’ अचानक ही अनिता की आंखों में उभरे कठोरता के भाव संजीव ने साफ पहचाने और इस कारण उस ने अपने बदन में अजीब सी झुरझुरी महसूस की.

‘‘क्या बरखा से संबंध समाप्त कर लेना हमारे लिए अच्छा नहीं रहेगा?’’ उस ने दबे स्वर में पूछा.

‘‘वैसा करने की क्या जरूरत है हमें, जनाब?’’ अनिता उस की आंखों में आंखें डाल कर शरारती ढंग से मुकराई, ‘‘मुझे आप और अपनी छोटी बहन सी प्यारी सहेली दोनों पर पूरा विश्वास है. फिर उसे धन्यवाद देने का यह तो बड़ा गलत तरीका होगा कि मैं उस से दूर हो जाऊं.’’

संजीव ने लापरवाही से कंधे उचकाए पर उस का मन बेचैन व परेशान बना ही रहा. बाद में बरखा उन के घर आई तो वह संजीव के लिए सुंदर सी कमीज व अनिता के लिए खूबसूरत बैग उपहार में लाई थी. वह संजीव के साथ बड़ी प्रसन्नता से मिली. कोई कह नहीं सकता था कि कुछ हफ्ते पहले दोनों के बीच बड़ी जोर से झगड़ा हुआ था.

अनिता और बरखा पक्की, विश्वसनीय सहेलियों की तरह मिलीं. जरा सा भी खिंचाव दोनों के व्यवहार में संजीव पकड़ नहीं पाया.

जल्दी ही वह भी उन के साथ सहजता से हंसनेबोलने लगा. वैसे वह उन की मानसिकता को समझ नहीं पा रहा था क्योंकि उस के हिसाब से उन दोनों को उस से गहरी नाराजगी व शिकायत होनी चाहिए थी.

‘जो कुछ उस दिन बरखा के घर में घटा, वह कहीं इन दोनों की मिलीभगत से फैलाया ऐसा जाल तो नहीं था जिस में फंस कर उसे अनिता से फटाफट शादी करनी पड़ी?’ अचानक ही यह सवाल उस के मन में बारबार उठने लगा और उस का दिल कह रहा था कि जवाब ‘ऐसा ही हुआ है’ होना चाहिए.

बरसी मन गई : कैसे मनाई शीला ने बरसी

इधर कई दिनों से मैं बड़ी उलझन में थी. मेरे ससुर की बरसी आने वाली थी. मन में जब सोचती तो इसी नतीजे पर पहुंचती कि बरसी के नाम पर पंडितों को बुला कर ठूंसठूंस कर खिलाना, सैकड़ों रुपयों की वस्तुएं दान करना, उन का फिर से बाजार में बिकना, न केवल गलत बल्कि अनुचित कार्य है. इस से तो कहीं अच्छा यह है कि मृत व्यक्ति के नाम से किसी गरीब विद्यार्थी को छात्रवृत्ति दे दी जाए या किसी अस्पताल को दान दे दिया जाए.

यों तो बचपन से ही मैं अपने दादादादी का श्राद्ध करने का पाखंड देखती आई थी. मैं भी उस में मजबूरन भाग लेती थी. खाना भी बनाती थी. पिताजी तो श्राद्ध का तर्पण कर छुट्टी पा जाते थे. पर पंडित व पंडितानी को दौड़दौड़ कर मैं ही खाना खिलाती थी. जब से थोड़ा सा होश संभाला था तब से तो श्राद्ध के दिन पंडितजी को खिलाए बिना मैं कुछ खाती तक नहीं थी. पर जब बड़ी हुई तो हर वस्तु को तर्क की कसौटी पर कसने की आदत सी पड़ गई. तब मन में कई बार यह प्रश्न उठ खड़ा होता, ‘क्या पंडितों को खिलाना, दानदक्षिणा देना ही पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है?’

हमारे यहां दादाजी के श्राद्ध के दिन पंडितजी आया करते थे. दादीजी के श्राद्ध के दिन अपनी पंडितानी को भी साथ ले आते थे. देखने में दोनों की उम्र में काफी फर्क लगता था. एक  दिन महरी ने बताया कि  यह तो पंडितजी की बहू है. बड़ी पंडितानी मर चुकी है. कुछ समय बाद पंडितजी का लड़का भी चल बसा और पंडितजी ने बहू को ही पत्नी बना कर घर में रख लिया.

मन एक वितृष्णा से भर उठा था. तब लगा विधवा विवाह समाज की सचमुच एक बहुत बड़ी आवश्यकता है. पंडितजी को चाहिए था कि बहू के योग्य कोई व्यक्ति ढूंढ़ कर उस का विवाह कर देते और तब वे सचमुच एक आदर्श व्यक्ति माने जाते. पर उन्होंने जो कुछ किया, वह अनैतिक ही नहीं, अनुचित भी था. बाद में सुना, उन की बहू किसी और के साथ भाग गई.

मन में विचारों का एक अजीब सा बवंडर उठ खड़ा होता. जिस व्यक्ति के प्रति मन में मानसम्मान न हो, उसे अपने पूर्वज बना कर सम्मानित करना कहां की बुद्धिमानी है. वैसे बुढ़ापे में पंडितजी दया के पात्र तो थे. कमर भी झुक गई थी, देखभाल करने वाला कोई न था. कभीकभी चौराहे की पुलिया पर सिर झुकाए घंटों बैठे रहते थे. उन की इस हालत पर तरस खा कर उन की कुछ सहायता कर देना भिन्न बात थी, पर उन की पूजा करना किसी भी प्रकार मेरे गले न उतरता था.

अपने विद्यार्थी जीवन में तो इन बातों की बहुत परवा न थी, पर अब मेरा मन एक तीव्र संघर्ष में जकड़ा हुआ था. इधर जब से मैं ने एक महिला रिश्तेदार की बरसी पर दी गई वस्तुओं के लिए पंडितानियों को लड़तेझगड़ते देखा तो मेरा मन और भी खट्टा हो गया था. पर क्या करूं ससुरजी की मृत्यु के बाद से हर महीने उसी तिथि पर एक ब्राह्मण को तो खाना खिलाया ही जा रहा था.

मैं ने एक बार दबी जबान से इस का विरोध करते हुए अपनी सास से कहा कि बाबूजी के नाम पर कहीं और पैसा दिया जा सकता है पर उन्होंने यह कह कर मेरा मुंह बंद कर दिया कि सभी करते हैं. हम कैसे अपने रीतिरिवाज छोड़ दें.

मेरी सास वैसे ही बहुत दुखी थीं. जब से ससुरजी की मृत्यु हुई थी, वे बहुत उदास रहती थीं, अकसर रोने लगती थीं. कहीं आनाजाना भी उन्होंने छोड़ दिया था. सो, उन्हें अपनी बातों से और दुखी करने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. पर दूसरी ओर मन अपनी इसी बात पर डटा हुआ था कि जब हम चली आ रही परंपराओं की निस्सारता समझते हैं और फिर भी आंखें मूंद कर उन का पालन किए जाते हैं तो हमारे यह कहने का अर्थ ही क्या रह जाता है कि हम जो कुछ भी करते हैं, सोचसमझ कर और गुणदोष पर विचार कर के करते हैं.

मैं ने अपने पति से कहा कि वे अम्माजी से बात करें और उन्हें समझाने का प्रयत्न करें. पर उन की तरफ से टका सा जवाब मिल गया, ‘‘भई, यह सब तुम्हारा काम है.’’

वास्तव में मेरे पति इस विषय में उदासीन थे. उन्हें बरसी मनाने या न मनाने में कोई एतराज न था. अब तो सबकुछ मुझे ही करना था. मेरे मन में संघर्ष होता रहा. अंत में मुझे लगा कि अपनी सास से इस विषय में और बात करना, उन से किसी प्रकार की जिद कर के उन के दुखी मन को और दुखी करना मेरे वश की बात नहीं. सो, मैं ने अपनेआप को जैसेतैसे बरसी मनाने के लिए तैयार कर लिया.

हम लोग आदर्शों की, सुधार की कितनी बड़ीबड़ी बातें करते हैं. दुनियाभर को भाषण देते फिरते हैं. लेकिन जब अपनी बारी आती है तो विवश हो वही करने लगते हैं जो दूसरे करते हैं और जिसे हम हृदय से गलत मानते हैं. मेरे स्कूल में वादविवाद प्रतियोगिता हो रही थी. उस में 5वीं कक्षा से ले कर 10वीं कक्षा तक की छात्राएं भाग ले रही थीं. प्रश्न उठा कि मुख्य अतिथि के रूप में किसे आमंत्रित किया जाए. मैं ने प्रधानाध्यापिका के सामने अपनी सास को बुलाने का प्रस्ताव रखा, वे सहर्ष तैयार हो गईं.

पर मैं ने अम्माजी को नहीं बताया. ठीक कार्यक्रम से एक दिन पहले ही बताया. अगर पहले बताती तो वे चलने को बिलकुल राजी न होतीं. अब अंतिम दिन तो समय न रह जाने की बात कह कर मैं जोर भी डाल सकती थी.

अम्माजी रामचरितमानस पढ़ रही थीं. मैं ने उन के पास जा कर कहा, ‘‘अम्माजी, कल आप को मेरे स्कूल चलना है, मुख्य अतिथि बन कर.’’

‘‘मुझे?’’ अम्माजी बुरी तरह चौंक पड़ीं, ‘‘मैं कैसे जाऊंगी? मैं नहीं जा सकती.’’

‘‘क्यों नहीं जा सकतीं?’’

‘‘नहीं बहू, नहीं? अभी तुम्हारे बाबूजी की बरसी भी नहीं हुई है. उस के बाद ही मैं कहीं जाने की सोच सकती हूं. उस से पहले तो बिलकुल नहीं.’’

‘‘अम्माजी, मैं आप को कहीं विवाहमुंडन आदि में तो नहीं ले जा रही. छोटीछोटी बच्चियां मंच पर आ कर कुछ बोलेंगी. जब आप उन की मधुर आवाज सुनेंगी तो आप को अच्छा लगेगा.’’

‘‘यह तो ठीक है. पर मेरी हालत तो देख. कहीं अच्छी लगूंगी ऐसे जाती हुई?’’

‘‘हालत को क्या हुआ है आप की? बिलकुल ठीक है. बच्चों के कार्यक्रम में किसी बुजुर्ग के आ जाने से कार्यक्रम की रौनक और बढ़ जाती है.’’

‘‘मुझे तो तू रहने ही दे तो अच्छा है. किसी और को बुला ले.’’

‘‘नहीं, अम्माजी, नहीं. आप को चलना ही होगा,’’ मैं ने बच्चों की तरह मचलते हुए कहा, ‘‘अब तो मैं प्रधानाध्यापिका से भी कह चुकी हूं. वे क्या सोचेंगी मेरे बारे में?’’

‘‘तुझे पहले मुझ से पूछ तो लेना चाहिए था.’’

‘‘मुझे मालूम था. मेरी अच्छी अम्माजी मेरी बात को नहीं टालेंगी. बस, इसीलिए नहीं पूछा था.’’

‘‘अच्छा बाबा, तू मानने वाली थोड़े ही है. खैर, चली चलूंगी. अब तो खुश है न?’’

‘‘हां अम्माजी, बहुत खुश हूं,’’ और आवेश में आ कर अम्माजी से लिपट गई. दूसरे दिन मैं तो सुबह ही स्कूल आ गई थी. अम्माजी को बाद में ये नियत समय पर स्कूल छोड़ गए थे. एकदम श्वेत साड़ी से लिपटी अम्माजी बड़ी अच्छी लग रही थीं.

ठीक समय पर हमारा कार्यक्रम शुरू हो गया. प्रधानाध्यापिका ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आज मुझे श्रीमती कस्तूरी देवी का मुख्य अतिथि के रूप में स्वागत करते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है. उन्होंनेअपने दिवंगत पति की स्मृति में स्कूल को

2 ट्रौफियां व 10 हजार रुपए प्रदान किए हैं. ट्रौफियां 15 वर्षों तक चलेंगी और वादविवाद व कविता प्रतियोगिता में सब से अधिक अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं को दी भी जाएंगी. 10 हजार रुपयों से 25-25 सौ रुपए 4 वषोें तक हिंदी में सब से अधिक अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं को दिए जाएंगे. मैं अपनी व स्कूल की ओर से आग्रह करती हूं कि श्रीमती कस्तूरीजी अपना आसन ग्रहण करें.’’

तालियों की गड़गड़ाहट से हौल गूंज उठा. मैं कनखियों से देख रही थी कि सारी बातें सुन कर अम्माजी चौंक पड़ी थीं. उन्होंने मेरी ओर देखा और चुपचाप मुख्य अतिथि के आसन पर जा बैठी थीं. मैं ने देखा, उन की आंखें छलछला आई हैं, जिन्हें धीरे से उन्होंने पोंछ लिया.

सारा कार्यक्रम बड़ा अच्छा रहा. छात्राओं ने बड़े उत्साह से भाग लिया. अंत में विजयी छात्राओं को अम्माजी के हाथों पुरस्कार बांटे गए. मैं ने देखा, पुरस्कार बांटते समय उन की आंखें फिर छलछला आई थीं. उन के चेहरे से एक अद्भुत सौम्यता टपक रही थी. मुझे उन के चेहरे से ही लग रहा था कि उन्हें यह कार्यक्रम अच्छा लगा.

अब तक तो मैं स्कूल में बहुत व्यस्त थी. लेकिन कार्यक्रम समाप्त हो जाने पर मुझे फिर से बरसी की याद आ गई.

दूसरे दिन मैं ने अम्माजी से कहा, ‘‘अम्माजी, बाबूजी की बरसी को 15 दिन रह गए हैं. मुझे बता दीजिए, क्याक्या सामान आएगा. जिस से मैं सब सामान समय रहते ही ले आऊं.’’

‘‘बहू, बरसी तो मना ली गई है.’’

‘‘बरसी मना ली गई है,’’ मैं एकदम चौंक पड़ी, ‘‘अम्माजी, आप यह क्या कह रही हैं?’’

‘‘हां, शीला, कल तुम्हारे स्कूल में ही तो मनाईर् गई थी. कल से मैं बराबर इस बारे में सोच रही हूं. मेरे मन में बहुत संघर्ष होता रहा है. मेरी आंखों के सामने रहरह कर 2 चित्र उभरे हैं. एक पंडितों को ठूंसठूंस कर खाते हुए, ढेर सारी चीजें ले जाते हुए. फिर भी बुराई देते हुए, झगड़ते हुए. मैं ने बहुत ढूंढ़ा पर उन में तुम्हारे बाबूजी कहीं भी न दिखे.’’

‘‘दूसरा चित्र है   उन नन्हींनन्हीं चहकती बच्चियों का, जिन के चेहरों से अमित संतोष, भोलापन टपक रहा है, जो तुम्हारे बाबूजी के नाम से दिए गए पुरस्कार पा कर और भी खिल उठी हैं, जिन के बीच जा कर तुम्हारे बाबूजी का नाम अमर हो गया है.’’

मैं ने देखा अम्माजी बहुत भावुक हो उठी हैं.

‘‘शीला, तू ने कितने रुपए खर्च किए?’’

‘‘अम्माजी, 11 हजार रुपए. 5-5 सौ रुपए की ट्रौफी और 10 हजार रुपए नकद.’’

‘‘तू ने ठीक समय पर इतने सुंदर व अर्थपूर्ण ढंग से उन की बरसी मना कर मेरी आंखें खोल दीं.’’

‘‘ओह, अम्माजी.’’ मैं हर्षातिरेक में उन से लिपट गई. तभी ये आ गए, बोले, ‘‘अच्छा, आज तो सासबहू में बड़ा प्रेमप्रदर्शन हो रहा है.’’

‘‘अच्छाजी, जैसे हम लड़ते ही रहते हैं,’’ मैं उठते हुए बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली.

ये धीरे से मेरे कान में बोले, ‘‘लगता है तुम्हें अपने मन का करने में सफलता मिल गई है.’’

‘‘हां.’’

‘‘जिद्दी तो तुम हमेशा से हो,’’ ये मुसकरा पड़े, ‘‘ऐसे ही जिद कर के तुम ने मुझे भी फंसा लिया था.’’

‘‘धत्,’’ मैं ने कहा और मेरी आंखें एक बार फिर अम्माजी के चमकते चेहरे की ओर उठ गईं.

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