लखनपाल ने कहा, ‘‘तुम मेरे दामाद हो. मैं तुम से अपनी बेटी की हरकतों के लिए माफी मांगता हूं. किंतु बेवफाई मेरी बेटी ने नहीं, तुम्हारी पत्नी ने की है. शादी के बाद बेटी पराई हो जाती है. मैं अपनी बेटी तुम्हें सौंप चुका हूं और इस बात को 15 वर्ष हो चुके हैं. तुम्हारी सास अब इस दुनिया में नहीं है. नहीं तो उस से कहता बेटी से बात करने को. मैं पिता हूं, मेरा इस मसले को ले कर बेटी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा. अपनी पत्नी को कैसे राह पर लाना है, उस के बहके हुए कदमों को कैसे संभालना है, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है. फिर भी तुम कहते हो, तो मैं उसे सम झाऊंगा.’’
रमेश को यहां से भी निराशा हाथ लगी. पिता ने अपनी बेटी को फोन पर सम झाया कि अपना घर, अपना पति, बच्चे, एक औरत के लिए सबकुछ होना चाहिए. तुम जिस रास्ते पर चल रही हो, वह विनाश का रास्ता है. अभी भी वक्त है, मृगतृष्णा के पीछे मत दौड़ो. लेकिन वासना में डूबा व्यक्ति कहां सम झ पाता है? विभा को सम झ में आ गया कि उस के पति को उस के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी है. उस ने अंतिम फैसले के उद्देश्य से सुमेरचंद को फोन लगा कर संबंधों की खुलती पोल के विषय में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘तुम मु झ से कितना प्यार करते हो?’’
‘‘बहुत.’’
‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’
‘‘मैं शादीशुदा हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. तुम भी शादीशुदा हो और एक बच्चे की मां. मेरी पत्नी को भी हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है.’’
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‘‘तुम अगर सच में मु झ से प्यार करते हो तो मेरे प्यार की खातिर छोड़ दो सबकुछ. मैं भी तुम्हारे लिए सब छोड़ने को तैयार हूं. भगा ले जाओ मु झे और कर लो मु झ से शादी.’’
‘‘मैं अपनी पत्नी और बेटियों को नहीं छोड़ सकता. हां, मैं तुम से प्यार करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’
‘‘जब शादी नहीं कर सकते, तो संबंधों को आगे बढ़ाया क्यों?’’
‘‘मैं ने शादी का कभी तुम से वादा नहीं किया. न हमारे बीच में कभी कोई शादी की बात हुई. संबंध रखना हो तो ठीक. अन्यथा ऐसे रिश्ते को समाप्त कर लो.’’
‘‘फिर मैं तुम्हारी क्या हुई? रखैल? मन बहलाने का साधन?’’
‘‘जैसा तुम सम झो. तुम्हारे लिए मैं अपना घर नहीं तोड़ सकता. दिल बहलाना और बात है, शादी करना बहुत बड़ी बात है.’’
‘‘तुम मु झे धोखा दे रहे हो?’’
‘‘मैं तुम्हें नहीं. अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं और तुम अपने पति को. जब तुम अपने पति की नहीं हुईं तो मैं तुम से कैसे वफा की उम्मीद रखूं. मैं तुम से अभी और इसी वक्त संबंध तोड़ता हूं,’’ इतना कह कर सुमेरचंद ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.
उफ, यह मैं ने क्या कर दिया? बहके हुए जज्बातों ने पूरे जीवन पर ग्रहण लगा दिया. कैसे सामना करूंगी अपने पति का. एक गलत कदम ने अर्श से फर्श पर ला पटका मु झे. न मैं अच्छी मां बन सकी, न अच्छी पत्नी. अब क्या होगा? कौन सी विपत्ति आती है, इस का, बस, इंतजार किया जा सकता है. पति के पास मेरी चरित्रहीनता के पूरे सुबूत हैं. यह क्या कर दिया मैं ने. अपने हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी. अपने हाथों से अपना ही घर जला दिया.
तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो.’’
दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘पति छोड़ दे, तो मैं तुम्हें रखने को तैयार हूं.’’
उस ने फोन जोरों से पटक दिया और चीखी, ‘‘मैं वेश्या नहीं हूं.’’
‘‘तो क्या हो?’’ आवाज की दिशा में पलट कर देखा विभा ने. सामने रमेश खड़ा था और पूछ रहा था, ‘‘तो क्या हो?’’
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विभा पति के पैरों पर गिर गई. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मु झे बहका दिया था सुमेर ने. माफ कर दो मु झे.’’
‘‘तुम कोई दूध पीती बच्ची नहीं हो, जो किसी ने कहा और तुम ने मान लिया,’’ रमेश ने क्रोध से चीख कर कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अपनी मरजी से किया.’’
‘‘मु झे माफ कर दीजिए. मु झे एक मौका दीजिए,’’ विभा गिड़गिड़ाई.
‘‘तुम ने मेरे घर को अपनी ऐयाशी का अड्डा बना दिया. मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता.’’
‘‘अपने बेटे की खातिर मु झे माफ कर दीजिए.’’
‘‘बेटे का खयाल होता तो ऐसी गिरी हुई हरकत न करतीं.’’
‘‘मैं आप से माफी मांगती हूं. आप के पैर पड़ती हूं.’’
‘‘तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है. तुम ने बेवफाई की है मु झ से. तुम ने प्रेम की, घर की, परिवार की मर्यादा को नष्ट किया है. तुम क्षमा के योग्य नहीं हो.’’
विभा क्षमा मांगती रही. रमेश उसे खरीखोटी सुनाता रहा. तभी बेटा स्कूल से आ गया. पिता को गुस्से में और मां को रोते देख बेटा रोने लगा, ‘‘क्या हुआ मम्मी? पापा आप क्यों गुस्से में हैं?’’
बेटे का चेहरा सामने पड़ते ही रमेश का गुस्सा शांत हो गया. विभा ने बेटे को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से कहो, मु झे माफ कर दें. पत्नी को न सही, मां को ही माफ कर दें.’’ मां को रोते देख बेटे ने अपने पिता से रोते हुए कहा, ‘‘पापा, मम्मी को माफ कर दीजिए. अगर आप का गुस्सा शांत न हो तो मेरी पिटाई कर दीजिए. मु झे डांट लीजिए.’’
बेटे को रोता देख पिता पिघल गया. विभा बेटे को खाना खिलाने ले गई. थोड़ी देर बाद चाय बना कर पति को दी. रमेश ने कहा, ‘‘हमारा बेटा हम दोनों के बीच सेतु है. एक छोर पर तुम, दूसरे छोर पर मैं. मैं तुम्हें बेटे की खातिर तलाक नहीं दूंगा. क्योंकि मैं जानता हूं बेटे को हम दोनों की जरूरत है. लेकिन, मैं तुम्हारी बेवफाई भूल नहीं सकता. मैं तुम्हारी चरित्रहीनता को चाह कर भी नहीं भूल पाऊंगा. हम एक ही छत के नीचे तो रहेंगे, लेकिन वह प्रेम, वह विश्वास अब संभव नहीं है मेरे लिए.’’
विभा फिर से घर को घर बनाने में जुट गई. गुजरते वक्त के साथ मन के भेद मिटे तो सही काफी मात्रा में, लेकिन रमेश के मनमस्तिष्क में एक दरार बन गई हमेशा के लिए.
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