खाली हाथ : जातिवाद के चलते जब प्रेमी अनुरोध पहुंचा पागलखाने

आगरापूरी दुनिया में ‘ताजमहल के शहर’ के नाम से मशहूर है. इसी शहर में स्थित है मानसिक रोगियों के उपचार के लिए मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय. इस संस्थान को कई भारतीय हिंदी फिल्मों में प्रमुखता से दिखाया गया है, हालांकि सच्चाई यह है कि न जाने कितनी भयानक और दुखद कहानियां दफन हैं इस की दीवारों में. आरोही को इस संस्थान में आए 2 महीने ही हुए थे. वह मनोचिकित्सक थी. इस के पहले वह कई निजी अस्पतालों में काम कर चुकी थी. अपनी काबिलीयत और मेहनत के बल पर उस का चयन सरकारी अस्पताल में हो गया था. उस से ज्यादा उस का परिवार इस बात से बहुत खुश था. वैसे भी भारत में आज भी खासकर मध्य वर्ग में सरकारी नौकरी को सफलता का सर्टिफिकेट माना जाता है. आरोही अपना खुद का नर्सिंगहोम खोलना चाहती थी. इस के लिए सरकारी संस्थान का अनुभव होना फायदेमंद रहता है. इसी वजह से वह अपनी मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर यहां आ गई थी.

वैसे आरोही के घर से दूर आने की एक वजह और भी थी. वह विवाह नहीं करना चाहती थी और यह बात उस का परिवार समझने को तैयार नहीं था. यहां आने के बाद भी रोज उस की मां लड़कों की नई लिस्ट सुनाने के लिए फोन कर देती थीं. जब आरोही विवाह करना चाहती थी तब तो जातबिरादरी की दीवार खड़ी कर दी गई थी और अब जब उस ने जीवन के 35 वसंत देख लिए और उस के छोटे भाई ने विधर्मी लड़की से विवाह कर लिया तो वही लोग उसे किसी से भी विवाह कर लेने की आजादी दे रहे हैं. समय के साथ लोगों की प्राथमिकता भी बदल जाती है. आरोही उन्हें कैसे समझाती कि-

‘सूखे फूलों से खुशबू नहीं आती, किताबों में बंद याद बन रह जाते हैं’ या ‘नींद खुलने पर सपने भी भाप बन उड़ जाते हैं.’

‘‘मैडम,’’

‘‘अरे लता, आओ.’’

‘‘आप कुछ कर रही हैं तो मैं बाद में आ जाती हूं.’’

आरोही ने तुरंत अपनी डायरी बंद कर दी और बोली, ‘‘नहींनहीं कुछ नहीं. तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘216 नंबर बहुत देर से रो रहा है. किसी की भी बात नहीं सुन रहा. आज सिस्टर तबस्सुम भी छुट्टी पर हैं इसलिए…’’

‘‘216 नंबर… यह कैसा नाम है?’’

‘‘वह… मेरा मतलब है बैड नंबर 216.’’

‘‘अच्छा… चलो देखती हूं.’’

चलतेचलते ही आरोही ने जानकारी के लिए पूछ लिया, ‘‘कौन है?’’

‘‘एक प्रोफैसर हैं. बहुत ही प्यारी कविताएं सुनाते हैं. बातें भी कविताओं में ही करते हैं. वैसे तो बहुत शांत हैं, परेशान भी ज्यादा नहीं करते हैं, पर कभीकभी ऐसे ही रोने लगते हैं.’’

‘‘सुनने में तो बहुत इंटरैस्टिंग कैरेक्टर लग रहे हैं.’’

कमरे में दाखिल होते ही आरोही ने देखा कोई 35-40 वर्ष का पुरुष बिस्तर पर अधलेटा रोए जा रहा था.

‘‘सुनो तुम…’’

‘‘आप रुकिए मैडम, मैं बोलती हूं…’’

‘‘हां ठीक है… तुम बोलो.’’

‘‘अनुरोध… रोना बंद करो. देखो मैडम तुम से मिलने आई हैं.’’

इस नाम के उच्चारण मात्र से आरोही परेशान हो गई थी. मगर जब वह पलटा तो सफेद काली और घनी दाढ़ी के बीच भी आरोही ने अनुरोध को पहचान लिया. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह चेतनाशून्य हो कर वहीं गिर गई. होश आने पर वह अपने क्वार्टर में थी. उस के आसपास हौस्पिटल का स्टाफ खड़ा था. सीनियर डाक्टर भी थे.

‘‘तुम्हें क्या हो गया था आरोही?’’ डाक्टर रमा ने पूछा.

‘‘अब कैसा फील कर रही हो?’’ डाक्टर सुधीर के स्वर में भी चिंता झलक रही थी.

‘‘हां मैडम, मैं तो डर ही गई थी… आप को बेहोश होता देख वह पेशैंट भी अचानक चुप हो गया था.’’

‘‘मुझे माफ करना लता और आप सब भी, मेरी वजह से परेशान हो गए…’’

‘‘डोंट बी सिली आरोही. तुम अब

आराम करो हम सब बाद में आते हैं,’’ डाक्टर सुधीर बोले.

‘‘जी मैडम, और किसी चीज की जरूरत हो तो आप फोन कर देना.’’

उन के जाने बाद आरोही ने जितना सोने की कोशिश की उतना ही वह समय उस के सामने जीवंत हो गया, जब आरोही और अनुरोध साथ थे. आरोही और अनुरोध बचपन से साथ थे. स्कूल से कालेज का सफर दोनों ने साथ तय किया था. कालेज में भी उन का विषय एक था- मनोविज्ञान. इस दौरान उन्हें कब एकदूसरे से प्रेम हो गया, यह वे स्वयं नहीं समझ पाए थे. घंटों बैठ कर भविष्य के सपने देखा करते थे. देशविदेश पर चर्चा करते थे. समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने की बात करते थे. मगर जब स्वयं के लिए लड़ने का समय आया, सामाजिक आडंबर के सामने उन का प्यार हार गया. एक दलित जाति का युवक ब्राह्मण की बेटी से विवाह का सपना भी कैसे देख सकता था. अपने प्रेम के लिए लड़ नहीं पाए थे दोनों और अलग हो गए थे.

आरोही ने तो विवाह नहीं किया, परंतु 4-5 साल के बाद अनुरोध के विवाह की खबर उस ने सुनी थी. उस विवाह की चर्चा भी खूब चली थी उस के घर में. सब ने चाहा था कि आरोही को भी शादी के लिए राजी कर लिया जाए, परंतु वे सफल नहीं हो पाए थे. आज इतने सालों बाद अनुरोध को इस रूप में देख कर स्तब्ध रह गई थी वह. अगले दिन सुबह ही वह दोबारा अनुरोध से मिलने उस के कमरे में गई.

आज अनुरोध शांत था और कुछ लिख भी रहा था. हौस्पिटल की तरफ से उस की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे लिखने के लिए कागज और कलम दे दी गई थी. आज उस के चेहरे से दाढ़ी भी गायब थी और बाल भी छोटे हो गए थे.

‘‘अनु,’’ आरोही ने जानबूझ कर उसे उस नाम से पुकारा जिस नाम से उसे बुलाया करती थी. उसे लगा शायद अनुरोध उसे पहचान ले.

उस ने एक नजर उठा कर आरोही को देखा और फिर वापस अपने काम में लग गया. पलभर को उन की नजरें मिली अवश्य थीं पर उन नजरों में अपने लिए अपरिचित भाव देख कर तड़प गई थी आरोही, मगर उस ने दोबारा कोशिश की, ‘‘क्या लिख रहे हो तुम?’’

उस की तरफ बिना देखे ही वह बोला-

‘सपने टूट जाते हैं, तुम सपनों में आया न करो, मुझे भूल जाओ और मुझे भी याद आया न करो.’

अनुरोध की दयनीय दशा और उस की अपरिचित नजरों को और नहीं झेल पाई आरोही और थोड़ा चैक करने के बाद कमरे से बाहर निकल गई. मगर वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और बाहर आते ही रो पड़ी. अचानक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘आप अनुरोध को जानती हैं मैडम?’’

पीछे पलटने पर आरोही ने पहली बार देखा सिस्टर तबस्सुम को, जिन के बारे में वह पहले सुन चुकी थी. वे इकलौती थीं जिन की बात अनुरोध मानता भी था और उन से ढेर सारी बातें भी करता था. कई सालों से वह सिस्टर तबस्सुम से काफी हिलमिल गया था.

‘‘मैं… मैं और अनुरोध…’’

‘‘शायद आप वही परी हैं जिस का इंतजार यह पगला पिछले कई सालों से कर रहा है. पिछले कई सालों में आज पहली बार मुसकराते हुए देखा मैं ने अनुरोध को. चलिए मैडम आप के कैबिन में चल कर बात करते हैं.’’

दोनों कैबिन में आ गईं. तबस्सुम का अनुरोध के प्रति अनुराग आरोही देख पा रही थी.

‘‘अनुरोध… ऐसा नहीं था. उस की ऐसी हालत कैसे हुई? क्या आप को कुछ पता है?’’ सिर हिला कर सिस्टर ने अनुरोध की दारुण कहानी शुरू की…

‘‘अनुरोध का चयन मेरठ के कालेज में मनोविज्ञान के व्याख्याता के पद पर हुआ था. इसी दौरान वह एक शादी में हिस्सा लेने मोदी नगर गया था, परंतु उसे यह नहीं पता था कि वह शादी स्वयं उसी की थी.

‘‘उस के मातापिता ने उस के लगातार मना करने से तंग आ कर उस का विवाह उस की जानकारी के बिना ही तय कर दिया था. शादी में बहुत कम लोगों को ही बुलाया गया था. मोदी नगर पहुंचने पर उस के पास विवाह करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने मातापिता के किए की सजा वह एक मासूम लड़की को नहीं दे सकता था और उस का विवाह विनोदिनी से हो गया.

‘‘विवाह के कुछ महीनों बाद ही विनोदिनी ने पढ़ाई के प्रति अपने लगाव को अनुरोध के सामने व्यक्त किया. अनुरोध सदा से स्त्री शिक्षा तथा स्त्री सशक्तीकरण का प्रबल समर्थक रहा था. खासकर उस के समुदाय में तो स्त्री शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय थी. इसीलिए जब उस ने अपनी पत्नी के शिक्षा के प्रति लगाव को देखा तो अभिभूत हो गया.

‘‘विनोदिनी कुशाग्रबुद्धि तो नहीं थी, परंतु परिश्रमी अवश्य थी और उस की इच्छाशक्ति भी प्रबल थी. उस के मातापिता बहू की पढ़ाई के पक्षधर नहीं थे. विनोदिनी के मातापिता भी उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे, परंतु सब के खिलाफ जा कर अनुरोध ने उस का दाखिला अपने ही कालेज के इतिहास विभाग में करा दिया. विनोदिनी को हर तरह का सहयोग दे रहा था अनुरोध.

‘‘शादी के 1 साल बाद ही अनुरोध की मां ने विनोदिनी पर बच्चे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, परंतु यहां भी अनुरोध अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहा. जब तक विनोदिनी की ग्रैजुएशन पूरी नहीं हुई, उन्होंने बच्चे के बारे में सोचा तक नहीं.

‘‘विनोदिनी प्रथम श्रेणी में पास हुई और उस के बाद उस ने पीसीएस में बैठने की अपनी इच्छा अनुरोध को बताई. उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था. अनुरोध ने उस का दाखिला शहर के एक बड़े कोचिंग सैंटर में करा दिया. घर वालों का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था. पहले 2 प्रयास में सफल नहीं हो पाई थी विनोदिनी.

‘‘मगर अनुरोध उसे सदा प्रोत्साहित करता रहता. इसी दौरान विनोदिनी 1 बेटे की मां भी बन गई. परंतु बच्चे को दूध पिलाने के अलावा बच्चे के सारे काम अनुरोध स्वयं करता था. घर के काम और जब वह कालेज जाता था तब बच्चे को संभालने के लिए उस ने एक आया रख ली थी. कभीकभी उस की मां भी गांव से आ जाती थीं. बेटे के इस फैसले से सहमत तो वे भी नहीं थीं, परंतु पोते से उन्हें बहुत लगाव था.

‘‘चौथे प्रयास के दौरान तो विनोदिनी को जमीन पर पैर तक रखने नहीं दिया था अनुरोध ने. अनुरोध की तपस्या विफल नहीं हुई थी. विनोदिनी का चयन पीसीएस में डीएसपी के पद पर हो गया था. वह ट्रेनिंग के लिए मुरादाबाद चली गई. उस समय उन का बेटा अमन मात्र 4 साल का था.

‘‘अनरोध ने आर्थिक और मानसिक दोनों तरह से अपना सहयोग विनोदिनी को दिया. लोगों की बातों से न स्वयं आहत हुआ और न अपनी पत्नी को होने दिया. उस ने विनोदिनी के लिए वह किया जो उस के स्वयं के मातापिता नहीं कर पाए. सही मानों में फैमिनिस्ट था अनुरोध. स्त्रीपुरुष के समान अधिकारों का प्रबल समर्थक.

‘‘जब विनोदिनी की पहली पोस्टिंग अलीगढ़ हुई तो लगा कि उस की समस्याओं का अंत हुआ. अब दोनों साथ रह कर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ेंगे, परंतु वह अंत नहीं आरंभ था अनुरोध की अंतहीन पीड़ा का.

‘‘विनोदिनी के जाने के बाद अनुरोध अपना तबादला अलीगढ़ कराने में लग गया. अमन को भी वह अपने साथ ही ले गई थी. अनुरोध को भी यही सही लगा था कि बच्चा अब कुछ दिन मां के साथ रहे और फिर उस का तबादला भी 6 महीने में अलीगढ़ होने ही वाला था. सबकुछ तय कर रखा था उस ने परंतु नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था उस के लिए.

‘‘विनोदिनी का व्यवहार समय के साथ बदलता चला गया. पद के घमंड में अब वह अनुरोध का अपमान भी करने लग गई थी. उस ने तो मेरठ आना बंद ही कर दिया था, इसलिए अनुरोध को अपने बेटे से मिलने अलीगढ़ जाना पड़ता था. विनोदिनी के कटु व्यवहार का तो वह सामना कर लेता था, परंतु इस बात ने उसे विचलित कर दिया था कि उन के बीच के झगड़े का विपरीत असर उन के बेटे पर हो रहा था.

अब वह शीघ्र ही मेरठ छोड़ना चाहता था. डेढ़ साल बीत गया था, पर उस का तबादला नहीं हो पा रहा था.

‘‘‘प्रिंसिपल साहब, आखिर यह हो क्या रहा है? 6 महीनों में आने वाली मेरी पोस्टिंग, डेढ़ साल में नहीं आई. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?’

‘‘‘अनुरोध तुम्हें तो पता है सरकारी काम में देर हो ही जाती है.’

‘‘‘जी सर… पर इतनी देर नहीं. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे आप जानबूझ कर ऐसा नहीं होने दे रहे?’

‘‘‘अनुरोध…’

‘‘‘आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं सर? क्या हमारा रिश्ता आज का है?’

‘‘‘अनुरोध… कोई है जो जानबूझ कर तुम्हारी पोस्टिंग रोक रहा है.’

‘‘‘कौन?’

‘‘‘तुम्हें तो मैं बहुत समझदार समझता था, जानबूझ कर कब तक आंखें बंद रखोगे?’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘गिरिराज सिंह और विनोदिनी…’

‘‘‘प्रिंसिपल साहब…’ चीख पड़ा अनुरोध.

‘‘अनुरोध के कंधे पर हाथ रख कर प्रिंसिपल साहब बोले,…

‘बेटा, विश्वास करना अच्छी बात है, परंतु अंधविश्वास मूर्खता है. अपनी नींद से जागो.’

‘‘विनोदिनी के बारे में ऐसी बातें अनुरोध ने पहली बार नहीं सुनी थीं, परंतु वह ऐसी सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करता था. उसे लगता था कि विनोदिनी बददिमाग, बदतमीज और घमंडी हो सकती है परंतु चरित्रहीन नहीं.

‘‘2 महीने की छुट्टी ले कर जिस दिन वह अलीगढ़ पहुंचा, घर पर ताला लगा था. वहां पर तैनात सिपाही से पता चला कि मैडम नैनीताल घूमने गई हैं. मगर विनोदिनी ने अनुरोध को इस बारे में कुछ नहीं बताया था.

‘‘7 दिन बाद लौटी थी विनोदिनी परंतु अकेले नहीं, उस के साथ गिरिराज सिंह भी था.

‘‘‘कैसा रहा आप का टूर मैडम?’

‘‘‘उसे देख कर दोनों न चौंके न ही शर्मिंदा हुए. बड़ी बेशर्मी से वह आदमी सामने रखे सोफे पर ऐसे बैठ गया जैसे यह उस का ही घर हो.’

‘‘‘तुम कब आए?’

‘‘विनोदिनी की बात अनसुनी कर अनुरोध गिरिराज सिंह से बोला, ‘मुझे अपनी पत्नी से कुछ बात करनी है. आप इसी वक्त यहां से चले जाएं.’

‘‘‘यह कहीं नहीं जाएगा…’

‘‘‘विनोदिनी चुप रहो…’

‘‘मगर उस दिन गिरिराज सिंह नहीं अनुरोध निकाला गया था उस घर से. विनोदिनी ने हाथ तक उठाया था उस पर.

‘‘गिरिराज और विनोदिनी को लगा था कि इस के बाद अनुरोध दोबारा उन के रिश्ते पर आवाज उठाने की गलती नहीं करेगा, परंतु वे गलत थे.

‘‘टूटा जरूर था अनुरोध पर हारा नहीं था. वह जान गया था कि अब इस रिश्ते

में बचाने जैसा कुछ नहीं था. उसे अब केवल अपने अमन की चिंता थी. इसलिए वह कोर्ट में तलाक के साथ अमन की कस्टडी की अर्जी भी दायर करने वाला था. इस बात का पता लगते ही विनोदिनी ने पूरा प्रयास किया कि वह ऐसा न करे. उन के लाख डरानेधमकाने पर भी अनुरोध पीछे नहीं हटा था. एक नेता और अधिकारी का नाम होने के कारण मीडिया भी इस खबर को प्रमुखता से दिखाने वाली है. इस बात का ज्ञान उन दोनों को था.

‘‘गिरिराज सिंह को अपनी कुरसी और विनोदिनी को अपनी नौकरी की चिंता सताने लगी थी. इसीलिए कोर्ट के बाहर समझौता करने के लिए विनोदिनी ने उसे अपने घर बुलाया.

‘‘जब अनुरोध वहां पहुंचा घर का दरवाजा खुला था. घर के बाहर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. जब बैल बजाने पर भी कोई नहीं आया तो उस ने विनोदिनी का नाम ले कर पुकारा. थोड़ी देर बाद अंदर से एक पुरुष की आवाज आई, ‘इधर चले आइए अनुरोध बाबू.’

‘‘अनुरोध ने अंदर का दरवाजा खोला तो वहां का नजारा देख कर वह हैरान रह गया. बिस्तर पर विनोदिनी और गिरिराज अर्धनग्न लेटे थे. उसे देख कर भी दोनों ने उठने की कोशिश तक नहीं की.

‘‘‘क्या मुझे अपनी रासलीला देखने बुलाया है आप लोगों ने?’

‘‘‘नहींजी… हा… हा… हा… आप को तो एक फिल्म में काम देने बुलाया है.’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘हर बात जानने की जल्दी रहती है तुम्हें… आज भी नहीं बदले तुम,’ विनोदिनी ने कहा.

‘‘‘मतलब समझाओ भई प्रोफैसर साहब को.’’

‘‘इस से पहले कि अनुरोध कुछ समझ पाता उस के सिर पर किसी ने तेज हथियार से वार किया. जब उसे होश आया उस ने स्वयं को इसी बिस्तर पर निर्वस्त्र पाया. सामने पुलिस खड़ी थी और नीचे जमीन पर विनोदिनी बैठी रो रही थी.

‘‘कोर्ट में यह साबित करना मुश्किल नहीं हुआ कि विनोदिनी के साथ जबरदस्ती हुई है. इतना ही नहीं यह भी साबित किया गया कि अनुरोध एक सैक्सहोलिक है और उस का बेटा तक उस के साथ सुरक्षित नहीं है, क्योंकि अपनी इस भूख के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. विनोदिनी के शरीर पर मारपीट के निशान भी पाए गए. अनुरोध के मोबाइल पर कई लड़कियों के साथ आपत्तिजनक फोटो भी पाए गए.

‘‘उस पर घरेलू हिंसा व महिलाओं के संरक्षण अधिनियम कानून के अनुसार केस दर्ज किया गया. उस पर बलात्कार का भी मुकदमा दर्ज किया गया. मीडिया ने भी अनुरोध को एक व्यभिचारी पुरुष की तरह दिखाया. सोशल नैटवर्किंग साइट पर तो बाकायदा एक अभियान चला कर उस के लिए फांसी की सजा की मांग की गई. कोर्ट परिसर में कई बार उस के मातापिता के साथ बदसुलूकी भी की गई.

‘‘अनुरोध के मातापिता का महल्ले वालों ने जीना मुश्किल कर दिया था. जिस दिन कोर्ट ने अनुरोध के खिलाफ फैसला सुनाया उस के काफी पहले से उस की मानसिक हालत खराब होनी शुरू हो चुकी थी. लगातार हो रहे मानसिक उत्पीड़न के साथ जेल में हो रहे शारीरिक उत्पीड़न ने उस की यह दशा कर दी थी. फैसला आने के 10 दिन बाद ही अनुरोध के मातापिता ने आत्महत्या कर ली और अनुरोध को यहां भेज दिया गया. एक आदर्शवादी होनहार लड़के और उस के खुशहाल परिवार का ऐसा अंत…’’

कुछ देर की खामोशी के बाद तबस्सुम फिर बोलीं, ‘‘मैडम, मैं मानती हूं कि घरेलू हिंसा का सामना कई महिलाओं को करना पड़ता है. इसीलिए स्त्रियों की रक्षा हेतु इस कानून का गठन किया गया था.

‘‘परंतु घरेलू हिंसा से पीडि़त पुरुषों का क्या? उन पर उन की स्त्रियों द्वारा की गई मानसिक और शारीरिक हिंसा का क्या?

‘‘अगर पुरुष हाथ उठाए तो वह गलत… नामर्द, परंतु जब स्त्री हाथ उठाए तो क्या? हिंसा कोई भी करे, पुरुष अथवा स्त्री, पति अथवा पत्नी, कानून की नजरों में दोनों समान होने चाहिए. जिस तरह पुरुष द्वारा स्त्री पर हाथ उठाना गलत है उसी प्रकार स्त्री द्वारा पुरुष पर हाथ उठाना भी गलत होना चाहिए. परंतु हमारा समाज तुरंत बिना पूरी बात जाने पुरुष को कठघरे में खड़ा कर देता है.

‘‘ताकतवार कानून स्त्री की सुरक्षा के लिए बनाए गए परंतु आजकल विनोदिनी जैसी कई स्त्रियां इस कानून का प्रयोग कर के अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगी हैं.

‘‘वैसे तो कानून से निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है, परंतु इस तरह के केस में ऐसा हो नहीं पाता. वैसे भी कानून तथ्यों पर आधारित होता है और आजकल पैसा और रसूख के बल पर तथ्यों को तोड़ना और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना आम बात हो गई है. जिस के पास पैसा और ताकत है कानून भी उस के साथ है.

‘‘हां, सही कह रही हैं आप तबस्सुम. अनुरोध जैसे मर्द फैमिनिज्म का सच्चा अर्थ जानते हैं. वे जानते हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकसमान है. न कोई बड़ा, न कोई छोटा. इसलिए गलत करने पर सजा भी एकसमान होनी चाहिए.

‘‘मगर विनोदिनी जैसी कुछ स्त्रियां नारीवाद का गलत चेहरा प्रस्तुत कर रही हैं,’’ लता के अचानक आ जाने से दोनों की बातचीत पर विराम लग गया.

‘‘माफ कीजिएगा वह बैड नंबर 216 को खाना देना था.’’

‘‘अरे हां… तुम चलो मैं आती हूं. चलती हूं मैडम अनुरोध को खाना खिलाने का समय हो गया है.’’

‘‘मैं भी चलती हूं…’’

जब वे दोनों वहां पहुंचीं तो देखा अनुरोध अपने दोनों हाथों को बड़े ध्यान से निहार रहा  था. आरोही उस के पास जा कर बैठ गई. फिर पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो? प्लीज कुछ तो बोलो.’’

कुछ नहीं बोला अनुरोध. उस की तरफ देखा तक नहीं.

सिस्टर तबस्सुम अनुरोध के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘बोलो बेटा, बताओ… तुम चिंता न करो कुदरत ने चाहा तो अब सब ठीक हो जाएगा.’’

इस बार वह उन की तरफ पलटा और फिर अपनी खाली हथेलियों को उन की तरफ फैलाते हुए बोला-

‘ऐ प्यार को मानने वालो, इजहार करना हमें भी सिखाओ. बंद करें हथेली या खोल लें इसे, खो गई हमारी छाया से हमें भी मिलवाओ…

पंछी बन कर उड़ जाने दो: निशा को मौसी से क्या शिकायत थी

कालेज में वार्षिक उत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. कार्यक्रम के आयोजन का जिम्मा मेरा था. मैं वहां व्याख्याता के तौर पर कार्यरत थी. कालेज में एक छात्र था राज, बड़ा ही मेधावी, हर क्षेत्र में अव्वल. पढ़ाईलिखाई के अलावा खेलकूद और संगीत में भी विशेष रुचि थी उस की. तबला, हारमोनियम, माउथ और्गन सभी तो कितना अच्छा बजाता था वह. सुर को बखूबी समझता था. सो, मैं ने अपना कार्यभार कम करने हेतु उस से मदद मांगते हुए कहा, ‘‘राज, यदि तुम जूनियर ग्रुप को थोड़ा गाना तैयार करवा दोगे तो मेरी बड़ी मदद होगी.’’

‘‘जी मैम, जरूर सिखाऊंगा और मुझे बहुत अच्छा लगेगा. बहुत अच्छे से सिखाऊंगा.’’

‘‘मुझे पूरी उम्मीद थी कि तुम से मुझे यही जवाब मिलेगा,’’ मैं ने कहा.

वह जीजान से जुट गया था अपने काम में. उस जूनियर गु्रप में मेरी अपनी भांजी निशा भी थी. मैं उस की मौसी होते हुए भी उस की सहेली से बढ़ कर थी. वह मुझ से अपनी सारी बातें साझा किया करती थी.

एक दिन निशा मेरे घर आईर् और बोली, ‘‘मौसी, यदि आप गलत न समझें तो एक बात कहूं?’’

मैं ने कहा ‘‘हां, कहो.’’

वह कहने लगी, ‘‘मौसी, मालूम है राज और पद्मजा के बीच प्रेमप्रसंग शुरू हो गया है.’’

मैं ने कहा, ‘‘कब से चल रहा है?’’

वह कहने लगी, ‘‘जब से राज ने जूनियर गु्रप को वह गाना सिखाया तब से.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम से किस ने कहा यह सब? क्या पद्मजा ने बताया?’’

निशा कहने लगी, ‘‘नहीं मौसी, उस ने तो नहीं बताया लेकिन अब तो उन दोनों की आंखों में ही नजर आता है, और सारे कालेज को पता है.’’

मैं ने कहा, ‘‘चल, अब बातें न बना.’’

उस के बाद से मैं देखती कि कई बार राज व पद्मजा साथसाथ होते और सच पूछो तो मुझे उन की जोड़ी बहुत अच्छी लगती. अच्छी बात यह थी कि राज और पद्मजा ने इस प्रेमप्रसंग के चलते कभी कोई अभद्रता नहीं दिखाई थी. मैं तो देख रही थी कि दोनों ही अपनीअपनी पढ़ाई में और ज्यादा जुट गए थे.

फिर एक दिन निशा आई और कहने लगी, ‘‘मौसी, वैलेंटाइन डे पर मालूम है क्या हुआ?’’

मैं ने कहा, ‘‘तू फिर से राज और पद्मजा के बारे में तो कुछ नहीं बताने वाली?’’

निशा बोली, ‘‘वही तो, मौसी, हम ने वैलेंटाइन डे पार्टी रखी थी. उस में राज और पद्मजा भी थे. सब लोग डांस कर रहे थे और सभी दोस्तों ने उन से बालरूम डांस करने के लिए कहा. राज शरमा गया था जबकि पद्मजा कहने लगी, ‘मैं क्यों करूं इस के साथ डांस. इस ने तो अभी तक मुझ से प्यार का इजहार भी नहीं किया.’

‘‘फिर क्या था मौसी, सब कहने लगे, राज, कह डाल, राज, कह डाल. और राज पद्मजा की आंखों में आंखें डाल कर कहने लगा, ‘आई लव यू, पद्मजा.’ उस के बाद उस ने एक ही नहीं, 7 अलगअलग भाषाओं में अपने प्यार का इजहार किया.’’

जब निशा मुझे उन की बातें बताती तो उस के चेहरे पर अलग ही चमक होती थी. खैर, वह चमक वाजिब भी थी, उस की उम्र ही ऐसी थी.

और एक बार निशा बताने लगी, ‘‘मौसी, मालूम है, पद्मजा राज को बहुत प्रेरित करती रहती है पढ़ाई के लिए और प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए. आप को बताऊं, पद्मजा क्या कहती है उस से?’’

मैं ने कहा, ‘‘जब इतना बता दिया तो यह भी बता दे, वरना तेरा तो पेट दुख जाएगा न.’’ सच पूछो तो मैं स्वयं भी जानना चाहती थी कि दोनों के बीच चल क्या रहा है.

वह कहने लगी, ‘‘मौसी, पद्मजा ने कहा, ‘राज, तुम इस बार वादविवाद प्रतियोगिता में जरूर भाग लोगे. जीतोगे भी मेरे लिए.’ फिर मौसी, राज ने प्रतियोगिता में भाग लिया और जीत भी गया और उस के बाद दोनों साथ में घूमने गए और पता है मौसी, राज अवार्ड के पैसों से उसे शौपिंग भी करवा के लाया.

‘‘पता है क्या लिया पद्मजा ने? चूडि़यां. मौसी, वह दक्षिण भारत से है न, वहां लड़कियां चूडि़यां जरूर पहनती हैं. तो राज ने उसे चूडि़यां दिलवाई हैं.’’

और राज की यह बात मेरे दिल को बहुत छू गई थी. मैं सोच रही थी कितना निर्मल और सच्चा प्यार है दोनों का. दोनों शायद एकदूसरे को आगे बढ़ाने में बड़े प्रेरक थे. ऐसा चलते 2 साल बीत गए और फेयरवैल का दिन आ गया. सभी छात्रछात्राएं एकदूसरे से विदा ले रहे थे.

राज मेरे पास आया, कहने लगा, ‘‘मैम, आप से विदा चाहते हैं, आप ने इन वर्षों में इतना लिखाया, पढ़ाया, आप को बहुतबहुत धन्यवाद.’’ वैसे तो मैं राज की अध्यापिका थी किंतु उस से पहले एक इंसान भी तो थी, सो, मैं ने कहा, ‘‘राज, तुम जैसे छात्र बहुत कम होते हैं. तुम अब सौफ्टवेयर इंजीनियर बन गए हो. सदा आगे बढ़ो. एक दिल की बात कहूं?’’

राज बोला, ‘‘जी, कहिए, मैम.’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी और पद्मजा की जोड़ी बहुत ही अच्छी है. मुझे शादी में बुलाना न भूलना.’’ राज मुंह नीचे किए मुसकरा कर बोला, ‘‘जी मैम, जरूर.’’ और फिर वह चला गया.

यह सब हुए पूरे 8 वर्ष बीत गए और मैं अपने पति के साथ मसूरी घूमने आई हुई थी. वहां मैं ने होर्डिंग्स पर राज की तसवीरें देखीं, पता लगा कि उस का एक स्टेजशो है. मैं ने अपने पति से कह कर शो के टिकट मंगवा लिए और पहुंच गई हौल में शो देखने.

जैसे ही राज स्टेज पर आया, हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. वह देखने में बहुत ही अच्छा लग रहा था. कुदरत ने उसे रंगरूप, कदकाठी तो दी ही थी, उस पर उस का आकर्षक व्यक्तित्व जैसे सोने पे सुहागा. उस के पहले गीत, ‘‘फिर वही शाम, वही गम, वही तनहाई है…’’ के साथ हौल में समां बंध गया था और जैसे ही शो खत्म हुआ, सभी लड़कियां उस का औटोग्राफ लेने पहुंच गईं. उन के साथ मैं भी स्टेज के पास जा पहुंची.

जैसे ही उस की नजर मुझ पर पड़ी, वह झट से पहचान गया और उसी अदब के साथ उस ने मुझे अभिवादन किया. अपने छात्र राज को इस मुकाम पर देख मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे.

फिर राज और मैं कौफी पीने होटल के लाउंज में चले गए और सब से पहले मैं ने शिकायतभरे लहजे में कहा, ‘‘राज, बहुत नाराज हूं तुम से, तुम ने मुझे शादी में क्यों नहीं बुलाया? कहां है पद्मजा, कैसी है वह?’’

इतना सुनते ही राज की मुसकराती आंखों के किनारे नम हो गए थे. अपने आंसुओं को अपनी मुसकराहट के पीछे छिपाते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरी शादी नहीं हुई, मैम, पद्मजा मेरी नहीं हो सकी. उस की शादी कहीं और हो गई है.’’

मुझ से रहा न गया तो पूछ बैठी, ‘‘क्यों नहीं हुई तुम्हारी दोनों की शादी.’’ वह कहने लगा, ‘‘मैम, मैं उत्तर भारत से हूं और वह दक्षिण भारतीय. हमारी जाति भी एक नहीं, इसीलिए.’’

‘‘लेकिन कौन आजकल जातपांत मानता है, राज?’’ मैं ने कहा, ‘‘और फिर तुम दोनों तो इतने पढ़ेलिखे हो.’’

राज ने कहा, ‘‘मैम, मेरे मातापिता इस रिश्ते को ले कर बहुत खुश थे. मेरी मां ने तो बहू लाने की पूरी तैयारी भी कर ली थी. लेकिन पद्मजा के मातापिता इस रिश्ते को ले कर खुश नहीं थे और उन्होंने इनकार कर दिया था. मैं पद्मजा के मातापिता से बात करने भी गया था. उन से बात करने पर वे कहने लगे, ‘देखो राज, तुम एक समझदार और नेक इंसान लगते हो. हमें तुम्हारे में कोई कमी नजर नहीं आती. लेकिन हम अगर अपनी बेटी पद्मजा की शादी तुम से कर दें तो हमारी बिरादरी में हमारी नाक कट जाएगी. और वैसे भी हम ने अपनी ही बिरादरी का दक्षिण भारतीय लड़का ढूंढ़ रखा है. इसीलिए अच्छा होगा कि अब तुम पद्मजा को भूल ही जाओ.’ मैं ने उन से इतना भी कहा कि ‘क्या पद्मजा मुझे भुला पाएगी?’ तो वे कहने लगे, ‘वह हमारी बेटी है, हम उसे समझा लेंगे.’

‘‘मैं ने पद्मजा की तरफ देखा, वह बहुत रो रही थी. उस ने मुझ से हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए कहा, ‘जाओ राज, मैं अपने मातापिता की मरजी के खिलाफ तुम से शादी नहीं कर सकती.’ मैं क्या करता, मैम. बस, तब से ही इस दुनिया से जैसे दिल भर गया. किंतु क्या करूं मेरे भी तो अपने मातापिता के प्रति कुछ फर्ज हैं, बस, इसीलिए जिंदा हूं. बहुत मुश्किल से संभाला है मैं ने अपनेआप को.’’

वह कहता जा रहा था और उस के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस का हाल सुन मेरी आंखों से भी आंसुओं की धारा बह चली थी.

राज का यह हाल देख मुझे बड़ा ही दुख हुआ. मैं मन ही मन सोच रही थी कि राज और पद्मजा का प्यार कोई कच्ची उम्र का प्यार नहीं था, न ही मात्र आकर्षण. दोनों ही परिपक्व थे. राज उस से शादी को ले कर सीरियस भी था. तभी तो वह पद्मजा के मातापिता से मिलने गया था. पद्मजा न जाने किस हाल में होगी.

खैर, मैं उस के लिए तो कुछ नहीं कह सकती. किंतु उस के मातापिता, क्यों उन्होंने अपनी बेटी से बढ़ कर जात, समाज, धर्म, प्रांत की चिंता की. यदि राज और पद्मजा 7 वर्ष एकसाथ एक ख्वाब को बुनते रहे तो क्या अपना परिवार नहीं बसा सकते थे. हम अपने बच्चों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं, उन्हीं बच्चों की खुशियों को क्यों जात, बिरादरी, समाज की भेंट चढ़ा देते हैं? क्यों हम यह नहीं समझते कि प्यार और आकर्षण में बहुत फर्क होता है? यह 16 वर्ष की उम्र वाला मात्र आकर्षण नहीं था, यह सच्चा प्यार था जो आज राज की आंखों से आंसू बन कर बह निकला था. हम क्यों नहीं समझते कि समाज के नियम इंसान ने ही बनाए हैं और वे उस के हित में होने चाहिए न कि जाति, धर्म, भाषा की आड़ में इंसानों के बीच दीवार खड़ी करने के लिए.

बहरहाल, अब हो भी क्या सकता था. लेकिन, मैं इतना तो जरूर कहना चाहूंगी कि जिस तरह राज और पद्मजा का प्यार अधूरा रह गया सिर्फ इंसानों के बनाए झूठे नियम, समाज के कारण, उस तरह किन्हीं 2 प्यार करने वालों को अब कभी जुदा न कीजिए.

मैं यह भी कहना चाहूंगी कि कभी देखा है पंछियोें को? वे किस तरह अपने बच्चों को उड़ना सिखा कर स्वतंत्र छोड़ देते हैं. ताकि वे खुले आसमान में अपने पंख पसार सकें. और कितना सुंदर होता है वह दृश्य जब खुले आसमान में बादलों के संग पंछी उन्मुक्त उड़ान भरते हैं. तो हम इंसान क्यों प्रकृति के नियमों को ठुकरा अपने नियम बना अपने ही बच्चों को मजबूर कर देते हैं राज व पद्मजा की तरह आंसुओं संग जीने को क्यों न हम तोड़ दें वे नियम जो आज के युग में सिर्फ ढकोसले मात्र हैं? क्यों न हम उड़ जाने दें अपने बच्चों को उन्मुक्त आकाश में पंछियों की तरह?

एहसास: क्यों सास से नाराज थी निधि

मालती ने अलमारी खोली. कपड़े ड्राईक्लीनर को देने के लिए, सुबह ही अजय बोल कर गया था, ‘मां ठंड शुरू हो गई है. मेरे कुछ स्वेटर और जैकेट निकाल देना,’ कपड़े समेटते हुए उस की नजर कुचड़मुचड़ कर रखे शौल पर पड़ी. उस ने खींच कर उसे शैल्फ से निकाला. हलके क्रीम कलर के पश्मीना के चारों ओर सुंदर कढ़ाई का बौर्डर बना था. गहरे नारंगी और मैजेंटा रंग के धागों से चिनार के पत्तों का पैटर्न. शौल के ठीक बीचोंबीच गहरा दाग लगा था. शायद, चटनी या सब्जी के रस का था जो बहुत भद्दा लग रहा था.

यह वही शौल था जो उस ने कुछ साल पहले कश्मीर एंपोरियम से बड़े शौक से खरीदा था. प्योर पश्मीना था. अजय की बहू को मुंहदिखाई पर दूंगी, तब उस ने सोचा था. पर इतने महंगे शौल का ऐसा हाल देख कर उस ने माथा पीट लिया. हद होती है, किसी भी चीज की. निधि की इस लापरवाही पर बहुत गुस्सा आया. पिछले संडे एक रिश्तेदार की शादी थी, वहीं कुछ गिरगिरा दिया गया होगा खाना खाते वक्त, दाग लगा, सो लगा, पर महारानी से इतना भी न हुआ की ड्राईक्लीन को दे देती या घर आ कर साफ ही कर लेती.

तमीज नाम की चीज नहीं इस लड़की को. कुछ तो कद्र करे किसी सामान की. ऐसा अल्हड़पन कब तब चलेगा. मालती बड़बड़ाती हुई किचन में आई. किचन में काम कर रही राधा को उन्होंने शाम के खाने के लिए क्या बनाना है, यह बताया और कपड़ों को ड्राइंगरूम में रखे दीवान के ऊपर रख दिया. और फिर हमेशा की तरह शाम के अपने नित्य काम में लग गई.

देर शाम अजय और निधि हमेशा की तरह हंसतेबतियाते, चुहल करते घर में दाखिल हुए. ‘‘राधा, कौफी,’’ निधि ने आते ही आवाज दी और अपना महंगा पर्स सोफे पर उछाल कर सीधे बाथरूम की ओर बढ़ गई. अजय वहीं लगे दीवान पर पसर गया था. मालती टीवी पर कोई मनपसंद सीरियल देख रही थी, पर उस की नजरें निधि पर ही थीं. वह उस के बाथरूम से आने का इंतजार करने लगी. शौल का दाग दिमाग में घूम रहा था.

‘‘और मां, क्या किया आज?’’ जुराबें उतारते हुए अजय ने रोज की तरह मां के दिनभर का हाल पूछा. बेचारा कितना थक जाता है, बेटे की तरफ प्यार से देखते हुए उन्होंने सोचा और किचन में अपने हाथों से उस के लिए चाय बनाने चली गई. इस घर में, बस, वे दोनों ही चाय के शौकीन थे. निधि को कौफी पसंद थी.

निधि फ्रैश हो कर एक टीशर्ट और लोअर में अजय की बगल में बैठ कर कौफी के सिप लेने लगी. मालती उस की तरफ देख कर थोड़े नाराजगीभरे स्वर में बोली, ‘‘निधि, ड्राईक्लीन के लिए कपड़े निकाल दिए हैं. सुबह औफिस जाते हुए दे देना. तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही पड़ता है तो मैं ने निकाल कर रख दिए,’’ मालती ने जानबू झ कर शौल सब से ऊपर दाग वाली तरफ से रखा था कि उस पर निधि की नजर पड़े.

‘‘ठीक है मां,’’ कह कर निधि अपने मोबाइल में मैसेज पढ़ने में बिजी हो गई. उस ने नजर उठा कर भी उन कपड़ों की तरफ नहीं देखा.

मालती कुनमुना कर रह गई. उस ने उम्मीद की थी की निधि कुछ नानुकुर करेगी कि नहीं, मैं नहीं दे पाऊंगी, टाइम नहीं है, औफिस के लिए लेट हो जाएगा वगैरहवगैरह. पर यहां तो उस के हाथ से एक और वाकयुद्ध का मौका निकल गया. हमेशा यही होता है, उस के लाख चाहने के बावजूद निधि का ठंडापन और चीजों को हलके में लेना मालती की शिकायतों की पोटली खुलने ही नहीं देता था.

मालती उन औरतों में खुद को शुमार नहीं करना चाहती थी जो बहू से बहाने लेले कर लड़ाई करे और बेटे की नजरों में खुद मासूम बनी रहे. वह खुद को आधुनिक सम झती थी और यही वजह थी कि अपनी तरफ से वह कोई राई का पहाड़ वाली बात नहीं उठाती थी. वैसे भी, घर में कुल जमा 3 प्राणी थे और चिकचिक उसे पसंद नहीं थी. पर कभीकभी वह निधि की आदतों से चिढ़ जाती थी. मालती को घर में बहू चाहिए थी जो सलीके से घरबाहर की जिम्मेदारी संभाले. पर यहां तो मामला उलटा था. ठीक है, उस ने सोचा, अगर किसी को कोई परवा नहीं तो मैं भी क्यों अपना खून जलाऊं, मैं भी दिखा दूंगी कि मु झे फालतू का शौक नहीं कि हर बात में इन के पीछे पड़ूं. इन की तरह मैं भी, वह क्या कहते हैं, कूल हूं.

अपनी इकलौती संतान को ले कर हर मां की तरह मालती के भी बड़े सपने थे. अजय को जौब मिली भी नहीं थी कि रिश्तेदारी में उस की शादी की बातें उठने लगीं. मालती खुद से कोई जल्दी में नहीं थी. पर कोई भाभी, चाची या पड़ोसिन अजय के लिए किसी न किसी लड़की का रिश्ता खुद से पेश कर देती. ‘अभी अजय की कौन सी उम्र निकली जा रही है. जरा सैटल हो जाने दो.’ यह कह कर वह लोगों को टरकाया करती.

पर दिल ही दिल में अपनी होने वाली बहू की एक तसवीर उस के मन में बन चुकी थी. चांद सी खूबसूरत, गोरी, पतली, नाजुक सी, सलीकेदार जो घर में खाना पकाने से ले कर हर काम में हुनरमंद हो. अब यह सब थोड़ा मुश्किल तो हो सकता है पर नामुमकिन नहीं. वह तो ऐसी लड़की ढूंढ़ कर रहेगी अपने लाड़ले के लिए. लेकिन उस की उम्मीदों के गुब्बारे को उस के लाड़ले ने ही फोड़ा था. एक दिन, निधि को घर ला कर.

उसे निधि का इस तरह घर पर आना बहुत अटपटा लगा था. क्योंकि अजय किसी लड़की को इस तरह से कभी घर ले कर नहीं आया था. वह बात अलग थी कि स्कूलकालेज के दोस्त  झुंड बना कर कभीकभार आ धमकते थे. जिस में बहुत सी लड़कियां भी होती थीं.

मालती को कभी अखरता नहीं था अजय के यारदोस्तों का आना. पर उस ने अपने लिए कोई लड़की पसंद कर ली थी, यह बात मालती को सपने में भी नहीं आई थी. उस का बेटा अपनी मां की पसंद से शादी करेगा, यही मालती को गुमान था. जिस दिन अजय ने बताया कि वह अपनी किसी खास दोस्त को उस से मिलाने ला रहा है, वह सम झ कर भी अनजान बनने का नाटक करती रही. एक बार भी नहीं पूछा अजय से कि आखिर इस बात का मतलब क्या है?

उस दिन शाम को अजय निधि को अपनी बाइक पर बिठा कर घर ले आया. मालती ने कनखियों से निधि को देखा. नहीं, नहीं, उस के सपनों में बसी बहूरानी के किसी भी सांचे में वह फिट नहीं बैठती थी. आते ही ‘नमस्ते आंटी’ बोल कर धम्म से सोफे पर पसर गई. निधि लगातार च्युइंगम चबा रही थी. बौयकट हेयर, टाइट जींस और टीशर्ट में उस की हलकी सी तोंद भी  झलक रही थी. अजय ने मालती को ऐसे देखा जैसे कोई बच्चा अपना इनाम का मैडल दिखा कर घरवालों के रिऐक्शन का इंतजार करता है.

मालती चायनाश्ता लेने किचन में चली गई. अजय उस के पीछेपीछे चला आया. मां के मन की टोह लेने कुछ मदद करने के बहाने. मालती बड़ी रुखाई से बिना कुछ कहे नमकीन बिस्कुट ट्रे में रखती गई और चाय ले कर बाहर आ गई. निधि बहुतकुछ बातें कर रही थी जिन्हें मालती अनमने मन से सुन रही थी. अजय को मालती के चेहरे से पता चल गया कि उस की मां को निधि जरा भी पसंद नहीं आई.

क्या लड़की है, बाप रे. आते ही ऐसे मस्त हो गई जैसे इस का अपना घर हो. न शरमाना, न कोई  िझ झक, बातबात पर अजय को एकआध धौल जमा रही निधि उन्हें कहीं से भी लड़कियों जैसी नहीं लगी. चलो, ठीक है, आजकल का जमाना है लड़कियां लड़कों से कम नहीं. पर इस तरह किसी लड़की का बिंदासपन उसे अजीब लगा. वह भी तब जब वह पहली बार होने वाली सास से मिल रही हो. मालती पुराने खयालों को ज्यादा नहीं मानती थी पर जब बात बहू चुनने की आई तो एक छवि उस के मन में थी, किसी खूबसूरत सी दिखने वाली लड़की को देखते ही मालती उस के साथ अजय की जोड़ी मिलाने लगती दिल ही दिल में, पर अजय और यह लड़की? मालती की नजरों में यह बेमेल था.

यह सही है कि हर मां को अपना बच्चा सब से सुंदर लगता है. लेकिन अजय तो सच में लायक था. देखने में जितना सजीला, मन का उतना ही उजला.

मालती ने सोचा, आखिर अजय को सारी दुनिया की लड़कियां छोड़ कर एक निधि ही पसंद आनी थी? उस ने लाख चाहा कि अजय अपना इरादा बदल दे निधि से शादी करने का, उस के लिए बहुत से रिश्ते आए और कुछेक सुंदर लड़कियों के. मालती ने फोटो भी छांट कर रख ली थी उसे दिखाने के लिए.

पर, आखिर वही हुआ जो अजय और निधि ने चाहा. बड़ी ही धूमधाम से निधि उस के बेटे की दुलहन बन कर आ गई. अपनी इकलौती बेटी निधि को बहुतकुछ दिया उस के मांबाप ने. लेकिन रिश्तेदारों और जानपहचान वालों की दबीदबी बातें भी मालती तक पहुंच ही गईं. खूब दहेज मिला होगा, एकलौती बेटी जो है अपने मांबाप की, लालच में हुई है यह शादी वगैरहवगैरह.

बेटे की खुशी में ही मालती ने अपनी खुशी ढूंढ़ ली थी. उस के बेटे का घर बस गया. यह एक मां के लिए खुशी की बात थी. वह निधि को घर के कामकाज सिखा देगी, यह मालती ने सोचा. पर मालती को क्या पता था, निधि बिलकुल कोरा घड़ा निकलेगी. घरगृहस्थी के मामलों में, अव्वल तो उसे कुछ आता नहीं था और अगर कुछ करना भी पड़े तो बेमन से करती थी. मालती खुद बहुत सलीकेदार थी. हर काम में कुशल, उसे हर चीज में सफाई और तरीका पसंद था.

शादी के शुरुआती दिनों में मालती ने उसे बहुत प्यार से घर के काम सिखाने की कोशिश की. जिस निधि ने कभी अपने घर में पानी का गिलास तक नहीं उठाया था, उस के साथ मालती को ऐसे लगना पड़ा जैसे कोई नर्सरी के बच्चे को  हाथ पकड़ कर लिखना सिखाता है. एक दिन मालती ने उसे चावल पकाने का काम सौंपा और खुद बालकनी में रखे गमलों में खाद डालने में लग गई. थोड़ी देर बाद रसोई से आते धुएं को देख कर वह  झटपट किचन की ओर भागी. चावल लगभग आधे जल चुके थे. मालती ने लपक कर गैस बंद की.

बासमती चावल पतीले में खिलेखिले बनते हैं, यह सोच कर उस के घर में चावल कुकर में नहीं, पतीले में पकाए जाते थे. वह निधि को तरीका सम झा कर गई थी. उस ने निधि को आवाज दी. कोई जवाब न पा कर वह बैडरूम में आई तो देखा, निधि अपने कानों पर हैडफोन लगा कर मोबाइल में कोई वीडियो देखने में मस्त थी. मालती को उस दिन बहुत गुस्सा आया. इतनी बेपरवाही. अगर वह न होती तो घर में आग भी लग सकती थी. उस ने निधि को उस दिन दोचार बातें सुना भी दीं.

‘सौरी मां’ बोल कर निधि खिसियाई सी चुपचाप रसोई में जा कर पतीले को साफ करने के लिए सिंक में रख आई. उस दिन के बाद मालती ने उसे फिर कुछ पकाने को नहीं कहा कभी. कुछ पता नहीं, कब क्या जला बैठे. और वैसे भी, अजय मां के हाथ का ही खाना पसंद करता था. उस ने भी निधि को टिपिकल वाइफ बनाने की कोई पहल नहीं की. निधि और अजय की कोम्पैटिबिलिटी मिलती थी और दोनों साथ में खुश थे. यही बहुत था मालती के लिए.

पर उस को एक कमी हमेशा खलती रही. वह चाहती थी कि औरों की तरह उस के घर में भी पायल की रुन झुन, चूडि़यों की खनक गूंजे, सरसराता साड़ी का आंचल लहराती घर की बहू रसोई संभाले या छत पर अचारपापड़ सुखाए. कुछ तो हो जो लगे कि नई बहू आई है घर में. शादी के एक हफ्ते बाद ही निधि ने पायल, बिछुए और कांच की चूडि़यां उतार कर रख दी थीं. हाथों में, बस, एक गोल्ड ब्रैसलेट और छोटे से इयर रिंग्स पहन कर टीशर्ट व पाजामे में घूमने लगी थी. मालती ने उसे टोका भी पर उस के यह बोलने पर कि, मां ये सब चुभते हैं, मालती चुप हो गई थी.

छुट्टी वाले दिन दोनों अपने लैपटौप पर या तो कोई मूवी देखते या वीडियो गेम खेलते रहते. मालती अपने सीरियल देखती रहती और कसमसाती रहती कि कोई होता जो उस के साथ बैठ कर यह सासबहू वाले प्रोग्राम देखता. कभी पासपड़ोस में कोई कार्यक्रम होता, तो मालती अकेली ही जाती. लोगबाग पूछते, ‘अरे बहू को क्यों नहीं लाए साथ?’ तो वह मुसकरा कर कोई बहाना बना देती. अब कैसे बोले कि बहू तो वीडियो गेम खेल रही है अपने कमरे में.

कुल मिला कर उस के सपने मिट्टी में मिल गए थे. घर में बहू कम दूसरा बेटा आया हो जैसे. किसी शादीब्याह में भी निधि को खींच कर ले जाना पड़ता था. उसे कोई शौक ही नहीं था सजनेसंवरने का. शादी की इतनी सारी एक से एक कीमती साडि़यां पड़ी थीं, पर मजाल है जो निधि ने कभी पहनने की जहमत उठाई हो.

अपने एक रिश्तेदार की शादी में जयपुर जाना पड़ा मालती को, तो निधि और अजय को खूब सारी हिदायतें दे कर गई. खाना बहुत थोड़ा जल्दी उठ कर बना के फ्रिज में रख जाना. अजय को बाहर का खाना पचता नहीं. पेट अपसैट हो जाता है. फिर राधा को भी 10 दिन के लिए अपने गांव जाना था. ऐसे में घर की जिम्मेदारी उन दोनों पर ही है, मालती उन को बारबार यह बता रही थी. उसे पता था, दोनों लापरवाह हैं, पर जाना जरूरी था.

एक हफ्ते बाद मालती जब वापस घर लौटी तो सुबह की ट्रेन लेट हो कर दिन में पहुंची. स्टेशन से औटो कर के घर पहुंची. एक चाबी उस के पास थी पर्स में. अंदर आ कर सामान वहीं नीचे रख कर वह सोफे पर थोड़ा सुस्ताने बैठी. उस ने सोचा, चाय बनाएगी पहले अपने लिए, फिर फ्रैश होगी. सिर दर्द कर रहा था सफर की थकावट से. एक सरसरी नजर घर पर डाली उस ने पर सफाई का नामोनिशान नजर नहीं आ रहा था. उस के पैरों के पास कालीन पर दालभुजिया बिखरी पड़ी थी.  झाड़ू तक नहीं लगी  थी घर में लगता है उस के जाने के बाद.

वह बुदबुदाती हुई रसोई की तरफ बढ़ी ही थी कि तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. अजय के दोस्त का फोन था, ‘‘हैलो बेटा,’’ मालती ने फोन रिसीव किया. दूसरी तरफ से जो उसे सुनाई दिया उसे सुन कर वह धम्म से सोफे पर गिर पड़ी. अजय के दोस्त ने उसे हौस्पिटल का नाम बता कर जल्द आने को कहा. अजय की बाइक को किसी गाड़ी ने पीछे से टक्कर मार दी थी.

आननफानन मालती ज्यों की त्यों हालत में हौस्पिटल के लिए निकल पड़ी. गेट पर ही उसे अजय का दोस्त यश मिल गया था. दोनों कालेज के गहरे दोस्त थे. अजय को आईसीयू में रखा गया था. उस के हाथपैरों में गहरी चोटें आई थीं. पर उस की हालत खतरे से बाहर थी. मालती ने अपनी रुलाई दबा कर बेटे की तरफ देखा. खून से अजय के कपड़े सने थे और न जाने कितनी पट्टियां उस के शरीर पर बंधी थीं.

‘‘आंटी आप बाहर बैठ जाइए,’’ मालती की हालत देख कर यश ने कहा और सहारा दे कर उस ने मालती को आईसीयू के बाहर बैंच पर बिठा दिया. यश ने उसे बताया कि कैसे ऐक्सिडैंट की जानकारी पुलिस से पहले उसे ही मिली थी. निधि अपनी एक सहेली के साथ मूवी देखने गई हुई थी. उस का फोन शायद इसीलिए नहीं मिल पाया. पास के वाटरकूलर से एक गिलास पानी ला कर उस ने मालती को दिया.

मालती ने होशोहवास दुरुस्त करने की कोशिश की. तभी उसे निधि बदहवास भागती आती दिखाई दी. मालती के पास पहुंच कर वह उस से लिपट कर रो पड़ी. मालती, जो बड़ी देर से अपने आंसू रोके बैठी थी, अब अपनी रुलाई नहीं रोक पाई. कुछ संयत हो कर निधि ने अजय को आईसीयू में देखा, बैड पर बेहोश ग्लूकोस और खून की पाइप्स से घिरा हुआ. निधि ने डाक्टर से अजय की हालत के बारे में पूछा और डाक्टर की पर्ची ले कर दवाइयां लेने चली गई. रात को मालती के लाख मना करने के बावजूद निधि ने उसे यश के साथ घर भेज दिया.

सुबह जल्दी उठ कर मालती कुछ जरूरी चीजें एक बैग में और एक थरमस में कौफी भर कर हौस्पिटल पहुंची. निधि की आंखें बता रही थीं कि सारी रात वह सोई नहीं. सो तो मालती भी नहीं पाई थी पूरी रात. निधि ने बैंच पर बैठे एक लंबी अंगड़ाई ली और थरमस से कौफी ले कर पीने लगी. मालती अजय के पास गई. वह होश में था. पर डाक्टर ने बातें करने से मना किया था. मालती को देख कर अजय ने धीरे से मुसकराने की कोशिश की. मालती ने उस का हाथ कोमलता से अपने हाथों में ले लिया और जवाब में मुसकरा दी.

करीब एक हफ्ते बाद अजय डिस्चार्ज हो कर घर आ गया. उस के पैर में अभी भी प्लास्टर लगा था. हड्डी की चोट थी, डाक्टर ने फुल रैस्ट के लिए बोला था. एक महीने के लिए उस ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. निधि और मालती दिनरात उस की तीमारदारी में जुट गए. एक महीने के बाद जब अजय के पैर का प्लास्टर उतरा तो उस ने हलकी चहलकदमी शुरू कर दी. मगर समय शायद ठीक नहीं चल रहा था. बाथरूम में फिसलने की वजह से उसे फिर से एक और प्लास्टर लगवाना पड़ा. प्राइवेट जौब में कितने दिन छुट्टी मिलती, तंग आ कर अजय ने रिजाइन दे दिया. निधि और मालती उसे इस हालत में अब बिस्तर से उठने तक नहीं देती थीं.

कहने को तो घर में कोई कमी नहीं थी पर अजय की नौकरी न रहने से मालती को तमाम बातों की चिंता सताने लगी. अजय ने शादी के वक्त नया घर बुक कराया था, जिस की हर महीने किस्त जाती थी. उस के अलावा, घर के खर्चे, अजय की गाड़ी की किस्तें, खुद मालती की दवाइयों का खर्च. हालांकि उसे अपने पति की पैंशन मिलती थी, पर उस के भरोसे सबकुछ नहीं चल सकता था.

निधि ने अपने काम पर जाना शुरू कर दिया था. वह एक लैंग्वेज टीचर थी और पास के एक इंस्टिट्यूट में जौब करती थी. एक दिन उसे घर लौटने में बहुत देर हो गई, तो मालती की त्योरियां चढ़ गईं.

अजय की इस हालत में इतनी देर निधि का यों बाहर रहना मालती को अच्छा नहीं लगा. उस ने सोचा कि अजय भी इस बात पर नाराज होगा. लेकिन उन दोनों को आराम से बातें करते देख उसे लगा नहीं कि अजय को कुछ फर्क पड़ा. हुहूं, बीवी का गुलाम है, बहुत छूट दे रखी है निधि को इस ने, एक बार पूछा तक नहीं, यह सब सोच कर मालती कुढ़ गई थी.

किचन में अजय के लिए थाली लगाती मालती के कंधे पर हाथ रखते हुए निधि बोली, ‘‘मां, आप बैठो अजय के पास, आप दोनों की थाली मैं लगा देती हूं.’’

‘‘रहने दो, तुम दोनों खाओ साथ में, वैसे भी दिनभर अजय अकेला बोर हो जाता है तुम्हारे बिना,’’ मालती कुछ रुखाई से बोली.

‘‘सौरी मां, अब से मु झे आते देर हो जाया करेगी, मैं ने एक और जगह जौइन कर लिया है. तो कुछ घंटे वहां भी लग जाएंगे,’’ निधि ने उस के हाथ से प्लेट लेते हुए बताया.

‘‘तुम ने अजय को बताया क्या?’’

‘‘मां, मैं ने अजय से पहले ही पूछ लिया था और वैसे भी, कुछ ही घंटों की बात है, तो मैं मैनेज कर लूंगी.’’

‘‘ठीक है, अगर तुम दोनों को सही लगता है तो, लेकिन देख लो, थक तो नहीं जाओगी? तुम्हें आदत नहीं इतनी मेहनत करने की,’’ मालती ने अपनी तरफ से जिम्मेदारी निभाई.

‘‘आप चिंता मत करो मां. बस, कुछ दिनों की तो बात है.’’

मालती ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की घर के फालतू खर्चे कम करने की. वह अब थोड़ी कंजूसी से भी चलने लगी थी. सब्जी और फल लेते समय भरसक मोलभाव करती थी. उसे लगा निधि अपने खर्चों पर लगाम नहीं लगा पाएगी. पर जब से अजय का ऐक्सिडैंट हुआ था, निधि की आदतों में फर्क साफ नजर आता था. जो लड़की फर्स्ट डे फर्स्ट शो मूवी देखती थी, तकरीबन रोज ही शौपिंग, आएदिन अजय के साथ बाहर डिनर करना जिस के शौक थे, वह अब बड़े हिसाबकिताब से चलने लगी थी. और तो और, घर के कामों को भी वह मालती के तरीके से ही करने की कोशिश करती थी.

मालती उस में आए इस बदलाव से हैरान थी. एक तरह से निधि ने घर की सारी जिम्मेदारी उठा ली थी. अजय भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था. उसे निधि पर पूरा भरोसा था. पर मालती को एक तरह से यह बात चुभती थी कि बहू हो कर  वह बेटे की तरह घर चला रही है. आखिर, बहू तो बहू होती है, मालती सोचती थी.

एक दिन सुबह पार्क जाने से पहले मालती अजय के कमरे में आई. उस की बीपी की दवाई खत्म हो गई थी.

‘‘अजय, मु झे कुछ पैसे दे दे, दवाई लेनी है. पार्क के रास्ते में कैमिस्ट से  ले लूंगी.’’

‘‘लेकिन मां, मेरे पास कैश नहीं है, तुम निधि से ले लो,’’ अजय टीवी पर नजरें गड़ाए हुए बोला.

रहने दे, बाद में ले लूंगी जब एटीएम से पैसे निकालूंगी, ‘‘मालती ने जवाब दिया. निधि के सामने वह हाथ नहीं  फैलाना चाहती थी. बाहर आ कर उस ने पार्क ले जाने वाला बैग उठाया, तो उस के नीचे नोट रखे थे. मालती सम झ गई कि निधि ने चुपचाप से पैसे रखे होंगे ताकि मालती को उस से मांगना न पड़े. जब वह अजय से बात कर रही थी तो निधि बाथरूम में थी. शायद, उस ने उन दोनों की बातचीत सुन ली थी.

मालती को फिजियोथेरैपिस्ट के पास जाना पड़ता था. अकसर उसे पीठ और कमरदर्द की तकलीफ रहती थी. उस ने सोचा, यह खर्च कम करना चाहिए, तो जाना बंद कर दिया. लेकिन तबीयत खराब रहने लगी. अजय को पता चला तो बहुत नाराज हो गया. निधि पास में बैठी लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी.

‘‘बेकार में पैसे खर्च होते हैं,’’ मालती ने सफाई दी, ‘‘पार्क में सब कसरत करते हैं, मैं भी वही किया करूंगी.’’

‘‘मां, अब से आप को क्लिनिक जाने की जरूरत नहीं, फिजियोथेरैपिस्ट यहीं घर पर आ कर आप को ट्रीटमैंट देगा,’’ निधि ने मालती से कहा.

‘‘नहीं, नहीं, इस में तो ज्यादा फीस लगेगी, रहने दो ये सब,’’ मालती को बात जंची नहीं.

‘‘मां, आप की तबीयत ठीक होना ज्यादा जरूरी है और आप के साथसाथ डाक्टर अजय को भी देख लेगा,’’ निधि ने तर्क दिया.

‘‘ठीक तो है मां, तुम घर पर ही आराम से ट्रीटमैंट करवाओ, क्लिनिक के चक्कर लगाने की जरूरत क्या है,’’ अजय ने उसे आश्वस्त किया.

अजय की तबीयत धीरेधीरे सुधरने लगी थी. निधि ने अपनी मेहनत से घर में कोई कमी नहीं आने दी. सबकुछ उस ने संभाल लिया था. घर और गाड़ी की किस्तें, महीने का घरखर्च, डाक्टर की फीस सब उस के पैसों से चल रहा था.

निधि के मांबाप 2 दिन पहले ही अमेरिका में रह रहे अपने बेटे के पास से लौटे थे. आते ही वे अजय को देखने आ गए थे. निधि उस वक्त औफिस  में थी.

आइए, चाय पी लीजिए, मालती अजय के पास बैठी निधि की मां से बोली. अजय अपने ससुरजी से बातें कर रहा था. ट्रे में 2 कप चाय उस ने अजय और निधि के पापा के लिए वहीं एक टेबल पर रख दी.

‘‘अरे, आप ने ये सब तकलीफ क्यों की, हम तो बेटी के घर कुछ खातेपीते नहीं,’’ निधि की मां कुछ सकुचा कर बोली.

‘‘छोडि़ए न बहनजी, पुराने रिवाज, आज की बहुएं क्या बेटों से कम हैं,’’ अकस्मात मालती के मुंह से निकल पड़ा.

दोनों चाय पीने लगीं. ‘‘निधि और अजय की शादी के बाद से आप से ठीक से मिलना नहीं हो पाया. आप तो जानती हैं, शादी के तुरंत बाद हमें बेटे के पास जाना पड़ा, इसलिए कभी आप से एकांत में बातें करने का मौका ही नहीं मिला,’’ निधि की मां कुछ गमगीन हो कर बोली.

‘‘हांजी, मु झे पता है, आप का जाना जरूरी था. यह तो समय का खेल है. जान बच गई अजय की, यह गनीमत है.’’

‘‘निधि को अब तक आप जान गई होंगी. अपने पापा की लाड़ली रही है शुरू से. मैं ने भी ज्यादा कुछ सिखाया नहीं उस को, मां हूं उस की, कितनी लापरवाह है, यह मैं जानती हूं. आप को बहुतकुछ सम झाना पड़ता होगा उसे. एक बेटी से बहू बनने में उसे थोड़ा वक्त लगेगा. उस की नादानियों का बुरा मत मानिएगा. बस, यही कहना चाहती थी आप से.’’

जिस दिन से अजय की शादी निधि से हुई थी मालती को हमेशा निधि में कोई न कोई गलती नजर आती थी, उस ने सोचा था कि कभी मौका मिलेगा तो निधि की मां से खूब शिकायतें करेगी कि बेटी को कुछ नहीं सिखाया. लेकिन आज न जाने क्यों मालती के पास कुछ नहीं था निधि की शिकायत करने को, उल्टा उसे बुरा लगा, ऐसा लगा निधि उस की अपनी बेटी है और कोई दूसरा उस की बुराई कर रहा है.

‘‘आप से किस ने कहा कि मु झे निधि से कोई परेशानी है. हर लड़की बेटी ही जन्म लेती है. बहू तो उसे बनना पड़ता है. लेकिन यह मत सम िझए कि निधि एक कुशल बहू नहीं है. आप कभी यह मत सोचिए कि हम खुश नहीं हैं. निधि अब मेरी बेटी है,’’ मालती कुछ रुंधे गले से बोली, उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि वह यह सब बोल रही थी. पर ये शब्द दिल की गहराई से निकले थे, बिना किसी बनावट के.

एक बेटी की मां के चेहरे पर जो खुशी होती है, वह खुशी दोनों मांओं के चेहरे पर थी.

रात में खाना खाने के बाद मालती बालकनी में रखी कुरसी पर बैठी दूर

से जगमग करती शहर की रोशनी देख रही थी.

हाथ में कौफी का मग लिए निधि उस के पास आ कर धीरे से एक स्टूल ले कर बैठ गई.

‘‘मां, यह आप का टिकट है इलाहबाद का,’’ निधि ने ट्रेन का टिकट उस की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘अरे, लेकिन मैं ने तो बोला ही नहीं जाने के लिए, हर शादी में जाना जरूरी नहीं है मेरा,’’ मालती बोली.

‘‘अरे वाह, क्यों नहीं जाएंगी आप? मामाजी को बुरा लगेगा अगर हमारे घर से कोईर् भी इस शादी में नहीं गया. सौरी मां, मैं ने आप से बिना पूछे टिकट ले लिया है. अजय और मु झे लगता है आप को जाना चाहिए.’’

‘‘वह तो ठीक है. पर अभी अजय को मेरी जरूरत है. तुम तो औफिस चली जाओगी. वापस आ कर घर का काम, कितना थक जाओगी. मैं तुम दोनों को छोड़ कर नहीं जा पाऊंगी. मन ही नहीं लगेगा मेरा वहां,’’ मालती ने इसरार किया.

‘‘अजय की तबीयत अब काफी ठीक है. अब तो वे जौब के लिए एकदो इंटरव्यू देने की भी सोच रहे हैं, आप बेफिक्र हो कर जाइए मां.’’

मालती ने निधि के चेहरे की तरफ देखा. वह बहुत सादगी से बोल रही थी, न कोई बनावट न कोई  झूठ. मेरी सगी बेटी भी होती तो इस से बढ़ कर और क्या करती इस घर के लिए. निधि ने बहू का ही नहीं, बेटे का फर्ज भी निभा कर दिखा दिया था. बस, वह खुद ही अपनी सोच का दायरा बढ़ा नहीं पाई. हमेशा उसे अपने हिसाब से ढालना चाहती रही. निधि की सचाई, उस के अपनेपन और इस घर के लिए उस के समर्पण को अब जा कर देख पाई मालती. क्या हुआ अगर उस के तरीके थोड़े अलग थे. लेकिन वह गलत तो नहीं. आज मालती ने अपना नजरिया बदला तो आंखों में जमी गलतफहमी की धूल भी साफ हो गई थी.

मालती ने निधि का हाथ अपने हाथों में लिया और शहद घुले स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू बेटा, हमारे घर में आने के लिए,’’ कुछ आश्चर्य और खुशी से निधि ने उसे देखा और बड़े प्यार से उस के गले लग गई.   द्य

मालती कुनमुना कर रह गई. उस ने उम्मीद की थी कि निधि कुछ नानुकुर करेगी कि नहीं, मैं नहीं दे पाऊंगी, टाइम नहीं है, औफिस के लिए लेट हो जाएगा वगैरहवगैरह. पर यहां तो उस के हाथ से एक और वाकयुद्ध का मौका निकल गया.

मालती उस में आए इस बदलाव से हैरान थी. एक तरह से निधि ने घर की सारी जिम्मेदारी उठा ली थी. अजय भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था. उसे निधि पर पूरा भरोसा था. पर मालती को एक तरह से यह बात चुभती थी कि बहू हो कर वह बेटे की तरह घर चला रही है.

प्यार के माने: निधि को क्या अजीत से था प्यार

उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का.

उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालना चाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है कि अजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे?

जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी. पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया. उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं.

इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे.

एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया.

समय बीतता गया. अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी.

एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’

अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं. अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’

अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही.

प्यार दोबारा भी होता

 कहानी- आशा सर्राफ

सागरशांत गहरी सोच में डूबा नजर आता. मगर आज किसी ने कंकड़ फेंक लहरों को हिला दिया था. ध्यान भंग था सागर का. कुछ ऐसा ही राजीव के साथ भी हो रहा था. हां, उस का दिल भी सागर की तरह था और इस दिल में सिर्फ एक मूर्ति बसी थी. किसी अन्य का खयाल दूरदूर तक न था. सिर्फ वह और संजना. दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से बेखबर. वह बेहद प्यार करता था अपनी पत्नी को. संजना को देख कर उसे लगा था कि एक वही है जिसे वह ताउम्र प्यार कर सकता है.

कहने को तो अरेंज्ड मैरिज थी पर लगता जैसे कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं. संजना को देख कर ही राजीव का दिल धड़का. दिल

भी अजीब है. हर चीज का संकेत पहले ही दे देता है.

3 साल शादी को हो गए थे. कोई संतान नहीं हुई. फिर भी उसे कोई गम नहीं था. उस के लिए संजना ही संपूर्ण थी. कितने शहर दोनों घूमे. संजना के बगैर राजीव को अपना वजूद ही नजर नहीं आता. संजना के गर्भवती होने पर कितना खुश था वह… जैसे उस का संसार पूर्ण होने वाला है. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. बेटी को जन्म देते समय अधिक रक्तस्राव के कारण संजना का निधन हो गया. उस की मौत ने उसे अंदर तक हिला दिया. घर की हर वस्तु पर

संजना की परछाईं नजर आती. परछाईं तो उस की स्वयं की बेटी थी. जब भी वह बेटी का चेहरा देखता दिल काबू में न रहता. दम घुटने लगा उस का. वह नहीं रह पाया. न ही बेटी को देख मोह हुआ. उस की मां ने कितना सम झाया पर वह नहीं माना. उस ने अपना ट्रांसफर बैंगलुरु से मुंबई करवा लिया.

मांपिताजी पोती के आने से खुश थे. जब भी वह बैंगलुरु जाता 1 दिन से अधिक न रुक पाता. उस शहर, उस घर में उस का दम घुटता. उसे लगता अगर वह यहां और रहा तो पागल हो जाएगा.

मुंबई में किराए पर फ्लैट ले कर अकेले रहने लगा. अब उस का दिल सूख चुका था. मौसम बदले, महीने बदले, वह यंत्रवत अपना कार्य करता. पर आज इस दिल में हलचल मची थी.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ वह बुदबुदाने लगा.

दिल एक बार ही धड़कता है जो उस का धड़क चुका. फिर आज क्यों? क्यों ऐसी बेचैनी? क्या वह किसी के प्रति आकर्षित हो रहा है? नहीं, यह संजना के प्रति अन्याय होगा. पर दिल नहीं सुन रहा था. उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वह ऐसा महसूस करेगा. क्यों वह बेचैन हो रहा है? क्यों उसे चिंता हो रही है? एक पड़ोसी की दूसरे पड़ोसी की चिंता हो सकती है, यह स्वाभाविक है. इस से अधिक और कुछ नहीं. कुछ पलों के लिए  झटकता पर फिर उस का चेहरा सामने आने लगता.

6 महीने पहले राजीव के पड़ोस में एक औरत रहने आई थी. लड़की नहीं कह सकते,

क्योंकि 30 के ऊपर की लग रही थी. एक फ्लोर में 2 ही फ्लैट थे. घर में नैटवर्क सही न होने के कारण वह बाहर फोन से बातें कर रहा था. पड़ोस में वह औरत अपने सामान को ठीक से रखवा रही थी. हलकी सी नजर राजीव ने डाली थी उस पर इस के अलावा कुछ नहीं.

औफिस जातेआते प्राय: रोज ही टकरा जाते. लिफ्ट में अकेले साथ

जाते हुए कभीकभी राजीव को कुछ महसूस होता. यों तो हजारों के साथ लिफ्ट में आताजाता पर इस के होने से कुछ आकर्षण महसूस करता. शायद अकेले होने के कारण या फिर शरीर की अपनी जरूरत होने के कारण.

एक दिन लिफ्ट से निकलते वक्त उस औरत का पांव मुड़ गया. वह गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसे पकड़ लिया. बांह पकड़ उसे लिफ्ट के बाहर रखी कुरसी पर बैठा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ पूछते हुए उस ने पांव को हाथ लगा कर देखना चाहा पर उस औरत ने  झटके से पांव खींच लिया.

‘‘नहीं, ठीक है… थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए उस ने पांव को आगेपीछे किया.

‘‘कुछ मदद चाहिए?’’ राजीव ने पूछा.

‘‘नहीं, धन्यवाद. संभाल लूंगी.’’

राजीव भी औफिस के लिए निकल गया. मगर उस की बांह पकड़ना… किसी के इतने करीब आना… उस का दिल धड़का गया.

2-3 दिन वह लंगड़ा कर ही चलती रही थी. अब हलकी सी मुसकराहट का आदानप्रदान होने लगा. कभीकभी 1-2 बातें भी होने लगीं. उस की मुसकराहट अब राजीव के दिल में जगह बनाने लगी थी.

2-3 दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थी. यही बेचैनी उस के दिल में तूफान मचा रही थी. वह अपने ही घर में चहलकदमी करने लगा. कभी दरवाजा खोलता, तो कभी बंद करता. पता नहीं कौन है? क्या करती है? कुछ भी जानकारी नहीं थी. नजर आता तो सिर्फ उस का चेहरा.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी.

‘‘साहब, जरा मेम साहब को देखो न… बहुत बीमार हैं,’’ वह हड़बड़ाते हुए बोली.

राजीव घबराते हुए उस के पास पहुंचा. माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था.

‘‘किसी को दिखाया?’’ चिंतित स्वर में राजीव ने पूछा.

उस ने हलके से न में सिर हिला दिया.

राजीव ने डाक्टर को फोन कर बुलाया और फिर उस के माथे पर पानी की पट्टियां लगाता रहा. कामवाली भी जा चुकी थी. डाक्टर ने आ कर दवा लिखी. दवा खाने से उस का बुखार कम होने लगा.

दूसरे दिन थोड़ा स्वस्थ देख राजीव ने पूछा, ‘‘आप के घर से किसी को बुलाना है तो कह दीजिए मैं कौल कर देता हूं?’’

उस ने न में हलके से सिर हिलाया.

‘‘कोई रिश्तेदार है यहां पर?’’

उस ने फिर न में सिर हिलाया.

उस के खानेपीने की, दवा देने की जिम्मेदारी राजीव ने खुद पर ले ली. वह काफी सकुचा रही थी पर स्वस्थ न होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई.

2-3 दिन बाद स्वस्थ होने पर वह आभार प्रकट करने लगी, ‘‘माफ कीजिए, मेरे कारण आप को बहुत कष्ट हुआ.’’

‘‘माफी किस बात की? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. आइए बैठिए,’’ अंदर आने का इशारा करते हुए राजीव बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी. अभी औफिस जाना है,’’ कह वह औफिस के लिए निकलने लगी.

‘‘रुकिए मैं भी आ रहा हूं,’’ कहते हुए राजीव ने भी अपना बैग उठा लिया.

वह मुसकराते हुए लिफ्ट का बटन दबाने लगी.

अब अकसर दोनों आतेजाते बातें करने लगे. कभीकभी डिनर भी साथ कर लेते. दोनों में दोस्ती हो गई. पर अभी भी वे एकदूसरे के निजी जीवन से अनजान थे.

घर से बाहर दूरदूर तक पहाड़ दिखाई देते थे. हरियाली भी खूब थी.

राजीव के दोस्त प्राय: कहते कि तुम कितनी अच्छी जगह रहते हो. पर राजीव को कभी महसूस ही नहीं होता था. उसे हरियाली कभी दिखाई ही नहीं दी. दिल सूना होने से सब सूना और बेजान ही दिखाई देता है. अब कुछ महीनों से यह हरियाली की  झलक दिखाई दे रही थी. बारिश ने आ कर और अधिक हराभरा कर दिया था.

एक शाम दोनों डिनर पर गए.

‘‘मैं अभी तक आप का नाम ही नहीं जान पाया,’’ कुरसी पर बैठते हुए राजीव ने कहा.

‘‘रोशनी,’’ मुसकराते हुए वह बोली.

‘‘अच्छा तो इसीलिए यह रैस्टोरैंट जगमगा रहा है,’’ जाने कितने महीनों बाद राजीव ने चुहलबाजी की थी.

‘‘जगमगाहट देख कर पेट नहीं भरेगा. कुछ और्डर कीजिए,’’ रोशनी मुसकराते हुए बोली.

राजीव ने खाने का और्डर किया.

‘‘मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता. मगर आप बताना चाहें तो मैं सुनना चाहूंगा,’’ राजीव खाना खाते हुए बोला.

रोशनी नजरें नीचे कर  झेंपने लगी.

‘‘ठीक है आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. इतनी दोस्ती तो है कि मैं बता सकूं. बाहर बताती हूं,’’ नजरें अभी भी उस की  झुकी हुई थीं.

खाना खाने के बाद दोनों बाहर टहलने लगे. टहलतेटहलते स्वयं को संभाल रोशनी कहने लगी, ‘‘मैं एमबीए करने लगी. वह भी मु झ से प्यार करता था. हम दोनों लिवइन में रहने लगे. मेरे परिवार वालों ने बहुत सम झाया, डांटा भी पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती थी. मम्मीपापा ने कहा शादी कर के साथ रहो. पर मैं नहीं मानी. मु झे लगता था जब प्यार करते हैं तो शादी जैसा बंधन क्यों और फिर उस वक्त हम शादी कर भी नहीं सकते थे. गुस्से में आ कर मेरे परिवार वालों ने रिश्ता तोड़ लिया. मु झे जौब मिल गई थी. उसे भी जौब मिल गई पर दूसरे शहर में.हम लोग कोशिश कर रहे थे कि एक ही शहर में मिल जाए.

‘‘तब तक कभी वह आ जाता, कभी मैं चली जाती. 1 साल बाद वह प्राय: आने में आनाकानी करने लगा. मैं ही कभीकभी चली जाती. वह प्राय: उखड़ाउखड़ा रहता. बहुत

जोर देने पर उस ने कहा कि अब उसे किसी और से प्यार हो गया है. क्या ऐसा हो सकता है?

प्यार तो एक बार ही होता है न? दिल एक बार ही धड़कता है न?’’ कहते हुए वह फफक पड़ी.

राजीव ने उसे बांह से पकड़ बैंच पर बैठाया.

‘‘नहीं, आप बताइए प्यार दोबारा हो सकता है?’’ उस ने रोते हुए जिज्ञासा भरी नजरों से राजीव की तरफ देखा.

राजीव की नजरें  झुक गईं.

‘‘मतलब? तब पहले वाला प्यार नहीं था. सिर्फ लगाव था?’’ राजीव को  झुकी नजरें देख रोशनी बोली.

‘‘नहीं वह भी प्यार था पर…’’

‘‘पर… बदल गया?’’

‘‘बदला नहीं हो सकता है फिर से…’’

बात बीच में छोड़ राजीव खामोश हो गया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? साफसाफ कहिए,’’ रोशनी के आंसू सूख चुके थे.

‘‘मैं भी यही सम झता था,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए राजीव बोला, ‘‘प्यार एक बार ही होता है… दिल एक बार ही धड़कता है. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था पर बेटी होने के दौरान उस की मृत्यु हो गई. ऐसा लगता था उस के अलावा मेरा दिल अब किसी के लिए नहीं धड़केगा पर जब…’’ कहतेकहते अचानक चुप

हो गया.

‘‘पर जब क्या?’’ जिज्ञासाभरी नजरों से रोशनी ने राजीव की तरफ देखा.

राजीव ने नजरें घुमा लीं.

‘‘क्या कोई और मिल गई?’’ बड़ीबड़ी आंखों से घूरते हुए वह बोली.

राजीव ने एक गहरी नजर रोशनी पर डाली और फिर कहा, ‘‘चलो, चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बात खत्म करो,’’ कह रोशनी ने राजीव का हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘चलो चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बताओ.’’

‘‘क्या बताऊं. हां… होने लगा प्यार तुम से,’’ राजीव ने उत्तेजित हो कर कहा. आंसू निकल आए थे उस की आंखों से.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ रोशनी के हाथ ढीले पड़ गए.

‘‘यह जरूरी नहीं कि जो मैं महसूस करता हूं तुम भी करो. इस सब से हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी स्टार्ट की.

दूसरे दिन दोनों ने औपचारिक बातें कीं. स्वयं को संयत कर लिया था दोनों ने.

2 दिन के दौरे पर रोशनी दूसरे शहर गई थी.

मां की तबीयत खराब होने की खबर सुन राजीव भी बैंगलुरु चला गया. इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा. जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत था. संजना की यादें सता नहीं रही थीं, बल्कि यह एहसास दिला रही थीं कि उस ने जितना भी जीवन जीया प्यार से जीया. संजना वजूद नहीं एक हिस्सा लग रही थी, जिसे वह हमेशा बना कर रखेगा.

मां भी राजीव को देख आश्चर्यचकित थीं. उन्हें लगा जैसे पहले वाला राजीव उन्हें वापस मिल गया है. बेटे को प्रसन्न व शांत देख वे जल्द ही स्वस्थ हो गईं. पहली बार वह अपनी बेटी को बाहर घुमाने ले गया. जैसे बेटी से परिचय ही अभी हुआ हो. वहीं स्कूल में दाखिला भी करा दिया. 1 सप्ताह वहां रह वह मुंबई लौट आया.

सुबह जब राजीव नहा रहा था तब बारबार दरवाजे की घंटी बज रही थी.

‘‘कौन है जो इतनी बेचैनी से घंटी बजाए जा रहा है?’’ बाथ गाउन पहने वह बाहर निकला.

दरवाजा खोलते ही रोशनी तेजी से अंदर आ कर चीखने लगी, ‘‘कहां गए थे आप? बता कर भी नहीं गए? फोन नंबर भी नहीं दिया… आप को पता है मेरी क्या हालत हुई? मैं सोचसोच कर मरे जा रही थी… कहीं आप भी मु झे छोड़ कर तो नहीं चले गए? यों तो कहते हो प्यार करने लगा और ऐसे कोई परवाह ही नहीं,’’ और कहतेकहते वह रो पड़ी.

मुसकराते हुए राजीव ने रोशनी को बांहों में ले लिया. अब रोशनी को भी एहसास हो चुका था कि प्यार दोबारा भी होता है. ‘‘इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा.

जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत लग रहा था…’’

रिश्ता और समझौता: अरेंज मैरिज के लिए कैसे मान गई मौर्डन सुमन?

अमेरिका के जेएफके अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे में सारी औपचारिकताओं को पूरा कर के जब अपना सामान ले कर सुमन बाहर आई तो उस ने अपनी चचेरी बहन राधिका को हाथ लहराते देखा. सुमन बड़ी मुसकान के साथ उस की ओर बढ़ी और फिर दोनों एकदूसरे से गले मिलीं.

‘‘अमेरिका के न्यूयौर्क में आप का स्वागत है सुमन,’’ कह कर राधिका ने सुमन के गाल पर किस किया.

सुमन ने भी उसे गले लगाया और फिर दोनों निकास द्वार की ओर बढ़ने लगीं.

राधिका, सुमन की चाची की बेटी है. वे लगभग हमउम्र हैं. दोनों का बचपन इंदौर में अपने नानाजी के घर में एकसाथ गुजरा था. हर छुट्टी पर परिवार के सभी सदस्य अपने नाना के घर इंदौर में इकट्ठा होते थे और उन दिनों की खूबसूरत यादें सुमन के दिमाग में अभी भी ताजा हैं. अपने नानानानी की मृत्यु के बाद सुमन की मां ने अपनी बहनों से अपना संपर्क बनाए रखा और वे अकसर मुंबई आती थीं. राधिका ने खुद सुमन के घर में रह कर मुंबई में ही कैमिस्ट्री में पौस्टग्रैजुएशन किया था और उस समय सुमन भी कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही थी. राधिका नौकरी के सिलसिले में न्यूयौर्क चली गई और सुमन को मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई.

‘‘चाची और चाचा कैसे हैं,’’ गाड़ी को पार्किंग से बाहर निकालते हुए राधिका ने पूछा.

सुमन मुसकराते हुए बोली, ‘‘वे ठीक हैं.’’

अब दोनों ओर से चुप्पी थी. अमेरिकी धरती पर उतरते ही सुमन से कोई भी निजी सवाल पूछ कर राधिका उसे उलझन में नहीं डालना चाहती थी. इसी बीच सुमन का फोन बजा. आशीष का था. सुमन को झिझक हुई तो राधिका ने कहा, ‘‘तुम कौल लेने में क्यों संकोच कर रही हो?’’

तब सुमन ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हाय स्वीट हार्ट,’’ दूसरी ओर से आशीष की आवाज थी,‘‘तम न्यूयौर्क पहुंच गई हो… यात्रा कैसी रहीं. कोई कठिनाई तो नहीं हुई?’’ उस की आवाज में चिंता बहुत स्पष्ट थी.

‘‘हां आशीष मैं बिना किसी दिक्कत के न्यूयौर्क पहुंच चुकी हूं… सफर अच्छा था… बस थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं.  मेरी बहन राधिका हवाईअड्डे मुझे लेने आ गई थीं. अब हम अपने घर जा रही हैं… मैं तुम्हें बाद में फोन करूंगी,’’ और फिर फोन काट दिया.

फिर घंटी बजी. सुमन की मां थीं. मां ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ठीक हो? क्या राधिका एअरपोर्ट आ गई थी? सुमन ने फोन राधिका को पकड़ा दिया. राधिका बोली, ‘‘मौसी मैं एअरपोर्ट कैसे नहीं आती… आप सुमन की चिंता न करो… वह यहां बिलकुल सुरक्षित है. हम घर पहुंच कर आप को फोन करते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह सुमन की मां ने फोन काट दिया.

राधिका का तीसरी मंजिल पर

3 बैडरूम वाला अपार्टमैंट था.

जैसे ही राधिका और सुमन ने घर में प्रवेश किया एक फिरंगी लड़की एक बैडरूम से बाहर आई और सुमन को गले लगा कर मुसकराते हुए उस का अभिवादन करते हुए बोली, ‘‘यूएस में आप का स्वागत है और आशा है कि आप मेरे साथ रहना पसंद करेंगी.’’

सुमन सोच में पड़ गई कि राधिका अकेली रह रही है तो यह लड़की कौन?

राधिका उसे कौफी का कप पकड़ाते हुए बोली,

‘‘सुमन यह जेनिफर है. हम ने इस अपार्टमैंट को मिल कर किराए पर लिया है. वह एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती है और वे ही अपनी कंपनी में तुम्हें नौकरी दिलाने में मदद करने वाली है… न्यूयौर्क बहुत महंगा शहर है… हम इस तरह एक अपार्टमैंट अकेले किराए पर नहीं ले सकते. वह बहुत व्यस्त रहती है, इसलिए ज्यादातर खाना बाहर से मंगवाती है… हमारे बीच कोई समस्या नहीं. अब तुम भी आ गई तो हम तीनों अपार्टमैंट साझा कर सकती हैं,’’ राधिका ने कौफी पीते हुए कहा.

सुमन चुप रही. वैसे भी वह केवल 2 साल के लिए अमेरिका आई है और फिर भारत अपने प्रेमी आशीष के पास वापस चली जाएगी. इस बीच जब जेनिफर उन दोनों के पास आई तो वह औफिस जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी. उस ने एक ईमेल आईडी देते हुए सुमन से कहा,‘‘राधिका ने मुझे बताया था कि आप को सौफ्टवेयर सैक्शन में नौकरी की जरूरत है और मैं उसी फील्ड में काम करती हूं… वास्तव में मेरी खुद की टीम में एक शख्स की जरूरत है. आज ही अपना सीवी इस आईडी पर भेजें ताकि जल्दी आप की नियुक्ति हो जाए. बाय… शाम को मिलते हैं,’’ और फिर राधिका को गले लगा अपनी गाड़ी की चाबी ले कर दफ्तर के लिए निकल गई.

‘‘तो क्या चल रहा है? सुमन तुम मुझ से दिल खोल कर बात कर सकती हो, क्योंकि हम केवल चचेरी बहनें ही नहीं बचपन की दोस्त भी हैं. याद है तुम्हें हम उन छोटेछोटे रहस्यों को कैसे साझा करते थे… मैं ने आज छुट्टी ले ली है ताकि तुम्हारे साथ समय बिता सकूं और तुम्हारी चीजों को व्यवस्थित करने के लिए मदद कर सकूं,’’ राधिका ने कहा.

सुमन ने लंबी सांस ली. मुंबई में अच्छी सैलरी वाली नौकरी से इस्तीफा दे कर

अमेरिका क्यों आई है, राधिका को यह बताने के लिए सुमन ने खुद को तैयार किया.

कुछ दिन पहले ही सुमन ने मां को पिता की मौजूदगी में बताया था.

‘‘सुमन तुम यह क्या कह रही हो? तुम

ऐसे सोच भी कैसे सकती हो,’’ उस की मां चिल्लाई थीं.

‘‘क्या आप ने सुना है कि आप की बेटी एक ऐसे लड़के से प्यार करती है, जो हमारी बिरादरी का नहीं है और इस से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि वह उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है ताकि वे एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें. फिर वे तय करेंगे कि शादी करनी है या नहीं,’’ यह कहते हुए सुमन की मां मुश्किल से सांस ले पा रही थीं.

सुमन की मां हर छोटी सी छोटी बात पर भी भावुक हो जाती है, उस के विपरीत उस के पिता एक संतुलित व्यक्ति हैं. उन्होंने ध्यान से अपनी बेटी की बात सुनी.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा, आशीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन हम शादी में जल्दबाजी नहीं करना चाहते. मेरे अपने दफ्तर में 4 मित्र जोड़ों ने जल्दबाजी में शादी कर ली और फिर 1 साल के भीतर ही उन की शादी टूट गई. ऐसा इसलिए क्योंकि वे एकदूसरे को ठीक से समझे बगैर शादी कर बैठे. हम यह गलती नहीं दोहराना चाहते हैं. इन दिनों मुंबई में लिव इन रिलेशनशिप में रहना आम बात है. मेरे अपने दोस्त ऐसे ही रहते हैं. ऐसे साथ रहने से हम अपने साथी की ताकत और कमजोरी को समझ सकते हैं और एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान सकते हैं. फिर तय कर सकते हैं कि एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं, हमारी शादी सफल हो सकती है या नहीं,’’ सुमन ने समझाया.

सुमन की मां बेशक सदमे की स्थिति में थीं, लेकिन उस के पिता हमेशा की तरह शांत थे. उन्होंने सुमन को अपनी बगल में बैठाया और फिर बोले, ‘‘तुम्हारे दोस्तों की शादियां टूट गईं और तुम्हें लगता कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को समझे बिना जल्दबाजी में शादी की. इस मामले में मेरा खयाल है कि तुम दोनों 1-2 साल के लिए अपनी दोस्ती बरकरार रख कर एकदूसरे को समझने की कोशिश करो और फिर शादी कर लो. यह लिव इन रिश्ता क्यों?’’ रामनाथ ने पूछा.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा यही समस्या है. दरअसल, जब हम दोस्त होते हैं तो हम हमेशा दूसरे व्यक्ति को केवल अपना बेहतर पक्ष दिखाते हैं. हम सभी का एक और पक्ष है, जिसे हम जानबूझ कर दूसरों से छिपाते हैं. विवाह में ऐसा नहीं है. आप को अपने पूरे जीवन में एक व्यक्ति के साथ मिलजुल कर रहना होगा और आप को छोटी सी छोटी चीजें जैसे खाने से ले कर पैसे तक बड़े मामलों पर दोनों के बीच सहमति की जरूरत होती है.

‘‘उदाहरण के लिए मेरी एक दोस्त ने अपने बौयफ्रैंड से 4 साल तक डेटिंग करने के बाद शादी की. लेकिन शादी के बाद ही उसे समझ में आ गया कि जिस से उस ने ब्याह किया वह एक पुरुषवादी व्यक्ति है. यद्यपि मेरी सहेली उस से अधिक कमा रही थी, फिर भी उस के पति ने उस के साथ बदसलूकी की और पुराने जमाने की पत्नियों की तरह अपने परिवार की सेवा करने के लिए उसे मजबूर किया. इस के अलावा मेरी सहेली से उस की कमाई का हिस्सा मांगा… दुख की बात तो यह है कि उस लड़के ने मेरी सहेली की अपने मातापिता को किसी भी रूप से सहायता करने से सख्त मनाकर दिया. जब हम दोस्त होते हैं तब हमें एक मर्द के इस पहलू को नहीं जान सकते, क्योंकि उस वक्त सभी इंसान अपना अच्छा पक्ष ही दिखाएगा,’’ सुमन ने बताया.

थोड़ी देर रुक वह आगे बोली, ‘‘पापा, आज भी बहुत से भारतीय पुरुष हैं जो सोचते हैं कि वे घर के बौस हैं. पत्नी को केवल उन की आज्ञा का पालन करना चाहिए. स्त्री को उचित अधिकार और सम्मान नहीं दिए जाने की वजह से ही इन दिनों कई भारतीय शादियां टूट रही हैं. मैं नहीं चाहती कि मेरे साथ भी ऐसा हो. मैं ने सोचा कि जब हम एकसाथ रहते हैं तो हमारी सचाई एकदूसरे के सामने आती है तब हमें पता चलता है कि हम एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं.’’

रामनाथ ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम सही हो और मैं इस विषय में तुम से पूरी तरह सहमत हूं, लेकिन यह लिव इन रिलेशनशिप भी उतनी आसान नहीं जितना तुम समझ रही हो. यह भी बहुत सारी समस्याओं को जन्म देती है. तुम एक शिक्षित लड़की हो और मुझे तुम्हें बहुत समझाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम स्मार्ट और बुद्धिमान हो. शादी जैसे बंधन के बिना लड़का और लड़की पतिपत्नी की तरह रहने से भी समस्याएं हो सकती हैं. पहली बात यह है कि दोनों तरफ कोई प्रतिबद्धता नहीं है और यह किसी भी रिश्ते के लिए अच्छा नहीं है.

‘‘अगर इस तरह साथ रहने में जिन दिक्कतों का लड़का और लड़की को सामना करना पड़ता है, उन के बारे में मैं कहूं तो तुम समझोगी कि मैं पिछली पीढ़ी का बूढ़ा आदमी हूं और लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ कहता हूं. इसलिए मेरे पास एक सुझाव है. लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा पश्चिमी देशों से आई है न? लेकिन अब वे महसूस कर रहे हैं कि शादी की हमारी परंपरा बेहतर है. हमारी राधिका न्यूयौर्क में है और तुम वहां जा कर काम करो और पश्चिमी लोगों के साथ काम करते दौरान उन के जीवन को करीब से देखो. तब तुम अपने लिए क्या सही है यह निर्णय करने की स्थिति में होगी और वह तुम्हारे लिए बेहतर होगा.’’

सुमन को भी लगा कि यह एक अच्छा विचार है.

‘‘तो मैं अब अमेरिका में हूं, जहां लिव इन रिलेशनशिप की संस्कृति को समझना है,’’ सुमन ने हंसते हुए कहा.

राधिका भी हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें पता है कि जेनिफर अगले हफ्ते वास्तव में अपने बौयफ्रैंड के साथ इसी बिल्डिंग में एक और फ्लैट में जाने की योजना बना रही है. एक नई लड़की क्लारा हमारी रूममेट होगी,’’ कह कर राधिका चाय के कप रखने चल दी और सुमन खिड़की से नीचे चल रही गाडि़यों की जलूस देखने लगी.

धीरेधीरे 3 साल बीत गए. हर हरिवार को सुमन के मातापिता उस से कम

से कम 2 घंटे तक इंटरनैट पर बात करते थे. इकलौती औलाद होने के नाते सुमन के मातापिता उस पर अपनी जान छिड़कते थे. खासकर सुमन की मां जो अपनी बेटी से अलग नहीं रह पा रही थी. उन्होंने अपने पति से कहा कि वे अमेरिका जाएं अपनी बेटी के पास.

रामनाथ ने उन्हें यह कहते हुए रोक दिया, ‘‘नहीं हम वहां नहीं जा रहे हैं. हम ने सुमन को वहां संस्कृति का निजी ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा है, जिस की भारतीय युवा पीढ़ी इतने उत्साह से पीछा कर रही हैं.’’

सुमन की मां के पास इसे मानने के अलावा कोई और चारा नहीं था.

आशीष हर हफ्ते उस से इंटरनैट पर बात करता था, क्योंकि उसे भी सुमन से अलग रहना अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस ने भी यूएस आने का प्रस्ताव रखा तो सुमन ने तुरंत मना कर दिया और कहा, ‘‘मैं ने अपने पिताजी से वादा किया है कि मैं आप को यहां नहीं बुलाऊंगी… और मैं अपना वादा नहीं तोड़ूंगी.’’

आशीष मान गया.

नौकरी भी अच्छी चल रही थी. न्यूयौर्क एक तेजी से आगे बढ़ने वाला शहर है, जो उस के मुंबई से भी ज्यादा तेज है. सुमन को सुबह 8 बजे अपने दफ्तर में पहुंचना है और वह जिस फ्लैट में रह रही है, वहां से पहुंचने में समय लगता. लेकिन न्यूयौर्क में आवागमन करना कोई समस्या नहीं है.

सुमन हर सुबह अपने और राधिका के लिए भारतीय नाश्ता बनाती और लंच भी पैक कर के औफिस के लिए निकल जाती.

एक रिसर्च स्कौलर होने के कारण राधिका की नौकरी लैब में थी और उस के काम का निश्चित समय नहीं था. कभीकभी 3-3 दिन तक घर नहीं आती और इस की सूचना सुमन को पहले ही दे देती थी ताकि वह उस का इंतजार न करे.

अब तक सुमन और क्लारा अच्छे दोस्त बन गए थे. सुमन को लगा कि क्लारा एक अच्छी लड़की है. लेकिन उस के साथ एकमात्र समस्या यह थी कि वह हर रविवार को कुछ मांसाहारी भोजन बनाती थी. उस की गंध को बरदाश्त करना शाकाहारी सुमन के लिए बहुत मुश्किल था. लेकिन धीरेधीरे सुमन उस गंध की आदी हो गई.

सुमन को रविवार को भी जल्दी उठना पड़ता था, क्योंकि क्लारा के रसोई में आने से पहले ही सुमन अपना और राधिका का खाना बना सके.

एक रविवार सुमन टीवी देख रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने जेनिफर थी, जो अब उस की सहकर्मी है. उस के पास एक बैग था और उस की आंखें सूजी थीं. उस का हुलिया देख कर सुमन हैरान हो गई.

जेनिफर अंदर आई और बेकाबू हो कर बिलखबिलख कर रोने लगी. सुमन समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रिएक्ट करें. फिर उस ने खुद को संभाला और पूछा, ‘‘क्या हुआ जेनी तुम रो क्यों रही हो? कुछ तो बताओ… क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकती हूं?’’ सुमन ने जेनिफर को गले लगाते हुए कहा.

‘‘सुमन मेरा बौयफ्रैंड अव्वल नंबर का धोखेबाज निकला. उस का किसी दूसरी लड़की के साथ अफेयर चल रहा है. उस ने मुझ से यह बात छिपाई और ऊपर से मेरे सारे पैसे उस लड़की पर खर्च कर दिए. अब मैं बिलकुल कंगाल हूं. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने कहा कि हम दोनों अलग हो जाएंगे. हम कानूनी रूप से विवाहित तो नहीं जो मैं अदालत से मदद ले सकूं… गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम ले सकूं. अगर इस में एक व्यक्ति दगाबाज निकले तो दूसरा कुछ भी नहीं कर सकता और मैं उसी हालत में हूं. मेरी सारी बचत को उस ने लूट लिया.’’

सुमन उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रही थी. जेनिफर ने पूछा, ‘‘क्या मैं आप लोगों के साथ तब तक रह सकती हूं जब तक कि मुझे एक और अपार्टमैंट और रूममेट नहीं मिलता है?’’

सुमन ने कहा, ‘‘बेशक

जेनी यह भी कोई पूछने वाली बात है क्या?’’

जेनिफर की हालत देख कर क्लारा को भी तरस आ गया और उसे अपने साथ रहने की इजाजत दे दी.

शाम को दफ्तर से आने पर राधिका ने पूरी कहानी सुनी. उसे अजीब सी बेचैनी हुई कि एक आदमी इतना मतलबी कैसे हो सकता है और उस के साथ ऐसा व्यवहार भी कर सकता है, जो उस से प्यार कर के उस के साथ रहने आई थी. वह सोच भी नहीं सकती कि एक इंसान इतनी ओछी हरकत कर सकता है. तीनों सहेलियां एकसाथ खाना खा कर इसी बारे में बात करती रहीं.

बातोंबातों में क्लारा ने अपनी समस्या बताई, ‘‘मैं भी ऐसी मुश्किल घड़ी से गुजर चुकी हूं. जब मैं अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप कर के बाहर आई थी तो पूरी तरह टूट चुकी थी और मेरा बैंक बैलेंस भी शून्य था. हमारे देश में यह एक मामूली समस्या बन चुकी है. ऐसा नहीं है कि केवल लड़के ही धोखा देते हैं. कभीकभी लड़कियां भी ऐसी गिरी हरकत करती हैं. इस तरह के रिश्ते की नींव आपसी विश्वास के अलावा कुछ भी नहीं है और अकेले ही इस स्थिति का सामना करना पड़ता है.

‘‘एक तरह से मुझे लगता है कि आप का देश अच्छा है सुमन. आप की शादियों में सभी बुजुर्ग और परिवार के अन्य सदस्य शामिल होते हैं और यह 2 व्यक्तियों का नहीं, बल्कि 2 परिवारों का मिलन बन जाता है. हमारे मामले में हम इस बड़ी दुनिया में अकेले हैं. 18 साल की उम्र में हम अपने परिवारों से बाहर आते हैं और हमें अकेले ही दुनिया का सामना करना पड़ता है. मेरे 3 ब्रेकअप हो चुके हैं और तुम जानती हो कि हर ब्रेकअप कितना दर्दनाक होता है… एक बार मैं एक गहरे मानसिक अवसाद में चली गई और अभी भी उस अवसाद के लिए गोलियां ले रही हूं… अब मैं अकेली हूं. वास्तव में मैं अब एक नए रिश्ते से डर रही हूं कि इस बार भी मुझे प्यार के बदले में छल ही मिलेगा,’’ और फिर क्लारा ने लंबी सांस भरी.

‘‘सुमन हर हफ्ते आप के मातापिता आप से बात करते हैं और यह एक अच्छा एहसास है कि इस दुनिया में कोई है, जो आप को बहुत प्यार देता है और आप की चिंता करता है. जब मैं 10 साल की थी तब मेरे मातापिता अलग हो गए थे और इस से मैं बहुत परेशान थी. मुझे अपनी मां के नए प्रेमी को स्वीकारने में बहुत समय लगा. मेरे पिताजी समय मिलने पर कभी फोन किया करते थे, लेकिन कभी भी मेरे साथ समय नहीं बिताया. मेरे 2 सौतेली बहनें और 2 सौतेले भाई हैं. मेरे पिता के अन्य महिलाओं के माध्यम से बच्चे हैं और मेरी मां के भी अन्य पुरुषों के साथ बच्चे हैं. मेरी मां कभी हम सब को मिलने के लिए बुलाती है. उस समय हम एकदूसरे से मिलते हैं… वह अवसर बहुत औपचारिक होता था,’’ क्लारा ने दुखी मन से बताया.

‘‘हमारे गुजाराभत्ता कानून महिलाओं के लिए बहुत सख्त और अनुकूल है और यही कारण है कि ज्यादातर अमीर पुरुष कानूनी शादी पसंद नहीं करते हैं. अगर हम शादीशुदा हैं और अलग हो गए हैं तो उन्हें हमारे द्वारा लिए गए पैसे वापस करने होंगे और गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम भी चुकानी होगी. अब इस प्रकार के संबंधों में कानून कोई भूमिका नहीं निभाता है. हमें इसे अकेले ही निबटना होगा.

‘‘हर बार जब रिश्ते में धोखा खाते हैं तो लड़कियां हमेशा के लिए टूट जाती हैं. मुझे एक गहरी प्रतिबद्धता के साथ संबंध पसंद हैं. सुमन जब मैं आप की मां को आप से बात करते हुए देखती हूं, हालांकि मुझे आप की भाषा नहीं पता, मगर उन की अभिव्यक्ति से पता चलता है कि वे आप से कितना प्यार करती हैं… आप की खातिर किसी भी तरह का दुख भोगने के लिए तैयार हैं… हमारे देश में ऐसा नहीं है. यहां हर किसी को एक अलग व्यक्ति माना जाता है,’’ क्लारा की इस बात पर जेनिफर ने भी हामी भर ली.

राधिका सुमन की तरफ देख कर मुसकराई. सुमन समझ सकती थी कि वह क्या कहना चाहती है. सुमन को लगा कि हर जगह समस्याएं हैं. लिव इन रिलेशनशिप भी इतना आसान नहीं है, जितना हरकोई कल्पना करता है. भारतीय परिस्थितियों और भारतीय पुरुषों के साथ तो यह और भी कठिन है.

सुमन सोच में पड़ गई. एक बात उस की समझ में आई कि यदि आप के पास कानूनी सुरक्षा है, तो आप एक तरह से सुरक्षित हैं कि आप से आप का पैसा नहीं छीना जाएगा और ब्रेकअप के बाद आदमी को मुआवजा देना होगा और फिर जब आप विवाहित होते हैं तो आप की सामाजिक स्वीकृति भी होती है.

उस रविवार को जब उस के मातापिता लाइन पर आए तो सुमन ने अपने पिताजी से

कहा, ‘‘मैं अब उलझन में नहीं हूं पापा… ऐसा लग रहा है कि ऐसा कोई भी तरीका नहीं है, जो बिलकुल सही या बिलकुल गलत है.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो बेटा. कोई भी व्यवस्था हर माने में सही या गलत नहीं हो सकती… हमें ही समझदारी के साथ काम करना पड़ेगा.

‘‘बेटा कोई भी शादी या रिश्ता इस दुनिया में ऐसा नहीं चाहे वह न्यूयौर्क हो या मुंबई ऐसा नहीं जो सौ फीसदी परफैक्ट हो. कोई न कोई कमी तो होती ही है और उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ने में ही बेहतरी होती है. किसी भी रिश्ते की सफलता के लिए हर किसी को कुछ देना पड़ता है. तुम ही एक उदाहरण हो. तुम शुद्ध शाकाहारी हो मगर क्लारा के साथ एक ही रसोई को साझा कर रही हो क्यों? क्योंकि तुम क्लारा को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती और उस से भी बढ़ कर तुम क्लारा से अपने रिश्ते का मूल्य समझती हो और उस की इज्जत करती हो, है न? जीवन भी इसी तरह है. अगर आप रिश्ते को बनाए रखना चाहते हैं तो मुकाम पर आप को हर हाल में समझौता करना होगा.’’

‘‘हर संस्कृति की अपनी ताकत और कमजोरी होती है. अमेरिकी संस्कृति की अपनी ताकत है कि यह हर व्यक्ति को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाती है और वह कम उम्र में ही दुनिया से अकेले लड़ने की सीख देती है. मगर उस के लिए उन लोगों को किनकिन कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है यह आप ने खुद देख लिया.

‘‘हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा परिवार की अवधारणा में विश्वास करती है और रिश्ते हमेशा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता रहे हैं. इस में कुछ ताकत और कमजोरी हो सकती है. समझौता हर रिश्ते का एक अभिन्न हिस्सा है, चाहे 2 लोग दोस्त हों या विवाहित.’’

अपने पिता से बात करने के बाद सुमन बहुत हलका महसूस कर रही थी. ‘जब वह एक रूममेट के लिए समझौता कर सकती है, वह भी एक विदेशी से तो फिर उस आदमी के लिए क्यों नहीं जो जीवनभर उस का साथी बनने वाला है, जो उस की सफलताओं और असफलताओं में उस के जीवन का हिस्सा बनने जा रहा है… वह है उस के जीवन का एक हिस्सा… यदि उस के लिए नहीं तो फिर वह किस के लिए समझौता करेगी,’ सुमन सोच रही थी.

अब सुमन ने फैसला कर लिया. वह आशीष से शादी करने के लिए तैयार थी और उस के साथ आने वाले समझौतों के लिए भी आशीष को वह मनाएगी ही क्योंकि 2 साल से वह भी उसी का इंताजर कर रहा है. आखिर समझौते के बिना जिंदगी ही क्या है.

किसना : बेटी के लिए क्या था पिता का फैसला

झारखंड का एक बड़ा आदिवासी इलाका है अमानीपुर. जिले के नए कलक्टर ने ऐसे सभी मुलाजिमों की लिस्ट बनाई, जो आदिवासी लड़कियां रखे हुए थे. उन सब को मजबूर कर दिया गया कि वे उन से शादी करें और फिर एक बड़े शादी समारोह में उन सब का सामूहिक विवाह करा दिया गया. दरअसल, आदिवासी बहुल इलाकों के इन छोटेछोटे गांवों में यह रिवाज था कि वहां पर कोई भी सरकारी मुलाजिम जाता, तो किसी भी आदिवासी घर से एक लड़की उस की सेवा में लगा दी जाती. वह उस के घर के सारे काम करती और बदले में उसे खानाकपड़ा मिल जाता. बहुत से लोग तो उन में अपनी बेटी या बहन देखते, मगर उन्हीं में से कुछ अपने परिवार से दूर होने के चलते उन लड़कियों का हर तरह से शोषण भी करते थे.

वे आदिवासी लड़कियां मन और तन से उन की सेवा के लिए तैयार रहती थीं, क्योंकि वहां पर ज्यादातर कुंआरे ही रहते थे, जो इन्हें मौजमस्ती का सामान समझते और वापस आ कर शादी कर नई जिंदगी शुरू कर लेते. मगर शायद आधुनिक सोच को उन पर रहम आ गया था, तभी कलक्टर को वहां भेज दिया था. उन सब की जिंदगी मानो संवर गई थी. मगर यह सब इतना आसान नहीं था. मुखिया और कलक्टर का दबदबा होने के चलते कुछ लोग मान गए, पर कुछ लोग इस के विरोध में भी थे. आखिरकार कुछ लोग शादी के बंधन में बंध गए और लड़कियां दासी जीवन से मुक्त हो कर पत्नी का जीवन जीने लगीं. मगर 3 साल बाद जब कलक्टर का ट्रांसफर हो गया, तब शुरू हुआ उन लड़कियों की बदहाली का सिलसिला. उन सारे मुलाजिमों ने उन्हें फिर से छोड़ दिया और  शहर जा कर अपनी जाति की लड़कियों से शादी कर ली और वापस उसी गांव में आ कर शान से रहने लगे.

तथाकथित रूप से छोड़ी गई लड़कियों को उन के समाज में भी जगह नहीं मिली और लोगों ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया. ऐसी छोड़ी गई लड़कियों से एक महल्ला ही बस गया, जिस का नाम था ‘किस बिन पारा’ यानी आवारा औरतों का महल्ला. उसी महल्ले में एक ऐसी भी लड़की थी, जिस का नाम था किसना और उस से शादी करने वाला शहरी बाबू कोई मजबूर मुलाजिम न था. उस ने किसना से प्रेम विवाह किया था और उस की 3 साल की एक बेटी भी थी. पर समय के साथ वह भी उस से ऊब गया, तो वहां से ट्रांसफर करा कर चला गया. किसना को हमेशा लगता था कि उस की बेटी को आगे चल कर ऐसा काम न करना पड़े. वह कोशिश करती कि उसे इस माहौल से दूर रखा जाए.

लिहाजा, उस को किसना ने दूसरी जगह भेज दिया और खुद वहीं रुक गई, क्योंकि वहां रुकना उस की मजबूरी थी. आखिर बेटी को पढ़ाने के लिए पैसा जो चाहिए था. बदलाव बस इतना ही था कि पहले वह इन लोगों से कपड़ा और खाना लेती थी, पर अब पैसा लेने लगी थी. उस में से भी आधा पैसा उस गांव की मुखियाइन ले लेती थी. उस दिन मुखियाइन किसना को नई जगह ले जा रही थी, खूब सजा कर. वह मुखियाइन को काकी बोलती थी. वे दोनों बड़े से बंगले में दाखिल हुईं. ऐशोआराम से भरे उस घर को किसना आंखें फाड़ कर देखे जा रही थी.

तभी किसना ने देखा कि एक तगड़ा 50 साला आदमी वहां बैठा था, जिसे सब सरकार कहते थे. उस आदमी के सामने सभी सिर झुका कर नमस्ते कर रहे थे. उस आदमी ने किसना को ऊपर से नीचे तक घूरा और फिर रूमाल से मोंगरे का गजरा निकाल कर उस के गले में डाल दिया. वह चुपचाप खड़ी थी. सरकार ने उस की आंखों में एक अजीब सा भाव देखा, फिर मुखियाइन को देख कर ‘हां’ में गरदन हिला दी. तभी एक बूढ़ा आदमी अंदर से आया और किसना से बोला, ‘‘चलो, हम तुम्हारा कमरा दिखा दें.’’

किसना चुपचाप उस के पीछे चल दी. बाहर बड़ा सा बगीचा था, जिस के बीचोंबीच हवेली थी और किनारे पर छोटे, पर नए कमरे बने थे. वह बूढ़ा नौकर किसना को उन्हीं बने कमरों में से एक में ले गया और बोला, ‘‘यहां तुम आराम से रहो. सरकार बहुत ही भले आदमी हैं. तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है…’’ किसना ने अपनी पोटली वहीं बिछे पलंग पर रख दी और कमरे का मुआयना करने लगी. दूसरे दिन सरकार खुद ही उसे बुलाने कमरे तक आए और सारा काम समझाने लगे. रात के 10 बजे से सुबह के 6 बजे तक उन की सेवा में रहना था. किसना ने भी जमाने भर की ठोकरें खाई थीं. वह तुरंत समझ गई कि यह बूढ़ा क्या चाहता है. उसे भी ऐसी सारी बातों की आदत हो गई थी.

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘हम अपना काम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं सरकार, आप को शिकायत का मौका नहीं देंगे.’’

कुछ ही दिनों में किसना सरकार के रंग में रंग गई. उन के लिए खाना बनाती, कपड़े धोती, घर की साफसफाई करती और उन्हें कभी देर हो जाती, तो उन का इंतजार भी करती. सरकार भी उस पर बुरी तरह फिदा थे. वे दोनों हाथों से उस पर पैसा लुटाते. एक रात सरकार उसे प्यार कर रहे थे, पर किसना उदास थी. उन्होंने उदासी की वजह पूछी और मदद करने की बात कही.

‘‘नहीं सरकार, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ किसना बोली.

‘‘देख, अगर तू बताएगी नहीं, तो मैं मदद कैसे करूंगा,’’ सरकार उसे प्यार से गले लगा कर बोले.

किसना को उन की बांहें किसी फांसी के फंदे से कम न लगीं. एक बार तो जी में आया कि धक्का दे कर बाहर चली जाए, पर वह वहां से हमेशा के लिए जाना  चाहती थी. उसे अच्छी तरह मालूम था कि यह बूढ़ा उस पर जान छिड़कता है. सो, उस ने अपना आखिरी दांव खेला, ‘‘सरकार, मेरी बेटी बहुत बीमार है. इलाज के लिए काफी पैसों की जरूरत है. मैं पैसा कहां से लाऊं? आज फिर मेरी मां का फोन आया है.’’

‘‘कितने पैसे चाहिए?’’

‘‘नहीं सरकार, मुझे आप से पैसे नहीं चाहिए… मुखियाइन मुझे मार देगी. मैं पैसे नहीं ले सकती.’’

सरकार ने उस का चेहरा अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मुखियाइन को कौन बताएगा? मैं तो नहीं बताऊंगा.’’

‘‘एक लाख रुपए चाहिए.’’

‘‘एक… लाख…’’ बड़ी तेज आवाज में सरकार बोले और उसे दूर झटक दिया. किसना घबरा कर रोने लगी. ‘‘अरे… तुम चुप हो जाओ,’’ और सरकार ने अलमारी से एक लाख रुपए निकाल कर उस के हाथ पर रख दिए, फिर उस की कीमत वसूलने में लग गए. बेचारी किसना उस सारी रात क्याक्या सोचती रही और पूरी रात खुली आंखों में काट दी. शाम को जब सरकार ने किसना को बुलाने भेजा था, तो वह कमरे पर नहीं मिली. चिडि़या पिंजरे से उड़ चुकी थी. आखिरी बार उसे माली काका ने देखा था. सरकार ने भी अपने तरीके से ढूंढ़ने की कोशिश की, पर वह नहीं मिली. उधर किसना पैसा ले कर कुछ दिनों तक अपनी सहेली पारो के घर रही और कुछ समय बाद अपने गांव चली गई.

किसना की सहेली पारो बोली, ‘‘किसना, अब तू वापस मत आना. काश, मैं भी इसी तरह हिम्मत दिखा पाती. खैर छोड़ो…’’ किसना ने अपना चेहरा घूंघट से ढका और बस में बैठते ही भविष्य के उजियारे सपनों में खो गई. इन सपनों में खोए 12 घंटों का सफर उसे पता ही नहीं चला. बस कंडक्टर ने उसे हिला कर जगाया, ‘‘ऐ… नीचे उतर, तेरा गांव आ गया है.’’ किसना आंखें मलते हुए नीचे उतरी. उस ने अलसाई आंखों से इधरउधर देखा. आसमान में सूरज उग रहा था. ऐसा लगा कि जिंदगी में पहली बार सूरज देखा हो. आज 30 बसंत पार कर चुकी किसना को ऐसा लगा कि जैसे जिंदगी में ऐसी सुबह पहली बार देखी हो, जहां न मुखियाइन, न दलाल, न सरकार… वह उगते हुए सूरज की तरफ दोनों हाथ फैलाए एकटक आसमान की तरफ निहारे जा रही थी. आतेजाते लोग उसे हैरत से देख रहे थे, तभी अचानक वह सकुचा गई और अपना सामान समेट कर मुसकराते हुए आगे बढ़ गई. किसना को घर के लिए आटोरिकशा पकड़ना था. तभी सोचा कि मां और बेटी रोशनी के लिए कुछ ले ले, दोनों खुश हो जाएंगी. उस ने वहां पर ही एक मिठाई की दुकान में गरमागरम कचौड़ी खाई और मिठाई भी ली.

किसना पल्लू से 5 सौ का नोट निकाल कर बोली, ‘‘भैया, अपने पैसे काट लो.’’ दुकानदार भड़क गया, ‘‘बहनजी, मजाक मत करिए. इस नोट का मैं क्या करूंगा. मुझे 2 सौ रुपए दो.’’

‘‘क्यों भैया, इस में क्या बुराई है.’’

‘‘तुम को पता नहीं है कि 2 दिन पहले ही 5 सौ और एक हजार के नोट चलना बंद हो गए हैं.’’

किसना ने दुकानदार को बहुत समझाया, पर जब वह न माना तो आखिर में अपने पल्लू से सारे पैसे निकाल कर उसे फुटकर पैसे दिए और आगे बढ़ गई. अभी किसना ढंग से खुशियां भी न मना पाई थी कि जिंदगी में फिर स्याह अंधेरा फैलने लगा. अब क्या करेगी? उस के पास तो 5 सौ और एक हजार के ही नोट थे, क्योंकि इन्हें मुखियाइन से छिपा कर रखना जो आसान था. रास्ते में बैंक के आगे लगी भीड़ में जा कर पूछा तो पता लगा कि लोग नोट बदल रहे हैं. किसना को तो यह डूबते को तिनके का सहारा की तरह लगा. किसी तरह पैदल चल कर ही वह अपने घर पहुंची. बेटी रोशनी किसना को देखते ही लिपट गई और बोली, ‘‘मां, अब तुम यहां से कभी वापस मत जाना.’’

किसना उसे प्यार करते हुए बोली, ‘‘अब तेरी मां कहीं नहीं जाएगी.’’बेटी के सो जाने के बाद किसना ने अपनी मां को सारा हाल बताया. उस की मां ने पूछा, ‘‘अब आगे क्या करोगी?’’

किसना ने कहा, ‘‘यहीं सिलाईकढ़ाई की दुकान खोल लूंगी.’’

दूसरे दिन ही किसना अपने पैसे ले कर बैंक पहुंची, मगर मंजिल इतनी आसान न थी. सुबह से शाम हो गई, पर उस का नंबर नहीं आया और बैंक बंद हो गया. ऐसा 3-4 दिनों तक होता रहा और काफी जद्दोजेहद के बाद उस का नंबर आया, तो बैंक वालों ने उस से पहचानपत्र मांगा. वह चुपचाप खड़ी हो गई. बैंक के अफसर ने पूछा कि पैसा कहां से कमाया? वह समझाती रही कि यह उस की बचत का पैसा है. ‘‘तुम्हारे पास एक लाख रुपए हैं. तुम्हें अपनी आमदनी का जरीया बताना होगा.’’

बेचारी किसना रोते हुए बैंक से बाहर आ गई. किसना हर रोज बैंक के बाहर बैठ जाती कि शायद कोई मदद मिल जाए, मगर सब उसे देखते हुए निकल जाते. तभी एक दिन उसे एक नौजवान आता दिखाई पड़ा. जैसेजैसे वह किसना के नजदीक आया, किसना के चेहरे पर चमक बढ़ती चली गई. उस के जेहन में वे यादें गुलाब के फूल पर पड़ी ओस की बूंदों की तरह ताजा हो गईं. कैसे यह बाबू उस का प्यार पाने के लिए क्याक्या जतन करता था? जब वह सुबहसुबह उस के गैस्ट हाउस की सफाई करने जाती थी, तो बाबू अकसर नजरें बचा कर उसे देखता था.

वह बाबू किसना को अकसर घुमाने ले जाता और घंटों बाग में बैठ कर वादेकसमें निभाता. वह चाहता कि अब हम दोनों तन से भी एक हो जाएं. किसना अब उसे एक सच्चा प्रेमी समझने लगी और उस की कही हर बात पर भरोसा भी करती थी, मगर किसना बिना शादी के कोई बंधन तोड़ने को तैयार न थी, तो उस ने उस से शादी कर ली, मगर यह शादी उस ने उस का तन पाने के लिए की थी. किसना का नशा उस की रगरग में समाया था. उस ने सोचा कि अगर यह ऐसे मानती है तो यही सही, आखिर शादी करने में बुराई क्या है, बस माला ही तो पहनानी है. उस ने आदिवासी रीतिरिवाज से कलक्टर और मुखिया के सामने किसना से शादी कर ली, लेकिन उधर लड़के की मां ने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया था. एक दिन बिना बताए किसना का बाबू कहीं चला गया. इस तरह वे दोनों यहां मिलेंगे, किसना ने सोचा न था.

जब वह किसना के बिलकुल नजदीक आया, तो किसना चिल्ला कर बोली, ‘‘अरे बाबू… आप यहां?’’

वह नौजवान छिटक कर दूर चला गया और बोला, ‘‘क्या बोल रही हो? कौन हो तुम?’’

‘‘मैं तुम्हारी किसना हूं? क्या तुम अब मुझे पहचानते भी नहीं हो? मुझे तुम्हारा घर नहीं चाहिए. बस, एक छोटी सी मदद…’’

‘‘अरे, तुम मेरे गले क्यों पड़ रही हो?’’ वह नौजवान यह कहते हुए आगे बढ़ गया और बैंक के अंदर चला गया. अब तो किसना रोज ही उस से दया की भीख मांगती और कहती कि बाबू, पैसे बदलवा दो, पर वह उसे पहचानने से मना करता रहा. ऐसा कहतेकहते कई दिन बीत गए, मगर बाबू टस से मस न हुआ. आखिरकार किसना ने ठान लिया कि अब जैसे भी हो, उसे पहचानना ही होगा. उस ने वापस आ कर सारा घर उलटपलट कर रख दिया और उसे अपनी पहचान का सुबूत मिल गया. सुबह उठ कर किसना तैयार हुई और मन ही मन सोचा कि रो कर नहीं अधिकार से मांगूंगी और बेटी को भी साथ ले कर बैंक गई. उस के तेवर देख कर बाबू थोड़ा सहम गया. उसे किनारे बुला कर किसना बोली, ‘‘यह रहा कलक्टर साहब द्वारा कराई गई हमारी शादी का फोटो. अब तो याद आ ही गया होगा?’’

‘‘हां… किसना… आखिर तुम चाहती क्या हो और क्यों मेरा बसाबसाया घर उजाड़ना चाहती हो?’’

किसना आंखों में आंसू लिए बोली, ‘‘जिस का घर तुम खुद उजाड़ कर चले आए थे, वह क्या किसी का घर उजाड़ेगी, रमेश बाबू… वह लड़की जो खेल रही है, उसे देखो.’’ रमेश पास खेल रही लड़की को देखने लगा. उस में उसे अपना ही चेहरा नजर आ रहा था. उसे लगा कि उसे गले लगा ले, मगर अपने जज्बातों को काबू कर के बोला, ‘‘हां…’’

किसना तकरीबन घूरते हुए बोली, ‘‘यह तुम्हारी ही बेटी है, जिसे तुम छोड़ आए थे.’’

रमेश के चेहरे के भाव को देखे बिना ही बोली, ‘‘देखो रमेश बाबू, मुझे तुममें कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं एक नई जिंदगी जीना चाहती हूं. अगर इन पैसों का कुछ न हुआ, तो लौट कर फिर वहीं नरक में जाना पड़ेगा. ‘‘मैं अपनी बेटी को उस नरक से दूर रखना चाहती हूं, नहीं तो उसे भी कुछ सालों में वही कुछ करना पड़ेगा, जो उस की मां करती रही है. अपनी बेटी की खातिर ही रुपया बदलवा दो, नहीं तो लोग इसे वेश्या की बेटी कहेंगे. ‘‘अगर तुम्हारे अंदर जरा सी भी गैरत है, तो तुम बिना सवाल किए पैसा बदलवा लाओ, मैं यहीं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ रमेश ने उस से पैसों का बैग ले लिया और खेलती हुई बेटी को देखते हुए बैंक के अंदर चला गया और कुछ घंटे बाद वापस आ कर रमेश ने नोट बदल कर किसना को दे दिए और कुछ खिलौने अपने बेटी को देते हुए गले लगा लिया. तभी किसना ने आ कर उसे रमेश के हाथों से छीन लिया और बेटी का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर बोली, ‘‘रमेश बाबू… चाहत की अलगनी पर धोखे के कपड़े नहीं सुखाए जाते…’’ और बेटी के साथ सड़क की भीड़ में अपने सपनों को संजोते हुए खो गई.

तसवीर: क्या मालविका ने बड़ी उम्र के केशव का रिश्ता स्वीकार कर लिया?

‘‘मुझे कल तक तुम्हारा जवाब चाहिए,’’ कह कर केशवन घर से बाहर जा चुका था. मालविका में कुछ कहनेसुनने की शक्ति नहीं रह गई थी. वह एकटक केशवन को जाते तब तक देखती रही, जब तक उस की गाड़ी आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उस ने सपने में भी न सोचा था कि एक दिन वह इस स्थिति में होगी. केशवन ने उस से शादी का प्रस्ताव रखा था. उस के मन की मुराद पूरी होने जा रही थी. लेकिन एक तरफ उस का मन नाचनेगाने को कर रहा था, तो दूसरी तरफ वह अपने घर वालों की प्रतिक्रिया की कल्पना कर के परेशान हो रही थी.

जब वे सुनेंगे कि मालविका वापस इंडिया लौट कर नहीं आ रही है, तो पहले तो आश्चर्य करेंगे, भुनभुनाएंगे और जब जानेंगे कि वह शादी करने जा रही है तो गुस्से से फट पड़ेंगे.

‘अरे इस मालविका को इस उम्र में यह क्या पागलपन सूझा?’ वे कहेंगे, ‘लगता है कि यह सठिया गई है. इस उम्र में घरगृहस्थी बसाने चली है…’

लोग एकदूसरे से कहेंगे, ‘कुछ सुना तुम ने? अपनी मालविका शादी कर रही है. बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम. पता नहीं किस आंख के अंधे और गांठ के पूरे ने उस को फंसाया है. सचमुच शादी करेगा या शादी का नाटक कर के उसे घर की नौकरानी बना कर रखेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.’

मालविका अपनेआप से तर्क करती रही. क्या केशवन सचमुच उस से प्यार करने लगा था? वह ऐसी परी तो है नहीं कि कोई उस के रूप पर मुग्ध हो जाए.

उस की नजर सामने दीवार पर टंगे आदमकद आईने पर पड़ी. उस का चेहरा अभी भी आकर्षक था पर समय चेहरे पर अपनी छाप छोड़ चुका था. आंखें बड़ीबड़ी थीं पर बुझी हुईं. उन में एक उदास भाव निहित था. उस का शरीर छरहरा और सुडौल था पर उस की जवानी ढलान पर थी. वह हमेशा इसी कोशिश में रहती थी कि वह किसी की आंखों में न गड़े, इसलिए वह हमेशा फीके रंग के कपड़े पहनती थी. गहने भी नाममात्र को पहनती थी. वह इतने सालों से एक अनाम जिंदगी जीती आई थी. उस की कोई शख्सीयत नहीं थी, कोई अहमियत भी नहीं थी. बड़ी अदना सी इंसान थी वह. वह अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि केशवन ने उस में ऐसा क्या देखा कि वह उस की ओर आकर्षित हो गया. अगर वह चाहता तो उसे एक से बढ़ कर एक सुंदर लड़की मिल सकती थी.

उस ने फिर से वह लमहा याद किया जब केशवन ने उस से शादी का प्रस्ताव रखा था. वह उस पल को बारबार जीना चाहती थी.

‘मालविका, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. क्या तुम मेरी बनोगी?’ उस ने कहा था.

‘यह क्या कह रहे हैं आप?’ वह स्तब्ध रह गई थी, ‘आप मुझ से शादी करना चाहते हैं?’

‘हां.’

‘लेकिन आप को लड़कियों की क्या कमी है? एक इशारा करेंगे तो उन की लाइन लग जाएगी.’

‘हां, लेकिन तुम ने यह कहावत सुनी है न कि दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. एक बार शादी कर के मैं धोखा खा गया. दोबारा यहां की लड़की से शादी करने की हिम्मत नहीं होती.’

फिर उस ने उसे अपनी पहली शादी के बारे में विस्तार से बताया था.

‘नैन्सी उसी अस्पताल में नर्स थी, जिसे मैं ने यहां आ कर जौइन किया

था. मैं इस शहर में बिलकुल अकेला था. न कोई संगी न साथी. नैन्सी ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया तो मुझे अच्छा लगा. मैं उस के यहां जाने लगा और धीरेधीरे उस के करीब आता गया. एक दिन हम ने शादी करने का निश्चय कर लिया.

‘पहले 4 वर्ष अच्छे गुजरे पर धीरेधीरे नैन्सी में बदलाव आया. वह बेहद आलसी हो गई. दिन भर सोफे पर पड़ी टीवी देखती रहती थी. नतीजा वह मोटी होती चली गई. उसे खाना बनाने में भी आलस आता था. जब मैं थकामांदा घर लौटता तो वह मुझे फास्ट फूड की दुकान से लाया एक पैकेट पकड़ा देती. घर की साफसफाई करने से भी वह कतराती थी. यहां तक कि वह हमारी नन्ही बच्ची की ओर भी ध्यान नहीं देती थी. जब मैं कुछ कहता तो हम दोनों में जम कर लड़ाई होती.

‘आखिर तलाक की नौबत आ गई. चूंकि हमारी बेटी कुल 3 साल की ही थी, इसलिए उसे मां के संरक्षण में भेजा गया. धीरेधीरे नैन्सी ने मेरी बेटी के कान भर कर उसे मेरे से दूर कर दिया व उस ने दूसरी शादी कर ली. अब मैं अपने एकाकी जीवन से तंग आ गया हूं. मुझे यह शिद्दत से महसूस हो रहा है कि जीवन के संध्याकाल में मनुष्य को एक साथी की जरूरत होती है.’

‘लेकिन,’ उस ने कहा, ‘आप को मालूम है कि मैं 40 पार कर चुकी हूं.’

‘तो क्या हुआ? चाहत में उम्र नहीं देखी जाती. इस देश में तुम्हारी उम्र की औरतें अभी भी बनठन कर और चुस्तदुरुस्त रहती हैं और भरपूर जिंदगी जीती हैं. मैं तुम्हें सोचने के लिए 24 घंटे का समय देता हूं. अभी मैं अस्पताल जा रहा हूं. कल सुबह तक मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए,’ केशवन ने मुसकरा कर कहा.

मालविका ने खिड़की के बाहर आंखें टिका दीं. मन अतीत की गलियों में भटकने लगा. उसे अपना गांव याद आया जहां उस का बचपन गुजरा था. घर में सम्मिलित परिवार की भीड़. सहेलियों के साथ धमाचौकड़ी मचाना. त्योहारों पर सजनाधजना. वह दुनिया ही अलग थी. वे दिन बेफिक्री और मौजमस्ती के दिन थे. फिर अचानक उस की शादी की बात चली और देखते ही देखते तय भी हो गई. घर में मेहमानों की गहमागहमी थी. सारा वातावरण पकवानों की खुशबू और फूलों की महक से ओतप्रोत था. द्वार पर बंदनवार सजे थे. अल्हड़ युवतियों की खिलखिलाहट गूंजने लगी. सखियां चुहल करने लगीं. सब एक सपने जैसा लग रहा था.

फेरे हो चुके थे. मृदंग की थाप और शहनाई की ऊंची आवाज के बीच शादी की पारंपरिक रस्में जोरशोर से हो रही थीं.

बात विदाई की होने लगी तो वर के पिता अनंतराम मालविका के पिता की ओर मुड़े और बोले, ‘श्रीमानजी, पहले जरा काम की बात की जाए.’

वे उन्हें एक ओर ले गए और बोले, ‘हां, अब आप हमें वह रकम पकड़ाइए, जो आप ने देने का वादा किया था.’

नारायणसामी मानो आसमान से गिरे, ‘कौन सी रकम? मैं कुछ समझा नहीं.’

‘वाह, आप की याददाश्त तो बहुत कमजोर मालूम देती है. आप को याद नहीं जब हम लोग सगाई के लिए आए थे तो आप ने कहा था कि आप क्व2 लाख तक खर्च कर सकते हैं?’

‘ओह अब समझा. श्रीमानजी, मैं ने कहा था कि मैं बेटी की शादी में क्व2 लाख लगाऊंगा क्योंकि इतने की ही मेरी हैसियत है. मैं ने यह तो नहीं कहा था कि मैं यह रकम दहेज में दूंगा.’

‘बहुत खूब. अब हमें क्या मालूम कि आप का क्या मतलब था. हम तो यही समझ बैठे थे कि आप हमें क्व2 लाख वरदक्षिणा देने के लिए राजी हुए हैं. तभी तो हम ने इस रिश्ते के लिए हामी भरी.’

नारायणसामी ने हाथ जोड़े, ‘मुझे क्षमा कीजिए. मुझे सब कुछ साफसाफ कहना चाहिए था. मुझ से भारी गलती हो गई.’

‘खैर कोई बात नहीं. शायद हमारे समझने में ही भूल हो गई होगी. पर एक बात मैं बता दूं कि दहेज की रकम के बिना मैं यह रिश्ता हरगिज कबूल नहीं कर सकता. मेरे डाक्टर बेटे के लिए लोग क्व10-10 लाख देने को तैयार थे. वह तो मेरे बेटे को आप की बेटी पसंद आ गई थी, इसलिए हमें मजबूरन यहां संबंध करना पड़ा. अब आप जल्द से जल्द पैसों का इंतजाम कीजिए.’

नारायणसामी ने गिड़गिड़ा कर कहा, ‘इतने रुपए देना मेरे लिए असंभव है. मैं ठहरा खेतिहर. इतनी रकम कहां से लाऊंगा? मुझ पर तरस खाइए. मैं ने शादी में अपनी सामर्थ्य से ज्यादा खर्च किया है. और पैसे जुटाना मेरे लिए बहुत कठिन होगा.’

‘अरे, जब सामर्थ्य नहीं थी तो अपनी हैसियत का रिश्ता ढूंढ़ा होता. मेरे बेटे पर क्यों लार टपकाई?’

नारायणसामी कातर स्वर में बोले, ‘ऐसा अनर्थ न करें. मैं वादा करता हूं कि जितनी जल्दी हो सकेगा मैं पैसों का इंतजाम कर के आप तक पहुंचा दूंगा.’

‘ठीक है. आप की बेटी भी तभी विदा होगी.’

तभी मालविका के तीनों भाई अंदर घुस आए.

‘आप ऐसा नहीं कर सकते,’ वे भड़क कर बोले.

‘क्यों नहीं कर सकता?’ अनंतराम ने अकड़ कर कहा.

‘हमारी बहन की आप के बेटे से शादी हो चुकी है. अब वह आप के घर की बहू है. आप की अमानत है.’

‘तो हम कब इनकार कर रहे हैं?’

‘लेकिन इस समय दहेज की बात उठा कर आप क्यों बखेड़ा कर रहे हैं बताइए तो? क्या आप को पता नहीं कि दहेज लेना कानूनन जुर्म है? अगर हम पुलिस में खबर कर दें तो आप सब को हथकडि़यां पड़ जाएंगी.’

‘पुलिस का डर दिखाते हो. अब तो मैं हरगिज बहू को विदा नहीं कराऊंगा. कर लो जो करना हो. न मुझे तुम्हारे पैसे चाहिए और न ही तुम्हारे घर की बेटी. मैं अपने बेटे की दूसरी शादी कराऊंगा, डंके की चोट पर कराऊंगा.’

‘हांहां, जो जी चाहे कर लेना. यह धमकी किसी और को देना. हमारी इकलौती बहन हमें भारी नहीं है कि हम उस के लिए आप के सामने नाक रगड़ेंगे. हम में उसे पालने की शक्ति है. हम उसे पलकों पर बैठा कर रखेेंगे.’

‘ठीक है, तुम रखो अपनी बहन को. हम चलते हैं.’

मालविका के मातापिता समधी के हाथपैर जोड़ते रहे पर उन्होंने किसी की एक न सुनी. वे उसी वक्त बिना खाएपिए बरातियों समेत घर से बाहर हो गए.

‘अरे लड़को, तुम ने ये क्या कर डाला?’ शारदा रो कर बोलीं, ‘लड़की के फेरे हो चुके हैं. अब वह पराया धन है. अपने पति की अमानत है. उसे कैसे घर में बैठाए रखोगे?’

‘फिक्र न करो अम्मां. उस धनलोलुप के घर जा कर हमारी बहन दुख ही भोगती. वे उसे दहेज के लिए सतातेरुलाते. अच्छा हुआ कि समय रहते हमें उन लोगों की असलियत मालूम हो गई.’

‘लेकिन अब तुम्हारी बहन का क्या होगा? वह न तो इधर की रही न उधर की. विवाहित हो कर भी उस की गिनती विवाहित स्त्रियों में नहीं होगी. बेटा, शादी के बाद लड़की अपनी ससुराल में ही शोभा देती है. चाहे जैसे भी हो समधीजी की मांगें पूरी करने की कोशिश करो और मालविका को ससुराल विदा करो.’

‘अम्मां तुम बेकार में डर रही हो. हम समधीजी की मांगें पूरी करते रहे तो इस सिलसिले का कभी अंत न होगा. एक बार उन के आगे झुक गए तो वे हमें लगातार दुहते रहेंगे. हमें पक्का यकीन है कि देरसवेर वे अपनी गलती मान लेंगे और मालविका को विदा करा के ले जाएंगे.’

‘पर वे अपने बेटे की दूसरी शादी की धमकी दे कर गए हैं.’

‘अरे अम्मां, अगर लड़के वाले अपने बेटे का पुनर्विवाह करेंगे तो हम भी अपनी मालविका का दूसरा विवाह रचाएंगे.’

यह कहना आसान था पर कर दिखाना बहुत मुश्किल. दिन पर दिन गुजरते गए और मालविका के लिए कोई अच्छा वर नहीं मिला. कोई लड़का नजर में पड़ता तो वही लेनदेन की बात आड़े आती. किसी दुहाजू का रिश्ता आता तो वह उन को न जंचता. जब मालविका की उम्र 30 के करीब पहुंची तो रिश्ते आने बंद हो गए.

उस की मां उस की चिंता में घुलती रहीं. वे बारबार अपने पति से गिड़गिड़ातीं, ‘अजी कुछ भी करो. मेरे गहने बेच दो. यह मकान या जमीन गिरवी रख दो पर लड़की का कुछ ठिकाना करो. जवान बेटी को कितने दिन घर में बैठा कर रखोगे. मुझ से उस की हालत देखी नहीं जाती.’

एक बार नारायणसामी लड़कों से चोरीछिपे समधी के घर गए भी पर अपना सा मुंह ले कर वापस आ गए. अनंतराम ने बताया कि उन का बेटा पढ़ाई करने के लिए अमेरिका जा चुका है और उस के शीघ्र लौटने की कोई उम्मीद नहीं है. उन्होंने दोटूक शब्दों में कह दिया कि अच्छा होगा कि आप लोग अपनी बेटी के लिए कोई और वर देख लें.

अब रहीसही आशा भी टूट चुकी थी. नारायणसामी गुमसुम रहने लगे. एक दिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे नहीं रहे.

उन के तीनों बेटे शहर में नौकरी करते थे, ‘अम्मां,’ उन्होंने कहा, ‘तुम्हारा और मालविका का अब यहां गांव में अकेले रहना मुनासिब

नहीं. बेहतर होगा कि तुम दोनों हमारे साथ चल कर रहो.’

बड़े बेटे सुधीर को मुंबई में रेलवे विभाग में नौकरी मिली थी. रहने को मकान था. मांबेटी अपना सामान समेट कर उस के साथ चल दीं.

मां ने जाते ही बेटे के घर का चूल्हाचौका संभाल लिया और मालविका के जिम्मे आए अन्य छिटपुट काम. उस ने अपने नन्हे भतीजेभतीजी की देखरेख का काम संभाल लिया.

कुछ दिन बाद उस के मझले भाई का फोन आया, ‘मां, तुम्हारी बहू के बच्चा होने वाला है. तुम तो जानती हो कि उस की मां नहीं है. उसे तुम्हें ही संभालना होगा. हम तुम्हारे ही भरोसे हैं.’

‘हांहां क्यों नहीं,’ मां ने उत्साह से कहा और वे तुरंत जाने को तैयार हो गईं. मालविका को भी उन के साथ जाना पड़ा.

अब उन की जिंदगी का यही क्रम हो गया. बारीबारी से तीनों भाई मांबेटी को अपने यहां बुलाते. मां के देहांत के बाद भी मालविका इसी ढर्रे पर चलती रही. उस के मेहनती और निरीह स्वभाव से सब प्रसन्न थे. उस की अपनी मांगें अत्यंत सीमित थीं. उसे किसी से कोई अपेक्षा नहीं थी. उस की कोई आकांक्षा नहीं थी. उस के जीवन का ध्येय ही था दूसरों के काम आना. वह हमेशा सब की मदद करने को तत्पर रहती थी.

उस के भाइयों की देखादेखी उस के अन्य सगेसंबंधी भी उसे गरज पड़ने पर बुला लेते. हर कोई उस से कस कर काम लेता और अपना उल्लू सीधा करने के बाद उसे टरका देता.

मालविका के दिन किसी तरह बीत रहे थे. कभीकभी वह अपने एकाकी जीवन की एकरसता से ऊब जाती. जब वह अपनी हमउम्र स्त्रियों को अपनी गृहस्थी में रमी देखती, उन्हें अपने परिवार में मगन देखती, तो उस के कलेजे में एक हूक उठती. लोगों की भीड़ में वह अकेली थी. जबतब उस का मन अनायास ही भर आता और जी करता कि वह फूटफूट कर रोए. पर उस के आंसू पोंछने वाला भी तो कोई न था.

उस के ससुर की धनलोलुपता और उस के भाइयों की हठधर्मिता ने उस की जिंदगी पर कुठाराघात किया था. अब वह एक बिना साहिल की नाव के मानिंद डूबउतरा रही थी. उद्देश्यहीन, गतिहीन…

मालविका के बड़े भाई सुधीर की बेटी उषा की शादी हो गई और वह अमेरिका के न्यूजर्सी शहर में जा बसी. जब वह गर्भवती हुई तो उसे मालविका की याद आई, तो वह अपने पापा से बोली, ‘पापा, आप किसी तरह बूआजी को यहां भेज दो तो मेरी मुश्किल हल हो जाएगी. वे घर भी संभाल लेंगी और बच्चे को भी देख लेंगी. यहां के बारे में तो पता है न आप को? बेबी सिटर और नौकरानियां 1-1 घंटे के हिसाब से चार्ज करती हैं. इस से हमारा तो दीवाला ही निकल जाएगा.’

‘हांहां तुम्हारे लिए मालविका कभी मना नहीं करेगी. पर कुछ दिनों से वह गठिया के दर्द से परेशान है. अगर तुम लोग उस के लिए मैडिकल इंश्योरैंस करा लो तो अच्छा रहेगा. सुना है कि उस देश में बीमार पड़ने पर अस्पताल और डाक्टरों के इलाज में बड़ा भारी खर्च होता है.’

‘हांहां क्यों नहीं. ये कौन सी बड़ी बात है. बूआ का बीमा करा लिया जाएगा. बस आप उन्हें जल्द से जल्द रवाना कर दें.’

मालविका अमेरिका के लिए रवाना हो गई. उस की भतीजी उसे एअरपोर्ट पर लेने आई थी.

‘बेटी, तेरे देश में तो बड़ी ठंड है,’ मालविका ने ठिठुरते हुए कहा, ‘मेरी तो कंपकंपी छूट रही है.’

उषा हंस पड़ी, ‘अरे बूआजी, अपना घर वातानुकूलित है. बाहर निकलो तो कार में हीटर लगा हुआ है. शौपिंग मौल में भी टैंप्रेचर गरम रखा जाता है. फिर सर्दी से क्यों घबराना? हां, एक बात का खयाल रखना बाहर कदम रखो तो बर्फ में पांव फिसलने का डर रहता है, इसलिए जरा संभल कर रहना.’

फिर उस ने मालविका के गले लग कर कहा, ‘बूआजी तुम आ गईं तो मेरी सब चिंता दूर हो गई. अब तुम मुझे वे सभी चीजें बना कर खिलाना जिन्हें खाने के लिए मेरा मन ललचाता है.’

घर पहुंच कर उषा ने कहा, ‘बूआ, आप का बिस्तर बेबी के रूम में लगा दिया है. जब बेबी पैदा होगा तो शायद रात में एकाध बार बच्चे को दूध की बोतल देने के लिए उठना पड़ेगा और हां, सुबह रस्टी को जरा बाहर ले जाना होगा, क्योंकि आप को

तो पता है मेरी नींद आसानी से नहीं खुलती.’

‘ये रस्टी कौन है?’

‘अरे रस्टी हमारा छोटा सा कुत्ता है. कल ही दिलीप उसे खरीद कर लाए हैं. हम ने सोचा है कि बच्चे को उस का साथ अच्छा लगेगा.’

‘पर बेटी, इतने नन्हे बच्चे के साथ कुत्ता पालना अक्लमंदी है क्या? जानवर का क्या ठिकाना, कभी बच्चे को नुकसान पहुंचा दे तो?’

‘अरे नहीं बूआ, ऐसा कुछ नहीं होगा. आप नाहक डर रही हैं. वैसे दिलीप जब घर में होंगे तो वे ही कुत्ते का सब काम देखेंगे.’

कुछ समय बाद उषा ने एक बालक को जन्म दिया. मालविका ने घर का काम संभाल लिया और बच्चे की जिम्मेदारी भी ले ली. वह दिन भर बहुत सारे काम करती और रात को निढाल हो कर बिस्तर पर पड़ जाती. काम वह इंडिया में भी करती थी पर वहां और लोग भी थे उस का हाथ बंटाने के लिए. यहां वह अकेली पड़ गई थी.

एक दिन सुबह वह बच्चे का दूध बना रही थी कि रस्टी दरवाजे के पास आ कर कूंकूं करने लगा. ‘ओह तुझे भी अभी ही जाना है मुए,’ वह झुंझलाई.

जब रस्टी ने कूंकूं करना बंद न किया तो मालविका ने बच्चे को पालने में डाला और एक शौल लपेट कर रस्टी की चेन थामे घर से निकली.

पिछली रात बर्फ गिरी थी. सीढि़यों पर बर्फ जम गई थी और सीढि़यां कांच की तरह चिकनी हो गई थीं. मालविका ने हड़बड़ी में ध्यान न दिया और जैसे ही उस का पांव सीढ़ी पर पड़ा वह फिसल कर गिर पड़ी.

उस ने उठने की कोशिश की तो उस के पैर में भयानक दर्द हुआ. उस के मुंह से चीख निकल गई. उसे लगा उस भीषण ठंड में धरती पर पड़ेपड़े उस का शरीर अकड़ जाएगा और उस का दम निकल जाएगा.

काफी देर बाद उषा ने द्वार खोला तो उसे पड़ा देख कर उस के मुंह से भी चीख निकल गई, ‘ये क्या हुआ बूआ? तुम कैसे गिर पड़ीं? मैं ने तुम्हें आगाह किया था न कि बर्फ पर बहुत होशियारी से कदम रखना वरना पैर फिसलने का डर रहता है.’

‘अब मैं जान कर तो नहीं गिरी,’ उस ने कराह कर कहा, ‘जल्दीबाजी में पांव फिसल गया.’ उषा व उस का पति दिलीप उसे अस्पताल ले गए.

डाक्टर ने मालविका की जांच कर के बताया कि इन का टखना टूट गया है. औपरेशन करना होगा और हड्डी बैठानी होगी और इस में 10 हजार डौलर का खर्चा आएगा.

10 हजार सुन कर मालविका की सांस रुकने लगी, ‘उषा, तू ने मेरा मैडिकल बीमा करा लिया था न?’

‘मैं ने दिलीप से कह तो दिया था. क्यों जी, आप ने बूआजी का बीमा करा लिया था न?’

‘ओहो, ये बात तो मेरे ध्यान से बिलकुल उतर गई.’

उषा अपने हाथ मलने लगी, ‘ये आप ने बड़ी गलती की. अब इतने सारे पैसे कहां से आएंगे?’

वे इधरउधर फोन घुमाते रहे. आखिर उन्हें एक डाक्टर मिल गया जो मालविका का औपरेशन 3 हजार डौलर में करने को तैयार हो गया.

प्लास्टर उतरने वाले दिन उषा अपनी बूआ को अस्पताल ले गई. प्लास्टर उतरने के बाद जब मालविका ने पहला कदम उठाया तो देखा कि उस का टूटा हुआ पैर सीधा नहीं पड़ रहा था. उस के पैर डगमगाए और वह कुरसी में गिर पड़ी.

‘हाय ये क्या हो गया?’ उस के मुंह से निकला.

डाक्टर ने पैर की जांच की और बोले, ‘लगता है पैर सैट करने में जरा गलती हो गई. अब जब आप चलेंगी तो आप का एक पैर थोड़ा टेढ़ा पड़ेगा. आप को छड़ी का सहारा लेना होगा और कोई चारा नहीं है.’

मालविका की आंखों से झरझर आंसू बह निकले. हाय वह अपाहिज हो गई. अब वह बैसाखियों के सहारे चलेगी. बुढ़ापे में उसे दूसरों के आसरे जीना होगा.

तभी एक नर्स उस के पास आई, ‘मैडम, आप ओपीडी में चलिए. हमारे अस्पताल में न्यूयार्क से एक विजिटिंग डाक्टर आए हैं, जो आप के पैर की जांच करना चाहते हैं?’

‘कौन डाक्टर?’ मालविका ने अपना आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया.

‘डाक्टर केशवन.’

‘केशवन? यह कैसा नाम है?’

‘वे आप के ही देश के ही हैं. चलिए, मैं आप को व्हीलचेयर में ले चलती हूं.’

मालविका का हृदय जोरों से धड़क उठा. क्या ये वही थे? नहीं, उस ने अपना सिर हिलाया. इस नाम के और भी तो डाक्टर हो सकते हैं. पर डाक्टर को देखते ही उस का संशय दूर हो गया. वही हैं, वही हैं उस के हृदय में एक धुन सी बजने लगी. हालांकि मालविका उन्हें पूरे 20 साल बाद देख रही थी पर उन्हें पहचानने में उसे एक पल की देरी भी नहीं हुई. केशवन का बदन दोहरा हो गया था और सिर के बाल उड़ गए थे. पर चेहरामोहरा वही था.

ये छवि तो उस के हृदय में अंकित थी, उस ने भावुक हो कर सोचा. इन की तसवीर तो उस ने सहेज कर अपने बक्से में रखी हुई थी. वह हर रोज अकेले में तसवीर को निकालती, उसे निहारती और उस पर 2-4 आंसू बहाती. ये तसवीर उन दोनों की मंगनी के अवसर पर ली गई थी. एक प्रति मालविका ने सब की नजर बचा कर चुरा कर अपने पास रख ली थी.

उस ने सुना था कि केशवन अमेरिका जा कर वहीं के हो गए थे. उस ने एक उड़ती हुई खबर यह भी सुनी थी कि केशवन ने एक गोरी मेम से शादी कर ली थी और इस बात से उस के मातापिता बहुत दुखी थे. डाक्टर केशवन कैबिन में आए. मालविका ने उन पर एक भेदी नजर डाली. क्या उन्होंने उसे पहचान लिया था? शायद नहीं. उन्होंने उस का पैर जांचा.

‘आप का औपरेशन सही तरीके से नहीं किया गया है, इसीलिए आप की चाल टेढ़ी हो गई है. दोबारा हड्डी तोड़ कर फिर से जोड़नी पड़ेगी.’

‘ओह इस में तो भारी खर्च आएगा,’ मालविका चिंतित हो उठी.

‘डाक्टर, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं,’ उषा बोल उठी,

‘हम सोच रहे हैं कि इन्हें वापस इंडिया भेज दें. वहां पर इन का इलाज हो जाएगा.’

‘पैसे की आप चिंता न करें,’ केशवन ने कहा, ‘मैं इन का इलाज अपनी क्लीनिक में करा दूंगा,

एक भारतीय होने के नाते हमें परदेश में एकदूसरे की मदद तो करनी ही चाहिए.’

‘ओह डाक्टर साहब आप ने हमें उबार लिया,’ उषा बोली.

‘मैं कल न्यूयार्क वापस जा रहा हूं. आप कहें तो इन्हें साथ ले जाऊंगा. औपरेशन के बाद इन्हें थोड़ा आराम की जरूरत है फिर ये इंडिया जा सकती हैं.’

औपरेशन होने के बाद केशवन ने पूछा, ‘अब आप क्या करना चाहेंगी? न्यूजर्सी अपनी भतीजी के पास रहेंगी या…’

‘और कहां जाऊंगी? मेरा तो और कोई ठौर नहीं है,’ मालविका ने कहा.

‘मेरा एक सुझाव है. यदि अन्यथा न समझें तो आप कुछ दिन मेरे यहां रह सकती हैं.’

‘आप के यहां?’ मालविका चौंक पड़ी, ‘लेकिन आप की पत्नी, आप का परिवार?’

केशवन हंस दिया, ‘मैं अकेला हूं. विश्वास कीजिए मुझे आप के रहने से कोई दिक्कत नहीं होगी बल्कि इस में मेरा भी एक स्वार्थ है. मैं कभीकभी अपने देश का खाना खाने को तरस जाता हूं. हो सके तो मेरे लिए एकाध डिश बना दिया करिए और कौफी का तो मैं बहुत ही शौकीन हूं. दिन में 5-6 प्याले पीता हूं. आप बना दिया करेंगी न?’

वह हंस पड़ी. वह उस से ढेरों सवाल करना चाहती थी. वह अकेला क्यों था? उस की बीवी कहां थी? लेकिन वह अभी उस के लिए नितांत अजनबी थी इसलिए उस ने चुप्पी साध ली.

केशवन के घर पर आ कर उसे ऐसा लगा था कि वह अपने मुकाम पर पहुंच गई है.

उसे एक फिल्मी गाना याद आया. ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते…’

2 माह में ही वह ठीक हो कर चलने लगी. इतने दिन में केशवन के घर का चप्पाचप्पा उस का हो गया. उस ने बड़ी जतन से उसे ठीक कर दिया. वह डाक्टर का एहसान सेवा से चुकाना चाहती थी, उधर केशवन की बात ने उसे अंदर तक हिला दिया.

लेकिन मालविका ने सोचा, आज उस के जीवन में ये अनहोनी घटी थी. उस का गुजरा हुआ मुकाम फिर लौट आया था. जिस आदमी की तसवीर को देखदेख कर उस ने इतने साल गुजारे थे वह आज उस के सामने खड़ा था और उसे अपनाना चाह रहा था. ये एक चमत्कार नहीं तो क्या था. उस ने अपने लिए थोड़ी सी खुशी की कामना की थी. केशवन ने उस की झोली में दुनिया भर की खुशी उड़ेल दी थी.

भला ऐसा क्यों होता है कि इस भरी दुनिया में केवल एक व्यक्ति हमारे लिए अहम बन जाता है? उस ने सोचा. ऐसा क्यों लगता है कि हमारा जन्मजन्मांतर का साथ है, हम एकदूसरे के लिए ही बने हैं. एक चुंबकीय शक्ति हमें उस की ओर खींच ले जाती है. हर पल उस मनुष्य की शक्ल देखने को जी करता है, उस से बातें करने के लिए मन लालायित रहता है. उस की हर एक बात, हर एक आदत मन को भाती है. उस के बिना जीवन अधूरा लगता है, व्यर्थ लगता है. उस की छुअन शरीर में एक सिहरन पैदा करती है, तनमन में एक मादक एहसास होता है और हमारा रोमरोम पुकार उठता है- यही है मेरे मन का मीत, मेरा जीवनसाथी.

इस मनुष्य की तसवीर के सहारे उस ने इतने साल गुजार दिए थे. आज वह उस के सामने प्रार्थी बन कर खड़ा था. उस से प्यार की याचना करते हुए. क्या वह इस मौके को गवां देगी?

नहीं, उस ने सहसा तय कर लिया कि वह केशवन का प्रस्ताव स्वीकार कर लेगी. अगर उस ने ये मौका हाथ से निकल जाने दिया तो वह जीवन भर पछताएगी. आज तक वह औरों के लिए जीती आई थी. अब वह अपने लिए जिएगी और रही उस के परिवार की बात तो चाहे उन्हें अच्छा लगे चाहे बुरा, उन्हें उस के निर्णय को स्वीकार करना ही होगा.

घड़ी का घंटा बज उठा तो उस की तंद्रा भंग हुई. ओह वह बीते दिनों की यादों में इतना खो गई थी कि उसे समय का ध्यान ही न रहा. वह उठी और उस ने एकएक कर के घर का काम निबटाना शुरू किया. उस ने कमरों की सफाई की. आज उसे इस घर में एक अपनापन महसूस हो रहा था. हर एक वस्तु पर प्यार आ रहा था. उस ने केशवन के कपड़े करीने से लगाए. बगीचे से फूल ला कर कमरों में सजाए.

उस की निगाहें घड़ी की ओर लगी रहीं. जैसे ही घड़ी में 10 बजे घर का मुख्य द्वार खुला और केशवन ने प्रवेश किया.

‘‘ओह,’’ वह एक कुरसी में पसर कर बोला, ‘‘आज मैं बहुत थक गया हूं. आज सुबह 3 औपरेशन करने पड़े.’’

मालविका के मन में केशवन पर ढेर सारा प्यार उमड़ आया. उस ने कौफी का प्याला आगे बढ़ाया.

‘‘ओह, थैंक्स.’’

वह कौफी के घूंट भरता रहा और उसे एकटक देखता रहा.

वह तनिक असहज हो गई, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हैं?’’

‘‘तुम्हें देख रहा हूं. आज तुम्हारे चेहरे पर एक नई आभा है, एक लुनाई है, एक अजब सलोनापन है. ये कायापलट क्यों हुई?’’

वह लजा गई, ‘‘क्या आप नहीं जानते?’’

‘‘शायद जानता हूं पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

उस के मुंह से बोल न निकला.

‘‘मालविका, कल मैं ने तुम से कुछ पूछा था. उस का जवाब क्या है बोलो, हां कि ना?’’

मालविका ने धीरे से कहा , ‘‘हां.’’

केशवन ने उठ कर उसे अपनी बांहों में ले लिया.

‘‘मालविका, आज मैं बहुत खुश हूं मुझे मालूम था कि तुम मेरा प्रस्ताव नहीं ठुकराओगी. तभी मैं ने तुम्हारे लिए ये अंगूठी पहले से ही खरीद कर रखी थी.’’

उस ने जेब से एक मखमली डब्बी निकाली और उस में से एक हीरे की अंगूठी निकाल कर उस की उंगली में पहना दी.

‘‘मैं तुम्हें एक और चीज दिखाना चाहता था.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘केशवन ने अपना हाथ आगे किया. मालविका चिंहुक उठी. उसे लगा वह रंगे हाथों पकड़ी गई है.’’

‘‘अरे,’’ वह हकलाने लगी, ‘‘ये तसवीर तो मेरे बक्से में थी. ये आप को कहां से मिली?’’

‘‘ये तसवीर मैं ने आप के बक्से से नहीं ली मैडम. ये तो मेरे मेज की दराज में पड़ी रहती है.’’

‘‘मालविका अवाक उस की ओर देखने लगी. शर्म से उस की कनपटियां लाल हो गईं.’’

मालविका की प्रतिक्रिया देख कर केशवन हंस पड़ा, ‘‘अरे पगली, जिस तरह तुम ने हमारी मंगनी के अवसर पर ली गई ये तसवीर संभाल कर रखी थी, उसी तरह मैं ने भी एक तसवीर मौका पा कर उड़ा ली थी. इसे जबतब देख कर तुम्हारी याद ताजा कर लिया करता था.’’

वह झेंप गई. ‘‘ओह, तो आप जान गए थे कि मैं कौन हूं.’’

‘‘और नहीं तो क्या. तुम ने क्या सोचा कि मुझे अनजान लोगों का मुफ्त इलाज करने का शौक है? उस दिन अस्पताल में तुम्हें मैं पहली नजर में ही पहचान गया था. तुम्हें भला कैसे भूल सकता था? आखिर तुम मेरा पहला प्यार थीं.’’

‘‘और आप ने यह बात मुझ से इतने दिनों तक बड़ी होशियारी से छिपाए रखी,’’ उस ने मीठा उलाहना दिया.

‘‘और करता भी क्या. तुम्हारा आगापीछा जाने बगैर मैं अपना मुंह न खोलना चाहता था. मैं तो यह भी न जानता था कि तुम शादीशुदा हो या नहीं, तुम्हारे बालबच्चे हैं या नहीं. तुम्हें अचानक अपने सामने देख कर मैं चकरा गया था. जब तुम्हें रोते हुए देखा तो कारण जान कर तुम्हारी मदद करने का फैसला कर लिया.

‘‘जब हमारी बातों के दौरान यह पता चला कि तुम्हारी शादी नहीं हुई है और न ही तुम्हारे जीवन में और कोई पुरुष आया है तो मैं ने तुम्हें अपना बनाने का निश्चय कर लिया. मेरा तुम्हें अपने घर बुलाने का भी यही मकसद था. मैं तुम्हारा मन टटोलना चाहता था. मैं चाहता था कि हम दोनों में नजदीकियां बढ़ें. हम एकदूसरे को जानें और परखें और जब मैं ने जान लिया कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति कोई कड़वाहट नहीं है, कोई मनमुटाव नहीं है तो मेरी हिम्मत बढ़ी. मैं ने तुम से शादी करने की ठान ली.’’

मालविका की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. इतने बड़े संयोग की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

केशवन ने उसे बांहों में भींच लिया, ‘‘एक बार भारी गलती की कि अपने पिता का विरोध न कर तुम्हें खो दिया. शादी के बाद घर पहुंच कर मैं ने अपने पिता से बहुत बहस की पर वे यही कहते रहे कि उन्होंने मेरी पढ़ाई पर अपनी सारी पूंजी लगा दी है और ये रकम वे कन्या पक्ष से वसूल कर के ही रहेंगे. मैं ने भी गुस्से से भर कर अमेरिका जाने की ठान ली जहां से ढेर सारे डौलर कमा कर अपने पिता को भेज सकूं और उन की धनलोलुपता को शांत कर सकूं. उस के बाद नैन्सी मेरे जीवन में आई और मैं ने तुम्हें भुला देना चाहा.

‘‘मैं मानता हूं कि मैं ने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया. अब मैं तुम से शादी कर के इस का प्रतिकार करना चाहता हूं.

मालविका क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि हम दोनों का मिलन अवश्यंभावी था? किसी अज्ञात शक्ति ने हमें एकदूसरे से मिलाया है. नहीं तो न तुम अमेरिका आतीं और न हम यों अचानक मिलते.’’

उस ने मालविका के आंसू पोंछे, ‘‘यह समय इन आंसुओं का नहीं है. ये हमारी नई जिंदगी की शुरुआत है. मालविका, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. जो कुछ बीत गया उसे भुला दो और भावी जीवन की सोचो. हमें एकदूसरे का साथ मिला तो हम बाकी जिंदगी हंसतेखेलते गुजार देंगे, कल हम अपनी शादी के लिए रजिस्ट्रार औफिस जाएंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘फिर भी शादी के लिए हमें 2-4 चीजों की जरूरत तो पड़ेगी ही. मसलन, नई साड़ी, मंगलसूत्र वगैरह…’’

‘‘मंगलसूत्र मेरे पास है.’’

‘‘अरे वह कैसे?’’

‘‘मैं आप का दिया हुआ ये मंगलसूत्र हमेशा अपने गले में पहने रहती हूं. यह 20 साल से एक कवच की तरह मेरे गले में पड़ा हुआ है.’’

‘‘सच?’’ केशवन हंस पड़ा. उस ने झुक कर मालविका का मुंह चूम लिया.

मालविका का सर्वांग सिहर उठा. उसे ऐसा लगा कि उस का शरीर एक फूल की तरह खिलता जा रहा है. वह केशवन के आगोश में सिमट गई. उसे अपनी मंजिल जो मिल गई थी.

वापसी : सीमा पति का घर छोड़ क्यों मायके चली गई थी ?

मैं अटैची लिए औटो में बैठ गई. करीब 1 महीने बाद अपने पति अमित के पास लौट रही थी. मुझे विदा करते मम्मीडैडी की आंखों में खुशी के आंसू थे.

मैं ने रास्ते में औटो रुकवा कर एक गुलदस्ता और कार्ड खरीदा. कार्ड पर मैं ने अपनी लिखावट बदल कर लिखा, ‘हैपी बर्थडे, सीमा’ और फिर औटो में बैठ घर चल दी.

सीमा मेरा ही नाम है यानी गुलदस्ता मैं ने खुद के पैसे खर्च कर अपने लिए ही खरीदा था. दरअसल, पटरी से उतरी अपने विवाहित जीवन की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए इनसान को कभीकभी ऐसी चालाकी भी करनी पड़ती है.

पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई थी. मम्मीपापा का सोचना था कि उसे ससुराल जाते देख कर मैं ने अपने घर अमित के पास लौटने का फैसला किया. उन का यह सोचना पूरी तरह गलत है. सचाई यह है कि मैं अमित के पास परसों रात एक तेज झटका के बाद लौट रही हूं.

मुझे सामने खड़ी देख कर अमित हक्केबक्के रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं बिना कोई सूचना दिए यों अचानक घर लौट आऊंगी.

मैं मुसकराते हुए उन के गले लग कर बोली, ‘‘इतना प्यार गुलदस्ता भिजवाने के लिए थैंक यू, माई लव.’’

उन के गले लग कर मेरे तनमन में गुदगुदी की तेज लहर दौड़ गई थी. मन एकदम से खिल उठा था. सचमुच, उस पल की सुखद अनुभूति ने मुझे विश्वास दिला दिया कि वापस लौट आने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.

‘‘तुम्हें यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ उन की आवाज में नाराजगी के भाव मौजूद थे.

‘‘अब शरमा क्यों रहे हो? लो, आप से पहले मैं स्वीकार कर लेती हूं कि आज सुबह उठने के बाद से मैं आप को बहुत मिस कर रही थी. वैसे एक सवाल का जवाब दो. अगर मैं यहां न आती तो क्या आप आज के दिन भी मुझ से मिलने नहीं आते? क्या सिर्फ गुलदस्ता भेज कर चुप बैठ जाते?’’

‘‘यार, यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ वे एकदम से चिड़ उठे, ‘‘और रही बात तुम से मिलने आने की तो तुम मुझे नाराज कर के मायके भागी थीं. फिर मैं क्यों तुम से मिलने आता?’’

‘‘चलो, मान लिया कि आप ने यह गुलदस्ता नहीं भेजा है, पर क्या आप को खुशी भी नहीं हुई है मुझे घर आया देख कर? झूठ ही सही, पर कम से कम एक बार तो कह दो कि सीमा, वैलकम बैक.’’

‘‘वैलकम बैक,’’ उन्हें अब अपनी हंसी रोकने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘आई लव यू, माई डार्लिंग. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘अगर आप ने नहीं भेजा है, तो फिर यह गुलदस्ता मुझे किस ने गिफ्ट किया है?’’

‘‘यह तो तुम ही बता सकती हो. मुझ से दूर रह कर किस के साथ चक्कर चला रही हो?’’

‘‘मैं आप की तरह अवैध रिश्ता बनाने में विश्वास नहीं रखती हूं. बस, जिंदगी में जिस एक बार दिल दे दिया, सो दे दिया.’’

‘‘अवैध प्रेम करने का शौक मुझे भी नहीं है, पर यह बात तुम्हारे शक्की मन में कभी नहीं घुसेगी,’’ वे एकदम नाराज हो उठे.

‘‘देखोजी, मैं तो इस मुद्दे को ले कर कभी झगड़ा न करने का फैसला कर के लौटी हूं. इसलिए मुझे उकसाने की आप की सारी कोशिशें अब बेकार जाने वाली हैं,’’ उन का गुस्सा कम करने के लिहाज से मैं प्यार भरे अंदाज में मुसकरा उठी.

‘‘तुम तो 1 महीने में ही बहुत समझदार हो गई हो.’’

‘‘यह आप सही कह रहे हो.’’

‘‘मैं क्या सही कह रहा हूं?’’

‘‘यही कि एक महीना आप से दूर रह कर मेरी अक्ल ठिकाने आ गई है.’’

‘‘तुम तो सचमुच बदल गई हो वरना तुम ने कब अपने को कभी गलत माना है,’’ वे सचमुच बहुत हैरान नजर आ रहे थे.

‘‘अब क्या सारा दिन हम ऐसी ही बेकार बातें करते रहेंगे? यह मत भूलिए कि आज आप की जीवनसंगिनी का जन्मदिन है,’’ मैं ने रूठने का अच्छा अभिनय किया.

‘‘तुम कौन सा मुझे बता कर लौटी हो, जो मैं तुम्हारे लिए एक भव्य पार्टी का आयोजन कर के रखता,’’ वे मुझ पर कटाक्ष करने का मौका नहीं चूके.

‘‘पतिदेव, जरा व्यंग्य और दिल दुखाने वाली बातों पर अपनी पकड़ कमजोर करो, प्लीज. आज रविवार की छुट्टी है और मेरा जन्मदिन भी है. आप का क्या बिगड़ जाएगा अगर मुझे आज कुछ मौजमस्ती करा दोगे? साहब, प्यार से कहीं घुमाफिरा लाओ… कोई बढि़या सा गिफ्ट दे दो,’’ मैं भावुक हो उठी थी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद वे बोले, ‘‘वह सब बाद में होगा. पहले सोच कर यह बताओ कि यह गुलदस्ता तुम्हें किस ने भेजा होगा.’’

मैं ने भी फौरन सोचने की मुद्रा बनाई और फिर कुछ पलों के बाद बोली, ‘‘भेजना आप को चाहिए था, पर आप ने नहीं भेजा है…तो यह काम विकास का हो सकता है.’’

‘‘कौन है यह विकास?’’ वे हैरान से नजर आ रहे थे, क्योंकि उन्हें अंदाजा नहीं था कि मैं किसी व्यक्ति का नाम यों एकदम से ले दूंगी.

‘‘पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई है. यह विकास उस के बड़े भाई का दोस्त है.’’

‘‘आगे बोलो.’’

‘‘आगे क्या बोलूं? पति से दूर रह रही स्त्री को हर दिलफेंक किस्म का आदमी अपना आसान शिकार मानता है. वह भी मुझ पर लाइन मार रहा था, पर मैं आप की तरह…सौरी… मैं कमजोर चरित्र वाली लड़की नहीं हूं. उस ने ही कोशिश नहीं छोड़ी होगी और मुझे अपने प्रेमजाल में फंसाने को यह गुलदस्ता भेज दिया होगा. मैं अभी इसे बाहर फेंकती हूं,’’ आवेश में आ कर मैं ने अपना चेहरा लाल कर लिया.

‘‘अरे, यों तैश में आ कर इसे बाहर मत फेंको. कोई पक्का थोड़े ही है कि उसी कमीने ने इसे भेजा होगा.’’

‘‘यह भी आप ठीक कह रहे हो. तो एक काम करते हैं,’’ मैं उन की आंखोें में प्यार से देखने लगी थी.

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘आप इस से ज्यादा प्यारा और ज्यादा बड़ा एक गुलदस्ता मुझे भेंट कर दो. उसे पा कर मैं खुश भी बहुत हो जाऊंगी और अगर इसे विकास ने ही भेजा होगा, तो इस की अहमियत भी बिलकुल खत्म हो जाएगी.’’

‘‘तुम तो यार सचमुच समझदार बन कर लौटी हो,’’ उन्होंने इस बार ईमानदार लहजे में मेरी तारीफ की.

‘‘सच?’’

‘‘हां, अभी तक तो तुम्हारे अंदर आया बदलाव सच ही लग रहा है.’’

‘‘तो इसी बात पर बाहर लंच करा दो,’’ मैं ने आगे बढ़ कर उन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘नो प्रौब्लम, स्वीटहार्ट. मैं नहा लेता हूं. फिर घूमने चलते हैं.’’

फिर जब कुछ देर बाद मैं उन के मांगने पर तौलिया पकड़ाने गई, तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गुसलखाने के अंदर खींच लिया.

मेरा मन तो चाह ही रहा था कि ऐसा कुछ हो जाए. 1 महीने की दूरी की कड़वाहट को मिटाने का काम सिर्फ बातों से नहीं हो सकता था. अत: उन की बांहों में कैद हो कर मेरा उन के साथ मस्त अंदाज में नहाना हम दोनों की मनमुटाव की कड़वाहट को एक झटके में साफ कर गया था.

वे मुझे गोद में उठा कर शयनकक्ष में ले आए… प्यार के क्षण लंबे होते गए, क्योंकि महीने भर की प्यास जो हम दोनों को बुझानी थी. बाद में मैं ने उन से लिपट कर तृप्ति भरी गहरी नींद का आनंद लिया.

जब 2 घंटे बाद मेरी आंखें खुलीं तो मैं खुद को बहुत हलकाफुलका महसूस कर रही थी. मन में पिछले 1 महीने से बसी सारी शिकायतें दूर हो गई थीं. मुझे परसों रात को विकास के साथ घटी वह घटना याद आने लगी जिस के कारण मैं खुद ही अमित के पास लौट आई थी.

परसों रात मैं तो विकास के सामने एकदम से कमजोर पड़ गई थी. कविता की शादी में हम दोनों खूब काम कर रहे थे. हमारे बीच होने वाली हर मुलाकात में उस ने मेरी सुंदरता व गुणों की तारीफ करकर के मुझे बहुत खुश कर दिया था. लेकिन मुझे यह एहसास नहीं हुआ था कि अमित से दूर रहने के कारण मेरा परेशान व प्यार को प्यासा मन उस के मीठे शब्दों को सुन कर भटकने को तैयार हो ही गया था.

मैं उस रात कविता के घर की छत पर बने कमरे से कुछ लाने गई थी. तब विकास मेरे पीछेपीछे दबे पांव वहां आ गया. दरवाजा बंद होने की आवाज सुन कर मैं मुड़ी तो वह सामने खड़ा नजर आया. उस की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़ कर मैं बुरी तरह घबरा गई. मेरा सारा शरीर थरथर कांपने लगा.

‘‘विकास, तुम मेरे पास मत आना. देखो, मैं शादीशुदा औरत हूं…मेरे हंसनेबोलने का तुम गलत अर्थ लगा रहे हो…मैं वैसी औरत नहीं हूं…’’

उस ने मेरे कहने की रत्ती भर परवाह न कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘प्लीज, मुझे जाने दो…छोड़ो मुझे,’’ मैं उस से ऐसी प्रार्थना जरूर कर रही थी पर इस में भी कोई शक नहीं कि मुझे उस की नाजायज हरकत पर तेज गुस्सा नहीं आया था.

उस कमरे के साथ बालकनी न जुड़ी होती तो न जाने उस रात क्या हो जाता. उस बालकनी में 2 किशोर लड़के गपशप कर रहे थे. अगर ऐन वक्त पर उन दोनों की हंसने की आवाजें हमारे कानों तक न आतीं, तो विकास थोड़ी सी जोरजबरदस्ती कर मेरे साथ अपने मन की करने में सफल हो जाता.

उस की पकड़ ढीली पड़ते ही मैं कमरे से जान बचा कर भाग निकली थी. मैं सीधी अपने घर पहुंची और बिस्तर पर गिर कर खूब देर तक रोई थी.

बाद में कुछ बातें मुझे बड़ी आसानी से समझ में आ गई थीं. मुझे बड़ी गहराई से यह एहसास हुआ कि अमित के साथ और उस से मिलने वाले प्यार की मेरे तनमन को बहुत जरूरत है. वे जरूरतें अगर अमित से नहीं पूरी होंगी तो मेरा प्यासा मन भटक सकता है और किसी स्त्री के यों भटकते मन को सहारा देने वाले आशिकों की आजकल कोई कमी नहीं.

तब मैं ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने में जरा भी देर नहीं लगाई थी. किसी विकास जैसे इनसान को प्रेमी बना कर अपनी इज्जत को दांव पर लगाने से बेहतर मुझे अमित के पास लौटने का विकल्प लगा.

मैं मायके में रहने इसलिए आई थी, क्योंकि मुझे शक था कि औफिस में उस के साथ काम करने वाली रितु के साथ अमित के गलत संबंध हैं.

वे हमेशा ऐसा कुछ होने से इनकार करते थे पर जब उन्होंने उस के यहां मेरे बारबार मना करने पर भी जाना चालू रखा, तो मेरा शक यकीन में बदलता चला गया था.

उस रात मुझे इस बात का एहसास हुआ कि यों मायके भाग कर अमित से दूर हो जाना तो इस समस्या का कोई हल था ही नहीं. यह काम तो अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा था. यों दूर रह कर तो मैं अकेले रह रहे अमित को रितु से मिलने के ज्यादा मौके उपलब्ध करा रही थी. तभी मैं ने अमित के पास लौट आने का फैसला कर लिया था और आज सुबह औटो कर के लौट भी आई थी.

कुछ देर तक सो रहे अमित के चेहरे को प्यार से निहारने के बाद मैं ने उन के कान में प्यार से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है, जनाब.’’

‘‘तो प्यार करना फिर से शुरू कर देता हूं, जानेमन,’’ नींद से निकलते ही उन के दिलोदिमाग पर मौजमस्ती हावी हो गई.

‘‘अभी तो मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं.’’

‘‘तो बोलो खाना खाने कहां चलें?’’

‘‘मेरा चाइनीज खाने का मन है.’’

‘‘तो चाइनीज खाने ही चलेंगे.’’

‘‘पहले से तो किसी के साथ कहीं जाने का कोई प्रोग्राम नहीं बना रखा है न?’’

‘‘तुम रितु के साथ मेरा कोई प्रोग्राम होने की तरफ इशारा कर रही हो न?’’ वे एकदम गंभीर नजर आने लगे.

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ मैं ने झूठ बोला.

‘‘झूठी,’’ उन्होंने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित करने के बाद संजीदा लहजे में कहा, ‘‘मैं तुम्हें आज फिर से बता देता हूं कि रितु के साथ मेरा कोई गलत चक्कर…’’

‘‘मुझे आप पर पूरा विश्वास है,’’ मैं ने उन्हें टोका और हंस कर बोली, ‘‘मैं तो आप को बस यों ही छेड़ रही थी.’’

‘‘तो अब इस जरा सा छेड़ने का परिणाम भी भुगतो,’’ उन्होंने मुझे अपने आगोश में भरने की कोशिश की जरूर, पर मैं ने बहुत फुरती दिखाते हुए खुद को बचाया और कूद कर पलंग से नीचे उतर आई.

‘‘भूखे पेट न भजन होता है, न प्यार, मेरे सरकार. अब फटाफट तैयार हो जाओ न.’’

‘‘ओके, पहले तुम्हारी पेट पूजा कर ही दी जाए नहीं तो प्यार का कार्यक्रम रुकावट के साथ ही चलेगा,’’ मेरी तरफ हवाई चुंबन उछाल कर वे तैयार होने को उठ गए.

रितु को ले कर अमित के अडि़यल व्यवहार ने मुझे विकास की तरफ लगभग धकेल ही दिया था. अगर हमारा मनमुटाव मुझे गलत रास्ते पर धकेल सकता है, तो मैं अपने प्यार, सेवा और विश्वास के बल पर उन को अपनी तरफ खींच भी सकती हूं. उन की आंखों में अपने लिए गहरी चाहत और प्यार के भावों को पढ़ कर मुझे लग रहा कि बिना शर्त लौटने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.

तालमेल : क्या दोबारा गृहस्थी बना पाई ऋतु?

‘‘गोपाल जीजाजी सुनिए,’’ अचानक अपने लिए जीजाजी का संबोधन सुन कर विधुर गोपाल चौंक पड़ा. उस ने मुड़ कर देखा, ऋतु एक सुदर्शन युवक के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. चंडीगढ़ में उस के परिवार के साथ गोपाल और उस की पत्नी रचना का दिनरात का उठनाबैठना था.

‘‘अरे, साली साहिबा आप? अरे, शादी कर ली और मुझे बताया तक नहीं?’’

‘‘आप का कोई अतापता होता तो शादी में बुलाती,’’ ऋतु ने शिकायत भरे स्वर में कहा और फिर युवक की ओर मुड़ कर बोली, ‘‘राहुल, यह गोपाल जीजाजी हैं.’’

‘‘मुझे मालूम है. जब पहली बार तुम्हारे घर आया था तो अलबम में इन की कई तसवीरें देखी थीं. पापा ने बताया था कि ये भी कभी परिवार के ही सदस्य थे. दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद भी संपर्क रहा था. फिर पत्नी के आकस्मिक निधन के बाद न जाने कहां गायब हो गए,’’ राहुल बीच ही में बोल उठा.

‘‘रचना के निधन के बाद मनु को अकेले संभालना मुश्किल था, इसलिए उसे देहरादून में एक होस्टल में डाल दिया. यहां से देहरादून नजदीक है, इसलिए अपना ट्रांसफर भी यहीं करवा लिया. अकसर आप लोगों से संपर्क करने की सोचता था, मगर व्यस्तता के चलते टाल जाता था.’’

गोपाल ने जैसे सफाई दी, ‘‘चलो, सामने रेस्तरां में बैठ कर इतमीनान से बातें करते हैं. अकेले रहता हूं, इसलिए घर तो ले जा नहीं सकता.’’

‘‘तो हमारे घर चलिए न जीजाजी,’’ राहुल ने आग्रह किया.

‘‘तुम्हारे घर जाने और वहां खाना बनने में देर लगेगी और मुझे बहुत भूख लगी है. मैं रेस्तरां में खाना खाने जा रहा हूं, तुम भी मेरे साथ खाना खाओ. अब मुलाकात हो गई है तो घर आनाजाना तो होता ही रहेगा.’’

रेस्तरां में खाना और्डर करने के बाद गोपाल ने ऋतु से उस के परिवार का हालचाल पूछा और फिर राहुल से उस के बारे में. राहुल ने बताया कि वह एक फैक्टरी में इंजीनियर है.

‘‘नया प्लांट लगाने की जिम्मेदारी मुझ पर है, इसलिए बहुत व्यस्त रहता हूं. घर वालों से बहुत कहा था कि फिलहाल मेरे पास घरगृहस्थी के लिए बिलकुल समय नहीं होगा. अत: शादी स्थगित कर दें. मगर कोई माना ही नहीं और उस की सजा भुगतनी पड़ ही है बेचारी ऋतु को. खैर, अब आप मिल गए हैं तो मेरी चिंता दूर हो गई. अब आप इसे संभालिए और मैं अपनी नौकरी को समय देता हूं. अगर मैं यह प्रोजैक्ट समय पर यानी अगले 3 महीने में सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर सका तो मेरी यह नौकरी ही नहीं पूरा भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा जीजाजी,’’ राहुल ने बताया.

‘‘दायित्व वाली नौकरी में तो ऐसे तनाव और दबाव रहते ही हैं. खैर, अब साली साहिबा की फिक्र छोड़ कर तुम अपने प्रोजैक्ट पर ध्यान दो और फिलहाल खाने का मजा लो, अच्छा लग रहा है न?’’

‘‘हां, क्या आप रोज यहीं खाना खाते हैं?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘अकसर सुबह नौकरानी नाश्ता और साथ ले जाने के लिए लंच बना देती है, शाम को यहीं कहीं खा लेता हूं.’’

‘‘अब आप इधरउधर नहीं हमारे साथ खाना खाया करेंगे जीजाजी. ऋतु बढि़या खाना बनाती है.’’

‘‘जीजाजी को मालूम है, मैं ने रचना दीदी से ही तो तरहतरह का खाना बनाना सीखा है,’’ ऋतु बोली.

‘‘तब तो तुम्हें जीजा को क्याक्या पसंद है, यह भी मालूम होगा?’’ राहुल ने पूछा, तो ऋतु ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘तो फिर कल रात का डिनर जीजाजी की पसंद का बनेगा,’’ राहुल ने कहा, ‘‘मना न करिएगा जीजाजी.’’

‘‘जीजाजी को अपने घर का पता तो बताओ,’’ ऋतु बोली.

‘‘आप के पास व्हीकल है न जीजाजी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘हां, मोटरसाइकिल है.’’

‘‘तो फिर पता क्या बताना तुम घर ही दिखा दो न. मैं यहां से सीधा फैक्टरी के लिए निकल जाता हूं. तुम जीजाजी के साथ घर जाओ, मैं एक राउंड लगा कर आता हूं. तब तक आप लोग बरसों की जमा की हुई बातें कर लेना.’’

‘‘कमाल के आदमी हो यार… कुछ देर पहले मिले अजनबी के भरोसे बीवी को छोड़ कर जा रहे हो.’’

‘‘क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं जीजाजी, ऋतु के घर में आप की भी वही इज्जत है, जो ललित जीजाजी की,’’ राहुल ने उठते हुए कहा.

गोपाल अभिभूत हो गया. ललित ऋतु की बड़ी बहन लतिका का पति था. मोटरसाइकिल पर ऋतु उस से सट कर बैठी. एक अरसे के बाद नारीदेह के स्पर्श से शरीर में एक अजीब सी अनुभूति का एहसास हुआ. लेकिन अगले ही पल उस ने उस एहसास को झटक दिया कि ऐसा सोचना भी राहुल और ऋतु के परिवार के साथ विश्वासघात है. बातों में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. राहुल के लौटने के बाद वह चलने के लिए उठ खड़ा हुआ.

‘‘आप कल जरूर आना जीजाजी,’’ राहुल ने याद दिलाया.

‘कल नहीं, आज शाम

को कहो, 12 बज चुके हैं बरखुरदार. वैसे भी शाम को मुझे औफिस में देर हो जाएगी, इसलिए फिर कभी आऊंगा.’’

‘‘देरसवेर से अपने यहां कुछ फर्क नहीं पड़ता जीजाजी और फिर देर तक काम करने के बाद तो घर का बना खाना ही खाना चाहिए,’’ राहुल ने जोड़ा.

‘‘लेकिन हलका, दावत वाला नहीं,’’ गोपाल ने हथियार डाल दिए.

‘‘हलका यानी दालचावल बना लूंगी, मगर आप को आना जरूर है,’’ ऋतु ठुनकी.

शाम को जब गोपाल ऋतु के घर पहुंचा तो राहुल तब तक नहीं आया था.

‘‘हो सकता है 10 मिनट में आ जाएं और यह भी हो सकता है कि 10 बजे तक भी न आएं… फोन कर बता देती हूं कि आप आ गए हैं,’’ ऋतु ने मोबाइल उठाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मैं खाना पैक कर देती हूं. आप ड्राइवर को आने के लिए कह दीजिए,’’ कह कर ऋतु ने मोबाइल रख दिया. बोली, ‘‘कहते हैं आने में देर हो जाएगी, ड्राइवर को खाना लाने भेज रहे हैं. आप टीवी देखिए जीजाजी, मैं अभी इन का टिफिन पैक कर के आती हूं.’’

‘‘मुझे फोन दो पूछता हूं कि यह कहां की शराफत है कि मुझे घर बुला कर खुद औफिस

में खाना खा रहा है,’’ गोपाल की बात सुन

कर ऋतु ने नंबर मिला कर मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

‘‘आप घर पर हैं, इसलिए मैं भी समय पर घर का खाना खा लूंगा जीजाजी वरना

अकेली ऋतु के पास तो ड्राइवर को घर पर खाना लाने नहीं भेज सकता ना,’’ गोपाल की शिकायत सुन कर राहुल ने कहा, ‘‘आप के साथ ऋतु भी खा लेगी वरना भूखी ही सो जाती है.

आप मेरे रहने न रहने की परवाह मत करिए जीजाजी, बस जब फुरसत मिले ऋतु को कंपनीदे दिया करिए.’’

घर में वैसी ही महक थी जैसी कभी रचना की रसोई से आया करती थी. ऋतु डब्बा ले कर आई ही थी कि तभी घंटी बजी.

‘‘लगता है ड्राइवर आ गया.’’

गोपाल ने बढ़ कर दरवाजा खोला और ऋतु से डब्बा ले कर ड्राइवर को पकड़ा दिया.

‘‘खाने की खुशबू से मुझे भी भूख लग आई है ऋतु.’’

‘‘आप डाइनिंगटेबल के पास बैठिए, मैं अभी खाना ला रही हूं,’’ कह ऋतु ने फुरती से मेज पर खाना रख दिया. राई और जीरे से

बघारी अरहर की दाल और भुनवा आलू, लौकी का रायता.

‘‘आप परोसना शुरू करिए जीजाजी,’’ उस ने रसोई में से कहा, ‘‘मैं गरमगरम चपातियां ले कर आ रही हूं.’’

‘‘तुम भी आओ न,’’ गोपाल ने चपातियां रख कर वापस जाती ऋतु से कहा.

‘‘बस 1 और आप के लिए और 1 अपने लिए और चपाती बना कर अभी आई. मगर आप खाना ठंडा मत कीजिए.’’

‘‘तुम्हें यह कैसे मालूम कि मैं बस 2 ही चपातियां खाऊंगा?’’ गोपाल ने ऋतु के आने के बाद पूछा, ‘‘और भी तो मांग सकता हूं?’’

‘‘सवाल ही नहीं उठता. चावल के साथ आप 2 से ज्यादा चपातियां नहीं खाते और अरहर की दाल के साथ चावल खाने का मोह भी नहीं छोड़ सकते. मुझे सब पता है जीजाजी,’’ ऋतु ने कुछ इस अंदाज से कहा कि गोपालसिहर उठा. वाकई उस की पसंद के बारे में ऋतु को पता था. खाने में बिलकुल वही स्वाद था जैसा रचना के बनाए खाने में होता था. खाने के बाद रचना की ही तरह ऋतु ने अधभुनी सौंफ भी दी.

गोपाल ने कहना चाहा कि रचना के जाने के बाद पहली बार लगा है कि खाना खाया है, रोज तो जैसे जीने के लिए पेट भरता है. और जीना तो खैर है ही मनु के लिए, पर कह न पाया.

‘‘टीवी देखेंगे जीजाजी?’’

तो ऋतु को मेरी खाना खाने के बाद थोड़ी देर टीवी देखने की आदत का भी पता है, सोच गोपाल बोला, ‘‘अभी तो घर जाऊंगा साली साहिबा. स्वाद में ज्यादा खा लिया है. अत: नींद आ रही है.’’ हालांकि खाते ही चल पड़ना शिष्टाचार के विरुद्ध था, लेकिन न जाने क्यों उस ने ज्यादा ठहरना मुनासिब नहीं समझा.

‘‘आप अपनी नियमित खुराक से कभी ज्यादा कहां खाते हैं जीजाजी, मगर नींद आने वाली बात मानती हूं. कल भी आधी रात तक रोके रखा था हम ने आप को.’’

‘‘तो फिर आज जाने की इजाजत है?’’

‘‘इस शर्त पर कि कल फिर आएंगे.’’

‘‘कल तो हैड औफिस यानी दिल्ली जा रहा हूं.’’

‘‘कितने दिनों के लिए?’’

‘‘1 सप्ताह तो लग ही जाएगा… आ कर फोन करूंगा.’’

‘‘फोन क्या करना स्टेशन से सीधे यहीं आ जाइएगा. सफर से आने के बाद पेट भर घर का खाना खा कर आप कुछ देर सोते हैं और फिर औफिस जाते हैं. आप बिना संकोच आ जाना. मैं तो हमेशा घर पर ही रहती हूं गोलू जीजाजी.’’

गोपाल चौंक पड़ा. रचना उसे गोलू कहती थी यह ऋतु को कैसे मालूम, लेकिन प्रत्यक्ष में उस की बात को अनसुना कर के वह विदा ले कर आ गया. घर आ कर भी वह इस बारे में सोचता रहा. रचना कभी भी कुंआरी ऋतु से अपने

पति के बारे में बात करने वाली नहीं थी. उस का और ऋतु का परिवार एक सरकारी आवासीय कालोनी के मकान में ऊपरनीचे रहता था. मनु तो ज्यादातर ऋतु की मम्मी के पास ही रहता था. रचना भी उस के औफिस जाने के बाद नीचे चली जाती थी और जिस रोज ऋतु के पापा उस के औफिस से लौटने के पहले आ जाते थे तो उसे अपने पास ही बरामदे में बैठा लेते थे, ‘‘यहीं बैठ जाओ न गोपाल बेटे, तुम्हारे बहाने हमें भी एक बार फिर चाय मिल जाएगी.’’

छुट्टी के रोज अकसर सब लोग पिकनिक पर या कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने जाते थे. कई बार रचना के यह कहने पर कि आंटीजी और ऋतु फलां फिल्म देखना चाह रही हैं, वह किराए पर वीसीआर ले आता था और ऋतु के घर वाले फिल्म देखने ऊपर आ जाते थे. ऋतु का आनाजाना तो खैर लगा ही रहता था. दोनों में थोड़ीबहुत नोकझोंक भी हो जाती थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था जिसे देख कर लगे कि

ऋतु उस में हद से ज्यादा दिलचस्पी ले रही है. तो फिर अब और वह भी शादी के बाद ऋतु ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है? माना कि राहुल व्यस्त है और नवविवाहिता ऋतु के साथ उतना समय नहीं बिता पा रहा जितना उसे बिताना चाहिए, लेकिन वह ऋतु की अवहेलना भी तो नहीं कर रहा? ऋतु को समझना होगा और वह भी बगैर उस से मिले.

गोपाल दिल्ली से 2 दिन बाद ही लौट आया, मगर उस ने ऋतु से संपर्क नहीं किया. 1 सप्ताह के बाद ऋतु को फोन किया.

‘‘आप कब आए जीजाजी?’’

‘‘कल रात को.’’

‘‘तो फिर आप घर क्यों नहीं आए? मैं ने कहा था न,’’ ऋतु ठुनकी.

‘‘रात के 11 बजे मैं सिवा अपने घर के कहीं और नहीं जाता,’’ उस ने रुखाई से कहा.

‘‘यह भी तो आप ही का घर है. अभी आप कहां हैं?’’

‘‘औफिस में.’’

‘‘वह क्यों? टूर से आने के बाद आराम नहीं किया?’’

‘‘रात भर कर तो लिया. अभी मैं एक मीटिंग में जा रहा हूं ऋतु. तुम से फिर बात करूंगा,’’ कह कर फोन बंद कर दिया.

शाम को ऋतु का फोन आया, मगर उस ने मोबाइल बजने दिया. कुछ देर के बाद फिर ऋतु ने फोन किया, तब भी उस ने बात नहीं की.मगर घर आने पर उस ने बात कर ली.

‘‘आप कौल क्यों रिसीव नहीं कर रहे थे जीजाजी?’’ ऋतु ने झुंझलाए स्वर में पूछा.

‘‘औफिस में काम छोड़ कर पर्सनल कौल रिसीव करना मुझे पसंद नहीं है.’’

‘‘आप अभी तक औफिस में हैं?’’

‘‘हां, दिल्ली जाने की वजह से काफी काम जमा हो गया है. उसे खत्म करने के लिए कई दिनों तक देर तक रुकना पड़ेगा.’’

‘‘खाने का क्या करेंगे?’’

‘‘भूख लगेगी तो यहीं मंगवा लेंगे नहीं तो घर जाते हुए कहीं खा लेंगे.’’

‘‘कहीं क्यों यहां आ जाओ न जीजाजी.’’

‘‘मेरे साथ और भी लोग रुके हुए हैं ऋतु और हम जब इकट्ठे काम करते हैं तो खाना भी इकट्ठे ही खाते हैं. अच्छा, अब मुझे काम करने दो, शुभ रात्रि.’’

उस के बाद कई दिनों तक यही क्रम चला और फिर ऋतु का फोन आया कि चंडीगढ़ से पापा आए हुए हैं और आप से मिलना चाहते हैं. अंकल से मिलने का लोभ गोपाल संवरण न कर सका और शाम को उन से मिलने ऋतु के घर गया. कुछ देर के बाद ऋतु खाना बनाने रसोई में चली गई.

‘‘तुम ने क्या नौकरी बदल ली है गोपाल?’’ अंकल ने पूछा.

‘‘नहीं अंकल.’’

‘‘ऋतु बता रही थी कि अब तुम बहुत व्यस्त रहते हो. पहले तो तुम समय पर घर आ जाते थे.’’

‘‘तरक्की होने के बाद काम और जिम्मेदारियां तो बढ़ती ही हैं अंकल.’’

‘‘तुम्हारी बढ़ी हुई जिम्मेदारियों में मैं एक और जिम्मेदारी बढ़ा रहा हूं गोपाल,’’ अंकल ने आग्रह किया, ‘‘ऋतु का खयाल भी रख लिया करो. राहुल बता रहा था कि तुम्हारे मिलने पर उसे थोड़ी राहत महसूस हुई थी, लेकिन तुम भी एक बार आने के बाद व्यस्त हो गए और ऋतु ने अपने को एकदम नकारा समझना शुरू कर दिया है. असल में मैं राहुल के फोन करने पर ही यहां आया हूं. अगले कुछ महीनों तक उस पर काम का बहुत ही ज्यादा दबाव है और ऐसे में ऋतु का उदास होना उस के तनाव को और भी ज्यादा बढ़ा देता है. अत: वह चाहता था कि मैं कुछ अरसे के लिए ऋतु को अपने साथ ले जाऊं, लेकिन मैं और तुम्हारी आंटी यह मुनासिब नहीं समझते. राहुल के मातापिता ने साफ कहा था कि राहुल की शादी इसलिए जल्दी कर रहे हैं कि पत्नी उस के खानेपहनने का खयाल रख सके. ऐसे में तुम्हीं बताओ हमारा उसे ले जाना क्या उचित होगा? मगर बेचारी ऋतु भी कब तक टीवी देख कर या पत्रिकाएं पढ़ कर समय काटे? पासपड़ोस में कोई हमउम्र भी नहीं है.’’

‘‘वह तो है अंकल, लेकिन मेरा आना भी अकसर तो नहीं हो सकता,’’ उस ने असहाय भाव से कहा.

‘‘फिर भी उस से फोन पर तो बात कर ही सकते हो.’’

‘‘वह तो रोज कर सकता हूं.’’

‘‘तो जरूर किया करो बेटा, उस का अकेलापन कुछ तो कम होगा,’’ अंकल ने मनुहार के स्वर में कहा.

घर लौटने के बाद गोपाल को भी अकेलापन खलता था. अत: वह ऋतु को रोज रात को फोन करने लगा. वह जानबूझ कर व्यक्तिगत बातें न कर के इधरउधर की बातें करता था, चुटकुले सुनाता था, किव्ज पूछता था. एक दिन जब किसी बात पर ऋतु ने उसे फिर गोलू जीजाजी कहा तो वह पूछे बगैर न रह सका, ‘‘तुम्हें यह नाम कैसे मालूम है ऋतु, रचना के बताने का तो सवाल ही नहीं उठता?’’

ऋतु सकपका गई, ‘‘एक बार आप दोनों को बातें करते सुन लिया था.’’

‘‘छिप कर?’’

‘‘जी,’’ फिर कुछ रुक कर बोली, ‘‘उस रोज छिप कर आप की और पापा की बातें भी सुनी थीं जीजाजी. आप कह रहे थे कि आप शादी करेंगे, मगर तब जब मनु भी अपनी अलग दुनिया बसा लेगा. उस में तो अभी कई साल हैं जीजाजी, तब तक आप अकेलापन क्यों झेलते हैं? मैं ने तो जब से आप को देखा है तब से चाहा है, तभी तो आप की हर पसंदनापसंद मालूम है. अब जब आप भी अकेले हैं और मैं भी तो क्यों नहीं चले आते आप मेरे पास?’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है ऋतु,’’ गोपाल चिल्लाया, ‘‘6 फुट के पति के रहते खुद को अकेली कह रही हो?’’

‘‘6 फुट के पति के पास मेरे लिए 6 पल भी नहीं हैं जीजाजी. घर बस नहाने, सोने को आते हैं, आपसी संबंध कब बने थे, याद नहीं. अब तो बात भी हांहूं में ही होती है. शिकायत करती हूं, तो कहते हैं कि अभी 1-2 महीने तक या तो मुझे यों ही बरदाश्त करो या मम्मीपापा के पास चली जाओ. आप ही बताओ यह कोई बात हुई?’’

‘‘बात तो खैर नहीं हुई, लेकिन इस के सिवा समस्या का कोई और हल भी तो नहीं है.’’

‘‘है तो जो मैं ने अभी आप को सुझाया.’’

‘‘एकदम अनैतिक…’’

‘‘जिस से किसी पर मानसिक अथवा आर्थिक दुष्प्रभाव न पड़े और जिस से किसी को सुख मिले वह काम अनैतिक कैसे हो गया?’’ ऋतु ने बात काटी, ‘‘आप सोचिए मेरे सुझाव पर जीजाजी.’’

गोपाल ने सोचा तो जरूर, लेकिन यह कि ऋतु को भटकने से कैसे रोका जाए? राहुल जानबूझ कर तो उस की अवहेलना नहीं कर

रहा था और फिर यह सब उस ने शादी से पहले भी बता दिया था, लेकिन ऋतु से यह अपेक्षा करना कि वह संन्यासिनी का जीवन व्यतीत

करे उस के प्रति ज्यादती होगी. ऋतु को नौकरी करने या कोई कोर्स करने को कहना भी

मुनासिब नहीं था, क्योंकि मनचले तो हर जगह होते हैं और अल्हड़ ऋतु भटक सकती थी. इस से पहले कि वह कोई हल निकाल पाता, उस की मुलाकात अचानक राहुल से हो गई. राहुल उस के औफिस में फैक्टरी के लिए सरकार से कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मांगने आया था.

गोपाल उसे संबंधित अधिकारी के पास ले गया और परस्पर परिचय करवाने के बाद बोला, ‘‘जब तक उमेश साहब तुम्हारी याचिका पर निर्णय लेते हैं, तुम मेरे कमरे में चलो राहुल, कुछ जरूरी बातें करनी हैं.’’

राहुल को असमंजस की स्थिति में देख कर उमेश हंसा, ‘‘बेफिक्र हो कर जाइए. गोपाल बाबू के साथ आए हैं, तो आप का काम तो सब से पहले करना होगा. कुछ

देर के बाद मंजूरी के कागज गोपाल बाबू के कमरे में पहुंचवा दूंगा.’’

राहुल के चेहरे पर राहत के भाव उभरे.

‘‘अगर वैस्ट वाटर पाइप को लंबा करने की अनुमति मिल जाती है तो मेरी कई परेशानियां खत्म हो जाएंगी जीजाजी और मैं काम समय से कुछ पहले ही पूरा कर दूंगा. अगर मैं ने यह प्रोजैक्ट समय पर चालू करवा दिया न तो मेरी तो समझिए लाइफ बन गई. कंपनी के मालिक दिनेश साहब हरेक को उस के योगदान का श्रेय देते हैं. वे मेरी तारीफ भी जरूर करेंगे जिसे सुन कर कई और बड़ी कंपनियां भी मुझे अच्छा औफर दे सकती हैं,’’ राहुल ने गोपाल के साथ चलते हुए बड़े उत्साह से बताया.

‘‘यानी तुम फिर इतने ही व्यस्त हो जाओगे?’’

‘‘एकदम तो नहीं. इस प्रोजैक्ट को सही समय पर चालू करने के इनाम में दिनेश साहब 1 महीने की छुट्टी और सिंगापुर, मलयेशिया वगैरह के टिकट देने का वादा कर चुके हैं. जब तक किसी भी नए प्रोजैक्ट की कागजी काररवाई चलती है तब तक मुझे थोड़ी राहत रहती है. फिर प्रोजैक्ट समय पर पूरा करने का काम चालू.’’

‘‘लेकिन इस व्यस्तता में ऋतु को कैसे खुश रखोगे?’’

‘‘वही तो समस्या है जीजाजी. नौकरी वह करना नहीं चाहती और मुझे भी पसंद नहीं है. खैर, किसी ऐसी जगह घर लेने जहां पासपड़ौस अच्छा हो और फिर साल 2 साल में बच्चा हो जाने के बाद तो इतनी परेशानी नहीं रहेगी. मगर समझ में नहीं

आ रहा कि फिलहाल क्या करूं? इस पाइप लाइन की समस्या को ले कर पिछले कुछ दिनों से इतने तनाव में था कि उस से ठीक से बात भी नहीं कर पा रहा. ऋतु स्वयं को उपेक्षित फील करने लगी है.’’

‘‘पाइप लाइन की समस्या तो समझो हल हो ही गई. तुम अब ऋतु को क्वालिटी टाइम दो यानी जितनी देर उस के पास रहो उसे महसूस करवाओ कि तुम सिर्फ उसी के हो, उस की बेमतलब की समस्याओं या बातों को भी अहमियत दो.’’

‘‘यह क्वालिटी टाइम वाली बात आप ने खूब सुझाई जीजाजी, यानी सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं प्यार के दोचार दिन.’’

‘‘लेकिन एक एहसास तुम्हें उसे और करवाना होगा राहुल कि उस की शख्सीयत फालतू नहीं है, उस की तुम्हारी जिंदगी में बहुत अहमियत है.’’

‘‘वह तो है ही जीजाजी और यह मैं उसे बताता भी रहता हूं, लेकिन वह समझती ही नहीं.’’

‘‘ऐसे नहीं समझेगी. तुम कह रहे थे न कि दिनेश साहब सार्वजनिक रूप से तुम्हारे योगदान की सराहना करेंगे. तब तुम इस सब का श्रेय अपनी पत्नी को दे देना. बात उस तक भी पहुंच ही जाएगी…’’

‘‘उद्घाटन समारोह में तो वह होगी ही. अत: स्वयं सुन लेगी और बात झूठ भी नहीं

होगी, क्योंकि जब से ऋतु मेरी जिंदगी में आई है मैं चाहता हूं कि मैं खूब तरक्की करूं और उसे सर्वसुख संपन्न गृहस्थी दे सकूं.’’

गोपाल ने राहत की सांस ली. उस ने राहुल को व्यस्तता और पत्नी के प्रति दायित्व निभाने का तालमेल जो समझा दिया था.

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