Love Story : प्रीत का गुलाबी रंग

Love Story : विहान और लता की शादी को कई साल हो गए थे मगर दोनों संतानसुख से विमुख थे. घरपरिवार और रिश्तेदारों से लता को ताने मिलने लगे. विहान और लता ने हर किस्म की इलाज करवाई. आईवीएफ प्रोसेस से भी गुजरे मगर कोई फायदा नहीं हुआ. जब हर दवा नाकामयाब होने लगी तो दोनों ने थकहार कर एक फैसला किया और फिर…

एक बच्चे की चाह में लता ने विहान को कितना गलत समझ लिया था. कैसे उस का विहान पर से भरोसा उठ गया था, वह भी बिना असलियत का आईना देखे. अब क्या करे वह, कहां जाए…

अगले दिन, अगली सुबह लता के लिए अभी भी अमावस की रात समान ही थी. विहान जो उस की जीने की वजह था उसी ने लता को जीतेजागते मौत के मुंह तक पहुंचा दिया. लता के जिस्म का पोरपोर दुख रहा था. वह चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी, बेतहाशा रोना चाहती थी पर उस के तो जैसे आंसू ही सूख गए हों.

पूरी ताकत के साथ लता ने खुद को बेड से उठाया. शौवर के नीचे अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया. न जाने कितनी ही देर पानी की बौछारें उस पर गिरती रहीं पर एक प्रतिशत भी उस के भीतर उठने वाली अग्नि को बुझा ना सकीं.

बड़ी मुश्किल से वो सामान्य दिखने का प्रयास कर रही थी. जैसे ही विहान फैक्टरी के लिए निकला उस के थोड़ी ही देर बाद वह भी कार ले कर निकल गई. आज कार वह खुद ही ड्राइव कर रही थी.

लगभग घंटेभर बाद लता उसी घर के आगे खड़ी थी जहां कल उस की दुनिया वीरान होते लगी थी. वह डोरबैल बजाना चाह रही थी पर उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. उस का दिल इतनी जोर से धड़क रहा था जैसे पसलियां तोड़ कर बाहर आ जाएगा. उस के पांव जैसे उस का साथ छोड़ चुके थे. फिर भी उस ने एक कदम आगे बढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे उस का वह कदम मनों भारी हो गया हो. उस ने डोरबैल बजाने की पूरी कोशिश की पर उस का हाथ ही नहीं उठा.

कौन दरवाजा खोलेगा, कैसे सामना कर पाएगी वह उस औरत का उस बच्चे का.

‘‘नहीं… नहीं… मैं नहीं देख पाऊंगी, उफ यह कैसी दुविधा है.’’

अंत में लता जल्दी से उलटे पांव वापस अपनी कार में आ बैठी. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. कुछ देर बाद उस की रुलाई फूट ही पड़ी. उस ने अपना चेहरा स्टेयरिंग पर टिका दिया.

‘‘उफ, विहान, यह कौन से मोड़ पर खड़ी हूं मैं आज, तुम्हारी वजह से सिर्फ तुम्हारी वजह से, मेरी सांसें घुट रहीं हैं, यह क्या किया तुम ने? ऐसा क्यों किया?’’

कुछ संभली लता तो एक बार फिर उस ने घर के दरवाजे की ओर देखा और एक ठंडी सांस भर कर कार स्टार्ट कर दी.

घर वापस आने पर लता ने अपने कमरे में विहान की अलमारी को बुरी तरह खंगाल डाला. हरेक दराज का 1-1 कोना उस ने बारीकी से छाना. तभी अलमारी के सब से ऊपर वाले खाने के एक कोने में उसे एक वालेट नजर आया. उस ने वालेट को उठा कर अच्छी तरह से देखा तो उसे याद आया कि यह तो वही वालेट है जो विहान के लंदन से छुट्टियों में आने पर मौल में शौपिंग के दौरान लता ने विहान के लिए खरीदा था और पैकिंग करते हुए उस के एक प्यारे से लव नोट के साथ उस के बैग में रख दिया था.

लता ने धीरे से वालेट खोला. उस में उस का लिखा हुआ नोट आज भी रखा हुआ था. लता ने उसे दोबारा खोल कर पढ़ा. नोट में लिखा था, ‘‘सरप्राइज इसे कहते हैं और कभीकभी ऐसे भी दिए जाते हैं, तुम्हारी मैडम लता.’’

विहान तो अकसर मैडम कहता आया था प्यार से लता को और लता को भी उस के मुंह से यह सुनना अच्छा लगता था. पूर्व के वे हंसतेखिलखिलाते पल उस की यादों की पगडंडी से गुजरे तो उस हालत में भी लता के चेहरे पर फीकी सी मुसकान खेल गई.

लता ने फिर वालेट को और खोला तो उस के अंदर कुछ पाउंड्स, एक बिल जो किसी हौस्पिटल का था, 3-4 शौपिंग बिल्स और वालेट के सीक्रेट कंपार्टमैंट में से एक तसवीर मिली जिस ने लता के वजूद को हिला कर रख दिया.

एक तसवीर जिस में विहान एक लड़की के साथ है और लता को पहचानने में एक पल का वक्त नहीं लगा कि यह वही लड़की जो कल विहान के साथ थी. दोनों किसी चर्च के बाहर खड़े थे. वह लड़की आगे खड़ी थी और सफेद गाउन में थी. विहान एकदम उस के पीछे था और उस ने उस लड़की के कंधे पर हाथ रखा हुआ था. अचानक लता ने तसवीर पलटी तो पीछे दोनों के नाम लिखे थे, ‘‘विहान ऐंड तारा.’’

लड़की का नाम तारा था और इसी के साथ एक तारीख लिखी थी और लिखा था, ‘‘वैडिंग डे,’’ पर इस शब्द पर बुरी तरह से पैन चलाया हुआ दिख रहा था.

लता के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया बस आंखों से निरंतर आंसुओं की धारा बहती रही. कुछ देर वह तसवीर को देखती रही फिर उस ने आंसू पोंछे और तसवीर वालेट में वापस रख दी पर इस बार सीक्रेट कंपार्टमैंट में नहीं रखी और वालेट को अलमारी में यथास्थान रख दिया.

‘‘यह कैसी पहेली है? विहान और तारा, क्या दोनों ने लंदन में शादी? नहींनहीं, ये मैं क्या सोचने लग गई पर इस में गलत क्या है. वह तारा का ही बच्चा था और विहान को डैड पुकार रहा था तो ज़ाहिर है कि विहान ही उस का पिता है. उफ, इतना बड़ा धोखा, अगर विहान अपना अलग ही परिवार बसा चुका था तो मु?ा से इस शादी के क्या माने हैं? क्या इसलिए ही वह पिता बनने को इतना आतुर नहीं दिखता क्योंकि संतान सुख से तो केवल मैं वंचित हूं, वह तो पिता होने का सुख भोग ही रहा है.’’

विहान के भोलेभाले से चेहरे के नकाब के पीछे यह घिनौना रूप होगा, यह तो लता सोच भी नहीं सकती थी पर विहान ने ऐसा क्यों किया, बहुत सोचने के बाद भी लता इस सवाल का जवाब नहीं खोज पा रही थी.

तभी लता का मोबाइल बज उठा. उस ने अलमारी बंद की और मोबाइल उठाया. विहान की कॉल थी. उस का उस वक्त बिलकुल दिल नहीं चाह रहा था विहान से बात करने का. उस ने मोबाइल पलंग की साइड टेबल पर रख दिया.

थोड़ी देर बाद मोबाइल फिर बज उठा. इस बार लता ने कुछ पल मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी और विहान की हंसती हुई तसवीर को देखा और कौल अटैंड कर ही ली.

‘‘लता, क्या हुआ, तुम कौल क्यों नहीं पिक कर रही थीं?’’

विहान की आवाज सुन कर लता का दिल जैसे एकदम से पिघल गया हो. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उस की और तारा की वह तसवीर उस की आंखों के आगे घूम गई. वह कुछ कहतेकहते खामोश हो गई.

‘‘लता, क्या हुआ? कुछ बोल नहीं रहीं. तबीयत तो ठीक है?’’ विहान का स्वर अब चिंतित हो उठा था.

‘‘कुछ नहीं विहान, मैं ठीक हूं, हां बोलो, कैसे कौल की?’’ लता ने जैसे समूची ताकत जुटा कर जवाब दिया हो.

‘‘दरअसल, मुझे औफिस से ही मुंबई के लिए निकलना होगा, बहुत जरूरी मीटिंग है, 3-4 दिन लग जाएंगे, सूटकेस पैक कर के यहीं भिजवा देना.’’

लता के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान फैल गई पर ऊपरी तौर पर उस ने कुछ जाहिर नहीं किया. विहान की जरूरी मीटिंग अब वह समझ रही थी.

‘‘ठीक है विहान,’’ उस ने ठंडे से स्वर में कहा.

‘‘हैं, बस ठीक है, कहां तो इतना शोर मचा देती हो मेरे कहीं जाने पर कि वहां से यह लाना, वह लाना, न हो तो मैं भी साथ ही चलती हूं, तुम फाइलें देखना, मैं तुम्हें देखूंगी और आज यह सूखा सूखा सा ठीक है, क्या बात है भई…’’ विहान ने तो प्यारभरी शिकायतों की झड़ी सी लगा दी थी.

इस वक्त लता बिलकुल कमजोर पड़ कर रोना नहीं चाहती थी पर उस का दिल उस का साथ नहीं दे रहा था. उस ने बहुत मुश्किल से अपनेआप को कुछ संभाला और बोली, ‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, बस जरा सा सिर में दर्द था.’’

‘‘सिरदर्द, बुखार तो नहीं? मांजी और मम्मीपापा भी यहां नहीं, तबीयत ज्यादा खराब हो तो कहो, जाना कैंसल कर दूं?’’

‘‘अरे नहीं, बस सिरदर्द है और कुछ नहीं, मैं सूटकेस भिजवाती हूं, तुम बेफिक्र हो कर जाओ, मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

‘‘चलो, ठीक है फिर,’’ इस के साथ ही उधर से कौल कट गई.

विहान मुंबई चला गया तो रात को खाली बैडरूम लता को चुभने लगा. इस वक्त विहान कहां होगा वह इस की कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. उस ने पूरी रात आंखोंआंखों में ही काट दी.

सवेरे उठी तो उस दिन काफी हद तक लता खुद को मानसिक तौर पर तारा से मिलने के लिए तैयार कर चुकी थी. दोपहर होतेहोते लता एक बार फिर उसी घर के आगे खड़ी थी जहां इन दिनों तारा रह रही थी और इस वक्त शायद अंदर विहान भी हो.

लता सधे कदमों से उतरी और धीमे से चलते हुए घर के दरवाजे के सामने पहुंची और डोरबैल बजा दी.

दरवाजा खुलने में लगने वाले कुछ पल भी लता को सदियों समान लग रहे थे. उस ने दोबारा बैल बजानी चाही पर उसी वक्त दरवाजा खुला. सामने वही वृद्ध महिला खड़ी थीं.

‘‘यस, हू आर यू? कौन हो तुम?’’ महिला ने धीरे से पूछा.

‘‘क्या विहानजी यहीं रहते हैं?’’ लता ने कुछ सकुचाते हुए पूछा.

‘‘हाउ डू यू नो विहान? तुम विहान को कैसे जानती हो?’’ महिला अब कुछ परेशान सी नजर आने लगी थी.

लता का दिल तो चाहा अभी उन्हें बता दे कि वह कौन है पर वह शांत ही रही.

‘‘आंटीजी, कल विहानजी का यह पर्स हमारी कैब में छूट गया था,’’ लता ने विहान का वालेट वृद्ध महिला के सामने करते हुए कहा.

महिला कुछ भी न समझने वाली निगाहों से लता को देखती रही.

‘‘दरअसल, आंटी कल विहानजी जिस कैब में आए थे उसे मेरा भाई चलाता है, कल शायद गलती से विहानजी का यह पर्स कैब में ही रह गया. कल मेरे भाई की तबीयत अचानक कुछ खराब हुई तो यहां से सीधा घर ही आ गया और कैब से उतरते समय उस की नजर इस पर्स पर पड़ी तो उस ने इसे उठा कर खोल कर देखा.

अंदर विहानजी का फोटो देख कर वह समझ गया कि उन का पर्स गलती से गिर गया है, उस ने मुझे पता बताया और जिद कि मैं आज ही यह पर्स विहानजी तक पहुंचा दूं. फोटो के पीछे नाम लिखे हुए हैं, उसी से विहानजी का नाम पता चला. आप पर्स देख लीजिए. सब ठीक है न…’’ लता खुद न जान सकी कि वह इतना सब कैसे कह गई.

महिला ने लता के हाथ से वालेट लिया और खोल कर देखा. अंदर विहान और तारा की तसवीर देख कर उन्हें कुछ संतुष्टि सी हुई और उन्होंने लता से अंदर आने के लिए कहा.

लता कुछ झिझकती सी उन के पीछे अंदर चली गई. अंदर पहुंचने पर देखा कि एक बड़ा कमरा है जिस में सामने दीवार पर टीवी स्क्रीन लगी है और एक सोफासैट है और एक कोने में एक टेबलकुरसी रखी थी. एक तरफ परदा था जो उस के पीछे एक और कमरे के होने का एहसास करवा रहा था. इसी बड़े कमरे के एक तरफ झने से हलके हरे रंग के परदे के पीछे से छोटी सी रसोई बनी हुई दिख रही थी.

लता ने चारों तरफ अच्छे से निगाहें घुमा कर देखा पर उसे किसी कोने में विहान और तारा की कोई तसवीर न दिखाई दी.

तभी महिला ने उस की आगे रखी छोटी सी सैंटर टेबल पर पानी का गिलास रखते हुए कहा, ‘‘थैंक यू बेटा, तुमने यह ईमानदारी दिखाई, आजकल तो धोखे का ही टाइम है, किसी से कोई होप नहीं है,’’ यह कहते हुए महिला ने एक गहरी सांस ली फिर लता की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘मेरा नाम शरन है, सौरी, मैं भूल गई, तुम ने क्या नाम बताया बेटा अपना?’’

लता को याद आया कि अभी तक उस ने अपना नाम तो बताया ही नहीं. अत: उस ने जल्दी से कहा, ‘‘रश्मि.’’

लता ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की. उस ने शरन से पूछा, ‘‘आंटी, आप यहां की लगती नहीं, मेरा मतलब है कि आप लोग क्या कहीं भारत के बाहर से…?’’

‘‘लंदन से आए हैं हम लोग,’’ उन्होंने धीमे से जवाब दिया.

इस से पहले कि लता कुछ और पूछती उसे परदे के पीछे वाले कमरे से ग्रैंडमां पुकारते हुए किसी बच्चे की आवाज सुनाई दी. यह शायद उसी बच्चे की आवाज थी जो उस दिन विहान को डैड पुकार रहा था. लता के दिल की धड़कनें तेज हो गईं थीं.

शरन जल्दी अंदर जाना चाह रही थीं कि तभी उन्हें ध्यान आया कि लता उन के सामने बैठी है. वे उठीं और जल्दी से अंदर के कमरे में जाने की कोशिश में लड़खड़ा सी गईं तो लता ने झट से उन्हें सहारा दिया. वे मुसकरा कर रह गईं और उन्होंने लता को बैठने के लिए कहा. वे अंदर गईं और कुछ ही पलों में बाहर आ गईं. लता ने देखा तो उन के हाथ में कुछ नोट थे.

‘‘बेटा, आप का बहुतबहुत थैंक यू, यह बस मेरी तरफ से,’’ उन्होंने लता को वे नोट थमाने चाहे.

‘‘अरे आंटी, यह क्या कर रही है,’’ लता ने उन का हाथ थाम लिया.

तभी अंदर से दोबारा आवाज आई. अब की बार शरन को अंदर जाना ही पड़ा.

लता का दिल चाह रहा था कि अगले ही पल वह भी अंदर पहुंच जाए पर उस के पांव तो जैसे जमीन से जुड़ गए थे. कुछ मिनट बाद शरन बाहर आईं तो लता ने उन से जाने की इजाजत मांगी.

शरन ने एक बार फिर नोट वाला हाथ आगे बढ़ाया तो लता ने न में सिर हिला दिया और तेजी से कमरे के दरवाजे से बाहर चली गई.

घर वापस आई तो उस का सिर फटने को हो रहा था. तेज दर्द उसे बेचैन कर रहा था. सिरदर्द की गोली खा कर उस ने खुद को बैड पर पटक दिया. उसे पता ही नहीं चला कि कब उस की आंखें मुंदती चली गईं.

लता जिस वक्त उठी उस वक्त रात के 9 बज रहे थे. उस ने मोबाइल देखा तो विहान की 3 मिस्ड कौल्स आई थीं. वह उन्हें अनदेखा करती हुई बालकनी में आ खड़ी हुई. ठंडी हवाओं ने उस के चेहरे को सहलाया तो लता ने आंखें बंद कर लीं. कुछ देर वह वहीं खड़ी रही.

वापस अंदर कमरे में आई तो कपड़े बदल कर फिर लेट गई. यह पहेली वह सुल?ा नहीं पा रही थी पर आज उस घर तारा को न पा कर उसे दुख भी बहुत हुआ. उसे उस का शक यकीन में बदलता दिख रहा था. हो सकता था कि आज की तारीख में विहान और तारा एकसाथ ही हों.

यह विहान ने उसे जीवन के किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जो वह इस तरह अपने ही पति की जासूसी जैसा काम करने को मजबूर हो गई है. वह बिलकुल उस घर में दोबारा जाना नहीं चाहती थी पर विहान की इस सचाई से परदा कौन उठाएगा? कौन बताएगा उसे कि जिस जाल में वह खुद को फंसा पा रही है आखिर वह किस ने बुना है?

अगली सुबह गरम चाय का घूंट उस के गले से नीचे उतरा तो उसे लगा जैसे उसे उबकाई आ जाएगी. वह बाथरूम की ओर भागी. बाहर आई तो उसे अपनी तबीयत बिलकुल सही महसूस नहीं हो रही थी. जिस्म निढाल हुआ जा रहा था. उस ने न चाहते हुए भी वर्षा को कौल कर दी.

वर्षा ने उसे आराम करने की हिदायत देने के साथ जल्द ही उस के पास पहुंचने की बात की. दोपहर में कबीर के साथ वर्षा लता के पास आई तो लता ने झट से कबीर को गोद में खींच लिया.

‘‘अरे, क्या कर रही हो भाभी, लेटी रहो न और यह क्या हुआ तुम्हें. चेहरा कैसे पीला पड़ा हुआ है. बुखार है क्या?’’ वर्षा लता को देख कर घबरा सी गई.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है बस बहुत कमजोरी महसूस हो रही है, आराम करूंगी तो बिलकुल ठीक हो जाऊंगी.’’

‘‘अच्छा, फिर मुझे क्यों बुलाया, जानती हूं तुम्हें मैं,जब भी तबीयत खराब होती है ऐसी ही बातें करती हो, डाक्टर के पास जाने के नाम से ही तुम्हारी तबीयत आधी ठीक हो जाती है पर आधी या पूरी, तबीयत जैसी भी हो रही हो, डाक्टर को तो दिखाना ही है, चलो उठो, भैया को फोन करती हूं अभी.’’

‘‘नहींनहीं, विहान को फोन मत करना, आज उन की बहुत जरूरी मीटिंग है, मैं चल रही हूं,’’ लता जल्दी से बोली. वह अभी भी विहान से बात करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी.

‘‘उफ, भैया की इतनी फिक्र, थोड़ा खुद पर भी ध्यान दे लो, चलो जल्दी कपड़े बदलो,’’ वर्षा ने पूरे अधिकार से कहा.

उस का ऐसा प्यार देख कर लता फिर रोने को हो आई. वर्षा, मांजी, सब कितना चाहते हैं उसे. इन लोगों से तो वह अलग होने के बारे में सोच भी नहीं सकती है.

लता को सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या होगा जब सब को विहान की असलियत पता लगेगी. सब के सामने तो वह एक आदर्श बेटा, भाई और पति के रूप में दिखाई देता है. ये लोग तो उस के इस कर्म से बिलकुल अनजान हैं.

‘‘अरे, कहां खो गई, आ जाएंगे भैया भी बस 1-2 दिन की बात तो है,’’ वर्षा ने लता को शून्य में गुम होते देख कहा.

डाक्टर के पास से वापस आने पर लता जहां पहले से ज्यादा खामोश हो गई थी वहीं वर्षा के तो जैसे खुशी से पांव ही जमीन पर न थे.

‘‘भाभी, भाभी, भाभी, यह क्या किया तुम ने, न मुझे मांजी को फोन करने दिया, न भैया को, आखिर इस खबर का हम सभी को कितनी बेचैनी से इंतजार था.’’

लता बस खामोशी से वर्षा को देखे जा रही थी.

‘‘कबीर, अब जल्दी से कबीर का भाईबहन आएगा, वाह, कितना मज़ा आएगा कबीर को अब यहां. है न बोलो, बोलो?’’ वर्षा कबीर को गोद में उठा कर बहुत ज्यादा खुश थी.

लता अब तो जैसे बिलकुल ही सोचनेसमझने की हालत में नहीं थी. जिस घड़ी का उसे और विहान को न जाने कब से इंतजार था वह खुशी की खबर देने का वक्त आया भी तो तब जब लता विहान को खुद से अलग मानने लगी थी. आज अगर सब पहले सा होता तो वह और विहान खुशी से पागल हो गए होते.

तभी वर्षा ने विहान को फोन लगा दिया, ‘‘और भैया, कब वापस आ रहे हो… हांहां, भाभी की तबीयत बिलकुल ठीक है, मैं तो बस ऐसे ही मिलने चली आई थी, क्या आप को अभी 3-4 दिन और लग सकते हैं? ठीक है, लो भाभी से बात करो,’’ वर्षा ने मोबाइल लता के कान से सटा दिया.

मजबूरन लता को भी फीकी मुसकराहट के साथ मोबाइल पकड़ना पड़ा.

वर्षा कबीर के साथ खेलतेखेलते बाहर चली गई.

‘‘हां विहान, कैसे हो? हां तबीयत बिलकुल सही है मेरी, हां अब वर्षा रहेगी मेरे पास, जब तक तुम लौट नहीं आते, ओके बाय,’’ लता ने कौल काट दी और मोबाइल ले कर बाहर आ गई.

‘‘हां भाभी, हो गई बात? क्लीनिक से तो तुम ने बताने नहीं दिया तो यहां से फोन लगा दिया मैं ने. अब तो बता दिया, भैया तो खुशी से झूम गए होंगे, बताओ न?’’

‘‘अभी नहीं बताया,’’ लता उसे मोबाइल देती हुई बोली.

‘‘हैं… अच्छा, सामने ही बताओगी, यह भी सही है. अच्छा देखो, यह अमोल के दोस्त की शादी थी, वहां की तसवीरें,’’ कह वर्षा बीती रात के फंक्शन की तसवीरें दिखाने लगी. तभी कबीर रोने लगा तो वर्षा झट से उठ कर उस के पास चली गई.

मोबाइल की गैलरी खुली हुई थी. लता बेखयाली में तसवीरें स्क्रौल करे जा रही थी. अचानक उस का हाथ जैसे एक तसवीर पर जड़ हो कर रह गया. विहान और तारा की तसवीर. यह तो वही तसवीर है पर यह क्या यह तसवीर पूरी थी. तारा के हाथ में किसी और का हाथ था और वही उस का जीवनसाथी था शायद. तसवीर में वह बहुत प्यार से तारा को देख रहा था और जिस तरह विहान तारा के पीछे था उसी तरह एक और लड़का दूसरी तरफ खड़ा था जिस ने दोनों हाथों से एक खूबसूरत सजा हुआ बोर्ड उठा रखा था. बोर्ड पर लिखा था, ‘‘रिचर्ड वेड्स तारा.’’

वर्षा जैसे ही लता के पास आई, लता ने जल्दी से पूछा, ‘‘वर्षा, यह किस का फोटो है? यह विहान किन लोगों के साथ है?’’ लता बेसब्र हो उठी थी.

‘‘ये, ये लोग तो भैया के दोस्त हैं, यह कैविन, यह रिचर्ड और यह तारा. पता है भाभी तुम्हें रिचर्ड और तारा की लव मैरिज है,’’ वर्षा तसवीर देखती हुई बोली.

उस के बाद वह और भी न जाने कितनी बातें करती रह गई पर लता को जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

तो फिर तारा यहां भारत में क्या कर रही है और रिचर्ड कहां है? अगर यह बच्चा रिचर्ड का है तो फिर वह विहान को डैड क्यों कह रहा था?’’

तभी कबीर पापा पापा कहते हुए उन दोनों के पास चला आया.

‘‘अपने पापा को याद कर रहा है,’’ वर्षा हंसती हुई बोली.

‘‘अरे, बस अभी पापा लेने आ जाएंगे हमारे कबीर को,’’ लता प्यार से बोली.

‘‘अरे नहीं,अमोल आज नहीं आएंगे, अब तो जब भैया आएंगे मैं तभी जाऊंगी, तुम्हारी तबीयत सही नहीं है.’’

‘‘वर्षा रानी, मैं बिलकुल ठीक हूं, क्यों जीजाजी के गुस्से का शिकार हमें बनवा रही हो,’’ लता ने वर्षा से चुहल करते हुए कहा, ‘‘वर्षा, यकीन करो, मेरी तबीयत अब बिलकुल ठीक है.’’

‘‘चली जाऊं, भैया आ रहे हैं क्या?’’ वर्षा उसे छेड़ते हुए बोली.

लता ने भी खुल कर हंसी में उस का साथ दिया.

‘‘अच्छा, वर्षा वह तसवीर सैंड करना जरा मुझे, वह विहान के फ्रैंड्स वाली, विहान ने तो अपना यह ग्रुप कभी मुझे दिखाया ही नहीं, लौटने पर खबर लेती हूं तुम्हारे भैया की,’’ लता ने थोड़े से बनावटी गुस्से से कहा.

अगले दिन सवेरे वर्षा चली गई तो लता एक बार फिर तारा के घर पहुंची.

शरन ने दरवाजा खोला तो लता ने सीधा मोबाइल उन के आगे किया.

शरन ने तारा और रिचर्ड की तस्वीर देखी तो बेहद हैरान हुई.

‘‘यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया? कौन हो तुम?’’ शरन का लहज अब गुस्से में बदल गया था.

‘‘अंदर आ जाइए आंटी, यहां दरवाजे पर खड़े हो कर बात करना सही नहीं है,’’ और लता ही शरन को पकड़ कर धीरेधीरे अंदर ले आई. लता ने उन्हें सोफे पर बैठा दिया.

‘‘अब बताइए आंटी, क्या यह तारा का पति है और अगर यह तारा का पति है तो तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है?’’ लता अब बेझिझक हो कर शरन से सवाल कर रही थी.

‘‘तुम कौन होती हो ये सब जाननेपूछने वाली और सब से पहले यह बताओ कि यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया?’’ शरन अभी भी गुस्से में थी.

‘‘मैं विहान की पत्नी हूं, लता,’’ ये कहने के साथ ही लता भी उन के साथ सोफे पर बैठ गई.

शरन की जैसे समस्त हिम्मत जवाब दे गई हो.

‘‘आंटी, बताइए सच क्या है? अपनी खामोशी तोडि़ए और बताइए कि विहान की जिंदगी में ये सब क्या चल रहा है? वह अकेला नहीं है इस जीवन में, उस के साथ बहुतों की धड़कनें बंधी हैं, उन की मां हैं, उन की बहन और मैं उन की पत्नी. बताइए मुझे क्या रिश्ता है तारा और विहान का? क्या तारा आप की बेटी है? तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है? मुझे सारे सवालों के जवाब चाहिए आंटी,’’ लता शरन को देखती हुई बोली.

‘‘हां, तारा मेरी बेटी है,’’ शरन ने गहरी सांस ली और लता को सब बताना शुरू किया.

‘‘विहान जब लंदन आया था तब वह एक अपार्टमैंट में केविन और रिचर्ड के साथ रहता था. रिचर्ड मेरी फ्रैंड का बेटा था और तारा को भी चाहता था. मैं और रिचर्ड के घरवाले तारा और रिचर्ड की शादी करवाने के बारे में भी हम सोचते थे.’’

लता को बताते हुए लंदन का वह अतीत जैसे शरन की आंखों के आगे उतर आया था…

‘‘रीटा, अब जल्द ही तारा और रिचर्ड की मैरिज हो जाए तो अच्छा है. तारा के फादर की डैथ के बाद मैं बहुत अकेली हो गई हूं इसलिए अपनी ये रिस्पौंसिबिलिटी जल्दी पूरा करना चाहती हूं.’’

‘‘रिचर्ड ने तो जबसे तारा को लीना की पार्टी में देखा है तभी से उसे पसंद करने लगा है, अब बस हमें तो मैरिज की डेट फिक्स करनी है.’’

रीटा की बात सुन कर शरन काफी खुश

हों गई.

शाम में रिचर्ड तारा को ले जाने के लिए घर आया. तारा और रिचर्ड का मूवी जाने का प्लान था. उस दिन तारा बहुत सुंदर लग रही थी. दोनों खुशीखुशी घर से गए.

रात को जब तारा वापस आई तो कुछ चुप सी थी. अगले 3-4 दिन रिचर्ड भी घर नहीं आया तो शरन ने तारा से पूछा, ‘‘तारा व्हाट हैपेंड… तुम्हें क्या हुआ है, कुछ दिनों से इतनी उदास क्यों लग रही हो? क्या रिचर्ड से कोई फाइट हुई है?’’

तारा जवाब में खामोश ही रही.

शरन ने दोबारा पूछा तो तारा कुछ अनमनी और रोंआसी सी हो उठी.

‘‘मौम, जिस दिन मैं रिचर्ड के साथ मूवी देखने गई थी उस दिन वह मुझे एक होटल में ले गया था. वहां पर वह मेरे बहुत पास आने की कोशिश कर रहा था. मैं ने मना किया तो बोला कि अगर यहां रहकर भी तुम्हारे थौट्स इतने बैकवर्ड हैं तो मु तुम में कोई इंट्रैस्ट नहीं है, चलो घर चलें.’’

तारा रिचर्ड की बात सुन कर बहुत हर्ट हुई पर फिर भी उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘फौरन में रहने का यह मतलब तो नहीं न कि हम अपनी लिमिट क्रौस कर दें?’’

‘‘तारा, हमारी मैरिज होने वाली है, क्यों दूर कर रही हो खुद को मु?ा से, देखो खुद को आज कितनी ब्यूटीफुल लग रही हो.’’

रिचर्ड तारा के बहुत करीब आ चुका था. उस ने अपने हाथों में उस का चेहरा थाम लिया. तारा पिघलने लगी.

नदी का बांध टूट गया. बहाव क्षणिक था पर इतना तेज कि कुछ ही पलों में अपने साथ बहुत कुछ बहा कर ले गया.

शरन बहुत दुखी हुई पर तारा का उदास चेहरा देख कर उन्होंने अपने चेहरे के भाव बदले और तारा को अपने सीने से लगा कर प्यार से उसे सम?ाने लगी, ‘‘जो हुआ सो हुआ, मैं आज ही रीटा से तुम दोनों की मैरिज की बात करती हूं, अब तुम दोनों की मैरिज में देर नहीं होनी चाहिए. चलो अब अच्छी सी स्माइल दे दो मम्मी को.’’

अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई पर तारा को जल्द ही रिचर्ड की असलियत पता चल गई. वह एक ऐय्याश किस्म का लड़का था. रातों को नशे में लड़खड़ाता हुआ घर पहुंचता था और 1-2 बार तो तारा पर हाथ भी उठा चुका था. तारा उस के इस बिहेवियर से बहुत परेशान हो चुकी थी.

शरन ने रीटा से बात की तो उस ने दो टूक जवाब दे दिया, ‘‘लुक शरन, मुझे तुम से ऐसी होप नहीं थी, तुम्हारे हसबैंड होंगे पुराने विचारों वाले इंडियन पर तुम तो यहीं की हो, यहां ये सब चलता रहता है. एक तो तुम ने बच्चों की मैरिज की इतनी जल्दी मचा दी और अब चाहती हो कि मेरा बेटा हर टाइम तुम्हारी बेटी का सर्वेंट बना रहे. वह क्या कहते हैं तुम्हारे हसबैंड के देश में… हां… जोरू का गुलाम,’’ रीटा व्यंग्यबाण छोड़ती हुई बोली.

‘‘कुछ बातें हर जगह बुरी लगती हैं फिर चाहे वह देश हो या विदेश, अपने बेटे को उस की गलती पर समझने की जगह उस की साइड ले रही हो जबकि तुम ख़ुद भी एक औरत हो,’’ शरन को रीटा से ऐसी उम्मीद नहीं थी.

अगले महीने पता चला कि तारा प्रैगनैंट है. उन्हीं 2-4 दिनों में रिचर्ड ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं. वह घर पर ही किसी लड़की को ले आया और तारा के सामने ही उस लड़की से करीबियां बढ़ाने लगा. तारा ने उस रात उस से बहुत झगड़ा किया पर रिचर्ड उस की कोई बात सुनने को तैयार न था बल्कि वह तो तारा को ही घर से बाहर निकालने पर आमादा हो गया.

तारा ने उसे बताया कि वह मां बनने वाली है तो रिचर्ड ने उस से कहा कि यह बच्चा उस का नहीं है, अगर वह शादी से पहले उस के साथ सो सकती है तो किसी और के साथ भी संबंध रख सकती है, ऐसे में वह यह मानने को बिलकुल तैयार नहीं था कि यह बच्चा उस का है.’’

‘‘आज के टाइम में यह पता लगाना कि यह बच्चा तुम्हारा है या नहीं, कोई मुश्किल बात नहीं है पर अब मैं खुद नहीं चाहूंगी कि मेरे बच्चे के बाप तुम कहलाओ,’’ तारा ने एक तमाचा उस के चेहरे पर जड़ दिया और रातोंरात घर छोड़ दिया. जल्द ही दोनों का तलाक हो गया. तारा शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो चुकी थी. डाक्टरों को कहना पड़ा कि उस का शरीर बच्चे को जन्म देने की ताकत नहीं रखता. पर तारा हर हाल में यह बच्चा चाहती थी पर अपनी कमजोरी के चलते मजबूर थी. उसे 7वें महीने में लेबर पेन उठ गया.

आधी रात का वक्त था. शरन अकेली तारा को संभाल नहीं पा रही थी और इन हालात में शरन कुछ सू?ा भी नहीं रहा था कि तभी रिचर्ड के अपार्टमैंट के 2 दोस्तों का खयाल आया. तारा की शादी में तो विहान उस का भी बहुत अच्छा दोस्त बन गया था.

शरन ने जल्दी से तारा के मोबाइल से विहान को कौल की. उस के बाद सबकुछ बहुत तेजी से हुआ. विहान केविन के साथ तुरंत तारा के घर पहुंचा और फिर हौस्पिटल ले जाने से ले कर और जौन के जन्म के बाद तारा के डिस्चार्ज होने तक वह साथ ही रहा.

शरन और तारा उस की एहसानमंद हो चुकी थी. इन सब के दौरान विहान और तारा की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी. शरन ने महसूस किया कि तारा विहान को पसंद करने लगी है. एक दिन विहान घर आया तो प्यार से जौन के साथ खेलने लगा कि तभी तारा ने पीछे से विहान के कंधे पर हाथ रख दिया.

विहान ने मुड़ कर देखा तो तारा की आंखें कुछ अनकहा सा बयां कर रही थीं. तारा विहान की ओर मुसकराती हुई देख रही थी. दोनों खामोश थे पर विहान तारा की आंखों की भाषा समझ चुका था.

‘‘नहीं तारा, यह नहीं हो सकता, मैं किसी और से प्यार करता हूं,’’ कहने के साथ ही विहान वहां से चला गया.

कुछ पलों को तो तारा का चेहरा मुर?ा गया पर जल्द ही उसे विहान का स्पष्ट होना बहुत भाया. उसे गर्व हो आया विहान पर जो उस ने कभी किसी भी तरह तारा का फायदा नहीं उठाना चाहा. अपनी एकतरफा मुहब्बत के बदले विहान की दूरी से तो अच्छा था कि वह उस के जैसे साफ दिल वाले मानस की सच्ची दोस्त बनी रहे. कल ही विहान से मिल कर बात करूंगी और उसे सारी बात सम?ाऊंगी, इसी सोच के साथ रात गुजरते ही अगली सुबह जैसे ही तारा विहान से मिलने पहुंची तो केविन ने उसे बताया कि वह तो बीती रात ही इंडिया चला गया है.

तारा ने उसे काफी बार कौल की पर विहान से बात न हो सकी. कई दिनों बाद तारा ने विहान को मैसेज किया.

‘‘डियर विहान,

‘‘क्या मुP से इतनी बड़ी गलती हुई कि तुम मुेेेेझे बिना बताए इंडिया चले गए? विहान, उस दिन वह बस मेरे दिल के जज्बात थे जो मेरी आंखों से झलक गए थे पर मेरा भरोसा करो, तुम मेरे लिए बहुत रिस्पैक्टेबल इंसान हो और सिर्फ मेरे लिए ही नहीं सभी के साथ तुम्हारा व्यव्हार इतना अपनापन और प्यार लिए होता है कि कोई भी तुम्हारी जादू भरी पर्सनैलिटी से दूर नहीं हो पाएगा और उन में से मैं भी एक हूं पर अब तुम्हारा प्यार मुझे दोस्ती के रूप में मिल जाए तो अपनेआप को बहुत खुश समझूंगी. बिलीव मी, मैं दोस्ती के खूबसूरत रिश्ते में हमेशा अपनी लिमिट का ध्यान रखूंगी.’’

तारा नहीं जानती थी कि इस वक्त विहान यह मैसेज पढ़ रहा था तो वह लंदन वापस जाने के लिए एअरपोर्ट ही पहुंचा था.

तारा वहां शरन से कुछ छिपा न सकी और उस ने शरन से यह भी कहा कि शायद मेरी बातों से विहान हर्ट हुआ हो और अब वह मुझ से दोस्ती भी न रखे.

शरन ने उसे समझाया कि ऐसा नहीं होगा. विहान बहुत बड़े दिल का मालिक है. वह उसे दोस्त के रूप में जरूर मिलेगा और शरन की बात सच साबित हुई.

विहान और तारा अच्छे दोस्त बन चुके थे. विहान ने तो तारा को यह भी बताया कि वह नहीं जानता कि लता भी उस से बहुत प्यार करती है और जब एअरपोर्ट पर उस ने आई लव यू कहा तो विहान तो बस जवाब में उसे देखता ही रह गया. वह जिंदगी का इतना प्यारा सच ऐसे अपने सामने आने की उम्मीद नहीं रखता था. उस वक्त वह लता को अपने दिल की बात भी नहीं बता सका कि वह भी उसे उतना ही चाहता है.

मगर विहान ने वर्षा को जरूर यह बात बताई तो वर्षा ने उस से कहा कि अरे भैया, मैं तो शुरू से ही जानती थी कि आप दोनों एकदूजे से बहुत प्यार करते हैं बस इजहार करने में मेरी सहेली बाजी मार गई.

‘‘मांजी और अंकलआंटी मान जाएंगे?’’ विहान ने वर्षा से पूछा.

‘‘सब ठीक होगा भैया, आप बस दिल लगा कर वहां पढ़ाई कीजिए. पर कैसे दिल लगाएंगे वह तो अब यहां है,’’ वर्षा ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा वर्षा,अब जब तक वापस नहीं आ जाता लता से जरा कम ही बात करूंगा. अब वापस लौटने पर ही लता के सामने ही बात करूंगा.’’

‘‘इस के लिए बिना हवाईजहाज के हवाहवाई बन कर मत आ जाइएगा.’’

विहान अकसर तारा और शरन को वर्षा की बातें बताता तो दोनों हंसतीहंसती दोहरी हो जातीं.

तारा अकसर विहान से कहती, ‘‘लता इज सच ए लकी गर्ल.’’

देखते ही देखते विहान के वापस जाने का दिन आ गया. विहान ने दोनों से वादा लिया कि कुछ ही दिनों में वर्षा की शादी है और वे शादी में शामिल होने के लिए इंडिया जरूर आएं.’’

तारा ने कहा कि वह जरूर आएगी वर्षा की शादी में भी और विहान की शादी में भी. जातेजाते तारा ने अपना और विहान का एक फोटो भी विहान को दिया पर शरन की तबीयत सही न होने की वजह से वे लोग शादी में शामिल न हो सके.

विहान और लता शादी के बाद बहुत खुश थे पर बीतते वक्त के साथ संतानसुख न पाने का दर्द लता और विहान को मायूस कर देता था.

एक दिन विहान हैरान रह गया जब तारा ने उसे अपने भारत आने के बारे में बताया. विहान ने महसूस किया कि तारा की आवाज में खुशी का कोई सुर न था. तारा ने उस से कहा कि हो सके तो विहान उस के लिए किसी किराए के घर का इंतजाम कर दे.

‘‘किराए का घर क्यों? किसी होटल में क्यों नहीं?’’ विहान कुछ न समझते हुए बोला.

‘‘मैं आने के बाद तुम्हें सब समझा दूंगी,’’ तारा का स्वर अभी भी उदासी लिए था.

एअरपोर्ट पर जौन ने जब उसे डैड कहा तो विहान ने घोर आश्चर्य के साथ तारा की ओर देखा.

‘‘प्लीज, प्लीज विहान, अभी जौन को कुछ मत कहना, वह वही कह रहा है जो मैं ने उसे बताया है,’’ विहान असमंजस में था.

विहान एक साधारण सा घर किराए पर लिया. वह वहीं सब को ले गया. जौन और शरन को घर छोड़ कर विहान ने तारा से कहा कि वह उस के साथ बाहर चले. तारा बिना किसी सवाल के उसी पल उस के साथ बाहर आ गई.

‘‘तारा, यह सब क्या है? तुम ने जौन को मुझे उस के पिता के रूप में दर्शाया हुआ है… तुम ने ऐसा क्यों किया है… जानती हो इस का रिजल्ट कितना खराब होगा, मेरी फैमिली तबाह हो सकती है…’’ विहान कुछ गुस्से से तारा को यह सब कह रहा था.

‘‘जौन को अपना लो विहान, प्लीज जौन को अपना लो, वह बहुत प्यारा और मासूम है, उसे एक फैमिली की जरूरत है, उसे प्यार की जरूरत है,’’ तारा फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘तारा, क्या हुआ है तुम्हें, क्या बात है, बताओ मुझे?’’ विहान बहुत हैरानपरेशान सा हो रहा था.

‘‘मैं मर रही हूं विहान, मुझे कैंसर है, डाक्टरों ने कहा है कि अब ज्यादा से ज्यादा 3 महीने हैं मेरे पास,’’ तारा बिलकुल खोखले स्वर में बोली.

‘‘तारा, क्या कह रही हो? तुम्हें कैंसर… ये सब कब… कैसे?’’ विहान को अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. हौस्पिटल चैकअप करवाने गई पर बहुत ज्यादा कमजोरी की वजह से मुझे चक्कर आ गया, मैं बेहोश हो गई. होश आया तो मैं हौस्पिटल में ही थी. डाक्टर ने वहीं मेरे कुछ टैस्ट करवाए. अगले कुछ दिनों में रिपोर्ट्स आईं तो पता चला कि मैं कैंसर की गिरफ्त में हूं और अब मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘यह सुन कर जौन का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया. मुझे अपनी नहीं उस की दुनिया वीरान होती नजर आ रही थी. मौम इस हालत में नहीं कि वह अब जौन की परवरिश कर सके. जौन जिस की लाइफ अभी शुरू हुई है वह कैसे जिंदगी जीएगा. उस ने बाप के प्यार को तो कभी महसूस ही नहीं किया था और अब मां का प्यार भी उस से दूर होने वाला था.

‘‘मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था. मैं तो जैसे अपनी सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. दिनरात जैसे हवा बन कर उड़ रहे थे और हाथ से वक्त रेत की तरह फिसल रहा था.

‘‘एक दिन जब तुम्हारा फोन आया तो मैं ने तुम्हारी आवाज में बहुत उदासी महसूस की. ख़ुद से ज्यादा तुम लता के लिए दुखी थे.

‘‘तब मुझे लगा कि अगर आप लोग जौन को अपना लो तो मेरे बच्चे को फैमिली और आप की फैमिली को एक बच्चा मिल जाएगा. विहान, बोलो न विहान, मेरे बच्चे को अपना लो, मुझे पता है मैं स्वार्थी हो रही हूं, पर मैं एक मां हूं, इस वक्त जौन से ज्यादा और उस के आगे कुछ नहीं सोच पा रही हूं. प्लीज विहान, मेरी हालत को समझ,’’ तारा रो रो कर बेहाल हुए जा रही थी.

विहान यह सब सुन कर खुद को बहुत अजीब स्थिति में पा रहा था. तारा के लिए वह बहुत दुखी हुआ पर जो वह चाह रही थी वह किसी भी हालात में किसी के लिए भी आसान परिस्थिति नहीं होने वाली थी. तभी जौन अपने नन्हेनन्हे कदमों से चलता हुआ विहान के पास आया और उस की टांगों को पकड़ लिया.

विहान ने उसे धीरे से अपनी गोद में उठा लिया. जौन का मासूम चेहरा उस का दिल पिघला रहा था कि तभी जौन के मुंह से निकला, ‘‘डैड.’’

विहान का मन जैसे भीग गया. उस ने जौन को गले से लगा लिया. यह देख कर तारा को ऐसा लगा जैसे तपती धूप में उसे किसी पेड़ की छाया मिल गई हो.

शरन खिड़की के एक कोने से खड़ी यह सब देख रही थी. आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘लता, विहान को कभी गलत मत सम?ाना, वह तुम से बहुत प्यार करता है, मैं समझती हूं कि इस वक्त विहान की लाइफ में जो कुछ हो रहा है वह एक बीवी होने के नाते तुम्हारे लिए बहुत तकलीफ देने वाला है पर बेटा इसमें विहान की कोई गलती नहीं है,’’ शरन रो रही थी और लता तो जैसे खुद को अपराधी महसूस कर रही थी.

कितना कुछ गलत सोच लिया था उस ने बिना असलियत का आईना देखे. उस का विहान पर से विश्वास कैसे डगमगाया यह सोच कर लता को खुद पर क्रोध आ रहा था. ऐसा लग रहा था उसे कि वह तो माफी मांगने ले काबिल नहीं रही.

तभी विहान का वहां प्रवेश हुआ, ‘‘लता, तुम यहां?’’ विहान हैरानी से भर उठा.

लता तेजी से उस के सीने से लग गई. कुछ देर तक दोनों के बीच सिर्फ निश्चल प्रेम के आंसुओं की धारा का प्रवाह होता रहा फिर लता ने ही कहा, ‘‘आंटी ने मुझे सब बता दिया है. आज कितने ऊपर उठ गए हो मेरी नजरों में मैं बयां नहीं कर सकती हूं. कल तक प्यार करती थी और अब एक महान इंसान को पूजने का दिल चाह रहा है.’’

‘‘लता, मैं तुम्हें कैसे सब बताऊं, बस बात करने का सही मौका तलाश रहा था और सोच रहा था कि न जाने तुम इसे किस तरीके से स्वीकार करोगी.’’

‘‘जो तुम ने किया और आगे भविष्य में जिस तरह से तुम एक मासूम को एक परिवार का प्यार देना चाहते हो तो तुम्हारी इस सोच से अलग मैं सोच सकती हूं क्या? क्या मुझ पर विश्वास नहीं था? एक बार कह कर तो देखते,’’ लता ने रोते हुए ये सब कहा.

‘‘बच्चा गोद लेने पर कभी तुम ने कोई प्रतिक्रिया नहीं…’’

लता ने उस के होंठों पर अपनी उंगली रख दी.

तभी शरन ने पूछा, ‘‘बेटा तारा कहां है?’’

‘‘हौस्पिटल में ही है आंटी, मैं आप को लेने ही आया था.’’

लता ने घबरा कर विहान की ओर सवालिया निगाहों से देखा.

‘‘तारा को मैं अपने डाक्टर दोस्त के भी दिखा रहा था पर वहां से भी उम्मीद नहीं जगी, तारा अभी उसी के हौस्पिटल में है. 3-4 दिन पहले ही उस ने पूरी तरह से तारा की हालत को देख कर जवाब दे दिया था इसलिए मैं तारा के साथ था.’’

यह सब सुन कर शरन के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. लता ने शरन को गले से लगा लिया.

उस दिन सूर्यास्त के वक्त तारा की जिंदगी का दीया भी सदा के लिए बु?ा गया. जौन को लता ने संभाल लिया था.

अगले वर्ष होली पर वर्षा जब सपरिवार अपने मायके आई तो कबीर आते  ही जौन और आयुषी के साथ खेलने में मस्त हो गया.

विहान और लता की बिटिया आयुषी अभी 3 माह की थी. वर्षा ने तो आयुषी को गोद में ले कर खूब प्यार किया.

तभी वैदेहीजी की आवाज सुनाई दी और सभी उस दिशा में देखने लगे.

‘‘जौन, कबीर इधर आओ,तुम लोगों की पिचकारियां भर गई हैं.’’

बच्चे भागते हुए चले गए. वर्षा भी आयुषी को गोद में ले कर वहीं चली गई. वहां सभी थे. वैदेहीजी, विवेक और अरुणाजी और उन के साथ बैठी थी शरन. बच्चों को देख कर सभी उनके साथ खेलने लगे.

तभी विहान ने लता के गालों को गुलाल से रंग दिया. लता ने हंसते हुए वहां से भागने की कोशिश की तो विहान ने उसे अपने करीब खींच लिया.

‘‘थैंक यू लता, जौन को इतने प्यार से अपनाने के लिए, तुम ने आंटी को भी वापस नहीं जाने दिया. थैंक यू सो मच मेरी मैडमजी हर कदम पर मेरा साथ देने के लिए, मेरी हर उलझन को सुलझाने के लिए, तुम्हारे बिना मेरा यह जीवन बिलकुल अधूरा है,’’ विहान भावुक हो उठा था.

लता की भी आंखें भर आई थीं. उस ने भी विहान के सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. उस के गालों पर प्रीत का गुलाबी रंग और अधिक गहरा हो उठा था.

Hindi Story : स्वयंवरा – मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

Hindi Story : टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.

सुलभा ने दीपिका के बारे में अचानक यह घोषणा कर दी थी कि उस के मांबाप को बिना किसी परिश्रम और दानदहेज की शर्त के दीपिका के लिए अच्छाखासा चार्टर्ड अकाउंटैंट वर मिल गया है. दीपिका के तो मजे ही मजे हैं. 10 हजार रुपए वह कमाएगा और 4-5 हजार दीपिका, 15 हजार की आमदनी दिल्ली में पतिपत्नी के ऐशोआराम के लिए बहुत है.

दीपिका के बारे में सुलभा की इस घोषणा ने अचानक ही मीता को अपनी बढ़ती उम्र के प्रति सचेत कर दिया. सब के साथ वह हंसीबोली तो जरूर परंतु वह स्वाभाविक हंसी और चहक अचानक ही गायब हो गई और उस के भीतर एक कशमकश सी जारी हो गई.

जब तक मीता इंस्टिट्यूट में पढ़ रही थी और टेक्सटाइल डिजाइनिंग की डिगरी ले रही थी, मातापिता उस की शादी को ले कर बहुत परेशान थे. लेकिन जब वह दिल्ली की इस फैशन डिजाइनिंग कंपनी में 4 हजार रुपए की नौकरी पा गई और अकेली मजे से यहां एक छोटा सा फ्लैट ले कर रहने लगी, तब से वे लोग भी कुछ निश्ंिचत से हो गए.

मीता जानती है, उस के मातापिता बहुत दकियानूसी नहीं हैं. अगर वह किसी उपयुक्त लड़के का स्वयं चुनाव कर लेगी तो वे उन के बीच बाधा बन कर नहीं खड़े होंगे. परंतु यही तो उस के सामने सब से बड़ा संकट था. नौकरी करते हुए उसे यह तीसरा साल था और उस के साथ की कितनी ही लड़कियां शादी कर चुकी थीं. वे अब अपने पतियों के साथ मजे कर रही थीं या शहर छोड़ कर उन के साथ चली गई थीं. एक मीता ही थी जो अब तक इस पसोपेश में थी कि क्या करे, किसे चुने, किसे न चुने.

ऐसा नहीं था कि कहीं गुड़ रखा हो और चींटों को उस की महक न लगे और वे उस की तरफ लपकें नहीं. अपने इस खयाल पर मीता बरबस ही मुसकरा भी दी, हालांकि आज उस का मुसकराने का कतई मन नहीं हो रहा था.

राखाल बाबू प्राय: रोज ही उसे कंपनी बस से रास्ते में लौटते हुए मिलते हैं. एकदम शालीन, सभ्य, शिष्ट, सतर्क, मीता की परवा करने वाले, उस की तकलीफों के प्रति एक प्रकार से जिम्मेदारी अनुभव करने वाले, बुद्धिजीवी किस्म के, कम बोलने वाले, ज्यादा सुननेगुनने वाले. समाज की हर गतिविधि पर पैनी नजर. आंखों पर मोटे लैंस का चश्मा, गंभीर सा चेहरा, ऊंचा ललाट, कुछ कम होते जा रहे बाल. सदैव सफेद कमीज और सफेद पैंट ही पहनने वाले. जेब में लगा कीमती कलम, हाथ में पोर्टफोलियो के साथ दबे कुछ अखबार, पत्रिकाएं, किताबें.

जब तक मीता आ कर उन की सीट के पास खड़ी न हो जाती, वे बेचैन से बाहर की ओर ताकते रहते हैं. जैसे ही वह आ खड़ी होती है, वे एक ओर को खिसक कर उस के बैठने लायक जगह हमेशा बना देते हैं. वह बैठती है और नरम सी मुसकराहट उस के अधरों पर उभर आती है.

ऐसा नहीं है कि वे हमेशा असामान्य सी बातें करते हैं, परंतु मीता ने पाया है, वे अकसर सामान्य लोगों की तरह लंपटतापूर्ण न व्यवहार करते हैं, न बातें. उन के हर व्यवहार में एक गरिमा रहती है. एक श्रेष्ठता और सलीका रहता है. एक प्रकार की बहुत बारीक सी नफासत.

‘‘कहो, आज का दिन कैसा बीता…?’’ वे बिना उस की ओर देखे पूछ लेते हैं और वह बिना उन की ओर देखे जवाब दे देती है, ‘‘रोज जैसा ही…कुछ खास नहीं.’’

‘‘मीता, कैसी अजीब होती है यह जिंदगी. इस में जब तक रोज कुछ नया न हो, जाने क्यों लगता ही नहीं कि आज हम जिए. क्यों?’’ वे उत्तर के लिए मीता के चेहरे की रगरग पर अपनी पैनी नजरों से टटोलने लगते हैं, ‘‘जानती हो, मैं ने अखबारों से जुड़ी जिंदगी क्यों चुनी…? महज इसी नएपन के लिए. हर जगह बासीपन है, सिवा अखबारों के. यहां रोज नई घटनाएं, नए हादसे, नई समस्याएं, नए लोग, नई बातें, नए विचार…हर वक्त एक हलचल, एक उठापटक, एक संशय, संदेह भरा वातावरण, हर वक्त षड्यंत्र, सत्ता का संघर्ष. अपनेआप को बनाए रखने और टिकाए रखने की जीतोड़ कोशिशें… मित्रों के घातप्रतिघात, आघात और आस्तीनों के सांपों का हर वक्त फुफकारना… तुम अंदाजा नहीं लगा सकतीं मीता, जिंदगी में यहां कितना रोमांच, कितनी नवीनता, कितनी अनिश्चितता होती है…’’

‘‘लेकिन आप के धीरगंभीर स्वभाव से आप का यह कैरियर कतई मेल नहीं खाता…कहां आप चीजों पर विभिन्न कोणों से गंभीरता से सोचने वाले और कहां अखबारों में सिर्फ घटनाएं और घटनाएं…इन के अलावा कुछ नहीं. आप को उन घटनाओं में एक प्रकार की विचारशून्यता महसूस नहीं होती…? आप को नहीं लगता कि जो कुछ तेजी से घट रहा है वह बिना किसी सोच के, बिना किसी प्रयोजन के, बेकार और बेमतलब घटता चला जा रहा है?’’

‘‘यहीं मैं तुम से भिन्न सोचता हूं, मीता…’’

‘‘आजकल की पत्रपत्रिकाओं में तुम क्या देख रही हो…? एक प्रकार की विचारशून्यता…मैं इन घटनाओं के पीछे व्याप्त कारणों को तलाशता हूं. इसीलिए मेरी मांग है और मैं अपनी जगह बनाने में सफल हुआ हूं. मेरे लिए कोई घटना महज घटना नहीं है, उस के पीछे कुछ उपयुक्त कारण हैं. उन कारणों की तलाश में ही मुझे बहुत देर तक सोचते रहना पड़ता है.

‘‘तुम आश्चर्य करोगी, कभीकभी चीजों के ऐसे अनछुए और नए पहलू उभर कर सामने आते हैं कि मैं भी और मेरे पाठक भी एवं मेरे संपादक भी, सब चकित रह जाते हैं. आखिर क्यों…? क्यों होता है ऐसा…?

‘‘इस का मतलब है, हम घटनाओं की भीड़ से इतने आतंकित रहते हैं, इतनी हड़बड़ी और जल्दबाजी में रहते हैं कि इन के पीछे के मूल कारणों को अनदेखा, अनसोचा कर जाते हैं जबकि जरूरत उन्हें भी देखने और उन पर भी सोचने की होती है…’’

राखाल बाबू किसी भी घटना के पक्ष में सोच लेते हैं और विपक्ष में भी. वे आरक्षण के जितने पक्ष में विचार प्रस्तुत कर सकते थे, उस से ज्यादा उस के विपक्ष में भी सोच लेते थे. गजरौला के कानवैंट स्कूल की ननों के साथ घटी बलात्कार और लूट की घटना को उन्होंने महज घटना नहीं माना. उस के पीछे सभ्यता और संस्कृति से संपन्न वर्ग के खिलाफ, उजड्ड, वहशी और बर्बर लोगों का वह आदिम व्यवहार जिम्मेदार माना जो आज भी आदमी को जानवर बनाए हुए है.

मीता राखाल बाबू से नित्य मिलती और प्राय: नित्य ही उन के नए विचारों से प्रभावित होती. वह सोचती रह जाती, यह आदमी चलताफिरता विचारपुंज है. इस के साथ जिंदगी जीना कितना स्तरीय, कितना श्रेष्ठ और कितना अच्छा होगा. कितना अर्थपूर्ण जीवन होगा इस आदमी के साथ. वह महीनों से राखाल बाबू की कल्पनाओं में खोई हुई है. कितना अलग होगा उस का पति, सामान्य सहेलियों के साधारण पतियों की तुलना में. एक सोचनेसमझने वाला, चिंतक, श्रेष्ठ पुरुष, जिसे सिर्फ खानेपीने, मौज करने और बिस्तर पर औरत को पा लेने भर से ही मतलब नहीं होगा, जिस की जिंदगी का कुछ और भी अर्थ होगा.

लेकिन दूसरे क्षण ही मीता को अपनी कंपनी के निर्यात प्रबंधक विजय अच्छे लगने लगते. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, करीने से रखी गई दाढ़ी. चमकदार, तेज आंखें. हर वक्त आगे और आगे ही बढ़ते जाने का हौसला. व्यापार की प्रगति के लिए दिनरात चिंतित. कंपनी के मालिक के बेहद चहेते और विश्वासपात्र. खुला हुआ हाथ. खूब कमाना, खूब खर्चना. जेब में हर वक्त नोटों की गड्डियां और उन्हें हथियाने के लिए हर वक्त मंडराने वाली लड़कियां, जिन में एक वह खुद…

‘‘मीता, चलो आज 12 से 3 वाला शो देखते हैं.’’

‘‘क्यों साहब, फिल्म में कोई नई बात है?’’

मीता के चेहरे पर मुसकराहट उभरती है. जानती है, विजय जैसा व्यस्त व्यक्ति फिल्म देखने व्यर्थ नहीं जाएगा और लड़कियों के साथ वक्त काटना उस की आदत नहीं.

‘‘और क्या समझती हो, मैं बेकार में 3 घंटे खराब करूंगा…? उस में एक फ्रैंच लड़की है, क्या अनोखी पोशाक पहन रखी है, देखोगी तो उछल पड़ोगी. मैं चाहता हूं कि तुम उस में कुछ और नया प्रभाव पैदा कर उसे डिजाइन करो… देखना, यह एक बहुत बड़ी सफलता होगी.’’

कितना फर्क है राखाल बाबू में और विजय में. एक जिंदगी के हर पहलू पर सोचनेविचारने वाला बुद्धिजीवी और एक अलग किस्म का आदमी, जिस के साथ जीवन जीने का मतलब ही कुछ और होगा. नए से नए फैशन का दीवाना. नई से नई पोशाकों की कल्पना करने वाला, हर वक्त पैसे से खेलने वाला…एक बेहद आकर्षक और निरंतर आगे बढ़ते चले जाने वाला नौजवान, जिसे पीछे मुड़ कर देखना गवारा नहीं. जिसे एक पल ठहर कर सोचने की फुरसत नहीं.

तीसरा राकेश है, राजनीति विज्ञान का विद्वान. पड़ोस की चंद्रा का भाई. अकसर जब यहां आता है तो होते हैं उस के साथ उस के ढेर सारे सपने, तमाम तमन्नाएं. अभी भी उस के चेहरे पर न राखाल बाबू वाली गंभीरता है, न विजय वाली व्यस्तता. बस आंखों में तैरते बादलों से सपने हैं. कल्पनाशील चेहरा एकदम मासूम सा.

‘‘अब क्या इरादा है, राकेश?’’ एक दिन उस ने यों ही हंसी में पूछ लिया था.

‘‘इजाजत दो तो कुछ प्रकट करूं…’’ वह सकुचाया.

‘‘इजाजत है,’’ वह कौफी बना लाई थी.

‘‘अपने इरादे हमेशा नेक और स्पष्ट रहे हैं, मीताजी,’’ राकेश ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘पहला इरादा तो आईएएस हो जाना है और वह हो कर रहूंगा, इस बार या अगली बार. दूसरा इरादा आप जैसी लड़की से शादी कर लेने का है…’’

राकेश एकदम ऐसे कह देगा इस की मीता को कतई उम्मीद नहीं थी. एक क्षण को वह अचकचा ही गई, पर दूसरे क्षण ही संभल गई, ‘‘पहले इरादे में तो पूरे उतर जाओगे राकेश, लेकिन दूसरे इरादे में तुम मुझे कच्चे लगते हो. जब आईएएस हो जाओगे और कोरा चैक लिए लड़की वाले जब तुम्हें तलाशते डोलेंगे तो देखने लगोगे कि किस चैक पर कितनी रकम भरी जा सकती है. तब यह 4 हजार रुपल्ली कमाने वाली मीता तुम्हें याद नहीं रहेगी.’’

‘‘आजमा लेना,’’ राकेश कह उठा, ‘‘पहले अपने प्रथम इरादे में पूरा हो लूं, तब बात करूंगा आप से. अभी से खयाली पुलाव पकाने से क्या फायदा?’’

एक दिन दिल्ली में आरक्षण विरोध को ले कर छात्रों का उग्र प्रदर्शन चल रहा था और बसों का आनाजाना रुक गया था. बस स्टाप पर बेतहाशा भीड़ देख कर मीता सकुचाई, पर दूसरे ही क्षण उसे अपनी ओर आते हुए राखाल बाबू दिखाई दिए, ‘‘आ गईं आप…? चलिए, पैदल चलते हैं कुछ दूर…फिर कहीं बैठ कर कौफी पीएंगे तब चलेंगे…’’

एक अच्छे रेस्तरां में कोने की एक मेज पर जा बैठे थे दोनों.

‘‘जीवन में क्या महत्त्वपूर्ण है राखाल बाबू…?’’ उस ने अचानक कौफी का घूंट भर कर प्याले की तरफ देखते हुए उन पर सवाल दागा था, ‘‘एक खूब कमाने वाला आकर्षक पति या एक आला दर्जे का रुतबेदार अफसर अथवा जीवन पर विभिन्न कोणों से हर वक्त विचार करते रहने वाला एक चिंतक…एक औरत इन में से किस के साथ जीवन सुख से बिता सकती है, बताएंगे आप…?’’

एक बहुत ही अहम सवाल मीता ने

राखाल बाबू से पूछ लिया था जिस

सवाल का उत्तर वह स्वयं अपनेआप को कई दिनों से नहीं दे पा रही थी. वह पसोपेश में थी, क्या सही है, क्या गलत? किसे चुने? किसे न चुने?

राखाल बाबू को वह बहुत अच्छी तरह समझ गई थी. जानती थी, अगर वह उन की ओर बढ़ेगी तो वे इनकार नहीं करेंगे बल्कि खुश ही होंगे. विजय ने तो उस दिन सिनेमा हौल में लगभग स्पष्ट ही कर दिया था कि मीता जैसी प्रतिभाशाली फैशन डिजाइनर उसे मिल जाए तो वह अपनी निजी फैक्टरी डाल सकता है और जो काम वह दूसरों के लिए करता है वह अपने लिए कर के लाखों कमा सकता है. और राकेश…? वह लिखित परीक्षा में आ गया है, साक्षात्कार में भी चुन लिया जाएगा, मीता जानती है. लेकिन इन तीनों को ले कर उस के भीतर एक सतत द्वंद्व जारी है. वह तय नहीं कर पा रही, किस के साथ वह सुखी रह सकती है, किस के साथ नहीं…?

बहुत देर तक चुपचाप सोचते रहे राखाल बाबू. अपनी आदत के अनुसार गरम कौफी से उठती भाप ताकते हुए अपने भीतर कहीं डूबे रहे देर तक. जैसे भीतर कहीं शब्द ढूंढ़ रहे हों…

‘‘मीता…महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि इन में से औरत किस के साथ सुखी रह सकती है…महत्त्वपूर्ण यह है कि इन में से कौन है जो औरत को सचमुच प्यार करता है और करता रहेगा. औरत सिर्फ एक उपभोग की वस्तु नहीं है मीता. वह कोई व्यापारिक उत्पादन नहीं है…न वह दफ्तर की महज एक फाइल है, जिसे सरसरी नजर से देख कर आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा दिया जाए. जीवन में हर किसी को सबकुछ तो नहीं मिल सकता मीता…अभाव तो बने ही रहेंगे जीवन में…जरूरी नहीं है कि अभाव सिर्फ पैसे का ही हो. दूसरों की थाली में अपनी थाली से हमेशा ज्यादा घी किसी न किसी कोण से आदमी को लगता ही रहेगा…ऐसी मृगतृष्णा के पीछे भागना मेरी समझ से पागलपन है. सब को सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ अगर मिल जाए तो हमें संतोष करना सीखना चाहिए.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, आदमी के लिए सिर्फ बेतहाशा भागते जाना ही सब कुछ नहीं है…दिशाहीन दौड़ का कोई मतलब नहीं होता. अगर हमारी दौड़ की दिशा सही है तो हम देरसवेर मंजिल तक भी पहुंचेंगे और सहीसलामत व संतुष्ट होते हुए पहुंचेंगे. वरना एक अतृप्ति, एक प्यास, एक छटपटाहट, एक बेचैनी जीवन भर हमारे इर्दगिर्द मंडराती रहेगी और हम सतत तनाव में जीते हुए बेचैन मौत मर जाएंगे.

‘‘मैं नहीं जानता कि तुम मेरी इन बातों से किस सीमा तक सहमत होगी, पर मैं जीवन के बारे में कुछ ऐसे ही सोचता हूं…’’

और मीता को लगा कि वह जीवन के सब से आसन्न संकट से उबर गई है. उसे वह महत्त्वपूर्ण निर्णय मिल गया है जिस की उसे तलाश थी. एक सतत द्वंद्व के बाद उस का मन एक निश्छल झील की तरह शांत हो गया और जब वह रेस्तरां से बाहर निकली तो अनायास ही उस ने अपना हाथ राखाल बाबू के हाथ में पाया. उस ने देखा, वे उसे एक स्कूटर की तरफ खींच रहे हैं, ‘‘चलो, बस तो मिलेगी नहीं, तुम्हें घर छोड़ दूं.’’

Love Story : प्यार का पहला खत – एक ही नजर में सौम्या के दिल में उतर गया आशीष

Love Story : मेरे हाथ में किताब थी और मैं इधरउधर देखे जा रही थी क्योंकि वह मेरे हाथ में किताब पकड़ा कर गायब हो चुका था या यों कहें वह कहीं छिप गया या वहां से दूर भाग चुका था. शायद मेरी मति मारी गई थी जो मैं ने उस से किताब ले ली थी. सच कहूं तो वह काफी समय से मुझे इंप्रैस करने में लगा हुआ था. हालांकि कभी कुछ कहा नहीं था और आज जब उसे पता चला कि मुझे इस सब्जैक्ट की किताब की जरूरत है तो न जाने कहां से फौरन उस किताब को अरेंज कर के मेरे हाथों में पकड़ा कर चला गया था.

मैं ने उस समय तो वह किताब पकड़ ली थी लेकिन अब उस के छिप जाने या गायब हो जाने से मेरा दिमाग बहुत परेशान हो रहा था. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं इस तरह परेशान हाल ही उस पार्क में पड़ी हुई एक बैंच पर बैठ गई. वहां पर कुछ लोग जौगिंग कर रहे थे और वे मेरे आसपास ही घूम रहे थे. मुझे लगा कि शायद मेरी परेशान हालत देख कर वे सब मेरे और करीब आ रहे हैं. खैर, हर तरफ से मन हटा कर मैं ने किताब का पहला पन्ना खोला, सरसराता हुआ एक सफेद प्लेन पेपर मेरे हाथों के पास आ कर गिर पड़ा. न जाने क्यों मेरा मन एकदम से घबरा गया, समझ ही नहीं आया क्या होगा इस में. फिर भी झुक कर उसे उठाया और खोल कर चैक किया, कहीं कुछ भी नहीं लिखा था.

मैं खुद को ही गलत कहने लगी. वह तो एक समझदार लड़का है और मेरी हैल्प करना चाहता है, बस. मैं ने दूसरा पन्ना पलटा तो एक और सफेद प्लेन पन्ना सरक कर गिर पड़ा. इस समय मैं अनजाने में ही जोर से चीख पड़ी. पार्क में मौजूद आधे लोग पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे और बचेखुचे लोग भी अपनी सेहत पर ध्यान देने के बजाय मेरी ओर निहार रहे थे.

‘‘क्या हुआ सौम्या?’’ अचानक से आशीष दौड़ कर मेरे पास आ गया. वह मेरे चीखने की आवाज सुन कर काफी घबराया हुआ लग रहा था.

‘‘कुछ नहीं, बस इस घास के कीड़े से डर गई थी. यह मेरे पैर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था,’’ उस ने घास पर चल रहे हरे रंग के एक छोटे से कीड़े को दिखाते हुए कहा.

‘‘तुम बहुत डरती हो सौम्या. इस नन्हे से कीड़े से ही डर गईं. देखो, वह तुम्हारी जरा सी चीख से कैसे दुबक गया,’’ आशीष मुसकराते हुए बोला. सौम्या भी थोड़ा झेंपते हुए मुसकरा दी.

‘‘तुम अभी तक कहां थे आशीष? मेरी एक चीख पर दौड़ते हुए अचानक कहां से आ गए?’’

‘‘अरे पागल, मैं तो यहीं पर था, जौगिंग कर रहा था.’’

‘‘ओह, तो क्या तुम यहां रोज आते हो?’’

‘‘हां और क्या. तुम्हें क्या लगा आज तुम्हारी वजह से पहली बार आया हूं?’’

‘‘नहींनहीं. ऐसा नहीं है, मैं ने यों ही पूछा.’’

‘‘चलो, अब मैं घर आ जा रहा हूं. तुम आराम से इस किताब को पढ़ कर वापस कर देना,’’ आशीष बिना कुछ कहे व रुके वहां से चला गया.

‘कितना बुरा है आशीष, बताओ उस ने एक बार भी यह नहीं पूछा कि तुम साथ चल रही हो?’ उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किताब दे कर उस पर कोई एहसान कर के गया है.

मैं उदास होे घर की तरफ वापस चल पड़ी. मन में उस के लिए न जाने क्याक्या सोच रही थी और वह एकदम से उस का उलटा ही निकला.

घर आ कर भी बिलकुल मन नहीं लगा. कमरे में बैड पर लेट कर उस के बारे में ही सोचती रही, आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या है यह सब? मन उस की तरफ से हट क्यों नहीं रहा? क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहा होगा?

ओह, यह आज मेरे मन को क्या हो गया है. उस ने हलके से सिर को झटका दिया, पर दिमाग था कि उस की तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. चलो, थोड़ी देर मां के पास जा कर बैठती हूं. अब तो वे स्कूल से आ गई होंगी. थोड़ी देर उन से बातें करूंगी तो उधर से दिमाग हट जाएगा.

वह मां के पास आ कर बैठ गई.

‘‘तुम आ गई सौम्या बेटा?’’

‘‘हां मा.’’

‘‘बेटा, एक कप चाय बना लाओ. आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है. स्कूल में बच्चों की कौपियां चैक करना बहुत दिमाग का काम है. वह बिना कुछ बोले चुपचाप किचन में आ कर चाय बनाने लगी. 2 कप चाय बना कर वापस मां के पास आ कर बैठ गई.

लेकिन आज मां ने कोई बात नहीं की. उन्होंने चुपचाप चाय पी और आंखें बंद कर के लेट गईं. शायद वे आज बहुत थकी हुई थीं.

सौम्या वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई. इसी तरह 10 दिन गुजर गए.

आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी. येलो कलर की साड़ी पहन कर वह कालेज पहुंची. वहां सब उसे ही देख रहे थे. उसे लगा आज तो पक्का आशीष उस से बात करेगा. लेकिन पूरी पार्टी निकल गई पर आशीष ने एक बार भी उस की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा. अब सच में उसे बहुत गुस्सा आने लगा था.

गुस्से और रोने के समय अकसर सौम्या के चेहरे पर लालिमा आ जाती है जो उस की सुंदरता में इजाफा कर देती है. वह यों ही कालेज गेट से बाहर निकल कर आ गई. अचानक से लगा कि कोई उस के पीछे आ रहा है. कौन हो सकता है, मन में थोड़ी घबराहट का भाव आया और दिल तेजी से धड़कने लगा.

वह एकदम से सौम्या के सामने आ गया.

‘‘ओह आशीष तुम, मैं तो एकदम घबरा ही गई थी,’’ उस का दिल वाकई में घबराहट के कारण तेजी से धड़कने लगा था.

वह कुछ नहीं बोला, फिर थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद एक खूबसूरत सा लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘यह सर ने आप के लिए भिजवाया है.’’

‘‘क्या है इस में?’’

‘‘आप की ड्रैस के लिए शायद बैस्ट कौंप्लिमैंट्स हैं.’’

उस के चेहरे को पढ़ते हुए लगा कि वह सच ही कह रहा है, क्योंकि उस के चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं था जिस से लगे कि वह मजाक कर रहा है. उस वक्त अचानक से उस के मन में यह खयाल आया कि यह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा तो शायद लिख कर दिया हो.

‘‘सौम्या, अगर तुम कहो तो आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं? आज मैं अपने पापा की कार ले कर आया हूं,’’ आशीष ने उसे जाते देख कर कहा.

उस ने बिना देर किए फौरन सिर हिला दिया था क्योंकि वह आशीष के साथ थोड़ी सी देर का साथ भी गंवाना नहीं चाहती थी. ड्राइविंग सीट पर बैठे आशीष के चेहरे को सौम्या बराबर पढ़ती रही पर उस पर ऐसा कोई भाव नहीं था जिस से अनुमान भी लगाया जा सके कि उस के दिल में कोई कोमल भावना भी है.

सौम्या का घर आ गया था और वह उतर गई. उस ने आशीष से कहा, ‘‘आशीष घर के अंदर नहीं आओगे?’’

‘‘नहीं, आज नहीं फिर कभी. आज तो मुझे जल्दी घर पहुंचना है.’’

‘ओह, कितना खड़ूस है यह, इस की नजर में उस की कोई वैल्यू ही नहीं. मैं ही पागल हूं, जो इस से एकतरफा प्यार कर रही हूं. आज से इस के बारे में सोचना बिलकुल बंद.’ उस ने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया था. चाहे कैसे भी हो, मुझे अपने मन को समझाना ही पड़ेगा.

चलो, अब कभी उस का नाम ले कर उसे याद नहीं करूंगी. मैं मुसकराती गुनगुनाती अपने कमरे में आ गई. आईने के सामने खड़े हो कर खुद को निहारा. मन में उदासी का भाव आया. उस की वजह से ही तो इतना सजसंवर के गई थी. खैर, अब छोड़ो. उस ने हाथ में पकड़े लिफाफे को बैड पर रखा और कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी से कपड़े निकालने लगी.

‘चलो, पहले इस लिफाफे को ही खोल कर देख लूं, सर ने न जाने क्या लिखा होगा?’ बेमन से उस को खोला.

उस में से सफेद रंग का प्लेन पेपर निकल कर नीचे गिर पड़ा. ओह, यह तो आशीष की बदतमीजी है. आज उसे फोन कर के कह ही देती हूं कि उसे इस तरह का मजाक पसंद नहीं है.

गुस्से में आ कर वह फोन मिला ही रही थी कि लिफाफे के अंदर रखे एक कागज पर नजर चली गई.

वह निकाल कर पढ़ने के लिए खोला ही था कि मम्मी के कमरे में आने की आहट सी हुई. मम्मी को भी अभी ही आना था.

‘‘बेटा, जरा मार्केट तक जा रही हूं, कुछ मंगाना तो नहीं है?’’

‘‘नहीं मम्मी, कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘चलो, ठीक है.’’

मम्मी के जाते ही उस ने उस पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया, ‘प्रिय सौम्या, के संबोधन के साथ शुरू हुआ वह पत्र तुम्हारा आशीष के साथ खत्म हुआ. उस के बीच में जो लिखा था वह उसे खुशी से झुमाने के लिए काफी था. वह भी मुझे उतना ही प्यार करता था. वह भी मेरे लिए इतना ही बेचैन था. वह भी कुछ कहने को तरसता था. वह भी मेरा साथ पाना चाहता था. लेकिन मेरी ही तरह इस डर का शिकार था कि कहीं मैं मना न कर दूं. उस के प्यार को अस्वीकृत न कर दूं.

वाकई वह मुझे सच्चा प्यार करता है, तभी तो कभी उस ने मेरे हाथ तक को एक बार भी टच नहीं किया वरना कितने मौके आए थे. वह खुशी से झूम उठी. एक बार खुद को आईने में निहारा और अब वह खुद पर ही मोहित हो गई और उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘आई लव यू, आशीष.’’

उस की आंखों के सामने आशीष का मुसकराता चेहरा था और अब वह शरमा के अपनी नजरें नीचे की तरफ कर के जमीन को देखने लगी थी. आखिर, उस के सच्चे मन की दुआ सफल जो हो गई थी.

Stories : अपरिमित – अमित और उसकी पत्नी के बीच क्या हुई थी गलतफहमी

Stories : ” दरवाज़ा खुलने की आवाज़ के साथ ही हवा के तेज़ झोंके के संग बरबैरी पर्फ़्यूम की परिचित ख़ुशबू के भभके ने मुझे नींद से जगा दिया .” तुम औफ़िस जाने के लिए तैयार भी हो गए और मुझे जगाया तक नहीं .” मैने मींची आँखों से अधलेटे ही अमित से कहा .” तुम्हें बंद आँखों से भी भनक लग गई की मैं तैयार हो गया हूँ .” अमित ने चाय का कप मेरी और बढ़ाते हुए कहा . भनक कैसे ना लगती ..यह ख़ुशबू मेरे दिलो दिमाग़ पर छा मेरे वजूद का हिस्सा बन गई है . मैंने मन ही मन कहा.

” थैंक्स डीयर !”

” अरे , इसमें थैंक्स की क्या बात है . रोज़ तुम मुझे बेड टी देती हो , एक दिन तो मैं भी अपनी परी की ख़िदमत में मॉर्निंग टी पेश कर ही सकता . “उसके इस अन्दाज़ से मेरे लबों पर मुस्कुराहट आ गई .
” बुद्धू चाय के लिए नहीं कह रही .. थैंक्स फौर एवरीथिंग .. जो कुछ आज तक तुमने मेरे लिए किया है .” कहते हुए सजल आँखों से मैं अमित के गले लग गई . चाय पीकर वो मुझे गुड बाय किस कर ऑफ़िस के लिए निकल गया . उसके जाने के बाद भी मैं उसकी ख़ुशबू को महसूस कर पा रही थी . मैंने एक मीठी सी अंगड़ाई ली और खिड़की से बाहर की ओंर देखने लगी .कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .

अगले हफ़्ते राजस्थान एम्पोरीयम में मेरी पैंटिंग्स और मेरे द्वारा बने हैंडीक्राफ़्ट्स की एग्ज़िबिशन थी . साथ में मैं अपनी पहली किताब भी लॉंच करने जा रही थी . कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .अमित ने मेरे स्टडी रूम के तौर पर गार्डन फ़ेसिंग रूम को चुना था . उसे पता है मुझे खिड़कियों से कितना लगाव है . ये खिड़कियां ही हैं जिनके द्वारा मैं अपनी दुनिया में सिमटी हुए भी बाहर की दुनिया से और मेरी प्रिय सखी प्रकृति से जुड़ी रहती हू . बादलों के झुरमुट से , डेट पाम की झूलती टहनियों से , अरावली की हरीभरी पहाड़ियों से मेरा एक अनजाना सा रिश्ता हो गया है . ‘अपरिमित ‘ ये ही तो नाम रखा है , मैंने अपनी पहली किताब का. अतीत की वो पगली सी स्मृतियां आज अरसे बाद मेरे ज़ेहन में सजीव होने लगी .

हम तीन भाई बहन है . अन्वेशा दीदी , अनुराग भैया और फिर सबसे छोटी मैं यानि परी . दीदी और भैया शाम को स्कूल से लौटने के बाद अपना बैग पटक आस – पड़ौस के बच्चों के साथ खेलने के लिए निकल जाते वहीं मुझे अपने रूम की खिड़की से उन सबको खेलते हुए निहारने में ही ख़ुशी मिलती . मैं हम तीनों का ख़याल रखने के लिए रखी गई लक्ष्मी दीदी के आगेपीछे घूमती रहती . कभी वो मेरे साथ लूडो , स्नेक्स एंड लैडर्स खेलती तो कभी हम दोनों मिलकर मेरी बार्बी को सजाते . अन्वेशा दीदी बहुत ही चुलबुली स्वभाव की थी और उसका सेन्स औफ ह्यूमर भी कमाल का था जिससे वह किसी को भी अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेती थी . स्कूल , घर और आस – पड़ौस में सबकी चहेती थी . अनुराग भैया और मैं ट्विन्स थे . वे खेल – कूद , पढ़ाई सब में अव्वल रहते. उन्होंने कभी नम्बर दो रहना नहीं सीखा था . उन्होंने जन्म के समय भी मुझसे बीस मिनट पहले इस दुनिया में क़दम रख मेरे बड़े भाई होने का ख़िताब हासिल कर लिया था . मैं उन दोनों के बीच मिस्मैच सी लगती . मैं उन्हें देखकर अक्सर सोचती मैं ऐसी क्यों नहीं हो सकती . मम्मी – डैडी मुझे भी उन दोनों के जैसा बनाने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते .” आज तो मेरी छोटी गुड़िया ही अंकल को वो नई वाली पोयम सुनाएगी .” डैडी आने वाले मेहमानों के सामने प्रस्तुति के लिए मुझे ही आगे करते . पर मेरा सॉफ़्टवेर विंडो ६ था जिससे मेरी प्रोग्रैमिंग बहुत स्लो थी .जबकि मेरे दोनों भाई – बहन विंडो टैन थे , बहुत ही फ़ास्ट आउट्पुट और मैं कुछ सोच पाती उससे पहले पोयम हाज़िर होती और मैं मुँह नीचा किए अपने नाख़ून कुरेदती रह जाती .

एक दिन मैंने मम्मा को टीचर से फ़ोन पर बात करते सुना ,” मैम इस बार इंडेपेंडेन्स डे की स्पीच अनामिका से बुलवाइए , मैं चाहती हूं उसका स्टेज फीयर ख़त्म हो .” टीचर के डर से मैंने स्पीच तो तैयार कर ली पर स्पीच देने से एक रात पहले मैं अपनी दोनों बग़ल में प्याज का टुकड़ा दबाए सो गई ( मैंने कहीं पर पढ़ रखा था कि प्याज़ को बग़ल में डालने से फ़ीवर हो जाता है. जिससे दूसरे दिन मैं स्कूल ना जा पाऊँ .पर मेरी युक्ति असफल रही और दूसरे दिन ना चाहते हुए भी मुझे स्कूल जाना पड़ा . जिस समय मैंने स्पीच बोल रही थी वातावरण में सर्दियों की गुलाबी धूप खिल रही थी . स्टेज पर चढ़ते ही मेरे हाथ – पैर काँपने लगे थे , सर्दी की वजह से नहीं भय और घबराहट के मारे .

शाम को टीचर का फ़ोन आया था , कह रही थी आपकी बेटी ने कमाल कर दिया .”सुनकर मम्मा ने मुझे गले से लगा लिया . प्याज़ के असर से तो नहीं पर स्टेज फीयर से मुझे तेज़ फ़ीवर ज़रूर हो गया था .
मम्मा लैक्चरार थी . दोपहर को घर आकर थोड़ी देर आराम कर दूसरे दिन के लैक्चर की तैयारी में लग जाती .रात में अक्सर मैंने डैडी को मम्मा से कहते सुना था ,” अनामिका दिन ब दिन डम्बो होती जा रही है जब देखो गुमसुम सी घर में घुसी रहती है . उन दोनों को देखो घर , स्कूल दोनों में नम्बर वन .”

मैं उन लोगों से कहना चाहती थी मैं गुमसुम नहीं रहती हूँ … मैं अपने आप में बहुत ख़ुश हूँ . बस मेरी दुनिया आप लोगों से थोड़ी अलग है .धीरे – धीरे मुझ पर ‘डम्बो ‘ का हैश टैग लगने लगा था . जाने अनजाने मेरी तुलना दीदी और भैया से हो ही जाती थी . पर डैडी भी हार मानने वालों में से नहीं थे . उन्होंने मुझे हॉस्टल भेजने का फ़ैसला कर लिया .माउंट आबू के सोफ़िया बोर्डिंग स्कूल में मेरा अड्मिशन करवा दिया गया . वहाँ मैं सबसे ज़्यादा लक्ष्मी दीदी को मिस करती थी पर अब मैंने छिपकर रोना भी सीख लिया था . अब वह लाल छत वाला हॉस्टल ही मेरा नया आशियाना बन गया था . मुझे एक बात की तसल्ली भी थी की अब मैं गाहे बगाहे दीदी भैया से मेरी तुलना से तो बची .

वहां रहते हुए मुझे पांच साल हो गए थे . मुझमें अंतर सिर्फ़ इतना आया था कि अब मेरा हैश टैग डंबो से बदलकर घमंडी और नकचढ़ी हो गया . जहाँ पहले मेरी अंगुलियां एकांत में किसी टेबल , किताब या अन्य किसी सतह पर टैप करती रहती थी वो अंगुलियाँ घंटों पीयानो पर चलने लगी . आराधना सिस्टर ने ही मुझे पीयानो बजाना सिखाया था . मुझे वो बहुत अच्छी लगती थी . जब कभी मै अकेले में बैठी अपने विचारों में डूबी रहती तो वे एक किताब मेरे आगे कर देती . उन्होंने ही मुझमे विश्वास जगाया था तुम जैसी हो , अपने आप को स्वीकार करो . मुझे अपनी ज़िंदगी में ‘कुछ’ करना था .. पर उस कुछ की क्या और कैसे शुरुआत करूँ और कैसे अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाऊँ यह पहेली सुलझ ही नहीं पाती थी .

मेरे अंतर्मुखी स्वभाव के चलते मैं अपने द्वारा बुने कोकुन से बाहर आने की हिम्मत ही नहीं कर पा रही थी । यही नहीं औरों के सामने स्वयं को अभिव्यक्त करना और अपनी बात रखना मेरे लिए लोहे के चने चबाने के बराबर था. इसी कश्मकश में मै स्कूल पूरी कर कॉलेज में आ गई . आगे की पढ़ाई के लिए मुझे बाहर जाना था पर मैं माउंट आबू छोड़कर नहीं जाना चाहती थी . सिस्टर की प्रेरणा से ही ,मैंने कॉरसपॉन्डन्स से ग्रैजूएशन कर लिया और स्कूल में ही लायब्रेरीयन की जॉब करने लगी थी .

इसी दरमियान मेरी मुलाक़ात अमित से हो गई . हमारी स्कूल में कन्सट्रक्शन का काम चल रहा था वह सिविल इन्जिनियर था . इसी सिलसिले में अक्सर उसका हॉस्टल आना होता था . उसने आज तक कसकर बंद किए मेरे दिल के झरोखों को खोलकर उसके एक कोने में अपने लिए कब जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला.

” क्या आप मेरे साथ कौफ़ी शौप चलेंगी ?” वीकेंड पर वह अक्सर मुझसे पूछता . उसकी आँखों में मासूम सा अनुनय होता जिसे मैं ठुकरा नहीं पाती थी . हम दोनों एक – दूसरे के साथ होते हुए भी अकेले ही होते क्योंकि उस समय भी मैं ख़ुद में ही सिमटी होती बिल्कूल ख़ामोश .. कभी टेबल पर अंगुली से आड़ी – टेडी लकीरें खींचते हुए तो कभी मेन्यू कार्ड में पढ़ने की असफल कोशिश करते हुए.

“तुम अमित से शादी कर लो ,अच्छा लड़का हैं तुम्हें हमेशा ख़ुश रखेगा .” एक शाम सिस्टर ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा . सारी रात मैं सो नहीं पाई थी . बाहर तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी और एक तूफ़ान सारी रात मेरे मन के भीतर भी घुमड़ता रहा था . मैंने सुबह होते ही अमित को वॉट्सैप कर दिया ,” मैं धीमी , मंथर गति से चलती सिमटी हुई सी नदी के समान हूँ और तुम अलमस्त बहते वो दरिया जिसका अनंत विस्तार हैं . हम दोनों बिलकुल अलग है . तुम मेरे साथ ख़ुश नहीं रह पाओगे . ”

” नदी की तो नियति ही दरिया में मिल जाना है और दरिया का धर्म है नदी को अपने में समाहित कर लेना . बस तुम्हारी हाँ की ज़रूरत है बाक़ी सब मेरे ऊपर छोड़ दो .” तुरंत अमित का मैसेज आया . जैसे वो मेरे मेसिज का ही इंतज़ार कर रहा था . मम्मा पापा को भी इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था . सादगीपूर्ण तरीक़े से हमारी शादी करवा दी गई.

मे के महीने में गरमी और क्रिकेट फ़ीवर अपने शबाब पर थे . अमित सोफ़े पर औंधे लेटे हुए चेन्नई सुपर किंग्स और मुंबई इंडीयंज़ की मैच का मज़ा ले रहे थे . इतने में मोबाइल बजने लगा . रंग में भंग पड़ जाने से अमित ने कुछ झुँझलाते हुए कुशन के नीचे दबा फ़ोन निकाला पर मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए और वह बात करने दूसरे रूम में चला गया . मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना ज़रूरी फ़ोन किसका है कि वो धोनी की बैटिंग छोड़कर दूसरे बात करने चला गया वो भी अकेले में.

“ किसका फ़ोन था ?” उसके आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा . “ ऐसे ही .. बिन ज़रूरी फ़ोन था .” संक्षिप्त सा उत्तर दे वो फिर से टीवी में मगन हो गया . मैंने फ़ोन उठाकर रीसेंट कॉल्ज़ लिस्ट देखी , उस पर मनन नाम लिखा हुआ था . स्क्रीन पर कई सारे अन्सीन वॉट्सैप मेसजेज़ भी थे . मैंने वाँट्सैप अकाउंट खोला वो सब मेसजेज़ ‘ पार्टी परिंदे ग्रूप ‘ पर थे . मुझे बड़ा रोचक नाम लगा.

“ अमित ये पार्टी परिंदे क्या है ? ”

“ कुछ नही .. हमारा फ़्रेंड्ज़ ग्रूप है जो वीकेंड पर क्लब में मिलते है .”

“ मनन का फ़ोन क्यों आया था ?”

“ मै लास्ट संडे नहीं गया था तो पूछ रहा था कि शाम को आऊँगा की नहीं .”

“ तो तुमने क्या जवाब दिया ?”

“ मैंने मना कर दिया . अब प्लीज़ मुझे मैच देखने दो .”

“ तुमने मना क्यों कर दिया ? तुम मुझे अपने दोस्तों से नहीं मिलवाना चाहते ..”

“ वहां सब लोग तेज म्यूज़िक पर डान्स फ़्लोर पर होते हैं .. मुझे लगा तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगेगा . “ इतनी देर में पहली बार अमित ने टीवी पर से नज़रें हटाकर मुझपर टिकाई थी . मैं भावुक हो गई . और मन ही मन सोचने लगी मैं तो आजतक यही सुनती आई हूं कि शादी के बाद लड़की को अपनी पसंद – नापसंद , शौक़ , अरमान ताक पर रखने पड़ते हैं पर यहां तो फ़िज़ाओं का रुख़ बदला हुआ सा था.

“ कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है , और जब इतना क़ीमती तोहफ़ा हो तो जान भी हाज़िर है . एनीथिंग फ़ॉर यू .. जाना ,”कहते हुए उसने मेरी आँखों से ढुलकते आंसूओं को अपनी हथेली में भर लिया .
शाम छः बजे तैयार होकर मैं अमित के सामने खड़ी हो गई . ब्लैक ईव्निंग गाउन में ग्लैमरस लुक में वो मुझे अपलक देखता ही रह गया.

“ मै पूछ सकता हूँ , बेमौसम कहां बिजली गिराने का इरादा है ? कहते हुए वह मुझे अपनी बाँहों में भरने लगा तो मैंने हँसते हुए उसे पीछे धकेल दिया.

“ रात को मैं करूँ शर्मिंदा .. मैं हूं पार्टी परिंदा ..” मैंने अदा से डान्स करते हुए कहा . मेरे इस नए अन्दाज़ से वो बहुत ख़ुश लग रहा था.

राजपूताना क्लब हाउस में बनाव श्रिंगार से तो मैं अमित के दोस्तों से मैच कर रही थी जिसमें कई लड़कियाँ भी थी ,पर मन को कैसे बदलती . वहाँ सब लोग लाउड म्यूज़िक के साथ डान्सिंग फ़्लोर पर थिरक रहे थे . कुछ देर तो मैं भी उन जैसा बनने की कोशिश करती रही. फिर थोड़ी देर बाद खिड़की के पास लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई और अपने स्लिंग की चैन को अपनी अंगुलियों पर घुमाने लगी . उस दिन के बाद मुझे दुबारा उस क्लब में जाने की हिम्मत नहीं कर पाई ना कभी अमित ने मुझे चलने के लिए कहा.

शादी के कुछ दिनों बाद ही अमित की बर्थडे थी . मैं बहुत दिनों से उसकी एक पेंटिंग बनाने में लगी हुई थी. मैंने वह पेंटिंग और एक छोटी सी कविता बना उसके सिरहाने रख दी .सुबह उठकर मै किचन में अमित की पसंद का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में जुटी हुई थी.

“ ये पेंटिंग तुमने बनाई है ?” अमित ने पीछे से आकर मुझे बाँहों में भरते हुए पूछा .
“ हाँ .. कोई शक ?”

“ नहीं तुम्हारी क़ाबिलियत पर कोई शक नहीं , पर स्वीटी मुझे लगता है तुम्हारे हाथ ये चाकू नहीं बल्कि पैन और ब्रश पकड़ने के लिए बने है . उसने मेरे हाथ से चाकू लेते हुए कहा.

” मम्मा का फ़ोन आया था वो दो – तीन दिन के लिए मुझे अपने पास बुला रही हैं .” एक दिन उसके ऑफ़िस से आते ही मैंने कहा.

“ मेरी जान के चले जाने से मेरी तो जान ही निकल जाएगी . ” ज़्यादा रोमांटिक होने की ज़रूरत नहीं है . टीवी , लैपटॉप और वेबसिरीज़ .. इतनी सौतन है तो मेरी तुम्हारा दिल लगाने के लिए .” मैंने बनावटी ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा.

” ओके! पर प्रॉमिस मी , अपने बर्थ्डे के दिन ज़रूर आ जाओगी . .” उसकी बर्थडे के अगले हफ़्ते ही मेरी बर्थडे थी . शादी के बाद अमित से बिछुड़ने का ये पहला मौक़ा था . किसी ने सही कहा है इंसान की क़ीमत उससे दूर रहकर ही होती है . तीन दिन मम्मा के पास बिता मैं मेरे बर्थडे वाली शाम को वापिस आ गई . मेरे घर पहुंचने से पहले ही अमित मुझे रिसीव करने के लिए बड़ा सा लाल गुलाब का गुलदस्ता लिए लौन में खड़ा था .

मुझे देखते ही मुझे बाँहों में भर लिया और फिर गोदी में उठा मुझे गेस्ट रूम तक लेकर गए . वहाँ का नज़ारा देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था .. वहाँ होम थीएटर की जगह स्टडी टेबल ने और अमित के मिनी बार की जगह बुक शेल्व्स ने ले ली थी . मैं इन सब बदलावों को छूकर देखने लगी कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही .

“ सरप्राइज़ कैसा लगा ?”

मैं निशब्द थी . समझ नहीं आ रहा था कैसे रीऐक्ट करूं. जब कभी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में ज़ुबान असक्षम हो जाती है तो आँखें इस काम को बखूबी अंजाम देती है . मेरी आंखें अविरल बहने लगी .
“ तो ये तुम्हारी और मम्मी की मिली भगत थी ना ? बट ऐनीवेज़ …! आई ऐम फ़ीलिंग ब्लेस्ड़ …”

बस उस दिन के बाद मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा . मैंने अपनी कला को अपने जुनून और करीयर में बदल दिया. मैंने हौबी क्लासेस शुरू कर दी . मेरी शुरुआत दो तीन बच्चों से हुई थी , बढ़ते – बढ़ते यह संख्या सौ के पास आ गई . ख़ाली समय में मैं पैंटिंग्स बनाने लगी और बरसों से घुमड़ती मेरी भावनाओं को शब्दों का रूप देने के लिए मैंने एक किताब लिखनी भी शुरू कर दी .

अगर आज मैं आत्मनिर्भर बन पाई ख़ुद की एक पहचान बना पाई तो उसका पूरा श्रेय अमित को जाता है . नहीं तो मैं ख़ुद अपने अंदर की खूबियों को कभी जान ही नहीं पाती. हम दोनो नितांत अलग व्यतित्व थे . वह आईफ़ोन टेन की तरह , स्मार्ट और फ़ास्ट जिसका कवरेज एरिया अनंत में फैला था . और मैं नब्बे के दशक का कॉर्डलेस फ़ोन जिसका सिमटा हुआ सा कवरेज एरिया है. मैं स्वयं ही अपनी डिजिटल उपमा पर मुस्कुरा उठी . यह अमित की सौहबत और मौहब्बत का ही तो असर था.

मैं जैसी भी थी उसने मुझे स्वीकार किया . हमेशा मेरी भावनाओं को समझा , ख़ुद को मुझमें ढालने की कोशिश की कभी मुझे बदलने की कोशिश नहीं की . बल्किं मेरी कमियों को मेरी ताक़त बनाया .
हवा के तेज झोंके से विंड चाइम की घंटियों की आवाज़ से मैं विचारों की दुनिया से बाहर लौट आई . एग्ज़िबिशन की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी . सारी आइटम्स को फ़िनिशिंग टच देने में मुझे समय का पता ही नहीं चला.

शाम घिरने को आई थी और अमित ऑफ़िस से लौटकर आ चुके थे . मैं बहुत खुश थी . उसे देखते ही मैं उसके गले से लग गई.

“ ये सब तुम्हारी वजह से ही मुमकिन हुआ है . तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अधूरी हूं. अब हम अमित और परी नहीं रह गए हैं . एक दूसरे में गुंथ कर ‘अपरिमित’ बन गए हैं .” मैंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा .
अमित ने अपनी बांहों के घेरे को थोड़ा ओंर मज़बूत कर लिया . मुझे लग रहा था मैं उसमें , उसके अहसासों में , उसके प्यार में सरोबार हो उसमें समाती चली जा रही हूं.

किसी ने सच ही तो कहा है , विवाह की सफलता इसी में है कि शादी के बाद पति – पत्नी एक दूसरे की कमज़ोरियों को परे रख और एकदूसरे के लिए अपनेअपने कम्फर्ट ज़ोन से निकलकर ही तो मैं और तुम से हम बन जाते हैं.

Storytelling : सपने देखने वाली लड़की

Storytelling :  देवांश उसे दूर से एकटक देख रहा था. देख क्या रहा था,नजर पड़ गई और बस आंखें ही अटक गई उसपर !विश्वास नहीं होता – यह वही है या उस जैसी कोई दूसरी?

मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल  स्टेशन पर पीठ पर एक बैग लादे वह अकेली खड़ी है !

देवांश का ध्यान अपने काम से भटक गया था.सवारी गई तेल लेने! पहले यह शंका तो निवारण कर ले! बिहार के समस्तीपुर से यहां मुंबई में अकेले! लग रहा है,अभी अभी ट्रेन से उतरी है.

चाहता है उसे अनदेखा कर सवारी ढूंढे, कहीं वह नहीं हुई तो थप्पड़ भी पड़ सकता है.

आजकल की स्टंटमैन लड़कियां! देवांश इनसे दूर ही रहता है!

लेकिन अगर वही हुई तो? यह जरूर उसका फिर नासमझी में उठाया  गया कदम होगा !

वह इसके घरवालों को जानता है, वे ऐसे बिलकुल नहीं कि बेटी को अकेले मुंबई आने दें! इसके पापा का साइकिल में हवा भरने, पंक्चर बनाने की एक छोटी सी दुकान है. एक बड़ा भाई है जो पहिए वाले ठेले पर माल ढुलाई करता है. इससे दो बड़ी बहनें हैं जिनकी जैसे तैसे शादी हुई थी.

आज से पांच साल पहले जब देवांश मुंबई भाग आया था तब यह शायद बारह साल के आसपास की रही होगी.उस वक्त देवांश बीस वर्ष का था. शिप्रा उस समय सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी .सजने का बड़ा शौक था  इसे. इस कारण हरदम इसकी मां इस पर टिक टिक करती रहती.दुकान से लगे छोटे से घर में ये अपने भाई, मां, पप्पा के साथ रहती थी .

अब तक वह इधर उधर देखती ,कुछ सोचती, थोड़ा थोड़ा चलती देवांश से अनजान उसकी ओर ही बढ़ी चली आ रही थी.

देवांश भी अब तक उसके नजदीक आ चुका था.

“तुम शिप्रा हो न? यहां कैसे?”

पहले शिप्रा ने खुद को छिपाने का प्रयत्न किया लेकिन देवांश का अपनी बात पर भरोसा देख उसे मानना पड़ा कि वह समस्तीपुर के फुलचौक की शिप्रा ही है.

अपनी बात को टालने की गरज से शिप्रा ने प्रतिप्रश्न किया – “तुम यहां कैसे?”

“बीस साल की उम्र में मुंबई भाग आया था. हीरो बनना था. सालभर खूब एड़ियां घिसी, फिल्मी स्टूडियो के बाहर कतारें लगाई, प्रोड्यूसर डायरेक्टर के पीछे भागता रहा, लेकिन रात ?

वह तो पिशाचिनी की तरह भूखी प्यासी मुझे निगलने को आती थी.

स्टूडियो के बाहर नए लड़के लड़कियों की इतनी भीड़ कि कौन किसे पूछे? उनमें जिनके पहचान के  निकल जाते, उन्हें  किसी तरह अन्दर जाने का मौका मिल जाता.लेकिन इतना तो काफी नहीं होता न! मंजे हुए कलाकारों के सामने खड़े होने की भी कुबत कम लोगों में ही होती है! फिर गिड़गिड़ाना भी आना चाहिए, इज्जत पर बाट लगाकर काम के लिए हाथ फैलाना भी आना चाहिए! मैंने तो साल भर में हाथ जोड़ लिए! मेरा औटो जिंदाबाद! पहले भाड़े पर लेकर चलाता था, अब अपना है, मीरा रोड पर अपनी खोली भी है!  मगर तुम यहां क्यों आ गई? बारहवीं बोर्ड दिया?” एक साथ इतनी बातें कहने के पीछे देवांश की एक ही मंशा थी कि वो मुंबई की जिंदगी और अपने सपनों की वास्तविकता को समझे!

“देकर ही आई हूं! मुझे एक हीरो से मिलना है, उसके साथ मुझे हीरोइन का रोल करना है! मै ठान कर आई हूं, हार नहीं मानूंगी.”

अब तक शिप्रा अपने नए स्मार्ट फोन पर किसी का नंबर ढूंढने में लगी थी.

देवांश ने कहा-” तुम्हारे पप्पा मेरी साइकिल कई बार ऐसे ही ठीक कर दिया करते थे .कुछ तो मेरा भी फर्ज बनता है, अपने जगह की हो, कहां मारी मारी फिरोगी! अच्छा हुआ जो मै तुम्हे मिल गया! चलो मेरे घर. वहीं रहकर काम ढूंढ़ लेना.”

इस बीच शिप्रा की उससे बात हो जाती है जहां वह फोन लगा रही थी. बात समाप्त होते ही शिप्रा का रुख थोड़ा बदल सा जाता है. वह अब जल्दी निकलना चाहती है.

“देवांश जी मुझे जल्दी निकलना होगा, हरदीप जी से बात हो गई, उन्हीं के कहने पर यहां आई हूं . वे मुझे अपने स्टूडियो में बुला रहे हैं, इंटरव्यू करेंगे, और फोटो शूट भी!”

“ये सब पक्का है? देखो, मुंबई है ,सही गलत की पहचान जरूरी है, ठगी न जाओ!”

“देवांश जी मुझे अभी जाना है, आपको बाद में बताऊंगी .

आप भैया के साथ स्कूल पढ़े हो, मेरे घरवालों को पहचानते हो, अभी कुछ बताना मत उन्हें, पता चला तो मेरी जबरदस्ती शादी कर देंगे. मै बड़ी स्टार बनना चाहती हूं, दीदियों की तरह गृहस्थी में अभी से नहीं पीसना मुझे!”

जाना कहां है? चलो छोड़ देता हूं तुम्हे.”

“करजत नाम की कोई जगह है- वहीं कहीं बता रहे हैं”

“मेरा फोन नंबर रख लो, रात को वापिस आ जाना, अपना नंबर दे दो, मै अपना पता तुम्हे लिख भेजूंगा. मुंबई अनजान नई लड़कियों के लिए ठीक नहीं, शोषण हो सकता है!”

“मुझे जल्द पहुंचाइए देवांश जी, कहीं देर न हो जाए!”

औटो भीड़ को काटते जैसे तैसे गंतव्य की ओर दौड़ रहा था.

शिप्रा को अपने सपनों के आगे जिंदगी की चुनौतियां तुच्छ नजर आ रही थी.देवांश समझ चुका कि यह चट्टानों से टकराए बिना नहीं मानेगी.

देवांश भी तो ऐसा ही था. कितनी रातें उसने आंखों में काटी, कितने दिन फाकों में! और जब काम मिलने को हुआ तो जैसे सर दीवार से जा टकराया! गीगोलो! अमीर औरतों के ऐश के लिए खरीदा गया गुलाम; उसे धोखा देकर ले जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी कि अचानक जैसे उसे दो कदम पीछे आकर फिर से सोच लेने की मति आई, उसके तो होश ही उड़ गए! किसी तरह बच कर निकला था वह! औटो दौड़ाते वह बेचैन हो गया.

लड़की को पता नहीं कहां पहुंचाने जा रहा है वह!

“हरदीप जी को कैसे जानती हो?”

“फेसबुक से, मेरी सुन्दरता देख उन्होंने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी. बाद में मुझे समझाया कि मै आसानी से हीरोइन बन सकती हूं अगर किसी तरह मुंबई पहुंच जाऊं!  वे मुझे स्टार बना देंगे. जोखिम तो लेना पड़ता है सपने पूरे करने के लिए!”

“पैसे हैं तुम्हारे पास?”

“घर में रखे दो हजार उठा लाई हूं, मां के चांदी के पायल भी,जब तक चले, फिर तो रुपए मिल ही जाएंगे.”

“कई बार नई लड़कियों का शोषण होता है, सावधान रहना!”

मतलब?”

“कोई तुम्हारा नाजायज फायदा उठा कर तुम्हे ठग सकता है,जैसे कोई कहे कि हम तो तुम्हे नाम पैसा सब देंगे, बदले में तुम क्या दोगी,तो -”

” जो कहेंगे वही करने का कहूंगी!”

“अरे! तुम्हारी उम्र कितनी है! तुम्हे समझ नहीं आती क्या बात!”

“अठारह साल!”

” छोड़ो, इससे आगे और क्या क्या समझाऊं तुम्हे! अगर रात को वापिस मेरे पास आने का मन हो तो फोन कर लेना मुझे.”

उस रात तो क्या महीने भर देवांश को शिप्रा का पता नहीं लग पाया.

और एक रात अभी वह अपने कमरों की बत्ती बुझाकर सोने चला ही था कि उसके दरवाजे पर किसी ने आवाज दी .

थोड़ा झल्लाया, दिन भर के खटे मरे, नींद से बोझिल आंखों में स्वागत सत्कार का आल्हाद कहां से लाए? झल्लाहट में दरवाजा खोला और सामने शिप्रा को देख अवाक रह गया.

सुंदर सजीली,एक ही नजर में भा जाने वाली लडकी जैसे अचानक कोयले के खदान से उठ आई हो! आंखों के नीचे गहरी कालिख!तनाव से चेहरा सूखा सा! विषाद के गहरे बादल जैसे अभी बरस पड़ेंगे!

“आओ आओ, फोन कर देती तो लेने चला आता! कहां रही अब तक?

“अंदर आ जाने दो देवांश जी! सब बताती हूं!”

पहले से  ज्यादा समझदार लगी शिप्रा.

रात के दस बज रहे थे, देवांश ने अपना डिनर ले लिया था.सो उस ने बिहारी स्टाईल में दाल भात आलू चोखा ,पापड़, सलाद लगाकर शिप्रा को खिलाया, और  अपने छोटे से पलंग पर उसका बिस्तर लगा दिया.

देवांश बगल वाले छोटे कमरे में अपनी खटिया बिछा कर अभी जाने को हुआ कि शिप्रा ने उसकी कलाई पकड़ ली.

“यहीं इसी कमरे में सो जाओ.अलग मत सोओ !”

“अरे क्यों ?” देवांश को आश्चर्य हुआ.

शिप्रा ने अपना सर झुका लिया.

“कहो!” देवांश ने जोर दिया.

रात कोई दूसरे कमरे से आकर मुझ पर सोते वक्त हमला न कर दे इसका डर लगता है, अच्छा है कोई साथ ही सो रहे, किसी के दरवाजे खोल कर अंदर आ जाने के डर से मै रात को सो ही नहीं पाती!”

“क्या हुआ था, मुझे बताओ, मै तुम्हारा हर डर दूर कर दूंगा .”

उसके स्नेह भरे स्वर में अपनेपन की ऐसी आश्वस्ति थी कि शिप्रा का तनाव कुछ कम होने लगा.

देवांश के पलंग पर दोनो आसपास बैठे थे, शिप्रा कहने लगी-”

उस दिन प्रोड्यूसर हरदीप जी के स्टूडियो के बाहर वेटिंग हौल में रात के आठ बजे तक बैठी मै इंतजार करती रही, आपने मुझे वहां करीब दोपहर के एक बजे छोड़ा था. सोच रही थी आपको फोन कर ही लूं, कि पियोन आकर मुझे बुला ले गया. मुझे एक आलीशान बड़े से कमरे में ले आया वह. यहां सोफे से लेकर पलंग तक सब कुछ मेरी कल्पना से परे की बेहतरीन चीजें थीं.सब कुछ अब जैसे जल्दी होने लगा था. मै घबराई भी थी और उत्सुक भी!

बाहर से मै लौक कर दी गई थी, मुझे अच्छा नहीं लगा, मगर इंतजार करती रही.

कुछ देर बाद हरदीप जी आए.पचपन के आसपास की उम्र होगी उनकी .आराम से बात की, मुझे कुछ छोटे विकनी टाईप के कपड़े दिए और उसे पहन कर आने को कहा. मै झिझक गई, तो आंखें इस तरह तरेरी कि मुझे बदलने जाना पड़ा .बाथरूम से वापिस आई तो देखा तीन लोग शूट के लिए आ पहुंचे थे. जैसा कहा गया वैसा कर दिया, शूटिंग पूरी होने पर  हरदीप जी ने मुझसे कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करवाये. बाकी लोगों के जाने के बाद हरदीप जी ने मुझे नजदीक बिठा कर शाबासी दी और उनके साथ सहयोग करने पर जल्द मुझे स्टार बनाकर मेरे पसंद के हीरो के साथ रोल देने का वादा किया. डिनर आ गया था, और वो बहुत लाजवाब था. हरदीप जी को मैंने अनुरोध किया कि वे बाहर से दरवाजा मत लगाएं,”

“ये तुम्हारा मामला नहीं है” कहकर वे बाहर से बन्द कर चले गए.

फिर ये सिलसिला चल निकला . कभी बाहर भी शूट को ले जाते तो उनकी वैन में, काम ख़तम होते ही मुझ पर ताला जड़ दिया जाता. कितना भी समझा लूं,  वे मुझे सांस लेने की इजाजत नहीं देते!”

“सोते हुए तुम पर कभी हमला हुआ था? क्या वजह है तुम्हारे डर की?”

“यूं तो जैसे मै उनकी खरीदी गुलाम थी. कभी साज सज्जा के नाम पर, कभी दृश्य और संवाद के कारण वे सभी मेरी देह को खिलौना ही समझते. लेकिन इसके बाद की वो रात मेरे लिए बुरा सपना था! मुझे सपनों से डर लगने लगा है!”

“कहोगी क्या हुआ था?”अनायास ही अधिकार का स्वर मुखर हो गया था देवांश में, लेकिन वह तुरंत संभल गया.

“इस तरह उनके कहे पर उठते बैठते बीस दिन हो गए थे. थकी हारी रात को मै सो रही थी.मध्य रात्रि में जैसे मेरे कमरे को किसी ने बाहर से खोला, मुझे अंदर से बन्द करने की सख्त मनाही थी.

नींद में होने की वजह से जब तक संभल पाती किसी ने अजगर की तरह मुझ पर कब्जा कर लिया, मै उसके पंजो में छटपटाती सी शिथिल पड़ गई. फिर तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. लेकिन सुबह सब कुछ सामान्य रहता  जैसे किसी को कुछ मालूम ही न हो. मै पागल सी होने लगी. मै वहां से निकलना चाहती थी, हरदीप जी से कहा तो सबके सामने मेरा कांट्रैक्ट पेपर दिखा दिया. मुझे हस्ताक्षर करते वक़्त उसे पढ़ना चाहिए था. तीन महीने के मुझे पचास हजार मिलने थे,और एक दिन भी पहले छोड़ना चाहूं तो प्रति दिन दो सौ के हिसाब से जितना बने. मेरे सपनों पर काली स्याही फैल गई थी, मै स्टार बनने के लिए  तिल तिल कितना मरती! शायद पचास हजार का शिकंजा कसकर वे कई को रोक रखते थे और मनमानी करते थे, मुझे लगा आखिर तक शायद वे खुद ही ऐसे हालात पैदा कर दें कि मै तीन महीने से पहले ही छोड़ने को बाध्य हो जाऊं! फिर क्यों नहीं अभी ही निकल जाऊं! मैंने तय किया कि अब और नहीं!

मुझे उन्होंने छह हजार पकड़ा दिए, और मै अपना सबकुछ खो कर निकल आई.”

सब कुछ खोकर से क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम इज्जत की बात कर रही हो? तुमने आगे बढ़ने और सपनों को पूरा करने के लिए जोखिम उठाया, इस जोखिम उठाने को इसलिए गलत नहीं कह सकते क्योंकि तुम एक लड़की हो और सपने बेचने वाले लोग गिद्ध है ! वे जो गिद्घ बने बैठे हैं, उन्हें अपनी इज्जत बचाने के लिए सभ्य होना चाहिए! हां तुम्हारी गलती इतनी है कि जब तुम्हे मैंने आगाह किया, सतर्क होने को समझाया तुमने अपनी धुन में मेरे अनुभव को तवज्जो नहीं दी, सपने देखना और उसके पीछे दौड़ना फिर भी आसान है, लेकिन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जुनून के साथ धीरज की जरूरत होती है, और यह जरा कठिन है!”

“क्या मुझे वापिस समस्तीपुर जाना चाहिए?”

“क्यों? जीवन में कुछ अच्छा सोचने के लिए देहरी तो लांघना ही पड़ता है. मुझे सपने देखना पसंद है, और सपने देखने वाली लड़की भी! अब चलो शुरू से शुरू करते हैं. तुम्हे अब आगे बढ़ाने में मै मदद करूंगा. जिंदगी मसाला चाय नहीं – कि बना और पीया, सपने अच्छे हैं, लेकिन उन्हें हासिल करने में समझदारी चाहिए! समझी !”देवांश ने उसकी आंखों में अपने नजर की मुस्कुराहट बिखेर कर हलके से शिप्रा की हथेली को दबाया. विश्वास और संवेदना से भरी लजाती सी मुस्कान शिप्रा के दिल का हाल बता रही थी.

“सपने पूरे हो जाएं और मुझे भी अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहो तो बन्दा हमेशा हाजिर है ! कभी बता नहीं पाया मगर हमेशा चाहता था कि तुमसे दोस्ती हो जाय!”देवांश मन को धीरे धीरे खोल रहा था.

“देवांश तुम जैसे प्यारे इंसान क्या सचमुच के होते हैं? क्या यह भी तो कोई सपना नहीं ! ”

शिप्रा ने देवांश के कंधे पर अपना सर टिका दिया था.मन का बोझ पिघलने लगा था.सपने देखने का अपराध बोध जाता रहा, शिप्रा फिर से हसीन सपनों को सच करने का सपना देखने लगी थी.

Sad Story : रिश्ते सूईधागों से – सारिका ने विशाल के तिरस्कार का क्या दिया जवाब

Sad Story : आजसारिका बहुत उदास थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने बिखरते घर को कैसे संभाले? चाय का कप ले कर बालकनी में खड़ी हो गई और अतीत के सागर में गोते लगाने लगी…

उस का विवाहित जीवन बहुत खुशमय बीत रहा था. विशाल उस का पति एक खुशमिजाज व्यक्ति था. 2 प्यारेप्यारे बेटों की मां थी सारिका. सबकुछ बहुत अच्छे से चल रहा था. मगर कहते हैं न खुशियों को ग्रहण लगते देर नहीं लगती. ऐसा ही सारिका के साथ हुआ.

अचानक एक दिन विशाल दफ्तर से आ कर गुमसुम बैठ गया तो सारिका ने पूछा, ‘‘क्या हुआ विशाल ऐसे चुप क्यों बैठे हो?’’

‘‘दफ्तर में कर्मचारियों की छंटनी हो रही है और उस में मेरा नाम भी शामिल है,’’ विशाल ने धीमी आवाज में जवाब दिया.

‘‘अरे ऐसा कैसे हो सकता है? तुम तो इतने पुराने और परिश्रमी कर्मचारी हो, दफ्तर के?’’ सारिका गुस्से में बोली.

‘‘यह प्राइवेट नौकरी है और यहां सब हो सकता है और तुम्हें आजकल के दफ्तरों में होने वाली राजनीति के बारे में पता नहीं शायद,’’ विशाल ने उत्तर दिया.

और सच में 3 महीने का नोटिस दे कर विशाल और अनेक कर्मचारियों को मंदी के चलते नौकरी से निकाल दिया गया. एक मध्यवर्गीय परिवार जिस में सिर्फ एक ही सदस्य कमाता हो उस की रोजीरोटी छिन जाने की पीड़ा एक भुग्तभोगी ही समझ सकता है.

उम्र के इस दौर में जहां विशाल 40 वर्ष को पार कर चुका था, अनुभव होने के बावजूद उस की सारी कोशिशें बेकार जा रही थीं. पूरे 2 महीने भटकने के बाद भी हताशा ही हाथ लगी.

आखिर हार कर सारिका ने ही विशाल को सुझव दिया कि कोई छोटामोटा अपना व्यवसाय शुरू करते हैं. स्वयं भी कहां अधिक पढ़ीलिखी थी सारिका. हंसतेखेलते परिवार को न जाने कैसे ग्रहण लग गया कि वह हर समय विशाल छोटीछोटी बातों पर झंझलाता या चिल्लाता.

‘‘सुनोजी, अपने महल्ले की मार्केट में एक दुकान किराए पर ले कर उस में बच्चों के खिलौने और महिलाओं के सौंदर्यप्रसाधन का सामान बेचना शुरू करते हैं. इस में यदि कमाई शुरू हुई तो फिर कुछ आगे बढ़ाने की सोचेंगे.’’

न चाहते हुए भी विशाल को सारिका की बात माननी पड़ी.

2 माह हो चुके थे दुकान खोले पर विशाल तो और चिडि़चिड़ा हो गया था. दोपहर को नौकर राजू विशाल का खाना लेने आया तो उस ने सारिका को बताया, ‘‘अभी फिर एक ग्राहक औरत से साहब ने दुकान में लड़ाई की और वह बिना सामान लिए चली गई,’’

सुन कर सारिका परेशान हो गई.

कहते हैं न औलाद चाहे कितनी भी दूर हो परंतु मां को उस के दुख, मन की थाह दूर बैठेबैठे ही हो जाती है. अभी अपने खयालो में सारिका डूबी हुई ही थी कि अचानक फोन की घंटी बजी. देखा तो उस की मां सरोज का फोन था. आवाज सुनते ही सारिका का रोना निकल गया.

‘‘बहुत दिनों से तू आई नहीं, कुछ देर के लिए मेरे से मिलने आ जा, फिर मांबेटी खूब बात करेंगे.’’

सरोज की बात सुन कर सारिका का भी मन मां से मिलने का कर गया. दोनों बच्चों को बता कर सारिका झटपट मां से मिलने निकल गई.

मायके पहुंचते ही मां की गोद में सिर रख कर फफक कर रो पड़ी. घर पर सिर्फ मां और भतीजा था, भाईभाभी तो अपने काम पर गए हुए थे. अनुभवी मां ने भी बेटी को जी भर कर रो लेने दिया. जानती थीं कि ऐसे ही उन की बेटी यों अचानक उन से मिलने नहीं आई है.

10 मिनट के बाद सरोज बोलीं, ‘‘चल अब बता क्या बात हुई जो मेरी बेटी इतनी परेशान है?’’

‘‘मां, पता नहीं विशाल को क्या हो गया है? हरदम खिलखिलाने वाला विशाल एकदम गुस्सैल व्यक्ति में तबदील हो गया है. आप को पता है कि दुकान पर ग्राहकों से भी गुस्से से बात करता है. अब ग्राहक चीज खरीदने आएंगे तो वे 2-4 तरह की चीजें देखेंगे और तभी खरीदेंगे न और पसंद न आने पर कितनी बार बिना खरीदे हुए भी जाएंगे. हम भी तो एक बार में चीज पसंद नहीं कर लेते न? परंतु विशाल तो ग्राहकों को ही भलाबुरा बोलने लगता है. भला दूसरी बार ग्राहक ऐसी दुकान पर सामान लेने क्यों आएंगे, फिर जहां उन का अपमान वहां?’’ सारिका ने सुबकते हुए कहा.

‘‘तुम ने भी तो दुकान पर जाना शुरू किया था, उस का क्या हुआ?’’ सरोज ने पूछा.

‘‘कुछ दिन मुझ को ले कर गए, फिर पता नहीं अचानक कहने लगे कि मैं अभी

तुम्हें बैठा कर खिला सकता हूं और दुकान पर एक नौकर रख लिया तथा मेरा दुकान पर जाना लगभग बंद कर दिया. अब बताओ आगे ही खर्चा पूरा नहीं पड़ता नौकर का खर्चा भी सिर पर बांध लिया, उस पर घर में रोज का कलहकलेश,’’ सारिका बोली.

‘‘देख बेटी, मेरी बात ध्यान से सुन. सब से पहले तो इस उम्र में नौकरी चले जाने से विशाल के अहं को बहुत बड़ी ठेस पहुंची है. माना उस की इस में कोई गलती नहीं थी, परंतु वह कहीं न कहीं इस के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानता है.

‘‘वैसे भी पुरुष को अपनी हार स्वीकार नहीं होती. दूसरा तेरा पैसा कमाने में सहायता करना बरदाश्त नहीं हो रहा. कहां वह दफ्तर में फाइलों में उलझ रहने वाला व्यक्ति और कहां उसे ऐसे महिलाओं और बच्चों को सामान दिखा कर पैसा कमाना पड़ रहा है, इस से उस के आत्मसम्मान को ठेस पहुंच रही है. हालांकि कोई काम छोटाबड़ा नहीं होता, फिर भी उसे ये सब मजबूरी में करना पड़ रहा है.

‘‘सो सब से पहले तो आज जा कर प्यार से उसे समझ कि इस मुसीबत की घड़ी में तू उस के साथ है. इतने वर्ष उस ने तुझे किसी चीज की कमी नहीं होने दी सो अब तू भी उस के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलना चाहती है. अगर हो सके तो अपनी भाभी का उदाहरण दे देना. दूसरी बात एक ही दिन में चीजें ठीक नहीं होंगी. विशाल के मन की कड़वाहट को मिठास में बदलने में समय लगेगा.

‘‘बेटा अगर विशाल आजकल सूई की तरह दूसरों को चुभने लगा है तो तू धागा बन जा अर्थात अकेली सूई की फितरत चुभने की होती है, परंतु धागे का साथ मिलते ही सूई की फितरत बदलने लगती है. दुकान पर ग्राहकों को सामान तू दिखा और पैसों के काउंटर पर विशाल को बैठा. तू प्रेमरूपी धागे से ग्राहकों को सामान बेच और विशाल ग्राहकों से मोलभाव कर के पैसों का आदानप्रदान करे. साथ ही साथ उस को नौकरी ढूंढ़ने के लिए भी प्रेरित करती रह.

‘‘देखना जब तेरा प्यारभरा साथ होगा तो विशाल अधिक दिन तक निराश नहीं रह पाएगा और हमें हमारा पुराना विशाल वापस मिल ही जाएगा. हर इंसान के वैवाहिक जीवन में कुछ कठिन दौर आते हैं पर यदि घर की औरत समझदारी से काम ले तो वह कठिन समय भी गुजर ही जाता है,’’ समझते हुए सरोज ने प्यार से अपनी बेटी सरोज के सिर पर हाथ फिराया.

अब सारिका के मुख से दुख के बादल छंट गए थे.

‘‘अरे, कहां चल दी?’’ सरोज ने अचानक खड़ी होती सारिका से पूछा.

‘‘इस से पहले मेरी सूई किसी और को चुभे उस का धागा बन कर अपने सपनों को बुनने,’’ सारिका मुसकराते हुए अपनी मां के गले लग कर बोली और चली गई.

आज उस के कदमों में एक नया उल्लास था. उसे उस की मां ने एक मूलमंत्र जो दे दिया था और उस को विश्वास था कि इस मूलमंत्र के साथ वह अपने पुराने विशाल को अवश्य पुन: प्राप्त कर लेगी.

‘‘क्या बात है? आज बहुत खुश लग रही हो?’’ रात को खाने के बाद विशाल ने पूछा.

‘‘आज मां से मिलने गई थी दोपहर को. बहुत दिनों बाद मां से मिल कर बहुत अच्छा लगा,’’ सारिका ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘मुझ से बिना पूछे तुम मां से मिलने चली गई? अब तो नौकरी के बाद मेरी कोई कद्र ही नहीं रह गई इस घर में,’’ विशाल झल्लाया.

‘‘यह क्या हर रोज एक ही जुमला कसते रहते हो? पहले भी तो मां से मिलने चली जाती थी न तो आज क्या हुआ? और हां, कल से मैं भी तुम्हारे साथ दुकान पर चलूंगी… पहले भी तुम ने कभी मुझे नौकरी करने की इजाजत नहीं दी और अब तो अपना काम है और तुम्हारे साथ दुकान में बैठने में क्या हरज है? राजू को काम से हटा देंगे, फालतू के खर्चे अभी नहीं पालने हमें,’’ आज सारिका की आवाज में एक दृढ़ विश्वास था.

कसमसा कर रह गया विशाल… कुछ

बोला नहीं.

अगले दिन से सारिका ने भी दुकान पर जाना शुरू कर दिया. 2-3 दिन में

ही विशाल ने देखा कि सारिका के प्रेम और कुशलतापूर्वक व्यवहार से दुकान की बिक्री में अधिक वृद्धि हो रही है और ग्राहक एक सामान लेने आता है परंतु सारिका बड़ी चतुराई से दूसरे सामान की भी ऐसी प्रशंसा करती है कि ग्राहक उस सामान को भी लेने को ललचा जाता है.

‘‘देख रहा हूं आजकल दुकान पर बहुत सजसंवर कर आने लगी हो?’’ फिर से विशाल का पौरुष उछाल मारने लगा.

‘‘अपनी ही दुकान का सामान पहन कर खड़ी होती हूं तो तुम ने देखा नहीं कि कल एक महिला ग्राहक ने मेरी पहनी बालियां देख कर खरीद लीं… इस से एक तो दुकान की बिक्री बढ़ती है दूसरा अपनी दुकान पर सजसंवर कर भी न बैठूं क्या? तुम्हारे दफ्तर में क्या औरतें यों ही उठ कर चली आती थीं?’’

सारिका के कहते ही विशाल को गुस्सा चढ़ गया. बहुत तेज गुस्से से बोला, ‘‘आजकल देख रहा हूं बहुत जबान चलने लगी है तुम्हारी. औरत हो औरत बन कर ही रहो, मर्द बन कर सिर पर नाचने की कोशिश न करो. 2-4 दिन से दुकान पर क्या आने लगी हो सोचती हो सारी कमाई तुम ही कर रही हो,’’ विशाल आवेश में बोलता चला जा रहा था उसे इतना भी ध्यान नहीं था कि कब से दरवाजे पर खड़ा उन का सप्लायर आकाश विशाल की सारी बातें सुन रहा था?

जैसे ही विशाल की निगाह उस पर पड़ी एकदम बात पलटते हुए बोला, ‘‘कितने दिनों से फोन कर रहे हैं तुम्हें आज फुरसत मिली, पता है तुम्हें कितना सामान खत्म हुआ पड़ा है और ग्राहक लौट कर जा रहे हैं.’’

विशाल की बात पर आकाश मौन रहा, परंतु सारिका की आंखों में आए आंसू आकाश से न छिप सके.

इतने में विशाल का फोन बजा जो बच्चों के विद्यालय से था कि आज स्कूल बस

नहीं आ पाएगी सो उसे बच्चों को अचानक उन के स्कूल ले जाना पड़ा.

‘‘मैडम आप ठीक तो हैं न?’’ आकाश ने विशाल के जाते ही सारिका से पूछा.

आंखों में आए आंसुओं को पोंछते हुए धीमे से सारिका ने सिर हिलाया. तुरंत सामने की दुकान से जा कर 2 कोल्ड ड्रिंक की बोतल ले आया और सारिका के आगे रख दी.

‘‘जी मैं ठीक हूं, आप ने क्यों तकलीफ की,’’ सारिका ने हिचकिचाहट से कहा.

‘‘आप रोने में व्यस्त थीं और मुझे प्यास लगी थी सो आप तो मुझे पानी पिलाने से रहतीं, इसलिए मैं ले आया और तकल्लुफ कैसा दुकानदार को मैं ने कह दिया है कि इस की पेमैंट सामने खड़ी वह खूबसूरत सी महिला करेगी, जो फिलहाल अपनी दुकान पर बाढ़ लाने में व्यस्त है.’’

आकाश के इस मजाक से सारिका खिलखिला कर हंस पड़ी.

ध्यान से देखा करीब 30 साल के आसपास की उम्र होगी आकाश की, देखने में भी अच्छाखासा था और मुख्य बात थी उस के बातचीत करने का लहजा. आज पहली बार मिलने से ही सारिका को लगा जैसे कोई पुराना दोस्त मिल गया हो और फिर दुकान का सामान खरीदतेखरीदते दोनों ने अपने फोन नंबर आदानप्रदान कर लिए.

जातेजाते आकाश मुड़ते हुए बोला, ‘‘इस बार की कोल्ड ड्रिंक मेरी तरफ से थी परंतु हमारी कौफी आप पर उधार है, सो जब कभी दिल करे एक फोन घुमा देना बंदा हाजिर हो जाएगा. और हां, इतनी खूबसूरत आंखों में आंसू अच्छे नहीं लगते और ऐसे व्यक्ति के कारण आंसू बहाना जिस को औरतों की इज्जत करना न आता हो बिलकुल उचित नहीं, मुझे नहीं मालूम आप ऐसे इंसान के साथ इतने बरसों से कैसे रह रही हैं.’’

आकाश के ये शब्द सारिका के दिल में बस गए. कितने बरसों बाद अपनी खूबसूरती की प्रशंसा सुनी थी. उसे याद ही नहीं था कब विशाल ने उस के साथ आखिरी बार प्यार से बात की थी. सच एक औरत यही तो चाहती है अपने पति से स्नेह भरे शब्द और सम्मान.

पूरी रात सारिका के जेहन में आकाश घूमता रहा. धीरेधीरे दोनों की घनिष्ठता बढ़ती चली गई. स्नेह को तरसी सारिका को उस समय आकाश की दोस्ती रास आने लगी. धीरेधीरे दोनों ने वह अदृश्य सामाजिक रेखा भी लांघ ली.

‘‘तुम क्यों होल सेल मार्केट जा रही हो, अकेले? यहां दुकान पर ही सप्लायर को बुला लेते हैं,’’ विशाल बोला. सारिका में आए परिवर्तन को वह भी देख रहा था.

काफी खुश रहने लगी थी आजकल और विशाल की कही बातों का अब उस पर असर भी नहीं होता था. कुसूर सारिका का नहीं था… जब पुरुष बेवजह के बंधन बांधने लगे, बातबात पर घर की स्त्री का तिरस्कार करने लगे तो औरत के कदम किसी और दिशा का रुख कर ही लेते हैं.

‘‘दुकान पर सप्लायर सिर्फ गिनाचुना सामान ही दिखाते हैं और होल सेल मार्केट में मैं स्वयं अपने यहां आने वाले ग्राहकों की पसंद के अनुरूप सामान खरीद सकती हूं. सौंदर्यप्रसाधनों की तुम्हें क्या पहचान और समझ सो मेरा जाना ही जरूरी है और हां आने वालों ग्राहकों से प्यार से बात करना नहीं तो कोई बिक्री नहीं होगी आज,’’ कहते हुए सारिका पर्स उठा कर चली गई.

विशाल ने गौर किया सारिका कि न केवल उस से सस्ता सामान लाती है बल्कि अधिकतर सप्लायर उसे अधिक समय तक उधारी भी देने को तैयार थे जबकि विशाल की आए दिन उन के साथ बहस होती रहती थी. यदि कुछ देर के लिए सारिका दुकान पर न होती थी तो ग्राहक बिना कुछ खरीदे ही वापस लौट जाते थे.

धीरेधीरे दुकान के कार्यों पर विशाल की पकड़ कम होती जा रही थी. बाहर का सारा कार्य सारिका ने ही संभाला हुआ था. विशाल की भूमिका नगण्य होती जा रही थी. विशाल भीतर ही भीतर सुलगता जा रहा था. सब से अधिक तकलीफ तो उसे उस दिन हुई जब विशाल के मना करने के बावजूद सारिका ने बेटी को पैसे दे कर उसे स्कूल ट्रिप पर भेज दिया. उस जैसे अहं में डूबे हुए इंसान के लिए यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल था कि घर के फैसले खासतौर पर बच्चों के भविष्य के लिए एक मां भी निर्णय ले सकती है.

‘‘सुनो मैं 2 दिनों के लिए मुंबई जा रही हूं,’’ सारिका ने कहा.

‘‘मुंबई क्यों जाना है और किस के साथ?’’ आंखों में आए गुस्से को नियंत्रित करते हुए विशाल ने पूछा.

‘‘मैं ने आर्टिफिशियल आभूषणों का व्यापार शुरू करने की सोची है. आकाश वहां कुछ लोगों को जानता है तो उस के साथ वहां से जा कर खरीद कर लाने हैं. परसों सुबह की फ्लाइट से जाएंगे और अगले दिन रात तक वापस आ जाएंगे,’’ सारिका ने जवाब दिया.

‘‘किसी पराए मर्द के साथ तुम्हें जाना शोभा देता है? मैं चलता हूं तुम्हारे साथ,’’ विशाल बोला.

‘‘कमाल करते हो विशाल तुम भी. एक तो तुम वहां किसी को जानते नहीं हो, जबकि आकाश की वहां जानपहचान है और दूसरा यहां बच्चों का खयाल कौन रखेगा? डार्लिंग, यह बिसनैस टूर है कोई घूमनेफिरने थोड़ा जा रही हूं. आप भी तो कितने बिजनैस टूर पर जाते थे… मैं ने तो हमेशा कोऔपरेट किया आप से. बच्चों और ग्राहकों से प्यार से बात करना… पता चले मेरे आने तक बच्चे नानी के घर पहुंच गए और ग्राहक किसी और दुकान के ग्राहक बन गए. चलो अब सोने दो कल तैयारी भी करनी है और परसों सुबह मुझे निकलना है,’’ सारिका ने मुंह फेर कर लेटते हुए कहा.

अपनी ओर से विशाल ने सारिका को अप्रत्यक्ष रूप से रोकने की बहुत

कोशिश की परंतु इस बार विशाल की एक न चली. वह सारिका के इस बदले रूप से हैरान भी था और भयभीत भी.

2 दिन तक जहां सारिका आकाश के साथ मुंबई की सैर में मस्त तो वहीं ये 2 दिन विशाल की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त थे. अभीअभी दुकान पर एक पुरानी महिला ग्राहक से विशाल की झड़प हो गई और गुस्से में उस महिला ने सब के सामने कहा, ‘‘भाई साहब बुरा न मानिएगा, आप को तो गर्व होना चाहिए जो सारिकाजी आप के साथ निभा रही है… मेरे जैसी होती तो आप जैसे कर्कश स्वभाव वाले पति से कब का तलाक ले चुकी होती.’’

उस महिला की बात ने विशाल को झकझर दिया. आत्मचिंतन करने पर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. सच ही तो था उस के बुरे बरताव के कारण ही तो सब लोग उस से दूर होते जा रहे थे… बच्चे, सारिका, ग्राहक, सप्लायर सभी… कहीं सारिका भी तो मुझ से तलाक लेने की नहीं सोच रही? नहींनहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगा… मैं अपने व्यवहार को तुरंत बदल कर अपनी सारिका के बहकते कदमों को रोक लूंगा… बस मन में यही दृढ़ निश्चय विशाल ने कर लिया कि वह आज से सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करेगा और सारिका को भरपूर प्यार और सम्मान देगा. आज जीवन में प्रथम बार उसे सारिका के बजाय अपनी गलती दिखाई दी थी.

होंठों पर एक मुसकराहट ला कर अच्छे मन से विशाल सारिका के वापस आने का इंतजार करने लगा ताकि वह अपनी खोई हुई खुशियां वापस ला सके.

Interesting Hindi Stories : गलतफहमियां

Interesting Hindi Stories : सुबह औफिस के लिए घर से निकली पाखी रात के 8 बजे तक घर नहीं लौटी थी. उस का फोन भी आउट औफ कवरेज बता रहा था. इसलिए उस की मां विशाखा को उस की चिंता सताने लगी. वैसे बोल कर वह यही गई थी कि कालेज से सीधे अपनी दोस्त प्रार्थना के घर चली जाएगी.क्योंकि उस की तबीयत ठीक नहीं है. कुछ देर उस के साथ रहेगी तो उसे अच्छा लगेगा लेकिन इतनी देर. और फोन क्यों नहीं लग रहा उस का. चलो, एक बार प्रार्थना को फोन लगा कर देखती हूं, अपने मन में ही सोच विशाखा ने प्रार्थना को फोन लगा दिया. ‘‘हैलो प्रार्थना, अब तुम्हारी तबीयत कैसी है बेटा? पाखी तो वहीं होगी न, तुम्हारे साथ? जरा बात तो कराओ उस से.’’

‘‘मेरी तबीयत को क्या हुआ है. मैं तो बिलकुल ठीक हूं,’’ आंटी ‘‘प्रार्थना हंसी और बोली, ‘‘मैं तो देहरादून अपनी मौसी की बेटी की शादी में आई हुई है.’’

प्रार्थना की बात सुन कर विशाखा बुरी तरह चौंक पड़ी कि फिर पाखी ने उस से ?ाठ क्यों कहा कि इस की तबीयत खराब है और वह इसे देखने जा रही है.

‘‘उफ, शायद मुझ से ही सुनने में गलती हुई होगी. कोई बात नहीं, ऐंजौय करो तुम,’’ कह कर विशाखा ने फोन रख दिया. लेकिन उस का दिमाग झनझना उठा यह सोच कर कि उस की बेटी ने उस से ?ाठ कहा. पर क्यों?

तभी कौलबैल बजी, तो उसे लगा पाखी ही आई होगी लेकिन सामने अपने पति रजत को देख कर उस के मुंह से निकल गया, ‘‘अरे तुम हो?’’

‘‘क्यों, किसी और का इंतजार कर रही थी?’’ रजत हंसा.

‘‘नहीं, वह… मुझे लगा पाखी आई है. वैसे आने के पहले फोन क्यों नहीं किया तुम ने?’’

‘‘अब अपने घर आने के लिए भी फोन करना पड़ेगा मुझे,’’ अपनी आदतानुसार रजत हंस पड़ा और कहने लगा, ‘‘कल गुरुनानक जयंती की छुट्टी है तो सोचा घर जाकर तुम्हें सरप्राइज दूं. लेकिन तुम्हें देख कर तो लग रहा है मेरे आने की तुम्हें जरा भी खुशी नहीं हुई.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. अच्छा तुम फ्रैश हो जाओ, तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बना लाती हूं.’’

‘‘नहीं, चाय की जरूरत नहीं है मुझे. तुम यहां आ कर बैठो,’’ विशाखा का गंभीर चेहरा देख कर रजत ने अंदाजा लगाया कि कोई बात जरूर है, ‘‘क्या हुआ सब ठीक है? और पाखी अभी तक औफिस से नहीं आई है क्या?’’

‘‘अब पता नहीं औफिस में है कि कहां है. क्योंकि घर से तो यही बोल कर गई थी कि उस की दोस्त प्रार्थना की तबीयत खराब है इसलिए औफिस से सीधे उस के घर चली जाएगी पर वह वहां भी नहीं है. फोन किया था मैं ने.’’

‘‘अरे, तो होगी अपनी किसी दूसरी दोस्त के घर, आ जाएगी. बेकार में टैंशन मत लो.’’ रजत ने कह तो दिया पर पता है उसे कि विशाखा फिर भी टैंशन लेगी ही क्योंकि आदत जो है उस की हर छोटीछोटी बात पर टैंशन लेने की. लेकिन रजत को नहीं पता कि वह फालतू में टैंशन नहीं ले रही है. रजत तो महीनेपंद्रह दिन पर मुश्किल से 5-6 दिन के लिए घर आता है, तो वह क्या जाने कि उस की बेटी पाखी क्या कर रही है. रोज कोई न कोई बहाना बना कर, अपनी मां से झूठ बोल कर वह उस लड़के रोहित से मिलने जाती है, जबकि जानती है विशाखा को वह लड़का जरा भी पसंद नहीं है. अरे, वह है ही नहीं पाखी के लायक. लेकिन जाने उस रोहित ने कौन सा मंत्र फूंक दिया है पाखी के कानों में कि वह उसी का नाम जपती रहती है. रोहित को देखते ही विशाखा को चिढ़ हो आती है क्योंकि शक्ल से ही चालबाज लगता है वह.

‘‘अच्छा, अब ज्यादा ओवरथिंकिंग करना बंद करो, समझ. बेकार में कुछ भी सोचती रहती हो और मेरा भी दिमाग खराब करती हो. अरे, दोस्त हैं दोनों, तो मिलने चली गई होगी. इस में कौन सी बड़ी बात हो गई,’’ विशाखा को गुम बैठे देख रजत बोला.

‘‘अरे, कोई दोस्तवोस्त नहीं है दोनों. प्यार करती है वह उस लफंगे से. अगर जाना ही था तो ?ाठ बोल कर जाने की क्या जरूरत थी?’’ विशाखा विफर उठी.

‘‘अब तुम जैसी हिटलर मां हो तो बेचारे बच्चे तो झूठ ही बोलेंगे न. वैसे सच कहूं तो मुझे भी तुम से बहुत डर लगता है,’’ बोल कर रजत ठहाके लगा कर हंसा तो विशाखा को जोर का गुस्सा आ गया.

‘‘तुम्हें हर बात में बस खीखी करना आता है. तुम ने ही बिगाड़ रखा है अपनी लाडली को. तुम्हारे कारण ही उस की नजरों में मैं एक बुरी मां साबित हो गई हूं क्योंकि मैं उस की मनमानी नहीं सहती न. तुम्हारी तरह उस की हर आलतूफालतू बात में हां बेटा हां बेटा नहीं करती न. तो मैं तो उस की दुश्मन लगूंगी ही.’’

विशाखा का गुस्सा देख रजत कहने लगा कि वह तो बस मजाक कर रहा था. और क्यों वह बेकार में इतनी टैंशन लेती है. पाखी कोई बच्ची थोड़े ही है. अपना भलाबुरा खूब समझती है वह. और विशाखा का कहना था कि बेवकूफ है वह लड़की. नहीं समझती कि वह लड़का केवल उसे यूज कर रहा है.

तभी गाड़ी रुकने की आवाज से विशाखा बालकनी में भागी तो देखा पाखी रोहित की गाडी से बाहर निकल रही है. दोनों को एकदूसरे को किस करते देख विशाखा के तनबदन में आग लग गई. मन तो किया उस का कि अभी नीचे जा कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगा दे और कहे कि पाखी को छूने की उस की हिम्मत भी कैसे हुई. मगर जब यहां अपना ही सिक्का खोटा है तो किसी और को क्या कहा जाए.

‘‘कहां थी तुम?’’ दरवाजा खोलते ही विशाखा फट पड़ी.

‘‘कहां थी का क्या मतलब है? अरे, बोल कर तो गई थी कि प्रार्थना की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए औफिस से सीधे उस के घर चली जाऊंगी.’’

‘‘अरे, और कितना झूठ बोलोगी,’’ पाखी का कंधा पकड़ कर उस ने जोर से धकेला, तो वह हिल गई.

‘‘तुम्हें क्या लगा, तुम हमारी आंखों में धूल झांकती रहोगी और हमें कुछ दिखाई नहीं देगा? तुम फिर उस लफंगे रोहित से मिलने गई थी न? मैं ने तुम्हें उस से मिलने को मना किया था न? फिर क्यों गई उस से मिलने?’’ विशाखा चीख पड़ी.

‘‘ज्यादा चिल्लाओ मत,’’ पाखी ने भी आंखें तरेरीं, ‘‘हां, गई थी उस से मिलने तो? तो क्या कर लेंगी आप? आप सुन लो कान खोल कर. मैं रोहित से प्यार करती हूं और आप मुझे उस से मिलने से नहीं रोक सकतीं. वैसे भी आप होती कौन हो मुझे रोकने वाली?’’ पाखी की बात पर रजत ने उसे डांटा कि वह अपनी मम्मी से ऐसे कैसे बात कर रही है. तमीज नाम की कोई चीज है कि नहीं उस में?

‘‘और मम्मी में तमीज है कोई? हर समय जो वे, ‘वह लफंगा वह लफंगा’ कहती रहती हैं क्या उस का कोई नाम नहीं है? पापा आप ही बताओ, क्या मैं कोई मुजरिम हूं जो रोजरोज इन के सवालों के जबाव देने पड़े मुझे? जरा कभी औफिस से आने में देर क्या हो जाती है, पुलिस की तरह सवाल पर सवाल दागने लगती हैं. इन्हें क्यों लगता है कि रोहित आवारा, लफंगा लड़का है? मुझ में भी दिमाग है. मुझे पता है कि मेरे लिए कौन सही और कौन गलत है.’’

दोनों मांबेटी को यों लड़तेझगड़ते देख कर रजत परेशान हो उठा. किसी तरह पाखी को समझाबुझा कर उसे उस के कमरे में भेज कर विशाखा को भी चुप रहने को कह वह भी अपने कमरे में चला गया. समझ ही नहीं आ रहा था उसे कि यहां कौन सही है और कौन गलत. पाखी कोई 2 साल की बच्ची तो है नहीं न जो उसे हर बात के लिए रोकाटोका जाए. रस्सी को उतना ही खींचना चाहिए, जितना जरूरी हो वरना वह टूट जाएगी. विशाखा को यह बात समझासमझा कर हार गया था वह, पर वह समझती ही नहीं थी. जवान लड़की है, कहीं कुछ ऐसावैसा कर लिया तो क्या करेगी फिर?

‘‘नहीं, बहुत हो गया अब तो. मुझे अब इस घर में रहना ही नहीं है,’’ भुनभुनाती हुई पाखी अपने कमरे में जा कर अपना कपड़े अटैची में डालने लगी क्योंकि अपनी मां की रोजरोज के रोकटोक से वह तंग आ चुकी थी. अभी वह घर से बाहर निकलने ही लगी कि विशाखा ने उस का हाथ जोर से पकड़ लिया, ‘‘कहां जाओगी?’’ विशाखा को लगा कहीं बेटी सच में ही घर से चली न जाए. भले ही वह अपनी बेटी पर रोकटोक लगाती थी, मगर प्यार भी वह उस से बहुत करती थी. विशाखा को इसी बात की चिंता लगी रहती थी कि उस की मासूम बेटी कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाए उस लफंगे के चक्कर में. जमाना ठीक नहीं है. किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है. मगर पाखी को तो अपनी मां दुश्मन ही नजर आती.

‘‘कहीं भी, लेकिन इस घर से और आप से बहुत दूर. छोड़ो मुझे,’’ विशाखा का हाथ जोर से ?ाटकते हुए वह बोली, ‘‘मैं पूछती हूं आप मेरी जिंदगी में दखल देने वाली होती कौन हो?’’

‘‘तेरी जिंदगी. अब यह तेरी जिंदगी है? मैं ने तुम्हें 9 महीने अपनी कोख में रखा, पालापोसा, बड़ा किया और अब यह तुम्हारी जिंदगी हो गई. हम तुम्हें किसी मुसीबत में नहीं फंसने देना चाहते हैं, यह बात क्यों नहीं समझती तू? वह लड़का तेरे लिए कहीं से भी ठीक नहीं है. तू उस के साथ कभी खुश नहीं रह पाएगी. उस के साथ तेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी बेटा,’’ एक मां होने के नाते उस ने पाखी को समझना चाहा. लेकिन पाखी कहां समझने वाली थी. उसे तो अपनी मां की कोई भी बात अच्छी नहीं लग रही थी.

‘‘सब से बड़ी मुसीबत तो आप हो मेरी जिंदगी में. आप बरबाद कर रही हैं मेरी जिंदगी. आप ने मुझे पैदा कर के कोई बहुत बड़ा एहसान नहीं किया है. बेटा यह मत करो, बेटा वह मत करो, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ. अरे, थक चुकी हूं मैं आप से और आप के इन बेतुके सवालों से. मैं कह रही हूं आप निकल जाओ मेरी जिंदगी से,’’ पाखी चीख पड़ी, ‘‘नहीं आप मत निकलो, मैं ही निकल जाती हूं आप की जिंदगी से हमेशाहमेशा के लिए, खुश?’’

अपनी बेटी के व्यवहार को देख विशाखा की आंखों से आंसू गिर पड़े.

पाखी बाहर जानेलगी तो रजत ने उसे रोका कि इस तरह इतनी रात गए बाहर जाना उचित नहीं है, इसलिए वह अपने कमरे में जाए.

रजत का कहा मान कर वह अपने कमरे में जा कर उस ने इतनी जोर से दरवाजा लगाया कि अपने पापा का भी लिहाज नहीं किया कि उन्हें बुरा लगेगा.

पाखी का ऐसा व्यवहार देख कर रजत को बहुत दुख हुआ. लेकिन गुस्सा उसे विशाखा पर भी आ रहा था कि जरूरत ही क्या उसे कुछ बोलने की. वह अब बच्ची थोड़े है.

‘‘क्या फायदा हुआ बोलने का बोलो? तुम और उस की नजरों में बुरी बनती जा रही हो,’’ रजत ने अपनी पत्नी को समझाना चाहा.

‘‘फायदा? यह तुम्हारा बैंक नहीं है रजत जो हर चीज में लौस और प्रौफिट देखा जाए. पाखी हमारी बेटी है. जानबूझ कर उसे गड्ढे में गिरने नहीं दे सकते. हम उसे सही रास्ता नहीं दिखाएंगे तो और कौन दिखाएगा?’’

विशाखा सही ही कह रही थी, रोहित अच्छा लड़का नहीं है. लड़कियों के साथ घूमना, शराबसिगरेट और ड्रग्स पीना उस की आदत में शामिल है. यह भी सच है कि पहले उस की एक शादी हो चुकी है. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही उस की बीवी एक ऐक्सीडैंट में मर गई. अब पता नहीं ऐक्सीडैंट हुआ या करवाया गया.

विशाखा को यह सारी बातें अपनी एक किट्टी की फ्रैंड से पता चलीं जो उसी सोसायटी में रहती है जिस सोसायटी में रोहित और उस की मां रहती है. उस की दोस्त ने यह भी बताया कि रोहित के मातापिता का वर्षों पहले तलाक हो चुका है और वह सिंगल मदर है. रोहित की मां एलआईसी में जौब करती है और ज्यादातर वह अपने घर से बाहर ही रहती है. बेटा क्या करता है, कहां रहता है इस बात की उसे कोई खबर नहीं होती है.

ऐसा नहीं है कि रोहित अनपढ़ गंवार है. इंजीनियरिंग की है उस ने. जौब भी लगी पर वह जौब उस ने छोड़ दी क्योंकि उसे वहां मजा नहीं आ रहा था. वह बिजनैस करना चाहता था. मगर बिजनैस में भी वह फिसड्डी निकला. अभी वह फिर किसी छोटीमोटी प्राइवेट कंपनी में जौब कर रहा है. लेकिन उसे बहुत पैसा चाहिए, इसलिए उस ने पैसे वाली पाखी को अपने जाल में फंसाया, उस से प्यार का नाटक किया और अब उस से शादी करना चाहता है ताकि पूरी जिंदगी उस की आराम से कट सके. खैर, उन की निजी जिंदगी से विशाखा को कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन वह इसलिए उस के बारे में जांचपड़ताल करती रहती है क्योंकि उस की बेटी रोहित के चक्कर में फंसी है.

विशाखा ने कई बार समझाया अपनी बेटी को कि रोहित उस से नहीं बल्कि उस के पैसों से प्यार करता है. जानता है कि पाखी इतनी बड़ी कंपनी में नौकरी करती है. पाखी के पापा यानी रजत भी बड़े सरकारी बैंक में ऊंचे ओहदे पर हैं. इस के अलावा उन की जितनी भी संपत्ति है, उन के बाद पाखी की ही होने वाली है. मगर पाखी यह बात मनाने को तैयार ही नहीं है कि रोहित उस से नहीं बल्कि उस के पैसों से प्यार करता है. पता नहीं क्या घुट्टी पिला दी है उस लड़के ने पाखी को कि उस के बारे में एक शब्द नहीं सुनना चाहती वह. उलटे अपनी मां से ही लड़ने लगती है जैसे वह उस की सब से बड़ी दुश्मन हो.

उस रात विशाखा बोलतेबोलते सुबक उठी कि कहीं उस लड़के ने उस की बेटी के साथ कुछ ऐसावैसा कर दिया तो क्या करेंगे वे? एक ही तो बेटी है उन की. कैसे जीएंगे उस के बिना?

‘‘एक मां होने के नाते तुम्हारी चिंता जायज है लेकिन यह भी तो हो सकता है तुम जो सोच रही हो वह निरधार हो? चलो अब सो जाओ, रात बहुत हो गई है,’’ अपने सिर पर हाथ रख रजत ऊपर छत की तरफ देखते हुए न जाने क्या सोचने लगा और फिर उस की आंख लग गई.

27 साल की पाखी कौरपोरेट जौब करती है. मोबाइल शौप में उस की मुलाकत रोहित से हुई थी. दोनों अकसर मिलने लगे तो उन की दोस्ती हो गई जो धीरेधीरे प्यार में बदल गई. दोनों 2 साल से रिलेशनशिप में हैं और अब वह अपने इस रिश्ते को एक नाम देना चाहते हैं. लेकिन हाल तो यह है कि विशाखा इस रिश्ते के खिलाफ है और पाखी है कि रोहित के अलावा और किसी से शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती.

‘‘अब हमारे पास एक ही रास्ता बचता है और वह यह कि हम भाग कर शादी कर लें,’’ पार्क में घास पर लेटे रोहित ने सुझाया.

‘‘भाग कर? नहींनहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’

‘‘तो फिर जाओ, कर लो अपने मांपापा

के पसंद के लड़के से शादी,’’ रोहित जरा चिढ़ते हुए बोला.

‘‘और तुम क्या करोगे फिर?’’ पाखी मुसकराई.

‘‘मैं? मैं भी अपनी मां की पसंद की लड़की से शादी कर लूंगा और क्या. लेकिन एक बात सुनो. हम दोनों एकदूसरे की शादी में जरूर आएंगे, यह वादा करो,’’ रोहित की बात पर पाखी को हंसी आ गई.

रोज की तरह आज भी पाखी औफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी. मगर उस के दिमाग में ढेरों उल?ानें चल रही थीं. सम?ा नहीं आ रहा था उसे कि बात कैसे और कहां से शुरू करे. वह अपनी मां विशाखा से उल?ाना नहीं चाहती थी बेकार में. लेकिन बात तो करनी ही होगी, अपनेआप में भुनभुनाते हुए जब उस की नजर घड़ी पर पड़ी तो घबरा उठी कि आज रोहित ने उसे जल्दी बुलाया है. तभी विशाखा ने आवाज लगाई कि वह आ कर नाश्ता कर ले, रोहित से ध्यान हट कर अपनी मां की बातों पर चला गया.

‘‘देखो, आज मैं ने तुम्हारी पसंद के छोलेभठूरे बनाए हैं,’’ प्लेट में उस के लिए नाश्ता परोसते हुए विशाखा बोली. कल की बात को ले कर विशाखा भी गिल्ट फिल कर रही थी कि पाखी को कितना कुछ सुना दिया उस ने. पाखी ने अजीब तरह से नाश्ते की तरफ देखा और यह कह कर कुरसी से उठ खड़ी हुई कि इतना औयली नाश्ता उस के गले से नहीं उतरेगा.

‘‘तो तो मैं तुम्हारे लिए उपमा या पोहा बना देती हूं न, अभी 2 मिनट में बन जाएगा.’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं चाहिए. वैसे भी मुझे देर हो रही है,’’ कह कर वह घर से निकल गई. न कोई बाय न यह बताया कि घर कब आएगी. किसी से फोन पर बात करते हुए बाहर निकल गई. अजीब व्यवहार होता जा रहा था उस का अपने मातापिता के प्रति और यह बात रजत भी अब नोटिस करने लगा था.

दरअसल, कल रात पाखी और उस के पापा के बीच शादी की बात को लेकर जरा अनबन हो गई. पाखी का कहना था कि वह रोहित से प्यार करती और उस से ही शादी करना चाहती है. लेकिन रजत का कहना था कि पहले वह जान तो ले कि रोहित उस के लायक है भी या नहीं. उस पर पाखी कहने लगी कि उसे पता है रोहित उस के लायक है. और कोई क्या सोचता है उन के रिश्ते के बारे, इस बात से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

पाखी का इशारा अपनी मां की तरफ था. उस की बात पर रजत को गुस्सा आ गया और उस ने कह दिया कि वे उस के मातापिता हैं. इसलिए उस का भला बुरा सोचना भी उन का ही काम है. वह अभी नासमझ है. उसे नहीं पता है कि दुनिया में कितने धोखेबाज इंसान, शराफत का चोला ओढ़े घूम रहे हैं

‘‘ठीक है आप लोगो को जो समझना है समझते रहिए. लेकिन रोहित मेरे लिए सही है और यही सच है. और मेरा फैसला अब भी वही है पापा की शादी तो मैं रोहित से ही करूंगी वरना उम्रभर कुंआरी रह जाऊंगी.’’

जवान बेटी से ज्यादा मुंह लगाना रजत को अच्छा नहीं लगा, इसलिए चुप रहने में ही भलाई समझ. पाखी को जिद पर अड़े देख कर रजत को अब डर लगने लगा था कि कहीं यह लड़की किसी मुसीबत में न फंस जाए. वह स्वयं तो 15 दिन पर मुश्किल से 2 रोज के लिए घर आ पाता है. बाकी के दिन तो वह दूसरे शहर में अपनी नौकरी में व्यस्त रहता है.

रजत ने जानबूझ कर बैंक से हफ्तेभर की छुट्टी ले ली ताकि उस रोहित के बारे में पर्सनली जानकारी जुटा सके. देखना चाहता था वह कि क्या सच में रोहित का कई लड़कियों से चक्कर है और यह भी कि वह कुछ कमाता भी है या यों ही डींगे मारता है.

मगर विशाखा ने जोजो बातें उस रोहित के बारे में बताईं वे सब सच निकलीं. रोहित एक बिगड़ा हुआ लड़का है. रोज नईनई लड़कियों के साथ घूमनाफिरना और ऐश करना उस की आदतों में शामिल है. शराबसिगरेट का भी आदी है वह. सब से बड़ी बात की उन का अपना कोई घर नहीं है. दोनों मांबेटे एक किराए के घर में रहते हैं, जिसे वह सब से अपना बताते फिरता है, जबकि उस मकान का मालिक कोई और ही है. हां, उस की पहले भी एक शादी हो चुकी है. इस के अलावा रोहित की मां का अपने पति से वर्षों पहले तलाक हो चुका है और रोहित के पिता दुबई में रहते हैं.

रोहित ने खूब सोचसमझ कर पाखी को अपने प्यार के जाल में फंसाया ताकि उस की जिंदगी आराम से गुजार सके. लेकिन रजत यह बात पाखी को बताएगा कैसे? और क्या वह रजत की बातों पर विश्वास करेगी. लेकिन बताना हो पड़ेगा.

मगर वही हुआ जिस का रजत को डर था. अपने पापा की बात समझने के बजाय वह उन से ही लड़ पड़ी और गुस्से में अपना सामान उठा कर रोहित के घर रहने चली गई. रोहित की मां का दूसरे शहर में ट्रांसफर हो गया तो रोहित यहां अकेले ही रह रहा था. अब पाखी भी उस के साथ उस के घर में रहने लगी. वहां से वह रोज औफिस आनेजाने लगी.

आज महीना हो चुका था पाखी को इस घर से गए. इस बीच न तो उस ने अपने मांपापा को कोई फोन किया न ही उन का फोन उठाया. एक रोज रजत और विशाखा जब उस से मिलने उस के औफिस पहुंचे तो उस ने अपने मातापिता से मिलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वे उन के कुछ नहीं लगते. बेचारे दोनों रोंआसे से हो कर घर लौट आए. जो मांबाप अपने बच्चों के लिए क्याक्या नहीं करते हैं उन की खुशियों को पहले देखते हैं वही बच्चे इतने स्वार्थी और पत्थर दिल कैसे बन जाते हैं. खैर, रजत और विशाखा ने भी अब अपने दिल पर पत्थर रख लिया था.

उधर रोहित के साथ रहते हुए पाखी का दिन सोने के और रातें चांदी की हो गई थीं.

रोज वह उस के साथ घूमफिर और मौज कर रही थी. उसे तो अब अपने मांपापा की याद भी नहीं आती थी. जो भी था बस रोहित ही था उस के लिए. दोनों ने कोर्ट मैरिज करने का फैसला कर लिया था और इस के लिए उन्होंने कोर्ट में अर्जी में डाल दी थी.

कल रोहित का जन्मदिन था और पाखी ने उस के लिए कुछ सरप्राइज प्लान किया था. सुबह वह यह कह कर अपने औफिस के लिए निकल गई कि आज शायद उसे घर आने में थोड़ी देर हो जाए. इसलिए वह खाने पर उस का इंतजार न करे. लेकिन असल में उस ने 2 दिन की छुट्टी ले रखी थी ताकि रोहित का जन्मदिन अच्छे से सैलिब्रेट कर सके. मगर यह बात उस ने रोहित को बताई नहीं थी क्योंकि उसे सरप्राइज जो देना चाहती थी.

मौल जा कर उस ने रोहित के लिए ढेर सारी शौपिंग की. बढि़या होटल बुक किया. उस के लिए ऐक्पैंसिव गिफ्ट खरीदा. 4-5 घंटे तो उस के इसी सब में निकल गए. बहुत थक चुकी थी. इसलिए घर जा कर थोड़ा आराम करना चाहती थी क्योंकि फिर शाम की पार्टी की भी तैयारी करनी थी उसे. डुप्लिकेड चाबी से दरवाजा खोल कर जब वह घर के अंदर गई और जो उस ने देखा, उस के पांवों तले की जमीन खिसक गई. रोहित एक लड़की के साथ हमबिस्तर था. गुस्से के मारे वह थरथर कांपने लगी. वह कमरे के अंदर जा ही रही थी कि उन दोनों की बातों ने उस के कदम वहीं रोक लिए.

‘‘अब तो तुम उस पाखी से शादी करने जा रहे हो, फिर मुझे तो भूल ही जाओगे,’’ अपनी ऊंगली रोहित के बदन पर फिराते हुए वह लड़की बोली.

‘‘हां शादी तो करने जा रहा हूं पर उस से नहीं, बल्कि उस के पैसों से.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि शादी मैं किसी बंधन में बंधने के लिए नहीं कर रहा हूं बल्कि लग्जरी लाइफ जीने के लिए कर रहा हूं. पाखी तो बस एक जरीया है मेरी ऐशोंआराम के साधन का,’’ और रोहित ठहाके लगा कर हंसा, ‘‘बेवकूफ लड़की. उसे लगा वह कोई हूर की परी है और मैं उस की सुंदरता पर मर मिटा हूं. लेकिन उस की जैसी कितनी आई और गईं मेरी जिंदगी से और सब को मैं ने यों ही मसलमसल कर फेंक दिया. वह तो पाखी बहुत पैसे वाली बाप की एकलौती बेटी है इसलिए उस के साथ बेइंतहा प्यार का नाटक करना पड़ रहा है मु?ो और यह शादी भी एक नाटक ही है मेरी जान,’’ कह कर उस ने उस लड़की को अपनी आगोश में भर लिया और उसे यहांवहां चूमने लगा, जो पाखी से देखा नहीं गया. रोहित की बात सुन कर पाखी का खून खौल उठा. उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि रोहित इतना घटिया इंसान है.

‘‘और तुम्हें क्या लगता है पाखी तुम्हें इतने आराम से अपनी दौलत लुटाने देगी?’’ वह लड़की बोली.

‘‘हां, लेकिन उस के बाद तो उस की सारी संपत्ति का मालिक मैं ही होऊंगा न.’’

‘‘पर कैसे?’’ उस लड़की ने पूछा.

‘‘अब रोज कितने ही ऐक्सीडैंट होते हैं तो एक और सही.’’

रोहित की बात सुन कर पाखी की रूह कांप उठी. एकाएक उसे अपनी मां की कही बातें याद आने लगीं कि रोहित की पहले भी एक शादी हो चुकी है और उस की बीवी एक ऐक्सीडैंट में मर गई. तो क्या इस रोहित ने ही अपनी बीवी का… और क्या यह सिर्फ मेरे पैसों से प्यार करता है मुझ से नहीं? कितना सम?ाया मां ने, पापा ने मुझे कि रोहित अच्छा लड़का नहीं है. लेकिन मैं पागल उन्हें ही अपना दुश्मन सम?ा बैठी,’’ पाखी ने अपने बाल नोच लिए कि यह क्या कर लिया उस ने. कैसे नहीं समझ पाई इस रोहित को  और इस के नापाक इरादों को?

पाखी ने अपने आंसू पोंछे और रोहित की 1-1 बात अपने मोबाइल में रिकौर्ड कर ली और वहां से निकल गई क्योंकि अब यहां रुकना उस की जान के लिए खतरा था.

रात के 11 बजे दरवाजे की घंटी की आवाज से रजत और विशाखा दोनों घबरा उठ बैठे, ‘‘इतनी रात गए कौन हो सकता है?’’

‘‘पता नहीं, देखते हैं,’’ बोल कर जब विशाखा ने दरवाजा खोला और सामने पाखी को खड़े देखा तो हैरान रह गई.

कुछ बोलती उस से पहले ही पाखी अपनी मां के गले लग फूटफूट कर रोने लगी. कहने लगी कि उस की मां सही थी. रोहित अच्छा लड़का नहीं है. उस ने उस से चीट किया. उस से बहुत बड़ी गलती हो गई उसे पहचाने में. अपने मांपापा को ले कर जो गलतफहमियां उस ने अपने मन में पाल रखी थीं वे सब दूर हो चुकी थीं.

मगर सारी बातें जानने के बाद रजत का खून खौल उठा. सोच लिया कि वह रोहित को छोड़ेगा नहीं. उसे पुलिस में देगा. लेकिन विशाखा ने उसे शांत करते हुए कहा कि जो हुआ उस बात पर मिट्टी डालो. खुश हो जाओ कि हमारी बेटी हमारे पास वापस आ गई. लेकिन पाखी उस रोहित को सबक सिखाना चाहती थी.

उस के कई बार फोन करने के बाद भी जब पाखी ने उस का फोन नहीं उठाया तो रोहित खुद उस से मिलने उस के घर पहुंच गया और कहने लगा कि उसे पाखी की बहुत चिंता होने लगी कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया.

‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ है मुझे बल्कि मेरे साथ अनहोनी होतेहोते रह गई.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ तुम्हें? तुम ठीक तो हो?’’ पाखी के करीब जाते हुए रोहित बोला.

‘‘अब अपना यह नाटक बंद करो समझे?’’ कह उस ने रोहित के गाल पर तड़ातड़ 3-4 थप्पड़ जड़ दिए और उस की रिकौर्डिंग की हुई सारी बात उसे सुना दी, जिसे सुन कर वह सन्न रह गया.

‘‘तुम भी सोच रहे होंगे कि यह क्या हो गया? बात बनतेबनते रह गई. अब तुम्हारी ऐशोआराम का क्या होगा? नहीं, कोई सफाई देने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुम्हारा असली चेहरा अब मेरे सामने है. इसलिए जाओ यहां से और कभी मुझे अपनी यह मनहूस शक्ल मत दिखाना नहीं तो सीधे जेल जाओगे,’’ कह उस ने रोहित को अपने घर से धक्का दे कर बाहर निकाल दिया और दरवाजा बंद कर दिया. मांबेटी के बीच जो भी गलतफहमियां थीं वे सब दूर हो चुकी थीं.

Love Stories : प्रीत का गुलाबी रंग

Love Stories : पुणे शहर के पौश इलाके में बनी रेशम नाम की आलीशान कोठी आज दुलहन की तरह सजी थी. मौका था कोठी के इकलौते वारिस विहान की सगाई का. उस की मंगेतर लता भी सम्मानित घराने से थी. विहान की मां वैदेही जिन्हें विहान मांजी कहता था, बेहद गरिमामय, उच्च विचारों वाली और शांत स्वभाव की महिला थीं. वे लता को बेहद पसंद करती थीं और उन की पसंद ही विहान की पसंद भी बनी इस बात की उन्हें बेहद खुशी थी.

रौयल ब्लू डिजाइनर सूट में विहान और रानी पिंक लहंगे में सजी लता को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे दोनों एकदूजे के लिए ही बने हैं. आयोजन में शामिल सभी मेहमानों ने इस खूबसूरत जोड़े की भूरीभूरी प्रशंसा की. वर्तमान समय में भी लता की नज़रें विहान को देखते हुए शरमा रही थीं और चेहरा सुर्ख हो रहा था.

‘‘भाभी,क्या बात है आप तो ऐसे शामा रही हैं जैसे विहान भैया को पहली बार देख रही हैं पर आप दोनों का प्रेम तो जन्मोंजन्मों से है,’’ वर्षा ने लता को शरारत भरे स्वर में छेड़ते हुए कहा.

‘‘क्या करूं वर्षा, पता नहीं क्या हो रहा

है आज, देख न दिल किस कदर जोरजोर से धड़क रहा है,’’ लता वर्षा की ओर देखते हुए धीमे से बोली.

वर्षा ने उसे गले से लगा लिया. वर्षा जानती थी लता पिछले कितने ही सालों से विहान को चाहती थी और आज उस के जीवन की सब से बड़ी इच्छा पूरी होने जा रही थी.

सगाई धूमधाम से संपन्न हो गई. आधी रात को जब लता बैड पर लेटी तो अपनी सगाई की अंगूठी देखतेदेखते विहान के खयालों में गुम हो गई…

आज से 10 साल पहले वैदेहीजी विहान और वर्षा के साथ लता की साथ वाली कोठी में रहने आईं थीं. लता के मम्मीपापा विवेक और अरुणा से उन के मधुर संबंध बन गए थे. वैदेहीजी अपने पति की असमय मृत्यु के पश्चात उन की फैक्टरी को बेहतर तरीके से संभाल रही थीं. इस की वजह से वे विहान और वर्षा पर थोड़ा कम ध्यान दे पाती थीं पर दोनों बच्चे छोटी आयु में ही समझदारी का परिचय दे रहे थे.

वे हालात को समझते थे और जितना भी वक्त उन्हें वैदेही के साथ मिलता उस में ही बेहद खुश रहते.

वर्षा और लता समान आयुवर्ग की थीं सो दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी. विहान उन दोनों से 2 साल बड़ा था और इस बात का फायदा भी वह बखूबी उठाता था. वर्षा और लता से अधिकतर आदेशात्मक स्वर में ही बात करता था.

लता पर तो खूब अधिकार जमाता था. घर में सहायक होते हुए भी उस का खयाल लता ही करे, ऐसी इच्छा रखता था और लता भी हंसतेमुसकराते उस के सारे काम करती जाती थी. न जाने ये सब कर के उस के दिल को एक अलग ही सुकून प्राप्त होता था.

यह वह तब सम?ा जब विहान था कालेज के लास्ट ईयर में और लता फर्स्ट ईयर में. रैंगिंग करते हुए कुछ लड़के लड़कियों का ग्रुप उस के नजदीक आया तो लता घबरा सी गई. तभी किसी की आवाज उस के कानों में पड़ी कि अरे, यह तो विहान भाई की दोस्त है, चलोचलो, यहां से. कह रखा था उन्होंने कि इसे कोई परेशान न करे.

‘‘तो इस के चेहरे पर क्या इस का नाम लिखा है जो तूने इसे पहचान लिया?’’ दूसरी आवाज आई.

‘‘अपने मोबाइल में इस का फोटो दिखाया था उन्होंने, अब छोड़ो इसे और सामने देखो, विहान भाई इधर ही आ रहे हैं.’’ सभी वहां से चले गए.

‘‘किसी ने कुछ कहा तो नहीं,’’ विहान ने उस के करीब पहुंच कर उस से पूछा.

लता ने उसे देखते हुए न में सिर हिला दिया.

‘‘गुड चलो, मैं चलता हूं, तुम्हारी क्लास यहां से सीधा फिर राइट हैंड पर पहली वाली है. चलो, औल द बैस्ट,’’ विहान सीधा वहां से निकल गया और लता उसे जाते हुए देखती रही.

कालेज की छुट्टी के वक्त लता ने गाड़ी वापस भेज दी और पैदल ही अपने घर चल पड़ी.

तभी अचानक बारिश शुरू हो गई. मिट्टीकी सोंधी खुशबू उसे जैसे किसी और ही दुनिया में ले गई. अचानक सब कितना खिलाखिला लगने लगा था. हर तरफ बारिश की फैली बूंदों में उसे एक ही चेहरा नजर आने लगा था और वह था विहान का.

‘‘कमाल है,अब जब एक ही कालेज में जाना है तो एक साथ ही जाओ न,’’ वर्षा ने विहान से कहा.

‘‘स्ट्रीम अलग, क्लासेज का टाइम अलग, साथ कैसे जा सकते हैं? जानती तो है कि मैं बाइक पर जाना ज्यादा पसंद करता हूं तो उसे कैसे ले जाऊंगा, बेकार ही सब लोग गलत सोचेंगे और मैं नहीं चाहता कि कोई उस और मेरे बारे में कोई उलटासीधा अनुमान लगाएं.’’

‘‘फिर भैया उसे रैगिंग से क्यों बचाया?’’ वर्षा भी सवाल दागे जा रही थी.

‘‘इतना तो कर ही सकता हूं उस के लिए,’’ कह कर विहान वहां से चला गया.

‘जानती हूं भैया कि आप क्याक्या कर सकते हैं लता के लिए, सिर्फ लता के लिए या लता भाभी के लिए,’ यह सोच कर वर्षा मन ही मन खुशी से झूम गई.

इधर लता अब विहान के सामने पड़ती तो नजरें चुराने लगती. उस का कमरा संभाल रही होती तो विहान के अंदर आते ही वह कमरे के बाहर जाने को मचलने लगती.

ऐसे ही एक दिन जब लता उस की अलमारी में कपड़े रख रही थी तो पीछे से विहान ने उस के बालों को पकड़ कर खींच दिया.

‘‘उई… मम्मी,’’ लता चिल्ला दी.

‘‘क्या मम्मी, आंटी कहां से आ गईं यहां…’’ विहान चिढ़ता हुआ सा बोला.

‘‘पहले बाल तो छोड़ो, दर्द हो रहा है,’’ लता अपने बाल उस की गिरफ्त से आजाद करने की कोशिश करते हुए बोली.

‘‘पहले यह बताओ कि आजकल मुझ से दूर क्यों भागती रहती हो? क्या लुकाछिपी खेल रही हो?’’ विहान ने उस के बालों को छोड़ते हुए कहा.

‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, कालेज के बाद तो अकसर मांजी और वर्षा के पास आ जाती हूं,’’ लता ने अलमारी बंद कर दी थी.

‘‘मांजी तो देर शाम ही मिलती होंगी पर वर्षा के साथ पहले तो बड़ा मुझसे लड़ाझगड़ा करती थी, बड़ी डिमांड होती थी तुम्हारी पिजाबर्गर पार्टी की और अब तो जैसे उपवास पर हो, बात क्या है आखिर?’’ कह कर विहान उस के चेहरे के आगे आ कर उस की आंखों में झांकने लगा.

लता का जिस्म जैसे हरारत से भर गया हो. विहान का इतने करीब आना उस के होशोहवास गुम कर रहा था. माथे पर पसीने की बूंदें उभरने लगी थीं. लता के मुंह से बोल नहीं निकल पा रहे थे. वह उलटे पांव वहां से भागी और नीचे जाने को सीढि़यां उतरने लगी.

‘‘मत बोलो कुछ, जा रहा हूं अब देश छोड़ कर, विदेश से अब तुम्हें और परेशान करने नहीं आऊंगा. लंदन जा रहा हूं अगले हफ्ते,’’ विहान तेज स्वर में बोला.

सीढि़यां उतरती लता के पांव जैसे वहीं जम गए हों. वह वापस भागती हुई विहान के पास आई और उस के हाथ से मोबाइल ले कर पलंग पर फेंकती हुई बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने, तुम लंदन जा रहे हो, कब, क्यों?’’ लता बदहवास सी हो उठी.

‘‘ओ इंस्पैक्टर साहिबा, आराम से. पहले हम विश्वाम फरमाएंगे फिर पूरी बात बताएंगे,’’ विहान मस्ती के मूड में था.

‘‘उफ विहान, जल्दी बोलो न, क्यों सता रहे हो?’’  लता बहुत उतावली हो रही थी.

‘‘अरे बाबा,  बिजनैस मैनेजमैंट और क्या, मांजी चाहती हैं  और तुम भी तो समझती हो न कि इतने सालों से मांजी अकेले सारा कारोबार संभाले हुए हैं और अब उन की जिम्मेदारी उठाने के लिए मुझे और अधिक मजबूत बनना होगा, इतना सक्षम बनाना होगा खुद को कि मेरे कांधे समस्त जिम्मेदारियों को बोझ नहीं बल्कि पापा और मांजी के सपनों को पूरा करने वाले और उन्हें हर कदम पर गौरवान्वित महसूस कराने वाले आशीर्वाद समझें,’’ विहान की आंखों में भविष्य को ले कर एक अलग ही चमक उभरी थी.

लता की रुलाई फूट पड़ी.

‘‘अरे, इस में रोने की क्या बात है, हमेशा के लिए जा रहा हूं क्या?’’ विहान प्यार भरे स्वर में उस से बोला.

‘‘यह मोबाइल भी बहुत बढि़या चीज है लता, मुट्ठी में समाने वाले इस उपकरण ने पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर रखा है, जाहिर है जब चाहें बात कर सकते हैं, एकदूसरे को देख सकते हैं, तो रोना बंद और मेरी पैकिंग शुरू कर देना मैडम वरना अगर अपनी पैकिंग मैं ने खुद की तो सूटकेस में सब्जीतरकारी ही जाएंगी,’’ विहान हंसता हुआ बोला.

उस की बात सुन कर लता भी रोते से हंस दी. जानती थी कि विहान कभीकभी किचन में अपने हाथ का जादू दिखाता था जिस के लिए लता और वर्षा न जाने उस की कितनी ही मिन्नतें करते थे और फिर विहान की बनाई डिशेज की दोनों जीभर कर तारीफ करती थीं. उन पलों को याद करते ही लता की आंखें एक बार फिर भर आईं.

‘‘लता, जानता हूं कि मांजी बेहद मजबूत हैं पर फिर भी सब से पहले एक मां हैं, मुझे जाता देख भीतर से जरूर कमजोर पड़ेंगी पर दर्शाएंगी नहीं, वादा करो कि उन का पूरा ध्यान रखोगी,’’ विहान ने गंभीर होते हुए लता से कहा.

‘‘बेफिक्र हो कर जाओ विहान, विश्वास रखो, मांजी का पूरा ध्यान रखूंगी,’’ लता ने अपने आंसू पोंछ लिए.

विहान ने मुसकराते हुए उस के सिर पर धीरे से हाथ फेर दिया.

वैदेहीजी और वर्षा के साथ लता भी एअरपोर्ट गई थी विहान को रवाना करने. विहान और लता की तब ज्यादा बातें तो न हो सकी थीं पर जिस क्षण भी दोनों की नजरें मिलतीं लता की आंखें भर जाती थीं.

वर्षा लता की हालत अच्छी तरह समझ रही थी. उस की सब से प्यारी सहेली ही उस की भाभी बने इस बात की उसे काफी खुशी हो रही थी. वह चाहती थी कि विहान और लता कुछ मिनटों के लिए ही सही पर अकेले में कुछ बातें कर सकें पर न जाते वक्त कार में और न ही एअरपोर्ट पर ऐसा कोई मौका मिल पाया.

एक दिन वर्षा ने लता से पूछा कि क्या वह अगले दिन फ्री है उस के साथ शौपिंग जाने के लिए?

‘‘शौपिंग किसलिए, अभी कौन सा फंक्शन आ रहा है?’’

‘‘औरों के लिए न सही तेरे लिए तो बहुत बड़ा मौका है सजने का, तैयार होने का, खुबसूरत लगने का,’’ वर्षा चंचल हो उठी थी.

‘‘क्या पहेलियां बुझाए जा रही है?’’ लता खिड़की से बाहर देखते हुए बोली.

‘‘कल विहान भैया आ रहे हैं, पूरे 2 हफ्तों के लिए.’’

‘‘क्या, विहान कल आ रहे हैं, मुझे क्यों नहीं बताया उन्होंने? अभी कल रात ही हमारी बात…’’ कहते हुए लता अचानक चुप हो गई.

‘‘चल  हट, जा रही हूं मैं अब,’’ लता का चेहरा गुलाबी हो उठा था.

‘‘हां भई, अब मेरे साथ क्यों दिल लगेगा, वह तो बल्लियों उछल कर लंदन जा पहुंचा था, अब कल वापस आ जाएगा कुछ दिनों के लिए, 4 दिन की चांदनी होने वाली है हमारी बन्नो की रातें.’’

लता उस की बात सुनते न सुनते अपनी रौ में भागती चली गई.

उसे ऐसे भागते देख वर्षा जोर से हंस पड़ी.

विहान सवेरे 5 बजे घर पहुंचा. वैदेहीजी और वर्षा को एअरपोर्ट आने के लिए पहले ही मना कर दिया था. घर पहुंचा तो दोनों ही खुशी से फूली नहीं समा रही थीं.

‘‘अरे, मांजी यह क्या हर दूसरे दिन तो वीडियो चैट करते हैं हम, फिर ये आंखें क्यों छलछला आईं हैं,’’ विहान ने वैदेहीजी के गले लगते हुए कहा.

‘‘क्या भैया, स्क्रीन पर क्या छू सकते हैं, मिल सकते हैं, ऐसे गले लग सकते हैं क्या?’’ वर्षा चहकती हुई बोली.

‘‘वे मांजी हैं और तू दादी मां है,’’ विहान ने उस के सिर पर हलकी सी चपत लगाते हुए कहा.

फिर तीनों ही एकसाथ अंदर चले आए.

लंच टाइम हो चला था जब वैदेहीजी ने विहान को उठाया.

कुनमुनाता सा उठा वह तो सामने वैदेहीजी को देख कर हैरान हो उठा, ‘‘मांजी, आप फैक्टरी नहीं गईं?’’

‘‘फैक्टरी कहां भागी जा रही है, सालभर बाद तुझे देख रही हूं, चाहती तो उड़ कर तेरे पास आ जाती पर बस तुझे देख कर न तुझे कमजोर चाहती थी और न खुद कमजोर पड़ना चाहती थी. अब कुछ वक्त तो बिताऊं तेरे साथ,’’ वैदेहीजी ने उस के बालों में हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘सच मांजी,  मां का प्यार ही सब से

बड़ा स्वर्ग है,’’ विहान उन की गोद में सिर रखते हुए बोला.

लंच टाइम भी बीत गया और शाम की चाय भी समाप्त हो गई.

वैदेहीजी कोई फाइल देखने के लिए अपने कमरे में पहुंचीं तो विहान ने वर्षा से पूछा, ‘‘अभी तक लता नहीं आई, शहर में नहीं है क्या?’’

‘‘हां भैया, वे सब लोग यह शहर छोड़ कर जा चुके हैं.’’

‘‘क्या बकबक कर रही है, अभी 2 दिन तक ऐसी कोई बात नहीं थी, रातोंरात शहर छोड़ दिया?’’ विहान उसे अजीब सी नजरों से घूरता हुआ बोला.

‘‘अरे तो जब पूरी खबर है उस के बारे में तो क्यों पूछ रहे हैं आप फिर, आप को क्या मतलब अब लता से, उसे बताया तक तो नहीं आप ने कि आप आने वाले हैं,’’ वर्षा बनावटी गुस्से से बोली.

‘‘अरे, सरप्राइज शब्द सुना है, है तेरी डिक्शनरी में?’’

‘‘हां है, और शौक शब्द भी है, सरप्राइज की जगह शौक दे देंगे आप तो उसे.’’

‘‘पहले तो तेरी खबर लेता हूं,’’ कह कर विहान ने पास पड़ा कुशन उठा कर वर्षा की ओर फेंका तो उसी पल वह कुशन लता के चेहरे से जा टकराया.

‘‘लो भैया, सच में शौक ही लग गया लता को तो,’’ वर्षा जोर से हंसती हुई वहां से चली गई.

‘‘सौरी लता, लगी तो नहीं?’’ विहान ने उस के नजदीक आते हुए पूछा.

कुशन हटा कर लता ने जब विहान को देखा तो कुछ पल को पलकें ?ापकाना भूल गई.

साक्षात अपने सामने उसे देख कर जैसे उस की जबान तालू से चिपक गई हो.

विहान ने उस की आंखों के आगे चुटकी बजाई तो जैसे लता होश में आई. पूछा, ‘‘कैसे हो विहान?’’

‘‘देख लो खुद ही, जैसा गया था बिलकल वैसा ही हूं. अच्छा लता, 2 हफ्तों के लिए आया हूं, कभी अपनों से दूर रहा नहीं तो रुका न गया पर अब शायद एक बार कोर्स पूरा कर के ही वापस आऊंगा, तो इन 2 हफ्तों को यादगार बना देना चाहता हूं ताकि ढेर सारी यादों के साथ वहां अपना वक्त गुजार सकूं. कल अब हम तीनों मौल चल रहे हैं और तुम बिना ननुकुर के आ रही हो, समझ, फिर एक दिन पिकनिक भी प्लान करते हैं, ठीक है?’’

‘‘जैसा तुम कहो,’’ लता तो उस की हर खुशी में खुश हो जाती थी.

‘‘मौल, अरे लंदन में पढ़ने वाला अब यहां क्या घूमेगा?’’ डिनर टाइम पर विवेक बोले.

‘‘अपना देश अपना ही होता है, मौल घूमने का तो सिर्फ बहाना है, असली बात तो साथ वक्त गुजारने की है,’’ अरुणा विवेक को सही बात सम?ाते हुए बोली और आंखों ही आंखों में उन्होंने विवेक को लता की ओर देखने को कहा जिस का खाने की ओर बिलकुल ध्यान नहीं था.

‘‘लता, खाना खाओ बेटे, कहां खोई हुई हो?’’

‘‘कहीं भी तो नहीं पापा,’’ कह कर लता रोटी का कौर तोड़ने लगी.

विवेक और अरुणा भी आपस में एकदूजे को देख कर मुसकरा दिए.

2 हफ्ते जैसे पलक झपकते गुजर गए. लता एक बार फिर विहान का बैग पैक करने में लगी हुई थी. यह सोच सोच कर कि अब की बार विहान जल्दी नहीं आएगा उस की आंखें बारबार छलक रही थीं.

परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि वैदेहीजी को एक महत्त्वपूर्ण मीटिंग के लिए जाना पड़ गया तो उन्होंने वर्षा और लता को कहा कि विहान को वे दोनों ही एअरपोर्ट सी औफ कर आएं.

‘‘मम्मी, मेरा तो आज प्रैक्टिकल है, मैं तो आज चाह कर भी छुट्टी नहीं कर सकती.’’

‘‘तो क्या सिर्फ लता जाएगी?’’

‘‘मांजी, आप क्यों चिंता कर रही हैं, ऐसा क्या हो गया कि मैं अकेला नहीं जा सकता.’’

‘‘घर का कोई साथ जाए तो कुछ प्रौब्लम है तुम्हें, लता तुम ही चली जाना.’’

वैदेहीजी का विहान के प्रति ऐसा क्रोध मिश्रित प्रेम देखसुन कर वर्षा की हंसी छूट गई और उस ने लता की ओर देखते हुए चुपके से एक आंख दबा दी.

एअरपोर्ट पर जब विहान और लता कार से उतरे तो विहान ने लता की ओर देख कर गुनगुनाते हुए कहा, ‘‘तो चलूं, तो चलूं, तो चलूं,’’ और फिर खुद ही हंस पड़ा.

‘‘विहान,’’ लता ने उसे एकटक देखते हुए उस का नाम लिया.

‘‘जल्दी बोलो मैडम, फ्लाइट न छूट जाए कहीं.’’

‘‘ विहान, मैं तुम्हें, मैं तुम से…’’ लता खुल कर कुछ नहीं कह पा रही थी.

‘‘क्या कहना चाह रही हो लता, क्या बात है?’’ विहान कुछ भी सम?ा नहीं पा रहा था.

कुछ पलों की खामोशी के बाद आखिरकार लता के होंठों से 3 शब्द निकले, ‘‘आई लव यू विहान.’’

विहान हैरानी से उसे देखता रह गया.

‘‘लता,’’ विहान के मुख से निकला.

‘‘विहान, मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं, तुम्हारे बिना नहीं रह सकती,’’ लता ने अपने दिल की बात विहान के सामने खुल कर कह दी.

पहले तो विहान हैरान हुआ और अब उस ने एक नजर भर लता को देखा फिर बिना कुछ कहे ऐंट्री गेट की ओर बढ़ गया.

लता की आंखों से आंसू बहते रहे और कुछ पलों बाद वह भी लौट चली.

अब लता और विहान की बातें न के बराबर हो गईं थीं. लता लाख चाह कर भी विहान से दोबारा उस बारे में बात न कर सकी. वर्षा भी कुछ पूछती तो मुसकरा कर टाल जाती.

वक्त गुजरता गया और विहान भी लौट आया.

वैदेहीजी अब जीवन के इस मोड़ पर आराम चाहती थीं और विहान ने भी अब उन्हें फैक्टरी की हर जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था. सारा कारोबार अब वही संभालता था.

लता से औपचारिक बातें होती थीं पर विहान और लता ने किसी के भी समक्ष कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया.

इसी बीच वर्षा का भी विवाह हो गया.

‘‘अब तो वर्षा भी अपने घर की हो गई, अब वैदेहीजी से लता और विहान की बात करें क्या?’’ विवेक अरुणा से बोले.

‘‘ठीक है, मैं कल ही उन से बात छेड़ती हूं.’’

लता ने उन की बातें सुन ली थीं. वह कुछ कहना चाहती थी पर उस का दिलोदिमाग उस का साथ नहीं दे रहा था पर अगले दिन उस के लिए जैसे कुछ चमत्कार हुआ.

अरुणा ने उसे बताया कि वैदेहीजी तो शुरू से ही उसे विहान के लिए पसंद करती थीं और कुछ दिन पहले उन्होंने विहान ने उस की शादी की बात भी की और लता का जिक्र भी किया.

विहान ने खुशी से उन का मान रखा और इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

लता को तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. उस का दिल चाह रहा था कि अभी उड़ कर विहान के पास पहुंच जाए और पूछे कि अगर वह भी उसे चाहता था तो उसे इतना क्यों सताया उसने पर अगले ही पल उस ने यह खयाल हवा में उड़ा दिया और आने वाले वक्त का बेसब्री से इंतजार करने लगी.

और आखिरकार लता की जिंदगी में वह खास दिन आ ही पहुंचा जिस का उसे हर पल से इंतजार था.

तभी सुबह की पहली किरण उस के कमरे में आई तो लता भी जैसे अपनी यादों के सफर से वापस वर्तमान की मंजिल पर लौट आई.

शादी की तैयारियां जोरोंशोरों से होने लगीं. वर्षा लगभग 10 दिन पहले आ गई थी. दोनों सहेलियां ऐसे मिलीं तो लगा जैसे पुराना वक्त जी रही हों. वर्षा लता के साथ शौपिंग करती तो विहान उसे छेड़ते हुए कहता कि ओ दल बदलू, भूल गई, तू लड़के वालों की तरफ से है.’’

‘‘मैं तो दोनों तरफ से हूं, आप भूलिए मत

कि आप की बीवी बनने से पहले लता भाभी

मेरी सहेली है और भाभी बनने के बाद भी वह पहले मेरी सहेली ही रहेगी,’’ वर्षा प्यार भरे स्वर

में बोला.

‘‘समझ गया वकील साहब.’’

‘‘अब हमारे पति वकील हैं तो कुछ असर तो हम पर भी पड़ेगा न,’’ वर्षा इतराते हुए बोली.

विवाह का दिन भी आ पहुंचा. यों तो लता बेहद खूबसूरत थी पर दुलहन के लिबास में जितनी सुंदर वह उस दिन लग रही थी उतनी उस से पहले कभी नहीं लगी. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता.

वैदेहीजी भी उस दिन बहुत खुश थीं. वर्षा तो जीभर नाची भाई की शादी में.

जयमाला पूरी हुई तो विहान और लता के जोड़े पर से नजरें नहीं हटती थीं.

फेरे हो रहे थे तो ऐसा लगा जैसे आज आसमां भी उन पर अपना प्यार निछावर करने को पुष्पवर्षा कर रहा हो. मंत्रो की ध्वनि पूरे वातावरण को अपने मोहपाश में बांध लेने को आतुर थी.

लता का गृहप्रवेश हो गया था. विहान के घर में भी और उस की जिंदगी में भी.

सुहागरात का कमरा गुलाब के फूलों की खुशबू से सराबोर हो रहा था. बैड पर बैठी लता गठरी सी बनी खुद में ही सिमटी जा रही थी.

मौडर्न युग में भी नववधू होने का एहसास कितना प्यारा और शारमोहया से भरपूर होता है इस का अंदाजा लता को देख कर सहज ही लगाया जा सकता था.

विहान अंदर आया तो एकबारगी फिर से लता की खूबसूरती में खो सा गया. गुलाब की फूलों की लडि़यों के बीच बैठी लता खुद एक गुलाब प्रतीत हो रही थी.

लगभग 1 दशक साथ बिताने के बाद भी आज वे दोनों एकदूजे के साथ ऐसे पेश आ रहे थे जैसे 2 अजनबी एक कमरे में बंद हो गए हों.

विहान ने ही लता के पास बैठ कर कमरे की चुप्पी को तोड़ा, ‘‘लता, कभी सोचा न था तुम्हें अपने सामने इस रूप में भी देखूंगा, कब मेरी सब से प्यारी फ्रैंड मेरी लाइफ पार्टनर बन गई, पता ही नहीं चला,’’

लता धीमे से मुसकरा दी.

तभी विहान ने एक गिफ्ट बौक्स में से खूबसूरत कंगन निकाल कर लता की कलाई अपने हाथ में थाम कर कहा, ‘‘सोचा, तुम्हें अपनी पसंद का कुछ तो दूं,’’ पर जैसे ही उस ने कलाई देखी तो आश्चर्य से भर उठा.

लता ने कलाई पर उस के नाम का खूबसूरत टैटू बनवा रखा था.

‘‘यह कब करवाया तुम ने?’’ विहान ने हैरानी से पूछा.

‘‘उसी दिन जिस दिन तुम्हें अकेली एअरपोर्ट छोड़ने गई थी. तुम तो प्यार के इजहार में खामोश हो कर चले गए थे, सोचा अगर तुम मना भी करोगे तो तुम्हारे नाम की निशानी तो हमेशा मेरे साथ रहेगी,’’ लता का स्वर भीग रहा था.

अपने प्रति लता का इतना प्रेम देख कर विहान का दिल भर आया था पर तभी उस ने

लता को छेड़ने वाले अंदाज में कहा कि अच्छा तो कोई और तुम्हें ले जाता तब क्या करतीं तुम इस टैटू का, क्या बताती उसे कि कौन है ये?’’

‘‘ऐसा कभी नहीं होता, तुम्हारे अलावा तो मैं किसी और की होने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी, मर जाती पर…’’

तभी विहान ने उस के होंठों पर उंगली रख कर उसे शांत करा दिया.

‘‘आज नई जिंदगी की शुरुआत है, आज ऐसी कोई बुरी बात नहीं, न आज न कल और न ही कभी भी,’’ कह कर विहान ने उसे अपने सीने से लगा लिया.

तब खिड़की से दिखता चांद भी बादलों की ओट में छिप गया.

देखते ही देखते 4 साल बीत गए. वर्षा भी मां बन चुकी थी. प्यारा सा बेटा हुआ था उसे.

जब भी मायके आती थी तो लता तो कबीर को छोड़ती ही नहीं थी. इतना मन लगता था उस का कबीर के साथ.

‘‘भाभी, यहां आती हूं न तो तुम से यह इतना घुल मिल जाता है कि वापस जाने पर मु?ो मम्मी नहीं मामी कहना शुरू कर देता है.’’

उस की बात सुन कर हौल में बैठी वैदेहीजी, विहान और लता सभी जोर से हंस पड़े.

‘‘तू बूआ बन जा बस फिर मम्मी मामी को भूल कर अपने भाईबहन में रम जाएगा,’’ वैदेहीजी लाड जताते हुए बोलीं.

यह सुन कर लता हंसतेहंसते चुप सी हो गई. 4 साल बाद भी मां न बन पाने का गम उसे घुन की तरह भीतर से खोखला कर रहा था.

औलाद न होने के अवसाद की छाया लता के चेहरे पर पड़ी तो विहान ने बातों का रुख मोड़ दिया.

बहुत इलाज करवाया. एक बच्चे की खातिर. विहान ने अपनी और लता की हर किस्म की जांच करवाई. आईवीएफ प्रोसीजर से भी लता गुजर चुकी थी पर अभी तक उसे असफलता ही हाथ लगी थी.

दवा फिलहाल नाकामयाब साबित हो रही थी पर कभी भी वैदेहीजी या विहान ने लता को भूले से भी कुछ इस विषय में कड़वा नहीं सुनाया.

वे इस संवेदनशील मुद्दे को समझते थे और सब से बड़ी बात ये थी कि वे जानते थे कि इस में लता का कोई दोष नहीं. कोई नारी मन ऐसा नहीं होता जो मातृत्व का सुख न भोगना चाहे. उन लोगों को तो अपनेआप से ज्यादा लता के लिए मलाल होता था.

लता मन ही मन सब समझती थी. विहान का बच्चों के प्रति प्रेम उस से छिपा हुआ नहीं था पर वक्त के आगे वह बेबस पड़ चुकी थी और विहान ने उस से बच्चा गोद लेने की भी बात की थी लेकिन लता दिल से उस का यह आग्रह स्वीकर न कर सकी.

विहान ने कारोबार को नई ऊंचाइयां दी थीं. उस ने एक और फैक्टरी खोल ली थी.

नई फैक्टरी के मुहूर्त के बाद वैदेहीजी विवेकजी और अरुणा जी के साथ चार धाम की यात्रा पर चली गईं.

लता को मांजी के बिना कोठी बहुत खाली लग रही थी. उस ने सोचा कल अचानक फैक्टरी पहुंच कर विहान को चौंका देगी और लंच उसके साथ कहीं बाहर जा कर करेगी.

अगले दिन लता फैक्टरी पहुंची तो उसे पता लगा कि विहान दूसरी फैक्टरी का दौरा करने करने गया है.

‘‘अच्छा, सुबह तो उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं की थी.’’

‘‘सर तो अकसर ऐसे दूसरी फैक्टरी जाते ही रहते हैं,’’ मैनेजर कमल ने लता को बताया.

‘‘इट्स ओके, उन का मोबाइल भी नहीं मिल रहा है इसलिए जैसे ही यहां लौटे मु?ा से बात करने को कहिएगा,’’ कह कर लता बाहर आई तो देखा कि ड्राइवर कार का बोनट खोल कर कुछ ठीक करने की कोशिश कर रहा है.

कार ठीक नहीं हुई तो लता ने पास के टैक्सी स्टैंड से टैक्सी कर ली. कुछ आगे चलने पर दिखाई दिया कि किसी जुलूस की वजह से ट्रैफिक बुरी तरह जाम है. टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी दूसरे रास्ते पर घुमा ली.

टैक्सी अपने गंतव्य पर जा ही रही थी कि लता को ऐसा लगा कि उस के साथ वाली कार में विहान है और वह अकेला नहीं. उस ने मुड़ कर देखा, कार आगे जा चुकी थी.

नहीं यह नजरों का धोखा नहीं है. वह विहान ही था.

‘‘ड्राइवर, टैक्सी मोड़ो जल्दी,उस सफेद कार के पीछे चलो,’’ लता कुछ बेचैन सी हो उठी.

‘‘अरे, पीछा क्यों करना है, कुछ गड़बड़ वाला काम है क्या?’’ ड्राइवर शंकित सा हो

कर बोला.

‘‘अरे, नहीं भैया, बस मेरी सहेली है उस कार में, उस से ही मिलना है.’’

टैक्सी ड्राइवर सावधानी से कार के पीछे जाने लगा. सफेद कार एक साधारण से घर के आगे रुक गई.

लता ने टैक्सी पेड़ों की ओट में रुकवा ली, ‘‘बस भैया, कुछ मिनट, उस से अचानक मिलूंगी,’’ लता ने ड्राइवर को अपनी ओर देखते हुए सफाई दी.

कार में से जो उतरा वह विहान ही था और यह उस के साथ कौन है.

विहान के साथ एक लड़की थी. गोरा रंग, सुनहरे घुंघराले बाल, मध्यम कद, जितना बालों में छिपा चेहरा लता देख सकी उस से यही दिखाई दिया कि लड़की अच्छी शक्लसूरत की है पर उदासी और कमजोरी उस के चेहरे से झलक रही थी.

विहान ने उसे उस के कंधे पर हाथ लगा कर कार से उतारा और घर की डोरबैल बजाई.

दरवाजा एक बुजुर्ग महिला ने खोला, दिखने में वे काफी कमजोर थीं

और शायद उन की एक टांग भी समस्याग्रस्त थी. वे छड़ी के सहारे थीं और तभी जो हुआ उस पर विश्वास करना लता के लिए नामुमकिन था.

बुजुर्ग महिला के पीछे से एक लगभग 4 वर्ष का गोराचिट्टा सा बच्चा भागता हुआ आया और उस ने विहान को डैड कह कर पुकारा और उस लड़की को देख कर मौम कहा.

विहान ने भी उसे गोदी में उठा लिया और उस पर चुंबनों की बारिश कर दी. फिर सभी अंदर चले गए.

लता जैसे किसी गहरी खाई में गिरी हो.

चह तो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति में पहुंच गई थी.

‘‘मेमसाहब, अभी और कितनी देर

यहां खड़ा रहना होगा… उस का ऐक्स्ट्रा पैसा लगेगा.’’

ड्राइवर की बात से उसे होश आया, ‘‘ह… क्या… हां वापस चलो,’’ लता जैसे खुद से ही कह रही हो.

घर पहुंचते ही वो आदमकद आइने के सामने जा खड़ी हुई और खुद को देखने लगी. आंखों के सामने एक ही दृश्य बारबार घूमने लगा, ‘‘डैड… डैड… डैड…’’ बच्चे का भागता हुआ आना और विहान का उसे अपनी बांहों में भर लेना.

जब लता की बरदाश्त से बाहर हो गया तो उस ने सामने रखी परफ्यूम की बौतल से आईना चकनाचूर कर दिया.

Valentine’s Special : बशर्ते तुम से इश्क हो

Valentine’s Special : गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर सिर टिकाए और होंठों पर मधुर मुसकान लिए अक्षत अपनी प्रेमिका के साथ बात करने में इस कदर मशरूफ था कि उसे बाहरी दुनिया की किसी भी खबर की भनक तक नहीं थी.

एक कौल जो बारबार उस के प्रेमालाप में बाधा उत्पन्न कर रही थी जिसे वह हर बार अनदेखा कर रहा था फिर भी वह कौल हर बार उसे बाधित करने के लिए दस्तक दे ही डालती.

अक्षत ने परेशान हो कर एक भद्दी सी गाली देते हुए, ‘‘एक बार होल्ड करना स्वीटहार्ट. कोई बेवकूफ मुझे बारबार फोन कर के डिस्टर्ब कर रहा है. पहले उस की कौल ले लूं, फिर आराम से बात करता हूं.’’

‘‘हैलो, कौन बात कर रहा है?’’ उस ने कड़क कर पूछा.

‘‘हैलो मैं पुलिस इंस्पैक्टर बोल रहा हूं.’’

‘‘जी, कहिए,’’ उस ने नर्म पड़ते हुए कहा.

‘‘मैं आप के फ्लैट से बोल रहा हूं, आप तुरंत यहां आइए.’’

‘‘जी, लेकिन बात क्या है सर?’’ उस की जबान लड़खड़ाने लगी.

‘‘आप आ जाइए. आप की पत्नी ने आत्महत्या कर ली है.’’

‘‘क्या? कब?’’ अक्षत के माथे पर पसीने की बूंदें उभरने लगीं और दिल की धड़कनें छाती फाड़ने के लिए प्रहार करती प्रतीत होने लगीं. भय से उस का गला सूखने लगा और मारे घबराहट के पूरे शरीर में कंपकंपी छूटने लगी. उस ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट की और वहां से निकल लिया.

दनदनाती हुई कार फ्लैट के सामने आ कर रुकी तो अपनी आंखों के सामने ऐसा माहौल देख कर वह घबरा गया. पुलिस की गाड़ी और ऐंबुलैंस पर लगे सायरन ने चीखचीख कर सब को इकट्ठा कर लिया था. अक्षत गाड़ी से उतरा और फ्लैट की तरफ लपक पड़ा. बैडरूम के फर्श पर सफेद चादर में लिपटी लाश को देख कर वह दहाड़े मार कर उस से लिपट गया, ‘‘यह तुम ने क्या किया अलका, मु?ो छोड़ कर क्यों चली गई?’’ और उस की आंखों से अनवरत आंसू बहने लगे.

‘‘अब इस नाटक का कोई फायदा नहीं,’’ एक कर्कश आवाज ने उस का ध्यान भंग कर दिया, उस ने सिर उठा कर ऊपर देखा. तनी हुई भृकुटि से इंस्पैक्टर अक्षत को आपराधिक दृष्टि से घूर रहा था.

‘‘आप की पत्नी ने सुसाइड नोट छोड़ा है जिस में आप को इस आत्महत्या का जिम्मेदार ठहराया है. आप को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में हिरासत में लिया जाता है.’’

अक्षत टकटकी लगा कर अलका के चेहरे को देख रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि वह उस से कुछ कहने का प्रयास कर रही हो.

सायरन की तेज आवाज में दौड़ती हुई पुलिस की गाड़ी अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी और अक्षत अब भी सिर ?ाकाए सुबक रहा था. उस के सामने बैठे पुलिसकर्मी ने अलका का लिखा सुसाइड नोट खोला और उसे ऊंची आवाज में पढ़ना शुरू कर दिया. उस की आवाज सुन कर अक्षत ने अपना सिर ऊपर उठाया और खिड़की के बाहर झांकने लगा. ज्योंज्यों गाड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी त्योंत्यों हर चीज पीछे छूटती जा रही थी और वह आगे बढ़ता ही जा रहा था लेकिन, केवल अतीत के पन्नों में…

ऐसा लग रहा था जैसे उस के अतीत के चलचित्र उस की आंखों के सामने चल रहे हैं और वह समय के बीते हुए लमहों में गोते खाता चला जा रहा है. वह जा रहा था वहां जहां से किया था शुरू उस ने सफर अपनी जिंदगी का.

स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान अलका की मुलाकात अक्षत से हुई और जल्द ही दोनों की दोस्ती ने प्रेम का रूप ले लिया. अंतर्जातीय विवाह  होने के कारण अलका और अक्षत को घर छोड़ना पड़ा और दूर शहर में अपना आशियाना बना लिया.

कुछ ही समय के संघर्ष के बाद कालेज में अक्षत की सहायक प्रोफैसर के रूप में नौकरी लग गई.

अलका ने घरगृहस्थी संभालने का फ़ैसला किया और दोनों खुशहाल जीवन बिताने लगे.

कालेज के दिनों में जब अलका को पहुंचने में देर हो जाती थी तो वह पलपल फोन कर के पूछता और उस की छोटीछोटी बातों को ले कर विचलित हो जाता था.

उस की चंचल आंखें कालेज गेट पर आने वाली हर बस पर टिकी होती थीं. वह हर क्षण अलका का बेसब्री से इंतजार करता था. वह जैसे ही उस के सामने आती वह लपक कर उस का हाथ थाम लेता और क्लास तक का सफर तय करता.

दोनों अकसर घंटों पेड़ के नीचे बैठते और अपनी आने वाली जिंदगी की ढेर सारी प्लानिंग करते रहते. अक्षत अलका की गोद में सिर रख लेता. वह भी उस के घुंघराले बालों में गोरी पतली नेलपैंट वाली उंगलियां घूमाती हुई कहा करती, ‘‘अगर हम एक नहीं हो पाए तो? तुम मुझे छोड़ कर जाओगे तो नही न?’’ वह ऐसे सैकड़ों सवाल एक पल में कर दिया करती.

अक्षत उसे अपनी बांहों में भरते हुए हर बार बस यही कहता, ‘‘पागल, मैं ने तुम्हें मन से अपना मान लिया है फिर जातिपाती की बात ही कहां रहती है? हमारी संस्कृति रही है कि प्राण जाए पर वचन न जाई.’’

एम. फिल के बाद घर वालों की नाराजगी के चलते दोनों ने कोर्ट मैरिज कर अपनी दुनिया बसा ली. प्रेमसिक्त पलों में 3 साल कब गुजरे पता ही नहीं चला.

मगर पिछले 1-2 सालों में अक्षत के स्वभाव में अचानक परिवर्तन होने लगा जिसे अलका सम?ा नहीं पाई वह तो समझती थी कि शायद यह बदलाव काम की व्यस्तता को ले कर है लेकिन माजरा तो कुछ और ही था.

उस रात तूफान ने प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया था. हवा के तेज झांके दरवाजे, खिड़कियों पर दस्तक दे रहे थे और गरजते बादल किसी अमंगल घटना के लिए ललकार रहे थे. कौंधती हुई बिजली बारबार आंखें दिखा कर यों गायब हो रही थी जैसे फुंफकारती नागिन के मुंह में जीभ.

बिजली गुल हो चुकी थी लेकिन खिड़की से आ रही मद्धम रोशनी से घर में अब भी थोड़ा उजाला शेष था.

अलका खिड़की के पास काले डरावने साए की तरह शांत खड़ी थी और अक्षत उस के सामने पीठ किए चुपचाप खड़ा था. घर में गहन सन्नाटा पसरा था जिस से तूफान और भी भयानक लगने लगा था. कौन जानता था कि तूफान जिंदगी में आने वाला है और बिजली रिश्तों पर गिरने वाली है.

‘‘क्यों. क्यों किया तुम ने ऐसा और कब से चल रहा है ये सब?’’ उस के शांत स्वर ने सन्नाटे को चीर कर रख दिया.

‘‘पिछले 1 साल से,’’ उस ने धीमें से

जवाब दिया.

‘‘एक बार भी खयाल नहीं आया मेरा?

क्या कमी रह गई थी मुझ में अक्षत जो बाहर मुंह मारने की नौबत आ गई?’’ अलका का लहजा कठोर और स्वर तेज होता गया, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया, अपना घर, परिवार और अपने सपने भी. क्या इसलिए कि तुम मुझे छोड़ कर किसी और के साथ रंगरलियां मनाते फिरो?’’ वह चीखती हुई आगे बढ़ी और अक्षत को कंधे से पकड़ कर अपनी ओर पलट लिया. वह उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था पर उस के चेहरे पर पश्चात्ताप का नहीं बल्कि गुस्से का भाव था.

अक्षत ने अलका के सामने यह साबित कर दिया था कि उस की जिंदगी में कोईऔर है जिस के बिना वह नहीं रह सकता. उस रात दोनों के बीच झगड़ा बढ़ता गया और इतना कि अक्षत ने अलका पर हाथ तक छोड़ दिया. उसी दिन इस खुशहाल घर में एक दरार पनपती गई और दूरियों की खाई बढ़ती गई.

अलका की भले उस से से बोलचाल बंद थी परंतु उसे उस की फिक्र आज भी उतनी ही थी जितनी पहले वह था कि उसे इग्नोर ही करता रहा.

एक घर, एक कमरे में, एक बिस्तर, एक कंबल में होने के बावजूद उन में दूरियों की खाई बढ़ती गई जिसे पाटना शायद अब मुमकिन न था.

आज की सुबह अलका के लिए निहायत बो?िल और उदासी भरी थी. वह जब बिस्तर से उठी तो देखा कि अक्षत अपने बिस्तर पर नहीं है. उस ने खिड़की के परदा हटाया तो हलकी धूप ने भीतर प्रवेश किया और पूरे कमरे में बिखर गई.

अक्षत बालकनी में खड़ा फोन पर बात कर रहा था. आज उस के होंठों पर मुसकान नहीं थी और वह बहुत गंभीर नजर आ रहा था.

अलका प्रतिदिन की भांति किचन में चली गई और कुछ देर बाद जब वह चाय ले कर लौटी तो अक्षत बिलकुल शांत भाव से बैडरूम में पलंग पर बैठा कुछ सोच रहा था.

‘‘क्या हुआ?  इतना परेशान क्यों हो? सब ठीक है न?’’ अलका ने चाय का कप अक्षत की तरफ बढ़ाते हुए एकसाथ कई सवाल कर डाले.

अक्षत कुछ नहीं बोला और उस ने कप को थाम लिया. अलका भी उस के सामने बैठ गई और उस की ओर देखने लगी. उसे फिक्र हो रही थी कि कुछ तो हुआ है जिस की वजह से वह इतना परेशान और गंभीर है.

अक्षत की चुप्पी अलका को परेशान कर रही थी. उस के मन को आज किसी अनहोनी होने की भनक लग गई थी शायद.

‘‘मैं तुम से अलग होना चाहता हूं अलका,’’ अचानक उस के मुंह से निकले इन शब्दों ने जैसे उसे हजारों टन मलबे के नीचे दबा दिया हो. उस की आंखें विस्मय से फट गईं और कलेजा छाती फाड़ कर बाहर निकलने को प्रहार करने लगा.

‘‘क्या…? तुम होश में तो हो अक्षत?’’

अक्षत कुछ नहीं बोला बस खिड़की से बाहर नजरें गढ़ाए सिर्फ शांत भाव से बैठा रहा.

‘‘मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता अलका. अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो तो तुम्हें दिव्यांशी के साथ रहना होगा इसी घर में,’’ उस ने अलका के सामने एक विकल्प पेश किया.

‘‘पागल हो गए हो तुम? मेरे ही घर में मेरे जीते जी किसी और औरत के साथ रहना होगा मु?ो? मैं पत्नी हूं तुम्हारी,’’ वह क्रोध से कांप रही थी.

‘‘जीते जी या मरने के बाद कैसे भी हो, दिव्यांशी इस घर में रहेगी मेरे साथ. यह मैं तुम्हें बता रहा हूं, तुम्हारी परमिशन नहीं ले रहा हूं. अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो तो,’’ उस ने अपनी बात बहुत कठोरता से पूरी की.

अलका भी हार मानने वाली नहीं थी उस ने अपना विरोध जारी रखा. ‘‘मेरी मुहब्बत वैकलपिक नहीं है सम?ो तुम और न ही मैं ने तुम से प्यार करते समय कोई शर्त तय की थी. मैं तुम्हारी तरह स्वार्थी और बेशर्म नहीं जो मन भर जाने के बाद दूसरी जगह मुंह मारना शुरू कर दूं,’’ अलका ने अक्षत को गले से पकड़ते हुए क्रोधित स्वर में कहा.

अक्षत गुस्से से तमतमा उठा और फिर उसे पलंग पर धकेलते हुए बाहर निकल गया. वह निढाल सी बिस्तर पर औंधी पी सुबकती रही. अक्षत ने गाड़ी स्टार्ट की और घर से निकल गया.

अलका की सिसकारियां अब मंद पड़ चुकी थीं. घंटों तक आंसुओं की धारा बहती रही थी, उस की सुबकियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं. आज उसे बीता हुआ हर वह पल याद आ रहा था जब उस ने निडर हो कर समाज और परिवार का सामना किया था, सिर्फ अक्षत को पाने के लिए और आज एक वक्त है कि वही अक्षत किसी और को पाना चाहता है. ज्योंज्यों एक के बाद एक दृश्य उस की आंखों के सामने आ रहे थे त्योंत्यों उस के चेहरे के भाव भी कठोर होते जा रहे थे.

उस ने अपने चेहरे पर बिखरे आंसुओं को अपनी उंगलियों से समेटा और चेहरे पर कठोर भाव लिए बिस्तर से उठी और डैस्क पर जा बैठी. उस ने कागजकलम उठाई और कुछ लिखने लगी. उस का चेहरा गुस्से से कठोर जरूर था पर उस की आंखों से अब भी अनवरत आंसुओं का बहना जारी था. उस ने कागज पर लिखे अपने अल्फाजों को मन ही मन पढ़ा और फिर उठ कर अलमारी की तरफ बढ़ गई.

उस ने अलमारी को खोला और उस में कुछ टटोलने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अतिमत्त्वपूर्ण चीज की तलाश में जुट गई हो.

अचानक उस की वह तलाश पूरी हो गई और वह जहर की एक छोटी सी शीशी को निहारती हुई मुसकराई.

अलका के होंठों पर एक हलकी सी मुसकान थी, ‘‘मैं ने तुम्हारे बिना एक पल भी रहने की कभी कल्पना तक नहीं की अक्षत. तुम मुझे छोड़ सकते हो पर मैं नहीं. मैं तुम्हें किसी और के साथ कभी नहीं देख सकती न जीते जी और न मरने के बाद. अलका अपना सबकुछ खो सकती है और उस ने खोया भी है केवल तुम्हारे लिए. तुम्हें पाने के लिए सबकुछ करेगी, सबकुछ बशर्ते कि मुहब्बत हो तुम से. अब तुम दिव्यांशी के साथ रहोगे तो जरूर लेकिन… जेल में. अपना खयाल रखना… अक्षत.’’

अलका की मुसकान और भी गहरी हो गई. वह मुसकान जो उस की जीत की थी. उस जीत की जो उस ने हासिल की थी, परिवार, समाज और रूढि़यों के विरुद्ध. उस जीत की जो उस ने हासिल की थी छद्म नारीवादी पुरुष के विरुद्ध. उस जीत की जो बीच थी धोखे और समर्पण के. उस ने अलमारी का जोर से बंद कर दिया.

पुलिसकर्मी ने सुसाइड नोट को पढ़ कर समेटना शुरू कर दिया. उस ने अक्षत की ओर गुस्से और नफरत भरी निगाहों से दृष्टिपात किया, पर वह अब भी शून्य में  झांक रहा था. वह अतीत के पन्नों से बाहर नहीं आना चाहता था, जहां सिर्फ प्यार ही प्यार था, अब तो सिर्फ और सिर्फ नफरत थी सब की नजरों में. उस के लिए.

शून्य में ठहरी उस की आंखें आंसू बहा रही थीं, दिल लानत बरसा रहा था और दुनिया जैसे नफरत से धिक्कार रही थी.

गाड़ी हौर्न बजाती हुई थाने में प्रवेश कर गई और अक्षत अपनी आखिरी मंजिल पर पहुंच गया.

डा. राजकुमारी

Valentine’s Special : पनाह – कौनसा गुनाह कर बैठी थी अनामिका

Valentine’s Special :  अलसाई हुई सी धूप लान की घास पर से उतरती हुई समुद्र किनारे की रेत पर आ बैठी थी. अनामिका आर्म चेयर पर आँखें मूँदे लेटी थी. इतने में एक तेज़ हवा के झोंके ने उसे कंपकँपा दिया और उसने अपना गुलाबी सिल्क का स्कार्फ़ कंधे पर से उतारकर अपने बदन पर लपेटकर उसे चूम लिया. अभी तक उसके वार्डरोब में इन शोख़ रंगो के लिए कोई जगह नहीं थी. बिलकुल उसके दिल की तरह जिसमें सिर्फ़ उदासी, एकाकीपन के सफ़ेद काले रंगों का ही साम्राज्य था . पर आर्यन नाम के रंगरेज ने उसकी ज़िंदगी को, उसके दिल को चटक रंगो से सरोबार कर दिया था.

उसने घड़ी की तरफ़ नज़र डाली और बेचैनी से आर्यन का इंतज़ार करने लगी. आर्यन बैंकाक से लौटने वाला था. अँधेरा गहराने पर वह आर्म चेयर पर से उठ खड़ी हुई और पैरों में स्लीपर डाले अपने कमरे में लगे बड़े आइने तक आयी. आर्यन के प्यार की मख़मली छींट ने उसके गुलाब से चेहरे की रंगत को और भी बढ़ा दिया था जिसे देखकर वह स्वयं मुग्ध हो गई. उसने नीले रंग का गाउन निकालकर पहन लिया. नीला रंग आर्यन को बेहद पसंद था. उसे मालूम था आर्यन उसे टीशर्ट और ट्रैकपैंट में देखते ही कहेगा,’क्यों अपने साथ इतनी नाइंसाफ़ी करती हो, कायनात ने दिल खोलकर नूर बरसाया है आप पर और आप हैं कि आपको इसकी बिल्कूल क़द्र ही नहीं है. मॉडर्न कपड़ों में आप नाज़ुक सी कॉलेज गोइंग गर्ल लगती हैं.’ सोचते ही अनामिका के लबों पर मुस्कान दौड़ गई .

आर्यन के ना पहुँचने पर अनामिका ने उसे फ़ोन लगाया .

” तुम अभी तक आए नहीं ? गाड़ी ड्राइवर तो तुम्हें एरपोर्ट पर मिल गए होंगे ना ?”

” हाई स्वीट हार्ट ! शिट! आई ऐम सो सॉरी! मैं आपको मैसेज करना ही भूल गया । जब आपका काल आया मैं मार्केट में था. वहाँ पर नेटवर्क इश्यू होने से आप से बात ही नहीं हो पाई. अच्छा एक गुड न्यूज़ है, डील पक्की हो गई है. वो लोग हर हफ़्ते माल इम्पोर्ट के लिए तैयार हो गए हैं.”

” ओके, बाई ! कल मिलते हैं. मिसिंग यू !” उसकी ख़ुशी उसकी आवाज़ में झलक रही थी.

” बच्चा है बिलकुल . जल्दी आ जाओ .. आई ऐम मिसिंग यू टू ” फ़ोन रख उसने साइड टेबल पर रखे फ़ोटो फ़्रेम में लगी आर्यन की फ़ोटो को चूमते हुए कहा. आज बहुत अरसे बाद उसने अपना ब्लॉग खोला था जिसमें वह अपनी भावनाओं को , ज़िंदगी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बयां करती थी. उसके डैड कहा करते थे उसमें ये आदत उसकी माँ से आई है वह भी वक़्त निकालकर रोज़ एक कविता ज़रूर लिखती थी .माँ को उसने बचपन में ही खो दिया था .

उसके डैड प्रशासनिक सेवा में उच्च अधिकारी थे . उन्होंने उसे माँ बाप दोनों का प्यार देने की भरसक कोशिश की . वह बचपन से ही गम्भीर स्वभाव की थी . दो साल पहले पिता की अकस्मात् मृत्यु ने तो उसे बिलकुल ही ख़ामोश बना दिया था. एक गम्भीरता , रूखापन उसके वजूद का हिस्सा बन गए थे . इस अबेधी आवरण को तोड़कर उसके दिल तक पहुँचना किसी के लिए भी आसान नहीं था.

वह मुंबई की प्रसिद्ध मैनज्मेंट कॉलेज में बिज़्नेस प्लानिंग की प्रोफ़ेसर थी . बात क़रीब दो साल पहले की है . एमबीए की फ़र्स्ट ईयर की क्लास में पहला पिरीयड अनामिका का ही था . आर्यन अक्सर आधा पिरीयड निकल जाने पर क्लास में आ ता था. कईदिनों तक तो अनामिका कुछ नहीं बोली , पर उस दिन उसे वार्न कर दिया,

” आज का दिन आप क्लास के बाहर ही रहिए , कल अपने आप समय से क्लास में हाज़िर हो जाएँगे .” वह बिना किसी बहस के सिर झुकाता हुआ क्लास से बाहर निकल गया . बाद में स्टाफ़ रूम में उसकी इकलौती सहेली पल्लवी से उसे पता चला की वह किस मजबूरी के चलते लेट आ रहा था .

” आज तेरी क्लास के समय आर्यन लॉन में क्यों था ?”

“इन जैसे लड़कों को पढ़ने से कोई लेना – देना नहीं है ये अपने पिता की पावर के दम पर सिर्फ़ डिग्री हासिल करने कॉलेज चले आते हैं .”

” तू आर्यन के बारे में ग़लत सोच रही है . उसके तो पिता ही नहीं है . वह बोरिवली में एक एनजीओ द्वारा संचालित बॉय्ज़ होम में रहकर पला – बढ़ा है . उसे यहाँ तक पहुँचने में दो ट्रेन बदलनी पड़ती है . बहुत ही अच्छा लड़का है , दूसरों से बिलकुल हटकर . तू एक काम कर सकती है . उसे अपने बंगले पर पेइंग गेस्ट की तरह रख ले . इससे अंकल के जाने के बाद तेरी ज़िंदगी में आया सूनापन भी भर जाएगा .”

उस समय तो उसने पल्लवी की बात को हवा में उड़ा दिया था . पर साल भर में अनामिका ने भी परख लिया था कि आर्यन पढ़ाई के प्रति कितना गम्भीर है . वह अपना अतिरिक्त समय और लड़कों की तरह कैंटीन में ना बिता लाइब्रेरी में बिताता था और शाम के समय स्कूली बच्चों के ट्यूशन्स ले अपना ख़र्चा ख़ुद निकालता था .

बहुत सोच – विचार के बाद अनामिका ने पल्लवी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था . उसका ज़ूहु पर सी फ़ेसिंग बंगलो था जिससे कॉलेज दस मिनीट की ही दूरी पर था . अब आर्यन, अनामिका के साथ उसकी गाड़ी में ही कॉलेज जानेआने लगा था . आर्यन के सानिध्य से अनामिका के आँसू हँसी में और उदासी शोख़ी में बदल गई थी . दोनों साथ में बैठ कर पढ़ा करते थे . अनामिका अपनी थिसिस लिखती और आर्यन इग्ज़ाम की तैयारी करता . कुछ लिखते – पढ़ते समय उसके हाथ से आर्यन का हाथ छू जाए तो उसके मन के तार झन्कृत होने लगते थे . दोनों के दरमियान एक अजीब सी मादकता और तन्मयता पसरी रहती . एक दिन ऐसे ही अवसर पर आर्यन ने अनामिका का हाथ पकड़ लिया .

“मैम आपको नहीं लगता अब हमारे रिश्ते को एक नाम मिल जाना चाहिए ?” कहते हुए आर्यन कुर्सी पर से उठकर उसके पैरों के पास घास पर ही बैठ गया .

“विल यू मैरी मी ?”उसके स्वर में भावुक सी याचना थी . पल भर को वह सिर से पैर तक काँप उठी .

” पागल मत बनो आर्यन .. एक बार ये सोचने से पहले हम दोनों के बीच का उम्र का फ़ासला तो देख लेते . ”

” मैंने आपसे प्यार करते वक़्त आपकी उम्र को नही आपकी रूह को परखा था .”और उसने अनामिका के लिए एक शायरी कह डाली .

“पनाह मिल जाए रूह को

जिसका हाथ छूकर

उसी की हथेली को घर बना लो ”

” अच्छा तो आप शायरी भी कर लेते हैं ?”

” कॉपी पेस्ट है .” आर्यन ने शरारत से कहा .

. आर्यन , अनामिका की ज़िन्दगी में ताजे हवा के झोंके की तरह था . उसका ऐसा साथी जिसका साहचर्य उसे ख़ुशी देता था पर उसे वह बच्चा ही मानती थी . उनके बीच कभी प्रणय का फूल भी खिल सकता है इसकी तो अनामिका ने कभी कल्पना भी नहीं की थी .बड़ी देर तक इसी उधेड़बुन में डूबे जाने कब उसे गहरी नींद ने घेर लिया .

◦ सवेरे उसके कमरे की खिड़की पर बैठे कबूतर की गुटर गु ने उसे नींद से जगा दिया नहीं तो जाने वह कितनी देर तक सोती रहती . आज उसे मौसम और दिनों से अलग लग रहा था . आसमान में तैर रहे गुलाबी बादलों की आभा में उसकी खिड़की पर लटक कर आ रही रंगून क्रीपर भी गुलाबी लग रही थी क्योंकि आज उसके मन का मौसम गुलाबी हो रहा था .एक नई ज़िंदगी उसे बाँहें फैलाकर अपनी गोद में बुला रहे थे .

◦ आर्यन की फ़ाइनल इग्ज़ैम्ज़ हो जाने पर दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली और बैंकॉक के लिए निकल गए . बैंकॉक चुनने के पीछे एक और कारण था , आर्यन वहाँ से इम्पोर्ट का बिज़्नेस शुरू करना चाहता था . उन्होंने चाओ फ्राया रिवर के पास की होटेल में रूम ले लिया था . दोनों के लिए सबकुछ स्वप्न की तरह था . एक ख़ुमारी , एक अनकही सी अनुभूति भरे वह लम्हे जिसे हर दिल हमेशा के लिए संजो लेना चाहता हो . आर्यन , अनामिका को रिवर फ़्रंट पर बिठाकर ख़ुद पास ही स्थित परत्युमन मार्केट केलिए निकल जाता था. अनामिका घंटों बैठी हुई दूर – दूर तक फैले हुए उस नदी के विस्तार को , उसके दामन में विहार करती नौकाओं को निहारती रहती . उसकी छुट्टियाँ ख़त्म होने को थी . पंद्रह दिन बाद वो फिर से मुंबई आ गई और आर्यन दो दिन बाद लौटने वाला था .

सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था एक हसीन ख़्वाब की तरह .महीने भर बाद ही अनामिका को नन्हें क़दमों की आहट हुई थी . उस दिन उसने डिनर मेपुडिंग के तीन बोल डाइनिंग टेबल पर रखे . एक बोल उसने आर्यन के आगे कर दिया और दो बोल ख़ुद लेकर बैठ गई .

आप ग़लती से दो बोल ले आई है .”

” ग़लती से नहीं , एक मेरा और एक ..”उसने अपने पेट पर हाथ रख लिया .

“आई नो , आपको पुडिंग बहुत पसंद है . एक से आपका जी ही नहीं भरता है .” कहकर आर्यन खिलखिलाने लगा .

” बुद्धू तुम डैड बनने वाले हो .”

सुनकर आर्यन ख़ुश नहीं असमंजस में था. उसे समझ नहीं आया वह क्या प्रतिक्रिया दे . इसके लिए शायद वो मानसिक रूप से तैयार ही नहीं था .

एक महीने बाद अनामिका की डिलिवरी होने वाली थी . इधर आर्यन की व्यस्तता बढ़ती जा रही थी . उसका एक पैर बैंकॉक और एक मुंबई में रहता था . पर जितना समय वह अनामिका के पास रहता उसे पलकों पर बिठाकर रखता था .

” बस अब पंद्रह दिन अपने सारे टूर कैन्सल कर दो . मुझे अकेले डर लगता है . डॉक्टर कह रही थी अब बेबी कभी भी इस दुनिया में क़दम रख सकता है . मैं चाहती हूँ अब तुम पूरा समय मेरे साथ रहो . मुझे लेबर पेन के नाम से ही डर लगता है . “सुनते ही उसने अनामिका का चेहरा हाथ में ले लिया .

” मैं हूँ ना .. मैं अपनी अनामिका को कुछ नहीं होने दूँगा . ”

कहते हुए उसने अनामिका के हाथ की छोटी – छोटी अंगुलिया अपनी अंगुलियों के बीच फँसा ली .

“कहते है माँ के सामने जिसका चेहरा होता है बेबी में उसकी छवि आती है . ” आर्यन कभी भी अनामिका की बात नहीं टालता था . वह उसे हर हाल में ख़ुश देखना चाहता था . यही नहीं उसने लेबर रूम की विडीओ ग्राफ़ीकर उनके जीवन में आए उन अनमोल पलों को भी सदा के लिए क़ैद कर लिया .

उन्होंने उस नन्ही परी का नाम आर्या रखा . वह बिलकुल अपने पिता की शक्ल लिए थी . गोरा चिट्टा रंग , सुनहरे बाल और भोले चेहरे के बीच भूरी चमकीली आँखें . अब अनामिका की ज़िंदगी आर्या तक ही सिमट कर रह गई थी .

इधर कई दिनों से अनामिका ,आर्यन में बदलाव सा महसूस कर रही थी . अब वह जब तब आवेश में आकर उसे गोद में उठाने की , बाँहों में भरने की या बात बात पर उसे चूमने की चेष्टा नहीं करता था . हाँ वह आर्या से बहुत प्यार करता था . पर उसके प्रेम में पिता वाला बड़प्पन , दुलार या चिंता नहीं थी बल्कि एक बेफ़िक्री और आकर्षण था जो एक बच्चे को अपने प्रिय खिलौने के प्रति होता है . वह समझ गई थी उसे अपनी ज़िम्मेदारियों को समझने के लिए थोड़ा वक़्त देने की ज़रूरत है . अब आर्या एक महीने की हो गई थी . उस दिन वो पिंक नैट की फ़्रॉक में थी .

“वाउ ! माई स्वीट प्रीटी डॉल .. लेट्स टेक अ सेल्फ़ी ”

” ग्रेट आइडिया ! वैसे भी हमारी एक भी फ़ैमिली पिक नहीं है .” उस फ़ोटो को अनामिका ने अपने मोबाइल पर प्रोफ़ायल पिक की तरह सेट कर दिया और फिर आर्यन के फ़ोन को लेकर उस पर भी सेट करने लगी . इतने में स्क्रीन पर एक मैसेज पॉप अप हुआ . अनामिका ने उस मैसेज को खोला जिस पर लिखा था ” मिसिंग यू “.

अनामिका ने फ़ोन आर्यन की तरफ़ बढ़ा दिया . उसकी मासूम आँखों में प्रश्न थे .

” अनामिका मैं आपसे इस बारे में बात करने ही वाला था . ये चिमलिन है . आप ही की तरह बहुत प्यारी और मासूम है . मैं आप दोनों से बहुत प्यार करता हूँ पर इसे भी नहीं छोड़ सकता . ये मजबूरी के चलते सेक्स वर्कर की तरह काम कर रही थी . पर दिल की बहुत अच्छी है .इसकी वहाँ के होलसेल मार्केट्स में बहुत पहचान है . अनामिका आज मैं जो भी हूँ इसी की बदौलत हूँ . वर्ना मैं इतना बड़ा बिज़्नेस खड़ा नहीं कर पाता . उसे मेरी ज़रूरत है . और उसने मुझसे वादा किया है कि वह जल्दी ही उस दुनिया से बाहर आ जाएगी . आप उसे अपनी छोटी बहन की तरह नहीं अपना सकती ? मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ कि उसके आने से हमारे रिश्ते पर कोई आँच नहीं आएगी .”

अनामिका निशब्द सी सब सुन रही थी उसे लगा कोई उसके कानो में पिघला हुआ शीशा उँडेल रहा हो . कहते हुए आर्यन उसके कंधे पर अपना सिर रखने लगा . अनामिका धीरे से उसका सिर हटा देती है .

” आई ऐम सॉरी ! नाराज़ हो क्या ? “आर्यन केपूछने पर अनामिका चीख़ – चीख़ कर कहना चाहती थी उसे तुम्हारी ज़रूरत है और हम दोनों ? आज तुम जो भी हो उसकी बदौलत हो . मेरे प्यार का, समर्पण का क्या ? मैंने तुम्हें अपने दिल में पनाह दी अपने घर में जगह दी .” पर नहीं कह पाई जैसे उसकी आवाज़ गले में ही घुट गई थी . उसकी तरफ़ से कोई भी जवाब ना मिलने पर आर्यन वहाँ से उठकर चला गया . वह उसे तब तक देखती रहती है जब तक वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया . उसे लगता है वह उन लोगों से बहुत दूर चला गया है .

,उस दिन के बाद से घर में एक ख़ामोशी , एक सूनापन सा पसर गया . आर्यन हफ़्ते भर से बैंकॉक में था . अनामिका निरुद्देश्य सी लॉन में बैठी हुई थी . शाम का धुँधलका उसके मन को और भी विचलित कर रहा था .लॉन पर रखी टेबल पर , बग़ीचे के मुस्कुराते फूलो पर उसे आर्यन का ही वजूद नज़र आ रहा था . उसकी नज़र सामने खड़े गुलमोहर के पेड़ के तने पर ख़ुदेदिल में लिखे दोनों के नाम पर जाती है और वह आँखें मूँद कर बैठ जाती है . ” तो क्या आर्यन का प्यार मात्र मेरा भ्रम था . एक छलावा था . नहीं वह स्पर्श जिसने उसके मेरे तन – मन को भिगो दिया था , उसकी आँखों से छलकता मौन प्रेम जो उसके हृदय को परत दर परत खोल कर रख देता है . भ्रम नहीं हो सकता . “वह आर्यन को फ़ोन लगाती है . तीन चार बार फ़ोन लगाने पर आर्यन फ़ोन नहीं उठाता है तो उसे लगता है आर्यन उनसे रूठ कर बहुत दूर चला गया है .

अनामिका की सारी रात करवटें बदलने में ही निकल गई . सुबह होने को है पर आसमान अभी भी अंधेरे की गिरफ़्त में है . उसे लगता है यह अंधकार धीरे – धीरे उस पर भी हावी हो रहा है . वह सहमकर बैठ जाती है . वह फिर से आर्यन को फ़ोन लगाती है . सामने से लड़की की आवाज़ सुनकर फ़ोन रखने ही वाली होती है कि , ” आई ऐम फ्रॉम सिटी हॉस्पिटल बैंकॉक .”

हॉस्पिटल का नाम सुनते ही फ़ोन पर से उसकी पकड़ ढीली होने लगती है पर वह अपने आप को संभाल लेती है . उसे बताया जाता हैं कि आर्यन में कोरोना वाइरस के प्रारम्भिक लक्षण दिख रहे हैं इसलिए उसे आइसोलेटेड वार्ड में रखा गया है . बहुत गुज़ारिश करने पर वो आर्यन की बात करवाने को तैयार हो जाते हैं .

” हेलो , अनामिका .. मुझे ले जाओ यहाँ से .. मैं बेहद अकेला पड़ गया हूँ . मुझे कुछ नहीं हुआ है , सिर्फ़ वाइरल था . मेरे रिपोर्ट्स भी नोर्मल आई है पर ये लोग कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है . “इसके बाद आर्यन की आवाज़ सिसकियों में बदल गई .

अनामिका की सांसें थम सी जाती है . उसे अपने शरीर में असीम पीड़ा का अनुभव होता है . तब उसे अहसास होता है आर्यन के प्यार की जड़ें उसके हृदय की कितनी गहराई तक जमी हुई है . वह अपने डैड के सम्पर्क के बल पर आर्यन को भारत लाने के लिए एड़ी – चोटी का ज़ोर लगा देती है .

उसकी भाग – दौड़ का नतीजा है कि आर्यन आज एक महीने बाद लौटने वाला है . पर आज से उसने अपनी कॉलेज भी जॉंइन कर ली है और आर्या के लिए भी वहीं डे केर की व्यवस्था कर दी है .वह आर्यन के लिए अपने बंगले के पास वाला क्वॉर्टर खुलवाँ देती है और आर्यन का सारा सामान भी वहीं शिफ़्ट करवा देती है . क्वार्टर के दरवाज़े पर आर्यन के लिए एक चिट छोड़ दी.

” अपने दिल में पनाह देने के लिए शुक्रिया ! मैं मानती हूँ जीवन के ख़ूबसूरत सफ़र में राही मिल जाया करते है. पर हम हर एक अनजान राही के साथ आशियाना बनाने की भूल तो नहीं करते है . बस मैं यही गुनाह कर बैठी . मेरा सब कुछ तुम्हारा है क्योंकि मैंने प्यार किया है तुमसे . सच्चा प्यार लेना नहीं देना सिखाता है . पर माफ़ करना आर्यन इस बेवफ़ाई के बदले में तुम्हें फिर से अपने दिल में पनाह ना दे पाऊँगी .

तुम्हारी ,

अनामिका मैम

लेखिका- मेहा गुप्ता 

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